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- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 441
• जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज ने 'भगवन्नाम' के महात्म्य के विषय में कुछ महत्वपूर्ण रहस्य हमारे समक्ष रखें हैं, आइये उन रहस्यों पर हम सभी विचार करें :::
(1) भगवान के नाम में पाप को समाप्त करने की इतनी बड़ी शक्ति है कि किसी पापी में इतनी शक्ति नहीं है कि वह पाप कर सके। वेदव्यास कहते हैं कि जो यह पापाग्नि हमारे अंदर है, उससे मत डरो। क्यों? क्योंकि भगवान का नाम इतना बड़ा मेघ है कि कितनी ही तेज अग्नि हो, उससे समाप्त हो जायेगी।
(2) देखिये नाम में क्या कमाल है? भगवान में यह शक्ति नहीं है कि किसी को नाम का विरही बना दें। दूसरे, नाम में नामी सदा ही व्याप्त है। संसार में नाम, नामी अलग-अलग रहते हैं लेकिन ईश्वर और ईश्वर का नाम एक है।
(3) जितने भी नाम भगवान के हैं, सब जीरो बटे सौ हैं, यदि उन नामों में आप नामी का विश्वास न करें। इस वाक्य को नोट कीजिये। जितने नाम भगवान के हैं वे सब बेकार हैं जब तक आप उस नाम में आप भगवान का निवास नहीं मानते।
(4) केवल नाम लेने से कल्याण हो जायेगा, यह धोखे की बात है। बिना नामी (भगवान) को नाम में समझे, अर्थात बिना विश्वास किये, काम नहीं बन सकता।
(5) यदि उस भगवन्नाम मेम इतना सुख माना होता, अगर आपने यह माना होता कि भगवन्नाम में भगवान बैठे हुये हैं, ऐसा मानकर भगवन्नाम लिया होता तो भगवत्प्राप्ति में एक क्षण भी आपको नहीं लगता। अगर भगवान के नाम को आप भगवान के बराबर भी मान लें तो फिर आपको क्या पाना बाकी रहे, फिर क्यों आप होश में रहें। क्यों नहीं माना? भगवान ने स्वयं वेद में लिखा है और संतों ने कहा है तो भी आपको विश्वास क्यों नहीं होता? विश्वास नहीं होता, यह कहने से काम नहीं चलेगा। विश्वास आपको करना पड़ेगा।
• सन्दर्भ ::: 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2017 अंक
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - मौत के बाद सहनी पड़ती हैं यातनाएंअच्छी जिंदगी, आसान मौत और उसके बाद स्वर्ग पाने के लिए अच्छे कर्म करने चाहिए. इसीलिए धर्म, ज्योतिष और खासतौर पर गरुड़ पुराण में कर्मों को लेकर बहुत विस्तार से बताया गया है कि किस तरह के कर्म व्यक्ति को नर्क में ले जाते हैं और कौन से कर्म उसे स्वर्ग दिलाते हैं. यही वजह है गरुड़ पुराण को महापुराण कहा गया है क्योंकि यह जिंदगी, मौत और मौत के बाद आत्मा के सफर के बारे में भी बताता है. आइए उन कर्मों के बारे में जानते हैं जिन्हें गरुड़ पुराण में महापाप का दर्जा दिया गया है.भ्रूण हत्याकोख में ही बच्चे को मार देने से बड़ा कोई पाप नहीं है. गरूड़ पुराण में इसे महापाप का दर्जा दिया गया है. ऐसा करने वालों को नर्क में बेहद कष्टदायी यातनाएं सहनी पड़ती हैं. लिहाजा ऐसी गलती भूलकर भी न करें.महिला का अपमानसनातन धर्म में महिला का अपमान करने को बहुत ही बुरा माना गया है. उस पर असहाय, विधवा महिला का अपमान करने वालों को नर्क में भी जगह नहीं मिलती है. ऐसे लोगों की आत्मा भटकती रहती है और बहुत यातनाएं सहती है.असहायों का अपमानकिसी भी विकलांग, बुजुर्ग या असहाय व्यक्ति का अपमान करना, उनका मजाक उड़ाना नर्क में जाने का इंतजाम करना है. ऐसे लोगों को नर्क में बहुत दुख भोगने पड़ते हैं.धर्म-ग्रंथ का अपमानगरुड़ पुराण में कहा गया है कि हर व्यक्ति को अपने मनमुताबिक धर्म मानना चाहिए लेकिन गलती से भी उसे किसी दूसरे धर्म या ग्रंथ का अपमान नहीं करना चाहिए. ऐसा करना उन्हें नर्क में जगह दिलाने के लिए काफी है.पराई महिला को बुरी नजर से देखनापराई महिला को बुरी नजर से देखना, उसके साथ जबरदस्ती करना महापाप है. यह उस महिला का अपमान है. ऐसा करने वाले लोगों को नर्क में बहुत यातनाएं दी जाती हैं.==
- एक कहावत है कि घर वह स्थान है जहां आपका दिल बसता है और इस सत्यता से शायद आप सभी लोग सहमत हैं। दिन की शुरुआत हो या अंत सभी को अपना घर प्रिय होता है, चूंकि हमारा घर इतना महत्वपूर्ण है, हम इसे अपने आसपास की बुरी नजर या नकारात्मक ऊर्जा से बचाने के लिए लगातार तनाव में रहते हैं। वास्तु के अनुसार कुछ ऐसी चीजें हैं जिसे आप अपने घर को किसी भी प्रकार के नकारात्मक वाइब्स से सुरक्षित रखने के लिए कर सकते हैं। वास्तु शास्त्र कहता है कि अक्सर कई ऐसी बातें होती हैं जिससे घर को नजर लग जाती हैं। इससे बचने के लिए अपनाएं ये उपाय...1. शुभता का प्रतीक बांस का पौधाशुभता का प्रतीक बांस का पौधा सबसे लोकप्रिय पौधों में से एक है जो घर में सौभाग्य, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा लाने के लिए जाना जाता है। इस कारण से, यह भारत में सबसे लोकप्रिय इनडोर प्लांट है। यह न केवल एक वास्तु पौधा है बल्कि एक फेंगशुई पौधा भी है। वास्तु के अनुसार, यह घर में सौभाग्य लाता है और निवासियों को बुरी नजर और नकारात्मक ऊर्जा से बचाता है। वैसे तो बांस के इस पौधे को आप अपने घर में कहीं भी रख सकते हैं लेकिन इसे अलग-अलग कोनों में रखने से अलग-अलग फायदे होते हैं। यदि आप अपने घर के पूर्वी कोने में बांस का पौधा लागते हैं तो यह मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करेगा। यदि आप इसे दक्षिण-पूर्व में रखते हैं तो यह वित्तीय स्थिरता और परिवार में समृद्धि लाने में मदद करेगा।2. नमक से दूर होती है नकारात्मक ऊर्जाऐसा माना जाता है कि कमरे के कोनों और कालीनों में नमक छिड़कने से भीघर में से नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है। दो घंटे बाद इसे साफ कर लें। माना जाता है कि नमक के क्रिस्टल में नकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित करने की प्राकृतिक क्षमता होती है। इसके अलावा, प्रवेश द्वार के पास कुछ समुद्री नमक रखकर और इसे कपड़े या डोरमैट से ढंकने से नकारात्मक ऊर्जा दूर रहती है।3. ताजे फूल बुरी ऊर्जा को करते हैं दूरहम अक्सर घर में रखे फूलदान में ताजे फूल लगाते हैं, लेकिन दो तीन दिन बाद फूल सूखने लगते हैं। ऐसे में आपको उन सूखे फूलों को तुरंत हटा देना चाहिए। घर हो या ऑफिस, कभी भी सूखे फूल नहीं रखने चाहिए क्योंकि ये नकारात्मकता फैलाते हैं। अच्छी ऊर्जा का प्रवाह बनाए रखने के लिए उनके स्थान पर ताजे फूल लगाएं। ऐसा माना जाता है कि चारों ओर ताजे फूल रखने से वे अपने आस-पास के लोगों को सकारात्मक ऊर्जा देते हैं। अगर कोई सूखा फूल हो तो नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव उन लोगों पर पडऩे लगता है जो उनके करीब होते हैं।4. सफेद मोमबत्तियां काटती हैं नेगटिव एनर्जीअपने घर में सफेद मोमबत्तियां जलाएं, यह घर के माहौल खुशनुमा माहौल बनाता है। मोमबत्तियां लगाने से घर में ऊर्जा का संतुलन बना रहता है। वे नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर उसे सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित करते हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार मोमबत्ती से निकलने वाली ऊर्जा नकारात्मक ऊर्जा को काटती है, जिससे सकारात्मक ऊर्जा अपने आप बढ़ जाती है। लेकिन मोमबत्ती लगाने के लिए जगह का चुनाव करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए। घर की पूर्व, उत्तर-पूर्व और दक्षिण दिशा में मोमबत्ती जलाने से घर में सुख-समृद्धि आती है।5. पानी का फव्वारा बुरी शक्तियों का प्रवेश रोकता हैपानी बुरी ऊर्जाओं को सोख लेता है, और वे बहते पानी से बह जाते हैं। जब आप पर्यावरण को शुद्ध करते हुए शांति चाहते हैं, तो सबसे अच्छा विकल्प अपने घर में एक फव्वारा लगाएं, हो सके तो अपने घर के मुख्य द्वार के पास फव्वारा लगाएं। यह प्रवेश द्वार पर नकारात्मक ऊर्जा को रोकने में मदद करेगा और इसे आपके घर में प्रवेश करने से रोकेगा। फव्वारे को सही दिशा में लगाना महत्वपूर्ण है ताकि यह मुख्य द्वार पर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह कर सके। फाउन्टेन में पानी का प्रवाह निरंतर होना चाहिए।6. एससेंशियल ऑइल देता है मन का सुकूनविशेष रूप से एससेंशियल ऑइल सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देने का कार्य करता है। जब भी हमें एक कायापलट की आवश्यकता होती है और घर में सकर्तमाक ऊर्जा की छह होती है तो हम स्वीट ऑरेंज जैसे एससेंशियल ऑइल इस्तेमाल में ल सकते हैं। वातावरण में शांति लाने के लिए एससेंशियल ऑइल सहयोगी हैं, और उनकी सुगंध अच्छे स्वास्थ्य या भाग्य जैसी सकारात्मक चीजों को आकर्षित कर सकते हैं। एससेंशियल ऑइल इस्तेमाल करने वाले लोगों के जीवन में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीं होता है।7. अगरबत्ती जलानाहमारे वातावरण में नकारात्मक ऊर्जाओं को शुद्ध करने और सकारात्मक ऊर्जाओं को आकर्षित करने का एक और तरीका है धूप जलाना। माना जाता है कि सफेद धुएं से शारीरिक और मानसिक दोनों तरह के स्वास्थ्य लाभ होते हैं। सुगंध एक आध्यात्मिक और ध्यानस्थ स्थिति को प्राप्त करने में भी मदद करती है। अगरबत्ती की सुगंध ऊर्जा को बढ़ाती है और चारों ओर शांति की भावना फैलाती है।8. सिरका बुरी ऊर्जा को रखता है दूरनींबू, सिरका और सोडियम बाइकार्बोनेट (बेकिंग सोडा) को मिलाकर आप अपने घर को बुरी नजर से बचाने और साफ करने के लिए एक प्रभावी रूप से इस्तेमाल कर सकते हैं। इन तीन सामग्रियों से प्राप्त मिश्रण का उपयोग फर्श और अन्य सभी सतहों को साफ करने के लिए किया जा सकता है। यह आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश रोकेगा।
- हस्तरेखा विज्ञान का सबसे अच्छा उपयोग जीवन में बीमारियों और अप्रत्याशित घटनाओं की भविष्यवाणी करने के लिए पहले इस्तेमाल किया जाता था। केवल एक विद्वान हस्तरेखाविद् ही प्रत्येक को सटीक रूप से भेद करने में सक्षम होगा। हस्तरेखा विज्ञान में आपको हाथ की रेखाओं के जरिए अपने भविष्य की बहुत सी जानकारी प्राप्त हो जाती है। जैसे विवाह, करियर, आयु, संतान आदि। हर नवविवाहित दंपति की तमन्ना होती है कि उनको जल्द ही संतान की प्राप्ति हो। किसी भी ज्योतिषी से नवविवाहितों का पूछा जाने वाला पहला प्रश्न संतान के बारे में ही होता है। आपके इन सभी सवालों के जवाब जन्म कुंडली के अतिरिक्त हस्तरेखाओं में भी मिलेगा। आइए जानते हैं कहां होती है हथेली पर संतान रेखा और कैसे संकेत देती हैं ये रेखाएं।हथेली में कहां होती है संतान रेखासामुद्रिक शास्त्र के अनुसार हथेली में कनिष्ठिका अंगुली के मूल में बुध पर्वत पर ऊपर की ओर स्थित रेखा को संतान रेखा कहा जाता है। यह रेखा स्पष्ट होनी चाहिए। आपके हाथ में जिनती संतान रेखा होंगी, भविष्य में आपके उतने ही बच्चे होंगे। संतान का विचार शुक्र पर्वत पर स्थित रेखाओं से भी किया जाता है। हथेली के बाहर की ओर से भीतर आने वाली हॉरिजेंटल लाइन विवाह रेखा कहलाती है।हथेली पर स्थित संतान रेखा क्या संकेत देती हैसमुद्र शास्त्र के अनुसार रेखाएं जितनी सीधी और गहरी होती हैं, वे पुत्र संतान का प्रतीक होती है वहीं रेखाएं जितनी हल्की या बारीक होती हैं वो कन्या संतान की संख्या दिखती हैं। हस्तरेखा विशेषज्ञ की मानें तो संतान रेखाएं साफ, स्पष्ट, बिना कटी-फटी होनी चाहिए। ऐसी रेखाएं उत्तम संतान का प्रतिनिधित्व करती हैं। समुद्राशास्त्र कहता है यदि हथेली में स्थित संतबन रेखा पर द्वीप चिह्न होता है, वां संतान के खराब स्वास्थ्य को दर्शाती हैं। यदि आपकी हथेली में संतान रेखा पर तिल है तो ऐसा होने से संतान प्राप्ति में समस्या उत्पन्न होती है। यदि आपकी हथेली में संतान रेखाएं कटी फटी है तो संतान सुख प्राप्त नहीं होता। समुद्रशास्त्र के अनुसार हथेली में जो संतान रेखाएं स्थित हा वो नीचे से ऊपर जाता है और यदि यह अंत में जाकर 2 भागों में विभक्त हो जाती हैं तो संतान को भारी संकट का सामना करना पड़ सकता है।हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार यदि संतान रेखा पर लाल तिल है तो जातक की संतान अल्पायु हो सकती है। जिन लोगों का बुध पर्वत उभरा हुआ होता है उनकी चार संतानें होती है। वहीं जिन लोगों का शुक्र पर्वत उभरा हुआ होता है उन्हें एक संतान प्राप्त होती है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 439
महत्वपूर्ण बिन्दु :• प्रेम का स्वरूप कैसा हो?• प्रेम मार्ग की अनिवार्य शर्तें क्या हैं?• भक्ति शब्द का अर्थ क्या है?....आदि प्रश्नों पर जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा मार्गदर्शन!!
प्रेम की परिभाषा में दो बातें खास हैं। एक तो निरंतर हो, और एक, निष्काम हो। अपने सुख की कामना न हो। अपने सुख की कामना आई तो अपना सुख पूरा हुआ सेंट परसेन्ट, तो प्यार सेंट परसेन्ट। अपना सुख अगर उससे कम सिद्ध हुआ, तो प्रेम कम। बिल्कुल नहीं सिद्ध हुआ स्वार्थ उससे, प्रेम कम। यह तो संसार में होता है, यह तो व्यापार है। हम चाय में, दूध में एक चम्मच चीनी डालें, थोड़ी मीठी। दो चम्मच डाला, और मीठी हो गई। तीन चम्मच डाला, और मीठी हो गई। यह तो ऐसा बिजनेस है। यह प्रेम नहीं। इसलिये एक दिन में दस बार आपका प्रेम स्त्री से, पति से, बाप से, बेटे से, अप-डाउन, अप-डाउन होता रहता है। स्वार्थ की लिमिट के अनुसार।
तो सबसे पहली शर्त है, अपने सुख को छोड़ना होगा। यहीं हम फेल हो जाते हैं। अनंत बार भगवान मिले हमको, अनंत बार संत मिले हमको। हम उनके पास गये लेकिन अपने सुख की कामना, अपने स्वार्थ की कामना लेकर गये।
आज हमारे संसार में करोड़ों लोग भगवान के भक्त दिखाई पड़ते हैं। वो चाहे खुदा को मानें, चाहे गॉड को मानें, चाहे राम-श्याम को मानें, लेकिन 99.9 परसेन्ट लोग अपनी कामना ले के जाते हैं भगवान के मन्दिर में।
हमारे इण्डिया में एक तिरुपति मन्दिर है। ओ, वहाँ करोड़ों की भेंट चढ़ती है। एक-एक आदमी करोड़-करोड़ रुपया दान करता है। क्यों? यह हल्ला मचा हुआ है कि यह हमारे संसार की जो भी हमारी कामना होगी, उसको पूरा कर देंगे। बस, भीड़ चली आ रही है। अरे जो लोग मर जाते हैं बाबा लोग, फ़क़ीर लोग, और कहीं उनकी हड्डी है गड़ी हुई, वहाँ जाते हैं लोग। ये हमारी इच्छा पूरी कर देंगे। सब सकाम। और वह कामना भी भगवान सम्बन्धी हो, तो कोई बात नहीं। संसार माँगने के लिये। धन मिले, प्रतिष्ठा मिले, वैभव मिले, इसके लिये जाते हैं। यही सबसे बड़ी रुकावट है प्रेम पाने में। अपनी कामना छोड़ना होगा। नारद जी ने प्रेम की परिभाषा की;
न सा कामयमाना।
नारद भक्ति का सातवाँ सूत्र। कामना-रहित होना चाहिये। कामना आई, तो उसका नाम भक्ति नहीं। उल्टा हो गया यह तो। भक्ति शब्द का अर्थ है, सेवा। सेवा माने क्या होता है? जैसे एक माँ छोटे से बच्चे की सेवा करती है। इस समय बच्चा कुछ नहीं सेवा करता माँ की, माँ सेवा करती है। ऐसे ही, हम अगर दास हैं शास्त्र वेद के अनुसार भगवान के, तो हम भगवान की सेवा करना चाहते हैं न। तो सेवा में भगवान को सुख देने की भावना होनी चाहिये, अपने सुख देने की नहीं। अपने को सुख देने की भावना कर-करके अनन्त जन्म दुःखी रहे। अगर भगवान के सुख देने की भावना करके भगवान से प्यार करते, तो अनन्त बार भगवत्प्राप्ति हो गई होती!!
• सन्दर्भ ::: 'साधन साध्य' पत्रिका, अक्टूबर 2013 अंक
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -*(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 438
★ भूमिका - आज के अंक में प्रकाशित दोहा तथा उसकी व्याख्या जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ग्रन्थ 'भक्ति-शतक' से उद्धृत है। इस ग्रन्थ में आचार्यश्री ने 100-दोहों की रचना की है, जिनमें 'भक्ति' तत्व के सभी गूढ़ रहस्यों को बड़ी सरलता से प्रकट किया है। पुनः उनके भावार्थ तथा व्याख्या के द्वारा विषय को और अधिक स्पष्ट किया है, जिसका पठन और मनन करने पर निश्चय ही आत्मिक लाभ प्राप्त होता है। आइये उसी ग्रन्थ के 17-वें दोहे पर विचार करें, जिसमें आचार्यश्री ने यह बताया है कि भगवान के नाम, रूप, लीला, गुण, धाम एवं उनके संत सभी भगवान के ही स्वरूप हैं और सबमें सबका नित्य वास रहा करता है...
हरि को नाम रूप गुन, हरिजन नित्य निवास।सबै एक हरि रूप हैं, सब में सब को वास।।17।।
भावार्थ - श्री कृष्ण एवं उनके नाम, रूप, गुण एवं धाम तथा भक्त सब एक ही हैं। क्योंकि सब में सब का नित्य निवास है।
व्याख्या - श्री कृष्ण स्वयं सच्चिदानंद ब्रह्म हैं। उनकी सभी वस्तुओं का स्वरूप भी तद्रूप है। साधारण लोग समझते हैं कि संसार की भाँति उनके धामादि जड़ हैं किंतु ऐसा नहीं है। उनकी लकुटी , मुरली आदि सभी चेतन एवं श्रीकृष्ण स्वरूप हैं। जो कार्य श्रीकृष्ण कर सकते हैं , वही कार्य उनकी लकुटी एवं मुरली आदि भी करने में समर्थ हैं। अत: इनमें कोई छोटा - बड़ा नहीं है। जब दो ही नहीं है तो छोटे बड़े का प्रश्न ही कहाँ? विनोद में तो कोई श्री कृष्ण को, कोई उनके नाम को , कोई उनके भक्त को बड़ा कह देता है। किंतु वास्तव में भेदभाव मानना नामापराध है। आप कहेंगे कि यदि सब एक हैं तो उनके नामादि से हमारा काम क्यों नहीं बनता? इसका कारण हमारी इंद्रिय मन बुद्धि का मायिक होना है। हम विश्वास ही नहीं कर पाते। सभी जीवों के भीतर भी श्री कृष्ण सदा हैं। एवं अवतार काल में भी सब ने साकार रूप से भी अनंत बार देखा है। किंतु कभी विश्वास नहीं किया।
कवनिउ सिद्धि कि बिनु विश्वासा।
यदि सही गुरु मिल जाय और हम उस पर विश्वास कर लें, तभी हमारा लक्ष्य प्राप्त होगा। अन्यथा असंभव है।
• सन्दर्भ ::: 'भक्ति शतक' ग्रन्थ, दोहा संख्या 17
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - घर से लेकर व्यापार तक हर एक चीज में वास्तु का हाथ होता है। इतना ही नहीं घर की घड़ी, सीढिय़ां, अलमारी, घर का रंग, पूजा घर, मूर्तियां आदि सभी चीजों का वास्तु के हिसाब से अलग-अलग महत्व है और सबकी एक खास दिशा निर्धारित है। अगर वास्तु के अनुसार हर एक दिशा का सही से पालन किया जाए तो फायदा होता है। ऐसे ही एक चीज है कैलेंडर, जिसका भी वास्तु में काफी महत्व है और इसकी भी वास्तु के अनुसार एक दिशा निर्धारित है और अगर गलत दिशा में इसे लगाया गया तो इसका नुकसान भुगतना पड़ सकता है। अगर सही दिशा में कैलेंडर लगाया गया तो घर में सुख-शांति रहती है।वास्तु के अनुसार किस दिशा में कैलेंडर लगाना सही रहता है?वास्तु के अनुसार कैलेंडर को हमेशा उत्तर, पूर्व या पश्चिम की दीवार पर लगाना सही रहता है। अगर आप सामाजिक कार्यों से जुड़े रहना चाहते है तो कैलेंडर को पूर्व दिशा में लगायें। नए अवसरों को प्राप्त करने के लिए और बिजऩस में प्रोमोशन पाने के लिए कैलेंडर को उतर दिशा में लगाना चाहिए। घर में धन को बढाने के लिए और पैसे की सेविंग करने के लिए कैलेंडर को पश्चिम दिशा में लगाना चाहिए।वास्तु के अनुसार इस दिशा में भूलकर भी कैलेंडर ना लगायेंकैलेंडर को कभी भी दक्षिण दिशा में नहीं लगाना चाहिए। अगर आपने गलती से भी कैलेंडर को दक्षिण दिशा की दीवार पर लगा दिया है तो उसे तुरंत हटा दें। माना जाता है कि इससे इंसान का बुरा वक्त शुरू हो सकता है। वास्तु के अनुसार कैलेंडर और घड़ी को कभी भी दक्षिण दिशा में नहीं लगाना चाहिये।वास्तु के अनुसार कैलेंडर से जुडी कुछ ख़ास बातें-कैलेंडर को कभी भी दरवाजे के आगे या पीछे नहीं टांगना चाहिए, इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा आती है जिससे घर में तनाव का माहौल रहता है।-कैलेंडर में दिन या तारीख देखते समय आपका मुंह हमेशा उत्तर, पूर्व और पश्चिम दिशा में ही होना चाहिए। ध्यान रहे दक्षिण दिशा में मुंह होना वास्तु के हिसाब से अशुभ माना जाता है।-कैलेंडर खरीदते समय इस बात का ख़ास ध्यान रखें की इस पर किसी जंगली जानवर और किसी तरह की हिंसक तस्वीर ना हो।-कैलेंडर पर कभी भी रोते हुए लोगों की और उदास लोगों की तस्वीर नहीं होनी चाहिए। ऐसा कैलेंडर घर में वास्तुदोष उत्पन्न करता है जिसे घर में नकारात्मकता फैलती है और घर में तनाव का माहौल रहता है।-सही दिशा में ही कैलेंडर टांगना चाहिए, इससे आपके जीवन में सुख-शांति रहती है और पॉजिटिव ऊर्जा मिलती है। कैलेंडर को गलत दिशा में लगाने से आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।-फटा हुआ कैलेंडर कभी भी घर में नहीं रखना चाहिए। इससे घर में वास्तुदोष उत्पन्न होता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 437
★ भूमिका - निम्नांकित पद भक्तियोगरसावतार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ के 'सिद्धान्त-माधुरी' खण्ड से लिया गया है। 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ में आचार्य श्री ने कुल 21-माधुरियों (सद्गुरु, सिद्धान्त, दैन्य, धाम, श्रीकृष्ण, श्रीराधा, मान, महासखी, प्रेम, विरह, रसिया, होरी माधुरी आदि) में 1008-पदों की रचना की है, जो कि भगवत्प्रेमपिपासु साधक के लिये अमूल्य निधि ही है। इसी ग्रन्थ के 'धाम माधुरी' का यह पद है, जिसमें रसिकवर श्री कृपालु महाप्रभु श्रीकृष्ण की ठकुरानी महारानी श्रीराधारानी के दिव्य चिन्मय बरसाना धाम की माधुर्यता का वर्णन कर रहे हैं। यह बरसाना धाम किस प्रकार रसिकजनों सहित भगवान श्रीकृष्ण के लिये आराध्य है, आइये इस रसमय पद का चिंतन करते हुये स्मरण करें......
हमारो माई, श्री बरसानो गाम ।महरानी राधा ठकुरानी, सरस सुखद अभिराम ।गहवर-वन वृषभानुकुंड वर, प्रेमसरोवर ठाम ।विधि हरि हर दुर्लभ रजधानी, श्री वृन्दावन धाम ।विहरत निज स्वामिनि सँग कुंजनि, पुंजनि आठों याम ।डगर बुहारत पंथ निहारत, रहत ब्रम्ह घनश्याम ।छके 'कृपालु' प्रेम रस डोलत, लै लै राधे नाम ।।
भावार्थ ::: अरी माई ! मेरा तो ग्राम बरसाना है. राधा ठकुरानी जो प्रेम की निधि एवं आनंद की खान हैं, वे ही हमारी महारानी हैं. यहाँ गहवर वन, वृषभानुकुण्ड एवं प्रेम सरोवर आदि दिव्य स्थान हैं. ब्रम्हा, विष्णु, शंकर से भी अप्राप्य श्री वृन्दावन धाम हमारी राजधानी है. जहाँ हम किशोरी जी के साथ दिन-रात विविध कुंजों में रास का रसास्वादन करते रहते हैं. ब्रम्ह श्रीकृष्ण ही वहाँ किशोरी जी के लिए झाड़ू लगाते हुए मार्ग साफ़ करते हैं तथा उनकी प्रतीक्षा करते हैं. 'श्री कृपालु जी' कहते हैं कि हम भी 'राधे, राधे' कहते हुए प्रेम-रस-मदिरा में उन्मत्त वहाँ डोला करते हैं..
• सन्दर्भ ::: प्रेम रस मदिरा, धाम माधुरी, पद 5)जगद्गुरुत्तम् स्वामी श्री कृपालु जी महाराज विरचित
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - कार्यक्षेत्र या व्यापार में पूरी मेहनत और पूरे प्रयास करने के बाद भी सफलता नहीं मिल रही या फिर साथियों से अनबन, अधिकारियों से तकरार की स्थिति अक्सर बन जाती है तो ऐसे में सावधान हो जाएं। करियर में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए कुछ आसान से वास्तु उपाय अपना जा सकते हैं।कार्यक्षेत्र या व्यापार में उन्नति का संबंध सूर्यदेव से जुड़ा माना जाता है। इससे आपका सूर्य मजबूत होगा और नौकरी में आ रही सभी विघ्न बाधाएं दूर होंगी। सूर्यदेव को प्रसन्न करने के लिए रोजाना तांबे के लोटे में रोली और लाल फूल डालकर सूर्यदेव को जल अर्पित करें लेकिन ध्यान रखें कि जल के छींटे पैरों पर न पड़ें। गुरुवार के दिन बेसन के लड्डू, चने की दाल और पीले रंग के वस्त्रों का दान करें। रविवार के दिन मसूर की दाल का दान करें। कहीं भी काम पर जाने से पहले हल्दी का टीका अपने माथे पर लगाएं।नौकरी में स्थिरता के लिए सौंफ का दान करें। दफ्तर में काम करते समय आपका मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए। लगातार तीन शनिवार पीपल के पेड़ के नीचे तेल का दीपक जलाएं। रविवार को भगवान सूर्य को तांबे के लोटे से जल अर्पित करें। जल में अक्षत, काला तिल और लाल फूल अर्पित करें। करियर में तरक्की के लिए हरा रंग शुभ माना जाता है। कार्यस्थल पर हरे रंग के कपड़े का अधिक इस्तेमाल करें। रोजाना गाय को हरा चारा या गुड़ घी और चना खिलाएं। प्रतिदिन हनुमान चालीसा एवं रोजाना गायत्री मंत्र का जाप करें। घर के सभी सदस्यों को धरती पर बैठकर एक साथ भोजन करना चाहिए। इससे परिवार के सभी सदस्यों की उन्नति होती है। कार्यक्षेत्र की परेशानियां दूर हो जाती हैं।
- --हाथों में अनेक रेखाएं और इनसे बनने वाले निशान होते हैं। रेखाओं के साथ-साथ पर्वतों की स्थिति और उनका उभार भी भाग्य को प्रभावित करते हैं। यदि पर्वत और रेखाएं दोनों अच्छी स्थिति में हों तो इसका असर पूरे जीवन में पड़ता है। जानिए हाथों की रेखाओं की अच्छी स्थिति में होने का प्रभाव और जीवन में उसका फल।--यदि हाथ में जीवन रेखा अच्छी और पुष्ट स्थिति में है तो जीवन भी अच्छा रहता है। दोष रहित और लंबी जीवन रेखा दीर्घायु होने का संकेत देती है। यदि जीवन रेखा को अत्यधिक रेखाएं काट रही होती हैं तो यह परेशानियों का संकेत देती हैं। गहरी जीवन रेखा रोमांच का संकेत देती है।-लंबी हृदय रेखा भी अच्छी मानी गई है। लेकिन यदि हृदय रेखा बहुत लंबी होकर हथेली के दोनों किनारों को स्पर्श करे तो ऐसा व्यक्ति अपनी जीवनसाथी पर ज्यादा निर्भर रहता है। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार बहुत छोटी हृदय रेखा व्यक्ति को स्वार्थी बनाती है।-स्पष्ट और लंबी मस्तिष्क रेखा व्यक्ति को प्रतिभाशाली बनाती है। ऐसा व्यक्ति हर काम को सोच-समझकर करने वाला होता है। अधिक लंबी मस्तिष्क रेखा व्यक्ति को सफल और साहसी बनाती है। अगर मस्तिष्क रेखा थोड़ा घुमाव लिए हो तो व्यक्ति रचनात्मक प्रवृत्ति का होता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 436
महत्वपूर्ण बिन्दु :• भाव भक्ति के 7 लक्षण• भक्ति मार्ग की सर्वोत्कृष्टता• सम्पूर्ण शरणागति का स्वरूप....आदि प्रश्नों पर जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा मार्गदर्शन!!
भाव भक्ति का पहला लक्षण है - सहनशीलता। अर्थात क्रोध का कारण हो पर क्रोध न आये। कोई हमारा अपमान की और हमारे ऊपर कोई प्रभाव न हो, तो समझना चाहिये कि हम भाव भक्ति में प्रवेश कर रहे हैं। भाव भक्ति का दूसरा लक्षण है - एक क्षण को भी संसारी विषयों में रुचि न उत्पन्न हो, एक क्षण भी व्यर्थ न हो, भगवान और गुरु का ही चिंतन रहे। एक क्षण को भी मन भगवान के क्षेत्र से बाहर न जाये। संसार में अपना कर्तव्य करो, पर मन का लगाव केवल भगवान और गुरु में रहना चाहिये। समय का मूल्य हृदय से मानना चाहिये।
भाव भक्ति का तीसरा गुण है - विरक्ति। अर्थात संसार के समस्त विषयों की रुचि समाप्त हो जाये। उद्धव परमहंस भगवान श्रीकृष्ण से कहते हैं कि आपका प्रसाद रूप, सब कुछ सेवन करके मैं आपकी माया को चुनौती दूँगा, वो मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। अर्थात संसार के पदार्थों का उपभोग करने पर भी उनमें मन की आसक्ति न हो। भक्तों में भी सर्वश्रेष्ठ भक्त वो है जो संसार के विषयों का भगवान का प्रसाद रूप मानकर ग्रहण करे और मन में उन संसारी विषयों के प्रति रुचि या आनंद की भावना न हो। शरीर को भोजन देना अनिवार्य है, अन्यथा साधना में विघ्न उत्पन्न होगा। विरक्ति अर्थात संसार के विषयों में मन की आसक्ति न हो।
भाव भक्ति का चौथा गुण है - मानशून्यता। अर्थात सम्मान में विभोर न हो, अपमान में विभोर हो जाओ, जब ये अवस्था आ जाये तब समझो हम भाव भक्ति में गये। हमारा अपमान हो, ये भीतर से शौक पैदा हो और जब अपमान मिले तो विभोर हो जाओ। पाँचवाँ गुण है - आशाबन्ध; अन्तःकरण में निराशा न आने पाये, पूर्ण विश्वास होना चाहिये कि सफलता अवश्य मिलेगी। भाव भक्ति का छठा गुण है - समुत्कण्ठा, अर्थात हमारी आशा आगे की ओर बलवती होनी चाहिये और सातवाँ गुण है - नामगानेसदारुचि:। अर्थात भगवान के नाम में इतना माधुर्य का अनुभव हो कि लगातार उसको पीने पर भी तृप्ति न हो। इसी प्रकार भगवान के गुण में आसक्ति, उनके धाम में अनुराग अर्थात भगवान, उनका नाम, उनका रूप, उनका गुण, उनकी लीला, उनके धाम और उनके संत हमारा मन इतना अनुरक्त हो कि यदि निराशा का कारण भी हो तो निराशा न आने पाये। ये सब जब स्वतः होने लगे तो समझो कि भाव भक्ति पर हम पहुँच रहे हैं, पहुँच गये नहीं, अभी प्रवेश हो रहा है। अब अन्तःकरण शुद्ध होने लगा इसलिये ये सब बातें हो रही हैं।
इस प्रकार आगे बढ़ते हुये जब अन्तःकरण पूर्ण शुद्ध हो जायेगा, तब इन सब भाव भक्ति के अनुभावों में इतनी दृढ़ता आ जाती है कि फिर कोई इनको टस से मस नहीं करा सकता। जब भाव भक्ति की वो परिपक्व अवस्था आ जायेगी, तब उसी समय अन्तःकरण की शुध्दि हो जायेगी, उसी को कहते हैं सम्पूर्ण शरणागति। उस अवस्था में को अलौकिक प्रेम, दिव्य प्रेम मिलेगा जो ह्लादिनी शक्ति का सारभूत तत्व है, जिसके अधीन भगवान रहते हैं। मायाधीन जीव कर्म के बंधन में होता है, कर्म से परे ज्ञान, ज्ञान से परे मोक्ष, मोक्ष से परे भगवान, भगवान से परे प्रेम। प्रेम के अधीन भगवान, भगवान के अधीन मोक्ष, मोक्ष के अधीन ज्ञान, ज्ञान के अधीन कर्म, कर्म के अधीन जीव। सर्वोच्च कक्षा है, वो प्रेम की जो भगवान की भगवत्ता को समाप्त कर देती है।
• सन्दर्भ ::: जगदगुरु कृपालु परिषत द्वारा प्रकाशित मासिक सूचना पत्र, जुलाई 2012 अंक.
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 435
महत्वपूर्ण बिन्दु :• किन कामनाओं को त्यागना होगा?• रागानुगा भक्ति या नवधा भक्ति• कलियुग के लिये सर्वसुगम साधना....आदि पर जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा मार्गदर्शन!!
...भक्ति में सर्वाभिलाषिता शून्यं की शर्त है, अर्थात सब प्रकार की कामनाएँ त्याज्य हैं। सब प्रकार की कामनाएँ अर्थात दो ही कामनाएँ प्रमुख हैं - (1) भुक्ति और (2) मुक्ति। जितना संसार अर्थात माया का सुख एवं ऐश्वर्य है, इनकी कामना का नाम भुक्ति और संसार की बीमारी से मुक्त हो जाना मुक्ति।
इन दोनों कामनाओं को छोड़ दो तो आ गई भक्ति। सब प्रकार की कामनाओं से रहित होना है। वैधी भक्ति में ज्ञान, कर्म आदि सब दास बनकर रहेंगे, अनुगत बनकर रहेंगे, परंतु रागानुगा भक्ति में ज्ञान, कर्म आदि का स्पर्श भी नहीं रहेगा। वैधी भक्ति, गीता का सिद्धान्त है और रागानुगा भक्ति भागवत का सिद्धान्त है, भागवत परमहंस संहिता कहलाती है, परमहंस लोग जहाँ खड़े हैं, वहाँ से भागवत प्रारंभ होती है और गीता तो जहाँ अर्जुन आसक्तिवश अज्ञान अवस्था में खड़ा है, वहाँ से प्रारंभ होती है। अज्ञानी के लिये गीता और ज्ञानियों की अंतिम सीमा पर पहुँचे हुए जीवन्मुक्त शुकदेव परमहंस के लिये भागवत।
रागानुगा भक्ति में कोई विधि, कोई निषेध, कोई वैदिक कायदे-कानून नहीं। रागानुगा भक्ति वालों के लिये ज्ञान, कर्म, योग, तपश्चर्या सब त्याज्य है, इनका स्पर्श भी न होने पाये। शास्त्र वेद को समझना, फिर उसके अनुसार चलना, ये कलियुग में तो असंभव है। जो अपने को भीतर से निर्बल, असहाय, अकिंचन, निराधार स्वीकार कर ले, बस! उस पर कृपा हो जाती है। जब कभी ये संयोग बनेगा, कोई महापुरुष मिलेगा और उसके प्रति अनुकूल ही चिंतन होगा, तब शरणागति का अध्याय प्रारंभ होगा। तब उसके आदेश के अनुसार हम साधना करेंगे, तब हमारा अंतःकरण शुद्ध होगा, तब अपने लक्ष्य की प्राप्ति होगी। रागानुगा भक्ति में मोक्ष पर्यन्त की कामनाएँ न हो और ज्ञान, कर्म, योग, तपश्चर्या किसी प्रकार के साधन का हस्तक्षेप न हो।
नवधा भक्ति में भी स्मरण भक्ति है और साथ में कीर्तन भी महत्वपूर्ण है। जब हम महापुरुषों द्वारा रचित पदों को बार बार कहेंगे तो उनमें वर्णित लीला, गुण आदि का चिंतन कुछ न कुछ मात्रा में तो अवश्य होगा। इसलिये शास्त्रों वेदों में संकीर्तन का विशेष महत्व बताया गया है, परन्तु स्मरण प्रमुख है। इस प्रकार साधना भक्ति करने के पश्चात हम भाव भक्ति पर पहुँचते हैं। प्रेमाभक्ति और साधना भक्ति के बीच में है - भाव भक्ति। भाव भक्ति उसे कहते हैं जिसमें भगवान में मन लगने लगे। जिस दिन वो कीर्तन, भजन, स्मरण हमको न मिले, हम न करें तो परेशान हों कि आज का दिन तो व्यर्थ गया। मन लगाने का अभ्यास करना, ये साधना भक्ति और मन लगने लगना, ये भाव भक्ति और मन लग गया तो भाव भक्ति सम्पूर्ण हो गई, तब गुरुकृपा से वो प्रेमाभक्ति मिलती है। प्रेम कृपा साध्य ही है।
• सन्दर्भ ::: जगदगुरु कृपालु परिषत द्वारा प्रकाशित मासिक सूचना पत्र, जून 2012 अंक.
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - नए साल 2022 से हर किसी को अनेक उम्मीदें हैं। अब जब नए साल में कुछ ही दिन बचे हैं तो अभी से हर कोई सोचने लगा है कि आने वाले साल में वह क्या नया करें। आइए जानते हैं कि 2022 में घर और वाहन के मामले में भाग्य आपका कितना साथ देगा-मेषइस राशि के लिए वाहनों के लिए कारक शुक्र है। ऐसे में 2022 की शुरुआत में आपके लिए वाहन खरीदने की संभावना प्रबल है। इसके साथ ही वृहस्तपति 11वें घर में है जिस कारण से आप संपत्ति या घर खरीद सकते हैं।वृषभवृषभ राशि के जातकों के लिए यह वर्ष संपत्ति और वाहन के लिए शुभ रहने वाला है। इसके अलावा आप परिवार या रिश्तेदारों के समारोह में काफी खर्चा करने वाले हैं। हालांकि कोई बड़ा निवेश करने से पहले बहुत बार सोच लें। अगर संपत्ति को लेकर कोई बड़ा निर्णय लें तो किसी जानकार से सलाह जरूर ले लें।मिथुनइस राशि के जातकों के 11वें भाव पर शनि की दृष्टि होने के कारण इस वर्ष आपके पास सभी सुख-सुविधाएं होंगी। अप्रैल के बाद से गुरु की दिशा बदलने से आपकी किस्मत भी बदलने वाली है। जिस कारण से भवन और वाहन प्राप्ति की भी प्रबल संभावना बन रही है।कर्ककर्क राशि के जातक अपनी अधिकांश जरूरतों को अच्छी वित्तीय स्थिति से पूरा कर सकते हैं। आने वाले साल में भवन और वाहन खरीदने की प्रबल संभावना बन रही है। निवेश के लिए यह समय इन जातकों के लिए सबसे खास है।सिंहसिंह राशि के जातक काफी दिग्गज होते हैं जो अपने जीवन में अपने दिमाग में एक लक्ष्य बनाकर चलते हैं। ऐसे में अगर 2022 में ये संपत्ति और वाहनों को लेकर कोई निर्णय लेते हैं, तो शुभ साबित होगा।कन्याकन्या राशि के जातकों के लिए 2022 काफी शुभ रहेगा। दूसरे भाव में बृहस्पति और शनि की युति होने से आप काफी जगहों पर बचत करेंगे। जिससे आर्थिक स्थित मजबूत होगी। साल के अंत में आप संपत्ति को लेने का कोई भी फैसला लें।तुलातुला राशि के जातकों के लिए वाहन खरीदने और बेचने के लिए ये साल फलदायी साबित हो सकता है। हालांकि विरासत में मिली हुई संपत्ति को आप इस साल ना बेचें। इससे आपको सौदे में काफी तगड़ा नुकसान हो सकता है।वृश्चिकवृश्चिक राशि के जातकों के लिए वर्ष 2022 संपत्ति के मामले में शानदार वर्ष होगा। आप वाहन और घर दोनों को सही समय पर ले सकते हैं। आपके लिए घर या भवन खरीदने के लिए यह एक अच्छा वर्ष है। जो लोग कोई डील करना चाहते हैं, उन्हें साल के दूसरे भाग में सफलता मिलने की संभावना है।धनुधनु राशि के जातकों को गुरु के चौथे भाव में होने से संपत्ति अर्जित करने का बहुत बढिय़ा मौका है। आप पैतृक संपत्ति का लाभ प्राप्त हो सकता है। आप पूरी साल में कभी भी नया घर खरीद सकते हैं।मकरमकर राशि के जातकों के लिए संपत्ति खरीदने के दृष्टिकोण से साल 2022 अनुकूल रहने की संभावना है। हालांकि अप्रैल के बाद इनके लिए सभी स्थितियां अनुकूल होंगी। पैतृक संपत्ति से जुड़ी परेशानियों से मुक्ति मिलेगी।कुंभकुंभ राशि के जातकों के लिए संपत्ति के दृष्टिकोण से साल 2022 अच्छा रह सकता है। हालांकि इस राशि के जातकों को कुछ मामलों में थोड़ी परेशानी होने वाली है। जिस कारण से खर्च सोच समझकर ही करें। इस साल आपको सलाह दी जाती है कि हड़बड़ी में कोई संपत्ति न खरीदें अन्यथा नुकसान हो सकता है।मीनवर्ष 2022 मीन राशि के जातकों के लिए वाहन या संपत्ति खरीदने या बेचने के दृष्टिकोण से बेहद लाभदायक रहने की संभावना है। अप्रैल से लेकर सितंबर तक का महीना क्रय-विक्रय के कार्य हेतु अनुकूल रह सकता है।
- सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करने के लिए अपने परिवेश में वास्तु स्थापित करना बहुत महत्वपूर्ण है, जो हमारे जीवन में समृद्धि, विकास और खुशी लाने की शक्ति रखता है। आइये जानते हैं कि घर में सुख समृद्धि बनाए रखने के लिए आपको अपने घर में किन वस्तुओं को रखने से बचना चाहिए।-वास्तु के अनुसार आपके घर का मुख्य द्वार घर के बाहर मुख्य सड़क के समान स्तर या उससे ऊंचा होना चाहिए। यह मुख्य सड़क के निचले स्तर पर नहीं होना चाहिए। यदि आपका मुख्य द्वार वास्तु के इस सिद्धांत का पालन नहीं करता है तो इसे ठीक कर लें या आपको अपने घर और जीवन में बहुत सारी परेशानियों और उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ेगा।-विशेष रूप से भारत में घर के बाहर बिजली के खंभे और तारों का चलना एक आम बात है। यह खतरनाक ही नहीं आंखों के लिए भी खतरनाक है। इसके अलावा इन्हें खराब वास्तु भी माना जाता है। बिजली के खंभों के उलझे तारों की तरह आपका जीवन भी जीवन की समस्याओं और मुश्किलों में उलझा रहेगा। तारों और खंभों को अपने घर से दूर रखें या ऐसा घर लें जो बिजली के तारों और खंभों से दूर हो।-हम अपने घर के आसपास हरियाली रखना पसंद करते हैं। आपके आस-पास प्रकृति होना अच्छा है। लेकिन अपने घर के आसपास बड़े और घने पेड़ों से बचें। वास्तु के अनुसार यह ठीक नहीं है। बड़े और घने पेड़ धूप और ताजी हवा के प्रवाह में बाधा डालते हैं और इसके साथ ही सकारात्मक ऊर्जा और ताजी ऊर्जा का प्रवाह भी अवरुद्ध हो जाता है। अपने घर और उसके आस-पास छोटे-छोटे पेड़ लगाएं लेकिन यह सुनिश्चित करें कि यह ज्यादा मोटा न हो।-कांटेदार पौधे और कैक्टस आकर्षक लगते हैं लेकिन इसकी सुंदरता से मोहित नहीं होते हैं। घर के अंदर कभी भी कांटेदार पौधे न लगाएं, यहां तक कि बगीचे में भी नहीं। अगर आप वाकई इन्हें रखना चाहते हैं तो इसे घर के बाहर रख दें। माना जाता है कि कांटेदार पौधे परिवार में खराब स्वास्थ्य और संघर्ष लाते हैं।-अपने घर के बाहर गंदा पानी जमा न होने दें। यदि आपके पास एक पूल या टैंक है, तो सुनिश्चित करें कि पानी साफ और साफ है। वास्तु के अनुसार घर के अंदर और आसपास गंदा पानी नकारात्मकता को आकर्षित करता है और घर के लोगों में अपमान लाता है।-वास्तु के अनुसार, पत्थर रास्ते में परेशानी और रुकावट का संकेत देते हैं। घर के अंदर और बाहर पत्थर रखने से परिवार की सफलता के मार्ग में रुकावट आएगी। इससे आपको भी अपने जीवन में परेशानियों और समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। कोई कसर न छोड़ें और सफलता का रास्ता साफ करें।-अपने घर के अंदर और बाहर लताओं को उगाने से बचें। वास्तु का मानना है कि यह आपके शत्रुओं को जोड़ता है। हम स्पष्ट रूप से अपने जीवन में दुश्मन और दुश्मनी नहीं चाहते हैं। अपने घर और जीवन को लताओं से साफ रखें और शत्रुओं को दूर रखें।-हमारे घर में पुरानी वस्तुओं को रखने की प्रवृत्ति होती है। या तो यह एक स्मृति है जिसे हम उनसे जुड़े भावनात्मक मूल्यों के लिए संजोना चाहते हैं या हम यह मानते रहते हैं कि किसी दिन हमें उनकी आवश्यकता होगी। लेकिन वास्तव में वे हमारे घर का कचरा मात्र हैं जिनका हम कभी उपयोग नहीं करते हैं। यह हमारे घर में नकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करेगा जो जल्द ही वित्तीय परेशानी का कारण बन सकती है। अगर आप कर्ज और आर्थिक समस्याओं से बचना चाहते हैं तो इससे बचें।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 434
महत्वपूर्ण बिन्दु :• साधन भक्ति के प्रकार• भक्ति की अनिवार्य शर्त• भक्ति किसे करनी है?...आदि प्रश्नों पर जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा मार्गदर्शन!
...साधन भक्ति 2 प्रकार से की जाती है - (1) वैधी भक्ति और (2) रागानुगा भक्ति। शास्त्र वेद की विधि के अनुसार जो भक्ति की जाती है उसे वैधी भक्ति कहते हैं, अर्थात वर्णाश्रम धर्म का पालन भी करे और भक्ति भी करे। वैधी अर्थात विधि से युक्त; वेद के संविधान के अनुसार कर्म करना, ये वैधी भक्ति है। इसमें नरक और शास्त्र आदि का भय रहता है।
रागानुगा भक्ति में शास्त्र वेद के कायदे-कानून, वर्णाश्रम धर्म के विधि-निषेधात्मक कायदे-कानून, ये सब कुछ लागू नहीं होता। रागानुगा भक्ति, केवल भक्ति है। रागानुगा भक्ति में दो बातें प्रमुख हैं, (1) सर्वाभिलाषिता शून्यं, (2) ज्ञानकर्मद्यनावृतं।
सर्वाभिलाषिता शून्यं, अर्थात सभी कामनाओं रहित भक्ति। अर्थात अपने सुख की कामनाओं का त्याग। अपने सुख के लिये प्रेम करना, जो जीव का स्वभाव है, इसको बदलना होगा, इसके विपरीत अपने प्रेमास्पद के सुख के लिये ही प्रेम करना होगा। आनंद की कामना करना, ये जीव का स्वभाव है, परन्तु प्रियतम की सेवा करने से उनको जो आनंद प्राप्त हो, उसे देखकर हम आनन्दमय हों, ऐसा आनंद चाहना है। इस प्रकार का आनंद प्राप्त करने के लिये पाँचों मुक्तियाँ त्याज्य हैं।
सनकादिक परमहंसों ने भगवान से कहा कि हमें नरकवास प्रदान कर दीजिये, परन्तु मेरा मन आपके चरणारविन्द मकरन्द का मिलिन्द बना रहे, आपकी भक्तियुक्त नरक अनंतकोटि ब्रम्हानंद के बराबर है। कामनाओं को छोड़ना होगा, क्योंकि ये कामनाएँ अंतःकरण में रहती हैं और उस अंतःकरण से सेवा भावना पैदा करनी है तो जब तक कामनाओं का त्याग करके सेवा की कामना नहीं लाई जाएगी, तब तक साधना का स्वरूप ही नहीं बनेगा, साधना भक्ति प्रारंभ ही नहीं होगी।
साधना भक्ति मन से करनी है, वो वैधी भक्ति हो या रागानुगा भक्ति। नवधा भक्ति रागानुगा भक्ति वालों के लिये है और वही वैधी भक्ति वालों के लिये भी है। नवधा भक्ति में सबसे प्रमुख है - स्मरण। स्मरण के साथ चाहे जप करो, चाहे कीर्तन करो, चाहे श्रवण करो, जो चाहे करो, परन्तु स्मरण परमावश्यक है। मन ही भगवान का स्मरण करेगा और यदि स्मरण नहीं किया तो मन संसार में आसक्त रहेगा और इंद्रियों से कीर्तन आदि करने का कोई लाभ नहीं। मन की आसक्ति को ही भगवान देखते हैं, शारीरिक कर्म को देखा ही नहीं जाता। यदि मन का लगाव भगवान में है तो अर्जुन द्वारा करोड़ों हत्यायें करने को भी भगवान नहीं देखते। नवधा भक्ति में मन ही प्राण है, स्मरण साधना का प्राण है। नवधा भक्ति में स्मरण ही एकमात्र वास्तविक भक्ति है, उसके साथ जो करो। नवधा भक्ति को वैधी भक्ति वाला भी स्वीकार करेगा, इसी को रागानुगा भक्ति वाला भी स्वीकार करेगा, दोनों के लिये यही साधना है। यदि कामना रखकर भक्ति की तो फिर कामना की भक्ति हो रही ही, श्रीकृष्ण की भक्ति नहीं हो रही है।
यदि हम भगवान के समक्ष आँसू बहाकर संसार माँगते हैं, तो वो संसार की भक्ति है। भक्ति अर्थात मन का लगाव भगवान में हो। वेद कहता है कि कामनाओं को छोड़कर उपासना करनी है। मन से ही भगवान की उपासना करनी है और मन से ही संसार की कामना होती है, परन्तु मन एक है, चाहे संसार की कामना बना लो, चाहे भगवान की कामना बना लो। कामना बनाना, यही उपासना है, भक्ति है। भगवान की भक्ति अर्थात भगवान की कामना बनाना। वेद कहता है जो कामना होगी, उसी का संकल्प होगा, बार-बार उसी का चिंतन, मनन होगा और जितना चिंतन होगा, उतनी आसक्ति होगी, वही भक्ति है।
• सन्दर्भ ::: जगदगुरु कृपालु परिषत द्वारा प्रकाशित मासिक सूचना पत्र, मई 2012 अंक.
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - दिसंबर माह की पहली मासिक शिवरात्रि 2 तारीख को है. मासिक शिवरात्रि हर माह की कृष्णपक्ष का चतुर्दशी को पड़ती है. इस अवसर पर पार्वती और शिव की पूजा साथ में की जाती है. मान्यता है कि शिव और पार्वती की विशेष कृपा पाने के लिए मासिक शिवरात्रि बहुत खास है. इसके अलावा विवाह से संबंधित परेशानियां दूर करने के लिए भी मासिक शिवरात्रि विशेष है. जिन लोगों की शादी नहीं हो पा रही है या शादीशुदा लाइफ में कष्ट है, उनके लिए शिवरात्रि का व्रत खास है. मासिक शिवरात्रि के दिन शिव-पार्वती की पूजा के साथ-साथ कुछ खास उपाय करके शादी से जुड़ी तमाम समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है.मनचाहा वर पाने के लिएअगर शादी के लिए योग्य वर की तलाश पूरी नहीं हो रही है तो ऐसे में शिवरात्रि के दिन शिव-पार्वती की पूजा करें. इसके बाद रुद्राक्ष की माला से 'ओम् गौरी शंकराय नमः' का 108 बार जाप करें. जाप पूरा होने के बाद रुद्राक्ष को गंगाजल से साफ करकेलाल धागे में पिरोकर गले में धारण करें. जल्द शादी की बात बन सकती है.मैरिड लाइफ की समस्या दूर करने के लिएअगर वैवाहिक जीवन में बराबर समस्या आती रहती है तो उसे दूर करने के लिए शिव और पार्वती की तस्वीर पूजा स्थान पर रखें. इस तस्वीर की रोज पूजा करें. साथ ही रुद्राक्ष माला से "हे गौरी शंकर अर्धागिंनी यथा त्वं शंकर प्रिया तथा माम कुरू कल्याणी कान्त कान्ता सुदुर्लभम्" मंत्र का 108 बार जाप करें. नियमित तौर पर ऐसा करने से धीरे-धीरे वैवाहिक जीवन की समस्या दूर होने लगती है.शादी की अड़चन को दूर करने के लिएअगर शादी में किसी प्रकार की अड़चनें आ रही हैं तो इससे छुटकारा पाने के लिए किसी शिव मंदिर में 5 नारियल साथ लेकर जाएं. शिवलिंग के सामने आसन बिछाकर बैठें. शिव को जल आर्पित करने के बाद धतूरा, बेलपत्र आदि चाढ़ाएं. इसके बाद 'ओम् श्रीं वर प्रदाय श्रीं नमः' का पांच माला जाप करें. इसके बाद 5 नारियल शिवलिंग पर चढ़ाएं. इससे विवाह में आ रही अड़चनें दूर हो जाएंगी.
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 433
(भूमिका - विगत एक वर्षों से अधिक समय से प्रकाशित होती रहने वाली यह श्रृंखला पिछले तीन हफ्तों से किसी कारणवश अप्रकाशित रही, जिसका हमें अत्यंत खेद है। आप सभी ने जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत तत्वज्ञान का इस मंच पर पठन करके अपने आध्यात्मिक दृष्टिकोण, समझ और उन्नति में अवश्य ही लाभ प्राप्त किया होगा, ऐसा हमारा विश्वास है। पुनः इस श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुये आप सबकी सेवा में इसे प्रस्तुत किया जा रहा है। आशा करते हैं कि पहले की ही भाँति आप सभी सुधी पाठकगण स्वयं तो लाभ लेंगे ही, अपने परिचितों को भी इस ओर प्रेरित करेंगे...)
....भगवान तो महानतम बुद्धिमानों की बुद्धि से भी परे हैं, क्योंकि वह इन्द्रिय मन बुद्धि का विषय ही नहीं है। वह इन्द्रिय मन बुद्धि का प्रेरक, धारक आदि है। साथ ही साथ वह दिव्य है। भगवान सृष्टि के प्रत्येक परमाणु में व्याप्त हैं किन्तु हमारी इन्द्रिय मन बुद्धि प्राकृत होने के कारण उसका अनुभव नहीं कर पाती। जैसे पीलिया के रोगी को सफेद फूल की सफेदी का अनुभव नहीं होता, उसी प्रकार हमारे अन्दर जो त्रिगुण (सात्विक, राजस, तामस) है, बस हमें उन्हीं का सर्वत्र अनुभव होता है। जब तक ये माया का रोग समाप्त नहीं होगा, तब तक न तो हम सर्वव्यापक भगवान का अनुभव कर सकते हैं और न अवतार लेकर आने वाले राम, कृष्ण आदि की अलौकिकता का ही अनुभव कर सकते हैं। इसलिए शास्त्र वेद कहते हैं कि इस माया के रोग को दूर करो। जिनका यह रोग दूर हो जाता है वो सदा सर्वत्र कण कण में अपने इष्टदेव का दर्शन करते हैं।
रवं वायुमग्निं सलिलं महीं च, ज्योतींषि सत्त्वानि दिशो दृमादीन।सरितसमुद्रांश्च हरे: शरीरं, यत किंच भूतं प्रणमेदनन्यः।।(भागवत 11-2-41)
अर्थात आकाश में, पृथ्वी में, वायु में, अग्नि में, जल में, नदी, नाले, पहाड़ किसी भी वस्तु पर उस महापुरुष की दृष्टि जाती है तो वह उनमें साक्षात अपने इष्टदेव का ही दर्शन करता है। इसके अलावा उसको कुछ दिखाई नहीं पड़ता, कितनी ही आँखें बंद करे, कितना ही कान में उँगली डाल लो फिर भी सर्वत्र उनकी मुरली ही सुनाई पड़ेगी, उनके शब्द सुनाई पड़ेंगे। साकार भगवान के उपासक को हर इन्द्रिय से उनका अनुभव होगा।
दोष हमारा है कि हम माया के परदे के कारण भगवान की सर्वव्यापकता का अनुभव नहीं कर पाते। अतएव किसी श्रोत्रिय ब्रम्हनिष्ठ महापुरुष की शरण ग्रहण कर, श्रीराधाकृष्ण की निष्काम भक्ति की प्रैक्टिकल साधना करने से ही हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
• सन्दर्भ ::: जगदगुरु कृपालु परिषत द्वारा प्रकाशित मासिक सूचना पत्र, अप्रैल 2010 अंक.
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - अपने मकान का सपना हर किसी का होता है, लेकिन नया मकान बनाते समय बहुत सी चीजों का ध्यान भी रखना होता है। वास्तुशास्त्र ने मकान निर्माण के लिए कुछ नियम बताएं हैं। मकान बनाने की शुरुआत जमीन के चयन से होती है। हर कोई चाहता है कि नए मकान में प्रवेश करने के साथ ही उसके जीवन में खुशी, शुभता और सकारात्मकता का भी प्रवेश हो, लेकिन कई बार देखने में आता है कि नए मकान में प्रवेश करने के बाद एक के बाद एक समस्याएं आने लगती हैं। इसके पीछे जमीन खरीदते समय वास्तु दोष भी एक कारण हो सकता है। आज हम जानते हैं कि किस प्रकार की जमीन पर मकान बनाने से बचना चाहिए।ऐसी भूमि पर भूलकर भी नहीं बनाना चाहिए घर--जिस भूमि में खुदाई करते समय कोयला, हड्डियां, कपाल, भूसा आदि चीजें निकलें उस पर मकान नहीं बनाना चाहिए।-भूमि खरीदते समय देख लें कि उस पर या उसके आस-पास कोई पुराना कुंआ, खंडहर, शमशान, या कब्रिस्तान आदि न हो।-घर या प्लॉट खरीदते समय ध्यान रखें कि वह उत्तर मुखी या पूर्व मुखी होना चाहिए।-दक्षिण मुखी घर शुभ नहीं माना जाता है, इसलिए हो सके तो ऐसा मकान लेने से बचें।-जिस जमीन पर कांटेदार वृक्ष या कंटीली झाडिय़ां उगी हुई हो उसे मकान बनाने के लिए नहीं खरीदना चाहिए।-यदि जिस स्थान पर आप जमीन खरीद रहे हैं और उसके दक्षिण में हैंडपंप, कोई जलस्तोत्र जैसे तालाब आदि हो तो उसे खरीदने से बचना चाहिए।-गड्ढे वाली जमीन पर मकान बनाने से धन संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है इसलिए ऐसे स्थान पर मकान बनाने से बचें।
- मेष राशिमेष राशि वालों की बातों से सामने वाले बहुत जल्दी प्रभावित हो जाते हैं. इस राशि के लोगों में लीडरशिप क्वालिटी होती है. ये जानते हैं की समस्याओं का हल कैसे निकालना है. ये लोग बहुत ही एनर्जेटिक होते हैं और बहुत आत्मविश्वास के साथ काम करते हैं.सिंह राशि - इस राशि के लोगों में लीडरशिप क्वालिटी होती है. ये हर काम बहुत ही जुनून के साथ करते हैं. लोग इनकी बातों से बहुत जल्दी प्रभावित हो जाते हैं. यहीं कारण है कि ये लोग एक बेहतरीन लीडर की भूमिका निभाते हैं और बहुत जल्द सफलता हासिल कर लेते हैं.तुला राशिइस राशि के लोग बहुत ही समझदार होते हैं. ये हर काम सोच समझकर करते हैं. कोई भी फैसला लेने से पहले ये अपना फायदा और नुकसान देखते हैं. यही कारण है कि ये कार्यस्थल में बहुत ही जल्दी बॉस बन जाते हैं. लोग अक्सर इनकी राय लेना पसंद करते हैं.वृश्चिक राशिइस राशि के लोग बहुत ही बुद्धिमान होते हैं. इन लोगों के अंदर जन्म से ही लीडरशिप क्वालिटी होती है. इस राशि के लोगों को हर चीज अपने हिसाब से करना पसंद होता है. ये जीवन में अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहते हैं. इसी जुनून के चलते हैं ये करियर में बहुत तेजी से आगे बढ़ते हैं और कार्यस्थल में बहुत ही जल्दी बॉस बन जाते हैं.
- रुद्राक्ष शब्द हिंदू धर्म से संबंधित है. रुद्राक्ष वृक्ष और बीज दोनों ही रुद्राक्ष कहलाते हैं. संस्कृत में, रुद्राक्ष का अर्थ रुद्राक्ष फल के साथ-साथ रुद्राक्ष का पेड़ भी है. रुद्राक्ष का पेड़ नेपाल, इंडोनेशिया, जावा, सुमात्रा और बर्मा के पहाड़ों और पहाड़ी क्षेत्रों में उगता है. इसके पत्ते हरे रंग के और फल भूरे रंग के और स्वाद में खट्टे होते हैं. रुद्राक्ष के फल आध्यात्मिक मूल्यों के कारण मनुष्य को भी सुशोभित करते हैं.प्राचीन भारतीय शास्त्रों के अनुसार रुद्राक्ष भगवान शिव की आंखों से विकसित हुआ है, इसलिए इसे रुद्राक्ष कहा जाता है. रुद्र का अर्थ है शिव और अक्ष का अर्थ है आंखें शिव पुराण में रुद्राक्ष की उत्पत्ति को भगवान शिव के आंसू के रूप में वर्णित किया गया है. सभी प्राणियों के कल्याण के लिए कई वर्षों तक ध्यान करने के बाद जब भगवान शिव ने अपनी आंखें खोलीं, तो आंसुओं की बूंदें गिरी और धरती मां ने रुद्राक्ष के पेड़ों को जन्म दिया.शरीर और मन के लिए लाभदायकरुद्राक्ष शरीर में शक्ति उत्पन्न करता है, जो रोगों से लड़ता है जिससे स्वास्थ्य में सुधार होता है. आयुर्वेद के अनुसार रुद्राक्ष शरीर को मजबूत करता है. ये रक्त की अशुद्धियों को दूर करता है. ये मानव शरीर के अंदर के साथ-साथ बाहर के बैक्टीरिया को भी दूर करता है. रुद्राक्ष सिर दर्द , खांसी , लकवा, ब्लड प्रेशर और हृदय रोग से संबंधी समस्याओं को दूर करता है.रुद्राक्ष को धारण करने से चेहरे पर चमक आती है, जिससे व्यक्तित्व शांत और आकर्षक होता है. जप के लिए रुद्राक्ष की माला का इस्तेमाल किया जाता है. जप की प्रक्रिया जीवन में आगे बढ़ने के लिए आध्यात्मिक शक्ति और आत्मविश्वास को बढ़ाती है. इसलिए रुद्राक्ष के बीज स्वास्थ्य लाभ और आध्यात्मिक लाभ प्रदान करने के लिए उपयोगी हैं.रुद्राक्ष को धारण करने से पूर्व जन्म के पापों का नाश होता है जो वर्तमान जीवन में कठिनाइयों का कारण बनता है. रुद्राक्ष धारण करने से भगवान रुद्र का रूप प्राप्त कर सकते हैं. ये सभी पापों से छुटकारा पाने में मदद करता है और अपने जीवन में सर्वोच्च लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करता है.रुद्राक्ष बुराई और नकारात्मक प्रभाव को दूर करता हैरुद्राक्ष को आध्यात्मिक मनका माना जाता है. प्राचीन काल से आध्यात्मिक शक्ति, आत्मविश्वास, साहस को बढ़ाने और सकारात्मक दृष्टिकोण के निर्माण के लिए उपयोग किया जाता है.
- हम सभी ने एक शादी का सपना देखा है और हमने अपनी योजनाएं बना ली हैं. एक ड्रीमी शादी एक ऐसी चीज है जो हम में से हर कोई चाहता है.एक फिल्मी बॉलीवुड स्टाइल की शादी और हमारे अपने संगीत पर डांस और हमारे पास हमारे संगीत गीतों की लिस्ट है. हमारे पास हमारी सजावट की प्लानिंग है और हमारे ऑर्गेनाइजेशन और वो सभी बेहतरीन फोटोग्राफर हैं जिन्हें हम किराए पर लेना चाहते हैं. एक बार जब हम पाते हैं कि हम एक व्यक्ति से शादी करना चाहते हैं, तो ये सब योजना बनाने के लिए हमारे पास सभी शादी के ऐप्स हैं. हम में से बहुत से लोग चाहते हैं कि शादी किसी भी चीज से ज्यादा फिल्मी फील के लिए हो. भागने या फेरों को लेने के विचार से हमें चीख-पुकार मच जाती है.लेकिन हर कोई शादी के बारे में इतना सपना नहीं देखता है कुछ लोग अपने करियर पर ध्यान केंद्रित करते हैं जबकि दूसरे अपने करियर और जीवन और दूसरी चीजों पर ध्यान केंद्रित करते हैं. ये वो जगह है जहां राशि व्यक्तित्व खेल में आते हैं. कुछ राशियों के लोग अपनी शादी के लिए बस दीवाने होते हैं और बस इसके लिए इंतजार नहीं कर सकते और ये सिर्फ उनकी राशि के लक्षणों के साथ आता है.वो अपना ज्यादातर समय अपनी शादी की योजना बनाने और इसके बारे में सपने देखने में बिताते हैं.1. मेष राशिवो बहुत सहज होने के लिए जाने जाते हैं और उनका दिल बहुत बड़ा होता है. एक बार प्यार करने के बाद, वो आपको ये दिखाने के लिए नदियों को पार करेंगे कि वो आपसे कितना प्यार करते हैं.जब वो किसी के दीवाने होते हैं तो वो अपने प्यार का इजहार कई तरीकों से करते हैं. वो बहुत भावुक और आवेगी होते हैं और जब वो जानते हैं कि वो क्या चाहते हैं तो वो इंतजार नहीं करेंगे. वो बस सही खोजने के लिए इंतजार नहीं कर सकते हैं और बस जल्द से जल्द शादी कर सकते हैं.2. वृषभ राशिवो मजबूत दिमाग वाले होते हैं और जब प्यार में होते हैं, तो वो सोचने के लिए अपना खुद का मीठा समय लेते हैं और एक बार जब वो सुनिश्चित हो जाते हैं कि वो क्या चाहते हैं, तो वो इसे पाने के लिए अपनी शक्ति में सब कुछ करेंगे.वो बहुत वफादार होते हैं और जब उन्हें पता चलता है कि उनके पास कुछ लंबे समय तक एक शॉट है तो वो इसे छोड़ना नहीं चाहते हैं. वो बिना समय बर्बाद किए इसे अंतिम रूप देना चाहते हैं.3. सिंह राशिवो प्रेमी के रूप में प्रखर होते हैं और अपने “एक” को खोजने के बाद बस शादी करने का इंतजार नहीं कर सकते.वो सच्चे प्यार में विश्वास करते हैं और एक लंबे समय तक चलने वाला रिश्ता चाहते हैं और शादी की योजना बनाना उनके लिए थोड़ा मुश्किल हो सकता है. वो धैर्यवान हो सकते हैं लेकिन एक दिन वो अपना धैर्य खो देते हैं और बस भागना चाहते हैं और इसे पूरा करना चाहते हैं.4. तुला राशिउनके पास प्यार और शादी का एक ड्रीमी विचार है, लेकिन वो बहुत ही अनिर्णायक होते हैं. वो बहुत आसानी से प्यार में पड़ जाते हैं और लंबी अवधि के लिए निर्णय लेना उनके लिए एक कठिन काम हो सकता है.लेकिन एक बार जब वो निश्चित हो जाते हैं, तो वो फिर से भ्रमित होने से पहले बस इसे करना चाहते हैं. इसलिए, अगर आपका तुला राशि का साथी थोड़ी जल्दी शादी करने का सुझाव देता है, तो आश्चर्यचकित न हों.5. कुम्भ राशिएक कुंभ राशि वाले सोलमेट में विश्वास करते हैं और एक बार जब वो किसी ऐसे व्यक्ति के साथ मिल जाते हैं जो उनके लिए एकदम सही है तो वो बहुत लंबा इंतजार नहीं करेंगे. वो हर जागने वाले पल को अपनी आत्मा के साथी के साथ बिताना चाहते हैं और उनके पास एक बड़ी भव्य शादी की योजना बनाने के लिए नहीं है, लेकिन वेगास जाना उनके लिए एक सपने के सच होने जैसा लगता है.
- आईना न देखनासुबह उठने के बाद आपको पहले शीशा नहीं देखना चाहिए. क्योंकि आईने को देखकर आप रात भर की नेगेटिव एनर्जी को खुद खींच लेते हैं और नेगेटिव एनर्जी आपके विचारों में दिन भर बनी रहती है. जिससे आपका मन किसी काम में नहीं लगता.गंदे बर्तनरात को सोने से पहले अपने घर के सभी गंदे बर्तनों को साफ करके सोएं. क्योंकि सुबह के समय गंदे बर्तन देखने से आपको अशुभ संदेश मिल सकता है और आपका पूरा दिन तनाव में बीत सकता है. इसलिए हो सके तो रात के समय बर्तन साफ करके ही सोएं.परछाईं न देखेंसुबह उठकर अपनी या किसी और की परछाईं को न देखें. अगर आप सुबह उठने के बाद परछाई को देखते हैं, तो इसका असर आपके पूरे दिन पर पड़ता है और आप दिन भर तनाव, डर, गुस्सा महसूस करते हैं. इसलिए कभी भी बिस्तर से उतरने के बाद परछाई न देखें.बंद घड़ीवास्तु शास्त्र के अनुसार सुबह के समय बंद घड़ी को नहीं देखना चाहिए. इसके अलावा सुबह के समय सुई- धागे नहीं देखने चाहिए. ये चीजें अशुभ मानी जाती हैं. सुबह उठकर इन्हें देखने से आपका पूरा दिन खराब हो सकता है.सुबह उठने के बाद क्या देखेंसुबह सबसे पहले अपनी हथेली को देखना अच्छा होता है और गायत्री मंत्र या किसी अन्य मंत्र का जाप करना शुभ माना जाता है. इसी तरह बिस्तर से उठने के बाद सकारात्मक चीजें जैसे भगवान का फोटो, मोर की आंखें, फूल आदि दिखाई देते हैं तो आपका दिन अच्छा जाता है.
- मोरपंख को घर में रखना बहुत ही शुभ माना जाता है. इसे घर में रखने से धन और बुद्धि दोनों प्राप्त होते हैं. ये भाग्य में आने वाली रुकावटों को दूर करता है. ये नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है. इससे घर में सुख और शांति भी बनी रहती है. लेकिन एक साथ बहुत सारे मोरपंख को घर में नहीं रखना चाहिए, केवल 1 से 2 ही मोरपंख रखने चाहिए.गोमती चक्रऐसा माना जाता है कि गोमती चक्र समृद्धि, खुशी, अच्छा स्वास्थ्य, धन, मन की शांति देते हैं और बुरे प्रभावों से बचाते हैं. आप 11 गोमती चक्र को पीले कपड़े में बांधकर तिजोरी में रख सकते हैं ऐसा माना जाता है कि इससे बरकत बनी रहती है.लघु नारियललघु नारियल को श्रीफल भी कहते हैं. ये नारियल आम नारियल से आकार में थोड़ा छोटा होता है. ऐसा माना जाता कि इसे घर में रखने से धनलाभ होता है. इसे घर में रखने से कभी भी धन और अनाज की कमी नहीं होती है. लघु नारियल को तिजोरी या धन रखने के स्थान पर करना चाहिए. इसकी स्थापना करने से पहले ‘ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं’ मंत्र का जाप करें.धातु का कछुआचांदी, पीतल या कांसे की धातु से बना कछुआ घर में रखना शुभ माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि इसे उत्तर दिशा में रखने से नकारात्मक ऊर्जा दूर रहती है. इससे घर में सुख-समृद्धि आती है.तुलसी और मनी प्लांटनए साल के दिन घर में तुलसी और मनी प्लांट लगाना बहुत शुभ माना जाता है. तुलसी का पौधा घर में रखने से सुख-समृद्धि और सौभाग्य बना रहता है. वहीं मनी प्लांट धन की वर्षा करता है.
- मेष -ज्योतिषियों के अनुसार मेष राशि के जातकों के लिए ये सूर्य ग्रहण अशुभ रहेगा. इससे उनकी सेहत पर असर पड़ेगा. इसलिए मेष राशि के लोगों को सावधान रहने की जरूरत है.कर्क -कर्क राशि के जातकों के लिए ये सूर्य ग्रहण अशुभ रहेगा. किसी से भी वाद-विवाद से बचें. मित्रों से विवाद हो सकता है. परिवार के सदस्यों के साथ बातचीत करते समय सावधान रहें. बच्चों का खास खयाल रखें.तुला -ज्योतिष शास्त्र के अनुसार तुला राशि के जातकों के लिए भी ये सूर्य ग्रहण अशुभ रह सकता है. क्रोध से बचें. किसी को अपशब्द कहना नुकसानदायक हो सकता है. सेहत पर बुरा असर पड़ने की संभावना है. इसलिए अपना विशेष ध्यान रखें.वृश्चिक -वृश्चिक राशि के जातकों पर भी सूर्य ग्रहण का प्रभाव देखने को मिलेगा. तनाव हो सकता है. आप बेचैन या भ्रमित महसूस करेंगे. इस राशि के लोग कार्यक्षेत्र में धैर्य रखें.धनु -ये सूर्य ग्रहण आपके लिए अनावश्यक भागदौड़ लाएगा. इस दौरान खर्चे बढ़ने की संभावना है. कार्यों को पूरा करने के लिए आपको कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी. यात्रा करने की संभावना है.
- भगवान श्रीकृष्ण को प्रिय माह मार्गशीर्ष माह में कई उत्सव और त्योहार मनाए जाते हैं। मृगशिरा नक्षत्र से संबंध होने के कारण इस माह का नाम मार्गशीर्ष पड़ा। इस माह श्रद्धा और भक्ति से प्राप्त किए पुण्य से सभी सुखों की प्राप्ति होती है। इस माह नदी में स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व माना जाता है।इस मास में शुक्ल पंचमी को विवाह पंचमी कहा जाता है। माना जाता है कि प्रभु श्रीराम-सीता का विवाह इसी दिन संपन्न हुआ था। यह दिन मांगलिक कार्यों के लिए बहुत शुभ माना जाता है। इस माह आने वाली उत्पन्ना एकादशी को भगवान विष्णु के लिए व्रत-उपवास किए जाते हैं। इस मास की अमावस्या पर पितरों के लिए तर्पण, श्राद्ध कर्म करने की परंपरा है। मार्गशीर्ष माह में कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि को मार्गशीर्ष अमावस्या होती है। मार्गशीर्ष अमावस्या पर पितरों का पूजन और व्रत करने से पितृ दोष समाप्त हो जाता है। परिवार में सुख और संपन्नता आती है। पितृ पूजन के लिए यह विशेष दिन बताया गया है। इस मास की पूर्णिमा को दत्त पूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन भगवान दत्तात्रेय की पूजा की जाती है। इस माह अपने पूर्वजों का स्मरण करें और उनके प्रति आभार प्रकट करें। इस माह अन्न दान करना सर्वश्रेष्ठ पुण्य कर्म माना गया है। ऐसा करने पर सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। मार्गशीर्ष माह में गुरुवारी पूजा में माता लक्ष्मी को प्रत्येक गुरुवार को अलग-अलग व्यंजनों का भोग लगाने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस माह भगवान शिव का कच्चे दूध और दही से अभिषेक करें और काले तिल अर्पित करें। शाम को घी का दीपक शिवालय में जलाएं। इस माह भगवान सत्यनारायण की पूजा और कथा अवश्य करें। भगवान श्री हरि विष्णु के मंदिर में पीले रंग का ध्वज अर्पित करें।