- Home
- धर्म-अध्यात्म
-
शुक्र राशि परिवर्तन का सभी 12 राशियों पर प्रभाव पड़ता है। कुछ राशियों के लिए शुक्र गोचर शुभ परिणाम लेकर आएगा। शुक्र को सुख-समृद्धि का कारक माना जाता है। शुक्र तुला और वृषभ राशि के स्वामी हैं। ये मीन राशि में उच्च और कन्या राशि में नीच के होते हैं। शुक्र का राशि परिवर्तन 2 अक्टूबर को होगा। इस दौरान ये वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे और 30 अक्टूबर तक इसी राशि में रहेंगे। शुक्र राशि परिवर्तन से 4 राशि वालों के आएंगे अच्छे दिन-
मिथुन- शुक्र गोचर काल में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों को शुभ समाचार मिल सकता है। इस दौरान नौकरी पेशा करने वाले जातकों को प्रमोशन मिल सकता है। कारोबारियों को मुनाफा हो सकता है। कार्यक्षेत्र का माहौल अच्छा रहेगा। शुक्र गोचर काल में आपको कार्यों में सफलता हासिल होगी। जीवनसाथी के साथ रिश्ते मजबूत होंगे।
कन्या- कन्या राशि वालों के आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। इस दौरान आपको मान-सम्मान की प्राप्ति होगी। नए मित्र बनेंगे। कार्यों में सफलता हासिल होगी। धार्मिक कार्यों में रुचि बढ़ेगी। यात्रा से लाभ के योग बन रहे हैं।
कर्क- कर्क राशि वालों के लिए समय अनुकूल है। इस दौरान आपको धन लाभ हो सकता है। कार्यक्षेत्र में मान-सम्मान प्राप्त हो सकता है। इस दौरान मेहनत का पूरा फल मिलेगा। जीवन में खुशहाली और समृद्धि आएगी। परिवार के साथ अच्छा समय व्यतीत होगा।
सिंह- ये गोचर काल आपके लिए लाभकारी साबित होगा। आपके निर्णय लेने की क्षमता बढ़ेगी। वाहन सुख प्राप्त हो सकता है। परिवार का माहौल खुशनुमा रहेगा। करियर के लिहाज से यह समय अनुकूल है। निवेश से लाभ के आसार बन रहे हैं। - • जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 402
(भूमिका - किसी साधक/जिज्ञासु ने जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज से यह प्रश्न किया था कि... 'वेदों में, शास्त्रों में, पुराणों में, हमारे हिन्दू धर्म ग्रन्थों में सभी स्थलों में बताया गया है कि ये संसार भगवान् से निकला है, भगवान् ने बनाया । तो भगवान् ने ये दुःखमय संसार क्यों बनाया?' नीचे जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा वेदादिक सम्मत दिया गया समाधान प्रकाशित किया जा रहा है। चूँकि यह उत्तर अधिक विस्तार में है, अतएव इसे 3 या 4 भागों में प्रकाशित किया जायेगा। कृपया आप सभी नियमित रूप से इन भागों का पठन एवं मनन कीजियेगा...)
(भाग - 1)
...भगवान् की परिभाषा पूछा भृगु ने अपने पिता ब्रह्मज्ञानी वरुण से;
भृगुर्वैः वारुणिः वरुणं पितरमुपससार अधीहि भगवो ब्रह्म।(तैत्तिरीयोपनिषद 3-1)
पिताजी! ब्रह्म क्या होता है? भगवान् किसे कहते हैं? क्या परिभाषा है? तो उन्होंने कहा;
यतो वा इमानि भूतानि जायन्ते येन जातानि जीवन्ति। यत्प्रयन्त्यभिसंविशन्ति। तद्विजिज्ञासस्व तद् ब्रह्म।।(तैत्तिरीयोपनिषद 3-1)
जिससे संसार पैदा हो, जिससे संसार की रक्षा हो, जिसमें संसार का लय हो उसका नाम ब्रह्म, भगवान्, परमात्मा।
'पिताजी! किससे ये संसार पैदा होता है? मैं उसका परिचय जानना चाहता हूँ।' तो उन्होंने कहा - 'बेटा! ये तो साधना करना पड़ेगा। ऐसे ही मेरे बोलने से तुमको बोध नहीं होगा।' गये, साधना किया, लौट कर आये। 'पिताजी! हम समझ गये।' 'क्या समझ गये?'
अन्नं ब्रह्मेति व्यजानात्। अन्नाद्धयेव खल्विमानि भूतानि जायन्ते। अन्नेन जातानि जीवन्ति। अन्नं प्रयन्त्यभिसंविशन्ति।(तैत्तिरीयोपनिषद 3-2)
अन्न; ये गेहूँ, चावल, आटा, दाल जो आप लोग खाते हैं, ये ब्रह्म है। इसी से शरीर बनता है। फिर एक शरीर से दूसरा शरीर पैदा होता है। तो वरुण हँसे, उन्होंने कहा, नहीं बेटा! तुम नहीं समझे, जाओ फिर साधना करो। फिर गये। लौट कर आये। उन्होंने कहा पिताजी अब समझ गये। क्या समझ गये?
प्राणो ब्रह्मेति व्यजानात्। प्राणाद्धयेव खल्विमानि भूतानि जायन्ते।प्राणेन जातानि जीवन्ति। प्राणं प्रयन्त्यभिसंविशन्ति।(तैत्तिरीयोपनिषद 3-3)
प्राण ब्रह्मा है। वायु। हम लोग साँस लेते हैं न। नहीं समझे। फिर जाओ।
मनो ब्रह्मेति व्यजानात्।(तैत्तिरीयोपनिषद 3-4)
मन, ये ब्रह्म है। नहीं समझे फिर जाओ।
विज्ञानं ब्रह्मेति व्यजानात्। विज्ञानाद्धयेव खल्विमानि भूतानि जायन्ते। विज्ञानेन जातानि जीवन्ति।(तैत्तिरीयोपनिषद 3-5)
आत्मा ब्रह्म है। आत्मा। ये जीव, 'मैं'। नहीं समझे अभी। जीव ब्रह्म नहीं हुआ करता। ये तो ब्रह्म का अंश है, शक्ति है। फिर गये साधना किया। अब की लौट कर आये तो उन्होंने कहा अब समझ में आ गया।
आनंदो ब्रह्मेति व्यजानात्। आनंदोद्धयेव खल्विमानि भूतानि जायन्ते। आनंदेन जातानि जीवन्ति। आनंदं प्रयन्त्यभिसंविशन्ति।(तैत्तिरीयोपनिषद 3-6)
आनन्द ब्रह्म है। हाँ बेटा! अब समझे। आनन्द। आप लोगों ने भगवान् का एक नाम सुना होगा सच्चिदानन्द। सत् चित् आनन्द। तो चाहे सच्चिदानन्द कहो और चाहे चिदानन्द कहो। सत् को छोड़ दो। सत् का लय चित् में होता है और सत् चित् का लय आनन्द में होता है। तो चाहे केवल आनन्द कह दो, तो उसका मतलब सत् चित् उसमें है।
तो भगवान् का एक नाम है - आनन्द। और चित् माने ज्ञान स्वरूप, सत् माने नित्य ये तीन बाते हैं भगवान् में। नित्य है भगवान् , सर्वज्ञ है भगवान् और आनन्द स्वरूप है। आनन्द रूप है। उसमें आनन्द है ऐसा नहीं। वो आनन्द है। अनलिमिटेड आनन्द।(शेष प्रवचन कल अगले भाग में प्रकाशित होगा)
• सन्दर्भ ::: प्रश्नोत्तरी, भाग - 2, प्रश्न संख्या - 4
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - • जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 401
(भूमिका - क्या है संत-चरणों में शीश झुकाने का तात्पर्य, जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु की वाणी में इस प्रकार है...)
...अगर तुम एक बार भी संत के चरणों में प्रणाम कर लो तो फिर कुछ करना न रहे, उसके आगे बात खतम, भगवत्प्राप्ति हो गई, माया-निवृत्ति हो गई, सब काम खतम। अगर तुम समझ लो कि ये चरण क्या हैं? इन चरणों की धूलि भगवान चाहता है;
अनुब्रजाम्यहं नित्यं पूयेयेत्यंघ्रिरेणुभिः।(भागवत 11-14-16)
भगवान पीछे-पीछे चलता है भक्तों के कि उनकी चरण धूलि मेरे ऊपर पड़े और मैं पवित्र हो जाऊँ, उन चरणों पर आज मुझ अभागे का मस्तक पड़ रहा है। अनन्त पाप किये हुये एक नगण्य जीव का, कितना बड़ा सौभाग्य है हमारा। तो उन चरणों पर अगर सिर को झुका दें, छू लें उन चरणों को फिर वो होश में रहेगा नहीं। उसने समझा ही नहीं उन चरणों का महत्व क्या है? हाँ, ठीक है, सब छू रहे हैं तो अपन भी पटक दो। वन परसेन्ट, टू परसेन्ट, टेन परसेन्ट कुछ भावना होगी आप लोगों की लेकिन प्रणाम माने सेन्ट परसेन्ट भावना, बुद्धि का सरेंडर, बुद्धि को दे देना गुरु के चरणों में, इसी का नाम शरणागति है। यही वास्तविक प्रणाम है।
• सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, जुलाई 2007 अंक
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर आप सिंह राशि वाले व्यक्ति को डेट कर रहे हैं, तो इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि आपको हर चीज में प्राथमिकता दी जाएगी। चाहे वो उनका कठिन कार्यक्रम हो या अत्यधिक मांग वाली नौकरी। सिंह राशि वाले लोग किसी भी कीमत पर आपके लिए समय निकालने में विफल नहीं होंगे। वो हर परिस्थिति में आपके साथ खड़े रहेंगे।उनकी आभा कभी फीकी नहीं पड़ेगीमाना जाता है कि सिंह राशि वाले ये सुनिश्चित करेंगे कि आपके रिश्ते में कभी भी उस चिंगारी को खत्म न होने दें। उनकी आभा ऐसी है कि ये आपको उनके साथ फिर से प्यार करने पर मजबूर कर देगी। सिंह राशि वालों से अलग होने के लिए आप चाहे जितनी मेहनत कर लें, लेकिन बार-बार आपको उनकी कीमत का अहसास होगा।वो रखवाले हैंएक बार जब आप सिंह राशि वाले व्यक्ति के साथ रिश्ते में होते हैं, तो वो आपको कभी जाने नहीं देने का हर संभव प्रयास करेंगे। वो स्वभाव से क्षमाशील हैं, लेकिन निश्चित रूप से नहीं अगर आप उन्हें हल्के में ले रहे हैं। सिंह राशि वाले आपके लिए पहाड़ तक हिलाने को तैयार हैं। वो आपको प्रोत्साहित, समर्थन और प्रेरित करेंगे। वो रिश्ते को बचाने और आपको बनाए रखने के लिए किसी भी ऊंचाई पर जाएंगे।वो अहंकारी नहीं हैंसिंह राशि वाले लोग कभी-कभी एरोगैंट और अहंकारी लग सकते हैं, लेकिन जब रिश्तों की बात आती है, तो वो हमेशा पहला कदम उठाने के लिए तैयार रहते हैं। चाहे वो आपसे पूछने के बारे में हो, या माफी मांगने के बारे में हो। जब प्यार की बात आती है तो वो आपको पूरी शक्ति और नियंत्रण लेने की अनुमति देते हैं, बशर्ते आप उनकी उम्मीदों पर खरा उतर रहे हों।वो सीधे हैंसिंह राशि वाले अक्सर सीधे-सादे लोग होते हैं और चीजों को वास्तविक रखने में विश्वास करते हैं। इसलिए, अगर कोई सिंह राशि वाला व्यक्ति आपको अपने प्यार के बारे में बताता है, तो इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि ये सच्चा और शुद्ध हो. कभी-कभी चीजें थोड़ी कड़वी हो सकती हैं, क्योंकि सिंह राशि वाले लोग आपको ये बताने में संकोच नहीं करेंगे कि आप कहां गलत हो रहे है। इस राशि के लोग चापलूसी में विश्वास नहीं करते हैं, और इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि उनके शब्द आपको तलवार की तरह चोट पहुंचा सकते हैं। लेकिन ध्यान रहे, वो जानबूझकर ऐसा नहीं करेंगे। इसके पीछे सारा विचार आपको सही रास्ता दिखाने का है, क्योंकि वो आपको पीडि़त नहीं देख सकते।
- वास्तु शास्त्र में जीवन को सुखमय और संपन्न बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण बातें बताई गई हैं। वास्तु के अनुसार प्रत्येक वस्तु से नकारात्मक या सकारात्मक ऊर्जा निकलती है। जहां सकारात्मक ऊर्जा से जीवन में सुख समृद्धि और तरक्की होती है तो वहीं नकारात्मक ऊर्जा के कारण घर में क्लेश बिमारियां और आर्थिक तंगी उत्पन्न होने लगती है। कहता है कि घर को हमेशा व्यवस्थित तरह से रखना चाहिए। घर में इधर-उधर बिखरी हुई बेकार पड़ी चीजों से नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिसके कारण आपके घर में आर्थिक तंगी होने लगती है। वास्तु में ऐसी कुछ चीजों के बारे में बताया गया है जिन्हें घर में एकत्रित नहीं करना चाहिए। अन्यथा आपकी तरक्की और खुशहाली में बाधा आने लगती है और रुपए-पैसों की किल्लत होने लगती है। तो आइए जानते हैं कि कौन सी हैं वे चीजें, जिनको घर से तुरंत हटा देना चाहिए।पुराने अखबार की रद्दीज्यादातर लोगों के घर में अखबार तो आता ही है जिसके कारण कई बार घर में रद्दी इकठ्ठा होती रहती है। वास्तु के अनुसार यदि आपके घर में पुरानी बेकार रद्दी इकठ्ठा हो तो उसे तुरंत घर से बाहर निकाल देना चाहिए। इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ने लगता है परिणाम स्वरूप आपके घर में क्लेश और आर्थिक तंगी बढ़ने लगती है।पुराने बंद पड़े हुए तालेवास्तु कहता है कि घर में पुराने बंद पडे़ तालों को रखना शुभ नहीं रहता है। यदि आपके घर में ऐसे ताले पड़े हैं जो किसी काम के नहीं हैं या बंद पड़े हुए हैं तो उनको तुरंत अपने घर से बाहर निकाल दें। माना जाता है कि बंद पड़े ताले की तरह आपकी किस्मत भी बंद हो जाती है। आपकी तरक्की रुकने लगती है।बंद पड़ी बेकार घड़ियांघड़ी समय का सूचक होती है जिस तरह घड़ी निरंतर चलती रहती है उसी तरह हमारा जीवन भी आगे बढ़ता रहता है। घड़ी को आपके जीवन की तरक्की से जोड़कर देखा जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार यदि आपके घर में बंद पड़ी घड़ियां हैं तो उन्हें तुरंत हटा देना चाहिए। इससे आपकी तरक्की रुकती है और आपके हर कार्य में बाधा आने लगती है। आपकी आर्थिक संपन्नता में भी रुकावटें आने लगती हैं।
- घर में वास्तु दोष हो तो उसका नेगेटिव इफेक्ट वहां रहने वाले परिवार के हर सदस्य पर पड़ता है। फेंगशुई में विंड चाइम्स को बेहद शुभ, समृद्धिकारक और वास्तुदोष दूर करने वाला माना गया है। माना जाता है कि विंड चाइम से निकली मधुर ध्वनि एवं ऊर्जा भवन की नकारात्मक ऊर्जा को शांत कर दुर्भाग्य को दूर करती है। अगर आप चाहते हैं कि विंड चाइम आपके लिए गुडलक और तरक्की लेकर आए तो ध्यान रखें कि इससे निकलने वाली आवाज सुमधुर हो जो घर के सभी सदस्यों को अच्छी लगे।कहां, कैसी पवन घंटी लगाएंबाज़ार में मिलने वाली विंड चाइम्स कई प्रकार की होती हैं जैसे लकड़ी, मेटल, मिट्टी इत्यादि। लेकिन दिशा के तत्व के अनुसार इन्हें लगाना लाभदायक होता है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व(आग्नेय) एवं दक्षिण दिशा काष्ठ तत्व से संबंध रखती है इसलिए इन दिशाओं में पॉजिटिव एनर्जी को एक्टिव करने के लिए वुडन विंड चाइम लगाना अधिक प्रभावशाली रहेगा। घर की पश्चिमी,उत्तर-पश्चिम(वायव्य) और उत्तर दिशा में टांगने के लिए धातु से बने विंड चाइम घर के वातावरण में सौहार्द एवं शांति बनाए रखने में सहायक होंगे इसी प्रकार उत्तर-पूर्व(ईशान) तथा मध्य स्थान के लिए मिट्टी, क्रिस्टल या सिरेमिक से बनी विंड चाइम लगाने से परिवार के सदस्यों को कामयाबी हासिल करने में मदद मिलती है। घर के दक्षिण-पश्चिम(नैऋत्य) क्षेत्र में इन्हें टांगने से आपसी संबंधों में मजबूती व मधुरता आती है। इस दिशा में आप लकड़ी, मिट्टी या धातु से बनी पवन घंटी लगा सकते हैं।कहां कितनी छड़ वाली हो विंडचाइममुख्य द्वारयदि प्रवेश द्वार के पास कोई वास्तुदोष है तो उसके निवारण के लिए चार छड़ी वाली विंड चाइम मेनगेट पर लगानी चाहिए। इसे दरवाज़े पर परदे के पास इस प्रकार लटकाना चाहिए ताकि आने-जाने से हिलकर यह मधुर ध्वनि उत्पन्न कर सके। इससे वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा के स्तर में वृद्धि होती है।स्टडी रूमबीमारियों से बचने के लिए एवं अध्ययन कक्ष के वास्तु दोष को दूर करने के लिए पांच छड़ वाली विंडचाइम लगाना बेहतर विकल्प है इससे हर क्षेत्र में सफलता मिलती है। इसी प्रकार यदि आपके बच्चे लापरवाह हैं और मनमर्ज़ी करते हों तो उनके कमरे में छह रॉड वाली विंड चाइम लटकाने से लाभ मिलेगा।ड्राइंग रूमयहां पर छह रॉड वाली विंड चाइम उस स्थान पर लगानी चाहिए जहां से मेहमानों का प्रवेश होता हो। आगंतुकों का प्रवेश होने से जब विंड चाइम के टकराने से जो ध्वनि उत्पन्न होगी उससे आने वाले अतिथि का व्यवहार आपके अनुकूल हो जाएगा।कार्यालय मेंआठ छड़ी वाली विंड चाइम का प्रयोग आप अपने ऑफिस में कर सकते हैं, यदि काम में मन नहीं लगता है या रुकावटें बहुत आती हों तो आठ छड़ी वाली विंड चाइम आपकी इस समस्या को दूर करने में सहायक हो सकती है।रिश्तों को बनाएं मजबूतपरिवार में प्यार और अपनापन बढ़ाने के लिए नौ छड़ वाली विंड चाइम का प्रयोग आपको लाभ देगा। इससे न केवल घर में ऊर्जा का प्रवाह बना रहेगा बल्कि निराशा और उदासीनता भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 400
(आध्यात्म तथा भौतिक, दोनों प्रकार के लोगों के लिये मार्गदर्शन, जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी की वाणी में...)
...नींद जो है वो तमोगुण है। जाग्रत अवस्था में हम सत्वगुण में भी जा सकते हैं, रजोगुण में भी जा सकते हैं, तमोगुण में भी जा सकते हैं। लेकिन नींद जो है, वो प्योर तमोगुण है। बहुत ही हानिकारक है। अगर लिमिट से अधिक सोओगे तो भी शारीरिक हानि होती है और बिल्कुल न सोना भी शरीर के लिये ठीक नहीं है। आपके शरीर के जो पार्ट्स हैं उनको खराब करेगा अधिक सोना या अधिक जागना। रेस्ट की भी लिमिट है। रेस्ट के बाद व्यायाम आवश्यक है। देखिये शरीर ऐसा बनाया गया है कि इसमें दोनों आवश्यक हैं। तुम्हें संसार में कोई जरूरी काम आ जाये, या कोई बात हो जाये, या कोई तुम्हारा प्रिय मिले, तब नींद नहीं आती। इसलिये कोई फिजिकल रीजन नहीं है कि नींद कन्ट्रोल नहीं होती, केवल मानसिक वीकनेस है। लापरवाही है। हर क्षण यही सोचो कि अगला क्षण मिले न मिले, अतएव भगवद-विषय में उधार न करो।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, जुलाई 2012 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) -
हिंदू धर्म में महालक्ष्मी व्रत का विशेष महत्व है। महालक्ष्मी व्रत 16 दिनों तक चलते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि तक महालक्ष्मी व्रत रखा जाता है। इस साल महालक्ष्मी व्रत का आरंभ 14 सितंबर से हुआ है, जो कि 29 सितंबर को संपन्न होंगे। मान्यता है कि इस दौरान मां लक्ष्मी भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करती हैं। जिसके प्रभाव से आर्थिक दिक्कतों के दूर होने की मान्यता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, महालक्ष्मी व्रत के दौरान मां लक्ष्मी की कुछ राशियों पर विशेष कृपा रहने वाली है।
1. कर्क- कर्क राशि वालों के लिए 16 दिनों की अवधि लाभकारी साबित हो सकती है। आर्थिक जीवन में सुधार होने के योग बनेंगे। आय में वृद्धि की संभावना है। मां लक्ष्मी की कृपा से आर्थिक मोर्चे पर आप अच्छा प्रदर्शन करेंगे। अचानक धन लाभ हो सकता है। नौकरी में बदलाव के अवसर प्राप्त होंगे।
2. सिंह- मां लक्ष्मी की सिंह राशि वालों पर कृपा रहने के आसार दिखाई दे रहे हैं। आर्थिक मोर्चे पर आपके लिए 16 दिन वरदान साबित होंगे। आय के नए रास्ते खुलेंगे। व्यापारियों को मुनाफा हो सकता है। नए काम की शुरुआत के लिए समय उत्तम है।
3. कन्या- कन्या राशि वालों के लिए 14-29 सितंबर तक का समय किसी वरदान से कम नहीं है। इस दौरान आप जिस काम में हाथ डालेंगे, उसमें सफलता हासिल करेंगे। नौकरी में तरक्की मिलने के योग बनेंगे। आय में वृद्धि की संभावना है। व्यापार में गति आएगी। धन संचय में सफल रहेंगे।
4. वृश्चिक- आपके लिए यह समय बेहद लकी साबित हो सकता है। धन लाभ के योग बनेंगे। कारोबार में मुनाफा हो सकता है। नए वाहन की खरीदारी कर सकते हैं। रुका हुआ धन प्राप्त होगा।
5. धनु- रुका हुआ धन प्राप्त हो सकता है। धन संचय करने में सफल रहेंगे। नौकरी पेशा वालों को तरक्की मिल सकती है। कारोबारियों को मुनाफा हो सकता है। -
हिंदू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है। नवरात्रि का पर्व मां दुर्गा को समर्पित होता है। नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा और उपासना की जाती है। मान्यता है कि नवरात्रि पर मां दुर्गा की विधि-विधान से पूजा करने से जीवन के सभी दुख दूर होते हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। नवरात्रि के दिनों में माता रानी के भक्त मां उनकी विशेष कृपा पाने के लिए व्रत भी रखते हैं।
नवरात्रि कब है?
हिंदू पंचांग के अनुसार, नवरात्रि का पर्व 07 अक्टूबर से आरंभ होगा। इसे शरद या शारदीय नवरात्रि भी कहते हैं। शरद नवरात्रि का पर्व 15 अक्टूबर को समाप्त होगा।
सोमवार के दिन इन राशियों को मिलेगा किस्मत का साथ, पढ़ें मेष से लेकर मीन राशि तक का हाल
दुर्गा पूजा कलश स्थापना 2021 कब है?
नवरात्रि का त्योहार कलश स्थापना से आरंभ होता है। शरद नवरात्रि में कलश स्थापना प्रतिपदा तिथि यानी 07 अक्टूबर को होगी। कलश स्थापना के साथ ही नवरात्रि के त्योहार की विधि-विधान शुरुआत मानी जाती है।
नवरात्रि 2021 की प्रमुख तिथियां-
नवरात्रि प्रारंभ- 07 अक्टूबर 2021, गुरुवार
नवरात्रि नवमी तिथि- 14 अक्टूबर 2021, गुरुवार
नवरात्रि दशमी तिथि- 15 अक्टूबर 2021, शुक्रवार
घटस्थापना तिथि- 07 अक्टूबर 2021, गुरुवार
क्यों करते हैं कलश स्थापना-
पूजा स्थान पर कलश की स्थापना करने से पहले उस जगह को गंगा जल से शुद्ध किया जाता है। कलश को पांच तरह के पत्तों से सजाया जाता है और उसमें हल्दी की गांठ, सुपारी, दूर्वा, आदि रखी जाती है। कलश को स्थापित करने के लिए उसके नीचे बालू की वेदी बनाई जाती है। जिसमें जौ बोये जाते हैं। जौ बोने की विधि धन-धान्य देने वाली देवी अन्नपूर्णा को खुश करने के लिए की जाती है। मां दुर्गा की फोटो या मूर्ति को पूजा स्थल के बीचों-बीच स्थापित करते है। जिसके बाद मां दुर्गा को श्रृंगार, रोली ,चावल, सिंदूर, माला, फूल, चुनरी, साड़ी, आभूषण अर्पित करते हैं। कलश में अखंड दीप जलाया जाता है जिसे व्रत के आखिरी दिन तक जलाया जाना चाहिए। - जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 399
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत 'शरणागति' तत्व पर 2 महत्वपूर्ण प्रवचन अंश :::
(1) संत और भगवान दया के सिवाय और कुछ कर ही नहीं सकते। अपनी बुद्धि को संत की बुद्धि में जोड़ दो। बस पूर्ण शरणागति यही है। प्रत्येक अवस्था में दया कौन सी है, यह समझ में नहीं आता। कृपालु संत की कृपा का लाभ वही उठा सकता है जो उनकी कृपा के तत्व को समझता है। संत भी ऐसे मनुष्य को पाप से नहीं बचा सकते जो उनके कथनानुसार नहीं चलता।
(2) भटकना भगवद-शरणागति की आवश्यकता जानने तक ही है। पश्चात शरणागत जीव को अपने गुरु द्वारा बताये गये साधन और सिद्धान्त के सिवा अन्य कुछ भी पढ़ना, सुनना एक विघ्न ही है और अनन्यता का विरोधी है क्योंकि शरणागति ही साधना और सिद्धि है। इसलिये शरणागति (समर्पण) मार्ग अन्य मार्गों से विलक्षण और विचित्र सा प्रतीत होता है। यहाँ बुद्धि का उपयोग सिर्फ शरणागति के द्वार तक पहुँचाने तक ही सीमित है। बाद में शरण्य की सत्ता मात्र रहती है।
• सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, मार्च 1998 अंक
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - छोटी-छोटी गलतियां ही एक दिन बड़ी समस्या की वजह बन जाती हैं, इसलिए व्यक्ति को कोशिश करनी चाहिए कि किसी भी काम को वो इतनी लगन से करे कि गलतियों की गुंजाइश ही न रहे. अगर एक बार जो गलती हो भी जाए तो वो दोबारा न दोहराई जाए. जब कोई गलती बार बार दोहराई जाती है, तो वो एक दिन बड़ी समस्या बन जाती है. इसके अलावा व्यक्ति को हमेशा दूरदर्शी होना चाहिए.यदि व्यक्ति पहले से स्थितियों का आकलन कर लेगा, तो उससे निपटने के लिए रणनीति आसानी से तैयार कर सकता है. आचार्य चाणक्य का भी यही मानना था. आचार्य चाणक्य खुद भी बहुत दूरदर्शी थे. वो पहले से ही हालात को भांप लेते थे और उसके हिसाब से अपनी रणनीति को तैयार करते थे. ये उनकी दूरदर्शिता और बुद्धि कौशल का ही नतीजा था कि उन्होंने एक साधारण से बालक को भी सम्राट बना दिया था. आचार्य ने अपने अनुभवों को अपने ग्रंथ नीति शास्त्र में लिखा है. आप भी आचार्य के अनुभवों को जीवन में उतारकर तमाम समस्याओं से बच सकते हैं. जानिए चाणक्य नीति की वो बातें जो आपको बड़े संकटों से बचा सकती हैं.दृष्टिपूतं न्यसेत्पादं वस्त्रपूतं जलं पिबेत्सत्यपूतं वदेद्वाचं मनः पूतं समाचरेत्…1. इस श्लोक के जरिए आचार्य चाणक्य कहते हैं कि चलते समय अपनी नजर नीचे जरूर रखें क्योंकि जरा सी चूक होने पर व्यक्ति को चोट लग सकती है. यदि आप चलते समय सजग नहीं रहेंगे तो मुसीबत को खुद ही न्योता देंगे.2. मुसीबत से बचने का दूसरा तरीका ये है कि खुद को स्वस्थ रखा जाए. अगर आप स्वच्छता का ध्यान नहीं रखते तो बीमारियां आपको घेर लेती हैं. स्वच्छता सिर्फ शरीर की ही नहीं, बल्कि खानपान की भी होनी चाहिए. आचार्य ने व्यक्ति को हमेशा पानी कपड़े से छानकर पीने के लिए कहा है. आचार्य की ये बात आज भी काम आ रही है. आज कपड़े की जगह लोग प्योरीफायर का इस्तेमाल करते हैं.3. किसी भी काम को पूरे मन से करें यानी काम को करते समय हर प्रकार से सोचें, समझें और निष्कर्ष तक पहुंचें. इस तरह अपनी बुद्धि का सही प्रयोग करके कोई फैसला लें. बगैर सोचे किए जाने वाले काम मुसीबत में डालने का काम करते हैं.4. मुसीबत में फंसने का एक बहुत बड़ा कारण झूठ भी होता है. एक झूठ को छिपाने के लिए व्यक्ति को कई झूठ बोलने पड़ते हैं. ऐसे में एक न एक दिन उसका झूठ जरूर पकड़ा जाता है. इससे व्यक्ति अपना विश्वास, मान और सम्मान तो खोता ही है, साथ ही कई बार इसकी वजह से दूसरी मुश्किल भी बढ़ सकती है. इसलिए किसी भी बात के लिए कभी झूठ का सहारा न लें.
- किसी न किसी तरह से, हम सभी अपने सितारों से बंधे होते हैं और ये हमारे जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं. ये सितारे हमारे जीवन लक्षणों को संरेखित करने में मदद करते हैं और इसलिए हम उसी के आधार पर दूसरों को चुन सकते हैं. प्रत्येक राशि में विशिष्ट लक्षण होते हैं जो हमें ये तय करने में मदद करते हैं कि क्या हम जिस व्यक्ति के साथ अपना जीवन बिताना चाहते हैं वो ईमानदार, स्वतंत्र, वफादार, संगत आदि है. हालांकि, व्यक्तित्व लक्षण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में अलग हो सकते हैं, आप आसानी से अपने आधार पर अपनी अनुकूलता की जांच कर सकते हैं.आइए इसे बेहतर ढंग से समझने के लिए अलग-अलग राशियों पर एक नजर डालते हैं.1. मेष राशिइस राशि के तहत पैदा हुए लोग जीवन के प्रति अपने बेहद आत्मविश्वास और सकारात्मक दृष्टिकोण के कारण स्वाभाविक रूप से आकर्षक होते हैं. वो ईमानदार रहना पसंद करते हैं, और यही बात उनके साथी के प्रति उनकी वफादारी को स्पष्ट रूप से परिभाषित करती है.उनके पास एक जीवंत व्यक्तित्व है जो एडिक्टिव है, और लोग उनके आस-पास रहना पसंद करते हैं. इसलिए, एक साथी के रूप में, उनके साथ हमेशा अच्छा समय व्यतीत होता है. वो रखवाले हैं क्योंकि वो लोगों के कठिन समय में खड़े रहते हैं, सभी तरह से ईमानदार रहते हैं, यही वजह है कि लोग आसानी से उनके प्यार में पड़ जाते हैं.2. वृषभ राशिइस राशि में जन्म लेने वाले लोग क्विक निर्णय लेने की अंतर्दृष्टि के साथ अडोरेबल होते हैं. वो वफादार और स्थिर व्यक्ति हैं, यही वजह है कि उनके साथी हमेशा उनके साथ सुरक्षित महसूस करेंगे. उनकी सबसे अच्छी विशेषता ये है कि वो अपने प्रियजनों के साथ मोटे और पतले रहते हैं.वो शुक्र ग्रह द्वारा शासित हैं और इसलिए उनमें हाई सेंसुऐलिटी और अट्रैक्शन है. इस राशि के लोग समान विचारधारा वाले लोगों के साथ रहना पसंद करते हैं जो वफादार और दिलचस्प दोनों होते हैं. इसलिए, उनके रिश्ते मूल्यवान हैं और दीर्घकालिक हैं.3. मिथुन राशिमिथुन को सामाजिक होना पसंद है और उनकी बहुत बड़ी मित्र मंडली है. ये उनका आउटगोइंग नेचर और खुशमिजाज रवैया है जो उन्हें छेड़खानी में महान बनाता है. साथ ही, स्पष्ट दृष्टि और करिश्माई व्यक्तित्व के कारण उनके लिए अपना आदर्श मैच खोजना मुश्किल नहीं है.अपने व्यक्तित्व के कारण, वो ऐसे लोगों को पसंद करते हैं जो समान दृष्टिकोण से प्रतिध्वनित होते हैं और एक ऐसे सामाजिक दायरे में रहना चाहते हैं जो हमेशा जीवन में उच्च हो. वो रोमांटिक पार्टनर हैं और अपने bae को सरप्राइज देने का कोई मौका नहीं छोड़ते.वो स्वतंत्र आत्मा हैं और उन्हें नियंत्रित करने वाले भागीदारों को पसंद नहीं करते हैं जो उन्हें प्रतिबंधित करते हैं. बल्कि, वो हमेशा किसी ऐसे व्यक्ति को चाहेंगे जो उनके सच्चे सेल्फ की प्रशंसा करे.4. कर्क राशिये एक संवेदनशील और वफादार रवैये के साथ एक अत्यधिक भावनात्मक संकेत है जो ये बहुत स्पष्ट करता है कि उन्हें एक अत्यंत संवेदनशील और देखभाल करने वाले साथी की आवश्यकता है.उन्हें अपनी भावनाओं के लिए न्याय करना पसंद नहीं है और इसलिए किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता होती है जो उन्हें गले लगाए और उन्हें किसी और के होने के लिए मजबूर न करे. इस चिन्ह के तहत पैदा हुए लोग पार्टी के जानवर नहीं होते हैं और अपने खास लोगों के साथ घर या निजी खाने की मेज पर एकांत जगह पर समय बिताना पसंद करते हैं.वो लोगों पर बहुत भरोसा नहीं करते हैं और इसलिए किसी नए के साथ सहज होने के लिए समय निकालते हैं. लेकिन एक बार ऐसा करने के बाद, वो एक मजबूत भावनात्मक संबंध के साथ लॉन्ग-टर्म रिलेशनशिप रखना पसंद करते हैं.5. सिंह राशिसिंह राशि का ध्यान आकर्षित करने वाला गुण है और इसलिए वो अपने साथी से अतिरिक्त प्रशंसा और ध्यान चाहते हैं. वो नैतिक लोग हैं जो अपने जीवन सिद्धांतों से समझौता नहीं करते हैं. अपने पार्टनर को लाड़-प्यार करने में अच्छे होते हैं, वो अपने प्रयासों से एक बुरे दिन को अच्छे में बदल सकते हैं. वो एक “शांत” व्यवहार करते हैं, जैसा कि वो हैं, उन्हें दूसरों से अलग करते हैं.वो सूर्य द्वारा शासित हैं और इसलिए गर्म और प्यार करने वाले हैं. वो महान प्रभाव और परिणामों के साथ संचालन करने के लिए सभी आवश्यक लक्षणों के साथ जन्मजात नेता होते हैं. वो आत्म-पुष्टि करने वाले व्यक्ति हैं जो अपने आत्म-मूल्य की मजबूत भावना रखते हैं.6. कन्या राशिकन्या राशि एक पृथ्वी चिन्ह है और इसलिए ये वफादार और भरोसेमंद लोग होते हैं. उनके पास एक विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण है और अक्सर आलोचकों को छोटी-छोटी बातों पर भी बदल देते हैं. उनका स्वभाव रूढ़िवादी होता है और इसलिए लोग उन्हें अत्यधिक आकर्षक पाते हैं.जिस कारण से लोग उनसे जुड़ना पसंद करते हैं, वो उनका अत्यधिक देखभाल करने वाला रवैया और उनकी अंतहीन दयालुता है जिसकी सभी प्रशंसा करते हैं. वो पूर्णतावादी हैं और बड़े होकर खुद का सबसे अच्छा वर्जन बनना चाहते हैं.7. तुला राशितुला राशि के जीवन की कुंजी संतुलन है. वो अपने रिश्ते में स्थिरता और प्यार चाहते हैं और हमेशा संदेह का लाभ देने को तैयार रहते हैं. यही वजह है कि ये अपने रिश्तों को आसानी से नहीं छोड़ते. वो शांत व्यक्ति हैं और किसी तर्क का हिस्सा बनना पसंद नहीं करते हैं.उनका सबसे बड़ा गुण ये है कि वो शांत स्वभाव के होते हैं और इसलिए आप उनके साथ आसानी से नहीं लड़ सकते. इस राशि में जन्म लेने वाले लोग अत्यधिक बौद्धिक और उदार होते हैं. उनके पास खुद के लिए एक कलात्मक सेल्फ है और प्रकृति और शांति में समय बिताना पसंद करते हैं.8. वृश्चिक राशिवो बुद्धिमान व्यक्ति हैं और उनका खुद का एक पक्ष है कि वो किसी के साथ साझा नहीं करना पसंद करते हैं. वो निजी लोग हैं और अपने विचार किसी के साथ साझा करना पसंद नहीं करते हैं. उनकी भावनाओं को जानना बहुत आसान नहीं होता है और इसलिए उनके पार्टनर को उनके प्रति बहुत संवेदनशील और समझदार होना पड़ता है.उनका मी-टाइम उनके लिए बेहद महत्वपूर्ण है और इसलिए वो केवल उन्हीं लोगों के साथ रहेंगे जो इसका सम्मान करते हैं. वो एक इंट्रोवर्टेड पक्ष वाले लोगों की देखभाल कर रहे हैं जिनका उनके सहयोगियों द्वारा सम्मान किया जाना चाहिए. ये बाहर से सख्त लेकिन बहुत नरम दिल के होते हैं अन्यथा यही उन्हें यूनिक और प्रिय बनाता है.9. धनु राशिधनु राशि वाले लोगों को हमेशा एक साहसी व्यक्ति के रूप में जाना जाता है और इसलिए उन्हें डेट करना हमेशा मजेदार होता है. उनकी ऊर्जा हमेशा हाई होती है, और वो बुद्धि और हास्य का एक प्रवाह रखते हैं जो उन्हें आकर्षण का केंद्र बनाते हैं.वो मजबूत नेतृत्व वाले, बहुमुखी और मनोरंजक होते हैं, यही वजह है कि वो अपने रिश्ते में हर दिन कुछ नया लाते हैं जो उनके साथी द्वारा पोषित और प्यार किया जाता है. वो ईमानदार लोग हैं जो अपने प्रियजनों के लिए एक्स्ट्रा माइल तक जा सकते हैं.10. मकर राशिदृढ़ता और निष्ठा ऐसे प्रमुख गुण हैं जो मकर राशि को अन्य सभी से अलग बनाते हैं. वो आवेगी लेकिन अनुशासित व्यक्ति होते हैं जो हमेशा अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हैं. इसलिए उनके पार्टनर को किसी बात की चिंता करने की जरूरत नहीं है.वो समान घरेलू स्थिरता वाले भागीदारों की तलाश करते हैं और विशेष रूप से किसी ऐसे व्यक्ति की प्रशंसा करते हैं जो अपने काम में मेहनती है. वो देखभाल करने वाले व्यक्ति होते हैं और यही मायने रखता है.11. कुम्भ राशिकुंभ राशि का कोई नकली पक्ष नहीं होता है. वो मिलनसार और दयालु लोग होते हैं जो किसी को चोट नहीं पहुंचाना चाहते हैं. वो मेहनती हैं और अपने लक्ष्य तक पहुंचने पर ध्यान केंद्रित करते हैं. सेल्फ-लव इस सूर्य राशि का सबसे बड़ा गुण है, और ये उनकी आंतरिक सुंदरता है जो सभी को उनके प्यार में पड़ने पर मजबूर कर देती है. वो जिद्दी व्यक्ति होते हैं और एक ऐसा साथी चाहते हैं जो उनकी प्रशंसा करे और उनका समर्थन करे.12. मीन राशिवो दयालु लोग हैं जो जीवन में बड़े सपने देखते हैं. ये उनके सहानुभूतिपूर्ण और वफादार रवैये के कारण है कि लोग उन्हें प्यार करते हैं, और उनके साथी न्याय किए जाने के डर के बिना आसानी से अपनी भावनाओं को साझा कर सकते हैं. वो ईमानदार हैं और अपने रिश्ते में पारदर्शिता रखने में विश्वास करते हैं. मीन राशि वाले लोगों की दक्षता को महत्व देते हैं और अपने भागीदारों को उनके जीवन में संगठित होने के लिए प्रोत्साहित करते हैं.
- हिंदू धर्म में किसी भी देवी-देवता की पूजा करते समय हमें कुछ नियमों को हमेशा ध्यान में रखना चाहिए क्योंकि ऐसा करने पर हमारी साधना-आराधना शीघ्र ही फलीभूत होती है. जैसे ईश्वर की पूजा हमेशा शुद्ध और पवित्र मन से एक निश्चित स्थान पर एक निश्चित समय पर अपने आसन पर बैठ कर ही करनी चाहिए. पूजा के लिए कभी भी दूसरे के आसन या फिर जपमाला आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए. आइए शुभ फलों की प्राप्ति के लिए पूजा के जरूरी नियमों को जानते हैं.पूजा करते समय जरूर ढंकें अपना सिरपूजा करते समय हमारे यहां सिर ढंकने का नियम है. चूंकि सनातन परंपरा में पूजा के दौरान काला रंग वर्जित है. ऐसे में क्या स्त्री और क्या पुरुष अपने सिर को ढंककर ईश्वर के प्रति अपना आदर भाव जताते हैं. जब हम पूजा के दौरान अपना सिर ढंकते हैं तो हम उन नकारात्मक शक्तियों से भी बचे रहते हैं जो अक्सर साधना-आराधना में विघ्न डालती हैं.कैसे करें ईश्वर को प्रणामईश्वर को कभी एक हाथ से प्रणाम नहीं करना चाहिए. ईश्वर की मूर्ति को यदि स्पर्श करने का अवसर मिलता है तो आप अपने बाएं हाथ से उनका बायां पैर और दाएं हाथ से उनका दायां पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त करें. इसी तरह आप चाहें तो भगवान की मूर्ति के सामने जमीन पर पूरा लेटकर साष्टांग दंडवत या साष्टांग प्रणाम भी कर सकते हैं. हालांकि शास्त्रों के अनुसार साष्टांग प्रणाम सिर्फ पुरुष ही कर सकते हैं,स्त्रियों को ऐसा करने की मनाही है.तुलसी की पूजा का नियमभगवान विष्णु की प्रिय तुलसी को उनकी पूजा में प्रसाद स्वरूप अवश्य चढ़ाएं. यदि आप भगवान विष्णु की कृपा पाना चाहते हैं तो गुरुवार को विशेष रूप से तुलसी जी के पेड़ के नीचे शुद्ध देशी घी का दिया जलाएं. तुलसी के पौधे को कभी भी अपवित्र हाथ से न छुएं. तुलसी के पौधे से पत्तियां हमेशा स्नान करने के बाद पवित्र कपड़े धारण करके ही तोड़ना चाहिए. रात के समय, मंगलवार और रविवार के दिन तुलसी की पत्तियां भूल से भी न तोड़ें और न ही तुलसी के पौधे को उखाड़ें.दीपक से दीपक नहीं जलाएंईश्वर की पूजा के लिए जलाए जाने वाले दीपक को कभी भी किसी दूसरे दीपक से न जलाएं. उसे जलाने के लिए हमेशा एक नई माचिस की तीली का प्रयोग करें. भगवान विष्णु की पूजा में हमेशा शुद्ध घी का दिया जलाएं और शनिदेव की पूजा में सरसों के तेल का दिया जलाएं.
- पितरों को समर्पित पितृ पक्ष 2021की शुरुआत 20 सितंबर से होने जा रही है. 15 दिनों के पितृ पक्ष में पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए धर्म-कर्म किए जाते हैं. उनके निमित्त तर्पण किया जाता है और श्राद्ध की जाती है. इसलिए इसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है. मान्यता है कि श्राद्ध पक्ष के दौरान पितर पृथ्वी लोक पर आते हैं क्योंकि इस बीच पितृलोक में जल का अभाव हो जाता है. ऐसे में अपने वंशजों द्वारा किए गए तर्पण और श्राद्ध से वे जल और भोजन ग्रहण करते हैं और प्रसन्न होते हैं.इसीलिए श्राद्ध पक्ष को पितरों द्वारा किए गए उपकारों का कर्ज चुकाने वाले दिन कहा जाता है. पितृ पक्ष में अपने पूर्वजों के लिए कोई भी काम पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ करना चाहिए. कहा जाता है कि यदि पितृ प्रसन्न हो जाएं तो अपने बच्चों को आशीर्वाद देकर पितृ लोक लौटते हैं. पितरों के आशीर्वाद से परिवार खूब फलता-फूलता है. लेकिन अगर पितर कुपित हो जाएं, तो परिवार पर कई तरह के संकट आ सकते हैं. अगर आपको पितरों की नाराजगी से बचना है तो पितृ पक्ष में कुछ गलतियां भूलकर भी न करें.पितृ पक्ष में न करें ये गलतियां1. मांसाहारी भोजन न बनाएंपितृ पक्ष के दौरान घर में मांसाहारी भोजन और अंडा वगैरह न बनाएं. न ही इनका बाहर कहीं सेवन करें. इसके अलावा शराब से भी पूरी तरह से परहेज करें.2. बाल और नाखून न काटेंघर का जो सदस्य पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म करता है, इन 15 दिनों के बीच अपने बाल और नाखून नहीं काटने चाहिए. इसके अलावा पूरी तरह से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए.3. सूर्यास्त के बाद श्राद्ध न करेंजब भी श्राद्ध करें तो इसे सुबह से लेकर 12:30 बजे तक कर दें. ये समय काफी शुभ माना जाता है. सूर्यास्त के बाद भूलकर भी ऐसा न करें.4. जरूरतमंदों को न सताएंपितृ पक्ष में किसी भी जरूरतमंद, बुजुर्ग, जानवरों या पक्षियों को न सताएं. उनकी सेवा करें. अगर आपके दरवाजे पर कोई जानवर या पक्षी आए तो उसे भोजन जरूर कराएं. मान्यता है कि पितृ पक्ष में कई बार इनके रूप में हमारे पूर्वज आते हैं.5. ब्राह्मण को पत्तल में भोजन कराएंश्राद्ध के दौरान ब्राह्मण को पत्तल में भोजन कराएं या धातु के बर्तन का इस्तेमाल करें. कांच या प्लास्टिक के बर्तनों का इस्तेमाल न करें.6. शुभ काम न करेंश्राद्ध पक्ष के दौरान कोई भी शुभ काम जैसे शादी, मुंडन, सगाई और घर की खरीददारी वगैरह नहीं करने चाहिए. यहां तक कि कोई विशेष नई वस्तु भी नहीं खरीदनी चाहिए.=
- श्राद्ध पक्ष ही वह 16 दिवस है जब हमें श्याम वर्ण के पक्षी कौए की महत्ता का ज्ञान होता है। कौआ यम का प्रतीक है, मृत्यु का वाहन है, जो पुराणों में शुभ-अशुभ का संकेत देने वाला बताया गया है। इस कारण से पितृ पक्ष में श्राद्ध का एक भाग कौओं को भी दिया जाता है। श्राद्ध पक्ष में कौओं का बड़ा ही महत्व है। कौए के संबंध में पुराणों बहुत ही विचित्र बात बताई गई है, मान्यता है कि कौआ अतिथि आगमन का सूचक एवं पितरों का आश्रम स्थल माना जाता है। श्राद्ध पक्ष में कौआ अगर आपके दिए अन्न को आकर ग्रहण कर ले तो तो माना जाता है कि पितरों की आप पर कृपा हो गई।गरुड़ पुराण में तो कौए को यम का संदेश वाहक कहा गया है। श्राद्ध पक्ष में कौए का महत्व बहुत ही अधिक माना गया है। मान्यता है कि पितृपक्ष में यदि कोई भी व्यक्ति कौए को भोजन कराता है तो यह भोजन कौआ के माध्यम से उनके पितर ग्रहण करते है। शास्त्रों में बताया गया है कि कोई भी क्षमतावान आत्मा कौए के शरीर में विचरण कर सकती है। कौआ यम का दूत होता है।आश्विन महीने में कृष्णपक्ष के 16 दिनों में कौआ हर घर की छत का मेहमान होता है। लोग इनके दर्शन को तरसते हैं। ये 16 दिन श्राद्ध पक्ष के दिन माने जाते हैं। इन दिनों में कौए एवं पीपल को पितृ का प्रतीक माना जाता है। इन दिनों कौए को खाना खिलाकर एवं पीपल को पानी पिलाकर पितरों को तृप्त किया जाता है। धर्म ग्रंथ की एक कथा के अनुसार इस पक्षी ने देवताओं और राक्षसों के द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत को रस चख लिया था। यही कारण है कि कौए की कभी भी स्वाभाविक मृत्यु नहीं होती है। यह पक्षी कभी किसी बीमारी अथवा अपने वृद्धा अवस्था के कारण मृत्यु को प्राप्त नहीं होता। इसकी मृत्यु आकस्मिक रूप से होती है।यह बहुत ही रोचक है कि जिस दिन कौए की मृत्यु होती है, उस दिन उसका साथी भोजन ग्रहण नहीं करता। यह आपने कभी ख्याल किया हो तो कौआ कभी भी अकेले में भोजन ग्रहण नहीं करता। यह पक्षी किसी साथी के साथ मिलकर ही भोजन करता है। भोजन बांटकर खाने की सीख हर किसी को कौए से लेनी चाहिए। कौए के बारे में पुराण में बताया गया है कि किसी भविष्य में होने वाली घटनाओं का आभास पूर्व ही हो जाता है। कौए को यमस्वरूप भी माना जाता है और न्याय के देवता शनिदेव का वाहन भी है।कौआ का सबसे पहला रूप देवराज इंद्र के पुत्र जयंत ने लिया था। त्रेतायुग में एकबार जब भगवान राम ने अवतार लिया और जयंत ने कौए का रूप धारण कर माता सीता के पैर में चोंच मार दी थी। तब श्री राम ने तिनके से जयंत की आंख फोड़ दी थी। जयंत ने अपने किए की माफी मांगी, तब राम ने वरदान दिया कि पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोजन में तुम्हें हिस्सा मिलेगा। तभी से यह परम्परा चली आ रही है कि पितृ पक्ष में कौए को भी एक हिस्सा मिलता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 398
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज समन्वयवादी जगदगुरु हैं अर्थात उन्होंने अपना कोई पृथक वाद नहीं चलाया अपितु अपने पूर्ववर्ती समस्त मूल जगदगुरुओं के सिद्धांतों का समन्वय किया। उनकी समन्वयात्मक शैली उनके प्रवचनों व सिद्धान्तों में सर्वथा दृष्टिगोचर होती है। निम्नांकित प्रवचन-अंश में भी हम उनकी इसी विशेषता का दर्शन करते हुये मार्गदर्शन प्राप्त करेंगे...)
...हम सुख चाहते हैं अपना। बाहर से मतलब नहीं है, अपना सुख चाहते हैं। सुख!! सुख चाहते हो? हाँ, सुख। सब सुख चाहते हैं। हाँ!! तो फिर सब आस्तिक हैं, सब भगवान के भक्त हैं। क्योंकि भगवान का तो नाम ही है सुख, आनन्द। (रसो वै सः - वेद)
इसलिये सब आस्तिक भी हैं, सब वैष्णव भी हैं, सब भगवान के हैं, यानी बस एक सम्प्रदाय है सारी दुनियाँ में। अगर कोई पूछे कि आप किस सम्प्रदाय के हैं? आनन्द सम्प्रदाय के, भगवत सम्प्रदाय के। क्यों? इसलिये कि हम केवल भगवान को चाहते हैं। केवल आनन्द चाहते हैं, हम दुःख नहीं चाहते। और अगर और डिटेल में जाओ, तो फिर ये कह सकते हो कि हम आनन्द चाहते हैं, लेकिन मिला नहीं है। तो भगवान में आनन्द मानने लगे। प्रयत्न कर रहे हैं कि हम आस्तिक बन जायें, वैष्णव बन जायें, शैव बन जायें।
तो विश्व में वर्तमान काल में जो मायाधीन हैं वो आस्तिक नहीं, वैष्णव नहीं बन सकता। जब माया चली जायेगी और भगवान गवर्न करेंगे हमको, तब हम आस्तिक हुये। हर समय रियलाइज करेंगे तब। अंदर बैठे हैं, अंदर बैठे हैं। अभी तो मुँह से बोलते हैं, सबके अंदर बैठे हैं। घट घट व्यापक राम। अरे घट घट है क्या? तुम्हारे घट (हृदय) में है, ये तुम महसूस करते हो? अगर करो तो न कोई गवर्नमेन्ट की जरुरत है, न कोर्ट की, न पुलिस की। हर समय यह फीलिंग रहे कि वो अंदर बैठे हैं।
अगर इसका प्रचार करे, हर दुनियाँ की, देश की गवर्नमेन्ट कि सबके अंदर भगवान बैठे हैं। इसका प्रचार करे, भरे लोगों के, बच्चों के दिमाग में। तो अपराध अपने आप कम हो जायें। सब डरेंगे कि हाँ! वो (भगवान) नोट कर लेंगे, फिर दण्ड देंगे भगवान, इसलिये गलत काम नहीं करना है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० संदर्भ/स्त्रोत : जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'मैं कौन? मेरा कौन? विषय पर दिये गये ऐतिहासिक 103 प्रवचनों की श्रृंखला के 67 वें प्रवचन का एक अंश।०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - शनि देवता न्याय के देवता कहलाते हैं. उनकी कृपा अगर किसी पर हो जाए तो उसके वारे न्यारे हो जाते हैं. अगर गलती से भी शनिदेव (Shani Dev) कुपित हो गए तो वह राजा को भी रंक बना देते हैं. ऐसे में जरूरी है कि शनिदेव की कृपा बनी रहे. इसके लिए नियमित तौर पर शनिदेव का पूजा पाठ करना अनिवार्य होता है. कुंडली में अगर शनि दोष हो तो शनि देव को प्रसन्न करना बेहद जरूरी हो जाता है, वर्ना जिंदगी भर परेशानियों का सामना करना पड़ता है. हम आपको देश के 5 प्रसिद्ध शनि मंदिर (Famous Shani Temples) के बारे में बताने जा रहे हैं. मान्यता है कि इन मंदिरों में जाकर शनिदेव की पूजा करने से उनकी कृपा बनी रहती है.ये हैं शनिदेव के 5 प्रसिद्ध मंदिर1. शनि शिंगणापुर, महाराष्ट्र – शनिदेव का प्रसिद्ध मंदिर शनि शिंगणापुर महाराष्ट्र में स्थित है. इस मंदिर को बहुत ही चमत्कारिक माना जाता है. शनिदोष से पीड़ित लोगों को यहां आकर जरूर दर्शन करना चाहिए.2. शनि मंदिर, मध्यप्रदेश – मध्यप्रदेश के इंदौर में स्थित शनि मंदिर भी देशभर में ख्यात है. यहां शनिदेव का सोलह श्रृंगार किया जाता है. जूनी इंदौर इलाके में बना यह मंदिर काफी चमत्कारी माना जाता है.3. कोकिलावन धाम शनि मंदिर, यूपी – यह मंदिर उत्तर प्रदेश के मथुरा में स्थित है. कोसीकलां में स्थित यह मंदिर भी बेहद चमत्कारी माना जाता है. यह मंदिर बरसाना और श्री बांकेबिहारी मंदिर के नजदीक स्थित है. अगर किसी पर शनि की वक्र दृष्टि हो तो मान्यता है कि उसे इस मंदिर में जरूर आना चाहिए.4. सारंगपुर मंदिर, गुजरात – गुजरात के भावनगर स्थित सारंगपुर में बजरंगबली का एक बहुत प्राचीन मंदिर है. यह मंदिर अपने आप में इसलिए खास है क्योंकि इस मंदिर में हनुमान जी के साथ शनिदेव विराजित हैं. यह कष्टभंजन हनुमान मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है. मंदिर को लेकर मान्यता है कि अगर किसी भक्त की कुंडली में शनि दोष है तो इस मंदिर में हनुमान जी की उपासना से शनिदोष दूर हो जाता है.5. शनि मंदिर, उज्जैन – महाकाल की नगरी उज्जैन के नजदीक सांवेर रोड़ पर प्राचीन शनिदेव का मंदिर है. इस मंदिर में नवग्रह स्थापना भी की गई है. इसलिए इस मंदिर को नवग्रह मंदिर के नाम से भी पहचाना जाता है.
-
अनंत चतुर्दशी का पर्व 19 सितंबर को है। इस दिन भगवान विष्णु के अनंत रूपों की पूजा की जाती है। माना जाता है कि महाभारत काल में जब पांडव जुए में अपना सारा राज-पाट हार के वन में चले गए थे, तब भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण ने पांडवों को अनंत चतुर्दशी का व्रत करने की सलाह दी थी। इस व्रत को करने से भगवान विष्णु सारे संकट हर लेते हैं। तभी से इस दिन श्रीहरि का पूजा और व्रत रखा जाता है। आप भी अगर अनंत चतुर्दशी का व्रत रखने वाले हैं या पूजा करने वाले हैं तो सबसे जरूरी है भगवान का भोग। कोई भी पूजा भगवान को भोग लगाए बिना पूरी नहीं होती। ऐसे में अगर भोग भगवान की पसंद का हो तो प्रभु तो खुश होते ही हैं, पूजा भी सफल हो जाती है। अब सवाल है कि भगवान विष्णु का पसंदीदा भोग क्या है? वैसे तो भगवान विष्णु को पीले रंग से प्यार है। उनके बृहस्पतिवार के व्रत में गुड़ और चने का भोग लगाया जाता है, लेकिन अनंत चतुर्दशी के दिन आप श्रीहरि को खीर का भोग लगाएं। हो सकता है कि परिवार में किसी का व्रत हो या जिसे आप प्रसाद दें, उनमें से किसी का व्रत हो, इसलिए चावल की खीर न बनाकर स्वादिष्ट मखाने की खीर का भोग लगाएं, ताकि भगवान का प्रसाद सभी लोग ले सकें।
मखाना खीर बनाने की रेसिपी
सबसे पहले मध्यम आंच पर एक पैन में दूध उबाल लीजिए। जब दूध में पहला उबाल आ जाए तो उसमें मखाने डालकर तब तक पकाएं, जब तक कि दूध में पड़े मखाने पूरी तरह से गल न जाएं।
ध्यान रखें कि खीर जले न, इसलिए थोड़ी-थोड़ी देर में खीर को चलाते रहें। अब खीर में कटे हुए मेवे जैसे काजू, बादाम और किशमिश को डालकर मिला लें।
फिर खीर में चीनी डालकर अच्छी तरह चलाएं। 5 मिनट बाद इलायची पाउडर डालकर मिला लें और फिर आंच बंद कर दें। आपकी स्वादिष्ट मखाना खीर तैयार है।
-----ध्यान दें कि भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी का होना अनिवार्य होता है। इसलिए भगवान को भोग अर्पण करते समय तुलसी की पत्तियां जरूर चढ़ाएं और बाद में खीर में डालकर सभी में प्रसाद बांटे। -
इस समय हर जगह गणेश उत्सव मनाया जा रहा है। घर-घर बप्पा विराजे हुए हैं। दस दिनों तक चलने वाले गणेश उत्सव में प्रतिदिन विधि-विधान से बप्पा की पूजा-अर्चना की जाती है। इसके बाद अनंत चतुर्दशी के दिन बप्पा का विसर्जन कर दिया जाता है और बप्पा को अगले वर्ष आने की प्रार्थना की जाती है। कुछ लोग अपनी कामना अनुसार सातवें या नवें दिन भी विसर्जन कर देते हैं लेकिन बप्पा का विसर्जन गणेश उत्सव के पूर्ण होने पर ही करना चाहिए। जिस तरह से पूरे गणेश उत्सव के दौरान विधि पूर्वक पूजा अर्चना की जाती है उसी तरह से गणपति बप्पा का विसर्जन भी पूरे विधि-विधान से करना आवश्यक होता है। गणपति विसर्जन शुभ मुहूर्त में ही करना चाहिए और कुछ बातों को ध्यान में अवश्य रखना चाहिए। इस बार अनंत चतुर्दशी 19 सितंबर दिन रविवार को पड़ रही है, इसलिए इसी दिन गणेश विसर्जन किया जाएगा।
गणेश विसर्जन शुभ मुहूर्त-
चतुर्दशी तिथि आरंभ- 19 सितंबर 2021 दिन रविवार प्रात: 05 बजकर 59 मिनट से
चतुर्दशी तिथि समाप्त- 20 सितंबर 2021 दिन सोमवार प्रात: 05 बजकर 28 मिनट पर
प्रात: काल विसर्जन मुहूर्त- 07 बजकर 40 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 15 मिनट तक
दोपहर विसर्जन मुहूर्त- 01 बजकर 46 मिनट से लेकर शाम को 03 बजकर 18 मिनट तक
संध्या काल विसर्जन मुहूर्त- शाम को 06 बजकर 21 मिनट से लेकर रात 10 बजकर 46 मिनट तक
गणेश विसर्जन विधि-
गणेश विसर्जन से पहले भगवान गणेश की पूजा अर्चना करें।
गणेश की चौकी सजाने के लिए एक साफ लकड़ी का पाट लें और उसे गंगाजल से शुद्ध करें
अब एक साफ लाल रंग का कपड़ा बिछाएं और गणपति बप्पा को जयघोष के साथ आराम से चौकी पर विराजमान करें।
चौकी पर पान-सुपारी, मोदक दीप और पुष्प रखें।
अब गणपति बप्पा को धूमधाम से विसर्जन के लिए ले जाएं।
विसर्जन से पहले गणपति बप्पा की आरती करें तत्पश्चात उन्हें विसर्जित करें।
गणेश विसर्जन करते समय इन बातों का रखें ध्यान-
गणेश विसर्जन करने से पहले क्षमा प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए।
कई बार लोग ऐसे ही दूर से प्रतिमा को पानी में डाल देते हैं लेकिन यह गलती नहीं करनी चाहिए।
गणपति जी को आराम से पूरे सम्मान के साथ विसर्जित करना चाहिए। इसके साथ ही समस्त समाग्री को भी सम्मान के साथ प्रवाहित करें।
अपने द्वारा की गई गलतियों की क्षमा के साथ मंगल करने की प्रार्थना करनी चाहिए। -
ज्योतिषशास्त्र में ग्रहों की विशेष भूमिका होती है। ग्रहों की चाल और स्वभाव व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव डालते हैं। सभी नौ ग्रहों में शनि ग्रह का प्रभाव सबसे ज्यादा होता है, क्योंकि शनि सबसे धीमी चाल से चलते हैं इस कारण से जातकों पर इसका प्रभाव देर तक रहता है। मान्यताओं के अनुसार शनि को अशुभ फल देने वाला ग्रह माना गया है, लेकिन यह सच नहीं है। शनिदेव न्याय के देवता हैं और यह व्यक्तियों को उनके कर्मों के अनुसार ही शुभ या अशुभ फल प्रदान करते हैं। शनि एक राशि में करीब ढाई वर्षों तक रहते हैं फिर इसके बाद दूसरी राशि में जाते हैं। शनि के राशि परिवर्तन से सभी राशियों पर प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा शनि की वक्री और मार्गी चाल भी जातकों के जीवन पर असर डालते हैं। शनि 2020 से मकर राशि में हैं और 23 मई 2021 से इस राशि में उल्टी चाल से चल रहे हैं।
इस साल शनि का राशि परिवर्तन नहीं होगा, हालांकि 11 अक्तूबर 2021 को वक्री से मार्गी हो रहे हैं। शनि की उल्टी चाल चलने से जिन जातकों पर शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या लगी हुई होती है,उन्हें कई तरह की बाधाओं का सामना करना पडता है। अगले साल यानी 29 अप्रैल 2022 को शनि राशि बदल देंगे। शनि मकर राशि को छोड़कर कुंभ राशि में प्रवेश कर जाएंगे। इस वजह से धनु राशि पर से शनि की साढ़ेसाती खत्म हो जाएगी और मीन राशि पर शनि की साढ़ेसाती का पहला चरण शुरू हो जाएगा।
शनि के मार्गी होने पर धनु, मकर और कुंभ राशि वालों की परेशानियां कम हो जाएंगी। इसके अलावा मिथुन और तुला राशि वालों पर जिनके ऊपर शनि की ढैय्या चढ़ी है उनको भी कुछ राहत मिलेगी। शनि के मार्गी होने पर मेष, कर्क, कन्या, मकर और कुंभ राशि के जातकों के लिए समय अब अच्छा होने लगेगा। जीवन में चल आ रही बाधाएं खत्म हो जाएंगी।
शनि के मार्गी होने का समय
शनिदेव 11 अक्तूबर 2021 को मकर राशि में सुबह 8 बजे से मार्गी हो जाएंगे।
- डॉ विनीत शर्मा ज्योतिषी एवं वास्तु शास्त्रीपरिवर्तनी एकादशी पदमा एकादशी जलझूलनी एकादशी डोल ग्यारस और वामन जयंती के रूप में भी मनाई जाती है।मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने पर वाजपेई यज्ञ के बराबर के परिणाम मिलते हैं यह परिवर्तनी एकादशी इसलिए कहीं जाती है। क्योंकि इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु अपनी करवट को परिवर्तन करते हैं।यह शुभ पर्व शुक्रवार श्रवण नक्षत्र अतिगंड योग विष्कुंभ और बव करण के संयोग में मनाया जाएगा।इस पदमा एकादशी या डोल ग्यारस त्यौहार परशुभ गजकेसरी योग का निर्माण हो रहा है चंद्रमा और गुरु एक साथ मकर राशि में विद्वान रहेंगे शुभ भद्र योग शुभ मालव्य योग शुभ संयोग भी निर्मित हो रहे हैं आज के दिन निराहार रहने का विधान हैआज के शुभ दिन विश्वकर्मा जयंती भी मनाई जाएगीभगवान श्री विश्वकर्मा तकनीक अभियांत्रिकी वास्तु इंजीनियरिंग के देवता माने गए हैं ।आप देवताओं के शिल्पी माने गए हैं आपको देव शिल्पी कहा जाता हैइस जगत में जो कुछ भी तकनीकी क्षेत्र से मशीनों व कल पुर्जो से जुड़ा हुआ है उन सभी के आदि देवता श्री विश्वकर्मा भगवान माने गए हैं आज के दिन श्री विश्वकर्मा जी की पूजा पाठ और आराधना की जाती है।विश्वशर्मा भगवान नव निर्माण वास्तु कला शिल्प कला के आदि देवता माने गए हैं। कई कल कारखानों में विश्वकर्मा जयंती के दिन मशीनों को पूर्णता विश्राम दिया जाता है यह कर्म पुरुषार्थ तकनीक के प्रेरक हैं भगवान विश्वकर्मा जी हमें नित्य कर्म करने उद्यम करने के लिए प्रेरित करते हैं।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 397
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! संत के साथ रहने पर क्या परिवर्तन आता है और क्यों आता है? वाल्मीकि लुटेरा था और संत के साथ रहने से ब्रम्हर्षि हो गये। ऐसी कौन सी खास बात होती है जो संत के साथ रहने से जीवन में इतना परिवर्तन आ जाता है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: खास बात क्या होती है? वो तो किसी आदमी को ठण्ड लग रही है, वो आग के पास जायेगा तो ठण्ड दूर होगी, लेकिन उसमें कुछ शर्तें हैं - संत एक चुम्बक है। चुम्बक पत्थर होता है न, और संसार के लोग यानी संसारियों का मन लोहा है। जैसे एक चुम्बक रख दो और चारों ओर लोहे की सुइयाँ खड़ी कर दो, तो जो सुई क्लीन लोहे की होगी, वो फौरन आ कर चिपक जायेगी, जिसमें थोड़ी मिलावट होगी वो धीरे-धीरे मिल जायेगी, जिसमें और मिलावट होगी, वो और धीरे-धीरे आयेगी, और जिसमें बहुत अधिक मिलावट होगी वो अपनी जगह हिलेगी, चलेगी नहीं और जो नकली होगी, लोहे की होगी ही नहीं, उस पर कोई असर नहीं होगा।
ऐसे ही भगवान जब अवतार लेते हैं या संत महात्मा जब किसी को मिलते हैं तो उसके अन्तःकरण की शुद्धि जितनी लिमिट की होती है, उसी हिसाब से वो अपने आप खिंच जाता है। एक सैकेण्ड में कम्प्लीट सरेण्डर हो सकता है, अगर अन्तःकरण शुद्ध मिल जाय, और अगर गड़बड़ है कुछ, तो जितनी गड़बड़ है उतनी ही देर में वो संत से खिंचेगा।
इसलिये कहते हैं एक घर में माँ है, बाप है, बेटा है, स्त्री है, पति है, दस आदमी हैं। एक संत का सत्संग सबको मिला। लेकिन सबका खिंचना अलग-अलग ढंग से है। किसी का फिफ्टी परसेन्ट, किसी का ट्वेन्टी परसेन्ट, किसी का नाइंटी परसेन्ट। तो जिसका हृदय जितना साफ है, शुद्ध है, उसी हिसाब से वो खिंच जाता है और जिसका हृदय बहुत गन्दा है वो गाली देता है संत को, भगवान को; खिंचने की कौन कहे।
पापवंत कर सहज सुभाऊ..
भगवान कहते हैं - भई! जो जितनी मात्रा का पापी होगा, पाप का अन्तःकरण होगा, उतनी ही देर में खिंचेगा;
यावत्पापैस्तु मलिनं हृदयं तावदेव हि।न शास्त्रे सत्यता बुद्धि: सद्बुद्धि: सद्गुरौ तथा।।
जितना अधिक मन मलिन होगा, अन्तःकरण गन्दा होगा, पापयुक्त होगा, उतना ही वह भगवान और संत पर विश्वास ही न करेगा। देखकर हँस देगा, वो जायेगा ही नहीं।
हमारे इण्डिया में पण्डित नेहरु थे प्राइम मिनिस्टर। वो कहते थे कि भगवान की बात सुनना गलत है, अगर सुन लिया और कहीं उधर चले गये तो हमारी पॉलिटिक्स बिगड़ जायेगी। इतना पाप का अन्तःकरण कि उसको भगवान की बात सुनने में एतराज है। वो पापात्मा जितना अधिक होगा, उतना वो दूर जायेगा भगवान से, संत से। और जितना अन्तःकरण शुद्ध होगा, उतनी ही जल्दी वो खिंच जायेगा।
वो तो ऐसा है जैसे गुड़ है, गुड़ से प्यार करने वाली जो मक्खियाँ हैं वो गुड़ कहीं पर रख दो, अपने आप आ जायेंगी। कोई मुरदा सड़क पर पड़ा है तो कौवे, गीध ये सब अपने आप आ जायेंगे। अपने आप खिंच जाते हैं वो।
जिस चित्तवृत्ति का व्यक्ति होगा, उस चित्तवृत्ति में खिंच जायेगा। शराबी से शराबी मिलेगा, बड़ी दोस्ती हो जायेगी, पण्डित से पण्डित मिलेगा, दोस्ती हो जायेगी। इसलिये संत से खिंच जाना, ये शुद्ध अन्तःकरण वाले होते हैं, वही खिंचते हैं, सब नहीं खिंचते।
बाप हिरण्यकशिपु गाली दे रहा है भगवान को, और उसका बेटा प्रह्लाद भगवान का भक्त है पूर्ण। ये सबके अपने-अपने संस्कार होते हैं। सबका अपना-अपना हृदय पाप-पुण्य से युक्त होता है, उसी हिसाब से उसका आकर्षण होता है।
एहि सर आवत अति कठिनाई,रामकृपा बिनु आई न जाई..
बड़ी भगवत्कृपा हो तो सत्संग में कोई जाय।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक, भाग - 3, प्रश्न संख्या 43०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) -
कई बार ऐसा हो सकता है कि बिना किसी वजह के चीजें गलत हो जाती हैं, चाहे आप स्थिति को कंट्रोल में करने के लिए कितनी भी कोशिश कर लें. कुछ भी आपके रास्ते में नहीं आता है और अराजकता आपके जीवन पर हावी हो जाती है. ये उस घर की वजह से हो सकता है जिसमें आप रह रहे हैं.
अगर आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा है, तो ये आपके और उसमें रहने वाले दूसरे लोगों के जीवन को प्रभावित कर सकती है. ऐसा होने से कई चीजें आपके वश में नहीं रह जातीं. घर में हमेशा कलह और परेशानी बनी रह सकती है. जीवन में सफलता की चाह रखने वालों को सफलता मिलने में बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.
अगर आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा है, तो आप और घर के दूसरे सदस्य आपस में बहुत लड़ सकते हैं या झगड़ा कर सकते हैं और आप अपने हर काम में असफल हो सकते हैं. इसलिए इसे जितनी जल्दी हो सके हटाने की कोशिश करें ताकि आपके घर में लोगों के बीच बेहतर सांमजस्य रह सके.
क्यूंकि जीवन में आगे बढ़ने के लिए आपके घर का ठीक होना बहुत ही जरूरी है. लेकिन ये कैसे आप जान पाएंगे कि आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा है या नहीं, ये जानने के लिए कुछ और संकेतों पर गौर करें. ऐसा करके आप अपने घर में पनप रही नकारात्मक ऊर्जा को समाप्त कर सकते हैं.
बार-बार संघर्ष और तर्क
अगर आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा है, तो आपके और आपके परिवार के सदस्यों में बार-बार मतभेद और बहस हो सकती है. इस तरह के झगड़े सदस्यों के बीच के बंधन को कमजोर करने में योगदान कर सकते हैं और इससे रिश्तों में दूरी होने का अंदेशा भी बढ़ जाता है. इसे जितनी जल्दी हो सके दूर करना ही बेहतर माना जाता है.
परिवार के किसी सदस्य का स्वास्थ्य खराब होना
ये हो सकता है कि परिवार के किसी निश्चित सदस्य को खराब स्वास्थ्य और निरंतर स्वास्थ्य समस्याओं का अनुभव हो और लाख कोशिशों के बाद भी उनकी तबीयत में सुधार होता नहीं दिख रहा है. तो इस स्थिति में आपको बहुत सतर्क हो जाने की आवश्यकता है अन्यथा परेशानी और अधिक बढ़ सकती है.
अवसरों को हथियाने में विफलता
जब आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा होती है, तो चीजें कभी आपके अनुकूल नहीं हो सकतीं. हो सकता है कि अंतिम चरण में पहुंचने के बाद ही कोई अवसर आपसे छीन लिया जाए और इसे बचा पाने की स्थिति में आप हो भी न पाएं. तो इसके लिए भी आपको सतर्क रहने की आवश्यकता है.
बेचैनी की निरंतर भावना
आप घर पर ज्यादातर समय बेचैन, सुस्त और असहज महसूस कर सकते हैं. नकारात्मक विचार और भावनाएं आपके मानस पर हावी हो सकती हैं और आपको चिंतित और उदास महसूस करा सकती हैं. तो इन चीजों पर लगातार गौर करते रहें और उन्हें स्वयं पर हावी न होने दें. - इरावान महाभारत का बहुचर्चित तो नहीं किन्तु एक मुख्य पात्र है। इरावान महारथी अर्जुन का पुत्र था जो एक नाग कन्या उलूपी से उत्पन्न हुआ था। द्रौपदी से विवाह के पूर्व देवर्षि नारद के सलाह के अनुसार पांचों भाइयों ने अनुबंध किया कि द्रौपदी एक वर्ष तक किसी एक भाई की पत्नी बन कर रहेगी। उस एक वर्ष में अगर कोई भी अन्य भाई भूल कर भी बिना आज्ञा द्रौपदी के कक्ष में प्रवेश करेगा तो उसे 12 वर्ष का वनवास भोगना पड़ेगा। देवर्षि ने ये अनुबंध इसलिए करवाया था ताकि दौपदी को लेकर भाइयों के मध्य किसी प्रकार का मतभेद ना हो।एक बार कुछ डाकुओं ने एक ब्राम्हण की गाय छीन ली तो वो मदद के लिए युधिष्ठिर के महल पहुंचा। वहां उसे सबसे पहले अर्जुन दिखा जिससे उसने मदद की गुहार लगायी। अर्जुन को याद आया कि पिछली रात उसने अपना गांडीव युधिष्ठिर के कक्ष में रख दिया था। इस समय युधिष्ठिर और द्रौपदी कक्ष में थे और ऐसे में वहां जाने का अर्थ अनुबंध का खंडन करना था किन्तु ब्राम्हण की सहायता के लिए उन्हें कक्ष में जाना पड़ा। जब वे दस्युओं को मारकर ब्राह्मण की गाय छुड़ा लाये तो अनुबंध की शर्त के अनुसार वनवास को उद्धत हुए। अन्य भाइयों के लाख समझने के बाद भी वे वनवास को निकल गए।भ्रमण करते हुए वे भारत के उत्तर पूर्व में (आज जहां नागालैंड है) पहुंचे और एक सरोवर में स्नान के लिए उतरे। वहां नागों का वास था जिसकी राजकुमारी उलूपी अर्जुन पर मुग्ध हो गयी। उलूपी विधवा थी और अर्जुन से विवाह की प्रबल इच्छा के कारण उलूपी ने अर्जुन को जल के भीतर खींच लिया और नागलोक में ले आयी। वहां उलूपी के बार बार आग्रह करने पर अर्जुन ने उससे विवाह किया और गुप्त रूप से उसी के कक्ष में रहने लगे। किन्तु बाद में उनका रहस्य खुलने पर उलूपी के पिता ने उनके सामने शर्त रखी कि उलूपी और उनकी जो संतान होगी उसे वहीं नागलोक में रहना होगा। इन्हीं का पुत्र इरावान हुआ जिसे नागलोक में ही छोड़ कर अर्जुन एक वर्ष पश्चात आगे की यात्रा को निकल गए।इरावान बहुत ही मायावी योद्धा था जिसने महाभारत के युद्ध में पांडवों की ओर से युद्ध किया था। उसकी माया शक्ति के आगे योद्धाओं की ना चली। पितामह भीष्म पहले ही प्रतिज्ञा कर चुके थे कि वे पांडव और उनके पुत्रों का वध नहीं करेंगे। कोई और उपाय ना देख कर तो दुर्योधन ने महान मायावी राक्षस अलम्बुष से इरावान का वध करने को कहा। अलम्बुष ने इरावान से भयानक मायायुद्ध किया और अंतत: युद्ध के आठवें दिन अलम्बुष के हांथों इरावान वीरगति को प्राप्त हुआ।इरावान की दक्षिण भारत विशेषकर तमिलनाडु में बड़ी महत्ता है। साथ ही साथ किन्नर समाज में भी इरावान को देवता की तरह पूजा जाता है। दक्षिण भारत में एक विशेष दिन किन्नर इकठ्ठा होकर इरावान के साथ सामूहिक विवाह रचाते हैं और अगले दिन इरावन को मृत मानकर वे सभी एक विधवा की भांति विलाप करते हैं। इस प्रथा के पीछे भी महाभारत की एक कथा है। कहा जाता है कि इरावान की मृत्यु से एक दिन पहले सहदेव, जिन्हे त्रिकालदृष्टि प्राप्त थी, ने इरावन को बता दिया था था कि अगले दिन उनकी मृत्यु होने वाली है। ये सुनकर इरावान जरा भी नहीं घबराये किन्तु उन्होंने श्रीकृष्ण से ये प्रार्थना की कि वे अविवाहित नहीं मरना चाहते।अब इतनी जल्दी इरावान के लिए कन्या का प्रबंध कहां से होता? इस कारण श्रीकृष्ण ने वहां युद्ध में उपस्थित राजाओं से उनकी कन्या का विवाह इरावान से करने को कहा किन्तु ये जानते हुए कि इरावान अगले दिन मरने वाला है, कौन राजा उसे अपनी कन्या देता? कोई और उपाय ना देख कर स्वयं श्रीकृष्ण ने मोहिनी रूप में इरावान के साथ विवाह किया और अगले दिन उसकी मृत्यु के पश्चात वे विधवा हुए। कहीं कहीं महाभारत में इरावान का विवाह सात्यिकी की पुत्री के साथ भी होना बताया गया है। यही प्रथा इरावान के साथ किन्नर मानते हैं। इसी कारण देश भर के किन्नर इरावान को अपने आराध्य के रूप में पूजते हैं।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 396
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! प्रभु और प्रभु के जन यानी संत जो हमें प्रभु के पास ले जाते हैं, इन दोनों में से सबसे बड़ा कौन हुआ?
• जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: दोनों में कोई बड़ा नहीं है। भगवान् तो अपनी सारी शक्ति सन्त को देते हैं। इसलिये उसमें तो कोई छोटा बड़ा है नहीं। जो आनन्द भगवान् के पास है वही सन्त के पास हो जाता है, जो ज्ञान भगवान् के पास है, वही ज्ञान संत को मिल जाता है। लेकिन अपनी मतलब की दृष्टि से, संत को बड़ा कहते हैं शास्त्र वेद। भई! हमारा काम तो संत से बनेगा। भगवान् तो पहले मिलेंगे नहीं कि हमको कुछ समझायेंगे कि भगवान् क्या है, संत क्या है, ये संसार क्या है, माया क्या है? ये सब ज्ञान तो संत देगा और संत ही साधना करायेगा और फिर सन्त ही अन्तःकरण शुद्धि के बाद दिव्य-प्रेम देगा। ये हमारा सारा काम तो गन्दगी साफ करने का गुरु करता है। भगवान् तो बस, बने बने का साथी है। भगवान् तो जब अन्तःकरण निर्मल हो जायेगा, दिव्य हो जायेगा, तब आकर बैठ जायेंगे वो उसमें, ड्राइंग रूम में।
अपने मतलब की दृष्टि से सन्त लोग कहते हैं कि भई! गुरु या महात्मा या महापुरुष भगवान् से बड़ा है और वैसे बड़ा नहीं है। दोनों में वही ताकत है, वही शक्ति है। भगवान् ने ही तो दी है मनुष्य को पूर्ण शक्ति अपनी तो बड़ा क्या हो जायेगा वो और कहाँ से पॉवर लायेगा वो?
•• संदर्भ पुस्तक ::: 'प्रश्नोत्तरी' भाग - 2, प्रश्न संख्या - 48
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)