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पितृ पक्ष सितंबर महीने में प्रारंभ होंगे। हिंदू पंचांग के अनुसार, अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि से पितृपक्ष आरंभ होंगे। पितृ पक्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि से कुल 16 दिनों तक मनाए जाते हैं। इस साल पितृ पक्ष 20 सितंबर से शुरू होकर 6 अक्टूबर तक रहेंगे। मान्यता है कि पितृ पक्ष में पितरों से संबंधित कार्य करने पर उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। हिंदू धर्म में पितृ गण देवतुल्य होते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितृपक्ष में पूर्वजों का तर्पण नहीं करने पर पितृ दोष लगता है। पितृ पक्ष में श्राद्ध अमावस्या तिथि पर की जाती है। पितृ पक्ष में मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है। अगर किसी मृत व्यक्ति की तिथि ज्ञात न हो तो ऐसी स्थिति में अमावस्या तिथि पर श्राद्ध किया जाता है। इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है।
पितृ पक्ष की महत्वपूर्ण तिथियां-
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल पितृ पक्ष 20 सितंबर से शुरू होंगे, जो कि 6 अक्टूबर को समाप्त होंगे। इस साल 26 सितंबर को पितृ पक्ष की कोई तिथि नहीं है।
पितृ पक्ष 2021 की तिथियां
पूर्णिमा श्राद्ध – 20 सितंबर
प्रतिपदा श्राद्ध – 21 सितंबर
द्वितीया श्राद्ध – 22 सितंबर
तृतीया श्राद्ध – 23 सितंबर
चतुर्थी श्राद्ध – 24 सितंबर
पंचमी श्राद्ध – 25 सितंबर
षष्ठी श्राद्ध – 27 सितंबर
सप्तमी श्राद्ध – 28 सितंबर
अष्टमी श्राद्ध- 29 सितंबर
नवमी श्राद्ध – 30 सितंबर
दशमी श्राद्ध – 1 अक्तूबर
एकादशी श्राद्ध – 2 अक्टूबर
द्वादशी श्राद्ध- 3 अक्टूबर
त्रयोदशी श्राद्ध – 4 अक्टूबर
चतुर्दशी श्राद्ध- 5 अक्टूबर
श्राद्ध विधि
किसी सुयोग्य विद्वान ब्राह्मण के जरिए ही श्राद्ध कर्म (पिंडदान, तर्पण) करवाना चाहिए।
श्राद्ध कर्म में पूरी श्रद्धा से ब्राह्मणों को तो दान दिया ही जाता है साथ ही यदि किसी गरीब, जरूरतमंद की सहायता भी आप कर सकें तो बहुत पुण्य मिलता है।
इसके साथ-साथ गाय, कुत्ते, कौवे आदि पशु-पक्षियों के लिए भी भोजन का एक अंश जरूर डालना चाहिए।
यदि संभव हो तो गंगा नदी के किनारे पर श्राद्ध कर्म करवाना चाहिए। यदि यह संभव न हो तो घर पर भी इसे किया जा सकता है। जिस दिन श्राद्ध हो उस दिन ब्राह्मणों को भोज करवाना चाहिए। भोजन के बाद दान दक्षिणा देकर भी उन्हें संतुष्ट करें।
श्राद्ध पूजा दोपहर के समय शुरू करनी चाहिए. योग्य ब्राह्मण की सहायता से मंत्रोच्चारण करें और पूजा के पश्चात जल से तर्पण करें। इसके बाद जो भोग लगाया जा रहा है उसमें से गाय, कुत्ते, कौवे आदि का हिस्सा अलग कर देना चाहिए। इन्हें भोजन डालते समय अपने पितरों का स्मरण करना चाहिए. मन ही मन उनसे श्राद्ध ग्रहण करने का निवेदन करना चाहिए। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 382
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने विभिन्न धर्मानुयायियों को दिव्य प्रेम का संदेश देकर सबको एक सूत्र में बाँधकर आपसी झगड़े समाप्त करके श्रीकृष्ण भक्तिरूपी एक सार्वभौमिक मार्ग का प्रतिपादन किया जो सभी धर्मानुयायियों को मान्य है। 'जगदगुरु कृपालु परिषत' के सभी केन्द्रों में विश्वबन्धुत्व का सुन्दर स्वरूप देखने को मिलता है, जहाँ सभी जाति, सभी सम्प्रदाय, अनेक प्रान्तों, अनेक देशों के लोग पूर्ण समर्पण और त्याग के साथ सेवा करते हुये दिखाई देते हैं। विश्वशान्ति के हेतु विश्वबन्धुत्व ही आज की प्रमुख माँग है। आचार्य श्री के प्रवचन तथा सिद्धान्त इस ओर हमारा मार्ग प्रशस्त करते हैं। आइये ऐसे समन्वयवादी जगदगुरु के द्वारा प्रदत्त तत्वज्ञान का मनन करें....
★ 'जगदगुरुत्तम-ब्रज साहित्य'(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित साहित्य/ग्रन्थ)
राधे नाम पुकारत राधे, बरसावति जलधार।मोहिं 'कृपालु' अब भय काको जब, श्री राधे रखवार।।
भावार्थ ::: किशोरी जी दीनों के लिये इतनी सरल हैं कि जब भी दीन, आर्त भाव से 'राधे' कहकर उन्हें पुकारता है तब किशोरी जी भी अधीर होकर अपनी आँखों से आँसू बहाने लगती हैं। 'श्री कृपालु जी' कहते हैं कि जब ऐसी ही सरल, सुकुमार, अलबेली सरकार वृषभानुदुलार (श्रीराधा) हमारी रखवार हैं तब मुझे डर ही किसका है।
• संदर्भ ग्रन्थ ::: प्रेम रस मदिरा, सिद्धान्त-माधुरी, पद संख्या 102 का अंश----------------
★ 'जगदगुरुत्तम-श्रीमुखारविन्द'(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा निःसृत प्रवचन का अंश)
...पहले साधन करके हम अन्तःकरण शुद्ध करेंगे, तब भगवान् स्वरूप-शक्ति देंगे गुरु के द्वारा, तब अन्तःकरण दिव्य होगा। इन्द्रियाँ भी दिव्य हो जायेंगी। तब फिर वो नित्य सिद्ध प्रेम भगवत्कृपा या गुरु कृपा से मिलेगा, उसका दाम नहीं दे सकते हम। हमारी इन्द्रियाँ, हमारा मन, हमारी बुद्धि मैटेरियल है, मायिक है, मायिक साधन से दिव्य वस्तु नहीं मिल सकती। कोई भी ऐसी साधना नहीं है, तपश्चर्या नहीं है, जिससे भगवत्प्रेम मिल जाय। लेकिन भगवत्प्रेम भगवत्कृपा, गुरु-कृपा से जो मिलता है उसके लिए बर्तन चाहिए। तो बर्तन बनाने की ड्यूटी जीव की है। इसलिये साधन आवश्यक है। वेद से लेकर रामायण तक भगवान् और संत सब कहते हैं न, साधना करो, भक्ति करो। गीता हो, भागवत हो, हर ग्रन्थ में भरा पडा है। क्यों कहते हैं? इसलिये कि तुम्हारी ड्यूटी है अन्तःकरण का पात्र बनाना। उसमें सामान जो दिया जायेगा वो फ्री में, उसका दाम तुम दे भी नहीं सकते और लिया भी नहीं जायेगा। फ्री में भगवत्प्रेम मिलेगा। गुरु देगा, लेकिन पात्र बनाना हमारी ड्यूटी है। इसलिये साधना से साध्य मिलेगा, ऐसा कहा जाता है।
• संदर्भ पुस्तक ::: प्रश्नोत्तरी भाग – 3, पृष्ठ संख्या 67 एवं 68
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - महान ग्रह शुक्र 5 सितंबर की मध्यरात्रि 12 बजकर 48 मिनट पर अपनी नीच राशि कन्या की यात्रा समाप्त करके स्वयं की राशि तुला में प्रवेश कर रहे हैं। इस राशि पर ये 2 अक्टूबर सुबह 9 बजकर 44 मिनट तक रहेंगे उसके बाद वृश्चिक राशि में प्रवेश कर जाएंगे। जिन जातकों की जन्मकुंडलियों में ये केंद्र और त्रिकोण में भ्रमण कर रहे होंगे उनके लिए तो किसी वरदान से कम नहीं है। अपनी राशि में पहुचकर ये पञ्चमहापुरुष योगों में से महान मालव्य योग का निर्माण करेंगे। जिनकी जन्मकुंडली में अशुभ भाव में रहेंगे उनके लिए कम फलदाई रहेंगे। शुक्र विलासितापूर्ण जीवन, ऐश्वर्य, जैविक संरचना, फिल्म उद्योग, भारी उद्योग कॉस्मेटिक, केंद्र अथवा राज्य सरकार के विभागों में उच्चपद दिलाने वाले ग्रह हैं। ये वृषभ और तुला राशि के स्वामी हैं। कन्या राशि इनकी नीच राशि तथा मीन राशि उच्च राशिगत संज्ञक है। तुला राशि में इनके प्रवेश का अन्य राशियों पर कैसा प्रभाव पड़ेगा इसका ज्योतिषीय विश्लेषण करते हैं।मेष राशिराशि से सप्तम दाम्पत्य भाव में गोचर कर रहे शुक्र आपके लिए बेहतरीन सफलता दायक रहेंगे। कार्य व्यापार में उन्नति तो होगी ही सोची समझी सभी रणनीतियां भी कारगर सिद्ध होगी। केंद्र अथवा राज्य सरकार के विभागों में प्रतीक्षित पड़े कार्यो का निपटारा होगा। शादी विवाह से संबंधित वार्ता सफल रहेगी। दांपत्य जीवन में भी मधुरता आएगी। अपनी योजनाओं को गोपनीय रखते हुए कार्य करेंगे तो अधिक सफल रहेंगे। नारी शक्ति के लिए समय और बेहतर रहेगा।वृषभ राशिराशि से छठे शत्रु भाव में गोचर कर रहे शुक्र का प्रभाव काफी मिलाजुला रहेगा। किसी न किसी कारण से पारिवारिक कलह एवं उदासीनता का सामना करना पड़ सकता है। पढ़े-लिखे गुप्त शत्रुओं से सावधान रहें। झगड़े विवाद तथा कोर्ट कचहरी के मामले भी आपस में सुलझा लेना समझदारी होगी। इस अवधि के मध्य किसी को भी अधिक धन उधार के रूप में देने से बचें। विदेशी कंपनियों में सर्विस अथवा नागरिकता के लिए किया गया प्रयास सफल रहेगा।मिथुन राशिराशि से पंचम विद्या भाव में गोचर करते हुए शुक्र का प्रभाव आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं है। विद्यार्थियों एवं प्रतियोगिता में बैठने वाले छात्रों के लिए तो आशातीत एवं अप्रत्याशित सफलता मिलेगी। प्रेम संबंधी मामलों में प्रगाढ़ता आएगी। प्रेम विवाह भी करना चाह रहे हों तो अवसर पर अनुकूल रहेगा संतान के दायित्व की पूर्ति होगी। नव दंपति के लिए संतान प्राप्ति एवं प्रादुर्भाव के भी योग बनेंगे। परिवार के वरिष्ठ सदस्यों एवं बड़े भाइयों से सहयोग के योग।कर्क राशिराशि से चतुर्थ सुख भाव में गोचर करते हुए शुक्र आपको बेहतरीन कामयाबियां दिलाएंगे। कोई भी बड़े से बड़ा कारण कार्य आरंभ करना चाहें अथवा किसी नए अनुबंध पर हस्ताक्षर करना चाहें तो अवसर अनुकूल रहेगा। महिलाओं के लिए तो ग्रह गोचर और भी बेहतर रहेगा। मकान वाहन खरीदने का सपना पूर्ण हो सकता है विलासिता पूर्ण वस्तुओं में भी खर्च होगा। माता पिता के स्वास्थ्य के प्रति सावधान रहें। मित्रों तथा संबंधियों से भी सुखद समाचार प्राप्ति के योग।सिंह राशिराशि से तृतीय पराक्रम भाव में गोचर करते हुए शुक्र आपको बहु मुखी प्रतिभा का धनी बनाएंगे। साहस-पराक्रम की वृद्धि तो होगी ही लिए गए निर्णय और किए गए कार्यों की सराहना भी होगी। धर्म एवं अध्यात्म के प्रति रुचि बढ़ेगी। एक बार जो ठान लेंगे उसे पूरा करके ही छोड़ेंगे। यात्रा देशाटन का लाभ मिलेगा। किसी भी तरह की विदेशी कंपनी में सर्विस के लिए अथवा विदेशी नागरिकता के लिए आवेदन करना चाहें तो अवसर अनुकूल रहेगा। सामाजिक पद प्रतिष्ठा बढ़ेगी।कन्या राशिराशि से द्वितीय धन भाव में गोचर करते हुए शुक्र आपका आर्थिक पक्ष मजबूत करेंगे। काफी दिनों का दिया गया धन भी वापस मिलने की उम्मीद। अपनी ऊर्जा शक्ति का पूर्ण उपयोग करते हुए कार्य करेंगे तो अधिक सफल रहेंगे। जमीन जायदाद से जुड़े मामलों का निपटारा होगा। अपनी वाणी कुशलता के बल पर कठिन हालात को भी आसानी से नियंत्रित कर लेंगे कोर्ट कचहरी से जुड़े मामले भी बाहर ही सुलझाएं। महिलाओं के लिए ग्रह-गोचर और अनुकूल रहेगा।तुला राशिराशि में गोचर करते हुए शुक्र सभी संकल्प को पूर्ण करने में मदद करेंगे। शासन सत्ता का सहयोग मिलेगा। राजनीति में भी अपनी किस्मत आजमाना चाहें तो अवसर अनुकूल रहेगा। विद्यार्थियों एवं प्रतियोगिता में बैठने वाले छात्रों के लिए भी समय बेहतर रहेगा। संतान की चिंता में कमी आएगी। नव दंपति के लिए संतान प्राप्ति एवं प्रादुर्भाव के भी योग। दांपत्य जीवन में मधुरता आएगी। विवाह संबंधित वार्ता सफल रहेगी। परिवार में मांगलिक कार्यों का सुअवसर आएगा।वृश्चिक राशिराशि से द्वादश व्यय भाव में गोचर करते हुए शुक्र का प्रभाव बड़ा अप्रत्याशित रहेगा, कई बार कार्य होते-होते अंतिम समय में रुक जाएगा किंतु हताश न हो अंततः सफलता आपको ही मिलेगी। विलासिता पूर्ण वस्तुओं के क्रय पर अधिक खर्च होगा। प्रेम संबंधी मामलों में उदासीनता रहेगी। इसलिए कार्य पर ही ध्यान दें तो बेहतर रहेगा। स्वास्थ्य विशेष करके बाईं आंख से संबंधित समस्या से सावधान रहें। मित्रों अथवा संबंधियों से अप्रिय समाचार प्राप्त के योग।धनु राशिराशि से एकादश लाभ भाव में गोचर करते हैं शुक्र का प्रभाव अच्छा ही रहेगा जो भी संकल्प लेंगे उसे पूर्ण करके ही छोड़ेंगे। यह समय आपके लिए श्रेष्ठ फलदाई रहेगा इसलिए बड़े से बड़ा कार्य आरंभ करना हो, व्यापार आरंभ करना हो अथवा किसी नए अनुबंध पर हस्ताक्षर करना हो तो निर्णय लेने में विलंब न करें। शादी विवाह से संबंधित वार्ता सफल रहेगी। विद्यार्थियों एवं प्रतियोगिता में बैठने वाले छात्रों के लिए समय और अनुकूल रहेगा। सरकारी सर्विस के लिए प्रयास करें।मकर राशिराशि से दशम कर्म भाव में गोचर करते हुए शुक्र का प्रभाव आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं है। सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ेगी। नौकरी में भी स्थान परिवर्तन के लिए प्रयास करना चाहें तो अवसर अनुकूल रहेगा। जमीन-जायदाद से जुड़े मामलों का निपटारा होगा। कोर्ट कचहरी के मामले भी आपके पक्ष में आने के संकेत। चुनाव से संबंधित निर्णय लेना चाह रहे हो तो भी अवसर अनुकूल है। ग्रह गोचर पूर्णतः आपके लिए लाभदायक रहेगा इसलिए जो चाहें जैसा चाहें करें।कुंभ राशिराशि से नवम भाग्य भाव में गोचर करते हुए शुक्र का प्रभाव धर्म एवं आध्यात्म के प्रति उन्नति देगा। विदेशी मित्रों तथा संबंधियोंसे सहयोग के योग। विद्यार्थियों को भी यदि विदेश में पढ़ाई करने के लिए प्रयास करना हो तो अवसर अनुकूल रहेगा। विदेशी नागरिकता के लिए किया गया प्रयास सफल रहेगा। धार्मिक ट्रस्टों तथा अनाथालय आदि में बढ़-चढ़कर दान-पुण्य करेंगे। केंद्र अथवा राज्य सरकार के विभागों में किसी टेंडर का आवेदन करना चाहें तो ग्रह गोचर अनुकूल रहेंगे।मीन राशिराशि से अष्टम आयु भाव में गोचर करते हुए शुक्र का प्रभाव काफी मिलाजुला रहेगा। आर्थिक उतार-चढ़ाव की अधिकता रहेगी। स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा किंतु आपके लिए किसी बड़े सामाजिक सम्मान अथवा सरकारी पुरस्कार की घोषणा हो सकती है। महिलाओं के लिए समय अपेक्षाकृत बेहतर रहेगा। गुप्त शत्रुओं से बचें। कार्यक्षेत्र में भी झगड़े विवाद से दूर रहें और कोर्ट कचहरी से सम्बंधित मामले भी बाहर ही सुलझा लेना समझदारी होगी।
- ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक ग्रह निरंतर अपनी राशि में परिवर्तन करते हैं। एक विशेष अवधि और चाल के अनुसार ये ग्रह एक राशि से दूसरी राशि में जाते हैं। इन ग्रहों की हलचल से ही सभी राशियां प्रभावित होती हैं। इसी कड़ी में सितंबर माह 2021 में 5 ग्रह अपनी राशि बदलेंगे। इन ग्रहों में बुध, गुरु सूर्य, मंगल और शुक्र ग्रह शामिल हैं। 6 सितंबर को दो ग्रह अपनी राशियां बदलेंगे। इनमें शुक्र और मंगल ग्रह शामिल हैं। जहां शुक्र अपनी स्वराशि तुला में प्रवेश करेगा, तो वहीं मंगल कन्या राशि में गोचर करेगा। इसके बाद 14 सितंबर को गुरु का गोचर होगा, जो कि एक महत्वपूर्ण ग्रह परिवर्तन है। देवगुरु बृहस्पति इस दिन मकर राशि में आएंगे। फिर 17 सितंबर को सूर्य देव कन्या राशि में प्रवेश करेंगे और अंत में बुध देव 22 सितंबर को तुला राशि में आएंगे, जहां ये शुक्र ग्रह के साथ युति करेंगे। ग्रहों की इस चाल का प्रभाव सभी राशियों पड़ेगा। सितंबर माह में पांच राशि के जातकों को शानदार परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।वृष राशिवृष राशि के जातकों के लिए सितंबर का महीना शानदार बीत सकता है। ज्योतिषीय गणना के मुताबिक ग्रहों की स्थिति आपके अनुकूल होगी। सितंबर में भाग्य भी आपका साथ देगा। इस मास आप किसी नए कार्य का शुभारंभ कर सकते हैं। जहां तक आपकी आर्थिक स्थिति का सवाल है तो उसमें भी ग्रोथ होगा। यदि आप निवेश करेंगे तो उसमें आपको फायदा हो सकता है।मिथुन राशिमिथुन राशि के जातकों के लिए सितंबर मास अच्छा बीतेगा। इस माह में आपकी खुशियों में बढ़ोतरी होगी और आपका करियर भी उछाल मारेगा। तरक्की के पूरे आसार हैं। इस महीने में आपका तनाव भी काफी हद तक कम होगा। मानसिक और शारीरिक रूप से आप प्रसन्न दिखाई देंगे।सिंह राशिसिंह राशि के जातकों के लिए सितंबर माह कई खुशियां लेकर आ रहा है। इस माह में आपके बिगड़े हुए कार्य पूरे होंगे। परेशानियां कम होंगी और लाभ के योग बनेंगे। इस महीने आपको कोई शुभ समाचार प्राप्त हो सकता है। आर्थिक स्थिति बेहतर होगी। लाभ के साधनों में वृद्धि के प्रबल संकेत हैं।कन्या राशिकन्या राशि वालों के लिए यह माह किसी वरदान से कम नहीं होगा। आपके बिगड़े हुए कार्य बनेंगे। यदि आप इस महीने आर्थिक निवेश करेंगे तो आपको उसमें भी लाभ होगा। विद्यार्थियों के लिए भी यह माह भाग्यशाली साबित हो सकता है। प्रोफेशनल और पर्सनल दोनों ही लाइफ में आपको बेहतर परिणाम प्राप्त होंगे।वृश्चिक राशिवृश्चिक राशि के जातकों के लिए सितंबर का महीना शुभ साबित हो सकता है। इस अवधि में आपके घर पर कोई मंगल कार्य संपन्न हो सकता है। यह महीना आपके लिए काफी लाभ देने वाला रहेगा। रिश्तेदारों से आपके संबन्ध बेहतर होंगे और कहीं घूमने का प्लान बन सकता है। कार्य में आ रही बाधाएं दूर होंगी।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 381
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने श्रीराधाकृष्णभक्तिपरक अनेकानेक ब्रजरस-साहित्य की रचना की है। इन कृतियों में उन्होंने श्रीराधाकृष्ण की परम निष्काम भक्ति को ही स्थान दिया है तथा प्रमुखतः श्रीयुगल लीलाओं के साथ श्रीकृष्ण के प्रति वात्सल्य एवं सख्य भावयुक्त लीला-पदों एवं संकीर्तनो की भी रचना की है, जो कि जीवों के हृदय में सहज में ही प्रेम तथा उनके प्रति अपनत्व की भावना का सृजन करते हैं तथा उसमें उत्तरोत्तर वृद्धि करते जाते हैं। आइये 'श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी' से पूर्व उन्हीं के द्वारा रचित ग्रंथ; युगल रस में वर्णित एक संकीर्तन के माध्यम से श्रीकृष्ण का रूपध्यानपूर्वक चिंतन करें। यहाँ उस संकीर्तन का केवल भावार्थ वर्णन है :::
...भक्त कहता है, श्रीकृष्ण के समान तो केवल श्रीकृष्ण ही हैं। माता यशोदा ने कन्हैया को जन्म दिया वस्तुतः वह कृष्ण अनोखा ही था।
उस यशोदा-नन्दन का दिव्य वपु अलसी पुष्प के समान श्याम वर्ण था। वह कन्हैया अपने अलौकिक रुप से कामदेव के मन को भी हरण करता था। कन्हैया के प्रत्येक रोम से ब्रज-रस की वर्षा होती थी, रसिक-जन उस मधुर रस का पान करते थे।
कन्हैया के शीश पर अनोखा मोर-मुकुट सुशोभित था। यशोदा के अनुपम शिशु की घुँघराली लट मुख-चन्द्र को घेरे रहती थीं। साक्षात रस से भी अधिक रसपूर्ण नेत्र चंचलता से भी चंचल थे। रत्नों से जड़े हुये कुंडल कानों में शोभा पाते थे। नासिका बेसर से छवि पा रही थी। उस अनोखे शिशु की मन्द-मन्द गति चपल चितवनि, एवं मुस्कान आश्चर्य से परिपूर्ण थीं। युगल स्कन्ध दुपट्टे से आच्छादित थे।
लकुटी कर में शोभा पा रही थी। कण्ठ कौस्तुभ मणि से देदीप्यमान था। हाथों में कंकणों की दमक थी। सूक्ष्म कटि प्रान्त किंकिणी की जगमगाहट से परिपूर्ण था। कन्हैया के चरण-प्रान्त नूपुर की छूम छननन ध्वनि से झंकृत थे। ग्रीवा कमर एवं चरण की तिरछी भंगिमा रसिकों के मन को मोहती थी। अरुण अधरों पर मुरली विराजमान थी। श्री कृपालु जी कहते हैं कि ऐसे रस सागर कृष्ण को सखियाँ प्रेम-वश काला कहती हैं।
(रचयिता : जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
०० स्त्रोत : 'युगल रस' संकीर्तन पुस्तक, कीर्तन संख्या 42०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - Happy Shri Krishna Janmashtami(भगवान श्रीकृष्ण के प्राकट्योत्सव 'जन्माष्टमी' तथा ब्रजधाम में इस आनंदोत्सव पर मनाये जा रहे 'नन्दोत्सव' महापर्व की हार्दिक शुभकामनायें!!..)
आज श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी है। आप सभी श्रद्धालु पाठक समुदाय को भगवान श्रीकृष्ण के प्राकट्य-उत्सव की अनंत-अनंत शुभकामनायें. आइये जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित इस पद के भाव के माध्यम से हम सभी ब्रजधाम के गोकुल ग्राम में नंद-यशोदा के महल चलें और बधाई और उल्लास का आनंद देखें और स्वयं भी भाव-मन से इस नंद-महामहोत्सव में सम्मिलित होकर आनंद-रस में भींग जायँ....
नंद-महर-घर बजत बधाई।जायो पूत आजु नँदरानी, नाचत गावत लोग लुगाई।दूध दही माखन की काँदौ, सब मिलि भादौं मास मचाई।बाजत झाँझ मृदंग उपंगहिं, वीना वेनु शंख, शहनाई।छिरकत चोवा चंदन थिरकत, करि जयकार कुसुम बरसाई।शिव समाधि बिसराइ भजे ब्रज, देखन के मिस कुँवर कन्हाई।याचक भये अयाचक सिगरे, हम 'कृपालु' धनि ब्रजरज पाई।।
भावार्थ : गोकुल में नन्दराय बाबा के घर में श्रीकृष्ण के अवतार लेने के उपलक्ष्य में बधाई बज रही है। यद्यपि श्रीकृष्ण का अवतार मथुरा में लीला-रुप से देवकी के गर्भ से हुआ था एवं अर्धरात्रि के ही समय वसुदेव श्रीकृष्ण को उनकी योगमाया के सहारे यशोदा के पास सुला आये, एवं उसी समय यशोदा के गर्भ से उत्पन्न योगमाया को अपने साथ ले आये थे, किन्तु प्रकट रुप से यह रहस्य यशोदा भी नहीं जानती थी. केवल वसुदेव, देवकी ही जानते थे. अतएव समस्त गोकुल ग्रामवासियों को यही ज्ञान रहा कि आज रात को यशोदा के ही गर्भ से श्रीकृष्ण जन्म हुआ है. समस्त गोकुल के नर-नारी नाचते-गाते हुये आनंद विभोर होकर कह रहे हैं कि आज नन्दरानी के लाल हुआ. भादों के महीने में कृष्ण-पक्ष की नवमी तिथि पर समस्त नर-नारियों ने दूध, दही, मक्खन आदि को छिड़कते हुये सारे गोकुल में कीचड़-ही-कीचड़ कर दी. झाँझ, मृदंग, उपंग, वीणा, मुरली, शंख, शहनाई आदि विविध प्रकार के बाजे बजने लगे. चोवा, चंदन आदि सुगंधित द्रव्यों को एक दूसरे पर छिड़कते हुये नाच-नाचकर पुष्प-वर्षा करते हुये कन्हैया की जयकार करने लगे. शंकर जी भी अपनी निर्विकल्प समाधि भुलाते हुये अपने इष्टदेव, प्रेमावतार यशोदा के लाल कुँवर कन्हैया के दर्शन के लिये शिवलोक से भागे-भागे गोकुल चले आये. जिसने जो कुछ भी माँगा उस याचक को वही दिया गया। 'श्री कृपालु जी' कहते हैं कि जिनको बड़ी-बड़ी चीजें मिली वह अपनी जानें, हम तो ब्रज की धूल ही पाकर कृतार्थ हो गये.
०० पद स्त्रोत ::: प्रेम रस मदिरा ग्रंथ, श्रीकृष्ण बाल लीला माधुरी, पद संख्या०० रचयिता ::: भक्तियोगरसावतार जगदगुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं, क्योंकि यह दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिवस माना जाता है। श्रीकृष्ण के बारे में कहा जाता है कि उनकी 16 हजार रानियां थीं। इस संबंध में कई कथाएं प्रचलित हैं।पौराणिक कथाओं के मुताबिक सबसे पहले कृष्ण ने रुक्मिणी का हरण कर उनसे विवाह किया था। बताया जाता है कि एक दिन अर्जुन को साथ लेकर भगवान कृष्ण वन विहार के लिए निकले। जिस वन में वे विहार कर रहे थे वहां पर सूर्य पुत्री कालिंदी, श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने की कामना से तप कर रही थी। कालिंदी की मनोकामना पूर्ण करने के लिए श्रीकृष्ण ने उसके साथ विवाह कर लिया। फिर एक दिन श्रीकृष्ण उज्जयिनी की राजकुमारी मित्रबिन्दा को स्वयंवर से वर लाए। उसके बाद श्री कृष्ण ने कौशल के राजा नग्नजित के सात बैलों को एक साथ नाथ कर उनकी कन्या सत्या से विवाह किया। उसके बाद उन्होंने कैकेय की राजकुमारी भद्रा से विवाह हुआ। भद्रदेश की राजकुमारी लक्ष्मणा भी कृष्ण को चाहती थी, लेकिन उनका परिवार कृष्ण से विवाह के लिए राजी नहीं था तब लक्ष्मणा को श्रीकृष्ण अकेले ही हरकर ले आए। इस तरह कृष्ण की आठ पत्नियां हुईं- रुक्मिणी, जाम्बवन्ती, सत्यभामा, कालिंदी, मित्रबिन्दा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा। इन 8 पटरानियों अष्टा भार्या कहा जाता था। इनसे श्रीकृष्ण के 80 पुत्र हुए हैं।1. श्रीकृष्ण-रुक्मिणी के पुत्रों के नाम- प्रद्युम्न, चारुदेष्ण, सुदेष्ण, चारुदेह, सुचारू, चरुगुप्त, भद्रचारू, चारुचंद्र, विचारू और चारू।2.जाम्बवती-कृष्ण के पुत्रों के नाम- साम्ब, सुमित्र, पुरुजित, शतजित, सहस्त्रजित, विजय, चित्रकेतु, वसुमान, द्रविड़ और क्रतु।3.सत्यभामा-कृष्ण के पुत्रों के नाम- भानु, सुभानु, स्वरभानु, प्रभानु, भानुमान, चंद्रभानु, वृहद्भानु, अतिभानु, श्रीभानु और प्रतिभानु।4.कालिंदी-कृष्ण के पुत्रों के नाम- श्रुत, कवि, वृष, वीर, सुबाहु, भद्र, शांति, दर्श, पूर्णमास और सोमक।5.मित्रविन्दा-श्रीकृष्ण के पुत्रों के नाम- वृक, हर्ष, अनिल, गृध्र, वर्धन, अन्नाद, महांस, पावन, वह्नि और क्षुधि।6.लक्ष्मणा-श्रीकृष्ण के पुत्रों के नाम- प्रघोष, गात्रवान, सिंह, बल, प्रबल, ऊध्र्वग, महाशक्ति, सह, ओज और अपराजित।7.सत्या-श्रीकृष्ण के पुत्रों के नाम- वीर, चन्द्र, अश्वसेन, चित्रगुप्त, वेगवान, वृष, आम, शंकु, वसु और कुंति।8.भद्रा-श्रीकृष्ण के पुत्रों के नाम- संग्रामजित, वृहत्सेन, शूर, प्रहरण, अरिजित, जय, सुभद्र, वाम, आयु और सत्यक।किसतरह हुई श्रीकृष्ण की 16 हजार रानियांपौराणिक कथाओं के मुताबिक एक दिन देवराज इंद्र ने भगवान कृष्ण को बताया कि प्रागज्योतिषपुर के दैत्यराज भौमासुर के अत्याचार से देवतागण त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। इंद्र की प्रार्थना स्वीकार कर के श्रीकृष्ण अपनी प्रिय पत्नी सत्यभामा को साथ लेकर गरुड़ पर सवार हो प्रागज्योतिषपुर पहुंचे। वहां पहुंचकर भगवान कृष्ण ने सत्यभामा की सहायता से सबसे पहले मुर दैत्य सहित मुर के छह पुत्र- ताम्र, अंतरिक्ष, श्रवण, विभावसु, नभश्वान और अरुण का संहार किया। दैत्य के वध हो जाने का समाचार सुन भौमासुर अपने सेनापतियों और दैत्यों की सेना को साथ लेकर युद्ध के लिए निकला। भौमासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया और घोर युद्ध के बाद अंत में कृष्ण ने सत्यभामा की सहायता से उसका वध कर डाला। इस तरह भौमासुर को मारकर श्रीकृष्ण ने उसके पुत्र भगदत्त को अभयदान देकर उसे प्रागज्योतिष का राजा बनाया। भौमासुर के द्वारा हरण कर लाई गईं 16 हजार कन्याओं को श्रीकृष्ण ने मुक्त कर दिया। ये सभी अपहृत नारियां थीं या फिर भय के कारण उपहार में दी गई थीं अन्यथा किसी और माध्यम से उस कारागार में लाई गई थीं। सामाजिक मान्यताओं के चलते भौमासुर द्वारा बंधक बनकर रखी गई इन नारियों को कोई भी अपनाने को तैयार नहीं था, तब अंत में श्रीकृष्ण ने सभी को आश्रय दिया और उन सभी कन्याओं ने श्रीकृष्ण को पति रूप में स्वीकार किया। इस तरह से श्रीकृष्ण की 16 हजार रानियां हुईं।
- हम सोते समय सपने देखते हैं। ये सपने अच्छे और बुरे दोनों तरह के होते हैं। कई सपने बेहद डरावने, तो कई सपने हसीन होते हैं। सपने महज सपने नहीं होते हैं बल्कि, स्वप्न शास्र के अनुसार, इन सभी सपनों का मतलब होता है। ये सपने हमें भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में बताते हैं। ये सपने शुभ और अशुभ दोनों प्रकार की घटनाओं के बारे में बताते हैं। स्वप्न शास्त्र के मुताबिक यदि आपको सपने में कुछ विशेष चीजें दिख जाएं या यू कहें की आपके सपने वे चीजें आ जाएं तो ऐसा समझा जाता है कि आपकी आर्थिक स्थिति पलटने वाली है। कुछ विशेष तरह के सपने इस बात का संकेत करते हैं कि निकट भविष्य में आपकी आर्थिक स्थिति बेहद मजबूत हो सकती है।हम जानेंगे कि ऐसे कौनसे शुभ सपने होते हैं जिन्हें देखने से आपको धन लाभ हो सकता है।स्वप्न शास्त्र के अनुसार, अगर आप अपने सपने में चूहे को देखते हैं तो यह आपके लिए शुभ संकेत हैं। यह सपना संकेत करता है कि आपके पास कहीं से अचानक धन आने वाला है। माना जाता है सपने में चूहा देखने से दरिद्रता दूर होती है। जीवन में समृद्धि आती है।स्वप्न शास्त्र के अनुसार, सपने में गाय को देखना बेहद शुभ होता है। गाय को अलग-अलग तरह से देखने का मतलब भी अलग होता है। अगर आप सपने में गाय को दूध देते हुए देखते हैं सुख-समृद्धि आने वाली है तो वहीं अगर आप चितकबरी गाय को देखते हैं तो सूद ब्याज के व्यापार में लाभ मिलने के संकेत होते हैं।असल जिंदगी में किसी लड़की को नाचते हुए देखना आपके मनोरंजन का हिस्सा हो सकता है। लेकिन अगर आप अपने सपने में किसी स्त्री को नृत्य करते देखते हैं तो इसका मतलब होता है कि आने वाले दिनों में आपको धन प्राप्त हो सकता है। यह सपना शुभ सपनों में से एक होता है।स्वप्न शास्त्र के अनुसार, अगर आप सपने में भगवान के दर्शन करते हैं तो यह बेहद ही शुभ होता है। स्वप्न शास्त्र में इस सपने का मतलब ये है कि आपके ऊपर दैवीय कृपा बरसने वाली है जिससे आपको आने वाले दिनों में सुख-समृद्धि और धन की प्राप्ति होने वाली है।सपने में जलते हुए दीपक को देखना अति शुभ माना जाता है। स्वप्न शास्त्र के मुताबिक यदि आप सपने में किसी जलते हुए दीये को देखते हैं तो यह संकेत है कि आपको भविष्य में प्रचुर मात्रा में धन प्राप्ति होगी। यह सपना आपके आर्थिक जीवन को संपन्न कर देगा।
- किसी व्यक्ति विशेष के बारे में आपने यह जरूर सुना या कहा होगा कि वह बहुत ही भाग्यशाली है। किस्मत सदा ही उसका साथ देती है। ऐसे लोग थोड़े परिश्रम से ही कामयाबी के शिखर पर पहुंच जाते हैं। सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार, हथेली में बनने वाली लकीर, निशान और उभरे हुए हिस्सों से व्यक्ति के भाग्य का पता लगाया जा सकता है। हस्तरेखा विज्ञान के मुताबिक हमारी हथेली में ये निशान यूं ही नहीं होते हैं, बल्कि इनका सीधा संबंध हमारे भाग्य से होता है। माना जाता है कि हथेली में शुभ-अशुभ निशान होते हैं, जिनके माध्यम से यह जाना जा सकता है कि हमारे भाग्य में क्या लिखा है। हथेली में कुछ विशेष चिन्ह होते हैं जो व्यक्ति को भाग्यशाली बनाते हैं। आज हम आपको हथेली में बनने वाले ऐसे शुभ निशानों को बताएंगे जो व्यक्ति को भाग्यशाली बनाते हैं।हथेली पर शुक्र पर्वत अंगूठे के नीचे वाला हिस्सा कहलाता है। अगर किसी भी जातक की हथेली में शुक्र पर्वत उभार पर है तो व्यक्ति के जीवन में पैसों की कठिनाईयां नहीं आती हैं। उसे हर प्रकार की सुख सुविधा का आनंद प्राप्त करने का अवसर मिलता है।हथेली पर सूर्य पर्वत रिंग फिंगर जिसे अनामिका उंगली भी कहते हैं उसके नीचे बना हुआ होता है। ज्योतिष में शुभ सूर्य जातक के जीवन में यश समृद्धि, नाम, सम्मान, पद आदि का कारक होता है। अगर सूर्य पर्वत में उभार होने के साथ एक रेखा निकलती हुई भाग्य रेखा के साथ जाकर मिले तो ऐसे लोगों को अचानक धन लाभ होता है।हथेली पर शनि पर्वत मध्यमा उंगली के नीचे वाले हिस्से में बना हुआ होता है। अगर कोई रेखा मणिबंध (जहां से हथेली की शुरुआत होती है) से निकले हुए सीधे शनि पर्वत पर आकर मिले तो यह व्यक्ति को बहुत ही भाग्यशाली बनाती है। ऐसे व्यक्ति के जीवन में कभी भी पैसे और मान सम्मान की कमी नहीं होती।तर्जनी उंगली की ठीक नीचे वाले हिस्से को गुरु पर्वत कहा जाता है। ज्योतिष शास्त्र में गुरु पर्वत बहुत ही शुभ फल देने वाले ग्रह हैं। हस्तरेखा ज्योतिषशास्त्र के अनुसार गुरु पर्वत में उभार के साथ-साथ अगर क्रॉस का निशान बनता है व्यक्ति के जीवन में भाग्य बहुत ही प्रबल होता है। ऐसे जातक को विवाह के बाद सबसे ज्यादा सफलता और तरक्की प्राप्त होती है।
- श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव30 अगस्त, रात्रि 9 बजे सेश्यामा श्याम धाम मंदिर, उमरपोटी, भिलाई
उमरपोटी, भिलाई । 30 अगस्त को भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव है। भिलाई क्षेत्र के उमरपोटी स्थित 'श्यामा श्याम धाम' मंदिर में इस अवसर पर विश्व के पंचम मूल जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज की कृपाप्राप्त प्रचारिका सुश्री श्रीश्वरी देवी जी के सान्निध्य में कृष्ण-जन्मोत्सव का कार्यक्रम सत्संगियों तथा नगरवासियों की उपस्थिति में बड़ी धूमधाम से मनाया जायेगा।
यह कार्यक्रम सोमवार रात्रि 9 बजे से प्रारम्भ होगा जो रात्रि लगभग 1 बजे तक चलेगा। जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित श्रीकृष्ण नाम संकीर्तनों, पद तथा लीला संबंधी कीर्तनों तथा उनकी व्याख्या सुश्री श्रीश्वरी देवी जी के श्रीमुख से होगी। श्रीकृष्ण कौन हैं? उनसे हमारा क्या सम्बन्ध है? भगवान का अवतार क्यों होता है? उन्हें प्राप्त करने के लिये हमारी क्या साधना होनी चाहिये? आदि महत्वपूर्ण आध्यात्मिक शंकाओं का भी समाधान संकीर्तन व पदों की व्याख्या के दौरान किया जायेगा। इसके अलावा भगवान श्रीकृष्ण का महाभिषेक, जन्मोत्सव की बधाई, लुटाई व महाआरती के महत्वपूर्ण कार्यक्रम भी सम्पन्न होंगे और भक्तजनों को महाप्रसाद भी वितरित होगा। इन सभी कार्यक्रमों में कोरोना सम्बन्धी गाइडलाइंस का ध्यान रखा जायेगा, इसी कारण लोगों से भी मास्क लगाकर आने का अनुरोध किया गया है।
उपरोक्त कार्यक्रम के अलावा 30 अगस्त की सुबह लगभग 11 बजे मंदिर के पुजारी संतोष अवस्थी और राजू तिवारी के द्वारा भगवान का अभिषेक किया जायेगा और शाम 7 बजे की आरती के बाद श्रृंगार के लिये मंदिर के पट बन्द रहेंगे। इन कार्यक्रमों के बाद रात्रि 9 बजे जन्मोत्सव का कार्यक्रम प्रारम्भ होगा।
★ वृंदावन स्थित 'श्री प्रेम मंदिर' और जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज
जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज को भारत के 500 शीर्षस्थ शास्त्रज्ञ विद्वानों की तत्कालीन सभा काशी विद्वत परिषत ने 14 जनवरी 1957 को 'पंचम मूल जगदगुरु' की उपाधि से विभूषित किया था। आदि जगदगुरु शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, निम्बार्काचार्य एवं माधवाचार्य के बाद वे पांचवें मूल जगदगुरु हैं। जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज ने अत्यंत सरल तथा व्यवहारिक रूप में मनुष्य के कल्याण के साधन के रूप में करुणक्रन्दन करते हुये भगवान श्रीराधाकृष्ण के रूपध्यानयुक्त संकीर्तन और स्मरण को महत्व प्रदान किया है। जीवों की इस साधना में सहायता के लिये उन्होंने अनगिनत संकीर्तन एवं पदों की रचना अपने साहित्यों यथा प्रेम रस मदिरा, श्यामा श्याम गीत, राधा गोविन्द गीत, युगल रस, युगल शतक, ब्रज रस माधुरी आदि में की है तथा 'मैं कौन? मेरा कौन?' व 'ब्रम्ह जीव माया' आदि विषयों पर श्रृंखलाबद्ध प्रवचन सहित अनेक आध्यात्मिक विषयो पर असंख्य प्रवचन दिये हैं। स्मारकों के रूप में वृंदावन स्थित 'श्री प्रेम मन्दिर' का अनुपम उपहार उन्होंने हम विश्ववासियों को प्रदान किया है साथ ही श्री बरसाना धाम में श्रीराधारानी की माता श्री कीर्ति मैया का प्रसिद्ध मन्दिर भी उनकी ही देन है। जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा वैदिक सिद्धान्त के प्रचार प्रसार के लिये गठित प्रचारक मंडली की सुश्री श्रीश्वरी देवी जी एक प्रमुख कृपाप्राप्त प्रचारिका हैं, जिनका जन्मस्थान भिलाई शहर ही है। वे मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ एवं नेपाल में श्री कृपालु जी महाराज के सिद्धान्तों का प्रचार प्रसार करती हैं।
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - देश में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व के आयोजन की तैयारियां जोरों पर चल रही हैं.ज्योतिष गणनाओं के अनुसार इस साल जन्माष्टमी पर्वपर सूर्य और मंगल का अद्भुत संयोग बन रहा है. इस दिन सूर्य और मंगल दोनों ही सिंह राशि में एक साथ विराजमान रहेंगे. ऐसे में दो राशि (Zodiac) वालों को शुभ फल की प्राप्ति होने जा रही है. आइये जानते हैं कि वे कौन सी राशियां हैं और उनके जातकों को क्या शुभ समाचार मिलने जा रहे हैं.आर्थिक लाभ के बनेंगे योगवृश्चिक राशि: किसी नए काम की शुरुआत के लिए सूर्य का गोचर करना लाभकारी रहेगा. प्रमोशन या आर्थिक लाभ के भी योग बनेंगे. नौकरी की तलाश कर रहे लोगों को शुभ समाचार मिल सकता है. इस राशि के लोगों को विभिन्न कार्यों में सफलता मिलेगी. उनकी नौकरी और व्यापार के लिए भी शुभ समय है. शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोगों को शुभ परिणाम प्राप्त होंगे. लेन- देन के लिए समय शुभ रहेगा. परिवार के सदस्यों के साथ समय व्यतीत करेंगे. दांपत्य जीवन सुखमय रहेगा.मान- सम्मान में होगी बढ़ोतरीमिथुन राशि: परिवार से शुभ समाचार मिल सकता है. धन- लाभ होगा, जिससे आर्थिक पक्ष मजबूत बनेगा. व्यवसाय में लाभ के योग बनेंगे. भाग्य का साथ मिलेगा. नौकरी और व्यापार के लिए समय शुभ रहेगा. आपके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना होगी. जीवनसाथी के साथ समय व्यतीत करने का अवसर मिलेगा. मान- सम्मान और पद- प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी. दांपत्य जीवन में सुख का अनुभव करेंगे.
- भगवान श्रीकृष्ण के वंश की शाखा भी उन्हीं चक्रवर्ती सम्राट ययाति से चली जिनसे पुरु का वंश चला। पुरु ययाति के सबसे छोटे पुत्र थे और यदु सबसे बड़े। हालाँकि ययाति के श्राप के कारण सबसे प्रसिद्ध राजवंश पुरु का ही रहा जिसमें दुष्यंत, भरत, कुरु, हस्ती, शांतनु और युधिष्ठिर जैसे महान सम्राट हुए। ययाति के अन्य पुत्रों का वंश भी चला किन्तु चक्रवर्ती सम्राट केवल पुरु के वंश में ही हुए।ययाति के ज्येष्ठ पुत्र यदु से ही यदुवंश चला जिसमें आगे चलकर श्रीकृष्ण ने जन्म लिया। हालांकि ये वंश पुरुवंश के सामान सीधा नहीं रहा बल्कि इसमें कई शाखाएं बंट गयी। आइये इस गौरवशाली वंश के विषय में कुछ जानते हैं। परमपिता ब्रह्मा से ये सारी सृष्टि जन्मी। ब्रह्मा के पुत्र हुए अत्रि जो सप्तर्षियों में से एक थे। अत्रि के अनुसूया से सबसे छोटे पुत्र थे चंद्र। चंद्र बृहस्पति की पत्नी तारा पर आसक्त हुए जिनसे उन्हें बुध नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। बुध का विवाह इला से हुआ जिससे उन्हें पुरुरवा पुत्र रूप में प्राप्त हुए। पुरुवा ने उर्वशी से विवाह किया जिनसे उन्हें छ: पुत्र प्राप्त हुए - आयु, अमावसु, विश्वायु, श्रुतायु, शतायु एवं दृढ़ायु। आयु ने स्वर्भानु (बाद में यही राहु केतु कहलाये) की पुत्री प्रभा से विवाह किया जिनसे उन्हें नहुष नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। नहुष ने इंद्र पद भी प्राप्त किया और वे 3698256 वें इंद्र बने। नहुष ने महादेव की पुत्री अशोक सुन्दरी से विवाह किया और यति एवं ययाति दो पुत्रों और 100 पुत्रियों को प्राप्त किया। यति संन्यासी बन गए जिससे राज्य ययाति को मिला। ययाति ने शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी और वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा से विवाह किया। देवयानी से उन्हें यदु और तर्वसु ये दो पुत्र और माधवी नामक एक कन्या हुई। शर्मिष्ठा से उन्हें अनु, द्रुहु एवं पुरु नामक पुत्रों की प्राप्ति हुई। ययाति पहले चक्रवर्ती सम्राट बनें और उनके श्राप के कारण प्रथम चार पुत्र राजवंश से दूर हुए और पुरु का वंश सबसे प्रतापी हुआ।यदु से यदुवंश की गाथा आरम्भ होती है। यदु के चार पुत्र हुए - सहस्त्रजित, क्रोष्ट, नल और रिपु। इनमें से क्रोष्ट ने अपने पिता का वंश आगे बढ़ाया और सहस्त्रजित ने स्वयं अपना वंश चलाया जो आगे चल कर यादव वंश ना कहलाकर प्रतापी हैहय वंश कहलाया। इन्हें हैहय यादव भी कहा जाता है। आइये इन दो शाखाओं को देखते हैं। सहस्त्रजित के शतजित नामक पुत्र हुए। शतजित के तीन पुत्र हुए - महाहय, रेणुहय और हैहय। राज्य हैहय को मिला। हैहय के धर्म नामक पुत्र हुए। धर्म के पुत्र हुए नेत्र। नेत्र के कुंती नामक पुत्र हुए। कुंती के पुत्र थे सोहान्जी। सोहान्जी के पुत्र हुए माहिष्मत। ये बड़े प्रतापी थे और इन्हीं के नाम पर इनकी राजधानी का नाम महिष्मति पड़ा। माहिष्मत के पुत्र थे भद्रसेन। भद्रसेन के दो पुत्र हुए - दुर्मद और धनक। राज्य धनक को मिला। धनक के चार पुत्र हुए - कर्त्यवीर्य, कृताग्नि, कृतवर्मन और कृतौजस। कर्त्यवीर्य महर्षि जमदग्नि के घनिष्ठ मित्र थे।कर्त्यवीर्य के अर्जुन नामक महाप्रतापी पुत्र प्राप्त हुआ जो अपने पिता के नाम से कर्त्यवीर्य अर्जुन के नाम से विख्यात हुआ। उसे श्री दत्तात्रेय ने 1000 भुजाओं और अपार बल का वरदान दिया जिससे वो सहस्त्रबाहु के नाम से भी विख्यात हुआ। इन्होंने जमदग्नि की पत्नी रेणुका की छोटी बहन से विवाह किया। जमदग्नि की प्रसिद्ध गाय कामधेनु को बलात हस्तगत करने के कारण परशुराम ने इनका वध कर दिया। वैसे तो कर्त्यवीर्य अर्जुन के 1000 पुत्र थे किन्तु उन्होंने जमदग्नि को मार डाला जिससे क्रोधित होकर परशुराम ने उनके पूरे वंश का नाश कर डाला। कर्त्यवीर्य अर्जुन के केवल 5 पुत्र बचे - जयध्वज, सुरसेन, ऋषभ, मधु और ऊर्जित। जयध्वज के अतिरिक्त अन्य चारों भाइयों का वंश भी परशुराम ने बाद में समाप्त कर डाला। जयध्वज का पुत्र प्रतापी तालजंघ हुआ।तालजंघ के 100 वीर पुत्र हुए जिनमे से वीतिहोत्र ज्येष्ठ था। हैहयों से अपनी पुरानी शत्रुता के कारण इक्ष्वाकु वंशी राजा सगर ने उनके सभी पुत्रों का वध कर दिया। ये वही सगर थे जिनके 60 हजार पुत्रों को कपिल मुनि ने भस्म कर दिया था और बाद में उनके पड़पोते भगीरथ ने गंगा को धरती पर लाकर उनका उद्धार किया था। वीतिहोत्र का एक पुत्र बचा जिसका नाम अनंत था। अनंत के भी एक पुत्र का वर्णन आता है जिसका नाम दुर्जय था। अब आते हैं मूल यादव वंश पर जो क्रोष्ट से चले। क्रोष्ट को प्रथम यदुवंशी सम्राट भी माना जाता है। क्रोष्ट के पुत्र का नाम व्रजनिवण था। व्रजनिवण के स्वाही नामक पुत्र हुए। स्वाही के पुत्र का नाम उशंक था। उशंक के पुत्र चित्ररथ हुए।चित्ररथ के पुत्र का नाम शशिबिन्दु था जो बहुत प्रतापी राजा हुए। इनके नेतृत्व में यादवों ने पुरुवंशियों की बहुत सारी भूमि पर अधिकार जमा लिया। यादवों का इक्षवाकु के वंशजों से बहुत पुराना झगड़ा था किन्तु शशिबिन्दु ने इसे समाप्त करने की पहल की। इसके लिए इन्होंने अपनी पुत्री बिन्दुमती का विवाह मान्धाता से किया। इन्हीं मान्धाता के वंश में आगे चल कर श्रीराम ने जन्म लिया। इस सम्बन्ध के बाद मान्धाता ने ययाति के पुत्र अनु से जीता हुआ राज्य भी शशिबिन्दु को दे दिया। शशिबिन्दु ने अपनी ही दूसरी यादव शाखा हैहय वंशियों के अत्याचार को रोकने का भी प्रयास किया किन्तु वे अधिक सफल नहीं हुए और अंतत: परशुराम को हैहयों का अंत करना पड़ा।शशिबिन्दु के पुत्र का नाम था भोज। भोज के पुत्र पृथुश्रवा थे। पृथुश्रवा के पुत्र का नाम था धामरा। धामरा के पुत्र का नाम उष्ण था। उष्ण के रुचक नमक पुत्र हुए। रुचक के पुत्र थे ज्यामघ। ज्यामघ के विदर्भ नामक पुत्र हुए। ये भी बहुत प्रतापी राजा थे इन्ही के नाम से इनके राज्य का नाम विदर्भ पड़ा। विदर्भ के तीन पुत्र हुए - क्रथ, कौशिक और रोमपाद। ज्येष्ठ पुत्र क्रथ को राज्य मिला जिसके बाद रोमपाद ने अपना अलग राज्य स्थापित किया और इन्ही के वंशजों में एक सम्राट चेदि हुए जिनके नाम से इनके राज्य का नाम बदल कर चेदि देश हो गया। इन्ही चेदि के वंशजों में दमघोष के पुत्र शिशुपाल ने जन्म लिया। क्रथ के पुत्र का नाम कुंती (कीर्ति) था। कुंती के पुत्र धृष्टि हुए। धृष्टि के पुत्र का नाम निवृति था। निवृति के पुत्र का नाम दर्शह था। इनके नाम से दर्शह यादवों की एक अलग श्रृंखला चली। दर्शह के पुत्र का नाम था व्योम। व्योम के पुत्र का नाम भीम था। भीम के जीमूत नामक प्रतापी पुत्र हुए। जीमूत के पुत्र का नाम विकृति था। विकृति के पुत्र का नाम भीमरथ था। भीमरथ के नवरथ नामक पुत्र हुए। नवरथ के पुत्र का नाम दशरथ था। दशरथ के पुत्र का नाम शकुनि था। शकुनि के करीभी नामक एक पुत्र हुए। करीभी के पुत्र का नाम देवरत था। देवरत के एक पुत्र हुए जिनका नाम था देवशस्त्र।देवशस्त्र के पुत्र का नाम था मधु। ये बहुत प्रतापी राजा हुए और इन्ही के नाम पर यादवों की एक शाखा चली जिसे मधु यादव कहते थे। यही आगे चलकर माधव नाम से प्रसिद्ध हुए। मधु ने अपने राज्य का नाम मधुरा रखा जो आगे चल कर मथुरा कहलाया। मधु के पुत्र कुमारवंश हुए। कुमारवंश के पुत्र का नाम अंशु था। अंशु के पुत्र का नाम पुरुहोत्र था। पुरुहोत्र के पुत्र थे सत्त्वत्त। सत्त्वत्त के छ: पुत्र थे - भजन, भजमन, दिव्य, देववर्द्ध, अंधक और वृष्णि। इन सभी में अंधक और वृष्णि के सर्वाधिक प्रतापी वंश चले। अन्य चार पुत्रों का वंश उतना प्रसिद्ध नहीं रहा। यहाँ से इनका वंश दो प्रमुख हिस्सों में बंट गया।अंधक वंश - ये शाखा अंधक यादव कहलाये जिनके राजा सत्वत्त के पुत्र अंधक बने जिनका अधिकार मथुरा पर था। अंधक के दो पुत्र थे - कुकुर और भजमन। राज्य कुकुर को मिला। भजमन के सात पुत्र हुए - विदुरथ, राजाधिदेव, शूर, शोदाश्व, शमी, प्रतीक्षरत एवं हृदायक। हृदायक के पाँच पुत्र हुए - कृतवर्मा, दरवाह, देवरथ, शतधन्वा एवं देवगर्भ। शतधन्वा ने श्रीकृष्ण के श्वसुर और सत्यभामा के पिता सत्राजित का वध कर दिया। जिसके बाद श्रीकृष्ण ने शतधन्वा का वध किया। इसी कारण यादव होते हुए भी कृतवर्मा ने कौरवों की ओर से युद्ध किया।कुकुर के सात पुत्र हुए - द्रश्नु, कपोल, देवत्त, नल, अभिजित, पुनर्वसु और आहुक। इनमे से आहुक सबसे प्रतापी हुए। आहुक के दो पुत्र थे - देवक और उग्रसेन।देवक की पुत्री थी देवकी जिनका विवाह वसुदेव से हुआ जिनसे श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। उग्रसेन ने पद्मावती से विवाह किया और उनसे उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुआ - कंस। कंस ने जरासंध की पुत्रियों अस्ति और प्राप्ति से विवाह किया। देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण ने कंस का वध किया।वृष्णि वंश: ये शाखा वृष्णि यादव के नाम से प्रसिद्ध हुई जिसके सम्राट सत्त्वत्त के पुत्र वृष्णि हुए।वृष्णि के तीन पुत्र थे - सुमित्र, युधाजित एवं देवमूढ़। राज्य देवमूढ़ को प्राप्त हुआ।युधाजित के तीन पुत्र हुए - शिनि, प्रसेन और सत्राजित। शिनि के पुत्र सत्यक हुए। सत्यक के पुत्र सात्यिकी थे जो श्रीकृष्ण के परम मित्र थे। देवमूढ़ के पुत्र का नाम सूरसेन था।सूरसेन के दो पुत्र और दो पुत्रियां हुई। ज्येष्ठ पुत्र का नाम वसुदेव था दूसरे पुत्र का नाम देवभाग था। सूरसेन की ज्येष्ठ पुत्री का नाम पृथा था। पृथा को राजा कुन्तिभोज ने गोद लिया जिससे बाद में वो कुंती के नाम से प्रसिद्ध हुई। सूरसेन की दूसरी पुत्री श्रुत्वाता का विवाह दमघोष से हुआ जिनसे उन्हें शिशुपाल नामक पुत्र की प्राप्ति हुई।वसुदेव ने पुरुवंशी राजा प्रतीप और सुनंदा की पुत्री रोहिणी से विवाह किया जिनसे उन्हें बलराम पुत्र रूप में प्राप्त हुए। उनकी दूसरी पत्नी अंधक कुल के देवक की पुत्री देवकी थी जिनसे उन्हें श्रीकृष्ण की प्राप्ति हुई। वासुदेव के छोटे भाई देवभाग के पुत्र का नाम उद्धव था जो श्रीकृष्ण के अभिन्न मित्र थे।बलराम ने कुकुद्मी की पुत्री रेवती से विवाह किया जिनसे उन्हें दो पुत्र और एक पुत्री की प्राप्ति हुई। उनके पुत्रों का नाम था - निषत और उल्मुक। उनकी पुत्री का नाम वत्सला था जिसका विवाह अभिमन्यु से हुआ। श्रीकृष्ण की तीन प्रमुख रानियां थी - रुक्मिणी, जांबवंती और सत्यभामा, इनमे रुक्मिणी पटरानी थी। इसके अतिरिक्त उनकी पांच और मुख्य पत्नियां थी - सत्या, कालिंदी, लक्ष्मणा, मित्रविन्दा और भद्रा। तो उनकी मुख्य 8 रानियां थीं। इसके अतिरिक्त श्रीकृष्ण ने नरकासुर से छुड़ाई गयी 16 हजार 100 स्त्रियों से भी विवाह किया। श्रीकृष्ण अपनी माया से अपनी हर पत्नी के पास रहते थे और प्रत्येक पत्नी से उन्होंने 10-10 पुत्र प्राप्त किये। प्रद्युम्न इनका ज्येष्ठ पुत्र था। इतना बड़ा यदुकुल गांधारी के श्राप के कारण नाश हो गया। इसका मुख्य कारण श्रीकृष्ण और जांबवंती का पुत्र साम्ब बना।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 379
जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उद्भूत ज्ञान 'कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' के नाम से जाना जाता है। जो वेदों, शास्त्रों, पुराणों, गीता, भागवत, रामायण तथा अन्यान्य धर्मग्रंथों का सार है। जो जाति-पाँति, देश-काल की सीमा से परे है। सभी धर्मों के अनुयायियों के लिये मान्य है, सार्वभौमिक है। आज के युग के अनुरुप है। सर्वग्राह्य है। सनातन है। समन्वयात्मक सिद्धान्त है। सभी मतों, सभी ग्रंथों, सभी आचार्यों के परस्पर विरोधाभाषी सिद्धान्तों का समन्वय है। निखिलदर्शनों का समन्वय है। भौतिकवाद, आध्यात्मवाद का समन्वय है, जो आज के युग की माँग है। विश्व शांति और विश्व बन्धुत्व की भावनाओं को दृढ़ करते हुये शाश्वत शान्ति और सुख का सर्वसुगम सरल मार्ग है। आइये आज के 379-वें अंक में प्रकाशित श्रीकृष्ण के स्वरुप तथा हमारे लक्ष्य के संबंध में तत्वज्ञान पर विचार करें....
★ 'जगदगुरुत्तम-ब्रज साहित्य'(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित साहित्य/ग्रन्थ)
सर्वशक्ति प्राकट्य हो, लीला विविध प्रकार।विहरत परिकर संग जो, तेहि भगवान पुकार।।
भावार्थ - जिस स्वरूप में समस्त शक्तियों का पूर्ण प्राकट्य हो एवं अनंत नाम , रूप, गुण, लीला, धाम तथा परिकर भी हों। नित्य विहार भी करते हों। वह भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप है।
• सन्दर्भ ग्रन्थ ::: भक्ति-शतक, दोहा संख्या 24----------------
★ 'जगदगुरुत्तम-श्रीमुखारविन्द'(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा निःसृत प्रवचन का अंश)
...जब प्रेमानन्द मिलेगा तो माया-निवृत्ति तो अपने आप हो जायेगी। माया-निवृत्ति तुम्हारा एम (लक्ष्य) नहीं है। तुम्हारा एम है श्रीकृष्ण सम्बन्ध होने के नाते श्रीकृष्ण की सेवा और सेवा कैसे होती है? हाथ से, पैर से, आँख से, कान से, नासिका से? न, न, न। ये सेवा नहीं है। ये तो आजकल की सर्विस है। आजकल जो बोलते हैं न सर्विस। सर्विस में क्या होता है? यह शरीर से क्रिया। यह नहीं चलेगा उधर, उधर मन का सरेण्डर हो, फिर इन्द्रियों से सेवा करो। यानी प्रेम में मेन श्रीकृष्ण की सेवा किससे होगी? प्रेम से। इसलिये प्रयोजन बताया गया प्रेम...
• सन्दर्भ पुस्तक ::: नारद भक्ति दर्शन, पृष्ठ संख्या 81
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 378
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने विश्वशांति के अपने उपदेश में कहा है कि एकमात्र श्रीकृष्ण की भक्ति से ही विश्व में शांति सम्भव है। समस्त झगड़े, समस्त वाद-विवाद का समाधान इस सिद्धान्त को भलीभांति समझ लेने में है कि सभी जीव एक उसी भगवान के ही सनातन अंश हैं। एक बार किसी व्यक्ति ने उनसे प्रश्न किया था कि महाराज जी! किसी व्यक्ति विशेष के लिये 'शुभकामना' करना ठीक है? श्री कृपालु महाप्रभु जी ने उत्तर दिया था;
"..वेद कहता है कि सबके लिये शुभकामना होनी चाहिये, एक दो चार के लिये नहीं...."
उनके समस्त प्रवचनों और व्यक्तित्व में इसी ओर प्रकाश है कि वे सदैव सम्पूर्ण विश्व को अपना मानते थे और सबको कल्याण के पथ पर चलाने के लिये अथक प्रयास किया। आइये आज के अंक में प्रकाशित उनके सिद्धान्त-दर्शन का चिंतन-मनन करें...
★ 'जगदगुरुत्तम-ब्रज साहित्य'(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित साहित्य/ग्रन्थ)
अब जान्यो साधन बल कान्हा,कोउ न पाव सुख कान्हा, कान्हा कान्हा कान्हा।साधनहीन दीन बनि कान्हा,जो प्रपन्न हो कान्हा, कान्हा कान्हा कान्हा।माँगत दिव्य प्रेम जो कान्हा,शिशु जनु रो कर कान्हा, कान्हा कान्हा कान्हा।वा पर कर 'कृपालु' तू कान्हा,कृपा वृष्टि नित कान्हा, कान्हा कान्हा कान्हा।।
भावार्थ ::: भक्त कहता है - हे कृष्ण! अब मेरी बुद्धि ऐसा मानती है कि अपने साधन बल से कोई भी सुख प्राप्त नहीं कर सकता। जो अपने साधन बल का अभिमान छोड़कर निरभिमानी बनकर तुम्हारे शरणागत हो जाता है और नवजात शिशु की भाँति करुण क्रन्दन करते हुये तुमसे दिव्यप्रेम की याचना करता है, उस पर तुम निरन्तर अपनी कृपा की वर्षा करते हो।
• सन्दर्भ ग्रन्थ ::: युगल रस, कीर्तन संख्या 17----------------★ 'जगदगुरुत्तम-श्रीमुखारविन्द'(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा निःसृत प्रवचन का अंश)
...कुछ लोग ईश्वर में मन न लगाकर बिन्दु आदि में मन को केन्द्रित करते हुए मन का वशीकरण करते हैं, किन्तु इसमें दो हानियाँ हैं। एक तो यह कि मन बिना दिव्य रस पाये सदा के लिए एकाग्र नहीं हो सकता। दूसरे, अनन्तानन्त जन्मों के संस्कार एवं अविद्या के नाश हुए बिना वह क्षणभंगुर एकाग्रता पुनः संसार में वापस पहुँचा देती है। अतएव ईश्वर में ही मन केंद्रित करना चाहिए, जिससे संसार से भी छुट्टी मिले एवं सदा के लिये छुटटी मिले तथा ईश्वरीय दिव्य लाभ भी सदा के लिये हो जाय। पुनः एक बात और भी है, वह यह कि किसी बिन्दु आदि में मन लगाने में कठिनाई भी है, किन्तु ईश्वर संबंधी दिव्य परमाकर्षण रूप-गुण-लीलादि में मन लगाना स्वभावतः सुगम है। अतएव हमें भक्ति करते समय भगवान का रूपध्यान अवश्य करना है...
• संदर्भ पुस्तक ::: प्रेम रस सिद्धांत, पृष्ठ संख्या 215
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - गरुड़ पुराण सिर्फ जीवन और मृत्यु के तमाम रहस्यों को ही उजागर नहीं करता, बल्कि लाइफ मैनेजमेंट को लेकर भी काफी कुछ कहता है. मान्यता है कि गरुड़ पुराण में लिखी हर बात भगवान विष्णु और उनके वाहन गरुड़ की वार्तालाप का संग्रह है. यदि इसकी बातों को व्यक्ति अपने जीवन में उतार ले, तो न सिर्फ अपना वर्तमान जीवन सुधार सकता है, बल्कि मृत्यु के बाद भी मोक्ष की राह की ओर अग्रसर हो सकता है. यहां जानिए गरुड़ पुराण में बताई गईं उन आदतों के बारे में जो इंसान के सुख की शत्रु मानी जाती हैं. इन्हें त्यागने के बाद भी व्यक्ति जीवन में आनंद और खुशियों को प्राप्त कर सकता है.1. संसार में ऐसे तमाम उदाहरण हैं जो ये बताते हैं कि जिसने भी घमंड किया, उसका नाश हो गया. इसलिए कभी खुद में अहंकार न आने दें. जो लोग अंहकार से ग्रसित होते हैं, वे दूसरों को तुच्छ दिखाने का प्रयास करते हैं. इससे दूसरों को कष्ट पहुंचता है और वे दुखी होते हैं. इसे महापाप माना गया है. इसलिए घमंड को कभी हावी न होने दें और विनम्रतापूर्ण व्यवहार करें.2. ईर्ष्या से भी व्यक्ति स्वयं का नाश करता है क्योंकि ऐसा व्यक्ति दूसरों की खुशियों से जलता है और स्वयं के बहुमूल्य समय को दूसरे को नुकसान पहुंचाने के लिए इस्तेमाल करता है. इसलिए यदि आप ईर्ष्या करेंगे तो खुद ही परेशान होंगे और जीवन में कभी खुशियों का आनंद नहीं ले पाएंगे.3. जब हम मेहनत करके धन कमाते हैं, तो ही हमें खुशी मिलती है. लेकिन अगर आप दूसरों के धन का लालच करेंगे और उसके धन को हड़पने का प्रयास करेंगे, तो आपके जीवन में कभी खुशियां नहीं आ सकतीं. आप चाहे कितना ही धन जुटा लें, लेकिन आपको जीवन में सुकून नहीं मिल सकता.4. दूसरों की बुराई करके आप अपने ही अंदर नकारात्मकता लेकर आते हैं. साथ ही ऐसे लोगों को खुद भी कई तरह की बुराइयां झेलनी पड़ती हैं. ये आदत कभी आपका भला नहीं कर सकती. इसे बहुत बड़ा पाप माना गया है. ऐसे लोग इधर उधर की बातों में ही अपना समय गवां देते हैं और काफी पीछे रह जाते हैं. अगर आपको वाकई सफल होना है तो आपको दूसरों की बुराई से बचना चाहिए.
- सनातन परंपरा में पेड़ों को ईश्वर का दूसरा रूप माना जाता है. मान्यता है कि हरा सोना कहलाने वाले इन दिव्य वृक्षों पर देवी-देवताओं का हमेशा वास बना रहता है. हिंदू धर्म में पीपल के पेड़ को बहुत ही ज्यादा पवित्र और मंगलकारी माना गया है. मान्यता है कि इसमें देवताओं का वास रहता है. भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में स्वयं कहा है कि “मैं वृक्षों में पीपल हूं.” वैसे मान्यता है कि पीपल के जड़ में ब्रह्मा जी, तने में भगवान विष्णु और सबसे ऊपरी भाग में शिव का वास होता है. न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से बल्कि वनस्पति विज्ञान और आयुर्वेद के अनुसार भी पीपल का पेड़ कई तरह से फायदेमंद माना गया है.इस दिन न चढ़ाएं पीपल पर जलशास्त्रों के मुताबिक शनिवार को पीपल के वृक्ष में लक्ष्मी का वास होता है. इस दिन पीपल में जल चढ़ाना बेहद शुभ माना गया है. गुरुवार एवं शनिवार के दिन जहां पीपल पर जल चढ़ाने का विशेष लाभ माना गया है, वहीं रविवार के दिन पीपल में जल चढ़ाने को लेकर मनाही है. मान्यता है कि इस दिन पीपल में जल अर्पण करने से धन की हानि होती है. साथ ही हमेशा पैसों की तंगी बनी रहती है. इसी तरह पीपल के पेड़ को काटना भी अत्यंत अशुभ माना गया है. ऐसा करने पर वंश वृद्धि में बाधा आती है.पीपल की पूजा से पाएं शनि दोष से मुक्तिपीपल के पेड़ को दीर्घायु प्रदान करने वाला माना जाता है. शनि के दोष को दूर करने के लिए पीपल के पेड़ की विशेष रूप से रूप से पूजा की जाती है. मान्यता है कि शनिवार के दिन पीपल के नीचे सरसों के तेल का दिया जलाने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं.पीपल की पूजा से जुड़े उपायमान्यता है कि पवित्र पीपल के नीचे हनुमत साधना करने पर पवनपुत्र हनुमान जी शीघ्र प्रसन्न होते हैं और अपने साधक को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं.पीपल के पेड़ के नीचे शिवलिंग स्थापित करके प्रतिदिन पूजा करने पर अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और साधक को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है.यदि कुंडली में शनि अशुभ फल दे रहे हों या फिर कोई व्यक्ति शनि की ढैय्या या साढ़ेसाती से परेशान हो तो उसे हर शनिवार को पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाकर सात बार परिक्रमा करनी चाहिए. साथ ही शाम के समय सरसों के तेल का दिया जलाना चाहिए.
- हर साल भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि द्वापरयुग में इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने धरती पर देवकी नंदन के रूप में जन्म लिया था. जन्माष्टमी के दिन लोग भगवान श्रीकृष्ण के लिए व्रत रखते हैं और रात में 12 बजे श्रीकृष्ण के जन्म के समय उनका पूजन करते हैं. तमाम मेवा, मिष्ठान और 56 भोग अर्पित करते हैं और पूजन के बाद अपना व्रत खोलते हैं.श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन हर तरफ कान्हा के नाम की ही गूंज होती है. इस बार जन्माष्टमी का ये पर्व 30 अगस्त सोमवार को पड़ रहा है. शास्त्रों में इस व्रत को 100 पापों से मुक्त करने वाला व्रत बताया गया है. कृष्ण जन्माष्टमी के इस अवसर पर जानिए इस व्रत की महिमा.हजार एकादशी के समानशास्त्रों में एकादशी के व्रत को मोक्षदायी और श्रेष्ठ व्रतों में से एक माना गया है. लेकिन इसके नियम काफी कठिन होते हैं, इसलिए एकादशी व्रत रख पाना हर किसी के लिए संभव नहीं होता. ऐसे में आप जन्माष्टमी का व्रत रखकर एकादशी के समान पुण्य अर्जित कर सकते हैं. शास्त्रों में इस जन्माष्टमी के व्रत को एक हजार एकादशी व्रत के समान माना गया है.जाप का अनन्त गुना फल देने वालाजन्माष्टमी के दिन ध्यान, जाप और रात्रि जागरण का विशेष महत्व माना गया है. माना जाता है कि इस दिन जाप और ध्यान करने का अनन्त गुना फल प्राप्त होता है. इसलिए जन्माष्टमी की रात में जागरण करके भगवान के भजन कीर्तन करने चाहिए.अकाल मृत्यु से होती रक्षाभविष्यपुराण के मुताबिक जन्माष्टमी का व्रत अकाल मृत्यु से रक्षा करने वाला है. साथ ही कहा जाता है कि यदि गर्भवती महिला इस व्रत को रहे तो उसका बच्चा गर्भ में एकदम सुरक्षित रहता है. उसे श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है.इन बातों का रखें खयालजन्माष्टमी के व्रत के दिन पूरी श्रद्धा के साथ इस व्रत को रखें क्योंकि भगवान सिर्फ प्रेम के भूखे होते हैं. उन्हें श्रद्धा के साथ जो भी अर्पित करेंगे वे उसे अवश्य स्वीकार करते हैं. इसके अलावा व्रत वाले दिन ईश्वर का ज्यादा से ज्यादा ध्यान करें. संभव हो तो गीता पढ़ें या सुनें. पूजा के दौरान श्रीकृष्ण को पंचामृत और तुलसी पत्र जरूर अर्पित करें. किसी की चुगली न करें और न ही झूठ बोलें और न ही किसी को सताएं.
- आजकल काफी लड़कियां अपने बालों को खुला रखना पसंद करती हैं. ऐसा करना वे फैशन स्टाइल के साथ ही सुविधा के लिहाज से भी उचित मानती हैं. हालांकि धर्म शास्त्रों के हिसाब से देखा जाए तो बालों को खुला रखना अशुभ माना जाता है. मान्यता है कि ऐसा करने से जीवन में अनेक परेशानियां झेलनी पड़ सकती हैं.बाल खुले रखने से बिखर जाते हैं रिश्तेपौराणिक मान्यताओं के अनुसार सीता स्वयंवर के बाद जब देवी सीता ने प्रभु श्रीराम के साथ फेरे लिए थे तो माता सुनयना ने अपनी बेटी सीता के बालों को बांधा धा. तब बेटी को विदा करते वक्त उन्होंने यह सीख दी थी कि बालों को कभी भी खुला नहीं रखना चाहिए. ऐसा करने से रिश्ते बिखर जाते हैं. वहीं बाल अगर बंधे हो तो रिश्ते भी बंधकर रहते हैं.अपमान के बाद द्रोपदी ने खोल दिए थे केशकहते हैं कि खुले और उलझे बाल अमंगलकारी होते हैं. एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार माता कैकेयी जब नाराज होकर कोपभवन में गईं तो उन्होंने भी अपने केश खोल रखे थे. उसी अवस्था में उन्होंने रुदन किया, जिसका गंभीर परिणाम भी देखने को मिला. वहीं द्रोपदी का भरी सभा में अपमान होने के बाद उन्होंने अपने केश खोल दिए थे. जिसका परिणाम धृतराष्ट्र के समूचे पुत्रों और अन्य रिश्तेदारों की तबाही के रूप में देखने को मिला था.रात में बांधकर सोएं अपने बालमान्यताओं के अनुसार रात में अगर आप अकेले या परिवार के साथ सो रहे हों, तब भी बालों को खुला रखकर नहीं सोना चाहिए. माना जाता है कि ऐसा करने से परिवार में दुख-तकलीफें बढ़ती हैं. हालांकि अगर आप पति के साथ सो रहे हैं तो बाल खुले रखे जा सकते हैं. धर्म शास्त्रों के मुताबिक शोक के समय ही स्त्रियां को अपने बाल खुले रखने की छूट दी गई है.खुले बालों पर तंत्र क्रिया का असरयह भी मान्यता है कि बालों से कई तरह की तंत्र क्रियाएं भी की जाती हैं. ऐसे में अगर आप बाल खुले (Open Hair) रखकर घर से बाह निकलती हैं तो आप आसानी से नकारात्मक शक्तियों और तंत्र क्रिया का शिकार हो सकती हैं. धार्मिक मान्यताओं से अलग हटकर अगर वैज्ञानिक दृष्टि से भी देखें तो बालों को खुले रखने से मुश्किलें होती है. इससे बालों में धूल-मिट्टी घुस जाती है. जिससे उनमें रुखापन आने लगते है. इससे उनकी जड़ कमजोर होने लगती है और वे तेजी से झड़ने लगते हैं.
- भारत में दो ऐसे युग पुरुष हुए हैं जिनके जन्मोत्सव, सदियों से धार्मिक आयोजन के रुप में मनाए जाते हैं. इतिहासकारों के अनुसार भगवान राम का जन्म लगभग 10 हजार वर्ष पूर्व हुआ था और भगवान कृष्ण का करीब 5 हजार साल पहले हुआ था. ज्योतिषाचार्य मदन गुप्ता सपाटू कहते हैं कि हिंदू धर्म-पंचांग और ज्योतिष के मुताबिक भगवान राम का जन्म नवमी के दिन अभिजीत मुहूर्त (Abhijit Muhurat) में अर्थात दोपहर के दोपहर 12 बजे हुआ था, वहीं भगवान कृष्ण का जन्म भी अष्टमी की मध्यरात्रि में अभिजीत मुहूर्त में ही हुआ था. यह एक ऐसा मुहूर्त होता है जो हर कार्य में विजय दिलाता है. इस बार जन्माष्टमी (Janmashtami 2021) पर कृष्ण जन्म का दुर्लभ संयोग बन रहा है.जन्माष्टमी पर बन रहा है दुर्लभ संयोगश्रीमद्भागवत के मुताबिक श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद महीन के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को बुधवार के दिन रोहिणी नक्षत्र और वृष राशि के चंद्रमा-कालीन समय में मध्य रात्रि में हुआ था. अमूमन जन्माष्टमी के मौके पर वृष राशि का चंद्रमा तो रहता है लेकिन रोहिणी नक्षत्र नहीं होता है. इस बार 30 अगस्त को पड़ रही जन्माष्टमी पर 8 साल बाद ऐसा दुर्लभ संयोग बना है, जब न केवल रोहिणी नक्षत्र और वृष राशि का चंद्र है, बल्कि सोमवार (Monday) भी है. गौतमी तंत्र नाम के ग्रन्थ और पदमपुराण के अनुसार, यदि कृष्णाष्टमी सोमवार या बुधवार को पड़े तो यह अत्यंत शुभ मानी जाती है.शुभ मुहूर्त में इन मंत्रों का करें जाप30 अगस्त को पूजा के लिए शुभ मुहूर्त रात के 11:59 बजे से देर रात 12:44 बजे तक का रहेगा. यानी कि मुहूर्त 45 मिनट का रहेगा. इस समय में कुछ खास मंत्रों का जाप करने से भगवान श्रीकृष्ण मनोकामनाएं पूरी करते हैं. यदि देर रात जाप करना संभव न हो तो 30 अगस्त को दिन में ही कम से कम 108 बार इन मंत्रों का जाप कर सकते हैं.भगवान कृष्ण की आराधना के लिए मंत्र: ज्योत्स्नापते नमस्तुभ्यं नमस्ते ज्योतिशां पते!नमस्ते रोहिणी कान्त अर्घ्य मे प्रतिगृह्यताम्!!संतान प्राप्ति के लिए मंत्र: इस मंत्र का जाप पति-पत्नी दोनों करें. इसके लिए 2 मंत्र हैं, पहला मंत्र- देवकी सुत गोविंद वासुदेव जगत्पते! देहिमे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः!!दूसरा मंत्र-! क्लीं ग्लौं श्यामल अंगाय नमः !!विवाह में देरी से निजात पाने के लिए मंत्र: ओम् क्लीं कृष्णाय गोविंदाय गोपीजनवल्ल्भाय स्वाहा.
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सरकारी नौकरी में मिलने वाली सुविधाएं और जॉब सिक्योरिटी के कारण लाखों लाखों युवा इसकी ओर आकर्षित होते हैं। वे सरकारी जॉब पाने की के लिए जमकर तैयारी भी करते हैं। लेकिन सीमित पदों के चलते हर किसी का यह सपना साकार नहीं हो पाता है। सरकारी नौकरी पाने के लिए मेहनत के साथ-साथ भाग्य की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हस्तरेखा विज्ञान में बताया गया है कि हथेली की लकीरों से यह ज्ञात किया जा सकता है कि व्यक्ति के भाग्य में सरकारी नौकरी के योग हैं या नहीं। हथेली में बनने वाले उभार, लकीर और निशान व्यक्ति के भाग्य बारे में बहुत कुछ बातें बताते हैं। इन्हीं में कुछ ऐसे निशान होते हैं जिनके माध्यम से सरकारी नौकरी का विचार किया जाता है। जैसे हथेली में सूर्य की दोहरी रेखा हो और बृहस्पति पर्वत पर क्रास हो तो व्यक्ति को सरकारी नौकरी की संभावना रहती है।
हथेली में सरकारी जॉब के संकेत
हथेली पर सूर्य पर्वत का बहुत महत्व होता है। सूर्य के प्रबल होने पर व्यक्ति का मान-सम्मान जीवनभर में बढ़ता रहता है। हथेली पर सूर्य पर्वत सबसे छोटी उंगुली के पहले वाली उंगली के नीचे होती है। (रिंग फिंगर के नीचे) अगर सूर्य पर्वत उभरा हुआ होता है और सूर्य पर्वत से सीधी रेखा निकलती हो तो ऐसे लोगों को सरकारी नौकरी मिलने की संभावना सबसे ज्यादा होती है।
हथेली में गुरु पर्वत का करते हैं विचार
हथेली पर गुरु पर्वत इंडेक्स फिंगर के नीचे होता है। गुरु पर्वत का उभार शुभ माना जाता है। साथ ही इस पर सीधी रेखा होने से ऐसे लोगों को भी सरकारी नौकरी मिलने की संभावना काफी ज्यादा रहती हैं।
गुरु पर्वत और भाग्यरेखा का संबंध
अगर जिनकी हथेली में भाग्य रेखा से कोई लकीर निकलकर गुरु पर्वत की और जाती है तो वह व्यक्ति बहुत भाग्यशाली होता है। ऐसा व्यक्ति प्रशासनिक अधिकारी बनता है। सरकारी क्षेत्र में व्यक्ति को उच्च पद प्राप्त होता है।
सूर्य पर्वत और भाग्यरेखा के शुभ संकेत
भाग्य रेखा से निकलकर कोई लकीर सीधे सूर्य पर्वत पर जाकर मिलने पर ऐसा व्यक्ति भाग्यशाली होता है। ऐसे लोग सरकारी सेवा से जुड़े रहते हैं। सरकारी क्षेत्र में ऐसे जातक बड़े पदाधिकारी बनते हैं। -
अमावस्या को विशेष तिथि माना जाता है। मान्यता है कि अमावस्या पर कुछ विशेष उपाय करने से जीवन में आ रही परेशानियों से मुक्ति पाई जा सकती है। इस दिन कुछ विशेष उपाय अवश्य करना चाहिए। आइए जानते हैं इन उपायों के बारे में। इस तिथि पर चंद्रमा दिखाई नहीं देता। इस दिन दान व उपाय करने से पितृ दोष, छाया दोष, मानसिक समस्याएं दूर हो जाती हैं। अमावस्या तिथि पितरों की तिथि कहलाती है। अमावस्या के दिन भूखे प्राणियों को भोजन कराएं। इस दिन चींटी, पक्षी, गाय, कुत्ता, कौवा आदि के लिए अन्न-जल की व्यवस्था करें। इस दिन व्यसनों से दूर रहना चाहिए। इसके सेवन से शरीर पर दुष्परिणाम हो सकते हैं। इस दिन चांदी या तांबे के गिलास में ही पानी पीना चाहिए। माथे पर चंदन या केसर का तिलक लगाएं। पीला वस्त्र, धार्मिक पुस्तक, पीले खाद्य पदार्थ दान करें। अमावस्या के दिन पितरों के निमित दान करना चाहिए। घर में सफाई कर चारों कोनों में गंगाजल का छिड़काव करें। अमावस्या के दिन पीपल का पूजन करना अति उत्तम माना जाता है। अमावस्या को खीर बनाकर ब्राह्मण को भोजन कराने से जीवन से अस्थिरता दूर हो जाती है। कालसर्प दोष निवारण के लिए सुबह स्नान के बाद चांदी से निर्मित नाग-नागिन की पूजा करें। सफेद पुष्प के साथ इसे बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। शाम के समय घर के ईशान कोण में गाय के घी का दीपक लगाएं। बत्ती में रूई के स्थान पर लाल रंग के धागे का उपयोग करें। दीये में थोड़ी-सी केसर भी डाल दें। ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
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हर साल कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस साल यह तिथि 30 अगस्त, दिन सोमवार को पड़ रही है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इसी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र और वृषभ लग्न में हुआ था। इस दिन घरों और मंदिरों में बाल गोपाल का विधि-विधान से पूजा की जाती है। भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए लोग व्रत रखते हैं। इस दिन वंशी वाले को उनकी प्रिय चीजों का भोग लगाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। इस साल जन्माष्टमी पर राशि के हिसाब से लगाएं भगवान श्रीकृष्ण को भोग-
मेष- इस राशि के लोग भगवान श्रीकृष्ण को माखन मिश्री का भोग लगाएं। इसके साथ ही उनका लाल रंग के वस्त्रों से श्रृंगार करें।
वृषभ- इस राशि के जातकों को माखन का भोग लगाना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से सभी दुखों से मुक्ति मिलती है।
मिथुन- इस राशि के जातकों को दही का भोग लगाना चाहिए। इसके साथ ही भगवान श्रीकृष्ण को चंदन का तिलक लगाएं।
कर्क- इस राशि के जातक बाल गोपाल को दूध और केसर का भोग लगाएं। इसके साथ ही उन्हें सफेद वस्त्र से श्रृंगार करें।
सिंह- इस राशि के जातक माखन और मिश्री का भोग लगाएं। इसके साथ ही कान्हा जी का श्रृंगार गुलाबी वस्त्रों से करें।
कन्या- इस राशि के जातक मावे का भोग लगाएं और बाल गोपाल का हरे रंग से श्रृंगार करें।
तुला- इस राशि के जातक भगवान श्रीकृष्ण को घी का भोग लगाएं और उनका गुलाबी रंग के वस्त्र से श्रृंगार करें।
वृश्चिक- इस राशि के लोग भगवान को माखन और दही अर्पित करें। इसके साथ ही उन्हें लाल वस्त्र पहनाएं।
धनु- इस राशि के जातक बाल गोपाल को पीले रंग से बनी मिठाई अर्पित करें और उन्हें पीले वस्त्र पहनाएं।
मकर- मकर राशि के लोग भगवान श्रीकृष्ण को मिश्री का भोग लगाएं। कान्हा जी को नीले रंग के वस्त्र पहनाएं।
कुंभ- जन्माष्टमी के दिन कुंभ राशि क जातक कान्हा को बालूशाही का भोग लगाएं और नीले रंग के वस्त्र पहनाएं।
मीन- मीन राशि के लोग कान्हा को केसर और बर्फी का भोग लगाएं और भगवान कृष्ण को पीले रंग के वस्त्र पहनाएं
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जन्माष्टमी का त्योहार हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों को इस खास दिन का बेसब्री से इंतजार रहता है। इस दिन लोग रात 12 बजे बाल गोपाल की पूजा करने के बाद व्रत खोलते हैं। भगवान विष्णु के 8वें अवतार भगवान कृष्ण ने कंस के कारागृह में देवकी की आठवीं संतान के रूप में जन्म लिया था।
साल 2021 में जन्माष्टमी का त्योहार 30 अगस्त को मनाया जाएगा। अष्टमी तिथि 29 अगस्त को रात 11 बजकर 25 मिनट पर शुरू होगी और 31 अगस्त की रात 1 बजकर 59 मिनट पर समाप्त होगी। रोहिणी नक्षत्र 30 अगस्त को सुबह 6 बजकर 39 मिनट पर प्रारंभ होगा, जो कि 31 अगस्त को सुबह 09 बजकर 44 मिनट पर समाप्त होगा। पूजा का समय 30 अगस्त की रात 11 बजकर 59 मिनट से 12 बजकर 44 मिनट तक रहेगा। पूजा के शुभ समय की कुल अवधि 45 मिनट की है।
जन्माष्टमी के दिन न करें ये काम
भगवान ने प्रत्येक इंसान को समान बनाया है इसलिए किसी का भी अमीर-गरीब के रूप में अनादर या अपमान न करें। लोगों से विनम्रता और सहृदयता के साथ व्यवहार करें। आज के दिन दूसरों के साथ भेदभाव करने से जन्माष्टमी का पुण्य नहीं मिलता।
शास्त्रों के अनुसार, एकादशी और जन्माष्टमी के दिन चावल या जौ से बना भोजन नहीं खाना चाहिए। चावल को भगवान शिव का रूप भी माना गया है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जन्माष्टमी का व्रत करने वाले को भगवान श्रीकृष्ण के जन्म होने तक यानी रात 12 बजे तक ही व्रत का पालन करना चाहिए। इससे पहले अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए। बीच में व्रत तोडऩे वालों को व्रत का फल नहीं मिलता।
मान्यता है कि जन्माष्टमी के दिन स्त्री-पुरुष को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। ऐसा न करने वालों को पाप लगता है।
मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण को गौ अति प्रिय हैं। इस दिन गायों की पूजा और सेवा करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। किसी भी पशु को सताना नहीं चाहिए।
मान्यता है कि जिस घर में भगवान की पूजा की जाती हो या कोई व्रत रखता हो उस घर के सदस्यों को जन्माष्टमी के दिन लहसुन और प्याज जैसी तामसिक चीजों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। इस दिन पूरी तरह से सात्विक आहार की ग्रहण करना चाहिए। -
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 377
'काशी विद्वत परिषत' ने श्री कृपालु जी महाराज को 'पंचम मूल जगदगुरु' की उपाधि से विभूषित करते हुये उन्हें सम्मान स्वरूप 'पद्यप्रसूनोपहार' अर्पित किया था, जिसके तीसरे श्लोक में उन्होंने यह भाव व्यक्त किये थे (केवल भावार्थ लिखा जा रहा है) -
'...श्री कृपालु जी का प्रवचन नूतन जलधार की गर्जना के समान है। यह नास्तिकता से पीड़ित मन की व्यथा को हरने वाला है। प्रवचन को सुनकर चित्तरूपी वनस्थली दिव्य भगवदीय ज्ञान के अंकुर को जन्म देती है। कुतर्क युक्त विचारों से विक्षिप्त तथा दुर्भावना के भूत से पीड़ित मनुष्यों की रक्षा करने में श्री कृपालु जी महाराज अमृत औषधि के समान हैं। इनकी सदा ही जय हो...' (मकर संक्रान्ति, वि. 2023)उपरोक्त उक्ति सहज ही अनुभवगम्य है, आचार्यवर जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज का प्रवचन भवबंधन का नाश कर प्रेमामृत का दान कर देने वाला है। आइये आज के अंक में उनके श्रीमुख से निःसृत अमृत कणों का रसपान करें...★ 'जगदगुरुत्तम-ब्रज साहित्य'(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित साहित्य/ग्रन्थ)श्याम मारि असुरन देवें निज धामा।श्यामा बिनु हेतु बाँटें प्रेम निष्कामा।।भावार्थ ::: नंदनंदन असुरों का वध कर तब उन्हें अपना धाम प्रदान कर पाते हैं। पूतना, शकटासुर, तृणावर्त, बकासुर, अघासुर आदि को मारकर ही श्रीकृष्ण ने उन्हें अपना धाम प्रदान किया। प्रेममयी राधा तो बिना किसी कारण के ही निष्काम प्रेम बाँटती रहती हैं।• सन्दर्भ ग्रन्थ ::: श्यामा श्याम गीत, दोहा संख्या 488----------------★ 'जगदगुरुत्तम-श्रीमुखारविन्द'(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा निःसृत प्रवचन का अंश)श्री राधारानी की कृपा प्राप्त करने के लिए क्या साधना करनी होगी?– अरे ! ये ही तो साधना है कि वो बिना कारण के कृपा करती हैं ये फेथ करो। यही साधना है। जो कीर्तन करते हो तुम यही तो साधना करते हो न। उस कीर्तन का मतलब क्या? रोकर उनको पुकारो कि तुम कृपा करो। यही साधना है। इसी से अंतःकरण शुद्ध होता है। मन को शुद्ध करने के लिए साधना होती है। फिर उसके बाद वो कृपा से प्रेम देती हैं। उनका लाभ तो कृपा से मिलता है। तुम्हारा काम तो मन को शुद्ध करना है। और मन शुद्ध करने के लिए उनको पुकारना है। बस यही साधना है।• संदर्भ पुस्तक ::: प्रश्नोत्तरी भाग – 3, पृष्ठ संख्या 9★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हाथ की लकीरें जिंदगी के बारे में अच्छी-बुरी तमाम जानकारियां देती हैं. यदि कुछ घटनाओं के बारे में पहले से जानकारी मिल जाए तो उनके शुभ फल को बढ़ाया जा सकता है और अशुभ फल को कम किया जा सकता है. आज हम ऐसी रेखाओं के बारे में जानते हैं जो व्यक्ति को गरीब (Poor) बनाती हैं या धन हानि होने का संकेत देती हैं. यदि समय पर उपाय कर लिया जाए तो ऐसी स्थितियों को टाला जा सकता है. इसके लिए विशेषज्ञ से मार्गदर्शन लेना उचित होता है.- यदि जातक की हथेली में भाग्य रेखा हृदय रेखा पर आकर खत्म हो या शरीर के बाकी अंगों की तुलना में हथेली ज्यादा सख्त हो तो ऐसे लोगों को जिंदगी में पैसे की समस्या से जूझना पड़ता है. साथ ही बहुत मेहनत के बाद उन्हें पर्याप्त आय नहीं होती है. ऐसे लोगों को अपने कार्यस्थल पर सियार सिंगी यंत्र की स्थापना करने और उसके बाद सोने की भस्म से स्नान करने से लाभ होगा.- भाग्य रेखा का मोटा होना या जीवन रेखा के पास होना भी पैसे की समस्याएं होने का संकेत है. इन लोगों को विशेषज्ञ से सलाह लेकर नवग्रह पूजा कराने से लाभ होगा. साथ ही उन्हें गृह शुद्धि भी करवानी चाहिए.- भाग्य रेखा अस्पष्ट होना भी पैसे की तंगी का इशारा देता है.- शनि, बुध और गुरु पर्वत का कम विकसित होना भी आर्थिक समस्याओं का इशारा देता है. ऐसे लोगों को बिजनेस में नुकसान हो सकता है. इससे बचने के लिए मां बगलामुखी और मां लक्ष्मी की आराधना करनी चाहिए.- जीवन रेखा का एकदम सीधी होना या भाग्य रेखा का मस्तिष्क रेखा पर खत्म होना भी अच्छा नहीं माना जाता है. इन लोगों को भी शनिदेव और मां लक्ष्मी की पूजा-उपासना करना चाहिए, ताकि उनकी आर्थिक स्थिति संभली रहे.