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- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 342
★ भूमिका - निम्नांकित पद भक्तियोगरसावतार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ के 'सिद्धान्त-माधुरी' खण्ड से लिया गया है। 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ में आचार्य श्री ने कुल 21-माधुरियों (सद्गुरु, सिद्धान्त, दैन्य, धाम, श्रीकृष्ण, श्रीराधा, मान, महासखी, प्रेम, विरह, रसिया, होरी माधुरी आदि) में 1008-पदों की रचना की है, जो कि भगवत्प्रेमपिपासु साधक के लिये अमूल्य निधि ही है। इसी ग्रन्थ का 'सिद्धान्त-माधुरी' का यह 44-वाँ पद है, जिसमें श्री कृपालु जी महाराज संसार के स्वरूप पर प्रकाश डालते हुये इसकी असारता प्रकट करते हुये अनंत आनंद के सिन्धु भगवान श्रीकृष्ण की चरण-शरण में आने का आग्रह कर रहे हैं ::::
छाँड़ु मन! सनक तनक सुनु बात।छिन सुख पाव पाव छिन दुख पुनि, जोरि जगत सोँ नात।इक वस्तुहिं इक सुखी, दुखी इक, एक उदास लखात।पुनि कहु वा वस्तुहिँ सुख या दुख, या नहिँ दोउ जनात।जो जेहि वस्तु मानि सुख जितनो, सोचत रह दिनरात।सो तेहि वस्तु पाव सुख तितनो, वस्तुहिँ सुख पतियात।पुनि तेहि विरह पाव दुख तितनोइ, निज भ्रमवश पिछतात।कह 'कृपालु' जग ते उदास रहु, गहहु शरण बलभ्रात।।
भावार्थ - अरे मन! दुराग्रह छोड़ दे! जरा मेरी बात पर विचार तो कर। तू संसार से प्यार करके एक क्षण में तो सुखी हो जाता है एवं दूसरे ही क्षण दुःखी हो जाता है। जरा सोच तो, एक ही वस्तु से एक व्यक्ति सुखी होता है तो दूसरा दुःखी होता है एवं एक व्यक्ति उदासीन दिखाई देता है। अब तू ही बता उस वस्तु में सुख है या दुःख या दोनों ही नहीं हैं? अरे मन! जो जिस वस्तु में जितने सुख का बार-बार चिंतन करता है उसको उस वस्तु से अपना ही माना हुआ सुख मिल जाता है और वह यह समझ बैठता है कि उसे उस वस्तु से ही वह सुख मिल रहा है। फिर जिस वस्तु से जिसको जितना सुख मिलता है उस वस्तु के वियोग में उसको उतना दुःख भी मिलता है। 'श्री कृपालु जी' कहते हैं अरे मन! संसार में न सुख है न दुःख है। अतएव संसार से उदासीन होकर श्यामसुन्दर की शरण ग्रहण कर।
०० व्याख्याकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रेम रस मदिरा', सिद्धान्त माधुरी, पद संख्या 44०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - होटल हो या घर, पानी के लिये अलग-अलग व बहुत सी जगहों पर व्यवस्था करनी पड़ती है। अलग-अलग यूज़ के हिसाब से जगह का चुनाव किया जाता है। अगर जमीन के अंदर पानी की व्यवस्था करवाना चाहते हैं, यानि कि बोर करवाना या जैट लगवाना चाहते हैं तो इसके लिये ईशान कोण का चुनाव करना ठीक रहता है और ध्यान रखे कि ईशान कोण हमेशा साफ-सुथरा रहे।सेप्टिक टैंक के लिये वायव्य या पश्चिम दिशा का चुनाव करना चाहिए। क्योंकि पश्चिम दिशा वरूण देव, यानि जल के देवता की दिशा है तो इस दिशा में टैंक लगवाने से आप पानी से संबंधित परेशानियों से दूर रहेंगे। इसके अलावा छत के ऊपर पक्की सीमेंट की टंकी बनाने के लिये नैऋत्य कोण सबसे अच्छा रहता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 341
★ भूमिका - आज के अंक में प्रकाशित दोहा तथा उसकी व्याख्या जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ग्रन्थ 'भक्ति-शतक' से उद्धृत है। इस ग्रन्थ में आचार्यश्री ने 100-दोहों की रचना की है, जिनमें 'भक्ति' तत्व के सभी गूढ़ रहस्यों को बड़ी सरलता से प्रकट किया है। पुनः उनके भावार्थ तथा व्याख्या के द्वारा विषय को और अधिक स्पष्ट किया है, जिसका पठन और मनन करने पर निश्चय ही आत्मिक लाभ प्राप्त होता है। आइये उसी ग्रन्थ के 88-वें दोहे पर विचार करें, जिसमें आचार्यश्री ने यह बताया है कि हमारे लिये श्रीकृष्ण प्रेम ही परमसाध्य वस्तु होनी चाहिये, और वह श्रीकृष्ण प्रेम जिस साधन से मिलता हो, उसी से हमारा प्रयोजन रहना चाहिये।
वंदनीय है उपनिषत, यामे ज्ञान महान।श्याम प्रेम बिनु ज्ञान सो, प्राणहीन तनु जान।।88।।
भावार्थ - उपनिषत् भगवत्स्वरूप हैं। अतः वन्दनीय हैं। उनमें अनन्त ज्ञान भरा पड़ा है। किंतु उनसे श्रीकृष्ण प्रेम नहीं बढ़ता। अतः ज्ञान, प्राणहीन, शरीर के समान है।
व्याख्या - श्रीकृष्ण के सहज नि:श्वास से अनादि अपौरुषेय वेद प्रकट होते हैं। अतः भगवान् के समान ही परम वन्दनीय है। फिर उपनिषत् भाग तो वेदों का चरम ज्ञान स्वरूप है।
सर्ववेदमयो हरिः।(भागवत 7-11-7)
इसी से भगवान् श्रीकृष्ण को वेदकृत् वेदवित् वेदवेद्य कहा है। यथा;
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्योवेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्।(गीता 15-15)
जीवों के संस्कार एवं रुचि पृथक्-पृथक् हैं। अतः वेदों में सभी अधिकारियों के हेतु मार्ग निरूपण किया गया है। अतः किसी महापुरुष के द्वारा ही वेद का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। स्वयं वेद कहता है। यथा;
आचार्यवान् पुरुषो हि वेद।(छान्दोग्योपनिषद 6-14-2)
तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत् समित्पाणिः श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम्।(मुण्डकोपनिषद 1-2-12)
अर्थात् श्रोत्रिय (वेद तात्पर्य मर्मज्ञ), ब्रह्मनिष्ठ (जिसने पूर्ण प्रेम प्राप्त कर लिया है) गुरु से ही वेदार्थ ज्ञान प्राप्त करना चाहिये। अन्यथा-
विभेत्यल्पश्रुताद्वेदो मामयं प्रहरिष्यति।
अर्थात् अल्पज्ञों से वेद डरता है कि मेरा अनर्थ करेगा। अस्तु वेदों में भी उपनिषत् भाग तो वेदों का सारभूत तत्त्व है। बड़े-बड़े पाश्चात्य दार्शनिकों तक ने उपनिषदों के ज्ञान की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। किंतु यहाँ लेखक का अभिप्राय यह है कि भूखे को खाना चाहिये। व्यंजन ज्ञान की पुस्तक से पेट नहीं भरता। टाइम टेबल देखने मात्र एवं उसके रट लेने मात्र से तो मुसाफिर का सफर तय नहीं होता। उसी प्रकार इन सब उपनिषदों के ज्ञान से भगवान् में अनुराग नहीं हो पाता। ज्ञान तो वही वन्दनीय है जो साधक का स्वार्थ सिद्ध करे। श्रीकृष्ण प्रेम संवर्धन ही किसी भी ज्ञान का चरम लक्ष्य है। यदि उपनिषत् एवं वेदान्त सूत्र हमारा साध्य नहीं प्रदान करता तो हम उसको लेकर क्या करें? हमको तो श्रीमद्भागवत महापुराण सरीखे रसात्मक ग्रन्थ से ही विशेष लाभ होता है। इसी आशय से स्वयं वेदव्यास ने कहा है। यथा;
श्रुतमप्यौपनिषदं दूरे हरिकथामृतात्।यन्नसंति द्रवच्चित्तकंपाश्रुपुलकादयः॥
अर्थात् श्यामसुन्दर की सरस लीला रहित शुष्क ज्ञान युक्त उपनिषत् ज्ञान से दूर ही रहना उचित है। क्योंकि उसके श्रवण मनन से श्रीकृष्ण सम्बन्धी प्रेम के सात्विक भावों (स्तम्भ, स्वेद, कंप, अश्रु आदि) का उद्रेक ही नहीं होता।
०० व्याख्याकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'भक्ति-शतक' ग्रन्थ, दोहा संख्या 88०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - ज्योतिष में मुश्किलों से निपटने के कई छोटे और आसान उपाय बताए गए हैं. ये उपाय बड़ी से बड़ी समस्याओं को दूर करने में सक्षम होते हैं, यदि कुंडली की प्रतिकूल ग्रह-दशाओं के कारण ऐसा न भी हो तो वे संकटों की तीव्रता कम कर देते हैं. यानी कि जातक को यदि नुकसान हो भी तो कम होगा. आज हम लाल किताब में दिए गए एक ऐसे कारगर उपाय के बारे में बात करते हैं, जो कई समस्याओं से निजात दिलाता है.बड़े काम का है चांदी का छल्लाचांदी का बिना जोड़ वाला छल्ला बहुत काम की चीज है. इसकी कीमत भी बहुत ज्यादा नहीं होती है, यह उंगली की साइज के हिसाब से करीब 1 हजार रुपये में मिल जाता है. यह छल्ला चंद्रमा का कारक होता है. यानी कि यह शुक्र ग्रह को मजबूत करता है और शुक्र अपने मित्र ग्रह बुध पर भी सकारात्मक असर डालता है.शुक्र और बुद्ध मिलकर जिंदगी में सुख-समृद्धि, सौंदर्य और बुद्धिमत्ता को बढ़ाते हैं. साथ ही करियर में आ रही बाधाओं को दूर करके सफलता दिलाते हैं. इसके अलावा चांदी का यह छल्ला सूर्य और शनि की स्थिति को मजबूत करता है. इससे भाग्य वृद्धि होती है और काम बनने लगते हैं.विवाह का योग भी बनाता है चांदी का छल्लाचांदी का छल्ला लड़कियों को अपने बाएं हाथ में और लड़कों को दाएं हाथ में पहनना चाहिए. यदि शुक्र के कारण विवाह में अड़चनें आ रही हों तो चांदी का छल्ला पहनने से जल्द ही विवाह होने के योग बनते हैं. वहीं विवाहित लोगों के चांदी के छल्ला पहनने से उनके दांपत्य जीवन में खुशहाली रहती है. इसके अलावा चांदी का छल्ला पहनने से राहु का दोष दूर होता और मन शांत रहता है. जिन लोगों को बात-बात पर गुस्सा आता हो, उन्हें भी यह छल्ला पहनने से लाभ होगा.इन बातों का रखें ध्यानचांदी का छल्ला पहनते समय कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है. छल्ला लेते समय देख लें कि उसमें कोई जोड़ न हो, उसे ढालकर बनाया गया हो. वहीं कुंडली में चंद्र, शुक्र, शनि, सूर्य, राहु और बुध दोष होने पर चांदी का छल्ला पहनने से पहले ज्योतिषी से सलाह ले लें. छल्ले को सोमवार के दिन पहनें.
- जिंदगी में तमाम तरह की मुश्किलें आती हैं, इनमें से कई के पीछे ज्योतिष से जुड़े कारण जिम्मेदार होते हैं. जैसे उस समय की ग्रह-दशाएं सभी के लिए ठीक न होना या केवल उस जातक के लिए ठीक न होना. ऐसी स्थितियों के लिए ज्योतिष में कई उपाय और टोटके भी बताए गए हैं. जिनकी मदद से संकटों को दूर किया जा सकता है या उनकी तीव्रता कम की जा सकती है. आज हम जीवन में आने वाली आम समस्याओं जैसे- पैसे की तंगी , वैवाहिक जीवन की मुश्किलें, करियर में असफलता आदि के लिए उपाय जानते हैं, जो आपकी मुश्किलों को बहुत जल्दी दूर कर सकते हैं.आर्थिक स्थिति मजबूत करने के उपाय1. आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए, मान-सम्मान पाने के लिए रोजाना सूर्य को अर्घ्य दें. इसके लिए तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें एक चुटकी सिंदूर मिलाएं और सुबह सूर्य को जल चढ़ाएं.2. यदि हनुमान भक्त हैं तो एक और उपाय भी कर सकते हैं. इसके लिए 5 मंगलवार या 5 शनिवार तक तिल के तेल में सिंदूर मिलाकर हनुमान जी को चढ़ाएं. यह उपाय जिंदगी में बार-बार आ रही आर्थिक समस्याओं से निजात देता है और पैसे आने के नए रास्ते खोलता है.घर की कलह खत्म करने का उपाय1.यदि घर में अक्सर कलह होती हो तो सिंदूर में थोड़ा तेल मिलाकर अपने घर के मुख्य दरवाजे पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं. ऐसा 40 दिनों तक करें. इससे घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होगी और घर में खुशहाली आएगी.2. रोजाना शाम को घर में कर्पूर जलाकर उसे पूरे घर में घुमाएं, इससे भी घर में सकारात्मक ऊर्जा आएगी.वैवाहिक जीवन में खुशहाली लाने के उपाययदि वैवाहिक जीवन में कोई मुश्किल आ रही हो तो यह उपाय बहुत कारगर होता है. यदि मुश्किलें न भी हों तो जीवनसाथी के साथ खुशहाल जिंदगी के लिए भी यह उपाय कर सकते हैं. इसके लिए सुहागिन महिलाएं मां गौरी को सिंदूर अर्पित करें और फिर उसमें से थोड़ा सा सिंदूर अपनी मांग में भर लें.
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 340
(भूमिका - प्रस्तुत अंश जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा लिखित 'प्रेम रस सिद्धान्त' पुस्तक से लिया गया है। इस पुस्तक में आचार्यश्री ने अध्यात्म-जगत के प्रत्येक विषय का अनेक अध्यायों यथा; जीव का चरम लक्ष्य, ईश्वर का स्वरूप, भगवत्कृपा, शरणागति, संसार और वैराग्य का स्वरूप, महापुरुष, ईश्वर-प्राप्ति के उपाय, कर्म, ज्ञान, भक्ति, भगवान के अवतार रहस्य, भक्तियोग, कर्मयोग की क्रियात्मक साधना तथा कुसंग का स्वरूप आदि में विशद रूप से और बड़ी ही सरल भाषाशैली में वर्णन किया है। भगवत्प्रेमपिपासु जीव के लिये यह ग्रंथ अनमोल है। आइये इसी ग्रन्थ के अध्याय - 5, 'संसार के स्वरूप' के एक अंश पर विचार करें....)
...समस्त ब्रह्मलोक पर्यन्त के आनन्द में सर्वत्र एक सी अशान्ति, अतृप्ति एवं अपूर्णता रहती है। वास्तविक आनन्द इन सबसे करोड़ों कोस दूर है, जिसे पाने के पश्चात् व्यक्ति पूर्णकाम हो जाता है, सदा के लिये आनन्दमय हो जाता है, तृप्त हो जाता है, अमृत हो जाता है। गीता कहती है:
आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन।
अर्थात् हे अर्जुन, ब्रह्मलोक तक वास्तविक सुख नहीं है। वहाँ भी जाकर पुनः भवाटवी का चक्कर लगाना पड़ेगा। पुनः;
मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते।(गीता)
केवल मुझको एवं मेरे लोक को प्राप्त करके ही जीव मुक्त हो सकता है, परमानन्द प्राप्त कर सकता है। अब सोचिये, जब ब्रह्मलोक के ऐश्वर्य में भी आनन्द नहीं तो करोड़पति बन कर आनन्द चाहते हैं, कितना बड़ा आश्चर्य है! कैसा भोलापन है। वेदव्यास जी कहते हैं;
यत्पृथिव्यां व्रीहियवं हिरण्यं पशवः स्त्रियः।न दुह्यन्ति मनः प्रीतिं पुंसः कामहतस्य ते॥(भागवत 9-19-13)
अर्थात् सम्पूर्ण विश्व के सम्पूर्ण पदार्थ स्त्री आदि, यदि एक व्यक्ति को दे दिये जायें तो भी उसकी कामना उसी प्रकार बनी रहेगी, जैसे प्रारम्भ में थी। वेदव्यास जी पुनः कहते हैं;
गिरिर्महान् गिरेरब्धिर्महानब्धेर्नभो महत्।नभसोऽपि परं ब्रह्म ततोऽप्याशा दुरत्यया॥
अर्थात् पहाड़ बड़ा होता है। उससे बड़ा समुद्र होता है। उससे बड़ा आकाश होता है। उससे बड़ा भगवान् होता है, जिसे अनन्त कहा जाता है किन्तु उससे भी बड़ी एक वस्तु है, उसका नाम है, वासना। भावार्थ यह कि अज्ञेय भगवान् को जाना जा सकता है, अचिंत्य भगवान् का चिन्तन किया जा सकता है, अदृष्ट भगवान् को देखा जा सकता है, अव्यवहार्य भगवान् को व्यवहार में लाया जा सकता है किन्तु, अनादि काल से अब तक के इतिहास में एक भी उदाहरण ऐसा नहीं हुआ, न आगे होगा, जो इन्द्रियों के विषयों के सामान को पाकर पूर्णकाम हो जाय, वे सामान भले ही ब्रह्मलोक की कक्षा के हों। आप लोग सुनते होंगे, शास्त्रों में लिखा है कि कहीं स्वर्ग है, वहाँ बड़ा सुख है। कुछ लोग तदर्थ प्रयत्न करते हैं। किन्तु, वेद कहता है-
अविद्यायां बहुधा वर्तमाना वयं कृतार्था इत्यभिमन्यन्ति बालाः।यत्कर्मिणो न प्रवेदयन्ति रागात् तेनातुराः क्षीणलोकाश्च्यवन्ते॥(मु० 1-2-3)
अर्थात् घोर मूर्ख लोग स्वर्ग लोक के हेतु प्रयत्न करते हैं, क्योंकि वहाँ भी अज्ञान है, अशान्ति है, अतृप्ति है। वे स्वर्गादिक लोक शोक से परिपूर्ण हैं, सीमित हैं। कुछ दिन के पश्चात् स्वगलोक से नीचे गिरा दिया जायगा और मानवदेह भी छिन सकती है। परिणामस्वरूप कूकर, शूकर, कीट, पतंग आदि योनियों में दुःख भोगना पड़ेगा। इसी आशय से वेदव्यासजी ने कहा कि;
आद्यन्तवन्त एवैषां लोकाः कर्मविनिर्मिताः।दुःखोदर्कास्तमोनिष्ठाः क्षुद्रानन्दाः शुचार्पिताः।। (भा.)
गीता में बताया कि-
ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालं क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति।
रामायण ने बताया कि;
स्वर्गहु स्वल्प अन्त दुखदायी।
भावार्थ यह कि स्वर्गादिक लोक भी हमारे लोक की भाँति प्राकृत हैं। वहाँ माया का आधिपत्य है। अतएव हमारा आध्यात्मिक सुख वहाँ भी सर्वथा अप्राप्य है। आश्चर्य यह है कि शास्त्र वेद के माननेवाले भी इस उपर्युक्त बात पर विश्वास नहीं करते। तभी तो जगत् के पदार्थों द्वारा आनन्द की आशा में प्रयत्नशील हैं। यह मानव देह देव-दुर्लभ बतायी गयी है। वेदव्यासोक्ति अनुसार;
नृदेहमाद्यं सुलभं सुदुर्लभं प्लवं सुकल्पं गुरुकर्णधारम्।मयानुकूलेन नभस्वतेरितं पुमान् भवाब्धिं न तरेत् स आत्महा॥
रामायण कहती है 'सुर दुर्लभ सद्ग्रन्थनि गावा।' अस्तु, जब देवता लोग मानवदेह चाहते हैं, तब मानव यदि स्वर्ग की जनता बनना चाहे तो कितना भोलापन होगा। आप कहेंगे, बात तो ठीक है, किन्तु आश्चर्य होता है कि स्वर्ग के लोग मानवदेह क्यों चाहते हैं? वहाँ उच्चकोटि के सुख प्राप्त हैं। मानव के मृत्युलोक के सुख उनके समक्ष नगण्य हैं। किन्तु, यदि आप यह रहस्य समझ लें तो आश्चर्य न होगा। स्वर्ग केवल भोग-योनि ही है। वहाँ केवल कर्म को भोगवाया जाता है, आप आगे कुछ नहीं कर सकते। किन्तु मानवदेह में भोग भोगने के साथ-साथ उन्नति करके अपने कर्मबन्धनों से छुटकारा पाने का भी सौभाग्य प्राप्त है। मानव साधना द्वारा सदा के लिये माया से उतीर्ण होकर आनन्दमय बन सकता है किन्तु स्वर्ग कर्मयोनि न होने के कारण इससे वंचित है। अतएव स्वर्ग-सम्बन्धी कामना की भावना से प्रयत्न करना घोर नासमझी है। आप लोग अपने पिता आदि पूज्यों के मरने पर कहा करते हैं कि हमारे पूज्य का स्वर्गवास हो गया किन्तु यह रहस्य समझ लेने पर आप ऐसा न कहेंगे, क्योंकि वेदानुसार स्वर्ग जानेवाला जब घोर मूर्ख है तो आप अपने पूज्य को घोर मूर्ख क्यों बनायेंगे।
भावार्थ यह कि स्वर्ग या ब्रह्मलोक में आनन्द नहीं है। फिर हम मृत्युलोक के आंशिक ऐश्वर्य से आनन्द प्राप्ति की कामना करें, यह महान पागलपन है। हमें गम्भीरतापूर्वक सोचना चाहिये कि ईश्वर को छोड़कर जीव का वास्तविक आनन्द अन्यत्र कुत्रापि नहीं हो सकता क्योंकि शेष सब प्रकृति के आधीन हैं एवं प्रकृति के राज्य में आत्मा का सुख सर्वथा असम्भव है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रेम रस सिद्धान्त', अध्याय - संसार का स्वरूप०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - किसी में भी एक अच्छा और प्यार करने वाला साथी बनने की क्षमता हो सकती है, लेकिन हममें से कुछ लोगों में एक को खोजने और उन्हें तुरंत गहराई से प्यार करने की जन्मजात क्षमताएं होती हैं। कुछ राशियां दूसरों की तुलना में अधिक रोमांटिक होती हैं। अलग-अलग लोगों के लिए रोमांस का एक अलग अर्थ होता है, हालांकि, कुछ के लिए, ये उनके जीवन पर बड़ा प्रभाव डाल सकता है। एक बार जब वो एक रिश्ते के लिए प्रतिबद्ध हो जाते हैं, तो वो खुद को पूरी तरह से परस्पर जुड़े हुए और प्यार में मुग्ध पाते हैं। जानते हैं ऐसी राशियों के बारे में ....वृषभ राशिवृषभ राशि के लोग दिल से रोमांटिक पैदा हुए थे। ये राशि चिन्ह हमेशा छोटी चीजों की तलाश करेगा ताकि ये सुनिश्चित हो सके कि उनके प्रियजनों को पता चले कि उनकी सराहना की जाती है और उनकी प्रशंसा की जाती है। वो अपने साथी को प्यार और पोषित महसूस कराना पसंद करते हैं। वो एक रिश्ते के दौरान सबसे कठिन समय में भी उनका साथ नहीं छोड़े और रिश्तों के प्रति वफादार बने रहते हैं। ये राशि चिन्ह सचमुच उनके दिल को अपनी आस्तीन पर रखता है और वो इसे दिखाने से डरते भी नहीं हैं।सिंह राशिवो अपने साथी के प्रति प्यार उंडेलने के राजा और रानी हैं। एक बार जब वो प्रतिबद्ध हो जाते हैं, तो वो अंदर तक जाते हैं और पीछे मुड़कर नहीं देखते। वो बड़े इशारे करके अपना स्नेह दिखाते हैं। उन्हें महंगे उपहार खरीदना, तारीफों की बौछार करना या उन्हें रोमांटिक डेट पर ले जाना पसंद है।कर्क राशिकर्क राशि के लोग बिना किसी संदेह के सबसे रोमांटिक राशि हैं। इस राशि के जातक प्यार महसूस करते हैं, प्यार की बात करते हैं और फिर प्यार का इजहार करते हैं। कर्क राशि के जातक अक्सर दिल से सोचने और निर्णय लेने के लिए जाने जाते हैं। वो प्रेम की शुद्ध ऊर्जा को महसूस करते हैं और वो हर चीज में और हर जगह रोमांस खोजना चाहते हैं। वो अपनी भावनाओं को व्यक्त करना पसंद करते हैं और वो हर चीज में तर्क खोजने के बजाय अपनी भावनाओं के माध्यम से सोचते हैं। वो एक रिश्ते में छोटे-छोटे पलों को प्यार करते हैं और इन यादों को जीवन भर संजोना पसंद करते हैं।तुला राशितुला राशि के जातकों का अपने पार्टनर के प्रति कम जुनून होता है। वो ये मानना पसंद करते हैं कि उनके लिए केवल एक ही जीवन साथी है और वो अपने बारे में सब कुछ रोमांटिक करना पसंद करते हैं। रोमांस के बारे में उनके आदर्शवादी विचार हैं। वो अंतिम सांस तक अपने जीवनसाथी की देखभाल करते हैं और शुद्ध प्रेम के नि:स्वार्थ कृत्यों के माध्यम से अपना स्नेह दिखाते हैं।
- जीवन साथी के प्रति अच्छा नजरिया होना बहुत ही महत्वपूर्ण है। सम्मान की भावना के साथ ही कई ऐसी चीजें हैं जो आपके भीतर होना चाहिए ताकि सामने वाला आपको किसी भी रूप में ना न कह सके। जीवन के उन तमाम पलों में भी एक-दूसरे का साथ पूरी मजबूती से पकड़े रहने पर ही जीवन की गाड़ी सही तरीके से चल पाती है अन्यथा वो कभी न कभी डगमगा कर गिरती जरूर है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार आइये देखते हैं कि कन्या राशि के जातक कैसे होते हैं और उनके लिए कैसा जीवनसाथी उपयुक्त होगा।-कन्या राशि वाले लोग परफेक्शनिस्ट होते हैं। उनके पास विस्तार के लिए एक नजर होती है और वो चाहते हैं कि सब कुछ सही हो उससे कम न हो। वो तार्किक, व्यावहारिक और यथार्थवादी लोग भी होते हैं जिनकी जीवन से कोई कल्पना या बहुत ही अधिक उम्मीद नहीं होती है। वो एक क्रमबद्ध और सरल जीवन जीते हैं। पेशेवर रूप से, वो बहुत महत्वाकांक्षी और मेहनती लोग होते हैं.-23 अगस्त से 22 सितंबर के बीच जन्में कन्या राशि के जातक अपनी आदतों को लेकर काफी भावुक होते हैं। उनके जीवनसाथी को तनावमुक्त रहना चाहिए क्योंकि कन्या राशि वाले लोग स्वयं वर्कहॉलिक और बहुत समर्पित कार्यकर्ता होते हैं। इसलिए उन्हें अपने जीवन में संतुलन लाने के लिए अपने जीवनसाथी को थोड़ा पीछे हटने और आसान बनाने की आवश्यकता होती है।कन्या राशि का संभावित जीवनसाथी यथार्थवादी और आदर्शवादी दोनों होना चाहिए। उन्हें जीवन के बारे में बहुत अधिक निंदक नहीं होना चाहिए, बल्कि ये समझने के लिए पर्याप्त व्यावहारिक भी होना चाहिए कि जीवन कठिनाइयां और संघर्ष अपने हिस्से के साथ आते हैं।कन्या राशि के जातक परफेक्शनिस्ट होने के साथ-साथ विस्तार पर भी नजर रखते हैं और बहुत रचनात्मक भी होते हैं। कन्या राशि के लोगों की तरह, उनके जीवन साथी को भी उनकी विचार प्रक्रियाओं और मानसिक श्रृंगार को आसानी से समझने के लिए नवीन, रचनात्मक और कल्पनाशील होना चाहिए।कन्या राशि वाले लोग अपने सभी रिश्तों के लिए भी बहुत समर्पित होते हैं और बहुत वफादार होते हैं। उन्हें एक ऐसा जीवनसाथी चाहिए जो उनके जैसा ही निर्भर करने वाला और भरोसेमंद हो और जो पूरे दिल से रिश्ते के लिए प्रतिबद्ध हो।
- शनि के अशुभ प्रभावों से हर कोई भयभीत रहता है। शनि को ज्योतिष में पापी और क्रूर ग्रह कहा जाता है। शनि के अशुभ प्रभावों से व्यक्ति का जीवन बुरी तरह प्रभावित होता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जिन राशियों पर शनि की टेढ़ी नजर रहती है, उन्हें विशेष सावधान रहने की आवश्यकता होती है। ज्योतिष में 12 राशियों का वर्णन है। कुछ समय बाद इन 12 राशियों में से 8 राशियों पर शनि की टेढ़ी नजर रहेगी। आइए जानते हैं कुछ समय बाद किन राशियों को सावधान रहने की आवश्यकता है। शनि के राशि परिवर्तन को ज्योतिष में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। शनि ढाई साल में एक बार राशि परिवर्तन करते हैं। सभी ग्रहों में शनि सबसे धीमी चाल चलते हैं। शनि के राशि शनि के राशि परिवर्तन करने पर किसी राशि से शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या का प्रभाव खत्म हो जाता है तो किसी राशि पर शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या शुरू हो जाती है। 29 अप्रैल 2022 को शनि के कुंभ राशि में प्रवेश करते ही मीन राशि पर शनि की साढ़ेसाती और कर्क, वृश्चिक राशि पर शनि की ढैय्या शुरू हो जाएगी। इसके साथ ही धनु राशि से शनि की साढ़ेसाती और तुला, मिथुन राशि से शनि की ढैय्या हट जाएगी, लेकिन 12 जुलाई, 2022 में शनि एक बार फिर राशि परिवर्तन करेंगे, जिससे इन राशियों पर फिर से शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या शुरू हो जाएगी।12 जुलाई, 2022 से शुरू होगी शनि की वक्री चालशनि 12 जुलाई, 2022 को वक्री हो जाएंगे, यानी इस दिन से शनि मकर राशि में उल्टी चाल चलेंगे। शनि के मकर राशि में प्रवेश करते ही एक बार फिर धनु राशि पर साढ़ेसाती और मिथुन, तुला राशि पर ढैय्या का प्रभाव शुरू हो जाएगा।2022 में इन 8 राशियों पर रहेगी शनि की टेढ़ी नजरधनु, तुला, मिथुन, मकर, कुंभ मीन, कर्क और वृश्चिक राशि पर 2022 में शनि की टेढ़ी नजर रहेगी। इन लोगों को अपना विशेष ध्यान रखना होगा।रोजाना करें हनुमान चालीसा का पाठहनुमान जी की पूजा- अर्चना करने से शनि का अशुभ प्रभाव नहीं पड़ता है। हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने के लिए रोजाना हनुमान चालीसा का पाठ करें।शिवलिंग पर जल अर्पित करेंभगवान शिव की कृपा से शनि देव के अशुभ प्रभावों से बचा जा सकता है। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रोजाना शिवलिंग पर जल अर्पित करें।
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जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 339
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'नारद भक्ति दर्शन' की व्याख्या के 9-वें प्रवचन के इस अंश में उनके श्रीमुख से महापुरुषों व रसिक-संतों द्वारा संसार में भगवान की कथा के दान की महानता, सर्वोच्चता का वर्णन है। साथ ही, महापुरुषों के दिव्य गुण अथवा स्वभाव का भी वर्णन है कि किस प्रकार वे अपना अनिष्ट करते हुये, कष्ट सहकर भी हम पापी मनुष्यों के उद्धार के लिये अथक परिश्रम करते हैं.....)
...अगर ये सौभाग्य मिल जाय कि कोई रसिक भगवान् की बात सुनावे तब तो फिर क्या बात है? लेकिन अगर ऐसा सौभाग्य न हो, कोई मायाबद्ध ही भगवान् की कथा सुनावे, तो भी हमारा लाभ हो सकता है लेकिन एक बात की सावधानी बरतनी होगी कि मायाबद्ध कथा सुना सकता है, जैसी लिखी है, लेकिन वह सिद्धान्त सुनायेगा तो सब बंटाढार कर देगा। यानी वो पहले वाला श्रवण जो है तत्त्वज्ञान का वो तो केवल सिद्ध महापुरुष ही करा सकता है और दूसरा वाला जो श्रीकृष्ण लीला आदि सम्बन्धी कथा है, ये मायाबद्ध भी करता है, कर सकता है, जिसका लक्ष्य केवल ये है - चढ़ावा कितना होता है, भागवत के अन्तिम दिन। उसको इतने से मतलब है केवल।
तव कथामृतं तप्तजीवनं कविभिरीडितं कल्मषापहम्।श्रवणमंगलं श्रीमदाततं भुवि गृणन्ति ते भूरिदा जनाः॥(भागवत 10-31-9)
गोपियां श्यामसुन्दर के वियोग में कहती हैं - महाराज! आपकी जो कथा है वह तीन तापों से तपने वालों के ताप को शान्त कर देती है। और बड़े-बड़े जीवन्मुक्त अमलात्मा परमहंस भी इस कथा से अपनी समाधि भुला देते हैं।
आत्मारामाश्च मुनयो निर्ग्रन्था अप्युरुक्रमे।कुर्वन्त्यहैतुकीं भक्तिमित्थम्भूतगुणो हरिः।।(भागवत 1-7-20)
कैसे?
इत्थं भूतगुणो हरिः।
अरे ! शुकदेव परमहंस ने गुण सुना था;
अहो बकीयं स्तनकालकूटं जिघांसयापाययदप्यसाध्वी।लेभे गतिं धात्र्युचितां ततोऽन्यं कं वा दयालुं शरणं व्रजेम।।(भागवत 3-2-23)
पूतना को भी गोलोक दे दिया श्रीकृष्ण ने, इतने दयालु हैं - ये सुनकर ही शुकदेव परमहंस भागे-भागे आये और सिद्धावस्था को प्राप्त करने के बाद फिर प्रारम्भिक श्रवण किया, भागवत का 'श्रोतव्यः' पहले, 'मन्तव्यः' बाद में और 'निदिध्यासितव्यः' अन्त में। अन्त में पहुँचने वाले परमहंस शुकदेव भी प्रारम्भिक क्लास में दाखिला लिये। 'श्रोतव्यः' क्योंकि कथा का श्रवण ऐसा है कि ये प्रारम्भ भी है और अनन्त काल तक है और इस कथा को 'भुवि गृणन्ति ते भूरिदा जनाः', जो इस कथा का दान करते हैं, रसिक लोग, उसके बराबर कोई दान नहीं हो सकता यानी एक तो सन्तों के द्वारा दिया हुआ तत्त्व-ज्ञान और उससे बड़ा दान उन महापुरुषों के द्वारा दिया हुआ, ये कथा का दान। देखिये! महापुरुष लोग अपना अनिष्ट करके हम लोगों का इष्ट करते हैं;
भूर्ज तरू सम सन्त कृपाला।
भोजपत्र का पेड़ होता है, उस पेड़ की छाल होती है तो एक के ऊपर एक, एक के ऊपर एक। सब निकाल लो तो पेड़ जीरो बटा सौ, वो छालों का लिपटा हुआ एक पुंज ही पेड़ होता है। देखिये! छः प्रकार के लोग होते हैं। हाँ, जल्दी समझियेगा ध्यान देकर। अपना अनिष्ट करके दूसरे का अनिष्ट करना। आप लोग सोचते तो हैं और बोलते भी हैं, अपने छोटों के आगे - हैं-हैं-हैं, मैं भी कुछ अकल रखता हूँ और छोटी-सी बात जल्दी नहीं समझते, हमको डिटेल करना पड़ता है। अपना अनिष्ट करके भी दूसरे का अनिष्ट करना - ये सबसे निम्न क्लास के लोग होते हैं। हमारा नुकसान हो जाय तो हो जाय लेकिन उसका नुकसान ज़रूर करना है। अरे! ये कौन-सी समझदारी की बात है कि अपना नुकसान कर रहे हो, उसके नुकसान करने के चक्कर में। लेकिन होते हैं ऐसे;
जे बिनु काज दाहिने बायें।
तो अपना अनिष्ट करके दूसरे का अनिष्ट करना, सबसे खराब, नम्बर एक। इससे अच्छा, अपने इष्ट के लिये दूसरे का अनिष्ट करना यानी अपने फायदे के लिए दूसरे का नुकसान कर देना। ये पहले वाले से कुछ अच्छे हैं, नम्बर दो और तीसरा अपने इष्ट के लिये दूसरे का इष्ट करना यानी अपना भी लाभ हो इसका भी हो, फिफ्टी-फिफ्टी ये उससे भी अच्छा है, नम्बर तीन और नम्बर चार अपने इष्ट के लिए दूसरे का अनिष्ट न करना। नम्बर पाँच, दूसरे का ही इष्ट करना और नम्बर छः, अपना अनिष्ट करके दूसरे का इष्ट करना। अपना नुकसान भले ही हो जाय लेकिन इसका लाभ हो जाय। महाराज! हमको नरक में वास दे दो लेकिन इन जीवों का कल्याण करो - ये महापुरुषों का सिद्धान्त है। आप लोग इसको सोच नहीं सकते, समझ भी नहीं सकते।
एक बात देखिये, आप लोग जब गहरी नींद में सोते होते हैं और आपकी बीबी, आपकी माँ, आपकी बहिन, आपका बेटा, आपका बाप, कोई जगाता है और आप जगते हैं - 'क्या है?' जागते ही गुस्सा करते हैं। 'सोने दो न'! यानी कष्ट हुआ आपको। हाँ जी, गहरी नींद में आराम से सो रहे थे - 'सुखमहमस्वाप्सम्' और जगा दिया, वो बाप हो, चाहे माँ हो, चाहे बीबी हो, चाहे कोई हो। अब अगर छोटे ने जगाया तो डाँट लगाकर फिर तान दिया चद्दर और अगर बड़े ने जगाया और डर है तो फिर कुड़कुड़ा करके उठा किसी प्रकार। पिता जी जगा रहे हैं, बच्चे को स्कूल जाना है। अब अगर फिर तान लेंगे चद्दर तो झापड़ भी पड़ सकता है, कहीं एक बाल्टी पानी ही छोड़ दे बाप। डर के मारे उठेगा। तो देखो! ये नींद का सुख छोड़ना आपको कितना खल रहा है तो जिसको अनलिमिटेड हैप्पीनेस, अनन्त प्रेमानन्द श्यामसुन्दर का, दर्शनादि का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है कि जब चाहे तब ले, वह अपने उस रस को छोड़कर और हमको तत्त्वज्ञान करावे, गन्दी-गन्दी बातों की एक्ज़ाम्पिल देकर समझावे;
कामिहिं नारि पियारि जिमि, लोभिहिं प्रिय जिमि दाम।
भगवान् कैसे प्यारे लगें। कैसे लगें ? कैसे समझावें इन गधों को? तो;
युवतीनां यथा यूनि, यूनां च युवतौ यथा।मनोऽभिरमते तद्वन्मनो मे रमतां त्वयि॥(पद्म पुराण)
वही 'कामिहिं नारि पियारि जिमि', तो ये तमाम अनावश्यक विषय सोचना, किताब में लिखना, लेक्चर देना - ये सब तो हमारे देखने में तो कुछ नहीं लगता, लेकिन अपने आनन्द को छोड़कर वे लोग हमारे लिये जो इतना लेबर कर रहे हैं, ये अपना अनिष्ट करके यानी इष्ट को छोड़ दिया, उन्होंने उतनी देर के लिये। पतन नहीं होगा उनका, डरो मत लेकिन उस आनन्द पर कन्ट्रोल करना पड़ा उनको और फिर हमारे समान संसार में रहना पड़ा, एटीकेट सीखना पड़ा। ऐ! कपड़ा पहन कर आना महात्मा जी, नंगे-वंगे आये तो हम गृहस्थी लोग पागल समझ कर तुमको पागलखाने में बन्द करवा देंगे। बाकायदा कपड़ा पहनो, ढंग से रहो। ढंग से बात करो सब। नैचुरैलिटी नहीं चलेगी, हम लोगों के बीच में, नैचुरैलिटी। नेचुरल अवस्था क्या है। वही;
मत्तो भवति स्तब्धो भवति आत्मारामो भवति।
एवंव्रतः स्वप्रियनामकीर्त्या जातानुरागो द्रुतचित्त उच्चैः।हसत्यथो रोदिति रौतिगाय त्युन्मादवन्नृत्यति लोकबाह्यः।।(भागवत 11-2-40)
वह तो पागल की अवस्था है, नैचुरैलिटी उनकी। संसार से परेशान हुए, हिरन में आसक्ति हुई जड़ भरत की और पुनर्जन्म हुआ तो अबकी बार उन्होंने कहा - हम शास्त्र वेद पढ़ेंगे ही नहीं, पढ़े ही नहीं कुछ वो पूर्व जन्म का ज्ञान रखा हुआ रिजर्व मिल गया और पागल बन कर के, नंगे-धडंगे जहाँ मन में आया बैठ गये, लेट गये। न नहाना, न धोना, न कोई हिसाब न किताब शरीर का, न संसार की परवाह तो लोग समझे पागल हो गया है कोई। उन्होंने कहा, चलो अब तो छुट्टी मिली। अब कभी हिरन में आसक्ति तो नहीं होगी। तो नैचुरैलिटी से रहना है तो लोक-कल्याण नहीं कर सकता कोई भी महापुरुष या भगवान्। नेचुरल रहना है, जाओ गोलोक और हमारे संसार में रहना है तो हमारे संसार के नियमों का पालन करो। ये सब कष्ट करता है महापुरुष, हम लोगों के कल्याण के लिये। इसे हम लोग सोच नहीं सकते। जब जरा से एक माँ बच्चे को चिपटाये है - ये दस महीने बाद मिला है, खो गया था। एक प्रेयसी प्रियतम को चिपटाये है, प्रथम बार मिल रही है, इतने दिन के चिन्तन के बाद और उसी समय कोई डिस्टर्ब करे बीच में तलवार लेकर, रिवॉल्वर लेकर खड़ा हो जाय तो कितना कष्ट होगा उसको? और जो परमानन्द में लीन रहने वाला महापुरुष, वो हमारे लिये इतना परिश्रम करे अपने इष्ट को उसने छोड़ा उतनी देर के लिये, आनन्द को छोड़ा, योगमाया से कन्ट्रोल किया, उसके ऊपर इसलिए यह छठवाँ है अपना अनिष्ट करके भी दूसरे का इष्ट करना।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'नारद भक्ति दर्शन' प्रवचन (व्याख्या)०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
*+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -?(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 338
★ भूमिका - प्रस्तुत गद्य में जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से निःसृत प्रवचन है, जिसमें उन्होंने तीर्थयात्रा के महत्व और उसके वास्तविक स्वरूप/लक्ष्य को प्रकाशित किया है। उन्होंने समझाया है कि कैसे तीर्थयात्रा करके भी हम असावधानी के कारण उसके लाभ से वंचित रह जाते हैं। आइये उनके द्वारा विरचित दोहा व उसकी व्याख्या से हम लाभ प्राप्त करें....
चारों धाम गया आया गोविन्द राधे।ऐसी तीर्थयात्रा और अहं को बढ़ा दे।।(स्वरचित दोहा)
हमारे देश में चारों धाम का बड़ा महत्त्व है। कर्मकाण्ड में भी यद्यपि ये चारों धाम लगभग ढाई हजार वर्ष पहले आदि जगदगुरु शंकराचार्य ने स्थापित किये थे। इन सब धामों में मन्दिर बनवाये थे और अपने चार शिष्य चारों मठों में स्थापित किये थे। अब तो सब व्यापार है। तो आजकल बड़ा महत्त्व पण्डितों ने, कर्मकांडियों ने, स्वार्थियों ने गा-गाकर भोले भाले संसारियों को प्रेरित करते हैं कि चारों धाम कर आओ फिर बैकुण्ठ चले जाओगे।
बड़े-बड़े पढ़े लिखे आई.ए.एस. सब जाते हैं लेकिन उनसे पूछो कि कोई भी धर्म कर्म क्यों किया जाता है, एक क्वेश्चन? इसलिये कि अन्तःकरण शुद्ध हो, हमारी सांसारिक वासनायें कम हों, न खतम हों, कम तो हों। हमारे काम, हमारा क्रोध, हमारे लोभ, हमारे मोह - ये सब कम हों, यही हर धर्म का परिणाम होना चाहिये। लेकिन होता क्या है, यहाँ से तो हमने बड़ा त्याग किया, बीबी बच्चों का भी त्याग किया, व्यापार का भी, सर्विस से भी छुट्टी ली कि हाँ जायेंगे चारों धाम, पैसा भी खर्च किया, शारीरिक कष्ट भी किया।
अरे! प्रवास में क्या होता है? वहाँ पहुँचकर दर्शन किया, मन्दिर के भगवान का और दर्शन करने का परिणाम क्या हुआ? अरे! नौ दिन हो गया, बच्चा बीमार था और वहाँ व्यापार में मुनीम ने गड़बड़ न कर दिया हो, अब चलना चाहिये। क्या मतलब? क्या मतलब? मतलब दर्शन के बाद और संसार घुस गया वहीं मन्दिर ही में, उसका चिन्तन होने लगा। खैर वहाँ से लौट आये बड़ी शान से, चारों धाम कर आये।
अब बिना पूछे लोगों को बता रहा है। अरे भाई! तुम कहाँ गये थे, दिखाई नहीं पड़े कई दिनों से? हम चारों धाम करने गये थे। भीतर से भी अहंकार और बाहर से भी अपना प्रचार कर रहा है। ये मिला। अन्तःकरण शुद्धि के बजाय उलटा फल मिला। मन तो संसार में था तो चारों धाम, आठों धाम, करोड़ों धाम करो इससे क्या होगा? अगर वहाँ जाकर भगवान का चिन्तन करते, संसार को भुला देते और उसी भावना से लौटते और कुछ प्रचार न करके उसको छिपाकर रखते टी अन्तःकरण की थोड़ी बहुत तो शुद्धि होती और शुद्धि होने की पहचान यही कि संसार का अटैचमेन्ट माइनस हुआ। अरे! टेन परसेन्ट भी हो तो चलो कुछ तो मिला। कुछ नहीं। ये अहंकार और बढ़ गया, प्लस हो गया, माइनस कुछ नहीं हुआ। हमारे संसार में ऐसे लोग तीर्थ यात्रादि, धर्म-कर्म करते हैं।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'जय गंगा मैया' प्रवचन पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - कब से शुरू हो रहा है सावन का महीनासावन का पवित्र महीना भगवान शिव का महीना माना गया है। सावन के महीने में भगवान शिव की विशेष रूप से पूजा-आराधना की जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार सावन जिसे श्रावण भी कहा जाता है वर्ष का पांचवा महीना होता है। इस बार सावन के महीने की शुरुआत 25 जुलाई 2021 से होगी और 22 अगस्त को यह महीना खत्म होगा। भगवान शिव को सावन का महीना अत्यंत ही प्रिय होता है। इस महीने में शिवालयों में भारी संख्या में शिव भक्त शिवलिंग पर जल अर्पित करते हैं। सावन के महीने में पड़ने वाले सोमवार का दिन विशेष महत्व रखता है। आइए जानते हैं सावन के महीने का महत्व और पूजा विधि...सावन महीने का महत्वधार्मिक मान्यताओं में बताया गया है कि भगवान शिव को सावन का महीना बहुत ही प्रिय होता है। इस महीने में भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। सावन में सोमवार का दिन विशेष होता है। इस दिन शिव भक्त रखते हैं और मंदिरों में भगवान शिव की विशेष पूजा आराधना करके भोले भंडारी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मान्यता है कि सावन के महीने में भगवान जल्दी प्रसन्न होकर अपने भक्तों की मनोकामनाओं को अवश्य ही पूरा करते हैं। इस महीने में पवित्र नदियों के जल से भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता है और जितने भी प्रसिद्धि शिव मंदिर हैं वहां जाकर भगवान शिव के दर्शन किया जाता है।कन्याओं और महिलाओं के लिए सावन का महीना विशेषविवाहित महिलाएं सावन सोमवार का व्रत रखती हैं और भगवान शिव सौभाग्य का वरदान देते हैं। कई लोग इस माह के पहले सोमवार से सोलह सोमवार व्रत की शुरुआत करते हैं। सावन महीने की खास बात यह है कि इस महीने में मंगलवार का व्रत देवी पार्वती के लिए किया जाता है, जिसे मंगला गौरी व्रत के नाम से भी लोग जानते हैं। ऐसी मान्यता है कि सावन में सोमवार को व्रत रखने और शिवलिंग पर जल चढ़ाने से घर में सुख-समृद्धि आती है। ऐसी मान्यता है कि कुंवारी कन्याएं सावन के महीने में सोमवार का व्रत रखने और भगवान शंकर की पूजा करने पर मनवांछित जीवनसाथी की प्राप्ति होती है और जीवन में सुख-समृद्धि बढ़ती है। इस बार सावन के महीने में चार सोमवार आएंगे।प्रथम सावन सोमवार व्रत- 26 जुलाई 2021द्वितीय सावन सोमवार व्रत- 2 अगस्त 2021तृतीय सावन सोमवार व्रत- 9 अगस्त 2021चतुर्थ सावन सोमवार व्रत-16 अगस्त 2021सावन सोमवार पूजा विधिभगवान भोलेनाथ जल्द प्रसन्न होने वाले देवता हैं। इनकी पूजा बहुत ही आसान होती है। भोलेनाथ एक लोटा जल और एक पत्ती को अर्पित करने मात्र से ही प्रसन्न हो जाते हैं। सावन सोमवार के दिन व्रती सुबह जल्दी उठें। इसके बाद शिव पूजन में प्रयोग की जानी वाली सामग्री को एकत्रकर घर के पास के शिव मंदिर में जाकर पूजा करें। सभी पूजन सामग्री को भगवान शिव और माता पार्वती को अर्पित करने के बाद शिवजी को प्रणाम करें। ध्यान रहे इस दौरान शिवलिंग पर जलाभिषेक करते समय शिव के मंत्रों का लगातार जाप करते रहें।
- कमोबेश हर व्यक्ति को रात में नींद में कभी न कभी सपने आते ही हैं. स्वप्न शास्त्र (Swapna Shastra) के मुताबिक हर सपने में कोई न कोई संकेत छिपा होता है, जो आने वाले घटनाक्रम का इशारा देता है. स्वप्न शास्त्र में हर सपने से जुड़ा मतलब बताया गया है. आज हम ऐसे शुभ सपनों (Auspicious Dreams) के बारे में जानते हैं जो धन-लाभ (Money Profit), तरक्की (Success) जैसी शुभ घटनाओं का संकेत देते हैं.शुभ सपनेसपने में घोड़ा देखना: स्वयं को घोड़े की सवारी करते देखने का मतलब है कि आपका आने वाला जीवन खासा खुशहाल रहेगा. वहीं घोड़े को तेज दौड़ाते हुए देखने का मतलब है कि किसी महत्वपूर्ण काम में आपको आसानी से सफलता मिलने वाली है.सांप को बिल में या उसके आसपास देखना: यह सपना जल्द ही अचानक धन मिलने का संकेत देता है.सपने में खुद को नए कपड़े पहनते देखता: ऐसा सपना अच्छे भविष्य का संकेत देता है, जिसमें सुख-समृद्धि दोनों ही मिलने वाली हैं.पेड़ पर चढ़ते हुए देखना: खुद को पेड़ चढ़ते हुए देखने का मतलब है कि आपको अचानक कहीं से पैसे मिलने वाले हैं.महिला को डांस करते देखना: ऐसा सपना भी धन लाभ का संकेत देता है.खुद को पानी पीते या पानी पर चलते हुए देखना: खुद को पानी पीते हुए देखने का मतलब है आपका पुराना रुका हुआ पैसा वापस मिलने वाला है. वहीं खुद को पानी पर चलते देखना बहुत बड़ी सफलता या पद प्राप्ति का प्रबल योग बताता है.सपने में मधुमक्खी का छत्ता: ऐसा सपना भी अचानक धन दिलाने का संकेत देता है.सपने में देवी देवता को देखना: यह सपना तो बहुत ही शुभ (Shubh Sapne) होता है. यह अपार धन के साथ-साथ खुशहाली मिलने का भी संकेत है.सपने में जलता हुआ दीपक देखना: यह किसी बड़े काम में सफलता मिलने का संकेत है. यह सपना कई लिहाज से शुभ माना जाता है.
- वास्तु शास्त्र में घर की हर दिशा, उनके उपयोग और उनमें रखे जाने वाले सामान के बारे में विस्तार से बताया गया है. इनमें से कुछ बातें तो बहुत अहम हैं, यदि उनका पालन न किया जाए तो घर पर मुश्किलों का पहाड़ टूट पड़ता है और यदि किया जाए तो घर स्वर्ग बन जाता है. आज हम ऐसे ही वास्तु नियमों और उपायों के बारे में बात करते हैं, जो अकूत धन-समृद्धि बरसाते हैं.घर की छत है बहुत अहमघर की छत (House Terrace) बहुत अहम होती है क्योंकि इसका संबंध शनि देव से है. ऐसे में छत का गंदा होना, वहां कूड़ा-करकट, कबाड़ का जमा होना शनि को नाराज करने के लिए काफी है. शनि की क्रोध से सभी वाकिफ हैं, ऐसे में कई तरह के नुकसान से बचने के लिए घर की छत को हमेशा साफ-सुथरा रखें.धन-समृद्धि पाने के उपायघर की छत का संबंध शनि देव के साथ-साथ धन के देवता कुबेर से भी है. ऐसे में छत को लेकर कुछ उपाय किए जाएं तो धन-समृद्धि मिलना तय है.- यदि घर में पैसे की तंगी हो तो घर की छत पर उत्तर दिशा में चीनी की बोरी रख दें, कुछ ही दिन में आपकी जिंदगी में धन-समृद्धि की दस्तक हो जाएगी.- इसी तरह पानी की टंकी उत्तर दिशा में या उत्तर पश्चिम दिशा में हो. इससे घर में हमेशा रुपया-पैसा बना रहता है. आर्थिक स्थिरता रहती है.
- ज्योतिष शास्त्र में केतु को क्रूर ग्रह माना जाता है। केतु का नाम सुनते ही लोगों के मन में एक डर सा लगने लगता है। हालांकि ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, केतु हमेशा अशुभ फल ही देता है ऐसा भी नहीं है। अगर केतु किसी जातक को शुभ परिणाम देता है तो उसे मान-प्रतिष्ठा दिलाने के साथ ऊंचाइयों तक ले जाता है।ज्योतिष के अनुसार, केतु का अर्थ ऊंचाई होता है। अगर जन्म कुंडली में केतु किसी अच्छे ग्रहों के साथ बैठा होता है, तो जीवन में सर्वश्रेष्ठ फल दिलाता है। केतु का स्वभाव मंगल ग्रह से मिलला-जुलता है। मंगल की तरह केतु भी साहस और पराक्रम का प्रतीक माना जाता है।केतु ग्रह की विशेषता-जीवन में अचानक होने वाली घटनाओं में केतु का महत्वपूर्ण स्थान है। अगर केतु अच्छे ग्रहों के साथ जन्म कुंडली के 8वें भाव में होता है निश्चित ही अचानक धन लाभ होता है। केतु ग्रह को छाया ग्रह भी कहा जाता है। यह जिस ग्रह के साथ बैठ जाता है, उस ग्रह का बल बढ़ा देता है।इस भाव में देता है शुभ-अशुभ परिणाम-केतु का संबंध जन्म कुंडली के द्वितीय और अष्टम भाव से होता है। दोनों भावों में केतु ग्रह सबसे ज्यादा शुभ फलदायी होते हैं। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, केतु और मंगल की युति एक अंगारक योग बनाती है। इस दौरान जिस जातक की कुंडली में यह युति बनती है, उसे कष्टों का सामना करना पड़ता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 337
(भूमिका - प्रस्तुत उद्धरण जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित विलक्षण प्रवचन श्रृंखला 'मैं कौन? मेरा कौन?' से लिया गया है। आचार्यश्री ने इस प्रवचन श्रृंखला में कुल 103-प्रवचन दिये थे। इस विकराल कलिकाल में सर्वथा भ्रान्त जीवों के कल्याणार्थ वैदिक सिद्धान्तों पर पूर्ण दृष्टिकोण रखते हुये भगवान राम-कृष्ण प्रापत्यर्थ भक्तियोग की उपादेयता एवं उसका षड्दर्शनों से सम्बन्ध बतलाते हुये विशद व्याख्या की है। निम्न उद्धरण में भक्तिपथ में निष्कामता की सर्वोच्चता के विषय में प्रकाश डाला गया है, जो कि उनके द्वारा 8 दिसम्बर 2009 में भक्तिधाम मनगढ़ में दिये गये इस श्रृंखला के 21-वें प्रवचन का एक अंशमात्र है...)
...तीन तत्त्व सनातन तत्त्व हैं - एक ब्रह्म, एक जीव, एक माया। इनमें जीव और माया भगवान की शक्ति हैं। इसलिये इनको भगवान का अंश भी कहा जाता है और शक्ति और शक्तिमान में भेद भी है, अभेद भी है। तो जब अभेद माना जाता है तो कहा जाता है कि केवल एक तत्त्व भगवान ही है और जब भेद के पक्ष में विचार किया जाता है तो बताया जाता है कि एक नहीं तीन तत्त्व हैं, तीन में किसी ने किसी को बनाया नहीं और कोई किसी का अत्यन्ताभाव नहीं कर सकता।
लेकिन इसमें जीव और माया भगवान की भाँति स्वतंत्र नहीं हैं। ये भगवान के आधीन हैं, उनसे नियंत्रित हैं, ईश्य हैं, शास्य हैं, प्रेर्य हैं और भगवान से जीव का समस्त नाता है। आप लोग एक श्लोक बोलते होंगे;
त्वमेव माता च पिता त्वमेव। त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वेमव।त्वमेव विद्या द्वविणं त्वमेव। त्वमेव सर्वं मम देव देव।।(वेदव्यास)
साधारण लोग रामायण तो पढ़ते हैं। जब भगवान राम ने लक्ष्मण से कहा तुम जंगल जाने का, वन जाने का हठ न करो। क्योंकि पिता वृद्ध हैं, जनता को धैर्य दिलाना है। लक्ष्मण ने कहा कि कैसा पिता? ऐं....! कैसा पिता? हाँ;
भ्राता भर्ता च बन्धुश्च पिता च मे राघवः।(वाल्मीकि रामायण)
मेरे पिता तो आप हैं। एक भाई के सामने उसका छोटा भाई उसको बाप कहे तो हमारे संसार में उसको भेज देंगे पागलखाने में। और भगवान के दरबार में उनका सगा भाई कह रहा है, राम सुन रहे हैं और मुस्कुरा रहे हैं। कोई दण्ड नहीं दिया। डाँटा भी नहीं।
गुरु पितु मातु न जानउँ काहू। कहउँ सुभाउ नाथ पतिआहू।मोरे सबइ एक तुम स्वामी। दीनबन्धु उर *अन्तरयामी।।
मेरे, मेरे माने ये जो अन्दर वाला 'मैं' है। उसके तो सर्वस्व आप हैं न। आपने वेद में बताया है;
अमृतस्य वै पुत्रा:।(वेद)
फिर आप कैसे कह रहे हैं कि वो पिताजी हैं? अरे हमारे संसार में जितने भी पुत्र हैं वो कभी पिता ठगे और फिर पुत्र हुये, फिर पिता हो जायेंगे। देखिये एक गधे की अकल से समझिये आज आपका बाप मर गया। हाँ, और उसका बेटे में अटैचमेंट है। हाँ, सभी का है। तो मरने के बाद वो कहाँ जायेगा? हाँ, कहाँ जन्म लेगा? पड़ोसी के यहाँ नहीं लेगा। जहाँ अटैचमेंट होता है वहीं जन्म होता है। तो अपने बेटे का बेटा बनेगा। अब उसका बेटा हो गया पिताजी। वेद कहता है;
यः पिता स पुनः पुत्रो यः पुत्रः स पुनः पिता।एवं संचारचक्रेण कूपचक्रे घटा इव।।(योगतत्त्वोपनिषद 133)
प्रजामनु प्रजायन्ते।(भागवत 3-32-20)
वही जीव एक दूसरे के पिता पुत्र बनते जाते हैं। क्योंकि उनका अटैचमेंट है। जिसका जिसमें अटैचमेंट होता है मरने के बाद उसी को प्राप्त होता है। जब अभिमन्यु को मार दिया कौरवों ने तो अर्जुन ने भगवान से जिद्द किया एक बार दिखा दो मेरे बेटे को। भगवान ने कहा ए अठारह बरस तक देखता रहा, अब एक बार दिखा देने से क्या होगा? नहीं नहीं, आप सब कुछ कर सकते हैं। हाँ हाँ कर सकते हैं। लेकिन क्यों? अच्छा ला। आ गये, अभिमन्यु। अरे बेटा! अभिमन्यु ने कहा किसे कह रहे हो बेटा? तुम्हारा बेटा तो वहीं रह गया। अरे तुम्हारे द्वारा शरीर बना था न हमारा? वो तो मैं छोड़ आया। मैं तो आत्मा हूँ। मैं तो उसका (भगवान का) बेटा हूँ।
तो भगवान से हमारा सर्वस्व नाता है और भेदाभेद संबंध भी है। कुछ विषयों में भेद भी है और कुछ विषयों में अभेद भी है। और हम भगवान की जीवशक्ति के अंश हैं, पराशक्ति के अंश नहीं हैं, माया के अंश नहीं हैं। इसलिये हमको तटस्थ शक्ति कहा जाता है। ये हमारा स्वरूप लक्षण है और तटस्थ लक्षण है कि हम भगवान के नित्य दास हैं। मैंने बार बार आपको बताया है कि संसार में कोई नास्तिक हो ही नहीं सकता। अनंतकाल तक कोई प्रयत्न करें कि मैं नास्तिक बन जाऊँ। भगवान को न मानूँ। इम्पॉसिबल। इसलिये कि आनन्द को तो मानोगे। आनन्द को चाहोगे। हाँ, तो उसी का नाम तो भगवान है। वेद शास्त्र पुराण से मैंने अनेक प्रमाणों से बताया था कि आनन्द ही तो भगवान है। भगवान में आनन्द है, ये तो लोग ऐसे ही बोलते हैं काम चलाऊ। अगर भगवान में आनन्द कहोगे तो इसका मतलब भगवान कोई और है, आनन्द उनमें रहता है। ऐसा मानना पड़ेगा। ऐसा नहीं है। आनन्द ही भगवान है, ऐसा है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'मैं कौन? मेरा कौन?' प्रवचन श्रृंखला, प्रवचन - 21०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - 336
(भूमिका - विश्व के पंचम मौलिक जगदगुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'काल' या 'मृत्यु' की अनिश्चितता, मानव-शरीर की 'क्षणभंगुरता' के विषय पर प्रवचन....)
कालि भजु जनि कहु गोविन्द राधे।जाने काल कालि को ही आवन न दे।।(स्वरचित दोहा)
हम लोग अनादिकाल से अनन्त बार मानव देह पाकर भी, अनन्त बार संतों के उपदेश को समझकर भी भगवत्प्राप्ति नहीं कर सके। उसका एक प्रमुख कारण है उधार। मैं जरा बी.ए. कर लूँ, एम.ए. कर लूँ। जरा ब्याह-व्याह हो जाय, जरा बच्चे-वच्चे हो जायें, जरा बच्चे बड़े हो जायें, मर गये। कल करूँगा, कल करूँगा, कल से ये ही करूँगा। फिर कल आया तो कल से करूँगा। वेद कहता है;
न श्वः श्व उपासीत को हि पुरुषस्य श्वो वेद ।(वेद)
अरे ! कल करूँगा, कल करूँगा मत कहो। क्या पता कल आवे, न आवे। तो,
कालि भजु जनि कहु गोविन्द राधे।जाने काल कालि को ही आवन न दे।।
अरे ! आज रात में ही बिस्तर गोल हो जाय तो? हाँ। एक बार युधिष्ठिर के यहाँ एक ब्राह्मण आया, कुछ सोना माँगने लड़की की शादी के लिये। युधिष्ठिर ने कहा - भई ! इस समय मैं बहुत व्यस्त हूँ राज-काज में, कल आना। वो चला गया बेचारा। युधिष्ठिर भी चले गये अपने राज-काज के लिये। राजा थे वो। महाभारत हो चुका था। भीमसेन को बहुत बुरा लगा कि भैया ने ऐसा क्यों कहा, कल आना। अरे ! हमसे कह देते कि इसको दिला दे भई, दस तोला सोना माँग रहा है। उनको मजाक सूझा और भीमसेन ने प्राइम मिनिस्टर को बुलाया और उससे कहा कि खुशी मनाओ, बहुत बड़ी खुशी की बात है। उसने आर्डर कर दिया नीचे और सारे शहर में आतिशबाजी और सजावट सब होने लगे। युधिष्ठिर ने देखा, आज क्या बात है भई ! न रामनवमी है, न जन्माष्टमी है, ये काहे का फंक्शन हो रहा है? उन्होंने किसी से पूछा - क्यों भई, ये क्यों हो रहा है? उन्होंने कहा प्राइम मिनिस्टर का आर्डर है। प्राइम मिनिस्टर को बुलाया, अरे भई ! तुम क्या कर रहे हो? उन्होंने कहा, सरकार ! आपके भाई साहब ने कहा है। मेरे भाई साहब! भीमसेन? हाँ। भीमसेन को बुलाओ। बुलाया। उन्होंने कहा - ये काहे का उत्सव हो रहा है रे ! उन्होंने कहा, 'भैया ! आपने आज काल को जीत लिया, इस खुशी में'। काल को जीत लिया ! क्या बकबक करता है, काल को कौन जीत सकता है? काल तो भगवान् का स्वरूप है।
तो भैया आपने उस ब्राह्मण से क्यों कहा था कि कल आना। अगर रात को ही हम सब पाँचों चले जायें तो? उन्होंने कहा - अरे हाँ ! शरीर मोटा है, अकल पतली है इसकी। उन्होंने कहा - अरे ! बुलाओ-बुलाओ उस ब्राह्मण को।
तो भगवद् कार्य में उधार नहीं करना चाहिये, संसारी कार्य में उधार कर देना चाहिये। ये प्रिंसिपल याद कर लो। हम लोग उलटा करते हैं, संसारी कार्य को सबसे पहले, अरे भई ! ये मामला ऐसा है शादी ब्याह का, अब इसमें कर्जा लेकर के हमें देना है उसकी लड़की की शादी में गिफ्ट। संसार में, जरा सा एक्सीडेन्ट हो जाय, हड्डी टूट गई, फौरन जाओ डॉक्टर के पास। पच्चीस हजार रुपया लगेगा, पचास हजार लगेगा, ऑपरेशन होगा। ओऽ लगाओ, लगाओ, डॉक्टर साहब जल्दी ठीक करो। तो हम लोग उलटी खोपड़ी वाले हैं। संसार की बड़ी इम्पॉर्टन्स् है हमारे मस्तिष्क में। ओऽ ! लड़की की शादी ! तो? तो पचास लाख सेठजी खर्च कर रहे हैं। पचास लाख!! इससे कौन सा लोक मिलेगा, बैकुण्ठ कि गोलोक? ये तो भाड़ में डाल रहे हो, पचास लाख। अजी नहीं ! तारीफ होगी। बहुत शान से शादी किया। सेठ जी ! ये तुम्हारी शान तुमको कहाँ भेजेगी? अरे जगन्नाथ जी के मन्दिर में कुछ दान कर देते। अरे ! वहाँ भी किया था सौ रुपया। अच्छा, वहाँ सौ रुपया किया था और लड़की की शादी में पचास लाख। हाँ हाँ, वो तो भई इम्पॉर्टन्ट है।
सोचना है, हमने ये गलती अनादिकाल से अब तक की, अब सावधान हो जायें। भगवान् सम्बन्धी तन, मन, धन तीनों की सेवा, तीनों को लगाने के विषय में उधार नहीं ल, संसार में उधार कर दो। रावण ने लक्ष्मण को उपदेश दिया था। राम ने कहा, जब मरने लगा रावण - लक्ष्मण ! जाओ रावण से उपदेश लो। तो रावण ने यही उपदेश दिया था कि लक्ष्मण अच्छा काम तुरन्त करना और गलत काम को उधार कर देना। मैंने सोचा था स्वर्ग में सीढ़ी लगवाऊँगा। हाँ, लगवा दूँगा, क्या जल्दी है और सीता हरण जल्दी कर लिया, उस बारे में उधार नहीं किया। उसका परिणाम भोग रहा हूँ इसलिये तुम सावधान रहना अपने जीवन में। भगवद्विषय का कार्य तुरन्त करो , उधार न करो। क्यों? अरे ! क्या पता अगले क्षण में तुम्हारी ही बुद्धि धोखा दे दे। अरे अब रहने दो, कौन दान करे। अरे। तो इसके पहले तो तुमने सोचा था कि करेंगे ल। अरे हाँ, सोचा था लेकिन अब ऐसा सोचा कि अब ये फालतू क्यों करें, इसको रहने दो, आगे काम आयेगा। ये मन और बुद्धि इतने भ्रष्ट हैं तमाम जन्मों के पापों से कि ये संसार की ओर ही झुकते हैं।
ये गन्दा शरीर, मल-मूत्र भरा है शरीर में, इसके लिये ऐसा पैन्ट चाहिये, ऐसी साड़ी चाहिये जो कम से कम एक हजार की हो। अरे, पाँच सौ की ले लो न। नहीं नहीं ! वो पोजीशन....। बड़ी पोजीशन है तुम्हारी? अनन्त जन्मों के पापात्मा, तुम्हारी क्या पोजीशन है? तुलसी हो कि सूर हो कि मीरा हो कि क्या हो? अरे तुम्हारी क्या पोजीशन है? एक भगवत्कृपा से मानव देह मिल गया है, कल को वो भी खतम हो जायगा फिर चौरासी लाख की चक्की पीसोगे तब एक हजार की साड़ी याद आयेगी? हाँ, हम लोग फालतू खर्चा करते हैं। इसी प्रकार समय भी खराब करते हैं। बातें कर रहे हैं। कीर्तन से निकले बाहर, दो स्त्रियाँ और दो पुरुष बातें कर रहे हैं। क्या बीमारी है बोलने को चुप नहीं रह सकते, भगवान् का चिन्तन नहीं कर सकते, संसार की बातें करते करते अनन्त जन्म बीत गये, पेट नहीं भरा।
तो समय को नष्ट करें, धन को नष्ट करें और मन तो होगा ही न जब ये सब नष्ट होगा तो। हो इस प्रकार हमको सोचना है कि अगला क्षण मिले कि न मिले, रोज हार्टअटैक हो रहा है। हम देख रहे हैं आँखों से। अरे ! वो तो हट्टा कट्टा था, कल मेरे पास आया था। हाँ जी, वो रात को चला गया। लेकिन मैं नहीं जाऊँगा, अभी मेरी उमर ही क्या है? कुल छियासी साल का तो हूँ । अभी कम से कम और दस-बीस साल रहना चाहिये। ये भावनायें हम लोगों की खोपड़ी में भरी हैं तो हम सावधान होकर के भगवद्विषय के कार्य में कल का उधार न करें।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'हरि गुरु स्मरण' पुस्तक, प्रवचन - 6०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, चंद्रमा को माता और सूर्य ग्रह को पिता का कारक माना जाता है। कुंडली के दशम भाव से जातक के पिता का विचार किया जाता है। किसी भी व्यक्ति के जीवन में पिता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बचपन में पिता ही बच्चों के लिए हीरो होता है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, कुछ विशेष राशि के जातक अच्छे पिता होते हैं। ये अपनी संतान को बहुत ही स्नेह करते हैं। अपनी संतान की खुशियों के लिए ये हर कीमत चुकाने के लिए तैयार रहते हैं। ये अपनी संतान की अच्छी परवरिश में अधिक बल देते हैं। ये अपनी संतान को अच्छी शिक्षा के साथ-साथ अच्छा व्यावहारिक ज्ञान भी देते हैं। मां-बाप से ही संतान को पहली शिक्षा मिलती है। यदि वास्तव में किसी बच्चे को एक अच्छे माता-पिता मिल जाएं तो उस बच्चे की जिंदगी संवर जाती है।वृषभ राशिइस राशि के जातक अपनी संतान के लिए अच्छे पिता होते हैं। ये अपने संतान की अच्छी तरह से परवरिश करते हैं। बच्चों के प्रति इनका लाड-प्यार इन्हें एक अच्छा पिता बनाता है। अपनी संतान के प्रति जिम्मेदारी को ये भलिभांति समझते हैं। आप अपनी संतान का कदम-कदम पर साथ देते हैं। आपके द्वारा सिखाई गई नैतिक और मूल्यवान बातें बच्चे हमेशा याद रखते हैं। आप धैर्यपूर्वक बच्चों का लालन पालन करते हैं।मिथुन राशिमिथुन राशि के जातक अपनी संतान के लिए सर्वश्रेष्ठ पिता बनने की कोशिश लगातार करते हैं। ये अपने बच्चों की परवरिश पर खूब ध्यान देते हैं। आप अपने बच्चों को हर अच्छी सीख देने का प्रयास करते हैं। आप चाहते हैं कि आपके बच्चे हर क्षेत्र में सफल हों, फिर चाहें वह खेल का क्षेत्र हो या पढ़ाई का। इस राशि के जातक अपने व्यवहार से अपने बच्चों का भरोसा जीतते हैं।कर्क राशिकर्क राशि के जातक अपने बच्चों को खूब प्यार करते हैं। साथ ही ये अपने बच्चों को नैतिक मूल्य सिखाते हैं। अपनी संतान के प्रति इनका रिश्ता बेहद संवेदनशील होता है। आप एक आदर्श पिता बनने के लिए अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हैं। इस राशि के जातक अपनी संतान के लिए मात्र पिता ही नहीं, बल्कि एक सच्चे रोल मॉडल होते हैं।मकर राशिमकर राशि के जातक अपनी संतान की अच्छी परवरिश के लिए बेहद संजीदा होते हैं। आप अपनी संतान को हर वो खुशी देने का प्रयास करते हैं जिनका अनुभव आपने किसी कारणवश न किया हो। आप एक धैर्यवान और जमीन से जुड़े पिता होते हैं। आप अपने कार्य-व्यवहार से बच्चों को लचीलापन, कड़ी मेहनत और ईमानदारी सिखाते हैं और उन्हें शिक्षा, ज्ञान, कड़ी मेहनत और शिष्टाचार के महत्व के बारे में बताते हैं।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 335
★ भूमिका - निम्नांकित पद भक्तियोगरसावतार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ के 'सिद्धान्त-माधुरी' खण्ड से लिया गया है। 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ में आचार्य श्री ने कुल 21-माधुरियों (सद्गुरु, सिद्धान्त, दैन्य, धाम, श्रीकृष्ण, श्रीराधा, मान, महासखी, प्रेम, विरह, रसिया, होरी माधुरी आदि) में 1008-पदों की रचना की है, जो कि भगवत्प्रेमपिपासु साधक के लिये अमूल्य निधि ही है। इसी ग्रन्थ का यह पद है, जिसमें माता यशोदा जी के भाग्य की वन्दना की गई है कि उनकी गोद में सकल जगत के पिता स्वयं ब्रह्म श्रीकृष्ण पुत्र बनकर प्रगट हुये हैं ::::
धन्य सो मातु यशोमति भाम।श्री कृष्णहिं ‘कनुवा’, कहि टेरत ‘बलुवा’ कहि बलराम।‘पूर्व जनम रह शूकर’ कह लखि, धूरि धूसरित श्याम।‘पूर्व जनम रह मच्छ’ कहत लखि, जल विहार अभिराम।मुख माटी लखि लै कर साँटी, बाँधति ऊखल दाम।बन्यो ‘कृपालु’ पूत यशुमति को, जगत पिता नँदगाम।।
भावार्थ - उन यशोदा मैया के धन्य भाग्य हैं जो पूर्णब्रह्म श्रीकृष्ण को ‘कनुवाँ’ एवं बलराम को ‘बलुआ’ कहकर बुलाती हैं। श्यामसुन्दर को धूल में सने हुए देखकर कहती हैं कि तुम पिछले जन्म के सूअर हो। (बात भी सत्य है)। पुन: श्यामसुन्दर को पानी में अधिक देर तक खेलते हुए देखकर कहती हैं कि तुम पिछले जन्म के मछली हो। (बात भी सत्य है वे शूकर एवं मत्स्य बन चुके हैं)। श्यामसुन्दर के मुख में मिट्टी देखकर हाथ में डण्डा लेकर डराती हुई रस्सी से ऊखल में बाँध देती हैं। ‘श्री कृपालु जी’ के शब्दों में सम्पूर्ण जगत् के पिता नन्दग्राम में एक अहीरनी यशोदा के पुत्र बने हैं।
०० रचनाकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रेम रस मदिरा', खंड - श्रीकृष्ण बाल लीला माधुरी०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - ज्योतिष की रत्न शास्त्र विद्या को उपायों के मामले में काफी अच्छा माना जाता है. कुंडली के अनुसार रत्न पहनने से सफलता की मात्रा बढ़ जाती है और समस्याओं की तीव्रता कम हो जाती है. आज हम एक प्रभावशाली रत्न माणिक पहनने से होने वाले फायदों के बारे में जानते हैं. यह रत्न सूर्य का प्रतिनिधित्व करता है. चूंकि सूर्य ग्रहों का राजा है और पराक्रम, स्वास्थ्य आदि का कारक है. ऐसे में माणिक पहनने से कई जातकों के व्यक्तित्व में आमूलचूल परिवर्तन देखा जाता है.रत्न शास्त्र के अनुसार यह रत्न पहनने से छात्र, शिक्षा क्षेत्र से जुड़े लोग, व्यापारी वर्ग, राजनेता, आर्मी, प्रशासनिक अधिकारियों और अन्य क्षेत्रों में नेतृत्व की भूमिका निभा रहे लोगों को बहुत सफलता मिलती है.कुंडली में सूर्य कमजोर हो तो जरूर पहनें माणिकजिन लोगों की कुंडली में सूर्य (Surya) कमजोर स्थिति में हो, उन्हें यह रत्न जरूर पहनना चाहिए. यह उनमें कॉन्फिडेंस बढ़ाता है. उनमें निर्णय लेने की क्षमता बेहतर होती है. यदि वे लीडरशिप वाले पद पर हैं तो यह रत्न उनकी नेतृत्व क्षमता अच्छी करता है और मान-सम्मान भी दिलाता है. यह व्यक्ति में सकारात्मकता बढ़ाता है, उसकी एनर्जी बढ़ाता है.सेहत के लिए बहुत काम का है माणिक- माणिक पहनने से आंखों की रोशनी और रक्त संचार में सुधार होता है.- रूबी पहनने से हड्डियां मजबूत होती हैं.- स्किन से जुड़ी समस्याओं से छुटकारा दिलाता है.- ऐसे लोग जो सुबह की धूप नहीं ले पाते हैं और उनमें अक्सर विटामिन डी की कमी रहती है, तो वे तांबे की अंगूठी में माणिक पहनें.- अपच, हाई और लो ब्लड प्रेशर जैसी समस्यओं में भी माणिक पहनने से लाभ होता है. यह बीपी को कंट्रोल रखने में सहायक है.((नोट-माणिक पहनने से पहले एक बार ज्योतिष से अवश्य सलाह ले लें।)
- हिंदू संस्कृति में चातुर्मास का बहुत महत्व है. इस बार चातुर्मास 12 जुलाई 2021 से लगने जा रहा है..........हिंदू माह का चौथा महीना आषाढ़ का होता है. इस महीने की शुक्ल एकादशी से चातुर्मास का प्रारंभ होता है. मान्यता है कि आषाढ़ी एकादशी के दिन से चार महीनों के लिए सभी देव सो जाते हैं. बताते चलें कि चातुर्मास की अवधि कुल मिलाकर चार महीनों की होती है. इन चार महीनों में श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक आते हैं. ये आषाढ़ शुक्ल एकादशी से शुरू होकर कार्तिक एकादशी तक चलता है. इसके भीतर आषाढ़ के 15 दिन और कार्तिक के 15 दिन शामिल होते हैं. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस महीने में भगवान विष्णु पाताल लोक में जाकर सो जाते हैं. जिससे धरती पर नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाता है. इसकी वजह से इस अवधि में किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य को नहीं किया जाता है. ऐसे में हमें भी चातुर्मास में शुभ कार्यों को करने से बचना चाहिए.भगवान विष्णु की पूजाइस दौरान भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए. प्रतिदिन सुबह उठकर सुबह और शाम को विष्णु सहस्त्रनाम स्तोत्र का पाठ करना चाहिए. इसके अलावा ॐ नमोः नारायणाय, ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय नमः: मंत्र का जाप भी दोनों टाइम करना चाहिए.तेल से बनी चीजों को न खाएंचातुर्मास के दौरान आप तेल से बनी चीजों को ना खाएं. दूध, दही, शकर, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन, बैंगन, तेल, मसालेदार भोजन, मिठाई, सुपारी, मांस, मदिरा का सेवन बिल्कुल भी ना करें. इस दौरान जीवन को एक साधु की भांति जीना चाहिए. भोजन का सेवन दिन में एक बार करें. सूर्योदय से पहले उठने की कोशिश करिए. चातुर्मास के दौरान रोजाना स्नान कीजिए और मौन धारण करने की कोशिश करें.नियमित रूप से करें दानइस 4 माह के दौरान लोगों को दान करते रहना चाहिए. किसी गरीब या पशु-पक्षी को भोजन कराएं. नदी के जल में दीप छोड़ें या फिर मंदिर के भीतर दीपक जलाएं. गरीब व्यक्ति को वस्त्र दान करें. कटोरी के भीतर सरसों का तेल लें और उसमें अपना चेहरा देखकर उसे शनि भगवान के मंदिर में दान करें. किसी मंदिर या आश्रम में अपनी सेवाएं दें.
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 334
(भूमिका - साधक के भगवत्प्रेमोन्नति के विषय में जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रवचन अंश, यह अंश उनके द्वारा निःसृत प्रवचन श्रृंखला 'नारद भक्ति दर्शन' की व्याख्या से लिया गया है..)
..भगवान् सम्बन्धी कामना निन्दनीय नहीं है लेकिन वन्दनीय भी नहीं है, ऐसा हमारा खयाल है। साधक के लिये डेन्जर है क्योंकि अगर हमने कोई कामना बना ली, उनका (भगवान) दर्शन हो जाय, चलो और कुछ नहीं चाहते, स्पर्श भी नहीं चाहते, लेकिन दर्शन हो जाय और नहीं हुआ, रोते रहे एक दिन, दो दिन, एक महीना, एक साल, दस साल, हजार साल, करोड़ साल। हमारे रोने से भगवान् आ जायेंगे ये अगर अहंकार है तो रोने से नहीं आयेंगे। भगवान् तो अपनी इच्छा से आते हैं, हमारी किसी साधना के चाबुक से नहीं आ सकते वो।
अरे! रोने का मतलब क्या है? रोने का मतलब ये है माँगना। माँगना? माँगना दो प्रकार से होता है न। आप लोग टिकट माँगते हैं रेलवे का, रुपया हाथ में लेकर डालते हैं.. ऐ... टिकट बम्बई का। वो रुपया दिया, उसने टिकट दिया। एक तो ये माँगना है, इसमें किसी का कोई एहसान नहीं क्योंकि तुमने रुपया दिया, उसने टिकट दिया। और एक माँगना होता है, बाबूजी भूख लगी है, चार पैसा दे दो, एक माँगना ये होता है। इसमें तो हमने उसके लिये कुछ किया-विया नहीं। केवल माँगा और अगर उसने दे दिया, तो फिर क्या बात है, थैंक्यू।
तो भगवान् से हम माँग रहे हैं - स्प्रिचुअल सामान, स्प्रिचुअल प्रेम, स्प्रिचुअल हैप्पीनेस। दे नहीं रहे कुछ। आँसू दे रहे हैं। आँसू दे रहे हैं? आँसू कोई देने की वस्तु है? अरे! ये बोलो माँग रहे हैं, और वह भी अभी माँगने में मिलावट है। अभी क्लीन स्लेट हार्ट होकर के विशुद्ध हृदय से नहीं माँग रहे हैं। अभी कुछ गड़बड़ है। इसलिये हमारे माँगने से उन्होंने दिया, ये अहंकार नहीं होना चाहिये। हमने भी तो साधना की है। क्या साधना की है? अरे, कीर्तन किया है, आँसू बहाये हैं। अरे! तो कीर्तन और आँसू का मतलब क्या होता है - माँगना। तुमने दिया क्या? अरे! देते क्या, अभी तो मिले ही नहीं वो, और अगर मिल भी जायें तो हम देंगे क्या? हमारे पास जो कुछ है वो तो उनके काम का है नहीं कुछ शरीर, मन, बुद्धि संसार का सामान और फिर ये तो उन्हीं का है। अगर हम यह भी सोच लें कि हमने दे दिया, तो हमसे पूछा जायेगा ये किसका था? ये सारा विश्व उनका है। उस विश्व में भी भारत, भारत में भी एक छोटा-सा शहर लखनऊ, लखनऊ में भी एक मुहल्ला, मुहल्ले में भी दो-तीन मकान हमारे थे, उसको हमने दान कर दिया। बड़ा कमाल किया आपने। अरे, ये तो उसी का सामान है। इसमें अहंकार क्यों आया? तो अगर अहंकार युक्त होकर के हमने याचना भी की तो स्वीकार नहीं होगी।
लेकिन अगर ठीक-ठीक याचना करेगा तो उसको वो वस्तु मिलेगी। लेकिन, एक बड़ी गड़बड़ बात ये होगी कि वस्तु मिलने के बाद तुरन्त कामना बढ़ती है आगे, वो चाहे संसारी कामना हो चाहे पारमार्थिक हो। तुरन्त उसके आगे वाली कामना पैदा हो जाती है, अपने आप हो जाती है, तो जैसे संसार में तमाम स्तर हैं, ये साइकिल से जा रहा है, ये स्कूटर से जा रहा है, ये मोटर साइकिल से जा रहा है, ये एम्बेसेडर से जा रहा है, ये अम्पाला से जा रहा है, एक से एक ऊँचा स्तर है न? तो जब किसी को साइकिल मिल जाती है - ए! साइकिल तो मिल गयी लेकिन वो मोटर साइकिल होती तो जरा अच्छा रहता। अब चलाओ उसको, मेहनत करो, तुरन्त कामना बढ़ गयी। मोटर साइकिल हो गयी, ए! ये मोटर साइकिल क्या खोपड़ा खा लेती है, ये भी कोई गाड़ी है, कार हो तो उसमें साहब बनकर चलें। कार भी हो गयी, हाँ कार है, फटीचर कार है, कोई कार है? वो लम्बी वाली गाड़ी हो, दस लाख वाली। यानी ये बीमारी ऐसी है कि;
यत् पृथिव्यां व्रीहियवं हिरण्यं पशवः स्त्रियः।न दुह्यन्ति मनः प्रीतिं पुंसः कामहतस्य ते॥(भागवत 9-19-13)
नालमेकस्य पर्याप्तं तस्मात्तृष्णां परित्यजेत्।।(विष्णु पुराण)
अनन्त ब्रह्माण्ड की साम्राज्य श्री मिल जाय तो भी उसके आगे प्लानिंग होगी। और यही बात ईश्वरीय जगत् में भी है। वहाँ भी अनेकों स्तर हैं, जैसे मैंने बताया था न, ये ब्रह्मानन्द है, ये बैकुण्ठानन्द है, ये द्वारिकानन्द है, ये मथुरानन्द है, ये ब्रजानन्द है, वृन्दावनानन्द है, कुंजानन्द है, निकुंजानन्द है, तमाम आनन्द वहाँ भी होते हैं। तो कामना बनायेंगे अगर हम तो उसके पूरी होने के बाद फिर कामना आगे बढ़ेगी और साधनावस्था में कामना पूरी हो जाय ये कम्पल्सरी नहीं। इसलिए अगर साधनावस्था में कामना पूरी ना हुई तो निराशा आयेगी और निराशा आयेगी तो अबाउट टर्न हो जायेगा। अरे यार, इतने दिन तक रोये-गाये, सब कुछ, वो सब बकवास है। न कहीं भगवान् है न कहीं कुछ है। लोगों ने खामखां फैला रखा है बवाल, एक बिना वजह खोपड़ा भंजन करने के लिये। ये भगवान्-वगवान् जो है ये तो जिनके दिमाग खराब हो गये बुढ़ापे में, ऐसे लोग जंगलों में पड़े रहते थे, खाने-पीने को ढंग से मिलता नहीं था, हाफ मैड हो गये थे। तो उन्होंने कहा हम तो बरबाद हुए ही हैं, ये दुनियाँ वालों को भी ऐसी बीमारी लगा दो भगवान् की, कि ये भी टेन्शन में पड़े रहें।
जब निराशा आती है मनुष्य में तो इतनी निम्न कक्षा की बात सोच जाता है। उसको होश-हवाश नहीं रहता कि मैं क्या सोच रहा हूं भगवान् के लिये भी, गुरु के लिये भी, पाताल में पहुँच जाता है। इसलिये कामना रखकर भक्ति तो करनी ही नहीं है। साधक को तो बहुत ही डेन्जर है, अगर सिद्ध हो जाय कोई तो पृथक् बात है, उसका पतन होने का सवाल ही नहीं रहेगा कोई। लेकिन अभी ये सोचना है जो नारद जी कहते हैं;
यत्प्राप्य न किंचिद् वाञ्छति।
वो कुछ नहीं चाहता। अरे! आनन्द तो चाहता होगा? आनन्द, सबसे कठिन परीक्षा यही है। जहाँ बड़े-बड़े जीवन्मुक्त अमलात्मा परमहंस भी फेल हो जाते हैं, वे भी सकाम हो गये। भगवान् से ब्रह्मानन्द माँगते हैं, मोक्ष माँगते हैं। ये मोक्ष माँगना क्या है? कामना। आनन्द माँगना क्या है? कामना। अरे! हम संसार की जो वस्तु चाहते हैं वो भी तो आनन्द के लिये ही तो चाहते हैं। अगर आनन्द माँगना सही है तो हम जो संसारी आनन्द चाहते हैं वो भी सही होना चाहिये। तो मोक्ष की कामना भी सकामता है।
लेकिन निष्कामता और सकामता में जो बारीक अन्तर है, वो क्या है? हम भगवान् की सेवा चाहते हैं। सेवा चाहते हैं - ये भी कामना है। वाह! वाह! वाह! बड़े आप अच्छे हुए, सेवा चाहते हैं और कहते हैं हम निष्काम हैं। अरे! आपका एम (लक्ष्य) तो है कुछ, सेवा चाहते हैं न? हाँ, लेकिन हम सेवा चाहते हैं अपने प्रियतम की, सेव्य की। हाँ, हाँ, सेव्य की सेवा चाहते हो, जैसे माँ बच्चे की सेवा करती है, उसे खुशी होती है, ऐसे ही न? नहीं, नहीं, हम श्यामसुन्दर की सेवा इसलिये चाहते हैं कि श्यामसुन्दर को सुख मिले। अब आनन्द की हमारी कामना भी समाप्त, अब हम निष्काम होंगे। श्यामसुन्दर को सुख मिले, इस उद्देश्य से उनकी सेवा माँगते हैं। उस सेवा के लिये उनका दिव्य निष्काम प्रेम माँगते हैं। यहाँ से चलो। निष्काम प्रेम चाहिये, क्यों? उनकी सेवा करेंगे, क्यों? उनके सुख के लिये। इसके लिये नारदजी ने एक सूत्र बनाया है;
तत्सुखसुखित्वम्।
तो क्यों जी, फिर हमको आनन्द कहाँ मिला? ऐसा लेबर इतना लम्बा चौड़ा हमने किया, बेकार हो गया। नहीं, जब श्यामसुन्दर को आप सुख देंगे सेवा से, तो श्यामसुन्दर उसको और मधुर बनाकर लौटा देंगे आपको। तब आपको वो उससे अधिक आनन्द मिलेगा। फिर आप उसको श्यामसुन्दर को दे देंगे। फिर वो आपको लौटा देंगे, फिर आप उनको दे देंगे - ये क्रम अनन्तकाल तक चलता जायगा। इसलिये आनन्द बढ़ता जायगा।
(प्रवचनकर्ता : जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
०० सन्दर्भ : 'नारद भक्ति दर्शन' पुस्तक (जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा व्याख्या)०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - 5जुलाई को योगिनी एकादशी है। आषाढ़ माह में कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को योगिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत अधिक महत्व होता है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है। इस दिन विधि- विधान से भगवान विष्णु की पूजा- अर्चना की जाती है। हर माह में दो बार एकादशी तिथि पड़ती है। एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष में। साल में कुल 24 एकादशी पड़ती हैं। एकादशी व्रत करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है।योगिनी एकादशी मुहूर्त-----------एकादशी तिथि प्रारम्भ - जुलाई 04, 2021 को 07:55 पी एम बजेएकादशी तिथि समाप्त - जुलाई 05, 2021 को 10:30 पी एम बजेपारण (व्रत तोड़ने का) समय - 6 जुलाई, 05:29 ए एम से 08:16 ए एमयोगिनी एकादशी व्रत पूजा का शुभ समय- ----ब्रह्म मुहूर्त- 04:08 ए एम से 04:48 ए एमअभिजित मुहूर्त- 11:58 ए एम से 12:54 पी एमविजय मुहूर्त- 02:45 पी एम से 03:40 पी एमगोधूलि मुहूर्त- 07:09 पी एम से 07:33 पी एमअमृत काल- 06:47 ए एम से 08:35 ए एमयोगिनी एकादशी पूजा- विधि--------------सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।सभी देवी- देवताओं का गंगा जल से अभिषेक करें।भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें।इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।भगवान की आरती करें।भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं।इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।
- 20 जुलाई को ग्रहों के सेनापति मंगल ग्रह का राशि परिवर्तन होने जा रहा है। इस दिन मंगल सिंह राशि में प्रवेश कर जाएंगे। मंगल को ऊर्जा, भाई, भूमि, शक्ति, साहस, पराक्रम, शौर्य, गतिशीलता और जीवन शक्ति का कारक ग्रह माना जाता है। 6 सितंबर, 2021 तक मंगल सिंह राशि में ही विराजमान रहेंगे। ज्योतिष में ग्रहों के राशि परिवर्तन को बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। ग्रहों के राशि परिवर्तन का सभी राशियों पर शुभ- अशुभ प्रभाव पड़ता है।वृषभ राशि-----------मंगल गोचर के प्रभाव से वृषभ राशि वालों को नौकरी और व्यापार में तरक्की मिल सकती है।लेन- देन के लिए समय शुभ है।इस दौरान धन- लाभ के भी योग बनेंगे।नया कार्य शुरू करने के लिए समय शुभ है।परिवार के सदस्यों के साथ समय व्यतीत करेंगे।हर कार्य में जल्दबाजी करते हैं ये लोग, बिना सोच- विचार किए करते हैं काममिथुन राशि -------------मंगल गोचर की अवधि में मिथुन राशि वालों का भाग्य साथ देगा।नौकरी और व्यापार के लिए मंगल गोचर की अवधि शुभ है।पारिवारिक व वैवाहिक जीवन सुखद रहेगा।कार्यक्षेत्र में आपकी प्रशंसा होगी।आपके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना होगी।परिवार के सदस्यों के साथ समय व्यतीत करने का अवसर मिलेगा।दांपत्य जीवन में सुख का अनुभव करेंगे।वृश्चिक राशि------------मंगल के सिंह राशि में गोचर करने से वृश्चिक राशि वालों को लाभ मिलेगा।इस दौरान मान-सम्मान में वृद्धि होगी।वैवाहिक जीवन सुखद रहेगा।कार्यक्षेत्र में हर किसी पर भी भरोसा करने से बचें।नौकरी और व्यापार के लिए समय शुभ है।दांपत्य जीवन सुखमय रहेगा।इन लोगों पर कभी नहीं पड़ती है शनि की बुरी नजर, हमेशा रहते हैं शनिदेव मेहरबानकुंभ राशि-------------मंगल गोचर कुंभ राशि वालों के लिए शुभ परिणाम लेकर आएगा।व्यापारियों को मंगल गोचर के प्रभाव से मुनाफा होगा।इस दौरान धन लाभ के योग बनेंगे।जीवनसाथी के साथ समय अच्छा बीतेगा।परिवार के सदस्यों का भी पूरा सहयोग प्राप्त करेंगे।कार्यों में सफलता मिलेगी।धन- लाभ होगा।व्यापार के लिए ये समय किसी वरदान से कम नहीं है।
- सामुद्रिक शास्त्र एक ऐसा शास्त्र है जिसमें व्यक्ति के हाव-भाव शरीर के अंगों की बनावट, तिल और निशान आदि देखकर व्यक्ति के बारे में जानकारी दी जाती है, लेकिन क्या आपको पता है कि व्यक्ति के हस्ताक्षर करने का तरीका भी उसके बारे में बहुत कुछ कहता है। हर व्यक्ति के हस्ताक्षर करने का तरीका अलग-अलग होता है। किसी भी व्यक्ति के हस्ताक्षर से आप जान सकते हैं कि वह किसी तरह का व्यक्ति है। हालांकि इस बारे में कुछ भी पूरी तरह से सटीक नहीं होता है लेकिन फिर भी बहुत हद तक हस्ताक्षर से व्यक्ति के स्वभाव और उसकी प्राथमिकताओं के बारे में जाना जा सकता है।नीचे से ऊपर की ओर लिखने वालेअक्सर देखा होगा कि कुछ लोग हस्ताक्षर करते समय नीचे से ऊपर की ओर लिखते हैं शायद आप भी ऐसे ही हस्ताक्षर करते हो, ऐसे लोगों के बारे में कहा जाता है कि ये लोग आशावान होते हैं और दिल के बहुत साफ होते हैं। हालांकि कई बार ये लोग थोड़े झगड़ालू भी होते हैं।ऊपर से नीचे की ओर लिखने वालेजो लोग हस्ताक्षर करते समय ऊपर से नीचे की ओर लिखते हैं। उनका दृष्टिकोण चीजों को लेकर नकारात्मक होता है। ये लोग किसी से ज्यादा मेल-मिलाप करना पसंद नहीं करते हैं और ज्यादा सामाजिक नहीं होते हैं। इनके विचारों में सकारात्मकता की कमी होती है।बिना कलम उठाए हस्ताक्षर करने वालेकुछ लोग बिना कलम उठाए हुए एक ही बार में पूरे हस्ताक्षर कर देते हैं। यदि कोई व्यक्ति हस्ताक्षर करते समय एक बार भी कलन नहीं उठाता है तो ऐसे लोगों को बेहद रहस्यमय माना जाता है। ऐसे लोगों के भीतर क्या चल रहा है यह पता करना बहुत ही मुश्किल होता है। ऐसे लोगों के रहस्य रखने वाले के साथ ही झगड़ालू भी माना जाता है।पूरा सरनेम लिखने वालेकुछ लोग हस्ताक्षर करते समय अपने सरनेम को पूरा और स्पष्ट लिखते हैं। ऐसे लोग बहुत ही मिलनसार और व्यवहारिक होते हैं।हस्ताक्षर में अवरोधक प्रयोग करने वालेकुछ लोगों की आदत होती है कि वे अपने हस्ताक्षर के बीच में या फिर अंत में अवरोधक जैसे बिंदु आदि का प्रयोग करते हैं ऐसे लोगों में नैतिकता होती है और ये समाज के अनुसार चलने वाले लोगों होते हैं। जो लोग अपने हस्ताक्षर के अंत में लकीर या फिर बिंदु बनाते हैं वे थोड़े शर्मीले स्वभाव के होते हैं।हस्ताक्षर के अंत में दो रेखाएं बनाने वालेकुछ लोग पूरे हस्ताक्षर करने के बाद अंत में दो रेखाएं बनाते हैं ऐसे लोगों में असुरक्षा की भावना होती है। इन लोगों के लगता है कि कहीं कोई इनका नुकसान न कर दे या फिर उन्हें धोखा ना दे दे।अस्पष्ट हस्ताक्षर करने वालेकुछ लोग बहुत ही जल्दी-जल्दी और अस्पष्ट रूप से हस्ताक्षर करते हैं। इनके किए गए हस्ताक्षर में कुछ भी साफ समझ नहीं आता है। ऐसे लोगों को विश्वसनीय नहीं माना जाता है। ये लोग स्वयं की सफलता या हित के लिए धोखा कर सकते हैं।