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- हर कोई अमीर बनना चाहता है लेकिन पैसों की तंगी पीछा ही नहीं छोड़ती है. यदि आपके साथ भी ऐसा ही होता है तो खरमास में कुछ उपाय कर लें. ये उपाय पैसों की तंगी से निजात दिलाने में बहुत कारगर हैं. खरमास 16 दिसंबर से शुरू हो गया है और 14 जनवरी 2022 तक रहेगा. इस दौरान सूर्य धनु राशि में रहेंगे और उनके कमजोर होने के कारण शुभ काम वर्जित रहेंगे. लेकिन इस एक महीने में किए गए कुछ खास काम आपको मालामाल कर सकते हैं.पैसों की तंगी से निजात पाने के उपायएकादशी का व्रत: पैसों की तंगी दूर करने के लिए सबसे अहम चीज है कि मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहे. इसके लिए भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करना, एकादशी का व्रत करना बहुत लाभ पहुंचाता है. खरमास में एकादशी का व्रत करना बहुत लाभ पहुंचाता है. इससे मृत्यु के बाद मोक्ष भी मिलता है और जीवन में सुख-समृद्धि-खुशहाली आती है. यदि सफलता पाना चाहते हैं तो हमेशा एकादशी का व्रत करें.पीपल के पेड़ की पूजा: खरमास में पीपल के पेड़ की पूजा करना बहुत पुण्य और लाभ देता है. शाम के समय पीपल के पेड़ के नीचे दीपक भी लगाना चाहिए. इससे सारी परेशानियां दूर होती हैं और कुछ ही दिन में आर्थिक स्थिति पर फर्क नजर आने लगता है.लक्ष्मी जी की पूजा: वैसे तो तुलसी के पौधे पर जल चढ़ाना, उसकी पूजा करना, शाम को दीपक लगाना ढेरों फायदे देता है. लेकिन खासतौर पर खरमास में ऐसा करना आपके और पूरे परिवार के लिए खुशियां लाएगा. इससे मां लक्ष्मी भी कृपा करती हैं.लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ: धन की देवी मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए लक्ष्मी स्तोत्र का पाठ करना बहुत फायदा देता है. यह पाठ अपार धन दिलाने वाला और खूब सफलता दिलाने वाला है.-
- साल 2021 जाने वाला है और नया साल शुरू होने वाला है. यदि आप भी चाहते हैं कि आने वाला साल आपके लिए बेहद सफलतादायी साबित हो तो इसके लिए एक बहुत अच्छा मौका मिलने वाला है. 30 दिसंबर को सफला एकादशी है. इस दिन एक खास काम करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और खूब तरक्की देते हैं. सफलता पाने के उपाय करने के लिए इस दिन को बेहद खास माना गया है. इसके अलावा यह साल 2021 की आखिरी एकादशी भी है....इसलिए कहते हैं सफला एकादशीपौष महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहते हैं. धर्म और ज्योतिष के मुताबिक इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति को हर काम में सफलता मिलती है. इस दिन व्रत-पूजा करने वालों पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा रहती है. पुराणों के मुताबिक महाभारत से पहले पांडवों ने भी सफला एकादशी का व्रत किया था.ये है शुभ मुहूर्त और पूजा विधिसफला एकादशी 29 दिसंबर की दोपहर 04:12 बजे से शुरू होगी और 30 दिसंबर की दोपहर 01:40 बजे तक रहेगी. यानि कि पूजा करने के लिए शुभ समय दोपहर 1 बजे से पहले रहेगा. लेकिन व्रत का पारणा 31 दिसंबर को सुबह 07:14 बजे से 09:18 मिनट तक रहेगी. सफला एकादशी के दिन व्रती को सुबह स्नान करने के बाद भगवान विष्णु के दर्शन करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए. इस व्रत में भगवान विष्णु के अच्युत रूप की पूजा करना सबसे ज्यादा शुभ माना गया है.पूजन के लिए भगवान को हल्दी-अक्षत अर्पित करें. फिर धूप-दीप दिखाएं. फल, पंचामृत, नारियल, सुपारी, आंवला, अनार और लौंग आदि अर्पित करें. कोशिश करें कि व्रत के दिन ज्यादा से ज्यादा समय तक श्री हरि का नाम भजें. इसके अलावा व्रत के अगले दिन गरीबों को भोजन कराएं.
- मार्ग शीर्ष शुक्ल पक्ष त्रयोदशी 16 दिसम्बर 2021 दिन गुरुवार को दिन में 2:27 बजे, ग्रहो में राजा की पदवी प्राप्त सूर्य देव का गोचरीय संचरण मूल नक्षत्र एवं धनु राशि मे प्रारम्भ होगा। इसी के साथ खरमास हो जाएगा आरम्भ। विवाह आदि के लिए शुभ मुहूर्तों का हो जाएगा अभाव।एक संवत्सर में अर्थात एक वर्ष में बारह राशियों पर भ्रमण करते हुए सूर्य बारह संक्रांति करते हैं। सूर्य देव जब एक राशि से दूसरी राशि मे प्रवेश करते है तो यह स्थिति संक्रांति अर्थात गोचर कहलाती है। अपनी बारह संक्रांतियों के दौरान जहाँ सूर्य वर्ष में एक बार एक माह के लिए अपनी उच्च स्थिति में रहकर अपने सम्पूर्ण फल में उच्चता प्रदान करते हैं, और एक बार अपनी राशि सिंह में स्वगृही रहकर भी अपने सभी कारक तत्वों, आधिपत्य अर्थात प्रभावों में संपूर्णता प्रदान करते है तो, वही एक माह के लिए अपनी नीच स्थिति को प्राप्त करते हुए निम्न फल भी प्रदान करते हैं।शुक्र ग्रह की राशि तुला में सूर्य की स्थिति सबसे कमजोर होती है। अपने इसी स्वाभाविक संचरण के क्रम में जब सूर्य का गोचरीय संचरण देव गुरु बृहस्पति की राशियों धनु एवं मीन में होता है तब वह मास ,खरमास या धनुर्मास कहलाता है। खरमास में विवाह आदि महत्वपूर्ण शुभ कार्य नही किये जाते हैं परंतु भगवत आराधना की दृष्टिकोण से यह मास अति उत्तम मास होता है। इस प्रकार इस अवधि में जहाँ शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित रहते है वही आत्मचिन्तन और ईश आराधना के लिए श्रेष्ठ समय होता है। क्योंकि इन दोनों राशियों के तथा इस महिने के अधिपति देव गुरु बृहस्पति के होने से भगवद् भक्ति तथा शुभफल की प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम महिने के रूप में मान्य है।इस वर्ष 16 दिसम्बर दिन गुरूवार को सूर्य देव वृश्चिक राशि का परित्याग कर दिन में 2 बजकर 27 मिनट पर धनु राशि पर आरूढ़ हो जायेंगे और इसी के साथ ही खरमास आरम्भ हो जाएगा । सूर्य देव 14 जनवरी 2021 दिन शुक्रवार को रात में 8 बजकर 34 मिनट तक धनु राशि मे गोचरीय संचरण करते रहेंगे । इस प्रकार लगभग एक महीने तक सूर्यदेव धनु राशि पर गोचरीय संचरण करते रहेगे । तत्पश्चात 14 जनवरी दिन शुक्रवार को रात में 8 बजकर 34 मिनट पर धनु राशि को छोड़कर शनि देव की राशि मकर में प्रवेश करेगे। इसी के साथ एक महिने से चल रहे धनुर्मास अर्थात खरमास का समापन हो जाएगा। मकर राशि मे प्रवेश करने के साथ ही सूर्य देव उत्तरायण की गति प्रारम्भ करते है । और इसी के साथ विवाह आदि शुभ कार्यो के लिए शुभ मुहूर्त्त मिलने लगते है।खरमास में निम्न कार्य किये जा सकते हैंदो ग्रह ,सूर्य ,चन्द्रमा और बृहस्पति में से किसी दो ग्रहो का बल प्राप्त होने से पुंसवन, सीमन्तोन्यन, प्रसूति स्नान, जातकर्म, अन्नप्राशन, विपणीव्यापार, पशुओं की खरीद और विक्रय, भूमि क्रय- विक्रय, हलप्रवहण, धान्य स्थापन, भृत्य कर्मारम्भ, शस्त्रधारण, शय्या- उपभोग, आवेदन पत्र लेखन, इष्टिका निर्माण, इष्टिकादहन, रक्त वर्ण और कृष्ण वस्त्र धारण, रत्नधारण, जलयन्त्र- कर्म, मुकदमा सम्बन्धी कार्य, वाद्य कलारम्भ, शल्यकर्म, नृत्यकलारम्भ, धान्यछेदन, वृक्षारोपण, कार्यारम्भ, नौकरी प्रारम्भ,आभूषण निर्माण इत्यादि कार्य करने योग्य हैं ।अविहित अर्थात जो कार्य नही किये जा सकते हैं :-वरवरण, कन्यावरण, विवाह सम्बन्धी समस्त कार्य, वधूप्रवेश, द्विरागमन, गृहारम्भ, गृहप्रवेश, वेदारम्भ, उपनयन, मुण्डन, दत्तक पुत्र ग्रहण, विद्यारम्भ, देव प्रतिष्ठा, कर्णवेध, जलाशय- वाटिका आरम्भ इत्यादि कार्य अविहित हैं।
- सूर्य देव ने वृश्चिक राशि से धनु राशि में प्रवेश कर लिया है। ज्योतिष में सूर्य देव को सभी ग्रहों का राजा कहा जाता है। सूर्य के शुभ होने पर व्यक्ति का भाग्योदय हो जाता है। सूर्य देव 16 दिसंबर से 14 जनवरी 2021 तक धनु राशि में ही विराजमान रहेंगे। सूर्य को आत्मा, पिता, मान- सम्मान, सफलता, प्रगति एवं सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्र में उच्च सेवा का कारक ग्रह माना जाता है।मेष राशि-शुभ परिणाम प्राप्त होंगे।इस दौरान आप शत्रुओं पर विजय प्राप्त करेंगे।कार्यस्थल पर आपको मान-सम्मान प्राप्त होगा।आर्थिक स्थिति पहले से बेहतर होगी।स्वास्थ्य में सुधार होगा।वैवाहिक जीवन सुखद रहेगा।धन- लाभ होगा, जिससे आर्थिक पक्ष मजबूत होगा।मिथुन राशि-शुभ समाचार प्राप्त होंगे।इस दौरान पारिवारिक रिश्तों में मधुरता बढ़ेगी।नौकरी की तलाश कर रहे लोगों को शुभ परिणाम मिल सकता है।आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होगी।दांपत्य जीवन सुखद रहेगा।धन लाभ होगा, जिससे आर्थिक पक्ष मजबूत होगा।कर्क राशि-कर्क राशि के लिए यह समय शुभ कहा जा सकता है।धन से जुड़े मामलों में सफलता हासिल होगी।समाज में मान-सम्मान बढ़ेगा।पद- प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।निवेश करने का प्लान बना रहे हैं तो यह आपके लिए लाभकारी साबित होगा।लेन- देन के लिए समय शुभ है।
- हिंदू धर्म में पूजा आदि का अधिक महत्व है। तो वहीं पूजा करने के नियमों भी उतने ही खास माने जाते हैं। सनातन धर्म से संबंध रखने वाले लगभग लोग जानते ही होंगे कि पूजा में दीया जलाना आदि कितना महत्वपूर्ण माना जाता है। हिंदू धर्म में कोई भी पर्व हो किसी में मिट्टी में या फिर आटे के दीये प्रज्जवलित करने की परंपरा रही है। आज हम जानते हैं कि आटे के दीये जलाने के पीछे कौन सा धार्मिक कारण छिपा है।मान्यता है कि अन्य दीपकों की तुलना में आटे के दीप अधिक शुभ और पवित्र होता है। इस दीप को मां अन्नपूर्णा का आशीष स्वत: ही प्राप्त हो जाता है। माना जाता है कि देवी दुर्गा , पवनपुत्र हनुमान, देवों के देव महादेव भगवान शंकर, श्री हरि विष्णु, श्री राम, श्री कृष्ण के मंदिरों में आटे के दीपक जलाने से कामना की पूर्ति शीघ्र होती है। तो वहीं मुख्य रूप से तांत्रिक क्रियाओं में आटे के दीयों का उपयोग किया जाता है।अगर किसी के जीवन में निम्न संबंधी कोई परेशानी हो तो उसके निवारण के लिए आटे के दीप जलाने चाहिए। जैसे- कर्ज से मुक्ति, शीघ्र विवाह, नौकरी, बीमारी, संतान प्राप्ति , खुद का घर, गृह कलह, पति-पत्नी में विवाद, जमीन जायदाद, कोर्ट कचहरी म ेंविजय, झूठे मुकदमे तथा घोर आर्थिक संकट आदि।आटे के दीये प्रज्जवलित करने से पहले इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि वे घटती और बढ़ती संख्या में हों। एक दीप से शुरूआत कर उस 11 तक ले जाया जाता है। उदाहरण के तौर पर जैसे संकल्प के पहले दिन 1 फिर 2, 3, ,4 , 5 और 11 तक दीप जलाने के बाद 10, 9, 8, 7 ऐसेफिर घटतेक्रम में दीप लगाए जाते हैं।आटे में हल्दी मिला व गुंथ कर हाथों से उसे दीप का आकार दिया जाता है। फिर उसमें घी का तेल डाल कर बत्ती सुलगाई जाती है। ज्योतिष शास्त्री के अनुसार मन्नत पूरी होने के बाद एक साथ आटे के सारे संकल्पितदीये मंदिर में जाकर लगाने चाहिए। ध्यान रखें कि अगर दीप की संख्या पूरी हो ने से पहले ही कामना पूरी हो जाए तो क्रम को खंडित न करें। संकल्प के अनुसार ही सारे दीये जलाएं।---------
- भारत में दो विश्वप्रसिद्ध सूर्य मंदिर हैं। एक है, देश के पूर्वी छोर पर उड़ीसा राज्य में स्थित प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर और दूसरा है, देश के पश्चिमी छोर पर गुजरात राज्य में पाटन से 30 किलोमीटर दक्षिण में स्थित मोढेरा सूर्य मंदिर। मेहसाणा जिले में पुष्पावती नदी के किनारे स्थित यह मंदिर अपने उत्कृष्ट वास्तुशिल्प के लिए विश्व में प्रसिद्ध है।पूरे मंदिर में उत्कीर्ण नक्काशी परम्परा और धार्मिक आस्था का नायाब समन्वय है। यह मंदिर एक समय में पूजा-अर्चना, नृत्य और संगीत से भरपूर जाग्रत मंदिर था। पाटन, गुजरात के सोलंकी शासक सूर्यवंशी थे और सूर्यदेव को कुलदेवता के रूप में पूजते थे। इसलिए सोलंकी राजा भीमदेव ने सन 1026 ईस्वी में इस सूर्य मंदिर की स्थापना कराई थी।इस मंदिर का न्याधार (स्तंभ के नीचे की चौकी) उल्टे कमल पुष्प के समान है। उल्टे कमल रूपी आधार के ऊपर लगे फलकों पर असंख्य हाथियों की मूर्तियां बनी हुई हैं। इसे गज पेटिका कहा जाता है। इन्हें देख ऐसा प्रतीत होता है, मानो असंख्य हाथी अपनी पीठ पर सूर्य मंदिर को धारण किए हुए हैं। मंदिर की संरचना ऐसी की गई है कि विषवों के समय, यानी 21 मार्च व 21 सितम्बर के दिन सूर्य की प्रथम किरणें गर्भगृह में स्थित मूर्ति के ऊपर पड़ती हैं। यह मंदिर तीन मुख्य भागों में बंटा है। प्रथम भाग है- गर्भगृह तथा एक मंडप से सुसज्जित मुख्य मंदिर, जिसे गूढ़ मंडप भी कहा जाता है। अन्य दो भाग हैं- सभा मंडप और एक बावड़ी। जब मंदिर का प्रतिबिम्ब इस बावड़ी के जल पर पड़ता है, तब वह दृश्य सम्मोहित कर देता है। बावड़ी की सीढ़ियां अनोखे ज्यामितीय आकार में बनाई गई हैं। सीढ़ियों पर छोटे-बड़े 108 मंदिर बने हैं। इनमें कई मंदिर भगवान गणेश और शिव को समर्पित हैं। सूर्य मंदिर के ठीक सामने की सीढ़ियों पर शेषशैया पर विराजमान भगवान विष्णु का मंदिर है। एक मंदिर शीतला माता का भी है। मंदिर के गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा पथ है। इसका सभामंडप एक अष्टभुजीय कक्ष है। इसमें 52 स्तंभ हैं, जो वर्ष के 52 सप्ताहों को दर्शाते हैं।कैसे पहुंचेंनिकटतम हवाई अड्डा अहमदाबाद है। निकटतम रेलवे स्टेशन अहमदाबाद है, जो लगभग 102 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। अहमदाबाद से ही यहां के लिए बस व टैक्सी की सुविधा उपलब्ध है।
- हिंदू धर्म में वास्तु शास्त्र का बहुत महत्व है। मकान मुख्य रूप से वास्तु सिद्धांतों को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं। यह प्राचीन भारतीय विज्ञान पारंपरिक मान्यताओं और मूल्यों के आधार पर सुरक्षित वास्तु नियमों को निर्धारित करता है, प्रत्येक नियम वास्तु कानून के अनुसार घर और उसके रहने वालों पर सीधा प्रभाव डालता है। वास्तु उपाय धन, स्वास्थ्य और रिश्तों की समस्याओं को दूर करने में मदद करते हैं, और नया घर, भवन या कार्यालय बनाते या खरीदते समय वास्तु सिद्धांतों को लागू करना बहुत महत्वपूर्ण है। यदि आपने अभी तक अपने घर में वास्तु लागू नहीं किया है और जीवन में समस्या का सामना कर रहे हैं, तो आप कुछ वस्तु टिप्स अपनाकर अपनी परेशानी दूर कर सकते हैं। तो चलिए आज हम जानते हैं घर के दक्षिण-पश्चिम दिशा के लिए वास्तु उपाय-दक्षिण पश्चिम दिशा के लिए वास्तु उपायघर के मुख्य द्वार के लिए घर के दक्षिण पश्चिम दिशा का उपयोग अनुचित माना जाता है, इसके नकारात्मक परिणाम होते हैं। हालांकि, वास्तु शास्त्र के अनुसार, दक्षिण पश्चिम दिशा के लिए वास्तु के उपाय नकारात्मक प्रभावों को कम करने और घर के चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाने में मदद कर सकता है।चूंकि घर के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में बड़े स्थान नुकसान पहुंचा सकते हैं, इसलिए इनसे बचना चाहिए। इसके बजाय, सकारात्मक ऊर्जा को प्रोत्साहित करने के लिए अपने घर के उत्तर-पूर्व क्षेत्र में खुली जगह बनानी चाहिए।सुनिश्चित करें कि घर के दक्षिण-पश्चिम कोने में भूमिगत पानी की टंकी न रखें। इसके बजाय, अपने घर के चारों ओर ऊर्जा का संतुलन बनाने के लिए घर के दक्षिण-पश्चिम की ओर एक ऊपरी पानी की टंकी का निर्माण करें।वास्तु के अनुसार हमेशा दक्षिण-पश्चिम कोने में अलमारी, वाशिंग मशीन और सोफे जैसे भारी सामान रखें। यह उपाय आपके घर के अंदर नकारात्मक ऊर्जा को जमा होने से रोकने में आपकी मदद करेगा।घर की दक्षिण-पश्चिम दिशा में शौचालय के दरवाजे हमेशा बंद रखने से नकारात्मक ऊर्जा आपके घर में प्रवेश नहीं करेगी।कभी भी दक्षिण-पश्चिम कोने में घर का विस्तार करने का प्रयास न करें क्योंकि दक्षिण-पश्चिम कोने में अतिरिक्त जगह नकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को बढ़ा सकती है। हालांकि, यदि कोई अन्य विकल्प नहीं है, तो आप दोष को ठीक करने के लिए दीवारों पर पीतल, लकड़ी या तांबे की वास्तु स्ट्रिप्स स्थापित कर सकते हैं।कभी भी दक्षिण-पश्चिम दिशा में बोरवेल न लगाएं। यदि ऐसा संभव न हो, तो इसे लाल रंग से रंग दें और इसके ऊपर राहु यंत्र स्थापित करें।
- हम जब किसी से मिलते हैं या किसी का अभिवादन करते हैं तो नमस्कार, प्रणाम या राम-राम कहते हैं। किसी को अभिवादन करना हमारी संस्कृति ही नहीं सभी संस्कृतियों का अभिन्न अंग है। और यह परम्पराएं किसी कारण से बनी होती है। जैसे किसी को राम-राम बोलने की परंपरा। पुराने समय में गांव हो या शहर सभी जगह अभिवादन हेतु भगवान का नाम लिया जाता था। आज भी कई गांव ऐसे हैं जहां एक दूसरे को अभिवादन करने के लिए राम-राम कहते हैं। लेकिन जरा सोचिए भगवान राम का नाम अभिवादन करते समय एक बार भी तो ले सकते हैं लेकिन ऐसा नहीं है। हम किसी को अभिवादन करते समय भगवान राम के नाम का उपयोग 2 बार किया जाता है। आखिर इसके पीछे का रहस्य क्या है। चलिए आपको बताते हैं।राम शब्द की व्युत्पत्तिराम शब्द संस्कृत के दो धातुओं, रम् और घम से बना है। रम् का अर्थ है रमना या निहित होना और घम का अर्थ है ब्रह्मांड का खाली स्थान। इस प्रकार राम का अर्थ सकल ब्रह्मांड में निहित या रमा हुआ तत्व यानी चराचर में विराजमान स्वयं ब्रह्म। शास्त्रों में लिखा है, “रमन्ते योगिनः अस्मिन सा रामं उच्यते” अर्थात, योगी ध्यान में जिस शून्य में रमते हैं उसे राम कहते हैं।अभिवादन के समय राम नाम 2 बार क्यों बोलते हैं'राम-राम' शब्द जब भी अभिवादन करते समय बोल जाता है तो हमेशा 2 बार बोला जाता है। इसके पीछे एक वैदिक दृष्टिकोण माना जाता है। वैदिक दृष्टिकोण के अनुसार पूर्ण ब्रह्म का मात्रिक गुणांक 108 है। वह राम-राम शब्द दो बार कहने से पूरा हो जाता है,क्योंकि हिंदी वर्णमाला में ''र" 27वां अक्षर है।'आ' की मात्रा दूसरा अक्षर और 'म' 25वां अक्षर, इसलिए सब मिलाकर जो योग बनता है वो है 27 + 2 + 25 = 54, अर्थात एक “राम” का योग 54 हुआ। और दो बार राम राम कहने से 108 हो जाता है जो पूर्ण ब्रह्म का द्योतक है। जब भी हम कोई जाप करते हैं तो हमे 108 बार जाप करने के लिए कहा जाता है। लेकिन सिर्फ "राम-राम" कह देने से ही पूरी माला का जाप हो जाता है।क्या है 108 का महत्वशास्त्रों के अनुसार माला के 108 मनको का संबंध व्यक्ति की सांसो से माना गया है। एक स्वस्थ व्यक्ति दिन और रात के 24 घंटो में लगभग 21600 बार श्वास लेता है। माना जाता है कि 24 घंटों में से 12 घंटे मनुष्य अपने दैनिक कार्यों में व्यतीत कर देता है और शेष 12 घंटों में व्यक्ति लगभग 10800 बार सांस लेता है। शास्त्रों के अनुसार एक मनुष्य को दिन में 10800 ईश्वर का स्मरण करना चाहिए। लेकिन एक सामान्य मनुष्य के लिए इतना कर पाना संभव नहीं हो पाता है। इसलिए दो शून्य हटाकर जप के लिए 108 की संख्या शुभ मानी गई है। जिसके कारण जाप की माला में मनको की संख्या भी 108 होती है।108 का वैज्ञानिक महत्वयहां हम अगर वैज्ञानिक तथ्य की बात करें तो 108 मनके की माला और सूर्य की कलाओं का एक दूसरे से संबंध माना गया है। वैज्ञानिक तथ्य के अनुसार एक वर्ष में सूर्य 216000 कलाएं बदलता हैं। इसमें वह छह माह उत्तरायण रहता है और छह माह दक्षिणायन रहता है। इस तरह से छः माह में सूर्य की कलाएं 108000 बार बदलती हैं। इसी तरह से अंत के तीन शून्य को अगर हटा दिया जाए तो 108 की संख्या बचती है। 108 मनको को सूर्य की कलाओं का प्रतीक माना जाता है।'राम' शब्द के संदर्भ में स्वयं गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा:करऊँ कहा लगि नाम बड़ाई।राम न सकहि नाम गुण गाई ।।स्वयं राम भी 'राम' शब्द की व्याख्या नहीं कर सकते,ऐसा राम नाम है। 'राम' विश्व संस्कृति के अप्रतिम नायक है। वे सभी सद्गुणों से युक्त है। वे मानवीय मर्यादाओं के पालक और संवाहक है। अगर सामाजिक जीवन में देखें तो- राम आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श मित्र, आदर्श पति, आदर्श शिष्य के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं। अर्थात् समस्त आदर्शों के एक मात्र न्यायादर्श 'राम' है।
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हर लड़की चाहती है कि जब उसकी शादी होकर वो ससुराल जाए तो वहां उसे खूब प्यार मिले. उसे परिवार की सदस्य की तरह डील किया जाए और उसका भी अन्य सदस्यों की तरह पूरा सम्मान किया जाए. लेकिन हर लड़की को ये सुख नसीब नहीं होता. ज्योतिष की मानें तो ऐसा कुछ ग्रहों की बदौलत होता.
कुंडली में मौजूद ग्रहों की स्थिति पक्ष में न होने पर लड़की को ससुराल में बार बार अपमानित होना पड़ता है. परिवार में बार बार क्लेश की स्थिति बन जाती है. पूरी तरह खुद को समर्पित कर देने के बावजूद उन्हें वो सम्मान प्राप्त नहीं होता, जिसकी वो हकदार हैं. यहां जानिए उन ग्रहों के बारे में जो जीवन में उथल पुथल की वजह बनते हैं, साथ ही इन समस्याओं से मुक्ति पाने के उपाय के बारे में.
1- मंगल
मंगल को क्रोधी ग्रह माना जाता है. क्लेश, झगड़ा और गुस्से का कारक मंगल को ही माना गया है. मंगल की अशुभ स्थिति जीवन में अमंगल की वजह बनती है. यदि किसी लड़की की कुंडली में मंगल की अशुभ स्थिति बनी हो, तो उसे जीवन में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
उपाय : मंगलवार की अशुभ स्थिति को शुभ बनाने के लिए लिए आप मंगलवार के दिन हनुमान बाबा की पूजा करें. हनुमान चालीसा का पाठ करें. अगर संभव हो तो हर मंगल को सुंदरकांड का पाठ करें. लाल मसूर की दाल, गुड़ आदि का दान करें.
2- शनि
शनि अगर शुभ स्थिति में हों, तो जीवन बना देते हैं, लेकिन शनि की अशुभ स्थिति जीवन को तहस नहस कर डालती है. अगर किसी लड़की की कुंडली में शनि की स्थिति ठीक न हो, तो ससुराल में उसके साथ बर्ताव अच्छा नहीं होता. उसे काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.
उपाय : हर शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं. शनिवार के दिन सरसों के तेल, काले तिल, काली दाल, काले वस्त्र आदि का दान करें. शनि चालीसा का पाठ करें.
3- राहु और केतु
राहु और केतु दोनों ग्रहों को पाप ग्रहों की श्रेणी में रखा जाता है. जब ये अशुभ होते हैं तो मानसिक तनाव की वजह बनते हैं, साथ ही कई बार व्यक्ति को बेवजह कलंकित होना पड़ता है. राहु को ससुराल का कारक भी माना गया है. ऐसे में किसी लड़की की कुंडली में राहु और केतु की अशुभ स्थिति शादी के बाद उसके जीवन को बुरी तरह से प्रभावित करती है.
उपाय : राहु को शांत रखने के लिए माथे पर चंदन का तिलक लगाएं. महादेव का पूजन करें और घर में चांदी का ठोस हाथी रखें. वहीं केतु को शांत रखने के लिए भगवान गणेश की पूजा करें. चितकबरे कुत्ते या गाय को रोटी खिलाएं. -
हस्तरेखा विज्ञान में राहु रेखाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। जो रेखाएं राहु के क्षेत्र से गुजरती हों और आड़ी भी हों वे राहु रेखाएं होती हैं। राहु रेखाएं व्यक्ति के जीवन में समस्याएं पैदा करती हैं। इसी कारण से राहु रेखाएं परेशानी की रेखा भी कही जाती हैं। यदि राहु रेखाएं जीवन रेखा को नहीं छू रही हैं तो ये परेशानी की रेखाएं होती हैं। इससे पता चलता है कि व्यक्ति मानसिक रूप परेशान है। ये रेखाएं व्यक्ति की चिंता को दर्शाती हैं, लेकिन यदि ये रेखाएं लंबी होकर राहु क्षेत्र से गुजरती हैं तो ये रेखाएं पूरी तरह से राहु की रेखाएं कहलाती हैं। इन रेखाओं का असर केवल मानसिक स्तर पर नहीं होता बल्कि व्यक्ति के पूरे जीवन को प्रभावित करती हैं। राहु रेखाएं हल्की, मध्यम और बहुत मोटी हो सकती हैं। यदि राहु की रेखाएं बहुत हल्की हैं तो जीवन में परेशानी बेहद कम होंगी और व्यक्ति इन समस्याओं को आराम से झेल लेता है। मध्यम राहु रेखाएं थोड़ा ज्यादा कष्ट देती हैं, लेकिन मोटी राहु रेखाएं व्यक्ति के जीवन में उथल-पुथल मचा देती हैं। राहु की रेखाएं जितनी लंबी होंगी, उसका असर जीवन में उतना ही लंबा होता है।
राहु रेखाएं जहां-जहां तक पहुंचती हैं उनका प्रभाव जीवन के उस हिस्से तक पड़ता है। राहु रेखाएं जितनी लंबी होती हैं उतनी ही परेशानी होती है। यदि राहु रेखा लंबी होकर विवाह रेखा से टकरा जाए तो ऐसे लोगों का वैवाहिक अनुभव बेहद दुखद रहता है। इस तरह के लोगों का वैवाहिक जीवन कष्टमय होता है। हस्तरेखा के अनुसार एक रेखा का प्रभाव दो से चार महीने तक होता है, लेकिन यदि रेखाएं बहुत गहरी हैं तो इनका असर दो से ढाई साल तक रहता है। यदि राहु रेखा से टकराकर भाग्य रेखा रुक जाए तो ऐसे व्यक्ति का काम-धंधा पूरी तरह से चौपट हो जाता है। यदि राहु रेखा टकराने के बाद भाग्य रेखा आगे बढ़ती रही तो ऐसे व्यक्ति समस्याओं से जल्दी बाहर आ जाता है। इस स्थिति में राहु रेखा व्यक्ति के जीवन को प्रभावित तो करती हैं, लेकिन इसके बाद आगे का जीवन व्यक्ति फिर से खड़ा हो जाता है। लेकिन यदि राहु से टकराने के बाद भाग्य रेखा आगे ना बढ़े तो व्यक्ति का जीवन अच्छा नहीं रहता। इस तरह के लोगों का काम-धंधा लगभग बंद हो जाता है। -
हाथ में कई तरह की रेखाएं मिलकर कुछ विशेष चिह्न बनाती हैं। हालांकि हाथ की रेखाएं आपके कर्म के अनुसार बदलती रहती हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक रेखाएं निरंतर बदलती हैं। सकारात्मक और नकारात्मक कार्यों से हाथों की रेखाओं पर अत्यधिक असर पड़ता है। हस्तरेखा में राहु क्षेत्र पर त्रिभुज को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। ऐसे लोगों को जीवन में पैसे की कोई कमी नहीं होती। इन लोगों पर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। राहु पर्वत पर बना त्रिभुज का निशान व्यक्ति को व्यापार की ओर ले जाता है। ऐसे लोग अपने दिमाग से जीवन में धन कमाते हैं। राहु पर्वत पर त्रिभुज को मनी ट्राइंगल के नाम से भी जााना जाता है। इस तरह के लोग धन कुबेर होते हैं।
सूर्य पर्वत पर बना त्रिकोण हस्तरेखा विज्ञान में अच्छा माना गया है। इस क्षेत्र पर बना त्रिभुज व्यक्ति को कला का पारखी और ज्ञानी बनाता है। ऐसा व्यक्ति जन्म में भले ही कितना ही निर्धन क्यों ना हो, लेकिन वह अपनी मेहनत के दम पर खूब धन कमाता है और प्रसिद्धि को पाता है। गुरु यानी बृहस्पति पर्वत पर बना वर्ग का निशान व्यक्ति को गुणवान बनाता है। ऐसे व्यक्ति कुशल प्रशासक होते हैं। ऐसे व्यक्ति गरीब घर में पैदा होने के बाद भी अपनी मेहनत से उच्च पद तक पहुंचाता है। -
हाथ में रेखाएं कई तरह की होती हैं, लेकिन कई बार कोई रेखा दो भागों में बंट जाती है। इसे दोमुखी रेखा कहते हैं। इसी में एक है जीवन रेखा। जीवन रेखा व्यक्ति की जीवन की ओर भी इशारा करती है। अनेक हाथों में जीवन रेखा बिल्कुल सरल होती है, लेकिन कई बार जीवन रेखा से एक और रेखा निकलकर बाहर की ओर जाते हुए दोमुखी हो जाती है। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार दो मुखी जीवन रेखा वाले जातक विदेश यात्रा जरुर करते हैं और वहीं पर जाकर बस जाते हैं, लेकिन यदि जीवन रेखा से निकली रेखा का रुख अंदर की ओर है तो ऐसे लोग विदेश तो जाते हैं, लेकिन धन कमाकर वापस अपने देश लौट आते हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार दोमुखी जीवन रेखा से विवाह के बारे में भी पता किया जा सकता है। यदि जीवन रेखा से निकली दूसरी रेखा जिससे यह दो मुखी रेखा बन रही है उसका रुख बाहर की ओर है तो ऐसे जातक की शादी बहुत दूर होती है। कभी-कभी ऐसे लोगों की शादी भिन्न संस्क़ृति के जातक से हो जाती है। इस तरह के लोगों की कर्मभूमि भी जन्मभूमि से अलग होती है, लेकिन यदि रेखा अंदर की ओर है तो ऐसे जातक की शादी स्थानीय होती है। इस तरह के लोगों की आजीविका भी घर के नजदीक ही रहती है।
जीवन रेखा पर विभिन्न रेखा काटती हुई भी दिखती हैं। जीवन रेखा को ऊपर से नीचे की ओर देखा जाता है। जिस उम्र में जीवन रेखा काटती है उस समय में स्वास्थ्य को लेकर कुछ दिक्कतें आ सकती हैं। जीवन रेखा को काटने वाली रेखाएं स्वास्थ्य को लेकर परेशानी को इंगित करती हैं। कभी-कभी कुछ लोगों के हाथों में जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा दूर-दूर होती हैं जबकि कुछ की मिली हुई। जिन लोगों के हाथों में मस्तिष्क और जीवन रेखा में अंतर होता है वे अपना काम खुद करते हैं। वे दूसरे लोगों का हस्तक्षेप नहीं चाहते। ऐसे लोगों को गुस्सा बहुत आता है। इसके चलते इनका फ्रेंड सर्किल बहुत छोटा होता है। ऐसे लोगों को एक बार में सफलता नहीं मिल पाती। -
वास्तु शास्त्र में हर दिशा और हर चीज का महत्व बताया गया है। वास्तु शास्त्र के मुताबिक, हर चीज में ऊर्जा होती है, जो व्यक्ति के जीवन पर प्रभाव डालती है। वास्तु में सकारात्मक ऊर्जा के लिए हर एक चीज के रख-रखाव से लेकर उसे बनाने तक के नियम बताए गए हैं।
कई बार लोग बिना वास्तु की जानकारी के अपने घर का निर्माण करा लेते हैं। वास्तु दोष के कारण घर में नेगेटिव ऊर्जा बढ़ती है। जिससे कारण गृह क्लेश, आर्थिक परेशानियां और कार्यस्थल पर मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। अगर आप भी वास्तु दोष का सामना करना कर रहे हैं तो इन आसान टिप्स से घर में बिना किसी तोड़-फोड़ आप भी वास्तु दोष दूर कर सकते हैं।
जिस घर में रसोई और बाथरूम का दरवाजा आमने-सामने होते हैं, उसे सबसे बड़ा वास्तु दोष माना जाता है। वास्तु दोष के कारण परिवार में मुसीबतों का पहाड़ टूट सकता है। ऐसे में अगर आपके घर में भी रसोई और बाथरूम आमने-सामने बने हैं तो दोनों के बीच में एक मोटा पर्दा लगा देना चाहिए। साथ ही बाथरूम का दरवाजा हमेशा बंद रखना चाहिए, जरूरत पड़ने पर ही इसे खोलना चाहिए।
मुख्य द्वार के वास्तु दोष को ऐसे करें उपाय- वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर के मुख्य द्वार पर वास्तु दोष होने पर व्यक्ति को कार्यस्थल पर मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। कई बार व्यापार में नुकसान उठाना पड़ता है। वास्तु शास्त्र के मुताबिक, मुख्य द्वार के दोष से मुक्ति पाने के लिए मेनगेट पर स्वास्तिक बनाना चाहिए। इसके साथ ही द्वार पर भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा लगानी चाहिए। मुख्य द्वार पर किसी भी तरह की गंदगी न होने दें। - हस्तरेखा शास्त्र के मुताबिक जीवन में सफल होने के लिए किस्मत के साथ-साथ पैसों का भी अहम स्थान है। इंसान की हथेली में भाग्य, स्वास्थ्य और धन से संबंधित रेखाएं होती है। हथेली की इन रेखाओं को देखकर भविष्य के बारे में पता चलता है। हथेली कुछ रेखाएं जीवन में पैसों की तंगी का संकेत देते हैं। जिनकी हथेली में ऐसी रेखाएं होती हैं उनके पास पैसा नहीं टिकता यानि पैसा पानी का तरह बह जाता है। हथेली की इन रेखाओं के बारे में जानते हैं.पानी की तरह बह जाता है पैसाहस्तरेखा शास्त्र के मुताबिक अगर हथेली की भाग्य रेखा हृदय रेखा पर रुक जाए या हथेली कठोर हो तो ऐसे लोगों को पैसों की तंगी बनी रहती है। साथ ही ऐसी हथेली वाले लोगों को बहुत मेहनत के बाद भी आर्थिक उन्नति नहीं होती है। साथ ही जमा पूंजी भी फिजूलखर्ची में शामिल हो जाती है। अगर किसी इंसान की हथेली की भाग्य रेखा धुंधली हो या शनि, बुध और गुरु पर्वत धंसा हो तो ऐसे लोगों को बराबर धन से संबंधित परेशानियां बनी रहती हैं। साथ ही ऐसे लोगों को बिजनेस से भी धन हानि होती रहती है।जीवनभर रहती है धन की समस्याअगर किसी इंसान की हथेली में लाइफ लाइन देखने में लगभग सीधी नजर आए या भाग्य रेखा, मस्तिष्क रेखा पर जाकर रुक जाए तो ऐसे लोगों को पैसों की तंगी का सामना करना पड़ता है। साथ ही कई बार पैसों को लेकर परेशानी बहुत अधिक बढ़ जाती है। इसके अलावा अगर किसी इंसान की हथेली में भाग्य रेखा शुरू से ही मोटी हो या फिर इसी स्थिति में जीवन रेखा तक जाए जीवनभर धन से जुड़ी समस्या बनी रहती है।बहुत कठिन से मिलते हैं पैसेबहुत लोगों की हथेली की रेखाएं स्पष्ट नजर नहीं आतीं हैं। कुछ लोगों की हथेली में भाग्य रेखा ही धन की रेखा का काम करती है। इस स्थिति में भाग्य से धन मिलता है। वहीं अगर हाथेली में मनी लाइन टूटू और रुक-रुक कर बनी है तो पैसे के मामले में अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।-----
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 445
★ भूमिका - निम्नांकित पद भक्तियोगरसावतार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ के 'सिद्धान्त-माधुरी' खण्ड से लिया गया है। 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ में आचार्य श्री ने कुल 21-माधुरियों (सद्गुरु, सिद्धान्त, दैन्य, धाम, श्रीकृष्ण, श्रीराधा, मान, महासखी, प्रेम, विरह, रसिया, होरी माधुरी आदि) में 1008-पदों की रचना की है, जो कि भगवत्प्रेमपिपासु साधक के लिये अमूल्य निधि ही है। इसी ग्रन्थ के 'दैन्य माधुरी' का यह 36-वाँ पद है, जिसमें आचार्यश्री ने जीवों की ओर से किशोरी श्रीराधारानी जी से कृपा की याचना की है, उनकी कृपालुता के गुणों का स्मरण करते हुये उनसे अपनी ओर कृपादृष्टि से निहारने का अनुरोध है...
किशोरी मोरी, सुनिय नेकु इक बात।हौं मानत हौं परम पातकी, विश्व-विदित विख्यात।पै यह कौन बात अचरज की, तव चरनन विलगात।कोऊ इक मोहिं बताऊ तुमहिं तजि, बिनु पातक जग जात।जेहि दरबार कृपा बिनु कारण, बटत रही दिन रात।तेहि दरबार भयो अब टोटो, यह अचरज दसरात।मोहिं 'कृपालु' कछु आपुन सोच न, तोहिं सोचि पछितात।
भावार्थ - हे वृन्दावन विहारिणी राधिके ! मैं आपसे एक छोटी सी बात कहना चाहता हूँ, कृपया बुरा न मानते हुए सुन लीजिये. मैं स्वयं इस बात को स्वीकार करता हूँ कि मैं संसार में प्रख्यात एवं विश्व विदित पापात्मा हूँ, पर साथ ही यह भी कहना चाहता हूँ कि तुम्हारे चरण कमलों से विमुख होने के कारण हूँ, इसमें आश्चर्य ही क्या है? आदिकाल से लेकर आज तक के इतिहास में मुझे किसी एक जीव का भी नाम बता दीजिये जो तुमसे विमुख होकर भी संसार में निष्पाप हुआ हो. आश्चर्य तो यह है कि जिस दरबार में बिना कारण ही निरंतर कृपा का वितरण हुआ करता था, आज उसी दरबार में मुझ पतित के लिए कृपणता की जा रही है. 'श्री कृपालु जी' कहते हैं कि मुझे अपनी तो कोई भी चिंता नहीं, किन्तु तुम्हारे अपयश को सोचकर बार बार शोक सा हो रहा है, क्योंकि तुम्हारा यह अपयश मुझ अभागे पतित के द्वारा ही होगा....
• सन्दर्भ ::: प्रेम-रस-मदिरा (दैन्य माधुरी, पद संख्या- 36)
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - ज्योतिष शास्त्र के अनुसार न केवल ग्रह दशा बल्कि आपसे जुड़ी हर वस्तु का अपना महत्व है। आपके आसपास जुड़ी हर वस्तु आप पर सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव डालती है। आप रोजमर्रा के जीवन में तेल का प्रयोग भी करते हैं फिर चाहे वह खाने के लिए हो या शरीर और बालों में लगाने के लिए लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसी तेल से जुड़े ज्योतिषीय उपाय आपकी किस्मत बदल सकते हैं। जैसा कि हम सब जानते हैं कि तेल का संबंध शनिग्रह से माना जाता है तो आइए जानते हैं तेल के टोटके और उसके प्रयोग के बारे में।सरसों के तेल का उपायशनिवार के दिन एक कटोरी में सरसों का तेल लेकर उस तेल में अपनी छाया देखकर उसे शाम के समय शनि मंदिर में रखकर अपने घर आ जाएं। यदि आप पर शनि दोष है तो इस उपाय के प्रभाव से आपके ऊपर शनि की कृपा बनी रहेगी और शनिदोष से मुक्ति मिलेगी।तिल के तेल का उपाययदि आप बहुत लंबे समय से किसी बीमारी से पीडि़त हैं तो 41 दिन तक लगातार तिल के तेल का दीप पीपल के पेड़ के नीचे जलाएं। इस उपाय को करने से आपकी बीमारी में लाभ मिलेगा। इसके अलावा अपनी मनोकामन कि पूर्ति के लिए भी आप पीपल के पेड़ के नीचे दीया जल सकते हैं।चमेली के तेल का उपायचमेली का तेल हनुमान जी को बहुत प्रिय है। इसलिए प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को हनुमान जी को सिंदूर और चमेली का तेल अर्पण करें। ध्यान रखें चमेली की तेल का दीपक नहीं जलाना बल्कि तेल उनके शरीर पर लगाना चाहिए। इस प्रकार विधि विधान से हनुमान जी का पूजन करने पर आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।शारीरिक कष्ट होंगे दूरयदि आप लंबे समय से शारीरिक कष्ट से जूझ रहें हैं तो शनिवार के दिन सवा किलो आलू और सवा किलो बैंगन लेकर उसकी सब्जी सरसों के तेल में बनाएं। और साथ ही सवा किलो आटे की पूड़ी भी सरसों के तेल में बनाएं। और यह भोजन गरीब, जरूरतमंद या दिव्यंगों को कर दें। यह उपाय लगातार पांच शनिवार तक करने से शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिलेगी।दुर्भाग्य दूर करने का उपाययदि आपका भाग्य आपका साथ नहीं दे रहा है और आपके बने बनाए कार्य पूरे नहीं हो रहे हैं तो आप शनिवार के दिन सरसों के तेल में गेहूं के आटे व पुराने गुड़ से सात पुए बनाएं। फिर एक पत्तल में सात मदार के फूल, सिंदूर, सरसों के तेल का आटे का दीपक, आदि सभी सामान लेकर शनिवार की ही रात में किसी चौराहे अथवा किसी सूनसान स्थान पर रख दें और कहें- हे मेरे दुर्भाग्य, मैं तुझे यहीं छोड़े रहा/रही हूं, कृपया अब मेरा पीछा कभी मत करना। इस बात का ध्यान रखें कि सामान रखने के बाद पीछे मुड़कर कभी न देखें।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 444
जिज्ञासा ::: भगवान् की सबसे बड़ी कृपा कौन सी है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: देखिये कृपा तीन प्रकार की होती है। एक सामान्य कृपा, एक विशेष कृपा, एक अद्भुत कृपा। तो सामान्य कृपा तो सब पर है - 'अग जग सब जग मम उपजाए'। 'सब पर मोरि बराबर दाया'। सब पर बराबर कृपा है भगवान् की।
भगवान् के महोदर में हम लोग पैण्डिंग में पड़े थे। हमको बाहर निकाला, हमारे लिये संसार बनाया और हमारे पूर्व जन्मों के कर्मों का हिसाब रखा। उस हिसाब से हमको शरीर दिया और हमारे साथ बैठ गये सदा के लिये। अन्दर।
एको देवः सर्वभूतेषु गूढः सर्वव्यापी सर्वभूतान्तरात्मा।कर्माध्यक्षः सर्वभूताधिवासः साक्षी चेता केवलो निर्गुणश्च।।(श्वेताश्वतरोपनिषद 6-11)तीन बात, एक तो सर्वव्यापक हो गये;
तत्सृष्ट्वा तदेवानुप्राविशत्।(तैत्तिरीयोपनिषद)
दूसरे सबके हृदय में बैठ गये। उसके वर्तमान कर्म को नोट करते हैं। पूर्वजन्म के कर्मों का फल देते हैं। ये सब विशेष कृपा। हम कोई मेहनताना देते हैं? देखो बड़े बड़े करोड़पतियों के यहाँ मुनीम होते हैं तनख्वाह लेते हैं तब हिसाब किताब रखते हैं। और भगवान् बिना हमारे कहे सब करते हैं। ये देखिये आप लोग जो यहाँ बैठे हैं मनगढ़ में, ये हँसी मजाक नहीं है। ये हजारों जन्म आपने बड़ी साधनायें की हैं उसका फल भगवान् ने दिया है। नहीं, कोई ऐरे गैरे नत्थू खैरे के चक्कर में पड़ जाते और वो कह देता कि माला का जप कर लो, सुन्दरकाण्ड का पाठ कर लो, चारों धाम की मार्चिंग कर लो और गोलोक पहुँच जाओगे। और तुम लोग बेवकूफ बनकर वैसे करते रहते। और क्या करते? कोई व्यक्ति अपने आप तो ज्ञान नहीं प्राप्त कर सकता। दूसरे से ही तो ज्ञान लेगा। आज आप लोग कहाँ पहुँच गये हैं? अगर आप बस में बैठे हों, ट्रेन में बैठे हों, और हवाई जहाज में बैठे हों और आपके बगल वाला 'राधे' कह दे, अंगड़ाई लेकर के ही सही। तो आप चौंक जायेंगे न। अहा! ये बड़ा अच्छा आदमी है, 'राधे' बोला। हमारे मिलने के पहले 'राधा' नाम कुछ है भी, कहीं पता है उसका, कुछ जानते ही नहीं थे। अब 'राधे' नाम में इतना प्यार करा दिया मैंने कि बगल वाले के बोलने पर ही ये बुद्धि हो गई बड़ा अच्छा आदमी है। भले ही वो डाकू हो।
तो ये बड़ी भगवत्कृपा है।
जन्मान्तर सहस्रेषु तपोध्यान समाधिभिः।नराणां क्षीण पापानां कृष्णे भक्ति प्रजायते।।
तमाम जन्मों की साधना से ये फल भगवान् ने दिया। हमको क्या पता था कि हम पूर्वजन्म में क्या थे, कहाँ थे? ये सब विशेष कृपा है। फिर अन्दर बैठे हिसाब कर रहे हैं फल दे रहे हैं। फिर सन्त से मिला दें अगर तो 'बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं सन्ता'।
अपनी बुद्धि से हम सन्त का पता नहीं लगा सकते। क्यों? अपनी बुद्धि से तो हम रोज बाहरी त्याग देखकर धोखा खाते। हम जहाँ देखते कि ये बाहर से त्यागी है, पेड़ के नीचे रहता है फलाहार करता है, पत्ता खाता है, खाली पानी पीकर रहता है। इतना बड़ा महात्मा है ल। हम ऐसे लोगों के चक्कर में पड़े रहते। क्या ऐसे लोग महात्मा होते हैं? अगर होते हैं तो जंगल में जितने जानवर हैं, ये सब महापुरुष हैं। उनके न तो घर है, न खाने का ठिकाना है, न तो पानी का ठिकाना है, कहाँ पानी मिलेगा उनको। सोचो, वो लोग कैसे जीवित हैं? उनके भी बच्चे पैदा हो रहे हैं। कौन सा डॉक्टर वहाँ जाता है। सब काम हो रहा है उनका।
तो मानव देह मिला ये भी भगवत्कृपा। ये केवल ऐसा नहीं है कि हमारे पूर्वजन्म के फल से मिल गया। अरे कर्म तो जड़ होता है। पुण्य-पाप, ये कर्म है न। ये तो जड़ है। हमने पूर्वजन्म में जो कुछ किया वो तो जड़ पदार्थ हैं। हमने एक करोड़ दान किया। तो क्या वो दान आकर बोलेगा अगले जन्म में? ये तो भगवान् फल देंगे तभी तो हमको फल मिलेगा उसका। तो ये मानव देह दिया ये भी भगवत्कृपा।
कबहुँक करि करुणा नर देही।देत ईश बिनु हेतु सनेही।।
तो मानव देह भी भगवत्कृपा, सन्त से मिलना भी भगवत्कृपा, भारत में जन्म होना भी भगवत्कृपा - 'धन्यास्तु ये भारतभूमि भागे'। जहाँ मरने पर भी 'राम नाम सत्य' बोला जाता है। हाँ, ये तमाम कृपायें हैं - सामान्य कृपा, विशेष कृपा। और सबसे विशेष कृपा क्या है?
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्।।(गीता 9-29)
देखिये एक श्लोक में भगवान् ने दोनों कृपायें बता दीं । सामान्य कृपा क्या?
समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः।ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्।।(गीता 9-29)
अर्जुन! मैं समदर्शी हूँ, न मेरा कोई दुश्मन न मेरा कोई दोस्त। मैं तो जज की हैसियत से कर्म का फल दे देता हूँ।
पुण्येन पुण्यं लोकं नयति पापेन पापमुभाभ्यामेव मनुष्यलोकम्।।(प्रश्नोपनिषद 3-7)
ये मैं बिना पैसे के सेवा करता हूँ अपने बच्चों की। लेकिन संसारी कानून में भी सब्सेक्शन होता है , ऐसे वहाँ भी होता है। लेकिन अगर कोई कम्पलीट सरेन्डर करता है; न पुण्य करता है, न पाप करता है, मेरे शरणागत हो जाता है भक्ति के द्वारा तो फिर मैं विशेष कृपायें करता हूँ। वो बहुत सारी हैं। उसी में अद्भुत कृपायें भी हैं - नम्बर एक, अद्भुत कृपा। हम लोग साधना करके क्या कर सकते हैं। सोचो। मायिक मन से हम साधना करेंगे। तो मायिक मन की साधना मायिक होगी। जैसे हम भगवान् का ध्यान करेंगे। भगवान् को तो देखा नहीं और नहीं देखा है ये बड़ा अच्छा है। अगर देख लें तो नास्तिक हो जायें। क्यों? इसलिये कि हमारी आँख प्राकृत है। वो प्राकृत भगवान् को देख पायेगी। जहाँ जायेगी ये प्राकृत अनुभव करेगी। और भगवान् का शरीर दिव्य है। वो तो देखेगी नहीं। और अगर कोई सन्त कह देगा कि ये भगवान् हैं और हम देख रहे हैं कि ये भगवान् वगवान् क्या हैं? हम तो अपने बेटे को, बाप को, बीबी को देख कर जितना सुख पाते हैं उतना भी नहीं पा रहे हैं इनको देखकर। ये काहे के भगवान् हैं? भगवान् तो अनन्तकोटि कन्दर्प लावण्य युक्त होते हैं। अब हमको जब तक कोई समझावे न कि देखो जी तुम्हारी आँख प्राकृत है इसलिये तुम सब जगह प्राकृत देखोगे । दिव्य को भी प्राकृत। भगवान् के शरीर में ऐसा वैचित्र्य है कि जो जैसी भावना वाला है वैसे ही दिखाई पड़ेगा। जब तक दिव्य दृष्टि न मिले, इन्द्रियाँ दिव्य न हों, मन दिव्य न हो, तब तक दिव्य भगवान् का दर्शन, मनन, चिन्तन हो ही नहीं सकता। लेकिन भगवान् कृपा करके उस मायिक ध्यान को भी दिव्य मान लेते हैं और फल दे देते हैं। स्वरूप शक्ति से दिव्य बना देते हैं और फल दे देते हैं। उसी आधार पर अनन्त जीवों ने भगवत्प्राप्ति की अपनी कमाई से तो अन्त: करण शुद्धि कर लेंगे बस। शुद्धि कर लिया, दिव्य नहीं कर सकते। कूड़ा कचरा साफ कर दिया लेकिन दिव्य नहीं बना सकते हम अपनी साधना से। दिव्य तो वो भगवान् ही गुरु के द्वारा स्वरूप शक्ति देकर बनवाते हैं। ये अद्भुत कृपा।
तो उसके द्वारा फिर भगवान् और अद्भुत कृपायें करते हैं - नम्बर एक, अनन्त जन्मों के अनन्त पाप माफ कर देते हैं। देखो हमारी दुनियाबी गवर्नमेन्ट में किसी जज के आगे कोई मुलजिम कहे कि हुजूर बस एक बार माफ कर दीजिये हमारे मर्डर के अपराध को, दोबारा मैं कभी नहीं करूँगा। अगर दफा तीन सौ तेईस वाला अपराध भी करूँ तो फाँसी दे दना। जज कहेगा ठीक है लेकिन ये अपराध का दण्ड तो भोगना पड़ेगा। हम इसीलिये तो दण्ड देते हैं कि ये अपराध दूसरा आदमी न करे। तो जो किया है उसका फल तो भोगना पड़ेगा। अरे यहाँ तक नाटक होता है हमारी दुनियाबी गवर्नमेन्ट में कि फाँसी प्लस 22 साल की सजा प्लस इतना जुर्माना। वो कहता है जब फाँसी ही की सजा लिख दिया तो ये सब क्या लिख रहे हो। अरे वो कायदा है लिखने का। उसमें ये भी लिख देंगे कि पहले कौन सजा दी जाय। ये संसार में नाटक होता है इस तरह का। तो भगवान् के यहाँ सब माफ। शरणागत हुआ;
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।(गीता 18-66)
अर्जुन! छुट्टी। वो फाइल जला दी गई। सब खतम। उसमें तीन गुण हैं, तीन कर्म हैं, तीन शरीर हैं, पंचक्लेश हैं, पंचकोश हैं। जितनी गड़बड़ियाँ हैं सब जीरो बटे सौ। उनकी जननी जो माँ है वो भी गई। और;
सदा पश्यन्ति सूरयः। तद्विष्णोः परमं पदम्।(सुबालोपनिषद 6-7)
ये सब गड़बड़ियाँ सदा को गईं और भगवान् का सारा सामान सदा को मिल गया। ये अन्तिम कृपा। ये कृपा का संक्षिप्त रहस्य है।
• सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' भाग - 3, प्रश्न संख्या - 2
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - सूर्य देव को ज्योतिष शास्त्र में सभी राशियों का राजा माना गया है। कुंडली में सूर्य के प्रबल होने पर व्यक्ति को सभी तरह के सुखों का अनुभव होता है। ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक ग्रह भी कहा जाता है। सूर्य सिंह राशि के स्वामी हैं और मेष सूर्य की उच्च राशि है जबकि तुला इनकी नीच राशि है। चंद्रमा, मंगल और गुरु सूर्य के मित्र ग्रह हैं और शुक्र, शनि सूर्य के शत्रु ग्रह हैं। आज इस लेख के माध्यम से हम आपको बता रहें हैँ कि सूर्य देव की सबसे ज्यादा कृपा किस राशि पर रहती है और सूर्य पूजा के लाभ व सूर्य पूजा विधि-सिंह राशि पर रहती है सूर्य देव की कृपा :सिंह राशि के जातकों पर सूर्य देव की विशेष कृपा रहती है। सूर्य इस राशि के स्वामी ग्रह हैं, जिस वजह से सूर्य की इस राशि पर विशेष कृपा रहती है। लेकिन बाकी राशियों के जातक भी भगवान भास्कर की पूजा-उपासना कर उनकी कृपा का प्रसाद प्राप्त कर सकते हैं।सूर्य की पूजा करने की विधि:रविवार के दिन स्नानादि के बाद सबसे पहले भगवान सूर्य को तांबे के लोटे में रोली और अक्षत डालकर ‘ॐ घृणि सूर्याय नम:’ मंत्र का जप करते हुए अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद लाल रंग के आसन पर बैठकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके भगवान सूर्य के इसी मंत्र का कम से कम एक माला जाप भी कर सकते हैं। सूर्य देव को जलार्पण करने के दौरान मंत्र- ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव। यद् भद्रं तन्न आ सुव।।--अर्थात ये विश्वानि देव (सूर्य देव) आप हमारे सभी दुर्गणों व दुखों को दूर कीजिए। जो हमारे लिए कल्याणकारी हो वह प्रदान कीजिए।} का मनन कर सकते हैं। ध्यान रहे कि प्रात: स्नान के बाद बिना कुछ खाए-पिए ही सूर्य को जल दिया जाता है। सूर्य को जल देने से सूर्योदय से एक घंटे बाद तक का समय ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है।सूर्य पूजा के लाभ-ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, जातक की कुंडली में सूर्य प्रबल होने पर मान-सम्मान, नेतृत्व क्षमता में वृद्धि और सरकारी नौकरी के अवसर प्राप्त होते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि सूर्यदेव की आराधना का अक्षय फल मिलता है। सच्चे मन से की गई साधना से प्रसन्न होकर भगवान भास्कर अपने भक्तों को सुख-समृद्धि एवं अच्छी सेहत का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। सूर्यदेव की कृपा होने पर कुंडली में नकारात्मक प्रभाव देने वाले ग्रहों का प्रभाव कम हो जाता है।कुछ लोगों का मानना है कि नियमित रूप से रविवार को सूर्य उपासना करने से कुष्ट रोग जैसी असाध्य बीमारी का असर भी कम किया जा सकता है।सिंह राशि वालों के गुण :सिंह राशि के जातक आत्मविश्वास से भरे रहते हैं।ये लोग मेहनती स्वभाव के होते हैं।ये लोग किसी भी काम को करने से डरते नहीं है।ये लोग हर किसी को खुश रखते हैं।सिंह राशि वाले दयालु स्वभाव के होते हैं।ये लोग जीवन में कुछ न कुछ नया करते हैं।ये लोग दिल के साफ होते हैं।सिंह राशि वाले ईमानदार और भरोसेमंद होते हैं।इन लोगों पर आंख बंद कर भरोसा किया जा सकता है।सिंह राशिवाले लोग हर कार्य में माहिर होते हैं।सूर्य देव की कृपा से ये लोग जीवन में खूब मान- सम्मान प्राप्त करते हैं।सिंह राशि के लोगों को जीवन में किसी भी चीज की कमी नहीं रहती है।सिंह राशि के लोगों का आर्थिक पक्ष मजबूत होता है।इन लोगों की नेतृत्व क्षमता काफी अच्छी होती है।ये लोग उच्च पदों पर आसीन होते हैं।सिंह राशि वाले नौकरी और व्यापार में खूब तरक्की करते हैं।
- उन्नति के लिए जरूरी है कि घर-परिवार के सदस्यों के बीच हमेशा प्रेमभाव बना रहे। जहां कलह का वातावरण रहता है माना जाता है कि वहां नकारात्मक शक्तियां निवास करने लगती हैं और वहां रहने वालों की हर प्रकार की उन्नति के मार्ग थम जाते हैं। वास्तु में कुछ आसान से उपाय बताए गए हैं जो परिवार में प्रेम तो बढ़ाएंगे ही साथ ही नकारात्मक शक्तियों और नकारात्मक विचारों को जीवन से दूर करने में सहायक होंगे। आइए जानते हैं इन उपायों के बारे में।अगर हाथ में धन नहीं ठहरता है या फिजूल खर्च अधिक होता है तो शनिवार के दिन घर के पास किसी मंदिर में हलवे और खिचड़ी का दान करें। अगर परिवार के सभी सदस्य जमीन पर बैठकर एक साथ भोजन करें तो कारोबार या कार्यक्षेत्र में बरकत होने लगती है।आर्थिक संकटों से मुक्ति के लिए शनिवार के दिन बहते पानी में अखरोट या नारियल को प्रवाहित कर दें।शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी के सामने सोने के आभूषण रखें और इन पर केसर का तिलक लगाएं।कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें। हर जरूरतमंद की सहायता करने का प्रयास करें।परिवार में पति के भोजन कर लेने के बाद पत्नी को भोजन करना चाहिए।पति हमेशा अपनी पत्नी का सम्मान करें। सुखी दांपत्य जीवन के लिए पीपल और केले के पेड़ की पूजा करें।अपने वेतन को प्रतिमाह अपनी पत्नी को दें। पत्नी द्वारा ही उस वेतन को तिजोरी में रखा जाए। कभी भी अपने साथी को कम वेतन के लिए उलाहना नहीं देना चाहिए।घर में चींटी, पक्षी, गाय, कुत्ता, कौवा के लिए अन्न-जल की व्यवस्था करें।बुधवार के दिन कन्याओं को हरे वस्त्र या हरी चूड़ियों का दान करें।शिक्षक या मंदिर के पुजारी को पीला वस्त्र, धार्मिक पुस्तक, पीले खाद्य पदार्थ दान करें।घर में सुख शांति के लिए सुबह-शाम कर्पूर जलाएं। घर में सदैव सुगंधित वातावरण रखें।-
- ज्योतिष में बुध और सूर्य की युति को शुभ माना जाता है। इस समय बुध धनु राशि में विराजमान हैं। 16 दिसबंर को सूर्य भी धनु राशि में विराजमान हो जाएंगे। सूर्य और बुध के एक ही राशि यानी धनु राशि में रहने से बुधादित्य योग का निर्माण हो जाएगा। बुधादित्य योग कुछ राशियों के लिए बेहद फलदायी रहने वाला है। आइए जानते हैं सूर्य और बुध की युति से बनने वाला बुधादित्य योग किन राशियों के लिए शुभ रहने वाला है।मेष राशिकार्यों में सफलता मिलेगी।पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा।धन- लाभ होगा।दांपत्य जीवन सुखमय रहेगा।धार्मिक कार्यों में हिस्सा लेने का अवसर मिलेगा।आपके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना की जाएगी।मिथुन राशिमिथुन राशि के जातकों को धन- लाभ हो सकता है।लेन- देन और निवेश से फायदा होगा।जीवनसाथी के साथ समय व्यतीत करेंगे।नया वाहन या मकान ले सकते हैं।कार्यों में सफलता मिलने के योग भी बन रहे हैं।कर्क राशिआर्थिक पक्ष मजबूत होगा।आय के स्रोत में वृद्धि के योग बन रहे हैं।परिवार के सदस्यों के साथ समय व्यतीत करेंगे।शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए ये समय किसी वरदान से कम नहीं रहने वाला है।कार्यस्थल पर आपके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना की जाएगी।व्यापार के लिए समय शुभ रहने वाला है।सिंह राशिसिंह राशि के जातकों को शुभ फल की प्राप्ति होगी।धन- लाभ होगा।दांपत्य जीवन में सुख का अनुभव करेंगे।कार्यों में सफलता के योग भी बन रहे हैं।आपके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना की जाएगी।
- जब-जब शनिदेव एक राशि छोड़कर किसी दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तब-तब कई लोगों की धड़कनें बढ़ जाती हैं। शनि के राशि परिवर्तन का ज्योतिष शास्त्र में बहुत ही महत्व होता है। शनि का राशि परिवर्तन सभी राशियों के जातकों के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। शनि प्रत्येक ढाई वर्षों के बाद अपनी राशि बदलते हैं। अब नया साल जल्द ही शुरु होने वाला है। ऐसे में साल 2022 में शनि अपनी राशि बदलने वाले हैं। शनिदेव 29 अप्रैल 2022 को मकर राशि को छोड़ते हुए कुंभ राशि में प्रवेश कर जाएंगे। शनि का कुंभ राशि में प्रवेश 30 वर्षों के बाद हो रहा है। क्योंकि शनि किसी एक राशि में ढाई वर्षों तक रहते है इस कारण से उन्हें सभी 12 राशियों में दोबारा से आने के लिए तीस वर्षों का समय लेते हैं। शनि के राशि परिवर्तन से कुछ राशि के जातकों को राहत मिलती है तो कुछ की परेशानियां बढ़ जाती हैं।आइए जानते हैं शनि के कुंभ राशि में गोचर करने पर किन-किन राशि वालों की मु्श्किलें बढ़ने वाली हैं।कर्क राशिसाल 2022 में शनि का राशि परिवर्तन कुंभ राशि में होने से कर्क राशि के जातकों पर इसका प्रभाव शुभ नहीं होगा। आर्थिक परेशानियां बढ़ने के संकेत हैं। नौकरी और बिजनेस में छोटी-मोटी कठिनाइयों का सामना करने को मिल सकता है। निवेश संबंधी बातों का विशेष ध्यान रखने की जरूर है। बिना सोचे-समझें कहीं भी निवेश करना आपके लिए अच्छा नहीं रहने वाला है। कोई नया कार्य जल्दी में शुरू न करें हानि उठानी पड़ सकती है।कुंभ राशिकोई बड़ा फैसला आपके लिए नुकसानदायक हो सकता है। बीमारियां आपको ज्यादा सताएंगी। जिसका आपको ख्याल रखना होगा। पैसों की परेशानियां बढ़ सकती है इसलिए खर्चों पर लगाम लगाने की जरूर होगी। परिवार में विवाद बढ़ सकता है। नौकरीपेशा जातकों के लिए कार्यक्षेत्र में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।वृश्चिक राशिसाल 2022 में शनि आपको कष्ट देंगे। किसी भी कार्य में सफलता पाने के लिए आपको काफी समय लगेगा। कठिन परिश्रम करने के बावजूद आपको उसका उतना फल प्राप्त नहीं होगा जितना होना चाहिए। नौकरी में मन नहीं लगेगा जिसकी वजह से आपको मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ेगा। खर्चो में बेहताशा वृद्धि होगी। जीवनसाथी से मनमुटाव बढ़ सकता है।तुला राशिशनि का राशि परिवर्तन तुला राशि के जातकों के लिए अच्छा नहीं रहने वाला है। धन हानि की संभावना ज्यादा है और पैतृक संपत्ति को लेकर परिवार के सदस्यों के बीच मनमुटाव हो सकता है। व्यापार और नौकरी करने वाले जातको के लिए साल के शुरुआती कुछ महीने बहुत ही परेशानियों से बीतेगा।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 443
जिज्ञासा ::: ब्रह्म को निःशक्तिक् ब्रह्म या अल्पशक्तिक् ब्रह्म कहा गया है। उसके पास 'कर्तुम् अकर्तुम् अन्यथाकर्तुंसमर्थः' योगमाया की शक्ति होते हुए भी, क्या वह कृपा नहीं कर सकता? क्या निराकार ब्रह्म कृपा नहीं कर सकता?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: नि:शक्तिक् नहीं होता कोई ब्रह्म वेद में। ये तो शंकराचार्य के सिद्धान्त में निःशक्तिक् ब्रह्म है, जिसकी हम लोग बुराई करते हैं। ब्रह्म में सब शक्तियाँ हैं, उसी शक्ति के बल पर वो निराकार भी रहता है, साकार भी हो जाता है और 'कर्तुमकर्तुमन्यथाकर्तुं समर्थ' भी रहता है। लेकिन जब वह निराकार रूप में रहता है, तब शक्तियाँ प्रकट नहीं करता है। इसलिए कृपा भी नहीं करता है, उस रूप में। जैसे जज है, वह कोर्ट में जब बैठता है, तभी जजमेन्ट दे सकता है, फैसला कर सकता है। घर पर कोई उसका बयान लेने आवे या कोई कुछ कहे, तो उस पर एक्शन नहीं ले सकता है, वो लीगल नहीं है।
तो भगवान् की सब शक्तियाँ हैं। लेकिन जैसे गेहूँ का बीज है, वो बोरे में बन्द है, उसमें सब शक्तियाँ हैं, लेकिन प्रकट तब होंगी जब वो खेत में डाला जायेगा। तब उससे पेड़ पैदा होगा और फल लगेंगे। तो भगवान् का जो स्वरूप, शक्ति नहीं प्रकट करने का है, वो कृपा भी नहीं करता, वो कोई कार्य नहीं करता। दो तीन कार्य करता है, बस। एक तो अपनी सत्ता की रक्षा, एक आनन्द स्वरूप का रखना (सच्चिदानंद का) और कुछ काम नहीं करता। तो शक्तियाँ सब हैं, एक भी शक्ति कम नहीं है। श्रीकृष्ण और ब्रह्म एक हैं। वही तो ब्रह्म है, शक्तियाँ कहाँ जायेंगी। शक्तियाँ सब हैं, लेकिन प्रकट नहीं होती, इसलिए कृपा नहीं करता। वो कृपा करने के लिए उन्होंने अपना भगवान् का स्वरूप बना रखा है। जो अल्पज्ञ हैं, वो समझते हैं, ब्रह्म अलग है, श्रीकृष्ण अलग हैं। वो श्रीकृष्ण की शरणागति में फेथ करते हैं या नहीं करते, लेकिन जो तत्वज्ञ हैं वो जानते हैं श्रीकृष्ण ही ब्रह्म हैं, उन्हीं का वो रूप है। तो हम जब ब्रह्म के उपासक हैं, तो श्रीकृष्ण के भी उपासक हैं तो हम कृपा के लिए श्रीकृष्ण की शरणागति क्यों न करें? सब करते हैं, शंकराचार्य ने भी आखिर में किया ही। किताब में कुछ भी लिखा, लेकिन प्रैक्टिकल लाइफ में तो श्रीकृष्ण भक्ति किया ही। रोये श्रीकृष्ण के आगे, हमारे ऊपर कृपा करो, हमारा उद्धार करो। निःशक्तिक् कोई नहीं होता। ये जीव नहीं होता तो ब्रह्म क्या होगा। अरे! हम लोगों के पास भी शक्तियाँ हैं, छोटी छोटी हैं। ज्ञान शक्ति भी है, क्रिया शक्ति भी है, सब कुछ है, अणुचित् और वो विभुचित् है।
जैसे प्रत्येक देहधारी में काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य, सब दोष हैं। लेकिन जैसे काम है, तो एक उमर में प्रकट होता है, वो पाँच साल के बच्चे में प्रकट नहीं होता, है तो लेकिन प्रकट नहीं होता। क्रोध प्रकट हो रहा है, छोटे से बच्चे से कोई चीज़ छीन लो ऐं ! ऐं ! करके लड़ जाय, ऐसे ही जिस स्वरूप में शक्तियों को प्रकट नहीं करते भगवान्, उसमें शक्तियाँ तो हैं, एक भी शक्ति कम नहीं है, लेकिन समय पर प्रकट होता है, तब उसका नाम भगवान् हो जाता है।
• सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' भाग - 3, प्रश्न संख्या - 4
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - धर्म-पुराणों में अच्छे-बुरे कर्मों के बारे में विस्तार से बताया गया है। साथ ही कर्मों के आधार पर मिलने वाले स्वर्ग-नर्क के बारे में भी बताया गया है. जो लोग बुरे कर्म करते हैं उन्हें नर्क मिलता है और अपने कर्मों के मुताबिक यातनाएं भुगतनी पड़ती हैं। इसी तरह अच्छे कर्म करने वाले लोगों को स्वर्ग मिलता है। वहीं ईश्वर की प्रार्थना में लीन रहने वाले लोग बैकुंठ (मोक्ष) में स्थान पाते हैं। गरूड़ पुराण में इन तीनों ही जगहों के बारे में बताया है और उनके लिए कर्मों की व्याख्या भी की गई है। आइए जानते हैं कि गरूड़ पुराण के मुताबिक वो कौन-से कर्म हैं जो व्यक्ति को स्वर्ग दिलाते हैं।ये कर्म दिलाते हैं स्वर्गभगवान विष्णु और पक्षीराज गरुड़ के बीच हुई चर्चा को गरूड़ पुराण में समाहित किया गया है। इसमें भगवान विष्णु बताते हैं कि जिन आत्माओं को स्वर्ग में स्थान मिलता है उन्हें यमराज स्वयं अपने भवन से स्वर्ग के द्वार तक छोडऩे के लिए आते हैं। वहां द्वार पर अप्सराएं उनका स्वागत करती हैं। मरने के बाद ऐसे सुख उन्हीं लोगों को मिलते हैं जो अपने जीवनकाल में बहुत अच्छे कर्म करते हैं।- ऐसे लोग जो दूसरों के पानी पीने के लिए इंतजाम कराते हैं, उन्हें स्वर्ग में स्थान मिलता है। जैसे कुएं, तालाब और प्याऊ बनवाना। जानवरों के लिए भी पीने के पानी की व्यवस्था करने वाले लोग स्वर्ग में जाते हैं।- ऐसे लोग जो हमेशा महिलाओं का सम्मान करते हैं और उनके उद्धार के लिए काम करते हैं, उन्हें भी स्वर्ग में स्थान मिलता है।- जो लोग अपनी मेहनत और ईमानदारी से पैसा कमाते हैं और उसका एक हिस्सा गरीबों की मदद में उपयोग करते हैं, वे भी बहुत पुण्यशाली होते हैं। उन्हें भी स्वर्ग में जगह मिलती है।- ऐसे लोग जो ऋषि-मुनियों का आदर करते हैं। उनके लिए भोजन और अन्य सुविधाओं का इंतजाम करते हैं, उनकी सेवा करते हैं। मंदिर का निर्माण कराते हैं, वेद-पुराणों का अध्ययन करते हैं। वे मरने के बाद स्वर्ग में खूब आनंद पाते हैं।- जो लोग पूरी जिंदगी अच्छे कर्म करते हैं और स्वभाविक मृत्यु प्राप्त करते हैं, वे भी स्वर्ग पाने योग्य होते हैं।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 442
जिज्ञासा ::: अगर भगवान् अकारण करुण हैं तो फिर हम सब जीवों पर कृपा क्यों नहीं कर देते?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: कुछ लोगों का प्रश्न है कि शास्त्रों वेदों में भगवान् को अकारण करुण कहा गया। अकारण करुण अर्थात् बिना कारण के कृपा करने वाले, दया करने वाले। लेकिन ये बात लॉजिक से तर्क से जँचती नहीं। क्यों? अगर भगवान् अकारण करुण हैं तो फिर हम सब जीवों पर कृपा क्यों नहीं कर देते। सब जीव आनन्दमय हो जायें, मायातीत हो जायें। ये वेदों से लेकर रामायण तक सभी ग्रन्थों में साधना बताई जाती है। जीवों के लिये उपदेश दिये जाते हैं ऐसा करो, ऐसा करो, तो भगवान् करुणा करेंगे, कृपा करेंगे। फिर अकारण करुण कहाँ रहे फिर तो बिजनिस मैन हो गये भगवान् भी। हमने कुछ किया तो भगवान् ने कृपा किया। ये तो ऐसी बात हो गई जैसे कोई दुकानदार अपना दुकान कपड़े की खोले है हमने रुपया दिया उसने कपड़ा दिया। ये तो लेन देन है।अकारण कृपा तो उसे कहते हैं हम कुछ न करें और वो कपड़ा दे दे, कृपा कर दे। ऐसी कृपा तो भगवान् ने कभी की नहीं। अन्यथा भगवान् में एक गुण है वेद कहता है-
अपहतपाप्मा विजरो विमृत्युर्विशोकोऽविजिघत्सोऽपिपासः सत्यकामः सत्यसंकल्पः।(छान्दोग्योपनिषद)
ये दो बार आया है मंत्र। इसका अर्थ है कि भगवान् में आठ गुण हैं अलौकिक उसमें एक गुण का नाम है सत्यसंकल्प। यानी जो सोचा हो गया। करना वरना नहीं है। बस सोचा संसार बन जाओ, बन गया। संसार का प्रलय हो जा। सोचा और हो गया। जैसे हम लोग सोचते हैं फिर प्रैक्टिकल वर्क करते हैं फिर भी सफलता मिले न मिले, डाउट। और भगवान् ! ये सब कुछ नहीं है, बस सोचा और हो गया। और कोई चीज़ भगवान् के लिये असम्भव भी नहीं। हाँ-
अपाणिपादो जवनो ग्रहीता पश्यत्यचक्षुः स श्रृणोत्यकर्णः।स वेत्ति वेद्यं न च तस्यास्ति वेत्ता तमाहुरग्रयं पुरुषं महान्तम्॥(श्वेताश्वतरोपनिषद 3-19)
ये वेद मंत्र कहता है भगवान् बिना हाथ के पकड़ लेते हैं, बिना पैर के दौड़ लेते हैं, बिना आँख के सब कुछ देखते हैं, बिना कान के सुन लेते हैं और कान से देख लेते हैं, सूंघ लेते हैं, सोच लेते हैं, जान लेते हैं। यानी एक इन्द्रिय से सब इन्द्रियों का काम भी कर लेते हैं। यानी इम्पॉसीबिल को पॉसीबिल करते हैं। सर्वसमर्थ भगवान्। तो फिर क्या बात है। एक संकल्प कर लो अनन्तकोटि ब्रह्माण्ड के समस्त जीव माया से उत्तीर्ण होकर आनन्दमय हो जायें। बस हम लोगों का काम बन जाय। चौरासी लाख की चक्की पीस रहे हैं हम लोग छुट्टी मिले पर ऐसा आज तक हुआ नहीं। और कुछ जीव आनन्दमय हो गये। ये भी इतिहास कहता है। ये ब्रह्मा हैं, शंकर हैं, विष्णु हैं, नारद हैं, सनकादिक, जनकादिक, शुकादिक, व्यासादिक, शंकराचार्यादिक, तुलसी, सूर, मीरा, कबीर, नानक, तुकाराम, तमाम सन्त आनन्दमय हो गये। क्यों हो गये? अगर अकारण कृपा करते तो उन पर किया तो हम पर भी करते। नहीं नहीं, उन लोगों ने साधना की तब कृपा किया। और हम लोगों ने साधना नहीं की, सरैण्डर नहीं किया, भक्ति नहीं किया।
तो ये सरेन्डर और भक्ति की शर्त जो लगा दिया तो ये अकारण कैसे हुआ? ये प्रश्न है। हाँ बात ठीक है लेकिन गलत है। क्या मतलब? मतलब ये कि भक्ति से कृपा नहीं होती। भक्ति से भगवान् मिलते हैं ये बोला जाता है। लेकिन ये फैक्ट नहीं है। क्यों? क्योंकि हम भक्ति किससे करेंगे? मन से, इन्द्रियों से। हाँ। तो इन्द्रियों की भक्ति तो भगवान् नोट ही नहीं करते। अर्जुन करोड़ों मर्डर करता है भगवान् नोट ही नहीं करते। क्यों? उसका मन भगवान् के पास है। तो मन का जो कर्म है वो भगवान् नोट करते हैं। ठीक है मन का कर्म नोट करते हैं। मन से भक्ति करे कोई तो भगवान् कृपा करते हैं। यही तो हुआ। नहीं नहीं। मन से भक्ति करने से क्या होता है ? ये समझिये।
मन से भक्ति करने से मन का मैल धुलता है। मन निर्मल होता है। निर्गुण होता है यानी शुद्ध होता है। जो संसार का अटैचमेन्ट है वो चला जाता है। बस। यानी मन का बर्तन खाली हो गया। उसमें कूड़ा कचरा जो था माँ, बाप, बेटा, स्त्री, पति, धन, प्रतिष्ठा ये सब वासनायें, ये खतम हो गईं। वो बिल्कुल नॉर्मल हो गया मन। क्लीन कहते हैं उसको। बस, भक्ति ने इतना किया। अब इसके आगे भगवान् का दर्शन वगैरह ये नहीं कर सकती भक्ति। क्योंकि भक्ति जिससे करते हैं वो मन मायिक है। माया का बना हुआ है और भगवान् दिव्य हैं। तो मायिक मन से दिव्य भगवान् का ग्रहण नहीं हो सकता। मायिक आँख से दिव्य भगवान् को हम नहीं देख सकते। हमारे बगल में बैठे हों और हम देख रहे हैं। हाँ। ये तो हमारी तरह है। और वो भगवान् बैठे हैं।
जाकी रही भावना जैसी।प्रभु मूरति देखी तिन तैसी॥
दिव्य भगवान् को देखने के लिये दिव्य नेत्र चाहिये, दिव्य कान चाहिये, दिव्य नासिका चाहिये, दिव्य रसना चाहिये, दिव्य त्वचा चाहिये, दिव्य मन चाहिये, दिव्य बुद्धि चाहिये। वो हमारे पास नहीं है। भक्ति से भी नहीं आयेगी वो। शुद्ध हो गया मन, बस। इससे न भगवान् मिलेंगे न भगवान् की कोई दिव्य वस्तु मिलेगी। शुद्ध किए बैठे रहो। फिर क्या होगा इसके बाद? मन शुद्ध होने के बाद फिर भगवान् महापुरुष के द्वारा उसमें दिव्य शक्ति भर देते हैं ये कृपा। अब आई अकारण कृपा यानी अपनी शक्ति से भगवान् आँख में दिव्य आँख, कान में दिव्य कान अपनी पॉवर को भर देते हैं। यानी इन्द्रियों को, मन को, बुद्धि को दिव्य बना देते हैं। ये हमारी साधना का फल नहीं है। हमारी साधना से, भक्ति से तो खाली मन शुद्ध हुआ। अब उसको दिव्य बनाने के लिये भगवान् की अकारण कृपा चाहिये। अगर वो नहीं तो हम बैठे रहते हम भगवान् का दर्शन नहीं कर सकते। माया समाप्त नहीं होती। चौरासी लाख में घूमते रहते। और अनन्त जन्मों के जो हमारे पाप पुण्य हैं वो भी भस्म नहीं होते। तो अकारण कृपा से भगवान् हमारी इन्द्रिय, मन, बुद्धि को दिव्य बना देते हैं। तब हम भगवान् का दर्शन करते हैं। ये जो बड़े बड़े सन्त हुये उन्होंने तब देखा भगवान् को उनसे बात की, उनका स्पर्श किया, उनको अपना बेटा बनाया, बाप बनाया, सखा बनाया, उनको घोड़ा बनाया सखाओं ने। जैसे हम संसार वाले करते हैं आपस में। क्योंकि उनके पास दिव्य सामान हो गया। ये दिव्य सामान के लिये भगवान् की अकारण कृपा आवश्यक है। तो भगवान् अकारण करुण हैं लेकिन वो अकारण करुण का उनका फल अन्त:करण के शुद्ध होने पर मिलता है। तो जिसने अन्तःकरण शुद्ध कर लिया, भक्ति के द्वारा उस पर कृपा हो गई। वो हो गया सन्त। इसलिये दोनों आवश्यक हैं। जैसे एक सामान देखना है हमको। हमारे सामने क्या रखा है? कैसे देखेंगे? आँख से। अच्छा? बड़ी अच्छी आँख है तो भी देख लेंगे। हाँ हाँ। और अगर लाइट ऑफ कर दें तो? अंधेरे में। अब नहीं देख सकते। क्यों आँख तो है उसके, अटक कर गिर गया। अरे क्यों रे कैसे गिर गया, अन्धा है क्या? नहीं नहीं अन्धा नहीं हूँ जी, अभी नई आँख है। फिर? अरे अंधेरा था जी, वो सामान रखा था वहाँ। यानी उस सामान के ऊपर लाइट भी चाहिये और आँख भी सही चाहिये। नहीं सूरदास को २५ जून के दोपहर को भी नहीं दिखाई पड़ेगा। दोनों कम्पलसरी है। ऐसे ही साधना भी कम्पलसरी है, उससे अन्तःकरण शुद्ध करो फिर भगवत्कृपा भी कम्पल्सरी है, उससे वो दिव्य बने, तब भगवत्प्राप्ति हो, माया निवृत्ति हो, आनन्द प्राप्ति हो। ये समाधान है।
• सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' भाग - 3, प्रश्न संख्या - 5
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - ज्योतिषशास्त्र की तरह अंक ज्योतिष से भी जातक के भविष्य, स्वभाव और व्यक्तित्व का पता लगता है। जिस तरह हर नाम के अनुसार राशि होती है उसी तरह हर नंबर के अनुसार अंक ज्योतिष में नंबर होते हैं। अंकशास्त्र के अनुसार अपने नंबर निकालने के लिए आप अपनी जन्म तिथि, महीने और वर्ष को इकाई अंक तक जोड़ें और तब जो संख्या आएगी, वही आपका भाग्यांक होगा। उदाहरण के तौर पर महीने के 2, 11 और 20 तारीख को जन्मे लोगों का मूलांक 2 होगा।मूलांक 2-बौद्धिक कार्यों में सफलता दिलाएगा।निश्चित रूप से लेखन के क्षेत्र में कार्यरत लोगों को सफलता के नए पायदान पर ले जाएगी।प्यार से जुड़े मामलों में सफलता मिलेगी।कोई पुरस्कार या अवॉर्ड मिलने की संभावना बनेगी।जो छात्र क्रिएटिव क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहते हैं, उन्हें भी सफलता मिलेगी।मां के स्वास्थ्य में सुधार होगा।कला और बैंकिंग से जुड़े लोगों को विशेष लाभ होगा।ससुराल पक्ष से आर्थिक सहयोग प्राप्त होगा।पुत्री के स्वास्थ्य को लेकर चली आ रही चिंता समाप्त होगी।मूलांक 4-मान-सम्मान, धन और सुख-सुविधा में वृद्धि होगी।प्रेम संबंधों या वैवाहिक जीवन में चला आ रहा मतभेद समाप्त होगा।सरकार व राजनीति से जुड़े लोगों के लिए यह वर्ष शुभ है।कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिल सकती है।समाज में मान-सम्मान बढ़ेगा और लोग आपके फैसलों की प्रशंसा करेंगे।पुत्र के करियर में बेहतर परिवर्तन का समाचार प्राप्त होगा।परिवार में नए सदस्य का आगमन होगा।मूलांक 6-यह साल समृद्धि प्रदान करने वाला होगा।नए वाहन का योग बनेगा।सुख-सुविधा में वृद्धि होगी।कार्यस्थल पर स्थिति मजबूत होगी और प्रोन्नति का योग बनेगा।प्रेम संबंध में पूर्णत: सफल होंगे।वैवाहिक जीवन सुखद रहेगा।परिवार में नए सदस्य का आगमन होगा।घर में कोई शुभ आयोजन होगा।करियर में उत्कृष्ट सफलता प्राप्त होगी।संतान के विवाह से संबंधित प्रयास सफल होंगे।मूलांक 7-यह साल कई चौंकाने वाले परिणाम लाएगा, जिसमें अचानक मनचाहा स्थान परिवर्तन, प्रेम प्रसंग में सफलता, जमीन-जायदाद के मामले में सफलता आदि शामिल हैं।कोई मित्र या परिवार का सदस्य, जिससे संवाद रुक सा गया है, उससे अचानक संबंध बेहतर हो जाएगा।कार्यस्थल पर और निजी जीवन में थोड़ी भ्रम की स्थिति भी हो सकती है।नए रिश्ते की शुरुआत होगी।अध्यात्म में रुचि बढ़ेगी।वाहन खरीदेंगे।यह वर्ष एक नई दिशा और संभावना लाएगा।कई लाभ अचानक होंगे और आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी।