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- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 338
★ भूमिका - प्रस्तुत गद्य में जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से निःसृत प्रवचन है, जिसमें उन्होंने तीर्थयात्रा के महत्व और उसके वास्तविक स्वरूप/लक्ष्य को प्रकाशित किया है। उन्होंने समझाया है कि कैसे तीर्थयात्रा करके भी हम असावधानी के कारण उसके लाभ से वंचित रह जाते हैं। आइये उनके द्वारा विरचित दोहा व उसकी व्याख्या से हम लाभ प्राप्त करें....
चारों धाम गया आया गोविन्द राधे।ऐसी तीर्थयात्रा और अहं को बढ़ा दे।।(स्वरचित दोहा)
हमारे देश में चारों धाम का बड़ा महत्त्व है। कर्मकाण्ड में भी यद्यपि ये चारों धाम लगभग ढाई हजार वर्ष पहले आदि जगदगुरु शंकराचार्य ने स्थापित किये थे। इन सब धामों में मन्दिर बनवाये थे और अपने चार शिष्य चारों मठों में स्थापित किये थे। अब तो सब व्यापार है। तो आजकल बड़ा महत्त्व पण्डितों ने, कर्मकांडियों ने, स्वार्थियों ने गा-गाकर भोले भाले संसारियों को प्रेरित करते हैं कि चारों धाम कर आओ फिर बैकुण्ठ चले जाओगे।
बड़े-बड़े पढ़े लिखे आई.ए.एस. सब जाते हैं लेकिन उनसे पूछो कि कोई भी धर्म कर्म क्यों किया जाता है, एक क्वेश्चन? इसलिये कि अन्तःकरण शुद्ध हो, हमारी सांसारिक वासनायें कम हों, न खतम हों, कम तो हों। हमारे काम, हमारा क्रोध, हमारे लोभ, हमारे मोह - ये सब कम हों, यही हर धर्म का परिणाम होना चाहिये। लेकिन होता क्या है, यहाँ से तो हमने बड़ा त्याग किया, बीबी बच्चों का भी त्याग किया, व्यापार का भी, सर्विस से भी छुट्टी ली कि हाँ जायेंगे चारों धाम, पैसा भी खर्च किया, शारीरिक कष्ट भी किया।
अरे! प्रवास में क्या होता है? वहाँ पहुँचकर दर्शन किया, मन्दिर के भगवान का और दर्शन करने का परिणाम क्या हुआ? अरे! नौ दिन हो गया, बच्चा बीमार था और वहाँ व्यापार में मुनीम ने गड़बड़ न कर दिया हो, अब चलना चाहिये। क्या मतलब? क्या मतलब? मतलब दर्शन के बाद और संसार घुस गया वहीं मन्दिर ही में, उसका चिन्तन होने लगा। खैर वहाँ से लौट आये बड़ी शान से, चारों धाम कर आये।
अब बिना पूछे लोगों को बता रहा है। अरे भाई! तुम कहाँ गये थे, दिखाई नहीं पड़े कई दिनों से? हम चारों धाम करने गये थे। भीतर से भी अहंकार और बाहर से भी अपना प्रचार कर रहा है। ये मिला। अन्तःकरण शुद्धि के बजाय उलटा फल मिला। मन तो संसार में था तो चारों धाम, आठों धाम, करोड़ों धाम करो इससे क्या होगा? अगर वहाँ जाकर भगवान का चिन्तन करते, संसार को भुला देते और उसी भावना से लौटते और कुछ प्रचार न करके उसको छिपाकर रखते टी अन्तःकरण की थोड़ी बहुत तो शुद्धि होती और शुद्धि होने की पहचान यही कि संसार का अटैचमेन्ट माइनस हुआ। अरे! टेन परसेन्ट भी हो तो चलो कुछ तो मिला। कुछ नहीं। ये अहंकार और बढ़ गया, प्लस हो गया, माइनस कुछ नहीं हुआ। हमारे संसार में ऐसे लोग तीर्थ यात्रादि, धर्म-कर्म करते हैं।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'जय गंगा मैया' प्रवचन पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - कब से शुरू हो रहा है सावन का महीनासावन का पवित्र महीना भगवान शिव का महीना माना गया है। सावन के महीने में भगवान शिव की विशेष रूप से पूजा-आराधना की जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार सावन जिसे श्रावण भी कहा जाता है वर्ष का पांचवा महीना होता है। इस बार सावन के महीने की शुरुआत 25 जुलाई 2021 से होगी और 22 अगस्त को यह महीना खत्म होगा। भगवान शिव को सावन का महीना अत्यंत ही प्रिय होता है। इस महीने में शिवालयों में भारी संख्या में शिव भक्त शिवलिंग पर जल अर्पित करते हैं। सावन के महीने में पड़ने वाले सोमवार का दिन विशेष महत्व रखता है। आइए जानते हैं सावन के महीने का महत्व और पूजा विधि...सावन महीने का महत्वधार्मिक मान्यताओं में बताया गया है कि भगवान शिव को सावन का महीना बहुत ही प्रिय होता है। इस महीने में भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। सावन में सोमवार का दिन विशेष होता है। इस दिन शिव भक्त रखते हैं और मंदिरों में भगवान शिव की विशेष पूजा आराधना करके भोले भंडारी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मान्यता है कि सावन के महीने में भगवान जल्दी प्रसन्न होकर अपने भक्तों की मनोकामनाओं को अवश्य ही पूरा करते हैं। इस महीने में पवित्र नदियों के जल से भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता है और जितने भी प्रसिद्धि शिव मंदिर हैं वहां जाकर भगवान शिव के दर्शन किया जाता है।कन्याओं और महिलाओं के लिए सावन का महीना विशेषविवाहित महिलाएं सावन सोमवार का व्रत रखती हैं और भगवान शिव सौभाग्य का वरदान देते हैं। कई लोग इस माह के पहले सोमवार से सोलह सोमवार व्रत की शुरुआत करते हैं। सावन महीने की खास बात यह है कि इस महीने में मंगलवार का व्रत देवी पार्वती के लिए किया जाता है, जिसे मंगला गौरी व्रत के नाम से भी लोग जानते हैं। ऐसी मान्यता है कि सावन में सोमवार को व्रत रखने और शिवलिंग पर जल चढ़ाने से घर में सुख-समृद्धि आती है। ऐसी मान्यता है कि कुंवारी कन्याएं सावन के महीने में सोमवार का व्रत रखने और भगवान शंकर की पूजा करने पर मनवांछित जीवनसाथी की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-समृद्धि बढ़ती है। इस बार सावन के महीने में चार सोमवार आएंगे।प्रथम सावन सोमवार व्रत- 26 जुलाई 2021द्वितीय सावन सोमवार व्रत- 2 अगस्त 2021तृतीय सावन सोमवार व्रत- 9 अगस्त 2021चतुर्थ सावन सोमवार व्रत-16 अगस्त 2021सावन सोमवार पूजा विधिभगवान भोलेनाथ जल्द प्रसन्न होने वाले देवता हैं। इनकी पूजा बहुत ही आसान होती है। भोलेनाथ एक लोटा जल और एक पत्ती को अर्पित करने मात्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं। सावन सोमवार के दिन व्रती सुबह जल्दी उठें। इसके बाद शिव पूजन में प्रयोग की जानी वाली सामग्री को एकत्रकर घर के पास के शिव मंदिर में जाकर पूजा करें। सभी पूजन सामग्री को भगवान शिव और माता पार्वती को अर्पित करने के बाद शिवजी को प्रणाम करें। ध्यान रहे इस दौरान शिवलिंग पर जलाभिषेक करते समय शिव के मंत्रों का लगातार जाप करते रहें।
- कमोबेश हर व्यक्ति को रात में नींद में कभी न कभी सपने आते ही हैं. स्वप्न शास्त्र (Swapna Shastra) के मुताबिक हर सपने में कोई न कोई संकेत छिपा होता है, जो आने वाले घटनाक्रम का इशारा देता है. स्वप्न शास्त्र में हर सपने से जुड़ा मतलब बताया गया है. आज हम ऐसे शुभ सपनों (Auspicious Dreams) के बारे में जानते हैं जो धन-लाभ (Money Profit), तरक्की (Success) जैसी शुभ घटनाओं का संकेत देते हैं.शुभ सपनेसपने में घोड़ा देखना: स्वयं को घोड़े की सवारी करते देखने का मतलब है कि आपका आने वाला जीवन खासा खुशहाल रहेगा. वहीं घोड़े को तेज दौड़ाते हुए देखने का मतलब है कि किसी महत्वपूर्ण काम में आपको आसानी से सफलता मिलने वाली है.सांप को बिल में या उसके आसपास देखना: यह सपना जल्द ही अचानक धन मिलने का संकेत देता है.सपने में खुद को नए कपड़े पहनते देखता: ऐसा सपना अच्छे भविष्य का संकेत देता है, जिसमें सुख-समृद्धि दोनों ही मिलने वाली हैं.पेड़ पर चढ़ते हुए देखना: खुद को पेड़ चढ़ते हुए देखने का मतलब है कि आपको अचानक कहीं से पैसे मिलने वाले हैं.महिला को डांस करते देखना: ऐसा सपना भी धन लाभ का संकेत देता है.खुद को पानी पीते या पानी पर चलते हुए देखना: खुद को पानी पीते हुए देखने का मतलब है आपका पुराना रुका हुआ पैसा वापस मिलने वाला है. वहीं खुद को पानी पर चलते देखना बहुत बड़ी सफलता या पद प्राप्ति का प्रबल योग बताता है.सपने में मधुमक्खी का छत्ता: ऐसा सपना भी अचानक धन दिलाने का संकेत देता है.सपने में देवी देवता को देखना: यह सपना तो बहुत ही शुभ (Shubh Sapne) होता है. यह अपार धन के साथ-साथ खुशहाली मिलने का भी संकेत है.सपने में जलता हुआ दीपक देखना: यह किसी बड़े काम में सफलता मिलने का संकेत है. यह सपना कई लिहाज से शुभ माना जाता है.
- वास्तु शास्त्र में घर की हर दिशा, उनके उपयोग और उनमें रखे जाने वाले सामान के बारे में विस्तार से बताया गया है. इनमें से कुछ बातें तो बहुत अहम हैं, यदि उनका पालन न किया जाए तो घर पर मुश्किलों का पहाड़ टूट पड़ता है और यदि किया जाए तो घर स्वर्ग बन जाता है. आज हम ऐसे ही वास्तु नियमों और उपायों के बारे में बात करते हैं, जो अकूत धन-समृद्धि बरसाते हैं.घर की छत है बहुत अहमघर की छत (House Terrace) बहुत अहम होती है क्योंकि इसका संबंध शनि देव से है. ऐसे में छत का गंदा होना, वहां कूड़ा-करकट, कबाड़ का जमा होना शनि को नाराज करने के लिए काफी है. शनि की क्रोध से सभी वाकिफ हैं, ऐसे में कई तरह के नुकसान से बचने के लिए घर की छत को हमेशा साफ-सुथरा रखें.धन-समृद्धि पाने के उपायघर की छत का संबंध शनि देव के साथ-साथ धन के देवता कुबेर से भी है. ऐसे में छत को लेकर कुछ उपाय किए जाएं तो धन-समृद्धि मिलना तय है.- यदि घर में पैसे की तंगी हो तो घर की छत पर उत्तर दिशा में चीनी की बोरी रख दें, कुछ ही दिन में आपकी जिंदगी में धन-समृद्धि की दस्तक हो जाएगी.- इसी तरह पानी की टंकी उत्तर दिशा में या उत्तर पश्चिम दिशा में हो. इससे घर में हमेशा रुपया-पैसा बना रहता है. आर्थिक स्थिरता रहती है.
- ज्योतिष शास्त्र में केतु को क्रूर ग्रह माना जाता है। केतु का नाम सुनते ही लोगों के मन में एक डर सा लगने लगता है। हालांकि ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, केतु हमेशा अशुभ फल ही देता है ऐसा भी नहीं है। अगर केतु किसी जातक को शुभ परिणाम देता है तो उसे मान-प्रतिष्ठा दिलाने के साथ ऊंचाइयों तक ले जाता है।ज्योतिष के अनुसार, केतु का अर्थ ऊंचाई होता है। अगर जन्म कुंडली में केतु किसी अच्छे ग्रहों के साथ बैठा होता है, तो जीवन में सर्वश्रेष्ठ फल दिलाता है। केतु का स्वभाव मंगल ग्रह से मिलला-जुलता है। मंगल की तरह केतु भी साहस और पराक्रम का प्रतीक माना जाता है।केतु ग्रह की विशेषता-जीवन में अचानक होने वाली घटनाओं में केतु का महत्वपूर्ण स्थान है। अगर केतु अच्छे ग्रहों के साथ जन्म कुंडली के 8वें भाव में होता है निश्चित ही अचानक धन लाभ होता है। केतु ग्रह को छाया ग्रह भी कहा जाता है। यह जिस ग्रह के साथ बैठ जाता है, उस ग्रह का बल बढ़ा देता है।इस भाव में देता है शुभ-अशुभ परिणाम-केतु का संबंध जन्म कुंडली के द्वितीय और अष्टम भाव से होता है। दोनों भावों में केतु ग्रह सबसे ज्यादा शुभ फलदायी होते हैं। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, केतु और मंगल की युति एक अंगारक योग बनाती है। इस दौरान जिस जातक की कुंडली में यह युति बनती है, उसे कष्टों का सामना करना पड़ता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 337
(भूमिका - प्रस्तुत उद्धरण जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित विलक्षण प्रवचन श्रृंखला 'मैं कौन? मेरा कौन?' से लिया गया है। आचार्यश्री ने इस प्रवचन श्रृंखला में कुल 103-प्रवचन दिये थे। इस विकराल कलिकाल में सर्वथा भ्रान्त जीवों के कल्याणार्थ वैदिक सिद्धान्तों पर पूर्ण दृष्टिकोण रखते हुये भगवान राम-कृष्ण प्रापत्यर्थ भक्तियोग की उपादेयता एवं उसका षड्दर्शनों से सम्बन्ध बतलाते हुये विशद व्याख्या की है। निम्न उद्धरण में भक्तिपथ में निष्कामता की सर्वोच्चता के विषय में प्रकाश डाला गया है, जो कि उनके द्वारा 8 दिसम्बर 2009 में भक्तिधाम मनगढ़ में दिये गये इस श्रृंखला के 21-वें प्रवचन का एक अंशमात्र है...)
...तीन तत्त्व सनातन तत्त्व हैं - एक ब्रह्म, एक जीव, एक माया। इनमें जीव और माया भगवान की शक्ति हैं। इसलिये इनको भगवान का अंश भी कहा जाता है और शक्ति और शक्तिमान में भेद भी है, अभेद भी है। तो जब अभेद माना जाता है तो कहा जाता है कि केवल एक तत्त्व भगवान ही है और जब भेद के पक्ष में विचार किया जाता है तो बताया जाता है कि एक नहीं तीन तत्त्व हैं, तीन में किसी ने किसी को बनाया नहीं और कोई किसी का अत्यन्ताभाव नहीं कर सकता।
लेकिन इसमें जीव और माया भगवान की भाँति स्वतंत्र नहीं हैं। ये भगवान के आधीन हैं, उनसे नियंत्रित हैं, ईश्य हैं, शास्य हैं, प्रेर्य हैं और भगवान से जीव का समस्त नाता है। आप लोग एक श्लोक बोलते होंगे;
त्वमेव माता च पिता त्वमेव। त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वेमव।त्वमेव विद्या द्वविणं त्वमेव। त्वमेव सर्वं मम देव देव।।(वेदव्यास)
साधारण लोग रामायण तो पढ़ते हैं। जब भगवान राम ने लक्ष्मण से कहा तुम जंगल जाने का, वन जाने का हठ न करो। क्योंकि पिता वृद्ध हैं, जनता को धैर्य दिलाना है। लक्ष्मण ने कहा कि कैसा पिता? ऐं....! कैसा पिता? हाँ;
भ्राता भर्ता च बन्धुश्च पिता च मे राघवः।(वाल्मीकि रामायण)
मेरे पिता तो आप हैं। एक भाई के सामने उसका छोटा भाई उसको बाप कहे तो हमारे संसार में उसको भेज देंगे पागलखाने में। और भगवान के दरबार में उनका सगा भाई कह रहा है, राम सुन रहे हैं और मुस्कुरा रहे हैं। कोई दण्ड नहीं दिया। डाँटा भी नहीं।
गुरु पितु मातु न जानउँ काहू। कहउँ सुभाउ नाथ पतिआहू।मोरे सबइ एक तुम स्वामी। दीनबन्धु उर *अन्तरयामी।।
मेरे, मेरे माने ये जो अन्दर वाला 'मैं' है। उसके तो सर्वस्व आप हैं न। आपने वेद में बताया है;
अमृतस्य वै पुत्रा:।(वेद)
फिर आप कैसे कह रहे हैं कि वो पिताजी हैं? अरे हमारे संसार में जितने भी पुत्र हैं वो कभी पिता ठगे और फिर पुत्र हुये, फिर पिता हो जायेंगे। देखिये एक गधे की अकल से समझिये आज आपका बाप मर गया। हाँ, और उसका बेटे में अटैचमेंट है। हाँ, सभी का है। तो मरने के बाद वो कहाँ जायेगा? हाँ, कहाँ जन्म लेगा? पड़ोसी के यहाँ नहीं लेगा। जहाँ अटैचमेंट होता है वहीं जन्म होता है। तो अपने बेटे का बेटा बनेगा। अब उसका बेटा हो गया पिताजी। वेद कहता है;
यः पिता स पुनः पुत्रो यः पुत्रः स पुनः पिता।एवं संचारचक्रेण कूपचक्रे घटा इव।।(योगतत्त्वोपनिषद 133)
प्रजामनु प्रजायन्ते।(भागवत 3-32-20)
वही जीव एक दूसरे के पिता पुत्र बनते जाते हैं। क्योंकि उनका अटैचमेंट है। जिसका जिसमें अटैचमेंट होता है मरने के बाद उसी को प्राप्त होता है। जब अभिमन्यु को मार दिया कौरवों ने तो अर्जुन ने भगवान से जिद्द किया एक बार दिखा दो मेरे बेटे को। भगवान ने कहा ए अठारह बरस तक देखता रहा, अब एक बार दिखा देने से क्या होगा? नहीं नहीं, आप सब कुछ कर सकते हैं। हाँ हाँ कर सकते हैं। लेकिन क्यों? अच्छा ला। आ गये, अभिमन्यु। अरे बेटा! अभिमन्यु ने कहा किसे कह रहे हो बेटा? तुम्हारा बेटा तो वहीं रह गया। अरे तुम्हारे द्वारा शरीर बना था न हमारा? वो तो मैं छोड़ आया। मैं तो आत्मा हूँ। मैं तो उसका (भगवान का) बेटा हूँ।
तो भगवान से हमारा सर्वस्व नाता है और भेदाभेद संबंध भी है। कुछ विषयों में भेद भी है और कुछ विषयों में अभेद भी है। और हम भगवान की जीवशक्ति के अंश हैं, पराशक्ति के अंश नहीं हैं, माया के अंश नहीं हैं। इसलिये हमको तटस्थ शक्ति कहा जाता है। ये हमारा स्वरूप लक्षण है और तटस्थ लक्षण है कि हम भगवान के नित्य दास हैं। मैंने बार बार आपको बताया है कि संसार में कोई नास्तिक हो ही नहीं सकता। अनंतकाल तक कोई प्रयत्न करें कि मैं नास्तिक बन जाऊँ। भगवान को न मानूँ। इम्पॉसिबल। इसलिये कि आनन्द को तो मानोगे। आनन्द को चाहोगे। हाँ, तो उसी का नाम तो भगवान है। वेद शास्त्र पुराण से मैंने अनेक प्रमाणों से बताया था कि आनन्द ही तो भगवान है। भगवान में आनन्द है, ये तो लोग ऐसे ही बोलते हैं काम चलाऊ। अगर भगवान में आनन्द कहोगे तो इसका मतलब भगवान कोई और है, आनन्द उनमें रहता है। ऐसा मानना पड़ेगा। ऐसा नहीं है। आनन्द ही भगवान है, ऐसा है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'मैं कौन? मेरा कौन?' प्रवचन श्रृंखला, प्रवचन - 21०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - 336
(भूमिका - विश्व के पंचम मौलिक जगदगुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'काल' या 'मृत्यु' की अनिश्चितता, मानव-शरीर की 'क्षणभंगुरता' के विषय पर प्रवचन....)
कालि भजु जनि कहु गोविन्द राधे।जाने काल कालि को ही आवन न दे।।(स्वरचित दोहा)
हम लोग अनादिकाल से अनन्त बार मानव देह पाकर भी, अनन्त बार संतों के उपदेश को समझकर भी भगवत्प्राप्ति नहीं कर सके। उसका एक प्रमुख कारण है उधार। मैं जरा बी.ए. कर लूँ, एम.ए. कर लूँ। जरा ब्याह-व्याह हो जाय, जरा बच्चे-वच्चे हो जायें, जरा बच्चे बड़े हो जायें, मर गये। कल करूँगा, कल करूँगा, कल से ये ही करूँगा। फिर कल आया तो कल से करूँगा। वेद कहता है;
न श्वः श्व उपासीत को हि पुरुषस्य श्वो वेद ।(वेद)
अरे ! कल करूँगा, कल करूँगा मत कहो। क्या पता कल आवे, न आवे। तो,
कालि भजु जनि कहु गोविन्द राधे।जाने काल कालि को ही आवन न दे।।
अरे ! आज रात में ही बिस्तर गोल हो जाय तो? हाँ। एक बार युधिष्ठिर के यहाँ एक ब्राह्मण आया, कुछ सोना माँगने लड़की की शादी के लिये। युधिष्ठिर ने कहा - भई ! इस समय मैं बहुत व्यस्त हूँ राज-काज में, कल आना। वो चला गया बेचारा। युधिष्ठिर भी चले गये अपने राज-काज के लिये। राजा थे वो। महाभारत हो चुका था। भीमसेन को बहुत बुरा लगा कि भैया ने ऐसा क्यों कहा, कल आना। अरे ! हमसे कह देते कि इसको दिला दे भई, दस तोला सोना माँग रहा है। उनको मजाक सूझा और भीमसेन ने प्राइम मिनिस्टर को बुलाया और उससे कहा कि खुशी मनाओ, बहुत बड़ी खुशी की बात है। उसने आर्डर कर दिया नीचे और सारे शहर में आतिशबाजी और सजावट सब होने लगे। युधिष्ठिर ने देखा, आज क्या बात है भई ! न रामनवमी है, न जन्माष्टमी है, ये काहे का फंक्शन हो रहा है? उन्होंने किसी से पूछा - क्यों भई, ये क्यों हो रहा है? उन्होंने कहा प्राइम मिनिस्टर का आर्डर है। प्राइम मिनिस्टर को बुलाया, अरे भई ! तुम क्या कर रहे हो? उन्होंने कहा, सरकार ! आपके भाई साहब ने कहा है। मेरे भाई साहब! भीमसेन? हाँ। भीमसेन को बुलाओ। बुलाया। उन्होंने कहा - ये काहे का उत्सव हो रहा है रे ! उन्होंने कहा, 'भैया ! आपने आज काल को जीत लिया, इस खुशी में'। काल को जीत लिया ! क्या बकबक करता है, काल को कौन जीत सकता है? काल तो भगवान् का स्वरूप है।
तो भैया आपने उस ब्राह्मण से क्यों कहा था कि कल आना। अगर रात को ही हम सब पाँचों चले जायें तो? उन्होंने कहा - अरे हाँ ! शरीर मोटा है, अकल पतली है इसकी। उन्होंने कहा - अरे ! बुलाओ-बुलाओ उस ब्राह्मण को।
तो भगवद् कार्य में उधार नहीं करना चाहिये, संसारी कार्य में उधार कर देना चाहिये। ये प्रिंसिपल याद कर लो। हम लोग उलटा करते हैं, संसारी कार्य को सबसे पहले, अरे भई ! ये मामला ऐसा है शादी ब्याह का, अब इसमें कर्जा लेकर के हमें देना है उसकी लड़की की शादी में गिफ्ट। संसार में, जरा सा एक्सीडेन्ट हो जाय, हड्डी टूट गई, फौरन जाओ डॉक्टर के पास। पच्चीस हजार रुपया लगेगा, पचास हजार लगेगा, ऑपरेशन होगा। ओऽ लगाओ, लगाओ, डॉक्टर साहब जल्दी ठीक करो। तो हम लोग उलटी खोपड़ी वाले हैं। संसार की बड़ी इम्पॉर्टन्स् है हमारे मस्तिष्क में। ओऽ ! लड़की की शादी ! तो? तो पचास लाख सेठजी खर्च कर रहे हैं। पचास लाख!! इससे कौन सा लोक मिलेगा, बैकुण्ठ कि गोलोक? ये तो भाड़ में डाल रहे हो, पचास लाख। अजी नहीं ! तारीफ होगी। बहुत शान से शादी किया। सेठ जी ! ये तुम्हारी शान तुमको कहाँ भेजेगी? अरे जगन्नाथ जी के मन्दिर में कुछ दान कर देते। अरे ! वहाँ भी किया था सौ रुपया। अच्छा, वहाँ सौ रुपया किया था और लड़की की शादी में पचास लाख। हाँ हाँ, वो तो भई इम्पॉर्टन्ट है।
सोचना है, हमने ये गलती अनादिकाल से अब तक की, अब सावधान हो जायें। भगवान् सम्बन्धी तन, मन, धन तीनों की सेवा, तीनों को लगाने के विषय में उधार नहीं ल, संसार में उधार कर दो। रावण ने लक्ष्मण को उपदेश दिया था। राम ने कहा, जब मरने लगा रावण - लक्ष्मण ! जाओ रावण से उपदेश लो। तो रावण ने यही उपदेश दिया था कि लक्ष्मण अच्छा काम तुरन्त करना और गलत काम को उधार कर देना। मैंने सोचा था स्वर्ग में सीढ़ी लगवाऊँगा। हाँ, लगवा दूँगा, क्या जल्दी है और सीता हरण जल्दी कर लिया, उस बारे में उधार नहीं किया। उसका परिणाम भोग रहा हूँ इसलिये तुम सावधान रहना अपने जीवन में। भगवद्विषय का कार्य तुरन्त करो , उधार न करो। क्यों? अरे ! क्या पता अगले क्षण में तुम्हारी ही बुद्धि धोखा दे दे। अरे अब रहने दो, कौन दान करे। अरे। तो इसके पहले तो तुमने सोचा था कि करेंगे ल। अरे हाँ, सोचा था लेकिन अब ऐसा सोचा कि अब ये फालतू क्यों करें, इसको रहने दो, आगे काम आयेगा। ये मन और बुद्धि इतने भ्रष्ट हैं तमाम जन्मों के पापों से कि ये संसार की ओर ही झुकते हैं।
ये गन्दा शरीर, मल-मूत्र भरा है शरीर में, इसके लिये ऐसा पैन्ट चाहिये, ऐसी साड़ी चाहिये जो कम से कम एक हजार की हो। अरे, पाँच सौ की ले लो न। नहीं नहीं ! वो पोजीशन....। बड़ी पोजीशन है तुम्हारी? अनन्त जन्मों के पापात्मा, तुम्हारी क्या पोजीशन है? तुलसी हो कि सूर हो कि मीरा हो कि क्या हो? अरे तुम्हारी क्या पोजीशन है? एक भगवत्कृपा से मानव देह मिल गया है, कल को वो भी खतम हो जायगा फिर चौरासी लाख की चक्की पीसोगे तब एक हजार की साड़ी याद आयेगी? हाँ, हम लोग फालतू खर्चा करते हैं। इसी प्रकार समय भी खराब करते हैं। बातें कर रहे हैं। कीर्तन से निकले बाहर, दो स्त्रियाँ और दो पुरुष बातें कर रहे हैं। क्या बीमारी है बोलने को चुप नहीं रह सकते, भगवान् का चिन्तन नहीं कर सकते, संसार की बातें करते करते अनन्त जन्म बीत गये, पेट नहीं भरा।
तो समय को नष्ट करें, धन को नष्ट करें और मन तो होगा ही न जब ये सब नष्ट होगा तो। हो इस प्रकार हमको सोचना है कि अगला क्षण मिले कि न मिले, रोज हार्टअटैक हो रहा है। हम देख रहे हैं आँखों से। अरे ! वो तो हट्टा कट्टा था, कल मेरे पास आया था। हाँ जी, वो रात को चला गया। लेकिन मैं नहीं जाऊँगा, अभी मेरी उमर ही क्या है? कुल छियासी साल का तो हूँ । अभी कम से कम और दस-बीस साल रहना चाहिये। ये भावनायें हम लोगों की खोपड़ी में भरी हैं तो हम सावधान होकर के भगवद्विषय के कार्य में कल का उधार न करें।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'हरि गुरु स्मरण' पुस्तक, प्रवचन - 6०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, चंद्रमा को माता और सूर्य ग्रह को पिता का कारक माना जाता है। कुंडली के दशम भाव से जातक के पिता का विचार किया जाता है। किसी भी व्यक्ति के जीवन में पिता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बचपन में पिता ही बच्चों के लिए हीरो होता है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, कुछ विशेष राशि के जातक अच्छे पिता होते हैं। ये अपनी संतान को बहुत ही स्नेह करते हैं। अपनी संतान की खुशियों के लिए ये हर कीमत चुकाने के लिए तैयार रहते हैं। ये अपनी संतान की अच्छी परवरिश में अधिक बल देते हैं। ये अपनी संतान को अच्छी शिक्षा के साथ-साथ अच्छा व्यावहारिक ज्ञान भी देते हैं। मां-बाप से ही संतान को पहली शिक्षा मिलती है। यदि वास्तव में किसी बच्चे को एक अच्छे माता-पिता मिल जाएं तो उस बच्चे की जिंदगी संवर जाती है।वृषभ राशिइस राशि के जातक अपनी संतान के लिए अच्छे पिता होते हैं। ये अपने संतान की अच्छी तरह से परवरिश करते हैं। बच्चों के प्रति इनका लाड-प्यार इन्हें एक अच्छा पिता बनाता है। अपनी संतान के प्रति जिम्मेदारी को ये भलिभांति समझते हैं। आप अपनी संतान का कदम-कदम पर साथ देते हैं। आपके द्वारा सिखाई गई नैतिक और मूल्यवान बातें बच्चे हमेशा याद रखते हैं। आप धैर्यपूर्वक बच्चों का लालन पालन करते हैं।मिथुन राशिमिथुन राशि के जातक अपनी संतान के लिए सर्वश्रेष्ठ पिता बनने की कोशिश लगातार करते हैं। ये अपने बच्चों की परवरिश पर खूब ध्यान देते हैं। आप अपने बच्चों को हर अच्छी सीख देने का प्रयास करते हैं। आप चाहते हैं कि आपके बच्चे हर क्षेत्र में सफल हों, फिर चाहें वह खेल का क्षेत्र हो या पढ़ाई का। इस राशि के जातक अपने व्यवहार से अपने बच्चों का भरोसा जीतते हैं।कर्क राशिकर्क राशि के जातक अपने बच्चों को खूब प्यार करते हैं। साथ ही ये अपने बच्चों को नैतिक मूल्य सिखाते हैं। अपनी संतान के प्रति इनका रिश्ता बेहद संवेदनशील होता है। आप एक आदर्श पिता बनने के लिए अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हैं। इस राशि के जातक अपनी संतान के लिए मात्र पिता ही नहीं, बल्कि एक सच्चे रोल मॉडल होते हैं।मकर राशिमकर राशि के जातक अपनी संतान की अच्छी परवरिश के लिए बेहद संजीदा होते हैं। आप अपनी संतान को हर वो खुशी देने का प्रयास करते हैं जिनका अनुभव आपने किसी कारणवश न किया हो। आप एक धैर्यवान और जमीन से जुड़े पिता होते हैं। आप अपने कार्य-व्यवहार से बच्चों को लचीलापन, कड़ी मेहनत और ईमानदारी सिखाते हैं और उन्हें शिक्षा, ज्ञान, कड़ी मेहनत और शिष्टाचार के महत्व के बारे में बताते हैं।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 335
★ भूमिका - निम्नांकित पद भक्तियोगरसावतार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ के 'सिद्धान्त-माधुरी' खण्ड से लिया गया है। 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ में आचार्य श्री ने कुल 21-माधुरियों (सद्गुरु, सिद्धान्त, दैन्य, धाम, श्रीकृष्ण, श्रीराधा, मान, महासखी, प्रेम, विरह, रसिया, होरी माधुरी आदि) में 1008-पदों की रचना की है, जो कि भगवत्प्रेमपिपासु साधक के लिये अमूल्य निधि ही है। इसी ग्रन्थ का यह पद है, जिसमें माता यशोदा जी के भाग्य की वन्दना की गई है कि उनकी गोद में सकल जगत के पिता स्वयं ब्रह्म श्रीकृष्ण पुत्र बनकर प्रगट हुये हैं ::::
धन्य सो मातु यशोमति भाम।श्री कृष्णहिं ‘कनुवा’, कहि टेरत ‘बलुवा’ कहि बलराम।‘पूर्व जनम रह शूकर’ कह लखि, धूरि धूसरित श्याम।‘पूर्व जनम रह मच्छ’ कहत लखि, जल विहार अभिराम।मुख माटी लखि लै कर साँटी, बाँधति ऊखल दाम।बन्यो ‘कृपालु’ पूत यशुमति को, जगत पिता नँदगाम।।
भावार्थ - उन यशोदा मैया के धन्य भाग्य हैं जो पूर्णब्रह्म श्रीकृष्ण को ‘कनुवाँ’ एवं बलराम को ‘बलुआ’ कहकर बुलाती हैं। श्यामसुन्दर को धूल में सने हुए देखकर कहती हैं कि तुम पिछले जन्म के सूअर हो। (बात भी सत्य है)। पुन: श्यामसुन्दर को पानी में अधिक देर तक खेलते हुए देखकर कहती हैं कि तुम पिछले जन्म के मछली हो। (बात भी सत्य है वे शूकर एवं मत्स्य बन चुके हैं)। श्यामसुन्दर के मुख में मिट्टी देखकर हाथ में डण्डा लेकर डराती हुई रस्सी से ऊखल में बाँध देती हैं। ‘श्री कृपालु जी’ के शब्दों में सम्पूर्ण जगत् के पिता नन्दग्राम में एक अहीरनी यशोदा के पुत्र बने हैं।
०० रचनाकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रेम रस मदिरा', खंड - श्रीकृष्ण बाल लीला माधुरी०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - ज्योतिष की रत्न शास्त्र विद्या को उपायों के मामले में काफी अच्छा माना जाता है. कुंडली के अनुसार रत्न पहनने से सफलता की मात्रा बढ़ जाती है और समस्याओं की तीव्रता कम हो जाती है. आज हम एक प्रभावशाली रत्न माणिक पहनने से होने वाले फायदों के बारे में जानते हैं. यह रत्न सूर्य का प्रतिनिधित्व करता है. चूंकि सूर्य ग्रहों का राजा है और पराक्रम, स्वास्थ्य आदि का कारक है. ऐसे में माणिक पहनने से कई जातकों के व्यक्तित्व में आमूलचूल परिवर्तन देखा जाता है.रत्न शास्त्र के अनुसार यह रत्न पहनने से छात्र, शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोग, व्यापारी वर्ग, राजनेता, आर्मी, प्रशासनिक अधिकारियों और अन्य क्षेत्रों में नेतृत्व की भूमिका निभा रहे लोगों को बहुत सफलता मिलती है.कुंडली में सूर्य कमजोर हो तो जरूर पहनें माणिकजिन लोगों की कुंडली में सूर्य (Surya) कमजोर स्थिति में हो, उन्हें यह रत्न जरूर पहनना चाहिए. यह उनमें कॉन्फिडेंस बढ़ाता है. उनमें निर्णय लेने की क्षमता बेहतर होती है. यदि वे लीडरशिप वाले पद पर हैं तो यह रत्न उनकी नेतृत्व क्षमता अच्छी करता है और मान-सम्मान भी दिलाता है. यह व्यक्ति में सकारात्मकता बढ़ाता है, उसकी एनर्जी बढ़ाता है.सेहत के लिए बहुत काम का है माणिक- माणिक पहनने से आंखों की रोशनी और रक्त संचार में सुधार होता है.- रूबी पहनने से हड्डियां मजबूत होती हैं.- स्किन से जुड़ी समस्याओं से छुटकारा दिलाता है.- ऐसे लोग जो सुबह की धूप नहीं ले पाते हैं और उनमें अक्सर विटामिन डी की कमी रहती है, तो वे तांबे की अंगूठी में माणिक पहनें.- अपच, हाई और लो ब्लड प्रेशर जैसी समस्यओं में भी माणिक पहनने से लाभ होता है. यह बीपी को कंट्रोल रखने में सहायक है.((नोट-माणिक पहनने से पहले एक बार ज्योतिष से अवश्य सलाह ले लें।)
- हिंदू संस्कृति में चातुर्मास का बहुत महत्व है. इस बार चातुर्मास 12 जुलाई 2021 से लगने जा रहा है..........हिंदू माह का चौथा महीना आषाढ़ का होता है. इस महीने की शुक्ल एकादशी से चातुर्मास का प्रारंभ होता है. मान्यता है कि आषाढ़ी एकादशी के दिन से चार महीनों के लिए सभी देव सो जाते हैं. बताते चलें कि चातुर्मास की अवधि कुल मिलाकर चार महीनों की होती है. इन चार महीनों में श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक आते हैं. ये आषाढ़ शुक्ल एकादशी से शुरू होकर कार्तिक एकादशी तक चलता है. इसके भीतर आषाढ़ के 15 दिन और कार्तिक के 15 दिन शामिल होते हैं. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस महीने में भगवान विष्णु पाताल लोक में जाकर सो जाते हैं. जिससे धरती पर नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाता है. इसकी वजह से इस अवधि में किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य को नहीं किया जाता है. ऐसे में हमें भी चातुर्मास में शुभ कार्यों को करने से बचना चाहिए.भगवान विष्णु की पूजाइस दौरान भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए. प्रतिदिन सुबह उठकर सुबह और शाम को विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करना चाहिए. इसके अलावा ॐ नमोः नारायणाय, ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय नमः: मंत्र का जाप भी दोनों टाइम करना चाहिए.तेल से बनी चीजों को न खाएंचातुर्मास के दौरान आप तेल से बनी चीजों को ना खाएं. दूध, दही, शकर, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन, बैंगन, तेल, मसालेदार भोजन, मिठाई, सुपारी, मांस, मदिरा का सेवन बिल्कुल भी ना करें. इस दौरान जीवन को एक साधु की भांति जीना चाहिए. भोजन का सेवन दिन में एक बार करें. सूर्योदय से पहले उठने की कोशिश करिए. चातुर्मास के दौरान रोजाना स्नान कीजिए और मौन धारण करने की कोशिश करें.नियमित रूप से करें दानइस 4 माह के दौरान लोगों को दान करते रहना चाहिए. किसी गरीब या पशु-पक्षी को भोजन कराएं. नदी के जल में दीप छोड़ें या फिर मंदिर के भीतर दीपक जलाएं. गरीब व्यक्ति को वस्त्र दान करें. कटोरी के भीतर सरसों का तेल लें और उसमें अपना चेहरा देखकर उसे शनि भगवान के मंदिर में दान करें. किसी मंदिर या आश्रम में अपनी सेवाएं दें.
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 334
(भूमिका - साधक के भगवत्प्रेमोन्नति के विषय में जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रवचन अंश, यह अंश उनके द्वारा निःसृत प्रवचन श्रृंखला 'नारद भक्ति दर्शन' की व्याख्या से लिया गया है..)
..भगवान् सम्बन्धी कामना निन्दनीय नहीं है लेकिन वन्दनीय भी नहीं है, ऐसा हमारा खयाल है। साधक के लिये डेन्जर है क्योंकि अगर हमने कोई कामना बना ली, उनका (भगवान) दर्शन हो जाय, चलो और कुछ नहीं चाहते, स्पर्श भी नहीं चाहते, लेकिन दर्शन हो जाय और नहीं हुआ, रोते रहे एक दिन, दो दिन, एक महीना, एक साल, दस साल, हजार साल, करोड़ साल। हमारे रोने से भगवान् आ जायेंगे ये अगर अहंकार है तो रोने से नहीं आयेंगे। भगवान् तो अपनी इच्छा से आते हैं, हमारी किसी साधना के चाबुक से नहीं आ सकते वो।
अरे! रोने का मतलब क्या है? रोने का मतलब ये है माँगना। माँगना? माँगना दो प्रकार से होता है न। आप लोग टिकट माँगते हैं रेलवे का, रुपया हाथ में लेकर डालते हैं.. ऐ... टिकट बम्बई का। वो रुपया दिया, उसने टिकट दिया। एक तो ये माँगना है, इसमें किसी का कोई एहसान नहीं क्योंकि तुमने रुपया दिया, उसने टिकट दिया। और एक माँगना होता है, बाबूजी भूख लगी है, चार पैसा दे दो, एक माँगना ये होता है। इसमें तो हमने उसके लिये कुछ किया-विया नहीं। केवल माँगा और अगर उसने दे दिया, तो फिर क्या बात है, थैंक्यू।
तो भगवान् से हम माँग रहे हैं - स्प्रिचुअल सामान, स्प्रिचुअल प्रेम, स्प्रिचुअल हैप्पीनेस। दे नहीं रहे कुछ। आँसू दे रहे हैं। आँसू दे रहे हैं? आँसू कोई देने की वस्तु है? अरे! ये बोलो माँग रहे हैं, और वह भी अभी माँगने में मिलावट है। अभी क्लीन स्लेट हार्ट होकर के विशुद्ध हृदय से नहीं माँग रहे हैं। अभी कुछ गड़बड़ है। इसलिये हमारे माँगने से उन्होंने दिया, ये अहंकार नहीं होना चाहिये। हमने भी तो साधना की है। क्या साधना की है? अरे, कीर्तन किया है, आँसू बहाये हैं। अरे! तो कीर्तन और आँसू का मतलब क्या होता है - माँगना। तुमने दिया क्या? अरे! देते क्या, अभी तो मिले ही नहीं वो, और अगर मिल भी जायें तो हम देंगे क्या? हमारे पास जो कुछ है वो तो उनके काम का है नहीं कुछ शरीर, मन, बुद्धि संसार का सामान और फिर ये तो उन्हीं का है। अगर हम यह भी सोच लें कि हमने दे दिया, तो हमसे पूछा जायेगा ये किसका था? ये सारा विश्व उनका है। उस विश्व में भी भारत, भारत में भी एक छोटा-सा शहर लखनऊ, लखनऊ में भी एक मुहल्ला, मुहल्ले में भी दो-तीन मकान हमारे थे, उसको हमने दान कर दिया। बड़ा कमाल किया आपने। अरे, ये तो उसी का सामान है। इसमें अहंकार क्यों आया? तो अगर अहंकार युक्त होकर के हमने याचना भी की तो स्वीकार नहीं होगी।
लेकिन अगर ठीक-ठीक याचना करेगा तो उसको वो वस्तु मिलेगी। लेकिन, एक बड़ी गड़बड़ बात ये होगी कि वस्तु मिलने के बाद तुरन्त कामना बढ़ती है आगे, वो चाहे संसारी कामना हो चाहे पारमार्थिक हो। तुरन्त उसके आगे वाली कामना पैदा हो जाती है, अपने आप हो जाती है, तो जैसे संसार में तमाम स्तर हैं, ये साइकिल से जा रहा है, ये स्कूटर से जा रहा है, ये मोटर साइकिल से जा रहा है, ये एम्बेसेडर से जा रहा है, ये अम्पाला से जा रहा है, एक से एक ऊँचा स्तर है न? तो जब किसी को साइकिल मिल जाती है - ए! साइकिल तो मिल गयी लेकिन वो मोटर साइकिल होती तो जरा अच्छा रहता। अब चलाओ उसको, मेहनत करो, तुरन्त कामना बढ़ गयी। मोटर साइकिल हो गयी, ए! ये मोटर साइकिल क्या खोपड़ा खा लेती है, ये भी कोई गाड़ी है, कार हो तो उसमें साहब बनकर चलें। कार भी हो गयी, हाँ कार है, फटीचर कार है, कोई कार है? वो लम्बी वाली गाड़ी हो, दस लाख वाली। यानी ये बीमारी ऐसी है कि;
यत् पृथिव्यां व्रीहियवं हिरण्यं पशवः स्त्रियः।न दुह्यन्ति मनः प्रीतिं पुंसः कामहतस्य ते॥(भागवत 9-19-13)
नालमेकस्य पर्याप्तं तस्मात्तृष्णां परित्यजेत्।।(विष्णु पुराण)
अनन्त ब्रह्माण्ड की साम्राज्य श्री मिल जाय तो भी उसके आगे प्लानिंग होगी। और यही बात ईश्वरीय जगत् में भी है। वहाँ भी अनेकों स्तर हैं, जैसे मैंने बताया था न, ये ब्रह्मानन्द है, ये बैकुण्ठानन्द है, ये द्वारिकानन्द है, ये मथुरानन्द है, ये ब्रजानन्द है, वृन्दावनानन्द है, कुंजानन्द है, निकुंजानन्द है, तमाम आनन्द वहाँ भी होते हैं। तो कामना बनायेंगे अगर हम तो उसके पूरी होने के बाद फिर कामना आगे बढ़ेगी और साधनावस्था में कामना पूरी हो जाय ये कम्पल्सरी नहीं। इसलिए अगर साधनावस्था में कामना पूरी ना हुई तो निराशा आयेगी और निराशा आयेगी तो अबाउट टर्न हो जायेगा। अरे यार, इतने दिन तक रोये-गाये, सब कुछ, वो सब बकवास है। न कहीं भगवान् है न कहीं कुछ है। लोगों ने खामखां फैला रखा है बवाल, एक बिना वजह खोपड़ा भंजन करने के लिये। ये भगवान्-वगवान् जो है ये तो जिनके दिमाग खराब हो गये बुढ़ापे में, ऐसे लोग जंगलों में पड़े रहते थे, खाने-पीने को ढंग से मिलता नहीं था, हाफ मैड हो गये थे। तो उन्होंने कहा हम तो बरबाद हुए ही हैं, ये दुनियाँ वालों को भी ऐसी बीमारी लगा दो भगवान् की, कि ये भी टेन्शन में पड़े रहें।
जब निराशा आती है मनुष्य में तो इतनी निम्न कक्षा की बात सोच जाता है। उसको होश-हवाश नहीं रहता कि मैं क्या सोच रहा हूं भगवान् के लिये भी, गुरु के लिये भी, पाताल में पहुँच जाता है। इसलिये कामना रखकर भक्ति तो करनी ही नहीं है। साधक को तो बहुत ही डेन्जर है, अगर सिद्ध हो जाय कोई तो पृथक् बात है, उसका पतन होने का सवाल ही नहीं रहेगा कोई। लेकिन अभी ये सोचना है जो नारद जी कहते हैं;
यत्प्राप्य न किंचिद् वाञ्छति।
वो कुछ नहीं चाहता। अरे! आनन्द तो चाहता होगा? आनन्द, सबसे कठिन परीक्षा यही है। जहाँ बड़े-बड़े जीवन्मुक्त अमलात्मा परमहंस भी फेल हो जाते हैं, वे भी सकाम हो गये। भगवान् से ब्रह्मानन्द माँगते हैं, मोक्ष माँगते हैं। ये मोक्ष माँगना क्या है? कामना। आनन्द माँगना क्या है? कामना। अरे! हम संसार की जो वस्तु चाहते हैं वो भी तो आनन्द के लिये ही तो चाहते हैं। अगर आनन्द माँगना सही है तो हम जो संसारी आनन्द चाहते हैं वो भी सही होना चाहिये। तो मोक्ष की कामना भी सकामता है।
लेकिन निष्कामता और सकामता में जो बारीक अन्तर है, वो क्या है? हम भगवान् की सेवा चाहते हैं। सेवा चाहते हैं - ये भी कामना है। वाह! वाह! वाह! बड़े आप अच्छे हुए, सेवा चाहते हैं और कहते हैं हम निष्काम हैं। अरे! आपका एम (लक्ष्य) तो है कुछ, सेवा चाहते हैं न? हाँ, लेकिन हम सेवा चाहते हैं अपने प्रियतम की, सेव्य की। हाँ, हाँ, सेव्य की सेवा चाहते हो, जैसे माँ बच्चे की सेवा करती है, उसे खुशी होती है, ऐसे ही न? नहीं, नहीं, हम श्यामसुन्दर की सेवा इसलिये चाहते हैं कि श्यामसुन्दर को सुख मिले। अब आनन्द की हमारी कामना भी समाप्त, अब हम निष्काम होंगे। श्यामसुन्दर को सुख मिले, इस उद्देश्य से उनकी सेवा माँगते हैं। उस सेवा के लिये उनका दिव्य निष्काम प्रेम माँगते हैं। यहाँ से चलो। निष्काम प्रेम चाहिये, क्यों? उनकी सेवा करेंगे, क्यों? उनके सुख के लिये। इसके लिये नारदजी ने एक सूत्र बनाया है;
तत्सुखसुखित्वम्।
तो क्यों जी, फिर हमको आनन्द कहाँ मिला? ऐसा लेबर इतना लम्बा चौड़ा हमने किया, बेकार हो गया। नहीं, जब श्यामसुन्दर को आप सुख देंगे सेवा से, तो श्यामसुन्दर उसको और मधुर बनाकर लौटा देंगे आपको। तब आपको वो उससे अधिक आनन्द मिलेगा। फिर आप उसको श्यामसुन्दर को दे देंगे। फिर वो आपको लौटा देंगे, फिर आप उनको दे देंगे - ये क्रम अनन्तकाल तक चलता जायगा। इसलिये आनन्द बढ़ता जायगा।
(प्रवचनकर्ता : जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
०० सन्दर्भ : 'नारद भक्ति दर्शन' पुस्तक (जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा व्याख्या)०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - 5जुलाई को योगिनी एकादशी है। आषाढ़ माह में कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को योगिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत अधिक महत्व होता है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है। इस दिन विधि- विधान से भगवान विष्णु की पूजा- अर्चना की जाती है। हर माह में दो बार एकादशी तिथि पड़ती है। एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष में। साल में कुल 24 एकादशी पड़ती हैं। एकादशी व्रत करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है।योगिनी एकादशी मुहूर्त-----------एकादशी तिथि प्रारम्भ - जुलाई 04, 2021 को 07:55 पी एम बजेएकादशी तिथि समाप्त - जुलाई 05, 2021 को 10:30 पी एम बजेपारण (व्रत तोड़ने का) समय - 6 जुलाई, 05:29 ए एम से 08:16 ए एमयोगिनी एकादशी व्रत पूजा का शुभ समय- ----ब्रह्म मुहूर्त- 04:08 ए एम से 04:48 ए एमअभिजित मुहूर्त- 11:58 ए एम से 12:54 पी एमविजय मुहूर्त- 02:45 पी एम से 03:40 पी एमगोधूलि मुहूर्त- 07:09 पी एम से 07:33 पी एमअमृत काल- 06:47 ए एम से 08:35 ए एमयोगिनी एकादशी पूजा- विधि--------------सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।सभी देवी- देवताओं का गंगा जल से अभिषेक करें।भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें।इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।भगवान की आरती करें।भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं।इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।
- 20 जुलाई को ग्रहों के सेनापति मंगल ग्रह का राशि परिवर्तन होने जा रहा है। इस दिन मंगल सिंह राशि में प्रवेश कर जाएंगे। मंगल को ऊर्जा, भाई, भूमि, शक्ति, साहस, पराक्रम, शौर्य, गतिशीलता और जीवन शक्ति का कारक ग्रह माना जाता है। 6 सितंबर, 2021 तक मंगल सिंह राशि में ही विराजमान रहेंगे। ज्योतिष में ग्रहों के राशि परिवर्तन को बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। ग्रहों के राशि परिवर्तन का सभी राशियों पर शुभ- अशुभ प्रभाव पड़ता है।वृषभ राशि-----------मंगल गोचर के प्रभाव से वृषभ राशि वालों को नौकरी और व्यापार में तरक्की मिल सकती है।लेन- देन के लिए समय शुभ है।इस दौरान धन- लाभ के भी योग बनेंगे।नया कार्य शुरू करने के लिए समय शुभ है।परिवार के सदस्यों के साथ समय व्यतीत करेंगे।हर कार्य में जल्दबाजी करते हैं ये लोग, बिना सोच- विचार किए करते हैं काममिथुन राशि -------------मंगल गोचर की अवधि में मिथुन राशि वालों का भाग्य साथ देगा।नौकरी और व्यापार के लिए मंगल गोचर की अवधि शुभ है।पारिवारिक व वैवाहिक जीवन सुखद रहेगा।कार्यक्षेत्र में आपकी प्रशंसा होगी।आपके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना होगी।परिवार के सदस्यों के साथ समय व्यतीत करने का अवसर मिलेगा।दांपत्य जीवन में सुख का अनुभव करेंगे।वृश्चिक राशि------------मंगल के सिंह राशि में गोचर करने से वृश्चिक राशि वालों को लाभ मिलेगा।इस दौरान मान-सम्मान में वृद्धि होगी।वैवाहिक जीवन सुखद रहेगा।कार्यक्षेत्र में हर किसी पर भी भरोसा करने से बचें।नौकरी और व्यापार के लिए समय शुभ है।दांपत्य जीवन सुखमय रहेगा।इन लोगों पर कभी नहीं पड़ती है शनि की बुरी नजर, हमेशा रहते हैं शनिदेव मेहरबानकुंभ राशि-------------मंगल गोचर कुंभ राशि वालों के लिए शुभ परिणाम लेकर आएगा।व्यापारियों को मंगल गोचर के प्रभाव से मुनाफा होगा।इस दौरान धन लाभ के योग बनेंगे।जीवनसाथी के साथ समय अच्छा बीतेगा।परिवार के सदस्यों का भी पूरा सहयोग प्राप्त करेंगे।कार्यों में सफलता मिलेगी।धन- लाभ होगा।व्यापार के लिए ये समय किसी वरदान से कम नहीं है।
- सामुद्रिक शास्त्र एक ऐसा शास्त्र है जिसमें व्यक्ति के हाव-भाव शरीर के अंगों की बनावट, तिल और निशान आदि देखकर व्यक्ति के बारे में जानकारी दी जाती है, लेकिन क्या आपको पता है कि व्यक्ति के हस्ताक्षर करने का तरीका भी उसके बारे में बहुत कुछ कहता है। हर व्यक्ति के हस्ताक्षर करने का तरीका अलग-अलग होता है। किसी भी व्यक्ति के हस्ताक्षर से आप जान सकते हैं कि वह किसी तरह का व्यक्ति है। हालांकि इस बारे में कुछ भी पूरी तरह से सटीक नहीं होता है लेकिन फिर भी बहुत हद तक हस्ताक्षर से व्यक्ति के स्वभाव और उसकी प्राथमिकताओं के बारे में जाना जा सकता है।नीचे से ऊपर की ओर लिखने वालेअक्सर देखा होगा कि कुछ लोग हस्ताक्षर करते समय नीचे से ऊपर की ओर लिखते हैं शायद आप भी ऐसे ही हस्ताक्षर करते हो, ऐसे लोगों के बारे में कहा जाता है कि ये लोग आशावान होते हैं और दिल के बहुत साफ होते हैं। हालांकि कई बार ये लोग थोड़े झगड़ालू भी होते हैं।ऊपर से नीचे की ओर लिखने वालेजो लोग हस्ताक्षर करते समय ऊपर से नीचे की ओर लिखते हैं। उनका दृष्टिकोण चीजों को लेकर नकारात्मक होता है। ये लोग किसी से ज्यादा मेल-मिलाप करना पसंद नहीं करते हैं और ज्यादा सामाजिक नहीं होते हैं। इनके विचारों में सकारात्मकता की कमी होती है।बिना कलम उठाए हस्ताक्षर करने वालेकुछ लोग बिना कलम उठाए हुए एक ही बार में पूरे हस्ताक्षर कर देते हैं। यदि कोई व्यक्ति हस्ताक्षर करते समय एक बार भी कलन नहीं उठाता है तो ऐसे लोगों को बेहद रहस्यमय माना जाता है। ऐसे लोगों के भीतर क्या चल रहा है यह पता करना बहुत ही मुश्किल होता है। ऐसे लोगों के रहस्य रखने वाले के साथ ही झगड़ालू भी माना जाता है।पूरा सरनेम लिखने वालेकुछ लोग हस्ताक्षर करते समय अपने सरनेम को पूरा और स्पष्ट लिखते हैं। ऐसे लोग बहुत ही मिलनसार और व्यवहारिक होते हैं।हस्ताक्षर में अवरोधक प्रयोग करने वालेकुछ लोगों की आदत होती है कि वे अपने हस्ताक्षर के बीच में या फिर अंत में अवरोधक जैसे बिंदु आदि का प्रयोग करते हैं ऐसे लोगों में नैतिकता होती है और ये समाज के अनुसार चलने वाले लोगों होते हैं। जो लोग अपने हस्ताक्षर के अंत में लकीर या फिर बिंदु बनाते हैं वे थोड़े शर्मीले स्वभाव के होते हैं।हस्ताक्षर के अंत में दो रेखाएं बनाने वालेकुछ लोग पूरे हस्ताक्षर करने के बाद अंत में दो रेखाएं बनाते हैं ऐसे लोगों में असुरक्षा की भावना होती है। इन लोगों के लगता है कि कहीं कोई इनका नुकसान न कर दे या फिर उन्हें धोखा ना दे दे।अस्पष्ट हस्ताक्षर करने वालेकुछ लोग बहुत ही जल्दी-जल्दी और अस्पष्ट रूप से हस्ताक्षर करते हैं। इनके किए गए हस्ताक्षर में कुछ भी साफ समझ नहीं आता है। ऐसे लोगों को विश्वसनीय नहीं माना जाता है। ये लोग स्वयं की सफलता या हित के लिए धोखा कर सकते हैं।
- भारतीय ज्योतिष का एक प्रमुख अंग है, सामुद्रिक शास्त्र, जिसके द्वारा व्यक्ति के शरीर के विभिन्न अंगों की सरंचना के आधर पर फलकथन कहने की रीति प्रचलित है। इसी सामुद्रिक शास्त्र के द्वारा नारद आदि महर्षियों ने मनुष्यों के जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक की सभी बातों को जान लिया करते थे। आइये जानते हैं कि ऊंगलियों में पाए जाने वाले चक्र व्यक्ति के स्वभाव को लेकर क्या कहते हैं-----1-यदि किसी जातक की अंगुलियों में एक चक्र का निशान हो तो, वह मनुष्य चालाक तथा अवसर को भुनाने वाले होते हैं। ऐसे जातक अपने निहित स्वार्थ के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं।2- यदि किसी जातक की अंगुलियों में 2 चक्रों के निशान हो तो, ऐसे लोग सुन्दर, गुणवान, तथा समाज में प्रशंसा के पात्र होते हैं। इन लोगों को तमाम भौतिक वस्तुओं का सुख प्राप्त होता है।3-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 3 चक्रों के निशान हो तो, ऐसे मनुष्य अपना अधिकतर समय भोग-विलास में व्यतीत करते हंै। इनका पारिवारिक जीवन दु:खमय बना रहता है।4-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 4 चक्रों के निशान हो तो, वह व्यक्ति अपने कार्यो में निरन्तर संघर्ष करते है, परन्तु उनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ नहीं हो पाती है। ऐसे लोग अपने जीवन में कई बार अपमान भी सहते है। इन लोगों का 50 वर्ष के उपरान्त ही समय अच्छा होता है।5-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 5 चक्रों के निशान हो तो ऐसे लोग अपनी विद्वता से समाज का कल्याण करते है। जैसे- सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षक, अधिवक्ता, कथावाचक आदि होते हंै।6-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 6 चक्रों के निशान हो तो, वह लोग बौद्धिक होते है। ऐसे जातक अच्छे पद पर आसीन होकर सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करते है, परन्तु इनका दाम्प्तय जीवन दु:खमय रहता है।7-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 7 चक्रों के निशान हों तो, ऐसे लोग पहाड़ों की खूब यात्रा करते हंै तथा अपने साहस व पराक्रम के बल से शीघ्र ही अपने लक्ष्य को को प्राप्त कर लेते है। ऐ लोग यात्राओं से भी धन कमाते है।8-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 8 चक्रों के निशान हो तो, वह लोग मेहनत तो अत्यधिक करते हैं, परन्तु उनको सफलता न के बराबर ही मिलती है। ये लोग निम्नकोटि का कोई भी कार्य न करें तो बेहतर होगा।9-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 9 चक्रों के निशान हो तो, ऐसे लोग उच्च पद को प्राप्त कर सुखमय जीवन व्यतीत करते हंै। ये लोग समाज में कुछ ऐसा कार्य भी करते है जिससे इनको पुरस्कार मिलते हैं।10-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 10 चक्र के निशान हो तो ऐसे लोग राजा के समान जीवन व्यतीत करते हैं। ये लोग राज्य के सलाह, मन्त्री, सेनापति, राज्यपाल या मुख्यमंत्री होते हैं।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 333
★ भूमिका - आज के अंक में प्रकाशित दोहा तथा उसकी व्याख्या जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ग्रन्थ 'भक्ति-शतक' से उद्धृत है। इस ग्रन्थ में आचार्यश्री ने 100-दोहों की रचना की है, जिनमें 'भक्ति' तत्व के सभी गूढ़ रहस्यों को बड़ी सरलता से प्रकट किया है। पुनः उनके भावार्थ तथा व्याख्या के द्वारा विषय को और अधिक स्पष्ट किया है, जिसका पठन और मनन करने पर निश्चय ही आत्मिक लाभ प्राप्त होता है। आइये उसी ग्रन्थ के 39-वें दोहे पर विचार करें, जिसमें आचार्यश्री ने यह बताया है कि संसार साधनसम्पन्न की पूछ-परख करता है परन्तु कृपासिन्धु भगवान साधनहीन दीन जनों की ओर कृपादृष्टि रखते हैं....
सब साधन संपन्न कहँ, पूछत सब संसार।साधनहीन प्रपन्न कहँ, पूछत नंदकुमार।।39।।
भावार्थ - संसारी लोग उसी से प्यार करते हैं, जिसके पास संसारी वैभव होता है। किंतु श्यामसुंदर अकिंचन से प्यार करते हैं।
व्याख्या - मायाधीन जीव परमानंद से वंचित है। अतः उसी की प्राप्ति के हेतु भ्रमवश मायिक विषयों को चाहता है। यह स्वार्थ तब तक रहेगा, जब तक प्रेमानंद नहीं प्राप्त कर लेता। अतः कोई भी माता, पिता, भ्राता, भर्ता ऐसा नहीं हो सकता जो दूसरे के सुख के लिये कुछ करे। यथा वेद कहता है;
न वा अरे पत्युः कामाय पतिः प्रियोभवति...।
जहाँ भी संसारी स्वार्थ पूर्ति होती है वहीं प्यार करता है। स्वार्थ समाप्त, तो प्यार भी समाप्त। अतः धनादि वैभव की प्राप्ति द्वारा आनंद प्राप्ति मानने वाले अज्ञानी व्यक्ति, वैभव वालों की चमचागीरी करते रहते हैं। किंतु उस सेठ के दिवालिया होते ही ऐसे रफूचक्कर हो जाते हैं, जैसे वृक्ष के फल समाप्त होते ही पक्षीगण उड़ जाते हैं। किंतु भगवान् तो परिपूर्ण हैं। आत्माराम हैं। साथ ही अकारण करुण भी हैं। अतः जो जीव उनकी शरण में जाता है, वह सदा को आनंदमय हो जाता है। किंतु वैभवयुक्त व्यक्ति जा ही नहीं सकता। वैभव का मद उसे स्वयं भगवान् बना देता है। इसी से कुंती ने संसार का अभाव वरदान स्वरूप माँगा था। अतः वैभवों से दूर रहना चाहिये।
०० व्याख्याकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'भक्ति-शतक' व्याख्या, दोहा संख्या 39०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हिंदू धर्म और ज्योतिष में तुलसी के पौधे (Tulsi Plant) का विशेष महत्व बताया गया है. भगवान विष्णु (Lord Vishnu) को प्रिय तुलसी (Tulsi) से जुड़ी कई पौराणिक मान्यताएं हैं साथ ही घर में तुलसी का पौधा लगाने और उसका सेवन करने के कई वैज्ञानिक लाभ हैं. पर्यावरण को शुद्ध करने वाले, सकारात्मकता लाने वाले तुलसी के पौधे को घर के सामने लगाने की सलाह दी जाती है. साथ ही इसमें रोजाना जल चढ़ाने, पूजा करने से जिंदगी में समृद्धि और खुशहाली आती है. आज हम जानते हैं पूजनीय तुलसी के पत्तों (Tulsi Leaves) को तोड़ने का सही तरीका क्या है.तुलसी के पत्तों को तोड़ने का सही तरीका- ज्योतिष के मुताबिक रविवार के दिन तुलसी का पत्ता नहीं तोड़ना चाहिए और ना ही तुलसी के पौधे पर जल चढ़ाना चाहिए. इसके अलावा अमावस्या, चतुर्दशी और द्वादशी के दिन भी तुलसी का पत्ता तोड़ना अशुभ माना जाता है. इस दिन तुलसी का पत्ता तोड़ने से जीवन में आर्थिक मुश्किलें आ सकती हैं.- सूर्यास्त के बाद कभी भी तुलसी का पत्ता नहीं तोड़ना चाहिए. मान्यता है कि माता तुलसी, देवी राधा का ही एक स्वरूप हैं और शाम के समय श्री राधारानी वन में श्री कृष्ण के साथ रास रचाने जाती हैं. ऐसे में शाम के समय तुलसी के पत्ते तोड़ने से रास में बाधा आती है.- इसके अलावा सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण में भी तुलसी के पत्तों को नहीं तोड़ना चाहिए.- तुलसी के पौधे को बिना नहाए नहीं छूना चाहिए. इसके अलावा भगवान के प्रसाद के लिए तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल करते समय ध्यान रखें कि पत्ते 11 दिन से ज्यादा पुराने न हों.- इसके अलावा तुलसी के पत्तों को कभी भी नाखून से नहीं तोड़ना चाहिए. बल्कि उंगली की पोर से तोड़ना चाहिए. हो सके तो तोड़ने की बजाय गमले में पहले से टूटे हुए गिरे पत्तों को इस्तेमाल करना चाहिए.- घर में कभी भी सूखा हुआ तुलसी का पौधा नहीं रखें, ऐसा अशुभ होता है. यदि सूख जाए तो पौधे को किसी पवित्र नदी में विसर्जित कर दें.- कभी भी भगवान शंकर और गणेश जी को तुलसी का पत्ता नहीं चढ़ाना चाहिए.
- भारतीय वास्तु की तरह चीनी वास्तु भी होता है जिसे फेंगशुई के नाम से जाना जाता है। फेंगशुई में सकारात्मकता बढ़ाने के लिए मुख्यत: फेंगशुई प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है। इन सभी प्रतीकों में सबसे अधिक लाफिंग बुद्धा प्रचलन में है। मान्यता है कि लाफिंग बुद्धा रखने से सुख-समृद्धि, खुशहाली और तरक्की प्राप्त होती है। कहा जाता है कि लाफिंग बुद्धा अपने पैसों से खरीदकर कभी घर पर नहीं रखना चाहिए। लाफिंग बुद्धा यदि कोई आपको भेंट करे तो ही शुभ होता है। माना जाता है कि स्वयं के पैसों से खरीदे गए लाफिंग बुद्धा से कोई परिणाम प्राप्त नहीं होता है। जब कोई आपको उपहार में लाफिंग बुद्धा देता है तो ही इससे समृद्धि औऱ खुशहाली प्राप्त होती है।दरअसल चीनी वास्तु में लाफिंग बुद्धा का बहुत ही महत्व माना गया है। वे लोग इसको लेकर बहुत ही ध्यान रखते हैं। लाफिंग बुद्धा धन और खुशहाली के लिए होता है इसलिए चीनी मान्यता कहती है कि किसी भी व्यक्ति को इतना स्वार्थी नहीं होना चाहिए कि वह धन के लिए वह लाफिंग बुद्धा की खरीदारी करें। माना जाता है कि जो लोग ऐसा करते हैं उन्हें इनका आशीर्वाद प्राप्त नहीं होता है और ये केवल आपके घर या कार्यस्थल पर सजावट की वस्तु से अधिक कुछ नहीं होता है। यह तभी आपको शुभ फल प्रदान करता है जब कोई आपको बिना स्वार्थ के इसे आपको भेंट करता है। इसलिए अपने मित्रों, शुभचिंतकों और रिश्तेदारों को लाफिंग बुद्धा भेंट में अवश्य दें, इसका लाभ आपको अवश्य मिलेगा।
- आमतौर पर मकान बनाते समय वास्तु का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है। कभी कभार ऐसा ना करने पर मकान में वास्तुदोष उत्पन्न हो जाता है, जो मकान स्वामी के लिए कष्ट की स्थिति पैदा कर देते हैं। आज हम जानते हैं कि यदि मकान के ईशान कोण में वास्तुदोष को तो क्या उपाय करना चाहिए। ईशान कोण को वास्तु शास्त्र में बहुत महत्व दिया जाता है। मान्यता है कि सभी देवताओं का निवास स्थान धरती की ईशान दिशा में ही है. इसे भगवान शिव की दिशा भी माना जाता है. घर के पूर्व और उत्तर के बीच ईशान कोण होता है।यदि भवन के ईशान क्षेत्र में कोई वास्तु दोष है तो उस कटे हुए भाग पर एक बड़ा शीशा लगाएं। इससे भवन का ईशान क्षेत्र बड़ा हुआ सा प्रतीत होता है। इसके अतिरिक्त किसी साधु महात्मा अथवा देवगुरु बृहस्पति या फिर ब्रह्मदेव का कोई चित्र अथवा मूर्ति को ईशान में स्थापित करें। अगर ईशान कोण में रसोईगृह है तो उस रसोईगृह के अंदर गैस चूल्हे को आग्नेय कोण में और रसोई के ईशान कोण में साफ बर्तन में जल भरकर रखें। अगर ईशान कोण में शौचालय है तो उसके बाहरी दीवार पर एक बड़ा आदमकद शीशा या शिकार करता हुआ शेर का चित्र लगाएं। ईशान में शौचालय होने पर उपाय अवश्य ही करें क्योंकि ईशान कोण में शौचालय होना अत्यंत अशुभ होता है।
- शरीर के संपूर्ण स्वास्थ्य को मजबूत बनाने में मदद करने वाला आयुर्वेद एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति है। इससे स्वस्थ जीवनशैली के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी भी मिलती है। आयुर्वेद के मुताबिक, सुबह जागने का एक निश्चित समय होता है और इस समय जागने वाले व्यक्ति का दिमाग व शरीर बिल्कुल स्वस्थ रहता है। सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठना सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है. क्योंकि, इस दौरान वातावरण में सात्विक गुण मौजूद होते हैं, जो आपके दिमाग व शरीर को ताजगी व शांति प्रदान करते हैं। ब्रह्म मुहूर्त में जागने से निम्नलिखित फायदे प्राप्त होते हैं।- ध्यान लगाने व आत्ममंथन से बुद्धि बढ़ती है।- विद्यार्थियों में याद्दाश्त और ध्यानकेंद्रित करने की क्षमता बढ़ती है।- मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है।- फोकस बढऩे से कार्य करने की क्षमता बढ़ती है।- एक्सरसाइज करने का सही समय होता है, क्योंकि हवा बिल्कुल साफ और ताजी होती है।ब्रह्म मुहूर्त किस समय होता है?ब्रह्म मुहूर्त का समय सूर्योदय से 1 घंटा 36 मिनट पहले शुरू हो जाता है, जो कि सिर्फ 48 मिनट ही रहता है और सूर्योदय होने से 48 मिनट पहले समाप्त हो जाता है, लेकिन, आज की भागदौड़ भरी जिंदगी के कारण अगर आप ब्रह्म मुहूर्त में नहीं उठ पाते हैं, तो सूर्योदय से पहले या उसके साथ जरूर जागें। इससे भी शरीर को कई स्वास्थ्य फायदे मिलते हैं।ब्रह्म मुहूर्त में ना उठ पाने वाले किस समय उठें?अगर आप ब्रह्म मुहूर्त में नहीं उठ पा रहे हैं, तो सूर्योदय से पहले या उसके साथ बिल्कुल जाग जाएं। एक सामान्य व्यक्ति, जिसे अपने शरीर की प्रकृति के बारे में नहीं पता है, वो रोजाना सुबह 6.30 से 7 बजे के बीच जागकर स्वास्थ्य फायदे प्राप्त कर सकता है। आइए, सूर्योदय से पहले या उसके साथ जागने के फायदे जानते हैं--इससे शरीर को ऊर्जा मिलती है--सकारात्मकता सोच मिलती है।-शारीरिक प्रकृति में संतुलन बनता है।-मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर होता है।-पाचन बेहतर होता है।-बायोलॉजिकल क्लॉक सुधरती है।-स्वभाव खुशनुमा होता है।- अनुशासन आता है, आदिशारीरिक प्रकृति के हिसाब से किस समय उठना चाहिए?आयुर्वेद के मुताबिक, हमारे शरीर का स्वास्थ्य तीन दोषों पर निर्भर करता है, जिन्हें वात, पित्त और कफ दोष कहा जाता है। इनमें असंतुलन पैदा होने से ही स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं। इसी के मुताबिक, किसी भी व्यक्ति की दैहिक प्रकृति बनती है। किसी का शरीर वात से संबंधित हो सकता है, तो किसी का पित्त या कफ से संबंधित हो सकता है। दैहिक प्रकृति के हिसाब से भी सुबह जागने का समय निर्धारित किया जाता है. जैसे-वात प्रकृति के लिए- सूर्योदय से 30 मिनट पहलेपित्त प्रकृति के लिए- सूर्योदय से 45 मिनट पहलेकफ प्रकृति के लिए- सूर्योदय से 90 मिनट पहलेतनावग्रस्त या देर से सोने वाले लोगों के लिए उठने का समयआयुर्वेद में तनावग्रस्त व देर से सोने वाले लोगों के लिए भी उठने का सही समय बताया गया है, जैसे-वात प्रकृति के लिए- सुबह 7 बजे तकपित्त प्रकृति के लिए- सुबह 6.30 बजे से पहलेकफ प्रकृति के लिए- सुबह 6 बजे से पहले
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 332
(भूमिका - 'प्रेम' की तो अनिवार्य शर्त 'निरंतरता' और 'निष्कामता' में निष्कामता के महत्व की व्याख्या आचार्यश्री जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज ने अपने श्रीमुख से की है। यह उद्धरण उनके द्वारा निःसृत प्रवचन का एक अंशमात्र है। आइये आज के इस अंक में इस दिव्यज्ञान को हृदयंगम करने का सुप्रयास करें...)
प्रेम की परिभाषा में दो बातें खास हैं। एक तो निरंतर हो, और एक, निष्काम हो। अपने सुख की कामना न हो। अपने सुख की कामना आई तो अपना सुख पूरा हुआ सेंट परसेन्ट, तो प्यार सेंट परसेन्ट। अपना सुख अगर उससे कम सिद्ध हुआ, तो प्रेम कम। बिल्कुल नहीं सिद्ध हुआ स्वार्थ उससे, प्रेम कम। यह तो संसार में होता है, यह तो व्यापार है। हम चाय में, दूध में एक चम्मच चीनी डालें, थोड़ी मीठी। दो चम्मच डाला, और मीठी हो गई। तीन चम्मच डाला, और मीठी हो गई। यह तो ऐसा बिजनेस है। यह प्रेम नहीं। इसलिये एक दिन में दस बार आपका प्रेम स्त्री से, पति से, बाप से, बेटे से, अप-डाउन, अप-डाउन होता रहता है। स्वार्थ की लिमिट के अनुसार।
तो सबसे पहली शर्त है, अपने सुख को छोड़ना होगा। यहीं हम फेल हो जाते हैं। अनंत बार भगवान मिले हमको, अनंत बार संत मिले हमको। हम उनके पास गये लेकिन अपने सुख की कामना, अपने स्वार्थ की कामना लेकर गये।
आज हमारे संसार में करोड़ों लोग भगवान के भक्त दिखाई पड़ते हैं। वो चाहे खुदा को मानें, चाहे गॉड को मानें, चाहे राम-श्याम को मानें, लेकिन 99.9 परसेन्ट लोग अपनी कामना ले के जाते हैं भगवान के मन्दिर में।
हमारे इण्डिया में एक तिरुपति मन्दिर है। ओ, वहाँ करोड़ों की भेंट चढ़ती है। एक-एक आदमी करोड़-करोड़ रुपया दान करता है। क्यों? यह हल्ला मचा हुआ है कि यह हमारे संसार की जो भी हमारी कामना होगी, उसको पूरा कर देंगे। बस, भीड़ चली आ रही है। अरे जो लोग मर जाते हैं बाबा लोग, फ़क़ीर लोग, और कहीं उनकी हड्डी है गड़ी हुई, वहाँ जाते हैं लोग। ये हमारी इच्छा पूरी कर देंगे। सब सकाम। और वह कामना भी भगवान सम्बन्धी हो, तो कोई बात नहीं। संसार माँगने के लिये। धन मिले, प्रतिष्ठा मिले, वैभव मिले, इसके लिये जाते हैं। यही सबसे बड़ी रुकावट है प्रेम पाने में। अपनी कामना छोड़ना होगा। नारद जी ने प्रेम की परिभाषा की;
न सा कामयमाना।
नारद भक्ति का सातवाँ सूत्र। कामना-रहित होना चाहिये। कामना आई, तो उसका नाम भक्ति नहीं। उल्टा हो गया यह तो। भक्ति शब्द का अर्थ है, सेवा। सेवा माने क्या होता है? जैसे एक माँ छोटे से बच्चे की सेवा करती है। इस समय बच्चा कुछ नहीं सेवा करता माँ की, माँ सेवा करती है। ऐसे ही, हम अगर दास हैं शास्त्र वेद के अनुसार भगवान के, तो हम भगवान की सेवा करना चाहते हैं न। तो सेवा में भगवान को सुख देने की भावना होनी चाहिये, अपने सुख देने की नहीं। अपने को सुख देने की भावना कर-करके अनन्त जन्म दुःखी रहे। अगर भगवान के सुख देने की भावना करके भगवान से प्यार करते, तो अनन्त बार भगवत्प्राप्ति हो गई होती!!
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'साधन साध्य' पत्रिका, अक्टूबर 2013 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 331
साधक का प्रश्न ::: प्रसादी वस्त्र इत्यादि सामान जो दिया जाता है, उसका क्या महत्व है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर - उद्धव से अधिक प्रसाद का विवेचन कौन करेगा, कौन समझेगा। उद्धव इतने बड़े ज्ञानी कि भगवान को कहना पड़ा - 'नोद्धवोण्वपि मन्न्यूनः'। उद्धव मुझसे थोड़ा भी कम नहीं है। सम्पूर्ण ज्ञान वैराग्य प्रेम आदि से युक्त है। वे उद्धव कहते हैं कि ये बड़े बड़े ज्ञानी, ध्यानी और वेदों के बताये हुये साधनों से सम्पन्न, करोड़ों कल्प में भी माया को नहीं जीत सके। तुलसीदास जी कहते हैं;
नारद भव विरंचि सनकादी।जे मुनि नायक आतमवादी।।मोह न अंध कीन कहु केही।को जग काम नचाव न जेही।।
नारद, ब्रह्मा, विष्णु, शंकर ये सब बड़ी बड़ी पर्सनैलिटीज माया को नहीं जीत सकीं।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते।(गीता 7-14)
गीता में चैलेंज है भगवान का - 'अर्जुन जो मेरी शरण में आयेगा उसकी माया को को मैं भगाऊँगा'। अपनी साधना से कोई नहीं भगा सकता। वे उद्धव जी कहते हैं;
त्वयोपभुक्तस्त्रग्गन्धवासोलंकारचर्चिता:।उच्छिष्टभोजिनो दासास्तव मायां जयेमहि।।(भागवत 11-6-46)
श्रीकृष्ण को चैलेंज कर रहे हैं उद्धव, आपके द्वारा प्रयोग किया हुआ, 'त्वयोपभुक्त', माला, गंध, इत्र वगैरह, वस्त्र-पीताम्बर वगैरह, अलंकार - कोई भी जेवर, जो प्रसाद रूप में आपके द्वारा दिया जाता है और सबसे बड़ी चीज उच्छिष्ट भोजन, आपका उच्छिष्ट, कोई भी सामान - खाने-पीने का सामान, पहनने का सामान, इनका प्रयोग करके मैंने माया को जीत लिया महाराज! ये बड़ी बड़ी साधना वाले पतन को प्राप्त हो गये। लेकिन हम चैलेंज करते हैं माया को, खाली प्रसाद के सेवन से।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'साधन साध्य' पत्रिका, अक्टूबर 2013 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - ज्योतिष शास्त्र में कुल 12 राशियों का वर्णन किया गया है. इनमें से हर राशि की अपनी खूबी होती है. इन राशियों से किसी भी व्यक्ति के स्वभाव, व्यक्तित्व और भविष्यफल का अंदाजा लगाया जाता है.हरेक राशि का एक स्वामी ग्रहज्योतिष शास्त्र के मुताबिक हरेक राशि का एक स्वामी ग्रह होता है. इस स्वामी ग्रह का असर संबंधित व्यक्ति पर पड़ता है. शास्त्रों में ऐसी 4 राशियों का वर्णन किया गया है, जो अपने पति के लिए भाग्यशाली मानी जाती है. कहा जाता है कि जिन घरों में इन राशियों वाली जीवन संगिनी होती है. वहां पर सुख-समृद्धि की कोई कमी नहीं रहती है.केयरिंग और आत्मविश्वासी लड़कियांकुंभ राशि - कहा जाता है कि इस राशि की लड़कियां अपने पति के लिए भाग्यशाली साबित होती हैं. इस राशि की लड़कियां केयरिंग, आत्मविश्वासी और स्वतंत्र विचारों वाली होती हैं. ये जहां जाती हैं, खुशियां बिखेरती हैं. ये कठिन से कठिन समय में अपने पति का साथ नहीं छोड़ती हैं. ये हमेशा अपने परिवार को आगे रखती हैं.पति के लिए समृद्धि लाने वालीकर्क राशि - ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कर्क राशि की लड़कियां अपने पति (Husband) के लिए समृद्धि लाने वाली होती हैं. कहते हैं कि ये जिस घर में जाती हैं, वहां धन-संपदा की कमी नहीं होती है. इस राशि की लड़कियां अपने पति के लिए ईमानदार होती हैं. ये संकट काल में अपनों का साथ देती हैं. इनमें दूसरों को खुश रखने की प्रतिभा होती है.पति की खुशियों का रखती हैं ध्यानमीन राशि- शास्त्रों के मुताबिक इस राशि की लड़कियां (Bride) भावुक और केयरिंग होती हैं. ये अपने पति की खुशियां का ख्याल रखती हैं. कहते हैं कि इनकी शादी जिस व्यक्ति से होती है, वह तरक्की हासिल करता जाता है. ऐसी लड़कियों अपने परिवार को मुसीबत से उबारने के लिए हर त्याग करने के लिए तैयार रहती हैं.पति के बन जाते हैं बिगड़े काममकर राशि- इस राशि की लड़कियां (Bride) अपने पति के लिए लकी मानी जाती हैं. घर में ऐसी पत्नी के आ जाने से पति के बिगड़े काम भी बन जाते हैं. ऐसी लड़कियां बुद्धिमान और समझदार होती हैं. वे अपनी समझदारी से पूरे परिवार को एकसूत्र में बांधे रखती हैं. ऐसी लड़कियां मितव्ययी होती हैं और फालतू खर्चे करने से बचती हैं.
- आपने अक्सर घर के बड़े बूढ़ों को ये कहते सुना होगा कि हाथ की लकीरों में हमारी तकदीर छिपी होती है. हालांकि कुछ लकीरें ऐसी होती हैं जो समय के साथ-साथ बनती और मिटती हैं. कहा यह भी जाता है कि लकीरों का बनना और बिगड़ना भी कुछ न कुछ संकेत देता है. कुछ रेखाएं धन संबंधी मामलों के लिए अशुभ मानी जाती हैं.आइए जानते हैं उन रेखाओं के बारे में...ऐसी रेखा हो तो धन की स्थिति सामान्यहस्तरेखाशास्त्र के अनुसार अगर किसी की भाग्य रेखा चंद्र पर्वत से निकले और उसपर त्रिभुज बन जाए, या फिर रेखा पतली हो और मस्तिष्क रेखा पर रुक जाए. ऐसे लोगों की आर्थिक स्थिति सामान्य रहती है.ऐसी रेखा हो तो आती हैं दिक्कतेंअगर किसी की भाग्य रेखा धुंधली हो या फिर शनि-बुध और गुरु दबा हो, ऐसे लोगों को धन संबंधि दिक्कतें आती हैं. इससे छुटकारा पाने के लिए बगुलामुखी और लक्ष्मी माता की पूजा करें.इन उपायों से दूर होगी समस्याअगर किसी की भाग्य रेखा मोटी हो या जीवन रेखा के पास हो, ऐसे लोगों को जीवनभर धन संबंधी दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं. अगर आपकी हस्तरेखा की यही स्थिति है तो नवग्रह पूजन और गृह शुद्धि करें.क्या कहती है जीवन ऐसी जीवन रेखाहस्तरेखाशास्त्र में कहा गया है कि अगर किसी की जीवन रेखा बिल्कुल सीधी हो या भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर रुक जाए तो ऐसे लोगों को अक्सर धन संबंधी परेशानी झेलनी पड़ती है. इससे राहत पाने के लिए शनिदेव की पूरा करनी चाहिए.क्या कहती है रेखाओं की ये स्थितिहथेली में यदि कहीं पर भी तीन तरफ से आकर रेखाएं आपस में मिलती हों तो त्रिभुज का निर्माण होता है. यदि आपके भाग्य रेखा पर त्रिभुज का निर्माण होता है तो वह आपके भाग्य को कमजोर कर देता हैं. ऐसे लोगों को अपने जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए बहुत ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है. इन्हें धन की कमी भी झेलनी पड़ती है.