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- हिंदू पंचांग का आखिरी महीना फाल्गुन कहलाता है जो अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से कभी फरवरी तो कभी मार्च का महीना होता है। इसके बाद चैत्र का महीना आता है जिसे हिंदू नववर्ष की शुरुआत माना जाता है। बसंत ऋतु का प्रभाव होने की वजह से इस दौरान सर्दी कम होने लगती है और धीरे-धीरे गर्मी की शुरुआत हो जाती है। पौराणिक मान्यताओं की मानें तो माघ महीने की ही तरह फाल्गुन मास का भी उतना ही विशेष धार्मिक महत्व है।साल 2021 में फाल्गुन महीने की शुरुआत 28 फरवरी रविवार से हो रही है जो 28 मार्च तक रहेगा। फाल्गुन महीने के दौरान महाशिवरात्रि से लेकर होली तक कई प्रमुख त्योहार मनाए जाते हैं। इसके अलावा फाल्गुन माह के दौरान भगवान श्री कृष्ण की पूजा विशेष रूप से फलदायी माना जाती है। इस दौरान कृष्ण के 3 स्वरूपों- बाल कृष्ण, युवा कृष्ण और गुरु कृष्ण की पूजा की जाती है। साथ ही पौराणिक मान्यताओं के अनुसार फाल्गुन के महीने में ही चंद्रमा का जन्म हुआ था इसलिए इस माह चंद्र देव की भी पूजा की जाती है।oo फाल्गुन महीने के प्रमुख व्रत त्योहार1. जानकी जयंती या सीता अष्टमी- फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को माता सीता की जयंती, 6 मार्च शनिवार2. विजया एकादशी- फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को विजया एकादशी, 9 मार्च मंगलवार3. महाशिवरात्रि- फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि, 11 मार्च गुरुवार4. फाल्गुनी अमावस्या- 13 मार्च दिन शनिवार5. फुलेरा दूज- फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि, 15 मार्च सोमवार6. आमलकी एकादशी- फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि, 25 मार्च, गुरुवार7. होलिका दहन- फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा, 28 मार्च रविवार
- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 208
०० जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचनों से 5-सार बातें (भाग - 12) ::::::
(1) हरि-गुरु हमारी रक्षा करते हैं, वे हमारी रक्षा कर रहे हैं, वे आगे भी हमारी रक्षा करेंगे, इस पर विश्वास कर लो।
(2) जो भक्त सिद्धावस्था को प्राप्त कर चुके हैं उन्हें कभी कहीं भी माया स्पर्श नहीं कर सकती। मायापति भक्त के पीछे-पीछे चलता है तब उसकी दासी माया भला भगवान् के प्राणप्रिय भक्तों का क्या बिगाड़ सकती है।
(3) जो बहुत बड़े पापी होते हैं उनकी श्रीहरि लीला कथा में रुचि नहीं होती है। ये लोग बस कूकर शूकर की भाँति जीवन व्यतीत करते हैं। जैसे शूकर को पाख़ाना (गंदगी) में लोटने में परम सुख मिलता है ऐसे ही इन पापियों को संसार के झूठे सुखों में सुख प्रतीत होता है। ये संसार में झूठ में ही मस्त रहते हैं और भक्तों से ईर्ष्या द्वेष भाव रखते हैं।
(4) भगवान् और महापुरुषों के कार्य सुनिश्चित लीला के अनुसार दिव्य होते हुए भी प्राकृत दिखाई देते हैं। उनका अवतार लेने का एक ही उद्देश्य होता है जीव कल्याण अर्थात परोपकार।
(5) देखो! एक सिद्धांत सदा समझ लो, जब तक हमको भगवत्प्राप्ति नहीं हो जाती, तब तक हम पर माया का अधिकार रहेगा। जब तक माया का अधिकार रहेगा, तब तक काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि सब दोष रहेंगे। इसके अतिरिक्त पिछले अनन्त जन्मों के पाप भी रहेंगे क्योंकि भगवत्प्राप्ति पर ही समस्त पाप भस्म होते हैं।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म संदेश एवं साधन साध्य पत्रिकाएँ०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 207
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित 1008-ब्रजभावयुक्त दोहों के विलक्षण ग्रन्थ 'श्यामा श्याम गीत' के दोहे, ग्रन्थ की प्रस्तावना सबसे नीचे पढ़ें :::::::
(भाग - 11 के दोहा संख्या 55 से आगे)
झूठे ही बुलावें लोग आओ उर श्यामा।कहाँ आवें नातेदार बैठे उरधामा।।56।।
अर्थ ::: संसारी जीव शुद्ध हृदय से श्यामा श्याम को नहीं बुलाते। जिस हृदय में सांसारिक संबंधी विराजमान हैं उसमें श्यामा-श्याम किस प्रकार आवें?
डेरा डारे नातेदार बैठे उरधामा।उनको निकालो तो मैं आऊँ कह श्यामा।।57।।
अर्थ ::: किशोरी जी कहती हैं, तुम्हारे हृदय में सांसारिक संबंधियों ने अपना स्थान जमा रखा है। जब तुम उन्हें हृदय से बाहर करो तब तो मैं तुम्हारे हृदय में अपना स्थान बनाऊँ।
उर में बिठाना चाहो जग संग श्यामा।अंधकार रवि कभु रहे एक ठामा।।58।।
अर्थ ::: जिस हृदय में जगत का निवास है, उसमें श्री किशोरी राधिका अपना स्थान कैसे स्थापित करे? अंधकार और सूर्य कभी एक साथ नहीं रह सकते।
संसारी नर नारी में आठु यामा।भगवद् भाव नहिं सदा रहे बामा।।59।।
अर्थ ::: संसारी स्त्री-पुरुषों में निरंतर भगवद्भाव नहीं रखा जा सकता।
जाको होवे प्रेम जासों मृत्युलोक धामा।मृत्यु के बाद उसे वही मिले बामा।।60।।
अर्थ ::: मृत्युलोक में जीवित अवस्था में जिसका जिससे प्रेम होता है, मृत्यु के बाद उसे वही प्राप्त होता है।
०० 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का परिचय :::::
ब्रजरस से आप्लावित 'श्यामा श्याम गीत' जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की एक ऐसी रचना है, जिसके प्रत्येक दोहे में रस का समुद्र ओतप्रोत है। इस भयानक भवसागर में दैहिक, दैविक, भौतिक दुःख रूपी लहरों के थपेड़ों से जर्जर हुआ, चारों ओर से स्वार्थी जनों रूपी मगरमच्छों द्वारा निगले जाने के भय से आक्रान्त, अनादिकाल से विशुध्द प्रेम व आनंद रूपी तट पर आने के लिये व्याकुल, असहाय जीव के लिये श्रीराधाकृष्ण की निष्काम भक्ति ही सरलतम एवं श्रेष्ठतम मार्ग है। उसी पथ पर जीव को सहज ही आरुढ़ कर देने की शक्ति जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की इस अनुपमेय रसवर्षिणी रचना में है, जिसे आद्योपान्त भावपूर्ण हृदय से पढ़ने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे रस की वृष्टि प्रत्येक दोहे के साथ तीव्रतर होती हुई अंत में मूसलाधार वृष्टि में परिवर्तित हो गई हो। श्रीराधाकृष्ण की अनेक मधुर लीलाओं का सुललित वर्णन हृदय को सहज ही श्यामा श्याम के प्रेम में सराबोर कर देता है। इस ग्रन्थ में रसिकवर श्री कृपालु जी महाराज ने कुल 1008-दोहों की रचना की है।
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - मार्च महीने में तीन ग्रहों का राशि परिवर्तन होगा। आमतौर पर सूर्य देव हर महीने राशि परिवर्तन करते हैं। ऐसे में मार्च महीने में सूर्य कुंभ राशि से निकलकर मीन राशि में जाएंगे। मार्च में सूर्य के अलावा शुक्र और बुध ग्रह का भी राशि परिवर्तन होगा।जानिए ग्रहों की चाल बदलने से क्या पड़ेगा असर-मिथुन राशि वालों को इन ग्रहों के राशि परिवर्तन से शुभ परिणाम मिलेंगे। बिगड़े हुए कार्य बन सकते हैं। आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगगा। पुराने कर्जों से मुक्ति मिल सकती है।कर्क राशि वालों के सेहत में सुधार होगा। शुभ कार्यों की संपन्नता से मन प्रसन्न रहेगा। आकस्मिक धन लाभ के योग बन रहे हैं। भाग्य का साथ मिलने से हर क्षेत्र में सफलता हासिल हो सकती है।कन्या राशि वालों के भाग्य का सहयोग मिलने से बिगड़ते हुए कार्य भी बन जाएंगे। तीन ग्रहों का गोचर आपके लिए शुभ साबित होगा। पारिवारिक सुख मिलेगा। पुराने रोगों से मुक्ति मिल सकती है। आर्थिक सुधार की योजनाएं सफल हो सकती है।तुला राशि वालों के लिए तीन ग्रहों का गोचर शुभ फलकारी साबित हो सकता है। सरकारी मामलों में भी राहत मिलने के योग बन सकते हैं। आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। भौतिक सुख-सुविधाओं में वृद्धि हो सकती है।कुंभ राशि वालों के लिए तीन ग्रहों का गोचर आर्थिक व पारिवारिक सुख की दृष्टि से शुभ साबित होगा। खर्चों पर कंट्रोल होगा। नौकरी कर रहे जातकों को भी शुभ परिणाम हासिल होंगे। तरक्की मिलने की संभावना है।
- माघ मास के शुक्ल पक्ष की आखिरी तिथि को माघ पूर्णिमा कहा जाता है। इस साल माघ पूर्णिमा 27 फरवरी को है। माघ पूर्णिमा के दिन स्नान, जप और तप का महत्व होता है। कहा जाता है कि माघ पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान करना शुभ होता है। कहते हैं कि ऐसा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि माघ पूर्णिमा के दिन पूजा-पाठ व दान करने से जीवन में सुख, शांति और खुशहाली आती है। माघ पूर्णिमा के दिन स्नान के बाद कुछ कामों को करने से शुभता आती है।जानिए माघ स्नान के पूर्ण होने पर क्या करना चाहिए-1. माघ पूर्णिमा के दिन पूरे एक माह के माघ स्नान के समापन का दिन होता है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने से सुख, शांति और खुशहाली आती है। माघ माह में प्रतिदिन पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है। अगर घर में स्नान किया है तो पानी में गंगा आदि पवित्र नदियों का जल डालकर स्नान करें।2. इस दिन किसी पंडित या पुरोहित से माघ स्नान की पूजा और हवन आदि संपन्न करवाएं।3. इस दिन गरीबों, जरूरतमंद को भोजन कराने से पुण्य की प्राप्ति होती है।4. गायों को हरा चारा खिलाना और पक्षियों को दाना-पानी खिलाना शुभ होता है।5. माघ पूर्णिमा के दिन भगवान शिव का पंचामृत अभिषेक करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।6. पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी को मिश्री, खीर आदि का भोग लगाने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है।7. चंद्रमा से जुड़े दोष खत्म करने के लिए माघ पूर्णिमा का व्रत रखना चाहिए और रात में चंद्रमा को अघ्र्य देना चाहिए।माघ पूर्णिमा के दिन दान से मिलता है पुण्य-माघ पूर्णिमा में दान का विशेष फल की प्राप्ति होती है। इसलिए इस दिन अपनी सामथ्र्य के हिसाब से दान जरूर करना चाहिए। कहते हैं कि माघ पूर्णिमा में अन्न, वस्त्र या धन के दान से घर में सुख-शांति बनी रहती है।माघ पूर्णिमा 2021 तिथि और शुभ मुहू्र्त-पूर्णिमा तिथि शुरू- 15:50- 26 फरवरी 2021पूर्णिमा तिथि खत्म- 13:45- 27 फरवरी 2021
- शनि की दृष्टि से हर कोई बचना चाहता है। कहते हैं जिस पर शनि की दृष्टि डाल देते हैं उसके कष्टों में वृद्धि कर देते हैं, लेकिन ऐसा नहीं शनिदेव शुभ फल भी प्रदान करते हैं। शनि ग्रह को ज्योतिष में एक न्याय प्रिय ग्रह माना गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शानि व्यक्ति को उसके कर्मों के आधार पर अच्छे और बुरे फल प्रदान करते हैं। कहने का अर्थ है कि जब व्यक्ति अच्छे कर्म करता है तो शनि देव उसे शुभ फल प्रदान करते हैं और जब व्यक्ति गलत कार्यों में लिप्त हो जाता है तो शनि उसे नकारात्मक फल प्रदान करते हैं। इसलिए ऐसा कहना कि शनिदेव हमेशा गलत ही फल देते हैं, उचित नहीं है।शनि की साढ़ेसाती और शनि की ढैयाज्योतिषाचार्यों के अनुसार शनिदेव की जब भी बात आती है तो शनि की साढ़ेसाती और शनि की ढैया का वर्णन अवश्य आता है। शनि की इन स्थितियों में व्यक्ति को कष्ट भोगने पड़ते हैं, जिस पर भी साढ़ेसाती और ढैय्या होती है उसे विभिन्न प्रकार की समस्याओं और बाधाओं का सामना करना पड़ता है। शनिदेव जब अशुभ फल प्रदान करते हैं तो व्यक्ति को हर कार्य में बाधाओं को सामना करना पड़ता है. आसान कार्य भी बड़ी मुश्किल से पूर्ण होता है. इसके साथ ही रोग आदि में भी वृद्धि होती है. दुर्घटना और ऑपरेशन का भी योग बना देते हैं. पाप ग्रहों के साथ यदि कोई संबंध बना लें तो व्यक्ति को गंभीर रोग भी प्रदान करते हैं. दांपत्य जीवन में भी परेशानी महसूस होने लगती है।इन 5 राशियों को विशेष ध्यान देना चाहिएज्योतिष गणना के अनुसार मिथुन, तुला और धनु, मकर और कुंभ राशि पर शनि की विशेष दृष्टि है। मिथुन और तुला पर शनि की ढैया और धनु, मकर और कुंभ राशि पर शनि की साढ़ेसाती चल रही है।शनि किस राशि में गोचर कर रहे हैंशनिदेव इस समय मकर राशि में गोचर कर रहे हैं. शनि इस वर्ष कोई राशि परिवर्तन नहीं कर रहे हैं. मकर राशि वालों को इस समय विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है।शनि का उपायशनि को शुभ बनाने के लिए शनि मंदिर में जाकर शनिदेव पर सरसों का तेल चढ़ाना चाहिए। मंगलवार को हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए। इसके साथ ही शनिवार के दिन शनि से जुड़ी चीजों का दान करने से भी शनिदेव प्रसन्न होते
- विवाह के मुहूर्त इस वर्ष अप्रैल माह से आरंभ हो रहे हैं. पंचांग के अनुसार इस समय शुक्र तारा अस्त है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब शुक्र तारा अस्त होता है तो विवाह संबंधी कार्यक्रम आयोजित नहीं किए जाते हैं।ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस समय शुक्र अस्त चल रहे हैं। शुक्र बीते 16 फरवरी को अस्त हुए थे। विवाह संबंधी मामलों में गुरू और शुक्र ग्रह की भूमिका अहम मानी गई है। गुरु तो उदित हो चुके हैं लेकिन इस समय शुक्र ग्रह अस्त है, इसलिए जब तक शुक्र उदित नहीं होंगे तब तक विवाह कार्य संभव नहीं होंगे।पंचांग के अनुसार इस वर्ष वैवाहिक कार्य 22 अप्रैल से आरंभ होंगे। वहीं 14 मार्च से लेकर 13 अप्रैल तक खरमास का संयोग रहेगा. शुभ विवाह के लिए ग्रहों की स्थिति का विशेष ध्यान रखा जाता है। विवाह संबंधी कार्यों में किसी प्रकार का विघ्न न पड़े इसके लिए ग्रहों के गोचर और स्थिति का भी आंकलन किया जाता है।पौराणिक मान्यता के अनुसार खरमास में शादी विवाह जैसे मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं. पंचांग के अनुसार इस वर्ष विवाह के सबसे अधिक शुभ मुहूर्त मई माह में निकल रहे हैं। पंचांग के मुताबिक फरवरी और मार्च में शादी के लिए एक शुभ मुहूर्त नहीं बन रहे हैैं. अप्रैल के महीने में विवाह के लिए सबसे कम शुभ मुहूर्त निकल रहे हैं।अप्रैल और मई माह में विवाह के शुभ मुहूर्तअप्रैल के महीने में विवाह के मुहूर्त--24, 25, 26, 27 और 30.मई माह के विवाह मुहूर्त-- 2, 4, 7, 8, 21, 22, 23, 24, 26, 29 और 31 मई
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शास्त्रों में ब्रह्म मुहूर्त के समय को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। प्राचीन काल में लोग और ऋषि मुनि सदैव ब्रह्म मुहूर्त में उठकर ईश्वर का वंदन किया करते थे। घरों में भी बड़े बुजुर्ग लोग सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि कर ईश्वर का नाम जपने बैठने जाते हैं और ब्रह्म मुहूर्त में उठने को कहते हैं। ब्रह्म मुहूर्त न केवल शास्त्रों की दृष्टि से बल्कि आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा पद्धति में भी इस समय को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। हिंदू धर्म में ब्रह्म का अर्थ ह ज्ञान और मुहूर्त का अर्थ है समय या अवधि । ग्रंथों में ब्रहम मुहूर्त को विशिष्ट कार्यों के लिए सर्वश्रेष्ठ करार दिया गया है।
आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में जागने से व्यक्ति रोग मुक्त रहता है और आयु में वृद्धि होती है। ब्रह्म मुहूर्त में उठना और शुभ कार्य करना आपको लाभान्वित कर सकता है लेकिन इस समय कुछ कार्य हैं जिन्हें वर्जित माना गया है। इन कार्यों को करने से आपके शरीर को रोग घेर लेते हैं और आपकी आयु में कमी आती है। तो चलिए जानते हैं कि कौन से कार्य ब्रह्म मुहूर्त में बिल्कुल नहीं करने चाहिए।मन में न लाएं नकारात्मक भावब्रह्म मुहूर्त में व्यक्ति का मस्तिष्क जाग्रत रहता है। यह समय जीवन के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लेने, अहम योजनाएं बनाने एक लिए बहुत उचित रहता है। इस समय मन में नकारात्मक भाव नहीं लाने चाहिए, अन्यथा आपको पूरे दिन तनाव रहता है। जिससे आपको मानसिक रूप से परेशानी हो सकती है।प्रणय संबंधब्रह्म मुहूर्त ईश्वर के पूजन वंदन का समय माना गया है, यह समय बहुत ही पवित्र माना जाता है। इस समय भूलकर भी प्रणय संबंध नहीं बनाने चाहिए। आयुर्वेद के अनुसार भी ऐसा करना वर्जित माना गया है। इससे आपके शरीर को रोग घेरने लगते हैं और आपकी आयु का नाश होता है।न करें भोजनकुछ लोग सुबह को उठते ही पलंग पर ही चाय नाश्ता करने लगते हैं, ये आदत सेहत के लिहाज से बहुत खराब होती है। सुबह को उठते ही या फिर ब्रह्म मुहूर्त में भूलकर भी भोजन नहीं करना चाहिए। इससे बीमारियां घेरने लगती हैं। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 206
साधक का प्रश्न ::: अगर साधक को इस जीवन में लक्ष्य प्राप्ति नहीं हो पाती तो क्या अगले जीवन में वो अपने गुरु से मिलेगा?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: हाँ मिलेगा। वो तो लिंक बन जायेगी भगवत्प्राप्ति तक। लेकिन उधार नहीं करना चाहिए। उसको लक्ष्य ये बनाना चाहिए, इसी जन्म में करना है क्योंकि उधार करने में फिर वो लापरवाही हो जाती है, अगले जन्म में। अरे! अगर अगले जन्म में ही करना है, तो ठीक है, जो है इतना ही काफी है।
ये उधार की प्रवृत्ति जो है बहुत ही डेंजरस है। एक बीमारी है लोगों की कि भजन-वजन तो बुढ़ापे की चीज है। बुढ़ापे की क्या परिभाषा है तुम्हारी? साठ वर्ष, सत्तर वर्ष, अस्सी वर्ष कितने साल तुम रहोगे ये गारण्टी है कुछ?
युवैव धर्मशीलस्यात् अनित्यं खलु जीवितम्।को हि जानात् कस्याद्य मृत्युकालोभविष्यति।।(महाभारत)
कौन जानता है कल का दिन मिले न मिले?
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 205
साधक का प्रश्न ::: हमारा अंतःकरण कितना शुद्ध है, ये हम कैसे जानें ? कोई पहचान है क्या इसकी?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: इसकी एक पहचान है। जिसका हृदय जितना अधिक शुद्ध होगा, उसका हृदय, उसका मन उतनी ही जल्दी भगवान और महापुरुष की ओर खिंच जायेगा।
भगवान और महापुरुष चुम्बक के समान हैं। चुम्बक पत्थर होता है, लोहे को खींच लेता है। तो एक चुम्बक पत्थर बीच में रख दो और चारों ओर सुइयाँ खड़ी कर दो लोहे की। तो जिस सुई में जितना अधिक शुद्धत्व होगा, वो उतनी जल्दी खिंचेगी और जिसमें जितनी गन्दगी होगी, मिलावट होगी, उतनी देर में खिंचेगी।
जितना अधिक पाप का हृदय होगा उतनी देर में वो खिंचेगा भगवान और महापुरुष के सामने। तो अंतःकरण की शुद्धि का यही प्रमाण है कि शुद्ध वस्तु को पाकर खिंच जाय। जितनी जल्दी खिंच जाय, जितने परसेंट सरेंडर हो जाय, वो ही उसका प्रमाण है कि हमारा हृदय कितना शुद्ध है, कितना पापात्मा है, गन्दा है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
भारत में ऐसा ही एक शिव मंदिर है जहा लोग फूल और दूध के साथ-साथ, झाड़ू भी भगवान शिव को समर्पित करते हैं।
पातालेश्वर मंदिर, एक छोटे से गांव सदत्बदी जो मुरादाबाद और आगरा राजमार्ग पर स्थित है। इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा होती है यहां के लोगों का मानना है कि अगर भगवान शिव को झाड़ू चढ़ाई जाये तो व्यक्ति के सभी प्रकार के त्वचा के रोग ठीक हो जाते है। सदियों पुराने इस मंदिर में वह लोग अधिक आते है जो त्वचा के रोगों से ग्रस्त है। सोमवार भगवान शिव की पूजा के लिए शुभ दिन माना जाता है इस लिए सोमवार को यहां भारी भीड़ दर्शन करने आती है।मंदिर की क्या है मान्यताइस प्राचीन शिव पातालेश्वर मंदिर में श्रद्धालु अपने त्वचा संबंधी रोगों से छुटकारा पाने और मनोकामना पूर्ण करने के लिए झाड़ू चढ़ाते हैं। आसपास के लोग बताते हैं कि यह मंदिर करीब 150 वर्ष पुराना है। इसमें झाड़ू चढ़ाने की रस्म प्राचीन काल से ही है। इस शिव मंदिर में कोई मूर्ति नहीं बल्कि एक शिवलिंग है, जिस पर श्रद्धालु झाड़ू अर्पित करते हैं। सोमवार को यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। धारणा है कि इस मंदिर की चमत्कारी शक्तियों से त्वचा के रोगों से मुक्ति मिल जाती है।इस चमत्कार के पीछे एक कहानी बताई जाती है कि गांव में कभी एक भिखारीदास नाम का एक व्यापारी रहता था, जो गांव का सबसे धनी व्यक्ति था और वह त्वचा रोग से ग्रसित था। उसके शरीर पर काले धब्बे पड़ गये थे, जिनसे उसे पीड़ा होती थी। एक दिन वह निकट के गांव के एक वैद्य से उपचार कराने जा रहा था कि रास्ते में उसे जोर की प्यास लगी। तभी उसे एक आश्रम दिखाई पड़ा। जैसे ही भिखारीदास पानी पीने के लिए आश्रम के अंदर गया वैसे ही आश्रम की सफाई कर रहे महंत के झाड़ू से उसके शरीर का स्पर्श हो गया। झाड़ू के स्पर्श होने के क्षण भर के अंदर ही भिखारीदास का दर्द ठीक हो गया। जब भिखारीदास ने महंत से चमत्कार के बारे में पूछा तो उसने कहा कि वह भगवान शिव का प्रबल भक्त है। यह चमत्कार उन्हीं की वजह से हुआ है। भिखारीदास ने महंत से कहा कि उसे ठीक करने के बदले में सोने की अशर्फियों से भरी थैली स्वीकार करे। किन्तु महंत ने अशर्फी लेने से इंकार करते हुए कहा कि वास्तव में अगर वह कुछ लौटाना चाहते हैं तो आश्रम के स्थान पर शिव मंदिर का निर्माण करवा दें। कुछ समय बाद भिखारीदास ने वहां पर शिव मंदिर का निर्माण करवा दिया। धीरे-धीरे मान्यता हो गई कि इस मंदिर में दर्शन कर झाड़ू चढ़ाने से त्वचा के रोगों से मुक्ति मिल जाती है। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 204
साधक का प्रश्न ::: हम श्री राम की उपासना करते हैं। श्री कृष्ण की उपासना से इष्ट तो नहीं बदल जाएंगे?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: कुछ लोग कहते हैं कि हम राम के उपासक हैं। श्रीकृष्ण की उपासना तो करना चाहते हैं, इष्ट बदल जाने का भय है। बड़े ही खेद की बात है कि वे लोग इतना भी नहीं समझते कि एक ही पति को कई पोशाक में देखना, स्त्री के लिये पाप या व्यभिचार तो नहीं सिद्ध होता।
देखो, भगवान शंकर से बड़ा कौन राम-भक्त होगा, जो कृष्णावतार में अवतार होते ही नन्द जी के द्वार पर श्रीकृष्ण के दर्शनार्थ आ धमके, तथा महारास में भी पहुँच गये। इतना ही नहीं, रामावतार के समस्त परिकर कृष्णावतार में आये थे। उदाहरणार्थ; लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, क्रमशः बलराम, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध बनकर तथा सीताजी राधा बन कर, हनुमान जी युद्ध के समय पताका में ही रहकर, जाम्बवंत ने श्रीकृष्ण से घोर युद्ध कर, जनकपुर की स्त्रियाँ गोपी बनकर एवं शूर्पणखा कुब्जा बन कर, रावण भी शिशुपाल बनकर, इत्यादि समस्त रामावतार के परिकर कृष्णावतार में अवतरित हुये थे।
किन्तु यह बात अवश्य है कि कृष्णावतार की प्रेम-लीलायें विशेष मधुर हैं, जिसे रामावतार में राम से ही लोगों ने मांगी थी, अतएव, वह कृष्ण प्रेम-लीला सिद्धांततः राम-लीला ही है।
फिर भी साधक की स्वेच्छा पर निर्भर है। राम की त्रेतावतार की, अथवा राम की ही द्वापरावतार की, जिस अवतार की भी लीला, साधक को प्रिय हो, उसी का अवलंबन कर ले। उसके मस्तिष्क का कीड़ा (इष्ट बदलने वाल कीड़ा) आगे चल कर अपने आप झड़ जायगा। जिसको गहरी प्रेम-मदिरा छाननी हो, उसे कृष्णावतार की ही रामलीला का अवलंबन ग्रहण करना होगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - सोते वक्त सपने तो हम सभी देखते हैं लेकिन कई बार हमें सुबह उठने के बाद भी अपने सपने याद रहते हैं तो कई बार हम उन्हें भूल चुके होते हैं. कुछ सपने बेहद अजीब होते हैं जिनका हमें लगता है कि हमारे जीवन से कोई लेना देना नहीं है. कुछ सपने अच्छे होते हैं तो वहीं कुछ सपने बुरे जो हमें नींद में भी डरा देते हैं. स्वप्न शास्त्र की मानें तो हर सपने का एक मतलब होता है और वे आने वाले समय में शुभ और अशुभ घटनाओं का संकेत भी देते हैं. आज हम आपको ऐसे सपनों के बारे में बता रहे हैं जिनसे आपको धन लाभ हो सकता है. जी हां, सपने में कुछ विशेष चीजों के दिखने का मतलब है कि माता लक्ष्मी आप पर मेहरबान होने वाली हैं और आपका भाग्य खुलने वाला है.सपने में पैसा दिखनास्वप्न शास्त्र के साथ ही ज्योतिष शास्त्र में भी सपने में पैसा दिखना बेहद शुभ माना जाता है. अगर कोई व्यक्ति सपने में पैसा देखता है, दूसरों से पैसा लेते हुए दिखता है, सपने में कागज के नोट देखता है या फिर सिक्के देखता है तो इसका मतलब है कि आने वाले समय में उसे निश्चित तौर पर धन लाभ होने वाला है और बिना ज्यादा मेहनत किए ही उसे बहुत सारा पैसा मिलने वाला है.सपने में फूल का दिखनास्वप्न शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र की मानें तो अगर किसी व्यक्ति को सपने में सफेद या लाल रंग के कमल का फूल दिखता है तो इसका मतलब है कि उसे आने वाले दिनों में धन लाभ होने वाला है. इसके अलावा चमेली, गुलमोहर, केतकी या केसर का फूल भी अगर सपने में दिखाई तो यह इस बात का संकेत है कि भविष्य में व्यक्ति को धन-संपत्ति की प्राप्ति होने वाली है.सपने में पशुओं का दिखनाअगर किसी व्यक्ति को सपने में सफेद गाय, सफेद सांप, सफेद घोड़ा, हाथी, कस्तूरी मृग, बैल या बिच्छू आदि दिखे तो इसे भी धन आगमन का संकेत माना जाता है. सपने में इन पशुओं के दिखने का मतलब है कि भाग्य आपका पूरा साथ देने वाला है और आपको अचानक से किसी माध्यम से खूब सारा पैसा मिलने वाला है.सपने में मिट्टी के बर्तन दिखनासपनों का अर्थ समझाने वाले स्वप्न शास्त्रियों की मानें तो अगर किसी व्यक्ति को मिट्टी का बर्तन, कलश, पानी से भरा घड़ा या कोई और खाली बर्तन नजर आए तो इसे बेहद शुभ और सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. ऐसा सपना ये संकेत देता है कि उस व्यक्ति को शीघ्र ही अपार धन संपत्ति मिलने वाली है और भूमि का लाभ होने वाला है.सपने में फलों को दिखनाअगर किसी व्यक्ति को सपने में फलों से लदा हुआ कोई पेड़ दिखे, आम का बगीचा दिखे, आंवला, अनार, सेब, नारियल आदि फल दिखें या फिर हाथों से फल टपकता हुआ दिखे तो यह भी धन प्राप्ति का संकेत हो सकता है. सपने में फलों को देखने का मतलब है कि आप जल्द ही अमीर बनने वाले हैं और अचानक कहीं से धन लाभ हो सकता है.
- आपने इस बात पर जरूर गौर किया होगा कि जब भी हम मंदिर जाते हैं तो ईश्वर का दर्शन करने के बाद मंदिर के चारों ओर प्रदक्षिणा करते हैं. प्रदक्षिणा का अर्थ है परिक्रमा करना. सिर्फ मंदिर के ही नहीं बल्कि कई लोग पवित्र वृक्ष के चारों ओर भी परिक्रमा करते हैं, कई लोग यज्ञशाला की परिक्रमा करते हैं और मंदिरों के साथ ही गुरुद्वारे में भी कई लोग पवित्र ग्रंथ के चारों ओर चक्कर लगाते हैं और परिक्रमा करते हैं. इसके अलावा सूर्य देव को जल अर्पित करने के बाद भी कई लोग परिक्रमा करते हैं. आपने भी मंदिर में कभी न कभी ऐसा जरूर किया होगा लेकिन शायद ऐसा करने के पीछे वजह क्या है, इस पर गौर नहीं किया होगा.परिक्रमा से प्राप्त होती है सकारात्मक ऊर्जा-------धर्म शास्त्रों और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब कोई व्यक्ति किसी मंदिर, भगवान की मूर्ति या शक्ति स्थान के चारों ओर चक्कर लगाकर परिक्रमा करता है तो इससे सकारात्मक ऊर्जा व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करती है. इससे न सिर्फ उस व्यक्ति के जीवन में शुभता आती है बल्कि वह सकारात्मक ऊर्जा उसके साथ ही उस व्यक्ति के घर में भी प्रवेश करती है जिससे घर में सुख-शांति आती है. इसके अलावा पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब गणेश जी और कार्तिकेय के बीच संसार का चक्कर लगाने की प्रतिस्पर्धा हुई तब गणेश जी ने शिवजी और माता पार्वती की 3 बार परिक्रमा की थी. इसी वजह से आम श्रद्धालु भी मंदिर में पूजा के बाद सृष्टि के निर्माता की परिक्रमा करते हैं. साथ ही मंदिर या किसी शक्ति स्थान की परिक्रमा करने से मन शांत होता है और जीवन में खुशियां आती हैं.इस दिशा में परिक्रमा लगानी चाहिए------अगर आप मंदिर या किसी शक्ति स्थान की सकारात्मक ऊर्जा को बेहतर तरीके से ग्रहण करना चाहते हैं तो आपको घड़ी की सुई की दिशा में (Clockwise) नंगे पांव परिक्रमा लगानी चाहिए. अगर परिक्रमा करते वक्त आपके कपड़े गीले हों तो इससे आपको और अधिक लाभ हो सकता है. कई मंदिरों में आपने लोगों को जलकुंड में स्नान करने के बाद गीले कपड़ों में ही मंदिर की परिक्रमा करते देखा होगा. इसका कारण ये है कि ऐसा करने से उस पवित्र स्थान की ऊर्जा को अच्छे तरीके से ग्रहण किया जा सकता है.कितनी बार करनी चाहिए परिक्रमा------ देवी मां के मंदिर की 1 परिक्रमा करनी चाहिए- भगवान विष्णु और उनके सभी अवतारों की 4 परिक्रमा करनी चाहिए- गणेश जी और हनुमान जी की 3 परिक्रमा करनी चाहिए- शिवजी की आधी परिक्रमा करनी चाहिए क्योंकि शिवजी पर किए गए अभिषेक की धारा को लाघंना शुभ नहीं होता- पीपल के पेड़ की 11 या 21 परिक्रमा करनी चाहिए
- वास्तु शास्त्र में बहुत सारी ऐसी चीजों के बारें में बताया गया है जिनका अगर सही प्रकार से प्रयोग किया जाए तो आप कई समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं। दर्पण और घंटी ये तीन ऐसी चीजें हैं जिनका प्रयोग वास्तु के अनुसार करके आप न केवल वास्तु दोष बल्कि कई समस्याओं से छुटकारा पाकर अपने जीवन को खुशहाल और संपन्न बना सकते हैं। तो चलिए जानते हैं दर्पण और घंटी के अनोखे प्रयोग जो बदल सकते हैं आपकी किस्मत...वास्तु दोष दूर करने के लिए दर्पण का प्रयोगदर्पण केवल चेहरा देखने के काम ही नहीं आता है, वास्तु के हिसाब से इसका प्रयोग करके आप सुख-समृद्धि पा सकते हैं। यदि आपके घर का उत्तर-पूर्व कोना कटा हुआ है जिसके कारण वास्तु दोष उत्पन्न हो रहा है तो उस दिशा में दर्पण को इस प्रकार से लगाएं कि उसमें उस कोने का प्रतिबिंब इस तरह से बने की दिशा बढ़ती हुई नजर आए। इससे उस दिशा का वास्तु दोष दूर हो जाता है।वहीं मुख्य द्वार के सामने यदि कोई खंभा, पेड़, किसी मकान का कोना, कूड़, खंडहर हो तो आपको धन संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसा होने से घर में तरक्की और धन के आगमन में बाधा आती हैं इस समस्या को दूर करने के लिए मुख्य द्वार की चौखट के ऊपर एक गोल दर्पण लगा दें। इससे घर के अंदर प्रवेश करने वाली नकारात्मक ऊर्जा दर्पण से टकराकर वापस चली जाती है। ऐसा करने से घर में धन की समस्याएं दूर होती हैं।घंटी का ऐसे करें प्रयोगघर में पूजा करते समय और मंदिर में घंटी अवश्य बजाई जाती है। जिससे वातावरण में चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होने लगता है। प्रतिदिन प्रात:काल उठकर स्नान करने के पश्चात पूजा स्थान के साथ पूरे घर और मुख्य द्वार पर घंटी बजानी चाहिए। इससे आपके घर से सभी नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं।यदि आपके घर में तीन दरवाजे एक ही सीध में बने हो तो वास्तु दोष उत्पन्न होता है। इसे दूर करने के लिए दरवाजे में एक छोटी सी घंटी लटका दें। इसी तरह से यदि आपका बच्चा पढ़ाई में कमजोर है तो जब भी आपका बच्चा पढ़ाई करने के लिए बैठे तो उसकी टेबल के पास कुछ देर तक घंटी से ध्वनि करें। इससे उस स्थान की नकारात्मक ऊर्जा दूर होगी और आपके बच्चे का मन पढ़ाई के प्रति एकाग्र होगा।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 203
साधक का प्रश्न ::: क्या अजामिल को अपने बेटे का नाम नारायण कहकर मरने से भगवत्प्राप्ति हुई ?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: कोई जीव भगवान का ध्यान करते हुये या नाम लेते हुये मरता है तो उसे भगवत्प्राप्ति होती है। उसमें ध्यान मुख्य है।
(1) उपरोक्त सिद्धान्त के अनुसार अजामिल को भगवत्प्राप्तिनहीं हो सकती क्योंकि उसने अपने बेटे का नाम लिया व बेटे का ही स्मरण किया।
(2) कोई भी जीव जिसने भगवत्प्राप्ति नहीं की है वो मरने के अंतिम समय में भगवान का नाम नहीं ले सकता है क्योंकि मरने में इतना अधिक कष्ट होता है कि वह नाम आदि ले ही नहीं सकता है। उदाहरणार्थ जब एक व्यक्ति को लाठी मारी जाती है, तब वह पहली लाठी बर्दाश्त कर लेता है। दूसरी लाठी लगने पर उसे चक्कर आने लगता है तथा तीसरी लाठी लगने पर वह बेहोश हो जाता है। मतलब जैसे-जैसे उसका कष्ट बढ़ता जाता है वह कष्ट सहने की सीमा समाप्त होकर बेहोश हो जाता है, यानी बेहोश होने से पूर्व तक जीव कष्ट सहन करने की शक्ति रखता है। अब जब कष्ट नहीं सह सका तब वह बेहोश हो जाता है, मरता नहीं। लेकिन जब पाँच-छः लाठी पड़ी तब वह सातवीं लाठी में मर गया। अर्थात यह सिद्ध हुआ कि मृत्यु के समय बेहोशी में ही नहीं बोल सकता तो मृत्यु समय किस प्रकार से भगवान या संसार का नाम उच्चारण कर सकता है। इसलिए गोस्वामी तुलसीदास ने बालि के प्रकरण में बालि के मुख से कहलाया है;
कोटि कोटि मुनि जतन कराहीं।अंत राम कहि आवत नाहीं॥यहाँ तुलसीदास जी ने मुनि के लिए लिखा है जो अपनी मन-बुद्धि पर पूर्ण कंट्रोल कर चुके होते हैं। सभी प्रकार की सिद्धियों का अधिकार होता है और माया उन पर हावी नहीं हो पाती, परन्तु भगवत्प्राप्ति नहीं हुई होती है। ऐसे लोग भी करोड़ों प्रयत्न करके भी अंत समय में भगवान का नाम नहीं ले पाते, तब कोई साधारण जीव किस प्रकार से अंत समय में भगवन का नाम ले सकता है?
हाँ केवल मृत्यु से पहले जिसको भगवत्प्राप्ति हो जाती है, वह जीव कष्ट का अनुभव नहीं करता एवं वह अपने शरीर को इच्छानुसार छोड़ता है। इसलिए वह भगवान का नाम अंत समय में ले सकता है। अजामिल को पूर्व में भगवत्प्राप्ति नहीं हुई थी। अतः वह अंत समय में भगवान का नाम तो क्या अपने बेटे का नाम भी नहीं ले सका होगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
वास्तु शास्त्र के अनुसार हर चीज का एक निर्धारित स्थान तय है। यदि इस बात का ध्यान न रखा जाए तो घर का वातावरण प्रभावित होता है. जानकारी के अभाव में हम समझ ही नहीं पाते हैं कि आखिर समस्या कहां से आ रही है. इसलिए इन बातों को ध्यान में रखना बहुत ही जरूरी है.
घर में शू रैक कभी भी मुख्य दरवाजे के पास नहीं होनी चाहिए. इससे नकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है. इतना ही नहीं इससे धन की हानि भी होती है. धन संबंधी परेशनी घर में बनी ही रहती है. धन का व्यय होता है. यानि चाहकर भी धन की बचत नहीं होती है. वास्तु शास्त्र के अनुसार शू रैक घर में ऐसे स्थान पर होनी चाहिए जहां पर आने जाने वालों की नजर न पड़े.
शू रैक की दिशा के बारे में वास्तुशास्त्र में बताया गया है. इसके अनुसार आप भी घर में शू रैक का उचित स्थान निर्धारित कर सकते हैं. वास्तु शास्त्र के मुताबिक दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम, उत्तर-पश्चिम या फिर पश्चिम दिशा जूता-चप्पलों के लिए अच्छी मानी गई है. शू रैक को हमेशा कवर से ढक कर रखें. शू रैक खुली होने से भी गलत परिणाम सामने आते हैं. इसलिए इसे ढक कर रखने की सलाह दी जाती है.
जॉब या इंटरव्यू के लिए बाहर जा रहे हैं तो कोशिश करें कि जूता नया हो. फटा जूता पहन कर जाने से गलत प्रभाव पड़ता है. इसके साथ ही ऑफिस में काले रंग के जूते पहने की भी जानकार सलाह देते हैं. ऐसा माना जाता है कि भूरे रंग के जूते पहनने से कार्यों को पूर्ण करने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है. इसके साथ ही स्वयं के जूतों और चप्पलों को इधर-उधर नहीं फेंकना चाहिए, ऐसा करने छिपे हुए शत्रु हावी होने की कोशिश करते हैं। - श्वेत हाथियों के द्वारा स्वर्ण कलश से स्नान करती हूई कमलासन पर विराजमान देवी महालक्ष्मी के पूजन से वैभव और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। यदि घर में हमेशा दरिद्रता बनी रहती है और किस्मत साथ नहीं दे रही है तो अपने घर या ऑफिस में श्री महालक्ष्मी यंत्र की स्थापना करनी चाहिए। इस यंत्र को सर्व सिद्धिदाता, धनदाता या श्रीदाता कहा जाता है। मान्यता है कि इस यंत्र को स्थापित करने से देवी कमला की प्राप्ति होती है और जीवनभर के सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती हैं।वहीं इस यंत्र से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी है, जिसके अनुसार एक बार लक्ष्मी जी पृथ्वी से बैकुंठ धाम चली गईं, इससे पृथ्वी पर संकट आ गया। तब महर्षि वशिष्ठ ने महालक्ष्मी को धरती पर वापस लाने के लिए और प्राणियों के कल्याण के लिए श्री महालक्ष्मी यंत्र को स्थापित किया और उसकी साधना की। इस यंत्र की साधना से लक्ष्मी जी पृथ्वी पर प्रकट हो गईं।महालक्ष्मी यंत्र के लाभ-धन संबंधी सारी समस्याओं से निजात पाने के लिए आपको श्री महालक्ष्मी यंत्र को स्थापित करना चाहिए।-यदि आप पर कर्ज है और आप उसे चुका नहीं पा रहे हैं तो आपको अपने कार्यस्थल पर इस यंत्र को प्रतिष्ठित करना चाहिए।-धन के साथ -साथ स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से निजात पाने के लिए भी आप इस यंत्र को रोगी के कमरे में स्थापित कर सकते है। इससे मरीज के स्वास्थ्य में जल्द ही सुधार होने लगता हैं।-इस यंत्र को स्थापित करने से यदि आपके व्यापार में घाटा हो रहा है तो खत्म होने के आसार हैं।-श्री महालक्ष्मी यंत्र को प्रतिष्ठित करने से लक्ष्मी मां का आशीर्वाद प्राप्त होता है और वह स्थाईरूप से निवास करने लगती हैं।ध्यान रखने योग्य बातेंश्री महालक्ष्मी यंत्र को दीपावली, धनतेरस, रविपुष्य, अभिजीत मुहूर्त या किसी शुभ मुहूर्त में स्थापित करना चाहिए। इस यंत्र की आकृति विचित्र होती हैं और इस यंत्र में जो भी अंक या आकृतियां बनी होती हैं उनका संबंध किसी न किसी देवी-देवता से जरूर होता है। इस यंत्र को श्रीयंत्र के पास रखने से सभी कार्य सफलतापूर्वक पूर्ण हो जाते हैं। इस यंत्र को खरीदते वक्त ध्यान रखना चाहिए कि यह विधिवत बनाया गया हो और प्राण प्रतिष्ठित हो। प्राण प्रतिष्ठा करवाए बिना इस यंत्र का विशेष लाभ प्राप्त नहीं होता है। श्री महालक्ष्मी यंत्र को खरीदने के पश्चात किसी अनुभवी ज्योतिषी द्वारा अभिमंत्रित करके उसे घर की सही दिशा में स्थापित करना चाहिए। अभ्यस्त और सक्रिय महालक्ष्मी यंत्र को शुक्रवार के दिन स्थापित करना चाहिए।स्थापना विधिश्री महालक्ष्मी यंत्र को स्थापित करने के लिए कार्तिक अमावस्य़ा का दिन शुभ माना जाता है। यंत्र स्थापना से पूर्व सबसे पहले प्रातकाल उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर इस यंत्र को पूजन स्थल पर रखकर इस यंत्र के आगे दीपक जलाएं और इस पर फूल अर्पित करें। तत्पश्चात इस यंत्र को गौमूत्र, गंगाजल और कच्चे दूध से शुद्ध करें और 11 या 21 बार "ऊं ह्रीं ह्रीं श्रीं ह्रीं ह्रीं फट्।।" बीज मंत्र का जाप करें। उसके बाद इस यंत्र को स्थापित करने के बाद इसे नियमित रूप से धोकर दीप-धूप जलाकर ऊं महालक्ष्मयै नम: मंत्र का 11 बार जाप करें और लक्ष्मी माता से प्रार्थना करे वह आप पर कृपा बरसाती रहें। इस यंत्र को स्थापित करने के पश्चात इसे नियमित रूप से धोकर इसकी पूजा करें ताकि इसका प्रभाव कम ना हो। यदि आप इस यंत्र को बटुए या गले में धारण करते हैं तो स्नानादि के बाद अपने हाथ में यंत्र को लेकर उपरोक्त विधिपूर्वक इसका पूजन करें। यदि आप इस यंत्र से अत्यधिक फल प्राप्त करना चाहते हैं तो महालक्ष्मी यंत्र की रचना चांदी, सोने और तांबे के पत्र पर करवा सकते हैं।श्री महालत्र्मी यंत्र का बीज मंत्र - ओम श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ओम श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 202
साधक का प्रश्न ::: आप कहते हैं, भगवद्चिंतन करो। जब तक आपकी कृपा न हो तो चिंतन कैसे हो ? हम तो बड़ी कोशिश करते हैं लेकिन होता नहीं।
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: अगर भगवान या महापुरुष कृपा कर दें कि सबका भगवद्चिंतन होने लगे, तो ये संसार ही क्यों रहता!! किसी को कुछ करने के लिए वेद-पुराण आदेश क्यों देते कि तुम ऐसा करो, ऐसा करो, ऐसा न करो। भगवान ही सोच लेते, कृपा कर देते तो सब जीवों का कल्याणा हो जाता। और संत भी अनंत हुये हैं - तुलसी, सूर, मीरा, कबीर, नानक, तुकाराम; ये लोग कृपा क्यों नहीं कर दिये कि हम सब लोगों का कल्याण हो जाता!!
उनकी कृपा यही है कि हमको सही मार्ग बता दें। उसके बाद उस पर चलना, ये कृपा हम लोगों को करनी पड़ेगी। ये कृपा भगवान और महापुरुष नहीं करेंगे। उनके पास और है क्या, कृपा के सिवा। वो तो कृपा ही करते है, उनकी कृपा को रियलाइज़ करना ये हमारा काम है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
वास्तु के अनुसार घर में चीजों का सही प्रकार से व्यवस्थित रूप से रखा होना बहुत आवश्यक माना जाता है। घर को व्यवस्थित रखने से देखने में तो अच्छा लगता ही है, इसके अलावा घर में सकारात्मकता भी बनी रहती है। वास्तु के अनुसार आवश्यकता से अधिक फालतू और खराब सामान घर में नकारात्मकता को बढ़ाता है। वास्तु में ऐसी ही कुछ चीजों के बारे में बताया गया है, जिन्हें घर में रखना बहुत ही अशुभ माना जाता है। इन चीजों के आपके घर में होने से परिवार के सदस्यों की तरक्की और समृद्धि में बाधा आती है। तो चलिए जानते हैं कि वास्तु के अनुसार किन चीजों को घर में नहीं रखना चाहिए।
बंद पड़ी हुई घडिय़ां-
घड़ी हमें समय बताती है और निरंतर चलती रहती है। चूंकि घड़ी समय की सूचक है इसलिए वास्तु में घड़ी को तरक्की और उन्नति का सूचक माना गया है। जहां सही घड़ी आपको जीवन में आगे ले जाती हैं। तो वहीं घर में बंद घडिय़ां आपकी तरक्की में बाधा बनती हैं। यही कारण है कि वास्तु में बंद पड़ी घडिय़ों को घर में रखने को मना किया जाता है। माना जाता है कि घर में बंद पड़ी हुई घडिय़ों के कारण आपका भाग्य भी खराब होने लगता है।बंद पड़े ताले-ज्यादातर लोग घर में ताले को बंद करके लटका देते हैं या फिर खराब हो जाने के बाद भी घर में ही रखे रहने देते हैं, लेकिन यह सही नहीं होता है। घर में बदं, खराब या जंग लगे हुआ ताले कभी नहीं रखने चाहिए। ये आपकी तरक्की में तो रूकावट लाते ही हैं साथ ही विवाह होने में भी दिक्कते आती हैं।आवश्यकता से अधिक जूते-चप्पल-जूते-चप्पल केवल आपके पैरों को धूप गर्मी और सर्दी से सुरक्षा नहीं करते हैं ये आपके जीवन में संघर्ष में भी साथ होते हैं। वास्तु के अनुसार घर में आवश्यकता से अधिक जूते-चप्पल या खराब पड़े हुए जूते-चप्पल आपके घर में नकारात्मकता को बढ़ाते हैं। खराब या फटे हुए जूते-चप्पलों के कारण आपके जीवन में संघर्ष बढ़ता है। यदि आपके घर में आवश्यकता से अधिक जूते हैं तो खराब जूतों को फेंक दें और उपयोग लायक जूतों को जरूरतमंदों को बांट दें। इस कार्य को करने के लिए शनिवार का दिन उत्तम रहता है।फटे-पुराने कपड़ेकपड़े किसी भी व्यक्ति की तरक्की में अहम भूमिका रखते हैं। कपड़ों का संबंध भाग्य से माना जाता है। घर में खराब फटे-पुराने कपड़े रखना सही नहीं रहता है। ये आपके दुर्भाग्य को बढ़ाते हैं। यदि घर में पुराने कपड़े हैं तो उन्हें बांट दें और खराब कपड़ों को किसी कार्य में उपयोग में ले लें तो ही बेहतर रहता है।देवी-देवताओं की पुरानी खंडित तस्वीरें और प्रतिमाएंघर या घर के मंदिर में ज्यादा पुरानी खंडित या कटी-फटी तस्वीरें नहीं रखनी चाहिए। इससे पूजा करते समय आपका ध्यान भटकता है, जिससे आप एकाग्र होकर भगवान की पूजा नहीं कर पाते हैं। खंडित मूर्तियां भी आपके घर में नकारात्मकता को बढ़ाती हैं। इससे आपकी समृद्धि में रूकावट आती है। समय-समय पर घर में रखी प्रतिमाओं को बदलते रहना चाहिए। पुरानी प्रतिमाओं को मिट्टी में दबा देनी चाहिए या फिर बहते जल में प्रवाहित कर देना चाहिए। यदि मूर्ति या तस्वीरों को बनाने में किसी प्रकार के रसायन का प्रयोग किया गया हो तो उसे नदी में न बहाएं। - हरिद्वार (उत्तराखंड) । हरिद्वार में कुंभ मेला अब 28 दिन का होगा। साधु संतों से बातचीत के बाद प्रदेश सरकार ने यह निर्णय लिया है। जल्द ही कुंभ मेले की अधिसूचना जारी हो जाएगी। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने यह जानकारी मीडिया को दी है।गुरुवार को मीडिया से बातचीत में मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने कुंभ मेले के संबंध में स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर (एसओपी) यानी मानक प्रचालन प्रक्रिया जारी की थी। उच्च न्यायालय ने भी राज्य सरकार को कोविड-19 महामारी के संबंध में आदेश दिए थे। राज्य सरकार को कुंभ की अवधि सीमित करने के लिए कहा गया था। इस संबंध में साधु संतों से बातचीत करने के बाद यह निर्णय लिया गया है कि कुंभ एक अप्रैल से 28 अप्रैल तक होगा। इसकी अधिसूचना जारी हो जाएगी।इस साल 12 नहीं 11 साल में ही मनाया जा रहा कुंभहरिद्वार में इस बार कुंभ वैसे भी 11 साल के बाद हो रहा है। वैसे कुंभ 12 साल बाद होता है। अब से पहले हरिद्वार में आयोजित कुंभ चार माह से अधिक समय का होता रहा है।कुंभ 2021 के मुख्य स्नान11 मार्च पहला शाही स्नान12 अप्रैल सोमवती अमावस्या14 अप्रैल मेष संक्रांति27 अप्रैल वैशाख पूर्णिमा- तीनों बैरागी अणियों दिगंबर, निर्मोही और निर्वाणी के हजारों बाबाओं, खालसों का आगमन 25 मार्च से शुरू हो जाएगा।बच्चों और महिलाओं के लिए खुलेगा सहायता केंद्रहरिद्वार में महाकुंभ के दौरान बच्चों और महिलाओं की सहायता के लिए सहायता केंद्र बनाए जाएंगे। महिला कल्याण विभाग के जिला प्रोबेशन अधिकारी ने बृहस्पतिवार को सीसीआर भवन में मेलाधिकारी दीपक रावत से मुलाकात की। सहायता केंद्र के लिए स्थान उपलब्ध कराने की मांग की।अधिकारियों ने बताया कि सहायता केंद्र की प्रमुख अवधारणा चाइल्ड फ्रेंडली, जीरो चाइल्ड मिसिंग, जीरो चाइल्ड लेबर, महिला फ्रेंडली है। केंद्र में छह वर्ष तक के बच्चों और महिलाओं के लिए विशेष व्यवस्था रहेगी। यदि कोई महिला गंगा में स्नान करना चाहती है तो अपने छह साल तक के बच्चे को केंद्र में रख सकती है। उसके बच्चे की पूरी देखरेख एवं पौष्टिक भोजन की व्यवस्था केंद्र की होगी। केंद्र में कन्नड़, मलयालम, गुजराती समेत कई भाषाओं को जानने वाले स्वयंसेवक होंगे।यह लोग बच्चों और महिलाओं से उनकी ही भाषा में बातचीत कर उनकी समस्याओं का समाधान भी करेंगे। मेलाधिकारी ने केंद्र स्थापित करने के लिए स्थान और फर्नीचर समेत अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया। इस दौरान अपर मेलाधिकारी रामजी शरण शर्मा, महिला कल्याण विभाग के जिला प्रोबेशन अधिकारी अविनाश सिंह भदौरिया, महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग की जिला कार्यक्रम समन्वयक दुर्गा चमोली आदि मौजूद रहे।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 201
(साधक अपनी साधना की उन्नति के लिये जो प्रयत्न करता है, उसे कुसंग की अग्नि भस्म कर देती है. समस्त कुसंगों में परदोष-दर्शन भयानक है, क्यों और साधक क्या करे, जानिये जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीवचनों से...)
परदोष-दर्शन भी घोर कुसंग है, क्योंकि परदोष-दर्शन से दो हानि है। एक तो यह कि परदोष-दर्शनकाल ही में स्वाभाविक-रूप से स्वाभिमान-वृद्धि होती है, जो कि साधक के लिये तत्क्षण ही पतन का कारण बन जाती है। दूसरे यह कि परदोष-चिन्तन करते हुये शनैःशनैः बुद्धि भी दोषमय हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप उन्हीं सदोष विषयों में ही प्रवृत्ति होने लगती है, अतएव सदोष कार्य होने लगता है।
फिर जब संसारमात्र ही सदोष है, तो हम कहाँ तक दोषचिन्तन करेंगे? आश्चर्य तो यह है कि मूर्ख, मूर्ख को, मूर्ख क्यों कहता है? वह भी तो स्वयं मूर्ख है। यदि यह कहो कि क्या करें, दोष-दर्शन का स्वभाव सा बन गया है, तो हमें कोई आपत्ति नहीं, तुम दोष देख सकते हो, किन्तु दूसरों के नहीं, अपने ही दोष क्या कम हैं? अपने दोषों को देखने में तुम्हारा स्वभाव भी न नष्ट होगा, तथा साथ लाभ भी होगा, वह महान् लाभ तुलसी के शब्दों में;
जाने ते छीजहिं कछु पापी..
अर्थात् अपने दोष जान लेने पर कुछ न कुछ बचाव हो जाता है, क्योंकि फिर वह जीव उससे बचने का कुछ न कुछ अवश्य प्रयत्न करता है। मेरी राय में तो परदोष-चिन्तन करना ही स्वयं के सदोष होने का पक्का प्रमाण है, अन्यथा भला उसको इन बातों से क्या अभिप्राय है?
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - गुप्त नवरात्रि हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होता है। गुप्त नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा की सात्विक और तांत्रिक विधि से पूजा-अर्चना की जाती है। माघ गुप्त नवरात्रि 12 फरवरी (शुक्रवार) से शुरू हो चुके हैं जो 21 फरवरी समाप्त होगी। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, गुप्त नवरात्र साल में दो बार आते हैं। पहले गुप्त नवरात्र अषाढ़ के महीने में और दूसरे माघ के महीने में। गुप्त नवरात्रि के दौरान गुप्त रूप से मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। गुप्त नवरात्रि के पीछे यह विचार प्रचलित है कि इस दौरान मां दुर्गा की गुप्त रूप से पूजा की जाती है। ऐसा करने से पूजा का फल कई गुना ज्यादा मिलता है।गुप्त नवरात्रि के दौरान करें ये उपाय-1. गुप्त नवरात्रि में मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए पूजा के दौरान कमल का फूल चढ़ाएं। अगर आपके पास कमल का फूल नहीं है तो गुप्त नवरात्रि में अपने घर कमल के फूल वाली कोई तस्वीर भी लगा सकते हैं। कहते हैं कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।2. गुप्त नवरात्रि में धन और समृद्धि की प्राप्ति के लिए चांदी या सोने का सिक्का घर पर लाने से बरकत आती है। मान्यता है कि मां लक्ष्मी प्रसन्?न होकर सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।3. अगर आपके घर में कोई व्यक्ति काफी समय से बीमार है तो गुप्त नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा को लाल रंग के पुष्प अर्पित करें। इसके साथ ही ऊं क्रीं कालिकायै नम:, मंत्र का जप करें। कहते हैं कि ऐसा करने मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।4. गुप्त नवरात्रि के दौरान कर्ज से भी मुक्ति पा सकते हैं। गुप्त नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के समक्ष गुग्गल की सुगंध वाली धूप जलाएं। कहते हैं कि ऐसा करने से कर्ज से मुक्ति मिलती है।5. नवरात्र में मोरपंख को घर में लाना भी बहुत शुभ माना जाता है। मां लक्ष्मी की सवारी में से एक मोर भी होता है। मोर पंख को घर पर लाने से आपके घर में मां लक्ष्मी की कृपा भी आती है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 200
(प्रेम के अर्थ और स्वरूप की व्याख्या आचार्य श्री की वाणी में यहाँ से पढ़ें....)
प्रेम... प्रेम शब्द का अर्थ होता है;
सर्वथा ध्वंसरहितम् सत्यपि ध्वंस कारणे।यद्भवावबन्धनं यूनोः सः प्रेमा परिकीर्तितः॥(भक्तिरसामृतसिन्धु)
ये परिभाषा भक्तिरसामृतसिन्धु में महारासिकों ने की है कि प्रेम के नष्ट होने का कारण हो फिर भी प्रेम नष्ट न हो, उसको प्रेम कहते हैं। हमारे संसार में जितना प्रेम है ये स्वार्थ पर डिपेंड करता है। हमारे स्वार्थ की सिद्धि जितनी लिमिट में, जहाँ होने की आशा होती है उतनी लिमिट में वहाँ मन का प्यार हो जाता है। नैचुरल।
अगर हमें आशा है सेंट परसेंट स्वार्थ सिद्ध होगा तो सेंट परसेंट प्रेम ले लो और अगर दूसरे दिन फिफ्टी परसेंट आशा रह गई, तो प्रेम घट के फिफ्टी परसेंट हो गया। तीसरे दिन अगर ऐसा आभास हुआ कि यहाँ कुछ स्वार्थ सिद्ध नहीं होगा तो प्रेम जीरो पर आ गया। ये माँ, बाप, बेटा, स्त्री, पति सबका प्यार इसी प्रकार अप-डाउन, अप-डाउन दिन भर होता रहता है।
तो संसार में प्रेम नहीं हो सकता। क्योंकि वो स्वार्थ पर आधारित है और स्वार्थ तो परिवर्तनशील होता है। तो प्रेम की परिभाषा है कि प्रेम नष्ट होने का कारण हो और फिर भी प्रेम नष्ट न हो।
गौरांग महाप्रभु ने प्रेम की परिभाषा बताई, प्रैक्टिकल। उन्होंने कहा, हे श्रीकृष्ण!
आश्लिष्य वा पादरतां पिनष्टु मामदर्शनान्मर्महतां करोतु वा।यथा तथा व विदधातु लम्पटो मत्प्राणनाथस्तु स एव नापरः॥
हे श्रीकृष्ण! तुम तीन काम कर सकते हो; या तो मेरा आलिंगन कर के प्यार कर लो, या तो चक्र चला के मार दो और या न्यूट्रल हो जाओ, उदासीन हो जाओ। तुम कौन हो, हम पहचानते नहीं - ऐसे बन जाओ। हम तीनों में चैलेंज कर रहे हैं तुमको। इन तीनों में जिस अवस्था में सुख मिले वो करो। हमारे प्रेम में इन तीनों अवस्थाओं में कोई परिवर्तन नहीं होगा। वो बढ़ता जाएगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 199
(भाग्य सम्बन्धी शंकाओं पर जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा तत्वचर्चा..)
भगवान हमारे अनंत पुण्य व अनंत पापों में से थोड़ा-थोड़ा लेकर हमारे किसी एक जन्म का प्रारब्ध तैयार करते हैं और मानव जीवन के रूप में हमें एक अवसर देते हैं ताकि हम अपने आनंद प्राप्ति के परम चरम लक्ष्य को पा लें।
प्रारब्ध सबको भोगना पड़ता है। भगवद् प्राप्ति के बाद जब कोई जीव महापुरुष बन जाता है, तब भगवान उसके तमाम पिछले जन्मों के एवं उस जन्म के भी समस्त पाप-पुण्यों को तो भस्म कर देते हैं, लेकिन वे उसके उस जीवन के शेष बचे हुए प्रारब्ध में कोई छेड़छाड़ नहीं करते।
इसका अभिप्राय यह है कि भगवान को पा चुके मुक्त आत्मा संतों/भक्तों को भी अपना उस जन्म का पूरा प्रारब्ध भोगना ही पड़ता है।उसमें इतना अंतर अवश्य आ जाता है कि अब वह नित्य आनंद में लीन रहने से किसी सुख-दुःख की फ़ीलिंग नहीं करता। लेकिन फिर भी एक्टिंग में उसे सब भोगना पड़ता है। किसी के प्रारब्ध को मिटाना भगवान के कानून में नहीं है।
वे लोग बहुत भोले हैं, जो यह समझते हैं कि अमुक देवी जी, अमुक बाबा जी अपनी कृपा से मेरे कष्ट को दूर कर देंगे। या मुझे धन, वैभव, पुत्र आदि दे देंगे। जो प्रारब्ध में लिखा होगा, वह नित्य भगवान को गालियाँ देने से भी अवश्य मिलेगा। जो प्रारब्ध में नहीं लिखा होगा, वह दिन-रात पूजा पाठ करने से भी न मिलेगा।
भगवान की भक्ति करने से संसारी सामान नहीं मिला करता, जीव के प्रारब्धजन्य दुःख दूर नहीं होते, बल्कि भक्ति से तो स्वयं भगवान की ही प्राप्ति हुआ करती है। यह बात अलग है कि कोई मूर्ख अपनी भक्ति से भगवान को पा लेने पर भी वरदान के रूप में उनसे उन्हीं को न माँगकर संसार ही माँग बैठे। यहाँ यह बात भी विचारणीय है कि जिसको भगवान की प्राप्ति हो चुकी, उसके लिए प्रारब्ध के सुख-दुःख खिलवाड़ मात्र रह जाते हैं।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।



























