- Home
- धर्म-अध्यात्म
-
वास्तुशास्त्र में विशेष तौर पर नकारात्मक ऊर्जा को दूर करके सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा दिया जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने में पेड़ पौधों का बहुत योगदान रहता है। कुछ ऐसे पेड़ बताए गए हैं जिनकी छाया में बैठने से आप सकारात्मक ऊर्जा से भर जाते हैं। जानते हैं कि कौन से हैं वे पेड़।
केले का वृक्षकेले के पेड़ को देव वृक्ष कहा गया है। बृहस्पतिदेव को प्रसन्न करने हेतु केले के पेड़ की पूजा करने का विधान है। केले के पेड़ की छांव में बैठने से सकारात्मक ऊर्जा तो प्राप्त होती ही है साथ ही इस पेड़ की छांव में बैठना छात्रों के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि केले के पेड़ की छांव में यदि विद्यार्थी पढ़ाई करते हैं तो उन्हें अपना पाठ जल्दी याद हो जाता है। लोग केले का पेड़ घरों में भी लगाते हैं , लेकिन इस पेड़ को घर के अंदर लगाने की बजाय द्वार पर लगाना चाहिए।नीम का पेड़नीम का पेड़ औषधीय गुणों से तो भरपूर होता ही है साथ ही इसपर मां दुर्गा का वास भी माना जाता है। यदि आप इस पेड़ की जड़ में प्रतिदिन जल अर्पित करते हैं तो आपको मां दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है। नीम की छाया में बैठने से सकारात्मक ऊर्जा भी प्राप्त होती है। घर में नीम का पेड़ लगा होने से नजर दोष से भी बचाव होता है।आंवला का पेड़आंवले के औषधीय गुणों से तो सभी परिचित हैं यह शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। इसके साथ ही आंवले के वृक्ष का धार्मिक महत्व भी बताया गया है।पौराणिक मान्यता के अनुसार आंवले के पेड़ पर स्वयं भगवान श्रीहरि का वास होता है। इस पेड़ की छाया में बैठने से आपको सकारात्मक ऊर्जा तो प्राप्त होती ही है साथ ही इस वृक्ष के पूजन से आपको भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है। आपकी धन संबंधी समस्याएं दूर होती हैं।---- -
मां दुर्गाजी की आठवीं शक्ति का नाम महागौरी है। दुर्गापूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना का विधान है। नवरात्रि में आठवें दिन महागौरी शक्ति की पूजा की जाती है। नाम से प्रकट है कि इनका रूप पूर्णत: गौर वर्ण है। इनकी उपमा शंख, चंद्र और कुंद के फूल से दी गई है। अष्टवर्षा भवेद् गौरी यानी इनकी आयु आठ साल की मानी गई है। इनके सभी आभूषण और वस्त्र सफेद हैं। इसीलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा कहा गया है। इनकि चार भुजाएं हैं और वाहन वृषभ है इसीलिए इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा गया है। इनके ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा है तथा नीचे वाला हाथ त्रिशूल धारण किया हुआ है। ऊपर वाले बांए हाथ में डमरू धारण कर रखा है और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है। इनकी पूरी मुद्रा बहुत शांत है।
पति रूप में शिव को प्राप्त करने के लिए महागौरी ने कठोर तपस्या की थी। इसी कारण से इनका शरीर काला पड़ गया, लेकिन तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इनके शरीर को गंगा के पवित्र जल से धोकर कांतिमय बना दिया। उनका रूप गौर वर्ण का हो गया। इसीलिए यह महागौरी कहलाईं। यह अमोघ फलदायिनी हैं और इनकी पूजा से भक्तों के तमाम कल्मष धुल जाते हैं। पूर्वसंचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं। महागौरी का पूजन-अर्चन, उपासना-आराधना कल्याणकारी है। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियां भी प्राप्त होती हैं।एक और मान्यता के अनुसार एक भूखा सिंह भोजन की तलाश में वहां पहुंचा जहां देवी उमा तपस्या कर रही होती है। देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गई, लेकिन वह देवी के तपस्या से उठने का प्रतीक्षा करते हुए वहीं बैठ गया। इस प्रतीक्षा में वह काफी कमज़ोर हो गया। देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आ गई। उन्होंने दया भाव से उसे अपना वाहन बना लिया क्योंकि वह उनकी तपस्या पूरी होने के प्रतीक्षा में स्वयं भी तप कर बैठा। कहते है जो स्त्री मां की पूजा भक्ति भाव सहित करती हैं उनके सुहाग की रक्षा देवी स्वयं करती हैं।मंत्र- श्वेते वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:।महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥अन्य नाम- इन्हें अन्नपूर्णा, ऐश्वर्य प्रदायिनी, चैतन्यमयी भी कहा जाता है। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 260
(भूमिका ::: विश्व के पंचम मूल जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने अपने अलौकिक दिव्य तत्वज्ञान से कलिमलग्रसित हम अबोध जीवात्माओं को भगवत-मार्ग पर आरुढ़ होने के लिये परमोज्जवल रोशनी प्रदान की है, जिसके प्रकाश में अंतर्मन का अज्ञानान्धकार सहज ही छटने लग जाता है! उनके श्रीमुख से निःसृत प्रवचन साधन-पथ के पाथेय हैं!!)
साधक का प्रश्न ::: सकाम-निष्काम का तात्पर्य क्या है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: 'सकाम' शब्द सुना होगा आप लोगों ने, और एक 'निष्काम' शब्द होता है। ये सकाम कई प्रकार का होता है। एक सकाम होता है जो भगवान से हम संसार माँगते हैं। खास तौर से संसार माँगना और भगवान से प्यार नहीं है। कम्पलीट सरेन्डर नहीं है। पूर्ण सम्बन्ध नहीं है। तो ये तो ऐसा मजाक है जैसे कोई गाड़ी जा रही है और हम लिफ्ट माँगें उससे बिना जान पहचान के। 'ऐ! जरा रोकना गाड़ी।' 'क्या बात है?' 'हमको जाना है जरा सेवा कुंज।' 'ऐं, हमारे पास समय नहीं है, और जगह नहीं है, हमको वहाँ नहीं जाना है....!!' क्योंकि उसका सम्बन्ध तो है नहीं। अगर सम्बन्ध हो, 'अरे श्रीवास्तव जी! आप भले आये। देखो, ऐसा है कि ये एक्सीडेन्ट हो गया है हमारे बेटे का, अस्पताल पहुँचाना है।' तो वो कहेंगे, 'ठीक है, आइये आइये, मैं पहुँचा देता हूँ' - क्योंकि सम्बन्ध है। अब जब सम्बन्ध ही नहीं है भगवान से, खाली मुसीबत पड़ी तो हमने कहा 'हे भगवान् ! दया करो, कृपा कर दो, हम को ये कर दो, वो कर दो।' प्रायः नाइन्टी नाइन परसेन्ट संसार में ऐसे ही सकाम हैं। मंदिरों में जाकर, बाबाओं के पास जाकर, मन्नत करते हैं, माँगते हैं, बिना सम्बन्ध के।
दूसरे होते हैं जिनकी पूर्ण शरणागति पूर्ण सम्बन्ध भगवान से है। जैसे ध्रुव वगैरह। ये संसार माँगते हैं। ध्रुव का अपमान हुआ था तो वो संसार माँगने लगे कि राज्य हमको मिले, भगवान के पास गये। तमाम ऐसे हैं। द्रौपदी ने पुकारा, गजराज ने पुकारा, तमाम सकाम भक्त ऐसे हुये हैं जो शरीर के लिये, संसार के सुख के लिये कामना किये और भगवान से माँगा और भगवान ने दिया। वो तो जो कुछ माँगोगे, देंगे। तुम्हारा नुकसान हो, फायदा हो, तुम जानो। जो अल्पज्ञ होते हैं ये दो प्रकार के होते हैं। एक तो घोर मूर्ख हैं जो बिना सम्बन्ध के माँगता है। उसको मिलता-विलता नहीं है। लेकिन जैसे बाईचान्स कोई पुत्र की कामना से वैष्णो देवी गया और उसके पुत्र हो गया। तो उसने कहा- 'जय हो! जय हो! माता जी ने सुन लिया हमारी।' दोबारा फिर वो पुत्र बड़ा सीरियस बीमार हुआ, तो फिर माता जी के पास गया कि माँ उसको बचा लो। वो मर गया। 'अरे! कुछ नहीं, कोई वैष्णो देवी नहीं।' वो नास्तिक हो जायेगा। तो ये तो घोर मूर्ख है, संसार में भी ऐसा कोई नहीं करता है कि अपरिचित से जाकर कहे कि हम को दस लाख दे दो, बेटी का ब्याह करना है। अरे भई! कौन दे देगा ऐसे भला। तो नम्बर दो वाला जो है भगवान से सम्बन्ध है, प्यार है, शरणागति है और संसार माँगता है उसको भगवान दे तो देंगे लेकिन वो मूर्ख है।
भागवत में कहा गया कि जो भगवान से संसार माँगता है वो घोर मूर्ख है। 'मनोग्राह्य' माने संसार। अरे! भगवान के पास तो अनन्त वस्तुयें हैं। अलौकिक, स्प्रिचुअल, दिव्यानन्द, दिव्यज्ञान, दिव्य लोक, सब चीज दिव्य-दिव्य, उसको छोड़कर संसार माँगता है। लेकिन भगवान देंगे उसको। बाद में भले वैराग्य हो जाय उसको संसार से। ध्रुव को भी हो गया था वैराग्य। फिर भगवान से उन्होंने कहा- 'महाराज ! हमसे गलती हो गई। संसार की कामना को लेकर मैंने आपकी भक्ति की। अब मुझे संसार नहीं चाहिये। तो भगवान ने कहा; 'भई देखो ! मेरी बदनामी होगी कि संसार माँगा और भगवान ने नहीं दिया। तो तुमको राज्य करना पड़ेगा। जाओ छत्तीस हजार वर्ष राज्य करो, उसके बाद फिर हम अपने यहाँ बुला लेंगे।' तो सकाम भक्त इस प्रकार का जो होता है, उसका भी कल्याण हो जाता है बाद में, लेकिन है वो मूर्ख।
और तीसरा होता है सकाम भक्त जो भगवान से ही भगवान का सामान माँगता है। जैसे आँख से भगवान का दर्शन, कान से, नासिका से, रसना से, त्वचा से, सब इन्द्रियों से भगवान को ही माँगता है। संसार नहीं माँगता। 'मनोग्राह्य' को नहीं माँगता, मायिक वस्तु नहीं माँगता। ये उच्चकोटि का है। है सकाम। लेकिन उच्च कोटि का है। ये क्यों माँगता है भगवान से? नम्बर एक इसलिये कि संसार का अटैचमेन्ट समाप्त हो, ये फायदा मिला पहला। नम्बर दो जब भगवान मिलेंगे उसको, मान लो, आँख से दर्शन चाहता है और भगवान का दर्शन हुआ। तो, 'क्यों बुलाया हमको भई तुमने? ' पूछेगे भगवान। 'खाली दर्शन के लिये बुलाया?' 'नहीं नहीं महाराज! हमारे गुरु जी ने कहा कि जब भगवान मिलें तो उनसे प्रेम माँगना। प्रेम, दिव्य प्रेम।' 'क्या करोगे ले के दिव्य प्रेम? और कुछ ले लो।' 'नहीं महाराज? दिव्य प्रेम दो तो फिर आपकी सेवा करेंगे। आपको सुख देंगे। अपने सुख के लिये नहीं माँग रहे हैं। आप से सामान माँग कर आपकी सेवा करेंगे।' ये निष्काम हो गया। यानी सकाम का प्रारंभ हुआ उनका दर्शन माँगा उसने, लेकिन दर्शन अन्तिम लक्ष्य नहीं है। अन्तिम लक्ष्य है निष्कामता। सेवा करना। तो वो प्रेम माँगने के लिये उनको बुलाया। तो ये सकाम वन्दनीय है, श्रेष्ठ है। क्योंकि इसका लक्ष्य निष्काम है । और ये करना पड़ेगा सबको।
भगवान का दर्शन होना ये हम अपने सुख के लिये नहीं कह रहे हैं। हम उनकी सेवा करेंगे, उनको सुख देंगे, इसलिये हम उनका दर्शन चाहते हैं। तो ये निष्काम को प्राप्त करने के लिये थोड़ा-सा सकाम है। ये सबको करना है और सब करते हैं, सब बड़े-बड़े महापुरुष। भगवान की कामना ही खतम हो जायेगी तो फिर प्रेम क्या हुआ? हम दर्शन नहीं चाहते उनको कष्ट होगा, ये तो नास्तिक भी कह देगा बैठे-बैठे। बड़ा अच्छा है भई! आप भक्ति-वक्ति नहीं करते? हाँ जी, देखो ऐसा है कि हम तो निष्काम हैं। हम भगवान की भक्ति करें, उनका दर्शन, उनको कष्ट हो बेचारों को, हम ये नहीं चाहते। ऐसा निष्काम पागल है। वो निष्काम नास्तिक है। भगवान के दर्शनादि की कामना तो होनी ही चाहिये। संसार या मोक्ष ये चीजें भगवान् से माँगना ये निन्दनीय है। यहाँ तक कि भगवान के लोक में रहने आदि की कामना भी बुरी नहीं है। अरे, वो तो अन्तिम क्लास की चीजें हैं। लेकिन फिर भी उससे भी आगे एक कदम निष्काम भक्त होता है जो उनकी इच्छा के अनुसार चाहता है। बस कुछ नहीं। आपकी इच्छा हो आपके पास रहें ,आपकी इच्छा है, नहीं तुम वहाँ जाओ प्रचार करो। हाँ जैसी आज्ञा। जाओ तुम ऐसा नहीं करो, ऐसा करो। बिल्कुल ऐसा ही करेंगे, जैसे आपको सुख मिले। एक एम (लक्ष्य)। ये सकाम - निष्काम का संक्षिप्त रहस्य है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक (भाग - 3)०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 259
(भूमिका ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने अपने अवतारकाल में आध्यात्म जगत के हर छोटे-बड़े तथा गूढ़ रहस्यों पर प्रकाश डाला है तथा शंकाओं के वैदिक समाधान भी प्रदान किये हैं, जो कि एक आध्यात्मिक जिज्ञासु जीव के लिये अति अनमोल हैं। ऐसे ही एक प्रश्न पर आज उनके द्वारा प्रदान किया गया उत्तर हम जानेंगे, आशा है कि आपको इससे किंचित लाभ तो अवश्य ही होगा...)
एक साधक द्वारा पूछा गया प्रश्न :::: अगर मनुष्य सारे जीवन ठीक-ठीक साधना करे और आखिरी कुछ क्षणों में नास्तिक हो जाये, ऐसा कुछ हो उसके साथ तो क्या उसको 84 लाख में भटकना पड़ेगा??
जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: हाँ ! अंतिम समय में जो उसकी स्थिति होगी वही फल मिलेगा। लेकिन पहले जो कर चुका भक्ति-साधना, वह भी उसके पास जमा रहेगी। तो ये जो आगे वाला है उसका फल, पहले भोग लेगा फिर पीछे वाले का फल देगा भगवान्। यानी पहले तो वह संसार में पैदा होगा, दुःखी होगा, नास्तिक होगा और फिर बाद में जब उसका ख़राब प्रारब्ध समाप्त हो जायेगा, भोग करके, तब वह भक्ति का जो उसका पार्ट है, जो जमा है, उसका फल दे दिया जायेगा। बेकार नहीं जायेगा कुछ. बेकार एक क्षण की भी भक्ति नहीं जाती। कर्म बेकार जाते हैं, योग बेकार जाते हैं, ज्ञान बेकार जाते हैं, लेकिन भक्ति बेकार नहीं जाती, वह सब अमिट है। इसने इतना भगवन्नाम लिया, इतनी गुरुसेवा की, ये सब चीजें भगवान् के पास एक-एक क्षण की दर्ज हैं, लिखी हुई हैं. उसका फल उसको मिलेगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक (भाग - 1)०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हिंदू धर्म में किसी भी शुभ और मांगलिक कार्यों को करने से पहले शुभ मुहूर्त जरूर देखा जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार समय-समय पर ग्रहों और नक्षत्रों की चाल की गणना के आधार पर किसी मांगलिक कार्य को करने के लिए समय निर्धारित किया जाता है। इसी को शुभ और अशुभ मुहूर्त कहा जाता है। शुभ मुहूर्त में कार्य करने पर उस काम में सफलता की प्राप्ति होती है, जबकि अशुभ मुहूर्त में किया गया कार्य में कई तरह की बाधाएं उत्पन्न होती है। जब कभी अशुभ नक्षत्र का योग बनता है तब इस योग को पंचक कहा जाता है। ज्योतिष में पंचक को अशुभ माना गया है।कब बनता है पंचकमुहूर्त ज्योतिष के महानतम ग्रन्थ 'मुहूर्त चिंतामणि' के अनुसार घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद तथा रेवती ये नक्षत्र पर जब चन्द्रमा गोचर करते हैं तो उस काल को पंचक काल कहा जाता है। इसे 'भदवा' भी कहते हैं। पंचक निर्माण तभी होता है जब चन्द्रमा कुंभ और मीन राशि पर गोचर करते हैं।वर्ष 2021 में पंचक कब-कब04 मई 2021 से 09 मई 2021 तक01 जून 2021 से 05 जून 2021 तक28 जून 2021 से 03 जुलाई 2021 तक25 जुलाई 2021 से 30 जुलाई 2021 तक22 अगस्त 2021 से 26 अगस्त 2021 तक18 सितंबर 2021 से 23 सितंबर 2021 तक15 अक्टूबर 2021 से 20 अक्टूबर 2021 तक12 नवंबर 2021 से 16 नवंबर 2021 तक09 दिसंबर 2021 से 14 दिसंबर 2021 तकपंचक के प्रकाररोग पंचकरविवार को शुरू होने वाला पंचक रोग पंचक कहलाता है, इसके प्रभाव से ये पांच दिन शारीरिक और मानसिक परेशानियों वाले होते हैं। इस पंचक में किसी भी तरह के शुभ कार्य आरंभ करने से बचना चाहिए। हर तरह के मांगलिक कार्यों में ये पंचक अशुभ माना गया है।राज पंचकसोमवार को शुरू होने वाला पंचक राज पंचक कहलाता है। ये पंचक शुभ माना जाता है। इसके प्रभाव से इन पांच दिनों में सरकारी कामों में सफलता मिलती है संपत्ति से जुड़े काम करना भी शुभ रहता है।अग्नि पंचकमंगलवार को शुरू होने वाला पंचक अग्नि पंचक कहलाता है। इन पांच दिनों में कोर्ट कचहरी और विवाद आदि के फैसले, अपना हक प्राप्त करने वाले काम किए जा सकते हैं। इस पंचक में किसी भी तरह का निर्माण कार्य और मशीनरी कामों की शुरुआत करना अशुभ माना गया है।चोर पंचकशुक्रवार को शुरू होने वाला पंचक चोर पंचक कहलाता है। इस पंचक में लेन-देन, व्यापार और किसी भी तरह के लेन-देन से बचना चाहिए।बुधवार और गुरुवार को शुरू होने वाले पंचक सभी तरह के कार्य कर सकते हैं यहां तक कि सगाई, विवाह आदि शुभ कार्य भी किए जाते हैं।
-
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 258
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज समन्वयवादी जगदगुरु हैं अर्थात उन्होंने अपना कोई पृथक वाद नहीं चलाया अपितु अपने पूर्ववर्ती समस्त मूल जगदगुरुओं के सिद्धांतों का समन्वय किया। उनकी समन्वयात्मक शैली उनके प्रवचनों व सिद्धान्तों में सर्वथा दृष्टिगोचर होती है। निम्नांकित प्रवचन-अंश में भी हम उनकी इसी विशेषता का दर्शन करते हुये मार्गदर्शन प्राप्त करेंगे...)
...हम सुख चाहते हैं अपना। बाहर से मतलब नहीं है, अपना सुख चाहते हैं। सुख!! सुख चाहते हो? हाँ, सुख। सब सुख चाहते हैं। हाँ!! तो फिर सब आस्तिक हैं, सब भगवान के भक्त हैं। क्योंकि भगवान का तो नाम ही है सुख, आनन्द। (रसो वै सः - वेद)
इसलिये सब आस्तिक भी हैं, सब वैष्णव भी हैं, सब भगवान के हैं, यानी बस एक सम्प्रदाय है सारी दुनियाँ में। अगर कोई पूछे कि आप किस सम्प्रदाय के हैं? आनन्द सम्प्रदाय के, भगवत सम्प्रदाय के। क्यों? इसलिये कि हम केवल भगवान को चाहते हैं। केवल आनन्द चाहते हैं, हम दुःख नहीं चाहते। और अगर और डिटेल में जाओ, तो फिर ये कह सकते हो कि हम आनन्द चाहते हैं, लेकिन मिला नहीं है। तो भगवान में आनन्द मानने लगे। प्रयत्न कर रहे हैं कि हम आस्तिक बन जायें, वैष्णव बन जायें, शैव बन जायें।
तो विश्व में वर्तमान काल में जो मायाधीन हैं वो आस्तिक नहीं, वैष्णव नहीं बन सकता। जब माया चली जायेगी और भगवान गवर्न करेंगे हमको, तब हम आस्तिक हुये। हर समय रियलाइज करेंगे तब। अंदर बैठे हैं, अंदर बैठे हैं। अभी तो मुँह से बोलते हैं, सबके अंदर बैठे हैं। घट घट व्यापक राम। अरे घट घट है क्या? तुम्हारे घट (हृदय) में है, ये तुम महसूस करते हो? अगर करो तो न कोई गवर्नमेन्ट की जरुरत है, न कोर्ट की, न पुलिस की। हर समय यह फीलिंग रहे कि वो अंदर बैठे हैं।
अगर इसका प्रचार करे, हर दुनियाँ की, देश की गवर्नमेन्ट कि सबके अंदर भगवान बैठे हैं। इसका प्रचार करे, भरे लोगों के, बच्चों के दिमाग में। तो अपराध अपने आप कम हो जायें। सब डरेंगे कि हाँ! वो (भगवान) नोट कर लेंगे, फिर दण्ड देंगे भगवान, इसलिये गलत काम नहीं करना है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० संदर्भ/स्त्रोत : जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'मैं कौन? मेरा कौन? विषय पर दिये गये ऐतिहासिक 103 प्रवचनों की श्रृंखला के 67 वें प्रवचन का एक अंश।०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - रुद्राक्ष पेड़ का एक उत्पाद है जो, एक पवित्र मनके के रूप में जाना जाता है। यह ऋषियों, ज्योतिषियों और अन्य आध्यात्मिक संस्थाओं द्वारा पहने जाने वाले प्रसिद्ध रत्नों में से एक है। मनके का उपयोग ज्यादातर छोटे या बड़े धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है। यह न केवल हिंदू धर्म बल्कि अन्य धर्मों द्वारा भी पूजा जाता है। माना जाता है कि इसे धारण करने से भगवान शिव की कृपा बनी रहती है। इस मनके के वैज्ञानिक और ज्योतिषीय लाभ भी हैं। रुद्राक्ष कई प्रकार के होते हैं जैसे एक मुख से लेकर 21 मुखी तक। इनमें से एकमुखी रुद्राक्ष शुभ माना जाता है, लेकिन इसे धारण करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।एक मुखी रुद्राक्ष को हमेशा साफ स्थान पर रखना चाहिए। इसे गंदे हाथों से नहीं छुना चाहिए। इसके अलावा वॉशरूम जाने से पहले इसे उतार देना चाहिए। यह भी माना जाता है कि जो लोग एकमुखी रुद्राक्ष धारण करते हैं वे पापकर्मों में संलिप्त नहीं होते हैं क्योंकि यह आपको गलत रास्ते की ओर जाने से रोकता है। आमतौर पर रुद्राक्ष को विशेष लाभ के लिए पहना जाता है इसलिए एक अनुभवी ज्योतिषी से परामर्श के बाद पहना जाना चाहिए।एक मुखी रुद्राक्ष में बहुत अधिक ऊर्जा होती है। यह रुद्राक्ष मन को स्पष्टता देता है और आपको ईश्वर से जोड़ता है। इसमें सहस्त्र चक्र का ध्यान रखा गया है जो स्वर्ग और पृथ्वी के बीच की कड़ी का प्रतीक है। माना जाता है कि एक मुखी रुद्राक्ष पहनने वाले को आध्यात्मिक और भौतिक लाभ प्रदान करता है। यह पहनने वाले की इच्छा को पूरा करता है। यह रुद्राक्षधारी के पापों और पिछले कर्मों को नष्ट कर देता है। यह कुछ दिनों में माइग्रेन को ठीक करने में मदद करता है। यह अवसाद, चिंता और ओसीडी को ठीक करने में मदद करता है। यह न्यूरोटिक विकारों में मदद करता है। यह मन की शांति पाने में मदद करता है।यह आपको अपनी इंद्रियों पर पूर्ण नियंत्रण रखने में मदद करता है। साथ ही रतौंधी को ठीक करने में मदद करता है। यह श्वसन रोगों को ठीक करने में मदद करता है। यह क्रूर ग्रहों के नकारात्मक प्रभाव को दूर करने में मदद करता है। विशेष रूप से जन्म कुंडली में सूर्य के नकारात्मक प्रभाव को दूर करने के लिए पहना जाता है। यह पहनने वाले को महत्वाकांक्षी बनाता है। जब घर में रखा जाता है तो यह पूरे परिवार में शांति और सद्भावना को पैदा करता है। यह जीवन से जटिलताओं को दूर करता है। यह गुस्से को नियंत्रित करने में मदद करता है। रुद्राक्ष धारण करने वाले को नेतृत्व गुणों के साथ और तनाव को दूर करने में मदद मिलती है।एक मुखी रुद्राक्ष धारण करने की विधिएक मुखी रुद्राक्ष को धारण करने के लिए सोमवार का दिन शुभ माना जाता है। इसे धारण करने से पहले गंगाजल या दूध से शुद्ध करना चाहिए। सोमवार को सुबह स्नानादि करने के पश्चात रुद्राक्ष को पहनना उत्तम होता है। पूर्व दिशा में बैठकर इस रुद्राक्ष को धारण करना चाहिए और ऊँ नम: शिवाय का 108 बार जाप करना चाहिए। यह भी सलाह दी जाती है कि एकमुखी रुद्राक्ष को सोने या चांदी की माला के साथ पहनना चाहिए या इसे काले या लाल धागे के साथ पहनना चाहिए।
- घर का निर्माण करते समय तो दिशा और स्थान का ज्यादातर लोग ध्यान देते हैं, लेकिन घर में समान का रख-रखाव और साज-सजावट करते समय लोग छोटी-छोटी चीजों को नजरअंदाज कर देते हैं। वास्तु में दिशाओं और स्थान के अनुसार रंगों के बारे में भी बताया गया है। इसी विषय में पर्दों के रंग का चुनाव करना भी महत्वपूर्ण माना जाता है। वास्तु के अनुसार विभिन्न रंग और डिजाइन के पर्दे न केवल घर की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं, बल्कि ये घर में सकारात्मक ऊर्जा बनाए रखने में भी सहायक होते हैं। पर्दो के रंग का सही प्रकार से चुनाव करके आप जीवन की समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं। इसलिए परदों के चयन में निम्न बातों का अवश्य रखें ध्यान....- यदि आपके घर में लड़ाई-झगड़े की स्थिति बनी हुई रहती है, जिसके कारण तनाव का सामना करना पड़ता है। तो अपने घर की दक्षिण दिशा में लाल रंग के पर्दे लगाने चाहिए। इससे परिवार के सदस्यों में प्रेम की भावना बनी रहती है और घर में शांति आती है।- यदि आपकी आर्थिक स्थिति कमजोर है या फिर आपके ऊपर कर्ज है, जिसे आप प्रयास करने पर भी चुकाने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं तो घर की उत्तर दिशा में नीले रंग के पर्दे लगाने चाहिए। इससे कुछ ही समय में आपको सकारात्मक प्रभाव दिखाई देने लगते हैं।- यदि आप बहुत मेहनत करते हैं फिर भी आपको उसके अनुरूप फल की प्राप्ति नहीं हो पा रही है तो आपको अपने घर की पश्चिम दिशा में सफेद रंग के पर्दे लगाने चाहिए। इससे आपको समस्याओं से मुक्ति प्राप्त होगी और लक्ष्य प्राप्ति की राह आसान होगी।- यदि आप एक अच्छी नौकरी की तलाश में है लेकिन कई प्रयास करने पर भी आपको सफलता प्राप्त नहीं हो रही है तो आपको घर की पूर्व दिशा में हरे रंग के पर्दे लगाने चाहिए। माना जाता है कि इससे आपकी तरक्की के रास्ते खुलते हैं।इसलिए अब की बार जब परदों का चयन करें, तो पूरी थान ना लाएं... बल्कि कमरों की दिशा के हिसाब से उसके रंगों का चयन करें और उसी परदे लगाएंगे, तो घर में हमेशा सकारात्मक ऊर्जा का वास होगा और समस्याएं पास नहीं फटकेंगी।-----
- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 257
(भूमिका ::: स्वरचित दोहा तथा उसकी व्याख्या में जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साधक समुदाय को यह समझा रहे हैं कि साधना में किसका समर्पण करना है और क्या चीज भगवान से चाहनी है? भक्तिमार्गीय पथिक के लिये उनका यह महत्वपूर्ण मार्गदर्शन निम्नांकित पंक्तियों में है....)
मन ते स्मरण करु गोविन्द राधे।ये ही भक्ति मन बुद्धि शुद्ध करा दे।।(स्वरचित दोहा)
...ये क्रम है। सब वेदों, शास्त्रों, पुराणों का सारांश है। नम्बर एक, मन से हरि गुरु का स्मरण, ये साधना भक्ति कहलाती है। यही आप लोग कर रहे हैं। मन से, केवल वाणी से नहीं। वाणी भी साथ में रहे तो ठीक, न रहे तो भी ठीक, किन्तु मन से स्मरण हो, उसका नाम साधना भक्ति। इससे क्या होगा? मन-बुद्धि शुद्ध होंगे। अनादिकाल से मन-बुद्धि में माया का काम, क्रोध, लोभ, मोह ये संसारी मल भरा हुआ है। ये गोबर, कचरा, कूड़ा, मल, पाप-पुण्य, ये गड़बड़ हरि गुरु स्मरण से निकल जायेगी। धीरे धीरे निकलेगी क्योंकि अनन्त जन्मों का मैल है।
अगर आप कपड़े को रोज धोते हैं तो हलका सा साबुन लगा दें बस, और अगर एक हफ्ते में धोते हैं तो ज्यादा साबुन लगाना पड़ेगा, और अगर महीने भर में धोते हैं तो पहले गरम पानी में साबुन डालकर उसको भिगो दें फिर धुलाई करें। जितना मैल होगा, उतना परिश्रम होगा धोने में।
तो अनन्त जन्मों के हमारे पाप-पुण्य हैं, संसारी अटैचमेन्ट है, इसलिये उसके निकालने में भी अभ्यास करना होगा, स्मरण का। जगत का विस्मरण, हरि गुरु का स्मरण मन से। स्मरण मन करता है, इन्द्रियाँ (हाथ-पैर आदि) नहीं करतीं। तो इससे मन-बुद्धि शुद्ध होगी। इसी को अंतःकरण शुद्धि कहते हैं। जब ये शुद्ध हो जायेगा तो भगवान की एक पॉवर है, उसका नाम है स्वरुप शक्ति वो आपके अंतःकरण में अपने आप भगवान दे देंगे तो वो अंतःकरण को दिव्य बना देगी। दिव्य माने भगवान संबंधी। ये स्वर्ग वाला दिव्य नहीं, स्वर्ग की वस्तु को भी दिव्य शब्द से बोला जाता है। वो देवता हैं, दिव्य हैं, दिव् धातु से देवता शब्द बनता है लेकिन ये मैटिरियल (मायिक) दिव्य हैं। ये नहीं, भगवान संबंधी दिव्यता, अलौकिकता, चित् स्वरूप वाली, वैसा हो जायेगा आपका अंतःकरण, इन्द्रियाँ।
अब बर्तन तैयार हो गया। बर्तन, पात्र। बस इतना काम हम लोगों का है, बर्तन तैयार करवा देना। यानी मन से स्मरण कर मन को शुद्ध किया फिर भगवान ने उसको दिव्य बनाया अब उस बर्तन में दिव्य वस्तु रखी जा सकती है। वो दिव्य वस्तु क्या है? सबसे बड़ी दिव्य वस्तु है, भगवान का दिव्य प्रेम। भगवान की जो अंतरंग स्वरूप शक्ति है उसका सत् चित् आनंद, उसमें सत् से भी इम्पोर्टेन्ट चित्, चित् से महत्वपूर्ण आनंद ब्रम्ह। उस आनंद ब्रम्ह की एक सारभूत स्वरुपा शक्ति होती है ह्लादिनी। उस ह्लादिनी के भी सारभूत तत्व का नाम प्रेम है, जिसके अण्डर में भगवान हो जाते हैं। वो प्रेम है। हम अभी जो प्रेम कर रहे हैं भगवान से, गुरु से, ये तो हमारे मन का अटैचमेन्ट है। इससे मन शुद्ध होगा, ये प्रेम नहीं है। प्रेम तो मिलेगा कृपा से। वो कमाई से नहीं मिलता। कोई भी साधना ऐसी नहीं है करोड़ों कल्प कोई तप करे, अँगूठे के बल पर खड़े होकर तो भी प्रेम उसका मूल्य नहीं बन सकता। उससे प्रेम नहीं मिल सकता।
साधनौघेरनासंगैरलभ्या सुचिरादपि।(भक्तिरसामृतसिन्धु)
करोड़ों साधनाओं से भी, अनासंग साधनाओं से भी, निष्काम साधनाओं से भी ये प्रेम अलभ्य है, उससे नहीं मिला करता। और,
हरिणा चाश्वदेयेति द्विधा सा स्यात् सुदुर्लभा।(भक्तिरसामृतसिन्धु)
भगवान भी जल्दी में नहीं देते, उसको छुपा के रखते हैं क्योंकि उनको अण्डर में रहना पड़ेगा। तो यदि वो मुक्ति भुक्ति ले के छुट्टी दे दे तो भगवान कहते हैं, अच्छा हुआ बेवकूफ बन गया। लेकिन जो परम सयाने होते हैं, जिनका गुरु दिव्य प्रेम, निष्काम प्रेम प्राप्त कर चुका होता है, उसका पढ़ाया हुआ जो शिष्य होता है वो भगवान की वाक-चातुरी में नहीं आता। वो कहता है हमें कुछ नहीं चाहिये। निष्काम प्रेम, तुम्हारे लिये प्रेम माँग रहे हैं, अपने लिये नहीं, तुमको सुख देने के लिये।
तो वो दिव्य मन बुद्धि में दिव्य प्रेम स्वयं नहीं देते भगवान, वो गुरु ही दिव्य प्रेम देगा। यानी साधना का ज्ञान कराना नम्बर एक, साधना कराना नम्बर दो, अंतःकरण शुद्ध कराना, फिर अन्तःकरण दिव्य कराना - ये सब काम गुरु करता है और दिव्य प्रेम देना अन्तिम काम। बस यही प्रयोजन है, यही लक्ष्य है, अन्तिम। तो इस क्रम के द्वारा ये लक्ष्य प्राप्त होता है। ये थियरी मस्तिष्क में सदा रखे रहो, भूले न।
०० प्रवचनकर्त्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, मार्च 2016 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - यदि भवन का निर्माण वास्तु नियमों के अनुसार किसी कारण वश नहीं हो पाता या किसी तरह की कोई कमी रह जाती है तो यह मकान में रहने वालों गंभीर प्रभाव डालता है। इन समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए कुछ उपाय सुझाएं गए हैं। इन उपायों को करने से वास्तु दोष से बचा जा सकता है। आम लोगों के मन में दक्षिण दिशा को लेकर कई भ्रांतियां होती हैं जैसे दक्षिणमुखी घर आर्थिक परेशानी लेकर आते हैं, लेकिन हर स्थिति में ऐसा नहीं होता। फिर भी भवन निर्माण के समय वास्तुशास्त्र का ध्यान रखें।-वास्तु शास्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा को यमराज की दिशा मानी जाती है, इस दिशा के स्वामी स्वयं यम हैं। इस दिशा के शुभ-अशुभ परिणाम स्त्रियों पर सबसे ज्यादा पड़ते हैं। इसलिए दक्षिणमुखी मकान बनाते समय वास्तुशास्त्र के नियमों का विशेष रूप से ध्यान रखें।- भवन द्वार के ठीक सामने एक आदमकद दर्पण इस प्रकार लगाएं कि जिससे घर में प्रवेश करने वाले व्यक्ति का पूरा प्रतिबिंब दर्पण में बने। जिससे भवन में प्रवेश करने वाले व्यक्ति के साथ आने वाली नकारात्मक ऊर्जा पलटकर वापस चली जाती है।-मुख्य द्वार के ठीक सामने आशीर्वाद मुद्रा में हनुमान जी की मूर्ति की स्थापना अथवा तस्वीर लगाने से भी दक्षिण दिशा का वास्तुदोष दूर होता है। साथ ही मुख्य द्वार के ऊपर पंचधातु का पिरामिड लगवाने से वास्तुदोष समाप्त होता है।-दक्षिणमुखी भूमि पर भवन बना रहे हैं तो ध्यान रखें कि दक्षिण भाग ऊंचा होना चाहिए। इससे उस भवन में रहने वाले स्वस्थ एवं सुखी होंगे। दक्षिणी हिस्से में कमरे ऊंचे बनवाने चाहिए इससे मकान का मालिक ऐश्वर्य संपन्न होता हैं। दक्षिण दिशा के घर का पानी उत्तरी दिशा से होकर बाहर की ओर प्रवाहित हो तो धन लाभ होता है।-यदि दक्षिणमुखी मकान के सामने द्वार से दोगुनी दूरी पर स्थित नीम का हराभरा वृक्ष है तो दक्षिण दिशा का असर कुछ हद तक समाप्त हो जाएगा।-. यदि दक्षिणमुखी मकान के सामने मकान से दोगना बड़ा कोई दूसरा मकान है तो दक्षिण दिशा का असर कुछ हद तक समाप्त हो जाएगा। आग्नेय कोण का मुख्यद्वार यदि लाल या मरून रंग का हो, तो श्रेष्ठ फल देता है। इसके अलावा हरा या भूरा रंग भी चुना जा सकता है। किसी भी परिस्थिति में मुख्यद्वार को नीला या काला रंग प्रदान न करें।-दक्षिण मुखी भूखण्ड का द्वार दक्षिण या दक्षिण-पूरब में कतई नहीं बनाना चाहिए। पश्चिम या अन्य किसी दिशा में मुख्य द्वार लाभकारी होता है।---
- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 256
(जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से निःसृत प्रवचन का छोटा सा अंश, आचार्य श्री की वाणी नीचे से है...)
..एक बार संसार में कोई नौकर चोरी में पकड़ा जाये रंगे हाथों तो फिर वो नौकर चाहे कितनी ही ईमानदारी करे, घर में कोई चोरी होगी, ऐ! वो कहाँ है? बुलाओ उसको, वही चोर है। अरे चोर तो सब नौकर हैं जी! नहीं-नहीं और किसी नौकर ने हमारा कुछ नहीं चुराया। तुम्हारा नहीं चुराया और जगह चोरी किया है। या आज तक चोरी की मंशा और नौकरों की नहीं हुई, आज हो गई हो। अरे भई! कोई गलत काम करने की मंशा हमेशा थोड़े ही रहती है किसी की। कब हो जाय क्या ठिकाना। लेकिन साहब उसी को सदा आँख में रखेगा जिसको चोरी में पकड़ा गया।
लेकिन अनन्त बार चोरी पकड़ता हुआ भी भगवान और महापुरुष, जीव जब सच्चे हृदय से फिर क्षमा माँग करके शरणागत होना चाहता है तो वो कहते हैं ठीक है, ठीक है हो गया, हटाओ, बच्चे हैं होता रहता है। छोटे बच्चों की बातें माँ-बाप क्यों फील नहीं करते? लात भी मार दे रहे हैं माँ के मुँह में बाप के मुँह में। हाँ हाँ चूम लेती है माँ। बच्चा है। बड़ा होकर अगर वो लात मारने की बात भी कर दे, मम्मी! मैं वो मारूँगा। ये लो मम्मी का मूड ऑफ इतना हो गया कि निकल जा मेरे घर से। क्यों मम्मी! पहले तो मैं लात प्रैक्टीकल मारता था तो तू मेरी लात को चूम लेती थी और आज तो हमने खाली मुँह से कहा है एक लात मारूँगा और तू मुझे घर से निकाले दे रही है।
अरे बेटा! वो बात और थी, अब बात और है। अब तू पच्चीस साल का जवान धींगड़ा हो गया है और तेरी दुर्भावना नहीं थी, तू जानता ही नहीं था मुँह क्या है, मम्मी क्या है? बेटा क्या होता है? लात मारना क्या पाप होता है? इसलिये वो सब प्रिय था, हर व्यवहार प्रिय था। तो महापुरुष की कृपा को न तो भगवान बता सकता है पूरा पूरा, न महापुरुष बता सकता है। और जीव तो बेचारा क्या समझेगा उसकी तो हैसियत ही नहीं है। हाँ, स्पेशल केस जो है उनमें महापुरुष प्रारब्ध में भी कुछ हैल्प करता है, पूरा प्रारब्ध नहीं काटता, कुछ हैल्प कर देता है। लेकिन वह हैल्प बताता नहीं। वो सब चोरी चोरी करता है। जो कुछ अपने प्रिय के प्रति करता है महापुरुष। कभी भी स्वप्न में भी, किसी भी प्रकार से वो आउट नहीं कर सकता। वो कानून है उसके यहाँ, वो कॉन्फिडेंशियल फाइल है वो आउट नहीं हो सकती। लेकिन उसकी कृपा के विषय में कुछ भी कहना समुद्र की एक बूँद है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, जुलाई 2007 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - कभी-कभी हमारे शरीर का कोई अंग अचानक से फड़कने लगता है। यह कोई विकार नहीं है, बल्कि अपने आप ठीक भी हो जाता है। सामुद्रिक शास्त्र में इसके कई अर्थ होते हैं। सामुद्रिक शास्त्र एक ऐसा शास्त्र है जिसमें व्यक्ति के अंगों के आकार, चेहरे की बनावट, शरीर के निशान आदि का आकलन करके उसके व्यक्तित्व और मानसिकता के बारे में बताया जा सकता है। सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार व्यक्ति के अंगों के फड़कने का भी मतलब होता है। तो चलिए जानते हैं कि किस अंग के फड़कने का क्या मतलब होता है।सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार पुरुष के शरीर का दांया अंग और स्त्री के शरीर का बायां भाग फड़कना शुभ माना जाता है। यदि किसी पुरूष का बांया अंग फड़कता है तो माना जाता है कि उसे भविष्य में किसी समस्या का सामना करना पड़ सकता है। इसी तरह से यदि किसी स्त्री का दांया अंग फड़कता है। तो यह किसी दुखद घटना का संकेत माना जाता है।माथायदि किसी व्यक्ति को अपने माथे पर हलचल महसूस होती है यानि उसका माथा फड़कता है तो इसका मतलब होता है कि उसे भौतिक सुखों की प्राप्ति होने वाली है।कनपटीकनपटी का फड़कना भी बहुत ही शुभ माना जाता है। किसी भी व्यक्ति की कनपटी के फडऩे का मतलब होता है कि उसे धन लाभ होने वाला है।आंखयदि किसी व्यक्ति की दांयी आंख फड़कती है तो उसकी इच्छा पूर्ति का संकेत होता है। लेकिन बहुत ज्यादा दिनों तक आंख का फड़कना सही नहीं माना जाता है। यह किसी लंबी बीमारी होने का संकेत माना जाता है।गालों का फड़कनावैसे तो बहुत ही कम होता है कि किसी के दोनों गालों में एक साथ हलचल महसूस हो, लेकिन जब किसी व्यक्ति के दोनों गाल एक साथ फड़कते हैं तो यह धन लाभ की ओर संकेत देता है।होठों में हलचल महसूस होनायदि किसी के होंठ फड़कते हैं तो इसका मतलब है कि कोई बहुत अच्छा दोस्त उसके जीवन में आने वाला है।कंधेयदि किसी व्यक्ति का दायां कंधा फड़कता है तो यह अत्यधिक धन लाभ होने का संकेत माना जाता है। बाएं कंधे का फड़कना सफलता का सूचक माना जाता है। जब किसी को दोनों कंधे एक साथ फड़के तो यह किसी से बड़ा झगड़ा होने का संकेत है।हथेलियांयदि किसी की हथेलियां फड़कती हैं तो यह किसी समस्या का संकेत है। तो वहीं उंगलियों में हलचल पुराने दोस्त से मुलाकात होने की सूचक हैं।कोहनीकिसी की दांयी ओर यानि सीधी तरफ की कोहनी के फड़कने का मतलब होता है कि उसका किसी के साथ झगड़ा होने वाला है। बांई कोहनी का फड़कना आपको समाज में प्रतिष्ठा दिला सकता है।पीठयदि किसी की पीठ में हलचल महसूस हो तो यह शुभ नहीं माना जाता है। पीठ फड़कने का मतलब होता है कि आने वाले समय में व्यक्ति को बड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।दांयी जांघयदि किसी की दांयी जांघ फड़कती है तो यह माना जाता है कि उसे किसी बात को लेकर शर्मिंदगी का सामना करना पड़ सकता है। वहीं बांयी ओर की जांघ के फड़कने पर व्यक्ति को धन लाभ हो सकता है।पैर के तलवेयदि किसी के दाएं पैर के तलवे में फड़कन महसूस होती है तो यह समाजिक सम्मान में हानि का संकेत माना जाता है। तो वहीं बांए पैर को तलवे में यदि किसी को हलचल होती है तो माना जाता है कि भविष्य में यात्रा करनी पड़ सकती है।दोनों भौहों के बीचों-बीच में फड़कनाअगर आपके माथे का केंद्र बिंदु यानि भौहों के मध्य में यदि हलचल महसूस होती है समझिए कि आपके आने वाले जीवन में खुशियां और सुख के दिन आने वाले हैं। आपके कारोबार में तरक्की होने वाली है। जिससे आप्रत्याशित लाभ हो सकता है।गले में फड़कन महसूस होनायदि किसी के गले में फड़कन महसूस होती है तो ये भी एक अच्छा संकेत माना जाता है। गले के फड़कने का मतलब होता है कि आपको समाज में सम्मान की प्राप्ति होने वाली है और आपके जीवन में खुशहाली एवं आराम के दिन आने वाले हैं।कमर का दांया हिस्सा फड़कनायदि किसी की कमर का दांया भाग फड़कता है तो यह माना जाता है कि उसे भविष्य में धन लाभ हो सकता है।
- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 255
(जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा स्वरचित 'भक्ति-शतक' ग्रन्थ के एक दोहे की व्याख्या का एक अंश....)
..भक्ति में अनन्यता पर भी प्रमुख ध्यान देना है। केवल श्रीकृष्ण एवं उनके नाम, रूप, गुण, लीला, धाम तथा गुरु में ही मन का लगाव रहे। अन्य देव, दानव, मानव या मायिक पदार्थों में मन का लगाव न हो। इसका तात्पर्य यह न समझ लो कि संसार से भागना है। वास्तव में संसार का सेवन करते समय उसमें सुख नहीं मानना है। श्रीकृष्ण का प्रसाद मानकर खाना पीना एवं व्यवहार करना है।
उपर्युक्त समस्त ज्ञान सदा साथ रखकर सावधान होकर साधना भक्ति करने पर शीघ्र ही मन अपने स्वामी से मिलने को अत्यन्त व्याकुल हो उठेगा। बस वही व्याकुलता ही भक्ति का वास्तविक स्वरूप है। यथा चैतन्य ने कहा -
युगायितं निमेषेण चक्षुषा प्रावृषायितम....।
अर्थात उनसे मिले बिना रहा न जाय। एक क्षण ही युग लगे, सारा संसार शून्य सा लगे।
एक बात और ध्यान में रखना है कि साधनाभक्ति करते करते जब अश्रुपात आदि भाव प्रकट होने लगे तो लोकरंजन का रोग न लगने पाये। अन्यथा लोगों से सम्मान पाने की लालच में भक्तिभाव से ही हाथ धोना पड़ जायेगा। आपको तो अपमान का शौक बढ़ाना होगा। गौरांग महाप्रभु ने कहा है -
तृणादपि सुनीचेन......।
अर्थात साधक अपने आपको तृण से भी निम्न समझे। वृक्ष से भी अधिक सहनशील बने। सबको मान दे किन्तु स्वयं मान को विष माने। सच तो यह है कि जब तक साक्षात्कार या दिव्य प्रेम न मिल जाय, तब तक सभी नास्तिक या आस्तिक समान ही हैं क्योंकि अभी तो माया के ही दास हैं। फिर अहंकार क्यों?
उपर्युक्त तत्वज्ञान सदा काम में लाना चाहिये। प्रायः साधक कुछ निर्धारित साधना काल में ही तत्वज्ञान साथ रखते हैं। यह समीचीन नहीं है। क्षण-क्षण अपने मन की जाँच करते रहना है। नामापराध से प्रमुख रूप से बचना है। यदि मन को सदा अपने शरण्य में ही लगाने का अभ्यास किया जाय, तभी गड़बड़ी से बचा जा सकता है। अन्यथा मन पुराने स्थान पर पहुँच जायेगा। साधना भक्ति के पश्चात भाव-भक्ति का स्वयं उदय होता है। इन दोनों की यह पहिचान है कि साधना भक्ति में मन को संसार से हटाकर भगवान में लगाने का अभ्यास करना होता है। जबकि भावभक्ति में स्वयं मन भगवान में लगने लगता है। संसार के दर्शनादि से वितृष्णा होने लगती है। अर्थात पहले मन लगाना, पश्चात मन लगना।
जैसे संसार में कोई भी व्यक्ति जन्मजात शराबी नहीं होता। पहले बेमनी के बार-बार पीता है। फिर धीरे धीरे शराब उसे दास बना लेती है। वह शराबी समस्त लोक एवं परलोक पर लात मार देता है। जब जड़ शराब के नशे का यह प्रत्यक्ष हाल है तो हम भी जब भक्ति करते करते दिव्य मस्ती का अनुभव करने लगेंगे तब हम भी भुक्ति मुक्ति बैकुण्ठ को लात मार देंगे। एवं युगल सुख के हेतु युगल सेवा की ही कामना करेंगे।
रुपध्यान करते समय मन अपने पूर्व-प्रिय पात्रों के पास जायेगा। उस समय आप अशान्त न हों। मन जहाँ भी जाय, जाने दीजिये। बस उसी जगह उसी वस्तु में अपने शरण्य को खड़ा कर दीजिये। जैसे स्त्री की आँख के सौन्दर्य में मन गया तो उसी आँख में श्यामसुन्दर को खड़ा कर दो। बस कुछ दिन में मन थक जायेगा। सर्वत्र सर्वदा अपने श्याम के ही ध्यान का अभ्यास करना है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: भक्ति-शतक एवं अध्यात्म संदेश पत्रिका, मार्च 1997 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) -
जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 254
(भूमिका ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा भक्तिधाम मनगढ़ में 15 अक्टूबर सन 1966 को दिये गये प्रवचन का एक अंश, इसमें बड़ी महत्वपूर्ण बात समझाई गई है कि साधक जब गुरुवचनों को भूल जाता है, तो किस संकट में फँस जाता है!!...)
..माया के अधीन जितने भी जीव हैं उनमें सब दोष हैं, क्योंकि सब दोषों की जननी माया है। जिस प्रकार एक बीज में अंकुर भी रहता है और डाल भी रहती है, पत्ते और फल भी रहते हैं। किन्तु सब सूक्ष्म रुप में रहने के कारण दिखाई नहीं देते। जब कोई बीज खेत में डाला जाता है तो सारी चीजें समय पर मिल जाती हैं। इसी प्रकार से इस मायारूपी बीज में उसकी शाखायें आदि काम क्रोधादि सूक्ष्म रूप से सब विद्यमान रहते हैं।
जब भगवत्प्राप्ति पर माया समाप्त होती है तब ही ये सब के सब दोष इकट्ठे समाप्त होते हैं। एक-एक नहीं। कोई कहे कि एक चला जायेगा, दूसरा वहीं रहेगा। यह नहीं हो सकता है। एक कभी नहीं जायेगा। जब ईश्वर भक्ति करते हैं तब भी यह दोष रहते हैं लेकिन लोगों को आश्चर्य होता है जब किसी साधक का पतन होता है। भगवत्प्राप्ति के एक सेकंड पहले तक भी, इतनी ऊँची अवस्था पर पहुँचने पर भी, महापुरुषत्व के पास पहुँचने पर भी, वह एक क्षण में राक्षस तक बन सकता है। इसके लिये इतना बड़ा प्रकरण अजामिल का है। अजामिल के लिये भागवत में लिखा है - सत्यवादी, जितेन्द्रिय, संयमात्मा। सभी गुण उसके पास थे जो महापुरुष में होते हैं। अर्थात महापुरुष के पास की क्लास में वह पहुँच चुका था। मन पर उसका पूर्ण कंट्रोल था। जिस क्षण में मन से कहा गुस्सा करो, गुस्सा कर दिया। जिस क्षण में कहा हँस दो, हँस दिया। उसका अन्तःकरण उसका सर्वेन्ट बनकर रहता था।
वह जब कोई कामना बनाना चाहता है तभी बन सकती है, वह कामना के अधीन नहीं रहता। किसी कामना को बनाकर जिस क्षण में चाहे कामना से अलग हो जाय। इतनी शक्ति जिसके पास हो वह जितेन्द्रिय कहलाता है। जो अभी मन के अण्डर में है, वह अभी साधक ही है। ऐसी स्थिति में पहुँचने पर भी अजामिल गिर गया और एक क्षण में गिरा, एक मिनट उसको नहीं लगा। स्त्री-पुरुष के मिलन का एक दृश्य देखा और उसके देखते ही एक क्षण में उसका इतना बड़ा पतन हुआ कि उसको पापियों का शिरोमणि कहा गया लेकिन आप लोगों को छोटे मोटे साधकों के गिरने में आश्चर्य हो जाता है। अरे इसका क्या आश्चर्य है? आश्चर्य तो इसका है कि कोई जीव थोड़ा ऊँचा किस प्रकार से उठ गया, एक आँसू श्यामसुन्दर के लिये कैसे निकल गया? अनंतकाल से संसार को अपना मानने वाला, संत या भगवान से प्यार कैसे करने लगा?
उस पर आप आश्चर्य नहीं करते, उसे तो नेचुरल समझते हैं। (टॉर्च हाथ से उठाकर) यह टॉर्च पृथ्वी की बनी हुई, इसलिये पृथ्वी की ओर जाने में इसको कोई परिश्रम थोड़े ही करना है। केवल इसको छोड़ दीजिये। चली गई। मन ने जरा लापरवाही की कि पतन हुआ। पतन करने के लिये कुछ करना नहीं पड़ता। जरा संत और भगवान के वाक्यों को भुला लीजिये। संत और भगवान को खोपड़ी से निकाल दीजिये, बस पतन हो जायेगा। उसके लिये कोई साधन मनन नहीं करना पड़ेगा। वह तो नीचे की ओर स्वतः ही भागता है, संसार की ओर भागने की तो उसकी नेचुरल प्रवृत्ति है, सजातीय धर्म है (मन भी माया का बना है, अतः वह माया के सजातीय है)। इसलिये यह आश्चर्य कभी नहीं होना चाहिये कि अमुक साधक का पतन कैसे हो गया? अपने आप को सँभालने का प्रयत्न करते रहना चाहिये। अपनी-अपनी फिक्र करो, दूसरे के बारे में न सोचो, न बोलो, न देखो, न गन्दी भावनायें करो। नहीं तो सारी गन्दगी तुम्हारे अन्दर आ जायेगी, तुम्हारे अन्तःकरण में भर जायेगी और थोड़ा बहुत शुद्ध हुआ अन्तःकरण पुनः खत्म हो जायेगा। यह भयंकर कुसंग है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, जुलाई 2001 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) -
. नवरात्र पर्व के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को मां के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इस देवी को तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया।
कहते हैं मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्वसिद्धि प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है। इस देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए।मंत्र- दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥कथा- पूर्वजन्म में इस देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था और नारदजी के उपदेश से भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित किया गया। एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बिताए और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रहकर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया। कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से ही संभव थी। तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं।पूजा विधि- देवी को पंचामृत से स्नान कराएं, फिर अलग-अलग तरह के फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दूर, अर्पित करें। देवी को सफेद और सुगंधित फूल चढ़ाएं। इसके अलावा कमल या गुड़हल का फूल भी देवी मां को चढ़ाएं। मिश्री या सफ़ेद मिठाई से मां का भोग लगाएं आरती करें एवं हाथों में एक फूल लेकर उनका ध्यान करें।1. या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।2. दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।देवी की पूजा करते समय सबसे पहले हाथों में एक फूल लेकर प्रार्थना करें-इधाना कदपद्माभ्याममक्षमालाक कमण्डलुदेवी प्रसिदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्त्मामां ब्रह्मचारिणी का स्रोत पाठतपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥"मां ब्रह्मचारिणी का कवच"त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।स्वरूपमाता अपने इस स्वरूप में बिना किसी वाहन के नजर आती हैं। मां ब्रह्मचारिणी के दाएं हाथ में माला और बाएं हाथ में कमंडल है।महत्त्वमाता ब्रह्मचारिणी हमें यह संदेश देती हैं कि जीवन में बिना तपस्या अर्थात कठोर परिश्रम के सफलता प्राप्त करना असंभव है। बिना श्रम के सफलता प्राप्त करना ईश्वर के प्रबंधन के विपरीत है। अत: ब्रह्मशक्ति अर्थात समझने व तप करने की शक्ति हेतु इस दिन शक्ति का स्मरण करें। योग-शास्त्र में यह शक्ति स्वाधिष्ठान में स्थित होती है। अत: समस्त ध्यान स्वाधिष्ठान में करने से यह शक्ति बलवान होती है एवं सर्वत्र सिद्धि व विजय प्राप्त होती है। -
चैत्र नवरात्रि का प्रारंभ हो चुका है। नवरात्रि पर माता को प्रसन्न करने के लिए दुर्गा सप्तशी का पाठ अवश्य किया जाता है। माना जाता है कि नवरात्रि पर जो भी दुर्गा सप्तशी का विधिवत पाठ करता है उसकी हर मनोकामना जरूर पूरी होती है। दुर्गा सप्तशी में देवी को प्रसन्न करने के कई सिद्धि मंत्र है जिसका जाप करने से सभी तरह की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। जानिए ऐसे ही 10 चमत्कारिक मंत्र....
1. स्वास्थ्य और धन के साथ ऐश्वर्य से भरपूर जीवन पाना चाहते हैं तो देवी के इस सिद्ध मंत्र का जप करें-ऐश्वर्य यत्प्रसादेन सौभाग्य-आरोग्य सम्पद:।शत्रु हानि परो मोक्ष: स्तुयते सान किं जनै।।2. मृत्यु के भय को दूर करने और मोक्ष प्राप्ति के लिए नियमित देवी के इस मंत्र का जप करें-सर्वस्य बुद्धिरुपेण जनस्य हृदि संस्थिते।वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते।3. सिद्धि प्राप्ति के लिए इस मंत्र का जप करें-
दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके।मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय।।4. धन प्राप्ति के साथ संतान सुख भी पाना चाहते हैं तो नियमित इस मंत्र का जप करें-
सर्वाबाधा वि निर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वित:।मनुष्यो मत्प्रसादेन भवष्यति न संशय॥5. धन संबंधी परेशानियों से बुरी तरह परेशान हैं तो पैसों की तंगी को दूर करने के लिए नियमित माता के इस सिद्धि मंत्र का जप करें।दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:।सवस्र्ध: स्मृता मतिमतीव शुभाम् ददासि।।6. इन दिनों आपका बुरा समय चल रहा है और बार-बार संकट में फंस जा रहे हैं तो देवी के इस मंत्र का जप करें-शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते।।7. देवी के इस सिद्ध मंत्र से व्यक्ति में आकर्षण क्षमता और व्यक्तित्व में निखार आता है।ज्ञानिनामपि चेतांसि, देवी भगवती ह्री सा।बलादाकृष्य मोहाय, महामाया प्रयच्छति।।8. देवी के इस सिद्ध मंत्र से सुंदर और सुयोग्य जीवनसाथी पाने की चाहत पूरी होती है।पत्नीं मनोरमां देहि नोवृत्तानुसारिणीम।तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम॥9. इस मंत्र का नियमित जप व्यक्ति को गुणवान और शक्तिशाली बनाता है।सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि।गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते।।10. जीवन में प्रसन्नता और आनंद चाहते हैं तो नियमित इस सिद्ध मंत्र का जप करें-प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि।त्रैलोक्यवासिनामीडये लोकानां वरदा भव।। -
रायपुर। चैत्र नवरात्र की आज से शुरुआत हो चुकी है। नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में मां शक्ति की आराधना की जाती है। प्रथम दिन कलश स्थापना के साथ ही दुर्गासप्तमी और गीता का भी पाठ किया जाता है। पहले दिन मां शक्ति के शैलपुत्री स्वरूप की विधि विधान से पूजा की जाती है।
मां शैलपुत्री को पर्वतराज हिमालय की पुत्री माना जाता है। इनका वाहन वृषभ है इसलिए इनको वृषारूढ़ा और उमा के नाम से भी जाना जाता है। देवी सती ने जब पुनर्जन्म ग्रहण किया तो इसी रूप प्रकट हुईं इसीलिए देवी के पहले स्वरूप के तौर पर माता शैलपुत्री की पूजा होती है। मां शैलपुत्री की उत्पत्ति शैल से हुई है और मां ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और उनके बाएं हाथ में कमल शोभायमान है। उन्हें माता के सती के रूप में भी पूजा जाता है। नवरात्र के पहले दिन शुभ मुहूर्त देखकर कन्या एवं धनु लग्न में अथवा अभिजिन्मुहूर्त में कलश स्थापना की जाती है। पुराणों में कलश को भगवान गणेश का स्वरूप बताया गया है इसलिए कलश की स्थापना के साथ दुर्गा का आह्वान किया जाता है। इसलिए कलश की स्थापना पहले ही दिन कर दी जाती है। इसके बाद अन्य देवी-देवताओं के साथ माता शैलपुत्री की पूजा होती है। मान्यता है कि मां शैलपुत्री को सफेद वस्तु अतिप्रिय हैं इसलिए नवरात्रि के पहले दिन मां को सफेद वस्त्र और सफेद फूल चढ़ाया जाता है।रायपुर के ज्योतिषाचार्य डॉ. दत्तात्रेय होस्केरे के अनुसार मां शैलपुत्री की कृपा पाने के लिए घी और उससे बने मीठे पदार्थों का भोग लगाना चाहिए। आज के दिन सफेद वस्त्र पहनना चाहिए। वास्तु दोष को शांत करने के लिए भी मां शैलपुत्री की आराधना करें। इसके साथ ही पूर्व दिशा में यदि कोई वास्तु दोष को तो वह माता शैलपुत्री की आराधना से दूर होता है। इसके लिए पूर्व दिशा में जल का छिड़काव करके माता के किसी भी मंत्र का जाप करना चाहिए। मांगलिक कन्याएं यदि माता की पूजा करें तो मंगल ग्रह की शांति होती है।माना जाता है कि मां शैलपुत्री की आराधना से मनोवांछित फल और कन्याओं को उत्तम वर की प्राप्ति होती है। मां के इस पहले स्वरूप को जीवन में स्थिरता और दृढ़ता का प्रतीक माना जाता है। शैल का अर्थ होता है पत्थर और पत्थर को दृढ़ता की प्रतीक माना जाता है। महिलाओं को इनकी पूजा से विशेष फल की प्राप्ति होती है। नवरात्र में प्रतिदिन एक अथवा एक-एक वृद्धि से अथवा प्रतिदिन दुगुनी-तिगुनी के वृद्धिक्रम से अथवा प्रत्येक दिन नौ कुंवारी कन्याओं के पूजन का विधान है। इस संबंध में कुलाचार के हिसाब से भी पूजन कर सकते हैं, कुलाचार के आधार पर षष्ठी से नवमी तक कुंवारी पूजन के दिन निर्धारित है। -
चैत्र नवरात्रि से पहले दिन को संवत्सर कहा जाता है। इसे हिन्दू नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार जगत पिता ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन की थी।
ब्रह्माजी ने जब सृष्टि की रचना का कार्य आरंभ किया तो चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रवरा तिथि घोषित किया। इसमें धार्मिक, सामाजिक, व्यवसायिक और राजनीतिक अधिक महत्व के जो भी कार्य आरंभ किए जाते हैं, सभी सिद्धफलीभूत होते हैं। कालांतर में भगवान विष्णु के मत्स्यावतार का अविर्भाव और सतयुग का आरंभ भी इसी दौरान हुआ था। प्रवरा तिथि के महत्व को स्वीकार कर, भारत के सम्राट विक्रमादित्य ने भी अपने संवत्सर का आरंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही किया था। आगे चलकर महर्षि दयानंद जी ने भी आर्य समाज की स्थापना इसी दिन करना शुभ संकेत माना।इस दिन संवत्सर पूजन, नवरात्र घट स्थापना, ध्वजारोहण, तैलाभ्याड्ं स्नान, वर्षेशादि पंचाग फल श्रवण, परिभद्रफल प्राशनन और प्रपास्थापन प्रमुख हैं। इस दिन मुख्यतया ब्रह्माजी का व उनकी निर्माण की हुई सृष्टि के प्रधान देवी-देवताओं, यक्ष-राक्षसों, गंधर्वों, ऋषि, मुनियों, मनुष्यों, नदियों, पर्वतों, पशुपक्षियों और कीटाणुओं का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का पूजन किया जाता है। इसका विधिपूर्वक पूजन करने से वर्ष पर्यन्त सुख-शान्ति, समृद्धि आरोग्यता बनी रहती है।भारत की गौरवमयी सभ्यता एवं संस्कृति में संवत्सर का विशेष महत्व है। हिंदुओं के प्राय: सभी शुभ संस्कार, विवाह, मुंडन, नामकरण आदि एवं मंत्र जाप यज्ञादि अनुष्ठानों में संकल्प आदि के समय संवत के नाम का प्रयोग प्रमुखता से किया जाता है। ऋग्वेद में एक उल्लेख मिलता है कि दीर्घतमा ऋषि ने युग-युगों तक तपस्या करके ग्रहों, उपग्रहों, तारों, नक्षत्रों आदि की स्थितियों का आकाश मंडल में ज्ञान प्राप्त किया। वेदांग ज्योतिष काल गणना के लिए विश्व भर में भारत की सबसे प्राचीन और सटीक पद्धति है।पौराणिक काल गणना वैवश्वत मनु के कल्प आधार पर सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग - इन चार भागों में विभाजित है। इसके पश्चात ऐतिहासिक दृष्टि से काल गणना का विभाजन इस प्रकार से हुआ। युधिष्ठिर संवत, कलिसंवत, कृष्ण संवत, विक्रम संवत, शक संवत, महावीर संवत, बौद्ध संवत। उसके बाद हर्ष संवत, बंगला, हिजरी, फसली और ईसा सन भारत में चलते रहे। इसलिए वेद, उपनिषद, आयुर्वेद, ज्योतिष और ब्रह्मांड संहिताओं में मास, ऋतु, वर्ष, युग, ग्रह, ग्रहण, ग्रहकक्षा, नक्षत्र, विषुव और दिन रात का मान व उनकी ह्रास, वृद्धि संबंधी विवरण पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं।ईसवी सन से 57 वर्ष पहले उज्जैन के राजा चन्द्रगुप्त द्वितीय ने आक्रांताशकों को पराजित कर विक्रमादित्य की उपाधि धारण की थी। यह चैत्र शुक्ला प्रतिपदा को घटित हुआ। विक्रमादित्य ने इसी दिन से विक्रम संवत की शुरुआत की। काल को देवता माना जाता है। संवत्सर की प्रतिमा स्थापित करके उसका विधिवत पूजन व प्रार्थना की जाती है। विक्रम और शक संवत्सर दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। हालांकि हमारे राष्ट्रीय पंचांग का आधार शक संवत है, हालांकि शक हमारे देश में हमलावर के रूप में आए थे। कालान्तर में भारत में बसने के उपरांत शक भारतीय संस्कृति में ऐसे रच बस गए कि उनकी मूल पहचान लुप्त हो गई।विश्व में लगभग 25 संवतों का प्रचलन है जिसमें 15 तो 2500 वर्षों से प्रचलित हैं। दो-चार को छोड़कर प्राय: सभी संवत् वसंत ऋतु में आरंभ होते हैं। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को विक्रम संवत् का आरंभ भी भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप है क्योंकि इसका संबंध हमारे ऋतुचक्र से जुड़ा है।--- -
शक्ति उपासना का पर्व नवरात्रि आज से शुरु हो गया है। नवरात्र के पहले दिन विधि-विधान के साथ घटस्थापना या कलश स्थापना कर देवी मां की पूजा की जाती है।
नवरात्रि में दुर्गा के नौ रूपों मां शैलपुत्री, मां ब्रह्मचारिणी, मां चंद्रघंटा, मां कुष्मांडा, मां स्कंदमाता, मां कात्यायनी, मां कालरात्रि, मां महागौरी, मां सिद्धिदात्री) की पूजा होती है। नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित रहता है। हिन्दू् पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इनके पूजन से मूलाधार चक्र जाग्रत हो जाता है। कहते हैं कि जो भी भक्त श्रद्धा भाव से मां की पूजा करता है उसे सुख और सिद्धि की प्राप्ति होती हैपौराणिक कथा के अनुसार मां शैलपुत्री पर्वतराज हिमालय (शैल) की पुत्री हैं और इसी कारण उनका नाम शैलपुत्री है। कहा जाता है मां शैलपुत्री अपने पूर्व जन्म में राजा दक्ष की कन्या पुत्री थी और उनका नाम सती था। माता सती का विवाह जगत के संहारक, देवों के देव महादेव शिजी के साथ हुआ था। एक बार राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने सभी देवताओं को आमंत्रित होने के लिए न्यौता दिया, लेकिन जानबूझकर भगवान शिवजी को यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए नहीं बुलाया।वहीं माता सती इस यज्ञ में शामिल होने के लिए आतुर थीं। ऐसे में उन्होंने शिवजी से यज्ञ में चलने का आग्रह किया। किंतु शिवजी ने उनसे कहा कि राजा दक्ष ने उन्हें इस आयोजन के लिए निमंत्रण नहीं भेजा है। अत: हमारा जाना वहां उचित नहीं होगा और ऐसी स्थिति में तुम्हारा भी वहां पर जाना ठीक नहीं है। भोलेनाथ ने जब उन्हें अपने मायके में होने वाले यज्ञ में हिस्सा लेने के लिए मना किया तो वे दुखी हो गईं। माता सती का दुखी चेहरा भोले बाबा से देखा न गया। उन्होंने माता सती को जाने की अनुमति दे दी, किंतु स्वयं नहीं गए।उधर जब मां सती अपने पिता के घर पहुंची, तो उन्हें पिता के द्वारा तिरस्कार का सामना करना पड़ा। इतना ही नहीं, राजा दक्ष ने अपनी बेटी और पूरी सभा के सामने शिवजी को खूब बुरा भला कहा, उनकी निंदा की। अपने पति के प्रति इस दव्र्यवहार को देखकर माता सती का हृदय बहुत दुखी हो गया। अपने पति परमेश्वर का अपमान उनसे सहन नहीं हुआ। पिता की कड़वी बातों ने उन्हें मरने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने उसी यज्ञ में अपना जौहर कर दिया। यज्ञ की अग्नि में माता सती जलकर भस्म हो गईं।वज्रपात के समान इस दारुणं-दुखद घटना को सुनकर शंकर जी ने क्रुद्ध हो अपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णत: विध्वंस करा दिया। सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस जन्म में भी शैलपुत्री देवी का विवाह भी शंकर जी से ही हुआ। - सोते समय सपने आना प्रत्येक मनुष्य के जीवन में स्वाभाविक सी क्रिया है। जानकारों के अनुसार हम जैसा सोचते हैं या बातें करते हैं, जो कुछ भी हमारे मस्तिष्क में चलता है वही हमें सपने में भी दिखाई देता है। कुछ सपने हमें बहुत ही प्रसन्न कर देते हैं। इन्हीं में से एक सपना होता है जब मनुष्य कहता है कि सपने में भगवान को देखा। हम सभी अपने दिमाग में भगवान की एक छवि बनाते हैं। सपने में भी हम भगवान की उसी छवि को देखते हैं। किसी भी व्यक्ति के लिए यह सपना देखना बहुत ही सुखद अहसास होता है लेकिन ऐसा सपना देखने पर व्यक्ति के मन में कई तरह के सवाल उठते हैं। वैसे तो सपने में भगवान का आना बहुत शुभ माना जाता है परंतु इसके कई अर्थ माने जाते हैं।-यदि आप अपने स्वप्न में ईश्वर को देखते हैं तो इसका अर्थ हो सकता है कि ईश्वर आपको भक्ति की राह पर चलने का संकते दे रहे हैं। कभी कभी मनुष्य भौतिकता की चकाचौंध में खो जाता है और उसे ईश्वर के स्मरण तक की याद नहीं रहती है और व्यक्ति के मार्ग से भटकने का भय रहता है। ऐसे में ईश्वर का स्वप्न में दिखाई देना आपको सही राह पर चलने का संकेत हो सकता है ताकि आप ग़लत कार्यों से दूर रहें और धर्म एवं भक्ति के मार्ग पर चलते हुए कर्तव्यों का निर्वहन करें।-यदि आप हर तरफ से परेशानियों से घिरे हुए हैं और आपको कोई मार्ग नहीं सूझ रहा है। ऐसे समय में यदि सपने में आपको ईश्वर के दर्शन होते हैं तो एक आशा की किरण हो सकती है। ईश्वर आपको संकेत दे रहे हैं कि धैर्य बनाए रखने की आवश्यकता है। उम्मीद नहीं खोनी चाहिए जल्दी ही समस्या का समाधान हो सकता है।-स्वप्न में ईश्वर को देखना शुभ है या नहीं यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपने उन्हें किस मुद्रा में देखा है। यदि आप सपने में भगवान को उग्र और क्रोधित मुद्रा में देखते हैं तो यह शुभ नहीं माना जाता है। इसका अर्थ माना जाता है कि आपको कोई भी गलत कार्य नहीं करने चाहिए और अगर आप कोई गलत काम कर रहे हैं तो स्वयं में सुधार करने की जरूरत है।- यदि आप सपने में भगवान को अपने घर में देखते हैं, तो इसका मतलब होता है कि आपके और परिवार के सदस्यों पर भगवान का आशीर्वाद बना हुआ है। वहीं यदि आप सपने में अपने कार्य स्थल या स्कूल जैसे स्थान पर भगवान को देखते हैं, तो इसका अर्थ माना जाता है कि आपको अपने कार्य और शिक्षा के क्षेत्र में परिश्रम करने की आवश्यकता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 253
साधक का प्रश्न ::: भगवान और महापुरुष की ओर मन जल्दी खिंचे, इसके लिये क्या करना होगा?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा उत्तर ::: भगवान से अनन्य प्रेम करना है। 'अनन्य' माने 'अन्य में नहीं'। सब जगह कर्तव्य-पालन करो। तुम्हारी जो ड्यूटी है, माँ के प्रति, बाप के प्रति, बेटे के प्रति, स्त्री के प्रति, वो करो, लेकिन प्यार भगवान और महापुरुष से करो, क्योंकि वो शुद्ध हैं। अशुद्ध से मन का प्रेम न करो, व्यवहार में करो, एक्टिंग। जैसे दूसरे के बच्चे के गाल में हम हाथ से ऐसे-ऐसे (इशारा) कर देते हैं, पुच-पुच कर देते हैं तो उसकी माँ खुश हो जाती है कि हमारे बच्चे से प्यार कर रहा है। दूसरे के बच्चे से भला कौन प्यार करेगा, वो एक्टिंग करता है, उसके माँ-बाप को खुश करने के लिए और माँ-बाप बेवकूफ भी बन जाते हैं। लेकिन वो प्यार-व्यार तो अपने अपने बच्चे से करता है, दूसरे से क्यों करेगा भला।
तो ऐसे ही अपने परिवार में भी प्यार की एक्टिंग करो, लेकिन खास-तौर से ड्यूटी करो और प्यार हरि-गुरु से करो। तो तुम्हारा मन महापुरुष और भगवान में जल्दी खिंचेगा, बस! उतना ही तुम्हारा मन शुद्ध है, ये पैमाना है और इसी पैमाने को लेकर आगे बढ़ते चलो।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, जुलाई 2007 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं. ) - - चैत्र नवरात्रि में ऐसे करें देवी मां की आराधना...मिलेगा लाभ..माँ आदि शक्ति चुंकि प्रकृति स्वरूपा भी हैं, अत: प्राचीन काल से ही प्रकृति जनित बाधाओं से भी भयभीत होकर मनुष्य ने माँ के आराधना की है। प्रत्येक युग में शक्ति स्वरूपा नारी, परिवार और समाज का केन्द्र रही है। यदि प्रत्येक युग में रक्षा का कारक पुरुष रहा है तो , शोषित रहते हुए भी एक पुरुष को जन्म देकर समाज को सुरक्षा को सुनिश्चित करने का कार्य भी नारी ने ही किया है।माँ आदि शक्ति को मातृ स्वरूप में पूजे जाने का कारण हमारा सभी के समक्ष यह प्रश्न अवश्य प्रस्तुत करता है कि देवो को पितृ स्वरूप में हम यदा कदा ही याद करते हैं, लेकिन ऐसा क्या कारण है कि आदि शक्ति का स्मरण आते ही 'माँ शब्द अपने आप ही हमारी जिव्हा और मन के अंत:करण दोनों पर आ जाता है।पूरे नौ दिनों की है नवरात्रिमंगलवार 13 तारीख को चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा है यानी इसी दिन से नवरात्रि प्रारम्भ हो रही है। 27 नक्षत्रों में पहले नक्षत्र अश्विनी नक्षत्र में में प्रारम्भ हो रही नवरात्रि में द्वितीया, तृतीया ,चतुर्थी पंचमी और षष्ठी को क्रमश:, प्रीति,आयुष्मान,सौभाग्य शोभन और सुकर्मा जैसे शुभ योग पड़ रहें हैं, जो की पिछले कई वर्षों में नही पड़े। यह नवरात्रि पूरे नौ दिनों की है।*घट स्थापन मुहुर्त*वृषभ लग्न में : प्रात: 7.33 बजे से 9.32 बजे तक7अभिजित मुहुर्त प्रात: 11.36 बजे से 12.24 बजे तक7सिंह लग्न में : दोपहर 2.00 बजे से 4.10 बजे तक7वृश्चिक लग्न में: रात्रि 8.32 बजे से 10.47 बजे तकघर में कैसे करें पूजन और माता को करें प्रसन्नस्नान इत्यादि से निवृत्त होकर एक लाल या पीले वस्त्र को पाटे पर बिछा दें । गणेश, गौरी ,कलश, नवग्रह और षोडश मातृका की स्थापना कर लें7 दीप या ज्योत प्रज्ज्वलित करें। मध्य में माँ आदिशक्ति के लिए आसन स्थापित कर लें7 माँ भगवती की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करा कर शुद्ध जल से स्नान कराएं। आसन पर पुष्प डाल कर माता जी का आव्हान करें7 प्रतिमा स्थापित कर दें। वस्त्र, आभूषण, सिन्दूर, पुष्प, माला,इत्र ,धूप इत्यादि अर्पित कर भोग लगाएं। तत्पश्चात आरती करें।प्रतिपदा : शैलपुत्रीमंगलवार 13 अप्रैेल 2021सूर्योदय कालीन प्रतिपदा तिथि होने से आज से शारदीय नवरात्रि प्रारम्भ। मंगल प्रधान चित्रा नक्षत्र है। मंत्र का यथायोग्य जाप कर माता जी को भोग समर्पित करें । माँ की आराधना से जीवन में स्थिरता, बलवृद्धि, स्वास्थ्य लाभ की प्राप्ति होती है। माँ की आज की आराधना देगी भावनात्मक कष्टों से मुक्ति।ध्यान मंत्र: वंदे वांछित लाभाय चंद्रार्द्ध कृत शेखराम्।वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥भोग: गौ दुग्ध से बने घी या घी से बने सामग्रियों का भोग समर्पित करें7वस्त्र: नारंगी रंग के वस्त्र पहने । आज होगी मंगल की शांति, चित्त होगा शांत।वे जातक जिनकी कुंडली में मंगल नीच का हो, मांगलिक होने से विवाह में बाधा आ रही हो या मंगल, विपरीत अवस्था में हो, उन्हें आज माँ की आराधना से लाभ होगा।पूर्व दिशा की होगी शांति:अपने घर के पूर्वी किनारे पर ;ह्रीं मामैंद्री देव्यै नम: ; मंत्र का उच्चारण कर पीली सरसों का छिड़काव करें। गृह क्लेश से मिलेगी मुक्ति।आज का गुरुमंत्र:सायं पीले फूल की पत्तियों से थाली पर शं लिखे । एक दीपक रख कर कपूर की आरती करे। तत्पश्चात पूरे घर में आरती घुमा दें। धन धान्य में वृद्धि होगी।द्वितीया: ब्रह्मचारिणीबुधवार 14 अप्रैल 2021,आज आप कर सकते हैं अपने राहु को शांत। माँ ब्रह्मचारिणी की आराधना कर भोग लगाने से होगा। सभी तरह के दुखों का निवारण।ध्यान मंत्र- दधानाम कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमंडलूम द्यदेवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्य नुत्तमा॥भोग: शक्कर के बने पदार्थों का भोग लगायें।वस्त्र: भूरे रंग के वस्त्र पहनें।यदि जीवन में अस्थिरता हो तो माता की आराधना से स्थिरता आयेगी।दक्षिण पूर्व दिशा की होगी शांति:अपने घर के दक्षिण पूर्वी किनारे पर &प्त39; क्लीं क्लीं अग्नेयां देव्यै नम: &प्त39; मंत्र का उच्चारण कर निम्बू के रस से किनारे को सिंचित करें । रोगों का होगा निवारण।आज का गुरुमंत्र:किसी वृद्ध महिला को पीले वस्त्र भेंट करें। रुके हुए कार्य पूरे होंगे।तृतीया : चंद्रघंटागुरुवार 15 अप्रैल 2021तृतीया को गुरुदेव बृहस्पति आप से होंगे प्रसन्न। शनिवार को माँ चंद्रघण्टा आशीष प्राप्त कर दूर करें सभी बाधाएं।ध्यान मंत्र- प्रिण्डज प्रवरारूढा चंडको पास्त्र कैर्युता।प्रसादं तन्युते मह्यम चन्द्रघण्टेति विश्रुता॥भोग: गौ दुग्ध के बने पदार्थों का भोगवस्त्र : चमकीले हरे रंग के वस्त्र पहने।माँ सम्पूर्ण कष्ट निवारण, बाधा निवारण करती हैं। विवाह संबंधी समस्या का होगा समाधान।दक्षिण दिशा की होगी शांति:अपने घर के दक्षिणी किनारे पर क्लूं वाराही देव्यै क्लूं , मंत्र का जाप कर एक ताँबे का सिक्का रख दें। हनुमान चालीसा का पाठ करना न भूलें। आर्थिक हानि से मिलेगी मुक्ति।आज का गुरुमंत्र: किसी दुर्गा जी या काली जी के मन्दिर में घंटी चढायें। न्याय की प्राप्ति होगी। बुद्धि भी तीक्ष्ण होगी।चतुर्थी : कुष्मांडाशुक्रवार 16 अप्रैल 2021चतुर्थी को शनिदेव होंगे शांत, आपको बनायेंगे कर्मवान। रविवार को माँ कुष्मांडा होंगी प्रसन्न और आपको प्रदान करेंगी आयु,यश और बल।ध्यान मंत्र -सुरा सम्पूर्ण कलशं रूधिराप्लुतमेव च।दधानां हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥भोग: मालपूआ का भोगवस्त्र: मिश्रित रंग के वस्त्र पहने। रोगों से मिलेगी मुक्ति।दक्षिण पश्चिम दिशा( नैऋर्त्य) की होगी शांति:मंत्र: क्लीं क्लूं खड्गधरिणी देव्यै माम रक्ष रक्ष ; का उच्चारण करें। पति- पत्नी के सम्बंधों में आ रही बाधाओं का होगा समाधान।आज का गुरुमंत्र - पेठा और बेल का शर्बत वितरित करे। प्रभाव क्षेत्र बढ़ेगा। लोकप्रियता में वृद्धि होगी।पंचमी: स्कंदमाताशनिवार 17 अप्रैल 2021पंचमी को बुध ग्रह आपको बनायेगा बुद्धिमान। सोमवार को माँ स्कन्दमाता के पूजन से संतान सुख तो प्राप्त होगा ही साथ ही आपके परिवार में बढेगा सामंजस्य।ध्यान मंत्र :सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रित करद्वया।शुभदास्तु सदा देवी स्कंद माता यशस्विनी॥भोग : केले या पीले फलों का भोगवस्त्र; नीले रंग के वस्त्र चमकीले बॉर्डर के साथ। अध्ययन संबंधी बाधा दूर होगी।पश्चिम दिशा का करें पूजन। होगी धन वर्षा। मंत्र: ;ह्रीं ह्रीं वारुणी देव्यै नम: ; से पश्चिम दिशा में शक्कर युक्त जल का छिड़काव करें। धन वृद्धि होगी।आज का गुरुमंत्र :शिशुओं को आहार और दूध भेंट करें। संतान हीनता से मिलेगी मुक्ति। संतान का स्वास्थ्य भी ठीक होगा।षष्टी :कात्यायनीरविवार 18 अप्रैल 2021षष्टी को केतु सम्बंधी दोष होंगे दूर। मंगलवार को माँ कात्यायनी की आराधना से रोगों से मिलेगी मुक्ति, मृत्यु भय होगा दूर।ध्यान मंत्र- चन्द्रहासोज्ज्वल करा शार्दूल वर वाहना।कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानव घातिनी॥भोग: मधु या शहद का भोगवस्त्र; चमकीले सफ़ेद वस्त्र पहने। सौन्दर्य और धन संबंधी समस्या का होगा समाधान। उत्तर पश्चिम दिशा को करें सुगंधित: ऊर्जा का होगा संचार, प्रतियोगी परीक्षा में मिलेगीसफलता मंत्र: 'अं कं मृगवहिनी देव्यै नम: के उच्चारण से शुद्ध जल छिड़ककर सुगंधित धूप जलाएं।आज का गुरुमंत्र: खड़ी हल्दी, केला, फल को पीले कपड़े में रखकर माता पिता से स्पर्श कराकर उनका आशीर्वाद लें और किसी भी माता जी के मंदिर में अर्पित कर दें। विवाह में आ रही बाधाएं दूर होंगी।सप्तमी: कालरात्रिसोमवार 19 अप्रैल 2021सप्तमी को शुक्र प्रसन्न होकर आपको देगा सम्पन्नता। बुधवार को माँ कालरात्रि का विधिवत पूजन आपको रोग,शोक और शत्रु से मुक्ति दिलाएगा।ध्यान मंत्र : एकवेणी जपाकर्णपूर नग्ना खरास्थिता ।लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी ॥वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टक भूषणा ।वर्धन मुर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर भयंकरी॥भोग : गुड़ य गुड़ के बने पदार्थ का भोगवस्त्र: लाल रंग के वस्त्र पहने। ऋण और रोजगार संबंधी समस्या का होगा समाधान।वास्तु समाधान- घर के उत्तरी किनारे पर गुड़ और चना रखें। रोगों से मिलेगी मुक्ति। बढ़ेगा धन धान्य, सौन्दर्य भी बढ़ेगा।मंत्र "क्लूं कौमारी देव्यै नम:" का उच्चारण करें।आज का गुरुमंत्र: माता जी के समक्ष कपूर युक्त जल रखें और पूजन करें। इस जल को शिवालय में अर्पित कर दें। स्वास्थ्य लाभ होगा।अष्टमी: माँ महागौरीमंगलवार 20 अप्रैल 2021आज है सर्वार्थ सिद्धि योग और रवियोग।अष्टमी को सूर्य देव होंगे प्रसन्न और आपको देंगे वैवाहिक सुख। माँ महागौरी का विधिवत पूजन आपको वैवाहिक जीवन में आ रही बाधाओं से दिलाएगा मुक्ति,और कुँआरों का शीघ्र होगा विवाह।ध्यान मंत्र : श्वेते वृषे समारूढा श्वेताम्बरधरा शुचि:।महागौरी शुभम् दद्यान महादेव प्रमोददा॥भोग :नारियल का भोगवस्त्र: चमकीले सफेद और पीले के वस्त्र। पारिवारिक समस्या का होगा समाधान। उत्तर पश्चिमी किनारे (ईशान) पर शुद्ध जल और गुलाब जल का छिड़काव करें। बढ़ेगी लोकप्रियता। आध्यात्म और पूजन की ओर बढ़ेगा रुझान।मंत्र: ह्रीं क्लीं शूलधारिणी देव्यै ह्रीं क्लीं ; का उच्चारण करें। इस मंत्र से ऊर्ध्व और अधो दिशायें भी शांत होंगी।आज का गुरुमंत्र: सौन्दर्य सामग्री और वस्त्र माता जी को अर्पित करें। नारियल पर हल्दीका लेप लगाकर कुंकुम का टीका लगायें और माता जी को अर्पित कर दें। सौभाग्य में वृद्धि होगी, रोजगार भी मिलेगा।नवमी माँ सिद्धिदात्रीबुधवार 21 अप्रैल 2021नवमी को चंद्र देव प्रसन्न होकर देंगे मन की शांति। माँ सिद्धिदात्री का विधिवत पूजन करने से आपका कोई भी कार्य अपूर्ण नहीं रहेगा,जीवनमें आ रही सभी बाधाएं होंगी दूर।ध्यान मंत्र- सिध्दगन्धर्व यक्षाद्यैर सुरैरमरैरपि।सेव्यमाना सदा भूयात् सिध्दिदा सिध्दिदायिनी॥भोग: धान का लावा भोगवस्त्र: नारंगी और लाल रंग के वस्त्र पहने। अवसाद यानी डिप्रेशन से मिलेगी मुक्ति।ऊर्ध्व और अधो दिशायें शांत होंगी: मंत्र,- ह्रीं क्लीं शूलधारिणी देव्यै ह्रीं क्लीं का उच्चारण करें। इस मंत्र से ऊर्ध्व और अधो दिशायें शांत होंगी। रोगों से मिलेगी मुक्ति।आज का गुरुमंत्र: माता जी को एक सफेद कपड़े में सात मुट्ठी चावल बांधकर चढ़ाएं। पारिवारिक अशांति से मुक्ति मिलेगी।
- -विश्व की उत्कृष्ट एवं अत्यंत प्राचीन है भारतीय काल गणना -आचार्य पण्डित विनोद चौबेउत्तम पृथ्वी पर सृष्टिका शुभारम्भ चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को हुआ था - चैत्रेमासि जगद्ब्रह्माससर्जप्रथमेऽहनि। इस दिन सभी ग्रह मेष के आदि बिन्दु पर स्थित थे। वह संयोग 13 अप्रैल 2021 दिन मंगलवार को चैत्रशुक्ल प्रतिपदा उदयकाल में बन रहा है। इसलिए इस दिन धूमधाम से भारतीय नववर्ष मनाया जाएगा। 13 अप्रैल से महामाया भगवती दुर्गा जी की चैत्र नवरात्रि पर्व आरंभ होगी जो 21 अप्रैल 2021 बुधवार श्रीराम नवमी तक चलेगा, और नवरात्र व्रती 22 अप्रैल को पारणा किया जाएगा।हमारा भारतीय नववर्ष सृष्टि और जीव के अस्तित्व से जुड़ा है। वर्तमान श्वेतवाराह कल्प में सृष्टि आरम्भ हुये 1 अरब 95 करोड़ 58 लाख 85 हजार 122 वर्ष बीत गये हैं। 2021 में कलियुगाब्द को बीते 5122 वर्ष हो गये हैं। अत: हम सभी पृथ्वीमाता के वक्ष पर इस मधुमास के प्रथम दिवस को लोकपर्व के रूप में मनाने वाले सौभाग्यशाली लोग हैं। वृक्ष करोड़ों वर्ष पहले भी मधुमास में कोमल पत्तों से लदे होते थे, आज भी हैं पर वर्तमान हमेशा जीवन को आनन्द से भर देता है।संवत्सर 2078 मंगलमय बनेगुरु ग्रह की गति पर आधारित है संवत् की गणना। "मध्यमानेन गुरु" गत्यानुसारेण 84 वर्ष के बाद 85 वें वर्ष में एक संवत्सर (आनंद) लुप्त रहेगा जबकि संकल्पादि में वर्ष पर्यंत 'राक्षस' नामक संवत् का ही प्रयोग होगा, और तत्संबंधी शुभाशुभ फल भी राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में पड़ेगा। भारतीय काल विश्व सबसे प्राचीन एवं उत्कृष्ट काल गणना (ज्योतिष) है। यह राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने वाला पुण्य दिवस भी है। इसलिये ऐसे हमारे सनातन एवं गौरवपूर्ण नववर्ष को हमें प्रात: काल सूर्योदय के समय सूर्याघ्र्य देकर घर में भगवा ध्वज लगाएं एवं परस्पर में अभिनन्दन और शुभकामना, मंगलकामना देते हुए नववर्ष मधुर मिलन के साथ धूमधाम से मनाना चाहिये।ग्रहों का मंत्रिमण्ड"अखिल भारतीय विद्वत् परिषद के छत्तीसगढ़ प्रांत संयोजक आचार्य पण्डित विनोद चौबे ने बताया कि-संवत 2078 के इस बार राजा और मंत्री दोनों ही मंगल ग्रह है अत: राजा का मंत्रालय गृह और विदेश दोनों विभागों को अपने अन्दर में रखता है। इस वर्ष राजा मङ्गल है। यह अत्यन्त उग्र और असहिष्णु होता है। संयोग देखिए कि मङ्गलने मन्त्री पद (रक्षा और सैन्य विभाग)को भी स्वयमेव सम्भाल रखा है। अत: समस्त राजनैतिक निर्णय मङ्गल ही सम्भालेगा। युद्ध होता है तो हो पर झुकेंगे नहीं। यह वर्ष दृढ़ और डटने वाले लोगों के लिए शुभ है।सस्येश शुक्र होने से फूल और मधु आदि के उत्पादन में वृद्धि होगी। रसेश सूर्य होने से फलों में शुष्कता रहेगी। ऊपर से अच्छा सुन्दर दिखने वाला फल भीतर से सूखा मिलेगा। मेघेश मङ्गल होने के कारण वृष्टि एक समान न होकर कहीं बहुत तो कहीं कम होगी। अनावृष्टि के लक्षण अधिक दिखेंगे। किन्तु सूक्ष्म ज्योतिष गणना सर्वतोभद्र गणना के मुताबिक छत्तीसगढ़ में पर्याप्त वर्षा होगी और किसान सुखी रहेंगे।-आचार्य पण्डित विनोद चौबे, शांतिनगर भिलाई, दुर्ग, मोबाइल नंबर 9827198828
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 252
('गुरु सेवा' संबंधी एक महत्वपूर्ण सावधानी एवं मार्गदर्शन, जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी की वाणी में समझें...)
..गुरु सेवा करते हुये गुरु सेवाभिमान न लाओ। सेवाभिमान न आने पावे। तब वो असली त्यागी है।
एक राजा था। उसको वैराग्य हुआ तो वो एक महात्मा के पास गया जंगल में। जैसे जिस पोज में वो बैठा हुआ था राजा उसी पोज में भाग पड़ा। और महात्मा जी को प्रणाम किया और कहा कि हम आपके शिष्य बनना चाहते हैं। उन्होंने देखा। प्राचीनकाल में महात्माओं की ऐसी परम्परा थी तपस्वियों की, उन्होंने कहा कि भाग यहाँ से, सब छोड़कर तब आ हमारे पास। उसने कहा कि महाराज! सब छोड़ आये।
ए झूठ बोलता है! अब वो चला गया बेचारा। उन्होंने जाकर स्वयं सोचा, अरे! राजा के भेष में ही मैं आ गया। महात्मा के पास मुकुट पहन करके मैं आया, ये मुझसे गलती हो गई। एक लँगोटी लगाकर के सब फेंक-फांक करके तब गया कि महाराज! गलती हो गई। फिर देखा उन्होंने और कहा कि मैंने कहा न कि सब छोड़ कर आ। तुमने सुना नहीं। अब वो हैरान, सब कुछ तो छोड़ दिया मैंने, तो लँगोटी भी फेंककर आया, दिगम्बर।
तो अब की बार और जोर से डाँटा। उन्होंने कहा कि देख अब अगर बिना छोड़े मेरे पास आया तो दण्ड दूँगा। तूने तीन बार आज्ञा का उल्लंघन किया। ऋषि मुनि तपस्वी का दण्ड क्या? शाप। कोई भक्ति मार्ग के महापुरुष तो थे नहीं। तो राजा जाकर दूर एक पेड़ के नीचे बैठ गया और सोचने लगा कि महात्मा जी क्या चीज छोड़ने के लिये कह रहे हैं? शरीर छोड़ा नहीं जा सकता और क्या है मेरे पास? रोने लगे। उन्होंने सोचा कि अब गुरुजी नहीं अपनायेंगे तो अब शरीर रखना भी बेकार है। संसार में कुछ नहीं है, ये तो समझ ही लिया और अब छोड़ भी आये अब दोबारा जाना भी गलत है और ये शरणागति नहीं स्वीकार रहे हैं हमारी। तो फिर अब देह ही छोड़ देते हैं।
तीन चार दिन बाद गुरुजी उधर से निकले और उन्होंने कहा क्यों राजन! यहाँ कैसे बैठे हो? चुप। ओ त्यागी जी! अब भी चुप। उन्होंने कहा कि हाँ, अच्छा आजा आजा। अब तूने त्याग दिया सब कुछ। राजा होने का अभिमान भी त्यागने का मेरा आदेश था और त्यागने का भी अहंकार छोड़ो। 'मैंने सब छोड़ दिया है' - ये अहंकार भी छोड़ो। तब वो त्याग असली हुआ।
तो जो सत्कर्म करे कोई व्यक्ति, उस सत्कर्म का अहंकार न होने पावे उसको गुरुकृपा माने। उनकी कृपा से इतना हमने भगवन्नाम ले लिया, इतनी सेवा कर ली, वरना मुझसे होता भला? एक भिखारी भी अगर मुझसे माँगता कभी पैसा तो मैंने कभी एक रुपया भी नहीं दिया लाइफ में। उन्होंने कैसे करा लिया हमसे? ये कृपा रियलाइज करना। सब कुछ त्यागो और त्यागने के अहंकार को भी त्यागो। और कुछ मत त्यागो और त्यागने का या आसक्ति का अहंकार छोड़ दो तो भी त्याग है। दोनों प्रकार का त्याग है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'गुरुसेवा' पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for PDF)(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App for Videos)(दोनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 251
साधक का प्रश्न ::: शुद्ध वस्तु से प्यार व अशुद्ध वस्तु से प्यार के परिणाम में क्या अन्तर है? अलौकिक प्यार का अर्थ क्या है व किसके पास है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: शुद्ध वस्तु से जो अशुद्ध वस्तु प्यार करेगी तो वो शुद्ध हो जायेगी। वो किसी भी भाव से प्यार करे। और अगर वो अशुद्ध वस्तु से प्यार करती है तो चाहे जो भाव हो, उसका परिणाम अशुद्ध ही मिलेगा।
कृष्ण भक्त: सकामोऽपि वरोऽन्य सेवकात्खलु।निष्कामादपि तत्कामो यतो मोक्षाय कल्पते।।
शुद्ध वस्तु से प्यार करने वाला सकाम भी हो तो गोलोक जायेगा और संसार से कोई निष्काम प्रेम भी करे तो भी संसार मिलेगा। चौरासी लाख योनियाँ मिलेंगी उसी में आओ-जाओ। अरे! अनन्त पिता बनाये हम लोगों ने, अनन्त माँ बनाई, अनन्त बेटा-बेटी बनाये, अनन्त स्त्री-पति बनाये, हर जन्म में बनाते ही हैं, कहाँ है वो? बड़ी-बड़ी डींग हाँकते थे - ये हमारा बेटा है, ये हमारी बीवी है, ये हमारी माँ है। काहे की बीवी, बेटा, माँ? सब मर गये, अपने-अपने कर्म के अनुसार गये। एक नरक गया, एक स्वर्ग गया, एक मृत्युलोक में आया, वो किसी का बेटा बना, वो किसी की बीवी बनी फिर दुबारा। केवल भगवान् का नाता ही ऐसा नाता है जो सनातन है और सब नाते क्षणिक हैं, नश्वर हैं। उसका परिणाम दु:ख है, वर्तमान में भी और भविष्य में भी।
एक पिता एक बेटे से कहता है, कि बेटा! पानी पिला दे और बेटा दौड़कर जाता है, तो पिता कहता है - 'शाबाश! कितना बढिय़ा बेटा है हमारा, हम तो बड़े लकी हैं।' दस मिनट बाद फिर दोबारा पिता कहता है बेटे से - 'जरा चश्मा ला दे!' वो नहीं उठता। 'मैंने कहा वो मेज पर चश्मा रखा है ला दे।' फिर भी नहीं उठा। 'राक्षस पैदा हुआ है।' लो! अभी श्रवण कुमार था, अभी राक्षस हो गया।
संसार वालों का काम कर दो, उनकी गुलामी कर दो, तो आप बड़े अच्छे हो। बीवी बड़ी अच्छी, पिता बड़ा अच्छा, माँ बड़ी अच्छी। काम न करो उनका तो सब बुरे हैं, गोलियाँ चल जाती हैं, जहर दे देते हैं एक दूसरे को, मर्डर कर देते हैं, तलाक दे देते हैं, ये सब संसार में होता है। और दावा ये करते हैं लोग कि बेटा! हम तुमसे प्यार करते हैं। प्यार! तुम प्यार शब्द का अर्थ नहीं जानते हो, क्या प्यार करोगे? तुम क्या जानो प्यार क्या होता है?
'प्यार' तो अलौकिक वस्तु है। ये भगवान् और महापुरुष के पास है। तुम तो प्यार के भूखे हो, भिखारी हो। पिता से प्यार माँग रहे हो, माँ से प्यार माँग रहे हो, बीवी से माँग रहे हो, बेटे से माँग रहे हो। तुम क्या प्यार दोगे किसी को? जिसको आनन्द अभी मिला ही नहीं है, दूसरे को क्या देगा वो? एक गरीब अनाउंस कर दे कि जो व्यक्ति जो माँगेगा हम देंगे, कल सबेरे आ जाएं। भीड़ इकट्ठी हो जायेगी। वो कह देगा मेरे पास जो है वो ले लो। क्या है? कुछ नहीं है। तुमने तो अनाउंस किया था जो माँगेगा। हाँ-हाँ तो जो मेरे पास है वो माँगो, हम दे देंगे। कुछ है ही नहीं मेरे पास, तो हम क्या देंगे? हाँ, सब भिखारी हैं आनन्द के, प्रेम के और वह है नहीं किसी के पास। धोखा सबको है। एक दूसरे से माँग रहे हैं। अनेक चार सौ बीस करके उसको बेवकूफ बना रहे हैं, लेकिन वो बेचारा क्या देगा? है ही नहीं उसके पास, वो तो तुमसे सुख चाहता है । गोपियों का प्रेम शुद्ध पर्सनैलिटी के प्रति था, इसलिये उनको शुद्ध फल मिला।
(प्रवचनकर्ता : जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
00 सन्दर्भ : 'प्रश्नोत्तरी' भाग - 2 (पृष्ठ 171-173)00 सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।