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- उत्तर भारतीय शादीशुदा महिलाएं सुहाग की निशानी के रुप में सिंदूर को अपनी मांग में धारण करती हैं। जबकि दक्षिण में ये परंपरा नही हैं। उत्तर भारतीय नारियों के लिए सिंदूर सबसे बड़ा गहना होता है, जिसका संबंध पूर्ण रूप से पति से होता है। सिंदूर महिलाओं के लिए सौभाग्यवती चिन्ह होने के साथ साथ इसके अन्य लाभ भी हैं।परंपरागत रुप से सुहागिन महिलाओं द्वारा अपने पति की उम्र के लिए मांग में सिंदूर भरने का रिवाज माना जाता है। शादी में फेरों पर पति खुद अपने हाथ से अपनी पत्नी की मांग में सिंदूर भरता है, जिसके बाद महिला तब तक माथे में सिंदूर भरती है जब तक वह सुहागिन रहती हैं।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लाल रंग से सती और पार्वती की उर्जा को व्यक्त किया जाता है। सती को हिंदू समाज में एक आदर्श पत्नी के रूप में जाना जाता है जो अपने धर्म अपनी शक्ति के दम पर भगवान से भी अपने वचन मनवाने की शक्ति रखती है। मान्यता यह भी है की सिंदूर लगाने से मां पार्वती महिलाओं को अखंड सौभाग्यशाली होने का आशीर्वाद भी देती हंै। सामाजिक रीत रिवाजों के अनुसार जब किसी लड़की की शादी होती है तो उस पर एक नए परिवार को सम्हालने के बहुत से दायित्व आते हैं, जिनके कारण उसे शारीरिक और मानसिक थकान महसूस होती है। माना जाता है कि मांग में सिंदूर लगाने से मन शांत रहता है और तनाव दूर होते हैं। इसीलिए शादी होने के बाद सिंदूर धारण करने की परंपरा चली आ रही है।परंपरागत कारणों के साथ साथ सिंदूर धारण करने के वैज्ञानिक कारण भी है। सिंदूर बनाने में अक्सर हल्दी, चंदन और हर्बल रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। मान्यता है कि इसे सिर के बीचो बीच लगाने से दिमाग शांत रहता है और घर में सुख शांति बनी रहती है। सिंदूर लगाने से शरीर के उच्च रक्तचाप पर नियंत्रण रहता है। इसके साथ साथ महिलाओं में काम भावना को जागृत करने में भी सिंदूर का विशेष महत्व होता है। मांग में जहां सिंदूर भरा जाता है वह स्थान ब्रह्मरंध और अध्मि नामक मर्म के ठीक ऊपर होता है। सिंदूर मर्म स्थान को बाहरी बूरे प्रभावों से बचाता है। इसके साथ ही माना जाता है कि सिंदूर में पारा जैसी धातु अधिक होने के कारण चेहरे पर जल्दी झुर्रियां नहीं पड़ती। इसके अलावा इससे स्त्री के शरीर से निकलने वाली विधुतीय उर्जा को भी नियंत्रित किया जाता है।सिंदूर लगाने का सही तरीकावैसे तो सभी विवाहित महिलाएं अपनी मांग में सिंदूर लगाती हंै मगर क्या आपको पता है की सिंदूर लगाने का सही तरीका क्या है? हिन्दू मान्यताओं के अनुसार जो महिला सिंदूर को अपने बालों में छुपा लेती है उनके पति समाज में कट सा जाता है, मतलब उसका सामाजिक महत्व कम हो जाता है। इसलिए सलाह दी जाती है की सिंदूर लंबा लगाएं और उसे बालो में छुपाए नहीं।-सिंदूर लगाने का सही स्थान मांग के बीचो बीच होता है, मान्यता ये है की जो स्त्री सिंदूर को किनारे पर लगाती हैं उनके पति उनसे किनारा कर लेते हैं। जिसके मतलब पति- पत्नी के रिस्तों में खटास आ जाती है और मतभेद बढ़ते हैं।-जैसा की माना जाता है की सिंदूर का संबन्ध पति की आयु से जुड़ा होता है, इसलिए कहा जाता है कि सुहागिन महिलाओं को लंबा सिंदूर लगाना चाहिए जिस से पति की आयु लंबी हो।
- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 193
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित 1008-ब्रजभावयुक्त दोहों के विलक्षण ग्रन्थ 'श्यामा श्याम गीत' के दोहे, ग्रन्थ की प्रस्तावना सबसे नीचे पढ़ें :::::::
(भाग - 10 के दोहा संख्या 50 से आगे)
निन्दनीय श्यामा श्याम प्रेम भी सकामा।वन्दनीय श्यामा श्याम प्रेम निष्कामा।।51।।
अर्थ ::: श्यामा श्याम का भी प्रेम यदि वह सकाम है, निंदनीय है। श्यामा श्याम का निष्काम प्रेम वन्दनीय है।
हरि गुरु ते न कछु माँगो ब्रज बामा।दोनों ते सदा करो प्रेम निष्कामा।।52।।
अर्थ ::: हरि एवं गुरु से कभी अपनी किसी कामना पूर्ति की आशा नहीं करनी चाहिये। जीव को सदैव निष्काम प्रेम ही करना चाहिये।
विष कीड़ा विष रस माँगे आठु यामा।मन माँगे विषयन नहिं माँगे श्यामा।।53।।
अर्थ ::: जिस प्रकार विष का कीड़ा निरंतर विष के रस में ही संतुष्ट रहता है, उसी प्रकार यह धूर्त मन भी निरंतर विषयों के रस में ही आनन्द का अनुभव करता है। यह श्रीराधिका के नाम, रूप, लीला, गुणादि का गायन, स्मरण आदि कर सुखानुभूति नहीं करता।
भुक्ति माँगें मूढ़ जन मिटै नहिं कामा।मुक्ति माँगें महामूढ़ कहें ब्रज बामा।।54।।
अर्थ ::: जो लोग भगवान से सांसारिक भोग माँगते हैं, वे मूर्ख हैं, मुक्ति की कामना करने वाले तो और भी अधिक मूर्ख हैं, क्योंकि मुक्त हो जाने पर तो भगवत्प्रेम मिलने की सम्भावना भी नहीं रहेगी।
माँगना हो तो माँगो सेवा श्याम श्यामा।सेवा हित पुनि माँगो प्रेम निष्कामा।।55।।
अर्थ ::: यदि माँगना ही है तो युगल-सरकार की सेवा ही माँगनी चाहिये। सेवा के लिये निष्काम-प्रेम की याचना करनी चाहिये।
०० 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का परिचय :::::
ब्रजरस से आप्लावित 'श्यामा श्याम गीत' जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की एक ऐसी रचना है, जिसके प्रत्येक दोहे में रस का समुद्र ओतप्रोत है। इस भयानक भवसागर में दैहिक, दैविक, भौतिक दुःख रूपी लहरों के थपेड़ों से जर्जर हुआ, चारों ओर से स्वार्थी जनों रूपी मगरमच्छों द्वारा निगले जाने के भय से आक्रान्त, अनादिकाल से विशुध्द प्रेम व आनंद रूपी तट पर आने के लिये व्याकुल, असहाय जीव के लिये श्रीराधाकृष्ण की निष्काम भक्ति ही सरलतम एवं श्रेष्ठतम मार्ग है। उसी पथ पर जीव को सहज ही आरुढ़ कर देने की शक्ति जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की इस अनुपमेय रसवर्षिणी रचना में है, जिसे आद्योपान्त भावपूर्ण हृदय से पढ़ने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे रस की वृष्टि प्रत्येक दोहे के साथ तीव्रतर होती हुई अंत में मूसलाधार वृष्टि में परिवर्तित हो गई हो। श्रीराधाकृष्ण की अनेक मधुर लीलाओं का सुललित वर्णन हृदय को सहज ही श्यामा श्याम के प्रेम में सराबोर कर देता है। इस ग्रन्थ में रसिकवर श्री कृपालु जी महाराज ने कुल 1008-दोहों की रचना की है।
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
कई बार घर में मौजूद वास्तु दोष हमें खुशियों से दूर कर देते हैं। घर के वास्तु दोष के चलते परिवार को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इसलिए घर से वास्तु दोष को दूर करना आवश्यक हो जाता है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार वास्तु दोष को दूर करने के कुछ टिप्स
घर में अखंड रामायण का पाठ अवश्य कराएं। अगरबत्ती से जहां वातावरण सुगंधित हो जाता है वहीं सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह भी बढ़ता है। अगर घर में कोई व्यक्ति बीमार है तो अगरबत्तियां जलाकर घर के सभी कोनों में रख दें। घर के प्रवेश द्वार के पर्दे में घुंघरू बांधना शुभ माना जाता है। घर के मुख्य द्वार पर घोड़े की नाल बांधना भी शुभ माना जाता है। घर में कोई सदस्य बीमार है तो ध्यान रखें कि घर में मकड़ी जाला न बनाने पाए। घर में टूटा कांच न रखें। घर की डायनिंग टेबल गोल आकार की नहीं होना चाहिए। प्रतिदिन स्नान के बाद मस्तक पर टीका या कुमकुम लगाना चाहिए। विद्यार्थी सूर्यदेव को जल अवश्य अर्पित करें। मस्तक, कंठ पर केसर का तिलक लगाएं। इससे एकाग्रता और स्मरण शक्ति बढ़ती है। घर की खिड़कियां हमेशा अंदर की ओर खुलनी चाहिए। खिड़की का आकार जितना बड़ा होता है, उसे उतना अच्छा माना जाता है। किसी को घड़ी उपहार में न दें और न ही लें। मनी प्लांट को घर के अंदर उगाएं। मनी प्लांट को सीधे धूप से दूर रखें। अपने पर्स में धार्मिक चीजें रखें। शयनकक्ष में झाडू, तेल का कनस्तर, अंगीठी आदि न रखें। सीढिय़ों के नीचे बैठकर महत्वपूर्ण कार्य न करें। दुकान, फैक्ट्री, कार्यालय आदि स्थानों में वर्ष में एक बार पूजा अवश्य कराएं। गुरु को पीले वस्त्र दान करें।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 192
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! मानव देह जो मिलता है उसका एक लक्ष्य है भक्ति। लेकिन प्रायः ऐसा भी देखा जाता है कि दो साल, तीन साल में बच्चे मर जाते हैं, तो उसको मानव देह मिलने का कोई फायदा होगा?
जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: हाँ, फायदा नहीं। वो भोग योनि है। जब तक बच्चे में नॉलेज न हो जाय, उसकी जो लिमिट बताई गई है; जैसे - बारह साल। तब तक के उसके कर्म को कर्म नहीं कहते। जैसे पशुओं का कर्म ऐसे ही उनका भी कर्म। उसका उसको फल भी नहीं मिलता कुछ। वो तो भोग के लिए आये हैं दो दिन, चार दिन, दो महिना, चार महिना के लिये। इसी प्रकार कोई सौ वर्ष भी जिये और गन्दे वातावरण में, उसके माँ-बाप सब राक्षस हों और साधना न कर सके, उसको भी कोई लक्ष्य नहीं मिला मानव देह मिलने का। प्रारब्ध खराब था लेकिन शरीर मिल गया। बस।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - हमारे धर्म ग्रंथों में सूर्यदेव की जीवन प्रदाता कहा गया है। ये आरोग्य, मान-सम्मान और सौभाग्य प्रदान करते हैं। पंचदेवों में सूर्य ही एक ऐसे देव हैं जो हमें प्रत्यक्ष रूप से दर्शन देते हैं। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय को वे ही दिन-रात की संधि की तरह देखा जाता है। शास्त्रों में दोनों समय बहुत ही महत्वपूर्ण माने गए है। हमारे शास्त्रों में कुछ ऐसे कामों का उल्लेख किया गया है जिन्हें सूर्यास्त के बाद या दौरान कभी नहीं करना चाहिए। सूर्यास्त के समय या सूर्यास्त के बाद ये कार्य करना बेहद अशुभ माना गया है। माना जाता है कि संध्या के समय जब दोनों बेला मिलती है उस समय यदि कोई व्यक्ति ये कार्य करता है तो उसके घर में मां लक्ष्मी वास नहीं करती हैं। घर में दरिद्रता और नकारात्मकता बढऩे लगती है।तुलसी का स्पर्शसनातन धर्म को मानने वाले लगभग प्रत्येक घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगा होता है। जिस घर में तुलसी के पौधे की नियमित रूप से पूजा की जाती है, वहां पर मां लक्ष्मी वास करती हैं और घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है, लेकिन ध्यान रखना चाहिए कि सूर्यास्त के बाद तुलसी में जल नहीं देना चाहिए और न ही इस स्पर्श करना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से धन की देवी लक्ष्मी रूष्ट हो जाती हैं, जिससे आपको धन हानि का सामना करना पड़ सकता है।सूर्यास्त के समय सोनाहिन्दू धर्मग्रंथों में सूर्योदय या सूर्यास्त के समय सोना और भोजन करना निषेध माना गया है। सूर्यास्त के समय जब दोनों बेला मिलती है, उस समय किया गया भोजन और नींद लेना स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। ऐसा करने से स्वास्थ्य के साथ धन की हानि भी होती है।झाड़ू लगानासुबह के समय घर की साफ-सफाई करना, बुहारी लगाना जितना सकारात्मक माना जाता है, सूर्यास्त के बाद झाड़ू लगाना उतना ही अशुभ माना जाता है। झाड़ू को देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है। मान्यता है कि संध्या के समय या सूर्यास्त के बाद घर में झाड़ू लगाने से सौभाग्य का नाश होता है। घर में दरिद्रता का वास होने लगता है। संध्या के बाद झाड़ू को स्पर्श भी नहीं करना चाहिए। घर में साफ-सफाई, बुहारी आदि का कार्य सूरज ढलने से पहले ही निपटा लेना चाहिए।बाल कटवाना या संवारनासूर्यास्त से समय या फिर सूर्य डूबने के बाद कभी भी अपने बाल ना कटवाएं और ना ही शेव करवाएं। इसी तरह से सूर्य अस्त होने के पश्चात महिलाओं को अपने बाल नहीं संवारने चाहिए। माना जाता है कि ऐसा करने से नकारात्मक प्रभाव हावी होता है।---
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जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 191
(भगवत्प्रेम के मार्ग पर आरुढ़ साधक समुदाय के लिये जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत अमूल्य वचनामृत...)
ये ज्ञान 24 घंटे बना रहे बस वही शरणागत है। निरंतर बना रहे, निरंतर, निरंतर। इस शब्द पर ध्यान दीजिए, निरंतर।
गोलोक की गोपियों का केवल एक लक्ष्य है, एक लक्ष्य एक वाक्य में - प्रियतम के सुख के लिए मेरा जीवन है! बस दूसरा कोई सबक ना सुनना है, ना पढ़ना है, ना मानना है। इतना ही सबक आप लोगों को भी याद करना है, उनके लिए हमारा जीवन है। हमारे लिए हमारा जीवन नहीं, फिर हमसे जो नीचे हैं, उनके लिए हमारा जीवन कहाँ?
अगर गुरु के नित्य सान्निध्य का अनुभव करे तो साधना में बिजली की तरह आगे बढ़े, फिर क्या देर लगेगी। सबसे बड़ा जुर्म गुरु भगवान से चोरी है। इतना ही कोई स्वीकार करले कि हमारा शरण्य नित्य नोट करता है, हमेशा सावधान रहना है तो कोई गड़बड़ी कभी किसी से नहीं होगी।
दोषों के जाने का दो ही रास्ता है, एक तो हरि गुरु का नित्य सान्निध्य, नित्य देख रहे है - ये प्रतिक्षण फीलिंग लाओ और या तो भगवत्प्राप्ति कर लो, नैचुरल चले जाएंगे सब दोष। तीसरा कोई रास्ता नहीं।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - भोजन हमारे जीवन का अहम हिस्सा है। हर घर में भोजन करने, परोसने और पकाने का अपना तरीका होता है। शास्त्रों के अनुसार जब भी भोजन पकाएं, नहा धोकर शुद्ध होकर अच्छे मन से काम करें। प्रसन्न मन से भोजन परोसें। और ऐसा कोई काम न करें जिससे अन्न का अपमान हो। ऐसा करने से माता अन्नपूर्णा प्रसन्न होती हैं और घर में कभी भी अन्न की कमी नहीं होती है।आइये आज जानें कि हमें भोजन करते समय और भोजन के बाद किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।- कुछ लोगों की आदत होती है कि खाना खाने के बाद थाली में हाथ धो लेते हैं। यह आदत कतई सही नहीं होती है। भूलकर भी कभी खाने खाने के पश्चात थाली में हाथ नहीं धोने चाहिए। खाना खाने के पश्चात थाली में कुछ अन्न के कण बचे रहते हैं। मान्यता है कि जब कोई थाली में जूठे हाथ धोता है तो अन्न का निरादर होता है। इससे मां लक्ष्मी और मां अन्नपूर्णा नाराज होती हैं। जो लोग ऐसा करते हैं, उनके घर में अन्न और धन की कमी होने लगती है।- जब लोग खाना खाते हैं तो अक्सर ज्यादा परोस लेते हैं, जिसकी वजह से खाने के बाद थाली में जूठा खाना बचा रह जाता है। थाली में जूठन छोडऩा अशुभ तो माना ही जाता है साथ ही इससे अन्न की बर्बादी भी होती है। शादी समारोह आदि में अक्सर यह देखने में आता है कि लोग खाने के बाद बहुत सारा खाना ऐसे ही छोड़ देते हैं। अन्न का अत्यधिक उपभोग व्यक्ति को दरिद्रता की ओर ले जाता है।- भारतीय संस्कृति में पहले भोजन की थाली रखने के लिए अलग से एक लकड़ी की पटरी होती थी। अब समय के साथ भोजन करने का तरीका भी बदल गया है। भोजन परोसते और किसी को देते समय थाली हमेशा चटाई, पाट या चौकट पर सम्मानपूर्वक रखना चाहिए। हो सकें तो जमीन पर बैठकर आराम से भोजन करें।- भोजन की थाली को हमेशा सम्मान के साथ दोनों हाथों से पकडऩा चाहिए।- भोजन करते समय सबसे पहले अपने इष्ट देव, माता अन्नपूर्णा और ब्रह्म देव को प्रणाम करना चाहिए।- भोजन के समय ज्यादा बातचीत, क्रोध, अपशब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए और न ही अपनी परेशानियों का दिक्कतों का बखान करते रहना चाहिए।-मेहमानों को भोजन आग्रह करते खिलाएं. ताकि वे भूखें न उठें और तृप्त होकर जाएं।----
- जब भी यज्ञ किया जाता है, तो हवन कुंड में आहूति देते समय स्वाहा कहा जाता है। कहा जाता है कि स्वाहा का उच्चारण किए बिना आहूति देने से देवताओं तक आहूति नहीं पहुंचती है और यज्ञ निष्फल हो जाता है। इसके पीछे कई कथाएं हैं।ऐसी ही एक कथा के अनुसार कहा जाता है कि 'स्वाहा' राजा दक्ष की पुत्री थीं, जिनका विवाह अग्निदेव के साथ संपन्न कराया गया था। इसीलिए अग्नि में जब भी कोई चीज समर्पित करते हैं, तो बिना स्वाहा का नाम लिए जब वह चीज समर्पित की जाती है, तो अग्निदेव उसे स्वीकार नहीं करते हैं। पहले के समय में ऋषि -धर्मात्मा यज्ञ, हवन जैसे धार्मिक अनुष्ठान मानवता के कल्याण के लिए करते रहते थे। आज भी हम अपने घर में जब भी कोई शुभ कार्य होता है, तो यज्ञ- हवन जरूर कराते हैं। कहते हैं कि कोई भी पूजा-पाठ बिना हवन के संपन्न नहीं होता है।ऐसी ही एक और कथा प्रचलित है, जिसमें कहा जाता है कि प्रकृति की एक कला के रूप में स्वाहा का जन्म हुआ था, और स्वाहा को भगवान कृष्ण से यह आशीर्वाद प्राप्त था कि देवताओं को ग्रहण करने वाली कोई भी सामग्री बिना स्वाहा को समर्पित किए देवताओं तक नहीं पहुंच पाएगी। यही वजह है कि जब भी हम अग्नि में कोई खाद्य वस्तु या पूजन की सामग्री समर्पित करते हैं, तो 'स्वाहा' का उच्चारण करना अनिवार्य होता है।एक अन्य कथा में बताया गया है कि एक बार देवताओं के पास अकाल पड़ गया और उनके पास खाने-पीने की चीजों की कमी पडऩे लग गई। इस विकट परिस्थिति से बचने के लिए भगवान ब्रह्मा जी ने यह उपाय निकाला कि धरती पर ब्राह्मणों द्वारा खाद्य-सामग्री देवताओं तक पहुंचाई जाए। इसके लिए अग्निदेव का चुनाव किया गया, क्योंकि यह ऐसी चीज है जिसमें जाने के बाद कोई भी चीज पवित्र हो जाती है। हालांकि अग्निदेव की क्षमता उस समय भस्म करने की नहीं हुआ करती थी, इसीलिए स्वाहा की उत्पत्ति हुई और स्वाहा को आदेश दिया गया कि वह अग्निदेव के साथ रहें। इसके बाद जब भी कोई चीज अग्निदेव को समर्पित किया जाए तो स्वाहा उसे भस्म कर देवताओं तक उस चीज को पहुंचा सके।यही कारण है कि जब भी अग्नि में कोई चीज हवन करते हैं, तो 'स्वाहा' बोलकर इस विधि को संपूर्ण की जाती है, ताकि खाद्य पदार्थ या हवन की सामग्री देवताओं को सकुशल पहुंच सके। इस प्रकार सदियों से हवन कुंड में आहूति देते समय स्वाहा का उच्चाकरण किया जाता है।----
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 190
(साधना सम्बन्धी सावधानी, जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से...)
हर समय श्रीकृष्ण को अपने साथ मानने का अभ्यास करो। और सब भूल जाओ संसार क्या है? अपने आपको तुम इस समय ऐसा महसूस करो कि संसार मे मेरा कोई नहीं हैं और ये फेक्ट भी है। डेली देख रहे हो, संसार से सभी को अकेले जाना है और अकेले आया भी है। ये बीच में मुसाफिरखाने का एक संग हो गया है। माँ, बाप, स्त्री, पति, बेटा का। शरीर चलाने के लिए इनका संबंध है। हमारे असली माता-पिता, कोई भी रिश्तेदार, केवल भगवान और महापुरुष हैं। इसलिए हरि और गुरु का ध्यान सदा सर्वत्र बना रहे और कोई कभी गलती भी कर जाय साधक, तो गलती को मत देखो, ये देखो कि हमने गलती क्यों देखा? प्रायः ऐसा होता है कि आपस मे कभी छोटी-छोटी बात में, छोटे-छोटे व्यवहार में एक दूसरे के प्रति दुर्भावना कर लेते है। ऐसा नहीं होना चाहिये। उसने गलती की ये तुमने सोचा क्यों? अतः अभ्यास करो, अभ्यास से ही काम बन जायेगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - हिंदू सनातन धर्म में कलाई पर लाल धागा, मौली, नाड़ा बांधने की परंपरा बहुत पहले से चली आ रही है। कलाई पर बांधे जाने वाले धागे को मौली या रक्षासूत्र भी कहा जाता है। पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठान और विशेष तिथियों पर मंत्र उच्चारण करते हुए यह धागा बांधा जाता है। इसके बिना पूजा पूरी नहीं मानी जाती है। कलाई पर बांधी जाने वाली मौली में तीन और पांच रंग के धागे होते हैं। मौली बांधने के धार्मिक लाभ तो होते ही हैं यह स्वास्थ्य के लिए भी बहुत फायदेमंद रहती है।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दानवीर राजा बलि की अमरता के लिए वामन स्वरूप में भगवान विष्णु ने उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था। इसके अलावा जब देवराज इन्द्र वृत्रासुर से युद्ध करने जा रहे थे,तब इंद्राणी ने उनकी भुजा पर रक्षा सूत्र बांधा था। माना जाता की इसलिए रक्षा कवच के रूप में मौली बांधी जाती है।जब भी कलाई पर ये धागा बंधवाते हैं तब अपने मंत्रों का जाप भी किया जाता है। जिसका सकारात्मक प्रभाव व्यक्ति पर पड़ता है। मौली में तीन से लेकर पांच रंगों का सूत प्रयोग किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि हाथ में मौली का बांधने से मनुष्य पर भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा तीनों देवियों- लक्ष्मी, पार्वती एवं सरस्वती का आशीर्वाद बना रहता है। मान्यता अनुसार मौली बुरी नजर और संकट से रक्षा करती है।मौली कलाई पर उस स्थान पर बांधी जाती है, जहां से नाड़ी की गति मापी जाती है और व्यक्ति के शरीर में रोग का पता किया जाता हैं। इस जगह पर मौली बांधने से नाड़ी की गति पर दबाव बना रहता है, इसी स्थान से शरीर का नियंत्रण रहता है। मौली से दबाव बने रहने से कफ, वात और पित्त में सामंजस्य स्थापित होता है, जिससे हम कब,वात और पित्त से संबंधित रोगों से बचे रहते हैं।मौली का अर्थ :'मौली' का शाब्दिक अर्थ है 'सबसे ऊपर'। मौली का तात्पर्य सिर से भी है। मौली को कलाई में बांधने के कारण इसे कलावा भी कहते हैं। इसका वैदिक नाम उप मणिबंध भी है। मौली के भी प्रकार हैं। शंकर भगवान के सिर पर चन्द्रमा विराजमान है इसीलिए उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता है।कहां-कहां बांधते हैं मौली?मौली को हाथ की कलाई, गले और कमर में बांधा जाता है। इसके अलावा मन्नत के लिए किसी देवी-देवता के स्थान पर भी बांधा जाता है और जब मन्नत पूरी हो जाती है तो इसे खोल दिया जाता है। इसे घर में लाई गई नई वस्तु को भी बांधा जाता और इसे पशुओं को भी बांधा जाता है।मौली करती है रक्षामौली को कलाई में बांधने पर कलावा या उप मणिबंध करते हैं। हाथ के मूल में 3 रेखाएं होती हैं जिनको मणिबंध कहते हैं। भाग्य व जीवनरेखा का उद्गम स्थल भी मणिबंध ही है। इन तीनों रेखाओं में दैहिक, दैविक व भौतिक जैसे त्रिविध तापों को देने व मुक्त करने की शक्ति रहती है।इन मणिबंधों के नाम शिव, विष्णु व ब्रह्मा हैं। इसी तरह शक्ति, लक्ष्मी व सरस्वती का भी यहां साक्षात वास रहता है। जब हम कलावा का मंत्र रक्षा हेतु पढ़कर कलाई में बांधते हैं तो यह तीन धागों का सूत्र त्रिदेवों व त्रिशक्तियों को समर्पित हो जाता है जिससे रक्षा-सूत्र धारण करने वाले प्राणी की सब प्रकार से रक्षा होती है। इस रक्षा-सूत्र को संकल्पपूर्वक बांधने से व्यक्ति पर मारण, मोहन, विद्वेषण, उच्चाटन, भूत-प्रेत और जादू-टोने का असर नहीं होता।
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जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 189
०० जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचनों से 5-सार बातें (भाग - 10) ::::::
(1) संसार में जो प्यार करते हैं उसे आसक्ति कहते हैं, वह दिव्य प्रेम नहीं है। आसक्ति का अर्थ है प्रतिक्षण घटमान और प्यार का लक्षण है प्रतिक्षण वर्धमान।
(2) भगवत्प्राप्ति के पहले कभी भी अपने को माननीय न मानो। जब तक माया के अंडर में हो तब तक क्यों सोचते हो कि मैं प्रशंसा के योग्य हूँ?
(3) कोई काम भगवान या संत का समझ में आ जाय तो बड़ी कृपा उसकी समझो लेकिन सब काम समझ में आ जायें, यह भगवत्प्राप्ति के पहले त्रिकाल में भी असंभव है क्योंकि जिस बुद्धि से हम नापते हैं, उस बुद्धि से उसको समझा नहीं जा सकता, नापा नहीं जा सकता और अच्छा या बुरा क्या होता है, यह भगवान और संत ही समझ सकता है।
(4) कुछ लोगों की अपनी मजबूरी होती है, यह बात अलग है लेकिन अधिकांश लोग मन की कमजोरी से नुकसान उठाते हैं।
(5) भगवान शरणागत पर कृपा करता है। वह अपने इस कानून पर दृढ़ है। लेकिन अपने दुराग्रह को छोड़कर हम भी उसकी ओर अभिमुख नहीं होते।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म संदेश एवं साधन साध्य पत्रिकाएँ०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - प्राय: व्यक्ति की जन्म कुंडली में सूर्य से जुड़ी हुईं समस्याएं तो मौजूद रहती ही हैं। अगर किसी व्यक्ति का सूर्य कमजोर होता है तो आदमी के जीवन में संघर्ष बना रहता है। संघर्ष करने के बाद भी सफलता दूर-दूर तक नजऱ नहीं आती है। फिर आदमी निराश और परेशान हो जाता है।सूर्य कुंडली में आत्मबल, आत्मविश्वास व ऊर्जा का कारक माना जाता है। अगर कुंडली में किसी जातक का सूर्य कमजोर होता है तो उस जातक के जीवन में पैसा कम व संघर्ष ज्यादा बन जाता है। जीवन में आगे बढऩे के लिए और संघर्ष को खत्म करने के सूर्य का कुंडली में बलि होना अति आवश्यक बन जाता है। कुंडली में पीड़ा के कारणों में सूर्य का कमजोर होना तो बहुत ही आम बात है। अगर कुंडली में सूर्य अच्छी स्थिति में है तो व्यक्ति को नई ऊर्जा शक्ति प्राप्त होती रहती है।बारह मुखी रुद्राक्ष है एक उपायबारह मुखी रुद्राक्ष भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है। इसके देवता सूर्य हैं। सूर्य व्यक्ति को शक्तिशाली तथा तेजस्वी बनाता है। बारह मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से सूर्य का ओज एवं तेज प्राप्त होता है।बारह मुखी रुद्राक्ष के फायदेसिद्ध बारह मुखी रुद्राक्ष व्यक्ति की गरीबी को दूर कर सकता है। इस रुद्राक्ष के कारण परिवार को सुख एवं संपत्ति प्राप्त होती रहती है। शास्त्रों में सूर्य देव के इस रुद्राक्ष को अश्वमेघ के समान शक्तिशाली बताया गया है। इस रुद्राक्ष द्वारा दु:ख, निराशा , कुंठा , पीड़ा और दुर्भाग्य का नाश होता है। व्यक्ति सूर्य की भांति यशस्वी बनता है।स्वास्थ्य के लिए बारह मुखी रुद्राक्ष के लाभयदि कोई व्यक्ति बहुत जल्दी-जल्दी बीमार हो जाता है या मानसिक रूप से कोई जातक परेशान रहता है तो ऐसे में बारह मुखी रुद्राक्ष उस व्यक्ति के लिए ब्रह्मास्त्र के समान है। हृदय रोग, फेफड़ों के रोग और त्वचा रोग संबंधी सभी प्रकार की शारीरिक एवं मानसिक परेशानियों का यह रुद्राक्ष नाश करता है।कैसे करें बारह मुखी रुद्राक्ष का प्रयोगबारह मुखी रुद्राक्ष को अच्छे मुहूर्त में रविवार के दिन धारण करने से व्यक्ति को इस रुद्राक्ष का पूरा-पूरा लाभ होता है। ध्यान रखने योग्य बात यह है कि यह रुद्राक्ष मंत्रों द्वारा सिद्ध किया गया हो।
- किसी भी परिवार की सुख समृद्धि उसके घर के माहौल पर भी निर्भर रहती है। घर में सकारात्मक माहौल बनाने के लिए ज़रूरी है कि आपके घर की सजावट वास्तु नियमों के अनुरूप हो। घर में अलग-अलग जगहों पर की गई इंटीरियर डेकोरेशन का भी हमारे जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है। सकारात्मक सोच की उत्पत्ति आपके आवास स्थल पर मौजूद सकारात्मक ऊर्जा पर निर्भर करती है। आइये जानें... कौन से उपाय करने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीं हो पाता है और सुख-समृद्धि आती है।.शुभ-लाभ का हो प्रवेश द्वारवास्तु में प्रवेश द्वार को बहुत अहम् माना गया है। यह घर का आइना होता है, इसे हमेशा साफ़-सुथरा रखें। यहां ज्यादा तड़क-भड़क वाली तस्वीरें न लगाकर शुभ प्रतीक चिह्न जैसे स्वास्तिक, ओं, कलश, पवनघंटी, शंख, मछलियों का जोड़ा या आशीर्वाद मुद्रा में बैठे गणेश जी लगाना शुभकारक रहता है। फ्रैश अथवा प्लास्टिक की फूल-पत्तियों के तोरण से भी द्वार को सजाया जा सकता है।तस्वीर लगाने में रखें ध्यानघर में जिन तस्वीरों को लगाना अनुचित माना गया है। वे हैं युद्ध के रक्त रंजित दृश्य, उजाड़ लैंडस्केप, सूखे पेड़ एवं अवसाद फैलाने वाले दृश्य। जिन जानवरों की तस्वीरें लगाना शुभ हैं। उनमें घोड़े की तस्वीर लगाना शामिल है। घोड़े बलिष्टता, विस्तार, गति और पौरुष बल का प्रतिनिधित्व करते हैं। घोड़े का शोपीस या भागते हुए घोड़ों की तस्वीर पूर्व या उत्तर-पश्चिम दिशा में लगाने से काम में गति आती है। धैर्य का प्रतीक हाथी की तस्वीर उत्तर या दक्षिण दिशा में लगाने से यश एवं प्रसिद्धि निश्चित प्राप्त होते हैं। शांति और प्रचुरता की प्रतीक गाय को पूर्व, दक्षिण-पूर्व में रखने से दु:ख और चिंताएं समाप्त होकर इच्छाओं की पूर्ती होने में मदद मिलती है।समृद्धि देंगे पौधेहरे-भरे पौधे देखने से मन को सुकून मिलता है। वहीं तनाव दूर होता है, ख़ुशी महसूस होती है। घर के पूर्व या उत्तर में मनीप्लांट, बैम्बू बंच या कोई छोटा इंडोर प्लांट जैसे पौधे रखना सुंदरता के साथ-साथ समृद्धिकारक भी माने गए हैं। ध्यान रहे सूखे, कांटेदार और बोन्साई पौधे निराशा के सूचक हैं, इन्हें न लगाएं। घर की उत्तर दिशा की तरफ हरे-भरे जंगल अथवा लहलाती फसलों का चित्र लगाने से एक साथ कई लाभ प्राप्त होते हैं। इससे आपके द्वारा किए गए कार्यों को कीर्ति, प्रतिष्ठा एवं विकास तो मिलता ही है। साथ में उन कार्यों से धन का आगमन भी होता है।लाइट न कम न ज़्यादावास्तु के अनुसार घर में प्रकाश की व्यवस्था पर्याप्त होनी चाहिए। प्रकाश की कमी तरक्की में बाधक, कार्यों में विघ्न एवं बहस आदि का कारण भी बन सकती है। अगर लाइट बहुत तेज़ या कम है तो आपकी आंखों पर बुरा असर पड़ता है वहीं सही प्रकाश न होना वास्तु दोष भी उत्पन्न करता है और वहां पर नकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगता है।-मधुर दाम्पत्य जीवन के लिए मास्टर बैडरूम में दो हंसों का जोड़ा या दो लव बड्र्स रखें या फिर राधा कृष्ण की तस्वीर उत्तर दिशा में लगाएं।-सोई में नकारात्मक ऊर्जा के प्रवेश को रोकने के लिए बाहर के जूते-चप्पल न लेकर आएं। गैस स्टोव दक्षिण-पूर्व दिशा में एवं पानी का कलश उत्तर-पूर्व दिशा की तरफ रखें।- हरी-भरी एक तुलसी का पौधा ईशान कोण में रखें। इसमें नियमित रूप से शुद्ध जल दें और शाम के समय इसके नीचे घी का दीपक जलाएं,ऐसा करने से आपके परिवार पर महालक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी।-दिशाओं के अनुरूप परदों के रंग और डिज़ाइन का सही चयन करना चाहिए। ऐसा करने से न केवल आपका घर खूबसूरत लगेगा बल्कि आपको सुकून भी महसूस होगा। परदों के द्वारा घर के सभी कमरों में सकारात्मक वास्तु को संतुलित किया जा सकता है।-घर में उत्तर दिशा, ईशान दिशा, पूर्व दिशा में हल्का सामान रखना लाभकारी है। वहीं भारी फर्नीचर को दक्षिण या दक्षिण-पश्चिम दिशा में रखना शुभ फलों में वृद्धि करेगा।
- आंखें केवल देखने का कार्य ही नहीं करती हैं, बल्कि समुद्रशास्त्र के मुताबिक किसी व्यक्ति की आंखों का रंग देखकर बताया जा सकता है कि उसका स्वभाव कैसा है या फिर वह विश्वसनीय है या नहीं। हालांकि इससे किसी भी व्यक्ति के बारे में कुछ पक्के तौर पर दावा नहीं किया जा सकता, लेकिन आंखों को देखकर व्यक्ति के बारे में बहुत कुछ जाना जा सकता है। तो चलिए जानते हैं कि किसी रंग की आंख वाले व्यक्ति कैसे होते हैं।काली आंखों वालेआंखों की पुतली का काला रंग सबसे सामान्य होता है। समुद्रशास्त्र के मुताबिक काली आंखों वाले लोग सबसे ज्यादा विश्वसनीय और जिम्मेदारियों को समझने वाले होते हैं। इन लोगों पर भरोसा किया जा सकता है। ये अगर किसी को वादा करते हैं तो निभाते हैं। इसके साथ ही ये समय के पाबंद होते हैं। ये एक अच्छे प्रेमी साबित होते हैं। इन्हें महत्वपूर्ण पदों पर कार्य करने का अवसर प्राप्त होता है। जिसके लिए ये मन लगाकर परिश्रम भी करते हैं।भूरी आंख वालेभूरी आंख वाले लोगों का मनोबल मजबूत होता है। इन्हें सृजनात्मक कार्य करना अच्छा लगता है। ये अत्यंत उत्साही और सक्रिय स्वभाव के होते हैं। इनमें बस एक कमी होती है कि ये मौके पर अपनी बात कहने से अक्सर चूक जाते हैं।हरी आंख वालेहरे रंग की आंख बहुत कम लोगों की होती हैं। जिन लोगों की आंखे हरी होती हैं उन्हें लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना पसंद होता है। ये लोग उत्सव, आयोजन आदि में ज्यादा रूचि रखते हैं। हरी आखों वाले सभी के प्रिय पात्र बने रहते हैं, लेकिन इन लोगों में ईष्र्या की भावना अधिक रहती है।नीली आंख वालेजिन लोगों की आंखें नीली होती हैं वे राजसी ठाट-वाट वाले स्वभाव के होते हैं। इनका स्वाभाव शांत और धैर्य वाला होता है, लेकिन इन्हें बड़प्पन और के साथ दिखावा भी पसंद होता है। ये लोगो दूसरों की मदद करने में आगे रहते हैं। इन लोगों के लिए सामाजिक मान मर्यादा और आत्म सम्मान का बहुत मायने रखता है।ग्रे रंग की आंखों वालेग्रे रंग की आंखों वाले लोग अपनी धुन के पक्के और होने से साथ ही अच्छी विश्लेषण क्षमता रखते हैं, लेकिन इनमें कमी होती है कि ये लोग कान के कच्चे होते हैं। कई बार अव्यवहारिक होकर सोचते हैं जिसके कारण अत्यधिक पूर्वाग्रही हो जाते हैं।
- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 188
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित 1008-ब्रजभावयुक्त दोहों के विलक्षण ग्रन्थ 'श्यामा श्याम गीत' के दोहे, ग्रन्थ की प्रस्तावना सबसे नीचे पढ़ें :::::::
(भाग - 9 के दोहा संख्या 45 से आगे)
मन को भरोसा दिलाओ आठु यामा।तेरे तो हैं परम हितैषी श्याम श्यामा।।46।।
अर्थ ::: अपने मन को यही विश्वास दिलाओ कि श्यामा श्याम के अतिरिक्त तेरा कोई हितैषी नहीं है।
और द्वार जाओ न अनन्य बनो बामा।त्रिगुण, त्रिताप, त्रिकर्म, काटें श्यामा।।47।।
अर्थ ::: जीव को अनन्य आश्रय एकमात्र श्रीराधा का ही ग्रहण करना चाहिये। द्वार-द्वार भटकने से क्या लाभ? जीव के त्रिगुण (सतोगुण, रजोगुण एवं तमोगुण) त्रिताप (दैहिक, दैविक, भौतिक) त्रिकर्म (संचित, प्रारब्ध, क्रियमाण) शरण में जाते ही समाप्त हो जायेंगे।
मूर्ख कर्म करे स्वर्ग हित कह बामा।ज्ञानी मुक्ति धाम पाये, भक्त हरि धामा।।48।।
अर्थ ::: मूर्ख व्यक्ति सकाम कर्म द्वारा स्वर्ग को प्राप्त करता है। ज्ञानी भी श्रीकृष्ण भक्ति द्वारा मुक्ति प्राप्त कर लेता है किंतु भक्त हरिधाम को ही प्राप्त कर लेता है।
वेद धर्म पालन ते मिले स्वर्ग धामा।श्याम प्रेम ते ही मिले गोलोक बामा।।49।।
अर्थ ::: वेद-वर्णित धर्म का पालन करने से स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। किंतु श्यामसुन्दर के लोक (गोलोक) की प्राप्ति तो श्रीकृष्ण-प्रेमियों को ही होगी.
निंदनीय देवी देव भक्ति निष्कामा।वन्दनीय श्यामा श्याम भक्तिहूँ सकामा।।50।।
अर्थ ::: देवताओं की निष्काम भक्ति भी निंदनीय है। श्यामा श्याम की सकाम भक्ति भी वन्दनीय है।
०० 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का परिचय :::::
ब्रजरस से आप्लावित 'श्यामा श्याम गीत' जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की एक ऐसी रचना है, जिसके प्रत्येक दोहे में रस का समुद्र ओतप्रोत है। इस भयानक भवसागर में दैहिक, दैविक, भौतिक दुःख रूपी लहरों के थपेड़ों से जर्जर हुआ, चारों ओर से स्वार्थी जनों रूपी मगरमच्छों द्वारा निगले जाने के भय से आक्रान्त, अनादिकाल से विशुध्द प्रेम व आनंद रूपी तट पर आने के लिये व्याकुल, असहाय जीव के लिये श्रीराधाकृष्ण की निष्काम भक्ति ही सरलतम एवं श्रेष्ठतम मार्ग है। उसी पथ पर जीव को सहज ही आरुढ़ कर देने की शक्ति जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की इस अनुपमेय रसवर्षिणी रचना में है, जिसे आद्योपान्त भावपूर्ण हृदय से पढ़ने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे रस की वृष्टि प्रत्येक दोहे के साथ तीव्रतर होती हुई अंत में मूसलाधार वृष्टि में परिवर्तित हो गई हो। श्रीराधाकृष्ण की अनेक मधुर लीलाओं का सुललित वर्णन हृदय को सहज ही श्यामा श्याम के प्रेम में सराबोर कर देता है। इस ग्रन्थ में रसिकवर श्री कृपालु जी महाराज ने कुल 1008-दोहों की रचना की है।
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - सामान्य रूप से पर्स (वॉलेट) का उपयोग पैसों को रखने के लिए किया जाता है, लेकिन कई बार हम पर्स में ऐसी चीजें भी रख देते हैं, तो नकारात्मकता लाती हैं। इससे वास्तुदोष भी होता है। आइये देखें हमें पर्स में क्या नहीं रखना चाहिए।गैर जरूरी कागजातवास्तु के अनुसार, पर्स में पुराने पड़े गैर जरूरी कागजात को रखने से धन नहीं ठहरता है। मां लक्ष्मी को साफ-सफाई पसंद है इसलिए पर्स में कोई भी बेकार के कागजात ना रखें ।कटे-फटे नोटवास्तु के अनुसार पर्स में रखे नोट मां लक्ष्मी का स्वरूप माने जाते हैं। इसलिए अपने पर्स में कटे फटे नोट नहीं रखने चाहिए। ये नोट आपके किसी भी काम में नहीं आएंगे। बेहतर होगा कि आप इन्हें अपने पर्स से दूर रखें। यह आपके पर्स में नकारात्मकता बढ़ाते हैं।देवी-देवताओं की तस्वीरअक्सर देखने में आता है कि हम अपने पर्स में देवी-देवताओं की तस्वीर रखते हैं। लेकिन वास्तु के नियमानुसार पर्स में ऐसी तस्वीरें नहीं रखनी चाहिए। आप पर्स में भगवान के यंत्र को रख सकते हैं। इससे आपके पर्स में धनागमन बना रहेगा।मृत व्यक्ति की तस्वीरहमारा पर्स मां लक्ष्मी का निवास स्थान माना जाता है। इसमें मृत व्यक्ति की तस्वीर को रखना अशुभ होता है। यदि आप अपने पर्स में किसी मृत व्यक्ति की फोटो को रखे हुए हैं तो उसे तुरंत निकाल दें। पर्स में ऐसी चीजें नकारात्मक को निमंत्रण देती हैं।उधारी के कागजअपने पर्स में हम कई तरह की पर्चियां, रसीद आदि रखते हैं, लेकिन वास्तु शास्त्र के अनुसार, पर्स में कभी भी उधार की पर्चियां या रसीद नहीं रखनी चाहिए। उधार की पर्चियां पर्स में होना अशुभ माना जाता है। इससे उधारी बढ़ती है।पुराने बिलपुराने बिलों को अपने पर्स में नहीं रखना चाहिए। साथ ही पर्स में भूलकर भी ब्लेड या चाकू ना रखें। वास्तु के नियमानुसार ऐसी चीजें पर्स में होने से धन की समस्या बढ़ती है और जीवन में आर्थिक परेशानी बनी रहती है। महिलाएं अक्सर पर्स में छोटा चाकू रखकर चलती हैं। यदि आप भी इनमें से एक हैं, तो आज ही इसे पर्स से निकाल दें। पर्स पैसा रखने के लिए होता है, न कि फालतू चीजों का स्टोरेज।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 187
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! ये काम, क्रोध, वाले दोष दूर क्यों नहीं हो रहे हैं, जबकि हम रोजाना प्रवचन सुनते हैं, कीर्तन करते हैं, इनमें न्यूनता क्यों नहीं आ पाती है, जैसे अभी आपने कहा, जरा सा किसी का धक्का लग गया, तो तुरन्त क्रोध हो जाता है, यह बात बिल्कुल सत्य है। तो महाराज जी! तेजी से अंतःकरण शुद्ध हो, वो स्थिति क्यों नहीं बन पा रही है, कैसे ठीक हो?
जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: मधुसूदन सरस्वती ने वृन्दावन में गोवर्धन की परिक्रमा किया और भगवान नहीं मिले। फिर किया, फिर किया, फिर किया और बहुत दिन करते रहे परिक्रमा, तब भगवान के दर्शन हुए, तो मधुसूदन ने पीठ कर लिया भगवान की तरफ, वो रूठ गए, कहने लगे तुम इतनी देर में क्यों आए?
तो भगवान ने दिखाया, उनके पापों का पहाड़ कि तुम्हारे इतने पाप थे कि ये सब जल जायँ, भस्म हो जायँ, तब तो मैं आऊँ। तो अनन्त जन्मों के पाप हमारे हैं, इतना गंदा अंत:करण है कि अगर कपड़ा थोड़ा मैला है तो एक बार साबुन लगाओ साफ हो गया और अगर धोया ही नहीं है कभी, 24 घण्टे ये भी फीलिंग नहीं है अभी कि भगवान हमारे अंत:करण में बैठा है, छोटी सी बात। भगवान हमारे अंत:करण में नित्य रहता है, ये सुना है, पढ़ा है? हाँ। और भगवान सर्वव्यापक है? हाँ। पर मानते हो? एक घण्टा भी नहीं मानते, 24 घण्टे में। तो साधना क्या कर रहे हो? जो बड़ा भारी फल मिल जाए तुमको। साधना गलत कर रहे हो, लापरवाही कर रहे हो, अपनी प्राइवेसी रख रहे हो। हम जो सोच रहे हैं, कोई नहीं जानता। वो बैठा-बैठा नोट कर रहा है, कहते हो कोई नहीं जानता।
अगर सही साधना लगातार करता रहे, करता रहे तो एक दिन लक्ष्य प्राप्त हो जाएगा, असम्भव नहीं है, बड़े बड़े पापात्मा महापुरुष बने हैं, इतिहास साक्षी है। लेकिन थोड़ी साधना करो, बहुत बड़ा फल चाहो ऐसा नहीं हो सकता। अपने आपको धिक्कारो, अपनी कमी मानो। हम लैक्चर सुन लेते हैं, कीर्तन आरती कर लेते हैं, ये कोई साधना है?
उनके लिए आँसू बहाओ और हर समय, हर जगह महसूस करो, कि वो हमारे साथ हैं, ये साधना है, असली। अहंकार से युक्त हो करके मनुष्य कीर्तन में बैठा, तो आराम से मुँह से बोल रहा है, न रूपध्यान कर रहा है, न आँसू बहा रहा है। ये सब लापरवाही है। उसको पता नहीं है कि कल का दिन मिले या न मिले। रात को ही हार्टफेल हो जाए क्या पता? यही लापरवाही हमने हर मानव-देह में किया। अनन्त बार हमें मनुष्य का शरीर मिला, बहुत दुर्लभ है, फिर भी मिला। और हर मानव देह में हमने क्या किया? माँ, बाप में, सब में, पड़ोसी में, लग गए चौबीस घण्टे। एम. ए. करो, डी. लिट् करो, पी. एच. डी. किया, ये किया वो किया। अब क्या करें? अब सर्विस करो, सर्विस ढूँढ़ा जगह-जगह परेशान हुए, नहीं३ मिली, फिर मिल गई सर्विस अब क्या करो? अब ब्याह कर लो। उसके बाद 2-4-6 बच्चे हो गए, अब फिर उनका पालन-पोषण करो और उनके दुःख में दुःखी हो। बुढ़ापा आ गया, नाती पोते हो गए, अब उन्हीं का चिन्तन, मनन, एक्टिंग में चले गए मन्दिर अपने घर में ही 2 मिनट बैठ गए। ये क्या है?
ये तो जान बूझकर जैसे मनुष्य शरीर को समाप्त करना चाहते हैं और कहते हैं, अपने बेटे से, देखो बेटा मैं तो 70 साल का हो गया, मेरी तो बीत गई, तुम अपनी सोचो। मेरी तो बीत गई। क्या बीत गई, जब तुम मरोगे तो क्या रिकार्ड होगा? कहाँ जाओगे ? अरे जो होगा देखा जाएगा। देखा नहीं जाएगा। भोगा जाएगा। बड़ा कमाल दिखाया तुमने, दस-बीस कोठी बना ली, दस-बीस करोड़ कमा लिया, 10-20 बच्चे पैदा कर लिए। अरे, ये सब क्या है ? वो तो कुत्ते, बिल्ली भी करते हैं इसमें तुमने कौन सा कमाल किया। सब पशु-पक्षी पेट भरते हैं, अपना।
तो जिस काम को करने के लिए प्रतिज्ञा की थी माँ के पेट में, भगवान से कि महाराज हमें निकालो इस नरक से, हम आप ही का भजन करेंगे, वो भूल गए। और सब की देखा देखी, वह उधर भाग रहा है, तुम भी भागो। सब लोग भाग रहे हैं, मैटीरियल साइड में कि यहीं आनन्द है, एक लाख में, एक करोड़ में, एक अरब में, बस भागे जा रहे हैं, किसी से पूछ तो लेते कि अरबपति किस हाल में है, क्यों भई आपका क्या हाल है ? तो अगर बोलेगा वह ईमानदारी से तो कहेगा, कि दिन-रात टेंशन है, और नींद की गोली खाकर सोते हैं उसी सीट पर जाना चाहते हो? अरे शरीर चलाने के लिए भी कर्म करना है, ये सही है, लेकिन ये लिमिट में करो, रोटी दाल मिल जाय, बस।
परवाह होनी चाहिए, देखो बच्चों को, छ: आठ महीने तो मटरगशती करते हैं, पढ़ाई में, और जब परीक्षा को एक महीने रह गए तो सारी रात जागते हैं, पढ़ते हैं, अगर ऐसी पढ़ाई शुरू से ही किए होते तो टॉप करते। हम लोगों को कोई जब संसारी मुसीबत आ गई, बेटा सीरियस है, ये है, वो है- भगवान! हम मान गए तुम हो, अच्छा, अब कृपा करके इसको ठीक कर दो। ऐसे फिर भगवान कहते हैं- बेवकूफ बनाने के लिए हम ही मिले हैं, तुमको। हमेशा तो तुम लापरवाह रहे।
सोचो, बार बार सोचने से साधना होगी। बार-बार फील करना, अरे इतनी उम्र बीत गई अब अगर जिन्दा भी रहे तो बुढ़ापे में क्या करोगे? जल्दी करो। सबको पता है कि हम माया के अण्डर में हैं, काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष सब भरा हुआ है, सबके अन्दर। लेकिन इन्हीं दोषों में से एक दोष किसी का कोई कह दे, आप जरा क्रोधी हैं, आप जरा लोभी हैं, आप जरा स्वार्थी हैं, आप जरा मक्कार हैं। सही बात तो कह रहा है। क्यों फील करते हो? तुमको तो पता है, हाँ यह बात ठीक कह रहा है। कोई व्यापारी है, उसे कहते हैं ये व्यापारी है, सेठ जी हैं, वह बुरा तो नहीं मानता। हमको कलैक्टर कहो। तुम जो कुछ हो, उसी में से तो कोई कुछ कहेगा। अरे वो बड़ा स्वार्थी है। अरे भला बताओ स्वार्थी तो- महापुरुष, भगवान संसार भर है, कौन स्वार्थी नहीं है। अपना असली हो या नकली हो, स्वार्थ सब स्वार्थ है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - हिन्दू धर्मग्रंथों के लिए पेड़ पौधे बहुत आवश्यक होते हैं। धार्मिक दृष्टि से भी पेड़ों का बहुत महत्व माना जाता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार कई ऐसे पेड़ पौधे बताए गए हैं जिन्हें घर में लगाने से सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है, तो वही कई पौधे ऐसे भी है जिन्हें घर में लगाने से नकारात्मकता बढ़ती है। इन पौधों को घर में लगाने से आपके घर में अशांति, और दरिद्रता का वास होने लगता है। कहा जाता है कि कुछ पौधों को कभी घर में नहीं लगाना चाहिए अन्यथा आपका सौभाग्य भी दुर्भाग्य में बदल सकता है।इमली का पौधावास्तुशास्त्र के अनुसार घर के अंदर कभी भी इमली का पौधा नहीं लगाना चाहिए। घर के आस-पास भी इमली का पौधा होना शुभ नहीं माना जाता है। जिन घरों के पास या घर में इमली का पौधा होता है, वहां रहने वाले लोगों के जीवन में विभिन्न समस्याएं आने लगती हैं, परिवार के सदस्यों को बीमारियों का सामना करना पड़ता है। परिवार के सदस्यों की तरक्की में भी रूकावट आने लगती हैं।खजूर का पेड़वैसे तो खजूर का पौधा लोग घरों में नहीं लगाते हैं। यदि किसी का घर बड़ा या बगीचा बना हुआ है तो लोग घर में यह पेड़ लगा लेते हैं। वास्तु के अनुसार खजूर का पेड़ लगाने से धन का अत्याधिक व्यय होने लगता है। घर में पैसा नहीं टिकता और धन की आवक में रूकावट आने लगती है।बेरी का पौधाघर में या आस-पास बेरी का पेड़ होना बिलकुल भी शुभ नहीं माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार बेरी के पौधे को सबसे ज्यादा नकारात्मक प्रभाव देने वाला माना गया है। यदि घर के आसपास बेर का पेड़ लगा हो तो हटवा देना चाहिए अन्यथा यह आपके घर में दरिद्रता आने लगती है। इसके माना जाता है कि इस पेड़ में नकारात्मक शक्तियों का वास भी होता है।दूध निकलने वाले पौधेवास्तु के अनुसार कभी भी ऐसे पेड़ पौधे घर में नहीं लगाने चाहिए जिनसे दूध जैसा चिपचिपा पदार्थ निकलता हो। इन पौधो को घर में लगाने से नकारात्मकता आती है और घर में अशांति का वातावरण बनता है। इसके अलावा संतान बाधा भी हो सकती है।कांटेदार वृक्षवास्तु के अनुसार घर में कभी भी कांटेदार वृक्ष नहीं लगाने चाहिए। बबूल का वृक्ष घर में या आसा-पास होना शुभ नहीं माना जाता है। माना जाता है कांटेदार पौधे लगाने से घर में अशांति के साथ दरिद्रता भी आने लगती हैं मां लक्ष्मी रूष्ट हो जाती हैं।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 186
(गौरांग महाप्रभु जी के शिक्षाष्टक में दीनता और सहनशीलता साधक के दो महत्वपूर्ण गुण बताये गये। जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज इन्हीं दो गुणों के संबंध में साधक समुदाय को संबोधित कर रहे हैं...)
तृण से भी दीन अरु गोविंद राधे।तरु से सहिष्णु निज मन को बना दे।।(स्वरचित दोहा)
तृण से बढ़कर दीन बनो। वृक्ष से बढ़कर सहिष्णु बनो, देखो घास के ऊपर पैर रख दो, दूब वगैरह तो वो नीचे हो जाती है और जब पैर हटा लो तो फिर अपना बेचारी नॉर्मल बन जाती है। पेड़ के ऊपर फल लगे हैं आप पत्थर मारते हैं तो फल नीचे गिरता है। पेड़ गुस्सा नहीं करता आपको फल देता है। आपके पत्थर का जवाब फल से, इतना सहनशील है वृक्ष।
स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः।
वो स्वयं फल नहीं खाता अपना। आपको खिलाता है। ये सबक हम लोग याद नहीं करते। कुछ परवाह नहीं करते, वन पर्सेन्ट भी नहीं करते। सब के सब। अहंकार से भरे हम लोग। गुरु भी कोई बात कह दे अगर तुमने ऐसी गलती की। नहीं महाराज जी। तुरन्त जवाब तड़ाक से। जैसे चपत मार दो किसी को, ऐसे। गुरु को भी जवाब दे देते हो। तुम बेवकूफ हो जो हमको बता रहे हो दोषी। गलत। मैंने गलत काम कभी नहीं किया। मैं महापुरुषों से भी आगे हूँ।
इतना बिगड़ा हुआ है मन। एक वाक्य नहीं सह सकते गुरु का। तुरन्त जवाब। और फिर आप लोग जब ये अभ्यास ही नहीं करेंगे, तो कृपालु क्या करेंगे? पता नहीं किस बात का अहंकार है। शरीर गन्दा, मन पापात्मा से युक्त, क्या चीज है आप लोगों के पास, जिसका अहंकार हो। अरे अगर सरस्वती अहंकार करें बुद्धि देवी की, रावण अहंकार करे, इन्द्र अहंकार करे, कुबेर अहंकार करे, अग्नि, वायु अहंकार करे, तो चलो ठीक है। उनके पास इतनी बड़ी पॉवर है। तुम्हारे पास क्या है? ऐ हमको ऐसा कह दिया। ओह कह दिया। बना दिया तुमको क्या खराब?? कौन सी खराबी किसमें नहीं है। अकेले में सोचो कमरा बन्द करके। जब तक माया के अण्डर में है जीव तब तक कौन सी खराबी उसमें नहीं है। कामनायें नहीं है कि क्रोध नहीं है, कि लोभ नहीं है, कि मोह नहीं है, कौन सा दोष नहीं है? अनन्त दोष भरे हैं उसमें से एक दोष कोई कह दे, क्यों फीलिंग होती है? अपना सर्वनाश क्यों करता है साधक? क्योंकि फील करोगे तो मन गन्दा होगा। उससे हानि होगी शरीर को भी। क्रोध से। ये साइंस कहती है। तुम आत्मा हो।
रूप गोस्वामी ने एक ग्रन्थ लिखा 'भक्तिरसामृत सिन्धु' । जब जीव गोस्वामी गये उनसे मिलने तो एक काशी के विद्वान आये थे उन्होंने रूप गोस्वामी के एक श्लोक में गलती निकाली। तो जीव गोस्वामी को बड़ा क्रोध आया। और उन्होंने यमुना के किनारे चैलेंज करके, उसको बिठा कर दिन भर शास्त्रार्थ करके उसको हरा दिया कि हमारे गुरु जी के श्लोक में तुम गलती निकालोगे? और आकर रूप गोस्वामी से कहते हैं गुरुजी! एक ऐसा विद्वान आया था काशी का, आपके श्लोक में गलती निकाला। उससे आज बिना खाये पिये दिन भर भिड़ गया मैं और उसको परास्त करके तब आ रहा हूँ।
रूप गोस्वामी ने कहा जीव तुम भाग जाओ ब्रज के बाहर, तुम ब्रज में रहने लायक नहीं हो। तुमको क्रोध के ऊपर क्रोध करना चाहिये था, उसके ऊपर क्रोध क्यों किया? उसमें तो तुम्हारे श्रीकृष्ण बैठे हैं। उसको दु:ख दिया और हमसे आकर प्रशंसा कर रहे हो अपनी। तुम्हारा अहंकार बढ़ गया। ये और नुकसान हुआ तुम्हारा। हम रोज पढ़ाते हैं दीन बनो, दीन बनो। और तुम ये कमाई करके आये हो और गुरु जी के आगे अपनी प्रशंसा कर रहे हो कि आप बधाई दें । अरे श्लोक गलत है होने दे।
तो ये दीनता और सहनशीलता ये भक्ति का आधार है। इसको सोचो रियलाइज करो, बार बार सोचो, बार बार रियलाइज करो और अभ्यास करो रोज, आज मैंने कहाँ कहाँ क्रोध किया? चार जगह किया, कल नहीं होने देंगे। यही सोचेंगे कि सारे दोष तो हैं मेरे अन्दर। कौन सा दोष नहीं है। ये अगर हमको कहता है तुम चार सौ बीस हो, बिल्कुल ठीक कहता है। हम दिन भर क्या कर रहे हैं। चार सौ बीस तो कर रहे हैं कि भगवान हमारा है। उनको छोड़ करके संसार को अपना मान करके हम संसार में सुख ढूँढ रहे हैं। ये क्या नहीं है, क्या पाप नहीं है, ये सोचना चाहिये। सोचो, सोचो मानव देह बीता जा रहा है कब सोचोगे, कब करोगे?? और आप लोगों में से तो बहुत से लोग घर छोड़ कर आये हो, परमार्थ बनाने को और यहाँ भी वही हाल।
एक व्यक्ति को दोष बताया जाता है। तो वो सफाई देने आता है। नहीं, बात ये है कि... झूठ। और अनेक पाप एक पाप को बचाने के लिये करता है। भगवान के धाम में, गुरु के धाम में भी ऐसे पाप करना, ये क्यों? अरे फैक्ट को मान लो न। और तुम्हारे न मानने से तुमको कोई महापुरुष तो मान नहीं लेगा। अगर तुम जिद करके बहस करते हो अपना नुकसान तो करोगे ही और दूसरे का भी करोगे। उसने ऐसा किया। हर एक का यही लक्ष्य उसकी गलती है, मेरी नहीं है। मैं गलती नहीं कर सकता, गुरुजी आप बेवकूफ हैं। भगवान अन्दर बैठा है, वो भी बेवकूफ है। सब बेवकूफ हैं मैं बिल्कुल ठीक हूँ। अरे कहाँ चले जा रहे हो? ये दिन रात तुमको भगवान की कृपा से इतना तत्त्वज्ञान कराया जाता है और तुम तुले हो सर्वनाश करने में कि मरने के बाद तो हमको कुत्ते बिल्ली गधे की योनियों में जाना ही है। अनन्त कोटि जगद्गुरु मिलें, भगवान मिलें, हम नहीं सुनेंगे किसी की, अपना सुधार नहीं करेंगे। अभ्यास नहीं करेंगे ये जिद्द है हम लोगों की। इसको रियलाइज करो, सोचो, बार बार सोचो और अभ्यास करो, दस दिन में तुम अपने को शान्त महसूस करोगे, जब इन दोषों को छोड़ोगे।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - नई दिल्ली। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार मिथुन व कन्या राशि के स्वामी बुध को ज्योतिष शास्त्र में शुभ ग्रह माना जाता है। बुध ग्रह 4 फरवरी 2021 को वक्री होकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे। बुध का राशि परिवर्तन रात 10 बजकर 46 मिनट पर होगा। बुध ग्रह को बुद्धि, संचार, भाषण, शिक्षा और स्वभाव आदि का कारक माना जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, हर ग्रह समयानुसार अपनी राशि बदलते रहते हैं। कुछ सीधे तो कुछ विपरीत अवस्था में चलते हैं। ज्योतिष शास्त्र में विपरीत दिशा में ग्रहों के चलने को वक्री व सीधे अवस्था को मार्गी कहा जाता है।ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, बुध जिस भी ग्रह के साथ युति करता है, उस ग्रह के अनुसार ही व्यवहार करने लगता है। बुध, सूर्य का सबसे करीबी ग्रह है और अपनी मार्गी गति में यह 28 दिनों के बाद एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है।जानिए ज्योतिषार्यों के अनुसार मानव जीवन पर क्या असर होगा...ज्योतिष के अनुसार, बुध के कुंडली में कमजोर होने पर अशुभ व विपरीत परिणामों की प्राप्ति होती है। इससे जातक को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। वाणी कठोर हो जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, नौ ग्रह में बुध, शनि, शुक्र और गुरू समय-समय पर वक्री अवस्था में गोचर करते हैं। राहु और केतु ऐसे दो ग्रह हैं जो लगभग वक्री ही रहते हैं। सूर्य और चंद्रमा वक्री नहीं होते हैं। जबकि बुध भाव के हिसाब से जातक को वक्री होने पर परिणाम देता है।1. ज्योतिष शास्त्र में पहले भाव में वक्री बुध का विराजमान होना शुभ नहीं माना जाता है। ज्योतिषों की मानें तो इस दौरान जातक गलत फैसले ले लेता है, जिससे नुकसान उठाना पड़ता है।2. दूसरे भाव में बुध का वक्री होना जातक को बुद्धिमान बनाता है। जातक हर फैसला सोच-समझकर लेता है।3. कुंडली के तीसरे भाव में वक्री बुध का होना जातक को साहसी बनाता है। आत्मविश्वास में वृद्धि होती है। जोखिम भरे कार्यों में जातक रूचि दिखाता है।4. बुध का वक्री होकर कुंडली के चौथे भाव भाव में विराजमान होना जातक को धन लाभ कराता है।5. पांचवें भाव में वक्री बुध का विराजना शुभ माना जाता है। परिवार में खुशहाली आती है और जीवनसाथी संग रिश्ता मजबूत होता है।6. छठवें भाव में अगर वक्री बुध बैठा हो तो जातक को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है। जातक जल्दी किसी पर भरोसा नहीं कर पाता है।7. सातवें भाव में बुध का वक्री होना जीवनसाथी का साथ दिलाता है। ऐसे जातक को खूबसूरत जीवनसाथी मिलता है।8. आठवें भाव में वक्री बुध का होना जातक को धर्म के प्रति उदार बनाता है। जातक आध्यात्म के क्षेत्र में रूचि लेता है।9. नवम भाव में वक्री बुध का बैठना जातक को तर्क संपन्न बनाता है। जातक विवेकवान होते हैं।10. दशम भाव में बुध का वक्री होना जातक को पैतृक संपत्ति में लाभ दिलवाता है।11. एकादश भाव में बुध के वक्री अवस्था में बैठना जातक को लंबी उम्र देता है। जातक जीवन को सुखमय बिताता है।12. द्वादश भाव में वक्री बुध का विराजना जातकों निर्भिक बनाता है। जातक के अंदर किसी का भी भय नहीं रहता है।
- फरवरी माह में कई ऐसे व्रत एवं त्योहार हैं जो श्रद्धा पूर्वक मनाए जाते हैं। पंडित जोखन पांडेय शास्त्री के अनुसार फरवरी माह में वसंत पंचमी, मौनी अमावस्या, माघ पूर्णिमा, भौम प्रदोष व्रत, कुंभ संक्रांति, जया एकादशी सहित कई व्रत एवं त्योहार मनाए जाएंगे। आइए जानते हैं फरवरी माह में कौन-कौन से व्रत एवं त्यौहार मनाए जाएंगे।07 फरवरीषटतिला एकादशी- षटतिला एकादशी माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है।09 फरवरीभौम प्रदोष व्रत- इस व्रत में भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा की जाती है।10 फरवरीमासिक शिवरात्रि - मासिक शिवरात्रि के दिन व्रत रखकर भगवान शिव की पूजा की जाती है।11 फरवरीमौनी अमावस्या- माघ माह की अमावस्या तिथि को मोनी अमावस्या मनाई जाती है। इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है।12 फरवरीमाघ गुप्त नवरात्रि- माघ गुप्त नवरात्रि का आरंभ 12 फरवरी को होगा। सनातन पंचांग के अनुसार कुंभ संक्रांति 11वें महीने की शुरुआत है।15 फरवरीगणेश जयंती - 15 फरवरी को विनायक चतुर्थी है। इस दिन श्री गणेश का पूजन किया जाता है।16 फरवरीवसंत पंचमी- एक प्रमुख हिंदू त्योहार है। इस दिन सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन विशेषकर पीले वस्त्र धारण करते हैं।19 फरवरीअचला सप्तमी, शिवाजी जयंती- माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को यह पर्व मनाए जाते हैं।20 फरवरीभीष्म अष्टमी- भीष्म अष्टमी का पर्व महाभारत के महान पात्र भीष्म पितामह की याद में मनाया जाता है। इस दिन भीष्म अष्टमी का व्रत रखते हैं।21 फरवरीमाघ गुप्त नवरात्रि समापन- माघ गुप्त नवरात्रि का समापन 21 फरवरी को होगा।23 फरवरीजया एकादशी- माघ मास की शुक्लपक्ष एकादशी को जया एकादशी कहा गया है।24 फरवरीप्रदोष व्रत- प्रदोष व्रत करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। प्रदोष व्रत को करने से हर प्रकार का दोष मिट जाता है।27 फरवरीमाघ पूर्णिमा व गुरु रविदास जयंती- इस दिन चंद्रमा की पूजा का विशेष महत्व होता है। पूर्णिमा के दिन दान, पुण्य शुभ फलकारी माना जाता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 185
(मृत्यु अटल है और सबसे खतरे की बात यह कि यह कब आ जायेगी, कोई नहीं जानता! अतः साधक को सावधान करते हुये जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज शीघ्र ही अपने परमार्थ के लिये जुट जाने के लिये आग्रह कर रहे हैं...)
अरे मनुष्यो ! कल से भजूँगा, कल से भजूँगा मत कहो, मत सोचो। क्यों...? अरे! वह जो तुम्हारी खोपड़ी पर सवार है काल, यमराज। क्या पता कल के पहले ही टिकट कट जाये रात ही को। ऐसे रोज उदाहरण हमारे विश्व में हो रहे हैं, कि रात को एक आदमी सोया और सदा को सो गया। न दर्द हुआ, न चिल्लाया, न घर वालों को मालूम हुआ। घर वाले समझ रहे हैं सो रहा है, आज बड़ी देर तक सोता रहा, अरे भई जगा दो। जगाने गये तो मालूम हुआ सदा को सो गया, इसका टिकट कट गया।
एक माँ के पेट में ही मर गया, एक पैदा होते ही तुरंत मर गया, एक 25 साल का आई. ए. एस. करके फ्लाइट से घर आ रहा था, सब घर वाले खुश और पता चला रास्ते में ही प्लेन क्रैश में मर गया। बाप ले जा रहा है बेटे को जलाने, पर बाप को होश नहीं है कि मुझको भी जाना है। देख तो रहे हैं हम रोज़ आसपास कि क्या हो रहा है? लेकिन भगवान को याद करने का भजन करने का टाईम किसी के पास नहीं है। प्लानिंग बन रही हैं बड़ी-बड़ी, पल का भरोसा नहीं और कोई पंचवर्षीय योजना, कोई दस वर्षीय योजना बना रहा है।
अरे! बिगड़ी बना लो जिसके लिए ये मानव देह भगवान ने तुमको कृपावश दिया है। ये नाती-पोते, ये बेटा-बेटी कोई तुम्हारे नहीं है जिनमें तुम उलझे हुए हो रात दिन। ये सब तो स्वार्थ आधारित रिश्ते हैं, कोई किसी का नहीं है यहाँ। इसलिये कल से भजूँगा यह मत कहो, मत सोचो, तुरंत करो... उधार मत करो। उधार करने की आदत हमारी तमाम जन्मों से है और इसलिये हम अनादिकाल से अब तक चौरासी लाख में घूम रहें है एक कारण।
अनंत संत मिले समझाया हम समझे लेकिन उधार कर दिया। करेंगे... करेंगे। तन मन धन ये तीन का उपयोग करना था तीनों के लिये हमने उधार कर दिया। करेंगे, बुढ़ापे में कर लेंगे अभी इतनी जल्दी भी क्या है। मन तो और बिगड़ा हुआ है। धन से तो इतना प्यार है कि कोई भी परमार्थ के काम में खर्च करने में भी बुद्धि लगाते हैं - करें, कि न करें? कर दो भगवान के निमित्त। अरे! रहने दो... अरे! नहीं कर दो, अरे! नहीं क्यों निकालो जेब से, अरे! चलो अब कर ही देते हैं। नहीं अब कल करेंगे। ये हम लोगों का हाल है, सोचियेगा अकेले में। यही सब होता है।
तो उधार करना बन्द करना है। मानव देह क्यों मिला है, इस पर विचार करो, संभलो और अपनी बिगड़ी अभी भी बना लो, नहीं तो करोड़ों वर्षों तक यूँ ही 84 लाख में भटकते रहोगे। ये अवसर भी हाथ से चूक जाएगा। संसार में व्यवहार करो, मन भगवान को दे दो। अभी से भजन करो, भक्ति करो,संसार से मन हटाओ,भगवान में लगाओ। उधार करना बंद करो।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - घर में मौजूद ऊर्जा का असर हमारे सपनों पर भी पड़ता है। नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव अधिक होने से सपने भी नकारात्मकता दर्शाते हुए नजर आते हैं। माना जाता है कि मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार ही अच्छे या बुरे स्वपन देखता है। अशुभ सपने अगर लगातार आ रहे हैं तो घर का वास्तु ठीक करना आवश्यक हो जाता है। वास्तु में कुछ आसान से उपाय बताए गए हैं, जिन्हें अपनाने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ाया जा सकता है और डरावने स्वपन से मुक्ति भी मिल सकती है।हनुमान जी सभी प्रकार का अनिष्ट दूर करने वाले हैं। अगर लगातार डरावने स्वपन आते हैं तो हनुमानजी को याद करें। घर में सुंदरकांड का पाठ करें। रोजाना हनुमान चालीसा का पाठ करें। भयानक स्वप्न आए तो ? नम: शिवाय का जप करते हुए सो जाएं। लगातार बुरे स्वपन आएं तो प्रात: उठकर बिना किसी से कुछ बोले तुलसी के पौधे से पूरा स्वप्न कह डालें। बच्चों को अगर डरावने स्वप्न परेशान करते हैं तो उनके सिरहाने पर चाकू रख लें। यह भी माना जाता है कि बेड के सिरहाने पर जूते या चप्पल रखे हों तो भी डरावने स्वप्न आ सकते हैं। गहरे रंग की चादर न ओढ़ें। रात में झूठा मुंह कर सोने से भी डरावने सपने आते हैं। सपने में नदी, झरना या पानी दिखाई दे तो यह पितृ दोष की वजह से हो सकता है। घर में नियमित गंगाजल का छिड़काव करें। अगर बुरा स्वप्न देखकर नींद खुल जाए तो फिर से सो जाना चाहिए। घर में हवन करने के बाद इससे मुक्ति पाई जा सकती है। बुरे स्वप्न किसी को नहीं बताने चाहिए। नियमित रूप से अगर सूर्यदेव की आराधना की जाए तो भी बुरे स्वप्न से निजात पाई जा सकती है। बुरे स्वप्नों से मुक्ति पाने के लिए सुबह उठने के बाद गायत्री मंत्र का जाप करें। जरूरतमंद व्यक्ति को दान दें।
- वास्तु शास्त्र में कई चीजों के बारे में बताया गया है। वास्तु शास्त्र में नौकरी, बिजनेस के अलावा पूजा-पाठ की चीजों के बारे में जानकारी दी गई है। वास्तु शास्त्र में पूजा पाठ से जुड़े ऐसे कई नियम बताए गए हैं, जिनका पालन करना शुभ फलकारी होता है। वास्तु शास्त्र में पूजा-पाठ से जुड़ी ऐसी कई चीजों के बारे में बताया गया है, जिन्हें जमीन पर रखना अपशगुन माना गया है।1. शालिग्राम या शिवलिंग- शास्त्रों में शालिग्राम को भगवान विष्णु का और शिवलिंग को भगवान शिव का प्रतीक माना गया है। इसलिए इन्हें कभी भी भूलकर जमीन में नहीं रखना चाहिए। मंदिर की साफ-सफाई के दौरान लोगों से ये गलती होने की आशंका रहती है। ऐसे में सफाई करते समय इन्हें किसी कपड़े में रखकर किसी स्वच्छ स्थान पर रखना चाहिए।2. धूप, दीप, शंख और पुष्प- भगवत गीता के अनुसार, शंख, दीप, धूप, यंत्र, पुष्प, तुलसीदल, कपूर, चंदन, जपमाला आदि जैसी पूजापाठ की चीजों को जमीन पर नहीं रखना चाहिए। कहते हैं कि इन सभी चीजों का प्रयोग पूजा में किया जाता है, इसलिए इन्हें कभी जमीन पर सीधे नहीं रखना चाहिए।3. रत्न- शास्त्रों के अनुसार, मोती, हीरा और सोना जैसे बहुमूल्य रत्न को कभी सीधे जमीन पर नहीं रखना चाहिए। कहते हैं कि धातु का संबंध किसी न किसी ग्रह से होता है। ऐसे में इन्हें सीधे जमीन पर रखना अपशगुन माना जाता है। अगर आपके पास इनसे जुड़ा कोई भी गहना है तो उसे सीधे जमीन पर नहीं रखना चाहिए।4. सीप- कहते हैं कि सीप की उत्पत्ति समुद्र से होने के कारण इसका संबंध लक्ष्मी जी से माना जाता है। इस कारण इसे सीधे जमीन पर नहीं रखना चाहिए। मां लक्ष्मी की पूजा में सीप और कौड़ी का विशेष महत्व होता है। इसलिए इन्हें जमीन पर नहीं रखना चाहिए।
- ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, ग्रहों की चाल का प्रभाव प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हमारे जीवन पर पड़ता है। यह प्रभाव ग्रहों की स्थिति के अनुसार, शुभ-अशुभ दोनों रूप में पड़ सकता है। फरवरी माह में तीन ग्रह अपनी राशि बदल रहे हैं। इन तीनों ग्रहों का प्रभाव आपके जीवन पर पड़ सकता है। ज्योतिष गणना के अनुसार फरवरी माह में सूर्य, शुक्र और मंगल ग्रह का राशि परिवर्तन होने जा रहा है।सूर्य का कुंभ राशि में गोचरइस महीने 12 फरवरी को सूर्य देव मकर राशि से निकलकर कुंभ राशि में प्रवेश करेंगे और 14 मार्च 2021 तक इस राशि में स्थित रहेंगे। ज्योतिष शास्त्र में सूर्य ग्रह को सभी ग्रहों का प्रधान माना जाता है। यह आत्मा, पिता, यश, मान सम्मान और शीर्ष पद का कारक है। सूर्य देव कुंभ राशि के जातकों को मान-सम्मान के साथ धन लाभ भी करा सकते हैं। सूर्य ग्रह के गोचर से इस राशि के जातकों का आत्मविश्वास बढ़ेगा और सरकारी कामकाज में सफलता मिलेगी। इस अवधि में आपके रूके हुए कार्य पूर्ण होंगे। लेकिन आपको अपने क्रोध पर नियंत्रण रखना होगा।शुक्र देव करेंगे कुंभ राशि में प्रवेशज्योतिष गणना के अनुसार, शुक्र ग्रह 21 फरवरी 2021 को मकर राशि से कुम्भ राशि में प्रवेश करेंगे और 17 मार्च 2021 तक यहां विराजमान होंगे। ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह कला, सौंदर्यता, धन एवं समस्त प्रकार के भौतिक सुखों का कारक है। शुक्र का यह गोचर कुंभ राशि वालों के लिए शुभ फलकारी साबित हो सकता है। इस अवधि में आपको यह गोचर कई मामलों में शुभ फल प्रदान कर सकता है। इस दौरान धन के मामले में अच्छे अवसर प्राप्त हो सकते हैं। साथ ही जॉब और करियर के लिए भी यह गोचर अच्छा फल दे सकता है।वृष राशि में आएंगे मंगलफरवरी का माह मंगल ग्रह भी राशि परिवर्तन करेंगे। इस महीने की 22 तारीख को मंगल देव मेष राशि से वृष राशि में आएंगे। ज्योतिष शास्त्र में मंगल ग्रह को ग्रहों का सेनापति माना गया है। यह क्रोध, ऊर्जा, सैन्य शक्ति, युद्ध एवं रक्त वर्ण का कारक माना जाता है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार, वृष राशि में मंगल का यह गोचर कुछ मामलों में शुभ फल प्रदान कर सकता है तो कुछ मामलों में अशुभ फलकारी साबित हो सकता है। गोचर के कारण इस राशि के जातकों के साहस में वृद्धि होगी। जॉब और करियर के क्षेत्र में मंगल का प्रभाव अनुकूल होगा। धन लाभ भी प्राप्त होगा। भूमि संबंधी चीजों से लाभ हो सकता है। परंतु वैवाहिक जीवन में थोड़ी परेशानियां आ सकती हैं। अपने क्रोध पर नियंत्रण रखें और जल्दबाजी करने से बचें।