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- पेड़-पौधों का जीवन में बहुत महत्व है। पेड़ पौधों से ही पृथ्वी के समस्त जीवों को प्राणवायु प्राप्त होती है। वृक्ष के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। धार्मिक मान्यताओं और वास्तु में भी पेड़-पौधों को बहुत ही खास और महत्वपूर्ण माना गया है। सनातन धर्म में तुलसी और अन्य कई पेड़ों की पूजा भी की जाती है। वास्तु में कई ऐसे पौधों के बारे में बताया गया है जिन्हें घर में लगाना बहुत ही शुभ रहता है, लेकिन इन पौधों की भलि प्रकार से देखभाल करना बहुत आवश्यक होता है। तुलसी का पौधा मुरझाना या सूखना तो धन के लिए अच्छा नहीं ही माना जाता है। इसके अलावा भी कई पौधे हैं, जिनका सूखना भी हानि की ओर संकेत करता है।शमी का वृक्षशनि की पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए शमी का पेड़ लगाना बहुत अच्छा माना जाता है। इसके साथ ही यह पेड़ भगवान शिव का भी प्रिय माना गया है। माना जाता है कि शमी का पेड़ सूखना या मुरझाना शनि की खराब स्थिति की ओर इशारा करता है। इससे आपको धन और कार्य संंबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। यदि यह पौधा सूखने लगे तो इसे हटाकर दूसरा पौधा रोप देना चाहिए।मनीप्लांट का सूखनावास्तु में मनी प्लांट को धन वृद्धि करने वाला पौधा माना गया है। यह पौधा बेल की तरह बढ़ता है। माना जाता है कि यदि किसी के घर में मनीप्लांट खूब हरा-भरा रहता है तो उसके घर में धन, वैभव और समृद्धि बनी रहती है। मनीप्लांट की वृद्धि की तरह धन की भी वृद्धि होती है। मनी प्लांट का मुरझाना या सूखना धन के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। मान्यता है कि देखभाल करने पर भी यदि मनीप्लांट सूखने लगे तो यह आपके घर में धन की तंगी का संकेत देता है। इसके साथ ही मनी प्लांट लगाते समय ध्यान रखना चाहिए की उसकी बेल हमेशा ऊपर की ओर बढऩी चाहिए।अशोक का पेड़वास्तु में अशोक के पेड़ को सकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा देने वाला माना गया है। अशोक का पेड़ घर के मुख्य दरवाजे पर लगाना बहुत शुभ रहता है। इसके अलावा इसके पत्ते मंदिर में रखना और तोरण बनाकर द्वार पर लगाना भी बहुत शुभ रहता है। अशोक का वृक्ष बहुत ही शुभ और मंगलकारी माना गया है। यदि अशोक का वृक्ष अचानक से सूखने लगे तो यह अच्छा नहीं माना जाता है। इससे आपके घर की सुख-शांति में बाधा आ सकती है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 227
(भूमिका ::: 'भगवान' से प्यार करने का तरीका रसिकों ने बताया है, क्योंकि भगवान को भगवान मानकर कोई प्यार कर नहीं सकता। ऐसा क्यों है, जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साधक-समुदाय को समझा रहे हैं...)
..धनवान, बुद्धिवान, ऐसे ही भगवान्। प्रत्यय होकर के भगवान् शब्द बनता है, अर्थात् 'भग' वाला। और 'भग' किसे कहते हैं?
ऐश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यशसश्श्रियः।ऐश्वर्यस्य ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीरणा ॥(विष्णु पुराण 6-5-74)
छहों ऐश्वर्य अनन्त मात्रा के जिसमें हों, लिमिटेड नहीं। प्रत्येक वस्तु, प्रत्येक शक्ति अनन्त मात्रा की जिसमें हों, उसका नाम भगवान्। संसार में आप लोगों के पास भी शक्तियाँ हैं, बहुत छोटी। बहुत कम पॉवर की। आप लोगों से बहुत अधिक शक्ति देवताओं की है। जैसे; सुन्दरता में कामदेव, ऐश्वर्य में इन्द्र, धन में कुबेर, सम्मान में गणेश। इन लोगों के पास बड़ी-बड़ी लिमिट की चीज है लेकिन है सब सीमित और भगवान् के पास ये सब असीम मात्रा की होती हैं, अनन्त मात्रा की। उसको भगवान् कहते हैं।
तो भगवान् से प्यार करने जब हम लोग चलेंगे, तो डर लगेगा न। अरे! कहाँ भगवान्, कहाँ हम? हम संसार में भी किसी से प्यार करते हैं तो पहले हैसियत देख लेते हैं कि हम एक भिखारी की लड़की हैं और एक प्राइम मिनिस्टर के लड़के से ब्याह करने की सोच रहे हैं, ये मूर्खता है। ये असम्भव है। फिर एक साधारण जीव, सर्वशक्तिमान् भगवान् से प्यार करने की बात कैसे सोचे? इसलिए भगवान् ने कहा देखो, तुम हमको भगवान् मत मानो। हमसे चार नाते मानो।
पहला नाता भगवान् स्वामी, हम उनके दास। बस। वो भगवान् नहीं। जैसे संसार में हम किसी के सर्वेन्ट हो जाते हैं तो वो हमारा स्वामी होता है, हम उनके दास होते हैं। ये सबसे नीचे वाला भाव है। इसमें दूरी बहुत है क्योंकि दास तो मर्यादा में रहेगा, स्वामी के बराबर बैठ भी नहीं सकता। इससे ऊँचा भाव है सख्य भाव। भगवान् मेरे सखा हैं, फ्रैण्ड हैं, दोस्त हैं, मित्र हैं, इसमें बराबरी आ गई। हम उनके बराबर हैं। अब सखा लोग भगवान् के कन्धे पर बैठ जाते हैं, खेल में हारने पर घोड़ा बना लेते हैं उनको। बड़ा अधिकार हो गया उनको। लेकिन, अब भी पूरा अधिकार नहीं।
तो सख्य भाव से बड़ा है वात्सल्य भाव। यानी भगवान् को अपना बेटा मानना, अपने को माँ-बाप मानना। ये वात्सल्य भाव। और सबसे ऊँचा भाव है भगवान् हमारे प्रियतम हैं, हम उनकी प्रेयसी हैं। ये प्रियतम और प्रेयसी के भाव में सब भाव अण्डरस्टुड हैं। जब चाहो उनको पति मान लो, जब चाहो बेटा मान लो, जब चाहो सखा मान लो और जब चाहो स्वामी मान लो। चारों भाव माधुर्य भाव में अंतर्निहित होते हैं। संसार में ऐसा नहीं होता कि कोई पति को कहे ओ बेटा! इधर आओ। हाँ, झगड़ा हो जाय, मुसीबत हो जाय। कोई बेटे को नहीं कहता प्रियतम! इधर आओ। पाप कहते हैं उसको, पाप लग जायेगा, ऐसा नहीं बोलो, ऐसा नहीं सोचो। बेटा अपनी जगह, बाप अपनी जगह, पति अपनी जगह। लेकिन भगवान् के यहाँ ऐसा नहीं है।
त्वमेव माता च पिता त्वमेव। त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव। ..... त्वमेव सर्वं मम देव देव।
भगवान् ही हमारा सब कुछ है। तो सब भावों में हम जा सकें स्वतंत्रता पूर्वक, ये माधुर्य भाव है। यानी प्रियतम का भाव। वह हमारे प्रियतम, हम उनकी प्रेयसी। इसलिए गोपियों ने खूब डाँट लगाई, अपमान किया श्यामसुन्दर का, फिर भी वो विभोर होते रहे। ये माधुर्य भाव है।
तो ये भक्त कह रहा है कि मैं आपको भगवान् वगवान् नहीं मानता। भगवान् मानने पर अर्जुन डर गया। गांडीवधारी अर्जुन!! उसने श्रीकृष्ण को भगवान् माना और कहा हमको अपना स्वरूप दिखाइए। जब श्रीकृष्ण ने अपना भगवान् का रूप दिखाया तो काँपने लगा, डर के मारे पसीना-पसीना हो गया। चक्कर आ गया। उसने कहा महाराज! ये रूप नहीं चाहिए। हमारे तुम सखा बने रहो बस।
तो इसलिए भगवान् अपनी जगह पर रहें भगवान्, ठीक है। लेकिन वे हमारे स्वामी हैं, हमारे सखा हैं, हमारे पुत्र हैं, हमारे प्रियतम हैं, एक से एक ऊँचे। इन चारों भावों से ही भक्ति करने की आज्ञा दिया है शास्त्रों ने, वेदों ने।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जब हम गहरी नींद में होते हैं तो हमें सपने आते हैं लेकिन ज्यादातर सपने ऐसे होते हैं जिनका कोई खास अर्थ नहीं होता और सुबह उठने के बाद वे सपने हमें याद भी नहीं रहते. स्वप्न शास्त्र में सपनों के बारे में विस्तार से बताया गया है जिसके मुताबिक सपने व्यक्ति को आने वाली घटनाओं का संकेत देते हैं जो अच्छे भी होते हैं और बुरे भी.------हम आपको सपनों में दिखने वाली कुछ ऐसी चीजों के बारे में बता रहे हैं जिन्हें सपने में देखना अशुभ माना जाता है.अशुभ माने जाते हैं ऐसे सपने---------------कौआ, उल्लू या सांप का दिखना- यदि किसी रात सपने में आपको कौआ नजर आता है तो यह किसी अशुभ घटना की ओर संकेत करता है. तो वहीं सपने में अगर उल्लू दिख जाए तो किसी अपशगुन, बीमारी या दुखद समाचार मिलने की ओर इशारा करता है. इसके अलावा सपने में सांप दिखना भी अशुभ माना गया है. कहते हैं कि इससे व्यक्ति को मृत्यु के समान कष्ट मिल सकता है.पेड़ कटते हुए देखना- अगर किसी को सपने में पेड़ कटते हुए दिखाई दें तो इसका मतलब है कि उस व्यक्ति को रुपये पैसों का नुकसान होने वाला है. साथ ही इस तरह के सपने को स्वास्थ्य हानि का भी संकेत माना जाता है.झाड़ू का दिखना- वैसे तो झाड़ू को लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है और धनतेरस के दिन अधिकतर लोग नई झाड़ू खरीदते हैं, लेकिन सपने में झाड़ू का दिखना अशुभ माना जाता है. स्वप्नशास्त्र की मानें तो सपने में झाड़ू दिखना बताता है कि आपको निकट भविष्य में धन की हानि होने वाली है.खुद को गिरते हुए देखना- सपने में खुद को पहाड़ से, किसी ऊंची बिल्डिंग से या किसी भी ऊंची जगह से गिरते देखना भी अशुभ माना जाता है. इस तरह का सपना आने का मतलब है कि भविष्य में आपकी सेहत खराब हो सकती है और आपके मान-सम्मान में कमी आ सकती है.रेगिस्तान में चलना- अगर किसी रात आप सपने में खुद को रेगिस्तान में चलते हुए देखें तो इसका मतलब है कि आपको भविष्य में किसी शत्रु की वजह से परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.
- हिंदू धर्म के पंचांग के अनुसार, जब गुरु की राशि मीन या धनु में भगवान सूर्य गोचर करते हैं तो उसे खरमास कहते हैं। खरमास को मलमास या अधिक मास भी कहा जाता है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार रविवार 14 मार्च से खरमास शुरू हो चुका है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि इस मास में कुछ विशेष नियमों का पालन करना होता है। ऐसा करने से भक्त पर सूर्य देव की कृपा होती है। इसके अलावा सुख-समृद्धि भी मिलती है.... तो जानिए खरमास में कौन से काम करने चाहिए और कौन नहीं।खरमास में भूलकर भी न करें ये काम----- खरमास में वैवाहिक कार्य, भूमि पूजन, गृह प्रवेश, तिलकोत्सव और मुंडन आदि मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं.। ऐसा करना अशुभ होता है।- खरमास में बेड पर नहीं सोना चाहिए। इस महीने जमीन पर सोना सही बताया गया है। ऐसा करने से भगवान सूर्य की कृपा होती है।- खरमास में पत्तल पर खाना खाने को बहुत शुभ माना गया है। इस महीने थाली में खाना नहीं खाना चाहिए।- खरमास में भूलकर भी झूठ नहीं बोलना चाहिए. इसके अलावा लड़ाई-झगड़े से भी दूर रहना चाहिए।- खरमास में मांस और शराब का सेवन भी वर्जित है।खरमास में ये काम जरूर करें------- खरमास में विधि-विधान से सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए. इससे भगवान सूर्य की कृपा मिलती है।- खरमास में भगवान विष्णु की पूजा करना फलदायी होता है. ऐसा करने से घर में धन की देवी लक्ष्मी जी का वास होता है।- खरमास में सेवा करने का बहुत महत्व है। इस दौरान ब्राह्मण, गुरु, गरीब, गाय और साधुओं की सेवा करने से भगवान प्रसन्न होते हैं।- खरमास में सूर्योदय से पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए. सुबह नहाने के बाद भगवान की उपासना करनी चाहिए। सूर्य देव को अघ्र्य भी देना चाहिए. ऐसा करने से सुख-समृद्धि मिलती है।- खरमास में तुलसी की आराधना भी करनी चाहिए। शाम को तुलसी के पौधे के नीचे देसी घी का दीपक जलाना चाहिए।
- नई दिल्ली: वैसे तो देशभर में भगवान गणेश (Lord Ganesha) के कई अनोखे मंदिर मौजूद हैं और सभी का अपना-अपना अलग और खास महत्व भी है. लेकिन आज विनायक चतुर्थी (Vinayak Chaturthi) के खास मौके पर हम आपको भगवान गणेश के उस मंदिर के बारे में बता रहे हैं जहां पर त्रिनेत्री यानी तीन नेत्रों वाले गणपति के दर्शन होते हैं. इस मंदिर में भगवान गणेश की प्रतिमा के 3 नेत्र हैं. इसके अलावा इस मंदिर में ईश्वर के प्रति भक्तों की आस्था का एक और अनोखा उदाहरण देखने को मिलता है. इस मंदिर में लाखों की संख्या में भक्तजन चिट्ठियां भेजते हैं (Sending Letters) ताकि वे प्रथम पूज्य भगवान गणेश को अपने मन की बात बता सकें. कहां है ये अनोखा मंदिर और मंदिर की स्थापना के पीछे की कहानी क्या है,स्वंयभू है त्रिनेत्र गणेश मंदिर की प्रतिमात्रिनेत्र भगवान गणेश (Trinetra Ganesha) का यह मंदिर राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में विश्व धरोहर में शामिल रणथंभौर के किले (Ranthambhore Fort) में स्थित है. देश ही नहीं बल्कि दुनियाभर से सैकड़ों लोग इस मंदिर में तीन नेत्रों वाले भगवान गणेश के दर्शन करने के लिए आते हैं. इसके अलावा मांगलिक कार्य के दौरान गणेश जी को आमंत्रित करने के लिए देशभर से हजारों की तादाद में निमंत्रण पत्र भी गणेश जी के इस मंदिर में आता है. ऐसी मान्यता है कि त्रिनेत्र गणेश मंदिर की यह प्रतिमा स्वयंभू है, यानी यह खुद ही प्रकट हुई है. इस मंदिर में स्थित भगवान गणेश की प्रतिमा का तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक माना जाता है. इस अनोखे मंदिर में भगवान गणेश अपने पूरे परिवार के साथ विराजमान हैं. मंदिर में गणेश जी की दो पत्नियां- रिद्दि, सिद्दि और दो पुत्र शुभ और लाभ भी हैं. गणेश जी का वाहन मूषक भी यहां पर है.भगवान के सामने पढ़ी जाती हैं चिट्ठियांइस मंदिर में भगवान गणेश को आने वाले निमंत्रण पत्रों और चिट्ठियों पर भगवान गणेश का पता श्री गणेश जी, रणथंभौर का किला, जिला- सवाई माधौपुर (राजस्थान) लिखा जाता है. डाकिया इन चिट्ठियों और निमंत्रण पत्रों को पूरी श्रद्धा के साथ यहां मंदिर में पहुंचाते हैं और मंदिर के पुजारी इन चिट्ठियों और निमंत्रण पत्रों को भगवान त्रिनेत्र गणेश जी महाराज को पढ़कर सुनाते हैं.किसने की मंदिर की स्थापना?गणपति जी के इस मंदिर की स्थापना रणथंभौर के राजा हमीर ने 10वीं सदी में की थी. ऐसा कहा जाता है कि दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी के साथ युद्ध के समय गणेश जी राजा के सपने में आए और उन्हें आशीर्वाद दिया और राजा युद्ध में विजयी हुए. इसके बाद राजा ने अपने किले में गणेश जी के मंदिर का निर्माण करवाया
- वास्तु शास्त्र में तुलसी के पौधे को सुखी जीवन एवं कल्याण का प्रतीक माना गया है। तुलसी का पौधा तमाम दोषों को दूर करता है। तुलसी का पौधा देवताओं की कृपा दिलाने में सहायक माना जाता है। तुलसी मां को राधा रानी का अवतार माना गया है। वास्तु में तुलसी से जुड़े कुछ उपाय बताए गए हैं, आइए जानते हैं इनके बारे में।तुलसी के पौधे को घर की छत पर न रखें। इससे आर्थिक हानि की आशंका रहती है। तुलसी की पत्तियों को चबाने के बजाए, जीभ पर रखकर चूसना सही तरीका है। दही में तुलसी के कुछ पत्तों को मिलाकर खाने से स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियों से राहत मिलती है और दिनभर शरीर में ऊर्जा का संचार होता है। तुलसी के पौधे की रोजाना पूजा करने से घर के सदस्यों में चल रहे मनमुटाव दूर हो जाते हैं। तुलसी का पौधा रसोईघर के पास रखने से घर के सदस्यों में सामंजस्य बढ़ता है। यदि तुलसी की पत्तियों की बहुत जरूरत पड़ जाए तो तोड़ने से पहले पौधे को हिलाना न भूलें। तुलसी के पौधे का सूख जाना या फिर मुरझा जाना अशुभ माना जाता है।तुलसी का स्वास्थ्य के साथ धार्मिक महत्व भी है। सूर्यग्रहण, चंद्रग्रहण, एकादशी, संक्रांति, द्वादशी व शाम के समय तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए। रविवार और मंगलवार को भी तुलसी के पत्ते तोड़ने की मनाही है। बिना नहाए कभी भी तुलसी के पत्ते न तोड़ें। घर के आंगन में तुलसी सौभाग्य को बढ़ाती है। घर में यह पवित्र पौधा सभी दोष दूर करता है और वातावरण में सकारात्मकता बनाए रखता है। तुलसी का पौधा घर में लगाने से परिवार के सदस्यों की स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है। तुलसी के पौधे के सम्मुख शाम को दीया जलाने से सुख-समृद्धि आती है। इस पवित्र पौधे के आसपास पवित्रता बनाए रखना बहुत जरूरी है।
- विनायक चतुर्थी के दिन भगवान श्रीगणेश की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चतुर्थी के दिन श्रीगणेश की पूजा करने और व्रत रखने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है। इस महीने विनायक चतुर्थी 17 मार्च (बुधवार) को है। हर महीने दो चतुर्थी पड़ती हैं- पहली शुक्ल पक्ष और दूसरी कृष्ण पक्ष में। शुक्ल पक्ष में पडऩे वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं और कृष्ण पक्ष में पडऩे वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है।कहा जाता है कि विनायक चतुर्थी के दिन विघ्नहर्ता की पूजा के दौरान भगवान श्री गणेश की कथा को सुनना या पढऩा चाहिए। मान्यता है कि विनायक चतुर्थी की कथा सुनने या पढऩे से भक्तों के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं।पढ़ें विनायक चतुर्थी की कथा-एक दिन भगवान भोलेनाथ स्नान करने के लिए कैलाश पर्वत से भोगवती गए। महादेव के प्रस्थान करने के बाद मां पार्वती ने स्नान प्रारंभ किया । स्नान करते हुए अपने उबटन के मैल से एक पुतला बनाकर और उस पुतले में जान डालकर उसको जीवित कर दिया। पुतले में जान आने के बाद देवी पार्वती ने पुतले का नाम गणेश रखा। पार्वती जी ने बालक गणेश को स्नान करते जाते वक्त मुख्य द्वार पर पहरा देने के लिए कहा। माता पार्वती ने कहा कि जब तक मैं स्नान करके न आ जाऊं किसी को भी अंदर नहीं आने देना।उधर भोगवती में स्नान कर जब भगवान शिव घर के अंदर आने लगे तो बाल स्वरूप गणेश ने उनको द्वार पर रोक दिया। भगवान शिव की लाख कोशिश के बाद भी गणेश ने उनको अंदर नहीं जाने दिया। गणेश द्वारा रोकने को भगवान शिव ने अपना अपमान समझा और बालक गणेश का सर धड़ से अलग कर दिया और घर के अंदर प्रवेश कर गए। शिवजी जब घर के अंदर गए तो बहुत क्रोधित अवस्था में थे। ऐसे में देवी पार्वती ने सोचा कि भोजन में देरी की वजह से वो नाराज हैं, इसलिए उन्होंने दो थालियों में भोजन परोसकर उनसे भोजन करने का निवेदन किया।शिवजी ने लगाया था हाथी के बच्चे का सिरदो थालियां लगी देखकर शिवजी ने उनसे पूछा कि दूसरी थाली किसके लिए है? तब माता पार्वती ने जवाब दिया कि दूसरी थाली पुत्र गणेश के लिए है, जो द्वार पर पहरा दे रहा है। तब भगवान शिव ने देवी पार्वती से कहा कि उसका सिर मैंने क्रोधित होकर धड़ से अलग कर दिया। इतना सुनकर पार्वतीजी दुखी हो गई और विलाप करने लगी। उन्होंने भोलेनाथ से पुत्र गणेश का सिर जोड़कर जीवित करने का आग्रह किया। तब महादेव ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर श्रीगणेश के धड़ से जोड़ दिया और उसे जीवित कर दिया। अपने पुत्र को फिर से जीवित पाकर माता पार्वती अत्यंत प्रसन्न हुई। कहा जाता है कि जिस तरह भगवान शिव ने श्रीगणेश को नया जीवन दिया था, उसी तरह भगवान गणेश भी नया जीवन अर्थात आरम्भ के देवता माने जाते हैं। इसलिए उनकी सबसे पहले पूजा की जाती है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 226
(अपना उत्थान-पतन स्वयं अपने हाथ में है, संसार का यह दृष्टांत आध्यात्मिक उत्थान के लिये सहायक होगा, आइये जानें वह क्या है?..)
..आलस्य, लापरवाही, दूसरे में दोष देखना, परनिन्दा सुनना - ये सब गड़बड़ी जो हम करते हैं, इसको बन्द करके कमाने-कमाने (आध्यात्मिक कमाई) की बात सोचो।
सावधान होकर के कमाई पर ध्यान दो। गँवाना न पड़े। बचे रहो। कम से कम खर्चा करो तब लखपति, करोड़पति बनोगे। कम से कम संसार में व्यवहार करो और गलत व्यवहार तो होने ही मत दो। अहंकार बढ़ेगा, दीनता छिन जायेगी, भक्ति समाप्त हो जायेगी, मन गन्दा हो जायेगा। क्या करेगा गुरु? भगवान् अन्दर बैठे हैं। क्या करेंगे? जब हम ही नहीं सँभलेंगे तो कोई क्या करेगा? अतः आप लोगों को स्वयं समझ लेना चाहिये हमारा उत्थान-पतन कहाँ है? और आगे के लिये भी सावधान रहना चाहिये।
कथावाचक लोग कहते हैं एक सेठ जी रात को हिसाब कर रहे थे दिन भर की कमाई का तो वो हिसाब बैठ नहीं रहा था, उसमें देर हो गई। तो बार-बार खाना खाने के लिये नौकरानी जाये कि सेठानी जी बैठी हैं खाने के लिये, चलो सेठजी खाना खा लो। अरे चलते हैं भई! हिसाब नहीं बैठ रहा है। फिर हिसाब करें, फिर हिसाब करें, बस बारह बज गये। तो सेठानी ने कहा ऐसा करो कि थोड़ी सी खीर ले जाओ, मुँह में लगा दो उनके। फिर जब मीठा लगेगा तब याद आयेगी खाना खाना चाहिये। तो नौकर गया उसने सेठ के मुँह में थोड़ी सी खीर लगा दिया, उन्होंने चाटा खीर को और जाकर हाथ धो लिया, मतलब खा चुके। जाओ जाओ, तुम लोग जाओ, हमारा हिसाब नहीं ठीक हो रहा है। ऐसे वो लोभी व्यक्ति लखपति, करोड़पति बनता है।
ऐसे ही क्षण-क्षण हरि गुरु का चिन्तन करना है। उनके लिये तन-मन-धन से सेवा करने की प्लानिंग प्रैक्टिस ये असली कमाई है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 225
(भक्तिमार्ग यद्यपि अति सरल है तथापि इसमें कुछ पड़ाव अथवा शर्तें हैं, जिनका पालन करने से ही साधक की भक्ति सुदृढ़ रह सकती है अन्यथा अनेक प्रकार की अड़चनें भक्तिपथ में रुकावट डाल सकती है. जानते हैं जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज इस संबंध में क्या निर्देश कर रहे हैं....)
अब हम तुम्हें भक्ति के चौंसठ अंगों में से कुछ प्रमुख अंगों को कतिपय उदाहरणों द्वारा समझाते हैं।
सद्गुरु शरणागति - सर्वप्रथम श्रद्धा-युक्त होकर जिज्ञासु शिष्य को गुरु की शरणागति ग्रहण करनी चाहिये, किन्तु गुरु ऐसा होना चाहिये, जो शिष्य को भगवत्तत्त्व का बोध भी करा सके, एवं स्वयं अनुभूत भी हो।
विश्वास-पूर्वक गुरु की सेवा - भगवान् कहते हैं कि अपने गुरु को मेरा ही रूप समझो। कभी भी, भूल कर भी, अपमान न करो, न तो मनुष्य की बुद्धि से ही गुरु को नापो, क्योंकि गुरु मनुष्य नहीं है, उसके हृदय में तो भगवान् स्वयं निवास करते हैं, अतएव गुरु सर्वदेवमय होता है।
श्रीकृष्ण-विमुख-संग-त्याग - धधकती हुई आग की ज्वाला-युक्त पिंजड़े में जलना ठीक है, किन्तु भगवद्विमुख के संग, महान् से महान् इन्द्रादि लोकों में रहना ठीक नहीं, तथा भयंकर सांपों, सिंहों, एवं जोंकों से लिपट जाना अच्छा है, किन्तु अनंतानंत देवताओं से भी सेवित भगवद्विमुखों का संग करना ठीक नहीं है।
बहु-शिष्यादि करने का निषेध - अधिकारी, अनधिकारी का विचार न करते हुये साम्प्रदायिकता में आकर अनेकानेक शिष्य न करना चाहिये । वस्तुतस्तु भगवत्प्राप्ति के पूर्व, शिष्य समुदाय जोड़ना, अपने आप को पतन के गर्त में डालना है।
सांसारिक सुखों या दुखों के आने पर भी साधना न छोड़ना - खान, पान, कपड़े आदि सांसारिक व्यावहारिक वस्तुओं के पाने एवं न पाने दोनों ही अवस्थाओं में असावधान या खिन्न न होते हुये निरन्तर भगवान् का ही स्मरण करना चाहिये।
ब्रह्मादिकों का अपमान न करना - श्रीकृष्ण, समस्त देवताओं के ईश्वर के भी ईश्वर हैं। ऐसा समझ कर उपासना तो एकमात्र उन्हीं की करनी चाहिये, किन्तु साथ ही ब्रह्मा, शंकर आदि का अपमान भी न करना चाहिये। अन्यथा नामापराध-रूप अमिट पाप हो जायगा।
हरि एवं हरिजन की निंदा न सुनना - भगवान् एवं उनके भक्तों की निंदा कभी भूल कर भी न सुननी चाहिये, अन्यथा साधक का पतन हो जायगा, तथा उसकी सत्प्रवृत्तियाँ भी नष्ट हो जायँगी। प्रायः अल्पज्ञ-साधक किसी महापुरुष की निंदा सुनने में बड़ा ही शौक रखता है, वह यह नहीं सोचता कि निंदा करने वाला स्वयं निंदनीय है, या महापुरुष है। संत-निंदा सुनना नामापराध है। स्मरण रहे, कि हज़ारों वर्षों की साधना मिल कर भी जीव को जितनी मात्रा में उठाने में समर्थ नहीं, उतनी मात्रा में एक क्षण की भी कुसंगति पतन कराने में समर्थ है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 224
साधक का प्रश्न ::: कर्मयोग की साधना और कर्मसंन्यास की साधना इन दोनों में उत्तम कौन सी है ?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: उत्तम तो कर्मयोग बताया है;
संन्यास: कर्मयोगश्च निःश्रेयसकरावुभौ।तयोस्तु कर्मसंन्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते।।(गीता 5-2)
दोनों कल्याणकृत हैं। किंतु इन दोनों में कर्मयोग विशेष अच्छा है, इसलिए कि अगर कर्मयोग कोई महापुरुष करेगा तो उसकी नकल करने वाले भक्ति की नकल तो कर नहीं सकेगें, तो कम से कम कर्म की नकल करेंगे तो विकर्मी नहीं बनेंगे। और यदि कर्मसंन्यास का महापुरुष है, तो उसकी नकल करेंगे तो कर्म को छोड़ देंगे और भक्ति को बड़ा मुश्किल है करना, वह करेंगे नहीं। इसलिए अर्जुन को कहा; तू कर्मयोगी बन, क्योंकि कर्म की नकल तो लोग करेंगे कम से कम विकर्मी तो नहीं बनेंगे। बाकी फल में कोई अंतर नहीं है। साधना में बड़ा अंतर है। कर्मयोगी की साधना बड़ी कठिन है क्योंकि संसार का संपर्क होता है। संसारी एटमॉस्फीयर (वातावरण) में रहना पड़ता है, उसका असर पड़ता है तो साधना की गति तेज नहीं हो पाती। अगर पहले साधना कर ले, कर्मसंन्यास करके और पक्का हो जाए फिर कर्मयोग करे, जैसे ध्रुव, प्रहलाद वगैरह ने करोड़ों वर्ष राज्य किया। तो फिर संसार उनके ऊपर हावी नहीं हो सकता। पहले दूध को जमा ले, दही बना दे, एकान्त में - ये कर्म संन्यास। फिर उसको मथ के मक्खन निकाल ले, फिर उसको पानी में छोड़ दे। कोई डर नहीं, वो तैरता रहेगा मक्खन। ऐसे ही, विशेष साधना द्वारा, कुछ भगवद् विषय प्राप्त कर ले, फिर कर्म करे तो कर्म में आसक्ति नहीं होगी।
तो साधना की दृष्टि से तो कर्मसंन्यास श्रेष्ठ है लेकिन लोक-कल्याण की दृष्टि से कर्मयोग श्रेष्ठ है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी *महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - सर्वार्थसिद्धि योग के साथ ही इस दिन अमृतसिद्धि योग का भी रहेगा संयोगहिंदू कैलेंडर के अनुसार, हर वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होली का त्योहार मनाया जाता है। इससे एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है। वहीं जिस दिन रंग खेला जाता है, उसे कहीं कहीं धुलेंडी भी कहा जाता है। ऐसे में इस बार हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार होली 29 मार्च 2021 को फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को पड़ रही है।इस दिन ध्रुव योग का भी निर्माण हो रहा है। इसके अलावा 03 मार्च, सन् 1521 के बाद यानि 499 साल बाद, इस बार एक विशेष दुलर्भ योग भी पड़ रहा है। आइए जानते हैं इस बार होली व होलाकाष्टक से जुड़ी खास बातों के साथ ही इस बार के पड़ रहे दुर्लभ योग के अलावा होली का समय, होलिका दहन तिथि, होली 2021 डेट व शुभ मुहूर्तइस बार दो दुलर्भ योगइस बार बन रहे दुलर्भ योगों में से पहले के अनुसार 29 मार्च को होली में चंद्रमा, कन्या राशि में विराजमान रहेंगे, जबकि गुरु और शनि ग्रह अपनी ही राशियों में रहेंगे। इन दोनों ग्रहों का ऐसा संयोग इससे पहले 3 मार्च, सन् 1521 में बना था। वहीं दूसरा योग भी दुर्लभ योग है जो दशकों बाद पड़ रहा है, इसके अनुसार इस बार होली पर सूर्य, ब्रह्मा और अर्यमा की साक्षी भी रहेगी।ऐसे समझें होलाष्टकहोली से 8 दिन पहले हिंदू धर्म के अनुसार होलाष्टक लग जाता है। इस दौरान किसी भी शुभ कार्य को वर्जित माना गया है। इसी कारण इस समय शादी, गृह प्रवेश समेत अन्य मांगलिक कार्य इस दौरान नहीं किए जाते हैं।होलाष्टक की तिथिहोलाष्टक आरंभ तिथि: 22 मार्च से लगेगाहोलाष्टक समाप्ति तिथि: 28 मार्च तकहोलिका दहन : जानें इसकी कथापौराणिक मान्यताओं के अनुसार विष्णु भक्त प्रहलाद को राक्षस हिरण्यकश्यप की आज्ञा पर जब उसकी बहन और प्रहलाद की बुआ होलिका आग पर बिठाकर मारने की कोशिश करती है तो वह खुद जल जाती है और प्रहलाद बच जाता है। इसके नाम पर ही होलिका दहन की परंपरा है। जानकारों की मानें तो होलिका का अर्थ समाज के बुराई को जलाने के प्रतिक के तौर पर मनाया जा जाता है।होलिका दहन रविवार, 28 मार्च 2021होलिका दहन मुहूर्त – 18:36:38 से 20:56:23 तककुल अवधि – 02 घंटे 19 मिनट 45 सैकेंडहोली 2021 की तिथि और शुभ मुहूर्तपूर्णिमा तिथि प्रारम्भ: मार्च 28, 2021 को 03:27 बजेपूर्णिमा तिथि समाप्त: मार्च 29, 2021 को 00:17 बजे
- भारतीय संस्कृति की पहचान बने स्वस्तिक चिह्न को दरअसल गूढ़ रहस्यों से जुड़ा हुआ माना जाता है। ‘स्वस्तिक क्षेम कायति, इति स्वस्तिक:’ अर्थात कल्याण करने वाला प्रतीक है स्वस्तिक। हिंदु धर्म की हर पूजा-अर्चना में पवित्र स्वस्तिक जरूर उपस्थित होता है। ऋग्वेद में इसे सूर्य का प्रतीक माना गया है और उसकी चार भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है। सिद्धांत सार ग्रंथ में इसे विश्व ब्रह्मांड का प्रतीक चित्र माना गया है। इसकी चार भुजाएं ब्रह्मांड की ऊर्जा के फैलाव की दिशा बताती हैं। सिद्धांत सार ग्रंथ में स्वस्तिक को ब्रह्मांड का प्रतीक चित्र माना गया है। इसकी चार भुजाएं ब्रह्मांड की ऊर्जा के फैलाव की दिशा बताती हैं। अन्य ग्रन्थों में चार युगों से भी इसे जोड़ा गया है। इसे गणपति का चिह्न कहा जाता है।अन्य ग्रन्थों में चार युगों से भी इसे जोड़ा गया है। इसे गणपति का चिह्न कहा जाता है। स्वस्तिक का बायां हिस्सा गणेश जी की शक्ति का स्थान माना जाता है, जिसका बीज मन्त्र ‘गं’ होता है। इसमें जो चार बिंदियां होती हैं, उनमें गौरी, पृथ्वी, कच्छप और अनंत देवताओं का वास बताया जाता है। इसे बनाते समय भी विशेष ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि दो सीधी रेखाएं एक-दूसरे को काटते हुए आगे चलकर जब अपने दायीं ओर मुड़ें तो ही इसका स्वरूप कल्याणकारी बनता है। इसे बायीं ओर मोड़ कर बनाना कार्य-अनुष्ठान के लिए अशुभ हो जाता है।आजकल भले ही यह सजावटी चीजों में भी बनाया जाने लगा हो, लेकिन यह अति पवित्र और कल्याणकारी ऊर्जा लिए मंगल चिह्न है, जो घर, कार्यालय या किसी भी महत्व की चीज में देवों के पूजन के प्रतीक रूप में बनाया जाना चाहिए। वास्तु में भी माना जाता है कि किसी भी स्थान की नकारात्मकता दूर करने के लिए स्वस्तिक बना देना उस स्थल की ऊर्जा के लिए कल्याणकारी होता है। सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार, जिस मनुष्य के शरीर में रेखाएं स्वस्तिक का चिह्न बनाती हैं, वह परम भाग्यशाली माना जाता है। माना जाता है कि ऐसा मनुष्य जहां भी जाता है, उसका अनुकूल प्रभाव दूसरों पर पड़ता है, जिससे दूसरे लाभान्वित होते हैं। हिंदू धर्म में ही नहीं, कई अन्य धर्मों में भी इसका उल्लेख मिलता है। बौद्ध मान्यता में इसे वानस्पतिक संपदा का प्रतीक माना गया है। इसे बनाने का भी विधान है। धार्मिक कार्यों में सदैव रोली, हल्दी या सिंदूर से स्वस्तिक बनाना चाहिए
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गायत्री शक्ति पीठ के संस्थापक पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी के प्रवचनों की कड़ी में आज;
'संकल्प शक्ति जगायें और अपना उत्थान करें'सृष्टि का कुछ ऐसा विलक्षण नियम है, कि पतन स्वाभाविक है और उत्थान कष्टसाध्य बनाया गया है। पानी को आप छोड़ दीजिए, नीचे बहता हुआ चला जायेगा। इसके लिये और आपको कुछ नहीं करना पड़ेगा। नीचे गिरने में कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती है और कोई प्रयास नहीं करना पड़ता है। ऐसा ही संसार का कुछ विलक्षण नियम है। पतन के लिये, बुरे कर्मों के लिये आपको ढेरों के ढेरों साधन मिल जायेंगे, सहकारी मिल जायेंगे, किताबें मिल जायेंगी और कोई नहीं मिलेगा तो आपके पिछले जन्म- जन्मांतरों के संग्रह किये हुए कुसंस्कार ही इस मामले में आपकी बहुत मदद करेंगे। वो आपको गिराने के लिये बराबर प्रोत्साहित करते रहेंगे। पाप- पंक में घसीटने के लिये बराबर आपका मन चलता रहेगा। इसके लिये न किसी अध्यापक की जरूरत है, न किसी और की कोई सहायता की जरूरत है। ये तो अपनी नेचर जैसी हो गई है, पीछे की तरफ गिराने वाली कोशिश इस संसार में इतनी भरी हुई पड़ी है, जिससे बचाव अगर आप न करें, उसका विरोध आप न करें, उसका मुकाबला आप न करें तो आप विश्वास रखिए, आप निरन्तर गिरेंगे, पतन की ओर गिरेंगे। सारा समाज इसी तरफ चल रहा है।आप निगाह उठा के देखिए। आपको कहाँ ऐसे आदमी मिलेंगे जो सिद्धान्तों को ग्रहण करते हों और आदर्शों को अपनाते हों। आप जिन्हें भी देखिए। अधिकांश लोगों में से कई बुराई की ओर चलते हुए दिखाई पड़ेंगे आपको। पाप और पतन के रास्ते पर उनका चिंतन और मनन काम कर रहा हुआ होगा। उनका चरित्र भी गिरावट की ओर और उनका चिंतन भी गिरावट की ओर। फिर आपको क्या करना चाहिए? अगर आपको ऊँचा उठना है तो आपको भीतर से हिम्मत इकट्ठी करनी चाहिए। क्या हिम्मत करें? ये हिम्मत करें कि ऊँचे उठने वाले जिस तरीके से संकल्प बल का सहारा लेते रहे और हिम्मत से काम लेते रहे, व्रतशील बनते रहे, आपको उस तरीके से व्रतशील बनना चाहिए। देखा है न आपने। जब जमीन पे से ऊपर की तरफ चढ़ना होता है तो जीने का इन्तजाम करते हैं, सीढ़ी का इन्तजाम करते हैं। तब मुश्किल से धीरे- धीरे चढ़ते हैं। गिरने में क्या देर लगेगी? अंतरिक्ष में उल्काएँ अपने आप गिरती रहती हैं। जब जमीन से रॉकेट अन्तरिक्ष की ओर उछालने पड़ते हैं, तब करोड़ों-अरबों रुपया खर्च करते हैं, तब एक रॉकेट का ऊपर अंतरिक्ष में उछालना सम्भव होता है। तो क्या करना चाहिए? आपको यही करना पड़ेगा कि चौरासी लाख योनियों में भटकते हुए जो कुसंस्कार ढेरों के ढेरों इकट्ठे कर लिये हैं, अब इन कुसंस्कारों के खिलाफ बगावत शुरू कर दीजिए। कैसे करें? अपने को मजबूत बनाइये। मजबूत नहीं बनायेंगे तब। तब फिर आपके पुराने कुसंस्कार फिर आ जायेंगे। मन को समझायें। जरा सी देर में समझ जायेगा, फिर उसी रास्ते पर आ जायेगा। क्या करना चाहिए?‘संकल्प शक्ति’ का विकास करना चाहिए। ‘संकल्प शक्ति’ किसे कहते हैं? ‘संकल्प शक्ति’ उसे कहते हैं, जिसमें कि ये फैसला कर लिया जाता है कि हमको ये तो करना ही है। ये हर हाल में करना है। करेंगे या मरेंगे। इस तरीके से संकल्प अगर आप किसी बात का कर लें तो आप विश्वास रखिए, फिर आपका जो मानसिक निश्चय है, वो आपको आगे बढ़ा देगा। अगर आपका मनोबल नहीं है और निश्चय बल नहीं है, ऐसे ही ख्वाब देखते रहते हैं कि ‘ये करेंगे’, विद्या पढ़ेंगे, व्यायाम करना शुरू करेंगे, फलाना काम करेंगे। आप कल्पना करते रहिए। कभी कुछ नहीं कर सकते। कल्पनाएँ आज तक किसी की सफल नहीं हुईं और संकल्प किसी के असफल नहीं हुए।इसीलिये आपको संकल्प शक्ति का सहारा लेने के लिये व्रतशील बनना चाहिए। आप व्रतशील बनिए। श्रेष्ठ काम करने के लिये, उन्नति की दिशा में आगे बढ़ने के लिये आपको कोई न कोई संकल्प मन में लेना चाहिए कि ये काम करेंगे।काम करने तक के लिये कई आदमी ऐसा कर लेते हैं कि जब तक ये अच्छा काम न कर लेंगे, ये काम नहीं करेंगे। जैसे नमक नहीं खायेंगे, घी नहीं खायेंगे वगैरह- वगैरह। ये क्या है? इसको देखने में तो कोई खास बात नहीं है। आपको अमुक काम करने से नमक का क्या ताल्लुक और आपने घी खाना बन्द कर दिया तो कौन- सी ऐसी बड़ी बात हो गई जिससे कि आपको काम में सफलता मिल जायेगी। इन चीजों में तो नहीं है दम। लेकिन दम इस बात में है कि आपने इतना कठोर निश्चय कर लिया है और आपने सुनिश्चित योजना बना ली है कि हमको ये करना ही करना है। तब फिर आप विश्वास रखिये, आपका काम पूरा हो करके रहेगा। चाणक्य ने निश्चय कर लिया था कि जब तक मैं नन्द वंश का नाश न कर लूँगा, तब तक बाल नहीं बाधूँगा। ये अपना व्रत और प्रतिज्ञा को याद रखने का एक प्रतीक है, सिम्बल है। प्रतिज्ञाएँ तो भूल जाते हैं, लेकिन अगर कोई ऐसा बहिरंग अनुशासन भीतर लगा लें तो आदमी भूलता नहीं है।आदमी का संकल्प मजबूत होना चाहिए। अध्यात्म का प्राण ही वह संकल्प है। संकल्प बल न हो तब। हिम्मत न हो तब। तब फिर आदमी बेपेंदी के लोटे के तरीके से इधर- उधर भटकता रहता है। संकल्प कर लेने के बाद तो आदमी की आधी मंजिल पूरी हो जाती है।संकल्प बल एक लाठी के तरीके से है। जो आपको गिरने से बचा लेता है और आपको ऊँचा चलने के लिये, आगे बढ़ने के लिये हिम्मत प्रदान करता है। आपको भी अपने मनोबल की वृद्धि के लिये आत्मानुशासन स्थापित करना चाहिए। ब्रह्मचर्य के सम्बन्ध में, खान- पान के सम्बन्ध में, समयदान और अंशदान के सम्बन्ध में आपको कोई न कोई, कोई न कोई काम ऐसे जरूर करने चाहिए, जिसमें कि ये प्रतीत होता हो कि आपने छोटा- सा संकल्प लिया है, उसे पूरा करने में सफल रहे हैं। ये मनोबल बढ़ाने का तरीका है। संकल्प शक्ति, मनोबल से ज्यादा बढ़ कर के आदमी के व्यक्तित्व को उभारने वाली, प्रतिभा को उभारने वाली, उसके चरित्र को उभारने वाली और कोई वस्तु है ही नहीं और ये संकल्प बल की वृद्धि के लिये ये आवश्यक है कि आप छोटे- छोटे, छोटे- छोटे ऐसे कुछ नियम लिया कीजिए थोड़े समय के लिये। ये काम न कर लेंगे, तब तक हम ये नहीं करेंगे। मसलन शाम को इतने किताब के पन्ने न पढ़ लेंगे, सोयेंगे नहीं। मसलन हम सबेरे का भजन जब तक पूरा न कर लेंगे, खायेंगे नहीं। ये क्या है? ये व्रतशीलता के साथ में जुड़ा हुआ अनुशासन है।व्रत और संकल्प आदमी की जिन्दगी के लिये बहुत बड़ी कीमती वस्तु है। आप ऐसे ही किया कीजिए।(पं. श्रीराम शर्मा जी के विचार)० साभार - गायत्री शक्ति पीठ साहित्य० प्रस्तुति - अतुल कुमार 'श्रीधर' - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 223
साधक का प्रश्न ::: महापुरुष माया के कार्य करते हुए भी माया से दूर कैसे रहते हैं?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: भगवान् और महापुरुष, योगमाया से कार्य करते हैं इसलिए माया का कार्य करते हुये भी माया से परे रहते हैं। एक, दो, चार नहीं, करोड़ों मर्डर किया अर्जुन ने, करोड़ों मर्डर किया हनुमानजी ने, ब्राह्मणों की हत्या की। और की कौन कहे। लेकिन उनका ओरिजिनल रूप क्या था ?
निज प्रभुमय देखहिं जगत, का सन करहिं विरोध।
तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च। (गीता 8-7)
मन भगवान् में था और युद्ध हो रहा है। ये कैसे होता है जी! हाँ हाँ, जो उस क्लास में नहीं गया, वो नहीं समझ सकता। एक पाँच वर्ष का बच्चा कहता है कि मम्मी भी हमको बेटा कहती हैं और पापा भी बेटा कहते हैं, तो मैं दोनों का बेटा कैसे हूँ। सब बच्चे आपस में मीटिंग करते हैं पाँच वर्ष के क्योंजी...? हाँ जी! चलो हम लोग पूछेंगे आज मम्मी पापा से। मम्मी-पापा से पूछा तो उन्होंने कहा ऐसे ही है बेटा! बस याद कर ले, मम्मी के भी हम बेटे हैं, पापा के भी हैं। हूँ! कैसे याद कर लूँ? उनको आता ही नहीं जवाब, मम्मी-पापा को। हाँ। सबने मीटिंग करके, बच्चों ने, यही तय किया कि सबके मम्मी-पापा बेवकूफ हैं; वो जवाब ही नहीं देते सही-सही। हम दोनों के बेटे कैसे हैं? और अगर वो स्पष्ट रूप से कहें भी ये देखो, मम्मी का रज और डैडी का वीर्य मिल करके पेट में बच्चा बन जाता है। ये क्या है रज? क्या है वीर्य? क्या है पेट में बच्चा? ये क्या, ये तो हमको समझ में नहीं आता। अभी नहीं आएगा। जब वो कामयुक्त अवस्था तक उसकी उम्र होगी, वो प्रैक्टिकल उसको एक्सपीरियंस होगा, तब कहेगा, अरे! मम्मी-पापा ने ठीक बताया था। अब समझ में आया।
तो जैसे पाँच वर्ष के बच्चे को स्त्री-पति के मिलन का अनुभव न होने से बोध नहीं हो सकता ऐसे ही जब तक मायाबद्ध जीव है, वो माया के अंडर में है, तब तक वो ये नहीं मान सकता, समझ सकता कि काम का कार्य करते हुये, काम से परे हैं। क्रोध का कार्य करते हुये क्रोध से परे हैं। करोड़ों वर्ष राज्य करते हुये भी ध्रुव, प्रहलाद लोभ से परे हैं, मायातीत हैं। ये योगमाया का कार्य होता है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - वास्तु में घर, कार्यस्थल हर जगह पर निर्माण और सामान रखने से संबंधित महत्वपूर्ण दिशा निर्देश दिए गए हैं। वास्तु के अनुसार घर में किसी भी चीज का निर्माण करते समय दिशाओं का ध्यान रखना बेहद आवश्यक होता है अन्यथा आपको समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इसी तरह से सीढिय़ों को तरक्की से जोड़कर देखा जाता है। वास्तु के अनुसार यदि सीढिय़ों की दिशा सही नहीं है तो व्यापार में नुकसान, आर्थिक तंगी और तरक्की में बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं। गलत तरह और गलत दिशा में बनी हुआ सीढिय़ों का बुरा प्रभाव घर के मुखिया पर पड़ता है। सीढिय़ों का निर्माण यदि वास्तु की बातों को ध्यान में रखकर किया जाए तो तरक्की और आर्थिक समृद्धि पाई जा सकती है।सीढिय़ां बनाने की सही दिशावास्तु के अनुसार घर में सीढिय़ां हमेशा दक्षिण, पश्चिम या नैऋत्य कोण में बनाना चाहिए। वास्तु के अनुसार सीढिय़ों का निर्माण करने के लिए यह दिशाएं बहुत अच्छी रहती है।इस दिशा में बनी सीढिय़ां बन सकती है तरक्की में बाधकवास्तु में सीढिय़ों के निर्माण के लिए उत्तर-पूर्व यानी ईशान कोण को बिलकुल भी उचित नहीं माना गया है। घर के ईशान कोण में सीढिय़ां भूलकर भी नहीं बनानी चाहिए। इस दिशा में सीढिय़ों का निर्माण होने से वास्तु दोष लगता है जिसके कारण आर्थिक तंगी, नौकरी और व्यवसाय में हानि का सामना करना पड़ सकता है और उन्नति में बाधाएं आती हैं।इस तरह करें सीढिय़ों का वास्तु दोष दूरसीढ़ी में यदि किसी प्रकार का दोष है तो पिरामिड या फिर सीढिय़ां ईशान, उत्तर दिशा में बनी हुई हैं तो पिरामिड के द्वारा उसे संतुलित किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए वास्तु विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लेनी चाहिए।सीढिय़ां बनवाते समय रखें इन बातों का ध्यानसीढिय़ां बनवाते समय ध्यान रखें कि वे हमेशा विषम संख्या यानि 2,7,9,11 आदि इस तरह से होनी चाहिए।आप सीढिय़ों का निर्माण करवा रहे हैं तो एक सीढ़ी से दूसरी के बीच नौ इंच का अंतर होना बहुत शुभ रहता है। सीढिय़ों का घुमाव हमेशा दक्षिणावर्ती यानि बाएं से दाएं ओर को होना चाहिए।
- ज्योतिषशास्त्र में बारह राशियों और नवग्रहों को विशेष महत्व है। वहीं नवग्रहों में प्रत्येक ग्रह का अपना महत्व है, लेकिन इन सभी ग्रहों में सूर्य का विशेष महत्व है और उसे ग्रहों के राजा या पिता कहा गया है। सूर्य को आत्मा कारक माना गया है। जिस जातक की कुंडली में सूर्य की अच्छी स्थिति होती है वे लोग आत्मविश्वास से भरपूर होते है। वहीं सूर्य की शुभ प्रभाव होने पर जात का भाग्य हमेशा चमकता रहता है। सूर्य को य़श प्रदान करने वाला भी कहा गया है इसलिए जिस जातक की कुंडली में सूर्य अच्छी स्थिति में होता है इसे राजनीति और सरकारी विभागों में यश, मान- सम्मान और उच्च पद प्राप्त होता है। वहीं जिनकी कुंडली में सूर्य की दशा चल रही होती है, उन जातकों में आत्मविश्वास की कमी बनी रहती है और उन्हें अपयश और आक्षेपों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में ज्योतिष के अनुसार कमजोर सूर्य को मजबूत बनाने के लिए सूर्य मंत्र सबसे प्रबल उपाय है। इसकी नियमित पूजा करने से जीवन में नये आयाम प्राप्त हो सकते हैं।सूर्य यंत्र लाभसूर्य यंत्र के प्रभाव से जातक को कभी भी असफलता का सामना नहीं करना पड़ता है।-सूर्य यंत्र को स्थापित करने से सरकारी कामकाज, नौकरी और व्यापार में भी विशेष लाभ प्राप्त होता है।-वहीं घर के पूजा स्थल में इस यंत्र को स्थापित करने से कोर्ट-कचहरी में चल रहे मामलों में जीत हासिल होती है।-जिन व्यक्तियों को सिरदर्द, बुखार, हृदय संबंधी समस्या और आंखों से जुड़ी समस्या आदि होती है उन्हें सूर्य यंत्र का पेंडेट धारण करना चाहिए।-जिन जातकों की अपने पिता से नहीं बनती है उन्हें सूर्य यंत्र को अपने घर में स्थापित करना चाहिए।-जिन जातकों को अपयश या अक्षेपों का सामना करना पड़ता है तो उनसे बचने के लिए उन्हें सूर्य यंत्र पेडेंट पहनना चाहिए।-यदि किसी की कुंडली में सूर्य खराब स्थिति में है तो बाकी सभी ग्रह भी अपन पूर्ण प्रभाव नहीं दिखा पाते हैं। ऐसे में सूर्य यंत्र लाभ प्रदान करता है।-इस यंत्र की मदद से आप अपने बॉस या उच्च अधिकारियों के साथ मधुर संबंध बनाने में सफल रहते हैं।-यदि आपको अत्यधिक गुस्सा आता है तो आपको सूर्य यंत्र पेडेंट अवश्य धारण करना चाहिए।-ध्यान रखने योग्य बातेंसूर्य यंत्र - को स्थापित करते वक्त इसके शुद्धिकरण और प्राण प्रतिष्ठा जैसे महत्वपूर्ण चरण सम्मिलित होने चाहिए। प्राण प्रतिष्ठा करवाए बिना सूर्य यंत्र विशेष लाभ प्रदान नहीं करता है। इसलिए इस यंत्र को स्थापित करने से पहले सुनिश्चित करें कि यह विधिवत बनाया गया हो और इसकी प्राण प्रतिष्ठा हुई हो। सूर्य यंत्र खरीदने के पश्चात किसी अनुभवी ज्योतिषी की सलाह लेकर उसे घर की सही दिशा में स्थापित करना चाहिए। अभ्यस्त और सक्रिय सूर्य यंत्र को रविवार के दिन स्थापित करना चाहिए।स्थापना विधिसूर्य यंत्र को स्थापित करने के लिए सबसे पहले प्रातकाल उठकर स्नानादि के बाद इस यंत्र को सामने रखकर 11 या 21 बार सूर्य के बीज मंत्र "? ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:" का जाप करें। तत्पश्चात यंत्र पर गंगाजल या कच्चे दूध से शुद्ध करें और सूर्यदेव से हाथ जोड़कर प्रार्थना करें कि वह अधिक से अधिक शुभ फल प्रदान करें। सूर्य यंत्र स्थापित करने के पश्चात इसे नियमित रूप से धोकर इसकी पूजा करें ताकि इसका प्रभाव कम ना हो। यदि आप इस यंत्र को बटुए या गले में धारण करते हैं तो स्नानादि के बाद अपने हाथ में यंत्र को लेकर उपरोक्त विधिपूर्वक इसका पूजन करें।सूर्य यंत्र मंत्र - ""ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:":"
- हाथ में अंगूठे के नीचे का पूरा क्षेत्र जीवन रेखा अथवा आयु रेखा से घिरा रहता है। यह पूरा क्षेत्र शुक्र पर्वत है। हस्तरेखा में शुक्र क्षेत्र बहुत भी प्रभावशाली और जीवन को प्रभावित करने वाला माना गया है। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार व्यक्ति के हाथों में शुक्र पर्वत जितना श्रेष्ठ होता है, व्यक्ति उतने ही सुंदर और सभ्य होते हैं। ऐसे व्यक्ति का स्वास्थ्य बहुत अच्छा रहता है। ये लोग साहसी और बहुत ही हिम्मत वाले होते हैं। जिन लोगों के हाथों में शुक्र पर्वत नहीं होता अथवा बहुत अधिक दबा हुआ होता है वे लोग दब्बू और कायर स्वभाव के होते हैं।इसी तरह शुक्र पर्वत का अधिक उभरा हुआ होना भी हस्तरेखा विज्ञान में अच्छा संकेत नहीं है। जिन लोगों के हाथों में शुक्र पर्वत अत्यधिक उभरा हुआ होता है वे भोगी और विपरीत लिंग के प्रति बहुत अधिक लालायित रहते हैं। जिन लोगों के हाथों में शुक्र पर्वत बिल्कुल भी नहीं होता वे सांसारिक बंधनों से दूर, स्वयं में रमे रहने वाले साधु-सन्यासी जैसे जीवन को जीने वाले होते हैं। ऐसे लोगों को गृहस्थ जीवन में कोई रुचि नहीं होती। जिन लोगों का शुक्र पर्वत पूरी तरह से विकसित हो,लेकिन मस्तिष्क रेखा संतुलित ना हो तो ऐसे लोग प्यार एवं भोग में बदनामी पाते हैं। ऐसे लोगों के प्रेम में वासना अधिक होती है।व्यक्ति के हाथों में शुक्र पर्वत का उभार उसे तेजस्वी बनाता है। ऐसे लोगों के चेहरे के आकषर्ण से व्यक्ति आकर्षित हुए बिना नहीं रह पाते। ऐसे लोग अपने काम और जिम्मेदारी को अच्छी से निभाते हैं और उसके प्रति सजग रहते है। ऐसे लोगों को सुंदर और कलात्मक चीजों से स्नेह रहता है। यदि व्यक्ति की हथेली खुरदरी होती है और शुक्र पर्वत अधिक विकसित हो तो व्यक्ति भी भोगी प्रवृत्ति का होता है।
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संत श्री कबीरदास जी के दोहे
(समझने के लिये भावार्थ दिये गये हैं..)मनुष जन्म दुर्लभ अहै, होय न बारम्बार।तरुवर से पत्ता झरैं, बहुरि न लागै डार।।1।।भावार्थ - यह मनुष्य जन्म तो अति ही दुर्लभ है और बार-बार नहीं मिला करता। जैसे पेड़ पर लगे हुये पत्ते जब झड़ जाते हैं तो उन्हें पुनः डाल पर नहीं लगाया जा सकता है ऐसे ही मनुष्य जन्म एक बार छिन जाय तो बड़ी हानि हो सकती है अर्थात अपने परमार्थ का अवसर हाथ से चला जायेगा।आवत गारी एक है, उलटत होय अनेक।कह कबीर नहिं उलटिये, वही एक की एक।।2।।भावार्थ - जब कोई व्यक्ति किसी को गाली देता है और वह सामने वाला व्यक्ति भी गाली सुनकर आवेश में उसे गाली देने लगे तो इस प्रकार एक गाली अनेक गालियों में बदल जाती है। यदि गाली सुनकर सामने वाला व्यक्ति उसे सहन करके शान्त रहे तो फिर सामने वाले का भी क्रोध कुछ देर में शान्त हो जायेगा।माखी गुड़ में गड़ी रहै, पंख रह्यो लिपटाय।हाथ मलै और सिर धुने, लालच बुरी बलाय।।3।।भावार्थ - गुड़ के लालच में मक्खी का हाल इस प्रकार हो जाता है कि गुड़ में उसके दोनों पंख चिपक जाते हैं और वह बहुत कोशिश करने पर भी उससे छूट नहीं पाती है। तब उसके पास अपने हाथ मलने और सिर धुनने अर्थात पछताने के अलावा कोई चारा नहीं रहता। लालच कदापि नहीं करना चाहिये, इससे सदा हानि ही होती है।धीरे धीरे रे मना, धीरे से सब होय।माली सींचै सौ घड़ा, ऋतु आये फल होय।।4।।भावार्थ - मनुष्य को कभी भी हड़बड़ी नहीं करनी चाहिये। सदैव धैर्य धारण करना चाहिये। सब कार्य अपने समय पर ही होते हैं, अतः धीरजता से किसी भी कार्य को करना चाहिये। जिस प्रकार माली यदि जल्दी फल प्राप्त करने की आशा में पेड़ों में एक साथ सौ-सौ घड़े पानी डाला करे तो भी फल अनुकूल ऋतु आने पर ही लगेंगे।कबीर ते नर अंध हैं, गुरु को कहते और।हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर।।5।।भावार्थ - वे मनुष्य विवेकहीन हैं जो गुरु को कोई दूसरा तत्व बतलाते हैं अर्थात हरि और गुरु में भेद मानते हैं। वस्तुतः दोनों एक हैं। इनमें भी गुरु का महत्व ऊँचा है। भगवान यदि रूठ जायँ तो गुरु के द्वार पर क्षमा मिल सकती है परन्तु गुरु यदि रूठ जायँ तो भगवान भी जीव को क्षमा नहीं कर सकते हैं।०० साभार - 'कल्याण' सन्तवाणी अंक(प्रस्तुति - अतुल कुमार 'श्रीधर') -
ब्रह्मा, विष्णु, महेश यानि कि 'त्रिदेव' में से भगवान विष्णु को सृष्टि के संचालन का कार्य सौंपा गया है। यही वजह है कि पृथ्वी पर आयोजित होने वाले किसी भी मांगलिक कार्य के लिए बृहस्पति देव, जो स्वयं विष्णु भगवान के एक रूप हैं, उनको याद किया जाता है। विशेष तौर पर शादी-विवाह जैसे बंधनों को मजबूत बनाने के लिए बृहस्पति देव की पूजा करने का विधान शास्त्रों में बताया गया है।
शास्त्र हमें यह भी बताते हैं कि किसी के भाग्य में बृहस्पति का संयोग ठीक नहीं है, तो उसके वैवाहिक जीवन में क्या-क्या संकट आ सकते हैं। शास्त्रों में इस बात का भी वर्णन है कि अगर पति-पत्नी संयुक्त रूप से भगवान बृहस्पति की पूजा करते हैं, तो निश्चय ही उनके जीवन पर इसका सकारात्मक असर पड़ता है और उनका रिश्ता मधुर बना रहता है।बिगड़े बृहस्पति का ऐसा होता है आपके जीवन पर असरअगर भाग्य में बृहस्पति शुभ नहीं है या वृहस्पति ग्रह टेढ़ा है तो इसका सीधा असर आपके वैवाहिक जीवन पर पड़ता है और वैवाहिक जीवन में खलल पढऩा प्रारंभ हो जाता है। इतना ही नहीं, अगर जातक शादीशुदा नहीं हैं और भाग्य में बृहस्पति बाधित है, तो इसका असर यह होता है कि आपका विवाह संपन्न होने में बाधाएं उत्पन्न होने लगती हैं।वहीं महिलाओं के संदर्भ में कहा जाता है कि अगर उनके भाग्य में बृहस्पति कमजोर है तो उनका चरित्र खराब होने की संभावना बनी रहती है।दांपत्य जीवन खुशहाल बनाने के लिए ऐसे करें बृहस्पति भगवान की पूजाअगर पति पत्नी के रिश्ते में उठापटक जारी है यानी कि पति पत्नी के बीच किसी भी बात को लेकर मनमुटाव चल रहा है तो ऐसे में ज्योतिष भगवान बृहस्पति की पूजा करने की सलाह देते हैं। ऐसा करने से रिश्ते का गतिरोध समाप्त होगा और जातक आनंद पूर्वक गृहस्थ जीवन का सुख भोग सकेंगे।-इसके लिए गुरुवार के दिन, अपने पूजा वाले स्थान पर बृहस्पति भगवान के लिए आसन लगाएं। इसके लिए पीले कपड़े का आसन बिछाना होगा और उस पर भगवान बृहस्पति यानी कि लक्ष्मी और विष्णु भगवान की मूर्ति स्थापित कर गंगाजल छिड़क कर शुद्ध करना होगा।- भगवान बृहस्पति की पूजा में यह बेहद आवश्यक है कि पति और पत्नी दोनों सम्मिलित हों और खुशी मन से भगवान की आराधना करें।-पूजा के दौरान पति पत्नी को पीले रंग के वस्त्र पहनना बहुत आवश्यक है। पीले रंग के वस्त्र पहनने से भगवान प्रसन्न होते हैं।-वृहस्पति भगवान की पूजा के दौरान सुहागन औरत को सुहाग की प्रतीक चुनरी अपने सर पर ओढऩा चाहिए, तो वहीं पति को कोई कपड़ा अपने कंधे पर अवश्य रखना चाहिए।-बृृहस्पति भगवान की पूजा के दौरान देसी घी का दीपक जलाना भी बहुत शुभ होता है। जहां तक संभव हो इस दिए में केसर का एक धागा अवश्य डालें।-अगर पति पत्नी के बीच अत्यधिक विवाद होते हैं, तो पूजा के दौरान लाल रंग के धागे या मौली को भगवान के सामने अर्पित करें और इस मौली को दोनों पति पत्नी अपने दाहिने कलाई पर बांध लें, इससे दोनों के बीच मनमुटाव कम होंगे और रिश्ते मधुर बनेंगे।-अगर पति पत्नी के बीच में कटुता एक सीमा से भी ज्यादा बढ़ गई है, तो गातार 11, 21 या 51 गुरुवार का व्रत रखकर भगवान विष्णु को प्रसन्न करना चाहिए, जिससे रिश्ते सामान्य हो सकें।गुरुवार के दिन भगवान विष्णु को भोग के रूप में भीगे हुए चने और मुनक्के चढ़ाने से भगवान जल्दी प्रसन्न होते हैं, और आपकी सभी मनोकामना को पूरा करते हैं।बृहस्पतिवार के दिन अगर ब्राम्हण को पीले रंग का अन्न, दान के रूप में दिया जाए, तो भी यह बेहद कारगर माना जाता है दाम्पत्य की स्थिरता बनाये रखने में।इन उपायों को अपना कर आप अपना बिगड़ा हुआ बृहस्पति सुधार सकते हैं और सुखद वैवाहिक जीवन का आनंद ले सकते हैं। -
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 222
(भगवदीय ज्ञान का प्रचार तो आवश्यक है, परन्तु अपने हृदय के भाव आदि का गोपन क्यों परमावश्यक है, जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से समझने का प्रयास करें...)
..भगवान के प्रति अपने मन के भाव और अपने भगवत अनुभवों को अपने तक सीमित रखो लोकरंजन न बनाओ जैसे आपकी सांसारिक पूंजी (धन) जो आपके अकाउंट में जमा है उसके बारे में आप किसी को नहीं बताते ठीक वैसे ही भगवान के प्रति आपके भाव और भक्ति से प्राप्त अनुभव आपकी असली पूंजी है उसके विषय में भी किसी को न बतायें। इसे भगवान की कृपा मानकर बार-बार इसका चिंतन करो, इससे भगवान में आपकी श्रद्धा दृढ़ होगी और आप तेजी और विश्वास से भगवान की तरफ बढ़ेंगे।
ज्ञान का आदान-प्रदान करना बहुत अच्छी बात है, लेकिन भगवान के प्रति अपने भाव और भक्ति को लोगों के सामने उजागर करना अज्ञानता है।
संसार को भक्ति मार्ग पर लाने में सहायक बनो किंतु अपनी भक्ति और प्राप्त अनुभव को बचा कर रखो, यह भक्ति और अनुभव आपके और भगवान के बीच की बात है अत: गुप्त रखें नहीं तो सब कुछ यहीं बर्बाद हो जाएगा, कुछ साथ नहीं जाएगा...
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
०० संत श्री रामसुखदास जी महाराज के कल्याणकारी वचन (भाग - 1)
(1) भगवान याद करने मात्र से प्रसन्न हो जाते हैं, इतना सस्ता कोई नहीं।(2) भगवान के किसी मनचाहे रूप को मान लो और भगवान के मनचाहे आप बन जाओ।(3) आप भगवान के बिना नहीं रह सकें तो भगवान की ताकत नहीं कि आपके बिना रह जायें।(4) ज्ञानी भगवान को कुछ नहीं दे सकता पर भक्त भगवान को प्रेम देता है। भगवान प्रेम के भूखे हैं, ज्ञान के नहीं।(5) मनुष्य खुद अपने कल्याण में लग जाये तो इसमें धर्म, ग्रंथ, महात्मा, संसार, भगवान सब सहायता करते हैं।(6) भगवान किसी को भी अपने से नीचा नहीं बनाते, जो भगवान की गरज करता है उसे भगवान अपने से ऊंचा बनाते हैं।(7) भगवान को याद करना ही उनकी सेवा करना है, पत्र-पुष्प-फल की भी आवश्यकता नहीं। द्रोपदी ने केवल याद किया था।(8) जैसे मां बालक का सब काम राजी होकर करती है, ऐसे ही जो भगवान की शरण हो जाते हैं, उनका सब काम भगवान करते हैं।(9) कलियुग उनके लिए खराब है जो भगवान का भजन-स्मरण नहीं करते, भगवदभजन करने वालों के लिए तो कलियुग भी अच्छा है।(नोट - स्वामी रामसुखदास जी महाराज के कल्याणकारी वचनों से संबंधित पोस्ट प्रति शुक्रवार प्रकाशित होंगे.)साभार - गीताप्रेसप्रस्तुति - अतुल कुमार 'श्रीधर -
सूर्यदेव 14 मार्च को सायं 6 बजकर 1 मिनट पर कुंभ राशि की यात्रा समाप्त करके मीन राशि में प्रवेश कर रहे हैं। इस राशि पर ये 13 अप्रैल की मध्य रात्रि बाद 4 बजकर 31 तक गोचर करेंगे उसके बाद मेष राशि में प्रवेश कर जाएंगे। इनके मीन राशि पर यात्रा के समय शादी विवाह जैसे मांगलिक कार्यों पर विराम लग जाएगा। पुनः चैत्र नवरात्र से शुभ कार्य आरंभ होंगे। सिंह राशि के स्वामी सूर्य तुला राशि में नीचराशिगत संज्ञक तथा मेष राशि में उच्चराशि का संज्ञक माने गए हैं। इनके राशि परिवर्तन का सभी बारह राशियों पर कैसा प्रभाव पड़ेगा इसका ज्योति विश्लेषण करते हैं।
मेष राशिराशि से हानिभाव में गोचर करते हुए सूर्य आपको अत्यधिक भागदौड़ और खर्च का सामना करवाएंगे। स्वास्थ्य विशेष करके बाईं आंख से संबंधित समस्या से सावधान रहना होगा। शरीर में भी कैल्शियम की कमी न होने पाए।झगड़े विवाद से दूर रहें और कोर्ट कचहरी के मामले भी बाहर ही सुलझा लें तो बेहतर रहेगा। संतान संबंधी चिंता परेशान कर सकती है। प्रेम संबंधी मामलों में उदासीनता रहेगी। विद्यार्थियों एवं प्रतियोगिता में बैठने वाले छात्रों को परीक्षा में अच्छे अंक लाने के लिए कठिन प्रयास करने होंगे।वृषभ राशिराशि से लाभभाव में गोचर करते हुए सूर्य विषम परिस्थितियों से तो मुक्ति प्रदान करेंगे किंतु परिवार के वरिष्ठ सदस्यों अथवा बड़े भाइयों से मतभेद गहरा सकता है ऐसे में अलगाववाद की स्थिति उत्पन्न न होने दें। पारिवारिक कलह के कारण मानसिक अशांति बढ़ सकती है जिसके परिणामस्वरूप आपके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। माता पिता के स्वास्थ्य के प्रति भी चिंतनशील रहें। मित्रों एवं संबंधियों से अप्रिय समाचार प्राप्ति के योग। कोर्ट कचहरी के मामलों में निर्णय आपके पक्ष में आने के संकेत।मिथुन राशिराशि से कर्मभाव में गोचर करते हुए सूर्य कार्य-व्यापार में उन्नति तो देंगे ही किसी भी तरह के नए अनुबंध पर हस्ताक्षर करना चाह रहें हों तो अवसर अनुकूल रहेगा।उच्चाधिकारियों से मधुर संबंध बनेंगे।शासन सत्ता का पूर्ण सुख-सहयोग मिलेगा।चुनाव से संबंधित कोई भी निर्णय लेना चाह रहे हों तो परिणाम सुखद और चौंकाने वाले हो सकते हैं।विदेशी कंपनियों में सर्विस अथवा नागरिकता के लिए किया गया आवेदन सफल रहेगा।अपनी योजनाओं तथा रणनीतियों को गोपनीय रखते हुए कार्य करेंगे तो अधिक सफल रहेंगे।कर्क राशिराशि से भाग्यभाव में गोचर करते हुए सूर्य कई तरह के उतार चढ़ाव लाएंगे। धर्म एवं आध्यात्म के प्रति गहरी रूचि रहेगी। सामाजिक पद प्रतिष्ठा बढ़ेगी और दान पुण्य भी करेंगे। विद्यार्थियों एवं प्रतियोगिता में बैठने वाले छात्रों के लिए गोचर फल और अनुकूल रहेगा। आपके साहस और पराक्रम की वृद्धि होगी। लिए गए निर्णय तथा किए गए कार्यों की सराहना भी होगी। माता-पिता के स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहें। जमीन जायदाद से जुड़े कार्य संपन्न होंगे। इन सबके बावजूद भी झगड़े विवाद से दूर ही रहें।सिंह राशिराशि से अष्टमभाव में गोचर करते हुए सूर्य काफी मिलाजुला फल प्रदान करेंगे। स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। झगड़े विवाद और षड्यंत्रकारियों से भी सावधान रहना पड़ेगा। आपके अपने ही लोग नीचा दिखाने की कोशिश करेंगे किंतु अपनी कुशल रणनीतियों एवं ऊर्जाशक्ति के बलपर आप ऐसी विषम परिस्थितियों को आसानी से नियंत्रित कर लेंगे। उधार के रूप में अधिक धन किसी को भी न दें अन्यथा आर्थिक हानि की संभावना रहेगी। जमीन जायदाद से जुड़े मामलों को निपटाने में थोड़ा और समय लगेगा।कन्या राशिराशि से सप्तम भाव में गोचर करते हुए सूर्य शादी-विवाह से संबंधित वार्ता में थोड़ा विलंब लाएंगे। दांपत्य जीवन में भी कटुता आ सकती है, ससुराल पक्ष से रिश्ते बिगड़ने न दें। प्रेम संबंधी मामलों में आपसी मतभेद बढ़ने न दें। स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहें।अग्नि विष और दवाओं के रिएक्शन से बचें। व्यापारियों के लिए भी समय कठिन परीक्षा लेने वाला रहेगा विशेष करके इस अवधि में साझा व्यापार करने से तो दूर ही रहें। विद्यार्थियों एवं प्रतियोगिता में बैठने वाले छात्रों को अच्छे अंक के लिए और प्रयास करने होंगे।तुला राशिराशि से छठे शत्रुभाव में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं है इसलिए कोई भी बड़े से बड़ा कार्य आरंभ करना हो अथवा नए अनुबंध पर हस्ताक्षर करना हो तो उस दृष्टि से प्रभाव अनुकूल रहेगा। कोर्ट कचहरी के मामलों में भी निर्णय आपके पक्ष में आने के संकेत। काफी दिनों का दिया गया धन भी वापस मिल सकता है परिवार के वरिष्ठ सदस्य एवं भाइयों से मतभेद बढ़ने न दें। केंद्र अथवा राज्य सरकार के विभाग में प्रतीक्षित पड़े कार्य संपन्न होंगे उच्चाधिकारियों से भी सहयोग मिलेगा।वृश्चिक राशिराशि से पंचम भाव में गोचर करते हुए सूर्य शोधपरक एवं आविष्कारक कार्यों में लगे हुए विद्यार्थियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। आपकी कल्पनाशीलता के शुभ प्रभाव के परिणाम स्वरूप नए नए विचारों का जन्म होगा रचनात्मक कार्यों में अच्छी सफलता हासिल करने के योग। व्यापारियों के लिए आय के साधनों में बढ़ोतरी होगी। काफी दिनों का दिया गया धन भी वापस मिलने की उम्मीद। प्रेम संबंधी मामलों में उदासीनता रहेगी। संतान के दायित्व की पूर्ति होगी। नव दंपत्ति के लिए संतान प्राप्ति एवं प्रादुर्भाव के भी योग।धनु राशिराशि से चतुर्थ भाव में गोचर करते हुए सूर्य का प्रभाव काफी मिलाजुला रहेगा। किसी न किसी कारण से पारिवारिक कलह एवं मानसिक अशांति का सामना करना पड़ेगा। कार्य क्षेत्र में भी झगड़े विवाद से दूर रहें। आपके अपने ही लोग नीचा दिखाने की कोशिश इससे भी करेंगे सावधान रहें। कोर्ट कचहरी के मामले भी बाहर ही सुलझा लेना समझदारी होगी। माता पिता के स्वास्थ्य के प्रति चिंतनशील रहें। जमीन जायदाद से जुड़े मामले कुछ उलझ सकते हैं। हर निर्णय बहुत सावधानीपूर्वक करने की आवश्यकता है।मकर राशिराशि से पराक्रमभाव में गोचर करते हुए सूर्य आपको अत्यधिक प्रभावशाली, ऊर्जावान और त्वरित निर्णय लेने वाला बनाएंगे। आप एक बार जो ठान लेंगे उसे पूरा करके ही छोड़ेंगे। यह समय इतना अनुकूल है कि कोई भी बड़े से बड़ा कार्य आरंभ करना हो या अनुबंध पर हस्ताक्षर करना हो तो सफल रहेंगे अवसर जाने न दें। अपनी जिद्द एवं आवेश पर नियंत्रण रखते हुए परिवार के वरिष्ठ सदस्यों अथवा भाइयों से मतभेद न पैदा होने दें। धर्म एवं अध्यात्म के प्रति रुचि बढ़ेगी।सामाजिक पद-प्रतिष्ठा और जिम्मेवारी भी बढ़ेगी।कुंभ राशिराशि से धन भाव में गोचर करते हुए सूर्य का फल काफी मिलाजुला रहेगा।अपनी योजनाओं को गोपनीय रखते हुए कार्य करेंगे तभी अधिक सफल रहेंगे। स्वास्थ्य विशेषकर के दाहिनी आंख पर पर तो विपरीत प्रभाव पड़ेगा किंतु कार्य व्यापार के लिए उतना नुकसानदेय नहीं रहेगा। आर्थिक पक्ष मजबूत बनेगा।आकस्मिक धन प्राप्ति के योग।दिया गया धन भी वापस मिलने की उम्मीद। इस अवधि के मध्य जमीन जायदाद का सौदा करने से बचें।केंद्र अथवा राज्य सरकार के विभागों से जुड़े कार्य संपन्न होंगे।मीन राशिराशि में गोचर करते हुए सूर्य प्रभा वृद्धि तो करेंगे ही सामाजिक पद प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी।अपनी कुशल नेतृत्व तथा कार्य कुशलता के बल पर कठिन से कठिन परिस्थितियों पर भी आसानी से विजय प्राप्त कर लेंगे जिसके फलस्वरूप लिए गए निर्णय और किए गए कार्यों की सराहना भी होगी।इस अवधि के मध्य चुनाव लड़ने से संबंधित कोई निर्णय भी लेना चाह रहे हों तो अवसर अनुकूल रहेगा।शादी विवाह से संबंधित वार्ता में थोड़ा और विलंब होगा।जहांतक संभव हो झगड़े विवाद तथा कोर्ट कचहरी के मामले भी बाहर ही सुलझाएं। - हमारी दिनचर्या सुबह जागने से प्रारम्भ होती है। इसलिए सुबह जल्दी उठना दिनचर्या का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। यही कारण है कि हमारी प्राचीन परम्पराओं में सुबह उठने का समय भी तय किया गया है। यह है 'ब्रह्म मुहूर्त', यानि कि रात्रि का अंतिम प्रहर या सूर्योदय से डेढ़ घंटे पहले का समय। हमेशा से ही अच्छी सेहत पाने के लिए रात को जल्दी सोना और सुबह जल्दी जागने की बात कही जाती है। जल्दी उठने की आदत डालेंगे तो इम्यून सिस्टम मजबूत होगा, जिससे बीमार नहीं पड़ेंगे। सुबह जल्दी उठना किसी औषधि से कम नहीं है।हमारे शास्त्रों में भी ब्रह्म मुहूर्त में जागने को ही सही बताया गया है, तभी तो प्राचीन काल में ब्रह्म मुहूर्त में गुरुओं द्वारा अपने शिष्यों को वेदों एवं शास्त्रों का अध्ययन करवाया जाता था। संसार के प्रसिद्ध साधक , बड़े-बड़े विद्वान और दीर्घजीवी मनुष्य सूर्योदय के पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में उठकर ही दैनिक कार्यों की शुरुआत करते थे। ऋग्वेद में कहा गया हैं कि जो मनुष्य सुबह उठता हैं, उसकी आयु लंबी होती हैं। ब्रह्म मुहूर्त में तम एवं रजो गुण की मात्रा बहुत कम होती हैं तथा इस समय सत्वगुण का प्रभाव अधिक होता हैं इसलिए इस काल में बुरे मानसिक विचार भी सात्विक और शांत हो जाते हैं।क्या है धार्मिक महत्त्वआयुर्वेद के अनुसार इस समय में बहने वाली वायु चन्द्रमा से प्राप्त अमृत कणों से युक्त होने के कारण हमारे स्वास्थ्य के लिए अमृत तुल्य होती है। यह वीर वायु कहलाती हैं। इस समय भ्रमण करने से शरीर में शक्ति का संचार होता है और शरीर कांतियुक्त हो जाता है। हम प्रातः सोकर उठते हैं तो यही अमृतमयी वायु हमारे शरीर को स्पर्श करती हैं। इसके स्पर्श से हमारे शरीर में तेज, बल शक्ति, स्फूर्ति एवं मेधा का संचार होता है जिससे मन प्रसन्न व शांत होता है। इसके विपरीत देर रात तक जागने से और देर सुबह सोने से हमें यह लाभकारी वायु प्राप्त नहीं हो पाती जिससे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचता है।क्या है धार्मिक महत्त्वशास्त्रों के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त निद्रा त्यागने के लिए सर्वोत्तम है व इस समय उठने से सौंदर्य, बल, विद्या, बुद्धि और उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। इस वक्त जागकर अपने इष्ट देव या भगवान की पूजा, ध्यान , अध्ययन और पवित्र कर्म करना बहुत शुभ होता है एवं इस काल में की गई ईश्वर की पूजा का फल भी शीघ्र प्राप्त होता है। मंदिरों के पट भी ब्रह्म मुहूर्त में खोल दिए जाते हैं तथा भगवान का श्रृंगार और पूजन भी इसी समय में किए जाने का विधान है। पुराणों के अनुसार इस समय की निद्रा ब्रह्म मुहूर्त के पुण्यों का नाश करने वाली होती है। इस समय सोना शास्त्र निषिद्ध है।ये है वैज्ञानिक कारणवैज्ञानिक शोधों के अनुसार प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त के समय हमारा वायुमंडल काफी हद तक प्रदूषण रहित होता है। इस समय दिन के मुकाबले वातावरण में हमारी प्राणवायु ऑक्सीजन की मात्रा भी अधिक होती है। सुबह-सुबह की शुद्ध वायु हमारे तन-मन को स्फूर्ति और ऊर्जा से भर देती है। यही वजह है कि इस समय किए गए व्यायाम, योग व प्राणायाम शरीर को निरोगी रखते हैं। इसके अलावा पक्षियों की चहचाहट से सुबह का माहौल खुशनुमा हो जाता है जिससे हमारा तन-मन प्रफुल्लित हो जाता है।
- फाल्गुन माह की द्वितीया तिथि को फुलैरा दूज के रूप में मनाया जाता है। इस बार फुलैरा दूज 15 मार्च 2021 दिन सोमवार को मनायी जाएगी। यह दिन होली के आगमन का प्रतीक माना जाता है। इस दिन से होली के पर्व की तैयारियां आरंभ हो जाती हैं। इस दिन से उत्तर भारत के गांवो में जिस स्थान पर होली रखी जाती हैं वहां पर प्रतीकात्मक रूप में उपले या फिर लकड़ी रख दी जाती हैं। कई जगहों पर इस दिन को उत्सव की तरह मनाया जाता है। इस दिन से लोग होली में चढ़ाने के लिए गोबर की गुलरियां भी बनाई जाती हैं।जानते हैं इस दिन का महत्वफाल्गुन माह में फुलैरा दूज का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन को अबूझ मुहूर्त भी मानते हैं। फुलैरा दूज को मांगलिक कार्यों को करने के लिए बहुत ही शुभ दिन माना जाता है। माना जाता है कि फुलैरा दूज के दिन किसी भी मुहूर्त में शादी संपन्न की जा सकती है। इस दिन उत्तर भारत में भगवान कृष्ण और राधा का फूलों से श्रंगार करके पूजन किया जाता है। इस दिन से लेकर लोग होली के दिन तक अपने घरों में शाम के समय प्रतिदिन गुलाल और आटे से रंगोली बनाते हैं।फुलैरा दूज तिथि आरंभ और समाप्त समयफाल्गुन द्वितीया आरंभ- 14 मार्च 2021 को शाम 05 बजकर 06 मिनट सेफाल्गुन द्वितीया समाप्त- 15 मार्च 2021 को शाम 06 बजकर 49 मिनट परक्या होती हैं गुलरियांगुलरियां गोबर से बनाई जाती हैं। इन्हें बनाने का कार्य फुलैरा दूज से ही शुरू कर दिया जाता है। इसमें महिलाएं गोबर के छोटे-छोटे गोले बनाकर उसमें उंगली से बीच में सुराख बना देती हैं। सूख जाने के बाद इन गुलरियों की पांच सात मालाएं बना ली जाती हैं और होलिका दहन के दिन इन गुलरियों को होली की अग्नि में चढ़ा दिया जाता है।ब्रज और वृंदावन में होता है खास उत्सवफुलैरा दूज के दिन ब्रज और वृंदावन में बहुत ही धूम देखने को मिलती है। इस दिन मथुरा वृंदावन और ब्रज में मंदिरों को फूले से सजाया जाता है, इसके साथ ही फूलों की होली खेली जाती है। मंदिरों में भगवान कृष्ण के होली के भजन गाए जाते हैं। हर तरफ गुलाल और फूलों से वातावरण सराबोर हो जाता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 221
(मनुष्य को, विशेषकर साधना-मार्ग में जो बढ़ना चाहते हैं, उनके जीवन में एक महापुरुष की क्या नितांत आवश्यकता है, इस संबंध में आचार्य श्री के उदबोधन पढ़ें..)
जीव में जब तक देहाभिमान है, तब तक वह आसानी के साथ स्वयं अपने आपको कभी भी गिरा हुआ नहीं मानता। अतएव, नित्य होश में रहने वाले एक महापुरुष की आवश्यकता होती है जो उस बेहोश साधक की त्रुटियों को बता-बताकर उसे होश में लाता रहता है अन्यथा जीव तो सदा ही अपने को अच्छा समझता है। वह भले ही पराकाष्ठा का मूर्ख क्यों न हो, उसे यह कथन बिल्कुल ही प्रिय नहीं कि ‘तुम मूर्ख हो।’
तात्पर्य यह कि तीनों गुणों से अभियुक्त बुद्धि प्रतिक्षण स्वतः परिवर्तनशील है, उसका नियामक गुणातीत महापुरुष अवश्य होना चाहिये ।
कुसंग का बीज प्रत्येक देहाभिमानी जीव के अंतःकरण में नित्य निहित रहता है एवं वह अपने अनुकूल बाह्य गुण-विषय को पाकर अत्यन्त बढ़ जाता है। तुम अनुभव करते होगे, दिन में कई बार ऐसा होता है कि तुमको जैसा भी वातावरण मिलता है, वैसी ही तुम्हारी मनोवृत्तियाँ भी बदलती जाती हैं। कभी तो यह विचार होता है कि ‘अरे ! पता नहीं कब टिकट कट जाय, शीघ्र से शीघ्र कुछ साधना कर लेनी चाहिये। संसार तो अपने आप छोड़ देगा नहीं। फिर संसार ने पकड़ भी तो नहीं रखा है, मैं स्वयं ही जा-जाकर उसमें (संसार में) पिस रहा हूँ।’ कभी यह बिचार उत्पन्न होता है, ‘अरे ! कर लेंगे, कल कर लेंगे, जल्दी क्या है? समय बहुत पड़ा है, ऐसी भी क्या जल्दी है। फिर अभी अमुक-अमुक संसार का काम (ड्यूटी) भी तो करना है। रात तक कर लेंगे, कल कर लेंगे,’ इत्यादि। कभी-कभी यह विचार पैदा होता है, ‘अरे यार खाओ, पियो , मौज उड़ाओ, चार दिन की जिन्दगी है, आगे किसने देखा है क्या होगा, भगवान् वगवान् तो बिगड़े हुए दिमाग की उपज है।’ पता नहीं वह मौज उड़ाने का क्या अर्थ समझता है। अरे मौज ही तो महापुरुष भी चाहता है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।