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- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 366
★ भूमिका - आज के अंक में प्रकाशित दोहा तथा उसकी व्याख्या जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ग्रन्थ 'भक्ति-शतक' से उद्धृत है। इस ग्रन्थ में आचार्यश्री ने 100-दोहों की रचना की है, जिनमें 'भक्ति' तत्व के सभी गूढ़ रहस्यों को बड़ी सरलता से प्रकट किया है। पुनः उनके भावार्थ तथा व्याख्या के द्वारा विषय को और अधिक स्पष्ट किया है, जिसका पठन और मनन करने पर निश्चय ही आत्मिक लाभ प्राप्त होता है। आइये उसी ग्रन्थ के 68-वें दोहे पर विचार करें, जिसमें आचार्यश्री ने यह बताया है कि पाप और पुण्य दोनों ही नश्वर और बन्धनकरक हैं और इन दोनों को त्यागकर एकमात्र हरिभक्ति की शरण ग्रहण करके ही मनुष्य बंधनों से मुक्त होकर परमपद प्राप्त कर सकता है...
पुण्य देत फल नश्वर, पाप नरक लै जाय।दोउन तजि जो हरि भजे, सोइ परम पद पाय।।68।।
भावार्थ ::: विधिवत् किया हुआ पुण्य कर्म नश्वर स्वर्ग देता है। पाप कर्म नरक देता है। इन दोनों का परित्याग कर जो श्रीकृष्ण भक्ति करता है, उसे भगवान् का लोक प्राप्त होता है।
व्याख्या ::: इस दोहे में सम्पूर्ण गीता का आशय है । यथा - अर्जुन ने प्रारम्भ में कहा कि मैं गुरुजनों की हत्या करके राज्य सुख भोग नहीं चाहता। श्रीकृष्ण ने समझाया कि हे अर्जुन! अगर तू युद्ध करेगा तो मृत्यु होने पर स्वर्ग एवं जीतने पर राज्य मिलेगा। यथा;
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्ग जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।(गीता 2-37)
यदि युद्ध न करेगा तो पाप होगा एवं परिणामतः नरक मिलेगा। अब तू सोच ले कि स्वर्ग अथवा पृथिवी श्रेष्ठ है या नरक? अर्जुन ने कहा कि स्वर्ग भी नश्वर है। पृथिवी भी नश्वर है। नरक भी नश्वर है। अतः मैं इन सब को नहीं चाहता। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि 'युद्ध कर' ऐसा भी न कर, क्योंकि स्वर्ग या पृथिवी तो मिलेगी और ये दोनों ही क्षणभंगुर हैं। तथा 'युद्ध न कर', ऐसा भी न कर, क्योंकि ऐसा करने से नरक मिलेगा। जो स्वर्ग से भी निकृष्ट है। अर्जुन यह सुनकर सोच में पड़ गया कि दोनों में एक तो करना ही पड़ेगा। श्रीकृष्ण ने कहा एक मार्ग और है, उसे समझ एवं पालन कर।
तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।(गीता 8-7)
अर्थात् मन से मेरी भक्ति ही कर एवं शरीर से युद्ध कर। मैंने पूर्व में बताया है कि कोई भी कर्म मन की आसक्ति से ही सम्बन्ध रखता है। यदि मन का अनुराग निरन्तर श्रीकृष्ण में रखा जायगा तो न पाप का फल मिलेगा, न पुण्य का फल मिलेगा केवल श्रीकृष्ण भक्ति का ही फल मिलेगा - यही 'कर्मयोग' है। अर्जुन समझ तो गया किंतु पुनः सोचने लगा कि जब पुण्य एवं पाप दोनों का फल उपर्युक्त प्रकार से नहीं मिलना है तो कर्म धर्म का पालन ही क्यों किया जाय? फिर तो युद्ध त्याग कर केवल भक्ति ही करना बुद्धिमत्ता है। कर्मयोग के श्रम से तो कर्म संन्यास युक्त भक्ति सुगम है। इसका उत्तर भी श्रीकृष्ण ने दिया। यथा;
संन्यासः कर्मयोगश्च निःश्रेयसकरावुभौ।तयोस्तु कर्मसंन्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते॥(गीता 5-2)
अर्थात् तेरा सोचना भी ठीक है किंतु कर्म करने में एक परोपकार भी है। वह यह कि लोग तेरे कर्म का अनुकरण करेंगे। अर्थात् धर्म का पालन करेंगे। यदि तू केवल भक्ति करेगा तो लोग धर्म के त्याग मात्र का ही अनुकरण करेंगे। अतः जैसे मैं कर्मयोग का पालन कर रहा हूँ, ऐसे ही तू भी कर। ताकि अनुकरणकर्ता नास्तिक न बनें। सारांश यह कि धर्म एवं अधर्म बन्धनकारक है। केवल भक्ति ही ग्राह्य है। फिर लोक आदर्श के लिये कर्म करे या न करे।
०० व्याख्याकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'भक्ति-शतक' ग्रन्थ, दोहा संख्या - 68०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - भारतीय संस्कृति के प्रमुख प्रतीकों में तिलक का प्रमुख स्थान है. प्राचीन काल में जब लोग युद्ध के लिए जाया करते थे तो तिलक से अभिषेक करके उनके लिए मंगलकामनाएं की जाती थीं. वर्तमान में भी हम तमाम शुभ अवसरों और पूजा–पाठ के दौरान इस पावन तिलक को अपने माथे पर लगाते हैं. हमारे यहां इसे टीका, बिंदी, आदि के नाम से तिलक को जाना जाता है. सनातन परंपरा में बगैर माथे पर तिलक लगाए कोई भी पूजा अधूरी मानी जाती है. मूलत: तिलक तीन प्रकार का होता है.एक रेखाकृति तिलक, द्विरेखा कृति तिलक और त्रिरेखाकृति तिलक.इन तीनों प्रकार के तिलकर के लिए चंदन, केशर, गोरोचन और कस्तूरी का प्रयोग किया जाता है.जिनमें कस्तूरी का तिलक सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है.दिन के हिसाब से लगाएं तिलकप्रत्येक दिन के एक देवता और ग्रह निश्चित हैं. ऐसे में देवता विशेष का आशीर्वाद पाने के लिए दिन के हिसाब से तिलक लगा सकते हैं. जैसे सोमवार का दिन भगवान शिव और चंद्रदेव को समर्पित है. इस दिन सफेद चंदन का तिलक लगाना चाहिए. मंगलवार का दिन श्री हनुमान जी और मंगल ग्रह को समर्पित है, इसलिए इस दिन लाल चंदन अथवा चमेली के तेल में सिंदूर का तिलक लगाएं. बुधवार को सूखे सिंदूर का तिलक लगाकर गणपति की कृपा प्राप्त करें. चूंकि गुरुवार का दिन देवगुरु बृहस्पति और भगवान विष्णु को समर्पित है, इसलिए इस दिन मस्तक पर पीले चंदन या फिर हल्दी का तिलक लगाएं. शुक्रवार को लाल चंदन अथवा सिंदूर का तिलक और शनिवार के दिन भस्म का तिलक लगाएं. रविवार का दिन प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्य को समर्पित है और इस दिन शुभता एवं मंगल की कामना लिए लाल चंदन का तिलक लगाएं.मस्तक पर तिलक लगाने का लाभतिलक हमारे पूरे शरीर को संचालित करने का केंद्र बिंदु है. मान्यता है कि मस्तक पर लगाये जाने वाले तिलक से चित्त की एकाग्रता बढ़ती है और मस्तिष्क में पैदा होने वाले विचारों से जुड़ा तनाव दूर होता है. तिलक लगाने व्यक्ति के शरीर में एक आभा उत्पन्न होती है और यही आभा व्यक्तित्व के विकास की ओ अग्रसर करती है. धीरे–धीरे यह आभा व्यक्ति को परमानंद की ओर ले जाती है. देश में विभिन्न पंरपरा और संप्रदाय से जुड़े लोग लंबा, गोल, आड़ी तीन रेखाओं वाला आदि तरीके से तिलक लगाते हैं.
- ज्योतिष विज्ञान में 12 राशियां होती हैं और इन राशियों का भिन्न-भिन्न स्वभाव होता है। दरअसल इन सभी राशियों के स्वामी 9 ग्रह हैं और इन्हीं ग्रहों का प्रभाव राशियों के ऊपर देखने को मिलता है। ऐसे में हर व्यक्ति का स्वभाव, चरित्र और कार्य क्षमता भी भिन्न होती है। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, कुछ विशेष राशियों की लड़कियां शादी के बाद अपने पति के लिए बेहद ही भाग्यशाली मानी जाती हैं। जिस किसी पुरुष की शादी इन राशियों की कन्याओं से होती हैं उनका जीवन धन्य हो जाता है। ये लड़कियां शादी करके जिस घर में भी जाती हैं, उस घर को रौशन कर देती हैं। इनके जाने से वहां धन-धान्य की कोई कमी नहीं रहती है। आइए जानते हैं ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, किन-किन राशियों की लड़कियां अपने पति के लिए होती हैं बेहद भाग्यशाली-कर्क राशिइस राशि की कन्याएं अपने जीवनसाथी के लिए भाग्यशाली होती हैं। ऐसा माना जाता है कि इस राशि की लड़कियां शादी करके जिस घर में जाती हैं, उस घर को ख़ुशियों से रौशन कर देती हैं। इनके आगमन के बाद ससुराल में धन्य-धान्य की कोई कमी नहीं रहती है। इस राशि की लड़कियां अपने पति को बेहद प्रेम करती हैं और उन्हें हर संभव सुखी देखना चाहती हैं। ये अपने जीवनसाथी का हर सुखदुख में साथ निभाती हैं। ये अपने स्वभाव से अपने ससुराल वालों का दिल जीत लेती हैं।मकर राशिमकर राशि की कन्या अपने जीवनसाथी के भाग्य को चमका देती हैं। इस राशि की कन्याएं ससुराल में खूब कामकाज करती हैं। इनकी तार्किक शक्ति एवं समझदारी पति के लिए काफी कारगर साबित होती है। इस राशि की लड़कियां अपने पति के जीवन को सुखी और समृद्धशाली बना देती हैं। इस राशि की कन्याएं स्वयं तो खुश रहती हैं साथ ही अपने ससुराल वालों के चेहरे की भी मुस्कान बनती हैं।कुंभ राशिकुंभ राशि की लड़कियां खूब मेहनती होती हैं। ये अपने जीवनसाथी और अपने ससुराल की तरक्की में बढ़-चढ़कर हाथ बंटाती हैं। इस राशि की लड़कियां अपनी पति का बहुत ध्यान रखती हैं। इनका आत्मविश्वास कम नहीं होता है। ये अपने पति की हिम्मत होती हैं। चाहें कैसी भी परिस्थितियां हों ये अपने पति का साथ नहीं छोड़ती हैं। ये अपने परिवार की खुशियों के बारे में ही सोचती हैं।मीन राशिइस राशि की लड़कियां बेहद ही संवेदनशील होती हैं। ये अपने ससुराल वालों की खूब देखभाल करती हैं। ये अपने पति को हमेशा खुश रखना चाहती हैं। ये अपने पति के भाग्य में वृद्धि करती हैं। इस राशि की कन्याएं जिस किसी से भी शादी करती हैं, उनकी जिदंगी बना देती हैं। वे अपने जीवन में खूब तरक्की करते हैं।
- आज हरियाली अमावस्या है। श्रावण मास में पडऩे वाली इस अमावस्या को श्रावणी अमावस्या भी कहते हैं। श्रावणी किसानों के लिए हरियाली अमावस्या विशेष होती है। किसान इस दिन एक-दूसरे को गुड़ और धानी की प्रसाद देकर अच्छे मानसून की शुभकामना संदेश देते हैं। साथ ही वे अपने कृषि यंत्रों का पूजन भी करते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, हरियाली अमावस्या पर पितरों की शांति के लिए पिंडदान और दान-धर्म करने का महत्व है। इस दिन दिन वृक्षारोपण का कार्य विशेष रूप से किया जाता हैं। कहते हैं श्रावणी अमावस्या के दिन एक नया पौधा लगाना शुभ माना जाता हैं। ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, ग्रह और व्यक्ति की राशियों के बीच गहरा संबंध होता है। इसलिए हरियाली अमावस्या के दिन अपनी राशि के अनुसार पौधे रोपने से व्यक्ति की परेशानियां दूर हो जाती हैं। आप अपनी राशि के अनुसार ये पेड़-पौधे लगा सकते हैं--मेष राशि-हरियाली अमावस्या के दिन मेष राशि वाले जातकों को आंवला का वृक्ष लगाना चाहिए।- वृष राशि- श्रावणी अमावस्या के दिन वृष राशि के जातकों को जामुन का पेड़ लगाना चाहिए।-मिथुन राशि-हरियाली अमावस्या के दिन मिथुन राशि के जातकों को चंपा का पौधा लगाना चाहिए।-कर्क राशि- हरियाली अमावस्या के दिन कर्क राशि के जातकों को पीपल का पेड़ लगाना चाहिए।-सिंह राशि-हरियाली अमावस्या पर सिंह राशि के जातकों को वटवृक्ष अथवा अशोक का वृक्ष लगाना चाहिए।-कन्या राशि-हरियाली अमावस्या के दिन कन्या राशि के जातकों को जूही और बेलपत्र का पेड़ लगाना चाहिए।- तुला राशि-हरियाली अमावस्या के दिन तुला राशि के जातकों को अर्जुन या नांग केसर का पेड़ लगाना चाहिए।-वृश्चिक राशि- हरियाली अमावस्या के दिन वृश्चिक राशि के जातकों को नीम का वृक्ष लगाना चाहिए।-धनु राशि-श्रावणी अमावस्या के दिन धनु राशि के जातकों को कनेर का पेड़ लगाना चाहिए।-मकर राशि- हरियाली अमावस्या के दिन मकर राशि के जातकों को नारियल अथवा शमी का पेड़ लगाना चाहिए।- कुंभ राशि-हरियाली अमावस्या के दिन कुंभ राशि के जातकों को आम या फिर कदंब का पेड़ लगाना चाहिए।-मीन राशि- हरियाली अमास्या के दिन मीन राशि वाले जातकों को बेर का पेड़ लगाना चाहिए।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 365
साधक का प्रश्न ::: भगवान और महापुरुष स्वयं अपनी भगवत्ता को भूल जाते हैं या जानबूझकर के भूलते हैं?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: वे जानबूझकर भूलते हैं। योगमाया के द्वारा वे नीचे उतरते हैं संसारियों के साथ क्योंकि कल्याण करना है उनका। सब मालूम है उनको। देखो अपने बच्चे को पढ़ाना है। बच्चा दर्जा एक में है। वो प्रोफेसर जो यूनिवर्सिटी में पढ़ाता है उसको मालूम है मैं प्रोफेसर हूँ और एम. ए. पढ़ाता हूँ। लेकिन बच्चे को तो दर्जा एक पढ़ाना है शुरुआत है। वो उसी तरह नीचे आयेगा और बोलेगा बेटा बोलो 'क', कहेगा 'क', अब बोलो 'म' म। अब बोलो 'ल' ल। अब मिला कर बोलो 'कमल' तो वो बोलेगा 'कमल'। अब देखने वाला देखता है कि ये बोलने वाला कमल ऐसे बोल रहा है और लोग कहते हैं कि ये एम. ए. पढ़ाता है? लेकिन अगर ऐसे न पढ़ाये वो तो बच्चा पढ़ेगा कैसे? लेक्चर देगा वो एम. ए. का!!
देखो रामायण में तुम पढ़ते हो जगह जगह कि राम ने पूछा तब उनको मालूम हुआ कि विभीषण ने बताया तब उनको मालूम हुआ, लक्ष्मण को ऐसा हुआ यानी सबको अज्ञान था। अगर रामायण की पुस्तक को कोई पढ़ करके ये न जानें कि राम ब्रह्म हैं, लक्ष्मण ब्रह्म हैं तो वो सोचेगा कि राम संसारी आदमी हैं और संसारी आदमी की तरह किया बल्कि उनसे और चार कदम आगे सीता के लिये विलाप जो किया है वैसा संसार में कोई नहीं कर सकता अपनी श्रीमती के लिये। संसारियों की तरह नहीं करेंगे तो लीला कैसे बनेगी! अपनी पर्सनैलिटी में रहेंगे तो क्षीरसागर में सोते रहेंगे।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2018 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 364
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! केवल धन की सेवा से भी लक्ष्य प्राप्ति हो सकती है। यानी गुरु की धन की सेवा की जो आज्ञा है और वो पूरी जी जान से आदमी करता रहे, तो उससे भी भगवत्प्राप्ति हो सकती है केवल अगर वही आज्ञापालन कर ली जाय तो?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: नहीं, मेन बात तो शरणागति की है। बिना मन की शरणागति के तन और धन से काम नहीं चलेगा। मन की शरणागति मेन प्वाइंट। उसके बाद हैं ये सब।
चेतस्तत् प्रवणं सेवा।
यानी मन का पूर्ण सरेण्डर, पूर्ण शरणागति - यह नम्बर एक।
तत् सिद्धयै तनु वित्तजा।
उसके हैल्पर हैं शरीर से सेवा, धन से सेवा और फिर एक रीजन ये भी है कि तन की सेवा सबको नहीं मिल सकती हमेशा। धन की सेवा सब नहीं कर सकते। बहुत से हैं उनको रोटी दाल का ही ठिकाना नहीं है अपना, वो कैसे करेंगे? लेकिन मन की शरणागति सब कर सकते हैं, वो प्रमुख है उसके बिना काम नहीं चलेगा। इतने सारे मन्दिर बनवा दिये हैं सेठ जी ने, धन से। लेकिन इससे कुछ नहीं होता। पाप से पैसा इकट्ठा करके मंदिर खड़ा कर दिया और उसमें अपना नाम लिख दिया। वह सेठ जी का मंदिर है कि भगवान का मंदिर है। ऐसे लोगों को नरक के सिवाय क्या मिलेगा। तो धन की सेवा क्या हुई? सेवा में श्रद्धा, भगवद-भावना का मिक्स्चर होना चाहिये और जहाँ अपनी प्रतिष्ठा का सवाल है वह सेवा कहाँ है? वह तो इनकम-टैक्स से बचने का उपाय है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2008 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हर मनुष्य यही चाहता है कि उसके जीवन में धन-दौलत की कोई कमी न रहे। इसके साथ ही उसका पारिवारिक जीवन भी खुशियों सा भरा रहे। जिस व्यक्ति के जीवन में पारिवारिक और आर्थिक दोनों तरह से कोई परेशानी न हो उससे भाग्यशाली व्यक्ति कौन होगा, लेकिन जीवन है तो परेशानियां भी होंगी और इन परेशानियों से निपटने के समाधान भी होंगे। जीवन में मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति और इच्छा पूर्ति दोनों के लिए ही धन की आवश्यकता होती हैं। धन की कमी होने पर घर में भी कलह-क्लेश बढऩे लगता है, जिसके कारण व्यक्ति तनाव में आ जाता है। अक्सर लोगों को यही शिकायत होती है कि घर में बहुत प्रयास करने पर भी पैसों की तंगी रहती है या बचत नहीं हो पाती है। यदि आपके जीवन में आर्थिक या पारिवारिक किसी भी तरह को समस्याएं चल रही हैं तो वास्तु के अनुसार उनसे छुटकारा पाने के लिए आप अपने घर में एक चीज रख सकते हैं। इसे रखने से आपके जीवन में सकारात्मकता का आगमन होता है और सभी परेशानियां से मुक्ति मिलने लगती है। तो चलिए जानते हैं इस बारे में।धन संचय और वृद्धि के लिएजहां हिंदू धर्म में मोर को देवताओं का प्रिय पक्षी माना गया है तो वहीं चांदी को सभी धातुओं में सबसे शुद्ध और पवित्र माना जाता है। इन दोनों चीजों का मिलन बहुत ही चमत्कारी लाभ दिलाने वाला माना जाता है। इसलिए वास्तुशास्त्र के अनुसार के अनुसार घर में चांदी का मोर रखना बहुत ही शुभ माना गया है। यदि आपके घर में पैसों की बचत नहीं हो पाती है तो अपने घर की तिजोरी में चांदी का बना हुआ मोर रखना चाहिए। इससे आपके फालतू खर्च रुकते हैं और बरकत होती है। धन वृद्धि के लिए चांदी का मोर तिजोरी में रखना बहुत लाभप्रद रहता है।धन से जुड़ी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिएयदि बहुत प्रयास करने के पश्चात भी धन की तंगी बनी हुई है तो घर में पंख फैलाए हुए मोर की चांदी की मूर्ति अवश्य रखनी चाहिए। नृत्य करते हुए मोर की यह मूर्ति न केवल आपकी आर्थिक समस्याओं को दूर करती है बल्कि इससे आपके दांपत्य जीवन की सभी समस्याएं भी दूर होती हैं और आपका रिश्ता मधुर व मजबूत बनता है।वैवाहिक जीवन में खुशहाली लाने के लिएयदि आपके वैवाहिक जीवन में लगातार समस्याएं बनी हुई हैं आए दिन किसी न किसी बात पर जीवनसाथी से झगड़ा होता रहता है तो चांदी के बने हुए मोर-मोरनी का जोड़ा अपने शयनकक्ष में रखें। इससे आपके दांपत्य जीवम में शांति आती हैं और आपका रिश्ता पहले से ज्यादा बेहतर बनता है।सकारात्मकता के आगमन के लिएवास्तु शास्त्र के अनुसार घर के लिविंग एरिया में चांदी का मोर रखने से घर में सकारात्मकता का आगमन होता है जिससे आपके जीवन की अन्य समस्याओं का भी समाधान होने लगता है। घर के मंदिर में शांत अवस्था में बैठा हुआ चांदी का मोर रखना चाहिए। माना जाता है कि इससे शुभ फल की प्राप्ति होती है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 363
साधक का प्रश्न ::: मीराबाई द्वारिकानाथ में समा गईं ऐसा कहा जाता है। क्या ये सत्य है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: कहाँ द्वारिका में समा गई? द्वारिकानाथ नहीं द्वारका जी में। द्वारिकानाथ वहाँ खड़े थे क्या? कौन हैं द्वारिकानाथ? द्वारिकानाथ भगवान श्रीकृष्ण हैं न। तो कृष्ण वहाँ पत्थर में हैं क्या? श्रीकृष्ण तो गोलोक में रहते हैं। वो गोलोक चली गई मीरा। बात खतम।
पत्थर की मूर्ति में कोई नहीं समाता। वो तो भगवान के लोक चले जाते हैं महापुरुष लोग और भगवान भी अपने लोक को जायेंगे जब लीला समाप्त हो जायेगी। बस हो गया। अब वो पैदल गये, कि साइकिल से गये, कि मोटर साइकिल से गये इससे क्या मतलब है। भगवान को जाना है चाहे जिस तरह से जायें। ये सवाल करने वाले बेवकूफ हैं। तुमको इन बातों से क्या मतलब पड़ा था।
कभी ये प्रश्न नहीं करना। किसी अवतार में किस प्रकार अन्तर्धान होते हैं, किसी अवतार में कैसे! बाण मारा बहेलिये ने श्रीकृष्ण को और अन्तर्धान हो गये। बाण मारने की जरूरत क्या थी ऐसे ही अन्तर्धान हो जाते। लीला करना है जैसे भी लीला करें। उन पर प्रतिबन्ध नहीं। गौरांग महाप्रभु के लिये कोई बता दे कि वो ऐसे गये थे। तो उसको जानकर फायदा क्या हुआ तुम्हारा? वो तो चले गये।
उनके सिद्धान्त का पालन करो जो कुछ उन्होंने बताया है जीवों के लिये वो करो तो उससे लाभ हो। भगवान के अवतार हुये हैं या होंगे सब समझे रहो कि वो अंतिम समय में वो अपने लोक को जायेंगे। जाने का तरीका वो चाहे संसार को दिखा दें। मूर्ति में लीन हो गये ये दिखा दें, समुद्र में लीन हो गये ये दिखा दें, गायब हो गये ये दिखा दें। वो तो अनेक नाटक कर सकते हैं, इसमें क्या है, वो तो खेल करने आये ही हैं। भगवान बन करके तो भगवान आ नहीं सकते। वो तो लीला करने आये हैं। लीला में तो सभी बातें हो सकती हैं। लीला में रस लेना चाहिये बस। ये कहते हैं वो भी ठीक है। एक आदमी कहता है कि नहीं नहीं हमने सुना है कि पेड़ पर चढ़कर गायब हुये थे, वो भी ठीक है। क्या बात है आपको एतराज क्या है। वे चले गये बस हो गया। तो आप पूछेंगे कि क्या सबूत। आप खड़े थे वहाँ? तो ऐसी बहस में क्यों पड़ा जाय। बात समझो। वो कैसे भी जा सकते हैं जैसी उनकी इच्छा हो वैसे जा सकते हैं। उनके ऊपर कोई कायदा कानून नहीं है। कोई यमराज उनसे नहीं कहेगा कि ऐसा करो।
ध्रुव जी जब भगवान के लोक को गये तो यमराज आया, अपना सिर झुका करके उनके आगे खड़ा हो गत पुष्पक विमान के साथ। उसके ऊपर पैर रख कर के ध्रुव जी चढ़ गये विमान के ऊपर। तो यमराज आता है महापुरुष के पास भी लेकिन उनके चरण स्पर्श चाहने के लिये आता है। वो ये नहीं कह सकता कि ऐसा करना होगा तुमको। तो भगवान को क्या कहेगा वो।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2017 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - कहा जाता है कि हाथों में बनी लकीरों में व्यक्ति का भाग्य छिपा होता है। हस्तरेखा शास्त्र एक बहुत ही प्राचीन विधा है, जिसमें हथेली में बनी रेखाओं का आकलन करके व्यक्ति के भविष्य के संबंध में जानकारी दी जाती है। हथेली की रेखाएं सदैव एक जैसी नहीं रहती हैं। ये समय समय पर बदलती रहती हैं। जिसके कारण हथेली में कई प्रकार के चिन्हों का निर्माण होता है। कई बार ये चिन्ह अशुभ होते हैं तो कई बार ये चिन्ह व्यक्ति का भाग्य चमका देते हैं। हस्तरेखा में एक ऐसे ही चिन्ह का जिक्र किया गया है। यदि यह चिन्ह किसी के हाथ में बनता है तो बेहद ही शुभ माना जाता है। हस्तरेखा शास्त्र कहता है कि यह चिन्ह व्यक्ति को जीवन में लोकप्रियता दिला सकता है। हथेली में यह चिन्ह जिस स्थान पर बना होता है, उसी के अनुसार फल भी प्रदान करता है।ज्योतिषशास्त्र में माना जाता है कि यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि ग्रह शुभ भाव में विराजमान हैं, तो शनिदेव उस पर बहुत ही मेहरबान होते हैं। शनि की कृपा पड़ने से व्यक्ति के जीवन में खुशी और ढ़ेर सारा धन आता है और व्यक्ति तरक्की करते हुए सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ता चला जाता है। शनि की शुभ स्थिति देखने के लिए न सिर्फ कुंडली में शनि का अच्छे भाव में होना देखा जाता है, बल्कि हथेली में भी शनि पर्वत और शनि रेखा को देखकर जाना जा सकता है। अगर किसी व्यक्ति की हथेली में शनि रेखा मणिबंध से आरंभ होकर सीधे चलकर उंगली के नीचे वाले हिस्से जिसे शनि पर्वत कहा जाता है वहां पर आकर मिले तो व्यक्ति बहुत ही सफलता प्राप्त करता है। यह रेखा सीधे बिना रुकावट के आने पर व्यक्ति अपने जीवन में बहुत धन कमाता है।अगर किस व्यक्ति की हथेली में शनि पर्वत पर कोई तिल बना हुआ होता तो भी व्यक्ति अपने जीवनकाल में खूब पैसे बनाता है और समाज में उसकी अच्छी मान-प्रतिष्ठा बनती है। ऐसे व्यक्ति बहुत ही कम समय में मुकाम हासिल कर लेते हैं।वहीं दूसरी तरफ अगर किसी व्यक्ति की हथेली में शनि पर्वत पर एक से ज्यादा रेखाएं बनी हुई होती हैं या जालनुमा कोई आकृति हो तो इसे शनि की दशा माना जाता है। शनि पर्वत पर कई रेखाओं का अच्छा नहीं माना जाता है। यह इस बात का संकेत करती है कि व्यक्ति के जीवन में परेशानियां बनी रहती है। अगर किसी व्यक्ति की हथेली में मणिबंध से होते हुए को रेखा निकलकर शनि पर्वत पर जाने से पहले ही बीच में रुक जाती हो तो या नौकरी और व्यापार में आने वाली कई तरह की परेशानियों का संकेत है।अगर किसी व्यक्ति के हथेली पर शनि पर्वत ऊंचा उठा हुआ है और उस पर्वत पर कोई रेखा एकदम साफ और स्पष्ट रूप से बनी है तो यह राजयोग का संकेत माना जाता है। ऐसे व्यक्तियों की गिनती धनवान लोगों में होती है।
- हस्तरेखा शास्त्र ज्योतिष की ही एक शाखा है। इसमें व्यक्ति के हाथों में बनी लकीरों को देखकर व्यक्ति के बारे में बताया जाता है। हथेली पर कई आड़ी-तिरछी रेखाएं होती हैं, जिनमें से हृदय रेखा को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। हथेली में बुध पर्वत के नीचे से शुरू होकर गुरु पर्वत की ओर बढ़ने वाली रेखा को हृदय रेखा कहते हैं। इस रेखा से व्यक्ति के व्यवहार के बारे में बहुत सी जानकारी दी जा सकती है। इस रेखा का संबंध व्यक्ति की भावनाओं से होता है। जानते हैं कि कैसी हृदय रेखा वाले लोग होते हैं दयावान और अच्छे प्रेमी होते हैं और कैसी हृदय रेखा के लोग होते हैं मतलबी।जब किसी जातक की हथेली पर में रेखा बुध पर्वत से शुरू होकर गुरु और शनि पर्वत के बीच अंगुलियों के मिलने वाले भाग तक जाती है उसे सबसे सुंदर हृदय रेखा माना जाता है। ऐसे लोग सच्चे प्रेमी साबित होते हैं। ये लोग छोटी छोटी बातों को नजरंदाज कर देते हैं और रिश्तों की अहमियत रखते हैं। ये लोग सभी का ख्याल रखते हैं।किसी व्यक्ति की हथेली में जब हृदय रेखा सीधी शनि पर्वत के नीचे तक जाती है तो ऐसे व्यक्ति को पैसे से मोह होता है। ऐसा व्यक्ति धन कमाने के लिए विभिन्न प्रकार के समझौते करने के लिए भी तैयार होता जाता है। ये लोग मतलबी किस्म के होते हैं इनका काम निकलने के बाद ये किसी से मतलब नहीं रखते हैं।जब हृदय रेखा बुध पर्वत से निकलकर सीधा गुरु पर्वत पर जाती है तो वह व्यक्ति को स्पष्टवादी और ज्ञानी बनाती है। ऐसे लोग अनुशासन प्रिय होते हैं साथ ही दूसरों को भी अनुशासन में रखना पसंद करते हैं। अनुशासन में रहने के कारण ये लोग कुशल प्रबंधक होते हैं। इन लोगों की अध्ययन अध्यापन में खूब रुचि रहती है।हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार जिनके हाथ में हृदय रेखा जितनी अधिक लंबी और गहरी होती है उतनी अधिक प्रभावी रहती है। जिन लोगों की हृदय रेखा गहरी और स्पष्ट होती है वे लोग सेवा और सत्कार करने में विश्वास रखते हैं। ये लोग भावनात्मक तौर पर भी बहुत मजबूत होते हैं।
- ज्योतिष विज्ञान के अनुसार, ग्रहों के राशि परिवर्तन के साथ-साथ नक्षत्र परिवर्तन भी महत्वपूर्ण माना जाता है। सूर्य देव ने 3 अगस्त को सुबह 3 बजकर 42 मिनट पर अश्लेषा नक्षत्र में प्रवेश किया है। सूर्य के इस नक्षत्र परिवर्तन का प्रभाव मेष से लेकर मीन राशि तक पड़ेगा। खास बात ये है कि इस नक्षत्र में बुध देव विराजमान हैं। ऐसे में इस नक्षत्र में सूर्य और बुध का संयोग कुछ विशेष राशि के जातकों पर शुभ प्रभाव डालेगा। सूर्य देव कृतिका, उत्तराषाढा और उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के स्वामी माने जाते हैं। वहीं अश्लेषा स्वयं बुध देव का नक्षत्र है। ज्योतिष विज्ञान में बुध और सूर्य जिस भी राशि-नक्षत्र में होते हैं वहां बुधादित्य योग का निर्माण करते हैं। ऐसे में कुछ विशेष राशि के जातकों को शानदार परिणाम प्राप्त होते हैं।मेष राशिसूर्य के अश्लेषा नक्षत्र में आने से मेष राशि के जातकों को धनलाभ की प्राप्ति होगी। इसके प्रभाव से आपको रुका हुआ धन प्राप्त हो सकता है। आर्थिक स्थिति में सुधार देखने को मिलेगा। यह माह भी आपके लिए शुभ रहेगा। इस दौरान विद्यार्थियों को शुभ परिणाम मिलेंगे। वहीं करियर में सफलता के योग बनेंगे।मिथुन राशिसूर्य देव के अश्लेषा नक्षत्र में आने से मिथुन राशि के जातकों की चांदी कटेगी। इस दौरान आपको आर्थिक लाभ प्राप्त होगा। आमदनी में वृद्धि होने की भी संभावना है। यदि आप निवेश करने की सोच रहे हैं तो ये समय आपके लिए लाभकारी सिद्ध होगा। कारोबार में भी लाभ के योग बनेंगे।सिंह राशिअगस्त माह में सिंह राशि में बुध देव गोचर करेंगे। सूर्य के अश्लेषा नक्षत्र में आने से आपके भाग्य में वृद्धि होगी। इस दौरान आप जो भी कार्य लगन से करेंगे उसमें सफलता जरूर मिलेगी। करियर की दृष्टि से भी यह अवधि आपके लिए खूब अनुकूल होगी। आपके पद-प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी।तुला राशिसूर्य देव के अश्लेषा नक्षत्र में आने से तुला राशि के जातकों शानदार परिणाम मिलेंगे। अगर आप इस दौरान कोई भी नया काम शुरू करने के बारे में सोच रहे हैं तो ये समय आपके लिए शुभ रहेगा। संपत्ति में लाभ के योग बनेंगे और वाहन सुख की भी प्राप्ति हो सकती है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 362
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'कुसंग' पर दिये गये प्रवचन से संबंधित श्रृंखला में आज नौवें कुसंग 'परदोष-दर्शन' की चर्चा यहाँ प्रकाशित की जा रही है। 'जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' के भाग 354 से 'कुसंग' विषय पर विस्तृत चर्चा का प्रकाशन हो रहा है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित इस अमूल्य तत्वज्ञान से निश्चित ही हमें आध्यात्मिक हानि उठाने से बचाव के उपाय ज्ञात होंगे....)
★ नौवाँ कुसंग - 'परदोष-दर्शन'
परदोष देखो जनि गोविन्द राधे।यह दोष मन को सदोष बना दे।।(स्वरचित दोहा)परदोष-दर्शन घोर कुसंग है, क्योंकि परदोष-दर्शन से दो हानि हैं। एक तो यह कि परदोष-दर्शन काल ही में स्वाभाविक रूप से स्वाभिमान-वृद्धि होती है जो कि साधक के लिये तत्क्षण ही पतन का कारण बन जाती है। दूसरे यह कि यह दोष-चिन्तन करते हुये शनैः शनैः बुद्धि भी दोषमय हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप उन्हीं सदोष विषयों में प्रवृत्ति होने लगती है, अतएव सदोष कार्य होने लगता है। फिर जब संसारमात्र ही सदोष है, तो हम कहाँ तक दोष-चिन्तन करेंगे।आश्चर्य तो यह है कि मूर्ख को मूर्ख कहने का अधिकार तो ज्ञानी ही को है। मूर्ख, मूर्ख को मूर्ख क्यों कहता है? वह भी तो स्वयं मूर्ख है। यदि यह कहो कि क्या करें, दोष-दर्शन स्वभाव-सा बन गया, तो हमें कोई आपत्ति नहीं, तुम दोष देख सकते हो, किन्तु दूसरों के नहीं, अपने ही दोष क्या कम हैं। अपने दोषों को देखने में तुम्हारा स्वभाव भी न नष्ट होगा, तथा साथ ही एक महान लाभ होगा। वह महान लाभ तुलसी के शब्दों में;
जाने ते छीजहिं कछु पापी।अर्थात दोष जान लेने पर कुछ न कुछ बचाव हो जाता है, क्योंकि वह जीव उनसे बचने का कुछ न कुछ अवश्य प्रयत्न करता है।मेरी राय में तो परदोष-चिन्तन करना ही स्वयं के सदोष होने का पक्का प्रमाण है, अन्यथा भला किसी को इन बातों से क्या अभिप्राय है। लोक में भी देखो, एक बाप अपने सन्निपात रोगग्रस्त पुत्र के हेतु औषधि लाने के लिये डॉक्टर के यहाँ जाता है। यदि उसे मार्ग में कोई बुलाता भी है, तो वह सभ्यता आदि की परवाह न करते हुये सीधे ही कह देता है, 'अभी अवकाश नहीं, फिर मिलेंगे'।वह सीधे ही डॉक्टर के पास लक्ष्य करके जाता है। इसी प्रकार साधक को भी अपने मानसिक सन्निपातिक रोगों की निवृत्ति हेतु सद्गुरु द्वारा बताये हुए मार्ग पर चलकर अपना लक्ष्य प्राप्त करना चाहिये। उसे यह अवकाश ही न होना चाहिये कि साधना रूपी औषधि खाने के बजाय बैठे-ठाले परदोष-चिन्तन स्वरूप कुसंग का कुपथ्य करे। अतएव इस परदोष-चिन्तन रूपी अत्यन्त भयानक कुपथ्य से सर्वथा ही सावधान रहना चाहिये।०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2011 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हस्तरेखा शास्त्र भी ज्योतिष विद्या का एक भाग है। इसमें व्यक्ति के हाथों को देखकर उसके भविष्य के विषय में बताया जाता है। हस्तरेखा शास्त्र की मान्यता है कि व्यक्ति के हाथों की रेखाएं उसके भविष्य के विषय में काफी कुछ कहती हैं। हाथों में मौजूद आड़ी तिरछी लाइनों की मदद से उसके भविष्य में क्या होने वाला है? इस विषय में काफी कुछ जाना जा सकता है। हस्तरेखा शास्त्र में आज हम लड़कियों के हाथों के उन चिन्हों के बारे में जानेंगे, जिनके होने से वे काफी भाग्यशाली हो जाती हैं। ये चिन्ह जिन लड़कियों के हाथों पर होता है, उन्हें जीवन में खूब तरक्की मिलती है। इन्हें आर्थिक संकट का कभी भी सामना नहीं करना पड़ता। मां लक्ष्मी की कृपा सदा इन पर बनी रहती है। इन लड़कियों को समाज में खूब मान-सम्मान और प्रतिष्ठा मिलती है। समाज में इनको खूब सारी ख्याति प्राप्त होती है।ज्योतिष विद्या कहती है कि जिन व्यक्तियों के हाथ में चक्र के निशान होते हैं। वे लोग अपने जीवन में कुछ भी हासिल कर सकते हैं। मान्यता है कि जिन लड़कियों की सभी उंगलियों के प्रथम पोर पर चक्र का निशान बना होता है। ऐसी लड़कियों को जीवन में खूब प्रसिद्धि मिलती है। इनकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। ये लड़कियां काफी बुद्धिमान होती हैं। समाज में इनकी खूब इज्जत की जाती है।हस्तरेखा शास्त्र में लड़कियों के हाथों पर मछली का निशान होना काफी शुभ माना गया है। मान्यता है कि जिन लड़कियों के हाथ पर ये निशान होता है। वे काफी भाग्यशाली होती हैं। वहीं जो लोग इन लड़कियों के साथ संबंधित होते हैं, उनके जीवन में भी इसका सकारात्मक असर पड़ता है। भगवान विष्णु का चिन्ह मछली है। अगर किसी व्यक्ति के जीवन रेखा पर मछली की आकृति बनती है, तो वह व्यक्ति काफी भाग्यशाली होता है।मां लक्ष्मी कमल के ऊपर अपना आसन ग्रहण करती हैं। ऐसी लड़कियां जिनके हाथों पर कमल का निशान बनता है। वह काफी ज्यादा भाग्यशाली मानी जाती हैं। इन लड़कियों को कभी भी आर्थिक संकटों का सामना नहीं करना पड़ता। मां लक्ष्मी की कृपा सदा इन पर बनी रहती है। जीवन रेखा, भाग्य रेखा, शनि पर्वत, गुरु पर्वत के साथ शुक्र पर्वत पर कमल की आकृति बनती है, तो ये व्यक्ति के भाग्यशाली होने का प्रतीक है।यदि किसी लड़की के हाथों में स्वास्तिक के चिन्ह का निशान है, तो वह काफी सदाचारी, सदगुणी और धार्मिक व्यक्तित्व की होती है। ऐसी लड़कियां धर्म कर्म के कार्य में ज्यादा संलग्न रहती हैं। इस क्षेत्र में इनको खूब मान सम्मान और प्रतिष्ठा मिलती है। ये लड़कियां अपने साथ-साथ दूसरों की जिंदगी में भी सकारात्मकता का संचार करती हैं।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 361
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'कुसंग' पर दिये गये प्रवचन से संबंधित श्रृंखला में आज आठवें कुसंग 'नामापराध' की चर्चा यहाँ प्रकाशित की जा रही है। 'जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' के भाग 354 से 'कुसंग' विषय पर विस्तृत चर्चा का प्रकाशन हो रहा है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित इस अमूल्य तत्वज्ञान से निश्चित ही हमें आध्यात्मिक हानि उठाने से बचाव के उपाय ज्ञात होंगे....)
★ आठवाँ कुसंग - 'नामापराध'
किसी महापुरुष या साधक का अपमान करना भी घोर कुसंग है। साधकगण बहुधा अपने आपको तथा अपने महापुरुष को ही सत्य समझते हैं, शेष साधकों एवं महापुरुषों में दुर्भावनापूर्ण निर्णय देते हैं। यह महान भूल है। इससे नामापराध हो जाएगा, जिसके परिणामस्वरूप अपना महापुरुष तथा अपना इष्टदेव भी प्रसन्न न हो सकेगा; क्योंकि समस्त महापुरुष तथा भगवान परस्पर एक ही हैं। यदि किसी अन्य महापुरुष से तुम्हारी साधना के अनुकूल लाभ प्राप्त होता है तो उसे अवश्य ग्रहण करना चाहिये। किन्तु, इसमें बड़ी सावधानी की आवश्यकता है। अन्यथा कहीं यदि महापुरुष पर दुर्भावना हो गई तो 'एक पैसा कमाया एक लाख गँवाया' वाली कहावत सिद्ध हो जाएगी।
भगवान के समस्त नाम, समस्त गुण, समस्त लीला, समस्त धाम एवं उनके समस्त भक्त परस्पर एक हैं। एक के प्रति भी दुर्भाव करना सभी के प्रति दुर्भाव करना है। इनमें कोई छोटा बड़ा नहीं है। सबमें सबका निवास है और नित्य निवास है, काल्पनिक नहीं। आपके नाम में आपका निवास नहीं है किन्तु भगवान के नाम में भगवान का निवास है और जहाँ उनका निवास है वहाँ उनके जन का निवास है। जहाँ उनके जन का निवास है वहाँ भगवान स्वयं रहते हैं इसलिये सबमें एकत्व है। इसलिये इनमें छोटा बड़ा समझना ही सबसे बड़ा कुसंग माना गया है। तो इसको नामापराध कहते हैं, किसी में भी भेद-बुद्धि न होने पाये नहीं तो नामापराध हो जायेगा।
नामापराध भी तीन ही प्रकार के होते हैं - एक भगवान के प्रति, दूसरा उनके नाम, रूप, लीला, गुण व धाम के प्रति और तीसरा उनके जन के प्रति। इनमें दो चैतन्य हैं भगवान और उनके जन। बाकी चैतन्य तो हैं, लेकिन चैतन्य दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। जैसे भगवान का नाम। अब नाम की क्या शकल होती है, उसके प्रति कोई क्या अपराध करेगा? लेकिन उसके प्रति भी यह अपराध हो जाता है। जैसे कोई 'गोपाल गोपाल' भज रहा है, आप कहते हैं क्या यह 'गोपाल गोपाल' 'गोविन्द गोविन्द' भज रहा है? 'राम राम' 'श्याम श्याम' क्यों नहीं कहता? हम 'राम राम' 'श्याम श्याम' कहते हैं। वो ठीक है और ये बेवकूफ है। ये नाम के प्रति अपराध हो गया।
तुम्हारी रुचि जिस नाम में है, अपनी रुचि को बढ़ाओ, लेकिन दूसरे के नाम की बुराई न करो। जिस अवतार में तुम्हारी रुचि है उस अवतार में अपने प्यार को बढ़ाओ, लेकिन दूसरे अवतार की बुराई न करो। जिस गुरु में तुम्हारी रुचि है उसकी उपासना करो, लेकिन दूसरों की बुराई न करो। क्योंकि वे सब एक हैं। एक नाम से प्यार करो और दूसरे नाम की बुराई करो, एक गुरु से प्यार करो, फिर दूसरा गुरु, भी मान लो वह महापुरुष है, उसकी बुराई करो तो वह अपराध हो जायेगा। इसलिये अपने गुरु की उपासना करते हुये दूसरों से हमें उदासीन रहना है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2011 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - किसी काम में सफलता प्राप्त करने के लिए मेहनत और भाग्य दोनों की जरूरत होती है. लेकिन कई बार भाग्य आपका साथ नहीं देता, ऐसे में मेहनत बढ़ाकर भाग्य को अपने पक्ष में करना पड़ता है. यदि आप भी भाग्य को जगाने के लिए दिन रात कड़ी मेहनत कर रहे हैं, तो जानिए ऐसे संकेत जो भाग्योदय का इशारा देते हैं.ज्योतिष विज्ञान के अनुसार भाग्य को पिछले जन्म के कर्मों का संचय माना जाता है. किसी भी काम में सफलता के लिए मेहनत के साथ अच्छे भाग्य की भी जरूरत होती है. यदि दोनों चीजें एक साथ चलें, तो कोई भी लक्ष्य बहुत सरल और सुगम हो जाता है व जल्दी पूरा होता है, मनचाहे काम निर्विघ्न बनते चले जाते हैं.हालांकि भाग्य साथ न भी दे, तो भी निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि सही दिशा में कड़ी मेहनत करने से भी अपनी किस्मत को पक्ष में किया जा सकता है. यदि आप भी भाग्य को जगाने के लिए दिन रात कड़ी मेहनत कर रहे हैं, तो यहां जानिए कुछ ऐसे संकेतों के बारे में जो आपको बताते हैं, कि आपकी किस्मत जल्द ही चमकने वाली है और आपकी मेहनत रंग लाने वाली है.रास्ते में इन चीजों का मिलना होता है शुभयदि आप कहीं जा रहे हों और रास्ते में आपको शंख, सिक्का, स्वास्तिक चिन्ह या घोड़े की नाल मिले, तो समझिए ये शुभ संकेत है. इन्हें प्रणाम करके घर के आंगन या बगीचे में गाड़ दें या फिर पूजा के स्थान पर रखें. ये चीजें आपकी किस्मत जगा सकती हैं.गन्ने का दिखना संपन्नता का प्रतीकयदि सुबह के समय आप जब घर से निकलें तो आपको रास्ते में गन्ने का ढेर कहीं पर दिख जाए, तो खुश हो जाइए. गन्ने के ढेर को संपन्नता का प्रतीक माना जाता है. इसका मतलब है कि आपकी मेहनत रंग लाने वाली है और जल्द ही आपको धन लाभ हो सकता है.अचानक पहन लें उल्टा कपड़ाअगर आप अचानक कभी उल्टा कपड़ा पहन लें और लोग आप पर हंसने लगें, तो परेशान न हों. इस चीज पर आपको भी खुश होने की जरूरत है. अनजाने में ऐसा हो जाता शुभता का संकेत है. इसका मतलब है कि घर में मां लक्ष्मी की कृपा जल्द ही हो सकती है. हालांकि कुछ जगहों पर इसे स्वास्थ्य संबन्धी समस्याओं का इशारा भी समझा जाता है, ऐसे में सेहत को लेकर थोड़ी सावधानी बरतें.ये सपने भी देते भाग्योदय का इशाराकुछ सपने भी आपको भाग्योदय का इशारा देते हैं. यदि गहने पहनी हुई कन्या हाथ में फूल लिए नजर आए तो समझिए आपकी किस्मत जल्द ही पलटने वाली है. ऐसी कन्या को मां लक्ष्मी का रूप माना जाता है. ऐसे में सकारात्मक रवैया रखें और मेहनत को पूरी ईमानदारी से करते रहें. सफलता निश्चित तौर पर प्राप्त होगी. इसके अलावा यदि सपने में आप खुद को मल छूते हुए देखें तो ये इस बात का संकेत है कि आपके बुरे दिन जल्द ही जाने वाले हैं. आपके घर में धन की वर्षा होने की तैयारी है और आप मालामाल हो सकते हैं.
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जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 360
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'कुसंग' पर दिये गये प्रवचन से संबंधित श्रृंखला में आज छठे तथा सातवें कुसंग 'मिथ्याभिमान' और 'अन्य किसी मार्ग विषयक उपदेश' की चर्चा यहाँ प्रकाशित की जा रही है। 'जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' के भाग 354 से 'कुसंग' विषय पर विस्तृत चर्चा का प्रकाशन हो रहा है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित इस अमूल्य तत्वज्ञान से निश्चित ही हमें आध्यात्मिक हानि उठाने से बचाव के उपाय ज्ञात होंगे....)
★ छठा कुसंग - 'मिथ्याभिमान'
किसी नास्तिक को देखकर यह मिथ्याभिमान भी न करना चाहिए कि यह तो कुछ नहीं जानता, मैं तो बहुत आगे बढ़ चुका हूँ। क्योंकि बड़े से बड़े घोर नास्तिक भी कभी कभी इतना आगे बढ़ जाते हैं कि बड़े बड़े साधकों के भी कान काट लेते हैं। यह सब विशेषकर पूर्व जन्म के संस्कारों के द्वारा ही हो जाता है। तुम किसी के संस्कारों को क्या जानो। अतएव सभी जीव गुप्त या प्रकट रूप से भगवत्कृपा पात्र हैं, ऐसा समझकर किसी को भी घृणा की दृष्टि से नहीं देखना चाहिये, किन्तु इतना अवश्य है कि संग उन्हीं का करना चाहिये जिनके द्वारा हमारी साधना में वॄद्धि हो।
★ सातवाँ कुसंग - 'अन्य किसी मार्ग विषयक उपदेश'
अपने गुरु के बताये हुये मार्ग के सिवा अन्य किसी मार्ग विषयक उपदेश सुनना, पढ़ना आदि भी कुसंग है, भले ही वह मार्ग महापुरुष निर्दिष्ट ही क्यों न हो। कारण ये है कि साधक विविध प्रकार के मार्गों को सुनकर कभी इधर जाएगा कभी उधर जाएगा। परिणामस्वरूप 'इतो भ्रष्टोस्ततो भ्रष्ट:' के अनुसार न इधर का रहेगा न उधर का रहेगा।
मान लो, तुम भक्तिमार्ग की साधना कर रहे हो, कोई ज्ञानमार्गीय महापुरुष ज्ञानमार्ग का उपदेश कर रहा है। तुम उसे सुनोगे तथा सोचने लग जाओगे कि अरे! यह तो कुछ और ही कहता है। बस, दिमाग में कूड़ा भरने लग जायेगा। तुम्हारी लघु बुद्धि की यह सामर्थ्य नहीं है कि वास्तविक तत्त्व पर पहुँच सके।
इसी प्रकार अपने मार्ग में भी उपासना के अनेकानेक ढंग हैं, जो कि साधक की रुचि एवं विश्वास पर निर्भर रहते हैं। तुम दूसरी साधना को सुनकर सोचोगे कि अरे! यह बड़ी अच्छी साधना होगी, क्योंकि मेरी साधना से तो अभी तक भगवत्प्राप्ति नहीं हुई। कदाचित उस साधना के प्रति यह दुर्भाव पैदा हो गया कि उसकी साधना सही नहीं है, तब तो और भी अपराध कमा बैठोगे। अतएव अपने गुरु के ही बताये मार्ग का निरंतर चिन्तन, मनन एवं परिपालन करना चाहिए तथा अन्य मार्गावलम्बी साधकों अथवा अपने मार्ग के अन्यान्य प्रणाली युक्त साधकों की साधना पर दुर्भाव न करना चाहिये। यह समझ लेना चाहिये कि सभी की साधनायें ठीक हैं। जिसके लिये जो अनुकूल है, वह वही करता है। हमें इस उधेड़बुन से क्या मतलब।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2011 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - अच्छा करियर सभी की चाहत होती है. समय के साथ कई नए-नए करियर एवेन्यू सामने आ रहे हैं, जिनमें लोग शानदार करियर भी बना रहे हैं. वहीं कुछ क्षेत्रों में नौकरियां घटती जा रही हैं, लेकिन सरकारी नौकरी में मिलने वाली सुविधाओं और जॉब सिक्योरिटी के कारण इसकी डिमांड हमेशा रहती है. हालांकि सभी का ये सपना पूरा नहीं हो पाता है, जिसके पीछे कई कारण होते हैं. इसमें एक कारण व्यक्ति की किस्मत भी होती है या यूं कह सकते हैं कि कुंडली के ग्रह या हाथ की रेखाएं होती हैं. आज हम हस्तरेखा शास्त्र से जानते हैं कि कौनसी रेखाएं या स्थितियां सरकारी नौकरी मिलने का संकेत देती हैं.ऐसी हो हथेली, तो मिलती है सरकारी नौकरी- यदि हथेली में गुरु पर्वत अच्छी तरह विकसित हो और इस पर कोई सीधी रेखा भी हो तो ऐसे लोगों को गर्वनमेंट जॉब मिलने के लिए अच्छे योग होते हैं.- यदि सूर्य पर्वत अच्छे से उभरा हुआ हो और उससे सीधी रेखा निकले तो ऐसे जातकों को सरकारी जॉब मिलने के प्रबल योग होते हैं.- जातक की हथेली में भाग्य रेखा से निकलकर कोई रेखा गुरु पर्वत की ओर जाए तो यह बहुत शुभ होता है. ऐसा व्यक्ति न केवल सरकारी नौकरी पाता है, बल्कि वह बड़े पद पर पहुंचता है. उसे जिंदगी में बहुत मान-सम्मान मिलता है.- भाग्य रेखा से निकलकर कोई रेखा सूर्य पर्वत पर जाए ऐसा जातक भी बहुत भाग्यशाली होता है. इन लोगों को भी बड़े ओहदे वाली गवर्नमेंट जॉब मिलती है.
- सावन का महीना शिव जी भक्ति के लिहाज से तो बहुत खास होता ही है, साथ ही यह महीना नए जीवन की शुरुआत का महीना भी माना जाता है. इस समय में पौधे लगाने से पुण्य तो मिलता ही है, साथ ही पर्यावरण को भी फायदा पहुंचता है. आज हम जानते हैं कि इस महीने में कौन से पौधे (Plants) लगाने से सबसे ज्यादा लाभ होता है.तुलसी का पौधा: हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे को बहुत महत्वपूर्ण और शुभ बताया गया है. इस धर्म के अधिकांश अनुयायियों के घर में तुलसी का पौधा होता है. यदि आपके घर में पौधा नहीं है या आप एक और पौधा लगाना चाहते हैं तो इसके लिए सावन का महीना सबसे शुभ है. इस पौधे के नीचे रोजाना दीपक लगाने से घर में सुख-समृद्धि आती है और परिवार निरोगी रहता है.अनार का पौधा: सावन महीने में अनार का पौधा लगाना भी बहुत शुभ होता है, लेकिन ख्याल रखें कि इसे रात के समय में लगाएं. इसे घर के सामने लगाने से घर की नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है.केले का पौधा: सावन महीने की एकादशी या गुरुवार के दिन केले का पेड़ लगा सकते हैं. केले का पेड़ वास्तु के लिहाज से घर में लगाना शुभ नहीं होता है लेकिन इसे घर के पीछे या छत के पीछे लगाने से कोई नुकसान नहीं है. पेड़ लगाने के बाद उसमें रोजाना जल चढ़ाएं, इससे मैरिड लाइफ की समस्याएं दूर होंगी. साथ ही कुंडली में गुरु ग्रह मजबूत होगा.गूलर का पौधा: गूलर को ज्योतिष में चमत्कारी पेड़ बताया गया है. सावन महीने में गूलर का पौधा लगाने से जिंदगी में सुख-शांति आएगी.शमी का पौधा: सावन महीने के शनिवार को घर के मेन गेट के बायीं ओर शमी का पौधा लगाएं. इससे शनि दोष से राहत मिलेगी और कई समस्याएं दूर होंगी.पीपल का पौधा: सावन महीने के गुरुवार को पीपल का पौधा लगाने से घर में खुशहाली आएगी. लेकिन यह पौधा अपने घर में गलती से भी न लगाए़ं, बल्कि पार्क में, मंदिर के पास, सड़क के किनारे लगाएं.
- भारत में रहस्यमय और प्राचीन मंदिरों की कोई कमी नहीं है। देश के कोने-कोने में कई मशहूर मंदिर आपको देखने को मिल जाएंगे। इनमें से कई मंदिरों को लोग चमत्कारी और रहस्यमय भी मानते हैं। आज हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे अगर रहस्यमय कहें तो गलत नहीं होगा। क्योंकि कहा जाता है कि इस मंदिर में लगे पत्थरों को थमथपाने पर डमरू जैसी आवाज आती है। असल में यह एक शिव मंदिर है, जिसके बारे में दावा ये भी किया जाता है कि यह एशिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर है। दक्षिण द्रविड़ शैली में निर्मित इस मंदिर को बनने में करीब 39 साल लगे।यह मंदिर देवभूमि के नाम से मशहूर हिमाचल प्रदेश के सोलन में स्थित है, जिसे जटोली शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है। दक्षिण-द्रविड़ शैली में बने इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 111 फुट है।इस मंदिर को लेकर ये मान्यता है कि पौराणिक काल में भगवान शिव यहां आए थे और कुछ समय के लिए रहे थे। बाद में 1950 के दशक में स्वामी कृष्णानंद परमहंस नाम के एक बाबा यहां आए, जिनके मार्गदर्शन और दिशा-निर्देश पर ही जटोली शिव मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ। साल 1974 में उन्होंने ही इस मंदिर की नींव रखी थी। हालांकि, साल 1983 में उन्होंने समाधि ले ली, लेकिन मंदिर का निर्माण कार्य रूका नहीं बल्कि इसका कार्य मंदिर प्रबंधन कमेटी देखने लगी। करोड़ों रुपये की लागत से बने इस मंदिर की सबसे खास बात ये है कि इसका निर्माण देश-विदेश के श्रद्धालुओं द्वारा दिए गए दान के पैसों से हुआ है। यही वजह है कि इसे बनने में तीन दशक से भी ज्यादा का समय लगा। इस मंदिर में हर तरफ विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं, जबकि मंदिर के अंदर स्फटिक मणि शिवलिंग स्थापित है। इसके अलावा यहां भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्तियां भी स्थापित की गई हैं। वहीं, मंदिर के ऊपरी छोर पर 11 फुट ऊंचा एक विशाल सोने का कलश भी स्थापित है, जो इसे बेहद ही खास बना देता है। मंदिर का गुंबद 111 फीट ऊंचा है जिसके कारण इसे एशिया का सबसे ऊंचा मंदिर माना जाता है।मान्यता है कि भगवान शिव ने एक रात यहां पर विश्राम किया था। कहा जाता है कि यहां पर पानी की समस्या थीं। इसे देखते हुपए स्वामी कृष्णानंद परमहंस ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की और त्रिशूल के प्रहार से जमीन में से पानी निकाला। तब से लेकर आज तक जटोली में पानी की समस्या नहीं है। इस पानी को लोग चमत्कारिक मानते हैं। उनका मानना है कि इस पानी से किसी भी बीमारी को ठीक किया जा सकता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 359
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'कुसंग' पर दिये गये प्रवचन से संबंधित श्रृंखला में आज पाँचवें कुसंग 'अनधिकारी से साधनादि की अन्तरंग चर्चा' की चर्चा यहाँ प्रकाशित की जा रही है। 'जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' के भाग 354 से 'कुसंग' विषय पर विस्तृत चर्चा का प्रकाशन हो रहा है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित इस अमूल्य तत्वज्ञान से निश्चित ही हमें आध्यात्मिक हानि उठाने से बचाव के उपाय ज्ञात होंगे....)
★ पाँचवाँ कुसंग - अनधिकारी से साधनादि की अन्तरंग चर्चा
अश्रद्धालु एवं अनधिकारी से अपने मार्ग अथवा साधनादि के विषय में वाद विवाद करना भी कुसंग है, क्योंकि जब अनधिकारी को सर्वसमर्थ महापुरुष भी आसानी के साथ बोध नहीं करा पाता, तब वह साधक भला किस खेत की मूली है। यदि कोई परहित की भावना से भी समझाना चाहता है, तब भी उसे ऐसा नहीं करना चाहिये क्योंकि अश्रद्धालु होने के कारण उसका विपरीत ही परिणाम होता है, साथ ही उस अश्रद्धालु के न मानने पर साधक का चित्त अशांत हो जाता है।
शास्त्रानुसार भी भक्ति मार्ग को लेकर वाद-विवाद करना घोर पाप है। भरत जी कहते हैं;
भक्त्या विवदमानेषु मार्गमाश्रित्य पश्यतः।तेन पापेन युज्येत यस्यार्योनु रमते गताः।।(वाल्मीकि रामायण)
अर्थात भक्तिमार्ग को लेकर वाद-विवाद सरीखा महान पाप मुझे लग जाय यदि राम के वन जाने के विषय में मेरी राय रही हो। अतएव न तो वाद-विवाद सुनना चाहिये, न तो स्वयं ही करना चाहिये। यदि अनधिकारी जीव इन विषयों को नहीं समझता तो इसमें आश्चर्य या दुःख भी नहीं होना चाहिये, क्योंकि कभी तुम भी तो नहीं समझते थे। यह तो परम सौभाग्य महापुरुष एवं भगवान की कृपा से प्राप्त होता है कि जीव भगवद विषय को समझकर उसकी ओर उन्मुख हो।
अनधिकारी को भगवद विषयक कोई अन्तरंग रहस्य भी न बताना चाहिये क्योंकि वर्तमान अवस्था में अनुभवहीन होने के कारण अनधिकारी उन अचिन्त्य विषयों को नहीं समझ सकता, उलटे अपराध कमाकर अपनी रही सही आस्तिकता को भी खो बैठेगा। साथ ही अन्तरंग रहस्य बताने वाले साधक को भी अशान्त करेगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2011 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हस्तरेखा विज्ञान प्राचीनतम ज्योतिष विधाओं में से एक है। ज्योतिष विद्या का मानना है कि व्यक्ति की हस्तरेखाएं उसके भाग्य को बताती हैं। अमूमन हाथ पर बनी ये रेखाएं शाश्वत नहीं होती। ये समय के साथ-साथ बदलती रहती हैं। कई बार हाथों की लकीरों में ऐसे शुभ योग बनते हैं, जिसके चलते व्यक्ति को कारोबार के क्षेत्र में खूब सारा लाभ होता है। उसके घर में मां लक्ष्मी की कृपा बरसने लगती है। घर के भीतर बड़े पैमाने पर धन संपत्ति का आगमन होता है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक ऐसे योग को काफी शुभ माना गया है। इस तरह के योग के चलते व्यक्ति जीवन में खूब तरक्की करता है। मां लक्ष्मी की कृपा इन लोगों के ऊपर सदा बनी रहती है और उनका दांपत्य जीवन भी काफी खुशहाल रहता है। इस कड़ी में आज हम हस्तरेखाओं में बने ऐसे खास योग के बारे में जानेंगे, जो व्यक्ति को जिंदगी में खूब कामयाबी दिलाते हैं।लक्ष्मी योगयदि हस्तरेखाओं में बुध, गुरु, शुक्र और चंद्रमा पर्वत अच्छी तरह से लालिमा लिए हुए विकसित हो गए हैं, तो ये लक्ष्मी योग कहलाता है। इसे काफी शुभ योग माना गया है, जिस व्यक्ति की हस्त रेखाओं में ये योग बनता है। वह जो भी काम करता है, उसमें उसे जरूर सफलता मिलती है। ऐसे लोगों की जिंदगी काफी खुशहाल होती है। इन लोगों को जीवन में खूब सारा आर्थिक लाभ होता है।गजलक्ष्मी योगयदि आपके हाथों की भाग्य रेखा मणिबंध से शुरू होकर शनि पर्वत तक जाती है। वहीं सूर्य रेखा बिना किसी कट-पिट के एकदम स्पष्ट दिखती हो और सूर्य पर्वत लालिमा लिए विकसित हो रखा है तो इस योग को गजलक्ष्मी योग कहा जाता है। इस योग को भी काफी शुभ माना गया है। ऐसा योग जिस किसी भी इंसान के हाथों पर होता है उसे दिन दोगुनी और रात चौगुनी तरक्की मिलती है। ये लोग व्यापार के क्षेत्र में खूब सारा लाभ अर्जित करते हैं। ऐसे लोगों का व्यक्तित्व काफी आकर्षक होता है।शुभ कर्तरी योगअगर आपकी हथेली का बीच का हिस्सा दबा हुआ है और सूर्य और गुरु पर्वत अच्छी तरह से विकसित हो गए हैं। वहीं भाग्य रेखा शनि पर्वत तक जाए तो ऐसे में शुभ कर्तरी योग बनता है। शुभ कर्तरी योग जिस किसी भी इंसान की हस्त रेखाओं में होता है। वह जीवन में खूब सारा धन अर्जित करता है। मां लक्ष्मी की कृपा ऐसे इंसानों के ऊपर सदा बनी रहती है।भाग्य योगयदि दोनों हाथों में भाग्य रेखा लंबी और स्पष्ट है तथा चंद्र पर्वत या फिर गुरु पर्वत से शुरू होती है, तो ऐसे में भाग्य योग बनता है। यह योग जिस व्यक्ति के हाथ में होता है, उसे जीवन में आपार सफलता मिलती है। कारोबार के क्षेत्र में वह खूब सारा लाभ अर्जित करता है। इसके अलावा ऐसे व्यक्ति का दांपत्य जीवन भी खुश रहता है।
- अगस्त का महीना कैलेंडर का आठवां महीना होता है। इस महीने उत्तर भारत में झमाझम बारिश का नजारा देखने को मिलता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, जिन जातकों का जन्म अगस्त माह में होता है उन जातकों के स्वभाव में कुछ विशेष ग्रहों का प्रभाव देखने को मिलता है। अगस्त माह में जन्मे जातकों के ऊपर सूर्य ग्रह का प्रभाव देखने को मिलता है। इनकी राशि सिंह होती है। इस मास में जन्मे जातकों के प्रत्येक कार्य में लीडरशिप दिखाई देती है। मिथुन और कन्या राशि के जातक इनके अच्छे मित्र होते हैं। अगस्त माह में जन्मे लोगों को प्रशासनिक नौकरी में जल्दी सफलता मिल जाती है। किसी भी बात को अपनी तरफ घुमाना इन्हें बहुत अच्छे से आता है। इनकी चतुराई इनकी वाणी से साफ देखी जा सकती है। आइए जानते हैं अगस्त माह में जन्म लेने वाले जातकों में और क्या-क्या विशेषताएं देखने को मिलती हैं-अगस्त माह में जन्म लेने वाले जातक स्वभाव से कंजूस होते हैं। इनका यही स्वभाव इन्हें धनी बनाता है। इस माह में जन्म लेने वाले बुद्धिमान होते हैं। अपने बुद्धि के बल पर ही आप समाज में अपना एक अलग ही प्रभाव छोड़ते हैं। समाज की भलाई के कामों में आपकी खूब सक्रियता देखने को मिलती है। हालांकि भलाई का कामों में आपका स्वार्थ छिपा होता है।आप अधिक लोगों से मित्रता करने में यकीं नहीं करते हैं। आपके चुनिंदा दोस्त होते हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आप में गजब की प्रतिभा छिपी हुई होती है। आप कला, साहित्य और विभिन्न रचनात्मक विधाओं में आप अपनी अलग पहचान बनाते हैं। आपके भीतर सौन्दर्य बोध कमाल का है। आप अपनी मर्जी के मालिक हैं। आप स्पष्टवादी होते हैं। कई बार आपकी यह आदत आपको मुसीबत में डाल देती है।आर्थिक मामलों में आप बेहद संजीदा होते हैं। आपका अर्थ प्रधान नजरिया है। आप अपनी कौड़ी-कौड़ी का भी हिसाब रखते हैं। जहां तक प्यार का मामला है तो आप रिश्ते को बहुत ज्यादा अहमियत नहीं देते हैं। कभी कभार तो रिश्ते से ज्यादा पैसा आपके लिए प्रिय हो जाता है।अगर इनके लकी नंबर की बात करें तो 2 ,5 और 9 नंबर इनके लिए भाग्यभाली माना जाता है। वहीं स्लेटी, गोल्डन और रेड रंग इनके लिए लकी माना जाता है। वहीं रविवार और शुक्रवार इनके लिए शुभ दिन माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार स्वास्थ्य के लिए माणिक, भाग्योदय के लिए मूंगा और यदि चर्म रोग या गुप्त रोग परेशान कर रहे हों तो पुखराज धारण करना चाहिए।
- जिन घरों में वास्तु से संबंधित किसी भी प्रकार का दोष होता है वहां पर बीमारियां, परेशानियां, धनहानि, मनमुटाव और विवाद अक्सर पीछा करते हैं। इसके अलावा ये भी देखा जाता है कि कई बार दिन-रात व्यक्ति मेहनत करता है लेकिन वह वैसी सफलता नहीं प्राप्त करता जैसी उसको अपेक्षा रहती है। वास्तु शास्त्र के कुछ आसान उपाय से आप अपनी जिंदगी को संवार सकते हैं। वास्तु के उपाय घर, ऑफिस या फिर व्यापारिक अनुष्ठान आदि में वास्तु दोष को दूर करने में कारगर होते हैं। आज हम आपको ऐसे दस वास्तु शास्त्र के उपाय बताएंगे जो आपकी जिंदगी में खुशियों के रंग घोल सकते हैं। ये उपाय इस प्रकार हैं।सुबह घर की सफाई के उपरांत हल्दी को जल में घोलकर एक पान के पत्ते की सहायता से अपने सम्पूर्ण घर में छिडकाव करें, इससे घर में लक्ष्मी का वास तथा शांति भी बनी रहती है। इसी प्रकार घर में सफाई करने के उपरांत गंगाजल के छिड़काव से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं और वास्तुदोष दूर भागता है।गलत दिशा में रखी गईं धार्मिक पुस्तकें वास्तु दोष का कारण बनती हैं। वास्तु के अनुसार धार्मिक पुस्तकों और ग्रंथों को हमेशा पश्चिम की तरफ ही रखना चाहिए। किसी दूसरी दिशा में, बेड के अंदर अथवा गद्दे या तकिये के नीचे धार्मिक पुस्तकें रखना शुभ नहीं होता।अपने घर के मन्दिर में घी का एक दीपक नियमित जलाएं तथा घंटी भी बजाना चाहिए जिससे सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा घर से बहार निकलती है। इसी तरह घर में शंख रखने और बजाने से घर का वास्तु दोष दूर होता है। घर के पूजा-स्थल में देवी-देवताओं पर चढ़ाए गए पुष्प-हार दूसरे दिन हटा देने चाहिए और भगवान को नए पुष्प-हार अर्पित करने चाहिए। इसी प्रकार पूजा घर में देवताओं के चित्र भूलकर भी आमने-सामने नहीं रखने चाहिए इससे बड़ा दोष उत्पन्न होता है।घर में सफाई हेतु रखी झाडू को दरवाजे के पास नहीं रखें यदि। यदि झाडू के बार-बार पैर लगता है, तो यह धन-नाश का कारण होता है। झाडू के ऊपर कोई वजनदार वस्तु भी नहीं रखें।अपने घर में दीवारों पर सुन्दर, हरियाली से युक्त और मन को प्रसन्न करने वाले चित्र लगाएं। इससे घर के मुखिया को होने वाली मानसिक परेशानियों से निजात मिलती है।वास्तुदोष के कारण यदि घर में किसी सदस्य को रात में नींद नहीं आती या स्वभाव चिडचिडा रहता हो, तो उसे दक्षिण दिशा की तरफ सिर करके शयन कराएं। इससे उसके स्वभाव में बदलाव होगा और अनिद्रा की स्थिति में भी सुधार होगा।घर के उत्तर-पूर्व में कभी भी कचरा इकट्ठा न होने दें और न ही इधर भारी सामान और मशीनरी रखें। अपने वंश की उन्नति के लिये घर के मुख्यद्वार पर अशोक के वृक्ष दोनों तरफ लगाएं।अपने घर में ईशान कोण अथवा ब्रह्मस्थल में स्फटिक श्रीयंत्र की शुभ मुहूर्त में स्थापना करें। यह यन्त्र लक्ष्मी प्रदायक भी होता ही है, साथ ही साथ घर में स्थित वास्तुदोषों का भी निवारण करता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 358
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'कुसंग' पर दिये गये प्रवचन से संबंधित श्रृंखला में आज चौथे कुसंग 'अनेकानेक शास्त्रों-धर्मग्रन्थों का पढ़ना' की चर्चा यहाँ प्रकाशित की जा रही है। 'जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' के भाग 354 से 'कुसंग' विषय पर विस्तृत चर्चा का प्रकाशन हो रहा है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित इस अमूल्य तत्वज्ञान से निश्चित ही हमें आध्यात्मिक हानि उठाने से बचाव के उपाय ज्ञात होंगे....)
★ चौथा कुसंग - अनेकानेक शास्त्रों-धर्मग्रन्थों का पढ़ना
...अनेकानेक शास्त्रों, वेदों, पुराणों एवं अन्यान्य धर्मग्रन्थों को पढ़ना कुसंग है। चौंको मत, बात समझो। कारण यह है कि वे महापुरुष के प्रणीत ग्रन्थ हैं, अतएव उन्हें हम भगवत्प्रणीत ग्रन्थ भी कह सकते हैं। उनका वास्तविक तत्त्व अनुभवी महापुरुष ही जानते हैं। तुम उन्हें पढ़कर अनेकानेक प्रश्न पैदा कर बैठोगे, जिनका कि समाधान अनुभव के बिना संभव नहीं।
यदि किसी मात्रा में संभव भी है तो वह एकमात्र महापुरुष के द्वारा ही। अतएव हमारे यहाँ के प्रत्येक शास्त्रादि स्वयं प्रमाण देते हैं कि महापुरुष के द्वारा ही शास्त्रों का तत्त्वज्ञान हो सकता है;
तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्वदर्शिनः।।(गीता 4-34)
यदि तुम शास्त्रों, वेदों को पढ़कर स्वयं ही तत्त्वनिर्णय करना चाहो तो सर्वप्रथम इस विषय में महापुरुष का ही निर्णय पढ़ लो। तुलसीदास के शब्दों में;
श्रुति पुराण बहु कहेउ उपाई।छूटै न अधिक अधिक उरझाई।।
अर्थात यदि महापुरुष के बिना ही, अपने आप शास्त्रीय भगवद-विषयों का तत्त्वनिर्णय करने चलोगे तो सुलझने के बजाय उलझते जाओगे। सारांश यह है कि एक प्रश्न के समाधान के लिये तुम शास्त्रों में अपनी बुद्धि को लेकर उत्तर ढूँढने जाओगे, तो शास्त्रों का वास्तविक रहस्य न समझकर सैकड़ों प्रश्न उत्पन्न करके लौटोगे क्योंकि पुनः तुलसीदास ही के शब्दों में;
मुनि बहु, मत बहु, पंथ पुराननि, जहाँ तहाँ झगरो सो।(विनय पत्रिका)
अर्थात अनेक ऋषि मुनि हो चुके हैं एवं उनके द्वारा प्रणीत अनेक मत भी बन चुके हैं। पुराणादिक में इस विषय में झगड़े ही झगड़े हैं। फिर तुम्हारी बुद्धि भी मायिक है अतएव तुम मायिक अर्थ ही निकालोगे।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2011 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण होता है, अगर आपकी सेहत दुरुस्त है तो आप अपने हर सपने के साकार कर सकते हैं। वहीं यदि आपकी सेहत ठीक नहीं है तो आपको कदम कदम पर मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। वास्तु शास्त्र में कई ऐसे आसान उपाय बताए गए हैं जिनकी मदद से आप अपनी सेहत को बेहतर बना सकते हैं। कईबार हमारी छोटी-छोटी गलतियों के कारण घर में वास्तु दोष पैदा होता है जिसका नकारात्मक असर हमारी सेहत पर पड़ता है। जिस घर में लोग बार-बार बीमार होते हैं उन्हें अपने घर का वास्तु दोष अवश्य ही देखना चाहिए। बीमारी के कारण हमारी सेहत तो बिगड़ती ही है। साथ ही इसमें पैसा और समय दोनों खर्च होते हैं। इससे आर्थिक और मानसिक परेशानी भी उठानी पड़ती है।वास्तु के अनुसार अपने बेडरूम में कभी भी पुरानी और बेकार वस्तुओं को इकठ्ठा न करें, क्योंकि इससे आपके घर में नकारात्मक ऊर्जा का संचार होगा। जिसके कारण वायरस या बैक्टीरिया से होने वाली बीमारियां जन्म लेंगी, जो आपके लिए ठीक नही हैं।बेडरूम पूरी तरह से बंद नहीं होना चाहिए। बेडरूम में पलंग के सामने दर्पण नहीं होना चाहिए। ऐसा होने से व्यक्ति की सेहत खराब रह सकती है। मानसिक परेशानियों को दूर रखने के लिए बीम के नीचे कभी नहीं सोना चाहिए एवं शयन कक्ष में भगवान की तस्वीर न लगाएं।घर के मुख्य दरवाजे के सामने कोई गड्ढा या कीचड़ है तो इससे परिजनों को मानसिक रोग या तनाव घेरे रहता है। उस गड्ढे को मिट्टी से भर दें। ध्यान रखें कि घर के मुख्य दरवाजे के सामने गंदगी न रहे।आप जब भी भोजन करने बैठें तो इस बात का ध्यान रखें कि आपका मुख पूर्व या उत्तर दिशा में हो। इससे पाचन अच्छा होगा जिस कारण आपकी सेहत अच्छी रहेगी।अगर घर के सामने कोई बड़ा पेड़ या खंभा है, और जिसकी छाया घर पर पड़ती हो तो इस वास्तु दोष को दूर करने के लिए घर के मेन गेट के दोनों तरफ स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं।