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- भारतीय ज्योतिष का एक प्रमुख अंग है, सामुद्रिक शास्त्र, जिसके द्वारा व्यक्ति के शरीर के विभिन्न अंगों की सरंचना के आधर पर फलकथन कहने की रीति प्रचलित है। इसी सामुद्रिक शास्त्र के द्वारा नारद आदि महर्षियों ने मनुष्यों के जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक की सभी बातों को जान लिया करते थे। आइये जानते हैं कि ऊंगलियों में पाए जाने वाले चक्र व्यक्ति के स्वभाव को लेकर क्या कहते हैं-----1-यदि किसी जातक की अंगुलियों में एक चक्र का निशान हो तो, वह मनुष्य चालाक तथा अवसर को भुनाने वाले होते हैं। ऐसे जातक अपने निहित स्वार्थ के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं।2- यदि किसी जातक की अंगुलियों में 2 चक्रों के निशान हो तो, ऐसे लोग सुन्दर, गुणवान, तथा समाज में प्रशंसा के पात्र होते हैं। इन लोगों को तमाम भौतिक वस्तुओं का सुख प्राप्त होता है।3-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 3 चक्रों के निशान हो तो, ऐसे मनुष्य अपना अधिकतर समय भोग-विलास में व्यतीत करते हंै। इनका पारिवारिक जीवन दु:खमय बना रहता है।4-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 4 चक्रों के निशान हो तो, वह व्यक्ति अपने कार्यो में निरन्तर संघर्ष करते है, परन्तु उनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ नहीं हो पाती है। ऐसे लोग अपने जीवन में कई बार अपमान भी सहते है। इन लोगों का 50 वर्ष के उपरान्त ही समय अच्छा होता है।5-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 5 चक्रों के निशान हो तो ऐसे लोग अपनी विद्वता से समाज का कल्याण करते है। जैसे- सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षक, अधिवक्ता, कथावाचक आदि होते हंै।6-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 6 चक्रों के निशान हो तो, वह लोग बौद्धिक होते है। ऐसे जातक अच्छे पद पर आसीन होकर सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करते है, परन्तु इनका दाम्प्तय जीवन दु:खमय रहता है।7-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 7 चक्रों के निशान हों तो, ऐसे लोग पहाड़ों की खूब यात्रा करते हंै तथा अपने साहस व पराक्रम के बल से शीघ्र ही अपने लक्ष्य को को प्राप्त कर लेते है। ऐ लोग यात्राओं से भी धन कमाते है।8-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 8 चक्रों के निशान हो तो, वह लोग मेहनत तो अत्यधिक करते हैं, परन्तु उनको सफलता न के बराबर ही मिलती है। ये लोग निम्नकोटि का कोई भी कार्य न करें तो बेहतर होगा।9-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 9 चक्रों के निशान हो तो, ऐसे लोग उच्च पद को प्राप्त कर सुखमय जीवन व्यतीत करते हंै। ये लोग समाज में कुछ ऐसा कार्य भी करते है जिससे इनको पुरस्कार मिलते हैं।10-यदि किसी जातक की अंगुलियों में 10 चक्र के निशान हो तो ऐसे लोग राजा के समान जीवन व्यतीत करते हैं। ये लोग राज्य के सलाह, मन्त्री, सेनापति, राज्यपाल या मुख्यमंत्री होते हैं।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 333
★ भूमिका - आज के अंक में प्रकाशित दोहा तथा उसकी व्याख्या जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ग्रन्थ 'भक्ति-शतक' से उद्धृत है। इस ग्रन्थ में आचार्यश्री ने 100-दोहों की रचना की है, जिनमें 'भक्ति' तत्व के सभी गूढ़ रहस्यों को बड़ी सरलता से प्रकट किया है। पुनः उनके भावार्थ तथा व्याख्या के द्वारा विषय को और अधिक स्पष्ट किया है, जिसका पठन और मनन करने पर निश्चय ही आत्मिक लाभ प्राप्त होता है। आइये उसी ग्रन्थ के 39-वें दोहे पर विचार करें, जिसमें आचार्यश्री ने यह बताया है कि संसार साधनसम्पन्न की पूछ-परख करता है परन्तु कृपासिन्धु भगवान साधनहीन दीन जनों की ओर कृपादृष्टि रखते हैं....
सब साधन संपन्न कहँ, पूछत सब संसार।साधनहीन प्रपन्न कहँ, पूछत नंदकुमार।।39।।
भावार्थ - संसारी लोग उसी से प्यार करते हैं, जिसके पास संसारी वैभव होता है। किंतु श्यामसुंदर अकिंचन से प्यार करते हैं।
व्याख्या - मायाधीन जीव परमानंद से वंचित है। अतः उसी की प्राप्ति के हेतु भ्रमवश मायिक विषयों को चाहता है। यह स्वार्थ तब तक रहेगा, जब तक प्रेमानंद नहीं प्राप्त कर लेता। अतः कोई भी माता, पिता, भ्राता, भर्ता ऐसा नहीं हो सकता जो दूसरे के सुख के लिये कुछ करे। यथा वेद कहता है;
न वा अरे पत्युः कामाय पतिः प्रियोभवति...।
जहाँ भी संसारी स्वार्थ पूर्ति होती है वहीं प्यार करता है। स्वार्थ समाप्त, तो प्यार भी समाप्त। अतः धनादि वैभव की प्राप्ति द्वारा आनंद प्राप्ति मानने वाले अज्ञानी व्यक्ति, वैभव वालों की चमचागीरी करते रहते हैं। किंतु उस सेठ के दिवालिया होते ही ऐसे रफूचक्कर हो जाते हैं, जैसे वृक्ष के फल समाप्त होते ही पक्षीगण उड़ जाते हैं। किंतु भगवान् तो परिपूर्ण हैं। आत्माराम हैं। साथ ही अकारण करुण भी हैं। अतः जो जीव उनकी शरण में जाता है, वह सदा को आनंदमय हो जाता है। किंतु वैभवयुक्त व्यक्ति जा ही नहीं सकता। वैभव का मद उसे स्वयं भगवान् बना देता है। इसी से कुंती ने संसार का अभाव वरदान स्वरूप माँगा था। अतः वैभवों से दूर रहना चाहिये।
०० व्याख्याकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'भक्ति-शतक' व्याख्या, दोहा संख्या 39०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हिंदू धर्म और ज्योतिष में तुलसी के पौधे (Tulsi Plant) का विशेष महत्व बताया गया है. भगवान विष्णु (Lord Vishnu) को प्रिय तुलसी (Tulsi) से जुड़ी कई पौराणिक मान्यताएं हैं साथ ही घर में तुलसी का पौधा लगाने और उसका सेवन करने के कई वैज्ञानिक लाभ हैं. पर्यावरण को शुद्ध करने वाले, सकारात्मकता लाने वाले तुलसी के पौधे को घर के सामने लगाने की सलाह दी जाती है. साथ ही इसमें रोजाना जल चढ़ाने, पूजा करने से जिंदगी में समृद्धि और खुशहाली आती है. आज हम जानते हैं पूजनीय तुलसी के पत्तों (Tulsi Leaves) को तोड़ने का सही तरीका क्या है.तुलसी के पत्तों को तोड़ने का सही तरीका- ज्योतिष के मुताबिक रविवार के दिन तुलसी का पत्ता नहीं तोड़ना चाहिए और ना ही तुलसी के पौधे पर जल चढ़ाना चाहिए. इसके अलावा अमावस्या, चतुर्दशी और द्वादशी के दिन भी तुलसी का पत्ता तोड़ना अशुभ माना जाता है. इस दिन तुलसी का पत्ता तोड़ने से जीवन में आर्थिक मुश्किलें आ सकती हैं.- सूर्यास्त के बाद कभी भी तुलसी का पत्ता नहीं तोड़ना चाहिए. मान्यता है कि माता तुलसी, देवी राधा का ही एक स्वरूप हैं और शाम के समय श्री राधारानी वन में श्री कृष्ण के साथ रास रचाने जाती हैं. ऐसे में शाम के समय तुलसी के पत्ते तोड़ने से रास में बाधा आती है.- इसके अलावा सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण में भी तुलसी के पत्तों को नहीं तोड़ना चाहिए.- तुलसी के पौधे को बिना नहाए नहीं छूना चाहिए. इसके अलावा भगवान के प्रसाद के लिए तुलसी के पत्तों का इस्तेमाल करते समय ध्यान रखें कि पत्ते 11 दिन से ज्यादा पुराने न हों.- इसके अलावा तुलसी के पत्तों को कभी भी नाखून से नहीं तोड़ना चाहिए. बल्कि उंगली की पोर से तोड़ना चाहिए. हो सके तो तोड़ने की बजाय गमले में पहले से टूटे हुए गिरे पत्तों को इस्तेमाल करना चाहिए.- घर में कभी भी सूखा हुआ तुलसी का पौधा नहीं रखें, ऐसा अशुभ होता है. यदि सूख जाए तो पौधे को किसी पवित्र नदी में विसर्जित कर दें.- कभी भी भगवान शंकर और गणेश जी को तुलसी का पत्ता नहीं चढ़ाना चाहिए.
- भारतीय वास्तु की तरह चीनी वास्तु भी होता है जिसे फेंगशुई के नाम से जाना जाता है। फेंगशुई में सकारात्मकता बढ़ाने के लिए मुख्यत: फेंगशुई प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है। इन सभी प्रतीकों में सबसे अधिक लाफिंग बुद्धा प्रचलन में है। मान्यता है कि लाफिंग बुद्धा रखने से सुख-समृद्धि, खुशहाली और तरक्की प्राप्त होती है। कहा जाता है कि लाफिंग बुद्धा अपने पैसों से खरीदकर कभी घर पर नहीं रखना चाहिए। लाफिंग बुद्धा यदि कोई आपको भेंट करे तो ही शुभ होता है। माना जाता है कि स्वयं के पैसों से खरीदे गए लाफिंग बुद्धा से कोई परिणाम प्राप्त नहीं होता है। जब कोई आपको उपहार में लाफिंग बुद्धा देता है तो ही इससे समृद्धि औऱ खुशहाली प्राप्त होती है।दरअसल चीनी वास्तु में लाफिंग बुद्धा का बहुत ही महत्व माना गया है। वे लोग इसको लेकर बहुत ही ध्यान रखते हैं। लाफिंग बुद्धा धन और खुशहाली के लिए होता है इसलिए चीनी मान्यता कहती है कि किसी भी व्यक्ति को इतना स्वार्थी नहीं होना चाहिए कि वह धन के लिए वह लाफिंग बुद्धा की खरीदारी करें। माना जाता है कि जो लोग ऐसा करते हैं उन्हें इनका आशीर्वाद प्राप्त नहीं होता है और ये केवल आपके घर या कार्यस्थल पर सजावट की वस्तु से अधिक कुछ नहीं होता है। यह तभी आपको शुभ फल प्रदान करता है जब कोई आपको बिना स्वार्थ के इसे आपको भेंट करता है। इसलिए अपने मित्रों, शुभचिंतकों और रिश्तेदारों को लाफिंग बुद्धा भेंट में अवश्य दें, इसका लाभ आपको अवश्य मिलेगा।
- आमतौर पर मकान बनाते समय वास्तु का विशेष रूप से ध्यान रखा जाता है। कभी कभार ऐसा ना करने पर मकान में वास्तुदोष उत्पन्न हो जाता है, जो मकान स्वामी के लिए कष्ट की स्थिति पैदा कर देते हैं। आज हम जानते हैं कि यदि मकान के ईशान कोण में वास्तुदोष को तो क्या उपाय करना चाहिए। ईशान कोण को वास्तु शास्त्र में बहुत महत्व दिया जाता है। मान्यता है कि सभी देवताओं का निवास स्थान धरती की ईशान दिशा में ही है. इसे भगवान शिव की दिशा भी माना जाता है. घर के पूर्व और उत्तर के बीच ईशान कोण होता है।यदि भवन के ईशान क्षेत्र में कोई वास्तु दोष है तो उस कटे हुए भाग पर एक बड़ा शीशा लगाएं। इससे भवन का ईशान क्षेत्र बड़ा हुआ सा प्रतीत होता है। इसके अतिरिक्त किसी साधु महात्मा अथवा देवगुरु बृहस्पति या फिर ब्रह्मदेव का कोई चित्र अथवा मूर्ति को ईशान में स्थापित करें। अगर ईशान कोण में रसोईगृह है तो उस रसोईगृह के अंदर गैस चूल्हे को आग्नेय कोण में और रसोई के ईशान कोण में साफ बर्तन में जल भरकर रखें। अगर ईशान कोण में शौचालय है तो उसके बाहरी दीवार पर एक बड़ा आदमकद शीशा या शिकार करता हुआ शेर का चित्र लगाएं। ईशान में शौचालय होने पर उपाय अवश्य ही करें क्योंकि ईशान कोण में शौचालय होना अत्यंत अशुभ होता है।
- शरीर के संपूर्ण स्वास्थ्य को मजबूत बनाने में मदद करने वाला आयुर्वेद एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति है। इससे स्वस्थ जीवनशैली के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी भी मिलती है। आयुर्वेद के मुताबिक, सुबह जागने का एक निश्चित समय होता है और इस समय जागने वाले व्यक्ति का दिमाग व शरीर बिल्कुल स्वस्थ रहता है। सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठना सबसे ज्यादा फायदेमंद होता है. क्योंकि, इस दौरान वातावरण में सात्विक गुण मौजूद होते हैं, जो आपके दिमाग व शरीर को ताजगी व शांति प्रदान करते हैं। ब्रह्म मुहूर्त में जागने से निम्नलिखित फायदे प्राप्त होते हैं।- ध्यान लगाने व आत्ममंथन से बुद्धि बढ़ती है।- विद्यार्थियों में याद्दाश्त और ध्यानकेंद्रित करने की क्षमता बढ़ती है।- मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है।- फोकस बढऩे से कार्य करने की क्षमता बढ़ती है।- एक्सरसाइज करने का सही समय होता है, क्योंकि हवा बिल्कुल साफ और ताजी होती है।ब्रह्म मुहूर्त किस समय होता है?ब्रह्म मुहूर्त का समय सूर्योदय से 1 घंटा 36 मिनट पहले शुरू हो जाता है, जो कि सिर्फ 48 मिनट ही रहता है और सूर्योदय होने से 48 मिनट पहले समाप्त हो जाता है, लेकिन, आज की भागदौड़ भरी जिंदगी के कारण अगर आप ब्रह्म मुहूर्त में नहीं उठ पाते हैं, तो सूर्योदय से पहले या उसके साथ जरूर जागें। इससे भी शरीर को कई स्वास्थ्य फायदे मिलते हैं।ब्रह्म मुहूर्त में ना उठ पाने वाले किस समय उठें?अगर आप ब्रह्म मुहूर्त में नहीं उठ पा रहे हैं, तो सूर्योदय से पहले या उसके साथ बिल्कुल जाग जाएं। एक सामान्य व्यक्ति, जिसे अपने शरीर की प्रकृति के बारे में नहीं पता है, वो रोजाना सुबह 6.30 से 7 बजे के बीच जागकर स्वास्थ्य फायदे प्राप्त कर सकता है। आइए, सूर्योदय से पहले या उसके साथ जागने के फायदे जानते हैं--इससे शरीर को ऊर्जा मिलती है--सकारात्मकता सोच मिलती है।-शारीरिक प्रकृति में संतुलन बनता है।-मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर होता है।-पाचन बेहतर होता है।-बायोलॉजिकल क्लॉक सुधरती है।-स्वभाव खुशनुमा होता है।- अनुशासन आता है, आदिशारीरिक प्रकृति के हिसाब से किस समय उठना चाहिए?आयुर्वेद के मुताबिक, हमारे शरीर का स्वास्थ्य तीन दोषों पर निर्भर करता है, जिन्हें वात, पित्त और कफ दोष कहा जाता है। इनमें असंतुलन पैदा होने से ही स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं। इसी के मुताबिक, किसी भी व्यक्ति की दैहिक प्रकृति बनती है। किसी का शरीर वात से संबंधित हो सकता है, तो किसी का पित्त या कफ से संबंधित हो सकता है। दैहिक प्रकृति के हिसाब से भी सुबह जागने का समय निर्धारित किया जाता है. जैसे-वात प्रकृति के लिए- सूर्योदय से 30 मिनट पहलेपित्त प्रकृति के लिए- सूर्योदय से 45 मिनट पहलेकफ प्रकृति के लिए- सूर्योदय से 90 मिनट पहलेतनावग्रस्त या देर से सोने वाले लोगों के लिए उठने का समयआयुर्वेद में तनावग्रस्त व देर से सोने वाले लोगों के लिए भी उठने का सही समय बताया गया है, जैसे-वात प्रकृति के लिए- सुबह 7 बजे तकपित्त प्रकृति के लिए- सुबह 6.30 बजे से पहलेकफ प्रकृति के लिए- सुबह 6 बजे से पहले
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 332
(भूमिका - 'प्रेम' की तो अनिवार्य शर्त 'निरंतरता' और 'निष्कामता' में निष्कामता के महत्व की व्याख्या आचार्यश्री जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज ने अपने श्रीमुख से की है। यह उद्धरण उनके द्वारा निःसृत प्रवचन का एक अंशमात्र है। आइये आज के इस अंक में इस दिव्यज्ञान को हृदयंगम करने का सुप्रयास करें...)
प्रेम की परिभाषा में दो बातें खास हैं। एक तो निरंतर हो, और एक, निष्काम हो। अपने सुख की कामना न हो। अपने सुख की कामना आई तो अपना सुख पूरा हुआ सेंट परसेन्ट, तो प्यार सेंट परसेन्ट। अपना सुख अगर उससे कम सिद्ध हुआ, तो प्रेम कम। बिल्कुल नहीं सिद्ध हुआ स्वार्थ उससे, प्रेम कम। यह तो संसार में होता है, यह तो व्यापार है। हम चाय में, दूध में एक चम्मच चीनी डालें, थोड़ी मीठी। दो चम्मच डाला, और मीठी हो गई। तीन चम्मच डाला, और मीठी हो गई। यह तो ऐसा बिजनेस है। यह प्रेम नहीं। इसलिये एक दिन में दस बार आपका प्रेम स्त्री से, पति से, बाप से, बेटे से, अप-डाउन, अप-डाउन होता रहता है। स्वार्थ की लिमिट के अनुसार।
तो सबसे पहली शर्त है, अपने सुख को छोड़ना होगा। यहीं हम फेल हो जाते हैं। अनंत बार भगवान मिले हमको, अनंत बार संत मिले हमको। हम उनके पास गये लेकिन अपने सुख की कामना, अपने स्वार्थ की कामना लेकर गये।
आज हमारे संसार में करोड़ों लोग भगवान के भक्त दिखाई पड़ते हैं। वो चाहे खुदा को मानें, चाहे गॉड को मानें, चाहे राम-श्याम को मानें, लेकिन 99.9 परसेन्ट लोग अपनी कामना ले के जाते हैं भगवान के मन्दिर में।
हमारे इण्डिया में एक तिरुपति मन्दिर है। ओ, वहाँ करोड़ों की भेंट चढ़ती है। एक-एक आदमी करोड़-करोड़ रुपया दान करता है। क्यों? यह हल्ला मचा हुआ है कि यह हमारे संसार की जो भी हमारी कामना होगी, उसको पूरा कर देंगे। बस, भीड़ चली आ रही है। अरे जो लोग मर जाते हैं बाबा लोग, फ़क़ीर लोग, और कहीं उनकी हड्डी है गड़ी हुई, वहाँ जाते हैं लोग। ये हमारी इच्छा पूरी कर देंगे। सब सकाम। और वह कामना भी भगवान सम्बन्धी हो, तो कोई बात नहीं। संसार माँगने के लिये। धन मिले, प्रतिष्ठा मिले, वैभव मिले, इसके लिये जाते हैं। यही सबसे बड़ी रुकावट है प्रेम पाने में। अपनी कामना छोड़ना होगा। नारद जी ने प्रेम की परिभाषा की;
न सा कामयमाना।
नारद भक्ति का सातवाँ सूत्र। कामना-रहित होना चाहिये। कामना आई, तो उसका नाम भक्ति नहीं। उल्टा हो गया यह तो। भक्ति शब्द का अर्थ है, सेवा। सेवा माने क्या होता है? जैसे एक माँ छोटे से बच्चे की सेवा करती है। इस समय बच्चा कुछ नहीं सेवा करता माँ की, माँ सेवा करती है। ऐसे ही, हम अगर दास हैं शास्त्र वेद के अनुसार भगवान के, तो हम भगवान की सेवा करना चाहते हैं न। तो सेवा में भगवान को सुख देने की भावना होनी चाहिये, अपने सुख देने की नहीं। अपने को सुख देने की भावना कर-करके अनन्त जन्म दुःखी रहे। अगर भगवान के सुख देने की भावना करके भगवान से प्यार करते, तो अनन्त बार भगवत्प्राप्ति हो गई होती!!
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'साधन साध्य' पत्रिका, अक्टूबर 2013 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 331
साधक का प्रश्न ::: प्रसादी वस्त्र इत्यादि सामान जो दिया जाता है, उसका क्या महत्व है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा दिया गया उत्तर - उद्धव से अधिक प्रसाद का विवेचन कौन करेगा, कौन समझेगा। उद्धव इतने बड़े ज्ञानी कि भगवान को कहना पड़ा - 'नोद्धवोण्वपि मन्न्यूनः'। उद्धव मुझसे थोड़ा भी कम नहीं है। सम्पूर्ण ज्ञान वैराग्य प्रेम आदि से युक्त है। वे उद्धव कहते हैं कि ये बड़े बड़े ज्ञानी, ध्यानी और वेदों के बताये हुये साधनों से सम्पन्न, करोड़ों कल्प में भी माया को नहीं जीत सके। तुलसीदास जी कहते हैं;
नारद भव विरंचि सनकादी।जे मुनि नायक आतमवादी।।मोह न अंध कीन कहु केही।को जग काम नचाव न जेही।।
नारद, ब्रह्मा, विष्णु, शंकर ये सब बड़ी बड़ी पर्सनैलिटीज माया को नहीं जीत सकीं।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते।(गीता 7-14)
गीता में चैलेंज है भगवान का - 'अर्जुन जो मेरी शरण में आयेगा उसकी माया को को मैं भगाऊँगा'। अपनी साधना से कोई नहीं भगा सकता। वे उद्धव जी कहते हैं;
त्वयोपभुक्तस्त्रग्गन्धवासोलंकारचर्चिता:।उच्छिष्टभोजिनो दासास्तव मायां जयेमहि।।(भागवत 11-6-46)
श्रीकृष्ण को चैलेंज कर रहे हैं उद्धव, आपके द्वारा प्रयोग किया हुआ, 'त्वयोपभुक्त', माला, गंध, इत्र वगैरह, वस्त्र-पीताम्बर वगैरह, अलंकार - कोई भी जेवर, जो प्रसाद रूप में आपके द्वारा दिया जाता है और सबसे बड़ी चीज उच्छिष्ट भोजन, आपका उच्छिष्ट, कोई भी सामान - खाने-पीने का सामान, पहनने का सामान, इनका प्रयोग करके मैंने माया को जीत लिया महाराज! ये बड़ी बड़ी साधना वाले पतन को प्राप्त हो गये। लेकिन हम चैलेंज करते हैं माया को, खाली प्रसाद के सेवन से।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'साधन साध्य' पत्रिका, अक्टूबर 2013 अंक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - ज्योतिष शास्त्र में कुल 12 राशियों का वर्णन किया गया है. इनमें से हर राशि की अपनी खूबी होती है. इन राशियों से किसी भी व्यक्ति के स्वभाव, व्यक्तित्व और भविष्यफल का अंदाजा लगाया जाता है.हरेक राशि का एक स्वामी ग्रहज्योतिष शास्त्र के मुताबिक हरेक राशि का एक स्वामी ग्रह होता है. इस स्वामी ग्रह का असर संबंधित व्यक्ति पर पड़ता है. शास्त्रों में ऐसी 4 राशियों का वर्णन किया गया है, जो अपने पति के लिए भाग्यशाली मानी जाती है. कहा जाता है कि जिन घरों में इन राशियों वाली जीवन संगिनी होती है. वहां पर सुख-समृद्धि की कोई कमी नहीं रहती है.केयरिंग और आत्मविश्वासी लड़कियांकुंभ राशि - कहा जाता है कि इस राशि की लड़कियां अपने पति के लिए भाग्यशाली साबित होती हैं. इस राशि की लड़कियां केयरिंग, आत्मविश्वासी और स्वतंत्र विचारों वाली होती हैं. ये जहां जाती हैं, खुशियां बिखेरती हैं. ये कठिन से कठिन समय में अपने पति का साथ नहीं छोड़ती हैं. ये हमेशा अपने परिवार को आगे रखती हैं.पति के लिए समृद्धि लाने वालीकर्क राशि - ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कर्क राशि की लड़कियां अपने पति (Husband) के लिए समृद्धि लाने वाली होती हैं. कहते हैं कि ये जिस घर में जाती हैं, वहां धन-संपदा की कमी नहीं होती है. इस राशि की लड़कियां अपने पति के लिए ईमानदार होती हैं. ये संकट काल में अपनों का साथ देती हैं. इनमें दूसरों को खुश रखने की प्रतिभा होती है.पति की खुशियों का रखती हैं ध्यानमीन राशि- शास्त्रों के मुताबिक इस राशि की लड़कियां (Bride) भावुक और केयरिंग होती हैं. ये अपने पति की खुशियां का ख्याल रखती हैं. कहते हैं कि इनकी शादी जिस व्यक्ति से होती है, वह तरक्की हासिल करता जाता है. ऐसी लड़कियों अपने परिवार को मुसीबत से उबारने के लिए हर त्याग करने के लिए तैयार रहती हैं.पति के बन जाते हैं बिगड़े काममकर राशि- इस राशि की लड़कियां (Bride) अपने पति के लिए लकी मानी जाती हैं. घर में ऐसी पत्नी के आ जाने से पति के बिगड़े काम भी बन जाते हैं. ऐसी लड़कियां बुद्धिमान और समझदार होती हैं. वे अपनी समझदारी से पूरे परिवार को एकसूत्र में बांधे रखती हैं. ऐसी लड़कियां मितव्ययी होती हैं और फालतू खर्चे करने से बचती हैं.
- आपने अक्सर घर के बड़े बूढ़ों को ये कहते सुना होगा कि हाथ की लकीरों में हमारी तकदीर छिपी होती है. हालांकि कुछ लकीरें ऐसी होती हैं जो समय के साथ-साथ बनती और मिटती हैं. कहा यह भी जाता है कि लकीरों का बनना और बिगड़ना भी कुछ न कुछ संकेत देता है. कुछ रेखाएं धन संबंधी मामलों के लिए अशुभ मानी जाती हैं.आइए जानते हैं उन रेखाओं के बारे में...ऐसी रेखा हो तो धन की स्थिति सामान्यहस्तरेखाशास्त्र के अनुसार अगर किसी की भाग्य रेखा चंद्र पर्वत से निकले और उसपर त्रिभुज बन जाए, या फिर रेखा पतली हो और मस्तिष्क रेखा पर रुक जाए. ऐसे लोगों की आर्थिक स्थिति सामान्य रहती है.ऐसी रेखा हो तो आती हैं दिक्कतेंअगर किसी की भाग्य रेखा धुंधली हो या फिर शनि-बुध और गुरु दबा हो, ऐसे लोगों को धन संबंधि दिक्कतें आती हैं. इससे छुटकारा पाने के लिए बगुलामुखी और लक्ष्मी माता की पूजा करें.इन उपायों से दूर होगी समस्याअगर किसी की भाग्य रेखा मोटी हो या जीवन रेखा के पास हो, ऐसे लोगों को जीवनभर धन संबंधी दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं. अगर आपकी हस्तरेखा की यही स्थिति है तो नवग्रह पूजन और गृह शुद्धि करें.क्या कहती है जीवन ऐसी जीवन रेखाहस्तरेखाशास्त्र में कहा गया है कि अगर किसी की जीवन रेखा बिल्कुल सीधी हो या भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा पर रुक जाए तो ऐसे लोगों को अक्सर धन संबंधी परेशानी झेलनी पड़ती है. इससे राहत पाने के लिए शनिदेव की पूरा करनी चाहिए.क्या कहती है रेखाओं की ये स्थितिहथेली में यदि कहीं पर भी तीन तरफ से आकर रेखाएं आपस में मिलती हों तो त्रिभुज का निर्माण होता है. यदि आपके भाग्य रेखा पर त्रिभुज का निर्माण होता है तो वह आपके भाग्य को कमजोर कर देता हैं. ऐसे लोगों को अपने जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए बहुत ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है. इन्हें धन की कमी भी झेलनी पड़ती है.
- मृत्यु और उसके बाद के जीवन को लेकर गरुड़ पुराण में विस्तार से बताया गया है। इसमें व्यक्ति के कर्मों के अनुसार मिलने वाले फल और उसके बाद स्वर्ग-नरक के जीवन के बारे में भी बताया गया है। इस पुराण के मुताबिक यदि मरते समय व्यक्ति के पास कुछ खास चीजें हों तो उसे यमराज का दंड नहीं मिलता और वह उसकी मृत्यु शांति से होती है।गंगाजलहिंदू धर्म शास्त्रों में गंगा जल को बहुत शुभ और महत्वपूर्ण बताया गया है। कहते हैं कि गंगाजल पाप धोने के साथ-साथ मोक्ष भी दिलाता है। इसी कामना से गंगा के घाटों पर शवों का अंतिम संस्कार किया जाता है। गरुड़ पुराण के मुताबिक जिस समय व्यक्ति के प्राण निकल रहे हों, उस समय उसके मुंह में गंगाजल डाल देने से उसकी आत्मा को यमलोक में कोई दंड नहीं भोगना पड़ता है। साथ ही उसे इस असार संसार से मुक्ति मिल जाती है।तुलसीतुलसी का पौधा पवित्र और पूजनीय माना गया है। भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्रिय है। मृत्युशैय्या पर लेटे व्यक्ति के मुंह में तुलसी की पत्तियां डाल दी जाएं या उसके सिर के पास तुलसी का पौध रख दिया जाए तो उसे प्राण त्यागने में बहुत आसानी होती है।श्रीमद्भगवद्गीता का पाठकर्म और फल से लेकर जीवन के सार तक श्रीमद्भगवद्गीता में जिंदगी-मौत से जुड़ी कई अहम बातें बताई गईं हैं। मान्यताओं के मुताबिक यदि किसी व्यक्ति कि मृत्यु निकट हो तो उसे गीता सुनाने से उसे यमराज के दंड से तो मुक्ति मिलती ही है, उसे मोक्ष भी मिलता है। यदि संभव हो तो मरने वाला व्यक्ति खुद भी कुछ श्लोक पढ़े तो बहुत अच्छा होता है।ईश्वर का नाम लेनागरुड़ पुराण के मुताबिक प्राण निकलते समय यदि व्यक्ति मन में केवल प्रभु का नाम ही जपता रहे तो ऐसे व्यक्ति को भी यमराज का दंड नहीं मिलता है। साथ ही उसे प्रभु के चरणों में स्थान मिलता है।
- सभी की मृत्यु निश्चित है, लेकिन हर कोई जानना चाहता है कि उसकी आयु कितनी होगी. भले ही व्यक्ति की जिंदगी बेहद खुशहाली में बीत रही हो या तमाम मुश्किलों के बीच कट रही हो, हस्तरेखा शास्त्र में जातक की आयु जानने के तरीके बताए गए हैं। इससे मोटे तौर पर पता चल जाता है कि व्यक्ति किस उम्र तक जिएगा। यह जानने में आयु रेखा समेत कुछ अन्य रेखाओं की स्थिति भी अहम होती है।- हथेली में आयु रेखा का पूर्ण होना व्यक्ति को कम से कम 70 साल तक की आयु देती है। नीच मंगल स्थान से शुक्र पर्वत को गोल घेरते हुए मणिबंध तक पतली, स्पष्ट और अटूट रेखा के जाने को पूर्ण आयु रेखा माना जाता है. इस रेखा को कोई अन्य रेखा काटे या जीवन रेखा आगे तक बढ़ी हुई ना तो इसे अच्छा संकेत नहीं कहा जा सकता है। हालांकि रेखा कटने के बाद भी आगे बढ़ रही हो तो इसका अर्थ है कि व्यक्ति के जीवन पर संकट तो आएगा लेकिन टल जाएगा।- कलाई के पास कुछ गोल रेखाएं होती हैं, जिन्हें मणिबंध रेखा कहते हैं। हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार हर मणिबंध रेखा की आयु 25 वर्ष मानी गई है। इस हिसाब से कलाई में जितनी मणिबंध रेखा होंगी व्यक्ति की आयु उतनी ज्यादा होगी। बता दें कि किसी भी व्यक्ति के हाथ में इनकी संख्या ज्यादा से ज्यादा 4 हो सकती है।- माथे की लकीरें भी आयु बताती हैं। माथे की हर रेखा 20 वर्ष की जिंदगी का संकेत देती है। इस लिहाज से जितनी रेखाएं होंगी, उतनी आयु होगी। यहां भी रेखाएं 4-5 से ज्यादा नहीं होंगी।- उंगली की लंबाई से भी आयु का अनुमान लगाया जा सकता है। यदि व्यक्ति अपनी उंगली से शरीर की लंबाई नापे और उसकी लंबाई 108 उंगली या उससे ज्यादा निकले तो उसकी आयु कम से कम 70 वर्ष तक होती है। वहीं, शरीर की लंबाई 100 उंगली के बराबर होने पर व्यक्ति की आयु 50-55 साल की होती है। इससे कम लंबाई होने पर व्यक्ति अल्पायु होता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 330
(भूमिका - किस प्रकार की साधना से लाभ होगा, किससे नहीं, आइये जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के इस प्रवचन-अंश से जानें, यह अंश उनके द्वारा प्रगटित प्रवचन-श्रृंखला 'दिव्य-स्वार्थ' से लिया गया है, जो उन्होंने 8-प्रवचनों में सन 1992 में दी थी, यह अंश 5-वें प्रवचन का है, जो उन्होंने 28 जनवरी 1992 में दी थी।)
...गौरांग महाप्रभु ने दो प्रकार की साधना बताया है। एक अनासंग साधना, एक सासंग साधना। तो अनासंग साधना माने आसंग रहित और सासंग साधना माने आसंग सहित और आसंग माने मन का चिन्तन भगवान का हो। मन का संग भगवान के रूपध्यान में हो, वो साधना सासंग साधना है।
अनासंग साधना के लिये उन्होंने कहा, करोड़ों कल्प किये जाओ इससे कुछ नहीं मिलेगा। अब ये अलग बात है कि कोई कहे साहब नथिंग से समथिंग अच्छा है, ठीक है, गधा-गधा कहने से राम-राम कहना अच्छा ही है, लेकिन यह साधना नहीं है। फिर आप जब बहुत दिन हो जाते हैं, तो कहते हैं, महाराज जी! हमको तो बहुत दिन हो गये कुछ लड्डू-पेड़ा मिला नहीं। जब साधना ही गलत हो रही है, तो माइलस्टोन तुम्हें कहाँ मिल जायेगा कि हम दस मील चले आये, बीस मील चले आये, अरे मार्ग से आगे बढ़ो। तुम तो एक ही जगह पर खड़े-खड़े मार्चिंग कर रहे हो।
तो सासंग साधना यानी स्मरण भक्ति सबसे प्रमुख है, और स्मरण भक्ति कहीं भी किसी भी पोजिशन में सदा की जा सकती है, ये भी रियायत दे दिया भगवान ने। लैट्रिन में बैठे हैं दस मिनिट बैठना है उसमें, रूपध्यान करो। फालतू टाइम न खराब करो। कहीं भी जाओ, ट्रेन में बैठे हैं, सफर कर रहे हैं, बारह घंटे ट्रेन में चलना है। हाँ यहाँ से वहाँ पहुँचने तक बीच में कोई काम खास है। अरे एक जगह चाय पीना है। कब? दो घंटे बाद पीयेंगे, अच्छा! अब दो घंटे तो कोई काम नहीं? नहीं। स्मरण करो। आँख खोलकर स्मरण करो, नहीं तुम्हारा सामान उठा ले जाय, कोई और कहो कृपालु ने कहा है, आँख बंद करके रूपध्यान करो। हाँ, यानी तुम्हारे मस्तिष्क में पहले यह खूब भरना चाहिये कि स्मरण भक्ति ही वास्तविक भक्ति है।
स्मरण भक्ति के बिना कोई भी साधना, साधना कैसे कहलायेगी, साधना का मतलब, हम दास वो स्वामी। जब स्वामी ही नहीं आया हमारे अंतःकरण में, तो हम भक्ति कहाँ कर रहे हैं? किसकी कर रहे हैं?
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'दिव्य-स्वार्थ' प्रवचन-श्रृंखला०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हर व्यक्ति चाहता है कि उसके घर में हमेशा धन-धान्य बना रहे क्योंकि हर व्यक्ति ऐशो आराम की जिंदगी जीना चाहता है। इसके अलावा आज के समय में एक अच्छा जीवन जीने और छोटी-छोटी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी धन की जरुरत होती है। लोग धन प्राप्ति के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं लेकिन कई बार बहुत परिश्रम करने पर भी धन की बरकत नहीं हो पाती है। अक्सर लोगों को ये शिकायत होती है कि घर में धन आता है और बहुत जल्दी खर्च हो जाता है। यदि आपके जीवन में भी ये समस्या बनी हुआ है तो वास्तु में इसके लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं। जिसके अनुसार तीन चीजें ऐसी बताई गई हैं जिन्हें घर में लाकर रखने से हमेशा सुख-समृद्धि व सकारात्मकता बनी रहती है। आपके घर में रुपए पैसों से जुड़ी सारी समस्याएं दूर होती हैं व धन-धान्य बना रहता है।तो आइए जानते हैं कि कौन सी हैं वे चीजें।मुख्य द्वार पर लगाएं भगवान गणेश की तस्वीरभगवान गणेश जहां विराजते हैं वहां सदैव शुभता बनी रहती है। गणेश जी के साथ रिद्धि-सिद्धि और शुभ-लाभ का भी वास होता है। वास्तु के अनुसार घर के दोनों ओर भगवान गणेश की प्रतिमा लगानी चाहिए लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि गणेश जी की पीठ के दर्शन नहीं होने चाहिए। मुख्य द्वार पर गणेश जी की प्रतिमा लगाने से वास्तु दोष दूर होता है और घर में सकारात्मकताका आगमन होता है, जिससे आपके घर में सुख-समृद्धि व शांति बनी रहती है।तुलसी-सनातन धर्म में तुलसी के पौधे को बहुत ही पूजनीय व पवित्र माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार जिस घर में तुलसी के पौधे में नियम से पानी दिया जाता है व प्रतिदिन प्रातः एवं सांयकाल में तुलसी में दीपक प्रज्वलित किया जाता है। वहां सदैव मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। वास्तु के अनुसार भी तुलसी का पौधा लगाना बहुत शुभ माना गया है। जहां पर तुलसी का पौधा लगा होता है वहां सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह सकारात्मक ऊर्जा आपके जीवन में धन-धान्य व तरक्की दिलाने में सहायक होती है।दक्षिणावर्ती शंख-शंख मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु दोनों को प्रिय है। मां लक्ष्मी की उत्तपत्ति समुद्रमंथन के समय जल से हुई थी इसी प्रकार से शंख की उत्पत्ति भी समुद्रमंथन से मानी गई है। शंख कई तरह के होते हैं इन सभी का अपना महत्व होता है लेकिन इनमें से दक्षिणावर्ती शंख को बहुत दुर्लभ माना जाता है। यह शंख धनवृद्धि करने वाला माना गया है या फिर यूं कहें कि दक्षिणावर्ती शंख को साक्षात लक्ष्मी का स्वरुप माना जाता है। मान्यता है जिस घर में यह शंख होता है वहां कभी भी रुपए पैसों की कमी नहीं होती है। यदि आपके पास दक्षिणावर्ती शंख नहीं भी है तो भी अपने घर में कोई बजने वाला शंख रखना चाहिए। प्रतिदिन घर में शंख बजाने से घर की सारी नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है।
- घर में वास्तु दोष हो तो उसका नेगेटिव इफेक्ट वहां रहने वाले परिवार के हर सदस्य पर पड़ता है। फेंगशुई में विंड चाइम्स को बेहद शुभ, समृद्धिकारक और वास्तुदोष दूर करने वाला माना गया है। माना जाता है कि विंड चाइम से निकली मधुर ध्वनि एवं ऊर्जा भवन की नकारात्मक ऊर्जा को शांत कर दुर्भाग्य को दूर करती है। अगर आप चाहते हैं कि विंड चाइम आपके लिए गुडलक और तरक्की लेकर आए तो ध्यान रखें कि इससे निकलने वाली आवाज सुमधुर हो जो घर के सभी सदस्यों को अच्छी लगे।कहां, कैसी पवन घंटी लगाएंबाज़ार में मिलने वाली विंड चाइम्स कई प्रकार की होती हैं जैसे लकड़ी, मेटल, मिट्टी इत्यादि। लेकिन दिशा के तत्व के अनुसार इन्हें लगाना लाभदायक होता है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व(आग्नेय) एवं दक्षिण दिशा काष्ठ तत्व से संबंध रखती है इसलिए इन दिशाओं में पॉजिटिव एनर्जी को एक्टिव करने के लिए वुडन विंड चाइम लगाना अधिक प्रभावशाली रहेगा। घर की पश्चिमी,उत्तर-पश्चिम(वायव्य) और उत्तर दिशा में टांगने के लिए धातु से बने विंड चाइम घर के वातावरण में सौहार्द एवं शांति बनाए रखने में सहायक होंगे इसी प्रकार उत्तर-पूर्व(ईशान) तथा मध्य स्थान के लिए मिट्टी, क्रिस्टल या सिरेमिक से बनी विंड चाइम लगाने से परिवार के सदस्यों को कामयाबी हासिल करने में मदद मिलती है। घर के दक्षिण-पश्चिम(नैऋत्य) क्षेत्र में इन्हें टांगने से आपसी संबंधों में मजबूती व मधुरता आती है। इस दिशा में आप लकड़ी, मिट्टी या धातु से बनी पवन घंटी लगा सकते हैं।कहां कितनी छड़ वाली हो विंडचाइममुख्य द्वारयदि प्रवेश द्वार के पास कोई वास्तुदोष है तो उसके निवारण के लिए चार छड़ी वाली विंड चाइम मेनगेट पर लगानी चाहिए। इसे दरवाज़े पर परदे के पास इस प्रकार लटकाना चाहिए ताकि आने-जाने से हिलकर यह मधुर ध्वनि उत्पन्न कर सके। इससे वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा के स्तर में वृद्धि होती है।स्टडी रूमबीमारियों से बचने के लिए एवं अध्ययन कक्ष के वास्तु दोष को दूर करने के लिए पांच छड़ वाली विंडचाइम लगाना बेहतर विकल्प है इससे हर क्षेत्र में सफलता मिलती है। इसी प्रकार यदि आपके बच्चे लापरवाह हैं और मनमर्ज़ी करते हों तो उनके कमरे में छह रॉड वाली विंड चाइम लटकाने से लाभ मिलेगा।ड्राइंग रूमयहां पर छह रॉड वाली विंड चाइम उस स्थान पर लगानी चाहिए जहां से मेहमानों का प्रवेश होता हो। आगंतुकों का प्रवेश होने से जब विंड चाइम के टकराने से जो ध्वनि उत्पन्न होगी उससे आने वाले अतिथि का व्यवहार आपके अनुकूल हो जाएगा।कार्यालय मेंआठ छड़ी वाली विंड चाइम का प्रयोग आप अपने ऑफिस में कर सकते हैं, यदि काम में मन नहीं लगता है या रुकावटें बहुत आती हों तो आठ छड़ी वाली विंड चाइम आपकी इस समस्या को दूर करने में सहायक हो सकती है।रिश्तों को बनाएं मजबूतपरिवार में प्यार और अपनापन बढ़ाने के लिए नौ छड़ वाली विंड चाइम का प्रयोग आपको लाभ देगा। इससे न केवल घर में ऊर्जा का प्रवाह बना रहेगा बल्कि निराशा और उदासीनता भी धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 329
★ भूमिका - निम्नांकित पद भक्तियोगरसावतार जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ के 'सिद्धान्त-माधुरी' खण्ड से लिया गया है। 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ में आचार्य श्री ने कुल 21-माधुरियों (सद्गुरु, सिद्धान्त, दैन्य, धाम, श्रीकृष्ण, श्रीराधा, मान, महासखी, प्रेम, विरह, रसिया, होरी माधुरी आदि) में 1008-पदों की रचना की है, जो कि भगवत्प्रेमपिपासु साधक के लिये अमूल्य निधि ही है। इसी ग्रन्थ का यह पद है, जिसमें अपने कल्याण की चाह में लगे साधक-जन के लिये कुछ महत्वपूर्ण सावधानियाँ आचार्यश्री द्वारा बतलाई गई हैं। आइये हम इसके प्रत्येक शब्द पर गंभीर विचार करते हुये लाभ प्राप्त करें ::::
कहत हम खरी खरी कछु बात।बुरा न मानिय साधक-जन कछु, सोचिय समुझिय तात।कंठी-तिलक धारि वैष्णव बनि, गणिकनि राखत नात।सबहिं योगवाशिष्ठ सुनावत, ममता-मद बलकात।करत अनंत शिष्य पै इंद्रिन, शिष्य रहत दिन रात।रसिकनि लखि जरि जात मंदमति, विषइन सों बतरात।महारास-रस भेद बतावत, जहँ विधि-बुधि बौरात।निज कहँ कहत 'कृपालु' दीन पै , रोम रोम मदमात।।
भावार्थ - साधना अवस्था मे कंचन, कामिनी एवं कीर्ति के चक्कर में पड़ जाने वाले, लोकरंजन का ही लक्ष्य-मात्र रखने वाले साधको! हमारी निम्नलिखित स्पष्ट हित की भावना से कही हुई बातों का बुरा न मानना। क्योंकि हम कुछ स्पष्ट बातें कहने जा रहे हैं। इसको निष्पक्ष होकर एकान्त में सोचने समझने का प्रयत्न करना। ऐसे दंभी, कंठी पहिनकर एवं तिलक लगाकर वैष्णव बनने का दावा रखते हुए भी, वेश्याओं से सम्बन्ध रखते हैं। चार-अक्षर पढ़ लेने के कारण सबको योगवशिष्ठ नामक ग्रंथ जिसमें ब्रह्म का ज्ञान लिखा है, जिसका अधिकारी साधन-चतुष्टय-सम्पन्न ही होता है , सुनाया करते हैं और स्वयं सांसारिक जीवों की आसक्ति में बँधे हैं। वे दंभी यों तो कान फूँक-फूँक कर अनन्तानन्त चले बनाते हैं, पर स्वयं अपनी ही इन्द्रियों के निरन्तर चले बने रहते हैं, वास्तविक महापुरुषों को देखकर वे दंभी लोग मूर्खतावश जलने लगते हैं, उनके पास तक जाना पसन्द नहीं करते, दूर से ही निंदा किया करते हैं किंतु स्वयं विषयी जनों से बातें एवं उनकी प्रशंसाएं किया करते हैं। जिस संसार का प्रतिक्षण अनुभव हो रहा है फिर भी उससे वैराग्य नहीं हो पाता। किन्तु ऐसी अवस्था वाले भी दम्भी, ब्रह्म आदि की बुद्धि से भी अतीत, अपनी ही कोटि वाले नारकीय जीवों से समक्ष महारास का रहस्य समझाते हैं। 'श्री कृपालु जी' अपने लिए कहते हैं कि मैं भी स्वयं अपने-आपको सबके सामने दीन कहा करता हूँ किन्तु मेरे रोम-रोम में अभिमान भरा पड़ा है।
०० रचनाकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रेम रस मदिरा' ग्रन्थ, सिद्धान्त-माधुरी, पद 33०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - हस्तरेखा में जीवन रेखा बहुत ही महत्वपूर्ण है। इस रेखा पर बने चिह्न भी जीवन पर व्यापक असर डालते हैं। व्यक्ति की रेखाओं से उसके मकान, अचल संपत्ति के बारे में भी बहुत कुछ पता चलता है। रेखाओं की स्थिति मकान और उसमें सुविधाओं तक का भी संकेत देती हैं। हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार जिन लोगों की जीवन रेखा में त्रिकोण होता है और एक से अधिक भाग्य रेखाएं होती हैं तो ऐसे व्यक्ति खुले स्थान में अपना मकान बनाना पंसद करते हैं। एक से अधिक भाग्य रेखाएं होने के साथ ही शनि की उंगली लंबी हो तो ऐसे लोगों के मकान में पार्क या बगीचा अवश्य होता है। कई भाग्य रेखाओं के साथ जीवन रेखा पर त्रिकोण और मुख्य भाग्य रेख चंद्र पर्वत से निकली हो तो मकान या बंगले में जलाशय होता है।हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार जिस उम्र में भाग्य रेखा मस्तिष्क रेखा के किसी त्रिकोण से गुजरती हो तो व्यक्ति उसी उम्र में मकान बनाते हैं। जिन लोगों की भाग्य रेखा मोटी होती है वे अपना मकान किसी पेड़ के निकट और पास में बड़ा मकान की छाया में रहता है। जीवन रेखा और मस्तिष्क रेखा का जोड़ लंबा, टूटी जीवन रेखा और दोषपूर्ण मस्तिष्क रेखा हो तो ऐसे व्यक्ति के घर के पास का वातावरण अच्छा नहीं होता। मस्तिष्क रेखा या उसकी कोई शाखा चंद्र पर्वत पर जाती हो और भाग्य रेखा भी चंद्र पर्वत से निकलती हो तो ऐसे व्यक्ति का घर समुद्र अथवा झील के निकट होता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 328
(भूमिका - प्रस्तुत अंश जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा लिखित 'प्रेम रस सिद्धान्त' पुस्तक से लिया गया है। इस पुस्तक में आचार्यश्री ने अध्यात्म-जगत के प्रत्येक विषय का अनेक अध्यायों यथा; जीव का चरम लक्ष्य, ईश्वर का स्वरूप, भगवत्कृपा, शरणागति, संसार और वैराग्य का स्वरूप, महापुरुष, ईश्वर-प्राप्ति के उपाय, कर्म, ज्ञान, भक्ति, भगवान के अवतार रहस्य, भक्तियोग, कर्मयोग की क्रियात्मक साधना तथा कुसंग का स्वरूप आदि में विशद रूप से और बड़ी ही सरल भाषाशैली में वर्णन किया है। भगवत्प्रेमपिपासु जीव के लिये यह ग्रंथ अनमोल है। आइये इसी ग्रन्थ के अध्याय - 5, वैराग्य का स्वरूप के एक अंश पर विचार करें....)
...प्रायः लोग राग शब्द का अर्थ प्यार ही करते हैं, पर ऐसा नहीं है, राग का अर्थ है मन का लगाव, वह मन का लगाव प्यार से हो या खार से हो। अर्थात अनुकूल भाव या प्रतिकूल भाव, किसी भी भाव से मन की आसक्ति, आसक्ति ही कहलाएगी और जब न अनुकूल भाव से आसक्ति हो और न प्रतिकूल भाव से आसक्ति हो तभी वैराग्य कहलायेगा।
स्थूल बुद्धि से यों समझिये कि जब आप किसी प्रिय का चिन्तन करते हैं तो सर्वत्र उसी में मन व्यस्त रहता है, 'यह कब मिलेगा, कैसे मिलेगा, कहाँ मिलेगा, बड़ा अच्छा आदमी है, हमारा हितैषी है, हमारा प्रेमी है' इत्यादि। ठीक इसी प्रकार, जिससे आपका द्वेष हो जाये, वहाँ भी सदा सर्वत्र मन व्यस्त रहता है कि 'वह कहाँ मिलेगा, कब मिलेगा, कैसे मिलेगा, वह हमारा शत्रु है, अनिष्टकारी है, उसे मारना है' इत्यादि।
उपर्युक्त रीति से प्यार एवं खार दोनों ही में एक सी स्थिति मन की रहती है। यही प्रमुख कारण है कि अनुकूलभाव से मनको श्यामसुन्दर से एक कर देने वाली गोपियाँ भी भगवत-स्वरूपा बन गयीं एवं प्रतिकूल भाव से मन को श्यामसुन्दर में एक कर देने वाले कंसादिक भी भगवत्स्वरूप बन गये। वेदव्यास की उक्ति के अनुसार;
कामं क्रोधं भयं स्नेहमैक्यं सौहृदमेव च।नित्यं हरौ विदधतो यान्ति तन्मयतां हि ते।।(भागवत 10-29-15)
अर्थात काम से, क्रोध से, भय से, स्नेह से, जैसे-कैसे भी मन का लगाव भगवान में हो जाय, बस उसे भगवान की प्राप्ति होती है। अब आप समझ गये होंगे कि संसार से वैराग्य करने में मन को राग-द्वेष रहित करना होगा अर्थात मन संसार से उदासीन हो जायेगा, यथा;
कबिरा खड़ा बजार में, सबकी माँगे खैर।ना काहू सों दोस्ती, ना काहू सों बैर।।
बस, यही अवस्था वैराग्य की है। जैसे, एक माँ अपने खोये हुए पुत्र को मेले में ढूँढती है। वह रोती हुई अपने बच्चे को खोज रही है। उसे एक बच्चा पीछे से दिखाई पड़ा जिसके कपड़े, आयु, कद, जूते आदि उसी के बच्चे के समान थे। वह उसी बच्चे को अपना बच्चा समझ बैठी और 'बेटा-बेटा' कहकर दौड़ी। जब उसका मुख देखा तो वह उसका बेटा न था। बस, उसे उस बेटे से वैराग्य हो गया, अर्थात वह माँ न तो उस बेटे को प्यार ही करती है कि हमारा बेटा न मिला न सही, चलो इसी से प्यार करें और न तो शत्रुता ही करती है कि 'क्यों रे, मैंने तो सोचा था कि तू मेरा बेटा है, तू पराया क्यों हुआ?' इत्यादि। बस, इसी अवस्था का नाम वैराग्य है।
जैसे, किसी शराबी को शराब के लिये मदिरालय जाना पड़ता है किंतु मदिरालय के पूर्व कई दुकानें अन्य सामानों की पड़ती हैं। वह उन दुकानों के सामने से तो जाता है, देखता भी जाता है, किन्तु विरक्त है। अर्थात न तो किसी दुकान पर खड़ा होता है कि चलो मदिरा न सही, इस दुकान पर रसगुल्ला ही खा लें और न तो झगड़ा ही करता है कि 'मुझे तो मदिरा चाहिये, तू रसगुल्ला की दुकान क्यों बीच में लगाये बैठा है', इत्यादि। वह सबसे विरक्त होकर अपने मदिरालय के लक्ष्य पर जा रहा है। बस, यही वैराग्य है। इस संसार में सब दुकानों से गुजरता हुआ अपने परमानन्द के केन्द्र भगवान की दुकान पर ही सीधा जाय, अन्यत्र कहीं भी न राग हो न द्वेष हो।
यह ध्यान रहे कि जब तक ईश्वर के अतिरिक्त अन्यत्र कहीं भी राग या द्वेष युक्त (आसक्त) रहेगा, तब तक ईश्वर-शरणागति असम्भव है और कब तक संसार में, 'न तो यहाँ हमारा आध्यात्मिक सुख है और न यहाँ हमें बरबस अशान्त करने वाला दुःख ही है', ऐसा ज्ञान परिपक्व न होगा, तब तक वैराग्य भी असम्भव है।
०० व्याख्याकार ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'प्रेम रस सिद्धान्त' पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 327
(भूमिका - प्रस्तुत उद्धरण में जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज साधक समुदाय को समझा रहे हैं कि साधना में महापुरुष अथवा गुरु की भक्ति का क्या महत्व है? भक्ति या साधना का वास्तविक स्वरूप क्या है? मन की चंचलता को स्थिर करने के लिये क्यों साधना के विभिन्न उपायों/तरीकों का सहारा लेना चाहिए? इन प्रश्नों पर आइये इस उद्धरण के माध्यम से विचार करें...)
...भगवान, उनके नाम, उनके रूप, उनकी लीला, उनके गुण, उनके धाम, उनके संत - ये सब एक हैं किन्तु उनमें महापुरुष का नम्बर एक है। उनके बिना न भगवान साथ देगा, न उनका नाम साथ देगा, न उनकी लीला साथ देगी, न उनका धाम साथ देगा। महापुरुष की शरणागति कम्पलसरी है। उसके बाद आप भगवान को भी ले लीजिये, उनके नाम भी, उनके गुण भी, उनकी लीला भी, उनके धाम - सबको साथ लेकर चलिये और अच्छा है क्योंकि मन हमारा बहुत गड़बड़ है। एक चीज में मन लगा नहीं करता क्योंकि चंचल है इसलिए इन्हीं के अन्दर रखना है। लेकिन प्रमुख जो हमारा लक्ष्य होना चाहिये वो महापुरुष में होना चाहिये।
हमारे देश में जितने सिद्धान्त अभी तक बने, वैदिक काल से अब तक, उसमें दो ही उपासना बतलाई जाती है - या तो केवल गुरु की उपासना की जाय अथवा गुरु प्लस भगवान दोनों की भक्ति एक-सी की जाय।
यस्य देवे परा भक्तिर्यथा देवे तथा गुरौ।तस्यैते कथिता ह्यर्था: प्रकाशन्ते महात्मनः।।(श्वेताश्वतरोपनिषद 6-23)
वेद कहता है जैसी भक्ति इष्टदेव के प्रति हो, जितनी मात्रा की, वैसी ही भक्ति गुरु के प्रति हो।
तो गुरु प्लस भगवान दोनों को बराबर मानकर उपासना करना है, साथ में नाम भी रहे, गुण भी रहे, लीला भी रहे, धाम भी रहे, महापुरुष का नाम रहे, भगवान का नाम रहे, महापुरुष का गुण रहे, भगवान का गुण रहे, महापुरुष की लीला रहे, भगवान की लीला रहे, सब बराबर हैं।
और या तो फिर केवल गुरुभक्ति हमारे शास्त्रों में, वेद में, संप्रदायों में चल रही है। भई! जब भगवान को हमने देखा नहीं, समझा नहीं, वह हमारी बुद्धि में समाता नहीं तो जो भगवान के बराबर ही सामान है, और सामने है उसको हम जल्दी पकड़ लेंगे। तो कुछ लोग गुरुभक्ति ही करते हैं लेकिन केवल गुरुभक्ति करना उसी के लिये उपयुक्त है जिसकी गुरु में निष्ठा परिपक्व हो गई है।
जिसकी निष्ठा परिपक्व नहीं हुई है उसे दोनों को साथ लेकर चलना चाहिये और इस प्रकार दोनों को साथ रखने में और भी बहुत सामान मिलता है। भगवान की लीला भी मिली, महापुरुष की लीला भी मिली, महापुरुष के गुण हैं, भगवान के भी गुण हैं, सब कुछ सामान है।
तो चूँकि मन गड़बड़ है साधनावस्था में इसलिये अनेक प्रकार का सामान दो। बाललीला के स्मरण में उदासी आ गई, अब किशोर लीला दो, अब वात्सल्य भाव दो, अब सख्य भाव दो। तो लुभाये रहिये मन को उसी ईश्वरीय जगत में, वो नीचे न आने पावे।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'नाम-महिमा' प्रवचन पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) - ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक शरीर के अंगों का असमय फड़कना कुछ अशुभ और शुभ कार्य होने का संकेत देता है. आज हम आपको बताएंगे कि कौन से अंगों का फड़कना शुभ माना जाता है और कौन से अंगों का अशुभ.इन अंगों का फड़कना शुभ संकेत------------- पुरुष के शरीर का दाहिना और महिला के शरीर का बायां भाग अगर फड़कता है तो इसका मतलब होता है कि जल्द ही कोई अच्छी खबर मिलने वाली है.- अगर किसी इंसान के दोनों गाल एक साथ फड़कने लगें तो उससे धन लाभ की संभावना बढ़ जाती है.- इंसान का दाहिना कंधा फड़कने का मतलब अत्यधिक धन लाभ और बायां कंधा फड़कने का मतलब जल्द मिलने वाली सफलता से होता है.गले का फड़कना माना जाता है शुभ---------------अगर किसी इंसान का गला फड़कता है तो उसे शुभ माना जाता है. इसका मतलब होता है कि घर में खुशहाली आने वाली है.- सिर का मध्य भाग फ़ड़कने से धन प्राप्ति होती है और परेशानियों से मुक्ति मिलती है.- स्त्री की बाईं आंख चारों ओर फड़कने से विवाह के योग बनते हैं.-यदि किसी व्यक्ति की नाक फड़के तो उसे धन की प्राप्ति होती है.इंसान के दोनों कंधे फड़कना अशुभ------------ अगर किसी इंसान के दोनों कंधे एक साथ फड़कते हैं तो उसे अशुभ माना जाता है. इसका मतलब यह है कि किसी के साथ आपकी बड़ी लड़ाई होने वाली है.- अगर आपकी हथेली में हलचल होती है तो इसका मतलब ये होता कि आप जल्द ही किसी मुसीबत में घिरने वाले हैं.स्त्री की बायीं आंख फड़कना ठीक नहीं---------- अगर किसी स्त्री की बायीं आंख फड़कती है तो ये वियोग का लक्षण होता है.- यदि किसी व्यक्ति की गर्दन बाईं ओर फड़कती है तो यह धनहानि का संकेत होता है.- अगर किसी व्यक्ति की दाहिनी जांघ फड़कती है तो इससे उसे शर्मिंदगी झेलनी पड़ सकती है.इस संकेत को न करें नजरअंदाज--------- अगर व्यक्ति की हथेली के किसी कोने में फड़फड़ाहट हो तो वह निकट भविष्य में उसके संकट में घिरने का संकेत होता है.-यदि किसी इंसान के दाहिने हाथ का अंगूठा फड़फड़ाए तो इसका मतलब होता है कि उसकी मनचाही मुराद मिलने में विलंब होने जा रहा है.- अगर इंसान की छाती के दाहिनी ओर फड़फड़ाहट हो तो यह विपदा का संकेत माना जाता है.
- हर व्यक्ति के शरीर की बनावट अलग-अलग होती है एवं प्रत्येक व्यक्ति के शरीर पर कई तरह के चिन्ह और तिल बने होते हैं। सामुद्रिक शास्त्र एक ऐसी विधा है जिसमें शरीर के अंगों की बनावट और शरीर पर बने हुए चिन्ह एवं तिलों को देखकर व्यक्ति के बारे में जानकारी दी जाती है। शरीर पर बनने वाले कुछ चिन्हों और तिलों को अशुभ माना जाता है तो वहीं कुछ को बहुत ही शुभ माना जाता है। कुछ चिन्ह ऐसे भी होते हैं जो व्यक्ति को बहुत भाग्यशाली बनाते हैं। सामुद्रिक शास्त्र में कुछ चिन्हों, तिलों और शरीर के अंगों की बनावट के बारे में बताया गया है, जिन लड़कियों के शरीर पर ये होते हैं, उन्हें बहुत ही भाग्यशाली माना जाता है। इनके बारे में कहा जाता है कि ये जहां भी जाती हैं वहां सुख-समृद्धि आती है। तो चलिए जानते हैं किन लड़कियों को माना जाता है बहुत ही भाग्यशालीपैर के तलवे में शुभ निशानसामुद्रिक शास्त्र के मुताबिक जिन लड़कियों के पैर के तलवे में शंख, कमल या चक्र चिन्ह बना होता है वे स्वयं और परिवार के लिए बहुत भाग्यशाली होती हैं। ये स्वयं भी किसी ऊंचे पद पर पहुंचती हैं। इसके साथ ही जिन लड़कियों के पैर का अंगूठा चौड़ा और गोलाई एवं लालिमा लिए हुए होता है, उनका पूरा परिवार सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करता है।शरीर के बाएं हिस्से में तिलहर व्यक्ति के शरीर के अलग-अलग हिस्सों में तिल होते हैं। कुछ तिल व्यक्ति के जन्म समय के होते हैं तो वहीं कुछ तिल बाद में बन जाते हैं। शरीर पर बने हुए तिलों का अलग-अलग महत्व माना जाता है। यदि किसी महिला के शरीर पर दाएं हिस्से की तुलना में बाएं हिस्से में अधिक तिल होते हैं तो माना जाता है कि ऐसी लड़कियां परिवार के लिए भाग्यशाली होती हैं।चौड़ा माथासामुद्रिक शास्त्र के मुताबिक जिन लड़कियों का माथा चौड़ा होता है वे बहुत भाग्यशाली होती हैं। यदि किसी लड़की का माथा तीन अंगुल से चौड़ा और चंद्रमा के आकार का हो तो ऐसी लड़कियां सौभाग्य और सुख में वृद्धि करने वाली होती हैं माना जाता है कि ये जिस घर में जाती हैं वहां धन-धान्य और खुशहाली बनी रहती है। ये लड़कियां स्वभाव की कठोर होती हैं लेकिन दिल से नरम होती हैं। जिन लड़कियों का माथा आगे से उठा हुआ होता हैं उनके विषय में माना जाता है कि ये भाग्यशाली, तीक्षण बुद्धि एंव विदुषी होती हैं। ये अपने परिवार के आगे बढ़ाने और उनके स्तर को ऊंचा उठाने का प्रयास करती हैं।लंबी उंगलियों वाली लड़कियांसामुद्रिक शास्त्र के अनुसार जिन लड़कियों की उंगलियां लंबी और सुंदर होती हैं वे अपने पति के लिए बहुत भाग्यशाली होती हैं। इनकी जिससे भी शादी होती हैं उसे नौकरी और व्यवसाय में खूब तरक्की प्राप्त होती है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 326
★ भूमिका - आज के अंक में प्रकाशित दोहा तथा उसकी व्याख्या जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ग्रन्थ 'भक्ति-शतक' से उद्धृत है। इस ग्रन्थ में आचार्यश्री ने 100-दोहों की रचना की है, जिनमें 'भक्ति' तत्व के सभी गूढ़ रहस्यों को बड़ी सरलता से प्रकट किया है। पुनः उनके भावार्थ तथा व्याख्या के द्वारा विषय को और अधिक स्पष्ट किया है, जिसका पठन और मनन करने पर निश्चय ही आत्मिक लाभ प्राप्त होता है। आइये उसी ग्रन्थ के 52-वें दोहे पर विचार करें, जिसमें आचार्यश्री ने यह बताया है कि ब्रह्म के 2 रूप कौन से हैं? ब्रह्म का रस और रसिक रूप क्या है? आइये निम्न दोहे और उसकी व्याख्या से इसका रहस्य जानें...!!
ब्रह्म एक मधु रूप है, एक भ्रमर उनमान।एक रूप रस देत है, एक आपु कर पान।।52।।
भावार्थ - ब्रह्म के 2 स्वरूप होते हैं। एक रस रूप। दूसरा रसिक रूप। अर्थात् एक मधु के समान। दूसरा भौरे के समान। एक रूप से स्वयं रस पान करते हैं। दूसरे रूप से जीवों को भी वही रस पान कराते हैं।
व्याख्या - वेद कहता है । यथा - रसो वै सः .......। यह रस रूप ब्रह्म 2 अर्थ वाला है; (1) रस्यते इति रसः (2) रसयति इति रसः।
(1) जिसका आस्वादन किया जाय। जैसे मधु।(2) जो रस का आस्वादन करता है। जैसे भ्रमर।
रस शास्त्र में विशेष उत्कर्ष ज्ञापक अर्थ में ही रस शब्द का प्रयोग हुआ है। विशेष विलक्षण चमत्कारित्व को ही रस का प्राण माना है। चमत्कारित्व का स्वरूप यह है कि रस के आस्वादन करने में बहिरंग (हाथ पैर आदि) एवं अंतरंग (मनबुद्धि) इंद्रियां दोनों का कार्य स्तंभित हो जाय। दूसरे विषय में ज्ञान - रहित हो जाय। वही रस है। अतः जिस वस्तु में नित नवायमान रस का अनुभव हो। तथा जिसके अनुभव में प्रतिक्षण ऐसा लगे कि ऐसा अपूर्व माधुर्य इसके पूर्व कभी अनुभव में नहीं आया। तथा उस रस से कभी मन न भरे। प्रतिक्षण प्यास बढ़ती जाय। यह आस्वाद्य रस है यथा - 'आली रस की रीति निराली प्याली भरे न खाली होय'। यह ब्रह्म रस रूप में आस्वाद्य एवं आस्वादक दोनों है। पूर्व में बता चुके हैं कि ब्रह्म में अनंत स्वाभाविक शक्तियाँ होती हैं। अतः स्वाभाविक शक्तियों से युक्त आनंद ही ब्रह्म है। आनंद विशेष्य है एवं शक्ति विशेषण है। विशेषण अपने विशेष्य को वैशिष्ट्य प्रदान करता है। अर्थात् शक्ति रूपी विशेषण, आनंद रूप विशेष्य को विशिष्टता प्रदान करने वाला है। ब्रह्म का आनंद चेतन है। जगत् के आनंद के समान जड़ एवं क्षणिक नहीं है। जिस रस का आस्वादन स्वयं श्री कृष्ण करते हैं उसे स्वरूपानंद कहा जाता है। सारांश यह कि श्री कृष्ण, अपनी स्वरूप शक्ति के द्वारा अपने माधुर्य रस का भोग करते हैं। जिसमें भक्तों द्वारा विशेष माधुर्य का आस्वादन करते हैं। उसे स्वरूप शक्त्यानंद कहा जाता है। स्वरूप शक्त्यानंद (भक्तों द्वारा प्राप्त माधुर्य रस) भी दो प्रकार का होता है। यथा;(1) ऐश्वर्यानंद - इसमें ऐश्वर्य रस प्रधान है । माधुर्य गौण है।(2) मानसानंद - इसमें माधुर्य ही माधुर्य ओतप्रोत है । इनमें स्वरूपानंद से सरस ऐश्वर्यानंद (भक्तों द्वारा प्राप्त) एवं उससे भी सरस मानसानंद है। यही ब्रजरस कहा जाता है। यही सर्वश्रेष्ठ है।
ऐश्वर्य शिथिल प्रेमे नहे मोर प्रीत।(चैतन्य चरितामृत)
ब्रजरस में ऐश्वर्य गुप्त रूप से ही सेवा करता है। प्रत्यक्ष नहीं आता है। यह ब्रजलीला नर लीला कहलाती है।
०० व्याख्याकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: 'भक्ति-शतक' (दोहा संख्या - 52)०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -(1) www.jkpliterature.org.in (website)(2) JKBT Application (App for 'E-Books')(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)(4) Kripalu Nidhi (App)(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.) -
ऐसी कहावत है कि जोड़े आसमान में बनते हैं, और जो लोग साथ रहने के लिए बने होते हैं वे किसी न किसी रूप में एक-दूसरे से टकरा ही जाते हैं. एक जोड़े की आपसी अनुकूलता उनकी राशि (Zodiac) और उससे मिलने वाले गुण-अवगुणों और व्यक्तित्व (Personality) से तय होती है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, लड़का-लड़की की राशि मिलाकर उनके आने वाले जीवन के बारे में कुछ हद तक जाना जा सकता है. चलिए आज हम आपको राशि के हिसाब से कुछ ऐसे मेल बताते हैं, जो एक-साथ मिलकर आदर्श जोड़ी बनाते हैं.
तुला और सिंह का कनेक्शन
इन दोनों राशि के लोगों की आपस में खूब पटती है. ऐसा कहा जाता है कि इनकी जोड़ी स्वर्ग से बनकर आई है. दोनों ही साफ दिल के होने से किसी भी बात को मन में रखना पसंद नहीं करते हैं. ये एक-दूसरे को अच्छे से समझते हैं. दोनों ही वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने की कोशिश करते हैं. स्वभाव से रोमांटिक होने से इनमें गहरा प्यार होता है. कुछ लोग तो इनकी जोड़ी को देखकर जलन महसूस करते हैं.
सिंह और धनु का सपोर्टिव कनेक्शन
सिंह और धनु राशि के जातक आत्मविश्वासी, निडर व सपोर्टिव नेचर के होते हैं. ऐसा देखा गया है कि धनु राशि वाले सिंह वालों की ओर जल्दी आकर्षित हो जाते हैं. ये एक-साथ जोड़ी के रूप में परफेक्ट कपल बनाते हैं. दोनों ही जिंदगी में एक-दूसरे का साथ व सपोर्ट करते हैं. जरूरत में एक-दूसरे को हिम्मद देने के साथ ईमानदारी से रिश्ता निभाते हैं.
सिंह और कुंभ का है बेस्ट कनेक्शन
सिंह और कुंभ राशि के लोगों की दुनिया की बेस्ट जोड़ी मानी जाती है. ये दोनों एक-दूसरे के प्रति समर्पित होते हैं. ये पूरी ईमानदारी से अपना रिश्ता निभाते हैं. इसके अलावा इन दोनों में ही बेहद उत्साह देखने को मिलता है. साथ ही यही उत्साह इनके रिश्ते की गर्माहट में भी दिखाई देता है.
मेष और कुंभ का रोमांटिक कनेक्शन
इस राशि के लोग रोमांच से भरे होते हैं, इसलिए इन्हें बेस्ट रोमांटिक कपल भी कहा जा सकता है. ये निडर, साहसी व एडवेंचर के शौकिन होते हैं. इन्हें अलग-अलग जगह पर घूमना व उनके बारे में जानना बेहद पसंद होता है. ये जिंदगी में एक ही काम को करने की जगह हमेशा कुछ नया ट्राई करने की कोशिश में रहते हैं. दोनों में बेहद प्यार होने के चलते ये एक-दूसरे से थोड़ी देर के लिए भी दूर रहना बर्दाशत नहीं करते हैं.
कुंभ और मिथुन का लव एट फर्स्ट साइट
इस राशि के जातकों को पहली नजर में ही प्यार हो जाता है. ये हमेशा एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं. इनमें खास बात है कि इनका आकर्षण कभी खत्म नहीं होता है. ऐसे में ये लोग जिंदगी भर एक-दूसरे के प्रति ईमानदारी के साथ रहते हैं. वहीं समाज में बेस्ट कपल की तरह नजर आते हैं.
कन्या और मकर की है आर्दश जोड़ी
इन दोनों राशि के लोगों में समर्पण की भावना होती है. ऐसे में ये पार्टनर के साथ पूरी ईमानदारी से रिश्ता निभाते हैं. ये दोनों एकसाथ मिलकर एक आदर्श जोड़ी बनाते हैं. इनकी मैरिड लाइफ शांति व सुखमय बीतती है.
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शमी के वृक्ष का हमारे धर्म ग्रंथों रामायण, महाभारत और पुराणों में भी जिक्र आता है। धार्मिक रूप से भी शमी के वृक्ष का बहुत महत्व है। इसका संबंध भगवान राम और पाण्डवों से भी रहा है। शमी की लकड़ी का कुछ विशेष यज्ञों में भी प्रयोग किया जाता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार , शमी के वृक्ष का पूजन करने से शनि ग्रह को शांत किया जा सकता है। जिस व्यक्ति पर शनि का दुष्प्रभाव चल रहा हो , उसे अपने घर में शमी का वृक्ष लगाना चाहिए। आइए जानते हैं शमी वृक्ष के महत्व और प्रभाव के बारे में..
ज्योतिष आचार्यों के अनुसार, शमी और पीपल ये दो पेड़ ऐसे हैं, जिनका प्रयोग शनि देव के प्रभाव को कम करने के लिए किया जाता है। शनि देव या शनि ग्रह का प्रभाव हर व्यक्ति के जीवन में एक बार जरूर पड़ता है। शनि के दुष्प्रभाव से बचने के लिए घर में या घर के आस-पास शमी का वृक्ष लगाएं तथा शनिवार को इसके नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इसके अलावा शमी के फूल तथा पत्तों का भी प्रयोग शनि ग्रह के प्रभाव को कम करने के लिए किया जाता है। मान्यता है कि घर में शमी का पेड़ लगा रहने से टोने, टोटके और नकारात्मक ऊर्जा का घर पर प्रभाव नहीं पड़ता।
शमी के वृक्ष का हिंदू धर्म में विशेष स्थान है, इसका वर्णन रामायण और महाभारत दोनों जगह किया गया है। रामायण में उल्लेख है कि जब लंका पर युद्ध से पहले भगवान राम ने विजय मुहूर्त में हवन किया था , तो शमी का वृक्ष उसका साक्षी बना था। इसी प्रकार महाभारत में जब अज्ञातवास के दौरान अर्जुन ने बृह्न्नलला का रूप लिया था , तो अपना गाण्डीव धनुष शमी के वृक्ष पर ही छिपाया था। विराट नगर के युद्घ में यहां पर से ही गाण्डीव निकाल कर कौरवों को अकेले ही भागने पर मजबूर कर दिया था। शमी के पत्तों का प्रयोग भगवान गणेश और दुर्गा मां की पूजा में भी किया जाता है। -
वास्तु में दिशाओं का विशेष महत्व होता है यदि घर की दिशा गलत या निर्माण करवाते समक्ष किसी भी चीज को गलत दिशा में बना दिया जाए तो व्यक्ति के जीवन में उन्नति रुक जाती है और जीवन में कई तरह की समस्याएं पैदा होने लगती हैं। वास्तु शास्त्र में कई वेधों के बारे में उल्लेख किया गया है। इनमें स्तंभवेध, वृक्षवेध और छाया वेध आदि होते हैं। इन वेधों में से एक छायावेध होता है। इसका मतलब होता है, आपके मकान पर किसी अन्य मकान, पेड़ या ऊंची बिल्डिंग की छाया पडऩा। यदि आपके मकान पर किसी चीज की छाया पड़ती है तो यह वास्तु दोष माना जाता है। छाया वेध के कारण परिवार के सदस्यों को गंभीर रोग जैसे मस्तिष्क के रोग, लकवा और हृदय संबंधी रोग आदि होने की आशंका रहती है। छायावेध के प्रभाव से तरक्की, सफलता और आर्थिक उन्नति में भी बाधाएं बनी रहती हैं। हांलांकि छाया कितनी अशुभ है यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह किस प्रकार का छाया वेध है। तो चलिए जानते हैं कि किस प्रकार बनता है छायावेध और यह कितनी तरह का होता है।
किसी मकान पर पडऩे वाली छाया अशुभ है या नहीं , यह इस बात पर निर्भर करता है कि छाया किस तरह की है और कितने समय तक पड़ रही है। यदि आपके घर पर किसी भी चीज की छाया लगभग छह घंटों तक पड़ती है तो इसे छाया वेध माना जाता है। वास्तु शास्त्र में मुख्यता पांच प्रकार के छाया वेध के बारे में बताया गया है। मंदिर, वृक्ष, भवन, पर्वत, ध्वज।मंदिर छाया वेधघर के पास मंदिर होना सभी को अच्छा लगता है क्योंकि इससे वातावरण सकारात्मक बना रहता है लेकिन मंदिर की छाया आपके मकान पर पडऩा भी नुकसानदायक हो सकता है। यदि सुबह के 10 बजे से लेकर दोपहर के 3 बजे तक किसी भी मंदिर की छाया मकान पर पड़ती है तो ये छाया वेध बनता है। इसके कारण विवाह और संतान प्राप्ति में देरी, करोबार में नुकसान और पारिवारिक कलह का सामना करना पड़ता है।ध्वज छाया वेधकिसी मंदिर के पास 100 फीट के अंतर्गत बने हुए मकान ध्वज छाया वेध के अंदर आते हैं हालांकि यदि मंदिर की ऊंचाई कम है और उसके ध्वज की छाया मकान के ऊपर नहीं पड़ती है तो यह छाया वेध मान्य नहीं होता है। इसका कोई प्रभाव नहीं रहता है। यदि ध्वज की ऊंचाई से दोगुनी जगह छोड़कर मकान का निर्माण करवाते हैं तो वास्तु दोष नहीं लगता है।पर्वत छाया वेधयदि किसी के घर की पूर्व दिशा की ओर किसी पर्वत, ऊंचे टीले आदि की छाया पड़ती है तो यह छाया वेध के अंतर्गत आता है। यह परिवार के सदस्यों की सफलता में बाधक होता है साथ ही मान-प्रतिष्ठा की हानि होने का डर रहता है। पूर्व के अलावा अन्य दिशाओं पर इस छाया का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।भवन छाया वेधयदि आपके मकान पर किसी बड़े मकान, ऊंची बिल्डिंग आदि की छाया पड़ती है तो यह छाया वेध हो सकता है लेकिन यह छाया कितनी अशुभ है यह इस बात पर निर्भर करता है कि छाया कहां पर पड़ती है। यदि आपके मकान के आसपास बोरिंग या कुंए आदि पर यह छाया पड़ रही है तो यह छाया वेध के अंदर आती है। इसके कारण आपको आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ सकता है। माना जाता है कि किसी अन्य घर की छाया पडऩे के कारण परिवार के मुखिया को घोर कष्ट का सामना करना पड़ता है।वृक्ष छाया वेधयदि आपके घर पर सुबह के 10 बजे से दोपहर के 3 बजे तक किसी पेड़ की छाया घर पर पड़ती है तो यह बहुत अशुभ माना जाता है, लेकिन इसमें दिशा का ज्ञान होना आवश्यक होता है। यदि घर के घर की आग्नेय दिशा में वट, पीपल, सेमल, पाकड़ तथा गूलर का वृक्ष है तो जीवन में असफलता का सामना करना पड़ता है। इसके कारण प्राणों तक पर संकट आ सकता है।