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- भारत में वास्तुशास्त्र के मुताबिक चीजों को घर और ऑफिस में व्यवस्थित करना प्रचलित है। वहीं चीन में भी फेंगशुई के तहत चीजों को रखने के लिए कुछ नियम बनाए गए हैं। इन नियमों का पालन करने से घर में सुख और समृद्धि भरा माहौल बना रहता है। मान्यता है कि फेंगशुई से जुड़ी चीजों को घर में रखने से धन की कमी भी नहीं होती है। कहते हैं कि इनसे घर में मौजूद नेगेटिविटी दूर होती है और रुकावट भी दूर होती हैं। घर में फेंगशुई से जुड़ी चीजें लगाने से खुशहाली भी आती है। हालांकि, इन चीजों को लगाने के लिए सही तरीका पता होना चाहिए.। आज हम आपको फेंगशुई कछुए को घर में रखने के लाभ बताने जा रहे हैं।मान्यता है कि ऐसे कछुए जीवन में सुख और समृद्धि लाते हैं। ये शक्ति के प्रतीक होते हैं और सुरक्षा का प्रतिनिधित्व करते हैं। माना जाता है कि ऐसे कुछए घर में मौजू नकारात्मकता को खींच लेते हैं।नकारात्मकता खत्म होती हैफेंगशुई कछुए को घर में रखने से नेगेटिविटी खत्म होती है। कहते हैं कि इसे घर के मेन गेट के पास रखना चाहिए। कहते हैं कि भगवान विष्णु ने एक समय पर कछुए के रूप में अवतार लिया था और इसे कूर्म अवतार के नाम से जाता है। इसलिए कछुए को घर में रखने से उनकी कृपा बनी रहती है।ऑफिस के लिएअगर आप फेंगशुई कछुए को ऑफिस में रखते हैं, तो इससे दो लाभ होंगे। एक तो आपको धन की कमी सताएगी नहीं और दूसरा अगर रुके हुए काम जैसी परेशानी का सामना का सामना कर रहे हैं, तो ये समस्या भी दूर हो सकती है। कहते हैं कि इसे लगाने से कार्य संपन्न होते हैं और व्यक्ति को हर दिशा में सफलता मिलती है।रिश्तों में मजबूतीअक्सर ऐसा होता है कि आपसी तालमेल के बावजूद पति और पत्नी में अक्सर झगड़े होते रहते हैं। ये झगड़े इस कदर बढ़ जाते हैं कि रिश्ता खत्म होने की कगार पर आ जाता है। इस स्थिति में फेंगशुई कछुओं की मदद ली जा सकती है। पति पत्नी के बीच रिश्ते मजबूत करने के लिए बेडरूम में इन कछुओं को रखा जा सकता है।स्टूडेंट्स के लिएअगर आपका बच्चे का पढऩे में मन नहीं लग रहा है या फिर मेहनत के बावजूद रिजल्ट अच्छे नहीं आ रहे हैं, तो आप इसके लिए फेंगशुई वास्तुशास्त्र की मदद ले सकते हैं। पढऩे की जगह पर फेंगशुई कछुए को रखें। कहते हैं कि इससे प्रभावित बच्चे का मन शांत होगा और वह पढ़ाई में ठीक से ध्यान लगा पाएगा।
- हिंदी महीनों में फाल्गुन मास का नाम आते ही लोगों के मन में एक नई उमंग और उत्साह आ जाता है क्योंकि इसी पावन मास में रंगों का त्योहार होली मनाया जाता है। यह पावन मास न सिर्फ होली बल्कि शिव की साधना के लिए सबसे बड़ी रात्रि यानि महाशिवरात्रि के लिए भी जाना जाता है। पंचांग के आखिरी महीना फाल्गुन मास इस साल फाल्गुन मास 17 फरवरी 2022 से शुरु होकर 18 मार्च तक रहेगा। इस पावन मास का न सिर्फ धार्मिक-आध्यात्मिक बल्कि मनोवैज्ञानिक महत्व भी है, जो कि हमें कठिन से कठिन परिस्थितियों के बीच सकारात्मक रहने का संदेश देता है। इस पावन फाल्गुन मास में पूजा और दान का काफी महत्व होता है।फाल्गुन मास का धार्मिक महत्व-फाल्गुन मास में भगवान विष्णु और शिव दोनों की साधना से जुड़े दो बड़े पर्व आते हैं। फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन जहां महाशिवरात्रि का पर्व आता है। जिसमें भगवान शिव की पूजा रात्रि के समय एक बार या चार बार की जा सकती है। रात्रि के चार प्रहर होते हैं और हर प्रहर में शिव पूजा की जा सकती है।-इसी प्रकार फाल्गुन शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु का आशीर्वाद दिलाने वाली आमलकी एकादशी का व्रत आता है।-फाल्गुन मास में भगवान कृष्ण की साधना-आराधना का विशेष महत्व है। इस मास में भगवान कृष्ण के तीन स्वरूप - बाल कृष्ण, युवा कृष्ण और गुरु कृष्ण की पूजा की जा सकती है। ऐसे में जिन लोगों की संतान सुख की चाह है, उन्हें बाल कृष्ण की और जिन्हें दांपत्य जीवन में प्रेम और सामंजस्य की चाह है, उन्हें युवा कृष्ण की और जिन्हें जीवन में मोक्ष और वैराग्य की तलाश है, उन्हें गुरू कृष्ण की साधना करनी चाहिए।फाल्गुन मास का दानफाल्गुन मास में दान का बहुत ज्यादा धार्मिक महत्व है। इस महीने में अपनी क्षमता के अनुसार गरीबों को दान और पितरों के निमित्त तर्पण आदि अवश्य करना चाहिए। फाल्गुन मास में शुद्ध घी, तिल, सरसों का तेल, मौसमी फल आदि का दान अत्यंत ही पुण्य फल प्रदान करने वाला माना गया है।फाल्गुन मास के प्रमुख पर्वविजया एकादशी - 26 फरवरीमहाशिवरात्रि - 01 मार्चफाल्गुन अमावस्या - 02 मार्चफुलैरा दूज - 04 माचआमलकी एकादशी - 14 मार्चहोलिका दहन - 17 मार्चहोली - 18 मार्च ।
- हिंदू धर्म में पूर्णिमा की पूजा और व्रत का शुरू से ही खास महत्व रहा है। धार्मिक मान्यता है कि पूर्णिमा के दिन देवी देवता धरती पर आते हैं, ऐसे में इस दिन पूजा-पाठ करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। हर माह के आखिरी दिन को पूर्णिमा होती है। हर माह की पूर्णिमा का अपना अलग-अलग महत्व होता है। ऐसे में इस माह माघ में पडऩे वाली पूर्णिमा को माघी पूर्णिमा या माघ पूर्णिमा कहा जाता है, इस दिन स्नान-दान आदि का खास महत्व होता है। इस साल माघ माह की पूर्णिमा 16 फरवरी, बुधवार के दिन मनाई जाएगी। ज्योतिषियों के मुताबिक इस बार माघ पूर्णिमा पर खास संयोग बन रहे हैं। अगर इन दिन खास उपाए किए जाएं तो मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होगी।माघ पूर्णिमा पर संयोग और शुभ मुहूर्तहिंदू पंचाग के अनुसार माघ पूर्णिमा के दिन स्नान दान करने का मुहूर्त 16 फरवरी को सुबह 9 बजकर 42 मिनट से रात 10 बजकर 55 मिनट तक है। स्नान के बाद दान करने खासा फलदायी होगा। ज्योतिष के अनुसार माघ पूर्णिमा को कर्क राशि में चंद्रमा और आश्लेषा नक्षत्र की युति होने से शोभन योग बन रहा है। ये योग काफी शुभ माना गया है। इस दिन ही दोपहर को 12 बजकर 35 मिनट से 1 बजकर 59 मिनट तक राहुकाल होता है। इस वक्त में शुभ कार्य नहीं होना चाहिए।माघ पूर्णिमा पर करें ये उपाय1- अगर आप मानसिक शांति चाहते हैं तो पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय के समय उसको कच्चे दूध में चीनी और चावल डालकर “ॐ स्रां स्रीं स्रौं स: चन्द्रमसे नम:” या ” ॐ ऐं क्लीं सोमाय नम:. ” के मंत्र का जप करते हुए अर्घ्य देना चाहिए।2- अगर आप आर्थिक तंगी से परेशान हैं और इससे मुक्ति चाहते हैं तो इस दिन मां लक्ष्मी को 11 कौडिय़ां अर्पित करें। इन कौडिय़ों पर हल्दी से तिलक कर पूजा भी करें और अगले दिन इनको लाल कपड़े में बांधकर वहां रखें जहां आप पैसे रखते हों।3- माघ पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी को खीर का भोग लगाएं और पूजा के बाद मंत्रों का जाप आदि करें। इसके साथ ही तुलसी में घी का दीपक जलाएं।4- शास्त्रों के अनुसार इस दिन पीपल के वृक्ष में लक्ष्मी का आगमन होता है। ऐसे में स्नान करके सुबह पीपल पर जल चढ़ाएं और पूजा करें, इससे मां लक्ष्मी सभी कष्टों को दूर करती हैं।5- पूर्णिमा की रात को माता लक्ष्मी के आगमन के लिए पूर्णिमा की सुबह-सुबह स्नान कर तुलसी को भोग, दीपक और जल अवश्य चढ़ाएं और मां की आराधना व जाप करें।
- देव भूमि उत्तराखंड अपने सुंदर पहाड़ों के लिए काफी मशहूर है। यहां चार धाम तो हैं ही साथ ही ऐसे तमाम मंदिर हैं जो विज्ञान के लिए भी अजूबा हैं। लोग यहां ट्रेकिंग करने भी जाते हैं और आनंद लेने भी। कुछ-कुछ मंदिर तो ऐसे हैं जिनके नियम काफी अलग हैं। ऐसा ही एक मंदिर चमोली जिले में स्थित है। जो बंशी नारायण मंदिर के नाम से लोकप्रिय है।साल में एक दिन खुलता है यह मंदिरइस मंदिर की खास बात ये है कि यह मंदिर पूरे साल में केवल रक्षा बंधन के दिन ही केवल 12 घंटे के लिए खोला जाता है। इस दिन का श्रद्धालु बड़ी बेसब्री से इंतजार करते हैं। रक्षाबंधन के दिन दूरदराज के प्रदेशों से भी यहां भगवान के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ पहुंचती है।सूरज की रोशनी में खुलता है मंदिररक्षाबंधन वाले दिन इस मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए सिर्फ दिन के समय ही खोले जाते हैं। मतलब जब तक सूर्य की रोशनी है, तब तक ही मंदिर के कपाट खुले रहते हैं, उसके बाद जैसे ही सूर्यास्त होने लगता है, तब मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं।भगवान वामन ने लिया था ऐसा रूपकहा जाता है कि विष्णु अपने वामन अवतार से मुक्ति के बाद सबसे पहले इसी स्थान पर प्रकट हुए थे। इसके बाद से देव ऋषि नारद भगवान नारायण की यहां पर पूजा करते हैं। इसी वजह से यहां पर भूलोक के मनुष्यों को सिर्फ एक दिन के लिए पूजा का अधिकार मिला है.। वहीं एक अन्य कथा के अनुसार राजा बलि ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वह उनके द्वारपाल बने। भगवान ने इस आग्रह को स्वीकार किया। इसके बाद राजा बलि के साथ पाताल लोक चले गए। कई दिनों तक जब भगवान विष्णु के दर्शन लक्ष्मी जी को नहीं हुए तो उन्होंने नारद मुनि को उन्हें ढूंढने को कह। नारद ने उन्हें बताया कि वह पाताल लोक में हैं और राजा बलि के द्वारपाल बने हुए हैं। इसके बाद नारद मुनि ने माता लक्ष्मी को विष्णु भगवान की मुक्ति के लिए श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन राजा बलि को रक्षासूत्र बांधने का उपाय सुझाया। कहा जाता है कि नारद मुनि के सुझाव पर माता लक्ष्मी ने अमल किया और उन्होंने राजा बलि को रक्षासूत्र बांध कर भगवान विष्णाु को मुक्त कराया। जिसके बाद वह इसी स्थान पर एकत्रित हुए। वहीं वर्गाकार गर्भगृह वाले बंशीनारायण मंदिर के विषय में एक अन्य मान्यता यह भी है कि यहां वर्ष में 364 दिन नारद मुनि भगवान नारायण की पूजा करते हैं। श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी के साथ नारद मुनि भी पातल लोक गए थे, इस वजह से केवल उस दिन वह मंदिर में नारायण की पूजा न कर सके। जिसके बाद आम लोगों को उस दिन पूजा करने का अधिकार मिला।भगवान को बांधा जाता है रक्षासूत्रप्रत्येक वर्ष स्थानीय महिलाएं वंशीनारायण मंदिर आती हैं और भगवान को राखी बांधती हैं। यह माना जाता है कि वंशीनारायण मंदिर पांडवों के काल में निर्मित हुआ था। वहीं यहां की फुलवारी की दुर्लभ प्रजाति के फूलों से उनकी पूजा होती है। गांव के लोग रक्षा सूत्र भगवान की कलाई पर बांधते हैं। वहीं बंशी नारायण मंदिर के पुजारी राजपूत जाति के होते हैं।
- सनातन धर्म में ही नहीं, अपितु अन्य धर्मों में भी स्वास्तिक को परम पवित्र और मंगल करने वाला चिन्ह माना गया है। इसमें सभी धर्मों एवं समस्त प्राणियों के कल्याण की भावना निहित है इसलिए आदिकाल से ही प्रत्येक शुभ और कल्याणकारी कार्य में स्वास्तिक का चिन्ह सर्वप्रथम प्रतिष्ठित करने का नियम है। सत्य, शाश्वत, शांति, अनंतदिव्य, ऐश्वर्य, सम्पन्नता एवं सौंदर्य का प्रतीक माना जाने वाला यह मांगलिक चिन्ह बहुत ही शुभ है। इसी कारण किसी भी मांगलिक कार्य के शुभारंभ से पहले स्वास्तिक चिन्ह बनाकर स्वस्तिवाचन करने का विधान है।गणेश पुराण में कहा गया है कि स्वास्तिक गणेशजी का ही स्वरूप है, इसलिए सभी शुभ, मांगलिक और कल्याणकारी कार्यों में इसकी स्थापना अनिवार्य है। इसमें सारे विघ्नों को हरने और अमंगल दूर करने की शक्ति निहित है। जो इसकी प्रतिष्ठा किए बिना मांगलिक कार्य करता है,वह कार्य निर्विघ्न सफल नहीं होता। शास्त्रानुसार स्वास्तिक की आठ भुजाएं-पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु, आकाश, मस्तिष्क भाव आदि की प्रतीक गई हैं। मुख्य चार भुजाएं चारों दिशाओं,चार वेदों एवं चार पुरुषार्थ जिनमें धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष शामिल है ।वास्तु दोष होता है दूरस्वास्तिक वास्तुदोष निवारण के लिए एक कारगर उपाय है क्योंकि इसकी चारों भुजाएं चारों दिशाओं की प्रतीक होती हैं और इसीलिए इस चिन्ह को बना कर चारों दिशाओं को एक समान शुद्ध किया जा सकता है। यदि आपके घर में या व्यवसायिक स्थल पर किसी प्रकार का कोई वास्तुदोष है तो यहां की नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त करने के लिए पूर्व, उत्तर-पूर्व या उत्तर दिशा में स्वास्तिक का चिन्ह बनाना चाहिए। इसकी जगह आप अष्टधातु या तांबे का स्वास्तिक भी लगा सकते हैं। अपने बच्चों का ध्यान पढ़ाई में लगाने के लिए पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम में स्वास्तिक बनाएं। यह उनकी शिक्षा में अच्छा प्रदर्शन कराने में सहायक होगा।
- इस बार कुंभ संक्रांति 13 फरवरी को पड़ रही है। इस दिन दिन त्रिपुष्कर और प्रीति योग का निर्माण भी हो रहा है। कुंभ संक्रांति के दौरान गंगा में स्नान करना विशेष रूप से त्रिवेणी में जहां गंगा और यमुना का संगम होता है, अत्यधिक शुभ माना जाता है। कुंभ संक्रांति का भी मकर संक्रांति के समान ही महत्व बताया गया है।एक वर्ष में 12 संक्रांति होती हैं। सूर्य सभी 12 राशियों में विचरण करता है। जब ये ग्रह एक से दूसरी राशि में जाता है तो इसे संक्रांति कहते हैं। जिस राशि में सूर्य आता है, उसी के नाम से संक्रांति होती है। सूर्य का राशि परिवर्तन होने से इस दिन भगवान सूर्य की विशेष पूजा करनी चाहिए साथ ही इस दिन स्नान-दान जैसे शुभ काम करने की भी परंपरा ग्रंथों में बताई गई है। कुंभ संक्रांति का भी मकर संक्रांति के समान ही महत्व बताया गया है। आइए जानते हैं कुंभ संक्रांति के मुहूर्त और उपाय के बारे में।कुंभ संक्रांति 2022 मुहूर्तकुंभ संक्रांति आरंभ: 13 फरवरी, रविवार, प्रात: 03:41 बजेपुण्यकाल आरंभ: 13 फरवरी, रविवार, प्रात: 07:01 मिनट सेपुण्यकाल समाप्त: 13 फरवरी, रविवार, दोपहर12:35 मिनट पर.महापुण्यकाल: 13 फरवरी, रविवार, प्रात: 07:01 बजे से प्रात: 08:53 तककुंभ संक्रांति पर इन उपायों से दूर होगी दरिद्रता-कुंभ संक्रांति के दिन ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान और दान पुण्य करने से धन-धान्य में वृद्धि होती है।-सूर्यदेव को जल का अघ्र्य देने और मंत्र जाप आदि से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।-गरीबों को या किसी ब्राह्मण को दान में गेहूं, तांबा, कंबल, गरम कपड़े, लाल वस्त्र या लाल फूल का दान देने से कुंडली में सूर्य की स्थिति मजबूत होती है और दोष दूर होता है।- संक्रांति के अवसर सूर्योदय पूर्व स्नान करने से पाप मिटते हैं और दरिद्रता दूर होती है। जो लोग संक्रांति पर स्नान करते हैं, उनको ब्रह्म लोक में स्थान प्राप्त होता है।कुंभ संक्रांति पर करें सूर्य देव की पूजाज्योतिष शास्त्रों के अनुसार सूर्य को ग्रहों का देवता और आत्मा का कारक माना जाता है। लिहाजा सूर्य के कुंभ राशि में प्रवेश यानी कुंभ संक्रांति के अवसर पर पवित्र नदियों या कुंड में स्नान करना बेहद शुभ माना जाता है। कुंभ संक्रांति के दिन सूर्य देव को अघ्र्य देने के साथ ही उनकी विधि-विधान से पूजा करने का भी विशेष महत्व है। पूजा के बाद सूर्य भगवान की आरती और स्तुति करना भी शुभ होता है। इसके अलावा सूर्य चालीसा का पाठ करना फलदायी माना जाता है। इससे सूर्यदेव की कृपा बनी रहती है और व्यक्ति सभी कष्टों से मुक्त हो जाता है।
- किसी भी मनुष्य अथवा देवता की कुल 16 कलाएं होती हैं। भगवान विष्णु भी इन सभी 16 कलाओं के धारक हैं। इसके अतिरिक्त चन्द्रमा को भी महादेव की कृपा से 16 कलाएं प्राप्त हैं और माता दुर्गा के पास भी कुल 16 कलाएं हैं। हालांकि चंद्र एवं मां दुर्गा की कलाएं श्रीहरि की कलाओं से भिन्न हैं। कलाओं का अर्थ एक प्रकार से गुण होता है। वैसे तो भगवान विष्णु के गुण तो अनंत हैं, किन्तु ये 16 गुण (कला) उनके प्रधान गुण माने जाते हैं। ये हैं:श्री (लक्ष्मी),भू (भूमि),कीर्ति (प्रसिद्धि),वाणी (वाक् क्षमता) ,लीला (चमत्कार),कांति (तेज),विद्या (ज्ञान),विमला (निर्मल स्वाभाव),उत्कर्षिणि (किसी को प्रेरित करने की क्षमता),विवेक (अपने ज्ञान एवं परिस्थिति के अनुसार निर्णय लेना),कर्मण्यता (कर्मठ),योगशक्ति (ईश्वर से जुड़ जाना),विनय (शिष्टता),सत्य (सदैव सच बोलने वाला),आधिपत्य (प्रभाव) और अनुग्रह (दूसरों का कल्याण और क्षमा करना)।भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम त्रेतायुग के अंतिम चरण में जन्में। उनके अवतार का उद्देश्य संसार को राक्षस और रावण से मुक्त कर एक मर्यादित समाज की स्थापना करना था। उस उद्देश्य के लिए केवल 12 कलाएं ही पर्याप्त थीं, इसी कारण वो केवल 12 कलाओं के साथ जन्में। इसी कारण उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया।वहीं श्रीकृष्ण द्वापर के बिलकुल अंतिम चरण में जन्में। उनका उद्देश्य संसार में धर्म की पुनस्र्थापना करना था। इस काल में भगवान विष्णु को अपनी सभी कलाओं की आवश्यकता थी। इसी कारण वे अपनी सभी 16 कलाओं के साथ अवतरित हुए। उसी कारण उन्हें पूर्णावतार अथवा परमावतार कहा गया।माना जाता है कि भगवान कल्कि कलियुग के बिलकुल अंतिम चरण में अवतरित होंगे और उनका उद्देश्य संसार से सभी पापियों का नाश करना होगा। कलियुग के अंतिम चरण में, उन परिस्थियों में अपने उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए श्रीहरि को केवल अपनी 4 कलाओं की आवश्यता होगी। यही कारण है कि भगवान कल्कि श्रीहरि की केवल 4 कलाओं के साथ जन्म लेंगे। इसका अर्थ ये नहीं कि उनका महत्व श्रीकृष्ण या श्रीराम से कम है। सभी अवतारों का महत्व अपने-अपने युग में समान ही है।
- घर या फ्लैट खरीदते समय वास्तु शास्त्र काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। इन दिनों वास्तु पर विचार करना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि लेआउट, दिशाओं में कभी-कभी वास्तु का अभाव होता है। दरअसल विशेष व्यक्ति वर्ग के बीच एक बुनियादी धारणा है कि अपार्टमेंट के लिए वास्तु पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन वास्तविकता यह है कि किसी भी स्थान के लिए वास्तु का पालन किया जाना चाहिए चाहे वह एक स्वतंत्र घर हो या एक फ्लैट। छोटी से छोटी वस्तु भी आपके घर में ऊर्जा के प्रवाह को बदल सकती है। खिड़कियां आपके घर में बहने वाली ऊर्जा को काफी हद तक प्रभावित कर सकता है। वास्तु परंपरा के अनुसार, खिड़कियों को सही ढंग से रखना महत्वपूर्ण है क्योंकि वे हमारे घरों में प्रकाश, वायु और ऊर्जा लाते हैं। यही कारण है कि खिड़कियों की सही स्थिति के नियमों और दिशाओं को जानना महत्वपूर्ण है।पश्चिम और दक्षिण दिशा में खिड़कियांयदि आप पश्चिम या दक्षिण दिशा में खिड़कियां बनाना चाहते हैं, तो इन दिशाओं में छोटी खिड़कियां रखना सबसे अच्छा है। लेकिन यदि पश्चिम दिशा या दक्षिण दिशा में जगह चौड़ी या खुली हुई है तो ऐसे में उधर खिड़कियां नहीं बनानी चाहिए।इस दिशा में लगाएं बड़ी खिड़कियांवास्तु शास्त्र के अनुसार यदि आप उत्तर पूर्व या पूर्व दिशा में खिड़की लगाते हैं, तो वह बड़ी होनी चाहिए। इससे आपके घर में ताजी हवा और सूर्य कि प्रचुर मात्र तो मिलेगी साथ ही सकारात्मक ऊर्जा का भी प्रवाह रहेगा।सम संख्या में लगाएं खिड़कियांवास्तु शास्त्र के अनुसार घर की खिड़कियों को सकारात्मकता का स्रोत माना जाता है, जिससे घर की उन्नति होती है। जब भी घर बनावाएं, उसमें सम संख्या में खिड़कियों को लगवाएं। घर में खिड़कियों की संख्या 4, 6, 8, 10 जैसी सम संख्या में होनी चाहिए।दो पल्ले वाली खिड़कियां होती हैं शुभवास्तु शास्त्र के अनुसार खिड़कियों के पल्ले अंदर की ओर खुलने वाले होने चाहिए। और खिड़कियां दो पल्ले वाली होनी चाहिए। वास्तु के अनुसार इसका अर्थ हैं कि आपके घर के अंदर ऊर्जा का प्रवाह बाहर से अंदर की हो रहा है।दक्षिण- पश्चिम दिशा में नहीं होनी चाहिए खिड़कियांवास्तु शास्त्र के अनुसार घर की दक्षिण- पश्चिम दिशा में खिड़की होने से स्वास्थ्य में परेशानी होती है। इस वजह से इस दिशा में खिड़की लगाना वर्जित है।
- वर्क फ्रॉम होम के दौरान लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि घर का वातावरण अलग होता है। ऐसे में काम पर ध्यान केंद्रित करना और भी मुश्किल होता है। अक्सर लोग अपने आसपास रखी चीजों से डिस्ट्रैक्ट हो जाते हैं या सही जगह पर नहीं बैठते हैं। ऐसे में काम के प्रति उत्साह होने के बावजूद लोग काम के प्रति ऑर्गेनाइज्ड नहीं महसूस करते हैं। नींद आना और काम पर ध्यान केंद्रित न कर पाना बहुत स्वभाविक होता है। ऐसे में प्रोडक्टिविटी बढ़ाने के लिए आप वास्तु के ये टिप्स फॉलो कर सकते हैं।जॉब के हिसाब से चुनें डेस्क डायरेक्शनअगर आप लेखन, बैंक, व्यवसाय प्रबंधन या खातों जैसे व्यवसायों में हैं तो आपके लिए उत्तर दिशा में बैठना फायदेमंद रहेगा। वहीं अगर आपकी नौकरी कंप्यूटर प्रोग्रामिंग, शिक्षा, ग्राहक सेवा, तकनीकी सेवा, कानून या चिकित्सा से संबंधित है तो आपके लिए पूर्व दिशा में बैठना सबसे अच्छा है। इस तरह आपका मन काम में लगा रहेगा, ऊर्जा का स्तर ऊंचा रहेगा और नकारात्मक ऊर्जा आपके काम में बाधा नहीं बनेंगी। उत्तर-पश्चिम दिशा से बचने की सलाह दी जाती है क्योंकि इस दिशा में बैठने से मन की एकाग्रता शक्ति कम हो जाती है।टेबल-कुर्सी की व्यवस्थाबैठने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कुर्सी के पीछे एक दीवार होनी चाहिए क्योंकि वास्तु के अनुसार इसे शुभ माना जाता है। कुर्सी के पीछे कभी भी खिड़की या दरवाजा नहीं होना चाहिए और आपकी कुर्सी-टेबल के ठीक ऊपर बीम नहीं होना चाहिए, क्योंकि इससे आर्थिक नुकसान हो सकता है।वास्तु शास्त्र के अनुसार टेबल पर फाइलें, कागज का ढेर या अन्य घरेलू सामान रखने से काम की गुणवत्ता प्रभावित होती है और नकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। नकारात्मक ऊर्जा के बढऩे से आप तनाव में रहेंगे और काम समय पर खत्म नहीं हो पाएगा। कांच के टॉप वाली टेबल से बचें क्योंकि इससे नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है जो आपके काम को धीमा कर सकती है। ऐसी मेज को आप हरे या सफेद कपड़े से ढंक सकते हैं।वर्कस्टेशन की लाइटजिस कमरे में आप अपना वर्कस्टेशन स्थापित करने की प्लान बना रहे हैं, उस कमरे की रोशनी पर विचार करना महत्वपूर्ण है। ये आपके काम और मूड को प्रभावित कर सकता है। बहुत तेज या बहुत कम रोशनी आंखों को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकती है। साथ ही प्रकाश की कमी से वास्तु दोष उत्पन्न होते हैं और वहां नकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगता है। ये प्रगति में भी बाधा डाल सकता है, काम में बाधा डाल सकता है और बहस का कारण बन सकता है।पौधे रखेंवर्कस्टेशन को सुंदर और सकारात्मक बनाने के लिए आप इंडोर प्लांट्स रख सकते हैं। मनी प्लांट, बांस , सफेद लिली और रबर के पौधे पूर्व या उत्तर दिशा में रखे जाने पर न केवल उस स्थान को सुशोभित करते हैं बल्कि लाभकारी भी माने जाते हैं। हालांकि अपने कार्यस्थल पर कभी भी सूखे और कांटेदार पौधे न रखें क्योंकि ये निराशा का संकेत देते हैं। हरा रंग सुख, समृद्धि और पवित्रता का प्रतीक है। ये सकारात्मक ऊर्जा के स्तर को बढ़ाता है और मन पर शांत प्रभाव डालता है।
- वास्तु शास्त्र में घर में सकारात्मकता बढ़ाने और नकारात्मकता दूर करने के कई नियम और उपाय बताए गए हैं। वास्तु में पिरामिड का अपना महत्व होता है. आइए जानें घर में पिरामिड रखने के लाभ।-वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में पिरामिड होना अच्छा माना जाता है। घर में पिरामिड रखने से घर के सदस्यों की आय में वृद्धि होती है और समृद्धि बनी रहती है। पिरामिड को उस जगह पर रखें जहां घर के सदस्य सबसे ज्यादा समय बिताते हैं।-पिरामिड में अपने आप में बहुत अधिक ऊर्जा होती है। इसलिए अगर कोई थका हुआ व्यक्ति कुछ समय के लिए पिरामिड के पास या पिरामिड के आकार की जगह जैसे मंदिर में बैठता है, तो उसकी थकान दूर हो जाती है। ये मन को शांत रखने में मदद करता है।-वास्तु शास्त्र के अनुसार पिरामिड को उत्तर दिशा में रखने से धन लाभ और आर्थिक स्थिति में भी सुधार होता है। ये आर्थिक समस्याओं को दूर करने में मदद करता है। ये मानसिक तनाव को दूर करता है।-वास्तु शास्त्र के अनुसार पिरामिड शरीर को एक नई शक्ति देकर एकाग्रता को बढ़ाता है। इससे आप मन लगाकर काम कर पाते हैं। बच्चों के स्टेडी टेबल पर क्रिस्टल का पिरामिड रख सकते हैं। इससे बच्चों की एकाग्रता बढ़ती है और वे मन लगाकर पढ़ाई कर पाते हैं।-घर में चांदी, पीतल या तांबे का पिरामिड रखना सबसे अच्छा माना जाता है, लेकिन अगर आप इतना महंगा पिरामिड नहीं खरीद सकते हैं, तो आप लकड़ी का बना पिरामिड भी रख सकते हैं, लेकिन कभी भी लोहे, एल्यूमीनियम या प्लास्टिक का पिरामिड नहीं रखें। साथ ही पिरामिड की तस्वीर न लगाएं, इससे कोई फायदा नहीं होगा।
- वास्तु शास्त्र की तरह की फेंगशुई शास्त्र में धन और तरक्की संबंधी कई उपायों को बताया गया है। धन लाभ और तरक्की के लिए लोग कई तरह के उपाय करते हैं। फेंगशुई शास्त्र में ऊंट का शो-पीस लाइफ के मुश्किल समय को काटने में मदद करता है। फेंगशुई शास्त्र के अनुसार, अगर बिजनेस में लाभ नहीं हो रहा या कर्मचारी काम करने से जी चुराते हैं तो व्यापार में लाभ और प्रोड्क्टिविटी को बढ़ाने के लिए ऊंट को लगाना शुभ होता है।इसी तरह फेंगशुई के अनुसार, अगर व्यक्ति को करियर में लगातार असफलताओं का सामना करना पड़ रहा है या कड़ी मेहनत के बावजूद भी अपेक्षित रिजल्ट की प्राप्ति नहीं हो रही है। मान्यता है कि इस स्थिति में अपने स्टडीरूम या ऑफिस में ऊंट की मूर्ति को लगाने से शुभ लाभ मिलते हैं। कहा जाता है कि ऊंट की मूर्ति लगाने के बाद आप जो भी काम करते हैं, उनमें आपका फोकस बढ़ जाता है और करियर संबंधी दिक्कतें दूर हो जाती हैं।मान्यता है कि अगर घर में धन संबंधी दिक्कत है तो ऊंट के जोड़े को घर में लाकर रखने से धन का आगमन तेजी से होता है। कहते हैं कि ऐसा करने से धीरे-धीरे आर्थिक स्थिति सुधरने लगती है। घर में पॉजिटिव और खुशनुमा माहौल रखने के लिए एक, दो या कई ऊंट की तस्वीर या ऊंट के जोड़ों की मूर्ति को घर पर उत्तर-पश्चिम दिशा में लगाना चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से घर के सदस्यों को मानसिक तौर पर शांति मिलती है।फेंगशुई के अनुसार, जीवन में आ रही मुश्किलों से बचने के लिए भी ऊंट की मूर्ति रखना शुभ माना जाता है। कहते हैं कि ऊंट की मूर्ति व्यक्ति की सहन-शक्ति बढ़ाती है। जिससे व्यक्ति सही निर्णय लेने में सफल होता है।
- सफलता हासिल करने के लिए आत्मविश्वास का होना बहुत जरूरी है। कई बार लाख मेहनत के बाद भी सफलता नहीं मिलती ऐसे में कहीं न कहीं आत्मविश्वास की कमी भी जिम्मेदार हो सकती है। वास्तु शास्त्र में कुछ विशेष उपाय बताए गए हैं जिससे आत्मविश्वास को मजबूत किया जा सकता है। आइए जानते हैं इनके बारे में।आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए मूंगा धारण करें। मान्यता है कि पंछियों को दाना-पानी देने से भी आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। अपने घर के लिविंग रूम में उगते हुए सूर्य का चित्र लगाएं। ऐसा करने से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है साथ ही घर से नकारात्मकता दूर होती है। शनि यंत्र को भी घर में स्थापित करें। अपने घर के दरवाजे पर शनिवार को नींबू और मिर्ची लगाएं। नींबू सूखा होने लगे तो इसे शनिवार के दिन ही बदलें। गाय को हरा चारा खिलाएं। कुत्तों को खाना खिलाएं, उन्हें दुलार करें। घर में मछलियां रखें और दो गोल्डन फिश जरूर होनी चाहिए। शनियंत्र को अपने साथ रखें। घर में उगते सूर्य या दौड़ते हुए सफेद घोड़े की तस्वीर लगाएं। भागते घोड़े बाहर से अंदर की होने चाहिए। खाली दीवार की ओर मुंह कर कभी न बैठें ऐसा करने से आत्मविश्वास डगमगा सकता है। आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए सुबह जल्दी उठकर उगते सूर्य का दर्शन कर ध्यान करें। आदित्य हृदय स्तोत्र का नियमित पाठ करें। प्रतिदिन प्रातः काल सूर्यदेव को जल अर्पित करने से आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। पूर्व दिशा की ओर मुंह कर खाना खाएं। घर की खिड़कियां खुला रखें। यह सकारात्मक ऊर्जा लाती है। खिड़की के एकदम सामने पीठ कर न बैठें, क्योंकि इससे ऊर्जा बह जाती है और आत्मविश्वास में कमी आती है। सुबह गायत्री मंत्र का उच्चारण करें। अपने बैठने के स्थान के पीछे पर्वत का चित्र लगाएं। सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण लोगों के साथ समय व्यतीत करें। जो दूसरों के दोष देखते हों उनसे दूर रहें।
- ज्योतिष में शुक्र देव को विशेष स्थान प्राप्त है। शुक्र के शुभ होने पर मां लक्ष्मी की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है। मां लक्ष्मी को धन की देवी कहा जाता है। मां लक्ष्मी की कृपा से व्यक्ति का भाग्योदय हो जाता है और जीवन में किसी भी तरह की कोई कमी नहीं रहती है। शुक्र देव को ज्योतिष में भौतिक सुख, वैवाहिक सुख, भोग-विलास, शौहरत, कला, प्रतिभा, सौन्दर्य, रोमांस, काम-वासना और फैशन-डिजाइनिंग के कारक ग्रह हैं। शुक्र, वृष और तुला राशि के स्वामी होते हैं और मीन इनकी उच्च राशि है, जबकि कन्या इनकी नीच राशि है। ज्योतिष गणनाओं के अनुसार 27 फरवरी तक कुछ राशि वालों पर शुक्र देव की विशेष कृपा रहेगी।मेष राशि-इस दौरान आपको कार्यक्षेत्र में तरक्की और भाग्य का पूरा साथ मिलेगा।नए साल में आप अपने लक्ष्यों की प्राप्ति भी कर सकेंगे।प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्रों को शुभ समाचार मिल सकता है।सुख-समृद्दि और पद- प्रतिष्ठा में वृद्धि के योग बन रहे हैं।धन-लाभ होगा, जिससे आर्थिक स्थिति मजबूत होगी।दांपत्य जीवन सुखमय रहेगा।जीवनसाथी के साथ समय व्यतीत करने का अवसर मिलेगा।कार्यों में सफलता मिलेगी।वृष राशि-इस दौरान आपको धन प्राप्ति के योग बनेंगे।आपके संचार कौशल में वृद्धि और वाणी में मधुरता आएगी।आप सभी को प्रभावित करने में सफल रहेंगे।शुक्र के राशि परिवर्तन से शुभ फल की प्राप्ति होगी।आर्थिक पक्ष मजबूत होगा, लेकिन धन का खर्च सोच- समझकर ही करें।कार्यों में सफलता के योग बन रहे हैं।सुख-समृद्धि और सौभाग्य में वृद्धि होगी।वैवाहिक जीवन में सुख का अनुभव करेंगे।परिवार के सदस्यों के साथ समय व्यतीत करें।कर्क राशि-कार्यक्षेत्र में तरक्की मिल सकती है।नौकरी की तलाश कर रहे लोगों को शुभ समाचार मिल सकता है।आर्थिक स्थिति पहले से बेहतर होगी।जीवनसाथी के साथ समय व्यतीत करने का अवसर मिलेगा।आर्थिक समस्याओं से छुटकारा मिलेगा।भाग्य का पूरा साथ मिलेगा।नौकरी और व्यापार में तरक्की के योग बन रहे हैं।जीवन आनंद से भर जाएगा।शुक्र देव के शुभ प्रभाव से जीवन आनंद से भर जाएगा।सिंह राशि-सिंह राशि के जातकों को शुभ फल की प्राप्ति होगी।शुक्र के राशि परिवर्तन से सिंह राशि वालों को नौकरी और व्यापार में लाभ होगा।मान- सम्मान बढ़ेगा।पद- प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।धन- लाभ होगा, जिससे आर्थिक पक्ष मजबूत होगा।वैवाहिक जीवन में आनंद का अनुभव करेंगे।धनु राशि-शुक्र के राशि परिवर्तन करने से धनु राशि के जातकों को शुभ परिणाम मिलेंगे।आर्थिक पक्ष मजबूत होगा।नया कार्य आरंभ करने के लिए समय शुभ है।नौकरी और व्यापार में तरक्की के योग बन रहे हैं।विद्यार्थियों के लिए ये समय किसी वरदान से कम नहीं है।वैवाहिक जीवन सुखमय रहेगा।
- वैलेंटाइन वीक की शुरुआत हो चुकी है। साल के सबसे रोमांटिक हफ्ते में कपल एक दूसरे के साथ समय बिताने के लिए वैलेंटाइन डे के मौके पर ट्रिप प्लान करते हैं। प्रेमी जोड़ा किसी ऐसी जगह पर जाना चाहता है, जो रोमांटिक भी हो और उनके प्यार के पलों को यादगार बनाने वाला भी हो। ऐसे में कम बजट में खूबसूरत नजारों, अच्छा खाना मिल जाए तो मजा ही आ जाए। कपल्स के लिए रोमांटिक और कम पैसों की ट्रिप में राजस्थान को शामिल किया जा सकता है। सर्दियों में घूमने के लिए यह जगह मौसम के लिहाज से तो अच्छी है ही, साथ ही यहां घूमने के लिए काफी कुछ मिल जाएगा लेकिन अगर वैलेंटाइन डे के मौके पर राजस्थान आ रहे हैं तो यहां प्रेमियों के लिए सबसे बेस्ट जगह है एक खास मंदिर। यह मंदिर प्रेमी जोड़ों के लिए बहुत खास माना जाता है। इस मंदिर में प्रेमियों की मुरादें पूरी होती हैं। ऐसे में अगर राजस्थान आए तो इस मंदिर के दर्शन जरूर करें।कहां है इश्किया गजानन मंदिरकपल्स की ट्रैवल सूची में जोधपुर शहर का नाम हमेशा शामिल होता है। इस शहर का अंदाज और खूबसूरती कपल्स के बीच आकर्षण का केंद्र है। जोधपुर में ही प्रेमियों का खास मंदिर इश्किया गजानन मंदिर स्थित है। यह मंदिर जोधपुर के परकोटे में मौजूद है।इश्किया गजानन मंदिर की खासियतभगवान गणेश जी के यह मंदिर प्रेमी जोड़ों के लिए महत्वपूर्ण है। यहां कई जोड़े अपनी शादी की मुरादें लेकर आते हैं। प्यार करने वाले भगवान गणेश से मनौती मांगते हैं। इसलिए इस मंदिर को इश्किया गजानन मंदिर कहा जाता है।इश्किया गजानन मंदिर की मान्यतामान्यता है कि प्यार करने वालों के लिए श्रीगणेश क्यूपिड की भूमिका निभाते हैं। यहां कुवारे लड़के या लड़कियां मन्नत मांगते हैं तो उनका रिश्ता बहुत जल्द तय हो जाता है। अगर आप किसी से प्यार करते हैं और उसे ही जीवनसाथी बनाना चाहते हैं तो यहां मुराद मांगने से आपको जीवनसाथी के तौर पर वही मिल सकता है।इश्किया गजानन के साथ ही इस मंदिर को गुरु गणपति के नाम से भी जाना जाता है। जिन लोगों की शादी होने वाली है, वह भी पहली मुलाकात और गणेश जी से आशीर्वाद के लिए इसी मंदिर में आते हैं।इश्किया गजानन मंदिर का खास स्ट्रक्चरजोधपुर के इश्किया गजानन मंदिर का निर्माण कुछ इस तरह का है कि मंदिर के आगे खड़े लोग दूर से किसी को आसानी से दिखाई नहीं देते। इस कारण यहां प्रेमी जोड़ों का जमावड़ा लगता है। कपल्स के मिलने के लिए यह मुख्य स्थान बन गया।
- माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जया एकादशी व्रत रखा जाता है। पूरे साल में कुल मिलकर 24 एकादशी व्रत पड़ते हैं। इस बार जया एकादशी व्रत 12 फरवरी, 2022, दिन शनिवार को रखा जाएगा। जया एकादशी के दिन भगवान श्री हरि विष्णु की पूरे विधि विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। कहते हैं कि भगवान विष्णु जीवन की हर एक बाधा को भक्तों के जीवन से दूर करते हैं। अगर कोई भी साधक जया एकादशी के दिन व्रत रखने के साथ-साथ श्री विष्णु के मंत्रों का जाप करता है तो उसे अनंत फल की प्राप्ति होती है। तो आइए जानते हैं भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए किन मंत्रों का जाप करना चाहिए।विष्णुजी के इन मंत्रों का करें जापजया एकादशी के दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और उनसे मनोवांछित फल प्राप्त करने के लिए नीचे दिए गए मंत्रों का जाप करें।विष्णु मूल मंत्रॐ नमोः नारायणाय॥उपरोक्त मंत्र भगवान विष्णु का मूल मंत्र है। इस मंत्र का जाप करने से विष्णु जी अवश्य प्रसन्न होते हैं।भगवते वासुदेवाय मंत्रॐ नमोः भगवते वासुदेवाय॥श्री विष्णु का जो भी साधक इस मंत्र का जाप करते हुए ध्यान लगाता है उसे भगवत कृपा की प्राप्ति होती है।विष्णु गायत्री मंत्रॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥विष्णु गायत्री मंत्र के जाप से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।श्री विष्णु मंत्रमंगलम भगवान विष्णुः, मंगलम गरुणध्वजः। मंगलम पुण्डरी काक्षः, मंगलाय तनो हरिः॥उपरोक्त विष्णु मंत्र जीवन के सभी दुखों को दूर करके जीवन में सुख और समृद्धि प्रदान करता है।विष्णु स्तुतिशान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशंविश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम् ।लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यंवन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम् ॥यं ब्रह्मा वरुणैन्द्रु रुद्रमरुत: स्तुन्वानि दिव्यै स्तवैवेदे: ।सांग पदक्रमोपनिषदै गार्यन्ति यं सामगा: ।ध्यानावस्थित तद्गतेन मनसा पश्यति यं योगिनोयस्यातं न विदु: सुरासुरगणा दैवाय तस्मै नम: ॥भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए उनकी स्तुति का पाठ करना सबसे फलदायी माना जाता है।यदि भक्त इन मंत्रों का जाप जया एकादशी के दिन पूरे विधि विधान से करें तो उनके जीवन के सारे संकट श्री हरि विष्णु अवश्य दूर करेंगे।
- घर या फ्लैट का निर्माण करते समय वास्तु का विशेष महत्व है। वास्तु शास्त्र के अनुसार यदि घर बनाते समय आप वास्तु का ध्यान रखेंगे तो आपके जीवन में आने वाली समस्याएं आपसे दूर रहेंगी। वास्तुविदों का मानना है यदि घर पहले ही बन चुका है और आप उसमें कुछ तोड़फोड़ नहीं कर सकते तो घर में वास्तु से संबंधित उपाय किए जा सकते हैं। वास्तु के अनुसार घर बनाते समय लोग पूरे घर में वास्तु विचार करते हैं विशेष रूप से बेडरूम और पूजाघर में। लेकिन लिविंग रूम को लोग अनदेखा कर देते हैं। लेकिन यदि आपने लिविंग रूम के वास्तु पर विशेष ध्यान दिया तो घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास रहेगा। इसलिए लिविंग रूम के वास्तु पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। आइए जानते हैं वास्तु के उन उपायों के बारे में जिनसे लिविंग रूम की नकारात्मक ऊर्जा दूर होगी और घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होगा।लिविंग रूम में हो ज्यादा खिड़कियांवास्तु शास्त्र के अनुसार घर के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही बैठक यानि लिविंग एरिया आता है। इसलिए लिविंग एरिया यानि ड्रॉइंग रूम थोड़ा खुला होना चाहिए। उसमें खिड़कियां अधिक होनी चाहिए जिससे पर्याप्त रोशनी आए। साथ ही रोशनी और वायु के अच्छे प्रवाह के कारण लिविंग रूम में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होगा।लिविंग एरिया बड़ा होआमतौर पर घर में सभी कमरे एक जैसे बना दिए जाते हैं और उसमें से ही किसी एक कमरे को बैठक चुन लिया जाता है लेकिन लिविंग रूम को घर के बाकी कमरों से बड़ा होना चाहिए। लिविंग रूम या ड्रॉइंग रूम जितना बड़ा होगा उसमें सकारात्मक ऊर्जा का संचार उतना ही अधिक होगा।लिविंग रूम में न लगाएं ऐसी तस्वीरेंघर का सबसे खास एरिया होता है लिविंग रूम और इसलिए घर में सभी लोग इस रूम को खास तरीके से सजाते भी हैं लेकिन एक बात का ध्यान रखें इस रूम में कोई भी ऐसी तस्वीर न लगाएं जो उदास प्रकृति की हो या कोई लड़ाई-झगड़े वाली तस्वीर हो। ऐसी तस्वीर घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करती है। इसकी जगह खूबसूरत पेंटिंग और कलाकृतियों से लिविंग रूम को सजा सकती हैं।इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स की दिशाड्रॉइंग रूम में टीवी या अन्य इलेक्ट्रानिक्स उपकरण रखे जाते हैं लेकिन इसकी दिशा का ध्यान देना बेहद आवश्यक है। कोई भी इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद लिविंग रूम के दक्षिण-पूर्व दिशा में रखे जाने चाहिए। समान रखने के लिए आप इस दिशा में रैक भी बनवा सकते हैं। यदि आप लिविंग रूम में टीवी लगाना चाहते हैं तो दक्षिण दिशा की दीवार इसके लिए उपयुक्त रहेगी।उत्तर पूर्वी दिशा में रखें फर्नीचरलिविंग रूम में टेबल और कुर्सी जैसे फर्नीचर को इस तरह से व्यवस्थित करें कि आने जाने में बाधा न आए। लिविंग रूम में फर्नीचर उत्तर या उत्तर-पूर्व दिशा में रखना शुभ होता है।
- हिंदू पंचांग के अनुसार, महाशिवरात्रि का यह पावन पर्व फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। भगवान भोलेनाथ की पूरे विधि विधान से महाशिवरात्रि के दिन पूजा अर्चना की जाती है। मान्यता है कि इस दिन महादेव का व्रत रखने से सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव के लिंग स्वरूप का पूजन किया जाता है। यह भगवान शिव का प्रतीक है। शिव का अर्थ है- कल्याणकारी और लिंग का अर्थ है सृजन। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव ने ही धरती पर सबसे पहले जीवन का प्रचार-प्रसार किया था, इसीलिए भगवान शिव को आदिदेव भी कहा जाता है। आइए जानते हैं महाशिवरात्रि की तिथि, शुभ पूजन मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में।महाशिवरात्रि तिथिचतुर्दशी तिथि आरंभ: 1 मार्च, मंगलवार, 03:16 am सेचतुर्दशी तिथि समाप्त: 2 मार्च, बुधवार, 1:00 am तकचारों प्रहर का पूजन मुहूर्तआइए जानते हैं इस दिन चार पहर की पूजा का समयमहाशिवरात्रि पहले पहर की पूजा: 1 मार्च 2022 को 6:21 pm से 9:27 pm तकमहाशिवरात्रि दूसरे पहर की पूजा: 1 मार्च को रात्रि 9:27 pm से 12:33 am तकमहाशिवरात्रि तीसरे पहर की पूजा: 2 मार्च को रात्रि 12:33 am से सुबह 3:39 am तकमहाशिवरात्रि चौथे पहर की पूजा: 2 मार्च 2022 को 3:39 am से 6:45 am तकमहाशिवरात्रि पूजा का महत्वमहाशिवरात्रि पर्व के यदि धार्मिक महत्व की बात की जाए तो महाशिवरात्रि शिव और माता पार्वती के विवाह की रात्रि मानी जाती है। मान्यता है इस दिन भगवान शिव ने सन्यासी जीवन से ग्रहस्थ जीवन की ओर रुख किया था। महाशिवरात्रि की रात्रि को भक्त जागरण करके माता-पार्वती और भगवान शिव की आराधना करते हैं। मान्यता है जो भक्त ऐसा करते हैं उनकी सभी मनोकामना पूरी होती है।महाशिवरात्रि की पूजा विधिमहाशिवरात्रि के दिन ब्रह्ममुहूर्त में स्नान कर लें।इसके उपरांत एक चौकी पर जल से भर हुए कलश की स्थापना कर शिव-पार्वती की मूर्ति या चित्र रखें।इसके बाद रोली, मौली, अक्षत, पान सुपारी ,लौंग, इलायची, चंदन, दूध, दही, घी, शहद, कमलगटटा्, धतूरा, बिल्व पत्र, कनेर आदि अर्पित करें।इसके बाद भगवान शिव की आरती पढ़ें।यदि आप रात्रि जागरण करते हैं तो उसमें भगवान शिव के चारों प्रहर में आरती करने का विधान है।
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बसंत पंचमी के दिन से शीत ऋतु समाप्त हो जाती है और बसंत ऋतु का आगाज होता है. इस दौरान प्रकृति स्वयं का सौंदर्यीकरण करती है. पुरानी चीजों को त्यागकर पेड़ों पर नई पत्तियां और नई कोपलें नजर आती हैं. पीले रंग की सरसों की फसल खेतों में लहलहाती है. माना जाता है कि इसी दिन माता सरस्वती भी प्रकट हुई थीं, इसलिए बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती की विशेष रूप से पूजा होती है. उत्तर भारत में इस दिन पीले रंग का विशेष महत्व है. लोग पीले वस्त्र पहनते हैं और पीली ही चीजें भगवान को अर्पित करते हैं.
इस बार बसंत पंचमी आज 5 फरवरी 2022 को मनाई जा रही है. इस पावन अवसर पर यहां जानिए बसंत पंचमी से जुड़ी खास बातें.
– कहा जाता है कि माता सरस्वती के जन्म से पहले ये संसार मौन था. इसमें बहुत नीरसता थी. लेकिन बसंत पंचमी के दिन जब माता सरस्वती प्रकट हुई तो उनके वीणा का तार छेड़ते ही संसार के जीव जंतुओं में वाणी आ गई. वेद मंत्र गूंज उठे. तब भगवान श्रीकृष्ण ने माता सरस्वती को वरदान दिया कि आज का ये दिन आपको समर्पित होगा. इस दिन लोग आपकी पूजा करेंगे. आप ज्ञान, वाणी और संगीत की देवी कहलाएंगी.
– बसंत पंचमी के दिन तमाम घरों में कॉपी-किताबों की पूजा के बाद छोटे बच्चे को पहली बार लिखना सिखाया जाता है. मान्यता है कि इससे बच्चे कुशाग्र बुद्धि के होते हैं और उन पर माता सरस्वती की हमेशा कृपा बनी रहती है. ऐसे बच्चे खूब तरक्की करते हैं.
– बसंत पंचमी के दिन भारत में तमाम जगहों पर पतंग उड़ाई जाती है. कहा जाता है कि पतंग उड़ाने का रिवाज़ हज़ारों साल पहले चीन में शुरू हुआ था. इसके बाद फिर कोरिया और जापान के रास्ते होता हुआ भारत पहुंचा.
– बसंत पंचमी के दिन देश के तमाम हिस्सों में अलग अलग मिष्ठान बनाकर दिन को सेलिब्रेट किया जाता है. बंगाल में बूंदी के लड्डू और मीठा भात चढ़ाया जाता है. बिहार में खीर, मालपुआ और बूंदी और पंजाब में मक्के की रोटी, सरसों का साग और मीठा चावल चढाया जाता है. उत्तर प्रदेश में भी पीले मीठे चावल प्रसाद के तौर पर बनाएं जाते हैं.
– बसंत पंचमी के दिन होलिका दहन के लिए लकड़ियों को इकट्ठा करके एक सार्वजनिक स्थान पर रख दिया जाता है. अगले 40 दिनों के बाद, होली से एक दिन पहले श्रद्धालु होलिका दहन करते हैं. इसके बाद होली खेली जाती है.
– कहा जाता है कि बसंत पंचमी के दिन श्रीराम गुजरात और मध्य प्रदेश में फैले दंडकारण्य इलाके में मां सीता को खोजते हुए आए थे और यहीं पर मां शबरी का आश्रम था. इस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, उनका मानना है कि श्रीराम उसी शिला पर आकर बैठे थे. वहां शबरी माता का मंदिर भी है
– कहा जाता है कि बसंत पंचमी के दिन ही पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी का वध करके आत्मबलिदान दिया था. - घर बनाते समय वास्तु को विशेष महत्व दिया जाता है। इसी के अनुसार घर के सभी हिस्सों का निर्माण किया जाता है। हालांकि बहुत से लोग घर बनाते समय वास्तु पर विचार करते हैं, लेकिन वे अक्सर लिविंग रूम के बारे में भूल जाते हैं। वास्तु विशेषज्ञों के अनुसार एक बार घर बन जाने के बाद लिविंग रूम को वास्तु के अनुसार सजाना चाहिए। इससे लिविंग रूम में सकारात्मक ऊर्जा आती है। जरा सी लापरवाही घर में कलह और परेशानी का कारण बन सकती है। अगर आप भी अपने लिविंग रूम से नकारात्मक ऊर्जा को दूर रखना चाहते हैं तो आप ये वास्तु टिप्स आजमा सकते हैं।वास्तु के अनुसार इस तरह का होना चाहिए लिविंग रूम-वास्तु विशेषज्ञों के अनुसार एक लिविंग रूम में ज्यादा से ज्यादा खिड़कियां होनी चाहिए। इससे लिविंग रूम में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। जब भी आप लिविंग रूम बनाने प्लान बनाएं तो लिविंग रूम में ज्यादा से ज्यादा खिड़कियां बनाना सुनिश्चित करें।-आपका लिविंग रूम अन्य कमरों के समान नहीं होना चाहिए। लिविंग रूम सबसे बड़ा होना चाहिए। लिविंग रूम में ऐसी तस्वीर न लगाएं जो रोने, शोक और विवाद से संबंधित हो। इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा आती है। घर में कलह की उत्पन्न होता है। इससे घर की शांति भंग होती है। लिविंग रूम में बिजली के उपकरणों को दक्षिण-पूर्व दिशा में रखना चाहिए। आप इस दिशा में एक रैक या अलमारी बना सकते हैं। इसके अलावा दक्षिण की दीवार पर टीवी लगाएं।-लिविंग रूम में टेबल और कुर्सी जैसे फर्नीचर को इस तरह से व्यवस्थित करें कि आपको चलने फिरने में दिक्कत न हो। लिविंग रूम का निर्माण उत्तर या उत्तर-पूर्व दिशा में करना शुभ होता है। इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।-घर से नकारात्मक ऊर्जा को दूर रखने के लिए रोजाना शाम को मोमबत्ती या मिट्टी का दीपक जलाएं। आप इन्हें पूजा स्थल या मेडिटेशन स्थल पर जला सकते हैं।-लिविंग रूम में पानी के बाउल में फूल रखें। आर्टिफिशियल की बजाए असली फूलों का इस्तेमाल करें। इससे न केवल घर में सुंगध होगी बल्कि इससे सकारात्मक वातावरण रहेगा।-साथ ही अपनी दीवारों और छत के रंगों को अलग-अलग रखें। सीधे शब्दों में कहें तो दीवार और छत अलग-अलग रंगों की होनी चाहिए।
- वैसे तो इंसान कर्ज यानि ऋण से बचना चाहता है. लेकिन शास्त्रों के मुताबिक जन्म से ही इंसान पांच प्रकार के ऋण से युक्त हो जाता है. ये ऋण हैं- मातृ ऋण, पितृ ऋण, देव ऋण, ऋषि ऋण और मनुष्य ऋण. कते हैं कि जो मनुष्य ऋणों को नहीं उतारता है, उसे कई प्रकार के दुख और संताप झेलने पड़ते हैं. आगे जानते हैं इस बारे में.मातृ ऋण (Matri Rin)शास्त्रों में माता का स्थान परमात्मा से भी ऊंचा बताया गया है. मातृ ऋण में माता और मातृ पक्ष के सभी लोग जैसे-नाना, नानी, मामा-मामी, मौसा-मौसी और इनके तीन पीढ़ी के पूर्वज होते हैं शामिल . ऐसे में मातृ पक्ष या माता के प्रति किसी प्रकार का अपशब्द बोलने या कष्ट देने से अनेक प्रकार का कष्ट झेलना पड़ता है. इतना ही नहीं, पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार में कलह-क्लेश होते रहते हैं.पितृ ऋण (Pitra Rin)पिता की छत्रछाया में कोई इंसान पलता-बढ़ता है. पितृ ऋण में पितृ-पक्ष के लोग जैसे दादा-दादी, ताऊ, चाचा और इनके पहले की तीन पीढ़ीयों के लोग शामिल होते हैं. शास्त्रों के मुताबिक पितृ भक्त बनना हर इंसान का परम कर्तव्य है. इस धर्म का पालन नहीं करने पर पितृ दोष लगता है. जिससे जीवन में तमाम तरह की समस्याएं उत्पन्न होती हैं. इतनी ही नहीं इस दोष के प्रभाव से जीवन में दरिद्रता, संतानहीनता, आर्थिक तंगी और शारीरिक कष्टों का सामना करना पड़ता है.देव ऋण (Dev Rin)माता-पिता के आशीर्वाद के कारण ही गणेशजी देवताओं में प्रथम पूज्य हैं. यही कारण है कि हमारे पूर्वज भी मांगलिक कार्यों में सबसे पहले कुलदेवी या देवता की पूजा करते थे. इस नियम का पालन न करने वालों के देवी-देवता का श्राप लगता है.ऋषि ऋण (Rishi Rin)मनुष्य का गोत्र किसी न किसी ऋषि से जुड़ा है. गोत्र में संबंधित ऋषि का नाम जुड़ा होता है. इसलिए पूजा-पाठ में ऋषि तर्पण का विधान है. ऐसे में ऋषि तर्पण नहीं करने वालों को इसका दोष लगता है. जिससे मांगलिक कार्यों में बाधा आती है और यह क्रम पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है.मनुष्य ऋण (Manushya Rin)माता-पिता के अलावा इंसान को समाज के लोगों से भी प्यार दुलार और सहयोग प्राप्त होता है. इसके अलावा इंसान जिस पशु का दूध पीता है, उसका कर्ज भी उतारना पड़ता है. साथ ही कई बार ऐसा भी होता है कि मनुष्य, पशु-पक्षी भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हमारी मदद करते हैं. ऐसे में इनके ऋण भी चुकाने पड़ते हैं. कहते हैं कि मनुष्य ऋण के कारण ही राजा दशरथ के परिवार को कष्ट झेलना पड़ा.
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धनवान बनने की चाहत किसे नहीं होती। व्यक्ति धनवान बनने के लिए दिन-रात कोशिश में जुटे रहते हैं। लेकिन हस्तरेखा में ऐसे बहुत से चिह्न होते हैं जो व्यक्ति के धनवान बनने का इशारा करते हैं। यदि ये चिह्न आपकी हथेली में हैं तो आप निश्चित रूप से धनवान होंगे। इसके लिए सूर्य पर्वत बहुत महत्वपूर्ण है। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार यदि सूर्य पर्वत पर मछली का चिह्न बना है तो तय मानिए यह आपको जीवन में नाम और पैसा मिलेगा। ऐसे चिह्न वाले लोग अत्यधिक धनवान होते हैं। ऐसे व्यक्ति जीवन में धनवान और मान-सम्मान पाने वाले व्यक्ति होते हैं। मछली का चिह्न जितना बड़ा होगा, उसका असर उतना ज्यादा रहेगा।
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यदि गुरु पर्वत पर भी मछली का निशान बनता है तो यह भी व्यक्ति के जीवन में धनवान बनने का संकेत देता है। ऐसे व्यक्ति बड़ा काम करते हैं। यदि इस पर्वत पर मछली के निशान के साथ तर्जनी उंगली भी लंबी है तो ऐसे व्यक्ति अधिकारी अथवा प्रभावशाली राजनेता होते हैं। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार सूर्य पर्वत पर चक्रनुमा कोई निशान मिलता है तो भी व्यक्ति जीवन में राजनीति अथवा सरकारी क्षेत्र से जुड़कर पैसा कमाते हैं। इस तरह के लोग अपने जीवन में धनवान होते हैं। शनि पर्वत पर चक्र का निशान मिलना राजनीति की ओर ले जाता है। ऐसे लोग करोड़पति होते हैं। इनके पास धन की कोई कमी नहीं होती। हाथ में यह निशान अकूत धन-संपत्ति का संकेत है। चंद्रमा पर चक्र का निशान व्यक्ति को विदेश से धन कमाने का इशारा करता है। इस तरह के लोग बहुतायत में विदेश से धन कमाते हैं। यदि सूर्य पर्वत पर पद्म का निशान है तो भी व्यक्ति बहुत धनवान होता है। ऐसे व्यक्ति उच्च स्तरीय पदाधिकारी होता है। -
साल 2022 में कुल 4 ग्रहण होंगे। पहला सूर्य ग्रहण 30 अप्रैल को पड़ेगा। वैसे ग्रहण एक खगोलीय घटना है जिसका वैज्ञानिक आधार होता है। लेकिन ज्योतिषशास्त्र में इसके बारे में कई मान्यताएं व महत्व/प्रभाव बताए गए हैं। ज्योतिष के जानकारों के अनुसार 30 अप्रैल का सूर्य ग्रहण भारत समेत विश्व के कई देशों में दिखाई देगा। भारत में इसे आंशिक सूर्य ग्रहण माना गया है। इसके बाद अगला ग्रहण मई महीने में होगा जोकि एक चंद्र ग्रहण है।
आगे देखिए इस साल के आगामी ग्रहणों की तारीखें व समय-
आपको बता दें कि ज्योतिषशात्र के अनुसार, सभी चंद्र ग्रहण अमावस्या के तिथि को पड़ते हैं जबकि सूर्य ग्रहण पूर्णिमा तिथि को होते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ग्रहण के दिन कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। हालांकि इस दिन पूजा-पाठ का विशेष महत्व बताया गया है। ग्रहण के दौरान लोग गंगा या अन्य पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। मान्यताओं के अनुसार ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए जिससे कि उनके गर्भ में पल रहे शिशु पर किसी नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव न पड़े। ग्रहण के 12 घंटे पहले और 12 घंटे बाद के समय को सूतक काल के रूप में जानते हैं। सूतक काल के दौरान कोई भी नया काम नहीं करना चाहिए। इस दौरान मंदिरों के कपाट भी बंद रखे जाते हैं और ग्रहण समाप्ति के बाद देवी-देवताओं को स्नान कराकर मंदिर फिर से खोले जाते हैं।
आगामी ग्रहणों की तारीखें ---
30 अप्रैल 2022 - सूर्य ग्रहण
16 मई 2022 - चंद्र ग्रहण
25 अक्टूबर 2022- सूर्य ग्रहण
08 नवंबर 2022 - चंद्रग्रहण
सूतक काल में बरतें ये सावधानियां----
1- धार्मिक व ज्योतिषीय दृष्टिकोण से सूतक काल में बालक, वृद्ध एवं रोगी को छोड़कर अन्य किसी को भोजन नहीं करना चाहिए।
2- सूतक काल लगते ही तुलसी या कुश मिश्रित जल को खाने-पीने की चीजों में रखना चाहिए। लेकिन इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि तुलसी दल या कुश को ग्रहण के बाद निकाल देना चाहिए। कहते हैं ग्रहण का असर तुलस दल ले लेता है और आपकी चीजों को दूषित नहीं होने देता । इसलिए ग्रहण समाप्त होने के बाद इसे निकाल लेना चाहिए।
3- गर्भवतियों को खासतौर से सावधानी रखनी चाहिए।
4- मान्यता है कि सूतक के दौरान किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं किए जाते। घर में भी मंदिर को कपड़े से कवर कर देना चाहिए। इस दौरान कोई पूजा पाठ नहीं किया जाता है।
5- ग्रहणकाल में अन्न, जल ग्रहण नहीं करना चाहिए।
6- ग्रहणकाल में स्नान न करें। ग्रहण समाप्ति के बाद स्नान करें।
7- ग्रहण (Solar) को खुली आंखों से न देखें।
8- ग्रहणकाल के दौरान गुरु प्रदत्त मंत्र का जाप करते रहना चाहिए। - ज्यादातर लोगों को इस बात की जानकारी होती है कि नमक का अधिक सेवन सेहत के लिए हानिकारक साबित हो सकता है. नमक (Vastu tips of Salt) किचन की अहम चीजों में से एक होता है. वैसे ज्योतिष और वास्तु शास्त्र के मुताबिक भी नमक का जीवन में बहुत महत्व होता है. किसी भी स्थान को शुद्ध करने के लिए नमक का इस्तेमाल किया जाता है. कहीं पर नमक की मदद से नेगेटिव एनर्जी को दूर किया जाता है. कहते हैं कि नमक घरों के माहौल को शुद्ध और स्वस्थ रखने में भी कारगर होता है. भले ही ये घर के लिए फायदेमंद हो, लेकिन मान्यता है कि कभी-कभी इसका इस्तेमाल प्रतिकूल प्रभाव भी छोड़ सकता है. देखा जाए तो वास्तु के मुताबिक इसके कई सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव भी होते है. आज हम आपको इन्हीं नेगेटिव और पॉजिटिव इफेक्ट्स के बारे में बताने जा रहे हैं.नमक के सकारात्मक प्रभाव1. कभी-कभी नकारात्मकता शरीर पर इतनी हावी हो जाती है कि लोग थका हुआ महसूस करते हैं. ऐसे में इस नेगेटिविटी को दूर करने के लिए आप नमक के पानी का स्नान कर सकते हैं. कहते हैं कि इससे प्रभावित व्यक्ति पॉजिटिव फील करने लगता है.2. घर में शांति और पॉजिटिविटी बनाए रखने में भी नमक कारगर माना जाता है. इसके लिए घर के किसी कोने में एक कटोरी में नमक का पानी रखना चाहिए. ये तरीका घर से नेगेटिविटी को दूर करता है. हालांकि, अगर दिन इस पानी को घर के बाहर जाकर जरूर फेंक दें.3. नमक से एक और सकारात्मक प्रभाव की बात की जाए तो बता दें कि ये नींद न आने की समस्या को भी दूर करने में सक्षम माना जाता है. बस जिस कमरे में आप सोने जा रहे हैं, वहां नमक रख लें. कहते हैं कि इससे सुकून की नींद आती है.नमक के नकारात्मक प्रभाव1. कभी-कभी लोगों से किचन में गलती से नमक गिर जाता है. इसे शुभ नहीं माना जाता, क्योंकि कहते हैं कि इससे घर में नेगेटिविटी आती है. अगर गलती से नमक किचन में गिर भी जाए, तो उसे कपड़े से साफ करें. अक्सर लोग गिरे हुए नमक को झाड़ू से साफ करने की भूल कर देते हैं, जो बहुत अशुभ माना जाता है.2. ज्यादातर लोगों को खान में ऊपर से नमक डालकर खाने की आदत होती है. इस दौरान भी नमक का नकारात्मक प्रभाव बुरा असर डाल सकता है. दरअसल, ग्रहणी अगर अपने हाथ से खाना खाने वाले के हाथों में नमक दे, तो ये भी घर में नेगेटिविटी या झगड़े की वजह बन सकता है.3. नमक से किए गए उपाय के बाद उसे वहां से हटाने के भी कुछ नियम होते हैं. घर में रखे गए नमक के पानी को दोबारा इस्तेमाल में लिया जाए, तो घर में पॉजिटिविटी के बजाय नेगेटिविटी आने लगती है. बेहतर रहेगा कि इस पानी को घर के बाहर जाकर फेंका जाए.
- हम सभी के शरीर के तमाम हिस्सों पर तिल होते हैं. ये तिल काले, भूरे और लाल रंग के हो सकते हैं. ये तिल अगर आपके चेहरे (Moles on Face) पर हों, तो इन्हें खूबसूरती से जोड़कर देखा जाता है. लेकिन ज्योतिष (Astrology) के मुताबिक ये तिल आपके जीवन के कई रहस्यों के बारे में बताते हैं. समुद्र शास्त्र की मानें तो तिल के जरिए व्यक्ति के जीवन से जुड़े कई रहस्यों को आसानी से उजागर किया जा सकता है. कुछ जगहों पर तिल का होना भाग्यशाली बनाता है, तो कई बार इन्हें दुर्भाग्य से भी जोड़कर देखा जाता है।यहां जानिए समुद्र शास्त्र (के मुताबिक आपके चेहरे के तिल क्या बताते हैं----– यदि किसी महिला या पुरुष के बाएं गाल पर तिल हो तो इसका मतलब है कि उसका वैवाहिक जीवन काफी खुशहाल होगा. ऐसे लोगों को अपने वैवाहिक जीवन में बहुत मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ता. उनकी मैरिड लाइफ खुशहाल रहती है.– अगर आपके होंठ के पास तिल है तो इसके कई मायने हो सकते हैं. होंठ के नीचे का तिल आपके सुखद और अमीरी के साथ जीवन जीने की ओर इशारा करता है. ऐसे लोगों को कुछ भी प्राप्त करने के लिए बहुत मेहनत की जरूरत नहीं पड़ती. वहीं होंठ के ऊपर का तिल आपके व्यक्तित्व और खूबसूरती को आकर्षक बनाता है. ऐसे लोगों को महंगी चीजों को इस्तेमाल करने का बहुत शौक होता है.– जिन लोगों के दोनों भौहों के बीच में तिल होता है, उनकी उम्र काफी मानी जाती है. ये लोग काफी उदार दिल वाले होते हैं और लोगों की मदद के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं.– वहीं माथे पर तिल ये बताता है कि आपको जीवन में जो भी हासिल होगा, वो काफी संघर्ष के बाद मिलेगा. वहीं जिनके नाक पर तिल होता है, ऐसे लोग कई तरह की प्रतिभाओं में निपुण होते हैं. लेकिन इन्हें गुस्सा जल्दी आता है.– दाहिने गाल पर तिल का होना ये संकेत देता है कि व्यक्ति खूब बुद्धिमान है. ऐसे लोगों को अपने भाग्य से ज्यादा खुद पर यकीन करना चाहिए. अगर आप कुछ ठान लेंगे तो उसे हर हाल में पूरा करके ही दम लेंगे.– ठुड्डी पर तिल वाले लोग काफी दिल के साफ माने जाते हैं. जिनकी ठुड्डी पर दाहिनी तरफ तिल होता है, वो काफी कलात्मक और खुशमिजाज होते हैं और ठुड्डी पर बांयीं ओर जिसके तिल होता है, वो काफी कंजूस माने जाते हैं।
- भगवान गणेश माता पार्वती और महादेव के पुत्र हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि माता लक्ष्मी (Mata Lakshmi) भी श्रीगणेश को ही अपना पुत्र मानती है? गणपति को माता लक्ष्मी का दत्तक पुत्र कहा जाता है. दीपावली पर माता लक्ष्मी की श्रीगणेश के साथ पूजन माता और पुत्र के रूप में होता है. कहा जाता है कि लक्ष्मी के साथ अगर गणपति का भी पूजन किया जाए तो माता अत्यंत प्रसन्न होती हैं और ऐसे भक्तों पर सदैव अपनी कृपा दृष्टि बनाकर रखती हैं. भगवान गणेश माता लक्ष्मी के पुत्र कैसे बने, इसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है. यहां जानिए उस कथा के बारे में.गणपति को माता लक्ष्मी ने लिया था गोदमाता लक्ष्मी को जगत जननी कहा जाता है, क्योंकि वे जगत के पालनहार भगवान विष्णु की पत्नी हैं. सारा संसार माता लक्ष्मी के ही प्रेम और माया से चलता है. पौराणिक कथा के अनुसार एक बार माता लक्ष्मी को इस बात का घमंड हो गया कि संसार में हर कोई लक्ष्मी को ही पाना चाहता है. लक्ष्मी के बगैर किसी का काम ही नहीं चल सकता.मां लक्ष्मी के इस अभिमान को श्री हरि ने भांप लिया, तब विष्णु जी ने सोचा कि माता का ये अहंकार समाप्त करना बहुत जरूरी है. इसलिए उन्होंने कहा कि ये सच है कि देवी लक्ष्मी के बगैर संसार में कुछ नहीं हो सकता. सारा संसार आपको पाने के लिए व्याकुल रहता है, लेकिन फिर भी देवी आप अपूर्ण हैं. नारायण की बात सुनकर माता लक्ष्मी को बहुत बुरा लगा और उन्होंने नारायण से पूछा कि वे अपूर्ण कैसे हैं?तब विष्णु जी ने उनसे कहा कि जब तक कोई स्त्री मां नहीं बनती है, तब तब वह पूर्ण नहीं होती है. ये जानकर मां लक्ष्मी अत्यंत पीड़ा का अनुभव हुआ और वे अपने मन की बात कहने अपनी सखी पार्वती के पास पहुंचीं. उन्होंने कहा कि नि:संतान होना बेहद परेशान कर रहा है. इसलिए हे पार्वती क्या आप अपने दोनों पुत्रों में से एक को मुझे गोद दे सकती हैं? माता पार्वती ने उनका दुख दूर करने के लिए ये बात मान ली और गणपति को माता लक्ष्मी को सौंप दिया. इसके बाद से गणपति माता लक्ष्मी के दत्तक पुत्र कहलाने लगे.इसके बाद मां लक्ष्मी ने कहा कि आज से जिस घर में लक्ष्मी के साथ उसके दत्तक पुत्र गणेश की भी पूजा होगी, वहां मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहेगी. यही कारण है कि गणपति के साथ लक्ष्मी की प्रतिमा मां विराजमान होती हैं और दोनों की पूजा हमेशा साथ की जाती है.