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- छोटी-छोटी गलतियां ही एक दिन बड़ी समस्या की वजह बन जाती हैं, इसलिए व्यक्ति को कोशिश करनी चाहिए कि किसी भी काम को वो इतनी लगन से करे कि गलतियों की गुंजाइश ही न रहे. अगर एक बार जो गलती हो भी जाए तो वो दोबारा न दोहराई जाए. जब कोई गलती बार बार दोहराई जाती है, तो वो एक दिन बड़ी समस्या बन जाती है. इसके अलावा व्यक्ति को हमेशा दूरदर्शी होना चाहिए.यदि व्यक्ति पहले से स्थितियों का आकलन कर लेगा, तो उससे निपटने के लिए रणनीति आसानी से तैयार कर सकता है. आचार्य चाणक्य का भी यही मानना था. आचार्य चाणक्य खुद भी बहुत दूरदर्शी थे. वो पहले से ही हालात को भांप लेते थे और उसके हिसाब से अपनी रणनीति को तैयार करते थे. ये उनकी दूरदर्शिता और बुद्धि कौशल का ही नतीजा था कि उन्होंने एक साधारण से बालक को भी सम्राट बना दिया था. आचार्य ने अपने अनुभवों को अपने ग्रंथ नीति शास्त्र में लिखा है. आप भी आचार्य के अनुभवों को जीवन में उतारकर तमाम समस्याओं से बच सकते हैं. जानिए चाणक्य नीति की वो बातें जो आपको बड़े संकटों से बचा सकती हैं.दृष्टिपूतं न्यसेत्पादं वस्त्रपूतं जलं पिबेत्सत्यपूतं वदेद्वाचं मनः पूतं समाचरेत्…1. इस श्लोक के जरिए आचार्य चाणक्य कहते हैं कि चलते समय अपनी नजर नीचे जरूर रखें क्योंकि जरा सी चूक होने पर व्यक्ति को चोट लग सकती है. यदि आप चलते समय सजग नहीं रहेंगे तो मुसीबत को खुद ही न्योता देंगे.2. मुसीबत से बचने का दूसरा तरीका ये है कि खुद को स्वस्थ रखा जाए. अगर आप स्वच्छता का ध्यान नहीं रखते तो बीमारियां आपको घेर लेती हैं. स्वच्छता सिर्फ शरीर की ही नहीं, बल्कि खानपान की भी होनी चाहिए. आचार्य ने व्यक्ति को हमेशा पानी कपड़े से छानकर पीने के लिए कहा है. आचार्य की ये बात आज भी काम आ रही है. आज कपड़े की जगह लोग प्योरीफायर का इस्तेमाल करते हैं.3. किसी भी काम को पूरे मन से करें यानी काम को करते समय हर प्रकार से सोचें, समझें और निष्कर्ष तक पहुंचें. इस तरह अपनी बुद्धि का सही प्रयोग करके कोई फैसला लें. बगैर सोचे किए जाने वाले काम मुसीबत में डालने का काम करते हैं.4. मुसीबत में फंसने का एक बहुत बड़ा कारण झूठ भी होता है. एक झूठ को छिपाने के लिए व्यक्ति को कई झूठ बोलने पड़ते हैं. ऐसे में एक न एक दिन उसका झूठ जरूर पकड़ा जाता है. इससे व्यक्ति अपना विश्वास, मान और सम्मान तो खोता ही है, साथ ही कई बार इसकी वजह से दूसरी मुश्किल भी बढ़ सकती है. इसलिए किसी भी बात के लिए कभी झूठ का सहारा न लें.
- किसी न किसी तरह से, हम सभी अपने सितारों से बंधे होते हैं और ये हमारे जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं. ये सितारे हमारे जीवन लक्षणों को संरेखित करने में मदद करते हैं और इसलिए हम उसी के आधार पर दूसरों को चुन सकते हैं. प्रत्येक राशि में विशिष्ट लक्षण होते हैं जो हमें ये तय करने में मदद करते हैं कि क्या हम जिस व्यक्ति के साथ अपना जीवन बिताना चाहते हैं वो ईमानदार, स्वतंत्र, वफादार, संगत आदि है. हालांकि, व्यक्तित्व लक्षण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में अलग हो सकते हैं, आप आसानी से अपने आधार पर अपनी अनुकूलता की जांच कर सकते हैं.आइए इसे बेहतर ढंग से समझने के लिए अलग-अलग राशियों पर एक नजर डालते हैं.1. मेष राशिइस राशि के तहत पैदा हुए लोग जीवन के प्रति अपने बेहद आत्मविश्वास और सकारात्मक दृष्टिकोण के कारण स्वाभाविक रूप से आकर्षक होते हैं. वो ईमानदार रहना पसंद करते हैं, और यही बात उनके साथी के प्रति उनकी वफादारी को स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है.उनके पास एक जीवंत व्यक्तित्व है जो एडिक्टिव है, और लोग उनके आस-पास रहना पसंद करते हैं. इसलिए, एक साथी के रूप में, उनके साथ हमेशा अच्छा समय व्यतीत होता है. वो रखवाले हैं क्योंकि वो लोगों के कठिन समय में खड़े रहते हैं, सभी तरह से ईमानदार रहते हैं, यही वजह है कि लोग आसानी से उनके प्यार में पड़ जाते हैं.2. वृषभ राशिइस राशि में जन्म लेने वाले लोग क्विक निर्णय लेने की अंतर्दृष्टि के साथ अडोरेबल होते हैं. वो वफादार और स्थिर व्यक्ति हैं, यही वजह है कि उनके साथी हमेशा उनके साथ सुरक्षित महसूस करेंगे. उनकी सबसे अच्छी विशेषता ये है कि वो अपने प्रियजनों के साथ मोटे और पतले रहते हैं.वो शुक्र ग्रह द्वारा शासित हैं और इसलिए उनमें हाई सेंसुऐलिटी और अट्रैक्शन है. इस राशि के लोग समान विचारधारा वाले लोगों के साथ रहना पसंद करते हैं जो वफादार और दिलचस्प दोनों होते हैं. इसलिए, उनके रिश्ते मूल्यवान हैं और दीर्घकालिक हैं.3. मिथुन राशिमिथुन को सामाजिक होना पसंद है और उनकी बहुत बड़ी मित्र मंडली है. ये उनका आउटगोइंग नेचर और खुशमिजाज रवैया है जो उन्हें छेड़खानी में महान बनाता है. साथ ही, स्पष्ट दृष्टि और करिश्माई व्यक्तित्व के कारण उनके लिए अपना आदर्श मैच खोजना मुश्किल नहीं है.अपने व्यक्तित्व के कारण, वो ऐसे लोगों को पसंद करते हैं जो समान दृष्टिकोण से प्रतिध्वनित होते हैं और एक ऐसे सामाजिक दायरे में रहना चाहते हैं जो हमेशा जीवन में उच्च हो. वो रोमांटिक पार्टनर हैं और अपने bae को सरप्राइज देने का कोई मौका नहीं छोड़ते.वो स्वतंत्र आत्मा हैं और उन्हें नियंत्रित करने वाले भागीदारों को पसंद नहीं करते हैं जो उन्हें प्रतिबंधित करते हैं. बल्कि, वो हमेशा किसी ऐसे व्यक्ति को चाहेंगे जो उनके सच्चे सेल्फ की प्रशंसा करे.4. कर्क राशिये एक संवेदनशील और वफादार रवैये के साथ एक अत्यधिक भावनात्मक संकेत है जो ये बहुत स्पष्ट करता है कि उन्हें एक अत्यंत संवेदनशील और देखभाल करने वाले साथी की आवश्यकता है.उन्हें अपनी भावनाओं के लिए न्याय करना पसंद नहीं है और इसलिए किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता होती है जो उन्हें गले लगाए और उन्हें किसी और के होने के लिए मजबूर न करे. इस चिन्ह के तहत पैदा हुए लोग पार्टी के जानवर नहीं होते हैं और अपने खास लोगों के साथ घर या निजी खाने की मेज पर एकांत जगह पर समय बिताना पसंद करते हैं.वो लोगों पर बहुत भरोसा नहीं करते हैं और इसलिए किसी नए के साथ सहज होने के लिए समय निकालते हैं. लेकिन एक बार ऐसा करने के बाद, वो एक मजबूत भावनात्मक संबंध के साथ लॉन्ग-टर्म रिलेशनशिप रखना पसंद करते हैं.5. सिंह राशिसिंह राशि का ध्यान आकर्षित करने वाला गुण है और इसलिए वो अपने साथी से अतिरिक्त प्रशंसा और ध्यान चाहते हैं. वो नैतिक लोग हैं जो अपने जीवन सिद्धांतों से समझौता नहीं करते हैं. अपने पार्टनर को लाड़-प्यार करने में अच्छे होते हैं, वो अपने प्रयासों से एक बुरे दिन को अच्छे में बदल सकते हैं. वो एक “शांत” व्यवहार करते हैं, जैसा कि वो हैं, उन्हें दूसरों से अलग करते हैं.वो सूर्य द्वारा शासित हैं और इसलिए गर्म और प्यार करने वाले हैं. वो महान प्रभाव और परिणामों के साथ संचालन करने के लिए सभी आवश्यक लक्षणों के साथ जन्मजात नेता होते हैं. वो आत्म-पुष्टि करने वाले व्यक्ति हैं जो अपने आत्म-मूल्य की मजबूत भावना रखते हैं.6. कन्या राशिकन्या राशि एक पृथ्वी चिन्ह है और इसलिए ये वफादार और भरोसेमंद लोग होते हैं. उनके पास एक विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण है और अक्सर आलोचकों को छोटी-छोटी बातों पर भी बदल देते हैं. उनका स्वभाव रूढ़िवादी होता है और इसलिए लोग उन्हें अत्यधिक आकर्षक पाते हैं.जिस कारण से लोग उनसे जुड़ना पसंद करते हैं, वो उनका अत्यधिक देखभाल करने वाला रवैया और उनकी अंतहीन दयालुता है जिसकी सभी प्रशंसा करते हैं. वो पूर्णतावादी हैं और बड़े होकर खुद का सबसे अच्छा वर्जन बनना चाहते हैं.7. तुला राशितुला राशि के जीवन की कुंजी संतुलन है. वो अपने रिश्ते में स्थिरता और प्यार चाहते हैं और हमेशा संदेह का लाभ देने को तैयार रहते हैं. यही वजह है कि ये अपने रिश्तों को आसानी से नहीं छोड़ते. वो शांत व्यक्ति हैं और किसी तर्क का हिस्सा बनना पसंद नहीं करते हैं.उनका सबसे बड़ा गुण ये है कि वो शांत स्वभाव के होते हैं और इसलिए आप उनके साथ आसानी से नहीं लड़ सकते. इस राशि में जन्म लेने वाले लोग अत्यधिक बौद्धिक और उदार होते हैं. उनके पास खुद के लिए एक कलात्मक सेल्फ है और प्रकृति और शांति में समय बिताना पसंद करते हैं.8. वृश्चिक राशिवो बुद्धिमान व्यक्ति हैं और उनका खुद का एक पक्ष है कि वो किसी के साथ साझा नहीं करना पसंद करते हैं. वो निजी लोग हैं और अपने विचार किसी के साथ साझा करना पसंद नहीं करते हैं. उनकी भावनाओं को जानना बहुत आसान नहीं होता है और इसलिए उनके पार्टनर को उनके प्रति बहुत संवेदनशील और समझदार होना पड़ता है.उनका मी-टाइम उनके लिए बेहद महत्वपूर्ण है और इसलिए वो केवल उन्हीं लोगों के साथ रहेंगे जो इसका सम्मान करते हैं. वो एक इंट्रोवर्टेड पक्ष वाले लोगों की देखभाल कर रहे हैं जिनका उनके सहयोगियों द्वारा सम्मान किया जाना चाहिए. ये बाहर से सख्त लेकिन बहुत नरम दिल के होते हैं अन्यथा यही उन्हें यूनिक और प्रिय बनाता है.9. धनु राशिधनु राशि वाले लोगों को हमेशा एक साहसी व्यक्ति के रूप में जाना जाता है और इसलिए उन्हें डेट करना हमेशा मजेदार होता है. उनकी ऊर्जा हमेशा हाई होती है, और वो बुद्धि और हास्य का एक प्रवाह रखते हैं जो उन्हें आकर्षण का केंद्र बनाते हैं.वो मजबूत नेतृत्व वाले, बहुमुखी और मनोरंजक होते हैं, यही वजह है कि वो अपने रिश्ते में हर दिन कुछ नया लाते हैं जो उनके साथी द्वारा पोषित और प्यार किया जाता है. वो ईमानदार लोग हैं जो अपने प्रियजनों के लिए एक्स्ट्रा माइल तक जा सकते हैं.10. मकर राशिदृढ़ता और निष्ठा ऐसे प्रमुख गुण हैं जो मकर राशि को अन्य सभी से अलग बनाते हैं. वो आवेगी लेकिन अनुशासित व्यक्ति होते हैं जो हमेशा अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हैं. इसलिए उनके पार्टनर को किसी बात की चिंता करने की जरूरत नहीं है.वो समान घरेलू स्थिरता वाले भागीदारों की तलाश करते हैं और विशेष रूप से किसी ऐसे व्यक्ति की प्रशंसा करते हैं जो अपने काम में मेहनती है. वो देखभाल करने वाले व्यक्ति होते हैं और यही मायने रखता है.11. कुम्भ राशिकुंभ राशि का कोई नकली पक्ष नहीं होता है. वो मिलनसार और दयालु लोग होते हैं जो किसी को चोट नहीं पहुंचाना चाहते हैं. वो मेहनती हैं और अपने लक्ष्य तक पहुंचने पर ध्यान केंद्रित करते हैं. सेल्फ-लव इस सूर्य राशि का सबसे बड़ा गुण है, और ये उनकी आंतरिक सुंदरता है जो सभी को उनके प्यार में पड़ने पर मजबूर कर देती है. वो जिद्दी व्यक्ति होते हैं और एक ऐसा साथी चाहते हैं जो उनकी प्रशंसा करे और उनका समर्थन करे.12. मीन राशिवो दयालु लोग हैं जो जीवन में बड़े सपने देखते हैं. ये उनके सहानुभूतिपूर्ण और वफादार रवैये के कारण है कि लोग उन्हें प्यार करते हैं, और उनके साथी न्याय किए जाने के डर के बिना आसानी से अपनी भावनाओं को साझा कर सकते हैं. वो ईमानदार हैं और अपने रिश्ते में पारदर्शिता रखने में विश्वास करते हैं. मीन राशि वाले लोगों की दक्षता को महत्व देते हैं और अपने भागीदारों को उनके जीवन में संगठित होने के लिए प्रोत्साहित करते हैं.
- हिंदू धर्म में किसी भी देवी-देवता की पूजा करते समय हमें कुछ नियमों को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए क्योंकि ऐसा करने पर हमारी साधना-आराधना शीघ्र ही फलीभूत होती है. जैसे ईश्वर की पूजा हमेशा शुद्ध और पवित्र मन से एक निश्चित स्थान पर एक निश्चित समय पर अपने आसन पर बैठ कर ही करनी चाहिए. पूजा के लिए कभी भी दूसरे के आसन या फिर जपमाला आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए. आइए शुभ फलों की प्राप्ति के लिए पूजा के जरूरी नियमों को जानते हैं.पूजा करते समय जरूर ढंकें अपना सिरपूजा करते समय हमारे यहां सिर ढंकने का नियम है. चूंकि सनातन परंपरा में पूजा के दौरान काला रंग वर्जित है. ऐसे में क्या स्त्री और क्या पुरुष अपने सिर को ढंककर ईश्वर के प्रति अपना आदर भाव जताते हैं. जब हम पूजा के दौरान अपना सिर ढंकते हैं तो हम उन नकारात्मक शक्तियों से भी बचे रहते हैं जो अक्सर साधना-आराधना में विघ्न डालती हैं.कैसे करें ईश्वर को प्रणामईश्वर को कभी एक हाथ से प्रणाम नहीं करना चाहिए. ईश्वर की मूर्ति को यदि स्पर्श करने का अवसर मिलता है तो आप अपने बाएं हाथ से उनका बायां पैर और दाएं हाथ से उनका दायां पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त करें. इसी तरह आप चाहें तो भगवान की मूर्ति के सामने जमीन पर पूरा लेटकर साष्टांग दंडवत या साष्टांग प्रणाम भी कर सकते हैं. हालांकि शास्त्रों के अनुसार साष्टांग प्रणाम सिर्फ पुरुष ही कर सकते हैं,स्त्रियों को ऐसा करने की मनाही है.तुलसी की पूजा का नियमभगवान विष्णु की प्रिय तुलसी को उनकी पूजा में प्रसाद स्वरूप अवश्य चढ़ाएं. यदि आप भगवान विष्णु की कृपा पाना चाहते हैं तो गुरुवार को विशेष रूप से तुलसी जी के पेड़ के नीचे शुद्ध देशी घी का दिया जलाएं. तुलसी के पौधे को कभी भी अपवित्र हाथ से न छुएं. तुलसी के पौधे से पत्तियां हमेशा स्नान करने के बाद पवित्र कपड़े धारण करके ही तोड़ना चाहिए. रात के समय, मंगलवार और रविवार के दिन तुलसी की पत्तियां भूल से भी न तोड़ें और न ही तुलसी के पौधे को उखाड़ें.दीपक से दीपक नहीं जलाएंईश्वर की पूजा के लिए जलाए जाने वाले दीपक को कभी भी किसी दूसरे दीपक से न जलाएं. उसे जलाने के लिए हमेशा एक नई माचिस की तीली का प्रयोग करें. भगवान विष्णु की पूजा में हमेशा शुद्ध घी का दिया जलाएं और शनिदेव की पूजा में सरसों के तेल का दिया जलाएं.
- पितरों को समर्पित पितृ पक्ष 2021की शुरुआत 20 सितंबर से होने जा रही है. 15 दिनों के पितृ पक्ष में पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए धर्म-कर्म किए जाते हैं. उनके निमित्त तर्पण किया जाता है और श्राद्ध की जाती है. इसलिए इसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है. मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष के दौरान पितर पृथ्वी लोक पर आते हैं क्योंकि इस बीच पितृलोक में जल का अभाव हो जाता है. ऐसे में अपने वंशजों द्वारा किए गए तर्पण और श्राद्ध से वे जल और भोजन ग्रहण करते हैं और प्रसन्न होते हैं.इसीलिए श्राद्ध पक्ष को पितरों द्वारा किए गए उपकारों का कर्ज चुकाने वाले दिन कहा जाता है. पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों के लिए कोई भी काम पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ करना चाहिए. कहा जाता है कि यदि पितृ प्रसन्न हो जाएं तो अपने बच्चों को आशीर्वाद देकर पितृ लोक लौटते हैं. पितरों के आशीर्वाद से परिवार खूब फलता-फूलता है. लेकिन अगर पितर कुपित हो जाएं, तो परिवार पर कई तरह के संकट आ सकते हैं. अगर आपको पितरों की नाराजगी से बचना है तो पितृ पक्ष में कुछ गलतियां भूलकर भी न करें.पितृ पक्ष में न करें ये गलतियां1. मांसाहारी भोजन न बनाएंपितृ पक्ष के दौरान घर में मांसाहारी भोजन और अंडा वगैरह न बनाएं. न ही इनका बाहर कहीं सेवन करें. इसके अलावा शराब से भी पूरी तरह से परहेज करें.2. बाल और नाखून न काटेंघर का जो सदस्य पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म करता है, इन 15 दिनों के बीच अपने बाल और नाखून नहीं काटने चाहिए. इसके अलावा पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.3. सूर्यास्त के बाद श्राद्ध न करेंजब भी श्राद्ध करें तो इसे सुबह से लेकर 12:30 बजे तक कर दें. ये समय काफी शुभ माना जाता है. सूर्यास्त के बाद भूलकर भी ऐसा न करें.4. जरूरतमंदों को न सताएंपितृ पक्ष में किसी भी जरूरतमंद, बुजुर्ग, जानवरों या पक्षियों को न सताएं. उनकी सेवा करें. अगर आपके दरवाजे पर कोई जानवर या पक्षी आए तो उसे भोजन जरूर कराएं. मान्यता है कि पितृ पक्ष में कई बार इनके रूप में हमारे पूर्वज आते हैं.5. ब्राह्मण को पत्तल में भोजन कराएंश्राद्ध के दौरान ब्राह्मण को पत्तल में भोजन कराएं या धातु के बर्तन का इस्तेमाल करें. कांच या प्लास्टिक के बर्तनों का इस्तेमाल न करें.6. शुभ काम न करेंश्राद्ध पक्ष के दौरान कोई भी शुभ काम जैसे शादी, मुंडन, सगाई और घर की खरीददारी वगैरह नहीं करने चाहिए. यहां तक कि कोई विशेष नई वस्तु भी नहीं खरीदनी चाहिए.=
- श्राद्ध पक्ष ही वह 16 दिवस है जब हमें श्याम वर्ण के पक्षी कौए की महत्ता का ज्ञान होता है। कौआ यम का प्रतीक है, मृत्यु का वाहन है, जो पुराणों में शुभ-अशुभ का संकेत देने वाला बताया गया है। इस कारण से पितृ पक्ष में श्राद्ध का एक भाग कौओं को भी दिया जाता है। श्राद्ध पक्ष में कौओं का बड़ा ही महत्व है। कौए के संबंध में पुराणों बहुत ही विचित्र बात बताई गई है, मान्यता है कि कौआ अतिथि आगमन का सूचक एवं पितरों का आश्रम स्थल माना जाता है। श्राद्ध पक्ष में कौआ अगर आपके दिए अन्न को आकर ग्रहण कर ले तो तो माना जाता है कि पितरों की आप पर कृपा हो गई।गरुड़ पुराण में तो कौए को यम का संदेश वाहक कहा गया है। श्राद्ध पक्ष में कौए का महत्व बहुत ही अधिक माना गया है। मान्यता है कि पितृपक्ष में यदि कोई भी व्यक्ति कौए को भोजन कराता है तो यह भोजन कौआ के माध्यम से उनके पितर ग्रहण करते है। शास्त्रों में बताया गया है कि कोई भी क्षमतावान आत्मा कौए के शरीर में विचरण कर सकती है। कौआ यम का दूत होता है।आश्विन महीने में कृष्णपक्ष के 16 दिनों में कौआ हर घर की छत का मेहमान होता है। लोग इनके दर्शन को तरसते हैं। ये 16 दिन श्राद्ध पक्ष के दिन माने जाते हैं। इन दिनों में कौए एवं पीपल को पितृ का प्रतीक माना जाता है। इन दिनों कौए को खाना खिलाकर एवं पीपल को पानी पिलाकर पितरों को तृप्त किया जाता है। धर्म ग्रंथ की एक कथा के अनुसार इस पक्षी ने देवताओं और राक्षसों के द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत को रस चख लिया था। यही कारण है कि कौए की कभी भी स्वाभाविक मृत्यु नहीं होती है। यह पक्षी कभी किसी बीमारी अथवा अपने वृद्धा अवस्था के कारण मृत्यु को प्राप्त नहीं होता। इसकी मृत्यु आकस्मिक रूप से होती है।यह बहुत ही रोचक है कि जिस दिन कौए की मृत्यु होती है, उस दिन उसका साथी भोजन ग्रहण नहीं करता। यह आपने कभी ख्याल किया हो तो कौआ कभी भी अकेले में भोजन ग्रहण नहीं करता। यह पक्षी किसी साथी के साथ मिलकर ही भोजन करता है। भोजन बांटकर खाने की सीख हर किसी को कौए से लेनी चाहिए। कौए के बारे में पुराण में बताया गया है कि किसी भविष्य में होने वाली घटनाओं का आभास पूर्व ही हो जाता है। कौए को यमस्वरूप भी माना जाता है और न्याय के देवता शनिदेव का वाहन भी है।कौआ का सबसे पहला रूप देवराज इंद्र के पुत्र जयंत ने लिया था। त्रेतायुग में एकबार जब भगवान राम ने अवतार लिया और जयंत ने कौए का रूप धारण कर माता सीता के पैर में चोंच मार दी थी। तब श्री राम ने तिनके से जयंत की आंख फोड़ दी थी। जयंत ने अपने किए की माफी मांगी, तब राम ने वरदान दिया कि पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोजन में तुम्हें हिस्सा मिलेगा। तभी से यह परम्परा चली आ रही है कि पितृ पक्ष में कौए को भी एक हिस्सा मिलता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 398
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज समन्वयवादी जगदगुरु हैं अर्थात उन्होंने अपना कोई पृथक वाद नहीं चलाया अपितु अपने पूर्ववर्ती समस्त मूल जगदगुरुओं के सिद्धांतों का समन्वय किया। उनकी समन्वयात्मक शैली उनके प्रवचनों व सिद्धान्तों में सर्वथा दृष्टिगोचर होती है। निम्नांकित प्रवचन-अंश में भी हम उनकी इसी विशेषता का दर्शन करते हुये मार्गदर्शन प्राप्त करेंगे...)
...हम सुख चाहते हैं अपना। बाहर से मतलब नहीं है, अपना सुख चाहते हैं। सुख!! सुख चाहते हो? हाँ, सुख। सब सुख चाहते हैं। हाँ!! तो फिर सब आस्तिक हैं, सब भगवान के भक्त हैं। क्योंकि भगवान का तो नाम ही है सुख, आनन्द। (रसो वै सः - वेद)
इसलिये सब आस्तिक भी हैं, सब वैष्णव भी हैं, सब भगवान के हैं, यानी बस एक सम्प्रदाय है सारी दुनियाँ में। अगर कोई पूछे कि आप किस सम्प्रदाय के हैं? आनन्द सम्प्रदाय के, भगवत सम्प्रदाय के। क्यों? इसलिये कि हम केवल भगवान को चाहते हैं। केवल आनन्द चाहते हैं, हम दुःख नहीं चाहते। और अगर और डिटेल में जाओ, तो फिर ये कह सकते हो कि हम आनन्द चाहते हैं, लेकिन मिला नहीं है। तो भगवान में आनन्द मानने लगे। प्रयत्न कर रहे हैं कि हम आस्तिक बन जायें, वैष्णव बन जायें, शैव बन जायें।
तो विश्व में वर्तमान काल में जो मायाधीन हैं वो आस्तिक नहीं, वैष्णव नहीं बन सकता। जब माया चली जायेगी और भगवान गवर्न करेंगे हमको, तब हम आस्तिक हुये। हर समय रियलाइज करेंगे तब। अंदर बैठे हैं, अंदर बैठे हैं। अभी तो मुँह से बोलते हैं, सबके अंदर बैठे हैं। घट घट व्यापक राम। अरे घट घट है क्या? तुम्हारे घट (हृदय) में है, ये तुम महसूस करते हो? अगर करो तो न कोई गवर्नमेन्ट की जरुरत है, न कोर्ट की, न पुलिस की। हर समय यह फीलिंग रहे कि वो अंदर बैठे हैं।
अगर इसका प्रचार करे, हर दुनियाँ की, देश की गवर्नमेन्ट कि सबके अंदर भगवान बैठे हैं। इसका प्रचार करे, भरे लोगों के, बच्चों के दिमाग में। तो अपराध अपने आप कम हो जायें। सब डरेंगे कि हाँ! वो (भगवान) नोट कर लेंगे, फिर दण्ड देंगे भगवान, इसलिये गलत काम नहीं करना है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० संदर्भ/स्त्रोत : जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'मैं कौन? मेरा कौन? विषय पर दिये गये ऐतिहासिक 103 प्रवचनों की श्रृंखला के 67 वें प्रवचन का एक अंश।०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - शनि देवता न्याय के देवता कहलाते हैं. उनकी कृपा अगर किसी पर हो जाए तो उसके वारे न्यारे हो जाते हैं. अगर गलती से भी शनिदेव (Shani Dev) कुपित हो गए तो वह राजा को भी रंक बना देते हैं. ऐसे में जरूरी है कि शनिदेव की कृपा बनी रहे. इसके लिए नियमित तौर पर शनिदेव का पूजा पाठ करना अनिवार्य होता है. कुंडली में अगर शनि दोष हो तो शनि देव को प्रसन्न करना बेहद जरूरी हो जाता है, वर्ना जिंदगी भर परेशानियों का सामना करना पड़ता है. हम आपको देश के 5 प्रसिद्ध शनि मंदिर (Famous Shani Temples) के बारे में बताने जा रहे हैं. मान्यता है कि इन मंदिरों में जाकर शनिदेव की पूजा करने से उनकी कृपा बनी रहती है.ये हैं शनिदेव के 5 प्रसिद्ध मंदिर1. शनि शिंगणापुर, महाराष्ट्र – शनिदेव का प्रसिद्ध मंदिर शनि शिंगणापुर महाराष्ट्र में स्थित है. इस मंदिर को बहुत ही चमत्कारिक माना जाता है. शनिदोष से पीड़ित लोगों को यहां आकर जरूर दर्शन करना चाहिए.2. शनि मंदिर, मध्यप्रदेश – मध्यप्रदेश के इंदौर में स्थित शनि मंदिर भी देशभर में ख्यात है. यहां शनिदेव का सोलह श्रृंगार किया जाता है. जूनी इंदौर इलाके में बना यह मंदिर काफी चमत्कारी माना जाता है.3. कोकिलावन धाम शनि मंदिर, यूपी – यह मंदिर उत्तर प्रदेश के मथुरा में स्थित है. कोसीकलां में स्थित यह मंदिर भी बेहद चमत्कारी माना जाता है. यह मंदिर बरसाना और श्री बांकेबिहारी मंदिर के नजदीक स्थित है. अगर किसी पर शनि की वक्र दृष्टि हो तो मान्यता है कि उसे इस मंदिर में जरूर आना चाहिए.4. सारंगपुर मंदिर, गुजरात – गुजरात के भावनगर स्थित सारंगपुर में बजरंगबली का एक बहुत प्राचीन मंदिर है. यह मंदिर अपने आप में इसलिए खास है क्योंकि इस मंदिर में हनुमान जी के साथ शनिदेव विराजित हैं. यह कष्टभंजन हनुमान मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. मंदिर को लेकर मान्यता है कि अगर किसी भक्त की कुंडली में शनि दोष है तो इस मंदिर में हनुमान जी की उपासना से शनिदोष दूर हो जाता है.5. शनि मंदिर, उज्जैन – महाकाल की नगरी उज्जैन के नजदीक सांवेर रोड़ पर प्राचीन शनिदेव का मंदिर है. इस मंदिर में नवग्रह स्थापना भी की गई है. इसलिए इस मंदिर को नवग्रह मंदिर के नाम से भी पहचाना जाता है.
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अनंत चतुर्दशी का पर्व 19 सितंबर को है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूपों की पूजा की जाती है। माना जाता है कि महाभारत काल में जब पांडव जुए में अपना सारा राज-पाट हार के वन में चले गए थे, तब भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने पांडवों को अनंत चतुर्दशी का व्रत करने की सलाह दी थी। इस व्रत को करने से भगवान विष्णु सारे संकट हर लेते हैं। तभी से इस दिन श्रीहरि का पूजा और व्रत रखा जाता है। आप भी अगर अनंत चतुर्दशी का व्रत रखने वाले हैं या पूजा करने वाले हैं तो सबसे जरूरी है भगवान का भोग। कोई भी पूजा भगवान को भोग लगाए बिना पूरी नहीं होती। ऐसे में अगर भोग भगवान की पसंद का हो तो प्रभु तो खुश होते ही हैं, पूजा भी सफल हो जाती है। अब सवाल है कि भगवान विष्णु का पसंदीदा भोग क्या है? वैसे तो भगवान विष्णु को पीले रंग से प्यार है। उनके बृहस्पतिवार के व्रत में गुड़ और चने का भोग लगाया जाता है, लेकिन अनंत चतुर्दशी के दिन आप श्रीहरि को खीर का भोग लगाएं। हो सकता है कि परिवार में किसी का व्रत हो या जिसे आप प्रसाद दें, उनमें से किसी का व्रत हो, इसलिए चावल की खीर न बनाकर स्वादिष्ट मखाने की खीर का भोग लगाएं, ताकि भगवान का प्रसाद सभी लोग ले सकें।
मखाना खीर बनाने की रेसिपी
सबसे पहले मध्यम आंच पर एक पैन में दूध उबाल लीजिए। जब दूध में पहला उबाल आ जाए तो उसमें मखाने डालकर तब तक पकाएं, जब तक कि दूध में पड़े मखाने पूरी तरह से गल न जाएं।
ध्यान रखें कि खीर जले न, इसलिए थोड़ी-थोड़ी देर में खीर को चलाते रहें। अब खीर में कटे हुए मेवे जैसे काजू, बादाम और किशमिश को डालकर मिला लें।
फिर खीर में चीनी डालकर अच्छी तरह चलाएं। 5 मिनट बाद इलायची पाउडर डालकर मिला लें और फिर आंच बंद कर दें। आपकी स्वादिष्ट मखाना खीर तैयार है।
-----ध्यान दें कि भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी का होना अनिवार्य होता है। इसलिए भगवान को भोग अर्पण करते समय तुलसी की पत्तियां जरूर चढ़ाएं और बाद में खीर में डालकर सभी में प्रसाद बांटे। -
इस समय हर जगह गणेश उत्सव मनाया जा रहा है। घर-घर बप्पा विराजे हुए हैं। दस दिनों तक चलने वाले गणेश उत्सव में प्रतिदिन विधि-विधान से बप्पा की पूजा-अर्चना की जाती है। इसके बाद अनंत चतुर्दशी के दिन बप्पा का विसर्जन कर दिया जाता है और बप्पा को अगले वर्ष आने की प्रार्थना की जाती है। कुछ लोग अपनी कामना अनुसार सातवें या नवें दिन भी विसर्जन कर देते हैं लेकिन बप्पा का विसर्जन गणेश उत्सव के पूर्ण होने पर ही करना चाहिए। जिस तरह से पूरे गणेश उत्सव के दौरान विधि पूर्वक पूजा अर्चना की जाती है उसी तरह से गणपति बप्पा का विसर्जन भी पूरे विधि-विधान से करना आवश्यक होता है। गणपति विसर्जन शुभ मुहूर्त में ही करना चाहिए और कुछ बातों को ध्यान में अवश्य रखना चाहिए। इस बार अनंत चतुर्दशी 19 सितंबर दिन रविवार को पड़ रही है, इसलिए इसी दिन गणेश विसर्जन किया जाएगा।
गणेश विसर्जन शुभ मुहूर्त-
चतुर्दशी तिथि आरंभ- 19 सितंबर 2021 दिन रविवार प्रात: 05 बजकर 59 मिनट से
चतुर्दशी तिथि समाप्त- 20 सितंबर 2021 दिन सोमवार प्रात: 05 बजकर 28 मिनट पर
प्रात: काल विसर्जन मुहूर्त- 07 बजकर 40 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 15 मिनट तक
दोपहर विसर्जन मुहूर्त- 01 बजकर 46 मिनट से लेकर शाम को 03 बजकर 18 मिनट तक
संध्या काल विसर्जन मुहूर्त- शाम को 06 बजकर 21 मिनट से लेकर रात 10 बजकर 46 मिनट तक
गणेश विसर्जन विधि-
गणेश विसर्जन से पहले भगवान गणेश की पूजा अर्चना करें।
गणेश की चौकी सजाने के लिए एक साफ लकड़ी का पाट लें और उसे गंगाजल से शुद्ध करें
अब एक साफ लाल रंग का कपड़ा बिछाएं और गणपति बप्पा को जयघोष के साथ आराम से चौकी पर विराजमान करें।
चौकी पर पान-सुपारी, मोदक दीप और पुष्प रखें।
अब गणपति बप्पा को धूमधाम से विसर्जन के लिए ले जाएं।
विसर्जन से पहले गणपति बप्पा की आरती करें तत्पश्चात उन्हें विसर्जित करें।
गणेश विसर्जन करते समय इन बातों का रखें ध्यान-
गणेश विसर्जन करने से पहले क्षमा प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए।
कई बार लोग ऐसे ही दूर से प्रतिमा को पानी में डाल देते हैं लेकिन यह गलती नहीं करनी चाहिए।
गणपति जी को आराम से पूरे सम्मान के साथ विसर्जित करना चाहिए। इसके साथ ही समस्त समाग्री को भी सम्मान के साथ प्रवाहित करें।
अपने द्वारा की गई गलतियों की क्षमा के साथ मंगल करने की प्रार्थना करनी चाहिए। -
ज्योतिषशास्त्र में ग्रहों की विशेष भूमिका होती है। ग्रहों की चाल और स्वभाव व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव डालते हैं। सभी नौ ग्रहों में शनि ग्रह का प्रभाव सबसे ज्यादा होता है, क्योंकि शनि सबसे धीमी चाल से चलते हैं इस कारण से जातकों पर इसका प्रभाव देर तक रहता है। मान्यताओं के अनुसार शनि को अशुभ फल देने वाला ग्रह माना गया है, लेकिन यह सच नहीं है। शनिदेव न्याय के देवता हैं और यह व्यक्तियों को उनके कर्मों के अनुसार ही शुभ या अशुभ फल प्रदान करते हैं। शनि एक राशि में करीब ढाई वर्षों तक रहते हैं फिर इसके बाद दूसरी राशि में जाते हैं। शनि के राशि परिवर्तन से सभी राशियों पर प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा शनि की वक्री और मार्गी चाल भी जातकों के जीवन पर असर डालते हैं। शनि 2020 से मकर राशि में हैं और 23 मई 2021 से इस राशि में उल्टी चाल से चल रहे हैं।
इस साल शनि का राशि परिवर्तन नहीं होगा, हालांकि 11 अक्तूबर 2021 को वक्री से मार्गी हो रहे हैं। शनि की उल्टी चाल चलने से जिन जातकों पर शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या लगी हुई होती है,उन्हें कई तरह की बाधाओं का सामना करना पडता है। अगले साल यानी 29 अप्रैल 2022 को शनि राशि बदल देंगे। शनि मकर राशि को छोड़कर कुंभ राशि में प्रवेश कर जाएंगे। इस वजह से धनु राशि पर से शनि की साढ़ेसाती खत्म हो जाएगी और मीन राशि पर शनि की साढ़ेसाती का पहला चरण शुरू हो जाएगा।
शनि के मार्गी होने पर धनु, मकर और कुंभ राशि वालों की परेशानियां कम हो जाएंगी। इसके अलावा मिथुन और तुला राशि वालों पर जिनके ऊपर शनि की ढैय्या चढ़ी है उनको भी कुछ राहत मिलेगी। शनि के मार्गी होने पर मेष, कर्क, कन्या, मकर और कुंभ राशि के जातकों के लिए समय अब अच्छा होने लगेगा। जीवन में चल आ रही बाधाएं खत्म हो जाएंगी।
शनि के मार्गी होने का समय
शनिदेव 11 अक्तूबर 2021 को मकर राशि में सुबह 8 बजे से मार्गी हो जाएंगे।
- डॉ विनीत शर्मा ज्योतिषी एवं वास्तु शास्त्रीपरिवर्तनी एकादशी पदमा एकादशी जलझूलनी एकादशी डोल ग्यारस और वामन जयंती के रूप में भी मनाई जाती है।मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने पर वाजपेई यज्ञ के बराबर के परिणाम मिलते हैं यह परिवर्तनी एकादशी इसलिए कहीं जाती है। क्योंकि इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु अपनी करवट को परिवर्तन करते हैं।यह शुभ पर्व शुक्रवार श्रवण नक्षत्र अतिगंड योग विष्कुंभ और बव करण के संयोग में मनाया जाएगा।इस पदमा एकादशी या डोल ग्यारस त्यौहार परशुभ गजकेसरी योग का निर्माण हो रहा है चंद्रमा और गुरु एक साथ मकर राशि में विद्वान रहेंगे शुभ भद्र योग शुभ मालव्य योग शुभ संयोग भी निर्मित हो रहे हैं आज के दिन निराहार रहने का विधान हैआज के शुभ दिन विश्वकर्मा जयंती भी मनाई जाएगीभगवान श्री विश्वकर्मा तकनीक अभियांत्रिकी वास्तु इंजीनियरिंग के देवता माने गए हैं ।आप देवताओं के शिल्पी माने गए हैं आपको देव शिल्पी कहा जाता हैइस जगत में जो कुछ भी तकनीकी क्षेत्र से मशीनों व कल पुर्जो से जुड़ा हुआ है उन सभी के आदि देवता श्री विश्वकर्मा भगवान माने गए हैं आज के दिन श्री विश्वकर्मा जी की पूजा पाठ और आराधना की जाती है।विश्वशर्मा भगवान नव निर्माण वास्तु कला शिल्प कला के आदि देवता माने गए हैं। कई कल कारखानों में विश्वकर्मा जयंती के दिन मशीनों को पूर्णता विश्राम दिया जाता है यह कर्म पुरुषार्थ तकनीक के प्रेरक हैं भगवान विश्वकर्मा जी हमें नित्य कर्म करने उद्यम करने के लिए प्रेरित करते हैं।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 397
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! संत के साथ रहने पर क्या परिवर्तन आता है और क्यों आता है? वाल्मीकि लुटेरा था और संत के साथ रहने से ब्रम्हर्षि हो गये। ऐसी कौन सी खास बात होती है जो संत के साथ रहने से जीवन में इतना परिवर्तन आ जाता है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: खास बात क्या होती है? वो तो किसी आदमी को ठण्ड लग रही है, वो आग के पास जायेगा तो ठण्ड दूर होगी, लेकिन उसमें कुछ शर्तें हैं - संत एक चुम्बक है। चुम्बक पत्थर होता है न, और संसार के लोग यानी संसारियों का मन लोहा है। जैसे एक चुम्बक रख दो और चारों ओर लोहे की सुइयाँ खड़ी कर दो, तो जो सुई क्लीन लोहे की होगी, वो फौरन आ कर चिपक जायेगी, जिसमें थोड़ी मिलावट होगी वो धीरे-धीरे मिल जायेगी, जिसमें और मिलावट होगी, वो और धीरे-धीरे आयेगी, और जिसमें बहुत अधिक मिलावट होगी वो अपनी जगह हिलेगी, चलेगी नहीं और जो नकली होगी, लोहे की होगी ही नहीं, उस पर कोई असर नहीं होगा।
ऐसे ही भगवान जब अवतार लेते हैं या संत महात्मा जब किसी को मिलते हैं तो उसके अन्तःकरण की शुद्धि जितनी लिमिट की होती है, उसी हिसाब से वो अपने आप खिंच जाता है। एक सैकेण्ड में कम्प्लीट सरेण्डर हो सकता है, अगर अन्तःकरण शुद्ध मिल जाय, और अगर गड़बड़ है कुछ, तो जितनी गड़बड़ है उतनी ही देर में वो संत से खिंचेगा।
इसलिये कहते हैं एक घर में माँ है, बाप है, बेटा है, स्त्री है, पति है, दस आदमी हैं। एक संत का सत्संग सबको मिला। लेकिन सबका खिंचना अलग-अलग ढंग से है। किसी का फिफ्टी परसेन्ट, किसी का ट्वेन्टी परसेन्ट, किसी का नाइंटी परसेन्ट। तो जिसका हृदय जितना साफ है, शुद्ध है, उसी हिसाब से वो खिंच जाता है और जिसका हृदय बहुत गन्दा है वो गाली देता है संत को, भगवान को; खिंचने की कौन कहे।
पापवंत कर सहज सुभाऊ..
भगवान कहते हैं - भई! जो जितनी मात्रा का पापी होगा, पाप का अन्तःकरण होगा, उतनी ही देर में खिंचेगा;
यावत्पापैस्तु मलिनं हृदयं तावदेव हि।न शास्त्रे सत्यता बुद्धि: सद्बुद्धि: सद्गुरौ तथा।।
जितना अधिक मन मलिन होगा, अन्तःकरण गन्दा होगा, पापयुक्त होगा, उतना ही वह भगवान और संत पर विश्वास ही न करेगा। देखकर हँस देगा, वो जायेगा ही नहीं।
हमारे इण्डिया में पण्डित नेहरु थे प्राइम मिनिस्टर। वो कहते थे कि भगवान की बात सुनना गलत है, अगर सुन लिया और कहीं उधर चले गये तो हमारी पॉलिटिक्स बिगड़ जायेगी। इतना पाप का अन्तःकरण कि उसको भगवान की बात सुनने में एतराज है। वो पापात्मा जितना अधिक होगा, उतना वो दूर जायेगा भगवान से, संत से। और जितना अन्तःकरण शुद्ध होगा, उतनी ही जल्दी वो खिंच जायेगा।
वो तो ऐसा है जैसे गुड़ है, गुड़ से प्यार करने वाली जो मक्खियाँ हैं वो गुड़ कहीं पर रख दो, अपने आप आ जायेंगी। कोई मुरदा सड़क पर पड़ा है तो कौवे, गीध ये सब अपने आप आ जायेंगे। अपने आप खिंच जाते हैं वो।
जिस चित्तवृत्ति का व्यक्ति होगा, उस चित्तवृत्ति में खिंच जायेगा। शराबी से शराबी मिलेगा, बड़ी दोस्ती हो जायेगी, पण्डित से पण्डित मिलेगा, दोस्ती हो जायेगी। इसलिये संत से खिंच जाना, ये शुद्ध अन्तःकरण वाले होते हैं, वही खिंचते हैं, सब नहीं खिंचते।
बाप हिरण्यकशिपु गाली दे रहा है भगवान को, और उसका बेटा प्रह्लाद भगवान का भक्त है पूर्ण। ये सबके अपने-अपने संस्कार होते हैं। सबका अपना-अपना हृदय पाप-पुण्य से युक्त होता है, उसी हिसाब से उसका आकर्षण होता है।
एहि सर आवत अति कठिनाई,रामकृपा बिनु आई न जाई..
बड़ी भगवत्कृपा हो तो सत्संग में कोई जाय।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक, भाग - 3, प्रश्न संख्या 43०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) -
कई बार ऐसा हो सकता है कि बिना किसी वजह के चीजें गलत हो जाती हैं, चाहे आप स्थिति को कंट्रोल में करने के लिए कितनी भी कोशिश कर लें. कुछ भी आपके रास्ते में नहीं आता है और अराजकता आपके जीवन पर हावी हो जाती है. ये उस घर की वजह से हो सकता है जिसमें आप रह रहे हैं.
अगर आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा है, तो ये आपके और उसमें रहने वाले दूसरे लोगों के जीवन को प्रभावित कर सकती है. ऐसा होने से कई चीजें आपके वश में नहीं रह जातीं. घर में हमेशा कलह और परेशानी बनी रह सकती है. जीवन में सफलता की चाह रखने वालों को सफलता मिलने में बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.
अगर आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा है, तो आप और घर के दूसरे सदस्य आपस में बहुत लड़ सकते हैं या झगड़ा कर सकते हैं और आप अपने हर काम में असफल हो सकते हैं. इसलिए इसे जितनी जल्दी हो सके हटाने की कोशिश करें ताकि आपके घर में लोगों के बीच बेहतर सांमजस्य रह सके.
क्यूंकि जीवन में आगे बढ़ने के लिए आपके घर का ठीक होना बहुत ही जरूरी है. लेकिन ये कैसे आप जान पाएंगे कि आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा है या नहीं, ये जानने के लिए कुछ और संकेतों पर गौर करें. ऐसा करके आप अपने घर में पनप रही नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त कर सकते हैं.
बार-बार संघर्ष और तर्क
अगर आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा है, तो आपके और आपके परिवार के सदस्यों में बार-बार मतभेद और बहस हो सकती है. इस तरह के झगड़े सदस्यों के बीच के बंधन को कमजोर करने में योगदान कर सकते हैं और इससे रिश्तों में दूरी होने का अंदेशा भी बढ़ जाता है. इसे जितनी जल्दी हो सके दूर करना ही बेहतर माना जाता है.
परिवार के किसी सदस्य का स्वास्थ्य खराब होना
ये हो सकता है कि परिवार के किसी निश्चित सदस्य को खराब स्वास्थ्य और निरंतर स्वास्थ्य समस्याओं का अनुभव हो और लाख कोशिशों के बाद भी उनकी तबीयत में सुधार होता नहीं दिख रहा है. तो इस स्थिति में आपको बहुत सतर्क हो जाने की आवश्यकता है अन्यथा परेशानी और अधिक बढ़ सकती है.
अवसरों को हथियाने में विफलता
जब आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा होती है, तो चीजें कभी आपके अनुकूल नहीं हो सकतीं. हो सकता है कि अंतिम चरण में पहुंचने के बाद ही कोई अवसर आपसे छीन लिया जाए और इसे बचा पाने की स्थिति में आप हो भी न पाएं. तो इसके लिए भी आपको सतर्क रहने की आवश्यकता है.
बेचैनी की निरंतर भावना
आप घर पर ज्यादातर समय बेचैन, सुस्त और असहज महसूस कर सकते हैं. नकारात्मक विचार और भावनाएं आपके मानस पर हावी हो सकती हैं और आपको चिंतित और उदास महसूस करा सकती हैं. तो इन चीजों पर लगातार गौर करते रहें और उन्हें स्वयं पर हावी न होने दें. - इरावान महाभारत का बहुचर्चित तो नहीं किन्तु एक मुख्य पात्र है। इरावान महारथी अर्जुन का पुत्र था जो एक नाग कन्या उलूपी से उत्पन्न हुआ था। द्रौपदी से विवाह के पूर्व देवर्षि नारद के सलाह के अनुसार पांचों भाइयों ने अनुबंध किया कि द्रौपदी एक वर्ष तक किसी एक भाई की पत्नी बन कर रहेगी। उस एक वर्ष में अगर कोई भी अन्य भाई भूल कर भी बिना आज्ञा द्रौपदी के कक्ष में प्रवेश करेगा तो उसे 12 वर्ष का वनवास भोगना पड़ेगा। देवर्षि ने ये अनुबंध इसलिए करवाया था ताकि दौपदी को लेकर भाइयों के मध्य किसी प्रकार का मतभेद ना हो।एक बार कुछ डाकुओं ने एक ब्राम्हण की गाय छीन ली तो वो मदद के लिए युधिष्ठिर के महल पहुंचा। वहां उसे सबसे पहले अर्जुन दिखा जिससे उसने मदद की गुहार लगायी। अर्जुन को याद आया कि पिछली रात उसने अपना गांडीव युधिष्ठिर के कक्ष में रख दिया था। इस समय युधिष्ठिर और द्रौपदी कक्ष में थे और ऐसे में वहां जाने का अर्थ अनुबंध का खंडन करना था किन्तु ब्राम्हण की सहायता के लिए उन्हें कक्ष में जाना पड़ा। जब वे दस्युओं को मारकर ब्राह्मण की गाय छुड़ा लाये तो अनुबंध की शर्त के अनुसार वनवास को उद्धत हुए। अन्य भाइयों के लाख समझने के बाद भी वे वनवास को निकल गए।भ्रमण करते हुए वे भारत के उत्तर पूर्व में (आज जहां नागालैंड है) पहुंचे और एक सरोवर में स्नान के लिए उतरे। वहां नागों का वास था जिसकी राजकुमारी उलूपी अर्जुन पर मुग्ध हो गयी। उलूपी विधवा थी और अर्जुन से विवाह की प्रबल इच्छा के कारण उलूपी ने अर्जुन को जल के भीतर खींच लिया और नागलोक में ले आयी। वहां उलूपी के बार बार आग्रह करने पर अर्जुन ने उससे विवाह किया और गुप्त रूप से उसी के कक्ष में रहने लगे। किन्तु बाद में उनका रहस्य खुलने पर उलूपी के पिता ने उनके सामने शर्त रखी कि उलूपी और उनकी जो संतान होगी उसे वहीं नागलोक में रहना होगा। इन्हीं का पुत्र इरावान हुआ जिसे नागलोक में ही छोड़ कर अर्जुन एक वर्ष पश्चात आगे की यात्रा को निकल गए।इरावान बहुत ही मायावी योद्धा था जिसने महाभारत के युद्ध में पांडवों की ओर से युद्ध किया था। उसकी माया शक्ति के आगे योद्धाओं की ना चली। पितामह भीष्म पहले ही प्रतिज्ञा कर चुके थे कि वे पांडव और उनके पुत्रों का वध नहीं करेंगे। कोई और उपाय ना देख कर तो दुर्योधन ने महान मायावी राक्षस अलम्बुष से इरावान का वध करने को कहा। अलम्बुष ने इरावान से भयानक मायायुद्ध किया और अंतत: युद्ध के आठवें दिन अलम्बुष के हांथों इरावान वीरगति को प्राप्त हुआ।इरावान की दक्षिण भारत विशेषकर तमिलनाडु में बड़ी महत्ता है। साथ ही साथ किन्नर समाज में भी इरावान को देवता की तरह पूजा जाता है। दक्षिण भारत में एक विशेष दिन किन्नर इकठ्ठा होकर इरावान के साथ सामूहिक विवाह रचाते हैं और अगले दिन इरावन को मृत मानकर वे सभी एक विधवा की भांति विलाप करते हैं। इस प्रथा के पीछे भी महाभारत की एक कथा है। कहा जाता है कि इरावान की मृत्यु से एक दिन पहले सहदेव, जिन्हे त्रिकालदृष्टि प्राप्त थी, ने इरावन को बता दिया था था कि अगले दिन उनकी मृत्यु होने वाली है। ये सुनकर इरावान जरा भी नहीं घबराये किन्तु उन्होंने श्रीकृष्ण से ये प्रार्थना की कि वे अविवाहित नहीं मरना चाहते।अब इतनी जल्दी इरावान के लिए कन्या का प्रबंध कहां से होता? इस कारण श्रीकृष्ण ने वहां युद्ध में उपस्थित राजाओं से उनकी कन्या का विवाह इरावान से करने को कहा किन्तु ये जानते हुए कि इरावान अगले दिन मरने वाला है, कौन राजा उसे अपनी कन्या देता? कोई और उपाय ना देख कर स्वयं श्रीकृष्ण ने मोहिनी रूप में इरावान के साथ विवाह किया और अगले दिन उसकी मृत्यु के पश्चात वे विधवा हुए। कहीं कहीं महाभारत में इरावान का विवाह सात्यिकी की पुत्री के साथ भी होना बताया गया है। यही प्रथा इरावान के साथ किन्नर मानते हैं। इसी कारण देश भर के किन्नर इरावान को अपने आराध्य के रूप में पूजते हैं।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 396
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! प्रभु और प्रभु के जन यानी संत जो हमें प्रभु के पास ले जाते हैं, इन दोनों में से सबसे बड़ा कौन हुआ?
• जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: दोनों में कोई बड़ा नहीं है। भगवान् तो अपनी सारी शक्ति सन्त को देते हैं। इसलिये उसमें तो कोई छोटा बड़ा है नहीं। जो आनन्द भगवान् के पास है वही सन्त के पास हो जाता है, जो ज्ञान भगवान् के पास है, वही ज्ञान संत को मिल जाता है। लेकिन अपनी मतलब की दृष्टि से, संत को बड़ा कहते हैं शास्त्र वेद। भई! हमारा काम तो संत से बनेगा। भगवान् तो पहले मिलेंगे नहीं कि हमको कुछ समझायेंगे कि भगवान् क्या है, संत क्या है, ये संसार क्या है, माया क्या है? ये सब ज्ञान तो संत देगा और संत ही साधना करायेगा और फिर सन्त ही अन्तःकरण शुद्धि के बाद दिव्य-प्रेम देगा। ये हमारा सारा काम तो गन्दगी साफ करने का गुरु करता है। भगवान् तो बस, बने बने का साथी है। भगवान् तो जब अन्तःकरण निर्मल हो जायेगा, दिव्य हो जायेगा, तब आकर बैठ जायेंगे वो उसमें, ड्राइंग रूम में।
अपने मतलब की दृष्टि से सन्त लोग कहते हैं कि भई! गुरु या महात्मा या महापुरुष भगवान् से बड़ा है और वैसे बड़ा नहीं है। दोनों में वही ताकत है, वही शक्ति है। भगवान् ने ही तो दी है मनुष्य को पूर्ण शक्ति अपनी तो बड़ा क्या हो जायेगा वो और कहाँ से पॉवर लायेगा वो?
•• संदर्भ पुस्तक ::: 'प्रश्नोत्तरी' भाग - 2, प्रश्न संख्या - 48
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 395
साधक द्वारा पूछा गया प्रश्न : महाराज जी ! हम लोग लोगों को सिद्धांत समझाते हैं कि भगवान् की ओर चलो। अच्छे-अच्छे हमारे रिश्तेदार, हमारे दोस्त वो बात नही समझते और हम दुःखी हो जाते हैं। लेकिन महापुरुष पूरी लाइफ समझाता रहता है तो लोग कितने समझते हैं। तो क्या वो महापुरुष दुःखी होता है, उनको भी परेशानी होती है क्या?
• जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा उत्तर ::: जैसी परेशानी मायाबद्ध को होती है, ऐसी परेशानी उनको नहीं होती। मायाबद्ध को तो ऐसा है कि उसने कुछ अपमानजनक बात जवाब में कह दिया बजाय मानने के और उल्टा भगवान् के खिलाफ ही बोल दिया कुछ तो दुःखी होता है गृहस्थी आदमी। फील करता है और द्वेष बुद्धि होने लगती है उसकी उसके प्रति। महापुरुष को ये सब कुछ नहीं। वो समझ लेता है कि संस्कार नहीं है इसके। ये यह नहीं समझ रहा है। हो सकता है भविष्य में समझे। वो उदासीन रहते हैं। उसका अपना जन (साधक) जो शरणागत हो रहा है फिफ्टी परसेंट शरणागत हो रहा है और वो गड़बड़ करता है तो दुःखी होते हैं। जैसे पड़ोसी का बेटा बीमार है तो पड़ोसी दुःखी नही होता। उसका अपना बेटा बीमार होता है तब दुःखी होता है।
• संदर्भ ::: प्रश्नोत्तरी पुस्तक, भाग 2, पृष्ठ 157, प्रश्न संख्या 50
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - 14 सितंबर 2021 से महालक्ष्मी व्रत शुरू हो रहे हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल महालक्ष्मी व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ होता है। महालक्ष्मी व्रत लगातार 16 दिनों तक रखा जाता है। महालक्ष्मी व्रत गणेश चतुर्थी के चार दिन बाद शुरू होता है। इस व्रत का समापन आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर होगा। मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को करने से सभी तरह की मनोकामनाएं पूरी होती हैं, क्योंकि इस व्रत में धन, सुख-संपदा और समृद्धि की देवी महालक्ष्मी के प्रसन्न होने पर आशीर्वाद प्राप्त होता है। खास बात यह कि इस तिथि पर राधा अष्टमी भी मनाई जाती है। जिस कारण से इस दिन से महालक्ष्मी व्रत का आरंभ बहुत ही महत्वपूर्ण और शुभ हो जाता है। इसके अलावा इसी तिथि पर दूर्वा अष्टमी भी है जिसमें दूर्वा घास की पूजा होती है। महालक्ष्मी व्रत रखने पर घर पर सुख-समृद्धि और संपन्नता आती है। यह व्रत 16 दिनों तक चलता है। जिसमें से अधिकतर विवाहित महिलाएं 16 दिनों तक व्रत रखती हैं। जो महिलाएं अगर 16 दिन तक नहीं रख पाती वे 3 तीन या आखिरी दिन व्रत रखती हैं।अष्टमी तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 13, 2021 03:10 PM कोअष्टमी तिथि समाप्त - सितम्बर 14, 2021 को 01:09 PM तकमहालक्ष्मी व्रत पूजन विधि--महालक्ष्मी के पहले दिन पूजा स्थल पर हल्दी से कमल बनाकर उस पर माता लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें और मूर्ति के सामने श्रीयंत्र, सोने-चांदी के सिक्के और फल फूल रखें। इसके बाद माता लक्ष्मी के आठ रूपों की मंत्रों के साथ कुंकुम, चावल और फूल चढ़ाते हुए पूजा करें।महालक्ष्मी व्रत में मां लक्ष्मी के हाथी पर बैठी हुई मूर्ति को लाल कपड़ा के साथ विधि-विधान के साथ इनकी स्थापना करें और पूजा कर ध्यान लगाएं।महालक्ष्मी व्रत के दिन श्रीयंत्र या महालक्ष्मी यंत्र को मां लक्ष्मी के सामने स्थापित करें और इसकी पूजा करें। यह चमत्कारी यंत्र धन वृद्धि के लिए बहुत उपयोगी माना जाता है। इस यंत्र की पूजा से परेशानियां और दरिद्रता दूर होती है।महालक्ष्मी व्रत में दक्षिणावर्ती शंख में गंगाजल और दूध डालकर देवी लक्ष्मी की मूर्ति से अभिषेक करना चाहिए इससे मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।माता लक्ष्मी को कमल का फूल बहुत पसंद होता है इसलिए लक्ष्मीजी की पूजा में यह फूल अवश्य चढ़ाना चाहिए।महालक्ष्मी व्रत पर कमल गट्टे को माला को माता लक्ष्मी को चढ़ाए साथ ही पूजा में कौड़ी अर्पित करें। पूजा के बाद इन दोनों चीजों को अपने तिजोरी या लॉकर में रखें।--माता लक्ष्मी की आरती---ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता ।तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता ॥ॐ जय लक्ष्मी माता ॥उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता ।सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥ॐ जय लक्ष्मी माता ॥दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता ।जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ॥ॐ जय लक्ष्मी माता ॥तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता ।कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता ॥ॐ जय लक्ष्मी माता ॥जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता ।सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता ॥ॐ जय लक्ष्मी माता ॥तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता ।खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता ॥ॐ जय लक्ष्मी माता ॥शुभ-गुण मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता ।रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता ॥ॐ जय लक्ष्मी माता ॥महालक्ष्मी जी की आरती, जो कोई जन गाता ।उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता ॥ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
- कहा जाता है कि हाथों की लकीरों में हमारा भाग्य लिखा होता है। हथेलियों में बनी ये आड़ी-तिरछी रेखाएं व्यक्ति के बारे में बहुत कुछ कहती हैं। ज्योतिष शास्त्र की ही एक शाखा हस्तरेखा शास्त्र में हथेली में बनी लकीरों को देखकर जातक के जीवन के बारे में महत्पूर्ण जानकारी दी जाती है। हथेली में बनी कुछ लकीरे समय-समय में पर बदलती रहती हैं। इन लकीरों से कई चिन्हों आदि का निर्माण होता है। जहां कुछ चिन्हों व लकीरों को बहुत ही शुभ माना जाता है तो वहीं कुछ लकीरों व चिन्हों के कारण आपको जीवन में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार रेखाओं को देखकर व्यक्ति के जीवन में धन की स्थिति को भी जाना जा सकता है। जहां हाथों की लकीरें जातकों को धनवान बनाती हैं, ठीक उसी तरह ये जातकों को निर्धन भी बना सकती है। हथेली में रेखाओं की कुछ ऐसी स्थितियां बताई गई हैं जिनके कारण व्यक्ति को धन हानि का सामना करना पड़ता है। हालांकि यदि आप समय रहते ही अगर इन स्थितियों को समझकर कुछ उपाय कर लेते हैं तो धन हानि से बचा जा सकता है।हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार यदि किसी जातक की हथेली में भाग्य रेखा हृदय रेखा पर रुक जाए या फिर हथेलियां बिना की वजह सख्त हों तो ऐसे जातकों को धन संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे जातकों को बहुत मेहनत और प्रयास करने पर भी धन की तंगी बनी रहती है। ऐसे जातकों को धन हानि से बचने के लिए अपने कार्यस्थल पर सियार सिंगी यंत्र की स्थापना करनी चाहिए और इसके बाद स्वर्ण की भस्म से स्नान करना चाहिए। इस उपाय को करने से पहले किसी योग्य हस्तरेखा शास्त्री से अपनी रेखाओं की जांच अवश्य करवा लें।हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार, यदि किसी जातक की हथेली में भाग्य रेखा धुंधली हो या शनि, बुध और गुरु दबा हुआ हो तो ऐसे जातक को धन संबंधी समस्याएं लगी रहती हैं। इन लोगों को व्यापार में भी धन हानि का सामना करना पड़ता है। इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए जातक को मां बगलामुखी व मां लक्ष्मी की आराधना करनी चाहिए। इससे आपको कुछ ही समय में धीरे-धीरे धन संबंधित समस्याओं से छुटकारा मिलने लगता है।हस्तरेखा शास्त्र कहता है कि यदि किसी जातक की हथेली में जीवन रेखा एकदम सीधी हो या फिर भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर रुक गई हो, तो ऐसे जातकों को भी रुपए पैसों की परेशानी का सामना करना पड़ता है। कई बार धन संबंधी समस्याएं बहुत अधिक भी बढ़ जाती हैं। ऐसे में जातक को कर्मफलदाता शनिदेव व मां लक्ष्मी का पूजन करना चाहिए।
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Happy SHRI RADHA-ASHTAMI (Sep 14)(श्री राधारानी के प्राकट्योत्सव 'राधाष्टमी' की आप सभी को अनंत अनंत शुभकामनायें..)
आज महारानी श्रीराधारानी का प्राकट्य-दिवस श्रीराधाष्टमी है। श्रीराधारानी कौन हैं, हमारा उनसे क्या संबंध है तथा उनकी प्राप्ति किस प्रकार होगी - इस सम्बन्ध में भक्तियोगरसावतार जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने अपने साहित्य तथा प्रवचनों में बड़ी गहराई से विवेचन किया है। आइये उनके साहित्य का आश्रय लेकर ही हम इस रहस्य को समझने का प्रयत्न करें :::::
(कृपा की मूर्ति महारानी श्रीराधारानी - यहाँ से पढ़ें..)
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने अपने श्याम-श्याम गीत ग्रंथ के एक दोहे (संख्या 69) में श्रीराधा तथा श्रीकृष्ण के संबंध के विषय में कहा है :
रसिकों ने समझाया कह ब्रजबामा।आत्मा की आत्मा की आत्मा हैं श्यामा।।
अर्थात रसिक जन समझाते हैं जीवात्मा की आत्मा श्रीकृष्ण हैं एवं श्रीकृष्ण की आत्मा श्रीराधा हैं।
इसके अतिरिक्त इसी ग्रन्थ के एक अन्य दोहे (संख्या 43) में जीवात्मा तथा श्रीराधारानी के संबंध को और अधिक समीपता के साथ व्यक्त किया है :
प्रति जन्म नयी नयी मातु बनी बामा।बदली न तेरी कभु साँची मातु श्यामा।।
भावार्थ यह कि जीव के कर्मानुसार शरीर का जन्म-मरण होता रहता है। इस कारण हर जन्म में नई नई मातायें भी बनीं। आत्मा की माँ श्रीराधा तो सदा से एक ही थीं, एक ही रहेंगी।
इसी संबंध का अनुभव करके उनकी प्राप्ति के लिये परम निष्काम भाव से रूपध्यानपूर्वक साधना करने का उपदेश उन्होंने अपने समस्त साहित्य तथा प्रवचनों में दिया है। श्यामा श्याम गीत के दोहा संख्या 73 में वे जीवों से कहते हैं :
राधा नाम रुप गुण लीला जन धामा।याही में लगाओ मन भाव निष्कामा।।
अर्थात निष्काम भाव से श्रीराधा नाम, रुप, गुण, लीला, जन एवं धाम में ही अपने मन को लगाओ। इसी में मानव-जीवन की सार्थकता है।
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने अपने ब्रज-साहित्यों में श्रीराधारानी के गुणों का भी विशद एवं सरस वर्णन किया है। श्रीराधारानी के अगाध गुणों में प्रमुखतः उनकी कृपालुता, पतित-जनों की रिझवार, अति सरल, सुकुमारता, शरणागत की प्रतिक्षण सँभार एवं रक्षा करने वाली, भोरेपन आदि गुणों का अपने पदों, कीर्तनों तथा दोहों में वर्णन किया है। कृपालुता की ऐसी सीमा है कि यदि वे कोप भी करें, तो उस कोप में भी उनकी अगाध कृपा ही रहती है। 'प्रेम-रस-मदिरा' नामक ग्रन्थ में वे एक पद में कहते हैं :
जो आरत मम स्वामिनि! भाखै,तेहि पुतरिन सम आँखिन राखै।
अर्थात जो शरणागत आर्त होकर दृढ़ निष्ठापूर्वक मेरी स्वामिनी जी! ऐसा कह देता है, उसे स्वामिनी जी अपनी आँखों की पुतली के समान रखती हैं।
इसी पद में अन्य पंक्ति में उन्होंने कहा है :
टुक निज-जन क्रन्दन सुनि पावें,तजि श्यामहुँ निज जन पहँ धावें।
भावार्थ यह कि हमारी स्वामिनी जी अपने शरणागतों की थोड़ी भी करुण-पुकार सुनते ही अपने प्राणेश्वर श्यामसुन्दर को भी छोड़कर अपने जन के पास तत्क्षण अपनी सुधि-बुधि भूलकर दौड़ आती हैं।
ऐसी कृपालु स्वामिनी श्रीराधारानी का दीनतापूर्वक स्मरण तथा उनसे कृपा की याचना करने का ही उपदेश श्री कृपालु महाप्रभु ने बारम्बार दिया है। उन्होंने अपने एक ग्रन्थ 'युगल शतक' की श्रीराधा माधुरी के कीर्तन संख्या 53 में इस याचना तथा प्रेम के स्वरुप का इस प्रकार वर्णन किया है (केवल अर्थ) :
अरे मेरे मन! निरन्तर श्रीराधा का ही सेवन कर। जिह्वा से अनवरत राधा नामामृत का पान कर। नाम-स्मरण करने में भला क्या विघ्न उपस्थित हो सकता है? श्रीराधा अनंत दिव्य गुण-गणों से विभूषित हैं। अतः कानों से निरंतर उनकी लीला का श्रवण कर उनके गुणानुवाद सुन। कोमल स्पर्श की कामना जब उत्पन्न हो तो श्रीराधा के कमलोपम चरणों का स्मरण कर। श्रीकृष्ण भी इन चरणों की आराधना करते हैं। नेत्रों से पल-पल श्रीराधा की दिव्य मूर्ति का ध्यान कर दसों दिशाओं में उनका ही दर्शन कर। नासिका से श्रीराधा के दिव्य-वपु के सुवास को ग्रहण कर। हे मेरे चंचल मन! तू श्रीराधा के निरुपम सौंदर्य का ही चिंतन कर। श्रीराधा के समान तो श्रीराधा ही हैं। बुद्धि में ऐसी दृढ़ता रहे कि एक दिन मैं अवश्य ही उनकी कृपा को प्राप्त करुँगा।
श्रीराधा के प्रति जो प्रीति हो, उसमें अपने स्वार्थ की गंध न हो। श्रीराधा के हितार्थ हो, उनके सुख में सुख मानते हुये उनके प्रति निष्काम प्रेम की भावना स्थिर करनी है। यदि श्रीराधा की कृपा प्राप्त करनी है तो उनके प्रियतम श्रीकृष्ण की भी भक्ति करनी होगी।
इस प्रकार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा प्रगटित ब्रज-साहित्य के अगाध समुद्र से निकले इन किञ्चित चिंतन-रत्नों का आधार लेकर हम अपने हृदयों में श्रीराधारानी के प्रति श्रद्धा, प्रेम तथा अपनापन लाने का प्रयास करें तथा उनसे कृपा की दीनतापूर्वक याचना करें। आप सभी को उनके प्राकट्य दिवस श्रीराधाष्टमी की बारम्बार अनंत शुभकामनायें।
•• स्त्रोत : जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज साहित्य•• सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) -
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Note : जगदगुरु कृपालु परिषत के रँगीली महल, बरसाना आश्रम में स्थित श्री कीर्ति मन्दिर में श्रीराधारानी के प्राकट्योत्सव श्री राधाष्टमी उत्सव के Youtube (JKPIndia) पर लाइव प्रसारण के संबंध में जानकारी इस फोटो से प्राप्त करें! आप सभी इस महा आनंद महोत्सव में सादर आमंत्रित हैं!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 393
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ऐसे प्रथम जगदगुरुत्तम हैं जिन्होंने देश ही नहीं अपितु विदेशों में भी श्रीराधा नाम का अंधाधुंध प्रचार किया। आचार्य श्री ने श्रीराधारानी को ही अपनी स्वामिनी माना है। उन्होंने अपनी कृतियों में इसी पक्ष को उद्भासित किया है कि श्रीराधा के सेवक स्वयं श्रीकृष्ण हैं। आइये आज हम उनके द्वारा ही प्रदत्त उन उपदेशों का पठन करें जो उन्होंने अपने साहित्यों में हम सभी जीवों के आत्मिक कल्याण के निमित्त दिये हैं ::::
•• महारानी श्रीराधारानी चिंतन : यहाँ से पढ़ें..
(1) श्रीवृषभानुनन्दिनी राधिका जी ही एकमात्र सर्वश्रेष्ठ तत्त्व हैं। उन्हीं का अपर अभिन्न स्वरुप स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण हैं, जिनका अवतार द्वापर युग के अंत मे हुआ था।
(2) कभी एक क्षण के लिए भी स्वयं को अकेला न मानो। सदा सब स्थानों पर श्रीराधा तुम्हारे साथ हैं। जीव के कर्मानुसार शरीर का जन्म मरण होता रहता है। इस कारण हर जन्म में नयी नयी मातायें भी बनीं। आत्मा की माँ श्रीराधा तो सदा से एक ही थीं, एक ही रहेंगी।
(3) जीव जिस किसी भी स्थान पर रहे, उसे सदा यह चिंतन करना चाहिए कि मेरे हृदय में विराजमान श्रीराधा मेरे मन के शुभ अशुभ समस्त संकल्पों को जानकर उनके अनुसार मुझे मेरे कर्मों का फल प्रदान करेंगी। हे मन ! निरंतर अपनी इष्टदेवी श्रीराधा का स्मरण कर। उनसे भी यही प्रार्थना कर कि तुझे वे एक क्षण को भी न भूलें।
(4) शास्त्रों के श्रवण-पठन के द्वारा केवल जान लेने मात्र से काम नहीं बनेगा। पहले जानना है, जानने के बाद मानना एवं मानने के बाद श्री राधिका की मन से शरणागति करनी होगी। हे जीवों ! निष्काम भाव से श्रीराधा नाम, रूप, गुण, लीला, जन एवं धाम में ही अपने मन को लगाओ। इसी में मानव-जीवन की सार्थकता है।
(5) हे जीव ! अनादिकाल से अनन्तानन्त पाप करने के कारण तेरा मन अत्यंत मलिन हो चुका है अतएव (साधना द्वारा अंतःकरण शुद्धि की मात्रानुसार) श्री राधा धीरे-धीरे ही मन को अच्छी लगेंगी, एकाएक नहीं। भूलकर भी अपने मन में निराशा को न आने दो। विश्वास रखो एक दिन किशोरी जी तुम्हें अवश्य अपनाएंगी।
•• स्त्रोत : 'भक्ति शतक' एवं 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ से
•• सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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- वास्तु शास्त्र में घर के निर्माण से लेकर साज-सजावट तक के लिए नियम बताए गए हैं यदि इन नियमों का ध्यान न रखा जाए तो व्यक्ति को जीवन में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वास्तु के अनुसार कुछ ऐसी तस्वीरे होती हैं जिन्हें घर में नहीं लगाना चाहिए। इन तस्वीरों को घर में लगाने से आपके जीवन में कलह-क्लेश और दुर्भाग्य को आमंत्रण मिलता है। यदि आपके घर में ये तस्वीरे लगी हुई हैं तो इन्हें तुरंत हटा देना चाहिए। तो चलिए जानते हैं कि कौन सी हैं वे तस्वीरे।नटराज की मूर्तिवैसे तो नटराज भगवान शिव का ही एक रूप है, लेकिन वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में नटराजन की मूर्ति नहीं लगानी चाहिए क्योंकि इसमें भगवान शिव तांडव की मुद्रा में हैं और इन्हें विध्वंस का प्रतीक माना गया है। यही कारण है कि वास्तु में घर में नटराज की मूर्ति या फिर तस्वीर लगाने को मना किया जाता है।डूबते जहाज या नाव की तस्वीरकई बार लोग अपने घर में सुंदर तस्वीरे लगाते हैं, लेकिन उनमें बने चित्रण पर ध्यान नहीं देते हैं या फिर शौक के कारण भी कई लोग टाइटैनिक आदि की तस्वीर भी घर में लाकर लगा लेते हैं । वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में कभी भी डूबती नाव या जहाज की तस्वीर नहीं लगानी चाहिए। ये तस्वीर नकारात्मकता लाती हैं। इससे आपके कार्यक्षेत्र पर प्रभाव पड़ सकता है, इसलिए भूलकर भी अपने घर में ऐसी तस्वीरे नहीं लगानी चाहिए।रोते बच्चे की तस्वीरबच्चों की तस्वीरे हर किसी को पसंद होती हैं खासतौर पर यदि निसंतान दंपति बच्चों की तस्वीर अपने कमरे में लगाते हैं तो यह शुभ मानी जाती हैं, लेकिन वास्तु शास्त्र कहता है कि कभी भी रोते हुए बच्चे की तस्वीर घर में नहीं लगानी चाहिए। बच्चों को सौभाग्य का सूचक माना जाता है, लेकिन रोते हुए बच्चे की तस्वीर दुर्भाग्य का कारण बन सकती है।युद्ध की तस्वीरवास्तुशास्त्र के अनुसार घर में कभी भी हिंसात्मक अस्त्र-शस्त्र या युद्ध से संबंधित तस्वीरे नहीं लगानी चाहिए। घर में महाभारत की तस्वीर लगाने के भी मना किया जाता है। ये तस्वीरे घर में कलह-क्लेश के बढ़ाती हैं। माना जाता है कि महाभारत की तस्वीर घर में लगाने से भाईयों के बीच अलगाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।गुलाब के पेड़ की तस्वीरज्यादातर लोगों के गुलाब और गुलाब की तस्वीरे अच्छी लगती हैं क्योंकि यह देखने में बहुत खूबसूरत होता है, लेकिन वास्तु शास्त्र कहता है कि गुलाब का पेड़ या फिर गुलाब के पेड़ की तस्वीर घर में लगाना सही नहीं रहता है। गुलाब के पेड़ में कांटे होते हैं यहीं कारण है कि यह नकारात्मकता को बढ़ा सकता है। इसका विपरीत प्रभाव परिवार के सदस्यों की सेहत पर भी पड़ता है।
- काले घोड़े की नाल , वह भी दाहिने पैर की नाल कोई साधारण नाल नहीं होती। घोड़े की नाल बहुत शुभ और बहुत उत्तम मानी जाती है और अनेक प्रकार की विपदा और संकटों में आपकी समस्याओं का समाधान करने की शक्ति इसमें होती है क्योंकि घोड़ा अपनी तेज हवाई रफ्तार से दौड़ते हुए अपनी मंजिल पर पहुंच जाता है। ठीक उसी प्रकार जिस घर में घोड़े की नाल होती है उस परिवार के सदस्य अति शीघ्र अपने मुकाम पर पहुंच जाते हैं, लेकिन यह सब कार्य वहीं नाल कर सकती है जो घोड़े द्वारा चलचल कर घीसी गई हुई हो।-तंत्र शास्त्र के अनुसार जिस घर में घोड़े की नाल मुख्य द्वार पर अंग्रेजी अक्षर यू के आकार की लगी होती है, उस घर में प्रवेश करने वाला कोई भी व्यक्ति है यदि उसके ऊपर कोई भूत प्रेत का साया है या फिर नकारात्मक शक्ति है या उस पर कोई जादू टोना किया गया है तो उसकी द्वार में प्रवेश करने से पहले ही सभी नकारात्मक शक्तियां आपके दरवाजे के बाहर ही रुक जाएंगी अंदर प्रवेश नहीं कर पाएंगी।-घोड़े की नाल को अपनी दुकान के मुख्य द्वार की चौखट पर अंग्रेजी के यू क्षर की तरह से लगा दं,े ऐसा करने से कारोबार में आमदनी दिन दूनी रात चौगुनी बढऩे लगेगी।-घोड़े की नाल को काले कपड़े में लपेटकर अपने अनाज भंडार में रख दें, ऐसा करने से घर में अन्न की बरकत बनी रहेगी।-अगर आपके घर में धन से संबंधित परेशानियां हैं,बरकत नहीं होती,पैसा रुकता नहीं या फिर कहीं से आय का कोई साधन नहीं है। ऐसे में आप घर के मुख्य द्वार पर काले घोड़े की नाल लगा दें और अगर घोड़े की नाल को काले कपड़े में बांधकर तिजोरी में रख दंगेे तो धन में बढ़ोतरी होगी।-जिस व्यक्ति पर शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या चढ़ी हुई हो ऐसे व्यक्ति को शनि दोष से मुक्त कराने के लिए उसके पलंग पर घोड़े की नाल को टांग दे ंया फिर घोड़े की नाल की कील बनवा कर उसके पलंग में गाड़ दे ऐसा करने से उस व्यक्ति को शनि के प्रकोप से छुटकारा मिल जाएगा।-अगर बच्चे का मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है तो उसका मन पढ़ाई में लगाने के लिए और प्रतियोगिता में सफल होने के लिए घोड़े की नाल की अंगूठी बनवाये और उस अंगूठी को मध्यमा उंगली यानी बीच की उंगली में शनिवार के दिन पहनाए सफलता उसके साथ चलने लगेगी।-काले घोड़े की नाल को घर के मुख्य दरवाजे पर यू के आकार में टांग देना चाहिए क्योंकि घोड़े की नाल का जो आकार होता है अंग्रेजी अक्षर यू के समान होता है। ऐसा करने से घर के अंदर आने वाले नकारात्मक ऊर्जा पर रोक लगती है। साथ ही यदि आपके घर में किसी भी तरीके का वास्तु दोष है, वह समाप्त होगा, शत्रुओं से मुक्ति मिलेगी। घर में किसी भी प्रकार के लड़ाई झगड़े ,मनमुटाव, गृह क्लेश है तो वह भी समाप्त होगा साथ ही टोने टोटके का प्रभाव समाप्त हो जाएगा।- अगर आपको ऐसा लगता है कि आप पर बुरी नजर लग गई है या फिर आपके घर परिवार में जिसे भी नजर लगी है , तो उसे उतारने के लिए एक लोहे की कटोरी में सरसों का तेल लें और उसमें काले घोड़े की नाल को डाल दें। अब इस कटोरी को जिसे नजर लगी है उसके सिर से पैर तक 7 बार घुमाकर किसी सुनसान जगह पर गाड़ दें ऐसा करने से बुरी नजर उतर जाएगी।(नोट- ये उपाय तंत्र शास्त्र के आधार पर बताए गए हैं।)
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 392
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ऐसे मूल जगदगुरु हुये हैं जिन्होंने सुमधुर 'राधा' नाम तथा उनके गुणगान को विश्वव्यापी बनाया और विदेशों में जाकर श्रीराधाकृष्ण भक्ति का अधाधुंध प्रचार किया। जीवन पर्यंत उन्होंने श्री राधारानी को ही अपनी स्वामिनी मानते हुये श्रीराधा नाम गुणगान का ही दिव्य संदेश दिया है। जो राधा तत्व पुस्तकों तक ही सीमित था, उसे अत्यधिक सरल भाषा में उन्होंने समझाया है। उनके द्वारा ही प्रगटित साहित्य-भण्डार से प्रतिदिन थोड़ी-थोड़ी राशि आप सबके समक्ष प्रस्तुत की जाती रही है, जिसका गहराई से चिन्तन-मनन निश्चय ही हमारी आध्यात्मिक चेतना को परिष्कृत करते हुये उसे भगवद-रस से परिप्लुत कर देगा। आइये आज के अंक में प्रकाशित इस दिव्य तत्वदर्शन पर विचार करें :::
★ 'जगदगुरुत्तम-ब्रज साहित्य'(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित साहित्य/ग्रन्थ)
श्याम गये मथुरा ना गई ब्रज बामा।श्याम रुचि महँ रुचि राखें आठु यामा।।
भावार्थ ::: श्यामसुंदर ब्रजवासियों को छोड़कर मथुरा गये परन्तु गोपियाँ किंचित दूर होने पर भी कभी प्रियतम का दर्शन करने मथुरा नहीं गईं। ब्रजगोपियों ने कृष्ण को संकोच में नहीं डालना चाहा। सदा श्यामसुन्दर के सुख में ही सुखी रहना, यही गोपी प्रेम की विशेषता है।
• संदर्भ ::: श्यामा श्याम गीत, दोहा संख्या 249----------------★ 'जगदगुरुत्तम-श्रीमुखारविन्द'(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा निःसृत प्रवचन का अंश)
...भगवान की उपासना तो अनुकूल भाव से ही होती है। प्रतिकूल भाव से तो वही कर सकता है जिसमें उसके शक्ति के बराबर शक्ति हो। कुछ महापुरुष भगवान की उपासना अनुकूल भाव से और कुछ प्रतिकूल भाव से करते देखे जाते हैं किंतु साधारण जीव हमेशा प्रतिकूल भाव से नहीं कर सकता। भगवान की उपासना जो अनेक भावों से शास्त्रों में लिखी गयी हैं उसमें काम, क्रोध, लोभ और मोह तो लिखा है, स्नेह, भय, ऐक्य भी लिखा है लेकिन द्वेष नहीं लिखा...
• संदर्भ ::: अध्यात्म संदेश पत्रिका, मार्च 2003 अंक
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रविवार का दिन सूर्यदेव को समर्पित होता है। इस दिन विधि- विधान से सूर्यदेव की पूजा- अर्चना की जाती है। वैदिक ज्योतिष में हर दिन ग्रह-नक्षत्रों की चाल से राशिफल का आंकलन किया जाता है। जानिए रविवार के दिन किन राशि वालों को होगा लाभ और किन राशि वालों को रहना होगा सावधान।
मेष राशि
संयत रहें। धैर्यशीलता बनाये रखने के प्रयास करें। दाम्पत्य सुख में वृद्धि होगी। मित्रों का सहयोग मिलेगा। मन अशान्त रहेगा। नौकरी में अफसरों से मतभेद बढ़ सकते हैं। वाणी में कठोरता का प्रभाव हो सकता हैं। धर्म के प्रति श्रद्धाभाव रहेगा। तनाव से बचें।
वृष राशि
मन परेशान रहेगा। व्यर्थ के क्रोध से बचें। शैक्षिक कार्यों में सफलता मिलेगी। वस्त्रों पर खर्च बढ़ सकते हैं। रहन-सहन कष्टमय हो सकता है। क्रोध एवं आवेश के अतिरेक से बचें। जीवनसाथी को स्वास्थ्य विकार हो सकते हैं। संतान को कष्ट होगा। खर्च अधिक रहेंगे।
मिथुन राशि
धर्म के प्रति श्रद्धाभाव रहेगा। भवन सुख में वृद्धि हो सकती है। नौकरी में यात्रा पर जा सकते हैं। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। क्षणे रुष्टा-क्षणे तुष्टा के भाव रहेंगे। दाम्पत्य सुख में बढ़ोतरी होगी। परिवार में सुख-शांति रहेगी। माता के सहयोग से धन की प्राप्ति के योग हैं।
कर्क राशि
घर-परिवार में धार्मिक कार्य हो सकते हैं। परिवार का साथ रहेगा। सन्तान के स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें। नौकरी में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। स्थान परिवर्तन की भी सम्भावना बन रही हैं। मन अशान्त रहेगा। भाइयों के सहयेाग से तरक्की के योग हैं।
सिंह राशि
वाणी के प्रभाव में वृद्धि होगी, परन्तु व्यर्थ के वाद-विवाद से बचें। किसी राजनेता से भेंट हो सकती है। सुस्वादु खानपान में रुचि रहेगी। मानसिक शान्ति रहेगी। शैक्षिक एवं शोधादि कार्यों में सफलता मिलेगी। मान-सम्मान की प्राप्ति होगी। स्वास्थ्य का ध्यान रखें।
कन्या राशि
आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। पिता का सानिध्य मिलेगा। कारोबार में वृद्धि होगी। खर्च भी बढ़ेंगे। सन्तान के दायित्व की पूर्ति होगी। घर-परिवार में धार्मिक कार्य होंगे। पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा। खानपान में रुचि बढ़ेगी।
तुला राशि
वाणी में मधुरता रहेगी। फिर भी व्यर्थ के विवाद एवं झगड़ों से बचें। वाहन सुख में वृद्धि हो सकती है। मित्रों का सहयोग मिलेगा। मन अशान्त रहेगा। बातचीत में संयत रहें। धर्मकर्म में रुचि बढ़ सकती है। जीवनसाथी का साथ मिलेगा। व्यापार में तरक्की के योग हैं।
वृश्चिक राशि
संयत रहें। बातचीत में सन्तुलित रहें। नौकरी में स्थान परिवर्तन सम्भव है। परिवार से अलग रहना पड़ सकता है। मन अशान्त रहेगा। जीवनसाथी से मतभेद रहेंगे। स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें। चिकित्सीय खर्च बढ़ सकते हैं। तरक्की के योग हैं। माता से धन की प्राप्ति होगी।
धनु राशि
लेखनादि-बौद्धिक कार्यों में व्यस्तता बढ़ सकती हैं। किसी मित्र के सहयोग से आय के साधन बन सकते हैं। सेहत का ध्यान रखें। परिवार की जिम्मेदारी बढ़ सकती हैं। मान-सम्मान में वृद्धि होगी। मन में शान्ति एवं प्रसन्नता के भाव रहेंगे। मित्रों का साथ मिलेगा।
मकर राशि
मानसिक शान्ति रहेगी। किसी सम्पत्ति से आय के साधन बन सकते हैं। किसी मित्र से कारोबार का प्रस्ताव मिल सकता है। आत्मविश्वास में कमी आएगी। परिवार के साथ किसी धार्मिक स्थान की यात्रा का कार्यक्रम बन सकता है। शैक्षिक कार्यों में सफलता मिलेगा।
कुंभ राशि
सन्तान के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। परिवार का साथ मिलेगा। खर्च बढ़ेंगे। परिश्रम भी अधिक रहेगा। धार्मिक संगीत के प्रति रुझान बढ़ सकता है। नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षा एवं साक्षात्कार में सफलता मिलेगी। मित्रों के सहयोग से आय के नए स्रोत विकसित होंगे।
मीन राशि
संयत रहें। व्यर्थ के क्रोध से बचें। परिवार का साथ मिलेगा। सन्तान की ओर से सुखद समाचार मिल सकता है। सेहत का ध्यान रखें। पारिवारिक जीवन कष्टमय रहेगा। नौकरी में इच्छा-विरूद्ध कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी मिल सकती है। परिश्रम अधिक रहेगा। - कुछ लोग ऐसे होते हैं जो विनम्र, जमीन से जुड़े और बहुत ही सरल स्वभाव के होते हैं। उनके पास कोई हवा या हैंगअप नहीं होता है और बिना किसी एक्स्ट्रा सामान के एक आसान जीवन जीने की कोशिश करते हैं। वहीं, दूसरी ओर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो रूखे, घमंडी और अटके हुए होते हैं। उनके पास एक सुपेरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स है और वे दृढ़ता से मानते हैं कि वो मानव जाति के लिए भगवान का उपहार हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मुख्य रूप से 4 ऐसी राशियां होती हैं जो स्वयं को दूसरों से बेहतर मानती हैं और धूर्त होती हैं। नीचे इन राशियों पर एक नजर डालें...मेष राशिमेष राशि के जातक राशियों की सूची में सबसे ऊपर होते हैं। उन्हें लगता है कि वो हर सूची में सबसे ऊपर होने के लायक हैं और वो जो कुछ भी करते हैं उसमें वो सर्वश्रेष्ठ हैं। वो किसी को भी अपने से बेहतर किसी भी चीज में नहीं मानते हैं।सिंह राशिये कोई रहस्य नहीं है कि सिंह राशि वाले लोग स्वयं को इस हद तक प्यार करते हैं कि बाकी सभी को नीचे खींच कर उन्हें कम आंकते हैं। सिंह राशि वाले लोगों को लगता है कि वो एक स्टार हैं और इस तरह उन्हें घमंडी और दंभी होने का पूरा अधिकार है।कन्या राशिकन्या राशि के जातक जो कुछ भी करते हैं उसमें परफेक्शन हासिल करने का लक्ष्य रखते हैं। उन्हें लगता है कि वो सबसे अच्छी तरह जानते हैं और अक्सर दूसरे लोगों को मूर्ख की तरह महसूस कर सकते हैं।धनु राशिधनु राशि के लोग स्वयं को बहुत अधिक सम्मान में रखते हैं। उन्हें लगता है कि वो कभी गलत नहीं हो सकते हैं और इस बात पर गर्व करते हैं कि वो ब्लंट और ईमानदार हैं। वो सेल्फ-लव की अवधारणा को कुछ ज्यादा ही गंभीरता से लेते हैं और अंत में बॉस के जैसा व्यवहार करने वाला और अहंकारी के रूप में सामने आते हैं।