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- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 118
(जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा स्वरचित भक्ति-शतक ग्रन्थ के एक दोहे की व्याख्या का एक अंश....)
..भक्ति में अनन्यता पर भी प्रमुख ध्यान देना है। केवल श्रीकृष्ण एवं उनके नाम, रूप, गुण, लीला, धाम तथा गुरु में ही मन का लगाव रहे। अन्य देव, दानव, मानव या मायिक पदार्थों में मन का लगाव न हो। इसका तात्पर्य यह न समझ लो कि संसार से भागना है। वास्तव में संसार का सेवन करते समय उसमें सुख नहीं मानना है। श्रीकृष्ण का प्रसाद मानकर खाना पीना एवं व्यवहार करना है।
उपर्युक्त समस्त ज्ञान सदा साथ रखकर सावधान होकर साधना भक्ति करने पर शीघ्र ही मन अपने स्वामी से मिलने को अत्यन्त व्याकुल हो उठेगा। बस वही व्याकुलता ही भक्ति का वास्तविक स्वरूप है। यथा चैतन्य ने कहा -
युगायितं निमेषेण चक्षुषा प्रावृषायितम....।
अर्थात उनसे मिले बिना रहा न जाय। एक क्षण ही युग लगे, सारा संसार शून्य सा लगे।
एक बात और ध्यान में रखना है कि साधनाभक्ति करते करते जब अश्रुपात आदि भाव प्रकट होने लगे तो लोकरंजन का रोग न लगने पाये। अन्यथा लोगों से सम्मान पाने की लालच में भक्तिभाव से ही हाथ धोना पड़ जायेगा। आपको तो अपमान का शौक बढ़ाना होगा। गौरांग महाप्रभु ने कहा है -
तृणादपि सुनीचेन......।
अर्थात साधक अपने आपको तृण से भी निम्न समझे। वृक्ष से भी अधिक सहनशील बने। सबको मान दे किन्तु स्वयं मान को विष माने। सच तो यह है कि जब तक साक्षात्कार या दिव्य प्रेम न मिल जाय, तब तक सभी नास्तिक या आस्तिक समान ही हैं क्योंकि अभी तो माया के ही दास हैं। फिर अहंकार क्यों?
उपर्युक्त तत्वज्ञान सदा काम में लाना चाहिये। प्राय: साधक कुछ निर्धारित साधना काल में ही तत्वज्ञान साथ रखते हैं। यह समीचीन नहीं है। क्षण-क्षण अपने मन की जाँच करते रहना है। नामापराध से प्रमुख रूप से बचना है। यदि मन को सदा अपने शरण्य में ही लगाने का अभ्यास किया जाय, तभी गड़बड़ी से बचा जा सकता है। अन्यथा मन पुराने स्थान पर पहुँच जायेगा। साधना भक्ति के पश्चात भाव-भक्ति का स्वयं उदय होता है। इन दोनों की यह पहिचान है कि साधना भक्ति में मन को संसार से हटाकर भगवान में लगाने का अभ्यास करना होता है। जबकि भावभक्ति में स्वयं मन भगवान में लगने लगता है। संसार के दर्शनादि से वितृष्णा होने लगती है। अर्थात पहले मन लगाना, पश्चात मन लगना।
जैसे संसार में कोई भी व्यक्ति जन्मजात शराबी नहीं होता। पहले बेमनी के बार-बार पीता है। फिर धीरे धीरे शराब उसे दास बना लेती है। वह शराबी समस्त लोक एवं परलोक पर लात मार देता है। जब जड़ शराब के नशे का यह प्रत्यक्ष हाल है तो हम भी जब भक्ति करते करते दिव्य मस्ती का अनुभव करने लगेंगे तब हम भी भुक्ति मुक्ति बैकुण्ठ को लात मार देंगे। एवं युगल सुख के हेतु युगल सेवा की ही कामना करेंगे।
रुपध्यान करते समय मन अपने पूर्व-प्रिय पात्रों के पास जायेगा। उस समय आप अशान्त न हों। मन जहाँ भी जाय, जाने दीजिये। बस उसी जगह उसी वस्तु में अपने शरण्य को खड़ा कर दीजिये। जैसे स्त्री की आँख के सौन्दर्य में मन गया तो उसी आँख में श्यामसुन्दर को खड़ा कर दो। बस कुछ दिन में मन थक जायेगा। सर्वत्र सर्वदा अपने श्याम के ही ध्यान का अभ्यास करना है।
(प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
00 सन्दर्भ ::: अध्यात्म संदेश पत्रिका, मार्च 1997 अंक00 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 117
(जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा भक्तिधाम मनगढ़ में 15 अक्टूबर सन 1966 को दिये गये प्रवचन का एक अंश...)
..माया के अधीन जितने भी जीव हैं उनमें सब दोष हैं, क्योंकि सब दोषों की जननी माया है। जिस प्रकार एक बीज में अंकुर भी रहता है और डाल भी रहती है, पत्ते और फल भी रहते हैं। किन्तु सब सूक्ष्म रुप में रहने के कारण दिखाई नहीं देते। जब कोई बीज खेत में डाला जाता है तो सारी चीजें समय पर मिल जाती हैं। इसी प्रकार से इस मायारूपी बीज में उसकी शाखायें आदि काम क्रोधादि सूक्ष्म रूप से सब विद्यमान रहते हैं।
जब भगवत्प्राप्ति पर माया समाप्त होती है तब ही ये सब के सब दोष इकट्ठे समाप्त होते हैं। एक एक नहीं। कोई कहे कि एक चला जायेगा, दूसरा वहीं रहेगा। यह नहीं हो सकता है। एक कभी नहीं जायेगा। जब ईश्वर भक्ति करते हैं तब भी यह दोष रहते हैं लेकिन लोगों को आश्चर्य होता है जब किसी साधक का पतन होता है। भगवत्प्राप्ति के एक सेकंड पहले तक भी, इतनी ऊँची अवस्था पर पहुँचने पर भी, महापुरुषत्व के पास पहुँचने पर भी, वह एक क्षण में राक्षस तक बन सकता है। इसके लिये इतना बड़ा प्रकरण अजामिल का है। अजामिल के लिये भागवत में लिखा है - सत्यवादी, जितेन्द्रिय, संयमात्मा। सभी गुण उसके पास थे जो महापुरुष में होते हैं। अर्थात महापुरुष के पास की क्लास में वह पहुँच चुका था। मन पर उसका पूर्ण कंट्रोल था। जिस क्षण में मन से कहा गुस्सा करो, गुस्सा कर दिया। जिस क्षण में कहा हँस दो, हँस दिया। उसका अन्तःकरण उसका सर्वेन्ट बनकर रहता था।
वह जब कोई कामना बनाना चाहता है तभी बन सकती है, वह कामना के अधीन नहीं रहता। किसी कामना को बनाकर जिस क्षण में चाहे कामना से अलग हो जाय। इतनी शक्ति जिसके पास हो वह जितेन्द्रिय कहलाता है। जो अभी मन के अण्डर में है, वह अभी साधक ही है। ऐसी स्थिति में पहुँचने पर भी अजामिल गिर गया और एक क्षण में गिरा, एक मिनट उसको नहीं लगा। स्त्री-पुरुष के मिलन का एक दृश्य देखा और उसके देखते ही एक क्षण में उसका इतना बड़ा पतन हुआ कि उसको पापियों का शिरोमणि कहा गया लेकिन आप लोगों को छोटे मोटे साधकों के गिरने में आश्चर्य हो जाता है। अरे इसका क्या आश्चर्य है? आश्चर्य तो इसका है कि कोई जीव थोड़ा ऊँचा किस प्रकार से उठ गया, एक आँसू श्यामसुन्दर के लिये कैसे निकल गया? अनंतकाल से संसार को अपना मानने वाला, संत या भगवान से प्यार कैसे करने लगा?
उस पर आप आश्चर्य नहीं करते, उसे तो नेचुरल समझते हैं। (टॉर्च हाथ से उठाकर) यह टॉर्च पृथ्वी की बनी हुई, इसलिये पृथ्वी की ओर जाने में इसको कोई परिश्रम थोड़े ही करना है। केवल इसको छोड़ दीजिये। चली गई। मन ने जरा लापरवाही की कि पतन हुआ। पतन करने के लिये कुछ करना नहीं पड़ता। जरा संत और भगवान के वाक्यों को भुला लीजिये। संत और भगवान को खोपड़ी से निकाल दीजिये, बस पतन हो जायेगा। उसके लिये कोई साधन मनन नहीं करना पड़ेगा। वह तो नीचे की ओर स्वतः ही भागता है, संसार की ओर भागने की तो उसकी नेचुरल प्रवृत्ति है, सजातीय धर्म है (मन भी माया का बना है, अतः वह माया के सजातीय है)। इसलिये यह आश्चर्य कभी नहीं होना चाहिये कि अमुक साधक का पतन कैसे हो गया? अपने आप को सँभालने का प्रयत्न करते रहना चाहिये। अपनी-अपनी फिक्र करो, दूसरे के बारे में न सोचो, न बोलो, न देखो, न गन्दी भावनायें करो। नहीं तो सारी गन्दगी तुम्हारे अन्दर आ जायेगी, तुम्हारे अन्तःकरण में भर जायेगी और थोड़ा बहुत शुद्ध हुआ अन्तःकरण पुनः खत्म हो जायेगा। यह भयंकर कुसंग है।
(प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, जुलाई 2001 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 116
श्रीराधारानी समस्त ब्रज-महारसिकों की प्राणाधार तथा स्वामिनी हैं। इन महारसिकों ने अपने साहित्यों में अनंतानंत उपमायें देकर श्रीकिशोरी जी का गुणगान किया है। रसिकवर जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने भी अपनी 'प्रेम-रस-मदिरा' पदग्रन्थ में रास-रासेश्वरी श्रीराधारानी जी की श्रृंगार-माधुरी का अनुपमेय वर्णन किया है। प्रस्तुत है उन्हीं पदों में से एक पद, जिनमें रसिकन प्राणाधीश्वरी श्रीराधारानी के श्रृंगार का सरस वर्णन हुआ है ::::::
'प्रेम-रस-मदिरा' ग्रन्थश्रीराधा-माधुरी, पद संख्या 33
रँगीली राधा रसिकन प्रान।सरस किशोरी की रसबोरी, भोरी मृदु मुसकान।सुबरन बरन गौर तनु सुबरन, नील बरन परिधान।कनकन मुकुट लटनि की लटकनि, भृकुटिन कुटिल कमान।कनकन कंकन कनकन किंकिनि, कनकन कुंडल कान।लखि लाजत श्रृंगार लाड़लिहिं, कहँ लौं करिय बखान।होत 'कृपालु' निछावर जापर, सुंदर श्याम सुजान।।
भावार्थ ::: रंगीली राधा रसिकों को प्राण के समान प्रिय हैं। रसमयी किशोरी जी की प्रेम रस से सराबोर भोली सी मुस्कान अत्यन्त ही मधुर है। किशोरी जी की देह का रंग सुवर्ण के रंग के समान अत्यन्त सुन्दर है। वे नीले रंग की साड़ी पहने हुये हैं। सुवर्ण के मुकुट, घुँघराले बालों की लटक एवं धनुष के समान टेढ़ी भौंहें नितांत कमनीय हैं। हाथ में सुवर्ण के कंकण, कमर में सुवर्ण की किंकिनि एवं कानों में सुवर्ण के कुंडल मन को बरबस लुभा रहे हैं। कहाँ तक कहें किशोरी जी की श्रृंगार माधुरी को देखकर स्वयं श्रृंगार भी लज्जित हो रहा है। 'श्री कृपालु जी' कहते हैं कि सबसे बड़ी बात तो यह है कि त्रिभुवन मोहन मदन मोहन भी स्वयं किशोरी जी के हाथों बिना दाम के बिके हुये हैं।
00 सन्दर्भ ::: प्रेम-रस-मदिरा ग्रन्थ, श्रीराधा-माधुरी, पद 3300 रचनाकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज00 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
भाई दूज का त्योहार देशभर में 16 नवंबर को मनाया जाएगा। भाई दूज हर साल कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन बहनें व्रत, पूजा और कथा आदि करके भाई की लंबी आयु और समृद्धि की कामना करते हुए माथे पर तिलक लगाती हैं। इसके बदले भाई उनकी रक्षा का संकल्प लेते हुए तोहफा देता है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, भाई दूज के दिन शुभ मुहूर्त में ही बहनों को भाई के माथे पर टीका लगाना चाहिए। मान्यता है कि भाई दूज के दिन पूजा करने के साथ ही व्रत कथा भी जरूर सुननी और पढऩी चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
ज्योतिषाचार्यों ने बताया कि भाईदूज का पर्व कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। किवदंती है कि भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो। अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालता रहा। कार्तिक शुक्ला का दिन आया। यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया।
यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया।
प्रभु कृष्ण और सुभद्रा से जुड़ी त्योहार की रोचक कथा
यमुना ने कहा कि भद्र! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो। मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करें, उसे तुम्हारा भय न रहे। यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक की राह की। इसी दिन से पर्व की परम्परा बनी। ऐसी मान्यता है कि जो आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता। इसीलिए भैयादूज को यमराज तथा यमुना का पूजन किया जाता है।
- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 115
आज 'श्री गोवर्धन-पूजा' है। आप सभी सुधि पाठक-जनों को इस महापर्व की बारम्बार शुभकामनायें। समस्त ब्रज-महारसिकों ने अपनी वाणी में, अपने ग्रन्थों में गिरिराज पर्वत अर्थात श्री गोवर्धन की अगनित बार वन्दना की है। रसिक शिरोमणि जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी ने भी अपनी 'प्रेम रस मदिरा' आदि ग्रन्थों में गिरिराज जी की स्तुति की है। आज 'श्री गोवर्धन-पूजा' के अवसर पर आइये उन्हीं के द्वारा रचित ग्रन्थ के माध्यम से हम सभी श्री गोवर्धन जी की मानसिक पूजा करते हुये उनके माहात्म्य के सम्बन्ध में कुछ पठन करें :::::::
आओ गिरिराज (गोवर्धन) की वंदना करें..(जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी विरचित 'प्रेम रस मदिरा' ग्रंथ से)
00 जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी 'गोवर्धन पर्वत' के माहात्म्य में कहते हैं :
..प्रेम-रस के रसिकों का जीवनधन-स्वरुप गोवर्धनधाम बार-बार धन्य है, जिसने सच्चिदानंद-ब्रम्ह-श्रीकृष्ण को भी अपने वश में कर लिया है।
..जिन अनंतकोटि ब्रम्हांडनायक पूर्णतम-पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण के आश्रित अगणित ब्रम्हा, विष्णु, शंकर रहते हैं, उन श्रीकृष्ण ने भी (जब इंद्र ने अभिमानवश ब्रज को डुबाने के लिए एक सप्ताह तक अविच्छिन्न वर्षा की थी) इसी गोवर्धन का आश्रय लिया था। जिन त्रिपाद-विभूषित भगवान के चरणों को महालक्ष्मी स्वयं अपने हाथों से पूजती हैं, उन्हीं पूर्णतम पुरुषोत्तम ब्रम्ह श्रीकृष्ण ने अपने समस्त ब्रजवासियों के साथ इस गोवर्धन की पूजा की थी।
..वेद ब्रम्ह-श्रीकृष्ण की उपासना करते हैं एवं ब्रम्ह-श्रीकृष्ण लीला प्रेम माधुरी में श्रीवृषभानुनन्दिनी की उपासना करते हैं। यद्यपि सिद्धांत से तो इन दोनों के दो शरीर होते हुए भी प्राण एक ही है। यह दोनों राधा-कृष्ण इस गोवर्धन की सुन्दर लताकुंजों में निरंतर दिव्य रास-विहार किया करते हैं, जिसे देखकर महालक्ष्मी भी इस रस का पान करने के लिए ललचाती हैं।
..संसार में कोई मुक्ति के लिए वन में जाकर अष्टांग योग की साधना करता है एवं कोई काशी में देह त्याग करता है। इन दोनों ही अल्पज्ञों को देखकर मुझे हँसी आती है। ये लोग मूर्तिमान गोवर्धन नाग को छोड़कर चारों ओर नागों के रहने के घर (बाँबी) के लिए भटकते फिरते हैं।
..जिस गोवर्धनधाम में चारों वेद भी झाड़ू लगाते हैं एवं जहाँ भगवान शंकर भी गोपी शरीर धारण करके दिव्य रास के लिए दौड़े आते हैं एवं जिस गोवर्धन धाम में मुक्ति भी अपनी मुक्ति के लिए दासी बनकर सेवा करती है।
..जो गोवर्धन-धाम मरकत मणियों से जटित है एवं परम प्रकाश करने वाला है तथा जो करोड़ों चंद्रमा की रुप-माधुरी को लज्जित करता है एवं जिसके माधुर्य को देखकर बैकुंठाधीश महाविष्णु भी अपने लोक के सुख को फीका समझकर संकुचित होते हैं। वह गोवर्धन-धाम ब्रजवासियों का आभूषण एवं रसिकों को आनंद देने वाला तथा सुरपति इंद्र के भी मद (अहंकार) को चूर्ण कर देने वाला है।
..जिस गोवर्धन-धाम की सुंदर लता-कुंजों की सुन्दरता को देखकर ब्रम्ह की कारीगरी भी लज्जित होती है एवं जिस गोवर्धन-धाम के मध्य मानसी गंगा तथा राधाकुण्ड, कृष्णकुण्ड आदि सुशोभित हो रहे हैं। जिनके माहात्म्य को वर्णन करने में वाणी अथवा सरस्वती भी लज्जित होती है।
..जिस रस को वेदों ने अप्राप्य बताया है, वही रस इस गोवर्धन की गली-गली में श्रीराधाकृष्ण द्वारा बहाया गया है, किन्तु रसिकों की कृपा के बिना उस रस को आज तक कोई नहीं पा सका। हम तो उस दिव्य चिन्मय गोवर्धन-धाम की शरणागति के सहारे सदा ही निर्भय रहते हैं..
(ऊपर की समस्त वंदना जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'धन-धन रसिकन-धन गोवर्धन' पद का हिन्दी भावार्थ है, यह पद उनकी 'प्रेम रस मदिरा' ग्रंथ की रसिया माधुरी में वर्णित (पद संख्या 9) है।)
जय हो गोवर्धन धाम की !! जय गिरिराज !! जय गिरिधर गोपाल की !!!
शुभकामनाओं सहित...
00 सन्दर्भ ::: प्रेम रस मदिरा ग्रन्थ, रसिया माधुरी, पद संख्या - 900 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - वास्तुशास्त्र में घरों में पेड़- पौधे लगाने के अपने नियम- कायदे हैं। वहीं ज्योतिषशास्त्र में जातक को ग्रहों के हिसाब से पेड़ लगाने की सलाह दी जाती है। ज्योतिष शास्त्र में वृक्षों को देवताओं और ग्रहों के निमित्त लगाकर उनसे शुभ लाभ प्राप्त किये जाने का उल्लेख मिलता है।पीपल के वृक्ष में सभी देवताओं का तो आंवला और तुलसी में विष्णु का, बेल और बरगद में भगवान शिव का जबकि कमल में महालक्ष्मी का वास माना गया है। जामुन का वृक्ष धन दिलाता है तो पाकड़ ज्ञान और सुयोग्य पत्नी दिलाने में मदद करता है। बकुल को पापनाशक, तेंदु को कुलवृद्धि, अनार को विवाह कराने में सहायक और अशोक को शोक मिटाने वाला बताया गया है। श्रद्धा भाव से लगाया गया वृक्ष कई मनोकामनाओं की पूर्ति करता है। कन्या के विवाह में देरी हो रही हो तो कदली वृक्ष की सूखी पत्तियों से बने आसान पर बैठकर कात्यायनी देवी की पूजा करने चाहिए। शनि ग्रह के अशुभ फल को दूर करने हेतु शमी वृक्ष के पूजन से लाभ मिलता है। कदंब व आंवला वृक्ष के नीचे बैठकर यज्ञ करने से लक्ष्मी जी कृपा मिलती है।वहीं अशुभ प्रभाव देने वाले ग्रहों की शांति और प्रसन्नता के लिए ज्योतिष में रत्नों के स्थान पर जड़ी बूटी धारण करने की सलाह दी जाती है जो वृक्षों से ही प्राप्त होती है। सूर्य के लिए बेलपत्र, चंद्र के लिए खजूर या खिरनी, मंगल के लिए अनंतमूल, बुध के लिए विधारा, गुरु के लिए भृंगराज, शुक्र के लिए अश्वगंध, शनि के लिए शमी, राहु के लिए श्वेत चंदन और केतु के लिए असगंध की जड़ को शुभ दिन और नक्षत्र में लाकर विधि-विधान से धारण कर सकते हैं।ग्रहों के पेड़-सूर्य- मदार, तेज फल का वृक्ष। इनसे बौद्धिक प्रगति, स्मृति शक्ति का विकास होता है।चंद्र- दूध वाले पौधे, वृक्ष, पलाश। इनसे मानसिक रोगों से मुक्ति मिलती है।मंगल- नीम और खैर का वृक्ष। इनसे रक्त विकार तथा चर्म रोग ठीक होते हैं। प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है।बुध- चौड़े पत्ते वाले पेड़ पौधे और लटजीरा और अपामार्ग या आंधी झाड़ा का पौधा। इसके स्नान से वायव्य बाधा का शमन व मानसिक संतुलन बना रहता है।गुरु- पीपल का वृक्ष। इससे पितृदोष शमन, ज्ञान वृद्धि तथा भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है।शुक्र- बेल जैसे मनीप्लांट, अमरबेल और गूलर। गूलर पूजना से पूर्व जन्म के दोषों का नाश होता है।शनि- कीकर, आम, खजूर और शमी। शमी पूजन से धन, बुद्धि, कार्य में प्रगति, मनोवांछित फल की प्राप्ति तथा बाधाएं दूर होती हैं।राहु- चंदन, दूर्बा, कैक्टस, बबूल का पेड़ और कांटेदार झाडिय़ां। चंदन की पूजन से राहु पीड़ा से मुक्ति तथा सर्प दंश भय समाप्त होता है।केतु- कुशा, अश्वगंधा, इमली का वृक्ष, तिल के पौधे या केले का वृक्ष। अश्वगंधा के होने से मानसिक विकलता दूर होती है।जड़- सूर्य बेलमूल की जड़ में, चंद्र खिरनी की जड़ में, मंगल अनंतमूल की जड़ में, बुध विधारा मूल की जड़ में, गुरु हल्दी की गांठ वह जड़ में, शुक्र अरंडमूल की जड़ में, शनि धतूरे की जड़ में, राहु सफेद चंदन की जड़ में, केतु अश्वगंधा की जड़ में निवास करता है।नोट- सूर्य के साथ शनि, राहु और केतु के, चंद्र के साथ शनि, राहु के, मंगल के साथ शुक्र व शनि के, बुध के साथ केतु और गुरु के, गुरु के साथ केतु, शुक्र और बुध के, शुक्र के साथ केतु और बुध के, शनि के साथ चंद्र, मंगल और सूर्य के, राहु के साथ केतु, सूर्य व चंद्र के, केतु के साथ राहु, गुरु, चंद्र, मंगल, सूर्य के पेड़ पौधे ना लगाएं वर्ना होगा नुकसान।
- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 114
छत्तीसगढ़ आज डॉट कॉम के सभी सुधि पाठक जनों को दीपपर्व 'दीपावली' की हार्दिक शुभकामनायें। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम अपने अनुज श्रीलक्ष्मण जी तथा अपनी भार्या माता सीता जी के साथ अयोध्या वापस आते हैं, इस परम पुनीत मंगलमय क्षण की भी आप सभी को अनंत अनंत बधाई। आज के अंक में जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'दीपावली' के संबंध में दिये गये व्याख्यान का कुछ अंश प्रकाशित किया गया है। आशा है आप सभी इससे कुछ प्रकाश प्राप्त कर अपने जीवन में अध्यात्म का दीपक प्रज्जवलित करेंगे :::::::
00 'दीपावली' पर जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा रचे गये दोहे;
आज तो है दीपावली गोविंद राधे।उर में प्रकाश करु तम को मिटा दे।।
आओ भरत शत्रुघन लछिमन राम।लाओ जनकनंदनिहुँ सँग महँ राम।
00 'दीपावली' पर्व पर जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उपदेश :
अंश (1) 'दीपावली' शब्द का अर्थ है तेज पुंज, प्रकाश पुंज। तो संसार में भी आप लोग अनेक प्रकार के समूह उस दिन प्रकाशित करते हैं। अपनी अपनी रुचि के अनुसार लाभ उठाते हैं कुछ लोग मैटीरियल, कुछ लोग स्प्रिचुअल। किन्तु कुल मिलाकर साधारण से साधारण व्यक्ति भी दीपावली से यही अर्थ लगाता है कि अँधेरे में प्रकाश करना।
अंश (2) सुप्रीम पावर पूर्णतम पुरुषोत्तम ब्रम्ह श्रीकृष्ण ही वास्तविक नित्य अनंत मात्रा के प्रकाश हैं, शेष सब अन्धकार का स्वरुप है. जड़ स्वरुप हो, चाहे चेतन हो, चाहे कुछ भी हो।
अंश (3) वेद कहता है वह (भगवान) प्रकाश भी है, प्रकाशक भी है। मान लीजिये आपके सामने बल्व लगे हैं और आपसे पूछा जाय ये क्या है? आपका यही उत्तर होगा प्रकाश। लेकिन ये प्रकाशक भी है। ये इन सब वस्तुओं को, चेतन को, जड़ को सबको प्रकाशित कर रहा है। तो भगवान प्रकाश भी है और प्रकाशक भी है। भगवान से चेतन या जड़ सब प्रकाशित हो रहे हैं।
जगत प्रकाश्य प्रकाशक रामू। मायाधीश ज्ञान गुन धामू।।
चेतन जीव यह भी प्रकाश है, छोटा प्रकाश सही फिर भी इस पर माया का अंधकार है। ये अज्ञान का अंधकार कैसे आया और कैसे जायेगा। इस अंधकार को भगाने के लिये ही दीपावली मनाई जानी चाहिये।
अब लोग नहीं समझते इतनी गंभीरता को तो जैसे मैटीरियल लाइट करके अपना मनोविनोद कर लेते हैं। वैसे ही संसारी वस्तुओं को पाकर के लोग थोड़ी देर के लिए सात्विक सुख का अनुभव कर लेते हैं। लेकिन वास्तविक बात यह नहीं है। वास्तविक बात यह है कि जीव पर माया का अंधकार है उसमें भगवान् का प्रकाश लाना है. यह दीपावली का वास्तविक रहस्य है।
(प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, अक्टूबर 2008 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
गोवर्धन पूजा का त्योहार 15 नवंबर को मनाया जाएगा। इस दिन गोवर्धन पर्वत और गायों और बैलों का श्रृंगार करके उनकी पूजा की जाती है। साल 2020 में गोवर्धन पूजा पर कई शुभ योग बन रहे है। जिसमें गोवर्धन पूजा करके आप भगवान श्री कृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त कर सकते हैं तो आइए जानते हैं गोवर्धन पूजा पर बनने वाले शुभ संयोग। गोवर्धन पूजा के शुभ संयोग गोवर्धन पूजा के दिन गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाकर पूजा की जाती है। इस दिन गोवर्धन पूजा करने से भगवान श्री कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त होता है। प्रत्येक साल यह त्योहार दिवाली के अगले दिन मनाया जाता है। लेकिन इस बार गोवर्धन पूजा पर बहुत ही ज्यादा शुभ योग बन रहे हैं। जिसमें पूजा करने से पूजा का कई गुना लाभ प्राप्त हो सकता है। यदि गोवर्धन पूजा के दिन सबसे ज्यादा शुभ मुहूर्त की बात करें तो यह दोपहर 3 बजकर 38 मिनट से शाम 5 बजकर 58 मिनट इस मुहूर्त में पूजा करने से आपको कई गुना लाभ की प्राप्ति हो सकती है। -
--दीपावली के दिन क्या करें, क्या न करें, पढ़ें....
ब्रह्म पुराण के अनुसार दीपावली पर्व पर अर्धरात्रि के समय महालक्ष्मी सद् गृहस्थ के घर में विचरण करती हैं। इस दिन घर-दुकान व संस्थानों को साफ सुथरा कर सजाया संवारा जाता है। मान्यता है कि माता लक्ष्मी स्वच्छता को पसंद करती हैं। स्वच्छतापूर्ण वातावरण में दीपावली मनाने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होकर स्थाई रूप से सद् गृहस्थ के घर निवास करती हैं।
ज्योतिषाचार्यों ने अनुसार दीपावली पर धनतेरस, महालक्ष्मी पूजन, गोवर्धन पूजा और भाई दूज इन पर्वों का मिलन एक साथ होता है। रोशनी के इस महापर्व पर श्रद्धालुओं को नशा व जुए से दूर रहना चाहिए। यह अंधविश्वास व कुप्रथा दीपावली के चलन में आ गई है कि दीपावली वाले दिन जुआ खेलना चाहिए। जबकि धर्म शास्त्रों में ऐसा कोई उल्लेख नहीं। बल्कि जुआ खेलने से गृहक्लेश व दरिद्रता की स्थित बनती है।
मां लक्ष्मी को यह पसंद, यह नापसंद
ज्योतिषाचार्यों ने अनुसार एक बार रुकमणी देवी ने लक्ष्मी जी से पूछा कि, हे त्रिलोक नाथ भगवान नारायण की प्रियतम तुम इस जगत में किन प्राणियों पर कृपा करके उनके यहां निवास करती हो? कहां रहती हो? क्या सेवन करती हो? यह सब बातें मुझे यथार्थ रूप में बताओ। रुकमणी जी के इस प्रकार पूछने पर चंद्रमुखी मां लक्ष्मी ने प्रसन्न होकर अद्भुत वचन देते हुए कहा...रुकमणी जी मैं ऐसे पुरुष में निवास करती हूं जो निर्भय हो, कार्यकुशल, कर्तव्यनिष्ठ, कर्म पारायण, क्रोध रहित तथा बड़े-बुजुर्गों का सम्मान करने वाला हो। सद्गुणों से युक्त हो, गुरुजनों की सेवा में तत्पर, मन को वश में रखने वाला, क्षमाशील, देवी-देवता का पूजन करने वाला हो साथ ही अपने घर की स्त्रियों तथा भार्या का सम्मान करने वाला हो। ऐसे पुरुषों के अंदर मैं सदा निवास करती हूं। वहीं जो स्त्रियां पतिव्रता, करुणामय, घर को स्वच्छ व साफ रखने वाली, पति व घर के बड़े-बुजुर्गों का आदर करने वाली व लज्जाशील रहकर घर का मान बढ़ाती हैं। उन स्त्रियों के साथ में सदा निवास करती हूं। जो स्त्रियां पाप करने के लिए तत्पर होती हैं, जिनकी वाणी अपवित्र होती हैं। ऐसी नारी से मैं सदा दूर रहती हूं।
--दीपावली के दिन क्या करें जिससे मां लक्ष्मी प्रसन्न हों
दीपावली वाले दिन प्रात: स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें और संकल्प लेकर पूजन होने तक उपवास रखें।
घर को साफ-सुथरा कर घर के दरवाजे पर आम, अशोक व केले के पत्तों से तोरण लगाएं।
स्वादिष्ट भोजन के साथ फल पापड़ एवं मां भगवती को उनके प्रिय भोज खीर का भोग लगाएं।
पूरे दिन मन को शांत रखकर पूजा करें। किसी से झगड़ा ना करें, बुजुर्गों का आशीर्वाद लें, पत्नी का सम्मान करें।
उपहार भेंट करते समय अच्छा भाव रखें।
रात्रि जागरण करें।
घर के दरवाजे पर कोई भिक्षुक आए तो उसे निराश ना करें।
यथासंभव किन्नरों को उपहार के साथ कुछ दक्षिणा अवश्य दें।
घर के मुख्य दरवाजे पर सिंदूर से शुभ-लाभ, श्री, स्वस्तिक और ओम के शुभ चिन्ह बनाएं।
लक्ष्मी जी से पहले नारायण का पूजन करें, माता लक्ष्मी को सुहाग का सामान चढ़ाएं। साथ ही माता को प्रिय इत्र गुलाब का चढ़ावा दें।
पितरों की शांति के लिए 14 दीपक जौ के आटे के बनाकर पश्चिम दिशा में रखें।
दीपावली वाले दिन किसी जरूरतमंद को 9 किलो गेहूं का दान अवश्य करें।
दीपावली की खुशियां गरीबों के साथ बांटें। चाहें तो गरीब झुग्गी बस्तियों में असहाय लोगों को मिठाई के साथ वस्त्र व दक्षिणा अवश्य दें।
मां लक्ष्मी के प्रिय एरावत हाथी के लिए 3 गांठ का गन्ना पूजा में अवश्य रखें। ऐसा करने से जातकों को आर्थिक, बुद्धि व पुण्य का एक साथ लाभ होगा।
-दीपावली पर यह न करें, अन्यथा मां लक्ष्मी होंगी रुष्ठ...
नशा न करें।
जुआ न खेलें।
क्रोध न करें।
क्लेश न करें, आंसू ना निकालें।
झगड़ा न करें।
देर तक न सोए।
अपवित्र होकर रसोई न बनाएं।
प्रदोष काल में झाड़ू न लगाएं।
दीपावली पर यह रखें सावधानी...
दीपोत्सव की खुशी व उत्साह के बीच सावधानी भी रखें।
पटाखे न के बराबर जलाएं, बिना पटाखे जलाए भी दीवाली मनाई जा सकती है।
पटाखों के साथ खिलवाड़ ना करें, पटाखे जलाते वक्त उचित दूरी बनाकर रखें।
पटाखे चलाने के बाद हाथ साबुन से धोकर ही कुछ खाएं।
जो मिठाइयां शुद्धता व पवित्रता से बनी हो तथा ढकी हुई हों, वहीं खाएं।
भारतीय संस्कृत के अनुसार आदर्श व सादगीपूर्ण ढंग से दीपावली का त्योहार मनाएं।
पटाखे व दीपक से यदि दुर्घटनावश जल जाते हैं तो प्राथमिक स्तर पर तुरंत आलू का रस जले हुए स्थान पर लगाएं।
-काले कपड़े पहनकर पूजन न करें। -
देव शुक्र 17 नवंबर 2020 (मंगलवार) को दोपहर 12 बजकर 50 मिनट पर, कन्या से तुला राशि में गोचर करेंगे। देव शुक्र 11 दिसंबर 2020 (शुक्रवार) की सुबह 05 बजकर 04 मिनट तक इसी राशि में रहेंगे। ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह को कला, प्रेम, सौंदर्य और सांसारिक सुखों का कारक माना जाता है। शुक्र देव अपनी ही राशि तुला में विराजमान रहेंगे, इस वजह से यह गोचर काफी महत्वपूर्ण रहने वाला है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, शुक्र ग्रह स्वयं तुला राशि के स्वामी हैं, इस वजह से इस राशि वालों के लिए यह गोचर शुभ रहने वाले हैं।
जानिए तुला राशि के जातकों पर शुक्र के राशि परिवर्तन का क्या पड़ेगा असर-
शुक्र देव अष्टम भाव के स्वामी होने के साथ-साथ तुला राशि के स्वामी भी हैं। यानी शुक्र तुला राशि के प्रथम भाव के भी स्वामी हैं। इस गोचर के दौरान शुक्र तुला राशि के प्रथम भाव में मौजूद रहेंगे। इसलिए गोचर का समय काफी प्रभावशाली रहेगा। ज्योतिष शास्त्र में लग्न भाव को तनु भाव कहा जाता है। ऐसे में तुला राशि के जातकों को गोचर के दौरान शुभ फल की प्राप्ति हो सकती है।
गोचर के दौरान तुला राशि के जातकों को रोजी-रोजगार में तरक्की मिल सकती है। व्यापार में भी भाग्य का साथ मिलेगा और आमदनी के नए साधन बनेंगे। इस गोचर के दौरान बड़ा निवेश करना भी उत्तम रहेगा। इस गोचर के दौरान समाज में आपका मान-सम्मान बढ़ेगा और छवि को सबसे ज्यादा फायदा मिलेगा। लोग आपसे सलाह या मशवरा लेते नजर आएंगे।
यह गोचर उन जातकों के लिए भी शुभ है जो अपने रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिए सोच रहे हैं। वैवाहिक जातकों को इस गोचर के दौरान शादीशुदा जीवन में खुशियों की प्राप्ति होगी। हालांकि आपको ज्यादा सोचने से बचने होगा और स्वास्थ्य का खास ख्याल रखें। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, इस गोचर के दौरान शुभ फलों की प्राप्ति के साथ मेहनत जारी रखें।
उपाय- हर दिन सूर्योदय के दौरान ललिता सहस्रनाम का पाठ करें। -
जाने लक्ष्मी जी के पूजा के साथ अन्य देवी-देवताओं की पूजा किन दिशाओं में करना शुभ है...
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को दीपावली का त्योहार मनाया जाता है। पांच दिनों तक चलने वाला यह उत्सव धनतेरस से शुरू होकर भैयादूज पर खत्म होता है। सुख सौभाग्य की कामना से इस दिन धन-वैभव, ऐश्वर्य की देवी मा लक्ष्मी और रिद्धि-सिद्धि के प्रदाता श्री गणेश जी का पूजन अन्य देवी-देवताओं सहित किया जाता है। घर या कार्यस्थल पर धन की देवी मां लक्ष्मी का आशीर्वाद बना रहे,पूजा-पाठ का पूर्ण लाभ मिल सके इसके लिए आवश्यक है कि श्रद्धा भक्ति के साथ हम सब दीपावली पूजन सच्चे मन से करने साथ ही वास्तु नियमों को ध्यान में रखकर सही तरीके से भी पूजा-आराधना करें। आइए जानते हैं दीपावली पर लक्ष्मीजी की पूजा के साथ अन्य देवी-देवताओं की पूजा किन दिशाओं में करना शुभ होता है -
-दिशा से संबंधित देवी-देवता
उत्तर दिशा को वास्तु में धन की दिशा माना गया है इसलिए दीपावली पर यह जोन यक्ष साधना, लक्ष्मी पूजन और गणेश पूजन के लिए आदर्श स्थान है।
आरोग्य की उत्तर-उत्तर-पूर्व दिशा में भगवान धनवंतरि,अश्विनी कुमार एवं नदियों की आराधना करने से उत्तम स्वास्थ्य एवं सुख की प्राप्ति होती है।
देवी मां और हनुमानजी की पूजा दक्षिण दिशा में, उत्तर-पूर्व दिशा में शिव परिवार,राधा-कृष्ण और पूर्व दिशा में, श्री राम दरबार, भगवान विष्णु की आराधना एवं सूर्य उपासना करने से परिवार में सौभाग्य की वृद्धि होती है।
शिक्षा की दिशा पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम में विद्यादायिनी माँ सरस्वती की पूजा करने से ज्ञान में वृद्धि होती है।
पश्चिम दिशा में गुरु,महावीर स्वामी,भगवान बुद्ध की पूजा शुभ फल प्रदान करती है।
संबंधों और जुड़ाव की दिशा दक्षिण-पश्चिम में पूर्वजों की पूजा सुख-समृद्धि प्रदान करेगी।
---कैसी होनी चाहिए मां लक्ष्मी की प्रतिमा
लक्ष्मीजी का वह चित्र लाकर पूजा करें जिसमें वे उनके एक ओर श्रीगणेश और दूसरी ओर सरस्वती मां विराजमान हो तथा माता लक्ष्मी दोनों हाथों से धन बरसा रही हों, धन प्राप्ति के लिए इस तरह का चित्र लगाना बहुत शुभ होता है। यदि बैठी हुई देवी लक्ष्मी का चित्र ला रहे हैं तो लक्ष्मी मां का वह चित्र लेकर आएं, जिसमें लक्ष्मीजी लाल वस्त्र पहनकर कमल के आसन पर बैठी हुई हों। मां सरस्वती, मां लक्ष्मी और गणेशजी इनके दोनों तरफ हाथी अपनी सूंड को उठाए हुए हों। इस तरह के चित्र का पूजन करने से मां लक्ष्मी सदैव आपके घर में विराजमान रहेंगी। ध्यान रहे कि चित्र में माता लक्ष्मी के पैर दिखाई नहीं देते हों अन्यथा लक्ष्मी घर में लंबे समय तक नहीं टिकती। इसलिए कमल पर प्रसन्न मुद्रा में बैठी हुई लक्ष्मी को ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यदि चित्र में मां लक्ष्मी के साथ ऐरावत हाथी भी है, तो वह अद्भुत और शुभ फलों को प्रदान करेगा। भगवान विष्णु के साथ लक्ष्मी के चित्र हो तो आप उसकी पूजा भी कर सकते हैं। श्री हरि को आमंत्रित करके मां लक्ष्मी को घर में विराजित किया जाता है। भगवान विष्णु के साथ घर में पधारने वाली मां लक्ष्मी गरुड़ वाहन पर आती हैं, जिसे बहुत शुभ माना गया है।
धर्म ग्रंथों के अनुसार अकेली लक्ष्मी मां के चित्र का पूजन करने की अपेक्षा गणेश व सरस्वती के साथ उनका पूजन अति कल्याणकारी होता है। ध्यान रहे दीपावली पूजन में मिट्टी के लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां अथवा चित्र आदि छवियां नई हों। चांदी की मूर्तियों को साफ करके पुन: पूजा के काम में लिया जा सकता है। कभी भी खंडित और फटे हुए चित्रण की पूजा न करें।
- -जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 113
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के 'श्रीराधा कौन हैं?' विषय पर दिये गये प्रवचन का एक अंश नीचे यहां प्रस्तुत है :::::::
...श्रीकृष्ण आत्मा की आत्मा हैं,
कृष्णमेनमवेहि त्वमात्मानखिलात्मनाम्।जगद्धिताय सोप्यत्र देहीवाभाति मायया।।(भागवत 10.14.55)
सब आत्माओं की आत्मा श्रीकृष्ण हैं। तो जैसे आत्मा के सर्वेन्ट (दास) हैं ये शरीरेन्द्रीय मन बुद्धि, ऐसे आत्मा सर्वेन्ट है, दास है श्रीकृष्ण का। नहीं मानते इसलिये रो रहे हैं, चौरासी लाख में घूम रहे हैं। माया को मान लिया स्वामिनी। तो श्रीकृष्ण हमारे स्वामी और आत्मा उनकी दास।
ऐसे ही श्रीकृष्ण की आत्मा हैं राधा और श्रीकृष्ण उनके दास हैं। आत्मा राधा, उनके शरीर के समान श्रीकृष्ण और श्रीकृष्ण आत्मा, इस (हमारी) आत्मा के और ये आत्मा इस (हमारे) शरीर की आत्मा। यानी ये शरीर की आत्मा की आत्मा श्रीकृष्ण की आत्मा राधा। इसलिये श्रीकृष्ण राधा की आराधना करते हैं। इस महत्व को हमेशा बुद्धि में रखकर अगर हम 'राधा नाम' लें तो रोम रोम में इतनी बड़ी फीलिंग हो कि हम वो नाम ले रहे हैं जो भगवान श्रीकृष्ण लेते हैं। उसका मूल्य उतना अधिक हो जायेगा और प्यार उतना अधिक हो जायेगा। अभी तो कम है लेकिन है।
इतना तो 'कृपालु' ने कर दिया है आप लोगों को कि अगर आप बस में जा रहे हों और कोई बगल वाला बोले 'राधे', ऐं राधे बोला!! आप कहाँ रहते हैं? आप किसी महात्मा के संपर्क में हैं? हाँ, हाँ वो। अच्छा अच्छा। अब बड़ी ममता हो गई, केवल 'राधे' बोला। यानी आपको 'राधे' नाम से इतना प्यार तो हमने करा ही दिया कि एक सुनकर के बगल वाले से और आप उसकी ओर मुखातिब हो गये, आकृष्ट हो गये ये भला आदमी है, 'राधे' बोल रहा है। और अगर पूरी पूरी योग्यता और समझदारी के साथ (महात्म्य समझकर) 'राधा' नाम उच्चारण करें तो कितना प्यार बढ़ जाय? और कितनी जल्दी आप श्यामा श्याम के पास पहुँच जायँ। इसका अभ्यास करना चाहिये।
(प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
00 सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, जुलाई 2017 अंक00 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
हर वर्ष कार्तिक मास की प्रतिपदा तिथि के दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। इस वर्ष गोवर्धन पूजा 15 नवंबर को की जाएगी। इस दौरान गायों और गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाएगी। इस त्योहार को अन्नकूट पर्व के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन घरों और सार्वजनिक स्थान पर भी गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाई जाती है। गोवर्धन पर्वत के साथ गाय तथा ग्वाल-बालों की आकृति भी बनाई जाती है। वहीं पर कृष्ण जी को भी विराजमान करके पूजन किया जाता है। यह त्योहार ब्रजवासियों के लिए बहुत मायने रखता है। इस त्योहार को मनाने के पीछे द्वापर युग यानि कृष्ण जी के युग की कथा है।
जानते हैं गोवर्धन पर्व की पौराणिक कथा...
द्वापर युग में भगवान विष्णु ने कृष्ण रुप में अवतार लेकर अपनी लीलाओं से सभी के मन को प्रफुल्लित किया। एक समय इंद्रदेव को अभिमान हो गया, तब कृष्ण जी ने अपनी लीला दिखाई। एक बार ब्रज में हर तरफ धूम थी। लोग तरह-तरह के पकवान बना रहे हैं। उत्सुकता के साथ कृष्ण जी ने माता यशोदा और नंदबाबा से पूछा कि आज किस चीज की तैयारियां हो रही हैं। तब उन्होंने बताया कि पुत्र ये इंद्रदेव को धन्यवाद देने के लिए उनकी पूजा की तैयारियां की जा रही हैं। क्योंकि इंद्रदेव वर्षा करते है जिससे हमें जल प्राप्त होता है, हमारी गायों को चारा मिलता है, हमारी फसलों की सिंचाई होती है। तब कृष्ण जी ने कहा कि ये तो इंद्रदेव का कर्तव्य है। पूजा तो हमे गोवर्धन पर्वत की करना चाहिए। हमारी गाय वहीं पर चरती हैं। गोवर्धन पर्वत से फल, फूल और सब्जियां प्राप्त होती हैं।
कृष्ण जी की यह बात सभी को सही लगी और सभी ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा की। इस बात को इंद्रदेव ने अपना अपमान समझा। क्रोध के कारण वे मूसलाधार वर्षा करने लगे। हर तरफ त्राहि-त्राहि होने लगी। तब कृष्ण जी ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचाने के लिए 7 दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उंगली पर उठाए रखा। सभी गोप-गोपिकाएं, पशुओं ने गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण ली। इन्द्रदेव का अभिमान चूर हो गया। वे अपने इस कार्य पर बहुत लज्जित हुए और भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा-याचना की। इसी उपलक्ष्य में गोवर्धन या अन्नकूट का पर्व मनाया जाता है।
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मां लक्ष्मी की कृपा से हो सकते हैं मालामाल
देश में दीपावली का त्योहार बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस साल दीपावली 14 नवंबर (शनिवार) को है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार 11 नवंबर से 14 नवंबर तक सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है। ऐसे में धनतेरस और दीपावली के बीच बन रहे सर्वार्थ सिद्धि योग में खरीदारी करना शुभ होगा। दीपावली के दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाती है। इस दिन मां लक्ष्मी के सामने कुछ चीजों को रखना शुभ होता है। कहते हैं कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और भक्तों पर कृपा बरसाती हैं।
1. कमल का फूल
मां लक्ष्मी को कमल का फूल अति प्रिय है। मान्यता है कि उनकी पूजा के दौरान कमल का पुष्प अर्पित करना शुभ होता है। अगर बाजार में कमल का फूल नहीं मिल रहा है तो बाजार से कमल गट्टे खरीद कर अर्पित कर सकते हैं।
2. सफेद फूल
दीपावली पूजन में मां लक्ष्मी की पूजा करने के लिए थाली में सफेद फूल जरूर रखें। कहते हैं कि दीपावली के दिन मां लक्ष्मी पूजन के दौरान मोगरा या सफेद पुष्प अर्पित करने से मां लक्ष्मी कृपा बरसाती है।
3. कौडिय़ां
दीपावली की रात को मां लक्ष्मी की पूजा में सफेद या पीले रंग की कौडिय़ां जरूर अर्पित करनी चाहिए। मां लक्ष्मी को सफेद कौड़ी अति प्रिय हैं। कहते हैं कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी धन-धान्य के साथ समृद्धि भी देती हैं। मान्यता है कि रात में पूजा के दौरान कौडिय़ां रखिए और सुबह नहा धोकर उन कौडिय़ों को तिजोरी में रखना शुभ होता है।
4. बताशे
दीपावली के दिन मां लक्ष्मी को बताशे अर्पित करने का विशेष महत्व है। पूजा के दौरान बताशे, खील और सफेद रंग की मिठाई रखना शुभ होता है। मान्यता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी अपनी कृपा बरसाती हैं। -
मां लक्ष्मी आएंगी आपके द्वार
दीपावली का त्योहार दीपों का पर्व कहलाता है। इस दिन भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दीपावली के दिन आपको कौन से काम करने चाहिए। जिससे मां लक्ष्मी आपसे प्रसन्न हों। अगर नहीं तो आज हम आपको इसके बारे में बताएंगे तो चलिए जानते हैं दिवाली पर क्या करना चाहिए।
दीपावली पर क्या करें
1. दीपावली के दिन घर की सफाई को बहुत अधिक महत्व दिया जाता है। लेकिन इस दिन आपको घर के मुख्य द्वार की अच्छी तरह से सफाई अवश्य करनी चाहिए।
2. दीपावली के दिन घर के बाहर रंगोली अवश्य बनाएं। अगर आप स्वंय रंगोली नही बना सकते तो बाजार से रंगोली का चित्र लाकर लगाएं। क्योंकि रंगोली को अति शुभ माना जाता है।
3. दीपावली पूजन के बाद काजल अवश्य लगाना चाहिए। ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती है। इसलिए दीपावली के काजल को अधिक महत्व दिया जाता है।
4. आपको दीपावली के दिन घर के मुख्य द्वार पर जूते और चप्पल बिल्कुल न रखें। इस दिन जूते चप्पलों को कहीं पर छिपाकर ही रखें। क्योंकि इस दिन माता लक्ष्मी का आगमन मुख्य द्वार से ही होता है।
5. दीपावली के दिन रसोई में झूठे बर्तन बिल्कुल भी न छोड़ें। क्योंकि दीपावली के दिन घर की रसोई में भी दीपक जलाया जाता है। इस दिन मां अन्नपूर्णा की पूजा का विधान है।
6. इस दिन आपको रात के समय सात पूड़ी बनाकर उस पर हलवा रखकर लाल रंग की गाय को खिलाकर उसका पूजन करें। इसके बाद गाय माता के पैरों के नीचे की मिट्टी को अपने माथे से लगाएं और घर पर लाकर अपने परिवार के लोगों के माथे पर भी लगाएं।
7. दीपावली के दिन आपको कम से कम 12 बजे तक जागना चाहिए और जब तक आप जागें तब तक घर के सभी दरवाजों को खोलकर ही जांगे और जब आप सो जाएं तो घर का मुख्य दरवाजा बंद कर दें। लेकिन घर के अन्य द्वार खुले ही रखें।
8. इस दिन भगवान गणेश को दूर्वा घास और मां लक्ष्मी को कमल का पुष्प अवश्य अर्पित करना चाहिए। क्योंकि यह वस्तुएं इन दोनों को अत्याधिक प्रिय है।
9. दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन के बाद भगवान विष्णु को नए वस्त्र अर्पित करें। ऐसा करने से भी आपको मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होगी।
10. दीपावली के दिन भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा के बाद अपने घर के बड़ों का आर्शीवाद अवश्य लें। बड़ों के आर्शीवाद के बिना आपको लक्ष्मी प्राप्ति नहीं हो सकती। -
देखें किस राशि को होगा लाभ
क्या आपकी राशि को भी होगा फायदा
वैदिक ज्योतिष में नवंबर का महीना बेहद खास माना जा रहा है। इस महीने धनतरेस, दीपावली के साथ छठ पूजा भी है। ऐसे में ग्रहों के शुभ संयोग से कुछ राशियों को शुभ फल की प्राप्ति होगी। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार नवंबर माह में कई राशि परिवर्तन के शुभ संयोग से कुछ राशियों को लाभ होगा। 9 नवंबर से 15 नवंबर तक का साप्ताहिक राशिफल कुछ राशि वालों के लिए खुशखबरी भी लेकर आ सकता है। जानिए किन राशियों पर मां लक्ष्मी और भगवान कुबेर बरसेगी कृपा-
1. मेष- इस राशि पर बुध और सूर्य की दृष्टि कोष भाव में वृद्धि कर रही है। ऐसे में सप्ताह की शुरुआत में मानसिक तनाव का सामना करना पड़ सकता है। रुके हुए धन की प्राप्ति के योग बनेंगे। भौतिक सुख भी मिल सकता है।
2. सिंह- 9 नवंबर से 15 नवंबर के इस सप्ताह में आपकी मनोकामनाएं और इच्छाएं पूरी हो सकती हैं। दोस्तों और रिश्तेदारों से कोई अपेक्षा न करें। रोजी-रोजगार में आमदनी के साथ बढऩे के साथ कमाई में भी वृद्धि होगी।
3. धनु- इस राशि के जातकों के राशि स्वामी बृहस्पति शुभ फल प्रदान करेंगे। शुभ कार्यों में रुचि बढऩे के साथ मन प्रसन्न रहेगा। इस राशि के जातकों की आमदनी भी बढ़ सकती है।
4. कुंभ- कार्यक्षेत्र में आपकी कोशिशें कामयाब होंगी। खर्च बढ़ेगा हालांकि आप पर इसका ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। शत्रुओं पर विजय प्राप्ति के संकेत हैं।
5. मीन- 9 नवंबर से 15 नवंबर के बीच जीवनसाथी के कारण आपका भाग्योदय हो सकता है। जिसके कारण सुख-सुविधाओं में वृद्धि हो सकती है। रोजगार में तरक्की मिलने का भी योग बन सकता है।
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नरक चतुर्दशी को रूप चौदस, काली चौदस और छोटी दीपावली भी कहा जाता है। इस दिन 6 देवों की पूजा करने का विधान है। कहा जाता है कि रूप चौदस के दिन 6 देवों की पूजा करने से सारे कष्ट मिट जाते हैं।
आइए जानते हैं, इस दिन किनकी पूजा होती है...?
यम पूजा- नरक चतुर्दशी के दिन यम पूजा की जाती है। इस दिन रात में यम पूजा के लिए दीपक जलाए जाते हैं। इस दिन एक पुराने दीपक में सरसों का तेल और पांच अन्न के दाने डालकर इसे घर के कोने में जलाकर रखा जाता है। इसे यम दीपक भी कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन यम की पूजा करने से अकाल मृत्यु नहीं होती है।
काली पूजा- नरक चतुर्दशी के दिन काली पूजा भी की जाती है। इसके लिए सुबह तेल से स्नान करने के बाद काली की पूजा करने का विधान है। ये पूजा नरक चतुर्दशी के दिन आधी रात में की जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन मां काली की पूजा से जीवन के सभी दुखों का अंत हो जाता है।
शिव पूजा- नरक चतुर्दशी के दिन के दिन शिव चतुर्दशी भी मनाई जाती है। इस दिन शंकर भगवान को पंचामृत अर्पित करने के साथ माता पार्वती की भी विशेष पूजा की जाती है।
श्रीकृष्ण पूजा- मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन नरकासुर राक्षस का वध कर उसके कारागार से 16,000 कन्याओं को मुक्त कराया था। इसीलिए इस दिन श्रीकृष्ण की भी पूजा की जाती है।
वामन पूजा- दक्षिण भारत में नरक चतुर्दशी के दिन वामन पूजा का भी प्रचलन है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन राजा बलि को भगवान विष्णु ने वामन अवतार में हर साल उनके यहां पहुंचने का आशीर्वाद दिया था।
हनुमान पूजा- मान्यताओं के अनुसार इस दिन हनुमान जयंती भी मनाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन हनुमान पूजा करने से सभी तरह का संकट टल जाते हैं। -
भारत भूमि पर कार्तिक मास की चतुर्दर्शी को नरक चतुर्दर्शी और रुप चौदस कहा जाता है। इस तिथि को रुप चौदस कहने की पीछे मुख्य कारण यह है कि इसका संबंध स्त्री सौंदर्य से है। इस दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर उबटन लगाकर स्नान करती हैं जिससे कि उनकी त्वचा में निखार आता है। फेशियल के इस दौर में आज भी उबटन की कोई तोड़ नहीं है। उबटन आसानी से घर पर बनाया जा सकता है साथ ही जिन सामाग्रियों का इसमें प्रयोग होता है, उनका त्वचा पर कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है। उबटन लगाते समय एक बात ध्यान रखने योग्य है, वह है हमारी त्वचा की तासीर। अगली स्लाइड्स के माध्यम से जानिए किस प्रकार आप भी इस रुपचौदस अपनी त्वचा की तासीर के अनुसार उबटन का चयन कर सकती हैं।
तैलीय त्वचा
तैलीय त्वचा वाले लोग अक्सर बहुत परेशान रहते हैं लेकिन इससे निजात पाने के लिए आप 1 बड़ा चम्मच चंदन पाउडर, 1 छोटा चम्मच नीम की पत्तियां, 1 बड़ा चम्मच गुलाब की पत्तियां व चुटकीभर हल्दी पाउडर को मिलाकर पेस्ट बनाएं और चेहरे पर 10-12 मिनट लगा रहने दें। सूखने पर थपथपा कर छुड़ाएं और धो लें। ऐसा करने से त्वचा कांतिपूर्ण हो जाएगी।
दाग-धब्बेदार त्वचा
यदि त्वचा पर कोई दाग हो जाता है तो वो आसानी से नहीं मिटता। उसे मिटने में थोड़ा वक्त लगता है इसलिए यदि आपकी त्वचा पर भी दाग हैं तो सबसे पहले धीरज को धारण करें। फिर कोशिश करें कि रुप चौदस के 3-4 दिन पहले से ही उबटन लगाना शुरू करें। उबटन तैयार करने के लिए 2 बड़े चम्मच मलाई व कुछ बूंद गुलाबजल में हल्दी की ताजी गांठ पीस कर मिलाएं और चेहरे पर लगाएं। ऐसा लंबे समय तक करने से त्वचा बेदाग हो चमक उठेगी।
सामान्य त्वचा -
यदि आपकी त्वचा सामान्य है और आप रंगत निखारने के लिए उबटन लगाना चाह रही हैं तो आप 1 चम्मच उड़द दाल को कच्चे दूध में भिगो दें। फिर दाल को पीस कर पेस्ट बनाएं। इसमें थोड़ा सा गुलाब जल मिलाकर चेहरे पर लगाएं। थोड़ी देर सूखने दें। फिर धीरे-धीरे हाथों को गालों पर गोलाई में रगड़ते हुए इस पेस्ट को उतार दें और चेहरे को धो लें। त्वचा चमक उठेगी। दही त्वचा की रंगत निखारता है इसलिए दही में नींबू मिलाकर बनाया गया उबटन भी अच्छा परिणाम देगा।
रुखी त्वचा
दीपावली के दिनों में मौसम परिवर्तन के कारण अधिकांश लोगों की त्वचा रुखी हो जाती है इसलिए 1 पके केले को मसल कर पेस्ट बना लें। इसमें थोड़ा सा शहद व कुछ बूंद नींबू का रस मिला कर चेहरे पर लगाएं। 5-6 मिनट बाद चेहरे को ठंडे पानी से धो लें। इससे चेहरे में निखार तो आता ही है, साथ ही खिंचाव व झुर्रियां भी नहीं रहती हैं। चेहरा सामान्य हो जाता है। -
इन चीजों को खरीदने से बढ़ती है समृद्धि
इस दिन लोहा न खरीदें
धनतेरस का पर्व कार्तिक मास की त्रयोदशी को मनाया जाता है। दिवाली से पहले आने वाले इस पर्व में भगवान धनवंतरी, कुबैर की पूजा की जाती है। इस दिन यम दीप भी रात को जलाया जाता है। कहा जाता है कि धनतेरस पर इन चीजों को खरीदना अक्षय फल देने वाला होता है। इस बार धनतेरस 13 नवंबर को मनाई जाएगी। इस व्यापारी लोग भी अपनी दुकान और व्यापार के स्थान में पूजा कर मां लक्ष्मी की अराधना करते हैं। पंडितों के अनुसार इस दिन कुछ खास चीजों को घर में खरीदकर लाना बहुत ही शुभ होता है। इन चीजों को खरीदने से घर में सुख-समृद्धि आती है।
पंडितों के अनुसार धनतरेस के दिन घर में झाड़ू खरीदकर लाएं एवं शुभ मुहूर्त में पूजन करें। इसके साथ ही रात में घर, दुकान और ऑफिस में दीप जलाने चाहिए। इस दिन लोग बर्तन, आभूषण आदि भी खरीदकर लाते हैं। इस दिन लोहा न खरीदें। इस दिन अपने सामथ्र्य के अनुसार धातु के बर्तन एवं कलश खरीदकर लाएं। इस दिन घर, आफिस, दुकान, प्रतिष्ठान को को साफ कर अच्छे से दीपक जलाना चाहिए। धनतेरस पर शुभ मुहूर्त में सूखे धनिए के बीज खरीदकर घर में रखने से परिवार में धन संपदा बढ़ती है। इस दिन सुबह सवेरे उठकर माता लक्ष्मी ,कुबेर एवं धन्वन्तरि महाराज की पूजा करें।
13 नवंबर को खरीदारी का शुभ मुहूर्त-
सुबह 5:59 से 10:06 बजे तक
सुबह 11:08 से दोपहर 12:51 बजे तक
दोपहर 3:38 मिनट से शाम 5:00 बजे तक
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दिवाली से पहले लोग घरों की सफाई करते हैं। लेकिन धनतेरस के दिन घर के कुछ खास जगहों की सफाई का विशेष महत्व है। मान्यता है कि धनतेरस पर मां लक्ष्मी और भगवान कुबेर की कृपा पाने के लिए घर के कुछ खास कोनों की सफाई जरूरी करनी चाहिए। कहते हैं कि ऐसा करने से धन-धान्य में बरकत के साथ मां लक्ष्मी का हमेशा साथ बना रहता है। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 12 नवंबर रात से लग रही है, ऐसे में धनतेरस की खरीदारी 12 नवंबर की रात से लेकर 13 नवंबर की शाम 5:59 तक की जा सकेगी।
धनतेरस पर क्या करें?
1. वास्तु के अनुसार, घर के ईशान कोण का खास महत्व होता है। वास्तु शास्त्र में इसे देवताओं का स्थान माना गया है। कहते हैं कि आमतौर पर घरों में मंदिर इसी कोण में होता है। घर के ईशान कोण को उत्तर-पूर्व कोण भी कहते हैं। मान्यता है कि धनतेरस के दिन इस कोण की सफाई जरूर करनी चाहिए। कहते हैं कि अगर आप इस घर का कोना कभी इस्तेमाल नहीं करते या गंदा रहता है तो मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त नहीं होता है।
2.धनतेरस के दिन सवेरे घर के पूर्व के स्थानों की सफाई करना शुभ होता है। कहते हैं कि ऐसा करने से घर में पॉजिटिव ऊर्जा आती है और साथ ही मां लक्ष्मी का स्थायी वास घर में होता है और तरक्की मिलने का योग बनता है।
3. धनतेरस के दिन उत्तर दिशा का साफ भी होना जरूरी होता है। कहते हैं कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी का साथ हमेशा बना रहता है।
4. घर के बीचो-बीच की जगह यानी ब्रह्म स्थान सबसे महत्वपूर्ण होता है। मान्यता है कि इस जगह पर बिना जरूरत वाला सामान नहीं रखना चाहिए। साथ ही इस जगह को हर दिन साफ करना चाहिए। धनतेरस के दिन इस जगह की सफाई का विशेष महत्व है। कहते हैं कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी की कृपा बरसती है।
नोट--आलेख में दी गई जानकारियों को अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। - हिंदू धर्म में दिवाली के त्योहार का विशेष महत्व है। दिवाली का पर्व धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज को समाप्त होता है। इस साल दिवाली 14 नवंबर (शनिवार) को पड़ रही है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन ही भगवान श्रीराम लंकापति रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे। भगवान राम की वापसी पर अयोध्या में घी के दीपक जलाकर उनका स्वागत किया गया था। कहते हैं कि तभी से इस खुशी में दिवाली मनाई जाती है। हालांकि इस साल धनतेरस, नरक चतुर्दशी और दिवाली की तिथियों को लेकर लोगों के बीच असमंजस की स्थिति है।इस बारे में ज्योतिषाचार्य डॉ. दत्तात्रेय होस्करे ने धनतेरस, छोटी दिवाली (नरक चतुर्दशी) और दिवाली की सही तिथि और शुभ मुहूर्त की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि धनतेरस 13 और दिवाली 14 नवंबर को मनाई जाएगी।धनतेरसकार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। इस साल धनतेरस 13 नवंबर को मनाया जाएगा। ज्योतिषाचार्य डॉ. दत्तात्रेय होस्करे के अनुसार गुरुवार 12 नवंबर की रात्रि 9.31 मिनट से त्रयोदशी प्रारंभ हो रही है, जो 13 नवंबर को शाम 5.59 मिनट तक रहेगी। इसलिए धनतेरह 13 नवंबर शुक्रवार को ही मनाया जाएगा क्योंकि उदया तिथि में ही त्योहार मनाया जाता है।छोटी दिवाली (नरक चतुर्दशी)चतुर्दशी की तिथि 13 नवंबर की शाम 6.00 बजे से प्रारंभ हो रही है, जो 14 नवंबर को दोपहर 2.17 मिनट तक रहेगी। चूंकि चतुर्दशी चंद्रोदय व्यापनी होती है और चंद्रोदय 14 तारीख शनिवार को प्रात:काल 4.58 मिनट का है इसलिए 14 नवंबर को प्रात:काल ही नरक चतुर्दशी या रूप चौदस मनाएं। नरक चतुर्दशी पर स्नान का शुभ मुहूर्त सुबह 5:23 से सुबह 6:43 बजे तक रहेगा। इसके बाद अमावस्या लगने से दिवाली भी इसी दिन मनाई जाएगी।दिवाली14 नवंबर को दोपहर 2. 18 मिनट से अमावस्या तिथि प्रारंभ होगी, जो 15 नवंबर रविवार को प्रात: 10.36 मिनट तक रहेगी। चंूकि अमावस्या को लक्ष्मी पूजन किया जाता है, जो रात्रिव्यापनी होती है, जो 14 नवंबर को है। इसलिए इसी दिन दिवाली मनाई जाएगी। 14 तारीख को रात्रि को ही लक्ष्मी, गणेश पूजन, कुबेर पूजन और बही खाते का पूजन करें।भाईदूज 202015 नवंबर 2020 को गोवर्धन पूजा होगी और अंतिम दिन 16 नवंबर को भाई दूज या चित्रगुप्त जयंती मनाई जाएगी। दरअसल इस बार हिंदी पंचांग के अनुसार द्वितीय तिथि नहीं है जिसके कारण तिथि घट रही हैं।जानिए शुभ मुहूर्त.....
- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 112
जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु प्रदत्त दिव्य विश्व-प्रेमोपहार(श्री भक्ति-मन्दिर, भक्तिधाम मनगढ़, उत्तर-प्रदेश)
सनातन वैदिक धर्म के अनुसार, यद्यपि भगवान् सर्वव्यापक है तथापि हम साधारण मायिक मनुष्यों को उनका प्रत्यक्ष अनुभव नहीं होता किन्तु मंदिरों एवं विग्रहों में श्री सच्चिदानंदघन प्रभु की उपस्थिति में हमारा विश्वास हो ही जाता है। इसी कारण जीवों के आध्यात्मिक कल्याणार्थ और वास्तविक सिद्धांत के प्रचार हेतु रसिकाचार्यों ने ऐसे भव्य मंदिरों की स्थापना की है। बस इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर सम्पूर्ण जगत में भक्ति तत्व को प्रकाशित करने के लिए जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने कुछ दिव्योपहार विश्व को समर्पित किये हैं। इनमें से एक है, उनकी जन्मभूमि पर स्थापित श्री भक्ति मंदिर एवं भक्ति भवन !! इनमें से 'भक्ति-मन्दिर' का उद्घाटन आज ही के दिन, अर्थात धनतेरस को वर्ष 2005 में हुआ था। आज इसकी 15 वीं वर्षगाँठ है। प्रस्तुत है इस दिव्योपहार के संबंध में कुछ विशेष बातें :::::::
-- भक्ति मंदिर, श्री भक्तिधाम मनगढ़
- शिलान्यास समारोह : 26 अक्टूबर 1996- कलश स्थापना : 14 अगस्त 2005-उद्घाटन समारोह : 16-17 नवम्बर 2005- प्रमुख आकर्षण : भूतल पर श्री राधाकृष्ण एवं आठ दिशाओं में अष्ट महासखियों के विग्रह, जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज एवं उनके पूज्यनीय माता-पिता जी के विग्रह। प्रथम तल में श्री सीताराम तथा श्री हनुमान जी के विग्रह, साथ ही श्री राधा रानी एवं श्री कृष्ण-बलराम जी के विग्रह। मंदिर के दोनों ओर बने स्मारकों में एक ओर श्रीकृष्ण की प्रमुख लीलाओं की झाँकी है तो दूसरी ओर जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के जीवन की प्रमुख घटनाओं की झाँकी है।
-- भक्ति-भवन एवं 'कृपालुं वंदे जगद्गुरुम' स्मारक
भक्ति-भवन के बाईं ओर एक विशाल साधना-हॉल, जिसे 'भक्ति-भवन' के नाम से जानते हैं, स्थित है। इसकी विशेषता यह है कि यह बिना पिल्लरों पर खड़ा है और 15000 साधक-साधिकाएँ एक साथ बैठकर यहाँ साधना कर सकते हैं। इसकी स्थापना वर्ष 2012 में हुई थी। भक्ति-मंदिर के ठीक सामने ही 'जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी' का 'स्मारक-मंदिर' बन रहा है, जिसे विश्व 'कृपालुं वंदे जगद्गुरुम' स्मारक मंदिर के नाम से जानेगा। इसका उद्घाटन अगले वर्ष 2021 में मार्च महीने में होने की संभावना है।
धन्यातिधन्य है मनगढ़ भूमि ! जिसे गुरुदेव ने अपनी लीलास्थली बनाया। केवल 9 वर्षों में यहाँ इस प्रकार के भव्य मंदिर के निर्माण का कार्य पूरा हो गया। मंदिर की भव्यता, शिल्पकला तथा पच्चीकारी के काम को देखकर दर्शनार्थी आश्चर्य चकित हो जाते हैं। नि:संदेह यह किसी अलौकिक शक्ति का ही कार्य है। अन्यथा इस प्रकार के भव्य मंदिर का निर्माण छोटे से ग्राम में इतने कम समय में असंभव ही है।
इस भक्तिधाम में भक्ति की अजस्र धारा प्रवाहित होती रहती है। एक ओर तीर्थराज प्रयाग परम पावनी गंगा के जल से तो दूसरी ओर श्रीराम जी की लीलास्थली अयोध्या नगरी सरयू के पवित्र जल से प्रक्षालित करके इस मनगढ़ धाम की महिमा व पवित्रता को द्विगुणित करती रहती है। यहाँ का यह भक्ति मन्दिर कलियुग में दैहिक, दैविक, भौतिक तापों से संतप्त जीवों के लिए एक अनुपम आध्यात्मिक केंद्र है। गुलाबी सफ़ेद पत्थर से निर्मित भक्ति मंदिर में काले ग्रेनाइट के खम्भे बनाये गए हैं। मंदिर की दीवारों पर बहुमूल्यवान पत्थर से श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'भक्ति-शतक' के सौ दोहे लिखे गए हैं, इस ग्रन्थ का एक एक दोहा इतना मार्मिक है कि इस ग्रन्थ रूपी मानसरोवर में अवगाहन करने वाला बरबस प्रेमरस में सराबोर हो जाता है। इसके अलावा 'प्रेम रस मदिरा' के कुछ पद भी अंकित किये गए हैं। यह भक्ति मंदिर श्रीराधाकृष्ण एवं श्री कृपालु जी महाराज का साक्षात् स्वरुप है।
आप सभी 'भक्ति-मन्दिर' की 15 वीं वर्षगाँठ तथा धनतेरस पर्व की अनंत अनंत शुभकामनायें..
00 सन्दर्भ ::: जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य00 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - आंवला एक अमृत फल माना गया है। इसके अद्भुत गुणों के कारण ही इसे पूजा जाता है। औषधीय गुणों के भरपूर आंवला का पेड़ घर में लगाना बहुत ही शुभ माना जाता है, वास्तुशास्त्र के अनुसार पेड़ लगाते समय दिशा का ध्यान रखना भी जरूरी है।घर में आंवले का पेड़ लगायें और वह भी उत्तर दिशा और पूरब दिशा में हो तो यह अत्यंत लाभदायक है। माना जाता है कि आंवले के पौधे की पूजा करने से सभी मनौतियां पूरी होती हैं। इसकी नित्य पूजा-अर्चना करने से भी समस्त पापों का शमन हो जाता है। वास्तु की मानें तो आंवले का पेड़ घर में उत्तर या पूर्व दिशा में लगाना चाहिए। वैसे पूर्व की दिशा में बड़े वृक्षों को नहीं लगाना चाहिए परन्तु आंवले को इस दिशा में लगाने से सकारात्मक उर्जा का प्रवाह होता है। इस वृक्ष को घर की उत्तर दिशा में भी लगाया जा सकता है।प्राचीन काल से ही हमारे ऋषि मुनियों ने आंवला को औषधीय रूप में प्रयोग किया परन्तु आंवले का धार्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। जो निम्न प्रकार से है--मान्यता है कि यदि कोई आंवले का एक वृक्ष लगाता है तो उस व्यक्ति को एक राजसूय यज्ञ के बराबर फल मिलता है।- यदि कोई महिला शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर पूजन करती है तो वह जीवन पर्यन्त सौभाग्यशाली बनी रहती है।- अक्षय नवमी के दिन जो भी व्यक्ति आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करता है, उसकी प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है एंव दीर्घायु लाभ मिलता है।- आंवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मणों को मीठा भोजन कराकर दान दिया जाय तो उस जातक की अनेक समस्याएं दूर होती हैं तथा कार्यों में सफलता प्राप्त होती है।-आंवले का ग्रहों से सम्बन्ध आंवले का ज्योतिष में बुध ग्रह की पीड़ा शान्ति कराने के लिये एक स्नान कराया जाता है। जिस व्यक्ति का बुध ग्रह पीडि़त हो उसे शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार को स्नान जल में- आंवला, शहद, गोरोचन, स्वर्ण, हरड़, बहेड़ा, गोमय एंव अक्षत डालकर निरन्तर 15 बुधवार तक स्नान करना चाहिए जिससे उस जातक का बुध ग्रह शुभ फल देने लगता है। इन सभी चीजों को एक कपड़े में बांधकर पोटली बना लें। उपरोक्त सामग्री की मात्रा दो-दो चम्मच पर्याप्त है। पोटली को स्नान करने वाले जल में 10 मिनट के लिये रखें। एक पोटली 7 दिनों तक प्रयोग कर सकते है।- जिन जातकों का शुक्र ग्रह पीडि़त होकर उन्हे अशुभ फल दे रहा है। वे लोग शुक्र के अशुभ फल से बचाव हेतु शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार को हरड़, इलायची, बहेड़ा, आंवला, केसर, मेनसिल और एक सफेद फूल युक्त जल से स्नान करें तो लाभ मिलेगा। इन सभी पदार्थों को एक कपड़े में बांधकर पोटली बना लें। उपरोक्त सामग्री की मात्रा दो-दो चम्मच पर्याप्त रहेगी। पोटली को स्नान के जल में 10 मिनट के लिये रखें। एक पोटली को एक सप्ताह तक प्रयोग में ला सकते है।- जिन बच्चों का पढ़ाई में मन नहीं लगता है या फिर स्मरण शक्ति कमजोर है, उनकी पढऩे वाली पुस्तकों में आंवले व इमली की हरी पत्तियों को पीले कपड़े में बांधकर रख दें। आंवला और रोग पीलिया रोग में एक चम्मच आंवले के पाउडर में दो चम्मच शहद मिलाकर दिन में दो बार सेंवन करने से लाभ मिलता है। जिन लागों की नेत्र ज्योति कम है वे लोग एक चम्मच आंवले के चूर्ण में दो चम्मच शहद अथवा शुद्ध देशी घी मिलाकर दिन में दो बार सेंवन करने से नेत्र ज्योति में बढ़ती है एंव इन्द्रियों को शक्ति प्रदान होती है।-गठिया रोग वाले जातक 20 ग्राम आंवले का चूर्ण तथा 25 ग्राम गुड़ लेकर 500 मिलीलीटर जल में डालकर पकायें। जब जल आधा रह जाये तब इसे छानकर ठण्डा कर लें। इस काढ़े को दिन में दो बार सेंवन करें। जबतक सेंवन करें तबतक नमक का सेंवन बन्द कर दें अथवा बहुत कम कर दें।
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जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 111
00 जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से नि:सृत प्रवचनों से छोटा सा अंश, आचार्य श्री की वाणी नीचे से है ::::::
एक बार संसार में कोई नौकर चोरी में पकड़ा जाये रंगे हाथों तो फिर वो नौकर चाहे कितनी ही ईमानदारी करे, घर में कोई चोरी होगी, ऐ! वो कहाँ है? बुलाओ उसको, वही चोर है। अरे चोर तो सब नौकर हैं जी! नहीं-नहीं और किसी नौकर ने हमारा कुछ नहीं चुराया। तुम्हारा नहीं चुराया और जगह चोरी किया है। या आज तक चोरी की मंशा और नौकरों की नहीं हुई, आज हो गई हो। अरे भई! कोई गलत काम करने की मंशा हमेशा थोड़े ही रहती है किसी की। कब हो जाय क्या ठिकाना, लेकिन साहब उसी को सदा आँख में रखेगा जिसको चोरी में पकड़ा गया।
लेकिन अनन्त बार चोरी पकड़ता हुआ भी भगवान और महापुरुष, जीव जब सच्चे हृदय से फिर क्षमा माँग करके शरणागत होना चाहता है तो वो कहते हैं ठीक है, ठीक है हो गया, हटाओ, बच्चे हैं होता रहता है। छोटे बच्चों की बातें माँ-बाप क्यों फील नहीं करते? लात भी मार दे रहे हैं माँ के मुँह में बाप के मुँह में। हाँ हाँ चूम लेती है माँ। बच्चा है। बड़ा होकर अगर वो लात मारने की बात भी कर दे, मम्मी! मैं वो मारूँगा। ये लो मम्मी का मूड ऑफ इतना हो गया कि निकल जा मेरे घर से। क्यों मम्मी! पहले तो मैं लात प्रैक्टीकल मारता था तो तू मेरी लात को चूम लेती थी और आज तो हमने खाली मुँह से कहा है एक लात मारूँगा और तू मुझे घर से निकाले दे रही है।
अरे बेटा! वो बात और थी, अब बात और है। अब तू पच्चीस साल का जवान धींगड़ा हो गया है और तेरी दुर्भावना नहीं थी, तू जानता ही नहीं था मुँह क्या है, मम्मी क्या है? बेटा क्या होता है? लात मारना क्या पाप होता है? इसलिये वो सब प्रिय था, हर व्यवहार प्रिय था। तो महापुरुष की कृपा को न तो भगवान बता सकता है पूरा पूरा, न महापुरुष बता सकता है। और जीव तो बेचारा क्या समझेगा उसकी तो हैसियत ही नहीं है। हाँ, स्पेशल केस जो है उनमें महापुरुष प्रारब्ध में भी कुछ हेल्प करता है, पूरा प्रारब्ध नहीं काटता, कुछ हेल्प कर देता है। लेकिन वह हेल्प बताता नहीं। वो सब चोरी चोरी करता है। जो कुछ अपने प्रिय के प्रति करता है महापुरुष। कभी भी स्वप्न में भी, किसी भी प्रकार से वो आउट नहीं कर सकता। वो कानून है उसके यहाँ, वो कॉन्फिडेंशियल फाइल है वो आउट नहीं हो सकती। लेकिन उसकी कृपा के विषय में कुछ भी कहना समुद्र की एक बूँद है।
(प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज)
00 सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, जुलाई 2007 अंक00 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - परिजात यानी हरसिंगार का पेड़ अति शुभ माना जाता है। पौराणिक ग्रंथों में इस पेड़ को स्वर्ग का पेड़ कहा गया है। औषधीय गुणों से भरपूर परिजात के पेड़ को घर में रखना काफी शुभ माना जाता है।वास्तुशास्त्र के अनुसार इस पौधे को हमेशा उत्तर-पूर्व दिशा में लगाएं। इस पौधे को घर में लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। इसके अलावा इससे घर के किसी भी सदस्य को धन की कमी नहीं होता। इसके साथ ही इस पौधे को लगाने से घर में सुख-शांति भी बनी रहती है।पौराणिक महत्वमाना जाता है कि समुद्र मंथन में 11वें नंबर पर जो रत्न प्राप्त हुआ था, वो पारिजात वृक्ष ही है। उसका शरीर पुन: स्फूर्ति प्राप्त कर लेता है। हरिवंशपुराण के अनुसार स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी परिजात के वृक्ष को छूकर ही अपनी थकान मिटाती थी। इसके होने मात्र से घर में ऊर्जा का संचार होता है व देव दोष शांत होकर घर के सदस्यों का कल्याण होता है।पौराणिक मान्यता अनुसार पारिजात के वृक्ष को स्वर्ग से लाकर धरती पर लगाया गया था। नरकासुर के वध के पश्चात एक बार श्रीकृष्ण स्वर्ग गए और वहां इन्द्र ने उन्हें पारिजात का पुष्प भेंट किया। वह पुष्प श्रीकृष्ण ने देवी रुक्मिणी को दे दिया। देवी सत्यभामा को देवलोक से देवमाता अदिति ने चिरयौवन का आशीर्वाद दिया था। तभी नारदजी आए और सत्यभामा को पारिजात पुष्प के बारे में बताया कि उस पुष्प के प्रभाव से देवी रुक्मिणी भी चिरयौवन हो गई हैं। यह जान सत्यभामा क्रोधित हो गईं और श्रीकृष्ण से पारिजात वृक्ष लेने की जिद्द करने लगी। परिजात का वृक्ष देवलोक में था, इसलिए कृष्ण ने उनसे कहा कि वे इन्द्र से आग्रह कर वृक्ष उन्हें ला देंगे। इतने में ही कृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ इन्द्रलोक आए। पहले तो इन्द्र ने यह वृक्ष सौंपने से मना कर दिया लेकिन अंतत: उन्हें यह वृक्ष देना ही पड़ा। जब कृष्ण परिजात का वृक्ष ले जा रहे थे तब देवराज इन्द्र ने वृक्ष को यह श्राप दे दिया कि इस पेड़ के फूल दिन में नहीं खिलेंगे।पति-पत्नी में झगड़ा लगाकर नारद, देवराज इन्द्र के पास गए और उनसे कहा कि मृत्युलोक से इस वृक्ष को ले जाने का षडयंत्र रचा जा रहा है लेकिन यह वृक्ष स्वर्ग की संपत्ति है, इसलिए यहीं रहना चाहिए। सत्यभामा की जिद की वजह से कृष्ण परिजात के पेड़ को धरती पर ले आए और सत्यभामा की वाटिका में लगा दिया। लेकिन सत्यभामा को सबक सिखाने के लिए उन्होंने कुछ ऐसा किया कि वृक्ष लगा तो सत्यभामा की वाटिका में था लेकिन इसके फूल रुक्मिणी की वाटिका में गिरते थे। इस तरह सत्यभामा को वृक्ष तो मिला लेकिन फूल रुक्मिणी को ही प्राप्त होते थे। यही वजह है कि परिजात के फूल, अपने वृक्ष से बहुत दूर जाकर गिरते हैं।देवी लक्ष्मी को प्रियपारिजात के फूलों को खासतौर पर लक्ष्मी पूजन के लिए इस्तेमाल किया जाता है लेकिन केवल उन्हीं फूलों को इस्तेमाल किया जाता है, जो अपने आप पेड़ से टूटकर नीचे गिर जाते हैं। पारिजात के फूलों की सुगंध आपके जीवन से तनाव हटाकर खुशियां ही खुशियां भर सकने की ताकत रखते हैं। इसकी सुगंध आपके मस्तिष्क को शांत कर देती है। पारिजात के ये अद्भुत फूल सिर्फ रात में ही खिलते हैं और सुबह होते-होते वे सब मुरझा जाते हैं। यह फूल जिसके भी घर-आंगन में खिलते हैं, वहां हमेशा शांति और समृद्धि का निवास होता है। माना जाता है कि पारिजात के वृक्ष को छूने मात्र से ही व्यक्ति की थकान मिट जाती है।इसके औषधीय गुणों की बात करें तो हृदय रोगों के लिए हरसिंगार का प्रयोग बेहद लाभकारी है। इस के 15 से 20 फूलों या इसके रस का सेवन करना हृदय रोग से बचाने का असरकारक उपाय है, लेकिन यह उपाय किसी आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह पर ही किया जा सकता है। इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है।अगर इस वृक्ष की उम्र की बात की जाए तो वैज्ञानिकों के अनुसार यह वृक्ष 1 हजार से 5 हजार साल तक जीवित रह सकता है। इस प्रकार की दुनिया में सिर्फ पांच प्रजातियां हैं, जिन्हें एडोसोनिया वर्ग में रखा जाता है। परिजात का पेड़ भी इन्हीं पांच प्रजातियों में से डिजाहट प्रजाति का सदस्य है।