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- सड़कों पर लगे पेड़ों पर एक हल्के पीले और हरे रंग का बेल कई बार देखा है, जिसमें कई ऐसे गुण छिपे हैं, जो हम सभी के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं। इस हल्के पीले हरे बेल को हम अमरबेल कहते हैं। आकाशीय बेल और अमर बेल सबसे ज्यादा मशहूर नाम हैं। संभव है कि इस बेल को आपने पहले कई बार देखा हो और इसके फायदों के बारे में आपको ना पता हो। आइए जानते हैं अमरबेल के क्या फायदे होते हैं--आंखों की परेशानी को दूर करने के लिए भी अमरबेल काफी फायदेमंद होता है। आंखों के लिए इसका इस्तेमाल करने के लिए 10 मिली। अमरबेल के रस को थोड़ी सी चीनी में मिलाएं। इस रस को अपने आंखों के आसपास लगाएं। इससे आंखों में जलन और आंख आने की समस्या दूर हो जाती है।-पेट में गर्मी या फिर किसी तरह की समस्या को दूर करने के लिए अमरबेल काफी फायदेमंद हो सकता है। अमरबेल की शाखाओं को उबाल लें। इसके बाद इसे अच्छी तरह से पीस लें और इस पेस्ट को पेट के चारो ओर लगाएं। इससे आपके पेट की गर्मी कुछ ही समय में ठीक हो जाएगी।-बवासीर की परेशानी को दूर करने में भी यह मदद कर सकता है। अगर बवासीर की समस्या है, तो अमरबेल का 10 मिली ग्राम रस लें। इसमें 5 ग्राम काली मिर्च का चूर्ण डालें। इसे सुबह घोंटकर पीएं। तीन दिन तक लगातार इसका सेवन करने से बवासीर की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है।-लिवर की समस्या से ग्रसित लोगों के लिए भी यह बहुत ही फायदेमंद हो सकता है। नियमित रूप से 5 से 10 ग्राम अमरबेल का रस पीने से लिवर की समस्या से निजात पाया जा सकता है। फैटी लिवर की समस्या से परेशान लोगों को रोजाना 10-20 मिली अमरबेल का रस पीने से काफी आराम मिलता है। इसके अलावा आप इसके रस को अपने अमाशय के आसपास लगाएं।-मुंह में अल्सर की समस्या को दूर करने में भी यह मदद कर सकता है। मुंह के अल्सर को दूर करने के लिए अमरबेल का पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को अपने छालों पर लगाएं। इससे तुरंत राहत मिल सकेगी।-अमरबेल का सबसे बढिय़ा औषधीय इस्तेमाल गंजेपन को दूर करने के लिए किया जाता है। गंजापन दूर करने के लिए अमरबेल को तिल के तेल के साथ पीसकर इस पेस्ट को सिर में नियमित रूप से मालिश करते रहें।-एक रिसर्च के अनुसार अमरबेल में एंटी डायबिटिक गुण पाए जाते है। इसके कारण यह डायबिटीज जैसी समस्या में उसके लक्षणों को कम कर लाभ पहुंचता है।-अमरबेल में बल्य गुण पाए जाने के कारण यह हड्डियों को मजबूत बनाये रखने में भी सहयोगी होता है ।- प्रतिरक्षा प्रणाली सुधारने में भी अमरबेल मदद करती है क्योंकि इसमें रसायन गुण पाया जाता है।
- नॉन वेज के शौकीन आपको बताएंगे कि कोई भी सब्जी उतनी स्वादिष्ट और मजेदार नहीं होती, जितना कि चिकन और मटन, लेकिन ये स्वाद आपको नुकसान भी पहुंचाता है। जानिए, वेजेटेरियन होने से क्या क्या फायदा होता है।-पर्यावरण और जीवनशैली से जुड़े कारक जेनेटिक्स को भी प्रभावित करते हैं। हमारे भोजन में मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट्स और अन्य पोषक तत्व शरीर में क्षतिग्रस्त डीएनए की मरम्मत में मदद करते हैं। शाकाहारी भोजन के सेवन से प्रोस्टेट कैंसर के खतरे को भी कम किया जा सकता है.ा।-मांस या प्रोसेस्ड फूड खाकर अक्सर सीने या पेट में जलन का अहसास होता है। कभी कभार जलन होना बड़ी बात नहीं लेकिन इसका बना रहना खतरनाक है। शाकाहारी खानपान से इसमें कमी आती है क्योंकि इसके फाइबर में एंटी ऑक्सीडेंट होते हैं।-कोलेस्ट्रॉल से दिल की बीमारियों का भारी खतरा रहता है। शोध के मुताबिक जो लोग सब्जियां खाते हैं उनमें कोलेस्ट्रॉल का स्तर 35 फीसदी तक कम होता है। पौधों से मिलने वाले उत्पादों में सैचुरेटेड फैट बहुत ही कम होता है।-जीवों से मिलने वाला प्रोटीन, खासकर रेड मीट या प्रोसेस्ड मीट, टाइप 2 डायबिटीज के खतरे को बढ़ाता है। पशुओं की चर्बी, आयरन और अक्सर इस्तेमाल होने वाले प्रेजर्वेटिव अग्नाशय की कोशिकाओं को बर्बाद करते हैं।-शाकाहारी भोजन में पाया जाने वाला फाइबर उन बैक्टीरिया के विकास में मदद करता है जो हमारी आंतों के लिए अच्छे हैं। ये पाचन में मदद करते हैं। पौधों से मिलने वाले जरूरी बैक्टीरिया शरीर के इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाने, डायबिटीज, एथीरोस्क्लेरोसिस और लिवर की बीमारियों से शरीर की रक्षा करते हैं।-भोजन में बाहरी प्रोटीन से ना तो शरीर ताकतवर बनता है ना ही पतला. फालतू प्रोटीन या तो वसा बन जाता है या फिर मल बनकर निकल जाता है। पशुओं से मिलने वाला प्रोटीन वजन बढऩे का मुख्य कारण है।-एकैडमी ऑफ न्यूट्रिशन एंड डायटीटिक्स पत्रिका में छपी रिपोर्ट दिखाती है कि अगर कोई व्यक्ति सब्जियां, फल, अनाज और दालें खाता है तो उसके लिए वजन घटाना मांसाहारी भोजन खाने वाले व्यक्ति के मुकाबले कहीं आसान होता है।- न्यूट्रिशन विशेषज्ञ सूजन टकर के मुताबिक शाकाहारी भोजन में फाइबर और एंटी ऑक्सीडेंट्स की पर्याप्त मात्रा के कारण शरीर को खुद की सफाई का अवसर मिलता है और त्वचा में निखार आता है। शाकाहारी भोजन से त्वचा संबंधी समस्याओं से निपटने में आसानी होती है।---
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फागुन माह में कांजी पीने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। कांजी को वैसे तो गाजर, मूली डालकर बनाया जाता है पर कुछ लोग इसमें मूंग दाल का बड़ा भी डालते हैं। कांजी में एंटी-ऑक्सीडेंट्स होते हैं, इसमें विटामिन के, विटामिन सी, पोटैशियम और मैग्निशियम की अच्छी मात्रा होती है। कांजी डाइजेशन को भी अच्छा रखती है। कांजी पीने से भूख बढ़ जाती है। स्वाद में यह चटपटी और सेहतमंद होती है। इसमें खमीर उठने से स्वाद दोगुना हो जाता है।
कांजी बनाने का तरीकासाम्रगी: गाजर, मूली, राई, हल्दी, नमक, काली मिर्च, लाल मिर्च1. कांजी बनाने के लिए आप गाजर और मूली को लंबाई में काट लें।2. गैस पर बर्तन चढ़ाकर पानी गरम करें और उसमें गाजर, मूली डाल दें।3. जब उबाल आ जाए तो गैस को बंद कर दें।4. पानी ठंडा होने पर उसमें पिसी राई, काली मिर्च, लाल मिर्च पाउडर डालें।5. मिश्रण को एक जार में डालकर ऊपर से कपड़ा बांध दें।6. आप इसे पीने से पहले 2 से 3 दिन धूप में रखें।7. कुछ लोग कांजी में वड़ा डालकर पीते हैं।8. वड़ा बनाने के लिए मूंग दाल पीसकर बड़े बनाकर तल लें।9. ठंडा होने पर कांजी में डाल दें।आप केवल राई दाल, हींग और नमक डालकर भी कांजी बना सकते हैं।थकान से बचाएगी कांजीगर्मी के दिनोंं में तापमान बढऩे के साथ थकान और कमजोरी की शिकायत हो जाती है पर अगर आप कांजी का सेवन करेंगे तो गर्मी के दिनोंं में आपको थकान का अहसास नहीं होगा। कांजी में कॉर्बोहाइड्रेट की अच्छी मात्रा होती है जब आप घर से बाहर निकलें एक गिलास कांजी पी लें तो पूरे दिन आपके शरीर में एनर्जी रहेगी।कांजी पीने से गर्मी नहीं करेगी परेशानकांजी में एंटी-ऑक्सीडेंट्स मौजूद होते हैं, इसे पीने से आपको स्ट्रेस नहीं होगा, बल्कि आप फ्रेश फील करेंगे। गर्मी के दिनों में तापमान से स्ट्रेस होने लगता है, कांजी को पीने से आप ताजगी का अहसास कर पाएंगे। कांजी को बनाकर आप फ्रिज में स्टोर करके 1 हफ्ता पी सकते हैं। या चाहें तो इसे मिट्टी के बर्तन में भी स्टोर कर सकते हैं।कांजी पीने से नहीं होगा डिहिाइड्रेशनअगर आप गर्मियों के दिनों में कांजी का सेवन करेंगे तो आपको डिहाइड्रेशन नहीं होगा। इसमें बहुत से न्यूट्रिएंट्स मौजूद होते हैं। आप गर्मी के दिनोंं में धूप से जब घर आएं तो कांजी पिएं आपको लू लगने की समस्या भी नहीं होगी।वायरल फीवर से बचाए कांजीकांजी पीने से आपके शरीर में पानी की मात्रा बनी रहती है और गर्मियों में उल्टी की समस्या नहीं होती। अगर आपको बार-बार बुखार आता है या सर्द-गरम होने से फीवर आ रहा है तो कांजी का सेवन करें।कांजी पीने से नहीं होगी पेट की समस्याअगर पेट खराब हो तो आप कांजी पिएं इससे पेट में हो रही गुडग़ुड़ और दस्त की समस्या दूर होती है। कांजी बच्चों के पेट के लिए भी फायदेमंद होती है। - जायफल यह दिखने में सुपारी जैसा होता है और इसे सब्जी, डिजर्ट या फिर चाय में हल्का सा घिसकर बेहद कम मात्रा में इस्तेमाल किया जाता है. जायफल की तासीर गर्म होती है और इसका स्वाद हल्का नटी फ्लेवर जैसा होता है. इसमें मैग्नीशियम, कॉपर, विटामिन बी1, बी6 के अलावा एंटीऑक्सिडेंट्स भी पाए जाते हैं. पारंपरिक दवाइयों और आयुर्वेद में तो हजारों सालों से दवा बनाने के लिए जायफल का इस्तेमाल हो रहा है. जायफल हमारी सेहत के लिए किस तरह से फायदेमंद है, यहां जानें.1. दर्द दूर करता है जायफल- जायफल में एंटी-इन्फ्लेमेटरी प्रॉपर्टीज होती हैं जिसकी वजह से यह हड्डियों के जोड़ या मांसपेशियों में होने वाले दर्द को दूर करने में मदद करता है. इसके अलावा सूजन की समस्या दूर करने में भी मदद करता है जायफल, इसलिए गठिया के मरीजों के लिए जायफल फायदेमंद है.2. अनिद्रा से राहत दिलाता है- जायफल का सेवन करने से शरीर और दिमाग दोनों शांत हो जाता है, तनाव कम होता है और नींद को उत्तेजित करने में मदद मिलती है. आयुर्वेद की मानें तो जिन लोगों को अनिद्रा की समस्या हो वे सोने से पहले 1 गिलास गर्म दूध में चुटकी भर जायफल पाउडर मिलाकर पी सकते हैं. ऐसा करने से उन्हें अच्छी नींद आएगी.3. शिशु के लिए जायफल- नवजात शिशुओं को अक्सर कॉलिक यानी पेट में दर्द और गैस की समस्या रहती है. जायफल देने से बच्चे ऐसी परेशानी से दूर रहते हैं. साथ ही बच्चों को अच्छी नींद आए, इसके लिए भी बच्चे के दूध में मिला कर चुटकी भर जायफल दिया जाता है. लेकिन बच्चे के लिए जायफल की कितनी मात्रा सही है इस बारे में अपने डॉक्टर से जरूर बात कर लें.4. ब्रेन हेल्थ के लिए- डिप्रेशन और ऐंग्जाइटी के इलाज में भी जायफल के तेल का इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि यह थकान और स्ट्रेस को दूर करने में मदद करता है. साथ ही ब्रेन की नसों को भी रिलैक्स करने में मदद करता है. साथ ही यह मूड को भी बेहतर बनाने में मदद करता है.5. सेक्स ड्राइव बढ़ाने में मददगार- कई स्टडीज में यह बात सामने आयी है कि जायफल में कामोत्तेजक क्वॉलिटी होती है जो सेक्स ड्राइव यानी कामेच्छा को बढ़ाने में मदद करता है. यूनानी दवा पद्धति में सेक्शुअल हेल्थ से जुड़ी कई बीमारियों के इलाज में जायफल का इस्तेमाल होता है.
- खजूर में नैचुरल मिठास होती है इसलिए अगर आपको मीठा बहुत पसंद है लेकिन आपको कैलोरीज बढ़ने और वेट गेन की चिंता सताती है तो आप चीनी की जगह खजूर का इस्तेमाल कर सकते हैं. विटामिन, प्रोटीन, फाइबर और कार्बोहाइड्रेट से भरपूर खजूर एक ऐसा ड्राई फ्रूट है जो आपकी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है और कई बीमारियों को भी दूर रखता है. जो खजूर पूरी तरह से सूखा हुआ होता है उसे छुहारा कहते हैं. खजूर को ऊर्जा का भी बेहतरीन सोर्स माना जाता है.खजूर वाला दूध कैसे बनाएं?वैसे तो दूध और खजूर ये दोनों ही चीजें अलग-अलग भी काफी फायदेमंद होती हैं और जब इन्हें साथ मिलाकर खाया जाता है तो इसके फायदे दोगुने से भी ज्यादा हो जाते हैं. आप चाहें तो 1 गिलास गर्म दूध के साथ 2-3 खजूर खा सकते हैं या फिर 1 गिलास दूध में 4-5 खजूर डालें और धीमी आंच पर 10-15 मिनट तक पकाएं. जब खजूर दूध में अच्छी तरह से मिक्स हो जाए उसके बाद इसे आंच से उतारें और गुनगुना रहने पर पी लें.दूध और खजूर साथ खाने के फायदे1. कब्ज की समस्या करता है दूर- अगर किसी व्यक्ति को लंबे समय से कब्ज की समस्या हो तो उसके लिए तो रामबाण की तरह है खजूर वाला दूध. इसमें फाइबर भरपूर मात्रा में होता है इसलिए यह पाचन तंत्र की सफाई करता है जिससे कब्ज की दिक्कत दूर हो जाती है.2. हार्ट को रखता है हेल्दी- खजूर में फाइबर के साथ ही पोटैशियम और मैग्नीशियम भी होता है जो रक्तवाहिकाओं को रिलैक्स करने में मदद करता है जिससे ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने में मदद मिलती है. साथ ही खजूर कोलेस्ट्रॉल को भी कम करता है. जब बीपी और कोलेस्ट्रॉल कंट्रोल में रहता है तो हृदय रोग का खतरा कम हो जाता है.3. गर्भवती महिलाओं के लिए फायदेमंद- आयरन से भरपूर खजूर गर्भवती महिला और उसके बच्चे दोनों के लिए फायदेमंद है. यह खून बनाने में मदद करता है और दूध तो गर्भवती महिला के लिए जरूरी है ही. तो कुल मिलाकर देखें तो खजूर वाला दूध प्रेग्नेंसी में काफी फायदेमंद हो सकता है.4. डायबिटीज के मरीजों के लिए- खजूर में नैचुरल शुगर होती है और इसका ग्लाइसेमिक इंडेक्स भी कम होता है इसलिए यह ब्लड शुगर के लेवल को कम करने में मदद कर सकता है. डायबिटीज के मरीज कभी कभार सीमित मात्रा में खजूर खा सकते हैं.5. कमजोरी दूर करता है- कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, कैल्शियम आदि से भरपूर खजूर का सेवन करने से तुरंत एनर्जी मिलती है और कमजोरी दूर हो जाती है. इसके अलावा दूध और खजूर का साथ में सेवन करने से हड्डियों भी मजबूत बनती हैं.
- सेहतमंद रहने के लिए हमेशा से ही हरी सब्जियों का सेवन करने की सलाह दी जाती रही है। यह शरीर को कई तरह के लाभ पहुंचाकर स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करती हैं। ऐसी ही एक हरी सब्जी है तुरई। कई लोग इसे खाना पसंद नहीं करते, पर बहुत से लोगों को इसका स्वाद बहुत भाता है। पोषक तत्वों से भरपूर होने की वजह से यह शरीर को कई तरह से फायदा पहुंचाती है। यह एक ऐसी बेल है, जिसका फल, पत्ते, जड़ और बीज सभी लाभकारी हैं । आज हम बता रहे हैं तुरई खाने के फायदे....1. एंटी-इंफ्लामेटरीएंटी-इंफ्लामेटरी प्रभाव तुरई के सूखे पत्तों के इथेनॉल अर्क में पाया जाता है। इस प्रभाव को एडिमा (शरीर के ऊतकों में तरल जमने की वजह से सूजन) और ग्रेन्युलोमा (इंफ्लामेशन) प्रभावित व्यक्तियों पर जांचा गया। शोध में पाया गया कि इथेनॉल अर्क एडिमा को कम करने में मदद कर सकता है। इसी आधार पर कहा जा सकता है कि तुरई एंटी-इंफ्लामेटरी की तरह भी कार्य कर सकती है।2. सिरदर्द के लिए तुरई के फायदेमाना जाता है कि तुरई सिर दर्द को भी ठीक करने में मदद कर सकती है। एनसीबीआई की वेबसाइट पर मौजूद एक शोध के मुताबिक तुरई के पत्ते और इसके बीज के एथनॉलिक अर्क दर्द को कम करने में सहायक हो सकते हैं। रिसर्च के अनुसार इसमें एनाल्जेसिक और एंटीइंफ्लामेटरी गुण होते हैं। यह दोनों गुण दर्द को कम करने और राहत दिलाने के लिए जाने जाते हैं।3. एंटी-अल्सरतुरई को पेट के अल्सर यानी ग्रेस्ट्रिक अल्सर को कम करने के लिए भी जाना जाता है। इसमें मौजूद गैस्ट्रोप्रोटेक्टिव प्रभाव कुछ हद तक अल्सर के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकता है। यह प्रभाव सूखे तुरई के गूदे के अर्क के मेथोनॉलिक और पानी के अर्क में पाया जाता है। यह प्रभाव गैस्ट्रिक म्यूकोसा (पेट की एक झिल्ली) के म्यूकोसल ग्लाइकोप्रोटीन के स्तर को ठीक करने में मदद करके अल्सर के लक्षण को कुछ हद तक कम कर सकता है।4. डायबिटीज के लिए तुरई के फायदेतुरई को पुराने समय से ही डायबिटीज को नियंत्रित करने वाली सब्जी के रूप में जाना जाता है। प्राचीन समय से चली आ रही इस मान्यता को लेकर चूहों पर शोध भी किया गया। शोध में कहा गया है कि तुरई के एथनॉलिक अर्क में ग्लूकोज के स्तर को कम करने वाला हाइपोग्लाइमिक प्रभाव पाया जाता है।5. पेचिश में तुरई के फायदेपेचिश को रोकने में भी तुरई को लाभदायक माना गया है। सालों से तुरई के बीज में मौजूद नरम खाद्य हिस्से को पेचिश से राहत पाने के तरीके के तौर पर इस्तेमाल में लाया जाता रहा है । साथ ही इसके पत्तों को भी पेचिश के लिए लाभकारी माना जाता है ।6. पीलिया में तुरई के फायदेपीलिया से बचाव के लिए भी तुरई को इस्तेमाल में लाया जाता है। यह स्वास्थ्य समस्या, शरीर में सिरम बिलीरुबिन नामक कंपाउंड के बढऩे की वजह से होती है। साथ ही इसके इलाज के लिए दुनियाभर में तुरई की पत्तियां, तना और बीज को कुचलकर पीलिया के रोगियों को सुंघाया जाता है ।7. दाद में तुरई के फायदेरिंगवॉर्म (दाद) में भी तुरई को लाभदायक माना जाता है। इसकी पत्तियों को पीसकर, दाद प्रभावित जगह पर लगाने से आराम मिलने की बात कही जाती है। दरअसल, रिंगवॉर्म फंगस की वजह से होता है और तुरई में और इसके पत्तों के पानी से बने अर्क में एंटीफंगल गुण पाए जाते हैं। इसी आधार पर कहा जा सकता है कि दाद से राहत दिलाने में तुरई मदद कर सकता है
- होलिका दहन के दिन गाय के गोबर से बने कंडे या उपलों को जलाना शुभ माना जाता है। हमारी परंपरा का हिस्सा रहे इन कंडों की अहमियत देश में अधिक है। गाय के गोबर से बॉयोगैस तैयार होता है जिसके अपने अलग फायदे हैं पर होलिका दहन पर जलने वाले कंडे की राख के कई फायदे आयुर्वेद में बताए गए हैं। गाय के गोबर में विटामिन बी12 पाया जाता है। होलिका दहन में कंडों के साथ आम, पलाश, बरगद, पीपल की पत्तियों को भी हवन में डाला जाता है। पूजा के बाद आसपास के वातावरण में कीड़ या मच्छर भाग जाते हैं और वातावरण शुद्ध नजर आता है। कहते हैं गोबर के कंडे जलने से उनमें ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है। इन कंडों के उपयोग या इस्तेमाल का कोई ठोस प्रमाण नहीं है पर फिर भी इनका इस्तेमाल किया जाता है।1. जलन में राख का इस्तेमालगाय के उपलों से बनी राख से त्वचा की जलन शांत होती है। राख को मक्खन में लगाकर प्रभावित जगह पर लगाए या मच्छर काटने पर इसे लगाएं तो जलन से आराम मिलेगा। खुजली दूर करने के लिए भी राख का इस्तेमाल किया जाता है। अगर किसी तरह की कोई एलर्जी है तो आप डॉक्टर से पूछे बिना इसका इस्तेमाल न करें।2. कंडे के धुएं से नहीं काटेंगे मच्छरइस समय मच्छर की संख्या बढ़ गई है। इन्हें भगाने के लिए आप गोबर के कंडे का इस्तेमाल कर सकते हैं। होलिका दहन की पूजा में इस्तेमाल किए कंडों को आप घर के किसी कोने या कमरे में रख सकते हैं। गोबर के कंडे के छोटे टुकड़े को जलाकर उसका धुंआ पूरे कमरे में कर दें। इस धुंए से मच्छर और कीड़े दूर भागते हैं। आप चाहें तो मार्केट में गाय की गोबर से बनी धूपबत्ती का इस्तेमाल कर सकते हैं। इससे मच्छर, मक्खी, मकड़ी कमरे में नहीं आएंगे।3. वातावरण शुद्ध करता है गोबर का कंडाविशेषज्ञों का मानना है कि उपले जलाने के बाद उसमें ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है जिससेे वातावरण शुद्ध होता है। होलिका दहन के बाद कई लोग साफ हवा महसूस करते हैं। हालांकि जिन लोगों को अस्थमा या सांस की बीमारी है उन्हें ्किसी भी तरह के धुंए से बचना चाहिए।4. उपले की राख से स्वस्थ्य रहेंगे दांतहोलिका दहन की अग्नि की राख स्वास्थ्य के लिए कितनी लाभदायक है। अग्नि की इस राख में गाय के गोबर से बने उपले भी मौजूद होते हैं जिससे इनका महत्व और भी बढ़ जाता है। इस राख को आप घर ले जाएं और रोजाना अपने टूथपेस्ट में मिलाकर इससे मंजन करें। आपके दांत साफ हो जाएंगे क्योंकि इसमें कॉर्बन की मात्रा अधिक होती है, ये दांतों के लिए स्वस्थ माना जाता है। अगर आपको दांतों की बीमारी है तो डेंटटिस्ट से सलाह लेकर इसका इस्तेमाल करें।गोबर के उपले होली के त्यौहार पर शुभ माने जाते हैं, ऊपर दिए उपयोग घरेलू उपाय के तौर पर प्रचलित हैं, इसलिए डॉक्टर से सलाह लेकर ही इनका इस्तेमाल करें।
- किसी व्यक्ति को सर्दी जुकाम होना एक आम सी बात है। नाक में बलगम बढ़ जाने से यह समस्या उत्पन्न हो जाती है। बलगम के कारण शरीर सर्दी जुकाम, एलर्जी, फ्लू वायरस आदि परेशानियों का शिकार हो सकता है। सामान्य कारणों की बात करें तो सर्दी जुकाम मौसम बदलने के कारण या साइनस संक्रमण के कारण या किसी एलर्जी के कारण होते हैं। वही लक्षणों में गले में दर्द, खांसी आदि आते हैं। लेकिन इससे अलग कुछ और भी कारण और लक्षण हैं जिनके बारे में जानना और समझना जरूरी है।नाक बहने के पीछे कारणबता दें कि सामान्य लक्षणों के बारे में तो हमने ऊपर बताया लेकिन कुछ ऐसे लक्षण भी हैं जो बहती नाक का कारण बनते हैं-1 - सूखी हवा के कारण व्यक्ति की नाक बहने लगती है।2 - जो लोग तंबाकू और धूम्रपान का सेवन करते हैं उन लोगों में भी यह समस्या देखी जाती है।3 - सिर दर्द से परेशान लोग अक्सर नाक बहने की समस्या से भी परेशान होते हैं।4 - मौसम में अचानक परिवर्तन आने के दौरान की समस्या देखी गई है।5 - जब कोई व्यक्ति नाक में इस्तेमाल करने वाले स्प्रे का अधिक प्रयोग करता है तब भी समस्या होती है।6 - कुछ दवाओं के सेवन करने से व्यक्ति को दुष्परिणाम झेलने पड़ते हैं। उन दुष्परिणामों में नाक का बहना भी आता है।7 - अस्थमा यानी दमा की समस्या के कारण भी नाक बहनी शुरू हो जाती है।8 - किसी व्यक्ति की नाक में कुछ फस जाता है या अटक जाता है तब भी यह समस्या हो जाती है।9 - हार्मोन परिवर्तन के दौरान नाक बहना स्वभाविक है।10 - सर्दी जुकाम के कारण नाक बहना एक आम लक्षण होता है। जो हर व्यक्ति में देखा गया है। इसके जरिए शरीर में जमा बलगम बाहर आता है।11 - कभी-कभी तो बलगम नाक के माध्यम से बाहर आता है तो कुछ परिस्थितियां ऐसी भी बन जाती हैं जब बलगम गले में जाता है। ये बलगम गाढ़ा होता है।12 - जो लोग साइनस के शिकार होते हैं उनकी नाक के मार्ग में दर्द, सूजन और जलन पैदा हो जाती है। ऐसे में सांस लेने में दिक्कत महसूस होती है और व्यक्ति के शरीर में बलगम बनने लगती है इस कारण नाक बहने की समस्या पैदा हो जाती है।13 - एलर्जी के कारण भी व्यक्ति को नाक बहने की समस्या हो सकती है। जिन लोगों के घर में पशु होते हैं या वे हानिकारक बैक्टीरिया के संपर्क में आते हैं तब उन्हें एलर्जी महसूस होती है और नाक बहना शुरू हो जाती है।नाक बहने से बचाव- अपने आहार में विटामिन सी का सेवन करें।- गर्म चाय नाक बहने की समस्या को दूर कर सकती है। ऐसे में आप गर्म चाय का सेवन करें। इसके लिए आप गर्म चाय में कुछ जड़ी बूटियों को जैसे- अदरक, पुदीना, कैमोमाइल आदि को जोड़ सकते हैं।- नमक के पानी से बहती नाक को रोका जा सकता है। बता दें कि नमक शरीर में जमा बलगम को बाहर निकालने में मदद करता है। ऐसे में आप गर्म पानी में नमक को मिलाएं और ड्रॉपर की मदद से नाक में डालें। ऐसा करने से समस्या दूर हो सकती है।-लाल मिर्च एंटीहिस्टामाइन के रूप में काम करती है ऐसे में इसके सेवन से ना केवल बलगम निकलती है बल्कि शरीर से विषाक्त पदार्थों को भी बाहर निकाला जा सकता है। यह रक्त परिसंचरण को बढ़ाती है। ऐसे में अपनी डाइट में लाल मिर्च को जोड़ें।
- चिरायता (Swertia chirata) ऊंचाई पर पाया जाने वाला औषधीय पौधा है । इसके पेड़ 2 से 4 फुट ऊंचे एक-वर्षायु या द्विवर्षायु होते हैं । इसकी पत्तियां और छाल बहुत कड़वी होती और ज्वर-नाशक तथा रक्तशोधक मानी जाती है। इसकी छोटी-बड़ी अनेक जातियां होती हैं; जैसे-कलपनाथ, गीमा, शिलारस, आदि। किरात और चिरेट्टा इसके अन्य नाम हैं। इसका जिक्र चरक संहिता मेंं भी मिलता है।यह हिमालय प्रदेश में कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक 4 से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर मिलता है । नेपाल इसका मूल उत्पादक देश है । कहीं-कहीं मध्य भारत के पहाड़ी इलाकों और दक्षिण भारत के पहाड़ों पर उगाने के प्रयास किए गए हैं ।चिरायता एक जड़ी-बूटी है। आयुर्वेद के मतानुसार चिरायता का रस तीखा, गुण में लघु, प्रकृति में गर्म तथा कड़वा होता है। यह बुखार, जलन और कृमिनाशक होता है। चिरायता त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) को नष्ट करने वाला, प्लीहा व यकृत (तिल्ली और जिगर) की वृद्धि को रोकने वाला, आमपाचक, उत्तेजक, अजीर्ण, अम्लपित्त, कब्ज, अतिसार, प्यास, पीलिया, अग्निमान्द्य, संग्रहणी, दिल की कमजोरी, रक्तपित्त, रक्तविकार, त्वचा के रोग, मधुमेह, गठिया का नाशक, जीवनीशक्तिवद्र्धक गुणों से युक्त है। इसका उपयोग अनेक बीमारियों के उपचार में किया जाता है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी यह काफी मददगार है।.चिरायता मन को प्रसन्न करता है। इसके सेवन से पेशाब खुलकर आता है। यह सूजनों को नष्ट करता है। दिल को मजबूत व शक्तिशाली बनाता है। चिरायता जलोदर (पेट में पानी भरना), सीने का दर्द और गर्भाशय के विभिन्न रोगों को नष्ट करता है। यह खून को साफ करता है तथा कितना भी पुराना बुखार क्यों न हो चिरायता उसे नष्ट कर देता है। इसका कड़वापन ही इस औषधि का विशेष गुण होता है।चिरायता में पीले रंग का एक कड़ुवा अम्ल-ओफेलिक एसिड होता है । इस अम्ल के अतिरिक्त अन्य जैव सक्रिय संघटक -दो प्रकार के कडुवे ग्लाग्इकोसाइड्स चिरायनिन और एमेरोजेण्टिन, दो क्रिस्टलीयफिनॉल, जेण्टीयोपीक्रीन नामक पीले रंग का एक न्यूट्रल क्रिस्टल यौगिक तथा एक नए प्रकार का जैन्थोन जिसे सुअर्चिरन नाम दिया गया है । एमेरोजेण्टिन नामक ग्लाईकोसाइड विश्व के सर्वाधिक कड़वे पदार्थों में से एक है । यह सक्रिय घटक ही चिरायता की औषधीय क्षमता का प्रमुख कारण भी है ।
- हॉर्सटेल यानी सांप घास एक प्रकार की जड़ी-बूटी है, जो से बालों, त्वचा और हड्डी की कई समस्याओं के निदान में सहायक होती है। इसे अश्व पुच्छा भी कहा जाता है। सांप घास का वैज्ञानिक नाम इक्विटेसी है। इसमें कई तरह के मिनरल्स, विटामिंस और पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर के रोगों को कम करने या ठीक करने में मददगार होते हैं। आयुर्वेद में इसे बेहद गुणकारी बताया गया है, इसके पत्तों को औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। हॉर्सटेल कैंसर और डायबिटीज जैसी गंभीर बिमारियों को ठीक करने में सहायक है। इसके साथ ही यह त्वचा और बालों के विकारों में भी मददगार होता है।सांप घास सूजन कम करता है, हड्डियों को मजबूत बनाता है, यूरिक एसिड कम खत्म करता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करता है। हॉर्सटेल से हमारे शरीर को कई तरह से स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं। रहॉर्सटेल में मौजूद पोषक तत्व- - फ्लेवोनोइड , फाइटोस्टेरॉल ,विटामिंस , मिनरल्स , सैलिसिलिक एसिड, कैफीक एसिड, कैरोटीन , पोटैशियम लवण।हॉर्सटेल के फायदेसूजन करे कमसांप घास का पौधा सूजन से राहत प्रदान करने में मदद करता है। यह किसी भी तरह के सूजन जैसे चोट, गांठ और गठिया से पीडि़त रोगों को ठीक करने में कारगर है। हॉर्सटेल में मौजूद प्रज्वलनरोधी और दर्दनाशक औषधि गुणों की वजह से यह सूजन को कम करने में मददगार है।बालों को बनाए स्वस्थधूल, धूप और मिट्टी से बाल बेजान और रूखे होकर टूटने लगते हैं। लड़कियों में यह समस्या काफी ज्यादा बढ़ रही है। ऐसे में हॉर्सटेल का सेवन करना लाभकारी हो सकता है। इसमें मौजूद मिनरल्स बालों की गुणवत्ता में सुधार करते हैं और बालों को टूटने से बचाते हैं। हॉर्सटेल का इस्तेमाल कई हेयर प्रोडक्ट्स में भी किया जाता है। इसके इस्तेमाल से बालों के झडऩे की समस्या कम होती है। यह बालों को चमकदार और लंबे बनाने में भी मदद करता है।त्वचा रोगों में फायदेमंदआयुर्वेद में त्वचा के रोगों को ठीक करने के लिए भी सांप घास का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें भरपूर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट और सिलिका पाया जाता है, जो त्वचा को स्वस्थ रखने और त्वचा रोगों को ठीक करने में सहायक होता है। इसके सेवन से त्वचा संबंधित रोग ठीक होते हैं साथ ही इसका सेवन किया जाए तो स्किन हमेशा स्वस्थ भी रहती है।हड्डियां मजबूत बनाएआयुर्वेद में वात रोगों को ठीक करने के लिए हॉर्सटेल का इस्तेमाल किया जाता है। जोड़ों में दर्द और हड्डियों में कमजोरी होने पर इसका सेवन करना फायदेमंद होता है। इसमें पर्याप्त मात्रा में सिलिकॉन पाया जाता है, जो हड्डियों को मजबूत बनाते हैं और वात रोग को कम करने में मदद करते हैं।रोग प्रतिरोधक क्षमता बढाएसांप घास या हॉर्सटेल में किसी भी तरह के इंफेक्शन और बैक्टीरिया से लडऩे की पूरी क्षमता होती है। इसके सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है ।डायबिटीज रोगियों के लिए लाभकारीमधुमेह से पीडि़त रोगियों के लिए हॉर्सटेल का सेवन करना लाभकारी साबित हो सकता है। यह शरीर में इंसुलिन लेवल को संतुलित करता है। इसके साथ ही हॉर्सटेल शरीर में रक्त शर्करा के स्तर में अचानक और भारी उतार-चढ़ाव का भी प्रबंधन करता है।यूरिक एसिड खत्म करेहॉर्सटेल शरीर से विषैले और विषाक्त पदार्थों को निकालने में मदद करता है। इसके सेवन से यूरिक एसिड कम या खत्म किया जा सकता है क्योंकि इसमें मूत्रवद्र्धक गुण होते हैं, जिससे ठीक तरह से पेशाब आती है। इसके साथ ही यह किडनी, किडनी स्टोन और लिवर को भी स्वस्थ रखता है।हॉर्सटेल के नुकसानवैसे तो हॉर्सटेल का सेवन करना एकदम सुरक्षित है लेकिन इसे सीमित मात्रा में और योग्य चिकित्सकों की सलाह पर ही लेना चाहिए।
- गर्मियों में भूख कम हो जाती है और हर वक्त बस पानी पीने का मन करता है। ऐसे में आप चाहें तो पानी के साथ ही फ्रूट जूस भी पी सकते हैं जो शरीर को ठंडा रखने के साथ ही शरीर में पानी की कमी होने से भी बचा सकते हैं। इन्हीं में से एक है गन्ने का जूस पोटैशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन, जिंक, और ढेर सारे अमिनो एसिड से भरपूर गन्ने का जूस आपकी सेहत के लिए कई तरह से फायदेमंद है।इस्टेंट एनर्जी देता है गन्ने का जूसगन्ने में नैचरल सुक्रोज होता है जो शरीर को इंस्टेंट एनर्जी देने में मदद करता है. अगर बहुत ज्यादा गर्मी की वजह से थकान महसूस हो रही हो या ऐसा लगे कि शरीर में पानी की कमी हो रही है तो गन्ने का जूस आपके लिए एक अच्छा विकल्प हो सकता है।लीवर के लिए फायदेमंदआयुर्वेद में भी जॉन्डिस के इलाज में गन्ने के जूस को फायदेमंद माना गया है. इसका कारण ये है कि गन्ने का जूस लीवर को मजबूत बनाने में मदद करता है. गन्ने के जूस में पाया जाने वाला एंटीऑक्सिडेंट्स इंफेक्शन के खिलाफ लीवर को सुरक्षा देता है और बिलिरुबिन के लेवल को कंट्रोल करता है जिससे जॉन्डिस जल्दी ठीक हो जाता है।कैविटीज और सांस की बदबू को करता है दूरगन्ने के जूस में कैल्शियम और फॉस्फोरस होता है जो दांतों के इनैमल को मजबूत बनाता है ताकि उनमें कीड़े न लगें और दांतों में सड़न यानी कैविटीज की समस्या ना हो. इसके अलावा सांस की बदबू की समस्या भी दूर करने में मदद करता है गन्ने का रस।किडनी में स्टोन होने से बचाता हैगन्ने का जूस पीने से यूटीआई (यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन) की बीमारी ठीक करने में मदद मिलती है, खासकर तब जब आपको यूरिन पास करने के दौरान जलन महसूस होती हो. इसके अलावा किडनी में स्टोन होने से भी बचाता है गन्ने का रस।पाचन को मजबूत बनाता हैपोटैशियम और फाइबर से भरपूर होने के कारण गन्ने का जूस पाचन को बेहतर बनाता है, जिससे पेट में किसी तरह का इंफेक्शन नहीं होता और कब्ज की समस्या भी दूर होती है
- शायद ही कोई हो जिसे कटहल की मसालेदार सब्जी पसंद न हो. कुछ लोग कटहल को फल मानते हैं तो कुछ इसे सब्जी मानते हैं. कुछ लोग तो इसे नॉनवेज का ऑप्शन भी मानते हैं. कई घरों में कटहल की सब्जी के अलावा इसका अचार, पकौड़े और कोफ्ता बनाकर भी खाया जाता है. कुछ लोग तो पके हुए कटहल को भी बड़े चाव से खाते हैं. औषधीय गुणों से भरपूर कटहल में कई पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं. इसमें विटामिन ए, सी, थाइमिन, पोटेशियम, कैल्शियम, राइबोफ्लेविन, आयरन, नियासिन और जिंक भरपूर मात्रा में पाया जाता है. यह फाइबर का अच्छा स्रोत है. इसलिए यह कई तरह से शरीर के लिए फायदेमंद रहता है. आगे पढ़िए कटहल आपके लिए किस तरह से फायदेमंद रहता है.आंखों की रोशनी बढ़ाएअगर आपको भी पका हुआ कटहल खाना पसंद है तो इसके पल्प को अच्छी तरह से मैश करके पानी में उबालकर पी लें. ऐसा रोज करने से आपके शरीर में ताजगी बनी रहती है. कटहल में विटामिन ए भी पाया जाता है जिससे आंखों की रोशनी बढ़ती है और त्वचा में निखार आता है.चेहरे पर रंगत लाएकटहल के बीजों को सुखा लें. अब इनका चूर्ण बनाकर उसमें थोड़ा शहद मिला लें. शहद मिलाने के बाद बने लेप को अपने चेहरे पर 10-15 मिनट के लिए लगा लें. ऐसा करने के बाद चेहरे को गुनगुने पानी और फेशवाश से साफ कर लें. ऐसा करने से चेहरे के दाग-धब्बे साफ हो जाते हैं. अगर आपका चेहरा रुखा और बेजान है तो आपके लिए कटहल का रस चेहरे पर लगाना फायदेमंद रहेगा. कटहल के रस को लगाकर चेहरे की मसाज करें, कुछ ही दिन में फायदा दिखाई देगा.दिल को रखे सेहतमंदकटहल में कैलोरी नहीं होती है, ऐसे में यह हार्ट से जुड़ी कई बीमारियों में भी फायेमंद होता है. इसके अलावा इसमें पोटेशियम भी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है, इसलिए भी इसका सेवन दिल की समस्या को दूर करता है. कटहल का सेवन हाई ब्लड प्रेशर से भी राहत दिलाता है.जोड़ों के दर्द से छुटकारा देकटहल के छिलकों से निकलने वाले दूध को अगर सूजन, घाव और कटे-फटे अंगों पर लगाया जाए तो बहुत आराम मिलता है. गठिया की समस्या से ग्रस्त रोगियों के जोड़ों पर कटहल के पत्तों से निकलने वाले दूध को लगाया जाए तो इससे राहत मिलती है.एनीमिया से बचावकटहल की सब्जी या इससे बना अचार आयरन का अच्छा सोर्स है. ऐसे में इसके सेवन से एनीमिया से बचाव होता है. साथ ही इसके सेवन से ब्लड सर्कुलेशन भी नॉर्मल रहता है.हड्डियों को मजबूती देकटहल में मैग्नीशियम भी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है. जिसकी वजह से हड्डियां भी स्वस्थ और मजबूत रहती हैं. अगर आपके घर में भी किसी को हड्डियों से जुड़ी समस्या है तो हर हफ्ते कटहल का सेवन कराएं. इसमें विटामिन C और A भी पाया जाता है. यही वजह है कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी यह बढ़ाता है.अस्थमा में गुणकारीअस्थमा के रोगियों के लिए यह रामबाण का काम करता है. कच्चे कटहल को पानी में उबालकर छान लें. जब ये पानी ठंडा हो जाए तो इसे पी लें. नियमित रूप से ऐसा करने से अस्थमा की समस्या में बहुत फायदा मिलता है.पाचन क्रिया को दुरुस्त करेकटहल का सेवन करने वालों को अल्सर और पाचन से जुड़ी समस्याएं नहीं होतीं. इसमें भरपूर रेशे होते हैं, जो कब्ज की समस्या से दूर रखते हैं. कटहल की पत्तियों से बना चूरन पेट के रोगियों के लिए बहुत गुणकारी होता है. अल्सर के इलाज के लिए इसके पेड़ की पत्तियों को धोकर सुखा लें, सूखने पर इसका चूरन तैयार करें. अल्सर से ग्रस्त रोगी को इस चूरन को खिलाएं. जल्दी आराम मिलेगा.झुर्रियों को गायब करेअगर आप भी चेहरे पर असमय झुर्रियों से परेशान हैं तो कटहल को सुखाकर इसका चूरण बना लें. अब इसे कच्चा दूध मिलाकर चेहरे पर लगातार कुछ दिनों तक लगाए. ऐसा करने से आपको जल्द ही झुर्रियों की समस्या में आराम मिलने लगेगा.
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जब कोई टीबी का मरीज खांसता, छींकता, थूकता, जोर जोर से बात करता या गाना गाता है तो हवा में ड्रॉपलेट्स रिलीज होते हैं जिसमें बीमारी फैलाने वाला बैक्टीरिया मौजूद होता है। जब कोई स्वस्थ व्यक्ति उसी दूषित हवा को सांस के जरिए शरीर के अंदर लेता है तो उस व्यक्ति को भी टीबी की बीमारी हो जाती है। टीबी एक गंभीर संक्रामक बीमारी है जिसके लक्षणों का अगर समय रहते पता चल जाए तो इलाज संभव है।
टीबी के इलाज में मदद कर सकती है हल्दी
भारतीय वैज्ञानिकों ने टीबी के इलाज के संबंध में एक खोज की है जिसके मुताबिक भारतीय रसोई घर में पाया जाने वाला सबसे कॉमन मसाला हल्दी , टीबी के खिलाफ एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। दरअसल, हल्दी में कक्र्युमिन होता है जो हल्दी का बेसिक इन्ग्रीडिएंट है। कक्र्युमिन, टीबी के स्टैंडर्ड इलाज की क्षमता को बढ़ाने के साथ ही इलाज में लगने वाले समय में भी 50 प्रतिशत तक की कमी करने में मदद करता है।
रीइंफेक्शन को होने से रोकता है कक्र्युमिन
इसके अलावा टीबी के ज्यादातर मरीजों में एक और बेहद कॉमन समस्या रहती है- रीइंफेक्शन की यानी बीमारी के दोबारा वापस लौटने की, लेकिन जब टीबी के मरीजों में टीबी के स्टैंडर्ड इलाज के साथ ही कक्र्युमिन नैनो पार्टिकल्स का भी इस्तेमाल किया गया तो टीबी रीइंफेक्शन की आशंका बिल्कुल ना के बराबर हो गई। औषधीय गुणों से भरपूर हल्दी, एक ऐसा मसाला है जो संक्रामक बीमारियों के साथ ही इन्फ्लेमेशन को भी कम करने में मदद करती है।
कोशिकाओं से बैक्टीरिया को बाहर करता है कक्र्युमिन
माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकोलोसिस बैक्टीरिया जो टीबी की बीमारी के लिए जिम्मेदार है उसे इंसान के शरीर में मौजूद संक्रमित कोशिकाओं से बाहर निकालने में मदद करता है हल्दी में पाया जाने वाला कक्र्युमिन। हल्दी के कोई साइड इफेक्ट नहीं हैं, ऐसे में टीबी के इलाज में हल्दी का इस्तेमाल किया जा सकता है.। हालांकि इस संबंध में अभी और अधिक रिसर्च की जरूरत है। - धातकी एक औषधीय पौधा है। यह पौधा भारत के हर राज्य में मिल जाता है। अप्रैल में इसमें फूल आते हैं। धातकी के फल, फूल, जड़, तना आदि का कई बीमारियों के उपचार में इस्तेमाल किया जाता है। यह पौधा टूटी हड्डियों को जोडऩे और दांतों की समस्याओं को खत्म करने में बहुत मदद करता है।धातकी को हिंदी में धातकी, धायफूल, धावा, धाय, अंग्रेजी में रेड बेल बुश, संस्कृत में धातकी, धातृपुष्पी औ बहुपुष्पी कहा जाता है। तो वहीं, तमिल में धातरी जर्गी, नेपाल में दाहिरी, पंजाबी में धा कहा जाता है।धातकी के औषधीय प्रयोगनकसीरगर्मियों में अक्सर लोगों को नकसीर की समस्या हो जाती है। जिसमें उन्हें नाक से खून बहने लगता है। धातकी के फूलों का रस निचोड़कर नाक में डालने से नकसीर की समस्या खत्म हो जाती है।दांतों की समस्या को करे खत्मदांत कमजोर होना, मुंह से बदबू आना, पायरिया होना, मसूड़ों का कमजोर होना आदि समस्याओं में धातकी बहुत लाभदायक है। दातों में दर्द या कोई अन्य समस्या है तो धातकी के पत्ते और फूलों को समान मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े से सुबह शाम गरारे करें। इस गरारे करने दांतों के सभी रोग खत्म होते हैं।प्लीहा रोगप्लीहा रोग किसी इंफेक्शन, लिवर की बीमारी या ब्लड कैंसर जैसी बीमारियों के कारण होता है। इन रोगों में प्लीहा बढऩे के लक्षण दिखाई देते हैं। प्लीहा शरीर के अंदर बाईं ओर पसलियों के नीचे पाया जाता है। प्लीहा रोग होने पर भी धातकी फायदा करता है। इसके लिए 2-3 ग्राम धातकी चुर्ण को 50 ग्राम गुड़ के साथ खाने से प्लीहा रोग ठीक हो जाते है।पेट के कीड़े मारेबच्चों के पेट में अक्सर कीड़े होते हैं। इन कीड़ों को मारने में भी धातकी फायदा करता है। जिन बच्चों के पेट में कीड़े हो गए हैं, वे 3 ग्राम की मात्रा में खाली पेट ताजे जल के साथ धातकी के चूर्ण का सेवन करें। धातकी से पेट के कीड़े मर जाते हैं।दस्तदस्त में शरीर में पानी की कमी हो जाती है। गर्मी में अगर आपको भी दस्त हो जाएं तो धातकी का चूर्ण आपके लिए बहुत फायदेमंद है। इसके लिए 5 ग्राम धातकी चूर्ण एक कप म_े के साथ दिन में तीन बार पिएं। इससे दस्त में आराम मिलेगा।दाद, खाज से दिलाए निजातशरीर के किसी भी अंग में दाद व जलन को दूर करने के लिए धातकी के फूलों को गुलाब जल में पीसकर लेप करें। इससे समस्या से निजात मिलती है।पित्तज बुखारधातकी के फूलों का चूर्ण गुलकंद के साथ सुबह शाम दूध के साथ लेने से इस बुखार से आराम मिलता है।घाव भरने में मददगारअगर किसी को चोट लग गई है और घाव गहरा हो गया है और घाव जल्दी नहीं भर रहा हो तो उसको भरने के लिए इसके फूलों का चूर्ण जख्म पर लगाने से जख्म जल्दी भर जाता है।(नोट-ऊपर दिए गए उपाय किसी चिकित्सक की सलाह लेकर ही करें)
- बड़ी इलायची का प्रयोग भारतीय रसोईघरों में होता है। वहीं आयुर्वेद में इसका उपयोग औषधि के रूप में भी किया जाता है। इसका एक नाम काली इलायची भी है। बता दें कि यह रंग में भूरे रंग की होती है और इसके बीज काले रंग के होते हैं। मुख्य रूप से पूर्वी हिमाचल में पाई जाने वाली बड़ी इलायची अपनी औषधीय गुणों से बेहद प्रसिद्ध है। इसके सेवन से पेट की कई समस्याओं को दूर किया जा सकता है। वहीं यह पीलिया या मलेरिया के उपचार में भी उपयोगी है। लोगों को बड़ी इलाइची के गुण के साथ नुकसानों के बारे में भी पता होना चाहिए।सेहत के लिए अच्छी है बड़ी इलायचीबड़ी इलायची के अंदर प्रोटीन के साथ-साथ आयरन, मैग्नीशियम, कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा यह स्टार्च, वसा, फास्फोरस, कार्बोहाइड्रेट आदि से भी भरपूर है।सांसों की बदबू और दंत की समस्या को दूर करें बड़ी इलायचीदांतों की समस्या को दूर करने के साथ-साथ यह मसूड़ों में मजबूती भी लाती है। ऐसे में आप इसके सेवन से दंत की समस्याओं को दूर कर सकते हैं। इसके अलावा यदि आप मुंह की बदबू से परेशान हैं तो बता दें कि बड़ी इलायची की सुगंध काफी स्ट्रांग होती है ऐसे में आप इसके सेवन से मुंह की दुर्गंध को भी दूर कर सकते हैं।बालों को सुंदर बनाएं बड़ी इलायचीजो लोग अपने गिरते बाल झड़ते बालों से परेशान हैं उन्हें बता दें कि बड़ी इलायची के उपयोग से समस्या को दूर किया जा सकता है। दूसरी तरफ बड़ी इलायची रूसी की समस्या को दूर करने में भी उपयोगी है। यह न केवल खोपड़ी को स्वस्थ बनाती है बल्कि इसके अंदर पाए जाने वाले एंटीवायरल गुण बालों में चमक भी बनाए रखते हैं और खोपड़ी के संक्रमण को दूर रखते हैं।श्वसन समस्या को दूर करें बड़ी इलायचीजिन लोगों को बलगम की परेशानी रहती है यानी जिन लोगों के बलगम जमा होता है उन लोगों को बता दें कि सांस की समस्या को दूर करने में बड़ी इलायची बेहद उपयोगी है। यह न केवल अस्थमा को दूर करती है बल्कि जो लोग खांसी से परेशान हैं उनके लिए भी यह किसी वरदान से कम नहीं है। अगर आप गले की खराश से ग्रस्त हैं या आपको सर्दी खांसी हो गई है तब भी आप बड़ी इलायची के उपयोग से इस समस्या को दूर कर सकते हैं।मांसपेशियों के दर्द से राहत दिलाए बड़ी इलायचीजो लोग मांसपेशियों के दर्द से परेशान रहते हैं उन्हें बता दें कि इस दर्द को दूर करने में काली इलायची यानी बड़ी इलायची बेहद उपयोगी है। हर दर्द से छुटकारा पाने के साथ सूजनरोधी का भी काम करता है। इसका प्रयोग दर्द निवारक के रूप में भी कर सकते हैं।संक्रमण से लड़े बड़ी इलायचीसंक्रमण को दूर करने में इम्यून सिस्टम का बड़ा योगदान होता है। ऐसे में बता दें कि इम्यून सिस्टम को मजबूती देने में बड़ी इलायची बेहद उपयोगी है।- बड़ी इलायची के उपयोग से कब्ज की समस्या में भी राहत मिलती है। यह पेट के अल्सर की समस्या को भी दूर करता है। सीने में जलन जैसी समस्या को दूर करने में बड़ी इलायची बेहद उपयोगी है। बड़ी इलायची का सेवन पाचन क्रिया को भी तंदुरुस्त रखता है। बड़ी इलायची के अंदर बिटवीन सी पाया जाता है जो त्वचा को स्वस्थ बनाता है।
- जानें इस बीमारी से बचने के कारगर तरीकेमन को भाने वाला खऱाब तथा बिना पोषण का आहार केवल पेट ही नहीं भरता बल्कि कई बीमारियों का कारण बनने वाले जीवाणु तथा कीटाणु भी हमारे शरीर में भरता है और शरीर को कमजोर बनाता है। ऐसे आहार के कारण जब शरीर को रोग जकड़ लेता है और उसका उपचार शुरू होता तो आहार में बदलाव भी बेहद जरूरी है। दरअसल, ज्यादातर मरीज बीमारी के इलाज के लिए दवाइयां खाते हैं लेकिन आहार में सही बदलाव नहीं करते जिस कारण शरीर और भी तेज़ी से कमजोर पडऩे लगता है तथा इसकी वजह से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम या खत्म होने लगती है, जिससे फेफड़े कमजोर होना शुरू हो जाते है। इस दौरान सांस के जरिये जीवाणु तथा कीटाणु हमारे फेफड़े से चिपक जाते है जिससे खांसी, जुकाम, सांस लेने में तकलीफ होना ऐसी ही अन्य समस्याएं होना शुरू हो जाती है। जिससे की क्षय रोग (टीबी) होने का जोखिम भी बढ़ जाता है। लेकिन हम इतना होने पर भी नहीं समझते हैं की इन समस्याओं को हमने खुद बाहर का खाना, बासी खाना, तथा पोषण रहित खाना तथा सही समय पर भोजन न करके खुद उत्पन्न किया है।डॉक्टर अनु अग्रवाल (पीएचडी न्यूट्रिशन एंड डायटेटिक्स, एम्स, ऋषिकेश) ने टीबी की शुरुआती जड़ और कारणों के बारे में बताया कि ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) एक जीवाणुजनित रोग है इस जीवाणु को माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नाम से जाना जाता है। यदि कोई व्यक्ति इस जीवाणु से प्रभावित है और जीवाणु से ग्रसित व्यक्ति के खांसते, बोलते या छींकते समय उसके मुंह से निकले छींटे कोई अन्य व्यक्ति अवशोषित करता है तो वह व्यक्ति संक्रमित हो सकता हैं। हालांकि टीबी रोग का प्रसार किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से नहीं होता है। सही समय पर टीबी के लक्षणों को पहचानने से तथा समस्या की जड़ को पकड़ कर उसके उपचार से इस बीमारी को खत्म किया जा सकता है।टीबी के लक्षण-1. तीन हफ़्तों से ज्यादा तथा लगातार खांसी का बना रहना।2. खांसी के साथ साथ बुखार का आना तथा ठण्ड लगना ।3. सीने में दर्द होना तथा खांसी आते समय अधिक दर्द होना।4. कमजोरी तथा थकावट।5. भूख न लगना तथा वजन का कम होना।6. रात में तथा सोते समय अधिक पसीना आना।उपचार तथा देखभाल-टीबी श्वसन संबंधी रोग है जिस कारण यह शरीर के अन्य हिस्से जैसे की हड्डिया, मष्तिष्क, पेट, पाचन तंत्र, किडनी तथा लिवर को संक्रमित कर सकता है। इस रोग का इलाज डॉक्टर तथा डाइइटीशियन की सलाह तथा सुझाव के साथ महीनो तक तथा लगातार चलने वाला इलाज है। टीबी के इलाज के दौरान कई प्रकार की एंटीबायोटिक दवाये मरीज को दी जाती है जो की माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस जीवाणु को नष्ट तथा नियंत्रित करती है। साथ ही साथ ये एंटीबायोटिक दवाये भोजन तथा भोजन से मिलने वाले पोषक तत्वों के साथ परस्पर क्रिया करती है। फलस्वरूप भोजन से मिलने वाले पोषक तत्वों का अवशोषण तथा चयापचन (अब्सॉप्र्शन एंड मेटाबॉल्जि़म) नहीं हो पता है और इलाज के दौरान मरीज कुपोषित होने लगता है और कुपोषण ज्यादा बढऩे पर वजन कम, खून की कमी जैसी अन्य समस्याएं इलाज की अवधि पूरा करने में समस्या उत्पन्न करती है।सही आहार एवं का पोषणडॉक्टर अनु अग्रवाल के मुताबिक टीबी के साथ कुपोषण एक बहुत ही सामान्य, लेकिन बड़ी चुनौती है। जिस कारण मरीजों को टीबी की एंटीबायोटिक दवाइयों के साथ साथ मल्टीविटामिन्स, मल्टीमिनरल्स तथा उचित मात्रा में एनर्जी, प्रोटीन, फैट, कार्बोहाइड्रेट्स, तथा भोजन में फाइबर की सही मात्रा होना जरुरी है जो की इस प्रकार हैं।एनर्जीसंक्रमित व्यक्ति को सही वजन बनाये रखने के लिए सामान्य से 20 फीसदी से 30 फीसदी अधिक ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती हैप्रोटीनमांसपेशियों के अपचय को रोकने के लिए प्रोटीन की मात्रा 1.2 से लेकर 1.5 ग्राम पर केजी आइडियल बॉडी वेट के अनुसार लिया जानी चाहिए। प्रोटीन तथा ऊर्जा की उचित मात्रा के साथ कई विटामिन्स और मिनरल्स जैसे की विटामिन डी, विटामिन इ, विटामिन सी, विटामिन ए, बी काम्प्लेक्स विटामिन, सेलेनियम, जि़क फोलिक एसिड तथा कैल्शियम की मात्रा बड़ा देनी चाहिए। क्योंकि बीमारी के दौरान सभी पोषक तत्वों की मात्रा सामान्य आवश्यकता से अधिक पड़ती है इसलिए टीबी के मरीज को खाना अधिक खाने की जगह अधिक पोषण युक्त तथा दिन में कई बार भोजन लेना चाहिए। मरीज के द्वारा लिए जाना भोजन संतुलित होना चाहिए। सन्तुलिन आहार की थाली में यह सुनिश्चित करे की सभी प्रकार के खाद्य पदार्थ जैसे की भिन्न भिन्न प्रकार के अनाज, दालें, दूध, दही, घी, पनीर, हरी तथा अन्य प्रकार की सब्जियां एवं फल, गुड़ तथा सही मात्रा में भोजन में नमक हो। इस प्रकार हम टीबी से होने वाली मृत्यु दर को रोक सकते है तथा मरीज के अच्छे स्वास्थ्य की परिकल्पना करना पूरी तरह संभव है।
- भिंडी एक ऐसी सब्जी है जो गर्मियों में बड़ी आसानी से पाई जाती है। इसका स्वाद बच्चे और बड़ों सभी को पसंद आता है। भिंडी औषधीय गुणों से संपन्न सब्जी है। भिंडी में कैल्शियम, विटामिन, पोटेशियम, अच्छे कार्ब्स और भी कई सारे अहम तत्व पाए जाते हैं। इसके औषधीय गुणों के कारण ही यह कई सारी बीमारियों में शरीर को जल्दी स्वस्थ होने में सहायता करती है। साथ ही इसके सेवन से आंख, त्वचा और बाल भी अच्छे रहते हैं।वजन घटाएभिंडी में अच्छे कार्ब्स पाए जाते हैं जो कि वजन को नियंत्रित करने में सहायता करते हैं। भिंडी में एंटी- ऑबेसिटी गुण भी होता है, जो कि अतिरिक्त वजन को कम करने में सहायता करता है इसलिए जो लोग वजन घटा रहे हैं, उन्हें भिंडी से परहेज नहीं करना चाहिए बल्कि भिंडी तो उनके लिए बेहद काम की चीज है।त्वचा को रखे जवांयदि आप चाहते हैं कि गर्मियों में आपकी त्वचा जवां दिखाई दे तो ज्यादा से ज्यादा भिंडी का सेवन करें। भिंडी में विटामिन-सी पाया जाता है जो कि त्वचा के टिश्यू की मरम्मत करने के साथ ही नए टिश्यू के निर्माण में भी सहायता करता है। भिंडी में बीटा कैरोटिन के रूप में विटामिन-ए भी पाया जाता है, जो कि त्वचा के निखार के लिए बेहद लाभदायक है।पाचनतंत्र सुधारेभिंडी खाकर बिगड़ा हुआ पाचनतंत्र सुधारा जा सकता है। गर्मियों में अधिकतर लोग पेट की समस्याओं से परेशान रहते हैं। ऐसे में यदि वे भिंडी का सेवन करते हैं तो पाचनतंत्र ठीक होने लगेगा। भिंडी में अच्छी मात्रा में फाइबर पाया जाता है जो कि पाचनतंत्र के लिए फायदेमंद होता है।रूसी की समस्या करे दूरभिंडी के सेवन के साथ ही आप यदि इसकी लार को स्कैल्प पर लगाते हैं तो रूसी और जू मिट जाती है। भिंडी में विटामिन-सी पाया जाता है, जो कि बालों को चमकदार बनाता है। गर्मियों में कई बार पसीने की वजह से स्कैल्प पर बहुत खुजली चलने लगती है ऐसे में भिंडी की लार आपको आसानी से इस समस्या से छुटकारा दिला सकती है।आंखों की रोशनी बढ़ाएभिंडी का सेवन उन लोगों के लिए बेहद लाभदायक है जो कि दिनभर स्क्रीन पर काम करते हैं। भिंडी में बीटा कैरोटीन पाया जाता है जो कि आंखों की रोशनी को बढ़ाने में सहायता करता है। आंखों से संबंधित बीमारियों में भी भिंडी का सेवन बेहद लाभकारी होता है।
- पानी हमारे लिए बहुत जरूरी है, हम पृथ्वी पर पानी के बिना जीवन जीने की कल्पना भी नहीं कर सकते। हमारे शरीर को पानी की जरूरत केवल प्यास बुझाने के लिए ही नहीं होती है, बल्कि पानी हमारे पूरे शरीर के कामकाज को बनाए रखने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी की जरूरत होती है।विशेषज्ञों की मानें तो मानव शरीर लगभग 70 प्रतिशत तक पानी से बना हैं। मनुष्य के शरीर के अधिकतर अंगों में पानी पाया जाता है। बेहद कम लोग जानते होंगे, लेकिन ठोस और कड़ी महसूस होने वाली हमारी हड्डियों में भी 22% पानी होता है। हमारे दांतों में 10%, स्किन में 20%, दिमाग में 74.5%, मांसपेशियों में 75.6% जबकि खून में 83% पानी होता है।सुबह की शुरुआत 1 गिलास पानी से करना क्यों जरूरी हैविशेषज्ञ बताते हैं, सुबह की शुरुआत 1 गिलास पानी से करने से, न सिर्फ पेट की सफाई करने में मदद मिलती है, बल्कि यह लंबे समय में कई बीमारियों के जोखिम को कम करता है। वहीं दूसरी ओर सुबह खाली पेट पानी पीना आपके कोलन को शुद्ध करता है। साथ ही यह पोषक तत्वों को ठीक से अवशोषित करने के लिए पेट की क्षमता में सुधार करता है।पानी आपके रक्त से सभी विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है, जिसका प्रभाव आपकी त्वचा पर भी देखने को मिलता है।आपको दिन में कितना पानी पीने की जरूरत हैहर दिन आप अपनी सांस, पसीना, मूत्र और मल त्याग के माध्यम से अपने शरीर से पानी को बाहर निकाल देते हैं। आपके शरीर को ठीक से काम करने के लिए, पर्याप्त मात्रा में पानी पीने की जरूरत होती है।अमेरिका की नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज, इंजीनियरिंग और मेडिसिन के अनुसार हर रोज आवश्यक पानी की मात्रा हैपुरुषों के लिए एक दिन में लगभग 15.5 कप (3.7 लीटर) तरल पदार्थमहिलाओं के लिए एक दिन में लगभग 11.5 कप (2.7 लीटर) तरल पदार्थविशेषज्ञ दिन में कम से कम 8 गिलास पानी पीने की सलाह देते हैं। इसे याद रखना आसान है और यह एक उचित लक्ष्य है।
- 1. यह जोड़ों को चिकनाई देता हैजोड़ों में पाया जाने वाला कार्टिलेज और रीढ़ की हड्डी में लगभग 80 प्रतिशत पानी होता है। लंबे समय तक डिहाइड्रेशन जोड़ों की पानी को अवशोषित करने की क्षमता को कम कर सकता है, जिससे जोड़ों में दर्द हो सकता है।2. यह लार और बलगम बनाता हैलार हमें हमारे भोजन को पचाने में मदद करती है और मुंह, नाक और आंखों को नम रखती है। यह घर्षण और क्षति को रोकता है। पानी पीने से भी मुंह साफ रहता है।3. यह पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाता हैरक्त का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा पानी है और रक्त शरीर के विभिन्न हिस्सों में ऑक्सीजन ले जाता है।4. यह त्वचा के स्वास्थ्य और सुंदरता को बढ़ाता हैडिहाइड्रेशन के साथ, त्वचा स्किन डिसऑर्डर और समय से पहले झुर्रियों की चपेट में आ सकती है।5. यह मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी और अन्य संवेदनशील ऊतकों के लिए जरूरी हैडिहाइड्रेशन मस्तिष्क की संरचना और कार्य को प्रभावित कर सकता है। यह हार्मोन और न्यूरोट्रांसमीटर के उत्पादन में भी शामिल है। लंबे समय तक डिहाइड्रेशन सोच और तर्क के साथ समस्याएं पैदा कर सकता है।6. यह शरीर के तापमान को नियंत्रित करता हैपानी जो त्वचा की मध्य परतों में जमा होता है, शरीर के गर्म होने पर त्वचा की सतह पर पसीने के रूप में आता है। जिससे शरीर को ठंडा होने में मदद मिलती है।7. पाचन तंत्र इस पर निर्भर करता हैआंत्र को ठीक से काम करने के लिए पानी की आवश्यकता होती है। डिहाइड्रेशन से पाचन संबंधी समस्याएं जैसे, कब्ज और पेट में अम्ल की अधिकता हो सकती है। इससे हार्टबर्न और पेट के अल्सर का खतरा बढ़ जाता है।8. यह शरीर के अपशिष्ट को बाहर निकालता हैमूत्र, मल और शरीर से पसीना बाहर निकालने की प्रक्रियाओं में पानी की आवश्यकता होती है।9. यह रक्तचाप को बनाए रखने में मदद करता हैपानी की कमी से रक्त गाढ़ा हो सकता है, जिससे रक्तचाप बढ़ सकता है।10. यह किडनी डैमेज को रोकता हैकिडनी शरीर में तरल पदार्थ को नियंत्रित करती है। अपर्याप्त पानी से किडनी की पथरी और अन्य समस्याएं हो सकती हैं।
- 00 सुबह खाली पेट पानी से शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद मिलती है।00 पेट को साफ रखने में मदद मिलती है। सुबह खाली पेट गर्म पानी पीने से रक्त वाहिकाएं चौड़ी हो जाती है और आंतों में रक्त प्रवाह बढ़ जाता है, जिससे पाचन तंत्र और बेहतर तरीके से काम करने लगता है।00 गर्म पानी पीना दर्द से आराम दिलाने में भी सहायक है। खासतौर पर अगर आप पेट दर्द से परेशान हैं तो सुबह खाली पेट गर्म पानी असरदार तरीके से राहत देता है।00 रोजाना सुबह सिर्फ एक गिलास गर्म पानी पीने से पेट के सारे हानिकारक टॉक्सिन बाहर निकल जाते हैं और पेट लम्बे समय तक भरा हुआ महसूस होता है। जिसकी वजह से आप बेवजह कुछ खाने से बच जाते हैं। रोजाना ऐसा करने से जल्दी ही वजन कम होने लगता है।00 सुबह उठने के बाद अगर आप सबसे पहले पानी पीते हैं, तो दिमाग में ऑक्सीजन की बेहतर सप्लाई होती है। ऐसा करने से दिमाग दिन भर एक्टिव और फ्रेश रहता है।00 खाली पेट पानी पीने से त्वचा अंदर से साफ हो जाती है। सिर्फ इतनी ही नहीं, इससे स्किन भी हाइड्रेट होती है और उसकी नमी बनी रहती है।00 पानी शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए बेहद जरूरी है। पानी विषाक्त तत्वों को बाहर निकाल देता है, जिससे शरीर के अंग हेल्दी और एक्टिव बने रहते हैं। इससे शरीर की इम्युनिटी बढ़ती है।
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शिकागो के नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी में हुई एक स्टडी बताती है कि जो लोग सुबह 8:30 से पहले खाना शुरू कर देते हैं, उनका ब्लड शुगर स्तर कम रहता है। यही नहीं, उनमें इंसुलिन रेजिस्टेंस भी कम रहता है, जो टाइप 2 डायबिटीज के जोखिम को कम कर सकता है।
इस स्टडी का नाम इंटरमिटेंट फास्टिंग है, जिसके अनुसार जल्दी खाना शुरू कर देने का संबंध कम ब्लड शुगर स्तर और इंसुलिन रेजिस्टेंस से है। इस स्टडी को इनडोक्राइन सोसायटी की सालाना मीटिंग में वर्चुअल तौर पर पेश किया गया।पहले भी मिले हैं सबूतपहले हुई स्टडीज में इस तरह के सबूत मिले हैं, जो यह बताते हैं कि ब्रेकफास्ट छोड़ने और हाई डायबिटीज जोखिम के बीच संबंध है। लेकिन उनमें जल्दी ब्रेकफास्ट और ब्लड शुगर, इंसुलिन रेसिस्टेंस और डायबिटीज के बीच के जोखिम के बारे में कुछ नहीं कहा गया था। शिकागो के नॉर्थ वेस्टर्न यूनिवर्सिटी के एमडी और लीड रिसर्चर मरियम अली कहती हैं, “हमने पाया कि जो लोग दिन में जल्दी खाना शुरू कर देते हैं, उनका ब्लड शुगर स्तर कम रहता है। साथ ही इंसुलिन रेसिस्टेंस भी, भले ही उनका फूड इनटेक 10 घंटे के लिए प्रतिबंधित रहा हो या फूड इनटेक रोजाना 13 घंटों से अधिक के लिए फैला हो।”कब होता है इंसुलिन रेजिस्टेंसइंसुलिन रेजिस्टेंस तब होता है जब बॉडी उस इंसुलिन पर प्रतिक्रिया नहीं देती है जो पैंक्रियाज बनाता है और ग्लूकोज सेल्स में प्रवेश करने के कम योग्य रहता है। इंसुलिन रेजिस्टेंस के साथ वाले लोग टाइप 2 डायबिटीज के अधिक जोखिम पर रहते हैं। इंसुलिन रेजिस्टेंस और ब्लड शुगर स्तर दोनों किसी व्यक्ति के मेटाबॉलिज्म को प्रभावित करता है, फूड को आसान घटकों में तोड़ देता है- प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट (या शक्कर) और फैट। मेटाबॉलिक डिसऑर्डर जैसे डायबिटीज तब होते हैं जब इन सामान्य प्रक्रियाओं में व्यवधान पैदा हो जाता है।मेटाबॉलिक डिसऑर्डरडायबिटीज जैसे मेटाबॉलिक डिसऑर्डर के बढ़ने से हम इस चिंता को दूर करने में सहायता करने के लिए न्यूट्रिशनल स्ट्रेटेजी की अपनी समझ का विस्तार करना चाहते थे, ऐसा मरियम अली का कहना है। पहले की स्टडीज में पाया गया कि समय प्रतिबंधित भोजन, जो रोजाना के खाने को कम समय के लिए समेकित करता है, ने लगातार मेटाबॉलिक हेल्थ में सुधार का प्रदर्शन किया है, ऐसा उन्होंने नोट किया। उनका समूह यह देखना चाहता था कि दिन में जल्दी खाने से मेटाबॉलिक उपाय प्रभावित होते हैं या नहीं।विश्लेषण और निष्कर्षरिसर्चर्स ने नेशनल हेल्थ और न्यूट्रिशन एग्जामिनेशन सर्वे में भाग लेने वाले 10,575 लोगों से डेटा का विश्लेषण किया। उन्होंने भागीदारों को उनके फूड इनटेक की कुल अवधि के आधार पर तीन समूहों में बांटा – 10 घंटे से कम, 10-13 घंटे, 13 घंटे से अधिक। इसके बाद उन्होंने शुरुआती समय के (8:30 बजे सुबह से पहले या बाद में) खाने के आधार पर छह उप समूह बनाए।उन्होंने इस डेटा का विश्लेषण यह निर्धारित करने के लिए किया कि खाने की अवधि और समय फास्टिंग ब्लड शुगर स्तर और इंसुलिन रेजिस्टेंस से संबंधित थे या नहीं। फास्टिंग ब्लड शुगर स्तर इंटरवल समूहों के खाने के बीच बहुत अलग नहीं था। खाने के कम इंटरवल अवधि के साथ इंसुलिन रेजिस्टेंस अधिक था, लेकिन 8:30 बजे सुबह से पहले खाने के शुरुआती समय के साथ सभी समूहों में कम था। मरियम ने अंततः कहा, “ये खोज सुझाव देते हैं कि समय, अवधि की बजाय मेटाबॉलिक उपाय से अधिक संबंधित है, और जल्दी खाने की स्ट्रेटेजीज को समर्थित करता है। - भागदौड़ भरी जिंदगी में तनाव आम बात है। कई बार लोग छोटी-छोटी चीजों को लेकर दिमाग पर ज्यादा प्रेशर महसूस करने लगते हैं। हर काम सोच पर निर्भर हो गया है। ऐसे में व्यक्ति न तन और न मन से खुद को फिट रख पा रहा है। दिनभर की सोच व चिंता नींद उड़ा रही है जोकि स्वास्थ्य के लिए घातक साबित होने लगी है। इसलिए चिंता व नकारात्मक सोच मुक्त होकर वयस्कों को 6 घंटे व बच्चों को 8 घंटे की नींद लेना बेहद जरूरी है। मनोचिकित्सक डॉ. पूनम दहिया के अनुसार सोने से करीब एक घंटा पहले मोबाइल व टीवी से दूरी बना लें। निगेटिव व हॉट टॉक से बचें और हेल्दी टॉक करके नींद जरूर लें।नींद उडऩे के कारण----काम का दबाव।परिस्थितियां विपरीत होना।नकारात्मक सोच व संगत।तनाव से अनिंद्रा।मानसिक रोग।अच्छी नींद लेने के उपाय-----सैर, मेडिटेशन और योग करें।सोने से पहले अच्छी बातें करें।खुशनुमा माहौल में समय बिताएं।सकारात्मक बातें सोचें।मोबाइल और टीवी से दूरी बनाएं।अनिद्रा के दुष्परिणाम------मानसिक रोग होना।गैर संक्रामक शुगर, दिल रोग होना।पूर्व की बीमारियों का शरीर पर दुष्प्रभाव पडऩा।दिनभर चिढ़चिढ़ापन।किसी की बात व माहौल अच्छा न लगना।
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गर्मियों में मट्ठा या छाछ का सेवन लगभग सभी लोग करते हैं। दही को मथ कर तैयार किया गया मट्ठे का स्वाद लोगों को गर्मियों में काफी ज्यादा लुभाता है। मट्ठे में मौजूद पोषक तत्व सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है। दूध की तुलना में मट्ठा में काफी कम वसा होता है। यह शरीर के मोटापे को कम करने में असरदार होता है। साथ ही पाचन को दुरुस्त करने में मट्ठा काफी फायदेमंद है। गर्मियों में चाय-कॉफी के बदले मट्ठा का विकल्प काफी बेहतरीन साबित हो सकता है। मट्ठा में गुड बैक्टीरिया मौजूद होते हैं, जो पाचन के लिए काफी अच्छे माने जाते हैं। साथ ही इसमें कैलोरी की मात्रा काफी कम होती है, जो कब्ज से पीडि़त रोगियों के लिए फायदेमंद है। लेकिन आपको बता दें कि मट्ठा का सेवन कुछ लोगों और परिस्थितियों में करना नुकसानदेय हो सकता है। आइए जानते हैं किन लोगों के लिए छाछ का सेवन नुकसानदेय है-
इन लोगों को खाली पेट नहीं पीना चाहिए मट्ठा1. सर्दी-जुकाम की समस्यासर्दी-जुकाम से पीडि़त लोगों को खाली पेट मट्ठे के सेवन से बचना चाहिए। क्योंकि मट्ठे की तासीर ठंडी होती है, जिससे इन लोगों की परेशानी काफी ज्यादा बढ़ सकती है। साथ ही इसके कारण बलगम और खांसी जैसी समस्या भी हो सकती है।2. डायरिया और मिचलीडायरिया और उल्टी की शिकायत होने पर खाली पेट मट्ठे के सेवन से बचें। साथ ही अगर मट्ठा का सेवन जरूरत से ज्यादा किया जाए, तो परेशानी बढ़ सकती है।3. हाई कोलेस्ट्रॉल मरीजहाई कोलेस्ट्रॉल के मरीजों को भी मट्ठे के सेवन से बचना चाहिए। दरअसल, मट्ठा सैचुरेटेड फैट होता है, जो कुछ गंभीर परिस्थियों में कोलेस्ट्रॉल लेवल को और अधिक बढ़ा सकता है। इसलिए मट्ठा का सेवन करने से पहले कुछ खा जरूर लें।4. बुखार और कमजोरीबुखार और कमजोरी महसूस होने पर मट्ठा का सेवन करने से बचें। बुखार में अगर आप मट्ठा के सवन करते हैं, तो इससे आपके शरीर का तामपान बढ़ सकता है। साथ ही आपको सर्दी-जुकाम जैसी परेशानी हो सकती है।5. स्किन एलर्जीस्किन एलर्जी से शिकार लोगों को भी खाली पेट मट्ठे के सेवन से बचना चाहिए। एक्जिमा रोगी अगर मट्ठे का सेवन करते हैं, तो इससे उनकी परेशानी बढ़ सकती है। इसलिए ऐसे मरीजों को मट्ठे या छाछ के सेवन से बचना चाहिए।6. किडनी की परेशानीकिडनी रोगियों को भी छाछ का सेवन नहीं करना चाहिए। इससे गुर्दे की परेशानी बढ़ सकती है। खाली पेट मट्ठा पीने से किडनी की समस्या गंभीर रूप धारण कर सकती है। इसलिए मट्ठा का सेवन हमेशा दोपहर में ही करें।7. गैस की परेशानीगैस की समस्या के शिकार लोगों को भी खाली पेट मट्ठे के सेवन से बचना चाहिए। क्योंकि इसमें मौजूद फैट पेट को और अधिक भारी कर सकता है। जिससे गैस की परेशानी और अधिक बढ़ सकती है। इसलिए गैस्टिक रोगियों को खाली पेट मट्ठे के सेवन से बचना चाहिए। - वजन घटाने से लेकर स्किन केयर रुटीन फॉलो करने वाले लोग पपीता का सेवन करते हैं। पपीते में मौजूद पोषक तत्व वजन को कम करने के साथ-साथ पाचन को दुरुस्त करने में लाभकारी मानें जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जरूरत से ज्यादा पपीता का सेवन करना भी नुकसानदेय हो सकता है? जी हां, किसी भी चीज का जरूरत से ज्यादा सेवन करना सेहत के लिए हमेशा नुकसानदेय ही रहा है। पपीता भी ऐसी ही चीजों में शामिल है। यह कई पोषक तत्वों से भरपूर है, लेकिन अगर आप अति से ज्यादा इसका सेवन करते हैं, तो यह फायदा पहुंचाने के बजाय आपको नुकसान पहुंचाने लगता है। इसलिए हमेशा सीमित मात्रा में ही पपीता का सेवन करें। चलिए जानते हैं कि जरूरत से ज्यादा पपीता का सेवन करने से सेहत को क्या नुकसान होते हैं।1. स्किन के लिए है हानिकारकपपीता स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। इसमें पपैन नामक एंजाइम मौजूद होता है, जिसका अधिकतर इस्तेमाल स्किन केयर क्रीम को बनाने के लिए किया जाता है। लेकिन यह एंजाइम सभी टाइप के स्किन के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। ऐसे में अगर किसी को इस एंजाइम से एलर्जी है, तो उनके स्किन पर रैशेज और जलन की शिकायत हो सकती है। इसलिए पपीता का सेवन सीमित मात्रा में ही करना आपके स्किन के लिए बेहतर होता है।2. बढ़ा सकती है रेस्पिरेटरी एलर्जीपपीता में मौजूद पपैन नामक एंजाइम एक शक्तिशाली एलर्जीन है। अगर आपको किसी तरह की श्वास संबंधी समस्या है। उदाहरण के लिए अस्थमा, एलर्जी तो इसका सेवन सावधानी पूर्वक करें। अगर आप काफी ज्यादा पपीता खाते हैं, तो आपकी परेशानी बढ़ सकती है। अधिक पपीता खाने से अस्थमा, घबराहट और सांस लेने में परेशानी जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।3. हार्ट बीट कर सकता है धीमादिल से जुड़ी बीमारियों से ग्रसित लोगों को पपीते के अधिक सेवन से बचना चाहिए। अधिक पपीते के सेवन से आपके दिल की धड़कनों की दर अनिश्चित रूप से कम होती है। इसके साथ ही यह दिल से जुड़ी परेशानियों को बढ़ा सकती हैं। ऐसे में अगर आपको हृदय से जुड़ी कोई परेशानी हैं, तो डॉक्टर की सलाह जरूर लें।4. बढ़ सकती है पेट की समस्याअति से ज्यादा पपीते का सेवन करने से हमारा गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम प्रभावित होता है। इसके कारण पेट में गैस, जलन जैसी समस्या बढ़ सकती हैं। दरअसल, पपीते में फाइबर की अधिकता होती है। अधिक फाइबर का सेवन पाचन को प्रभावित करता है। जिसके कारण कब्ज, एसिडिटी और दस्त की शिकायतें हो सकती है।5. गर्भवती महिलाओं के लिए नुकसानदेयगर्भवती महिलाओं को पपीता का सेवन नहीं करना चाहिए। क्योंकि पपीता का सेवन करने से गर्भवती के भ्रूण को नुकसान पहुंच सकता है। दरअसल, पपीते में लेटेक्स की अधिकता होती है, जिसके कारण गर्भाशय सिकुडऩे की संभावना होती है। इसके अलावा इसमें मौजूद पपैन भ्रूण के विकास की झिल्ली को नुकसान पहुंचा सकता है। ऐसे में गर्भवती महिलाओं को पपीता का सेवन बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए।6. लो ब्लड शुगरहाई ब्लड शुगर रोगियों के लिए पपीता का सेवन फायदेमंद हो सकता है। लेकिन लो ब्लड शुगर रोगियों के लिए पपीता का अधिक सेवन नुकसानदेय माना जाता है। वहीं, अगर आप ब्लड शुगर की दवा ले रहे हैं, तो डॉक्टर से पूछ कर ही पपीता का सेवन करें।ध्यान रहे कि पपीता आपके स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है। इसलिए इसका सेवन करें। लेकिन सीमित मात्रा में। वहीं, अगर आपको पपीता खाने के बाद किसी तरह परेशानी महसूस हो, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
- पुणे। महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में फल उगाने वाले किसान एक नई पहल करते हुए बेकरी में बने केक की जगह फल से तैयार किए गए केक के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रहे हैं।किसानों और कृषि विशेषज्ञों ने बताया कि इस 'स्वत:स्फूर्त प्रयास को सोशल मीडिया पर भी लोकप्रियता मिल रही है और इसका उद्देश्य किसानों और उनके परिवारों के खान-पान में फल के सेवन को बढ़ावा देना और कोविड-19 महामारी के इस दौर में उत्पाद बेचने का नया तरीका खोजना है। किसान, उनके परिवार और कृषक समाज से जुड़े विभिन्न संगठन स्थानीय स्तर पर उगाए जाने वाले फलों जैसे कि तरबूज, खरबूज, अंगूर, नारंगी, अनानास और केले से बने केक का इस्तेमाल विशेष आयोजनों में करने को बढ़ावा दे रहे हैं।पुणे के कृषि विश्लेषक दीपक चव्हाण ने बताया कि राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में फल की उपज बढ़ी है और बाजार में मांग से ज्यादा यह उपलब्ध हैं, जिसके कारण इसकी कीमतों में गिरावट आ रही है। उन्होंने बताया कि किसानों को कोरोना महामारी और लॉकडाउन से नुकसान पहुंचा है और अब मांग से ज्यादा आपूर्ति की वजह से उनकी उपज को व्यापारी कम कीमत पर खरीद रहे हैं। चव्हाण ने बताया कि इस तरह की दिक्कतों से निपटने के लिए किसानों ने सोशल मीडिया पर एक पहल शुरू की। इसके तहत जन्मदिन, सालगिरह समेत अन्य मौकों पर फल से बने केक का इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने कहा '' ऐसा प्राय: देखा जाता है कि फल उगाने वाले और उनके परिवार के सदस्य पर्याप्त मात्रा में फल नहीं खाते हैं। इस पहल की वजह से वह ऐसा कर पा रहे हैं और फल वाला केक, बेकरी में बने केक से बेहतर होता है क्योंकि इसमें पोषक तत्व ज्यादा मात्रा में होते हैं।'