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- ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, ग्रहों के राशि परिवर्तन के साथ-साथ नक्षत्र परिवर्तन भी महत्वपूर्ण माना जाता है। सूर्य देव ने 3 अगस्त को सुबह 3 बजकर 42 मिनट पर अश्लेषा नक्षत्र में प्रवेश किया है। सूर्य के इस नक्षत्र परिवर्तन का प्रभाव मेष से लेकर मीन राशि तक पड़ेगा। खास बात ये है कि इस नक्षत्र में बुध देव विराजमान हैं। ऐसे में इस नक्षत्र में सूर्य और बुध का संयोग कुछ विशेष राशि के जातकों पर शुभ प्रभाव डालेगा। सूर्य देव कृतिका, उत्तराषाढा और उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के स्वामी माने जाते हैं। वहीं अश्लेषा स्वयं बुध देव का नक्षत्र है। ज्योतिष विज्ञान में बुध और सूर्य जिस भी राशि-नक्षत्र में होते हैं वहां बुधादित्य योग का निर्माण करते हैं। ऐसे में कुछ विशेष राशि के जातकों को शानदार परिणाम प्राप्त होते हैं।मेष राशिसूर्य के अश्लेषा नक्षत्र में आने से मेष राशि के जातकों को धनलाभ की प्राप्ति होगी। इसके प्रभाव से आपको रुका हुआ धन प्राप्त हो सकता है। आर्थिक स्थिति में सुधार देखने को मिलेगा। यह माह भी आपके लिए शुभ रहेगा। इस दौरान विद्यार्थियों को शुभ परिणाम मिलेंगे। वहीं करियर में सफलता के योग बनेंगे।मिथुन राशिसूर्य देव के अश्लेषा नक्षत्र में आने से मिथुन राशि के जातकों की चांदी कटेगी। इस दौरान आपको आर्थिक लाभ प्राप्त होगा। आमदनी में वृद्धि होने की भी संभावना है। यदि आप निवेश करने की सोच रहे हैं तो ये समय आपके लिए लाभकारी सिद्ध होगा। कारोबार में भी लाभ के योग बनेंगे।सिंह राशिअगस्त माह में सिंह राशि में बुध देव गोचर करेंगे। सूर्य के अश्लेषा नक्षत्र में आने से आपके भाग्य में वृद्धि होगी। इस दौरान आप जो भी कार्य लगन से करेंगे उसमें सफलता जरूर मिलेगी। करियर की दृष्टि से भी यह अवधि आपके लिए खूब अनुकूल होगी। आपके पद-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।तुला राशिसूर्य देव के अश्लेषा नक्षत्र में आने से तुला राशि के जातकों शानदार परिणाम मिलेंगे। अगर आप इस दौरान कोई भी नया काम शुरू करने के बारे में सोच रहे हैं तो ये समय आपके लिए शुभ रहेगा। संपत्ति में लाभ के योग बनेंगे और वाहन सुख की भी प्राप्ति हो सकती है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 362
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'कुसंग' पर दिये गये प्रवचन से संबंधित श्रृंखला में आज नौवें कुसंग 'परदोष-दर्शन' की चर्चा यहाँ प्रकाशित की जा रही है। 'जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' के भाग 354 से 'कुसंग' विषय पर विस्तृत चर्चा का प्रकाशन हो रहा है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित इस अमूल्य तत्वज्ञान से निश्चित ही हमें आध्यात्मिक हानि उठाने से बचाव के उपाय ज्ञात होंगे....)
★ नौवाँ कुसंग - 'परदोष-दर्शन'
परदोष देखो जनि गोविन्द राधे।यह दोष मन को सदोष बना दे।।(स्वरचित दोहा)परदोष-दर्शन घोर कुसंग है, क्योंकि परदोष-दर्शन से दो हानि हैं। एक तो यह कि परदोष-दर्शन काल ही में स्वाभाविक रूप से स्वाभिमान-वृद्धि होती है जो कि साधक के लिये तत्क्षण ही पतन का कारण बन जाती है। दूसरे यह कि यह दोष-चिन्तन करते हुये शनैः शनैः बुद्धि भी दोषमय हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप उन्हीं सदोष विषयों में प्रवृत्ति होने लगती है, अतएव सदोष कार्य होने लगता है। फिर जब संसारमात्र ही सदोष है, तो हम कहाँ तक दोष-चिन्तन करेंगे।आश्चर्य तो यह है कि मूर्ख को मूर्ख कहने का अधिकार तो ज्ञानी ही को है। मूर्ख, मूर्ख को मूर्ख क्यों कहता है? वह भी तो स्वयं मूर्ख है। यदि यह कहो कि क्या करें, दोष-दर्शन स्वभाव-सा बन गया, तो हमें कोई आपत्ति नहीं, तुम दोष देख सकते हो, किन्तु दूसरों के नहीं, अपने ही दोष क्या कम हैं। अपने दोषों को देखने में तुम्हारा स्वभाव भी न नष्ट होगा, तथा साथ ही एक महान लाभ होगा। वह महान लाभ तुलसी के शब्दों में;
जाने ते छीजहिं कछु पापी।अर्थात दोष जान लेने पर कुछ न कुछ बचाव हो जाता है, क्योंकि वह जीव उनसे बचने का कुछ न कुछ अवश्य प्रयत्न करता है।मेरी राय में तो परदोष-चिन्तन करना ही स्वयं के सदोष होने का पक्का प्रमाण है, अन्यथा भला किसी को इन बातों से क्या अभिप्राय है। लोक में भी देखो, एक बाप अपने सन्निपात रोगग्रस्त पुत्र के हेतु औषधि लाने के लिये डॉक्टर के यहाँ जाता है। यदि उसे मार्ग में कोई बुलाता भी है, तो वह सभ्यता आदि की परवाह न करते हुये सीधे ही कह देता है, 'अभी अवकाश नहीं, फिर मिलेंगे'।वह सीधे ही डॉक्टर के पास लक्ष्य करके जाता है। इसी प्रकार साधक को भी अपने मानसिक सन्निपातिक रोगों की निवृत्ति हेतु सद्गुरु द्वारा बताये हुए मार्ग पर चलकर अपना लक्ष्य प्राप्त करना चाहिये। उसे यह अवकाश ही न होना चाहिये कि साधना रूपी औषधि खाने के बजाय बैठे-ठाले परदोष-चिन्तन स्वरूप कुसंग का कुपथ्य करे। अतएव इस परदोष-चिन्तन रूपी अत्यन्त भयानक कुपथ्य से सर्वथा ही सावधान रहना चाहिये।०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2011 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हस्तरेखा शास्त्र भी ज्योतिष विद्या का एक भाग है। इसमें व्यक्ति के हाथों को देखकर उसके भविष्य के विषय में बताया जाता है। हस्तरेखा शास्त्र की मान्यता है कि व्यक्ति के हाथों की रेखाएं उसके भविष्य के विषय में काफी कुछ कहती हैं। हाथों में मौजूद आड़ी तिरछी लाइनों की मदद से उसके भविष्य में क्या होने वाला है? इस विषय में काफी कुछ जाना जा सकता है। हस्तरेखा शास्त्र में आज हम लड़कियों के हाथों के उन चिन्हों के बारे में जानेंगे, जिनके होने से वे काफी भाग्यशाली हो जाती हैं। ये चिन्ह जिन लड़कियों के हाथों पर होता है, उन्हें जीवन में खूब तरक्की मिलती है। इन्हें आर्थिक संकट का कभी भी सामना नहीं करना पड़ता। मां लक्ष्मी की कृपा सदा इन पर बनी रहती है। इन लड़कियों को समाज में खूब मान-सम्मान और प्रतिष्ठा मिलती है। समाज में इनको खूब सारी ख्याति प्राप्त होती है।ज्योतिष विद्या कहती है कि जिन व्यक्तियों के हाथ में चक्र के निशान होते हैं। वे लोग अपने जीवन में कुछ भी हासिल कर सकते हैं। मान्यता है कि जिन लड़कियों की सभी उंगलियों के प्रथम पोर पर चक्र का निशान बना होता है। ऐसी लड़कियों को जीवन में खूब प्रसिद्धि मिलती है। इनकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। ये लड़कियां काफी बुद्धिमान होती हैं। समाज में इनकी खूब इज्जत की जाती है।हस्तरेखा शास्त्र में लड़कियों के हाथों पर मछली का निशान होना काफी शुभ माना गया है। मान्यता है कि जिन लड़कियों के हाथ पर ये निशान होता है। वे काफी भाग्यशाली होती हैं। वहीं जो लोग इन लड़कियों के साथ संबंधित होते हैं, उनके जीवन में भी इसका सकारात्मक असर पड़ता है। भगवान विष्णु का चिन्ह मछली है। अगर किसी व्यक्ति के जीवन रेखा पर मछली की आकृति बनती है, तो वह व्यक्ति काफी भाग्यशाली होता है।मां लक्ष्मी कमल के ऊपर अपना आसन ग्रहण करती हैं। ऐसी लड़कियां जिनके हाथों पर कमल का निशान बनता है। वह काफी ज्यादा भाग्यशाली मानी जाती हैं। इन लड़कियों को कभी भी आर्थिक संकटों का सामना नहीं करना पड़ता। मां लक्ष्मी की कृपा सदा इन पर बनी रहती है। जीवन रेखा, भाग्य रेखा, शनि पर्वत, गुरु पर्वत के साथ शुक्र पर्वत पर कमल की आकृति बनती है, तो ये व्यक्ति के भाग्यशाली होने का प्रतीक है।यदि किसी लड़की के हाथों में स्वास्तिक के चिन्ह का निशान है, तो वह काफी सदाचारी, सदगुणी और धार्मिक व्यक्तित्व की होती है। ऐसी लड़कियां धर्म कर्म के कार्य में ज्यादा संलग्न रहती हैं। इस क्षेत्र में इनको खूब मान सम्मान और प्रतिष्ठा मिलती है। ये लड़कियां अपने साथ-साथ दूसरों की जिंदगी में भी सकारात्मकता का संचार करती हैं।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 361
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'कुसंग' पर दिये गये प्रवचन से संबंधित श्रृंखला में आज आठवें कुसंग 'नामापराध' की चर्चा यहाँ प्रकाशित की जा रही है। 'जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' के भाग 354 से 'कुसंग' विषय पर विस्तृत चर्चा का प्रकाशन हो रहा है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित इस अमूल्य तत्वज्ञान से निश्चित ही हमें आध्यात्मिक हानि उठाने से बचाव के उपाय ज्ञात होंगे....)
★ आठवाँ कुसंग - 'नामापराध'
किसी महापुरुष या साधक का अपमान करना भी घोर कुसंग है। साधकगण बहुधा अपने आपको तथा अपने महापुरुष को ही सत्य समझते हैं, शेष साधकों एवं महापुरुषों में दुर्भावनापूर्ण निर्णय देते हैं। यह महान भूल है। इससे नामापराध हो जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप अपना महापुरुष तथा अपना इष्टदेव भी प्रसन्न न हो सकेगा; क्योंकि समस्त महापुरुष तथा भगवान परस्पर एक ही हैं। यदि किसी अन्य महापुरुष से तुम्हारी साधना के अनुकूल लाभ प्राप्त होता है तो उसे अवश्य ग्रहण करना चाहिये। किन्तु, इसमें बड़ी सावधानी की आवश्यकता है। अन्यथा कहीं यदि महापुरुष पर दुर्भावना हो गई तो 'एक पैसा कमाया एक लाख गँवाया' वाली कहावत सिद्ध हो जाएगी।
भगवान के समस्त नाम, समस्त गुण, समस्त लीला, समस्त धाम एवं उनके समस्त भक्त परस्पर एक हैं। एक के प्रति भी दुर्भाव करना सभी के प्रति दुर्भाव करना है। इनमें कोई छोटा बड़ा नहीं है। सबमें सबका निवास है और नित्य निवास है, काल्पनिक नहीं। आपके नाम में आपका निवास नहीं है किन्तु भगवान के नाम में भगवान का निवास है और जहाँ उनका निवास है वहाँ उनके जन का निवास है। जहाँ उनके जन का निवास है वहाँ भगवान स्वयं रहते हैं इसलिये सबमें एकत्व है। इसलिये इनमें छोटा बड़ा समझना ही सबसे बड़ा कुसंग माना गया है। तो इसको नामापराध कहते हैं, किसी में भी भेद-बुद्धि न होने पाये नहीं तो नामापराध हो जायेगा।
नामापराध भी तीन ही प्रकार के होते हैं - एक भगवान के प्रति, दूसरा उनके नाम, रूप, लीला, गुण व धाम के प्रति और तीसरा उनके जन के प्रति। इनमें दो चैतन्य हैं भगवान और उनके जन। बाकी चैतन्य तो हैं, लेकिन चैतन्य दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। जैसे भगवान का नाम। अब नाम की क्या शकल होती है, उसके प्रति कोई क्या अपराध करेगा? लेकिन उसके प्रति भी यह अपराध हो जाता है। जैसे कोई 'गोपाल गोपाल' भज रहा है, आप कहते हैं क्या यह 'गोपाल गोपाल' 'गोविन्द गोविन्द' भज रहा है? 'राम राम' 'श्याम श्याम' क्यों नहीं कहता? हम 'राम राम' 'श्याम श्याम' कहते हैं। वो ठीक है और ये बेवकूफ है। ये नाम के प्रति अपराध हो गया।
तुम्हारी रुचि जिस नाम में है, अपनी रुचि को बढ़ाओ, लेकिन दूसरे के नाम की बुराई न करो। जिस अवतार में तुम्हारी रुचि है उस अवतार में अपने प्यार को बढ़ाओ, लेकिन दूसरे अवतार की बुराई न करो। जिस गुरु में तुम्हारी रुचि है उसकी उपासना करो, लेकिन दूसरों की बुराई न करो। क्योंकि वे सब एक हैं। एक नाम से प्यार करो और दूसरे नाम की बुराई करो, एक गुरु से प्यार करो, फिर दूसरा गुरु, भी मान लो वह महापुरुष है, उसकी बुराई करो तो वह अपराध हो जायेगा। इसलिये अपने गुरु की उपासना करते हुये दूसरों से हमें उदासीन रहना है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2011 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - किसी काम में सफलता प्राप्त करने के लिए मेहनत और भाग्य दोनों की जरूरत होती है. लेकिन कई बार भाग्य आपका साथ नहीं देता, ऐसे में मेहनत बढ़ाकर भाग्य को अपने पक्ष में करना पड़ता है. यदि आप भी भाग्य को जगाने के लिए दिन रात कड़ी मेहनत कर रहे हैं, तो जानिए ऐसे संकेत जो भाग्योदय का इशारा देते हैं.ज्योतिष विज्ञान के अनुसार भाग्य को पिछले जन्म के कर्मों का संचय माना जाता है. किसी भी काम में सफलता के लिए मेहनत के साथ अच्छे भाग्य की भी जरूरत होती है. यदि दोनों चीजें एक साथ चलें, तो कोई भी लक्ष्य बहुत सरल और सुगम हो जाता है व जल्दी पूरा होता है, मनचाहे काम निर्विघ्न बनते चले जाते हैं.हालांकि भाग्य साथ न भी दे, तो भी निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि सही दिशा में कड़ी मेहनत करने से भी अपनी किस्मत को पक्ष में किया जा सकता है. यदि आप भी भाग्य को जगाने के लिए दिन रात कड़ी मेहनत कर रहे हैं, तो यहां जानिए कुछ ऐसे संकेतों के बारे में जो आपको बताते हैं, कि आपकी किस्मत जल्द ही चमकने वाली है और आपकी मेहनत रंग लाने वाली है.रास्ते में इन चीजों का मिलना होता है शुभयदि आप कहीं जा रहे हों और रास्ते में आपको शंख, सिक्का, स्वास्तिक चिन्ह या घोड़े की नाल मिले, तो समझिए ये शुभ संकेत है. इन्हें प्रणाम करके घर के आंगन या बगीचे में गाड़ दें या फिर पूजा के स्थान पर रखें. ये चीजें आपकी किस्मत जगा सकती हैं.गन्ने का दिखना संपन्नता का प्रतीकयदि सुबह के समय आप जब घर से निकलें तो आपको रास्ते में गन्ने का ढेर कहीं पर दिख जाए, तो खुश हो जाइए. गन्ने के ढेर को संपन्नता का प्रतीक माना जाता है. इसका मतलब है कि आपकी मेहनत रंग लाने वाली है और जल्द ही आपको धन लाभ हो सकता है.अचानक पहन लें उल्टा कपड़ाअगर आप अचानक कभी उल्टा कपड़ा पहन लें और लोग आप पर हंसने लगें, तो परेशान न हों. इस चीज पर आपको भी खुश होने की जरूरत है. अनजाने में ऐसा हो जाता शुभता का संकेत है. इसका मतलब है कि घर में मां लक्ष्मी की कृपा जल्द ही हो सकती है. हालांकि कुछ जगहों पर इसे स्वास्थ्य संबन्धी समस्याओं का इशारा भी समझा जाता है, ऐसे में सेहत को लेकर थोड़ी सावधानी बरतें.ये सपने भी देते भाग्योदय का इशाराकुछ सपने भी आपको भाग्योदय का इशारा देते हैं. यदि गहने पहनी हुई कन्या हाथ में फूल लिए नजर आए तो समझिए आपकी किस्मत जल्द ही पलटने वाली है. ऐसी कन्या को मां लक्ष्मी का रूप माना जाता है. ऐसे में सकारात्मक रवैया रखें और मेहनत को पूरी ईमानदारी से करते रहें. सफलता निश्चित तौर पर प्राप्त होगी. इसके अलावा यदि सपने में आप खुद को मल छूते हुए देखें तो ये इस बात का संकेत है कि आपके बुरे दिन जल्द ही जाने वाले हैं. आपके घर में धन की वर्षा होने की तैयारी है और आप मालामाल हो सकते हैं.
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जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 360
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'कुसंग' पर दिये गये प्रवचन से संबंधित श्रृंखला में आज छठे तथा सातवें कुसंग 'मिथ्याभिमान' और 'अन्य किसी मार्ग विषयक उपदेश' की चर्चा यहाँ प्रकाशित की जा रही है। 'जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' के भाग 354 से 'कुसंग' विषय पर विस्तृत चर्चा का प्रकाशन हो रहा है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित इस अमूल्य तत्वज्ञान से निश्चित ही हमें आध्यात्मिक हानि उठाने से बचाव के उपाय ज्ञात होंगे....)
★ छठा कुसंग - 'मिथ्याभिमान'
किसी नास्तिक को देखकर यह मिथ्याभिमान भी न करना चाहिए कि यह तो कुछ नहीं जानता, मैं तो बहुत आगे बढ़ चुका हूँ। क्योंकि बड़े से बड़े घोर नास्तिक भी कभी कभी इतना आगे बढ़ जाते हैं कि बड़े बड़े साधकों के भी कान काट लेते हैं। यह सब विशेषकर पूर्व जन्म के संस्कारों के द्वारा ही हो जाता है। तुम किसी के संस्कारों को क्या जानो। अतएव सभी जीव गुप्त या प्रकट रूप से भगवत्कृपा पात्र हैं, ऐसा समझकर किसी को भी घृणा की दृष्टि से नहीं देखना चाहिये, किन्तु इतना अवश्य है कि संग उन्हीं का करना चाहिये जिनके द्वारा हमारी साधना में वॄद्धि हो।
★ सातवाँ कुसंग - 'अन्य किसी मार्ग विषयक उपदेश'
अपने गुरु के बताये हुये मार्ग के सिवा अन्य किसी मार्ग विषयक उपदेश सुनना, पढ़ना आदि भी कुसंग है, भले ही वह मार्ग महापुरुष निर्दिष्ट ही क्यों न हो। कारण ये है कि साधक विविध प्रकार के मार्गों को सुनकर कभी इधर जाएगा कभी उधर जाएगा। परिणामस्वरूप 'इतो भ्रष्टोस्ततो भ्रष्ट:' के अनुसार न इधर का रहेगा न उधर का रहेगा।
मान लो, तुम भक्तिमार्ग की साधना कर रहे हो, कोई ज्ञानमार्गीय महापुरुष ज्ञानमार्ग का उपदेश कर रहा है। तुम उसे सुनोगे तथा सोचने लग जाओगे कि अरे! यह तो कुछ और ही कहता है। बस, दिमाग में कूड़ा भरने लग जायेगा। तुम्हारी लघु बुद्धि की यह सामर्थ्य नहीं है कि वास्तविक तत्त्व पर पहुँच सके।
इसी प्रकार अपने मार्ग में भी उपासना के अनेकानेक ढंग हैं, जो कि साधक की रुचि एवं विश्वास पर निर्भर रहते हैं। तुम दूसरी साधना को सुनकर सोचोगे कि अरे! यह बड़ी अच्छी साधना होगी, क्योंकि मेरी साधना से तो अभी तक भगवत्प्राप्ति नहीं हुई। कदाचित उस साधना के प्रति यह दुर्भाव पैदा हो गया कि उसकी साधना सही नहीं है, तब तो और भी अपराध कमा बैठोगे। अतएव अपने गुरु के ही बताये मार्ग का निरंतर चिन्तन, मनन एवं परिपालन करना चाहिए तथा अन्य मार्गावलम्बी साधकों अथवा अपने मार्ग के अन्यान्य प्रणाली युक्त साधकों की साधना पर दुर्भाव न करना चाहिये। यह समझ लेना चाहिये कि सभी की साधनायें ठीक हैं। जिसके लिये जो अनुकूल है, वह वही करता है। हमें इस उधेड़बुन से क्या मतलब।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2011 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - अच्छा करियर सभी की चाहत होती है. समय के साथ कई नए-नए करियर एवेन्यू सामने आ रहे हैं, जिनमें लोग शानदार करियर भी बना रहे हैं. वहीं कुछ क्षेत्रों में नौकरियां घटती जा रही हैं, लेकिन सरकारी नौकरी में मिलने वाली सुविधाओं और जॉब सिक्योरिटी के कारण इसकी डिमांड हमेशा रहती है. हालांकि सभी का ये सपना पूरा नहीं हो पाता है, जिसके पीछे कई कारण होते हैं. इसमें एक कारण व्यक्ति की किस्मत भी होती है या यूं कह सकते हैं कि कुंडली के ग्रह या हाथ की रेखाएं होती हैं. आज हम हस्तरेखा शास्त्र से जानते हैं कि कौनसी रेखाएं या स्थितियां सरकारी नौकरी मिलने का संकेत देती हैं.ऐसी हो हथेली, तो मिलती है सरकारी नौकरी- यदि हथेली में गुरु पर्वत अच्छी तरह विकसित हो और इस पर कोई सीधी रेखा भी हो तो ऐसे लोगों को गर्वनमेंट जॉब मिलने के लिए अच्छे योग होते हैं.- यदि सूर्य पर्वत अच्छे से उभरा हुआ हो और उससे सीधी रेखा निकले तो ऐसे जातकों को सरकारी जॉब मिलने के प्रबल योग होते हैं.- जातक की हथेली में भाग्य रेखा से निकलकर कोई रेखा गुरु पर्वत की ओर जाए तो यह बहुत शुभ होता है. ऐसा व्यक्ति न केवल सरकारी नौकरी पाता है, बल्कि वह बड़े पद पर पहुंचता है. उसे जिंदगी में बहुत मान-सम्मान मिलता है.- भाग्य रेखा से निकलकर कोई रेखा सूर्य पर्वत पर जाए ऐसा जातक भी बहुत भाग्यशाली होता है. इन लोगों को भी बड़े ओहदे वाली गवर्नमेंट जॉब मिलती है.
- सावन का महीना शिव जी भक्ति के लिहाज से तो बहुत खास होता ही है, साथ ही यह महीना नए जीवन की शुरुआत का महीना भी माना जाता है. इस समय में पौधे लगाने से पुण्य तो मिलता ही है, साथ ही पर्यावरण को भी फायदा पहुंचता है. आज हम जानते हैं कि इस महीने में कौन से पौधे (Plants) लगाने से सबसे ज्यादा लाभ होता है.तुलसी का पौधा: हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे को बहुत महत्वपूर्ण और शुभ बताया गया है. इस धर्म के अधिकांश अनुयायियों के घर में तुलसी का पौधा होता है. यदि आपके घर में पौधा नहीं है या आप एक और पौधा लगाना चाहते हैं तो इसके लिए सावन का महीना सबसे शुभ है. इस पौधे के नीचे रोजाना दीपक लगाने से घर में सुख-समृद्धि आती है और परिवार निरोगी रहता है.अनार का पौधा: सावन महीने में अनार का पौधा लगाना भी बहुत शुभ होता है, लेकिन ख्याल रखें कि इसे रात के समय में लगाएं. इसे घर के सामने लगाने से घर की नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है.केले का पौधा: सावन महीने की एकादशी या गुरुवार के दिन केले का पेड़ लगा सकते हैं. केले का पेड़ वास्तु के लिहाज से घर में लगाना शुभ नहीं होता है लेकिन इसे घर के पीछे या छत के पीछे लगाने से कोई नुकसान नहीं है. पेड़ लगाने के बाद उसमें रोजाना जल चढ़ाएं, इससे मैरिड लाइफ की समस्याएं दूर होंगी. साथ ही कुंडली में गुरु ग्रह मजबूत होगा.गूलर का पौधा: गूलर को ज्योतिष में चमत्कारी पेड़ बताया गया है. सावन महीने में गूलर का पौधा लगाने से जिंदगी में सुख-शांति आएगी.शमी का पौधा: सावन महीने के शनिवार को घर के मेन गेट के बायीं ओर शमी का पौधा लगाएं. इससे शनि दोष से राहत मिलेगी और कई समस्याएं दूर होंगी.पीपल का पौधा: सावन महीने के गुरुवार को पीपल का पौधा लगाने से घर में खुशहाली आएगी. लेकिन यह पौधा अपने घर में गलती से भी न लगाए़ं, बल्कि पार्क में, मंदिर के पास, सड़क के किनारे लगाएं.
- भारत में रहस्यमय और प्राचीन मंदिरों की कोई कमी नहीं है। देश के कोने-कोने में कई मशहूर मंदिर आपको देखने को मिल जाएंगे। इनमें से कई मंदिरों को लोग चमत्कारी और रहस्यमय भी मानते हैं। आज हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे अगर रहस्यमय कहें तो गलत नहीं होगा। क्योंकि कहा जाता है कि इस मंदिर में लगे पत्थरों को थमथपाने पर डमरू जैसी आवाज आती है। असल में यह एक शिव मंदिर है, जिसके बारे में दावा ये भी किया जाता है कि यह एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है। दक्षिण द्रविड़ शैली में निर्मित इस मंदिर को बनने में करीब 39 साल लगे।यह मंदिर देवभूमि के नाम से मशहूर हिमाचल प्रदेश के सोलन में स्थित है, जिसे जटोली शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है। दक्षिण-द्रविड़ शैली में बने इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 111 फुट है।इस मंदिर को लेकर ये मान्यता है कि पौराणिक काल में भगवान शिव यहां आए थे और कुछ समय के लिए रहे थे। बाद में 1950 के दशक में स्वामी कृष्णानंद परमहंस नाम के एक बाबा यहां आए, जिनके मार्गदर्शन और दिशा-निर्देश पर ही जटोली शिव मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ। साल 1974 में उन्होंने ही इस मंदिर की नींव रखी थी। हालांकि, साल 1983 में उन्होंने समाधि ले ली, लेकिन मंदिर का निर्माण कार्य रूका नहीं बल्कि इसका कार्य मंदिर प्रबंधन कमेटी देखने लगी। करोड़ों रुपये की लागत से बने इस मंदिर की सबसे खास बात ये है कि इसका निर्माण देश-विदेश के श्रद्धालुओं द्वारा दिए गए दान के पैसों से हुआ है। यही वजह है कि इसे बनने में तीन दशक से भी ज्यादा का समय लगा। इस मंदिर में हर तरफ विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं, जबकि मंदिर के अंदर स्फटिक मणि शिवलिंग स्थापित है। इसके अलावा यहां भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं। वहीं, मंदिर के ऊपरी छोर पर 11 फुट ऊंचा एक विशाल सोने का कलश भी स्थापित है, जो इसे बेहद ही खास बना देता है। मंदिर का गुंबद 111 फीट ऊंचा है जिसके कारण इसे एशिया का सबसे ऊंचा मंदिर माना जाता है।मान्यता है कि भगवान शिव ने एक रात यहां पर विश्राम किया था। कहा जाता है कि यहां पर पानी की समस्या थीं। इसे देखते हुपए स्वामी कृष्णानंद परमहंस ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की और त्रिशूल के प्रहार से जमीन में से पानी निकाला। तब से लेकर आज तक जटोली में पानी की समस्या नहीं है। इस पानी को लोग चमत्कारिक मानते हैं। उनका मानना है कि इस पानी से किसी भी बीमारी को ठीक किया जा सकता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 359
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'कुसंग' पर दिये गये प्रवचन से संबंधित श्रृंखला में आज पाँचवें कुसंग 'अनधिकारी से साधनादि की अन्तरंग चर्चा' की चर्चा यहाँ प्रकाशित की जा रही है। 'जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' के भाग 354 से 'कुसंग' विषय पर विस्तृत चर्चा का प्रकाशन हो रहा है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित इस अमूल्य तत्वज्ञान से निश्चित ही हमें आध्यात्मिक हानि उठाने से बचाव के उपाय ज्ञात होंगे....)
★ पाँचवाँ कुसंग - अनधिकारी से साधनादि की अन्तरंग चर्चा
अश्रद्धालु एवं अनधिकारी से अपने मार्ग अथवा साधनादि के विषय में वाद विवाद करना भी कुसंग है, क्योंकि जब अनधिकारी को सर्वसमर्थ महापुरुष भी आसानी के साथ बोध नहीं करा पाता, तब वह साधक भला किस खेत की मूली है। यदि कोई परहित की भावना से भी समझाना चाहता है, तब भी उसे ऐसा नहीं करना चाहिये क्योंकि अश्रद्धालु होने के कारण उसका विपरीत ही परिणाम होता है, साथ ही उस अश्रद्धालु के न मानने पर साधक का चित्त अशांत हो जाता है।
शास्त्रानुसार भी भक्ति मार्ग को लेकर वाद-विवाद करना घोर पाप है। भरत जी कहते हैं;
भक्त्या विवदमानेषु मार्गमाश्रित्य पश्यतः।तेन पापेन युज्येत यस्यार्योनु रमते गताः।।(वाल्मीकि रामायण)
अर्थात भक्तिमार्ग को लेकर वाद-विवाद सरीखा महान पाप मुझे लग जाय यदि राम के वन जाने के विषय में मेरी राय रही हो। अतएव न तो वाद-विवाद सुनना चाहिये, न तो स्वयं ही करना चाहिये। यदि अनधिकारी जीव इन विषयों को नहीं समझता तो इसमें आश्चर्य या दुःख भी नहीं होना चाहिये, क्योंकि कभी तुम भी तो नहीं समझते थे। यह तो परम सौभाग्य महापुरुष एवं भगवान की कृपा से प्राप्त होता है कि जीव भगवद विषय को समझकर उसकी ओर उन्मुख हो।
अनधिकारी को भगवद विषयक कोई अन्तरंग रहस्य भी न बताना चाहिये क्योंकि वर्तमान अवस्था में अनुभवहीन होने के कारण अनधिकारी उन अचिन्त्य विषयों को नहीं समझ सकता, उलटे अपराध कमाकर अपनी रही सही आस्तिकता को भी खो बैठेगा। साथ ही अन्तरंग रहस्य बताने वाले साधक को भी अशान्त करेगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2011 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हस्तरेखा विज्ञान प्राचीनतम ज्योतिष विधाओं में से एक है। ज्योतिष विद्या का मानना है कि व्यक्ति की हस्तरेखाएं उसके भाग्य को बताती हैं। अमूमन हाथ पर बनी ये रेखाएं शाश्वत नहीं होती। ये समय के साथ-साथ बदलती रहती हैं। कई बार हाथों की लकीरों में ऐसे शुभ योग बनते हैं, जिसके चलते व्यक्ति को कारोबार के क्षेत्र में खूब सारा लाभ होता है। उसके घर में मां लक्ष्मी की कृपा बरसने लगती है। घर के भीतर बड़े पैमाने पर धन संपत्ति का आगमन होता है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक ऐसे योग को काफी शुभ माना गया है। इस तरह के योग के चलते व्यक्ति जीवन में खूब तरक्की करता है। मां लक्ष्मी की कृपा इन लोगों के ऊपर सदा बनी रहती है और उनका दांपत्य जीवन भी काफी खुशहाल रहता है। इस कड़ी में आज हम हस्तरेखाओं में बने ऐसे खास योग के बारे में जानेंगे, जो व्यक्ति को जिंदगी में खूब कामयाबी दिलाते हैं।लक्ष्मी योगयदि हस्तरेखाओं में बुध, गुरु, शुक्र और चंद्रमा पर्वत अच्छी तरह से लालिमा लिए हुए विकसित हो गए हैं, तो ये लक्ष्मी योग कहलाता है। इसे काफी शुभ योग माना गया है, जिस व्यक्ति की हस्त रेखाओं में ये योग बनता है। वह जो भी काम करता है, उसमें उसे जरूर सफलता मिलती है। ऐसे लोगों की जिंदगी काफी खुशहाल होती है। इन लोगों को जीवन में खूब सारा आर्थिक लाभ होता है।गजलक्ष्मी योगयदि आपके हाथों की भाग्य रेखा मणिबंध से शुरू होकर शनि पर्वत तक जाती है। वहीं सूर्य रेखा बिना किसी कट-पिट के एकदम स्पष्ट दिखती हो और सूर्य पर्वत लालिमा लिए विकसित हो रखा है तो इस योग को गजलक्ष्मी योग कहा जाता है। इस योग को भी काफी शुभ माना गया है। ऐसा योग जिस किसी भी इंसान के हाथों पर होता है उसे दिन दोगुनी और रात चौगुनी तरक्की मिलती है। ये लोग व्यापार के क्षेत्र में खूब सारा लाभ अर्जित करते हैं। ऐसे लोगों का व्यक्तित्व काफी आकर्षक होता है।शुभ कर्तरी योगअगर आपकी हथेली का बीच का हिस्सा दबा हुआ है और सूर्य और गुरु पर्वत अच्छी तरह से विकसित हो गए हैं। वहीं भाग्य रेखा शनि पर्वत तक जाए तो ऐसे में शुभ कर्तरी योग बनता है। शुभ कर्तरी योग जिस किसी भी इंसान की हस्त रेखाओं में होता है। वह जीवन में खूब सारा धन अर्जित करता है। मां लक्ष्मी की कृपा ऐसे इंसानों के ऊपर सदा बनी रहती है।भाग्य योगयदि दोनों हाथों में भाग्य रेखा लंबी और स्पष्ट है तथा चंद्र पर्वत या फिर गुरु पर्वत से शुरू होती है, तो ऐसे में भाग्य योग बनता है। यह योग जिस व्यक्ति के हाथ में होता है, उसे जीवन में आपार सफलता मिलती है। कारोबार के क्षेत्र में वह खूब सारा लाभ अर्जित करता है। इसके अलावा ऐसे व्यक्ति का दांपत्य जीवन भी खुश रहता है।
- अगस्त का महीना कैलेंडर का आठवां महीना होता है। इस महीने उत्तर भारत में झमाझम बारिश का नजारा देखने को मिलता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जिन जातकों का जन्म अगस्त माह में होता है उन जातकों के स्वभाव में कुछ विशेष ग्रहों का प्रभाव देखने को मिलता है। अगस्त माह में जन्मे जातकों के ऊपर सूर्य ग्रह का प्रभाव देखने को मिलता है। इनकी राशि सिंह होती है। इस मास में जन्मे जातकों के प्रत्येक कार्य में लीडरशिप दिखाई देती है। मिथुन और कन्या राशि के जातक इनके अच्छे मित्र होते हैं। अगस्त माह में जन्मे लोगों को प्रशासनिक नौकरी में जल्दी सफलता मिल जाती है। किसी भी बात को अपनी तरफ घुमाना इन्हें बहुत अच्छे से आता है। इनकी चतुराई इनकी वाणी से साफ देखी जा सकती है। आइए जानते हैं अगस्त माह में जन्म लेने वाले जातकों में और क्या-क्या विशेषताएं देखने को मिलती हैं-अगस्त माह में जन्म लेने वाले जातक स्वभाव से कंजूस होते हैं। इनका यही स्वभाव इन्हें धनी बनाता है। इस माह में जन्म लेने वाले बुद्धिमान होते हैं। अपने बुद्धि के बल पर ही आप समाज में अपना एक अलग ही प्रभाव छोड़ते हैं। समाज की भलाई के कामों में आपकी खूब सक्रियता देखने को मिलती है। हालांकि भलाई का कामों में आपका स्वार्थ छिपा होता है।आप अधिक लोगों से मित्रता करने में यकीं नहीं करते हैं। आपके चुनिंदा दोस्त होते हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आप में गजब की प्रतिभा छिपी हुई होती है। आप कला, साहित्य और विभिन्न रचनात्मक विधाओं में आप अपनी अलग पहचान बनाते हैं। आपके भीतर सौन्दर्य बोध कमाल का है। आप अपनी मर्जी के मालिक हैं। आप स्पष्टवादी होते हैं। कई बार आपकी यह आदत आपको मुसीबत में डाल देती है।आर्थिक मामलों में आप बेहद संजीदा होते हैं। आपका अर्थ प्रधान नजरिया है। आप अपनी कौड़ी-कौड़ी का भी हिसाब रखते हैं। जहां तक प्यार का मामला है तो आप रिश्ते को बहुत ज्यादा अहमियत नहीं देते हैं। कभी कभार तो रिश्ते से ज्यादा पैसा आपके लिए प्रिय हो जाता है।अगर इनके लकी नंबर की बात करें तो 2 ,5 और 9 नंबर इनके लिए भाग्यभाली माना जाता है। वहीं स्लेटी, गोल्डन और रेड रंग इनके लिए लकी माना जाता है। वहीं रविवार और शुक्रवार इनके लिए शुभ दिन माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार स्वास्थ्य के लिए माणिक, भाग्योदय के लिए मूंगा और यदि चर्म रोग या गुप्त रोग परेशान कर रहे हों तो पुखराज धारण करना चाहिए।
- जिन घरों में वास्तु से संबंधित किसी भी प्रकार का दोष होता है वहां पर बीमारियां, परेशानियां, धनहानि, मनमुटाव और विवाद अक्सर पीछा करते हैं। इसके अलावा ये भी देखा जाता है कि कई बार दिन-रात व्यक्ति मेहनत करता है लेकिन वह वैसी सफलता नहीं प्राप्त करता जैसी उसको अपेक्षा रहती है। वास्तु शास्त्र के कुछ आसान उपाय से आप अपनी जिंदगी को संवार सकते हैं। वास्तु के उपाय घर, ऑफिस या फिर व्यापारिक अनुष्ठान आदि में वास्तु दोष को दूर करने में कारगर होते हैं। आज हम आपको ऐसे दस वास्तु शास्त्र के उपाय बताएंगे जो आपकी जिंदगी में खुशियों के रंग घोल सकते हैं। ये उपाय इस प्रकार हैं।सुबह घर की सफाई के उपरांत हल्दी को जल में घोलकर एक पान के पत्ते की सहायता से अपने सम्पूर्ण घर में छिडकाव करें, इससे घर में लक्ष्मी का वास तथा शांति भी बनी रहती है। इसी प्रकार घर में सफाई करने के उपरांत गंगाजल के छिड़काव से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं और वास्तुदोष दूर भागता है।गलत दिशा में रखी गईं धार्मिक पुस्तकें वास्तु दोष का कारण बनती हैं। वास्तु के अनुसार धार्मिक पुस्तकों और ग्रंथों को हमेशा पश्चिम की तरफ ही रखना चाहिए। किसी दूसरी दिशा में, बेड के अंदर अथवा गद्दे या तकिये के नीचे धार्मिक पुस्तकें रखना शुभ नहीं होता।अपने घर के मन्दिर में घी का एक दीपक नियमित जलाएं तथा घंटी भी बजाना चाहिए जिससे सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा घर से बहार निकलती है। इसी तरह घर में शंख रखने और बजाने से घर का वास्तु दोष दूर होता है। घर के पूजा-स्थल में देवी-देवताओं पर चढ़ाए गए पुष्प-हार दूसरे दिन हटा देने चाहिए और भगवान को नए पुष्प-हार अर्पित करने चाहिए। इसी प्रकार पूजा घर में देवताओं के चित्र भूलकर भी आमने-सामने नहीं रखने चाहिए इससे बड़ा दोष उत्पन्न होता है।घर में सफाई हेतु रखी झाडू को दरवाजे के पास नहीं रखें यदि। यदि झाडू के बार-बार पैर लगता है, तो यह धन-नाश का कारण होता है। झाडू के ऊपर कोई वजनदार वस्तु भी नहीं रखें।अपने घर में दीवारों पर सुन्दर, हरियाली से युक्त और मन को प्रसन्न करने वाले चित्र लगाएं। इससे घर के मुखिया को होने वाली मानसिक परेशानियों से निजात मिलती है।वास्तुदोष के कारण यदि घर में किसी सदस्य को रात में नींद नहीं आती या स्वभाव चिडचिडा रहता हो, तो उसे दक्षिण दिशा की तरफ सिर करके शयन कराएं। इससे उसके स्वभाव में बदलाव होगा और अनिद्रा की स्थिति में भी सुधार होगा।घर के उत्तर-पूर्व में कभी भी कचरा इकट्ठा न होने दें और न ही इधर भारी सामान और मशीनरी रखें। अपने वंश की उन्नति के लिये घर के मुख्यद्वार पर अशोक के वृक्ष दोनों तरफ लगाएं।अपने घर में ईशान कोण अथवा ब्रह्मस्थल में स्फटिक श्रीयंत्र की शुभ मुहूर्त में स्थापना करें। यह यन्त्र लक्ष्मी प्रदायक भी होता ही है, साथ ही साथ घर में स्थित वास्तुदोषों का भी निवारण करता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 358
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'कुसंग' पर दिये गये प्रवचन से संबंधित श्रृंखला में आज चौथे कुसंग 'अनेकानेक शास्त्रों-धर्मग्रन्थों का पढ़ना' की चर्चा यहाँ प्रकाशित की जा रही है। 'जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' के भाग 354 से 'कुसंग' विषय पर विस्तृत चर्चा का प्रकाशन हो रहा है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित इस अमूल्य तत्वज्ञान से निश्चित ही हमें आध्यात्मिक हानि उठाने से बचाव के उपाय ज्ञात होंगे....)
★ चौथा कुसंग - अनेकानेक शास्त्रों-धर्मग्रन्थों का पढ़ना
...अनेकानेक शास्त्रों, वेदों, पुराणों एवं अन्यान्य धर्मग्रन्थों को पढ़ना कुसंग है। चौंको मत, बात समझो। कारण यह है कि वे महापुरुष के प्रणीत ग्रन्थ हैं, अतएव उन्हें हम भगवत्प्रणीत ग्रन्थ भी कह सकते हैं। उनका वास्तविक तत्त्व अनुभवी महापुरुष ही जानते हैं। तुम उन्हें पढ़कर अनेकानेक प्रश्न पैदा कर बैठोगे, जिनका कि समाधान अनुभव के बिना संभव नहीं।
यदि किसी मात्रा में संभव भी है तो वह एकमात्र महापुरुष के द्वारा ही। अतएव हमारे यहाँ के प्रत्येक शास्त्रादि स्वयं प्रमाण देते हैं कि महापुरुष के द्वारा ही शास्त्रों का तत्त्वज्ञान हो सकता है;
तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्वदर्शिनः।।(गीता 4-34)
यदि तुम शास्त्रों, वेदों को पढ़कर स्वयं ही तत्त्वनिर्णय करना चाहो तो सर्वप्रथम इस विषय में महापुरुष का ही निर्णय पढ़ लो। तुलसीदास के शब्दों में;
श्रुति पुराण बहु कहेउ उपाई।छूटै न अधिक अधिक उरझाई।।
अर्थात यदि महापुरुष के बिना ही, अपने आप शास्त्रीय भगवद-विषयों का तत्त्वनिर्णय करने चलोगे तो सुलझने के बजाय उलझते जाओगे। सारांश यह है कि एक प्रश्न के समाधान के लिये तुम शास्त्रों में अपनी बुद्धि को लेकर उत्तर ढूँढने जाओगे, तो शास्त्रों का वास्तविक रहस्य न समझकर सैकड़ों प्रश्न उत्पन्न करके लौटोगे क्योंकि पुनः तुलसीदास ही के शब्दों में;
मुनि बहु, मत बहु, पंथ पुराननि, जहाँ तहाँ झगरो सो।(विनय पत्रिका)
अर्थात अनेक ऋषि मुनि हो चुके हैं एवं उनके द्वारा प्रणीत अनेक मत भी बन चुके हैं। पुराणादिक में इस विषय में झगड़े ही झगड़े हैं। फिर तुम्हारी बुद्धि भी मायिक है अतएव तुम मायिक अर्थ ही निकालोगे।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2011 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण होता है, अगर आपकी सेहत दुरुस्त है तो आप अपने हर सपने के साकार कर सकते हैं। वहीं यदि आपकी सेहत ठीक नहीं है तो आपको कदम कदम पर मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। वास्तु शास्त्र में कई ऐसे आसान उपाय बताए गए हैं जिनकी मदद से आप अपनी सेहत को बेहतर बना सकते हैं। कईबार हमारी छोटी-छोटी गलतियों के कारण घर में वास्तु दोष पैदा होता है जिसका नकारात्मक असर हमारी सेहत पर पड़ता है। जिस घर में लोग बार-बार बीमार होते हैं उन्हें अपने घर का वास्तु दोष अवश्य ही देखना चाहिए। बीमारी के कारण हमारी सेहत तो बिगड़ती ही है। साथ ही इसमें पैसा और समय दोनों खर्च होते हैं। इससे आर्थिक और मानसिक परेशानी भी उठानी पड़ती है।वास्तु के अनुसार अपने बेडरूम में कभी भी पुरानी और बेकार वस्तुओं को इकठ्ठा न करें, क्योंकि इससे आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा। जिसके कारण वायरस या बैक्टीरिया से होने वाली बीमारियां जन्म लेंगी, जो आपके लिए ठीक नही हैं।बेडरूम पूरी तरह से बंद नहीं होना चाहिए। बेडरूम में पलंग के सामने दर्पण नहीं होना चाहिए। ऐसा होने से व्यक्ति की सेहत खराब रह सकती है। मानसिक परेशानियों को दूर रखने के लिए बीम के नीचे कभी नहीं सोना चाहिए एवं शयन कक्ष में भगवान की तस्वीर न लगाएं।घर के मुख्य दरवाजे के सामने कोई गड्ढा या कीचड़ है तो इससे परिजनों को मानसिक रोग या तनाव घेरे रहता है। उस गड्ढे को मिट्टी से भर दें। ध्यान रखें कि घर के मुख्य दरवाजे के सामने गंदगी न रहे।आप जब भी भोजन करने बैठें तो इस बात का ध्यान रखें कि आपका मुख पूर्व या उत्तर दिशा में हो। इससे पाचन अच्छा होगा जिस कारण आपकी सेहत अच्छी रहेगी।अगर घर के सामने कोई बड़ा पेड़ या खंभा है, और जिसकी छाया घर पर पड़ती हो तो इस वास्तु दोष को दूर करने के लिए घर के मेन गेट के दोनों तरफ स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं।
- स्वप्न शास्त्र में हर सपने से मिलने वाले शुभ-अशुभ संकेत के बारे में बताया गया है. इसमें अलग-अलग तरह के घर देखना भी शामिल है. वैसे तो हर व्यक्ति अपने घर को लेकर खुली आंखों से कई सपने सजाता है लेकिन यदि घर सपने में दिखें तो उसके कई खास मतलब निकलते हैं.घर बनते देखना- स्वप्न शास्त्र के अनुसार सपने में घर बनते देखना बहुत शुभ होता है. इसका मतलब है कि आपको कोई अच्छा समाचार मिलने वाला है या आपको सम्मान-प्रसिद्धी मिलने वाली है. यह धन-लाभ का भी संकेत है.बचपन का घर देखनायदि सपने में पैतृक घर या वो घर दिखे जिसमें आप बचपन में रहे हैं तो इसका मतलब है कि आपके दांपत्य जीवन में खुशियां आने वाली हैं.मिट्टी का घर देखनाऐसा सपना देखना अशुभ होता है और कुछ बुरा होने का संकेत देता है. लिहाजा हर काम सोच-समझकर करना चाहिए.कुटिया देखनासपने में कुटिया देखना शुभ होता है. यह जिंदगी में सुख आने का इशारा है.बड़ी बिल्डिंग देखनाऐसा सपना देखना जिंदगी में संपन्नता आने का संकेत है. यदि बिल्डिंग के सामने हरा-भरा लॉन भी दिखे तो यह बहुत ही शुभ होता है. लेकिन ढेर सारी बिल्डिंग दिखें तो मतलब है कि आपकी महत्वाकांक्षाएं ऐसी हैं, जो शायद पूरी न हो सकें.बड़ा दरवाजा खुलते देखनाऐसा सपना बताता है कि आपको कोई अचंभित करने वाली सफलता मिल सकती है, जिसके बारे में आपने कभी सोचा भी न हो.
- हर प्रकार की पूजा में दीपक जलाना अनिवार्य माना जाता है। घरों में भी रोजाना भगवान के सामने. तुलसी चौरा और द्वार पर एक दीपक जलाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। दीया मिट्टी या फिर धातु का होता है। आइये जानते हैं कि कैसे दीया जलाना शुभ होता है और इस दौरान किन बातों का ख्याल रखना चाहिए।दीपक पूजा में जलाते समय ध्यान रखने योग्य कुछ आवश्यक बातें*1* पूजा करते वक्त दीपक का बुझना अशुभ माना गया है ऐसा होने पर पूजा का पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता, इसलिए दीप जलाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि वह लंबे समय तक चलता रहे और बीच में ना बुझे। दीप में घी या तेल की मात्रा अच्छी तरह से डालें जिससे वह ज्यादा समय तक जलता रहे क्योंकि दीपक का जलना शुभ माना गया है परंतु यदि किसी कारणवश दीपक बीच पूजा में बुझ जाता है तो आप ईश्वर से अपनी गलतियों को माफ करने की क्षमा याचना करते हुए दीपक फिर से प्रज्ज्वलित कर लें।2* दीपक को जलाने से पहले अच्छी तरह से उसे जांच लें कि वह कहीं से टूटा और गंदा तो नहीं है क्योंकि पूजा में खंडित दीपक का प्रयोग नहीं करना चाहिए,सभी जानते हैं कि धार्मिक कार्यों में खंडित सामग्री अशुभ मानी जाती है।3* दीपक की लौ पूर्व दिशा की तरफ़ रखने से आयु में वृद्धि होती है।4* दीपक की लौ पश्चिम दिशा की तरफ़ रखने से दुख में बढ़ोतरी होती है।5* दीपक की लौ उत्तर दिशा की तरफ़ रखने से धन में बढ़ोतरी होती है।6* दीपक की लौ को कभी भी दक्षिण दिशा की तरफ़ ना रखें इससे जन या धन की हानि होती है।7* पूजा में दीपक जलाने के लिए केवल घी या तेल का ही प्रयोग करें ध्यान रखें कि घी का दीपक जलाने के तुरंत बाद तेल का दीपक ना जलाएं।8* घी का दीपक मनोकामना पूर्ण करने के लिए और सुख समृद्धि प्राप्त हो इसलिए जलाया जाता है और तेल का दीपक कष्ट और समस्या को दूर करने के लिए जलाया जाता है। ध्यान रखें दीपक जलाने के लिए घी में तेल को कभी नहीं मिलाना चाहिए।9* शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या से परेशान व्यक्ति शनि मन्दिर में शनि स्त्रोत का पाठ करें और तिल के तेल का दीपक जलायें।10* मां लक्ष्मी की अपार कृपा प्राप्त करने के लिए सप्त-मुखी तिल के तेल का दीपक जलायें और शाम के समय घर की चौखट पर दीपक लगाना चाहिए।11* शत्रु से छुटकारा पाने के लिए और अनजाने भय से मुक्त होने के लिए प्रतिदिन हनुमानाष्टक का पाठ करें और लाल रंग की बाती का दीपक हनुमान जी के सामने प्रज्वलित करें। हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए तिल के तेल का आठ बत्तियों वाला दीपक जलाना चाहिए.12* भगवान गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए तीन बत्तियों वाला घी का दीपक जलाना चाहिए इससे आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाएंगी।13* भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के सामने घी का दीपक जलाने से कर्ज संबंधी और धन संबंधी सारी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं।14* प्रतिदिन घर में दीपक जलाने से वास्तुदोष समाप्त होते हैं और घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव होता है परिवार के सभी सदस्यों में ऊर्जा बनी रहती है और वह प्रसन्न चित्त रहते हैं।15* यदि आप अपने व्यवसाय में लाभ, वेतन में वृद्धि आदि धन लाभ की मनोकामना के लिये दीपक की लौ उत्तर दिशा रखनी चाहिए।
- ज्योतिष में गोमती चक्र का बहुत महत्व है। इसके अतिरिक्त तांत्रिक विद्या में भी इसका बहुत प्रयोग किया जाता है। लगभग हर प्रमुख हिन्दू त्यौहार पर गोमती चक्र का उपयोग किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि गोमती चक्र माता लक्ष्मी को रोकने के लिए उपयोग में लाया जाता है। अर्थात अगर किसी का खर्च बहुत अधिक हो अथवा ऋण में डूबा हो तो गोमती चक्र को पास में रखने का विशेष प्रावधान है। इससे लक्ष्मी हमेशा प्रसन्न रहेंगी। लक्ष्मी पूजा, विशेषकर दीपावली में गोमती चक्र का बड़ा महत्व माना जाता है। इसके अतिरिक्त भी गोमती चक्र के कई ज्योतिष उपयोग हैं। गोमती चक्र को माला अथवा अंगूठी के रूप में पहना जाता है।हिन्दू धर्म में गोमती नदी का बड़ा महत्व है। हमारी पांच सबसे पवित्र नदियों में से एक गोमती भी है। मान्यता है कि गोमती महर्षि वशिष्ठ की पुत्री थी जो बाद में नदी के रूप में परिणत हो गयी। इसी पवित्र नदी के अंदर एक विशेष पत्थर पाया जाता है जिसे हम गोमती चक्र के नाम से जानते हैं। ये पत्थर उतना कीमती तो नहीं होता किन्तु बहुत दुर्लभ होता है। ये कैल्शियम का पत्थर होता है जिसमे चक्र का निशान होता है जो इसके नाम का मुख्य कारण है। विशेष रूप से ज्योतिष शास्त्र में इसे बहुत पवित्र माना जाता है। मुख्य रूप से गोमती चक्र श्रीहरि और श्रीकृष्ण से जुड़ा हुआ है।पुराणों में भी गोमती चक्र की उत्पत्ति की कथा दी गयी है। इसे हिन्दू धर्म में वर्णित 84 रत्नों से एक माना गया है। ये कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है। समुद्र मंथन के विषय में हम सभी जानते हैं किन्तु आम मान्यता ये है कि समुद्र मंथन से कुल 14 रत्नों की प्राप्ति हुई थी किन्तु पुराणों में वर्णित है कि समुद्र मंथन से इन 14 "मुख्य" रत्नों के अतिरिक्त 70 और रत्न निकले थे। इस प्रकार उस समुद्र मंथन से कुल 84 रत्नों की प्राप्ति हुई थी किन्तु मुख्य रत्नों में केवल 14 की गिनती होती है।गोमती चक्र भी उन्हीं 84 रथों में से एक माना जाता है। ऐसी कथा है कि जब समुद्र मंथन से 14 रत्नों की प्राप्ति हो गयी तब उसके समापन की बात उठी। किन्तु देवों और दैत्यों ने ये सोचकर कि अभी उन्हें और रत्नों की प्राप्ति होगी, समुद्र मंथन जारी रखा। किन्तु दोनों पक्ष बहुत श्रमित थे और अब मंदराचल पर्वत और वासुकि नाग को संभाल कर रखना उनके लिए अत्यंत कठिन हो गया। धरती माता भी मंदराचल के घर्षण और गर्जन से तप्त हो गयी। तब उन्होंने एक गाय का रूप लिया और भगवान विष्णु के पास पहुंची और उन्होंने अपनी व्यथा उन्हें बताई। तब श्रीहरि ने अपने सुदर्शन चक्र को समुद्र पर चलाया जिससे एक महान चक्रवात उत्पन्न हुआ। वो चक्रवात इतना भयानक था कि उसके वेग से सम्पूर्ण मंदराचल पर्वत वासुकि नाग सहित समुद्र के ऊपर आ गया। इसके बाद उस महान आयुध सुदर्शन चक्र की शक्ति से मंदराचल स्वत: ही घूमने लगा और उसी वेग से समुद्र मंथन होने लगा।तब उस समुद्र मंथन से समुद्र के अंदर के बहुमूल्य पत्थर, मणियां, धातु और शंख इत्यादि स्वत: समुद्र से बाहर आने लगे। अंत में घर्षण इतना तेज हो गया कि समुद्र से निकले धातु उसके ताप से पिघल गए और समुद्र के सतह पर वृताकार रूप में जम गए। उनकी संख्या इतनी अधिक हो गयी कि वो चक्रवात भी थम गया और समुद्र मंथन स्वत: ही रुक गया। चूँकि धरती माता के कारण श्रीहरि ने वो श्रम किया था, उस रत्न का नाम "गोमातृका" पड़ा। समय के साथ उस गोमातृका को गोमती चक्र के नाम से जाना जाने लगा।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 356
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'कुसंग' पर दिये गये प्रवचन से संबंधित श्रृंखला में आज दूसरे कुसंग 'सांसारिक विषयों का चिन्तन-मनन' की चर्चा यहाँ प्रकाशित की जा रही है। 'जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' के भाग 354 से 'कुसंग' विषय पर विस्तृत चर्चा का प्रकाशन हो रहा है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित इस अमूल्य तत्वज्ञान से निश्चित ही हमें आध्यात्मिक हानि उठाने से बचाव के उपाय ज्ञात होंगे....)
★ चौथा कुसंग - संसारी विषयों का चिन्तन-मनन
...भगवदविषयों से विपरीत विषयों का पढ़ना, दूसरा सुनना, तीसरा देखना, चौथा सोचना आदि भी कुसंग है।
किन्तु इन सबमें सबसे भयानक कुसंग सोचना ही है, क्योंकि अंत में पढ़ने, सुनने एवं देखने आदि वाले कुसंग भी यहीं पर आ जाते हैं। फिर यहीं से कार्यवाही आरंभ हो जाती है। सोचते-सोचते मनोवृत्तियाँ उसी के अनुकूल होती जाती है एवं बुद्धि भी मोहित होती जाती है, जिसका दुष्परिणाम यह होता है कि कुछ काल बाद मन पूर्णतया उन विपरीत विषयों में लीन हो जाता है। इस सम्बन्ध में गीता में एक अत्यन्त सुन्दर अर्धाली है;
ध्यायतो विषयान् पुंसः संगस्तेषूपजायते।(गीता 2-62)
अर्थात जिस विषय का हम बार-बार चिन्तन करते हैं, उसी में हमारी आसक्ति हो जाती है।
किन्तु ध्यान में रखने की बात यह है कि चिन्तन तो पश्चात होता है, पूर्व में तो भगवद-विपरीत विषयों का सुनना, पढ़ना आदि है। अतएव यदि पूर्व कारण से बचा जाये तो अत्यन्त ही सरलतापूर्वक कुसंग से निवृत्ति हो सकती है। यदि आग को लकड़ी न मिले तो अग्नि कैसे बढ़ेगी? फिर यदि साथ ही उस अन्तरंग कुसंग रूपी आग में श्रद्धायुक्त सत्संग रूपी जल भी छोड़ा जाय तब तो आग धीरे-धीरे स्वयं ही बुझ जायेगी। देखो, प्रायः हम लोग यह सब जानते हुये भी बहादुरी दिखाने का स्वांग रचते हैं, अर्थात कुसंग की प्रारंभिक अवस्था में ही सावधान न होकर यह कह देते हैं - 'अरे! कुसंग हमारा क्या कर लेगा, हम सब कुछ समझते हैं!!!'
अरे भाई! विचार करो कि यद्यपि डॉक्टर यह समझता है कि अमुक विष मारक है, किन्तु परिहास में भी पी लेता है तो उसका वह जानना थोड़े ही काम देगा, विष तो अपना मारक गुण दिखायेगा ही।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2011 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - क्लेश पांच प्रकार के होते हैं। अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष एवं अभिनिवेश। जिस घर में लड़ाई-झगड़े रहते हैं वहां लक्ष्मी कभी भी निवास नहीं करती है।हर इंसान के मन में यही चाहना रहती है कि उसके जीवन में और उसके घर के सदस्यों के बीच प्रेम और आपसी सौहार्द बना रहे। घर में सुख सुविधाएं होने के बावजूद और रुपया पैसा होने के बाद भी घर में समस्याएं हैं, परंतु आप खुद ही नहीं जानते कि घर में क्लेश के क्या कारण हैं, लेकिन जब क्लेश हद से ज्यादा बढ़ जाए और जीवन अशांति से भर जाए और इन सब बातों की कोई वजह भी ना हो तो आप जान लीजिए कि इनका कारण कुछ वास्तु दोष ही है। ऐसे में कुछ उपाय कर लेना ही उचित है।1* घर में प्रति दिन या सप्ताह में एक बार पानी में नमक मिलाकर पोछा लगाएं, इससे घर में सकारात्मक उर्जा फैलती है।2* जब आप अपने घर में कोई भी खाने पीने की वस्तु जैसे फल, मिठाई आदि लाते हैं ,तो सबसे पहले अपने इष्ट देवता को भोग लगाएं। उसके उपरांत उसमें से थोड़ा सा हिस्सा निकालकर घर के बाहर रख दे फिर अपने परिवार के बड़े बुजुर्ग लोगों को दें और बच्चों को दें और उसके पश्चात ही आप पति-पत्नी उस वस्तु का सेवन करें।3* अपने पूजा घर में हर मंगलवार को घी का पंचमुखी दिया जलाएं . 4* आपके घर के दरवाजे और खिड़कियां पूरब या फिर उत्तर दिशा में होनी चाहिए और ध्यान रहे दरवाजा खोलते या बंद करते वक्त किसी भी तरह की आवाज ना करता हो यह अशुभ माना गया है।5* घर की दीवार पर युद्ध से संबंधित कोई भी चित्र या पेंटिंग नहीं लगानी चाहिए।6* घर में टूटा हुआ कांच या फिर कोई भी बेकार वस्तु जिसका आप उपयोग ना करते हो घर में बिल्कुल नहीं रखनी चाहिए।7*अपने शयनकक्ष में बिस्तर के सामने कोई भी दर्पण नहीं लगाना चाहिए।8* रात में सोते वक्त अपना सिर पूर्व दिशा की और रखकर सोइए इससे तनाव में राहत मिलती है।9* सुबह के वक्त दूध में पत्नी या मां द्वारा केसर डलवाएं तब उसका सेवन करें ऐसा करने से घर में सुख शांति बनी रहती है।10* गुरुवार और रविवार को कंडे पर गुड़ और घी मिलाकर जलाएं इससे वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा फैलती है।11* रसोईघर और शौचालय कभी भी उत्तर- पूर्व दिशा में नहीं होना चाहिए ऐसा होने से घर में कलह बनी रहती है।12* अपने घर में कांटेदार वृक्ष ,कैक्टस और ना ही कोई दूध वाला पौधा जैसे कनेर आंकड़ा नहीं लगाना चाहिए। इनके स्थान पर आप सुगंधित और खूबसूरत फूलों को अपने घर पर लगाएं।13* अपने पूजा गृह में पूर्वजों का फोटो ना रखें उसे दक्षिण की दीवार पर लगाए और शाम को घर में संध्या दीप जलाएं ,भगवान का ध्यान करें और आरती करें।14* मुख्य द्वार पर स्वास्तिक ,ओम के मांगलिक चिन्ह लगाएं।15* तुलसी के पौधे के पास रोज एक दिया जलाएं और ग्रह शांति के लिए प्रार्थना करें ऐसा 21 दिन तक लगातार करें इससे आपके परिवार में सुख शांति बनी रहेगी।16*जब आप रोटी बनाती हैं तो पहली रोटी गाय के लिए निकालें और उसे अपने हाथों से रोटी खिला कर आए।17* अगर कोई भी स्त्री अपने घर के वातावरण जो की तनाव से भरा है उसे परेशान है, तो भोजपत्र पर लाल कलम से अपने पति का नाम लिखकर तथा "हं हनुमंते नम:" का 21 बार उच्चारण करते हुए पत्र को घर के किसी भी कोने में रख दे और 11 मंगलवार नियमित रूप से हनुमान मंदिर में चोला और सिंदूर चढ़ाएं ऐसा करने से परेशानियों में राहत मिलेगी।18* 5 गोमती चक्र को लाल सिंदूर की डिब्बी में रखकर जहां आपका श्रृंगार का सामान है वहां रखें या फिर पूजा घर में रखने से पति पत्नी के रिश्ते में सुख शांति बनी रहती है.19* झाड़ू की दो सीके लं,े उन दोनों सीको को उल्टा सीधा रखकर नीले धागे से बांध कर घर के दक्षिण-पश्चिम में रख दे इसे आपके शादीशुदा जीवन में प्रेम बढ़ता है।20* दो जमुनिया रत्न ले उन्हें गंगाजल में डुबो दें और हर शनिवार इस गंगाजल को अपने पूरे घर में छिड़के ऐसा करने से पति-पत्नी के बीच का तनाव दूर होता है और संबंध मधुर बनते हैं।
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जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 356
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'कुसंग' पर दिये गये प्रवचन से संबंधित श्रृंखला में आज दूसरे कुसंग 'वातावरण का प्रभाव' की चर्चा यहाँ प्रकाशित की जा रही है। 'जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' के भाग 354 से 'कुसंग' विषय पर विस्तृत चर्चा का प्रकाशन हो रहा है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित इस अमूल्य तत्वज्ञान से निश्चित ही हमें आध्यात्मिक हानि उठाने से बचाव के उपाय ज्ञात होंगे....)★ दूसरा कुसंग - 'वातावरण का प्रभाव'...दिन में कई बार ऐसा होता है कि आपको जैसा भी वातावरण मिलता है, वैसे ही आपकी मनोवृत्तियाँ भी बदलती जाती हैं। कभी तो यह विचार होता है कि अरे! पता नहीं कब टिकट कट जाये, शीघ्र से शीघ्र कुछ साधना कर लेनी चाहिये। संसार तो अपने आप छोड़ देगा नहीं, फिर संसार ने पकड़ भी तो नहीं रखा है, मैं स्वयं ही जा जाकर उसमें पिस रहा हूँ।कभी यह विचार उत्पन्न होता है, अरे! कर लेंगे, जल्दी क्या है, समय बहुत पड़ा है, ऐसी भी क्या जल्दी है। फिर अभी अमुक-अमुक संसार का काम (ड्यूटी) भी तो करना है। रात तक कर लेंगे, कल कर लेंगे... इत्यादि। कभी-कभी यह विचार पैदा होता है, अरे यार! खाओ, पियो, मौज उड़ाओ, चार दिन की ज़िंदगी है, आगे किसने देखा है क्या होगा, भगवान वगवान को बिगड़े हुये दिमाग की उपज है.... पता नहीं वह मौज उड़ाने का क्या अर्थ समझता है? अरे मौज तो महापुरुष भी चाहता है।अस्तु, यह सब अन्तरंग गुण-वृत्तियों का दैनिक परिवर्तनशील अनुभव है जिसे आप भली-भाँति समझते हैं। अब यह देखिये कि उपर्युक्त रीति से अपनी ही मनोवृत्तियाँ कैसे बदल जाती हैं। किसी क्षण में मान लीजिये कि आपकी मनोवृत्ति यह हुई कि मैं चलूँ कुछ साधना कर लूँ। इतने में ही रजोगुण या तमोगुण आदि का वातावरण विशेष मिल गया, अर्थात स्त्री पुत्रादि का आसक्ति-वर्धक कुछ विषय मिल गया तो हमारी मनोवृत्ति उन गुणों के वातावरण को पाकर फिर बदल गई एवं हम तत्क्षण साधना से च्युत हो गये। यह सब अन्तरंग त्रिगुण एवं बहिरंग सामग्री की महिमा है।०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2011 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 355
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने अपने प्रवचनों में 'कुसंग' की परिभाषा तथा कुसंग के विभिन्न स्वरूपों के बारे में चर्चा की है। इसी कड़ी में कल, पहला भाग - 'कुसंग क्या है?' के रूप में कुसंग पर प्रकाश डाला गया था। आज से लेकर अगले 7 दिनों तक विभिन्न प्रकार के कुसंग के स्वरूपों पर श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा दिये गये प्रवचन प्रकाशित होंगे। आशा है, आप सभी पाठक जन इन्हें विचारपूर्वक पठन करते हुये अपने जीवन में लाभ उठायेंगे...)
★ पहला कुसंग - 'लोकरंजन'
...साधनावस्था में किसी साधक को थोड़ा सा भाव आ गया या आँसू आ गये तो उसको बताने के लिये, कि लोग ऐसा समझें कि यह बड़ा भावुक है, जरा जोर से हल्ला मचा दिया, जोर से उछल पड़ा। कभी पढ़ा होगा गौरांग महाप्रभु के चरित्र वगैरह में, उसका आइडिया होगा। या सचमुच कोई महापुरुष उसको मिल गया होगा, उसने उसका कुछ देखा-भाला होगा। तो ये जो कुछ उसने कर लिया यानि भाव आने पर उसको और बढ़ा दिया, क्यों?
ये अहंकार है जो वहाँ जाकर प्रवेश कर गया है। मुझको भाव आ रहा है, कुछ लोगों को नहीं आ रहा है। बस ऐसा सोचा और भाव चला आया नीचे। कुसंग वहाँ जाकर घुस गया। अपने श्यामसुन्दर के लिये आँसू बहा रहा है, इतनी बारीक जगह में अहंकार के रूप में कुसंग घुस गया। बेचारे को पता ही नहीं है। अगर उसको पता चल जाता तो वह क्या करता? पहले तो भाव को वह कंट्रोल करता और अगर भाव इतना अधिक होता कि उससे कंट्रोल न होता तो किसी बहाने से वहाँ से उठकर कहीं और चला जाता, तो कुसंग से बच पाता और नुकसान होने से बच जाता। साधारण जीवों को बिचारों को कंट्रोल की पॉवर तो होती ही नहीं है;
क्षुद्र नदी भरि चलि इतराई।
जैसे छोटी नदी और नालों में थोड़े से पानी में ही बाढ़ आ जाती है। उस समय वो साधक होशियार न रहा तो लोकरंजन की बुद्धि आ जायेगी कि लोगों को जरा मालूम हो जाये मैं कितना बड़ा भक्त हूँ। देखिये, ये कुसंग हो रहा है। सुसंग करते-करते इस प्रकार से चोरी-चोरी गड़बड़ी किया करता है और लाभ से वंचित हो जाता है। यही नहीं हानि उठा जाता है। एक तो मिथ्याभिमान है, दूसरे लोकरंजन की बुद्धि होने से प्रायश्चित का आँसू भी छिन जाता है। अतएव साधक को लोकरंजन रूपी महाव्याधि से बचना चाहिये।
साधक को तो अपनी साधना विशेषकर अनुभवों को अत्यन्त ही गुप्त रखना चाहिये। केवल अपने सद्गुरु से ही कहना चाहिये। अपने आप ही उन अनुभवों का चिन्तन करना चाहिये, किन्तु वहाँ भी सावधानी यह रखनी चाहिये कि यह सब अनुभव महापुरुष की कृपा से ही प्राप्त हुआ है, मेरी क्या सामर्थ्य है!!
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2011 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - सावन का महीना भोले भंडारी की पूजा आराधना के लिए बहुत ही विशेष माना जाता है। इस वर्ष 25 जुलाई से सावन का माह शुरू हो चुका है। सावन के महीने में सोमवार व्रत और शिवलिंग का जलाभिषेक करके भोलेनाथ को प्रसन्न किया जाता है। मान्यता है कि सावन का महीना भगवान शिव ।को बहुत ही प्रिय होता है और जो शिवभक्त इस पवित्र माह में शिवजी की पूजा मन से करता है उसकी हर एक मनोकामना जरूर पूरी होती है। ज्योतिष शास्त्र में भगवान शिव की पूजा करने का विशेष महत्व होता है क्योंकि शिव मंत्रों के जाप से जातकों के जीवन में बुरे ग्रहों का प्रभाव कम हो जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भगवान शिव तीन राशियों पर अपनी विशेष कृपा रखते हैं। आइए जानते हैं कि सावन के पवित्र महीने में कौन सी तीन राशियां है जिस पर हमेशा भगवान शिव की कृपा रहती है।मेषमेष राशि राशि चक्र की पहली राशि है। मेष राशि के स्वामी ग्रह मंगलदेव होते हैं। भगवान भोलेनाथ को मेष राशि बहुत ही प्रिय होती है। उनकी शुभ द्दष्टि हमेशा इस पर रहती है। मेष राशि के जातकों पर हमेशा शिव की कृपा रहने से इस राशि के जातकों के जीवन में सुख और समृद्धि बनी रहती है। इस राशि के जातकों को शिव जी को प्रसन्न करने के लिए सोमवार के दिन शिवलिंग पर जलाभिषेक जरूर करना चाहिए।मकरमकर राशि के स्वामी शनि देव हैं। मकर राशि भी शिवजी की प्रिय राशियों में से एक है। इस राशि पर शनि और शिव दोनों की कृपा होती है। जब भी इस राशि के जातकों पर किसी प्रकार की विपदा आती है तो उस समय भगवान शिव आने वाली कठिनाइओं को कम कर देते हैं। सावन के महीने में इस राशि के जातकों को शिव आराधना जरूर करनी चाहिए।मकरइस राशि के जातकों के लिए शिव पूजा बहुत ही लाभकारी और शुभफलदायी मानी गई है। मकर राशि के जातकों को शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के अलावा बेलपत्र भी अर्पित करना चाहिए। वहीं पूजा करते समय महामृत्युंजय का जाप भी करना चाहिए। मकर राशि के जातकों को शिवजी बहुत ही भाग्यशाली बनाते हैं।कुंभमकर और कुंभ राशि के स्वामी शनि देव हैं। शनिदेव दो-दो राशियों के स्वामी माने जाते हैं। शनि की इस राशि पर भी शिव की कृपा हमेशा बरसती है। सावन के महीने में भी कुंभ राशि के जातकों को शिव आराधना करनी चाहिए। कुंभ राशि के जातकों के लिए सावन के महीने में ऊं नम: शिवाय का जाप सभी तरह के कष्टों को दूर करने के लिए शुभ रहता है। सावन के महीने में इस राशि के जातकों के लिए दान करना अच्छा रहेगा।-
- वास्तु सिद्धांत के अनुसार वास्तु दोषों को दूर करने अथवा कम करने में आपके घर की आंतरिक साज-सज्जा मददगार साबित हो सकती है। घर में सुख-शांति एवं सौहार्दपूर्ण वातावरण के लिए कुछ वास्तु नियमों को अपनाया जा सकता है।- मधुर संबंधों के लिए अतिथियों का स्थान या कक्ष उत्तर या पश्चिम की ओर बनाना चाहिए।- आरोग्य के दिशा क्षेत्र उत्तर-उत्तर-पूर्व दिशा में दवाइयां रखने से ये जल्दी असर दिखाती हैं।- सब कुछ ठीक होने के बाद भी आपको लगता है की हमारे हाथ में धन नहीं रुकता तो आपको अपने घर के दक्षिण-पूर्व दिशा क्षेत्र से नीला रंग का इस्तेमाल ना करें। इस दिशा में हल्का नारंगी, गुलाबी रंगों का प्रयोग करें।-घर के अंदर लगे हुए मकड़ी के जाले, धूल-गंदगी को समय-समय पर हटाने से घर में नकारात्मक ऊर्जा नहीं रहती।- पार्किंग हेतु उत्तर-पश्चिन स्थान प्रयोग में लाना शुभ माना गया है।-घर में बनी हुई क्यारियों या गमलों में लगे हुए पौधों को नियमित रूप से पानी देना चाहिए। यदि कोई पौधा सूख जाए तो उसे तुरंत वहां से हटा दें।-दक्षिण-पश्चिम दिशा में ओवरहैड वाटर टैंक की व्यवस्था करना लाभप्रद रहता है।- दरवाज़े को खोलते तथा बंद करते समय सावधानी से बंद करें,ताकि कर्कश ध्वनि न निकले। यदि ऐसा हो रहा है, तो उसमें तुरंत तेल डालें।-यदि आपने घर में पूजा घर बना रखा है तो शुभ फलों की प्राप्ति के लिए उसमें नियमित रूप से पूजा होनी चाहिए एवं दक्षिण-पश्चिम की दिशा में निर्मित कमरे का प्रयोगपूजा-अर्चना के लिए नहीं किया जाना चाहिए।- गैस का चूल्हा प्लेटफार्म के आग्नेय कोण में दोनों तरफ से कुछ इंच जगह छोड़कर रखना वास्तु सम्मत माना गया है।-शयन कक्ष में ड्रेसिंग टेबल हमेशा उत्तर या पूर्व दिशा में रखनी चाहिए और सोते समय शीशे को ढंक दें।- किसी भी व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति में दक्षिण दिशा की तरफ पैर करके नहीं सोना चाहिए, ऐसा करने से बेचैनी ,घबराहट और नींद में कमी हो सकती है।- शयन कक्ष में मुख्य द्वार की ओर पैर करके नहीं सोएं। पूर्व दिशा में सिर एवं पश्चिम दिशा में पैर करके सोने से आध्यात्मिक भावनाओं में वृद्धि होती है।- घर या कमरों में कैक्टस के पौधे या कंटीली झाडिय़ां या कांटों के गुलदस्ते जो की गमलों में साज-सज्जा के लिए सजाते हैं, उनसे पूरी तरह बचना चाहिए।-भवन में उत्तर दिशा, ईशान दिशा, पूर्व दिशा, वायव्य दिशा में हल्का सामान रखना शुभ फलदाई होता है।- घर में अग्नि से सम्बंधित उपकरण जहां तक संभव हो दक्षिण-पूर्व दिशा में रखने चाहिए। घर में लगे हुए विद्युत उपकरणों का रख-रखाव उचित ढंग से होना चाहिए। इनमें किसी भी प्रकार की आवाज या ध्वनि नहीं निकलनी चाहिए।
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प्रकृति को मनुष्य के लिए वरदान माना जाता है। वास्तु के अनुसार घर में पौधे लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ जाता है। घर की बगिया को पौधों से सजाना संवारना चाहते हैं तो वास्तु में बताए गए कुछ आसान से उपायों को अपना सकते हैं। आइए जानते हैं इनके बारे में।
माना जाता है कि केले के मूल में भगवान विष्णु का निवास है। यदि शमी वृक्ष पर पीपल उग आए तो वह नर-नारायण का रूप माना जाता है। नीम पर भैरव का निवास और आक पर कामदेव का निवास माना जाता है। तुलसी, पीपल, वट, दूब, अशोक, गूलर, आंवला, नीम, कदंब, बेल, कमल को देव समान पूजा जाता है। घर में तुलसी का पौधा जरूर लगाएं। जिस घर में तुलसी की पूजा होती है, वहां श्री हरि विष्णु की कृपा बनी रहती है। जिनकी शादी में बाधाएं आ रही हों उन्हें केले के पेड़ की पूजा करनी चाहिए। अशोक के पेड़ लगाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। उत्तर दिशा में नीले रंग के फूल देने वाले पौधे जीवन में समृद्धि लाने में सहायक होते हैं। मनीप्लांट, बांस एवं क्रिसमस ट्री वास्तु की दृष्टि में समृद्धि देने वाले माने जाते हैं। गुड़हल का पौधा सूर्य और मंगल से संबंध रखता है। इस पौधे को घर में कहीं भी लगाया जा सकता है। हनुमान जी और मां दुर्गा जी को गुड़हल का फूल अर्पित करने से सारे संकट दूर हो जाते हैं। भगवान शिव को बेल का पेड़ बहुत पंसद है। कहते हैं कि भगवान शिव स्वयं इस वृक्ष में निवास करते हैं। घर में बेल के वृक्ष को लगाने से धन संपदा की देवी लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं। अश्वगंधा का पौधा घर में लगाने से सभी वास्तु दोष दूर हो जाते हैं। आंवले के पेड़ की पूजा करने से सभी मन्नतें पूरी होती हैं। घर के आसपास सूखा या आधा जला पेड़ अशुभ माना जाता है। घर के सामने इमली या मेहंदी का पेड़ अशुभ माना गया है। घर में गुलाब जैसे कांटेदार पौधे लगाए जा सकते हैं लेकिन इसे छत पर रखें। बेडरूम में किसी भी तरह के पौधे लगाने से बचना चाहिए। बोनसाई पौधा घर में रहने वाले सदस्यों का आर्थिक विकास रोकता है। खुशबूदार फूल वाले पौधे घर के बाहर ही लगाएं। घर में नकली पौधे नहीं लगाने चाहिए। बरगद का पेड़ घर पर नहीं बल्कि मंदिर में लगाना चाहिए। घर में नीम का पेड़ सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाता है और कई बीमारियों को भी दूर करता है।