- Home
- धर्म-अध्यात्म
-
हस्तरेखा विज्ञान केवल भविष्य का ही इशारा नहीं करता बल्कि आने वाले समय में धन की स्थिति क्या और ऐसे रहेगी, यह भी संकेत करता है। हस्तरेखाओं से पता किया जा सकता है कि व्यक्ति को जीवन में कब और कितना धन मिलेगा। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार यदि हाथ में जीवन रेखा के साथ मंगल रेखा आखिर तक चली जाए और हाथ भारी हो तो ऐसे व्यक्ति को विरासत में करोड़ों रुपये की संपत्ति मिलती है। ऐसा व्यक्ति जीवन में हमेशा मान-सम्मान और प्रतिष्ठा पाता है। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार यदि हथेली में एक से अधिक भाग्य रेखा हों तो और उंगलियों के आधार भी बराबर हों तो व्यक्ति को जीवन में एकाएक धन मिलता है।
हथेली में भाग्य रेखा मोटी से पतली हो, उंगलियां सीधी हों, शनि पर्वत बहुत ऊंचा हो, जीवन रेखा गोल और मस्तिष्क रेखा मंगल पर्वत तक जाए तो ऐसा व्यक्ति बिजनेस में बहुत तरक्की कमाता है। वह बिजनेस से अत्यधिक पैसा कमाता है। अगर सूर्य रेखा में कोई दोष ना हो और वे एक से अधिक हों, साथ में हाथ भारी हो और शनि एवं सूर्य की उंगली सीधी तथा बराबर हो, या भाग्य रेखा मणिबंध से निकलकर सीधे शनि पर्वत तक पहुंच जाए तो ऐसे व्यक्ति करोड़पति बन जाते हैं। चंद्रमा की ओर निर्दोष रेखा यदि भाग्य रेखा से मिले और इसमें कोई दोष ना हो, भाग्य रेखा सीधे शनि पर्वत के नीचे खत्म हो जाए तो व्यक्ति को किसी दूसरे से धन मिलता है। ऐसे लोगों के भाग्य में दूसरों के पैसे से धनवान बनने के योग रहते हैं। -
सूर्यदेव को अग्नि का स्वरूप एवं प्रत्यक्ष देवता माना गया है। वास्तु शास्त्र में सूर्य का विशेष महत्व है। ऊर्जा के असीम भंडार सूर्यदेव को लेकर वास्तु में कुछ रोचक उपाय बताए गए हैं, जिन्हें अपनाकर हम अपने जीवन को और बेहतर बना सकते हैं। आइए जानते हैं इन उपायों के बारे में। सूर्योदय से पहले ब्रह्ममुहूर्त का समय अध्ययन के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। विद्यार्थियों को इस समय का सदुपयोग करना चाहिए। ब्रह्ममुहूर्त का समय स्वास्थ्य की दृष्टि से सर्वोत्तम माना जाता है। सूर्योदय के समय घर के सभी दरवाजे और खिड़कियां खोल देनी चाहिए। सूर्योदय के समय की किरणें स्वास्थ्य की दृष्टि से सर्वोत्तम मानी जाती हैं। घर में कृत्रिम रोशनी का प्रयोग कम से कम करना चाहिए। घर का कोई हिस्सा ऐसा है जहां सूर्यदेव का प्रकाश नहीं आ पा रहा तो वहां सूर्यदेव की तांबे की प्रतिमा लगाई जा सकती है। रसोईघर और स्नानघर में भी सूर्य का प्रकाश पहुंचे ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए। घर में सूर्यदेव के साथ सात घोड़ों की तस्वीर पूर्व दिशा में लगाना शुभ माना जाता है। घर में जहां कीमती जेवरात रखे हों, वहां तांबे की सूर्य प्रतिमा लगाने से घर में कभी आर्थिक परेशानी नहीं आती है। बच्चों के स्टडी रूम में सूर्यदेव की प्रतिमा लगाने से सकारात्मक परिणाम सामने आने लगते हैं। परिवार में अगर कोई व्यक्ति रोगी है तो उसके कमरे में सूर्यदेव की प्रतिमा अवश्य लगाएं। वास्तु के अनुसार रसोईघर में तांबे की सूर्य प्रतिमा लगाने से कभी अन्न की कमी नहीं होती। कार्यालय या दुकान में सूर्य प्रतिमा लगाने से उन्नति के अवसर मिलते हैं। घर के मंदिर में तांबे की सूर्य प्रतिमा लगाने से घर-परिवार पर सूर्य देव की कृपा बनी रहती है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 157
(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ की श्रीकृष्ण-माधुरी खंड के 20वें पद में सायंकाल के समय वन से गायें चराकर सखाओं से साथ गोकुल लौटते श्रीकृष्ण की अत्यंत मधुर झाँकी का बड़ा सुन्दर वर्णन हुआ है। आइये हम भी पद के माध्यम से उस झाँकी का अपने अंतर्मन में दर्शन करें।)
'प्रेम रस मदिरा'श्रीकृष्ण-माधुरी, पद 20
धूसरि धूरि भरे हरि आवत।मोर मुकुट कटि कछनी काछे, मुरली मधुर बजावत।धुनि सुनि वेनु सबै ब्रजबनिता, देखन को जुरि धावत।काँधे लकुटि कामरी कारी, लट उरझी मन भावत।वत्स-प्रेम रस पूरि सुरभि थन, मेदिनि क्षीर चुवावत।सो 'कृपालु' झाँकी झाँकन हित, शंभु समाधि भुलावत।।
भावार्थ ::: (सायंकाल के समय गायों को चराकर लौटते हुए श्रीकृष्ण की अनुपम झाँकी) गायों के पैरों से उड़ी हुई धूल से युक्त श्रीकृष्ण आ रहे हैं। सिर पर मयूर पंख का मुकुट एवं कमर में सुन्दर काछनी काछे हुये हैं। मधुर मधुर स्वरों से मुरली बजा रहे हैं। उस मुरली की मधुर ध्वनि को सुनकर समस्त ब्रज गोपांगनायें (जो एक क्षण के लिये भी श्रीकृष्ण से पृथक होकर अत्यन्त विरह व्याकुलता में पुनः श्रीकृष्ण दर्शन होने पर विधाता को कोसती थीं कि तूने एक क्षण के वियोग के बाद पूर्ण मधुर मिलन की बाधक पलकों का निर्माण क्यों किया है।) अत्यन्त आतुर होकर श्यामसुन्दर के दर्शनार्थ अपने घरों से भागकर इकट्ठी हो गई हैं। श्रीकृष्ण के एक कंधे पर लठिया है, दूसरे कंधे पर काला कंबल है, घुंघराले बाल, उलझे हुए हठात मन को मुग्ध कर रहे हैं। गायें अपने बछड़ों के वात्सल्य प्रेम रस में विभोर अपने थनों से पृथ्वी पर स्वाभाविक ही दूध चुआती हुई चली आ रही हैं। 'श्री कृपालु जी' कहते हैं कि गायों से युक्त गोपाल की इस बाँकी झाँकी को देखने के लिये भगवान शंकर भी बरबस अपनी निर्विकल्प समाधि को भूल जाते हैं।
०० सन्दर्भ ::: 'प्रेम रस मदिरा' पद-ग्रंथ, श्रीकृष्ण माधुरी, पद 20०० रचनाकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली। - हिन्दू धर्म ग्रन्थों के अनुसार किसी भी पूजन कार्य का शुभारंभ बिना स्वस्तिक के नहीं किया जा सकता। चूंकि शास्त्रों के अनुसार श्री गणेश प्रथम पूजनीय हैं, इसलिए स्वस्तिक का पूजन करने का अर्थ यही है कि हम श्री गणेश का पूजन कर उनसे विनती करते हैं कि हमारा पूजन कार्य सफल हो। स्वस्तिक बनाने से हमारे कार्य निर्विघ्न पूर्ण हो जाते हैं। स्वस्तिक धनात्मक ऊर्जा का भी प्रतीक है, इसे बनाने से हमारे आसपास से नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है।वास्तुशास्त्र में चार दिशाएं होती हैं। स्वस्तिक चारों दिशाओं का बोध कराता है। पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर। चारों दिशाओं के देव पूर्व के इंद्र, दक्षिण के यम, पश्चिम के वरुण, उत्तर के कुबेर। स्वस्तिक की भुजाएं चारों उप दिशाओं का बोध कराती हैं। ईशान, अग्नि, नेऋत्य, वायव्य। स्वस्तिक के आकार में आठों दिशाएं गर्भित हैं। स्वस्तिक की चारों दिशाएं से चार युग, सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग की जानकारी मिलती है। चार वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र। चार आश्रम ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, सन्न्यास। चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। चार वेद इत्यादि अनंत जानकारी का बोधक है।वास्तुदोष निवारणघर के वास्तुदोष को दूर करने के बनाया गया स्वस्तिक 6 इंच से कम नहीं होना चाहिए। घर के मुख्य़ द्वार के दोनों ओर ज़मीन से 4 से 5 फुट ऊपर सिन्दूर से यह स्वस्तिक बनाएं। घर में जहां भी वास्तुदोष है और उसे दूर करना संभव न हो तो वहां पर भी इस तरह का स्वस्तिक बना दें। जिस भी दिशा की शांति करानी हो, उस दिशा में 6" & 6" का तांबे का स्वस्तिक यंत्र पूजन कर लगा देना चाहिए। इस यंत्र के साथ उस दिशा स्वामी का रत्न भी यंत्र के साथ लगा दें। नींव पूजन के समय भी इस तरह के यंत्र आठों दिशाओं व ब्रह्म स्थान पर दिशा स्वामियों के रत्न के साथ लगा कर गृहस्वामी के हाथ के बराबर गड्ढा खोद कर, चावल बिछा कर, दबा देना चाहिए। पृथ्वी में इन अभिमंत्रित रत्न जड़े स्वस्तिक यंत्र की स्थापना से इनका प्रभाव काफ़ी बड़े क्षेत्र पर होने लगता है। दिशा स्वामियों की स्थिति इस प्रकार है- ब्रह्म स्थान-माणिक, पूर्व-हीरा, आग्नेय-मूंगा, दक्षिण-नीलम, नैऋत्य-पुखराज, पश्चिम-पन्ना, वायव्य-गोमेद, उत्तर-मोती, ईशान-स्फटिक।विधि - शरीर की बाहरी शुद्धि करके शुद्ध वस्त्रों को धारण करके ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए पवित्र भावनाओं से नौ अंगुल का स्वस्तिक 90 डिग्री के एंगल में सभी भुजाओं को बराबर रखते हुए बनाएं। केसर से, कुमकुम से, सिन्दूर और तेल के मिश्रण से अनामिका अंगुली से ब्रह्म मुहूर्त में विधिवत बनाने पर उस घर के वातावरण में कुछ समय के लिए अच्छा परिवर्तन महसूस किया जा सकता है। भवन या फ्लैट के मुख्य द्वार पर एवं हर रूम के द्वार पर अंकित करने से सकारात्मक ऊर्जाओं का आगमन होता है।- यदि किसी घर में किसी भी तरह वास्तुदोष हो तो जिस कोण में वास्तुदोष है, उसमें आम की लकड़ी से बना स्वस्तिक लगाने से वास्तुदोष में कमी आती है, क्योंकि आम की लकड़ी में सकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित करती है। यदि इसे घर के प्रवेश द्वार पर लगाया जाए तो घर के सुख समृद्धि में वृद्धि होती है। इसके अलावा पूजा के स्थान पर भी इसे लगाये जाने का अपने आप में विशेष प्रभाव बनता है।- हल्दी से अंकित स्वस्तिक शत्रु शमन करता है। स्वस्तिक 27 नक्षत्रों का सन्तुलित करके सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है। यह चिह्न नकारात्मक ऊर्जा का सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित करता है। इसका भरपूर प्रयोग अमंगल व बाधाओं से मुक्ति दिलाता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 156
'भक्ति-दिवस' का तात्पर्य(नववर्ष 2021 की हार्दिक शुभकामनायें)
आज नववर्ष 2021 का पहला दिन है। सारे विश्व में यह दिन इसी रूप में मनाया जाता है। किन्तु आध्यात्मिक जगत में अनेकानेक संत-महापुरुष इसे अन्य रूपों में भी मनाते हैं। विश्व के पंचम मूल जगदगुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज ने नववर्ष के प्रथम दिन को 'भक्ति-दिवस' का स्वरूप प्रदान किया है।
इस नामकरण के पीछे यही भावना है कि हम अपने मनुष्य जन्म के वास्तविक उद्देश्य को विचारें कि यह शरीर हमको भगवान की भक्ति करके उनकी प्राप्ति के लिये मिला है तथापि यह क्षणभंगुर है, इसलिये इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये शीघ्रता करनी चाहिये। प्रत्येक नये वर्ष पर यह नापें कि पिछले वर्ष में हमने भक्ति में कितनी उन्नति की और कितना संसार से राग-द्वेष हमारा कम हुआ। अपने आराध्य एवं सर्वस्व भगवान तथा उनसे अभिन्न श्री गुरुदेव का स्मरण कर इस नये वर्ष में अपनी भक्ति, साधन, भगवत्प्रेम तथा गुरुसेवा को और अधिक तीव्र गति से बढ़ाने और लापरवाहियों को कम करते जाने का संकल्प करने का यह दिन है।
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने विभिन्न वर्षों में नये वर्ष पर 'प्रेमोपहार' के रूप में अनेक दोहों की रचना की है। उन सबका संकलन यहाँ देना तो संभव नहीं है, तथापि वर्ष 1997 में उनके द्वारा प्रगटित एक दोहा यहाँ उद्धृत किया जा रहा है। उनके शब्दों में यह दोहा इस प्रकार है;
मन सों हरि गुरु स्मरण करु,वाणी सों गुण गान।हरि गुरु चर्चा श्रवण सुनु,जनम सफल तब जान।।
इस अर्थ यह है कि हम मन से सदैव अपने भगवान तथा पूज्य गुरुदेव का नित्य स्मरण करते रहें, गुरुदेव के द्वारा दिये गये सिद्धांत का बारम्बार मनन करते रहें, भगवान की कृपा का भी स्मरण करें कि किस तरह उन्होंने बड़ी कृपा से यह दुर्लभ मानव शरीर हमें दिया और पुन: मन में भगवद-जिज्ञासा दी और अपने वास्तविक जन अर्थात संत से मिलाया। उन संत को गुरुरूप में वरण कर जैसे जैसे हम आध्यात्मिक पथ पर चलने लगे, उन गुरुदेव ने सदा-सर्वदा अपना स्नेह, अपना दुलार, अपना अपनापन तथा विशेष कृपा-दृष्टि हमारी ओर लगाये रखी। इन सब बातों को प्रेमपूर्वक बारम्बार सोचें।
अपनी वाणी से सदा उन्हीं के गुणों का, उनके पावन नामों का गान करते रहें, इसके अलावा व्यर्थ की सांसारिक चर्चाओं से बचें रहें। अपने कानों से भी हम भगवान संबंधी तथा संत-जनों की बातें ही सुनें, इसके अलावा न किसी की बुराई सुनें, न किसी के अपराध और न ही सांसारिक प्रपंच की बातें सुनकर अपने मनुष्य जीवन का अमूल्य समय नष्ट करें। सब प्रकार से जब हम एकमात्र भगवान की भक्ति के पथ पर कमर कसकर चलेंगे और किसी बाधा में रुकेंगे, थकेंगे, टूटेंगे नहीं, तभी हमारा यह मनुष्य जनम सफल होगा।
जैसा कि इस दिन का नाम 'भक्ति-दिवस' है। आइये जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा एक अवसर पर 'भक्ति' के माहात्म्य पर कहे गये दोहे और उसकी संक्षिप्त व्याख्या को भी समझ लें;
सबसे बड़ी है भक्ति गोविन्द राधे।भक्ति भगवान को भी भक्त बना दे।।(स्वरचित दोहा)
व्याख्या उन्हीं के शब्दों में... सबसे बड़ी भक्ति। इतनी बड़ी कि 'महतो महीयान्' सबसे बड़े भगवान को भी छोटा बना देती है, भक्त बना देती है। किसका भक्त? जो सबसे छोटा है जीव, अणु, एक किरण है सूर्य की, वो भगवान बन जाता है और भगवान उसका भक्त बन जाता है।
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहं।(गीता 4-11)
भजामि, मैं भक्त बनता हूँ।
अहं भक्त पराधीनो ह्यस्वतंत्र इव द्विज।(भागवत 9-4-63)
कौन कहता है, मैं स्वतंत्र हूँ। अस्वतंत्र हूँ मैं। तो भक्ति सबसे बड़ी जो भगवान को भक्त बना दे, भक्त को भगवान बना दे। उल्टा कर दे। ऐसी 'भक्ति महारानी की जय!!!'
....यह श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा 'भक्ति' के माहात्म्य की व्याख्या है। आज नववर्ष के पहले दिन को हम भी 'भक्ति-दिवस' के रूप में मनावें तथा इस मानव जीवन की साफल्यता के लिये जीवन को भक्ति-पथ पर अग्रसर करने का दृढ़ संकल्प लेवें।
आप सभी को 'भक्ति-दिवस' तथा 'नव-वर्ष' की हार्दिक शुभकामनाएं। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 155
(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज ने निम्नांकित प्रवचन 31 दिसम्बर सन 2006 को अपने श्रीधाम बरसाना स्थित रँगीली महल आश्रम में दिया था, जिसमें उन्होंने मानव-जीवन के महत्व और उद्देश्य पर विशेष रूप में प्रकाश डाला था और गत वर्ष में हुई लापरवाहियों को दूर करते हुये नववर्ष में अधिकाधिक भगवद-चिन्तन का अभ्यास करने का संकल्प करने का आग्रह किया है। उन्होंने इस व्याख्यान के लिये एक दोहे की रचना की थी। नीचे वह दोहा तथा उनकी व्याख्या का आप सभी सुधि पाठक-जन लाभ लेवें...)
साल साल बीता जाय गोविन्द राधे।अब तो हठीलो मन हरि में लगा दे।।(स्वरचित दोहा)
आज इस वर्ष का अंतिम दिन है। कल सारे विश्व में हर्ष मनाया जायेगा। लेकिन ये गलत है क्योंकि हर्ष का विषय नहीं है। नया वर्ष आना ये हर्ष का विषय नहीं है, ये शोक का विषय है। जैसे आपके पास बैंक में एक लाख है, उसमें से पचास हजार खर्च हो गया तो आप खुशी नहीं मनाते। आप सोचते हैं, अरे! अब तो पचास ही रह गया, अब तो दो हजार रह गया, अब तो एक हजार रह गया। ऐसे ही ये मानव देह जो भगवान ने हमको अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिये दिया है, हमने इसमें कितनी दूरी तय की। भगवान के पास कितना गये? कितनी उपासना की? उपासना माने पास जाना। भगवान के पास जाना, इसका शब्द है उपासना।
'उप' उपसर्ग है, 'आस' धातु से 'युच्' प्रत्यय होकर 'अन्' होकर, पास होकर उपासना शब्द बनता है। वो भगवान के पास कितना गये? जैसे किसी को ठण्ड लग रही है और सामने आग जल रही है तो वो जितना आग के पास जायेगा उतनी ही ठण्ड दूर होगी।
शीतं भयं तमोप्येति साधून् संसेवतस्तथा।(भागवत 11-26-31)
तो हम भगवान के पास गये, कितने परसेन्ट गये, अब कितनी दूर हैं भगवान। संसार में कितनी दूर गये, ये सब सोचना चाहिये। हम नहीं सोचते। हम खुशी मनाते हैं। अच्छा हुआ, बीस साल निपट गया। अब पचास भी चला गया, अब अस्सी भी चला गया। अपने बेटों से, पोतों से हम लोग बड़े रुआब में कहते हैं, बेटा! हमारी क्या है, हमारी तो बीत गई। तुम अपनी फिकर करो। अरे क्या बीत गई? ये सोचा है क्या मानव देह जो बीत गया। अगर किसी को दस साल की जेल हो, और वो सोचे नौ साल बीत गया, अब साढ़े नौ साल बीत गया, अब कल छूटेंगे तो वो खुशी मनावे, ठीक है। तुम क्या खुशी मना रहे हो? मरने के बाद कहीं मुक्ति होगी क्या? इस चौरासी लाख की जेल से छुटकारा पा जाओगे क्या? ऐसा तो कुछ किया नहीं तुमने अभी और सोचा भी नहीं। फील किया होता तो, मरने के एक सेकण्ड पहले भी अगर फील किया होता, ठीक-ठीक फील किया होता, तो एक सेकण्ड पहले भी मन भगवान में लगा देते तो बात बन जाती।
यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरं।(गीता 8-6)
अंतिम समय में जैसा चिन्तन होगा वैसी ही गति मिलती है। तो हमें हर्ष नहीं मनाना है, हमको सोचना है, अपना निरीक्षण करना है, आत्म निरीक्षण। देखो! पॉलिटिक्स में सब पार्टियाँ इलैक्शन वगैरह के बाद अपनी अपनी पार्टी की गतिविधियों का विश्लेषण करती हैं, आत्म निरीक्षण करती हैं कि हम क्यों हारे? हमने ऐसा क्या गड़बड़ किया? हमारे द्वारा ऐसा क्या हुआ? क्या खामी थी, उसको हम ठीक करें। तो ऐसे ही हमको भी साल के अंत में बहुत अधिक आत्म-निरीक्षण करना चाहिये। हर महीने भी हमें एक बार करना चाहिये और हो सके तो डेली दो-तीन मिनट सोते समय सोचना चाहिये, आज हमने क्या किया? अच्छा क्या किया, बुरा क्या किया? संसार में मन कितना लगाया, भगवान में कितना लगाया।
अगर रोज सोचें तो अगले दिन गड़बड़ी कम होती जाय, फिर महीने में सोचें तो अगले महीने में और कम हो जाय लेकिन हम मरते मरते भी नहीं सोचते। निर्भय! हाँ, हमको मरना थोड़े ही है। अरे, अभी तो क्या हम नब्बे साल के ही हैं। अरे, क्या खयाल है तुम्हारा, सौ वर्ष। अच्छा चलो, मान लिया। दो सौ वर्ष के हो गये, अच्छा चलो मान लिया। उसके बाद क्या होगा?
तो ये जो आत्म निरीक्षण है उसमें आप पायेंगे कि हमने बहुत लापरवाही की, लेकिन अभी चांस है। एक डी. एम. थे तो वो अपना हाल बता रहे थे कि मैं एक कंपीटिशन में बैठा लिखने के लिये, तो सोचते सोचते नींद आ गई और एक घण्टे सोता रहा। एक घण्टे बाद जब नींद खुली, तो आधा घण्टा बचा था समय, तो जल्दी जल्दी लिखा और फेल हो गया। लेकिन आधा घण्टा तो कम से कम मिल गया उसको। हम तो मृत्यु के समय तक भी नहीं सोचते। तो कब बनायेंगे? इधर (संसार) का बनाने का तो बहुत सोचते हैं। हाँ, बेटे का बन जाय, बीवी का बन जाय, पोते का बन जाय, इसका भी बन जाय, उसका भी बन जाय, सब अरबपति हो जायें। ये बहुत सोचते हैं।
आत्मा का कमाने का मामला सोचो। तुम आत्मा हो, शरीर नहीं हो। शरीर को तो छोडऩा पड़ेगा, जबरदस्ती छुड़वाया जायेगा शरीर। इसलिये हर साल आत्म निरीक्षण करो और फील करो, और अगले साल की तैयारी करो कि अब की साल काम बना लेना है। क्या पता पूरा साल न मिले। छ: महीने ही मिले, एक महीना ही मिले।
क्षणभंगुर जीवन की कलिका,कल प्रात को जाने खिली न खिली।
सबेरा हो न हो। आगरा के एक इंजीनियर साहब थे, जिन्होंने हमारा सत्संग भवन बनवाया है मनगढ़ का। वो रात में सोये और सबेरे नहीं उठे। किसी को मालूम ही नहीं हुआ। अरे भई, क्या हुआ? सोते सोते हार्ट फेल हो गया। तो ये तो काल है। समय आ गया तो काल आपको एक सेकण्ड का समय नहीं देगा। जाना होगा। कोई भी हो। 'राजा, रंक, फकीर' कोई भी हो। सबको जाना होगा। सिद्ध महापुरुष को भी जाना होगा। मायाबद्ध की कौन कहे?
कोई हँसते हुये जाय, कोई रोते हुये जाय। अरे, भगवान भी आते जाते हैं। ग्यारह हजार वर्ष जब पूरा हो गया राम का तो यमराज गया राम के पास कि महाराज! याद दिलाने आया हूँ आपको टाइम। भक्तों के प्यार में भूल गये हो, ग्यारह हजार वर्ष। तो आपका टाइम हो गया, आप जितने दिन को आये थे। अब आपकी इच्छा हो तो रहो वो मैं नहीं कहता।
इसलिये कल नया वर्ष होगा। उसकी खुशी तभी मनाओ, जब नये वर्ष में मन को जबरदस्ती भगवान में लगाओ। वो लगेगा नहीं, लगाना होगा। इस भरोसे से तुम बैठे रहे अनादिकाल से अब तक, लगेगा, लगेगा। क्यों लगेगा? तुम संसार में लगा रहे हो, अभ्यास कर रहे हो, संसार में लगाने का और लगे भगवान में? ऐसा कैसे? जिसमें लगाने का अभ्यास करोगे उसी में लगेगा न। बड़ा सुन्दर वेदव्यास ने एक श्लोक में कहा है,
विषयान् ध्यायतश्चित्तम् विषयेषु विषज्जते।मामनुस्मरतश्चित्तम् मय्येव प्रविलीयते।।(भागवत 11-14-27)
संसारी विषय में सुख का चिन्तन करोगे बार बार, तो उसमें अटैचमेन्ट हो जायेगा और मुझमें सुख का चिन्तन करोगे बार बार तो मुझमें अटैचमेन्ट हो जायेगा। बस चिन्तन करने का मामला है। जितना अधिक चिन्तन होगा, उतना अधिक अटैचमेन्ट होगा। वो चिन्तन हमें बढ़ाना है। बस इतनी सी बात है।
00 प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज00 सन्दर्भ ::: 'कृपालु भक्ति धारा' पुस्तक (भाग - 3)00 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि है मथुरा। उत्तरप्रदेश के इस जिले में कई मंदिर और स्थल ऐसे हैं, जो आज भी वहां पर भगवान श्रीकृष्ण के होने का प्रमाण देते हैं। ऐसे ही स्थलों में से एक है वृंदावन का निधिवन धाम, जो रहस्यमयी चमत्कारों से भरा पड़ा है। निधिवन मथुरा से सिर्फ 15 किमी दूर वृंदावन में है।राधा-कृष्ण निधिवन में रचाते हैं रास!निधिवन को लेकर ये कहा जाता है कि यहां पर आज भी भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की मौजूदगी होती है और दोनों यहां आज भी रास रचाते हैं। ये घटना इस स्थान को अपने आप में रहस्यमयी बनाती है, क्योंकि इस बात के प्रमाण भी यहां पर पाए गए हैं।मान्यता है कि निधिवन में अद्र्धरात्रि राधा-कृष्ण आते हैं और यहां रात्रि विश्राम कर प्रसाद भी ग्रहण करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर के दरवाजे रात को अपने आप बंद हो जाते हैं और जैसे ही सुबह होती है, दरवाजे स्वत: खुल भी जाते हैं। ऐसा इसलिए कि श्रीकृष्ण हर रात यहां सोने आते हैं। इस मंदिर से और भी कई चमत्कार जुड़े हैं, जिनकी सच्चाई को लेकर शोध जारी है।रोजाना खत्म होता है माखन मिश्री का प्रसादराधा रानी और भगवान बांकेबिहारी के लिए यहां के पुजारी रोजाना पलंग सजाते हैं। इसके लिए साफ-सुथरा बिस्तर और उसके ऊपर चादर बिछाई जाती है। उनके लिए माखन मिश्री के प्रसाद का इंतजाम किया जाता है। साथ ही श्रृंगार का सामान भी वहां रखा जाता है। एक लोटा में पानी और दातुन भी रखी जाती है। इन सब इंतजाम के बाद सुबह यहां का नजारा हैरान कर देने वाला होता है। बिस्तर इस तरह अस्त-व्यस्त होता है, जैसे कोई उस पर सोया हो। इतना ही नहीं, मंदिर में रखा गया माखन मिश्री का प्रसाद भी सुबह खत्म मिलता है। दातुन भी गीली मिलती है।रात्रि के वक्त निधिवन में नहीं रुकता कोईस्थानीय लोगों की मानें तो सूर्यास्त के बाद निधिवन के दरवाजे अपने आप बंद हो जाते हैं। सभी यहां से चले जाते हैं, चाहे वो मंदिर के पुजारी हों या फिर आम लोग या फिर पशु-पक्षी। कहते हैं कि रात्रि के वक्त जो भी वहां रुकता है या फिर राधा-कृष्ण को देखने की कोशिश करता है तो वो अगले दिन किसी और को कुछ बताने की स्थिति में नहीं रहता।निधिवन से जुड़ी हैं ये मान्यताएंनिधिवन के इस मंदिर से जुड़ी मान्यता है कि इस मंदिर में तानसेन के गुरु संत हरिदास ने अपने भजन से राधा-कृष्ण के जोड़ी को साक्षात अवतरित कराया था। तभी से दोनों यहां विहार (घूमने) आया करते थे। इस मंदिर में स्वामी जी की समाधि भी बनाई गई है। इस मंदिर से जुड़े कई रहस्य हैं जो लोगों को हैरान करते हैं, इनमें से कुछ इस प्रकार हैं-निधिवन के पेड़ होते हैं कुछ अजीब प्रकारकहा जाता है कि निधिवन मंदिर के परिसर में जितने भी पेड़ हैं उनका विकास अजीब तरह से होता है। पेड़ की शाखाएं ऊपर की बजाए नीचे की ओर बढ़ती हैं। यही नहीं, किसी भी वृक्ष के तने सीधे नहीं हैं। सबकी डालियां नीचे की ओर झुकी और आपस में गुंथी हुई पाई जाती हैं। ये सभी पेड़ जंगली तुलसी के हैं।कृष्ण की गोपियां बनती हैं तुलसी के दो पौधे!मंदिर के प्रांगण में तुलसी के दो पौधे साथ-साथ लगे हैं। ऐसा कहा जाता है कि रात को जिस वक्त राधा और कृष्ण रास रचाते हैं तो ये दोनों तुलसी के पौधे गोपियां बनकर उनके साथ नाचते गाते हैं। यही कारण है कि दोनों पौधों से कोई एक भी पत्ता नहीं तोड़ता था। ऐसा भी कहा जाता है कि अगर कोई चोरी छिपे तुलसी के पत्ते तोड़कर अपने साथ ले गया, उसके साथ कुछ न कुछ हादसा होता है।राधा-कृष्ण के लिए सजता है महललोगों का कहना है कि मंदिर के अंदर रंगमहल है। यहां राधा-कृष्ण का पलंग और पूरा महल सजाया जाता है। यही नहीं, राधा जी के लिए श्रृंगार का सामान भी रखा जाता है। इसके बाद मंदिर के दरवाजे बंद किए जाते हैं। अगली सुबह जब दरवाजे खुलते हैं तो सारा सामान उपयोग किया हुआ अस्त-व्यस्त दिखाई देता है।- निधिवन के आसपास के ज्यादातर घरों में खिड़कियां नहीं हैं। यदि हैं तो वे मंदिर में शाम की आरती के बाद खिड़की बंद कर देते हैं। लोगों में डर है कि अंधेरा होने के बाद यदि मंदिर की दिशा में देखेंगे तो उनके साथ कुछ अनहोनी हो जाएगी।-कहा जाता है कि निधिवन में जो 16 हजार आपस में गुंथे हुए तुलसी के वृक्ष मौजूद हैं, ये असल में श्रीकृष्ण की 16 हजार रानियां हैं,जो रात में रानी का रूप लेककर उनके साथ रास रचाती हैं।सच्चाई चाहे जो हो, एक बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि यहां पहुंचने से लोगों को असीम आनंद और सुकून महसूस होता है।-----
- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रहों और नक्षत्र के अनुसार ही किसी कार्य को करने या न करने के लिये समय तय किया जाता है जिसे हम शुभ या अशुभ मुहूर्त कहते हैं। मान्यता है कि शुभ मुहूर्त में आरंभ होने वाले कार्यों के परिणाम मंगलकारी होते हैं जबकि शुभ मुहूर्त को अनदेखा करने पर कार्य में बाधाएं आ सकती हैं और उसके परिणाम अपेक्षाकृत तो मिलते नहीं बल्कि कई बार बड़ी क्षति होने का खतरा भी रहता है। ज्योतिषशास्त्र के मुताबिक अशुभ और हानिकारक नक्षत्रों के योग को ही पंचक कहा जाता है इसलिये पंचक को ज्योतिष शुभ नक्षत्र नहीं मानता।कब होता है पंचकजब चंद्रमा गोचर में कुंभ और मीन राशि से होकर गुजरता है तो यह समय अशुभ माना जाता है इस दौरान चंद्रमा धनिष्ठा से लेकर शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद एवं रेवती से होते हुए गुजरता है इसमें नक्षत्रों की संख्या पांच होती है इस कारण इन्हें पंचक कहा जाता है। कुछ कार्य ऐसे हैं जिन्हे विशेष रुप से पंचक के दौरान करने की मनाही होती है।कितने प्रकार का होते हैं पंचकपंचक प्रमुख रुप से पांच प्रकार का माना जाता है इसमें रोग पंचक, नृप पंचक, चोर पंचक, मृत्यु पंचक और अग्नि पंचक हैं।रोग पंचक - माना जाता है कि इस दौरान पंचक में पांच दिनों के लिये शारीरिक और मानसिक रुप से काफी यातनाएं झेलनी पड़ सकती है इसलिये स्वास्थ्य के प्रति विशेष रुप से सावधान रहने की आवश्यकता होती है। इस दौरान यज्ञोपवीत करना भी वर्जित माना जाता है। इसकी शुरुआत रविवार से होती है।नृप पंचक - इस पंचक की शुरुआत सोमवार से मानी जाती है। इस दौरान किसी नई नौकरी को ज्वाइन करना अशुभ माना जाता है, लेकिन नौकरी सरकारी हो तो उसके लिये इसे शुभ माना गया है। सरकारी नौकरी इस पंचक में ज्वाइन करने से लाभ मिलता है।चोर पंचक - इस पंचक के दौरान यात्रा करने से अपने आपको दूर रखना चाहिये। व्यावसायिक रुप से लेन-देन करना भी इसमें शुभ नहीं माना जाता। अगर ऐसा किया जाता है तो उसमें आर्थिक नुक्सान होने का खतरा बना रहता है। इस पंचक की शुरुआत शुक्रवार से होती है।मृत्य पंचक - ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जोखिम से भरा कोई भी कार्य इस पंचक के दौरान नहीं किया जाना चाहिये। विवाह जैसे शुभ कार्य की भी इस दौरान मनाही होती है। इसमें जान और माल का नुकसान हो सकता है इसलिये इसे मृत्य पंचक कहा जाता है। यह शनिवार को शुरु होता है।अग्नि पंचक - घर बनाना हो या फिर एक घर से दूसरे घर में प्रस्थान करना अथवा ग्रह प्रवेश करना अग्नि पंचक के दौरान इन कार्यों को नहीं किया जाता। यह मंगलवार को शुरु होता है। न्यायालय संबंधी कार्यों को इस पंचक के दौरान किया जा सकता है।वहीं पंचक में यदि किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसका अंतिम संस्कार विशेष विधि के तहत किया जाना चाहिये अन्यथा पंचक दोष लगने का खतरा रहता है जिस कारण परिवार में पांच लोगों की मृत्यु हो सकती है। इस बारे में गुरुड़ पुराण में विस्तार से जानकारी मिलती है इसमें लिखा है कि अंतिम संस्कार के लिये किसी विद्वान ब्राह्मण की सलाह लेनी चाहिये और अंतिम संस्कार के दौरान शव के साथ आटे या कुश के बनाए हुए पांच पुतले बना कर अर्थी के साथ रखें और शव की तरह ही इन पुतलों का भी अंतिम संस्कार पूरे विधि-विधान से करना चाहिये।इस दौरान कोई पलंग, चारपाई, बेड आदि नहीं बनवाना चाहिये माना जाता है कि पंचक के दौरान ऐसा करने से बहुत पंचक में क्यों नहीं किए जाते शुभ कार्य ?ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रहों और नक्षत्र के अनुसार ही किसी कार्य को करने या न करने के लिये समय तय किया जाता है जिसे हम शुभ या अशुभ मुहूर्त कहते हैं। मान्यता है कि शुभ मुहूर्त में आरंभ होने वाले कार्यों के परिणाम मंगलकारी होते हैं जबकि शुभ मुहूर्त को अनदेखा करने पर कार्य में बाधाएं आ सकती हैं और उसके परिणाम अपेक्षाकृत तो मिलते नहीं बल्कि कई बार बड़ी क्षति होने का खतरा भी रहता है। ज्योतिषशास्त्र के मुताबिक अशुभ और हानिकारक नक्षत्रों के योग को ही पंचक कहा जाता है इसलिये पंचक को ज्योतिष शुभ नक्षत्र नहीं मानता।कब होता है पंचकजब चंद्रमा गोचर में कुंभ और मीन राशि से होकर गुजरता है तो यह समय अशुभ माना जाता है इस दौरान चंद्रमा धनिष्ठा से लेकर शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद एवं रेवती से होते हुए गुजरता है इसमें नक्षत्रों की संख्या पांच होती है इस कारण इन्हें पंचक कहा जाता है। कुछ कार्य ऐसे हैं जिन्हे विशेष रुप से पंचक के दौरान करने की मनाही होती है।कितने प्रकार का होते हैं पंचकपंचक प्रमुख रुप से पांच प्रकार का माना जाता है इसमें रोग पंचक, नृप पंचक, चोर पंचक, मृत्यु पंचक और अग्नि पंचक हैं।रोग पंचक - माना जाता है कि इस दौरान पंचक में पांच दिनों के लिये शारीरिक और मानसिक रुप से काफी यातनाएं झेलनी पड़ सकती है इसलिये स्वास्थ्य के प्रति विशेष रुप से सावधान रहने की आवश्यकता होती है। इस दौरान यज्ञोपवीत करना भी वर्जित माना जाता है। इसकी शुरुआत रविवार से होती है।नृप पंचक - इस पंचक की शुरुआत सोमवार से मानी जाती है। इस दौरान किसी नई नौकरी को ज्वाइन करना अशुभ माना जाता है, लेकिन नौकरी सरकारी हो तो उसके लिये इसे शुभ माना गया है। सरकारी नौकरी इस पंचक में ज्वाइन करने से लाभ मिलता है।चोर पंचक - इस पंचक के दौरान यात्रा करने से अपने आपको दूर रखना चाहिये। व्यावसायिक रुप से लेन-देन करना भी इसमें शुभ नहीं माना जाता। अगर ऐसा किया जाता है तो उसमें आर्थिक नुक्सान होने का खतरा बना रहता है। इस पंचक की शुरुआत शुक्रवार से होती है।मृत्य पंचक - ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जोखिम से भरा कोई भी कार्य इस पंचक के दौरान नहीं किया जाना चाहिये। विवाह जैसे शुभ कार्य की भी इस दौरान मनाही होती है। इसमें जान और माल का नुकसान हो सकता है इसलिये इसे मृत्य पंचक कहा जाता है। यह शनिवार को शुरु होता है।अग्नि पंचक - घर बनाना हो या फिर एक घर से दूसरे घर में प्रस्थान करना अथवा ग्रह प्रवेश करना अग्नि पंचक के दौरान इन कार्यों को नहीं किया जाता। यह मंगलवार को शुरु होता है। न्यायालय संबंधी कार्यों को इस पंचक के दौरान किया जा सकता है।वहीं पंचक में यदि किसी की मृत्यु हो जाती है तो उसका अंतिम संस्कार विशेष विधि के तहत किया जाना चाहिये अन्यथा पंचक दोष लगने का खतरा रहता है जिस कारण परिवार में पांच लोगों की मृत्यु हो सकती है। इस बारे में गुरुड़ पुराण में विस्तार से जानकारी मिलती है इसमें लिखा है कि अंतिम संस्कार के लिये किसी विद्वान ब्राह्मण की सलाह लेनी चाहिये और अंतिम संस्कार के दौरान शव के साथ आटे या कुश के बनाए हुए पांच पुतले बना कर अर्थी के साथ रखें और शव की तरह ही इन पुतलों का भी अंतिम संस्कार पूरे विधि-विधान से करना चाहिये।इस दौरान कोई पलंग, चारपाई, बेड आदि नहीं बनवाना चाहिये माना जाता है कि पंचक के दौरान ऐसा करने से बहुत बड़ा संकट आ सकता है।पंचक शुरु होने से खत्म होने तक किसी यात्रा की योजना न बनाएं मजबूरी वश कहीं जाना भी पड़े तो दक्षिण दिशा में जाने से परहेज करें क्योंकि यह यम की दिशा मानी जाती है। इस दौरान दुर्घटना या अन्य विपदा आने का खतरा आप पर बना रहता है। बड़ा संकट आ सकता है।पंचक शुरु होने से खत्म होने तक किसी यात्रा की योजना न बनाएं मजबूरी वश कहीं जाना भी पड़े तो दक्षिण दिशा में जाने से परहेज करें क्योंकि यह यम की दिशा मानी जाती है। इस दौरान दुर्घटना या अन्य विपदा आने का खतरा आप पर बना रहता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 154
एक साधक का प्रश्न ::: सत्कर्म के लिये क्या करना चाहिये?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा समाधान :::
केवल भगवान की भक्ति। राधाकृष्ण की भक्ति ही सत्कर्म है। इससे अन्तःकरण शुद्ध होगा। तो अन्तःकरण शुद्ध होने पर जितने भी गुण हैं सत्य, अहिंसा, दया, परोपकार, नम्रता सब अपने आप आ जायेंगे। जितना-जितना अन्तःकरण शुद्ध होगा, उतने-उतने गुण अपने आप आयेंगे। और ऐसे सोचने से, उसको विल पॉवर कहते हैं, थोड़ा-थोड़ा लाभ होता है। टेम्पररी।
हरावभक्तस्य कुतो महद्-गुणा मनोरथेनासति धावतो बहिः।(भागवत 5-18-12)
भागवत में कहा गया कि बिना श्रीकृष्ण भक्ति के दैवी संपत्ति अर्थात सत्य, अहिंसा आदि गुण जिसको संसार में कैरेक्टर कहते हैं, वो नहीं आ सकता।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, अक्टूबर 2015 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - वास्तुशास्त्र में दस दिशाएं मानी गई हैं। ईशान, पूर्व आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य, पश्चिम, वायव्य, उत्तर, आकाश और पृथ्वी। किसी भी भवन के निर्माण में इन दसों दिशाओं का गहराई से ध्यान रखा जाता है। आज हम पूर्व दिशा की चर्चा कर रहे हैं। वास्तुशास्त्र के अनुसार पूर्व दिशा के स्वामी ब्रह्मा और इंद्र होते हैं। पूर्वमुखी घर में इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए.....-घर के पूर्वी हिस्से में अधिक खाली जगह हो तो धन एवं वंश की वृद्धि होती है।-भूखंड पर बने भवन, कमरों, बरामदों में भी पूर्वी हिस्सा नीचा हो तो उस घर में रहने वाले लोग प्रत्येक क्षेत्र में तरक्की करते हैं और स्वस्थ रहते हैं।-पूर्व दिशा में निर्मित मुख्य द्वार तथा अन्य द्वार भी केवल पूर्वमुखी हो तो शुभ परिणाम सामने आते हैं।-घर की पूर्व दिशा में दीवार जितनी कम ऊंची होगी उतनी ही मकान मालिक को यश-प्रतिष्ठा, सम्मान प्राप्त होगा। ऐसे मकान में रहने वाले लोगों को आयु और आरोग्य दोनों की प्राप्ति होती है।- पूर्व दिशा के घर के मध्य भाग की अपेक्षा नीचे चबूतरे बनाए जाएं तो शांति और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।- पूर्व दिशा में बरामदा झुका हुआ बनाया जाए तो घर के पुरुष सुखी एंव धनी होते हैं।- पूर्व दिशा में कुआं या पानी की टंकी हो तो यह शुभ फलदायी है।खराब परिणाम- अन्य दिशाओं की अपेक्षा भवन का पूर्वी भाग ऊंचा हो तो गृह स्वामी दुखी और धन की तंगी से जूझता है। ऐसे घर में संतानें रोगी और मंदबुद्धि होती हैं।- पूर्वी दिशा में खाली जगह रखे बिना चारदीवारी से सटाकर कमरे बनाएं जाएं तो संतान की कमी होती है।- पूर्वी दिशा में नियमित मुख्य द्वार या अन्य द्वार आग्नेयमुखी हों तो दरिद्रता, अदालती मामले, चोरों का भय एवं अग्नि का भय बना रहता है।-भूखंड के पूर्व दिशा में ऊंचे चबूतरे हो तो अकारण अशांति, आर्थिक संकट बना रहता है। गृह स्वामी कर्ज में डूबा रहता है।- पूर्वी भाग में कचरा, पत्थरों के टीले, मिट्टी के ढेर आदि हों तो धन और संतान की हानि होती है।- पूर्वमुखी घरों के लिए चारदीवारी ऊंची नहीं होनी चाहिए। इससे आर्थिक सफलता में रूकावट आती है।-पूर्व में बनी चारदीवारी पश्चिम की चारदीवारी से ऊंची हो तो संतान को कष्ट होता है।---
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 153
(जैसे संसार में रोग के मूल का इलाज आवश्यक है, वैसे ही आध्यात्म में भी अन्तःकरण की अशुद्धि के मूल का इलाज आवश्यक है, आइये जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से इस इलाज को जानें...)
हर दोष की एक दवा है ज्यों ज्यों अन्तःकरण भगवान में अटैच्ड होगा त्यों त्यों शुद्ध होगा। जितनी लिमिट में शुद्ध होगा, उतनी लिमिट में काम, क्रोध, लोभ, अहंकार ये सब माया के दोष कम होते जायेंगे। और जब कम्पलीट सरेण्डर हो जायेगा तो समाप्त हो जायेंगे।
एक दोष चला जाय एक रहे, ऐसा नहीं हो सकता। ये सब माया के परिवार हैं और इनका परस्पर सम्बन्ध है। इसलिये एक नहीं जायेगा। सारे रोगों का जो मूल है वो है कामना, इच्छा बनाना, संसारी हो चाहे पारमार्थिक हो। हमने इच्छा बनाया बस फँस गये। अब अगर इच्छा पूरी होती है तो लोभ पैदा होगा और नहीं पूरी होती है तो क्रोध पैदा होगा। आगे हम चले गये फँसते हुये, अब बच नहीं सकते चाहे कितना ही बड़ा बुद्धिमान बृहस्पति क्यों न हो।
तो संसार सम्बन्धी कामना को डायवर्ट करके भगवान सम्बन्धी कामना बनाने का अभ्यास कर ले तब जड़ खतम हो तो सारी बीमारी खतम हो गई। ऊपर ऊपर से हमने पत्ते तोड़ दिये, कुछ डालें काट दीं, इससे पेड़ समाप्त नहीं होगा बल्कि वो और बलवान होगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, मार्च 2018 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 152
(लगाना और लगना - इन 2 स्थितियों पर जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा मार्गदर्शन...)
मन लगाना साधना है, मन लगना - ये सिद्धि है। पहले साधना करनी है। सिद्धि तो बाद में मिलेगी। इसलिये मन लगाना है, इसका अभ्यास करना होगा। जितना अधिक अभ्यास करोगे उतना ही लगने लगेगा। देखो खराब संस्कार आते हैं न संसार संबंधी, वही डिस्टर्ब करते हैं, उस समय और ताकत लगाओ। देखो साईकिल चलाते हो तो कहीं ऊँचाई आ गई और जोर लगाते हो। ऊँचाई खतम हो गई तो फिर आराम से चली जाती है साईकिल। ऐसे ही जब गड़बड़ हो संस्कार के कारण तो और जोर से साधना करो उस समय। बस फिर ठीक हो जायेगा। करना है। लगातार करना होगा अभ्यास, बस यही एक उपाय है। अपने आप नहीं लग जायेगा। अपने आप लग जाना होता तो अनन्त जन्म क्यों बीतते?
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, मार्च 2018 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - पेड़-पौधे हमारे जीवन के अभिन्न अंग हैं, इनके बिना हमारा जीवन अधूरा है। आज हम आपको ज्योतिष के अनुसार हिंदू धर्म में शुभ माने-जाने वाले 9 वृक्ष पत्तों के बारे में बता रहे हैं-1. तुलसी का पत्ताहिंदू धर्म में तुलसी को सबसे पवित्र पौधा माना जाता है। साथ ही सभी मांगलिक कार्यों में तुलसी के पत्तों का उपयोग किया जाता है। भगवान की पूजा और भोग अर्पित करने में तुलसी के पत्ते का होना आवश्यक है। कहा जाता है कि तुलसी के पत्ते को आप 11 दिन तक शुभ मान सकते हैं इसलिए एक ही पत्ते को 11 दिनों तक गंगाजल में धोकर आप भगवान को अर्पित कर सकते हैं। लेकिन तुलसी के पत्ते को रविवार, एकादशी, द्वादशी, संक्रांति और संध्या के वक्त नहीं तोडऩा चाहिए। इसके अलावा भगवान भोलेनाथ, गणपति और भैरव महाराज पर तुलसी को अर्पित करने से बचना चाहिए। वहीं दूसरी ओर भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी का होना अति अनिवार्य है क्योंकि भगवान विष्णु का प्रिय पत्ता तुलसी है। ज्योतिष के अनुसार, भगवान के भोग में तुलसी का होना आवश्यक है वरना भगवान भोग को स्वीकार नहीं करते हैं। याद रखें कि तुलसी को कभी भी भगवान के चरणों में अर्पित नहीं करना चाहिए इससे भगवान नाराज हो जाते हैं।2. बिल्वपत्रशिवलिंग पर अभिषेक के दौरान बेलपत्री को चढ़ाना आवश्यक है क्योंकि इससे लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। इसके अलावा बिल्वपत्र को चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी, अमावस्या और किसी माह की संक्रांति में नहीं तोडऩा चाहिए। ज्योतिष की माने तो अगर नया बेलपत्र आपको नहीं मिल पाता है तो आप किसी दूसरी के चढ़ाए हुए बेलपत्र को भी धोकर इस्तेमाल कर सकते हैं। वहीं बिल्वपत्र को शिवलिंग पर सदैव उल्टा अर्पित करना चाहिए। ध्यान रखें कि बेल पत्री में चक्र और वज्र नहीं होना चाहिए। बिल्ब पत्र चोड़ते समय इन मंत्रों का जाप करना शुभ माना जाता है-"अमृतोद्भव श्रीवृक्ष महादेवप्रिय: सदा।गृöामि तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात् ॥"3. पान का पत्तापौराणिक कथानुसार समुद्र मंथन के वक्त पहली बार देवताओं ने पान के पत्ते का उपयोग किया था। पान या तांबूल को हवन पूजा की एक अहम सामग्री माना जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार पान के पत्ते में विभिन्न देवी-देवताओं का वास होता है। पान के पत्ते के ठीक ऊपरी हिस्से में इंद्र एवं शुक्र देव विराजित हैं। बीच के हिस्से में मां सरस्वती विराजमान हैं और पत्ते के बिल्कुल निचले हिस्से में मां महालक्ष्मी जी बैठी हैं। भगवान शिव पान के पत्ते के भीतर वास करते हैं। ज्योतिष की मानें तो रविवार को यदि आप किसी खास काम को करने के लिए बाहर जा रहे हैं तो आप अपने पास पान का पत्ता अवश्य रखें, इससे काम अवश्य पूरा होता है।4. केले का पत्ताकिसी भी पूजा-पाठ के दौरान केले के फल, तने और पत्ते का उपयोग किया जाता है। मान्यता है कि केले के वृक्ष में भगवान विष्णु का वास है इसलिए सत्यनाराय़ण की कथा में केले के पत्तों का मंडप बनाया जाता है। वहीं दक्षिण भारत में केले के पत्ते पर भोजन परोसा जाता है। गुरुवार को भगवान बृहस्पतिदेव की पूजा में केले का विशेष महत्व है। ज्योतिष के अनुसार, यदि आप 7 गुरुवार नियमित रूप से केले की पूजा करते हैं तो सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं और अविवाहित कन्याओं को सुंदर वर की प्राप्ति हो सकती है।5. आम का पत्ताहिंदू धर्म में किसी भी धार्मिक कर्मकांड या मांगलिक कार्यक्रम में आम के पत्ते का इस्तेमाल किया जाता है। वैदिक काल से हवन में आम की लड़कियों का ही इस्तेमाल करते आ रहे हैं, इससे वातावरण में सकारात्मकता बढ़ती है। मान्यता है कि बजरंगबली को आम बहुत प्रिय है। इसलिए हनुमान जी की पूजा के दौरान आम का पत्ता होना अनिवार्य है।6. सोम की पत्तीपौराणिक काल से सभी देवी-देवताओं को सोम की पत्तियां अर्पित की जाती थी। वर्तमान में इन पत्तियों का मिलना काफी दुर्लभ है। प्राचीन काल में सोम की पत्तियों से निकले रस को 'सोमरस' कहा जाता था। यह नशीला नहीं होता था। खासबात यह है कि सोम लताएं पर्वत की श्रृंखलाओं में पाई जाती है।7. शमी का पत्ताप्रत्येक शनिवार को भगवान शनि को शमी का पत्ता अर्पित करना चाहिए, इससे शनि के दोष कम हो जाते हैं और बिगड़े हुए काम बनने लगते हैं। शमी का पौधा घर के उत्तर-पूर्व दिशा के कोने में लगाना चाहिए और नियमित इसकी पूजा करनी चाहिए। भगवान शनि के अलावा भगवान गणेश को भी शमी का पत्ता काफी प्रिय है क्योंकि शमी में भगवान शिव का वास होता है। वहीं हर सोमवार को शमी का पत्ता शिवलिंग पर चढ़ाने से सभी ग्रहों के दोष दूर हो सकते हैं।8. पीपल का पत्ताहिंदू धर्म में पीपल वृक्ष को देवों का देव कहा गया है। मान्यता है कि इस पेड़ में सभी देवी-देवता का वास होता है। कहा जाता है कि भगवान शिव पर पीपल के पत्ते को अर्पित करने से शनि के प्रकोप से बचा जा सकता है। पीपल में रोजाना जल अर्पित करने से कुंडली के अशुभ ग्रह योगों का प्रभाव समाप्त हो सकता है। पीपल की परिक्रमा से कालसर्प जैसे दोष से भी छुटकारा मिल सकता है। सभी कष्टों से छुटकारा पाने के लिए पीपल के नीचे बैठकर पीपल के 11 पत्ते तोड़कर उन पर चंदन से भगवान श्रीराम का नाम लिखें। फिर इन पत्तों की माला बनाकर उसे हनुमान जी को अर्पित करें।9. वट वृक्ष का पत्ताज्योतिष के अनुसार, यदि आप सुख-समृद्धि और कर्ज से मुक्ति पाना चाहते हैं तो होली के दिन बड़ या वट के पेड़ का एक पत्ता तोड़े और इसे साफ पानी से धो लें। अब इस पत्ते को कुछ देर हनुमानजी के सामने रखें इसके बाद इस पर केसर से श्रीराम लिखें। अब इस पत्ते को अपने पर्स में रख लें। इससे आपको अवश्य लाभ मिलेगा।
- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 151
०० जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचनों से 5-सार बातें (भाग - 6) ::::::
(1) भगवान और गुरु एक हैं तो भगवान की सेवा अभी प्राप्त नहीं है तो गुरु की सेवा करनी होगी। और गुरु से प्रश्न करके थ्योरी की नॉलेज, तत्वज्ञान प्राप्त करना होगा और शरणागत होना होगा।
(2) हर समय प्रत्येक कार्य करते हुये भी भगवान व गुरु को साथ मानों व उनके नाम, रूप, लीला, गुण, जन आदि का चिन्तन करते हुये ध्यान करते रहो। कभी भी भुलाओ मत।
(3) लोकरंजन की भावना न आने पाये। प्रेम तो छिपाने की चीज है। गोपनीयं गोपनीयं गोपनीयं प्रयत्नतः। (भगवत्स्मरण में) कभी रोमांच भी हो जाये, कभी कम्प भी हो जाये तो उसको छिपाओ। कोई कहे कि क्या हो गया तो कह दो कि मच्छर ने काट लिया, यह कभी भी आउट न करो कि हमारा प्यार श्यामसुन्दर से है।
(4) विरह भक्ति का प्राण है। श्रीकृष्ण के साथ द्वारिका में 16108 रानियाँ थीं, उनको बहिरंग सीट भी नहीं मिली वृन्दावन में। नौकरानी की सीट भी नहीं मिली और जिनको वियोग दिया गया उन गोपियों का वहाँ स्थान है जहाँ वेद की ऋचायें भी नहीं जा सकतीं।
(5) बड़े पाठ किये, बड़ी पूजा की, बड़े कीर्तन, बड़े जप किये, बड़े मन्दिरों के चक्कर लगाये, तमाम बातें कर डालीं लेकिन अगर वह दर्द पैदा नहीं हुआ, श्यामसुन्दर के मिलन की व्याकुलता अगर पैदा नहीं हुई तो सब जीरो में गुणा किया।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म संदेश एवं साधन साध्य पत्रिकाएँ०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - भारत मंदिरों का देश है और यहां हर मंदिर के चमत्कार की एक अलग ही कहानी है। देश में एक ऐसा मंदिर भी है जिसके पिलर हवा में झूल रहे हैं और मंदिर ज्यों का त्यों बरसों से खड़ा हुआ है। दक्षिण भारत के प्रमुख मंदिरों में से एक लेपाक्षी मंदिर वैसे तो अपने वैभवशाली इतिहास के लिये प्रसिद्ध है, लेकिन मंदिर से जुड़ा एक चमत्कार आज भी लोगों के लिये चुनौती बना है। यह स्थान, दक्षिण भारत में तीन मंदिरों के कारण प्रसिद्ध है जो भगवान शिव, भगवान विष्णु और भगवान विदर्भ को समर्पित है। यही नहीं, यहां एक बड़ी नागलिंग प्रतिमा मंदिर परिसर में लगी हुई है, जो कि एक ही पत्थर से बनी हुई है। यह भारत की सबसे बड़ी नागलिंग प्रतिमा के लिए जानी जाती है।आंध्र प्रदेश के एक छोटे से जिले अनंतपुर में स्थित है लेपाक्षी मंदिर, जो अपने हैंगिंग पिलर्स यानी कि हवा में झूलते हुए पिलर्स के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। बता दें कि इस दिव्य मंदिर के 70 से ज्यादा पिलर हैं जो बिना किसी सहारे के खड़े हैं और इस भव्य मंदिर को संभाले हुए हैं। अपनी इसी खूबी के लिए मंदिर को देखने के लिए भारी संख्या में टूरिस्ट आते हैं। यही नहीं, इस मंदिर में आने वाले भक्तों का मानना है कि इन हैंगिंग पिलर्स के नीचे से अपना कपड़ा निकालने से उनके जीवन में सुख-समृद्धि आती है।इस मंदिर में इष्टदेव श्री वीरभद्र है। वीरभद्र, दक्ष यज्ञ के बाद अस्तित्व में आए भगवान शिव का एक क्रूर रूप है। इसके अलावा शिव के अन्य रूप अर्धनारीश्वर, कंकाल मूर्ति, दक्षिणमूर्ति और त्रिपुरातकेश्वर यहां भी मौजूद हैं। यहां देवी को भद्रकाली कहा जाता है। मंदिर 16 वीं सदी में बनाया गया और एक पत्थर की संरचना है। मंदिर विजयनगरी शैली में बनाया गया है।कहते हैं कि भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता अपने 14 साल के वनवास के दौरान यहां आए थे। जब माता सीता का अपहरण कर दुष्ट रावण अपने साथ लंका लेकर जा रहा था, तभी पक्षीराज जटायु ने माता सीता को बचाने के लिए रावण से युद्ध लडऩे लगे और जख्मी हो कर इसी स्थान पर गिर गए थे। वहीं, जब भगवान श्रीराम अपनी पत्नी सीता की तलाश करते-करते यहां पहुंचे तो वे- ले पाक्षी, कहते हुए जटायु को अपने सीने से लगा लेते हैं। लेपाक्षी एक तेलुगु शब्द है, जिसका मतलब होता है -उठो पक्षी।मंदिर एक कछुआ के खोल की तरह बने एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। इसलिए यह कूर्म सैला बी कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण 1583 में दो भाइयों विरुपन्ना और वीरन्ना ने कराया था जो विजयनगर राजा के यहां काम करते थे। हालांकि पौराणिक मान्यता यह है की लेपाक्षी मंदिर परिसर में स्थित विभद्र मंदिर का निर्माण ऋषि अगस्तय ने करवाया था।कहते हैं अंग्रेजों ने 16वीं सदी में बनी दिव्य मंदिर का रहस्य जानने की बहुत कोशिश की, लेकिन उन्हें नाकामयाबी हाथ लगी।लेपाक्षी मंदिर जो अपने आप में काफी खास है इसकी मूर्ति काले ग्रेनाइट पत्थर से बनी हुई है, जिसके शिवलिंग के ऊपर एक सात फन वाला नाग बैठा हुआ है। वहीं, दूसरी ओर मंदिर में रामपदम यानि कि मान्यता के मुताबिक श्रीराम के पांव के निशान भी वहां मौजूद हैं, जबकि कई लोगों का मानना यह है की यह माता सीता के पैरों के निशान हैं।---
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 150
०० 'मेरी राधे दिवस' और 'क्रिसमस' ::: आज सारे विश्व में 25 दिसम्बर का दिन 'क्रिसमस डे' या 'मैरी क्रिसमस' के रूप में मनाया जा रहा है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने इस दिन को एक नया स्वरूप प्रदान करते हुये इसे 'मेरी राधे दिवस' नाम दिया है। वस्तुतः महारानी श्रीराधारानी ही समस्त जीवों की माता हैं तथा जीव की परम हितैषी हैं। यह माया का संसार अपना नहीं है, इस माया की अधीश्वरी श्रीराधारानी ही अपनी हैं। अतः उनके श्रीचरणों में ही अपने भाव, प्रेम तथा शरणागति को दृढ़ करना है। 'मेरी राधे दिवस' की यही भावना है।
आइये आज इस अवसर पर जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ब्रजभावयुक्त 1008-दोहों से युक्त 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का छठवाँ भाग पढ़ें, इस ग्रंथ की प्रस्तावना सबसे नीचे पढ़ें ::::::
(भाग - 5 के दोहा संख्या 25 से आगे)
तू तो है मायाधीश कह ब्रजबामा।मैं भी तेरा अंश किन्तु मायाधीन श्यामा।।26।।
अर्थ ::: हे श्यामा! माया तुम्हारी दासी है, तुम माया की अधीश्वरी हो। मैं यद्यपि तुम्हारा ही अंश हूँ किन्तु माया के आधीन हूँ।
तेरे मेरे पास माया, कह ब्रजबामा।माया तेरी दासी मैं हूँ माया दासी श्यामा।।27।।
अर्थ ::: हे श्रीराधे! यद्यपि तुम्हारे पास भी माया है और मैं भी माया से युक्त हूँ किन्तु माया तुम्हारी तो दासी है और मुझे उसने अपनी दासी बना रखा है।
तुम भी हम भी दोनों हैं अनादि कह बामा।जो भी हो अनादि वो अनन्त होय श्यामा।।28।।
अर्थ ::: हे श्यामा! तुम और हम दोनों ही अनादि हैं एवं जो अनादि होता है, वह अनन्त भी होता है।
तुम भी अज हम भी अज रहें उर धामा।तुम कर्म लिखो हम कर्म करें श्यामा।।29।।
अर्थ ::: हे श्यामा! तुम भी अज (जन्मरहित) हो और मैं भी अज हूँ। हम तुम दोनों हृदय में रहते हैं किन्तु अन्तर यह है कि मैं तो कर्मों का कर्ता हूँ और तुम कर्मों का हिसाब रखने वाली हो।
कोरे शब्द ज्ञान ते बने ना कछु कामा।मन करो शरणागत पद श्री श्यामा।।30।।
अर्थ ::: केवल पुस्तकीय ज्ञान से कल्याण की आशा करना व्यर्थ है। जब तक यह मन श्रीराधा पद्म-पराग का मत्त मधुप नहीं बन जाता तब तक इसे संसार के विषय विष अपनी ओर आकर्षित करते ही रहेंगे।
०० 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का परिचय :::::
ब्रजरस से आप्लावित 'श्यामा श्याम गीत' जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की एक ऐसी रचना है, जिसके प्रत्येक दोहे में रस का समुद्र ओतप्रोत है। इस भयानक भवसागर में दैहिक, दैविक, भौतिक दुःख रूपी लहरों के थपेड़ों से जर्जर हुआ, चारों ओर से स्वार्थी जनों रूपी मगरमच्छों द्वारा निगले जाने के भय से आक्रान्त, अनादिकाल से विशुध्द प्रेम व आनंद रूपी तट पर आने के लिये व्याकुल, असहाय जीव के लिये श्रीराधाकृष्ण की निष्काम भक्ति ही सरलतम एवं श्रेष्ठतम मार्ग है। उसी पथ पर जीव को सहज ही आरुढ़ कर देने की शक्ति जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की इस अनुपमेय रसवर्षिणी रचना में है, जिसे आद्योपान्त भावपूर्ण हृदय से पढ़ने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे रस की वृष्टि प्रत्येक दोहे के साथ तीव्रतर होती हुई अंत में मूसलाधार वृष्टि में परिवर्तित हो गई हो। श्रीराधाकृष्ण की अनेक मधुर लीलाओं का सुललित वर्णन हृदय को सहज ही श्यामा श्याम के प्रेम में सराबोर कर देता है। इस ग्रन्थ में रसिकवर श्री कृपालु जी महाराज ने कुल 1008-दोहों की रचना की है।
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जीव की सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण आवश्यकता है आहार। आहार से निर्माण और विकास की प्रक्रिया पूरी होती है। आप भले ही खाद्य पदार्थों से आहार न लें, लेकिन कहीं न कहीं से आपको उर्जा लेनी ही होगी। बिना उर्जा के जीवन की लंबे समय तक कल्पना नहीं की जा सकती। आइये जाने कि सात्विक भोजन क्या होता है?किन चीजों को हम सात्विक आहार नहीं कह सकते?- प्याज, लहसुन- सरसों का साग, मशरूम- मांस, मछली, मादक पदार्थ- डिब्बा बंद खाद्य पदार्थ- बासी खानाक्या है सात्विक आहार?- सभी प्रकार की अनाजें और दाल- दूध और इससे निर्मित पदार्थ- सभी प्रकार की सब्जियां- फल और मेवेकिस प्रकार के स्वभाव के लिए किस तरह का आहार?अगर आप बहुत ज्यादा भावुक हैं तो गुड और मीठी चीजें खाएं, रोटी खाएं, बासी खाने से बचें। अगर आप बहुत ज्यादा क्रोधी हों तो प्याज, लहसुन और मांस मछली से परहेज करें। अगर आपको तनाव रहता है तो दूध और दूध से बनी चीजों का सेवन करें। मशरूम और कंद न खाएं। अगर आप शरीर से परेशान हैं तो ज्यादा से ज्यादा सब्जियां खाएं, अनाज कम खाएं। अगर आप बुरे विचारों से परेशान हैं तो मांस, मछली, प्याज, लहसुन न खाएं, मसूर की दाल खाने से भी परहेज करें।सात्विक शब्द सत्व शब्द से बना है। इसका अर्थ होता है, शुद्ध, प्राकृतिक और ऊर्जावान। सात्विक भोजन शरीर को शुद्ध कर मन को शांति प्रदान करता है। इसमें शुद्ध शाकाहारी सब्जियों, फलों, सेंधा नमक, धनिया, काली मिर्च जैसे मसालों का इस्तेमाल होता है। उपवास के दौरान लोग सात्विक खाना खाते हैं। इसके पीछे धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ कुछ वैज्ञानिक कारण भी हैं।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 149
(आध्यात्म तथा भौतिक, दोनों प्रकार के लोगों के लिये मार्गदर्शन, जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी की वाणी में...)
...नींद जो है वो तमोगुण है। जाग्रत अवस्था में हम सत्वगुण में भी जा सकते हैं, रजोगुण में भी जा सकते हैं, तमोगुण में भी जा सकते हैं। लेकिन नींद जो है, वो प्योर तमोगुण है। बहुत ही हानिकारक है। अगर लिमिट से अधिक सोओगे तो भी शारीरिक हानि होती है और बिल्कुल न सोना भी शरीर के लिये ठीक नहीं है। आपके शरीर के जो पार्ट्स हैं उनको खराब करेगा अधिक सोना या अधिक जागना। रेस्ट की भी लिमिट है। रेस्ट के बाद व्यायाम आवश्यक है। देखिये शरीर ऐसा बनाया गया है कि इसमें दोनों आवश्यक हैं। तुम्हें संसार में कोई जरूरी काम आ जाये, या कोई बात हो जाये, या कोई तुम्हारा प्रिय मिले, तब नींद नहीं आती। इसलिये कोई फिजिकल रीजन नहीं है कि नींद कन्ट्रोल नहीं होती, केवल मानसिक वीकनेस है। लापरवाही है। हर क्षण यही सोचो कि अगला क्षण मिले न मिले, अतएव भगवद-विषय में उधार न करो।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, जुलाई 2012 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है। इसे वैकुंठ एकादशी व मुक्कोटी एकादशी भी कहा जाता है। वैकुंठ एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा बहुत ही शुभ और फलदायी मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि आज के दिन भगवान श्रीहरि विष्णु के रहने का स्थान यानी वैकुंठ के दरवाजे खुले रहते हैं। इसलिए आज के दिन व्रत करने से मोक्ष की प्राप्त होती है और आज के दिन व्रत करने वाले सीधे स्वर्ग में जाते हैं। केरल में इस तिथि को स्वर्ग वथिल एकादशी कहते हैं।
ये भी कहा जाता है कि मोक्षदा एकादशी के दिन कुरुक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश दिया था। यही वजह है इस दिन को गीता जयंती के नाम से भी मनाया जाता है।
हिंदू धर्म में माना जाता है कि मोक्ष प्राप्त किए बिना मनुष्य को बार-बार इस संसार में आना पड़ता है। मोक्ष की इच्छा रखने वाले प्राणियों के लिए मोक्षदा एकादशी व्रत रखने की सलाह दी गई है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना की जाती है।
मोक्षदा एकादशी पर सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर पूरे घर में गंगाजल का छिड़काव करें। भगवान विष्णु की आराधना करें। पूजा में तुलसी के पत्तों को अवश्य शामिल करें। रात्रि में भगवान श्रीहरि का भजन-कीर्तन करें। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा देकर विदा करें। परिवार के साथ उपवास को खोलना चाहिए। मोक्षदा एकादशी से एक दिन पहले दशमी के दिन सात्विक भोजन करना चाहिए तथा सोने से पहले भगवान विष्णु का स्मरण करना चाहिए। मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के दिन ही कुरुक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश दिया था। वैकुंठ एकादशी का दिन तिरुपति के तिरुमला वेन्कटेशवर मन्दिर और श्रीरंगम के श्री रंगनाथस्वामी मन्दिर में काफी धूमधाम से मनाया जाता है।
25 दिसंबर दिन को वैकुंठ एकादशी
-ज्योतिषाचार्यों के अनुसार वैकुंठ एकादशी मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी मोक्षदा एकादशी है। इस बार यह तिथि 25 दिसंबर को पड़ रही है। मोक्षदा एकादशी को दक्षिण भारत में वैकुंठ एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। वैकुंठ एकादशी दिन भगवान विष्णु का व्रत किया जाता है। - रुद्राक्ष एक मनका है, जो काफी पवित्र माना जाता है। यह पेड़ का उत्पाद हैै। यह ऋषियों, ज्योतिषियों और अन्य आध्यात्मिक संस्थाओं द्वारा पहने जाने वाले प्रसिद्ध रत्नों में से एक है। मनके का उपयोग ज्यादातर छोटे या बड़े धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है। यह न केवल हिंदू धर्म बल्कि अन्य धर्मों द्वारा भी पूजा जाता है। इस मनके के वैज्ञानिक और ज्योतिषीय लाभ भी हैं।पौराणिक मान्यता है कि रुद्राक्ष का उद्भव भगवान शिव के आंसू से हुआ था। इसे स्वर्ग से पृथ्वी के बीच सेतु माना जाता है। रुद्राक्ष ज्यादातर इंडोनेशिया, नेपाल और भारत में पाया जाता है। दुनिया में 1 से लेकर 21 मुखी तक रुद्राक्ष उपलब्ध हैं। प्रत्येक मनके का एक अलग उद्देश्य और उपाय है। उन्हें मुख के अनुसार विभाजित किया जाता है जिसे मुखी भी कहा जाता है।रुद्राक्ष ऊर्जा से भरा हुआ एक शक्तिशाली आभूषण है, माना जाता है कि कमजोर दिल वाले उसे पहन नहीं सकते हैं। हालांकि, यह व्यापक रूप से स्वास्थ्य मन और आत्मा के लिए जाना जाता है। इसे पहने से पहले किसी विशेषज्ञ ज्योतिषी से सलाह लेनी चाहिए। ध्यान दें कि इसे अपने मन से पहनने की गलती न करें यह नकारात्मक प्रभाव छोड़ सकता है।कैसे पहनने के लिए रुद्राक्ष ज्योतिषीय लाभ के लिए-रुद्राक्ष पहन रहे हैं, तो इस बात का खास ध्यान रखें कि यह आपके खुद के पैसों से खरीदा गया हो। किसी और के पैसे से खरीदा गया रुद्राक्ष आपको लाभ नहीं देगा।- किसी भी प्रकास का रुद्राक्ष पहनने से पहले किसी अनुभवी ज्योतिषी से इसे अभिमंत्रित जरूर करा लें और जन्मकुंडली के अनुसार रुद्राक्ष को धारण करें ताकि यह मनका आपको प्रभावी लाभ दे सके। इस रुद्राक्ष को ग्रहण करने से पहले, किसी शुभ दिन आपको एक पूजा करवानी होगी और मंत्रोच्चार करते हैं इसे पहनना होगा।-रुद्राक्ष को गंदे हाथों से ना छुए वरना यह अपवित्र हो सकता है।-रुद्राक्ष धारी को मांस और मदिरा का सेवन करना त्याग देना चाहिए।-रुद्राक्ष को धारण करने से पहले हमेशा तेल से साफ करके पहनना चाहिए।-रुद्राक्षधारियों को नियमित रूप से भगवान शिव की प्रार्थना करनी चाहिए।रुद्राक्ष धारण करने के फायदेमानाव जाता है कि जो लोग पापों से मुक्ति चाहते हैं तो उनके लिए यह मनका फायदेमंद है। यह मनका जन्मकुंडली में क्रूर ग्रहों के बुरे प्रभाव को कम करने में मदद करता है। यह पहनने वाले को ऊर्जा और शक्ति प्रदान करता है। यह पहनने वाले को तनाव और हाईब्लडप्रेशर को कम करने में मदद करता है।यह रुद्राक्षधारी को ऊर्जा और शक्ति प्रदान करता है। यह चेचक जैसे सभी प्रकार के त्वचा रोगों को ठीक करने में मदद करता है। यह मिर्गी और जहर के घावों को ठीक करने में मदद करता है। यह पहनने वाले के चारों तरफ एक सुरक्षा कवच बना देता है। खासतौर पर खानाबदोश लोगों के लिए, यह निपटान, स्थिरता और सहायता प्रदान करता है।राशि चक्र पर रुद्राक्ष लाभराशि अनुसार रुद्राक्ष पहनने से इसका प्रभाव बढ़ जाता है। यह पहनने वाले को सकारात्मकता देता है और गुस्सा भी कम करता है।पौराणिक रूप से रुद्राक्ष को बहुत अधिक महत्व दिया जाता है, क्योंकि यह सभी प्रकार के ग्रहों का इलाज करने और अप्रत्याशित घटनाओं को संभालने में मदद करता है। यह एक शक्तिशाली उपाय है जिसने बहुत से लोगों को राशि चक्र, ज्योतिषीय महत्व और स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं का इलाज करने में मदद की है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 148
(क्या है संत-चरणों में शीश झुकाने का तात्पर्य, जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु की वाणी में इस प्रकार है...)
अगर तुम एक बार भी संत के चरणों में प्रणाम कर लो तो फिर कुछ करना न रहे, उसके आगे बात खतम, भगवत्प्राप्ति हो गई, माया-निवृत्ति हो गई, सब काम खतम। अगर तुम समझ लो कि ये चरण क्या हैं? इन चरणों की धूलि भगवान चाहता है;
अनुब्रजाम्यहं नित्यं पूयेयेत्यंघ्रिरेणुभिः।(भागवत 11-14-16)
भगवान पीछे-पीछे चलता है भक्तों के कि उनकी चरण धूलि मेरे ऊपर पड़े और मैं पवित्र हो जाऊँ, उन चरणों पर आज मुझ अभागे का मस्तक पड़ रहा है। अनन्त पाप किये हुये एक नगण्य जीव का, कितना बड़ा सौभाग्य है हमारा। तो उन चरणों पर अगर सिर को झुका दें, छू लें उन चरणों को फिर वो होश में रहेगा नहीं। उसने समझा ही नहीं उन चरणों का महत्व क्या है? हाँ, ठीक है, सब छू रहे हैं तो अपन भी पटक दो। वन परसेन्ट, टू परसेन्ट, टेन परसेन्ट कुछ भावना होगी आप लोगों की लेकिन प्रणाम माने सेन्ट परसेन्ट भावना, बुद्धि का सरेंडर, बुद्धि को दे देना गुरु के चरणों में, इसी का नाम शरणागति है। यही वास्तविक प्रणाम है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, जुलाई 2007 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 147
साधक का प्रश्न ::: भगवान और महापुरुष की ओर मन जल्दी खिंचे, इसके लिये क्या करना होगा?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा उत्तर :::
भगवान से अनन्य प्रेम करना है। 'अनन्य' माने 'अन्य में नहीं'। सब जगह कर्तव्य-पालन करो। तुम्हारी जो ड्यूटी है, माँ के प्रति, बाप के प्रति, बेटे के प्रति, स्त्री के प्रति, वो करो, लेकिन प्यार भगवान और महापुरुष से करो, क्योंकि वो शुद्ध हैं। अशुद्ध से मन का प्रेम न करो, व्यवहार में करो, एक्टिंग। जैसे दूसरे के बच्चे के गाल में हम हाथ से ऐसे-ऐसे (इशारा) कर देते हैं, पुच-पुच कर देते हैं तो उसकी माँ खुश हो जाती है कि हमारे बच्चे से प्यार कर रहा है। दूसरे के बच्चे से भला कौन प्यार करेगा, वो एक्टिंग करता है, उसके माँ-बाप को खुश करने के लिए और माँ-बाप बेवकूफ भी बन जाते हैं। लेकिन वो प्यार-व्यार तो अपने अपने बच्चे से करता है, दूसरे से क्यों करेगा भला।
तो ऐसे ही अपने परिवार में भी प्यार की एक्टिंग करो, लेकिन खास-तौर से ड्यूटी करो और प्यार हरि-गुरु से करो। तो तुम्हारा मन महापुरुष और भगवान में जल्दी खिंचेगा, बस! उतना ही तुम्हारा मन शुद्ध है, ये पैमाना है और इसी पैमाने को लेकर आगे बढ़ते चलो।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, जुलाई 2007 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 146
साधक का प्रश्न ::: मन से बुद्धि को कन्ट्रोल किया जा सकता है क्या?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा उत्तर :::
उल्टा बोल रहे हो। बुद्धि से मन पर कंट्रोल होता है। वो तो होता ही है, करते ही हो।
अब मन कह रहा है महाराज जी के पास मत जाओ। बुद्धि कह रही है, नहीं जाओगे तो फिर यह नुकसान हो जायेगा, बच्चे कैसे पढ़ेंगे, भविष्य क्या होगा? तो बुद्धि से तो मन पर कंट्रोल नैचुरल होता ही है। सब छोटे-छोटे बच्चों का भी होता है।
इस समय देखो! ये बच्चे बोल रहे हैं, चंचल हैं। जब हम लैक्चर देते हैं तो कोई बच्चा जरा सा हिलता नहीं, चुपचाप बैठे रहते हैं, समझते कुछ नहीं। उनकी बुद्धि से ही उनका मन कंट्रोल है। अगर बुद्धि से कंट्रोल न करे मन पर मनुष्य, तो ये सारा संसार लड़-कटकर मर जाये, एक दिन में समाप्त हो जाय।
मन करता है इसको झापड़ लगा दें, मन करता है इसको गाली दे दें, मन करता है ये सामान उठा लें, लेकिन बुद्धि कहती है पिट जाओगे, चुप। चोरी-चोरी जो सोचते हो, उसको बुद्धि काट देती है, ऐसा करोगे तो ये नुकसान हो जायेगा, मन पर कंट्रोल कर लेती है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म संदेश पत्रिका, जुलाई 2007 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
ग्रह-नक्षत्रों का व्यक्ति के जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है। सूर्य, केतु से लेकर बुध तक सभी ग्रह अपनी चाल बदलते हैं। हालांकि खास बात यह है साल 2021 में राहु-केतु और शनि अपना राशि परिवर्तन नहीं करेंगे। नए साल पर शनि अपनी स्वराशि मकर, राहु वृषभ राशि में और केतु वृश्चिक राशि में ही रहेंगे। हालांकि सूर्य से लेकर मंगल तक नए साल में अपना राशि परिवर्तन करेंगे। ग्रहों के चाल बदलने से व्यक्ति को कई बार शुभ तो कई बार अशुभ परिणामों की प्राप्ति होती है। राशि परिवर्तन जातकों की लाइफ में तरक्की, नौकरी और अचानक धन प्राप्ति का योग लेकर आता है। जानिए किस दिन कौन-सा ग्रह बदलेगा अपनी चाल-
1. मंगल का राशि परिवर्तन 2021- ऊर्जावान ग्रह मंगल अपनी राशि करीब डेढ़ माह में बदलता है। नए साल में मंगल 7 बार अपना राशि परिवर्तन करेगा।
मंगल का वृषभ राशि में गोचर - 22 फरवरी 2021
मंगल का मिथुन राशि में गोचर - 14 अप्रैल 2021
मंगल का कर्क राशि में गोचर - 2 जून 2021
मंगल का सिंह राशि में गोचर - 20 जुलाई 2021
मंगल का कन्या राशि में गोचर - 6 सितंबर 2021
मंगल का तुला राशि में गोचर - 22 अक्तूबर 2021
मंगल का वृश्चिक राशि में गोचर - 5 दिसंबर 2021
2. बुध का राशि परिवर्तन- बुध का नए साल में पहला राशि परिवर्तन 5 जनवरी होगा। इसके बाद साल का आखिरी राशि परिवर्तन 29 दिसंबर को होगा।
बुध का मकर राशि में गोचर - 5 जनवरी 2021
बुध का कुंभ राशि में गोचर - 25 जनवरी 2021
बुध का मकर राशि में गोचर - 4 फरवरी 2021
बुध का कुंभ राशि में गोचर - 11 मार्च 2021
बुध का मीन राशि में गोचर - 1 अप्रैल 2021
बुध का मेष राशि में गोचर - 16 अप्रैल 2021
बुध का वृष राशि में गोचर - 1 मई 2021
बुध का मिथुन राशि में गोचर - 26 मई 2021
बुध का वृष राशि में गोचर - 3 जून 2021
बुध का मिथुन राशि में गोचर - 7 जुलाई 2021
बुध का कर्क राशि में गोचर - 25 जुलाई 2021
बुध का सिंह राशि में गोचर - 9 अगस्त 2021
बुध का कन्या राशि में गोचर - 26 अगस्त 2021
बुध का तुला राशि में गोचर - 22 सितंबर 2021
बुध का कन्या राशि में गोचर - 2 अक्तूबर 2021
बुध का तुला राशि में गोचर - 2 नवंबर 2021
बुध का वृश्चिक राशि में गोचर - 21 नवंबर 2021
बुध का धनु राशि में गोचर - 10 दिसंबर 2021
बुध का मकर राशि में गोचर - 29 दिसंबर 2021
3. गुरु का राशि परिवर्तन- साल 2021 में गुरु ग्रह तीन बार अपनी चाल बदलेंगे। गुरु करीब 13 माह में अपना राशि परिवर्तन करते हैं।
बृहस्पति का कुंभ राशि में गोचर - 6 अप्रैल 2021
बृहस्पति का मकर राशि में गोचर - 14 सितंबर 2021
बृहस्पति का कुंभ राशि में गोचर - 21 नवंबर 2021
4. शुक्र का राशि परिवर्तन- चमकीले ग्रह शुक्र का पहला राशि परिवर्तन 4 जनवरी को होगा। इसके बाद 30 दिसंबर को साल 2021 का आखिरी राशि परिवर्तन करेंगे।
शुक्र का धनु राशि में गोचर - 4 जनवरी 2021
शुक्र का मकर राशि में गोचर - 28 जनवरी 2021
शुक्र का कुंभ राशि में गोचर - 21 फरवरी 2021
शुक्र का मीन राशि में गोचर - 17 मार्च 2021
शुक्र का मेष राशि में गोचर - 10 अप्रैल 2021
शुक्र का वृषभ राशि में गोचर - 4 मई 2021
शुक्र का मिथुन राशि में गोचर - 29 मई 2021
शुक्र का कर्क राशि में गोचर - 22 जून 2021
शुक्र का सिंह राशि में गोचर - 17 जुलाई 2021
शुक्र का कन्या राशि में गोचर - 11 अगस्त 2021
शुक्र का तुला राशि में गोचर - 6 सितंबर 2021
शुक्र का वृश्चिक राशि में गोचर - 2 अक्तूबर 2021
शुक्र का धनु राशि में गोचर - 30 अक्तूबर 2021
शुक्र का मकर राशि में गोचर - 8 दिसंबर 2021
शुक्र का धनु राशि में गोचर - 30 दिसंबर
5. सूर्य का राशि परिवर्तन- सूर्य का पहला राशि परिवर्तन 14 जनवरी को होगा। सूर्य के राशि परिवर्तन के दिन को सूर्य संक्रांति के नाम से भी जानते हैं।
सूर्य का मकर राशि में गोचर - 14 जनवरी 2021
सूर्य का कुंभ राशि में गोचर - 12 फरवरी 2021
सूर्य का मीन राशि में गोचर - 14 मार्च 2021
सूर्य का मेष राशि में गोचर - 14 अप्रैल 2021
सूर्य का वृष राशि में गोचर - 14 मई 2021
सूर्य का मिथुन राशि में गोचर - 15 जून 2021
सूर्य का कर्क राशि में गोचर - 16 जुलाई 2021
सूर्य का सिंह राशि में गोचर - 17 अगस्त 2021
सूर्य का कन्या राशि में गोचर - 17 सितंबर 2021
सूर्य का तुला राशि में गोचर - 17 अक्तूबर 2021
सूर्य का वृश्चिक राशि में गोचर - 16 नवंबर 2021
सूर्य का धनु राशि में गोचर - 16 दिसंबर 2021 -
नए साल को आने में अब कुछ ही दिन बाकी हैं। हर व्यक्ति को नए साल पर नई शुरूआत का इंतजार रहता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, ग्रह-नक्षत्र के कारण हर व्यक्ति को जीवन में अच्छे-बुरे परिणाम प्राप्त होते हैं। ऐसे में हम आपको बता रहे हैं कि 2021 में आपकी राशि के लिए कौन-सा महीना लकी है।
1. मेष- मेष राशि वालों के लिए नए साल का पहला महीना यानी जनवरी माह उत्तम है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस माह में करियर से लेकर लव लाइफ तक इस राशि के जातकों को शुभ परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।
2. वृष- इस राशि वालों के लिए साल 2021 का दिसंबर माह शुभ है। दिसंबर आते ही इस राशि वालों के जीवन की समस्याएं हल होने लग सकती हैं।
3. मिथुन- इस राशि वालों के लिए अगस्त माह बेहद शुभ है। माना जा रहा है कि अगस्त माह में इस राशि के जातकों को शुभ परिणाम प्राप्त होंगे।
4. कर्क- कर्क राशि वालों के लिए सितंबर माह शुभ है। इस माह में आपके कई बिगड़े काम बन सकते हैं। इसके साथ ही आपका उत्साह और आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।
5. सिंह- इस राशि वालों के लिए फरवरी माह शुभ है। यह माह आपको भाग्यशाली बनाने का भी योग लेकर आएगा।
6. कन्या- इस राशि वालों के लिए अगस्त माह बेहद शुभ साबित होगा। इस माह में धर्म और आस्था के मामले में भी आगे रहेंगे।
7. तुला- तुला राशि वालों के लिए अप्रैल का महीना शुभ रहने वाला है। अप्रैल माह के आते-आते खुशियां आपके घर आ जाएंगी। इस साल इस राशि वालों को शुभ परिणाम प्राप्त होंगे।
8. वृश्चिक- इस राशि वालों के लिए अक्टूबर माह शुभ रहेगा। इस माह में आपको शुभ परिणाम प्राप्त होंगे। साल के दसवें महीने में आपके सपने पूरे होंगे।
9. धनु- इस साल के जातकों के लिए जनवरी माह बेहद शुभ होगा। नए साल की शुरुआती माह में ही आपकी सभी इच्छाएं पूरी हो सकती हैं।
10. मकर- मकर राशि वालों के लिए सितंबर माह भाग्यशाली साबित होगा। ग्रह-नक्षत्रों के शुभ संयोग के कारण आपको हर कार्य में सफलता हासिल होगी।
11. कुंभ- इस राशि वालों के लिए नंवबर माह बेहद खास रहने वाला है। इस राशि वालों का उत्साह बढ़ेगा और आपकी योजनाएं लंबे समय तक लाभ देंगी।
12. मीन- मीन राशि वालों के लिए दिसंबर माह शुभ है। साल के आखिरी महीने में आपकी सभी समस्याएं खत्म होना शुरू हो जाएंगी।