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ब्रज की होली विश्व प्रसिद्ध है। होली के पर्व पर यहां सदियों पुरानी लीलाएं जीवंत हो जाती हैं। इनमें भक्त प्रहलाद की लीला भी शामिल हैं, जो हर वर्ष मथुरा के गांव फालैन में होती है। गांव फालैन में होली पर एक पंडा धधकते हुए अंगारों पर चलता है। इस बार भी मोनू पंडा इस हैरतअंगेज कारनामे को करेगा। प्रहलाद नगरी फालैन में मोनू पंडा शनिवार को विधिवत पूजा-अर्चना के बाद तप पर बैठ गए। बेहद कठोर नियमों का पालन करते हुए एक माह तक पंडा घर नहीं जाएंगे। वह मंदिर पर रहकर अन्न का त्याग कर तप करेंगे। होलिका वाले दिन लग्न के अनुसार पंडा धधकती होलिका से होकर गुजरेंगे।
भक्त प्रहलाद के होलिका से बच निकलने के कारनामे को साकार करने के लिए प्रहलाद नगरी फालैन में तैयारियां शुरू हो गईं हैं। मोनू पंडा ने ग्रामीणों के साथ परिक्रमा कर प्रहलाद कुंड पर मंदिर के समीप होलिका स्थल की पूजा परिक्रमा की। इस दौरान ग्रामीणों ने प्रहलादजी महाराज के जयघोष के साथ गुलाल उड़ाया। परिक्रमा कर पंडा प्रहलाद कुंड के किनारे मंदिर पर पहुंचे।
जहां उन्होंने पूजा कर होलिका की पूजा की। मेला आचार्य पंडित भगवान सहाय ने मंत्रोच्चारणों के मध्य होलिका स्थल पर होलिका का पूजन कराया और होलिका रखवाई। इसी के साथ पंडा को प्रहलादजी की माला सौंपकर तप के नियम समझाए। इसी के साथ मोनू पंडा दूसरी बार धधकते अंगारों से निकलने के लिए तप पर बैठ गए। मेला आचार्य भगवान सहाय पंडित ने बताया कि एक माह तक पंडा ब्रह्मचर्य का पालन करेंगे और घर नहीं जाएंगे। 29 मार्च को अलसुबह होलिका के धधकते अंगारों से होकर पंडा निकलेगा।
ये है मान्यता
जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर दूर फालैन गांव है, जिसे प्रहलाद का गांव भी कहा जाता है। मान्यता है कि गांव के निकट ही साधु तप कर रहे थे। उन्हें स्वप्न में डूगर के पेड़ के नीचे एक मूर्ति दबी होने की बात बताई। इस पर गांव के कौशिक परिवारों ने खोदाई कराई। जिसमें भगवान नृसिंह और भक्त प्रहलाद की प्रतिमाएं निकलीं। प्रसन्न होकर तपस्वी साधु ने आशीर्वाद दिया कि इस परिवार का जो व्यक्ति शुद्ध मन से पूजा करके धधकती होली की आग से गुजरेगा, उसके शरीर में स्वयं प्रहलादजी विराजमान हो जाएंगे। आग की ऊष्मा का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसके बाद यहां प्रहलाद मंदिर बनवाया गया। मंदिर के पास ही प्रह्लाद कुंड का निर्माण हुआ। तब से आज तक प्रहलाद लीला को साकार करने के लिए फालैन गांव में आसपास के पांच गांवों की होली रखी जाती है। फालैन को प्रहलाद का गांव भी कहा जाता है। गांव का पंडा परिवार प्रहलाद लीला की जीवंत किए हुए हैं। - वास्तु शास्त्र में दिशाओं का बहुत महत्व माना जाता है। हर दिशा के दिग्पाल और ग्रह अलग-अलग होते हैं, इसलिए हर दिशा का अपना एक अलग महत्व होता है। इसी तरह से घर की उत्तर दिशा को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। वास्तु के अनुसार घर की उत्तर दिशा में धन के कोषाध्यक्ष कुबेर का स्थान होता है। यह दिशा सकारात्मक ऊर्जा का भंडार मानी जाती है। उत्तर दिशा का घर भी बहुत शुभ माना जाता है।उत्तर दिशा के घर में सुख-समृद्धि आती है, इसलिए घर की उत्तर दिशा में कुछ भी निर्माण करते या सामान रखते समय बहुत ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जिन्हें यदि इस दिशा में रखा जाए तो आपके घर में धन की आवक रूक जाती है। आपके घर में आर्थिक तंगी आने लगती हैं। जानते हैं कि वे कौन सी चीजें हैं जिन्हें उत्तर दिशा में नहीं रखना चाहिए।जूते-चप्पलघर की उत्तर दिशा में कभी भी जूते-चप्पल रखने का स्थान नहीं बनाना चाहिए। बाहर से घर में आते समय कभी भी उत्तर दिशा में जूते-चप्पल नहीं उतारने चाहिए। इससे आपके घर में नकारात्मकता बढऩे लगती है। इसके साथ ही आपके घर में आर्थिक तंगी होने लगती है।भारी-भरकम फर्नीचरवास्तु के अनुसार उत्तर दिशा को खाली और खुला हुआ रखना चाहिए। इससे आपके घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बना रहता है। इस दिशा में भूलकर भी भारी सामान या फिर भारी-भरकम फर्नीचर नहीं रखना चाहिए। इससे आपके घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बाधित होने लगता है। आपको धन संबंधित समस्याओं और अन्य परेशानियों का सामना करना पड़ता है।कूड़ेदानउत्तर दिशा को जितना हो सके एक दम साफ-सुथरा रखना चाहिए। इस दिशा में भूलकर भी गंदगी या कूड़ेदान नहीं रखना चाहिए। यदि आप उत्तर दिशा में कूड़ेदान रखते हैं तो आपको आए दिन पैसों की समस्या का सामना करना पड़ता है।टॉयलेट या बाथरूमउत्तर दिशा के सबसे बड़ा दोष होता है टॉयलेट या बाथरूम का निर्माण करवाना। यदि किसी के घर की उत्तर दिशा में टॉयलेट और बाथरूम बना हुआ है तो उसके घर में हमेशा पैसों की किल्लत बनी रहती हैं और दरिद्रता बढ़ती जाती है। यदि इस दिशा में आपने गलती से बाथरूम या फिर टॉयलेट का निर्माण करवा लिया हो तो एक कांच की कटोरी में नमक भरकर बाथरूम के एक कोने में रख दें। पंद्रह दिन या सप्ताह में इसे बदलते रहें। इससे नकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह में कमी आती है।---
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 211
(संसार के स्वरुप पर विचार करते हुये इससे मन को हटाकर भगवान की ओर लगाने के अभ्यास के संबंध में जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा संक्षिप्त प्रवचन...)
हमको जो सुख मिलता है, वो आत्मा का सुख नहीं है, मन का है और लिमिटेड है और वो नश्वर है। तमाम गड़बड़ियाँ हैं उसमें। जो भी सुख हमको मिलता है संसार में वो सदा नहीं रहती। ये तो अनुभव करता है आदमी। भूख लगी है रसगुल्ला खाया सुख मिला। उसमें भी पहले रसगुल्ले में ज्यादा सुख मिला, दूसरे में उससे कम, तीसरे में उससे कम, चौथे में ख़तम। जिस वस्तु से सुख मिलता है उससे भी हमेशा एक सा नहीं मिलता। धीरे-धीरे घटता जाता है और फिर उसी से दुःख मिलने लगता है। ये भी होता है। स्वार्थ हानि हुई कि दुःख। उसी बीबी से प्यार है और उसी बीबी की शकल देखने से नफरत है। उसी बेटे से प्यार है और उसी से झगड़ा हो गया या कोई अपमान कर दिया बाप का तो उससे बातचीत करना बन्द। तो संसार का सुख तो अगर थोड़ा है और सदा रहे तो भी कोई बात है। वो तो आया गया, धूप-छाँव की तरह।
तो ये सब बातें हमेशा बुद्धि में बैठी रहें। कभी बैठती हैं कभी गायब हो जाती हैं, फिर संसार में बह जाता है वो। लापरवाही से। 'तत्त्वविस्मरणात् भेकीवत्।' भूल गया। तो फिर क्या होगा?
तो हम तत्त्व को भूल जाते हैं। जिस समय गुरु का उपदेश होता रहता है तो समझ में सब बात आती है पढ़े लिखे आदमी को। वो मानता है, एडमिट करता है, सब सही है और फिर संसार के एटमोस्फियर में गया और भूल गया। तो उसमें सावधान रहना चाहिए और बार-बार मन को पकड़ करके बुद्धि के द्वारा हरि गुरु के चरणों में लगाते रहना चाहिए। तो अभ्यास करने से पक्का हो जाएगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - पीले रंग का सन स्टोन एक उप रत्न है, जो सूर्य की आभा लिए होता है। माणिक का उप-रत्न सन स्टोन सूर्य का रत्न है। सूर्य देव जीवन में सफलता प्रदान करते हैं इसलिए उनकी कृपा होना बहुत जरूरी होता है। मान्यता है कि अगर सूर्य देव आपसे नाराज़ हो गए तो हर काम में नाकामी ही मिलती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में सूर्य को मजबूत करने के लिए सन स्टोन धारण किया जाता है, जिससे सूर्य मजबूत व प्रभावी होते हैं। पिता से साथ भी संबंध यदि सही रखना है तो सूर्य का प्रभावी होना जरूरी है।किस राशि के लोग धारण कर सकते हैं?ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह मीन, सिंह और तुला राशि के लिए अच्छा रत्न माना जाता है। इन राशि के जातक ज्योतिषीय परामर्श लेकर सन स्टोन धारण कर सकते हैं। बिना परामर्श के धारण करना आपके लिए हानिकारक हो सकता है।सन स्टोन धारण करने के लाभयह सूर्य ग्रह का उप-रत्न है। सन स्टोन में एक मजबूत सौर ऊर्जा होती है, इसलिए वह सूर्य की गर्मी, शक्ति और खुलेपन को अपने भीतर सोख लेता है। जिससे तनाव और मानसिक अस्थिरता को कम करने में सन स्टोन सहायता करता है।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सन स्टोन आपके जीवन में खुशी और अन्य सकारात्मक भावनाओं को लाने के लिए काफी प्रभावी पत्थर है। यह चयापचय और पाचन में सहायता करने और आपके शरीर में महत्वपूर्ण बल को बढ़ाने में आपकी सहायता करता है। इसके साथ ही सन स्टोन नेतृत्व गुणों को आपके अंदर विकसित करता है।ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि आप तनाव को दूर करने के लिए उपयोगी तरीके की तलाश कर रहे हैं तो सन स्टोन इसमें आपकी मदद कर सकता है। साथ ही अपने औषधीय गुणों से मौसमी स्नेह विकार से पीडि़त व्यक्ति को ठीक करने की क्षमता रहता है जैसे कि गले में खराश, सर्दी।सनस्टोन्स को एक परखने वाला रत्न कहा जा सकता है, खासकर यदि आप व्यवसाय में हैं। इस पत्थर का उपयोग करने से आपको सहायता मिल सकती है, जब आप यह सुनिश्चित करने के लिए व्यापारिक सौदे कर रहे हों कि दूसरी पार्टी सच बोल रही है या नहीं। इसे धारण करने से आपके अंदर सत्य व असत्य को परखने की क्षमता आ जाती है।सन स्टोन धारण करने की विधिज्योतिषियों के अनुसार धारक को कम से कम 2 से 5 रत्ती का तो सन स्टोन तो जरूर पहनना चाहिए। लेकिन ज्योतिषियों का कहना है कि यदि संभव हो तो 5 रत्ती ही धारण करें। इसे सोने की अंगूठी में जड़वाकर रविवार, सोमवार और गुरुवार के दिन धारण कर सकते हैं। परंतु इस बात का ध्यान रखें कि सन स्टोन आपकी त्?वचा से सटा़ हो। अन्यथा इसका लाभ आपको नहीं मिलेगा। सन स्टोन को सोना, चाँदी और प्लेटिनम धातु में पहना जा सकता है। आपको इसे शुक्ल पक्ष के किसी भी सोमवार को सूर्योदय के समय धारण करना चाहिए। यदि आप सन स्टोन धारण करने की का मन बना रहे हैं तो एक बार ज्योतिषाचार्य से इस संबंध में परामर्श जरूर लें। इसके बाद ही इसे धारण करें।
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होलाष्टक होली से लगभग आठ दिन पहले लग जाते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होलाष्टक शुरू हो जाएंगे। इस साल होलाष्टक 22 मार्च से 28 मार्च तक रहेंगे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, होलाष्टक के दौरान शादी, विवाह, वाहन खरीदना या घर खरीदना एवं अन्य मंगल कार्य नहीं किए जाते हैं। हालांकि इस दौरान पूजा पाठ करने और भगवान का स्मरण. भजन करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि होलाष्टक में कुछ विशेष उपाय करने से कई प्रकार के लाभ प्राप्त किये जा सकते हैं।
संतान प्राप्ति के लिए करें यह उपाय
मान्यता है कि नि:संतान दंपतियों के लिए होलाष्टक में लड्डु गोपाल की विधि विधान से पूजा करनी चाहिए। पूजा के दौरान गाय के शुद्ध घी और मिश्री से हवन करना चाहिए। यह उपाय करने से उन्हें संतान प्राप्ति होगी।
कॅरिअर में उन्नति के लिए करें यह काम
मान्यता के अनुसार, होलाष्टक में जौ, तिल और शक्कर से हवन कराना चाहिए। यह उपाय करने से आपको करियर में तरक्की मिलेगी। इसके साथ कार्य क्षेत्र में आ रहीं बाधाएं भी दूर होंगी।
धन-संपत्ति में वृद्धि के लिए करें यह उपाय
मान्यता है कि आर्थिक जीवन में तरक्की पाने के लिए होलाष्टक में कनेर के फूल, गांठ वाली हल्ती, पीली सरसों और गुड़ से हवन कराना चाहिए। इस उपाय से आपके धन-संपत्ति में वृद्धि होगी।
अच्छी सेहत के लिए करें यह काम
मान्यता के अनुसार, होलाष्टक में महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें। इसके बाद गुग्गल से हवन कराएं। यह उपाय करने से जातकों को असाध्य रोग से मुक्ति मिलती है।
सुखी जीवन के लिए करें यह काम
मान्यता के अनुसार, होलाष्टक में हनुमान चालीसा और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। यह उपाय करने से आपके जीवन में खुशियां आती हैं। जीवन में आ रही बाधाएं दूर होती हैं।
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हिंदू धर्म में हमारी रोजाना की दिनचर्या में पूजा पाठ का महत्वपूर्ण स्थान है और ज्यादातर लोगों के घर में अलग पूजा स्थान अवश्य होता है जहां वे शांति से पूजा करके ईश्वर को याद करते हैं, लेकिन अगर रोजाना पूजा-पाठ करने के बाद भी आपका मन अशांत है, आपको अपनी पूजा का उचित फल नहीं मिल रहा तो इसका मतलब है कि आप से पूजा के दौरान कुछ गलतियां हो रही हैं। रोजाना पूजा करना जितना जरूरी है, पूजा-पाठ के सामान्य नियमों का पालन करना भी उतना ही जरूरी है, वरना आपको नुकसान हो सकता है।
पूजा-पाठ के दौरान 5 बातों का रखें ध्यान
वैसे तो हर देवी-देवता की पूजा के दौरान मंत्रोच्चार, आरती और पूजा का तरीका अलग-अलग हो सकता है, लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं जो हमेशा एक समान ही रहती हैं और पूजा-पाठ कै दौरान इन नियमों का पालन अवश्य करना चाहिए-
1. घर का मंदिर या पूजा का स्थान हमेशा ईशान कोण यानी उत्तर पूर्व दिशा में होना चाहिए। यह दिशा भगवान के मंदिर के लिए सबसे शुभ मानी जाती है, लेकिन अगर आपके घर में पूजा स्थल पश्चिम या दक्षिण पश्चिम दिशा में हो तो आपको पूजा का लाभ प्राप्त नहीं होगा।
2. घर में पूजा करते वक्त इस बात का ध्यान रखें कि आपका मुंह पश्चिम दिशा की ओर हो और मंदिर या भगवान का मुख पूर्व दिशा की ओर। साथ ही देवी-देवताओं की मूर्ति के सामने कभी भी पीठ करके नहीं बैठना चाहिए।
3. बहुत से लोगों को आपने देखा होगा कि वे जमीन पर ही बैठकर पूजा करने लगते हैं, लेकिन पूजा के समय आसन का उपयोग करना जरूरी है। ऐसी मान्यता है कि बिना आसन पर बैठे पूजा-पाठ करने से दरिद्रता आती है। इसलिए पूजा के दौरान साफ-सुथरे आसन का इस्तेमाल जरूर करें। अगर आसन न हो तो उसकी जगह कंबल का भी उपयोग किया जा सकता है।
4. घर में अगर मंदिर हो तो वहां पर सुबह शाम एक दीपक अवश्य जलाएं। एक घी का दीपक और एक तेल का दीया।
5. भगवान विष्णु, गणेश, शिव जी, सूर्य देव और देवी दुर्गा को पंचदेव कहा जाता है। रोजाना पूजा करते समय इन पंचदेवों का ध्यान अवश्य करना चाहिए। ऐसा करने से सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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बहुत से लोगजीवन में थोड़े से प्रयासों से अच्छी आर्थिक स्थिति प्राप्त कर लेते हैं जबकि अनेक जीवनभर संघर्ष के बाद भी पर्याप्त धन अर्जित नहीं कर पाते। जीवन में आने वाले ये सब हालात ग्रह योग पर निर्भर करते हैं। ग्रहों से तय होता है कि हमारे जीवन में धन की स्थिति कैसी होगी। कुंडली का दूसरा भाव धन यानी स्थिर धन का प्रतिनिधित्व करता है। इसे धनभाव भी कहते हैं। 11 वां भाव हमारी आय या धन लाभ का कारक होता है। यह हमें नियमित होने वाले धन लाभ को भी दर्शता है। इसलिए इसे धन स्थान भी कहते हैं। हमारी आर्थिक स्थिति को निश्चित करने में जिस एक ग्रह की खास भूमिका होती है वह है शुक्र ग्रह। शुक्र को धन का नैसर्गिक कारक माना गया है। ऐसे में धन भाव, धनेश, लाभ स्थान, लाभेश और शुक्र हमारी कुंडली में कैसे हैं, इन सब पर हमारी जीवन में आर्थिक स्थिति निर्भर करती है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार कब होते हैं अच्छी आर्थिक स्थिति के योग
-यदि धनेश धन भाव में ही बैठा हो तो आर्थिक स्थिति अच्छी रहती है।
-धनेश स्व या उच्च राशि में शुभ भावों में बैठा हो तो धन की स्थिति अच्छी होती है।
-धनेश का केंद्र या त्रिकोण में मित्र राशि में होना भी जीवन में पर्याप्त धन योग बनाता है।
-यदि लाभेश लाभ स्थान में ही बैठा हो या लाभेश की लाभ स्थान पर दृष्टि पड़ती हो तो ऐसे व्यक्ति की नियमित आय अच्छी होती है।
-यदि कुंडली में शुक्र स्व राशि या उच्च राशि में शुभ भावों में बैठा हो तो अच्छी आर्थिक स्थिति प्राप्त होती है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार ऐसे बनते हैं संघर्ष के योग
-यदि धनेश पाप भाव में हो तो आर्थिक पक्ष संघर्षमय बना रहता है।
-धनेश यदि अपनी नीच राशि में हो तो संघर्ष के बाद भी अच्छी आर्थिक स्थिति नहीं हो पाती।
-यदि धन भाव में कोई पाप योग बना हो तो आर्थिक स्थिति की तरफ से व्यक्ति परेशान रहता है।
-यदि लाभेश भी पाप भाव में हो तो आर्थिक पक्ष को बाधित करता है।
-शुक्र यदि अपनी नीच राशि में हो तो आर्थिक स्थिति कभी अच्छी नहीं बन पाती।
-शुक्र का कुंडली के आठवें भाव में होना भी आर्थिक संघर्ष करता है
-जब शुक्र केतु के साथ हो तो आर्थिक स्थिति हमेशा अस्थिर बनी रहती है।
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पौराणिक कथाओं के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को सीता जी प्रकट हुई थी। इसी खुशी में हर साल सीता जयंती या जानकी जयंती मनाई जाती है। इस साल सीता जयंती 06 मार्च दिन रविवार को मनाई जा रही है। सीता अष्टमी का व्रत सुहागिन स्त्रियों के लिए खास होता है। इस खास दिन सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से वैवाहिक जीवन में आ रही परेशानियां खत्म होती हैं। इतना ही नहीं जिन लड़कियों को शादी में बाधा आ रही हो वो भी इस व्रत को रखकर मनचाहे वर की प्राप्ति कर सकती हैं।
सीता जयंती का महत्व-
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सीता जयंती का व्रत करने से वैवाहिक जीवन से जुड़े सभी कष्टों का नाश होकर उनसे मुक्ति मिलती है। जीवनसाथी दीर्घायु होता है। साथ ही इस व्रत को करने से समस्त तीर्थों के दर्शन करने जितना फल भी प्राप्त होता है।
जानकी जयंती का शुभ मुहूर्त-
फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का प्रारंभ- 05 मार्च को शाम 07 बजकर 54 मिनट पर।
अष्टमी तिथि का समापन- 06 मार्च शनिवार को शाम 06 बजकर 10 मिनट पर।
उदया तिथि- 06 मार्च 2021
कैसे मनाएं सीता अष्टमी पर्व-
1. सीता अष्टमी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर माता सीता और भगवान श्रीराम को प्रणाम कर व्रत करने का संकल्प लें।
2. पूजा शुरू करने से पहले पहले गणपति भगवान और माता अंबिका की पूजा करें और उसके बाद माता सीता और भगवान श्रीराम की पूजा करें।
3. माता सीता के समक्ष पीले फूल, पीले वस्त्र और और सोलह श्रृंगार का सामान समर्पित करें।
4. माता सीता की पूजा में पीले फूल, पीले वस्त्र ओर सोलह श्रृंगार का समान जरूर चढ़ाना चाहिए।
5. भोग में पीली चीजों को चढ़ाएं और उसके बाद मां सीता की आरती करें।
6. आरती के बाद श्री जानकी रामाभ्यां नम: मंत्र का 108 बार जाप करें।
7. दूध-गुड़ से बने व्यंजन बनाएं और दान करें।
8. शाम को पूजा करने के बाद इसी व्यंजन से व्रत खोलें। - सृष्टि के जन्मदाता ब्रह्मा जी हैं, सृष्टि के पालनकर्ता विष्णु जी और सृष्ट के संहारकर्ता शिवजी हैं। वैदिक ज्योतिष में भगवान शिव की पूजा के साथ साथ उन्हें प्रसन्न करने के लिए और उनकी कृपा पाने के लिए महामृत्युंजय यंत्र का उपयोग किया जाता है। इस यंत्र की स्थापना करने से भगवान भोलेनाथ के साथ आपके प्रगाढ़ संबंध स्थापित हो जाते हैं। यदि जातक की कुंडली में विभिन्न प्रकार के रोग या दोष हैं तो इस यंत्र की स्थापना से उनका निवारण संभव है। इस यंत्र को प्रतिष्ठित करने से दीर्घायु, स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि, आध्यात्मिक विकास और शिवजी की कृपा प्राप्त हो सकती है।-महामृत्युंजय यंत्र के लाभ-यदि किसी जातक को यदि दुर्घटना, अकालमृत्यु और प्राणघातक बीमारियों का डर सताता रहता है तो उसे अपने घर में महामृत्युजंय यंत्र की स्थापना करनी चाहिए।-पौराणिक मान्यता के अनुसार, यह उच्चकोटि का दार्शनिक यंत्र है और जिसमें जीवन और मृत्यु का राज छिपा हुआ है।-इस यंत्र की प्रतिष्ठा करने से बुद्धि, विद्या, यश और लक्ष्मी की वृद्धि होती है।-यदि किसी जातक की जन्मपत्रिका में ग्रह दोष या पीड़ादायक महादशा चल रही है तो उसे शिव यंत्र पेडेंट धारण करने से लाभ प्राप्त होता है।-यदि आपको मानसिक या शारीरिक पीड़ा है और आप कानूनी विवाद में फंसे हुए हैं तो इन सब से उबरने के लिए महामृत्युंजय यंत्र काफी कारगर है।-महामृत्युजंय यंत्र को स्थापित करने से कुंडली में स्थित नाड़़ी दोष, षड़ाष्टक (भकूट) दोष या मंगली दोष दूर हो सकता है।ध्यान रखने योग्य बातेंमहामृत्युंजय यंत्र की निर्माण विधि एक तांत्रिक प्रणाली पर आधारित है इसे बनाने के लिए रेखा गणित के प्रमेय, निर्मेय, त्रिकोण, चतुर्भुज आदि आकृतियां बनाकर उनमें बीज मंत्र लिखा जाता है। इसका निर्माण भोजपत्र, कागज या किसी धातु की वस्तु पर किया जा सकता है। इस पर लिखने के लिए रक्त चंदन की स्याही या बेल या अनार की कलम का इस्तेमाल किया जाता है। इस यंत्र की स्थापना या धारण करने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और सकारात्मक शक्ति का संचार होता है।महामृत्युंजय यंत्र को सम्मुख रखकर रूद्र सूक्त का पाठ करने एवं महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से लाभ प्राप्त होता है। इस यंत्र को खरीदते वक्त ध्यान रखें कि महामृत्युंजय यंत्र विधिवत शुद्धिकरण, प्राणप्रतिष्ठा और ऊर्जा संग्रही की प्रक्रियाओं के माध्यम से विधिवत बनाया गया हो। साथ ही महामृत्युंजय यंत्र को खऱीदने के पश्चात किसी अनुभवी ज्योतिषी द्वारा अभिमंत्रित करके उसे घर की सही दिशा में स्थापित करना चाहिए। अभ्यस्त और सक्रिय शिव यंत्र या महामृत्युजंय यंत्र को सोमवार के दिन स्थापित करना चाहिए।महामृत्युंजय यंत्र स्थापना विधिआमतौर पर श्रावण मास में इस यंत्र को स्थापित करना शुभ फलदायी होता है लेकिन आप इसे सोमवार को स्थापित कर सकते हैं।
- आम मान्यता के अनुसार दक्षिण दिशा के मकान को अशुभ और नकारात्मक प्रभाव वाला माना जाता है। परन्तु निर्माण के समय अगर कुछ वास्तु के अनुसार सावधानियां बरती जाएं, तो सभी प्रॉपर्टीज और दिशाएं शुभ होती हैं। आइए जानते हैं किन वास्तु टिप्स को अपनाकर दक्षिणमुखी मकान में नहीं होता दक्षिण दोष?- सर्वप्रथम दक्षिणमुखी मकान का दोष खत्म करने के लिए मुख्य द्वार के ऊपर पंचमुखी हनुमानजी का चित्र लगा देना चाहिए, नकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश नहीं करेगी।-यदि दक्षिणमुखी मकान के सामने मुख्य द्वार से दोगुनी दूरी पर नीम का हराभरा वृक्ष लगा देने से दक्षिण दिशा का नकारात्मक असर काफी हद तक समाप्त हो जाएगा।-यदि दक्षिणमुखी मकान के सामने मकान से दोगुना बड़ा कोई दूसरा मकान है तो दक्षिण दिशा का असर कुछ हद तक समाप्त हो जाएगा।-दक्षिण मुखी प्लाट में मुख्य द्वार आग्नेय कोण में बनाना वास्तु की दृष्टि में उचित माना गया है। उत्तर तथा पूर्व की तरफ ज्यादा व पश्चिम व दक्षिण में कम से कम खुला स्थान छोड़ा गया है तो भी दक्षिण का दोष कम हो जाता है। ऐसे प्लाट में छोटे पौधे पूर्व-ईशान में लगाने से भी दोष कम होता है।-आग्नेय कोण का मुख्य द्वार पर पेंट लाल या मरून रंग का हो, तो श्रेष्ठ फल देता है। इसके अलावा हल्का नारंगी या भूरा रंग भी चुना जा सकता है। परन्तु किसी भी परिस्थिति में मुख्य द्वार पर नीला या काले रंग नहीं करवाना चाहिए,अन्यथा घर में वाद-विवाद की समस्या रहेगी।-यदि आपका दरवाजा दक्षिण की तरफ है तो द्वार के ठीक सामने एक आदमकद दर्पण इस प्रकार लगाएं जिससे घर में प्रवेश करने वाले व्यक्ति का पूरा प्रतिबिंब दर्पण में बने। इससे घर में प्रवेश करने वाले व्यक्ति के साथ घर में प्रवेश करने वाली नकारात्मक उर्जा पलटकर वापस चली जाती है।-दक्षिणमुखी मकान में भी रसोई बनाने के लिए घर में आदर्श स्थान दक्षिण-पूर्व दिशा ही है एवं खाना पकाने के दौरान, आपका पूर्व की ओर मुंह होना चाहिए। किचन के लिए दूसरी सबसे अच्छी जगह उत्तर-पश्चिम दिशा है।- ध्यान रखें पानी की निकासी उत्तर-पूर्व दिशा की ओर होनी चाहिए। भूलकर भी दक्षिण दिशा में पानी से जुड़े कार्य नहीं होने चाहिए।----
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 210
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! महारास और प्रेमानंद एक ही बात है या महारास अलग है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: आनंद में भी अनेक स्तर हैं। जैसे माया के क्षेत्र में अनेक स्तर हैं - तमोगुण, रजोगुण, सत्वगुण। ऐसे ही आनंद के क्षेत्र में भी अनेक स्तर हैं; जैसे ज्ञानियों का ब्रह्मानंद। यह आनंद अनंत मात्रा का होता है, दिव्य होता है, सदा के लिए होता है। किन्तु ये सबसे निम्न कक्षा का आनंद है। आनंद और निम्न कक्षा, दो विरोधी बातें हैं। यद्यपि आनंद अनंत मात्रा का होता है, अनिर्वचनीय होता है, शब्दों में उसका निरूपण नहीं हो सकता, ईश्वरीय आनंद का। न कोई कल्पना कर सकता है मनबुद्धि से। इन्द्रिय, मन, बुद्धि की वहाँ गति नहीं है। वो भूमा है।
फिर भी, आनंद के जितने स्तर हैं उन में सबसे निम्न स्तर हैज्ञानियों का ब्रह्मानंद। निर्गुण, निर्विशेष, निराकार ब्रह्मानंद। इसके बाद फिर सगुण साकार का आनंद प्रारम्भ होता है। उसमें भी अनेक स्तर है। शांत भाव का प्रेमानंद, उससे ऊँचा दास्य भाव का प्रेमानंद, उससे ऊँचा सख्य भाव का प्रेमानंद, उससे अधिक सरस वात्सल्य भाव का प्रेमानंद, उससे अधिक सरस माधुर्य भाव का प्रेमानंद।
माधुर्य भाव में भी तीन स्तर हैं। सकाम माधुर्य भाव के प्रेमानंद का स्तर उन तीनों में निम्न कक्षा का है। उसे साधारणी रति का प्रेमानंद कहते हैं और समञ्जसा रति का प्रेमानंद उससे उच्च कक्षा का है और समर्था रति का आनंद सर्वोच्च कक्षा का है। तो समर्था रति का प्रेमानंद जिनको मिलता है, सिद्ध महापुरुषों में भी अरबों-खरबों में किसी एक को मिलता है वो। उस रस को महारास कहते हैं।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - oo पैर के अंगूठे के द्वारा भी होता है शक्ति का संचारशास्त्रों के अनुसार पैर के अंगूठे के द्वारा भी शक्ति का संचार होता है। मनुष्य के पांव के अंगूठे में विद्युत संप्रेक्षणीय शक्ति होती है। यही कारण है कि अपने वृद्धजनों के नम्रतापूर्वक चरणस्पर्श करने से जो आशीर्वाद मिलता है, उससे व्यक्ति की उन्नति के रास्ते खुलते जाते हैं। चरण स्पर्श और चरण वंदना भारतीय संस्कृति में सभ्यता और सदाचार का प्रतीक माना जाता है।आत्मसमर्पण का यह भाव व्यक्ति आस्था और श्रद्धा से प्रकट करता है। यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो चरण स्पर्श की यह क्रिया व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से पुष्ट करती है। यही कारण है कि गुरुओं, (अपने से वरिष्ठ) ब्राह्मणों और संत पुरुषों के अंगूठे की पूजन परिपाटी प्राचीनकाल से चली आ रही है।पुराणों में लिखा महत्वहिंदू संस्कारों में विवाह के समय कन्या के माता-पिता द्वारा इसी भाव से वर का पाद प्रक्षालन किया जाता है। कुछ विद्वानों की ऐसी मान्यता है कि शरीर में स्थित प्राण वायु के पांच स्थानों में से पैर का अंगूठा भी एक स्थान है। जैसे- तत्र प्राणो नासाग्रहन्नाभिपादांगुष्ठवृति (1) नासिका का अग्रभाग (2) हृदय प्रदेश (3) नाभि स्थान (4) पांव और (5) पांव के अंगूठे में प्राण वायु रहती है। इसका प्रभाव चीनी चिकित्सा जिसके द्वारा अंगूठे व पांव के तलवे में विभिन्न दिशाओं में सुई चुभाकर कई बीमारियों का इलाज किया जाता है। चिकित्सा विज्ञान भी यह मानता है कि पांव के अंगूठे में कक ग्रंथि की जड़ें होती हैं, जिनके मर्म स्पर्श या चोट से मनुष्य की जान जा सकती है।पैर के अंगूठे में है विद्युत शक्तियह भी जानते हैं कि रावण ने अपने भुजबल से पृथ्वी को शत्रुहीन कर दिया था। अपनी शक्ति के मद में राक्षसराज रावण ने कैलाश पर्वत को उठाने का साहस करना चाहा। उस समय भयभीत हुई पार्वती की प्रार्थना से भगवान शंकर ने अपने पैर के अंगूठे के अग्र भाग से पर्वत को धीरे से दबाया। इतने मात्र से ही रावण को पाताल में भी आश्रय न मिल सका। लिहाजा कहा जा सकता है कि पैर के अंगूठे के द्वारा भी शक्ति का संचार होता है। मनुष्य के पांव के अंगूठे में विद्युत संप्रेक्षणीय शक्ति होती है। यही कारण है कि वृद्धजनों के चरणस्पर्श करने से जो आशीर्वाद मिलता है उससे अविद्या रूपी अंधकार नष्ट होता है और व्यक्ति उन्नति करता है।
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नई दिल्ली। 19 साल बाद मंगल और राहु की युति से अंगारक योग बना है। इससे पहले यह योग 2002 में बना था। 22 फरवरी को लाल ग्रह मंगल का गोचर हुआ है। मंगल ग्रह अपनी स्वराशि मेष से वृषभ राशि में आए हैं और इस राशि में राहु पहले से ही विराजमान हैं। यहां राहु और मंगल का मिलन अंगारक योग का निर्माण कर रहा है। वृष राशि में यह योग 13 अप्रैल 2021 तक प्रभावी रहेगा। ज्योतिष शास्त्र में इसे एक अशुभ योग के रूप में देखा जाता है। यह योग व्यक्ति की बुद्धि को भ्रष्ट करता है। इस योग के प्रभाव से व्यक्ति हिंसक और आक्रामक हो जाता है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार हाल ही में शुक्र का मकर राशि में गोचर हुआ है, शुक्र का यह गोचर 15 मार्च 2021 तक प्रभावी रहेगा। कुंभ राशि के स्वामी शनिदेव हैं। वहीं शुक्र और शनि के बीच आपस में मित्रता का भाव है। ऐसे में शनि की राशि में शुक्र का शुभ प्रभाव देखने को मिलेगा। शुक्र ग्रह भौतिक सुख-सुविधाओं व समृद्धि का कारक है। इसके प्रभाव से सौंदर्य, कला, मनोरंजन आदि के क्षेत्र लाभ होगा। महिलाओं की उन्नति व अधिकारों में वृद्धि भी कराएगा।
मंगल और राहु की युति से आएगी आपदा
वृष राशि में मंगल और राहु की युति के प्रभाव से मौसम में परिवर्तन आने के संकेत हैं। कुछ प्रदेशों में प्राकृतिक आपदा भी आ सकती है। शुक्र और मंगल के राशि परिवर्तन मौसम में सर्दी की एक बार फिर वापसी हो सकती है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक मंगल व राहू की युति अच्छी नहीं होती है। यह प्राकृतिक आपदा और सड़क दुर्घटना व अग्नि दुर्घटनाओं का कारण बनती रही है। इस अवधि में कहीं भूस्खलन तो कहीं बारिश के भी आसार बनेंगे। इसके बावजूद गुरु, शनि व बुध के अच्छी स्थिति में होने से व्यापारिक मंदी में तेजी आएगी। युवाओं और महिलाओं को परीक्षा-प्रतियोगिताओं में सफलता मिलेगी और कृषि के क्षेत्र में उत्पादन बढ़ सकता है। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 209
साधक का प्रश्न ::: जो भगवान् महापुरुष का सपना आता है वह मनगढ़ंत होता है?जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: सब सपने मनगढ़ंत होते हैं। ज्यादा कुछ सपने आते हैं वर्तमान चिंतन के अनुसार। हमने वर्तमान, आज दिन में तमाम चिंतन इस सब्जेक्ट का किया तो वह सपने में आ जाते हैं और कभी-कभी इसका उलटा भी हो जाता है। इसलिए भगवान् का चिंतन आ जाए सपने में, महापुरुष का आ जाए, अच्छा है। सपना भी हमारा अच्छे समय से बीता, खराब आएगा तो उतनी ही देर के लिए वह खराब है बस, जब तक सपना देखा।
जागने पर फिर उसको नहीं सोचना। वो गया, जीरो हो गया। बहुत कम लोग हैं जो सपने पर विचार करते हैं। अरे! रोज आप लोग सपना देखते हैं। कहाँ विचार करने बैठते हैं। क्या-क्या देखते रहते हैं, अंड-बंड। अपना कामधाम कर रहे हैं सब।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - हिंदू पंचांग का आखिरी महीना फाल्गुन कहलाता है जो अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से कभी फरवरी तो कभी मार्च का महीना होता है। इसके बाद चैत्र का महीना आता है जिसे हिंदू नववर्ष की शुरुआत माना जाता है। बसंत ऋतु का प्रभाव होने की वजह से इस दौरान सर्दी कम होने लगती है और धीरे-धीरे गर्मी की शुरुआत हो जाती है। पौराणिक मान्यताओं की मानें तो माघ महीने की ही तरह फाल्गुन मास का भी उतना ही विशेष धार्मिक महत्व है।साल 2021 में फाल्गुन महीने की शुरुआत 28 फरवरी रविवार से हो रही है जो 28 मार्च तक रहेगा। फाल्गुन महीने के दौरान महाशिवरात्रि से लेकर होली तक कई प्रमुख त्योहार मनाए जाते हैं। इसके अलावा फाल्गुन माह के दौरान भगवान श्री कृष्ण की पूजा विशेष रूप से फलदायी माना जाती है। इस दौरान कृष्ण के 3 स्वरूपों- बाल कृष्ण, युवा कृष्ण और गुरु कृष्ण की पूजा की जाती है। साथ ही पौराणिक मान्यताओं के अनुसार फाल्गुन के महीने में ही चंद्रमा का जन्म हुआ था इसलिए इस माह चंद्र देव की भी पूजा की जाती है।oo फाल्गुन महीने के प्रमुख व्रत त्योहार1. जानकी जयंती या सीता अष्टमी- फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को माता सीता की जयंती, 6 मार्च शनिवार2. विजया एकादशी- फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को विजया एकादशी, 9 मार्च मंगलवार3. महाशिवरात्रि- फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि, 11 मार्च गुरुवार4. फाल्गुनी अमावस्या- 13 मार्च दिन शनिवार5. फुलेरा दूज- फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि, 15 मार्च सोमवार6. आमलकी एकादशी- फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि, 25 मार्च, गुरुवार7. होलिका दहन- फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा, 28 मार्च रविवार
- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 208
०० जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचनों से 5-सार बातें (भाग - 12) ::::::
(1) हरि-गुरु हमारी रक्षा करते हैं, वे हमारी रक्षा कर रहे हैं, वे आगे भी हमारी रक्षा करेंगे, इस पर विश्वास कर लो।
(2) जो भक्त सिद्धावस्था को प्राप्त कर चुके हैं उन्हें कभी कहीं भी माया स्पर्श नहीं कर सकती। मायापति भक्त के पीछे-पीछे चलता है तब उसकी दासी माया भला भगवान् के प्राणप्रिय भक्तों का क्या बिगाड़ सकती है।
(3) जो बहुत बड़े पापी होते हैं उनकी श्रीहरि लीला कथा में रुचि नहीं होती है। ये लोग बस कूकर शूकर की भाँति जीवन व्यतीत करते हैं। जैसे शूकर को पाख़ाना (गंदगी) में लोटने में परम सुख मिलता है ऐसे ही इन पापियों को संसार के झूठे सुखों में सुख प्रतीत होता है। ये संसार में झूठ में ही मस्त रहते हैं और भक्तों से ईर्ष्या द्वेष भाव रखते हैं।
(4) भगवान् और महापुरुषों के कार्य सुनिश्चित लीला के अनुसार दिव्य होते हुए भी प्राकृत दिखाई देते हैं। उनका अवतार लेने का एक ही उद्देश्य होता है जीव कल्याण अर्थात परोपकार।
(5) देखो! एक सिद्धांत सदा समझ लो, जब तक हमको भगवत्प्राप्ति नहीं हो जाती, तब तक हम पर माया का अधिकार रहेगा। जब तक माया का अधिकार रहेगा, तब तक काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि सब दोष रहेंगे। इसके अतिरिक्त पिछले अनन्त जन्मों के पाप भी रहेंगे क्योंकि भगवत्प्राप्ति पर ही समस्त पाप भस्म होते हैं।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म संदेश एवं साधन साध्य पत्रिकाएँ०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 207
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित 1008-ब्रजभावयुक्त दोहों के विलक्षण ग्रन्थ 'श्यामा श्याम गीत' के दोहे, ग्रन्थ की प्रस्तावना सबसे नीचे पढ़ें :::::::
(भाग - 11 के दोहा संख्या 55 से आगे)
झूठे ही बुलावें लोग आओ उर श्यामा।कहाँ आवें नातेदार बैठे उरधामा।।56।।
अर्थ ::: संसारी जीव शुद्ध हृदय से श्यामा श्याम को नहीं बुलाते। जिस हृदय में सांसारिक संबंधी विराजमान हैं उसमें श्यामा-श्याम किस प्रकार आवें?
डेरा डारे नातेदार बैठे उरधामा।उनको निकालो तो मैं आऊँ कह श्यामा।।57।।
अर्थ ::: किशोरी जी कहती हैं, तुम्हारे हृदय में सांसारिक संबंधियों ने अपना स्थान जमा रखा है। जब तुम उन्हें हृदय से बाहर करो तब तो मैं तुम्हारे हृदय में अपना स्थान बनाऊँ।
उर में बिठाना चाहो जग संग श्यामा।अंधकार रवि कभु रहे एक ठामा।।58।।
अर्थ ::: जिस हृदय में जगत का निवास है, उसमें श्री किशोरी राधिका अपना स्थान कैसे स्थापित करे? अंधकार और सूर्य कभी एक साथ नहीं रह सकते।
संसारी नर नारी में आठु यामा।भगवद् भाव नहिं सदा रहे बामा।।59।।
अर्थ ::: संसारी स्त्री-पुरुषों में निरंतर भगवद्भाव नहीं रखा जा सकता।
जाको होवे प्रेम जासों मृत्युलोक धामा।मृत्यु के बाद उसे वही मिले बामा।।60।।
अर्थ ::: मृत्युलोक में जीवित अवस्था में जिसका जिससे प्रेम होता है, मृत्यु के बाद उसे वही प्राप्त होता है।
०० 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का परिचय :::::
ब्रजरस से आप्लावित 'श्यामा श्याम गीत' जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की एक ऐसी रचना है, जिसके प्रत्येक दोहे में रस का समुद्र ओतप्रोत है। इस भयानक भवसागर में दैहिक, दैविक, भौतिक दुःख रूपी लहरों के थपेड़ों से जर्जर हुआ, चारों ओर से स्वार्थी जनों रूपी मगरमच्छों द्वारा निगले जाने के भय से आक्रान्त, अनादिकाल से विशुध्द प्रेम व आनंद रूपी तट पर आने के लिये व्याकुल, असहाय जीव के लिये श्रीराधाकृष्ण की निष्काम भक्ति ही सरलतम एवं श्रेष्ठतम मार्ग है। उसी पथ पर जीव को सहज ही आरुढ़ कर देने की शक्ति जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की इस अनुपमेय रसवर्षिणी रचना में है, जिसे आद्योपान्त भावपूर्ण हृदय से पढ़ने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे रस की वृष्टि प्रत्येक दोहे के साथ तीव्रतर होती हुई अंत में मूसलाधार वृष्टि में परिवर्तित हो गई हो। श्रीराधाकृष्ण की अनेक मधुर लीलाओं का सुललित वर्णन हृदय को सहज ही श्यामा श्याम के प्रेम में सराबोर कर देता है। इस ग्रन्थ में रसिकवर श्री कृपालु जी महाराज ने कुल 1008-दोहों की रचना की है।
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - मार्च महीने में तीन ग्रहों का राशि परिवर्तन होगा। आमतौर पर सूर्य देव हर महीने राशि परिवर्तन करते हैं। ऐसे में मार्च महीने में सूर्य कुंभ राशि से निकलकर मीन राशि में जाएंगे। मार्च में सूर्य के अलावा शुक्र और बुध ग्रह का भी राशि परिवर्तन होगा।जानिए ग्रहों की चाल बदलने से क्या पड़ेगा असर-मिथुन राशि वालों को इन ग्रहों के राशि परिवर्तन से शुभ परिणाम मिलेंगे। बिगड़े हुए कार्य बन सकते हैं। आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगगा। पुराने कर्जों से मुक्ति मिल सकती है।कर्क राशि वालों के सेहत में सुधार होगा। शुभ कार्यों की संपन्नता से मन प्रसन्न रहेगा। आकस्मिक धन लाभ के योग बन रहे हैं। भाग्य का साथ मिलने से हर क्षेत्र में सफलता हासिल हो सकती है।कन्या राशि वालों के भाग्य का सहयोग मिलने से बिगड़ते हुए कार्य भी बन जाएंगे। तीन ग्रहों का गोचर आपके लिए शुभ साबित होगा। पारिवारिक सुख मिलेगा। पुराने रोगों से मुक्ति मिल सकती है। आर्थिक सुधार की योजनाएं सफल हो सकती है।तुला राशि वालों के लिए तीन ग्रहों का गोचर शुभ फलकारी साबित हो सकता है। सरकारी मामलों में भी राहत मिलने के योग बन सकते हैं। आर्थिक स्थिति मजबूत होगी। भौतिक सुख-सुविधाओं में वृद्धि हो सकती है।कुंभ राशि वालों के लिए तीन ग्रहों का गोचर आर्थिक व पारिवारिक सुख की दृष्टि से शुभ साबित होगा। खर्चों पर कंट्रोल होगा। नौकरी कर रहे जातकों को भी शुभ परिणाम हासिल होंगे। तरक्की मिलने की संभावना है।
- माघ मास के शुक्ल पक्ष की आखिरी तिथि को माघ पूर्णिमा कहा जाता है। इस साल माघ पूर्णिमा 27 फरवरी को है। माघ पूर्णिमा के दिन स्नान, जप और तप का महत्व होता है। कहा जाता है कि माघ पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान करना शुभ होता है। कहते हैं कि ऐसा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि माघ पूर्णिमा के दिन पूजा-पाठ व दान करने से जीवन में सुख, शांति और खुशहाली आती है। माघ पूर्णिमा के दिन स्नान के बाद कुछ कामों को करने से शुभता आती है।जानिए माघ स्नान के पूर्ण होने पर क्या करना चाहिए-1. माघ पूर्णिमा के दिन पूरे एक माह के माघ स्नान के समापन का दिन होता है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने से सुख, शांति और खुशहाली आती है। माघ माह में प्रतिदिन पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है। अगर घर में स्नान किया है तो पानी में गंगा आदि पवित्र नदियों का जल डालकर स्नान करें।2. इस दिन किसी पंडित या पुरोहित से माघ स्नान की पूजा और हवन आदि संपन्न करवाएं।3. इस दिन गरीबों, जरूरतमंद को भोजन कराने से पुण्य की प्राप्ति होती है।4. गायों को हरा चारा खिलाना और पक्षियों को दाना-पानी खिलाना शुभ होता है।5. माघ पूर्णिमा के दिन भगवान शिव का पंचामृत अभिषेक करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।6. पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी को मिश्री, खीर आदि का भोग लगाने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है।7. चंद्रमा से जुड़े दोष खत्म करने के लिए माघ पूर्णिमा का व्रत रखना चाहिए और रात में चंद्रमा को अघ्र्य देना चाहिए।माघ पूर्णिमा के दिन दान से मिलता है पुण्य-माघ पूर्णिमा में दान का विशेष फल की प्राप्ति होती है। इसलिए इस दिन अपनी सामथ्र्य के हिसाब से दान जरूर करना चाहिए। कहते हैं कि माघ पूर्णिमा में अन्न, वस्त्र या धन के दान से घर में सुख-शांति बनी रहती है।माघ पूर्णिमा 2021 तिथि और शुभ मुहू्र्त-पूर्णिमा तिथि शुरू- 15:50- 26 फरवरी 2021पूर्णिमा तिथि खत्म- 13:45- 27 फरवरी 2021
- शनि की दृष्टि से हर कोई बचना चाहता है। कहते हैं जिस पर शनि की दृष्टि डाल देते हैं उसके कष्टों में वृद्धि कर देते हैं, लेकिन ऐसा नहीं शनिदेव शुभ फल भी प्रदान करते हैं। शनि ग्रह को ज्योतिष में एक न्याय प्रिय ग्रह माना गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शानि व्यक्ति को उसके कर्मों के आधार पर अच्छे और बुरे फल प्रदान करते हैं। कहने का अर्थ है कि जब व्यक्ति अच्छे कर्म करता है तो शनि देव उसे शुभ फल प्रदान करते हैं और जब व्यक्ति गलत कार्यों में लिप्त हो जाता है तो शनि उसे नकारात्मक फल प्रदान करते हैं। इसलिए ऐसा कहना कि शनिदेव हमेशा गलत ही फल देते हैं, उचित नहीं है।शनि की साढ़ेसाती और शनि की ढैयाज्योतिषाचार्यों के अनुसार शनिदेव की जब भी बात आती है तो शनि की साढ़ेसाती और शनि की ढैया का वर्णन अवश्य आता है। शनि की इन स्थितियों में व्यक्ति को कष्ट भोगने पड़ते हैं, जिस पर भी साढ़ेसाती और ढैय्या होती है उसे विभिन्न प्रकार की समस्याओं और बाधाओं का सामना करना पड़ता है। शनिदेव जब अशुभ फल प्रदान करते हैं तो व्यक्ति को हर कार्य में बाधाओं को सामना करना पड़ता है. आसान कार्य भी बड़ी मुश्किल से पूर्ण होता है. इसके साथ ही रोग आदि में भी वृद्धि होती है. दुर्घटना और ऑपरेशन का भी योग बना देते हैं. पाप ग्रहों के साथ यदि कोई संबंध बना लें तो व्यक्ति को गंभीर रोग भी प्रदान करते हैं. दांपत्य जीवन में भी परेशानी महसूस होने लगती है।इन 5 राशियों को विशेष ध्यान देना चाहिएज्योतिष गणना के अनुसार मिथुन, तुला और धनु, मकर और कुंभ राशि पर शनि की विशेष दृष्टि है। मिथुन और तुला पर शनि की ढैया और धनु, मकर और कुंभ राशि पर शनि की साढ़ेसाती चल रही है।शनि किस राशि में गोचर कर रहे हैंशनिदेव इस समय मकर राशि में गोचर कर रहे हैं. शनि इस वर्ष कोई राशि परिवर्तन नहीं कर रहे हैं. मकर राशि वालों को इस समय विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है।शनि का उपायशनि को शुभ बनाने के लिए शनि मंदिर में जाकर शनिदेव पर सरसों का तेल चढ़ाना चाहिए। मंगलवार को हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए। इसके साथ ही शनिवार के दिन शनि से जुड़ी चीजों का दान करने से भी शनिदेव प्रसन्न होते
- विवाह के मुहूर्त इस वर्ष अप्रैल माह से आरंभ हो रहे हैं. पंचांग के अनुसार इस समय शुक्र तारा अस्त है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब शुक्र तारा अस्त होता है तो विवाह संबंधी कार्यक्रम आयोजित नहीं किए जाते हैं।ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस समय शुक्र अस्त चल रहे हैं। शुक्र बीते 16 फरवरी को अस्त हुए थे। विवाह संबंधी मामलों में गुरू और शुक्र ग्रह की भूमिका अहम मानी गई है। गुरु तो उदित हो चुके हैं लेकिन इस समय शुक्र ग्रह अस्त है, इसलिए जब तक शुक्र उदित नहीं होंगे तब तक विवाह कार्य संभव नहीं होंगे।पंचांग के अनुसार इस वर्ष वैवाहिक कार्य 22 अप्रैल से आरंभ होंगे। वहीं 14 मार्च से लेकर 13 अप्रैल तक खरमास का संयोग रहेगा. शुभ विवाह के लिए ग्रहों की स्थिति का विशेष ध्यान रखा जाता है। विवाह संबंधी कार्यों में किसी प्रकार का विघ्न न पड़े इसके लिए ग्रहों के गोचर और स्थिति का भी आंकलन किया जाता है।पौराणिक मान्यता के अनुसार खरमास में शादी विवाह जैसे मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं. पंचांग के अनुसार इस वर्ष विवाह के सबसे अधिक शुभ मुहूर्त मई माह में निकल रहे हैं। पंचांग के मुताबिक फरवरी और मार्च में शादी के लिए एक शुभ मुहूर्त नहीं बन रहे हैैं. अप्रैल के महीने में विवाह के लिए सबसे कम शुभ मुहूर्त निकल रहे हैं।अप्रैल और मई माह में विवाह के शुभ मुहूर्तअप्रैल के महीने में विवाह के मुहूर्त--24, 25, 26, 27 और 30.मई माह के विवाह मुहूर्त-- 2, 4, 7, 8, 21, 22, 23, 24, 26, 29 और 31 मई
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शास्त्रों में ब्रह्म मुहूर्त के समय को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। प्राचीन काल में लोग और ऋषि मुनि सदैव ब्रह्म मुहूर्त में उठकर ईश्वर का वंदन किया करते थे। घरों में भी बड़े बुजुर्ग लोग सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि कर ईश्वर का नाम जपने बैठने जाते हैं और ब्रह्म मुहूर्त में उठने को कहते हैं। ब्रह्म मुहूर्त न केवल शास्त्रों की दृष्टि से बल्कि आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा पद्धति में भी इस समय को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। हिंदू धर्म में ब्रह्म का अर्थ ह ज्ञान और मुहूर्त का अर्थ है समय या अवधि । ग्रंथों में ब्रहम मुहूर्त को विशिष्ट कार्यों के लिए सर्वश्रेष्ठ करार दिया गया है।
आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में जागने से व्यक्ति रोग मुक्त रहता है और आयु में वृद्धि होती है। ब्रह्म मुहूर्त में उठना और शुभ कार्य करना आपको लाभान्वित कर सकता है लेकिन इस समय कुछ कार्य हैं जिन्हें वर्जित माना गया है। इन कार्यों को करने से आपके शरीर को रोग घेर लेते हैं और आपकी आयु में कमी आती है। तो चलिए जानते हैं कि कौन से कार्य ब्रह्म मुहूर्त में बिल्कुल नहीं करने चाहिए।मन में न लाएं नकारात्मक भावब्रह्म मुहूर्त में व्यक्ति का मस्तिष्क जाग्रत रहता है। यह समय जीवन के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लेने, अहम योजनाएं बनाने एक लिए बहुत उचित रहता है। इस समय मन में नकारात्मक भाव नहीं लाने चाहिए, अन्यथा आपको पूरे दिन तनाव रहता है। जिससे आपको मानसिक रूप से परेशानी हो सकती है।प्रणय संबंधब्रह्म मुहूर्त ईश्वर के पूजन वंदन का समय माना गया है, यह समय बहुत ही पवित्र माना जाता है। इस समय भूलकर भी प्रणय संबंध नहीं बनाने चाहिए। आयुर्वेद के अनुसार भी ऐसा करना वर्जित माना गया है। इससे आपके शरीर को रोग घेरने लगते हैं और आपकी आयु का नाश होता है।न करें भोजनकुछ लोग सुबह को उठते ही पलंग पर ही चाय नाश्ता करने लगते हैं, ये आदत सेहत के लिहाज से बहुत खराब होती है। सुबह को उठते ही या फिर ब्रह्म मुहूर्त में भूलकर भी भोजन नहीं करना चाहिए। इससे बीमारियां घेरने लगती हैं। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 206
साधक का प्रश्न ::: अगर साधक को इस जीवन में लक्ष्य प्राप्ति नहीं हो पाती तो क्या अगले जीवन में वो अपने गुरु से मिलेगा?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: हाँ मिलेगा। वो तो लिंक बन जायेगी भगवत्प्राप्ति तक। लेकिन उधार नहीं करना चाहिए। उसको लक्ष्य ये बनाना चाहिए, इसी जन्म में करना है क्योंकि उधार करने में फिर वो लापरवाही हो जाती है, अगले जन्म में। अरे! अगर अगले जन्म में ही करना है, तो ठीक है, जो है इतना ही काफी है।
ये उधार की प्रवृत्ति जो है बहुत ही डेंजरस है। एक बीमारी है लोगों की कि भजन-वजन तो बुढ़ापे की चीज है। बुढ़ापे की क्या परिभाषा है तुम्हारी? साठ वर्ष, सत्तर वर्ष, अस्सी वर्ष कितने साल तुम रहोगे ये गारण्टी है कुछ?
युवैव धर्मशीलस्यात् अनित्यं खलु जीवितम्।को हि जानात् कस्याद्य मृत्युकालोभविष्यति।।(महाभारत)
कौन जानता है कल का दिन मिले न मिले?
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 205
साधक का प्रश्न ::: हमारा अंतःकरण कितना शुद्ध है, ये हम कैसे जानें ? कोई पहचान है क्या इसकी?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: इसकी एक पहचान है। जिसका हृदय जितना अधिक शुद्ध होगा, उसका हृदय, उसका मन उतनी ही जल्दी भगवान और महापुरुष की ओर खिंच जायेगा।
भगवान और महापुरुष चुम्बक के समान हैं। चुम्बक पत्थर होता है, लोहे को खींच लेता है। तो एक चुम्बक पत्थर बीच में रख दो और चारों ओर सुइयाँ खड़ी कर दो लोहे की। तो जिस सुई में जितना अधिक शुद्धत्व होगा, वो उतनी जल्दी खिंचेगी और जिसमें जितनी गन्दगी होगी, मिलावट होगी, उतनी देर में खिंचेगी।
जितना अधिक पाप का हृदय होगा उतनी देर में वो खिंचेगा भगवान और महापुरुष के सामने। तो अंतःकरण की शुद्धि का यही प्रमाण है कि शुद्ध वस्तु को पाकर खिंच जाय। जितनी जल्दी खिंच जाय, जितने परसेंट सरेंडर हो जाय, वो ही उसका प्रमाण है कि हमारा हृदय कितना शुद्ध है, कितना पापात्मा है, गन्दा है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
भारत में ऐसा ही एक शिव मंदिर है जहा लोग फूल और दूध के साथ-साथ, झाड़ू भी भगवान शिव को समर्पित करते हैं।
पातालेश्वर मंदिर, एक छोटे से गांव सदत्बदी जो मुरादाबाद और आगरा राजमार्ग पर स्थित है। इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा होती है यहां के लोगों का मानना है कि अगर भगवान शिव को झाड़ू चढ़ाई जाये तो व्यक्ति के सभी प्रकार के त्वचा के रोग ठीक हो जाते है। सदियों पुराने इस मंदिर में वह लोग अधिक आते है जो त्वचा के रोगों से ग्रस्त है। सोमवार भगवान शिव की पूजा के लिए शुभ दिन माना जाता है इस लिए सोमवार को यहां भारी भीड़ दर्शन करने आती है।मंदिर की क्या है मान्यताइस प्राचीन शिव पातालेश्वर मंदिर में श्रद्धालु अपने त्वचा संबंधी रोगों से छुटकारा पाने और मनोकामना पूर्ण करने के लिए झाड़ू चढ़ाते हैं। आसपास के लोग बताते हैं कि यह मंदिर करीब 150 वर्ष पुराना है। इसमें झाड़ू चढ़ाने की रस्म प्राचीन काल से ही है। इस शिव मंदिर में कोई मूर्ति नहीं बल्कि एक शिवलिंग है, जिस पर श्रद्धालु झाड़ू अर्पित करते हैं। सोमवार को यहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। धारणा है कि इस मंदिर की चमत्कारी शक्तियों से त्वचा के रोगों से मुक्ति मिल जाती है।इस चमत्कार के पीछे एक कहानी बताई जाती है कि गांव में कभी एक भिखारीदास नाम का एक व्यापारी रहता था, जो गांव का सबसे धनी व्यक्ति था और वह त्वचा रोग से ग्रसित था। उसके शरीर पर काले धब्बे पड़ गये थे, जिनसे उसे पीड़ा होती थी। एक दिन वह निकट के गांव के एक वैद्य से उपचार कराने जा रहा था कि रास्ते में उसे जोर की प्यास लगी। तभी उसे एक आश्रम दिखाई पड़ा। जैसे ही भिखारीदास पानी पीने के लिए आश्रम के अंदर गया वैसे ही आश्रम की सफाई कर रहे महंत के झाड़ू से उसके शरीर का स्पर्श हो गया। झाड़ू के स्पर्श होने के क्षण भर के अंदर ही भिखारीदास का दर्द ठीक हो गया। जब भिखारीदास ने महंत से चमत्कार के बारे में पूछा तो उसने कहा कि वह भगवान शिव का प्रबल भक्त है। यह चमत्कार उन्हीं की वजह से हुआ है। भिखारीदास ने महंत से कहा कि उसे ठीक करने के बदले में सोने की अशर्फियों से भरी थैली स्वीकार करे। किन्तु महंत ने अशर्फी लेने से इंकार करते हुए कहा कि वास्तव में अगर वह कुछ लौटाना चाहते हैं तो आश्रम के स्थान पर शिव मंदिर का निर्माण करवा दें। कुछ समय बाद भिखारीदास ने वहां पर शिव मंदिर का निर्माण करवा दिया। धीरे-धीरे मान्यता हो गई कि इस मंदिर में दर्शन कर झाड़ू चढ़ाने से त्वचा के रोगों से मुक्ति मिल जाती है।