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- हल्दी हमारी रसोई के मसालों का एक अभिन्न हिस्सा है। बात चाहें खाने की करें या घरेलू नुस्खों की करें ये हर काम में इस्तेमाल किया जाता है। वहीं बात अगर आयुर्वेद की करें, तो ऑयुर्वेद में हल्दी को कई औषधीय गुणों की भरमार माना जाता है। ये जहां छोटी मोटी चोटों को ठीक कर सकता है, वहीं हड्डियों के दर्द को भी कम कर सकता है। साथ ही इसके एंटीवायरल और एंटीबायोटिक गुणों से तो हम लोग वाकिफ हैं ही, जिसे हम नजरअंदाज नहीं कर सकते है। पर क्या आपको पता है कि बाजार से मिलना वाला हेल्दी पाउडर भी इन्हीं गुणों वाला है या नहीं?हल्दी पाउडरबाजार में मिलने वाला हल्दी पाउडर जिस प्रोसेस के जरिए तैयार होता है, उसके बारे में हम सभी ज्यादा नहीं जानते हैं। कई बार इन हल्दी पाउडर में मिलावटी रंग भी होते हैं, जो कि शरीर को नुकसान भी पहुंचा सकता है। पहले घरों में ही हल्दी को कूट-छानकर तैयार किया जाता था। या फिर हल्दी की गांठ को पानी में भिगोकर उसे सिलबट्टे पर पीसा जाता था और फिर उसे सब्जी में डाला जाता था, पर अब ऐसा नहीं होता। जहां तक हल्दी तैयार करने की विधि के बारे में बात करें, तो ये सूखे हल्दी को छीलकर, उबालकर और सुखाकर बनाया जाता है, जिसे बाद बेचा जाता है। हल्दी सूखने की इस प्रक्रिया में अपने कुछ आवश्यक तेलों और गुणों को खो देती है, लेकिन फिर भी यह गर्मी और रंग प्रदान कर सकती है।कच्ची हल्दीताजा हल्दी अक्सर जड़ वाली हल्दी को कहा जाता है, जो कि अदरक के समान दिखते हैं। अदरक की तुलना में इनके ताजा जड़ सूखी हल्दी की तुलना में एक जीवंत स्वाद देते हैं। इस हल्दी का रंग नारंगी और भूरा जैसा लग सकता है। वहीं इसमें कड़वाहट थोड़ी ज्यादा होती है। अदरक की तरह, हल्दी को आप सूखा कर लंबे समय तक के लिए रख सकते हैं। फिर जब भी आपको जरूरत पड़े आप इसका पाउडर बना कर या इसे पीस कर इस्तेमाल कर सकते हैं।कच्ची हल्दी के फायदे1.कच्ची हल्दी में ज्यादा होती है करक्यूमिनकच्छी हल्दी में करक्यूमिन की मात्रा अधिक होती है। ये हल्दी किसी भी तरह की चोट के लिए एक आदर्श मरहम हो सकती है। करक्यूमिन, हल्दी का वो मेडिकल गुण है, जिसके कारण हल्दी करक्यूमिन को एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-वायरल गुणों से भरा माना जाता है, जो हीलिंग को बढ़ाता है।2.हड्डियों के लिए ज्यादा फायदेमंद है कच्ची हल्दीकच्ची हल्दी की तुलना में हल्दी पाउडर में कम एंटी इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। इस तरह से कच्ची हल्दी हड्डियों में दर्द के लिए ज्यादा फायदेमंद है। वहीं ये ऑस्टियोआर्थराइटिस और रुमेटाइड आर्थराइटिस के उपचार के लिए भी जरूरी है। इस तरह कच्ची हल्दी घरेलू नुस्खों के लिए बेहतर है। वहीं गठिया के लोगों को कच्ची हल्दी को दूध में उबाल कर पीना चाहिए।3.त्वचा के लिएकच्ची हल्दी में मौजूद एंटीऑक्सिडेंट फाइन रेडिकल्स को रोकने में मदद कर सकते हैं, जो त्वचा के स्वास्थ्य को बढ़ावा दे सकता है। कच्ची हल्दी का उपयोग त्वचा की बीमारियों को ठीक करने के सबसे पुराने और पारंपरिक तरीकों में से एक है। यह वायु प्रदूषण के कारण होने वाली त्वचा की समस्याओं को ठीक करने के लिए भी जाना जाता है।इस तरह कभी भी हल्दी के पाउडर की तुलना में कच्ची हल्दी का इस्तेमाल करें और उन्हें पीस कर इस्तेमाल करें। वहीं अगर आप पाउडर का उपयोग कर रहे हैं, तो खुले हुए पाउडर का इस्तेमाल न करें और देख कर इस्तेमाल करें। कोशिश ये रखें कि बाजार से कच्ची हल्दी खरीदें और उन्हें ही पीस कर इस्तेमाल करें।
- कटेली या भटकटैया एक कांटेदार पौधा होता है , जो जमीन पर फैलता है। इसके पत्ते हरे होते और उसके साथ में लंबे-लंबे कांटे होता हंै। इसके फूल बैंगनी और सफेद रंग के होते हैं। आयुर्वेद में इस कांटेदार पौधे के अनेक गुण बताए हैं। इसकी प्रकृति गर्म होती और शरीर में पसीना पैदा करती है। संस्कृत में कटेरी, कंटकारी, छोटी कटाई, भटकटैया आदि नामों से जाना जाता है।कटेरी अक्सर जंगलों और झाडिय़ों में बहुतायत रूप से पाया जाता है। आमतौर पर कटेरी की तीन प्रजातियां पाई जाती हैं। छोटी कटेरी, बड़ी कटेरी और श्वेत कंटकारी। जिनका प्रयोग रोगों को दूर करने के लिए औषधि के तौर पर किया जाता है। कटेरी का प्रयोग पथरी, लिवर का बढऩा और माइग्रेन जैसे गंभीर रोगों में किया जाता है। इसके और भी कई लाभ हैं। माइग्रेन, और सिरदर्द में कंटकरी का प्रयोग काफी फायदेमंद है। इसके अलावा अस्थमा में , गठिया में दर्द और सूजन को कम करने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। इसके तने, फूल और फल, कड़वे होने के कारण, पैरों में होने वाली जलन से राहत दिलाने में मदद करते हैं।भटकटैया के कच्चे फल हरित रंग के, लेकिन पकने के बाद पीले रंग के हो जाते हैं। बीज छोटे और चिकने होते हैं। भटकटैया की जड़ औषधि के रूप में काम आती है। यह तीखी, पाचनशक्तिवद्र्धक और सूजननाशक होती है और पेट के रोगों को दूर करने में मदद करती है।भटकटैया का पौधा ब्रेन ट्यूमर के उपचार में सहायक होता है। वैज्ञानिक के अनुसार पौधे का सार तत्व मस्तिष्क में ट्यूमर द्वारा होने वाले कुशिंग बीमारी के लक्षणों से राहत दिलाता है। मस्तिष्क में पिट्युटरी ग्रंथि में ट्यूमर की वजह से कुशिंग बीमारी होती है। कांटेदार पौधे भटकटैया के दुग्ध युक्त बीज में सिलिबिनिन नामक प्रमुख एक्टिव पदार्थ पाया जाता है, जिसका इसका उपयोग ट्यूमर के उपचार में किया जाता हैं। भटकटैया अस्थमा रोगियों के लिए फायदेमंद होता है।भटकटैया की जड़ के साथ गुडूचू का काढ़ा बनाकर पीना खांसी में लाभकारी सिद्ध होता है। भटकटैया दर्दनाशक गुण से युक्त औषधि है। साथ ही यह अर्थराइटिस में होने वाले दर्द में भी लाभकारी होता है। इसके अलावा सिर में दर्द होने पर भटकटैया के फलों का रस माथे पर लेप करने से सिर दर्द दूर हो जाता है।---
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कोरोना काल में इम्यूनिटी मजबूत रखना बहुत ही जरूरी हो चुका है। इम्यूनिटी कमजोर होने की वजह से लोग कई तरह की बीमारियों के चपेट में आ सकते हैं। इम्यूनिटी को मजबूत रखने के लिए लोग कई तरह के उपाय अपना रहे हैं, लेकिन आयुर्वेदिक तरीके से इम्यूनिटी को मजबूत करने का तरीका सबसे बेहतर तरीका माना जाता है। इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाइयों के कई साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं, लेकिन नेचुरल उपायों के दुष्प्रभाव बहुत कम देखे जाते हैं। इसके साथ-साथ इम्यूनिटी को स्ट्रॉन्ग करने के लिए खानपान का भी विशेष ख्याल रखना चाहिए। इसके साथ-साथ कुछ घरेलू उपायों से इम्यूनिटी को मजबूत करने की कोशिश करनी चाहिए।
आज हम आपको नीम और एलोवेरा से तैयार एक ड्रिंक के बारे में बताने जा रहे हैं, जो आपकी इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने में आपकी मदद कर सकता है। इस लाजवाब ड्रिंक से ना सिर्फ आप अपनी इम्यूनिटी को मजबूत कर सकते हैं, बल्कि इसकी मदद से आप अपने वजन को भी काफी तेजी से घटा सकते हैं।एलोवेरा के फायदेएलोवेरा का पौधा देखने में आपको काफी सामान्य लगता है, लेकिन यह कई तरह के औषधीय गुणों से भरपूर होता है। आयुर्वेद में इसे औषधियों का राजा कहा जाता है। इससे स्किन से लेकर पाचन से जुड़ी समस्याएं को कंट्रोल किया जा सकता है। इसके साथ ही ब्लड शुगर और डायबिटीज से पीडि़त मरीजों के लिए भी एलोवेरा काफी फायदेमंद हो सकता है। जोड़ों में दर्द, पेट दर्द और आंखों की परेशानियों से जूझ रहे लोगों के लिए भी एलोवेरा काफी फायदेमंद होता है।नीम के फायदेनीम की पत्तियों से लेकर इसका छाल हमारे लिए फायदेमंद होता है। नीम एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी इंफ्लेमेटरी के गुणों से भरपूर होता है। यह हमें कई गंभीर समस्याओं से दूर रखने में हमारी मदद कर सकता है। स्किन से लेकर बालों की समस्याओं से छुटकारा दिलाने के साथ-साथ डायबिटीज, लिवर की समस्या, कैंसर जैसे कई गंभीर बीमारियों से भी हमारी रक्षा करता है। आयुर्वेद में नीम का इस्तेमाल काफी सालों से किया जा रहा है। इसका सेवन आप कई रूपों में कर सकते हैं। कई लोग नीम का जूस पीते हैं, ताकि उनके शरीर का ब्लड साफ हो सके। इसके अलावा स्किन की कई समस्याओं के लिए भी नीम का इस्तेमाल किया जाता है।ड्रिंक बनाने का तरीकाआवश्यक सामाग्रीनीम के पत्ते का रस - 1 चम्मचएलोवेरा जेल - 1 चम्मचपानी - 1 कपशहद - 1 चम्मचविधिसभी चीजों को एक मिक्सर ग्राइंडर में डालें।अब इसे अच्छी तरह पीसें।अच्छी तरह ग्राइंडर में मिश्रण को पीसने के बाद इसे छान लें।अब इसमें स्वादानुसार शहद मिलाकर इसका सेवन करें।इस बेहतरीन ड्रिंक के सेवन से कुछ ही दिनों में आपके सामने चौंका देना वाला रिजल्ट होगा।एलोवेरा और नीम का जूस पीने के अन्य फायदे-डायबिटीज की समस्या से मिलेगा छुटकारा-स्किन की परेशानियां होगी दूर-शरीर के विषैले पदार्थ बाहर निकलेंगे-पेट की हर एक समस्या होगी दूर-बालों में डैंड्रफ की परेशानी से मिलेगा छुटकारा-कैंसररोधी ड्रिंक के रूप में करेगा काम-आंखों की परेशानी से मिलेगा निजात - शरीर में खून यानि ब्लड ही है जिसके सहारे शरीर का हर अंग काम कर पाता है। ये शरीर के अंगों तक ऑक्सीजन पहुंचाता है और शरीर का तापमान कंट्रोल करता है। इसके अलावा ब्लड छोटे-छोटे न जाने कितने काम करता है, जिनके बिना जीवन मुमकिन नहीं है। दरअसल हम जो कुछ खाते-पीते हैं उसमें मौजूद पौष्टिक तत्वों को अलग-अलग अंगों तक पहुंचाने का काम ब्लड ही करता है, जिससे शरीर सुचारु रूप से काम कर पाता है। गलत और अनहेल्दी आहार खाने से हमारे ब्लड में कुछ ऐसे तत्व भी पहुंच जाते हैं जो शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं। इसी को खून खराब होना कहते हैं। ब्लड में गंदगी से फोड़े-फुंसी, पिंपल और चर्म रोग हो जाते हैं। इसके अलावा जल्दी थक जाना, वजन कम हो जाना, पेट की समस्याएं आदि भी ब्लड में गंदगी की वजह से हो जाती हैं। लेकिन ब्लड में मौजूद विषैले तत्वों को कुछ आहारों और जीवनशैली में परिवर्तन की मदद से बाहर निकाला जा सकता है।खूब पानी पियेंहमारे शरीर का एक-तिहाई हिस्सा पानी से बना हुआ है। ब्लड साफ करने का सबसे आसान तरीका है कि खूब पानी पियें। अगर आप रोजाना 3 से 4 लीटर पानी पीते हैं तो ब्लड में गंदगी की समस्या आपको कभी नहीं होगी। पानी से शरीर में मौजूद विषैले पदार्थ और हानिकारक बैक्टीरिया यूरिन और मल के माध्यम से निकल जाते हैं।सौंफ खाएंसौंफ खून की सफाई के लिए सबसे अच्छा विकल्प है। रोजाना सौंफ के इस्तेमाल से शरीर का ब्लड डिटॉक्सिफाई होता रहता है और गंदगी शरीर से बाहर निकलती रहती है। इसलिए रोज के खाने के बाद थोड़ा सा सौंफ खाएं। सौंफ में कई तत्व होते हैं जो शरीर को स्वस्थ रखते हैं और आंखों की रोशनी बढ़ाते हैं। आप रोजाना खाने के 5 मिनट बाद एक चम्मच सौंफ में आधा चम्मच मिश्री मिलाकर खाएं। सौंफ और मिश्री खाने की परंपरा भारत में काफी पुराने समय से चल रही है।शारीरिक मेहनत या व्यायाम करेंअगर आप शारीरिक मेहनत वाला कोई काम करते हैं तो ठीक और अगर नहीं करते हैं तो थोड़ा सा समय एक्सरसाइज के लिए जरूर निकालें। घर के काम करने वाली महिलाओं को भी शारीरिक व्यायाम करना चाहिए। इससे उनका शरीर फिट रहता है और शरीर गंभीर रोगों से दूर रहता है। व्यायाम करने या शारीरिक मेहनत के समय शरीर से जो पसीना निकलता है, उसके सहारे भी शरीर की तमाम गंदगी शरीर से बाहर निकलती है। इसलिए व्यायाम को अपनी दिनचर्या में शामिल करें।ग्रीन टी पियेंग्रीन टी भी आपके ब्लड को प्यूरिफाई करने का गुण रखती है। ज्यादातर लोग ग्रीन टी को वजव घटाने के लिए ही पीते हैं जबकि ये आपके मेटाबॉलिज्म को ठीक करती है और शरीर में मौजूद अशुद्धियों को बाहर निकालने में मदद करती है। इसके अलावा ग्रीन टी पीने से तनाव और डिप्रेशन से भी राहत मिलती है।फाइबर और विटामिन सी युक्त आहारखून की अशुद्धियों को दूर करने के लिए आपको फाइबर और विटामिन सी युक्त आहार लेना चाहिए। फाइबर के लिए हरी सब्जियां, गाजर, मूली, चुकंदर, शलजम, फल, ड्राई फ्रूट्स और मोटा अनाज ले सकते हैं। विटामिन सी के लिए नींबू, संतरा, आंवला और पपीता आदि ले सकते हैं। ये सभी आहार खून को शुद्ध करने के साथ-साथ आपके शरीर को भी स्वस्थ रखेंगे। चुकंदर खाने से ब्लड में हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ती है।
- आलूबालू, गिलास या चेरी एक खट्टा-मीठा गुठलीदार फल है। इसका रंग लाल, काला या पीला होता है और इसका आकार आधे से सवा इंच के व्यास (डायामीटर) का गोला होता है।आलूबालू में ऐन्थोसाय्निन नाम के पदार्थ होते हैं जो शरीर के अंगों में जलन और दर्द कम करते हैं। माना जाता है के मधुमेह और ह्रदय व अन्य ग्रंथियों के रोगों में छुपी हुई जलन का बहुत बड़ा हाथ है। चूहों के साथ प्रयोगों में देखा गया है के आलूबालू के ऐन्थोसाय्निन जलन हटाने में मदद करते हैं।भारत में आलू बालू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और उत्तरपूर्वी राज्यों में पैदा किया जाता है। विश्व भर में सन् 2007 में 20 लाख टन आलूबालू पैदा किया गया था, जिसमें से 40 प्रतिशत यूरोप में और 13 प्रतिशत संयुक्त राज्य अमेरिका में पैदा किया गया। आलूबालू को कश्मीरी में भी गिलास कहा जाता है। नेपाली में इसे पैयुं कहा जाता है। अंग्रेज़ी में इसे चेर, पंजाबी और उर्दू में इसे शाह दाना कहा जाता है। अरबी में इसे कज़ऱ् कहा जाता है।चेरी का खाने में उपयोग-चेरी एक स्वादिष्ट फल है जो विभिन्न तरह से भोज्य पदार्थों में उपयोग किया जाता है। इस फल को व्यंजनों तथा पेय पदार्थों की सजावट के तौर पर भी प्रयोग करते हैं। कॉकटेल में इसका खूब उपयोग होता है। चेरी शेक, जूस इत्यादि स्वादिष्ट पेय बनाए जाते हैं। चैरी के विभिन्न पोषक तत्व चेरी स्वास्थ्यप्रद फल है जो अनेक पोषक तत्वों से भरपूर है। यह विटामिन सी और ए का अच्छा स्रोत है। इसके साथ ही इसमें अधिकांश विटामिन थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पाए जाते हैं। चेरी फोलिक एसिड, पोटेशियम, मैग्नीशियम, फ़ॉस्फोरस जैसे खनिज तत्वों का भी एक अच्छा स्रोत है। एसिडिटी से छुटकारे के लिए आप चेरी को खा सकते हैं या चेरी का जूस भी ले सकते हैं जो फायदेमंद होता है। चेरी खाने से मधुमेह नियंत्रित हो सकता है। चेरी के मीठे और खट्टे फल में महत्वपूर्ण तत्व ऐन्थोसाइनिन शरीर में इन्सुलिन की मात्रा बढ़ाने के साथ साथ रक्त में शुगर की मात्रा को नियंत्रित रखता है और हृदय से संबंधी बीमारियों के खतरे को भी कम करने में सहायक है।--------
- आलू सभी का पसंदीदा होता है जिसे सब्जी, चिप्स आदि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इसमें पाये जाने वाला एक पदार्थ सोलेनाइन काफी विषैला होता है और यह पदार्थ केवल हरे आलू में पाया जाता है।आलू नाइटशैड (धतूरा) की फैमिली में आता है। इस फैमिली के पौधे अपने में टॉक्सिक कंपाउंड सोलेनाइन जमा करते हैं जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इतिहास में बेलाडोना आलू को लोगों की जान लेने के लिए याद किया जाता है। दरअसल इसके बारे में प्रसिद्ध है कि स्कॉटिश के राजा मेकबेथ ने अपने दुश्मनों को जान से मारने के लिए बेलाडोना आलू का इस्तेमाल किया था। आलू में सोलेनाइन इसके तना और अंकुर में जमा होता है। सोलेनाइन खासतौर पर हरा आलू में पाया जाता है। इसी तरह से आलू के अंकुरित हिस्से का भी प्रयोग नहीं करना चाहिए।आलू में विटामिन सी, बी कॉम्पलेक्स तथा आयरन , कैल्शियम, मैंगनीज, फास्फोरस तत्व होते हैं। आलू के प्रति 100 ग्राम में 1.6 प्रतिशत प्रोटीन, 22.6 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 0.1 प्रतिशत वसा, 0.4 प्रतिशत खनिज और 97 प्रतिशत कैलोरी पाई जाती है। आलू खाते रहने से रक्त वाहिनियां बड़ी आयु तक लचकदार बनी रहती हैं तथा कठोर नहीं होने पातीं।यदि दो-तीन आलू उबालकर छिलके सहित थोड़े से दही के साथ खा लिए जाएं तो ये एक संपूर्ण आहार का काम करते हैं। आलू मोटापा नहीं बढ़ाता है। आलू को तलकर तीखे मसाले घी आदि लगाकर खाने से जो चिकनाई पेट में जाती है, वह चिकनाई ही मोटापा बढ़ाती है। आलू को उबालकर या गर्म रेत अथवा गर्म राख में भूनकर खाना लाभकारी है। सूखे आलू में 8.5 प्रतिशत प्रोटीन होता है जबकि सूखे चावलों में 6 - 7 प्रतिशत प्रोटीन होता है। इस प्रकार आलू में अधिक प्रोटीन पाया जाता है। आलू में मुर्गियों के चूजों जैसी प्रोटीन होती है। बड़ी आयु वालों के लिए प्रोटीन आवश्यक है। आलू की प्रोटीन बूढ़ों के लिए बहुत ही शक्ति देने वाली और वृद्धावस्था की कमजोरी दूर करने वाली होती है। आलू रक्तचाप को सामान्य बनाने में लाभ करता है क्योंकि आलू में मैग्निशियम पाया जाता है।
- ब्लोटिंग यानी पेट फूलना एक आम पेट की समस्या है जो अन हेल्दी डाइट खाने या अधिक खाने के कारण होती है। इसके अलावा भी कुछ बीमारियां भी सूजन और पानी की अधिकता का कारण ब सकती हैं। जिसके कारण हर समय पेट भरा हुआ लगता है। इसी पेट की परेशानी के कारण आप असहज महसूस करते हैं।यह समस्या अब आम हो गई है। बहुत से, लोगों ने ब्लोटिंग से राहत पाने के लिए हर्बल चाय के प्राकृतिक उपचार का उपयोग किया है और उनको फायदा भी मिला है। कई हर्बल चाय इस असहज स्थिति को शांत करने में मदद कर सकती है। देखें कौन सी हर्बल चाय से इस समस्या से आराम मिलता है-पुदीना की पत्तियों से बनी चायप्राचीन समय से ही पुदीने को व्यापक रूप से पचाने में मदद करने के लिए पहचाना जाता है। इसमें ठंडक व ताजगी देने वाले गुण होते हैं। पुदीना से पेट की सफाई होती है। इसलिए यह हमारे पेट के लिए बहुत ही अच्छा पाचक तत्व है। इसके कैप्सूल्स से भी ब्लोटिंग की समस्या से राहत मिल सकती है। इसके अलावा पुदीन की चाय भी फायदा करती है। इसे बनाने के लिए एक कप पानी में कुछ पत्ती पुदीने की और टी बैग डालें। इसे छान कर पीने से पेट फूलने की समस्या से तुरंत आराम मिलता है।सौंफ की चायसौंफ़ के दानें, या सौंफ, सबसे अच्छा देसी मसाला माना जाता है। सौंफ़ का प्रयोग आज से नहीं, पारंपरिक रूप से पहले से ही भारतीय खाने में किया जाता है। यह शरीर को प्राकृतिक रूप से ठंडा करती हैं और पाचन तंत्र के सुचारू संचालन में भी मदद करती हैं। सौंफ़ भोजन को पचाने में सहयोग करता है; यही कारण है कि भारतीय इसका सेवन रात के खाने के बाद भी करते हैं। सौंफ़ के एंटी-ब्लोटिंग लाभ पाने के लिए पानी के साथ उबालें और सेवन करें। सब तरह की गैस और ऐंठन मिनटों में दूर हो जाती है।अजवायन की चायअजवायन के बीज, गैस और अपच के लिए सबसे अच्छे देसी उपचारों में से एक हैं। स्वाद बढ़ाने के लिए हमारे कई व्यंजनों में अजवायन का प्रयोग किया जाता है और जब चाय के रूप में इसका सेवन किया जाता है, तो इसमें मौजूद थाइमोल की उपस्थिति के कारण यह पाचन क्रिया को दुरुस्त करता है। अजवायन के बीज को पेट फूलने के लिए भी एक प्रभावी उपाय कहा जाता है। इस हर्बल चाय को बनाने के लिए पानी में कुछ अजवायन के बीज उबालें, पानी को एक कप में छान लें और इसमें काला नमक, शहद (या गुड़) और नींबू मिलाकर पीने से पेट फूलने की समस्या से राहत मिलती है।अदरक नींबू और शहद की चायअदरक सबसे महत्वपूर्ण मसालों में से एक है जिसका उपयोग सूजन को दूर करने और गर्मियों के दौरान अन्य पाचन संबंधी परेशानियों को दूर रखने के लिए किया जा सकता है। स्वाद बढऩे के लिए उसमे शहद और नींबू का इस्तेमाल किया जा सकता है। शहद इम्यूनिटी बढ़ाने वाला स्वीटनर है। जबकि नींबू विटामिन सी प्रदान करता है। जो त्वचा के साथ-साथ शरीर के अन्य कार्यों को भी स्वस्थ रख सकता है। अदरक, शहद और नींबू की चाय को चाय की पत्तियों (कैफीन मुक्त) के उपयोग के साथ या बिना तैयार किया जा सकता है, लेकिन ब्लोटिंग से राहत पाने के लिए कैफीन का इस्तेमाल कम करना बेहतर होता है।कैमोमाइल की पत्तियों की चायकैमोमाइल फूल कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं, जिनमें तनाव से लडऩा और सूजन को कम करना इसकी दो मुख्य विशेषताएं हैं। कैमोमाइल चाय फंसी हुई गैस को छोडऩे में भी मदद करती है। इससे सूजन से राहत भी मिलती है। हर्बल चाय के अन्य कथित लाभों में से एक मासिक धर्म की ऐंठन से राहत और शरीर दर्द से राहत शामिल हैं। इसे बनाने के लिए एक कप उबले हुए पानी में एक कैमोमाइल का ड्राई टी बैग डाल दें और 10 मिनट के लिए रख दें। फिर छान कर पीयें।
- पान एक बहुवर्षीय बेल है, जिसका उपयोग हमारे देश में पूजा-पाठ के साथ-साथ खाने में भी होता है। खाने के लिए पान पत्ते के साथ-साथ चूना कत्था तथा सुपारी का प्रयोग किया जाता है। इसे संस्कृत में नागबल्ली, ताम्बूल हिन्दी भाषी क्षेत्रों में पान मराठी में पान/नागुरबेली, गुजराती में पान/नागुरबेली तमिल में बेटटीलई,तेलगू में तमलपाकु, किल्ली, कन्नड़ में विलयादेली और मलयालम में बेटीलई नाम से पुकारा जाता है।पान अपने औषधीय गुणों के कारण पौराणिक काल से ही प्रयुक्त होता रहा है। आयुर्वेद के ग्रन्थ सुश्रुत संहिता के अनुसार पान गले की खरास एवं खिचखिच को मिटाता है। यह मुंह के दुर्गन्ध को दूर कर पाचन शक्ति को बढ़ाता है, जबकि कुचली ताजी पत्तियों का लेप कटे-फटे व घाव के सडऩ को रोकता है। अजीर्ण एवं अरूचि के लिए प्राय: खाने के पूर्व पान के पत्ते का प्रयोग काली मिर्च के साथ तथा सूखे कफ को निकालने के लिये पान के पत्ते का उपयोग नमक व अजवायन के साथ सोने के पूर्व मुख में रखने व प्रयोग करने पर लाभ मिलता है। पान एक जड़ी-बूटी की तरह भी काम करता है, और पान के कई सारे औषधीय गुण हैं। क्या आपको पता है कि सिर दर्द, आंखों की बीमारी, कान दर्द, मुंह के रोग, बच्चों की सर्दी में पान के इस्तेमाल से फायदे ले सकते हैं। इतना ही नहीं, कुक्कर खांसी, सर्दी-जुकाम, ह्रदय रोग, सांसों के रोग में भी पान के औषधीय गुण से लाभ मिलता है।पान भारतीय संस्कृति का हिस्सा होने साथ एक महत्वपूर्ण औषधि भी है। पान के पत्तों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फॉस्फोरस, लौह, आयोडीन और पोटैशियम जैसे तत्व भी पाए जाते हैं। सर्दी खांसी और जुकाम होने पर सेंकी हुई हल्दी का टुकड़ा पान में डालकर खाने से आराम मिलता है। उंगलियों में सूजन की शिकायत काफी लोगों को होती है, इसे कम करने के लिए पान के पत्तों को गर्म करके अंगुली पर लपेटने से लाभ मिलता है।पाचन में सहायकपान खाना पाचन क्रिया के लिए फायदेमंद है। ये सैलिवरी ग्लैंड को सक्रिय करके लार बनाने का काम करता है जो कि खाने को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोडऩे का काम करता है। कब्ज की समस्या से जूझ रहे लोगों के लिए भी पान की पत्ती चबाना काफी फायदेमंद है। गैस्ट्रिक अल्सर को ठीक करने में भी पान खाना काफी फायदेमंद है।मुंह के स्वास्थ्य के लिएपान के पत्ते में कई ऐसे तत्व होते हैं जो बैक्टीरिया के प्रभाव को कम करने में सहायक होते हैंै। जिन लोगों के मुंह से दुर्गंध आ रही हो उनके लिए पान का सेवन काफी फायदेमंद होता हैै। इसमें इस्तेमाल होने वाले मसाले जैसे लौंग, कत्था और इलायची भी मुंह को फ्रेश रखने में सहायक होते हैं। पान खाने वालों के लार में एस्कॉर्बिक एसिड का स्तर भी सामान्य बना रहता है, जिससे मुंह संबंधी कई बीमारियां होने का खतरा कम हो जाता है।मसूड़ों में सूजनपर या गांठ आ जाने परमसूड़े में गांठ या फिर सूजन हो जाने पर पान का इस्तेमाल काफी फायदेमंद होता है। पान में पाए जाने तत्व इन उभारों को कम करने का काम करते हैं।साधारण बीमारियों और चोट लगने परसर्दी में भी पान के पत्ते फायदेमंद होते हैं। इसे शहद के साथ मिलाकर खाने से फायदा होता है। साथ ही पान में मौजूद एनालजेसिक गुण सिर दर्द में भी आराम देता है। चोट लगने पर पान का सेवन घाव को भरने में मदद करता है।पान में मुख्य रूप से निम्न कार्बनिक तत्व पाए जाते हैं, इसमें प्रमुख निम्न है:-फास्फोरस -0.13-0.61 प्रतिशतपौटेशियम -1.8- 36 प्रतिशतकैल्शियम -0.58 -1.3 प्रतिशतमैग्नीशियम -0.55 - 0.75 प्रतिशतकॉपर -20-27 पी.पी.एम.जिंक -30-35 पी.पी.एम.शर्करा - 0.31-40 /ग्रा.कीनौलिक यौगिक - 6.2-25.3 /ग्रा. -पान में पाये जाने वाले बिटामिनों में ए,बी,सी प्रमुख है।
- वजन कम करने के लिए सही आहार और एक्सरसाइज दो सबसे महत्वपूर्ण चीजें हैं, जिनके माध्यम से आप आसानी से अपने शरीर की चर्बी को कम कर सकते हैं। जब तक आप अपने रूटीन को फॉलो नहीं करेंगे आप कितनी भी मेहनत कर लीजिए आपका वजन जस का तस बना रहेगा। अगर आप अपने शरीर की अतिरिक्त चर्बी को घटाना चाहते हैं तो सही समय पर संतुलित भोजन करने की आदत डालें साथ ही नियमित रूप से एक्सरसाइज करें। इन सबके साथ ही यहां हम आपको एक और घरेलू नुस्खा अपनाने का तरीका बता रहे हैं जो वजन कम करने में आपकी मदद करेगा।नींबू पानी में मिलाकर पीएं काला नमकशरीर खासकर पेट की चर्बी घटाने के लिए सुबह खाली पेट गर्म नींबू पानी पीना काफी फायदेमंद माना जाता है। नींबू विटामिन सी, कैलोरी में कम और एंटीऑक्सिडेंट के साथ विटामिन और मिनरल्स से युक्त होता है। यही नहीं, नींबू पानी आपको हाइड्रेटेड रखने में मदद करता है। नींबू पानी मेटाबॉलिज्म को बढ़ाता है और अतिरिक्त वजन को कम करने में मदद करता है। हालांकि, नींबू पानी में काला नमक जोडऩा और भी फायदेमंद हो सकता है। काला नमक पेय के स्वास्थ्य लाभ को बढ़ा देता है। काला नमक प्राकृतिक मिनरल्स से युक्त होता है जो मानव शरीर के कामकाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक हैं।नींबू पानी और काला नमक का मिश्रण कैसे आपका वजन कम कर सकता है?यह बेहतरीन पेय पाचन से जुड़ी समस्याओं को खत्म करने में मदद करता है। आपका मल त्याग सुचारू रूप से होगा और आप अपच की समस्या से आपको कभी भी सामना नहीं करना पड़ेगा। वजन कम करने के लिए दोनों आवश्यक हैं। यदि आपका आंतरिक पाचन तंत्र ठीक से काम नहीं कर रहा है, तो आपके लिए चर्बी कम करना मुश्किल हो सकता है। इसके अलावा, यह पेय शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है, जिससे आपका मेटाबॉलिज्म और वजन घटाने की प्रक्रिया रफ्तार पकड़ लेती है।नींबू पानी और काला नमक पीने के अन्य स्वास्थ्य लाभकाले नमक के साथ नींबू पानी पाचन तंत्र के पीएच स्तर को बनाए रखने में भी मदद कर सकता है। जो एसिडिटी, त्वचा रोग, ऑस्टियोपोरोसिस और गठिया की समस्या को कम करने में मदद करता है। काला नमक आपके द्वारा खाए गए भोजन से अधिक पोषक तत्वों को अवशोषित करने में मदद करता है। एंटीऑक्सिडेंट में समृद्ध होने के नाते, उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल के स्तर को भी नियंत्रित करता है और रक्त के थक्के को रोकता है।नींबू पानी और काला नमक सेवन करने का तरीकाएक गिलास पानी लें (सामान्य या गर्म और ठंडे पानी से बचें) और 2 बड़े चम्मच नींबू का रस और एक चुटकी काला नमक मिलाएं। इसे अच्छे से मिलाकर पिएं। आप या तो सुबह-सुबह या अपने भोजन के बाद इसे पी सकते हैं। आपको इस बात का ध्यान रखना होगा कि यह सिर्फ एक ट्रिक है जो आपके वजन घटाने की योजना का समर्थन कर सकती है। केवल इस पेय को पीने से आप अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाएंगे। स्वस्थ आहार और व्यायाम भी जरूरी है।
- अरबी या आम भाषा में कहें कि कोचई, का इस्तेमाल छत्तीसगढ़ में काफी होता है। अरबी की सब्जी कई तरह से बनाई जाती है। इसकी लप्सी भी फलाहारी रूप में खाई जाती है, जो दूध के साथ बनाई जाती है। वहीं इसके पत्तों के पकोड़े, ईढर कढ़ी भी काफी चाव से खाई जाती है। अरबी के पत्तों में कैल्शियम, पोटेशियम, एंटी-ऑक्सीडेंट और विटामिन ए, बी, सी भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो सेहत के कई फायदे देते हैं। आज हम आपको बता रहे हैं कि कोचई के पत्तों के सेवन से शरीर को कितने लाभ मिलते हैं और किन बीमारियों से ये पत्ते हमें बचा सकते हैं...भूख कम लगनाजिन लोगों को भूख कम लगने की परेशानी रहती है वे हफ्ते में दो बार अरबी के पत्तों की सब्जी जरूर खाएं। इससे उनकी भूख न लगने की समस्या दूर हो जाएगी।चेहरे पर झुर्रियां आनाअक्सर एक उम्र के बाद या बहुत ज्यादा तनाव की वजह से लोगों के चेहरे पर झुर्रियां दिखने लग जाती है। इन झुर्रियां को हटाने के लिए लोग अलग-अलग कॉस्मेटिक का इस्तेमाल करते हैं। अरबी के पत्तों के सेवन से झुर्रियों के आने की रफ्तार में कमी लाई जा सकती है।आंखों की रोशनी बढ़ाने में मददगार है अरबी के पत्तेअक्सर कम उम्र में ही लोगों की आंखों की रोशनी कम होने लग गई है। जिसकी वजह खराब खानपान, देर तक टीवी के सामने बैठे रहना आदि है। जिन लोगों को आंखों की परेशानी रहती है वे अपने खाने में अरबी के पत्ते जरूर शामिल करें। ये आंखों की रोशनी बढ़ाने में मदद करेंगे। इसमें विटामिन ए पाया जाता है जो आंखों की रौशनी बढ़ाता ह साथ ही आंखों की मांसपेशियों भी मजबूत करता है।अरबी के पत्तों को कैसे खाएंअरबी के पत्तों को कई तरह से खाया जा सकता है। जैसे कि सब्जी के रूप में, पकोड़े के रूप में।अरबी के पत्तों की सब्जी बनाने के लिए अरबी के पत्तों में बेसन या फिर उड़द की दाल का पेस्ट मिलाया जाता है। बेसन या फिर उड़द की दाल के पेस्ट में आप अपने स्वाद अनुसार सारे मसाले डाल सकते हैं, जैसे कि धनिया, गरम मसाला, अदरक , नमक, मिर्च , हींग, नींबू आदि। आप चाहे तो इस मिश्रण में अरबी के पत्तों को काटकर डाल दें या फिर पत्तों में इस मिश्रण को लपेटकर रोल बना लें और इसे भाप में पका लें। जब ये अच्छी तरह से पक जाएं तो इन्हें टुकड़ों में काट लें। फिर इन्हें तेल में डिप फ्राई कर लें। फिर चाहें तो इसे पकोड़े की तरह चटनी की तरह खाएं या फिर कढ़ी बना कर सब्जी की तरह खाएं। दोनों ही तरह से ये जायकेदार लगते हैं। कभी -कभी स्वाद बदलने के लिए आप पत्तों के रोल बनाने में मूंग दाल के पेस्ट का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।ब्लड प्रेशर कंट्रोल करेब्लडप्रेशर को कंट्रोल करने के लिए यह फायदेमंद उपाय है। इसके सेवन से तनाव में कमी आती है जिससे आपका ब्लडप्रेशर कंट्रोल में रहता है।पेट में जलनपेट में जलन या दर्द की समस्या होने पर भी यह फायदेमंद है। इसके पत्ते को डंठल के साथ पानी में उबालकर, इस पानी में थोड़ा घी मिलाकर 3 दिनों लेने से आराम होता है।जोड़ों का दर्दजोड़ों में दर्द की समस्या से निजात दिलाने में यह बेहद मददगार है। नियमित रूप से अगर इसका इस्तेमाल किया जाए, तो जोड़ों की समस्याएं दूर हो सकती हैं।मेटाबॉलिज्म को एक्टिव करेअरबी के पत्तों में मौजूद फाइबर शरीर के मेटाबॉलिज्म को एक्टिव बनाने के साथ ही वजन को भी कंट्रोल करने में मदद करता है।
- दुनिया में कोरोना वायरस महामारी फैली है। इस वायरस से लडऩे का एक मुख्य उपाय है कि सेहतमंद रहा जाए और और संक्रमण के खिलाफ अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत किया जाए। आयुर्वेद चिकित्सा की प्राचीन व भरोसेमंद पद्धति है। यह उन तरीकों पर बल देती है, जिनसे एक सेहतमंद प्रतिरक्षा प्रणाली बनाए रखने के लिए शरीर को मजबूत करते हैं। औषधियों व प्राकृतिक अवयवों से प्राप्त किए गए तत्व न केवल आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करते हैं, अपितु आपकी रोगों से लडऩे की शक्ति बढ़ाते हैं।आयुर्वेद के अनुसार शरीर की संपूर्ण शक्ति (बल और ओजस) को पर्याप्त व्यायाम, पूरी नींद, सेहतमंद जीवनशैली व अच्छे पोषण द्वारा मजबूत किया जा सकता है। आयुर्वेदिक लेख शुद्ध औषधियों एवं जड़ी-बूटियों तथा शरीर की संक्रमण से लडऩे की प्राकृतिक क्षमता को मजबूत करने के लिए दिए जाने वाले रसायनों को लेने का परामर्श देते हैं। इन दवाईयों के स्वास्थ्य को अतिरिक्त फायदे होते हैं। ये शरीर को नई उर्जा प्रदान करती हैं, तनाव को कम करती हैं, स्मरण शक्ति, समझ-बूझ को बढ़ाती हैं तथा शरीर में बल, ऊर्जा व शक्ति का संचार करती हैं।मौजूदा समय में जड़ी बूटियों से बनी औषधियों को लिया जाना जरूरी है, जो संपूर्ण सेहत में प्राकृतिक तरीके से सुधार करती हैं। यहां हम आपको ऐसी 5 औषधियों के बारे में बता रहे हैं, जो कोरोना काल में आपको संक्रमण से बचाएंगी।1. गिलोय-गिलोय या गुडुची (टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया) को 'अमृत' भी कहते हैं। यह अनेक तरह के संक्रमण एवं बुखार को रोकने के लिए आयुर्वेद का बृह्मास्त्र है। यह औषधि तनाव, बार-बार बीमार पडऩे एवं संक्रमण के कारण कमजोर हो चुके शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत कर रोगों से लडऩे की शक्ति बढ़ाती है। इसके एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुण शरीर को इन्फ्लेमेशन से आराम देते हैं, जो पैथोजंस के प्रति शरीर की प्रतिरक्षा कमजोर होने का मुख्य कारण होता है।2. तुलसी-तुलसी (ओकिमम सैंक्टम) इसे 'जड़ी बूटियों की रानी' भी कहते हैं। यह आयुर्वेद में एक बहुत ही सम्माननीय औषधि है। इसके अनेक चिकित्सीय फायदे हैं। आधुनिक शोध से पता चलता है कि तुलसी आम पैथोजंस, जैसे बैक्टीरिया, वायरस एवं फंगस को दूर करती है। तुलसी संक्रमण करने वाले इन तत्वों के खिलाफ शरीर को मजबूत करती है और प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत बनाती है। तुलसी सांस प्रणाली के अंगों को मजबूत करती है और कोशिकाओं द्वारा उत्सर्जित किए जाने वाले प्रो-इन्फ्लेमेटरी पदार्थों को संतुलित कर इन्फ्लेमेशन को कम करती है।3. आंवलाआंवला या आमला (एम्ब्लिका ऑफिशिनलिस) इसे वंडरबेरी भी कहते हैं। यह आयुर्वेद के सर्वश्रेष्ठ रसायनों में एक है। पूरी दुनिया में सुपरफूड के रूप में सम्मानित आमला में विटामिन सी एवं अन्य प्राकृतिक एंटी-ऑक्सीडेंट तत्व पाए जाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि एंटीऑक्सीडेंट वायरस को बढऩे से रोकते हैं, वायरस का तेजी से प्रसार रोकते हैं तथा वायरस के कारण होने वाले ऑक्सीडेसिव नुकसान को कम करते हैं। आमला सर्वश्रेष्ठ एंटीऑक्सीडेंट्स में से एक है, जो आपको सेहतमंद एवं वायरल संक्रमण से सुरक्षित रखने में मदद करता है।4. अश्वगंधा-अश्वगंधा (विदानिया सॉम्नीफेरा) को भारतीय जिनसंग भी कहते हैं। आयुर्वेद के विशेषज्ञ इसे बलवर्धक टॉनिक एवं प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत करने वाला रसायन मानते हैं। अश्वगंधा संक्रमण व बीमारियों से लडऩे की शरीर की शक्ति को मजबूत करता है। यह शरीर के ऊतकों व ओजस को पोषण प्रदान करता है। क्लिनिकल अध्ययनों में सामने आया है कि अश्वगंधा वजन बढ़ाने, शरीर का पोषण बढ़ाने, हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ाने, पेशियों की शक्ति बढ़ाने व सामथ्र्य बढ़ाने में मदद करता है। अश्वगंधा प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत कर संक्रमण व संक्रमण से उत्पन्न समस्याओं को दूर करने में मदद करता है।सदियों से आयुर्वेद शुद्ध जड़ी बूटियां एवं विभिन्न जड़ी-बूटियों के मिश्रण रसायन के रूप में लेते रहने का सुझाव देता आया है। इन प्राचीन, जांची परखी एवं भरोसेमंद औषधियों को लेने से आपके शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होगी और आपको संक्रमण से लडऩे में मदद मिलेगी।
- आज के समय में लोगों के खानपान ने सब बदल दिया है। लोगों को अपने लिए समय ही नहीं मिल पाता की वह अपनी देखभाल अच्छे से कर सकें। ऐसे में डायबिटीज जैसी बीमारी आम बात हो रही है। शुरूआती समय में ही डायबिटीज होने का पता समय पर चल जाए तो इस बीमारी को कंट्रोल किया जा सकता है। आइए जानते हैं कैसे शुरूआती समय में डायबिटीज को बढऩे से रोकें।लोग अक्सर फूलों को पूजा के लिए इस्तेमाल करते हैं, लेकिन इन फूलों को बीमारियों की रोकथाम के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। हर फूल के अंदर अलग-अलग गुण होते हैं जो शरीर में अलग-अलग फायदे पहुचा सकते हैं। जिसमें से बात अगर डायबिटीज की करें तो उसके लिए गुड़हल और सदाबहार के फूल बहुत ही फायदेमंद माने जाते हैं।गुड़हल के फूलजिन लोगों को डायबिटीज की परेशानी है तो उन लोगों के लिए गुड़हल बहुत ही लाभदायक है उन लोगों को हर रोज नियमित रूप से उन्हें इसका सेवन करना होगा। क्योंकि गुड़हल में विटामिन सी, आयरन, एंटी-ऑक्सीडेंड और पाइबर की अच्छी मात्रा पायी जाती है, जो शरीर को कई परेशानियों से लडऩे में मदद करते है। रोजाना हर सुबह खाली पेट 4 से 5 गुड़हल की कली लेकर उसे अच्छे से साफ कर खाने से डायबिटीज में आराम मिलता है। .इतना ही नहीं गुड़हल के फूल डायबिटीज के साथ-साथ कई और बीमारियों में लाभदायक होते हैं, जैसे कि चेहरे पर मुंहासे की समस्या होना, शरीर में सूजन आना। जिन लोगों के शरीर में अक्सर सूजन रहती है वह लोग किसी भी तेल में गुड़हल के फूल मिलाकर शरीर की मालिश करें,उन्हें जल्द ही आराम मिलेगा।सदाबहार के फूलसदाबहार के फूल में एलकालॉइड्रस, एजमेलीसीन, सरपेन्टीन जैसे तत्व पाय जाते हैं। जो शरीर को डायबिटीज के साथ कई और बीमारियों से बचाते हैं। सदाबहार के फूल शरीर से टॉक्सिन्स को बहार निकालता है। जिन लोगों को डायबिटीज की परेशानी रहती है वे हर सुबह सदाबहार के 10 फूल लें और उसके पानी के साथ मिलाकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को खाली पेट पानी के साथ पी लें। डायबिटीज के लोगों के लिए ये पेस्ट बहुत ही फायदेमंद होता है।(नोट- ये उपाय करने से पहले एक बार योग्य चिकित्सक से अवश्य सलाह ले लें। )
- -जानिये तापमान से जुड़े ये रोचक तथ्यशरीर के तापमान से जुड़े ये 5 रोचक तथ्य जो आप नहीं जानते होंगे, मगर आपको जानना चाहिए! क्या आप जानते हैं कि शरीर का कौन सा तापमान बुखार और कौन सा तापमान सामान्य माना जाता है। जानिए विस्तार से।क्या आपने कभी सोचा है कि डॉक्टर सबसे पहले चेकअप के समय हमारे शरीर का तापमान क्यों मापते हैं। दरअसल हमारे शरीर का तापमान भी हमारे स्वास्थ्य से जुड़ी कई बातें बताता है। इसलिए चिकित्सक सबसे पहले आप का तापमान मापते हैं। परंतु आप का तापमान आप की उम्र, आप के जेंडर के आधार पर भी घटता व बढ़ता रहता है।पुरुषों व महिलाओं का तापमान अलग-अलग होता है। महिलाओं का तापमान पुरुषों से 0.4 डिग्री (फारेनहाइट) अधिक होता है। परंतु महिलाओं के हाथ पुरुषों के हाथों से 2.8 डिग्री (फारेनहाइट) ज्यादा ठंडे होते हैं। अत: यह तापमान घटता बढ़ता रहता है। महिलाओं का तापमान मुख्यत 97.8 डिग्री (फारेनहाइट) होता है। जबकि पुरुषों का शरीर तापमान 97.4 डिग्री (फारेनहाइट) होता है।औसतन सामान्य तापमान कितना होता हैऔसतन हमारे शरीर का सामान्य तापमान 98.6 डिग्री (फारेनहाइट) माना जाता है। परंतु यह 97 डिग्री (फारेनहाइट) से 99 डिग्री (फारेनहाइट) तक घटता बढ़ता रहता है, जो कि सामान्य है। शरीर का तापमान मौसम के मुताबिक भी बदलता है। जैसे कि शरीर का तापमान दोपहर में, सुबह के मुकाबले ज्यादा होता है। वहीं युवाओं व वृद्ध के मुकाबले, छोटे बच्चों का तापमान अधिक होता है।कितने तापमान को बुखार माना जाता हैजब किसी बीमारी की वजह से आप के शरीर का तापमान बढ़ जाता है तो उसे बुखार कहा जाता है। 100.4 डिग्री (फारेनहाइट) या इससे ज्यादा तापमान बुखार माना जाता है। यह एक या दो दिन तक रहता है। इसके मुख्य लक्षण कांपना, पसीना आना, सिर दर्द होना, मसल्स दुखना, भूख न लगना आदि होते हैं। यदि आप को 103 डिग्री (फारेनहाइट) से ऊपर बुखार होता है तो यह एक चिंता का विषय हो सकता है। बच्चों के लिए 100-102 डिग्री (फारेनहाइट) तापमान भी खतरनाक माना जाता है।कोरोना वायरस के लिए तापमानकोरोना वायरस से संक्रमित होने पर बुखार आना उसका पहला लक्षण होता है। यदि कोई वायरस से संक्रमित है तो उसके शरीर का तापमान लगभग 100 डिग्री (फारेनहाइट) से ऊपर मिलेगा।उम्र के साथ तापमान में बदलावजैसे जैसे उम्र बढ़ती है वैसे वैसे ही शरीर के तापमान में भी बदलाव आते रहते हैं। इसलिए यदि किसी व्यक्ति की उम्र 65 से ऊपर है तो उसके शरीर का तापमान भी कम मिलेगा। उनके शरीर का तापमान अधिकांशत: 93.5 डिग्री (फारेनहाइट) के आस पास रहेगा। अत: आप को चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन इस उम्र वर्ग के लोगों को बुखार भी कम तापमान पर ही आता है।
- मां शक्ति की आराधना का पर्व नवरात्र आज से शुरू हो चुका है। इन नौ दिनों में मां के नौ अलग -अलग रूपों की पूजा की जाती है। इन नौ दिनों मेेंं कुछ लोग उपवास रखते हैं तो कुछ लोग प्रथम, पंचम और अष्ठम तिथि का व्रत रखते हैं। आज हम आपको बताएंगे कि आप व्रत के दौरान भी भरपूर मात्रा में प्रोटीन और न्यूट्रिशन कैसे ले सकते हैं।आलू से बनी चीजेंवैसे तो आम दिनों में लोग आलू का सेवन कम करते हैं। लोगों का मानना है कि आलू के सेवन से वजन ज्यादा बढ़ता है। लेकिन व्रत के दिनों में आलू का सेवन आपकी भूख को नियंत्रित कर सकता है। आप व्रत में आलू के बने चिप्स, आलू के पापड़, सेंधा नमक के उबले आलू आदि का सेवन कर सकते हैं।राजगिर के बने लड्डूराजगिर के लड्डू को आम लोगों की भाषा में व्रत के लड्डू भी कहा जाता है। इसे हल्के आहार के रूप में देखा जाता है। इसके अंदर कई पौष्टिक तत्व मौजूद होते हैं। साथ ही राजगीर के लड्डू में गुड यानी नैचुरल शुगर का प्रयोग किया जाता है इसलिए ये बेहद पौष्टिक होते हैं। कुछ लोग राजगीर्र की बफियां भी बनाते हैं, जिससे टेस्ट के साथ-साथ स्वाद भी भरपूर मिलता है। राजगिर में विटामिन सी होता । राजगिर के आटे के पराठे भी बनाए जा सकते हैं।कूटू का आटाकुट्टू के आटे के अंदर कम कैलोरी पाई जाती है। यह फाइबर और प्रोटीन से भरपूर होता है। इसलिए कूटू का सेवन व्रत में बेहद लाभदायक है। कूट्टू से बनी पकौड़ी न केवल अच्छी लगती हैं बल्कि इससे भूख भी कम लगती है। इसके अलावा कुछ लोग कूटू की बनी रोटी या परांठे का सेवन भी करते हैं। कूटू के साथ लौकी का प्रयोग करके आप हेल्दी भोजन तैयार कर सकते हैं। कूटू के आटे में आलू मिक्स करके इससे स्वादिष्ट पराठे या फिर पुरी बनाई जा सकती है।व्रत में फल का सेवन करनाफलों का सेवन करने से शरीर तरोताजा महसूस करता है। ऐसे में अगर इसका सेवन व्रत में किया जाए तो दिन भर थकान से दूर रहा जा सकता है। पपीते में मैग्नीशियम, कॉपर, मिनरल्स, विटामिन बी आदि पाए जाते हैं इसलिए व्रत में पपीता बेहद लाभदायक है। इसके अलावा काले अंगूर, अनानास, संतरा, सेब, मौसमी आदि का सेवन व्रत में करने से शरीर को जरूरी पौषक तत्व मिलते रहते हैं।व्रत में दूध का सेवन है अच्छाअक्सर लोग दूध से बनी चीजों का प्रयोग व्रत में करते हैं। बता दें कि दूध से बनी चीजें शरीर के अंदर उर्जा बनाए रखती हैं। आप व्रत में दूध से बनी खीर, दूध का बना सूजी हलवा, दूध और मेवे के लड्डू आदि का सेवन कर सकते हैं और अपने व्रत के खाने को और पौष्टिक बना सकते हैं।मखानामखाना, जिसे आप ड्राई-फ्रूट के साथ हल्का-फुल्का स्नैक्स भी कह सकते हैं, इसे खाने से बीमारियों से बचाव होता है। आप इसे व्रत में भी खा सकते हैं। इसे आप शुद्ध देसी घी में भूनकर सेंधा नमक के साथ सेवन कर सकते हैं। इसे खीर या फिर सब्जी के रूप में भी खाया जा सकता है। मखाना खाने से शरीर को बहुत लाभ मिलता है। इसका सेवन डायबिटीज में काफी लाभकारी रहता है। सुबह खाली पेट चार मखाना खाने से डायबिटीज कंट्रोल रहता है। इसके सेवन से शरीर में इंसुलिन बनने लगता है और शुगर की मात्रा कम हो जाती है। मखाना हार्ट अटैक जैसी गंभीर बीमारियों में भी फायदेमंद है। इनके सेवन से दिल स्वस्थ रहता है और पाचन क्रिया भी दुरूस्त रहती है। मखाने के सेवन से तनाव दूर होता है और अनिद्रा की समस्या भी दूर रहती है। रात को सोने से पहले दूध के साथ मखानों का सेवन करें और खुद फर्क महसूस करें। मखाने में कैल्शियम भरपूर मात्रा में होता है। इनका सेवन जोड़ों के दर्द, गठिया जैसे मरीजों के लिए काफी फायदेमंद साबित होता है। मखाना एंटी-ऑक्सीडेंट से भरपूर होता है, जो सभी आयु वर्ग के लोगों को आसानी से पच जाता है।------
- शारदीय नवरात्र का पर्व 17 अक्टूबर से शुरू हो रहा है। इसी के साथ देवी आराधना और व्रत, उपवास का दौर भी शुरू हो जाएगा। उपवास में लोग फल, आलू , साबूदाना आदि चीजों का सेवन करते हैं और इसमें आम नमक नहीं , बल्कि सेंधा नमक डाला जाता है। आइए जानते हैं कि क्यों उपवास के समय सेंधा नमक खाया जाता है। और कैसे सेहत के लिए फायदेमंद हो सकता है ये नमक।जब हम उपवास रखते हैं तो हम कुछ ही चीजों का सेवन कर पाते हैं। ऐसे में सेहत पर इसका असर पड़ता है। सेंधा नमक खाने से शरीर को फायदा पहुंचता है क्योंकि इसमें कैल्शियम और पोटेशियम की अच्छी मात्रा पाई जाती है। उपवास के समय लोग जल्दी थक जाते हैं और जिन लोगों को ब्लड प्रेशर की परेशानी रहते हैं उनके लिए ये नमक फायदेमंद माना जाता है क्योंकि इसे खाने से शरीर से थकान दूर होती है और बॉडी रिलैक्स करती है। इसके साथ ही सेंधा नमक शरीर को डिटॉक्सीफाई भी करता है।पाचन क्रिया के लिए फायदेमंद हैं सेंधा नमकसेंधा नमक को लोग अक्सर उपवास के समय ही खाते हैं, जिसे लोग लाहैरी के नाम से भी जानते हैं। सेंधा नमक शरीर से पित्त दोष, कफ की समस्या और वात की परेशानी दूर करने में मदद करता है। इस नमक को उपवास के अलावा रोजाना में भी इस्तेमाल फायदेमंद होता है क्योंकि इससे शरीर में जमा फैट सेल्स खत्म होते हैं। साथ ही अगर किसी को उल्टी की समस्या हो रही हो तो वह सेंधा नमक को नींबू के साथ खा सकता है। ऐसा करने से उसे जल्द ही उल्टी की समस्या से राहत मिल जाती है। बच्चों को अक्सर पेट में दर्द की समस्या देखने को मिलती है जिसकी बड़ी वजह पेट में कीड़ों की मौजूदगी होती है। यदि बच्चों को सेंधा नमका सेवन कराया जाए, तो उनके पेट में कीड़ों की समस्या जल्द खत्म हो जाएगी।आंखों के लिए फायदेमंदआज के समय में लोगों में आंखों की समस्या आप बात हो गई है क्योंकि वह देर समय तक कम्प्यूटर पर काम करते रहते हैं और उनका खानपान भी खराब होता जा रहा है। जिसकी सीधा असर आंखों पर पड़ता है। सेंधा नमक आंखों के लिए बहुत ही फायदेमंद माना जाता है। जिन लोगों को आंखों की समस्या रहती है औऱ उनकी आंखों की रौशनी कम हो रही है तो उन्हें सेंधा नमक का इस्तेमाल करना चाहिए।ब्लडप्रेशर करे कंट्रोलसेंधा नमक हाई ब्लडप्रेशर को कंट्रोल करने में काफी लाभदायक है। इसी के साथ यह कोलेस्ट्रॉल कम करने में मदद करता है जिससे हार्ट अटैक का खतरा कम रहता है।स्ट्रेस कम करने मेंसेंधा नमक स्ट्रेस कम को कम करता है। इसी के साथ यह सेरोटोनिन और मेलाटोनिन हार्मोन्स का बैलेंस बनाए रखता है जो तनाव से लडऩे में मदद करता है।बॉडी पेन को कम करने मेंयह नमक मांसपेशियों के दर्द और ऐंठन के साथ ही ज्वाइंट्स पेन को भी कम करता है।साइनस में दे राहतसाइनस का दर्द पूरे शरीर को तकलीफ देता है और इससे छुटकारा पाने के लिए सेंधा खाना फायदेमंद रहता है।पथरीअगर किसी को स्टोन की प्राब्लम है तो सेंधा नमक और नींबू को पानी में मिलाकर पीने से कुछ ही दिनों में पथरी गलने लगती है।. अस्थमा को करे दूरअस्थमा, डायबिटीज और आर्थराइटिस के मरीजों के लिए सेंधा नमक का सेवन काफी फायदेमंद होता है। नींद न आने की समस्या में भी सेंधा नमक काफी लाभदायक होता है।
- कुंदरू एक ऐेसी सब्जी है जो बड़े ही चाव से खाई जाती है। कुंदरू कई औषधीय गुणों से भरपूर है। इस सब्जी के सेवन से शरीर की इम्युनिटी बढ़ती है। इसमें कफ और पित्त को नियंत्रित करने वाले गुण होते हैं। त्वचा रोगों और डायबिटीज जैसी बीमारियों में इसके सेवन को फायदेमंद बताया गया है।प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए- शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होने पर कई तरह के रोग उत्पन्न होने का खतरा बढ़ सकता है। ऐसे में कुंदरू का सेवन कर शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता को बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए कुंदरू में मौजूद विटामिन-ए फायदेमंद हो सकता है। विटामिन-ए सकारात्मक रूप से इम्यून सिस्टम को प्रभावित करता है। इसलिए, कुंदरू के फायदे इम्यून सिस्टम को मजबूत कर सकते हैं।किडनी स्टोन- किडनी स्टोन को दूर करने के लिए कुंदरू का उपयोग किया जा सकता है। दरअसल, कुंदरू में कैल्शियम की अच्छी मात्रा पाई जाती है। कैल्शियम पाचन तंत्र में स्टोन के बनने की सभी आशंकाओं को कम कर सकता है।हृदय के लिए -कुंदरू अनेक पौष्टिक गुणों से समृद्ध होता है, जो हृदय को स्वस्थ रखने का काम कर सकता है। कुंदरू में विभिन्न प्रकार के फ्लेवोनोड्स पाए जाते हैं, जो एंटीऑक्सीडेंट, एंटीइंफ्लेमेटरी, एंटीबैक्टीरियल और मुख्य रूप से कार्डियो प्रोटेक्टिव गतिविधि की तरह काम करते हैं। ये ह्रदय रोग का कारण बनने वाले फ्री-रेडिकल्स को जड़ खत्म करते हैं ।वजन घटाने में फायदेमंद -वजन को घटाने के लिए कुंदरू का उपयोग किया जा सकता है। कुंदरू में फाइबर की भरपूर मात्रा पाई जाती है, जो वजन को कम करने में सहायक हो सकता है फाइबर भोजन को पचाने के साथ-साथ भूख को शांत रख सकता है । इसलिए, कुंदरू के फायदे वजन कम करे में नजर आ सकते हैं।-थकान- कई लोगों को किसी भी तरह का काम करने पर जल्दी थकान महसूस होने लगते है। थकान की समस्या से राहत पाने में आयरन सहायक हो सकता है । वहीं, कुंदरू में प्रचुर मात्रा में आयरन पाया जाता है, इसलिए ऐसा कहा जा सकता है कि कुंदरू थकान को दूर करने का काम कर सकता है ।सिरदर्द - से आराम पाने में आप कुंदरू का उपयोग कर सकते हैं। जब भी सिरदर्द हो तो कुंदरू की जड़ को पीसकर माथे पर लगाएं। यह सिरदर्द दूर करने में मदद करता है।कान दर्द - आयुर्वेद के अनुसार कुंदरू में मौजूद औषधीय गुण कान के दर्द से आराम दिलाने में सहायक है। विशेषज्ञों का कहना है कि कान दर्द होने पर कुंदरू के पौधे के रस में सरसों का तेल मिलाकर 1-2 बूँद कान में डालें। इससे कान दर्द से आराम मिलता है।जीभ के घाव- आयुर्वेद में जीभ पर छाले होने की समस्या को ठीक करने के लिए कई घरेलू उपाय बताए हैं उनमें से कुंदरू का उपयोग करना भी एक है। अगर आपकी जीभ पर छाले निकल आए हैं तो कुंदरू के हरे फलों को चूसें। इससे छाले जल्दी ठीक होते हैं।सांस की नली की सूजन - कुंदरू की पत्तियां और तने का काढ़ा बनाकर पीने से सांस की नली की सूजन दूर होती है। इसके अलावा इसे पीने से सांस से जुड़ी बीमारियां में भी लाभ मिलता है।आंत के कीड़े- आंतों में कीड़े पडऩा एक आम समस्या है और बड़ों की तुलना में बच्चे इस समस्या से ज्यादा परेशान रहते हैं। कुंदरू के पेस्ट से पकाए हुए घी की 5 ग्राम मात्रा का सेवन करने से आंतों के कीड़े खत्म होते हैं।डायबिटीज- कुंदरू के सेवन से डायबिटीज कंट्रोल करने में मदद मिलती है।गठिया का दर्द - गठिया के मरीज, जो घुटनों या जोड़ों में दर्द और सूजन से अक्सर परेशान रहते हैं तो कुंदरू का उपयोग करें। कुंदरू की जड़ को पीसकर जोड़ों पर लगाएं। ऐसा करने से दर्द और सूजन में लाभ मिलता है।बुखार - बुखार होने पर तुरंत दवा खाने की बजाय पहले घरेलू उपाय अपनाने चाहिए। विशेषज्ञों का कहना है कि कुंदरू की जड़ और पत्तियों को पीसकर इसका रस निकाल लें। इस रस को पूरे शरीर पर लेप के रूप में लगाने से बुखार में आराम मिलता है।(नोट- कोई भी उपाय करने से पहले एक बार योग्य चिकित्सक की अवश्य सलाह लें)
- बाजार में अब शरीफा यानी सीताफल आने लगे हैं। इसे खाने से शरीर को बहुत फायदे मिलते हैं। अंग्रेजी में शरीफा या सीताफल को कस्टर्ड एप्पल कहते हैं। शरीफा का सेवन सामान्य लोगों के लिए तो फायदेमंद है ही, लेकिन गर्भवती महिलाओं के लिए ये विशेष फायदेमंद है। इसका कारण है शरीफा में मौजूद पोषक तत्व और फाइबर। इसके अलावा शरीफा मीठा और क्रीमी गूदे से भरा फल है। इस फल में कई महत्वपूर्ण विटामिन्स, मिनरल्स, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स और फाइबर होते हैं, जिसके कारण ये गर्भावस्था में खाया जाने वाला परफेक्ट फल है। आइये जाने इसे खाने से शरीर को क्या- क्या फायदे मिलते हैं-- खून की कमी करे पूरी- सीताफल में आयरन की मात्रा बहुत अच्छी होती है, जिसके कारण ये शरीर में हीमोग्लोबिन बढ़ाता है और खून की कमी को पूरा करता है।- मॉर्निंग सिकनेस-सीताफल में मौजूद विटामिन बी 6 के कारण सुबह के समय होने वाली मॉर्निंग सिकनेस से छुटकारा मिलता है।- ब्लड प्रेशर कंट्रोल- सीताफल या शरीफा में पोटैशियम और मैग्नीशियम होता है, जिसके कारण ये ब्लड प्रेशर को कंट्रोल में बहुत फायदेमंद माना जाता है।- कब्ज और पेट की समस्याएं- सीताफल में डाइट्री फाइबर बहुत अच्छी मात्रा में होता है, इसलिए ये कब्ज की समस्या को ठीक करता है। इसके सेवन से मल मुलायम होता है।- तनाव घटाता है- शरीफा या सीताफल में मैग्नीशियम होता है, जिसके कारण ये तनाव को कम करता है।- शरीर को डिटॉक्स करता है- शरीफा में कई खास एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जिसके कारण इसके सेवन से ब्लड प्यूरिफाई होता है, बॉडी डिटॉक्स होता है और किडनी स्वस्थ रहती है।इम्यूनिटी बढ़ाता है- विटामिन सी से भरपूर होने के कारण शरीफा के सेवन से इम्यूनिटी भी बढ़ती है। इसके सेवन से इम्यून सिस्टम मजबूत होता है।सीताफल खाने में कुछ जरूरी सावधानियांवैसे तो शरीफा या सीताफल का सेवन आपके लिए हर तरह से फायदेमंद है। बस आपको इसके सेवन में थोड़ी सावधानियां रखनी जरूरी हैं।- शरीफा या सीताफल के बीजों को हमेशा निकालकर ही खाएं। बीज खा लेने से पाचन संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।-शरीफा या सीताफल की तासीर ठंडी होती है। इसलिए बहुत अधिक मात्रा में इसका सेवन न करें। दिन में 2-3 फल का ही सेवन करें।-जिन लोगों को पहले से डायबिटीज की शिकायत है उन्हें इसका सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि शरीफा या सीताफल में शुगर की मात्रा ज्यादा होती है।-जो लोग मोटे हैं उन्हें सीमित मात्रा में शरीफा खाना चाहिए क्योंकि इसमें कैलोरीज की मात्रा अच्छी होती हैं।-बहुत कच्चे शरीफा का सेवन शरीर को नुकसान पहुंचाता है, इसलिए बेहतर होगा कि पके हुए सीताफल का ही सेवन करें।
- सरसों के तेल का इस्तेमाल शरीर की मालिश से लेकर भोजन पकाने और आयुर्वेद में किया जाता है। सर्दियों में खासतौर से सरसों तेल से शरीर की मालिश फायदेमंद होती है। यदि आप भी शरीर में सरसों तेल लगाते हैं, तो एक बार इसके फायदे भी जान लें....शुद्ध सरसों के तेल का प्रयोग न सिर्फ भोजन बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है बल्कि इसके उपयोग से कई समस्याओं को दूर किया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी सरसों के तेल को खाने के अलावा शरीर की मालिश करने और अन्य समस्याओं में प्रयोग किया जाता है।सरसों के तेल में कई मेडिसिनल प्रॉपर्टीज ( पाए जाते हैं। इसमें एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल गुण पाए जाते हैं। सेलेनियम और मैग्नीशियम की उच्च मात्रा होने के चलते इसमें एंटीइंफ्लामेट्री गुण भी पाए जाते हैं। यह पसीने की ग्रंथियों को उत्तेजित करने में मदद करता है और शरीर के तापमान को कम करता है। पारंपरिक दवाओं में, सरसों के तेल का उपयोग गठिया, मांसपेशियों की मोच और तनाव से जुड़े दर्द को दूर करने के लिए किया जाता है। सरसों का तेल पेट के रोग, त्वचा और बालों के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। .जानिए सरसों के तेल के फायदे.....- शोध से यह बात सामने आई है कि सरसों के तेल में सब्जियां पकाने से पेट के रोग दूर हो जाते हैं। वैसे भी खाने में सरसों के तेल का इस्तेमाल सबसे ज्यादा होता है। अगर आप किसी तेल में सब्जी पका रहे हैं तो सरसों का तेल सबसे अच्छा माना जाता है। यह तेल एक उत्तेजक के रूप में जाना जाता है और आंत को पाचन रस का उत्पादन करने में मदद करता है, जो पाचन प्रक्रिया सुधारने में मदद करता है। साथ ही यही प्रक्रिया हमारे सिस्टम में गैस्ट्रिक रस के उत्पादन को बढ़ाकर भूख बढ़ाने में मदद करती है।सरसों के तेल से करें शरीर की मालिशसरसों के तेल की शरीर में मालिश करने से न सिर्फ शरीर का ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है, बल्कि मांसपेशियां मजबूत हो जाती हैं। त्वचा में कसाव आता है। सप्ताह में 3 दिन आप सरसों का तेल मालिश कर सकते हैं। सरसों का तेल मालिश करने का सही तरीका यह है कि आप इसे एक कटोरी में गुनगुना कर लें और सुबह सवेरे उठकर सुर्योदय से पहले इसकी मालिश करें। अगर आप जोड़ों के दर्द से परेशान हैं तो जोड़ों में नियमित रूप से सरसों के तेल की मालिश करें।उबटन में करें सरसों और सरसों के तेल का इस्तेमालसरसों का उबटन बहुत फायदेमंद होता है। इसका इस्तेमाल बच्चों के साथ-साथ वयस्क भी कर सकते हैं। यह ब्लड सर्कुलेशन, चेहरे की झुर्रियां, त्वचा संबंधी संक्रमण को दूर करने के साथ नमी को बरकरार रखता है। इसे आमतौर पर सर्दियों में लगाना फायदेमंद होता है। उबटन बनाने के लिए सरसों को पीसकर उसमें थोड़ी मात्रा में तेल मिलाकर तैयार किया जाता है।नाभि में लगाएं सरसों का तेलआयुर्वेद के अनुसार, नाभि में सरसों का तेल लगाने आपके होंठ मुलायम रहते हैं। आंखों की रोशनी बढ़ाने में मददगार हो सकता है। सोने से पहले नाभि में सरसों का तेल लगाना फायदेमंद होता है।बालों में लगाएं सरसों का तेलसिर में सरसों के तेल की मसाज करने से रूसी, बालों का झडऩा और असमय सफेद बाल की समस्या दूर हो जाती है। इसके लिए सप्ताह में 3 दिन सरसों के तेल से सिर में मसाज की जा सकती है।सर्दी -खांसी मेंसरसों का तेल सर्दी - खांसी से त्रस्त लोगों के लिए फायदेमंद होता है क्योंकि यह बंद छाती और नाक की रुकावट को खोलने में मदद करता है। सरसों के तेल की तासीर गर्म होती है जो खांसी- जुकाम को ठीक करती है। लहसुन के साथ सरसों के तेल की छाती और पीठ में मालिश करने से सर्दी- जुकाम में फायदा होता है। सरसों के तेल को गर्म पानी में डालकर उसकी भाप लेने से भी फायदा पहुंचता है। सरसों के तेल की तेज गंध श्वसन प्रणाली को गर्म करेगी और इस तरह से यह कफ को बनाने से रोककर शरीर को सुरक्षा प्रदान करती है।----
- देश के जंगलों में बहुत सारी ऐसी जड़ी - बूटी की पौधे होते हैं जिसके बार में आम लोगों को कम जानकारी होती है उनमें से एक है काली हल्दी । काली हल्दी को पीली हल्दी से ज्यादा फायेदमंद और गुणकारी माना जाता है। इसमें अद्भुत शाक्ति होती है। काली हल्दी बहुत ही दुर्लभ मात्रा में पाई जाती है और देखी जाती है। काली हल्दी दिखने में अंदर से हल्के काले रंग की होती है। माना जाता है कि तंत्र शास्त्र में काली हल्दी का प्रयोग वशीकरण, धन प्राप्ति और अन्य तांत्रिक कार्य के लिए किया जाता है। काली हल्दी को सिद्ध करने के लिए होली का दिन बहुत ही लाभकारी माना जाता है। माना जाता है कि काली हल्दी में वशीकरण की अद्भुत क्षमता होती है।रोगों के उपचार में काली हल्दी का प्रयोगआदिवासी समुदायों के द्वारा इसका उपयोग निमोनिया, खांसी और ठंड के उपचार के लिए किया जाता है। इसके ताजे राइजोम को माथे पर पेस्ट के रूप में लगाते है। जो माइग्रेन से राहत के लिए या मस्तिष्क और घावों पर शरीर के लिए किया जाता है। ल्यूकोडार्मा, मिर्गी, कैंसर, और एच आई वी एड्स की रोकथाम में भी यह उपयोग होती है।चीनी चिकित्सा में कैंसर के इलाज में इसका उपयोग किया जाता है। इसमें सुंगधित वाष्पशील तेल पाया जाता है जो रक्त से अत्यधिक लिपिड निकालने के लिए, प्लेटलेट्रस के एकत्रीकरण को कम करने और सूजन को कम करने में मदद करता है।देखें इसके औषधीय उपयोग-1. ऑस्टियोआर्थराइटिस जोड़ों में दर्द और जकडऩ पैदा करने वाली बीमारी है। यह रोग मुख्यत: जोड़ों की हड्डियों के बीच रहने वाली आर्टिकुलर कार्टिलेज को नुकसान देता है। काली हल्दी में इबुप्रोफेन पाया जाता है जिससे पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस का दर्द ठीक किया जा सकता है।2. त्वचा की खुजली रोके- यह रोग अधिकतर खून की खराबी से उत्पन्न होते हैं। इसके बचाव के लिए स्वच्छ वातावरण में रहना चाहिए ! इसके साथ आप काली हल्दी का भी प्रयोग कर सकती है। इसमें एंटी इन्फ्लैमटॉरी गुण होते हैं जिससे त्वचा की खुजली ठीक की जाती है।3. लाल चकत्ते मिटाए- रूई के फाहे को काली हल्दी वाले दूध में भिगो कर चकत्ते वाले भाग पर 15 मिनट के लिये लगायें, इससे त्वचा पर लाली और चकत्ते कम होंगें। साथ ही इससे आपकी त्वचा पर निखार और चमक आयेगी।4. पेट ठीक करे- हल्दी के सेवन से आंतों के अच्छे बैक्टीरिया को पर्याप्त मात्रा में पैदा होते हैं। फलस्वरूप एसिड इत्यादि से पेट की बल्क्हेड सुरक्षित रहती हैं तथा पेप्टिक अलसर की संभावनाएं बहुत कम रह जाती हैं। ॉ5. अल्सर -अल्सर रोग के रोगियों को मेगोनंसम हल्दी के उपयोग से कतराना नहीं चाहिए। क्योंकि हल्दी में कुछ ऐसे तत्व पाए जाते हैं जिससे पेट में एसिड नहीं बनता और अल्सर जैसी गंभीर बीमारी नहीं होती।6. कोलन कैंसर से बचाव- हल्दी में मौजूद एक महत्वपूर्ण तत्व करक्युमिन कोलन कैंसर से लडऩे में मददगार हो सकता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक सूजन दूर करने वाली एक महत्वपूर्ण दवा के साथ मरीज को करक्युमिन देना उसके लिए फायदेमंद हो सकता है।7. फेफड़े की बीमारियों में राहत- काली हल्दी का उपयोग अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, न्यूमोनिया जैसी बीमारियों में किया जाता है। अगर आप नयी या पुरानी किस भी प्रकार की सुखी गीली खांसी से परेशान हैं तो हल्दी इसके लिए रामबाण इलाज है।--
- भारतीय संस्कृति और खानपान में काले तिन का काफी महत्व है। काला तिल सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है। यह न सिर्फ उच्च रक्तचाप को ठीक रखता है बल्कि पाचन की समस्या को भी दूर करता है। सफेद तिल की तरह ही काले तिल भी एक तरह के बीज होते हैं। जो आमतौर हर भारतीय घरों में उपलब्ध होता है। काले तिल अलग-अलग व्यंजनों में जायका बढ़ाने के लिए शामिल किया जाता है। काला तिल आवश्यक पोषक तत्वों से भी भरे होते हैं जो हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए जादू की तरह काम करते हैं। आज जानते हैं, इसके सेवन से क्या - क्या लाभ मिलते हैं।रक्तचाप को नियंत्रित करता हैउच्च रक्तचाप को आमतौर पर उच्च रक्तचाप के रूप में जाना जाता है जो दुनिया भर में सबसे आम स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है। ये छोटे बीज मैग्नीशियम से भरे होते हैं, जो उच्च रक्तचाप को रोकने में फायदेमंद है। बीज भी पॉलीअनसेचुरेटेड फैट और सेसमिन में समृद्ध हैं, जो रक्तचाप को विनियमित करने में मदद करता है।पाचन में सुधार करता हैकाला तिल कब्ज जैसे पाचन के मुद्दों के इलाज में फायदेमंद होते हैं क्योंकि ये फाइबर और असंतृप्त फैटी एसिड की मात्रा से भरपूर होते हैं। वे मल त्याग में सुधार करते हैं और पाचन प्रक्रिया को सुचारू बनाते हैं।कैंसर को रोकता हैकाला तिल एंटीऑक्सिडेंट और फाइटोकेमिकल्स होते हैं जो शरीर को कैंसर पैदा करने वाली कोशिकाओं से बचाते हैं। तिल के बीज में मौजूद सेसमिन आपके शरीर को फ्री रैडिकल्स को नुकसान पहुंचाने से रोकता है।मूड में सुधार होता हैकाले तिल में कैल्शियम और मैग्नीशियम की उच्च मात्रा तनाव से राहत दे सकती है। इन बीजों के सेवन से सेरोटोनिन का उत्पादन होता है, जो मूड को संतुलित करता है और दर्द को कम करता है।श्वसन स्वास्थ्य के लिए अच्छा हैकोरोना वायरस महामारी की शुरुआत के बाद से हर कोई अपने श्वसन स्वास्थ्य को लेकर अधिक सतर्क हो गए हैं। अस्थमा सहित श्वसन संबंधी समस्याओं से पीडि़त लोगों के लिए तिल के बीज में मैग्नीशियम अत्यधिक फायदेमंद होता है।दिल की सेहत में सुधारतिल के बीज में मौजूद पोषक तत्व कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद करते हैं। तिल के बीज का नियमित रूप से सेवन करने से शरीर में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करने और दिल की गंभीर समस्याओं को रोकने में मदद मिल सकती है।काले तिल का सेवन कैसे करें?अपने दैनिक आहार में तिल के बीज को जोडऩे का सबसे आसान तरीका उन्हें अपने सलाद में शामिल करना है। यह आपके सलाद को स्वादिष्ट और पौष्टिक बना देगा। इसके अलावा, अपनी रोटियों के आटे में कुछ तिल मिलाएं। यह आपकी चपातियों में एक बढिय़ा स्वाद जोड़ देगा और पोषण मूल्य को बढ़ा देगा। फिर तिल के लड्डू और पापड़ी तो एक विकल्प हैं ही।
- अपराजिता एक ऐसा पौधा है, जो कई औषधीय गुणों से भरपूर होता है, इसका इस्तेमाल कई रोगों को दूर करने के लिए किया जाता है। अपराजिता का वानस्पतिक नाम है जिसे बहुत सी शारीरिक दुर्बलताओं को खत्म करने के लिए जाना जाता है। यह सफेद और नीले रंगों का होता है। नीली अपराजिता लोगों को आसानी से मिल जाती है लेकिन सफेद रंग की अपराजिता का मिलना दुर्लभ माना जाता है। श्वेत और नीले अपराजिता दोनों के गुण समान होते हैं। आयुर्वेद में अपराजिता को बहुत ही उपयोगी जड़ी बूटी के रूप में माना गया है। ये एक ऐसा पौधा है, जिसके कई औषधीय उपयोग है और साथ ही ये एक बहुत ही सुंदर घास से बनी होती है। आयुर्वेद के मुताबिक, अपराजिता का पौधा शरीर की संचार तंत्रिका और मनोवैज्ञानिक सिस्टम पर एक ही बहुत सुखदायक प्रभाव पड़ता है।अपराजिता, एक औषधि पौधा है, जिसका आयुर्वेद में अनेक रोगों के इलाज में प्रयोग होता आ रहा है। यह एक सुंदर सा दिखने वाला पौधा है, और इसके फूल का आकार गाय के कण जैसा होने से इसे गोकर्णिका भी कहा जाता है। दुनियाभर में अपराजिता पौधे के कई औषधीय रूपों में इस्तेमाल किया जाता हैं। अपराजिता पौधा सामान्य तौर पर पंचकर्म उपचार में प्रयोग किया जाता है। पंचकर्म उपचार शरीर में मौजूद विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालकर शरीर के संतुलित बनाने में मदद करता है। आयुर्वेद की मानें तो अपराजिता एक ऐसी जड़ी बूटी है, जिसे मेध्या श्रेणी के अंतर्गत वर्गीकृत किया जाता है।अपराजिता पौधे के स्वास्थ्य लाभमेध्या जड़ी बूटियां याददाश्त और लर्निंग जैसी चीजों को बेहतर बनाने में बहुत मदद करती है। इतना ही नहीं ये मस्तिष्क के विकास की समस्याओं और इम्पैरेड कॉग्निटिव फंक्शन जैसी समस्याओं से पीडि़त बच्चों के लिए बेहद फायदेमंद मानी जाती है। अपारिजता का प्रयोग डिटॉक्सिफिकेशन और मस्तिष्क की आल राउंड क्लीनिंग में भी काफी मदद करती है- ऐसा माना जाता है कि अपराजिता शरीर के अंदर मौजूद विषाक्त पदार्थों के लिए ये एक ही बहुत प्रभावी उपचार है। इसके साथ-साथ इसका प्रयोग नर्वस सिस्टम को ठीक करने के लिए के लिए भी किया जाता है। अपराजिता पौधे की जड़ का लेप बनाकर अक्सर त्वचा पर प्रयोग किया जाता है, जिससे चेहरे की चमक बढ़ती है। यह आंखों पर एक बहुत ठंडा प्रभाव डालती है साथ ही आंखों की रोशनी में सुधार करने में मदद करता है।-अपराजिता पौधा स्माल पॉक्स जैसी बीमारी में भी फायदेमंद माना जाता है। इसके अलावा यह स्पर्म जनरेशन,बुखार, दस्त, गेस्ट्राइटिस, मतली, उल्टी, जैसी आम स्थितियों में कारगर माना जाता है। यह हृदय और श्वसन प्रणाली को मजबूत बनाने में भी मदद करता है।-उदर, कफ विकार, ज्वर, मूत्रविकार, शोथ, नेत्ररोग, उन्माद, आमवात, कुष्ठ, विष विकार में अपराजिता का भी उपयोग होता है।-आधासीसी जैसी समस्या से जूझ रहे लोगों को अपराजिता की जड़, फली, बीज को बराबर भाग में लेना चाहिए। सभी को पीस कर थोड़ा पानी मिलाएं और इसकी कुछ बूंदे नाक में डालें। ऐसा करने से इस रोग में फायदा होता है।-अपराजिता में मौजूद दर्द निवारक, जीवाणुरोधी गुण होते है, जो दांतों के दर्द में आराम के लिए जाने जाते हैं। इसके लिए आप अपराजिता की जड़ का पेस्ट और काली मिर्च का चूर्ण को मिलाकर मुंह में रख लें।-गले के रोग (गलगण्ड) में श्वेत अपराजिता की जड़ का पेस्ट बनाकर उसमें घी अथवा गोमूत्र मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।-अपराजिता जड़ के चूर्ण को गर्म पानी या दूध के साथ दिन में 2 से 3 बार लेने से पेशाब में होने वाली जलन दूर होती है।(नोट- कोई भी उपाय करने से पहले योग्य चिकित्सक की अवश्य सलाह लें)-
- रूइबोस चाय कई बीमारियों के इलाज के लिए पी जाती है। ये बेहतर एंटीऑक्सीडेंट का स्रोत है जो पाचनतंत्र प्रणाली को ठीक रखती है।पिछले कुछ सालों से रूइबोस चाय ने लोगों पर अपनी गहरी छाप छोड़ी है। इसकी एक बड़ी वजह यह है यह हर्बल चाय स्वास्थ्य को बेहतर करने में महति भूमिका अदा करता है। रूइबोस चाय हालांकि मूलत: दक्षिण अफ्रीका के केप आफ गुड होप से सम्बंधित है। इसमें इस्तेमाल होने वाली जड़ी बूटी महज केप आफ गुड होप के स्लोप में ही पायी जाती है। यहां के स्थानीय लोग रूइबोस चाय सैकड़ों सालों से पी रहे हैं। इसका बाजारीकरण होना सन् 1904 से ही शुरु हो गया है। मौजूदा समय में इस चाय की ख्याति देश विदेश में फैल रही है। भारत भी इसकी ख्याति से अछूता नहीं रह सका। इस चाय का हल्का और सुगंधित स्वाद है। विशेषज्ञों के मुताबिक बीमार पडऩे पर यह चाय पीना स्वास्थ्यवर्धक होता है।रूइबोस चाय न सिर्फ भारत में ख्याति प्राप्त कर रहा है बल्कि जापान, जर्मनी, हालैंड और इंग्लैंड भी इसके फायदों से अनछुआ नहीं है। यह ग्रीन टी के मुकाबले 50 गुना ज्यादा बेहतर है। इसमें एंटीआक्सीडेंट बहुत ज्यादा हैं। यह एंटीआक्सीडेंट सेल्स के स्वास्थ्य को बेहतर करता है। यही नहीं कैंसर सम्बंधित लक्षणों को दूर भगाने में सहायक करता है। यह विटामिन सी का बेहतरीन स्रोत है। इसके अलावा इसमें टेनिन्स कम होता है परिणामस्वरूप पाचनतंत्र प्रणाली सुचारू रूप से काम करता है।जो लोग अस्थमा, एक्जीमा, त्वचा सम्बंधी बीमारी आदि से परेशान हैं, उनके लिए रूइबोस चाय लाभकर है। इसके अलावा जो लोग हाइपरटेंशन के मरीज है, उनके लिए भी यह चाय किसी रामबाण इलाज की तरह है। रूइबोस चाय पोलीफेनल्स का बेहतरीन स्रोत हैं साथ ही इसमें एस्पेलेथीन और नोथोफेगिन भी मौजूद हैं। यही नहीं सामान्यत बुखार में भी रूइबोस चाय बेहतरीन विकल्प है। हाइपरटेंशन के मरीजों के लिए रूइबोस चाय बेहतरीन विकल्प है। असल में रूइबोस चाय पीने से रक्तचाप को कम किया जा सकता है। रूइबोस चाय हड्डियों और दांत को स्वस्थ रखने के लिए उपयोगी है। इसमें कई किस्म के मिनरल पाए जाते हैं जो हड्डियों और दांतों को मजबूत बनाए रखने में मदद करते हैं। रूइबोस चाय में मैंगनीज़, कैल्शियम और फ्लोरीड बहुतायत में पाया जाता है। परिणामस्वरूप रूइबोस चाय पीने से कमजोर हड्डियां, ज्वाइंट्स में दर्द आदि समस्याओं से आसानी से निपटा जा सकता है। रूइबोस चाय में एल्फा हाइड्रोक्सी एसिड और जिंक होता है। ये दोनों ही पौष्टिक तत्व हमारी त्वचा के लिए बेहतर होते हैं।
- नई दिल्ली। ये बात सच है कि भारत में कोरोना वायरस का फैलना अभी रुका नहीं है, लेकिन इसकी गति में थोड़ी कमी जरूर आई है। इसके अलावा अब कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद गंभीर मरीजों की संख्या बहुत कम हो गई है। ज्यादातर मरीज या तो हल्के-फुल्के लक्षणों वाले होते हैं या फिर बिना लक्षणों वाले। आयुष मंत्रालय ने ऐसे हल्के और बिना लक्षणों वाले मरीजों को ठीक करने के लिए आयुर्वेद और योग पर आधारित एक नैशनल क्लीनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल जारी किया है।इसका अर्थ है कि आयुर्वेद और योग की मदद से कोरोना वायरस के हल्के या बिना लक्षण वाले लोगों का उपचार किया जाएगा। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने इस गाइडलाइन को जारी किया है। इस गाइड लाइन में खाने-पीने की चीजों के बारे में सलाह, योगासन, आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों का फार्मूला आदि बताएं गए हैं, जिनसे कोरोना वायरस के इंफेक्शन वाले हल्के या बिना लक्षण वाले मरीजों को ठीक किया जा सकता है।
इस गाइडलाइन में बताई गई महत्वपूर्ण बातें-
-गुनगुने पानी में एक चुटकी हल्दी और नमक डालकर इससे गरारा करें। त्रिफला या मुलेठी (यष्टिमधु) को डालकर उबाले गए पानी से भी गरारा किया जा सकता है।- दिन में 1-2 बार अपनी नाक में तिल या नारियल का तेल अथवा गाय का घी डालें, खासकर घर से बाहर जाते और लौटते समय।- दिन में 1 बार अजवाइन या पुदीना या यूकेलिप्टस के तेल को उबलते पानी में डालकर नाक में इसका भाप लें।-6 से 8 घंटे की नींद हर रोज लें।-थोड़ी एक्सरसाइज और योग करें।खाने-पीने से जुड़ी गाइडलाइन्स
-पीने के लिए सादा पानी पीने के बजाय पानी में अदरक/धनिया के बीज/तुलसी/जीरा डालकर उबाल लें और इस पानी को पिएं।-ताजा बना हुआ गर्म खाना ही खाएं और बैलेंस्ड डाइट को फॉलो करें।-रात में हर रोज हल्दी वाला दूध (150 ग्राम गर्म दूध में आधा चम्मच हल्दी) पिएं। अपच की समस्या है, तो इसे न पिएं।-दिन में 1 बार आयुष काढ़ा या आयुष क्वाथ का गर्म-गर्म सेवन करें।-दिन में 1 बार 10 ग्राम च्यवनप्राश गर्म पानी के साथ खाएं।-मरीज के सीधे संपर्क में आए लोगों के लिए गाइडलाइन
-अगर कोई व्यक्ति मरीज के सीधे संपर्क में आया है, तो उसे हाई रिस्क कैटेगरी में माना जाएगा। ऐसे मरीजों के लिए आयुष मंत्रालय ने आयुर्वेदिक औषधियां लेने की गाइडलाइन जारी की है।-15 दिन तक अश्वगंधा का अर्क (500 मिलीग्राम) या अश्वगंधा पाउडर (1-3 ग्राम) दिन में 2 बार गर्म पानी के साथ लें। अथवा चिकित्सक की सलाह के अनुसार 1 महीने या इससे ज्यादा समय तक ले सकते हैं।-15 दिन तक गिलोय घनवटी का अर्क (500 मिलीग्राम) या इसका पाउडर (1-3 ग्राम) दिन में 2 बार गर्म पानी के साथ लें। अथवा चिकित्सक की सलाह के अनुसार 1 महीने या इससे ज्यादा समय तक ले सकते हैं।-दिन में 1 बार 10 ग्राम च्यवनप्राश गर्म पानी के साथ लें।कोरोना वायरस के बिना लक्षण वाले मरीजों के लिए गाइडलाइन्स
-15 दिन तक गिलोय घनवटी का अर्क (500 मिलीग्राम) या इसका पाउडर (1-3 ग्राम) दिन में 2 बार गर्म पानी के साथ लें। अथवा चिकित्सक की सलाह के अनुसार 1 महीने या इससे ज्यादा समय तक ले सकते हैं।-15 दिन तक गिलोय+पिप्पली का पाउडर 375 मिलीग्राम दिन में 2 बार तक लें। (अथवा चिकित्सक के परामर्श अनुसार करें)-15 दिन तक आयुष 64 का सेवन 500 मिलीग्राम दिन में 2 बार गर्म पानी से करें। (अथवा चिकित्सक के परामर्श अनुसार करें)कोरोना वायरस के हल्के लक्षण वाले मरीजों के लिए गाइडलाइन्स
कोरोना वायरस के ऐसे हल्के लक्षणों वाले मरीज, जिन्हें सांस की तकलीफ नहीं है और सिर्फ बुखार, सिरदर्द, थकान, सूखी खांसी, गले में खराश, बंद नाक आदि की समस्या है, उनका उपचार आयुष मंत्रालय की गाइडलाइन्स द्वारा किया जा सकता है।-15 दिन तक गिलोय+पिप्पली का पाउडर 375 मिलीग्राम दिन में 2 बार गर्म पानी के साथ लें। (अथवा चिकित्सक के परामर्श अनुसार करें)-15 दिन तक आयुष 64 का सेवन 500 मिलीग्राम दिन में 2 बार गर्म पानी से करें। (अथवा चिकित्सक के परामर्श अनुसार करें)कोरोना संक्रमित मरीजों को ठीक करने के लिए योगासन से जुड़ी गाइडलाइन्स
ताड़ासन, पद-हस्तासन, अर्ध चक्रासन, त्रिकोणासन, अर्ध ऊष्ट्रासन, शशकासन, सिंहासन, उत्थान मंडूकासन, मर्जरीआसन, कपाल भांति आदि आसन, प्राणायाम और क्रियाओं की लिस्ट जारी की गई है, जिन्हें हर रोज 45 मिनट तक करना है। - कदंब भारतीय उपमहाद्वीप में उगने वाला शोभाकर वृक्ष है। सुगंधित फूलों से युक्त बारहों महीने हरे, तेज़ी से बढऩे वाले इस विशाल वृक्ष की छाया शीतल होती है। इसका वानस्पतिक नाम एन्थोसिफेलस कदम्ब या एन्थोसिफेलस इंडिकस है, जो रूबिएसी परिवार का सदस्य है। हिंदू धर्म में कदंब के वृक्ष का बहुत ही बड़ा महत्व है । यह पेड़ पूजनीय इसलिए है क्योंकि इसका वैज्ञानिक कारण भी है। भगवान श्रीकृष्ण कदंब के पेड़ के नीचे बैठकर ही बांसुरी बजाकर अपनी गोपियों को मंत्रमुग्ध किया करते थे। कदंब के पेड़ का आध्यात्मिक व आयुर्वेदिक दोनों ही महत्व है। कदंब आयुर्वेद में अपने औषधीय गुणों के लिए बहुत ही मशहूर है। कदंब का स्वास्थ्यवद्र्धक गुण बहुत सारे रोगों के उपचार के लिए उपयोग किया जाता हैकदंब का फल खांसी, जलन, रक्तपित्त (नाक-कान से खून निकलना), अतिसार (दस्त), प्रमेह (डायबिटीज), मेदोरोग (मोटापा) तथा कृमिरोग नाशक होते हैं। कदंब के पत्ते कड़वे, छोटे, भूख बढ़ाने में सहायक तथा अतिसार या दस्त में फायदेमंद होते हैं। विषैले जंतुओं के काटने पर इसका छाल का प्रयोग कर उसके विष को दूर किया जा सकता है।अक्सर शरीर में पोषण की कमी या असंतुलित खान-पान के कारण मुँह में छाले पड़ जाते हैं। कदंब के पत्तों का काढ़ा बनाकर गरारा करने से मुंह के छालों से राहत मिलती है। वर्षा ऋतु में हीं कदम्ब के पेड़ पर फल लगते हैं। कदंब को कदम्बिका, नीप, प्रियक आदि नामों से भी जाना जाता है। कदंब की जड़, पत्ते व फल सभी चमत्कारिक गुणों से भरे पड़े हैं। इसका फल व पत्ते चर्म रोग , घाव , सूजन मधुमेह आदि रोगों को ठीक करने में उपयोग किये जाते हैं। कदम्ब फंगल इंफेक्शन , बुखार आदि को दूर कर सकता है। अगर इसके छाल को उबाल कर पिया जाय तो ये कई रोगों को ठीक कर सकता है।कदंब की कई जातियां पाई जाती हैं, जिसमें श्वेत-पीत लाल और द्रोण जाति के कदंब उल्लेखनीय हैं। साधारणतया यहां श्वेत-पीप रंग के फूलदार कदंब ही पाए जाते हैं। किन्तु कुमुदबन की कदंबखंडी में लाल रंग के फूल वाले कदंब भी पाए जाते हैं। श्याम ढ़ाक आदि कुछ स्थानों में ऐसी जाति के कदंब हैं, जिनमें प्राकृतिक रुप से दोनों की तरह मुड़े हुए पत्ते निकलते हैं। इन्हें द्रोण कदंब कहा जाता है। गोबर्धन क्षेत्र में जो नवी वृक्षों का रोपण किया गया है, उनमें एक नए प्रकार का कदंब भी बहुत बड़ी संख्या में है। ब्रज के साधारण कदंब से इसके पत्ते भिन्न प्रकार के हैं तथा इसके फूल बड़े होते हैं, किन्तु इनमें सुगंध नहीं होती है। महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में जो कदंब होता है, उसका फल कांटेदार होता है। मध्य काल में ब्रज के लीला स्थलों के अनेक उपबनों में अनेक उपबनों इस वहुत बड़ी संख्या में लगाया गया था। वे उपबन कदंबखंडी कहलाते हैं।कदंब के पेड़ से बहुत ही उम्दा किस्म का चमकदार कागज़़ बनता है। इसकी लकड़ी को राल या रेजिऩ से मज़बूत बनाया जाता है। कदंब की जड़ों से एक पीला रंग भी प्राप्त किया जाता है।----
- गाय या भैंस का पहला या दूसरे दिन का दूध जिसे आम बोलचाल की भाषा में पेउस कहा जाता है, शरीर के लिए काफी फायदेमंद होता है। ये न केवल शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाता है बल्कि मांसपेशियों का निर्माण और वजन घटाने में भी मदद करता है।गाय या भैंस के पहले दूध में कुछ ऐसे एंटीबॉडीज होते हैं, जो कि शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाती है। गाय या भैंस के पहले दूध को बोवाइन कोलोस्ट्रम, खरवस या फिर पेउस कहा जाता है। इसमें कुछ माइक्रो न्यूट्रिएंट्स पाए जाते हैं, जो शरीर को कॉमन फ्लू और इंफेक्शन से बचने में मदद करता है। वहीं स्वास्थ्य के लिए इसके कई और लाभ भी हैं। कोलोस्ट्रम या खरवस आंत के बैक्टीरिया के विकास को बनाए रखने के लिए प्रोबायोटिक और प्रीबायोटिक दोनों के रूप में काम करता है। यह आंत्र सिंड्रोम को रोकने और कम करने में भी मददगार हो सकता है। यह एलर्जी से निपटने के लिए भी काफी प्रभावी है। इस तरह ये शरीर के लिए हर तरह से फायदेमंद है।गो-जातीय कोलोस्ट्रम एक दूधिया तरल पदार्थ है, जो बच्चे को जन्म देने के बाद गायों और भैंसों के स्तनों से आता है। ये बहुत गाढ़ा और हल्का पीला रंग दूध होता है। इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन, खनिज और विशिष्ट प्रकार के प्रोटीन होते हैं जिन्हें एंटीबॉडी कहा जाता है। ये कोलोस्ट्रम बैक्टीरिया और वायरस जैसे रोग पैदा करने वाले एजेंटों से लड़ते हैं। गोजातीय कोलोस्ट्रम में एंटीबॉडी का स्तर नियमित गाय के दूध में स्तरों की तुलना में 100 गुना अधिक हो सकता है। पेउस से विभिन्न रेसिपी तैयार की जाती हैं। एक रेसिपी हम यहां दे रहे हैं....सामग्री-पेउस, (बिना उबाला हुआ) यदि पहले दिन का दूध हो, तो इसमें 3 हिस्सा नार्मल दूध , दूसरे दिन का पेउस हो तो इसमें नार्मल दूध बराबर मात्रा में मिलाएं। इसमें स्वादुसार चीनी या फिर गुड़ मिलाएं। इसमें केसर / जायफल / इलायची पाउडर या अपने स्वाद के आधार पर तीनों का मिश्रण बना लें।- सभी सामग्री को एक साथ अच्छे से मिला लें।-फिर इसे प्रेशर कुकर में तीन सीटी लगा लें और ठंडा होने पर टुकड़ों में काट लें।पेउस के फायदेएथलीट फैट बर्न करने, मांसपेशियों का निर्माण, सहनशक्ति और अपने एथलेटिक प्रदर्शन में सुधार करने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा ये गोजातीय कोलोस्ट्रम भी प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाने, चोटों को ठीक करने, तंत्रिका तंत्र की क्षति की मरम्मत और मूड में सुधार करने में मदद करता है। इसके साथ ही इसके कई और फायदे भी हैं। जैसे कि-कोलोस्ट्रम (पयोस) को इंसुलिन के विकास में मदद करता है। कोलोस्ट्रम मधुमेह और अस्थमा से निपटने में भी मदद करता है।-कोलोस्ट्रम को मैक्रोन्यूट्रिएंट्स, खनिज और विटामिन का एक समृद्ध स्रोत कहा जाता है। यह वयस्कों में कोशिकाओं के निर्माण में भी मदद करता है।