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- आश्विन मास में शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा का त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार को विजयदशमी भी कहा जाता है। नवरात्र में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों का पूजा की जाती है और दशहरा के दिन विसर्जन किया जाता है। इस दिन भगवान श्रीराम ने लंकापति रावण का वध किया और मां दुर्गा ने महिषासुर का अंत किया था।दशहरा पर वास्तु में बताए कुछ आसान से उपाय अवश्य करने चाहिए, आइए जानते हैं इनके बारे में---दशहरा पर अस्त्र-शस्त्र पूजा करने से शत्रुओं से मुक्ति मिलती है। दशहरा पर सुंदरकांड का पाठ अवश्य करना चाहिए। दशहरा पर शाम के समय माता लक्ष्मी का ध्यान करते हुए मंदिर में झाड़ू का दान करें। इस दिन पुस्तकों, वाहन आदि की पूजा की जाती है। दशहरा के दिन नीलकंठ पक्षी का दर्शन करना अत्यंत शुभ माना जाता है। दशहरा के दिन हनुमान जी की पूजा करना सबसे लाभकारी माना जाता है। इस दिन हनुमान चालीसा का पाठ करें। वास्तु शास्त्र के अनुसार रावण दहन की लकड़ी को घर लेकर आना शुभ माना जाता है। ऐसा करने से घर से नकारात्मक ऊर्जा निकल जाती है। नवरात्र के दिनों में जौ से अंकुर निकल आते हैं उसे जयंती कहा जाता है। विसर्जन करने से पहले एक लाल कपड़े में थोड़ी सी जयंती बांधकर तिजोरी में रख दें। दशहरा के दिन श्री लक्ष्मी सूक्त का पाठ करें। इस दिन पूरे परिवार के साथ घर के आंगन में हवन करना शुभ माना जाता है। दशहरा के दिन घर में सेंधा नमक से पोंछा लगाएं। इस दिन शमी के पेड़ के पूजन का विशेष महत्व है। दशहरा पर घर में रंगोली बनाएं। ऐसा करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। इस दिन हलवा बनाकर परिवार के सदस्यों को साथ खाना चाहिए, इससे परिवार में मधुरता बनी रहती है।
- आज पूरे देशभर में विजयादशमी का त्योहार मनाया जा रहा है। यह त्योहार असत्य पर सत्य के जीत के प्रतीक के रूप में हर वर्ष अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस तिथि पर भगवान राम ने लंका नरेश और महान ज्ञानी रावण को युद्ध में परास्त करके वध किया था। इसके अलावा इसी तिथि पर मां दुर्गा ने महिषासुर नाम के दैत्य का संहार किया था। इसी कारण से विजयादशमी का त्योहार हर वर्ष रावण,मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले का दहन करके मनाया जाता है। दशहरे के दिन पंडालों में स्थापित मां दु्र्गा की पूजा का समापन हो जाता है। आइए जानते हैं दशहरे का महत्व और पूजा मुहूर्त।दशहरा के दिन शमी और देवी अपराजिता की पूजा जरूर करना चाहिए। इसके साथ ही नीलकंठ के दर्शन करना चाहिए। ऐसा करने से जीवन में खुशहाली बनी रहती है और धनलाभ होता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार महाभारत काल में पांडवों ने शमी के पेड़ के ऊपर अपने अस्त्र शस्त्र छिपाए थे,जिसके बाद युद्ध में उन्होंने कौरवों पर जीत हासिल की थी। इस दिन घर की पूर्व दिशा में शमी की टहनी प्रतिष्ठित करके उसका विधिपूर्वक पूजन करने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि का वास होता है,महिलाओं को अखंड सौभग्य की प्राप्ति होती है एवं इस वृक्ष की पूजा करने से शनि के अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिलती है।ऐसे करें अपराजिता की पूजाविजयदशमी के दिन अपराजिता की पूजा करने का विधान है। अपराजिता की पूजा से सालभर तक कार्यों में जीत हासिल होती है और किसी भी काम में रूकावट नहीं आती। इस दिन दोपहर बाद घर के ईशान कोण, यानी उत्तर-पूर्व दिशा को अच्छे से साफ करके, उसे गोबर से लीपकर, उसके ऊपर चंदन से आठ पत्तियों वाला कमल का फूल बनाना चाहिए और संकल्प करना चाहिए-मम सकुटुम्बस्य क्षेम सिद्धयर्थे अपराजिता पूजनं करिष्ये”अगर आप ये मंत्र न पढ़ पाएं तो आपको इस प्रकार कहना चाहिए कि हे देवी ! मैं अपने परिवार के साथ अपने कार्य को सिद्ध करने के लिये और विजय पाने के लिये आपकी पूजा कर रहा हूं। इस प्रकार कहकर उस कमल की आकृति के बीच में अपराजिता का पौधा रखना चाहिए।विजय का सूचक है पानदशहरा के दिन रावण,कुम्भकर्ण और मेघनाद दहन के पश्चात पान का बीड़ा खाना सत्य की जीत की ख़ुशी को व्यक्त करता है। इस दिन हनुमानजी को मीठी बूंदी का भोग लगाने बाद उन्हें पान अर्पित करके उनका आशीर्वाद लेने का महत्वहै। विजयादशमी पर पान खाना, खिलाना मान-सम्मान,प्रेम एवं विजय का सूचक माना जाता है।नीलकंठ के दर्शन है शुभलंकापति रावण पर विजय पाने की कामना से मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने पहले नीलकंठ पक्षी के दर्शन किए थे। नीलकंठ पक्षी को भगवान शिव का प्रतिनिधि माना गया है। दशहरे के दिन नीलकंठ के दर्शन और भगवान शिव से शुभफल की कामना करने से जीवन में भाग्योदय,धन-धान्य एवं सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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दशहरा (विजयादशमी) आश्विन मास शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस पर्व को असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। इसीलिए इस दशमी को 'विजया दशमी' के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष दशहरा पर्व 5 अक्टूबर (बुधवार) को मनाया जाएगा। दशहरा वर्ष की तीन अत्यंत शुभ तिथियों में से एक है्, अन्य दो चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा एवं कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा तिथि हैं।
दशहरा एक अबूझ मुहूर्त है यानि इसमें बिना मुहूर्त देखे शुभ कार्य किए जा सकते हैं। दशहरे के दिन शस्त्र पूजा की भी मान्यता है। कहा जाता है कि इस दिन जो कार्य आरम्भ किया जाता है, उसमें विजय प्राप्त होती है। धार्मिक संस्थान 'विष्णुलोक' के ज्योतिषविद् पंडित ललित शर्मा ने बताया कि दशहरा पर्व दस प्रकार के पाप- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की सप्रेरणा प्रदान करता है। विजयादशमी के दिन भगवान श्रीराम का विधिवत् पूजन करना चाहिए।
यह रहेगा मुहूर्त
पंडित ललित शर्मा ने बताया कि दशमी तिथि 4 अक्टूबर दोपहर 2.20 बजे से 5 अक्टूबर दोपहर 12 बजे तक रहेगी। श्रवण नक्षत्र 4 अक्टूबर को रात्रि 10.51 बजे से 5 अक्टूबर को रात्रि 9.15 बजे तक रहेगा। विजयादशमी पूजन का शुभ मुहूर्त प्रातः 7.44 बजे से प्रातः 9.13 बजे तक, इसके बाद प्रात: 10. 41 बजे से दोपहर 2.09 बजे तक रहेगा। इसमें भी विजय मुहूर्त दोपहर 2.07 बजे से दोपहर 2.54 बजे तक रहेगा। हालांकि राहु काल दोपहर 12 बजे से 1.30 बजे तक रहेगा। राहु काल में किए गए कार्यों का शुभ फल प्राप्त नहीं होता, अतः राहुकाल में शुभकार्य नहीं करने चाहिए।
इस मंत्र का करें जाप
ॐ दशरथाय विद्महे सीतावल्लभाय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात्
किसानों के लिए भी महत्वपूर्ण
यह पर्व किसानों के लिए भी महत्वपूर्ण होता है। भारत कृषि प्रधान देश है। जब किसान अपने खेत में सुनहरी फसल उगाकर अनाज रूपी संपत्ति घर लाता है तो उसके उल्लास और उमंग की सीमा नहीं रहती और इस प्रसन्नता के अवसर पर वह भगवान की कृपा को मानता है और उसे प्रकट करने के लिए के लिए वह उनका पूजन करता है। -
हिंदू धर्म में दशहरा का बहुत अधिक महत्व होता है। असत्य पर सत्य की जीत के रूप में इस पर्व को मनाया जाता है। इसी दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध किया था। दशहरा के दिन भगवान श्री राम की विधि- विधान से पूजा- अर्चना की जाती है। दशहरा के दिन हवन करना भी शुभ माना जाता है। हवन करने से दुख- दर्द दूर होते हैं और सुख- समृद्धि में वृद्धि होती है। आइए जानते हैं हवन की विधि और सामग्री...
हवन विधि...
दशहरा के दिन प्रात: जल्दी उठ जाना चाहिए।
स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ- स्वच्छ वस्त्र पहन लें।
शास्त्रों के अनुसार हवन के समय पति- पत्नी को साथ में बैठना चाहिए।
किसी स्वच्छ स्थान पर हवन कुंड का निर्माण करें।
हवन कुंड में आम के पेड़ की लकड़ी और कपूर से अग्नि प्रज्जवलित करें।
हवन कुंड में सभी देवी- देवताओं के नाम की आहुति दें।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कम से कम 108 बार आहुति देनी चाहिए। आप इससे अधिक आहुति भी दे सकते हैं।
हवन के समाप्त होने के बाद आरती करें और भगवान को भोग लगाएं। इस दिन कन्या पूजन का भी विशेष महत्व होते हैं। आप हवन के बाद कन्या पूजन भी करवा सकते हैं।
हवन साम्रगी-
आम की लकड़ियां, बेल, नीम, पलाश का पौधा, कलीगंज, देवदार की जड़, गूलर की छाल और पत्ती, पापल की छाल और तना, बेर, आम की पत्ती और तना, चंदन का लकड़ी, तिल, कपूर, लौंग, चावल, ब्राह्मी, मुलैठी, अश्वगंधा की जड़, बहेड़ा का फल, हर्रे, घी, शक्कर, जौ, गुगल, लोभान, इलायची, गाय के गोबर से बने उपले, घी, नीरियल, लाल कपड़ा, कलावा, सुपारी, पान, बताशा, पूरी और खीर।
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दशहरे के दिन रावण का दहन कर विजयादशमी के पर्व को लोग बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं ,देश में ऐसी भी कुछ जगह हैं, जहां दशहरे के दिन रावण दहन नहीं किया जाता बल्कि उसकी पूजा की जाती है। आज हम आपको ऐसी ही कुछ जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां दशहरे के दिन रावण की पूजा की जाती है।
1. हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में रावण का दहन नहीं किया जाता है। वहां के लोगों का मानना हैं कि रावण ने भगवान शंकर को बैजनाथ कांगड़ा में ही अपनी कठिन तपस्या से प्रसन्न किया था और तब से लेकर अब तक वहां के लोग रावण को शिव का परम भक्त मानकर ,उसकी पूजा करते हैं।
2. जोधपुर के मौदगिल में रावण को ब्राह्मण समाज का वंशज माना जाता है। इसी वजह से वहां के लोग रावण का दहन करने की बजाय उसकी पूजा कर उसकी आत्मा की शांति के लिए पिंडदान भी करते हैं।
3. उत्तर प्रदेश के बिसरख में रावण का दहन नहीं किया जाता बल्कि वहां रावण और रावण के पिता ऋषि विश्वा की पूजा होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रावण का जन्म उत्तर प्रदेश के बिसरख में हुआ था। उस जगह का नाम ऋषि विश्वा के नाम पर ही इसी विश्वा के नाम पर बिसरख पड़ा।
4.महाराष्ट्र के एक गांव गढ़चिरौली में भी लोग रावणका दहन करने की जगह उसकी पूजा करते है। कहा जाता है कि रावण देवताओं का पुत्र था और उसने अपने जीवन में कोई भी गलत काम नहीं किया।
5. उज्जैन के चिकली गांव में भी रावण का पुलता जलाने की जगह उसकी पूजा की जाती है। लोगों का मानना है कि यदि रावण की पूजा नहीं होगी ,तो पूरे गांव का सर्वनाश हो जाएगा इसलिए हर साल दशहरे के दिन इस गांव में रावण की बड़ी सी मूर्ति स्थापित कर उसकी पूजा की जाती है। - राक्षस राज रावण के विषय में तो हम सभी जानते ही हैं, किन्तु रावण के परिवार के विषय में बहुत लोगों को अधिक जानकारी नहीं है। आज इस लेख में हम संक्षेप में रावण के परिवार के विषय में जानेंगे।रावण के पिता सप्तर्षियों में से एक महर्षि पुलत्स्य के पुत्र महर्षि विश्रवा थे। महर्षि विश्रवा की पहली पत्नी का नाम इलविदा था जिनसे उन्हें कुबेर नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। कुबेर यक्षों के अधिपति बनें। विश्रवा ने दूसरा विवाह सुमाली नामक राक्षस की पुत्री कैकसी से किया। विश्रवा और कैकसी के तीन पुत्र हुए - रावण, कुम्भकर्ण एवं विभीषण। इसके अतिरिक्त दोनों की एक कन्या भी थी - शूर्पणखा।वैसे तो रावण की कई पत्नियां थी किन्तु रामायण में रावण की दो प्रमुख पत्नियों और छ: पुत्रों का वर्णन मिलता है:मंदोदरी: ये मयासुर और हेमा की बड़ी पुत्री थी और रावण की पटरानी। मायावी और दुदुम्भी इसके भाई थे जिनका वध वानर राज बाली ने किया। इनकी गिनती पंचकन्याओं में की जाती है। इनसे रावण को दो पुत्रों की प्राप्ति हुई।मेघनाद: रावण का सबसे बड़ा पुत्र। महान योद्धा, पुराणों में वर्णित एकमात्र अतिमहारथी। एकमात्र ऐसा योद्धा जिसके पास तीनों महास्त्रों - ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र एवं पाशुपतास्त्र थे। महादेव के प्रिय, इंद्र को भी जीतने वाले। श्रीराम और लक्ष्मण को भी नागपाश में बांध दिया था। लक्ष्मण के हाथों वध हुआ।अक्षयकुमार: रावण का सबसे छोटा पुत्र। कई दिव्यास्त्रों का ज्ञाता। अल्पायु में ही वे अशोक वाटिका में हनुमान से उलझ बैठे और वीरगति को प्राप्त हुए।धन्यमालिनी: मयासुर और हेमा की दूसरी पुत्री और मंदोदरी की छोटी बहन। इनसे रावण को 4 प्रतापी पुत्रों की प्राप्ति हुई।अतिकाय: रावण का दूसरा पुत्र, महान योद्धा। एक बार कैलाश पर उत्पात मचाने के कारण भगवान शंकर ने इसपर अपना त्रिशूल फेंका। अतिकाय ने उस त्रिशूल को बीच में पकड़ लिया और नम्रता पूर्वक महादेव को प्रणाम किया। तब भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर उसे कई दिव्यास्त्र दिए। ब्रह्मदेव के वरदान के अनुसार इसका वध केवल ब्रह्मास्त्र द्वारा ही संभव था। इसका लक्ष्मण के हाथों वध हुआ।नरान्तक: रामायण के अनुसार इसके अधीन रावण के 72 करोड़ राक्षसों की सेना थी। लंका युद्ध में ये अतिकाय और देवान्तक के साथ लडऩे को आया और हनुमान के हाथों वीरगति को प्राप्त हुआ।देवान्तक: महान योद्धा और रावण की सेना का एक सेनापति। कई देवताओं को भी परास्त किया। देवान्तक का पुत्र महाकंटक ही युद्ध के बाद राक्षस कुल का एकमात्र जीवित योद्धा था जिसे श्रीराम ने क्षमादान दिया।त्रिशिरा: तीन सर वाला श्रेष्ठ योद्धा। लंका युद्ध मे इसने अपने बाणों से हनुमान को बींध डाला। तब क्रोधित होकर हनुमान ने युद्ध मे इसका वध कर दिया।इसके अतिरिक्त ऐसी मान्यता है कि रावण की एक प्रमुख पत्नी और थी जिसके विषय में किसी ग्रन्थ में अधिक वर्णन नहीं मिलता।कुम्भकर्ण का विवाह दैत्यराज बलि की पुत्री वज्रज्वला से हुआ जिससे उसे कुम्भ और निकुम्भ नामक पराक्रमी पुत्र प्राप्त हुए। कुम्भकर्ण की दूसरी पत्नी कर्कटी थी जो विराध राक्षस की विधवा थी जिससे कुम्भकर्ण ने बाद में विवाह किया। उससे उसे भीम नामक पुत्र प्राप्त हुआ जिसका वध महादेव के हाथों हुआ। उसी के नाम पर भगवान शिव भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हुए। लंका युद्ध में कुम्भकर्ण का वध श्रीराम के हाथों हुआ।विभीषण का विवाह गंधर्व शैलूषा की पुत्री सरमा से हुआ जिससे उसे त्रिजटा नामक पुत्री की प्राप्ति हुई जो अशोक वाटिका में सीता की सुरक्षा करती थी। रावण की मृत्यु के पश्चात विभीषण ने मंदोदरी से भी विवाह किया। विभीषण सप्त चिरंजीवियों में से एक हैं जो आज तक जीवित हैं।शूर्पनखा का विवाह दैत्यजाति के एक योद्धा विद्युतजिव्ह से हुआ जिसका वध रावण ने अपने दिग्विजय के दौरान किया। उसके वध के पश्चात रावण ने शूर्पणखा को दण्डकारण्य का अधिपति बना दिया जहाँ वो खर-दूषण की सहायता से राज्य करती थी। शूर्पणखा की मृत्यु का कोई वर्णन रामायण में नहीं मिलता। कुछ ग्रंथों में वर्णित है कि लंका युद्ध के पश्चात शूर्पणखा ने सात्विक जीवन बिताते हुए अपने शरीर का त्याग किया।दुर्भाग्यवश विभीषण को छोड़ समस्त राक्षस वंश का लंका युद्ध में नाश हो गया।
- जीवन में धन की भूमिका महत्वपूर्ण है। धन बिना जीवन नहीं चल सकता। हस्तरेखा विज्ञान में रेखाओं से जीवन में धन की स्थिति का आकलन किया जाता है। रेखाओं से पता लगाया जा सकता है कि जीवन में धन का आगमन होगा या नहीं और होगा तो कितना। इसी के साथ रेखाओं से व्यक्ति के जीवन में यात्राओं का भी पता किया जा सकता है। जानिए धन और यात्राओं केा लेकर क्या कहती हैं आपकी हाथों की रेखाएं।-कोई रेखा यदि चंद्र रेखा से निकलकर बुध पर्वत तक जाए अथवा बुध पर्वत पर पहुंचे तो ऐसे व्यक्ति यात्रा में अचानक धन मिलता है।-चंद्र पर्वत से निकलकर कोई रेखा हथेली को पार करते हुए गुरु पर्वत तक पहुंचे तो ऐसे व्यक्ति को जीवन में लंबी विदेश यात्राओं का लाभ मिलता है।-यदि चंद्र पर्वत से निकली यात्रा रेखा स्पष्ट रूप से हृदय रेखा में जाकर मिले तो इस स्थिति में यात्रा के दौरान प्रेम होने और फिर प्रेम विवाह होने की संभावना बनती है।-यात्रा रेखा पर क्रॉस और इसके पास चतुष्कोण का होना ठीक नहीं है। ऐसा होने पर यात्रा का कार्यक्रम टालना पड़ता है।-चंद्र पर्वत से निकली यात्रा रेखा का मस्तिष्क रेखा में मिला यात्रा में व्यवसायिक समझौते अथवा अनुबंध का संकेत देता है।-चंद्र रेखा हथेली के बीच से ही अथवा मुड़कर वापस चंद्र पर्वत पर पहुंचे तो व्यक्ति विदेश में व्यापार या नौकरी करने के बाद किसी मजबूरी के चलते अपने देश वापस लौट आता है।-चंद्र और शुक्र पर्वत उभरा हुआ हो और जीवन रेखा शुक्र क्षेत्र को घेरती हुई इसके मूल तक जाए, चंद्र पर्वत पर स्पष्ट यात्रा रेखा भी हो तो ऐसा व्यक्ति जीवन में अनेक यात्राएं करता है।----
- वास्तु शास्त्र एक भारतीय परंपरा है। जिसके अनुसार दिशाओं को ध्यान में रखकर घर का नक्शा बनाने से सभी दिशाओं में पॉजिटिव एनर्जी बनी रहती है। जिसकी वजह से घर का वातावरण हमेशा खुशहाल बना रहता है। वास्तु शास्त्र को ध्यान में रखकर घर को सजाने-संवारने से घर में निगेटिव एनर्जी का वास नहीं होता है।वास्तु शास्त्र एक्सपर्ट के अनुसार कभी भी घर में रसोई घर के सामने बेडरूम कभी नहीं बनाना चाहिए। ऐसा करने से घर में वास्तु दोष जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती है। अगर आपके घर में बेडरूम और रसोई घर दोनों एक दूसरे के विपरीत है तो ऐसे में इस प्रकार के वास्तु दोष को दूर करने के लिए रसोई घर में एक दरवाजे का होना बेहद जरूरी है। रसोई घर में काम करते वक्त और काम खत्म होने के बाद दरवाजे को बंद करके रखें।यदि आपका रसोई घर बहुत छोटा है और ऐसे में दरवाजा लगाना आपके लिए संभव नहीं है तो ऐसे में आप अपने बेडरूम का दरवाजा बंद करके रख सकते हैं।अगर आप बेडरूम का दरवाजा भी बंद करके नहीं रखना चाहते तो ऐसे में रसोई घर और बेडरूम को जोड़ने वाली छत की सीलिंग में एक विंड चाइम्स लटकाएं। विंड चाइम्स अधिक भारी ना हो। उस पर डॉल्फिन या दिल की जैसी बड़ी आकृतियां न बनी हों। विंड चाइम्स खरीदने से पहले देख लें कि उसमें लगे सभी चाइम्स सम संख्याओं में हो उदाहरण के लिए 6 या 8। सम संख्या वाले विंड चाइम्स छत की सीलिंग में लटकाने से वास्तु दोष दूर होता है।
- नवरात्रि के पर्व को उत्साह और उमंग से साथ मनाया जाता है। हर साल नवरात्रि के नौ दिन नवदुर्गा की पूजा होती है। इस दौरान दुर्गा पंडाल सजते हैं। माता दुर्गा की भव्य और विशाल प्रतिमाएं सजती हैं। नवरात्रि के मौके पर गुजरात समेत कई राज्यों में गरबा और डांडिया का आयोजन किया जाता है। लोग डांडिया खेलते हैं और गरबा करते हैं। इसे माता की आराधना से जुड़े खास उत्सव की तरह मनाया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि नवरात्रि में डांडिया और गरबा क्यों खेलते हैं? डांडिया और गरबा क्या धार्मिक महत्व है?नवरात्रि में गरबा करने और डांडिया खेलने का धार्मिक महत्व है। इन दोनों नृत्य को मां दुर्गा से नाता है। गरबा को मां दुर्गा की प्रतिमा के आसपास या जहां माता की ज्योत जगाई होती है, वहां किया जाता है। गरबा गर्भ शब्द से लिया गया है, जो माता के गर्भ में शिशु के जीवन को दर्शाता है। गरबा करते समय नृत्य करने वाले गोले में नृत्य करते हैं, जो जीवन के गोल चक्र का प्रतीक है। वहीं डांडिया नृत्य मां दुर्गा और महिषासुर के बीच हुए युद्ध को प्रदर्शित करता है। डांडिया की रंगीन छड़ी को मां दुर्गा की तलवार मानी जाती है। इस कारण डांडिया को तलवार नृत्य भी कहते हैं।नवरात्रि में क्यों खेलते हैं डांडिया?नवरात्रि नौ दिन का पर्व है। इन नौ दिनों नें माता के नौ स्वरूपों की पूजा होती है। नौ दिन ज्योत जलाई जाती है। डांडिया भी नवरात्रि के नौ दिन खेलते हैं। हर शाम भक्त मां की पूजा के लिए एकत्र होते हैं और डांडिया करते हैं। गुजरात में लगभग हर घर और गली में मां दुर्गा की प्रतिमा के सामने डांडिया किया जाता है और माता को प्रसन्न किया जाता है।नवरात्रि में गरबा भी करते हैं। महिलाएं, पुरुष और बच्चे एक गोल आकृति में एकत्र होकर गरबा करते हैं। इस दौरान जहां गरबा करते हैं, उसके केंद्र में एक गरबा, एक मिट्टी का बर्तन रखते हैं, जिसमें सुपारी, नारियल और चांदी का सिक्का रखा जाता है।डांडिया और गरबा में अंतरवैसे तो डांडिया और गरबा दो अलग तरह के नृत्य हैं। लेकिन दोनों का नाता माता दुर्गा और नवरात्रि से जुड़ा है। हालांकि डांडिया और गरबा में एक विशेष अंतर है। गरबा मां दुर्गा की आरती से पहले किया जाता है, जबकि डांडिया आरती के बाद खेला जाता है।डांडिया के लिए प्रॉप के तौर पर रंग बिरंगी डांडिया स्टिक की जरूर होती है, जबकि गरबा के लिए किसी चीज की जरूरत नहीं होती। लोग अपनी दोनों हथेलियों को जोड़कर ताली बजाते हुए गरबा करते हैं और गरबा ज्योत के आसपास नृत्य करते हैं।---
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शारदीय नवरात्र के 10वें दिन दशहरा मनाया जाता हैं। इस दिन भगवान राम ने लंकापति रावण का वध किया था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्रीराम ,अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्षों के लिए वनवास काट रहे थे। तभी दुष्ट, अहंकारी रावण प्रभु श्रीराम की कुटिया में साधु का वेश धारण करके माता सीता का हरण कर उन्हें अपने साथ लंका लेकर चला जाता है।
लंका पर आक्रमण करने से पहले श्रीराम ने शमी के वृक्ष के सामने झुक कर अपने विजय के लिए प्रार्थना की थी। जिसके बाद श्रीराम ने रावण का वध कर दिया था। तभी से ऐसी मान्यता है कि शमी की पत्तियों को स्पर्श करने मात्र से मनुष्य की सभी कष्ट और समस्याएं दूर हो जाती है। ऐसी मान्यता है कि शमी का पेड़ घर मे लगाने से देवी देवताओं की कृपा हमेशा बनी रहती है। साथ ही साथ शमी का पेड़ शनि देव के गुस्से से भी रक्षा करता है। शमी की पत्तियों को बांटने से घर में सुख -समृद्धि का वास होता है। पुराणों में शमी के वृक्ष की महिमा का बहुत जिक्र किया गया है।
शमी की पेड़ की फलता- फूलता देख कर ,उस साल सूखे की स्थिति बन रही है या नहीं इस बात का अंदाजा भी लगाया जा सकता है। शमी का पेड़ घर के पूर्वोत्तर दिशा में लगाना चाहिए।
वास्तु शास्त्र के अनुसार रोजाना शमी के पेड़ के नीचे दीपक जलाने से शनि देव के गुस्से से बचा जा सकता है। -
सुखी वैवाहिक जीवन के लिए सब कुछ महत्वपूर्ण है, जिसमें सोने की दिशा भी शामिल है। वास्तु के दृष्टिकोण से सोने की दिशा आपके जीवन को बदल सकती है।वास्तु के अनुसार जोड़ों के लिए सही सोने की दिशा भी सुरक्षा, प्यार और आपको और आपके जीवनसाथी से संबंधित होने की भावना प्रदान करती है। कपल्स के लिए बेडरूम का वास्तु ऐसा होना चाहिए कि माहौल रिश्ते को मजबूत करें। यदि दम्पति घर का स्वामी है तो शयन कक्ष दक्षिण-पश्चिम दिशा में होना चाहिए। यदि जोड़ा नवविवाहित है और बड़े भाई/कामकाजी माता-पिता के साथ रह रहा है, तो बेडरूम उत्तर-पश्चिम में होना चाहिए। विवाहित जोड़ों को उत्तर पूर्व के बेडरूम से बचना चाहिए, क्योंकि यह स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। आइए जानते हैं विवाहित स्त्रियों का किस दिशा में सोना शुभ है।
सोते समय इस दिशा में न करें पैर-वास्तु शास्त्र के अनुसार विवाहित महिलाओं को सोते समय सर दक्षिण की ओर रखना चाहिए। महिलाएं गलती से भी दक्षिण दिशा में पैर करके न सोएं। दक्षिण दिशा यमराज की दिशा मानी जाती है । ऐसा करने से शरीर की ऊर्जा का नाश होता है। महिलाएं घर की लक्ष्मी मानी जाती है और ऐसे में महिलाओं को सोने की अन्य दिशाओं का ज्ञान भी होना आवश्यक है। वास्तु शास्त्र के अनुसार उत्तर दिशा धन के स्वामी कुबेर की मानी जाती है। यदि महिलाएं इस दिशा में पैर करके सोएंगी तो आर्थिक जीवन भी प्रभावित होने की संभावना है। इतना ही आपके आय-व्यय का संतुलन भी बिगड़ सकता है।-विवाहित महिलाओं को सोते समय यह भी ध्यान देना चाहिए कि वह उत्तर और पश्चिम दिशा के बीच में पैर करके न सोएं। उत्तर और पश्चिम दिशा के बीच के स्थान को वायव्य कोण कहते हैं। मान्यता है कि इस दिशा में सोने से महिलाएं अपने रिश्ते से अलग होने का विचार कर सकती हैं।-वास्तु शास्त्र के अनुसार, विवाहित ही नहीं अविवाहित कन्याओं को भी सोने की दिशा के बारे में ध्यान रखना चाहिए। अविवाहित कन्याओं को दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर पैर करके नहीं सोना चाहिए। कन्याओं को उत्तर दिशा में पैर करके सोने से शीघ्र विवाह योग्य वर मिलते हैं। -
नवरात्रि हिंदुओं के लिए बहुत बड़ा त्योहार है। जिसे हर जगह बहुत जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है। नवरात्रि के नौ दिनों में देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि को हिंदुओं में सबसे अधिक समय तक चलने वाले त्योहार के रूप में जाना जाता है। 9 दिनों तक चलने वाले इस महापर्व में देवी दुर्गा के अलग- अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। देवी दुर्गा को शक्ति का स्वरूप माना जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार आश्विन माह के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्र प्रारंभ हो रहा है।
शारदीय नवरात्र का शुभारंभ 26 सितंबर से हो रहा है। 9 दिनों तक चलने वाले इस पर्व में देवी दुर्गा की उपासना की जाती है।
नवरात्र के पहले दिन सफेद रंग के वस्त्र धारण करने वाली मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। सफेद रंग शांति का प्रतीक है। इस दिन सफेद कलर के कपड़े पहने से मन जे भीतर शांति और शीतलता का अनुभव करेंगे।
नवरात के दूसरे दिन मां ब्रह्माचारिणी की पूजा की जाती है। इस दिन लाल रंग पहनना काफी शुभ माना जाता है।
नवरात्र के तीसरे दिन नीले रंग के कपड़े पहन काफी शुभ होता है। इस दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है।
नवरात्र के चौथे दिन देवी कुष्मांडा की पूजा की जाती है। कुष्मांडा देवी यश और धन की वर्षा करती है। देवी को पीला रंग बेहद पसंद है इसीलिए इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनने से माता काफी प्रसन्न होती है।
नवरात्र के पांचवे दिन देवी स्कंदमाता की अर्चना की जाती है। इस दिन हरे रंग के कपड़े पहन कर माता को प्रसन्न किया जा सकता है।
नवरात्र के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा होती है। इस दिन ग्रे कलर के कपड़े पहने से आपका मन बेहद प्रसन्न रहेगा।
नवरात्र के सातवें दिन देवी कालरात्रि की पूजा की जाती है। इस दिन ऑरेंज रंग के कपड़े पहनने से आप अपब भीतर एक अलग तरह के जोश और उत्साह का अनुभव करेंगे।
नवरात्र के आठवें दिन देवी महागौरी का आराधना की जाती है। इस दिन मोरपंख से हरे रंग के कपड़े पहनने से आप पूरा दिन आनंद का अनुभव करेंगे।
नवरात्र के नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। पिंक कलर को प्यार और उदारता का उदारता का प्रतीक माना जाता है इस दिन पिंक कलर के कपड़े पहनने से आपको परिवार और दोस्तों से ढेर सारा मिलेगा। -
पितृपक्ष को श्राद्धपक्ष भी कहते हैं इस साल पितृपक्ष 10 सितंबर को प्रारंभ हुआ जो 25 सितंबर तक चलेगा। पितृपक्ष में अपने पितरों का पिंडदान करने से उन्हे मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। यदि आपको अपने पितृ की मृत्यु तिथि से जुड़ी कोई जानकारी नहीं है तो ऐसे में सर्वपितृ अमावस्या के दिन उनका पिंडदान कर अपना और अपने कुल का आप उद्धार कर सकते हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार पितृपक्ष भाद्रपद माह के पूर्णिमा तिथि से आश्विन मास की अमावस्या तक होता है। इस समय लोग अपने पितृ की आत्मा के शांति के लिए उनका पिंडदान करते हैं। इससे कुंडली की पितृ दोष जैसी समस्याओं से भी मुक्ति मिल जाती है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सर्वपितृ अमावस्या के दिन इन 5 बड़ी गलतियों को करने से बचना चाहिए। ताकि आप लगने वाले पितृ दोष से मुक्ति पा सके।
नई वस्तु न खरीदें-
पितृपक्ष के समय कोई भी नई वस्तु न खरीदे, पितरों के विदाई के दिन बाल और नाखून न कटवाएं। ऐसा करने से आपको पितृ दोष के गंभीर परिणाम का सामना करना पड़ सकता है।
सर्वपितृ अमावस्या को करे पिंडदान -
यदि आपको अपने पितरों की मृत्यु तिथि याद है तो उस तिथि के अनुसार उनका पिंडदान करें। अगर आपको अपने पितरों की तिथि पता नहीं है तो सर्वपितृ अमावस्या के दिन ही उनका पिंडदान करें।
सात्विक भोजन करे-
सर्वपितृ अमावस्या के दिन मांस , मछली, अंडा मदिरा आदि का सेवन करने से बचें इस दिन सिर्फ सात्विक या साधारण भोजन करे।
दान करे-
सर्वपितृ अमावस्या के दिन घर पर दान दक्षिणा लेने आये किसी भी व्यक्ति को खाली हाथ विदा न करें ऐसा करने से पितृदोष के भयानक परिणाम हो सकते हैं।
पशु-
पक्षी का रखे विशेष ध्यान - पितृपक्ष के समय किसी भी गरीब या असहाय व्यक्ति को अपमानित न करें, सभी की मदद करे और उन्हें आदर और सम्मान दे। पितृपक्ष के समय किसी भी कौवे ,कुत्ते चींटी का किसी भी तरह का कोई नुकसान न पहुंचाए -
ज्योतिष में शुक्र को महत्वपूर्ण ग्रह माना जाता है। शुक्र ग्रह के शुभ होने पर मां लक्ष्मी की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है। वहीं शुक्र देव के अशुभ होने पर व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शुक्र देव नवरात्रि से पहले राशि परिवर्तन करने जा रहे हैं। 24 सितंबर को शुक्र राशि परिवर्तन करने जा रहे हैं। इस दिन शुक्र देव कन्या राशि में प्रवेश कर जाएंगे। ग्रहों के राशि परिवर्तन का सभी राशियों पर प्रभाव पड़ता है। शुक्र के राशि परिवर्तन करने से कुछ राशियों के अच्छे दिन शुरू हो जाएंगे।
मेष राशि-
कारोबार के विस्तार की योजना साकार होगी।
भाइयों का सहयोग मिलेगा।
घर-परिवार में मांगलिक कार्य होंगे।
वस्त्रादि उपहार भी मिल सकते हैं।
नौकरी में परिवर्तन के साथ दूसरे स्थान पर भी जाना पड़ सकता है।
आयात-निर्यात कारोबार में लाभ के अवसर प्राप्त होंगे।
माता का सहयोग मिलेगा।
वाहन सुख में वृद्धि हो सकती है।
नौकरी में अफसरों का सहयोग मिलेगा।
मिथुन राशि-
आत्मविश्वास से लबरेज रहेंगे।
घर-परिवार की सुख सुविधाओं का विस्तार होगा।
कार्यक्षेत्र में परिवर्तन संभव है।
माता का सहयोग मिलेगा।
लाभ में वृद्धि की संभावना है।
नौकरी में अफसरों का सहयोग मिलेगा।
धन- लाभ होगा।
कन्या राशि-
वाणी में मधुरता रहेगी।
परिवार का साथ मिलेगा।
कारोबार की स्थिति में सुधार होगा।
घर-परिवार में धार्मिक कार्य हो सकते हैं।
किसी मित्र के सहयोग से कारोबार विस्तार होगा।
लाभ के अवसर मिलेंगे।
पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा।
परिवार के साथ किसी धार्मिक स्थान की यात्रा पर जा सकते हैं।
वृश्चिक राशि-
मन में प्रसन्नता का भाव रहेगा।
नौकरी में किसी दूसरे स्थान पर जाना हो सकता है।
आय में वृद्धि होगी।
अफसरों का सहयोग मिलेगा।
परिवार का भी सहयोग मिलेगा।
शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए समय शुभ रहेगा। -
शारदीय नवरात्रि को शुरू होने में अब कुछ दिन ही बाकी हैं। नवरात्रि के पहले दिन यानी प्रतिपदा तिथि पर कलश स्थापना या घटस्थापना की जाती है। मां दुर्गा को समर्पित नवरात्रि के त्योहार का हिंदू धर्म में विशेष महत्व होता है। इस साल नवरात्रि 26 सितंबर, सोमवार से शुरू हो रहे हैं, जो कि 4 अक्टूबर तक रहेंगे। शारदीय नवरात्रि के पहले दिन यानी 26 सितंबर को घटस्थापना की जाएगी। जानें घटस्थापना का शुभ मुहूर्त व संपूर्ण विधि-
प्रतिपदा तिथि कब से कब तक-
प्रतिपदा तिथि सितम्बर 26, 2022 को 03:23 ए एम बजे से प्रारंभ होगी, जो कि सितम्बर 27, 2022 को 03:08 ए एम बजे समाप्त होगी।
घटस्थापना शुभ मुहूर्त 2022-
आश्विन घटस्थापना सोमवार, सितम्बर 26, 2022 को
घटस्थापना मुहूर्त - 06:11 ए एम से 07:51 ए एम
अवधि - 01 घंटा 40 मिनट
घटस्थापना अभिजित मुहूर्त - 11:48 ए एम से 12:36 पी एम
अवधि - 48 मिनट
ऐसे करें कलश स्थापना:
कलश की स्थापना मंदिर के उत्तर-पूर्व दिशा में करनी चाहिए और मां की चौकी लगा कर कलश को स्थापित करना चाहिए। सबसे पहले उस जगह को गंगाजल छिड़क कर पवित्र कर लें। फिर लकड़ी की चौकी पर लाल रंग से स्वास्तिक बनाकर कलश को स्थापित करें। कलश में आम का पत्ता रखें और इसे जल या गंगाजल भर दें। साथ में एक सुपारी, कुछ सिक्के, दूर्वा, हल्दी की एक गांठ कलश में डालें। कलश के मुख पर एक नारियल लाल वस्त्र से लपेट कर रखें। चावल यानी अक्षत से अष्टदल बनाकर मां दुर्गा की प्रतिमा रखें। इन्हें लाल या गुलाबी चुनरी ओढ़ा दें। कलश स्थापना के साथ अखंड दीपक की स्थापना भी की जाती है। कलश स्थापना के बाद मां शैलपुत्री की पूजा करें। हाथ में लाल फूल और चावल लेकर मां शैलपुत्री का ध्यान करके मंत्र जाप करें और फूल और चावल मां के चरणों में अर्पित करें। मां शैलपुत्री के लिए जो भोग बनाएं, गाय के घी से बने होने चाहिए। या सिर्फ गाय के घी चढ़ाने से भी बीमारी व संकट से छुटकारा मिलता है।
विशेष मंत्र : ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै। मंगल कामना के साथ इस मंत्र का जप करें। - शारदीय नवरात्र 26 सितंबर को प्रारंभ और चार अक्तूबर को नवमी तक रहेंगे। पांच अक्तूबर को विजय दशमी का पर्व मनेगा। हर दिन माता के अलग-अलग दिव्य स्वरूप की आराधना होगी। शारदीय नवरात्र में घर-घर कलश स्थापना कर आदि शक्ति माता भवानी की आराधना होगी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि में भगवान श्रीराम ने रावण का वध करने से पहले देवी शक्ति की अराधना की थी।ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि इस बार नवरात्र में नवरात्रि की तिथियों को लेकर को घटत बढ़त नहीं हो रही है। नवरात्रि की सभी तिथियां 26 सितंबर से 4 अक्टूबर तक एक सीधे क्रम में रहेंगी। 26 को प्रतिपदा प्रथम नवरात्र होगा। 27 को द्वितीय और इसी क्रम में तीन अक्टूबर को दुर्गा अष्टमी और चार अक्टूबर को महानवमी होगी। ज्योतिषों के अनुसार इस साल मां दुर्गा हाथी की सवारी पर पृथ्वी लोक आएंगी। जिस दिन से नवरात्रि का प्रारंभ होता है उसी दिन के अनुसार माता अपने वाहन पर सवार होकर आती हैं। विजयदशमी को बुधवार के दिन नौका की सवारी से मां वापस जाएंगी। माता की नौका की सवारी को बहुत शुभ माना गया है। ऐसे में इस बार शारदीय नवरात्र आते हुए भी और जाते हुए भी बहुत शुभ फलों की वृद्धि करने वाले रहेंगे।घटस्थापना या कलश स्थापना शुभ मुहूर्त----प्रतिपदा तिथि आरंभ - 26 सितंबर सुबह 3 बजकर 23 मिनटप्रतिपदा तिथि का समापन - 27 सितम्बर सुबह 03 बजकर 08 मिनट परघटस्थापना या कलश स्थापना शुभ मुहूर्त - अभिजीत मुहूर्त में 11 बजकर 48 मिनट से 12 बजकर 36 मिनट के बीच करना उत्तम होगा।--
- पितृ पक्ष में पितरों की विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस दौरान पिंडदान और दान-कर्म करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इससे पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। पितृ दोष दूर करने के लिए कुछ पेड़ों की पूजा करना बहुत ही शुभ माना जाता है। आइए जानें कौन से ये पेड़।पितृ दोष से मुक्ति पाने और पितरों को प्रसन्न करने के लिए आप इस दौरान कुछ पेड़ों की पूजा करना बहुत ही अच्छा माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इन पेड़ों की पूजा करने से कार्य में सफलता प्राप्त होती है। इसमें बरगद का पेड़, पीपल का पेड़ और बेल का पेड़ आदि शामिल है। पितृ पक्ष में इन पेड़ों की पूजा करने का महत्व क्या है यहां जानें.--बरगद का पेड़बरगद को वट का वृक्ष भी कहा जाता है। पितृ पक्ष में इस पेड़ की पूजा करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। पितृ पक्ष में जल में काले तिल मिलाकर बरगद के पेड़ को अर्पित करें। ऐसा माना जाता कि इससे पितरों की आत्मा तृप्त होती है।पीपल का पेड़पितृ पक्ष में पीपल के पेड़ की पूजा करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। इस अवधि के दौरान नियमित रूप से दोपहर के समय जल में दूध मिलाकर पीपल के पेड़ को अर्पित करें। शाम के समय पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं। पितृ सूक्त का पाठ करें।बेल का पेड़ऐसा माना जाता है कि बेल का पौधा लगाने और उसकी नियमित देखभाल करने से पितर प्रसन्न होते हैं। पितृ पक्ष में रोजाना सुबह के समय जल में गंगाजल मिलाकर बेल के पौधे को अर्पित करें। ऐसा करना बहुत ही शुभ माना जाता है।
- शास्त्रों में कहा गया है कि एक 1 पेड़ 10 पुत्रों के समान होता है। फूलों वाले पौधे तनाव से मुक्ति दिलाते हैं। साथ ही इन्हें देखकर मानसिक शांति भी मिलती है। वास्तु शास्त्र में कई ऐसे पौधे बताए गए हैं, जिनको घर में लगाने से समृद्धि बनी रहती है। उन्हीं में से एक पौधा है पारिजात। पारिजात को आम सभी हरसिंगार के नाम से भी जानते हैं। जिस घर में पारिजात का वृक्ष लगा होता है उस घर में सुख समृद्धि आती है। आइए जानते हैं पारिजात वृक्ष के लाभ-पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पारिजात का वृक्ष समुद्र मंथन से निकला है। कहते हैं जिस घर में हरसिंगार का पौधा लगा होता है उस घर में सदैव मां लक्ष्मी का वास होता है।-पारिजात का वृक्ष घर में लगाने से वास्तु दोष दूर होता है और घर में बरकत भी आती है। यदि वास्तु के अनुसार पारिजात का पौधा लगाते हैं तो घर में धन धान्य की कमी नहीं होती।-वास्तु शास्त्र के अनुसार पारिजात का वृक्ष उत्तर पूर्व दिशा में लगाना अच्छा माना जाता है। इससे मानसिक तनाव भी दूर हो जाता है।- पारिजात का पौधा अगर आप मंदिर के पास लगाते हैं तो ज्यादा फलदायी होगा।-इस बात का विशेष ध्यान रखें कि पौधे को दक्षिण दिशा में लगाना शुभ नहीं माना जाता है। ऐसा करने से फायदे की जगह नुकसान होने लग जाएगा।-हरसिंगार या पारिजात के फूलों की महक इतनी अच्छी होती है कि इससे तनाव और अनिद्रा जैसी चीजें दूर होती हैं। इन फूलों की खुशबू से मानसिक परेशानियां ठीक होती हैं और इसकी खुशबू मन को शांति भी देती है।-ऐसा माना जाता है कि पारिजात का पौधा घर में लगाने से घर के सदस्यों को स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है और दीर्घायु होने का वरदान भी मिलता है।-धार्मिक महत्व के अलावा पारिजात के पौधे का और फूलों का इस्तेमाल आयुर्वेद में भी किया जाता है। आयुर्वेद में पारिजात के फूलों से कई प्रकार की बीमारियों के रोकथाम की दवाइयां बनाई जाती हैं।- पारिजात के पौधे को घर में लगाने को लेकर वास्तुशास्त्र में दिशाओं के बारे में बताया गया है। वास्तु में बताया है कि घर में नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करने और सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को बढ़ाने के लिए परिजात के पौधे को घर की उत्तर या पूर्व दिशा में लगाना चाहिए।
- हिंदू धर्म में नवरात्रि का बहुत बड़ा महत्व है। नवरात्रि के इस समय में 9 दिनों के लिए मां दुर्गा की प्रतिमाओं को अपने घर और पंडालों में स्थापित किया जाता है। मां दुर्गा के नाम की अखंड ज्योति रखी जाती है। इस दौरान लोग मां दुर्गा की विधि विधान से पूजा करते हैं । नवरात्रि के इस पर्व के दौरान 9 दिनों तक मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को शारदीय नवरात्रि का आरंभ होता है। इस बार नवरात्रि का त्योहार 26 सितंबर, सोमवार से शुरू होगा। नवरात्रि के पहले दिन में घटस्थापना की जाती है। तो आइए जानते हैं कि नवरात्रि घटस्थापना विधि क्या है और इसका शुभ मुहूर्त क्या है.नवरात्रि घटस्थापना पूजा विधि--घट अर्थात मिट्टी का घड़ा। इसे नवरात्रि के पहले दिन शुभ मुहूर्त के हिसाब से स्थापित किया जाता है। घट को घर के ईशान कोण में स्थापित करना चाहिए। घट में पहले थोड़ी सी मिट्टी डालें और फिर जौ डालें। फिर इसका पूजन करें। जहां घट स्थापित करना है, उस स्थान को साफ करके वहां पर एक बार गंगा जल छिड़ककर उस जगह को शुद्ध कर लें। उसके बाद एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं। फिर मां दुर्गा की तस्वीर स्थापित करें या प्रतिमा। अब एक तांबे के कलश में जल भरें और उसके ऊपरी भाग पर लाल मौली बांधें। उस कलश में सिक्का, अक्षत, सुपारी, लौंग का जोड़ा, दूर्वा घास डालें। अब कलश के ऊपर आम के पत्ते रखें और उस नारियल को लाल कपड़े से लपेटकर रखें। कलश के आसपास फल, मिठाई और प्रसाद रख दें। फिर कलश स्थापना पूरी करने के बाद मां की पूजा करें।नवरात्रि घटस्थापना मुहूर्त--आश्विन घटस्थापना सोमवार, सितम्बर 26, 2022 कोघटस्थापना मुहूर्त - सुबह 06 बजकर 28 मिनट से 08 बजकर 01 मिनट तकअवधि - 01 घण्टा 33 मिनट्सघटस्थापना अभिजीत मुहूर्त- शाम 12 बजकर 06 मिनट से शाम 12 बजकर 54 मिनट तकनवरात्रि का शुभ योग मुहूर्त--आश्विन नवरात्रि सोमवार, सितम्बर 26, 2022प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 26, 2022 को सुबह 03 बजकर 23 मिनट से शुरूप्रतिपदा तिथि समाप्त - सितम्बर 27, 2022 को सुबह 03 बजकर 08 मिनट पर खत्मनवरात्रि घटस्थापना सामग्री --हल्दी, कुमकुम, कपूर, जनेऊ, धूपबत्ती, निरांजन, आम के पत्ते, पूजा के पान, हार-फूल, पंचामृत, गुड़ खोपरा, खारीक, बादाम, सुपारी, सिक्के, नारियल, पांच प्रकार के फल, चौकी पाट, कुश का आसन, नैवेद्य आदि.नवरात्रि की तिथि --प्रतिपदा (मां शैलपुत्री): 26 सितम्बर 2022द्वितीया (मां ब्रह्मचारिणी): 27 सितम्बर 2022तृतीया (मां चंद्रघंटा): 28 सितम्बर 2022चतुर्थी (मां कुष्मांडा): 29 सितम्बर 2022पंचमी (मां स्कंदमाता): 30 सितम्बर 2022षष्ठी (मां कात्यायनी): 01 अक्टूबर 2022सप्तमी (मां कालरात्रि): 02 अक्टूबर 2022अष्टमी (मां महागौरी): 03 अक्टूबर 2022नवमी (मां सिद्धिदात्री): 04 अक्टूबर 2022दशमी (मां दुर्गा प्रतिमा विसर्जन): 5 अक्टूबर 2022
- इस समय पितृपक्ष चल रहा है। पितृपक्ष में ग्रहों की शांति के लिए दान-पुण्य के कार्य किए जाते हैं, ताकि पूर्वजों का आशीर्वाद बना रहे। श्राद्धपक्ष में पितरों का तर्पण करने से बहुत पुण्य मिलता है ऐसा माना जाता है कि पितृपक्ष में कुछ वस्तुओं का दान करने से महापुण्य की प्राप्ति होती है आइए आज आपको बताते हैं कि पितृपक्ष के वो सात दान कौन से हैं, जो इंसान का भाग्य चमका सकते हैं....चांदी का दानपितृ पक्ष के दौरान चांदी की किसी वस्तु का दान करना अच्छा होता है। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है । इसके साथ ही उनका आशीर्वाद आप पर हमेशा बना रहता है। चांदी का संबंध चंद्र ग्रह से होता है। इसी वजह से पितृ पक्ष में दूध और चावल के साथ-साथ चांदी का भी दान किया जाता है।काले तिल का दानश्राद्ध के दौरान काले तिल का दान जरूर करना चाहिए। मान्यता है कि पितृपक्ष में अगर किसी और चीज का दान करना संभव ना हो तो काले तिल का दान जरूर करना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि काला तिल संकट और विपदाओं से रक्षा करता है।गुड़ का दानपितृ पक्ष के दौरान गुड़ का दान भी किया जाता है। गुड़ का दान करने से पितरों को विशेष संतुष्टि प्राप्त होती है। ऐसी मान्यता है कि गुड़ का दान करने से घर का क्लेश भी दूर हो जाता है औैर पितृ भी शांत रहते हैं।अन्न का दानपितृपक्ष में अन्न का दान महादान माना जाता है। ऐसा कहते हैं कि इससे पितरों को तृप्ति मिलती है। पितृ पक्ष में अगर आप अन्नदान करना चाहते हैं तो हमेशा गेहूं और चावल का दान करें। अगर ये दान किसी संकल्प के साथ किया जाता है तो मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।नमक का दानकहते हंै कि जिसका नमक खाओ, उसके प्रति सदैव ऋणी रहो। इसलिए कहा भी जाता है कि नमक का कर्ज कभी नहीं भूलना चाहिए। नमक का दान किए बिना कभी भी दान सम्पूर्ण नहीं होता है।जूते और चप्पल का दानजूते-चप्पल का दान करने से आने वाली समस्याओं से बचा जा सकता है और कुंडली के दोषों का भी निवारण हो जाता है। इसलिए पितृपक्ष में जूते-चप्पल का दान करना चाहिए। ऐसे करने से घर में खुशहाली आती है और सुख शांति मिलती है।गाय के घी का दानहमारे धर्मग्रंथों में गाय को माता माना गया है। गाय के पूजन से स्वत: ही समस्त बाधाओं का अंत हो जाता है। पितृपक्ष में गाय के घी का दान करना भी फलदायी होता है। इसको दान करने से पितृ खुश हो जाते हैं और घर की सुख-समृद्धि बनी रहती है।
- वास्तुशास्त्र के अनुसार अगर घर का वास्तु ठीक है तो हमेशा सकारात्मक ऊर्जा रहती है, लेकिन वहीं अगर वास्तु में कोई त्रुटि होती है तो घर में क्लेश, बाधा और बीमारियों का वास लगातार रहता है। वास्तु के अनुसार हर एक दिशा पर किसी न किसी देवता का आधिपत्य होता है। इस कारण से घर में रखी जाने वाली हर एक वस्तु का अपना महत्व होता है।कूड़ा एकत्रित होनामान्यता है कि जिन घरों में साफ-सफाई और चीजें सही दिशा में रखी हुई होती हैं वहां पर मां लक्ष्मी का वास होता है। कई लोग अपने घर के सामने कूड़ा को जमाकर रखते हैं। घर के द्वार के सामने कूड़ा दरिद्रता का सूचक होता है। ऐसे में जिन घरों के सामने कूड़ा एकत्रित होता है , वहां पर माता लक्ष्मी का वास नहीं होता है। इस आदत से घर में अशांति, बीमारियां और धन हानि की संभावना बनी रहती है।ऊंची सड़क का होनावास्तु के अनुसार घर का मुख्य द्वार हमेशा सामने वाली सड़क से ऊंचा रहना चाहिए। अगर जिन लोगों का घर उनके सामने बनी सड़क से नीचे होता है वहां पर नकारात्मक ऊर्जा का वास होता है। ऐसे घरों में हमेशा बीमारियां और लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं।कांटेदार पौधेवास्तु शास्त्र के अनुसार भूलकर भी घर के मुख्य द्वार के सामने कांटेदार पौधे नहीं लगाना चाहिए। वास्तु में इसे वर्जित माना गया है। जिन घरों के सामने कांटेदार पौधे होते हैं वहां पर सुख-समृद्धि आने में बाधाएं आती हैं।पत्थरकई लोग अपने घरों को खूबसूरत बनाने के लिए घर के बाहर तरह-तरह के पत्थर और ईंटों को जमा करके रखते हैं। वास्तु के अनुसार घर के बाहर पड़े पत्थर जीवन में आगे बढऩे में बाधा बनते हैं। इसलिए अगर आपने भी घर के बाहर पत्थरों को एकत्रित करके रखा हुआ तो इसे फौरन ही हटा लेना चाहिए।गंदा पानीजिन लोगों के घर के बाहर गंदा पानी जमा होता है वहां पर लक्ष्मी का वास नहीं होता है। घर के सामने गंदा पानी जमा होने पर नकारात्मकता आती है। ऐसे में घर के बाहर गंदा पानी जमा न होने दें।बिजली का खंभावास्तु के अनुसार घर के ठीक सामने बिजली का खंभा नहीं होना चाहिए। घर के सामने बिजली का खंभा होने पर हमेशा घर के सदस्यों के बीच मनमुटाव और वाद-विवाद होते रहते हैं।
- भाद्रपद माह की पूर्णिमा से आश्विन माह की अमावस्या तक का पक्ष श्राद्ध पक्ष कहलाता है। मान्यता है कि इन दिनों पितर पृथ्वी लोक पर अपने परिजनों के यहां आते हैं और आशीर्वाद देते हैं। कहा जाता है कि पितरों को समर्पित श्राद्ध पक्ष में सर्वप्रथम अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिए। इससे देवता प्रसन्न होते हैं। कहा जाता है कि देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी होता है।वास्तु के अनुसार श्राद्ध पक्ष के दौरान कुछ बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए---------वास्तु में दक्षिण दिशा पितरों की दिशा मानी गई है। पितृपक्ष में पितरों का आगमन दक्षिण दिशा से होता है। दक्षिण दिशा में पितरों के निमित्त पूजा, तर्पण किया जाता है। पितृ पूजन कक्ष को स्वच्छ रखें। इस कक्ष की दीवारें हल्के पीले, गुलाबी, हरे रंग की हो तो अच्छा है।तर्पण करते समय कर्ता का मुख दक्षिण में ही रहे। वास्तु के अनुसार, पितरों की तस्वीर लगाने के लिए दक्षिण दिशा को शुभ माना गया है। ऐसी जगह पर पितरों की तस्वीर न लगाएं, जहां लोगों की और आपकी आते जाते समय नजर इस पर पड़े। पितरों की तस्वीरों को कभी भी अपने बेडरूम, पूजा घर या किचन में नहीं लगाना चाहिए। पितृपक्ष के दौरान बाल नहीं कटवाने चाहिए, ऐसा करना वर्जित माना गया है।श्राद्ध पक्ष में कोई भी नया कार्य या घर में मंगल कार्य का आयोजन नहीं करना चाहिए। पितृपक्ष में रोजाना घर के मुख्य द्वार को जल से धोना चाहिए और सफेद फूल डालने चाहिए। शाम के समय दक्षिण दिशा की ओर दीपक जलाना चाहिए। कोई जरूरतमंद या गाय श्राद्ध पक्ष में आपके द्वार पर आए तो खाने को कुछ न कुछ अवश्य देना चाहिए।
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पितृ पक्ष के बाद शारदीय नवरात्रि शुरू हो जाती हैं। आश्विन मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि शुरू हो जाते हैं। हिंदू धर्म में नवरात्रि का बहुत अधिक महत्व होता है। नवरात्रि के 9 दिनों में मां के 9 रूपों की पूजा- अर्चना की जाती है। मां को प्रसन्न करने के लिए भक्त व्रत भी रखते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि के दौरान विधि- विधान से मां दुर्गा की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
शारदीय नवरात्रि डेट-----
हिंदू पंचांग के अनुसार शारदीय नवरात्रि का पर्व गुरुवार, 26 सितंबर 2022 से प्रारंभ होगा। शारदीय नवरात्रि का पर्व 4 अक्टूबर 2022 को समाप्त होगा।
नवरात्रि का पूरा कैलेंडर----
(पहला दिन) - 26 सितंबर- मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है
(दूसरा दिन) -27 सितंबर -मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है
(तीसरा दिन) -28 सितंबर - मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है
(चौथा दिन)-29 सितंबर-मां कुष्मांडा की पूजा की जाती है
(पांचवा दिन)-30 सितंबर- मां स्कंदमाता की पूजा
(छठां दिन)- 1 अक्टूबर- मां कात्यायनी की पूजा
(सातवां दिन) -2 अक्टूबर- मां कालरात्रि की पूजा
(आठवां दिन) -3 अक्टूबर- मां महागौरी पूजा
(नौंवा दिन) -4 अक्टूबर- मां सिद्धिदात्री की पूजा
पूजा-विधि--------
सुबह उठकर जल्गी स्नान कर लें, फिर पूजा के स्थान पर गंगाजल डालकर उसकी शुद्धि कर लें।
घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
मां दुर्गा का गंगा जल से अभिषेक करें।
मां को अक्षत, सिन्दूर और लाल पुष्प अर्पित करें, प्रसाद के रूप में फल और मिठाई चढ़ाएं।
धूप और दीपक जलाकर दुर्गा चालीसा का पाठ करें और फिर मां की आरती करें।
मां को भोग भी लगाएं। इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।
पूजा सामग्री की पूरी लिस्ट---------
लाल चुनरी
लाल वस्त्र
मौली
श्रृंगार का सामान
दीपक
घी/ तेल
धूप
नारियल
साफ चावल
कुमकुम
फूल
देवी की प्रतिमा या फोटो
पान
सुपारी
लौंग
इलायची
बताशे या मिसरी
कपूर
फल-मिठाई
कलावा - भारतीय संस्कृति में पूर्वजों के लिए निर्धारित विशेष समय पितृपक्ष का प्रारंभ शनिवार से हो गया है। इस अवधि में लोग अपने पितरों का तर्पण करते हैं। इस अवधि में लोग नदी तट, सरोवर के अलावा घर में अपने पितरों का श्राद्ध कर्म करते हैं।पंडित विवेक कुमार उपाध्याय के अनुसार इस बार कुल 16 दिनों का पूर्णकालिक श्राद्ध पक्ष की प्राप्ति होना भी शुभकर है। श्राद्ध में चार बातें तर्पण, भोजन व पिण्ड दान, वस्त्रदान व दक्षिणादान प्रमुख हैं। शास्त्रों में श्राद्ध कर्म में कुतप काल को विशेष महत्व दिया गया है। ये समय दिन का आठवां व नवां मुहूर्त होता है। यह 11:36 बजे से 12:24 मिनट व इसके बाद का 48 मिनट प्रमुख होता है। ये समय मनुष्य जीवन के समस्त पापों को सन्तप्त करने में समर्थ होता है। इस वर्ष 25 सितम्बर, रविवार को पितृ विसर्जन होगा।पंडित विवेक उपाध्याय ने बताया कि शास्त्रों में कहा गया है कि पुत्र वही है जो अपने पितरों की नरक से रक्षा करे। उसकी रक्षा का सबसे सहज उपाय श्राद्ध है। क्योंकि पितृ अगर तृप्त नहीं हंै तो मनुष्य के जीवन में पूर्णता सम्भव नहीं है। श्राद्ध करने में श्रद्धा का होना परम् आवश्यक बताया गया है। इस संसार में श्राद्ध से उत्तम कोई भी कल्याणप्रद उपाय नहीं हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अंतरिक्ष में सूक्ष्म रूप में अवस्थित पितर श्राद्धकाल की बात सुनकर ही तृप्त हो जाते हैं। हमारे स्मरण मात्र से ही हमारे पितर उस श्राद्ध भूमि पर आ जाते हैं।श्राद्ध में निर्धनता कहीं से बाधक नही हैपद्मपुराण के अनुसार निर्धन से निर्धन व्यक्ति भी पितरों को संतुष्ट करने में सक्षम है। धन के अभाव के विकल्प में शाग (शाक) से भी श्राद्ध करके पितरों को तृप्त कर सकते है। शाग खरीदने में असमर्थ व्यक्ति भी कुतप बेला में गाय को घास खिलाकर भी श्राद्ध कर्म को कर सकता है । भारतीय सनातनी परम्परा में सभी को समान समरूपता प्रदान किया गया है। यह स्वयं में एक समृद्ध परंपरा का प्रतीक है।
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मंगलसूत्र पहनते वक्त रखें इन बातों का ध्यान, वरना पति की जिंदगी पर पड़ेगा बुरा असर
हिंदू धर्म में मंगलसूत्र का बहुत महत्व है, शादी के समय वर अपने वधू के गले में ये मंगलसूत्र पहनाता है और फिर जब तक वो जीवित रहता है पत्नी उसके नाम का मंगलसूत्र अपने गले में डालती है। क्या आप जानते हैं कि मंगलसूत्र का संबंध भगवान शिव और माता पार्वती से है।मंगलसूत्र के मोती का है शिवजी से संबंधमंगलसूत्र में काले मोती होना अनिवार्य है, बिना काले मोती के मंगलसूत्र पूर्ण नहीं माना जाता है। काले मोती को भगवान शिव का रूप माना जाता है, वहीं सोने का संबंध माता पार्वती से है। जब मंगलसूत्र में सोना और काले मोती मिलते हैं तो शिव और पार्वती दोनों का आशीर्वाद पति-पत्नी को मिलता है। ये शिव पार्वती के बंधन का प्रतीक है जो आपके रिश्ते को भी मजबूत करता है।बुरी नजर से बचाता है मंगलसूत्रमंगलसूत्र के काले मोती पति-पत्नी दोनों को बुरी नजर से बचाता है। मंगलसूत्र में 9 मनके होते हैं ये मां दुर्गा के विभिन्न रूपों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये मनके पृथ्वी, जल, वायु और अग्नि तत्वों का भी प्रतीक है।मंगलसूत्र में काले मोती जरूर होने चाहिएमंगलसूत्र में काले मोती होना अनिवार्य है, बिना इसके मंगलसूत्र पूरा नहीं माना जाता है। काले मोती पति को बुरी नजर से बचाते हैं और उनकी उम्र लंबी करते हैं।क्यों पहनना चाहिए मंगलसूत्र?सुहागिन स्त्रियों को मंगलसूत्र अवश्य पहनना चाहिए, अगर मंगलसूत्र नहीं पहना है तो गले में कोई जंजीर भी डाल सकते हैं, लेकिन गला खाली रखना अशुभ माना जाता है।भूलकर भी न पहनें दूसरी स्त्री का मंगलसूत्रन ही कभी दूसरी स्त्री का मंगलसूत्र पहनना चाहिए, न ही अपना मंगलसूत्र कभी दूसरी स्त्री को पहनने को देना चाहिए। ऐसा करने से पति-पत्नी के रिश्ते में कलह होती है और जीवन में तनाव होता है।बृहस्पति होता है मजबूतमंगलसूत्र में जो सोना होता है उससे बृहस्पति ग्रह मजबूत होता है। जब बृहस्पति मजबूत हो तो पति-पत्नी के बीच मधुरता होती है और पति की आय में भी वृद्धि होती है।