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- मेडिटेशन यानी ध्यान लगाना काफी फायदेमंद है. मेडिटेशन के अनेक तरीके हैं, जो अलग-अलग लक्ष्यों के मुताबिक अपनाए जाते हैं. ऐसी ही एक तरीका वॉल्किंग मेडिटेशन यानी चलते हुए ध्यान लगाना है. ध्यान लगाने का यह तरीका बिल्कुल अलग और दिलचस्प है, जो कि कई फायदे देता है. आइए ध्यान लगाने के इस दिलचस्प तरीके के बारे में जानते हैं.कैसे करते हैं वॉल्किंग मेडिटेशन --कैलिफोर्निया विश्वविद्यायल के द ग्रेटर गुड साइंस सेंटर के मुताबिक वॉल्किंग मेडिटेशन करते हुए धीमी गति से चलना होता है. इसमें हम चलने की प्रक्रिया पर बहुत बारीकी से ध्यान लगाते हैं. जैसे कि मुड़ना, पैर उठाना, जमीन से पैर उठना, जमीन पर पैर रखना व शरीर को आगे की तरफ ले जाना. हम रोजाना यह कार्य करते हैं, लेकिन इसके प्रति सजग नहीं होते हैं.वॉल्किंग मेडिटेशन करने के लिए सबसे पहले शांत जगह चुनें और एक रास्ते या जगह का चुनाव करें. जहां कोई आपको डिस्टर्ब ना कर सके और आप 10 से 15 कदम सीधा चल सकें.अब गहरी सांस लीजिए और धीरे-धीरे 10 से 15 कदम चलिए.इसके बाद जितनी हो सके, उतनी गहरी सांस लीजिए.अब वापिस मुड़िए और शुरुआती पोजीशन तक वापिस जाइए.अब दोबारा जितनी गहरी और लंबी सांस ले सकते हैं, लीजिए.इस दौरान आपको कदमों और प्रक्रिया को धीमा रखना है और हर चीज को महसूस करना है.आपके दिमाग में जो भी विचार आएं, उन्हें आने और जाने दीजिए.इसी तरह 10 से 15 मिनट करिए.वॉल्किंग मेडिटेशन के फायदे --शरीर शांत और आरामदायक बनता है.एकाग्रता बढ़ती है.शारीरिक संतुलन बनता है.शरीर के प्रति सजग होते हैं.पाचन तंत्र बेहतर होता है.ऊर्जा प्राप्त होती है.तनाव कम होता है.
- नींद हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा है। अच्छी नींद का हमारे स्वास्थ्य के ऊपर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह तंदुरुस्त जीवन का कारण मानी जाती है। अगर रात में 8 घंटे की चैन की नींद ली जाए, तो अगले दिन शरीर और मस्तिष्क पूरी तरह तरोताजा रहते हैं। अच्छी नींद लेने से शरीर के भीतर की थकान पूरी तरह दूर हो जाती है और उसमें ऊर्जा का संचार होता है। मान्यता है कि नींद के दौरान इंसान के भीतर लौकिक ऊर्जा आती है। वहीं जो लोग रात में अच्छी नींद नहीं लेते, ऐसे व्यक्तियों को थकान, आलस्य, चिड़चिड़ापन जैसा अनुभव होता है। वास्तु शास्त्र के मुताबिक ठीक से नींद ना ले पाने की वजह व्यक्ति के सोने की दिशा और उसकी आदतें हैं। अगर व्यक्ति वास्तु शास्त्र में बताए गए नियमों के आधार पर सोए तो रात में वह चैन की नींद ले सकता है। इसी सिलसिले में आइए जानते हैं कि वह कौन-कौन से नियम हैं? जिनका सोते वक्त सदा पालन करना चाहिए।वास्तु शास्त्र के मुताबिक हमें पूर्व दिशा में सोना चाहिए। पूर्व दिशा में सिर करके सोने से व्यक्ति के ऊपर सकारात्मक प्रभाव पड़ता। इससे उसकी कार्य करने की क्षमता और ध्यान की शक्ति में वृद्धि होती है। वास्तु कहता है कि आप पश्चिम दिशा में भी सिर करके सो सकते हैं। मान्यता है कि इस दिशा में सोने से व्यक्ति का यश बढ़ने लगता है।उत्तर दिशा में सिर रखकर कभी भी सोना नहीं चाहिए। ऐसा करने से दिमाग में कई प्रकार के नकारात्मक विचार आते हैं। इसके अलावा व्यक्ति कई तरह की बीमारियों से ग्रसित भी हो सकता है। हालांकि आप दक्षिण दिशा में सिर रखकर सो सकते हैं। वास्तु के अनुसार दक्षिण दिशा में सिर करके सोने से घर में सुख-समृद्धि आती है।वास्तुशास्त्र के मुताबिक गंदे बिस्तर और टूटे हुए बेड पर कभी भी सोना नहीं चाहिए। ऐसा करना अशुभ माना गया है। गंदे बिस्तर पर सोने से व्यक्ति बीमार हो जाता है। इस बात का जरूर ध्यान रखें कि निर्वस्त्र होकर कभी ना सोएं।सोने से पहले अपने हाथ मुंह को धोकर जरूर कुल्ला करें। वास्तुशास्त्र के अनुसार बिस्तर पर जूठे मुंह नहीं सोना चाहिए। जूठे मुंह बिस्तर पर सोने से व्यक्ति को अच्छी नींद नहीं आती है। रात में सोते वक्त उसकी नींद कई बार टूटती है।
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हस्तरेखा विज्ञान प्राचीनतम ज्योतिष विधाओं में से एक है। ज्योतिष विद्या का मानना है कि व्यक्ति की हस्तरेखाएं उसके भाग्य को बताती हैं। अमूमन हाथ पर बनी ये रेखाएं शाश्वत नहीं होती। ये समय के साथ-साथ बदलती रहती हैं। कई बार हाथों की लकीरों में ऐसे शुभ योग बनते हैं, जिसके चलते व्यक्ति को कारोबार के क्षेत्र में खूब सारा लाभ होता है। उसके घर में मां लक्ष्मी की कृपा बरसने लगती है। घर के भीतर बड़े पैमाने पर धन संपत्ति का आगमन होता है।
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक ऐसे योग को काफी शुभ माना गया है। इस तरह के योग के चलते व्यक्ति जीवन में खूब तरक्की करता है। मां लक्ष्मी की कृपा इन लोगों के ऊपर सदा बनी रहती है और उनका दांपत्य जीवन भी काफी खुशहाल रहता है। इस कड़ी में आज हम हस्तरेखाओं में बने ऐसे खास योग के बारे में जानेंगे, जो व्यक्ति को जिंदगी में खूब कामयाबी दिलाते हैं।
लक्ष्मी योग
यदि हस्तरेखाओं में बुध, गुरु, शुक्र और चंद्रमा पर्वत अच्छी तरह से लालिमा लिए हुए विकसित हो गए हैं, तो ये लक्ष्मी योग कहलाता है। इसे काफी शुभ योग माना गया है, जिस व्यक्ति की हस्त रेखाओं में ये योग बनता है। वह जो भी काम करता है, उसमें उसे जरूर सफलता मिलती है। ऐसे लोगों की जिंदगी काफी खुशहाल होती है। इन लोगों को जीवन में खूब सारा आर्थिक लाभ होता है।
गजलक्ष्मी योग
यदि आपके हाथों की भाग्य रेखा मणिबंध से शुरू होकर शनि पर्वत तक जाती है। वहीं सूर्य रेखा बिना किसी कट-पिट के एकदम स्पष्ट दिखती हो और सूर्य पर्वत लालिमा लिए विकसित हो रखा है तो इस योग को गजलक्ष्मी योग कहा जाता है। इस योग को भी काफी शुभ माना गया है। ऐसा योग जिस किसी भी इंसान के हाथों पर होता है उसे दिन दोगुनी और रात चौगुनी तरक्की मिलती है। ये लोग व्यापार के क्षेत्र में खूब सारा लाभ अर्जित करते हैं। ऐसे लोगों का व्यक्तित्व काफी आकर्षक होता है।
शुभ कर्तरी योग
अगर आपकी हथेली का बीच का हिस्सा दबा हुआ है और सूर्य और गुरु पर्वत अच्छी तरह से विकसित हो गए हैं। वहीं भाग्य रेखा शनि पर्वत तक जाए तो ऐसे में शुभ कर्तरी योग बनता है। शुभ कर्तरी योग जिस किसी भी इंसान की हस्त रेखाओं में होता है। वह जीवन में खूब सारा धन अर्जित करता है। मां लक्ष्मी की कृपा ऐसे इंसानों के ऊपर सदा बनी रहती है।
भाग्य योग
यदि दोनों हाथों में भाग्य रेखा लंबी और स्पष्ट है तथा चंद्र पर्वत या फिर गुरु पर्वत से शुरू होती है, तो ऐसे में भाग्य योग बनता है। यह योग जिस व्यक्ति के हाथ में होता है, उसे जीवन में आपार सफलता मिलती है। कारोबार के क्षेत्र में वह खूब सारा लाभ अर्जित करता है। इसके अलावा ऐसे व्यक्ति का दांपत्य जीवन भी खुश रहता है। - रक्षा बंधन आने में कुछ ही दिन शेष बचे हैं. इस बार यह पर्व 22 अगस्त को मनाया जाएगा. रक्षा बंधन पर 474 साल बाद एक खास महासंयोग भी बन रहा है.धनिष्ठा नक्षत्र में मनेगा रक्षा बंधन का त्योहारज्योतिषियों के मुताबिक आमतौर पर रक्षा बंधन (Raksha Bandhan 2021) का त्योहार श्रवण नक्षत्र में मनाया जाता है. हालांकि इस बार यह सावन पूर्णिमा पर धनिष्ठा नक्षत्र के साथ मनाया जाएगा. ज्योतिषियों के अनुसार इस बार राखी पर भद्रा का साया भी नहीं रहेगा जिसके कारण बहनें पूरे दिन भाई को राखी बांध सकेंगी. इस दौरान कुंभ राशि में गुरु की चाल वक्री रहेगी और इसके साथ चंद्रमा भी वहां मौजूद रहेगा.ये रहेगा राखी का शुभ मुहूर्तइस बार रक्षाबंधन (Raksha Bandhan 2021) पर सुबह 5.50 से लेकर शाम 6.03 तक शुभ मुहूर्त (Rakhi Shubh Muhurta ) है यानी आप इस दौरान कभी भी राखी बांध या बंधवा सकते हैं. जबकि भद्रा काल 23 अगस्त को सुबह 5 बजकर 34 मिनट से 6 बजकर 12 मिनट तक रहेगा. इस दिन शोभन योग सुबह 10 बजकर 34 मिनट तक तक रहेगा और धनिष्ठा नक्षत्र शाम 7 बजकर 40 मिनट तक रहेगा. ऐसा कहते हैं कि धनिष्ठा नक्षत्र में पैदा होने वाले लोगों का भाई-बहन से रिश्ता बहुत खास होता है.474 साल बाद बन रहा संयोगज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस बार रक्षा बंधन पर सिंह राशि में सूर्य, मंगल और बुध ग्रह एक साथ विराजमान होंगे. सिंह राशि का स्वामी सूर्य है. इस राशि में मित्र मंगल भी उनके साथ रहेगा. जबकि शुक्र कन्या राशि में होगा. ग्रहों का ऐसा योग बेहद शुभ और फलदायी रहने वाला है. ज्योतिषियों का कहना है कि रक्षा बंधन (Raksha Bandhan 2021) पर ग्रहों का ऐसा दुर्लभ संयोग 474 साल बाद बन रहा है. इससे पहले 11 अगस्त 1547 को ग्रहों की ऐसी स्थिति बनी थी. ज्योतिषियों का कहना है कि इस वर्ष शुक्र बुध के स्वामित्व वाली राशि कन्या में स्थित रहेंगे. रक्षा बंधन (Raksha Bandhan 2021) पर ऐसा संयोग भाई-बहन के लिए अत्यंत लाभकारी और कल्याणकारी रहेगा. खरीदारी के लिए राजयोग भी बेहद शुभ माना जाता है.भाग्यशाली बनाता है ये योगगुरु और चंद्रमा की इस युति से रक्षा बंधन पर गजकेसरी योग बन रहा है. जब चंद्रमा और गुरु केंद्र में एक दूसरे की तरफ दृष्टि कर बैठे हों तो यह योग बनता है. यह योग लोगों को भाग्यशाली बनाता है. इससे लोगों की धन संपत्ति, मकान, वाहन जैसे सुखों की प्राप्ति होती है. गज केसरी योग बनने से राजसी सुख और समाज में मान-सम्मान की भी प्राप्ति होती है.
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 370
(भूमिका - विवाद से कभी कुछ हासिल नहीं होता, पुनः भक्तिमार्ग में विवाद तो महान हानि करने वाला है. जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से जानिये यह क्यों हानिकारक है...)
अश्रद्धालु एवं अनधिकारी से अपने मार्ग अथवा साधनादि के विषय में वाद-विवाद करना भी कुसंग है। क्योंकि जब अनधिकारी को सर्वसमर्थ महापुरुष ही आसानी के साथ बोध नहीं करा पाता, तब वह साधक भला किस खेत की मूली है। यदि कोई परहित की भावना से भी समझाना चाहता है, तब भी उसे ऐसा न करना चाहिये, क्योंकि अश्रद्धालु होने के कारण उसका विपरीत ही परिणाम होता है, साथ ही उस अश्रद्धालु के न मानने पर साधक का चित्त अशांत हो जाता है। शास्त्रानुसार भी भक्ति-मार्ग को लेकर वाद-विवाद करना घोर पाप है। भरत जी कहते हैं,
भक्त्या विवदमानेषु मार्गमाश्रित्य पश्यतः तेन पापेन्।
अर्थात् भरत जी कहते हैं कि भक्ति-मार्ग को लेकर वाद-विवादकर्म सरीखा महान पाप मुझे लग जाय यदि राम के वन जाने के विषय में मेरी राय रही हो।
अतएव न तो वाद-विवाद सुनना चाहिये, न तो स्वयं ही करना चाहिये। यदि अनधिकारी जीव, इन विषयों को नहीं समझता, तो इसमें आश्चर्य या दुःख भी न होना चाहिये, क्योंकि कभी तुम भी तो नहीं समझते थे। यह तो परम सौभाग्य, महापुरुष एवं भगवान की कृपा से प्राप्त होता है कि जीव, भगवद्विषय को समझ कर उनकी ओर उन्मुख हो।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) -
शास्त्रों में श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा या पवित्रा एकादशी बताया गया है। इस दिन भगवान शिव के साथ-साथ जगत के पालनहार भगवान श्री विष्णुजी की विधि-विधान से पूजा करने का विधान है। मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से वाजपेयी यज्ञ का फल मिलता है एवं भगवान विष्णु अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। संतान प्राप्ति की कामना के लिए इस व्रत को अमोघ माना गया है। इस व्रत को करने वाले भक्तों को न केवल स्वस्थ तथा दीर्घायु संतान प्राप्त होती है बल्कि उनके सभी प्रकार के कष्ट भी दूर हो जाते हैं। इस वर्ष पवित्रा एकादशी का पर्व 18 अगस्त,बुधवार को मनाया जाएगा। पवित्रा एकादशी की कथा का श्रवण एवं पठन करने से मनुष्य के समस्त पापों का नाश होता है, वंश वृद्धि होती है तथा समस्त सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है।
श्रीनारायण की करें पूजा
श्रावण पवित्रा एकादशी सब पापों को हरने वाली उत्तम तिथि है। चराचर प्राणियों सहित समस्त त्रिलोक में इससे बढ़कर दूसरी कोई तिथि नहीं है। इस दिन समस्त कामनाओं तथा सिद्धियों के दाता भगवान श्री नारायण की उपासना करनी चाहिए। रोली, मोली, पीले चन्दन, अक्षत, पीले पुष्प, ऋतुफल, मिष्ठान आदि अर्पित कर धूप-दीप से श्री हरि की आरती उतारकर दीप दान करना चाहिए। इस दिन '? नमो भगवते वासुदेवाय ' का जप एवं विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना बहुत फलदायी है। संतान कामना के लिए इस दिन भगवान कृष्ण के बाल स्वरूप की पूजा की जाती है। योग्य संतान के इच्छुक दंपत्ति प्रात: स्नान के बाद पीले वस्त्र पहनकर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें। इसके बाद संतान गोपाल मंत्र का जाप करना चाहिए। इस दिन भक्तों को परनिंदा, छल-कपट,लालच, द्धेष की भावनाओं से दूर रहकर,श्री नारायण को ध्यान में रखते हुए भक्तिभाव से उनका भजन करना चाहिए। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद स्वयं भोजन करें।
पवित्रा एकादशी की कथा
कथा के अनुसार द्वापर युग के प्रारंभ का समय था, महिष्मतीपुर में राजा महिजित अपने राज्य का पालन करते थे।नि:संतान होने के कारण राजा बहुत दु:खी रहते थे। प्रजा से राजा का दु:ख देखा नहीं गया और वह लोमश ऋषि के पास गये एवं ऋषि से राजा के नि:संतान होने का कारण और उपाय पूछा। लोमश ऋषि ने बताया कि राजा पूर्व जन्म में एक निर्धन वैश्य था।एक दिन जेठ के शुक्ल पक्ष में दशमी तिथि को,जब दोपहर का सूर्य तप रहा था,वह एक जलाशय पर पानी पीने पहुंचा।तभी एक गाय अपने बछड़े सहित वहां पानी पीने आ गई। वैश्य ने पानी पीती हुई गाय को हांककर दूर हटा दिया और स्वयं पानी पीकर प्यास बुझाई।उसी पापकर्म के कारण राजा को नि:संतान रहना पड़ रहा। लोमश ऋषि ने उन लोगों से कहा कि अगर आप लोग चाहते हैं कि राजा को संतान की प्राप्ति हो तो श्रावण शुक्ल एकादशी का व्रत रखें और द्वादशी के दिन अपने व्रत का पुण्य राजा को दान कर दें। राजा के शुभचिंतकों ने ऋषि के बताए विधि के अनुसार व्रत किया और व्रत के पुण्य को दान कर दिया। इससे राजा को सुंदर एवं स्वस्थ्य पुत्र की प्राप्ति हुई।मान्यता है कि जो भी व्यक्ति नि:सन्तान है, वो व्यक्ति यदि इस व्रत को शुद्ध मन से पूरा करे तो अवश्य ही उसकी इच्छा पूरी होती है और उसे संतान की प्राप्ति होती है। -
सूर्य देव कर्क राशि की यात्रा समाप्त करके 16 अगस्त की मध्यरात्रि 1 बजकर 14 मिनट पर अपनी स्वयं की राशि सिंह में प्रवेश कर चुके हैं। आदिकाल में इनके पास सभी बारह राशियों का आधिपत्य किंतु, कालांतर में इन्होंने कर्क राशि चंद्रमा को और बाकी अन्य ग्रहों को दो-दो राशियां प्रदान करके अपने पास केवल सिंह राशि रखी। इस राशि में सूर्य अत्यधिक प्रभावशाली माने जाते हैं। मेष राशि इनकी उच्चराशि तथा तुला राशि नीच राशिगत संज्ञक मानी गई है किसी भी जातक की जन्मकुंडली में यदि सूर्य अत्यधिक बलवान हो तो वह जीवन के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचता है। कामयाबियां उसके कदम चूमती हैं। सूर्य कमजोर हों तो काफी संघर्ष के बाद ही सफलता का संयोग बनता है। इनके राशि परिवर्तन का अन्य सभी राशियों पर कैसा प्रभाव पड़ेगा इसका ज्योतिषीय विश्लेषण करते हैं।
मेष राशि
राशि से पंचम विद्याभाव में अपने मूलत्रिकोण में पहुंचते हुए सूर्य देव का शुभ प्रभाव आपके लिए वरदान से कम नहीं है विशेषकर के विद्यार्थियों अथवा प्रतियोगिता में बैठने वाले छात्रों के लिए तो यह एक तरह का नया अवसर है। शिक्षा प्रतियोगिता में अच्छी सफलता मिलेगी। संतान के दायित्व की पूर्ति होगी। नवदंपति के लिए संतान प्राप्ति एवं प्रादुर्भाव के भी योग। प्रेम संबंधी मामलों में उदासीनता रहेगी इसलिए कार्य-व्यापार पर अधिक ध्यान देना समझदारी रहेगी।
वृषभ राशि
राशि से चतुर्थ सुख भाव में अपने ही घर में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव काफी मिलाजुला रहेगा। किसी कारण से पारिवारिक कलह एवं मानसिक अशांति का सामना करना पड़ सकता है। मित्रों तथा संबंधियों से भी अप्रिय समाचार प्राप्ति के योग। यात्रा सावधानीपूर्वक करें। सामान चोरी होने से बचाएं। आपके अपने ही लोग नीचा दिखाने की कोशिश करेंगे। जमीन-जायदाद से जुड़े मामलों का निपटारा होगा। सरकारी सर्विस के लिए आवेदन करना अच्छा परिणाम देगा।
मिथुन राशि
राशि से तृतीय पराक्रम भाव में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव आपके साहस और पराक्रम के वृद्धि करेगा। अपनी ऊर्जा शक्ति के बल पर कठिन हालात को भी आसानी से नियंत्रित कर लेंगे। आपके द्वारा लिए गए निर्णय की सराहना होगी। योजनाओं को गोपनीय रखें और जब तक पूर्ण न हो जाए उसे सार्वजनिक न करें। परिवार के वरिष्ठ सदस्यों तथा भाइयों से मतभेद बढऩे न दें। विदेशी कंपनियों में सर्विस एवं नागरिकता के लिए किया गया प्रयास सफल रहने के योग।
कर्क राशि
राशि से द्वितीय धन भाव में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव आर्थिक पक्ष मजबूत करेगा। दिया गया धन भी वापस मिलने की उम्मीद। अपनी वाणी कुशलता के बल पर बिगड़ते हुए हालात को भी संभाल लेने में सफल रहेंगे। जमीन जायदाद से जुड़े कार्य संपन्न होंगे। केंद्र अथवा राज्य सरकार के विभागों में प्रतीक्षित कार्यो का निपटारा होगा। किसी भी तरह के सरकारी टेंडर में भी आवेदन करना चाह रहे हों तो अवसर अनुकूल रहेगा। स्वास्थ्य के प्रति भी अधिक सावधान रहें।
सिंह राशि
अपनी ही राशि में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव आपके लिए बेहतरीन सफलता दिलाने वाला रहेगा। मान-सम्मान की वृद्धि होगी। नौकरी में भी पदोन्नति तथा नए अनुबंध के प्राप्ति के योग। धर्म एवं अध्यात्म के प्रति भी गहरी रूचि रहेगी शादी-विवाह से संबंधित वार्ता सफल रहेगी। किसी भी तरह की सरकारी संस्था में नौकरीके लिए आवेदन करना चाह रहे हों तो अवसर अनुकूल है। संतान के दायित्व की पूर्ति होगी। नवदंपत्ति के लिए संतान प्राप्ति एवं प्रादुर्भाव के भी योग।
कन्या राशि
राशि से बारहवें में हानि भाव में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता। अत्यधिक भागदौड़ तथा आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ेगा। दूर देश की कष्टकर यात्राओं का भी योग बनेगा। स्वास्थ्य पर अधिक ध्यान दें। कोर्ट-कचहरी के मामलों में निर्णय आपके पक्ष में आने के संकेत। विदेशी कंपनियों में सर्विस अथवा नागरिकता के लिए प्रयास करना सफल रहेगा। जो छात्र विदेश में पढ़ाई करने जाना चाह रहे हों उनके लिए अवसर अनुकूल रहेगा।
तुला राशि
राशि से एकादश लाभ भाव में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं है। कोई भी बड़े से बड़ा कार्य आरंभ करना चाहें अथवा नए अनुबंध पर हस्ताक्षर करना चाहें तो उस दृष्टि से भी अवसर अनुकूल रहेगा। आर्थिक पक्ष और मजबूत होगा। संतान संबंधी चिंता परेशान कर सकती है। परिवार के वरिष्ठ सदस्यों तथा बड़े भाइयों से मतभेद न पैदा होने दें। विद्यार्थियों एवं प्रतियोगिता में बैठने वाले छात्रों के लिए भी समय और अनुकूल रहेगा।
वृश्चिक राशि
राशि से दशम कर्म भाव में गोचर करते हुए सूर्य अत्यधिक प्रभावशाली भूमिका निभाएंगे। नौकरी में पदोन्नति तथा मान-सम्मान की वृद्धि तो होगी ही सामाजिक जिम्मेदारियां बढ़ेंगी। सरकारी विभागों में किसी भी तरह के टेंडर का आवेदन करना चाह रहे हों तो अवसर अनुकूल रहेगा। उच्चाधिकारियों से सहयोग मिलेगा। अपनी ऊर्जाशक्ति एवं अदम्य साहस के बल पर कठिन परिस्थितियों को भी आसानी से नियंत्रित कर लेंगे। जो भी निर्णय लेंगे उसी में पूर्व सफल रहेंगे।
धनु राशि
राशि से नवम भाग्य भाव में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव धर्म एवं अध्यात्म के प्रति अत्यधिक उन्नति प्रदान करेगा यह भी संभव है कि आपका अपने इष्ट से साक्षात्कार हो। भाग्योन्नति तो होगी ही नौकरी में भी पदोन्नति तथा नए अनुबंध प्राप्ति के योग। कोर्ट-कचहरी के मामलों में निर्णय आपके पक्ष में आने के संकेत। यात्रा-देशाटन का लाभ मिलेगा। विद्यार्थी वर्ग यदि विदेश में पढ़ाई के लिए प्रयास करना चाह रहे हों तो उनके लिए सूर्य का गोचर अच्छा फल प्रदान करेगा।
मकर राशि
राशि से अष्टम आयु भाव में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव काफी मिलाजुला रहेगा। मान-सम्मान तथा सामाजिक पद प्रतिष्ठा बढ़ेगी किंतु आपके अपने ही लोग षड्यंत्र करते रहेंगे इसलिए बेहतर रहेगा कि झगड़े विवाद से दूर ही रहें। कोर्ट कचहरी से जुड़े मामले भी आपस में सुलझाएं। स्वास्थ्य के प्रति भी चिंतनशील रहें। अग्नि, विष तथा दवाओं के रिएक्शन से बचें। जमीन-जायदाद से जुड़े मामलों का निपटारा होगा। अपनी रणनीतियों को जब तक पूर्ण कर लें उसे सार्वजनिक न करें।
कुंभ राशि
राशि से सप्तम दाम्पत्य भाव में अपने ही घर में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव काफी मिलाजुला रहेगा। दांपत्य जीवन में कड़वाहट आ सकती है। विवाह संबंधित वार्ता में थोड़ा विलंब होगा। व्यापारीवर्ग के लिए समय अनुकूल रहेगा। साझा व्यापार करने से बचें। विदेशी कंपनियों में सर्विस अथवा नागरिकता के लिए किया गया प्रयास सफल रहेगा। स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहें। झगड़े विवाद से बचें और कोर्ट कचहरी के मामले भी बाहर ही सुलझाएं।
मीन राशि
राशि से छठे शत्रु भाव में गोचर करते हुए सूर्यका प्रभाव आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं है इसलिए जैसी सफलता चाहें हासिल कर सकते हैं। कार्य व्यापार की दृष्टि से भी समय अति अनुकूल रहेगा। किसी नए अनुबंध हस्ताक्षर करना चाह रहे हैं तो भी अवसर अनुकूल रहेगा। इस अवधि में कर्जके लेन-देन से बचें। न्यायालय से संबंधित सभी मामलों में भी विजय श्री मिलेगी। अत्यधिक यात्रा के कारण थकान का अनुभव करेंगे स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहें। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 369
(भूमिका - एकान्त में बैठकर साधना सरल है, किन्तु संसार में कर्मरत रहते हुये साधना में कठिनाई आती है. इस कठिनाई को सरल कैसे करना है और कर्मयोग की साधना का अभ्यास कैसे करना है, जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी समझा रहे हैं...)
...एक गाय, जानवर, दिन भर चारा चरती है। लेकिन अपने बछड़े को याद करती रहती है। ये कर्मयोग की साधना है उसकी, और जब शाम को लौटती हैं, चारा चरने के बाद, और गौशाला के पास आती है तो वो जो चोरी-चोरी प्यार कर रही थी थोड़ा-थोड़ा वह कन्ट्रोल से बाहर हो जाता है तो रम्भाती है। बड़े जोर से बोलती है, चिल्लाती है, अपने बच्चे को पुकारती है और बच्चा भी उसका माँ की आवाज पहचानता है तो खूँटे में बँधा हुआ, उसका बच्चा भी आवाज देता है, मम्मी जल्दी आ जाओ। ये देखो पशुओं मे भी इस प्रकार का विषय है। तो मनुष्य की कौन कहे। हाँ तो हमें इस प्रकार कर्मयोग की साधना करना है अर्थात हम कार्य करते हुए भी बार-बार एक बात का तो अभ्यास करें कि हम अकेले नहीं हैं कभी भी एक क्षण को भी। इसका आप लोग घण्टे-घण्टे भर में पहले अभ्यास कीजिये।
हम अधिक समय नहीं ले रहे हैं आपका। एक घण्टे में, एक सेकेण्ड बस, एक मिनट नहीं, जितनी देर में आप यों यों खुजला लेते हैं, यों यों कर लेते हैं। कोई भी वर्क आपका संसार में ऐसा नहीं है कि समाधि लग जाय।
अरे भाई हर काम करते समय ऑफिस वर्क करते समय भी आप देख लेतें है, कभी इधर को कभी उधर को, कभी कुछ सोच लेते हैं, कभी छींक आ गई, कभी खाँसी आ गई, ये होता ही रहता है आपको संसार में भी वर्क करते समय भी। तो आप घण्टे भर में एक सेकेण्ड को, जैसे मेज आपके सामने है, कुर्सी पर बैठे हैं, मेज के एक किनारे पर आप मन से श्यामसुन्दर को बैठा दीजिये, हाँ बैठ गये, अब तुम देखो मैं वर्क करता हूँ। एक घण्टा हो गया बैठे हो न? हाँ बैठे हैं। बैठे हो न? हाँ बैठे हैं। एक-एक घण्टे पर रियलाइज किया कि श्यामसुन्दर हमारे साथ हैं हमारे पास हैं, हम अकेले नही हैं। हाँ हमारी प्राइवेसी आज से खत्म। हम कोई बात प्राईवेट सोच नहीं सकते, हमें अधिकार नहीं सोचने का, क्योंकि वो हमारे अन्दर बैठे सब नोट कर रहे हैं। फिर आधे घण्टे पर किया एक सेकेण्ड को कि वो हमारे साथ हैं, फिर पन्द्रह मिनट पर किया।
जब आप यहां तक पहुँच जायेंगे तब आप अनुभव करेगें कि अब ऐसा लग रहा है कि वो हर समय हमारे साथ हैं हर समय वो साथ हैं। उनका रुप ध्यान नहीं लाना है, केवल फीलिंग लाना है कि मेरे प्राण वल्लभ मेरे साथ हैं मैं अकेला नहीं हूँ। हर समय इतना आत्मबल होगा आपको, कितनी खुशी होगी आपको, मेरे श्यामसुन्दर सदा हमारे साथ हैं, मेरे गुरु सदा मेरे साथ हैं, ये इन दोनों को हमको हर समय अपने साथ महसूस करने का अभ्यास करना है। फिर कुछ दिनों बाद आपको करना नहीं पड़ेगा, स्वत: होने लगेगा, यही कर्मयोग की साधना है जो आप अपने सांसारिक कार्य करते हुये साधना पथ पर बढ़ते-बढ़ते अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेगें, दिव्यानन्द की प्राप्ति कर पायेंगे।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'कामना और उपासना' भाग - 2०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं. - हिन्दू धर्म में जन्माष्टमी के पर्व का खास महत्व माना जाता है और कृष्ण भक्त धूमधाम के साथ इस त्योहार को मनाते हैं. इस साल जन्माष्टमी का पर्व 30 अगस्त को मनाया जाएगा. धार्मिक मान्यता है कि भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को ही भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था और उन्हीं के जन्मदिवस को जन्माष्टमी कहा जाता है.30 अगस्त को है जन्माष्टमीजन्माष्टमी के दिन भक्त आधी रात तक जगराता करते हैं जिसमें कृष्ण की लीलाओं का मंचन और भजन कीर्तन किया जाता है. रात के 12 बजे तक यह कार्यक्रम चलता है क्योंकि भगवान कृष्ण का जन्म भी रात 12 बजे हुआ था. इस साल सोमवार के दिन 30 अगस्त को यह पर्व मनाया जाएगा. इससे पहले हम आपको भगवान कृष्ण का मंदिर सजाने के कुछ उपाय बताने जा रहे हैं जिससे आपको जरूर ही विष्णु के अवतार कहे जाने वाले श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होगा.वैसे तो सुबह से ही कृष्ण जन्माष्टमी की धूम रहती है और मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है लेकिन भक्तगण रात के वक्त भी अपने घरों में श्रीकृष्ण की मूर्ति और उनके मंदिर को सजाते हैं ताकि भगवान का जन्मदिन धूमधाम के साथ मनाया जा सके.संपूर्ण श्रृंगार से खुश होंगे कृष्णऐसा माना जाता है कि जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण भगवान का संपूर्ण श्रृंगार करना चाहिए और इससे आपको ईश्वर की कृपा मिलती है. अपने घर के किसी बच्चे के लिए आप जन्मदिन पर जैसी तैयारियां करते हैं, वैसी ही तैयारियां श्रीकृष्ण के जन्मदिन पर भी आम तौर पर घरों में की जाती हैं. लेकिन इससे लिए कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है.श्रीकृष्ण का बालरूप लड्डू गोपालअगर आप भी जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण का मंदिर सजाने की तैयारी कर रहे हैं तो सबसे पहले लड्डू गोपाल का झूला या पालना बाजार से ले आइये. भगवान बाल काल में इसी पालने का आनंद लेते थे और ऐसा करने से आपको श्रीकृष्ण का आशीर्वाद हासिल हो सकता है.इन चीजों का करें इस्तेमालइसके अलावा भगवान के लिए पीताम्बर वस्त्र का चलन भी है. जन्मदिन के मौके पर श्रीकृष्ण को मुकुट, बांसुरी, सुदर्शन चक्र, मोर पंख से सजाना लाभकारी रहेगा. यही सब भगवान कृष्ण धारण करते थे और आप भी अपने लड्डू गोपाल को सजाने के लिए इस वस्तुओं का इस्तेमाल कर सकते हैं.भगवान के लिए कुंडल, शंख, माला, पायल भी बाजार से खरीदकर ले आइये. इसके अलावा धनुष और गदा धारण किए हुए श्रीकृष्ण भी आपके मंदिर की शोभा बढ़ा सकते हैं. कन्हैया के मंदिर में गाय, मक्खन का प्रसाद, मिश्री भी रख सकते हैं, यह सभी वह चीजें हैं जो श्रीकृष्ण को सबसे ज्यादा पसंद हैं. इन सभी सामानों से अगर आप जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण का श्रृंगार करते हैं तो यह उपाय आपके लिए बेहद लाभकारी साबित हो सकते हैं.
- सनातन परंपरा में तमाम तरह की कामनाओं को पूरा करने के लिए अलग-अलग मंत्र बताए गये हैं. उन सभी मंत्रों में गायत्री मंत्र – ‘ॐ भूर्भव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्’ का विशेष स्थान है. माँ गायत्री को ब्रह्मा,विष्णु और महेश तीनों स्वरुप माना जाता है. मान्यता है कि चारों वेद, पुराण, श्रुतियाँ सभी गायत्री से उत्त्पन हुए हैं, इसलिए इन्हें वेदमाता भी कहा गया है. माता गायत्री के मंत्र की महिमा का बखान अनेक ऋषि-मुनियों ने किया है. गायत्री महामंत्र में तीन वेदों का सार है. जिसका जप करने से बड़े से बड़े पापों से मुक्ति मिल जाती है. इस मंत्र की दिव्य शक्ति नर्क रूपी सागर में पड़े व्यक्ति को भी हाथ पकड़कर बाहर निकाल लेती है. आइए गायत्री मंत्र से जुड़े उन उपायों के बारे में जानते हैं, जिन्हें करते ही मनुष्य के जीवन में चमत्कारिक बदलाव आता है –यदि आप सत्ता या सरकार से कोई लाभ की प्राप्ति की उम्मीद लगाए हुए हैं तो अपनी कामना को पूरा करने के लिए आप किसी बेल के पेड़ के नीचे गायत्री मंत्र की प्रतिदिन एक माला जप जरूर करें. इस उपाय से आपको राजकीय सेवा से लाभ प्राप्त होगा.लंबी आयु और आरोग्य की प्राप्ति के लिए दो महीने तक प्रतिदिन एक हजार बार गायत्री मंत्र का जप प्रतिदिन करना चाहिए. यदि इसके साथ आपको धन की देवी का भी आशीर्वाद पाना हो तो आपको इसी मंत्र को तीन महीने तक लगातार जप करना चाहिए.यदि आप आर्थिक तंगी से जूझ रहे हों और आपको मां लक्ष्मी की कृपा पानी हो तो आपके लिए गायत्री मंत्र का जप वरदान साबित हो सकता है. माता लक्ष्मी का आशीर्वाद पाने के लिए लाल फूलों से 108 बार गायत्री मंत्र जपते हुए हवन कुंड में आहुति देनी चाहिए.शनिवार के दिन किसी पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर 108 बार गायत्री मंत्र का जप करने से सभी प्रकार के भय, भूत बाधा से मुक्ति मिलती है.यदि आप किसी रोग से बहुत पीड़ित चल रहे हैं और काफी इलाज के बाद आपको उस रोग से मुक्ति नहीं मिल पा रही है तो आप गिलोय के अंगूठे के बराबर टुकड़े लेकर उसे गाय के दूध में मिला लें. इसके बाद गायत्री मंत्र का जाप करते हुए इस गिलोय के टुकड़े की हवन कुंड में 108 आहुति दें. अपने इलाज के साथ गायत्री मंत्र के इस उपाय को करने से शीघ्र ही आपको स्वास्थ्य लाभ मिलेगा.
- वास्तु शास्त्र में कुछ ऐसी वस्तुओं को बताया गया है ,जिन्हें घर में रखने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है ऐसे ही वास्तु चिन्हों का प्रयोग हम आज आपको बताने जा रहे हैं।वास्तु चिन्हों का प्रयोगवास्तु चिन्हों को घर में रखने से आपके घर की नकारात्मक उर्जा खत्म होगी और सकारात्मक ऊर्जा वास्तु दोष को खत्म करके शुभ फल प्रदान करेगी ।मंगल कलश-मंगल कलश या तो मिट्टी का हो सकता है या किसी भी पवित्र धातु का हो सकता है ,जिसमें जल भरकर उस पर अशोक या आम की पत्तियों के ऊपर नारियल रखा जाता है तथा कलश को लाल कलावा से बांधा जाता है इसे घर के मंदिर में स्थापित करना चाहिए ।हाथ के निशान-घर के प्रमुख दरवाजे पर या फिर उसके साथ लगी हुई दीवार पर महिलाओं के हाथ में हल्दी लगाकर उसे छापना चाहिए । यह निशान वास्तु के हिसाब से बेहद शुभ माने जाते हैं । कहा जाता है सृष्टि के पांच तत्व हमारे हथेलियों में समाए हैं, इसीलिए यह निशान घर में सुख और समृद्धि लाते हैं ।मछली-वास्तुशास्त्र में मछली खुशहाली का प्रतीक माना जाता है और यदि यह मछली का जोड़ा है तो और भी अच्छा । मछली के इस प्रतीक चिन्ह को घर के उत्तर दिशा में रखना चाहिए जिससे धन लाभ होता है । अगर आप यह चिन्ह घर में नहीं रख सकते तो फिश एक्वेरियम रख सकते हैं ।ओम-ओम घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है जो घर से रोगों को निकालकर घर में स्वास्थ्य संबंधित सकारात्मक ऊर्जा का निवास करता है । आप ओम चिन्ह को घर के प्रवेशद्वार , घर के मध्य में या घर के किसी भी कोने में रख सकते हैं ।स्वस्तिक-यदि आपके घर में धन से संबंधित कोई परेशानी है, धन आता है टिक नहीं पाता या फिर घर के सदस्य बार-बार बीमार पड़ जाते हैं तो आप स्वास्तिक चिन्ह अपने घर में जरूर लगाएं। इस स्वास्तिक को घर के मुख्य द्वार के दोनों तरफ लगा सकते हैं ।-----
- शिव भगवान देवों के देव महादेव हैं। इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि नामों से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से जाना जाता है। शिव भगवान हिन्दू शिव-धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं। वेद में इनका नाम रुद्र है। इनकी अर्धांगिनी का नाम पार्वती है। पुत्र कार्तिकेय और गणेश हैं तथा पुत्री अशोक सुंदरी हैं।जानें भगवान शिव के 108 नाम और उनका अर्थ1.शिव - कल्याण स्वरूप2.महेश्वर - माया के अधीश्वर3.शम्भू - आनंद स्वरूप वाले4.पिनाकी - पिनाक धनुष धारण करने वाले5.शशिशेखर - चंद्रमा धारण करने वाले6.वामदेव - अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले7.विरूपाक्ष - विचित्र अथवा तीन आंख वाले8.कपर्दी - जटा धारण करने वाले9.नीललोहित - नीले और लाल रंग वाले10.शंकर - सबका कल्याण करने वाले11.शूलपाणी - हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले12.खटवांगी- खटिया का एक पाया रखने वाले13.विष्णुवल्लभ - भगवान विष्णु के अति प्रिय14.शिपिविष्ट - सितुहा में प्रवेश करने वाले15.अंबिकानाथ- देवी भगवती के पति16.श्रीकण्ठ - सुंदर कण्ठ वाले17.भक्तवत्सल - भक्तों को अत्यंत स्नेह करने वाले18.भव - संसार के रूप में प्रकट होने वाले19.शर्व - कष्टों को नष्ट करने वाले20.त्रिलोकेश- तीनों लोकों के स्वामी21.शितिकण्ठ - सफेद कण्ठ वाले22.शिवाप्रिय - पार्वती के प्रिय23.उग्र - अत्यंत उग्र रूप वाले24.कपाली - कपाल धारण करने वाले25.कामारी - कामदेव के शत्रु, अंधकार को हरने वाले26.सुरसूदन - अंधक दैत्य को मारने वाले27.गंगाधर - गंगा को जटाओं में धारण करने वाले28.ललाटाक्ष - माथे पर आंख धारण किए हुए29.महाकाल - कालों के भी काल30.कृपानिधि - करुणा की खान31.भीम - भयंकर या रुद्र रूप वाले32.परशुहस्त - हाथ में फरसा धारण करने वाले33.मृगपाणी - हाथ में हिरण धारण करने वाले34.जटाधर - जटा रखने वाले35.कैलाशवासी - कैलाश पर निवास करने वाले36.कवची - कवच धारण करने वाले37.कठोर - अत्यंत मजबूत देह वाले38.त्रिपुरांतक - त्रिपुरासुर का विनाश करने वाले39.वृषांक - बैल-चिह्न की ध्वजा वाले40.वृषभारूढ़ - बैल पर सवार होने वाले41.भस्मोद्धूलितविग्रह - भस्म लगाने वाले42.सामप्रिय - सामगान से प्रेम करने वाले43.स्वरमयी - सातों स्वरों में निवास करने वाले44.त्रयीमूर्ति - वेद रूपी विग्रह करने वाले45.अनीश्वर - जो स्वयं ही सबके स्वामी है46.सर्वज्ञ - सब कुछ जानने वाले47.परमात्मा - सब आत्माओं में सर्वोच्च48.सोमसूर्याग्निलोचन - चंद्र, सूर्य और अग्निरूपी आंख वाले49.हवि - आहुति रूपी द्रव्य वाले50.यज्ञमय - यज्ञ स्वरूप वाले51.सोम - उमा के सहित रूप वाले52.पंचवक्त्र - पांच मुख वाले53.सदाशिव - नित्य कल्याण रूप वाले54.विश्वेश्वर- विश्व के ईश्वर55.वीरभद्र - वीर तथा शांत स्वरूप वाले56.गणनाथ - गणों के स्वामी57.प्रजापति - प्रजा का पालन- पोषण करने वाले58.हिरण्यरेता - स्वर्ण तेज वाले59.दुर्धुर्ष - किसी से न हारने वाले60.गिरीश - पर्वतों के स्वामी61.गिरिश्वर - कैलाश पर्वत पर रहने वाले62.अनघ - पापरहित या पुण्य आत्मा63.भुजंगभूषण - सांपों व नागों के आभूषण धारण करने वाले64.भर्ग - पापों का नाश करने वाले65.गिरिधन्वा - मेरू पर्वत को धनुष बनाने वाले66.गिरिप्रिय - पर्वत को प्रेम करने वाले67.कृत्तिवासा - गजचर्म पहनने वाले68.पुराराति - पुरों का नाश करने वाले69.भगवान् - सर्वसमर्थ ऐश्वर्य संपन्न70.प्रमथाधिप - प्रथम गणों के अधिपति71.मृत्युंजय - मृत्यु को जीतने वाले72.सूक्ष्मतनु - सूक्ष्म शरीर वाले73.जगद्व्यापी- जगत में व्याप्त होकर रहने वाले74.जगद्गुरू - जगत के गुरु75.व्योमकेश - आकाश रूपी बाल वाले76.महासेनजनक - कार्तिकेय के पिता77.चारुविक्रम - सुन्दर पराक्रम वाले78.रूद्र - उग्र रूप वाले79.भूतपति - भूतप्रेत व पंचभूतों के स्वामी80.स्थाणु - स्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले81.अहिर्बुध्न्य - कुण्डलिनी- धारण करने वाले82.दिगम्बर - नग्न, आकाश रूपी वस्त्र वाले83.अष्टमूर्ति - आठ रूप वाले84.अनेकात्मा - अनेक आत्मा वाले85.सात्त्विक- सत्व गुण वाले86.शुद्धविग्रह - दिव्यमूर्ति वाले87.शाश्वत - नित्य रहने वाले88.खण्डपरशु - टूटा हुआ फरसा धारण करने वाले89.अज - जन्म रहित90.पाशविमोचन - बंधन से छुड़ाने वाले91.मृड - सुखस्वरूप वाले92.पशुपति - पशुओं के स्वामी93.देव - स्वयं प्रकाश रूप94.महादेव - देवों के देव95.अव्यय - खर्च होने पर भी न घटने वाले96.हरि - विष्णु समरूपी97.पूषदन्तभित् - पूषा के दांत उखाडऩे वाले98.अव्यग्र - व्यथित न होने वाले99.दक्षाध्वरहर - दक्ष के यज्ञ का नाश करने वाले100.हर - पापों को हरने वाले101.भगनेत्रभिद् - भग देवता की आंख फोडऩे वाले102.अव्यक्त - इंद्रियों के सामने प्रकट न होने वाले103.सहस्राक्ष - अनंत आँख वाले104.सहस्रपाद - अनंत पैर वाले105.अपवर्गप्रद - मोक्ष देने वाले106.अनंत - देशकाल वस्तु रूपी परिच्छेद से रहित107.तारक - तारने वाले108.परमेश्वर - प्रथम ईश्वर
- आज सावन का अंतिम सोमवार है। पौराणिक ग्रंथों में भगवान शिव को प्रसन्न करने के कई उपाय बताए गए हैं। माना जाता है कि इन उपायों से हमेशा भोलेनाथ की कृपा बनी रहती है और जीवन के कष्ट दूर होते हैं।1*भोलेभंडारी भगवान शिव को भांग-धतूरा अति प्रिय है इसलिए शिवलिंग पर भांग धतूरा चढ़ाने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं।2* मोक्ष की प्राप्ति के लिए शिवलिंग पर लाल या सफेद आंकड़े के फूल चढ़ाने चाहिए।3* प्रतिदिन 21 बिल्वपत्रों पर चंदन से ओम नम: शिवाय लिखकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। बिल्वपत्र अर्पित करते समय ध्यान रखें वह कहीं से भी खंडित नहीं होने चाहिए और बिल्वपत्र हमेशा उल्टा अर्पित करना चाहिए मतलब पत्ते का चिकना भाग शिवलिंग को स्पर्श करना चाहिए ऐसा करने से भगवान शिव आपकी सब मनोकामनाएं पूर्ण कर देंगे।4*भोलेभंडारी भगवान शिव का वाहन नंदी है इसलिए सांड को गुड़ खिलाने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और सोमवार के दिन बैल को हरा चारा खिलाएं ऐसा करने से सुख समृद्धि का आगमन होता है।5*सोमवार के दिन प्रात: काल उठकर स्नान के पश्चात भगवान शिवमंदिर में जाकर भगवान शिव पर जल अभिषेक करें और काला तिल अर्पित करें,मन ही मन में ओम नम: शिवाय मंत्र का जाप करें ,ऐसा करने से हर समस्या दूर हो जाती है।6* भगवान भोलेनाथ को जल्दी प्रसन्न करने के लिए गंगाजल से अभिषेक करें। अभिषेक में फिर आप दूध में चीनी मिलाकर शिवलिंग को स्नान कराएं।7*पापों को नष्ट करने के लिए शिवलिंग पर काले तिल चढ़ाने चाहिए।8* सोमवार के दिन शक्कर,गेहूं के आटे से बने प्रसाद से भगवान शिव को भोग लगाना चाहिए और इसके पश्चात धूप दीप से आरती करें।9*भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए प्रत्येक सोमवार को महामृत्युंजय मंत्र का जाप 108 बार अवश्य करना चाहिए।10* मोक्ष की प्राप्ति के लिए शमी वृक्ष के पत्तों से शिवलिंग का पूजन करना चाहिए।11*सावन के महीने में शिवलिंग पर प्रतिदिन केसर मिला हुआ कच्चा दूध चढ़ाएं ऐसा करने से अगर आपके विवाह में कोई भी परेशानी आ रही है तो वह दूर हो जाएगी।12* बेला के फूल से शिवलिंग का पूजन करने से सुयोग्य,सुंदर और सुशील पत्नी आपके जीवन में प्रवेश करती है।13* शिवलिंग पर चावल चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है।14*पितरों की आत्मा की शांति के लिए सोमवार के दिन गरीबों को भोजन कराएं ऐसा करने से घर में अन्न के भंडार भरे रहते हैं।15*संतान सुख की प्राप्ति के लिए शिवलिंग पर धतूरे का फूल चढ़ाएं।16* भोलेभंडारी भगवान शिव के लिये सोमवार का व्रत रखने से वैवाहिक सुख प्राप्त होता है।17*रोगों से छुटकारा पाने के लिए शिवलिंग पर गाय के कच्चे दूध से अभिषेक करें और काले तिल अर्पित करें।18*समाज में मान-सम्मान और यश प्राप्त करने के लिए शिवलिंग पर चंदन का तिलक करें।
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जन्माष्टमी का त्योहार 30 अगस्त 2021 को मनाया जाएगा
हिंदू धर्म में हर महीने का अपना खास महत्व होता है. चतुर्मास के समय में भगवान विष्णु की विभिन्न अवतारों में पूजा होती है. भाद्र मास में भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में जन्म लिया था. इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी कहा जाता है. भगवान कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा में ये त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है. ये त्योहार पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है. इस बार जन्माष्टमी का त्योहार 30 अगस्त 2021 को मनाया जाएगा. इस दिन कृष्ण मंदिरों में झांकियां सजाते हैं. कई लोग अपने घर में लड्डू गोपाल का जन्म मनाते हैं. माना जाता है कि निसंतान दंपती अगर जन्माष्टमी का व्रत रखते हैं तो उनकी सभी मनोकामनाएं जल्द पूरी होती है. आइए जानते हैं जन्माष्टमी के दिन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातों के बारे में.
श्री कृष्ण जन्माष्टमी शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रमास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था. इस बार 29 अगस्त को रविवार रात 11 बजकर 25 मिनट पर होगा और 30 अगस्त को रात 01 बजकर 59 मिनट पर रहेगा. उदया तिथि की वजह से 30 अगस्त 2021 को कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाएगी. इस बार कृष्ण जन्माष्टमी पर चंद्रमा वृष राशि और रोहिणी नक्षत्र का संयोग बन रहा है.
जन्माष्टमी का महत्व
हिंदू धर्म में इस त्योहार का विशेष महत्व होता है. इस दिन कई लोग व्रत करते हैं. माना जाता है कि जो भी पूरी भक्ति विधि- विधान से पूजा और उपवास करते हैं उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. वहीं ज्योतिष शास्त्र में भी इस दिन खास का महत्व होता है. जिनकी कुंडली में चंद्रमा कमजोर स्थिति में उनके लिए ये व्रत बहुत महत्वपूर्ण होता है. इस व्रत को दंपति विशेष रूप से संतान प्राप्ति के लिए करते हैं. इसके अलावा अविवाहित लड़कियां व्रत रखकर झुला झुलाती हैं उनके विवाह के संयोग जल्द बनते हैं. जन्माष्टमी से पहले लोग इस खास दिन की तैयारी कर देते हैं. बाजारों में उनके विशेष वस्त्र मिलते हैं. -
17 अगस्त, 2021 को सूर्य देव राशि परिवर्तन करने जा रहे हैं। सूर्यदेव को ज्योतिष में विशेष स्थान प्राप्त है। सूर्यदेव सभी ग्रहों के राजा हैं। सूर्य की कृपा से व्यक्ति को जीवन में सभी तरह के सुखों का अनुभव होता है। सूर्य देव 17 अगस्त, 2021 को कर्क राशि से सिंह राशि में प्रवेश कर जाएंगे। सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति भी कहा जाता है। सूर्य सिंह राशि में प्रवेश करने जा रहे हैं, इसलिए इसे सिंह संक्रांति कहा जाएगा। इस संक्रांति को घी संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन घी का सेवन करना चाहिए। आइए जानते हैं सूर्य देव किन राशियों का भाग्य बदलने जा रहे हैं...
मेष राशि-
सूर्य का गोचर आपके पंचम भाव में हो रहा है।
पंचम भाव को ज्योतिष में प्रेम का भाव कहा जाता है।
सूर्य का गोचर आपके लिए शुभ रहने वाला है।
यह आपके पारिवारिक जीवन में शुभ फल प्रदान करेगा।
आपको संतान की ओर से कोई शुभ समाचार मिल सकता है।
दांपत्य जीवन में सुख का अनुभव करेंगे।
परिवार के सदस्यों का सहयोग प्राप्त होगा।
धन- लाभ होगा।
मिथुन राशि-
सूर्य का गोचर आपके तृतीय भाव में हो रहा है।
सूर्य गोचर के प्रभाव से आपको व्यवसाय में लाभ के योग बनेंगे।
भाई-बहन से मदद मिल सकती है।
साहस और पराक्रम में वृद्धि होगी।
मान- सम्मान और पद- प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।
हर कार्य में सफलता प्राप्त करेंगे।
जीवनसाथी के साथ समय व्यतीत करने का अवसर मिलेगा।
- घर, दुकान या किसी भी चीज का निर्माण करने के दौरान वास्तु शास्त्र का खास ध्यान रखना चाहिए। ऐसा करने से कारोबार और जीवन की गतिविधि में खूब बरकत होती है। हिंदू धर्म में वास्तु शास्त्र का एक खास महत्व है। हमारे पौराणिक ग्रंथों में वास्तु शास्त्र प्राचीनतम वैज्ञानिक विधाओं में से एक है। वास्तु में इस बात का खास ध्यान दिया जाता है कि भवन या दुकान का निर्माण करते वक्त उसके आसपास के वातावरण के साथ ठीक ढंग से तालमेल स्थापित हो। वास्तु में ऐसे कई सिद्धांतों का जिक्र किया गया है, जिसे ध्यान में रखकर भवन और दुकान का निर्माण किया जाए तो जीवन में खूब तरक्की होती है। वास्तु शास्त्र के मुताबिक दुकान के मुख की दिशा इस बात को निश्चित करती है कि व्यापार में फायदा होगा या घाटा। अगर आपकी दुकान का मुख पूर्व दिशा में है तो आपको ये वास्तु टिप्स जरूर अपनाना चाहिए।-अगर आपकी कोई दुकान है और उसके मुख की दिशा पूर्व में है तो आपको दुकान के काउंटर को दक्षिण दिशा में रखना चाहिए और अपने मुख को उत्तर दिशा में करके बैठें। इससे व्यापार में खूब तरक्की होगी और आपको ज्यादा से ज्यादा लाभ प्राप्त होगा। वास्तु शास्त्र के मुताबिक ऐसी दुकानों के सामने का फेस थोड़ा चौड़ा होना चाहिए और पीछे से थोड़ा संकरा। अर्थात दुकान के आगे का हिस्सा चौड़ा होना जरूरी है बजाए पीछे के। इसे ही सिंह मुखी दुकान कहते हैं। ऐसे में कारोबार में खूब सारा लाभ अर्जित होता है।-वास्तु शास्त्र में इस बात का उल्लेख है कि जिन दुकानों का मुख पूर्व दिशा में खुलता है, उन्हें उत्तर दिशा में अपने इष्ट देव की तस्वीर को जरूर रखना चाहिए। ऐसा करने से दुकान में सदा बरकत बनी रहती है।-पूर्व मुखी दुकान के मालिक को अपनी दुकान सुबह जल्दी खोलनी चाहिए। इसके अलावा दुकान में ऐसे उत्पादों को रखना चाहिए जो जल्द से जल्द बिक सके। अगर इन वास्तु के उपायों को अपनाया जाए तो दुकान खूब तेजी से चलती है और आमदनी भी काफी ज्यादा होती है।
- आदर्श रूप से, एक स्वस्थ जीवन शैली के लिए किसी इंसान को रात को कम से कम 7 से 8 घंटे की अच्छी नींद लेनी चाहिए, लेकिन सबके साथ ऐसा नहीं होता। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुछ राशियां ऐसी हैं जिसके जातक कम सोते हैं या फिर वे अनिद्रा से पीडि़त होते हैं। आइये जानें ऐसी कौन सी राशियां हैं, जो अनिद्रा से पीडि़त हैं और पर्याप्त नींद नहीं लेती हैं....मेष राशिमेष राशि वाले हमेशा ऊर्जा से भरपूर होते हैं और नींद की कमी के बावजूद वो सक्रिय रहते हैं। कभी-कभी ऐसा लगता है कि उन्हें रिचार्ज करने की भी जरूरत नहीं है और वो चलते रहते हैं। मेष राशि वालों की सोच है कि व्यस्त रहना सबसे अच्छा है और इसी सोच में वो कई बार सोना तो क्या झपकी लेना भी भूल जाते हैं।धनु राशिधनु राशि वाले लोगों को हमेशा इस बात का डर रहता है कि कहीं कुछ छूट न जाए और इसलिए वो ज्यादा नींद नहीं लेते। वो पहले अपने काम को महत्व देते हैं और फिर सोने को। धनु राशि वाले लोग जानते हैं कि नींद कितनी महत्वपूर्ण है, लेकिन उनके लिए काम पहले महत्वपूर्ण है।कुंभ राशिकुंभ राशि वाले लोग रात में जागकर समस्याओं का समाधान खोजने की कोशिश करते हैं, या सोचते हैं कि वो अगले दिन और कैसे काम कर सकते हैं। कुंभ राशि के लोग जताते हैं कि नींद पर उनका कितना नियंत्रण है और वो सुबह बहुत जल्दी उठते हैं। वो नींद से उसी तरह लड़ते हैं जैसे कुछ लोग उम्र बढऩे से लड़ते हैं।मिथुन राशिमिथुन राशि वाले लोग सोते तो हैं, लेकिन उन्हें एक बार में पूरी नींद नहीं आती। उन्हें सोना अच्छा लगता है, लेकिन उनका ध्यान हमेशा सोने के अलावा किसी और चीज में ही लग जाता है। अगर वो एक या दो झपकी ले सकते हैं, तो ये सबसे अच्छा है।तुला राशिकम सोने पर भी तुला राशि के लोग अच्छा काम करते हैं, हालांकि, वो बहुत कम नींद पर नहीं चल सकते। अगर उन्हें एक रात अच्छी नींद नहीं आती है, तो वो अगली रात को पूरा कर लेते हैं। खोई हुई नींद की भरपाई के लिए वो एक घंटे पहले सो जाते हैं।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 368
(भूमिका - अपना उत्थान-पतन स्वयं अपने हाथ में है, संसार का यह दृष्टांत आध्यात्मिक उत्थान के लिये सहायक होगा, आइये जानें वह क्या है?..)
..आलस्य, लापरवाही, दूसरे में दोष देखना, परनिन्दा सुनना - ये सब गड़बड़ी जो हम करते हैं, इसको बन्द करके कमाने-कमाने (आध्यात्मिक कमाई) की बात सोचो।
सावधान होकर के कमाई पर ध्यान दो। गँवाना न पड़े। बचे रहो। कम से कम खर्चा करो तब लखपति, करोड़पति बनोगे। कम से कम संसार में व्यवहार करो और गलत व्यवहार तो होने ही मत दो। अहंकार बढ़ेगा, दीनता छिन जायेगी, भक्ति समाप्त हो जायेगी, मन गन्दा हो जायेगा। क्या करेगा गुरु? भगवान् अन्दर बैठे हैं। क्या करेंगे? जब हम ही नहीं सँभलेंगे तो कोई क्या करेगा? अतः आप लोगों को स्वयं समझ लेना चाहिये हमारा उत्थान-पतन कहाँ है? और आगे के लिये भी सावधान रहना चाहिये।
कथावाचक लोग कहते हैं एक सेठ जी रात को हिसाब कर रहे थे दिन भर की कमाई का तो वो हिसाब बैठ नहीं रहा था, उसमें देर हो गई। तो बार-बार खाना खाने के लिये नौकरानी जाये कि सेठानी जी बैठी हैं खाने के लिये, चलो सेठजी खाना खा लो। अरे चलते हैं भई! हिसाब नहीं बैठ रहा है। फिर हिसाब करें, फिर हिसाब करें, बस बारह बज गये। तो सेठानी ने कहा ऐसा करो कि थोड़ी सी खीर ले जाओ, मुँह में लगा दो उनके। फिर जब मीठा लगेगा तब याद आयेगी खाना खाना चाहिये। तो नौकर गया उसने सेठ के मुँह में थोड़ी सी खीर लगा दिया, उन्होंने चाटा खीर को और जाकर हाथ धो लिया, मतलब खा चुके। जाओ जाओ, तुम लोग जाओ, हमारा हिसाब नहीं ठीक हो रहा है। ऐसे वो लोभी व्यक्ति लखपति, करोड़पति बनता है।
ऐसे ही क्षण-क्षण हरि गुरु का चिन्तन करना है। उनके लिये तन-मन-धन से सेवा करने की प्लानिंग प्रैक्टिस ये असली कमाई है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हिंदू धर्म में सभी देवों से पहले श्री गणेश जी की पूजा की जाती है. रिद्धि-सिद्धि के दाता गणपति की पूजा करने से हमारे ज्ञान, यश, धन आदि में वृद्धि होती है. भगवान गणपति शीघ्र ही प्रसन्न होने वाले और इच्छानुकूल वर देने वाले देवता हैं. इन्हें प्रसन्न करने के लिए किसी कठिन तपस्या से नहीं गुजरना पड़ता है. जीवन से जुड़ी बाधाओं को दूर करके कार्य को सफल बनाने वाले श्री गणेश जी को हम बालगणपति, एकदंत, गजानन, गणपति, लंबोदर, विघ्नहर्ता, विनायक आदि नामों से पूजते और सुमिरन करते हैं.गणपति के तमाम स्वरूपों की तरह उनकी स्फटिक, संगमरमर, काले पत्थर, श्वेतार्क आदि से बनी मूर्ति का विशेष महत्व है. गणपति की तमाम तरह की मूर्तियों में नीम से बने गणपति की साधना करने से बहुत ज्यादा महत्व है क्योंकि नीम का पेड़ शुभता का प्रतीक होता है. जिस घर में अथवा उसके आस-पास नीम होता है, वहां पर रहने वाले लोगों के सारे रोग-शोक दूर हो जाते हैं. ऐसे में यदि कोई नीम से बनी गणपति की मूर्ति की पूजा करता है तो फिर सोने पर सुहागा वाली बात होगी. वैसे नीम के बने गणपति की पूजा करने पर विशेष रूप से शत्रुओं का नाश होता है और जीवन से जुड़ी तमाम बड़ी विपत्तियां दूर होती हैं.नीम के गणपति की पूजा के लाभनीम के गणपति की पूजा के लिए किसी भी शुभ दिन, शुभ मुहूर्त अथवा गणेश चतुर्थी के दिन नीम की लकड़ी से बने प्राण-प्रतिष्ठित गणपति की प्रतिमा की पूजा करने से पर शत्रु वश में आ जाते हैं और गणपति हमें तमाम विपदाओं से बाहर निकालकर तमाम तरह के सुख प्रदान करते हैं.नीम के गणपति की पूजा करके घर से निकलने पर व्यक्ति को संतरी से लेकर मंत्री तक का पूरा सहयोग मिलता है और उसके सभी कार्य आसानी से बन जाते हैं.नीम से बनी गणपति की प्रतिमा को घर में विधि-विधान से स्थापित करके पूजा करने से शत्रु भय दूर होता है. गणपति के आशीर्वाद से साधक को जीवन में कभी भी शत्रुओं से कोई खतरा नहीं रहता है.नीम की प्रतिमा से बने गणपति की लाल चंदन एवं लाल फूलों से विशेष पूजा करने पर शत्रुओं द्वारा मचाया गया उत्पात शांत होता है. गणपति की कृपा से गुप्त शत्रुओं से होने वाले खतरे टल जाते हैं.-
- ज्योतिष के अनुसार हर व्यक्ति का संबन्ध 12 राशियों में से किसी राशि से जरूर होता है. इन राशियों का स्वामी एक ग्रह होता है. इस ग्रह के प्रभाव राशि से संबन्धित लोगों पर भी पड़ते हैं. इसकी वजह से व्यक्ति अपने जन्म से ही कुछ आदतों को साथ लेकर आता है और जीवनभर राशि के स्वामी ग्रह की कृपा राशि से संबन्धित व्यक्ति पर पड़ी रहती है.ज्योतिष के अनुसार दो राशियां धनु और मीन के स्वामी बृहस्पति होते हैं इसलिए इन दो राशियों पर गुरु बृहस्पति की हमेशा कृपा बनी रहती है. बृहस्पति को देवगुरु माना जाता है, ऐसे में उनकी राशि से जुड़े लोगों में भी स्वामी ग्रह का प्रभाव देखने को मिलता है और ये लोग काफी कुशाग्र बुद्धि के होते हैं और शिक्षा के क्षेत्र में खूब नाम कमाते हैं. जानिए इन दो राशियों के व्यक्तित्व के बारे में.धनु राशिधनु राशि के लोग धार्मिक और शांत स्वभाव के होते हैं. इनके अंदर हर वक्त कुछ न कुछ जानने की उत्सुकता होती है. यदि ये किसी विषय पर पढ़ने बैठें तो तमाम सवाल इनके दिमाग को परेशान करने लगते हैं और ये उनके जवाब ढूंढने के लिए उत्सुक हो जाते हैं. जब तक ये जवाब ढूंढ नहीं लेते, इन्हें चैन नहीं मिलता. स्वभाव से ये काफी निडर होते हैं और ईमानदार होते हैं. पढ़ाई लिखाई में ये लोग काफी होशियार होते हैं और काफी नाम कमाते हैं. ये लोग खुद भी अपना काम ईमानदारी से करना पसंद करते हैं और ऐसे ही लोग इन्हें पसंद आते हैं. धोखेबाजी इन्हें बर्दाश्त नहीं होती. जीवन को ये कुछ उसूलों के साथ जीते हैं और अपनी बात के पक्के होते हैं. एक बार अगर ये कुछ कह दें तो उसे पूरा करने की हर संभव कोशिश करते हैं. अपनी दोस्ती भी ये लोग पूरे दिल से निभाते हैं. हालांकि इन्हें बहुत ज्यादा चिपकू टाइप के लोग पसंद नहीं होते क्योंकि ये संतुलित होकर जीवन जीना पसंद करते हैं.मीन राशिदेवगुरु बृहस्पति की मीन राशि वालों पर भी विशेष कृपा होती है. ये लोग भी काफी ईमानदार होते हैं और इन पर आसानी से भरोसा किया जा सकता है. ये लोग दिल से सच्चे होते हैं, जिससे भी प्यार करते हैं तो पूरे दिल से करते हैं, इन्हें दिखावा पसंद नहीं होता. इसलिए दिखावटी लोग भी इन्हें पसंद नहीं आते. ये लोग पढ़ाई में काफी तेज होते हैं और जिस क्षेत्र में भी जाते हैं, सफलता प्राप्त जरूर करते हैं. इन्हें अनुशासित जीवन जीना पसंद होता है. मीन राशि वाले अपने इस व्यवहार के कारण समाज में खूब नाम और प्रतिष्ठा कमाते हैं.
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 367
(भूमिका - प्रत्येक साधक और साधारण व्यक्ति के लिये भी नीचे उद्धरण में दिये गये एक-एक शब्द पर बारम्बार चिन्तन परमावश्यक है। क्योंकि इसमें छिपे रहस्य से अनजान हम सभी जाने-अनजाने एक महान अपराध के भँवर में फँस जाते हैं, जिसकी हमको बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा निःसृत इस उद्धरण पर आइये हम गंभीरतापूर्वक मनन करें...)
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! किसी साधक के बाहरी व्यवहार को देखकर कई बार दुर्भावना हो जाती है जबकि वह उच्च साधक होता है, इसका क्या उपाय है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: भगवान् की सब बातें अनन्त मात्रा की हैं। पूर्ण माने अनन्त मात्रा की हर बात। उनके संसार (ब्रह्माण्ड) अनन्त, नाम अनन्त, रूप अनन्त, गुण अनन्त, लीला अनन्त, धाम अनन्त और सन्त अनन्त। और ऐसे अनन्त हैं कि अनन्त से अनन्त निकालो तो भी अनन्त बचेगा;
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।(वृहदारण्यक उप. 5-1-1)
पूर्ण से पूर्ण निकालो तो भी पूर्ण बचेगा। संसार में पूर्ण से पूर्ण निकालो तो जीरो बचेगा।
कौन जानता है? जब तक कोई पूर्ण न हो जाए तब तक कौन अधूरा है, कौन पूर्ण है यह जानना असम्भव है। बेपढ़ी लिखी अँगूठा छाप और चार-चार, छह-छह, बच्चे वाली गोपियाँ और ब्रह्मा, शंकर चरणधूलि चाहते हैं। जब ये कहो, तो लोग कहते हैं - 'क्या गपोड़े हैं आप भी!! हम जानते हैं उन गोपियों को, कब ब्याह हुआ और कब क्या हुआ। संसार में आसक्त हैं और आप कहते हैं कि उद्धव, ब्रह्मा, शंकर सब चरणधूलि माँगते हैं!!' इसलिए किसी के बारे में कभी कोई राय बनानी ही नहीं चाहिए।
अगर दोष देखा तो उसमें कमी मानेगा। उसकी बुद्धि उसमें दोष देखगी। ये हमसे कम अकल है, हमसे कम सुंदर है, हमसे कम पैसा है, हमसे कम नॉलिज है। ये सब विचार आयेगा, बस पतन हो गया। भीतर क्या उसके पास यह जानने की शक्ति नहीं है। तो ये बाहरी चीजों को देख कर क्या निर्णय करोगे? पता नहीं कौन कितना प्यार करता है भगवान् से, गुरु से? ये नापने का पैमाना तो किसी के पास है ही नहीं। तो बाहर की चीजों से क्या तुलना करेगा कोई।
एक संत थे। अभी पाँच सौ वर्ष पहले की बात है, गौरांग महाप्रभु के जमाने में। उनका नाम पुंडरीक विद्यानिधि था। वह बड़े ऐशो आराम के सामान में रहते थे। सोने का तो पलंग, कोई राजा महाराजा भी ऐसा नहीं रह सकता था जैसे वो रहते थे। गौरांग महाप्रभु ने कहा, 'भई! एक बहुत बड़े भक्त से मिलने जाना है हमको स्वयं।'
लोगों ने पूछा, 'महाराज जी! किसका मिलने जाना है?' तो उन्होंने कहा 'पुंडरीक विद्यानिधि से'। सब चौके। अरे! वह तो घोर संसारी है। कोई राजा महाराजा भी वैसा नहीं होगा। आपस में कहने लगे। महाप्रभु जी मुस्कराकर चल दिए। पीछे-पीछे सब गये कि मामला क्या है? महाप्रभु जी मजाक कर रहे हैं? क्या बात है, क्यों जा रहे हैं वहाँं? उसको आना चाहिए महाप्रभु जी के पास। गये। महाप्रभु जी को देख कर वो पलंग से उठ गए। दोनों गले मिले। ये सब दृश्य देख रहे हैं लोग। फिर उसी के पलंग पर वो भी बैठे और महाप्रभु जी भी बैठे उसी पर। ये भी लोगों ने देखा। ये कैसे बाबा जी हैं! और हमारे महाप्रभु जी के बराबर में बैठे हैं! तो गदाधर भट्ट थे, उनका ज्यादा दिमाग खराब हुआ। वो खास थे गौरांग महाप्रभु के, विद्वान् भी थे, शास्त्र वेद के।
खैर, वहाँ से महाप्रभु जी लौट आये और सब साथ चले आये। फिर अकेले में उन्होंने पूछा कि महाराज! ये आप वहाँ क्यों गए? और फिर गए तो ऐसी असभ्यता किया उन्होंने, उसी पलंग पर खुद बैठ गए और उसी पर आपको बिठा दिया? तो महाप्रभु जी ने भौंहे टेढ़ी की। उन्होंने कहा कि तुम सर्वज्ञ हो? नहीं महाराज! सर्वज्ञ तो आप हैं। फिर तुमने कैसे निश्चय किया? चले जाओ हमारे सामने से और जाकर के पुंडरीक विद्यानिधि की शरण में जाओ और उन्हें गुरु मानो और उनकी बताई साधना करो। अब आंख खुली उनकी। हा! महाराज जी सीरियस हो के कह रहे हैं। हम तो समझ रहे थे कि ये सब महाराज जी जोक कर रहे हैं आज? तो उन्हें जाना पड़ा।
तो कौन जान सकता है? बड़े-बड़े सम्राट हुए हमारे देश में ध्रुव, प्रह्लाद, अम्बरीष बड़े-बड़े वैभव स्वर्ग से भी बड़े और सब गृहस्थ। अम्बरीष हों, चाहे वशिष्ठ हों, सब स्त्री बच्चे वाले। अब उनको भी हम लोगों ने देखा होगा उस जमाने में। अरे तब भी तो हम थे। हमने कहा ये प्रह्लाद!, इनको महापुरुष कहते हैं लोग!!
इसलिए कोई महापुरुष हो, चाहे राक्षस हो अपने मन में दूसरे के प्रति हमेशा अच्छी भावना होनी चाहिए, जिससे अच्छा विचार अंतःकरण मे आवे। वो जो है वो ही रहेगा ही। वह राक्षस होगा तो राक्षस रहेगा। महापुरुष होगा तो महापुरुष रहेगा। हम अपने अंदर की दुर्भावना अगर लाते हैं, तो हमने तब अपना अंतःकरण बिगाड़ दिया। अब भगवान् जो थोड़ा पैर रखे थे आने के लिए, एबाउट टर्न चल दिए। क्योंकि तुम तो औरों को बुलाते हो। मैं ऐसे घर में नहीं रहता। इसलिए कहीं भी छोटापन नहीं देखना चाहिए। ये हमसे बड़ा है। हर एक के प्रति - 'सबहिं मानप्रद आप अमानी'।
एक उच्च साधक का लक्षण है किसी में भी दुर्भावना नहीं, पता नहीं कौन क्या है, किस-किस भाव से कौन उपासना करता है। सबके तरीके अलग-अलग हैं। आज कोई सचमुच भी मक्कार है तो क्यों है? प्रारब्ध के कारण है। वो 25 तारीख को उसका प्रारब्ध खतम हो जाएगा। तो फिर वो सदाचारी हो जाएगा पहले की तरह। और हम दुर्भावना किए बैठे हैं उसके ऊपर। हमारा तो सत्यानाश हो गया और वो तो बन गया। उसमें बहुत रहस्य हैं। इसलिए साधक को दूसरे की ओर देखना ही नहीं चाहिए। और देखे भी कभी या बुद्धि लग भी जाय तो पता नहीं कौन क्या है भैया, अपन झगड़े में न पड़ो। बीबी पति के, पति बीबी के अंदर की बात को नहीं जान सकता।
एक सेठ जी कभी भगवान् का नाम न ले और न मन्दिर जायें। सेठानी परेशान थी कि यह नास्तिक पति मिला। एक दिन सोते समय, अंगड़ाई लेते समय उन्होंने कहा 'राधे'। तो सबेरे स्त्री ने सब दान-पुण्य करना शुरू कर दिया। ब्राह्मण भोजन का इन्तजाम किया। खुशी मना रही थी। सेठ जी ने कहा- क्यों री, आज तो न जन्माष्टमी है, न रामनवमी है, कुछ त्यौहार तो नहीं! उन्होंने कहा आज बहुत बड़ा त्यौहार है पतिदेव! क्या? आपने आज सोते समय करवट बदलने लगे तो 'राधे' कहा। हा! राधे नाम निकल गया बाहर!!! भक्ति के तरीके अपने-अपने सबके हैं। स्त्री नहीं समझ पाई इतने दिन से।
और फिर एक बात सबसे बड़ी और है वह हमेशा ध्यान में रखो सब लोग कि कोई व्यक्ति खराब हो, राक्षस हो, भगवान् का निन्दक, सन्तों का निन्दक, सबसे बड़ा पाप ये ही है। ये लगातार करता हो। लेकिन एक बात बताओ कि ऐसा कोई पापी विश्व में है जिसके अंत:करण में भगवान् न बैठे हों? अरे! कुत्ता, बिल्ली, गधा कोई भी ऐसा प्राणी है जिसके भीतर भगवान् श्रीकृष्ण न बैठे हों? तो फिर तो बराबर हो ही गया तुम्हारे। और सब चीज़ का मूल्य कुछ नहीं है। एक तराजू में सोना भी रखा गया, चांदी भी रखा, हीरा भी रखा है और पारस भी रखा है और एक तराजू के पलड़े में खाली पारस रखा है। तो तोलोगे तो क्या बराबर ही निकलेगा। क्योंकि पारस दोनों में है। अब हीरे मोती की क्या कीमत है, हो न हो? पारस दोनों में है। तो भगवान् तो सब प्राणियों में हैं। इसीलिये वेदव्यास और तुलसीदास सब संतों ने कहा कि - 'पर पीडा सम नहिं अधमाई'।
सबसे बड़ा पाप है दूसरे को दुःख देना, ये न सोचना हैं कि इसके अंदर भी श्रीकृष्ण बैठे हैं। जैसे हम आज एस.पी. हैं, कलेक्टर हैं और हमारा कोई नौकर है, चपरासी है और हमने अपनी सीट के कारण डाँटा, फटकारा, दण्ड दिया। ये भूल गए कि इसके अंदर भी वही बैठे हैं जो हमारे अंदर हैं। तो ये सब सोचने की बात है। इसका अभ्यास करे धीरे-धीरे तो हृदय में कोई गलत चीज न आने पावे।
देखो, आप लोग दाल चावल सब खाते हैं। खाते-खाते कोई कंकड़ आ गया तो ऐसे मुँह बनाकर उसको हाथ से निकाल कर बाहर कर देते हैं। निगल नहीं जाते। धोखेे में चला जाय तो बात अलग है। ऐसे ही कोई भी अच्छी चीज आवे ठीक है। किसी का गुण आवे बहुत अच्छा है। अरे! चौबीस गुरु बनाये दत्तात्रेय ने। कुत्ते को गुरु बनाया, गधे को गुरु बनाया। भगवान् के अवतार थे दत्तात्रेय। लेकिन उन्होंने कहा - भई! इसमें भी ऐसे गुण है जो मनुष्यों से अधिक बलवान है। वो आदमी में नहीं है। किसी आदमी की नाक ऐसी है, जो बता दे कि इधर से गया है चोर? कोई आई. ए. एस. ऐसा हुआ आज तक? और कुत्ता बता देता है इधर से गया है, बारह घण्टे पहले, वह चलता है उसी-उसी रास्ते से, आगे-आगे। इसीलिये सब जगह अच्छी चीज जहाँ दिखाई पड़े, ले लो और जहां खराब चीज दिखाई पड़े वहाँ सोच लो कि पता नहीं क्या रहस्य है ऊपर-ऊपर से एक्टिंग कर रहा है खराबी की।
अरे! गोपियाँ कितनी गालियाँ देती थीं भगवान् को। हम लोग अगर वहाँ होते या रहे हों, तो सुने होंगे और कहा होगा, ये भगवान् की भक्त है! क्या अंडबंड बोल रही है।
एक सखी ने किशोरी जी से कहा कि तुम नन्दनन्दन से क्यों प्यार करती हो? वो तो बड़ा लम्पट है, हर लड़की के पीछे घूमता रहता है और सबको धोखा देता है। तो किशोरी जी ने कहा, सखी ! तू नहीं जानती वो ऐसा क्यो करतें हैं? वो ऐसा इसलिए करते हैं कि हमारा उनका प्यार पब्लिक में आउट न हो। यानी एक दोष को भी गुण के रूप में ले लेना। प्रेमी की पहचान है। वेद की ऋचायें कहती हैं, अरे! मैं जानती हूँ अनादिकाल से। राजा बलि को ठगा और शूर्पणखा के नाक कान कटवा दिये, बाली को छिप कर मारा, मुझे सब मालूम है इसका पुराना चिट्ठा पहले का। तो सखी कहती है फिर छोड़ो! हटाओ। अरे! ये नहीं हो सकता। उसका चिन्तन, उससे प्यार, वह कम नहीं होगा। हम उस व्यवहार पर भी लट्टू हैं। देखो, सर्वसमर्थ हो कर भी और बाली को छिप कर मारा, ये कलंक मोल लिया। सभी संसार में बदनामी कि उसकी पीठ में मार रहे हैं। उसको माला पहना कर मार रहे हैं। मथुरा से भागकर द्वारिका चले गए, रणछोर की डिग्री लेने के लिए। सारी दुनियाँ में बदनामी हो गई। तुम्हारे भगवान कैसे हैं? तो कौन समझ सकता है? भगवान् का रहस्य तो खैर समझने की बात नहीं है। मनुष्यों में कौन उच्च कोटि का साधक है, कौन निम्न कोटि का है और कौन कब किसका पतन हो जाय ये भी एक स्ट्रांग पॉइन्ट है। समझे रहना चाहिए। एक क्षण के कुसंग ने अजामिल को इतना बड़ा पापी बना दिया। एक क्षण का, एक मिनिट का भी नहीं।हृदय के अंदर अच्छी अच्छी चीजों का, अच्छे अच्छे गुणों का, अच्छी-अच्छी बातों का चिन्तन हो। खराब बात कोई कहे तो सुनो नहीं, पढ़ो नहीं, सोचो नहीं। तुरन्त सँभल जाओ। जैसे कोई मच्छर काट लेता है तो होशियार हो जाता है। इसने काट लिया। किसी के ड्राइंग रुम में कोई अपने घर का कूड़ा कचरा फेंके तो कौन पसन्द करेगा, कौन स्वीकार करेगा, पचास गाली दे देगा वह घर वाला। ऐसे ही दिल तो ड्राइंग रूम है भगवान् के लिए। इसमें गंदी चीज कहीं से भी, कैसे भी तुम लाए तो गन्दा हो गया। भगवान् तो कहते हैं जो ला चुके हैं उसे निकालो। साफ करो। माँ, बाप, बेटा, स्त्री, पति, का प्यार ये सब संसार का, विषय भोग का, ये सब निकालो। और तुम ला रहे हो। तो भगवान् कहते हैं हमसे कहते हो आ जाओ, कहाँ आऊँ? कहीं जगह भी है?
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक, भाग - 2०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हर व्यक्ति अपने करियर में खूब तरक्की करना चाहता है, ताकि वह ढेर सारा पैसा कमा सके और उसके टैलेंट का भी सही इस्तेमाल हो सके. हस्तरेखा शास्त्र के जरिए यह बहुत आसानी से जाना जा सकता है कि व्यक्ति अपने जीवन में किस क्षेत्र में और कितनी तरक्की करेगा. इसके लिए हथेली में सूर्य रेखा और गुरु पर्वत की अच्छी स्थिति होना बहुत जरूरी होता है. ये दोनों ही जातक की जॉब या बिजनेस में सफलता-विफलता के बारे में बताते हैं.गुरु पर्वत पर शुभ निशान दिलाते हैं तरक्कीतर्जनी उंगली के नीचे के उठे हुए हिस्से को गुरु पर्वत कहते हैं. यह पर्वत जितना ज्यादा उभरा हुआ रहता है, उतना ही अच्छा होता है. इस पर बने शुभ निशान व्यक्ति को खूब सफलता दिलाते हैं. जैसे - यदि गुरु पर्वत पर तारे का या त्रिभुज का निशान हो तो व्यक्ति को ऊंचा पद मिलता है. साथ ही वह खूब मान-सम्मान भी पाता है. वहीं गुरु पर्वत पर एक से ज्यादा रेखाओं का होना भी व्यक्ति को अच्छी पोस्ट दिलाता है.सूर्य रेखा बताती है भाग्यरिंग फिंगर यानी की हाथ की तीसरी सबसे बड़ी उंगली के नीचे एक खड़ी लाइन होती है, उसे सूर्य रेखा कहते हैं. यदि हाथ में सूर्य रेखा की स्थिति अच्छी हो तो जातक को जॉब हो या बिजनेस दोनों में किस्मत का अच्छा साथ मिलता है. इसके लिए सूर्य रेखा का लंबा और स्पष्ट होना जरूरी होता है. जिस जातक के हाथ में बड़ी सूर्य रेखा हो उसे करियर के साथ-साथ सामाजिक क्षेत्र में भी बहुत सफलता मिलती है. ऐसे लोग समाज में भी बड़ा पद पाते हैं. यदि गुरु पर्वत पर शुभ निशान होने के साथ-साथ सूर्य रेखा भी स्पष्ट हो और भाग्यरेखा की लंबाई भी ज्यादा हो तो ऐसे लोग कम उम्र में ही सफल हो जाते हैं.
- ज्योतिष विज्ञान में 12 राशियां होती हैं और इन सभी राशियों का अपना भिन्न स्वभाव होता है। दरअसल इन सभी राशियों के स्वामी 9 ग्रह हैं और इन्हीं ग्रहों का प्रभाव इन राशियों के ऊपर देखने को मिलता है। ऐसे में हर व्यक्ति का स्वभाव, चरित्र और कार्य क्षमता भी भिन्न होती है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, कुछ विशेष राशियों के जातक होते हैं जो जमकर पैसा खर्च करते हैं। ये अपनी शान-ओ-शौकत को बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। ये ऐसी लाइफस्टाइल जीते हैं जिसमें पैसे अधिक खर्च होते हैं। ये भौतिक सुखों में अपना पैसा खर्च करते हैं। साधारण फिजूलखर्ची इनके लिए न के बराबर होती है। ऐसे जातकों के पास पैसा तो खूब आता है लेकिन इनके खर्चीले स्वभाव के कारण पैसा इनके पास टिक नहीं पाता है। यदि इनकी आर्थिक स्थिति ठीक भी न हो बावजूद इसके ये पैसे खर्च करने में आगे रहते हैं। महंगी चीजों को शौक इन्हें और भी खर्चीला बनाता है। आइए जानते हैं किन राशियों के जातक होते बेहद खर्चीले।मिथुन राशिमिथुन बुध ग्रह की राशि है। इस राशि के जातक चतुर और बाचाल होते हैं और पैसे खर्च करने के मामले में भी आगे होते हैं। ये लोग अपने रहन- सहन और खान- पान पर बहुत पैसा खर्च करते हैं। इनके पास पैसे आने की देर होती है लेकिन उसे खर्च करने की देर नहीं होती है। इस कारण इनके पास पैसे बच नहीं पाते हैं।सिंह राशिसिंह सूर्य ग्रह की राशि है, जो राजसी ठाठ का परिचायक है। इस राशि के जातक जमकर पैसा खर्च करते हैं। अपने राजसी जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए ये धन खर्च करते हैं। हालांकि कई बार इनकी यही आदत इन्हें कर्जदार बना देती है। पैसा कहां खर्च करना है ये इस बारे में ज्यादा नहीं सोचते हैं।तुला राशितुला शुक्र ग्रह की राशि है जो भौतिक सुखों का कारक ग्रह है। इस राशि के जातक महंगे शौक रखते हैं। ये अपने खान-पान, रहन-सहन में खूब पैसा खर्च करते हैं। इस राशि के जातक धन खर्च करने के मामले में एक नंबर के होते हैं। इनके पास पैसा तो खूब आता है। लेकिन इनकी खर्च करने की आदत से वह पैसा बच नहीं पाता है। ऐसे में इन्हें कई बार आर्थिक समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है।वृश्चिक राशिवृश्चिक मंगल ग्रह की राशि है। इस राशि के जातक धन खर्च करने के मामले में आगे होते हैं। ये अपनी लाइफ स्टाइल में काफी पैसा खर्च करते हैं। दूसरों की परवाह किए वगैर ये खुलकर जीते हैं। जहां बात पैसे खर्च करने की आती हैं ये कतई पीछे नहीं हटते हैं। इस राशि के जातक वर्तमान में जीना पसंद करते हैं।
- देखा जाए तो कांच का टूटना एक सामान्य घटना है, ठीक वैसे ही, जैसे असावधानी बरतने पर अन्य चीजें टूट जाती हैं, कांच भी एक वस्तु है जो टूट सकती है, लेकिन पुरानी मान्यताओं के अनुसार लोग कांच या शीशे के टूटने को अशुभ घटना मानते हैं और इसे आने वाले समय में बुरे समाचार से जोड़ते हैं। वास्तु के हिसाब से देखा जाए तो कांच या शीशे का टूटना अशुभ नहीं होता, बल्कि शुभ होता है, लेकिन टूटे कांच को घर में रखना जरूर अशुभ हो सकता है। यहां जानिए कांच और शीशे के टूटने को लेकर वास्तु शास्त्र में क्या कहा गया है और इस मामले में विज्ञान क्या कहता है?शुभ होता है कांच या शीशे का टूटनावास्तु शास्त्र के अनुसार घर पर पड़ी कांच की कोई चीज या शीशा अगर किसी कारणवश टूट जाए, तो इसका मतलब है कि आपके घर पर कोई बड़ा संकट आने वाला था, जिसे कांच या शीशे ने अपने ऊपर ले लिया है। यानी अब मुसीबत टल चुकी है और आपका परिवार सुरक्षित हो गया है। इसके अलावा अचानक कांच या शीशे के टूटने का मतलब ये भी होता है कि आपके घर का कोई पुराना मसला अब समाप्त हो गया है। कुछ लोग कांच को लोगों की सेहत से भी जोड़ते हैं, ऐसे में कांच का चटकना या टूटना सेहत ठीक होने का संकेत हो सकता है। इन सभी बातों पर गौर किया जाए तो कांच या शीशे का टूटना एक शुभ संकेत माना जाना चाहिए।घर में रखना अशुभकांच का टूटना बेशक शुभ संकेत है, लेकिन टूटे या चटके कांच या शीशे को घर में रखना वास्तु के अनुसार अशुभ माना जाता है। ठीक उसी तरह जैसे टूटे बर्तनों में भोजन न करने की सलाह दी जाती है। मान्यता है कि टूटे कांच से सकारात्मक ऊर्जा का ह्रास होता है और घर में नकारात्मकता फैलने लगती है। ऐसे में तमाम परेशानियां घर में आती हैं. इसलिए अब कि बार घर में कभी अचानक से कांच टूट जाए तो बिना शोरशराबा किए, उस कांच को चुपचाप घर से बाहर फेंक दें।क्यों माना गया अशुभ जानिए वैज्ञानिक वजहकांच बहुत नाजुक होता है और शुरुआती समय में इसे दूर देशों से मंगाया जाता था। तब ये बहुत महंगा हुआ करता था। इसकी उपलब्धता के लिए काफी रकम खर्च करनी होती थी और इसे मंगाने में समय भी अधिक लगता था। ऐसे में कांच को लोग संभालकर रखें और इसकी देखरेख में सावधानी बरतें, इसलिए इसके टूटने को लेकर तमाम तथ्यों को धर्म और सेहत से जोड़ दिया गया। या यूं कहें कि लोगों के बीच इसे मान्यता के रूप में बिठा दिया गया। चूंकि धर्म को लेकर लोगों के मन में हमेशा से ही आस्था रही है और सेहत के प्रति तब लोग काफी सजग हुआ करते थे, इसलिए वे इन तथ्यों में विश्वास करने लगे और समय के साथ ये विश्वास और मजबूत हो गया।--
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 367
(भूमिका - 'चैतन्य-चरितामृत' एवं 'चैतन्य-चरितावली' आदि ग्रन्थों में श्री चैतन्य महाप्रभु एवं राय रामानंद जी के मध्य भक्तितत्त्व पर किये गई अति महत्वपूर्ण संवाद का वर्णन है, जिसमें श्रीराधाकृष्ण की माधुर्यमयी अनन्य निष्काम भक्ति की सर्वश्रेष्ठता का निरुपण है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से निःसृत यह प्रवचन इसी संवाद पर आधारित है। आइये हम सभी इस पर विचार करें....)
...साधन-साध्य के सम्बन्ध में चैतन्य महाप्रभु एवं राय रामानंद का वार्तालाप अत्यधिक महत्वपूर्ण है। चैतन्य महाप्रभु ने राय रामानंद से पूछा - साध्य को पाने का साधन क्या है? उन्होंने उत्तर दिया;
स्वे स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धिं लभते नरः।स्वकर्मनिरतः सिद्धिं यथा विदन्ति तच्छ्रीणु।।(गीता 18-45)
अपने अपने वर्णाश्रम धर्म का पालन करने से साध्य मिल जाता है। वर्णाश्रम धर्म यानि ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र ये चार वर्ण; ब्रम्हचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास ये चार आश्रम; इनके लिये वेद में जो लिखा है ऐसा करो, ऐसा न करो, ऐसा न करो। उसका जो पालन करें सेंट परसेंट वो वर्णाश्रम धर्म का धर्मी है, कर्मी है। महाप्रभु जी ने कहा - अरे! तुम भी क्या बोले रामानंद? इससे तो स्वर्ग मिलता है बस, वो भी चार दिन का, वहाँ तो माया है। रामानंद ने कहा, अच्छा-अच्छा। इसके आगे बोलो। उन्होंने कहा -
यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत्।यत्तपस्यसि कौन्तेय ततकुरुष्व मदर्पणम्।।(गीता 9-27)
स्वकर्मणा तमभ्यच्-र्य सिद्धिं विदन्ति मानवः।(गीता 18-46)
जो कुछ कर्म करो भगवान को अर्पित करो। महाप्रभु जी ने कहा - हाँ, उससे तो ये बहुत अच्छा तुमने बताया लेकिन ये साध्य नहीं है, इससे तो अंतःकरण शुद्ध होता है। इसके आगे कुछ बताओ। तो उन्होंने कहा -
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।(गीता 18-66)
सब धर्मों को छोड़ दो और केवल मेरी भक्ति करो, मैं सब पापों से छुटकारा दिला दूँगा। महाप्रभु जी ने कहा - हाँ हाँ! ये तो उससे भी अच्छा है लेकिन इसमें तो पाप नाश कहा है और जिसके पाप ही न हों कुछ, उसके लिये क्या है? तो कुछ सोचकर फिर बोले....
...महाप्रभु जी ने कहा - हाँ-हाँ! ये तो उससे भी अच्छा है लेकिन इसमें तो पाप नाश कहा है और जिसके पाप ही न हों कुछ, उसके लिये क्या है? तो कुछ सोचकर फिर बोले,
ब्रम्हभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति।समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिम् लभते पराम्।।(गीता 18-54)
भक्त्या मामभिजानाति यावन्याश्चास्मि तत्त्वतः।ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते तदन्तरं।।(गीता 18-55)
मेरी भक्ति, परा भक्ति से ब्रम्ह का ज्ञान होगा तब शान्ति मिलेगी। महाप्रभु जी ने कहा - हाँ-हाँ! ये तो ज्ञानयुक्त भक्ति है, मिक्श्चर है, और आगे बोलो। तो रामानंद राय ने कहा,
ज्ञाने प्रयासमुदपास्य नमन्त एव जीवन्ति सन्मुखरितां भवदीयवार्ताम्।स्थाने स्थिताः श्रुतिगतां तनुवाङ्मनोभिर्ये प्रायशोजित जितोप्यसि तैस्त्रिलोक्याम्।।(भागवत 10-14-3)
सब कुछ छोड़कर जो केवल अनन्य भाव से निरंतर राधाकृष्ण की भक्ति करते हैं, बस उनको ही वो सबसे बड़ा साध्य मिलता है - भगवत्प्रेम। महाप्रभु जी ने सिर हिलाया, हाँ अब बोले ठीक-ठीक। लेकिन अब जरा महल में घुसो। आ तो गये महल के पास तुम लेकिन अंदर घुसो। खाली महल के पास बाहर से महल को देखा तो ये तो अभी पूरा नहीं है रस। देखो, अंदर क्या है?
शान्त भाव के महापुरुषों को तो बैकुण्ठ का ऐश्वर्य मिलता है, उसमें रस कम है, ऐश्वर्य बहुत है। तो उन्होंने कहा, दास्य भाव से राधाकृष्ण की भक्ति करे। मैं दास हूँ, वे स्वामी हैं। हाँ, अब आये रास्ते पर। लेकिन दास और स्वामी में दूरी तो रहती है? मान लो, दास की इच्छा हुई कि स्वामी का कान पकड़ूँ। अरे! नहीं-नहीं, नाराज हो जायेंगे, सर्विस से निकाल देंगे। इसके आगे बताओ। तो उन्होंने कहा, सख्य भाव से भक्ति करें। वो हमारे सखा हैं, अब तो कान पकड़ सकते हैं। अरे, घोड़ा बनाया ग्वालों ने ठाकुर जी को, कन्धे पर बैठे। सखाओं को इतना बड़ा अधिकार है। उन्होंने कहा, ठीक है, लेकिन फिर भी अभी और अंदर के कमरे में चलो।
तो उन्होंने कहा, सख्य भाव से भक्ति करें। वो हमारे सखा हैं, अब तो कान पकड़ सकते हैं। अरे, घोड़ा बनाया ग्वालों ने ठाकुर जी को, कन्धे पर बैठे। सखाओं को इतना बड़ा अधिकार है। उन्होंने कहा, ठीक है, लेकिन फिर भी अभी और अंदर के कमरे में चलो।
तो उन्होंने कहा, फिर तो वात्सल्य भाव है जैसे मैया यशोदा ने रस पाया ठाकुर जी का। और चलो अंदर एक दम। तो उन्होंने कहा कि ठाकुर जी को प्रियतम मान लें। हाँ, अब आ गये ठिकाने पर, यही सर्वोच्च भाव है। प्रियतम माने क्या होता है? सब कुछ, सब कुछ माने नम्बर एक पति, नम्बर दो बेटा, नम्बर तीन सखा, नम्बर चार स्वामी। जब जो चाहे बना लो। रिश्ते बदलते जायें, डरें नहीं कि अब जब पति मान लिया है तो बेटा कैसे मानें? ये संसार में बीमारी है कि पति को बेटा मत मानो, बोलो भी नहीं, मानना तो दूर की बात। नहीं पिट जाओगे, लोग पागलखाने में बन्द कर देंगे। लेकिन भगवान के यहाँ ऐसा नहीं है। वो कहते हैं, मैं सब कुछ बनने को तैयार हूँ। एक-एक सेकण्ड में चेंज करो। ये सर्वश्रेष्ठ भाव है और सबसे सरल।
कोई नियम नहीं है इसमें। कायदा-कानून नहीं है। अब देखो, दास अगर हम बनते हैं और भगवान को स्वामी मानते हैं तो कितनी बड़ी समस्या है? भरत ने क्या कहा था,
सिर बल चलउँ धरम अस मोरा।सब ते सेवक धरम कठोरा।।
जहाँ स्वामी का चरण पड़े, गुरु का चरण पड़े, वहाँ हमारा सिर पड़ना चाहिये। तो क्या हम सिर के बल चलेंगे? ये पॉसिबल कहाँ है? जब राम-सीता वनवास को जा रहे थे तो पीछे-पीछे लक्ष्मण चलते थे। तो दोनों चरण-चिन्हों को बचा-बचा कर चलते थे। कितना कठिन है -
सेवाधर्म: परमगहनो योगिनामप्यगम्य:। (भतृहरि)
इससे कम परिश्रम सख्य भाव में है, उससे कम वात्सल्य भाव में है लेकिन माधुर्य भाव में कोई नियम नहीं।
एक बार ऐसे ही भगवान ने एक्टिंग किया था द्वारिका में कि हमको बहुत दर्द है, अब हम मर जायेंगे, बचेंगे नहीं। ऐसी एक्टिंग किया। 16108 स्त्रियाँ, सब घबड़ा गईं कि हम विधवा हो जायेंगे, क्या बोल रहे हैं? उसी समय अचानक नारद जी आ गये।
उन्होंने देखा, गुरुजी ये क्या कर रहे हैं आज? कुछ मामला सीरियस है। उन्होंने कहा, महाराज! क्या आपको तकलीफ है कुछ, सुना है। अरे! बहुत तकलीफ है नारद जी। तो फिर क्या करें? अरे क्या करें क्या, दवा लाओ और क्या करोगे? महाराज! दवा क्या है? वो भी बता दो। तुमने अपनी बीमारी खुद पैदा की है तो दवा भी तुम ही बताओ। उन्होंने कहा कि कोई वास्तविक संत की चरणधूलि मिल जाय तो मैं ठीक हो सकता हूँ। नारद जी ने कहा, संत? मैं भी तो संत हूँ। अरे भगवान के अवतार भी हैं और वैष्णवों में टॉप करने वाले नारद जी।
फिर उन्होंने कहा, पता नहीं कि ये गुरु घंटाल का क्या नाटक है? अपन झगड़े में नहीं पड़ते। एक बार बंदर बन चुके हैं। लेकिन ये मातायें जो हैं इनकी सोलह हजार एक सौ आठ रानियाँ, ये तो महापुरुषों की दादी हैं। इनकी स्त्री बनने का सौभाग्य किसको मिलेगा? इनसे कहते हैं। रानियों ने कहा, नारद जी! आज क्या बात है, शास्त्र-वेद का ज्ञान समाप्त हो गया तुम्हारा? कोई स्त्री पति को चरण धूलि देकर नरक जायेगी? वेदमंत्र कोट कर दिया। नारद जी चुप हो गये कि बात तो ठीक कहती हैं। फिर अब क्या करें? जहाँ जायेंगे, सब महात्मा यही कह देंगे कि तुम्हारा दिमाग खराब है, तुम ही दे दो न, अपने चरण की धूलि?
तो भगवान के पास फिर गये और कहा, महाराज! वो डॉक्टर भी बता दो जिसकी चरण धूलि ले आवें। तो उन्होंने कहा कि चले जाओ ब्रज में, वहाँ तमाम करोड़ों गोपियाँ हैं, उनसे कहना। उन्होंने सोचा कि ब्रज में ऐसा कौन सा महात्मा है? वहाँ तो सब गृहस्थी हैं स्त्रियाँ। उनके बाल-बच्चे हैं, पति हैं और सब बेपढ़ी-लिखी घूँघट वाली। ये क्या कह रहे हैं गुरु-घंटाल। गये वहाँ पर। तो नाटक किया, बूढ़े बन गये नारद जी, अपने को छिपाकर कि देखें ये पहचानती हैं कि नहीं हमको? दूर से सबने पहचान लिया? नारद जी आश्चर्य चकित रह गये। उन्होंने गोपियों से कहा, तुम्हारे प्राण-वल्लभ को कष्ट है, अपनी चरण धूलि दे दो।
उन्होंने कहा, अरे लो। सब लोगों ने पैर फैला दिया। जल्दी ले जाओ। सन्न, नारद जी। तुम लोग चरण धूलि दे रही हो, इसका फल समझती हो? नारद जी फल-वल बाद में बताना, पहले ले जाओ जल्दी से, उनको आराम हो। फल-वल नरक की बात, अरे नरक मिलेगा और क्या होगा इससे अधिक? अरे, कोई आदमी जब मर्डर करता है तो क्या सोचता है? फाँसी होगी। हो जाय फाँसी लेकिन इनको मारेंगे। अब नारद जी की आँख खुली। अब उन्होंने कहा, पहले मैं पवित्र हो जाऊँ। तो पति-स्त्री में भी बन्धन होता है, नियम होते हैं लेकिन माधुर्य भाव में कोई नियम नहीं। भगवान दास बन जाता है, भक्त स्वामी बन जाता है। तो ये अंतिम भाव है। इसमें निष्काम भाव से, माधुर्य भाव से, अनन्य भाव से निरंतर भक्ति करने से तो सबसे बड़ा साध्य ब्रज रस मिलता है। ये साधन-साध्य का सारांश है।
०० प्रवचनकर्ता : जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ : साधन-साध्य पत्रिका, मार्च 2010 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।
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