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- हिंदू धर्म में प्रत्येक माह में दोनों पक्षों की चतुर्थी तिथि का विशेष महत्व माना जाता है। हिंदी पंचांग के प्रत्येक मास में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष में पडऩे वाली चतुर्थी तिथि भगवान गणेश के समर्पित की जाती हैं। जहां शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी कहा जाता है तो वहीं कृष्ण पक्ष में पडऩे वाली चतुर्थी तिथि को गणेश संकष्टी चतुर्थी के रुप में मनाया जाता है। यह दिन भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन भक्त व्रत रखकर भगवान गणेश का विधि-विधान के साथ पूजन करते हैं। भगवान गणेश की कृपा से घर में शुभता बनी रहती है और कोई भी कार्य बिना किसी विघ्न बाधा के पूर्ण हो जाता है।इस बार आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी 27 जून 2021 दिन रविवार को पड़ रही है। रविवार के दिन पडऩे के कारण यह तिथि और भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। जो संकष्टी चतुर्थी रविवार के दिन पड़ती है उसे रविवती संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। यह तिथि उन लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है जिनकी कुंडली में सूर्य कमजोर स्थिति में हो। तो आइए जानते हैं संकष्टी चतुर्थी महत्व, मुहूर्त और पूजा विधि।संकष्टी चतुर्थी, मुहूर्त व विशेष संयोगआषाढ़ मास कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि आरंभ- 27 जून 2021 शाम 03 बजकर 54 मिनट सेआषाढ़ मास कृष्ण पक्ष चतुर्थी तिथि समाप्त- 28 जून 2021 दोपहर 02 बजकर 16 मिनट परसंकष्टी के दिन चन्द्रोदय - 27 जून 2021 10 बजकर 03 मिनट परसंकष्टी चतुर्थी का व्रत चंद्रमा को अघ्र्य देने का बाद पूर्ण होता है इसलिए यह व्रत 27 जून को रखा जाएगा।इस बार चतुर्थी तिथि पर रविवती संकष्टी चतुर्थी संयोग बन रहा है इसलिए सूर्य को अनुकूल बनाने के लिए यह दिन बहुत शुभ है। इस दिन प्रात: स्नानदि करके भगवान सूर्यनारायण को प्रणाम करें और उन्हें तांबे के लोटे से जल दें। इससे आपके सूर्य संबंधी दोष दूर होते हैं।संकष्टी चतुर्थी महत्वजैसे कि इस तिथि का नाम हैं संकष्टी उसी के अनुरूप इसे संकट हरने वाली तिथि माना गया है। इस दिन श्रद्धा और विधिपूर्वक भगवान गणेश के निमित्त व्रत करने और पूजन करने से जातक के जीवन के सभी संकट दूर होते हैं। भगवान गणेश अपने भक्तों के संकट हर लेते हैं और जीवन में सकारात्मकता का आगमन होता है। जिस स्थान पर बप्पा विराजते हैं वहां रिद्धि-सिद्धि और शुभ-लाभ भी विराजते हैं। गणेश जी की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि और सकारात्मकता बनी रहती है।संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि-चतुर्थी तिथि के दिन प्रात: काल जल्दी उठकर स्नानादि कर लें।- इस दिन पीले या लाल रंग के वस्त्र पहनना शुभ माना जाता है।-अब पूजा स्थान की सफाई करके एक लाल रंग का आसन बिछाकर भगवान गणेश की प्रतिमा को स्थापित करें।- गणेश जी के समक्ष घी का दीपक व सुगंधित धूप प्रज्वलित करें और सिंदूर से तिलक करें।- अब गणेश जी को फल-फूल व मिष्ठान अर्पित करें। मिष्ठान में मोदक या मोतीचूर के लड्डू अर्पित करने चाहिए।- गणेश जी को दूर्वा अतिप्रिय है इसलिए इस दिन 21 दूर्वा की गांठे भगवान गणेश के अलग-अलग नामों का उच्चारण करते हुए अर्पित करें।-संकष्टी चतुर्थी का व्रत गणेश जी की पूजा से आरंभ होकर चंद्रमा को अघ्र्य देने पर पूर्ण होता है।- इस दिन यथाशक्ति दान देने के पश्चात व्रत का पारण करना चाहिए।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 325
(भूमिका - प्रस्तुत उद्धरण जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित विलक्षण प्रवचन श्रृंखला 'मैं कौन? मेरा कौन?' से लिया गया है। आचार्यश्री ने इस प्रवचन श्रृंखला में कुल 103-प्रवचन दिये थे। इस विकराल कलिकाल में सर्वथा भ्रान्त जीवों के कल्याणार्थ वैदिक सिद्धान्तों पर पूर्ण दृष्टिकोण रखते हुये भगवान राम-कृष्ण प्रापत्यर्थ भक्तियोग की उपादेयता एवं उसका षड्दर्शनों से सम्बन्ध बतलाते हुये विशद व्याख्या की है। निम्न उद्धरण में भक्तिपथ में निष्कामता की सर्वोच्चता के विषय में प्रकाश डाला गया है, जो कि उनके द्वारा 27 मार्च 2011 में भक्तिधाम मनगढ़ में दिये गये इस श्रृंखला के 93-वें प्रवचन का एक अंशमात्र है...)
...भक्त कुछ नहीं चाहता, भुक्ति मुक्ति कुछ नहीं, ये संक्षेप में और संक्षेप में अपना सुख नहीं चाहता। महाप्रभु जी ने बड़ा सुन्दर उपदेश दिया था;
निजेन्द्रिय सुख हेतु कामेर तात्पर्य,कृष्ण सुख तात्पर्य प्रेम तो प्रबल।
दो विरोधी चीज है - एक कामना एक प्रेम। जो अपने सुख के लिये करे वो 'काम' है और जो श्यामसुन्दर के सुख के लिये करे, वो 'प्रेम' है।
निजेन्द्रिय-सुख-वांछा नहे गोपिकार।कृष्ण-सुख हेतु करे संगम विहार।।(चैतन्य चरितामृत)
अतएव कामे प्रेमे बहुत अन्तर।काम अन्धतम प्रेम निर्मल भास्कर।।(चैतन्य चरितामृत)
अन्धकार और सूर्य के समान अन्तर है। जब अपने सुख की कामना छोड़ देता है भक्त, तो फिर भगवान का आसन डोल जाता है। अरे ये तो बड़ा खतरनाक आदमी है। इसी बात को मैंने पहले बहुत दिन पहले बताया था कि सूत जी ने शौनकादिक परमहंसों के प्रश्न के उत्तर में कहा था;
अहैतुक्यप्रतिहता ययात्मा सम्प्रसीदति।(भागवत 1-2-6)
भक्ति वो जिसमें कोई कामना न हो। मैंने कपिल भगवान का भी उपदेश आप लोगों को बताया था;
अहैतुक्यव्यवहिता या भक्तिः पुरुषोत्तमे।।(भागवत 3-29-12)
अर्थात भक्त का मतलब ही यही है कि जिसमें भुक्ति मुक्ति न हो, अपने सुख की कामना न हो।
अन्याभिलाषिताशून्यं ज्ञानकर्माद्यनावृतं।आनुकूल्येन कृष्णानुशीलनं भक्तिरुत्तमा।।(भक्तिरसामृतसिन्धु 1-11)
तो मोक्षपर्यन्त की कामना नहीं करना है। हमारे देश में तमाम भोलेभाले लोग भजन बनाते हैं। सबमें एक ही चीज माँगते हैं, 'तार दो', तार दो माने मोक्ष दो। और सुनो हमारे देश में एक आरती है, वो सारे मन्दिरों में गाई जाती है;
सुख संपत्ति घर आवे और कष्ट मिटै तन का।ॐ जय जगदीश हरे।
बड़े प्यार से गाते हैं लोग। ये संसार की संपत्ति घर में आवे और शरीर का भी कष्ट जाय, ऐसी कृपा करो। अरे देखो पंडितों से पूछो कि तुम पूजा कराते हो, शादी वगैरह में, तो अंत में क्या बोलते हैं - 'यांतुः देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम्।' सब देवता अपने अपने लोक को जाओ। 'लक्ष्मीं कुबेरं च बिहाय'। लक्ष्मी और कुबेर तुम मत जाना। तुम हमारे घर में रहकर खूब दौलत, खूब संपत्ति लाओ, ताकि मैं जो कभी मंदिर जाता हूँ वो भी जीरो हो जाय। छुट्टी नहीं मिलती, कैसे भगवान की ओर जायें? ये भी भगवान की सेवा है। बच्चों में बड़ी आसक्ति है? अरे ये सब गोपाल जी तो हैं। ये वेदान्त झाड़ते हैं वे लोग।
तो मोक्षपर्यन्त की कामना सबसे बड़ी बाधा या कोई भी कामना हो, भगवान के सुख की कामना से भगवान का प्रेम माँगना है। तदर्थ भगवान का दर्शन माँगना है। दर्शन नंबर एक, पहले आओ, उसके बाद वो बोलेंगे ही कि वर माँगो, आदत है उनकी। तो हम बोलेंगे, निष्काम प्रेम। क्या करोगे? आपकी सेवा। चुप, बोलती बंद हो जायेगी, ठाकुर जी की। ये बड़ा पक्का है, ये तो भई, देना ही पड़ेगा इसको।
तो भगवद-भक्ति की कामना और वो निष्काम कामना अनन्यता से युक्त और निरंतर - यही एक पाठ ऐसा है, जिससे हम 'मैं' और 'मेरे' का ज्ञान प्राप्त करने के अधिकारी बनेंगे।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'मैं कौन? मेरा कौन?' प्रवचन श्रृंखला (93-वें प्रवचन का अंश)०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - 25 जून से आषाढ़ के महीने की शुरुआत होने जा रही है. इस दिन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा है, जिस कारण सूर्योदय के समय चन्द्रमा धनु राशि में रहेगा और 06:41 बजे के बाद पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में होगा. ये मेष और कन्या राशि के जातकों के लिए अतयंत शुभ होगा, उन्हें बिजनेस में अपार सफलता मिलेगी और धन लाभ होगा. आइए एस्ट्रो गुरु बेजान दारुवाला के पुत्र चिराग दारुवाला से जानते हैं कि ये योग आपके लिए कितना फायदेमंद होगा और आपका दिन कैसा बीतेगा.मेष -आपके व्यक्तित्व में नए आकर्षण का संचार होगा. अपने हुनर और समझदारी से कार्यों को बखूबी पूरा करेंगे. व्यापार में आज अचानक शुभ समाचार प्राप्त हो सकता है. अधिकारियों के सामने अपनी बात रखने का सही समय है.वृषभ-आपको शुभ सूचना मिल सकती है. घर की जिम्मेदारियों को निभाने की दिशा में आप कुछ नया निर्णय ले सकते हैं. व्यापार, रोजगार अच्छा चलेगा. पिता के कार्य में आप का सहयोग सराहनीय रहेगा. कार्य स्थल पर सहयोगियों को आप से ईर्ष्या हो सकती है.मिथुन -आपका दिन बहुत खास रहेगा. मन में कोई बात हो तो उसे प्रकट करें. तरक्की के नए मार्ग खुलेंगे. महिलाओं को अपने करियर के बारे में और गहराई से सोचना जरूरी है. प्रॉपर्टी खरीदने के लिए दिन बहुत अच्छा है. रुपये पैसे के लेनदेन में सावधानी रखें.कर्क -यह दिन आपके लिए महत्वपूर्ण रहेगा. कपड़ा व्यवसायों को आज अच्छा लाभ होगा. भविष्य को ध्यान में रखकर निवेश कर सकते हैं. ससुराल के लोगों से अच्छी बातचीत होगी. नौकरी में सफलता मिलेगी. जिम्मेदारी भरे किसी काम में लापरवाही न बरतें.सिंह-किसी की बात को दिल पर न लगाएं. नौकरी करने वालों को आर्थिक स्वरूप से सक्षम बनने की आवश्यकता होगी. व्यापार में जबरदस्त नतीजे हासिल होंगे. काम के सिलसिले में किए गए प्रयास आपको अच्छे नतीजे प्रदान करेंगे.कन्या-अपने आप पर भरोसा रखें. ज्यादा लाभ कमाने के लिए आप बिजनेस में भाई-बहनों का सहयोग भी प्राप्त कर सकते हैं. मित्रों के सहयोग से मुश्किल काम सहज ही पूरे कर लेंगे. महिलाओं को घरेलू सामान की खरीदारी करनी पड़ेगी. छात्रों को उनके मेहनत के अनुरूप सफलता मिलेगी.तुला-काम में अच्छे अवसर हाथ लग सकते हैं. आपके पारिवारिक बिजनेस में आज आपको अपने जीवन साथी की बात माननी पड़ सकती है. व्यापारियों को सरकारी नियमों से कुछ परेशानी हो सकती है. सोशल मिडिया के जरिए आपका कोई नया दोस्त बनेगा.वृश्चिक-किसी अज्ञात स्रोत से पैसा प्राप्त हो सकता है. किसी नए प्रोजेक्ट पर काम करने से आपको बहुत कुछ सीखने को मिलेगा. युवाओं के पास उच्च शिक्षा के लिए बेहतर मौके हैं. माता-पिता के साथ शॉपिंग करने जा सकते हैं.धनु -आपके सकारात्मक विचारों से परिवार के लोग प्रसन्न होंगे. नौकरी में बैंकिंग सेक्टर वालों के लिए लाभ का समय है. पेंडिंग छोड़ दिया गया कोई प्रॉपर्टी डील अब फायदेमंद महसूस हो सकता है. संतान की ओर से मन को संतोष प्राप्त होगा.मकर -नए कार्य में मन लगेगा. आप अपने पराक्रम व साहस के बल पर धन अर्जित करने में सफल रहेंगे. युवाओं को कैरियर से जुड़ी नई जानकारी मिलेगी. भूतकाल में घटी-घटनाओं से केवल विवाद उत्पन्न हो सकता है. व्यर्थ की समस्या पर नियंत्रण होगा.कुंभ -अपने किए हुए कार्यों से आप फूले नहीं समाएंगे. किसी खास मामले को लेकर आपकी सोच बदल सकती है. इनकम बढ़ाने के कुछ अच्छे मौके भी आपको मिल सकते हैं. ऑनलाइन लेनदेन में सावधानी बरतें. विद्यार्थियों को करियर में सफलता मिलेगी.मीन -ईश्वर की कृपा से आपके बहुत सारे काम बन सकते हैं. जीवन साथी के सहयोग से प्रॉपर्टी में हाथ डाल सकते हैं. अपने समय का सदुपयोग करने से आपको लाभ होगा. आपको खर्चों में कमी का प्रयास करना चाहिए. घर के जरूरी कामों में हाथ बटाएंगे.
- क्या आपको पता है कि इससे आप अपने ग्रहों को भी अनुकूल बना सकते हैं। ज्योतिष के अनुसार पोषक तत्वों से भरपूर मेवा को आप यदि सप्ताह के दिनों के हिसाब से खाते हैं तो इससे आप अपने ग्रहों की दशा में सुधार ला सकते हैं। प्रतिदिन मेवा खाने से आपकी सेहत तो अच्छी रहती ही है साथ ही यह आपके निजी और कार्यक्षेत्र के लिए भी काफी फायदेमंद हो सकता है। माना जाता है कि यदि आप दिन के अनुसार सुबह को मेवा खाकर घर से निकलते हैं तो आपका भाग्य साथ देता है और इससे आपको कार्यों में सफलता प्राप्त होती है। तो आइए जानते हैं कि सप्ताह के कौन से दिन कौन सी मेवा खाना शुभ रहता है।सोमवारज्योतिष के अनुसार सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित होता है साथ ही ज्योतिष के अनुसार यह दिन चंद्रमा का माना गया है। इस दिन सफेद रंग के खाद्य पदार्थ का सेवन करना बहुत अच्छा माना जाता है इसलिए इस दिन आपको काजू का सेवन करना लाभ पहुंचा सकता है। सोमवार के दिन 4 काजू भिगोकर खाना चाहिए। इससे आपकी सेहत तो अच्छी रहती ही है साथ ही आपका चंद्रमा भी सही रहता है।मंगलवारमंगलवार का दिन भगवान हनुमान को समर्पित होता है साथ ही यह दिन मंगल ग्रह का दिन होता है। मंगल की स्थिति को अनुकूल बनाने के लिए इस दिन लाल चीजों का सेवन करना बहुत अच्छा रहता है। इस दिन बादाम खाना चाहिए।बुधवारबुधवार का दिन बुद्धि और शुभता के देवता गणपति देव को समर्पित होता है। इसके साथ ही ज्योतिष के अनुसार यह दिन बुधग्रह का माना गया है। इस दिन हरी चीजों का दान करना और सेवन करना शुभ माना जाता है। इससे बुध को मजबूती मिलती है। बुधवार के दिन पिस्ता खाना फायदेमंद रहता है।बृहस्पतिवारधार्मिक मान्यता के अनुसार गुरुवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित किया जाता है तो वहीं ज्योतिष के अनुसार यह गुरु ग्रह का दिन है। इस दिन पीली वस्तुओं का दान और सेवन बहुत शुभ माना जाता है। गुरुवार के दिन केसर का तिलक लगाना और खाने में केसर को शामिल करना बहुत ही शुभ रहता है।शुक्रवारशुक्रवार का दिन धन की देवी मां लक्ष्मी को समर्पित किया जाता है तो वहीं यह दिन धन वैभव के प्रदाता शुक्र ग्रह का माना गया है। इस दिन नारियल का सेवन करना चाहिए। इसके साथ ही मिश्री का सेवन करना भी लाभप्रद रहता है। इससे आपका चंद्र और शुक्र दोनों अच्छे रहते हैं और मां लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है।शनिवारशनि, जहां कर्मफल प्रदान करने वाले देव हैं तो वहीं ग्रहों में भी इनका विशिष्ट स्थान है। शनिवार के दिन अंजीर खाने से शनिदेव की कृपा प्राप्त होती है साथ ही आपके शरीर में रक्त की कमी नहीं रहती है। इसके अलावा इस दिन मुनक्के का सेवन भी कर सकते हैं।रविवाररविवार का दिन सूर्य देव को समर्पित किया जाता है। जहां सूर्यदेव के कारण प्रकृति में संतुलन बना रहता है तो वहीं कुंडली में सूर्य की स्थिति अनुकूल होने से आपके जीवन में संतुलन रहता है। रविवार के दिन अखरोट का सेवन करना फायदेमंद रहता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 324
★ भूमिका - प्रस्तुत प्रवचन अंश में जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने भक्ति में 'स्मरण' की प्रमुखता पर प्रकाश डाला है। किस प्रकार श्रवण से प्रारंभ होकर भक्ति में प्रगाढ़ता आती है और किस प्रकार भक्ति के सभी रूपों में भगवान के 'स्मरण' की प्रधान्यता है, यह निम्न उद्धरण में वर्णित है। आचार्यश्री का यह प्रवचन उनके द्वारा निःसृत 'नारद भक्ति दर्शन' की व्याख्या का एक अंशमात्र है......अनन्त गुण हमारे सम्बन्धी श्रीकृष्ण में हैं, यह समझना है। फिर उनसे सम्बन्ध को दृढ़ करने के लिये क्या करना है? उस सम्बन्ध पर बार-बार विचार करना है।देखो ! एक लड़का जा रहा है, एक लड़की जा रही है, एक दूसरे को देखते तो हैं छुप-छुप के। वो लड़की उधर देख रही है तो हमने देख लिया - कैसी आँख है, कैसी नाक है, कैसा मुँह है, काली है, गोरी है, क्या है और जब हमारी तरफ देखने लगी तो हम सीरियस हो गये, इधर देखने लगे। ऐसा हम लोग करते हैं। सद्भावना-दुर्भावना का मतलब नहीं है, नेचर है। कोई आपके सामने सीट पर बैठा है ट्रेन में, अब क्या वो अन्धा बना रहेगा, देखेगा तो है ही। लेकिन वो डायरेक्ट नहीं देखता। जब वो और तरफ देख रहा है तो उसको देख लिया, जब वो मेरी तरफ देखने लगा तो सीरियस हो गये। एटीकेट है, चार सौ बीस है, तरीका है। हम उसको देखते हैं लेकिन ये बताना चाहते हैं कि हमारा कोई कॉन्टेक्ट नहीं तुमसे। जब दोनों की सगाई हो गई, अभी ब्याह नहीं हुआ, सगाई हो गई, तब वो लड़की उस लड़के का चिन्तन करती है, चिन्तन। ये हमारा है, ये हमारा है, ये हमारा है। अभी हुआ-वुआ नहीं ब्याह। कितनी सगाई कैंसिल हो जाती है। लेकिन वो चिन्तन शुरू हो गया उसका। वो ऐसा है, वो ऐसा है, वो ऐसा है। इतना पढ़ा-लिखा है, इतना लम्बा-चौड़ा है, इतनी उसके अन्दर बातें हैं, इतनी प्रॉपर्टी है। अब सबका चिन्तन हो रहा है। यानी हम इतने के मालिक हो गये। अरे! अभी ब्याह भी नहीं हुआ और सबकी मालिक हो गई तू, वो चिन्तन से आत्मीयता दृढ़ हो गई। ऐसे ही जब हमने ये जान लिया और मान लिया कि श्रीकृष्ण ही हमारे सम्बन्धी हैं;त्वमेव माता च पिता त्वमेव।त्वमेव सर्वम् मम देव देव।तब फिर उसका चिन्तन प्रारम्भ होगा, अपने-आप होगा, जितनी नॉलेज पक्की होगी उतना चिन्तन होगा और चिन्तन होने से;मामनुस्मरतश्चित्तं मय्येव प्रविलीयते।वेदव्यास कहते हैं - बस, चिन्तन लगातार किया कि मन का अटैचमेन्ट हो गया। ये नम्बर दो हो गया, अभिधेय हो गया। अगर सम्बन्ध ज्ञान (नम्बर एक) परिपक्व हुआ तो अभिधेय माने साधना स्वयं हो गई। लेकिन जितनी लिमिट में आपका सम्बन्ध ज्ञान परिपक्व हुआ उतनी लिमिट में आपने चिन्तन किया। जितनी लिमिट में चिन्तन बढ़ता गया, उतनी लिमिट में अटैचमेन्ट बढ़ता जायेगा और जब परिपूर्ण सम्बन्ध ज्ञान पर परिपूर्ण फेथ हो जायेगा तब ये 'यज्ज्ञात्वा', ये सफल होगा शब्द 'यज्ज्ञात्वा', जिसको जानकर। जानकर, वो जानना नित्य होगा, प्रत्येक काल में, प्रत्येक स्थान में, प्रत्येक वस्तु में यह सम्बन्ध-ज्ञान रहे, ये शर्त है सम्बन्ध-ज्ञान पक्का है कि नहीं। प्रत्येक स्थान पर जहाँ जाइये वो श्रीकृष्ण हमारे सम्बन्धी हैं, श्रीकृष्ण हमारे सम्बन्धी हैं। वृन्दावन में जाने पर यह फीलिंग तो हुई - श्रीकृष्ण हमारे सम्बन्धी हैं, बताया था महाराज जी ने लेकिन जब हम और जगहों में जाते हैं संसारी जगहों में तो वहाँ भूल जाते हैं। नहीं, 'यो मां पश्यति सर्वत्र', सब जगह। देश, काल, वस्तु, ये तीन होते हैं। देश, काल, वस्तु। इन तीनों में यह ज्ञान परिपक्व होना चाहिये कि वे हमारे ही हैं और सब जगह हैं। तो किसी भी वस्तु से द्वेष नहीं, किसी भी समय या किसी भी स्थान से द्वेष नहीं । सर्वत्र हमारे श्रीकृष्ण हैं ओतप्रोत। तो इस प्रकार अभिधेय भी आप समझ गये। अभिधेय में तीन चीजें हैं जो आप लोग करते हैं यहाँ डेली।श्रोतव्यः कीर्तितव्यश्च स्मर्तव्यश्चेच्छताभयम्।(भागवत 2-1-5)शुकदेव परमहंस ने तीन प्रमुख साधना भक्ति बताया परीक्षित को, 'श्रोतव्यः' - सुनो। ये सुनना भी कीर्तन है और 'कीर्तितव्यः' और मुख से बोलना, ये भी कीर्तन है। देखो! कीर्तन तीन पद्धति का होता है - व्यास पद्धति, नारद पद्धति और हनुमत् पद्धति । व्यास पद्धति है कीर्तन सुनाना, भगवान् की लीलाओं के उनके विषय को सुनाना या सुनना जो आप लोग इस समय कर रहे हैं। ये भी कीर्तन है और नारद पद्धति है कि मुख से शब्द बोलना, खाली सुनना नहीं और साथ में बाजे-गाजे भी हों - हारमोनियम, तबला, सितार जो भी बाजा होता है, उन बाजों के साथ भगवान् के नाम, गुण, लीलादि को गाना। ये नारद जी की पद्धति है, इसको आप लोग करते ही हैं। तो व्यास पद्धति भी आपको हम कराते हैं, प्रैक्टिकल, नारद पद्धति भी कराते हैं। और एक हनुमत् पद्धति है, वो कैसी है? उसमें भी कीर्तन तो होगा ही, मुख से शब्द बोला जायेगा, लेकिन उसमें नृत्य भी होता है, जिसको गँवारी भाषा में कहते हैं - उछल-कूद। जब प्रेम का उद्रेक अधिक होता है और कन्ट्रोल नहीं होता तो 'नृत्यति लोकबाह्यः', फिर वो नाचने लगता है। ये सब कम्बाइन्ड होकर के कीर्तन कहलाते हैं। लेकिन चाहे कथा सुनी जाये, चाहे बोली जाये, चाहे बाजे-गाजे से, चाहे नृत्य करते हुए, सदा सर्वत्र सर्व वस्तु में हमको तीसरी साधना पर खास ध्यान देना है - 'स्मर्तव्यश्चेच्छताभयम्' - श्रीकृष्ण का स्मरण। देखो, देखो! संसार में आप लोग किसी को बुलाते हैं तो पहले क्या करते हैं? पहले-पहल शब्द बोलते हैं?नहीं-नहीं-नहीं, पहले ध्यान करते हैं फिर उसका नाम लेते हैं और कभी-कभी नाम जल्दी में याद नहीं आता तो आप कहते हैं - अरे ! वो कहाँ है, वो वो जो बरेली से आया है, वो क्या नाम है उसका, वो सुन्दरलाल। देखो! स्मरण पहले हुआ, नाम बाद में। तो उसी प्रकार हमको स्मरण पहले करना है, भगवन्नाम बाद में लो, न लो, दोनों का मूल्य बराबर है। लेकिन स्मरण मेन है 'स्मर्तव्यः'। तो ये तीन प्रकार की भक्ति जो मैं आप लोगों से कराता हूँ, यही प्रमुख हैं और बाकी तो छः प्रकार की और हैं नवधा भक्ति जिसे कहते हैं उसमें और फिर एकादशधा भक्तियाँ भी हैं और पच्चीस-तीस प्रकार की भक्तियाँ भी होती हैं, अनन्त प्रकार की भी हो सकती हैं।जिस किसी प्रकार से भगवान् में मन लगे उसी का नाम भक्ति, साधना भक्ति। विचित्र-विचित्र तरीके होते हैं, भक्ति करने के जिसकी कल्पना आप नहीं कर सकते।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'नारद भक्ति दर्शन' प्रवचन, संख्या - 5०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि 24 जून को पड़ रही है। इस तिथि को जेठ पूर्णिमा या जेठ पूर्णमासी कहा जाता है। हिन्दू धर्म में पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन पवित्र नदी अथवा जलकुंड में स्नान, व्रत एवं दान-पुण्य के काम करने की मान्यता है। माना जाता है कि इस दिन स्नान, व्रत एव दान-पुण्य के कार्य करने से जातकों को शुभ फल प्राप्त होते हैं। इस दिन वट पूर्णिमा व्रत रखा जाता है और कबीरदास जयंती भी मनाई जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि गुरुवार के दिन पड़ रही है। सूर्य और चंद्रमा क्रमशः मिथुन और वृश्चिक राशि में स्थित होंगे। पूर्णिमांत के अनुसार, यह तिथि ज्येष्ठ माह की अंतिम तिथि होती है। इसके बाद आषाढ़ माह प्रारंभ हो जाता है। पूर्णिमा तिथि 24 जून 2021 तड़के 03:32 बजे से शुरू हो जाएगी और यह 25 जून 2021 को रात 12:09 बजे समाप्त होगी।इस बन रहा है विशेष संयोगज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन खास संयोग बन रहा है। दरअसल, ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि गुरुवार के दिन पड़ रही है। गुरुवार का दिन और पूर्णिमा तिथि ये दोनों भगवान विष्णु जी को प्रिय हैं। इसी कारण इस साल पूर्णिमा तिथि अत्यंत विशेष है। ग्रहों की बात करें तो ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन सूर्य और चंद्रमा क्रमशः मिथुन और वृश्चिक राशि में स्थित होंगे।पूर्णिमा व्रत विधिपूर्णिमा के दिन सुबह स्नान से पहले व्रत का संकल्प लें। पवित्र नदी या कुंड में स्नान करें और स्नान से पूर्व वरुण देव को प्रणाम करें। स्नान के पश्चात सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए। स्नान से निवृत्त होकर भगवान मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए और उन्हें नैवेद्य अर्पित करना चाहिए। अंत में ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दें।इस दिन रखा जाता है वट पूर्णिमा व्रत
ज्येष्ठ पूर्णिमा को वट पूर्णिमा व्रत रखा जाता है। यह व्रत महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण के राज्यों में विशेष रूप से रखा जाता है, जबकि उत्तर भारत में यह व्रत वट सावित्री के रुप मे मनाया जाता हैं, जो ज्येष्ठ माह की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को पड़ता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सावित्री ने अपने पति के प्राण यमराज से वापस लेकर आईं थी। यही वजह है कि विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुख समृद्धि के लिए इस व्रत को रखती हैं।
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- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 323
★ भूमिका - आज के अंक में प्रकाशित दोहा तथा उसकी व्याख्या जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ग्रन्थ 'भक्ति-शतक' से उद्धृत है। इस ग्रन्थ में आचार्यश्री ने 100-दोहों की रचना की है, जिनमें 'भक्ति' तत्व के सभी गूढ़ रहस्यों को बड़ी सरलता से प्रकट किया है। पुनः उनके भावार्थ तथा व्याख्या के द्वारा विषय को और अधिक स्पष्ट किया है, जिसका पठन और मनन करने पर निश्चय ही आत्मिक लाभ प्राप्त होता है। आइये उसी ग्रन्थ के 21-वें दोहे पर विचार करें, जिसमें आचार्यश्री ने यह बताया है कि भगवान श्रीकृष्ण के ही 3 अभिन्न स्वरूप कौन-कौन से हैं तथा उनमें क्या-क्या विशेष बात है और कैसे सगुण साकार और प्रेमानन्द वाले श्रीकृष्ण का सौरस्य अन्य सभी से विलक्षण है!!...
तीन रूप श्री कृष्ण को, वेदव्यास बताय।ब्रह्म और परमात्मा, अरु भगवान कहाय।।21।।
भावार्थ - वेदव्यास ने परात्पर ब्रह्म श्रीकृष्ण के 3 रूप बताये हैं। जिन्हें ब्रह्म और परमात्मा एवं भगवान् कहा जाता है।
व्याख्या - वेदव्यास ने भागवत में कहा है। यथा;
वदंति तत्तत्वविदस्तत्वं यज्ज्ञानमद्वयम्।ब्रह्मेति परमात्मेति भगवानिति शब्द्यते।।
अर्थात् अद्वयज्ञान तत्व ही भगवान् श्रीकृष्ण हैं। तत्व का तात्पर्य है स्वरूप। वह तत्व अद्वय ज्ञान है। 'ज्ञानं चिदेक रूपम्' (तत्व संदर्भ), अर्थात् चिद् वस्तु ही ज्ञान है। ज्ञान शब्द से चित् (चेतन) एवं चित् शब्द से सच्चिदानंद का बोध होता है। इसी से वेद ने,
'सत्यं विज्ञानमानंदं ब्रह्म'
कहा है। अतः श्रीकृष्ण का स्वरूप सच्चिदानंद ब्रह्म है। कृष्ण शब्द का अर्थ भी यही है। यथा;
कृषि शब्दो हि सत्तार्थोणश्चानंद रूपकः।सत्ता स्वानंदयोर्योगाच्चित् परं ब्रह्मचोच्यते।।(वृ. गौ. तंत्र)
श्रीकृष्ण सशक्तिक ब्रह्म हैं। अतः सत् से संधिनी शक्ति, चित् से संवित् शक्ति, एवं आनंद से ह्लादिनी शक्ति का प्रादुर्भाव होता है। इन तीनों को मिलाकर संक्षेप में चित् भी कहते हैं। वह अद्वय ज्ञान तत्व परब्रह्म श्रीकृष्ण, अपनी संधिनी शक्ति से स्वयं की सत्ता तथा समस्त जीवों की सत्ता की रक्षा करता है। संवित् शक्ति से स्वयं को एवं जीवों को भी ज्ञान युक्त करता है। ह्लादिनी शक्ति से स्वयं को एवं जीवों को भी आनंद प्रदान करता है। अब यह प्रश्न आता है कि यह अद्वय ज्ञान तत्व क्यों कहलाता है? अद्वय का तात्पर्य क्या है ? उत्तर यह है कि;
1. कोई भी तत्व अद्वय तभी माना जायगा, जब वह स्वयं सिद्ध हो। दूसरे पर निर्भर न हो।2. उस तत्व के समान दूसरा तत्व न हो।3. उस तत्व की विजातीय वस्तु भी न हो।4. उसकी अपनी ही शक्ति सहायिका रहे।
भावार्थ यह कि अद्वय ज्ञान तत्व सजातीय विजातीय स्वगतभेद शून्य हो। अब इन तीनों पर विचार कर लीजिये।
1. सजातीय भेद शून्य - श्रीकृष्ण के ही अभिन्न स्वरूप नारायण एवं समस्त अवतार हैं। वे सब श्री कृष्ण पर निर्भर हैं। अतः सजातीय भेद शून्य हैं। जीव भी चित् (चेतन) है। एवं श्रीकृष्ण की सत्ता पर निर्भर है। यह सजातीय भेद शून्य हुआ।
2. विजातीय भेद शून्य - श्रीकृष्ण ब्रह्म चिद्रूप हैं। उनका विजातीय तत्व जड़ है। किंतु वह जड़ प्रकृति भी श्री कृष्ण से ही नियंत्रित है। अतः यह विजातीय भेद शून्य हुआ।
3. स्वगत भेद शून्य - श्रीकृष्ण में देह एवं देही का भेद नहीं है । जबकि जीवों का देह पृथक् होता है । तथा प्राकृत होता है । भगवान् का देह भगवान् ही है । यह स्वगतभेद शून्य हुआ। यथा;
आनंदमात्र कर पाद मुखोदरादिः..(भागवत)
पुनश्च - आनंद चिन्मय सदुज्वल विग्रहस्य....(ब्र. सं.)
इस प्रकार सिद्ध हुआ कि अद्वय ज्ञान तत्व श्रीकृष्ण ही हैं । वे अद्वितीय भी हैं। यथा;
न तत्समश्चाभ्यधिकश्च......(वेद)
उपर्युक्त अद्वय ज्ञान तत्व रूप परब्रह्म श्रीकृष्ण का 3 अभिन्न रूप होता है। यथा 1. ब्रह्म, 2. परमात्मा, 3. भगवान्। जैसे जल , बर्फ एवं गैस तीनों ही जल के ही स्वरूप हैं। ऐसे ही ब्रह्म, परमात्मा एवं भगवान् - तीनों एक ही के 3 रूप हैं।
यह 3 प्रकार का कल्पित भेद जीवों की इच्छापूर्ति के हेतु ही बनाया गया है। जैसे बादल युक्त सूर्य (ब्रह्म), बादल रहित सूर्य (परमात्मा), खुर्दबीन से दृष्ट सूर्य (भगवान्) वस्तुतः एक ही है। तात्पर्य यह कि ब्रह्मानंद भी अनंत एवं नित्य है किंतु उससे सरस सगुण साकार परमात्मानंद है। तथा उस परमात्मानंद से भी सरस लीला परिकर युक्त कृष्णानंद है।
इसी से कृष्ण गुणानुवाद के एक श्लोक को सुनकर आत्माराम पूर्णकाम परम निष्काम निग्रंथ परमहंस शुकदेव अपना ब्रह्मानंद भुलाकर बरबस प्रेमानंद (भगवदानंद) में विभोर हो गये। शुकदेव एवं सनकादिक, व्यासादिक तथा ब्रह्मादिकों ने तीनों रसों का अनुभव किया है। किंतु अंत में श्रीकृष्णानंद में ही सदा को लीन हो गये। अत : स्वप्न में भी भेद बुद्धि न आने पाये।
०० व्याख्याकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'भक्ति-शतक' (दोहा संख्या 21)०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - धन हानि रोकने में हैं कारगरकारोबार में देते हैं तरक्कीपैसों की तंगी कई परेशानियों की वजह बनती है. अक्सर यह घर-परिवार और जिंदगी का चैन-सुकून भी छीन लेती है. कई बार पैसे कमाने के लिए की गई जी-तोड़ मेहनत भी हालात नहीं बदल पाती है. ऐसे हालातों से निपटने के लिए ज्योतिष में कई उपाय बताए गए हैं. आज हम ज्योतिष की एक अहम विद्या रत्न शास्त्र से पैसों की तंगी को दूर करने के उपाय जानते हैं. ये उपाय करने से धन-समृद्धि बढ़ती है.ये 5 रत्न आ सकते हैं बहुत कामजेड स्टोन: यदि नया व्यापार शुरू करने जा रहे हैं तो हरे रंग का जेड स्टोन पहनने से आर्थिक मजबूती बनी रहेगी. साथ ही व्यापार से जुड़े फैसले लेने में आसानी होगी और ये फैसले लाभदायी साबित होंगे. यह रत्न पहनने से काम में मन भी लगेगा. कुल मिलाकर धन-समृद्धि पाने के लिए यह अच्छा रत्न है.माक्षिक रत्न: यह रत्न गंधक से मिलकर बना होता है और दिखने में शीशे जैसा होता है. यह रत्न आत्मविश्वास बढ़ाने के साथ-साथ पैसा आने के नए-नए रास्ते खोलता है.सुनहला रत्न: बार-बार धन हानि हो तो सुनहला रत्न पहनने से ऐसे नुकसान से राहत मिलेगी. यह रत्न किस्मत बदलने वाला होता है. इससे लक्ष्य पाने में मदद मिलती है.ग्रीन एवेंच्यूरिन: यह रत्न व्यापारियों के लिए बहुत लाभकारी है. यह कमाई के नए रास्ते खोलता है और पैसे को अपनी ओर खींचता है.टाइगर रत्न: रत्न शास्त्र में टाइगर रत्न को सबसे प्रभावी और शीघ्र फलदायी रत्न माना गया है. इसलिए इसे टाइगर कहते हैं. यह बिगड़े कामों को बनाता है और मालामाल कर देता है.(कोई भी रत्न धारण करने से पहले एक बार ज्योतिष की सलाह अवश्य लें।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 322
साधक का प्रश्न ::: गुरु जी! जब हम भगवान् का ध्यान करते हैं तो कभी बिटिया, कभी बीबी, कभी माँ सामने आ जाती है तब भगवान् का ध्यान किस प्रकार करें?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: अच्छा तो ये बताओ तुम्हारी बिटिया की क्या चीज अच्छी लगती है तुमको? हमारी बिटिया की आँख बड़ी अच्छी लगती है महाराज जी, उसी का ध्यान हो जाता है जब भगवान् की आँख का ध्यान करते हैं। हाँ-हाँ बेटा घबराओ मत, देखो ऐसा करो जब बिटिया आवे सामने और उसकी आँख आवे, तो उसी आँख में श्यामसुन्दर को खड़ा कर दो और खूब देखो बिटिया की आँख को। बिटिया की आँख में श्यामसुन्दर को खड़ा करके और फिर बिटिया की आँख को देखो, बिटिया समझेगी कि हमसे प्यार कर रहे हैं पिताजी और तुम अपने श्यामसुन्दर से कर रहे हो। बीबी की आँख को देखो। जो तुमको अच्छा लगता है, जहाँ अधिक अटैचमेन्ट हो उससे घबराओ मत, परेशान न हो, झुँझलाओ मत, उसी जगह श्यामसुन्दर को खड़ा करो। ये अमुक बिल्डिंग बड़ी अच्छी लगती है उसी के ऊपर खड़ा कर दो श्यामसुन्दर को, त्रिभंगीलाल खड़े हैं मुरली बजाते हुये। जहाँ मन जाये वहीं पर श्यामसुन्दर को खड़ा करो। जाने दो, रोको मत मन को कहीं, रोकने से नहीं रुकेगा और भागेगा। जैसे कुकर की गैस बढ़ जाती है ऐसे फिर तुम परेशान हो जाओगे। जहाँ मन जाये, जाने दो, उसी जगह पर श्यामसुन्दर को खड़ा कर दो। ये गुरु ने बताया तरकीब। हाँ ये बढ़िया है तरकीब। अब तो जहाँ कहीं भी मन जायेगा वहाँ पर मनमोहन को खड़ा कर देगें तो हार जाएगा मन, थक जाएगा कि हर जगह ये श्यामसुन्दर का, नन्दपूत का भूत खड़ा कर देते हैं तो कहीं जाना ही बेकार है।
देखो! ये जो बन्दर को सिखाते हैं बाजीगर लोग तो ये पहले सौ फुट की रस्सी में बाँध देते हैं बन्दर को। उसी में उछलता है वो, और सौ फुट के बाहर जाना चाहता है, गले में रस्सी लगती है बार-बार, बार-बार, तो सोचता है चलो अब इसी के अंदर कूदेंगे। जब सौ फुट के अंदर ही रह जाता है तब पचास फुट की रस्सी कर देते हैं। इसी प्रकार दस फुट की, फिर पांच फुट की फिर जब एक फुट की रस्सी कर देता है तो बन्दर बैठ जाता है, बेकार है भागना। हाँ, ऐसे ही ये मन है, ये जहाँ भी जाये वहाँ पर श्यामसुन्दर को खड़ा करो।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' (भाग - 1)०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - किसी भी व्यक्ति के लिए उसका व्यवसाय कितना मायने रखता है यह बात किसी को समझाने की आवश्यकता नहीं है। व्यवसाय व्यक्ति के जीवन भर की पूंजी और जीविकोपार्जन का जरिया होता है। जिससे वह अपने परिवार का भरण-पोषण करता है। ऐसे में यदि व्यवसाय में परेशानियां आने लगे तो तनाव होना स्वाभाविक होता है। व्यसाय में दिक्कते आते ही हर तरफ से परेशानियां आने लगती हैं क्योंकि व्यक्ति को व्यवसाय में दिक्कतों के चलते आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिससे परिवार में भी कलह-क्लेश होने लगता है। जिसके चलते व्यक्ति को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है। हर व्यक्ति यही चाहता है कि उसका व्यवसाय अच्छा चले और उसमें तरक्की होती रहे। वास्तु शास्त्र के अनुसार यदि कोई व्यवसाय करते हैं या फिर व्यवसाय आरंभ करने की सोच रहे हैं तो रंग का विशेष ध्यान रखना चाहिए। हम अपने कार्यस्थल पर बस रंगों का चयन ऐसे ही कर लेते हैं लेकिन रंग हमारे व्यवसाय को प्रभावित करते हैं ऐसे में यदि आप रंगो का चुनाव अपने व्यवसाय के अनुसार करते हैं तो लाभ प्राप्त किया जा सकता है। तो आइए जानते हैं कि किसी व्यवसाय के लिए कार्यस्थल पर कौन सा रंग करवाना फायदेमंद रहता है।यदि आपकी किराने की दुकान है तो हल्का गुलाबी या सफेद रंग करवाना सही रहता है, इससे व्यापार में तरक्की प्राप्त होती है।यदि आपका कपड़ों का व्यवसाय हैं जैसे सिलाई की दुकान, थोक या खुदरा में कपड़े बेचना आदि तो वास्तु के अनुसार आपको हल्के पीले, हरे और आसमानी रंग का चुनाव करना उचित रहता है। इससे आपकी व्यसाय की समस्याएं दूर होती हैं।यदि आप दवा विक्रेता हैं या फिर दवाखाना खोलना चाहते हैं तो आपको सफेद रंग करवाना चाहिए। वास्तु के अनुसार दवाई के कारोबार के लिए कार्यस्थल पर यह रंग सबसे अच्छा माना जाता है।यदि आपकी तोहफो की दुकान है तो आपको अपनी दुकान में पीला, आसमानी और हल्का गुलाबी या नीले रंग का प्रयोग करना चाहिए। इससे व्यवसाय में समृद्धि प्राप्त होती है।वास्तु शास्त्र के अनुसार यदि आपकी किसी प्रकार की बिजली के उपकरणों से संबंधित दुकान है तो कार्यस्थल पर गुलाबी, सफेद और हल्का हरा रंग करवाना बहुत लाभप्रद माना जाता है।यदि आप सौंदर्य प्रसाधन से जुड़ा हुआ कोई व्यसाय दुकान या ब्यूटी पार्लर आदि चलाते हैं तो आसमानी और सफेद रंग का चुनाव करना सही रहता है। इससे व्यापार में खूब तरक्की होती है।
- -इन मंत्रों का जाप करने से परम पुण्य की होती है प्राप्तिपुराणों के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल दशमी, हस्त नक्षत्र में गंगाजी शिवजी की जटाओं से निकलकर धरती पर आई थी। मान्यता है कि इस दिन गंगा सेवन यानी गंगा स्नान करने से अनजाने में हुए पाप और कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। मान्यता है कि इस पवित्र नदी में स्नान करने से दस प्रकार के पाप नष्ट होते हैं। गंगा मैया तक ना जा सकें, तो इस दिन स्नान के पानी में गंगा जल मिलाकर नहाएं। ऐसा करने से भी गंगा स्नान के बराबर ही पुण्य मिलता है। इस दिन विष्णुपदी, पुण्यसलिला मां गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ, अत: यह दिन 'गंगा दशहरा' (ज्येष्ठ शुक्ल दशमी) या लोकभाषा में जेठ का दशहरा के नाम से जाना जाता है।स्कंदपुराण के अनुसार गंगा दशहरे के दिन व्यक्ति को किसी भी पवित्र नदी पर जाकर स्नान, ध्यान तथा दान करना चाहिए, इससे वह अपने सभी पापों से मुक्ति पाता है। यदि कोई मनुष्य पवित्र नदी तक नहीं जा पाता, तब वह अपने घर के पास की किसी नदी पर मां गंगा का स्मरण करते हुए स्नान करे और यह भी संभव नहीं हो तो मां गंगा की कृपा पाने के लिए इस दिन गंगाजल का स्पर्श और सेवन अवश्य करना चाहिए।विष्णु पुराण में लिखा है कि गंगा का नाम लेने, सुनने, उसे देखने, उसका जल पीने, स्पर्श करने, उसमें स्नान करने तथा सौ योजन (कोस) से भी गंगा नाम का उच्चारण करने मात्र से मनुष्य के तीन जन्मों तक के पाप नष्ट हो जाते हैं। मत्स्य, गरुड़ और पद्म पुराण के अनुसार हरिद्वार, प्रयाग और गंगा के समुद्र संगम में स्नान करने से मनुष्य मरने के बाद स्वर्ग पहुंच जाता है और फिर कभी पैदा नहीं होता यानी उसे निर्वाण की प्राप्ति हो जाती है।शास्त्रों के अनुसार गंगा अवतरण के इस पावन दिन गंगा जी में स्नान एवं पूजन-उपवास करने वाला व्यक्ति दस प्रकार के पापों से छूट जाता है। बिना दी हुई वस्तु को लेना, निषिद्ध हिंसा, परस्त्री संगम-यह तीन प्रकार का दैहिक पाप माना गया है। कठोर वचन मुंह से निकालना, झूठ बोलना, सब ओर चुगली करना एवं वाणी द्वारा मन को दुखाना ये वाणी से होने वाले चार प्रकार के पाप हैं। दूसरे के धन को लेने का विचार करना, मन से किसी का बुरा सोचना और असत्य वस्तुओं में आग्रह रखना-ये तीन प्रकार के मानसिक पाप कहे गए हैं। यानि कि दैहिक, वाणी द्वारा एवं मानसिक पाप, ये सभी गंगा दशहरा के दिन पतितपावनी गंगा स्नान से धुल जाते हैं। गंगा में स्नान करते समय स्वयं श्री नारायण द्वारा बताए गए मन्त्र-''? नमो गंगायै विश्वरूपिण्यै नारायण्यै नमो नम:'' का स्मरण करने से व्यक्ति को परम पुण्य की प्राप्ति होती है।दस-दस सामग्री का महत्वस्कंद पुराण के अनुसार गंगा दशहरे के दिन श्रद्धालुजन दस-दस सुगंधित पुष्प,फल,नैवेद्य,दस दीप और दशांग धूप के द्वारा श्रद्धा और विधि के साथ दस बार गंगाजी की पूजा करें। जिस भी वस्तु का दान करें, उनकी संख्या दस होनी चाहिए और जिस वस्तु से भी पूजन करें, उनकी संख्या भी दस ही होनी चाहिए, ऐसा करने से शुभ फलों में वृद्धि होती है एवं मां गंगा प्रसन्न होकर मनुष्य को पाप मुक्त करती हैं। दक्षिणा भी दस ब्राह्मणों को देनी चाहिए। जब गंगा नदी में स्नान करें, तब दस बार डुबकी लगानी चाहिए।
- HappyFATHER'S DAYTo All Of You..
आप सभी सुधी पाठक समुदाय को 'फादर्स-डे' की हार्दिक शुभकामनाएं!! आइये आज इस अवसर हम सभी अपने सनातन पिता भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण करें!
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'फादर्स-डे' के महत्व पर यह विशेष प्रवचन हम सभी के कल्याणार्थ दिया गया था, हम सभी इसमें निहित शब्दों पर गम्भीरता से मनन करें और अधिकाधिक लाभ प्राप्त करने का सौभाग्य अर्जित करें!!
★ 'भगवान् ही हमारे वास्तविक पिता हैं'
'..भगवान् समस्त जीवों के वास्तविक पिता हैं. भगवान् के सोचने मात्र से संसार बन गया. संसार बन जाने के बाद भगवान् संसार के एक एक परमाणु में व्याप्त हो गए अर्थात् सर्वव्यापक हो गए. भगवान् ने जीवों को शरीर दिया और भगवान् अनेक रूप बनाकर प्रत्येक जीव के साथ उसके शरीर में बैठे, शरीर में चेतना दी. जीव को भगवान् ने शक्ति दी और जीव ने शरीर को शक्ति दी. जीव के पूर्व जन्म के कर्मानुसार भगवान् प्रत्येक जीव को जन्म देते हैं..
भगवान् के अनंत जीव हैं और समस्त जीव भगवान् के पुत्र हैं परंतु वे भगवान् को अपना पिता नहीं मानते हैं. संसारी पिता को पिता मानते हैं, परंतु जो वास्तविक पिता है भगवान्, उसको मानते ही नहीं. शरीर के पिता के लिए संसार में 'फादर्स डे' मनाते हैं और आत्मा का वास्तविक पिता परमात्मा है, उसको कोई नहीं मानता, उसके विषय में कोई नहीं सोचता. संसारी पिता तो एक जन्म भी साथ नहीं दे सकता क्योंकि सर्वप्रथम तो मानव देह क्षणभंगुर है, किसी की आयु निश्चित नहीं है और दूसरे संसार में सब अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए ही एक दूसरे से प्रेम का दिखावा करते हैं और स्वार्थ सिद्धि न होने पर परस्पर एक दूसरे के शत्रु बन जाते हैं.
संसारी पिता से जीव का संबंध क्षणभंगुर है, नाशवान है परंतु भगवान से जीव का संबंध नित्य है, अटूट है, सदा से है और सदा के लिए है. जीव, भगवान् को अपना पिता माने न माने, परंतु भगवान् फिर भी उसका सदा साथ देते हैं. अतः 'फादर्स डे' पर हमें अपने वास्तविक पिता भगवान् की अनन्त कृपाओं को अनुभव करते हुए उनसे अपने अपराधों के लिए क्षमा माँगते हुए रोकर उनसे उनकी सेवा माँगनी चाहिए, क्योंकि भगवान् का नित्य दासत्व हमारा वास्तविक स्वरुप है. जब तक भगवान् नहीं मिलते तब तक हमें अपने गुरु को ही अपना पिता, अपना संरक्षक मानते हुए साधना करनी चाहिए, तभी 'फादर्स डे' मनाना सार्थक होगा..'
••- जगद्गुरुत्तम् स्वामी श्री कृपालु जी महाराज...
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - रविवार का दिन भगवान सूर्यदेव को समर्पित है। सूर्यदेव की ऊर्जा से ही यह सारा संसार प्रकाशमान है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार सूर्यदेव की उपासना से यश और आरोग्य की प्राप्ति होती है। वास्तु में सूर्यदेव की उपासना को लेकर कुछ आसान से उपाय बताए गए हैं, जिन्हें अपनाकर हम भगवान सूर्यदेव की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।ज्योतिषाचार्यों के अनुसार अगर पूरे हफ्ते सूर्यदेव को जल अर्पित न कर सकें तो रविवार को सूर्यदेव को जल अवश्य अर्पित करें। तांबे के लोटे में लाल फूल डालकर सूर्यदेव को जल अर्पित करें। जल अर्पित करते समय सूर्य मंत्र का जाप करें। रविवार के दिन घर के सभी सदस्यों को माथे पर चंदन का तिलक लगाना चाहिए। प्रत्येक रविवार सूर्यदेव का व्रत करने से कार्यक्षेत्र में उच्च पद की प्राप्ति होती है। रविवार को व्रत करने से नेत्र व चर्म रोग से मुक्ति मिलती है। रविवार के दिन आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ अवश्य करें। रविवार के दिन तेल से बने खाद्य पदार्थ किसी जरूरतमंद को खिलाएं। बड़े-बुजुर्गों की सेवा करें और उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।ज्योतिषाचार्यों के अनुसार रविवार को तांबे का बर्तन, पीले या लाल वस्त्र, गेहूं, गुड़, लाल चंदन आदि का दान करें। रविवार सुबह घर से निकलने से पहले गाय को रोटी दें। रविवार के दिन एक पात्र में जल लेकर बरगद के वृक्ष पर चढ़ाएं। रविवार की रात अपने सिरहाने दूध का गिलास रखकर सोएं और सुबह इस दूध को बबूल के पेड़ की जड़ में डाल दें। रविवार को पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाने से पद-प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। रविवार को काली गाय को रोटी और काली चिड़िया को दाना डालें। मछलियों को आटे की गोली बनाकर खिलानी चाहिए। रविवार के दिन पैसों से संबंधित कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 320
(किस कर्म में उधार करें, किस कर्म को तत्काल करें, जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से...)
..दो प्रकार का कर्म होता है क्योंकि आपके पास दो चीजें हैं; एक शरीर, एक आत्मा। तो आत्मा के कर्म के लिये उधार न करो, शरीर के कर्म को भले ही उधार कर दो और हम लोग उल्टा करते हैं। शरीर के कर्म को पहले करते हैं और अगर टाइम मिला, बचा फालतू वाला तो उसको परमार्थ में लगाते हैं। इसी प्रकार तन, मन, धन तीनों का संसार में उपयोग तो तुरन्त करते हैं और भगवान के एरिया में उपयोग करने में कतराते हैं, उधार कर देते हैं और उधार ही चलता जाता है।
अनन्त जन्म क्यों बीते? अनन्त बार भगवान को हमने देखा है, अनन्त सन्त हमको मिले हैं, उन्होंने समझाया है और हमने समझा भी है, लेकिन शरणागति में उधार कर दिया, भक्ति में उधार कर दिया, कल करेंगे और कल आने के पहले ही चल दिये। यमराज तो अपना बहीखाता लिये बैठा है ताक में, आपका समय हो गया, बस चलिये। अरे, मैं हट्टा-कट्टा हूँ, अभी जवान हूँ। अरे, जवान-ववान कुछ नहीं। टाइम, टाइम, मैं काल हूँ। काल के अनुसार काम करता हूँ। जाना पड़ेगा। अरे, मैं राजा हूँ, प्राइम मिनिस्टर हूँ, गवर्नर हूँ। अरे, तुम चाहे इन्द्र हो, सबको जाना पड़ेगा। काल के आगे किसी की दाल नहीं गलती। सबको उसकी बात माननी पड़ती है, सीधे नहीं तो टेढ़े। एक सेकण्ड का समय दे दो, काम महाराज! साइन कर दूँ प्रॉपर्टी का। न न एक बटे सौ सेकण्ड नहीं। इट इज ऐज़ श्योर ऐज़ डेथ। बस, उसी क्षण जाना पड़ेगा।
इसलिये उधार बन्द करो। परमार्थ का काम तुरन्त करो, साधना तुरन्त करो। एक क्षण का भरोसा नहीं। अगर ये फार्मूला याद रखो तो लापरवाही न होगी। हम लोग लापरवाही करते हैं न। हमारे पास आधा घण्टे का समय है। अब क्या करें? आधा घण्टा है, अब बीबी बैठी है, उसी से गप्पे हो रही हैं। आधा घण्टे का समय कैसे कटे? निरर्थक बातें हो रही हैं, वो ऐसा है, वो ऐसी है, वो ऐसा है, कुछ तुमको मिलना-जुलना है इन बातों से। नहीं जी, मिलना-जुलना तो नहीं है लेकिन फालतू बैठे थे तो एन्जॉयमेंट हो रहा है। ये एन्जॉयमेंट है? यानी हम लोग समय को बरबाद करने पर तुले हैं। किसी प्रकार ये मानव देह का अमूल्य समय समाप्त हो।
हम बोलते भी हैं, अरे बेटा! हम तो अस्सी वर्ष के हो गये, पिचासी के हो गये, हमारी तो बीत गई, तुम अपनी सोचो। क्या बीत गई? अरे, मतलब हम जाने वाले हैं। कहाँ जाओगे, गोलोक? अपने कर्म की सोचो। तुमने ऐसा कौन सा साधन किया है जो बड़े रुआब में कह रहे हो, हमारी तो बीत गई। बीत गई नहीं, हमने तो बरबाद कर दिया मानव देह को, ऐसे बोलो। अपना सर्वनाश कर लिया।
'आतमहन गति जाय'। आत्म-हत्यारा है वो जिसने भगवत्प्राप्ति नहीं किया, मरने के पहले। अरे, अगर भगवत्प्राप्ति नहीं किया तो कुछ कमी रह गई, तो भी डरो मत, अगले जन्म में पूरा कर लेना। लेकिन करो तो। उधार नहीं।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'हरि गुरु स्मरण' पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हमारे दिन की शुरुआत सूर्योदय और शाम की शुरुआत सूर्यास्त से होती है. सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच के समय को दिन और रात का संधि समय भी मना जाता है। ज्योतिषशास्त्र में इस समय को काफी महत्वपूर्ण माना गया है। अगर आपने गौर किया हो तो घर के बड़े-बूढ़े कई बार शाम के समय में कुछ कामों को करने से रोकते हैं। हमारे शास्त्रों में भी सूर्यास्त के बाद कुछ कामों को करना अशुभ माना गया है। आज हम आपके ऐसे ही 5 काम के बारे में बताएंगे जिन्हें सूरज ढलने के बाद नहीं करना चाहिए।भूलकर भी न करें ये गलतीतुलसी का पौधा लगभग हर घर में होता है। घर में तुलसी का होना बेहद शुभ माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार लेकिन सूर्यास्त के बाद तुलसी के पौधे का स्पर्श नहीं करना चाहिए और न ही उसे जल देना चाहिए। इससे धन की देवी लक्ष्मी नाराज होती हैं और घर से समृद्धि दूर हो जाती है।दान करने से बचेंहिंदू धर्म में दान का विशेष महत्व है। खासकर जब दान में दही दी जाए। कहा जाता है कि सूरज ढलने के बाद कभी भी दही का दान नहीं करना चाहिए। दरअसल, दही का संबंध शुक्र ग्रह से होता है और यह सुख समृद्धि में बढ़ोतरी करती है। ऐसे में शाम के समय दही का दान करने से जीवन में सुख-समृद्धि की कमी होती है।सूर्यास्त के समय न सोएंसूर्यास्त के समय या सूर्यास्त के बाद सोना नहीं चाहिए और ना ही भोजन करना चाहिए। इससे धन हानि होती है। इसके साथ ही स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां भी होने लगती हैं।घर की सफाईसूर्यास्त के समय घर में झाड़ू-पोछा या साफ-सफाई नहीं करना चाहिए। शास्त्रों में कहा गया है कि सूर्यास्त के बाद घर में झाड़ू-पोछा करने से घर की खुशियां समाप्त होने लगती हैं। सूर्यास्त के दौरान आप पढ़ सकते हैं या फिर खेलकूद और एक्सरसाइज कर सकते हैं।बाल -नाखून न काटेंसूरज ढलने के बाद बाल नहीं काटने चाहिए। कई लोग सूर्यास्त के बाद बाल कटा लेते हैं या फिर शेव कर लेते हैं। ऐसा करने से जीवन पर नकारात्मक असर होता है और धन हानि हो जाती है। वहीं नाखून भी नहीं काटने चाहिए।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 319
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'प्रेम रस सिद्धान्त' ग्रन्थ के 'कर्म' अध्याय का एक अंश...)
भक्ति के बिना धर्म पालन मात्र से मुक्ति तो दूर की बात है, अन्तःकरण-शुद्धि तक ही नहीं हो सकती।
यही कारण है कि बिना ईश्वर-भक्ति के हम धर्म करते हुए भी ईश्वरीय फल से वंचित रहते हैं। मछली गंगाजल में सदा रहती है, पर भक्ति के बिना उद्धार नहीं होता। आप लोग यह आशा करते हैं कि एक डुबकी लगाने मात्र से हम बैकुण्ठ पहुँच जायें। यह सब धोखा है।
आप कहेंगे कि आग में मन लगायें या न लगायें वह तो, एक सती होने वाली नारी को भी जलाती है एवं बरबस अग्निकुंड में डाल दिये गये व्यक्ति को भी जलाती है, उसी प्रकार गंगा जी में डुबकी लगाने से गंगा जी तो अपना फल देंगी ही। किन्तु यह बताओ कि तुमने हजारों बार गंगा-यमुना स्नान किया, क्या निष्पाप हो गये? अर्थात् अब तुम काम, क्रोध, लोभादि से परे हो गये? तब वह सिर खुजलाता है कि ऐसा तो नहीं हुआ। तो फिर पाप कहाँ धुला? वास्तव में ऐसे भोले लोग ही शास्त्र को कलंकित करते हैं। आइये इस प्रश्न को हल ही कर लीजिये।
देखिये, आप प्रथम एक शीशी में पेशाब भरिये पुनः उसे बन्द करके गंगा जी में डाल दीजिये। पुनः 24 घंटे बाद उस शीशी को निकालिये, क्या कोई इस पेशाब का आचमन करेगा? आप कहेंगे, नहीं। पूछा जाय, क्यों नहीं? तो आप उत्तर देंगे कि शीशी में रहने वाला पेशाब तो गंगा जी में मिला ही नहीं, वह तो बन्द था। बस, तो अब यह बताइये कि पाप कहाँ रहता है? मन में न? आप कहेंगे, हाँ। तो आपने मन को तो गंगा जी से बाहर रखा था, शरीर मात्र से गंगा स्नान कर रहे थे। अतः फिर मन के अन्दर रहने वाला पाप कैसे धुलेगा? शास्त्र तो यह कहते हैं कि जहाँ पापादि रहता हो, उसे शुद्ध वस्तु में एक कर दो तो शुद्ध हो जायेगा। यदि तुम अन्तःकरण को गंगाजी में एक कर दो तो निश्चय शुद्धि हो जाय। अतएव ईश्वर-भक्ति के बिना केवल कर्म से मुक्ति सर्वथा असंभव है। तुलसी के शब्दों में;
वारि मथे बरु होय घृत, सिकता ते बरु तेल।बिनु हरि भजन न भव तरिय, यह सिद्धान्त अपेल॥
अर्थात् असंभव भी संभव हो जाय, किन्तु बिना ईश्वर-भक्ति के मुक्ति नहीं हो सकती। पुनः रामायण कहती है;
जिमि थल बिनु जल रहि न सकाई। कोटि भाँति कोउ करै उपाई।।तथा मोक्ष सुख सुनु खगराई। रहि न सकइ हरि भगति बिहाई।।
वास्तव में माया के तीन गुण हैं - सात्त्विक, राजस एवं तामस उन्हीं गुणों के अनुसार तीन प्रकार के कर्म भी होते हैं - सात्त्विक, राजस और तामस कर्म। उन्हीं कर्मों के अनुसार फल भी होते हैं- सात्त्विक फल, राजस फल एवं तामस फल। उन्हीं फलों के अनुसार लोक भी प्राप्त होते हैं- सात्त्विक लोक अर्थात् स्वर्गादिक लोक, राजस लोक अर्थात् मृत्युलोक एवं तामस लोक अर्थात् नरकादि लोक। इस प्रकार धर्मादि पुण्यकर्म सात्त्विक गुण माया का ही है, अतएव तत्सम्बन्धी लोक भी मायिक ही हैं, अतः तत्सम्बन्धी परिणाम भी मायिक ही हैं। अतएव त्रिगुण के किसी भी कर्म से कर्म ग्रन्थियों का अत्यन्ताभाव नहीं हो सकता। गुणातीत एक मात्र ईश्वर ही है, अतएव यदि कर्म में ईश्वर भक्ति का संयोग न होगा तो वह सात्त्विक हो या राजस हो या तामस किन्तु मायिक होने के कारण सदोष एवं दुःखमय ही होगा। अतएव कर्मयोग में केवल इतना ही समझना है कि मन ईश्वर में नित्य लगा रहे एवं कर्म-धर्म का पालन शरीर से होता रहे। इसमें दो विरोधी बातें हैं।
कर्म करते समय यदि ईश्वर में मन लगा रहेगा तो कर्म कैसे होंगे? क्योंकि इन्द्रियाँ सोचने या निश्चय करने का कार्य नहीं कर सकतीं। यदि मन का संयोग न होगा तो इन्द्रियाँ होते हुए भी न होने के ही बराबर हैं। यह क्रियात्मक रूप से कैसे होगा? यह गंभीररूपेण विचारणीय है। इसका विस्तृत वर्णन साधना के प्रकरण में होगा। अभी इतना ही समझ लीजिये कि 'मन यार में तन कार में', बस यही कर्मयोग है। यदि मन का लगाव ईश्वर से पृथक् कहीं हुआ तो आप कर्मयोग नहीं कर सकते। कर्मयोग तो तभी संभव है जब मन नित्य ईश्वर में रहे, एक क्षण के लिए भी पृथक् न हो।
'यो मां स्मरति नित्यशः', 'एवं सततयुक्ता ये', 'सततं कीर्तयन्तो मां’, ‘तेषां नित्याभियुक्तानां', इत्यादि गीताक्त सिद्धान्तों द्वारा यह निर्विवाद सिद्ध है कि मन का ईश्वर में लगाव नित्य निरन्तर होना चाहिये।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रेम रस सिद्धान्त' (कर्म-प्रकरण)०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार शुक्रको भौतिक सुख, वैवाहिक सुख, भोग-विलास, शौहरत, कला, प्रतिभा, सौन्दर्य, रोमांस, काम-वासना और फैशन-डिजाइनिंग आदि का कारक ग्रह माना जाता है। शुक्र, वृष और तुला राशि के स्वामी होते हैं और मीन इनकी उच्च राशि है, जबकि कन्या इनकी नीच राशि है। शुक्र के शुभ होने पर व्यक्ति को जीवन में सभी तरह के सुखों की प्राप्ति होती है। 22 जून, 2021 को शुक्र का राशि परिवर्तन होने जा रहा है। शुक्र इस दिन कर्क राशि में प्रवेश कर जाएंगे। शुक्र 22 जून से 17 जुलाई तक इसी राशि में विराजमान रहेंगे। शुक्र का कर्क राशि में प्रवेश कुछ राशियों के लिए बेहद शुभ रहने वाला है। इन राशियों के जातकों को धन- लाभ हो सकता है। आइए जानते हैं शुक्र का राशि परिवर्तन किन राशियों के लिए शुभ रहने वाला है....मेष राशिमेष राशि के जातकों के लिए शुक्र का राशि परिवर्तन किसी वरदान से कम नहीं है।धन- लाभ होने के योग बन रहे हैं।पारिवारिक जीवन में खुशियों का अनुभव करेंगे।जीवनसाथी के साथ समय व्यतीत करेंगे।नौकरी और व्यापार में तरक्की के योग भी बन रहे हैं।स्वास्थ्य संबंधित समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है।मिथुन राशिशुक्र का कर्क राशि में प्रवेश मिथुन राशि के जातकों के लिए शुभ कहा जा सकता है।आर्थिक समस्याओं से छुटकारा मिलेगा।लेन- देन और निवेश के लिए ये समय किसी वरदान से कम नहीं है।शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए समय शुभ है।वैवाहिक जीवन में सुख का अनुभव करेंगे।सेहत अच्छी रहेगी।मकर राशिमकर राशि के जातकों के लिए शुक्र का राशि परिवर्तन शुभ रहने वाला है।नौकरी और व्यापार के लिए ये समय किसी वरदान से कम नहीं है।धन- लाभ होगा, जिससे आर्थिक पक्ष मजबूत होगा।शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए समय अच्छा है।परिवार के सदस्यों के साथ समय व्यतीत करेंगे।दांपत्य जीवन में सुख का अनुभव करेंगे।मीन राशिमीन राशि के जातकों के लिए शुक्र का कर्क राशि में प्रवेश शुभ कहा जा सकता है।ॉआर्थिक पक्ष मजबूत होगा।निवेश करने के लिए समय अच्छा है।नौकरी और व्यापार में लाभ होगा।कार्यों में सफलता प्राप्त करेंगे।
- घर में पैसा तो खूब आता है लेकिन वह कब खर्च हो जाता है पता भी नहीं चलता है। बहुत कमाने पर भी घर में पैसों की बरकत नहीं होती है। यदि आपके घर में बिन वजह के खर्चे बढ़ गए हैं और घर में धन संचय नहीं हो पा रहा है तो वास्तु शास्त्र इसमें सहायक हो सकता है। वास्तु शास्त्र में कुछ ऐसी चीजों के बारे में बताया गया है जिन्हें सही स्थान और सही दिशा में रखा जाए तो रुपए पैसे की कमी नहीं होती है। आपके घर में बिन वजह के खर्चे कम होते हैं और धन की बरकत बनी रहती है। इसके साथ ही परिवार के में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है और परिवार के सदस्यों की तरक्की होती है। तो आइए जानते हैं कि किन चीजों को घर में रखकर सकारात्मकता और आर्थिक उन्नति प्राप्त की जा सकती है। वास्तु के अनुसार घर की पूर्व दिशा में सूर्य यंत्र की स्थापना करनी चाहिए। माना जाता है कि इससे आपके घर में सकारात्मक उर्जा का संचार होता है जिससे परिवार के सदस्यों की तरक्की होती है।उत्तर दिशा में धातु से निर्मित मछली और कछुआवास्तु शास्त्र के मुताबिक घर की उत्तर दिशा में धातु से निर्मित मछली और कछुआ रखने से धन का आगमन होता है साथ ही घर में पैसों की बरकत भी बनी रहती है। धातु के कछुए को किसी पानी के पात्र में करके रखना चाहिए। इसके साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि कछुआ अंदर की ओर मुख करके ही रखें।लक्ष्मी माता की कमल पर विराजमान मूर्तिउत्तर दिशा को धन के देवता कुबेर की दिशा माना गया है। इस दिशा को धनदायक माना जाता है। लक्ष्मी माता को धन की देवी हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में उत्तर दिशा में लक्ष्मी माता की कमल पर विराजमान ऐसी मूर्ति रखी जाए जिसमें उनके हाथ से सोने के सिक्के गिर रहें हों तो घर में हमेशा सुख समृद्धि बनी रहती है।मिट्टी के घड़े में पानीएक मिट्टी के घड़े में पानी भरकर घर की उत्तर दिशा में रखना चाहिए। इससे घर में सुचारू रूप से धन की आवक बनी रहती है लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि घड़े का पानी सूखना नहीं चाहिए। पानी को समय-समय पर बदलते ही रहना चाहिए ताकि उसमें किसी तरह के किटाणु न पनपने पाएं।सोने और चांदी के सिक्केकुछ सोने और चांदी के सिक्के लेकर लाल कपड़े में बांध लें और एक सुन्दर सा मिट्टी का बर्तन लेकर उसमें रख दें। अब उस पात्र को गेहूं या चावल से भर दें। इस बर्तन को अपने घर की उत्तर-पश्चिम दिशा में रखें। इससे आपके घर में धन की बरकत बनी रहती है।
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जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 318
साधक का प्रश्न ::: पापात्मा होते हुए भी वाल्मीकि भगवत्प्राप्ति कर महापुरुष कैसे बन गये ?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: अरे ! सभी जीव सदा के पापात्मा हैं कोई वाल्मीकि ही नहीं। लेकिन जब भगवत्प्राप्ति कर लिया तो वाल्मीकि जैसे महापुरुष हो गये, वैसे ही तुलसीदास, सूरदास, मीरा सब महापुरुष हो गये। तो सब पापात्मा थे तब थे, बाद में तो सिद्ध कर रहे हैं तुलसीदास, महापुरुषों के दादा थे, 'वाल्मीकि भये ब्रह्म समाना' - इतनी बड़ी सीट दिया है वाल्मीकि को। ये तो भगवन्नाम की महिमा बताया है और बाकी रही बात पापी थे वाल्मीकि, तो कौन पापी नहीं था? तुलसीदास पापी नहीं थे क्या पहले? कि सूरदास नहीं थे? अरे सभी जीव पहले पापी होते हैं फिर भगवान् की शरण में जाकर के पाप समाप्त होके महापुरुष बनते हैं। खाली वाल्मीकि की बात क्या है? सूरदास की तो और निन्दा है। और स्वयं तुलसीदास की कितनी निन्दा है कि साँप पकड़ कर के गये अपनी श्रीमती के घर। लेकिन वह पहली लाइफ से क्या मतलब? महापुरुष हो गये तो बस फिर बात खत्म। सभी जीव अनन्त जन्मों के अनन्त पापों से युक्त हैं। वाल्मीकि का पाप क्या है? जब जीव अनन्त पापों से युक्त हैं। एक वाल्मीकि ही महापुरुष ऐसे हुए हैं जो रामावतार से पहले रामायण लिख गये हैं उनकी तो इतनी प्रशंसा है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक (भाग - 2)०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हर माह की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। यह तिथि भगवान शंकर के भक्तों के लिए खास होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। भगवान भोलेनाथ की विशेष कृपा पाने के लिए भक्त व्रत भी रखते हैं।हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 22 जून 2021, दिन मंगलवार को है। इस दिन सिद्धि व साध्य योग के साथ विशाखा और अनुराधा नक्षत्र भी रहेगा।ग्रह-नक्षत्रों का महत्व-प्रदोष व्रत के दिन सिद्धि योग दोपहर 1 बजकर 52 मिनट तक रहेगा। इसके बाद साध्य योग लग जाएगा। नक्षत्र की बात करें तो विशाखा नक्षत्र दोपहर 02 बजकर 23 मिनट तक रहेगा इसके बाद अनुराधा नक्षत्र लग जाएगा।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सिद्धि व साध्य योग में किए गए कार्यों में सफलता हासिल होती है। ये मांगलिक व शुभ कार्यों के लिए शुभ योग हैं। विशाखा नक्षत्र को ज्यादातर शुभ कार्यों के लिये सामान्य माना जाता है। इसीलिये यह शुभ मुहूर्त में गिना जाता है। इसके अलावा अनुराधा नक्षत्र को ज्यादातर शुभ कार्यों के लिये श्रेष्ठ माना जाता है।प्रदोष व्रत पूजा- विधिसुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें।स्नान करने के बाद साफ- स्वच्छ वस्त्र पहन लें।घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।अगर संभव है तो व्रत करें।भगवान भोलेनाथ का गंगा जल से अभिषेक करें।भगवान भोलेनाथ को पुष्प अर्पित करें।इस दिन भोलेनाथ के साथ ही माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा भी करें। किसी भी शुभ कार्य से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है।भगवान शिव को भोग लगाएं। इस बात का ध्यान रखें भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।भगवान शिव की आरती करें।इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।प्रदोष व्रत पूजा- सामग्रीअबीरगुलालचंदनअक्षतफूलधतूराबिल्वपत्रजनेऊकलावादीपककपूरअगरबत्तीफल
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 317
(भूमिका - जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत यह प्रवचन उनके द्वारा किये गये 'नारद भक्ति दर्शन' की व्याख्या के 11-वें प्रवचन का अंश है। आचार्य श्री ने 'नारद भक्ति दर्शन' की व्याख्या अक्टूबर 1990 में, भक्तिधाम मनगढ़ में की थी...)
भगवान् की कृपा को रियलाइज करने का अभ्यास करो, कितनी कृपा है। कितनी कृपा है? आज दिन भर में हम यहाँ गये, वहाँ गये, ये किया और कितनी कृपा है, कहीं एक्सीडेन्ट नहीं हुआ, कहीं ऐसा कोई खतरा नहीं हुआ, पूरा दिन बीत गया, इतनी कृपा है उसकी (भगवान की)! हम तो ऐसे कृतघ्नी हैं कि कितनी ही बड़ी चीज मिले, कोई मूल्य ही नहीं समझते। जैसे - गंगाजी प्रयाग में है तो प्रयाग में रहने वाला गंगा नहाने साल में एक बार भी नहीं जाता। अजी, वहाँ कौन जाय इतनी दूर, यहाँ से दूर है, दूर। चार फर्लांग है। अभी इंग्लैंड, अमेरिका और बम्बई, कलकत्ता से आने वाले तो नहा रहे हैं और तुम चार फर्लांग बोल रहे हो। वह उसका महत्त्व नहीं समझता।
मैं जो आप लोगों को यह समझाता हूँ एक घंटे, इसका मूल्य भी आप लोगों में से कोई नहीं समझता, एक भी नहीं समझता। वरना पागल हो जाय वो खुशी में, क्या मिल रहा है ये? करोड़ों कल्प शास्त्र वेद के अध्ययन से जो न मिलता, वो बैठे-बैठे फ्री में मिल रहा है ऐसे। ये कौन-सी भगवत्कृपा हो रही है मेरे ऊपर और क्यों हो रही है, मैंने किया क्या है, इस जीवन में? सब गन्दे काम किये। सब इन्द्रियों के सुख के लिये सामान इकट्ठे करने का, सब चार सौ बीस, उसी का प्लान, उसी की प्रैक्टिस की। फिर भी इतनी कृपा उनकी हो रही है। कृपा को रियलाइज़ करना सबसे बड़ी बात है। यही भगवान् के माहात्म्य-ज्ञान का सेंस है।
माहात्म्य-ज्ञान... वो अकारण करुण हैं, बिना कारण के कृपा करते हैं। आग जल रही है, बिना कारण के वो टेम्प्रेचर दे रही है। आप दस फुट की दूरी पर बैठे हुए कॉंप रहे हैं ठण्ड में, आग कहती है - आ जाओ न मेरे पास, मैं कुछ पैसा नहीं लूँगी, आ जाओ, तुम्हारी ठण्ड चली जायेगी, भाई! नहीं, तुम्हारे पास तो नहीं आयेंगे, ठण्ड में ठिठुरते रहेंगे, तुम्हारे पास नहीं आयेंगे। अनन्त जीवों को हमने आत्मसमर्पण किया, माँ को, बाप को, बेटे को, बीबी को, पति को, हर जन्म में किया। खाली महापुरुष और भगवान् के शरणागत नहीं हुए, वहाँ प्रतिज्ञा किए हैं कि तुम दोनों की शरण में नहीं जायेंगे, बाकी गधों के पास जाने में हमें कोई लज्जा नहीं। इतना दुराग्रह है, अन्यथा क्या बात है? क्या माँगते हैं भगवान्?
तमेव शरणं गच्छ सर्वभावेन भारत।तत्प्रसादात्परां शान्तिं स्थानं प्राप्स्यसि शाश्वतम्।।(गीता 18-62)
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।(गीता 18-66)
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥(गीता 9-22)
ये तु सर्वाणि कर्माणि मयि संन्यस्य मत्पराः।अनन्येनैव योगेन मां ध्यायन्त उपासते॥(गीता 12-6)
तेषामहं समुद्धर्ता मृत्युसंसारसागरात्।भवामि नचिरात्पार्थ मय्यावेशितचेतसाम्॥(गीता 12-7)
वो तो हर जगह प्रतिज्ञा कर रहे हैं, केवल हम उसको मानें। तो नारद जी कहते हैं कि ये माहात्म्य-ज्ञान परमावश्यक है और जब अवतार नहीं है तब तो बहुत ही आवश्यक है। इसलिये माहात्म्य-ज्ञान हो फिर भक्ति हो।
देखो नम्बर एक - माहात्म्य-ज्ञान, नम्बर दो - भक्ति। कौन-सा विश्व में ऐसा भक्त, भक्ति कर सकता है कि भगवान् को जाने न, कोई महापुरुष बतावे न और भक्ति करने लग जाय। उसे क्या मालूम है, किसकी भक्ति करना है, क्या बलाय है, भक्ति? तो माहात्म्य-ज्ञान हुआ - नम्बर एक, भक्ति नम्बर दो। तब फिर भक्ति जब करने लगा तो;
जनयत्याशु वैराग्यं ज्ञानं च यदहैतुकम्।(भाग. 1-2-7)
फिर भक्ति से ज्ञान हुआ और जब भक्ति से ज्ञान हुआ तो और भक्ति हुई, फिर और ज्ञान हुआ, फिर और भक्ति हुई, इस प्रकार बढ़ते बढ़ते अन्त में भक्ति ही रह जायेगी, परिपूर्ण अवस्था में, ज्ञान का लय हो जायेगा। इसलिये कर्म, योग, ज्ञान - सबसे श्रेष्ठ बताई गई भक्ति;
तपस्विभ्योऽधिको योगी ज्ञानिभ्योऽपि मतोऽधिकः।कर्मिभ्यश्चाधिको योगी तस्माद्योगी भवार्जुन।।(गीता 6-46)
योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना।श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः॥(गीता 6-47)
कर्मियों से, तपस्वियों से, ज्ञानियों से, योगियों से सबसे श्रेष्ठतर है भक्ति। भक्ति के बिना कोई कर्म, धर्म, योग, ज्ञान कुछ भी हो, 'न मां साधयति'। परम ज्ञानी बन जायेगा, उसकी पहिचान क्या? उतनी ही तेज, उच्च कोटि का भक्त होना चाहिये। अगर भक्ति नहीं करता है और कहता है - मैं ज्ञानी हूँ तो वो पागलखाने वाला ज्ञानी है, थ्योरिटिकल ज्ञानी है, ज्ञानाभिमानी है। ऐसे ज्ञानाभिमानियों के लिये तो;
येऽन्येऽरविंदाक्षविमुक्तमानिनस्त्वय्यस्तभावादविशुद्धबुद्धयः।आरुह्य कृच्छ्रेण परं पदं ततः पतंत्यधोऽनादृतयुष्मदंघ्रयः॥(भाग. 10-2-32)
वो श्रीकृष्ण भक्ति और श्रीकृष्ण का सम्मान नहीं कर रहा है इसलिये 'आरुह्य कृच्छ्रेण परं पदं' - गिर जाता है। 'परत खगेस न लागहिं बारा' - आधार नहीं है, बेचारे के पास। निराधार कोई भी नहीं रह सकता।तो कर्म का आधार भक्ति, ज्ञान का आधार भक्ति, योग का आधार भक्ति क्योंकि माया-निवृत्ति बिना भक्ति के हो ही नहीं सकती, कोई भी हो - यया सर्वमवाप्यते। वेदव्यास कहते हैं;
यत्कर्मभिर्यत्तपसा ज्ञानवैराग्यतश्च यत्।योगेन दानधर्मेण श्रेयोभिरितरैरपि।।(भाग. 11-20-32)
अगर कोई जिद्द करे कि हमको साहब माया-निवृत्ति और श्रीकृष्ण प्राप्ति नहीं चाहिये, स्वर्ग चाहिये। वह भी ले लो बाबा। वो तो बड़ी जल्दी दे देंगे। बड़ा अच्छा है। वो तो पहले देने को तैयार हैं;
कागभुशुंडि माँगु वर, अति प्रसन्न मोहिं जान।अणिमादिक सिधि अपर निधि, मोक्ष सकल सुख खान।।
सब दे देंगे। जितनी छोटी चीज़ माँगो, दानी को देने में उतना ही आराम है, उसको क्या प्रॉब्लम है? स्वर्ग तो छोटी चीज़ है न ! असली कर्म वो है जिसमें कि वो भक्ति शरण्य हो, कर्म सर्वेन्ट हो। असली ज्ञान वो है जिसमें भक्ति स्वामी हो, मेन हो और ज्ञान सर्वेन्ट हो। यानी योग, ज्ञान, कर्म कुछ भी हो, उसकी स्वामिनी भक्ति होनी चाहिये।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते।(गीता 7-14)
अकाट्य नियम है। इसीलिये मधुसूदन सरस्वती सरीखे अद्वैत वेदान्ती भी एडमिट करते हैं कि कर्म गुह्य है, ज्ञान गुह्यतर है और भक्ति गुह्यतम है। देखो! 18 वें अध्याय के 63 वें श्लोक में कहा गया कि ज्ञान जो है;
इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद्गुह्यतरं मया।(गीता 18-63)
यहाँ 'तरं' शब्द का प्रयोग किया भगवान् ने यानी गुप्त से अधिक गुप्त। ज्ञान के लिये कहा और उसके बाद - 'सर्वगुह्यतमं भूयः' - 64 वें श्लोक में यह कहा, 18 वें अध्याय में। सबसे गुप्त बात सुन। वो क्या बात?
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।(गीता 18-65)
इसका अर्थ भी किया मधुसूदन सरस्वती ने - नवधा भक्ति करो श्रीकृष्ण की। ये सबसे प्राइवेट, ये गुह्यतम सिद्धान्त है और इसके बाद थोड़ा उसको धुक्-धुक् हो रही थी, अर्जुन को, कि वो कहते हैं - 'तमेव शरणं गच्छ' - उसकी शरण में जाओ उसकी, उसकी किसकी? कुछ कनफ्यूज्ड हो रहा था तो भगवान् ने कहा, अच्छा सुन;
सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।(गीता 18-66)
तू उसकी और इसकी मत जा, मेरी शरण में आजा, सीधे-सीधे, छुट्टी मिली। मैंने तो आपको गुरु बनाया है महाराज !
शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्।(गीता 2-7)
हाँ-हाँ, तो गुरु की शरण में आ जा तो भी वही लक्ष्य प्राप्त होगा। तेरा बुद्धि लगाना बन्द हो जाय, बस इतनी कृपा कर। हाँ इसके बाद फिर उसी अध्याय में संदेह गया। अब तो खोल-खोल कर कह दिया, मेरी शरण में आ जा - ऐसा कोई गुरु कहेगा सब गुरु कहेंगे भगवान् की शरण में जाओ। अरे! स्वयं कह रहा हूँ;
नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत।(गीता 18-73)
तो कोई भी ज्ञानी हो, सबसे बड़ा ज्ञानी ही होता है, ये कर्मी-वर्मी तो सब ऐसे ही सड़े-गले होते हैं। इनकी गिनती की जाये? लेकिन;
स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत।(गीता 15-19)
इस गीता वाक्य पर भी मधुसूदन सरस्वती ने भाष्य किया कि जो प्रेमपूर्ण भक्ति है, वह पूर्ण ज्ञानी होने के बाद और बलवान् होकर आयेगी, उसको आना पड़ेगा। अगर नहीं आती है तो ज्ञानी-व्यानी नहीं, धोखा है उसको। वो मुग़ालते में है कि मैं ज्ञानी हूँ। अरे! ऐसे तो सभी ज्ञानी थ्योरी में हो सकते हैं। क्या, ज्ञान में कोई थ्योरी है लम्बी-चौड़ी? 'तत् त्वम् असि', तू ब्रह्म है और 'अहं ब्रह्मास्मि', मैं ब्रह्म हूँ। बस हो गया और ज्ञान में कुछ नहीं है क्योंकि उसका न नाम है, न रूप है, न गुण है, न लीला है, न परिभाषा है - अनिर्वचनीय, अनिर्वचनीय, सब अनिर्वचनीय। संसार? अनिर्वचनीय। माया? अनिर्वचनीय। ब्रह्म? अनिर्वचनीय। (बस) हो गया ज्ञान, पूरा हो गया। अनिर्वचनीय माने क्या? बताया नहीं जा सकता। बताया नहीं जा सकता तो पूछा ही क्यों जाय फिर, जब बताया नहीं जा सकता तो? सगुण साकार में तो इतने माहात्म्य हैं, अनन्त गुण हैं, एक-एक गुण की परिभाषा करो तो अनन्त काल तक भी समाप्त न होंगे और वो बेचारा निर्गुण, निर्विशेष, निराकार ब्रह्म ! हाँ, एक रसिक कहता है कि ;
प्रसादो निष्फलो यस्य क्रोधश्चापि निरर्थकः।न तं भर्तारमिच्छन्ति षंडं पतिमिवस्त्रियः।।
कोई स्त्री विषय सुख चाहती है, पुत्र चाहती है। ये दो एम (लक्ष्य/उद्देश्य) से ब्याह करती है और ब्याह होने जा रहा है। उसको मालूम हो जाय कि जिससे ब्याह होने जा रहा है, वह नपुंसक है, क्लीव है तो भला क्यों ब्याह करेगी? पागल है, दिमाग खराब है, उसका 'षंडं' माने नपुंसक, 'पतिमिवस्त्रियः' - कोई स्त्री उसको पति नहीं बनायेगी। तो उसी प्रकार कोई भी जीव ऐसे ब्रह्म को क्या इष्टदेव बनावे कि;
प्रसादो निष्फलो यस्य क्रोधश्चापि निरर्थकः।
न वो कृपा कर सकता है, न कोप कर सकता है। अरे! कोप ही कर दे और मार दे तो भी जीव कल्याण हो जाय। श्रीकृष्ण ने जिस जिसको मारा, कल्याण हो गया न? वो कोप भी नहीं कर सकता और कृपा भी नहीं कर सकता। शंकराचार्य ने कहा था न;
उदासीनः स्तब्धः सततमगुण: संगरहितो, भवांस्तात: कातः परमिह भवेज्जीवनगतिः।अकस्मादस्माकं यदि न कुरुषेस्नेहमथतद्, वसस्वस्वीयांतर्विमल जठरेऽस्मिन्पुनरपि॥(शंकराचार्य)
तो इसलिये उससे हम माया निवृत्ति करायेंगे। कैसे? इसलिये ज्ञानी को भी आना पड़ता है भक्ति की शरण में, तब भगवान् अपनी कृपा से ज्ञान भी देते हैं - उन लोगों को अनुकम्पा करके, कृपा करके ज्ञान देते हैं और माया-निवृत्ति भी करा देते हैं और जो शरणागत नहीं होगा, भक्ति की शरण में नहीं आयेगा, वो बस कुछ दूर जायेगा, फिर अध:पतन, फिर उठा फिर अध:पतन, यही हुआ करेगा। आप लोगों ने देखा होगा ये चीटियाँ, कुछ सामान खाने का अपने बच्चों के लिये ले जाती हैं - जैसे चना है, कोई लावा है, कोई अनाज है, उसको मुँह में पकड़ के और दीवाल पर चढ़ती हैं। थोड़ी दूर चढ़ती हैं फिर गिर पड़ती हैं लेकिन बार-बार ऐसे ही करती हैं;
कहत कठिन समुझत कठिन साधन कठिन विवेक।
हाँ, तो अब आप लोग समझ गये होंगे कि वो भक्ति भगवान् से भी बड़ी है, उसके बिना कोई कर्मी, ज्ञानी अपने लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर सकता, लेकिन हमको निष्कामता पर ही विशेष ध्यान देना है, माहात्म्य ज्ञानयुक्त भक्ति पर। ऐसी भक्ति अगर हम करेंगे तो अन्त:करण की शुद्धि होगी, फिर गुरु कृपा से दिव्य प्रेम मिलकर हम अपने अनन्तकालीन भविष्य को आनन्दमय, सुखमय बना सकेंगे।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'नारद भक्ति दर्शन' व्याख्या (प्रवचन - 11)०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - कहा जाता है कि हाथों में बनी लकीरों में व्यक्ति का भाग्य छिपा होता है। हस्तरेखा शास्त्र एक बहुत ही प्राचीन विधा है, जिसमें हथेली में बनी रेखाओं का आकलन करके व्यक्ति के भविष्य के संबंध में जानकारी दी जाती है। हथेली की रेखाएं सदैव एक जैसी नहीं रहती हैं। ये समय समय पर बदलती रहती हैं। जिसके कारण हथेली में कई प्रकार के चिन्हों का निर्माण होता है। कई बार ये चिन्ह अशुभ होते हैं तो कई बार ये चिन्ह व्यक्ति का भाग्य चमका देते हैं। हस्तरेखा में एक ऐसे ही चिन्ह का जिक्र किया गया है। यदि यह चिन्ह किसी के हाथ में बनता है तो बेहद ही शुभ माना जाता है। हस्तरेखा शास्त्र कहता है कि यह चिन्ह व्यक्ति को जीवन में लोकप्रियता दिला सकता है। हथेली में यह चिन्ह जिस स्थान पर बना होता है, उसी के अनुसार फल भी प्रदान करता है। तो चलिए जानते हैं कि कौन सा वह चिन्ह और कैसे वह चमका सकता है आपकी किस्मत।हथेली में रेखाओं की आकृति से बहुत से चिन्ह बनते हैं जिनमें से एक चिन्ह होता है ''तारा'' हस्तरेखा शास्त्र में इस चिन्ह को बहुत ही खास माना गया है। यदि यह चिन्ह किसी रेखा के अंतिम छोर पर बनता है तो उस रेखा के प्रभाव को बहुत बढ़ा देता है। इसी तरह से यदि यह चिन्ह हथेली के किसी पर्वत पर स्थित होता है तो उस पर्वत के शुभ प्रभाव को भी कई गुना ज्याद बढ़ा देता है।सूर्य पर्वत पर तारे चिन्ह होने का मतलब माना जाता है कि जातक को उच्च पद की प्राप्ति हो सकती है साथ ही यश-कीर्ति और धन लाभ भी होता है, लेकिन व्यक्ति को मानसिक रूप से खुशी प्राप्त नहीं हो पाती है।यदि किसी व्यक्ति की हथेली में चंद्र पर्वत पर तारे का निशान है तो व्यक्ति जीवन में लोकप्रियता प्राप्त करता है। ऐसे लोग लोकप्रिय कलाकार आदि बन सकते हैं। इसके अलावा विज्ञान के क्षेत्र में अप्रत्याशित सफलता प्राप्त होने के योग भी रहते हैं। इन लोगों का भाग्य भी साथ देता है।यदि किसी व्यक्ति की हथेली में गुरु पर्वत पर तारे का चिन्ह बनता है तो माना जाता है कि व्यक्ति को शक्ति और प्रतिष्ठा दोनों प्राप्त होती हैं। व्यक्ति के मान-सम्मान में वृद्धि होती है।यदि किसी व्यक्ति की हथेली में शुक्र पर्वत पर तारे का चिन्ह बना हुआ है तो उसे प्रेम की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही आर्थिक स्थिति भी सही रहती है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 316
(भूमिका - भगवान पतितपावन हैं और पतितों का उद्धार करने का उनका स्वभाव और गुण भी है, फिर भी हम क्यों अब तक उनसे दूर हैं? अपनी किस कमी को हम दूर करें, जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के इस प्रवचन-अंश में हम इसका उत्तर समझने की चेष्टा करें.....)
भगवान का एक नाम है - 'पतितपावन'। ये सबसे महत्वपूर्ण नाम है। क्योंकि अनन्त कोटि ब्रम्हाण्ड के समस्त जीव पतित हैं, पापात्मा हैं। अनन्त जन्मों में अनन्त पाप कर चुके हैं। और वर्तमान में भी कर रहे हैं।
अच्छा कर्म भी पाप है, बुरा कर्म भी पाप है, केवल भगवान और महापुरुष का चिंतन - बस ये ही सही है, बाकी सब पाप है क्योंकि बाकी सबसे कर्मों का बन्धन होता है। अच्छा कर्म करोगे, स्वर्ग मिलेगा, खराब कर्म करोगे, नरक मिलेगा। अच्छा बुरा दोनों करोगे तो मृत्युलोक मिलेगा। तीनों का परिणाम 84 लाख में घुमायेगा वो कर्म।
तो इस परिभाषा के अनुसार जितने क्षण हम भगवान और महापुरुष में मन को लगाते हैं उतनी देर ही केवल पाप से बचे रहते हैं। सोचिये ऐसा 24 घण्टे में कितनी देर करते हैं हम?
अनन्त पाप तो एक जन्म में हम कर चुके और फिर अनन्त जन्म हो चुके हैं, पापों की क्या गिनती है। लेकिन भगवान पतितपावन हैं, सब पाप भस्म कर देते हैं शरणागत का।
सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं ब्रज।(गीता 18-66)
जीव को पूर्ण शरणागत होना है। अनन्तानन्त जन्मों के अनन्तानन्त पापों से छुट्टी। पतितपावन नाम इसलिये महत्वपूर्ण है कि सब जीव पतित हैं अनन्त कोटि ब्रम्हाण्ड में, उसमें स्वर्ग भी है वहाँ के लोग भी सब पतित हैं, इन्द्र, वरुण, कुबेर, यमराज सब पतित हैं। आप लोग हजारों बार इन्द्र बन चुके हैं, स्वर्ग के सम्राट और फिर कुत्ते, बिल्ली, गधे बने और फिर मनुष्य बने। किन्तु ब्रह्मलोक तक माया का आधिपत्य है इसलिये ब्रह्मलोक तक सब जीव पाप करते हैं। कभी-कभी भगवान का स्मरण जब कभी कर लेते हैं उतने समय समझ लो वो बिना पाप के है, वो भी ठीक-ठीक समय स्मरण करें तो।
अनन्त पाप किये बैठे हैं, करोड़, दस करोड़ नहीं। अगर एक जन्म में कोई एक पाप करे तो भी अनन्त जन्म बीत चुके। अनन्त पाप किये बैठा है हर आदमी।
हम पतित हैं और भगवान पतितपावन हैं - ये दोनों विश्वास दृढ़ हों तो काम बन जाये एक सैकेण्ड में, कोई देर नहीं लगेगी। लेकिन इन दोनों में कहीं न कहीं गड़बड़ है। या तो अपने को हम पतित नहीं मानते सेंट परसेन्ट और या तो ठाकुर जी के ऊपर विश्वास नहीं करते कि वो पतितपावन हैं।
हम अगर अपने को पतित मानते हैं, उसकी पहचान क्या है? आपको कोई कहे तुम कामी हो, तुम क्रोधी हो, तुम लोभी हो, तुम अहंकारी हो, तुम धूर्त हो, तुम 420 हो, तुम पाखण्डी हो - इन शब्दों का प्रयोग अगर कोई हमारे लिये करे और हमको फील (बुरा न लगे) न हो तो समझो कि आप अपने को पतित मानते हैं।
किसी ने एक शब्द कहा, अपमानजनक लग जाता है अन्दर। 'हमको क्यों कहा ऐसा, क्यों कहा............'। अरे! तुम तो कहते हो मैं पतित हूँ, तुम तो अभी भगवान के आगे कहा रहे थे, 'मो सम कौन कुटिल खल कामी', तुमने कीर्तन किया, इसका गायन किया भगवान के सामने मन्दिर में, मेरे समान कोई पापी नहीं है, अगर कोई तुम्हें कह देता है तो तुम फील क्यों करते हो। तुम भगवान को झूठ बोलकर धोखा दे रहे थे।
तो हम अपने को पतित मानें सेंट परसेन्ट और भगवान को पतितपावन मानें सेंट परसेन्ट। ये दोनों बातें जब फिट हो जायँ, जब भी हो जायें, 2 घण्टे में, एक दिन में, एक महीने में, एक साल में, एक जन्म में, हजार जन्म में, तुरन्त पतितपावन श्रीकृष्ण हमें अपना लेंगे।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रेम भिक्षां देहि' (प्रवचन-पुस्तक)०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हर कोई चाहता है कि उसका घर देखने में सुंदर लगे, ताकि सभी उनके घर की तारीफ करें । इसलिए हम सभी अपने घरों को सजाने संवारने के लिए कई तरह के शोपीस और मूर्तियां आदि लाते हैं। इनमें से कई प्रतिमाएं घर के लिए बहुत शुभ होती हैं तो वहीं कुछ नकारात्मकता को बढ़ाती हैं। वास्तु के अनुसार घर के निर्माण से लेकर साज-सजावट का संबंध भी आपकी तरक्की, आर्थिक स्थिति और खुशहाली से होता है। वास्तु शास्त्र में कुछ ऐसी मूर्तियों के बारे में बताया गया है जिन्हें घर में रखना बेहद शुभ होता है। इन मूर्तियों को घर में रखने से तरक्की और आर्थिक उन्नति प्राप्त होती है। घर में सकारात्मकता आती है और घर स्वामी के सौभाग्य में वृद्धि होती है। ऐसी ही मूर्तियां हैं-हाथीवास्तु के अनुसार, हाथी ऐश्वर्य का प्रतीक होता है। तो वहीं ज्योतिष और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भी हाथी की प्रतिमा रखना बहुत शुभ माना जाता है। आप अपने घर में हाथी की पीतल या चांदी की मूर्ति रख सकते हैं। वास्तु शास्त्र के अनुसार शयनकक्ष में चांदी के हाथी की मूर्ति रखने से राहु से संबंधित सभी दोष से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। चांदी से निर्मित ठोस हाथी घर में रखने से घर में धन, समृद्धि आती है।हंसवास्तु के अनुसार, घर के अतिथिगृह में हंस के जोड़ों की मूर्ति रखने से आर्थिक लाभ होता है। विवाहित दंपति जीवन में यदि परेशानियां आ रही हो तो अपने शयनकक्ष में बत्तख के जोड़े की मूर्ति रख सकते हैं। इससे वैवाहिक जीवन में प्रेम बढ़ता है।कछुआफेंगशुई वास्तु के अनुसार घर में कछुआ रखने से धन वृद्धि होती है। इसके अलावा धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कछुआ, भगवान विष्णु का रूप माना जाता है इसलिए मान्यता है कि जिस स्थान पर कछुआ होता है, वहां मां लक्ष्मी का वास होता है। धन वृद्धि के लिए घर के ड्राइंग रूम में पूर्व और उत्तर दिशा में कछुए की स्थापना करनी चाहिए। लेकिन इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि कछुआ घर के अंदर की ओर जाता हुआ नजर आए।गायहिंदू धर्म में गाय को पूजनीय माना जाता है। वास्तु के अनुसार, घर पर पीतल की बनी हुई गाय की मूर्ति रखना बहुत शुभ माना जाता है। जिन दंपति को संतान प्राप्ति की कामना है उन्हें पीतल से बनी गाय की प्रतिमा रखनी चाहिए। मान्यता है कि इससे संतान सुख प्राप्ति की कामना पूरी होती है। पढ़ाई करने वालों के लिए भी गाय की प्रतिमा रखना अच्छा रहता है। इससे पढ़ाई में एकाग्रता बढ़ती है।ऊंटवास्तु और फेंगशुई के अनुसार, घर पर ऊंट की मूर्ति रखने से सुख सौभाग्य और समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसे घर के ड्राइंग रूम या लिविंग रूम में उत्तर-पश्चिम दिशा में रखना चाहिए। इससे नौकरी और व्यवसाय से संबंधित आ रही समस्याओं का समाधान हो जाता है और कॅरिअर को फायदा पहुंचता है।
- कुछ लोग होते हैं जो बहस करने में विश्वास नहीं करते। जब तक मुमकिन होता है ये लोग बहस के मुद्दों को टालते हैं, वहीं कुछ लोग ऐसे होते हैं जो बहस का कोई मौका अपने हाथ से नहीं जाने देते हैं। जिस भी बहस में ये पड़ जाते हैं, उसमें अपनी बात सही मनवाकर ही मानते हैं। आइए जानते हैं कौन से होते हैं ऐसे राशि वाले जो हर लड़ाई या बहस में जीतकर ही मानते हैं:मेष राशि: इस राशि के लोग हमेशा हर चीज में आगे रहना पसंद करते हैं। ये लोग मानते हैं कि ये ही बेस्ट हैं। अपनी बात को सही साबित करने के लिए ये लोग लॉजिकल बात करते हैं।मिथुन: मिथुन राशि के लोग बहुत ही जल्दी लोगों से घुलते मिलते हैं और हमेशा नई चीजें सीखने में विश्वास करते हैं। इसलिए ये लोग हर चीज में आगे रहते हैं और लोग मानते हैं कि इन्हें अधिकतर चीजों के बारे में जानकारी है। अपनी बात को सही मनवाने के लिए ये हर चीज करते हैं, फिर चाहे एक लॉजिकल बहस हो या फिर दूसरे को अपने तर्कों से प्रभावित करना।वृश्चिक राशि: इस राशि के लोग भी अपने दुश्मनों से लड़ना और जीतना अच्छे से जानते हैं। ये हर बात का करारा जवाब देते हैं और सामने वालों को बात मनवाकर ही मानते हैं।कुंभ राशि: इस राशि के लोग सामने वाले की बात को बहुत ध्यान से सुनते हैं और इसी दौरान बहस के लिए अपना मुद्दा बनाते हैं। ये लोग पहले साधारण तौर पर अपना पक्ष रखते हैं, अगर इनकी बात नहीं मानी जाती, तब ये लोग बहस करते हैं।