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- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 269
(भूमिका - प्रत्येक साधक और साधारण व्यक्ति के लिये भी नीचे उद्धरण में दिये गये एक-एक शब्द पर बारम्बार चिन्तन परमावश्यक है। क्योंकि इसमें छिपे रहस्य से अनजान हम सभी जाने-अनजाने एक महान अपराध के भँवर में फँस जाते हैं, जिसकी हमको बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा निःसृत इस उद्धरण पर आइये हम गंभीरतापूर्वक मनन करें...)
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! किसी साधक के बाहरी व्यवहार को देखकर कई बार दुर्भावना हो जाती है जबकि वह उच्च साधक होता है, इसका क्या उपाय है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: भगवान् की सब बातें अनन्त मात्रा की हैं। पूर्ण माने अनन्त मात्रा की हर बात। उनके संसार (ब्रह्माण्ड) अनन्त, नाम अनन्त, रूप अनन्त, गुण अनन्त, लीला अनन्त, धाम अनन्त और सन्त अनन्त। और ऐसे अनन्त हैं कि अनन्त से अनन्त निकालो तो भी अनन्त बचेगा;
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।(वृहदारण्यक उप. 5-1-1)
पूर्ण से पूर्ण निकालो तो भी पूर्ण बचेगा। संसार में पूर्ण से पूर्ण निकालो तो जीरो बचेगा।
कौन जानता है? जब तक कोई पूर्ण न हो जाए तब तक कौन अधूरा है, कौन पूर्ण है यह जानना असम्भव है। बेपढ़ी लिखी अँगूठा छाप और चार-चार, छह-छह, बच्चे वाली गोपियाँ और ब्रह्मा, शंकर चरणधूलि चाहते हैं। जब ये कहो, तो लोग कहते हैं - 'क्या गपोड़े हैं आप भी!! हम जानते हैं उन गोपियों को, कब ब्याह हुआ और कब क्या हुआ। संसार में आसक्त हैं और आप कहते हैं कि उद्धव, ब्रह्मा, शंकर सब चरणधूलि माँगते हैं!!' इसलिए किसी के बारे में कभी कोई राय बनानी ही नहीं चाहिए।
अगर दोष देखा तो उसमें कमी मानेगा। उसकी बुद्धि उसमें दोष देखगी। ये हमसे कम अकल है, हमसे कम सुंदर है, हमसे कम पैसा है, हमसे कम नॉलिज है। ये सब विचार आयेगा, बस पतन हो गया। भीतर क्या उसके पास यह जानने की शक्ति नहीं है। तो ये बाहरी चीजों को देख कर क्या निर्णय करोगे? पता नहीं कौन कितना प्यार करता है भगवान् से, गुरु से? ये नापने का पैमाना तो किसी के पास है ही नहीं। तो बाहर की चीजों से क्या तुलना करेगा कोई।
एक संत थे। अभी पाँच सौ वर्ष पहले की बात है, गौरांग महाप्रभु के जमाने में। उनका नाम पुंडरीक विद्यानिधि था। वह बड़े ऐशो आराम के सामान में रहते थे। सोने का तो पलंग, कोई राजा महाराजा भी ऐसा नहीं रह सकता था जैसे वो रहते थे। गौरांग महाप्रभु ने कहा, 'भई! एक बहुत बड़े भक्त से मिलने जाना है हमको स्वयं।'
लोगों ने पूछा, 'महाराज जी! किसका मिलने जाना है?' तो उन्होंने कहा 'पुंडरीक विद्यानिधि से'। सब चौके। अरे! वह तो घोर संसारी है। कोई राजा महाराजा भी वैसा नहीं होगा। आपस में कहने लगे। महाप्रभु जी मुस्कराकर चल दिए। पीछे-पीछे सब गये कि मामला क्या है? महाप्रभु जी मजाक कर रहे हैं? क्या बात है, क्यों जा रहे हैं वहाँं? उसको आना चाहिए महाप्रभु जी के पास। गये। महाप्रभु जी को देख कर वो पलंग से उठ गए। दोनों गले मिले। ये सब दृश्य देख रहे हैं लोग। फिर उसी के पलंग पर वो भी बैठे और महाप्रभु जी भी बैठे उसी पर। ये भी लोगों ने देखा। ये कैसे बाबा जी हैं! और हमारे महाप्रभु जी के बराबर में बैठे हैं! तो गदाधर भट्ट थे, उनका ज्यादा दिमाग खराब हुआ। वो खास थे गौरांग महाप्रभु के, विद्वान् भी थे, शास्त्र वेद के।
खैर, वहाँ से महाप्रभु जी लौट आये और सब साथ चले आये। फिर अकेले में उन्होंने पूछा कि महाराज! ये आप वहाँ क्यों गए? और फिर गए तो ऐसी असभ्यता किया उन्होंने, उसी पलंग पर खुद बैठ गए और उसी पर आपको बिठा दिया? तो महाप्रभु जी ने भौंहे टेढ़ी की। उन्होंने कहा कि तुम सर्वज्ञ हो? नहीं महाराज! सर्वज्ञ तो आप हैं। फिर तुमने कैसे निश्चय किया? चले जाओ हमारे सामने से और जाकर के पुंडरीक विद्यानिधि की शरण में जाओ और उन्हें गुरु मानो और उनकी बताई साधना करो। अब आंख खुली उनकी। हा! महाराज जी सीरियस हो के कह रहे हैं। हम तो समझ रहे थे कि ये सब महाराज जी जोक कर रहे हैं आज? तो उन्हें जाना पड़ा।
तो कौन जान सकता है? बड़े-बड़े सम्राट हुए हमारे देश में ध्रुव, प्रह्लाद, अम्बरीष बड़े-बड़े वैभव स्वर्ग से भी बड़े और सब गृहस्थ। अम्बरीष हों, चाहे वशिष्ठ हों, सब स्त्री बच्चे वाले। अब उनको भी हम लोगों ने देखा होगा उस जमाने में। अरे तब भी तो हम थे। हमने कहा ये प्रह्लाद!, इनको महापुरुष कहते हैं लोग!!
इसलिए कोई महापुरुष हो, चाहे राक्षस हो अपने मन में दूसरे के प्रति हमेशा अच्छी भावना होनी चाहिए, जिससे अच्छा विचार अंतःकरण मे आवे। वो जो है वो ही रहेगा ही। वह राक्षस होगा तो राक्षस रहेगा। महापुरुष होगा तो महापुरुष रहेगा। हम अपने अंदर की दुर्भावना अगर लाते हैं, तो हमने तब अपना अंतःकरण बिगाड़ दिया। अब भगवान् जो थोड़ा पैर रखे थे आने के लिए, एबाउट टर्न चल दिए। क्योंकि तुम तो औरों को बुलाते हो। मैं ऐसे घर में नहीं रहता। इसलिए कहीं भी छोटापन नहीं देखना चाहिए। ये हमसे बड़ा है। हर एक के प्रति - 'सबहिं मानप्रद आप अमानी'।
एक उच्च साधक का लक्षण है किसी में भी दुर्भावना नहीं, पता नहीं कौन क्या है, किस-किस भाव से कौन उपासना करता है। सबके तरीके अलग-अलग हैं। आज कोई सचमुच भी मक्कार है तो क्यों है? प्रारब्ध के कारण है। वो 25 तारीख को उसका प्रारब्ध खतम हो जाएगा। तो फिर वो सदाचारी हो जाएगा पहले की तरह। और हम दुर्भावना किए बैठे हैं उसके ऊपर। हमारा तो सत्यानाश हो गया और वो तो बन गया। उसमें बहुत रहस्य हैं। इसलिए साधक को दूसरे की ओर देखना ही नहीं चाहिए। और देखे भी कभी या बुद्धि लग भी जाय तो पता नहीं कौन क्या है भैया, अपन झगड़े में न पड़ो। बीबी पति के, पति बीबी के अंदर की बात को नहीं जान सकता।
एक सेठ जी कभी भगवान् का नाम न ले और न मन्दिर जायें। सेठानी परेशान थी कि यह नास्तिक पति मिला। एक दिन सोते समय, अंगड़ाई लेते समय उन्होंने कहा 'राधे'। तो सबेरे स्त्री ने सब दान-पुण्य करना शुरू कर दिया। ब्राह्मण भोजन का इन्तजाम किया। खुशी मना रही थी। सेठ जी ने कहा- क्यों री, आज तो न जन्माष्टमी है, न रामनवमी है, कुछ त्यौहार तो नहीं! उन्होंने कहा आज बहुत बड़ा त्यौहार है पतिदेव! क्या? आपने आज सोते समय करवट बदलने लगे तो 'राधे' कहा। हा! राधे नाम निकल गया बाहर!!! भक्ति के तरीके अपने-अपने सबके हैं। स्त्री नहीं समझ पाई इतने दिन से।
और फिर एक बात सबसे बड़ी और है वह हमेशा ध्यान में रखो सब लोग कि कोई व्यक्ति खराब हो, राक्षस हो, भगवान् का निन्दक, सन्तों का निन्दक, सबसे बड़ा पाप ये ही है। ये लगातार करता हो। लेकिन एक बात बताओ कि ऐसा कोई पापी विश्व में है जिसके अंत:करण में भगवान् न बैठे हों? अरे! कुत्ता, बिल्ली, गधा कोई भी ऐसा प्राणी है जिसके भीतर भगवान् श्रीकृष्ण न बैठे हों? तो फिर तो बराबर हो ही गया तुम्हारे। और सब चीज़ का मूल्य कुछ नहीं है। एक तराजू में सोना भी रखा गया, चांदी भी रखा, हीरा भी रखा है और पारस भी रखा है और एक तराजू के पलड़े में खाली पारस रखा है। तो तोलोगे तो क्या बराबर ही निकलेगा। क्योंकि पारस दोनों में है। अब हीरे मोती की क्या कीमत है, हो न हो? पारस दोनों में है। तो भगवान् तो सब प्राणियों में हैं। इसीलिये वेदव्यास और तुलसीदास सब संतों ने कहा कि - 'पर पीडा सम नहिं अधमाई'।
सबसे बड़ा पाप है दूसरे को दुःख देना, ये न सोचना हैं कि इसके अंदर भी श्रीकृष्ण बैठे हैं। जैसे हम आज एस.पी. हैं, कलेक्टर हैं और हमारा कोई नौकर है, चपरासी है और हमने अपनी सीट के कारण डाँटा, फटकारा, दण्ड दिया। ये भूल गए कि इसके अंदर भी वही बैठे हैं जो हमारे अंदर हैं। तो ये सब सोचने की बात है। इसका अभ्यास करे धीरे-धीरे तो हृदय में कोई गलत चीज न आने पावे।
देखो, आप लोग दाल चावल सब खाते हैं। खाते-खाते कोई कंकड़ आ गया तो ऐसे मुँह बनाकर उसको हाथ से निकाल कर बाहर कर देते हैं। निगल नहीं जाते। धोखेे में चला जाय तो बात अलग है। ऐसे ही कोई भी अच्छी चीज आवे ठीक है। किसी का गुण आवे बहुत अच्छा है। अरे! चौबीस गुरु बनाये दत्तात्रेय ने। कुत्ते को गुरु बनाया, गधे को गुरु बनाया। भगवान् के अवतार थे दत्तात्रेय। लेकिन उन्होंने कहा - भई! इसमें भी ऐसे गुण है जो मनुष्यों से अधिक बलवान है। वो आदमी में नहीं है। किसी आदमी की नाक ऐसी है, जो बता दे कि इधर से गया है चोर? कोई आई. ए. एस. ऐसा हुआ आज तक? और कुत्ता बता देता है इधर से गया है, बारह घण्टे पहले, वह चलता है उसी-उसी रास्ते से, आगे-आगे। इसीलिये सब जगह अच्छी चीज जहाँ दिखाई पड़े, ले लो और जहां खराब चीज दिखाई पड़े वहाँ सोच लो कि पता नहीं क्या रहस्य है ऊपर-ऊपर से एक्टिंग कर रहा है खराबी की।
अरे! गोपियाँ कितनी गालियाँ देती थीं भगवान् को। हम लोग अगर वहाँ होते या रहे हों, तो सुने होंगे और कहा होगा, ये भगवान् की भक्त है! क्या अंडबंड बोल रही है।
एक सखी ने किशोरी जी से कहा कि तुम नन्दनन्दन से क्यों प्यार करती हो? वो तो बड़ा लम्पट है, हर लड़की के पीछे घूमता रहता है और सबको धोखा देता है। तो किशोरी जी ने कहा, सखि! तू नहीं जानती वो ऐसा क्यो करतें हैं? वो ऐसा इसलिए करते हैं कि हमारा उनका प्यार पब्लिक में आउट न हो। यानी एक दोष को भी गुण के रूप में ले लेना। प्रेमी की पहचान है। वेद की ऋचायें कहती हैं, अरे! मैं जानती हूँ अनादिकाल से। राजा बलि को ठगा और शूर्पणखा के नाक कान कटवा दिये, बाली को छिप कर मारा, मुझे सब मालूम है इसका पुराना चिट्ठा पहले का। तो सखि कहती है फिर छोड़ो! हटाओ। अरे! ये नहीं हो सकता। उसका चिन्तन, उससे प्यार, वह कम नहीं होगा। हम उस व्यवहार पर भी लट्टू हैं। देखो, सर्वसमर्थ हो कर भी और बालि को छिप कर मारा, ये कलंक मोल लिया। सभी संसार में बदनामी कि उसकी पीठ में मार रहे हैं। उसको माला पहना कर मार रहे हैं। मथुरा से भागकर द्वारिका चले गए, रणछोर की डिग्री लेने के लिए। सारी दुनियाँ में बदनामी हो गई। तुम्हारे भगवान कैसे हैं? तो कौन समझ सकता है? भगवान् का रहस्य तो खैर समझने की बात नहीं है। मनुष्यों में कौन उच्च कोटि का साधक है, कौन निम्न कोटि का है और कौन कब किसका पतन हो जाय ये भी एक स्ट्रांग पॉइन्ट है। समझे रहना चाहिए। एक क्षण के कुसंग ने अजामिल को इतना बड़ा पापी बना दिया। एक क्षण का, एक मिनिट का भी नहीं।
एक वेश्या को एक शूद्र दासी के लड़के ने चिपटा करके, नंगे होकर के प्यार किया, वो दृश्य एक सेकिण्ड को देखा और आँख बन्द करके भागा अजामिल, घर आया, लेकिन वो चिन्तन धंस गया था उसकी खोपड़ी में। अब फिर उस वेश्या के पीछे अपनी स्त्री को छोड़ दिया और सारा धन घर का बेच दिया और बुढ़ापे तक पड़ा रहा वहीं वेश्या के घर। तो इसलिए कौन कब उठेगा, कौन कब गिर जाएगा, कोई कह नहीं सकता। इस पर विश्वास नहीं करना है मन के ऊपर, कि हाँ हम तो समझते हैं। बड़े-बड़े योगी लोग गिर गए। इसलिए कभी, कभी भी दूसरे के प्रति दुर्भावना नहीं करना चाहिए। भले ही आपकी दुर्भावना सही हो उसके प्रति। एक तो सही है कि नहीं ये ही नहीं जान सकते तुम और जान भी लो तो इस क्षण में दुर्भावना है और अगले क्षण में उल्टा हो गया सब वो। उसका प्रारब्ध खतम हो गया। यही सब गड़बड़ियाँ तो हम करते हैं जो साधना करते हुए भी आगे नहीं बढ़ते। जिसको देखा ऐं! ये क्या है? ऐं! ये क्या है? ऐं! मैं-मैं बड़ा भक्त हूँ, मैं बड़ा सेवक हूँ, मैं बड़ा दानी हूँ; दिमाग में ऐसा रोग पैदा करके और सब जगह छोटी भावना कर लिया, तुच्छ भावना। इससे बचना चाहिए। बस कमाने पर ध्यान रखें।
हृदय के अंदर अच्छी अच्छी चीजों का, अच्छे अच्छे गुणों का, अच्छी-अच्छी बातों का चिन्तन हो। खराब बात कोई कहे तो सुनो नहीं, पढ़ो नहीं, सोचो नहीं। तुरन्त सँभल जाओ। जैसे कोई मच्छर काट लेता है तो होशियार हो जाता है। इसने काट लिया। किसी के ड्राइंग रुम में कोई अपने घर का कूड़ा कचरा फेंके तो कौन पसन्द करेगा, कौन स्वीकार करेगा, पचास गाली दे देगा वह घर वाला। ऐसे ही दिल तो ड्राइंग रूम है भगवान् के लिए। इसमें गंदी चीज कहीं से भी, कैसे भी तुम लाए तो गन्दा हो गया। भगवान् तो कहते हैं जो ला चुके हैं उसे निकालो। साफ करो। माँ, बाप, बेटा, स्त्री, पति, का प्यार ये सब संसार का, विषय भोग का, ये सब निकालो। और तुम ला रहे हो। तो भगवान् कहते हैं हमसे कहते हो आ जाओ, कहाँ आऊँ? कहीं जगह भी है?
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक, भाग - 2०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 268
साधक का प्रश्न ::: दान कल्याणकारी है, इसका अर्थ क्या होता है, क्या हम पुण्य कमाते हैं?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: कल्याण शब्द के कई अर्थ होते हैं, मैंने बताया न ! एक कल्याण भगवद् विषय सम्बन्धी, इसे भी कल्याण कहते हैं। बस चार जगह हैं - नम्बर एक भगवान् सम्बन्धी, नम्बर दो सात्विक; यह मायिक है, लेकिन मायिक में बेस्ट है, और नम्बर तीन है मनुष्य लोक और नम्बर चार है नरक। तो जिसको जो चाहिए उसी बात को करे। अरे भई देखो! एक लड़की है, उसकी शादी करना है। तो लड़कियाँ आपस में बात करती हैं; एक कहती है, हमें डॉक्टर चाहिए। एक कहती है, हम इन्जीनियर चाहते हैं; कोई कहती है, हम ये चाहते हैं, वो चाहते हैं। सबकी अपनी-अपनी पसन्द है, वो अपने बाप को बताएगी ऐसा हो वो लड़का। तो जिसको माया निवृत्ति की चाह हो, भगवान् की चाह हो, वह भगवान् के निमित्त सब करे। और जिसको स्वर्ग जाने की या देखने की चाह हो, तो उसका पुरुषार्थ करे। तो जिसके निमित्त होगा कोई भी साधन, तो उसी का फल मिलेगा।
यान्ति देवव्रता देवान् पितृ़न्यान्ति पितृव्रताः।भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्।।(गीता 9-25)
अर्जुन से भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा - जो देवताओं की भक्ति करेंगे, स्वर्ग जायेंगे और जो पितरों की भक्ति करेंगे, वे पितृ लोक को जायेंगे। ऐसे ही जो मनुष्यों की भक्ति करेंगे वो उनके साथ जायेंगे। जो मेरी भक्ति करेंगे वे मुझको प्राप्त होंगे, सीधा सा गणित है। किसी की चार लड़कियाँ हैं - चार लड़कों से विवाह कर दिया, चारों एम. ए. हैं। एक आई. ए. एस. में आ गया वो कलेक्टर हो गया, उसकी बीबी कलेक्टर की बीबी हो गई। एक नहीं आया, वह क्लर्क हुआ तो उसकी बीबी बबुआइन हो गई, एक फटीचर हालत में रहा, कहीं सर्विस नहीं मिली भिखारी हो गया तो उसकी बीबी भिखारिन हो गई। तो जहाँ मन का अटैचमेन्ट होगा, उसी का फल मिल जाएगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 267
(भूमिका - किस प्रकार साधना और सिद्धान्त; ये दोनों ही अलग-अलग प्रकार से साधक के लिये आवश्यक है, इसी विज्ञान को जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज नीचे के उद्धरण में समझा रहे हैं..)
साधक का प्रश्न ::: भक्ति के लिये साधना अधिक आवश्यक है या सिद्धान्त ज्ञान?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: सत्य व्यवहार हरि गुरु से करना है। संसार में तो काम कर दो किसी को मन देने की जरूरत नहीं। बायजीद, रहमान दो फकीर रातभर खुदा की बातें करते रहे, कुरान की बातें करते रहे। तो सबेरे रहमान ने कहा कि आज की रात धन्य हो गई कि हम लोग खुदा की बात करते रहे। तो दूसरे फकीर ने कहा कि नहीं आज की रात बहुत खराब गई कि बातें ही करते रहे, खुदा का ध्यान नहीं किया।
तो रूपध्यान, साधना ये तो ए-वन क्लास की चीज है। लेकिन उससे थक जाय तो गुरु के सिद्धान्त का श्रवण, पठन, मनन ये सब करें, लीला का चिन्तन पठन करें। तो श्रवण वगैरह साधना जो है ये नम्बर दो की है। नम्बर एक है रूपध्यान। वो चाहे गुरु का ध्यान करे, चाहे भगवान् का ध्यान करे, मन का लगाव एक जगह पर होता है। लेक्चर तो होता है कि हमारा जो अज्ञान है वो जाय या हमारा जो ज्ञान है पहले वाला गुरु ने दिया था वो ताजा हो जाय। पक्का हो जाय। बार-बार सुनने से तत्त्वज्ञान पक्का होता है लेकिन खाली खाना पकाने की किताब को रट ले इससे पेट नहीं भरेगा। खाली रेलवे के टाइम टेबल को याद कर लें इससे सफर नहीं पूरा हो जायेगा। वो तो अलग चीज है, वो तो करना पड़ेगा। तुमको रोटी बनाने का अभ्यास हो गया है। लेकिन बनाओ, खाओ, तब तो पेट भरेगा। खाली पढ़ा दिया स्कूल में कि ऐसे ऐसे रसगुल्ला बनता है। इससे क्या काम बनेगा। ठीक है वो भी जरूरी है।
सिद्धान्त बलिया चित्ते न कर आलस।(गौरांग महाप्रभु)
सिद्धान्त ज्ञान में आलस्य न करो लेकिन सिद्धान्त के साथ-साथ प्रैक्टिकल साधना भी करो। सिद्धान्त पक्का हो गया तो अब साधना में अधिक समय दो। बीच-बीच में सुन लो। आज कल तो बड़ा अच्छा है, कैसिट का जमाना है। गुरुजी हों चाहे न हों, घर में कैसिट लगा दो, सुन लो। अरे बड़ा लाभ है इस अविष्कार से। दर्शन भी करो और लेक्चर भी सुन लो। बहुत से गृहस्थी लोग करने लगे हैं ये। उनके पास आधा घण्टा, पौन घण्टा है, लगा दिया बैठकर सुन लिया अपना।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक, भाग 3, प्रश्न संख्या 28०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - भगवान हनुमान का जन्मोत्सव हर साल चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि पर मनाया जाता है। इस बार हनुमान जन्मोत्सव 27 अप्रैल को है। इस दिन का बहुत ही खास महत्व होता है। हनुमान जन्मोत्सव पर भगवान हनुमान की पूजा-आराधना और कुछ उपायों का विशेष महत्व होता है। इस विशेष अवसर पर हनुमान जी की कृपा पाने के लिए ये चार उपाय जरूर करें। ये उपाय करने से आपके समस्त प्रकार के कष्ट मिट जाएंगे।हनुमान चालीसा का पाठहनुमान जन्मोत्सव के दिन हनुमान चालीसा का पाठ करने से हनुमान जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। हनुमान चालीसा के पाठ में कोई विशेष नियम भी नहीं होता है। आप कहीं भी कभी भी हनुमान चालीसा का पाठ कर सकते हैं। हनुमान चालीसा के पाठ करने से आप पर कभी भी कोई भी बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा। आप एक से अधिक हनुमान चालीसा का पाठ भी कर सकते हैं।बजरंग बाण का पाठहनुमान जन्मोत्सव के दिन बजरंग बाण के पाठ से हनुमान जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है और सभी तरह के संकटों से मुक्ति मिलती है। आप पर भी अगर शनि का अशुभ प्रभाव है तो नित्य बजरंग बाण का पाठ करें। ऐसा करने से शनि का अशुभ प्रभाव दूर हो जाएगा।संकट मोचन हनुमान अष्टक का पाठसंकट मोचन हनुमान अष्टक का पाठ करने से हनुमान जी प्रसन्न होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। हनुमाष्टक का पाठ करने से सभी संकटों से मुक्ति मिलती है और हनुमान जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।श्री राम नाम का सुमिरनहनुमान जी को प्रसन्न करने का सबसे आसान उपाय है भगवान राम के नाम का सुमिरन करना। हनुमान जी भगवान राम के परम भक्त हैं और जो व्यक्ति श्री राम नाम का सुमिरन करता रहता है, उस पर हनुमान जी विशेष कृपा करते हैं। भगवान श्री राम के साथ माता सीता का भी सुमिरन करना चाहिए।हनुमान जी के समक्ष जलाएं दीपकहनुमान जन्मोत्सव के अवसर पर हनुमान मंदिर में जाकर हनुमानजी के समक्ष एक सरसों के तेल का और एक शुद्ध घी का दीपक प्रज्ज्वलित करें इसके बाद आसन लगाकर वहीं पर हनुमान जी का ध्यान करें।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 266
(भूमिका - प्रत्येक व्यक्ति भगवान के मार्ग पर, जिसे आध्यात्मिक मार्ग कहा जाता है; उस पर अलग-अलग गति से चलता है। गति की इस भिन्नता के पीछे कुछ कारण हैं, उन्हीं पर जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा सरल-शब्दों में प्रकाश डाला गया है...)
साधक का प्रश्न ::: कुछ लोग हरि गुरु की ओर तेजी से दौड़ते हैं कुछ लोग मेरी तरह ब्रेक लगाते रहते हैं ऐसा क्यों?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: इसके दो कारण हैं। एक तो जिनके प्रारब्ध में, भाग्य में, यानी पूर्वजन्म में जिन लोगों ने विशेष साधना की है वो तेजी से बढ़ते हैं और दूसरा रीजन ये है कि इस जन्म में जिन लोगों ने सोचा है बार-बार हमें करना है, जल्दी करना है, अभी करना है, ये मनुष्य शरीर बरबाद न जाय, इन सब बातों को जो बार-बार सोचता है और संसार से वैराग्य होता है मन में, वो तेज चलता है। और जिसके पास दोनों हो गया; इस जन्म में भी सोचा और प्रारब्ध भी उसका मुआफिक था, अच्छा था, वो और तेज चलता है। कुछ तो ऐसे होते हैं, मीरा वगैरह हुई हैं जो कि बस थोड़ी सी कमी थी प्रारब्ध के बाद तो वो पूरी हो गई तुरन्त। और जिसने पहले नहीं कमाया है उसको अब कमाना है, मेहनत करे। असम्भव तो है ही नहीं। सवाल ही नहीं है। अगर पहले कमाया है तो जल्दी स्पीड में बढ़ेंगे हम, नहीं कमाया पहले तो धीरे-धीरे चलकर पहुंचेंगे। पहुँचना तो है ही है वहाँ।
लेकिन हर एक साधक को यही सोचना चाहिये कि प्रारब्ध खराब तब होता है नम्बर एक, मानवदेह न मिले; 'बड़े भाग्य मानुष तनु पावा।' सबसे बड़े भाग्य की बात तो ये ही है कि मनुष्य शरीर मिला। नम्बर दो, 'धन्यास्तु ये भारत भूमि भागे।' इण्डिया में जन्म हुआ। जहाँ मरने पर भी राम नाम सत्य बोलते हैं लोग। अँगड़ाई लेते हैं, तब भी राम-राम बोलते हैं। ऐसे देश में जन्म हुआ। और फिर अगर किसी को महापुरुष मिल गया असली तो बस कृपा की पराकाष्ठा हो गई। इससे आगे भगवान की और कोई कृपा नहीं है। अब इसके आगे लापरवाही है हमारी। जो हम तेज स्पीड में नहीं बढ़ते। सोचते नहीं। बार-बार सोचने से ही परवाह होती है। गति मिलती है।
आवृत्तिरसकृदुपदेशात्।(ब्रम्हसूत्र 4-1-1)
वैराग्य संसार में सबको होता है। बीबी ने अपमान किया, बाप ने अपमान किया, बेटे ने अपमान किया तो वैराग्य सबको होता है। लेकिन उस पर ज्यादा देर विचार नहीं करता। भूल जाता है। इसलिये भगवान की ओर ज्यादा तेज चल नहीं पाता। तो विचार मेन चीज है, बार-बार। भगवान ने दो वाक्य कहा है कि;
ध्यायतो विषयान् पुंसः संगस्तेषूपजायते।(गीता 2-62)
विषयान् ध्यायतश्चित्तं विषयेषु विषजते।मामनुस्मरतश्चित्तं मय्येव प्रविलीयते॥(भागवत 11-14-27)
मनुष्यों! दो बात याद रखो सब भूल जाओ तो भी कि संसार का बार-बार स्मरण करोगे तो संसार में अटैचमेन्ट हो जायेगा और मेरा स्मरण बार-बार करोगे तो मुझमें अटैचमेन्ट हो जायेगा। सब कुछ चिन्तन पर डिपैण्ड करता है।
होना न सोचे, कि हमसे नहीं होता, भगवान का चिन्तन नहीं होता। होना-वोना तो सिद्धि की बात है, हमको करना है। होना बाद में होता है। संसार में भी पहले शौक से सिगरेट पीता है आदमी। शौक से शराब पीता है बेमनी से फिर बाद में इन्ट्रैस्ट हो जाता है। ऐसे ही भगवान का विषय भी है। पहले मन लगाना होगा, प्रैक्टिस करना होगा, बार-बार, फिर लगने लगेगा। तो फिर चल पड़ेगी गाड़ी। लेकिन शुरू-शुरू में मुश्किल है थोड़ी-सी।
अब और कोई गति ही नहीं। आदमी अगर सोचे - देखो भई ! संसार में एक डॉक्टर से झगड़ा हो गया, तो दूसरा है, तीसरा है। संसार में तो बहुत से लोग हैं, हम जिनसे अपना काम बना लेते हैं, एक ने नहीं किया दूसरे ने किया लेकिन भगवान को छोड़कर कहाँ जायेंगे?
एक माया का एरिया है, एक भगवान का। और फिर जाकर देख लिया। हमारे संसार में कहते हैं कि गरम दूध पीकर के जब बिल्ली का मुँह जल जाता है तो वो छाछ को भी फूंक-फूंक कर पीती है। और हमारा तो रोज जल रहा है, संसार में। और फिर भी होश नहीं आता। वो कुत्ता होता है न, उसको डण्डा मारो तो रोता हुआ भागता है। कुछ दूर जाकर फिर गुस्से में देखता है मारने वाले को, दुश्मनी की भावना से और जहाँ उसने रोटी दिखाया तो पूँछ हिलाकर फिर आ जाता है। फिर डण्डा मार देता है वो। यही हाल हम लोगों का है। संसार से प्यार करते हैं, संसार वाले अपमान करते हैं, वैराग्य होता है, फिर वहीं जाकर सिर नाक रगड़ते हैं। वो श्मशान वैराग्य कहलाता है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक, भाग 3, प्रश्न संख्या 27०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - ज्यादातर लोगों को सिर्फ एक ही चीज की चिंता सता रही है और वह है उनकी सेहत. बीमार पड़ने से बचना है तो अपनी सेहत को बनाए रखना बेहद जरूरी है. लेकिन आपने भी यह बात जरूर नोटिस की होगी कि कई बार अपना और परिवार के सदस्यों का पूरा ख्याल रखने के बाद भी कोई न कोई अक्सर घर में बीमार ही रहता है घर में मौजूद वास्तु दोष (Vastu Dosh) भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकता है. वास्तु से जुड़ी किन दिक्कतों की वजह से बीमारियां आपका पीछा नहीं छोड़तीं, इस बारे में यहां जानें.वास्तु से जुड़े ये दोष बढ़ाते हैं बीमारी का खतरा1. अगर आपके घर के मेन गेट के बाहर कोई गड्ढा है तो उसे तुरंत भरवा दें क्योंकि इसकी वजह से भी वास्तु दोष होता है. ऐसा न करने पर परिवार के मुखिया समेत अन्य सदस्यों को भी शारीरिक और मानसिक बीमारियां होने का खतरा बना रहता है. साथ ही घर के मेन गेट को हमेशा साफ सुथरा रखें. घर के सामने मौजूद गंदगी भी वास्तु दोष का कारण बनती है.2. घर के मध्य भाग यानी बीचों बीच के स्थान को ब्रह्मस्थान के रूप में जाना जाता है. पुराने जमाने पर ब्रह्मस्थान पर खुला आंगन होता था. लेकिन आज के समय यह संभव नहीं है इसलिए जहां तक संभव हो घर के ब्रह्मस्थान को खाली ही रखें. अगर आपने वहां कोई भारी भरकम फर्नीचर रखा है तो इससे भी वास्तु दोष हो सकता है. घर के बीचों बीच सीढ़ियां होना भी वास्तु दोष का कारण है. सीढ़ियां हमेशा किनारे या कोने से शुरू होनी चाहिए.3. उत्तर पूर्व दिशा (North East Direction) जिसे ईशान कोण भी कहते हैं देवताओं का स्थान माना जाता है. आपके घर में अगर इस दिशा में टॉयलेट या फिर सीढ़ियां बनी हों तो यह भी एक बड़ा वास्तु दोष माना जाता है. इस वजह से भी परिवार के सदस्यों को मानसिक तनाव हो सकता है या फिर परिवार के सदस्य अक्सर बीमार रह सकते हैं. देव स्थान पर बना टायलेट घर की महिलाओं को संतान सुख से भी वंचित कर सकता है.4. वास्तु शास्त्र में दक्षिण-पूर्व (South East) दिशा को आग्नेय कोण के रूप में भी जाना जाता है और अगर आपका रसोई घर यानी किचन इस दिशा में नहीं है तो परिवार के सदस्य अक्सर बीमार रहते हैं, खासकर परिवार में कमाने वाला मुख्य व्यक्ति. लिहाजा रसोई हमेशा आग्नेय कोण में होनी चाहिए. लेकिन अगर ऐसा नहीं है तो आग्नेय कोण में रोजाना लाल रंग की मोमबत्ती जलाने से परिवार के सदस्यों की सेहत अच्छी बनी रहती है.
- जीवन में अच्छे और बुरे दिन आते-जाते रहते हैं. लेकिन कई बार जीवन में कुछ ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं, जिनसे बाहर निकलना बेहद मुश्किल हो जाता है. आर्थिक स्थिति का गड़बड़ाना भी उनमें से एक है. कई बार लोग न चाहते हुए भी कर्ज के बोझ में दबते चले जाते हैं और काफी कोशिश करने के बावजूद उन्हें कर्ज से मुक्ति नहीं मिलती है. इसकी वजह से घर में लड़ाइयां होने लगती हैं और वे परेशान हो जाते हैं.वास्तुदोष है जिम्मेदारआपके घर के वास्तु का असर आपकी निजी जिंदगी पर जरूर पड़ता है. वास्तु शास्त्र (Vastu Shastra) में ऐसी कई बातें बताई गई हैं, जिनसे घर की संरचना को ठीक किया जा सकता है. क्या आप जानते हैं कि आपके कर्ज में डूबने के पीछे वास्तु दोष भी जिम्मेदार हो सकते हैं? आज हम आपको बताएंगे कि वे कौन-कौन से वास्तु दोष हैं, जिनके कारण आपकी आर्थिक स्थिति खराब होती चली जाती है.1. अगर आपके घर की उत्तरी दिशा बाकी हिस्सों की तुलना में अधिक उठी हुई है तो यह वास्तु दोष होता है. इससे आपकी आर्थिक स्थिति गड़बड़ा सकती है.2. घर बनवाते समय अगर आप उत्तरी दिशा को कवर करवा देते हैं और दक्षिण दिशा को खाली छोड़ देते हैं तो उसे भी वास्तुदोष माना जाएगा.3. वास्तुशास्त्र के अनुसार, अगर घर की दक्षिण-पश्चिम दिशा में पानी का अंडरग्राउंड टैंक होता है तो उसे अभअशुभ माना जाता है.4. वास्तु के अनुसार, कभी भी घर की उत्तर-पूर्वी दिशा में ऐसी कोई मशीन न रखें, जिससे बहुत गर्मी निकलती है. यह एक बड़ा वास्तुदोष होता है. ऐसा करने से आपके व्यापार में परेशानियां उत्पन्न होती हैं और आप पर आर्थिक संकट की मार पड़ सकती है.5. कभी भी पानी का टैंक दक्षिण-पूर्व दिशा में न रखें. यह दिशा अग्नि तत्व को दर्शाती है, अग्नि की दिशा में पानी को रखना शत्रु को पालने के समान है. वास्तु के अनुसार ऐसी गलती भूलकर भी न करें.
- सनातन धर्म में व्रत एवं त्योहारों का विशेष महत्व होता है। हिंदू धर्म में भगवान को प्रसन्न करने व उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कई व्रत रखे जाते हैं। मान्यता है कि व्रत को विधि-विधान से रखने व भगवान की पूजा करने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। देशभर के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग त्योहार सेलिब्रेट किए जाते हैं। इन त्योहारों को मनाने का तरीका भी अलग होता है।हिंदू पंचांग के अनुसार, 27 मई से हिंदू नववर्ष का प्रथम माह चैत्र समाप्त हो जाएगा। 28 अप्रैल से वैशाख लग जाएगा। वैशाख महीने यानी मई में भी कई व्रत व त्योहार आएंगे। जिसमें विनायक चतुर्थी, शनि प्रदोष व्रत, बुद्ध पूर्णिमा और वैशाख पूर्णिमा शामिल हैं। जानिए मई 2021 में आने वाले व्रत व त्योहार-मई 2021: व्रत एवं त्योहारों की सूची07 मई: वरूथिनी एकादशी08 मई: शनि प्रदोष09 मई: मासिक शिवरात्रि12 मई: ईद-उल-फितर15 मई: विनायक चतुर्थी
- माना जाता है कि यदि कुंडली में किसी ग्रह की स्थिति ठीक न हो, पीडि़त हो तो जातकों को उस ग्रह से सबंधित बीमारियों का सामना करना पड़ता है।चंद्र ग्रह से होने वाली बीमारी और उपायज्योतिष में फेफड़ों से जुड़ी बीमारी का संबंध चंद्र ग्रह से माना गया है। इसके अलावा चंद्रमा के पीडि़त होने पर व्यक्ति को कफ और मानसिक बीमारी भी हो होती है। कुंडली में चंद्र ग्रह को मजबूत बनाने के लिए सोमवार के दिन शिवजी की आराधना करनी चाहिए।सूर्य ग्रह से होने वाली बीमारियां और उपायसूर्य ग्रह सभी ग्रहों का राजा है। सूर्य के अशुभ प्रभाव से जातकों को आंखों और सिर से संबंधित रोग होने लगते हैं। कुंडली में सूर्यदेव की मजबूती के लिए रोजाना सूर्योदय के समय सूर्य भगवान को जल चढ़ाना चाहिए।मंगल ग्रह से होने वाले रोग और उपायमंगल ग्रह का संबंध रक्त से है। अत: कुंडली में मंगल के अशुभ होने पर व्यक्ति को खून से संबंधित बीमारियां ज्यादा होने लगती हैं। मंगल को मजबूत बनाने के लिए मंगलवार के दिन हनुमान जी की आराधना करें और मंगलवार का व्रत करें।बुध ग्रह से होने वाली बीमारियां और उपायबुध ग्रह का संबंध त्वचा से है। बुध ग्रह के कमजोर होने पर व्यक्ति को त्वचा से जुड़ी बीमारियां होने लगती हैं। बुध ग्रह की शुभता पाने और उससे जुड़े दोष को दूर करने के लिए गाय को हरी घास खिलाना चाहिए।गुरु ग्रह से होने वाली बीमारियां और उपायगुरु का संबंध मोटापे से है। कुंडली में गुरु के कमजोर होने से व्यक्ति को मोटापे और उदर से संबंधित रोग होने लगते हैं। बृहस्पति को प्रसन्न करने के लिए गुरुवार के दिन पीले वस्त्र धारण करना चाहिए।शुक्र ग्रह से होने वाली बीमारियां और उपायशुक्र ग्रह संपन्नता और वैभव का कारक ग्रह है। इसके अशुभ होने पर व्यक्ति को यौन संबंधी बीमारियों से सामना करना पड़ता है। शुक्र की मजबूती के लिए जातकों को शुक्रवार के दिन कन्याओं को सफेद रंग की मिठाई खिलानी चाहिए।शनि ग्रह से होने वाली बीमारियां और उपायशनि के कमजोर होने से व्यक्ति को शारीरिक थकान, चोट आदि लगने का भय रहता है। शनि को मजबूत बनाने के लिए जातकों को शनिवार के दिन शनि मंदिर में तेल चढ़ाना चाहिए।राहु ग्रह से होने वाली बीमारियां और उपायकुंडली में राहु के अशुभ होने पर व्यक्ति को बार-बार बुखार होता है। यदि आप राहु से संबंधित व्यक्ति जैसे कुष्ठ रोगी, निर्धन व्यक्ति, सफाई कर्मचारी आदि को भोजन आदि देकर प्रसन्न करते हैं तो आपको राहु की कृपा अवश्य मिलेगी।केतु ग्रह से होने वाली बीमारियां और उपायराहु के कमजोर होने से व्यक्ति को हड्डियों से संबंधित बीमारियां होने लगती है। केतु के दुष्प्रभाव से बचने के लिए सबसे पहले आप अपने बड़े-बुजुर्ग की सेवा करना प्रारंभ कर दें। साथ ही कुत्ते को मीठी रोटी खिलाएं।
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जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 265
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! तीन प्रकार के कर्म कौन-कौन से हैं? तीन प्रकार के शरीर कौन-कौन से हैं? पांच प्रकार के क्लेश कौन-कौन से हैं? पांच प्रकार के कोश कौन-कौन से हैं? तीन प्रकार के ताप कौन-कौन से हैं?जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: एक साधक ने प्रश्न किया है कि तीन प्रकार के कर्म कौन-कौन से हैं, तीन प्रकार के शरीर कौन-कौन से हैं, पाँच प्रकार के क्लेश कौन-कौन से, पाँच प्रकार के कोश कौन-कौन से, तीन प्रकार के ताप कौन-कौन से हैं? तो आप लोग नोट कर लें। ऐसे तो फिर कहेंगे भूल गए।तीन प्रकार का कर्म - एक का नाम संचित कर्म, एक का नाम प्रारब्ध कर्म, एक का नाम क्रियमाण कर्म। क्रियमाण कर्म से ही संचित कर्म बनता है। क्रियमाण माने हम वर्तमान काल में जो कर्म करते हैं अच्छे-बुरे कुछ भी, उसको क्रियमाण कर्म कहते हैं। एक के बाद दूसरा, तीसरा, चौथा कर्म करते हैं न। पहले मन से सोचते हैं, प्लान बनाते हैं, फिर इन्द्रियों के द्वारा करते हैं; और अनन्त जन्मों का इसी प्रकार का जो स्टॉक है उसको संचित कर्म कहते हैं। इसमें अनन्त पाप, अनन्त पुण्य होते हैं। उसको संचित कर्म कहते हैं। उस संचित कर्म से थोड़ा-सा अंश, समुद्र की एक बूंद की तरह, निकालकर भगवान हमारे लिये प्रारब्ध बनाते हैं, भाग्य, लक। जो हमको कम्पलसरी भोगना पड़ता है। क्रियमाण करना तो हमारे हाथ में है। अच्छा करें बुरा करें। लेकिन प्रारब्ध भोगना, भुगवाना ये भगवान के हाथ में है। यानी वो भोगना पडेगा। मान लो किसी ने भगवत्प्राप्ति कर ली तो? उसको भी भोगना पड़ेगा लेकिन एक अन्तर होगा कि महापुरुष को उसकी फीलिंग नहीं होगी। आपका भी बेटा मरेगा, महापुरुष का भी बेटा मरेगा। महापुरुष मुस्कुराता रहेगा, आप रोते रहेंगे। आपका भी घर जलेगा, महापुरुष का भी जलेगा। आप छाती पीट कर रोयेंगे, महापुरुष भगवान की लीला समझकर हँसेगा। यानी उसको फीलिंग नहीं होगी, लेकिन प्रारब्ध भोगना पड़ेगा ज्ञानी को भी, भक्त को भी। तो ये तीन प्रकार के कर्म हुए। संचित कर्म हमारे अनन्त हैं। उसको न हम जान सकते हैं न जानने से कोई फायदा। प्रारब्ध कर्म थोड़ा-सा है। जिसमें हम पूरा परिश्रम सही-सही करते हैं फिर भी सफलता नहीं मिलती है या बिना परिश्रम के बड़ा लाभ मिल जाता है। लॉटरी खुल गई, तो ये प्रारब्ध है। बुरा-अच्छा दोनों प्रकार का आता है और भोगने के बाद समाप्त हो जाता है।अब एक कर्म बचा, क्रियमाण कर्म। इसी पर जोर देते हैं महापुरुष, शास्त्र-वेद कि तुम और अब कुछ मत सोचो बस वर्तमान में भगवान में मन को लगाओ, अच्छा कर्म करो। तो क्या होगा कि जब भगवत्प्राप्ति होगी तब प्रारब्ध तो भोग कर समाप्त हो जाएगा, वो थोड़ा-सा होता है, उसकी फीलिंग होगी नहीं इसलिए होना न होना बराबर है और संचित कर्म भगवान क्षमा कर देते हैं। भगवत्प्राप्ति हुई बस तुरन्त पिछले सब पाप-पुण्य माफ कर दिये गये।अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि।(गीता 18-66)पाप माने, पाप-पुण्य दोनों। पुण्य भी बन्धनकारक है। 'पुण्येन पुण्यं लोकम्'। स्वर्ग मिलता है, वह भी बन्धन कारक है। 'सुकृत दुष्कृते धुनुते'। पुण्य-पाप दोनों को भगवान समाप्त कर देते हैं। तो ये तीन प्रकार के कर्म बताए गए हैं।अब शरीर समझिए। तीन प्रकार के शरीर भी होते हैं। एक तो तुम्हारा ये शरीर, इसको कहते हैं कि स्थूल शरीर हैं; माने जो आँख से दिखाई पड़े, जिसका स्पर्श संभव हो। लम्बा-चौड़ा, हट्टा-कट्टा, मोटा सब प्रकार का शरीर होता है न। ये स्थूल शरीर है। एक होता है सूक्ष्म शरीर जो मरने के बाद जीवात्मा के साथ जाता है। ये स्थूल शरीर नहीं जाता है। ये तो आप लोग ही देखते हैं। तो ये सूक्ष्म शरीर अठारह तत्त्वों से बनता है। पाँच ज्ञानेन्द्रिय - ये आँख, कान, नाक, रस, त्वचा; पांच कर्मेन्द्रिय - हाथ पैर वगैरह; पाँच प्राण - प्राण, अपान, उदान, समान, व्यान। ये पंद्रह। एक मन, एक बुद्धि, एक अंहकार। तो ये अठारह तत्त्वों का सूक्ष्म शरीर होता है। ये मरने के उपरान्त 'सहैवैतै: सर्वैरुत्क्रामति' जीवात्मा के साथ जाता है। गीता भी कहती है 'गृहीत्वैतानि संयाति'। और जब महाप्रलय होता है तो उसमें ये सूक्ष्म शरीर भी नहीं रहता है। एक तीसरा शरीर होता है उसको कहते हैं कि कारण शरीर हैं। वह सब से बलवान होता। वह काहे का होता है? वह वासना का होता है। इच्छायें। वही है मेन खतरा। तो ये तीन प्रकार का शरीर होता है।पाँच प्रकार के क्लेश होते हैं - अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष, अभिनिवेश। अविद्या माने अज्ञान, अस्मिता माने अहंकार, राग माने अटैचमेन्ट, द्वेष माने दुश्मनी, अभिनिवेश माने मृत्यु का भय। मैं मर जाऊं। 105 बुखार हो गया बेटा को, ये क्या! जल्दी डाक्टर लाओ कहीं मर न जाय। हर समय मरने का भय है। हाँ, कोई मरना नहीं चाहता। बीमार है, बूढ़ा है, कैन्सर हो गया है, पता है मरना है। अरे भई डॉक्टर दवा तुम क्यों नहीं देते। डॉक्टर कहता है कि आप बच नहीं पाएंगे। अरे! दवा देकर देखो, क्या पता बच जायें। ये पाँच क्लेश होते हैं।पाँच कोश होते हैं - एक अन्नमय कोश, एक प्राणमय कोश, एक मनोमय कोश, एक विज्ञानमय कोश, एक आनंदमय कोश। इनका बन्धन है। अन्नमय कोश तो ये स्थूल शरीर है। अन्न खाते हैं न आप रोटी, दाल, चावल। अगर ये नहीं मिले तो गया। प्राणमय कोश पाँच कर्मेन्द्रिय, पाँच प्राण ये दस तत्त्वों का प्राणमय कोश होता है। एक मन और पाँच ज्ञानेन्द्रिय आँख, कान, नाक आदि इन छहों का एक मनोमय कोश होता है और पाँच ज्ञानेन्द्रिय और एक बुद्धि इन छहों का विज्ञानमय कोश होता है और जो वासनात्मक शरीर है कारण शरीर वो आनन्दमय कोश है। इन पाँच कोशों के जलने के बाद मुक्ति होती है।तीन ताप - एक आध्यात्मिक ताप, एक आधिभौतिक ताप, एक आधिदैविक ताप। तो आध्यात्मिक ताप दो प्रकार का होता है; एक शारीरिक ताप, एक मानसिक ताप। शरीर की कष्ट, बीमारी। आज फीवर हो गया, आज डायरिया हो गया, आज ये हो गया, आज ये हो गया। रोज कुछ न कुछ चलता रहता है। भोगते रहते हैं हम लोग। क्या करें भई! डॉक्टरों का भला होता रहता है। तो ये शारीरिक कष्ट। और दूसरा मानसिक कष्ट, वह सबसे बड़ा है। कामनाएँ पैदा हों, काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष कई प्रकार की मन की जो बीमारी है जिससे हम परेशान होते हैं। एक आदमी ने कहा - गेट आउट, हमारे घर से निकल जाओ। हमको गेट आउट कहा, हम देखेंगे। अरे! सुनो जी। अरे! सुनो जी ।... ये लो कीर्तन, भजन, स्मरण, मनन सब होने लगा। सेन्टैन्स बोला है वह खाली, 'गेट आउट, चले जाओ'। 'गेट आउट' कहा है। अरे! ऐसे कैसे चले आवैं ऐसे। हमारी तौहीन हो गई। तौहीन, इन्सल्ट। अरे! तुम तो आत्मा हो, तुम्हारा क्या बिगाड़ा? फील कर रहे हों इसलिए वह बिगड़ेगा। वरना आपको तो हँसना चाहिए। ठीक कहा आपने गेट आउट। हम और चले जाते हैं दूर। तो ये मानसिक रोग काम, क्रोध, लोभ, मोह। ये दोनों आध्यात्मिक ताप हैं। और आधिभौतिक ताप होता है जो दूसरे के द्वारा अकारण मिल जाय। हाँ, ये हमारा पड़ोसी बड़ा पैसा वाला हो रहा है इसको कुछ तंग करना चाहिए, इसको परेशान करना चाहिए, इसको बदनाम करना चाहिए बिना कारण के। और एक होता है आधिदैविक ताप, जैसे- सर्दी, गर्मी। अधिक ठण्ड पड़ रही है और जाना है हमको लखनऊ। जाना होगा। तो ये तीन प्रकार के ताप हैं।तो तीन प्रकार के ताप, तीन प्रकार के कर्म, तीन प्रकार के शरीर, पांच प्रकार के क्लेश और पांच प्रकार के कोश, आप को बता दिये जितनी मेरी योग्यता थी।०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक, भाग 2, प्रश्न संख्या 3०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - मई महीने की शुरुआत में ही बुध का राशि परिवर्तन होने जा रहा है। बुध ग्रह का गोचर वृष राशि में होगा। बुध ग्रह को एक शुभ ग्रह माना गया है। उसे सभी 9 ग्रहों में राजकुमार की उपाधि प्रदान की गई है। हालांकि, इस राशि परिवर्तन से एक अशुभ योग बन रहा है। इससे मेष से लेकर मीन राशि तक के लोग प्रभावित होंगे।1 मई 2021 को सुबह 5 बजकर 32 मिनट पर बुध ग्रह वृषभ राशि में प्रवेश करेगा। इसके बाद 26 मई 2021 तक वृष राशि में बुध का गोचर रहेगा। इसके बाद 26 मई को सुबह 7 बजकर 50 मिनट के बाद बुध ग्रह राशि बदलकर मिथुन राशि में प्रवेश करेगा।मिथुन और कन्या राशि के स्वामी हैं बुधज्योतिष शास्त्र में बुध ग्रह को वाणी, व्यापार, कम्युनिकेशन, बुद्धि, गणना, तर्क शास्त्र आदि का कारक माना गया है। मिथुन और कन्या राशि के स्वामी बुध हैं। कन्या बुध की उच्च और मीन बुध की नीच राशि है।बुध के राशि परिवर्तन का क्या होगा असरवृष राशि में पहले से ही पाप ग्रह राहु विराजमान हैं। इसके बाद इसमें बुध का प्रवेश होने से जड़त्व योग बन रहा है। इस योग ज्योतिष शास्त्र में शुभ नहीं माना जाता है। यह योग कुंडली के अलग अलग भाव के अनुसार फल देता है। वृष राशि में इस योग के बनने से इस राशि के लोगों को धन संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। ज्योतिष शास्त्र में राहु को कूटनीति, राजनीति, धोखा, प्रपंच, भ्रम, विदेशी भाषा, विदेश और मानसिक रोग आदि का भी कारक माना गया है।
- हस्तरेखा विज्ञान में भाग्य रेखा बेहद महत्वपूर्ण मानी गई है। यह व्यक्ति के जीवन में भाग्य का संकेत करती है। भाग्य रेखा कई तरह की होती हैं। हालांकि जिन लोगों के हाथों में भाग्य रेखा नहीं होती, इसका मतलब यह नहीं है कि उनका जीवन बेकार है। रेखाएं निरंतर बदलती रहती हैं। जानिए किस तरह की होती हैं भाग्य रेखाएं और क्या होता है उनका अर्थ।-यदि भाग्य रेखा गहरी और लंबी है तो यह पेशेवर दृष्टिकोण में स्थिरता को दर्शाती है।-यदि भाग्य रेखा संकीर्ण और बीच में पतली है तो इसका मतलब है कि युवा अवस्था के दौरान अच्छा कॅरिअर। लेकिन मध्यम आयु के बाद कुछ दिक्कतें हो सकती हैं।-उथली भाग्य रेखा कदम-कदम पर जीवन में कठिनाइयों का संकेत करती है।-संकीर्ण और अस्पष्ट भाग्य रेखा अस्थिरता को दर्शाती है।-यदि भाग्य रेखा जीवन रेखा से शुरू हो तो इसका मतलब है कि व्यक्ति ऊर्जावान है और मेहनत के दम पर बेहतर स्थिति को प्राप्त करेगा।-मस्तिष्क रेखा से भाग्य रेखा शुरू होने का मतलब है कि कि ऐसे लोगों को सफलता 35 साल के बाद मिलेगी। इससे पहले उनके जीवन में कठिनाइयों और असफलता बनी रहती है।-यदि भाग्य रेखा जीवन रेखा से घिरी हुई है तो यह कॅरिअर में समस्या और परेशानी का संकेत देती है।-यदि भाग्य रेखा जीवन रेखा को पार नहीं करे तो ऐसे लोग युवा अवस्था में अच्छी संपत्ति को प्राप्त करते हैं।-यदि भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर रुक जाए तो गलत निर्णय के चलते अपना काम छोड़ देते हैं।-भाग्य रेखा अंत में हल्के रंग की और पतली हो तो जीवन में यह समय बेहद कठिन होता है।-भाग्य रेखा पर पर्वत होना कॅरिअर में रुकावट का संकेत देता है। पर्वत का आकार समस्या की गंभीरता को दर्शाता है।
- गायत्री महामंत्र वेदों का एक महत्व पूर्ण मंत्र है जिसकी महत्ता ऊँ के लगभग बराबर मानी जाती है। यह यजुर्वेद के मन्त्र 'ऊँ भूर्भुव: स्व:' और ऋग्वेद के छन्द 3.62.10 के मेल से बना है। इस मंत्र में सवितृ देव की उपासना है इसलिए इसे सावित्री भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंत्र के उच्चारण और इसे समझने से ईश्वर की प्राप्ति होती है। इसे श्री गायत्री देवी के स्त्री रूप में भी पूजा जाता है।'गायत्री' एक छन्द भी है जो 24 मात्राओं 8+8+8 के योग से बना है । गायत्री ऋग्वेद के सात प्रसिद्ध छंदों में एक है। इन सात छंदों के नाम हैं- गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुप्, बृहती, विराट, त्रिष्टुप् और जगती। गायत्री छन्द में आठ-आठ अक्षरों के तीन चरण होते हैं। ऋग्वेद के मंत्रों में त्रिष्टुप् को छोड़कर सबसे अधिक संख्या गायत्री छंदों की है। गायत्री के तीन पद होते हैं (त्रिपदा वै गायत्री)। अतएव जब छंद या वाक के रूप में सृष्टि के प्रतीक की कल्पना की जाने लगी तब इस विश्व को त्रिपदा गायत्री का स्वरूप माना गया। जब गायत्री के रूप में जीवन की प्रतीकात्मक व्याख्या होने लगी तब गायत्री छंद की बढ़ती हुई महिता के अनुरूप विशेष मंत्र की रचना हुई, जो इस प्रकार है:तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गोदेवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात। (ऋग्वेद 3,62,10)गायत्री ध्यानममुक्ता-विद्रुम-हेम-नील धवलच्छायैर्मुखस्त्रीक्षणै-
र्युक्तामिन्दु-निबद्ध-रत्नमुकुटां तत्त्वार्थवर्णात्मिकाम्? ।
गायत्रीं वरदा-ऽभय:-ड्कुश-कशा: शुभ्रं कपालं गुण।
शंख, चक्रमथारविन्दुयुगलं हस्तैर्वहन्तीं भजे ॥अर्थात् मोती, मूंगा, सुवर्ण, नीलम्, तथा हीरा इत्यादि रत्नों की तीक्ष्ण आभा से जिनका मुख मण्डल उल्लसित हो रहा है। चंद्रमा रूपी रत्न जिनके मुकुट में संलग्न हैं। जो आत्म तत्व का बोध कराने वाले वर्णों वाली हैं। जो वरद मुद्रा से युक्त अपने दोनों ओर के हाथों में अंकुश,अभय, चाबुक, कपाल, वीणा,शंख,चक्र,कमल धारण किए हुए हैं ऐसी गायत्री देवी का हम ध्यान करते हैं।इस मंत्र का जाप करने के लिए किसी विशेष समय की आवश्यकता नहीं होती है। फिर भी इस मंत्र का जाप एक समय और नियम के अनुसार किया जाए तो यह एक ऐसा मंत्र है जिसमें हर समस्या का निदान छुपा हुआ है। इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को मानसिक शांति, के साथ जीवन में खुशियों का संचार होता है। सोया भाग्य जागृत हो जाता है। मानसिंक परेशानियों , क्रोध आदि से छुटकारा मिलता है। यह अत्याधिक लाभकारी मंत्र है। तो चलिए जानते हैं गायत्री मंत्र जाप का सही समय, अर्थ और फायदे...गायत्री मंत्र का जप का पहला समय1. गायत्री मंत्र का जाप प्रात:काल, सूर्योदय से थोड़ी देर पहले करना चाहिए।2. गायत्री मंत्र का जप दोपहर के समय भी किया जा सकता है।3. संध्या के समय गायत्री मंत्र का जाप सूर्यास्त के कुछ देर पहले मंत्र जप आरंभ कर देना चाहिए और सूर्यास्त के कुछ समय बाद तक जप करना चाहिए।गायत्री मंत्र और उसका अर्थगायत्री मंत्र:- ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात।अर्थात .. उस प्राणस्वरूप, दु:खनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपने अन्त:करण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करे।विद्यार्थियों के लिए गायत्री मंत्र का जाप बहुत फायदेमंद होता है। इस मंत्र के जाप से मन एकाग्र होता है और ज्ञान में वृद्धि होती है। जो लोग शिक्षा में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें प्रतिदिन गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 264
साधक का प्रश्न ::: भगवान का नाम भगवान से बड़ा क्यों कहा जाता है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: भगवान से बड़ा भला कौन होगा? अब एक पर्स है, उसमें एक लाख रुपया रख दिया गया। अब उसकी कीमत जो पर्स की कीमत है वह नहीं रही, एक लाख रुपये की कीमत हो गई। इस प्रकार से जो यह कहा जाता है कि 'राम ते अधिक राम कर दासा', तो उसका मतलब यही है कि वस्तुतः कोई बड़ा नहीं है लेकिन रसिकों की भाषा में अपने मतलब की दृष्टि से कहा जाता है कि यह बड़ा है। अपना काम हल होने के कारण भगवान से उसकी कीमत बढ़ जाती है। इसीलिये कहा जाता है कि भगवान से भगवान का नाम भी बड़ा, लीला भी बड़ी और संत भी बड़ा। लेकिन सिद्धान्त की दृष्टि से नहीं बल्कि काम की दृष्टि से।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, मार्च 2016 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जाने-अनजाने में अक्सर हम ऐसी गलतियां कर बैठते हैं जो वास्तु दोष का कारण बनती हैं। कहा जाता है कि घर में वास्तु दोष होने पर आर्थिक तंगी, स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों समेत पारिवारिक कलह तक का सामना करना पड़ सकता है। कई बार जाने-अनजाने में हम जूते-चप्पल ऐसी जगहों पर भी पहनकर चले जाते हैं, जिससे वास्तु दोष होता है। शास्त्रों में 5 ऐसी जगहों के बारे में बताया है कि जहां जूते-चप्पल पहनकर जाने से अशुभ होता है। अक्सर इस गलती के कारण लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। जानिए किन जगहों पर भूलकर भी नहीं पहनकर जाने चाहिए जूते-चप्पल-1. भंडार घर- वास्तु शास्त्र के अनुसार, भंडार घर में जूते-चप्पल पहनकर नहीं जाने चाहिए। इस बात का ध्यान रखने से घर में कभी भी अन्न की कमी नहीं होती है।2. तिजोरी के पास- तिजोरी में कुछ रखने जाने से पहले जूते-चप्पल को निकाल देना चाहिए। कहते हैं कि तिजोरी को जूते-चप्पल पहनकर खोलने से मां लक्ष्मी नाराज हो सकती हैं। जिसके कारण आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ सकता है।3. पवित्र नदी- वास्तु शास्त्र के अनुसार, पवित्र नदी के पास जूते-चप्पल कभी पहनकर नहीं जाने चाहिए। नदियों में स्नान करने से पहले जूते-चप्पल या चमड़े से बनी वस्तुएं निकाल देनी चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से घर में सुख-शांति बनी रहती है।4. रसोई घर- कहा जाता है कि रसोई घर में कभी भी जूते-चप्पल पहनकर नहीं जाने चाहिए। ऐसा करने से मां अन्नपूर्णा नाराज होती हैं और जातक को जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।5. मंदिर- हिंदू धर्म में मंदिर को भगवान का घर माना जाता है। ऐसे में मंदिर में कभी भी जूते-चप्पल पहनकर नहीं जाने चाहिए। मान्यता है कि यहां जूते-चप्पल पहनकर जाने से देवी-देवता नाराज हो जाते हैं।-----
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 263
(भूमिका - संत के सान्निध्य में आने और उनका बार-बार सत्संग करते रहने पर भी हमको ईश्वरीय लाभ क्यों प्राप्त होता प्रतीत नहीं होता, इसी संबंध में जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा समाधान यहाँ प्रस्तुत है...)
साधक का प्रश्न ::: संत भी मिले, फिर भगवान से मिलने का लाभ हमें क्यों नहीं हुआ?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: मिलना माने - ये दो अंगुली है, दूर-दूर हैं। ये जब तक दूर-दूर हैं, तभी तक गड़बड़ी है। अब देखो मिल गयी। अब मिलकर एक हो गईं। लेकिन अगर पूरी तरह मिली नहीं है या मिलकर अलग हो गई है तो यह मिलना नहीं कहा जायेगा। मिलना होता है जैसे पानी में नमक डाल दो। कण-कण, रोम-रोम मिल जाये। इसी प्रकार भगवान और उसके नाम, रूप, लीला, गुण, धाम, जन से मिलना होता है। अन्तःकरण को मिलाना होगा, केवल फिजिकल (शारीरिक) मिलने से काम नहीं चलेगा। केवल संत के शरीर से मिलना, केवल जबान से नाम को लेना, उनसे मिलना नहीं है। उसमें मन का प्लस होना जरूरी है, कम्पलसरी है। जब तक मन उनके अन्दर निहित नहीं है तब तक लाभ होने वाला नहीं है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, मार्च 2016 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - वास्तु के लिहाज से सिंदूर का विशेष महत्व है। सिंदूर हर सुहागन स्त्री के शृंगार का अहम हिस्सा है। सुहागन स्त्री सिंदूर से अपनी मांग भरती है। शास्त्रों में कहा गया है कि स्त्री के सिंदूर लगाने से उसके पति की आयु लंबी होती है। रोगों से उसकी रक्षा होती है।हर रोज सूर्यदेव को अर्घ्य देते समय थोड़ा सा सिंदूर जल में मिला लें। अपने घर के दरवाजे पर सिंदूर से स्वास्तिक के निशान बना दें। ऐसा करने से घर में सुख शांति बनी रहती है। जिन घर में पति-पत्नी में अक्सर झगड़ा होता है, उन्हें इस उपाय को अवश्य आजमाना चाहिए। माना जाता है कि घर के मुख्य दरवाजे पर तेल में सिंदूर मिलाकर लगाने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीं होता। ऐसा लगातार 40 दिन करने से घर में मौजूद वास्तुदोष दूर हो जाता है। हिंदू धर्म के अनुसार देवी-देवताओं की पूजा भी बिना सिंदूर अधूरी होती है। धन की हानि हो रही है तो ऐसी समस्याओं को दूर करने के लिए पांच मंगलवार और शनिवार तक चमेली के तेल में सिंदूर मिलाकर हनुमान जी को चढ़ाएं। चमेली के तेल में सिंदूर मिलाकर हनुमान जी को अर्पित करें। ऐसा करने से कारोबार में उन्नति होगी और धन से संबंधित सारी समस्याएं दूर हो जाएंगी। सिंदूर को मरीज के ऊपर से उतारकर बहते हुए जल में प्रवाहित करने से बीमारी में तेजी से लाभ मिलता है। घर के मुख्य द्वार पर सिंदूर चढ़ी हुई भगवान श्रीगणेश की मूर्ति लगाने से घर में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है। सुहागिन महिलाओं को बाल धोने के बाद सुबह गौरी मां को सिंदूर चढ़ाना चाहिए और कुछ सिंदूर अपने भी लगाना चाहिए। ऐसा करने से वैवाहिक जीवन अच्छा व्यतीत होता है।
- चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर हनुमान जन्मोत्सव मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन मां अंजनी के कोख से हनुमान जी का जन्म हुआ था। भक्त इस दिन को बड़े ही धूम- धाम से मनाते हैं। हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने के लिए लोग कई तरह के उपाय करते हैं। हनुमान जी का आर्शीवाद प्राप्त करने का सबसे आसान उपाय है नियमित रूप से तुलसीदास जी द्वारा रचित हनुमान चालीसा का पाठ। हनुमान चालीसा का पाठ करने से सभी तरह के संकटों से मुक्ति मिल जाती है। हनुमान चालीसा की हर चौपाई महामंत्र है। हनुमान चालीसा की कुछ चौपाइयां ऐसी हैं जिनका लगातार जप करने से व्यक्ति को सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।भूत पिशाच निकट नहीं आवे।महाबीर जब नाम सुनावे।।जिस व्यक्ति को डर लगता है उसे नियमित रूप से इस चौपाई का जप करना चाहिए। आप माला से भी जप कर सकते हैं। इस चौपाई का जप करने से भय दूर हो जाता है।नासे रोग हरे सब पीरा।जो सुमिरे हनुमंत बलबीरा।।बीमारियों से परेशान व्यक्ति को नियमित रूप से इस चौपाई का जप करना चाहिए। इस चौपाई का जप करने से बड़े से बड़ा रोग भी दूर हो जाता है।अष्ट-सिद्धि नौ निधि के दाता।अस बर दीन जानकी माता।।इस चौपाई का नियमित जप करने से हनुमान जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। हनुमान जी सभी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं।विद्यावान गुनी अति चातुर।रामकाज करीबे को आतुर।।हनुमान चालीसा की इस चौपाई का जप करने से शिक्षा के क्षेत्र में आ रही परेशानियां दूर होने लगती हैं। इस चौपाई का नियमित जप करने से आर्थिक समस्याओं से भी छुटकारा मिलता है।भीम रूप धरि असुर संहारे।रामचंद्रजी के काज संवारे।।हनुमान चालीसा की इस चौपाई का जप करने से शत्रुओं से मुक्ति मिल जाती है। हनुमान जी की कृपा से सभी तरह के विघ्न दूर हो जाते हैं।
- गायत्री मंत्र अन्य कई मंत्रों से ज्यादा प्रभावशाली माना गया है। शास्त्रों में भी इस मंत्र को बहुत शक्तिशाली बताया गया है। इस मंत्र का जाप करने के लिए किसी विशेष समय की आवश्यकता नहीं होती है। फिर भी इस मंत्र का जाप एक समय और नियम के अनुसार किया जाए तो यह एक ऐसा मंत्र है जिसमें हर समस्या का निदान छुपा हुआ है। इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को मानसिक शांति, के साथ जीवन में खुशियों का संचार होता है। यह अत्याधिक लाभकारी मंत्र है। तो चलिए जानते हैं गायत्री मंत्र जाप का सही समय, अर्थ और फायदे...गायत्री मंत्र का जप का पहला समयगायत्री मंत्र का जाप प्रात:काल, सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मंत्र जप शुरू करना चाहिए।गायत्री मंत्र का जप दोपहर के समय भी किया जा सकता है।संध्या के समय गायत्री मंत्र का जाप सूर्यास्त के कुछ देर पहले मंत्र जप आरंभ कर देना चाहिए और सूर्यास्त के कुछ समय बाद तक जप करना चाहिए।गायत्री मंत्र और उसका अर्थगायत्री मंत्र:- ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।अर्थात .. उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपने अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करे।विद्यार्थियों के लिए गायत्री मंत्र का जाप बहुत फायदेमंद होता है। इस मंत्र के जाप से मन एकाग्र होता है और ज्ञान में वृद्धि होती है। जो लोग शिक्षा में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं उन्हें प्रतिदिन गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 262
(भूमिका - शास्त्र में एक बात आती है; 'दानमेकं कलौयुगे'। कलियुग में 'दान' का बड़ा महत्व है। तथापि दान सम्बन्धी कुछ रहस्य की बातें हैं, जिसका ज्ञान होना मनुष्य के लिये बहुत आवश्यक है। जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा निम्नांकित प्रश्नोत्तरी में इसी से जुड़े एक प्रश्न का समाधान कर रहे हैं। आगे भी 'दान' सम्बन्धी अन्य प्रश्नोत्तरियाँ प्रकाशित होती रहेंगी...)
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! आमदनी का कितना परसेन्ट दान करना चाहिये?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा उत्तर ::: परसेन्ट का सवाल नहीं है।
यावद् भ्रियेत जठरं तावत् स्वत्वं हि देहिनाम्।अधिकं योभिमन्येत स स्तेनो दण्डमर्हति।।(भागवत 7-14-8)
वेदव्यास ने कहा है कि जितने पैसे से तुम्हारा शरीर चल जाये। चल जाये। 'भ्रियेत' पेट भर जाये 'तावत् स्वत्वं हि देहिनाम्', ये भगवान की सृष्टि है, भगवान का संसार है। अगर जैसे बैंक में किसी को बना दिया गया कोषाध्यक्ष तो इसका मतलब ये नहीं है कि वो रुपया लेकर चला जाये अपने घर। उसका रुपया कुछ नहीं है। उसको तो पे (वेतन) मिलेगी केवल।
वो रुपया जो है, कैश जो है बैंक का वो तो बाँटने के लिये है जिसका जितना-जितना जमा है, पब्लिक का, उसको दो। उसको छुओ मत। ऐसे ही वेदशास्त्र कहता है कि जितने में तुम्हारे शरीर का, तुम्हारे परिवार के शरीर का पालन हो जाये। इच्छाओं की पूर्ति नहीं, पालन। जैसे एक मकान है। हमने एक अपने रहने के लिये मकान लिया और एक दस अरब का मकान बनाया। हमने एक मामूली कपड़ा पहन लिया हमारा काम चल रहा है शरीर का और एक वो सबसे महँगा वाला कपड़ा लिया। वो इच्छा की बात है। वो इच्छा वाली बात नहीं कह रहा है।
शास्त्र वेद कह रहा है कि जितने में तुम्हारा काम चल जाये। रोटी, दाल, चावल, तरकारी जो कुछ खाने का सामान आवश्यक है शरीर को वो दो, जो कपड़ा पहनना जरूरी है वो कपड़ा पहनो, मकान में रहो। ये जो रोटी, कपड़ा, मकान आदि का विषय है शरीर का, इसके बाद जो भी बचे दान करो। वो तो तुम्हारा नहीं है। मरने के बाद भी नहीं रहेगा। मरने के पहले ही उसको तुम अपना मत मानो, उसको दान करो, तो तुम्हें भगवत्कृपा का जो फल है वो मिलेगा। भगवान के निमित्त करो। उसको किसी सांसारिक स्वार्थ के लिये दान न करो। हम वहाँ दान कर दें तो मिनिस्टर खुश हो जायेगा। तो हमारी आमदनी बढ़ जायेगी। आजकल ये होता है न टाटा, बिरला आदि बड़े बड़े उद्योगपतियों के यहाँ दान बिजनेस हो गया है।
जहाँ तुमसे दान करने की बात करता है कोई महात्मा तो कहते हो कि ये तो पैसे के लोभी हैं, तुरन्त खोपड़ी में आप लोगों के आता है ये। अरे वो पैसे के लोभी नहीं हैं। तुमसे पैसे की जो आसक्ति है तुम्हारी वो निकलवाना चाहते हैं, कृपा है उनकी। जब कोई फोड़ा हो जाता है बच्चे को तो माँ डॉक्टर के पास ले जाती है, जोर से पकड़ती है उसके हाथ को, पैर को, हाँ डॉक्टर साहब चीर दो। वो चिल्लाता है कैसी माँ है ये, मारता है छोटा बच्चा माँ को। वो कहती है मार ले कुछ कर ले, गाली दे ले लेकिन मैं तेरे इस रोग को समाप्त करवाऊंगी।
तो महात्मा लोग भी सब सह लेते हैं, इनके दुर्वचन, इनकी दुर्भावनायें, लेकिन पीछे लगे रहते हैं। अरे कुछ तो करेगा, चलो नथिंग से समथिंग अच्छा है। ये सब दान नहीं करेगा, थोड़ा तो करेगा। कुछ तो कल्याण हो। इतना तो हो जाय कि फिर ये मानव देह मिले।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'द द द' पुस्तक (दान-विज्ञान पर आधारित)०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - कामदा एकदाशी व्रत प्रति वर्ष चैत्र माह के शुक्ल की एकादशी के दिन रखा जाता है। इस साल यह व्रत 23 अप्रैल को रखा जाएगा। यह तिथि भगवान विष्णु जी को समर्पित है। इस दिन भगवान वासुदेव की आराधना विधि विधान से की जाती है। शास्त्रों के अनुसार, कामदा एकादशी का व्रत करने वालों को भगवान विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही इस दिन कुछ विशेष उपाय करने से जातकों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और उन्हें परेशानियों से छुटकार मिलता है। कामदा एकादशी के ये उपाय इस प्रकार हैं--कामदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी की पूजा करें। मान्यता है कि इस दिन जगत के पालनहार की पूजा करने से जातकों को समस्त प्रकार के कष्टों और परेशानियों से छुटकारा मिलता है।कामदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा में उन्हें पीले पुष्प अवश्य चढ़ाएं। यदि संभव हो तो उन्हें गेंदे अथवा केवड़ा के फूल अर्पित करें। मान्यता है कि ऐसा करने से जातकों को जीवन में खूब तरक्की मिलती है।कामदा एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी को खरबूजा, आम, तिल, दूध एवं पेड़े का भोग लगाना चाहिए। माना जाता है कि इस दिन विष्णु जी को उपरोक्त चीजें अर्पित करने से वे जातकों को सफलता प्राप्ति का आशीर्वाद देते हैं।कार्य-व्यापार और नौकरी में सफलता पाने के लिए कामदा एकादशी के दिन जातकों को पूजा के समय ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र को 108 बार जपना चाहिए। यह उपाय बेहद कारगर माना जाता है।कामदा एकादशी के दिन पीले रंग का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु जी की कृपा पाने के लिए ब्राह्मणों को पीले चावल अथवा पीला भोजन कराना चाहिए। साथ ही पीले वस्त्र, पीले रंग की मिष्ठान दान करना चाहिए। ऐसा करने से जातकों का भाग्य प्रबल होता है।यदि कोई जातक विवाह योग्य है परंतु विवाह में देरी या अन्य विवाह संबंधी परेशानियों का सामना कर रहा है तो उस जातक को कामदा एकादशी के दिन विष्णु जी को पूजा में हल्दी की गांठ अर्पित करना चाहिए। ऐसा करने से कामना पूरी होगी।
- पहले के समय में राजा महाराजाओं के महलों में कई तरह के ध्वज लगाए जाते थे। उस समय लगाई जाने वाली ध्वजाओं का अलग-अलग अर्थ होता था। कुछ ध्वजा विजय पताका के रूप में लगाई जाती थी तो कोई महत्वपूर्ण संदेश देने के लिए भी ध्वजा का प्रयोग किया जाता था। आज के समय में भी लोग अपने घरों की छत पर धार्मिक रूप से ध्वजा लगाते हैं लेकिन ज्योतिष में ध्वजा लगाने का विशेष महत्व माना जाता है, जिसके अनुसार ध्वजा लगाने से कई लाभ भी मिलते हैं इसलिए ध्वजा लगाते समय रंग और दिशा आदि का भी ध्यान रखना चाहिए।कैसे हो ध्वजा का रंगसनातन धर्म में भगवान और केसरिया रंग की ध्वजा लगाना बहुत शुभ माना जाता है। इसलिए भगवा केसरिया या फिर पीले रंग में से किसी एक रंग की ध्वजा लगा सकते हैं। ये तीनों ही रंग ध्वजा के लिए सही रहते हैं।इस दिशा में लगाएं ध्वजाध्वजा को लगाने के लिए वायव्य कोण सही माना जाता है। यदि आपको अपने घर में ध्वजा लगानी है तो इसे घर की छत पर वायव्य कोण में लगाएं। यदि आपको दिशा की जानकारी सही प्रकार से न हो पा रही हो तो किसी वास्तु शास्त्री से सलाह लेकर ध्वजा लगा सकते हैं।इस तरह की होनी चाहिए ध्वजाआप त्रिभुजाकार या फिर दो त्रिभुजाकार ध्वज में से कोई एक लगा सकते हैं। इसके अलावा स्वास्तिक या फिर ॐ जैसे शुभ चिन्ह बने हुए ध्वज लगा सकते हैं। ये दोनों ही चिन्ह बहुत शुभ माने जाते हैं। इससे आपके घर में शुभता और सकारात्मकता आती है।घर पर ध्वजा लगाने के लाभमान्यता है कि ध्वजा लगाने से यश, कीर्ति और विजय प्राप्त होती है। परिवार के सदस्यों की तरक्की होती है, इसके साथ ही ध्वजा या झंडा लगाने से घर में रहने वाले सदस्यों के रोग, शोक व दोष से मुक्ति प्राप्ति होती और घर की सुख, समृद्धि आती है।-file photo
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मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र जी के प्राकट्योत्सव 'श्रीराम-नवमी' की अनंत-अनंत शुभकामनायें!!
'आजु अवध महँ प्रकटे राम,बोलो जय राम, जय राम जय जय राम।'- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज
अनंतकोटि ब्रम्हाण्डनायक दशरथ-कौशल्यानंदन सियावर प्रभु श्रीरामचन्द्र जी का आज प्राकट्योत्सव है। भगवान श्रीराम अनंत गुणों के समुद्र हैं, जिनकी महिमा अनंत संतों ने गाई है।
पंचम मूल जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने भी अपने रस-साहित्यों व प्रवचनों में भगवान श्रीरामचंद्र जी के पवित्र नामों तथा उनके गुणों का गान करते हुये उनकी वन्दना की है। आइये उन्हीं के द्वारा प्रगटित साहित्यों में से कुछ आधार लेकर हम भी अपने परमाराध्य श्रीराम जी की स्तुति करें तथा उनके वास्तविक तत्व का परिचय प्राप्त करें :::
(1) स्तुति एवं कृपा की याचना :
नृप दशरथ नंदन श्रीराम, जनकनंदिनी सीता बाम..तुमहिं श्याम हो तुम ही राम, परम कृपालु कृपा करु राम..(जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु विरचित)
(2) 'प्रेम-रस-मदिरा' ग्रंथ, सिद्धान्त-माधुरी खंड के 27वें पद में श्रीराम-तत्व पर प्रकाश :
अवध के राम बने ब्रज श्याम।लखन बने बलराम जानकी, राधारानी नाम।त्रेता में बड़भ्रात राम भये, द्वापर में बलराम।मुकुट, ग्रीव, कटि, पद टेढ़ो करि, प्रकटे चंचल राम।योगारूढ़ जीव हित कीन्ही, लीला रास ललाम।पग पलुटावति सदा जानकी, रामहिं येहि ब्रजधाम।इनमें भेद 'कृपालु' मान जो, नरकहुँ नाहीं ठाम।।
भावार्थ ::: अयोध्या के भगवान राम ही ब्रज में श्याम (कृष्ण) बनकर प्रकट हुये। लक्ष्मण जी बलराम बन गये एवं श्री जानकी (सीता) जी राधारानी के नाम से प्रख्यात हुईं। त्रेता में बड़े भाई राम हुये एवं द्वापर में बड़े भाई बलराम हुये। भगवान राम ब्रज में मुकुट, गर्दन, कमर एवं पैरों को टेढ़ा करके चंचल स्वभाव से प्रकट हुये एवं मायातीत जीवों के लिये आदर्श स्थापित करते हुये दिव्य रासलीला का अभिनय किया। ब्रज में श्री जानकी जी ने भगवान राम से अपने चरण दबवाये। 'श्री कृपालु जी' कहते हैं कि इन दोनों (राम-कृष्ण) में जो भेदभाव रखता है वह नामापराधी है, उसको नरक में भी स्थान नहीं मिल सकता।
(3) भगवान के सगुण साकार अवतार धारण करने का उद्देश्य :::
'..भगवान का जब सगुण साकार अवतार होता है तो अपना नाम, रूप, लीला, गुण, धाम - यह वह छोड़ जाते हैं जिसका अवलम्ब लेकर अनन्तानन्त जीव भगवान के प्रेमानन्द को प्राप्त होते हैं। उदाहरणार्थ अगर श्रीकृष्ण का अवतार न होता तो शुकदेव श्रीकृष्ण के लिये व्याकुल न होते। जब उन्होंने भगवान के दयालुता के गुण को सुना कि पूतना जो उन्हें जहर पिलाने के लिये गई उसको भी अपना लोक दे दिया, वे तुरन्त व्याकुल हो गये। जीवन्मुक्त होने पर भी वे पहली कक्षा में पहुँच गये। भागवत को सुना और परीक्षित को सुनाया। बिना सगुण साकार अवतार लिये भगवान के सगुण साकार नाम, रूप, गुण, लीला, धाम का विस्तार हमको मिलता और बिना इसके प्राप्त हुये घोर मायाबद्ध जीव किस प्रकार भगवत्प्राप्ति करते, इसलिये जीव कल्याण के लिये ही भगवान का अवतार होता है...' (सन्दर्भ - साधन साध्य पत्रिका, मार्च 2011 अंक, पृष्ठ 15)
(4) हम कलिमलग्रसित जीव क्या करें? श्रीराम कैसे मिलेंगे?
'...आँसू बहाने से अन्तःकरण शुद्ध होगा, याद कर लो सब लोग, रट लोए कृपालु का वाक्य। भोले बालक बनकर रोकर पुकारो, राम दौड़े आयेंगे। सब ज्ञान फेंक दो, कूड़ा-कबाड़ा जो इकट्ठा किया है। अपने को अकिंचन, निर्बल, असहाय, दीन-हीन, पापात्मा रियलाइज करो, भीतर से, तब आँसू की धार चलेगी, तब अन्तःकरण शुद्ध होगा, तब गुरु कृपा करेगा। गुरु की कृपा से राम के दर्शन होंगे, राम का प्यार मिलेगा और सदा के लिये आनन्दमय हो जाओगे...' (सन्दर्भ - साधन साध्य पत्रिका, मार्च 2010 अंक, पृष्ठ 52)
(5) सनातन वैदिक धर्म के संवाहक वेदमार्गप्रतिष्ठापनाचार्य जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रदत्त तत्वदर्शन (विशेषता) :::
पंचम मूल जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने अपने रस-साहित्यों तथा प्रवचनों में जहाँ श्रीराधाकृष्ण तथा ब्रजरसपरक पद-कीर्तन तथा दर्शन का विशद वर्णन किया है वहीं अनगिनत स्थानों पर रघुकुलशिरोमणि दीनबन्धु भगवान श्रीराम के गुणों का भी वर्णन करते हुये उनकी स्तुति की है तथा वेदादिक शास्त्रों में निरूपित श्रीराम-तत्व का भी विशद वर्णन किया है, जिसमें उन्होंने राम तथा कृष्ण - दोनों की एकता अथवा अभेदता का स्पष्ट प्रतिपादन किया है। आचार्य श्री ने श्रृंगवेरपुर, चित्रकूट, अयोध्या, नासिक, रामेश्वरम सभी स्थानों पर भक्त मंडली के साथ जाकर श्रीराम-नाम, गुणादि का संकीर्तन कराया है। 'हरे राम' महामंत्र का तो उन्होंने नित्य प्रति ही संकीर्तन किया है। कई बार अखंड संकीर्तन भी हुआ इसी महामंत्र का। छः महीने की लंबी अवधि तक भी 'हरे राम' संकीर्तन हुआ है। अतः श्री कृपालु महाप्रभु जी ने राम-कृष्ण में अभेद माना है। श्रीवृन्दावन स्थित प्रेम-मन्दिर, बरसाना धाम स्थित कीर्ति-मन्दिर तथा भक्तिधाम मनगढ़ स्थित भक्ति-मन्दिर तीनों ही स्थानों पर उन्होंने श्रीसीताराम एवं श्रीराधाकृष्ण दोनों के ही दिव्य विग्रह स्थापित किये हैं। रामनवमी का पर्व भी उसी हर्षोल्लास के साथ मनाया जैसे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और श्रीराधाष्टमी।
पुनः आप सभी सुधि तथा भगवत्प्रेमी पाठक जनों को 'श्रीराम नवमी' की अनन्तानन्त शुभकामनायें!!
०० 'साधन साध्य' पत्रिका तथा 'प्रेम रस मदिरा' तथा 'ब्रज रस माधुरी' ग्रंथ से लिये गये उद्धरण ::: सर्वाधिकार सुरक्षित, © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं) - -21 अप्रैल बुधवार को है रामनवमी का त्योहार-श्रीराम के जन्मोत्सव के रूप में मनायी जाती है रामनवमीचैत्र नवरात्रि की शुरुआत 13 अप्रैल मंगलवार को हुई थी और उसका समापन 21 अप्रैल बुधवार को रामनवमी के साथ हो रहा है. शास्त्रों की मानें तो चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को ही दोपहर के समय प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ था. इसलिए, चैत्र नवरात्रि की नवमी तिथि को रामनवमी यानी भगवान राम के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है. रामनवमी इस बार 21 अप्रैल को मनायी जा रही है. इस दिन बहुत से लोग व्रत भी रखते हैं. नवरात्रि के समापन की वजह से इस दिन कई जगहों पर हवन भी होता है. तो रामनवमी की पूजा करते वक्त कोई भूल चूक न हो जाए इसलिए पहले ही जान लें पूजा का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि के बारे में.चैत्र नवरात्रि की नवमी तिथि को हुआ था श्रीराम का जन्मधार्मिक मान्यताओं के मुताबिक त्रेतायुग में रावण के अत्याचारों को समाप्त करने और धरती पर एक बार फिर धर्म की स्थापना करने के लिये भगवान विष्णु ने श्रीराम के रूप में धरती पर अवतार लिया था. मान्यताओं के अनुसार श्रीराम चन्द्र का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में राजा दशरथ के घर अयोध्या में हुआ था. रामनवमी का त्योहार राम जन्मोत्सव के तौर पर देशभर में पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है. वैसे तो रामनवमी के दिन देशभर के मंदिरों में हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है, लेकिन कोरोना के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए इस बार घर पर ही रामनवमी की पूजा करना बेहतर होगा.रामनवमी की पूजा का शुभ मुहूर्तनवमी तिथि प्रारंभ- 21 अप्रैल बुधवार को रात 12:43 बजे सेनवमी तिथि समाप्त- 22 अप्रैल रात 12:35 बजेपूजा का शुभ मुहूर्त- 21 अप्रैल को सुबह 11.02 बजे से दोपहर 01.38 बजे तकपूजा की कुल अवधि- 2 घंटे 36 मिनटरामनवमी मध्याह्न समय: दोपहर 12 बजकर 20 मिनट पररामनवमी की पूजा विधिरामनवमी के दिन सूर्योदय से पहले उठ जाएं और फिर स्नान आदि करने के बाद साफ सुथरे कपड़े पहनें. पूजा स्थान पर पूजन सामग्री के साथ आसान लगाकर बैठें. भगवान श्रीराम की पूजा में तुलसी का पत्ता होना अनिवार्य है क्योंकि श्रीराम विष्णु जी के अवतार हैं और भगवान विष्णु को तुलसी बेहद प्रिय है. राम जी की पूजा में तुलसी के प्रयोग से प्रभु श्रीराम प्रसन्न होते हैं. उसके बाद रोली, चंदन, धूप और गंध से रामजी की पूजा करें. दीपक जलाएं, सभी देवी-देवताओं का ध्यान लगाएं और आरती करें. फिर श्रीराम को मिष्ठान, फल, फूल आदि अर्पित करें. इसके बाद मंत्रों का जाप करें और हवन भी करें. इस दिन रामनवमी की पूजा के बाद रामचरितमानस, रामायण और रामरक्षास्तोत्र का पाठ जरूर करें. इसे पढ़ना बहुत शुभ माना जाता है.
- हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल चैत्र महीने के पूर्णिमा तिथि को भगवान हनुमान का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस साल जन्मोत्सव 27 अप्रैल मंगलवार को मनाया जाएगा। ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता हैं। इसलिए सच्चे मन से उनकी पूजा करने वाले भक्तों के जीवन की सभी बाधाएं और कष्ट दूर होते हैं।कलयुग के देवता और शिवजी के 11वें अवतार हैं हनुमान जीराम भक्त भगवान हनुमान जिन्हें बजरंगबली के नाम से भी जाना जाता है, को कलयुग का देवता माना गया है। ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी भगवान शिव के 11वें अवतार हैं और उन्हें चिरंजीवी होने का आशीर्वाद प्राप्त है। हनुमान जी की पूजा कर उन्हें प्रसन्न करने के लिहाज से हनुमान जन्मोत्सव का दिन सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए इस दिन भक्तों को रामायण, रामचरित मानस, सुंदरकांड, हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमान बाहुक आदि का पाठ करना चाहिए।हनुमान जन्मोत्सव के दिन बन रहे कई शुभ संयोगइस बार हनुमान जन्मोत्सव 27 अप्रैल मंगलवार को मनाया जा रहा है। मंगलवार का दिन हनुमान जी का ही दिन होता है और ऊपर से हनुमान जन्मोत्सव का दिन यानी भक्तों के पास बजरंगबली को खुश करने का दोहरा मौका है। इसके अलावा इस दिन रात में 8 बजे तक सिद्धि योग रहने वाला है और बेहद शुभ स्वाति नक्षत्र भी। किसी भी तरह की सिद्धि प्राप्त करने और ईश्वर का नाम जपने के लिए सिद्धि योग बेहद उत्तम माना जाता है। हनुमान जन्मोत्सव का महत्वऐसी मान्यता है कि हनुमान जन्मोत्सव के दिन हनुमान जी की पूजा-अर्चना करने से जीवन के सभी संकट और बाधाओं से छुटकारा मिलता है और सुख शांति की प्राप्ति होती है। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि ग्रह का अशुभ प्रभाव हो तो उसे भी हनुमान जन्मोत्सव के दिन हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से शनि देव से जुड़ी समस्याएं भी दूर हो जाती हैं। साथ ही निगेटिव ऊर्जा से जुड़ी परेशानियों से भी मुक्ति मिलती है।