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- Happy Guru Purnima 2021आप सभी को 'श्री गुरु पूर्णिमा' महापर्व की अनंत अनंत शुभकामनायें!!
श्री गुरु चरणों में गोविन्द राधे,पूर्ण प्रपत्ति गुरु पूर्णिमा बता दे..(जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
आज 'गुरु-पूर्णिमा' का महानतम पर्व है। सभी पर्वों में यह महापर्व है। 'गुरु' का स्थान सर्वोच्च है। अतएव शरणागत जीव/साधक के लिये यह निश्चय ही सबसे बड़ा पर्व है। अपने गुरुदेव की कृपाओं का, प्रेम का, अपनत्व का स्मरण करके बारम्बार बलिहार जाने और उनके सिद्धान्तों का भी मनन करते हुये अपनी स्थिति का आकलन करते हुये अपने उत्थान के लिये और अधिक दृढ़ संकल्पित होकर उन सिद्धान्तों के अनुकूल चलने हेतु प्रतिबद्ध होने का महान अवसर है।
भारतवर्ष में यद्यपि अनंतानंत महापुरुष अवतरित हुये हैं। वर्ष 1922 की शरद-पूर्णिमा की शुभरात्रि में इलाहाबाद के निकट मनगढ़ नामक ग्राम में माता भगवती की गोद में एक अलौकिक महापुरुष का प्राकट्य हुआ, जिन्हें आज समस्त विश्व 'जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज' के रूप में पहचानता है। आज कौन उनकी विद्वत्ता, उनकी राधाकृष्ण के परम माधुर्य महाभाव भक्तिरस में छकी रूप माधुरी, उनकी कृपाओं और न जाने कितने ही गुणों से परिचित नहीं है। उन्होंने अपने अगाध ज्ञानसमुद्र से इस विश्व में अद्वितीय आध्यात्मिक क्रान्ति लाई और हमारे अज्ञान अंधकार को दूर कर भगवान के परमोज्जवल प्रेम और सेवा का मार्ग दिखलाया है।
'जो अज्ञान का नाश करके ज्ञान का प्रकाश कर दे'वही गुरु है, महापुरुष है!! स्वयं श्रीकृष्ण द्वारा यह घोषणा की गई है कि गुरु स्वयं भगवान का ही स्वरूप है।
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी ने समस्त शास्त्र-वेदों के वास्तविक रहस्यों को हम अबोध जनों के समक्ष सरलतम रूप में रखा और भगवत्तत्व से लेकर गुरुतत्त्व का भी विशद वर्णन किया, स्वयं भक्ति का आचरण करके आदर्श रखा, अनंत उपायों द्वारा जीवों से भक्ति कराई!! आओ श्रद्धापूर्ण हृदय से उनके महान व्यक्तित्व का दर्शन करें और अपने श्रद्धासुमन मानसिक रूप से उनके श्रीचरणों में अर्पित करें...
हे भगवती-नंदन जगदगुरुत्तम, हे कृपालु महाप्रभु !! आपका किन-किन वाणियों में हम वंदन करें, हमारे भावहीन वंदनाओं को भी अपनी कृपालुता से अपनाकर हम पर अनुग्रह कीजिये..
★ >> ब्रजभक्ति के मुक्तहस्त दाता !!
कलिमल ग्रसित जीवों को अपनी करुणा से श्री राधाकृष्ण की सर्वोच्च माधुर्यमयी ब्रजभक्ति का सिद्धांत प्रदान करने वाले, और उन्हीं रास-रासेश्वर श्रीकृष्ण एवं रास-रासेश्वरी श्रीराधारानी के ही मिलित मूर्तिमान प्रेमस्वरुप हे रसिकशिरोमणि श्री कृपालु महाप्रभु !! आपको कोटि-कोटि प्रणाम...
★ >> धाम एवं परिजनों की धन्यता
भारतवर्ष के उत्तर-प्रदेश प्रान्त के इलाहाबाद (प्रयागराज) निकट 'मनगढ़' ग्राम में शरद-पूर्णिमा (1922) की मध्यरात्रि में जिनका प्राकट्य हुआ, माँ भगवती की गोद में प्रकटे उन श्री कृपालु महाप्रभु को, जिन्होंने अपनी जन्म एवं लीलास्थली को विश्व भर में 'भक्तिधाम' के नाम से विख्यात किया, जिनकी तीनों सुपुत्रियाँ आज विश्वभर में 'गुरुभक्ति' एवं 'गुरुसेवा' की अद्वितीय आदर्श हैं, उन्हें कोटि-कोटि प्रणाम...
★ >> ऐतिहासिक उपाधियों से विभूषित
समस्त विश्व जिनकी दिव्यता के समक्ष नतमस्तक है, और इसी अनुपमेयता के फलस्वरुप जिन्हें भारतवर्ष की सर्वोच्च 500 विद्वानों की सभा 'काशी विद्वत परिषत' द्वारा 'पंचम मौलिक जगदगुरुत्तम' की उपाधि के साथ ही,- श्रीमत्पदवाक्यप्रमाणपारावारीण- वेदमार्गप्रतिष्ठापनाचार्य- निखिलदर्शनसमन्वयाचार्य- सनातनवैदिकधर्मप्रतिष्ठापनसत्सम्प्रदायपरमाचार्य- भक्तियोगरसावतारआदि ऐतिहासिक उपाधियाँ प्राप्त हुई, ऐसे अद्वितीय अलौकिक विभूति श्री कृपालु महाप्रभु !! कोटि कोटि वन्दन...
★ >> भक्ति-स्मारकों के प्राकट्य-कर्ता
भारतवर्ष में जिन्होंने 'प्रेम मंदिर' (वृन्दावन) एवं 'भक्ति मंदिर' (भक्तिधाम मनगढ़) जैसे 2 विलक्षण, अद्भुत और सुंदरतम मंदिरों को प्रकट किया, जिनकी दिव्य मार्गदर्शिता से ही विश्व का सर्वप्रथम 'कीर्ति मैया मंदिर' (श्री राधारानी की माता कीर्ति का मंदिर, बरसाना) बरसाना धाम में प्रगट हुआ, साथ ही 'प्रेम भवन' (वृन्दावन) एवं 'भक्ति भवन' (मनगढ़) जैसे विशालतम साधना भवनों को प्रकट करने वाले भक्ति के मूर्तिमान स्वरुप, श्री कृपालु महाप्रभु !! आपको कोटि कोटि प्रणाम..
★ >> ब्रजभक्ति सिद्धांत एवं साहित्यों के प्रकटकर्ता
भक्ति के गूढ़तम रहस्यों को जिन्होंने वेद, शास्त्र, पुराण एवं नाना धर्मग्रंथों के प्रमाणों से कलिमल ग्रसित अबोध जीवों के समक्ष सरस एवं सरल रुप में प्रकट करने वाले, ब्रजभक्ति की उपासना एवं साधना के लिए जिन्होंने 'प्रेम रस मदिरा', 'राधा गोविन्द गीत', 'श्यामा श्याम गीत', 'भक्ति शतक', 'ब्रज रस माधुरी', 'युगल शतक', 'युगल रस', 'श्री कृष्ण द्वादशी' एवं 'श्री राधा त्रयोदशी' आदि संकीर्तन ग्रंथों में मधुर्यभावयुक्त अनंत कीर्तनों, दोहों एवं पदों की सुरचना की, ऐसे रसिकवर श्री कृपालु महाप्रभु !! आपकी कोटि कोटि समर्चना..
★ >> शरणागत की संभाल करने वाले
अपने शरणागत जीव के कल्याण के प्रति जो सदैव चिंतनशील रहा करते हैं, जिन्होंने अपना रोम रोम जीव के उद्धार के प्रति ही समर्पित किया और जिन्होंने स्वयं साधना एवं भक्ति करके जीवों को सोदाहरण साधना की दिशा एवं शिक्षा दी, शरणागत की रक्षा, उनकी नित्य सहायता एवं नित्य संग रहने वाले हे करुणाकर श्री कृपालु महाप्रभु !! आपकी धन्यता को कोटि कोटि प्रणाम..
★ >> सदैव ही जीव-कल्याण हेतु समर्पित
समाज के व्याप्त अनंत अंधविश्वासों, कुरीतियों एवं आध्यात्म के अनेक विकृत स्वरुप को सुधारकर वास्तविक कल्याण के मार्ग को प्रशस्त करने वाले, जिन्होंने ना केवल आध्यात्म ही, बल्कि लोगों की शारीरिक सेवार्थ अनेक उपक्रम प्रारम्भ किये, ब्रजसाधुओं की सेवार्थ निःशुल्क चिकित्सालयों, बालिकाओं के लिए निःशुल्क विद्यालयों एवं कॉलेज की स्थापना तथा विधवाओं एवं अन्य जरूरतमंदों की सेवार्थ निरंतर प्रत्यनशील रहने वाले हे दीनवत्सल श्री कृपालु महाप्रभु !! आपको कोटि कोटि प्रणाम..
★ >> जो सदैव विद्यमान हैं, रहेंगे..
जो सदैव विद्यमान हैं, भले ही प्राकृत चक्षुओं से अलक्षित हों, जिनकी उपस्थिति का उनके शरणागतों को सदैव ही भान रहा करता है, जिनके विलक्षण सिद्धांत युगों-युगों तक अकाट्य रहेंगे और कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेंगे, ऐसी विलक्षण विभूति श्री कृपालु महाप्रभु !! आपको कोटि कोटि प्रणाम..
★ >> जिनके लिए समस्त विश्व अपना है..
जो 'जगदगुरुत्तम' होकर भी समस्त विश्व के लिए इतने सरल हैं कि विश्व सहज ही उन पर मुग्ध हो जाया करता है और यह अनुभव करता है कि 'ये तो अपने ही हैं', जिन्होंने बगैर जात-पात, ऊँच-नीच, देश-सम्प्रदाय आदि भेदभाव किये बिना समस्त विश्व को एक मानकर सबको अपनापन दिया, ऐसे दिव्य विभूति श्री कृपालु महाप्रभु !! आपके श्रीचरणों में कोटि कोटि प्रणाम..
★ >> जिनके उपकार अनंत ही अनंत हैं..
'गुरु महिमा अपरंपार' है, अतः किन-किन शब्दों और भावों से कौन उनकी महिमा को पूरा बखान सकता है, अनंत भी अनंत की बूंद की भाँति रहेगा. उनके उपकार अनंत, लीला अनंत, कृपालुता अनंत, सब कुछ अनंत !!!! अनंत हृदयों से आपके इन्हीं अनंत कृपालुताओं के प्रति अनंत श्रद्धा एवं कृतज्ञता !!
हमारे अपराध क्षमा करना.. कलिकाल मायाग्रस्त इस हृदय की मलिनता को दूर करना, सांसारिक पदार्थों की चाह नहीं है, हृदयों में राधाकृष्ण के प्रेम की प्यास और उनकी सेवा की अभिलाषा लेकर आपके सन्मुख, आपके चरणों में आये हैं, यही 'ब्रज-प्रेम', यही 'गोपी-प्रेम' दान के लिए ही आपका अवतरण हुआ, अतः हे परम 'कृपालु' महाप्रभु !!! कृपा की एक दृष्टि हमारी ओर भी कीजिये, 'प्रेम एवं सेवा की व्याकुलता' दान कीजिये..
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia (Youtube)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 349
(भूमिका - 24 जुलाई को 'गुरु-पूर्णिमा' का महान पर्व है। गुरु और उनके शरणागत के अटूट, अनन्य और प्रगाढ़तम संबंध का यह अत्यंत विशेष पर्व है। गुरुमहिमा सबसे ऊँची कही गई है, अतः 'गुरु-पूर्णिमा' का पर्व भी सभी पर्वों में सर्वोत्कृष्ट स्थान रखता है। भगवत्प्राप्ति के लिये पहली कड़ी 'गुरुतत्त्व' को समझना है। इसी कड़ी में जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से निःसृत 'गुरु-भक्ति की अनिवार्यता' पर प्रकाश डालता हुआ यह महत्वपूर्ण प्रवचन प्रकाशित किया जा रहा है। इस आशा के साथ कि आप सभी अपने आध्यात्मिक पथ के लिये एक रौशनी प्राप्त कर सकेंगे...).....विश्व का प्रत्येक जीव एकमात्र नित्यानंद ही चाहता है और उसी नित्यानंद के हेतु अनादिकाल से प्रतिक्षण प्रयत्नशील भी है। किन्तु, अनंतानंत जन्मों के प्रयत्नों के पश्चात भी अद्यावधि आनंद का लवलेश भी नहीं प्राप्त हो सका, ऐसा क्यों? इसका सीधा सा उत्तर यह है कि हम लोगों ने अनधिकार चेष्टा की। अनधिकार चेष्टा यह, कि हमने डायरेक्ट भगवान की उपासना की। अहंकार के कारण हमने किसी महापुरुष की शरणागति स्वीकार नहीं की। देहाभिमान के कारण हमने कभी भी किसी महापुरुष को गुरु मानकर शरणागति स्वीकार नहीं की। और सिद्धान्त यह है कि;आचार्यवान् पुरुषो हि वेद।(छान्दोग्योपनिषद 6-14-2)
तदविज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत् समित्पाणि: श्रोत्रियं ब्रह्मनिष्ठम्।(मुण्डकोपनिषद 1-2-12)अर्थात उस परात्पर ब्रह्म श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिये आपको किसी वास्तविक महापुरुष की शरणागति स्वीकार करनी होगी, ये प्रथम सोपान है, पहली सीढ़ी है।वेदव्यास ने सैकड़ों स्थानों पर, अपितु सैकड़ों नहीं हजारों मन्त्रों में, श्लोकों में इस बात को कोट किया है कि देखो, भगवान को पाने के लिये कुछ भी करो, योग करो, यज्ञ करो, दान करो, व्रत करो, तपश्चर्या करो, अनुष्ठान करो, कीर्तन करो, भजन करो, कुछ भी करो। लेकिन;
महत्पाद रजोभिषेकम्।(भागवत 5-12-12)बिना महापुरुष की शरणागति के और बिना महापुरुष की कृपा के भगवत्प्राप्ति असंभव है।भयं द्वितीयाभिनिवेशितः स्यादीशादपेतस्य विपर्ययोस्मृतिः।तन्माययातो बुध आभजेत्तं, भक्तयैकयेशं गुरुदेवतात्मा।।(भागवत 11-2-37)गुरु को अपना इष्टदेव, अपनी आत्मा, जैसे शरीर की आत्मा 'मैं', ऐसे 'मैं' की आत्मा गुरु अर्थात आत्मा से भी आराध्य ऐसा मानकर जो उपासना करेगा, उसी को भगवत्प्राप्ति हो सकती है। अन्यथा;बहु जन्म करे यदि श्रवण कीर्तन,तभू न पाये कृष्ण पदे प्रेम धन।(गौरांग महाप्रभु)अनंत जन्म भी कोई नवधा-भक्ति करे अथवा सहस्त्रधा भक्ति करे, भगवत्प्राप्ति नहीं हो सकती।सो बिनु संत ना काहूहिं पायी।
किसी को नहीं मिली,
मिलई जो संत होई अनुकूला।यह भगवान का एक अकाट्य लॉ है, कानून है, कि मैं डायरेक्ट संबंध नहीं रख सकता। गुरु को ही मैनें सब पॉवर दी है। वही आपको साधना करायेगा, वही योगक्षेम वहन करेगा, वही अन्तःकरण शुध्दि होने पर दिव्य प्रेमदान देगा। सब कुछ वही करेगा। वेदों में, शास्त्रों में, पुराणों में भगवान और महापुरुष को समान माना गया है;यस्य देवे परा भक्तिर्यथा देवे तथा गुरौ।तस्यैते कथिता ह्यर्था: प्रकाशन्ते महात्मनः।।(श्वेताश्वतरोपनिषद 6-23)वेद कहता है, जैसी भक्ति आपकी श्रीकृष्ण के प्रति हो, वैसी ही भक्ति सेंट परसेन्ट गुरु के प्रति हो, तब भगवत्प्राप्ति होगी। भक्ति के सबसे बड़े आचार्य हैं भगवान के अवतार नारद जी, इन्होंने कहा कि 'तस्मिंस्तज्जने भेदाभावात्', भगवान और गुरु में कुछ भी भेद नहीं है। दोनों एक हैं। यहाँ तक कि भागवत में तो श्रीकृष्ण ने यहाँ तक कहा है कि;आचार्यं मां विजानीयान्नावमन्येत कर्हीचित।न मर्त्यबुद्ध्यासूयेत सर्वदेवमयो गुरुः।।(भागवत 11-17-27)तुम आचार्य को, गुरु को, गुरु ही मत मानो, उसको मुझे मानो अर्थात मैं ही हूँ तुम्हारे गुरु के रूप में। कोई अंतर नहीं। अर्थात समस्त शास्त्रों वेदों ने भगवान और महापुरुष को समान माना है। किन्तु हमारे स्वार्थ की दृष्टि से गुरु का स्थान ऊँचा है।आराधनानां सर्वेषां विष्णोराराधनं परम।तस्मातपरतरं देवि! तदीयानां समर्चनम्।।(पद्म पुराण)वेदव्यास कहते हैं कि जितनी आराधनाएँ हैं, उपासनाएँ हैं, तामसी, उससे ऊँची राजसी, उससे ऊँची सात्विकी देवताओं की भक्ति, उससे ऊँची ब्रह्म की भक्ति, उससे ऊँची परमात्मा की भक्ति, परमात्मा की भक्ति से ऊँची भगवान की और उनके अवतारों की भक्ति और सबसे ऊँची भक्ति श्रीराधाकृष्ण की, लेकिन श्रीराधाकृष्ण की भक्ति से भी ऊँची है - उनके भक्तों की भक्ति।त्वद् भृत्य भृत्य परिचारक भृत्य भृत्य,भृत्यस्य भृत्य इतिमांस्मर लोकनाथ।(पद्म पुराण)भगवान के भक्तों की भक्ति से भगवान जितनी शीघ्रता से संतुष्ट होते हैं, अपनी भक्ति से नहीं।मद्भक्तस्य ये भक्तास्ते मे भक्ततमा मताः।(वेदव्यास)हजारों स्थान पर वेदव्यास ने दुंदुभि घोष से कहा है, कि मेरे भक्त की उपासना से ही मैं शीघ्र प्रसन्न होता हूँ। तो या तो श्रीकृष्ण प्लस गुरु दोनों की साथ साथ एक समान भक्ति की जाय, या केवल गुरु की ही भक्ति कर ली जाय तो भी वही फल मिलेगा। लेकिन डायरेक्ट केवल भगवान की भक्ति से कुछ नहीं मिलेगा। और वह भक्ति कर भी नहीं सकता कोई। भक्ति की परिभाषा भी नहीं जान सकता अपनी बुद्धि से, भक्ति क्या करेगा? तो हमारे स्वार्थ के दृष्टिकोण से गुरु का स्थान ऊँचा है क्योंकि गुरु ने ही हमको तत्वज्ञान भी कराया, साधना भी कराई, और जो बाधाएँ बीच बीच में आईं उनका समाधान भी किया, हमारे संस्कारों से भी लड़ा, और फिर अन्तःकरण की शुद्धि होने पर वह दिव्य प्रेमदान भी गुरु ने ही किया। तो सारा परिश्रम तो गुरु ने ही किया, फिर हम भगवान का एहसान क्यों मानें। भगवान तो बने बने के साथी हैं।तेषां नित्यभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहं।(गीता 9-22)भगवान कहते हैं जब तुम ठीक ठीक बन जाओगे, ठीक ठीक सैंट परसैन्ट, नित्य अभियुक्त, कम्प्लीट सरेंडर। तो फिर मैं तुम्हारा बन जाऊँगा। यह कौन सा कमाल है?निर्मल मन जन सो मोहिं पावा।अब निर्मल कैसे बने जी? अनंत कोटि जन्मों का मल हमारे अन्तःकरण में प्लस है और आप कहते हैं कि मुझे निर्मल चाहिये। ये निर्मल बनाने का काम आपका गुरु करेगा। यानी छोटे बच्चे का पाखाना, पेशाब माँ साफ करे। गंदगी सब साफ करे महापुरुष और जब बिल्कुल ठीक ठाक हो जाय, तो भगवान कहते हैं, मैं आ रहा हूँ। जैसे संसार में कोई बाप अपनी लड़की को पालता है, पोसता है, बड़ा करता है, पढ़ाता है, लिखाता है, गुणवती कलावती बनाता है। तो जब अठारह साल, बीस साल की हो गई तो एक लड़का आया, उसने इंटरव्यू लिया और पास कर दिया, ब्याह किया और ले भागा। ऐसे ही भगवान हैं। इसलिये भक्त लोग कहते हैं, हमारा सारा काम तो गुरु ने किया, इसलिए गुरु भक्ति से ही हमारा काम बनेगा।०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2011 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - 20 जुलाई को मंगल कर्क राशि से निकलकर सिंह में आ गया है जो और 4 सितंबर तक रहेगा। इसका शुभ-अशुभ असर सभी राशियों पर रहेगा। मंगल का प्रभाव युद्ध, भूमि, साहस, पराक्रम और बिजनेस पर भी होता है। साथ ही ये ग्रह वैवाहिक जीवन, भौतिक सुख-सुविधाओं और सफलता को भी प्रभावित करता है। मंगल का राशि परिवर्तन मिथुन, तुला और मीन राशि वालों के लिए शुभ रहेगा। काशी के ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्र के मुताबिक 12 राशियों पर मंगल का असर----------मिथुन, तुला और मीन के लिए अच्छा समयमंगल के राशि परिवर्तन से मिथुन, तुला और मीन राशि वालों के लिए अच्छा समय रहेगा। इन राशियों के लोगों को जॉब और बिजनेस में तरक्की के मौके मिल सकते हैं। कई मामलों में किस्मत का साथ मिलेगा। आर्थिक स्थिति में सुधार के योग हैं। सेहत के मामलों में भी समय अच्छा रहेगा। मंगल के प्रभाव से पुरानी परेशानियां और विवाद खत्म हो सकते हैं।कुंभ सहित 7 राशियों के लिए अशुभ समयमंगल के सिंह राशि में आ जाने से मेष, वृष, मिथुन, सिंह, कन्या, धनु और कुंभ राशि वाले लोगों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इन 7 राशि वाले लोगों को जॉब और बिजनेस में संभलकर रहना होगा। तनाव और विवाद की स्थितियां बन सकती हैं। कामकाज में रुकावटें आ सकती हैं। धन हानि और सेहत संबंधी परेशानियां भी हो सकती हैं। कर्जा न लें। कामकाज में लापरवाही और जल्दबाजी करने से भी बचना चाहिए।5 राशियों के लिए मिला-जुला समयमंगल के प्रभाव से मेष, सिंह, वृश्चिक, धनु और कुंभ राशि वाले लोगों के लिए मिला-जुला समय रहेगा। इन 5 राशि वालों को कुछ मामलों में किस्मत का साथ मिल सकता है। फायदा भी होगा। लेकिन कामकाज में रुकावटें और अनचाहे बदलाव का भी सामना करना पड़ सकता है। सेहत के मामले में उतार-चढ़ाव वाला समय रहेगा।
- आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा भी कहते हैं। इस साल आषाढ़ पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा 24 जुलाई, दिन शनिवार को है। आषाढ़ पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। उन्होंने मानव जाति को चारों वेदों का ज्ञान दिया था और सभी पुराणों की रचना की थी। महर्षि वेदव्यास के योगदान को देखते हुए आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु की पूजा की जाती है। आषाढ़ पूर्णिमा का व्रत रखने के साथ ही भक्त भगवान विष्णु की अराधना करते हैं और सत्यनारायण कथा का पाठ या श्रवण करते हैं।आषाढ़ पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा शुभ मुहूर्त-हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास की पूर्णिमा 23 जुलाई (शुक्रवार) को सुबह 10 बजकर 43 मिनट से शुरू होगी, जो कि 24 जुलाई की सुबह 08 बजकर 06 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि में पूर्णिमा मनाए जाने के कारण यह 24 जुलाई, शनिवार को मनाई जाएगी।आषाढ़ पूर्णिमा पर सर्वार्थ सिद्धि योग-गुरु पूर्णिमा या आषाढ़ पूर्णिमा के दिन सर्वार्थ सिद्धि और प्रीति योग का शुभ संयोग बन रहा है। 24 जुलाई को सुबह 6 बजकर 12 मिनट से प्रीति योग लगेगा, जो कि 25 जुलाई की सुबह 03 बजकर 16 मिनट तक रहेगा। इस दिन दोपहर 12 बजकर 40 मिनट से अगले दिन 25 जुलाई को सुबह 05 बजकर 39 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। ये दोनों योग शुभ कार्यों की सिद्धि के लिए उत्तम माने जाते हैं।आषाढ़ पूर्णिमा पर चंद्रोदय-आषाढ़ पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय शाम 07 बजकर 51 मिनट पर होगा।राहुकाल का समय-आषाढ़ या गुरु पूर्णिमा के दिन राहुकाल सुबह 09 बजकर 03 मिनट से सुबह 10 बजकर 45 मिनट तक रहेगा। इस दौरान शुभ कार्यों की मनाही होती है।
- कुछ दिनों के बाद सावन का महीना आरंभ होने जा रहा है। हिंदू धर्म में सावन का महीना बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है। इस वर्ष सावन का महीना 25 जुलाई से शुरू होने जा रहा है। दरअसल देवशयनी एकादशी तिथि पर संसार के पालनकर्ता भगवान विष्णु चार महीनों के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं और भगवान शंकर सृष्टि के संचालन का भार अपने कंधों पर ले लेते हैं। शिव भक्तों के लिए सावन का महीना बहुत ही पवित्र और शिव की आराधना के लिए शुभ माना गया है। सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि सावन के महीने में सोमवार को व्रत रखने और भगवान शंकर की पूजा करने वाले जातक को मनवांछित जीवनसाथी प्राप्त होता है और जीवन में सुख-समृद्धि बढ़ती है। विवाहित औरतें यदि श्रावण महीने का सोमवार व्रत रखती हैं तो उन्हें भगवान शंकर सौभाग्य का वरदान देते हैं। सावन के महीने में शिवलिंग पर जल अभिषेक करने से कई गुणा फायदा मिलता है। सावन के महीने में व्रत, उपासना और नियमों का पालन विशेष रूप से किया जाता है। सावन के महीने में भूलकर भी कुछ काम नहीं करना चाहिए।00 सावन के पवित्र महीने में खाने-पीने की चीजों में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। पवित्र महीने में मांस-मछली खाने से परहेज करना चाहिए। इसके अलावा खाने में लहसुन-प्याज का भी प्रयोग करना भी वर्जित होता है। सावन में सादा भोजन करना चाहिए।00 सावन में हरी पत्तेदार सब्जियों का त्याग करना अच्छा माना जाता है क्योंकि सावन में हरी सब्जियों में पित्त बढ़ाने वाले तत्व की मात्रा बढ़ जाती है। इसके अलावा सावन के महीने में कीट-पतंगों की संख्या बढ़ जाती है जो सेहत के लिए हानिकारक होते हैं।00 कभी भी शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ानी चाहिए। शिवलिंग पुरुष तत्व से संबंधित है।सावन के महीनों में दूध का सेवन कम करना चाहिए। यही बात बताने के लिए सावन में शिव जी का दूध से अभिषेक करने की परंपरा शुरू हुई। वैज्ञानिक मत के अनुसार इन दिनों दूध पित्त बढ़ाने का काम करता है।00 सावन में बैंगन खाना अच्छा नहीं माना गया है। बैंगन को शास्त्रों में अशुद्ध कहा गया है। वैज्ञानिक कारण के नजरिए से देखें तो सावन में बैंगन में कीड़े अधिक लगते हैं। ऐसे में बैंगन का स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है।
- सावन माह प्रारंभ होने जा रहा है और यह महीना भगवान शिव को प्रिय होता है। इस महीने भगवान शिव की आराधना विधि-विधान से की जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, श्रावण मास 25 जुलाई से शुरू होगा। मान्यता के अनुसार, इस महीने भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक और विधि-विधान से पूजा करने से जातकों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। पूजा में शिवजी की प्रिय चीजें अर्पित की जाती हैं और इन्हीं में से बेलपत्र शामिल है। बेल पत्र भोलेनाथ को प्रिय है। बेल वृक्ष की उत्पत्ति के संबंध में 'स्कंदपुराण' में एक कथा है कि एक बार देवी पार्वती ने अपने ललाट से पसीना पोंछकर फेंका, जिसकी कुछ बूंदें मंदार पर्वत पर गिरीं, जिससे बेल वृक्ष की उत्पत्ति हुई। इस वृक्ष की जड़ों में गिरिजा, तना में महेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी, पत्तियों में पार्वती, फूलों में गौरी का वास माना गया है। कहते हैं इसी कारण शिवजी को बेलपत्र प्रिय है। लेकिन जटाधारी को बेलपत्र अर्पित करते समय कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना आवश्यक होता है।00 भगवान शिव को बेलपत्र अर्पित करते समय सबसे पहले बेलपत्र की दिशा का ध्यान रखना जरूरी होता है। भगवान शिव को हमेशा उल्टा बेलपत्र यानी चिकनी सतह की तरफ वाला भाग स्पर्श कराते हुए ही बेलपत्र चढ़ाएं।00 जब आप भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाते हैं तो बेलपत्र को हमेशा अनामिका, अंगूठे और मध्यमा अंगुली की मदद से चढ़ाएं। शिव जी को बिल्वपत्र अर्पण करने के साथ-साथ जल की धारा जरूर चढ़ाएं।00 बेलपत्र की तीन पत्तियों वाला गुच्छा भगवान शिव को चढ़ाया जाता है और माना जाता है कि इसके मूलभाग में सभी तीर्थों का वास होता है। बेलपत्र की तीन पत्तियां ही भगवान शिव को चढ़ती है। कटी-फटी पत्तियां कभी न चढ़ाएं।00 कुछ तिथियों को बेलपत्र तोड़ना वर्जित होता है। जैसे कि चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या को, संक्रांति के समय और सोमवार को बेल पत्र नहीं तोड़ना चाहिए। ऐसे में पूजा से एक दिन पूर्व ही बेल पत्र तोड़कर रख लिया जाता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 348
भूमिका - हमारे देश में बाबाओं की बाढ़ सी आई हुई है, जो शास्त्र वेद का नाम तक नहीं जानते वे लोगों के कान फूँक फूँक कर लोगों को गुमराह कर रहे हैं और धर्म के नाम पर व्यापार चला रहे हैं। जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज ने इन सबके विरुद्ध आवाज उठाई एवं निर्भीकतापूर्वक शास्त्रों के अनुसार वास्तविक गुरु कैसा होना चाहिये, यह समझाकर सही मार्गदर्शन किया। जीवनपर्यन्त उन्होंने किसी का भी कान नहीं फूँका, तब ही उनके बारे में सब बाबा यही कहते थे कि 'न चेला बनाता है, न बनाने देता है'। वे स्वयं भी कहते थे 'न गुरु न चेला, कृपालु फिरे अकेला'। दम्भी बाबाओं के विषय में उनके प्रवचन का अंश प्रस्तुत किया जा रहा है....
★ नोट - कल, 21 जुलाई को इस प्रवचन का पहला भाग प्रकाशित किया गया था। कल की अंतिम पंक्ति से आगे का प्रवचन, अर्थात भाग - 2 आज प्रकाशित किया जा रहा है। सभी सुधी पाठकगणों से निवेदन है कि कृपया सम्पूर्ण लाभ हेतु प्रवचन के दोनों भाग अवश्य पढ़ें, धन्यवाद!!
.....जो लोग कान फूँकते हैं, इनसे पूछो पहले कि आप कान में क्या देना चाहते हैं? तो वो कहेंगे - 'मंत्र'। किसका मंत्र? भगवान का। उस मंत्र का क्या मतलब है? हे भगवान! हम आपकी शरण में हैं। हे भगवान! आपको नमस्कार है। ये दो अर्थ वाले सारे मंत्र हैं, जितने सम्प्रदाय हैं। तो क्यों जी, अगर हम हिन्दी में कह दें, अंग्रेजी में कह दें, फारसी में कह दें, हे भगवान! आपको नमस्कार है तो उसको भगवान स्वीकार नहीं करेंगे?
आपमे जो संस्कृत में हमारे कान में मंत्र दिया या देना चाहते हैं, 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय', 'क्लीं कृष्णाय नमः', 'राम रामाय नमः', 'नारायण चरणौ शरणं प्रपद्ये' इत्यादि मंत्र हैं तो ये कान में जो आप देना चाहते हैं उसको हम हिन्दी में बोलें तो भगवान स्वीकार नहीं करेंगे? क्या जो राम-राम, श्याम-श्याम लोग कहते हैं, इस राम नाम से आपका मंत्र अधिक महत्त्व रखता है? वो कहेंगे क्योंकि ये हमारे गुरु-परम्परा से आया है, सिद्ध-मन्त्र है। तो तुम्हारे सिद्ध-मन्त्र में विशेष बात होगी, चमत्कार होगा कुछ? हाँ, बिल्कुल। तो जब तुम कान में हमें मन्त्र दोगे तो हमको कोई चमत्कार की फीलिंग होगी, अगर नहीं हुई तो या तो गुरुजी गलत हैं या मन्त्र गलत है। अब गुरुजी कहेंगे, तुम्हारा पात्र खराब होगा तो फीलिंग नहीं होगी, चमत्कार की। तो तुमने ये नहीं सोचा कि अगर पात्र खराब है तो गुरुजी को मन्त्र नहीं देना चाहिये।
आजकल 12 दिन के बच्चे के भी कान फूंक देते हैं ताकि उसे और कोई शिष्य न बना ले। माइक से मन्त्र दे रहे हैं। हजारों लोग चेले हो गये सुन करके। जो शास्त्र-वेद का नाम तक नहीं जानता, वो भी गुरु बन जाता है। शिष्यों की लाइन लगाता है और वेद कहता है,
'श्रोत्रियं ब्रम्हनिष्ठम्'
जो थियोरिटिकल मैन भी हो, प्रैक्टिकल मैन भी हो उसी को गुरु बनाना है। वो चेला नहीं बनायेगा, तुमको गुरु बनाना होगा उसको। वो चेला तब बनायेगा जब तुम्हारा अन्तःकरण सेंट परसेन्ट शुद्ध हो जायेगा। अन्तःकरण से सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण चला जाये। काम, क्रोध, लोभ, मोह चला जाये। भक्ति करते-करते जब अन्तःकरण पूर्णतया शुद्ध हो जायेगा, एक साल, दो साल, एक जन्म, दो जन्म, दस जन्म में तब गुरु देगा, मन्त्र कान में। पहले नहीं देगा। मन्त्र देते ही भगवत्प्राप्ति, मायानिवृत्ति, सब काम खत्म।
जैसे आप अपने घर में पहले सब तारों की फिटिंग कर लेते हैं। पंखें लगा लें, बल्ब लगा लें। अब कहिये, पॉवर हाऊस से कि हमको बिजली दे दो, इलेक्ट्रिसिटी दे दो। सब फिटिंग होने के पश्चात पॉवर हाऊस आपको बिजली देता है। अब आपने घर में कुछ लगाया ही नहीं और आप पॉवर हाऊस से कहते हैं, बिजली दे दो तो पॉवर हाऊस बिजली कहाँ देगा?
दीक्षा से तात्पर्य है - दिव्य प्रेम दान। जब तक अन्तःकरण का बर्तन ही तैयार नहीं होगा तो गुरु कहाँ प्रेम देगा क्योंकि आपका पात्र मायिक है और प्रेम प्राकृत अन्तःकरण में धारण नहीं हो सकता। गौरांग महाप्रभु ने कहा;
दीक्षा पुरश्चर्या विधि अपेक्षा न करे।
भगवान का नाम दीक्षा की अपेक्षा नहीं करता।
नो दीक्षां न च सत्क्रियां न च पुरश्चर्याम् मनागीक्षते।(पद्यावली)
भगवान के नाम में भगवान की शक्ति भरी है। राम राम राम, बस इतना ही काफी है। श्याम श्याम श्याम, राधे राधे राधे - बस। वो संस्कृत, गुजराती, मराठी, बंगाली किसी भाषा में हो उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अरे, यशोदा मैया ने तो कभी राम राम, श्याम श्याम भी नहीं कहा। 'ऐ कनुआ! इधर आ'। 'कनुआ' - ये कौन से शास्त्र में नाम है, कनुआ। कृष्ण का नाम कनुआ, बलराम का नाम बलुआ। 'ऐ बलुआ, इधर आ'। क, ख, ग, घ हर एक नाम है, भगवान का। वेद कहता है कं ब्रह्म, खं ब्रह्म, अकारो वासुदेवः। 'अ' माने श्रीकृष्ण, 'उ' माने शंकरजी, भगवान के सभी नाम हैं, हर नाम में भगवान की भावना होनी चाहिये, उसका लाभ मिलेगा। मंत्र देते ही यानी दीक्षा देते ही माया का अत्यन्ताभाव हो जायेगा और अनन्त आनन्द मिलेगा। त्रिगुण, त्रिकर्म, त्रिदोष, पंचक्लेश, पंचकोश सबसे सदा को छुट्टी मिल जायेगी।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2016 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मेष, कर्क, सिंह इन 3 राशि की लड़कियां विवाह उपरांत अपने पति के लिए बेहद भाग्यशाली होती हैं। इन राशियों की कन्याओं के गुण और स्वभाव के बारे में आइये जानते हैं-मेष राशि-ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इन राशि की लड़कियां शादी के लिए सबसे ठीक होती हैं। इनमें प्यार और गुण कूट- कूट कर भरा होता है तथा दिल से बिल्कुल साफ होती है । यह अपने पति के लिए वफादार और पूरे परिवार को एक साथ संजो कर रखने वाली होती हैं । मेष राशि की लड़कियां जिम्मेदार होती हैं वह जो भी काम अपने ऊपर लेती हैं उसे पूरी जिम्मेदारी के साथ करती है और उस काम को पूर्ण करके ही राहत लेती हैं । इस राशि की लड़कियों को बहुत जल्द गुस्सा आता है हालांकि गुस्सा जल्दी उतर भी जाता है । मेष राशि की लड़कियां किसी भी हालात में अपने परिवार का साथ नहीं छोड़ती हैं।कर्क राशि-ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कर्क राशि इस राशि की लड़कियां बहुत सुंदर और गुणवान होती हैं । कर्क राशि की लड़कियां बेहद जल्दी भावुक हो जाती हैं इनका ह्रदय बेहद नरम होता है और अपने रिश्ते को पूरी वफादारी के साथ निभाती हैं । इनका ह्रदय बहुत निर्मल होता है और अपने अंदर भावनाओं का समुंदर समेटे हुए रहती हैं। यह अपने पति को बेहद प्यार करती हैं और उनके प्यार में अपने आप तक को भुला देती हैं। ये अपने पति के लिए बेहद भाग्यशाली होती हैं।सिंह राशि-ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सिंह राशि की लड़कियां थोड़े गुस्से वाली होती है लेकिन जब आप उनके बारे में जान लेंगे तो अपनी सोच को बदल देंगे। इन लड़कियों के इरादे बेहद मजबूत होते हैं और अपने परिवार पर आने वाली हर मुसीबत का सामना डट कर करती हैं। इस राशि की लड़की के साथ शादी होना लड़के के लिए सौभाग्य की बात होती है।
- जरा सा नमक खाने में स्वाद बढ़ा देता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार नमक घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है और घर में सुख समृद्धि को बढ़ाता है। नमक आपकी किस्मत किस प्रकार बना सकता है इसके कुछ उपाय इस प्रकार से हैं-नमक आपकी किस्मत किस प्रकार बना सकता है इस नमक का इस्तेमाल कहां और कैसे किया जाना चाहिए आइए इसके बारे में हम जानते हैं-1- बच्चों को नहलाते वक्त हफ्ते में एक दिन एक चुटकी नमक पानी में मिलाए जिससे बच्चे को नजर नहीं लगेगी और उसका स्वास्थ्य ठीक रहेगा ।2- अगर किसी को नजर लग गई है तो एक चुटकी नमक लेकर 3 बार उसके ऊपर से घुमाकर घर के बाहर फेंक दें इससे उसकी नजर उतर जाएगी ।3-वास्तु शास्त्र के अनुसार रॉक साल्ट लैंप का इस्तेमाल करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का निर्वाह होता है इससे पारिवारिक संबंध सुदृण होते हैं ,धन-धान्य में बढ़ोतरी होती है और स्वास्थ्य भी ठीक रहता है।4-एक शीशी में नमक भरकर शौचालय में रखने से वास्तु शास्त्र दोष दूर होते हैं क्योंकि नमक और शीशा दोनों ही राहु की वस्तु है और राहु के बुरे प्रभाव को दूर करती हैं ।5-अगर आप पर राहु- केतु की दशा चल रही है, मन में बुरे विचार आ रहे हैं तो शीशे के बर्तन में नमक भरकर घर के किसी भी कोने में रख दें जिससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और आपकी समस्याओं का समाधान होगा।6-साबुत नमक लेकर उसे लाल कपड़े में बांध लें और अपने घर के मुख्य द्वार पर बांध दें यह उपाय करने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीं हो सकता। यह उपाय आप अपने ऑफिस के मुख्य द्वार पर बांधकर भी कर सकते हैं।--
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 347
भूमिका - हमारे देश में बाबाओं की बाढ़ सी आई हुई है, जो शास्त्र वेद का नाम तक नहीं जानते वे लोगों के कान फूँक फूँक कर लोगों को गुमराह कर रहे हैं और धर्म के नाम पर व्यापार चला रहे हैं। जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज ने इन सबके विरुद्ध आवाज उठाई एवं निर्भीकतापूर्वक शास्त्रों के अनुसार वास्तविक गुरु कैसा होना चाहिये, यह समझाकर सही मार्गदर्शन किया। जीवनपर्यन्त उन्होंने किसी का भी कान नहीं फूँका, तब ही उनके बारे में सब बाबा यही कहते थे कि 'न चेला बनाता है, न बनाने देता है'। वे स्वयं भी कहते थे 'न गुरु न चेला, कृपालु फिरे अकेला'। दम्भी बाबाओं के विषय में उनके प्रवचन का अंश प्रस्तुत किया जा रहा है....
★ नोट - यह प्रवचन कुल 2-भागों में प्रकाशित होगा। आज इसका पहला भाग नीचे दिया जा रहा है, शेष प्रवचन अंश कल दूसरे भाग में प्रकाशित होगा। सभी सुधी पाठकगणों से निवेदन है कि सम्पूर्ण लाभ हेतु दोनों भाग गंभीरतापूर्वक अवश्य पठन-मनन करें!!!
"....प्रायः लोग बाहरी व्यवहार एवं वेशभूषा को देखकर किसी के महापुरुष होने का अनुमान लगाते हैं। कुछ लोग इसी बात से ही प्रभावित हो जाते हैं कि अमुक बाबा बड़ा त्यागी है, फलाहारी ही, कोई घोर जंगल में रहता है, कोई जटा रखे है, कोई मौन रहता है, कोई शास्त्रों का ज्ञाता है अतएव महापुरुष है। ऐसा निर्णय कर लेते हैं। जहाँ तक भगवल्लीला-श्रवणादि का संबंध है, उससे सुनने में कोई हानि नहीं है। किन्तु सिद्धान्त सुनना अथवा उसे महापुरुष मानकर शरणागत होना, महान घातक है।
कुछ लोग अखबारी प्रोपेगेंडा अर्थात अमुक महात्मा का बड़ा नाम है, उसे बहुत से लोग जानते हैं, अतएव वह महापुरुष है, ऐसा समझते हैं। वे भी बड़ी भूल करते हैं क्योंकि वास्तविक महापुरुष तो प्रतिष्ठादि प्रपंचों से दूर रहता है।
कुछ लोग भौतिक सिद्धियों आदि के चमत्कार को देखकर आइडिया लगाते हैं जैसे अमुक बाबा कमंडल से राख, बादाम निकाल देता है, रुपया बना देता है अतएव वह सिद्ध महापुरुष है, ऐसा मान लेते हैं। वे भी महान भूल करते हैं क्योंकि उपरोक्त कार्य तामसी व्यक्ति ही लोक-प्रतिष्ठादि के निमित्त करता है, जो कि महापुरुष के सिद्धान्त से त्याज्य है। कुछ लोग गुरु-परम्परा से अर्थात अमुक महापुरुष, हमारे पिता का गुरु था, अतएव उसकी गद्दी पर बैठने वाला व्यक्ति हमारा गुरु होगा, ऐसा करते हुये उसे महापुरुष मान लेते हैं। यह भी बड़ी भूल है क्योंकि परम्परा से यह आवश्यक नहीं है कि सभी उत्तराधिकारी महापुरुष ही हों।
कुछ लोग सांसारिक पदार्थ-धन, प्रतिष्ठादि देने वालों को महापुरुष समझ लेते हैं। यह भी महानतम भूल है क्योंकि महापुरुष सांसारिक पदार्थ नहीं दिया करता। वह जानता है कि सांसारिक पदार्थ, जीव को और भी अधिक उन्मत्त बना देता है। ऐसे ही जीव नशे में है। महापुरुष तो अलौकिक दिव्य अनिर्वचनीय भगवद्विषय ही प्रदान करता है।
कुछ लोग किसी के स्वयं ही बताने पर कि मैंने अमुक पहाड़ पर इतने वर्ष तप किया था एवं वहाँ मुझे भगवत्प्राप्ति हुई थी, मेरी आयु दो सौ वर्ष की है, मैंने कई बार कायाकल्प कर ली है, महापुरुष मान लेते हैं। किन्तु यह भी अत्यन्त ही नासमझी की बात है, क्योंकि महापुरुष अपने आपको, जहाँ तक होता है, छिपाता ही है। वह स्वयं तो परम अन्तरंग अधिकारी को ही अपने महापुरुषत्व का अनुभव कराता है।
फिर, क्या ये कान फूँकने वाला गुरु आवश्यक है? एक प्रश्न पैदा होता है।....." (शेष प्रवचन कल दूसरे भाग में प्रकाशित होगा..)
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2016 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - अदम्य साहसी और पराक्रमी ग्रह पृथ्वी पुत्र मंगल अपनी नीच राशि कर्क की यात्रा समाप्त करके 20 जुलाई की शाम 5 बजकर 52 मिनट पर सूर्य की राशि सिंह में प्रवेश कर रहे हैं। इस राशि पर ये 6 सितंबर की सुबह 3 बजकर 56 मिनट तक भ्रमण करेंगे उसके बाद कन्या राशि में प्रवेश कर जाएंगे। सिंह राशि पर गोचर करते समय ये अत्यधिक प्रभावशाली होते हैं क्योंकि, ये इस राशि के लिए सर्वाधिक योग कारक होते हैं इसलिए सिंह राशि के जातकों के लिए तो यह गोचर किसी वरदान से कम नहीं है। जिन जातकों की जन्मकुंडली में मंगल शुभ भाव में गोचर कर रहे होंगे उनके लिए तो ये शुभ संकेत है किंतु जिनके अशुभ भाव में गोचर कर रहे होंगे उन्हें सावधान रहने की आवश्यकता है। मेष और वृश्चिक राशि के स्वामी मंगल कर्क राशि में नीच राशि के तथा मकर राशि में उच्च राशि के माने गए हैं। इनके राशि परिवर्तन का अन्य सभी राशियों पर कैसा प्रभाव पड़ेगा इसका विश्लेषण करते हैं।मेष राशिराशि से पंचम विद्या भाव में गोचर कर रहे मंगल के शुभ प्रभाव के परिणाम स्वरूप शिक्षा-प्रतियोगिता में अच्छी सफलता प्राप्त होगी। उच्चाधिकारियों से भी सहयोग मिलेगा। विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाएंगे। संतान के दायित्व की पूर्ति होगी। नव दंपत्ति के लिए संतान प्राप्ति एवं प्रादुर्भाव के योग। अपनी ऊर्जाशक्ति के बल पर कठिन हालात पर भी आसानी से नियंत्रण पा लेंगे। प्रेम संबंधी मामलों में उदासीनता रहेगी।वृषभ राशिराशि से चतुर्थ भाव में गोचर करते हुए मंगल का प्रभाव काफी उतार-चढ़ाव वाला रहेगा। किसी कारण से मानसिक अशांति एवं पारिवारिक कलह का सामना करना पड़ेगा। मित्रों तथा संबंधियों से अप्रिय समाचार प्राप्ति के योग। जमीन जायदाद से जुड़े मामलों का निपटारा होगा। झगड़े विवाद तथा कोर्ट कचहरी से संबंधित मामले बाहर ही समझाएं। माता-पिता के स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहें। विद्यार्थी वर्ग परीक्षा में अच्छे अंक के लिए और मेहनत करें।मिथुन राशिराशि से तृतीय पराक्रम भाव में गोचर करते हुए मंगल का प्रभाव आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं है। कोई भी बड़ा कार्य आरंभ करना चाहे अथवा किसी ने अनुबंध पर हस्ताक्षर करना चाहे तो उस दृष्टि से भी अनुकूल रहेगा। अपनी ऊर्जाशक्ति एवं जुझारू स्वभाव के चलते कठिन परिस्थितियों में भी विचलित नहीं होंगे। धर्म एवं आध्यात्म के प्रति रुचि बढ़ेगी। विदेशी कंपनियों में सर्विस अथवा नागरिकता के लिए किया गया प्रयास सफल रहेगा। कर्क राशिराशि से द्वितीय धन भाव में गोचर करते हुए मंगल का प्रभाव बेहतरीन उपलब्धियों वाला रहेगा। अपने साहस, कुशाग्रबुद्धि तथा वाणी कुशलता के बलपर सामाजिक जिम्मेदारियों को भी निर्वहन करने में पूर्ण सफल रहेंगे। आर्थिकपक्ष मजबूत होगा। काफी दिनों का दिया गया धन भी वापस मिलने की उम्मीद। केंद्र अथवा राज्य सरकार के विभागों में प्रतीक्षित कार्यो का निपटारा होगा। किसीभी तरहके सरकारी टेंडर के लिए आवेदन करना चाह रहे हों तो अवसर अनुकूल रहेगा।
- हस्तरेखा विज्ञान में हृदय रेखा को महत्वपूर्ण माना गया है। यह रेखा दिल से जुड़ी भावनाओं को अच्छे से बताती है। व्यक्ति के हाथ में हृदय रेखा संतान के जन्म की भविष्यवाणी भी करती है। हथेली में हृदय रेखा या तर्जनी उंगली अथवा मध्यमा उंगली से शुरू होकर बुध पर्वत के नीचे तक जाती है। हृदय रेखा व्यक्ति के स्वभाव को बताती है। यदि व्यक्ति के हाथ में हृदय रेखा एक किनारे से शुरू होकर दूसरे किनारे तक जाए तो ऐसा व्यक्ति आज में जीने वाला होता है। ये लोग भविष्य को लेकर ना तो चिंतित होते हैं और ना ही परेशान। हालांकि स्वभाव से ऐसे व्यक्ति भावुक और ईष्र्यालु प्रवृत्ति के होते हैं।हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार यदि हृदय रेखा लाल होने के साथ-साथ अधिक गहरी हो तो ऐसे व्यक्ति स्वभाव में तेज प्रवृत्ति के होते हैं। ऐसे लोग आसानी से बुरी आदत का शिकार हो जाते हैं। यदि व्यक्ति के हाथ में दो हृदय रेखा हों और उनमें किसी तरह का दोष ना तो ऐसे लोग सात्विक प्रवृत्ति के होते हैं। यदि हृदय रेखा बीच में टूटी हुई तो तो यह प्रेम संबंधों में बिखराव का इशारा करती है। यदि हृदय रेखा और मस्तिष्क रेखा दोनों छोर से शुरू होकर दूसरे छोर तक पहुंचे तो ऐसे लोग किसी की पहवाह नहीं करते। हृदय रेखा का पतला और हल्का होना व्यक्ति के स्वभाव को रुखा बनाता है। हृदय रेखा गुरु पर्वत से शुरू हो तो ऐसे लोग दृढ़ निश्चयी और आदर्शवादी होते हैं।
- जिस परिवार में सदस्यों के बीच प्रेमभाव रहता है, एक दूसरे के प्रति लगाव रहता है वह घर स्वर्ग के समान माना जाता है और उस घर पर भगवान का आशीर्वाद बना रहता है। हर कोई चाहता है कि उसका घर-परिवार सुख और प्रेम से रहे। लेकिन कभी कभी कई वजहों से परिवार में अनबन होने लगती है और यही आगे चलकर विवाद की वजह बन जाती है। वास्तु में कुछ आसान से उपाय बताए गए हैं जिन्हें अपनाने से परिवार में सुख शांति बनी रहती है, आइए जानते हैं इन उपायों के बारे में।अगर परिवार में बच्चे बुरा व्यवहार करते हों या बड़ों का कहना न मानते हों तो उनके माथे पर केसर या हल्दी का तिलक लगाएं। भाइयों में अनबन रहती हो तो मीठी चीजों का दान करें। दूध में शहद डालकर दान करें। जीवनसाथी से नहीं बनती है तो गाय की सेवा करें। पिता-पुत्र में मतभेद रहता है तो पिता या पुत्र किसी को भी गुड़ और गेहूं का दान मंदिर में करना चाहिए। घर में सुबह कुछ देर भजन करें। मंगलवार व शनिवार को घर में सुंदरकांड का पाठ करें। मंगलवार को हनुमान मंदिर में चोला और सिंदूर चढ़ाएं। रविवार, शनिवार या मंगलवार को काले चने, काले वस्त्र, लोहा और सरसों के तेल का दान करें। परिवार की महिलाओं में अनबन रहती है तो महिलाएं आटे की चक्की मंदिर में दान करें। गुरुवार और रविवार को कंडे पर गुड़ और घी मिलाकर जलाएं इससे सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है। घर में कभी झाड़ू को खड़ा करके नहीं रखें, न ही कभी पैर लगाएं। घर में कोई भी खाने पीने की चीज लाते हैं तो सबसे पहले अपने ईष्ट देवता को भोग लगाएं। फिर परिवार के बड़े बुजुर्गों और बच्चों को दें। इसके बाद स्वयं ग्रहण करें। पहली रोटी गाय के लिए निकालें और उसे अपने हाथों से रोटी खिलाएं।
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वैसे तो लहसुन का इस्तेमाल खाने में स्वाद को बढ़ाने के लिए किया जाता है और इससे कई बीमारियां भी दूर होती हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि लहुसन आपकी किस्मत भी बदल सकता है. वास्तु शास्त्र के अनुसार, लहसुन का इस्तेमाल आप अपने जीवन में चल रही समस्याओं को दूर करने के लिए कर सकते हैं.
लहसुन की छोटी कलियां रुपये-पैसे से जुड़ी आपकी परेशानी को दूर कर सकती हैं. शनिवार के दिन अपने पर्स में लहसुन की एक कली रख लें. आप इसे हर शनिवार बदल भी सकते हैं. ऐसा करने से धन की कभी कमी नहीं होगी.
पैसा नहीं टिकता तो ये उपाय करें
अगर पैसा आपके पास नहीं टिकता और आते ही तेजी से खर्च हो जाता है, तो आपके घर या दुकान में जो भी तिजोरी या लॉकर है, उसमें एक लहसुन की कली कपड़े में लपेटकर रख दें. ऐसा करने से धन आपके पास बना रहेगा.
आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं तो लहसुन की दो कलियों को लाल कपड़े में बांधकर पोटली बना लें फिर इस पोटली को जमीन में गाड़ दें. इससे आर्थिक तंगी दूर हो जाएगी.
बिजनेस में नुकसान से बचेंगे
बिजनेस में अगर नुकसान हो रहा है, तो लहसुन की 5 या 7 कलियों को एक साफ कपड़े में बांध लें और अपनी दुकान, कार्यालय या जहां भी आप काम करते हैं वहां मुख्य द्वार पर टांग दें. इससे कारोबार में गति आएगी और आपकी धन संबंधी समस्याएं दूर हो जाएंगी.
- "बजरंग बली की जय" - ये जयकारा आपको किसी भी हनुमान मंदिर में सबसे अधिक सुनने को मिल जाता है। जितना प्रसिद्ध उनका "हनुमान" नाम है, उतना ही प्रसिद्ध उनका एक नाम बजरंग बली भी है। उनके नाम "हनुमान का इतिहास तो हम जानते हैं, किन्तु क्या आप ये जानते हैं कि उन्हें "बजरंग" क्यों बुलाते हैं? शब्द "बजरंग", वास्तव में मूल संस्कृत शब्द का अपभ्रंश है।अपभ्रंश उसे कहा जाता है जो समय के साथ साथ स्थानीय भाषा में परिणत हो जाता है। रामायण कथा के अनुसार जब मारुति (उनका वास्तविक नाम) सूर्य को निगलने का प्रयास कर रहे थे तब सूर्य की रक्षा हेतु देवराज इंद्र ने उनपर वज्र से प्रहार किया। इससे मारुति की ठुड्डी टूट गयी और वे मूर्छित हो पृथ्वी पर आ गिरे। जब पवनदेव ने अपने औरस पुत्र मारुति की ये दशा देखी तो उन्होंने प्राण वायु का संचार रोक दिया। तब ब्रह्माजी ने उन्हें ऐसा करने से मना किया और प्राणवायु का प्रवाह आरंभ करने को कहा। इस पर पवनदेव ने अपने पुत्र पर अनुग्रह करने की प्रार्थना की। तब ब्रह्मदेव ने मारुति को स्वस्थ कर दिया और उनके आदेश पर लगभग सभी प्रमुख देवताओं ने उन्हें कुछ ना कुछ वरदान दिया। ब्रह्मा जी ने उन्हें ब्रह्मास्त्र तक से सुरक्षा का वरदान दिया। उन्हें एक वरदान देवराज इंद्र ने भी दिया। चूंकि उनके वज्र से मारुति की ठुड्डी (संस्कृत में "हनु") टूटी थी इसी कारण उनका एक नाम हनुमान प्रसिद्ध हुआ। इसके अतिरिक्त इंद्रदेव ने हनुमान को ये वरदान दिया कि उनका शरीर वज्र के समान हो जाएगा और उन पर किसी अस्त्र-शस्त्र का असर नहीं होगा। तभी से उनका एक नाम "वज्रांग" (वज्र + अंग), अर्थात वज्र के समान अंगों वाला पड़ गया।समय के साथ यही "वज्रांग" शब्द अपभ्रंश होकर "बजरंग" हो गया। मूल वाल्मीकि रामायण में आपको "बजरंग बली" शब्द कहीं नहीं मिलेगा। वहां मारुति अथवा हनुमान का ही प्रयोग किया गया है। बजरंग शब्द को प्रसिद्ध करने का वास्तविक श्रेय जाता है गोस्वामी तुलसीदास को। जब उन्होंने अवधी भाषा में श्री रामचरितमानस लिखी तब उन्होंने ही पहली बार वज्रांग को स्थानीय अवधी भाषा में बजरंग लिखा। और इसी कारण हनुमान का एक नाम "बजरंग बली" प्रसिद्ध हुआ जिसका अर्थ होता है वज्र के समान बल वाला।----
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 346
★ भूमिका - निम्नांकित पद भक्तियोगरसावतार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ के 'सिद्धान्त-माधुरी' खण्ड से लिया गया है। 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ में आचार्य श्री ने कुल 21-माधुरियों (सद्गुरु, सिद्धान्त, दैन्य, धाम, श्रीकृष्ण, श्रीराधा, मान, महासखी, प्रेम, विरह, रसिया, होरी माधुरी आदि) में 1008-पदों की रचना की है, जो कि भगवत्प्रेमपिपासु साधक के लिये अमूल्य निधि ही है। इसी ग्रन्थ का 'सद्गुरु-माधुरी' का यह दूसरा पद है, जिसमें श्री कृपालु जी महाराज 'गुरु-तत्त्व' पर प्रकाश डाल रहे हैं। 24-जुलाई 2020 को 'गुरु-पूर्णिमा' का पावन-पर्व है। अतः यह सर्वश्रेष्ठ अवसर है जब हम 'गुरु' की महिमा को समझने एवं अपने जीवन को गुरु के आदेश व सिद्धान्तों से जोड़ने का प्रयास करें :::
अरे मन! सुनु गुरु-तत्व-विचार।'गुं रौतीति गुरुः', व्युत्पत्तिहिँ, गुरु मेटत अँधियार।यद्यपि गुरु-गोविंद दोउ इक, कह वेदादि पुकार।दोउन महँ कोउ मिलइ मिलइ तब, प्रेम-सुधा-रससार।तदपि रहस्य सुनहु मन! गुरु बिन, मिलइ न नंदकुमार।पै 'कृपालु' बिनु हरिहिँ मिलइ गुरु, जय सद्गुरु सरकार।।
भावार्थ - एक तत्वज्ञ अपने मन से कहता है कि हे मन! सद्गुरु तत्त्व का महत्व सुन! जो अज्ञानान्धकार को मिटा दे वही गुरु है। यद्यपि वेदादि के अनुसार गुरु एवं हरि दोनों एक ही हैं एवं इन दोनों में कोई भी कृपा कर दे तो प्रेम सुधा रस मिल जाता है। फिर भी एक रहस्य है, वह यह कि बिना गुरु के हरि की प्राप्ति असंभव है, 'श्री कृपालु जी' कहते हैं जबकि बिना हरि के ही गुरु की प्राप्ति एवं प्रेमानन्द की प्राप्ति सम्भव है। ऐसे सद्गुरु को बार-बार नमस्कार हो।
०० रचनाकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रेम रस मदिरा', सद्गुरु-माधुरी, पद संख्या - 2०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - चातुर्मास भगवान विष्णु जी को समर्पित है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह शुक्ल पक्ष की एकादशी (देवशयनी एकादशी) से चातुर्मास प्रारंभ हो जाता है। चातुर्मास से आशय चार माह की अवधि से है जिसमें सावन, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक माह आते हैं। इस बार 20 जुलाई से चातुर्मास प्रारंभ हो रहा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, चातुर्मास में भगवान विष्णु पाताल लोक में निद्रासन में चले जाते हैं। इस दौरान वे अपना कार्यभार भगवान शिव को सौंप देते हैं। भगवान विष्णु की अनुपस्थिति के कारण विवाह-संस्कार एवं अन्य प्रकार के मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाता है। भगवान विष्णु निद्रासन से देवउठनी एकादशी के दिन जागृत होते हैं और पुनः सृष्टि का लालन-पालन करते हैं। शास्त्रों में चातुर्मास के लिए कुछ विशेष नियम बताए गए हैं जिनका पालन करने से जातकों को जगत के पालनहार भगवान विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।मान्यता के अनुसार चातुर्मास के दौरान काले और नीले रंग के वस्त्र नहीं धारण करने चाहिए। इन वस्त्रों को धारण करने से दोष लगता है और इस दोष की शुद्धि भगवान सूर्यनारायण के दर्शन होती है। इस अवधि में आप उपरोक्त रंग के वस्त्र धारण न करें।चातुर्मास में भगवान विष्णु जी का स्मरण करना चाहिए। इस अवधि में दूसरों को भला-बुरा नहीं कहना चाहिए। चातुर्मास में दूसरों की निंदा करना अथवा निंदा को सुनना पाप माना जाता है। अपने मन में किसी के प्रति बुरे ख्याल नहीं लाएं।मान्यता के अनुसार देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठनी एकादशी तक पलंग अथवा खाट पर नहीं सोना चाहिए, बल्कि इस दौरान भूमि पर बिस्तर लगाकर शयन करना चाहिए। इस नियम का पालन करने वाले जातक को भगवान विष्णु जी आशीर्वाद प्राप्त होता है।चातुर्मास के दौरान कुछ विशेष खाद्य पदार्थों को भी नहीं खाना चाहिए। इस अवधि में मिर्च, उड़द की दाल एवं चने की दाल का त्याग करना चाहिए। इसके अलावा इन चार माह तक जातकों को मांस का सेवन नहीं करना चाहिए। चातुर्मास में ऐसा करने वाला जातक पुण्य का भागी होता है।चातुर्मास में भोजन करते समय वार्तालाप नहीं करना चाहिए, जो व्यक्ति ऐसा करता है वह पाप का भागी माना जाता है, जबकि मौन रहकर भोजन करने वाले जातक को पुण्य प्राप्त होता है। अगर पके हुए अन्न में कीड़े-मकोड़े पड़ जाएं तो वह अन्न अशुद्ध हो जाता है। उसका सेवन नहीं करें।चातुर्मास के दौरान नैतिक मूल्यों और ब्रह्मचर्य का पालन करें। त्याग, तपस्या, जप, ध्यान, स्नान, दान एवं पुण्य के कार्य इस अवधि में लाभकारी और पुण्यकारी माने जाते हैं।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 345साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! ये काम-क्रोध वाले दोष दूर क्यों नहीं हो रहे हैं, जबकि हम रोजाना प्रवचन सुनते हैं, कीर्तन करते हैं, इनमें न्यूनता क्यों नहीं आ पाती है? जैसे अभी तक आपने कहा- जरा सा किसी का धक्का लग गया, तो तुरन्त क्रोध हो जाता है, यह बात बिल्कुल सत्य है। तो महाराज जी! तेजी से अंतःकरण शुद्ध हो, वह स्थिति क्यों नहीं बन रही रही है, कैसे ठीक हो?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: मधुसूदन सरस्वती ने वृन्दावन में गोवर्धन की परिक्रमा किया और भगवान नहीं मिले। फिर किया, फिर किया, फिर किया और बहुत दिन करते रहे परिक्रमा, तब भगवान् के दर्शन हुए, तो मधुसूदन ने पीठ कर लिया भगवान् की तरफ। वो रूठ गये, कहने लगे - तुम इतने देर में क्यों आए? तो भगवान् ने दिखाया, उनके पापों का पहाड़ कि तुम्हारे इतने पाप थे कि ये सब जल जायँ, भस्म हो जायँ, तब तो मैं आऊँ। तो अनन्त जन्मों के पाप हमारे हैं, इतना गंदा अंत:करण है कि अगर कपड़ा थोड़ा मैला है तो एक बार साबुन लगाओ, साफ हो गया और अगर धोया ही नहीं है कभी तो गंदा ही रहेगा। चौबीस घण्टे ये भी फीलिंग नहीं है अभी कि भगवान् हमारे अंत: करण में बैठा है, छोटी सी बात।'भगवान् हमारे अंत: करण में नित्य रहता है' - ये सुना है, पढ़ा है? 'हाँ'। और 'भगवान् सर्वव्यापक है?' 'हाँ'। पर मानते हो? एक घण्टा भी नहीं मानते, 24 घण्टे में। तो साधना क्या कर रहे हो जो बड़ा भारी फल मिल जाए तुमको। साधना गलत कर रहे हो, लापरवाही कर रहे हो, अपनी प्राइवेसी रख रहे हो। हम जो सोच रहे हैं, कोई नहीं जानता। वो (भगवान) बैठा-बैठा नोट कर रहा है, कहते हो कोई नहीं जानता।अगर सही साधना लगातार करता रहे, तो एक दिन लक्ष्य प्राप्त हो जाएगा, असम्भव नहीं है। बड़े-बड़े पापात्मा महापुरुष बने हैं, इतिहास साक्षी है। लेकिन थोड़ी साधना करो, बहुत बड़ा फल चाहो ऐसा नहीं हो सकता। अपने आपको धिक्कारो, अपनी कमी मानो। हम लेक्चर सुन लेते हैं, कीर्तन-आरती कर लेते हैं, ये कोई साधना है।उनके लिए आँसू बहाओ और हर समय, हर जगह महसूस करो कि वो हमारे साथ हैं - ये साधना है, असली। अहंकार से युक्त हो करके मनुष्य कीर्तन में बैठा, तो आराम से मुँह से बोल रहा है, न रूपध्यान कर रहा है, न आँसू बहा रहा है। ये सब लापरवाही है। उसको पता नहीं है कि कल का दिन मिले या न मिले, रात को ही हार्टफेल हो जाए, क्या पता? यही लापरवाही हमने हर मानव-देह में किया। अनन्त बार हमें मनुष्य का शरीर मिला। बहुत दुर्लभ है, फिर भी मिला। और हर मानव देह में हमने क्या किया? माँ-बाप में, सब में, पड़ोसी में, लग गए चौबीस घण्टे। एम.ए. करो, डी .लिट्. करो, पी.एच.डी किया, ये किया, वो किया। अब क्या करें? अब सर्विस करो, सर्विस ढूँढा, जगह-जगह परेशान हुए, नहीं मिली, फिर मिल गई सर्विस। अब क्या करो? अब ब्याह कर लो। उसके बाद 2-4-6 बच्चे हो गए, अब फिर उनका पालन-पोषण करो और उनके दुःख में दु:खी हो। बुढ़ापा आ गया, नाती-पोते हो गए, अब उन्ही का चिंतन, मनन। एक्टिंग में चले गए मन्दिर या अपने घर में ही दो मिनट बैठ गए। ये क्या है? ये तो जान-बूझकर जैसे मनुष्य शरीर को समाप्त करना चाहते हैं और कहते हैं, अपने बेटे से - देखो बेटा! मैं तो 70 साल का हो गया, मेरी तो बीत गई, तुम अपनी सोचो। मेरी तो बीत गई। क्या बीत गई? जब तुम मरोगे तो क्या रिकॉर्ड होगा? कहाँ जाओगे? अरे जो होगा देखा जाएगा। देखा नहीं जाएगा, भोगा जाएगा। बड़ा कमाल दिखाया तुमने, दस-बीस कोठी बना ली, दस-बीस करोड़ कमा लिया, दस-बीस बच्चे पैदा कर लिए। अरे, ये सब क्या है? वो तो कुत्ते-बिल्ली भी करते हैं, इसमें तुमने कौन-सा कमाल किया। सब पशु-पक्षी पेट भरते हैं अपना।जिस काम को करने के लिए प्रतिज्ञा की थी माँ के पेट में, भगवान् से कि महाराज! हमें निकालो इस नरक से, हम आप ही का भजन करेंगे, वह भूल गए। और सबकी देखा-देखी, वह उधर भाग रहा है, तुम भी भागो। सब लोग भाग रहे हैं, मैटीरियल साइड में कि यहीं आनंद है, एक लाख में, एक करोड़ में, एक अरब में। बस भागे जा रहे हैं। किसी से भी पूछ लेते कि अरबपति किस हाल में है? क्यों भई! आपका क्या हाल है? तो अगर वह बोलेगा ईमानदारी से तो कहेगा कि दिन-रात टेंशन है और नींद की गोली खाकर सोते हैं। उसी सीट पर जाना चाहते हो? अरे! शरीर चलाने के लिए भी कर्म करना है, ये सही है, लेकिन ये लिमिट में करो, रोटी-दाल मिल जाय, बस। परवाह होनी चाहिए। देखो बच्चों को, छह-आठ महीने तो मटरगशती करते हैं पढ़ाई में और जब परीक्षा का एक महीना रह गया तो सारी रात जागते हैं, पढ़ते हैं। यदि ऐसी पढ़ाई शुरू से ही किए होते तो टॉप करते। हम लोगों को कोई जब संसारी मुसीबत आ गई, बेटा सीरियस है, ये है, वो है - भगवान्! हम मान गए आप हो। अच्छा, अब कृपा करके इसको ठीक कर दो। ऐसे फिर भगवान कहते हैं - बेवकूफ बनाने के लिए हम ही मिले हैं, तुमको। हमेशा तो तुम लापरवाह रहे।सोचो, बार-बार सोचने से साधना होगी। बार-बार फील करना - अरे! इतनी उम्र बीत गई, अब अगर जिन्दा भी रहे तो बुढ़ापे में क्या करोगे? जल्दी करो। सबको पता है कि हम माया के अण्डर में हैं, काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष सब भरा हुआ है, सबके अंदर। लेकिन इन्हीं दोषों में से एक दोष किसी का कोई कह दे - आप जरा क्रोधी हैं, आप जरा लोभी हैं, आप जरा स्वार्थी हैं, आप जरा मक्कार हैं। सही बात तो कह रहा है। क्यों फील करते हो? तुमको तो पता है। हाँ, यह बात ठीक कह रहा है। कोई व्यापारी है, उसे कहते हैं ये व्यापारी हैं, सेठ जी हैं, वह बुरा तो नहीं मानता कि हमको कलेक्टर कहो। तुम जो कुछ हो, उसी में से तो कोई कुछ कहेगा। अरे वो बड़ा स्वार्थी है। अरे! भला बताओ स्वार्थी तो महापुरुष, भगवान्, संसार भर है। कौन स्वार्थी नहीं है? असली हो या नकली, स्वार्थ सब स्वार्थ है।०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' (भाग - 1), प्रश्न संख्या - 78०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - खाने में स्वाद का सबसे प्रमुख कारक होने के साथ ही नमक हमारे जीवन को भी संतुलित रखने में अहम भूमिका निभाता है. ज्योतिष शास्त्र और वास्तु एक्सपर्ट्स के मुताबिक, चुटकी भर नमक घर की नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर घर में पॉजिटिव माहौल बनाता है, जिससे सुख-समृद्धि आती है, और मानसिक शांति बनी रहती है. आइए जानते हैं कि नमक का इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है..पोछा लगाते वक्त पानी में डालें नमकघर में सकारात्मक ऊर्जा (Positive Energy) का माहौल बना रहे, और नकारात्मकता दूर हो, परिवार के सदस्यों के बीच क्लेश और झगड़े ना हों, इससे बचने के लिए घर में जब भी पोछा लगाएं तो उस पानी में चुटकी भर नमक डाल दें. नमक वाले पानी से घर में पोछा लगाने से पॉजिटिव एनर्जी आती है, जिससे परिवार के सदस्यों के बीच रिश्ते बेहतर होते हैं.कांच में जार में ही रखना चाहिए नमकआप अपने घर में नमक को किस बर्तन में रखते हैं इसका भी वास्तु पर काफी प्रभाव पड़ता है. लिहाजा नमक को कभी भी स्टील या लोहे के बर्तन में नहीं रखना चाहिए. नमक को हमेशा कांच के बर्तन (Glass Jar) या जार में ही रखें. ऐसा करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है, और आर्थिक दिक्कतें भी नहीं आती. आप चाहें तो नमक के जार में 1 लौंग भी डाल सकते हैं.ऐसा करने से घर का कोई सदस्य नहीं होगा बीमारकई बार राहु के नकारात्मक प्रभाव के कारण भी घर में नेगेटिव ऊर्जा का संचार होने लगता है, जिसकी वजह से परिवार के सदस्य बीमार रहने लगते हैं. इससे निपटने के लिए कांच की कटोरी में सेंधा नमक की डलियां भरकर बाथरूम में रखना चाहिए. हर 15 दिन में 1 बार इस नमक को बदलते रहें. ऐसा करने से राहु के निगेटिव असर को दूर करने में मदद मिलती है.नहाने के पानी में मिलाएं चुटकी भर नमकअगर आपको मानसिक शांति नहीं मिल रही, किसी वजह से तनाव और स्ट्रेस (Stress) बहुत अधिक हो गया है, काम में मन नहीं लग रहा तो इसमें भी आपकी मदद कर सकता है नमक. इसके लिए अपने नहाने के पानी में चुटकी भर नमक मिलाएं और उससे नहाएं. आप चाहें तो रात में सोने से पहले नमक वाले पानी से हाथ-पैर धो सकते हैं. ऐसा करने से तनाव दूर होता है और अच्छी नींद आती है.दाल-सब्जी में ऊपर से ना डालें नमकखाना खाते समय दाल या सब्जी आदि में नमक या मिर्च कम लगे तो ऊपर से न डालें. ऐसे में काला नमक या काली मिर्च का प्रयोग करें. ऐसा करने से शनि, चंद्र और मंगल का दुष्प्रभाव नहीं होगा. इसके अलावा अगर कोई लंबी बीमारी से ग्रसित है तो उसके सिरहाने कांच के एक बर्तन में नमक रखें. एक सप्ताह बाद उस नमक को बदल कर दोबारा नमक रख दें. धीरे-धीरे सेहत में सुधार होने लगेगा.
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 344
(भूमिका - साधक को सदा गुरु के सिद्धान्त के अनुकूल ही सोचना, चलना चाहिये. इसके अतिरिक्त और कुछ महत्वपूर्ण मार्गदर्शन, जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज की श्रीवाणी में...)
मनुष्य में एक ही विशेषता है, वह यह कि वह किसी तत्व का सत्य ज्ञान प्राप्त कर सकता है। लेकिन जब तक उस तत्व के अनुकूल बार-बार विचार न किया जाय, वह ज्ञान मिट जाता है एवं मनुष्य को और भी पतन के गर्त में गिरा देता है।
बार-बार विचार हो और सदा हो, और अनुकूल ही हो, बस, यदि यह समझ में कभी आ जायेगा तो भविष्य बन जायेगा। इसके साथ यह भी ध्यान रखना होगा कि इष्टदेव एवं गुरु के प्रति निष्ठा करता रहे। यदि वहीं गड़बड़ हुई तो सब महल ढह जायेगा। और ऐसे व्यवहार से इष्टदेव अथवा गुरु को और भी दुःख देने के हम कारण बन जायेंगे। भावार्थ यह कि चार पैसे की खोपड़ी को उधर न लगाया जाए, सदा अनुकूल चिन्तन एवं कृपा को ही सोचा जाय। संसारी जीवों से कम से कम व्यवहार किया जाय, कम से कम सोचा जाय, कम से कम सुना जाय, कम से कम बोला जाय।
केवल गुरु के मिलन का महत्व सोच-सोचकर ही जीव का परम कल्याण हो सकता है क्योंकि वह प्रत्यक्ष है। यदि बुद्धि का व्यापार बंद न होगा तो अनन्त जन्म में भी कुछ न मिलेगा। यही एकमात्र विचारणीय है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, नवम्बर 1999 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - वास्तु शास्त्र में विभिन्न बातों का उल्लेख किया गया है। अगर इन बातों को ध्यान में रखकर हम अपने घर का निर्माण करें तो घर के सदस्यों के ऊपर मां लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है। ऐसे में आज हम वास्तु के उन सिद्धांतों के बारे में जानेंगे, जिनका घर बनवाते वक्त खासतौर पर ध्यान रखना चाहिए। वास्तु शास्त्र में दिशाओं का काफी विशेष महत्व होता है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार उत्तर दिशा भगवान कुबेर की होती है, जो धन और यश के प्रतीक हैं। मान्यता है कि अगर घर बनवाते वक्त उत्तर दिशा का वास्तु ठीक है, तो घर के सदस्यों की खूब बरकत होती है। कारोबार और बाकी क्षेत्रों में खूब सारा लाभ अर्जित होता है। व्यक्ति का घर धन-धान्य से भर जाता है। घर-परिवार के लोगों का स्वास्थ्य काफी बढ़िया रहता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि वास्तु शास्त्र में उत्तर दिशा के लिए किन-किन महत्वपूर्ण सिद्धांतों का वर्णन किया गया है, जिन्हें घर बनवाते वक्त खासतौर पर ध्यान रखना चाहिए।वास्तु शास्त्र में बताया गया है कि घर की दीवारों पर अगर दरारें आ रही हैं, तो ये काफी अशुभ संकेत है। इसके चलते परिवार के सदस्यों के बीच मतभेद भी जन्म ले सकता है। ऐसे में समय-समय पर घर की उत्तर दिशा की दीवार को जरूर देखें कि वहां पर कोई दरार तो नहीं है।वास्तु के मुताबिक घर की उत्तर दिशा में पानी का नल या मोटर नहीं लगाना चाहिए। इसके चलते घर की आर्थिक स्थिति खराब हो सकती है। उत्तर दिशा में बाथरूम या टॉयलट का निर्माण कभी ना करवाएं। इससे भविष्य में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। घर बनवाते समय इस बात का भी ध्यान रखें की उत्तर दिशा में किचन का निर्माण ना हो। इससे परिवार की शांति में खलल पड़ती है।हो सके तो घर के भीतर अंडरग्राउंड पानी का टैंक उत्तर-पूर्व दिशा में बनवाएं। इसे काफी शुभ माना गया है। वास्तु शास्त्र में इस बात का उल्लेख मिलता है कि घर की उत्तर दिशा में पूजा का स्थान बनवाने से परिवार मेंं शांति का वास होता है और आर्थिक स्थिति काफी मजबूत होती है। इस बात का ध्यान रखें कि घर के भीतर किसी भी जंगली जानवर की तस्वीर ना लगी हो। वास्तु शास्त्र में घर के भीतर जानवरों की तस्वीर लगाना काफी अशुभ माना गया है।मान्यता है कि उत्तर दिशा में भगवान कुबेर का वास होता है। इस कारण उत्तर मुखी भवन की तरफ बहुत सारी खुली जगह छोड़नी चाहिए। इसे काफी शुभ माना गया है। ऐसा करने से व्यक्ति के घर में कभी भी धन की कमी नहीं होती है। घर के टेरेस को उत्तर दिशा में खुला होना चाहिए ताकि सकारात्मक ऊर्जा का संचार घर के भीतर बना रहे।-
- हस्तरेखा विज्ञान के मुताबिक कई ऐसे लोग भी होते है, जिनसे हमें बचकर रहना चाहिए. ऐसे लोग झगड़ालू और हिंसक किस्म के होते हैं. ऐसे लोगों को हम हाथ की रेखाएं या कुछ दूसरे गुणों को देखकर पहचान सकते हैं. हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार यदि हाथ में अंगूठे का दूसरा भाग लंबाई में बना हो तो ऐसे लोग भी काफी चालाक किस्म के होते हैं. इस तरह के लोग सामाजिक रूप से बहुत अधिक सक्रिय रहते हैं. हालांकि ये लोग मिलनसार प्रवृत्ति के होते हैं.भारी हथेली वाले होते हैं हिंसकऐसे जातक जिनकी मस्तिष्क रेखा छोटी, मोटी या फिर लाल रंग की होती है. जिनकी हथेली भारी और खुरदुरी होती है. साथ ही अंगूठे का आकार सामान्य से कहीं छोटा और मोटा होता है. माना जाता है कि ऐसे लोग आपराधिक प्रवृति के होते हैं. ये अपने साथ दूसरों को भी परेशानी में डालते हैं.छल कपट से नहीं करते परहेजऐसे जातक जिनकी हथेली बहुत सख्त, पतली या फिर लंबी होती है. कई ऐसे भी होते हैं, जिनकी उंगलियां हथेली की ओर मुड़ी हुई हों. ऐसे जातक अपनी खुशी के लिए किसी को भी तकलीफ देने से पीछे नहीं रहते. कई बार तो वे अपने फायदे के लिए अपनों के साथ भी छल करने से पीछे नहीं हटते.बात-बात पर करते हैं विवादजिनकी मस्तिष्क रेखा कई टुकड़ों में विभाजित हो या फिर नाखूनों का आकार सामान्य से भी छोटा और गहरे लाल रंग का हो. उसे हमेशा सतर्क रहना चाहिए. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ऐसे लोग झगड़ालू होते हैं और बात-बात पर विवाद करना उनकी आदत होती है.ऐसे लोगों से रहें बचकरजो झगड़ालू किस्म के लोग हों या किसी जन्मजात मानसिक विकृति का शिकार हों. ऐसे लोगों से हमेशा संभलकर रहना चाहिए. उनसे बचने का बेहतर तरीका ये है कि आप उनसे एक निश्चित दूरी बनाकर रखिए और बस काम से काम रखिए.
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 343
(भूमिका - प्रस्तुत उद्धरण में जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज यह समझा रहे हैं कि क्यों एक मायाधीन मनुष्य को मायातीत महापुरुष तथा मायाधीश भगवान द्वारा की गई लीलाओं/कर्मों की नकल नहीं करनी है? साथ ही इस रहस्य और भी प्रकाश डाला गया है कि कैसे भगवान और महापुरुष ऐसे कर्म कर लेते हैं जो साधारण बुद्धि से मायिक मनुष्यों जैसे प्रतीत होते हैं....)
...शुकदेव परमहंस महारास सुना रहे थे उसी बीच में यह प्रकरण आया कि श्रीकृष्ण अन्तर्धान हो गये और गोपियाँ विलाप करने लगीं। परीक्षित सुनते रहे। इतने में बीच में बोल पड़े परीक्षित कि महाराज! एक छोटा सा सवाल और है। क्या? ये पराई स्त्रियों के साथ श्रीकृष्ण ने जो रास किया ये तो ठीक नहीं लगता। पराई स्त्रियों के साथ?
संस्थापनाय धर्मस्य प्रशमायेतरस्य च।अवतीर्णो हि भगवानंशेन जगदीश्वरः॥(भाग. 10-33-27)
स कथं धर्मसेतूनां वक्ता कर्ताभिरक्षिता।प्रतीपमाचरद् ब्रह्मन् परदाराभिमर्शनम्॥(भाग. 10-33-28)'परदारा' - दूसरी स्त्रियों के साथ श्रीकृष्ण ने रास का व्यवहार किया। क्यों? ये वेद विरुद्ध है और वेद श्रीकृष्ण का ही वाक्य है। अगर स्वयं ऐसा करेंगे वो, तो फिर और लोग क्या करेंगे। जब वेद बनाने वाला, वेद नहीं मानेगा तो फिर साधारण जीव कैसे मानेंगे। इसलिये महाराज! ये तो कुछ जमती नहीं बात। तो शुकदेव परमहंस ने कहा - हाँ, हाँ, ऐसा है कि ये जो बुद्धि है न, उसके अण्डर में मन है, उसके अण्डर में इन्द्रियाँ हैं ये सब के सब मैटीरियल हैं, मायिक हैं, प्रकृति से बने हैं और आत्मा परमात्मा से बना है उसका अंश है, दिव्य है। तो ये मायिक इन्द्रिय मन बुद्धि से ये बात समझ में नहीं आ सकती। अरे महाराज ! कुछ तो समझाइये। अच्छा सुन;
ईश्वराणां वचः सत्यं तथैवाचरितं क्वचित्।तेषां यत् स्ववचोयुक्तं बुद्धिमांस्तत् समाचरेत्॥(भाग. 10-33-32)
देखो जो समर्थ लोग हैं भगवान् और महापुरुष इनकी वाणी का पालन करो। आज्ञा का पालन करो, आचरण का नहीं। क्यों? इसलिये कि ये वेद के कायदे कानून को क्रॉस कर गये, लाँघ गये, ये किसी के गुलाम नहीं हैं;
यान्यस्माक्ं सुचरितानि। तानि त्वयोपास्यानि नो इतराणि।(तैत्तिरीयो. 1-11)
वेद कह रहा है। तुम जिस कक्षा में हो उस कक्षा की बात मानो। पिताजी तो यूनीवर्सिटी नहीं जाते पढ़ने और हमसे कहते हो कि जाओ। तुम्हारी अटैन्डेन्स कम हो जायेगी। तो पिताजी तो कभी नहीं जाते यूनीवर्सिटी। अरे! पिताजी यूनीवर्सिटी पास कर चुके वो क्यों जायेंगे गधा! अरे! तुझको पढ़ना है तू जाया कर। जब तू यूनीवर्सिटी पास कर जायेगा न, तो तुम भी नहीं जाना कभी, कोई नहीं कहेगा।कक्षा की बात है, जिस कक्षा में जो जीव है वो अपनी कक्षा के अनुसार चले। दर्जा एक में पढ़ने वाले को लॉ क्लास में दाखिला दे दो तो क्या करेगा बेचारा, बैठा रहेगा ऐसे ही वो क्या समझेगा कानून की किताबों को। संसार में भी नहीं कोई सफल हो सकता। तो शुकदेव परमहंस कहते हैं;
धर्मव्यतिक्रमो दृष्ट ईश्वराणां च साहसम्।तेजीयसां न दोषाय वह्नेः सर्वभुजो यथा॥(भाग. 10-33-30)
जो ईश्वर लोग हैं, समर्थ लोग हैं, मायातीत लोग हैं, भगवान् हों, चाहे महापुरुष हों, इनके व्यवहार को मत देखो। ये धर्म भी इनको नहीं बाँध सकता, अधर्म भी नहीं इनको बाँध सकता। जैसे कोई बीज होता है गेहूँ चना इसका लावा बन जाय। भाड़ में डाल करके चबैना बन जाये तो उस भुने हुये चने को, भुने हुये गेहूँ को फिर आप खेत में डाल दें तो अंकुर नहीं पैदा होगा। उसका जो बीज, उसकी शक्ति थी वो समाप्त हो चुकी । तो इसलिये;
गुणातीतः स्थितप्रज्ञो विष्णु भक्तश्च कथ्यते।एतस्य कृतकृत्यत्वाच्छास्त्रमस्मान्निवर्तते॥(वेदव्यास)
ये जितना उपदेश आप को दिया जाता है सच बोलो, झूठ नहीं बोलो। ये वेद का उपदेश है - सच बोलोगे तो अच्छा फल मिलेगा, झूठ बोलोगे तो खराब फल मिलेगा। अब एक महात्मा के पास गये, क्यों साहब आप सच बोलते हैं? मैं सच क्यों बोलूँ? मुझे कोई अच्छा फल नहीं चाहिये, मुझे तो भगवान् मिल गया, अच्छा फच्छा क्या करूँगा मैं लेकर, तो आप झूठ से प्यार करते हैं? मैं क्यों बोलूँ? यानी मुझे न नरक चाहिये न स्वर्ग चाहिये, तो सच-झूठ, धर्म-अधर्म से हमारा मतलब क्या? हमारे वर्क का वर्कर भगवान् है वो हमसे अच्छा करावे चाहे बुरा करावे। यानी एक पार्टी जिसको अच्छा कहती है दूसरी पार्टी उसको बुरा कहती है। तो देखो परीक्षित! अग्नि सब कुछ खा लेती है उसमें पाखाना डाल दो, मुर्दा डाल दो, जिन्दा डाल दो, सोना-चाँदी डाल दो, हीरा-मोती डाल दो, लक्कड़-पत्थर डाल दो, अग्नि सबसे प्यार करती है। सबको अपना स्वरूप प्रदान कर देती है। वो गन्दी नहीं होती। अग्नि अपनी पर्सनैलिटी में रहती है और सब कुछ खा जाती है, 'सर्वभुक्त' उसका नाम है।
रवि पावक सुरसरि की नाईं।
गंगा जी में हजारों नाले गन्दे बह कर जाते हैं और आप लोग आचमन लेते हैं - जय हो! जय हो! गंगा मैया की जय! वो जितने नाले गंगाजी में गये सब गंगा जी बन गये। गंगा जी गन्दी नहीं हुईं। वो जो गन्दी चीज़ गयी वो गंगा जी बन गयी। तो इसलिये सुन परीक्षित, उन समर्थ लोगों में वो दोष नहीं जायेगा, उनसे जो प्यार करेगा वो शुद्ध हो जायेगा। लेकिन ये समर्थ लोगों के लिये मैं बता रहा हूँ परीक्षित।
नैतत् समाचरेज्जातु मनसापि ह्यनीश्वरः।
जो अनीश्वर है, असमर्थ है, यानी जो माया के अण्डर में है वो मन से भी उन सिद्धों की नकल न सोचे, करना तो बहुत दूर की बात है वरना;
विनश्यत्याचरन् मौढ्याद्यथारुद्रोऽब्धिजं विषम्।।(भाग. 10-33-31)
शंकर जी हालाहल पी गये और नीलकण्ठ की डिग्री मिल गयी लेकिन तुम अगर मामूली पॉयज़न, संखिया, अफीम भी ज्यादा मात्रा में खा लोगे तो 0/100 हो जाओगे। तुमको नकल नहीं करना। एक नट 200 फुट की ऊँचाई पर एक रस्सी बाँधकर उसके ऊपर चलता है लेकिन नट यह नहीं कह रहा है कि आप लोग भी अपने घर में ऐसे ही कीजियेगा। वो नट जो इतनी ऊँचाई पर चल रहा है उसने 20 साल प्रैक्टिस की है। आप भी 20 साल उसी प्रकार प्रैक्टिस करके उतनी योग प्राप्त कर लीजिये फिर आप भी चलिये रस्सी के ऊपर। अभी मत चल दीजिये। जो जहाँ है वहाँ की नकल करे उससे आगे वाली न करे और संसार में भी आप लोग नकल आगे वाले की नहीं करते। एक तहसीलदार है वो डी. एम. की कुर्सी पर जाकर नहीं बैठ जायेगा, सस्पैण्ड कर देगा फिर वो। यहाँ कैसे हमारी कुर्सी पर बैठे? साहब! आप भी तो हमारी कुर्सी पर बैठे थे। मैं बैठ सकता हूँ तेरी कुर्सी पर, तू कैसे बैठ सकता है मेरी कुर्सी पर? हाँ। (ध्यान दो) मायाबद्ध मायातीत का अनुकरण नहीं कर सकता, मायिक का अनुकरण कर सकता है।
अरे, गधे की अकल से समझो। आप लोग जो बड़े विद्वान् हैं वो मूर्खता की एक्टिंग कर सकते हैं। जैसे - आपको बोलना आता है, भाषा ज्ञान है लेकिन आप मूर्खता की एक्टिंग करना चाहते हैं कहीं पर, तो आप कह देते हैं - मैं जाती थी, उसने बोली थी, ऐसी निष्काम प्रेम अण्डबण्ड भाषा में बोलो, तो लोग कहेंगे ये तो घोर मूर्ख हैं जी। 'डोन्ट टॉक' को बोलो 'डीन्ट टौक', लोग समझ लेंगे कि ये बेवकूफ है पढ़ा लिखा नहीं है। यानी समझदार नासमझ की एक्टिंग कर सकता है लेकिन नासमझ समझदार की एक्टिंग कैसे करेगा? गाउन पहना दो किसी अँगूठा छाप को और खड़ा कर दो हाईकोर्ट में साहब! आप हमारी वकालत कीजिये। अरे! यह क्या वकालत करेगा बेचारा, उसको क-ख-ग-घ नहीं आता। तो समर्थ असमर्थ की एक्टिंग करते हैं, किया है। सब भगवान् के अवतार और महापुरुषों ने किया है।
भक्त हेतु भगवान् प्रभु राम धरेउ तनु भूप।किए चरित पावन परम प्राकृत नर अनुरूप॥
संसारी आदमियों की एक्टिंग कर रहे हैं भगवान् और सारे सन्त भी। हनुमान जी राम से पूछ रहे हैं - आप कौन हैं? और राम हनुमान जी से पूछते हैं - आप कौन हैं? हाँ, जरा सोचिये, ये सुप्रीम पॉवर का यह हाल है। हनुमान जी कहते हैं;
की तुम तीन देव महँ कोऊ।
तुम ब्रह्मा हो? भगवान् ने सिर हिलाया नहीं, विष्णु हो? नहीं। शंकर हो? नहीं। नर हो? नहीं। अरे! तो तुम हनुमान जानते नहीं कि मैं कौन हूँ? नहीं, मैं नहीं जानता। मुझे क्या मालूम? अपने वक्षस्थल को चीर कर दिखलाने वाले हनुमान जी को नहीं मालूम है। अपने इष्टदेव को नहीं पहचानते हैं, ये कितना बड़ा आश्चर्य। यानी एक्टिंग भी कितनी अन्तिम सीमा की कोई सुने तो हँसे। और इसी प्रकार फिर राम ने भी पूछा- आपकी तारीफ?
राम ने अपनी तारीफ बता दी कि भाई देखो मैं न ब्रह्मा हूँ, न विष्णु हूँ, न शंकर हूँ, न नर हूँ। मैं क्या हूँ बता दूँ। हाँ बताओ बताओ।
कौशलेश दशरथ के जाए।हम पितु वचन मानि वन आए।।
हम दशरथ जी के बेटे हैं भाई, राजकुमार हैं।
इहाँ हरी निसिचर वैदेही।खोजत विप्र फिरहिं हम तेही॥
यहाँ हमारी श्रीमती जी को राक्षस लोग कहीं चुरा ले गये हैं उन्हीं को हम ढूँढ़ रहे हैं। आपकी तारीफ? हनुमान जी से कहते हैं, मैंने अपना परिचय दे दिया अब तुम भी बोलो। तो हनुमान जी ने कहा कि...। अब देखो अभी तो हनुमान जी अल्पज्ञ बने हुये थे अब सर्वज्ञ बन गये। अरे!
मोर न्याउ मैं पूछा साईं।तुम कस पूछत नर की नाईं॥
क्यों जी, जब महापुरुष और भगवान् एक हैं वेद से लेकर रामायण तक हर ग्रन्थ, हर सन्त, हर पन्थ कहता है तो तुम्हारा कैसा न्याय है पूछने वाला। जान जान करके कोई अनजान बने, ये तो बहुत बड़ी 420 है और भगवान् को ही ठगे। उन्हीं से कहे तुम कौन हो। तो ये महापुरुषों ने भी, सारे महापुरुषों ने ऐसी एक्टिंग की। पार्वती को मोह हो गया, गरुड़ को मोह हो गया, शंकर जी को मोह हो गया, ब्रह्मा को मोह हो गया।
शिव विरंचि कहं मोहई को है बपुरा आन।
तो ये भगवान् और महापुरुष अज्ञान की एक्टिंग करते हैं। मायिक वर्क करते हैं लेकिन मायिक व्यक्ति इनके क्लास का अभिनय नहीं कर सकता। उसके लिये सख्त हिदायत है- 'मनसापि' मन से भी न सोचना। प्रेक्टीकल तो बहुत दूर की बात है। शुकदेव जी का मूड ऑफ हो गया उन्होंने महारास सुनाना ही बन्द कर दिया। भागवत में महारास का वर्णन है ही नहीं कुछ। पाँच अध्याय में सब कुछ। क्योंकि शुकदेव परमहंस ने देखा कि ये बार-बार इसकी खोपड़ी में बीमारी पैदा होती है वही, ये अधिकारी नहीं है, इसलिये बिना अधिकारी व्यक्ति पाये उससे ऊपर वाली कक्षा की बात को कहना वक्ता का दोष है। वक्ता को यह ध्यान रखना चाहिये कि किस क्लास के जीव हैं वहीं तक इनको ले जायेंगे उसके आगे नहीं ले जायेंगे। नहीं तो मस्तिष्क फट जायेगा। कोई भी महापुरुष अपनी इच्छानुसार संसार में प्रवचन नहीं दे सकता। कोई भी महापुरुष। क्योंकि उसको डर लगा रहता है, हमेशा अगर मैं इसको और गहराई में ले गया तो ये तो बिचारा कुछ नहीं समझ पायेगा इसीलिये यहीं तक छोड़ दो इसको, क्या करे? आजादी से तो गोलोक में बोल सकता है। जहाँ सब परिपूर्ण हैं प्रैक्टिकल एक्सपीरियंस है सबको और जहाँ थ्योरिटीकल नॉलेज भी न हो और अगर थ्योरिटिकल हो भी जाय तो बिना अनुभव के समाधान नहीं हो सकता।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हिंदू धर्म में माथे पर लगाये जाने वाले तिलक का बहुत महत्व है.तिलक कई प्रकार के होते हैं.जैसे लंबा तिलक, गोल तिलक, आड़ी तीन रेखाओं वाला तिलक,आदि.भगवान शिव के साधक त्रिपुण्ड तिलक लगाते हैं.वहीं शक्ति की साधना करने वाले गोल बिंदी की तरह का तिलक लगाते हैं.कहते हैं कि बगैर माथे पर तिलक लगाए कोई भी पूजा अधूरी मानी जाती है.यही कारण है कि किसी भी शुभ कार्य पर हमारे यहां तिलक लगाने की परंपरा रही है.आइए जानते हैं कि तमाम तरह के लगाए जाने वाले तिलक का क्या कुछ महत्व है –तिलक के प्रकारतिलक मूलत: तीन प्रकार का होता है.एक रेखाकृति तिलक, द्विरेखा कृति तिलक और त्रिरेखाकृति तिलक.इन तीनों प्रकार के तिलक के लिए चंदन, केशर, गोरोचन और कस्तूरी का प्रयोग किया जाता है.जिनमें कस्तूरी का तिलक सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है।भस्म का तिलकशैव परंपरा से जुड़े साधु-संत लोग अक्सर अपने शरीर पर भस्म लगाए दिख जाएंगे.पूजा में हवन के बाद भी हवन की भस्म का तिलक लगाने की हमारे यहां परंपरा रही है.उपाय के तौर पर मान्यता है कि शनिवार के दिन भस्म का चंदन लगाने से भगवान भैरव प्रसन्न होकर अपनी कृपा बरसाते हैं।चंदन का तिलकमाथे पर लगाया जाने वाला चंदन का तिलक हमारे मन को शीतलता प्रदान करता है.इसे लगाने से एकाग्रता बढ़ती है.चंदन कई प्रकार का पाया जाता है.जिसमें लाल चंदन का तिलक लगाने से व्यक्ति के भीतर ऊर्जा का संचार होता है.इसी तरह पीला चंदन या हल्दी का तिलक लगाने देवगुरु बृहस्पति की कृपा मिलती है.कुंकुम का तिलकपूजा-पाठ में अमूमन कुंकुम का तिलक ही प्रयोग में लाया जाता है.हल्दी के चूर्ण को नींबू के रस से भावना देकर कुंकुम को बनाया जाता है, जिसे अक्सर शादीशुदा महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र और सौभाग्य के लिए माथे पर लगाती हैं.सिंदूर का तिलककई देवी-देवताओं को सिंदूर का तिलक लगाया जाता है.सिंदूर का तिलक तमाम तरह की बाधाओं को दूर करने वाला होता है.यही कारण है कि हनुमत और गणपति साधना में इसका विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है.जैसे मंगलवार और शनिवार को श्री हनुमान जी के कंधे पर लगे सिंदूर को प्रसाद स्वरूप तिलक लगाने से जीवन से जुड़ी सभी समस्याएं दूर होती हैं.--
- ज्योतिष विज्ञान के प्रति मनुष्य की हमेशा से जिज्ञासा रही है। एक मनुष्य के जीवन में होने वाली या हो रही घटनाओं को समझने के लिए फलित का ज्ञानी होना बेहद जरुरी है। आज इस लेख में हम समझने की कोशिश करेंगे कि कैसे एक व्यक्ति की कुंडली में उत्तम ज्योतिषी बनने का योग बनता है। साथ ही उन सभी सूत्रों को एक उदाहरण कुंडली से भी समझने की कोशिश करेंगे। एक व्यक्ति को ज्योतिष का मर्मज्ञ बनने के लिए कुंडली के कुछ भाव और ग्रहों का साथ मिलना बेहद जरुरी है। इस लेख में हम सबसे पहले उन्ही योगों की चर्चा करते है।उत्तम ज्योतिषी बनने के लिए लग्नेश का बलवान होना बेहद जरूरी है या फिर वो राजयोग बना रहा हो। लग्न मनुष्य का स्वभाव, उसकी आत्मा है और ऐसे उत्तम कार्य के लिए लग्न का बली होना जरूरी है।उत्तम ज्योतिषी बनने के लिए वाणी भाव यानी दूसरे भाव का संबंध गुरु, शुक्र और बुध से होना चाहिए। इस कार्य में वाणी की ही महत्ता है और वाणी भाव का स्वामी जब भी पंचमेश, अष्टमेश के साथ राजयोग बनाता है तब तब ऐसे व्यक्ति की वाणी अत्यंत प्रभावशाली हो जाती है।पंचम भाव पिछले जन्म को दर्शाता है वहीं आठवां भाव गूढ़ विद्या का कारक है। आठवें भाव में बैठा ग्रह दूसरे भाव यानी वाणी भाव को देखता है तो ऐसे में जब जब पंचम का स्वामी आठवें भाव के स्वामी के साथ उसी भाव में बैठ जाए और उसे शनि का साथ मिल जाए तो ऐसा जातक त्रिकालदर्शी होता है।बुध गणित है और गुरु ज्ञान है वही चंद्र मन का कारक है। बुध, गुरु और चंद्र पूर्ण बलवान होकर वाणी भाव, पंचम भाव या नवम भाव में बैठे तो ऐसा जातक निश्चित रूप से विद्वान होता है।फलित में शनि आठवें भाव का यानी रहस्य का कारक है। केतु अध्यात्म का कारक है। उत्तम वक्ता और ज्योतिषी बनने के लिए बलवान शनि और केतु का कुंडली में होना बेहद आवश्यक है। अक्सर गुरु शनि केतु का आपस में संबंध जातक को गूढ़ ज्ञानी बना देता है।बुध गुरु राशि परिवर्तन, गुरु शनि राशि परिवर्तन, आठवें भाव का राजयोग बनाकर केतु के साथ आना ये सब कुछ ऐसे योग है जिनके होने पर भी जातक उत्तम ज्योतिषी बनता है।लग्न और नवमांश कुंडलीअब हम इन सूत्रों को एक उदाहरण कुंडली से समझते है। यह कुंडली एक ऐसे विद्वान की है जिन्होंने अपने ज्ञान से जीवन भर लोगों का भला किया। अगर इस कुंडली को देखें तो पंचमेश सूर्य और अष्टमेश मंगल दोनों छठे भाव में बैठ गए हैं। मंगल आठवें भाव का स्वामी होकर विपरीत राजयोग बना रहा है। वहीं गुरु बारहवें भाव के स्वामी होकर विपरीत राजयोग बना रहा है। उन दोनों भावेश के साथ पंचम भाव के स्वामी का आना साफ़ संकेत है कि व्यक्ति पिछले जन्म के कर्मों के कारण प्रसिद्द और विद्वान होगा।लग्न में केतु, पंचम में बुध, बुध सूर्य का राशि परिवर्तन और गूढ़ विद्या का भाव यानी आठवें भाव के स्वामी का गुरु के साथ आना इस बात का संकेत है कि जातक उच्च कोटि का ज्ञानी होगा। अगर वाणी भाव के स्वामी जो देखें तो शुक्र सौम्य ग्रह चंद्र के साथ मूल त्रिकोण है और उस पर केतु का प्रभाव है। यही कारण है की उनकी वाणी कभी गलत साबित नहीं होती थी।इस कुंडली में अगर शनि को देखें तो वो वृश्चिक राशि में आठवें भाव में विराजमान है जिसका स्वामी राजयोग में है। सिर्फ शनि एक ऐसा ग्रह है जिसे कारको भाव नाशाय का दोष नहीं लगता है। आठवें भाव का कारक उसी भाव में बैठकर स्थिर राशि में बैठे बुध को अपनी दृष्टि दे रहे हैं। बुध शनि की राशि को अपनी दृष्टि दे रहे है।इस योग के कारण जातक की गणित और गणना करने की क्षमता अद्भुत हो जाती है। ऐसे में वह ज्योतिष गणनाओं में कोई गलती नहीं करता है। इस कुंडली को देखने पर साफ़ पता चलता है की गुरु, शनि, दूसरे भाव, पंचम भाव, अष्टम भाव कहीं ना कहीं एक-दूसरे के प्रभाव में आकर जातक को प्रसिद्ध ज्योतिषी बना रहे हैं।