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- मृत्यु और उसके बाद के जीवन को लेकर गरुड़ पुराण में विस्तार से बताया गया है। इसमें व्यक्ति के कर्मों के अनुसार मिलने वाले फल और उसके बाद स्वर्ग-नरक के जीवन के बारे में भी बताया गया है। इस पुराण के मुताबिक यदि मरते समय व्यक्ति के पास कुछ खास चीजें हों तो उसे यमराज का दंड नहीं मिलता और वह उसकी मृत्यु शांति से होती है।गंगाजलहिंदू धर्म शास्त्रों में गंगा जल को बहुत शुभ और महत्वपूर्ण बताया गया है। कहते हैं कि गंगाजल पाप धोने के साथ-साथ मोक्ष भी दिलाता है। इसी कामना से गंगा के घाटों पर शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है। गरुड़ पुराण के मुताबिक जिस समय व्यक्ति के प्राण निकल रहे हों, उस समय उसके मुंह में गंगाजल डाल देने से उसकी आत्मा को यमलोक में कोई दंड नहीं भोगना पड़ता है। साथ ही उसे इस असार संसार से मुक्ति मिल जाती है।तुलसीतुलसी का पौधा पवित्र और पूजनीय माना गया है। भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्रिय है। मृत्युशैय्या पर लेटे व्यक्ति के मुंह में तुलसी की पत्तियां डाल दी जाएं या उसके सिर के पास तुलसी का पौध रख दिया जाए तो उसे प्राण त्यागने में बहुत आसानी होती है।श्रीमद्भगवद्गीता का पाठकर्म और फल से लेकर जीवन के सार तक श्रीमद्भगवद्गीता में जिंदगी-मौत से जुड़ी कई अहम बातें बताई गईं हैं। मान्यताओं के मुताबिक यदि किसी व्यक्ति कि मृत्यु निकट हो तो उसे गीता सुनाने से उसे यमराज के दंड से तो मुक्ति मिलती ही है, उसे मोक्ष भी मिलता है। यदि संभव हो तो मरने वाला व्यक्ति खुद भी कुछ श्लोक पढ़े तो बहुत अच्छा होता है।ईश्वर का नाम लेनागरुड़ पुराण के मुताबिक प्राण निकलते समय यदि व्यक्ति मन में केवल प्रभु का नाम ही जपता रहे तो ऐसे व्यक्ति को भी यमराज का दंड नहीं मिलता है। साथ ही उसे प्रभु के चरणों में स्थान मिलता है।
- सभी की मृत्यु निश्चित है, लेकिन हर कोई जानना चाहता है कि उसकी आयु कितनी होगी. भले ही व्यक्ति की जिंदगी बेहद खुशहाली में बीत रही हो या तमाम मुश्किलों के बीच कट रही हो, हस्तरेखा शास्त्र में जातक की आयु जानने के तरीके बताए गए हैं। इससे मोटे तौर पर पता चल जाता है कि व्यक्ति किस उम्र तक जिएगा। यह जानने में आयु रेखा समेत कुछ अन्य रेखाओं की स्थिति भी अहम होती है।- हथेली में आयु रेखा का पूर्ण होना व्यक्ति को कम से कम 70 साल तक की आयु देती है। नीच मंगल स्थान से शुक्र पर्वत को गोल घेरते हुए मणिबंध तक पतली, स्पष्ट और अटूट रेखा के जाने को पूर्ण आयु रेखा माना जाता है. इस रेखा को कोई अन्य रेखा काटे या जीवन रेखा आगे तक बढ़ी हुई ना तो इसे अच्छा संकेत नहीं कहा जा सकता है। हालांकि रेखा कटने के बाद भी आगे बढ़ रही हो तो इसका अर्थ है कि व्यक्ति के जीवन पर संकट तो आएगा लेकिन टल जाएगा।- कलाई के पास कुछ गोल रेखाएं होती हैं, जिन्हें मणिबंध रेखा कहते हैं। हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार हर मणिबंध रेखा की आयु 25 वर्ष मानी गई है। इस हिसाब से कलाई में जितनी मणिबंध रेखा होंगी व्यक्ति की आयु उतनी ज्यादा होगी। बता दें कि किसी भी व्यक्ति के हाथ में इनकी संख्या ज्यादा से ज्यादा 4 हो सकती है।- माथे की लकीरें भी आयु बताती हैं। माथे की हर रेखा 20 वर्ष की जिंदगी का संकेत देती है। इस लिहाज से जितनी रेखाएं होंगी, उतनी आयु होगी। यहां भी रेखाएं 4-5 से ज्यादा नहीं होंगी।- उंगली की लंबाई से भी आयु का अनुमान लगाया जा सकता है। यदि व्यक्ति अपनी उंगली से शरीर की लंबाई नापे और उसकी लंबाई 108 उंगली या उससे ज्यादा निकले तो उसकी आयु कम से कम 70 वर्ष तक होती है। वहीं, शरीर की लंबाई 100 उंगली के बराबर होने पर व्यक्ति की आयु 50-55 साल की होती है। इससे कम लंबाई होने पर व्यक्ति अल्पायु होता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 330
(भूमिका - किस प्रकार की साधना से लाभ होगा, किससे नहीं, आइये जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के इस प्रवचन-अंश से जानें, यह अंश उनके द्वारा प्रगटित प्रवचन-श्रृंखला 'दिव्य-स्वार्थ' से लिया गया है, जो उन्होंने 8-प्रवचनों में सन 1992 में दी थी, यह अंश 5-वें प्रवचन का है, जो उन्होंने 28 जनवरी 1992 में दी थी।)
...गौरांग महाप्रभु ने दो प्रकार की साधना बताया है। एक अनासंग साधना, एक सासंग साधना। तो अनासंग साधना माने आसंग रहित और सासंग साधना माने आसंग सहित और आसंग माने मन का चिन्तन भगवान का हो। मन का संग भगवान के रूपध्यान में हो, वो साधना सासंग साधना है।
अनासंग साधना के लिये उन्होंने कहा, करोड़ों कल्प किये जाओ इससे कुछ नहीं मिलेगा। अब ये अलग बात है कि कोई कहे साहब नथिंग से समथिंग अच्छा है, ठीक है, गधा-गधा कहने से राम-राम कहना अच्छा ही है, लेकिन यह साधना नहीं है। फिर आप जब बहुत दिन हो जाते हैं, तो कहते हैं, महाराज जी! हमको तो बहुत दिन हो गये कुछ लड्डू-पेड़ा मिला नहीं। जब साधना ही गलत हो रही है, तो माइलस्टोन तुम्हें कहाँ मिल जायेगा कि हम दस मील चले आये, बीस मील चले आये, अरे मार्ग से आगे बढ़ो। तुम तो एक ही जगह पर खड़े-खड़े मार्चिंग कर रहे हो।
तो सासंग साधना यानी स्मरण भक्ति सबसे प्रमुख है, और स्मरण भक्ति कहीं भी किसी भी पोजिशन में सदा की जा सकती है, ये भी रियायत दे दिया भगवान ने। लैट्रिन में बैठे हैं दस मिनिट बैठना है उसमें, रूपध्यान करो। फालतू टाइम न खराब करो। कहीं भी जाओ, ट्रेन में बैठे हैं, सफर कर रहे हैं, बारह घंटे ट्रेन में चलना है। हाँ यहाँ से वहाँ पहुँचने तक बीच में कोई काम खास है। अरे एक जगह चाय पीना है। कब? दो घंटे बाद पीयेंगे, अच्छा! अब दो घंटे तो कोई काम नहीं? नहीं। स्मरण करो। आँख खोलकर स्मरण करो, नहीं तुम्हारा सामान उठा ले जाय, कोई और कहो कृपालु ने कहा है, आँख बंद करके रूपध्यान करो। हाँ, यानी तुम्हारे मस्तिष्क में पहले यह खूब भरना चाहिये कि स्मरण भक्ति ही वास्तविक भक्ति है।
स्मरण भक्ति के बिना कोई भी साधना, साधना कैसे कहलायेगी, साधना का मतलब, हम दास वो स्वामी। जब स्वामी ही नहीं आया हमारे अंतःकरण में, तो हम भक्ति कहाँ कर रहे हैं? किसकी कर रहे हैं?
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'दिव्य-स्वार्थ' प्रवचन-श्रृंखला०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हर व्यक्ति चाहता है कि उसके घर में हमेशा धन-धान्य बना रहे क्योंकि हर व्यक्ति ऐशो आराम की जिंदगी जीना चाहता है। इसके अलावा आज के समय में एक अच्छा जीवन जीने और छोटी-छोटी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी धन की जरुरत होती है। लोग धन प्राप्ति के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं लेकिन कई बार बहुत परिश्रम करने पर भी धन की बरकत नहीं हो पाती है। अक्सर लोगों को ये शिकायत होती है कि घर में धन आता है और बहुत जल्दी खर्च हो जाता है। यदि आपके जीवन में भी ये समस्या बनी हुआ है तो वास्तु में इसके लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं। जिसके अनुसार तीन चीजें ऐसी बताई गई हैं जिन्हें घर में लाकर रखने से हमेशा सुख-समृद्धि व सकारात्मकता बनी रहती है। आपके घर में रुपए पैसों से जुड़ी सारी समस्याएं दूर होती हैं व धन-धान्य बना रहता है।तो आइए जानते हैं कि कौन सी हैं वे चीजें।मुख्य द्वार पर लगाएं भगवान गणेश की तस्वीरभगवान गणेश जहां विराजते हैं वहां सदैव शुभता बनी रहती है। गणेश जी के साथ रिद्धि-सिद्धि और शुभ-लाभ का भी वास होता है। वास्तु के अनुसार घर के दोनों ओर भगवान गणेश की प्रतिमा लगानी चाहिए लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि गणेश जी की पीठ के दर्शन नहीं होने चाहिए। मुख्य द्वार पर गणेश जी की प्रतिमा लगाने से वास्तु दोष दूर होता है और घर में सकारात्मकताका आगमन होता है, जिससे आपके घर में सुख-समृद्धि व शांति बनी रहती है।तुलसी-सनातन धर्म में तुलसी के पौधे को बहुत ही पूजनीय व पवित्र माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार जिस घर में तुलसी के पौधे में नियम से पानी दिया जाता है व प्रतिदिन प्रातः एवं सांयकाल में तुलसी में दीपक प्रज्वलित किया जाता है। वहां सदैव मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। वास्तु के अनुसार भी तुलसी का पौधा लगाना बहुत शुभ माना गया है। जहां पर तुलसी का पौधा लगा होता है वहां सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह सकारात्मक ऊर्जा आपके जीवन में धन-धान्य व तरक्की दिलाने में सहायक होती है।दक्षिणावर्ती शंख-शंख मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु दोनों को प्रिय है। मां लक्ष्मी की उत्तपत्ति समुद्रमंथन के समय जल से हुई थी इसी प्रकार से शंख की उत्पत्ति भी समुद्रमंथन से मानी गई है। शंख कई तरह के होते हैं इन सभी का अपना महत्व होता है लेकिन इनमें से दक्षिणावर्ती शंख को बहुत दुर्लभ माना जाता है। यह शंख धनवृद्धि करने वाला माना गया है या फिर यूं कहें कि दक्षिणावर्ती शंख को साक्षात लक्ष्मी का स्वरुप माना जाता है। मान्यता है जिस घर में यह शंख होता है वहां कभी भी रुपए पैसों की कमी नहीं होती है। यदि आपके पास दक्षिणावर्ती शंख नहीं भी है तो भी अपने घर में कोई बजने वाला शंख रखना चाहिए। प्रतिदिन घर में शंख बजाने से घर की सारी नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है।
- घर में वास्तु दोष हो तो उसका नेगेटिव इफेक्ट वहां रहने वाले परिवार के हर सदस्य पर पड़ता है। फेंगशुई में विंड चाइम्स को बेहद शुभ, समृद्धिकारक और वास्तुदोष दूर करने वाला माना गया है। माना जाता है कि विंड चाइम से निकली मधुर ध्वनि एवं ऊर्जा भवन की नकारात्मक ऊर्जा को शांत कर दुर्भाग्य को दूर करती है। अगर आप चाहते हैं कि विंड चाइम आपके लिए गुडलक और तरक्की लेकर आए तो ध्यान रखें कि इससे निकलने वाली आवाज सुमधुर हो जो घर के सभी सदस्यों को अच्छी लगे।कहां, कैसी पवन घंटी लगाएंबाज़ार में मिलने वाली विंड चाइम्स कई प्रकार की होती हैं जैसे लकड़ी, मेटल, मिट्टी इत्यादि। लेकिन दिशा के तत्व के अनुसार इन्हें लगाना लाभदायक होता है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व(आग्नेय) एवं दक्षिण दिशा काष्ठ तत्व से संबंध रखती है इसलिए इन दिशाओं में पॉजिटिव एनर्जी को एक्टिव करने के लिए वुडन विंड चाइम लगाना अधिक प्रभावशाली रहेगा। घर की पश्चिमी,उत्तर-पश्चिम(वायव्य) और उत्तर दिशा में टांगने के लिए धातु से बने विंड चाइम घर के वातावरण में सौहार्द एवं शांति बनाए रखने में सहायक होंगे इसी प्रकार उत्तर-पूर्व(ईशान) तथा मध्य स्थान के लिए मिट्टी, क्रिस्टल या सिरेमिक से बनी विंड चाइम लगाने से परिवार के सदस्यों को कामयाबी हासिल करने में मदद मिलती है। घर के दक्षिण-पश्चिम(नैऋत्य) क्षेत्र में इन्हें टांगने से आपसी संबंधों में मजबूती व मधुरता आती है। इस दिशा में आप लकड़ी, मिट्टी या धातु से बनी पवन घंटी लगा सकते हैं।कहां कितनी छड़ वाली हो विंडचाइममुख्य द्वारयदि प्रवेश द्वार के पास कोई वास्तुदोष है तो उसके निवारण के लिए चार छड़ी वाली विंड चाइम मेनगेट पर लगानी चाहिए। इसे दरवाज़े पर परदे के पास इस प्रकार लटकाना चाहिए ताकि आने-जाने से हिलकर यह मधुर ध्वनि उत्पन्न कर सके। इससे वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा के स्तर में वृद्धि होती है।स्टडी रूमबीमारियों से बचने के लिए एवं अध्ययन कक्ष के वास्तु दोष को दूर करने के लिए पांच छड़ वाली विंडचाइम लगाना बेहतर विकल्प है इससे हर क्षेत्र में सफलता मिलती है। इसी प्रकार यदि आपके बच्चे लापरवाह हैं और मनमर्ज़ी करते हों तो उनके कमरे में छह रॉड वाली विंड चाइम लटकाने से लाभ मिलेगा।ड्राइंग रूमयहां पर छह रॉड वाली विंड चाइम उस स्थान पर लगानी चाहिए जहां से मेहमानों का प्रवेश होता हो। आगंतुकों का प्रवेश होने से जब विंड चाइम के टकराने से जो ध्वनि उत्पन्न होगी उससे आने वाले अतिथि का व्यवहार आपके अनुकूल हो जाएगा।कार्यालय मेंआठ छड़ी वाली विंड चाइम का प्रयोग आप अपने ऑफिस में कर सकते हैं, यदि काम में मन नहीं लगता है या रुकावटें बहुत आती हों तो आठ छड़ी वाली विंड चाइम आपकी इस समस्या को दूर करने में सहायक हो सकती है।रिश्तों को बनाएं मजबूतपरिवार में प्यार और अपनापन बढ़ाने के लिए नौ छड़ वाली विंड चाइम का प्रयोग आपको लाभ देगा। इससे न केवल घर में ऊर्जा का प्रवाह बना रहेगा बल्कि निराशा और उदासीनता भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 329
★ भूमिका - निम्नांकित पद भक्तियोगरसावतार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ के 'सिद्धान्त-माधुरी' खण्ड से लिया गया है। 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ में आचार्य श्री ने कुल 21-माधुरियों (सद्गुरु, सिद्धान्त, दैन्य, धाम, श्रीकृष्ण, श्रीराधा, मान, महासखी, प्रेम, विरह, रसिया, होरी माधुरी आदि) में 1008-पदों की रचना की है, जो कि भगवत्प्रेमपिपासु साधक के लिये अमूल्य निधि ही है। इसी ग्रन्थ का यह पद है, जिसमें अपने कल्याण की चाह में लगे साधक-जन के लिये कुछ महत्वपूर्ण सावधानियाँ आचार्यश्री द्वारा बतलाई गई हैं। आइये हम इसके प्रत्येक शब्द पर गंभीर विचार करते हुये लाभ प्राप्त करें ::::
कहत हम खरी खरी कछु बात।बुरा न मानिय साधक-जन कछु, सोचिय समुझिय तात।कंठी-तिलक धारि वैष्णव बनि, गणिकनि राखत नात।सबहिं योगवाशिष्ठ सुनावत, ममता-मद बलकात।करत अनंत शिष्य पै इंद्रिन, शिष्य रहत दिन रात।रसिकनि लखि जरि जात मंदमति, विषइन सों बतरात।महारास-रस भेद बतावत, जहँ विधि-बुधि बौरात।निज कहँ कहत 'कृपालु' दीन पै , रोम रोम मदमात।।
भावार्थ - साधना अवस्था मे कंचन, कामिनी एवं कीर्ति के चक्कर में पड़ जाने वाले, लोकरंजन का ही लक्ष्य-मात्र रखने वाले साधको! हमारी निम्नलिखित स्पष्ट हित की भावना से कही हुई बातों का बुरा न मानना। क्योंकि हम कुछ स्पष्ट बातें कहने जा रहे हैं। इसको निष्पक्ष होकर एकान्त में सोचने समझने का प्रयत्न करना। ऐसे दंभी, कंठी पहिनकर एवं तिलक लगाकर वैष्णव बनने का दावा रखते हुए भी, वेश्याओं से सम्बन्ध रखते हैं। चार-अक्षर पढ़ लेने के कारण सबको योगवशिष्ठ नामक ग्रंथ जिसमें ब्रह्म का ज्ञान लिखा है, जिसका अधिकारी साधन-चतुष्टय-सम्पन्न ही होता है , सुनाया करते हैं और स्वयं सांसारिक जीवों की आसक्ति में बँधे हैं। वे दंभी यों तो कान फूँक-फूँक कर अनन्तानन्त चले बनाते हैं, पर स्वयं अपनी ही इन्द्रियों के निरन्तर चले बने रहते हैं, वास्तविक महापुरुषों को देखकर वे दंभी लोग मूर्खतावश जलने लगते हैं, उनके पास तक जाना पसन्द नहीं करते, दूर से ही निंदा किया करते हैं किंतु स्वयं विषयी जनों से बातें एवं उनकी प्रशंसाएं किया करते हैं। जिस संसार का प्रतिक्षण अनुभव हो रहा है फिर भी उससे वैराग्य नहीं हो पाता। किन्तु ऐसी अवस्था वाले भी दम्भी, ब्रह्म आदि की बुद्धि से भी अतीत, अपनी ही कोटि वाले नारकीय जीवों से समक्ष महारास का रहस्य समझाते हैं। 'श्री कृपालु जी' अपने लिए कहते हैं कि मैं भी स्वयं अपने-आपको सबके सामने दीन कहा करता हूँ किन्तु मेरे रोम-रोम में अभिमान भरा पड़ा है।
०० रचनाकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ, सिद्धान्त-माधुरी, पद 33०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हस्तरेखा में जीवन रेखा बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस रेखा पर बने चिह्न भी जीवन पर व्यापक असर डालते हैं। व्यक्ति की रेखाओं से उसके मकान, अचल संपत्ति के बारे में भी बहुत कुछ पता चलता है। रेखाओं की स्थिति मकान और उसमें सुविधाओं तक का भी संकेत देती हैं। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार जिन लोगों की जीवन रेखा में त्रिकोण होता है और एक से अधिक भाग्य रेखाएं होती हैं तो ऐसे व्यक्ति खुले स्थान में अपना मकान बनाना पंसद करते हैं। एक से अधिक भाग्य रेखाएं होने के साथ ही शनि की उंगली लंबी हो तो ऐसे लोगों के मकान में पार्क या बगीचा अवश्य होता है। कई भाग्य रेखाओं के साथ जीवन रेखा पर त्रिकोण और मुख्य भाग्य रेख चंद्र पर्वत से निकली हो तो मकान या बंगले में जलाशय होता है।हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार जिस उम्र में भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा के किसी त्रिकोण से गुजरती हो तो व्यक्ति उसी उम्र में मकान बनाते हैं। जिन लोगों की भाग्य रेखा मोटी होती है वे अपना मकान किसी पेड़ के निकट और पास में बड़ा मकान की छाया में रहता है। जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा का जोड़ लंबा, टूटी जीवन रेखा और दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा हो तो ऐसे व्यक्ति के घर के पास का वातावरण अच्छा नहीं होता। मस्तिष्क रेखा या उसकी कोई शाखा चंद्र पर्वत पर जाती हो और भाग्य रेखा भी चंद्र पर्वत से निकलती हो तो ऐसे व्यक्ति का घर समुद्र अथवा झील के निकट होता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 328
(भूमिका - प्रस्तुत अंश जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा लिखित 'प्रेम रस सिद्धान्त' पुस्तक से लिया गया है। इस पुस्तक में आचार्यश्री ने अध्यात्म-जगत के प्रत्येक विषय का अनेक अध्यायों यथा; जीव का चरम लक्ष्य, ईश्वर का स्वरूप, भगवत्कृपा, शरणागति, संसार और वैराग्य का स्वरूप, महापुरुष, ईश्वर-प्राप्ति के उपाय, कर्म, ज्ञान, भक्ति, भगवान के अवतार रहस्य, भक्तियोग, कर्मयोग की क्रियात्मक साधना तथा कुसंग का स्वरूप आदि में विशद रूप से और बड़ी ही सरल भाषाशैली में वर्णन किया है। भगवत्प्रेमपिपासु जीव के लिये यह ग्रंथ अनमोल है। आइये इसी ग्रन्थ के अध्याय - 5, वैराग्य का स्वरूप के एक अंश पर विचार करें....)
...प्रायः लोग राग शब्द का अर्थ प्यार ही करते हैं, पर ऐसा नहीं है, राग का अर्थ है मन का लगाव, वह मन का लगाव प्यार से हो या खार से हो। अर्थात अनुकूल भाव या प्रतिकूल भाव, किसी भी भाव से मन की आसक्ति, आसक्ति ही कहलाएगी और जब न अनुकूल भाव से आसक्ति हो और न प्रतिकूल भाव से आसक्ति हो तभी वैराग्य कहलायेगा।
स्थूल बुद्धि से यों समझिये कि जब आप किसी प्रिय का चिन्तन करते हैं तो सर्वत्र उसी में मन व्यस्त रहता है, 'यह कब मिलेगा, कैसे मिलेगा, कहाँ मिलेगा, बड़ा अच्छा आदमी है, हमारा हितैषी है, हमारा प्रेमी है' इत्यादि। ठीक इसी प्रकार, जिससे आपका द्वेष हो जाये, वहाँ भी सदा सर्वत्र मन व्यस्त रहता है कि 'वह कहाँ मिलेगा, कब मिलेगा, कैसे मिलेगा, वह हमारा शत्रु है, अनिष्टकारी है, उसे मारना है' इत्यादि।
उपर्युक्त रीति से प्यार एवं खार दोनों ही में एक सी स्थिति मन की रहती है। यही प्रमुख कारण है कि अनुकूलभाव से मनको श्यामसुन्दर से एक कर देने वाली गोपियाँ भी भगवत-स्वरूपा बन गयीं एवं प्रतिकूल भाव से मन को श्यामसुन्दर में एक कर देने वाले कंसादिक भी भगवत्स्वरूप बन गये। वेदव्यास की उक्ति के अनुसार;
कामं क्रोधं भयं स्नेहमैक्यं सौहृदमेव च।नित्यं हरौ विदधतो यान्ति तन्मयतां हि ते।।(भागवत 10-29-15)
अर्थात काम से, क्रोध से, भय से, स्नेह से, जैसे-कैसे भी मन का लगाव भगवान में हो जाय, बस उसे भगवान की प्राप्ति होती है। अब आप समझ गये होंगे कि संसार से वैराग्य करने में मन को राग-द्वेष रहित करना होगा अर्थात मन संसार से उदासीन हो जायेगा, यथा;
कबिरा खड़ा बजार में, सबकी माँगे खैर।ना काहू सों दोस्ती, ना काहू सों बैर।।
बस, यही अवस्था वैराग्य की है। जैसे, एक माँ अपने खोये हुए पुत्र को मेले में ढूँढती है। वह रोती हुई अपने बच्चे को खोज रही है। उसे एक बच्चा पीछे से दिखाई पड़ा जिसके कपड़े, आयु, कद, जूते आदि उसी के बच्चे के समान थे। वह उसी बच्चे को अपना बच्चा समझ बैठी और 'बेटा-बेटा' कहकर दौड़ी। जब उसका मुख देखा तो वह उसका बेटा न था। बस, उसे उस बेटे से वैराग्य हो गया, अर्थात वह माँ न तो उस बेटे को प्यार ही करती है कि हमारा बेटा न मिला न सही, चलो इसी से प्यार करें और न तो शत्रुता ही करती है कि 'क्यों रे, मैंने तो सोचा था कि तू मेरा बेटा है, तू पराया क्यों हुआ?' इत्यादि। बस, इसी अवस्था का नाम वैराग्य है।
जैसे, किसी शराबी को शराब के लिये मदिरालय जाना पड़ता है किंतु मदिरालय के पूर्व कई दुकानें अन्य सामानों की पड़ती हैं। वह उन दुकानों के सामने से तो जाता है, देखता भी जाता है, किन्तु विरक्त है। अर्थात न तो किसी दुकान पर खड़ा होता है कि चलो मदिरा न सही, इस दुकान पर रसगुल्ला ही खा लें और न तो झगड़ा ही करता है कि 'मुझे तो मदिरा चाहिये, तू रसगुल्ला की दुकान क्यों बीच में लगाये बैठा है', इत्यादि। वह सबसे विरक्त होकर अपने मदिरालय के लक्ष्य पर जा रहा है। बस, यही वैराग्य है। इस संसार में सब दुकानों से गुजरता हुआ अपने परमानन्द के केन्द्र भगवान की दुकान पर ही सीधा जाय, अन्यत्र कहीं भी न राग हो न द्वेष हो।
यह ध्यान रहे कि जब तक ईश्वर के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं भी राग या द्वेष युक्त (आसक्त) रहेगा, तब तक ईश्वर-शरणागति असम्भव है और कब तक संसार में, 'न तो यहाँ हमारा आध्यात्मिक सुख है और न यहाँ हमें बरबस अशान्त करने वाला दुःख ही है', ऐसा ज्ञान परिपक्व न होगा, तब तक वैराग्य भी असम्भव है।
०० व्याख्याकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रेम रस सिद्धान्त' पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 327
(भूमिका - प्रस्तुत उद्धरण में जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज साधक समुदाय को समझा रहे हैं कि साधना में महापुरुष अथवा गुरु की भक्ति का क्या महत्व है? भक्ति या साधना का वास्तविक स्वरूप क्या है? मन की चंचलता को स्थिर करने के लिये क्यों साधना के विभिन्न उपायों/तरीकों का सहारा लेना चाहिए? इन प्रश्नों पर आइये इस उद्धरण के माध्यम से विचार करें...)
...भगवान, उनके नाम, उनके रूप, उनकी लीला, उनके गुण, उनके धाम, उनके संत - ये सब एक हैं किन्तु उनमें महापुरुष का नम्बर एक है। उनके बिना न भगवान साथ देगा, न उनका नाम साथ देगा, न उनकी लीला साथ देगी, न उनका धाम साथ देगा। महापुरुष की शरणागति कम्पलसरी है। उसके बाद आप भगवान को भी ले लीजिये, उनके नाम भी, उनके गुण भी, उनकी लीला भी, उनके धाम - सबको साथ लेकर चलिये और अच्छा है क्योंकि मन हमारा बहुत गड़बड़ है। एक चीज में मन लगा नहीं करता क्योंकि चंचल है इसलिए इन्हीं के अन्दर रखना है। लेकिन प्रमुख जो हमारा लक्ष्य होना चाहिये वो महापुरुष में होना चाहिये।
हमारे देश में जितने सिद्धान्त अभी तक बने, वैदिक काल से अब तक, उसमें दो ही उपासना बतलाई जाती है - या तो केवल गुरु की उपासना की जाय अथवा गुरु प्लस भगवान दोनों की भक्ति एक-सी की जाय।
यस्य देवे परा भक्तिर्यथा देवे तथा गुरौ।तस्यैते कथिता ह्यर्था: प्रकाशन्ते महात्मनः।।(श्वेताश्वतरोपनिषद 6-23)
वेद कहता है जैसी भक्ति इष्टदेव के प्रति हो, जितनी मात्रा की, वैसी ही भक्ति गुरु के प्रति हो।
तो गुरु प्लस भगवान दोनों को बराबर मानकर उपासना करना है, साथ में नाम भी रहे, गुण भी रहे, लीला भी रहे, धाम भी रहे, महापुरुष का नाम रहे, भगवान का नाम रहे, महापुरुष का गुण रहे, भगवान का गुण रहे, महापुरुष की लीला रहे, भगवान की लीला रहे, सब बराबर हैं।
और या तो फिर केवल गुरुभक्ति हमारे शास्त्रों में, वेद में, संप्रदायों में चल रही है। भई! जब भगवान को हमने देखा नहीं, समझा नहीं, वह हमारी बुद्धि में समाता नहीं तो जो भगवान के बराबर ही सामान है, और सामने है उसको हम जल्दी पकड़ लेंगे। तो कुछ लोग गुरुभक्ति ही करते हैं लेकिन केवल गुरुभक्ति करना उसी के लिये उपयुक्त है जिसकी गुरु में निष्ठा परिपक्व हो गई है।
जिसकी निष्ठा परिपक्व नहीं हुई है उसे दोनों को साथ लेकर चलना चाहिये और इस प्रकार दोनों को साथ रखने में और भी बहुत सामान मिलता है। भगवान की लीला भी मिली, महापुरुष की लीला भी मिली, महापुरुष के गुण हैं, भगवान के भी गुण हैं, सब कुछ सामान है।
तो चूँकि मन गड़बड़ है साधनावस्था में इसलिये अनेक प्रकार का सामान दो। बाललीला के स्मरण में उदासी आ गई, अब किशोर लीला दो, अब वात्सल्य भाव दो, अब सख्य भाव दो। तो लुभाये रहिये मन को उसी ईश्वरीय जगत में, वो नीचे न आने पावे।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'नाम-महिमा' प्रवचन पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक शरीर के अंगों का असमय फड़कना कुछ अशुभ और शुभ कार्य होने का संकेत देता है. आज हम आपको बताएंगे कि कौन से अंगों का फड़कना शुभ माना जाता है और कौन से अंगों का अशुभ.इन अंगों का फड़कना शुभ संकेत------------- पुरुष के शरीर का दाहिना और महिला के शरीर का बायां भाग अगर फड़कता है तो इसका मतलब होता है कि जल्द ही कोई अच्छी खबर मिलने वाली है.- अगर किसी इंसान के दोनों गाल एक साथ फड़कने लगें तो उससे धन लाभ की संभावना बढ़ जाती है.- इंसान का दाहिना कंधा फड़कने का मतलब अत्यधिक धन लाभ और बायां कंधा फड़कने का मतलब जल्द मिलने वाली सफलता से होता है.गले का फड़कना माना जाता है शुभ---------------अगर किसी इंसान का गला फड़कता है तो उसे शुभ माना जाता है. इसका मतलब होता है कि घर में खुशहाली आने वाली है.- सिर का मध्य भाग फ़ड़कने से धन प्राप्ति होती है और परेशानियों से मुक्ति मिलती है.- स्त्री की बाईं आंख चारों ओर फड़कने से विवाह के योग बनते हैं.-यदि किसी व्यक्ति की नाक फड़के तो उसे धन की प्राप्ति होती है.इंसान के दोनों कंधे फड़कना अशुभ------------ अगर किसी इंसान के दोनों कंधे एक साथ फड़कते हैं तो उसे अशुभ माना जाता है. इसका मतलब यह है कि किसी के साथ आपकी बड़ी लड़ाई होने वाली है.- अगर आपकी हथेली में हलचल होती है तो इसका मतलब ये होता कि आप जल्द ही किसी मुसीबत में घिरने वाले हैं.स्त्री की बायीं आंख फड़कना ठीक नहीं---------- अगर किसी स्त्री की बायीं आंख फड़कती है तो ये वियोग का लक्षण होता है.- यदि किसी व्यक्ति की गर्दन बाईं ओर फड़कती है तो यह धनहानि का संकेत होता है.- अगर किसी व्यक्ति की दाहिनी जांघ फड़कती है तो इससे उसे शर्मिंदगी झेलनी पड़ सकती है.इस संकेत को न करें नजरअंदाज--------- अगर व्यक्ति की हथेली के किसी कोने में फड़फड़ाहट हो तो वह निकट भविष्य में उसके संकट में घिरने का संकेत होता है.-यदि किसी इंसान के दाहिने हाथ का अंगूठा फड़फड़ाए तो इसका मतलब होता है कि उसकी मनचाही मुराद मिलने में विलंब होने जा रहा है.- अगर इंसान की छाती के दाहिनी ओर फड़फड़ाहट हो तो यह विपदा का संकेत माना जाता है.
- हर व्यक्ति के शरीर की बनावट अलग-अलग होती है एवं प्रत्येक व्यक्ति के शरीर पर कई तरह के चिन्ह और तिल बने होते हैं। सामुद्रिक शास्त्र एक ऐसी विधा है जिसमें शरीर के अंगों की बनावट और शरीर पर बने हुए चिन्ह एवं तिलों को देखकर व्यक्ति के बारे में जानकारी दी जाती है। शरीर पर बनने वाले कुछ चिन्हों और तिलों को अशुभ माना जाता है तो वहीं कुछ को बहुत ही शुभ माना जाता है। कुछ चिन्ह ऐसे भी होते हैं जो व्यक्ति को बहुत भाग्यशाली बनाते हैं। सामुद्रिक शास्त्र में कुछ चिन्हों, तिलों और शरीर के अंगों की बनावट के बारे में बताया गया है, जिन लड़कियों के शरीर पर ये होते हैं, उन्हें बहुत ही भाग्यशाली माना जाता है। इनके बारे में कहा जाता है कि ये जहां भी जाती हैं वहां सुख-समृद्धि आती है। तो चलिए जानते हैं किन लड़कियों को माना जाता है बहुत ही भाग्यशालीपैर के तलवे में शुभ निशानसामुद्रिक शास्त्र के मुताबिक जिन लड़कियों के पैर के तलवे में शंख, कमल या चक्र चिन्ह बना होता है वे स्वयं और परिवार के लिए बहुत भाग्यशाली होती हैं। ये स्वयं भी किसी ऊंचे पद पर पहुंचती हैं। इसके साथ ही जिन लड़कियों के पैर का अंगूठा चौड़ा और गोलाई एवं लालिमा लिए हुए होता है, उनका पूरा परिवार सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करता है।शरीर के बाएं हिस्से में तिलहर व्यक्ति के शरीर के अलग-अलग हिस्सों में तिल होते हैं। कुछ तिल व्यक्ति के जन्म समय के होते हैं तो वहीं कुछ तिल बाद में बन जाते हैं। शरीर पर बने हुए तिलों का अलग-अलग महत्व माना जाता है। यदि किसी महिला के शरीर पर दाएं हिस्से की तुलना में बाएं हिस्से में अधिक तिल होते हैं तो माना जाता है कि ऐसी लड़कियां परिवार के लिए भाग्यशाली होती हैं।चौड़ा माथासामुद्रिक शास्त्र के मुताबिक जिन लड़कियों का माथा चौड़ा होता है वे बहुत भाग्यशाली होती हैं। यदि किसी लड़की का माथा तीन अंगुल से चौड़ा और चंद्रमा के आकार का हो तो ऐसी लड़कियां सौभाग्य और सुख में वृद्धि करने वाली होती हैं माना जाता है कि ये जिस घर में जाती हैं वहां धन-धान्य और खुशहाली बनी रहती है। ये लड़कियां स्वभाव की कठोर होती हैं लेकिन दिल से नरम होती हैं। जिन लड़कियों का माथा आगे से उठा हुआ होता हैं उनके विषय में माना जाता है कि ये भाग्यशाली, तीक्षण बुद्धि एंव विदुषी होती हैं। ये अपने परिवार के आगे बढ़ाने और उनके स्तर को ऊंचा उठाने का प्रयास करती हैं।लंबी उंगलियों वाली लड़कियांसामुद्रिक शास्त्र के अनुसार जिन लड़कियों की उंगलियां लंबी और सुंदर होती हैं वे अपने पति के लिए बहुत भाग्यशाली होती हैं। इनकी जिससे भी शादी होती हैं उसे नौकरी और व्यवसाय में खूब तरक्की प्राप्त होती है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 326
★ भूमिका - आज के अंक में प्रकाशित दोहा तथा उसकी व्याख्या जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ग्रन्थ 'भक्ति-शतक' से उद्धृत है। इस ग्रन्थ में आचार्यश्री ने 100-दोहों की रचना की है, जिनमें 'भक्ति' तत्व के सभी गूढ़ रहस्यों को बड़ी सरलता से प्रकट किया है। पुनः उनके भावार्थ तथा व्याख्या के द्वारा विषय को और अधिक स्पष्ट किया है, जिसका पठन और मनन करने पर निश्चय ही आत्मिक लाभ प्राप्त होता है। आइये उसी ग्रन्थ के 52-वें दोहे पर विचार करें, जिसमें आचार्यश्री ने यह बताया है कि ब्रह्म के 2 रूप कौन से हैं? ब्रह्म का रस और रसिक रूप क्या है? आइये निम्न दोहे और उसकी व्याख्या से इसका रहस्य जानें...!!
ब्रह्म एक मधु रूप है, एक भ्रमर उनमान।एक रूप रस देत है, एक आपु कर पान।।52।।
भावार्थ - ब्रह्म के 2 स्वरूप होते हैं। एक रस रूप। दूसरा रसिक रूप। अर्थात् एक मधु के समान। दूसरा भौरे के समान। एक रूप से स्वयं रस पान करते हैं। दूसरे रूप से जीवों को भी वही रस पान कराते हैं।
व्याख्या - वेद कहता है । यथा - रसो वै सः .......। यह रस रूप ब्रह्म 2 अर्थ वाला है; (1) रस्यते इति रसः (2) रसयति इति रसः।
(1) जिसका आस्वादन किया जाय। जैसे मधु।(2) जो रस का आस्वादन करता है। जैसे भ्रमर।
रस शास्त्र में विशेष उत्कर्ष ज्ञापक अर्थ में ही रस शब्द का प्रयोग हुआ है। विशेष विलक्षण चमत्कारित्व को ही रस का प्राण माना है। चमत्कारित्व का स्वरूप यह है कि रस के आस्वादन करने में बहिरंग (हाथ पैर आदि) एवं अंतरंग (मनबुद्धि) इंद्रियां दोनों का कार्य स्तंभित हो जाय। दूसरे विषय में ज्ञान - रहित हो जाय। वही रस है। अतः जिस वस्तु में नित नवायमान रस का अनुभव हो। तथा जिसके अनुभव में प्रतिक्षण ऐसा लगे कि ऐसा अपूर्व माधुर्य इसके पूर्व कभी अनुभव में नहीं आया। तथा उस रस से कभी मन न भरे। प्रतिक्षण प्यास बढ़ती जाय। यह आस्वाद्य रस है यथा - 'आली रस की रीति निराली प्याली भरे न खाली होय'। यह ब्रह्म रस रूप में आस्वाद्य एवं आस्वादक दोनों है। पूर्व में बता चुके हैं कि ब्रह्म में अनंत स्वाभाविक शक्तियाँ होती हैं। अतः स्वाभाविक शक्तियों से युक्त आनंद ही ब्रह्म है। आनंद विशेष्य है एवं शक्ति विशेषण है। विशेषण अपने विशेष्य को वैशिष्ट्य प्रदान करता है। अर्थात् शक्ति रूपी विशेषण, आनंद रूप विशेष्य को विशिष्टता प्रदान करने वाला है। ब्रह्म का आनंद चेतन है। जगत् के आनंद के समान जड़ एवं क्षणिक नहीं है। जिस रस का आस्वादन स्वयं श्री कृष्ण करते हैं उसे स्वरूपानंद कहा जाता है। सारांश यह कि श्री कृष्ण, अपनी स्वरूप शक्ति के द्वारा अपने माधुर्य रस का भोग करते हैं। जिसमें भक्तों द्वारा विशेष माधुर्य का आस्वादन करते हैं। उसे स्वरूप शक्त्यानंद कहा जाता है। स्वरूप शक्त्यानंद (भक्तों द्वारा प्राप्त माधुर्य रस) भी दो प्रकार का होता है। यथा;(1) ऐश्वर्यानंद - इसमें ऐश्वर्य रस प्रधान है । माधुर्य गौण है।(2) मानसानंद - इसमें माधुर्य ही माधुर्य ओतप्रोत है । इनमें स्वरूपानंद से सरस ऐश्वर्यानंद (भक्तों द्वारा प्राप्त) एवं उससे भी सरस मानसानंद है। यही ब्रजरस कहा जाता है। यही सर्वश्रेष्ठ है।
ऐश्वर्य शिथिल प्रेमे नहे मोर प्रीत।(चैतन्य चरितामृत)
ब्रजरस में ऐश्वर्य गुप्त रूप से ही सेवा करता है। प्रत्यक्ष नहीं आता है। यह ब्रजलीला नर लीला कहलाती है।
०० व्याख्याकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'भक्ति-शतक' (दोहा संख्या - 52)०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) -
ऐसी कहावत है कि जोड़े आसमान में बनते हैं, और जो लोग साथ रहने के लिए बने होते हैं वे किसी न किसी रूप में एक-दूसरे से टकरा ही जाते हैं. एक जोड़े की आपसी अनुकूलता उनकी राशि (Zodiac) और उससे मिलने वाले गुण-अवगुणों और व्यक्तित्व (Personality) से तय होती है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, लड़का-लड़की की राशि मिलाकर उनके आने वाले जीवन के बारे में कुछ हद तक जाना जा सकता है. चलिए आज हम आपको राशि के हिसाब से कुछ ऐसे मेल बताते हैं, जो एक-साथ मिलकर आदर्श जोड़ी बनाते हैं.
तुला और सिंह का कनेक्शन
इन दोनों राशि के लोगों की आपस में खूब पटती है. ऐसा कहा जाता है कि इनकी जोड़ी स्वर्ग से बनकर आई है. दोनों ही साफ दिल के होने से किसी भी बात को मन में रखना पसंद नहीं करते हैं. ये एक-दूसरे को अच्छे से समझते हैं. दोनों ही वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने की कोशिश करते हैं. स्वभाव से रोमांटिक होने से इनमें गहरा प्यार होता है. कुछ लोग तो इनकी जोड़ी को देखकर जलन महसूस करते हैं.
सिंह और धनु का सपोर्टिव कनेक्शन
सिंह और धनु राशि के जातक आत्मविश्वासी, निडर व सपोर्टिव नेचर के होते हैं. ऐसा देखा गया है कि धनु राशि वाले सिंह वालों की ओर जल्दी आकर्षित हो जाते हैं. ये एक-साथ जोड़ी के रूप में परफेक्ट कपल बनाते हैं. दोनों ही जिंदगी में एक-दूसरे का साथ व सपोर्ट करते हैं. जरूरत में एक-दूसरे को हिम्मद देने के साथ ईमानदारी से रिश्ता निभाते हैं.
सिंह और कुंभ का है बेस्ट कनेक्शन
सिंह और कुंभ राशि के लोगों की दुनिया की बेस्ट जोड़ी मानी जाती है. ये दोनों एक-दूसरे के प्रति समर्पित होते हैं. ये पूरी ईमानदारी से अपना रिश्ता निभाते हैं. इसके अलावा इन दोनों में ही बेहद उत्साह देखने को मिलता है. साथ ही यही उत्साह इनके रिश्ते की गर्माहट में भी दिखाई देता है.
मेष और कुंभ का रोमांटिक कनेक्शन
इस राशि के लोग रोमांच से भरे होते हैं, इसलिए इन्हें बेस्ट रोमांटिक कपल भी कहा जा सकता है. ये निडर, साहसी व एडवेंचर के शौकिन होते हैं. इन्हें अलग-अलग जगह पर घूमना व उनके बारे में जानना बेहद पसंद होता है. ये जिंदगी में एक ही काम को करने की जगह हमेशा कुछ नया ट्राई करने की कोशिश में रहते हैं. दोनों में बेहद प्यार होने के चलते ये एक-दूसरे से थोड़ी देर के लिए भी दूर रहना बर्दाशत नहीं करते हैं.
कुंभ और मिथुन का लव एट फर्स्ट साइट
इस राशि के जातकों को पहली नजर में ही प्यार हो जाता है. ये हमेशा एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं. इनमें खास बात है कि इनका आकर्षण कभी खत्म नहीं होता है. ऐसे में ये लोग जिंदगी भर एक-दूसरे के प्रति ईमानदारी के साथ रहते हैं. वहीं समाज में बेस्ट कपल की तरह नजर आते हैं.
कन्या और मकर की है आर्दश जोड़ी
इन दोनों राशि के लोगों में समर्पण की भावना होती है. ऐसे में ये पार्टनर के साथ पूरी ईमानदारी से रिश्ता निभाते हैं. ये दोनों एकसाथ मिलकर एक आदर्श जोड़ी बनाते हैं. इनकी मैरिड लाइफ शांति व सुखमय बीतती है.
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शमी के वृक्ष का हमारे धर्म ग्रंथों रामायण, महाभारत और पुराणों में भी जिक्र आता है। धार्मिक रूप से भी शमी के वृक्ष का बहुत महत्व है। इसका संबंध भगवान राम और पाण्डवों से भी रहा है। शमी की लकड़ी का कुछ विशेष यज्ञों में भी प्रयोग किया जाता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार , शमी के वृक्ष का पूजन करने से शनि ग्रह को शांत किया जा सकता है। जिस व्यक्ति पर शनि का दुष्प्रभाव चल रहा हो , उसे अपने घर में शमी का वृक्ष लगाना चाहिए। आइए जानते हैं शमी वृक्ष के महत्व और प्रभाव के बारे में..
ज्योतिष आचार्यों के अनुसार, शमी और पीपल ये दो पेड़ ऐसे हैं, जिनका प्रयोग शनि देव के प्रभाव को कम करने के लिए किया जाता है। शनि देव या शनि ग्रह का प्रभाव हर व्यक्ति के जीवन में एक बार जरूर पड़ता है। शनि के दुष्प्रभाव से बचने के लिए घर में या घर के आस-पास शमी का वृक्ष लगाएं तथा शनिवार को इसके नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इसके अलावा शमी के फूल तथा पत्तों का भी प्रयोग शनि ग्रह के प्रभाव को कम करने के लिए किया जाता है। मान्यता है कि घर में शमी का पेड़ लगा रहने से टोने, टोटके और नकारात्मक ऊर्जा का घर पर प्रभाव नहीं पड़ता।
शमी के वृक्ष का हिंदू धर्म में विशेष स्थान है, इसका वर्णन रामायण और महाभारत दोनों जगह किया गया है। रामायण में उल्लेख है कि जब लंका पर युद्ध से पहले भगवान राम ने विजय मुहूर्त में हवन किया था , तो शमी का वृक्ष उसका साक्षी बना था। इसी प्रकार महाभारत में जब अज्ञातवास के दौरान अर्जुन ने बृह्न्नलला का रूप लिया था , तो अपना गाण्डीव धनुष शमी के वृक्ष पर ही छिपाया था। विराट नगर के युद्घ में यहां पर से ही गाण्डीव निकाल कर कौरवों को अकेले ही भागने पर मजबूर कर दिया था। शमी के पत्तों का प्रयोग भगवान गणेश और दुर्गा मां की पूजा में भी किया जाता है। -
वास्तु में दिशाओं का विशेष महत्व होता है यदि घर की दिशा गलत या निर्माण करवाते समक्ष किसी भी चीज को गलत दिशा में बना दिया जाए तो व्यक्ति के जीवन में उन्नति रुक जाती है और जीवन में कई तरह की समस्याएं पैदा होने लगती हैं। वास्तु शास्त्र में कई वेधों के बारे में उल्लेख किया गया है। इनमें स्तंभवेध, वृक्षवेध और छाया वेध आदि होते हैं। इन वेधों में से एक छायावेध होता है। इसका मतलब होता है, आपके मकान पर किसी अन्य मकान, पेड़ या ऊंची बिल्डिंग की छाया पडऩा। यदि आपके मकान पर किसी चीज की छाया पड़ती है तो यह वास्तु दोष माना जाता है। छाया वेध के कारण परिवार के सदस्यों को गंभीर रोग जैसे मस्तिष्क के रोग, लकवा और हृदय संबंधी रोग आदि होने की आशंका रहती है। छायावेध के प्रभाव से तरक्की, सफलता और आर्थिक उन्नति में भी बाधाएं बनी रहती हैं। हांलांकि छाया कितनी अशुभ है यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह किस प्रकार का छाया वेध है। तो चलिए जानते हैं कि किस प्रकार बनता है छायावेध और यह कितनी तरह का होता है।
किसी मकान पर पडऩे वाली छाया अशुभ है या नहीं , यह इस बात पर निर्भर करता है कि छाया किस तरह की है और कितने समय तक पड़ रही है। यदि आपके घर पर किसी भी चीज की छाया लगभग छह घंटों तक पड़ती है तो इसे छाया वेध माना जाता है। वास्तु शास्त्र में मुख्यता पांच प्रकार के छाया वेध के बारे में बताया गया है। मंदिर, वृक्ष, भवन, पर्वत, ध्वज।मंदिर छाया वेधघर के पास मंदिर होना सभी को अच्छा लगता है क्योंकि इससे वातावरण सकारात्मक बना रहता है लेकिन मंदिर की छाया आपके मकान पर पडऩा भी नुकसानदायक हो सकता है। यदि सुबह के 10 बजे से लेकर दोपहर के 3 बजे तक किसी भी मंदिर की छाया मकान पर पड़ती है तो ये छाया वेध बनता है। इसके कारण विवाह और संतान प्राप्ति में देरी, करोबार में नुकसान और पारिवारिक कलह का सामना करना पड़ता है।ध्वज छाया वेधकिसी मंदिर के पास 100 फीट के अंतर्गत बने हुए मकान ध्वज छाया वेध के अंदर आते हैं हालांकि यदि मंदिर की ऊंचाई कम है और उसके ध्वज की छाया मकान के ऊपर नहीं पड़ती है तो यह छाया वेध मान्य नहीं होता है। इसका कोई प्रभाव नहीं रहता है। यदि ध्वज की ऊंचाई से दोगुनी जगह छोड़कर मकान का निर्माण करवाते हैं तो वास्तु दोष नहीं लगता है।पर्वत छाया वेधयदि किसी के घर की पूर्व दिशा की ओर किसी पर्वत, ऊंचे टीले आदि की छाया पड़ती है तो यह छाया वेध के अंतर्गत आता है। यह परिवार के सदस्यों की सफलता में बाधक होता है साथ ही मान-प्रतिष्ठा की हानि होने का डर रहता है। पूर्व के अलावा अन्य दिशाओं पर इस छाया का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।भवन छाया वेधयदि आपके मकान पर किसी बड़े मकान, ऊंची बिल्डिंग आदि की छाया पड़ती है तो यह छाया वेध हो सकता है लेकिन यह छाया कितनी अशुभ है यह इस बात पर निर्भर करता है कि छाया कहां पर पड़ती है। यदि आपके मकान के आसपास बोरिंग या कुंए आदि पर यह छाया पड़ रही है तो यह छाया वेध के अंदर आती है। इसके कारण आपको आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ सकता है। माना जाता है कि किसी अन्य घर की छाया पडऩे के कारण परिवार के मुखिया को घोर कष्ट का सामना करना पड़ता है।वृक्ष छाया वेधयदि आपके घर पर सुबह के 10 बजे से दोपहर के 3 बजे तक किसी पेड़ की छाया घर पर पड़ती है तो यह बहुत अशुभ माना जाता है, लेकिन इसमें दिशा का ज्ञान होना आवश्यक होता है। यदि घर के घर की आग्नेय दिशा में वट, पीपल, सेमल, पाकड़ तथा गूलर का वृक्ष है तो जीवन में असफलता का सामना करना पड़ता है। इसके कारण प्राणों तक पर संकट आ सकता है। - हिंदू धर्म में प्रत्येक माह में दोनों पक्षों की चतुर्थी तिथि का विशेष महत्व माना जाता है। हिंदी पंचांग के प्रत्येक मास में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में पडऩे वाली चतुर्थी तिथि भगवान गणेश के समर्पित की जाती हैं। जहां शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी कहा जाता है तो वहीं कृष्ण पक्ष में पडऩे वाली चतुर्थी तिथि को गणेश संकष्टी चतुर्थी के रुप में मनाया जाता है। यह दिन भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन भक्त व्रत रखकर भगवान गणेश का विधि-विधान के साथ पूजन करते हैं। भगवान गणेश की कृपा से घर में शुभता बनी रहती है और कोई भी कार्य बिना किसी विघ्न बाधा के पूर्ण हो जाता है।इस बार आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी 27 जून 2021 दिन रविवार को पड़ रही है। रविवार के दिन पडऩे के कारण यह तिथि और भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। जो संकष्टी चतुर्थी रविवार के दिन पड़ती है उसे रविवती संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। यह तिथि उन लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है जिनकी कुंडली में सूर्य कमजोर स्थिति में हो। तो आइए जानते हैं संकष्टी चतुर्थी महत्व, मुहूर्त और पूजा विधि।संकष्टी चतुर्थी, मुहूर्त व विशेष संयोगआषाढ़ मास कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि आरंभ- 27 जून 2021 शाम 03 बजकर 54 मिनट सेआषाढ़ मास कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि समाप्त- 28 जून 2021 दोपहर 02 बजकर 16 मिनट परसंकष्टी के दिन चन्द्रोदय - 27 जून 2021 10 बजकर 03 मिनट परसंकष्टी चतुर्थी का व्रत चंद्रमा को अघ्र्य देने का बाद पूर्ण होता है इसलिए यह व्रत 27 जून को रखा जाएगा।इस बार चतुर्थी तिथि पर रविवती संकष्टी चतुर्थी संयोग बन रहा है इसलिए सूर्य को अनुकूल बनाने के लिए यह दिन बहुत शुभ है। इस दिन प्रात: स्नानदि करके भगवान सूर्यनारायण को प्रणाम करें और उन्हें तांबे के लोटे से जल दें। इससे आपके सूर्य संबंधी दोष दूर होते हैं।संकष्टी चतुर्थी महत्वजैसे कि इस तिथि का नाम हैं संकष्टी उसी के अनुरूप इसे संकट हरने वाली तिथि माना गया है। इस दिन श्रद्धा और विधिपूर्वक भगवान गणेश के निमित्त व्रत करने और पूजन करने से जातक के जीवन के सभी संकट दूर होते हैं। भगवान गणेश अपने भक्तों के संकट हर लेते हैं और जीवन में सकारात्मकता का आगमन होता है। जिस स्थान पर बप्पा विराजते हैं वहां रिद्धि-सिद्धि और शुभ-लाभ भी विराजते हैं। गणेश जी की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि और सकारात्मकता बनी रहती है।संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि-चतुर्थी तिथि के दिन प्रात: काल जल्दी उठकर स्नानादि कर लें।- इस दिन पीले या लाल रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है।-अब पूजा स्थान की सफाई करके एक लाल रंग का आसन बिछाकर भगवान गणेश की प्रतिमा को स्थापित करें।- गणेश जी के समक्ष घी का दीपक व सुगंधित धूप प्रज्वलित करें और सिंदूर से तिलक करें।- अब गणेश जी को फल-फूल व मिष्ठान अर्पित करें। मिष्ठान में मोदक या मोतीचूर के लड्डू अर्पित करने चाहिए।- गणेश जी को दूर्वा अतिप्रिय है इसलिए इस दिन 21 दूर्वा की गांठे भगवान गणेश के अलग-अलग नामों का उच्चारण करते हुए अर्पित करें।-संकष्टी चतुर्थी का व्रत गणेश जी की पूजा से आरंभ होकर चंद्रमा को अघ्र्य देने पर पूर्ण होता है।- इस दिन यथाशक्ति दान देने के पश्चात व्रत का पारण करना चाहिए।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 325
(भूमिका - प्रस्तुत उद्धरण जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित विलक्षण प्रवचन श्रृंखला 'मैं कौन? मेरा कौन?' से लिया गया है। आचार्यश्री ने इस प्रवचन श्रृंखला में कुल 103-प्रवचन दिये थे। इस विकराल कलिकाल में सर्वथा भ्रान्त जीवों के कल्याणार्थ वैदिक सिद्धान्तों पर पूर्ण दृष्टिकोण रखते हुये भगवान राम-कृष्ण प्रापत्यर्थ भक्तियोग की उपादेयता एवं उसका षड्दर्शनों से सम्बन्ध बतलाते हुये विशद व्याख्या की है। निम्न उद्धरण में भक्तिपथ में निष्कामता की सर्वोच्चता के विषय में प्रकाश डाला गया है, जो कि उनके द्वारा 27 मार्च 2011 में भक्तिधाम मनगढ़ में दिये गये इस श्रृंखला के 93-वें प्रवचन का एक अंशमात्र है...)
...भक्त कुछ नहीं चाहता, भुक्ति मुक्ति कुछ नहीं, ये संक्षेप में और संक्षेप में अपना सुख नहीं चाहता। महाप्रभु जी ने बड़ा सुन्दर उपदेश दिया था;
निजेन्द्रिय सुख हेतु कामेर तात्पर्य,कृष्ण सुख तात्पर्य प्रेम तो प्रबल।
दो विरोधी चीज है - एक कामना एक प्रेम। जो अपने सुख के लिये करे वो 'काम' है और जो श्यामसुन्दर के सुख के लिये करे, वो 'प्रेम' है।
निजेन्द्रिय-सुख-वांछा नहे गोपिकार।कृष्ण-सुख हेतु करे संगम विहार।।(चैतन्य चरितामृत)
अतएव कामे प्रेमे बहुत अन्तर।काम अन्धतम प्रेम निर्मल भास्कर।।(चैतन्य चरितामृत)
अन्धकार और सूर्य के समान अन्तर है। जब अपने सुख की कामना छोड़ देता है भक्त, तो फिर भगवान का आसन डोल जाता है। अरे ये तो बड़ा खतरनाक आदमी है। इसी बात को मैंने पहले बहुत दिन पहले बताया था कि सूत जी ने शौनकादिक परमहंसों के प्रश्न के उत्तर में कहा था;
अहैतुक्यप्रतिहता ययात्मा सम्प्रसीदति।(भागवत 1-2-6)
भक्ति वो जिसमें कोई कामना न हो। मैंने कपिल भगवान का भी उपदेश आप लोगों को बताया था;
अहैतुक्यव्यवहिता या भक्तिः पुरुषोत्तमे।।(भागवत 3-29-12)
अर्थात भक्त का मतलब ही यही है कि जिसमें भुक्ति मुक्ति न हो, अपने सुख की कामना न हो।
अन्याभिलाषिताशून्यं ज्ञानकर्माद्यनावृतं।आनुकूल्येन कृष्णानुशीलनं भक्तिरुत्तमा।।(भक्तिरसामृतसिन्धु 1-11)
तो मोक्षपर्यन्त की कामना नहीं करना है। हमारे देश में तमाम भोलेभाले लोग भजन बनाते हैं। सबमें एक ही चीज माँगते हैं, 'तार दो', तार दो माने मोक्ष दो। और सुनो हमारे देश में एक आरती है, वो सारे मन्दिरों में गाई जाती है;
सुख संपत्ति घर आवे और कष्ट मिटै तन का।ॐ जय जगदीश हरे।
बड़े प्यार से गाते हैं लोग। ये संसार की संपत्ति घर में आवे और शरीर का भी कष्ट जाय, ऐसी कृपा करो। अरे देखो पंडितों से पूछो कि तुम पूजा कराते हो, शादी वगैरह में, तो अंत में क्या बोलते हैं - 'यांतुः देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम्।' सब देवता अपने अपने लोक को जाओ। 'लक्ष्मीं कुबेरं च बिहाय'। लक्ष्मी और कुबेर तुम मत जाना। तुम हमारे घर में रहकर खूब दौलत, खूब संपत्ति लाओ, ताकि मैं जो कभी मंदिर जाता हूँ वो भी जीरो हो जाय। छुट्टी नहीं मिलती, कैसे भगवान की ओर जायें? ये भी भगवान की सेवा है। बच्चों में बड़ी आसक्ति है? अरे ये सब गोपाल जी तो हैं। ये वेदान्त झाड़ते हैं वे लोग।
तो मोक्षपर्यन्त की कामना सबसे बड़ी बाधा या कोई भी कामना हो, भगवान के सुख की कामना से भगवान का प्रेम माँगना है। तदर्थ भगवान का दर्शन माँगना है। दर्शन नंबर एक, पहले आओ, उसके बाद वो बोलेंगे ही कि वर माँगो, आदत है उनकी। तो हम बोलेंगे, निष्काम प्रेम। क्या करोगे? आपकी सेवा। चुप, बोलती बंद हो जायेगी, ठाकुर जी की। ये बड़ा पक्का है, ये तो भई, देना ही पड़ेगा इसको।
तो भगवद-भक्ति की कामना और वो निष्काम कामना अनन्यता से युक्त और निरंतर - यही एक पाठ ऐसा है, जिससे हम 'मैं' और 'मेरे' का ज्ञान प्राप्त करने के अधिकारी बनेंगे।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'मैं कौन? मेरा कौन?' प्रवचन श्रृंखला (93-वें प्रवचन का अंश)०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - 25 जून से आषाढ़ के महीने की शुरुआत होने जा रही है. इस दिन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा है, जिस कारण सूर्योदय के समय चन्द्रमा धनु राशि में रहेगा और 06:41 बजे के बाद पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में होगा. ये मेष और कन्या राशि के जातकों के लिए अतयंत शुभ होगा, उन्हें बिजनेस में अपार सफलता मिलेगी और धन लाभ होगा. आइए एस्ट्रो गुरु बेजान दारुवाला के पुत्र चिराग दारुवाला से जानते हैं कि ये योग आपके लिए कितना फायदेमंद होगा और आपका दिन कैसा बीतेगा.मेष -आपके व्यक्तित्व में नए आकर्षण का संचार होगा. अपने हुनर और समझदारी से कार्यों को बखूबी पूरा करेंगे. व्यापार में आज अचानक शुभ समाचार प्राप्त हो सकता है. अधिकारियों के सामने अपनी बात रखने का सही समय है.वृषभ-आपको शुभ सूचना मिल सकती है. घर की जिम्मेदारियों को निभाने की दिशा में आप कुछ नया निर्णय ले सकते हैं. व्यापार, रोजगार अच्छा चलेगा. पिता के कार्य में आप का सहयोग सराहनीय रहेगा. कार्य स्थल पर सहयोगियों को आप से ईर्ष्या हो सकती है.मिथुन -आपका दिन बहुत खास रहेगा. मन में कोई बात हो तो उसे प्रकट करें. तरक्की के नए मार्ग खुलेंगे. महिलाओं को अपने करियर के बारे में और गहराई से सोचना जरूरी है. प्रॉपर्टी खरीदने के लिए दिन बहुत अच्छा है. रुपये पैसे के लेनदेन में सावधानी रखें.कर्क -यह दिन आपके लिए महत्वपूर्ण रहेगा. कपड़ा व्यवसायों को आज अच्छा लाभ होगा. भविष्य को ध्यान में रखकर निवेश कर सकते हैं. ससुराल के लोगों से अच्छी बातचीत होगी. नौकरी में सफलता मिलेगी. जिम्मेदारी भरे किसी काम में लापरवाही न बरतें.सिंह-किसी की बात को दिल पर न लगाएं. नौकरी करने वालों को आर्थिक स्वरूप से सक्षम बनने की आवश्यकता होगी. व्यापार में जबरदस्त नतीजे हासिल होंगे. काम के सिलसिले में किए गए प्रयास आपको अच्छे नतीजे प्रदान करेंगे.कन्या-अपने आप पर भरोसा रखें. ज्यादा लाभ कमाने के लिए आप बिजनेस में भाई-बहनों का सहयोग भी प्राप्त कर सकते हैं. मित्रों के सहयोग से मुश्किल काम सहज ही पूरे कर लेंगे. महिलाओं को घरेलू सामान की खरीदारी करनी पड़ेगी. छात्रों को उनके मेहनत के अनुरूप सफलता मिलेगी.तुला-काम में अच्छे अवसर हाथ लग सकते हैं. आपके पारिवारिक बिजनेस में आज आपको अपने जीवन साथी की बात माननी पड़ सकती है. व्यापारियों को सरकारी नियमों से कुछ परेशानी हो सकती है. सोशल मिडिया के जरिए आपका कोई नया दोस्त बनेगा.वृश्चिक-किसी अज्ञात स्रोत से पैसा प्राप्त हो सकता है. किसी नए प्रोजेक्ट पर काम करने से आपको बहुत कुछ सीखने को मिलेगा. युवाओं के पास उच्च शिक्षा के लिए बेहतर मौके हैं. माता-पिता के साथ शॉपिंग करने जा सकते हैं.धनु -आपके सकारात्मक विचारों से परिवार के लोग प्रसन्न होंगे. नौकरी में बैंकिंग सेक्टर वालों के लिए लाभ का समय है. पेंडिंग छोड़ दिया गया कोई प्रॉपर्टी डील अब फायदेमंद महसूस हो सकता है. संतान की ओर से मन को संतोष प्राप्त होगा.मकर -नए कार्य में मन लगेगा. आप अपने पराक्रम व साहस के बल पर धन अर्जित करने में सफल रहेंगे. युवाओं को कैरियर से जुड़ी नई जानकारी मिलेगी. भूतकाल में घटी-घटनाओं से केवल विवाद उत्पन्न हो सकता है. व्यर्थ की समस्या पर नियंत्रण होगा.कुंभ -अपने किए हुए कार्यों से आप फूले नहीं समाएंगे. किसी खास मामले को लेकर आपकी सोच बदल सकती है. इनकम बढ़ाने के कुछ अच्छे मौके भी आपको मिल सकते हैं. ऑनलाइन लेनदेन में सावधानी बरतें. विद्यार्थियों को करियर में सफलता मिलेगी.मीन -ईश्वर की कृपा से आपके बहुत सारे काम बन सकते हैं. जीवन साथी के सहयोग से प्रॉपर्टी में हाथ डाल सकते हैं. अपने समय का सदुपयोग करने से आपको लाभ होगा. आपको खर्चों में कमी का प्रयास करना चाहिए. घर के जरूरी कामों में हाथ बटाएंगे.
- क्या आपको पता है कि इससे आप अपने ग्रहों को भी अनुकूल बना सकते हैं। ज्योतिष के अनुसार पोषक तत्वों से भरपूर मेवा को आप यदि सप्ताह के दिनों के हिसाब से खाते हैं तो इससे आप अपने ग्रहों की दशा में सुधार ला सकते हैं। प्रतिदिन मेवा खाने से आपकी सेहत तो अच्छी रहती ही है साथ ही यह आपके निजी और कार्यक्षेत्र के लिए भी काफी फायदेमंद हो सकता है। माना जाता है कि यदि आप दिन के अनुसार सुबह को मेवा खाकर घर से निकलते हैं तो आपका भाग्य साथ देता है और इससे आपको कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। तो आइए जानते हैं कि सप्ताह के कौन से दिन कौन सी मेवा खाना शुभ रहता है।सोमवारज्योतिष के अनुसार सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित होता है साथ ही ज्योतिष के अनुसार यह दिन चंद्रमा का माना गया है। इस दिन सफेद रंग के खाद्य पदार्थ का सेवन करना बहुत अच्छा माना जाता है इसलिए इस दिन आपको काजू का सेवन करना लाभ पहुंचा सकता है। सोमवार के दिन 4 काजू भिगोकर खाना चाहिए। इससे आपकी सेहत तो अच्छी रहती ही है साथ ही आपका चंद्रमा भी सही रहता है।मंगलवारमंगलवार का दिन भगवान हनुमान को समर्पित होता है साथ ही यह दिन मंगल ग्रह का दिन होता है। मंगल की स्थिति को अनुकूल बनाने के लिए इस दिन लाल चीजों का सेवन करना बहुत अच्छा रहता है। इस दिन बादाम खाना चाहिए।बुधवारबुधवार का दिन बुद्धि और शुभता के देवता गणपति देव को समर्पित होता है। इसके साथ ही ज्योतिष के अनुसार यह दिन बुधग्रह का माना गया है। इस दिन हरी चीजों का दान करना और सेवन करना शुभ माना जाता है। इससे बुध को मजबूती मिलती है। बुधवार के दिन पिस्ता खाना फायदेमंद रहता है।बृहस्पतिवारधार्मिक मान्यता के अनुसार गुरुवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित किया जाता है तो वहीं ज्योतिष के अनुसार यह गुरु ग्रह का दिन है। इस दिन पीली वस्तुओं का दान और सेवन बहुत शुभ माना जाता है। गुरुवार के दिन केसर का तिलक लगाना और खाने में केसर को शामिल करना बहुत ही शुभ रहता है।शुक्रवारशुक्रवार का दिन धन की देवी मां लक्ष्मी को समर्पित किया जाता है तो वहीं यह दिन धन वैभव के प्रदाता शुक्र ग्रह का माना गया है। इस दिन नारियल का सेवन करना चाहिए। इसके साथ ही मिश्री का सेवन करना भी लाभप्रद रहता है। इससे आपका चंद्र और शुक्र दोनों अच्छे रहते हैं और मां लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है।शनिवारशनि, जहां कर्मफल प्रदान करने वाले देव हैं तो वहीं ग्रहों में भी इनका विशिष्ट स्थान है। शनिवार के दिन अंजीर खाने से शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है साथ ही आपके शरीर में रक्त की कमी नहीं रहती है। इसके अलावा इस दिन मुनक्के का सेवन भी कर सकते हैं।रविवाररविवार का दिन सूर्य देव को समर्पित किया जाता है। जहां सूर्यदेव के कारण प्रकृति में संतुलन बना रहता है तो वहीं कुंडली में सूर्य की स्थिति अनुकूल होने से आपके जीवन में संतुलन रहता है। रविवार के दिन अखरोट का सेवन करना फायदेमंद रहता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 324
★ भूमिका - प्रस्तुत प्रवचन अंश में जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने भक्ति में 'स्मरण' की प्रमुखता पर प्रकाश डाला है। किस प्रकार श्रवण से प्रारंभ होकर भक्ति में प्रगाढ़ता आती है और किस प्रकार भक्ति के सभी रूपों में भगवान के 'स्मरण' की प्रधान्यता है, यह निम्न उद्धरण में वर्णित है। आचार्यश्री का यह प्रवचन उनके द्वारा निःसृत 'नारद भक्ति दर्शन' की व्याख्या का एक अंशमात्र है......अनन्त गुण हमारे सम्बन्धी श्रीकृष्ण में हैं, यह समझना है। फिर उनसे सम्बन्ध को दृढ़ करने के लिये क्या करना है? उस सम्बन्ध पर बार-बार विचार करना है।देखो ! एक लड़का जा रहा है, एक लड़की जा रही है, एक दूसरे को देखते तो हैं छुप-छुप के। वो लड़की उधर देख रही है तो हमने देख लिया - कैसी आँख है, कैसी नाक है, कैसा मुँह है, काली है, गोरी है, क्या है और जब हमारी तरफ देखने लगी तो हम सीरियस हो गये, इधर देखने लगे। ऐसा हम लोग करते हैं। सद्भावना-दुर्भावना का मतलब नहीं है, नेचर है। कोई आपके सामने सीट पर बैठा है ट्रेन में, अब क्या वो अन्धा बना रहेगा, देखेगा तो है ही। लेकिन वो डायरेक्ट नहीं देखता। जब वो और तरफ देख रहा है तो उसको देख लिया, जब वो मेरी तरफ देखने लगा तो सीरियस हो गये। एटीकेट है, चार सौ बीस है, तरीका है। हम उसको देखते हैं लेकिन ये बताना चाहते हैं कि हमारा कोई कॉन्टेक्ट नहीं तुमसे। जब दोनों की सगाई हो गई, अभी ब्याह नहीं हुआ, सगाई हो गई, तब वो लड़की उस लड़के का चिन्तन करती है, चिन्तन। ये हमारा है, ये हमारा है, ये हमारा है। अभी हुआ-वुआ नहीं ब्याह। कितनी सगाई कैंसिल हो जाती है। लेकिन वो चिन्तन शुरू हो गया उसका। वो ऐसा है, वो ऐसा है, वो ऐसा है। इतना पढ़ा-लिखा है, इतना लम्बा-चौड़ा है, इतनी उसके अन्दर बातें हैं, इतनी प्रॉपर्टी है। अब सबका चिन्तन हो रहा है। यानी हम इतने के मालिक हो गये। अरे! अभी ब्याह भी नहीं हुआ और सबकी मालिक हो गई तू, वो चिन्तन से आत्मीयता दृढ़ हो गई। ऐसे ही जब हमने ये जान लिया और मान लिया कि श्रीकृष्ण ही हमारे सम्बन्धी हैं;त्वमेव माता च पिता त्वमेव।त्वमेव सर्वम् मम देव देव।तब फिर उसका चिन्तन प्रारम्भ होगा, अपने-आप होगा, जितनी नॉलेज पक्की होगी उतना चिन्तन होगा और चिन्तन होने से;मामनुस्मरतश्चित्तं मय्येव प्रविलीयते।वेदव्यास कहते हैं - बस, चिन्तन लगातार किया कि मन का अटैचमेन्ट हो गया। ये नम्बर दो हो गया, अभिधेय हो गया। अगर सम्बन्ध ज्ञान (नम्बर एक) परिपक्व हुआ तो अभिधेय माने साधना स्वयं हो गई। लेकिन जितनी लिमिट में आपका सम्बन्ध ज्ञान परिपक्व हुआ उतनी लिमिट में आपने चिन्तन किया। जितनी लिमिट में चिन्तन बढ़ता गया, उतनी लिमिट में अटैचमेन्ट बढ़ता जायेगा और जब परिपूर्ण सम्बन्ध ज्ञान पर परिपूर्ण फेथ हो जायेगा तब ये 'यज्ज्ञात्वा', ये सफल होगा शब्द 'यज्ज्ञात्वा', जिसको जानकर। जानकर, वो जानना नित्य होगा, प्रत्येक काल में, प्रत्येक स्थान में, प्रत्येक वस्तु में यह सम्बन्ध-ज्ञान रहे, ये शर्त है सम्बन्ध-ज्ञान पक्का है कि नहीं। प्रत्येक स्थान पर जहाँ जाइये वो श्रीकृष्ण हमारे सम्बन्धी हैं, श्रीकृष्ण हमारे सम्बन्धी हैं। वृन्दावन में जाने पर यह फीलिंग तो हुई - श्रीकृष्ण हमारे सम्बन्धी हैं, बताया था महाराज जी ने लेकिन जब हम और जगहों में जाते हैं संसारी जगहों में तो वहाँ भूल जाते हैं। नहीं, 'यो मां पश्यति सर्वत्र', सब जगह। देश, काल, वस्तु, ये तीन होते हैं। देश, काल, वस्तु। इन तीनों में यह ज्ञान परिपक्व होना चाहिये कि वे हमारे ही हैं और सब जगह हैं। तो किसी भी वस्तु से द्वेष नहीं, किसी भी समय या किसी भी स्थान से द्वेष नहीं । सर्वत्र हमारे श्रीकृष्ण हैं ओतप्रोत। तो इस प्रकार अभिधेय भी आप समझ गये। अभिधेय में तीन चीजें हैं जो आप लोग करते हैं यहाँ डेली।श्रोतव्यः कीर्तितव्यश्च स्मर्तव्यश्चेच्छताभयम्।(भागवत 2-1-5)शुकदेव परमहंस ने तीन प्रमुख साधना भक्ति बताया परीक्षित को, 'श्रोतव्यः' - सुनो। ये सुनना भी कीर्तन है और 'कीर्तितव्यः' और मुख से बोलना, ये भी कीर्तन है। देखो! कीर्तन तीन पद्धति का होता है - व्यास पद्धति, नारद पद्धति और हनुमत् पद्धति । व्यास पद्धति है कीर्तन सुनाना, भगवान् की लीलाओं के उनके विषय को सुनाना या सुनना जो आप लोग इस समय कर रहे हैं। ये भी कीर्तन है और नारद पद्धति है कि मुख से शब्द बोलना, खाली सुनना नहीं और साथ में बाजे-गाजे भी हों - हारमोनियम, तबला, सितार जो भी बाजा होता है, उन बाजों के साथ भगवान् के नाम, गुण, लीलादि को गाना। ये नारद जी की पद्धति है, इसको आप लोग करते ही हैं। तो व्यास पद्धति भी आपको हम कराते हैं, प्रैक्टिकल, नारद पद्धति भी कराते हैं। और एक हनुमत् पद्धति है, वो कैसी है? उसमें भी कीर्तन तो होगा ही, मुख से शब्द बोला जायेगा, लेकिन उसमें नृत्य भी होता है, जिसको गँवारी भाषा में कहते हैं - उछल-कूद। जब प्रेम का उद्रेक अधिक होता है और कन्ट्रोल नहीं होता तो 'नृत्यति लोकबाह्यः', फिर वो नाचने लगता है। ये सब कम्बाइन्ड होकर के कीर्तन कहलाते हैं। लेकिन चाहे कथा सुनी जाये, चाहे बोली जाये, चाहे बाजे-गाजे से, चाहे नृत्य करते हुए, सदा सर्वत्र सर्व वस्तु में हमको तीसरी साधना पर खास ध्यान देना है - 'स्मर्तव्यश्चेच्छताभयम्' - श्रीकृष्ण का स्मरण। देखो, देखो! संसार में आप लोग किसी को बुलाते हैं तो पहले क्या करते हैं? पहले-पहल शब्द बोलते हैं?नहीं-नहीं-नहीं, पहले ध्यान करते हैं फिर उसका नाम लेते हैं और कभी-कभी नाम जल्दी में याद नहीं आता तो आप कहते हैं - अरे ! वो कहाँ है, वो वो जो बरेली से आया है, वो क्या नाम है उसका, वो सुन्दरलाल। देखो! स्मरण पहले हुआ, नाम बाद में। तो उसी प्रकार हमको स्मरण पहले करना है, भगवन्नाम बाद में लो, न लो, दोनों का मूल्य बराबर है। लेकिन स्मरण मेन है 'स्मर्तव्यः'। तो ये तीन प्रकार की भक्ति जो मैं आप लोगों से कराता हूँ, यही प्रमुख हैं और बाकी तो छः प्रकार की और हैं नवधा भक्ति जिसे कहते हैं उसमें और फिर एकादशधा भक्तियाँ भी हैं और पच्चीस-तीस प्रकार की भक्तियाँ भी होती हैं, अनन्त प्रकार की भी हो सकती हैं।जिस किसी प्रकार से भगवान् में मन लगे उसी का नाम भक्ति, साधना भक्ति। विचित्र-विचित्र तरीके होते हैं, भक्ति करने के जिसकी कल्पना आप नहीं कर सकते।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'नारद भक्ति दर्शन' प्रवचन, संख्या - 5०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि 24 जून को पड़ रही है। इस तिथि को जेठ पूर्णिमा या जेठ पूर्णमासी कहा जाता है। हिन्दू धर्म में पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन पवित्र नदी अथवा जलकुंड में स्नान, व्रत एवं दान-पुण्य के काम करने की मान्यता है। माना जाता है कि इस दिन स्नान, व्रत एव दान-पुण्य के कार्य करने से जातकों को शुभ फल प्राप्त होते हैं। इस दिन वट पूर्णिमा व्रत रखा जाता है और कबीरदास जयंती भी मनाई जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि गुरुवार के दिन पड़ रही है। सूर्य और चंद्रमा क्रमशः मिथुन और वृश्चिक राशि में स्थित होंगे। पूर्णिमांत के अनुसार, यह तिथि ज्येष्ठ माह की अंतिम तिथि होती है। इसके बाद आषाढ़ माह प्रारंभ हो जाता है। पूर्णिमा तिथि 24 जून 2021 तड़के 03:32 बजे से शुरू हो जाएगी और यह 25 जून 2021 को रात 12:09 बजे समाप्त होगी।इस बन रहा है विशेष संयोगज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन खास संयोग बन रहा है। दरअसल, ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि गुरुवार के दिन पड़ रही है। गुरुवार का दिन और पूर्णिमा तिथि ये दोनों भगवान विष्णु जी को प्रिय हैं। इसी कारण इस साल पूर्णिमा तिथि अत्यंत विशेष है। ग्रहों की बात करें तो ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन सूर्य और चंद्रमा क्रमशः मिथुन और वृश्चिक राशि में स्थित होंगे।पूर्णिमा व्रत विधिपूर्णिमा के दिन सुबह स्नान से पहले व्रत का संकल्प लें। पवित्र नदी या कुंड में स्नान करें और स्नान से पूर्व वरुण देव को प्रणाम करें। स्नान के पश्चात सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए। स्नान से निवृत्त होकर भगवान मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए और उन्हें नैवेद्य अर्पित करना चाहिए। अंत में ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दें।इस दिन रखा जाता है वट पूर्णिमा व्रत
ज्येष्ठ पूर्णिमा को वट पूर्णिमा व्रत रखा जाता है। यह व्रत महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण के राज्यों में विशेष रूप से रखा जाता है, जबकि उत्तर भारत में यह व्रत वट सावित्री के रुप मे मनाया जाता हैं, जो ज्येष्ठ माह की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को पड़ता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सावित्री ने अपने पति के प्राण यमराज से वापस लेकर आईं थी। यही वजह है कि विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुख समृद्धि के लिए इस व्रत को रखती हैं।
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- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 323
★ भूमिका - आज के अंक में प्रकाशित दोहा तथा उसकी व्याख्या जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ग्रन्थ 'भक्ति-शतक' से उद्धृत है। इस ग्रन्थ में आचार्यश्री ने 100-दोहों की रचना की है, जिनमें 'भक्ति' तत्व के सभी गूढ़ रहस्यों को बड़ी सरलता से प्रकट किया है। पुनः उनके भावार्थ तथा व्याख्या के द्वारा विषय को और अधिक स्पष्ट किया है, जिसका पठन और मनन करने पर निश्चय ही आत्मिक लाभ प्राप्त होता है। आइये उसी ग्रन्थ के 21-वें दोहे पर विचार करें, जिसमें आचार्यश्री ने यह बताया है कि भगवान श्रीकृष्ण के ही 3 अभिन्न स्वरूप कौन-कौन से हैं तथा उनमें क्या-क्या विशेष बात है और कैसे सगुण साकार और प्रेमानन्द वाले श्रीकृष्ण का सौरस्य अन्य सभी से विलक्षण है!!...
तीन रूप श्री कृष्ण को, वेदव्यास बताय।ब्रह्म और परमात्मा, अरु भगवान कहाय।।21।।
भावार्थ - वेदव्यास ने परात्पर ब्रह्म श्रीकृष्ण के 3 रूप बताये हैं। जिन्हें ब्रह्म और परमात्मा एवं भगवान् कहा जाता है।
व्याख्या - वेदव्यास ने भागवत में कहा है। यथा;
वदंति तत्तत्वविदस्तत्वं यज्ज्ञानमद्वयम्।ब्रह्मेति परमात्मेति भगवानिति शब्द्यते।।
अर्थात् अद्वयज्ञान तत्व ही भगवान् श्रीकृष्ण हैं। तत्व का तात्पर्य है स्वरूप। वह तत्व अद्वय ज्ञान है। 'ज्ञानं चिदेक रूपम्' (तत्व संदर्भ), अर्थात् चिद् वस्तु ही ज्ञान है। ज्ञान शब्द से चित् (चेतन) एवं चित् शब्द से सच्चिदानंद का बोध होता है। इसी से वेद ने,
'सत्यं विज्ञानमानंदं ब्रह्म'
कहा है। अतः श्रीकृष्ण का स्वरूप सच्चिदानंद ब्रह्म है। कृष्ण शब्द का अर्थ भी यही है। यथा;
कृषि शब्दो हि सत्तार्थोणश्चानंद रूपकः।सत्ता स्वानंदयोर्योगाच्चित् परं ब्रह्मचोच्यते।।(वृ. गौ. तंत्र)
श्रीकृष्ण सशक्तिक ब्रह्म हैं। अतः सत् से संधिनी शक्ति, चित् से संवित् शक्ति, एवं आनंद से ह्लादिनी शक्ति का प्रादुर्भाव होता है। इन तीनों को मिलाकर संक्षेप में चित् भी कहते हैं। वह अद्वय ज्ञान तत्व परब्रह्म श्रीकृष्ण, अपनी संधिनी शक्ति से स्वयं की सत्ता तथा समस्त जीवों की सत्ता की रक्षा करता है। संवित् शक्ति से स्वयं को एवं जीवों को भी ज्ञान युक्त करता है। ह्लादिनी शक्ति से स्वयं को एवं जीवों को भी आनंद प्रदान करता है। अब यह प्रश्न आता है कि यह अद्वय ज्ञान तत्व क्यों कहलाता है? अद्वय का तात्पर्य क्या है ? उत्तर यह है कि;
1. कोई भी तत्व अद्वय तभी माना जायगा, जब वह स्वयं सिद्ध हो। दूसरे पर निर्भर न हो।2. उस तत्व के समान दूसरा तत्व न हो।3. उस तत्व की विजातीय वस्तु भी न हो।4. उसकी अपनी ही शक्ति सहायिका रहे।
भावार्थ यह कि अद्वय ज्ञान तत्व सजातीय विजातीय स्वगतभेद शून्य हो। अब इन तीनों पर विचार कर लीजिये।
1. सजातीय भेद शून्य - श्रीकृष्ण के ही अभिन्न स्वरूप नारायण एवं समस्त अवतार हैं। वे सब श्री कृष्ण पर निर्भर हैं। अतः सजातीय भेद शून्य हैं। जीव भी चित् (चेतन) है। एवं श्रीकृष्ण की सत्ता पर निर्भर है। यह सजातीय भेद शून्य हुआ।
2. विजातीय भेद शून्य - श्रीकृष्ण ब्रह्म चिद्रूप हैं। उनका विजातीय तत्व जड़ है। किंतु वह जड़ प्रकृति भी श्री कृष्ण से ही नियंत्रित है। अतः यह विजातीय भेद शून्य हुआ।
3. स्वगत भेद शून्य - श्रीकृष्ण में देह एवं देही का भेद नहीं है । जबकि जीवों का देह पृथक् होता है । तथा प्राकृत होता है । भगवान् का देह भगवान् ही है । यह स्वगतभेद शून्य हुआ। यथा;
आनंदमात्र कर पाद मुखोदरादिः..(भागवत)
पुनश्च - आनंद चिन्मय सदुज्वल विग्रहस्य....(ब्र. सं.)
इस प्रकार सिद्ध हुआ कि अद्वय ज्ञान तत्व श्रीकृष्ण ही हैं । वे अद्वितीय भी हैं। यथा;
न तत्समश्चाभ्यधिकश्च......(वेद)
उपर्युक्त अद्वय ज्ञान तत्व रूप परब्रह्म श्रीकृष्ण का 3 अभिन्न रूप होता है। यथा 1. ब्रह्म, 2. परमात्मा, 3. भगवान्। जैसे जल , बर्फ एवं गैस तीनों ही जल के ही स्वरूप हैं। ऐसे ही ब्रह्म, परमात्मा एवं भगवान् - तीनों एक ही के 3 रूप हैं।
यह 3 प्रकार का कल्पित भेद जीवों की इच्छापूर्ति के हेतु ही बनाया गया है। जैसे बादल युक्त सूर्य (ब्रह्म), बादल रहित सूर्य (परमात्मा), खुर्दबीन से दृष्ट सूर्य (भगवान्) वस्तुतः एक ही है। तात्पर्य यह कि ब्रह्मानंद भी अनंत एवं नित्य है किंतु उससे सरस सगुण साकार परमात्मानंद है। तथा उस परमात्मानंद से भी सरस लीला परिकर युक्त कृष्णानंद है।
इसी से कृष्ण गुणानुवाद के एक श्लोक को सुनकर आत्माराम पूर्णकाम परम निष्काम निग्रंथ परमहंस शुकदेव अपना ब्रह्मानंद भुलाकर बरबस प्रेमानंद (भगवदानंद) में विभोर हो गये। शुकदेव एवं सनकादिक, व्यासादिक तथा ब्रह्मादिकों ने तीनों रसों का अनुभव किया है। किंतु अंत में श्रीकृष्णानंद में ही सदा को लीन हो गये। अत : स्वप्न में भी भेद बुद्धि न आने पाये।
०० व्याख्याकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'भक्ति-शतक' (दोहा संख्या 21)०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - धन हानि रोकने में हैं कारगरकारोबार में देते हैं तरक्कीपैसों की तंगी कई परेशानियों की वजह बनती है. अक्सर यह घर-परिवार और जिंदगी का चैन-सुकून भी छीन लेती है. कई बार पैसे कमाने के लिए की गई जी-तोड़ मेहनत भी हालात नहीं बदल पाती है. ऐसे हालातों से निपटने के लिए ज्योतिष में कई उपाय बताए गए हैं. आज हम ज्योतिष की एक अहम विद्या रत्न शास्त्र से पैसों की तंगी को दूर करने के उपाय जानते हैं. ये उपाय करने से धन-समृद्धि बढ़ती है.ये 5 रत्न आ सकते हैं बहुत कामजेड स्टोन: यदि नया व्यापार शुरू करने जा रहे हैं तो हरे रंग का जेड स्टोन पहनने से आर्थिक मजबूती बनी रहेगी. साथ ही व्यापार से जुड़े फैसले लेने में आसानी होगी और ये फैसले लाभदायी साबित होंगे. यह रत्न पहनने से काम में मन भी लगेगा. कुल मिलाकर धन-समृद्धि पाने के लिए यह अच्छा रत्न है.माक्षिक रत्न: यह रत्न गंधक से मिलकर बना होता है और दिखने में शीशे जैसा होता है. यह रत्न आत्मविश्वास बढ़ाने के साथ-साथ पैसा आने के नए-नए रास्ते खोलता है.सुनहला रत्न: बार-बार धन हानि हो तो सुनहला रत्न पहनने से ऐसे नुकसान से राहत मिलेगी. यह रत्न किस्मत बदलने वाला होता है. इससे लक्ष्य पाने में मदद मिलती है.ग्रीन एवेंच्यूरिन: यह रत्न व्यापारियों के लिए बहुत लाभकारी है. यह कमाई के नए रास्ते खोलता है और पैसे को अपनी ओर खींचता है.टाइगर रत्न: रत्न शास्त्र में टाइगर रत्न को सबसे प्रभावी और शीघ्र फलदायी रत्न माना गया है. इसलिए इसे टाइगर कहते हैं. यह बिगड़े कामों को बनाता है और मालामाल कर देता है.(कोई भी रत्न धारण करने से पहले एक बार ज्योतिष की सलाह अवश्य लें।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 322
साधक का प्रश्न ::: गुरु जी! जब हम भगवान् का ध्यान करते हैं तो कभी बिटिया, कभी बीबी, कभी माँ सामने आ जाती है तब भगवान् का ध्यान किस प्रकार करें?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: अच्छा तो ये बताओ तुम्हारी बिटिया की क्या चीज अच्छी लगती है तुमको? हमारी बिटिया की आँख बड़ी अच्छी लगती है महाराज जी, उसी का ध्यान हो जाता है जब भगवान् की आँख का ध्यान करते हैं। हाँ-हाँ बेटा घबराओ मत, देखो ऐसा करो जब बिटिया आवे सामने और उसकी आँख आवे, तो उसी आँख में श्यामसुन्दर को खड़ा कर दो और खूब देखो बिटिया की आँख को। बिटिया की आँख में श्यामसुन्दर को खड़ा करके और फिर बिटिया की आँख को देखो, बिटिया समझेगी कि हमसे प्यार कर रहे हैं पिताजी और तुम अपने श्यामसुन्दर से कर रहे हो। बीबी की आँख को देखो। जो तुमको अच्छा लगता है, जहाँ अधिक अटैचमेन्ट हो उससे घबराओ मत, परेशान न हो, झुँझलाओ मत, उसी जगह श्यामसुन्दर को खड़ा करो। ये अमुक बिल्डिंग बड़ी अच्छी लगती है उसी के ऊपर खड़ा कर दो श्यामसुन्दर को, त्रिभंगीलाल खड़े हैं मुरली बजाते हुये। जहाँ मन जाये वहीं पर श्यामसुन्दर को खड़ा करो। जाने दो, रोको मत मन को कहीं, रोकने से नहीं रुकेगा और भागेगा। जैसे कुकर की गैस बढ़ जाती है ऐसे फिर तुम परेशान हो जाओगे। जहाँ मन जाये, जाने दो, उसी जगह पर श्यामसुन्दर को खड़ा कर दो। ये गुरु ने बताया तरकीब। हाँ ये बढ़िया है तरकीब। अब तो जहाँ कहीं भी मन जायेगा वहाँ पर मनमोहन को खड़ा कर देगें तो हार जाएगा मन, थक जाएगा कि हर जगह ये श्यामसुन्दर का, नन्दपूत का भूत खड़ा कर देते हैं तो कहीं जाना ही बेकार है।
देखो! ये जो बन्दर को सिखाते हैं बाजीगर लोग तो ये पहले सौ फुट की रस्सी में बाँध देते हैं बन्दर को। उसी में उछलता है वो, और सौ फुट के बाहर जाना चाहता है, गले में रस्सी लगती है बार-बार, बार-बार, तो सोचता है चलो अब इसी के अंदर कूदेंगे। जब सौ फुट के अंदर ही रह जाता है तब पचास फुट की रस्सी कर देते हैं। इसी प्रकार दस फुट की, फिर पांच फुट की फिर जब एक फुट की रस्सी कर देता है तो बन्दर बैठ जाता है, बेकार है भागना। हाँ, ऐसे ही ये मन है, ये जहाँ भी जाये वहाँ पर श्यामसुन्दर को खड़ा करो।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' (भाग - 1)०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - किसी भी व्यक्ति के लिए उसका व्यवसाय कितना मायने रखता है यह बात किसी को समझाने की आवश्यकता नहीं है। व्यवसाय व्यक्ति के जीवन भर की पूंजी और जीविकोपार्जन का जरिया होता है। जिससे वह अपने परिवार का भरण-पोषण करता है। ऐसे में यदि व्यवसाय में परेशानियां आने लगे तो तनाव होना स्वाभाविक होता है। व्यसाय में दिक्कते आते ही हर तरफ से परेशानियां आने लगती हैं क्योंकि व्यक्ति को व्यवसाय में दिक्कतों के चलते आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिससे परिवार में भी कलह-क्लेश होने लगता है। जिसके चलते व्यक्ति को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है। हर व्यक्ति यही चाहता है कि उसका व्यवसाय अच्छा चले और उसमें तरक्की होती रहे। वास्तु शास्त्र के अनुसार यदि कोई व्यवसाय करते हैं या फिर व्यवसाय आरंभ करने की सोच रहे हैं तो रंग का विशेष ध्यान रखना चाहिए। हम अपने कार्यस्थल पर बस रंगों का चयन ऐसे ही कर लेते हैं लेकिन रंग हमारे व्यवसाय को प्रभावित करते हैं ऐसे में यदि आप रंगो का चुनाव अपने व्यवसाय के अनुसार करते हैं तो लाभ प्राप्त किया जा सकता है। तो आइए जानते हैं कि किसी व्यवसाय के लिए कार्यस्थल पर कौन सा रंग करवाना फायदेमंद रहता है।यदि आपकी किराने की दुकान है तो हल्का गुलाबी या सफेद रंग करवाना सही रहता है, इससे व्यापार में तरक्की प्राप्त होती है।यदि आपका कपड़ों का व्यवसाय हैं जैसे सिलाई की दुकान, थोक या खुदरा में कपड़े बेचना आदि तो वास्तु के अनुसार आपको हल्के पीले, हरे और आसमानी रंग का चुनाव करना उचित रहता है। इससे आपकी व्यसाय की समस्याएं दूर होती हैं।यदि आप दवा विक्रेता हैं या फिर दवाखाना खोलना चाहते हैं तो आपको सफेद रंग करवाना चाहिए। वास्तु के अनुसार दवाई के कारोबार के लिए कार्यस्थल पर यह रंग सबसे अच्छा माना जाता है।यदि आपकी तोहफो की दुकान है तो आपको अपनी दुकान में पीला, आसमानी और हल्का गुलाबी या नीले रंग का प्रयोग करना चाहिए। इससे व्यवसाय में समृद्धि प्राप्त होती है।वास्तु शास्त्र के अनुसार यदि आपकी किसी प्रकार की बिजली के उपकरणों से संबंधित दुकान है तो कार्यस्थल पर गुलाबी, सफेद और हल्का हरा रंग करवाना बहुत लाभप्रद माना जाता है।यदि आप सौंदर्य प्रसाधन से जुड़ा हुआ कोई व्यसाय दुकान या ब्यूटी पार्लर आदि चलाते हैं तो आसमानी और सफेद रंग का चुनाव करना सही रहता है। इससे व्यापार में खूब तरक्की होती है।