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- अदम्य साहसी और पराक्रमी ग्रह पृथ्वी पुत्र मंगल अपनी नीच राशि कर्क की यात्रा समाप्त करके 20 जुलाई की शाम 5 बजकर 52 मिनट पर सूर्य की राशि सिंह में प्रवेश कर रहे हैं। इस राशि पर ये 6 सितंबर की सुबह 3 बजकर 56 मिनट तक भ्रमण करेंगे उसके बाद कन्या राशि में प्रवेश कर जाएंगे। सिंह राशि पर गोचर करते समय ये अत्यधिक प्रभावशाली होते हैं क्योंकि, ये इस राशि के लिए सर्वाधिक योग कारक होते हैं इसलिए सिंह राशि के जातकों के लिए तो यह गोचर किसी वरदान से कम नहीं है। जिन जातकों की जन्मकुंडली में मंगल शुभ भाव में गोचर कर रहे होंगे उनके लिए तो ये शुभ संकेत है किंतु जिनके अशुभ भाव में गोचर कर रहे होंगे उन्हें सावधान रहने की आवश्यकता है। मेष और वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल कर्क राशि में नीच राशि के तथा मकर राशि में उच्च राशि के माने गए हैं। इनके राशि परिवर्तन का अन्य सभी राशियों पर कैसा प्रभाव पड़ेगा इसका विश्लेषण करते हैं।मेष राशिराशि से पंचम विद्या भाव में गोचर कर रहे मंगल के शुभ प्रभाव के परिणाम स्वरूप शिक्षा-प्रतियोगिता में अच्छी सफलता प्राप्त होगी। उच्चाधिकारियों से भी सहयोग मिलेगा। विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाएंगे। संतान के दायित्व की पूर्ति होगी। नव दंपत्ति के लिए संतान प्राप्ति एवं प्रादुर्भाव के योग। अपनी ऊर्जाशक्ति के बल पर कठिन हालात पर भी आसानी से नियंत्रण पा लेंगे। प्रेम संबंधी मामलों में उदासीनता रहेगी।वृषभ राशिराशि से चतुर्थ भाव में गोचर करते हुए मंगल का प्रभाव काफी उतार-चढ़ाव वाला रहेगा। किसी कारण से मानसिक अशांति एवं पारिवारिक कलह का सामना करना पड़ेगा। मित्रों तथा संबंधियों से अप्रिय समाचार प्राप्ति के योग। जमीन जायदाद से जुड़े मामलों का निपटारा होगा। झगड़े विवाद तथा कोर्ट कचहरी से संबंधित मामले बाहर ही समझाएं। माता-पिता के स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहें। विद्यार्थी वर्ग परीक्षा में अच्छे अंक के लिए और मेहनत करें।मिथुन राशिराशि से तृतीय पराक्रम भाव में गोचर करते हुए मंगल का प्रभाव आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं है। कोई भी बड़ा कार्य आरंभ करना चाहे अथवा किसी ने अनुबंध पर हस्ताक्षर करना चाहे तो उस दृष्टि से भी अनुकूल रहेगा। अपनी ऊर्जाशक्ति एवं जुझारू स्वभाव के चलते कठिन परिस्थितियों में भी विचलित नहीं होंगे। धर्म एवं आध्यात्म के प्रति रुचि बढ़ेगी। विदेशी कंपनियों में सर्विस अथवा नागरिकता के लिए किया गया प्रयास सफल रहेगा। कर्क राशिराशि से द्वितीय धन भाव में गोचर करते हुए मंगल का प्रभाव बेहतरीन उपलब्धियों वाला रहेगा। अपने साहस, कुशाग्रबुद्धि तथा वाणी कुशलता के बलपर सामाजिक जिम्मेदारियों को भी निर्वहन करने में पूर्ण सफल रहेंगे। आर्थिकपक्ष मजबूत होगा। काफी दिनों का दिया गया धन भी वापस मिलने की उम्मीद। केंद्र अथवा राज्य सरकार के विभागों में प्रतीक्षित कार्यो का निपटारा होगा। किसीभी तरहके सरकारी टेंडर के लिए आवेदन करना चाह रहे हों तो अवसर अनुकूल रहेगा।
- हस्तरेखा विज्ञान में हृदय रेखा को महत्वपूर्ण माना गया है। यह रेखा दिल से जुड़ी भावनाओं को अच्छे से बताती है। व्यक्ति के हाथ में हृदय रेखा संतान के जन्म की भविष्यवाणी भी करती है। हथेली में हृदय रेखा या तर्जनी उंगली अथवा मध्यमा उंगली से शुरू होकर बुध पर्वत के नीचे तक जाती है। हृदय रेखा व्यक्ति के स्वभाव को बताती है। यदि व्यक्ति के हाथ में हृदय रेखा एक किनारे से शुरू होकर दूसरे किनारे तक जाए तो ऐसा व्यक्ति आज में जीने वाला होता है। ये लोग भविष्य को लेकर ना तो चिंतित होते हैं और ना ही परेशान। हालांकि स्वभाव से ऐसे व्यक्ति भावुक और ईष्र्यालु प्रवृत्ति के होते हैं।हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार यदि हृदय रेखा लाल होने के साथ-साथ अधिक गहरी हो तो ऐसे व्यक्ति स्वभाव में तेज प्रवृत्ति के होते हैं। ऐसे लोग आसानी से बुरी आदत का शिकार हो जाते हैं। यदि व्यक्ति के हाथ में दो हृदय रेखा हों और उनमें किसी तरह का दोष ना तो ऐसे लोग सात्विक प्रवृत्ति के होते हैं। यदि हृदय रेखा बीच में टूटी हुई तो तो यह प्रेम संबंधों में बिखराव का इशारा करती है। यदि हृदय रेखा और मस्तिष्क रेखा दोनों छोर से शुरू होकर दूसरे छोर तक पहुंचे तो ऐसे लोग किसी की पहवाह नहीं करते। हृदय रेखा का पतला और हल्का होना व्यक्ति के स्वभाव को रुखा बनाता है। हृदय रेखा गुरु पर्वत से शुरू हो तो ऐसे लोग दृढ़ निश्चयी और आदर्शवादी होते हैं।
- जिस परिवार में सदस्यों के बीच प्रेमभाव रहता है, एक दूसरे के प्रति लगाव रहता है वह घर स्वर्ग के समान माना जाता है और उस घर पर भगवान का आशीर्वाद बना रहता है। हर कोई चाहता है कि उसका घर-परिवार सुख और प्रेम से रहे। लेकिन कभी कभी कई वजहों से परिवार में अनबन होने लगती है और यही आगे चलकर विवाद की वजह बन जाती है। वास्तु में कुछ आसान से उपाय बताए गए हैं जिन्हें अपनाने से परिवार में सुख शांति बनी रहती है, आइए जानते हैं इन उपायों के बारे में।अगर परिवार में बच्चे बुरा व्यवहार करते हों या बड़ों का कहना न मानते हों तो उनके माथे पर केसर या हल्दी का तिलक लगाएं। भाइयों में अनबन रहती हो तो मीठी चीजों का दान करें। दूध में शहद डालकर दान करें। जीवनसाथी से नहीं बनती है तो गाय की सेवा करें। पिता-पुत्र में मतभेद रहता है तो पिता या पुत्र किसी को भी गुड़ और गेहूं का दान मंदिर में करना चाहिए। घर में सुबह कुछ देर भजन करें। मंगलवार व शनिवार को घर में सुंदरकांड का पाठ करें। मंगलवार को हनुमान मंदिर में चोला और सिंदूर चढ़ाएं। रविवार, शनिवार या मंगलवार को काले चने, काले वस्त्र, लोहा और सरसों के तेल का दान करें। परिवार की महिलाओं में अनबन रहती है तो महिलाएं आटे की चक्की मंदिर में दान करें। गुरुवार और रविवार को कंडे पर गुड़ और घी मिलाकर जलाएं इससे सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है। घर में कभी झाड़ू को खड़ा करके नहीं रखें, न ही कभी पैर लगाएं। घर में कोई भी खाने पीने की चीज लाते हैं तो सबसे पहले अपने ईष्ट देवता को भोग लगाएं। फिर परिवार के बड़े बुजुर्गों और बच्चों को दें। इसके बाद स्वयं ग्रहण करें। पहली रोटी गाय के लिए निकालें और उसे अपने हाथों से रोटी खिलाएं।
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वैसे तो लहसुन का इस्तेमाल खाने में स्वाद को बढ़ाने के लिए किया जाता है और इससे कई बीमारियां भी दूर होती हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि लहुसन आपकी किस्मत भी बदल सकता है. वास्तु शास्त्र के अनुसार, लहसुन का इस्तेमाल आप अपने जीवन में चल रही समस्याओं को दूर करने के लिए कर सकते हैं.
लहसुन की छोटी कलियां रुपये-पैसे से जुड़ी आपकी परेशानी को दूर कर सकती हैं. शनिवार के दिन अपने पर्स में लहसुन की एक कली रख लें. आप इसे हर शनिवार बदल भी सकते हैं. ऐसा करने से धन की कभी कमी नहीं होगी.
पैसा नहीं टिकता तो ये उपाय करें
अगर पैसा आपके पास नहीं टिकता और आते ही तेजी से खर्च हो जाता है, तो आपके घर या दुकान में जो भी तिजोरी या लॉकर है, उसमें एक लहसुन की कली कपड़े में लपेटकर रख दें. ऐसा करने से धन आपके पास बना रहेगा.
आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं तो लहसुन की दो कलियों को लाल कपड़े में बांधकर पोटली बना लें फिर इस पोटली को जमीन में गाड़ दें. इससे आर्थिक तंगी दूर हो जाएगी.
बिजनेस में नुकसान से बचेंगे
बिजनेस में अगर नुकसान हो रहा है, तो लहसुन की 5 या 7 कलियों को एक साफ कपड़े में बांध लें और अपनी दुकान, कार्यालय या जहां भी आप काम करते हैं वहां मुख्य द्वार पर टांग दें. इससे कारोबार में गति आएगी और आपकी धन संबंधी समस्याएं दूर हो जाएंगी.
- "बजरंग बली की जय" - ये जयकारा आपको किसी भी हनुमान मंदिर में सबसे अधिक सुनने को मिल जाता है। जितना प्रसिद्ध उनका "हनुमान" नाम है, उतना ही प्रसिद्ध उनका एक नाम बजरंग बली भी है। उनके नाम "हनुमान का इतिहास तो हम जानते हैं, किन्तु क्या आप ये जानते हैं कि उन्हें "बजरंग" क्यों बुलाते हैं? शब्द "बजरंग", वास्तव में मूल संस्कृत शब्द का अपभ्रंश है।अपभ्रंश उसे कहा जाता है जो समय के साथ साथ स्थानीय भाषा में परिणत हो जाता है। रामायण कथा के अनुसार जब मारुति (उनका वास्तविक नाम) सूर्य को निगलने का प्रयास कर रहे थे तब सूर्य की रक्षा हेतु देवराज इंद्र ने उनपर वज्र से प्रहार किया। इससे मारुति की ठुड्डी टूट गयी और वे मूर्छित हो पृथ्वी पर आ गिरे। जब पवनदेव ने अपने औरस पुत्र मारुति की ये दशा देखी तो उन्होंने प्राण वायु का संचार रोक दिया। तब ब्रह्माजी ने उन्हें ऐसा करने से मना किया और प्राणवायु का प्रवाह आरंभ करने को कहा। इस पर पवनदेव ने अपने पुत्र पर अनुग्रह करने की प्रार्थना की। तब ब्रह्मदेव ने मारुति को स्वस्थ कर दिया और उनके आदेश पर लगभग सभी प्रमुख देवताओं ने उन्हें कुछ ना कुछ वरदान दिया। ब्रह्मा जी ने उन्हें ब्रह्मास्त्र तक से सुरक्षा का वरदान दिया। उन्हें एक वरदान देवराज इंद्र ने भी दिया। चूंकि उनके वज्र से मारुति की ठुड्डी (संस्कृत में "हनु") टूटी थी इसी कारण उनका एक नाम हनुमान प्रसिद्ध हुआ। इसके अतिरिक्त इंद्रदेव ने हनुमान को ये वरदान दिया कि उनका शरीर वज्र के समान हो जाएगा और उन पर किसी अस्त्र-शस्त्र का असर नहीं होगा। तभी से उनका एक नाम "वज्रांग" (वज्र + अंग), अर्थात वज्र के समान अंगों वाला पड़ गया।समय के साथ यही "वज्रांग" शब्द अपभ्रंश होकर "बजरंग" हो गया। मूल वाल्मीकि रामायण में आपको "बजरंग बली" शब्द कहीं नहीं मिलेगा। वहां मारुति अथवा हनुमान का ही प्रयोग किया गया है। बजरंग शब्द को प्रसिद्ध करने का वास्तविक श्रेय जाता है गोस्वामी तुलसीदास को। जब उन्होंने अवधी भाषा में श्री रामचरितमानस लिखी तब उन्होंने ही पहली बार वज्रांग को स्थानीय अवधी भाषा में बजरंग लिखा। और इसी कारण हनुमान का एक नाम "बजरंग बली" प्रसिद्ध हुआ जिसका अर्थ होता है वज्र के समान बल वाला।----
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 346
★ भूमिका - निम्नांकित पद भक्तियोगरसावतार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ के 'सिद्धान्त-माधुरी' खण्ड से लिया गया है। 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ में आचार्य श्री ने कुल 21-माधुरियों (सद्गुरु, सिद्धान्त, दैन्य, धाम, श्रीकृष्ण, श्रीराधा, मान, महासखी, प्रेम, विरह, रसिया, होरी माधुरी आदि) में 1008-पदों की रचना की है, जो कि भगवत्प्रेमपिपासु साधक के लिये अमूल्य निधि ही है। इसी ग्रन्थ का 'सद्गुरु-माधुरी' का यह दूसरा पद है, जिसमें श्री कृपालु जी महाराज 'गुरु-तत्त्व' पर प्रकाश डाल रहे हैं। 24-जुलाई 2020 को 'गुरु-पूर्णिमा' का पावन-पर्व है। अतः यह सर्वश्रेष्ठ अवसर है जब हम 'गुरु' की महिमा को समझने एवं अपने जीवन को गुरु के आदेश व सिद्धान्तों से जोड़ने का प्रयास करें :::
अरे मन! सुनु गुरु-तत्व-विचार।'गुं रौतीति गुरुः', व्युत्पत्तिहिँ, गुरु मेटत अँधियार।यद्यपि गुरु-गोविंद दोउ इक, कह वेदादि पुकार।दोउन महँ कोउ मिलइ मिलइ तब, प्रेम-सुधा-रससार।तदपि रहस्य सुनहु मन! गुरु बिन, मिलइ न नंदकुमार।पै 'कृपालु' बिनु हरिहिँ मिलइ गुरु, जय सद्गुरु सरकार।।
भावार्थ - एक तत्वज्ञ अपने मन से कहता है कि हे मन! सद्गुरु तत्त्व का महत्व सुन! जो अज्ञानान्धकार को मिटा दे वही गुरु है। यद्यपि वेदादि के अनुसार गुरु एवं हरि दोनों एक ही हैं एवं इन दोनों में कोई भी कृपा कर दे तो प्रेम सुधा रस मिल जाता है। फिर भी एक रहस्य है, वह यह कि बिना गुरु के हरि की प्राप्ति असंभव है, 'श्री कृपालु जी' कहते हैं जबकि बिना हरि के ही गुरु की प्राप्ति एवं प्रेमानन्द की प्राप्ति सम्भव है। ऐसे सद्गुरु को बार-बार नमस्कार हो।
०० रचनाकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रेम रस मदिरा', सद्गुरु-माधुरी, पद संख्या - 2०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - चातुर्मास भगवान विष्णु जी को समर्पित है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह शुक्ल पक्ष की एकादशी (देवशयनी एकादशी) से चातुर्मास प्रारंभ हो जाता है। चातुर्मास से आशय चार माह की अवधि से है जिसमें सावन, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक माह आते हैं। इस बार 20 जुलाई से चातुर्मास प्रारंभ हो रहा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, चातुर्मास में भगवान विष्णु पाताल लोक में निद्रासन में चले जाते हैं। इस दौरान वे अपना कार्यभार भगवान शिव को सौंप देते हैं। भगवान विष्णु की अनुपस्थिति के कारण विवाह-संस्कार एवं अन्य प्रकार के मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है। भगवान विष्णु निद्रासन से देवउठनी एकादशी के दिन जागृत होते हैं और पुनः सृष्टि का लालन-पालन करते हैं। शास्त्रों में चातुर्मास के लिए कुछ विशेष नियम बताए गए हैं जिनका पालन करने से जातकों को जगत के पालनहार भगवान विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।मान्यता के अनुसार चातुर्मास के दौरान काले और नीले रंग के वस्त्र नहीं धारण करने चाहिए। इन वस्त्रों को धारण करने से दोष लगता है और इस दोष की शुद्धि भगवान सूर्यनारायण के दर्शन होती है। इस अवधि में आप उपरोक्त रंग के वस्त्र धारण न करें।चातुर्मास में भगवान विष्णु जी का स्मरण करना चाहिए। इस अवधि में दूसरों को भला-बुरा नहीं कहना चाहिए। चातुर्मास में दूसरों की निंदा करना अथवा निंदा को सुनना पाप माना जाता है। अपने मन में किसी के प्रति बुरे ख्याल नहीं लाएं।मान्यता के अनुसार देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक पलंग अथवा खाट पर नहीं सोना चाहिए, बल्कि इस दौरान भूमि पर बिस्तर लगाकर शयन करना चाहिए। इस नियम का पालन करने वाले जातक को भगवान विष्णु जी आशीर्वाद प्राप्त होता है।चातुर्मास के दौरान कुछ विशेष खाद्य पदार्थों को भी नहीं खाना चाहिए। इस अवधि में मिर्च, उड़द की दाल एवं चने की दाल का त्याग करना चाहिए। इसके अलावा इन चार माह तक जातकों को मांस का सेवन नहीं करना चाहिए। चातुर्मास में ऐसा करने वाला जातक पुण्य का भागी होता है।चातुर्मास में भोजन करते समय वार्तालाप नहीं करना चाहिए, जो व्यक्ति ऐसा करता है वह पाप का भागी माना जाता है, जबकि मौन रहकर भोजन करने वाले जातक को पुण्य प्राप्त होता है। अगर पके हुए अन्न में कीड़े-मकोड़े पड़ जाएं तो वह अन्न अशुद्ध हो जाता है। उसका सेवन नहीं करें।चातुर्मास के दौरान नैतिक मूल्यों और ब्रह्मचर्य का पालन करें। त्याग, तपस्या, जप, ध्यान, स्नान, दान एवं पुण्य के कार्य इस अवधि में लाभकारी और पुण्यकारी माने जाते हैं।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 345साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! ये काम-क्रोध वाले दोष दूर क्यों नहीं हो रहे हैं, जबकि हम रोजाना प्रवचन सुनते हैं, कीर्तन करते हैं, इनमें न्यूनता क्यों नहीं आ पाती है? जैसे अभी तक आपने कहा- जरा सा किसी का धक्का लग गया, तो तुरन्त क्रोध हो जाता है, यह बात बिल्कुल सत्य है। तो महाराज जी! तेजी से अंतःकरण शुद्ध हो, वह स्थिति क्यों नहीं बन रही रही है, कैसे ठीक हो?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: मधुसूदन सरस्वती ने वृन्दावन में गोवर्धन की परिक्रमा किया और भगवान नहीं मिले। फिर किया, फिर किया, फिर किया और बहुत दिन करते रहे परिक्रमा, तब भगवान् के दर्शन हुए, तो मधुसूदन ने पीठ कर लिया भगवान् की तरफ। वो रूठ गये, कहने लगे - तुम इतने देर में क्यों आए? तो भगवान् ने दिखाया, उनके पापों का पहाड़ कि तुम्हारे इतने पाप थे कि ये सब जल जायँ, भस्म हो जायँ, तब तो मैं आऊँ। तो अनन्त जन्मों के पाप हमारे हैं, इतना गंदा अंत:करण है कि अगर कपड़ा थोड़ा मैला है तो एक बार साबुन लगाओ, साफ हो गया और अगर धोया ही नहीं है कभी तो गंदा ही रहेगा। चौबीस घण्टे ये भी फीलिंग नहीं है अभी कि भगवान् हमारे अंत: करण में बैठा है, छोटी सी बात।'भगवान् हमारे अंत: करण में नित्य रहता है' - ये सुना है, पढ़ा है? 'हाँ'। और 'भगवान् सर्वव्यापक है?' 'हाँ'। पर मानते हो? एक घण्टा भी नहीं मानते, 24 घण्टे में। तो साधना क्या कर रहे हो जो बड़ा भारी फल मिल जाए तुमको। साधना गलत कर रहे हो, लापरवाही कर रहे हो, अपनी प्राइवेसी रख रहे हो। हम जो सोच रहे हैं, कोई नहीं जानता। वो (भगवान) बैठा-बैठा नोट कर रहा है, कहते हो कोई नहीं जानता।अगर सही साधना लगातार करता रहे, तो एक दिन लक्ष्य प्राप्त हो जाएगा, असम्भव नहीं है। बड़े-बड़े पापात्मा महापुरुष बने हैं, इतिहास साक्षी है। लेकिन थोड़ी साधना करो, बहुत बड़ा फल चाहो ऐसा नहीं हो सकता। अपने आपको धिक्कारो, अपनी कमी मानो। हम लेक्चर सुन लेते हैं, कीर्तन-आरती कर लेते हैं, ये कोई साधना है।उनके लिए आँसू बहाओ और हर समय, हर जगह महसूस करो कि वो हमारे साथ हैं - ये साधना है, असली। अहंकार से युक्त हो करके मनुष्य कीर्तन में बैठा, तो आराम से मुँह से बोल रहा है, न रूपध्यान कर रहा है, न आँसू बहा रहा है। ये सब लापरवाही है। उसको पता नहीं है कि कल का दिन मिले या न मिले, रात को ही हार्टफेल हो जाए, क्या पता? यही लापरवाही हमने हर मानव-देह में किया। अनन्त बार हमें मनुष्य का शरीर मिला। बहुत दुर्लभ है, फिर भी मिला। और हर मानव देह में हमने क्या किया? माँ-बाप में, सब में, पड़ोसी में, लग गए चौबीस घण्टे। एम.ए. करो, डी .लिट्. करो, पी.एच.डी किया, ये किया, वो किया। अब क्या करें? अब सर्विस करो, सर्विस ढूँढा, जगह-जगह परेशान हुए, नहीं मिली, फिर मिल गई सर्विस। अब क्या करो? अब ब्याह कर लो। उसके बाद 2-4-6 बच्चे हो गए, अब फिर उनका पालन-पोषण करो और उनके दुःख में दु:खी हो। बुढ़ापा आ गया, नाती-पोते हो गए, अब उन्ही का चिंतन, मनन। एक्टिंग में चले गए मन्दिर या अपने घर में ही दो मिनट बैठ गए। ये क्या है? ये तो जान-बूझकर जैसे मनुष्य शरीर को समाप्त करना चाहते हैं और कहते हैं, अपने बेटे से - देखो बेटा! मैं तो 70 साल का हो गया, मेरी तो बीत गई, तुम अपनी सोचो। मेरी तो बीत गई। क्या बीत गई? जब तुम मरोगे तो क्या रिकॉर्ड होगा? कहाँ जाओगे? अरे जो होगा देखा जाएगा। देखा नहीं जाएगा, भोगा जाएगा। बड़ा कमाल दिखाया तुमने, दस-बीस कोठी बना ली, दस-बीस करोड़ कमा लिया, दस-बीस बच्चे पैदा कर लिए। अरे, ये सब क्या है? वो तो कुत्ते-बिल्ली भी करते हैं, इसमें तुमने कौन-सा कमाल किया। सब पशु-पक्षी पेट भरते हैं अपना।जिस काम को करने के लिए प्रतिज्ञा की थी माँ के पेट में, भगवान् से कि महाराज! हमें निकालो इस नरक से, हम आप ही का भजन करेंगे, वह भूल गए। और सबकी देखा-देखी, वह उधर भाग रहा है, तुम भी भागो। सब लोग भाग रहे हैं, मैटीरियल साइड में कि यहीं आनंद है, एक लाख में, एक करोड़ में, एक अरब में। बस भागे जा रहे हैं। किसी से भी पूछ लेते कि अरबपति किस हाल में है? क्यों भई! आपका क्या हाल है? तो अगर वह बोलेगा ईमानदारी से तो कहेगा कि दिन-रात टेंशन है और नींद की गोली खाकर सोते हैं। उसी सीट पर जाना चाहते हो? अरे! शरीर चलाने के लिए भी कर्म करना है, ये सही है, लेकिन ये लिमिट में करो, रोटी-दाल मिल जाय, बस। परवाह होनी चाहिए। देखो बच्चों को, छह-आठ महीने तो मटरगशती करते हैं पढ़ाई में और जब परीक्षा का एक महीना रह गया तो सारी रात जागते हैं, पढ़ते हैं। यदि ऐसी पढ़ाई शुरू से ही किए होते तो टॉप करते। हम लोगों को कोई जब संसारी मुसीबत आ गई, बेटा सीरियस है, ये है, वो है - भगवान्! हम मान गए आप हो। अच्छा, अब कृपा करके इसको ठीक कर दो। ऐसे फिर भगवान कहते हैं - बेवकूफ बनाने के लिए हम ही मिले हैं, तुमको। हमेशा तो तुम लापरवाह रहे।सोचो, बार-बार सोचने से साधना होगी। बार-बार फील करना - अरे! इतनी उम्र बीत गई, अब अगर जिन्दा भी रहे तो बुढ़ापे में क्या करोगे? जल्दी करो। सबको पता है कि हम माया के अण्डर में हैं, काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष सब भरा हुआ है, सबके अंदर। लेकिन इन्हीं दोषों में से एक दोष किसी का कोई कह दे - आप जरा क्रोधी हैं, आप जरा लोभी हैं, आप जरा स्वार्थी हैं, आप जरा मक्कार हैं। सही बात तो कह रहा है। क्यों फील करते हो? तुमको तो पता है। हाँ, यह बात ठीक कह रहा है। कोई व्यापारी है, उसे कहते हैं ये व्यापारी हैं, सेठ जी हैं, वह बुरा तो नहीं मानता कि हमको कलेक्टर कहो। तुम जो कुछ हो, उसी में से तो कोई कुछ कहेगा। अरे वो बड़ा स्वार्थी है। अरे! भला बताओ स्वार्थी तो महापुरुष, भगवान्, संसार भर है। कौन स्वार्थी नहीं है? असली हो या नकली, स्वार्थ सब स्वार्थ है।०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' (भाग - 1), प्रश्न संख्या - 78०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - खाने में स्वाद का सबसे प्रमुख कारक होने के साथ ही नमक हमारे जीवन को भी संतुलित रखने में अहम भूमिका निभाता है. ज्योतिष शास्त्र और वास्तु एक्सपर्ट्स के मुताबिक, चुटकी भर नमक घर की नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर घर में पॉजिटिव माहौल बनाता है, जिससे सुख-समृद्धि आती है, और मानसिक शांति बनी रहती है. आइए जानते हैं कि नमक का इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है..पोछा लगाते वक्त पानी में डालें नमकघर में सकारात्मक ऊर्जा (Positive Energy) का माहौल बना रहे, और नकारात्मकता दूर हो, परिवार के सदस्यों के बीच क्लेश और झगड़े ना हों, इससे बचने के लिए घर में जब भी पोछा लगाएं तो उस पानी में चुटकी भर नमक डाल दें. नमक वाले पानी से घर में पोछा लगाने से पॉजिटिव एनर्जी आती है, जिससे परिवार के सदस्यों के बीच रिश्ते बेहतर होते हैं.कांच में जार में ही रखना चाहिए नमकआप अपने घर में नमक को किस बर्तन में रखते हैं इसका भी वास्तु पर काफी प्रभाव पड़ता है. लिहाजा नमक को कभी भी स्टील या लोहे के बर्तन में नहीं रखना चाहिए. नमक को हमेशा कांच के बर्तन (Glass Jar) या जार में ही रखें. ऐसा करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है, और आर्थिक दिक्कतें भी नहीं आती. आप चाहें तो नमक के जार में 1 लौंग भी डाल सकते हैं.ऐसा करने से घर का कोई सदस्य नहीं होगा बीमारकई बार राहु के नकारात्मक प्रभाव के कारण भी घर में नेगेटिव ऊर्जा का संचार होने लगता है, जिसकी वजह से परिवार के सदस्य बीमार रहने लगते हैं. इससे निपटने के लिए कांच की कटोरी में सेंधा नमक की डलियां भरकर बाथरूम में रखना चाहिए. हर 15 दिन में 1 बार इस नमक को बदलते रहें. ऐसा करने से राहु के निगेटिव असर को दूर करने में मदद मिलती है.नहाने के पानी में मिलाएं चुटकी भर नमकअगर आपको मानसिक शांति नहीं मिल रही, किसी वजह से तनाव और स्ट्रेस (Stress) बहुत अधिक हो गया है, काम में मन नहीं लग रहा तो इसमें भी आपकी मदद कर सकता है नमक. इसके लिए अपने नहाने के पानी में चुटकी भर नमक मिलाएं और उससे नहाएं. आप चाहें तो रात में सोने से पहले नमक वाले पानी से हाथ-पैर धो सकते हैं. ऐसा करने से तनाव दूर होता है और अच्छी नींद आती है.दाल-सब्जी में ऊपर से ना डालें नमकखाना खाते समय दाल या सब्जी आदि में नमक या मिर्च कम लगे तो ऊपर से न डालें. ऐसे में काला नमक या काली मिर्च का प्रयोग करें. ऐसा करने से शनि, चंद्र और मंगल का दुष्प्रभाव नहीं होगा. इसके अलावा अगर कोई लंबी बीमारी से ग्रसित है तो उसके सिरहाने कांच के एक बर्तन में नमक रखें. एक सप्ताह बाद उस नमक को बदल कर दोबारा नमक रख दें. धीरे-धीरे सेहत में सुधार होने लगेगा.
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 344
(भूमिका - साधक को सदा गुरु के सिद्धान्त के अनुकूल ही सोचना, चलना चाहिये. इसके अतिरिक्त और कुछ महत्वपूर्ण मार्गदर्शन, जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज की श्रीवाणी में...)
मनुष्य में एक ही विशेषता है, वह यह कि वह किसी तत्व का सत्य ज्ञान प्राप्त कर सकता है। लेकिन जब तक उस तत्व के अनुकूल बार-बार विचार न किया जाय, वह ज्ञान मिट जाता है एवं मनुष्य को और भी पतन के गर्त में गिरा देता है।
बार-बार विचार हो और सदा हो, और अनुकूल ही हो, बस, यदि यह समझ में कभी आ जायेगा तो भविष्य बन जायेगा। इसके साथ यह भी ध्यान रखना होगा कि इष्टदेव एवं गुरु के प्रति निष्ठा करता रहे। यदि वहीं गड़बड़ हुई तो सब महल ढह जायेगा। और ऐसे व्यवहार से इष्टदेव अथवा गुरु को और भी दुःख देने के हम कारण बन जायेंगे। भावार्थ यह कि चार पैसे की खोपड़ी को उधर न लगाया जाए, सदा अनुकूल चिन्तन एवं कृपा को ही सोचा जाय। संसारी जीवों से कम से कम व्यवहार किया जाय, कम से कम सोचा जाय, कम से कम सुना जाय, कम से कम बोला जाय।
केवल गुरु के मिलन का महत्व सोच-सोचकर ही जीव का परम कल्याण हो सकता है क्योंकि वह प्रत्यक्ष है। यदि बुद्धि का व्यापार बंद न होगा तो अनन्त जन्म में भी कुछ न मिलेगा। यही एकमात्र विचारणीय है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, नवम्बर 1999 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - वास्तु शास्त्र में विभिन्न बातों का उल्लेख किया गया है। अगर इन बातों को ध्यान में रखकर हम अपने घर का निर्माण करें तो घर के सदस्यों के ऊपर मां लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है। ऐसे में आज हम वास्तु के उन सिद्धांतों के बारे में जानेंगे, जिनका घर बनवाते वक्त खासतौर पर ध्यान रखना चाहिए। वास्तु शास्त्र में दिशाओं का काफी विशेष महत्व होता है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार उत्तर दिशा भगवान कुबेर की होती है, जो धन और यश के प्रतीक हैं। मान्यता है कि अगर घर बनवाते वक्त उत्तर दिशा का वास्तु ठीक है, तो घर के सदस्यों की खूब बरकत होती है। कारोबार और बाकी क्षेत्रों में खूब सारा लाभ अर्जित होता है। व्यक्ति का घर धन-धान्य से भर जाता है। घर-परिवार के लोगों का स्वास्थ्य काफी बढ़िया रहता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि वास्तु शास्त्र में उत्तर दिशा के लिए किन-किन महत्वपूर्ण सिद्धांतों का वर्णन किया गया है, जिन्हें घर बनवाते वक्त खासतौर पर ध्यान रखना चाहिए।वास्तु शास्त्र में बताया गया है कि घर की दीवारों पर अगर दरारें आ रही हैं, तो ये काफी अशुभ संकेत है। इसके चलते परिवार के सदस्यों के बीच मतभेद भी जन्म ले सकता है। ऐसे में समय-समय पर घर की उत्तर दिशा की दीवार को जरूर देखें कि वहां पर कोई दरार तो नहीं है।वास्तु के मुताबिक घर की उत्तर दिशा में पानी का नल या मोटर नहीं लगाना चाहिए। इसके चलते घर की आर्थिक स्थिति खराब हो सकती है। उत्तर दिशा में बाथरूम या टॉयलट का निर्माण कभी ना करवाएं। इससे भविष्य में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। घर बनवाते समय इस बात का भी ध्यान रखें की उत्तर दिशा में किचन का निर्माण ना हो। इससे परिवार की शांति में खलल पड़ती है।हो सके तो घर के भीतर अंडरग्राउंड पानी का टैंक उत्तर-पूर्व दिशा में बनवाएं। इसे काफी शुभ माना गया है। वास्तु शास्त्र में इस बात का उल्लेख मिलता है कि घर की उत्तर दिशा में पूजा का स्थान बनवाने से परिवार मेंं शांति का वास होता है और आर्थिक स्थिति काफी मजबूत होती है। इस बात का ध्यान रखें कि घर के भीतर किसी भी जंगली जानवर की तस्वीर ना लगी हो। वास्तु शास्त्र में घर के भीतर जानवरों की तस्वीर लगाना काफी अशुभ माना गया है।मान्यता है कि उत्तर दिशा में भगवान कुबेर का वास होता है। इस कारण उत्तर मुखी भवन की तरफ बहुत सारी खुली जगह छोड़नी चाहिए। इसे काफी शुभ माना गया है। ऐसा करने से व्यक्ति के घर में कभी भी धन की कमी नहीं होती है। घर के टेरेस को उत्तर दिशा में खुला होना चाहिए ताकि सकारात्मक ऊर्जा का संचार घर के भीतर बना रहे।-
- हस्तरेखा विज्ञान के मुताबिक कई ऐसे लोग भी होते है, जिनसे हमें बचकर रहना चाहिए. ऐसे लोग झगड़ालू और हिंसक किस्म के होते हैं. ऐसे लोगों को हम हाथ की रेखाएं या कुछ दूसरे गुणों को देखकर पहचान सकते हैं. हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार यदि हाथ में अंगूठे का दूसरा भाग लंबाई में बना हो तो ऐसे लोग भी काफी चालाक किस्म के होते हैं. इस तरह के लोग सामाजिक रूप से बहुत अधिक सक्रिय रहते हैं. हालांकि ये लोग मिलनसार प्रवृत्ति के होते हैं.भारी हथेली वाले होते हैं हिंसकऐसे जातक जिनकी मस्तिष्क रेखा छोटी, मोटी या फिर लाल रंग की होती है. जिनकी हथेली भारी और खुरदुरी होती है. साथ ही अंगूठे का आकार सामान्य से कहीं छोटा और मोटा होता है. माना जाता है कि ऐसे लोग आपराधिक प्रवृति के होते हैं. ये अपने साथ दूसरों को भी परेशानी में डालते हैं.छल कपट से नहीं करते परहेजऐसे जातक जिनकी हथेली बहुत सख्त, पतली या फिर लंबी होती है. कई ऐसे भी होते हैं, जिनकी उंगलियां हथेली की ओर मुड़ी हुई हों. ऐसे जातक अपनी खुशी के लिए किसी को भी तकलीफ देने से पीछे नहीं रहते. कई बार तो वे अपने फायदे के लिए अपनों के साथ भी छल करने से पीछे नहीं हटते.बात-बात पर करते हैं विवादजिनकी मस्तिष्क रेखा कई टुकड़ों में विभाजित हो या फिर नाखूनों का आकार सामान्य से भी छोटा और गहरे लाल रंग का हो. उसे हमेशा सतर्क रहना चाहिए. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ऐसे लोग झगड़ालू होते हैं और बात-बात पर विवाद करना उनकी आदत होती है.ऐसे लोगों से रहें बचकरजो झगड़ालू किस्म के लोग हों या किसी जन्मजात मानसिक विकृति का शिकार हों. ऐसे लोगों से हमेशा संभलकर रहना चाहिए. उनसे बचने का बेहतर तरीका ये है कि आप उनसे एक निश्चित दूरी बनाकर रखिए और बस काम से काम रखिए.
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 343
(भूमिका - प्रस्तुत उद्धरण में जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज यह समझा रहे हैं कि क्यों एक मायाधीन मनुष्य को मायातीत महापुरुष तथा मायाधीश भगवान द्वारा की गई लीलाओं/कर्मों की नकल नहीं करनी है? साथ ही इस रहस्य और भी प्रकाश डाला गया है कि कैसे भगवान और महापुरुष ऐसे कर्म कर लेते हैं जो साधारण बुद्धि से मायिक मनुष्यों जैसे प्रतीत होते हैं....)
...शुकदेव परमहंस महारास सुना रहे थे उसी बीच में यह प्रकरण आया कि श्रीकृष्ण अन्तर्धान हो गये और गोपियाँ विलाप करने लगीं। परीक्षित सुनते रहे। इतने में बीच में बोल पड़े परीक्षित कि महाराज! एक छोटा सा सवाल और है। क्या? ये पराई स्त्रियों के साथ श्रीकृष्ण ने जो रास किया ये तो ठीक नहीं लगता। पराई स्त्रियों के साथ?
संस्थापनाय धर्मस्य प्रशमायेतरस्य च।अवतीर्णो हि भगवानंशेन जगदीश्वरः॥(भाग. 10-33-27)
स कथं धर्मसेतूनां वक्ता कर्ताभिरक्षिता।प्रतीपमाचरद् ब्रह्मन् परदाराभिमर्शनम्॥(भाग. 10-33-28)'परदारा' - दूसरी स्त्रियों के साथ श्रीकृष्ण ने रास का व्यवहार किया। क्यों? ये वेद विरुद्ध है और वेद श्रीकृष्ण का ही वाक्य है। अगर स्वयं ऐसा करेंगे वो, तो फिर और लोग क्या करेंगे। जब वेद बनाने वाला, वेद नहीं मानेगा तो फिर साधारण जीव कैसे मानेंगे। इसलिये महाराज! ये तो कुछ जमती नहीं बात। तो शुकदेव परमहंस ने कहा - हाँ, हाँ, ऐसा है कि ये जो बुद्धि है न, उसके अण्डर में मन है, उसके अण्डर में इन्द्रियाँ हैं ये सब के सब मैटीरियल हैं, मायिक हैं, प्रकृति से बने हैं और आत्मा परमात्मा से बना है उसका अंश है, दिव्य है। तो ये मायिक इन्द्रिय मन बुद्धि से ये बात समझ में नहीं आ सकती। अरे महाराज ! कुछ तो समझाइये। अच्छा सुन;
ईश्वराणां वचः सत्यं तथैवाचरितं क्वचित्।तेषां यत् स्ववचोयुक्तं बुद्धिमांस्तत् समाचरेत्॥(भाग. 10-33-32)
देखो जो समर्थ लोग हैं भगवान् और महापुरुष इनकी वाणी का पालन करो। आज्ञा का पालन करो, आचरण का नहीं। क्यों? इसलिये कि ये वेद के कायदे कानून को क्रॉस कर गये, लाँघ गये, ये किसी के गुलाम नहीं हैं;
यान्यस्माक्ं सुचरितानि। तानि त्वयोपास्यानि नो इतराणि।(तैत्तिरीयो. 1-11)
वेद कह रहा है। तुम जिस कक्षा में हो उस कक्षा की बात मानो। पिताजी तो यूनीवर्सिटी नहीं जाते पढ़ने और हमसे कहते हो कि जाओ। तुम्हारी अटैन्डेन्स कम हो जायेगी। तो पिताजी तो कभी नहीं जाते यूनीवर्सिटी। अरे! पिताजी यूनीवर्सिटी पास कर चुके वो क्यों जायेंगे गधा! अरे! तुझको पढ़ना है तू जाया कर। जब तू यूनीवर्सिटी पास कर जायेगा न, तो तुम भी नहीं जाना कभी, कोई नहीं कहेगा।कक्षा की बात है, जिस कक्षा में जो जीव है वो अपनी कक्षा के अनुसार चले। दर्जा एक में पढ़ने वाले को लॉ क्लास में दाखिला दे दो तो क्या करेगा बेचारा, बैठा रहेगा ऐसे ही वो क्या समझेगा कानून की किताबों को। संसार में भी नहीं कोई सफल हो सकता। तो शुकदेव परमहंस कहते हैं;
धर्मव्यतिक्रमो दृष्ट ईश्वराणां च साहसम्।तेजीयसां न दोषाय वह्नेः सर्वभुजो यथा॥(भाग. 10-33-30)
जो ईश्वर लोग हैं, समर्थ लोग हैं, मायातीत लोग हैं, भगवान् हों, चाहे महापुरुष हों, इनके व्यवहार को मत देखो। ये धर्म भी इनको नहीं बाँध सकता, अधर्म भी नहीं इनको बाँध सकता। जैसे कोई बीज होता है गेहूँ चना इसका लावा बन जाय। भाड़ में डाल करके चबैना बन जाये तो उस भुने हुये चने को, भुने हुये गेहूँ को फिर आप खेत में डाल दें तो अंकुर नहीं पैदा होगा। उसका जो बीज, उसकी शक्ति थी वो समाप्त हो चुकी । तो इसलिये;
गुणातीतः स्थितप्रज्ञो विष्णु भक्तश्च कथ्यते।एतस्य कृतकृत्यत्वाच्छास्त्रमस्मान्निवर्तते॥(वेदव्यास)
ये जितना उपदेश आप को दिया जाता है सच बोलो, झूठ नहीं बोलो। ये वेद का उपदेश है - सच बोलोगे तो अच्छा फल मिलेगा, झूठ बोलोगे तो खराब फल मिलेगा। अब एक महात्मा के पास गये, क्यों साहब आप सच बोलते हैं? मैं सच क्यों बोलूँ? मुझे कोई अच्छा फल नहीं चाहिये, मुझे तो भगवान् मिल गया, अच्छा फच्छा क्या करूँगा मैं लेकर, तो आप झूठ से प्यार करते हैं? मैं क्यों बोलूँ? यानी मुझे न नरक चाहिये न स्वर्ग चाहिये, तो सच-झूठ, धर्म-अधर्म से हमारा मतलब क्या? हमारे वर्क का वर्कर भगवान् है वो हमसे अच्छा करावे चाहे बुरा करावे। यानी एक पार्टी जिसको अच्छा कहती है दूसरी पार्टी उसको बुरा कहती है। तो देखो परीक्षित! अग्नि सब कुछ खा लेती है उसमें पाखाना डाल दो, मुर्दा डाल दो, जिन्दा डाल दो, सोना-चाँदी डाल दो, हीरा-मोती डाल दो, लक्कड़-पत्थर डाल दो, अग्नि सबसे प्यार करती है। सबको अपना स्वरूप प्रदान कर देती है। वो गन्दी नहीं होती। अग्नि अपनी पर्सनैलिटी में रहती है और सब कुछ खा जाती है, 'सर्वभुक्त' उसका नाम है।
रवि पावक सुरसरि की नाईं।
गंगा जी में हजारों नाले गन्दे बह कर जाते हैं और आप लोग आचमन लेते हैं - जय हो! जय हो! गंगा मैया की जय! वो जितने नाले गंगाजी में गये सब गंगा जी बन गये। गंगा जी गन्दी नहीं हुईं। वो जो गन्दी चीज़ गयी वो गंगा जी बन गयी। तो इसलिये सुन परीक्षित, उन समर्थ लोगों में वो दोष नहीं जायेगा, उनसे जो प्यार करेगा वो शुद्ध हो जायेगा। लेकिन ये समर्थ लोगों के लिये मैं बता रहा हूँ परीक्षित।
नैतत् समाचरेज्जातु मनसापि ह्यनीश्वरः।
जो अनीश्वर है, असमर्थ है, यानी जो माया के अण्डर में है वो मन से भी उन सिद्धों की नकल न सोचे, करना तो बहुत दूर की बात है वरना;
विनश्यत्याचरन् मौढ्याद्यथारुद्रोऽब्धिजं विषम्।।(भाग. 10-33-31)
शंकर जी हालाहल पी गये और नीलकण्ठ की डिग्री मिल गयी लेकिन तुम अगर मामूली पॉयज़न, संखिया, अफीम भी ज्यादा मात्रा में खा लोगे तो 0/100 हो जाओगे। तुमको नकल नहीं करना। एक नट 200 फुट की ऊँचाई पर एक रस्सी बाँधकर उसके ऊपर चलता है लेकिन नट यह नहीं कह रहा है कि आप लोग भी अपने घर में ऐसे ही कीजियेगा। वो नट जो इतनी ऊँचाई पर चल रहा है उसने 20 साल प्रैक्टिस की है। आप भी 20 साल उसी प्रकार प्रैक्टिस करके उतनी योग प्राप्त कर लीजिये फिर आप भी चलिये रस्सी के ऊपर। अभी मत चल दीजिये। जो जहाँ है वहाँ की नकल करे उससे आगे वाली न करे और संसार में भी आप लोग नकल आगे वाले की नहीं करते। एक तहसीलदार है वो डी. एम. की कुर्सी पर जाकर नहीं बैठ जायेगा, सस्पैण्ड कर देगा फिर वो। यहाँ कैसे हमारी कुर्सी पर बैठे? साहब! आप भी तो हमारी कुर्सी पर बैठे थे। मैं बैठ सकता हूँ तेरी कुर्सी पर, तू कैसे बैठ सकता है मेरी कुर्सी पर? हाँ। (ध्यान दो) मायाबद्ध मायातीत का अनुकरण नहीं कर सकता, मायिक का अनुकरण कर सकता है।
अरे, गधे की अकल से समझो। आप लोग जो बड़े विद्वान् हैं वो मूर्खता की एक्टिंग कर सकते हैं। जैसे - आपको बोलना आता है, भाषा ज्ञान है लेकिन आप मूर्खता की एक्टिंग करना चाहते हैं कहीं पर, तो आप कह देते हैं - मैं जाती थी, उसने बोली थी, ऐसी निष्काम प्रेम अण्डबण्ड भाषा में बोलो, तो लोग कहेंगे ये तो घोर मूर्ख हैं जी। 'डोन्ट टॉक' को बोलो 'डीन्ट टौक', लोग समझ लेंगे कि ये बेवकूफ है पढ़ा लिखा नहीं है। यानी समझदार नासमझ की एक्टिंग कर सकता है लेकिन नासमझ समझदार की एक्टिंग कैसे करेगा? गाउन पहना दो किसी अँगूठा छाप को और खड़ा कर दो हाईकोर्ट में साहब! आप हमारी वकालत कीजिये। अरे! यह क्या वकालत करेगा बेचारा, उसको क-ख-ग-घ नहीं आता। तो समर्थ असमर्थ की एक्टिंग करते हैं, किया है। सब भगवान् के अवतार और महापुरुषों ने किया है।
भक्त हेतु भगवान् प्रभु राम धरेउ तनु भूप।किए चरित पावन परम प्राकृत नर अनुरूप॥
संसारी आदमियों की एक्टिंग कर रहे हैं भगवान् और सारे सन्त भी। हनुमान जी राम से पूछ रहे हैं - आप कौन हैं? और राम हनुमान जी से पूछते हैं - आप कौन हैं? हाँ, जरा सोचिये, ये सुप्रीम पॉवर का यह हाल है। हनुमान जी कहते हैं;
की तुम तीन देव महँ कोऊ।
तुम ब्रह्मा हो? भगवान् ने सिर हिलाया नहीं, विष्णु हो? नहीं। शंकर हो? नहीं। नर हो? नहीं। अरे! तो तुम हनुमान जानते नहीं कि मैं कौन हूँ? नहीं, मैं नहीं जानता। मुझे क्या मालूम? अपने वक्षस्थल को चीर कर दिखलाने वाले हनुमान जी को नहीं मालूम है। अपने इष्टदेव को नहीं पहचानते हैं, ये कितना बड़ा आश्चर्य। यानी एक्टिंग भी कितनी अन्तिम सीमा की कोई सुने तो हँसे। और इसी प्रकार फिर राम ने भी पूछा- आपकी तारीफ?
राम ने अपनी तारीफ बता दी कि भाई देखो मैं न ब्रह्मा हूँ, न विष्णु हूँ, न शंकर हूँ, न नर हूँ। मैं क्या हूँ बता दूँ। हाँ बताओ बताओ।
कौशलेश दशरथ के जाए।हम पितु वचन मानि वन आए।।
हम दशरथ जी के बेटे हैं भाई, राजकुमार हैं।
इहाँ हरी निसिचर वैदेही।खोजत विप्र फिरहिं हम तेही॥
यहाँ हमारी श्रीमती जी को राक्षस लोग कहीं चुरा ले गये हैं उन्हीं को हम ढूँढ़ रहे हैं। आपकी तारीफ? हनुमान जी से कहते हैं, मैंने अपना परिचय दे दिया अब तुम भी बोलो। तो हनुमान जी ने कहा कि...। अब देखो अभी तो हनुमान जी अल्पज्ञ बने हुये थे अब सर्वज्ञ बन गये। अरे!
मोर न्याउ मैं पूछा साईं।तुम कस पूछत नर की नाईं॥
क्यों जी, जब महापुरुष और भगवान् एक हैं वेद से लेकर रामायण तक हर ग्रन्थ, हर सन्त, हर पन्थ कहता है तो तुम्हारा कैसा न्याय है पूछने वाला। जान जान करके कोई अनजान बने, ये तो बहुत बड़ी 420 है और भगवान् को ही ठगे। उन्हीं से कहे तुम कौन हो। तो ये महापुरुषों ने भी, सारे महापुरुषों ने ऐसी एक्टिंग की। पार्वती को मोह हो गया, गरुड़ को मोह हो गया, शंकर जी को मोह हो गया, ब्रह्मा को मोह हो गया।
शिव विरंचि कहं मोहई को है बपुरा आन।
तो ये भगवान् और महापुरुष अज्ञान की एक्टिंग करते हैं। मायिक वर्क करते हैं लेकिन मायिक व्यक्ति इनके क्लास का अभिनय नहीं कर सकता। उसके लिये सख्त हिदायत है- 'मनसापि' मन से भी न सोचना। प्रेक्टीकल तो बहुत दूर की बात है। शुकदेव जी का मूड ऑफ हो गया उन्होंने महारास सुनाना ही बन्द कर दिया। भागवत में महारास का वर्णन है ही नहीं कुछ। पाँच अध्याय में सब कुछ। क्योंकि शुकदेव परमहंस ने देखा कि ये बार-बार इसकी खोपड़ी में बीमारी पैदा होती है वही, ये अधिकारी नहीं है, इसलिये बिना अधिकारी व्यक्ति पाये उससे ऊपर वाली कक्षा की बात को कहना वक्ता का दोष है। वक्ता को यह ध्यान रखना चाहिये कि किस क्लास के जीव हैं वहीं तक इनको ले जायेंगे उसके आगे नहीं ले जायेंगे। नहीं तो मस्तिष्क फट जायेगा। कोई भी महापुरुष अपनी इच्छानुसार संसार में प्रवचन नहीं दे सकता। कोई भी महापुरुष। क्योंकि उसको डर लगा रहता है, हमेशा अगर मैं इसको और गहराई में ले गया तो ये तो बिचारा कुछ नहीं समझ पायेगा इसीलिये यहीं तक छोड़ दो इसको, क्या करे? आजादी से तो गोलोक में बोल सकता है। जहाँ सब परिपूर्ण हैं प्रैक्टिकल एक्सपीरियंस है सबको और जहाँ थ्योरिटीकल नॉलेज भी न हो और अगर थ्योरिटिकल हो भी जाय तो बिना अनुभव के समाधान नहीं हो सकता।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हिंदू धर्म में माथे पर लगाये जाने वाले तिलक का बहुत महत्व है.तिलक कई प्रकार के होते हैं.जैसे लंबा तिलक, गोल तिलक, आड़ी तीन रेखाओं वाला तिलक,आदि.भगवान शिव के साधक त्रिपुण्ड तिलक लगाते हैं.वहीं शक्ति की साधना करने वाले गोल बिंदी की तरह का तिलक लगाते हैं.कहते हैं कि बगैर माथे पर तिलक लगाए कोई भी पूजा अधूरी मानी जाती है.यही कारण है कि किसी भी शुभ कार्य पर हमारे यहां तिलक लगाने की परंपरा रही है.आइए जानते हैं कि तमाम तरह के लगाए जाने वाले तिलक का क्या कुछ महत्व है –तिलक के प्रकारतिलक मूलत: तीन प्रकार का होता है.एक रेखाकृति तिलक, द्विरेखा कृति तिलक और त्रिरेखाकृति तिलक.इन तीनों प्रकार के तिलक के लिए चंदन, केशर, गोरोचन और कस्तूरी का प्रयोग किया जाता है.जिनमें कस्तूरी का तिलक सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है।भस्म का तिलकशैव परंपरा से जुड़े साधु-संत लोग अक्सर अपने शरीर पर भस्म लगाए दिख जाएंगे.पूजा में हवन के बाद भी हवन की भस्म का तिलक लगाने की हमारे यहां परंपरा रही है.उपाय के तौर पर मान्यता है कि शनिवार के दिन भस्म का चंदन लगाने से भगवान भैरव प्रसन्न होकर अपनी कृपा बरसाते हैं।चंदन का तिलकमाथे पर लगाया जाने वाला चंदन का तिलक हमारे मन को शीतलता प्रदान करता है.इसे लगाने से एकाग्रता बढ़ती है.चंदन कई प्रकार का पाया जाता है.जिसमें लाल चंदन का तिलक लगाने से व्यक्ति के भीतर ऊर्जा का संचार होता है.इसी तरह पीला चंदन या हल्दी का तिलक लगाने देवगुरु बृहस्पति की कृपा मिलती है.कुंकुम का तिलकपूजा-पाठ में अमूमन कुंकुम का तिलक ही प्रयोग में लाया जाता है.हल्दी के चूर्ण को नींबू के रस से भावना देकर कुंकुम को बनाया जाता है, जिसे अक्सर शादीशुदा महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र और सौभाग्य के लिए माथे पर लगाती हैं.सिंदूर का तिलककई देवी-देवताओं को सिंदूर का तिलक लगाया जाता है.सिंदूर का तिलक तमाम तरह की बाधाओं को दूर करने वाला होता है.यही कारण है कि हनुमत और गणपति साधना में इसका विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है.जैसे मंगलवार और शनिवार को श्री हनुमान जी के कंधे पर लगे सिंदूर को प्रसाद स्वरूप तिलक लगाने से जीवन से जुड़ी सभी समस्याएं दूर होती हैं.--
- ज्योतिष विज्ञान के प्रति मनुष्य की हमेशा से जिज्ञासा रही है। एक मनुष्य के जीवन में होने वाली या हो रही घटनाओं को समझने के लिए फलित का ज्ञानी होना बेहद जरुरी है। आज इस लेख में हम समझने की कोशिश करेंगे कि कैसे एक व्यक्ति की कुंडली में उत्तम ज्योतिषी बनने का योग बनता है। साथ ही उन सभी सूत्रों को एक उदाहरण कुंडली से भी समझने की कोशिश करेंगे। एक व्यक्ति को ज्योतिष का मर्मज्ञ बनने के लिए कुंडली के कुछ भाव और ग्रहों का साथ मिलना बेहद जरुरी है। इस लेख में हम सबसे पहले उन्ही योगों की चर्चा करते है।उत्तम ज्योतिषी बनने के लिए लग्नेश का बलवान होना बेहद जरूरी है या फिर वो राजयोग बना रहा हो। लग्न मनुष्य का स्वभाव, उसकी आत्मा है और ऐसे उत्तम कार्य के लिए लग्न का बली होना जरूरी है।उत्तम ज्योतिषी बनने के लिए वाणी भाव यानी दूसरे भाव का संबंध गुरु, शुक्र और बुध से होना चाहिए। इस कार्य में वाणी की ही महत्ता है और वाणी भाव का स्वामी जब भी पंचमेश, अष्टमेश के साथ राजयोग बनाता है तब तब ऐसे व्यक्ति की वाणी अत्यंत प्रभावशाली हो जाती है।पंचम भाव पिछले जन्म को दर्शाता है वहीं आठवां भाव गूढ़ विद्या का कारक है। आठवें भाव में बैठा ग्रह दूसरे भाव यानी वाणी भाव को देखता है तो ऐसे में जब जब पंचम का स्वामी आठवें भाव के स्वामी के साथ उसी भाव में बैठ जाए और उसे शनि का साथ मिल जाए तो ऐसा जातक त्रिकालदर्शी होता है।बुध गणित है और गुरु ज्ञान है वही चंद्र मन का कारक है। बुध, गुरु और चंद्र पूर्ण बलवान होकर वाणी भाव, पंचम भाव या नवम भाव में बैठे तो ऐसा जातक निश्चित रूप से विद्वान होता है।फलित में शनि आठवें भाव का यानी रहस्य का कारक है। केतु अध्यात्म का कारक है। उत्तम वक्ता और ज्योतिषी बनने के लिए बलवान शनि और केतु का कुंडली में होना बेहद आवश्यक है। अक्सर गुरु शनि केतु का आपस में संबंध जातक को गूढ़ ज्ञानी बना देता है।बुध गुरु राशि परिवर्तन, गुरु शनि राशि परिवर्तन, आठवें भाव का राजयोग बनाकर केतु के साथ आना ये सब कुछ ऐसे योग है जिनके होने पर भी जातक उत्तम ज्योतिषी बनता है।लग्न और नवमांश कुंडलीअब हम इन सूत्रों को एक उदाहरण कुंडली से समझते है। यह कुंडली एक ऐसे विद्वान की है जिन्होंने अपने ज्ञान से जीवन भर लोगों का भला किया। अगर इस कुंडली को देखें तो पंचमेश सूर्य और अष्टमेश मंगल दोनों छठे भाव में बैठ गए हैं। मंगल आठवें भाव का स्वामी होकर विपरीत राजयोग बना रहा है। वहीं गुरु बारहवें भाव के स्वामी होकर विपरीत राजयोग बना रहा है। उन दोनों भावेश के साथ पंचम भाव के स्वामी का आना साफ़ संकेत है कि व्यक्ति पिछले जन्म के कर्मों के कारण प्रसिद्द और विद्वान होगा।लग्न में केतु, पंचम में बुध, बुध सूर्य का राशि परिवर्तन और गूढ़ विद्या का भाव यानी आठवें भाव के स्वामी का गुरु के साथ आना इस बात का संकेत है कि जातक उच्च कोटि का ज्ञानी होगा। अगर वाणी भाव के स्वामी जो देखें तो शुक्र सौम्य ग्रह चंद्र के साथ मूल त्रिकोण है और उस पर केतु का प्रभाव है। यही कारण है की उनकी वाणी कभी गलत साबित नहीं होती थी।इस कुंडली में अगर शनि को देखें तो वो वृश्चिक राशि में आठवें भाव में विराजमान है जिसका स्वामी राजयोग में है। सिर्फ शनि एक ऐसा ग्रह है जिसे कारको भाव नाशाय का दोष नहीं लगता है। आठवें भाव का कारक उसी भाव में बैठकर स्थिर राशि में बैठे बुध को अपनी दृष्टि दे रहे हैं। बुध शनि की राशि को अपनी दृष्टि दे रहे है।इस योग के कारण जातक की गणित और गणना करने की क्षमता अद्भुत हो जाती है। ऐसे में वह ज्योतिष गणनाओं में कोई गलती नहीं करता है। इस कुंडली को देखने पर साफ़ पता चलता है की गुरु, शनि, दूसरे भाव, पंचम भाव, अष्टम भाव कहीं ना कहीं एक-दूसरे के प्रभाव में आकर जातक को प्रसिद्ध ज्योतिषी बना रहे हैं।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 342
★ भूमिका - निम्नांकित पद भक्तियोगरसावतार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ के 'सिद्धान्त-माधुरी' खण्ड से लिया गया है। 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ में आचार्य श्री ने कुल 21-माधुरियों (सद्गुरु, सिद्धान्त, दैन्य, धाम, श्रीकृष्ण, श्रीराधा, मान, महासखी, प्रेम, विरह, रसिया, होरी माधुरी आदि) में 1008-पदों की रचना की है, जो कि भगवत्प्रेमपिपासु साधक के लिये अमूल्य निधि ही है। इसी ग्रन्थ का 'सिद्धान्त-माधुरी' का यह 44-वाँ पद है, जिसमें श्री कृपालु जी महाराज संसार के स्वरूप पर प्रकाश डालते हुये इसकी असारता प्रकट करते हुये अनंत आनंद के सिन्धु भगवान श्रीकृष्ण की चरण-शरण में आने का आग्रह कर रहे हैं ::::
छाँड़ु मन! सनक तनक सुनु बात।छिन सुख पाव पाव छिन दुख पुनि, जोरि जगत सोँ नात।इक वस्तुहिं इक सुखी, दुखी इक, एक उदास लखात।पुनि कहु वा वस्तुहिँ सुख या दुख, या नहिँ दोउ जनात।जो जेहि वस्तु मानि सुख जितनो, सोचत रह दिनरात।सो तेहि वस्तु पाव सुख तितनो, वस्तुहिँ सुख पतियात।पुनि तेहि विरह पाव दुख तितनोइ, निज भ्रमवश पिछतात।कह 'कृपालु' जग ते उदास रहु, गहहु शरण बलभ्रात।।
भावार्थ - अरे मन! दुराग्रह छोड़ दे! जरा मेरी बात पर विचार तो कर। तू संसार से प्यार करके एक क्षण में तो सुखी हो जाता है एवं दूसरे ही क्षण दुःखी हो जाता है। जरा सोच तो, एक ही वस्तु से एक व्यक्ति सुखी होता है तो दूसरा दुःखी होता है एवं एक व्यक्ति उदासीन दिखाई देता है। अब तू ही बता उस वस्तु में सुख है या दुःख या दोनों ही नहीं हैं? अरे मन! जो जिस वस्तु में जितने सुख का बार-बार चिंतन करता है उसको उस वस्तु से अपना ही माना हुआ सुख मिल जाता है और वह यह समझ बैठता है कि उसे उस वस्तु से ही वह सुख मिल रहा है। फिर जिस वस्तु से जिसको जितना सुख मिलता है उस वस्तु के वियोग में उसको उतना दुःख भी मिलता है। 'श्री कृपालु जी' कहते हैं अरे मन! संसार में न सुख है न दुःख है। अतएव संसार से उदासीन होकर श्यामसुन्दर की शरण ग्रहण कर।
०० व्याख्याकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रेम रस मदिरा', सिद्धान्त माधुरी, पद संख्या 44०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - होटल हो या घर, पानी के लिये अलग-अलग व बहुत सी जगहों पर व्यवस्था करनी पड़ती है। अलग-अलग यूज़ के हिसाब से जगह का चुनाव किया जाता है। अगर जमीन के अंदर पानी की व्यवस्था करवाना चाहते हैं, यानि कि बोर करवाना या जैट लगवाना चाहते हैं तो इसके लिये ईशान कोण का चुनाव करना ठीक रहता है और ध्यान रखे कि ईशान कोण हमेशा साफ-सुथरा रहे।सेप्टिक टैंक के लिये वायव्य या पश्चिम दिशा का चुनाव करना चाहिए। क्योंकि पश्चिम दिशा वरूण देव, यानि जल के देवता की दिशा है तो इस दिशा में टैंक लगवाने से आप पानी से संबंधित परेशानियों से दूर रहेंगे। इसके अलावा छत के ऊपर पक्की सीमेंट की टंकी बनाने के लिये नैऋत्य कोण सबसे अच्छा रहता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 341
★ भूमिका - आज के अंक में प्रकाशित दोहा तथा उसकी व्याख्या जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ग्रन्थ 'भक्ति-शतक' से उद्धृत है। इस ग्रन्थ में आचार्यश्री ने 100-दोहों की रचना की है, जिनमें 'भक्ति' तत्व के सभी गूढ़ रहस्यों को बड़ी सरलता से प्रकट किया है। पुनः उनके भावार्थ तथा व्याख्या के द्वारा विषय को और अधिक स्पष्ट किया है, जिसका पठन और मनन करने पर निश्चय ही आत्मिक लाभ प्राप्त होता है। आइये उसी ग्रन्थ के 88-वें दोहे पर विचार करें, जिसमें आचार्यश्री ने यह बताया है कि हमारे लिये श्रीकृष्ण प्रेम ही परमसाध्य वस्तु होनी चाहिये, और वह श्रीकृष्ण प्रेम जिस साधन से मिलता हो, उसी से हमारा प्रयोजन रहना चाहिये।
वंदनीय है उपनिषत, यामे ज्ञान महान।श्याम प्रेम बिनु ज्ञान सो, प्राणहीन तनु जान।।88।।
भावार्थ - उपनिषत् भगवत्स्वरूप हैं। अतः वन्दनीय हैं। उनमें अनन्त ज्ञान भरा पड़ा है। किंतु उनसे श्रीकृष्ण प्रेम नहीं बढ़ता। अतः ज्ञान, प्राणहीन, शरीर के समान है।
व्याख्या - श्रीकृष्ण के सहज नि:श्वास से अनादि अपौरुषेय वेद प्रकट होते हैं। अतः भगवान् के समान ही परम वन्दनीय है। फिर उपनिषत् भाग तो वेदों का चरम ज्ञान स्वरूप है।
सर्ववेदमयो हरिः।(भागवत 7-11-7)
इसी से भगवान् श्रीकृष्ण को वेदकृत् वेदवित् वेदवेद्य कहा है। यथा;
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्योवेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्।(गीता 15-15)
जीवों के संस्कार एवं रुचि पृथक्-पृथक् हैं। अतः वेदों में सभी अधिकारियों के हेतु मार्ग निरूपण किया गया है। अतः किसी महापुरुष के द्वारा ही वेद का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। स्वयं वेद कहता है। यथा;
आचार्यवान् पुरुषो हि वेद।(छान्दोग्योपनिषद 6-14-2)
तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत् समित्पाणिः श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम्।(मुण्डकोपनिषद 1-2-12)
अर्थात् श्रोत्रिय (वेद तात्पर्य मर्मज्ञ), ब्रह्मनिष्ठ (जिसने पूर्ण प्रेम प्राप्त कर लिया है) गुरु से ही वेदार्थ ज्ञान प्राप्त करना चाहिये। अन्यथा-
विभेत्यल्पश्रुताद्वेदो मामयं प्रहरिष्यति।
अर्थात् अल्पज्ञों से वेद डरता है कि मेरा अनर्थ करेगा। अस्तु वेदों में भी उपनिषत् भाग तो वेदों का सारभूत तत्त्व है। बड़े-बड़े पाश्चात्य दार्शनिकों तक ने उपनिषदों के ज्ञान की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। किंतु यहाँ लेखक का अभिप्राय यह है कि भूखे को खाना चाहिये। व्यंजन ज्ञान की पुस्तक से पेट नहीं भरता। टाइम टेबल देखने मात्र एवं उसके रट लेने मात्र से तो मुसाफिर का सफर तय नहीं होता। उसी प्रकार इन सब उपनिषदों के ज्ञान से भगवान् में अनुराग नहीं हो पाता। ज्ञान तो वही वन्दनीय है जो साधक का स्वार्थ सिद्ध करे। श्रीकृष्ण प्रेम संवर्धन ही किसी भी ज्ञान का चरम लक्ष्य है। यदि उपनिषत् एवं वेदान्त सूत्र हमारा साध्य नहीं प्रदान करता तो हम उसको लेकर क्या करें? हमको तो श्रीमद्भागवत महापुराण सरीखे रसात्मक ग्रन्थ से ही विशेष लाभ होता है। इसी आशय से स्वयं वेदव्यास ने कहा है। यथा;
श्रुतमप्यौपनिषदं दूरे हरिकथामृतात्।यन्नसंति द्रवच्चित्तकंपाश्रुपुलकादयः॥
अर्थात् श्यामसुन्दर की सरस लीला रहित शुष्क ज्ञान युक्त उपनिषत् ज्ञान से दूर ही रहना उचित है। क्योंकि उसके श्रवण मनन से श्रीकृष्ण सम्बन्धी प्रेम के सात्विक भावों (स्तम्भ, स्वेद, कंप, अश्रु आदि) का उद्रेक ही नहीं होता।
०० व्याख्याकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'भक्ति-शतक' ग्रन्थ, दोहा संख्या 88०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - ज्योतिष में मुश्किलों से निपटने के कई छोटे और आसान उपाय बताए गए हैं. ये उपाय बड़ी से बड़ी समस्याओं को दूर करने में सक्षम होते हैं, यदि कुंडली की प्रतिकूल ग्रह-दशाओं के कारण ऐसा न भी हो तो वे संकटों की तीव्रता कम कर देते हैं. यानी कि जातक को यदि नुकसान हो भी तो कम होगा. आज हम लाल किताब में दिए गए एक ऐसे कारगर उपाय के बारे में बात करते हैं, जो कई समस्याओं से निजात दिलाता है.बड़े काम का है चांदी का छल्लाचांदी का बिना जोड़ वाला छल्ला बहुत काम की चीज है. इसकी कीमत भी बहुत ज्यादा नहीं होती है, यह उंगली की साइज के हिसाब से करीब 1 हजार रुपये में मिल जाता है. यह छल्ला चंद्रमा का कारक होता है. यानी कि यह शुक्र ग्रह को मजबूत करता है और शुक्र अपने मित्र ग्रह बुध पर भी सकारात्मक असर डालता है.शुक्र और बुद्ध मिलकर जिंदगी में सुख-समृद्धि, सौंदर्य और बुद्धिमत्ता को बढ़ाते हैं. साथ ही करियर में आ रही बाधाओं को दूर करके सफलता दिलाते हैं. इसके अलावा चांदी का यह छल्ला सूर्य और शनि की स्थिति को मजबूत करता है. इससे भाग्य वृद्धि होती है और काम बनने लगते हैं.विवाह का योग भी बनाता है चांदी का छल्लाचांदी का छल्ला लड़कियों को अपने बाएं हाथ में और लड़कों को दाएं हाथ में पहनना चाहिए. यदि शुक्र के कारण विवाह में अड़चनें आ रही हों तो चांदी का छल्ला पहनने से जल्द ही विवाह होने के योग बनते हैं. वहीं विवाहित लोगों के चांदी के छल्ला पहनने से उनके दांपत्य जीवन में खुशहाली रहती है. इसके अलावा चांदी का छल्ला पहनने से राहु का दोष दूर होता और मन शांत रहता है. जिन लोगों को बात-बात पर गुस्सा आता हो, उन्हें भी यह छल्ला पहनने से लाभ होगा.इन बातों का रखें ध्यानचांदी का छल्ला पहनते समय कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है. छल्ला लेते समय देख लें कि उसमें कोई जोड़ न हो, उसे ढालकर बनाया गया हो. वहीं कुंडली में चंद्र, शुक्र, शनि, सूर्य, राहु और बुध दोष होने पर चांदी का छल्ला पहनने से पहले ज्योतिषी से सलाह ले लें. छल्ले को सोमवार के दिन पहनें.
- जिंदगी में तमाम तरह की मुश्किलें आती हैं, इनमें से कई के पीछे ज्योतिष से जुड़े कारण जिम्मेदार होते हैं. जैसे उस समय की ग्रह-दशाएं सभी के लिए ठीक न होना या केवल उस जातक के लिए ठीक न होना. ऐसी स्थितियों के लिए ज्योतिष में कई उपाय और टोटके भी बताए गए हैं. जिनकी मदद से संकटों को दूर किया जा सकता है या उनकी तीव्रता कम की जा सकती है. आज हम जीवन में आने वाली आम समस्याओं जैसे- पैसे की तंगी , वैवाहिक जीवन की मुश्किलें, करियर में असफलता आदि के लिए उपाय जानते हैं, जो आपकी मुश्किलों को बहुत जल्दी दूर कर सकते हैं.आर्थिक स्थिति मजबूत करने के उपाय1. आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए, मान-सम्मान पाने के लिए रोजाना सूर्य को अर्घ्य दें. इसके लिए तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें एक चुटकी सिंदूर मिलाएं और सुबह सूर्य को जल चढ़ाएं.2. यदि हनुमान भक्त हैं तो एक और उपाय भी कर सकते हैं. इसके लिए 5 मंगलवार या 5 शनिवार तक तिल के तेल में सिंदूर मिलाकर हनुमान जी को चढ़ाएं. यह उपाय जिंदगी में बार-बार आ रही आर्थिक समस्याओं से निजात देता है और पैसे आने के नए रास्ते खोलता है.घर की कलह खत्म करने का उपाय1.यदि घर में अक्सर कलह होती हो तो सिंदूर में थोड़ा तेल मिलाकर अपने घर के मुख्य दरवाजे पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं. ऐसा 40 दिनों तक करें. इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होगी और घर में खुशहाली आएगी.2. रोजाना शाम को घर में कर्पूर जलाकर उसे पूरे घर में घुमाएं, इससे भी घर में सकारात्मक ऊर्जा आएगी.वैवाहिक जीवन में खुशहाली लाने के उपाययदि वैवाहिक जीवन में कोई मुश्किल आ रही हो तो यह उपाय बहुत कारगर होता है. यदि मुश्किलें न भी हों तो जीवनसाथी के साथ खुशहाल जिंदगी के लिए भी यह उपाय कर सकते हैं. इसके लिए सुहागिन महिलाएं मां गौरी को सिंदूर अर्पित करें और फिर उसमें से थोड़ा सा सिंदूर अपनी मांग में भर लें.
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 340
(भूमिका - प्रस्तुत अंश जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा लिखित 'प्रेम रस सिद्धान्त' पुस्तक से लिया गया है। इस पुस्तक में आचार्यश्री ने अध्यात्म-जगत के प्रत्येक विषय का अनेक अध्यायों यथा; जीव का चरम लक्ष्य, ईश्वर का स्वरूप, भगवत्कृपा, शरणागति, संसार और वैराग्य का स्वरूप, महापुरुष, ईश्वर-प्राप्ति के उपाय, कर्म, ज्ञान, भक्ति, भगवान के अवतार रहस्य, भक्तियोग, कर्मयोग की क्रियात्मक साधना तथा कुसंग का स्वरूप आदि में विशद रूप से और बड़ी ही सरल भाषाशैली में वर्णन किया है। भगवत्प्रेमपिपासु जीव के लिये यह ग्रंथ अनमोल है। आइये इसी ग्रन्थ के अध्याय - 5, 'संसार के स्वरूप' के एक अंश पर विचार करें....)
...समस्त ब्रह्मलोक पर्यन्त के आनन्द में सर्वत्र एक सी अशान्ति, अतृप्ति एवं अपूर्णता रहती है। वास्तविक आनन्द इन सबसे करोड़ों कोस दूर है, जिसे पाने के पश्चात् व्यक्ति पूर्णकाम हो जाता है, सदा के लिये आनन्दमय हो जाता है, तृप्त हो जाता है, अमृत हो जाता है। गीता कहती है:
आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन।
अर्थात् हे अर्जुन, ब्रह्मलोक तक वास्तविक सुख नहीं है। वहाँ भी जाकर पुनः भवाटवी का चक्कर लगाना पड़ेगा। पुनः;
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते।(गीता)
केवल मुझको एवं मेरे लोक को प्राप्त करके ही जीव मुक्त हो सकता है, परमानन्द प्राप्त कर सकता है। अब सोचिये, जब ब्रह्मलोक के ऐश्वर्य में भी आनन्द नहीं तो करोड़पति बन कर आनन्द चाहते हैं, कितना बड़ा आश्चर्य है! कैसा भोलापन है। वेदव्यास जी कहते हैं;
यत्पृथिव्यां व्रीहियवं हिरण्यं पशवः स्त्रियः।न दुह्यन्ति मनः प्रीतिं पुंसः कामहतस्य ते॥(भागवत 9-19-13)
अर्थात् सम्पूर्ण विश्व के सम्पूर्ण पदार्थ स्त्री आदि, यदि एक व्यक्ति को दे दिये जायें तो भी उसकी कामना उसी प्रकार बनी रहेगी, जैसे प्रारम्भ में थी। वेदव्यास जी पुनः कहते हैं;
गिरिर्महान् गिरेरब्धिर्महानब्धेर्नभो महत्।नभसोऽपि परं ब्रह्म ततोऽप्याशा दुरत्यया॥
अर्थात् पहाड़ बड़ा होता है। उससे बड़ा समुद्र होता है। उससे बड़ा आकाश होता है। उससे बड़ा भगवान् होता है, जिसे अनन्त कहा जाता है किन्तु उससे भी बड़ी एक वस्तु है, उसका नाम है, वासना। भावार्थ यह कि अज्ञेय भगवान् को जाना जा सकता है, अचिंत्य भगवान् का चिन्तन किया जा सकता है, अदृष्ट भगवान् को देखा जा सकता है, अव्यवहार्य भगवान् को व्यवहार में लाया जा सकता है किन्तु, अनादि काल से अब तक के इतिहास में एक भी उदाहरण ऐसा नहीं हुआ, न आगे होगा, जो इन्द्रियों के विषयों के सामान को पाकर पूर्णकाम हो जाय, वे सामान भले ही ब्रह्मलोक की कक्षा के हों। आप लोग सुनते होंगे, शास्त्रों में लिखा है कि कहीं स्वर्ग है, वहाँ बड़ा सुख है। कुछ लोग तदर्थ प्रयत्न करते हैं। किन्तु, वेद कहता है-
अविद्यायां बहुधा वर्तमाना वयं कृतार्था इत्यभिमन्यन्ति बालाः।यत्कर्मिणो न प्रवेदयन्ति रागात् तेनातुराः क्षीणलोकाश्च्यवन्ते॥(मु० 1-2-3)
अर्थात् घोर मूर्ख लोग स्वर्ग लोक के हेतु प्रयत्न करते हैं, क्योंकि वहाँ भी अज्ञान है, अशान्ति है, अतृप्ति है। वे स्वर्गादिक लोक शोक से परिपूर्ण हैं, सीमित हैं। कुछ दिन के पश्चात् स्वगलोक से नीचे गिरा दिया जायगा और मानवदेह भी छिन सकती है। परिणामस्वरूप कूकर, शूकर, कीट, पतंग आदि योनियों में दुःख भोगना पड़ेगा। इसी आशय से वेदव्यासजी ने कहा कि;
आद्यन्तवन्त एवैषां लोकाः कर्मविनिर्मिताः।दुःखोदर्कास्तमोनिष्ठाः क्षुद्रानन्दाः शुचार्पिताः।। (भा.)
गीता में बताया कि-
ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालं क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति।
रामायण ने बताया कि;
स्वर्गहु स्वल्प अन्त दुखदायी।
भावार्थ यह कि स्वर्गादिक लोक भी हमारे लोक की भाँति प्राकृत हैं। वहाँ माया का आधिपत्य है। अतएव हमारा आध्यात्मिक सुख वहाँ भी सर्वथा अप्राप्य है। आश्चर्य यह है कि शास्त्र वेद के माननेवाले भी इस उपर्युक्त बात पर विश्वास नहीं करते। तभी तो जगत् के पदार्थों द्वारा आनन्द की आशा में प्रयत्नशील हैं। यह मानव देह देव-दुर्लभ बतायी गयी है। वेदव्यासोक्ति अनुसार;
नृदेहमाद्यं सुलभं सुदुर्लभं प्लवं सुकल्पं गुरुकर्णधारम्।मयानुकूलेन नभस्वतेरितं पुमान् भवाब्धिं न तरेत् स आत्महा॥
रामायण कहती है 'सुर दुर्लभ सद्ग्रन्थनि गावा।' अस्तु, जब देवता लोग मानवदेह चाहते हैं, तब मानव यदि स्वर्ग की जनता बनना चाहे तो कितना भोलापन होगा। आप कहेंगे, बात तो ठीक है, किन्तु आश्चर्य होता है कि स्वर्ग के लोग मानवदेह क्यों चाहते हैं? वहाँ उच्चकोटि के सुख प्राप्त हैं। मानव के मृत्युलोक के सुख उनके समक्ष नगण्य हैं। किन्तु, यदि आप यह रहस्य समझ लें तो आश्चर्य न होगा। स्वर्ग केवल भोग-योनि ही है। वहाँ केवल कर्म को भोगवाया जाता है, आप आगे कुछ नहीं कर सकते। किन्तु मानवदेह में भोग भोगने के साथ-साथ उन्नति करके अपने कर्मबन्धनों से छुटकारा पाने का भी सौभाग्य प्राप्त है। मानव साधना द्वारा सदा के लिये माया से उतीर्ण होकर आनन्दमय बन सकता है किन्तु स्वर्ग कर्मयोनि न होने के कारण इससे वंचित है। अतएव स्वर्ग-सम्बन्धी कामना की भावना से प्रयत्न करना घोर नासमझी है। आप लोग अपने पिता आदि पूज्यों के मरने पर कहा करते हैं कि हमारे पूज्य का स्वर्गवास हो गया किन्तु यह रहस्य समझ लेने पर आप ऐसा न कहेंगे, क्योंकि वेदानुसार स्वर्ग जानेवाला जब घोर मूर्ख है तो आप अपने पूज्य को घोर मूर्ख क्यों बनायेंगे।
भावार्थ यह कि स्वर्ग या ब्रह्मलोक में आनन्द नहीं है। फिर हम मृत्युलोक के आंशिक ऐश्वर्य से आनन्द प्राप्ति की कामना करें, यह महान पागलपन है। हमें गम्भीरतापूर्वक सोचना चाहिये कि ईश्वर को छोड़कर जीव का वास्तविक आनन्द अन्यत्र कुत्रापि नहीं हो सकता क्योंकि शेष सब प्रकृति के आधीन हैं एवं प्रकृति के राज्य में आत्मा का सुख सर्वथा असम्भव है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रेम रस सिद्धान्त', अध्याय - संसार का स्वरूप०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - किसी में भी एक अच्छा और प्यार करने वाला साथी बनने की क्षमता हो सकती है, लेकिन हममें से कुछ लोगों में एक को खोजने और उन्हें तुरंत गहराई से प्यार करने की जन्मजात क्षमताएं होती हैं। कुछ राशियां दूसरों की तुलना में अधिक रोमांटिक होती हैं। अलग-अलग लोगों के लिए रोमांस का एक अलग अर्थ होता है, हालांकि, कुछ के लिए, ये उनके जीवन पर बड़ा प्रभाव डाल सकता है। एक बार जब वो एक रिश्ते के लिए प्रतिबद्ध हो जाते हैं, तो वो खुद को पूरी तरह से परस्पर जुड़े हुए और प्यार में मुग्ध पाते हैं। जानते हैं ऐसी राशियों के बारे में ....वृषभ राशिवृषभ राशि के लोग दिल से रोमांटिक पैदा हुए थे। ये राशि चिन्ह हमेशा छोटी चीजों की तलाश करेगा ताकि ये सुनिश्चित हो सके कि उनके प्रियजनों को पता चले कि उनकी सराहना की जाती है और उनकी प्रशंसा की जाती है। वो अपने साथी को प्यार और पोषित महसूस कराना पसंद करते हैं। वो एक रिश्ते के दौरान सबसे कठिन समय में भी उनका साथ नहीं छोड़े और रिश्तों के प्रति वफादार बने रहते हैं। ये राशि चिन्ह सचमुच उनके दिल को अपनी आस्तीन पर रखता है और वो इसे दिखाने से डरते भी नहीं हैं।सिंह राशिवो अपने साथी के प्रति प्यार उंडेलने के राजा और रानी हैं। एक बार जब वो प्रतिबद्ध हो जाते हैं, तो वो अंदर तक जाते हैं और पीछे मुड़कर नहीं देखते। वो बड़े इशारे करके अपना स्नेह दिखाते हैं। उन्हें महंगे उपहार खरीदना, तारीफों की बौछार करना या उन्हें रोमांटिक डेट पर ले जाना पसंद है।कर्क राशिकर्क राशि के लोग बिना किसी संदेह के सबसे रोमांटिक राशि हैं। इस राशि के जातक प्यार महसूस करते हैं, प्यार की बात करते हैं और फिर प्यार का इजहार करते हैं। कर्क राशि के जातक अक्सर दिल से सोचने और निर्णय लेने के लिए जाने जाते हैं। वो प्रेम की शुद्ध ऊर्जा को महसूस करते हैं और वो हर चीज में और हर जगह रोमांस खोजना चाहते हैं। वो अपनी भावनाओं को व्यक्त करना पसंद करते हैं और वो हर चीज में तर्क खोजने के बजाय अपनी भावनाओं के माध्यम से सोचते हैं। वो एक रिश्ते में छोटे-छोटे पलों को प्यार करते हैं और इन यादों को जीवन भर संजोना पसंद करते हैं।तुला राशितुला राशि के जातकों का अपने पार्टनर के प्रति कम जुनून होता है। वो ये मानना पसंद करते हैं कि उनके लिए केवल एक ही जीवन साथी है और वो अपने बारे में सब कुछ रोमांटिक करना पसंद करते हैं। रोमांस के बारे में उनके आदर्शवादी विचार हैं। वो अंतिम सांस तक अपने जीवनसाथी की देखभाल करते हैं और शुद्ध प्रेम के नि:स्वार्थ कृत्यों के माध्यम से अपना स्नेह दिखाते हैं।
- जीवन साथी के प्रति अच्छा नजरिया होना बहुत ही महत्वपूर्ण है। सम्मान की भावना के साथ ही कई ऐसी चीजें हैं जो आपके भीतर होना चाहिए ताकि सामने वाला आपको किसी भी रूप में ना न कह सके। जीवन के उन तमाम पलों में भी एक-दूसरे का साथ पूरी मजबूती से पकड़े रहने पर ही जीवन की गाड़ी सही तरीके से चल पाती है अन्यथा वो कभी न कभी डगमगा कर गिरती जरूर है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार आइये देखते हैं कि कन्या राशि के जातक कैसे होते हैं और उनके लिए कैसा जीवनसाथी उपयुक्त होगा।-कन्या राशि वाले लोग परफेक्शनिस्ट होते हैं। उनके पास विस्तार के लिए एक नजर होती है और वो चाहते हैं कि सब कुछ सही हो उससे कम न हो। वो तार्किक, व्यावहारिक और यथार्थवादी लोग भी होते हैं जिनकी जीवन से कोई कल्पना या बहुत ही अधिक उम्मीद नहीं होती है। वो एक क्रमबद्ध और सरल जीवन जीते हैं। पेशेवर रूप से, वो बहुत महत्वाकांक्षी और मेहनती लोग होते हैं.-23 अगस्त से 22 सितंबर के बीच जन्में कन्या राशि के जातक अपनी आदतों को लेकर काफी भावुक होते हैं। उनके जीवनसाथी को तनावमुक्त रहना चाहिए क्योंकि कन्या राशि वाले लोग स्वयं वर्कहॉलिक और बहुत समर्पित कार्यकर्ता होते हैं। इसलिए उन्हें अपने जीवन में संतुलन लाने के लिए अपने जीवनसाथी को थोड़ा पीछे हटने और आसान बनाने की आवश्यकता होती है।कन्या राशि का संभावित जीवनसाथी यथार्थवादी और आदर्शवादी दोनों होना चाहिए। उन्हें जीवन के बारे में बहुत अधिक निंदक नहीं होना चाहिए, बल्कि ये समझने के लिए पर्याप्त व्यावहारिक भी होना चाहिए कि जीवन कठिनाइयां और संघर्ष अपने हिस्से के साथ आते हैं।कन्या राशि के जातक परफेक्शनिस्ट होने के साथ-साथ विस्तार पर भी नजर रखते हैं और बहुत रचनात्मक भी होते हैं। कन्या राशि के लोगों की तरह, उनके जीवन साथी को भी उनकी विचार प्रक्रियाओं और मानसिक श्रृंगार को आसानी से समझने के लिए नवीन, रचनात्मक और कल्पनाशील होना चाहिए।कन्या राशि वाले लोग अपने सभी रिश्तों के लिए भी बहुत समर्पित होते हैं और बहुत वफादार होते हैं। उन्हें एक ऐसा जीवनसाथी चाहिए जो उनके जैसा ही निर्भर करने वाला और भरोसेमंद हो और जो पूरे दिल से रिश्ते के लिए प्रतिबद्ध हो।
- शनि के अशुभ प्रभावों से हर कोई भयभीत रहता है। शनि को ज्योतिष में पापी और क्रूर ग्रह कहा जाता है। शनि के अशुभ प्रभावों से व्यक्ति का जीवन बुरी तरह प्रभावित होता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जिन राशियों पर शनि की टेढ़ी नजर रहती है, उन्हें विशेष सावधान रहने की आवश्यकता होती है। ज्योतिष में 12 राशियों का वर्णन है। कुछ समय बाद इन 12 राशियों में से 8 राशियों पर शनि की टेढ़ी नजर रहेगी। आइए जानते हैं कुछ समय बाद किन राशियों को सावधान रहने की आवश्यकता है। शनि के राशि परिवर्तन को ज्योतिष में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। शनि ढाई साल में एक बार राशि परिवर्तन करते हैं। सभी ग्रहों में शनि सबसे धीमी चाल चलते हैं। शनि के राशि शनि के राशि परिवर्तन करने पर किसी राशि से शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या का प्रभाव खत्म हो जाता है तो किसी राशि पर शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या शुरू हो जाती है। 29 अप्रैल 2022 को शनि के कुंभ राशि में प्रवेश करते ही मीन राशि पर शनि की साढ़ेसाती और कर्क, वृश्चिक राशि पर शनि की ढैय्या शुरू हो जाएगी। इसके साथ ही धनु राशि से शनि की साढ़ेसाती और तुला, मिथुन राशि से शनि की ढैय्या हट जाएगी, लेकिन 12 जुलाई, 2022 में शनि एक बार फिर राशि परिवर्तन करेंगे, जिससे इन राशियों पर फिर से शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या शुरू हो जाएगी।12 जुलाई, 2022 से शुरू होगी शनि की वक्री चालशनि 12 जुलाई, 2022 को वक्री हो जाएंगे, यानी इस दिन से शनि मकर राशि में उल्टी चाल चलेंगे। शनि के मकर राशि में प्रवेश करते ही एक बार फिर धनु राशि पर साढ़ेसाती और मिथुन, तुला राशि पर ढैय्या का प्रभाव शुरू हो जाएगा।2022 में इन 8 राशियों पर रहेगी शनि की टेढ़ी नजरधनु, तुला, मिथुन, मकर, कुंभ मीन, कर्क और वृश्चिक राशि पर 2022 में शनि की टेढ़ी नजर रहेगी। इन लोगों को अपना विशेष ध्यान रखना होगा।रोजाना करें हनुमान चालीसा का पाठहनुमान जी की पूजा- अर्चना करने से शनि का अशुभ प्रभाव नहीं पड़ता है। हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने के लिए रोजाना हनुमान चालीसा का पाठ करें।शिवलिंग पर जल अर्पित करेंभगवान शिव की कृपा से शनि देव के अशुभ प्रभावों से बचा जा सकता है। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रोजाना शिवलिंग पर जल अर्पित करें।
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जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 339
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'नारद भक्ति दर्शन' की व्याख्या के 9-वें प्रवचन के इस अंश में उनके श्रीमुख से महापुरुषों व रसिक-संतों द्वारा संसार में भगवान की कथा के दान की महानता, सर्वोच्चता का वर्णन है। साथ ही, महापुरुषों के दिव्य गुण अथवा स्वभाव का भी वर्णन है कि किस प्रकार वे अपना अनिष्ट करते हुये, कष्ट सहकर भी हम पापी मनुष्यों के उद्धार के लिये अथक परिश्रम करते हैं.....)
...अगर ये सौभाग्य मिल जाय कि कोई रसिक भगवान् की बात सुनावे तब तो फिर क्या बात है? लेकिन अगर ऐसा सौभाग्य न हो, कोई मायाबद्ध ही भगवान् की कथा सुनावे, तो भी हमारा लाभ हो सकता है लेकिन एक बात की सावधानी बरतनी होगी कि मायाबद्ध कथा सुना सकता है, जैसी लिखी है, लेकिन वह सिद्धान्त सुनायेगा तो सब बंटाढार कर देगा। यानी वो पहले वाला श्रवण जो है तत्त्वज्ञान का वो तो केवल सिद्ध महापुरुष ही करा सकता है और दूसरा वाला जो श्रीकृष्ण लीला आदि सम्बन्धी कथा है, ये मायाबद्ध भी करता है, कर सकता है, जिसका लक्ष्य केवल ये है - चढ़ावा कितना होता है, भागवत के अन्तिम दिन। उसको इतने से मतलब है केवल।
तव कथामृतं तप्तजीवनं कविभिरीडितं कल्मषापहम्।श्रवणमंगलं श्रीमदाततं भुवि गृणन्ति ते भूरिदा जनाः॥(भागवत 10-31-9)
गोपियां श्यामसुन्दर के वियोग में कहती हैं - महाराज! आपकी जो कथा है वह तीन तापों से तपने वालों के ताप को शान्त कर देती है। और बड़े-बड़े जीवन्मुक्त अमलात्मा परमहंस भी इस कथा से अपनी समाधि भुला देते हैं।
आत्मारामाश्च मुनयो निर्ग्रन्था अप्युरुक्रमे।कुर्वन्त्यहैतुकीं भक्तिमित्थम्भूतगुणो हरिः।।(भागवत 1-7-20)
कैसे?
इत्थं भूतगुणो हरिः।
अरे ! शुकदेव परमहंस ने गुण सुना था;
अहो बकीयं स्तनकालकूटं जिघांसयापाययदप्यसाध्वी।लेभे गतिं धात्र्युचितां ततोऽन्यं कं वा दयालुं शरणं व्रजेम।।(भागवत 3-2-23)
पूतना को भी गोलोक दे दिया श्रीकृष्ण ने, इतने दयालु हैं - ये सुनकर ही शुकदेव परमहंस भागे-भागे आये और सिद्धावस्था को प्राप्त करने के बाद फिर प्रारम्भिक श्रवण किया, भागवत का 'श्रोतव्यः' पहले, 'मन्तव्यः' बाद में और 'निदिध्यासितव्यः' अन्त में। अन्त में पहुँचने वाले परमहंस शुकदेव भी प्रारम्भिक क्लास में दाखिला लिये। 'श्रोतव्यः' क्योंकि कथा का श्रवण ऐसा है कि ये प्रारम्भ भी है और अनन्त काल तक है और इस कथा को 'भुवि गृणन्ति ते भूरिदा जनाः', जो इस कथा का दान करते हैं, रसिक लोग, उसके बराबर कोई दान नहीं हो सकता यानी एक तो सन्तों के द्वारा दिया हुआ तत्त्व-ज्ञान और उससे बड़ा दान उन महापुरुषों के द्वारा दिया हुआ, ये कथा का दान। देखिये! महापुरुष लोग अपना अनिष्ट करके हम लोगों का इष्ट करते हैं;
भूर्ज तरू सम सन्त कृपाला।
भोजपत्र का पेड़ होता है, उस पेड़ की छाल होती है तो एक के ऊपर एक, एक के ऊपर एक। सब निकाल लो तो पेड़ जीरो बटा सौ, वो छालों का लिपटा हुआ एक पुंज ही पेड़ होता है। देखिये! छः प्रकार के लोग होते हैं। हाँ, जल्दी समझियेगा ध्यान देकर। अपना अनिष्ट करके दूसरे का अनिष्ट करना। आप लोग सोचते तो हैं और बोलते भी हैं, अपने छोटों के आगे - हैं-हैं-हैं, मैं भी कुछ अकल रखता हूँ और छोटी-सी बात जल्दी नहीं समझते, हमको डिटेल करना पड़ता है। अपना अनिष्ट करके भी दूसरे का अनिष्ट करना - ये सबसे निम्न क्लास के लोग होते हैं। हमारा नुकसान हो जाय तो हो जाय लेकिन उसका नुकसान ज़रूर करना है। अरे! ये कौन-सी समझदारी की बात है कि अपना नुकसान कर रहे हो, उसके नुकसान करने के चक्कर में। लेकिन होते हैं ऐसे;
जे बिनु काज दाहिने बायें।
तो अपना अनिष्ट करके दूसरे का अनिष्ट करना, सबसे खराब, नम्बर एक। इससे अच्छा, अपने इष्ट के लिये दूसरे का अनिष्ट करना यानी अपने फायदे के लिए दूसरे का नुकसान कर देना। ये पहले वाले से कुछ अच्छे हैं, नम्बर दो और तीसरा अपने इष्ट के लिये दूसरे का इष्ट करना यानी अपना भी लाभ हो इसका भी हो, फिफ्टी-फिफ्टी ये उससे भी अच्छा है, नम्बर तीन और नम्बर चार अपने इष्ट के लिए दूसरे का अनिष्ट न करना। नम्बर पाँच, दूसरे का ही इष्ट करना और नम्बर छः, अपना अनिष्ट करके दूसरे का इष्ट करना। अपना नुकसान भले ही हो जाय लेकिन इसका लाभ हो जाय। महाराज! हमको नरक में वास दे दो लेकिन इन जीवों का कल्याण करो - ये महापुरुषों का सिद्धान्त है। आप लोग इसको सोच नहीं सकते, समझ भी नहीं सकते।
एक बात देखिये, आप लोग जब गहरी नींद में सोते होते हैं और आपकी बीबी, आपकी माँ, आपकी बहिन, आपका बेटा, आपका बाप, कोई जगाता है और आप जगते हैं - 'क्या है?' जागते ही गुस्सा करते हैं। 'सोने दो न'! यानी कष्ट हुआ आपको। हाँ जी, गहरी नींद में आराम से सो रहे थे - 'सुखमहमस्वाप्सम्' और जगा दिया, वो बाप हो, चाहे माँ हो, चाहे बीबी हो, चाहे कोई हो। अब अगर छोटे ने जगाया तो डाँट लगाकर फिर तान दिया चद्दर और अगर बड़े ने जगाया और डर है तो फिर कुड़कुड़ा करके उठा किसी प्रकार। पिता जी जगा रहे हैं, बच्चे को स्कूल जाना है। अब अगर फिर तान लेंगे चद्दर तो झापड़ भी पड़ सकता है, कहीं एक बाल्टी पानी ही छोड़ दे बाप। डर के मारे उठेगा। तो देखो! ये नींद का सुख छोड़ना आपको कितना खल रहा है तो जिसको अनलिमिटेड हैप्पीनेस, अनन्त प्रेमानन्द श्यामसुन्दर का, दर्शनादि का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है कि जब चाहे तब ले, वह अपने उस रस को छोड़कर और हमको तत्त्वज्ञान करावे, गन्दी-गन्दी बातों की एक्ज़ाम्पिल देकर समझावे;
कामिहिं नारि पियारि जिमि, लोभिहिं प्रिय जिमि दाम।
भगवान् कैसे प्यारे लगें। कैसे लगें ? कैसे समझावें इन गधों को? तो;
युवतीनां यथा यूनि, यूनां च युवतौ यथा।मनोऽभिरमते तद्वन्मनो मे रमतां त्वयि॥(पद्म पुराण)
वही 'कामिहिं नारि पियारि जिमि', तो ये तमाम अनावश्यक विषय सोचना, किताब में लिखना, लेक्चर देना - ये सब तो हमारे देखने में तो कुछ नहीं लगता, लेकिन अपने आनन्द को छोड़कर वे लोग हमारे लिये जो इतना लेबर कर रहे हैं, ये अपना अनिष्ट करके यानी इष्ट को छोड़ दिया, उन्होंने उतनी देर के लिये। पतन नहीं होगा उनका, डरो मत लेकिन उस आनन्द पर कन्ट्रोल करना पड़ा उनको और फिर हमारे समान संसार में रहना पड़ा, एटीकेट सीखना पड़ा। ऐ! कपड़ा पहन कर आना महात्मा जी, नंगे-वंगे आये तो हम गृहस्थी लोग पागल समझ कर तुमको पागलखाने में बन्द करवा देंगे। बाकायदा कपड़ा पहनो, ढंग से रहो। ढंग से बात करो सब। नैचुरैलिटी नहीं चलेगी, हम लोगों के बीच में, नैचुरैलिटी। नेचुरल अवस्था क्या है। वही;
मत्तो भवति स्तब्धो भवति आत्मारामो भवति।
एवंव्रतः स्वप्रियनामकीर्त्या जातानुरागो द्रुतचित्त उच्चैः।हसत्यथो रोदिति रौतिगाय त्युन्मादवन्नृत्यति लोकबाह्यः।।(भागवत 11-2-40)
वह तो पागल की अवस्था है, नैचुरैलिटी उनकी। संसार से परेशान हुए, हिरन में आसक्ति हुई जड़ भरत की और पुनर्जन्म हुआ तो अबकी बार उन्होंने कहा - हम शास्त्र वेद पढ़ेंगे ही नहीं, पढ़े ही नहीं कुछ वो पूर्व जन्म का ज्ञान रखा हुआ रिजर्व मिल गया और पागल बन कर के, नंगे-धडंगे जहाँ मन में आया बैठ गये, लेट गये। न नहाना, न धोना, न कोई हिसाब न किताब शरीर का, न संसार की परवाह तो लोग समझे पागल हो गया है कोई। उन्होंने कहा, चलो अब तो छुट्टी मिली। अब कभी हिरन में आसक्ति तो नहीं होगी। तो नैचुरैलिटी से रहना है तो लोक-कल्याण नहीं कर सकता कोई भी महापुरुष या भगवान्। नेचुरल रहना है, जाओ गोलोक और हमारे संसार में रहना है तो हमारे संसार के नियमों का पालन करो। ये सब कष्ट करता है महापुरुष, हम लोगों के कल्याण के लिये। इसे हम लोग सोच नहीं सकते। जब जरा से एक माँ बच्चे को चिपटाये है - ये दस महीने बाद मिला है, खो गया था। एक प्रेयसी प्रियतम को चिपटाये है, प्रथम बार मिल रही है, इतने दिन के चिन्तन के बाद और उसी समय कोई डिस्टर्ब करे बीच में तलवार लेकर, रिवॉल्वर लेकर खड़ा हो जाय तो कितना कष्ट होगा उसको? और जो परमानन्द में लीन रहने वाला महापुरुष, वो हमारे लिये इतना परिश्रम करे अपने इष्ट को उसने छोड़ा उतनी देर के लिये, आनन्द को छोड़ा, योगमाया से कन्ट्रोल किया, उसके ऊपर इसलिए यह छठवाँ है अपना अनिष्ट करके भी दूसरे का इष्ट करना।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'नारद भक्ति दर्शन' प्रवचन (व्याख्या)०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
*+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -?(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)