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- पेड़-पौधों हमारे जीवन का आधार हैं। पेड़ पौधों से प्राप्त होने वाली शुद्ध वायु से ही पृथ्वी पर जीवन है। पेड़ पौधे पर्यावरण को तो शुद्ध रखते ही हैं, साथ ही ये हमारे ऊपर सकारात्मक प्रभाव भी डालते हैं। ज्योतिष में ऐसे ही खास पौधों के बारे में बताया गया है जिन्हें घर में लगाने से रोग-शोक से मुक्ति तो मिलती है। ये पौधे आपके घर में धन-समृद्धि बढ़ाते हैं। इन पौधों को घर में लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। आप इन पौधों बगीचे या खाली स्थान में लगा सकते हैं। तो चलिए जानते हैं कि कौन से हैं वे पेड़- पौधे...अशोक का पेड़अशोक के पेड़ के बारे में ज्यादातर लोगों को पता होगा। अशोक का पेड़ घर में लगाना बहुत शुभ माना जाता है। लोग दरवाजों के दोनों ओर भी अशोक के पेड़ लगाते हैं जो बहुत शुभ रहते हैं। यदि आपके घर में बगीचा है और पेड़ पौधे लगाने के पर्याप्त स्थान है तो थोड़ी-थोड़ी दूरी पर अशोक के कई पौधे लगाना चाहिए। अशोक का पेड़ घर में लगाने से घर से शोक और दुख दूर रहता है। आपके घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। इसके अलावा द्वार पर अशोक के पत्तों की तोरण लगाना भी बहुत शुभ रहता है।आंवले का पेड़स्वास्थ्य की दृष्टि से तो आवंला लाभकारी है ही, इसके अलावा हिंदू धर्म में आंवले के पौधे की पूजा भी की जाती है। आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा करने का विशेष प्रावधान माना गया है। मान्यता है कि आंवले के पौधे की जड़ में भगवान विष्णु का वास होता है। यह पौधा बहुत ही शुभ माना गया है। मान्यता है कि इसे घर में लगाने से भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की कृपा भी आपके घर में हमेशा बनी रहती है। आंवले के पौधे की देखभाल नियमित रूप से करनी चाहिए। उसमें समय समय पर खाद, पानी देना चाहिए, क्योंकि मान्यता है कि जिस तरह से ये पौधा फलता-फूलता हैं, आपके घर में सुख और धन बढ़ता जाता है।पारिजातपारिजात यानी हरसिंगार का पौधा, ये पौधा घर या आस-पास में लगाना अति शुभ माना गया है। मां लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए यह पौधा बहुत अच्छा माना गया है। मां लक्ष्मी की पूजा में परिजात के फूलों का प्रयोग किया जाता है, लेकिन इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि लक्ष्मी पूजा में केवल उन्हीं फूलों का प्रयोग किया जाता है, जो स्वयं पेड़ से टूटे हो। परिजात के पौधे को देवतुल्य माना गया है माना जाता है कि समुद्र मंथन में 11 वां जो रत्न प्राप्त हुआ था, वो पारिजात वृक्ष ही है। इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और घर में समृद्धि आती है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 184
(स्वरचित दो दोहे की व्याख्या के माध्यम से आचार्य श्री एक महत्वपूर्ण रहस्य को समझा रहे हैं...)
जैसे जलयान खग गोविंद राधे।उड़ि थकि जलयान आवे बता दे।।
जीव जग सुख नहिं गोविंद राधे।पावे तब आवे हरि शरण बता दे।।
समुद्र के जहाज पर कोई पक्षी बैठा था और जहाज़ चल पड़ा और वो पचासों सैकड़ों मील चला गया जहाज़, तो पक्षी सोच रहा है मैं खाऊँ पीऊँ क्या? ये तो पानी ही पानी है चारों ओर, और पानी में खड़ा भी नहीं हो सकता और समुद्र में कब तक बैठा रहूँगा, ऐसे जहाज़ पे से उड़ा और बहुत दूर तक चला गया। जब थक गया, उसने कहा अब क्या करें? खड़े होने तक की जगह नहीं हैं, फिर आ कर के जहाज़ पर बैठ गया और कोई गति नहीं बेचारे की, चारों ओर पानी ही पानी है, कहीं स्थल नहीं, पेड़ नहीं, खाने-पीने का सामान नहीं।
उसी प्रकार ये जीव भगवान से विमुख होकर उड़ा, 84 लाख योनियों में घूमा, थक गया, कहीं सुख नहीं मिला तो फिर भगवान की शरण में गया कि संसार में कहीं सुख नहीं है, हमको धोखा था, अब समझ में आ गया। पहले संसार में सुख ढूंढता है, युवावस्था आयी ब्याह किया, बीबी पति हुआ यहाँ सुख मिल जायेगा, वहाँ भी चप्पल-जूते मिले, कोई सुख नहीं मिला। आगे बाल बच्चे हुए, इनसे सुख मिल जायेगा, खूब लाड़ प्यार किया बच्चों को, बड़े होकर वो भी नमस्ते करके चले गए, किसी ने साथ नहीं दिया, अब भगवान की शरण में आया।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 183
(मन ही किसी भी कर्म का कर्ता कहा गया है। परन्तु यह मन चंचल है। मन के प्रति क्या दृष्टिकोण होने से क्या परिणाम होते हैं, जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज नीचे प्रवचन में समझा रहे हैं..)
साधना से हिम्मत नहीं हारना चाहिये। ये मन दुश्मन है अनादिकाल का दुश्मन है। इससे दुश्मनी से ही पेश आओ दोस्ती न करो।
न कुर्यात् कर्हिचित्सख्यं मनसि ह्यनवस्थिते। (भाग. 5-6-3)
भगवान् ऋषभ ने कहा था मन से सख्य न करो, दोस्ती न करो। ये मन तुमको लाड़ में लाकर, दोस्त बनाकर चौरासी लाख में घुमा रहा है। यह देख लो, ये संसार, ये खा लो, ये आँख से देखो, ये कान से सुनो, ये नाक से, ये संसार का विषय दे देकर भगवान् से दूर कर रहा है। अब इसकी न सुनो। डट जाओ। हठ करो। पहले पहल हठ करना होगा। दुश्मन मन के साथ तुम भी दुश्मनी पर तुल जाओ। ये जो कहता है वो नहीं करेंगे। ये लापरवाही सिखाता है, संसार की ओर ले जाता है। वो नहीं होने देंगे। हमारी भी जिद्द है। अरे करके देख लो कोई बहुत बड़ी बात नहीं है।
जाते कछु निज स्वारथ होई। तापर ममता करे सब कोई।
ये सिद्धान्त है। तो तुम्हारा माने आत्मा का स्वार्थ हरि गुरु से ही है, 'भी' नहीं। इसलिए मन का अटैचमेन्ट वहीं हो, संसार में ड्यूटी करो। इसलिए रूपध्यान बनाना है, बार-बार बनाना है। हारना नहीं है, हराना है मन को, कमर कस लो। अबकी बार आप लोग बस यही करें, ये हमारा बार-बार निवेदन है। फिर देखें, आप कितनी जल्दी भगवान् के पास पहुँचते है। और कितना आपको सुख मिलता है रूपध्यान में। फिर आपके आँसू आयेंगे, कम्प होगा, रोमांच होगा, आनन्द का आभास होगा। आभास भी होने लग जाये तो फिर तो आप जम्प करके चले जायेंगे आगे। फिर दूरी नहीं है, देरी नहीं है। ये देरी और दूरी इसलिए है, कि हम मन के गुलाम बने हुये हैं। बस इतना सा हमारा निवेदन हर समय ध्यान में रखियेगा, भूल न जाइयेगा। हाँ।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - शनिवार का दिन न्याय के देवता भगवान शनिदेव को समर्पित किया जाता है। शनि की शुभ दृष्टि से जहां व्यक्ति का जीवन सुखमय बनता है तो वहीं शनि की अशुभता होने के कारण जीवन में उठापटक लगी ही रहती है। यदि आपको भी ऐसा लग रहा है कि आपके जीवन में एक के बाद एक परेशानियां आ रही हैं तो इसके पीछे की वजह कुछ कार्य हो सकते हैं। ज्योतिष के अनुसार कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिन्हें शनिवार के दिन भूलकर भी घर में नहीं लाना चाहिए। यदि आप इन चीजों को घर में लाते हैं तो आपको शनिदेव के प्रकोप का सामना करना पड़ता है, जिससे आपके जीवन में दुख: तकलीफे बढऩे लगती हैं।-ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनिदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए शनिवार के दिन काले तिल का दान करना शुभ रहता है, लेकिन शनिवार को काले तिल नहीं खरीदना चाहिए। माना जाता है कि यदि शनिवार के दिन तिल खरीदने से शनिदेव कुपित होते हैं जिससे आपके कार्यों में विघ्न आने लगते हैं।- शनिवार के दिन शनिदेव को सरसों के तेल चढ़ाना चाहिए और सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए, लेकिन शनिवार के दिन भूलकर भी सरसों का तेल नहीं खरीदना चाहिए। इस दिन अन्य किसी तेल की भी खरीदी नहीं करनी चाहिए। माना जाता है कि शनिवार को तेल खरीदने से रोग बढऩे लगते हैं।-ज्योतिषशास्त्र के अनुसार लोहे को शनि की धातु माना गया है, इसलिए शनिवार के दिन लोहे का बना सामान नहीं खरीदना चाहिए। माना जाता है कि शनिवार दिन लोहा खरीदने से जीवन में समस्याओं का सामना करना पड़ता है।- शनिवार के दिन नमक भी नहीं खरीदना चाहिए। यदि आपको नमक खरीदना है तो शनिवार से एक दिन पहले या फिर अन्य किसी दिन खरीद लें। माना जाता है कि शनिवार के दिन नमक खरीदने से आर्थिक स्थिति कमजोर होती है। व्यक्ति पर कर्ज बढऩे लगता है, इसके साथ ही शरीर में रोग भी लगने लगते हैं।
- मां लक्ष्मी धन और ऐश्वर्य की देवी हैं। इन्हीं की कृपा से धरती पर संपन्नता है। जिन घरों में लक्ष्मी जी का वास होता है उस स्थान पर सकारात्मकता रहती बनी रहती है घर का वातावरण आनंदित और शांत रहता है। ज्योतिष और वास्तु में कुछ ऐसे कार्य बताए गए हैं जिन्हें यदि प्रतिदिन किया जाए तो माना जाता है कि मां महालक्ष्मी की कृपा बना रहती है। घर में हमेशा सुख-समृद्धि का वास होता है। जानिये ये कौन से ये उपाय जिससे माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं....- सनातन धर्म में घर की स्त्रियों को लक्ष्मी का रूप माना जाता है, इसलिए मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए रात के समय महिला को घर के मंदिर में एक दीपक अवश्य प्रज्ज्वलित करना चाहिए। माना जाता है कि जिस घर में नियमित रूप से रात में पूजा स्थान पर दीपक जलाया जाता है, उस घर पर मां लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है। घर के सदस्यों को कभी धन की कमी नहीं होती है।- रात को सोने से पहले घर के शयन कक्ष के साथ ही पूरे घर में कपूर जलाकर दिखाना चाहिए, इसके साथ ही उसमें दो लौंग भी डाल देना चाहिए। इससे आपके शयनकक्ष और पूरे घर की नकरात्मक ऊर्जा का नाश होता है। शयन कक्ष में कपूर जलाकर दिखाने से पति-पत्नी के बीच के झगड़े समाप्त होते हैं परिवार के सदस्यों को बीच प्रेमभाव बना रहता है। आपके घर में समृद्धि आती है।- जिन घरों में बुजुर्गों का सम्मान किया जाता है। वहां कभी किसी प्रकार से धन वैभव की कमी नहीं होती है। रात को सोने से पहले भलिभांति देख लेना चाहिए कि आपके घर के बड़ों को किसी चीज की आवश्यकता तो नहीं है। सोने से पहले देख लें कि आपके माता-पिता या सास-ससुर ठीक प्रकार से आराम से सो गए हैं या नहीं। तत्पश्चात सोने जाएं। जिनके ऊपर माता पिता का आशीर्वाद रहता है, उनके किसी कार्य में बाधा नहीं आती है।-नियमित रूप से रात को सोने से ठीक पहले गृह स्वामिनी को दक्षिण दिशा में सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। दक्षिण दिशा को पितरों की दिशा माना गया है। माना जाता है कि यदि रोज रात के समय इस दिशा में दीपक जलाया जाता है तो आपके पितर आपको सुख और संपन्न रहने का आशीर्वाद देते हैं। इसके अलावा इस दिशा में एक बल्व अवश्य लगाना चाहिए और संध्या होते ही रोशनी कर देनी चाहिए।
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जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 182
०० जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचनों से 5-सार बातें (भाग - 9) ::::::
(1) गुरु के आदेशों में उचित अनुचित का विचार करना ही भयंकर पाप है।
(2) प्रारब्ध उसी को कहते हैं जब दुःख की कल्पना की जाय किन्तु सुख प्राप्त हो अथवा सुख की कल्पना की जाय और दुःख प्राप्त हो।
(3) मन में क्या है, यह तो लोग नहीं देखते, ऊपरी परिवर्तन पर ध्यान देते हैं। अतएव बाहरी रूप में ऐसा परिवर्तन ला दो कि लोगों को आश्चर्य होने लगे और तुम्हारा परमार्थ भी बन जाय।
(4) जिसको स्प्रिचुअल शक्ति से पॉवर मिल रही है उसकी शक्ति का ह्रास नहीं होता लेकिन संसार वाले को भीतर से तो शक्ति मिल नहीं रही है, अतः उसकी शक्ति का ह्रास होता है। इसीलिये वह थक जाता है।
(5) संसार में अगर कोई प्यार करेगा तो उसकी अंतिम सीमा होगी मृत्यु। चिन्तन से प्रारंभ होकर मृत्यु में समाप्त होगा। ईश्वरीय प्रेम में भी दस अवस्थायें होती हैं किन्तु उसमें मूर्च्छा के पश्चात मृत्यु नहीं होती, भगवत्प्राप्ति होती है। उसी स्प्रिचुअल पॉवर की शक्ति से वह अमरत्व को प्राप्त होता है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म संदेश एवं साधन साध्य पत्रिकाएँ०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - शुक्र ग्रह पौष पूर्णिमा के दिन यानी 28 जनवरी 2021 (गुरुवार) को राशि परिवर्तन कर चुके हैं। शुक्र का राशि परिवर्तन सुबह 03 बजकर 18 मिनट पर हुआ है। शुक्र ग्रह अब धनु राशि से निकलकर मकर राशि में गोचर किया है। धन और वैभव का कारक माने जाने वाले शुक्र के राशि परिवर्तन का हर किसी के जीवन में कुछ न कुछ प्रभाव पड़ता है। शुक्र का राशि परिवर्तन कुछ राशि वालों के लिए लाभकारी साबित होगा तो कुछ राशियों के लिए मुश्किलें खड़ी करेगा। जानिए आपके जीवन पर क्या पड़ेगा प्रभाव-1. मेष- किसी भी काम में लापरवाही न बरतें। क्रोध और अहंकार से बचें। गोचर काल में आपके गुस्से के कारण बने हुए कार्य बिगड़ सकते हैं। इस दौरान महिलाओं को अपनी सेहत का ध्यान रखा होगा।2. वृषभ- वृषभ राशि का स्वामी शुक्र ग्रह होता है। ऐसे में इस गोचर का आपको विशेष लाभ मिलने वाला है। आपको मेहनत का अच्छा फल मिलेगा। अगर गोचर काल के दौरान आप मेहनत करेंगे तो आपको शुभ परिणामों की प्राप्ति होगी। यह समय आपके लिए अच्छा है, इसका लाभ उठाने की कोशिश करें।3. मिथुन- गोचर काल के दौरान आपको किसी ट्रेनिंग या सेमिनार में भी भाग ले सकते हैं। इसका आने वाले समय में आपको इसका फायदा मिलेगा। अपनी सेहत का ख्याल रखें।4. कर्क- कर्क राशि वालों को इस गोचर का लाभ उठाने की कोशिश करनी चाहिए। इस दौरान आपको आपकी मेहनत का पूरा फल मिलेगा। मानसिक तनाव से बचें।5. सिंह- सिंह राशि के जातक इस गोचर काल के दौरान अपनी सेहत का ख्याल रखें। शत्रु को लेकर मन में किसी तरह का भय न रखें। मेहनत का शुभ परिणाम मिल सकता है।6. कन्या- इस गोचर के दौरान आपको प्लानिंग करनी पड़ेगी। कार्यों में सफलता हासिल होगी। किसी भी तरह का मानसिक तनाव न लें। गोचर के दौरान जल्दबाजी में कोई भी फैसला न लें।7. तुला- इस गोचर के प्रभाव आपके घर में सुख-समृद्धि बढ़ेगी। पहले से चले आ रहे विवाद कम होंगे। इस दौरान आपके बेवजह धन खर्च हो सकता है।8. वृश्चिक- गोचर काल के दौरान आलस्य से दूर रहें। शांति और धैर्य के साथ लोगों से बातचीत करें। पैसों के लेन-देन से बचें। गोचर काल के दौरान किसी भी तरह की डील न करें।9. धनु- गोचर काल के दौरान आपको अपने खर्च पर कंट्रोल रखना होगा। सेहत को लेकर किसी भी तरह की लापरवाही न बरतें। बाहर जाकर पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए समय शुभ साबित होगा।10. मकर- गोचर के प्रभाव से आपको अच्छे फल मिलने वाले हैं। इस गोचर के प्रभाव से आपके मान-सम्मान में वृद्धि होगी। इस दौरान आपको धन लाभ होने वाला है।11. कुंभ- आपके खर्चों में बढ़ोत्तरी हो सकती है। खर्चों को नियंत्रण में रखना होगा। सेहत का ख्याल रखें। गोचर काल के दौरान लड़ाई-झगड़े से बचें।12. मीन- मीन राशि वालों के लिए गोचर काल शुभ साबित हो सकता है। इस दौरान आपको आपके कार्यों में सफलता हासिल होगी। मान-सम्मान में वृद्धि हो सकती है।
- सकट चौथ का व्रत 31 जनवरी 2021 को रखा जाएगा। माघ महीने में पडऩे वाली सकट चौथ का विशेष महत्व होता है। इसे सकट चौथ, संकटा चौथ, तिलकुट चौथ या संकष्टी चतुर्थी नामों से भी जाना जाता है। सकट चौथ के दिन माताएं अपनी संतान की लंबी आयु की कामना के लिए भगवान गणेश की उपासना करती हैं। भगवान गणेश को समर्पित यह व्रत चंद्रमा को अघ्र्य देने के बाद ही व्रत पूर्ण माना जाता है।सकट चौथ व्रत शुभ मुहूर्त----सकट चौथ व्रत तिथि- जनवरी 31, 2021 (रविवार)सकट चौथ के दिन चन्द्रोदय समय - 20:40चतुर्थी तिथि प्रारम्भ - जनवरी 31, 2021 को 20:24 बजेचतुर्थी तिथि समाप्त - फरवरी 01, 2021 को 18:24 बजे।सकट चौथ के दिन करें श्री गणेश की आरती-----जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ जयज्एक दंत दयावंत चार भुजा धारी। माथे सिंदूर सोहे मूसे की सवारी ॥अंधन को आंख देत, कोढिऩ को काया। बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥ जयज्हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा। लड्डुअन का भोग लगे संत करें सेवा ॥दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी। कामना को पूर्ण करो जाऊं बलिहारी॥ जयज्सूर श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा। जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती पिता महादेवा॥ जयज्शुक्र ने आज तड़के 3:18 मिनट पर किया राशि परिवर्तन, जानें इसका आपके जीवन पर क्या पड़ेगा प्रभावये भी व्रत कथा है प्रचलित-किसी नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आंवां लगाया तो आंवां नहीं पका। परेशान होकर वह राजा के पास गया और बोला कि महाराज न जाने क्या कारण है कि आंवा पक ही नहीं रहा है। राजा ने राजपंडित को बुलाकर कारण पूछा। राजपंडित ने कहा, ''हर बार आंवा लगाते समय एक बच्चे की बलि देने से आंवा पक जाएगा।'' राजा का आदेश हो गया। बलि आरम्भ हुई। जिस परिवार की बारी होती, वह अपने बच्चों में से एक बच्चा बलि के लिए भेज देता। इस तरह कुछ दिनों बाद एक बुढिय़ा के लड़के की बारी आई।बुढिय़ा के एक ही बेटा था तथा उसके जीवन का सहारा था, पर राजाज्ञा कुछ नहीं देखती। दुखी बुढिय़ा सोचने लगी, ''मेरा एक ही बेटा है, वह भी सकट के दिन मुझ से जुदा हो जाएगा।'' तभी उसको एक उपाय सूझा। उसने लड़के को सकट की सुपारी तथा दूब का बीड़ा देकर कहा, ''भगवान का नाम लेकर आंवां में बैठ जाना। सकट माता तेरी रक्षा करेंगी।''सकट के दिन बालक आंवां में बिठा दिया गया और बुढिय़ा सकट माता के सामने बैठकर पूजा प्रार्थना करने लगी। पहले तो आंवा पकने में कई दिन लग जाते थे, पर इस बार सकट माता की कृपा से एक ही रात में आंवा पक गया। सवेरे कुम्हार ने देखा तो हैरान रह गया। आंवां पक गया था और बुढिय़ा का बेटा जीवित व सुरक्षित था। सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक भी जी उठे। यह देख नगरवासियों ने माता सकट की महिमा स्वीकार कर ली। तब से आज तक सकट माता की पूजा और व्रत का विधान चला आ रहा है।
- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 181
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित 1008-ब्रजभावयुक्त दोहों के विलक्षण ग्रन्थ 'श्यामा श्याम गीत' के दोहे, ग्रन्थ की प्रस्तावना सबसे नीचे पढ़ें :::::::
(भाग - 8 के दोहा संख्या 40 से आगे)
पट्टी न पढ़ाओ जानि भोरी भारी श्यामा।तेरी करतूत देखें बैठी उर धामा।।41।।
अर्थ ::: श्रीराधा अत्यंत भोली भाली हैं, ऐसा समझकर उन्हें बहकाने का प्रयत्न न करो। श्रीराधा तो हृदय में बैठकर तुम्हारे प्रत्येक क्षण के प्रत्येक संकल्प को देख रही हैं।
आपु को इकलो न मानो कह बामा।सदा सर्वत्र तेरे साथ रहें श्यामा।।42।।
अर्थ ::: कभी एक क्षण के लिये भी स्वयं को अकेला न मानो। सदा सब स्थानों पर श्रीराधा तुम्हारे साथ ही हैं।
प्रति जन्म नयी नयी मातु बनी बामा।बदली न तेरी कभु साँची मातु श्यामा।।43।।
अर्थ ::: जीव के कर्मानुसार शरीर का जन्म मरण होता रहता है। इस कारण हर जन्म में नयी नयी मातायें भी बनीं। आत्मा की माँ श्रीराधा तो सदा से एक ही थीं, एक ही रहेंगी।
बार बार जग ते हटाओ मन बामा।बार बार श्याम में लगाओ आठु यामा।।44।।
अर्थ ::: अपने मन को बार बार संसार से हटाकर श्यामसुन्दर में ही लगाने का अभ्यास करना है।
शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध मन कामा।दूँगा दिव्य मन कहु चलु ढिग श्यामा।।45।।
अर्थ ::: अपने मन से कहो, तू शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध ही तो चाहता है, चल श्रीराधा के निकट चल, वहाँ तुझे दिव्य शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध प्राप्त होगा।
०० 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का परिचय :::::
ब्रजरस से आप्लावित 'श्यामा श्याम गीत' जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की एक ऐसी रचना है, जिसके प्रत्येक दोहे में रस का समुद्र ओतप्रोत है। इस भयानक भवसागर में दैहिक, दैविक, भौतिक दुःख रूपी लहरों के थपेड़ों से जर्जर हुआ, चारों ओर से स्वार्थी जनों रूपी मगरमच्छों द्वारा निगले जाने के भय से आक्रान्त, अनादिकाल से विशुध्द प्रेम व आनंद रूपी तट पर आने के लिये व्याकुल, असहाय जीव के लिये श्रीराधाकृष्ण की निष्काम भक्ति ही सरलतम एवं श्रेष्ठतम मार्ग है। उसी पथ पर जीव को सहज ही आरुढ़ कर देने की शक्ति जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की इस अनुपमेय रसवर्षिणी रचना में है, जिसे आद्योपान्त भावपूर्ण हृदय से पढ़ने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे रस की वृष्टि प्रत्येक दोहे के साथ तीव्रतर होती हुई अंत में मूसलाधार वृष्टि में परिवर्तित हो गई हो। श्रीराधाकृष्ण की अनेक मधुर लीलाओं का सुललित वर्णन हृदय को सहज ही श्यामा श्याम के प्रेम में सराबोर कर देता है। इस ग्रन्थ में रसिकवर श्री कृपालु जी महाराज ने कुल 1008-दोहों की रचना की है।
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - गणेशजी ज्ञान और बुद्धि के देवता माने जाते हैं, साथ ही उनकी सभी देवताओं में सबसे पहले पूजा भी की जाती है। गणेशजी को विघ्नहर्ता के नाम से भी जाना जाता है, इसलिए दफ्तर या फिर घर में गणेशजी की मूर्ति की स्थापना करते समय इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है कि उनकी सूंड की दिशा क्या हो। कई धार्मिक रीतियों का पालन इन्हें स्थापित करने के दौरान ध्यान में रखना होता है। मूर्ति या तस्वीरों में सीधी सूंड वाले गणेशजी को दुर्लभ माना जाता है। एक तरफ सूंड के मुड़े होने के चलते ही उन्हें वक्रतुण्ड भी कहा जाता है। गणेशजी की दाई सूंड में सूर्य का प्रभाव और बाई में चंद्रमा का प्रभाव माना जाता है।दाईं ओर घूमी हुई सूंडगणेशजी की सूंड अगर दाईं तरह मुड़ी हुई हो तो हठी होते हैं, इस तरह की मूर्ति और तस्वीरें ज्यादातर ऑफिस और घर में नहीं रखी जाती है। जिस गणेशजी की सूंड दाईं तरफ मुड़ी हो उन्हें सिद्धिविनायक कहते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इनके दर्शन से हर कार्य सफल हो जाता है और शुभ फल मिलता है।बाईं ओर घूमी सूंडगणेशजी की ऐसी प्रतिमा जिसमें वो सिंहासन पर बैठे रहते हैं और सूंड बाई तरह मुड़ी होती है, उसे पूजा घर में रखनी चाहिए। इस प्रतिमा की पूजा से घर में समृद्धि और सुख-शांति आ जाती है। बाईं तरफ जिस गणेशजी की सूंड घूमी होती है, उन्हें विघ्नविनाशक कहा जाता है। ऐसी प्रतिमा को घर के मुख्य द्वार पर लगाना चाहिए, इससे घर में किसी भी प्रकार की नेगेटिव एनर्जी प्रवेश नहीं कर पाती है और वास्तु दोष का भी नाश हो जाता है। इन्हें घर में मुख्य द्वार पर लगाने के पीछे तर्क है कि जब हम कहीं बाहर जाते हैं तो कई प्रकार की बलाएं, विपदाएं या नेगेटिव एनर्जी हमारे साथ आ जाती है। घर में प्रवेश करने से पहले जब हम विघ्वविनाशक गणेशजी के दर्शन करते हैं तो इसके प्रभाव से यह सभी नेगेटिव एनर्जी वहीं रुक जाती है व हमारे साथ घर में प्रवेश नहीं कर पाती। वास्तु विज्ञान के अनुसार गणेश जी को घर के ब्रह्म स्थान (केंद्र) में, पूर्व दिशा में एवं ईशान में विराजमान करना शुभ एवं मंगलकारी होता है। इस बात का ध्यान रखें कि गणेश जी की सूंड उत्तर दिशा की ओर हो। गणेश जी को दक्षिण या नैऋत्य कोण में नहीं रखना चाहिए।सीधी सूंड वाले गणेशजीसंत समाज के लोग गणेशजी की सीधी सूंड वाली मूर्ति की आराधना करते हैं। इनकी आराधना रिद्धि-सिद्धि, कुण्डलिनी जागरण,मोक्ष, समाधि आदि के उत्तम बताई जाती है।जो लोग संतान सुख की कामना रखते हैं उन्हें अपने घर में बाल गणेश की प्रतिमा या तस्वीर लानी चाहिए। नियमित इनकी पूजा से संतान के मामले में आने वाली विघ्न बाधाएं दूर होती है।घर में आनंद उत्साह और उन्नति के लिए नृत्य मुद्रा वाली गणेश जी की प्रतिमा लानी चाहिए। इस प्रतिमा की पूजा से छात्रों और कला जगत से जुड़े लोगों को विशेष लाभ मिलता है। इससे घर में धन और आनंद की भी वृद्घि होती है। गणेश जी आसान पर विराजमान हों या लेटे हुए मुद्रा में हों तो ऐसी प्रतिमा को घर में लाना शुभ होता है। इससे घर में सुख और आनंद का स्थायित्व बना रहता है। सिंदूरी रंग वाले गणेश को समृद्घि दायक माना गया है, इसलिए इनकी पूजा गृहस्थों एवं व्यवसायियों के लिए शुभ माना गया है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 180
(एकान्त में बैठकर साधना सरल है, किन्तु संसार में कर्मरत रहते हुये साधना में कठिनाई आती है. इस कठिनाई को सरल कैसे करना है और कर्मयोग की साधना का अभ्यास कैसे करना है, जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी समझा रहे हैं...)
एक गाय, जानवर, दिन भर चारा चरती है। लेकिन अपने बछड़े को याद करती रहती है। ये कर्मयोग की साधना है उसकी, और जब शाम को लौटती हैं, चारा चरने के बाद, और गौशाला के पास आती है तो वो जो चोरी-चोरी प्यार कर रही थी थोड़ा-थोड़ा वह कन्ट्रोल से बाहर हो जाता है तो रम्भाती है। बड़े जोर से बोलती है, चिल्लाती है, अपने बच्चे को पुकारती है और बच्चा भी उसका माँ की आवाज पहचानता है तो खूँटे में बँधा हुआ, उसका बच्चा भी आवाज देता है, मम्मी जल्दी आ जाओ। ये देखो पशुओं मे भी इस प्रकार का विषय है। तो मनुष्य की कौन कहे। हाँ तो हमें इस प्रकार कर्मयोग की साधना करना है अर्थात हम कार्य करते हुए भी बार-बार एक बात का तो अभ्यास करें कि हम अकेले नहीं हैं कभी भी एक क्षण को भी। इसका आप लोग घण्टे-घण्टे भर में पहले अभ्यास कीजिये।
हम अधिक समय नहीं ले रहे हैं आपका। एक घण्टे में, एक सेकेण्ड बस, एक मिनट नहीं, जितनी देर में आप यों यों खुजला लेते हैं, यों यों कर लेते हैं। कोई भी वर्क आपका संसार में ऐसा नहीं है कि समाधि लग जाय।
अरे भाई हर काम करते समय ऑफिस वर्क करते समय भी आप देख लेतें है, कभी इधर को कभी उधर को, कभी कुछ सोच लेते हैं, कभी छींक आ गई, कभी खाँसी आ गई, ये होता ही रहता है आपको संसार में भी वर्क करते समय भी। तो आप घण्टे भर में एक सेकेण्ड को, जैसे मेज आपके सामने है, कुर्सी पर बैठे हैं, मेज के एक किनारे पर आप मन से श्यामसुन्दर को बैठा दीजिये, हाँ बैठ गये, अब तुम देखो मैं वर्क करता हूँ। एक घण्टा हो गया बैठे हो न? हाँ बैठे हैं। बैठे हो न? हाँ बैठे हैं। एक-एक घण्टे पर रियलाइज किया कि श्यामसुन्दर हमारे साथ हैं हमारे पास हैं, हम अकेले नही हैं। हाँ हमारी प्राइवेसी आज से खत्म। हम कोई बात प्राईवेट सोच नहीं सकते, हमें अधिकार नहीं सोचने का, क्योंकि वो हमारे अन्दर बैठे सब नोट कर रहे हैं। फिर आधे घण्टे पर किया एक सेकेण्ड को कि वो हमारे साथ हैं, फिर पन्द्रह मिनट पर किया।
जब आप यहां तक पहुँच जायेंगे तब आप अनुभव करेगें कि अब ऐसा लग रहा है कि वो हर समय हमारे साथ हैं हर समय वो साथ हैं। उनका रुप ध्यान नहीं लाना है, केवल फीलिंग लाना है कि मेरे प्राण वल्लभ मेरे साथ हैं मैं अकेला नहीं हूँ। हर समय इतना आत्मबल होगा आपको, कितनी खुशी होगी आपको, मेरे श्यामसुन्दर सदा हमारे साथ हैं, मेरे गुरु सदा मेरे साथ हैं, ये इन दोनों को हमको हर समय अपने साथ महसूस करने का अभ्यास करना है। फिर कुछ दिनों बाद आपको करना नहीं पड़ेगा, स्वत: होने लगेगा, यही कर्मयोग की साधना है जो आप अपने सांसारिक कार्य करते हुये साधना पथ पर बढ़ते-बढ़ते अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेगें, दिव्यानन्द की प्राप्ति कर पायेंगे।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'कामना और उपासना' भाग - 2०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 179
साधक का प्रश्न ::: मन से भक्ति कैसे की जाये?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: पहले सिद्धांत समझिये। भक्ति दो प्रकार की होती है - (1) वैधी और (2) रागानुगा। बुद्धि-प्रधान लोगों के लिए वैधी भक्ति, वे शास्त्र-वेदों में वर्णित वर्णाश्रम धर्म का पालन भी करें और भगवान की भक्ति भी करें । मन-प्रधान लोग भावुक होते हैं वे केवल भगवान् की भक्ति करते हैं।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - ओपल एक सफेद रंग का कीमती रत्न है जो सिलिकेट खनिज परिवार से आता है। यह अपने रंगों के अद्भुत संयोग के लिए पहचाना जाता है। ओपल की खोज ऑस्ट्रेलिया, इथियोपिया, मैक्सिको, ब्राजील, सूडान, हंगरी और अमेरिका के खदानों में की जाती है। सभी ओपल में ऑस्ट्रेलिया के ओपल अपने चमकीले रंग और समृद्ध बनावट के लिए व्यापक रूप से लोकप्रिय है। इथियोपियाई ओपल व मैक्सिकन ओपल को लोगों द्वारा पसंद किया जाता है, जो पारदर्शी नारंगी रंग का होता है।ज्योतिष शास्त्र में ओपलओपल का अर्थ उपल और संस्कृत में ओपला है जो ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्र ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। इसे व्यक्ति के जन्म पत्रिका में कमजोर शुक्र के प्रभाव का मुकाबला करने और व शुक्र के प्रभाव को बढ़ाने के लिए पहनने का सुझाव ज्योतिषियों द्वारा दिया जाता है। ओपल वित्तीय समृद्धि, शारीरिक कल्याण और अच्छी सामाजिक स्थिति लाने के लिए पहना जाता है। कीमती हीरे का यह ज्योतिषीय विकल्प रचनात्मक गतिविधियों, शानदार जीवन शैली, उच्च सामाजिक स्थिति, वैवाहिक सद्भाव और अच्छे स्वास्थ्य में सफलता के लिए धारण किया जाता है।किस राशि के जातक ओपल धारण करें?भारतीय ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक ओपल तुला और वृष राशि के जातकों लिए उत्तम रत्न है। पश्चिमी ज्योतिष में तुला राशि के लिए ओपल को बर्थ-स्टोन के रूप में धारण करने की सिफारिश की गई है। इसके अलावा ज्योतिषीय परामर्श पर इस रत्न को मकर, कुंभ, मिथुन और कन्या राशि के जातक भी पहन सकते हैं।ओपल धारण करने के लाभओपल रत्न अपने ज्योतिषीय गुणों और सौंदर्य आकर्षण के लिए पहचाना जाता है। माना जाता है कि ओपल पहनने वाले को जीवन की कठिन परिस्थितियों से निपटने में मदद करता है।ओपल वैवाहिक जीवन के लिए शुभ!वेदों के अनुसार, कुंडली में शुक्र की कमजोर स्थिति विवाहित जीवन में संघर्ष और असहमति का संकेत देती है जिससे अलगाव हो सकता है। मिल्की ओपल रत्न को पहनने से वैवाहिक जीवन सुखमय होता है।ज्योतिष के अनुसार शुक्र विलासता और सांसारिक इच्छाओं से संबंधित है। इसलिए, ज्योतिषी न केवल वित्तीय परिस्थितियों को बढ़ाने के लिए, बल्कि सामाजिक स्थिति और शानदार जीवन शैली को बनाए रखने के लिए ओपल को धारण करने की सलाह देते हैं।माना जाता है कि काला ओपल और अग्नि ओपल पहनने से विभिन्न मनोवैज्ञानिक समस्याओं और नींद संबंधी विकारों से छुटकारा मिलता है।
- वास्तु शास्त्र के अनुसार, यदि घर में कोई न कोई हरदम बीमार रहता है, घर में रोजाना लड़ाई हो रही है, आमदनी से ज्यादा खर्च हो रहा है। परिवार का मुखिया हर वक्त परेशान रहता है या फिर उसे रात के वक्त डरावने सपने आते हैं तो इसके लिए घर का वास्तु दोष कुछ हद तक जिम्मेदार होता है। कई बार भवन निर्माण के दौरान कई प्रकार के वास्तु दोष रह जाते हैं और उन्हें दूर करने के लिए आमतौर पर लोग इनको दूर करने के लिए कई तरह के उपाय भी करते हैं। वहीं वास्तुदोष को दूर करने के लिए वास्तु शास्त्र में कई चमत्कारी उपाय बताए गए हैं। इनमें से वास्तु दोष निवारण यंत्र सुरक्षा कवच का काम करता है। हिंदू धर्म में वास्तु दोष को दूर करने के लिए घर में वास्तु निवारण यंत्र की स्थापना करनी चाहिए ताकि आपके घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो सकें और नकारात्मक शक्तियों का नाश किया जा सके।वास्तु दोष निवारण यंत्र लाभ-वास्तु दोष निवारण यंत्र को स्थापित करने से नवग्रहों का शुभ फल प्राप्त होता है।-इस यंत्र की स्थापना के बाद वास्तुदोष से जुड़ी सभी परेशानियों से राहत मिल सकती है।-घर के कलह-क्लेश को दूर करने के लिए भी इस यंत्र का प्रयोग किया जाता है।-यदि आपके घर में हमेशा तनाव की स्थिति बनी रहती है तो यह इसको भी दूर करता है।-वास्तुदोष निवारण यंत्र से रोग-पीडा़ और दरिद्रता का नाश होता है और धन-वैभव की इच्छा पूरी होती है।-इस यंत्र को स्थापित करने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।-वास्तुदोष निवारण यंत्र को स्थापित करके आप अपने घर में बिना तोड़-फोड के वास्तुदोष को दूर कर सकते हैं।कहां करें स्थापनावास्तुदोष निवारण यंत्र को घर या ऑफिस में पश्चिम या पूर्व की दिशा में रखना शुभ माना गया है। इस यंत्र का प्रभाव सूर्य की बढ़ती किरणों के साथ ओर बढ़ता है। वास्तु दोष निवारण यंत्र को आप सादे कागज पर, भोजपत्र, तांबे और चांदी की धातु पर भी बनवा सकते हैं। इस यंत्र को स्थापित रखने के लिए किसी विशेष पूजा की आवश्यकता नहीं होती है। वास्तु दोष निवारण यंत्र को स्थापित करते वक्त इसके शुद्धिकरण और प्राण प्रतिष्ठा जैसे महत्वपूर्ण चरण सम्मिलित होने चाहिए। प्राण प्रतिष्ठा करवाए बिना इस यंत्र का विशेष लाभ प्राप्त नहीं होता है। इसलिए इस यंत्र को स्थापित करने से पहले सुनिश्चित करें कि यह विधिवत बनाया गया हो और इसकी प्राण प्रतिष्ठा हुई हो। वास्तु दोष निवारण यंत्र खरीदने के पश्चात किसी अनुभवी ज्योतिषी की सलाह लेकर उसे घर की सही दिशा में स्थापित करना चाहिए।स्थापना विधिवास्तुदोष निवारण यंत्र को स्थापित करने के लिए सबसे पहले प्रात: काल उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर इस यंत्र को पूजन स्थल पर रखकर इस यंत्र के आगे दीपक जलाएं और इस पर फूल अर्पित करें। इसके बाद वास्तु दोष निवारण यंत्र को गौमूत्र, गंगाजल और कच्चे दूध से शुद्ध करें और 11 या 21 बार " ओम आकर्षय महादेवी राम राम प्रियं हे त्रिपुरे देवदेवेषि तुभ्यं दश्यमि यंचितम " बीज मंत्र का जाप करें।वास्तु दोष निवारण यंत्र का बीज मंत्र - "ओम आकर्षय महादेवी राम राम प्रियं हे त्रिपुरे देवदेवेषि तुभ्यं दश्यमि यंचितम "---
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जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 178
(विवाद से कभी कुछ हासिल नहीं होता, पुन: भक्तिमार्ग में विवाद तो महान हानि करने वाला है. जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से जानिये यह क्यों हानिकारक है...)
अश्रद्धालु एवं अनधिकारी से अपने मार्ग अथवा साधनादि के विषय में वाद-विवाद करना भी कुसंग है। क्योंकि जब अनधिकारी को सर्वसमर्थ महापुरुष ही आसानी के साथ बोध नहीं करा पाता, तब वह साधक भला किस खेत की मूली है। यदि कोई परहित की भावना से भी समझाना चाहता है, तब भी उसे ऐसा न करना चाहिये, क्योंकि अश्रद्धालु होने के कारण उसका विपरीत ही परिणाम होता है, साथ ही उस अश्रद्धालु के न मानने पर साधक का चित्त अशांत हो जाता है। शास्त्रानुसार भी भक्ति-मार्ग को लेकर वाद-विवाद करना घोर पाप है। भरत जी कहते हैं,
भक्त्या विवदमानेषु मार्गमाश्रित्य पश्यत: तेन पापेन्।
अर्थात् भरत जी कहते हैं कि भक्ति-मार्ग को लेकर वाद-विवादकर्म सरीखा महान पाप मुझे लग जाय यदि राम के वन जाने के विषय में मेरी राय रही हो।
अतएव न तो वाद-विवाद सुनना चाहिये, न तो स्वयं ही करना चाहिये। यदि अनधिकारी जीव, इन विषयों को नहीं समझता, तो इसमें आश्चर्य या दु:ख भी न होना चाहिये, क्योंकि कभी तुम भी तो नहीं समझते थे। यह तो परम सौभाग्य, महापुरुष एवं भगवान की कृपा से प्राप्त होता है कि जीव, भगवद्विषय को समझ कर उनकी ओर उन्मुख हो।
00 प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज00 सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य00 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
महिलाओं के लिए ये नक्षत्र और भी विशेष प्रभावशाली माना गया है।
गुरुपुष्य योग में धर्म, कर्म, मंत्र जाप, अनुष्ठान, मंत्र दीक्षा अनुबंध, व्यापार आदि आरंभ करने के लिए अतिशुभ माना गया है सृष्टि के अन्य शुभ कार्य भी इस नक्षत्र में आरंभ किये जा सकते हैं।
सभी मुहूर्तों में श्रेष्ठ गुरु पुष्ययोग 28 जनवरी बृहस्पतिवार को सूर्योदय से लेकर मध्यरात्रि तक विद्यमान रहेगा। नक्षत्र ज्योतिष के मुहूर्त शास्त्र में सभी 27 नक्षत्रों में 'पुष्य नक्षत्र' को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, यद्यपि अभिजीत मुहूर्त को नारायण के 'चक्रसुदर्शन' के समान शक्तिशाली बताया गया है फिर भी पुष्य नक्षत्र और इस दिन बनने वाले शुभ मुहूर्त का प्रभाव अन्य मुहूर्तो की तुलना में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यह नक्षत्र सभी अरिष्टों का नाशक और सर्वदिग्गामी है। विवाह को छोड़कर अन्य कोई भी कार्य आरंभ करना हो तो पुष्य नक्षत्र और इनमें श्रेष्ठ मुहूर्तों को ध्यान में रखकर किया जा सकता है।
पुष्य नक्षत्र का सर्वाधिक महत्व बृहस्पतिवार और रविवार को होता है बृहस्पतिवार को गुरु पुष्य और रविवार को रविपुष्य योग बनता है, जो मुहूर्त ज्योतिष के श्रेष्ठतम मुहूर्तों में से एक है। इस नक्षत्र को तिष्य कहा गया है जिसका अर्थ होता है श्रेष्ठ एवं मंगलकारी। बृहस्पति भी इसी नक्षत्र में पैदा हुए थे तैत्रीय ब्राह्मण में कहा गया है कि, 'बृहस्पतिं प्रथमं जायमान: तिष्यं नक्षत्रं अभिसं बभूव। नारदपुराण के अनुसार इस नक्षत्र में जन्मा जातक महान कर्म करने वाला, बलवान, कृपालु, धार्मिक, धनी, विविध कलाओं का ज्ञाता, दयालु और सत्यवादी होता है। आरंभ काल से ही इस नक्षत्र में किये गये सभी कर्म शुभफलदाई कहे गये हैं किन्तु माँ पार्वती विवाह के समय शिव से मिले श्राप के परिणामस्वरुप पाणिग्रहण संस्कार के लिए इस नक्षत्र को वर्जित माना गया है।
गुरुपुष्य योग में धर्म, कर्म, मंत्र जाप, अनुष्ठान, मंत्र दीक्षा अनुबंध, व्यापार आदि आरंभ करने के लिए अतिशुभ माना गया है सृष्टि के अन्य शुभ कार्य भी इस नक्षत्र में आरंभ किये जा सकते हैं क्योंकि लक्षदोषं गुरुर्हन्ति की भांति हो ये अपनी उपस्थिति में लाखों दोषों का शमन कर देता है। इस प्रकार रविपुष्य योग में भी उपरोक्त सभी कर्म किए जा सकते हैं।
नारी जगत के लिए ये नक्षत्र और भी विशेष प्रभावशाली माना गया है। इनमें जन्मी कन्याएं अपने कुल-खानदान का यश चारों दिशाओं में फैलाती हैं और कई महिलाओं को तो महान तपश्विनी की संज्ञा मिली है जैसा की कहा भी गया है कि, देवधर्म धनैर्युक्त: पुत्रयुक्तो विचक्षण:। पुष्ये च जायते लोक: शांतात्मा शुभग: सुखी। अर्थात- जिस कन्या की उत्पत्ति पुष्य नक्षत्र में होती है वह सौभाग्य शालिनी, धर्म में रूचि रखने वाली, धन-धान्य एवं पुत्रों से युक्त सौन्दर्य शालिनी तथा पतिव्रता होती है। वैसे तो यह नक्षत्र हर सत्ताईसवें दिन आता है किन्तु हर बार गुरुवार या रविवार ही हो ये तो संभव नही हैं इसलिए इस नक्षत्र के दिन गुरु एवं सूर्य की होरा में कार्य आरंभ करके गुरुपुष्य और रविपुष्य जैसा परिणाम प्राप्त किया जा सकता हैं। -
वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी घटना का ज्योतिषीय गणना का मुख्य आधार सभी नौ ग्रहों की चाल, स्वभाव और प्रभाव पर निर्भर करता है। सभी नौ ग्रहों के अलग-अलग प्रभाव का जातकों पर प्रभाव पड़ता है। आज हम आपको बुध ग्रह के बारे में बताने जा रहे है। ज्योतिषशास्त्र में बुध ग्रह को एक तटस्थ ग्रह माना गया है। ज्योतिषशास्त्र में बुध को वाणी का कारक ग्रह माना गया है। जिन लोगों की कुंडली में बुध कमजोर होते हैं। वे स्वभाव से बहुत ही संकोची होते हैं। यह अपनी बात को सबके सामने नहीं रख पाते हैं। वाणी से ये अक्सर कटु वचन बोलेते हैं जिसकी वजह से अक्सर इनके कार्य बिगड़ जाते हैं।
बुध मकर राशि की यात्रा समाप्त करके 25 जनवरी की शाम 4 बजकर 53 मिनट पर कुंभ राशि में प्रवेश कर रहे हैं। बुध ग्रह के राशि परिवर्तन का सभी 12 राशियों पर प्रभाव....
मेष राशि- बुध का गोचर करना आपके लिए अनुकूल फल देने वाला सिद्ध होगा।
वृषभ राशि- बुध आपका आर्थिक पक्ष मजबूत करेंगे। कार्य व्यापार में उन्नति होगी।
मिथुन राशि- आर्थिक पक्ष मजबूत होगा। पराक्रम की वृद्धि होगी।
कर्क राशि- कई तरह की चुनौतियां का सामना करना पड़ सकता है।
सिंह राशि- शुभ कार्यों की शुरुआत के लिए समय अनुकूल रहेगा।
कन्या राशि- काम में बाधाएं आएंगी। समय पर कोई भी कार्य संपन्न नहीं हो पाएगा।
तुला राशि - बुध आपके लिए बेहतरीन सफलता दिलाएंगे। प्रेम संबंधी मामलों में प्रगाढ़ता आएगी।
वृश्चिक राशि- जमीन जायदाद से जुड़े मामलों का निपटारा होगा। मकान अथवा वाहन खरीदने का भी संकल्प पूरा होगा।
धनु राशि- आपके लिए बुध अनुकूल प्रभाव डालेंगे। जो जातक नौकरी में हैं उनके लिए समय अच्छा रहेगा।
मकर राशि- धन भाव में बुध का गोचर नौकरी में पदोन्नति और मान-सम्मान की वृद्धि होगी। शिक्षा प्रतियोगिता में भी अच्छी सफलता प्राप्त होगी।
कुंभ राशि- व्यापारियों के लिए बुध का गोचर अति अनुकूल रहेगा। शीर्ष अधिकारियों से मेलजोल बढ़ेगा और उनसे लाभ भी होगा।
मीन राशि- खर्चे अधिक होने की संभावना है। -
हम सभी एक बात का अनुभव जरूर करते हैं कि अचानक मेहनत से कमाया हुआ धन अधिक खर्च होने लगता है। यह खर्च फिजूल, किसी को उधार देने या फिर बीमारियों के इलाज होने पर बढ़ जाता है। इसके अलावा घर में शांति की जगह अशांति, लड़ाई-झगड़े और नकारात्मकता हावी होने लगता है। बनते हुए काम बिगडऩे लगते हैं और हर एक काम में असफलता मिलने लगती है। वास्तुशास्त्र में अचानक ऐसी घटनाओं के बढ़ जाने के पीछे, आपके घर और आस-पास फैली नकारात्मक ऊर्जा और वास्तु दोष की वजह से होता है। कुछ वास्तुदोष के कारण अक्सर पैसा नहीं टिक पाता है।
आइए जानते हैं इन वास्तु दोष का कारण...
घर में लगातर पानी की बर्बादी होना जैसे, घर की टंकियों से अनावश्यक पानी का बहना, नल की टोटियों से लगातर पानी का टपकना वास्तु में अशुभ माना गया है। इससे चंद्रमा कमजोर होता है जिससे धन हानि और स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां आती हैं।
घर पर रखी हुए घडिय़ां कभी रुकी नहीं होनी चाहिए। इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा का विस्तार होता है और किसी भी कार्य में सफलता देर तक मिलती है। घर का मुख्य द्वार हमेशा साफ और सुंदर रखना चाहिए। शाम के वक्त इस जगह पर हमेशा रौशनी होनी चाहिए। यहाँ पर अंधेरा रखना बेहद अशुभ माना जाता है।वास्तु में सूखे पौधे निराशा का प्रतीक माने गए हैं,ये तरक्की में बाधा बनते हैं। यदि आपने अपने घर के आँगन में पौधे लगा रखे है तो उनकी उचित देखभाल करें। बाथरूम और रसोई के पानी की निकासी के पाइप का मुहं उत्तर,पूर्व या उत्तर-पूर्व में होना वास्तु के अनुसार शुभ माना जाता है। रसोईघर के सामने या बगल में बाथरूम नहीं होना चाहिए। ये आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा का कारण बनता है, किचन में पहुंचने वाली नकारात्मकता आपके पूरे घर को परेशानी दे सकती है। घर के बिल्कुल सामने कोई भी पेड़, बिजली का खंभा या बड़ा पत्थर नहीं होना चाहिए। इससे हमेशा धन हानि और नकारात्मक फैलती है। - हिंदू पंचांग की ग्यारहवी तिथि को एकादशी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं। इन दोनों प्रकार की एकादशियों का भारतीय सनातन संप्रदाय में बहुत महत्व है।अधिमास होने पर दो एकादशी बढ़ जाती है। आज हम बता रहे हैं कि किस हिन्दू माह में कौन सी एकादशी पड़ती है और इसे किस नाम से जाना जाता है और इसका क्या महत्व है।चैत्र माह -हिन्दू साल की शुरुआत चैत्र मास से होती है। इस महीने में पापमोचिनी और कामदा एकादशी आती है। कामदा एकादशी का व्रत रखने से राक्षस आदि की योनि से छुटकारा मिलता है और यह सर्वकार्य सिद्धि करती है। वहीं पापमोचिनी एकादशी व्रत से पाप का नाश होता है और संकटों से मुक्ति मिलती है।वैशाख - इस महीने में वरुथिनी और मोहिनी एकादशी आती है। वरुथिनी सौभाग्य देने, सब पापों को नष्ट करने तथा मोक्ष देने वाली है। मोहिनी एकादशी विवाह, सुख-समृद्धि और शांति प्रदान करती है, साथ ही मोह-माया के बंधनों से मुक्त करती है।ज्येष्ठ - इस माह में अपरा या अचना और निर्जला एकादशी आती है। अपरा एकादशी व्रत से मनुष्य को अपार खुशियों की प्राप्ति होती है तथा समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और निर्जला का अर्थ निराहार और निर्जल रहकर व्रत करना है। इसके करने से हर प्रकार की मनोरथ सिद्धि होती है।आषाढ़ - इश माह में योगिनी और देवशयनी एकादशी आती है। योगिनी एकादशी से समस्त पाप दूर हो जाते हैं और व्यक्ति पारिवारिक सुख पाता है। देवशयनी एकादशी का व्रत करने से सिद्धि प्राप्त होती है। यह व्रत सभी उपद्रवों को शांत कर सुखी बनाता है। देवशयनी एकादशी के बाद देव सो जाते हैं और फिर शादी ब्याह आदि शुभ काम नहीं होते हैं।श्रावण- इस माह में कामिका और पुत्रदा एकादशी आती है। कामिका एकादशी का व्रत सभी पापों से मुक्त कर जीव को कुयोनि को प्राप्त नहीं होने देता है। पुत्रदा एकादशी करने से संतान सुख प्राप्त होता है।भाद्रपद- भाद्रपद महीने में अजा (जया) और परिवर्तिनी (जलझूलनी डोल ग्यारस) एकादशी आती है। अजा एकादशी से पुत्र पर कोई संकट नहीं आता, दरिद्रता दूर हो जाती है, खोया हुआ सबकुछ पुन: प्राप्त हो जाता है। परिवर्तिनी एकादशी के व्रत से सभी दु:ख दूर होकर मुक्ति मिलती है।आश्विन- इस माह में इंदिरा एवं पापांकुशा एकादशी आती है। पितरों को अधोगति से मुक्ति देने वाली इंदिरा एकादशी के व्रत से स्वर्ग की प्राप्ति होती है जबकि पापांकुशा एकादशी सभी पापों से मुक्त कर अपार धन, समृद्धि और सुख देती है।कार्तिक - कार्तिक मास में रमा (रंभा) और प्रबोधिनी एकादशी आती है। रमा एकादशी व्रत करने से सभी सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करने से भाग्य जाग्रत होता है। इस दिन तुलसी पूजा होती है। इसी दिन से हिन्दू धर्म में शुभ काम शुरू होते हैं।मार्गशीर्ष - इस मास में उत्पन्ना और मोक्षदा एकादशी आती है। उत्पन्ना एकादशी व्रत करने से हजार वाजपेय और अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। इससे देवता और पितर तृप्त होते हैं। मोक्षदा एकादशी मोक्ष देने वाली होती है।पौष- इस मास में सफला एवं पुत्रदा एकादशी आती है। सफला एकादशी सफल करने वाली होती है। सफला व्रत रखने से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए।माघ- इस मास में षटतिला और जया (भीष्म) एकादशी आती है। षटतिला एकादशी व्रत रखने से दुर्भाग्य, दरिद्रता तथा अनेक प्रकार के कष्ट दूर होकर मोक्ष की प्राप्ति होती है। जया एकादशी व्रत रखने से ब्रह्महत्यादि पापों से छुट व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है तथा भूत-पिशाच आदि योनियों में नहीं जाता है।फाल्गुन- इस मास में विजया और आमलकी एकादशी आती है। विजया एकादशी से भयंकर परेशानी से व्यक्ति छुटकारा पाता है और इससे शत्रुओं का नाश होता है। आमलकी एकादशी में आंवले का महत्व है। इसे करने से व्यक्ति सभी तरह के रोगों से मुक्त हो जाता है, साथ ही वह हर कार्य में सफल होता है।अधिकमास- माह में पद्मिनी (कमला) एवं परमा एकादशी आती है। पद्मिनी एकादशी का व्रत सभी तरह की मनोकामनाओं को पूर्ण करता है, साथ ही यह पुत्र, कीर्ति और मोक्ष देने वाला है। परमा एकादशी धन-वैभव देती है तथा पापों का नाश कर उत्तम गति भी प्रदान करने वाली होती है।
- -एक स्नान, तीन डुबकी का फॉर्मूला भी लागूहिंदू धर्म में कुंभ मेले का बहुत महत्व है. ये दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक कार्यक्रम है। भारत में हर 12वें वर्ष हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में इसका आयोजन किया जाता है। हालांकि, कुंभ मेले के इतिहास में पहली बार ये पहली बार हरिद्वार में यह 12 साल की बजाए 11वें साल में आयोजित होगा।महाकुंभ 2021 के लिए हरिद्वार तैयार है, लेकिन इस बार शासन-प्रशासन के लिए सबसे बड़ी चुनौती है श्रद्धालुओं का कोरोना महामारी से बचाव सुनिश्चित करना। अधिकारियों का सबसे अधिक ध्यान इस बात पर है कि लाखों की संख्या में आने वाले श्रद्धालुओं और साधु-संतों को कुंभ में हिस्सा लेने के बाद कैसे सुरक्षित वापस भेजा जाए।हरिद्वार महाकुंभ 2021 के लिए क्या है प्रोटोकालअगर आप भी कुंभ में स्नान के लिए जाने की योजना बना रहे हैं तो आपको कोरोना प्रोटोकॉल के बारे में जानना जरूरी है। आईजी कुंभ मेला संजय गुंज्याल ने इसके लिए बड़ी कार्ययोजना तैयार की है जिस पर अमल भी शुरू हो गया है।कोरोना लक्षण दिखने पर एंट्री नहींजो लोग सिम्पटोमैटिक हैं यानि जिनमें कोविड-19 महामारी से जुड़े लक्षण दिखाई दे रहे हैं तो उन्हें कुंभ मेला क्षेत्र में एंट्री नहीं मिलेगी। उन्हें या तो लौटा दिया जाएगा या फिर महामारी इलाज के लिए बने सेंटर में रेफर कर दिया जाएगा।निगेटिव रिपोर्ट रखें साथनिगेटिव रिपोर्ट रखें साथ- महाकुंभ स्नान के लिए आने वाले ऐसे श्रद्धालु जो एक दिन के रात्रि प्रवास (नाइट हाल्ट) के लिए आना चाहते हैं, उनको कोविड-19 टेस्ट कराने के बाद ही आने की हिदायत है। अगर उनकी रिपोर्ट निगेटिव है तभी वो कुंभ क्षेत्र में जाएं।मास्क नहीं पहना तो कंपाउंडिंग या समनकुंभ मेले में मास्क अनिवार्य है। मास्क नहीं पहना तो कंपाउंडिंग या समन- मास्क पहनना सभी के लिए अनिवार्य है। जो मास्क नहीं पहनेगा उसके खिलाफ कंपाउंडिंग या समन की कार्रवाई भी मेला पुलिस की ओर से अमल में लायी जाएगी। सभी से सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने की अपील भी मेला प्रशासन की ओर से की जा रही है। हालांकि इस संबंध में आईजी कुंभ मेला संजय गुंज्याल का मानना है कि मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग को मेंटेन करना व्यवहारिक रूप से थोड़ा कठिन जरूर है मगर सभी से अपनी सुरक्षा के लिए इसके पालन की अपील की जा रही है।ऑनलाइन पोर्टल पर रजिस्ट्रेशनस्नान के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को अपना रजिस्ट्रेशन ऑनलाइन पोर्टल पर करवाना होगा। पोर्टल पर उपलब्ध डेटा से यह पता चल सकेगा कि किस-किस दिन अधिक भीड़ रहेगी। मेला प्रशासन उसी हिसाब से व्यवस्थाओं को अंतिम रूप देगा। इसके अलावा अगर स्नान के दौरान कोई कोरोना पॉजिटिव पाया जाएगा तो कांट्रैक्ट ट्रेसिंग को बेहतर तरीके से अंजाम दिया जा सकेगा।बच्चों-बुजुर्गों से नहीं आने की अपीलजिला और पुलिस प्रशासन द्वारा महाकुंभ स्नान में 10 साल से छोटे बच्चों और बुजुर्गों के नहीं आने के लिए अपील की जा रही है।कोमॉर्बिडिटी वाले स्नान के वक्त बरतें खास एहतियातजिन लोगों में कोमॉर्बिडिटी (सह-रुग्णता) हैं, और जिनकी इम्युनिटी कंप्रोमाइज्ड है, उन्हें स्नान के दौरान विशेष एहतियात बरतने की हिदायत दी गई है।लगा सकेंगे सिर्फ तीन डुबकीकुंभ में स्नान के दौरान घाटों पर मनचाही डुबकियां लगाने की छूट नहीं होगी। श्रद्धालु गंगा तट पर आएं और स्नान कर सकुशल वापस जाएं, इसके लिए घाटों पर उनका कम से कम समय तक रहना सुनिश्चित किया जाएगा। इसके लिए एक स्नान, तीन डुबकी का फॉर्मूला भी लागू किया गया है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 177
साधक का प्रश्न ::: श्री राधारानी की कृपा प्राप्त करने के लिये क्या साधना करनी होगी?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: अरे! ये ही तो साधना है कि वो बिना कारण के कृपा करती हैं ये फेथ (विश्वास) करो। यही साधना है। जो कीर्तन करते हो तुम, यही तो साधना करते हो न। उस कीर्तन का मतलब क्या? रोकर उनको पुकारो कि तुम कृपा करो। यही साधना है। इसी से अन्तःकरण शुद्ध होता है। मन को शुद्ध करने के लिये साधना होती है। फिर उसके बाद वो कृपा से प्रेम देती हैं। उनका लाभ तो कृपा से मिलता है। तुम्हारा काम तो मन को शुद्ध करना है। और मन शुद्ध करने के लिये उनको पुकारना है। बस यही साधना है। और साधना कोई मूल्य थोड़े ही है कृपा का। साधना तुम करते हो गन्दे मन से और कृपा से तो दिव्य वस्तु मिलेगी। तो तुम्हारा रोना कोई दाम थोड़े ही है। तुम जाओ किसी दुकानदार के आगे रोओ कि हमको कार दे, दो पैसा नहीं है हमारे पास। तो वो कहेगा भाग जाओ, पागल है तू। तो उसी प्रकार अगर हम रोवें भी भगवान के आगे, वो कहें भाग जाओ पहले दाम दो, हम जो दे रहे हैं तुमको सामान उसका। तो हमारे पास दाम है ही नहीं, क्या देंगे? वो दिव्य प्रेम है भगवान का। हमारी इन्द्रियाँ, हमारा मन, हमारी बुद्धि, हमारा शरीर सब गन्दा। हम क्या दे करके वो दिव्य प्रेम लेंगे? इसलिये साधना मूल्य नहीं है। साधना तो केवल बर्तन बनाना है। मन का बर्तन शुद्ध कर लो तो उसमें दिव्य सामान कृपा से मिलेगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - हिन्दू धर्म ग्रंथों में इस बात की जानकारी भी दी गई है कि हमें क्या खाना चाहिए, कब खाना चाहिए और इसका परहेज करना चाहिए। खासकर तिथियों के हिसाब से भी खानपान का ध्यान रखा गया है। आज हम जानते हैं कि हमें किस तिथि को क्या नहीं खाना चाहिए।पेठा-पौराणिक धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि किसी भी महीने की प्रथम तिथि (हिन्दू कलेंडर के हिसाब से)को पेठे का सेवन नहीं करना चाहिए। पेठे को कूष्मांड भी कहा जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि प्रतिपदा के दिन पेठे का सेवन करने से धन हानि होती है। कूष्मांड का उपयोग मां कूष्मांडा की पूजा करने में किया जाता है। इसका नवरात्र के दौरान मां कूष्मांडा का भोग लगाने के लिए किया जाता है।मूली- शास्त्रों के अनुसार चतुर्थी तिथि को मूली का सेवन नहीं करना चाहिए। माना गया है कि चतुर्थी के दिन मूली खाने से घर में दरिद्रता आती है। वहीं काम अटकते हैं, कोई काम नहीं हो पाता। हर काम में विघ्न उत्पन्न होता है।दही और सत्तूमाता लक्ष्मी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो रात में कभी भी दही और सत्तू का सेवन न करें। रात के वक्त किसी भी रूप में दही का सेवन और सत्तू का प्रयोग करने वाला नरक का भागी होता है। रात के वक्त वैसे भी दही का सेवन आयुर्वेद में भी वर्जित माना गया है।तिल युक्त पदार्थशास्त्रों में कहा गया है कि सूर्यास्त के बाद कोई भी तिलयुक्त पदार्थ का सेवन करने से बचना चाहिए। वहीं सूर्यास्त के वक्त किसी से नमक उधार नहीं मांगना चाहिए। माना जाता है कि ऐसा करने से माता लक्ष्मी रुष्ट हो जाती हैं और शारीरिक के साथ-साथ आर्थिक कष्ट भी इंसान को उठाने पड़ते हैं।रविवार को क्या ना खाएंरविवार का दिन सूर्यदेवता को समर्पित है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन भूलकर भी मसूर की दाल, अदरक और लाल रंग के साग का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। ब्रह्मवैवर्त पुराण में ऐसा बताया गया है कि रविवार के दिन लाल रंग की वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से लोगों को स्वास्थ्य संबंधी कष्ट होता है और तरक्की में रुकावट आती है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 176
(साधना-मार्ग सावधानी का मार्ग है, जैसे मार्ग में चलते हुये असावधानी हो तो दुर्घटना घट जाती है, ऐसे ही साधना की महत्वपूर्ण सावधानियों से अवगत होना आवश्यक है. जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज इसी विषय पर राय प्रदान कर रहे हैं...)
कोई अपना नुकसान करे तो उसकी होड़ नहीं करना है। जो अच्छा कर रहा है, अरे! देखो ये आँसू बहा रहा है, और मैं पत्थर सरीखा बैठा हूँ, केवल भगवन्नाम ले रहा हूँ। इतना अहंकार है मुझको। क्या है मेरे पास? क्या मैं रूप में कामदेव हूँ, क्या मैं धन में कुबेर हूँ, क्या मैं ऐश्वर्य में इंद्र हूँ, क्या मैं बुद्धि में बृहस्पति हूँ, क्या हूँ मैं, किस बात का अहंकार है मुझको जो भगवान के सामने भी हमारे हृदय में दैन्य भाव नहीं आता, आँसू नहीं आते, ये फील करना है। बार-बार, बार-बार फील करने से फिर आँसू आने लगेंगे। लेकिन ऐसा करने पर भी अगर आँसू नहीं आते तो परेशान न हों। रूपध्यान करते रहो, लगे रहो पीछे, एक दिन आयेगा। आज नहीं कल। रूपध्यान सबसे प्रमुख है, उसका अभ्यास, लगातार करना चाहिये। वो पक्का हो जाय। वो जड़ है, जड़। जैसे मकान की नींव पक्की हो जाय फिर चाहे जितनी ऊँची बिल्डिंग बना लो कोई डर नहीं, कोई खतरा नहीं। तो इस प्रकार आप लोग सावधान होकर साधना करें तो वास्तविक फल प्राप्त करेंगे और हमको भी बड़ी खुशी होगी।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'साधना-नियम' पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - ज्योतिष की रत्न शाखा में माणिक को सूर्य का रत्न माना गया है जिसमें सूर्य के गुण विद्यमान होते हैं और अधिकांशत: कुंडली में सूर्य के पीडि़त या कमजोर होने पर माणिक धारण करने की सलाह दी जाती है। माणिक गहरे गुलाबी या महरून रंग की आभा लिए होता है। माणिक एक बहुत ही ऊर्जावान रत्न होता है जिसे धारण करने से कुंडली में स्थित सूर्य को बल तो प्रदान होता ही है, सथ ही व्यक्ति के व्यक्तित्व में भी सकारात्मक परिवर्तन आते हैं।माणिक धारण करने से व्यक्ति की इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास बहुत बढ़ जाते हैं। आंतरिक सकारात्मक शक्ति और इम्युनिटी बढ़ती है। सामाजिक प्रतिष्ठा, यश और प्रसिद्धि की प्राप्ति होती है। माणिक धारण करने से व्यक्ति में प्रतिनिधित्व करने की शक्ति आती है और उसकी प्रबंधन कुशलता भी बढ़ जाती है। परिस्थितियों को मैनेज करने में वह व्यक्ति सक्षम होता है। माणिक धारण करने पर व्यक्ति के अंदर दबी हुई प्रतिभाएं उदित हो जाती हैं और वह भय मुक्त होकर अपनी प्रतिभा का अच्छे से प्रदर्शन कर पाता है। आंखों से जुड़ी समस्याएं, दृष्टि की समस्या, हृदय रोग,बाल झडऩे और हड्डियों से जुड़ी समस्याओं में भी माणिक धारण करने से सकारात्मक परिणाम मिलता है।जिन लोगों में भय, निराशा, आत्मविश्वास की कमी या दबे हुए व्यक्तित्व की समस्या होती है उनके लिए माणिक धारण बहुत ही सकारात्मक परिणाम लाता है। लेकिन माणिक केवल उन्हीं व्यक्तियों को पहनना चाहिए जिनके लिए सूर्य शुभकारक ग्रह है। माणिक सकारात्मक रत्न है। इस रत्न को धारण करने से पहले अच्छे ज्योतिषी से अवश्य चर्चा कर लें। सामान्यत: मेष, सिंह, वृश्चिक और धनु लग्न के लिए माणिक धारण करना शुभ है। कर्क लग्न के लिए यह मध्यम है। मीन, मकर और कन्या लग्न के लिए माणिक धारण करना हानिकारक होता है।ऐसे धारण करें माणिकमाणिक को ताम्बे या सोने की अंगूठी में बनवाकर सीधे हाथ की अनामिका अंगुली में रविवार को धारण करना चाहिए। इसके अलावा लॉकेट के रूप में लाल धागे के साथ गले में भी धारण कर सकते हैं। माणिक धारण करने से पूर्व उसे गाय के दूध या गंगाजल से अभिषेक करके धूप-दीप जलाकर सूर्य मंत्र का जाप करके पूर्वाभिमुख होकर माणिक धारण करना चाहिए। माणिक धारण करने के लिए Óऊं घृणि: सूर्याय नम:Ó मंत्र की एक से तीन माला अवश्य करें।
- व्यक्ति के जीवन में प्यार अथवा प्रेम का संकेत शुक्र पर्वत से मिलता है। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार यदि व्यक्ति के हाथ में शुक्र पर्वत विकसित हो तो व्यक्ति प्रेम में सफलता पाता है। लेकिन यदि व्यक्ति की मस्तिष्क रेखा संतुलित नहीं हो तो वह प्रेम में बदनाम हो जाता है। रेखाओं की इस स्थिति में व्यक्ति के प्रेम में वासना अधिक हो जाती है। व्यक्ति के हाथ में शुक्र पर्वत का उभार उसे तेजस्वी बनाता है। ऐसे व्यक्ति के चेहरे के आकर्षण से लोग प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाते। ऐसे लोग अपने काम को भी निष्ठा एवं सजगता से करते हैं। उन्हें सुन्दर तथा कलात्मक चीजों के प्रति बहुत प्रेम होता है।हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार यदि किसी की हथेली खुरदरी है और शुक्र पर्वत बहुत ज्यादा विकसित हो तो ऐसा व्यक्ति भोगी होता है। ऐसे लोग केवल भौतिक सुखों के गुलाम हो जाते हैं। हथेली चिकनी एवं मुलायम है तथा शुक्र पर्वत पूरी तरह से विकसित हो तब ऐसा व्यक्ति एक सफल प्रेमी तथा उत्कृष्ट कवि होता है।यदि हाथ में शुक्र पर्वत दबा हुआ है, अविकसित है अथवा नहीं है तो उसके जीवन में दु:ख तथा परेशानियां पैदा हो जाती हैं। किसी व्यक्ति के हाथ में शुक्र पर्वत का झुकाव मंगल पर्वत की ओर हो तो ऐसा व्यक्ति प्रेम के मामलों में बेहद निर्मम होता है। यदि अंगूठे का सिरा कोणदार हो और शुक्र पर्वत विकसित हो तब ऐसा व्यक्ति कलात्मक रुचि वाला होता है। यदि अंगूठे का सिरा वर्गाकार हो तो वह समझदार और तर्क से काम लेने वाला होता है। अंगूठे का फैला हुआ सिरा दयालुता का संकेत देता है।