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वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में चीजें रखने से परिवार में खुशहाली बनी रहती है। इससे घर में सुख समृद्धि का वास होता है। वास्तु शास्त्र वेदों के समय से चली आ रही एक परंपरा है। जिसका भारत में बहुत अधिक महत्व है।
डाइनिंग रूम---
1. डाइनिंग टेबल के कोने ,आराम करने वाली जगह की ओर नहीं होने चाहिए। इस तरह बना लेआउट देखने में भी बेहद अजीब लगता है।
2. डाइनिंग टेबल हमेशा गोल या अंडाकार आकार की होनी चाहिए। इससे जीवन को चलाने के लिए बैलेंस एनर्जी मिलती रहती है। गोल टेबल होने से टेबल पर रखें खाने और व्यक्ति के बीच की दूरी कम होती है और टेबल से खाने का सामान लेने में भी तकलीफ नहीं होती।
3. पिचके और टूटे बर्तनों का इस्तेमाल न करें उन्हें जल्द से जल्द बाहर फेंक दें। आपकी प्लेट, गिलास और बर्तन बिल्कुल नए न हों, लेकिन अच्छी तरह से रखें बर्तन में खाना परोसने से मेहमानों के सामने आपकी अच्छी छवि बनती है।
4. डाइनिंग टेबल के ऊपर ताजे फूल के साथ ही साथ गोल बर्तन में फलों को रखना चाहिए। यह ताजगी और सुख समृद्धि को दर्शाता है।
5. डाइनिंग रूम में टीवी और घड़ी नहीं लगानी चाहिए। यदि आपके घर के डाइनिंग रूम में टीवी या घड़ी लगी हुई है तो उसे आज ही वहां से हटा दें क्योंकि डाइनिंग रूम में टीवी लगे होने के कारण लोग आपसी बातचीत से ज्यादा टीवी देखना पसंद करते हैं। इससे आपका ध्यान खाना खाने की अपेक्षा दूसरी चीजों पर ज्यादा लगा रहता है।
6. कमरे में रोशनी और ताजगी बनाएं रखने के लिए चारों तरफ पेंटिंग और छोटे छोटे पौधे लगाकर रखें। पेंटिंग पॉजिटिविटी की ओर इशारा करने वाली होनी चाहिए। -
घर में अक्सर लोग सुगंधित फूलों के पौधे लगाना पसंद करते हैं। ये पौधे न सिर्फ घर को महकाते हैं बल्कि इनकी छटा भी देखने लायक होती है। वास्तु शास्त्र में कुछ ऐसे सुगंधित फूलों के पौधे के बारे में बताया है, जिन्हें घर में लगाने से धन लाभ के साथ करियर में तरक्की व मान-सम्मान प्राप्त होती है। रजनीगंधा उन फूलों में से एक है,जो बेहद सुगंधित होते हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार, धन लाभ के लिए रजनीगंधा के पौधे को घर पर लगाते समय दिशा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। रजनीगंधा के पौधे से न सिर्फ लाभ प्राप्त होता है बल्कि घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है।
इस दिशा में लगाएं रजनीगंधा का पौधा-
कहते हैं कि रजनीगंधा का पौधा सौभाग्य लाता है। रजनीगंधा का पौधा सुख, समृद्धि में बढ़ोतरी करता है। इससे घर में बरकत आती है। रजनीगंधा के पौधे को पूर्व या उत्तर दिशा में लगाने से धन लाभ होता है।
पूर्व या उत्तर दिशा में रजनीगंधा का पौधा लगाने से घर के सदस्यों की तरक्की के मार्ग खुलते हैं। पति-पत्नी के रिश्ते में प्यार भी बढ़ता है। रजनीगंधा के फूलों की महक और रंग पॉजिटिव माहौल देने वाला माना गया है। कहते हैं कि जिस घर में रजनीगंधा पूर्व या उत्तर दिशा में महकती है, वहां सकारात्मकता बनी रहती है। -
साल का आखिरी ग्रहण और दूसरा खंडग्रास चंद्रग्रहण 8 नवंबर 2022, कार्तिक पूर्णिमा पर पड़ने जा रहा है। यह चंद्रग्रहण लोगों के मन में चिंता बढ़ा रहा है क्योंकि 25 अक्टूबर 2022 को सूर्यग्रहण होने के 15 दिन के भीतर ही यह दूसरा ग्रहण पड़ने जा रहा है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, एक पक्ष या 15 दिन के भीतर दो ग्रहण होना किसी बड़े अशुभ का संकेत माना गया है। इसी को देखते हुए लोगों के मन में आशंका है कि अब देश व समाज के सामने कोई बड़ी कठिनाई आने वाली है।
ज्योतिषशात्र के अनुसार, ग्रह-नक्षत्रों के परिवर्तन की तरह ग्रहण का असर भी सभी राशियों पर देखने को मिलता है, चाहे यह सूर्य ग्रहण हो या चंद्र ग्रहण। ग्रुहण के बाद आने वाले करीब एक महीने तक का समय बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। जो आइए जानते हैं कि आने वाला समय ग्रहण के प्रभाव के चलते किन राशियों के जातकों को लाभ और किन राशियों के लिए हानि के योग बना रहा है। खबरों के अनुसार, 8 नवंबर 2022 को पड़ने जा रहे साल के आखिरी ग्रहण से 4 राशियों मिथुन, कर्क, वृश्चिक और कुंभ के लिए लाभकारी साबित होगा। वहीं 4 राशियों मेष, वृष, कन्या और मकर के लिए हानि के योग लेकर आ रहा है। इसके आलावा बाकी चार राशियों को ग्रहण के चलते मध्यम फल मिलेगा।
चंद्र ग्रहण का समय-
साल का आखिरी ग्रहण कार्तिक पूर्णिमा, 8 नवंबर 2022 को पड़ेगा। चंद्र ग्रहण की शुरुआत यानी स्पर्शकाल शाम 5:35 बजे से शुरू होगा और ग्रहण का मध्य 6:19 बजे और मोक्ष शाम 7:26 बजे होगा। इस ग्रहण का सूतक काल ग्रहण से 12 घंटे पहले सुबह 5.53 बजे शुरू होगा और अगले दिन सुबह करीब 7 बजे तक चलेगा।
कहां-कहां दिखेगा चंद्रग्रहण ?
साल का आखिरी चंद्रग्रहण भारत समेत दक्षिणी/पूर्वी यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, पेसिफिक, अटलांटिक और हिंद महासागर में देखने को मिलेगा।
इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। -
-बालोद से प्रकाश उपाध्याय
हिंदू धर्म में तुलसी पूजन का विशेष महत्व है। हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को तुलसी विवाह होता है, इस एकादशी को देवउठनी एकादशी भी कहते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु के अवतार शालिग्राम की पूजा की जाती हैं और तुलसी माता से उनका विवाह करवाया जाता है। तुलसी विवाह के दिन माता तुलसी और भगवान शालिग्राम की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उनके वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि आती है।
तुलसी विवाह का महत्व
माना जाता है की आषाढ़ शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु चार महीनों के लिए सोते हैं और कार्तिक मास की देवउठनी एकादशी के दिन जागते हैं। इसी पूजा के बाद शादी का शुभ महूर्त शुरू होता है। इस खास मौके पर विष्णु के अवतार भगवान शालिग्राम का तुलसी माता से विवाह करवाया जाता है। यह भी मान्यता है की इस दिन व्रत करने से एक हजार अश्वमेध यज्ञ करने जितना फल मिलता है।
तुलसी विवाह पूजा विधि
-इस दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर नहा लें और नए कपड़े पहनें।
-जहां आप पूजा करने वाले हैं उस जगह को अच्छी तरह साफ कर लें और सजा लें।
-इस दिन तुलसी माता को दुल्हन की तरह सोलह श्रृंगार से सजाएं जिसके बाद गन्ना और चुनरी भी चढ़ानी चाहिए।
-तुलसी विवाह करने के लिए सबसे पहले चौकी बिछाएं उस पर तुलसी का पौधा और शालिग्राम को स्थापित करें।
-तुलसी माता के पौधे के पास ही शालिग्राम भगवान को रखकर दोनों की साथ में पूजा करनी चाहिए.
-उसके बाद गंगाजल छिड़कर घी का दीया जलाएं.
-भगवान शालीग्राम और माता तुलसी दोनों को रोली और चन्दन का टीका लगाएं।
-उसके बाद आप भगवान शालिग्राम को हाथों में लेकर तुलसी के चारों ओर परिक्रमा करें।
-फिर तुलसी को भगवान शालिग्राम की बाईं ओर रखकर उन दोनों की आरती उतारे। इसके बाद उनका विवाह संपन्न हो जाएगा।
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-बालोद से प्रकाश उपाध्याय
वास्तु अनुसार रोजाना प्रयोग में आने वाले आईना का आप के जीवन की सुख-समृद्धि से काफी संबंध होता है. अपनी सुंदरता को निहारने के लिए हर व्यक्ति इसे अपने घर में लगवाता है. वास्तु के अनुसार शीशा, दर्पण या फिर कहें आईने में एक उर्जा होती है, जो घर में सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. ज्योतिष शास्त्र में ये माना गया है कि घर के भीतर लगे आइने को सही दिशा में लगाना बहुत आवश्यक है. घर में ऊर्जा का उचित संतुलन बनाए रखना, वास्तु के सबसे आवश्यक उद्देश्यों में से एक होता है. इससे आपके घर में सकारात्मक माहौल बनता है और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है.
आइए दर्पण से जुड़े कुछ वास्तु नियम जानें..
आईने से जुड़े वास्तु नियम----------
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में चौकोर शीशा लगाना लाभकारी माना जाता है. यदि ये तिजोरी या अलमारी के सामने लगा हो, तो उससे धन की प्राप्ती होती है. वहीं गोल शीशा लगाना शुभ नहीं होता है.
बेडरूम में आईना लगाने से हमेशा बचना चाहिए. वास्तु अनुसार अगर बेडरूम में लगे आईने में आपके बेड का प्रतिबिंब दिखाई देता है, तो इससे घर में दोष आता है. इससे आप के दांपत्य जीवन पर बुरा असर पड़ता है और प्रेमी जोड़ में आपसी विश्वास और सामंजस्य की कमी भी आती है.
अपने घर में आईना लगाते वक्त ध्यान रखें कि इसे पूर्व और उत्तर दिशा में लगाए. मान्यता है कि उत्तर दिशा धन के देवता भगवान कुबेर का केंद्र होता है. इसलिए इस दिशा को हमेशा सकारात्मक रखना चाहिए. वास्तु अनुसार पश्चिम या दक्षिण दिशा में आईना लगाना अशुभ माना जाता है.
यदि आप के घर में टूटा शीशा लगा है तो उसे तुरंत हटा दें. माना जाता है कि टूटा शीशा घर की नकारात्मकता बढ़ाता है और आर्थिक नुकसान भी पहुंचाता है.
वास्तु के मुताबिक शीशे को कभी भी गंदा नहीं रखना चाहिए. शीशे के गंदे होने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह अधिक बढ़ जाता है. -
देवउठनी एकादशी इस साल 4 नवंबर को मनाई जाएगी। इस दिन लोग घरों में भगवान सत्यनारायण की कथा और तुलसी-शालिग्राम के विवाह का आयोजन करते हैं। देवउठनी एकादशी से मंगलकार्य शुरू हो जाते हैं। माना जाता है कि देवउठनी एकादशी को भगवान श्रीहरि चार माह की गहरी निद्रा से उठते हैं। भगवान के सोकर उठने की खुशी में देवोत्थान एकादशी मनाया जाता है। इसी दिन से सृष्टि को भगवान विष्णु संभालते हैं। इसी दिन तुलसी से उनका विवाह हुआ था।
इस दिन महिलाएं व्रत रखती हैं। परम्परानुसार देव देवउठनी एकादशी में तुलसी जी विवाह किया जाता है, इस दिन उनका श्रृंगार कर उन्हें चुनरी ओढ़ाई जाती है। उनकी परिक्रमा की जाती है। शाम के समय रौली से आंगन में चौक पूर कर भगवान विष्णु के चरणों को कलात्मक रूप से अंकित करेंगी। रात्रि को विधिवत पूजन के बाद प्रात:काल भगवान को शंख, घंटा आदि बजाकर जगाया जाएगा और पूजा करके कथा सुनी जाएगी। -
दिवाली के बाद अब पूरा देश छठ पर्व की तैयारी कर रहा है. इस साल यह पर्व 28 अक्टूबर से शुरू हो रहा है और 31 अक्टूबर तक चलेगा. इस त्योहार में छठी माता और सूर्यदेव की पूजा-अर्चना की जाती है. छठ पूजा के दौरान, पुरुष और महिला दोनों ही अपने बच्चों के स्वास्थ्य, खुशी और लंबी उम्र के लिए पूरे 36 घंटे का निर्जल व्रत रखते हैं. हिंदु मान्यताओं के अनुसार इस त्योहार का बहुत विशेष महत्व होता है.
तिथि और शुभ मुहूर्त----------
दिन पूजा समय
28 अक्टूबर, शुक्रवार नहाय खाय सूर्योदय प्रात 06 बजकर 30 मिनट सूर्यास्त शाम 05 बजकर 39 मिनट
29 अक्टूबर, शनिवार लोहंडा और खरना सूर्योदय: प्रात: 06 बजकर 31 मिनट सूर्योस्त: शाम 05 बजकर 38 मिनट
30 अक्टूबर, रविवार संध्या अर्घ्य शाम 05 बजकर 38 मिनट पर
31 अक्टूबर, सोमवार प्रात: अर्घ्य प्रात: 06 बजकर 32 मिनट पर
पूजा की विधि
पहला दिन- इस दिन नहाय खाय की परंपरा है. महिलाएं इस दिन घर की साफ-सफाई करती हैं और स्नान करती हैं. प्रसाद के तौर पर इस दिन चना दाल, लौकी की सब्जी और चावल बनाया जाता है.
दूसरा दिन – छठ महापर्व के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है. इस दिन प्रसाद के तौर गुड़ की खीर बनाई जाती है. इस दिन के बाद 36 घंटे का उपवास शुरू होता है.
तीसरा दिन- पर्व के तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. व्रत करने वाले स्त्री-पुरुष दोनों किसी नदी, तालाब या घर में खड़े होकर अर्घ्य देते हैं.
चौथे दिन – इस पर्व के आखिरी दिन जल में खड़े होकर उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इसके बाद व्रत तोड़ा जाता है.
क्या है छठ का महत्व
हिंदू मान्यता के अनुसार, इस दिन षष्ठी देवी की पूजा की जाती है, जिन्हें ब्रह्मा की मानस पुत्री के रूप में भी जाना जाता है. कुछ जगाहों में इन्हें छठी माता के नाम से भी जानते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार वैदिक काल में यह पूजा ऋषियों द्वारा की जाती थी. मान्यता है कि छठी माता की पूजा करने से धन-धान्य की प्राप्ती होती है और संतानों की रक्षा करती हैं. जो दंपत्ती अपने जीवन में संतान सुख की प्राप्ती चाहते हैं, उनके लिए छठ पूजा अत्यंत आवश्य मानी गई है. -
हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितिया तिथि पर भाई दूज का त्योहार मनाया जाता है। यह पर्व भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है। इस दिन भाई बहन के घर जाता है और बहन भाई का तिलक करती है और भोजन भी खिलाती है। धार्मिक कथाओं के अनुसार सबसे पहले यमराज अपनी बहन यमुना के घर आए थे और यमुना ने यमराज का तिलक कर आरती उतारी थी। तब से ही ये परंपरा चली आ रही है। जानें भाई दूज का शुभ मुहूर्त और पूजा- विधि...
भाई दूज पर तिलक करने की विधि----------
इस दिन भाई को घर बुलाकर तिलक लगाकर भोजन कराने की परंपरा है।
भाई के लिए पिसे हुए चावल से चौक बनाएं।
भाई के हाथों पर चावल का घोल लगाएं।
भाई को तिलक लगाएं।
तिलक लगाने के बाद भाई की आरती उतारें।
भाई के हाथ में कलावा बांधें।
भाई को मिठाई खिलाएं।
मिठाई खिलाने के बाद भाई को भोजन कराएं।
भाई को बहन को कुछ न कुछ उपहार में जरूर देना चाहिए।
भाई दूज 2022 शुभ मुहूर्त------------
भाई दूज पर तिलक करने का शुभ मुहूर्त दोपहर 01 बजकर 12 मिनट से दोपहर 03 बजकर 27 मिनट तक रहेगा।
अवधि - 02 घंटे 14 मिनट
द्वितीया तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 26, 2022 को 02:42 पी एम बजे।
द्वितीया तिथि समाप्त - अक्टूबर 27, 2022 को 12:45 पी एम बजे।
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हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि को भाई दूज का त्योहार मनाने की परंपरा है. इस साल भाई दूज का त्योहार 26 और 27 अक्टूबर दोनों दिन मनाया जा रहा है. दरअसल, कार्तिक शुक्ल द्वितीय तिथि 26 अक्टूबर को दोपहर 02 बजकर 43 मिनट से लेकर 27 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 45 मिनट तक रहेगी. ऐसे में लोग अपनी सहूलियत के हिसाब से भाई दूज का त्योहार मना रहे हैं.
27 अक्टूबर क्यों है खास?
वैसे तो भाई दूज का त्योहार दोनों दिन मनाया जा सकता है, लेकिन इस मामले में 27 अक्टूबर की तारीख थोड़ी विशेष मानी जा रही है. दरअसल इस दिन भाई दूज मनाने के लिए एक नहीं बल्कि चार-चार शुभ योग बन रहे हैं. इन अबूझ मुहूर्तों में भाई को तिलक करना बहुत ही फलदायी हो सकता है. आइए आपको 27 अक्टूबर को भाई दूज पर बन रहे शुभ योगों के बारे में बताते हैं.
सर्वार्थ सिद्धि योग- दोपहर 12 बजकर 42 मिनट से लेकर अगले दिन 28 अक्टूबर को सुबह 05 बजकर 38 मिनट तक
अभिजीत मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 42 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 27 मिनट तक
आयुष्मान योग- 27 अक्टूबर को सूर्योदय से लेकर सुबह 07 बजकर 27 मिनट तक रहेगा
सौभाग्य योग- 27 अक्टूबर को सूर्योदय से लेकर अगले दिन सुबह 04 बजकर 33 मिनट तक रहेगा
भाई दूज के त्योहार का महत्व
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, भाई दूज के दिन जो भाई अपनी बहन से तिलक करवाते हैं, उन्हें अकाल मृत्यु से खतरा नहीं होता है. कहते हैं कि कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमराज अपनी बहन यमुना के आग्रह पर उनके घर गए थे. अपने भाई को घर देखकर यमुना बहुत खुश हुईं. उन्होंने यमराज का स्वागत किया और उन्हें स्वादिष्ट भोजन करवाया.
बहन यमुना के आदर सत्कार और कोमल हृदय से यमराज बहुत प्रसन्न हुए, लेकिन जैसे ही वह जाने लगे यमुना ने उनसे एक वरदान मांग लिया. यमुना ने कहा कि कार्तिक शुक्ल द्वितीय को जो भी भाई अपनी बहन से तिलक करवाएगा और उसके घर भोजन करेगा, उसे यमराज के भय से मुक्ति मिलेगी. उसे न तो अकाल मृत्यु का भय रहेगा और न ही जीवन की जटिल समस्याएं उसके आड़े आएंगी. तब यमरान ने यमुना को ये वरदान दे दिया. कहते हैं कि तभी से भाई दूज मनाने की रस्म चली आ रही है. -
कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजन किया जाता है। खासतौर पर मनुष्यों के द्वारा प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए गोवर्धन का ये पर्व मनाया जाता है। इस दिन गिरिराज यानी गोवर्धन पर्वत और भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है। गोवर्धन पूजा के दिन को अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन अन्नकूट का भोग लगाने की परंपरा है। इस दिन घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत और पशुधन की आकृति बनाई जाती है और विधि-विधान से पूजा की जाती हैं। कहा जाता है कि गोवर्धन पूजा की कथा द्वापर युग से जुड़ी हुई है।
जानते हैं गोवर्धन पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा के बारे में...
गोवर्धन पूजा की कथा----
पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक दिन श्री कृष्ण ने देखा कि सभी ब्रजवासी तरह-तरह के पकवान बना रहे हैं, पूजा का मंडप सजाया जा रहा है और सभी लोग प्रातः काल से ही पूजन की सामाग्री एकत्रित करने में व्यस्त हैं। तब श्री कृष्ण ने योशदा जी से पूछा, ''मईया'' ये आज सभी लोग किसके पूजन की तैयारी कर रहे हैं, इस पर मईया यशोदा ने कहा कि पुत्र सभी ब्रजवासी इंद्र देव के पूजन की तैयारी कर रहे हैं। तब कन्हा ने कहा कि सभी लोग इंद्रदेव की पूजा क्यों कर रहे हैं। इस पर माता यशोदा उन्हें बताते हुए कहती हैं, इंद्रदेव वर्षा करते हैं और जिससे अन्न की पैदावार अच्छी होती है और हमारी गायों को चारा प्राप्त होता है।
तब कान्हा ने कहा कि वर्षा करना तो इंद्रदेव का कर्तव्य है। यदि पूजा करनी है तो हमें गोवर्धन पर्वत की करनी चाहिए, क्योंकि हमारी गायें तो वहीं चरती हैं और हमें फल-फूल, सब्जियां आदि भी गोवर्धन पर्वत से प्राप्त होती हैं। इसके बाद सभी ब्रजवासी इंद्रदेव की बजाए गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। इस बात को देवराज इंद्र ने अपना अपमान समझा और क्रोध में आकर प्रलयदायक मूसलाधार बारिश शुरू कर दी, जिससे चारों ओर त्राहि-त्राहि होने लगी। सभी अपने परिवार और पशुओं को बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। तब ब्रजवासी कहने लगे कि ये सब कृष्णा की बात मानने का कारण हुआ है, अब हमें इंद्रदेव का कोप सहना पड़ेगा।
इसके बाद भगवान कृष्ण ने इंद्रदेव का अहंकार दूर करने और सभी ब्रजवासियों की रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लिया। तब सभी ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण ली। इसके बाद इंद्रदेव को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने श्री कृष्ण से क्षमा याचना की। इसी के बाद से गोवर्धन पर्वत के पूजन की परंपरा आरंभ हुई। -
गोवर्धन पूजा या अन्नकूट दिवाली के अगले दिन मनाई जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन यह पूजा होती है। इस साल गोवर्धन पूजा मंगलवार 25 अक्टूबर, 2022 को है। लेकिन इसी दिन सूर्य ग्रहण भी लगेगा, जिस कारण इस साल गोवर्धन पूजा दिवाली के अगले दिन नहीं बल्कि बुधवार 26 अक्टूबर 2022 को मनाई जाएगी। यह त्योहार विशेष रूप से श्रीकृष्ण, गौ माता और गोवर्धन पर्वत की पूजा के लिए समर्पित होता है। गोवर्धन पूजा में अन्नकूट बनाए जाते हैं और गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाई जाती है। लेकिन परिक्रमा के बिना गोवर्धन पूजा अधूरी मानी जाती है। जानते हैं गोवर्धन पूजा में परिक्रमा का क्या है महत्व। इस बार गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 29 मिनट से सुबह 8 बजकर 43 मिनट तक है।
गोवर्धन पर्वत का महत्व---
पौराणिक कथा के अनुसार श्री कृष्ण ने जब ब्रजवासियों से गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा करने के लिए कहा तो इंद्र देव नाराज हो गए। उन्होंने क्रोध में आकर ऐसी वर्षा कराई जिससे कि ब्रजवासियों की जान खतरे में आ गई। तब श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली से उठा लिया और इस पर्वत के नीचे पूरे 7 दिनों तक ब्रजवासियों और पशुओं ने शरण ली। इसलिए गोवर्धन पूजा में गाय के गोबर से इस पर्वत की आकृति बनाकर लोग पूजा करते हैं और पूरे सात बार इसकी परिक्रमा की जाती है।
गोवर्धन पूजा में इसलिए जरूरी है परिक्रमा---
गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत के नाम से भी जाना जाता है। उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में गोवर्धन पर्वत स्थित है, जिसकी ऊंचाई 62 फीट है। गिरिराज पर्वत की परिक्रमा 21 किलोमीटर की है इसकी परिक्रमा करने में 7-8 घंटे का समय लग जाता है। मान्यता है जो लोग चार धाम की यात्रा नहीं कर पाते हैं उन्हें एक बार इस पर्वत की परिक्रमा जरूर करनी चाहिए।
गोवर्धन पूजा के नियम----
गोवर्धन पूजा अकेले न करें। अपने घर-परिवार, पड़ोसी या रिश्तेदार के साथ ही गोवर्धन पूजा करनी चाहिए।
घर के आंगन या छत पर गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाकर पूजा करनी चाहिए।
गोबर से बने गोवर्धन पर्वत की सात बार परिक्रमा करनी चाहिए।
परिक्रमा को बीच में अधूरा नहीं छोड़ना चाहिए।
परिक्रमा के दौरान खील बताशे पर्वत पर अर्पित करने चाहिए। -
हिंदू पंचाग के अनुसार भाई दूज का पर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है. भाई दूज को यम द्वितीया (Yam Dwitiya) या भ्रातृ द्वितीया भी कहा जाता है. भाई दूज (Bhai Dooj 2022) दीपावली के दो दिन बाद और गोवर्धन पूजा के ठीक अगले दिन मनाया जाता है. इस पर्व के साथ ही पांच दिन के दीपोत्सव का समापन हो जाता है. इस साल भाई दूज की तारीख को लेकर कन्फ्यूजन है. कुछ लोग 26 अक्टूबर को तो कुछ लोग 27 अक्टूबर को भाई दूज मनाने की बात कह रहे हैं. फिलहाल आइये जानते हैं कि भाई-बहन के प्रेम और स्नेह का त्योहार क्यों मनाया जाता है और इसके पीछे की मान्यता क्या है?
क्यों मनाया जाता है भाई दूज?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्यदेव और उनकी पत्नी छाया की दो संताने थीं, यमराज और यमुना. दोनों में बहुत प्रेम था. बहन यमुना हमेशा चाहती थीं कि यमराज उनके घर भोजन करने आया करें. लेकिन यमराज उनकी विनती को टाल देते थे. एक बार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि पर दोपहर में यमराज उनके घर पहुंचे. यमुना अपने घर के दरवाजे पर भाई को देखकर बहुत खुश हुईं. इसके बाद यमुना ने मन से भाई यमराज को भोजन करवाया. बहन का स्नेह देखकर यमदेव ने उनसे वरदान मांगने को कहा.
इसपर उन्होंने यमराज से वचन मांगा कि वो हर वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि पर भोजन करने आएं. साथ ही मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई का आदर-सत्कार के साथ टीका करें, उनमें यमराज का भय न हो. तब यमराज ने बहन को यह वरदान देते हुआ कहा कि आगे से ऐसा ही होगा. तब से यही परंपरा चली आ रही है. इसलिए भैयादूज वाले दिन यमराज और यमुना का पूजन किया जाता है.
पूजा सामग्री
कुमकुम, पान, सुपारी, फूल, कलावा, मिठाई, सूखा नारियल और अक्षत आदि. तिलक करते वक्त इन चीजों को पूजा की थाली में रखना ना भूलें.
ऐसे करें पूजा
व्रत रखने वाली बहनें पहले सूर्य को अर्घ्य देकर अपना व्रत शुरू करें. इसके बाद आटे का चौक तैयार कर लें. शुभ मुहूर्त आने पर भाई को चौक पर बिठाएं और उसके हाथों की पूजा करें. सबसे पहले भाई की हथेली में सिंदूर और चावल का लेप लगाएं फिर उममें पान, सुपारी और फूल इत्यादि रखें. उसके बाद हाथ पर कलावा बांधकर जल डालते हुए भाई की लंबी उम्र के लिए मंत्रजाप करें और भाई की आरती उतारे. इसके बाद भाई का मुंह मीठा कराएं और खुद भी करें.
तिलक का महत्व
प्राचीन काल से यह परंपरा चली आ रही है कि भाई दूज के दिन बहनें अपने भाई की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि के लिए तिलक लगाती हैं. कहते हैं कि कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन जो बहन अपने भाई के माथे पर कुमकुम का तिलक लगाती हैं, उनके भाई को सभी सुखों की प्राप्ति होती है. हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भाई दूज के दिन जो भाई अपनी बहन के घर जाकर तिलक करवाता है और भोजन करता है, उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती. -
भाई दूज का पर्व हर साल कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है. इस साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितिया तिथि का आरंभ 26 अक्टूबर को दोपहर 2 बजकर 42 मिनट से शुरू हो रही है. वहीं द्वितीया तिथि की समाप्ति 27 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 45 मिनट पर होगी. ऐसे में ज्योतिष शास्त्र के जानकारों का कहना है कि भाई दूज (Bhai Dooj Date 2022) 27 अक्टूबर, गुरुवार को मनाई जाएगी. वहीं कई लोग 26 अक्टूबर को भी भाई दूज मनाएंगे. भाई दूज (Bhai Dooj 2022) के दिन बहनें अपने भाई के माथे पर तिलक लगाती हैं. साथ ही वे ऐसा करने के बाद भगवान से उनकी लंबी उम्र और खुशहाल जीवन की कामना करती हैं. इस दिन भाई भी अपनी बहन को खास उपहार देते हैं. भाई दूज को भैय्या दूज, भातृ द्ववितीया, भाऊ बीज के नाम से जाना जाता है. आइए जानते हैं कि भाई दूज के दिन तिलक लगाते वक्त मुंह किस ओर होना चाहिए और भाई दूज के लिए शुभ मुहूर्त और खास नियम क्या-क्या हैं.
धार्मिक मान्यता के अनुसार, भाई दूज के दिन बहनों को अपने भाई के माथे पर रोली-चंदन का तिलक लगाना चाहिए. भाई दूज पर तिलक लगाते वक्त दिशा का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है. ऐसे में इस दिन भाई का मुंह पूरब, उत्तर या उत्तर-पश्चिम दिशा में होना चाहिए. वहीं तिलक लगाते वक्त बहन का मुंह पूर्व या उत्तर-पूर्व दिशा में होना चाहिए. भाई दूज पर तिलक लगाने से पहले अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है. ऐसे में भाई दूज पर इन बातों का खास ख्याल रखें.
भाई दूज पूजन विधि --
भाई दूज पर अपने भाई को तिलक लगाने से पहले स्नान करके घर में साफ स्थान पर आटा या चावल को पीसकर उसका घोल बना लें. इसके बाद उस घोल से शुद्ध स्थान पर अड़िपन बनाएं. इसके बाद उस पर लकड़ी का पाया या आसन रखें. इसके बाद उस आसन पर भाई को बिठाएं. इसके बाद चंदन लगाने की प्रक्रिया पूरी करें.
भाई दूज 2022 शुभ मुहूर्त---
कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि 26 और 27 अक्टूबर दोनों ही दिन है. हिंदू पंचांग के अनुसार, 26 अक्टूबर को दोपहर 02 बजकर 43 मिनट से द्वितीया तिथि शुरू हो रही है. जो कि 27 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 45 मिनट तक रहेगी. ऐसे में 26 अक्टूबर को भाई को तिलक करने का शुभ मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 14 मिनट से 12 बजकर 47 मिनट तक है. वहीं कई जगहों पर उदया तिथि के अनुसार, भाई दूज का पर्व 27 अक्टूबर को मनाया जाएगा. ऐसे में 27 अक्टूबर को भाईदूज का शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 07 मिनट से दोपहर 12 बजकर 46 मिनट तक है. -
ज्योतिषाचार्य कामेश्वर चतुर्वेदी ने कहा है कि 25 अक्टूबर को सूर्य ग्रहण पड़ेगा। उन्होंने कहा है कि यह सूर्य ग्रहण चार ग्रहों सूर्य, चंद्र, शुक्र और केतु की युति में पड़ेगा। मथुरा पुरी सहित संपूर्ण ब्रजभूमि में यह सूर्य ग्रहण शाम 04:32 बजे पर प्रारंभ होगा और शाम 05:42 बजे तक चलेगा किंतु सूर्यास्त शाम 05:39 पर ही हो जाएगा। मथुरा में इस ग्रहण का पर्व काल 1 घंटे 10 मिनट का है। सूर्य बिंब 44 प्रतिशत ग्रसित रहेगा। उन्होंने कहा है कि ज्योतिष शास्त्र के आधार पर सूर्य ग्रहण का कारण होता है चंद्रमा तथा चंद्रग्रहण का मुख्य कारण होता है पृथ्वी की काली छाया। पुराणों के अनुसार ग्रहण राहु और केतु द्वारा होते हैं। कामेश्वर नाथ चतुर्वेदी के अनुसार भारत के पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा आदि के समीप यह सूर्य ग्रहण दिखाई नहीं देगा, इसके अलावा संपूर्ण देश में तथा विदेशों में भी यह दिखाई देगा।
सुबह 2:28 से लग जाएगा सूतक:ग्रहण का सूतक 25 अक्तूबर को सुबह 2:28 बजे से लग जाएगा। कार्तिक कृष्ण अमावस्या 25 अक्तूबर को ग्रहण का आरंभ दोपहर 2:29 पर होगा और समाप्ति शाम 06:32 पर होगी।
एक पखवाड़े में दो ग्रहण:कामेश्वर चतुर्वेदी ने बताया कि इस बार एक पखवाड़े में दो ग्रहण पड़ रहे हैं। 25 अक्तूबर एवं 8 नवंबर को 15 दिन के अंतराल से दो ग्रहण पड़ेंगे। जो अशुभ हो सकते हैं। द्वापर युग में महाभारत युद्ध से पूर्व कार्तिक मास में इसी तरह दो ग्रहण पड़े थे। -
हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस साल दिवाली पर सूर्यग्रहण लगने के कारण लोगों के मन में तिथियों को लेकर कंफ्यूजन है। ऐसे में लोगों के बीच सवाल उठ रहा है कि आखिर भाई दूज का त्योहार किस दिन मनाया जाएगा। जानें 26 या 27 अक्टूबर किस दिन भाईदूज मनाना रहेगा सही-
दोपहर के समय होती है भाईदूज की पूजा-
शास्त्रों के अनुसार, यम द्वितीया यानी भाईदूज के दिन यमराज अपनी बहन के घर दोपहर के समय आए थे और बहन की पूजा स्वीकार करके उनके घर भोजन किया था। वरदान में यमराज ने यमुना को कहा था कि भाई दूज यानी यम द्वितीया के दिन जो भाई अपनी बहनों के घर आकर उनकी पूजा स्वीकार करेंगे और उनके घर भोजन करेंगे उनका अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा।
भाईदूज के दिन किसकी करें पूजा-
शास्त्रों के अनुसार, भाईदूज के दिन यमराज, यमदूज और चित्रगुप्त की पूजा करनी चाहिए। इनके नाम से अर्घ्य और दीपदान करना चाहिए।
26 अक्टूबर को मनाएं भाईदूज का त्योहार-
इस साल कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि 26 व 27 अक्टूबर दोनों दिन लग रही है। 26 अक्टूबर को दोपहर 02 बजकर 43 मिनट से भाईदूज का पर्व शुरू होगा, जो कि 27 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 45 मिनट तक रहेगा। इस दिन भाई को तिलक करने का शुभ मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 14 मिनट से 12 बजकर 47 मिनट तक रहेगा।
27 अक्टूबर को पूजन का यह है शुभ मुहूर्त-
कई जगहों पर उदया तिथि के हिसाब से भाईदूज का पर्व 27 अक्टूबर को मनाया जाएगा। 27 अक्टूबर को भाईदूज का शुभ मुहूर्त सुबह 11 बजकर 07 मिनट से दोपहर 12 बजकर 46 मिनट तक रहेगा।
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दिवाली के अगले दिन तड़के ही इस बार सूर्य ग्रहण के सूतक लग जाएंगे। इसलिए इस त्योहार का असर दिवाली पूजा पर भी पड़ेगा। सूर्य ग्रहण के सूतक 25 अक्टूबर को सुबह 4 बजे लग जाएंगे, इसलिए इस तिथि में मंदिर पूजा से जुड़ा कोई भी काम नहीं किया जा सकेगा। 25 अक्टूबर का दिन खाली माना जाएगा। इस दिन पितरों का दान आदि किया जाएगा। ग्रहण के बाद ही स्नान और दान फलदायी रहेगा। मंगलवार 25 अक्टूबर को भौमवती अमावस्या है।
दरअसल इस बार दिवाली के दिन शाम को अमावस्या तिथि शुरू हो रही है, इसलिए ग्रहण वाले दिन ग्रहण काल खत्म होने पर ही अमावस्या तिथि का स्नान और दान किया जाएगा। अब बात आती है दिवाली पूजा की। दिवाली की पूजा के बाद अगली सुबह से ग्रहण का सूतक काल शुरू हो जाता है, जिसमें मंदिरों के पट बंद रहते हैं, इसलिए माता लक्ष्मी के पूजन की चौकी भी ग्रहण काल के समाप्त होने के बाद ही उठाई जाएगी। 25 अक्टूबर की शाम 4 बजे से सूर्य ग्रहण शुरू होगा। शाम 6.25 बजे ग्रहण खत्म होगा। सूर्य ग्रहण देश के उत्तरी और पश्चिमी हिस्सों में आसानी से देखा जा सकेगा। देश के पूर्वी हिस्सों में ये ग्रहण दिख नहीं पाएगा। -
दिवाली के पावन पर्व पर आइए जानते हैं माता लक्ष्मी से जुड़े कुछ खास रहस्य।
. समुद्र मंथन के दौरान मां लक्ष्मी की उत्पत्ति हुई
. लक्ष्मी जी भृगु ऋषि और ख्याति की संतान हैं।
. धाता और विधाता माता लक्ष्मी के दो भाई हैं।
. अलक्ष्मी माता लक्ष्मी की बहन हैं
. भगवान विष्णु माता लक्ष्मी के पति हैं
. मान्यता हैं कि मां लक्ष्मी के 18 पुत्र हैं।
. वह क्षीरसागर में भगवान विष्णु संग निवास करती हैं।
. शुक्रवार,पूर्णिमा और दिवाली पर माता लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है।
. मां लक्ष्मी के वाहन उल्लू और हाथी हैं।
. माता लक्ष्मी सुख-समृद्धि और वैभव की देवी मानी जाती हैं। -
जिस तरह मां दुर्गा के नौ स्वरूप की पूजा की जाती है, उसी तरह मां लक्ष्मी के भी आठ रूप हैं जो इस प्रकार हैं।
धनलक्ष्मी
धान्यलक्ष्मी
आदिलक्ष्मी
गजलक्ष्मी
संतानलक्ष्मी
वीरलक्ष्मी
विजयलक्ष्मी
विद्यालक्ष्मी
माता लक्ष्मी के आठ अवतार---
लक्ष्मी जी के 8 अवतार इस प्रकार हैं-
महालक्ष्मी- जो वैकुंठलोक में वास करें
स्वर्गलक्ष्मी- जो स्वर्गलोक में वास करें
दक्षिणालक्ष्मी- जो यज्ञ में वास करें
गृहलक्ष्मी- जो गृह में वास करें
शोभालक्ष्मी- जो हर वस्तु में वास करें
रुक्मणी - जो गोलोक में वास करें
राधालक्ष्मी- जो गोलोक में वास करें
राजलक्ष्मी- जो पाताललोक में वास करे -
यदि मां लक्ष्मी आप पर प्रसन्न हैं और वह आपके घर में वास करना चाहती हैं तो मान्यता है कि आपको इससे जुड़े कई संकेत घर में देखने को मिलेंगे। जैसे-
अचानक काली चींटियां का आना
चिड़ियां का घोंसला बनाना
दिवाली पर छिपकली का दिखना
सपने में उल्लू,हाथी,झाड़ू और शंख देखना
सुबह गन्ना, शंख, उल्लू और झाड़ू को देखना
दिवाली लक्ष्मी पूजन सामग्री --
. शंख
. कमल का फूल
. गोमती चक्र
. धनिया के दाने
. कच्चा सिंघाड़ा
. मोती
. कमलगट्टे का माला
मां लक्ष्मी के प्रिय भोग
दिवाली पूजन के दौरान मां लक्ष्मी को भोग स्वरूप उनकी प्रिय चीजें अर्पित करें जो इस प्रकार हैं।
. मखाना
. सिंघाड़ा
. बताशा
. गन्ना
. खीर
. हलवा
. अनार
. पान
. केसर
. सफेद पीली मिठाई -
दिवाली के दिन घर में लक्ष्मी जी के आगमन हेतु ढेर सारे उपाय किए जाते हैं। घर की साफ सफाई करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं। दिवाली पर घर में लक्ष्मी गणेश जी की स्थापना के साथ धन की देवी माता लक्ष्मी के यंत्र को भी स्थापित करना चाहिए। धनलक्ष्मी यंत्र धन और समृद्धि की देवी मां लक्ष्मी से संबंधित है। माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए श्रीयंत्र यह धन लक्ष्मी यंत्र को घर पर स्थापित करना शुभ माना गया है। मान्यता है कि श्री यंत्र से मां लक्ष्मी भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। यह धन लक्ष्मी यंत्र धन, प्रसिद्धि और सफलता प्रदान करता है। आइए जानते हैं श्री यंत्र को घर पर कहां और किस विधि से स्थापित करना चाहिए।
धन लक्ष्मी यंत्र के लाभ---
इस यंत्र की महिमा के कारण आप पर हमेशा मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
घर में कभी भी पैसों की कमी नहीं होती है और सुख-शांति बनी रहती है।
आपको हर तरह की आर्थिक परेशानी से बचाने के लिए यह चमत्कारी यंत्र बहुत कारगर माना जाता है।
यदि परिवार का कोई व्यक्ति लंबे समय से किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है तो इस यंत्र की विधि विधान से पूजा करने से उस रोग में लाभ मिलता है।
इस यंत्र की महिमा से आप अपना पुराना रुका हुआ धन वापस पा सकते हैं और कर्ज से जल्द मुक्ति पा सकते हैं।
इस यंत्र की प्रतिदिन पूजा करने से धन प्राप्ति के नए-नए उपाय प्राप्त होते हैं।
ऐसे स्थापित करें धन लक्ष्मी यंत्र----
यदि आप सुख समृद्धि और यश पाना चाहते हैं तो श्री यंत्र को पूरे विधि विधान से स्थापित करना चाहिए। स्नान आदि से निवृत्त होकर श्री यंत्र को पंचामृत और गंगाजल से साफ करके ईशान कोण में एक लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित करें। इस दौरान बीज मंत्र- ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं नम: या ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं का जाप करते रहें। श्री यंत्र को स्थापित करने समय आपका मुख पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए।
धन लक्ष्मी यंत्र की पूजा विधि---
धन लक्ष्मी यंत्र की पूजा विधि की शुरुआत सुबह से ही हो जाती है। इसके लिए प्रातः काल स्नान कर स्वच्छ पीले रंग के वस्त्र धारण करें।
दूध और गंगाजल के मिश्रण से स्नान कर साफ सूती लाल कपड़े पर रखकर किसी पवित्र स्थान पर रख दें।
ध्यान रहे कि आप इसे तिजोरी, मंदिर, किचन या ऑफिस में रख सकते हैं।
पूजा से पहले इस यंत्र को पंचामृत में रखें और उस पर लाल चंदन छिड़कें। इसके बाद कुछ लाल गुलाब के फूल और चावल लेकर यंत्र पर रख दें और फिर उसके ऊपर लाल चुन्नी डाल दें।
धन लक्ष्मी यंत्र के सामने घी का दीपक जलाएं और मां धनलक्ष्मी यंत्र की आरती करें। आप चाहें तो दुर्गा सप्तमी का पाठ भी कर सकते हैं।
पूरी भक्ति के साथ आप हाथ जोड़कर धन लक्ष्मी यंत्र के सामने खड़े हो जाएं और मन ही मन इस मंत्र का जाप करें।
ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद,
ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥
मान्यता है कि पूरे विधि विधान से पूजा करने से यह प्रभावशाली लक्ष्मी यंत्र आपको शीघ्र ही फल देगा। -
दीपावली रोशनी का पर्व है। यह पर्व कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है। मान्यता के अनुसार भगवान राम इस दिन 14 वर्ष के वनवास के साथ अयोध्या वापस लौटे थे और इसी खुशी में आयोध्यावासियों ने दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। एक अन्य मान्यता के अनुसार ऐसी मान्यता भी है कि दीपावली पर मां लक्ष्मी प्रकट हुई थीं इस कारण दिवाली पर लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व होता है। पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक माह की अमावस्या पर मां लक्ष्मी प्रकट हुई थीं, वहीं वाल्मीकि रामायण के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु संग माता लक्ष्मी का विवाह हुआ था। इस वजह से हर साल दिवाली पर लक्ष्मी पूजन का महत्व है। दिवाली आने से कई दिनों पहले से ही घरों की साफ-सफाई और सजावट होने लगती है। दिवाली की शाम को शुभ मुहूर्त में लक्ष्मी-गणेश,कुबेर और माता सरस्वती की विशेष पूजा आराधना की जाती है। आइए जानते हैं इस दिवाली पर लक्ष्मी माता से जुड़ी सभी जानकारियां कैलेंडर के माध्यम से।
इन घरों में करती हैं माता लक्ष्मी वास ---
माता लक्ष्मी दिवाली पर उनके घरों में प्रवेश करती हैं
. जहां साफ-सफाई हो
. जहां प्रतिदिन पूजा-पाठ हो
. जहां महिलाओं का सम्मान हो
. जहां भगवान विष्णु,श्रीयंत्र और श्री सूक्त का पाठ हो
माता लक्ष्मी ऐसे घरों में कभी वास नहीं करती ----
माता लक्ष्मी स्वच्छता का प्रतीक मानी गई हैं तो कुछ ऐसे स्थान हैं जहां माता लक्ष्मी वास नहीं करती हैं।
. जहां गंदगी और सामान बिखरा हुआ हो
. जहां स्त्रियों का अनादर हो
. जहां प्रतिदिन पूजा न होती हो
. जहां वास्तुदोष हो
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दीपावली पर्व के ठीक एक दिन पहले मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली,रूप चौदस और काली चतुर्दशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के विधि-विधान से पूजा करने वाले व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। इसी दिन शाम को दीपदान की प्रथा है जिसे यमराज के लिए किया जाता है। इस पर्व का जो महत्व है उस दृष्टि से भी यह काफी महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पांच पर्वों की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्योहार है। दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस फिर नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले रात के वक्त उसी प्रकार दीए की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात को।
क्या है इसकी कथा-
इस रात दीए जलाने की प्रथा के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं और लोकमान्यताएं हैं। एक कथा के अनुसार आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी दुर्दांत असुर नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष्य में दीयों की बारात सजाई जाती है।
इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक दूसरी कथा यह है कि रंति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समक्ष यमदूत आ खड़े हुए।
यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है।
यह सुनकर यमदूत ने कहा कि हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक बार एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था, यह उसी पापकर्म का फल है। इसके बाद राजा ने यमदूत से एक वर्ष समय मांगा। तब यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचे और उन्हें अपनी सारी कहानी सुनाकर उनसे इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय पूछा।
तब ऋषि ने उन्हें बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें। राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है।
क्या है इसका महत्व-
इस दिन के महत्व के बारे में कहा जाता है कि इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर तेल लगाकर और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर उससे स्नान करने करके विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना करना चाहिए। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।
कई घरों में इस दिन रात को घर का सबसे बुजुर्ग सदस्य एक दीया जला कर पूरे घर में घुमाता है और फिर उसे ले कर घर से बाहर कहीं दूर रख कर आता है। घर के अन्य सदस्य अंदर रहते हैं और इस दीए को नहीं देखते। यह दीया यम का दीया कहलाता है। माना जाता है कि पूरे घर में इसे घुमा कर बाहर ले जाने से सभी बुराइयां और कथित बुरी शक्तियां घर से बाहर चली जाती हैं। -
दीपावली से एक दिन पूर्व छोटी दिवाली पर नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है. इस बार ये पर्व 23 अक्टूबर 2022 को मनाया जाएगा. नरक चतुर्दशी नरक चौदस, नर्का पूजा के नाम से भी प्रसिद्ध है. नरक चतुर्दशी पर यमराज की विशेष उपासना की जाती है. मान्यता है कि नरक चतुर्दशी पर यमराज की पूजा से अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है.
पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि नरक चतुर्दशी पर तर्पण और दीपदान का बड़ा महत्व होता है. इससे नरक की यातनाओं से मुक्ति प्राप्त होती है.
तर्पण और दीपदान का महत्व
शास्त्रों के अनुसार, नरक चतुर्दशी पर तर्पण और दीपदान की प्रथा है. नरक चतुर्दशी पर सुबह स्नान करने के बाद यमराज की विधि विधान से पूजन करने पर व्यक्ति सभी पापों से मुक्ति पाकर स्वर्ग को प्राप्त करता है. संध्या के समय यम का दीप जलाने का विधान है. इस दिन यम के नाम का दीपक जलाने से असमय मृत्यु से बचा जा सकता है. नरक चतुर्दशी पर तर्पण और दीपदान को लेकर एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है.
नरक चतुर्दशी की पौराणिक कथा--
एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार रंति देव नामक राजा ने अज्ञातवश कोई पाप नहीं किया था. जब राजा की मृत्यु का समय निकट आया तो यमराज ने उनको दर्शन दिए. तब राजा ने यमराज ने पूछा कि मैंने कोई पाप नहीं किया तो आप मुझे लेने किसलिए आए हो, क्यों मुझे नरक जाना पड़ रहा है. तब यमदूत ने कहा कि हे राजन, एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था. उसी का कर्म का फल है. तब राजा ने यमराज से एक वर्ष और समय देने की विनती की.
यमराज ने उनकी बात स्वीकार ली. इसके बाद राजा ऋषियों के पास पहुंचे और इस पाप से मुक्ति के लिए समाधान पूछा. तब ऋषियों ने बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की नरक चतुर्दशी का व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और अपनी भूल के लिए क्षमा याचना करें. इसके बाद राजा ने नरक चतुर्दशी पर व्रत रखा और ब्रह्मणों को भोजन कराया. -
आज धनतेरस है। स्कंद पुराण में वर्णित है कि कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे, यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनश्यति... यानी कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन शाम को घर के बाहर यमदेव के लिए दीप रखने से अकाल मृत्यु का निवारण होता है। साथ में, आज ही के दिन धन्वंतरि जयंती और कामेश्वरी जयंती भी मनाई जाती है। पूरे वर्ष में एकमात्र यही वह दिन है जब मृत्यु के देवता यमराज की पूजा सिर्फ दीपदान करके होती है।
ज्योतिषाचार्य आचार्य दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री के अनुसार, 22 अक्तूबर को धन त्रयोदशी के दिन यम को दीपदान प्रदोष काल में करना चाहिए। इस समय मीन लग्न में दीपदान करने से मन स्थिर रहता है और क्लेश दूर होगा। ज्योतिषाचार्य दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री के अनुसार यम को दीपदान के लिए आटे का एक बड़ा दीपक तैयार करें। इसके बाद साफ रुई लेकर दो लंबी बत्तियां बना लें। उन्हें दीपक में एक दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियों के चार मुंह दिखाई दें। अब उसे तिल के तेल से भर दें और साथ ही उसमें कुछ काले तिल भी डाल दें। प्रदोष काल में दीपक का रोली, अक्षत एवं पुष्प से पूजन करें। घर के मुख्य दरवाजे के बाहर थोड़ी सी खील अथवा गेहूं से ढेरी बनाकर उसके ऊपर दीपक को रखना है। दीपक जलाकर रख लें और दक्षिण दिशा की ओर देखते हुए चार मुंह के दीपक को खील आदि की ढेरी के ऊपर रख दें। इसके उपरांत यमदेवाय: नम: कहते हुए दक्षिण दिशा में नमस्कार करें।
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इस साल धनतेरस पर त्रिपुष्कर योग बन रहा है। इस योग में किए गए कार्यों में सफलता हासिल होने के साथ तीन गुना फल प्राप्त होने की मान्यता है।
राशि के अनुसार क्या करें खरीदारी
मेष- इस राशि वाले जातकों को सोने-चांदी के आभूषण खरीदने चाहिए। इसके साथ ही आपके लिए प्रॉपर्टी में निवेश करना भी शुभ रहेगा।
वृषभ - धनतेरस के मौके पर इस राशि के जातक चांदी या हीरे का आभूषण ले सकते हैं। वाहन खरीदने का मन बना रहे हैं तो धनतेरस का दिन बहुत ही शुभ रहेगा।
मिथुन - इस राशि के जातक यदि लाभ पाना चाहते हैं तो सोने-चांदी की वस्तु अथवा इलेक्ट्रॉनिक आइटम की खरीदारी करें।
कर्क - इस राशि के जातक धनतेरस पर चांदी के गहनों की खरीदारी कर सकते हैं। शेयर बाजार में निवेश करना भी लाभप्रद रहेगा।
सिंह - सूर्य के स्वामित्व वाली इस राशि के जातक के लिए सोना अथवा चांदी की वस्तुओं की खरीदारी शुभ रहेगी।
कन्या - इस धनतेरस पर शुभता पाने के लिए इस राशि के जातक इलेक्ट्रॉनिक आइटम की खरीदारी कर सकते हैं। सोने-चांदी की वस्तुओं की खरीदारी से भी लाभ होगा।
तुला - इस राशि के जातक को चांदी के आभूषण अथवा कोई अन्य चीज खरीदने से लाभ मिल सकता है। शेयर मार्केट में निवेश से भी फायदा मिल सकता है।
वृश्चिक- इस राशि के जातक को प्रॉपर्टी में निवेश करने से अच्छा मुनाफा मिल सकता है। सोने-चांदी की खरीदारी भी फलदायी रह सकती है।
धनु - इस राशि के जातक को सोने के आभूषण खरीदने से फायदा हो सकता है। जमीन खरीदने का मन बना रहे हैं तो धनतेरस की तिथि आपके लिए शुभ रहेगी।
मकर- इस राशि के जातक को चांदी के आभूषण अथवा इलेक्ट्रॉनिक आइटम धनतेरस के दिन खरीदना चाहिए।
कुंभ - इस राशि के जातक चांदी के आभूषण की खरीदारी कर सकते हैं। शेयर बाजार में निवेश करके भी आप लाभ कमा सकते हैं।
मीन - इस राशि के जातक सोने अथवा चांदी के आभूषण इस धनतेरस पर खरीदने चाहिए।