- Home
- धर्म-अध्यात्म
- स्वप्न शास्त्र में हर सपने से मिलने वाले शुभ-अशुभ संकेत के बारे में बताया गया है. इसमें अलग-अलग तरह के घर देखना भी शामिल है. वैसे तो हर व्यक्ति अपने घर को लेकर खुली आंखों से कई सपने सजाता है लेकिन यदि घर सपने में दिखें तो उसके कई खास मतलब निकलते हैं.घर बनते देखना- स्वप्न शास्त्र के अनुसार सपने में घर बनते देखना बहुत शुभ होता है. इसका मतलब है कि आपको कोई अच्छा समाचार मिलने वाला है या आपको सम्मान-प्रसिद्धी मिलने वाली है. यह धन-लाभ का भी संकेत है.बचपन का घर देखनायदि सपने में पैतृक घर या वो घर दिखे जिसमें आप बचपन में रहे हैं तो इसका मतलब है कि आपके दांपत्य जीवन में खुशियां आने वाली हैं.मिट्टी का घर देखनाऐसा सपना देखना अशुभ होता है और कुछ बुरा होने का संकेत देता है. लिहाजा हर काम सोच-समझकर करना चाहिए.कुटिया देखनासपने में कुटिया देखना शुभ होता है. यह जिंदगी में सुख आने का इशारा है.बड़ी बिल्डिंग देखनाऐसा सपना देखना जिंदगी में संपन्नता आने का संकेत है. यदि बिल्डिंग के सामने हरा-भरा लॉन भी दिखे तो यह बहुत ही शुभ होता है. लेकिन ढेर सारी बिल्डिंग दिखें तो मतलब है कि आपकी महत्वाकांक्षाएं ऐसी हैं, जो शायद पूरी न हो सकें.बड़ा दरवाजा खुलते देखनाऐसा सपना बताता है कि आपको कोई अचंभित करने वाली सफलता मिल सकती है, जिसके बारे में आपने कभी सोचा भी न हो.
- हर प्रकार की पूजा में दीपक जलाना अनिवार्य माना जाता है। घरों में भी रोजाना भगवान के सामने. तुलसी चौरा और द्वार पर एक दीपक जलाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। दीया मिट्टी या फिर धातु का होता है। आइये जानते हैं कि कैसे दीया जलाना शुभ होता है और इस दौरान किन बातों का ख्याल रखना चाहिए।दीपक पूजा में जलाते समय ध्यान रखने योग्य कुछ आवश्यक बातें*1* पूजा करते वक्त दीपक का बुझना अशुभ माना गया है ऐसा होने पर पूजा का पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता, इसलिए दीप जलाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि वह लंबे समय तक चलता रहे और बीच में ना बुझे। दीप में घी या तेल की मात्रा अच्छी तरह से डालें जिससे वह ज्यादा समय तक जलता रहे क्योंकि दीपक का जलना शुभ माना गया है परंतु यदि किसी कारणवश दीपक बीच पूजा में बुझ जाता है तो आप ईश्वर से अपनी गलतियों को माफ करने की क्षमा याचना करते हुए दीपक फिर से प्रज्ज्वलित कर लें।2* दीपक को जलाने से पहले अच्छी तरह से उसे जांच लें कि वह कहीं से टूटा और गंदा तो नहीं है क्योंकि पूजा में खंडित दीपक का प्रयोग नहीं करना चाहिए,सभी जानते हैं कि धार्मिक कार्यों में खंडित सामग्री अशुभ मानी जाती है।3* दीपक की लौ पूर्व दिशा की तरफ़ रखने से आयु में वृद्धि होती है।4* दीपक की लौ पश्चिम दिशा की तरफ़ रखने से दुख में बढ़ोतरी होती है।5* दीपक की लौ उत्तर दिशा की तरफ़ रखने से धन में बढ़ोतरी होती है।6* दीपक की लौ को कभी भी दक्षिण दिशा की तरफ़ ना रखें इससे जन या धन की हानि होती है।7* पूजा में दीपक जलाने के लिए केवल घी या तेल का ही प्रयोग करें ध्यान रखें कि घी का दीपक जलाने के तुरंत बाद तेल का दीपक ना जलाएं।8* घी का दीपक मनोकामना पूर्ण करने के लिए और सुख समृद्धि प्राप्त हो इसलिए जलाया जाता है और तेल का दीपक कष्ट और समस्या को दूर करने के लिए जलाया जाता है। ध्यान रखें दीपक जलाने के लिए घी में तेल को कभी नहीं मिलाना चाहिए।9* शनि की साढ़ेसाती व ढैय्या से परेशान व्यक्ति शनि मन्दिर में शनि स्त्रोत का पाठ करें और तिल के तेल का दीपक जलायें।10* मां लक्ष्मी की अपार कृपा प्राप्त करने के लिए सप्त-मुखी तिल के तेल का दीपक जलायें और शाम के समय घर की चौखट पर दीपक लगाना चाहिए।11* शत्रु से छुटकारा पाने के लिए और अनजाने भय से मुक्त होने के लिए प्रतिदिन हनुमानाष्टक का पाठ करें और लाल रंग की बाती का दीपक हनुमान जी के सामने प्रज्वलित करें। हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए तिल के तेल का आठ बत्तियों वाला दीपक जलाना चाहिए.12* भगवान गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए तीन बत्तियों वाला घी का दीपक जलाना चाहिए इससे आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाएंगी।13* भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के सामने घी का दीपक जलाने से कर्ज संबंधी और धन संबंधी सारी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं।14* प्रतिदिन घर में दीपक जलाने से वास्तुदोष समाप्त होते हैं और घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव होता है परिवार के सभी सदस्यों में ऊर्जा बनी रहती है और वह प्रसन्न चित्त रहते हैं।15* यदि आप अपने व्यवसाय में लाभ, वेतन में वृद्धि आदि धन लाभ की मनोकामना के लिये दीपक की लौ उत्तर दिशा रखनी चाहिए।
- ज्योतिष में गोमती चक्र का बहुत महत्व है। इसके अतिरिक्त तांत्रिक विद्या में भी इसका बहुत प्रयोग किया जाता है। लगभग हर प्रमुख हिन्दू त्यौहार पर गोमती चक्र का उपयोग किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि गोमती चक्र माता लक्ष्मी को रोकने के लिए उपयोग में लाया जाता है। अर्थात अगर किसी का खर्च बहुत अधिक हो अथवा ऋण में डूबा हो तो गोमती चक्र को पास में रखने का विशेष प्रावधान है। इससे लक्ष्मी हमेशा प्रसन्न रहेंगी। लक्ष्मी पूजा, विशेषकर दीपावली में गोमती चक्र का बड़ा महत्व माना जाता है। इसके अतिरिक्त भी गोमती चक्र के कई ज्योतिष उपयोग हैं। गोमती चक्र को माला अथवा अंगूठी के रूप में पहना जाता है।हिन्दू धर्म में गोमती नदी का बड़ा महत्व है। हमारी पांच सबसे पवित्र नदियों में से एक गोमती भी है। मान्यता है कि गोमती महर्षि वशिष्ठ की पुत्री थी जो बाद में नदी के रूप में परिणत हो गयी। इसी पवित्र नदी के अंदर एक विशेष पत्थर पाया जाता है जिसे हम गोमती चक्र के नाम से जानते हैं। ये पत्थर उतना कीमती तो नहीं होता किन्तु बहुत दुर्लभ होता है। ये कैल्शियम का पत्थर होता है जिसमे चक्र का निशान होता है जो इसके नाम का मुख्य कारण है। विशेष रूप से ज्योतिष शास्त्र में इसे बहुत पवित्र माना जाता है। मुख्य रूप से गोमती चक्र श्रीहरि और श्रीकृष्ण से जुड़ा हुआ है।पुराणों में भी गोमती चक्र की उत्पत्ति की कथा दी गयी है। इसे हिन्दू धर्म में वर्णित 84 रत्नों से एक माना गया है। ये कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है। समुद्र मंथन के विषय में हम सभी जानते हैं किन्तु आम मान्यता ये है कि समुद्र मंथन से कुल 14 रत्नों की प्राप्ति हुई थी किन्तु पुराणों में वर्णित है कि समुद्र मंथन से इन 14 "मुख्य" रत्नों के अतिरिक्त 70 और रत्न निकले थे। इस प्रकार उस समुद्र मंथन से कुल 84 रत्नों की प्राप्ति हुई थी किन्तु मुख्य रत्नों में केवल 14 की गिनती होती है।गोमती चक्र भी उन्हीं 84 रथों में से एक माना जाता है। ऐसी कथा है कि जब समुद्र मंथन से 14 रत्नों की प्राप्ति हो गयी तब उसके समापन की बात उठी। किन्तु देवों और दैत्यों ने ये सोचकर कि अभी उन्हें और रत्नों की प्राप्ति होगी, समुद्र मंथन जारी रखा। किन्तु दोनों पक्ष बहुत श्रमित थे और अब मंदराचल पर्वत और वासुकि नाग को संभाल कर रखना उनके लिए अत्यंत कठिन हो गया। धरती माता भी मंदराचल के घर्षण और गर्जन से तप्त हो गयी। तब उन्होंने एक गाय का रूप लिया और भगवान विष्णु के पास पहुंची और उन्होंने अपनी व्यथा उन्हें बताई। तब श्रीहरि ने अपने सुदर्शन चक्र को समुद्र पर चलाया जिससे एक महान चक्रवात उत्पन्न हुआ। वो चक्रवात इतना भयानक था कि उसके वेग से सम्पूर्ण मंदराचल पर्वत वासुकि नाग सहित समुद्र के ऊपर आ गया। इसके बाद उस महान आयुध सुदर्शन चक्र की शक्ति से मंदराचल स्वत: ही घूमने लगा और उसी वेग से समुद्र मंथन होने लगा।तब उस समुद्र मंथन से समुद्र के अंदर के बहुमूल्य पत्थर, मणियां, धातु और शंख इत्यादि स्वत: समुद्र से बाहर आने लगे। अंत में घर्षण इतना तेज हो गया कि समुद्र से निकले धातु उसके ताप से पिघल गए और समुद्र के सतह पर वृताकार रूप में जम गए। उनकी संख्या इतनी अधिक हो गयी कि वो चक्रवात भी थम गया और समुद्र मंथन स्वत: ही रुक गया। चूँकि धरती माता के कारण श्रीहरि ने वो श्रम किया था, उस रत्न का नाम "गोमातृका" पड़ा। समय के साथ उस गोमातृका को गोमती चक्र के नाम से जाना जाने लगा।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 356
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'कुसंग' पर दिये गये प्रवचन से संबंधित श्रृंखला में आज दूसरे कुसंग 'सांसारिक विषयों का चिन्तन-मनन' की चर्चा यहाँ प्रकाशित की जा रही है। 'जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' के भाग 354 से 'कुसंग' विषय पर विस्तृत चर्चा का प्रकाशन हो रहा है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित इस अमूल्य तत्वज्ञान से निश्चित ही हमें आध्यात्मिक हानि उठाने से बचाव के उपाय ज्ञात होंगे....)
★ चौथा कुसंग - संसारी विषयों का चिन्तन-मनन
...भगवदविषयों से विपरीत विषयों का पढ़ना, दूसरा सुनना, तीसरा देखना, चौथा सोचना आदि भी कुसंग है।
किन्तु इन सबमें सबसे भयानक कुसंग सोचना ही है, क्योंकि अंत में पढ़ने, सुनने एवं देखने आदि वाले कुसंग भी यहीं पर आ जाते हैं। फिर यहीं से कार्यवाही आरंभ हो जाती है। सोचते-सोचते मनोवृत्तियाँ उसी के अनुकूल होती जाती है एवं बुद्धि भी मोहित होती जाती है, जिसका दुष्परिणाम यह होता है कि कुछ काल बाद मन पूर्णतया उन विपरीत विषयों में लीन हो जाता है। इस सम्बन्ध में गीता में एक अत्यन्त सुन्दर अर्धाली है;
ध्यायतो विषयान् पुंसः संगस्तेषूपजायते।(गीता 2-62)
अर्थात जिस विषय का हम बार-बार चिन्तन करते हैं, उसी में हमारी आसक्ति हो जाती है।
किन्तु ध्यान में रखने की बात यह है कि चिन्तन तो पश्चात होता है, पूर्व में तो भगवद-विपरीत विषयों का सुनना, पढ़ना आदि है। अतएव यदि पूर्व कारण से बचा जाये तो अत्यन्त ही सरलतापूर्वक कुसंग से निवृत्ति हो सकती है। यदि आग को लकड़ी न मिले तो अग्नि कैसे बढ़ेगी? फिर यदि साथ ही उस अन्तरंग कुसंग रूपी आग में श्रद्धायुक्त सत्संग रूपी जल भी छोड़ा जाय तब तो आग धीरे-धीरे स्वयं ही बुझ जायेगी। देखो, प्रायः हम लोग यह सब जानते हुये भी बहादुरी दिखाने का स्वांग रचते हैं, अर्थात कुसंग की प्रारंभिक अवस्था में ही सावधान न होकर यह कह देते हैं - 'अरे! कुसंग हमारा क्या कर लेगा, हम सब कुछ समझते हैं!!!'
अरे भाई! विचार करो कि यद्यपि डॉक्टर यह समझता है कि अमुक विष मारक है, किन्तु परिहास में भी पी लेता है तो उसका वह जानना थोड़े ही काम देगा, विष तो अपना मारक गुण दिखायेगा ही।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2011 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - क्लेश पांच प्रकार के होते हैं। अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष एवं अभिनिवेश। जिस घर में लड़ाई-झगड़े रहते हैं वहां लक्ष्मी कभी भी निवास नहीं करती है।हर इंसान के मन में यही चाहना रहती है कि उसके जीवन में और उसके घर के सदस्यों के बीच प्रेम और आपसी सौहार्द बना रहे। घर में सुख सुविधाएं होने के बावजूद और रुपया पैसा होने के बाद भी घर में समस्याएं हैं, परंतु आप खुद ही नहीं जानते कि घर में क्लेश के क्या कारण हैं, लेकिन जब क्लेश हद से ज्यादा बढ़ जाए और जीवन अशांति से भर जाए और इन सब बातों की कोई वजह भी ना हो तो आप जान लीजिए कि इनका कारण कुछ वास्तु दोष ही है। ऐसे में कुछ उपाय कर लेना ही उचित है।1* घर में प्रति दिन या सप्ताह में एक बार पानी में नमक मिलाकर पोछा लगाएं, इससे घर में सकारात्मक उर्जा फैलती है।2* जब आप अपने घर में कोई भी खाने पीने की वस्तु जैसे फल, मिठाई आदि लाते हैं ,तो सबसे पहले अपने इष्ट देवता को भोग लगाएं। उसके उपरांत उसमें से थोड़ा सा हिस्सा निकालकर घर के बाहर रख दे फिर अपने परिवार के बड़े बुजुर्ग लोगों को दें और बच्चों को दें और उसके पश्चात ही आप पति-पत्नी उस वस्तु का सेवन करें।3* अपने पूजा घर में हर मंगलवार को घी का पंचमुखी दिया जलाएं . 4* आपके घर के दरवाजे और खिड़कियां पूरब या फिर उत्तर दिशा में होनी चाहिए और ध्यान रहे दरवाजा खोलते या बंद करते वक्त किसी भी तरह की आवाज ना करता हो यह अशुभ माना गया है।5* घर की दीवार पर युद्ध से संबंधित कोई भी चित्र या पेंटिंग नहीं लगानी चाहिए।6* घर में टूटा हुआ कांच या फिर कोई भी बेकार वस्तु जिसका आप उपयोग ना करते हो घर में बिल्कुल नहीं रखनी चाहिए।7*अपने शयनकक्ष में बिस्तर के सामने कोई भी दर्पण नहीं लगाना चाहिए।8* रात में सोते वक्त अपना सिर पूर्व दिशा की और रखकर सोइए इससे तनाव में राहत मिलती है।9* सुबह के वक्त दूध में पत्नी या मां द्वारा केसर डलवाएं तब उसका सेवन करें ऐसा करने से घर में सुख शांति बनी रहती है।10* गुरुवार और रविवार को कंडे पर गुड़ और घी मिलाकर जलाएं इससे वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा फैलती है।11* रसोईघर और शौचालय कभी भी उत्तर- पूर्व दिशा में नहीं होना चाहिए ऐसा होने से घर में कलह बनी रहती है।12* अपने घर में कांटेदार वृक्ष ,कैक्टस और ना ही कोई दूध वाला पौधा जैसे कनेर आंकड़ा नहीं लगाना चाहिए। इनके स्थान पर आप सुगंधित और खूबसूरत फूलों को अपने घर पर लगाएं।13* अपने पूजा गृह में पूर्वजों का फोटो ना रखें उसे दक्षिण की दीवार पर लगाए और शाम को घर में संध्या दीप जलाएं ,भगवान का ध्यान करें और आरती करें।14* मुख्य द्वार पर स्वास्तिक ,ओम के मांगलिक चिन्ह लगाएं।15* तुलसी के पौधे के पास रोज एक दिया जलाएं और ग्रह शांति के लिए प्रार्थना करें ऐसा 21 दिन तक लगातार करें इससे आपके परिवार में सुख शांति बनी रहेगी।16*जब आप रोटी बनाती हैं तो पहली रोटी गाय के लिए निकालें और उसे अपने हाथों से रोटी खिला कर आए।17* अगर कोई भी स्त्री अपने घर के वातावरण जो की तनाव से भरा है उसे परेशान है, तो भोजपत्र पर लाल कलम से अपने पति का नाम लिखकर तथा "हं हनुमंते नम:" का 21 बार उच्चारण करते हुए पत्र को घर के किसी भी कोने में रख दे और 11 मंगलवार नियमित रूप से हनुमान मंदिर में चोला और सिंदूर चढ़ाएं ऐसा करने से परेशानियों में राहत मिलेगी।18* 5 गोमती चक्र को लाल सिंदूर की डिब्बी में रखकर जहां आपका श्रृंगार का सामान है वहां रखें या फिर पूजा घर में रखने से पति पत्नी के रिश्ते में सुख शांति बनी रहती है.19* झाड़ू की दो सीके लं,े उन दोनों सीको को उल्टा सीधा रखकर नीले धागे से बांध कर घर के दक्षिण-पश्चिम में रख दे इसे आपके शादीशुदा जीवन में प्रेम बढ़ता है।20* दो जमुनिया रत्न ले उन्हें गंगाजल में डुबो दें और हर शनिवार इस गंगाजल को अपने पूरे घर में छिड़के ऐसा करने से पति-पत्नी के बीच का तनाव दूर होता है और संबंध मधुर बनते हैं।
-
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 356
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा 'कुसंग' पर दिये गये प्रवचन से संबंधित श्रृंखला में आज दूसरे कुसंग 'वातावरण का प्रभाव' की चर्चा यहाँ प्रकाशित की जा रही है। 'जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' के भाग 354 से 'कुसंग' विषय पर विस्तृत चर्चा का प्रकाशन हो रहा है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित इस अमूल्य तत्वज्ञान से निश्चित ही हमें आध्यात्मिक हानि उठाने से बचाव के उपाय ज्ञात होंगे....)★ दूसरा कुसंग - 'वातावरण का प्रभाव'...दिन में कई बार ऐसा होता है कि आपको जैसा भी वातावरण मिलता है, वैसे ही आपकी मनोवृत्तियाँ भी बदलती जाती हैं। कभी तो यह विचार होता है कि अरे! पता नहीं कब टिकट कट जाये, शीघ्र से शीघ्र कुछ साधना कर लेनी चाहिये। संसार तो अपने आप छोड़ देगा नहीं, फिर संसार ने पकड़ भी तो नहीं रखा है, मैं स्वयं ही जा जाकर उसमें पिस रहा हूँ।कभी यह विचार उत्पन्न होता है, अरे! कर लेंगे, जल्दी क्या है, समय बहुत पड़ा है, ऐसी भी क्या जल्दी है। फिर अभी अमुक-अमुक संसार का काम (ड्यूटी) भी तो करना है। रात तक कर लेंगे, कल कर लेंगे... इत्यादि। कभी-कभी यह विचार पैदा होता है, अरे यार! खाओ, पियो, मौज उड़ाओ, चार दिन की ज़िंदगी है, आगे किसने देखा है क्या होगा, भगवान वगवान को बिगड़े हुये दिमाग की उपज है.... पता नहीं वह मौज उड़ाने का क्या अर्थ समझता है? अरे मौज तो महापुरुष भी चाहता है।अस्तु, यह सब अन्तरंग गुण-वृत्तियों का दैनिक परिवर्तनशील अनुभव है जिसे आप भली-भाँति समझते हैं। अब यह देखिये कि उपर्युक्त रीति से अपनी ही मनोवृत्तियाँ कैसे बदल जाती हैं। किसी क्षण में मान लीजिये कि आपकी मनोवृत्ति यह हुई कि मैं चलूँ कुछ साधना कर लूँ। इतने में ही रजोगुण या तमोगुण आदि का वातावरण विशेष मिल गया, अर्थात स्त्री पुत्रादि का आसक्ति-वर्धक कुछ विषय मिल गया तो हमारी मनोवृत्ति उन गुणों के वातावरण को पाकर फिर बदल गई एवं हम तत्क्षण साधना से च्युत हो गये। यह सब अन्तरंग त्रिगुण एवं बहिरंग सामग्री की महिमा है।०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2011 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 355
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने अपने प्रवचनों में 'कुसंग' की परिभाषा तथा कुसंग के विभिन्न स्वरूपों के बारे में चर्चा की है। इसी कड़ी में कल, पहला भाग - 'कुसंग क्या है?' के रूप में कुसंग पर प्रकाश डाला गया था। आज से लेकर अगले 7 दिनों तक विभिन्न प्रकार के कुसंग के स्वरूपों पर श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा दिये गये प्रवचन प्रकाशित होंगे। आशा है, आप सभी पाठक जन इन्हें विचारपूर्वक पठन करते हुये अपने जीवन में लाभ उठायेंगे...)
★ पहला कुसंग - 'लोकरंजन'
...साधनावस्था में किसी साधक को थोड़ा सा भाव आ गया या आँसू आ गये तो उसको बताने के लिये, कि लोग ऐसा समझें कि यह बड़ा भावुक है, जरा जोर से हल्ला मचा दिया, जोर से उछल पड़ा। कभी पढ़ा होगा गौरांग महाप्रभु के चरित्र वगैरह में, उसका आइडिया होगा। या सचमुच कोई महापुरुष उसको मिल गया होगा, उसने उसका कुछ देखा-भाला होगा। तो ये जो कुछ उसने कर लिया यानि भाव आने पर उसको और बढ़ा दिया, क्यों?
ये अहंकार है जो वहाँ जाकर प्रवेश कर गया है। मुझको भाव आ रहा है, कुछ लोगों को नहीं आ रहा है। बस ऐसा सोचा और भाव चला आया नीचे। कुसंग वहाँ जाकर घुस गया। अपने श्यामसुन्दर के लिये आँसू बहा रहा है, इतनी बारीक जगह में अहंकार के रूप में कुसंग घुस गया। बेचारे को पता ही नहीं है। अगर उसको पता चल जाता तो वह क्या करता? पहले तो भाव को वह कंट्रोल करता और अगर भाव इतना अधिक होता कि उससे कंट्रोल न होता तो किसी बहाने से वहाँ से उठकर कहीं और चला जाता, तो कुसंग से बच पाता और नुकसान होने से बच जाता। साधारण जीवों को बिचारों को कंट्रोल की पॉवर तो होती ही नहीं है;
क्षुद्र नदी भरि चलि इतराई।
जैसे छोटी नदी और नालों में थोड़े से पानी में ही बाढ़ आ जाती है। उस समय वो साधक होशियार न रहा तो लोकरंजन की बुद्धि आ जायेगी कि लोगों को जरा मालूम हो जाये मैं कितना बड़ा भक्त हूँ। देखिये, ये कुसंग हो रहा है। सुसंग करते-करते इस प्रकार से चोरी-चोरी गड़बड़ी किया करता है और लाभ से वंचित हो जाता है। यही नहीं हानि उठा जाता है। एक तो मिथ्याभिमान है, दूसरे लोकरंजन की बुद्धि होने से प्रायश्चित का आँसू भी छिन जाता है। अतएव साधक को लोकरंजन रूपी महाव्याधि से बचना चाहिये।
साधक को तो अपनी साधना विशेषकर अनुभवों को अत्यन्त ही गुप्त रखना चाहिये। केवल अपने सद्गुरु से ही कहना चाहिये। अपने आप ही उन अनुभवों का चिन्तन करना चाहिये, किन्तु वहाँ भी सावधानी यह रखनी चाहिये कि यह सब अनुभव महापुरुष की कृपा से ही प्राप्त हुआ है, मेरी क्या सामर्थ्य है!!
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2011 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - सावन का महीना भोले भंडारी की पूजा आराधना के लिए बहुत ही विशेष माना जाता है। इस वर्ष 25 जुलाई से सावन का माह शुरू हो चुका है। सावन के महीने में सोमवार व्रत और शिवलिंग का जलाभिषेक करके भोलेनाथ को प्रसन्न किया जाता है। मान्यता है कि सावन का महीना भगवान शिव ।को बहुत ही प्रिय होता है और जो शिवभक्त इस पवित्र माह में शिवजी की पूजा मन से करता है उसकी हर एक मनोकामना जरूर पूरी होती है। ज्योतिष शास्त्र में भगवान शिव की पूजा करने का विशेष महत्व होता है क्योंकि शिव मंत्रों के जाप से जातकों के जीवन में बुरे ग्रहों का प्रभाव कम हो जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भगवान शिव तीन राशियों पर अपनी विशेष कृपा रखते हैं। आइए जानते हैं कि सावन के पवित्र महीने में कौन सी तीन राशियां है जिस पर हमेशा भगवान शिव की कृपा रहती है।मेषमेष राशि राशि चक्र की पहली राशि है। मेष राशि के स्वामी ग्रह मंगलदेव होते हैं। भगवान भोलेनाथ को मेष राशि बहुत ही प्रिय होती है। उनकी शुभ द्दष्टि हमेशा इस पर रहती है। मेष राशि के जातकों पर हमेशा शिव की कृपा रहने से इस राशि के जातकों के जीवन में सुख और समृद्धि बनी रहती है। इस राशि के जातकों को शिव जी को प्रसन्न करने के लिए सोमवार के दिन शिवलिंग पर जलाभिषेक जरूर करना चाहिए।मकरमकर राशि के स्वामी शनि देव हैं। मकर राशि भी शिवजी की प्रिय राशियों में से एक है। इस राशि पर शनि और शिव दोनों की कृपा होती है। जब भी इस राशि के जातकों पर किसी प्रकार की विपदा आती है तो उस समय भगवान शिव आने वाली कठिनाइओं को कम कर देते हैं। सावन के महीने में इस राशि के जातकों को शिव आराधना जरूर करनी चाहिए।मकरइस राशि के जातकों के लिए शिव पूजा बहुत ही लाभकारी और शुभफलदायी मानी गई है। मकर राशि के जातकों को शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के अलावा बेलपत्र भी अर्पित करना चाहिए। वहीं पूजा करते समय महामृत्युंजय का जाप भी करना चाहिए। मकर राशि के जातकों को शिवजी बहुत ही भाग्यशाली बनाते हैं।कुंभमकर और कुंभ राशि के स्वामी शनि देव हैं। शनिदेव दो-दो राशियों के स्वामी माने जाते हैं। शनि की इस राशि पर भी शिव की कृपा हमेशा बरसती है। सावन के महीने में भी कुंभ राशि के जातकों को शिव आराधना करनी चाहिए। कुंभ राशि के जातकों के लिए सावन के महीने में ऊं नम: शिवाय का जाप सभी तरह के कष्टों को दूर करने के लिए शुभ रहता है। सावन के महीने में इस राशि के जातकों के लिए दान करना अच्छा रहेगा।-
- वास्तु सिद्धांत के अनुसार वास्तु दोषों को दूर करने अथवा कम करने में आपके घर की आंतरिक साज-सज्जा मददगार साबित हो सकती है। घर में सुख-शांति एवं सौहार्दपूर्ण वातावरण के लिए कुछ वास्तु नियमों को अपनाया जा सकता है।- मधुर संबंधों के लिए अतिथियों का स्थान या कक्ष उत्तर या पश्चिम की ओर बनाना चाहिए।- आरोग्य के दिशा क्षेत्र उत्तर-उत्तर-पूर्व दिशा में दवाइयां रखने से ये जल्दी असर दिखाती हैं।- सब कुछ ठीक होने के बाद भी आपको लगता है की हमारे हाथ में धन नहीं रुकता तो आपको अपने घर के दक्षिण-पूर्व दिशा क्षेत्र से नीला रंग का इस्तेमाल ना करें। इस दिशा में हल्का नारंगी, गुलाबी रंगों का प्रयोग करें।-घर के अंदर लगे हुए मकड़ी के जाले, धूल-गंदगी को समय-समय पर हटाने से घर में नकारात्मक ऊर्जा नहीं रहती।- पार्किंग हेतु उत्तर-पश्चिन स्थान प्रयोग में लाना शुभ माना गया है।-घर में बनी हुई क्यारियों या गमलों में लगे हुए पौधों को नियमित रूप से पानी देना चाहिए। यदि कोई पौधा सूख जाए तो उसे तुरंत वहां से हटा दें।-दक्षिण-पश्चिम दिशा में ओवरहैड वाटर टैंक की व्यवस्था करना लाभप्रद रहता है।- दरवाज़े को खोलते तथा बंद करते समय सावधानी से बंद करें,ताकि कर्कश ध्वनि न निकले। यदि ऐसा हो रहा है, तो उसमें तुरंत तेल डालें।-यदि आपने घर में पूजा घर बना रखा है तो शुभ फलों की प्राप्ति के लिए उसमें नियमित रूप से पूजा होनी चाहिए एवं दक्षिण-पश्चिम की दिशा में निर्मित कमरे का प्रयोगपूजा-अर्चना के लिए नहीं किया जाना चाहिए।- गैस का चूल्हा प्लेटफार्म के आग्नेय कोण में दोनों तरफ से कुछ इंच जगह छोड़कर रखना वास्तु सम्मत माना गया है।-शयन कक्ष में ड्रेसिंग टेबल हमेशा उत्तर या पूर्व दिशा में रखनी चाहिए और सोते समय शीशे को ढंक दें।- किसी भी व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति में दक्षिण दिशा की तरफ पैर करके नहीं सोना चाहिए, ऐसा करने से बेचैनी ,घबराहट और नींद में कमी हो सकती है।- शयन कक्ष में मुख्य द्वार की ओर पैर करके नहीं सोएं। पूर्व दिशा में सिर एवं पश्चिम दिशा में पैर करके सोने से आध्यात्मिक भावनाओं में वृद्धि होती है।- घर या कमरों में कैक्टस के पौधे या कंटीली झाडिय़ां या कांटों के गुलदस्ते जो की गमलों में साज-सज्जा के लिए सजाते हैं, उनसे पूरी तरह बचना चाहिए।-भवन में उत्तर दिशा, ईशान दिशा, पूर्व दिशा, वायव्य दिशा में हल्का सामान रखना शुभ फलदाई होता है।- घर में अग्नि से सम्बंधित उपकरण जहां तक संभव हो दक्षिण-पूर्व दिशा में रखने चाहिए। घर में लगे हुए विद्युत उपकरणों का रख-रखाव उचित ढंग से होना चाहिए। इनमें किसी भी प्रकार की आवाज या ध्वनि नहीं निकलनी चाहिए।
-
प्रकृति को मनुष्य के लिए वरदान माना जाता है। वास्तु के अनुसार घर में पौधे लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ जाता है। घर की बगिया को पौधों से सजाना संवारना चाहते हैं तो वास्तु में बताए गए कुछ आसान से उपायों को अपना सकते हैं। आइए जानते हैं इनके बारे में।
माना जाता है कि केले के मूल में भगवान विष्णु का निवास है। यदि शमी वृक्ष पर पीपल उग आए तो वह नर-नारायण का रूप माना जाता है। नीम पर भैरव का निवास और आक पर कामदेव का निवास माना जाता है। तुलसी, पीपल, वट, दूब, अशोक, गूलर, आंवला, नीम, कदंब, बेल, कमल को देव समान पूजा जाता है। घर में तुलसी का पौधा जरूर लगाएं। जिस घर में तुलसी की पूजा होती है, वहां श्री हरि विष्णु की कृपा बनी रहती है। जिनकी शादी में बाधाएं आ रही हों उन्हें केले के पेड़ की पूजा करनी चाहिए। अशोक के पेड़ लगाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। उत्तर दिशा में नीले रंग के फूल देने वाले पौधे जीवन में समृद्धि लाने में सहायक होते हैं। मनीप्लांट, बांस एवं क्रिसमस ट्री वास्तु की दृष्टि में समृद्धि देने वाले माने जाते हैं। गुड़हल का पौधा सूर्य और मंगल से संबंध रखता है। इस पौधे को घर में कहीं भी लगाया जा सकता है। हनुमान जी और मां दुर्गा जी को गुड़हल का फूल अर्पित करने से सारे संकट दूर हो जाते हैं। भगवान शिव को बेल का पेड़ बहुत पंसद है। कहते हैं कि भगवान शिव स्वयं इस वृक्ष में निवास करते हैं। घर में बेल के वृक्ष को लगाने से धन संपदा की देवी लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं। अश्वगंधा का पौधा घर में लगाने से सभी वास्तु दोष दूर हो जाते हैं। आंवले के पेड़ की पूजा करने से सभी मन्नतें पूरी होती हैं। घर के आसपास सूखा या आधा जला पेड़ अशुभ माना जाता है। घर के सामने इमली या मेहंदी का पेड़ अशुभ माना गया है। घर में गुलाब जैसे कांटेदार पौधे लगाए जा सकते हैं लेकिन इसे छत पर रखें। बेडरूम में किसी भी तरह के पौधे लगाने से बचना चाहिए। बोनसाई पौधा घर में रहने वाले सदस्यों का आर्थिक विकास रोकता है। खुशबूदार फूल वाले पौधे घर के बाहर ही लगाएं। घर में नकली पौधे नहीं लगाने चाहिए। बरगद का पेड़ घर पर नहीं बल्कि मंदिर में लगाना चाहिए। घर में नीम का पेड़ सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाता है और कई बीमारियों को भी दूर करता है। -
सावन मास भगवान शिव को समर्पित है और यह माह सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। इस माह आने वाले सोमवार का विशेष महत्व है। सावन माह में पूजा और जलाभिषेक करने से भोलेनाथ शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। सावन माह में सोमवार का व्रत मनोवांछित फल प्रदान करता है। सावन माह में भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती की पूजा में समय व्यतीत करें। सावन के सोमवार को की गई पूजा, व्रत तुरंत फल प्रदान करने वाले माने जाते हैं।
दांपत्य जीवन में मधुरता के लिए सावन के सोमवार को पति-पत्नी साथ में भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक करें। भगवान शिव और माता पार्वती को चावल की खीर का प्रसाद अर्पित करें। अगर लंबे समय से किसी बीमारी से ग्रस्त हैं तो सावन के सोमवार पर जल में थोड़े काले तिल मिलाकर शिवलिंग का अभिषेक करें। आर्थिक समस्याओं से घिरे हैं तो सावन के सोमवार को अनार के जूस से भगवान शिव का अभिषेक करें। सावन में सोमवार के दिन उग्र स्वभाव वाले लोगों को उपवास रखना चाहिए। इससे उग्रता में कमी आती है। यदि कुंडली में राहु और केतु के साथ यदि चंद्र स्थित है तो सावन में सोमवार का व्रत अवश्य रखें। किसी भी प्रकार की मानसिक परेशानी है या तनाव बना रहता है तो सावन सोमवार का व्रत विशेष फलदायी है। परिवार में किसी को स्वास्थ्य विकार है तो सावन के सोमवार का व्रत रखें। श्रावण मास में भगवान अर्धनारीश्वर की मूर्ति घर में लाएं। अपने घर या प्रतिष्ठान पर नंदी पर सवार भगवान शिव का चित्र लगाएं। श्रावण मास में हनुमान जी की पूजा भी विशेष फलदायी है। शिव चालीसा और हनुमान चालीसा का पाठ करें। श्रावण मास में उत्तर दिशा में तुलसी का पौधा लगाने से घर का वातावरण शुद्ध होता है। सावन माह में पंचमुखी रुद्राक्ष धारण करें इससे सौभाग्य में वृद्धि होती है। -
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 354
(भूमिका - विश्व के पंचम मूल जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने समस्त साधक समुदाय तथा जनसाधारण को आत्मकल्याण के लिये 'निष्काम-भक्ति' का सर्वसुगम मार्ग बतलाया है। इस निष्काम-भक्ति की अनेक बारीक तथा गूढ़ बातें उन्होंने बारम्बार अपने प्रवचनों व साहित्यों आदि में समझाई हैं। उन्होंने इस बात पर भी विशेष जोर दिया कि 'साधना मार्ग में साधना/भक्ति की कमाई भले ही कम हो, पर जो कमाई हो, उसकी गँवाई न हो'। अक्सर प्रमादवश, भूलवश साधक अनेक ऐसे कृत्य कर बैठता है जिससे उसकी कमाई साधना नष्ट हो जाती है। ये कृत्य 'कुसंग' हैं। श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत 'कुसंग' तत्त्व पर प्रवचन नीचे प्रकाशित किया जा रहा है। अगले 8-दिनों में विभिन्न प्रकार के कुसंग और उससे बचने के उपायों संबंधित प्रवचन क्रमशः प्रकाशित किए जायेंगे...)
★★ 'कुसंग क्या है?'
....संसार में सत्य एवं असत्य केवल दो ही तत्त्व हैं जिनके संग को ही सत्संग एवं कुसंग कहते हैं। सत्य पदार्थ हरि एवं हरिजन ही हैं अतएव केवल हरि, हरिजन का मन बुद्धि युक्त सर्वभाव से संग करना ही सत्संग है तथा उसके विपरीत अवशिष्ट विषय हैं, सत्त्वगुण, रजोगुण एवं तमोगुण से युक्त होने के कारण मायिक हैं, अतएव असत्य हैं। तात्पर्य यह हुआ कि जिस किसी भी संग के द्वारा हमारा भगवद-विषय में मन बुद्धि युक्त लगाव हो वही 'सत्संग' है। इसके अतिरिक्त समस्त विषय 'कुसंग' हैं। (नोट - नीचे के सभी 4 दोहे जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा स्वरचित 'राधा गोविन्द गीत' ग्रन्थ के दोहे हैं.)
सत अर्थ हरि गुरु गोविन्द राधे।संग अर्थ मन का लगाव बता दे।।
हरि हरि भक्त सत गोविन्द राधे।शेष सब जगत असत है बता दे।।
'कु' का अर्थ मायिक गोविन्द राधे।संग अर्थ मन का लगाव बता दे।।
हरि ते विमुख 'कु' है गोविन्द राधे।मन का ही संग कुसंग बता दे।।
जितने टाईम तक तुम्हारे मन का संग भगवान, उनके नाम, रूप, लीला, गुण, धाम, उनके संत में नहीं था, उतने टाईम मन कुसंग कर रहा था। जितने क्षण मन सुसंग में नहीं होगा उतने क्षण तक मन कुसंग में अवश्य होगा। आप कहेंगे, क्यों जी न सुसंग में हो, न कुसंग में हो, ऐसा नहीं हो सकता? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि;
न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत।(गीता 3-5)
अर्थात एक क्षण को भी हम कुछ न करें, ऐसा नहीं हो सकता। और दो ही करना है - एक ईश्वरीय क्षेत्र में संग और एक सांसारिक क्षेत्र में संग, कुसंग की परिभाषा यही समझनी चाहिये कि भगवान, उनके नाम, रूप, लीला, धाम, उनके संत - इनमें से किसी में अगर आपका मन नहीं है तो वह मन कुसंग कर रहा है।
यह कुसंग कई प्रकार का होता है। इसको समझना परमावश्यक है। ताकि साधक सावधान रहे और कुसंग से बच सके। कई बार तो वह समझ ही नहीं पाता कि वह कुसंग कर रहा है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2011 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) -
हिंदू धर्म में सावन के महीना का खास महत्व होता है. इस महीने में भगवान शिव की सच्चे मन से पूजा-आराधना करने पर मनचाहे फल की प्राप्ति होती है. इस बार ये पावन महीना 25 जुलाई से शुरू हो गया है जो 22 अगस्त तक जारी रहेगा. हालांकि सावन की शुरुआत के साथ ही पंचक काल भी शुरू हो गया है.
25 जुलाई को हुई शुरुआत
हिंदू पंचांग के मुताबिक, पंचक की शुरुआत 25 जुलाई की रात 10 बजकर 48 मिनट से हो चुकी है जिसका समापन 30 जुलाई 2021 की दोपहर 2 बजकर 3 मिनट पर होगा. ज्योतिषों के अनुसार, इन 5 दिनों में कोई शुभ काम जैसे- विवाहित बेटी की विदाई, नए काम की शुरुआत आदि भी नहीं की जाती है. वहीं पंचक काल में किसी व्यक्ति की मृत्यू (Death) होने को लेकर भी कई बातें कही गईं हैं.
कब होता है पंचक काल?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, चन्द्र ग्रह का धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण और शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद तथा रेवती नक्षत्र के चारों चरणों में भ्रमण करने का काल पंचक काल कहलाता है. इस तरह चन्द्र ग्रह का कुम्भ और मीन राशी में भ्रमण पंचकों को जन्म देता. एक अन्य मान्यता के अनुसार, भगवान राम द्वारा रावण का वध करने की तिथि के समय के बाद से 5 दिन तक पंचक मनाने की परंपरा है.
मृत्यु को लेकर है ऐसी मान्यता
मान्यता है कि यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु पंचक काल के दौरान हो जाती है तो उसी परिवार या खानदान में 5 अन्य लोगों की मौत भी हो जाती है. यदि 5 लोगों की मृत्यु न भी हो तो 5 परिजनों को किसी न किसी प्रकार का रोग, शोक या कष्ट हो सकता है. ऐसी स्थिति में गरुड़ पुराण (Garuda Puran) में मृतक का अंतिम संस्कार करने के खास तरीके बताए गए हैं, उनका पालन करने से परिवार के बाकी सदस्यों के सिर से संकट टल जाता है.
गलती से भी न करें यह काम
सनातन धर्म में पंचक काल को बहुत अशुभ समय माना गया है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार इन 5 दिनों में कुछ विशेष कार्य करने की भी मनाही की गई है.
- पंचक काल में कभी लकड़ी नहीं खरीदना चाहिए.
- यदि घर का निर्माण करा रहे हों तो पंचक काल में उसकी छत न डलवाएं, वरना परिवार पर बड़ा संकट आ सकता है.
- घर के लिए बेड, चौपाई आदि इस दौरान न खरीदें.
- पंचक काल में दक्षिण दिशा की यात्रा करना भी अशुभ माना गया है.
--
-
कुंडली के ग्रह हमारे जीवन पर असर डालते हैं लेकिन हमारी आदतें भी जिंदगी पर उतना ही असर डालती हैं. यहां तक की हमारी आदतें ग्रहों के शुभ-अशुभ असर को कम या ज्यादा कर सकती हैं. इसलिए ज्योतिष शास्त्र समुद्र शास्त्र आदि में अच्छी आदतें अपनाने के लिए कहा गया है. आज हम जानते हैं कि कैसे चलने का गलत तरीका राहू-शनि जैसे ग्रहों से नकारात्मक फल दिलाता है. इसके अलावा भी कई ऐसी आदतें हैं जिनके कारण व्यक्ति को ग्रहों का अशुभ असर झेलना पड़ता है. लिहाजा जल्द से जल्द इन आदतों को सुधारना ही बेहतर है.
ये आदतें बनती हैं दुर्भाग्य का कारण
- खाने के बाद थाली या बाकी बर्तन वहीं छोड़ देना शनि और चंद्र को प्रभावित करते हैं. ऐसी आदत वाले लोगों को ज्यादा मेहनत करने के बाद भी कम फल मिलता है. वहीं किचन के अस्त-व्यस्त या गंदे रहने से मंगल ग्रह का प्रकोप झेलना पड़ता है.
- गंदा बाथरूम वास्तु दोष बढ़ाता है. वहीं जो लोग नहाने के बाद बाथरूम को गंदा छोड़ देते हैं उन्हें चंद्र अशुभ असर देता है. लिहाजा हमेशा बाथरूम से निकलने से पहले उसे साफ कर दें.
- पैर घसीटकर चलना व्यक्ति की पर्सनालिटी पर तो नकारात्मक असर डालता ही है, यह ज्योतिष के लिहाज से भी गलत है. ऐसा करने से राहु और शनि से अशुभ फल देते हैं.
- यदि घर के मंदिर की रोज सफाई न की जाए तो यह भी वास्तु दोष का कारण बनता है. रोजाना मंदिर की सफाई करने से सभी ग्रह शुभ फल देते हैं.
- बिना कारण के देर रात तक जागने से चंद्र ग्रह अशुभ फल देता है. इसके कारण तनाव या मानसिक समस्याएं होती हैं.
-- - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 353
भूमिका ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने अपने अवतारकाल में आध्यात्म जगत के हर छोटे-बड़े तथा गूढ़ रहस्यों पर प्रकाश डाला है तथा शंकाओं के वैदिक समाधान भी प्रदान किये हैं, जो कि एक आध्यात्मिक जिज्ञासु जीव के लिये अति अनमोल हैं। ऐसे ही एक प्रश्न पर आज उनके द्वारा प्रदान किया गया उत्तर हम जानेंगे, आशा है कि आपको इससे किंचित लाभ तो अवश्य ही होगा...
एक साधक द्वारा पूछा गया प्रश्न :::: अगर मनुष्य सारे जीवन ठीक-ठीक साधना करे और आखिरी कुछ क्षणों में नास्तिक हो जाये, ऐसा कुछ हो उसके साथ तो क्या उसको 84 लाख में भटकना पड़ेगा??
जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: हाँ ! अंतिम समय में जो उसकी स्थिति होगी वही फल मिलेगा। लेकिन पहले जो कर चुका भक्ति-साधना, वह भी उसके पास जमा रहेगी। तो ये जो आगे वाला है उसका फल, पहले भोग लेगा फिर पीछे वाले का फल देगा भगवान्। यानी पहले तो वह संसार में पैदा होगा, दुःखी होगा, नास्तिक होगा और फिर बाद में जब उसका ख़राब प्रारब्ध समाप्त हो जायेगा, भोग करके, तब वह भक्ति का जो उसका पार्ट है, जो जमा है, उसका फल दे दिया जायेगा। बेकार नहीं जायेगा कुछ. बेकार एक क्षण की भी भक्ति नहीं जाती। कर्म बेकार जाते हैं, योग बेकार जाते हैं, ज्ञान बेकार जाते हैं, लेकिन भक्ति बेकार नहीं जाती, वह सब अमिट है। इसने इतना भगवन्नाम लिया, इतनी गुरुसेवा की, ये सब चीजें भगवान् के पास एक-एक क्षण की दर्ज हैं, लिखी हुई हैं. उसका फल उसको मिलेगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु जी महाराज०० स्त्रोत : 'प्रश्नोत्तरी' पुस्तक (भाग - 1)०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
&+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -*(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vaidik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) -
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 352
★ भूमिका - आज के अंक में प्रकाशित दोहा तथा उसकी व्याख्या जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ग्रन्थ 'भक्ति-शतक' से उद्धृत है। इस ग्रन्थ में आचार्यश्री ने 100-दोहों की रचना की है, जिनमें 'भक्ति' तत्व के सभी गूढ़ रहस्यों को बड़ी सरलता से प्रकट किया है। पुनः उनके भावार्थ तथा व्याख्या के द्वारा विषय को और अधिक स्पष्ट किया है, जिसका पठन और मनन करने पर निश्चय ही आत्मिक लाभ प्राप्त होता है। आइये उसी ग्रन्थ के 70-वें दोहे पर विचार करें, जिसमें आचार्यश्री ने यह बताया है कि भगवान श्रीकृष्ण का विशुद्ध माधुर्य स्वरूप ब्रजधाम में प्रगट होता है, ब्रजधाम का यही स्वरूप प्रेम/भक्ति का सर्वश्रेष्ठ रस जीवों को प्रदान करता है....
सबै सरस रस द्वारिका, मथुरा अरु ब्रज माहिँ।मधुर, मधुरतर, मधुरतम, रस ब्रज रस सम नाहिँ॥70॥
भावार्थ - द्वारिका, मथुरा एवं ब्रज इन तीनों का ही रस माधुर्य रस व्याख्या युक्त है। क्योंकि श्रीकृष्ण रस सागर के ही धाम हैं। फिर भी द्वारिका से मथुरा, एवं मथुरा से ब्रजरस अधिक सरस है।
व्याख्या - अनन्त सौंदर्य माधुर्य सुधारस सार सर्वस्व श्रीकृष्ण के 3 धाम प्रमुख हैं। यथा - द्वारिका, मथुरा एवं ब्रज। एक ही गन्ने के गुड़, चीनी एवं मिश्री तीन स्वरूप हैं। तीनों धामों में दास्य, सख्य, वात्सल्य एवं माधुर्य भाव के रसिक हुये हैं। किंतु एक रहस्यात्मक अन्तर अवश्य है। वह यह कि द्वारिका में अधिक ऐश्वर्य एवं कम माधुर्य रहता है। और मथुरा में द्वारिका से अधिक माधुर्य एवं द्वारिका से कम ऐश्वर्य रहता है। इन दोनों धामों में भक्तों को ऐश्वर्य ज्ञान का भान बना रहता है। क्योंकि वहाँ ऐश्वर्य स्वतंत्र है। ऐश्वर्य ज्ञान से प्रेम संकुचित हो जाता है।
यथा - जब अर्जुन को विराट् ऐश्वर्य रूप दिखाया गया, तो अर्जुन सरीखा गांडीवधारी भी डर गया। काँपने लगा। प्रेम संकुचित हो गया। तब अर्जुन ने कहा कि मुझे ऐसा स्वरूप नहीं चाहिये, जिसमें सख्य रस संकुचित हो जाय। इसी प्रकार दास्य एवं वात्सल्य तथा माधुर्य भाव भी ऐश्वर्य मिश्रण से संकुचित हो जाते हैं। यह ऐश्वर्य द्वारिका में सर्वाधिक है। मथुरा में उससे कम है। भगवान् श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है - गौरांगमहाप्रभु के शब्द;
ऐश्वर्य शिथिल प्रेमे नहे मोर प्रीत।
अर्थात् जो प्रेम, ऐश्वर्य मिश्रण से शिथिल हो जाता है, उसमें मुझे कम सुख मिलता है। वह मुझे कम प्रिय है। अत: द्वारिका एवं मथुरा का प्रेम प्रगाढ़ कम होता है। सारांश यह कि द्वारिका एवं मथुरा के प्रेमियों के प्रेम में इतनी प्रगाढ़ता नहीं होती कि ऐश्वर्य ज्ञान पूर्णरूप से लुप्त हो जाय। प्रेम के प्रवाह में ऐश्वर्यज्ञान के बह जाने पर जो रस मिलता है, वही ब्रजरसिकों का ब्रजरस है। इस ब्रजरस में पूर्ण ऐश्वर्य एवं पूर्ण माधुर्य रहता है किंतु ऐश्वर्य का प्रभाव तिल भर भी नहीं रहता। ऐश्वर्य चोरी चोरी ही सेवा करता है। इस माधुर्य में स्वयं भगवान् कृष्ण स्वयं को ब्रजवासियों का स्वामी, सखा, पुत्र एवं प्रियतम ही मानते हैं। अपनी भगवत्ता का भान ही नहीं रहने देते। इसी प्रकार उनके परिकरों को भी यह भान नहीं रहता कि हम गोलोक के नित्य परिकर हैं। दोनों स्वस्वरूप को भूल जाते हैं। एक बार गोवर्धन धारण के समय कुछ ब्रजवासियों को श्रीकृष्ण के प्रति ऐश्वर्य युक्त होने का संदेह हो गया। बस - श्रीकृष्ण रोने लगे। सखाओं के पूछने पर बताया कि लोग मुझे पता नहीं कैसे घूर-घूर कर देख रहे हैं। सदा वाली ममता नहीं है। फिर सब भूल गये। यह रस मधुरतम इसी से तो है।
०० व्याख्याकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'भक्ति-शतक' ग्रन्थ, दोहा संख्या - 70०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - सावन को शिव भक्ति का महीना कहा जाता है. सावन में शिवलिंग पर दूध, दही,पंचामृत, धतूरा और बेलपत्र अर्पित किया जाता है. पंचामृत का मतबल 5 प्रकार के अमृत से है. इसे दूध, दही, घी, शहद और मिश्री मिलाकर बनाया जाता है. आयुर्वेद की मानें तो पंचामृत सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता हैं. पंचामृत के सेवन से सकारात्मकता का भाव पैदा होता है. पूजा विधि में जहां पंचामृत का धार्मिक महत्व है, वहीं आयुर्वेद इसे स्वास्थ्य के लिए अमृत के समान मानता है. आयुर्वेद के अनुसार पंचामृत के सेवन से कमजोरी दूर होती है, साथ ही शरीर भी तंदुरुस्त बनता है. अगर पंचामृत का नियमित सेवन किया जाए तो शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमताएं बढ़ती हैं और शरीर रोगों से लड़ने के लिए मजबूत बनता है.आइए जानते हैं पंचामृत बनाने का तरीका...पंचामृत बनाने के लिए समग्री:गाय का दूध- 1 ग्लासगाय का दही- 1 ग्लासगाय का घी- 1 चम्मचशहद- 3 चम्मचमिश्री अथवा शक्कर- स्वादानुसारकटे हुए तुलसी के पत्ते- 10कटे हुए मखाने- ड्राई फ्रूट्स - 20ऐसे बनाएं पंचामृत:-पंचामृत बनाने के लिए दही, दूध, एक चम्मच शहद, घी और चीनी की जरूरत होती है.-दही, दूध, घी और चीनी को एक बर्तन में डालकर मथ लें या आप इन्हें मिक्सी में डालकर भी चला सकती हैं.- अब इसमें तुलसी के 8 से 10 पत्ते भी डाल सकते हैं, इसमें कटे हुए मखाने और ड्राई फ्रूट्स भी मिलाया जा सकता है.
- डांस एक ऐसी चीज है जो हर किसी को आसानी से नहीं आती. या तो लोग इसमें अच्छे हैं या नहीं. लेकिन इसमें अच्छी तरह से होने के अलावा, हर कोई अपने दिल से डांस कर सकता है जब वो खुशी व्यक्त करने में प्रसन्न होते हैं.सालसा हो, जैज, समकालीन या बॉलीवुड, विशिष्ट डांस स्टाइल हैं जो हर व्यक्तित्व के अनुकूल हैं. तो नीचे दी गई सूची पर एक नजर डालें कि आपकी राशि के लिए कौन सा डांस फॉर्म सही है.मेष राशिआत्मविश्वासी और दृढ़ निश्चयी, मेष राशि के लोगों के लिए आदर्श नृत्य शैली सालसा है. अपने शरीर को कामुक रूप से करने और स्थानांतरित करने के लिए इसे सहजता और आत्मविश्वास की आवश्यकता होती है.वृषभ राशिरूंबा एक नृत्य शैली है जो वृषभ राशि को सूट करती है. वृषभ राशि के लोगों में लय की अच्छी समझ होती है और वो संगीत में स्टाइलिश ढंग से ढल सकते हैं.मिथुन राशिमिथुन राशि वाले लोग निडर और साहसी होते हैं और मूर्ख दिखने या हंसी का पात्र बनने की परवाह नहीं करते हैं. बेहिचक मिथुन राशि वालों के लिए बॉलीवुड सबसे बेहतरीन डांस स्टाइल है.कर्क राशिकर्क राशि के जातक कोमल और संवेदनशील होते हैं. समकालीन जैसी अभिव्यंजक और सुंदर नृत्य शैली उनके लिए सबसे उपयुक्त है.सिंह राशिसिंह राशि वाले लोग उग्र और मजबूत होते हैं, इसलिए टैंगो जैसी नृत्य शैली उनके लिए आदर्श होती है क्योंकि इसके लिए मजबूत और बेहतरीन मूवमेंट्स की आवश्यकता होती है.कन्या राशिकन्या राशि अनुग्रह और पूर्णता का एक संयोजन है. वाल्ट्ज नृत्य शैली है जो उनके अनुरूप होगी क्योंकि ये लालित्य और रोमांस का नृत्य है.तुला राशितुला राशि के लोग इसे पुराने जमाने के बावजूद स्टाइलिश रखना पसंद करते हैं. उनके लिए सबसे उपयुक्त नृत्य रूप जैज है क्योंकि इसमें सौंदर्यशास्त्र और शिष्टता शामिल है.वृश्चिक राशिबचाटा एक कामुक नृत्य रूप है जिसमें शरीर पर अच्छे नियंत्रण की आवश्यकता होती है और इसमें जटिल गतिविधियां शामिल होती हैं. वृश्चिक राशि वाले लोग दृढ़ निश्चयी और मेहनती होते हैं और इस तरह के नृत्य की तकनीक को आसानी से समझ सकते हैं.धनु राशिधनु राशि वालों के लिए आदर्श नृत्य शैली बैले है. बैले में तंग लेकिन प्रवाहमयी चालें हैं जो एक धनु राशि वाले जातकों के व्यक्तित्व के अनुकूल हैं.मकर राशिपासा डोबले मकर राशि वालों के लिए सबसे उपयुक्त डांस फॉर्म है क्योंकि इस नृत्य शैली में व्यक्ति को अपने शरीर पर अच्छा नियंत्रण रखने की आवश्यकता होती है और इसके लिए तेज और चुलबुली हरकतों की आवश्यकता होती है.कुंभ राशिकुंभ राशि वाले जातक बहिर्मुखी और बोल्ड होते हैं, उनके लिए एकदम सही नृत्य शैली हिप-हॉप है क्योंकि इसमें बाहर रहने और सभी अवरोधों को दूर करने की आवश्यकता होती है.मीन राशिभावुक और कलात्मक, मीन राशि के लोगों का सबसे उपयुक्त नृत्य रूप टैंगो है जिसमें एक निश्चित भावना की आवश्यकता होती है और ये एक अत्यंत भावुक नृत्य रूप है.
- रायपुर। इस वर्ष 25 जुलाई रविवार से श्रावण मास प्रारंभ हो गया है श्रावण भगवान शिव का प्रिय महीना है। इस महीने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए कई विशेष व्रत किए जाते हैं । शीतला सप्तमी, कामिका एकादशी, हरियाली तीज और नाग पंचमी जैसे कई प्रमुख व्रत श्रावण मास में पडऩे वाले हैं।वैसे तो आषाढ़ मास से वर्षा ऋतु की शुरुआत होती है मगर श्रावण महीने में यह अपना दृढ़ रूप दिखाती है। सनातन धर्म में यह उल्लेखित है कि आषाढ़ महीने के बाद श्रावण मास से चातुर्मास प्रारंभ होता है। चातुर्मास में श्रावण महीना अत्यंत लाभदायक माना जाता है और इस माह को भगवान शिव की पूजा-आराधना के लिए बहुत अनुकूल कहा गया है। हिंदू पंचांग के अनुसार भगवान शिव के प्रिय महीने श्रावण मास में कई महत्वपूर्ण व्रत और त्योहार मनाए जाते हैं ... देखें कौन से त्योहार कब पड़ रहे हैं।- 27 जुलाई 2021, मंगलवार: - संकष्टी चतुर्थी-30 जुलाई 2021, शुक्रवार: - शीतला सप्तमी-31 जुलाई 2021, शनिवार: - कालाष्टमी, भैरव बाबा-4 अगस्त 2021, बुधवार: - कामिका एकादशी-5 अगस्त 2021, गुरुवार: - कृष्ण प्रदोष व्रत-6 अगस्त 2021, शुक्रवार: - मासिक शिवरात्री-11 अगस्त 2021, बुधवार: - हरियाली तीज-13 अगस्त 2021, शुक्रवार: - नागपंचमी-18 अगस्त 2021, बुधवार: - श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत-20 अगस्त 2021, शुक्रवार: - शुक्ल प्रदोष व्रत-21 अगस्त 2021, शनिवार: - ओणम पर्व-22 अगस्त 2021, रविवार: - रक्षा बंधनआपको बता दें, पश्चिम और दक्षिण भारत में श्रावण मास उत्तर भारत के मुकाबले बाद में पड़ती है। इस वर्ष पश्चिम और दक्षिण भारत में श्रावण मास 9 अगस्त 2021 से प्रारंभ हो रहा है जो 7 सितंबर 2021 को समाप्त होगा।
- शनि के अशुभ प्रभावों से हर कोई भयभीत रहता है। शनि की बुरी नजर पड़ने पर व्यक्ति को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या लगने पर शनि का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। इस समय मकर, धनु, कुंभ राशि पर शनि की साढ़ेसाती और मिथुन, तुला राशि पर शनि की ढैय्या चल रही है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भोलेनाथ की पूजा- अर्चना करने से शनि का अशुभ प्रभाव नहीं पड़ता है। आज से भोलेनाथ के पावन माह यानी सावन की शुरुआत भी हो गई है। सावन के पावन माह में भोले शंकर की विशेष पूजा- अर्चना की जाती है। ऐसा माना जाता है कि सावन के महीने में भोलेनाथ पृथ्वी पर ही रहते हैं। शनि के अशुभ प्रभावों में इस समय मकर, कुंभ, धनु, मिथुन, तुला राशि वाले हैं। इन राशि वालों को सावन के महीने में रोजाना नियम से भोलेनाथ को जल अर्पित करना चाहिए। सिर्फ ये राशि वाले ही नहीं सभी लोग भोलेनाथ को जल अर्पित कर सकते हैं। जल अर्पित करने के साथ ही रोजाना मां पार्वती और गणपति महाराज का भी ध्यान करें और भगवान शिव की आरती, चालीसा का पाठ करें।शिव चालीसा॥दोहा॥जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान। कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥॥चौपाई॥जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥जय जय जय अनन्त अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। येहि अवसर मोहि आन उबारो॥लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट ते मोहि आन उबारो॥मात-पिता भ्राता सब होई। संकट में पूछत नहिं कोई॥स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु मम संकट भारी॥धन निर्धन को देत सदा हीं। जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा॥धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
- हिंदू धर्म में सावन मास का विशेष महत्व है। भगवान शिव को समर्पित सावन का महीना 25 जुलाई, दिन रविवार से शुरू होने जा रहा है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, सावन के महीने में भगवान शिव की सच्चे मन से अराधना करने वालों को कष्टों से मुक्ति मिलती है। इसके साथ ही भगवान शंकर की कृपा से भक्तों के मन की मुरादें भी पूरी होती हैं। सावन मास के सोमवार का भी विशेष महत्व है। इस साल कुल 4 सोमवार सावन महीने में पड़ेंगे। इस साल सावन 22 अगस्त तक रहेगा। जानिए सावन मास में किन विशेष उपायों से जीवन की कई समस्याओं से मुक्ति मिलने की मान्यता है-वैवाहिक जीवन से जुड़ा उपायसावन मास में वैवाहिक जीवन से जुड़ी दिकक्तों को दूर करने के लिए उपाय किए जाते हैं। दांपत्य जीवन में मधुरता व रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए सावन के सोमवार को साफ मिट्टी से शिवलिंग बनाएं। अब इस पर केसर या हल्दी मिश्रित दूध चढ़ाएं। मान्यता है कि ऐसा करने वैवाहिक जीवन में खुशहाली आती है।आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिएमान्यता है कि सावन मास में शिवलिंग पर पूजा के दौरान केसर चढ़ाने से सुख एवं समृद्धि बढ़ती है। जीवन से दरिद्रता चली जाती है।गलत कामों से बचावसावन मास में भोलेनाथ को इत्र चढ़ाने से मन पवित्र एवं शुद्ध होता है। इसके साथ ही गलत काम करने से बचाव होता है।कष्टों से मुक्ति मिलती हैकहा जाता है कि भगवान शंकर को दही अंत्यत प्रिय है। सावन मास में भोलेनाथ को दही चढ़ाने से जीवन में आने वाली परेशानियां दूर होने की मान्यता है।मनोकामना पूरी होने की मान्यतासावन मास में प्रतिदिन जल्दी उठें। स्नान आदि करने के बाद साफ-सुथरे कपड़े धारण करें। भगवान शिव को पूजा के दौरान जल में काला तिल डालकर अर्पित करें। कहते हैं कि ऐसा करने से भोलेनाथ की कृपा से मनोकामना पूरी होती है।
- सावन के पावन महीने की शुरुआत 25 जुलाई से हो गई है। 22 अगस्त तक सावन का महीना रहेगा। सावन का महीना भगवान शंकर को समर्पित होता है। इस माह में विधि- विधान से भगवान शंकर की पूजा- अर्चना की जाती है। सावन माह के सोमवार का बहुत अधिक महत्व होता है। भगवान शंकर का दिन सोमवार होता है। कल यानी 26 जुलाई को सावन का पहला सोमवार है। इस दिन भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व होता है।-----आइए जानते हें सावन के पहले सोमवार की पूजा- विधि, महत्व और सामग्री की पूरी लिस्ट...पूजा- विधि-----00 सुबह जल्दी उठ जाएं और स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद साफ वस्त्र धारण करें।00 घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।00 सभी देवी- देवताओं का गंगा जल से अभिषेक करें।00 शिवलिंग में गंगा जल और दूध चढ़ाएं।00 भगवान शिव को पुष्प अर्पित करें।00 भगवान शिव को बेल पत्र अर्पित करें।00 भगवान शिव की आरती करें और भोग भी लगाएं। इस बात का ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है।00 भगवान शिव का अधिक से अधिक ध्यान करें।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 351
साधक की जिज्ञासा ::: संत जब पृथ्वी और आते हैं तब तो कृपा करते हैं? उनके पास जाने से उनके दर्शन से तो कृपा प्राप्त होगी?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर ::: नहीं-नहीं, आने से क्या होता है? आने से कृपा नहीं होती। संत के पास लाखों आते हैं। कृपा तो होगी बर्तन बन जाने पर, अन्तःकरण शुद्धि पर। आने से कृपा नहीं हुआ करती। एक आता है वो जाकर गाली देता है संत को। दूसरा आता है वो बुराई करके चला जाता है। तीसरा आता है वो कहता है हाँ समझदार है। संत मानने वाला कौन है? संत!! जिसके पीछे पीछे भगवान घूमते हैं उनका नाम संत। इतनी बड़ी भावना है किसकी?
इतनी बड़ी भावना हो जाय तो बात नहीं बन जाय! एक संत, बाहर से आये हुये थे, एक वाक्य बोल दे, कोई गन्दा वाक्य, डाँट का वाक्य, फीलिंग। संत के वाक्य को फील कर रहे हो। तुम अपने को क्या समझते हो? जिनकी डाँट को भगवान सहर्ष सुनते हैं, उनकी डाँट को तुम फील करते हो नारकीय जीव? अजी क्या करें व अहंकार है। तो फिर तुम कृपा पात्र कहाँ हुये?
जाने से, सेवा करने से, दिन रात पैर दबाने से - इससे कुछ नहीं मिलेगा। अन्तःकरण को समर्पित करना होगा, बुद्धि को समर्पित करना होगा, मन बुद्धि दोनों को शरणागत करना होगा। अर्जुन से भगवान ने कहा;
मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिम् निवेशय।(गीता 12-8)
मन बुद्धि हमको दो, हमारे हाथ में लाओ। तुम्हारे काम बन्द। सारी गीता क्या है? पहले अध्याय में अर्जुन ने बुद्धि लगाया। इनको मारेंगे तो पाप होगा, ये होगा, वो होगा। इसलिये हम युद्ध नहीं करेंगे। बुद्धि लगाया। अठारह अध्याय का लेक्चर दिया भगवान ने। और आखिर में कहा;
मय्यर्पित मनोबुद्धि:।(गीता 12-14)
तू बुद्धि को मेरे शरणागत कर दे। मुझको दे दे। जब दे दिया तो उसने कहा कि महाराज बस हो गया, हो गया। काम बन गया हमारा। पहले ही अर्जुन ने कहा कि हम आपके शिष्य हैं लेकिन बुद्धि लगा रहा है। शिष्य कहाँ? शिष्य का मतलब गुरु की बुद्धि में बुद्धि जोड़ दे। डॉक्टर ने जितना कहा है उतनी दवा खाओ। जो परहेज कहा है वो परहेज करो। शरणागत रहो। अगर तुमने कहा कि डॉक्टर ने तो कहा है तीन बूँद दवा छोड़ देना एक चम्मच पानी में। इतने बड़े शरीर में तीन बूँद का क्या असर होगा अपन तो पूरी शीशी पी लेते हैं। मर गये।
सद्गुरु वैद्य वचन विश्वासा।संजम यह न विषय कै आसा।।
रघुपति भगति सजीवनी मूरी।अनुपान श्रद्धा मति पूरी।।
एहि विधि भलेहि सो रोग नसाहीं।नाहीं त कोटि जतन नहिं जाहीं।।
सारे महापुरुषों का चैलेन्ज है। जब योगी वैरागी ज्ञानी भी नहीं पा सकते तो फिर महापुरुष के पास चले गये हम, बड़ी कृपा किया चले आये हम। आपके ऊपर कृपा हो जाय। अरे हम आये हैं आपके पास, हमने अपनी खोपड़ी आपके पैर पर रखा है तो कृपा करना पड़ेगा आपको? सुना! खोपड़ी रखा है! तो खोपड़ी पर लाओ कृपा कर दें हम। तुम्हारे ऊपर कृपा क्यों?
कृपा करने वाला तो व्याकुल है। देने वाला तो व्याकुल है क्योंकि उसको तो पुरस्कार मिलेगा भगवान के यहाँ। तुमने कितने जीवों को हमारी ओर लगाया? कितने जीवों को आगे बढ़ाया? कितने जीवों को हमसे मिलाया? ये महापुरुष से रिकॉर्ड माँगा जायेगा। जब महापुरुष अधिक प्रसन्न होगा तो वो विशेष कृपापात्र हो जायेगा, भगवान की सेवा का अधिकारी हो जायेगा। तो देने वाले को क्या, उसका कुछ घटना थोड़े ही है। अरे संसारी संपत्ति रुपया हो, वो हमारे पास एक लाख है तो दे देंगे फिर हम क्या करेंगे भई! वो तो घट गया, खतम हो गया। ये भगवत् विषय तो ऐसा है नहीं कि हमने दे दिया तो हमारा चला गया। जैसे ज्ञान दे रहे हैं तो उससे तो हमारा ज्ञान और नया हो रहा है। हमारा भी तो चिन्तन हो रहा है देने से। घट कहाँ रहा है? तो देने वाला क्यों कंजूसी करेगा? कहाँ दे? बर्तन के बिना कहाँ दे?
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'साधन साध्य' पत्रिका, जुलाई 2017 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - प्यारा घर-सुंदर घर-सपनों का घर,यह है एक परिवार की और घर की परिभाषा, परंतु वास्तु दोष घर में न हो इस बात का ध्यान भी रखना जरूरी है तभी यह परिभाषा आपके लिए सही और सटीक बैठती है।हर वस्तु की दिशा होती है अगर वस्तु सही दिशा में है तो वह शुभ फल प्रदान करती है और गलत दिशा वाली वस्तु आप पर और वास्तु दोष घर के सदस्यों पर प्रभाव डालती हैं। आइए जानते हैं इस वास्तु दोष के बारे में-1- वास्तुशास्त्र में दिशाओं का विशेष महत्व होता है वास्तु शास्त्र के अनुसार पश्चिम -दक्षिण दिशा में दोष होता है तो इसका परिणाम बेहद ही घातक होता है, इस दिशा में दोष होने पर वहां पर रहने वाले व्यक्ति की अकाल मृत्यु होने का की संभावना बढ़ जाती है।2-अगर आपके पश्चिम -दक्षिण दिशा में दरवाजा या बरामदा है या फिर घर के उत्तर- पश्चिम हिस्से में कुआं है तो घर के स्वामी की आत्महत्या करने की संभावना बढ़ जाती है।3-अगर किसी घर का मुख्य दरवाजा पूर्व -दिशा में या फिर पश्चिम- दक्षिण दिशा में एक और दरवाजा है और घर का ईशान कोण खराब अवस्था में है तो वहां के सदस्यों को हार्टअटैक, सड़क दुर्घटना या आत्महत्या से मौत की संभावना बढ़ जाती है।4-जिस घर की चारदीवारी का फाटक पश्चिम में या दक्षिण -पश्चिम दिशा में है ऐसे घर में आत्महत्या करने की आशंका बढ़ जाती है। अगर घर में इस तरह का कोई भी दोष है तो उसे तुरंत ठीक करा लेना चाहिए।(नोट- ये जानकारी केवल वास्तु शास्त्र पर आधारित है। इसकी सच्चाई का हम कोई दावा नहीं करते हैं। )
- हिन्दू धर्म में अप्सराएं सौंदर्य का प्रतीक मानी जाती है और बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती है। अप्सराओं से अधिक सुन्दर रचना और किसी की भी नहीं मानी जाती। पृथ्वी पर जो कोई भी स्त्री अत्यंत सुन्दर होती है उसे भी अप्सरा कह कर उनके सौंदर्य को सम्मान दिया जाता है। कहा जाता है कि देवराज इंद्र ने अप्सराओं का निर्माण किया था। कई अप्सराओं की उत्पत्ति परमपिता ब्रह्मा ने भी की थी जिनमे से तिलोत्तमा प्रमुख है। इसके अतिरिक्त कई अप्सराएं महान ऋषिओं की पुत्रियां भी थी। भागवत पुराण के अनुसार अप्सराओं का जन्म महर्षि कश्यप और दक्षपुत्री मुनि से हुआ था। कामदेव और रति से भी कई अप्सराओं की उत्पत्ति बताई जाती है।अप्सराओं का मुख्य कार्य इंद्र एवं अन्य देवताओं को प्रसन्न रखना था। विशेषकर गंधर्वों और अप्सराओं का सहचर्य बहुत घनिष्ठ माना गया है। गंधर्वों का संगीत और अप्सराओं का नृत्य स्वर्ग की शान मानी जाती है। अप्सराएँ पवित्र और अत्यंत सम्माननीय मानी जाती है। अप्सराओं को देवराज इंद्र यदा-कड़ा महान तपस्वियों की तपस्या भंग करने को भेजते रहते थे। पुराणों में ऐसी कई कथाएं हैं जब किसी तपस्वी की तपस्या से घबराकर, कि कहीं वो त्रिदेवों से स्वर्गलोक ही ना मांग लें, देवराज इंद्र ने कई अप्सराओं को पृथ्वी पर उनकी तपस्या भंग करने को भेजा।अप्सराओं को उपदेवियों की श्रेणी का माना जाता है। वे मनचाहा रूप बदल सकती हैं और वरदान एवं श्राप देने में भी सक्षम मानी जाती है। कई अप्सराओं ने अनेक असुरों और दैत्यों के नाश में भी उल्लेखनीय योगदान दिया है। पुराणों में कुल 1008 अप्सराओं का वर्णन है जिनमे से 108 प्रमुख अप्सराओं की उत्पत्ति देवराज इंद्र ने की थी। उन 108 अप्सराओं में भी 11 अप्सराओं को प्रमुख माना जाता है। उन 11 अप्सराओं में भी 4 अप्सराओं का सौंदर्य अद्वितीय माना गया है। ये हैं - रम्भा, उर्वशी, मेनका और तिलोत्तमा। रम्भा सभी अप्सराओं की प्रधान और रानी है। कई अप्सराएं ऐसी भी हैं जिन्हे पृथ्वीलोक पर रहने का श्राप मिला था जैसे बालि की पत्नी तारा, दैत्यराज शम्बर की पत्नी माया और हनुमान की माता अंजना।अप्सराएं दो प्रकार की मानी गयी हैं:दैविक: ऐसी अप्सराएं जो स्वर्ग में निवास करती हैं। रम्भा सहित मुख्य 11 अप्सराओं को दैविक अप्सरा कहा जाता है।लौकिक: ऐसी अप्सराएं जो पृथ्वी पर निवास करती हैं। जैसे तारा, माया, अंजना इत्यादि। इनकी कुल संख्या 34 बताई गयी है।अप्सराओँ को सौभाग्य का प्रतीक भी माना गया है। कहते हैं अप्सराओं का कौमार्य कभी भंग नहीं होता और वो सदैव कुमारी ही बनी रहती है। समागम के बाद अप्सराओं को उनका कौमार्य वापस प्राप्त हो जाता है। उनका सौंदर्य कभी क्षीण नहीं होता और ना ही वे कभी बूढी होती हैं। उनकी आयु भी बहुत अधिक होती है। मार्कण्डेय ऋषि के साथ वार्तालाप करते हुए उर्वशी कहती है - हे महर्षि! मेरे सामने कितने इंद्र आये और कितने इंद्र गए किन्तु मैं वही की वही हूँ। जब तक 14 इंद्र मेरे समक्ष इन्द्रपद को नहीं भोग लेते मेरी मृत्यु नहीं होगी।भारतवर्ष का सर्वाधिक प्रतापी पुरुवंश स्वयं अप्सरा उर्वशी की देन है। उनके पूर्वज पुरुरवा ने उर्वशी से विवाह किया जिससे आगे पुरुवंश चला जिसमें ययाति, पुरु, यदु, दुष्यंत, भरत, कुरु, हस्ती, शांतनु, भीष्म और श्रीकृष्ण पांडव जैसे महान राजाओं और योद्धाओं ने जन्म लिया। उन्हीं के दूसरे वंशबेल में इक्षवाकु कुल में भगवान श्रीराम ने जन्म लिया। अन्य संस्कृतियों में जैसे ग्रीक धर्म में भी अप्सराओं का वर्णन है। इसके अतिरिक्त कई देशों जिनमे से इंडोनेशिया, कम्बोडिया, चीन और जावा में अप्सराओं का बहुत प्रभाव है।