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- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 395
साधक द्वारा पूछा गया प्रश्न : महाराज जी ! हम लोग लोगों को सिद्धांत समझाते हैं कि भगवान् की ओर चलो। अच्छे-अच्छे हमारे रिश्तेदार, हमारे दोस्त वो बात नही समझते और हम दुःखी हो जाते हैं। लेकिन महापुरुष पूरी लाइफ समझाता रहता है तो लोग कितने समझते हैं। तो क्या वो महापुरुष दुःखी होता है, उनको भी परेशानी होती है क्या?
• जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा उत्तर ::: जैसी परेशानी मायाबद्ध को होती है, ऐसी परेशानी उनको नहीं होती। मायाबद्ध को तो ऐसा है कि उसने कुछ अपमानजनक बात जवाब में कह दिया बजाय मानने के और उल्टा भगवान् के खिलाफ ही बोल दिया कुछ तो दुःखी होता है गृहस्थी आदमी। फील करता है और द्वेष बुद्धि होने लगती है उसकी उसके प्रति। महापुरुष को ये सब कुछ नहीं। वो समझ लेता है कि संस्कार नहीं है इसके। ये यह नहीं समझ रहा है। हो सकता है भविष्य में समझे। वो उदासीन रहते हैं। उसका अपना जन (साधक) जो शरणागत हो रहा है फिफ्टी परसेंट शरणागत हो रहा है और वो गड़बड़ करता है तो दुःखी होते हैं। जैसे पड़ोसी का बेटा बीमार है तो पड़ोसी दुःखी नही होता। उसका अपना बेटा बीमार होता है तब दुःखी होता है।
• संदर्भ ::: प्रश्नोत्तरी पुस्तक, भाग 2, पृष्ठ 157, प्रश्न संख्या 50
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - 14 सितंबर 2021 से महालक्ष्मी व्रत शुरू हो रहे हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल महालक्ष्मी व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ होता है। महालक्ष्मी व्रत लगातार 16 दिनों तक रखा जाता है। महालक्ष्मी व्रत गणेश चतुर्थी के चार दिन बाद शुरू होता है। इस व्रत का समापन आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर होगा। मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को करने से सभी तरह की मनोकामनाएं पूरी होती हैं, क्योंकि इस व्रत में धन, सुख-संपदा और समृद्धि की देवी महालक्ष्मी के प्रसन्न होने पर आशीर्वाद प्राप्त होता है। खास बात यह कि इस तिथि पर राधा अष्टमी भी मनाई जाती है। जिस कारण से इस दिन से महालक्ष्मी व्रत का आरंभ बहुत ही महत्वपूर्ण और शुभ हो जाता है। इसके अलावा इसी तिथि पर दूर्वा अष्टमी भी है जिसमें दूर्वा घास की पूजा होती है। महालक्ष्मी व्रत रखने पर घर पर सुख-समृद्धि और संपन्नता आती है। यह व्रत 16 दिनों तक चलता है। जिसमें से अधिकतर विवाहित महिलाएं 16 दिनों तक व्रत रखती हैं। जो महिलाएं अगर 16 दिन तक नहीं रख पाती वे 3 तीन या आखिरी दिन व्रत रखती हैं।अष्टमी तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 13, 2021 03:10 PM कोअष्टमी तिथि समाप्त - सितम्बर 14, 2021 को 01:09 PM तकमहालक्ष्मी व्रत पूजन विधि--महालक्ष्मी के पहले दिन पूजा स्थल पर हल्दी से कमल बनाकर उस पर माता लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें और मूर्ति के सामने श्रीयंत्र, सोने-चांदी के सिक्के और फल फूल रखें। इसके बाद माता लक्ष्मी के आठ रूपों की मंत्रों के साथ कुंकुम, चावल और फूल चढ़ाते हुए पूजा करें।महालक्ष्मी व्रत में मां लक्ष्मी के हाथी पर बैठी हुई मूर्ति को लाल कपड़ा के साथ विधि-विधान के साथ इनकी स्थापना करें और पूजा कर ध्यान लगाएं।महालक्ष्मी व्रत के दिन श्रीयंत्र या महालक्ष्मी यंत्र को मां लक्ष्मी के सामने स्थापित करें और इसकी पूजा करें। यह चमत्कारी यंत्र धन वृद्धि के लिए बहुत उपयोगी माना जाता है। इस यंत्र की पूजा से परेशानियां और दरिद्रता दूर होती है।महालक्ष्मी व्रत में दक्षिणावर्ती शंख में गंगाजल और दूध डालकर देवी लक्ष्मी की मूर्ति से अभिषेक करना चाहिए इससे मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।माता लक्ष्मी को कमल का फूल बहुत पसंद होता है इसलिए लक्ष्मीजी की पूजा में यह फूल अवश्य चढ़ाना चाहिए।महालक्ष्मी व्रत पर कमल गट्टे को माला को माता लक्ष्मी को चढ़ाए साथ ही पूजा में कौड़ी अर्पित करें। पूजा के बाद इन दोनों चीजों को अपने तिजोरी या लॉकर में रखें।--माता लक्ष्मी की आरती---ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता ।तुमको निशिदिन सेवत, हरि विष्णु विधाता ॥ॐ जय लक्ष्मी माता ॥उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता ।सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥ॐ जय लक्ष्मी माता ॥दुर्गा रुप निरंजनी, सुख सम्पत्ति दाता ।जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि धन पाता ॥ॐ जय लक्ष्मी माता ॥तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता ।कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता ॥ॐ जय लक्ष्मी माता ॥जिस घर में तुम रहतीं, सब सद्गुण आता ।सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता ॥ॐ जय लक्ष्मी माता ॥तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता ।खान-पान का वैभव, सब तुमसे आता ॥ॐ जय लक्ष्मी माता ॥शुभ-गुण मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता ।रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता ॥ॐ जय लक्ष्मी माता ॥महालक्ष्मी जी की आरती, जो कोई जन गाता ।उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता ॥ॐ जय लक्ष्मी माता ॥
- कहा जाता है कि हाथों की लकीरों में हमारा भाग्य लिखा होता है। हथेलियों में बनी ये आड़ी-तिरछी रेखाएं व्यक्ति के बारे में बहुत कुछ कहती हैं। ज्योतिष शास्त्र की ही एक शाखा हस्तरेखा शास्त्र में हथेली में बनी लकीरों को देखकर जातक के जीवन के बारे में महत्पूर्ण जानकारी दी जाती है। हथेली में बनी कुछ लकीरे समय-समय में पर बदलती रहती हैं। इन लकीरों से कई चिन्हों आदि का निर्माण होता है। जहां कुछ चिन्हों व लकीरों को बहुत ही शुभ माना जाता है तो वहीं कुछ लकीरों व चिन्हों के कारण आपको जीवन में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार रेखाओं को देखकर व्यक्ति के जीवन में धन की स्थिति को भी जाना जा सकता है। जहां हाथों की लकीरें जातकों को धनवान बनाती हैं, ठीक उसी तरह ये जातकों को निर्धन भी बना सकती है। हथेली में रेखाओं की कुछ ऐसी स्थितियां बताई गई हैं जिनके कारण व्यक्ति को धन हानि का सामना करना पड़ता है। हालांकि यदि आप समय रहते ही अगर इन स्थितियों को समझकर कुछ उपाय कर लेते हैं तो धन हानि से बचा जा सकता है।हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार यदि किसी जातक की हथेली में भाग्य रेखा हृदय रेखा पर रुक जाए या फिर हथेलियां बिना की वजह सख्त हों तो ऐसे जातकों को धन संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसे जातकों को बहुत मेहनत और प्रयास करने पर भी धन की तंगी बनी रहती है। ऐसे जातकों को धन हानि से बचने के लिए अपने कार्यस्थल पर सियार सिंगी यंत्र की स्थापना करनी चाहिए और इसके बाद स्वर्ण की भस्म से स्नान करना चाहिए। इस उपाय को करने से पहले किसी योग्य हस्तरेखा शास्त्री से अपनी रेखाओं की जांच अवश्य करवा लें।हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार, यदि किसी जातक की हथेली में भाग्य रेखा धुंधली हो या शनि, बुध और गुरु दबा हुआ हो तो ऐसे जातक को धन संबंधी समस्याएं लगी रहती हैं। इन लोगों को व्यापार में भी धन हानि का सामना करना पड़ता है। इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए जातक को मां बगलामुखी व मां लक्ष्मी की आराधना करनी चाहिए। इससे आपको कुछ ही समय में धीरे-धीरे धन संबंधित समस्याओं से छुटकारा मिलने लगता है।हस्तरेखा शास्त्र कहता है कि यदि किसी जातक की हथेली में जीवन रेखा एकदम सीधी हो या फिर भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर रुक गई हो, तो ऐसे जातकों को भी रुपए पैसों की परेशानी का सामना करना पड़ता है। कई बार धन संबंधी समस्याएं बहुत अधिक भी बढ़ जाती हैं। ऐसे में जातक को कर्मफलदाता शनिदेव व मां लक्ष्मी का पूजन करना चाहिए।
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Happy SHRI RADHA-ASHTAMI (Sep 14)(श्री राधारानी के प्राकट्योत्सव 'राधाष्टमी' की आप सभी को अनंत अनंत शुभकामनायें..)
आज महारानी श्रीराधारानी का प्राकट्य-दिवस श्रीराधाष्टमी है। श्रीराधारानी कौन हैं, हमारा उनसे क्या संबंध है तथा उनकी प्राप्ति किस प्रकार होगी - इस सम्बन्ध में भक्तियोगरसावतार जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने अपने साहित्य तथा प्रवचनों में बड़ी गहराई से विवेचन किया है। आइये उनके साहित्य का आश्रय लेकर ही हम इस रहस्य को समझने का प्रयत्न करें :::::
(कृपा की मूर्ति महारानी श्रीराधारानी - यहाँ से पढ़ें..)
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने अपने श्याम-श्याम गीत ग्रंथ के एक दोहे (संख्या 69) में श्रीराधा तथा श्रीकृष्ण के संबंध के विषय में कहा है :
रसिकों ने समझाया कह ब्रजबामा।आत्मा की आत्मा की आत्मा हैं श्यामा।।
अर्थात रसिक जन समझाते हैं जीवात्मा की आत्मा श्रीकृष्ण हैं एवं श्रीकृष्ण की आत्मा श्रीराधा हैं।
इसके अतिरिक्त इसी ग्रन्थ के एक अन्य दोहे (संख्या 43) में जीवात्मा तथा श्रीराधारानी के संबंध को और अधिक समीपता के साथ व्यक्त किया है :
प्रति जन्म नयी नयी मातु बनी बामा।बदली न तेरी कभु साँची मातु श्यामा।।
भावार्थ यह कि जीव के कर्मानुसार शरीर का जन्म-मरण होता रहता है। इस कारण हर जन्म में नई नई मातायें भी बनीं। आत्मा की माँ श्रीराधा तो सदा से एक ही थीं, एक ही रहेंगी।
इसी संबंध का अनुभव करके उनकी प्राप्ति के लिये परम निष्काम भाव से रूपध्यानपूर्वक साधना करने का उपदेश उन्होंने अपने समस्त साहित्य तथा प्रवचनों में दिया है। श्यामा श्याम गीत के दोहा संख्या 73 में वे जीवों से कहते हैं :
राधा नाम रुप गुण लीला जन धामा।याही में लगाओ मन भाव निष्कामा।।
अर्थात निष्काम भाव से श्रीराधा नाम, रुप, गुण, लीला, जन एवं धाम में ही अपने मन को लगाओ। इसी में मानव-जीवन की सार्थकता है।
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने अपने ब्रज-साहित्यों में श्रीराधारानी के गुणों का भी विशद एवं सरस वर्णन किया है। श्रीराधारानी के अगाध गुणों में प्रमुखतः उनकी कृपालुता, पतित-जनों की रिझवार, अति सरल, सुकुमारता, शरणागत की प्रतिक्षण सँभार एवं रक्षा करने वाली, भोरेपन आदि गुणों का अपने पदों, कीर्तनों तथा दोहों में वर्णन किया है। कृपालुता की ऐसी सीमा है कि यदि वे कोप भी करें, तो उस कोप में भी उनकी अगाध कृपा ही रहती है। 'प्रेम-रस-मदिरा' नामक ग्रन्थ में वे एक पद में कहते हैं :
जो आरत मम स्वामिनि! भाखै,तेहि पुतरिन सम आँखिन राखै।
अर्थात जो शरणागत आर्त होकर दृढ़ निष्ठापूर्वक मेरी स्वामिनी जी! ऐसा कह देता है, उसे स्वामिनी जी अपनी आँखों की पुतली के समान रखती हैं।
इसी पद में अन्य पंक्ति में उन्होंने कहा है :
टुक निज-जन क्रन्दन सुनि पावें,तजि श्यामहुँ निज जन पहँ धावें।
भावार्थ यह कि हमारी स्वामिनी जी अपने शरणागतों की थोड़ी भी करुण-पुकार सुनते ही अपने प्राणेश्वर श्यामसुन्दर को भी छोड़कर अपने जन के पास तत्क्षण अपनी सुधि-बुधि भूलकर दौड़ आती हैं।
ऐसी कृपालु स्वामिनी श्रीराधारानी का दीनतापूर्वक स्मरण तथा उनसे कृपा की याचना करने का ही उपदेश श्री कृपालु महाप्रभु ने बारम्बार दिया है। उन्होंने अपने एक ग्रन्थ 'युगल शतक' की श्रीराधा माधुरी के कीर्तन संख्या 53 में इस याचना तथा प्रेम के स्वरुप का इस प्रकार वर्णन किया है (केवल अर्थ) :
अरे मेरे मन! निरन्तर श्रीराधा का ही सेवन कर। जिह्वा से अनवरत राधा नामामृत का पान कर। नाम-स्मरण करने में भला क्या विघ्न उपस्थित हो सकता है? श्रीराधा अनंत दिव्य गुण-गणों से विभूषित हैं। अतः कानों से निरंतर उनकी लीला का श्रवण कर उनके गुणानुवाद सुन। कोमल स्पर्श की कामना जब उत्पन्न हो तो श्रीराधा के कमलोपम चरणों का स्मरण कर। श्रीकृष्ण भी इन चरणों की आराधना करते हैं। नेत्रों से पल-पल श्रीराधा की दिव्य मूर्ति का ध्यान कर दसों दिशाओं में उनका ही दर्शन कर। नासिका से श्रीराधा के दिव्य-वपु के सुवास को ग्रहण कर। हे मेरे चंचल मन! तू श्रीराधा के निरुपम सौंदर्य का ही चिंतन कर। श्रीराधा के समान तो श्रीराधा ही हैं। बुद्धि में ऐसी दृढ़ता रहे कि एक दिन मैं अवश्य ही उनकी कृपा को प्राप्त करुँगा।
श्रीराधा के प्रति जो प्रीति हो, उसमें अपने स्वार्थ की गंध न हो। श्रीराधा के हितार्थ हो, उनके सुख में सुख मानते हुये उनके प्रति निष्काम प्रेम की भावना स्थिर करनी है। यदि श्रीराधा की कृपा प्राप्त करनी है तो उनके प्रियतम श्रीकृष्ण की भी भक्ति करनी होगी।
इस प्रकार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा प्रगटित ब्रज-साहित्य के अगाध समुद्र से निकले इन किञ्चित चिंतन-रत्नों का आधार लेकर हम अपने हृदयों में श्रीराधारानी के प्रति श्रद्धा, प्रेम तथा अपनापन लाने का प्रयास करें तथा उनसे कृपा की दीनतापूर्वक याचना करें। आप सभी को उनके प्राकट्य दिवस श्रीराधाष्टमी की बारम्बार अनंत शुभकामनायें।
•• स्त्रोत : जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज साहित्य•• सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) -
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Note : जगदगुरु कृपालु परिषत के रँगीली महल, बरसाना आश्रम में स्थित श्री कीर्ति मन्दिर में श्रीराधारानी के प्राकट्योत्सव श्री राधाष्टमी उत्सव के Youtube (JKPIndia) पर लाइव प्रसारण के संबंध में जानकारी इस फोटो से प्राप्त करें! आप सभी इस महा आनंद महोत्सव में सादर आमंत्रित हैं!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 393
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ऐसे प्रथम जगदगुरुत्तम हैं जिन्होंने देश ही नहीं अपितु विदेशों में भी श्रीराधा नाम का अंधाधुंध प्रचार किया। आचार्य श्री ने श्रीराधारानी को ही अपनी स्वामिनी माना है। उन्होंने अपनी कृतियों में इसी पक्ष को उद्भासित किया है कि श्रीराधा के सेवक स्वयं श्रीकृष्ण हैं। आइये आज हम उनके द्वारा ही प्रदत्त उन उपदेशों का पठन करें जो उन्होंने अपने साहित्यों में हम सभी जीवों के आत्मिक कल्याण के निमित्त दिये हैं ::::
•• महारानी श्रीराधारानी चिंतन : यहाँ से पढ़ें..
(1) श्रीवृषभानुनन्दिनी राधिका जी ही एकमात्र सर्वश्रेष्ठ तत्त्व हैं। उन्हीं का अपर अभिन्न स्वरुप स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण हैं, जिनका अवतार द्वापर युग के अंत मे हुआ था।
(2) कभी एक क्षण के लिए भी स्वयं को अकेला न मानो। सदा सब स्थानों पर श्रीराधा तुम्हारे साथ हैं। जीव के कर्मानुसार शरीर का जन्म मरण होता रहता है। इस कारण हर जन्म में नयी नयी मातायें भी बनीं। आत्मा की माँ श्रीराधा तो सदा से एक ही थीं, एक ही रहेंगी।
(3) जीव जिस किसी भी स्थान पर रहे, उसे सदा यह चिंतन करना चाहिए कि मेरे हृदय में विराजमान श्रीराधा मेरे मन के शुभ अशुभ समस्त संकल्पों को जानकर उनके अनुसार मुझे मेरे कर्मों का फल प्रदान करेंगी। हे मन ! निरंतर अपनी इष्टदेवी श्रीराधा का स्मरण कर। उनसे भी यही प्रार्थना कर कि तुझे वे एक क्षण को भी न भूलें।
(4) शास्त्रों के श्रवण-पठन के द्वारा केवल जान लेने मात्र से काम नहीं बनेगा। पहले जानना है, जानने के बाद मानना एवं मानने के बाद श्री राधिका की मन से शरणागति करनी होगी। हे जीवों ! निष्काम भाव से श्रीराधा नाम, रूप, गुण, लीला, जन एवं धाम में ही अपने मन को लगाओ। इसी में मानव-जीवन की सार्थकता है।
(5) हे जीव ! अनादिकाल से अनन्तानन्त पाप करने के कारण तेरा मन अत्यंत मलिन हो चुका है अतएव (साधना द्वारा अंतःकरण शुद्धि की मात्रानुसार) श्री राधा धीरे-धीरे ही मन को अच्छी लगेंगी, एकाएक नहीं। भूलकर भी अपने मन में निराशा को न आने दो। विश्वास रखो एक दिन किशोरी जी तुम्हें अवश्य अपनाएंगी।
•• स्त्रोत : 'भक्ति शतक' एवं 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ से
•• सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
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- वास्तु शास्त्र में घर के निर्माण से लेकर साज-सजावट तक के लिए नियम बताए गए हैं यदि इन नियमों का ध्यान न रखा जाए तो व्यक्ति को जीवन में समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वास्तु के अनुसार कुछ ऐसी तस्वीरे होती हैं जिन्हें घर में नहीं लगाना चाहिए। इन तस्वीरों को घर में लगाने से आपके जीवन में कलह-क्लेश और दुर्भाग्य को आमंत्रण मिलता है। यदि आपके घर में ये तस्वीरे लगी हुई हैं तो इन्हें तुरंत हटा देना चाहिए। तो चलिए जानते हैं कि कौन सी हैं वे तस्वीरे।नटराज की मूर्तिवैसे तो नटराज भगवान शिव का ही एक रूप है, लेकिन वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में नटराजन की मूर्ति नहीं लगानी चाहिए क्योंकि इसमें भगवान शिव तांडव की मुद्रा में हैं और इन्हें विध्वंस का प्रतीक माना गया है। यही कारण है कि वास्तु में घर में नटराज की मूर्ति या फिर तस्वीर लगाने को मना किया जाता है।डूबते जहाज या नाव की तस्वीरकई बार लोग अपने घर में सुंदर तस्वीरे लगाते हैं, लेकिन उनमें बने चित्रण पर ध्यान नहीं देते हैं या फिर शौक के कारण भी कई लोग टाइटैनिक आदि की तस्वीर भी घर में लाकर लगा लेते हैं । वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में कभी भी डूबती नाव या जहाज की तस्वीर नहीं लगानी चाहिए। ये तस्वीर नकारात्मकता लाती हैं। इससे आपके कार्यक्षेत्र पर प्रभाव पड़ सकता है, इसलिए भूलकर भी अपने घर में ऐसी तस्वीरे नहीं लगानी चाहिए।रोते बच्चे की तस्वीरबच्चों की तस्वीरे हर किसी को पसंद होती हैं खासतौर पर यदि निसंतान दंपति बच्चों की तस्वीर अपने कमरे में लगाते हैं तो यह शुभ मानी जाती हैं, लेकिन वास्तु शास्त्र कहता है कि कभी भी रोते हुए बच्चे की तस्वीर घर में नहीं लगानी चाहिए। बच्चों को सौभाग्य का सूचक माना जाता है, लेकिन रोते हुए बच्चे की तस्वीर दुर्भाग्य का कारण बन सकती है।युद्ध की तस्वीरवास्तुशास्त्र के अनुसार घर में कभी भी हिंसात्मक अस्त्र-शस्त्र या युद्ध से संबंधित तस्वीरे नहीं लगानी चाहिए। घर में महाभारत की तस्वीर लगाने के भी मना किया जाता है। ये तस्वीरे घर में कलह-क्लेश के बढ़ाती हैं। माना जाता है कि महाभारत की तस्वीर घर में लगाने से भाईयों के बीच अलगाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।गुलाब के पेड़ की तस्वीरज्यादातर लोगों के गुलाब और गुलाब की तस्वीरे अच्छी लगती हैं क्योंकि यह देखने में बहुत खूबसूरत होता है, लेकिन वास्तु शास्त्र कहता है कि गुलाब का पेड़ या फिर गुलाब के पेड़ की तस्वीर घर में लगाना सही नहीं रहता है। गुलाब के पेड़ में कांटे होते हैं यहीं कारण है कि यह नकारात्मकता को बढ़ा सकता है। इसका विपरीत प्रभाव परिवार के सदस्यों की सेहत पर भी पड़ता है।
- काले घोड़े की नाल , वह भी दाहिने पैर की नाल कोई साधारण नाल नहीं होती। घोड़े की नाल बहुत शुभ और बहुत उत्तम मानी जाती है और अनेक प्रकार की विपदा और संकटों में आपकी समस्याओं का समाधान करने की शक्ति इसमें होती है क्योंकि घोड़ा अपनी तेज हवाई रफ्तार से दौड़ते हुए अपनी मंजिल पर पहुंच जाता है। ठीक उसी प्रकार जिस घर में घोड़े की नाल होती है उस परिवार के सदस्य अति शीघ्र अपने मुकाम पर पहुंच जाते हैं, लेकिन यह सब कार्य वहीं नाल कर सकती है जो घोड़े द्वारा चलचल कर घीसी गई हुई हो।-तंत्र शास्त्र के अनुसार जिस घर में घोड़े की नाल मुख्य द्वार पर अंग्रेजी अक्षर यू के आकार की लगी होती है, उस घर में प्रवेश करने वाला कोई भी व्यक्ति है यदि उसके ऊपर कोई भूत प्रेत का साया है या फिर नकारात्मक शक्ति है या उस पर कोई जादू टोना किया गया है तो उसकी द्वार में प्रवेश करने से पहले ही सभी नकारात्मक शक्तियां आपके दरवाजे के बाहर ही रुक जाएंगी अंदर प्रवेश नहीं कर पाएंगी।-घोड़े की नाल को अपनी दुकान के मुख्य द्वार की चौखट पर अंग्रेजी के यू क्षर की तरह से लगा दं,े ऐसा करने से कारोबार में आमदनी दिन दूनी रात चौगुनी बढऩे लगेगी।-घोड़े की नाल को काले कपड़े में लपेटकर अपने अनाज भंडार में रख दें, ऐसा करने से घर में अन्न की बरकत बनी रहेगी।-अगर आपके घर में धन से संबंधित परेशानियां हैं,बरकत नहीं होती,पैसा रुकता नहीं या फिर कहीं से आय का कोई साधन नहीं है। ऐसे में आप घर के मुख्य द्वार पर काले घोड़े की नाल लगा दें और अगर घोड़े की नाल को काले कपड़े में बांधकर तिजोरी में रख दंगेे तो धन में बढ़ोतरी होगी।-जिस व्यक्ति पर शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या चढ़ी हुई हो ऐसे व्यक्ति को शनि दोष से मुक्त कराने के लिए उसके पलंग पर घोड़े की नाल को टांग दे ंया फिर घोड़े की नाल की कील बनवा कर उसके पलंग में गाड़ दे ऐसा करने से उस व्यक्ति को शनि के प्रकोप से छुटकारा मिल जाएगा।-अगर बच्चे का मन पढ़ाई में नहीं लग रहा है तो उसका मन पढ़ाई में लगाने के लिए और प्रतियोगिता में सफल होने के लिए घोड़े की नाल की अंगूठी बनवाये और उस अंगूठी को मध्यमा उंगली यानी बीच की उंगली में शनिवार के दिन पहनाए सफलता उसके साथ चलने लगेगी।-काले घोड़े की नाल को घर के मुख्य दरवाजे पर यू के आकार में टांग देना चाहिए क्योंकि घोड़े की नाल का जो आकार होता है अंग्रेजी अक्षर यू के समान होता है। ऐसा करने से घर के अंदर आने वाले नकारात्मक ऊर्जा पर रोक लगती है। साथ ही यदि आपके घर में किसी भी तरीके का वास्तु दोष है, वह समाप्त होगा, शत्रुओं से मुक्ति मिलेगी। घर में किसी भी प्रकार के लड़ाई झगड़े ,मनमुटाव, गृह क्लेश है तो वह भी समाप्त होगा साथ ही टोने टोटके का प्रभाव समाप्त हो जाएगा।- अगर आपको ऐसा लगता है कि आप पर बुरी नजर लग गई है या फिर आपके घर परिवार में जिसे भी नजर लगी है , तो उसे उतारने के लिए एक लोहे की कटोरी में सरसों का तेल लें और उसमें काले घोड़े की नाल को डाल दें। अब इस कटोरी को जिसे नजर लगी है उसके सिर से पैर तक 7 बार घुमाकर किसी सुनसान जगह पर गाड़ दें ऐसा करने से बुरी नजर उतर जाएगी।(नोट- ये उपाय तंत्र शास्त्र के आधार पर बताए गए हैं।)
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 392
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ऐसे मूल जगदगुरु हुये हैं जिन्होंने सुमधुर 'राधा' नाम तथा उनके गुणगान को विश्वव्यापी बनाया और विदेशों में जाकर श्रीराधाकृष्ण भक्ति का अधाधुंध प्रचार किया। जीवन पर्यंत उन्होंने श्री राधारानी को ही अपनी स्वामिनी मानते हुये श्रीराधा नाम गुणगान का ही दिव्य संदेश दिया है। जो राधा तत्व पुस्तकों तक ही सीमित था, उसे अत्यधिक सरल भाषा में उन्होंने समझाया है। उनके द्वारा ही प्रगटित साहित्य-भण्डार से प्रतिदिन थोड़ी-थोड़ी राशि आप सबके समक्ष प्रस्तुत की जाती रही है, जिसका गहराई से चिन्तन-मनन निश्चय ही हमारी आध्यात्मिक चेतना को परिष्कृत करते हुये उसे भगवद-रस से परिप्लुत कर देगा। आइये आज के अंक में प्रकाशित इस दिव्य तत्वदर्शन पर विचार करें :::
★ 'जगदगुरुत्तम-ब्रज साहित्य'(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित साहित्य/ग्रन्थ)
श्याम गये मथुरा ना गई ब्रज बामा।श्याम रुचि महँ रुचि राखें आठु यामा।।
भावार्थ ::: श्यामसुंदर ब्रजवासियों को छोड़कर मथुरा गये परन्तु गोपियाँ किंचित दूर होने पर भी कभी प्रियतम का दर्शन करने मथुरा नहीं गईं। ब्रजगोपियों ने कृष्ण को संकोच में नहीं डालना चाहा। सदा श्यामसुन्दर के सुख में ही सुखी रहना, यही गोपी प्रेम की विशेषता है।
• संदर्भ ::: श्यामा श्याम गीत, दोहा संख्या 249----------------★ 'जगदगुरुत्तम-श्रीमुखारविन्द'(जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा निःसृत प्रवचन का अंश)
...भगवान की उपासना तो अनुकूल भाव से ही होती है। प्रतिकूल भाव से तो वही कर सकता है जिसमें उसके शक्ति के बराबर शक्ति हो। कुछ महापुरुष भगवान की उपासना अनुकूल भाव से और कुछ प्रतिकूल भाव से करते देखे जाते हैं किंतु साधारण जीव हमेशा प्रतिकूल भाव से नहीं कर सकता। भगवान की उपासना जो अनेक भावों से शास्त्रों में लिखी गयी हैं उसमें काम, क्रोध, लोभ और मोह तो लिखा है, स्नेह, भय, ऐक्य भी लिखा है लेकिन द्वेष नहीं लिखा...
• संदर्भ ::: अध्यात्म संदेश पत्रिका, मार्च 2003 अंक
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) -
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रविवार का दिन सूर्यदेव को समर्पित होता है। इस दिन विधि- विधान से सूर्यदेव की पूजा- अर्चना की जाती है। वैदिक ज्योतिष में हर दिन ग्रह-नक्षत्रों की चाल से राशिफल का आंकलन किया जाता है। जानिए रविवार के दिन किन राशि वालों को होगा लाभ और किन राशि वालों को रहना होगा सावधान।
मेष राशि
संयत रहें। धैर्यशीलता बनाये रखने के प्रयास करें। दाम्पत्य सुख में वृद्धि होगी। मित्रों का सहयोग मिलेगा। मन अशान्त रहेगा। नौकरी में अफसरों से मतभेद बढ़ सकते हैं। वाणी में कठोरता का प्रभाव हो सकता हैं। धर्म के प्रति श्रद्धाभाव रहेगा। तनाव से बचें।
वृष राशि
मन परेशान रहेगा। व्यर्थ के क्रोध से बचें। शैक्षिक कार्यों में सफलता मिलेगी। वस्त्रों पर खर्च बढ़ सकते हैं। रहन-सहन कष्टमय हो सकता है। क्रोध एवं आवेश के अतिरेक से बचें। जीवनसाथी को स्वास्थ्य विकार हो सकते हैं। संतान को कष्ट होगा। खर्च अधिक रहेंगे।
मिथुन राशि
धर्म के प्रति श्रद्धाभाव रहेगा। भवन सुख में वृद्धि हो सकती है। नौकरी में यात्रा पर जा सकते हैं। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। क्षणे रुष्टा-क्षणे तुष्टा के भाव रहेंगे। दाम्पत्य सुख में बढ़ोतरी होगी। परिवार में सुख-शांति रहेगी। माता के सहयोग से धन की प्राप्ति के योग हैं।
कर्क राशि
घर-परिवार में धार्मिक कार्य हो सकते हैं। परिवार का साथ रहेगा। सन्तान के स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें। नौकरी में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। स्थान परिवर्तन की भी सम्भावना बन रही हैं। मन अशान्त रहेगा। भाइयों के सहयेाग से तरक्की के योग हैं।
सिंह राशि
वाणी के प्रभाव में वृद्धि होगी, परन्तु व्यर्थ के वाद-विवाद से बचें। किसी राजनेता से भेंट हो सकती है। सुस्वादु खानपान में रुचि रहेगी। मानसिक शान्ति रहेगी। शैक्षिक एवं शोधादि कार्यों में सफलता मिलेगी। मान-सम्मान की प्राप्ति होगी। स्वास्थ्य का ध्यान रखें।
कन्या राशि
आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। माता के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। पिता का सानिध्य मिलेगा। कारोबार में वृद्धि होगी। खर्च भी बढ़ेंगे। सन्तान के दायित्व की पूर्ति होगी। घर-परिवार में धार्मिक कार्य होंगे। पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा। खानपान में रुचि बढ़ेगी।
तुला राशि
वाणी में मधुरता रहेगी। फिर भी व्यर्थ के विवाद एवं झगड़ों से बचें। वाहन सुख में वृद्धि हो सकती है। मित्रों का सहयोग मिलेगा। मन अशान्त रहेगा। बातचीत में संयत रहें। धर्मकर्म में रुचि बढ़ सकती है। जीवनसाथी का साथ मिलेगा। व्यापार में तरक्की के योग हैं।
वृश्चिक राशि
संयत रहें। बातचीत में सन्तुलित रहें। नौकरी में स्थान परिवर्तन सम्भव है। परिवार से अलग रहना पड़ सकता है। मन अशान्त रहेगा। जीवनसाथी से मतभेद रहेंगे। स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें। चिकित्सीय खर्च बढ़ सकते हैं। तरक्की के योग हैं। माता से धन की प्राप्ति होगी।
धनु राशि
लेखनादि-बौद्धिक कार्यों में व्यस्तता बढ़ सकती हैं। किसी मित्र के सहयोग से आय के साधन बन सकते हैं। सेहत का ध्यान रखें। परिवार की जिम्मेदारी बढ़ सकती हैं। मान-सम्मान में वृद्धि होगी। मन में शान्ति एवं प्रसन्नता के भाव रहेंगे। मित्रों का साथ मिलेगा।
मकर राशि
मानसिक शान्ति रहेगी। किसी सम्पत्ति से आय के साधन बन सकते हैं। किसी मित्र से कारोबार का प्रस्ताव मिल सकता है। आत्मविश्वास में कमी आएगी। परिवार के साथ किसी धार्मिक स्थान की यात्रा का कार्यक्रम बन सकता है। शैक्षिक कार्यों में सफलता मिलेगा।
कुंभ राशि
सन्तान के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। परिवार का साथ मिलेगा। खर्च बढ़ेंगे। परिश्रम भी अधिक रहेगा। धार्मिक संगीत के प्रति रुझान बढ़ सकता है। नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षा एवं साक्षात्कार में सफलता मिलेगी। मित्रों के सहयोग से आय के नए स्रोत विकसित होंगे।
मीन राशि
संयत रहें। व्यर्थ के क्रोध से बचें। परिवार का साथ मिलेगा। सन्तान की ओर से सुखद समाचार मिल सकता है। सेहत का ध्यान रखें। पारिवारिक जीवन कष्टमय रहेगा। नौकरी में इच्छा-विरूद्ध कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी मिल सकती है। परिश्रम अधिक रहेगा। - कुछ लोग ऐसे होते हैं जो विनम्र, जमीन से जुड़े और बहुत ही सरल स्वभाव के होते हैं। उनके पास कोई हवा या हैंगअप नहीं होता है और बिना किसी एक्स्ट्रा सामान के एक आसान जीवन जीने की कोशिश करते हैं। वहीं, दूसरी ओर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो रूखे, घमंडी और अटके हुए होते हैं। उनके पास एक सुपेरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स है और वे दृढ़ता से मानते हैं कि वो मानव जाति के लिए भगवान का उपहार हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, मुख्य रूप से 4 ऐसी राशियां होती हैं जो स्वयं को दूसरों से बेहतर मानती हैं और धूर्त होती हैं। नीचे इन राशियों पर एक नजर डालें...मेष राशिमेष राशि के जातक राशियों की सूची में सबसे ऊपर होते हैं। उन्हें लगता है कि वो हर सूची में सबसे ऊपर होने के लायक हैं और वो जो कुछ भी करते हैं उसमें वो सर्वश्रेष्ठ हैं। वो किसी को भी अपने से बेहतर किसी भी चीज में नहीं मानते हैं।सिंह राशिये कोई रहस्य नहीं है कि सिंह राशि वाले लोग स्वयं को इस हद तक प्यार करते हैं कि बाकी सभी को नीचे खींच कर उन्हें कम आंकते हैं। सिंह राशि वाले लोगों को लगता है कि वो एक स्टार हैं और इस तरह उन्हें घमंडी और दंभी होने का पूरा अधिकार है।कन्या राशिकन्या राशि के जातक जो कुछ भी करते हैं उसमें परफेक्शन हासिल करने का लक्ष्य रखते हैं। उन्हें लगता है कि वो सबसे अच्छी तरह जानते हैं और अक्सर दूसरे लोगों को मूर्ख की तरह महसूस कर सकते हैं।धनु राशिधनु राशि के लोग स्वयं को बहुत अधिक सम्मान में रखते हैं। उन्हें लगता है कि वो कभी गलत नहीं हो सकते हैं और इस बात पर गर्व करते हैं कि वो ब्लंट और ईमानदार हैं। वो सेल्फ-लव की अवधारणा को कुछ ज्यादा ही गंभीरता से लेते हैं और अंत में बॉस के जैसा व्यवहार करने वाला और अहंकारी के रूप में सामने आते हैं।
- वास्तु शास्त्र के अनुसार जिन घरों में वास्तु से संबंधित किसी भी प्रकार का दोष होता है वहां पर बीमारियां, परेशानियां, धनहानि, मनमुटाव और विवाद अक्सर पीछा करते हैं। इसके अलावा ये भी देखा जाता है कि कई बार दिन-रात व्यक्ति मेहनत करता है लेकिन वह वैसी सफलता नहीं प्राप्त करता जैसी उसको अपेक्षा रहती है। वास्तु शास्त्र के कुछ आसान उपाय से आप अपनी जिंदगी को संवार सकते हैं। वास्तु के उपाय घर, ऑफिस या फिर व्यापारिक अनुष्ठान आदि में वास्तु दोष को दूर करने में कारगर होते हैं। आज हम आपको ऐसे दस वास्तु शास्त्र के उपाय बताएंगे जो आपकी जिंदगी में खुशियों के रंग घोल सकते हैं। ये उपाय इस प्रकार हैं।1. सुबह घर की सफाई के उपरांत हल्दी को जल में घोलकर एक पान के पत्ते की सहायता से अपने सम्पूर्ण घर में छिड़काव करें, इससे घर में लक्ष्मी का वास तथा शांति भी बनी रहती है। इसी प्रकार घर में सफाई करने के उपरांत गंगाजल के छिड़काव से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं और वास्तुदोष दूर भागता है।2. गलत दिशा में रखी गईं धार्मिक पुस्तकें वास्तु दोष का कारण बनती हैं। वास्तु के अनुसार धार्मिक पुस्तकों और ग्रंथों को हमेशा पश्चिम की तरफ ही रखना चाहिए। किसी दूसरी दिशा में, बेड के अंदर अथवा गद्दे या तकिये के नीचे धार्मिक पुस्तकें रखना शुभ नहीं होता।3. अपने घर के मंदिर में घी का एक दीपक नियमित जलाएं तथा घंटी भी बजाना चाहिए जिससे सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा घर से बहार निकलती है। इसी तरह घर में शंख रखने और बजाने से घर का वास्तु दोष दूर होता है। घर के पूजा-स्थल में देवी-देवताओं पर चढ़ाए गए पुष्प-हार दूसरे दिन हटा देने चाहिए और भगवान को नए पुष्प-हार अर्पित करने चाहिए। इसी प्रकार पूजा घर में देवताओं के चित्र भूलकर भी आमने-सामने नहीं रखने चाहिए इससे बड़ा दोष उत्पन्न होता है।4.घर में सफाई हेतु रखी झाडू को दरवाजे के पास नहीं रखें यदि। यदि झाडू के बार-बार पैर लगता है, तो यह धन-नाश का कारण होता है। झाडू के ऊपर कोई वजनदार वस्तु भी नहीं रखें।5.अपने घर में दीवारों पर सुन्दर, हरियाली से युक्त और मन को प्रसन्न करने वाले चित्र लगाएं। इससे घर के मुखिया को होने वाली मानसिक परेशानियों से निजात मिलती है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 391
साधक का प्रश्न ::: श्री राधारानी की कृपा प्राप्त करने के लिये क्या साधना करनी होगी?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: अरे! ये ही तो साधना है कि वो बिना कारण के कृपा करती हैं ये फेथ (विश्वास) करो। यही साधना है। जो कीर्तन करते हो तुम, यही तो साधना करते हो न। उस कीर्तन का मतलब क्या? रोकर उनको पुकारो कि तुम कृपा करो। यही साधना है। इसी से अन्तःकरण शुद्ध होता है। मन को शुद्ध करने के लिये साधना होती है। फिर उसके बाद वो कृपा से प्रेम देती हैं। उनका लाभ तो कृपा से मिलता है। तुम्हारा काम तो मन को शुद्ध करना है। और मन शुद्ध करने के लिये उनको पुकारना है। बस यही साधना है। और साधना कोई मूल्य थोड़े ही है कृपा का। साधना तुम करते हो गन्दे मन से और कृपा से तो दिव्य वस्तु मिलेगी। तो तुम्हारा रोना कोई दाम थोड़े ही है। तुम जाओ किसी दुकानदार के आगे रोओ कि हमको कार दे, दो पैसा नहीं है हमारे पास। तो वो कहेगा भाग जाओ, पागल है तू। तो उसी प्रकार अगर हम रोवें भी भगवान के आगे, वो कहें भाग जाओ पहले दाम दो, हम जो दे रहे हैं तुमको सामान उसका। तो हमारे पास दाम है ही नहीं, क्या देंगे? वो दिव्य प्रेम है भगवान का। हमारी इन्द्रियाँ, हमारा मन, हमारी बुद्धि, हमारा शरीर सब गन्दा। हम क्या दे करके वो दिव्य प्रेम लेंगे? इसलिये साधना मूल्य नहीं है। साधना तो केवल बर्तन बनाना है। मन का बर्तन शुद्ध कर लो तो उसमें दिव्य सामान कृपा से मिलेगा।
०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - इस महीने में चार राशि के लोगों को सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि देवगुरू बृहस्पति 14 सितंबर 2021 को मंगलवार के दिन मकर राशि में प्रवेश करेंगे. इसलिए गुरू के राशि परिवर्तन से सभी 12 राशियों पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा. अभी शनि का भी अपनी स्वराशि मकर में गोचर हुआ है, ऐसे में गुरू का मकर राशि में आने से दोनों वक्री अवस्था में हैं. गुरू मकर राशि में 'नीचभंग राजयोग' बनाने जा रहे हैं. वक्री ग्रहों की इस अवस्था से 4 राशियों के जातकों को विशेष लाभ मिलेगा, जबकि अन्य राशि के जातकों को सतर्क रहने की सलाह दी गई है.इन राशियों के लिए रहेगा शुभदेवगुरू बृहस्पति 14 सितंबर 2021 मंगलवार को सुबह 11 बजकर 43 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे. इस बदलाव से वृषभ, कर्क, तुला और मकर राशि वालों के लिए लाभ के योग बन रहे हैं. इन राशि वालों के लंबे समय से अटके हुए काम पूरे होंगे. करियर और कारोबार में लाभ होगा साथ ही प्रियजनों का भी साथ मिल सकेगा.इस राशि के लोग रहें खास सावधानमकर राशि में एक साथ शनि और गुरू की युति मेष, मिथुन, सिंह और वृश्चिक राशि के लिए कष्टकारी साबित हो सकती है. इन 4 राशियों के जातकों को आर्थिक नुकसान हो सकता है. इन्हें किसी भी प्रकार के विवाद से बचने की खास आवश्यकता है. वाहन चलाते समय सावधान रहें.शुभ समाचार की उम्मीदइसके साथ ही कन्या, धनु, कुंभ और मीन राशि वालों के लिए इस परिवर्तन का प्रभाव सामान्य रहेगा. हालांकि इन राशि के जातकों को नौकरी और व्यापार में शुभ समाचार मिल सकता है. सेहत को लेकर सावधान रहें.
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कन्या संक्रांति इस साल 17 सितंबर शुक्रवार को है। हिन्दू धर्म में संक्रांति पर्व का विशेष महत्व होता है। इस दिन सूर्य देव की आराधना करने का विधान है। कन्या संक्रांति तिथि स्नान, दान आदि धार्मिक कार्यों के लिए बेहद लाभदायक मानी गई है। पितरों की आत्मा की शांति के लिए इस दिन पूजा करना फायदेमंद माना गया है। कन्या संक्रांति पर विश्वकर्मा पूजन भी किया जाता है जिस वजह से इस तिथि का महत्व अत्यधिक बढ़ जाता है। इस दिन पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है। ज्योतिष विज्ञान में सूर्य जब एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में प्रवेश करता है तो इसे संक्रांति कहते हैं। सूर्य हर माह अपनी राशि बदलते हैं। इस प्रकार एक वर्ष में सूर्य इन 12 राशियों में चक्कर लगाते हैं जिस कारण एक साल में 12 संकांतियां आती हैं। कन्या राशि में बुध देव पहले से मौजूद हैं जिससे कन्या संक्रांति के दिन सूर्य और बुध का मिलन होगा और दोनों इस राशि में बुधादित्य योग का निर्माण करेंगे।
कन्या संक्रांति का शुभ मुहूर्त
पुण्य काल मुहूर्त: 17 सितंबर 2021 सुबह 06:17 से दोपहर 12:15 तक
महापुण्य काल मुहूर्त: 17 सितंबर 2021 सुबह 06:17 से 08:10 तक
कन्या संक्रांति पर सूर्योदय: 17 सितंबर 2021 सुबह 06:17
कन्या सक्रांति पर सूर्यास्त: 17 सितंबर 2021 शाम 06:24
कन्या राशि पर सूर्य का प्रभाव
कन्या राशि के जातकों का समाज में मान-सम्मान बढ़ेगा। जॉब में प्रमोशन मिल सकता है। इस अवधि में आपको शुभ समाचार मिलने की संभावना है। अन्य क्षेत्र में भी सुखद नतीजे मिलेंगे। नई जॉब की तलाश कर रहे जातकों को लाभ मिल सकता है। वैवाहिक जीवन के लिए सूर्य का आपकी राशि में आना बहुत ज्यादा अनुकूल नहीं है। जीवनसाथी से विवाद की स्थिति बन सकती है। इसलिए विशेष ध्यान रखें।
सूर्य देव का आशीर्वाद पाने के लिए करें ये उपाय
रविवार के दिन सूर्य को जल चढ़ाएं। कन्या संक्रांति के दिन दान दें। पिताजी की सेवा करें। बुराई और किसी गलत आचरण से बचें। ऐसा करने से आपको सूर्य देव का आशीर्वाद प्राप्त होगा। समाज में आपका मान-समान बढ़ेगा
- भारतीय शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि पितृगण पितृपक्ष में पृथ्वी पर आते हैं और 15 दिनों तक पृथ्वी पर रहने के बाद अपने लोक लौट जाते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि पितृपक्ष के दौरान पितृ अपने परिजनों के आस-पास रहते हैं इसलिए इन दिनों कोई भी ऐसा काम नहीं करें जिससे पितृगण नाराज हों। पितरों को खुश रखने के लिए पितृ पक्ष में कुछ बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।पितृ पक्ष के दौरान ब्राह्मण, जामाता, भांजा, गुरु, नाती को भोजन कराना चाहिए। इससे पितृगण अत्यंत प्रसन्न होते हैं। ब्राह्मणों को भोजन करवाते समय भोजन का पात्र दोनों हाथों से पकड़कर लाना चाहिए अन्यथा भोजन का अंश राक्षस ग्रहण कर लेते हैं जिससे ब्राह्मणों द्वारा अन्न ग्रहण करने के बावजूद पितृगण भोजन का अंश ग्रहण नहीं करते हैं। पितृ पक्ष में द्वार पर आने वाले किसी भी जीव-जंतु को मारना नहीं चाहिए बल्कि उनके योग्य भोजन का प्रबंध करना चाहिए।हर दिन भोजन बनने के बाद एक हिस्सा निकालकर गाय, कुत्ता, कौआ को देना चाहिए। मान्यता है कि इन्हें दिया गया भोजन सीधे पितरों को प्राप्त हो जाता है। शाम के समय घर के द्वार पर एक दीपक जलाकर पितृगणों का ध्यान करना चाहिए। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार जिस तिथि को जिसके पूर्वज गमन करते हैं, उसी तिथि को उनका श्राद्ध करना चाहिए।इस पक्ष में जो लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं, उनके समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं। जिन लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती, उनके लिए पितृ पक्ष में कुछ विशेष तिथियां भी निर्धारित की गई हैं, जिस दिन वे पितरों के निमित्त श्राद्ध कर सकते हैं।आश्विन कृष्ण प्रतिपदाइस तिथि को नाना-नानी के श्राद्ध के लिए सही बताया गया है। इस तिथि को श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। यदि नाना-नानी के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला न हो और उनकी मृत्युतिथि याद न हो, तो आप इस दिन उनका श्राद्ध कर सकते हैं।पंचमीजिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि को किया जाना चाहिए।नवमीसौभाग्यवती यानि पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गई हो, उन स्त्रियों का श्राद्ध नवमी को किया जाता है। यह तिथि माता के श्राद्ध के लिए भी उत्तम मानी गई है। इसलिए इसे मातृनवमी भी कहते हैं। मान्यता है कि इस तिथि पर श्राद्ध कर्म करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है।एकादशी और द्वादशीएकादशी में वैष्णव संन्यासी का श्राद्ध करते हैं। अर्थात् इस तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किए जाने का विधान है, जिन्होंने संन्यास लिया हो।चतुर्दशीइस तिथि में शस्त्र, आत्म-हत्या, विष और दुर्घटना यानि जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध किया जाता है जबकि बच्चों का श्राद्ध कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को करने के लिए कहा गया है।सर्वपितृमोक्ष अमावस्याकिसी कारण से पितृपक्ष की अन्य तिथियों पर पितरों का श्राद्ध करने से चूक गए हैं या पितरों की तिथि याद नहीं है, तो इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। शास्त्र अनुसार, इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है। यही नहीं जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो, उनका भी अमावस्या तिथि को ही श्राद्ध करना चाहिए। बाकी तो जिनकी जो तिथि हो, श्राद्धपक्ष में उसी तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए। यही उचित भी है। पिंडदान करने के लिए सफेद या पीले वस्त्र ही धारण करें। जो इस प्रकार श्राद्धादि कर्म संपन्न करते हैं, वे समस्त मनोरथों को प्राप्त करते हैं और अनंत काल तक स्वर्ग का उपभोग करते हैं।श्राद्ध सदैव दोपहर के समय ही करें। प्रातः एवं सायंकाल के समय श्राद्ध निषेध कहा गया है।
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Happy Ganesh Chaturthi
& Happy Shri Krishna Barhaun
आज 2 पावन पर्व हैं। प्रथम; आज श्री गणेश चतुर्थी है। आदि पूज्य देव भगवान श्री गणेश की स्तुति-वंदन का महापर्व और दूसरा; आज भगवान श्रीकृष्ण की 'बरहौं' का पर्व भी है। अर्थात जन्माष्टमी में जन्म से आज बालगोपाल 12-दिन के हो गये हैं। ब्रजधाम में समस्त ब्रजवासी अपने ब्रजचंद्र नीलमणि यशोदानन्दन कृष्ण को पालने में झूलते देखकर आनन्द में मग्न हैं और उनकी जय-जयकार करते हुए आशीष प्रदान कर रहे हैं। इन दोनों महापर्वों में हम भी आनन्दपूर्वक सम्मलित होवें।
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने अपने साहित्यों में आदि पूज्य देव श्री गणेश जी की वंदना में अनेक दोहों तथा कीर्तनों की रचना की है, जिसमें उन्होंने उनके स्वरूप तथा गुणों की निष्कामतापूर्वक स्तुति की है तथा उनसे श्रीराधाकृष्ण का दर्शन, प्रेम और सेवा की ही याचना की है। आइये हम भी उन्हीं के शब्दों में भगवान श्री गणेश की स्तुति करें :::
गाइये गणपति जगवंदन।
सिद्धि सदन शिव शंकर नंदन।
भक्त जनन के विघ्न विनाशन।
भक्ति भाव ते करु नित अर्चन ।
मन ते करु नित गणपति चिंतन।
रसना ते गाइय उन गुनगन।
जय हो जय हो गणपति त्रिभुवन वंदन।
तुम्हरो कोटि कोटि अभिनंदन।
कोउ भल गन भी ले, जग भू रज कन।
पै गणपति तव गुन नहिं सक गन।
हे गणेश गजपति लंबोदर।
कृष्ण प्रेम पाऊँ यह दो वर।
अति कृपालु तुम गौरी नंदन।
अस वर दो दे राधा दरसन।।
• संदर्भ ग्रन्थ ::: ब्रज रस माधुरी (भाग - 1)
आदि पूज्य देव भगवान श्री गणेश की स्तुति में श्री कृपालु जी महाराज ने अन्यत्र कहा है;
"...सम्पूर्ण संसार में जो पृथ्वी है, इसके जो रज हैं, धूल, इसके जो कण हैं, उसको भी कोई गिन ले; असम्भव है, 4 फुट जमीन के धूल के कण को कोई नहीं गिन सकता, फिर सम्पूर्ण जग की पृथ्वी के कण को कोई गिन ले, असम्भव है। लेकिन फिर भी, भले ही कोई गिन ले, लेकिन हे गणपति! तुम्हारे गुण-गन को कोई नहीं गिन सकता। तुम्हारे इतने गुण हैं कि उनको कोई नहीं गिन सकता, भले ही सम्पूर्ण पृथ्वी के रज-कण को गिन ले..."
अनन्त गुणों की खान गौरीनंदन, शंकरसुवन, गणनायक भगवान श्री गणेश की सदा जय हो!! पुनः आप सभी पाठक जनों को 'श्री गणेश चतुर्थी' और भगवान श्रीकृष्ण की 'बरहौं' की हार्दिक शुभकामनायें!!
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(1) www.jkpliterature.org.in (website)
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(5) www.youtube.com/JKPIndia
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)
- पढ़ें मेष से लेकर मीन राशि तक का हाल10 सितंबर, 2021, शुक्रवार को गणेश चतुर्थी का पावन पर्व है। इस दिन विधि- विधान से भगवान गणेश की पूजा- अर्चना की जाती है। इसी दिन से 10 दिनों तक चलने वाले गणेश महोत्सव भी शुरू हो जाता है। वैदिक ज्योतिष में हर दिन ग्रह-नक्षत्रों की चाल से राशिफल का आंकलन किया जाता है। जानिए पं. राघवेंद्र शर्मा से 10 सितंबर, 2021 के दिन किन राशि वालों को होगा लाभ और किन राशि वालों को रहना होगा सावधान।मेष राशिमानसिक शान्ति रहेगी। शैक्षिक कार्यों के लिए विदेश प्रवास के भी योग बन रहे हैं। शासन-सत्ता का सहयोग मिलेगा। स्वभाव में चिड़चिड़ापन हो सकता है। रहन-सहन अव्यवस्थित रहेगा। कारोबार का विस्तार हो सकता है। आय में वृद्धि होगी। तरक्की के योग बन रहे हैं।वृष राशिआत्मसंयत रहें। क्रोध के अतिरेक से बचें। भौतिक सुखों में वृद्धि होगी। नौकरी में अफसरों से सद्भाव बनाये रखने के प्रयास करें। आय में कमी एवं खर्च अधिक की स्थिति रहेगी। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। माता के सहयोग से आय के स्रोत विकसित होंगे। तनाव से बचें।मिथुन राशिशैक्षिक कार्यों के सुखद परिणाम मिलेंगे। परिवार में सदभाव बनाये रखें। सम्पत्ति से आय के साधन बन सकते हैं। कार्यक्षेत्र में व्यवधान आ सकते हैं। स्वभाव में चिड़चिड़ापन रहेगा। परिवार में सुख-शान्ति रहेगी। वाहन सुख में वृद्धि होगी। मानसिक शान्ति रहेगी।कर्क राशिमन प्रसन्न रहेगा। आत्मविश्वास में वृद्धि होगी। कारोबार का विस्तार होगा। आय में वृद्धि होगी। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। नौकरी में स्थान परिवर्तन की सम्भावना बन रही हैं। अनियोजित खर्च बढ़ेंगे। भाइयों का सहयेाग मिलेगा। परिवार में धार्मिक कार्यक्रम होंगे।सिंह राशिबातचीत में सन्तुलित रहें। धैर्यशीलता बनाये रखने के प्रयास करें। नौकरी में परिवर्तन के योग बन रहे हैं। परिवार से दूर रहना पड़ सकता है। कला एवं संगीत के प्रति रुझान बढ़ेगा। शैक्षिक कार्यों के सुखद परिणाम मिलेंगे। भाई-बहनों के सहयोग से कारोबार का विस्तार हो सकता है।कन्या राशिआत्मविश्वास तो भरपूर रहेगा, परन्तु धैर्यशीलता बनाये रखने के लिए प्रयास करें। पारिवारिक जीवन कष्टमय हो सकता है। घर-परिवार में धार्मिक कार्य होंगे। परिश्रम की अधिकता रहेगी। वाहन सुख की प्राप्ति हो सकती है। मित्रों के सहयोग से कारोबार के योग बनेंगे।तुला राशिमन में शान्ति एवं प्रसन्नता के भाव रहेंगे। कला या संगीत के प्रति रुझान बढ़ सकता है। जीवनसाथी के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। मानसिक तनाव रहेगा। दिनचर्या अव्यवस्थित रहेगी। सन्तान की ओर से सुखद समाचार मिल सकते हैं। सुस्वादु खानपान में रुचि रहेगी।वृश्चिक राशिबातचीत में सन्तुलित रहें। मन परेशान हो सकता है। परिवार के साथ किसी धार्मिक स्थान पर जा सकते हैं। वस्त्रों पर खर्च बढ़ेंगे। आत्मविश्वास में कमी रहेगी। व्यर्थ के विवाद एवं झगड़े आदि से बचें। नौकरी में कोई अतिरिक्त जिम्मेदारी मिल सकती है। यात्रा के योग हैं।धनु राशिधर्म-कर्म में व्यस्तता बढ़ सकती है। नौकरी में कार्यक्षेत्र में परिवर्तन हो सकता है। परिश्रम अधिक रहेंगे। मित्रों का सहयोग मिलेगा। पठन-पाठन में रुचि रहेगी। नौकरी में परिवर्तन की सम्भावना बन रही हैं। आय में वृद्धि होगी, परन्तु खर्च भी बढ़ेंगे। विवादों से दूर रहें।मकर राशिआत्मविश्वास तो भरपूर रहेगा, परन्तु बातचीत में संयत रहें। सम्पत्ति में वृद्धि हो सकती है। किसी मित्र के सहयोग से निवेश हो सकता है। भवन सुख में वृद्धि हो सकती है। घर को सुख-सुविधाओं का विस्तार होगा। घर में धार्मिक कार्य होंगे। सुखद समाचार मिलेगा।कुंभ राशिमन परेशान हो सकता है। नौकरी में परिवर्तन की सम्भावना बन रही है। तरक्की के अवसर भी मिल सकते हैं। आय में वृद्धि होगी। नौकरी में तरक्की के मार्ग प्रशस्त होंगे। आय में वृद्धि होगी। कार्यक्षेत्र का विस्तार होगा। शासन सत्ता का सहयोग मिलेगा।मीन राशिआत्मसंयत रहें। सन्तान के स्वास्थ्य का ध्यान रखें। किसी पैतृक सम्पत्ति से धन की प्राप्ति हो सकती है। वाहन के रख-रखाव पर खर्च बढ़ेंगे। आत्मविश्वास भरपूर रहेगा, परन्तु परिवार की समस्या परेशान कर सकती हैं। पिता का साथ मिलेगा। खर्च अधिक रहेंगे।
- पढ़िए ज्योतिषी वास्तुशास्त्री विनीत शर्मा का आलेखकन्या लग्न में 6.20 am से 8.29 तकतुला लग्न में 8.29 am से 10.42सूर्योदय सिंह लग्न में 5.53 से 6.20 am तकबुद्धि ज्ञान और सुमति के देने वाले श्री गणेश भगवान श्री विनायक प्रथम पूज्य प्रथमेश श्री लंबोदर महाराज का जन्म कन्या लग्न और कन्या राशि में हुआ ऐसा माना गया है । संवत 2078 भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन चित्रा नक्षत्र ब्रह्म योग मुसल योग और तुला राशि का संयोग बन रहा है आज के शुभ दिन चंद्रमा तुला राशि में विराजमान रहेंगे।तुला राशि का चंद्रमा शुक्रवार और गणेश चतुर्थी यह संयोग कई वर्षों के बाद बन रहा है । सर्व प्रथम पूज्य होने वाले भगवान श्री लंबोदर महाराज जो स्वयं विध्नहर्ता हैं यह सौभाग्य चतुर्थी वर्ग चतुर्थी और श्री गणेश चतुर्थी के नाम से समस्त भारतवर्ष में त्यौहार मनाया जाता है गणपति भगवान सुमंगल सुमति और ज्ञान और विज्ञान के देवता हैं गणेश जी की पूजा पाठ करने से हमारी मेधा बुद्धि बहुत विकसित होती है।भगवान श्री एकदंत जी की चार भुजाएं चार पुरुषार्थ चातुष्टय की प्रतीक हैंचारभुजा धर्म अर्थ काम और मोक्ष को प्रतिनिधित्व करती हैं संपूर्ण जगत को गणेश जी के चार हाथों से कर्म करने उद्यमिता व कर्मशील श्रमशील रहने की प्रेरणा मिलती है ।गणेश जी गृहस्थी के देवता भी माने जाते हैं इनके गृहस्थी सुखमय और आनंदमय हैं शुभ और लाभ के रूप में आप के दो पुत्र हैं जो जीवन में सकारात्मकता धनात्मकता व शुभता के द्योतक हैं। रिद्धि और सिद्धि का वर देने वाली श्री गणेश जी की धर्मपत्नीधर्म पत्नियां हैं मुख्य रूप से आठ सिद्धियां और नव रिद्धियां होती हैं यह मानव मात्र के जीवन को कल्याण उत्कर्ष और उत्थान से समाहित कर देती हैं। वास्तव में श्री गणेश भगवान मानव मात्र को उन्नयन उत्थान व सुमतिवान बनाने वाले देवता हैं।आज के शुभ दिन भगवान श्री लंबोदर भगवान को मोदक के लड्डू और केले जैसे ऋतु फल का भोग लगाना बहुत ही शुभ माना गया है।भगवान गणेश जी प्रकृति प्रेमी है इसलिए मिट्टी के गणेश की स्थापना कर उन्हें प्रकृति में ही समाहित करने का विधान है।भगवान श्री गणेश का लंबा उदर जीवन मे सहनशीलता दयालुता उदारता क्षमाशीलता सुधीरता के गुणों को विकसित करने का संदेश देतेहै।
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शनि भाग्य का स्वामी है। शनि पर्वत पर बनने वाले निशान व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करते हैं। यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि शनि पर्वत पर चिह्न कैसा है। जानिए शनि पर्वत पर ऐसे ही कुछ चिह्नों के बारे में जो व्यक्ति को प्रभावित करते हैं।
-यदि शनि पर्वत पर तारे का निशान है तो यह व्यक्ति के जीवन में दुर्घटना, चोट और गंभीर बीमारी की आशंका बनी रहती है। ऐसे व्यक्ति को किसी कारण जेल जाना भी पड़ सकता है।
-शनि पर्वत पर वर्ग का निशान शुभ माना जाता है। यदि इस पर वर्ग का निशान है तो व्यक्ति मुश्किलों से बच निकलते हैं। ये लोग हर संकट से बच जाते हैं। वर्ग का निशान व्यक्ति को अच्छे लोगों का साथ भी दिलाता है।
-यदि व्यक्ति के शनि पर्वत पर सीढ़ीनुमा संरचना बनी हुई है तो यह उच्च मुकाम की ओर इशारा करता है। इस योग से व्यक्ति अपने जीवन में अकूत धन कमाते हैं। यह निशान व्यक्ति को सफलता दिलाता है।
-शनि पर्वत पर यदि कोई एक खड़ी रेखा है तो ऐसा व्यक्ति भाग्यशाली होता है। ऐसे लोगों के साथ जो भी आते हैं उनकी किस्मत भी चमकने लगती है। हालांकि यदि शनि पर्वत पर दो खड़ी रेखाएं है तो यह कड़ी मेहनत और संघर्ष से ही सफलता मिलने का इशारा करती है।
-शनि पर्वत पर क्रॉस का निशान शुभ नहीं माना जाता। ऐसा व्यक्ति परेशान और दुखी रहता है। यह निशान जीवन में दुर्घटना और अकाल मृत्यु का भी इशारा करता है।
-शनि पर्वत पर त्रिशूल का निशान बहुत ही शुभ माना गया है। ऐसे लोगों पर भगवान शिव की कृपा रहती है। यदि व्यक्ति के शनि पर्वत पर त्रिशूल का निशान है तो यह कम समय और कम मेहनत से सफलता मिलने को दर्शाता है।-file photo
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गजानन गणपति का जन्मोत्सव गणेश चतुर्थी 10 सितंबर शुक्रवार को है। हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को ये उत्सव शुरू होता है और अनंत चतुर्दशी तक चलता है। मान्यता है कि इस चतुर्थी को दोपहर के समय गणपति का जन्म हुआ था। गणपति का जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में चलने वाले 10 दिन के इस उत्सव को देश के तमाम हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाता है।
भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को पत्थर चौथ और कलंक चतुर्थी भी कहा जाता है। इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने की मनाही होती है। मान्यता है कि इस दिन अगर भूलवश भी चंद्र दर्शन हो जाए तो व्यक्ति को पाप लगता है और झूठा आरोप झेलना पड़ता है। जानिए इस दिन को क्यों कहा जाता है पत्थर चौथ और कलंक चतुर्थी और अगर भूलवश चंद्र दर्शन हो जाएं, तो उसका क्या निवारण है !
ये है कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार गणपति प्रेमपूर्वक अपने पसंदीदा मिष्ठान खा रहे थे। उनके आसपास मिष्ठान के थाल सजे हुए थे। तभी चंद्रदेव वहां से गुजरे। गणपति को खाते हुए देख वे उनके पेट और सूंड को लेकर मजाक बनाने लगे और जोर-जोर से हंसने लगे। चंद्र देव का ये रूप देखकर गणेश भगवान को बहुत क्रोध आया और उन्होंने चंद्रमा को श्राप दे दिया कि तुम्हें अपने रूप का गुमान है, इसलिए मैं श्राप देता हूं कि तुम अपना रूप खो दोगे। तुम्हारी सारी कलाएं नष्ट हो जाएंगी और जो भी तुम्हारे दर्शन करेगा, उसे कलंकित होना पड़ेगा। जिस दिन ये घटना घटी, उस दिन भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि थी।
गणपति के इस श्राप के बाद चंद्रदेव को अपनी भूल का अहसास हो गया। उन्होंने सभी देवी देवताओं के साथ मिलकर गणपति की पूजा की और उन्हें प्रसन्न कर अपनी भूल की क्षमा याचना की। तब गणपति ने उनसे एक वरदान मांगने को कहा। सभी देवताओं ने चंद्रदेव को माफ करने और श्राप को निष्फल करने का वरदान मांगा। तब गणपति ने कहा कि मैं अपना श्राप तो वापस नहीं ले सकता, लेकिन इसे सीमित जरूर कर सकता हूं।
भगवान गणेश ने कहा कि चंद्रमा की कलाएं माह के 15 दिन घटेंगी और 15 दिन बढ़ेंगी। चंद्र दर्शन से कलंकित होने का श्राप सिर्फ चतुर्थी के दिन ही मान्य होगा। चतुर्थी के दिन कोई भी चंद्रमा के दर्शन नहीं करेगा। लेकिन अगर उसे भूलवश दर्शन हो गए तो उसे इस श्राप के प्रभाव से बचने के लिए 5 पत्थर किसी दूसरे की छत पर फेंकने होंगे। इससे वो दोष मुक्त हो जाएगा। तब से इस दिन को कलंक चौथ और पत्थर चौथ कहा जाने लगा। मध्यप्रदेश के कुछ ग्रामीण इलाकों और राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में आज भी कलंक चौथ के दिन दूसरे की छत पर पत्थर फेंकने की परंपरा है। -
कुछ लोगों में रिश्ते निभाने की काबिलियत बहुत अच्छी होती है, इसलिए वे छोटी मोटी बातों को अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन अपने रिलेशनशिप को खराब नहीं होने देते। वहीं कुछ लोगों में बर्दाश्त करने की क्षमता बहुत कम होती है, इसलिए वे छोटी सी बात पर भी अपना धैर्य खो देते हैं और सब कुछ खत्म करने को तैयार हो जाते हैं।
ज्योतिषशास्त्र की मानें तो व्यक्ति में ये गुण उसकी परवरिश और माहौल की वजह से भी होते हैं और राशि की वजह से भी। माहौल से विकसित गुणों को बदलना आसान होता है, लेकिन जो गुण राशि की वजह से होते हैं, वे जन्म से व्यक्ति में मौजूद रहते हैं। उन्हें कम करने की कितनी ही कोशिश करें, थोड़ा बहुत उन गुणों का अंश रह ही जाता है। आज जानते हैं ऐसी पांच राशियों के बारे में जो रिश्ते निभाने काफी कच्चे होते हैं।
मेष राशि
इस राशि के लोगों को दिलफेंक माना जाता है। ये बहुत जल्दी किसी से भी प्रभावित हो जाते हैं और अपना दिल दे बैठते हैं। इस कारण इन लोगों के कई अफेयर हो जाते हैं। अपने एक झूठ को छिपाने के लिए ये बार बार झूठ बोलते हैं। जब इनकी बातों में कोई न आए तो ये सालों पुराने रिश्ते को भी एक झटके में तोडऩे को तैयार हो जाते हैं। हालांकि बाद में इन्हें अपनी गलती का अहसास होता है, लेकिन तब तक देर हो चुकी होती है।
मिथुन राशि
इस राशि के लोगों के लिए कहा जाता है कि ये एक साथ कई रिलेशनशिप चला सकते हैं। इन्हें पकड़ पाना आसान नहीं होता, लेकिन ये जितनी जल्दी किसी के प्यार में पड़ते हैं, उतनी ही जल्दी प्यार से नाता भी तोड़ देते हैं।
कन्या राशि
इस राशि के लोग प्यार के मामले में सच्चे होते हैं। ये न तो धोखा देते हैं और न ही देना पसंद करते हैं, लेकिन अगर एक बार ये किसी बात से चिढ़ जाएं या इनका दिल दुख जाए तो ये एक सेकंड में उस रिश्ते को खत्म कर देते हैं। फिर पलटकर भी नहीं देखते।
धनु राशि
इस राशि के लोग आजाद खयालों वाले होते हैं। ये प्यार में धोखा तो नहीं देते, लेकिन यदि इनकी आजादी पर कोई अंकुश लगाने की कोशिश करे तो ये रिश्ते को दो मिनट में तोडऩे को तैयार हो जाते हैं। अपने रिश्ते से कहीं ज्यादा प्यारी इन्हें अपनी आजादी होती है।
मीन राशि
माना जाता है कि इस राशि के लोग थोड़े स्वार्थी होते हैं। ये अपने पार्टनर से बहुत उम्मीदें रखते हैं और अगर इनकी उम्मीद पूरी न हो, तो ये रिश्ता खत्म करने में जरा भी संकोच नहीं करते। - भगवान गणेश सब के दुलारे हैं और हर शुभ कार्य करने से पहले भगवान गणेश जी का स्मरण किया जाता है और विघ्नहर्ता गणेश प्रसन्न होकर कार्यों में आने वाली रुकावटों को दूर करते हैं। भगवान गणेश जी के 108 नाम के जाप मात्र से ही मनुष्य के समस्त भय दूर हो जाते हैं। भगवान गणेश विघ्नकर्ता और विघ्नहर्ता दोनों ही हैं। लंबोदर जिस घर में निवास करते हैं वहां ऋद्धि-सिद्धि और कीर्ति से भंडार भरा रहता है।गणेश जी के 108 नाम अर्थ सहित1*गणेश्वर—गणों के स्वामी2*गजकर्णक—हाथी के कान वाले3*लम्बोष्ठ—बड़े-बड़े होंठ वाले4*लम्बनासिक—लम्बी नाक वाले5*गणक्रीड—गणों के साथ क्रीडा करने वाले6*भगवान्—अनन्त, छहों ऐश्वर्य सम्पन्न7*भव्य—सुन्दर8*भूतालय—भूतसमूह के आश्रय9*भोगदाता—भोग प्रदान करने वाले10*भक्तिसुलभ—भक्ति द्वारा शीघ्र प्राप्त होने वाले11*विजयावह—विजयप्रदाता12*विश्वकर्ता—सबको उत्पन्न करने वाले13*वीरासनाश्रय—वीरासन में विराजमान14*वरेण्य—श्रेष्ठ15*वामदेव—सुन्दर स्वरूप वाले16*वन्द्य—वन्दन करने योग्य17*वज्रनिवारण—क्लेशों से रक्षा करने वाले18*विश्वकर्ता—सर्वस्रष्टा, सब कुछ करने वाले19*विश्वचक्षु—सब कुछ देखने वाले20*विश्वमुख—सभी ओर मुख वाले21*दुर्जय—अजेय22*धूर्जय—जीतने को उत्सुक23*धनद—समृद्धि देने वाले24*धरणीधर—पृथ्वी को धारण करने वाले25*जय—जय26*महामना—जिनका हृदय विशाल है27*महागणपति—महागणपति28*योगाधिप—योग के अधिष्ठाता29*चित्रांग—दीप्तिमान अंगों वाले30*श्यामदशन—श्याम आभायुक्त दांत वाले31*भालचन्द्र—मस्तक पर चन्द्रकला धारण करने वाले32*चतुर्भुज—चार भुजाओं वाले33*शम्भुतेज—शम्भु के तेज से उत्पन्न34*सर्वावयवसम्पूर्ण—सभी अंगों से परिपूर्ण35*सर्वलक्षणलक्षित—सभी शुभ लक्षणों से युक्त36*स्वतन्त्र—स्वाधीन37*सत्यसंकल्प—संकल्पवान्38*सहस्त्रशीर्षा पुरुष—अनन्तरूप में प्रकट विराट् पुरुष39*सहस्त्राक्ष—अनन्त दृष्टिसम्पन्न40*सहस्त्रपात—अनन्त गतिसम्पन्न41*सौभाग्यवर्धन—सौभाग्य बढ़ाने वाले42*सर्वात्मा—सबके आत्मस्वरूप43*सुरुप—सुन्दर रूप वाले44*सर्वनेत्राधिवास—सबकी आंखों में बसने वाले45*सामबृंहित—सामवेद में गाए गए46*कुलाचलांस—कुल पर्वतों के समान कांधों वाले47*व्योमनाभि—आकाश की सी नाभि वाले48*कल्पद्रुमवनालय—कल्पवृक्ष के वन में रहने वाले49*निम्ननाभि—गहरी नाभि वाले50*स्थूलकुक्षि—मोटे पेट वाले51*पीनवक्षा—चौड़ी छाती वाले52*बृहद्भुज—लम्बी भुजाओं वाले53*पीनस्कन्ध—चौड़े कन्धों वाले54*याज्ञिक—यज्ञप्रक्रिया के पूर्ण ज्ञाता55*यज्ञकाय—यज्ञस्वरूप56*याजकप्रिय-जिन्हें यज्ञकर्ता प्रिय हैं57*इन्दीवरदलश्याम—नीलकमलपत्र के समान श्याम वर्ण वाले58*इन्दुमण्डलनिर्मल—चन्द्रमण्डल के समान निर्मल59*इक्षुचापधर—ईख के धनुष को धारण करने वाले60*इन्दुमण्डलनिर्मल—चन्द्रमण्डल के समान निर्मल61*पुरुष—पुरुष62*शूली—शूल धारण करने वाले63*ज्ञानमुद्रावान्—ज्ञानमुद्रा में स्थित64*कामिनीकामनाकाममालिनीकेलिलालित—कामिनियों की कामनारूपी कामकला की क्रीडा से प्रसन्न होने वाले65*दुष्टचित्तप्रसादन—चित्त के दोषों को मिटा देने वाले।66*अमोघसिद्धि—अमोघ सिद्धिस्वरूप67*अक्षमालाधर—अक्षमाला धारण करने वाले68*आधार—आधारस्वरूप69*आधाराधेयवर्जित—जिनका कोई आधार नहीं और जो किसी पर आश्रित नहीं70*कम्बुकण्ठ—शंख के समान कण्ठ वाले71*कर्मसाक्षी—सभी कर्मों के साक्षी72*कर्मकर्ता—सभी कर्मों की मूलशक्ति73*कान्तिकन्दलिताश्रय—शोभायमान गण्डस्थल वाले74*कर्माकर्मफलप्रद—पुण्य और पाप का फल देने वाले75*कमण्डलुधर—कमण्डलु धारण करने वाले76*कल्प—नियम के स्वरूप77*कपर्दीकामरूप—इच्छानुसार रूप ग्रहण करने वाले78*कामगति—इच्छानुसार गति वाले79*कटिसूत्रभृत—कमर में मेखला धारण किए हुए80*कारुण्यदेह—करुणामूर्ति81*कपिल—रक्त आभायुक्त82*गुह्यागमनिरुपित—रहस्यमय तन्त्रों में वर्णित83*गुहाशय—भक्तों के हृदय में विराजमान84*गुहाब्धिस्थ—हृदयसमुद्र में स्थित85*घटकुम्भ—घड़े के समान गण्डस्थल वाले86*घटोदर—घड़े के समान पेट वाले87*पूर्णानन्द—पूर्णानन्दस्वरूप88*परानन्द—आनन्द की पराकाष्ठा89*बृहत्तम—सबसे बड़े90*ब्रह्मपर—परब्रह्म91*ब्रह्मण्य—ब्रह्मानुवर्ती92*ब्रह्मवित्प्रिय—ब्रह्मज्ञानियों के प्रिय93*हवन—यज्ञस्वरूप94*हव्यकव्यभुक्—हव्य और कव्य के भोक्ता95*कीर्तिद—कीर्ति देने वाले96*शोकहारी—शोक मिटाने वाले97*त्रिवर्गफलदायक—धर्म,अर्थ,काम तीनों पुरुषार्थों के प्रदाता98*चतुर्बाहु—चार भुजाओं वाले99*चतुर्दन्त—चार दांतों वाले100*चतुर्थीतिथिसम्भव—चतुर्थी तिथि को अवतार ग्रहण करने वाले101*तारकस्थ—तारकमन्त्र में निवास करने वाले102*द्विरद—दो दांत वाले103*द्वीपरक्षक—समस्त धरती के रक्षक104*क्षेत्राधिप—समस्त क्षेत्र के अधिष्ठाता105*क्षमा-भर्ता—क्षमा धारण करने वाले106*लयस्थ—गानप्रिय107*लड्डुकप्रिय—जिन्हें लड्डू प्रिय हैं108*प्रतिवादिमुखस्तम्भ—विरोधी का मुख बन्द कर देने वाले
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 389★ भूमिका - आज के अंक में प्रकाशित दोहा तथा उसकी व्याख्या जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ग्रन्थ 'भक्ति-शतक' से उद्धृत है। इस ग्रन्थ में आचार्यश्री ने 100-दोहों की रचना की है, जिनमें 'भक्ति' तत्व के सभी गूढ़ रहस्यों को बड़ी सरलता से प्रकट किया है। पुनः उनके भावार्थ तथा व्याख्या के द्वारा विषय को और अधिक स्पष्ट किया है, जिसका पठन और मनन करने पर निश्चय ही आत्मिक लाभ प्राप्त होता है। आइये उसी ग्रन्थ के 35-वें दोहे पर विचार करें, जिसमें आचार्यश्री ने यह बताया है कि सत्य, अहिंसा जैसे दैवीय गुणों की प्राप्ति के लिये भी भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति अनिवार्य है। आइये इस रहस्य को दोहे तथा व्याख्या के रूप में समझने का प्रयत्न करें....सत्य अहिंसा आदि मन!, बिन हरिभजन न पाय।जल ते घृत निकले नहीं, कोटिन करिय उपाय।।35।।भावार्थ ::: सत्य, अहिंसादि दैवीगुण केवल श्रीकृष्ण भक्ति से ही मिल सकते हैं । जैसे पानी मथने से घी नहीं निकल सकता। ऐसे ही अन्य करोड़ों उपायों से भी दैवीगुण नहीं मिलते।व्याख्या ::: सत्य बोलना आदि दैवी गुण हैं। सभी व्यक्ति इन गुणों से प्यार भी करते हैं। क्योंकि दैवी गुणों के अध्यक्ष श्री कृष्ण के अंश हैं। हम दूसरों से जो चाहते हैं वही हमारा स्वभाव है। किसी के झूठ बोलने आदि पर हम लोग एतराज़ करते हैं, भले ही स्वयं दिन में सैकड़ों झूठ बोलते हों। इससे सिद्ध हुआ कि दैवी गुण सत्य अहिंसादि भगवान् से ही संबंध रखते हैं एवं इसके विपरीत झूठ, हिंसादि, माया से संबंध रखते हैं। इसी से मायिक वस्तुओं के लोभ में हम लोग झूठ आदि का अवलंब लेते हैं। अतः जब तक भगवान् की भक्ति न की जायगी तब तक अंत : करण शुद्ध ही न होगा। बिना अंतःकरण शुद्ध हुये हम सत्य आदि दैवीगुणों का प्रदर्शन मात्र कर सकते हैं किंतु वास्तव में दैवीगुण युक्त नहीं हो सकते। केवल मन से सोचने मात्र से हमारा मन शुद्ध न होगा। हाँ यह हो सकता है कि बार-बार सोचने से, परलोक के भय से कुछ मात्रा में बहिरंग रूप से इन गुणों का दिखावा कर लें।• संदर्भ पुस्तक ::: भक्ति-शतक, दोहा संख्या 35
★★★ध्यानाकर्षण/नोट (Attention Please)- सर्वाधिकार सुरक्षित ::: © राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली।- जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(5) www.youtube.com/JKPIndia(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हिंदू धर्म में तीज का काफी महत्व है. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति और संतान प्राप्ति होती है.हिंदू कैलेंडर के अनुसार साल में कुल तीन तीज आती हैं. भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को आने वाली तीज को हरतालिका तीज (Hartalika Teej) कहा जाता है. इस दिन भगवान शिव और पार्वती की पूजा की जाती है. इस बार हरतालिका तीज 9 सितंबर को है. इस दिन भोले शंकर और माता पार्वती को प्रसन्न करने के लिए विशेष उपाय करने चाहिएं. ऐसा करने से श्रद्धालुओं की हरेक मनोकामना पूरी हो जाती है. आइये जानते हैं क्या हैं वे विशेष उपाय:-ऐसे करें मां पार्वती का अभिषेकहरतालिका तीज पर व्रत रखने के साथ ही कर्पूर, अगरु, केसर, कस्तूरी और कमल के जल से माता पार्वती का अभिषेक करना चाहिए. ऐसा करने से सभी प्रकार के पापों का नाश हो जाता है. इतना ही नहीं, व्यक्ति को थोड़े प्रयासों से ही सफलता मिलती है.माता पार्वती को शहद का भोग लगाकर उस शहद को दान कर देना चाहिए. ऐसा करने से व्यक्ति के भाग्य में धन प्राप्ति के योग बनते हैं. वहीं, गुड़ की चीजों को भोग लगाकर दान करने से परिवार की दरिद्रता दूर होती है.पति-पत्नी के बीच प्रेम होगा मजबूतवैवाहिक जीवन में प्यार और रस बना रहे. इसके लिए हरतालिका तीज के दिन माता पार्वती को खीर का भोग लगाएं. ऐसा करने से पति-पत्नी के बीच प्रेम कभी कम नहीं होता.अगर पति-पत्नी के बीच मतभेद रहता है तो दोनों को इस दिन दूध में केसर मिलाकर माता पार्वती का अभिषेक करना चाहिए. इससे उनके बीच के विवाद खत्म होने लगते हैं और आपसी संबंधों में मधुरता आती है.चावल चढ़ाने से धन की प्राप्तिभगवान शिव को चावल चढ़ाने से धन की प्राप्ति होती है. वहीं तिल का अर्पण करने से पापों का नाश होता है. शिवपुराण के अनुसार लाल और सफेद रंग के फूल से भोलेनाथ का पूजन करने पर भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है.ससुराल में मान-सम्मान बढ़ता रहे. इसके लिए हरतालिका तीज (Hartalika Teej 2021) की थाली अपनी सास को भेंट करें और उनका आर्शीवाद लें. इसके बाद थाली से कुछ चीजें अपनी सास से मांग लें या चुपके से निकाल कर माता पार्वती को अर्पित करें.इस उपाय से मिलता है वाहन सुखशिवपुराण के अनुसार भगवान शिव को चमेली के फूल चढ़ाने से वाहन का सुख मिलता है. अलसी के फूलों से भगवान शिव का पूजन करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं. जिससे आपको शुभ लाभ प्राप्त होते हैं.
- भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) मनाई जाती है. इस दिन गणेश स्थापना (Ganesh Sthapana 2021) होती है और भगवान 10 दिनों तक अपने भक्तों के साथ रहते हैं. इस दौरान भक्त अपने भगवान को प्रसन्न करने के लिए कई काम करते हैं. नए कपड़े पहनते हैं, उत्सव मनाते हैं, भगवान की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं, उन्हें तरह-तरह के भोग लगाते हैं. भगवान गणेश (Lord Ganesha) को कुछ चीजें बहुत प्रिय हैं, यदि गणेश चतुर्थी और गणेशोत्सव के दौरान उन्हें ये चीजें अर्पित की जाएं तो वे प्रसन्न होकर सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.गणपति को अर्पित करें ये चीजें10 सितंबर से शुरू हो रहे गणेशोत्सव के दौरान गणपति की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए. इससे घर में सुख-समृद्धि आती है. इसके अलावा गणेश जी को कुछ खास चीजें जरूर अर्पित करनी चाहिए.सिंदूर: भगवान गणेश की पूजा करते समय उन्हें सिंदूर का तिलक जरूर लगाएं. साथ ही भगवान को तिलक करने के बाद खुद को भी तिलक लगा लें, ऐसा करने से व्यक्ति को सफलता-समृद्धि मिलती है.दूर्वा: गणपति को पूजा में दूर्वा जरूर चढ़ानी चाहिए. इसके लिए ऐसी दूर्वा अर्पित करें जिसके ऊपरी हिस्से में 3 या 3 पत्तियां हों.मोदक: गणपति को मोदक और मोतिचूर के लड्डू बेहद प्रिय हैं. गणेशोत्सव के दौरान भगवान को मोदक और लड्डू का भोग जरूर लगाएं.केला: गणपति बप्पा को केला भी बहुत प्रिय है इसलिए उन्हें भोग में केला जरूर अर्पित करना चाहिए लेकिन याद रखें कि उन्हें एक साथ जुड़े हुए दो केले चढ़ाएं.खीर: भगवान गणेश को खीर भी बहुत प्रिय है. भोग में खीर अर्पित करना गणपति की कृपा पाने का अच्छा तरीका है.