- Home
- धर्म-अध्यात्म
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 315
★ भूमिका - आज के अंक में प्रकाशित दोहा तथा उसकी व्याख्या जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ग्रन्थ 'भक्ति-शतक' से उद्धृत है। इस ग्रन्थ में आचार्यश्री ने 100-दोहों की रचना की है, जिनमें 'भक्ति' तत्व के सभी गूढ़ रहस्यों को बड़ी सरलता से प्रकट किया है। पुनः उनके भावार्थ तथा व्याख्या के द्वारा विषय को और अधिक स्पष्ट किया है, जिसका पठन और मनन करने पर निश्चय ही आत्मिक लाभ प्राप्त होता है। आइये उसी ग्रन्थ के 89-वें दोहे पर विचार करें, जिसमें आचार्यश्री ने यह बताया है कि भक्ति अथवा भगवान के दिव्य प्रेमराज्य के 'दुःख' की दिव्यता कैसी होती है, कैसे वह संसार के दुःख से सर्वथा भिन्न होता है जो भक्त/प्रेमी को अनंतानंत आनन्द देता रहता है...
मिलन पाय पिय विरह भय, विरह पाय नहिँ चैन।दुहुँन भांति अस दिव्य दुख, पाव रसिक दिन रैन।।89।।
भावार्थ - श्यामसुन्दर के मिलन काल में भक्तों को यह भय रहता है कि कहीं वियोग न हो जाय। अतः दुःखी रहता है। वियोग में तो दुःखी होना स्वाभाविक है ही। इस प्रकार मिलन एवं वियोग दोनों ही दशाओं में भक्तों को दिव्य दुःख मिलता है।
व्याख्या - दिव्य प्रेम में यह विशेष विलक्षणता होती है कि श्याम मिलन की अवस्था में भी यह भय बना रहता है कि यदि कभी वियोग हो गया तो कैसे जीवित रह सकूँगा। नियम यह है कि जिस वस्तु के मिलन में जितना सुख मिलता है, उस वस्तु के वियोग में उतना ही दुःख मिलता है। अनन्त मात्रा के ब्रह्मानन्द का भी अनन्त गुना आनन्द प्रेमानन्द है। अतः उसके वियोग का दुःख भी अनन्त मात्रा का ही होगा। श्रीकृष्ण प्रेम में दोनों की ऐसी दशा हो जाती है कि मिलन काल में भी वियोग का अनुभव होने लगता है। राधा-कृष्ण एक दूसरे का आलिंगन करते-करते ही एक दूसरे से कहने लगते हैं कि मेरी राधा कहाँ चली गई? मेरे श्यामसुन्दर कहाँ चले गये? की बुद्धि से भी परे हैं। संसार में तो मिलन में भी अल्प सुख मिलता है। अतः वियोग में भी अल्प ही दुःख मिलता है। अतः मिलन दशा में वियोग का चिंतन संसारी प्रेम में नहीं होता। फिर भी कभी-कभी यह झलक आ ही जाती है कि कहीं यह सुख छिन न जाय। किंतु श्रीकृष्ण प्रेम में यह स्वाभाविक रूप से होता रहता है। एक रसिक इसी बात को निम्न शब्दों में व्यक्त करता है। यथा;
अदृष्टे दर्शनोत्कंठा दृष्टे विश्लेषभीरुता।नादृष्टेन न दृष्टेन भवता लभ्यते सुखम्।।
अर्थात् वियोग में तो दर्शन की व्याकुलता का दुःख रहता है एवं मिलन दशा में यह दुःख रहता है कि कहीं वियोग न हो जाय। अतः दोनों ही दशाओं में दुःख ही दुःख है। किंतु यह समझे रहना चाहिये कि यह वियोग दुःख, मिलन के सुख से भी अधिक मधुर होता है। श्रीकृष्ण प्रेम (दिव्य) एवं संसारी प्रेम (आसक्ति) में यही प्रमुख अन्तर है। यही कारण है कि रसिकों ने दिव्य प्रेम को विषामृत की संज्ञा दी है। अर्थात् संयोग में संयोग, संयोग में वियोग, वियोग में वियोग, वियोग में संयोग का विचित्र अनुभव होता है। प्रत्येक दशा में अनन्त अनिर्वचनीय प्रतिक्षण वर्धमान इत्यादि। सखियाँ अनेक प्रकार के उपचार करती हैं। दोनों को स्वस्वरूप का बोध कराती हैं। फिर भी दोनों समाधि दशा में वियोग का ही अनुभव चिरकाल तक करते रहते हैं। यह अवस्थायें परमहंसों दिव्यानन्द प्राप्त होता है। वहाँ दुःख का प्रवेश हो ही नहीं सकता। क्योंकि दुःख तो माया का विकार है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'भक्ति शतक' ग्रन्थ, दोहा संख्या 89०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 314
आज अनेक प्रकार के मार्ग, अनेक प्रकार के सम्प्रदाय चल रहे हैं। एक प्रश्न स्वाभाविक मस्तिष्क में उठता है, हमारे यहाँ शास्त्रों, वेदों में अनेक प्रकार के मत क्यों बन गये हैं? तथा इन विविध मतों में कौन सत्य है? कौन असत्य है?
एक बार उद्धव जी ने भी श्रीकृष्ण से यह प्रश्न किया था। बात यह है कि भगवान ने तो सर्वप्रथम वेदों के द्वारा केवल अपने निज भागवत धर्म का ही उपदेश किया था, किन्तु अनंतानंत जन्मों के संस्कारों के कारण तथा सत, रज, तम गुणों से युक्त बुद्धि होने के कारण एवं अनंत प्रकार की रुचि वैचित्र्य होने के कारण इस दिव्य वेद वाणी का साधकों ने अनेकानेक अर्थ कर डाला, जिसके परिणामस्वरूप अनेकानेक मत बन गये। उसमें कुछ सत्य भी हैं, कुछ असत्य भी हैं। कुछ मत तो ऐसे हैं जो कि शास्त्रों वेदों के भी विपरीत, दम्भीयों ने बीच में ही गढ़ लिया है। यह प्रश्न एक समुद्र मंथन के समान है।
कुछ शास्त्रकार धर्म को, कुछ यश को, कुछ सत्य को, कुछ शम दमादि को, कुछ यम नियमादि को, कुछ जप को, कुछ तप को, कुछ यज्ञ को, कुछ दान को, कुछ व्रत को, कुछ आचार को, कुछ योगादि को, इत्यादि विविध प्रकार के साधनों को कल्याण का साधन बताते हैं, किन्तु वास्तव में इन साधनों से वास्तविक कल्याण नहीं होता, क्योंकि इन साधनों के परिणामस्वरूप जो लोक मिलते हैं वे आदि-अंत वाले होते हैं। उनके परिणाम में दुःख ही दुःख होता है। वे अज्ञान से युक्त होते हैं। वहाँ भी अल्प एवं क्षणभंगुर ही सुख मिलता है तथा वे स्वर्गादि समस्त लोक, शोक से परिपूर्ण होते हैं। अतएव उसकी प्राप्ति, तत्वज्ञ पुरुष नहीं करता, एवं उसे भी इसी लोक के सदृश असत्य समझकर परित्याग कर देते हैं।
सत्य मार्ग यह है कि जीव, एकमात्र पूर्णतम पुरुषोत्तम आनंदकंद सच्चिदानंद श्रीकृष्णचन्द्र के चरणों में ही अपने आपको समर्पित कर दे, एवं उन्हीं के नाम, गुण, लीलादिकों का स्मरण करता हुआ रोमांच युक्त होकर, आनंद एवं वियोग के आँसू बहावे। अपने हृदय को द्रवीभूत कर दे तथा मोक्षपर्यन्त की समस्त इच्छाओं का सर्वथा त्याग कर दे। इस प्रकार बिना किये अन्तःकरण शुद्धि नहीं हो सकती। स्मरण रहे, सत्य एवं दया से युक्त धर्म एवं तपश्चर्या से युक्त विद्या भी भगवान की भक्ति से रहित जीव को पूर्णतः शुद्ध नहीं कर सकती।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश, मार्च 2002 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - सभी राशियों पर पड़ेगा असर5 राशियों के लोगों को आ सकती हैं मुसीबतेंज्योतिष में गुरु (ज्यूपिटर) ग्रह और उनकी चाल बहुत अहम मानी गई है. गुरु का संबंध व्यक्ति की आर्थिक स्थिति, उसके ज्ञान और बुद्धिमत्ता से होता है. 20 जून 2021 से गुरु वक्री होने जा रहे हैं. वे कुंभ राशि में वक्री चाल से गोचर करेंगे और सितंबर के मध्य तक रहेंगे. इसका असर सभी 12 राशियों पर पड़ेगा लेकिन 5 राशियां ऐसी हैं, जिनके जातकों को गुरु की वक्री चाल के कारण कई परेशानियां हो सकती हैं. जानते हैं कि गुरु की वक्री चाल कौनसी राशियों पर नकारात्मक असर डालेगी---मेष: गुरु इस राशि में 11वें भाव में रहेंगे. इसे लाभ का भाव कहा जाता है, यहां गुरु का वक्री होना आर्थिक नुकसान करा सकता है. इस समय निवेश करते समय खासी सावधानी बरतनी चाहिए. साथ ही इस दौरान ना तो उधार लें और न दें.उपाय- अच्छे नतीजों के लिए इस राशि के जातक गुरुवार के दिन पीले कपड़े पहनें.मिथुन: वक्री गुरु इस राशि के नवम भाव में रहेंगे. यह धर्म, अध्यात्म और भाग्य का भाव होता, लिहाजा बहुत मेहनत से ही फल मिलेगा. इसके अलावा पिता के साथ बातचीत करते समय सावधानी बरतें, वरना विवाद की स्थिति बन सकती है.उपाय- पिता, बुजुर्गों और गुरुओं का सेवा-सम्मान करें.सिंह: इस राशि के सप्तम भाव में वक्री गुरु रहेंगे, जो कि दांपत्य जीवन में परेशानी का कारण बन सकता है. गुरु की उलटी चाल चलने के दौरान जीवनसाथी के साथ आपके मतभेद हो सकते हैं. लिहाजा अपनी बात और भावनाएं सोच-समझकर ही अपने जीवन साथी के सामने व्यक्त करें.उपाय- गुरुवार के दिन पीली वस्तुओं का दान करें.धनु: धनु राशि का स्वामी ग्रह गुरु ही है, लिहाजा इनकी उलटी चाल इस राशि के लोगों पर बुरा असर डाल सकती है. इस दौरान धनु राशि के जातक स्पष्ट बात करने में मुश्किल महसूस कर सकते हैं. साथ ही साहस भी कुछ कम रहेगा. छोटे भाई-बहनों के साथ मनमुटाव की संभावना है.उपाय- नकारात्मक असर को कम करने के लिए गुरुवार के दिन केले के पेड़ की पूजा करें.मीन: इस राशि के लोग शुभ कार्यों पर ज्यादा खर्च कर सकते हैं. इन लोगों के बनते काम बिगड़ सकते हैं, घर में कलह हो सकती है. यात्रा का योग भी बनेगा.उपाय- ध्यान-धर्म करें इससे तनाव कम होगा.
- वास्तुशास्त्र के अंतर्गत घर की नकारात्मकता ऊर्जा को दूर करने के लिए कई उपाय बताए गए हैं, इन्हीं में से एक है नमक के पानी का पोंछा लगाना। माना जाता है कि घर की साफ-सफाई करते समय यदि पानी में थोड़ा सा नमक डालकर पोंछा लगाया जाए तो घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है। जिससे घर में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है और आपके जीवन की परेशानियां दूर होती है। लेकिन क्या आपको पता है कि नमक के पानी का पोंछा लगाने से पहले कुछ बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है। तो चलिए जानते हैं कि वास्तुशास्त्र के इस उपाय को करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।दूसरों की नजर से बचाएंयदि आप अपने घर में पोंछा लगाने जा रहें हैं और उसी समय कोई आ जाए तो उसके सामने पानी में नमक न मिलाएं। इसके साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि यदि आपके घर साफ-सफाई के लिए कोई हेल्पर है तो पोंछे वाले पानी में नमक डालते समय उसकी नजर भी नहीं पडऩी चाहिए। माना जाता है कि यदि इस कार्य को करते समय किसी बाहर के व्यक्ति की नजर पड़ जाए तो इस उपाय का कोई प्रभाव नहीं रह जाता है। इस कारण आपको कोई लाभ नहीं मिलता है।सप्ताह के दिनों का ध्यान रखेंकुछ लोग प्रतिदिन पानी में नमक डालकर पोंछा लगाते हैं, लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। सप्ताह के हर दिन पानी में नमक मिलाकर पोंछा नहीं लगाना चाहिए। वास्तुशास्त्र के खासतौर पर गुरुवार के दिन ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए। इसके अलावा मंगलवार और रविवार को भी पानी में नमक डालकर पोंछा नहीं लगाना चाहिए।घर में न फेंके पोंछे का पानीयदि आप नमक डालकर पोंछा लगाते हैं तो उस पानी को भूलकर भी घर में न फेंके। पोंछा लगा हुआ पानी हमेशा घर के बाहर नाली में फेंकना चाहिए। माना जाता है कि यदि आप वह पानी घर में ही फेंकते हैं तो नकारात्मक ऊर्जा घर में ही रह जाती है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 313
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने इस उद्धरण में समझाया है कि कैसे हम छोटी-छोटी सी बात पर अपना आपा खो बैठते हैं। जब हमारे विपरीत कोई बात होती है तो कैसे अपनी बुद्धि को संतुलित रखना है, साथ ही संसार में व्यवहार मात्र करते हुये कैसे अपने अन्तःकरण में एकमात्र हरि-गुरु सम्बन्धी सामग्री को ही प्रवेश देना है आदि विषयों की ओर आचार्यश्री ने इंगित किया है...)
...कभी कभी इतना अधिक गुस्सा आता है हम लोगों को कि बाप, माँ, बेटा, स्त्री, पति को भी अंड-बंड बोल जाते हैं। उस समय अगर कोई वीडियो कैसेट बना ले और बाद में आप उसको देखें तो अपनी शक्ल देखकर खुद ही कहें अरे मुझे क्या हो गया था? मैं ऐसा हो गया था? अपने बाप को ही मैनें बक दिया तमाम सारा। अपने पति को ही मैंने गालियाँ बक दी। ये सब बात कब आप महसूस करेंगे जब नॉर्मल हो जायेंगे।
और फिर फील करते हैं आप लोग, ऐ! क्या मुझको हो गया था? मुझको गुस्सा क्यों आया अंड-बंड बक गया मैं!! बड़ा गधा हूँ मैं!! लेकिन उस समय पागल हो गये थे। इसलिये बोल रहे थे। होश में नहीं थे उस समय। बाद में होश में आये तो भी क्या होता है? और फिर ये दौरा पड़ता ही रहता है। दिन में कई बार। महीने में बहुत जोर से, कभी-कभी साल में तो कभी-कभी ये नौबत आ जाती है कि मैं मर जाऊँ तो अच्छा। यहाँ तक पहुँच जाते हैं आप लोग। तो हैं सब पागल। तो पागल को पागल कहें तो क्यों बुरा मानो भाई। जैसे तुम, वैसे हम।
सोचो क्या बात है? नकटा नकटे को नकटा कहे तो नकटे को हँसना चाहिये कि जरा अपनी नाक को देख लो। हमको नकटा कह रहे हो तुम भी तो वैसे ही हो यार। अपन एक पार्टी के हैं। अपनी बड़ी-बड़ी मैज्योरिटी है। अरे तुलसीदास, सूरदास तो इने-गिने हुये हैं तो हम तो बहुत ज्यादा हैं। हाँ आपस में क्यों बुराई करते हो, दोनों एक से हैं बिल्कुल। तुम्हारा टैम्प्रेचर हाई हो गया गुस्से का, हमारा एक घण्टे बाद हो जायेगा और क्या फर्क है। वो सब के पास है। जैसा वातावरण मिलेगा वही दोष बलवान हो जायेगा।
गेहूँ आप लोग देखते हैं। बोरे में गेहूँ बन्द है, चार महीने से वैसा का वैसा है लेकिन जब उसको मिट्टी में डाल दिया, पेड़ बन गया। फल लग गये। उसी प्रकार सारे दोषों का जो बीज है हमारे अन्तःकरण में बैठा है, जिसका वातावरण मिल जाय बस वही बलवान हो जाता है। दिन में सैकड़ों बार दौरे पड़ते हैं। एक दो बार नहीं इतना सारा परिवर्तन हो रहा है हमारे अन्तःकरण में और हम समझ नहीं पाते ये क्या बीमारी है? बोल रहे हैं लेकिन हमारे पास समय नहीं है सोचने का कि ये बीमारी है क्या और क्या इसका इलाज है? सबका इलाज है। पहले बीमारी तो मानो। तुम तो बीमारी ही नहीं मानते। ये मुश्किल है। तो इलाज कैसे हो? क्यों नहीं मानते? सभी ऐसे हैं। इसलिये क्यों मानें? उसके बेटे ने भी डाँटा था। हमारे बेटे ने भी डाँट दिया। ठीक है। उसके पति ने बीबी को डाँटा, हमारे पति ने डाँटा ठीक है। सब हो रहा है, ये सब चल रहा है।
लेकिन हमको फील करना चाहिये कि इस सब स्वरूप को समझकर फील ना करें। अंदर (अन्तःकरण) न जानें दें गंदी चीज। अंदर तो केवल भगवान, उनका नाम, उनका गुण, उनका रूप, उनकी लीला, उनका धाम, उनके संत - बस इतने हमारे अन्तःकरण में जायें। बाकी को बाहर रखें। चारों ओर बिठा लो अपने, कोई बात नहीं। अंदर न जाने दो। नहीं तो वैसे ही मन गन्दा है और हो जायेगा। परत की परत मैल जम जायेगी उसमें। यानी प्यार भगवाब के क्षेत्र में ही हो। व्यवहार संसार भर में हो।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'अध्यात्म संदेश' पत्रिका, अक्टूबर 2006 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 312
साधक का प्रश्न ::: संत के साथ जब रहते हैं तो ये सत्संग हुआ, और जो घर में जाकर फोटो वगैरह रखकर सत्संग करते हैं क्या वो भी सत्संग हुआ?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: हाँ वो भी सत्संग है। वो नम्बर दो का है। संत के मुख से सत्संग मिले वो नंबर एक है। अधिक प्रभावशाली होता है। उसी बात को, संत की बात को एक सत्संगी बोले और बाकी लोग सुनें उसका भी लाभ है, उतना नहीं है। बस इतना सा अन्तर है। लेकिन कूड़ा-कबाड़ा संसार की बात करना या सुनना या सोचना - उससे हजार गुना अच्छा है भगवान और गुरु की बात सोचना, सुनना, पढ़ना, बोलना। लेकिन वास्तविक तो;
सतां प्रसंगान्मम वीर्यसंविदो भवन्ति हृत्कर्णरसायना: कथाः।तज्जोषणादाश्चपवर्गवत्-र्मनि श्रद्धा रतिर्भक्तिरनुक्रमिष्यति।।(भागवत 3-25-25)
श्रद्धा पहली आवश्यक वस्तु है। 'सतांप्रसंगान' स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि असली संत के द्वारा तो सत्संग मिलता ही है और जो मेरी अलौकिक लीला, नाम, गुणादि का जो प्रसंग प्राप्त करता है कोई साधक, उसके लगातार सेवन से सत्संग मिलता रहे बार-बार, तो 'श्रद्धा रतिर्भक्तिरनुक्रमिष्यति' श्रद्धा भी अपने-आप पैदा हो जायेगी। श्रद्धा के बाद रति होती है (भाव-भक्ति) वो भी मिल जायेगी और उसके बाद प्रेम (असली भक्ति) वो भी, क्रम से तीनों मिल जायेंगी। सत्संग किया जाय। तो सत्संग, सत् भी सही हो। रसिक संत हो, उसके पास दिव्य प्रेम हो और संग भी सही हो।
यानी हमारा मन, हमारी बुद्धि उसमें आसक्त हो, संत की वाणी में। यानी हम भोले बनकर और संत की वाणी पर विश्वास करके सुनें, वो सत्संग है। जैसे एक पारस है, एक लोहा है। पास-पास कर दो तो भी सोना नहीं बनेगा। संग हो। संग माने सेंट परसेन्ट शरणागति। खास तौर से मन की। शरीर की शरणागति मात्र से काम नहीं बनेगा कि उठाया खोपड़ी को पैर पर रख दिया। ये सिर को पैर पर रखने का अभिप्राय तो ये है कि मैं अपना सब कुछ आपको अर्पित करता हूँ। अब अर्पित न करे, केवल सिर धर दे पैर के ऊपर, सुन ले सत्संग, गुरु के वाक्यों को और समझ में भी आ जाये, सिर भी हिला दे और प्रैक्टिकल अमल न करे, तो फिर वो सत्संग नहीं है।
सत्संग का मतलब असली सत्, असली संग। संत, सत्, महात्मा, गुरु, महापुरुष - ये सब एक नाम हैं। जो भगवान को पा ले वही सही है, उसी को सत् कहते हैं। और जो भगवान से दूर रहे, संसार में अटैच्ड है जिसका मन, वो असत्। बस दो ही चीज तो है - एक ब्रह्म, एक माया। ज्यादा गड़बड़ है ही नहीं, तमाम समझने की जरूरत नहीं। सीधी-सीधी बात है, गधे की अकल समझ सकती है। बस दो, अच्छा-बुरा, लाभ-हानि।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'साधन-साध्य' पत्रिका, जुलाई 2011 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 311
(स्वरचित पद 'प्राणधन जीवन कुँज बिहारी' की व्याख्या का अंश, जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज ने यह व्याख्या सन 1981 में 10-प्रवचनों में की थी...)
गौरांग महाप्रभु ने पहला शब्द यही लिखा है;
तृणादपि सुनीचेन तरोरपि सहिष्णुना।अमानिना मानदेन कीर्तनीयः सदा हरि:।।(शिक्षाष्टक - 3)
...अगर किसी को ईश्वर की कृपा प्राप्त करना है, तो तृण से बढ़कर दीन भाव लाओ, तृण से बढ़कर दीन भाव। अरे सचमुच की बात है, क्या है तुम्हारे पास जो अहंकार करते हो। है क्या? क्यों समझते हो, सोचते हो, फील करते हो कि हम भी कुछ हैं। अरे क्या हो तुम? और अगर यह शरीर छूट जायेगा तो उसके बाद फिर कुत्ता बनना पड़े, कि बिल्ली, कि गधा, कि पेड़, कि कीट पतंग, कहाँ जाओ तब तुमसे हम बात करें कि क्यों जी ऐ नीम के पेड़! तुम डि. लिट्. प्रोफेसर वही थे न, पिछले जन्म में?
हमने कहा था ईश्वर की शरण में चलो, दीनता लाओ। तो तुमने कहा था हम ऐसे अन्धविश्वासी नहीं हैं, डि. लिट्. हैं। अब क्या हाल है, नीम के पेड़ बने हो। हाँ जी। वह गलती हो गई, उस समय पता नहीं क्या दिमाग खराब था। अहंकार में डूबे हुये थे। श्यामसुन्दर के आगे भी दीन नहीं बन सके। दीनता के बिना साधना नहीं हो सकती, कोई गुंजाइश नहीं।
एक वेंकटनाथ नाम के महापुरुष हुये हैं। वह वेंकटनाथ ईश्वर की ओर जब चलने लगे, बड़े आदमी थे। और जोरदार आगे बढ़े, तो तमाम विरोध हुआ। सभी महापुरुषों के प्रति होता है। तो उनके विरोधियों ने उनके आश्रम के गेट पर जूते की माला बनाकर टाँग दी कि यह नशे (भगवत्प्रेम/स्मृति का नशा) में तो चलते ही हैं, इनके सिर में लगेगी तो हम लोग हँसेंगे। हा हा हा हा जूता सिर में लग रहा है तुम्हारे। वो अपना बाहर से नैचुरेलिटी में जा रहे थे तो जूते की माला जो लटका रक्खा था मक्कारों ने, नास्तिकों ने, वह सिर में लगी, उन्होंने देखा और हँसने लगे।
अब लोग दूर खड़े देख रहे थे जिन्होंने नाटक किया था कि यह गुस्से में आयेंगे, फील करेंगे फिर हम लोग हँसेंगे, फिर हमसे कुछ बोलेंगे फिर हम बोलेंगे, अब वह उसको देखकर हँसने लगे और कहते हैं;
कर्मावलम्बकाः केचित् केचित् ज्ञानावलम्बकाः।
कुछ लोग कर्म मार्ग का अवलम्ब लेते हैं, कुछ लोग ज्ञान मार्ग का अवलम्ब लेते हैं। और,
वयं तु हरिदासानां पादरक्षावलम्बकाः।।
और हम तो भगवान के जो दास हैं, वह उनका जो पाद रक्षा है जूता, सौभाग्य से हमको वह मिल गया। हमारा तो उसी से काम बन जायेगा, हम क्यों कर्म, ज्ञान, भक्ति के चक्कर में पड़ें। अब वह विरोधी लोग देखें कि अरे! यह तो उलटा हो गया। हम तो समझ रहे थे कि गुस्सा करेगा फिर बात बढ़ेगी और फिर हम लोग भी अपना रौब दिखायेंगे, गाली गलौज होगी। अरे! यह तो देखकर हँस रहा है और कहता है;
वयं तु हरिदासानां पादरक्षावलम्बकाः।।
यह दीनता है, यह आदर्श है, ईश्वर प्राप्ति की जिसको भूख हो, ऐसे बनना पड़ेगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्राणधन जीवन कुँज बिहारी' स्वरचित पद की व्याख्या०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - गुरुवार 10 जून को शनि जयंती का पावन दिन है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान शनि का जन्म हुआ था। शनि को ज्योतिष में पापी और क्रूर ग्रह कहा जाता है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या की वजह से व्यक्ति का जीवन बुरी तरह से प्रभावित हो जाता है। व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शनि जयंती के पावन दिन विधि- विधान से शनि महाराज की पूजा- अर्चना की जाती है। इस दिन ये छोटा सा उपाय करने से भगवान शनि प्रसन्न हो जाते हैं। धार्मिक कथाओं के अनुसार राजा दशरथ ने भी इसी उपाय से भगवान शनि को प्रसन्न किया था। शनि जयंती के पावन दिन शनि देव की कृपा प्राप्त करने के लिए दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ जरूर करें। दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करने से शनि देव का आर्शाीवाद मिलता है।दशरथ कृत शनि स्त्रोतनम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:।त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत।एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल:।।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 310
★ भूमिका - आज के अंक में प्रकाशित दोहा तथा उसकी व्याख्या जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ग्रन्थ 'भक्ति-शतक' से उद्धृत है। इस ग्रन्थ में आचार्यश्री ने 100-दोहों की रचना की है, जिनमें 'भक्ति' तत्व के सभी गूढ़ रहस्यों को बड़ी सरलता से प्रकट किया है। पुनः उनके भावार्थ तथा व्याख्या के द्वारा विषय को और अधिक स्पष्ट किया है, जिसका पठन और मनन करने पर निश्चय ही आत्मिक लाभ प्राप्त होता है। आइये उसी ग्रन्थ के 90-वें दोहे पर विचार करें, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण के 'अधम-उधारन' नाम/स्वरूप की चर्चा है, जिसे सुनकर पतितजनों के मन में अपने उद्धार की आशा जगती है...
अधम उधारन नाम सुनि, उर आशा बढ़ि जात।भक्ति वश्य सुनि नाम पै, मन महँ अति डरपात।।90।।
भावार्थ - हे श्रीकृष्ण ! तुम्हारा पतित पावन नाम सुनकर मन में साहस होता है, क्योंकि मैं पतित हूँ, मेरा भी काम बन जायगा। किंतु जब भक्त वत्सल, भक्तिवश्य आदि नाम सुनता हूँ तो निराशा छा जाती है। डर लगने लगता है।
व्याख्या - भगवान् श्रीकृष्ण के अनन्त स्वरूप हैं। अनन्त लीलायें हैं। अतः तदनुसार अनन्त नाम भी हैं। जैसे एक स्वरूप है ब्रह्म। वह अकर्ता है। एक स्वरूप है परमात्मा। वह न्याय करता है। सबके कर्मों का फल देता है। इस स्वरूप से भी किसी का काम नहीं बनता। क्योंकि प्रत्येक जीव के अनन्त जन्म हो चुके, अतः अनन्त पाप पुण्य भी हो चुके। यदि कोई भगवत्प्राप्ति भी कर ले और भविष्य के कर्मबन्धन से अवकाश भी प्राप्त कर ले तो न्याय के अनुसार पिछले अनन्त संचित कर्मों को तो भोगना ही चाहिये। और वे कर्म अनन्त हैं, अतः अनन्तकाल तक भोगकर भी अनन्त ही शेष रहेंगे। अर्थात् अनन्त होने के कारण भूतकाल के कर्मभोगों का कभी अन्त ही न होगा। तो फिर ऐसी भगवत्प्राप्ति या मुक्ति का प्रयोजन ही निरर्थक हो जायगा। अब तीसरे स्वरूप पर विचार करना है। यह है श्रीकृष्ण भगवान् का स्वरूप। इसी से काम बनेगा। इस स्वरूप ने नियम बनाया है कि यदि कोई जीव मेरी शरण में आ जायगा तो उसके पिछले सब पाप पुण्य समाप्त कर दूंगा। यथा गीता;
सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।(गीता 18-66)
इतना ही नहीं वरन् भविष्य का ठेका भी लेने की प्रतिज्ञा है। यथा;
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥(गीता 9-22)
येतु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्पराः।अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते॥(गीता 12-6)
तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात्।।(गीता 12-7)
इस प्रकार भूतकाल भी बन गया एवं भविष्य काल भी बन गया। वर्तमान तो बना ही है। और यह माया-निवृत्ति एवं आनन्द प्राप्ति सदा को मिल जाती है।
सदा पश्यन्ति सूरयः।(सुबालोपनिषद् , छठवाँ मंत्र , मुक्तोपनिषद् )
शरणागति भी 2 प्रकार के लोगों की होती है। प्रथम - पतितों की शरणागति। द्वितीय - भक्तों की शरणागति। इन दोनों में पतितों की शरणागति से ही आशा होती है क्योंकि भगवत्प्राप्ति के पूर्व सभी पतित होते हैं। भक्ति प्राप्त होने पर तो भक्तवत्सल नाम उन भक्तों के ही काम का है। अतः पतित साधक तो भक्त वत्सल नाम से भयभीत ही होता है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'भक्ति शतक' ग्रन्थ, दोहा संख्या 310०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 309
(आध्यात्म तथा भौतिक, दोनों प्रकार के लोगों के लिये मार्गदर्शन, जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी की वाणी में...)
...नींद जो है वो तमोगुण है। जाग्रत अवस्था में हम सत्वगुण में भी जा सकते हैं, रजोगुण में भी जा सकते हैं, तमोगुण में भी जा सकते हैं। लेकिन नींद जो है, वो प्योर तमोगुण है। बहुत ही हानिकारक है। अगर लिमिट से अधिक सोओगे तो भी शारीरिक हानि होती है और बिल्कुल न सोना भी शरीर के लिये ठीक नहीं है। आपके शरीर के जो पार्ट्स हैं उनको खराब करेगा अधिक सोना या अधिक जागना। रेस्ट की भी लिमिट है। रेस्ट के बाद व्यायाम आवश्यक है। देखिये शरीर ऐसा बनाया गया है कि इसमें दोनों आवश्यक हैं। तुम्हें संसार में कोई जरूरी काम आ जाये, या कोई बात हो जाये, या कोई तुम्हारा प्रिय मिले, तब नींद नहीं आती। इसलिये कोई फिजिकल रीजन नहीं है कि नींद कन्ट्रोल नहीं होती, केवल मानसिक वीकनेस है। लापरवाही है। हर क्षण यही सोचो कि अगला क्षण मिले न मिले, अतएव भगवद-विषय में उधार न करो।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, जुलाई 2012 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 308
(भूमिका - अलग-अलग धर्मों में ईश्वर के अलग-अलग नाम तथा रूपों का वर्णन हुआ है तथापि उन सबमें किस प्रकार से एकता है और कैसे वे एक के ही अनेक नाम-रूप हैं, इसकी झलक हम इस प्रवचन में देखेंगे। साथ ही ईश्वर; चाहे वह ख़ुदा, गॉड आदि जो भी पुकारें, उन्हें जीव/मनुष्य के हृदय के 'प्रेम' और 'अपनत्व' का भाव ही प्रिय है, यह रहस्य निखिलदर्शनसमन्वयाचार्य जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज हमारे समक्ष प्रगट कर रहे हैं। आइये इस प्रवचन में छिपे इस भाव को हृदयंगम करें...)
★ 'Love is God (लव इज़ गॉड)'
सभी धर्मों का एक ही लक्ष्य है आनन्द प्राप्ति और उस आनन्द प्राप्ति के लिये भी एक ही उपाय है भगवान् को जानो और भगवान् को जानने का, प्राप्त करने का एक ही मार्ग है प्रेम मार्ग।
आलोड्य सर्वशास्त्राणि विचार्य च पुनः पुनः।इदमेकं सुनिष्पन्नं ध्येयो नारायणो हरिः।।(गरुड पुराण 230-1, लिंग पु., स्कन्द पु., नरसिंह पु., महाभारत)
वेदव्यास जिन्होंने वेदों का व्यास किया, वेदान्त बनाया, 18 पुराण बनाये, भगवान् के अवतार भी हैं ने कहा सारे शास्त्र वेदों का ज्ञान प्राप्त करना तुम्हारी बुद्धि से अगम्य है। सभी शास्त्रों वेदों का सार यही है भगवान् से प्रेम करो। एक सूफी फकीर कहता है:
वेद अवस्ता अल कुरान इंजील नीज़काब ओ वुतख़ान वो आतशक़दा
मैंने वेद, कुरान, इंजील सब पढ़ लिया, सबको स्वीकार कर लिया। मन्दिर को भी अपना लिया, मस्जिद को भी और गिरिजाघर को भी अपना लिया क्योंकि मैंने खुदा से मोहब्बत कर ली। सभी ग्रन्थों में यही तो लिखा है। भगवान् से प्रेम करो। शास्त्र वेद जितने भी बने हैं सबका एक ही कहना है भक्ति करो, भगवान् से प्रेम करो।
एक बार हज़रत मूसा यह भी पैगम्बर हैं । हज़रत मूसा कहीं जा रहे थे तो उन्होंने देखा कि एक गड़रिया भेड़ चरा रहा है और सिर नीचे करके आँसू बहा रहा है और कह रहा है - हे ख़ुदा तू जल्दी आजा, मैं तुझे बकरी का दूध पिलाऊँगा। तू चलते चलते थक गया होगा। तमाम दुनियाँ को देखता रहता है। तेरे पैर दबा दूंगा। तेरे कम्बल में चीलर पड़ गई होंगी, तू इतना व्यस्त रहता है दुनियाँ के देखने में, दुनियाँ के शासन में, मैं चीलर निकाल दूँ। तेरी चप्पलें फट गई होंगी चलते चलते। ला मैं सी दूं। इस प्रकार वो गड़रिया कह रहा था। हज़रत मूसा वहीं खड़े हो गये। उन्होंने कहा, क्यों रे तू कौन है? उसने आँख खोली, उसने कहा मैं गड़रिया हूँ। तो तू खुदा से यह सब बातें कर रहा है। हाँ। तू अपराधी है, गुनहगार है, अरे भला खुदा की चप्पल फटेगी। भला खुदा के कम्बल में चीलर पड़ेगा। भला ख़ुदा थक जायगा? ऐसी गन्दी बातें तू खुदा के लिए करता है? तूने खुदा का अपमान किया है। वो बिचारा डर गया, काँप गया और उसने कहा कि मौलवी साहब इसका प्रायश्चित बताइये। उन्होंने कहा कोई प्रायश्चित नहीं है, तुमने इतना बड़ा अपराध किया है।
जैसे हमारे (हिन्दू फिलॉसफी) यहाँ नामापराध होता है। वो बिचारा वहाँ से उठा और दूर जाकर के बेहोश हो गया, कि क्षमा ही नहीं होगी ऐसा अपराध हो गया हमसे। इतने में आकाशवाणी हुई खुदा की, हज़रत मूसा के लिये कि तुम गुनहगार हो। तुमको हमने दुनियाँ में भेजा पैगम्बर बनाकर के इसलिये कि तुम इंसानों को मेरे पास लाओ किन्तु तुमने तो उल्टा काम कर दिया। उसने जो कुछ अपनी भावना से सोचा, सब ठीक है मैं सुन रहा हूँ उसकी सारी बात और इतना प्यार उमड़ रहा है मेरा उसके प्रति और तुमने उसको ऐसा कहा कि ऐसा अपराध किया है जिसका प्रायश्चित न होगा? जाओ गड़रिये से माफी माँगो। हज़रत मूसा आश्चर्य चकित। जाना पड़ा गड़रिये के चरणों में पड़े और कहा, हमसे गलती हुई।
गड़रिये ने कहा भई वो जो कह रहा था खुदा से न, वो मैं अब नहीं हूँ । मेरी खुदी मिट गई अब मुझे ख़ुदा के सिवा कुछ दीखता ही नहीं है आप कौन हैं, ये मैं कैसे जानूँ पहचानूँ? और उनसे प्रश्नोत्तर करूँ? यह उपासना है जहाँ एकत्व हो जाय, वह किसी भाव से हो जाय।
एक कैथोलिक कथा है। एक नट मरियम के मन्दिर में गया तो वहाँ सब लोग कुछ न कुछ माँग रहे थे मरियम मैया से। जरूर ये देती होगी तो उसने कहा ऐसे तो देंगी नहीं क्योंकि दुनियाँ वाले भी ऐसे नहीं देते पैसा, बिना तमाशा दिखाये। नट तमाशा दिखाता है तब लोग दस पैसा, बीस पैसा फेंक देते हैं उसके लिये तो उसने बन्द किया गेट सबके जाने के बाद और नट का पूरा तमाशा दिखाने लगा। और दिखाते-दिखाते पसीना-पसीना हो गया और इधर बाहर पादरी लोग बड़े क्रोध में गेट तोड़ने पर तुल गये। कौन है अन्दर? क्यों रह गया अन्दर? आखिर गेट तोड़ा गया और लोगों ने पिटाई शुरू कर दी उस नट की। इतने में मरियम की आकाशवाणी हुई। तुम सब पाखण्डी हो, यही तो मेरा भक्त है। किसी प्रकार भगवान् को प्राप्त करे कोई ।
सिक्ख धर्म में गुरु ग्रन्थ साहब में भरा पड़ा है प्रेम या भक्ति से ही भगवान् मिलेंगे;
साँच कहुँ सुनु लेहु सबै,जिन प्रेम कियो तिन ही प्रभु पायोभई प्राप्त मानुख देहरिया, गोविन्द मिलन की ऐह तेरी बरिया।
धन्ना जाट इत्यादि का कथानक सभी जानते हैं प्रेम के वशीभूत होकर भगवान् को पत्थर से प्रगट होकर मोटी रोटी खानी पड़ी। अतः नाम कुछ भी लो, राम, कृष्ण कहो, खुदा कहो, गॉड कहो। वो सब एक हैं। जैसे चीनी की अनेक प्रकार की शक्लें बना देते हैं लोग दीवाली पर हाथी, घोड़ा, ऊँट, साहब, मेम आप किसी को भी खाइए सबमें वही चीनी है, वही रस है, उसमें कोई अन्तर नहीं है। ये जो शब्दों का अन्तर है यह हाथी है, हम तो घोड़ा लेंगे, हम तो मेम लेंगे। यह जो बच्चे कहते हैं यह ऐसे ही कहने की बातें हैं क्योंकि जब हम खायेंगे तो मिठास एक ही है। चीनी के अनेक सामान है। एक ही भगवान् के अनन्त रूप हैं। अनन्त नाम हैं। इसलिये कोई प्रतिबन्ध नहीं है किसी के लिये कि आपको यही नाम लेना है, यही रूप बनाना है। जैसी आपकी इच्छा हो, साकार मानिये, निराकार मानिये, साकार में अनन्त आकार मानिये, जैसी आपकी इच्छा हो। मुख्य बात है प्रेम।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'साधन साध्य' पत्रिका, मार्च 2018 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - विभिन्न राशियों के लोगों का स्वभाव अलग-अलग होता है। आज हम ऐसी चार राशियों के बारे में बता रहे हैं, जो लोगों पर बहुत कम भरोसा कर पाते हैं और वे हर किसी को शक की नजर से देखते हैं। एक प्रकार से उन्हें अति सावधानी बरतने वाले लोगों की श्रेणी में गिना जा सकता है। कई बार उनका यह स्वभाव उनके लिए ही कष्टकारक हो जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ये राशियां हैं-मेष राशिमेष राशि के जातक सोचते हैं कि हर कोई उनसे झूठ बोल रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें ये डर होता है कि लोग उन्हें झूठ बोलेंगे या धोखा देंगे और वो अंतत: धोखा खा जाएंगे। इसलिए वो किसी पर भी भरोसा नहीं करते हैं और उनसे मिलने वाले हर व्यक्ति पर शक करते हैं।कन्या राशिकन्या राशि के जातक हमेशा अपने परिवेश के प्रति सावधान और जागरूक रहते हैं। वे उन चीजों को खत्म कर देते हैं जिससे उन्हें डर लगता है और वे असहाय महसूस करें। वे सावधानी बरतना पसंद करते हैं।वृश्चिक राशिवृश्चिक राशि वाले लोग अत्यधिक संवेदनशील और भावुक लोग होते हैं, इसलिए उनके लिए ये बहुत मुश्किल नहीं होता है कि वो जिस किसी से भी मिलते हैं उस पर शक करें । वो अक्सर बिना किसी कारण के डरने लगते हैं और खुद को तनावग्रस्त और चिंतित महसूस करते हैं।मकर राशिमकर राशि वाले लोग अविश्वसनीय रूप से प्रतिभाशाली होते हैं और उन्हें अक्सर ऐसा लगता है कि उन्हें इसके लिए पर्याप्त श्रेय नहीं दिया जा रहा है। वो इस बात को लेकर परेशान रहते हैं और सोचते हैं कि लोग उन्हें दरकिनार कर रहे हैं और उनकी प्रतिभा को अनदेखा कर रहे हैं।(नोट- ये केवल ज्योतिषियों के विचार हैं। हम इस पर सच्चाई का दावा नहीं करते हैं)
- वास्तु गृह निर्माण की प्रक्रिया का अभिन्न अंग है। वैदिक काल से ही किसी भी घर के निर्माण के लिए वास्तु का सर्वप्रथम विचार किया जाता रहा है। भृगु, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वकर्मा, मय, नारद, नग्नजित, विशालाक्ष, पुरन्दर, ब्रह्मा, कुमार, नन्दीश, शौनक, गर्ग, वासुदेव, अनिरुद्ध, शुक्र तथा बृहस्पति ये अटठारह वास्तुशास्त्र के उपदेशक अथवा प्रणेता माने गये हैं। निवास स्थान और उसके आस-पास वृक्षारोपण काफी शुभ माने जाते हैं। दिशा के अनुसार लगाए गए विभिन्न प्रजातियों के पौधे परिवार में समृद्धि लाते हैं, क्योंकि वृक्ष वास्तुदोष दूर करने में सहायक भी होते हैं।शास्त्रों में वृक्षों को संतान रूप माना गया है इसलिए वृक्षारोपण भी हमारे जीवन को सुचारू रूप से चलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आइये जानते हैं किस दिशा में कौन सा पेड़ लगाना मंगलकारी होता है।-घर के पूर्व दिशा में वटवृक्ष 'बरगद' का पेड़ लगाने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। परिवार से बेरोजगारी दूर भाग जाती है और व्यापार में भी अनुरूप वृद्धि होती है। पश्चिम दिशा में 'पीपल' का वृक्ष लगाने से प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है और घर की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।-उत्तर दिशा में पाकड़ का वृक्ष लगाने से गृह में सुंदर बहुओं का आगमन होता है। नारियों के मध्य आपसी प्रेम बढ़ता है और परिवार में सुख शान्ति रहती है।-दक्षिण दिशा में गुलर का वृक्ष लगाने से परिवार में अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता, धन में बरकत होती है किन्तु ध्यान रहे दक्षिण दिशा में तुलसी का पौधा भूलकर भी न लगाएं।-घर के समीप कांटे वाले तथा फलहीन वृक्ष अशुभ होते हैं। घर के पास नागकेशर, अशोक, मौलसीरी, चंपा, अनार, पीपली, अर्जुन, सुपारी, केतकी, मालती, कमल, चमेली नारियल, केला, अति शुभ कारी माना गया है।-द्वार के अंतिम सिरे पर अनार (उत्तर दिशा )और श्वेत मदार पूर्व दिशा की ओर लगाने से घर की दरिद्रता दूर होती है और परिवार में समृद्धि आती है।
- सरकारी नौकरी में मिलने वाली सुविधाएं और जॉब सिक्योरिटी के कारण लाखों लाखों युवा इसकी ओर आकर्षित होते हैं। वे सरकारी जॉब पाने की के लिए जमकर तैयारी भी करते हैं। लेकिन सीमित पदों के चलते हर किसी का यह सपना साकार नहीं हो पाता है। सरकारी नौकरी पाने के लिए मेहनत के साथ-साथ भाग्य की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हस्तरेखा विज्ञान में बताया गया है कि हथेली की लकीरों से यह ज्ञात किया जा सकता है कि व्यक्ति के भाग्य में सरकारी नौकरी के योग हैं या नहीं। हथेली में बनने वाले उभार, लकीर और निशान व्यक्ति के भाग्य बारे में बहुत कुछ बातें बताते हैं। इन्हीं में कुछ ऐसे निशान होते हैं जिनके माध्यम से सरकारी नौकरी का विचार किया जाता है। जैसे हथेली में सूर्य की दोहरी रेखा हो और बृहस्पति पर्वत पर क्रास हो तो व्यक्ति को सरकारी नौकरी की संभावना रहती है। इसके अलावा निम्न परिस्थितियों से भी सरकारी नौकरी का विचार किया जा सकता है-हथेली में सरकारी जॉब के संकेतहथेली पर सूर्य पर्वत का बहुत महत्व होता है। सूर्य के प्रबल होने पर व्यक्ति का मान-सम्मान जीवनभर में बढ़ता रहता है। हथेली पर सूर्य पर्वत सबसे छोटी उंगुली के पहले वाली उंगली के नीचे होती है। (रिंग फिंगर के नीचे) अगर सूर्य पर्वत उभरा हुआ होता है और सूर्य पर्वत से सीधी रेखा निकलती हो तो ऐसे लोगों को सरकारी नौकरी मिलने की संभावना सबसे ज्यादा होती है।हथेली में गुरु पर्वत का करते हैं विचारहथेली पर गुरु पर्वत इंडेक्स फिंगर के नीचे होता है। गुरु पर्वत का उभार शुभ माना जाता है। साथ ही इस पर सीधी रेखा होने से ऐसे लोगों को भी सरकारी नौकरी मिलने की संभावना काफी ज्यादा रहती हैं।गुरु पर्वत और भाग्यरेखा का संबंधअगर जिनकी हथेली में भाग्य रेखा से कोई लकीर निकलकर गुरु पर्वत की और जाती है तो वह व्यक्ति बहुत भाग्यशाली होता है। ऐसा व्यक्ति प्रशासनिक अधिकारी बनता है। सरकारी क्षेत्र में व्यक्ति को उच्च पद प्राप्त होता है।सूर्य पर्वत और भाग्यरेखा के शुभ संकेतभाग्य रेखा से निकलकर कोई लकीर सीधे सूर्य पर्वत पर जाकर मिलने पर ऐसा व्यक्ति भाग्यशाली होता है। ऐसे लोग सरकारी सेवा से जुड़े रहते हैं। सरकारी क्षेत्र में ऐसे जातक बड़े पदाधिकारी बनते हैं।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 307
('नाम-महिमा' के सम्बन्ध में जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के प्रवचन का एक अंश...)
...कुछ काम ऐसे हैं जो श्यामसुन्दर नहीं कर सकते और नाम (भगवन्नाम) कर देगा, इसलिये कई स्थानों पर नाम का अधिक महत्व है। यानी नाम को भगवान से बड़ा बताया गया है;
ब्रह्म राम ते नाम बड़ वरदायक वरदानि।
ब्रह्म राम से नाम बड़ा है।
राम भालु कपि कटक बटोरा।सेतु हेतु श्रम कीन्ह न थोरा।।नाम लेत भव सिन्धु सुखाहीं।करहु विचार सुजन मन माहीं।।
अर्थात एक छोटे से पुल के बनाने में कितना बड़ा परिश्रम किया राम ने और कितनी बड़ी गुलामी की वानरी सेना की, खुशामद की। खुशामद से काम नहीं चला तो डराया लक्ष्मण जी से जाकर सुग्रीव को - ऐ! कहाँ है? अपने राज्य में हूँ और कहाँ हूँ? अरे, कुछ होश है, ये राज्य किसने दिलाया है? उठाऊँ बाण? लगाऊँ धनुष में? होश में ला दूँ? उसने कहा - हाँ महाराज! वो ठीक है, ठीक है, याद आ गया। वो आप भगवान राम की बात कर रहे हैं, मैं तो भूल ही गया था।
संसार के वैभव में बड़े बड़े भूल जाते हैं, सुग्रीव सरीखे एकमात्र सखा;
न सर्वे भ्रातरस्तात भवन्ति भरतोपमा:।मद्विधा वा पितुः पुत्रा: सुहृदो वा भवद्विधा:।।
भगवान राम जिन सुग्रीव के लिये कहते हैं, सुग्रीव! तुम्हारे समान विश्व में न कोई मित्र हुआ, न होगा, चैलेन्ज है। वो सुग्रीव भूल गया जो एक्जाम्पिल माना गया। राम ने अपने श्रीमुख से कहा है, किसी और की बात नहीं है कि भई, जरा बढ़ा के बोल दिया ह्यो, अपने दोस्त के लिये। मेरे समान कोई बेटा नहीं हो सकता, राम ने कहा, और भरत के समान कोई भाई नहीं हो सकता, सुग्रीव के समान कोई मित्र नहीं हो सकता। ये सब एक्जाम्पिल हैं, उदाहरण हैं अद्वितीय। इसका कोई दूसरा ऐसा उदाहरण नहीं हो सकता कि हाँ साहब, सुग्रीव के समान एक दोस्त और हुआ है। श्रीकृष्ण का अर्जुन सखा हुआ है। अरे, क्या अर्जुन होगा? वो सुग्रीव, इतने बड़े मित्र को भूल गया।
नहिं कोउ अस जनमा जग माँहिं।प्रभुता पाहि जाहि मद नाँहिं।।श्री मद वक्र न कीन्ह केहि, प्रभुता बधिर न काहि।।
तो देखो! राम ने एक छोटे से पुल बनाने में सुग्रीव की खुशामद की, तमाम वानरी सेना लिया। अगर नल-नील को ये वरदान न होता कि पत्थर तैरने लगें पानी में तो एक और प्रॉब्लम खड़ी होती कि सारी फौज खड़ी है, राम भी खड़े हैं, पुल कैसे बने? समुद्र में पुल बाँधना कोई खिलवाड़ थोड़े ही है। कोई नदी थोड़े ही है कि पुल बाँध दो। आज के वैज्ञानिक युग में भी समुद्र में पुल नहीं बन पाया तो त्रेतायुग में समुद्र में पुल कैसे बनता? इतनी सारी सहायता ले करके छोटा-सा एक पुल बनाया और देखो भगवन्नाम का कमाल;
जासु नाम सुमिरत इक बारा।उतरहिं नर भव सिन्धु अपारा।।नाम लेत भव सिन्धु सुखाहीं।करहु विचार सुजन मन माहीं।।
नाम भवसागर से पार करा देता है। विचार करो! राम और उनके नाम में क्या अन्तर है?
तो भगवन्नाम भगवान से बड़ा है, ये बात सभी एक स्वर से बोलते हैं। चाहे भागवत पढ़ लो, चाहे जो ग्रन्थ पढ़ लो, सबमें एक-सी बात है। नाम बड़ा है, श्यामसुन्दर छोटे हैं। लेकिन सभी नाम के प्रेमी अंत में श्यामसुन्दर को प्राप्त करते हैं, श्यामसुन्दर से उनका पहले कोई मतलब नहीं है, जो भी मतलब है उनके नाम से है, सीधी-सी बात।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'नाम-महिमा' प्रवचन पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - महर्षि नारद, भगवान ब्रह्मा के 17 मानस पुत्रों में से एक हैं। मान्यता है कि देवर्षि नारद पृथ्वी, आकाश और पाताल सभी लोक में भ्रमण करते हैं ताकि संदेशों और सूचनाओं को देवताओं तक पहुंचाया जा सके। महर्षि नारद, भगवान विष्णु के अनन्य भक्त हैं। महर्षि नारद ने नारद पुराण नामक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ में मनुष्य के जीवन से लेकर मत्यु तक हर बिंदु पर चर्चा की गई है। इसमें बताई गई बातों को हमें अपने जीवन में उतार सकते हैं। आइए जानते हैं इनके बारे में।नारद पुराण के अनुसार मनुष्य को कभी भी दिन में शयन नहीं करना चाहिए। जो मनुष्य दिन में शयन करते हैं उन्हें धन प्राप्ति में परेशानी का सामना करना पड़ता है। दिन में सोने वाला व्यक्ति अक्सर अस्वस्थ रहता है और अल्प आयु प्राप्त करता है।नारद पुराण के अनुसार सिर में तेल लगाते समय अगर हथेलियों पर तेल बच जाए तो उसे शरीर पर मलना नहीं चाहिए। ऐसा करने से धन की हानि होती है। स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह भी कहा गया है कि कभी भी निर्वस्त्र होकर स्नान नहीं करना चाहिए। न ही सारे कपड़े उतारकर शयन करना चाहिए।कभी भी बाएं हाथ से पानी नहीं पीना चाहिए। यह भी कहा गया है कि किसी भी मनुष्य को अपने दोनों हाथों से कभी भी अपना सिर नहीं खुजलाना चाहिए, इससे जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। नारद पुराण में कहा गया है कि किसी को भी अपने पैर से दूसरे का पैर दबाकर नहीं बैठना चाहिए और न ही इस तरह सोना चाहिए। ऐसा करने से धन हानि के साथ आयु भी कम हो जाती है।
- केतु को ज्योतिषशास्त्र में छाया ग्रह कहा जाता है। 2 जून को केतु अनुराधा नक्षत्र में प्रवेश कर चुके हैं। ज्योतिष गणनाओं के अनुसार केतु का अनुराधा नक्षत्र में प्रवेश कुछ राशियों के लिए बेहद शुभ रहने वाला है। इन राशियों के जातकों को धन- लाभ हो सकता है। आइए जानते हैं केतु का अनुराधा नक्षत्र में प्रवेश किन राशियों के लिए शुभ रहने वाला है...वृष राशिवृष राशि के जातकों के लिए केतु का अनुराधा नक्षत्र में प्रवेश शुभ कहा जा सकता है।दांपत्य जीवन खुशियों से भरा रहेगा।जीवनसाथी के साथ समय व्यतीत करने का अवसर मिलेगा।मान- सम्मान और पद- प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।आर्थिक पक्ष मजबूत होगा।इस समय स्वास्थ्य का ध्यान रखने की आवश्यकता है।सिंह राशिसिंह राशि के जातकों के लिए केतु का अनुराधा नक्षत्र में प्रवेश शुभ कहा जा सकता है।पारिवारिक जीवन में आनंद का अनुभव करेंगे।नया मकान खरीद सकते हैं।धन- लाभ होगा, जिससे आर्थिक पक्ष मजबूत होगा।कन्या राशिकन्या राशि के जातकों को केतु के अनुराधा नक्षत्र में प्रवेश से शुभ फलों की प्राप्ति होगी।समस्त सुखों की प्राप्ति होगी।शत्रुओं से मुक्ति मिलेगी।कार्यों में सफलता मिलने के योग भी बन रहे हैं।मकर राशिमकर राशि के जातकों के लिए केतु का अनुराधा नक्षत्र में प्रवेश किसी वरदान से कम नहीं है।कार्यों में सफलता के योग बन रहे हैं।नौकरी और व्यापार के लिए ये समय शुभ है।मनोकामनाओं की पूर्ति हो सकती है।.
- वैदिक ज्योतिषशास्त्र में शनि ग्रह की विशेष भूमिका मानी जाती है। शनिदेव सभी ग्रहों में सबसे धीमी गति से चलने वाले ग्रह हैं। जिस वजह से ये एक राशि से दूसरी राशि में अपना स्थान परिवर्तन करने के लिए करीब ढाई वर्षों का समय लेते हैं। शनि के किसी एक राशि में ढाई वर्षों तक गोचर करने के कारण तीन राशि पर शनि की साढ़ेसाती और दो पर ढैय्या लग जाती है। शनिदेव इस समय 30 वर्षों के बाद स्वयं की राशि मकर में आ गए हैं। शनि बहुत ही धीमी गति से चलते हैं। शनि एक राशि में लगभग ढाई साल तक रहते हैं। शनि के राशि परिवर्तन से साढ़ेसाती आरंभ हो जाती है। शनि के एक राशि में ढाई साल तक समय बिताने के लिहाज से सभी 12 राशियों का एक चक्कर लगाने में लगभग 30 साल का समय लगता है। जैसे कि इस समय शनि मकर राशि में गोचर है अब दोबारा मकर राशि में आने के लिए शनि को 30 वर्षों का समय लगेगा।ज्योतिष गणना के अनुसार चंद्र राशि से जब शनि 12वें भाव, पहले भाव व द्वितीय भाव से निकलते हैं। उस अवधि को शनि की साढ़ेसाती कहा जाता है। जबकि शनि जब गोचर में जन्म राशि से चतुर्थ और अष्टम भाव में रहता है तब इसे शनि की ढैय्या कहते है। आइए जानते हैं आने वाले 10 वर्षों में कब-कब किस राशि पर शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या लगेगी।2021 में शनिशनिदेव इस समय मकर राशि में भ्रमण पर हैं ऐसे में धनु,मकर और कुंभ राशि पर शनि की साढ़ेसाती लगी हुई है। वहीं अगर ढैय्या की बात करें तो मिथुन और तुला राशि के जातकों पर शनि की ढैय्या लगी हुई है।2022 में शनिशनि देव अपनी मकर राशि की यात्रा को समाप्त करते हुए 29 अप्रैल 2022 को कुंभ राशि में प्रवेश कर जाएंगे। शनि के राशि बदलने के कारण मिथुन और तुला राशि पर से शनि की ढैय्या खत्म हो जाएगी। शनि के कुंभ राशि में गोचर करने के कारण कर्क और वृश्चिक पर शनि की ढैय्या शुरू हो जाएगी। इसके अलावा धनु राशि से शनि की साढ़ेसाती खत्म होकर मीन राशि पर पहला चरण शुरू हो जाएगा। इस तरह से 2022 में मकर, कुंभ और मीन राशि पर साढेसाती और कर्क और वृश्चिक राशि पर ढैय्या लगेगी।2023 और 2024 में शनिवर्ष 2023 और 2024 में शनि का गोचर किसी भी राशि में नहीं होगा। इस कारण से मकर, कुंभ और मीन राशि पर शनि की साढ़ेसाती बनी रहेगी जबकि कर्क और वृश्चिक राशि के जातकों पर शनि की ढैय्या।2025 और 2026 में शनिसाल 2025 में शनि का राशि परिवर्तन मेष राशि में होगा। जिस कारण से कर्क और वृश्चिक राशि वालों को शनि की ढैय्या से मुक्ति मिल जाएगी जबकि सिंह और धनु राशि के जातकों पर ढैय्या लग जाएगी। कुंभ, मीन और मेष राशि वालों पर शनि की साढ़ेसाती रहेगी। 2026 में शनि का राशि परिवर्तन नहीं होगा जिस कारण से साढ़ेसाती और ढैय्या में किसी भी प्रकार का कोई भी परिवर्तन देखने को नहीं मिलेगा।2027 और 2028 में शनि2027 में शनिदेव वृषभ राशि में प्रवेश कर जाएंगे जिस कारण से मीन, मेष और वृषभ राशि के जातकों पर शनि की साढ़ेसाती का प्रकोप रहेगा जबकि सिंह और धनु राशि के जातकों को इस वर्ष ढैय्या छुटकारा मिल जाएगा। कन्या और मकर राशि वालों पर ढैय्या शुरू हो जाएगा। साल 2028 में शनि का राशि परिवर्तन नहीं होगा।वर्ष 2029,2030 और 2031 में शनि8 अगस्त 2029 में शनि देव मिथुन राशि में रहेंगे जिस कारण से तुला और कुंभ राशि पर ढैय्या और मेष, वृषभ और मिथुन वालों पर शनि की साढ़ेसाती सवार रहेगी। वर्ष 2030 और 2031 में शनि का कोई भी राशि परिवर्तन नहीं होगा।-
- नौकरी-व्यवसाय में तरक्की , धन-संपत्ति, सेहत, सुख-शांति जैसे तमाम पहलुओं का संबंध घर के वास्तु से भी जुड़ा होता है. घर में रखी चीजें जहां विभिन्न मामलों में शुभ साबित होती हैं, वहीं कुछ चीजें बाधा भी बनती हैं. आज उन चीजों के बारे में जानते हैं जो वास्तु दोष का कारण बनती हैं और हर काम में रोढ़े अटकाती हैं.तुरंत घर से बाहर करें ये चीजेंदेवी-देवताओं की खंडित मूर्तिशास्त्रों के अनुसार देवी-देवताओं की मूर्ति या चित्र से सकारात्मक ऊर्जा निकालती हैं लेकिन यदि वे खंडित हो जाएं तो उनमें नकारात्मक ऊर्जा का वास हो जाता है. लिहाजा पुरानी और खंडित मूर्तियों को या तो जमीन में दबा देना चाहिए या जल में प्रवाहित कर देना चाहिए.बंद घड़ियांबंद घड़ियां आपके अच्छे वक्त को भी बुरे वक्त में बदल सकती हैं. लिहाजा घर में बंद घड़ियां कभी नहीं रखनी चाहिए. बंद घड़ियां सौभाग्य में कमी लाती हैं. साथ ही बुरी घटनाओं को खत्म ही नहीं होने देती हैं.बंद तालेबंद घड़ी की तरह बंद ताला भी बहुत अशुभ होता है. यह आपकी खुशकिस्मती को बंद कर सकता और बदकिस्मत का जगा सकता है. लिहाजा घर में कभी खराब या बंद ताले नहीं रखने चाहिए. घर में बंद ताला रखने से करियर में बाधाएं आती हैं और शादी-विवाह में भी देरी होती है.खराब चप्पल व जूतेजूते-चप्पल का संबंध संघर्ष से जुड़ा होता है. यदि आप चाहते हैं कि आपकी जिंदगी में संघर्ष कम रहे तो हमेशा साफ और अच्छे जूते-चप्पल पहनने चाहिए. खराब जूते चप्पल को शनिवार के दिन घर से बाहर निकाल देना चाहिए. इससे शनि का दुष्प्रभाव कम होता है.पुराने-फटे कपड़ेकपड़ों का संबंध भाग्य से होता है. इसलिए हर व्यक्ति को हमेशा साफ और बिना कटे-फटे कपड़े ही पहनने चाहिए. फटे-पुराने कपड़ों को घर से बाहर कर देना चाहिए क्योंकि यह भी तरक्की में बाधा बनते हैं.
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 306
★★ भूमिका - आज के अंक में प्रकाशित दोहा तथा उसकी व्याख्या जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ग्रन्थ 'भक्ति-शतक' से उद्धृत है। इस ग्रन्थ में आचार्यश्री ने 100-दोहों की रचना की है, जिनमें 'भक्ति' तत्व के सभी गूढ़ रहस्यों को बड़ी सरलता से प्रकट किया है। पुनः उनके भावार्थ तथा व्याख्या के द्वारा विषय को और अधिक स्पष्ट किया है, जिसका पठन और मनन करने पर निश्चय ही आत्मिक लाभ प्राप्त होता है। आइये उसी ग्रन्थ के 11-वें दोहे पर विचार करें, जो कि संसार में सुख अथवा दुःख की मान्यता पर प्रकाश डाल रही है...)
जग महँ सुख दुख दोउ नहिँ, अस उर धरि ले ज्ञान।सुख माने दुख मिलत है, सुख न जगत महँ मान।।11।।
भावार्थ - संसार में न सुख है, न दुख ही है - यह ज्ञान दृढ़ कर लेना चाहिये। संसार में सुख मानने से ही उसके अभाव में दुख मिलता है।
व्याख्या - संसार, माया से बना है। फिर भी इसमें 3 तत्व हैं;
1 - ब्रह्म।2 - जीव।3 - माया।
इनमें माया निर्मित जड़ जगत् तो प्रत्यक्ष ही है। जीव गण भी सब जानते ही हैं। केवल ब्रह्म परोक्ष रूप से व्यापक है। यह जगत् जीव का भोग्य है। अतः वेद कहता है। यथा;
भोक्ता भोग्यं प्रेरितारं च मत्वा सर्वं प्रोक्तं त्रिविधं ब्रह्म ......।
आप कहेंगे कि जब जीव इस संसार का भोक्ता है, तो फिर वैराग्य आदि क्यों बताया जाता है? तथा इस संसार से सुख क्यों नहीं मिलता। यह संसार, जीवों के शरीर के उपयोग के लिये बनाया गया है। उपभोग के लिये नहीं। जीवों का शरीर मायिक है। एवं जगत् भी मायिक है। अत: शरीर का विषय सजातीय होने से जगत् है। किंतु आत्मा तो दिव्य है। यथा;
चिन्मात्रं श्री हरेरंशं......(वेद)
भागवत कहती है। यथा;
आत्मानित्योऽव्ययः......।
जब आत्मा दिव्य नित्य तत्व है, तो उसका विषय भी दिव्य ही होगा। संसार, आत्मा का विषय हो ही नहीं सकता। वस्तुत: प्रत्येक अंश अपने अंशी को ही चाहता है। अतः आत्मा भी जगत् में व्याप्त परमात्मा का ही नित्य दिव्य अनंत सुख चाहता है। वही आत्मा का विषय है। हमको संसार में जो सुख का मिथ्या भान होता है, वह हमारी ही मनःकल्पना का परिणाम है। यदि हम संसार में सुख न माने तो दुख स्वयं समाप्त हो जाय। संसार में सबको एक ही वस्तु में सुख नहीं मिलता, जो व्यक्ति जिस व्यक्ति या वस्तु में बार-बार सुख की भावना बनाता है, उसी में आसक्ति हो जाती है। फिर उसी की ही कामना उत्पन्न होती है, फिर उसी कामनापूर्ति में क्षणिक सुख मिल जाता है। यही कारण है कि एक भिखारिन माँ को अपने काले कुरूप पुत्र से ही सुख मिलता है। शराबी को ही शराब से सुख मिलता है। पंडित जी को तो शराब देख कर भी दुख मिलता है। यदि शराब में सुख होता तो पंडित जी को भी शराबी की भांति ही सुख मिलता। संसार का कल्पित सुख भी एक सा नहीं होता। प्यासे को ही पानी में, कामी को ही कामिनी में सुख मिलता है। वह सुख भी प्रतिक्षण घटमान होता है। मां कई दिन के खोये अपने शिशु को प्रथम आलिंगन में अधिक सुखी, पुनः दूसरी-तीसरी बार क्रमशः कम सुखी एवं अंत में विरक्त सी हो जाती है ।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'भक्ति-शतक' ग्रन्थ, दोहा संख्या - 11०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 305
एक साधक का प्रश्न ::: सत्कर्म के लिये क्या करना चाहिये?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा समाधान ::: केवल भगवान की भक्ति। राधाकृष्ण की भक्ति ही सत्कर्म है। इससे अन्तःकरण शुद्ध होगा। तो अन्तःकरण शुद्ध होने पर जितने भी गुण हैं सत्य, अहिंसा, दया, परोपकार, नम्रता सब अपने आप आ जायेंगे। जितना-जितना अन्तःकरण शुद्ध होगा, उतने-उतने गुण अपने आप आयेंगे। और ऐसे सोचने से, उसको विल पॉवर कहते हैं, थोड़ा-थोड़ा लाभ होता है। टेम्पररी।
हरावभक्तस्य कुतो महद्-गुणा मनोरथेनासति धावतो बहिः।(भागवत 5-18-12)
भागवत में कहा गया कि बिना श्रीकृष्ण भक्ति के दैवी संपत्ति अर्थात सत्य, अहिंसा आदि गुण जिसको संसार में कैरेक्टर कहते हैं, वो नहीं आ सकता।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, अक्टूबर 2015 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - घर में चीटियों का निकलना जिंदगी पर भी असर डाल सकता है. चीटियों का लाल या काली होना या उनका किसी खास तरीके से व्यवहार करना कई तरह के संकेत देता है. लिहाजा घर पर चीटियां दिखाईं दें तो उन पर गौर जरूर करें. साथ ही चीटियां घर में ऊपर की ओर जा रही हैं या नीचे के ओर जा रही हैं. इसके अलावा आपके घर में चीटियों को कुछ खाने को मिल रहा है या नहीं इससे भी कई घटनाओं को लेकर संकेत मिलते हैं. यह भी होने वाली कई घटनाओं पर केंद्रीत होना माना जाता है.लाल और काली चीटियां देती हैं अलग-अलग इशारेयदि आपके घर में काली चीटियां आ रही हैं तो यह सुख और ऐश्वर्य वाला समय आने के संकेत हैं. वहीं घर में लाल चीटियां दिखने पर सावधान हो जाएं. लाल चीटियां अशुभ का संकेत मानी जाती हैं. इनका नजर आना भविष्य की परेशानियों, विवाद, धन खर्च होने के संकेत देता है.चीटियां दिखने के ज्योतिषीय असर- काली चीटियां को कई बार लोग शक्कर, आटा आदि डालते हैं क्योंकि काली चीटियों को खाना खिलाना शुभ होता है. यदि चावल के भरे बर्तन से ये चीटियां निकल रही हैं तो यह शुभ संकेत है कि कुछ ही दिनों में आपके पास धन वृद्धि होने वाली है. व्यक्ति की आर्थिक स्थिति अच्छी होने जा रही है. काली चीटियों का आना भौतिक सुख वाली चीजों के लिए भी शुभ माना जाता है.- वहीं लाल चीटियां मुंह में अंडा (Egg) लेकर घर से जाएं तो यह अच्छे संकेत के रुप में देखा जाता है. चीटियों को खाने के लिए खाद्य पदार्थ डालना चाहिए. यदि चीटियां आपके घर में भूखी रहेंगी तो यह अशुभ होता है.- चीटियों के आने की दिशा भी काफी मायने रखती है. यदि काली चीटियां आपके घर में उत्तर दिशा से आती हैं तो यह आपके लिए शुभ संकेत होते हैं. साथ ही दक्षिण दिशा से आ रही हों तो भी यह फायदेमंद होगा. पूर्व दिशा से चीटियों का आने का मतलब है कि कोई सकारात्मक सूचना आपके घर आ सकती है. वहीं पश्चिम दिशा से चीटियों के आने पर बाहरी यात्रा के योग बनते हैं.
- कई बार हमारी जिंदगी में अजीब तरह की गड़बड़ियां चल रहीं होती हैं और हमें उनकी वजह भी समझ में नहीं आती है. ऐसी चीजों के पीछे कई बार हमारी ही कुछ गलतियां जिम्मेदार हो सकती हैं, जैसे कि किसी खास दिन ऐसे काम करना जिनको वर्जित माना गया हो. उदाहरण के लिए शनिवार के दिन कुछ काम करने से मनाही की गई है. फिर भी हम वो काम शनिवार के दिन करें तो इससे शनि देव कुपित हो सकते हैं. इससे हमारी जिंदगी में कई दु:ख-तकलीफें आ सकती हैं. आज जानते हैं शनिवार के दिन क्या करना चाहिए और क्या नहीं.शनिवार के दिन गलती से भी न करें ये काम- ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनिदेव की पूजा में और दान सामग्री में काले तिल का उपयोग किया जाता है लेकिन कभी भी शनिवार को काले तिल खरीदने नहीं चाहिए. इससे शनि देव नाराज हो जाते हैं और बनते हुए काम भी बिगड़ने लगते हैं.- इसी तरह शनिवार के दिन सरसों का तेल खरीदना बहुत अशुभ होता है. ऐसा करने से घर में नकारात्मकता बढ़ती है और अशुभ घटनाएं होने लगती हैं. घर के सदस्यों को बीमारियां होती हैं.- शनिवार के दिन कभी भी लोहे का बना सामान भी नहीं खरीदना चाहिए. इससे शनि देव नाराज हो जाते हैं और परेशानियों का सामना करना पड़ता है.- शनिवार के दिन नमक खरीदने से जातक पर कर्ज का बोझ बढ़ता और इस दिन खरीदे गए नमक को खाने से कई तरह की बीमारियां भी होती हैं.शनिवार के दिन करें यह कामशनिवार के दिन पीपल के पेड़ के नीचे सरसों का तेल लगाएं. काले तिल का दान करें. इन कामों से शनि की दृष्टि निर्मल होती है और साढ़ेसाती, ढैय्या में भी शनि ग्रह से राहत मिलती है. वहीं शनिवार को काले कुत्तों को सरसों के तेल से बना हलुआ खिलाने से शनि की दशा टलती है. इस दिन लोहे से बनी चीजों के दान का विशेष महत्व है. इससे शनिदेव का कोप कम होता है और उनकी दृष्टि निर्मल होती है.
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 304
(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा स्वरचित दोहे के माध्यम से एक विनोदमयी चर्चा)
मोसे पतितों ने दिये गोविन्द राधे।विरद पतित पावन का निभा दे।।(स्वरचित दोहा)
गोलोक में भगवान को 'पतितपावन' नाम नहीं मिला, क्योंकि वहाँ कोई पतित है ही नहीं। वहाँ तो सब शुद्ध निर्मल महापुरुष रहते हैं, भक्तवत्सल नाम उनको मिला। हमारे मृत्युलोक में आये तो हम सरीखे तमाम ढेर लाखों, करोड़ों, अरबों पतितों ने मिलकर ये प्लान बनाया कि हमारे यहाँ भगवान आये हैं, इनको कोई उपाधि देनी चाहिये। अभिनन्दन कहते हैं हमारे संसार में, उपाधि दी जाती है हमारे प्राइम मिनिस्टरों को, ऐसे बड़े बड़े लोगों को। विदेश में 'डॉक्टरेट' की उपाधि मिलती है, किसी को 'भारतरत्न' मिलता है, किसी को 'पद्म-विभूषण' मिलता है।
तो पतितों ने सोचा कुछ हम लोगों को भी देना चाहिये। तो पतितों ने मिलकर भगवान को एक नाम दिया - 'पतितपावन', पतितों को पवित्र करने वाले। अब भगवान भूल गये। क्यों जी, हम ही से तुमको उपाधि मिली और हमको ही भुला दिये, ये तो बहुत खराब बात है। अरे! एहसान मानना चाहिये कि ये पतितों ने हमको पतितपावन की उपाधि दी तो पतितों का उद्धार तो करके जायँ। ऐसे ही चले गये अपने लोक को, ये ठीक नहीं किया। खैर, चले गये, कोई बात नहीं, वहाँ से कर दो अपना काम। ये विरद निभा दो, नहीं तो जानते हो, टाइटल छीन लेंगे हम लोग!!
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'कृपालु भक्ति धारा' प्रवचन पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - रोज़मर्रा की जिंदगी में कई ऐसे काम हैं, जिन्हें हम बार-बार दोहराते हैं, लेकिन हमें उनके दोहराए जाने का कोई विशेष आभास नहीं होता। ऐसे कामों को ही आदत कहते हैं। आदतें अच्छी और बुरी दोनों तरह की होती हैं। अच्छी आदतों का प्रभाव हमारे जीवन पर सकारात्मक रूप से पड़ता है, जबकि बुरी आदतें हमें कई बार बड़ी मुसीबतों में डाल देती हैं। वास्तुशास्त्र में भी ऐसी कई आदतों का उल्लेख है, जो हमारे जीवन में तरह-तरह की समस्याओं को जन्म देती हैं। आज हम वास्तुशास्त्र के अनुसार कुछ ऐसी बुरी आदतों और उनके प्रभाव के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके कारण विशेष रूप से धन की हानि होती है।साफ-सफाई पर ध्यान न देनाबहुत से लोग अपने दैनिक जीवन में साफ-सफाई पर विशेष ध्यान नहीं देते हैं। वो कई बार शारीरिक और अपने आस-पड़ोस में फैली गंदगी में भी आराम से रहते हैं। लेकिन ये आदत न केवल उनको रोगी बनाती है, बल्कि उनकी धन हानि का भी कारण बनती है। वास्तुशास्त्र में साफ-सफाई का धन-वैभव में सीधा संबध माना गया है। वास्तुशास्त्र के अनुसार लक्ष्मी जी का वास उसी स्थान पर होता है, जो स्वच्छ रहता है।बड़े-बुजुर्गों का सम्मान न करनाअधिकतर युवा जीवन के जोश में घर के बड़े- ?बुजुर्गों को वृद्ध और अनुपयोगी समझने लगते हैं। जिस कारण प्रायः उनका सम्मान नहीं करते या उन पर ध्यान ही नहीं देते। वास्तुशास्त्र के अनुसार, ऐसे व्यक्ति से लक्ष्मी जी सदा रूठी रहती हैं, उसके धन में वृद्धि नहीं होती। हमारे धर्मशास्त्रों में भी उल्लेख है कि वृद्धों, बुजुर्गों की सेवा करने से व्यक्ति की आयु, विद्या, यश और बल में वृद्धि होती है।चिल्लाकर बात करनावास्तुशास्त्र के अनुसार, जोर-जोर से चिल्लाकर बात करने से शनि का दोष बढ़ता है। जिस कारण आपके जीवन में तनाव और मानसिक परेशानियां बढ़ने लगती हैं। जो कई बार बिना वजह की टेंशन और क्लेश का कारण बनता है, जिससे धन की हानि होना स्वभाविक है। ये कई बार आपके बने बनाये काम भी बिगाड़ देता है।सुबह देर से उठनाआजकल की भागदौड़ की जिंदगी में अक्सर हम देर रात तक जागते हैं, जिस कारण सुबह देर से उठना भी हमारी आदत में शुमार हो चुका है। ये स्वास्थय की दृष्टि से तो बुरा है ही, वास्तुशास्त्र के अनुसार भी घर में दरिद्रता लाता है। सुबह का सूरज आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है, जीवन में समृद्धि लाता है।कहीं भी थूक देनाभारतीय उपमहाद्वीप में लोग पान या तम्बाकू का सेवन करते हैं, जिस कारण अक्सर कहीं भी पान की पीक थूक देना उनकी आदत बन जाती है। इसके अलावा भी कई लोगों की आदत बात-बात पर कहीं भी थूकने की होती है। वास्तुशास्त्र के अनुरूप ये आदत तुरंत बदलने योग्य है क्योकि इस कारण से कभी भी लक्ष्मी जी की कृपा आप पर नहीं होगी।