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- सच्चा प्रेम एक खूबसूरत अहसास की तरह होता है। प्रेम की धुन में खोया हुआ व्यक्ति अपनी हसीन दुनिया में जीता है। लेकिन कई लोग प्यार में धोखा भी खाते हैं। हर किसी की किस्मत में प्रेम का सुख नहीं लिखा होता है। इसकी कई वजह हो सकती हैं और उनमें एक वजह होती है सही साथी का चुनाव। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, कुछ विशेष राशि के जातक अपने प्रेम जीवन को गंभीरता से लेते हैं। आज हम आपको बताएंगे कि चार राशि के जातक प्यार में सच्चे पार्टनर होते हैं। ये राशि के जातक हैं-मेष: अपने प्रियतम को देखना चाहते हैं हमेशा खुशमेष राशि चक्र की पहली राशि है। इसके स्वामी मंगल देव हैं। इस राशि के जातकों को पर मंगल ग्रह का गहरा प्रभाव देखने को मिलता है। इस राशि के जातक अपने प्यार के लिए कुछ भी करना चाहते हैं। वो चाहते हैं कि जिनसे भी वो प्यार करते हैं वो हमेशा खुश रहे, इसके लिए चाहे जो भी करना पड़े। मेष राशि वालों के लिए उनका प्यार ही उनकी दुनिया होती है।कर्क: प्यार के मामले दिमाग से नहीं दिल से सोचते हैंकर्क राशिचक्र की चौथी राशि है। इस राशि के स्वामी चंद्र देव हैं। इस राशि के लोगों के लिए कहा जा सकता है कि ये लोग प्यार के मामले में दिमाग की जगह दिल से सोचते हैं। इस राशि के स्वामी अपनी भावनाओं के वशीभूत होते हैं और प्यार में अंधों की तरह प्यार करते हैं। जब ऐसे लोग प्यार में होते हैं तो इनको अपने प्यार के सिवा कुछ भी नजर नहीं आता है।तुला: प्यार के मामले में होते हैं गंभीरतुला राशिचक्र की सातवीं राशि है। यह प्रेम, कामुकता और सौंदर्यता के कारक ग्रह शुक्र देव की राशि है। प्यार के मामले में इस राशि के जातक बहुत गंभीर किस्म के प्रेमी होते हैं। एक बार वो किसी से प्यार कर लें तो फिर जिंदगीभर साथ निभाते हैं। तो अगर किसी को जीवनभर का साथ चाहिए तो तुला राशि वाले सबसे विश्वसनीय होते हैं। तुला राशि वाले अपने रिश्ते को सफल बनाने के लिए सबकुछ करने को तैयार रहते हैं।वृश्चिक: जीवनभर निभाते हैं साथवृश्चिक राशिचक्र की आठवीं राशि है। इस राशि के मालिक मंगल देव हैं। प्यार के मामलों में इस राशि वालों को लोग बहुत हल्के में लेते हैं। लोगों को लगता है कि इस राशि के लोग गुस्सैल होते हैं , लेकिन सच तो ये है कि प्रेम के मामलों में ये बेहद गंभीर होते हैं। इस राशि वालों को थोड़ी देर से प्यार होता है, लेकिन ये जीवनभर साथ देने वाले होते हैं। इस राशिवालों के लिए विश्वास और समर्पण प्यार में सबसे जरूरी होता है।मीन: प्यार के प्रति होते हैं समर्पितमीन राशिचक्र की अंतिम और बारहवीं राशि है। यह देवगुरु बृहस्पति की राशि है। इस राशि के जातक प्यार के मामले में अपने मन की सुनते हैं। इस राशिवालों की प्यार की अपनी दुनिया होती है जिसमें परफेक्ट प्यार होता है। ऐसे लोग प्यार में वफादार होने के साथ ही समर्पण भी रखते हैं।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 250
(भूमिका - साधना अथवा प्रेमराज्य में निष्कामता के विषय में जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रवचन अंश, यह अंश उनके द्वारा निःसृत प्रवचन श्रृंखला 'नारद भक्ति दर्शन' की व्याख्या से लिया गया है..)
भगवान् सम्बन्धी कामना निन्दनीय नहीं है लेकिन वन्दनीय भी नहीं है, ऐसा हमारा खयाल है। साधक के लिये डेन्जर है क्योंकि अगर हमने कोई कामना बना ली, उनका (भगवान) दर्शन हो जाय, चलो और कुछ नहीं चाहते, स्पर्श भी नहीं चाहते, लेकिन दर्शन हो जाय और नहीं हुआ, रोते रहे एक दिन, दो दिन, एक महीना, एक साल, दस साल, हजार साल, करोड़ साल। हमारे रोने से भगवान् आ जायेंगे ये अगर अहंकार है तो रोने से नहीं आयेंगे। भगवान् तो अपनी इच्छा से आते हैं, हमारी किसी साधना के चाबुक से नहीं आ सकते वो।
अरे! रोने का मतलब क्या है? रोने का मतलब ये है माँगना। माँगना? माँगना दो प्रकार से होता है न। आप लोग टिकट माँगते हैं रेलवे का, रुपया हाथ में लेकर डालते हैं.. ऐ... टिकट बम्बई का। वो रुपया दिया, उसने टिकट दिया। एक तो ये माँगना है, इसमें किसी का कोई एहसान नहीं क्योंकि तुमने रुपया दिया, उसने टिकट दिया। और एक माँगना होता है, बाबूजी भूख लगी है, चार पैसा दे दो, एक माँगना ये होता है। इसमें तो हमने उसके लिये कुछ किया-विया नहीं। केवल माँगा और अगर उसने दे दिया, तो फिर क्या बात है, थैंक्यू।
तो भगवान् से हम माँग रहे हैं - स्प्रिचुअल सामान, स्प्रिचुअल प्रेम, स्प्रिचुअल हैप्पीनेस। दे नहीं रहे कुछ। आँसू दे रहे हैं। आँसू दे रहे हैं? आँसू कोई देने की वस्तु है? अरे! ये बोलो माँग रहे हैं, और वह भी अभी माँगने में मिलावट है। अभी क्लीन स्लेट हार्ट होकर के विशुद्ध हृदय से नहीं माँग रहे हैं। अभी कुछ गड़बड़ है। इसलिये हमारे माँगने से उन्होंने दिया, ये अहंकार नहीं होना चाहिये। हमने भी तो साधना की है। क्या साधना की है? अरे, कीर्तन किया है, आँसू बहाये हैं। अरे! तो कीर्तन और आँसू का मतलब क्या होता है - माँगना। तुमने दिया क्या? अरे! देते क्या, अभी तो मिले ही नहीं वो, और अगर मिल भी जायें तो हम देंगे क्या? हमारे पास जो कुछ है वो तो उनके काम का है नहीं कुछ शरीर, मन, बुद्धि संसार का सामान और फिर ये तो उन्हीं का है। अगर हम यह भी सोच लें कि हमने दे दिया, तो हमसे पूछा जायेगा ये किसका था? ये सारा विश्व उनका है। उस विश्व में भी भारत, भारत में भी एक छोटा-सा शहर लखनऊ, लखनऊ में भी एक मुहल्ला, मुहल्ले में भी दो-तीन मकान हमारे थे, उसको हमने दान कर दिया। बड़ा कमाल किया आपने। अरे, ये तो उसी का सामान है। इसमें अहंकार क्यों आया? तो अगर अहंकार युक्त होकर के हमने याचना भी की तो स्वीकार नहीं होगी।
लेकिन अगर ठीक-ठीक याचना करेगा तो उसको वो वस्तु मिलेगी। लेकिन, एक बड़ी गड़बड़ बात ये होगी कि वस्तु मिलने के बाद तुरन्त कामना बढ़ती है आगे, वो चाहे संसारी कामना हो चाहे पारमार्थिक हो। तुरन्त उसके आगे वाली कामना पैदा हो जाती है, अपने आप हो जाती है, तो जैसे संसार में तमाम स्तर हैं, ये साइकिल से जा रहा है, ये स्कूटर से जा रहा है, ये मोटर साइकिल से जा रहा है, ये एम्बेसेडर से जा रहा है, ये अम्पाला से जा रहा है, एक से एक ऊँचा स्तर है न? तो जब किसी को साइकिल मिल जाती है - ए! साइकिल तो मिल गयी लेकिन वो मोटर साइकिल होती तो जरा अच्छा रहता। अब चलाओ उसको, मेहनत करो, तुरन्त कामना बढ़ गयी। मोटर साइकिल हो गयी, ए! ये मोटर साइकिल क्या खोपड़ा खा लेती है, ये भी कोई गाड़ी है, कार हो तो उसमें साहब बनकर चलें। कार भी हो गयी, हाँ कार है, फटीचर कार है, कोई कार है? वो लम्बी वाली गाड़ी हो, दस लाख वाली। यानी ये बीमारी ऐसी है कि;
यत् पृथिव्यां व्रीहियवं हिरण्यं पशवः स्त्रियः।न दुह्यन्ति मनः प्रीतिं पुंसः कामहतस्य ते॥(भागवत 9-19-13)
नालमेकस्य पर्याप्तं तस्मात्तृष्णां परित्यजेत्।।(विष्णु पुराण)
अनन्त ब्रह्माण्ड की साम्राज्य श्री मिल जाय तो भी उसके आगे प्लानिंग होगी। और यही बात ईश्वरीय जगत् में भी है। वहाँ भी अनेकों स्तर हैं, जैसे मैंने बताया था न, ये ब्रह्मानन्द है, ये बैकुण्ठानन्द है, ये द्वारिकानन्द है, ये मथुरानन्द है, ये ब्रजानन्द है, वृन्दावनानन्द है, कुंजानन्द है, निकुंजानन्द है, तमाम आनन्द वहाँ भी होते हैं। तो कामना बनायेंगे अगर हम तो उसके पूरी होने के बाद फिर कामना आगे बढ़ेगी और साधनावस्था में कामना पूरी हो जाय ये कम्पल्सरी नहीं। इसलिए अगर साधनावस्था में कामना पूरी ना हुई तो निराशा आयेगी और निराशा आयेगी तो अबाउट टर्न हो जायेगा। अरे यार, इतने दिन तक रोये-गाये, सब कुछ, वो सब बकवास है। न कहीं भगवान् है न कहीं कुछ है। लोगों ने खामखां फैला रखा है बवाल, एक बिना वजह खोपड़ा भंजन करने के लिये। ये भगवान्-वगवान् जो है ये तो जिनके दिमाग खराब हो गये बुढ़ापे में, ऐसे लोग जंगलों में पड़े रहते थे, खाने-पीने को ढंग से मिलता नहीं था, हाफ मैड हो गये थे। तो उन्होंने कहा हम तो बरबाद हुए ही हैं, ये दुनियाँ वालों को भी ऐसी बीमारी लगा दो भगवान् की, कि ये भी टेन्शन में पड़े रहें।
जब निराशा आती है मनुष्य में तो इतनी निम्न कक्षा की बात सोच जाता है। उसको होश-हवाश नहीं रहता कि मैं क्या सोच रहा हूं भगवान् के लिये भी, गुरु के लिये भी, पाताल में पहुँच जाता है। इसलिये कामना रखकर भक्ति तो करनी ही नहीं है। साधक को तो बहुत ही डेन्जर है, अगर सिद्ध हो जाय कोई तो पृथक् बात है, उसका पतन होने का सवाल ही नहीं रहेगा कोई। लेकिन अभी ये सोचना है जो नारद जी कहते हैं;
यत्प्राप्य न किंचिद् वाञ्छति।
वो कुछ नहीं चाहता। अरे! आनन्द तो चाहता होगा? आनन्द, सबसे कठिन परीक्षा यही है। जहाँ बड़े-बड़े जीवन्मुक्त अमलात्मा परमहंस भी फेल हो जाते हैं, वे भी सकाम हो गये। भगवान् से ब्रह्मानन्द माँगते हैं, मोक्ष माँगते हैं। ये मोक्ष माँगना क्या है? कामना। आनन्द माँगना क्या है? कामना। अरे! हम संसार की जो वस्तु चाहते हैं वो भी तो आनन्द के लिये ही तो चाहते हैं। अगर आनन्द माँगना सही है तो हम जो संसारी आनन्द चाहते हैं वो भी सही होना चाहिये। तो मोक्ष की कामना भी सकामता है।
लेकिन निष्कामता और सकामता में जो बारीक अन्तर है, वो क्या है? हम भगवान् की सेवा चाहते हैं। सेवा चाहते हैं - ये भी कामना है। वाह! वाह! वाह! बड़े आप अच्छे हुए, सेवा चाहते हैं और कहते हैं हम निष्काम हैं। अरे! आपका एम (लक्ष्य) तो है कुछ, सेवा चाहते हैं न? हाँ, लेकिन हम सेवा चाहते हैं अपने प्रियतम की, सेव्य की। हाँ, हाँ, सेव्य की सेवा चाहते हो, जैसे माँ बच्चे की सेवा करती है, उसे खुशी होती है, ऐसे ही न? नहीं, नहीं, हम श्यामसुन्दर की सेवा इसलिये चाहते हैं कि श्यामसुन्दर को सुख मिले। अब आनन्द की हमारी कामना भी समाप्त, अब हम निष्काम होंगे। श्यामसुन्दर को सुख मिले, इस उद्देश्य से उनकी सेवा माँगते हैं। उस सेवा के लिये उनका दिव्य निष्काम प्रेम माँगते हैं। यहाँ से चलो। निष्काम प्रेम चाहिये, क्यों? उनकी सेवा करेंगे, क्यों? उनके सुख के लिये। इसके लिये नारदजी ने एक सूत्र बनाया है;
तत्सुखसुखित्वम्।
तो क्यों जी, फिर हमको आनन्द कहाँ मिला? ऐसा लेबर इतना लम्बा चौड़ा हमने किया, बेकार हो गया। नहीं, जब श्यामसुन्दर को आप सुख देंगे सेवा से, तो श्यामसुन्दर उसको और मधुर बनाकर लौटा देंगे आपको। तब आपको वो उससे अधिक आनन्द मिलेगा। फिर आप उसको श्यामसुन्दर को दे देंगे। फिर वो आपको लौटा देंगे, फिर आप उनको दे देंगे - ये क्रम अनन्तकाल तक चलता जायगा। इसलिये आनन्द बढ़ता जायगा।
(प्रवचनकर्ता : जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
०० सन्दर्भ : 'नारद भक्ति दर्शन' पुस्तक (जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा व्याख्या)०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 249
(भूमिका ::: साधक तथा गृहस्थ, दोनों के लिये शरीर की स्वस्थता परमावश्यक है। क्योंकि शरीर से ही दोनों अपने कर्तव्य एवं लक्ष्य की प्राप्ति के लिये प्रयत्न करते हैं। इसलिये शरीर की स्वस्थता पर विशेष ध्यान देने की बात हमारे यहाँ शास्त्रों में कही गई है। 'जगद्गुरु कृपालु चिकित्सालय' के वार्षिक समारोह, वर्ष 2010 के अवसर पर जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने इसी संबंध में एक संक्षिप्त प्रवचन दिया था। निम्नलिखित प्रवचन उनके सम्पूर्ण प्रवचन का एक अंश ही है, आइये इस अंश से हम अपना लाभ उठावें..)
(आचार्य श्री की वाणी यहाँ से है...)
..हमारे शास्त्रों में धर्म की परिभाषा की गई है;
यतोभ्युदय निःश्रेयस सिद्धि: स धर्मः।(वैशेषिक दर्शन)
जिससे इहलौकिक और पारलौकिक परमार्थ सिद्ध हो, उसका नाम धर्म है। भावार्थ ये कि हम दो हैं; एक हम नाम की आत्मा और एक हम नाम का शरीर। दोनों का उत्थान कम्पलसरी है। अगर कोई कहता है कि शरीर मिथ्या है तो ऐसा कोई विश्व में ज्ञानी नहीं है जो शरीर के बिना एक सेकण्ड भी रह सके।
आत्मा और शरीर का संबंध अभिन्न है। बिना शरीर के आत्मा नहीं रहती, सदा साथ रहती है। तो शरीर की उन्नति भी परमावश्यक है। वेद कहता है;
अत्याहारमनाहारम्।
देखो! खाना, पीना, सोना, सब संयमित रखना, मनुष्यों! अगर इसमें गड़बड़ करोगे तो शरीर में अनेक प्रकार के रोग होंगे तो तुम्हारा मन भगवान की ओर नहीं जा सकता। क्योंकि तुम्हारे भीतर देहाभिमान है, देह की फीलिंग होगी और देह के दुःख से भगवान के चिन्तन के स्थान पर देह का चिन्तन होगा। इसलिये शरीर को स्वस्थ रखने के लिये आहार-विहार सब संयमित होना चाहिये। हमने इसको कोई महत्त्व नहीं दिया। भगवान ने गीता में भी कहा है;
युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा।।(गीता 6-17)
अर्जुन! कोई भी कर्मी, ज्ञानी, योगी हो, शरीर को स्वस्थ रखना परमावश्यक है। अगर नहीं रखोगे तो;
तनु बिनु भजन वेद नहिं बरना।
शरीर के बिना भगवान की उपासना कैसे करोगे? इसलिये डॉक्टरों के अनुसार समझ करके, वैज्ञानिक ढंग से कितना विटामिन, प्रोटीन, ए बी सी डी, ये सब लेना चाहिये। क्योंकि शरीर को स्वस्थ रखना है। कितना ही बड़ा आदमी हो खरबपति हो अगर वो स्वयं स्वस्थ रहने का संयम नहीं करता तो करोड़ों डॉक्टर लगा दो उसके पीछे, वो कुछ नहीं कर सकते डॉक्टर। वो रहता रहेगा, पूरे जीवन बिस्तर पर पड़ा रहेगा। क्यों?
अरे! वो कभी व्यायाम नहीं करता, वो कभी विटामिन प्रोटीन का ध्यान नहीं रखता, मनमाना खाता है, मनमाना सोता रहता है तो फिर दण्ड भोगना पड़ेगा। डॉक्टर साहब क्या करेंगे बेचारे। इसलिये शरीर स्वस्थ रखने के लिये हमको सावधान रहना है।
(प्रवचनकर्ता : जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
०० सन्दर्भ : साधन साध्य पत्रिका, मार्च 2010 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - फिटकरी क्या है, इस बारे में तो आप भी जरूर जानते होंगे. सफेद नमक के ढेले की तरह दिखने वाली फिटकरी औषधीय गुणों से भरपूर होती है. चेहरे की झुर्रियों को दूर करना हो या पसीने की बदबू की समस्या, हर तरह की दिक्कत दूर करने में मदद कर सकती है फिटकरी, लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि सिर्फ आपकी सेहत ही नहीं बल्कि जीवन में चल रही समस्याओं को भी दूर करने में फायदेमंद साबित हो सकती है फिटकरी? बस इसे इस्तेमाल करने का तरीका पता होना चाहिए.असरदार माने जाते हैं फिटकरी के ये उपायफिटकरी से जुड़े ऐसे कई उपाय हैं जिन्हें बेहद असरदार माना जाता है. बिजनेस में तरक्की चाहिए हो या फिर घर की नकारात्मकता (Negativity at home) को दूर करना हो, वास्तु शास्त्र से जुड़ी मान्यताओं के अनुसार अगर आप फिटकरी से जुड़े कुछ आसान उपाय करें तो कुछ ही दिनों में आपको इसका सकारात्मक असर दिखने लगेगा.1. अगर घर में आए दिन क्लेश होता हो, परिवार के सदस्यों के बीच मनमुटाव और लड़ाई झगड़े होते हों तो रात के समय एक गिलास पानी में फिटकरी के कुछ टुकड़े डालें और उसे अपने बेड के नीचे रख दें. सुबह इस पानी को पीपल के पेड़ में डाल दें. मान्यता है कि फिटकरी के इस उपाय से घर में शांति बनी रहती है.2. अगर आपको रात में डरावने सपने आते हों (Nightmares) या फिर अगर आपका बच्चा रात में सोते समय डरकर उठ जाता हो तो आप फिटकरी से जुड़े उपाय कर सकते हैं. इसके लिए फिटकरी के एक टुकड़े को बच्चे के सिरहाने रख दें या अपने बिस्तर के नीचे फिटकरी का एक टुकड़ा रखें. बुरे सपने आने बंद हो जाएंगे.3. कई बार किसी तरह की नकारात्मक ऊर्जा की वजह से भी आपके बिजनेस या दुकान में घाटा होने लगता है. इससे बचने के लिए फिटकरी के टुकड़े को काले कपड़े में बांधकर दुकान या ऑफिस के बाहर लटका दें. ऐसा करने से फिर से बरकत आने लगेगी.4. घर में रोजाना पोछा लगाते वक्त पानी में थोड़ा सा नमक और फिटकरी मिलाकर पोछा लगाएं. ऐसा करने से भी घर में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है और बीमारियां भी दूर रहती हैं.
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 248
(संसारी काम करते हुये किस प्रकार मन से ईश्वरीय साधना का लाभ मिल जाय, इस संबंध में जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा मार्गदर्शन...)
...काम दो प्रकार का होता है, एक बौद्धिक; जिसमें आप दिमाग से विचार करते हैं और दूसरा शारीरिक। आप एक साधारण काम कर रहे हैं, जैसे साइकिल चला रहे हैं। आगे पीछे का भी ध्यान है। आगे कौन जा रहा है, उससे बचाना है। पीछे से कार आ रही है, उससे बचना है।
यद्यपि मन के बिना कोई कार्य नहीं होता। वह आपकी आँख के पास भी है, कान के पास भी है, हाथ पैर से आप साइकिल चला रहे हैं, उनके पास भी है। डॉक्टर से दवा लाना है उधर भी ध्यान है। लेकिन अपने बेटे की दवा लाना है, उसमें आपका अटैचमेन्ट है। वह आपका मेन लक्ष्य है। यह अटैचमेन्ट की सीट आप भगवान को दे दीजिये, बाकी संसार का सब काम कीजिये।
आपके संसारी सम्बन्धी भला यह कैसे जानेंगे कि अमुक काम तुमने क्या सोचकर किया है। उनका काम भगवान का काम सोचकर करो। वह काम भी अधिक अच्छा होगा। संसारी भी खुश रहेंगे और आपका वह सारा कार्य आपकी साधना हो जायेगी। आपके मन का लगाव संसार में न होकर श्यामसुन्दर में हो जायेगा। सब काम प्रभु का समझकर करो। हानि में भी परीक्षा और लाभ में भी परीक्षा समझो। अपने को तृण से भी दीन समझो और अपमान में झल्लाओ नहीं, उसको आभूषण समझो।
जब दिमागी काम करना है उसको करने से पूर्व भगवान को याद कर लो। काम खूब मन लगाकर करो। पश्चात फिर उसे (भगवान) याद कर लो। श्यामसुन्दर को अपने पास बैठाये रहो और कार्य करते रहो। कोई आपका दुश्मन भी आ रहा है, रिवाल्वर लेकर। सोचो, मैं आत्मा हूँ, यह मेरा क्या बिगाड़ लेगा। शरीर से अलग होने पर प्रियतम (भगवान) के पास पहुँच जाऊँगा। डरो मत। सोचो कि यह सब प्रभु की लीला हो रही है। परीक्षा के लिये प्रति क्षण तैयार रहो। एक दिन जब यह नैचुरल हो जायेगा तो उसे (भगवान) निकालना चाहोगे तो भी मन से उसे निकाल न पाओगे।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, मार्च 2003 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 247
(भूमिका - राम और कृष्ण में भेद मानना महान अपराध है। इस अपराध से बचने के लिये राम और कृष्ण तत्व की एकता के संबंध में पक्का तत्वज्ञान होना परमावश्यक है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज इस निम्नांकित प्रवचन में इसी अद्वितीय-तत्व की गूढ़ता पर प्रकाश डाल रहे हैं....)
राम और कृष्ण ये दो तत्व नहीं हैं। एक तत्व हैं। यह बात हमारे बहुत से साधु भाइयों को भी नहीं पता है। वो कहते हैं भाई ऐसा है कि सब अपने-अपने इष्ट को नमन करते हैं। हाँ। तो हमारा इष्ट तो दूसरा है तो हम राम को नमन कैसे करें, और हम राम वाले हैं तो हम कृष्ण को नमन कैसे करें? इतनी बड़ी जहालत है हमारे देश में। क्यों जी तुमसे बड़ा और भी कोई बुद्धिमान है। ये ब्रह्मा, विष्णु, शंकर ये तो रामावतार में भी आकर के नाक रगड़ रहे हैं। कृष्णावतार में भी। तुम उनसे बड़े बुद्धिमान हो। हाँ। अरे, तुलसीदास जी तो कह रहे हैं;
सीय राम मय सब जग जानी।करउँ प्रनाम जोरि जुग पानी।।
दुष्टों को तो पहले प्रणाम किया है तुलसीदास जी ने, सज्जनों को बाद में किया है। और वो कृष्ण को नहीं प्रणाम करेंगे इतनी भूल। अच्छा ये देखिये रामायण से बताते हैं आपको। अध्यात्म रामायण;
मायातीतं माधवमाद्यं जगदादिम्।
अध्यात्म रामायण में राम को कहा गया 'माधव'। मायातीत माधव जगत के आदि में रहने वाले आपको नमस्कार है।
मायातीतं माधवमाद्यं जगदादिम्।
फिर उसी अध्यात्म रामायण में और स्पष्ट;
वंदे रामं मरकत वर्णं मथुरेशम्।
मथुरा के अधीश मरकत वर्ण के भगवान राम आपको नमस्कार है। फिर उसी अध्यात्म रामायण में;
वृन्दारण्ये वंदित वृन्दारक वृन्दम्।
वृन्दावन में वृन्दारक वृन्द से वन्द्य राम तुमको नमस्कार है। ये रामायण कह रही है। और तुम उसके भी आगे चले गये। तुलसीदास जी ने लिखा विनय पत्रिका में। सब जगह तो बहुत रोये गाये हैं। मुझसे बड़ा कोई पतित नहीं, महाराज कृपा करो, दया करो। तो विनय है विनय पत्रिका में। लेकिन एक जगह चैलेन्ज किया है माया को;
अब मैं तोहिं जान्यो संसार।बाँधि न सकइ मोहिं हरि के बल प्रकट कपट आगार।
ऐ माया ! तू मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती, हरि का बल है मेरे पास। तो कौन से हरि का बल है भाई, तो;
सहित सहाय तहाँ वसु अब, जेहि हृदय न नन्दकुमार।
माया! जिसके हृदय में नन्दकुमार न हों वहाँ जाकर अपना तू डेरा जमा। हमारे यहाँ दाल नहीं गलेगी। हमारे हृदय में नन्दकुमार रहते हैं। हाँ दशरथकुमार नहीं कहा, नन्दकुमार!!
विरद गरीब निवाज राम को,जड़ पतंग पाण्डव सुदामा को।
हमारे राम गरीब निवाज हैं। देखो सुदामा का उद्धार किया, पाण्डवों का किया, यमलार्जुन का किया। ये विनय पत्रिका कह रही है, आप उनसे आगे हो गये। हाँ। हमारे बहुत से भाई रामोपासक ऐसे हैं जो, भाई कुछ भी हो, वो तो अपना इष्टदेव है अपना । हाँ। क्यों जी आपका बाप पचीस तरह के कपड़े पहनता रहता है। ऑफिस में और कपड़ा, घर में लुंगी लिये घूमता है, बाथरूम में नंगा नहाता है, तो क्या वो बाप बदल जाता है। अरे बाप तो वही है, स्त्री का पति वही है। और फिर राम कृष्ण का तो शरीर का रंग भी नहीं बदला। दोनों नीलाम्बुज हैं, दोनों पीताम्बरधारी हैं। सब चीज एक है। वो साहब मोर पंख? तो क्या राम को मोरपंख लगाना मना है। वो भी लगा सकते हैं मौज में आ जायेगी तो, उनको कोई रोकने वाला है क्या? कि तुमने क्यों मोरपंख लगाया, वो तो जी श्रीकृष्ण के नाम रिजर्वेशन हो गया है उसका, ऐसा तो नहीं है कुछ। हाँ। राम धनुष धारी हैं। तो श्रीकृष्ण धनुष धारी नहीं है। वह भी तो शाङ्गधर हैं। उनके धनुष का नाम शाङ्ग है। अरे क्या बकवास की बात करते हो। सब रामावतार वाले, राम के चार स्वरूप, वाल्मीकि रामायण कहती है;
ततः पद्म पलाशाक्षः कृत्वात्मानं चतुर्विधम्। (वा. रामा.)
लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न ये कोई महापुरुष नहीं हैं। ये सब राम हैं। राम अपने आप चार बन गये, और वही चारों फिर कृष्णावतार में श्री कृष्ण, बलराम, अनिरुद्ध, प्रद्युम्न - ये चतुर्व्यूह बन करके प्रकट हुये। और वही ब्रह्मा, विष्णु, शंकर रामावतार में स्तुति करने गये। वही कृष्णावतार में स्तुति करने गये। इसलिये ऐसा नामापराध न कमायें। अगर कोई भोले भाले लोग शास्त्रों वेदों को नहीं पढ़े हैं तो वे हमारी ये प्रार्थना को स्वीकार करें, और थोड़ा भी अन्तर न मानें कि 'दोनों बराबर हैं' - ऐसा नहीं कहना। 'दोनों एक हैं' - ऐसा कहना। बराबर का मतलब तो दो पर्सनैलिटी हो गयी। पर्सनैलिटी दो नहीं हुई। एक ही पर्सनैलिटी के अनंत रूप हैं - 'अनंत नाम रूपाय'।
इस प्रकार भगवान राम को रोकर पुकारो। रोकर पुकारो। खाली ऐसे जो आप लोग मन्दिरों में गा देते हैं;
भये प्रगट कृपाला दीन दयाला...
ऐसे नहीं। रोकर पुकारो। तुम्हें माँगना है न भीख। प्रेम की भीख, राम दर्शन की भीख, तो भीख माँगने वाला जब भूखा होता है तो किस तरह बुलाता है, और पेट भरा होता है तो, कोई हमको दे दे, दान दे दे ऐसे बोलेगा। जैसे पण्डित लोग जाते हैं न मन्दिरों में, तो श्लोक बोलते हैं;
त्वमेव माता च पिता त्वमेव..
यह क्या लड़ रहे हो। भगवान के आगे आंसू बहाकर प्रार्थना करो, दैन्य भाव युक्त। 'मो सम दीन न' बोलते तो हो और (दीन) बनते नहीं हो अन्दर से। इससे काम नहीं चलेगा। रो कर पुकारना होगा। भगवान को आँसू प्रिय हैं और वह भी निष्काम। संसार की डिमाण्ड न करना। मोक्ष की भी न करना।
तृण सम विषय स्वर्ग अपवर्गा।
तृण सम त्याग दो इनको मन से। ये भुक्ति मुक्ति पिशाचिनी हैं। तो जब रोकर पुकारोगे और राम के नाम, रूप, लीला, गुण, धाम का कीर्तन करोगे, तो अन्तःकरण शुद्ध होगा। जब अंतःकरण शुद्ध होगा तो भगवान कृपा करके स्वरूप शक्ति देंगे। तो स्वरूप शक्ति से इन्द्रिय, मन, बुद्धि दिव्य हो जायेंगे। वो गुरु के द्वारा प्रेम की दीक्षा होगी, तब भगवत् दर्शन होगा। भगवद् साक्षात्कार होगा। तब माया निवृत्ति, त्रिगुण निवृत्ति, त्रिकर्म निवृत्ति, पंच क्लेश निवृत्ति, पंचकोश निवृत्ति, द्वन्द निवृत्ति, जितनी भी बीमारियाँ हैं, सब एक सैकिन्ड में समाप्त। और;
तद्विष्णोः परमं पदं सदा पश्यन्ति सूरयः। (वेद)
सदा के लिये परमानन्द युक्त होकर भगवान राम के साकेत लोक में निवास करोगे, उनकी सेवा प्राप्त करोगे। इस प्रकार अपने लक्ष्य को प्राप्त करना है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - 246
साधक का प्रश्न ::: भगवान का नाम लेते हुए गुरु का ध्यान कर सकते हैं क्या ?जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: प्रश्न किया है, भगवान का नाम लेते हुए गुरु का ध्यान कर सकते हैं क्या? हाँ, कर सकते हो। केवल गुरु की भक्ति से भी भगवत्प्राप्ति होती है। अथवा, भगवान प्लस गुरु को एक साथ एक कक्षा में मानकर भक्ति करने से भी भगवत्प्राप्ति होती है। केवल भगवान की भक्ति नहीं होती। तो गुरु का ध्यान करो, और भगवान की भावना रखो, और भगवान् का भी ध्यान करने का अभ्यास करो, क्योंकि लीलाएँ जब आप गायेंगे श्रीकृष्ण की तो लीलाओं में भगवान् का ध्यान करना पड़ेगा। बाल-लीलाएँ, अनेक प्रकार की ऐसी लीलाएँ हैं।
इसलिए अभ्यास करना चाहिए राधाकृष्ण के ध्यान करने का। फोटो रख लो एक। उस फोटो को देखो, और फिर आँख बंद कर के उसी प्रकार का बनाओ, फिर फोटो देख लो फिर बनाओ। ऐसे ही दस-बीस दिन, महीने-दो-महीने अभ्यास करने से रूपध्यान बनने लगेगा। कोई घबराने की जरूरत नहीं। लेकिन, अगर हमेशा ही आप गुरु का ही रूपध्यान करें, तो भी भगवान को और और ख़ुशी होती है। वो नाराज़ नहीं होंगे।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 245
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी, पतन का सबसे बड़ा कारण क्या है ?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: साधक को एक क्षण का भी कुसंग उसे गिरा देने में पूर्ण समर्थ है, तथा साधक के पास ऐसी शक्ति तब तक नहीं आ सकेगी, जिससे कि उस पर कुसंग का प्रभाव ही न पड़े, जब तक कि 'साधक का योगक्षेम वहन करना' रूप उत्तरदायित्व भगवान् पर निर्भर नहीं हो जायेगा।
मैं तो समझता हूँ कि साधक को भगवान् से विमुख करने वाला सबसे महान शत्रु 'कुसंग' ही है। अन्यथा, अनंत बार महापुरुष एवं भगवान् के अवतार लेने पर भी, जीव इस प्रकार माया में ही पड़ा सड़ता रहे, यह कदापि संभव नहीं। अतएव साधक को साधना से भी अधिक दृष्टिकोण, कुसंग से बचने पर रखना चाहिये। तुलसी के शब्दों में;
बरु भल बास नरक कर ताता,दुष्ट संग जनि देइ विधाता..
वास्तव में जिस किसी प्रकार से भगवान में मन लगे, वही 'सत्संग' है, एवं जिस किसी भी प्रकार से मन न लगे वही 'कुसंग' है, किन्तु यह ध्यान रखना चाहिये कि दुर्भावना नास्तिक के प्रति भी न होने पाये।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 244
साधक का प्रश्न ::: यह कहा तो जाता है कि गृहस्थी भी परिवार में रह कर भी साधना कर सकता है, लेकिन क्या यह प्रैक्टिकली सम्भव है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: ममता मन में होती है, परिवार बाहर होता है। तो देखो, अगर संसार में बाप-बेटे में, मियाँ-बीवी में लड़ाई हो जाए तो मन विरक्त हो जाता है न? और दोनों घर में रहते हैं और बोलचाल बंद हो जाती है।
तो अगर मन को हम भगवान में लगा दें तो परिवार रहा करे, हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। और अगर वृन्दावन में रह करके परिवार का चिन्तन करे बैठे बैठे तो चला गया संसार में मन। मन ही तो मेन (सर्वप्रमुख) है। बंधन और मोक्ष का कारण मन है, शरीर नहीं। तो मन को भगवान में लगाओगे तभी वैराग्य होगा।
यह जरूर है कि परिवार में रह करके खराब एटमॉसफियर (वातावरण) मिलने के कारण साधना तेज नहीं होती और अलग रह करके साधना तेज होती है। लेकिन साधना होनी चाहिए 'मन' की। अगर बच्चे के सामने रसगुल्ला रखा हो और उसको लेक्चर दो कि 'मत खाओ, दाँत गिर जाएँगे', वह नहीं सुनेगा, चिल्लाएगा, रोएगा। रसगुल्ला न हो और रसगुल्ला बच्चा माँगे तो उसको बहला दो, फुसला दो, और जगह माइंड को डायवर्ट कर दो तो बात खत्म हो जाएगी। तो उसी प्रकार माँ, बाप, बेटा, स्त्री, पति, धन, प्रतिष्ठा हो तो मन उसमें जल्दी जायेगा और उससे अलग हो करके साधना करो तो देर में जाएगा, कभी कभी जाएगा। फिर उसको भगवान में लगाते जाओ जब उधर जाए तो। यही साधना है, अभ्यास और वैराग्य।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - 5 अप्रैल की सुबह 5 बजे राशि परिवर्तन कर रहे हैं देवगुरुबृहस्पति मकर राशि से निकलकर कुंभ राशि में आएंगेदेवगुरु के इस गोचर का देश दुनिया पर होगा कैसा असरसबसे बड़ा ग्रह देवगुरु बृहस्पति 5 अप्रैल की सुबह 5 बजे सूर्योदय से पहले अपनी राशि परिवर्तित करने जा रहा है. बृहस्पति फिलहाल शनिदेव की पहली राशि मकर में है जहां से निकलकर वह शनिदेव की ही दूसरी राशि कुंभ में प्रवेश करने वाला है. ज्योतिर्विद की मानें तो बृहस्पति एक राशि में करीब 13 महीने तक वक्री और मार्गी दोनों गति से संचरण करते हैं. ज्योतिष की दृष्टि से बृहस्पति का गोचर यानी राशि परिवर्तन एक बड़ा परिवर्तन माना जाता है क्योंकि शनि, राहु और केतु के बाद एक राशि में सबसे अधिक समय तक रहने वाला ग्रह बृहस्पति ही है.विभिन्न क्षेत्रों पर प्रभाव डालता है बृहस्पतिऐसे में निश्चित तौर पर गुरु के राशि परिवर्तन का सभी लोगों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई न कोई असर अवश्य होगा (Effect of Jupiter Rashi Change). बृहस्पति को भाग्य, खर्च, विवेक, ज्ञान, ज्योतिष, अध्यात्म, परामर्श, सत्य, विदेश में घर, तीर्थ यात्रा, नदी, मीठा खाद्य पदार्थ, मंत्र, दाहिना कान, नाक, स्मृति, पदवी, बड़ा भाई, पवित्र स्थान, धामिर्क ग्रंथ का पठन, अध्यापक, धन, बैंक, धार्मिक कार्य, ईश्वर के प्रति निष्ठा, दान, परोपकार, फलदार वृक्ष, पुत्र, पति, पुरस्कार, लीवर और हर्निया इत्यादि का कारक ग्रह माना जाता है. इसका अर्थ ये हुआ कि इन सभी क्षेत्रों पर देवगुरु अपना अधिक प्रभाव डालते हैं.बृहस्पति के राशि परिवर्तन का भारत पर होगा कैसा असर?धनु और मीन बृहस्पति की अपनी राशि है तो वहीं चंद्रमा की राशि कर्क में बृहस्पति उच्च के और शनि की राशि मकर में नीच के होते हैं. 1 साल से भी ज्यादा समय के बाद जब बृहस्पति का राशि परिवर्तन हो रहा है तो भारत के दृष्टिकोण से देवगुरु का यह गोचर किस तरह से प्रभावित कर सकता है, यहां जानें:1. स्वतंत्र भारत की कुंडली कर्क राशि और वृष लग्न की है, इसलिए देवगुरु षष्ठ भाव और भाग्य भाव के स्वामी होकर अष्टम भाव में विद्यमान रहेंगे. इस दौरान देश के धन में वृद्धि होगी, आमजन में सुख की अनुभूति और व्यापारिक साझेदारी सहित लाभ में वृद्धि हो सकती है. लेकिन देश के अंदर ही कुछ जगहों पर अशांति और प्रगति में अवरोध भी आ सकता है.2. विश्व स्तर पर भारत के पराक्रम, यश और सम्मान में वृद्धि होगी, शेयर बाजार में गिरावट आ सकती है, भारत को मित्र राष्ट्रों का सहयोग मिल सकता है.3. भारत के धन भाव और सुख भाव पर गुरु की दृष्टि होगी जिससे भारत के बौद्धिक, नए शोध, अन्वेषण और व्यापारिक लाभ, इंफ्रास्ट्रक्चर में वृद्धि होगी. सामरिक महत्त्व में वृद्धि होगी और न्याय तंत्र मजबूत होगा.4. चूंकि गुरु प्राण वायु भी हैं, ऐसे में जब देवगुरु राहु शनि के प्रभाव से बाहर आ रहे हैं, तो अच्छी और प्रभावकारी वैक्सीन की खोज के साथ ही कोरोना वायरस कमजोर होता दिख रहा है.5. राहु की दृष्टि शनि पर पड़ने के कारण प्राकृतिक आपदा, बाढ़, भूकंप, आग से क्षति, भूस्खलन, चक्रवात, सहित अन्य प्राकृतिक आपदाएं आ सकती हैं, विशेषकर किसी भी देश के दक्षिणी क्षेत्र में.6. भारत में आंतरिक विद्रोह, आंदोलन, जातीय एवं साम्प्रदायिक दंगे जैसी गतिविधियों में कमी हो सकती है. भारत सहित पूरे विश्व में युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, इसलिए सजगता और सावधानी जरूरी है.
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आजकल युवा वर्ग में दाढ़ी रखने का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। सेलीब्रेटी या अन्य किसी को देखकर युवा दाढ़ी रख रहे हैं, लेकिन यह दाढी हमारी किस्मत से भी जुड़ी है। ज्योतिषीय योग के अनुसार कई बार ऐसे योग होते हैं जिसमें दाढ़ी रखने से धन और यश की प्राप्ति होती है, लेकिन कई बार हानि भी होती है। चूंकि दाढ़ी रखते वक्त इन पर किसी का ध्यान ही नहीं जाता, ऐसे में वे कुछ समझ ही नहीं पाते कि दाढ़ी की वजह से भी नुकसान हो रहा है।
ज्योतिषीय दृष्टि से किसे दाढ़ी रखनी चाहिए और किसने नहीं, इसका बाकायदा गणित है। यदि जन्म कुंडली में लग्न पर केतु का प्रभाव अथवा सिंह राशि में राहु केतु का विशेष प्रभाव हो ऐसे जातक को दाढ़ी रखनी चाहिए। दाढ़ी रखने का मतलब यह नहीं कि पूरी तरह से साधु-सन्यासी जैसा वेश बना लें। हल्की दाढ़ी या फ्रेंचकट दाढ़ी रखने से भी लाभ मिलेगा। लेकिन जिन लोगों का शुक्र प्रबल है, उच्च अभिलाषी हैं और जिन्हें शुक्र के अच्छे परिणाम को मिल रहे हैं, शुक्र की महादशा चल रही है तो उन्हें दाढ़ी नहीं रखनी चाहिए।
यदि ऐसे लोग दाढ़ी रखना शुरू कर देंगे तो शुक्र का असर कम हो जाएगा और उन्हें हानि होने लगेगी। ज्योतिषीय गणना में शुक्र को शरीर पर अनपेक्षित बाल पसंद नहीं है। इसलिए शुक्र की महादशा में शुक्र को बलवान करने के लिए अपना चेहरा सुंदर रखें और दाढ़ी ना बढ़ाएं। इस स्थिति में दाढ़ी शुक्र संबंधीअच्छे प्रभावों को नष्ट कर सकती हैं। -
मां भगवती का उपासना का पर्व चैत्र नवरात्र 13 अप्रैल, मंगलवार से शुरू होगा। नवरात्र का समापन 22 अप्रैल को होगा।
ग्रहीय योग से बढ़ेगा नवरात्र की शुभता
ज्योतिषाचार्य पं. दिवाकर त्रिपाठी पूर्वांचली के अनुसार प्रतिपदा तिथि 12 अप्रैल, सोमवार को शाम 6: 58 बजे शुरू हो जाएगी, जो मंगलवार सुबह 8:46 बजे तक रहेगी। इसलिए प्रतिपदा का मान उदया तिथि में 13 अप्रैल को होगा। इस दिन सूर्य की मेष राशि में संक्रांति होगी। इससे सूर्य अपनी उच्च राशि में प्रवेश करेंगे। साथ ही भौमाष्टमी और सर्वार्थ अमृतसिद्धि योग नवरात्र के महात्म्य में वृद्धि करेगा। इसी दिन नवसंवत्सर की शुरुआत होगी।
किसी तिथि का क्षय नहीं
ज्योतिषाचार्य आशुतोष वाष्र्णेय के अनुसार इस बार चैत्र नवरात्र में किसी तिथि का क्षय नहीं है। 13 अप्रैल को आश्विन नक्षत्र और चंद्रमा मेष राशि में रहेगा। इसे नवरात्र की शुभता बढ़ जाएगी।
स्थापना का शुभ मूहूर्त
- 13 अप्रैल-- सूर्योदय 5:43 से सुबह 8:46 बजे तक
- अभिजीत मुहूर्त-- सुबह 11:36 बजे से दोपहर 12: 24 बजे तक - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 243
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! क्या ये भी आवश्यक है कि एक ही इष्टदेव, गुरु हो?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: हाँ! ये अत्यावश्यक है कि एक ही इष्टदेव हो, एक ही गुरु हो। एक ही इष्टदेव की भक्ति करना है, बाकी को उन्हीं का रूप मान लेना है। रूपध्यान करना होगा न। तो रूपध्यान में एक इष्टदेव बनाओ, एक गुरु बनाओ और उसके अनुसार चलो; क्योंकि अगर कई महात्माओं के पास जाओगे, तो वो कुछ बतायेगा, वो कुछ बतायेगा तो कन्फ्यूजन पैदा होगा। इसी प्रकार कई इष्टदेव का ध्यान करोगे तो इसका ध्यान बनाओगे तो वो कम बना, फिर उसका शुरू किया। तमाम प्रैक्टिस करनी पड़ती है न। इसलिये एक ही इष्टदेव हो, एक ही गुरु हो तो जल्दी सफलता मिलती है। बाकी फिर चाहे चार दिन राम राम करो, चार दिन श्याम श्याम करो सब बराबर। इसमें कोई फरक नहीं है। लेकिन अगर तुम 'राम' का ध्यान बनाती हो, फिर 'नृसिंह' भगवान् का ध्यान बनाती हो, फिर तुम 'कच्छप' भगवान् का बनाती हो; एक ही ध्यान बनाना मुश्किल पड़ता है, इतना खराब मन है और फिर तमाम ध्यान कैसे बनेगा।
एक इष्ट, एक गुरु, एक मार्ग - तीन बात। बस अपने इष्टदेव की ही बात सुनना, अपने गुरु की ही बात सुनना, उन्हीं का सत्संग करना और अपने मार्ग के अलावा किसी मार्ग की बात सुनना भी नहीं, पढ़ना भी नहीं। नहीं तो कन्फ्यूज़न होगा। क्योंकि बात तो सब सही है लेकिन अधिकारी भेद का फरक है। जैसे भक्त कहता है मैं दास हूँ, अधम हूँ, पतित हूँ, गुनहगार हूँ, नाचीज़ हूँ, अनन्त पाप किये बैठा हूँ। अब इसका उलटा है ज्ञानमार्ग। मैं शुद्ध हूँ, बुद्ध हूँ, ब्रह्म हूँ और बिल्कुल उलटा बोल रहा है वो और केवल आत्मा के लिये बोल रहा है। और हम बोल रहे हैं शरीरेन्द्रिय, मन, बुद्धि जो माया के अण्डर में हम हैं, वो मिलाकर के बोल रहे हैं। अब वो क्यों बोल रहा है वैसा? उसका अन्तःकरण शुद्ध हो गया है, वो चार साधनों से सम्पन्न हो चुका है, इसलिए बोल रहा है। इसलिये वो ठीक है।
हम वहाँ पहुँच जायेंगे तब हम भी वैसे ही बोलेंगे।अभी कैसे बोलेंगे? ये फरक है। देखो! छोटे बच्चे इतना बड़ा बस्ता ले जाते हैं बाँध कर अपनी पीठ पर और यूनिवर्सिटी में जाते हैं बच्चे पढ़ने, एक कॉपी ले जाते हैं। खाली नोट्स लिख लिया, हो गया बस। तो शुरू शुरू में साधक के लिये सब प्रॉब्लम्स हैं फिर बाद में सब सुविधा हो जाती है।
अब एक कर्मकाण्ड में बैठो संध्या करने, कोई कर्म करने, तो कहाँ बैठो, ये सोचो पहले? शुद्ध जगह होनी चाहिये, गंदी जगह न बैठना, ये लेट्रीन है यहाँ नहीं बैठना। बैठने के बाद किधर को मुँह करें? दक्षिण तरफ मुँह न करना, पूरब की तरफ करना। फिर आचमन करो, कवच, अर्गला, तिलक, दिशाओं की शुद्धि। तमाम नाटक करो, तब जाकर तुम जप शुरू करो। मृत्युंजय का जाप करने जा रहे हो। इतने नियम हैं। और भक्ति मार्ग में तुम चाहे घोर गन्दगी में बैठे हो, हजार दिन से नहीं नहाये हो, किसी भी गन्दगी की हालत में हो 'राधे' 'राधे' बोलो, भगवान् से प्यार करो।
गौरांग महाप्रभु के जमाने में एक आदमी 'हरे राम हरे राम' मंत्र का जप दिन रात करे, आदत डाल लिया उसने। तो जब लघुशंका के लिये जाय तो मुँह पर हाथ धर ले क्योंकि लोगों ने बताया था कि पाखाना, पेशाब करते समय भगवान् का नाम या कोई ऐसी चीज़ नहीं करनी चाहिये, तो किसी ने देख लिया। उसने महाप्रभु जी से कहा कि स्वामी जी! ये ऐसा करता है। उन्होंने उसे हँस कर बुलाया इधर आओ, क्या करते हो तुम?
गुरु जी क्या करें, निकल जाता है मुँह से, भगवन्नाम की आदत पड़ गई है, इसलिये मुँह बन्द कर लेता हूँ। उन्होंने कहा - नहीं नहीं, भगवान् का नाम गन्दगी को शुद्ध करता है। गन्दगी से भगवान् का नाम अशुद्ध नहीं होता है। तू हर समय लिया कर।
अब पूजा है मन्दिर की, ये है, वो है नहा कर जाओ, ये करो, रजस्वला है वो न जाय स्त्री मन्दिर में, ठाकुर जी की मूर्ति न छुए, सब कायदे कानून हैं। भक्ति में ये कुछ नहीं;
अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोपि वा।यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥(पद्म पुराण, पाताल खण्ड 80-12)
वेदव्यास लिखते हैं चाहे पवित्र हो वो, परमपवित्र ब्रह्मा, शंकर हो, और चाहे घोर अपवित्र पापात्मा हो बाहर से भी भीतर से भी गन्दा हो, भगवान् का स्मरण कर ले, भीतर बाहर सब शुद्ध हो जाय।
इतनी रियायत है भक्ति मार्ग में। बस, भगवान् का स्मरण करना है और कुछ नहीं। नाम लो ठीक है, न लो तो भी चलेगा। मन से स्मरण करना आवश्यक है क्योंकि गन्दगी तो मन की शुद्ध करना है। शरीर की गन्दगी तो साबुन से हो जायेगी शुद्ध दो मिनट में, गड़बड़ तो वो मन कर रहा है। सारा संसार दु:खी है मन से। शरीर से चाहे कोई वो सारे संसार की सुन्दरी हो, लेकिन मन से सब दु:खी हैं, परेशान हैं इसी प्रकार। जैसे एक भिखारी वैसे ही एक अरबपति। तो मन ही को ठीक करना है।
चित्तमेव हि संसारः। (मैत्रेयी उपनिषद् 1-5)
वेदव्यास कहते हैं संसार की परिभाषा क्या है? बस, चित्त, मन। इसी का नाम संसार है। इसी संसार में संत महात्मा रहते हैं, आनन्दमय रहते हैं। उनके भी माँ है, बाप है, बेटा-बेटी हैं, वो भी कोई मरता है, कोई जीता है, कोई बीमार होता है। लेकिन उनके ऊपर असर नहीं। और इसी में मायाबद्ध रहता है, वो दिन रात हाय! हाय! आज बेटा मर गया, आज वो मर गया, आज वो धन लुट गया, आज ये हो गया, आज उसने हमारी बुराई कर दी, दिन रात टेन्शन। आज बीबी ने ये कह दिया, बाप ने ये कह दिया, पति ने ये कह दिया दिनभर यही गोबर गणेश खोपड़ी में घूमता रहता है। भगवान् का स्मरण कैसे करे?
गृह कारज नाना जंजाला।सोई अति दुर्गम शैल विशाला॥
आज कल का गृहस्थ बहुत गड़बड़ है। बेटा कहता है श्रीकृष्ण की भक्ति करो, बाप कहता है आर्यसमाजी बनो, बीबी कहती है राधास्वामी बनेंगे। इसी में लड़ाई हो रही है। तुम्हारे गुरु जी दो कौड़ी के हैं, उसने कहा तुम्हारे गुरु जी दो कौड़ी के हैं, इसी में लड़ाई हो रही है। वो ठाकुरजी की मूर्ति फेंकता है, वो उसकी फेंकता है। ये गृहस्थी है आजकल की।
जब तक पूरा गृहस्थ एक लक्ष्य का न हो, बहुत दुर्लभ है, माँ भी वैसी मिले, बाप भी वैसा मिले, बेटा भी वैसा मिले, बीबी भी वैसी मिले, पति भी वैसा मिले। सब एक इष्टदेव, एक गुरु, एक मार्ग के चलने वाले हों, तब तो कुछ हिसाब बैठ जाता है, वरना बहुत मुश्किल है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - मां शीतला देवी की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को की जाती है। इस वर्ष यह पर्व 2 अप्रैल, शुक्रवार को मनाया जा रहा है। दैहिक, दैविक एवं भौतिक कष्टों से निवारण के लिए शास्त्रों में देवी-देवताओं की पूजा करने का विधान अनेक धर्मशास्त्रों में बताया गया है। ऐसा ही एक रूप है भगवती स्वरूपा मां शीतला देवी का जिनकी आराधना अनेक संक्रामक रोगों से मुक्ति प्रदान करती है। माना जाता है कि शरीर के निरोगी रहने के लिए भी शीतला अष्टमी का व्रत करना चाहिए।अर्पित किए जाते हैं बासी पकवान-मां शीतला को एक दिन पूर्व उन्हें भोग लगाने के लिए विभिन्न प्रकार के पकवान तैयार किए जाते हैं। अष्टमी के दिन बासी पकवान ही देवी को नैवेद्ध के रूप में समर्पित किए जाते हैं। लोकमान्यता के अनुसार आज भी अष्टमी के दिन कई घरों में चूल्हा नहीं जलाया जाता है और सभी भक्त ख़ुशी-ख़ुशी प्रसाद के रूप में बासी भोजन का ही आनंद लेते हैं। इसके पीछे मान्यता यह है कि इस समय से ही बसंत की विदाई होती है और ग्रीष्म का आगमन होता है,इसलिए अब यहां से आगे हमें बासी भोजन से परहेज करना चाहिए।इसलिए धोई जाती हैं आंखें-शीतला माता के पूजन के बाद उस जल से आँखें धोई जाती हैं। यह परंपरा गर्मियों में आँखों का ध्यान रखने की हिदायत का संकेत है। माता का पूजन करने के बाद हल्दी का तिलक लगाया जाता है,घरों के मुख्य द्वार पर सुख-शांति एवं मंगल कामना हेतु हल्दी के स्वास्तिक बनाए जाते हैं। हल्दी का पीला रंग मन को प्रसन्नता देकर सकारात्मकता को बढ़ाता है, भवन के वास्तु दोषों का निवारण होता है।शीतलाष्टक की महिमा-मां की अर्चना का स्त्रोत स्कंद पुराण में शीतलाष्टक के रूप में मिलता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्त्रोत की रचना स्वयं भगवान शंकर ने जनकल्याण में की थी। शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा का गान करता है,साथ ही उनकी उपासना के लिए भक्तों को प्रेरित भी करता है। इस दिन माता को प्रसन्न करने के लिए शीतलाष्टक पढऩा चाहिए। मां का पौराणिक मंत्र 'हृं श्रीं शीतलायै नम:' भी प्राणियों को सभी संकटों से मुक्ति दिलाते हुए समाज में मान सम्मान दिलाता है। मां के वंदना मंत्र में भाव व्यक्त किया गया है।स्वच्छता की देवी हैं मां-शीतला स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। मान्यता है कि नेत्र रोग, ज्वर, चेचक, कुष्ठ रोग, फोड़े-फुंसियां तथा अन्य चर्म रोगों से आहत होने पर मां की आराधना रोगमुक्त कर देती है, यही नहीं माता की आराधना करने वाले भक्त के कुल में भी यदि कोई इन रोगों से पीडि़त हो तो ये रोग-दोष दूर हो जाते हैं। शास्त्रों में शीतला देवी का वाहन गर्दभ बताया गया है। मां का स्वरूप हाथों में कलश,सूप,मार्जन(झाड़ू) तथा नीम के पत्ते धारण किए हुए चित्रित किया गया है। हाथ में मार्जनी होने का अर्थ है कि हम सभी को सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए।सूप से स्वच्छ भोजन करने की प्रेरणा मिलती है ,क्योंकि ज्यादातर बीमारियां दूषित भोजन करने से ही होती हैं। कलश में सभी तैतीस कोटि देवताओं का वास रहता है । इसलिए इसके स्थापन-पूजन से घर -परिवार में समृद्धि आती है। इन्हीं की कृपा से मनुष्य अपना धर्माचरण कर पाता है बिना शीतला माता की कृपा के देहधर्म संभव नहीं है। इनकी उपासना से जीवन में सुख-शांति मिलती है।
- जीवन में पानी की अहमियत से तो हर कोई वाकिफ है, पानी जीवन प्रदाता है, इसके अलावा रोजमर्रा के ज्यादातर छोटे बड़े कामों के लिए पानी की आवश्यकता होती है, लेकिन क्या आपको पता है कि केवल एक गिलास पानी के उपयोग से आप अपने जीवन की कई समस्याओं से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं, जी हां पानी के कुछ ऐसे उपाय भी बताए गए हैं जिनको करने से आप अपने जीवन की परेशानियों से छुटकारा पा सकते हैं....1. रात को सोते समय 1 गिलास पानी लेकर उसमें थोड़ा सा नमक डालकर अपने पलंग के नीचे रखकर सो जाए। ऐसा करने से से आपके घर और आसपास की सारी नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है, लेकिन ध्यान रहे कि सुबह उठते ही उस पानी अपने घर से नाली में फेंक दें।2. यदि आपको लगता है कि घर में नकारात्मक शक्ति का वास है जिसके कारण आपको समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है तो एक गिलास पानी और चार लाल मिर्च लेकर उसके बीज निकालकर अलग रख लें और इसके बाद इस पानी और मिर्ची को अपने ऊपर 21 बार उतार कर घर के बाहर सड़क पर या किसी सुनसान चौराहे पर जाकर फेंक दें, इसके बाद बिना पीछे देखें अपने घर वापस आ जाएं। मान्यता है कि इससे सभी नकारात्मक शक्ति खत्म हो जाती है, यह उपाय बहुत ही कारगर माना गया है3. कई बार जीवन में अजीब सी घटनाएं होने लगती हैं, जिसके कारण लोग मानते हैं कि यह किसी बुरी शक्ति के कारण हो रहा है। यदि आपको भी ऐसा महसूस हो रहा है हो तो एक कांच के गिलास में पानी भरकर उसमे एक चम्मच नमक मिला दें अब इस पानी को अपने घर के दक्षिण-पश्चिम कोने में रख दें और इसके ऊपर लाल रंग का बल्ब लगा दें, इससे आपको कुछ ही समय में फर्क दिखाई देने लगता है।4. एक गिलास में पानी लेकर उसमें थोड़ा सा नमक और चार-पांच लौंग डालकर रख दें।. इस पानी का अपने घर में छिड़काव करें, इससे घर की सारी नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है।---
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 242
साधक का प्रश्न ::: शयन करने वाले भगवान् (विष्णु) का ध्यान करने लगते हैं तो मन स्थिर नहीं होता है। तो कैसे स्वरूप का ध्यान करें? हम कन्फ्यूज्ड होते हैं, कैसे ध्यान करना चाहिये?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: हाँ हाँ भगवान् हृदय में भी रहते हैं। 'पुरुशयते' 'पुर' माने शरीर में, अन्त:करण में; 'शयते' माने सोने वाले। और क्षीरसागर में भी सोते हैं, सर्वत्र व्याप्त भी हैं और गोलोक में भी रहते हैं। तो हमको निराकार का ध्यान नहीं करना है। सगुण साकार का ध्यान करना है, राधाकृष्ण का। उनकी लीलायें हुई हैं। उन लीलाओं में हमारा मन जल्दी लगेगा। और जो पुरुष है अन्तःकरण में, परमात्मा रूप में, वो तो निराकार है उसका रूप नहीं हो सकता। ध्यान नहीं कर सकते हम। वो बड़े-बड़े योगी लोग नहीं कर पाते।
तो, हमको तो राधाकृष्ण का ध्यान करना चाहिये जो यहाँ ब्रज में अवतार लेकर आये थे। वही अन्दर वाले पुरुष यहाँ अवतार लेकर आये थे। उनका ध्यान करना है। भगवान् के तीन स्वरूप हैं; एक ब्रह्म, एक परमात्मा, एक भगवान्। तो ब्रह्म तो सर्वव्यापी, उसका ध्यान नहीं हो पाता जीव के लिये, और परमात्मा पुरुष है जो अन्दर रहता है, हमारे आइडियाज नोट करता है, सबके अन्तःकरण में रहता है। उसका भी रूपध्यान हम नहीं कर पाते क्योंकि वो निराकार है और महाविष्णु साकार हैं, लेकिन उनकी लीला नहीं है कोई। इसलिये राधाकृष्ण का रूपध्यान हमारे मन को जल्दी खींचेगा, जल्दी हमारे मन का अटैचमेन्ट होगा। भगवान् के सभी रूप हैं, लेकिन जिसमें हमारे मन का लगाव जल्दी हो जाय, वो हमारे लिये अच्छा है। अब मत्स्य अवतार भी है, कच्छप अवतार भी है, नरसिंह अवतार भी है। हमारा मन उसमें नहीं लगेगा क्योंकि हमारे लिये आकर्षक स्वरूप नहीं है उनका।
तो राधाकृष्ण के स्वरूप में, उनकी लीलाओं में जल्दी मन लग जायेगा। फिर चाहे हृदय में ध्यान करो, चाहे भौंहों के बीच में ध्यान करो, चाहे सामने ध्यान करो, कहीं करो, सब ठीक है। राधाकृष्ण का ध्यान। चाहे बालकृष्ण का करो, चाहे किशोर कृष्ण का करो, जो रूप पसन्द हो बदलते रहो। वो (भगवान) सब हैं।
त्वं स्त्री त्वं पुमानसि त्वं कुमार उत वा कुमारी।त्वं जीर्णो दण्डेन वञ्चसि त्वं जातो भवसि विश्वतोमुखः।।(श्वेताश्वतरोपनिषद 4-3)
वेद कहता है भगवान् पुरुष भी हैं, स्त्री भी हैं, कुमार भी हैं, कुमारी भी हैं और बूढ़े बनकर डण्डा लेकर भी चलते हैं। सब प्रकार की उनकी लीलायें हैं। तुमको जो पसंद हो।
और जिसका हृदय जितना गन्दा होता है उतना ही उसको सत्संग से दूरी आती जाती है। जैसे ये चुम्बक है, बीच में रखा है और चारों ओर सुईयाँ हैं। कोई सुई प्योर लोहे की है, किसी में टेन पर्सेन्ट मिलावट, किसी में ट्वन्टी पर्सेन्ट, किसी में फिफ्टी पर्सेन्ट तो चुम्बक जो क्लीन है शुद्ध लोहे की है उसको जल्दी खींच लेगा। जिसमें टेन पर्सेन्ट है वो बाद में खिंचेगा और जितनी अधिक मिलावट है उतनी ही देर में खिंचेगा। ऐसे ही भगवान् और महापुरुष से जो जीव खिंचते हैं, आकर्षण होता है, वो उनके अन्तःकरण की शुद्धि पर डिपैण्ड करता है। जिसका जितना अन्तःकरण शुद्ध है वो उतना जल्दी खिंच जायेगा और जितने पाप हैं, गन्दगी है अन्तःकरण में, उतनी ही देर में खिंचेगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 241
(भूमिका - साधक कैसे सब ओर से अपनी दृष्टि हटाकर स्वयं को पतन अथवा भटकाव से बचाये रखे और अपने परमार्थ के लक्ष्य पर अडिग, अविचल बना रहे - जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज इसी की ओर ध्यानाकृष्ट कर रहे हैं...)
'हरि, गुरु और भक्ति' - इन तीनों में अनन्य भाव रखो। यानी इनके बाहर मत जाओ। बस राधाकृष्ण, हमारे इष्टदेव और अमुक गुरु हमारा गाइड, गार्जियन एक बस, और साधना - ये उपाय। स्मरण, कीर्तन, श्रवण। ये तीन, बस इसके बाहर नहीं जाना है। कुछ न सुनना है, न समझना है, न पढ़ना है। अगर कोई सुनावे, बस बस हमको मालूम है सब। निरर्थक बात नहीं सुनना है।
बहुत से लोगों का यही धंधा है कि इसको इस मार्ग (भक्ति/साधना) से हटाओ। तो अण्ड बण्ड, तर्क-कुतर्क, वितर्क-अतितर्क, ऐसी गन्दी गन्दी कल्पनाएँ करके आपके दिमाग में वो डाउट पैदा कर देंगे। तो सुनना नहीं है। बस अपने मतलब से मतलब। ये शरीर नश्वर है। पता नहीं कब छिन जाय। फालतू बातों में इसको न समाप्त करो, जल्दी जल्दी कमा लो (आध्यात्मिक कमाई/साधना)। जितना अधिक भगवान् का, गुरु का स्मरण हो सके, उतना स्मरण करके अंतःकरण शुद्धि का एक चौथाई कर लो। फिर अगले जन्म एक चौथाई कर लेना। तो चार जन्म में हो जायेगा शुद्ध। लेकिन जितना कर सको करो। उसमें लापरवाही नहीं करना है। और हरि गुरु को सदा अपने साथ मानो। अपने को अकेला कभी न मानो। इस बात पर बहुत ध्यान दो, इसका अभ्यास करना होगा थोड़ा। जैसे दस मिनट में आपने एक बार रियलाइज किया - हाँ श्यामसुन्दर बैठे हैं फिर अपना काम किया - तीन, चार, सात, पाँच , बारह, अठारह, चौबीस, फिर ऐसे आँख करके कि हाँ बैठे हैं। ये फीलिंग हो कि हम अकेले नहीं हैं, हमारे साथ हमारा बाप (भगवान) भी है और हमारे गुरु भी हैं। ये फीलिंग हो तो अपराध नहीं होगा। गलती नहीं करेंगे, भगवान् का विस्मरण नहीं होगा। वह बार-बार पिंच करेंगे आकर के। तो इस प्रकार सदा उनको अपने साथ मानो और उनके मिलन की परम व्याकुलता बढ़ाओ।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन -भाग 240
साधक का प्रश्न ::: साधक सिद्ध अवस्था तक पहुँचे इसकी क्या पहचान है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: अरे! साधक तो मायाबद्ध है। उसको स्वयं अनुभव में आ रहा है मैं अल्पज्ञ हूँ। कामी, क्रोधी, लोभी, मोही संसार में आसक्त हूँ और दुःख मिल रहा है अनेक प्रकार का। जब उसको अनंत आनंद मिल जायेगा तो उसको पता नहीं चलेगा? अरे ! जब थोड़ा-सा फरक पड़ता है और पता चल जाता है आदमी को कि हाँ, अब बड़ा तेज बुखार था, अब तो आराम है। ऐसा बोलता है वह। टेम्परेचर डाउन हो गया। एक सौ चार (104) टेम्परेचर था। हंड्रेड (100) पे आ गया, या दो पर आ गया तब भी वह कहता है अब आराम है - अब आराम है। तो जहाँ अनंत आनंद मिलेगा वहाँ किसी से पूछना पड़ेगा क्या, देखो भाई! अब मेरा क्या हाल है?
वो तो थोड़ा-थोड़ा अंतर तो चलता जायेगा उसको पहचानने में थोड़ी मुश्किल होती है - कि कल से आज में क्या चेंज हुआ हमारे अन्दर। कल भी हम निंदा सुन के बुरा मानते थे, आज भी निंदा सुन के बुरा मानते हैं, लेकिन लिमिट में क्या अंतर हुआ ये जानना ज़रा मुश्किल है हर एक के लिए। लेकिन जब वो पूरा समाप्त हो जायेगा तो वो तो गधा भी जान लेगा उसमें क्या है?
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
वास्तु शास्त्र का प्रयोग करके आप नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित करके जीवन की कई परेशानियों को हल किया जा सकता है। वास्तु में दिशाओं का बहुत महत्व माना जाता है। इसलिए घर का निर्माण करना हो या कोई सामान रखना हो वास्तु में हर चीज को लेकर नियम बताए गए हैं। वास्तु दोष होने से नकारात्मक ऊर्जा बढ़ने लगती है जिसके कारण नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होने लगता है। नकारात्मक ऊर्जा आपके जीवन में कई तरह की परेशानियां ला सकती है। वास्तु में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने के क्रिस्टल बॉल को लगाना बहुत शुभ माना गया है। इसे घर में या ऑफिस में लगाने से आपका भाग्योदय होता है। पारिवारिक कलह दूर होती है और व्यापार में लाभ प्राप्त होता है। तो चलिए जानते हैं। वास्तु में क्रिस्टल को नेगेटिव एनर्जी को दूर करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। क्रिस्टल लगाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है। इसे घर के मुख्य द्वार पर लगाना सबसे उचित माना गया है।
वहीं अगर आपके घर में बच्चे हैं और उनका पढ़ाई में मन नहीं लगता है तो क्रिस्टल बॉल को उनकी पढ़ाई करने के कमरे में लगा सकते हैं। इससे बच्चे का पढ़ाई के प्रति रूझान बढ़ेगा।
शयन कक्ष में क्रिस्टल बॉल को लगाने से दाम्प्त्य जीवन और भी मधुर बनता है। जिन पति पत्नी के बीच अक्सर झगड़े की स्थिति बनी रहती है, तो उन्हें अपने कमरे में क्रिस्टल बॉल जरूर लगानी चाहिए। इससे जल्दी ही आपको सुधार देखने का मिलेगा।
घर की बालकनी में क्रिस्टल बॉल इस तरह से लगानी चाहिए कि उसके ऊपर सूर्य की रोशनी पड़ती रहे। इससे आपके घर में कलह कम हो जाती है। घर के सदस्यों के बीच आपसी प्रेम और सद्भावना की भावना भी बढ़ती है। यदि घर में सूरज की किरणें नहीं आती हैं तो क्रिस्टल बॉल को कुछ देर धूप में रखने के बाद लगाएं।
यदि आप अपने ऑफिस, व्यापार स्थल पर क्रिस्टल लगाते हैं तो आपके लिए व्यापार और नौकरी में उन्नति भी प्राप्ति होती है। व्यापार में लाभ पाने के लिए अपने कार्यस्थल पर क्रिस्टल बॉल लगानी चाहिए।
कैसे लगाएं क्रिस्टल बॉल
जब भी आपको घर या फिर कार्यस्थल पर क्रिस्टल को लगाना हो तो उसे कुछ दिनों तक नमक के पानी डुबों कर रखना चाहिए। बाद में उसे पानी से बाहर निकालकर साफ कर लें और सूर्य की रोशनी में रखें। इससे शुभ परिणाम प्राप्त होते हैं। -
बुध 31 मार्च की मध्यरात्रि मीन राशि में प्रवेश कर रहे हैं। ये इनकी नीचसंज्ञक राशि है। नीचराशि में प्रवेश के साथ ही इनके गुण दोषों में वृद्धि हो जाती है इसलिए इनसे संबंधित उपाय आवश्यकता अनुसार कर लेना चाहिए। ये जातक को बैंकिंग के क्षेत्र, बीमा, आईटी, लेखन, शल्यचिकित्सा, न्याय के क्षेत्र, शिक्षण, प्रकाशन, राजनीति, आर्थिक सलाहकार तथा इंश्योरेंस के सेक्टर में अच्छी सफलता दिलाते हैं। ये सूर्य के सबसे नजदीकी ग्रह हैं। जब भी इनकी सूर्य के साथ युति होती है तो बुधादित्य योग का निर्माण होता है। जन्मकुंडली में जब ये अपने घर में केंद्र अथवा त्रिकोण में होते हैं तो भद्रयोग का निर्माण करते हैं जिसके फलस्वरूप जातक कार्यक्षेत्र में अत्यधिक सफलता और समाज में मान-सम्मान और प्रतिष्ठा पाता है।
ज्योतिषाचार्य के अनुसार जन्मकुंडली के अलग-अलग भाव में बुध का फल-
प्रथम भाव-
जिनकी जन्मकुंडली में बुध प्रथम भाव में हों तो ऐसा जातक बुद्धिमान, सौम्य स्वभाव वाला, वाणी कुशल, शारीरिक सौंदर्य से परिपूर्ण, मिलनसार और समाज में लोकप्रिय होता है। उसकी तर्कशक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान के लोग कायल रहते हैं।
द्वितीय भाव
जन्मकुंडली के द्वितीय भाव में विराजमान बुध जातक को आर्थिक रूप से सफल बनाते हैं। आकस्मिक धन प्राप्ति का योग बनता है। अपनी वाणी कुशलता और कुशल नेतृत्व के बल पर ऐसा व्यक्ति सामाजिक पद प्रतिष्ठा हासिल करता है।
तृतीय भाव-
इस भाव में बुध के विराजमान रहने से जातक को भाई बहनों का विशेष स्नेह मिलता है। ऐसे लोग धार्मिक और सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। वे दूसरों के लिए हमेशा समर्पित रहते हैं। अपने लिए ज्यादा कुछ नहीं करते।
चतुर्थ भाव
इस भाव में बुध के विराजमान रहने से जातक स्वयं के बल पर संपत्ति अर्जित करता है। अपने ही धन के द्वारा मकान-वाहन का सुख भोगता है। उसे किसी कारणवश पारिवारिक कलह और मानसिक अशांति का सामना भी करना पड़ता है।
पंचम भाव
इस भाव में बुध के विराजमान रहने से जातक प्रखर बुद्धि का स्वामी होता है। ऐसे लोग निति और शिक्षा के क्षेत्र में कई मील स्तंभ स्थापित करते हैं। इनकी संताने भी बुद्धिमान, विद्या में कुशल और कार्य-व्यापार में पूर्णरूप से सफल रहती हैं।
छठा भाव
इस भाव में बुध के विराजमान रहने से जातक के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है उसके गुप्त शत्रुओं की अधिकता रहती है और उसे कोर्ट कचहरी के मामलों में भी जूझना पड़ता है। अपने ही लोग नीचा दिखाने की कोशिश में लगे रहते हैं।
सप्तम भाव
इस भाव में बुध अत्यंत शुभफल देते हैं। दांपत्य जीवन भी सुखद रहता है और अपने घर में बुध विराजमान हो तो ससुराल पक्ष से भी सहयोग मिलता है। जातक लंबी आयु वाला, जनप्रिय, प्रसिद्ध, कुशल व्यवसायी, वक्ता, लेखक और चिंतक होता है।
अष्टम भाव
इस भाव में बुध का फल काफी मिलाजुला रहता है। व्यक्ति को पूर्णरूप से भौतिक सुख की प्राप्ति होती है। सामाजिक पद प्रतिष्ठा बनी रहती है किंतु स्वास्थ्य संबंधी चिंता रहती है। चर्म रोग, पेट तथा हड्डियों के रोग का भय बना रहता है।
नवम भाव
इस भाव में बुध के विराजमान होने से जातक देश-विदेश से सम्बंधित व्यापार करने वाला धर्मशास्त्रों का ज्ञाता, गणितज्ञ और प्रशासनिक कार्यों में ख्याति प्राप्त करता है। अपने साहस और पराक्रम के बल पर ऐसे लोग कामयाबियों के चरम तक पहुंचते हैं।
दशम भाव
इस भाव में बुध विराजमान हों तो व्यक्ति बहुमुखी प्रतिभा का धनी होता है। वह मिलनसार न्याय और कानून के मामलों में दक्ष, अर्थशास्त्री तथा कुशल प्रबंधन वाला होता है। ऐसे लोगों को माता-पिता का पूर्णसुख और अधिक संपत्ति मिलती है।
एकादश भाव
इस भाव में बुध विराजमान हों तो जातक व्यापार के क्षेत्र में अच्छी सफलता हासिल करता है। कुशल प्रबंधन, प्रकाशन के क्षेत्र और कानूनी सलाहकार के रूप में ऐसे लोग अधिक सफल रहते हैं। परिवार के वरिष्ठ सदस्यों और भाइयों से भी सहयोग मिलता है।
द्वादश भाव
इस भाव में बुध विराजमान हों तो जातक अत्यधिक भागदौड़ करता है। वह कार्य कुशल होता है। विदेशी कंपनियों में नौकरी या विदेश से भाग्योदय की संभावना सर्वाधिक रहती है। स्वास्थ्य के प्रति ऐसे लोगों को निरंतर चिंतनशील रहना चाहिए।
बुध का मुख्य रत्न
इनके प्रभाव में सर्वाधिक वृद्धि करने वाला रत्न पन्ना है। यह हरे रंग का स्वच्छ, पारदर्शी, कोमल, चिकना व चमकदार होता है। विद्या बुद्धि धन एवं व्यापार के मामलों में इसे अत्यधिक लाभप्रद माना जाता है।
धारण विधि
पन्ना धारण करने के लिए शुक्ल पक्ष में बुध के नक्षत्र अश्लेषा, जेष्ठा, रेवती अथवा बुध की होरा में हाथ की सबसे छोटी अंगुली में सोने की धातु में ? ब्रां, ब्रीं, ब्रौं स: बुधाय नम: मंत्र का जप करते हुए धारण करना चाहिए।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 239
महापुरुष तथा भगवान के द्वारा किये जाने वाले कार्यों की अलौकिकता एवं दिव्यता के संबंध में जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा मार्गदर्शन ::::::
(आचार्य श्री की वाणी यहाँ से है...)
...यदि महापुरुष अथवा भगवान के कार्य लौकिक बुद्धि के आधार पर ही तौले जा सकें, तब तो महापुरुष एवं भगवान् भी गुणातीत, लोकातीत, शुभाशुभ-कर्मातीत, बुद्धि-अतीत न रह जायगा। अतएव आस्तिक विचारशील व्यक्ति को उन लोकातीत अचिन्त्य महापुरुषों के कार्यों पर लौकिक बुद्धि से विचार न करना चाहिये, अन्यथा सब किया-कराया मटियामेट हो जायगा। साथ ही यह भी अत्यन्त विचारणीय बात है कि उनकी उपमा मायिक जीव को भूलकर भी अपने मिथ्याहंकार युक्त निकृष्ट कर्मों में न देनी चाहिये। महापुरुषों के कार्य, भगवान के संकल्पों से सम्बद्ध होने के कारण मंगलमय होते हैं, भले ही वे कार्य देखने में प्राकृत प्रतीत हों।
ईश्वराणां वचः सत्यं तेषामाचरितंक्वचित्।(भागवत 10-33-32)
अर्थात् महापुरुष के आदेश माननीय हैं उनका आचरण तो कहीं-कहीं ही मान्य होता है। महापुरुष एवं उसका कार्य सदा ही परम पवित्र है। महापुरुष के कार्य तो 'योगक्षेमं वहाम्यहम्' इस गीता के सिद्धांतानुसार भगवान के द्वारा ही होते हैं
मयि ते तेषु चाप्यहम् - इस गीता के सिद्धांतानुसार जब भगवान भक्त में रहता है, एवं भक्त भगवान में रहता है, तब फिर महापुरुषों का कार्य भगवत्कार्य ही तो है। यथा राजा तथा प्रजा के अनुसार भगवान एवं महापुरुष दोनों ही के कार्य अचिन्त्य हैं। अतएव हम लोकातीत, गुणातीत, मायातीत, भगवत्स्वरूप महापुरुषों के आचरणों पर अपनी सीमित, लौकिक, मायिक बुद्धि लगा कर अपने पागलपन का परिचय न दें। हम केवल उनके आदेशों का ही पालन करें। अन्यथा उनके खिलवाड़ में पड़कर हम नष्ट हो जायेंगे।
-- भक्तियोगरसावतार जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - कड़ाही और तवा रसोई घर का अहम हिस्सा होते हैं। रोटी, पराठे के लिए तवा और सब्जियों के लिए कड़ाही का इस्तेमाल किया जाता है। तवा जहां लोहे का होता है, तो कहाड़ी सीमेंट-मिश्रित लोहे, एल्युनियम और लोहे से बनी होती हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार तवा और कहाड़ी का इस्तेमाल करते समय कुछ सावधानियां बरती जानी चाहिए। इससे कई समस्याओं का समाधान अपने आप ही हो जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार तवा और कढ़ाही का संबंध राहु से माना जाता है। यदि रसोई में काम करते समय तवा और कढ़ाही का प्रयोग करते समय सावधानी न बरती जाए तो कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं। इसलिए इनके इस्तेमाल के समय कुछ सावधानियां बरतें-हमेशा साफ करके रखेंकई बार रोटी या सब्जी बनाने के बाद कढ़ाही और तवे को ऐसे ही रखकर छोड़ देते हैं। ऐसा करना सही नहीं रहता है। इससे घर के मुखिया की सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। रात के समय भूलकर भी तवे और कढ़ाही को कभी भी सिंक में रखकर नहीं छोडऩा चाहिए। अन्यथा जातक को राहु के प्रकोप के कारण कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए तवा या कढ़ाही का प्रयोग करने के बाद उसे अच्छे से साफ करके सुखाकर रखना चाहिए।तवा और कढ़ाई भूलकर भी न रखें ऐसेअक्सर देखने में आता है कि ज्यादातर लोग तवे और कढ़ाही को उल्टा करके रखते हैं, लेकिन वास्तुशास्त्र कहता है कि तवे या कढ़ाही को कभी भी उल्टा नहीं रखना चाहिए। इसके साथ ही कभी भी तवे या कढ़ाही को चूल्हे के ऊपर रखकर नहीं छोडऩा चाहिए। इसलिए सब्जी या फिर रोटी बनाने के बाद कढ़ाही और तवे को चूल्हे से उतारकर साफ करके रख देना चाहिए। जहां पर आप खाना बनाते हैं, ये दोनों चीजें वहां पर दांयी ओर रखें।नुकीली चीजों से न खुरचे तवा और कढ़ाहीकभी-कभी खाना बनाते समय कढ़ाही और तवा में चिकनाई और मसाले आदि जम जाते हैं जिसे लोग नुकीली चीजों से खुरचकर साफ करते हैं। वास्तुशास्त्र के अनुसार यह सही नहीं रहता है। इससे घर में नकारात्मकता बढ़ती है।स्वास्थ्य के लिहाज से सब्जियां बनाते समय लोहे या फिर सीमेंट मिश्रित कहाड़ी का ही इस्तेमाल करना चाहिए। एल्युमिनियम की कहाड़ी का इस्तेमाल कभी नहीं करना चाहिए। एल्युमिनियम स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इसके बर्तनों में खाना पकाने से बचना चाहिए।
- 'होली महामहोत्सव 2021'पर समस्त भगवत्प्रेमी जनों को हार्दिक शुभकामना!!
भूमिका ::: आज होली का महापर्व है। 'जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' के आज के 238 वें भाग में जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'होली' के सम्बन्ध में रचित दोहा तथा इसके माहात्म्य पर उनके द्वारा निःसृत प्रवचन के कुछ अंशों द्वारा वास्तविक होली मनाने के विषय में ज्ञान प्राप्त करेंगे। 'होली' पर श्री कृपालु जी महाराज ने अनगिनत दोहों व पदों की रचना की है, उन सबका वर्णन यहाँ संभव नहीं है, अतः सबके आत्मिक लाभार्थ कुछ अंश प्रस्तुत किये गये हैं :::
०० जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'होली' के संबंध में रचित दोहा तथा उसका सरलार्थ :::
सब पर्व लक्ष्य एक गोविंद राधे,जग ते हटा के मन हरि में लगा दे..(सभी पर्वों का एकमात्र लक्ष्य यही होता है कि हम अपना मन संसार से हटाकर भगवान में लगाने का अभ्यास करें.)
ऐसा रंग डारो श्याम गोविंद राधे,तनु ही न मन श्याम रंग में डुबा दे..(जीवात्मा भगवान श्रीकृष्ण से कहती है कि हे श्यामसुन्दर! मुझे सांसारिक रंगों की चाह नहीं है, मेरी तो कामना यही है कि आप मुझ पर अपने प्रेम का ऐसा रंग डालें जिसमें मेरा तन ही नहीं, अपितु सर्वस्व ही आपके प्रेम-रंग में रँग जाय.)
०० जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'होली-माहात्म्य' या 'होली के उद्देश्य' के संबंध में दिये गये प्रवचन का एक भाग :::
'..होली और भक्ति पर्यायवाची ही मानना चाहिए. होली का पर्व निष्काम प्रेम का पर्व है। भक्ति की विजय का द्योतक है। भक्त शिरोमणि प्रह्लाद की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान् ने नृसिंह अवतार लेकर हिरण्यकशिपु राक्षस का संहार किया जो केवल राक्षस ही नहीं था, इतना बड़ा तपस्वी था कि उसके तप से स्वर्गलोक भी जलने लगा था। किन्तु इतना बड़ा तपस्वी भी भक्ति से हार मान गया। अतः प्रह्लाद चरित्र यह सिद्ध करता है कि समस्त ज्ञान-योग आदि से भी अनंत गुना उच्च स्थान है भक्ति का। इसी खुशी में यह उत्सव मनाया जाता है। उत्सव मनाने का ढंग लोगों ने अनेक प्रकार से अपना लिया। होली मनाने का सर्वश्रेष्ठ ढंग यही है कि रूपध्यान युक्त श्री राधा कृष्ण नाम, रुप, लीला, गुण, धाम, जन का गुणगान करुणक्रन्दन करते हुए किया जाय...'
०० जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'होली-माहात्म्य' या 'होली के उद्देश्य' के संबंध में दिये गये प्रवचन का दूसरा भाग :::
'..अधिकतर लोग यही समझते हैं कि रंग, गुलाल से खेलना, हुड़दंगबाजी करना, तरह तरह के स्वादिष्ट व्यंजन खाना यही होली मनाने से तात्पर्य है। वास्तव में होली का पावन पर्व श्रीकृष्ण की निष्काम अनन्य भक्ति का पर्व है। होली मनाने का अभिप्राय ही है प्रह्लाद चरित्र को समझते हुए उनके भक्ति सम्बन्धी सिद्धान्तों का अनुसरण करना। अत: होली मनाने का सर्वश्रेष्ठ ढंग यही है कि रूपध्यान युक्त श्री राधा कृष्ण नाम, रूप, लीला, गुण, धाम, जन का गुणगान करुणक्रन्दन करते हुये किया जाय। अहर्निश भगवन्नाम संकीर्तन ही होली महोत्सव है। यही कलयुग में भगवत्प्राप्ति का सर्वश्रेष्ठ साधन है..'
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - ज्योतिष में नवग्रहों में से सूर्यदेव को राजा का दर्जा दिया गया है। सूर्य के प्रकाश से ही पृथ्वी पर जीवन संभव है। भगवान सूर्य नारायण प्रकृत्ति के संचालक हैं। रविवार का दिन सूर्य उपासना के लिए सबसे उत्तम माना गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में मजबूत सूर्य से जहां जातक को समाज में मान-सम्मान की प्राप्ति होती है तो वहीं कुंडली में सूर्य की कमजोर स्थिति के कारण जातक को समस्याओं का सामना करना पड़ता है, इसस मान-प्रतिष्ठा को ठेस लग सकती है, पिता के साथ आपके संबंधों में दरार आ सकती है। इसके साथ ही व्यक्ति को कमजोर सूर्य के कारण उच्च पद पर बैठे लोगों के गुस्से का शिकार होना पड़ सकता है, इसलिए कुंजली में सूर्य का मजबूत होना आवश्यक होता है। यदि कुंडली में सूर्य कमजोर है तो उसे मजबूत बनाने के लिए रविवार के दिन जल देने के साथ ही कुछ चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए।मसूर की दालमसूर की दाल का रंग लाल होता है इसमें मांस से अधिक प्रोटीन की मात्रा पाई जाती है। यही कारण है कि लोगों इस दाल को कभी भी देवी-देवताओं को अर्पित नहीं करते हैं। रविवार के दिन भी मसूर की दाल का सेवन वर्जित माना जाता है।प्याज-लहसुनभारतीय व्यंजनों में प्याज और लहसुन का प्रयोग खूब किया जाता है, लेकिन इन दोनों ही चीजों तामसिक माना गया है। यही कारण है कि किसी भी धार्मिक कार्य के लिए सात्विक भोजन बनाते समय उसमें लहसुन प्याज का उपयोग नहीं किया जाता है। यदि आपकी कुंडली में सूर्य कमजोर है तो रविवार को लहसुन प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए। माना जाता है कि रविवार के दिन लहसुन प्याज का सेवन करने से जातक सूर्यदेव के क्रोध के भागी बन सकता है। जिससे आपके पिता के साथ रिश्ते में कटुता आने के साथ ही समाज में सम्मान को हानि पहुंच सकती है।लाल रंग का सागरविवार के दिन दिन लाल रंग का साग खाना वर्जित माना गया है, क्योंकि वैष्णव धर्म में इस तरह के मिश्रित अल्पकालिक बारहमासी पौधे को मृत्यु का प्रतीक माना गया है। इसके साथ ही यदि किसी की कुंडली में सूर्य कमजोर हो तो उसे रविवार के नमक का सेवन नहीं करना चाहिए।
- 'श्री चैतन्य-महाप्रभु जयंती'गौर पूर्णिमा, 28 मार्च 2021(पावन स्मरण-लेख)
धनि गौरांग धनि उन परिजन,धनि धनि नदिया ग्राम रे..भजु गौरांग भजु गौरांग, भजु गौरांगेर नाम रे..(श्री कृपालु महाप्रभु विरचित 'ब्रज रस माधुरी' ग्रंथ में)
आज कलियुग में अवतरित हुये प्रेमावतार श्री चैतन्य महाप्रभु जी की जयन्ती है। आप सभी को इस महापर्व की हार्दिक शुभकामनाएं। आइये इस परम पुनीत पर्व पर उन श्री चैतन्य महाप्रभु जी के श्रीचरणों में प्रेम भरा प्रणाम अर्पित करें..
- जो स्वयं श्रीराधाकृष्ण के मिलित अवतार हैं और 'गौरांग' के नाम से जाने गये..
- जिन्होंने बंगाल के 'नदिया' ग्राम में शचीमाता की गोद में लगभग 500 वर्ष पूर्व अवतार ग्रहण किया (फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा, सन 1486)
- श्री अद्वैताचार्य जी की प्रार्थना पर जिन्होंने अवतार लेकर राधाभाव को अंगीकार किया और कलियुग में 'हरिनाम संकीर्तन' का आविष्कार किया..
- समस्त भारतवर्ष में 'हरे राम महामंत्र' और 'हरि बोल' संकीर्तन के माध्यम से सभी को कृष्णप्रेम में सराबोर किया..
- जिन्होंने अपने अन्य समस्त परिकरों यथा; रुप-जीव तथा सनातन गोस्वामी सहित षड्गोस्वामी तथा हरिदास आदि भक्तों के माध्यम से ब्रज-वृन्दावन के विलुप्तप्राय लीलास्थलों को खोजा..
- जिन्होंने सदैव समस्त जीवों से एकमात्र 'हरिनाम' की भिक्षा माँगी, 'हरि बोल' 'हरि बोल' के दिव्य संकीर्तन तथा नृत्य के द्वारा सभी के हृदयों में बरबस भगवत्प्रेम का संचार किया..
- जिन्होंने अपने अवतार काल में शस्त्र नहीं उठाया अपितु एकमात्र 'प्रेम' के द्वारा दुष्टों तथा महापापियों को भी भगवत्प्रेमरस प्राप्ति का अधिकारी बनाया..
- 'अष्टपदी' आदि ग्रंथों में जिन्होंने जीवों को कृष्णप्रेम प्राप्ति के अनमोल सिद्धान्त दिये और स्वयं अपने जीवन के पग-पग पर उसका आचरण करके सिखाया भी..
- जिन्होंने नित्यानंद, श्रीवास आदि भक्तवृन्दों के मध्य हरिनाम संकीर्तन, तथा श्रीजगन्नाथ जी के रथयात्रा में दिव्य महाभाव स्वरुप के दर्शन कराये..
- अवतारकाल के अंतिम 12 वर्ष जो जगन्नाथपुरी धाम के 'गम्भीरा' नामक छोटे से संकरे स्थल (कमरा) में दिव्य 'राधाभाव' में विरहाकुल होकर रोते रहे और श्रीजगन्नाथ जी में ही सशरीर समाकर अपनी 'प्रेमावतार' लीला को विराम दिया..
- सत्य यह है..अद्यापिह सेइ लीला करे गौर राय,कोन कोन भाग्यवान देखिवारे पाय..उनकी लीला तो आज भी और अनंतकाल तक अहर्निश चलती रहेगी, प्रेमी-हृदय और रसिक-मन ही उन लीलाओं के दिव्य-दर्शन पा सकता है..
- 'हरि अनंत हरि कथा अनंता' के अनुसार उनकी महिमा अनंत है. सार बात यह है कि उनके पावन प्रेममय चरित्र का स्मरण करके अपने हृदयों में राधाकृष्ण की प्रेम और सेवाप्राप्ति का संकल्प जगायें...
...श्री गौरांग महाप्रभु तथा उनके परिकर धन्य हैं, उन सबकी बारंबार वंदना है, जय है, जय है, जय है.. जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने अपने साहित्यों तथा संकीर्तनों में श्री गौरांग महाप्रभु जी की स्तुति की है तथा उनके गुणों व कृपाओं का भी सरस वर्णन किया है। जिस संकीर्तन परम्परा को गौरांग महाप्रभु ने आरम्भ किया, उसी महान परम्परा को जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज ने भी आगे बढ़ाया तथा भगवान के नाम, रूप, लीला, गुण, धाम आदि युक्त सरस पद-संकीर्तनों द्वारा प्रेम-पिपासु जीवात्माओं को आनन्द प्रदान किया।
धन्य है यह भारतभूमि!! जहाँ भगवान तथा उनके अनन्य प्रेमीजनों के चरणों का स्पर्श है। हम उन प्रेमीजनों के पथ का अनुगमन करें, उनके आदेशों तथा निर्देशों का पालन करें और अपने हृदयों में भगवान के प्रति अनन्य निष्काम प्रेम विकसित करने का अभ्यास करें और उनसे प्रेम करते हुये उनकी नित्य सेवा प्राप्त कर लें, यही समस्त भगवत्प्रेमियों की हमसे महान आशा है!!
०० स्मरण लेख (पर्व-विशेष)०० सन्दर्भ ::: 'ब्रज रस माधुरी' भाग - 1०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।