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- धनतेरस और दिवाली में अब कुछ ही दिन का समय बचा है. ऐसे में लोग खरीदारी करने के लिए घरों से निकलने लगे हैं. लेकिन अगर आप 28 अक्टूबर को खरीदारी करते हैं तो आपको ज्यादा लाभ मिल सकता है. ज्योतिषों के अनुसार, इस दिन पुष्य नक्षत्र रहेगा और गुरु शनि का दुर्लभ संयोग बनेगा. गुरु पुष्य नक्षत्र पर ग्रहों की ऐसी स्थिति 60 साल बाद बन रही है.ज्योतिषों के मुताबिक, दिवाली से पहले कार्तिक कृष्ण पक्ष को आने वाले पुष्य नक्षत्र में नया सामान खरीदना शुभ माना जाता है. इस दिन नई चीजें घर लाने से सुख-समृद्धि का आगमन होता है. शनि देव पुष्य नक्षत्र के स्वामी हैं. ऐसी मान्यताएं हैं कि शनि के नक्षत्र में मिलने वाले शुभ परिणाम लंबे समय तक बने रहेते हैं. हालांकि इस बार का पुष्य नक्षत्र खास होगा, क्योंकि पुष्य नक्षत्र पर मकर में राशि शनि-बृहस्पति का ऐसा संयोग 60 साल पहले 5 नवंबर 1344 को बना था.शास्त्रों के अनुसार, इस साल गुरु शनि के स्वामित्व वाली राशि मकर में शनि के साथ ही विराजमान हैं. दोनों ही ग्रहों की चाल सीधी है और इन ग्रहों पर चंद्र की भी दृष्टि रहेगी जिससे गजकेसरी योग का भी निर्माण होने जा रहा है. चंद्रमा धन का कारक है और बृहस्पति के साथ इसकी युति से बन रहा गजकेसरी योग लोगों को भाग्योदय करता है. इस महासंयोग में निवेश करना बहुत फलदायक माना गया है जिसका लाभ आपको लंबे समय तक मिलता है. ज्योतिषों के अनुसार, बृहस्पति और शनि के बीच कोई शत्रुता भी नहीं है, इसलिए गुरुवार का दिन पुष्य नक्षत्र इसकी शुभता बढ़ाएगा.पुष्य नक्षत्र पर लोग अपनी जरूरत के हिसाब से चीजें खरीद सकते हैं. घर-संपत्ति, सोना-चांदी, गाड़ी, इलेक्ट्रानिक्स आइटम्स, फर्नीचर आदि खरीद सकते हैं. इसके अलावा बहीखाते खरीदने के लिए यह दिन बहुत ही शुभ है. इस दौरान धन का दान करना भी बहुत शुभ होता है. आप गौशाला में हरी घास का दान भी कर सकते हैं. शास्त्रों के अनुसार, इस शुभ घड़ी में भगवान शिव को प्रसन्न करने से आपका भाग्योदय हो सकता है.-
- धनतेरस पर सदियों से बर्तन, सोना-चांदी, कपड़े, धन-संपत्ति, खरीदने (Buy) की परंपरा चली आ रही है. गुजरते समय के साथ इस लिस्ट में गाड़ियों, इलेक्ट्रानिक आइटम्स जैसी चीजें भी शामिल होती गईं. लेकिन धनतेरस पर चीजें खरीदने के साथ-साथ दान देने (Donation) की भी परंपरा है. इस दिन जरूरत मंदों को दान देने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं और पूरे साल खूब धन-दौलत देती हैं. इस साल 2 नवंबर 2021, मंगलवार को धनतेरस -2021 है. यदि आप भी धनवान होना चाहते हैं तो इस दिन कुछ चीजों का दान जरूर करें.धनतेरस के दिन खरीदारी करने के साथ-साथ दान जरूर करें लेकिन ये याद रखें कि दान सूर्यास्त से पहले करें. वहीं इस दिन किसी को भी सफेद चीजें जैसे दूध, दही, सफेद मिठाई दान में न दें. ऐसा करना अशुभ होता है. वहीं कुछ ऐसी चीजें होती हैं, जिन्हें धनतेरस के दिन दान करना बहुत अच्छा और शुभ होता है.अनाज: धनतेरस के दिन अनाज दान करने से आपके घर का भंडार हमेशा भरा रहेगा. यदि अनाज दान में नहीं दे रहे हैं तो किसी गरीब को भोजन करा दें. भोजन में उसे मिठाई भी खिलाएं. इसके बाद अपनी सामर्थ्य के अनुसार कुछ पैसे भी दें.लोहा: धनतेरस के दिन लोहे का दान करने से किस्मत बदल जाती है. दुर्भाग्य सौभाग्य में बदल जाता है. रुके हुए काम पूरे होने लगते हैं.कपड़े: धनतेरस के दिन गरीब और जरूरतमंद लोगों को कपड़े जरूर दान करें. ऐसा करने से दिन बदल जाते हैं. कुबेर देव की कृपा से खूब धन-दौलत मिलती है. हो सके तो पीले रंग के कपड़े दान में दें.झाड़ू: धनतेरस पर नई झाड़ू खरीदने की भी परंपरा है लेकिन इस दिन झाड़ू दान देना भी बहुत शुभ होता है. किसी सफाईकर्मी को मंदिर में नई झाड़ू दान करने से अपार दौलत मिलती है.-
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ज्योतिष शास्त्र में राशि परिवर्तन का विशेष महत्व है। ग्रह के राशि परिवर्तन का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है। 2 नवंबर को बुध कन्या राशि से निकलकर तुला राशि में गोचर करेंगे। इसके बाद फिर 21 नवंबर तक इसी राशि में रहेंगे, बाद में बुध का गोचर वृश्चिक राशि में होगा। ज्योतिष शास्त्र में बुध को प्रभावशाली ग्रह माना गया है। यह वाणी और बुद्धि को प्रभावित करते हैं, इससे करियर पर भी प्रभाव पड़ता है। बुध ग्रह का तुला राशि में गोचर होने से इन 4 राशि वालों को होगा लाभ-
1. कर्क- बुध राशि परिवर्तन से कर्क राशि वालों को शुभ परिणाम मिलेंगे। इस राशि में बुध चतुर्थ भाव में रहेंगे और पारिवारिक परेशानियों से मुक्ति मिलेगी। करियर में भी सफलता मिलने की संभावना है। बुध राशि परिवर्तन से कर्क राशि वालों को धन लाभ भी हो सकता है।
2. कन्या- कन्या राशि वालों के साहस और पराक्रम में वृद्धि होगी। इस दौरान बुध आपके द्वितीय और तृतीय भाव में रहेंगे। बुध के इस गोचर से आर्थिक परेशानियां दूर होंगी और धन लाभ के योग बनेंगे।
3. मेष- 2 नवंबर को बुध का तुला राशि में गोचर होने से आपका वैवाहिक जीवन सुखद रहेगा। इस दौरान सभी परेशानियों से मुक्ति मिलेगी। आर्थिक लाभ होने के साथ मान-सम्मान में वृद्धि की संभावना है।
4. मकर- गोचर काल में मकर राशि वालों के सभी बिगड़े काम बनेंगे। बुध राशि परिवर्तन से आपको करियर में सफलता हासिल होगी। हालांकि आर्थिक मामलों में थोड़ा सावधान रहने की जरूरत है। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 429
★ 'सेवाभिमान' पर जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उदबोधन ::::
...सब कुछ त्यागो और त्यागने के अहंकार को भी त्यागो। गुरु सेवा करते हुए गुरु सेवाभिमान न लाओ। सेवाभिमान न आने पावे। तब वो असली त्यागी है।
एक राजा था उसको वैराग्य हुआ तो वो एक महात्मा के पास गया जंगल में। जैसे जिस पोज में वह बैठा हुआ था राजा उसी पोज में भाग पड़ा। महात्मा जी को प्रणाम किया और कहा कि हम आपके शिष्य बनना चाहते हैं। उन्होंने देखा। प्राचीन काल में महात्माओं की ऐसी परंपरा थी तपस्वियों की, उन्होंने कहा कि भाग यहां से, सब छोड़कर तब आ हमारे पास। उसने कहा कि महाराज! सब छोड़ आये। ए झूठ बोलता है।
अब वो चला गया बेचारा। उन्होंने जाकर स्वयं सोंचा, अरे राजा के भेष में ही मैं आ गया। महात्मा के पास मुकुट पहन कर के मैं आया, ये मुझसे गलती हो गई।
एक लंगोटी लगा कर के सब फेक-फाँक करके तब गया कि महाराज गलती हो गई। फिर देखा उन्होंने और कहा कि मैंने कहा ना कि सब छोड़ कर आ। तुमने सुना नहीं।
अब वो हैरान, सब कुछ तो छोड़ दिया मैंने! तो लँगोटी भी फेंक कर आया, दिगंबर। तो अबकी बार और जोर से डाँटा। उन्होने कहा कि देख अब अगर बिना छोड़े मेरे पास आया तो दंड दूँगा? तूने तीन बार आज्ञा का उल्लंघन किया। ऋषि मुनि तपस्वी का दंड क्या? कोई भक्ति मार्ग महापुरुष थे नहीं। तो राजा जाकर दूर एक पेड़ के नीचे बैठ गया और सोचने लगा कि महात्मा जी क्या छोड़ने के लिए कह रहे हैं।
शरीर छोड़ा जा नहीं सकता और क्या है मेरे पास? रोने लगे। उन्होंने सोचा कि अब गुरुजी नहीं अपनाएंगे तो अब शरीर रखना भी बेकार है। संसार में कुछ नहीं है, ये तो समझ ही लिया और अब छोड़ भी आए अब दोबारा जाना भी गलत है और ये शरणागति नहीं स्वीकार कर रहे हैं हमारी। तो फिर अब देह ही छोड़ देते हैं।
तीन-चार दिन बाद गुरुजी उधर से निकले और उन्होंने कहा क्यों राजन! यहां कैसे बैठे हो? चुप। वो त्यागी जी! अब भी चुप। उन्होंने कहा कि हाँ। अच्छा आजा-आजा। अब तूने त्याग दिया सब कुछ। राजा होने का अभिमान भी त्यागने का मेरा आदेश था और त्यागने का अहंकार भी छोड़ो। 'मैंने सब छोड़ दिया है' - ये अहंकार भी छोड़ो। तब वो त्याग असली हुआ।
तो जो सत्कर्म करे कोई व्यक्ति उस सत्कर्म का अहंकार ना होने पावे उसको गुरु कृपा माने। उनकी कृपा से इतना हमने भगवन्नाम ले लिया, इतनी सेवा कर ली, वरना मुझसे होता भला?
एक भिखारी भी अगर मुझसे मांगता कभी पैसा तो मैंने कभी एक रूपया भी नहीं दिया लाइफ में, उन्होंने कैसे करा लिया हमसे? ये कृपा रियलाइज करना। सब कुछ त्यागो और त्यागने के अहंकार को भी त्यागो। और कुछ मत त्यागो और त्यागने का या आसक्ति का अहंकार छोड़ दो तो भी त्याग है। दोनों प्रकार का त्याग है...
• सन्दर्भ - 'गुरु सेवा' पुस्तक
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - देश का सबसे बड़ा त्योहार दिवाली (Diwali 2021) आने में अब बस कुछ ही दिन बचे हैं. मान्यता है कि उस दिन मां लक्ष्मी घर में प्रवेश करती हैं और सालभर परिवार में खुशहाली बरसाती हैं. यही वजह है कि माता लक्ष्मी के आगमन से पहले लोग अपने घरों की साफ-सफाई करने में जुट जाते हैं. शकुन शास्त्र (Shakun Shastra) के मुताबिक अगर दिवाली (Diwali 2021) की रात को कुछ जीव आपको घर में या आसपास नजर आ जाएं तो इसे माता लक्ष्मी (Maa Lakshmi) के आगमन का सूचक माना जाता है. आइए जानते हैं कि वे कौन से जीव हैं, जिनका दिवाली की रात दिखना शुभ माना जाता है.छिपकलीछिपकली घरों में दिखने वाला एक सामान्य जीव है. जिसे हम अक्सर कमरे से भगाने की कोशिश करते हैं. हालांकि यह हमें कोई नुकसान नहीं पहुंचाती और मच्छर-मक्खी जैसे छोटे जीवों को खाकर घर की सफाई करती रहती है. शकुन शास्त्र (Shakun Shastra) के मुताबिक दिवाली की रात को छिपकली देखना शुभ माना जाता है. कहा जाता है कि इससे घर में खुशियां और सुख-समृद्धि आने लगती है.बिल्लीशकुन शास्त्र (Shakun Shastra) के अनुसार दिवाली (Diwali 2021) की रात घर में या आस-पास बिल्ली दिखना मां लक्ष्मी के आने का सूचक होता है. माना जाता है कि बिल्ली दिखने से घर में खुशहाली आने लगती है.गायभारतीय संस्कृति में गाय हमेशा से एक पवित्र जीव रहा है. दूसरे शब्दों में कहा जाए तो गाय को देवत्व का प्रतीक माना जाता है. दिवाली (Diwali 2021) की रात में गाय का दिखना बहुत शुभ माना जाता है. इसे घर में मां लक्ष्मी के आगमन का प्रतीक होता है. इससे परिवार के लोगों में स्नेह बढ़ता है और एका मजबूत होती है.उल्लूउल्लू को मां लक्ष्मी का वाहन माना जाता है. शकुन शास्त्र (Shakun Shastra) के मुताबिक दिवाली की रात उल्लू का दिखना बहुत शुभ माना जाता है. मान्यता है कि इससे साल भर घर में मां लक्ष्मी का वास बना रहता है. इसको देखने से घर में सुख-समृद्धि का वास होता है.छछूंदरछछूंदर चूहे की तरह दिखने वाला एक छोटा जीव होता है. आमतौर पर इस जीव को घर में दिखना खराब माना जाता है. हालांकि शकुन शास्त्र में कहा गया है कि अगर दिवाली (Diwali 2021) की रात को छछूंदर दिख जाए तो वह शुभ होता है. मान्यता है कि ऐसा करने से घर की आर्थिक तंगी दूर होती है और परिवार के सारे बिगड़े काम बनने लगते हैं.
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पति की लंबी आयु के लिए रखा जाता है करवा चौथ का व्रत
वां सृष्टि सम्वत
चंद्र दर्शन के साथ ही करवा चौथ का व्रत तोड़ा जाता है
शाम 5:29 से 6:46 के मध्य शुभ मुहूर्त है शाम 6:45 से 8:45 वृषभ लग्न में बहुत ही शुभ मुहूर्त बन रहा है
--पढि़ए ज्योतिषी व वास्तुशास्त्री विनीत शर्मा का आलेख
करवा का अर्थ है मिट्टी का बर्तन और चौथ चतुर्थी तिथि को कहा जाता है. आज के शुभ दिन महिलाएं करवा के शुद्ध बर्तन में गेहूं, चावल या जौ आदि रख कर चंद्रदेव की पूजा उपासना करती हैं. इस बार 24 अक्टूबर को संकष्टी चतुर्थी और करवा चौथ का व्रत मनाया जाएगा.
करवा का अर्थ है मिट्टी का बर्तन और चौथ चतुर्थी तिथि को कहा जाता है. आज के शुभ दिन महिलाएं करवा के शुद्ध बर्तन में गेहूं, चावल या जौ आदि रख कर चंद्रदेव की पूजा उपासना करती हैं. करवा चौथ का पर्व प्रमुख रूप से सनातनी महिलाएं अपने पति की लंबी आयु, सौभाग्य, आरोग्य, श्री और ऐश्वर्य की वृद्धि के लिए रखती हैं. इस बार 24 अक्टूबर को संकष्टी चतुर्थी और करवा चौथ का व्रत मनाया जाएगा.
करवा चौथ का पर्व बहुत ही विशिष्ट माना गया है. करवा चौथ के दिन संपूर्ण शिव परिवार की पूजा उपासना की जाती है. आज के दिन भगवान शिव, गणेश, माता पार्वती और कार्तिकेय स्वामी की पूजा का विधान है. माता पार्वती ने ब्रह्मचारिणी रूप में शिव को पाने के लिए कठिन साधना और व्रत किया था.होती है चंद्रदेव की पूजाकरवा का अर्थ है मिट्टी का बर्तन (Clay Pot) और चौथ चतुर्थी तिथि को कहा जाता है. आज के शुभ दिन महिलाएं करवा के शुद्ध बर्तन में गेहूं, चावल या जौ आदि रख कर चंद्रदेव की पूजा-उपासना (Worship) करती हैं. करवा चौथ का पर्व प्रमुख रूप से सनातनी महिलाएं (Sanatani Women) अपने पति की लंबी आयु, सौभाग्य, आरोग्य, श्री और ऐश्वर्य की वृद्धि के लिए रखती हैं. माता के इस निश्चल त्याग तप और महान श्रद्धा से प्रभावित होकर भगवान शिव प्रकट हो जाते हैं और माता पार्वती को अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार करते हैं.इसी से प्रेरित होकर सौभाग्यवती महिलाएं (Lucky Ladies) आज के दिन निराहार निर्जला रहते हुए पति की आयुष्य की कामना करते हुए इस व्रत को धारण करती हैं और चंद्र दर्शन (Moon Sighting) के पश्चात ही इस व्रत को तोड़ती हैं. अनेक जगहों पर छन्नी के द्वारा चांद को देख कर इस व्रत को तोड़ा जाता है. उत्तर भारत में यह पर्व बहुत ही वृहद उत्सव के रूप में मनाया जाता है. संपूर्ण घर (Perfect House) परिवार में रौनक का वातावरण रहता है. महिलाएं मेहंदी (Mehndi) लगा कर इस व्रत को करती हैं.
अखंड सुहाग के लिए महिलाएं रखेंगी निर्जला व्रतकरें शीतकारी प्राणायामआज के दिन कुमकुम, शहद, रौली सामाग्री, हल्दी, दूध, शक्कर, मेहंदी आदि चीजों से भगवान की पूजा की जाती है. यह उपवास एक कठिन उपवास है. इसे श्रद्धा, आस्था, धीरज और संयम से किया जाना चाहिए. इस व्रत को करते समय कुशलतापूर्वक शीतकारी प्राणायाम का उपयोग किया जाना चाहिए. जिससे शरीर को बल और ऊर्जा मिलती है. रात के समय चंद्र देवता का दर्शन कर दूध आदि सामग्रियों से व्रत को तोड़ा जाता है. संकष्टी चतुर्थी रोहिणी नक्षत्र वरीयान और प्रजापति योग (Prajapati Yoga) में मनाया जाएगा. इसे करक चतुर्थी या दासरथी चतुर्थी भी कहा जाता है. आज के दिन चंद्रमा अपनी उच्च राशि में विराजमान रहेगा. आज के शुभ दिन भद्र योग (Bhadra Yoga) शश योग नीच भंग राजयोग का सुखद संयोग बन रहा है
- 'Happy KARWACHAUTH''करवाचौथ' पर्व की हार्दिक शुभकामनायें!!
• जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'करवाचौथ' पर्व के महात्म्य व उद्देश्य पर दिया गया प्रवचन :::
करवा चौथ आज गोविन्द राधे,पतिव्रता पति हित व्रत करवा दे..(स्वरचित दोहा)
यह पर्व पति के हित के लिये होता है. तो संसारी पति के हित के लिये लोग करते हैं. किन्तु आप लोग तो माधुर्य भाव के उपासक हैं. श्यामसुंदर के सुख के लिये, उनके हित के लिये, ये व्रत कर सकते हैं.
ये पतिव्रता स्त्रियाँ करती हैं. अनन्य भक्त जो केवल हरि और गुरु दो ही से मन का सम्बन्ध रखते हैं और किसी में मन का अटैचमेंट (attachment) नहीं होने देते, ऐसे अनन्य भक्तों का ये करवा चौथ व्रत होना चाहिये. यद्यपि होता है संसारी पति के लिये, वो तो एक्टिंग (acting) है. दिन भर स्त्री पति से लड़ती रहती है और करवा चौथ का व्रत करती है. वो तो अनन्य है भी नहीं. क्यूंकि मन का निरंतर अनुकूल होना पतिव्रत धर्म है. यानि एक सेकंड (second) को भी पति के विपरीत न सोचे, न सोचे - बोले वोले की बात छोड़ो. हमारा पति, क्या हमारा भी भाग्य है ऐसा पति मिला ! दिन भर आप लोग अपने पति के प्रति ऐसी बातें पचास बार सोचते हैं. वो पतिव्रता नहीं.
एक पतिव्रता स्त्री धान कूट रही थी. पति बाहर से आया उसने कहा पानी पिला दे. तो उसने मूसल को ऊपर ही छोड़ दिया हाथ से ये वाक्य सुनते ही. तो वो मूसल ऊपर ही टंगा रहा. वो गई, पानी दिया, पानी पी के पति चला गया. उसकी पड़ोसन भी वहीं बैठी हुई थी, उसने देखा कि ये अजीब जादू है. ये मूसल ऊपर ऐसे रुका रहा आकाश में, तो उसने पूछा तूने कोई मंत्र सिद्ध किया है ? कैसे ये ऐसा हो गया ? उसने कहा नहीं ये तो पतिव्रत धर्म में ये कमाल होता है. ऐसी बातें कर सकती है वो स्त्री. तो वो पतिव्रता का अर्थ समझती थी कि शरीर का सम्बन्ध खाली पति में हो और कहीं न हो वो पतिव्रता है. ऐसा समझती थी वो पतिव्रता का अर्थ और लड़ती रहती थी दिन भर.
वो अपने घर गई और पति से कहती है देखो जी मैं ऐसे मूसल करुँगी तो तुम कहना पानी लाओ, तो ये मूसल ऊपर टंगा रहेगा ऐसे. पति ने कहा क्यों? पतिव्रत धर्म में ये कमाल होता है. पति को बड़ा कौतुहल हुआ उन्होंने कहा ठीक है मैं ऐसे बोलूँगा. तो उसने ऐसे मूसल को जो ऊपर किया, पति ने कहा पानी लाओ, तो मूसल छोड़ दिया वो नाक के ऊपर होता हुआ नीचे गिर गया ,पति हँसने लगा. अब स्त्री को बड़ी शर्म आई कि अब तो इसको हमारे केरेकटर (character) पर भी डाऊट (doubt) हो जाएगा कि मैं पतिव्रता नहीं हूँ. वो गई पड़ोसन के यहाँ लड़ने कि क्यों रे! तूने तो मेरी नाक कटा दी...
तो उसने समझाया देख सखी ! पतिव्रता का अर्थ होता है जो पति के खिलाफ कभी कुछ मन से भी न सोचे. मन से भी. तो तूने तो पति के खिलाफ हज़ार बार सोचा है. क्या हमारी भी तकदीर है ऐसा पति मिला और ज़बान से भी लड़ती रहती है. उसको पतिव्रता नहीं कहते.
तो ऐसे ही जो भक्त भगवान् की हर क्रिया में विभोर हों. गौरांग महाप्रभु ने कहा था.. 'हे श्यामसुंदर ! तुम चाहे मेरा आलिंगन करके प्यार कर लो और चाहे चक्र चला करके गर्दन काट दो और चाहे उदासीन हो जाओ, हम तो उसी प्रकार प्यार करेंगे तुम्हारे हर क्रिया में, विभोर होंगे.' ये व्रत है, भगवत्व्रत कहो, पतिव्रत कहो.
तो कोई भी व्रत मन से होता है. अगर मन गड़बड़ हो गया तो वो व्रत नहीं है. वो मातृव्रत, पितृव्रत हो, गुरुव्रत हो, भगवत्व्रत हो, कोई व्रत हो. तो ये करवा चौथ पतिव्रता स्त्रियों के लिये होता है, जो पति की भक्त होती हैं और असली पति आत्मा का भगवान् है. इसलिए श्री कृष्ण के प्रति आप लोगों को यदि इच्छा हो तो व्रत करो. व्रत का मतलब ये नहीं है कि खाना न खाना. ये तो ढोंग है, दंभ है, पाखण्ड है, दिखावा है. खाना न खाना एक दिन अच्छा है पेट अच्छा हो जाएगा. एक टाइम (time) न खाओ, दोनों टाइम न खाओ, खाली फल खाओ, फल भी न खाओ - ये सब तो बाहरी क्रियाएं हैं. असली व्रत है मन का चिंतन, मन का अनुकूल होना, मन से उनकी उपासना करना, सेवा करना - ये असली चीज़ है. तो करवा चौथ का ये अभिप्राय असली है, स्पिरिचुअल (spiritual)। उसी को मान कर आप लोग श्री कृष्ण भक्ति करें. ये संसारी पति-वति का मामला आपके व्रत करने से सब निरर्थक है. न पति की उमर बढ़ेगी, न कल्याण होगा. आप चाहे दस बीस दिन भूखे रहें उससे कुछ नहीं होना जाना..
• सन्दर्भ - साधन साध्य पत्रिका
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर तरह के ग्रहण को अशुभ ही माना जाता है। ग्रहण के दौरान सभी जीव-जंतुओं और मनुष्यों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कहा जाता है कि चंद्र ग्रहण के दौरान किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य को नहीं किया जाना चाहिए। साल 2021 में सबसे पहला चंद्र ग्रहण 26 मई 2021 को लगा था और साल 2021 का आखिरी चंद्र ग्रहण 19 नवंबर को लगने वाला है। ये ग्रहण आंशिक रूप से लगेगा जो कि भारत, अमेरिका, उत्तरी यूरोप, पूर्वी एशिया, ऑस्ट्रेलिया और प्रशांत महासागर क्षेत्र में दिखाई देगा। इस बार साल का दूसरा और अंतिम चंद्र ग्रहण कुछ राशियों के साथ देश-दुनिया के लिए भी काफी महत्वपूर्ण बताया जा रहा है।किस पर पड़ेगा प्रभाव?ये आखिरी ग्रहण वृषभ राशि में लगने वाला है और इन राशि के लोगों को तंग भी कर सकता है, हालांकि ये आंशिक ग्रहण है इसलिए इसका सूतक काल नहीं लगेगा।कैसे लगता है ग्रहण?चंद्र ग्रहण एक महत्वपूर्ण खगोलीय घटना है। जब सूर्य और चंद्रमा के बीच में पृथ्वी आ जाती है तो चंद्रमा पूरी तरह या आंशिक रूप से ढंक जाता है और सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीध में आ जाते हैं इसे चंद्र ग्रहण कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार जब ग्रहण पूर्ण होता है तो उसका प्रभाव अधिक होता है। जब पूर्ण चंद्र ग्रहण होता है तभी सूतक के नियमों का पालन करने की सलाह दी जाती है, लेकिन अगर उपछाया ग्रहण हैं तो इसमें सूतक के नियमों का अधिक पालन नहीं किया जाता है। आपको बताते चलें कि चंद्र ग्रहण हमेशा 'पूर्णिमा' को लगता है।कब है चंद्र ग्रहण?ज्योतिष गणना के अनुसार साल का अंतिम चंद्र ग्रहण दिवाली के बाद 19 नवंबर 2021 को लगने जा रहा है। हिंदू पंचांग के अनुसार चंद्र ग्रहण विक्रम संवत 2078 में कार्तिक मास की पूर्णिमा को कृत्तिका नक्षत्र और वृषभ राशि में लगने वाला है। यह चंद्र ग्रहण 19 नवंबर को 11 बजकर 34 मिनट से शुरू होकर शाम 05 बजकर 33 मिनट पर खत्म होगा।चंद्र ग्रहण तीन तरह के होते हैं -पूर्ण चंद्र ग्रहण , आंशिक चंद्र ग्रहण और उपछाया चंद्र ग्रहण।आपको बता दें कि 19 नवंबर को उपछाया चंद्र ग्रहण लगेगा, जिसे कि पेनुमब्रल भी कहते हैं।
- • जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 427
साधक का प्रश्न ::: जैसे हम कर्म का फल भोगते हैं क्या सन्त महात्मा भी कर्म का फल भोगते हैं?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: दो प्रकार की माया होती है एक तो त्रिगुणात्मिका माया तीन गुण वाली सत्व गुण, रजोगुण, तमोगुण और एक योगमाया दिव्य माया, इन दोनों का कार्य तो एक सा होता है कार्य में अन्तर नहीं है। जैसे माया वाला कर्म करता है सब इन्द्रियों से ऐसे ही योगमाया वाला भी सब कर्म करता है इन्द्रियों से लेकिन योगमाया वाले के कर्म का फल उसको नहीं मिलता, उसका बन्धन उसको नहीं होता और माया वाले को बन्धन हो जाता है, इतना सा अन्तर है। माया वाले के मन का अटैचमेन्ट कर्म में हो जाता है और योगमाया वाले के मन का अटैचमेन्ट भगवान् में ही रहता है क्योंकि वह भगवत्प्राप्ति कर चुका है। अब उसके मन को संसार में खिंचने का कोई साधन ही नहीं। कोई भगवान् से बड़ी चीज हो, बड़ा आनन्द हो, मैटीरियल हैपीनेस हो कोई ऐसी तब तो वो खिंच जाय। जब इसका अनन्त गुना आनन्द भगवान् में है स्वर्गादिक लोकों का भी अनन्त गुना, करोड़ अरब नहीं तो फिर उसका मन संसार में क्या खिंचेगा। हाँ, ये ठीक है रसगुल्ला खायेगा महापुरुष भी और रसगुल्ला खायेगा संसारी भी, दोनों सिर हिलायेंगे, बड़ा अच्छा है। वो भगवान् का प्रसाद समझकर खा रहा है, उसका मन भगवान में अटैच्ड है वो रसगुल्ले का आनन्द नहीं ले रहा है वो अपना रामानन्द, कृष्णानन्द, प्रेमानन्द, श्यामानन्द ले रहा है और हम समझ रहे हैं जैसे हम रसगुल्ला खाके सिर हिला रहे हैं ऐसे ही यह भी हिला रहा है हमारी तरह यह भी है। यानी माया का और योगमाया का कार्य एक सा है। हम लोग शादी ब्याह करते हैं एक स्त्री होती है दो चार बच्चे होते हैं उसी में परेशान रहते हैं टेन्शन रहता है और भगवान् ने सोलह हजार एक सौ आठ शादी की और एक-एक स्त्री से दस-दस बच्चे, फिर उनके करोड़ों बच्चे इतनी बड़ी फैमिली और कोई कहीं आसक्ति नहीं, कहीं अटैचमेन्ट नहीं, कहीं टेन्शन नहीं सबको मरवा दिया आपस में लड़ा करके और हमेशा मुस्कराते रहे, शादी के पहले भी, शादी के समय भी, शादी के बाद भी, सबको मरवाने के बाद भी, एक सी स्थिति।
प्रह्लाद एक महापुरुष थे आप लोग नाम सुने होंगे। एक बार प्रह्लाद के लड़के विरोचन और प्रह्लाद के गुरु के लड़के इन दोनों में होड़ हो गयी। प्रह्लाद के लड़के ने कहा मैं राजा का लड़का हूँ, इसलिये मैं तुमसे बड़ा हूँ हमारा सम्मान करो और गुरु पुत्र कहे तुम्हारे बाप का पूज्य हमारा बाप इसलिये तुम्हारे पूज्य हम, हम बड़े हैं। अब कोई किसी की माने ही न। दोनों लड़के। तो यह हुआ कि भई इसका फैसला कैसे हो? शर्त लग गयी अगर तुम्हारी बात सही तो हमारा प्राण तुम्हारे हाथ और अगर हमारी बात सही हुई तो तुम्हारा प्राण हमारे हाथ इतनी बड़ी शर्त लग गयी, लेकिन अब फैसला कौन करे? तो गुरु पुत्र ने कहा कि तुम्हारे बाप। गुरु पुत्र के बाप ने बता दिया था कि प्रह्लाद महापुरुष है उसका कहीं लगाव नहीं है, न हो सकता है। बचपन में ही उसने भगवत्प्राप्ति कर ली थी। भगवान् का अवतार हुआ था उसके लिये। इसलिये उसने कह दिया कि तुम्हारे बाप फैसला करेंगे । गये दोनों प्रह्लाद के पास। प्रह्लाद ने कहा, तुम दोनों हमारा फैसला मानोगे, वादा करो। उन्होंने कहा, हाँ मानेंगे। तो प्रह्लाद ने कह दिया अपने पुत्र से कि तुम हार गये। यह गुरु पुत्र हमसे भी पूज्य है तुम ही से नहीं। हूँ, चढ़ा दो फाँसी पर। फाँसी के तख्ते पर खड़े कर दिये गये विरोचन। अकेला पुत्र और सारी पृथ्वी का राजा प्रह्लाद। उस जमाने में प्रजातंत्र नहीं था और मुस्कराते रहे। तब गुरु पुत्र ने कहा कि मैं तुम्हारा पूज्य हूँ, बड़ा हूँ? हाँ हाँ । तो तुमको हमारी आज्ञा मानना होगा। जो आज्ञा। इसको छोड़ दो, अपने बेटे को। उसने कहा छोड़ दो भाई। दोनों अवस्थाओं में एक सी स्थिति।
तो भगवान् और महापुरुष इन दोनों का कार्य योगमाया से होता है इसलिये कार्य तो मायिक होता है लेकिन फल कुछ नहीं मिलता उस कर्म का, वह कर्म दिव्य माना जाता है। तुलसीदास ने लिखा;
जाको हरि दृढ़ करि अंग कर् यो।उत्पत्ति पांडु सुतन की करनी , सुनि सतपंथ डरयो।(विनय पत्रिका)
पाण्डवों की उत्पत्ति, पाँच पति से पाँच बच्चे हुये, पाण्डव। कितना खराब करैक्टर और फिर पाँचों ने एक पत्नी बना लिया। और सुनो द्रोपदी । जहाँ कानून बना रहे हैं रामावतार में कि;
अनुज वधू भगिनी सुत नारी।सुनु सठ कन्या सम ए चारी।।
छोटे भाई की बीबी में दुर्भावना करने वाले को मार देने में कोई पाप नहीं। और यहाँ बड़ा भाई , छोटे भाई सबकी बीबी एक और वो सब महापुरुष हैं। ये योगमाया का कार्य है। इसलिये उसका कोई फल नहीं मिलता है। वह देखने मे आता है मायिक कर्म। कर्म का स्वरूप एक-सा लेकिन एक कर्म योगमाया से, एक कर्म माया से। तो मायिक कर्म का फल मिलता है, योगमाया के कर्म का फल नहीं मिलता है। भगवत्प्राप्ति के बाद कुछ भी करे महापुरुष फिर उसको कोई न अच्छे कर्म का फल मिलता है न बुरे कर्म का।
नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन।(गीता 3-18)
अच्छा कर्म करे तो;
कुशलाचरितेनैषामिह स्वार्थो न विद्यते।विपर्ययेण वानर्थो निरहंकारिणां प्रभो।।(भागवत 10-33-33)
शुभ आचरण करे तो फल नहीं मिलेगा। विपर्यय; उलटा करे तो भी उसको फल नहीं मिलेगा। जैसे - गेहूँ है, चना है, ये बोरे में बन्द है; अगर उसको हम डाल देते हैं खेत में तो उसमें पेड़ पैदा हो जाता है अंकुर होकर के लेकिन अगर गेहूँ को, चने को, लावा बना लें, भून लें भाड़ में और फिर खेत में डालें तो;
भर्जिताः क्वथिता धानः प्रायो बीजाय नेष्यते।
फिर उसमें पेड़ नही पैदा होगा क्योंकि बीज शक्ति भस्म हो गयी। ये माया की जो शक्ति है अविद्या ये समाप्त हो जाती है, भगवत्प्राप्ति के बाद। इसलिए उसके कार्य को संसार देखता है लेकिन वह कार्य नहीं वह कर्म नहीं। वह अलौकिक कर्म है। उसके नीचे होता है निष्काम कर्म, वो अलौकिक कर्म है योगमाया वाला और साधक जो कर्म करता है जिसमे मन का अटैचमेंट भगवान में हो और इन्द्रियों से कर्म हो, थोड़ा बहुत करते हैं आप लोग भी, जैसा मैंने बताया रूपध्यान भी कर रहे है कर रसना से लाइन भी गा रहे हैं पद की, बाजा भी बजा रहे हैं, झाँझ भी बजा रहे हैं, ये थोड़ा-थोड़ा आप भी कर लेते हैं। यही अभ्यास बढ़ते-बढ़ते ये उच्च कोटि के साधक को वहाँ पहुँचा देता है कि अटैचमेन्ट नहीं है कर्म हो रहा है। तो ये उच्च कोटि के साधक भी ऐसे कर्म कर लेते हैं जिसका फल न मिले। बस मन का अटैचमेन्ट न हो सीधी-सीधी बात है। यह कर्म की संक्षिप्त परिभाषा है।
• सन्दर्भ - प्रश्नोत्तरी, भाग 2, प्रश्न संख्या 30
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - इस साल धनतेरस 2 नवंबर मंगलवार को मनाई जाएगी. ये कार्तिक मास के 13वें दिन पड़ती है. इस दिन को ‘उदयव्यपिनी त्रयोदशी’ के नाम से भी जाना जाता है. ये दीपावली से 2 दिन पहले मनाई जाती है. इस दिन लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, दिवाली का सामान खरीदते हैं और मिठाइयां बनाते हैं.धनतेरस को सोना या रसोई का नया सामान खरीदने के लिए शुभ दिन माना जाता है. दीपों का त्योहार दीपावली धनतेरस से शुरू होकर भैया दूज पर समाप्त होता है.धार्मिक मान्यताओं के अनुसार दीपावली के दो दिन पूर्व धनतेरस को भगवान धन्वंतरि का जन्म धनतेरस के रूप में मनाया जाता है. जब भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए थे तब उनके हाथ में अमृत से भरा कलश था. हिन्दू धर्म के अनुसार ये आयुर्वेद के देवता हैं. इस दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा करना बहुत ही शुभ माना जाता है. धनतेरस को धनत्रयोदशी और धन्वंतरि जयंती के नाम से भी जाना जाता है.महालक्ष्मी महालक्ष्मी की पूजाहिंदू पौराणिक कथाओं में ‘धनत्रयोदशी’ को शुभ माना जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन देवी लक्ष्मी, धन के देवता भगवान कुबेर के साथ, समुद्र के मंथन के दौरान समुद्र से निकली थीं. तब से लोगों ने एक सफल जीवन जीने के लिए देवी लक्ष्मी और भगवान कुबेर से दिव्य आशीर्वाद लेने के लिए प्रार्थना करना शुरू कर दिया. धनतेरस के दिन सोना या चांदी जैसी कीमती धातु खरीदना भी घर में देवी लक्ष्मी का स्वागत करने के संकेत के रूप में शुभ माना जाता है. धनतेरस का दिन नया व्यवसाय शुरू करने या घर, कार और गहने खरीदने के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है.धनतेरस 2021: मुहूर्त और पूजा का समयत्रयोदशी तिथि शुरू- 02 नवंबर, 2021 11:31त्रयोदशी तिथि समाप्त- 03 नवंबर, 2021 09:02सूर्योदय- 02नवंबर, 2021 06:36सूर्यास्त- 02 नवंबर, 2021 05:44धनतेरस की पूजा विधिधनतेरस की पूजा के लिए सबसे पहले एक चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं. इसके बाद गंगाजल छिड़ककर भगवान धन्वंतरि, माता लक्ष्मी और भगवान कुबेर की प्रतिमा स्थापित करें. भगवान के सामने घी का दिया जलाएं. धूप और अगरबत्ती लगाएं. भगवान को लाल रंग के फूल अर्पित करें. इस दिन आप जो भी धातु , ज्वेलरी या बर्तन खरीदें उसे चौकी पर रखें. पूजा के दौरान “ॐ ह्रीं कुबेराय नमः” का जाप करें. धनवंतरि स्तोत्र का पाठ करें. लक्ष्मी स्तोत्र और लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें..
- कुछ लोगों को सालों तक ढूंढने और इंतजार करने के बाद भी जीवनसाथी नहीं मिलता है तो कुछ लोगों को घंटों के सफर में हमसफर मिल जाता है. वे अपने सहयात्री के ही प्यार में पड़ जाते हैं और उसे जिंदगी भर का साथी बना लेते हैं. हस्तरेखा के मुताबिक इन स्थितियों के लिए हाथ की रेखाएं भी जिम्मेदार होती हैं. आज शादी से जुड़े ऐसे ही संयोगों के बारे में जानते हैं जिनके बारे में हस्तरेखा शास्त्र से पता चल जाता है.ऐसे बनते हैं शादी के अजीब संयोगकई लोगों के हाथ में यात्रा से जुड़े शादी (Marriage) के योग भी बनते हैं. यानी ऐसे लोग जो यात्राओं के दौरान ही किसी को दिल दे बैठते हैं. वहीं हाथ ही रेखाएं यात्राओं से जुड़े अन्य शुभ-अशुभ संकेत भी देती हैं.- जिन लोगों के हाथ में चंद्र पर्वत से कोई रेखा निकलकर बुध पर्वत तक जाए तो उसे यात्रा से अचानक धन लाभ होता है.- जिन जातकों के हाथ में चंद्र पर्वत से निकली यात्रा रेखा हथेली के मध्य से ही मुड़कर वापस चंद्र पर्वत पर ही लौट आए तो ऐसा व्यक्ति अपने काम के लिए विदेश तो जाता है, लेकिन वापस भी लौट आता है.- चंद्र पर्वत से रेखा निकलकर गुरु पर्वत तक जाए तो व्यक्ति के विदेश में बसने की बहुत ज्यादा संभावना होती है. ऐसे लोग विदेश में ही शादी रचा लेते हैं.- ऐसे जातक जिनके हाथ में चंद्र पर्वत से निकली रेखा हृदय रेखा तक जाए तो व्यक्ति को यात्रा में ही अपना जीवनसाथी मिल जाता है. ऐसे लोगों को अपना प्यार यात्रा के दौरान ही मिलता है.- यदि चंद्र और शुक्र पर्वत उभरे हुए हों और जीवन रेखा पूरे शुक्र क्षेत्र को घेरकर शुक्र पर्वत के मूल तक जाए तो ऐसे लोग ढेर सारी यात्राएं करते हैं
- इस समय बुध कन्या राशि में संचार कर रहे हैं और गुरु मकर राशि में। गुरु और बुध 18 अक्टूबर को वक्री से मार्गी हुए हैं। ज्योतिष में गुरु और बुध को विशेष स्थान प्राप्त है। ज्योतिष में बुध को बुद्धि, तर्क, संवाद, गणित, चतुरता और मित्र का कारक ग्रह कहा जाता है। सूर्य और शुक्र, बुध के मित्र हैं जबकि चंद्रमा और मंगल इसके शुत्र ग्रह हैं। वहीं देवगुरु बृहस्पति को ज्ञान, शिक्षक, संतान, बड़े भाई, शिक्षा, धार्मिक कार्य, पवित्र स्थल, धन, दान, पुण्य और वृद्धि आदि का कारक ग्रह कहा जाता है। बृहस्पति ग्रह 27 नक्षत्रों में पुनर्वसु, विशाखा, और पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र के स्वामी होते हैं। बुध देव 2 नवंबर को राशि परिवर्तन करेंगे और गुरु 20 नवंबर को राशि परिवर्तन करेंगे। ज्योतिष गणनाओं के अनुसार आने वाले 12 दिनों तक कुछ राशियों पर गुरु और बुध की विशेष कृपा रहेगी।वृष राशिवृष राशि के जातकों के लिए ये समय किसी वरदान से कम नहीं कहा जा सकता है।दांपत्य जीवन सुखमय रहेगा।कार्यों में सफलता प्राप्त करेंगे।आर्थिक पक्ष मजबूत होगा।मित्रों का सहयोग मिलेगा।धार्मिक कार्यों में हिस्सा लेने का अवसर मिलेगा।कन्या राशिकन्या राशि के जातकों के लिए ये समय शुभ रहने वाला है।आत्मविश्वास में वृद्धि होगी।नौकरी और व्यापार में लाभ होगा।आपके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना की जाएगी।धन- लाभ होगा, जिससे आर्थिक समस्याओं से छुटकारा मिलेगा।जीवनसाथी के साथ समय व्यतीत करेंगे।वृश्चिक राशिगुरु और बुध का मार्गी होना वृश्चिक राशि के जातकों के लिए शुभ कहा जा सकता है।नौकरी और व्यापार के लिए ये समय किसी वरदान से कम नहीं कहा जा सकता है।आर्थिक पक्ष मजबूत होगा।वैवाहिक जीवन सुखमय रहेगा।परिवार के सदस्यों के साथ समय व्यतीत करेंगे।इस समय निवेश करने से लाभ हो सकता है।धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यों में हिस्सा लेने का अवसर मिलेगा।धनु राशिबुध और गुरु के मार्गी होने से धनु राशि के जातकों को शुभ फल की प्राप्ति होगी।भाग्य का पूरा साथ मिलेगा।धन- लाभ होगा, जिससे आर्थिक पक्ष मजबूत होगा।मान- सम्मान और पद- प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।नौकरी और व्यापार में लाभ के योग बन रहे हैं।सामाजिक कार्यों में हिस्सा लेंगे।मीन राशिमीन राशि के जातकों के लिए बुध और गुरु का मार्गी होना किसी वरदान से कम नहीं है।व्यापार में लाभ होगा।कार्यक्षेत्र में आपके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना की जाएगी।जीवनसाथी के साथ समय व्यतीत करेंगे।नौकरीपेशा लोगों के लिए भी ये समय शुभ रहेगा।
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Happy
MAA BHAGWATI MAHOTSAVA
(जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के अवतरण पर उनकी जननी अखंड सौभाग्यवती माता भगवती जी के आँगन में मनाये जाने वाले अनंत हर्षोल्लास और बधाई के पर्व 'माँ भगवती महोत्सव' की आप सभी को शुभकामनायें...)
आरति भगवति माँ की कीजै,
जय जय जननि जगदगुरु की जै।
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी का अवतरण शरद-पूर्णिमा की महारात्रि में इलाहाबाद के निकट मनगढ़ नामक छोटे से ग्राम में उच्च ब्राम्हण कुल में हुआ। वे इस युग के परमाचार्य हैं, भक्तियोगरसावतार हैं, निखिलदर्शनसमन्वयाचार्य हैं। एक अलौकिक व्यक्तित्व हैं, अपने शरणागतों के लिये उनका स्थान ऐसा है जैसे श्रीराधाकृष्ण तथा गुरु में कुछ भेद रह ही नहीं गया हो। ऐसी विभूति की जननी होने का सौभाग्य जिन्हें प्राप्त हो, उनके सौभाग्य की क्या तुलना हो सकती है। अखंड सौभाग्यवती माँ भगवती! जिनकी गोद में यह विभूति अवतरित हुई, आइये मन के भावराज्य में जाकर उनके श्रीचरणों में वन्दना के कुछ पुष्प अर्पित करें ::::::
हे भगवती मैया!!
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी की जननी होने
का परमातिपरम सौभाग्य प्राप्त करने वाली हे माता!
आपके चरणारविन्दों की बारम्बार वंदना..
आपकी गोद में शरद-पूर्णिमा की रात्रि में 'कृपा-शक्ति' का अवतरण हुआ है, इस युग के पंचम मूल जगदगुरुत्तम और भक्तियोग रस के अवतार श्री कृपालु महाप्रभु जी की जननी होने का परमातिपरम सौभाग्य आपको प्राप्त हुआ है। आपके ये लाड़ले सुत (पुत्र) उनके हम शरणागतों के लिये 'शरद-चंद्र' हैं। समस्त जगत आज उनके ज्ञान से आलोकित तथा प्रेम से सराबोर है। आज आपके द्वार पर उनके 'जन्म' का अनोखा महोत्सव दर्शनीय है!!
जैसा आनन्द ब्रम्ह श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव में 'नन्द-महामहोत्सव' में बरसा था, वैसा ही आनंदोल्लास आज आपके आँगन में बरस रहा है। इस 'भगवती-महामहोत्सव' के हम भी साक्षी बनने की याचना करते हैं।
वेद और शास्त्रों ने न जाने कहाँ उन पुण्यों का वर्णन किया है, जिसका सुफल यह होता है कि ऐसा सौभाग्य प्राप्त हो। लगता तो ऐसा है कि वेदादि श्रुतियाँ भी स्वयं आपके सौभाग्य की स्तुति करती होंगी!! आपने तथा पूजनीय पिता (श्री लालता प्रसाद त्रिपाठी जी) ने अपने 'कृपालु' सुपुत्र का आनंद और मस्ती से भरा बालपन देखा और जीया है।
★★ याद आता है वह एक संस्मरण....
एक दिन गाँव के ही एक प्रसिद्ध पंडित श्री नागेश्वर जी आपके (भगवती मैया) पास आये थे। आपने 'कृपालु' की जन्मपत्री उनके सामने रखी और अपने सुपुत्र का भविष्य पूछा। वे बड़ी देर तक गणना करते रहे फिर बोले :
'माँ जी! इसके नक्षत्र तो कहते हैं, यह कोई देव-पुरुष है. संसार का उद्धार करने आया है...'
आज विश्वविदित है कि आपका वह 'लाड़ला' सारे जगत का पूज्यनीय बना और सारे जगत पर अपनी दया, कृपा और प्रेम की वृष्टि की. वह 'जगदगुरुत्तम' कहलाया!!
आपके सुपुत्र सदैव आपके आज्ञाकारी रहे। आपने अपने लाड़-दुलार से सदैव उनका पालन किया है। हे भगवती मैया! हम भी आपके पुत्र-पुत्रियाँ ही तो हैं, हम भी आपका दुलार पाने और आपके 'लाड़ले' की सेवा करने को व्याकुल हैं। हे माँ! हम पर कृपा करो, हमें अपनी चेरी (दासी) बना लो और अपने 'कृपालु' की सेवा करने का सौभाग्य दे दो, हम सदा-सदा आपके ऋणी बने रहेंगे!!
आज आपके द्वार पर हर्षोल्लास है!! बधाईयाँ गाई जा रही हैं। सब एक-दूसरे को 'बधाई हो, बधाई हो' कह-कहकर प्रसन्नता बाँट रहे हैं। क्या स्त्री, क्या पुरुष? आपके दुआर पर तो देवी-देवता भी वंदन कर रहे हैं। ऐसे दुआर पर हम विश्व के प्रेम-पिपासु व्याकुल जीव याचना करते हुये आपको बधाई देने आये हैं। टूटे-फूटे शब्दों में आपकी तथा आपके सुपुत्र की स्तुति गाने का प्रयास करते हुये हे माँ! आपके चरणों पर हम सभी बारम्बार बलिहारी जाते हैं। आपको बहुत सारी बधाई, हमारा हृदय आपके 'कृपालु' की कृपाओं का चिरयुगी ऋणी है, आभारी है, कृतज्ञ है।
उनके द्वारा प्रदत्त, प्रगटित प्रवचन-साहित्यों, स्मृतियों तथा प्रेम, भक्ति तथा कीर्ति मन्दिर जैसे दिव्योपहारों के दर्शन, सँग करते-करते निश्चय ही हम सभी अपने कल्याण के पथ पर अग्रसर करेंगे और उनकी दिव्य सन्निधि का अनुभव कर-करके श्यामा-श्याम की सेवा प्राप्त कर लेंगे।
समस्त विश्व-परिवार को 'माँ भगवती-महोत्सव' की अनंत शुभकामनायें!!
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- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।
- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(5) www.youtube.com/JKPIndia
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)
- भारत में भगवान राम के सबसे बड़े भक्त बजरंग बली के कई प्रसिद्ध मंदिर हैं। श्रीराम भक्त हनुमान को अनेक नामों से उनके भक्त पुकारते हैं। भगवान बजरंगबली को लोग संकटमोचक कहकर भी पुकराते हैं। मान्यता है कि हनुमानजी की पूजा करने से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।बजरंग बली के प्रसिद्ध मंदिरों में राजस्थान का मेहंदीपुर बालाजी मंदिर भी शामिल है। यह मंदिर राजस्थान के दौसा की दो पहाडिय़ों के बीच स्थित है। इस मंदिर में सालभर भक्त आते हैं और यहां से खुश होकर जाते हैं। .मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में महाबली हनुमान जी अपने बाल स्वरूप में विराजमान हैं। उनके ठीक सामने भगवान राम और माता सीता की प्रतिमा स्थापित है। बताया जाता है कि यहां आने वाले भक्तों के लिए एक खास नियम है। इस नियम के मुताबिक, दर्शन से कम से कम एक हफ्ते पहले से भक्तों को प्याज, लहसुन, नॉनवेज, शराब आदि का सेवन बंद कर देना चाहिए।खुश होकर लौटते हैं भक्तमान्यता है कि मेहंदीपुर बालाजी मंदिर में हनुमान जी के दर्शन के बाद ऊपरी बाधाओं से लोगों को मुक्ति मिल जाती है। इससे छुटकारा के लिए बड़ी संख्या भक्त यहां पहुंचते हैं। यहां पर प्रेतराज सरकार और भैरव बाबा की प्रतिमा भी स्थापित है। हर दिन प्रेतराज सरकार के दरबार में पेशी (कीर्तन) किया जाता है। यह दो बजे होता है। माना जाता है कि यहां पर आने से लोगों पर मंडरा रहा ऊपरी साया दूर हो जाता है। मान्यता है कि हनुमानजी के इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति पूरी तरह से स्वस्थ्य होकर वापस आता है।इसलिए मंदिर से नहीं लाया जाता है प्रसादमेहंदीपुर बालाजी मंदिर का एक और नियम है। मान्यता है कि यहां के प्रसाद को न तो खाया जा सकता है और न ही किसी को दिया जा सकता है। इसके अलावा प्रसाद को घर भी नहीं लाया जा सकता है। प्रसाद को मंदिर में ही चढ़ाया जाता है। इस मंदिर से कोई भी खाने-पीने की चीज या सुगंधित चीज को अपने घर नहीं ला सकते हैं। कहा जाता है कि ऐसा करने से ऊपरी साया का प्रकोप उस इंसान पर हो जाता है।---------
- रत्नों का जिंदगी पर बहुत असर होता है। जिंदगी के तमाम पहलूओं और उनसे जुड़ी समस्याओं को लेकर रत्न शास्त्र में रत्न सुझाए गए हैं। फिर चाहे वह पैसे या करियर की बात हो या फिर रिश्तों की। रत्न शास्त्र में कुछ रत्न ऐसे बताए गए हैं जो बेहद प्रभावी होते हैं। माना जाता है कि ये रत्न पहनने से व्यक्ति मालामाल हो जाता है और उसकी जिंदगी खुशियों से भर जाती है। हालांकि इन रत्नों को धारण करने से पहले अपनी कुंडली दिखाकर विशेषज्ञ से सलाह जरूर ले लेनी चाहिए।मालामाल कर देते हैं ये रत्ननीलम रत्ननीलम रत्न सबसे प्रभावी रत्नों में से एक है। जिन जातकों की कुंडली में नीलम रत्न शुभ होता है, उन्हें यह रत्न पहनते ही तुरंत फर्क नजर आने लगता है, लेकिन याद रखें कि जब नीलम पहनें तो उसके साथ माणिक्य, मूंगा और पुखराज रत्न न पहनें। रत्नों का यह कॉम्बिनेशन नुकसादेह होता है।पन्ना रत्नपन्ना रत्न संकटों से बचाने में बहुत प्रभावी है, साथ ही कॅरिअर में तरक्की और धन-लाभ में भी उपयोगी है। इस रत्न को पहनने से व्यक्ति का आत्मविश्वास और बुद्धिमत्ता बढ़ जाती है। उसकी पर्सनालिटी आकर्षक हो जाती है, लेकिन इसके साथ मोती, मूंगा और पुखराज न पहनें।टाइगर रत्नयह रत्न नीलम की तरह बहुत जल्दी असर दिखाता है। यह रत्न पहनने से पैसों की तंगी दूर होती है और जल्दी ही धन लाभ होना शुरू हो जाता है। इसके अलावा जिंदगी की तमाम मुश्किलें भी दूर हो जाती हैं। यह रत्न करियर में तरक्की भी दिलाता है।जेड स्टोनजेड स्टोन धन लाभ कराने के साथ-साथ एकाग्रता भी बढ़ाता है । जॉब और बिजनेस में तरक्की के लिए हरे रंग का जेड स्टोन बहुत ही लाभदायक है। यह पदोन्नति-सम्मान और पैसा सब कुछ दिलाता है।
- भगवान विष्णु को समर्पित कार्तिक के महीने की शुरुआत 21 अक्टूबर से होने जा रही है. इसी माह में भगवान विष्णु देवोत्थान एकादशी के दिन चार महीने की निद्रा से जागते हैं. इसके साथ चातुर्मास की समाप्ति हो जाती है और शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं. मौसम के लिहाज से भी ये महीना काफी अच्छा होता है. इसमें न ज्यादा सर्दी होती है और न ही ज्यादा गर्मी.इसके अलावा कार्तिक के महीने में सालभर के कई बड़े त्योहार जैसे करवाचौथ, अहोई अष्टमी, दीवाली, भाईदूज आदि पड़ते हैं. इस कारण भी कार्तिक माह काफी विशेष माना जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि पढ़ाई के लिहाज से भी इस महीने को काफी उत्तम माना गया है? ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि कार्तिक के महीने में अगर छात्र कुछ आदतों का त्याग करके अध्ययन करें, तो उनकी एकाग्रता बढ़ने लगती है और वे तेजी से आगे बढ़ते हैं.सफलता की प्रबल संभावनाएं होतीं हैंज्योतिषाचार्य के अनुसार कार्तिक का महीना सद्बुद्धि, लक्ष्मी और मुक्ति प्राप्त कराने वाला मास भी कहा जाता है. इस महीने को रोगनाशक माह भी कहा जाता है. कार्तिक मास में मौसम और अन्य परिस्थितियां हर किसी के लिए अनुकूल होती हैं, इसका छात्रों को लाभ लेना चाहिए. यदि आप प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं, तो कुछ आदतों को त्यागकर कड़ी मेहनत के साथ तैयारी में जुट जाएं. ऐसा करने से भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की कृपा तो होती ही है, साथ ही माता सरस्वती भी प्रसन्न होती हैं और छात्र बीमारी, परेशानी और तमाम विघ्नों से दूर होकर पूरा फोकस करके अपना काम कर पाते हैं. ऐसे में उनके सफल होने की संभावना काफी प्रबल हो जाती है.सफल होने के लिए अनुशासन के साथ कुछ आदतों का त्याग करना जरूरी होता है…इन आदतों का करें त्याग1. कार्तिक का महीना पूजा पाठ का महीना है, इसमें मांस का सेवन नहीं करना चाहिए. साथ ही धूम्रपान और शराब से भी दूर रहना चाहिए. वैसे भी ये चीजें किसी भी लिहाज से अच्छी नहीं मानी जातीं. छात्रों को तो खासतौर पर इनसे दूर ही रहना चाहिए.2. मालिश से शरीर हष्ट पुष्ट होता है, लेकिन कार्तिक मास में शरीर में मालिश करने की मनाही है. हालांकि नरक चतुर्दशी यानी छोटी दीपावली के दिन तेल से मालिश करना शुभ माना जाता है.3. अगर आपको दाल पसंद है, तो इस महीने दाल का त्याग करना होगा. कार्तिक के महीने में उड़द, मूंग, मसूर, चना और मटर की दाल नहीं खानी चाहिए. अरहर की दाल खा सकते हैं. साथ ही राई राई खाने से भी परहेज करना चाहिए.4. ब्रह्मचर्य का कड़ाई से पालन करें. ऐसे में उनका मन नहीं भटकता और वे पूरी निष्ठा से परिश्रम कर पाते हैं. इससे भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न होते हैं.5. इस एक माह में अपनी विलासिताओं को त्यागने की बात कही गई है. मान्यता है कि इस माह में भगवान विष्णु पृथ्वीलोक में आकर लोगों का हाल देखते हैं. ऐसे में छात्र को अपने लक्ष्य के प्रति गंभीरता दिखानी चाहिए और सात्विक जीवन बिताना चाहिए.
- दिवाली 2021 आने में अब कुछ ही दिन बाकी हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, दिवाली या दीपावली का त्योहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है। इस साल दिवाली 4 नवंबर 2021, गुरुवार को मनाई जाएगी। इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा का विशेष महत्व होता है। इस साल ग्रहों के दुर्लभ संयोग दिवाली के दिन बन रहा है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, दिवाली के दिन चार ग्रह एक ही राशि पर विराजमान रहेंगे। जिसके कारण इस साल की दिवाली अत्यंत शुभ मानी जा रही है। मां लक्ष्मी और भगवान गणेश का आशीर्वाद भक्तों को प्राप्त होगा।चार ग्रहों की युति-दिवाली के दिन चार ग्रहों की युति बन रही है। दीपावली के दिन तुला राशि में सूर्य, बुध, मंगल और चंद्रमा मौजूद रहेंगे। तुला राशि के स्वामी शुक्र हैं। शुक्र को सुख-सुविधाओं का कारक माना जाता है। सूर्य को ग्रहों का राजा, मंगल को ग्रहों का सेनापति और बुध को ग्रहों का राजकुमार कहते हैं। चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है।दिवाली 2021 शुभ मुहूर्त-अमावस्या तिथि 04 नवंबर को सुबह 06 बजकर 3 मिनट से प्रारंभ होकर 05 नवंबर की सुबह 02 बजकर 44 मिनट पर समाप्त होगी। दिवाली लक्ष्मी पूजन का समय शाम 06 बजकर 09 मिनट से रात 08 बजकर 20 मिनट तक है। लक्ष्मी पूजन की कुल अवधि 1 घंटे 55 मिनट की है।धनतेरस 2021 कब है?धनतेरस इस साल 2 नवंबर 2021 को है। हिंदू पंचांग के अनुसार, धनतेरस का त्योहार कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को मनाया जाता है। इसे धन त्रयोदशी या धनवंतरी जयंती भी कहते हैं।छोटी दिवाली 2021 कब है?छोटी दिवाली इस साल 3 नवंबर 2021 को है। इस दिन को रूपचौदस भी कहा जाता है।गोवर्धन पूजा 2021 कब है?इस साल गोवर्धन पूजा 5 नवंबर 2021, शुक्रवार को है।भाई दूज 2021 कब है?भाई-दूज त्योहार भाई-बहन को समर्पित होता है। इस साल भाई दूज 6 नवंबर 2021, शनिवार को है।
- हिंदू धर्म में वास्तु शास्त्र का विशेष महत्व है। हमारे आसपास की चीजें जीवन पर पॉजिटिव और नेगेटिव प्रभाव डालती हैं। आमतौर पर लोग अपने पर्स में पैसों के अलावा कई तरह की चीजें रखते हैं। वास्तु शास्त्र में ऐसी कई चीजों का वर्णन किया गया है जिन्हें रखने से व्यक्ति को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। पर्स में इन चीजों को रखना अशुभ माना जाता है। वास्तु शास्त्र में वर्णित मान्यता के अनुसार, पर्स में पैसों के अलावा कई चीजों को रखने से आर्थिक तंगी का सामना भी करना पड़ सकता है। इसके अलावा जीवन में मुश्किलें भी आती हैं।जानिए पर्स में किन चीजों को रखना माना जाता है अशुभ-----1. भगवान की फोटो- वास्तु शास्त्र के अनुसार, पर्स में किसी भगवान की फोटो नहीं रखनी चाहिए। मान्यता है कि भगवान की फोटो पर्स में रखने से व्यक्ति को कर्ज का बोझ उठाना पड़ सकता है और जीवन में कई बाधाएं आती हैं।2. मृत परिजनों की तस्वीरें- पर्स में कभी भी मृत रिश्तेदार या परिजनों की फोटो नहीं रखनी चाहिए। वास्तु शास्त्र में इसे अशुभ माना जाता है। कहते हैं कि ऐसा करने वाले व्यक्ति को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ सकता है।3. चाबी- पर्स के अंदर कभी भी चाबी को नहीं रखना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार, चाबी को पर्स में रखने से जीवन में नकारात्मकता आती है। इससे आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ सकता है।4. पुराने बिल- अक्सर लोग खरीदारी करने के बाद बिल अपनी पर्स में रख लेते हैं। वास्तु शास्त्र में पुराने बिल को पर्स में रखना अशुभ माना जाता है। कहते हैं कि ऐसा करने वाले व्यक्ति के ऊपर मां लक्ष्मी की कृपा नहीं होती है।
- करवाचौथ के दिन व्रत खोलते समय पति का मुंह मीठा करवाने के लिए महिलाएं अक्सर बाजार से मिठाई खरीदकर ले आती हैं। लेकिन इस करवाचौथ को खास बनाने के लिए कुछ अलग और टेस्टी ट्राई कीजिए। जी हां इस करवाचौथ पति का मुंह मीठा करवाने के लिए बनाएं गुजरात और महाराष्ट्र का लोकप्रिय डिज़र्ट श्रीखंड। दही, चीनी, इलाइची और केसर फ्लेवर के साथ तैयार किया जाने वाला ये डिजर्ट खाने में जितना टेस्टी होता है बनने में उतना ही आसान भी है। इस डिजर्ट को आप किसी भी त्योहार पर घर आए मेहमनों को भी सर्व कर सकते हैं। तो देर किस बात की आइए जानते हैं कैसे बनाया जाता है यह टेस्टी डिज़र्ट श्रीखंड।श्रीखंड बनाने की सामग्री--500 ग्राम गाढ़ा दही या लटका हुआ दही-150 ग्राम आइसिंग शुगर-3 ग्राम इलाइची पाउडर-5 ग्राम केसर-2 बूंद गुलाब जल-10 ml (वैकल्पिक) दूध-ड्राई फ्रूटस , टुकड़ों में कटे हुएश्रीखंड बनाने की विधि-श्रीखंड बनाने के लिए सबसे पहले 10 ml दूध में केसर को भिगो दें। इसके बाद सारी सामग्री को एक साथ मिलाकर फेंट लें और एक बाउल में रख दें। अब नट्स और ड्राई फ्रूट्स से गार्निश करें। आपका टेस्टी श्रीखंड बनकर तैयार है।
- हिन्दू धर्म में दान पुण्य का अपना एक अलग ही महत्व है। वैसे तो दान-पुण्य करने का कोई वक्त नहीं होता। ये सच्चाई भी है कि पुण्य कार्य करने का कोई वक्त नहीं होता, परन्तु दान करने का वक्त जरूर होता है। अक्सर हम बड़े बुजुर्गों से यह कहते भी सुनते हैं कि सूर्यास्त के बाद दान करने से भाग्य बिगड़ सकता है। तो आइये जानें कि सूर्यास्त के बाद किन चीजों का दान नहीं करना चाहिए।लहसुन और प्याजसूर्यास्त के बाद लहसुन और प्याज का दान नहीं करना चाहिए। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार, इसका संबंध केतु ग्रह से है। केतु ग्रह नकारात्मक शक्तियों का स्वामी होता है। कहा जाता है इसी वक्त जादू-टोना जैसे कार्य किए जाते हैं। यही कारण सूर्य ढलने के बाद लहसुन और प्याज किसी को भी नहीं देना चाहिए।पैसा देनाअक्सर हम लोग अपने बड़े बुर्जुगों से सुनते हैं कि सूर्य ढलने के बाद किसी को पैसा नहीं देना चाहिए और मना करने की बात कही जाती है। दरअसल, माना जाता उस वक्त घर में मां लक्ष्मी प्रवेश करती हैं। अगर हम शाम के समय किसी को पैसे-रुपये देते हैं तो लक्ष्मी जी दूसरे के घर चली जाती हैं। इस समय उधारी भी किसी को नहीं लौटानी चाहिए।हल्दीज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सूर्यास्त के बाद हल्दी किसी को नहीं देना चाहिए। शास्त्र के अनुसार, अगर सूर्यास्त के बाद हम किसी को हल्दी देते हैं तो गुरु ग्रह कमजोर पड़ता है। ऐसा करने से परेशानी बढ़ सकती है।दूधसूर्यास्त होने के बाद चाहे कोई भिखारी आपके घर पर आकर खड़ा क्यों ना हो जाए उसे आप भूल कर भी कभी दूध मत देना वरना आपकी हंसती खेलती जिंदगी में आग लग जाएगी।दहीआपने दही कई मंदिरों में ले जाकर भिखारियों को दिया होगा लेकिन सूर्यास्त होने के बाद आप ऐसी गलती बिल्कुल भी ना करें। दूध के साथ साथ दही भी सूर्यास्त होने के बाद किसी को दान नहीं करना चाहिए।
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Happy Sharad Purnima
& Happy JAGADGURUTTAM JAYANTI
- 'जगदगुरुत्तम जयंती' और 'शरद पूर्णिमा' के महापर्व की आप सभी सुधी पाठक समुदाय को हार्दिक शुभकामनायें!!
समस्त पाठक-समुदाय सहित समस्त विश्व को परमाचार्य भक्तियोगरसावतार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के अवतरण-दिवस की अनंत-अनंत शुभकामनायें, आइये आज उनके माहात्म्य के विषय में कुछ स्मरण करते हुये अपने मन की पावन भावनाओं को उनके श्रीचरणों में अर्पित करते हुये उनसे कृपा की याचना करें कि वे अपने ज्ञान, अपनेपन, प्रेम की छाया हम पर रखें, जिससे अज्ञान के अंधकार से निकलकर हम भगवत्प्रेम तथा रस के समुद्र में अवगाहन के अधिकारी बन सकें। आप सभी पाठकों के प्रति शुभेच्छाओं सहित........
...शरद-पूर्णिमा की मध्यरात्रि..
जिनका पावन अवतरण-दिवस है!!
'शरद पूर्णिमा | | जगदगुरुत्तम जयंती'
• अलौकिक विभूति :::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज!!!
...1922 की शरद-पूर्णिमा की मध्यरात्रि में उत्तर-प्रदेश में इलाहाबाद के निकट 'मनगढ़' नामक छोटे से ग्राम में माँ भगवती की गोद में प्राकट्य, वही रात्रि, जब श्रीराधारानी की अनुकंपा से श्रीकृष्ण ने अनंतानंत गोपियों को महारास का रस प्रदान किया था। यही 'मनगढ़' आज 'भक्तिधाम' के नाम से सुविख्यात है!
...बाल्यावस्था से अलौकिक गुणों से सम्पन्न, चित्रकूट के सती अनुसुइया आश्रम तथा शरभंग आश्रमों के बीहड़ जंगलों में परमहंस अवस्था में वास। निरंतर 'हा राधे!' 'हा कृष्ण' का क्रंदन एवं प्रेमोन्मत्त विचित्र अवस्था। चित्रकूट; जो आपके विद्यार्थी, साधक, सिद्ध अवस्था तीनों की साक्षी और 'जगदगुरुत्तम' बनने की भी आधार बनी।
...परमहंस अवस्था से सामान्यावस्था में आकर जीव-कल्याण के लिये 'श्रीराधाकृष्ण भक्ति' का प्रचार प्रारंभ किया और अपने भीतर छिपे ज्ञान के अगाध भंडार को प्रगट किया।
...1957 में 34 वर्ष की आयु में भारतवर्ष की 500 मूर्धन्य विद्वानों की सर्वमान्य सभा 'काशी विद्वत परिषत' द्वारा 'पंचम मौलिक जगदगुरुत्तम' की उपाधि से विभूषित हुये। आदि जगद्गुरु श्री शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, निम्बार्काचार्य एवं माध्वाचार्य जी के बाद पंचम मौलिक जगद्गुरु हुये।
...श्रीराधाकृष्ण प्रेम के जो स्वयं ही मूर्तिमान स्वरुप हैं, दिव्य महाभावधारी; आपके विलक्षण प्रेमोन्मत्त स्वरुप जिन्हें स्वयं ही 'भक्तियोगरसावतार' सिद्ध करता है। श्री गौरांग महाप्रभु द्वारा प्रचारित संकीर्तन पद्धति का अपूर्व विस्तार करते हुये जिन्होंने समस्त प्रेमपिपासुओं को 'राधाकृष्ण' के मधुर नाम, धाम, गुण एवं लीला के संकीर्तनों एवं पदों के रस में सराबोर कर दिया।
...ज्ञान का ऐसा अगाध समुद्र जिसमें कोई जितना अवगाहन करे, पर थाह नहीं पा सकता। बिना खंडन के जिन्होंने समस्त शास्त्रों एवं अन्यान्य धर्मग्रंथों के सिद्धांतों का समन्वय कर दिया और अंधविश्वासों एवं कुरुतियों का उन्मूलन/सुधार किया। आप समस्त विद्वानों द्वारा 'निखिलदर्शनसमन्वयाचार्य' के रुप में सुशोभित हुये। और आपके लिये संत-समाज ने कहा है 'न भूतो न भविष्यति!!'
...समस्त विश्व को जिसने श्रीराधाकृष्ण की सर्वोच्च माधुर्यमयी ब्रजरस अर्थात गोपीप्रेम का रस प्रदान किया, जिन्होंने उस रस की प्राप्ति का सरल, सुगम एवं अत्यंत व्यवहारिक सिद्धान्त दिया। समस्त साधनाओं के प्राण 'ध्यान' को जिन्होंने 'रुपध्यान' नाम देकर अधिक सुस्पष्ट किया। और अपने आचरणों से स्वयं भक्ति साधना का मार्गदर्शन किया। इस महादान में क्या जाति-पाति, क्या देश-धर्म, क्या छोटे-बड़े - सब ही भागी बने हैं।
...जिनके कोई गुरु नहीं, फिर भी स्वयं जगदगुरुत्तम हैं। जिन्होंने कभी कोई शिष्य नहीं बनाया परन्तु जिनके लाखों करोड़ों अनुयायी हैं। सुमधुर 'राधा' नाम को विश्वव्यापी बनाया और पहले ऐसे जगद्गुरु जो विदेशों में भक्ति के प्रचारार्थ गये।
...अपने शरणागत जीवों के सँग जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से सदैव सँग हैं और अबोध जानकर जो हमेशा सुधार की 'महान आशा' लिये अपराधों पर निरंतर क्षमादान देते रहे हैं। पल भर को जिनका विछोह कभी अनुभूत नहीं हुआ। आज भी उनकी शरण आने वालों को उनके नित्य सँग की अनुभूति सहज है।
...समस्त विश्व पर जिनका अनंत उपकार है। वृन्दावन का 'प्रेम मंदिर', बरसाना का 'कीर्ति मैया मंदिर' और भक्तिधाम मनगढ़ का 'भक्ति मंदिर'; इसके अलावा इन्हीं तीनों धामों में 'प्रेम भवन', 'भक्ति भवन' एवं 'रँगीली महल' के साधना हॉल जिनकी कीर्ति और उपकार का चिरयुगीन यशोगान करेंगे और अनंतानंत प्रेमपिपासु जीवों को भक्तिरस का पान कराते रहेंगे। उनके द्वारा रचित एवं प्रगटित ब्रजरस साहित्य एवं प्रवचन हृदयों में भगवत्प्रेम की सृष्टि करते रहेंगे।
........और अधिक क्या कहें? संत के उपकार कहने का सामर्थ्य किस वाणी में है? स्वयं भगवान तक तो असमर्थ हैं, फिर कोई जीव क्या गिनावे? सत्य तो यही है कि 'जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु' न केवल नाम से अपितु अपने रोम-रोम से 'कृपालु' रहे, हैं और रहेंगे!
वही श्री गौरांग महाप्रभु, वही श्री कृपालु महाप्रभु!! यह भी कहना अतिश्योक्ति न होगी। कह सकते हैं;
...अद्यापिह सेइ लीला करे गौर राय,
.....कोन कोन भाग्यवान देखिवारे पाय..
'शरद-पूर्णिमा' (30 अक्टूबर) उनका अवतरण दिवस है। जिन्होंने भी उनकी शरण ग्रहण की है, वे अपने ऊपर उड़ेले गये उनके प्रेम, कृपा, अपनेपन, सान्निध्य और मार्गदर्शन के साक्षी हैं। फिर वे तो समस्त विश्व के गुरु हैं। समस्त विश्व इतना ही तो कर सकता है कि 'उनके द्वारा दिये गये सिद्धान्त को आत्मसात कर ले और उनकी बताई साधना द्वारा भगवत्प्रेम बढ़ाते हुये अंतःकरण शुद्ध करके अपने प्राणाराध्य राधाकृष्ण के प्रेम और सेवा को पाकर धन्य हो जाय'....
....यही देने और दिलाने तो वे आये, हम वह प्राप्त कर लें, अथवा प्राप्त करने के लिये तैयार हो जायँ, व्याकुल हो जायँ तो उनको कितनी ही प्रसन्नता होगी!! आओ, शरद-पूर्णिमा पर क्रंदन करें, उनकी कृपाओं के लिये, उनके परिश्रम के लिये, उनके क्षमादान के लिये.. उनकी सेवा, सँग और मार्गदर्शन पाने के लिये।
हे जगदगुरुत्तम!! अनंतानंत हृदयों में आप सदैव विराजमान हो। आपकी सन्निधि प्राप्त कर यह धरा अत्यन्त पावनी बन गई है. आपको कोटिशः प्रणाम!!!
★★★
ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)
- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।
- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(5) www.youtube.com/JKPIndia
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)
- हिंदू धर्म में पूजा के वक्त ज्यादातर कपूर का उपयोग किया ही जाता है। कपूर जलाने से न केवल धार्मिक फायदे होते हैं बल्कि इसका वैज्ञानिक व आयुर्वेदिक महत्व भी है। प्रतिदिन कपूर जलाने से हवा में मौजूद आस-पास के बैक्टीरिया भी नष्ट हो जाते हैं, जिससे हम उनके संपर्क में नहीं आते । स्वास्थय संबंधी कई समस्याओं से निजात के लिए भी कई बार कपूर का प्रयोग किया जाता है।कपूर के प्रयोग से नकारात्मक ऊर्जा दूर की जा सकती है व साथ ही सकारात्मक ऊर्जा को भी बढ़ावा दिया जा सकता है। इससे आपके जीवन से नकारात्मकता दूर होती है और आपके जीवन में सुख-समृद्धि व खुशहाली का वास है। यदि आपके घर में पैसों को लेकर किसी भी तरह की तंगी है या फिर किसी भी तरह के क्लेश की स्थिति बनी रहती है तो कपूर लेकर कुछ बेहद ही आसान उपाय करके आप इन सभी समस्याओं से मुक्त हो सकते हैं और अपने जीवन को सुखमय भी बनाने की का प्रयास कर सकते हैं।अगर आप घर में रोज़ाना रामायण या गीता का पाठ करते हैं तो पाठ पूरा करने के बाद भी एक दिए में कपूर लेकर उसे प्रज्ज्वलित करें।आज जानते हैं कि कपूर से क्या - क्या उपाय किए जा सकते हैं---हर रोज जब रात को सभी लोग खाना खा लें तो पूरी रसोई की साफ-सफाई करने के बाद एक चांदी की छोटी सी कटोरी में कपूर के साथ लौंग का एक जोड़ा डालकर जलाना चाहिए। चांदी की कटोरी न भी हो तो स्टील या पीतल की कटोरी का उपयोग करलें । इससे आपके घर में बरकत बनी रहती है व धन संबंधित समस्याओं का अंत भी होता है। मान्यता है कि यह कार्य यदि रोज किया जाए तो कभी भी धन की कमी नहीं होती व धन लाभ होता रहता है। व इस उपाय से कर्ज से भी जल्द मुक्ति मिलती है ।पति-पत्नी के बीच प्रेम के लिए कपूर का उपाय:-यदि आपके दांपत्य जीवन में समस्याएं बनी रहती हैं या फिर जीवन साथी से मनमुटाव की स्थिति रहती है तो शयनकक्ष की सफाई करके कपूर जलाना चाहिए इससे वहां मौजूद नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और संबंध में मधुरता आती है। इसके अलावा स्त्री रात को अपने पति की तकिए के नीचे कपूर रख दें और सुबह उठकर उस कपूर को चुपचाप बिना किसी रोक टोक के जला दें । मान्यता है कि इससे पति-पत्नी के बीच होने वाली सारी समस्याएं दूर होती है और दांपत्य जीवन में खुशहाली बनी रहती है।घी में डुबोकर कपूर:-प्रतिदिन अपने घर में सुबह-शाम देसी घी में कपूर को डुबोकर जलाना चाहिए। इसकी धूप अपने पूरे घर के हर कमरे, हॉल व आंगन सभी में दिखाना चाहिए। इससे आपके घर की नकारात्मक ऊर्जा नष्ट हो जाती है व परिवार के सदस्यों में प्रेम भावना बनी रहती है। व आपके घर परिवार में सुख व शांति का वातावरण बना रहता है। व ये उपाय संतान प्राप्ति में भी सहायक माना जाता है।देवताओं के समक्ष कपूर:-शास्त्रों के अनुसार प्रतिदिन देवी-देवताओं के समक्ष कपूर जलाने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। व देवी देवता हमेशा प्रसन्न रहते हैं व उनकी ही कृपा से आपके घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है। यदि घर में किसी प्रकार का वास्तु दोष हो तो कपूर जलाने से उसके प्रभावों से भी मुक्ति प्राप्त होती है। व गृह शांति बनी रहती है। इस वक़्त कपूर जलाने के दौरान बोले जाने वाला मंत्र:-कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्। सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।इसी मंत्र को कपूर व घी का धूप करते वक़्त भी दोहराएं!अगर आप घर में रोज़ाना रामायण या गीता का पाठ करते हैं तो पाठ पूरा करने के बाद भी एक दिए में कपूर लेकर उसे प्रज्ज्वलित करें!
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जगदगुरुत्तम जयन्ती विशेष' • 20 अक्टूबर(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के पावनातिपरम दिव्य चरित एवं उनके द्वारा प्रदत्त दिव्योपहारों, उपकारों का संस्मरण..)
भाग (2)• 'शरत्पूर्णिमा' का महत्त्व | 20 अक्टूबर 2021
...हमारे देश में, हमारे सनातन धर्म में साल का प्रत्येक दिन ही कोई न कोई पर्व होता है. किसी न किसी देश में, किसी न किसी जाति में, यदि सबका हिसाब लगाया जाय तो साल का प्रत्येक दिन ही पर्व है. क्योंकि हमारे यहाँ भगवान् के सब अवतार हुए और अनतानंत महापुरुष भी हमारे देश ने ही आये इसलिए पर्वों की भरमार है. किन्तु जितने भी पर्व मनाये जाते हैं उन सबमें सर्वश्रेष्ठ पर्व है : शरत्पूर्णिमा. वैसे कुछ लोग जन्माष्टमी को कहते हैं, कुछ होली को, अनेक लोग अपनी अपनी भावना से पर्वों की इम्पोर्टेंस बताते हैं किन्तु माधुर्य भाव से श्रीकृष्ण की उपासना करने वालों के लिए शरत्पूर्णिमा ही सबसे बड़ा पर्व है क्योंकि शरत्पूर्णिमा के दिन ही लगभग 5000 वर्ष पूर्व पूर्णतम पुरुषोत्तम ब्रम्ह श्रीकृष्ण ने भाग्यशाली जीवात्माओं के साथ 'महारास' किया था अर्थात् आनंद की जो अंतिम सीमा है, उस अंतिम सीमा वाले आनंद को राधाकृष्ण ने जीवों को दिया था.
'रस' शब्द से बना है 'रास'. 'रसानां समूहो रासः'. रस ही अनंतमात्रा का होता है फिर दिव्यानंदो में सबसे उच्च कक्षा का रस, समर्था रति वालों का, उसका कहना ही क्या है ! उस रस का भी जो समूह है उसको रास कहते हैं. वैसे तो भगवान् का एक नाम है रस -
'रसो वै सः. रसङ्होवायं लब्ध्वानन्दी भवति.'(तैत्तिरियोपनिषद् 2-7)
उसी का पर्यायवाची है - 'आनन्दो ब्रम्हेति व्यजानात्'.
'आनंदाद्धेयव खल्विमानि भूतानि जायन्ते. आनन्देन जातानि जीवन्ति. आनन्दं प्रयन्त्यभिसंविशन्ति ।'(तैत्तिरियोपनिषद् 3-6)
लेकिन रस में भी कई कक्षाएँ होती हैं इसलिए पुनः वेद कहता है -
'स एष रसानां रसतमः'. (छान्दोग्योपनिषद् 1-1-3)
यहाँ पर कहा है रसतम: परम:. पहले तो कह दिया 'रसो वै सः' वो रस है. ठीक है लेकिन वह परम रसतम भी है. देखो यह रस ब्रम्हानंद वाले भी पा चुके इसलिए ये लोग कहते हैं 'रसो वै सः'. आनंद मिल गया इनको, आनन्दो ब्रम्ह. लेकिन जिनको महारास मिला, वो 'रसो वै सः' से संतुष्ट नहीं है तो उनके लिए वेद की ऋचा ने कहा 'स एव रसानां रसतम: परम:'. वही ब्रम्ह जो रसरूप है, आनंद रुप है वही रस का समूह, एक 'तम' प्रत्यय होता है संस्कृत में, उसका मतलब होता है सर्वोच्च रस. गुह्य, गुह्यतर, गुह्यतम. तो तम जहाँ आ जाए उसका मतलब होता है सर्वोच्च रस. आगे और कुछ नहीं. जैसे पुरुषोत्तम. पुरुष जीव भी है, पुरुष ब्रम्ह भी है. पुरुष सब अवतार हैं, लेकिन श्रीकृष्ण पुरुषोत्तम हैं, उत्तम, अंतिम. उच्च में तम् प्रत्यय हुआ 'उत्' ऊँचाई में, 'तम्' सर्वश्रेष्ठ. सर्वोच्च. तो ये रास का अर्थ हुआ.
आनंद में भी अनेक स्तर हैं. जैसे माया के क्षेत्र में अनेक स्तर हैं - तमोगुण, रजोगुण, सत्वगुण. ऐसे ही आनंद के क्षेत्र में भी अनेक स्तर हैं - जैसे ज्ञानियों का ब्रम्हानंद. आनंद जो है वह अनंत मात्रा का होता है दिव्य होता है, सदा के लिए होता है. तो वो आनंद जिसे परमानंद, दिव्यानंद, ईश्वरीय आनंद कहते हैं, वह ज्ञानियों को मिलता है. वो सबसे निम्न कक्षा का आनंद है. आनंद और निम्न कक्षा ये दो विरोधी बातें लगती हैं. ईश्वरीय आनंद अनंत मात्रा का होता है, अनिर्वचनीय होता है, शब्दों में उसका निरुपण नहीं हो सकता. न कोई कल्पना कर सकता है मन, बुद्धि से. इन्द्रिय, मन, बुद्धि की वहाँ गति नहीं है. वो भूमा है. फिर भी आनंद के जितने स्तर हैं उनमे सबसे निम्न स्तर है ज्ञानियों का ब्रम्हानंद - निर्गुण, निर्विशेष, निराकार ब्रम्हानंद. इसके बाद फिर सगुण साकार का आनंद प्रारम्भ होता है. उसमें भी अनेक स्तर हैं - शान्त भाव का प्रेमानंद, उससे ऊँचा दास्य भाव का प्रेमानंद, उससे ऊँचा सख्य भाव का प्रेमानंद, उससे अधिक सरस वात्सल्य भाव का प्रेमानंद, उससे अधिक सरस माधुर्य भाव का प्रेमानंद.
माधुर्य भाव में भी 3 स्तर हैं. सकाम माधुर्यभाव के प्रेमानंद का स्तर उन तीनों में निम्न कक्षा का है. उसे साधारणी रति (जिसमें श्रीकृष्ण से अपने ही सुख के लिए प्यार किया जाय, उन्हें मिलने वाला आनंद) का प्रेमानंद कहते हैं और समञ्जसा रति (जिसमें अपने और श्रीकृष्ण दोनों के सुख का ध्यान रखा जाय, उन्हें मिलने वाला आनंद) का प्रेमानंद उससे उच्च कक्षा का है और समर्था रति (जिसमें एकमात्र श्रीकृष्ण के सुख के लिए उनसे प्यार किया जाय, जैसे बृज की गोपियाँ, उन्हें मिलने वाला आनंद) का आनंद सर्वोच्च कक्षा का है. तो समर्थारति का प्रेमानंद जिनको मिलता है, सिद्ध महापुरुषों में भी अरबों खरबों में किसी एक को मिलता है वो. उस रस को महारास के रुप में 'शरत्पूर्णिमा' के दिन 5000 हजार वर्ष पहले राधाकृष्ण ने जीवों को वितरित किया था. इसलिए यह पर्व सर्वोत्कृष्ट पर्व है.
- जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज के प्रवचन से.
★ शरद पूर्णिमा जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी का अवतरण दिवस भी है!!
'जगदगुरुत्तम जयन्ती'
हम बड़भागी जीवों के लिए इस पर्व का महत्त्व और बढ़ गया है क्योंकि सन् 1922 शरत्पूर्णिमा की शुभ रात्रि में ही एक ऐसे अलौकिक महापुरुष का अवतरण इस धराधाम पर हुआ जिसने भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व को अपनी दिव्य प्रतिभा एवं स्नेहमय व्यक्तित्त्व से आश्चर्यचकित किया है. यह हमारे आचार्य जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज ही हैं जो आज विश्व में धार्मिक क्रान्ति ला रहे हैं. भारत की अमूल्य सम्पदा शास्त्रों वेदों के दुर्लभ ज्ञान को साधारण भाषा में जन जन तक पहुँचाने के लिए उन्होंने अहर्निश प्रयत्न किया है. भारत जिन कारणों से सदा से विश्वगुरु के रुप में प्रतिष्ठित रहा है उसके मूलाधार में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ही हैं. राधाकृष्ण भक्ति के मूर्तिमान स्वरुप गुरुवर ने अपने दिव्य सन्देश द्वारा दैहिक, दैविक, भौतिक तापों से तप्त भगवद् बहिर्मुख जीवों को श्रीकृष्ण सन्मुख करने का भरसक प्रयास किया है जिससे वे श्रीकृष्ण भक्ति द्वारा उस सर्वोच्च रस के अधिकारी बन सकें जो शरत्पूर्णिमा के दिन श्रीकृष्ण ने सौभाग्यशाली अधिकारी जीवों (बृजगोपियों) को प्रदान किया था.
ऐसे परम कृपामय, प्रेममय भक्तिरस के अवतार जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज का यह प्राकट्य दिवस शरत्पूर्णिमा ही 'जगद्गुरुत्तम् जयंती' के रुप में मनाया जाता है. शरत्पूर्णिमा तो सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व है ही, आचार्य श्री ने इस दिन अवतार लेकर इसकी महत्ता को अनंताधिक कर दिया है.
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नियमित रूप से तुलसी पूजन करने से घर में मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है लेकिन तुलसी पूजा को करते समय नियमों को ध्यान में रखना बहुत आवश्यक होता है। माना जाता है कि यदि आप गलत तरह से पूजन करते हैं या पूजा करते समय कुछ गलतियां करते हैं तो आपको धन हानि का सामना करना पड़ सकता है। यहां जानिए तुलसी पूजन के नियम और विधि।तुलसी पूजन करते समय न करें ये गलतियां--यदि आप प्रतिदिन तुलसी पूजन करते हैं और जल चढ़ाते हैं तो इस बात का ध्यान रखें कि रविवार के दिन तुलसी में जल नहीं चढ़ाना चाहिए।-यदि आप संध्याकाल में पूजन कर रहे हैं तो इस बात का ध्यान रखें कि तुलसी को दूर से ही प्रणाम करें, भूलकर भी शाम को तुलसी के पौधे को स्पर्श नहीं करना चाहिए।-अक्सर हम लोग तुलसी में जब दीपक जलाते हैं तो आसन नहीं देते हैं, लेकिन तुलसी में दीपक जलाते समय अक्षत (चावल) का आसन देना चाहिए।-मान्यता के अनुसार महिलाओं को तुलसी पूजन करते समय बालों को खुला नहीं रखना चाहिए, अन्य पूजा अनुष्ठानों की तरह तुलसी पूजा करते समय भी बालों को बांधकर रखना चाहिए।-कई बार देखने में आता है कि घर के सभी सदस्य एक-एक करके तुलसी में जल अर्पित करते हैं लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। अधिक जल से तुलसी की जड़ को नुकसान पहुंचता है जिससे वे सूख जाती हैं और तुलसी का सूखना शुभ नहीं माना जाता है।-अक्सर लोग तुलसी को चुनरी ओढ़ाने के बाद उसे बदलते नहीं हैं, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। अन्य देवी-देवताओं की तरह तुलसी के वस्त्र भी बदलते रहना चाहिए।-तुलसी के पौधे को संध्या काल में छूना वर्जित बताया गया है। यदि आपको पूजन या अन्य की काम के लिए तुलसी तोडऩा हो तो सुबह का समय ही सही रहता है।-तुलसी तोड़ते समय ध्यान रखें कि पहले प्रणाम करने के बाद ही पत्ते तोड़े इसके साथ ही इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिए कि तुलसी कभी भी नाखून से खींचकर नहीं तोडऩा चाहिए।-प्रतिदिन प्रात: जल्दी उठकर स्नानादि करने के पश्चात पूजाघर में पूजन के साथ तुलसी का भी पूजन करना चाहिए।-तुलसी के नीचे हमेशा गाय के शुद्ध घी का दीपक प्रज्ज्वलित करना चाहिए, इसी के साथ नियमित रुप से संध्या के समय भी तुलसी में दीपक जरूर जलाना चाहिए।-तुलसी का पौधा गुरूवार के दिन लगाना चाहिए, इसी के साथ कार्तिक का महीना तुलसी लगाने के लिए बेहद शुभ माना गया है.-शरद पूर्णिमा से कार्तिक मास आरंभ हो जाएगा। यह पूरा माह तुलसी नियमित रुप से तुलसी पूजा के लिए बेहद ही शुभ होता है।
- फेंगशुई चीन का वास्तु शास्त्र है। इस में भवन निर्माण और भवन में रखी जाने वाली पवित्र वस्तुओं के बारे में विस्तार से जानकारी मिलती है। फेंग और शुई का शाब्दिक अर्थ है वायु और जल। यह शास्त्र भी पंचतत्वों पर ही आधारित है। वास्तु शास्त्र की ही तरह फेंगशुई में भी घर और आस-पास की चीजों के बारे में बताा जाता है। इसमें उन चीजों के बारे में बताया जाता है जिन्हें घर पर रखने से गुड लक आ सकता है। ऐसे में फेंगशुई में घर के अंदर चौड़े पत्ते वाले पौधे को रखने के फायदों के बारे में बताया गया है।बहुत से लोग इस पौधे को घर के अंदर सजावट के तौर पर रखते हैं। लेकिन इस पौधे के कुछ फायदे भी होते हैं। आइए जानते हैं इस पौधे के फायदों के बारे में--फेंगशुई के अनुसार घर में चौड़े पत्ते वाले पौधों को घर पर लगाने से घर में सकारात्मकता का माहौल रहता है ।-चौड़े पत्ते वाले पौधों से घर में खुशियां आती हैं। इससे घर का हर कोना उत्साह से भर जाता है।-चौड़े पत्ते वाले पौधे घर की नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करते हैं।-फेंगशुई के अनुसार घर में पेड़-पौधे नकारात्मक ध्वनि और विकिरणों को भी प्रभावशाली ढंग से अवशोषित कर लेते हैं।-घर के दक्षिण-पूर्व कोने को धन और समृद्धि का कोना माना जाता है, इसलिए यहां चौड़े पत्तियों वाले पौधे लगाना चाहिए।-चौड़े पत्ते वाले पौधे घर में लगाने से तरक्की की संभावना बढ़ जाती है।-इस पौधे को घर पर लगाने से मन और दिमाग शांत रहता है. इसे गुड लक के लिए भी रखा जाता है।