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- प्राय: हर घर में मिलने वाली तुलसी कई बीमारियों के खतरे से दूर करने का काम करती है साथ ही इंसान को स्वस्थ भी रखती है। इसलिए प्राचीन काल से इसके पूजन की परंपरा है।आज जानें इसके बीजों के औषधीय गुण-तुलसी में ऐसे गुण पाए जाते हैं जो हमारे शरीर से सूजन को कम करते हैं और शरीर में मौजूद संक्रमण को खत्म करने का काम करते हैं। तुलसी के अलावा इसके बीज भी बहुत फायदेमंद है। तुलसी के बीज जिसे हम मंजरी कहते हैं, को आयुर्वेदिक उपचार में भी इस्तेमाल किया जाता है। इसमें प्रोटीन, फाइबर और लौह की उच्च मात्रा होती है। आमतौर पर तुलसी के बीज पाचन, वजन घटाने, खांसी और ठंड का इलाज, प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने के अलावा और कई स्वास्थ्य फायदे देता हैं।पाचन तंत्र को सुधारता हैकई लोग अक्सर पेट संबंधित समस्याओं से परेशान रहते हैं। तुलसी के बीज पाचन तंत्र को सुधारता है। इसे पानी में डालने पर फूल जाता है और ऊपर एक जिलेटिन की परत बना लेता है। इसे पानी में डालकर पीने से पेट सही रहता है। इसमें मौजूद फाइबर आंतों की अच्छी तरह से सफाई करता है। यह कब्ज, एसिडिटी और अपच की समस्या को दूर करता है।वजन होता है कमतुलसी के बीज में कैलोरी कम मात्रा में होती है और यह भूख को कम करता है। इस प्रकार यह वजन घटाने में मदद कर सकता है। तुलसी के बीज में उच्च फाइबर सामग्री आपको लंबे समय तक भूख नहीं लगने देती। वजन कम करने के लिए आप इन्हें आहार में शामिल कर सकते हैं।सूजन को करता है कमतुलसी के बीज में एंटी इंफ्लामेट्री गुण पाए जाते हैं जो शरीर की सूजन को कम करते हैं। यह शरीर में सूजन पथों पर उनके अवरोधक प्रभाव के कारण दस्त से निपटने में भी मदद कर सकता है।इम्यूनिटी सिस्टम भी होती है मजबूततुलसी के बीज में मौजूद फ्लैवोनोइड्स और फेनोलिक शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को सुधारता है। तुलसी के बीज एंटी-ऑक्सीडेंट्स से समृद्ध होते हैं जो शरीर में मुक्त कणों के कारण होने वाली क्षति से सुरक्षा प्रदान करते हैं। फ्री रेडिकल्स यानी मुक्त कणों के डैमेज की वजह से उम्र से पहले बुढ़ापे आने लगता है। इसके साथ ही अगर आपको सर्दी-जुकाम है तो आप तुलसी के बीज का काढ़ा बना सकते हैं। आप चाय में भी तुलसी के बीजों को डालकर उनका सेवन कर सकते हैं।---
- आहार विशेषज्ञों का मानना है कि एक इंसान की रोजाना खुराक में 5 फीसदी से ज्यादा हिस्सा चीनी का नहीं होना चाहिए। इसका मतलब है महिलाओं के लिए 5-6 चम्मच और पुरुषों के लिए 7-8 चम्मच काफी है। आइये जाने की किस चीज में कितनी चीनी छिपी होती है?चीनी- चीनी दो प्रकार की होती है। एक जो प्राकृतिक रूप से खाने पीने की चीजों में पाई जाती है, जैसे फलों में फ्रक्टोज और दूध में लैक्टोज। दूसरी, जो अप्राकृतिक रूप से मिलाई जाती है। रोजाना हम जिस चीनी का इस्तेमाल करते हैं उसमें सुक्रोज मिला होता है।आईस टी-एक गिलास में 5 से 7 चम्मच चीनी होती है। यानी अगर आप एक गिलास आईस टी पी चुके हैं, तो अब आप दिन भर और कुछ भी मीठा नहीं ले सकते। आहार विशेषज्ञ मीठी आईस टी की जगह नमकीन नींबू पानी पीने की सलाह देते हैं।कोल्ड ड्रिंक-कोका कोला के एक कैन में 9 से 10 चम्मच चीनी मिली होती है। पानी के बाद कोक में सबसे बड़ी मात्रा चीनी की ही होती है। यकीन नहीं होता, तो उबाल कर देख लीजिए. पानी उड़ जाने के बाद चीनी बची मिलेगी।ब्रेड- क्या आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ब्रेड के दो स्लाइस में कितनी चीनी मिली होती है? लगभग 10 चम्मच। जी हां, मैदे और चीनी से भरी हुई व्हाइट ब्रेड सेहत के लिए बिलकुल भी अच्छी नही मानी जाती है।केचप-बच्चों की मनपसंद टोमैटो केचप के हर चम्मच में कम से कम आधा चम्मच चीनी होती है। इसीलिए बच्चों को इससे दूर ही रखने की सलाह दी जाती है। सैंडविच और पकौडिय़ों के साथ केचप की जगह घर की बनी चटनी का इस्तेमाल करना ज्यादा फायदेमंद होता है।चॉकलेट-थोड़ी मात्रा में चॉकलेट सेहत के लिए अच्छी होती है लेकिन बाजार में अधिकतर चॉकलेट बार चीनी से लैस मिलती हैं। मिसाल के तौर पर एक स्निकर्स बार में लगभग 8 चम्मच चीनी होती है।कोल्ड कॉफी- घर पर ही बना रहे हैं, तब तो ठीक है लेकिन कैफे से खरीद रहे हैं, तो सावधान रहें। स्टारबक्स की फ्रैपुचीनो में 8 से 10 चम्मच चीनी होती है और अगर आप मैकडॉनल्ड्स वाले शेक के शौकीन हैं, तो ध्यान से पढ़ें क्योंकि एक ग्लास में 28 चम्मच चीनी होती है।आइसक्रीम- आजकल फ्रोजन योगर्ट का चलन चल पड़ा है। इन्हें आइसक्रीम से बेहतर बताया जाता है लेकिन कई बार दही को मीठा करने के लिए इनसे आइसक्रीम की तुलना में ज्यादा चीनी डाली जाती है। एक कप आइसक्रीम (100 ग्राम) में 5 चम्मच चीनी होती है।-----
- नई दिल्ली। कोविड-19 वैश्विक महामारी के प्रकोप से दुनिया भर में पूरी मानव जाति पीडि़त है। ऐसे में शरीर की प्राकृतिक प्रतिरक्षा प्रणाली (रोग प्रतिरोधक क्षमता) को बेहतर करना शरीर को निरोगी बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।जीवन का विज्ञान होने के नाते आयुर्वेद स्वस्थ एवं प्रसन्न रहने के लिए प्रकृति के उपहारों के इस्तेमाल पर जोर देता है। आयुष मंत्रालय श्वसन संबंधी स्वास्थ्य के विशेष संदर्भ के साथ रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने और निवारक स्वास्थ्य देखभाल के लिए निम्नलिखित दिशानिर्देशों की सिफारिश करता है।सामान्य उपाय1. पूरे दिन गर्म पानी पिएं।2. आयुष मंत्रालय की सलाह के अनुसार प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट योगासन, प्राणायाम और ध्यान का अभ्यास करें।3. खाना पकाने में हल्दी, जीरा, धनिया और लहसुन जैसे मसालों के उपयोग की सलाह दी जाती है।रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए आयुर्वेदिक उपाय1. प्रतिदिन सुबह 1 चम्मच यानी 10 ग्राम च्यवनप्राश लें। मधुमेह रोगियों को शुगर फ्री च्यवनप्राश लेना चाहिए।2. तुलसी, दालचीनी, कालीमिर्च, सौंठ और मुनक्का से बना काढ़ा/ हर्बल टी दिन में एक या दो बार लें। यदि आवश्यक हो तो अपने स्वाद के अनुसार गुड़ या ताजा नींबू का रस मिलाएं।3. गोल्डन मिल्क- 150 मिली गर्म दूध में आधी चम्मच हल्दी पाउडर- दिन में एक या दो बार लें।सरल आयुर्वेदिक प्रक्रियाएं1. नाक का अनुप्रयोग - सुबह और शाम को नाक में तिल का तेल/ नारियल का तेल या घी लगायें।2. ऑयल पुलिंग थेरेपी- 1 चम्मच तिल या नारियल का तेल मुंह में लें। उसे पियें नहीं बल्कि 2 से 3 मिनट तक मुंह में घुमाएं और फिर थूक दें। उसके बाद गर्म पानी से कुल्ला करें। ऐसा दिन में एक या दो बार किया जा सकता है।सूखी खांसी/ गले में खराश के दौरान1. ताजे पुदीना के पत्तों या अजवाईन के साथ दिन में एक बार भाप लिया जा सकता है।2. खांसी या गले में जलन होने पर लवंग (लौंग) पाउडर को गुड़/ शहद के साथ मिलाकर दिन में 2 से 3 बार लिया जा सकता है।3. ये उपाय आमतौर पर सामान्य सूखी खांसी और गले में खराश का इलाज करते हैं। लेकिन लक्षण के बरकरार रहने पर डॉक्टर से परामर्श लेना सबसे अच्छा रहेगा।देश भर से प्रख्यात वैद्यों के नुस्खों के आधार पर इन उपायों की सिफारिश की गई है। उन वैद्यों में कोयम्बटूर के पद्मश्री वैद्य पीआर कृष्णकुमार, दिल्ली के पद्म भूषण वैद्य देवेंद्र त्रिगुणा, कोट्टाकल के वैद्य पीएम वारियर, नागपुर के वैद्य जयंत देवपुजारी, ठाणे के वैद्य विनय वेलंकर, बेलगांव के वैद्य बीएस प्रसाद, जामनगर के पद्म वैद्य गुरदीप सिंह, हरिद्वार के आचार्य बालकृष्णजी, जयपुर केवैद्य एमएस बघेल, हरदोई के वैद्य आरबी द्विवेदी, वाराणसी के वैद्य केएन द्विवेदी, वाराणसी के वैद्य राकेश, कोलकाता के वैद्य अबीचल चट्टोपाध्याय, दिल्ली कीवैद्य तनुजा नेसारी, जयपुर के वैद्य संजीव शर्माऔर जामनगर के वैद्य अनूप ठाकर शामिल हैं।(उपरोक्त सलाह कोविड-19 के इलाज के लिए दावा नहीं करती है।)
- छत्तीसगढ़ में मुनगा बहुतायक मात्रा में होता है। इसकी सब्जी शौक से खाई जाती है। इसकी पत्तियां भी कम पौष्टिक नहीं होती हैं। अब तो इसकी पत्तियों की दवा भी बाजार में उपलब्ध है।मुनगे को इसे कई नामों जैसे सहजन, सइहन, मोरिंगा, सूरजने की फली आदि। मुनगे के अलग-अलग हिस्सों में 300 से ज्यादा रोगों के रोकथाम के गुण हैं। इसमें 92 तरह के मल्टीविटामिन्स, 46 तरह के एंटी ऑक्सीडेंट गुण, 36 तरह के दर्द निवारक और 18 तरह के एमिनो एसिड मिलते हैं। इसकी फली के अचार और चटनी कई बीमारियों से मुक्ति दिलाने में सहायक होते हैं।मुनगे की पत्तियां कई बीमारियों के खतरे को दूर करने में फायदेमंद होती हंै।कैल्शियम और विटामिन से है भरपूरमुनगे की पत्तियों में कैल्शियम और विटामिन सी भरपूर मात्रा में होती है। 100 ग्राम मुनगा की पत्तियों में 5 ग्लास दूध के बराबर कैल्शियम होता है। इसके अलावा नींबू की तुलना में इसमें 5 गुना ज्यादा विटामिन सी पाया जाता है।मोटापा कम करने में करता है मददमोटापा और वजन कम करने में मुनगे की पत्तियां काफी फायदेमंद साबित हो सकती हैं। इसमें मौजूद एंटी-ओबेसिटी गुण मौजूद होते हैं, जिससे मोटापे या वजन की परेशानी से लडऩे में मदद मिल सकती है।डायबिटीज में है फायदेमंदमुनगे की पत्तियों में ऐसे गुण मौजूद होते हैं, जो डायबिटीज की समस्या के लिए गुणकारी साबित हो सकते हैं। ये शरीर में ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने का काम करती है। पर इसका सेवन करने से पहले डॉक्टर से सलाह अवश्य ले लें।हड्डियों को रखता है हमेशा स्वस्थमुनगे की पत्तियां हड्डियों की देखभाल और उन्हें स्वस्थ रखने का काम करता है। इसे कैल्शियम, मैग्नीशियम और फास्फोरस का अच्छा स्रोत माना जाता है, जो हड्डियों के लिए जरूरी हैं। इसके साथ ही मुनगा ऑस्टियोपोरोसिस जैसी हड्डी की बीमारी के जोखिम को कम करने में मदद कर सकते हैं। फिलहाल, अभी इस पर और शोध की जरूरत है।कैल्शियम और विटामिन से है भरपूरमुनगा की पत्तियों में कैल्शियम और विटामिन सी भरपूर मात्रा में होती है। 100 ग्राम मुनगा की पत्तियों में 5 ग्लास दूध के बराबर कैल्शियम होता है। इसके अलावा नींबू की तुलना में इसमें 5 गुना ज्यादा विटामिन सी पाया जाता है। ब्लड को डिटॉक्सिफाई यानि खून की सफाई भी आसानी से कर सकता हैं। इसके लिए आप रोजाना सहजन की पत्तियों का रस पी सकते हैं। इससे शरीर में मौजूद हानिकारक पदार्थ यूरिन के रास्ते से बाहर निकल जाते हैं।पेट की समस्याओं को करता है दूरमुनगा या मुनगे की पत्तियों का सेवन करने से पेट से संबंधी समस्याओं दूर होती हैं। मुनगा का सेवन करने से पेट दर्द और अल्सर से बचाव किया जा सकता है। इसमें मौजूद गुण अल्सर के जोखिम से बचाव करने में हमारी मदद करते हैं।एनीमिया को करता है दूरमुनगा एनीमिया जैसी बीमारी को भी दूर करने में मदद करता है। मुनगे की पत्तियों का सेवन करने से एनीमिया यानी लाल रक्त कोशिकाओं की कमी से बचाव के लिए भी कर सकते हैं। मुनगे में एंटी-एनीमिया गुण मौजूद होते हैं और इसके सेवन से शरीर में मौजूद खून में हीमोग्लोबिन के स्तर में सुधार हो सकता है, जिससे लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन में मदद मिल सकती है।---
- नाशपाती एक लोकिप्रय फल है। नाशपाती सेब से जुड़ा एक उप-अम्लीय फल है। भारतवर्ष में पैदा होने वाले ठंडे जलवायु के फलों में नाशपाती का महत्व सेब से अधिक है। यह हर साल फल देती है। इसकी कुछ किस्में मैदानी जलवायु में भी पैदा की जाती है और उत्तम फलन देती हैं। नाशपाती के फल खाने में कुरकुरे, रसदार और स्वदिष्ट होते हैं। ये सेब की अपेक्षा सस्ती बिकती हैं। भारत में नाशपाती यूरोप और ईरान से आई और धीरे-धीरे इसकी काश्त बढ़ती गई। अनुमान किया जाता है कि अब हमारे देश में लगभग 4 हजार एकड़ में इसकी खेती होने लगी है। पंजाब को कुलू घाटी तथा कश्मीर में यूरोपीय किस्में पैदा की जाती हैं और इनके फलों की गणना संसार के उत्तम फलों में होती है।प्राकृतिक दृष्टि से नाशपाती कब्ज़दायक होती है परंतु वह बुखार को भगाने में बहुत सहायक है। नाशपाती में जो शर्करा होती है वह मधुमेह से ग्रस्त व्यक्तियों के लिए हानिकारक नहीं है। नाशपाती में जो छोटे-छोटे दाने होते हैं वे आंत को स्वच्छ करने का कारण बनते हैं। अगर नाशपाती पकी हो तो गर्म प्रकृति के लोगों का खाना उचित नहीं है, विशेषकर उन लोगों के लिए जिनका अमाशय कमज़ोर होता है। नाशपाती के पत्तों का सेवन मूत्रवर्धक होता है। उच्च रक्तचाप के उपचार के लिए कई दिन लगातार नाशपाती का सेवन करना चाहिये यहां तक कि रक्तचाप संतुलित हो जाए।आयुर्वेद के अनुसार नाशपाती शरीर के विषैले पदार्थों को बाहर निकाल देती है। सीने की बीमारियों के उपचार के लिए नाशपाती अच्छा फल है। नाशपाती के पत्तों का काढ़ा पीने से गुर्दे से पथरी निकल जाती है। इस फल को खाने से भोजन जल्द पचता है । नाशपाती विटामिन से मालामाल है और उसमें प्राकृतिक लवण, लोहा, कैल्शियम, फास्फोरस, मैग्निजियम, पोटैशियम पाया जाता है जिन लोगों का अमाशय कमज़ोर है उन्हें नाशपाती को छिलके के साथ खाने से बचना चाहिये। नाशपाती पूरी पकी होनी चाहिये अन्यथा बहुत देर से पचती है। भारत में इसकी जो प्रजातियां उगाई जाती हैं उनमें हैं- चाइना या साधारण नाशपाती, यूरोपीय नाशपाती और यूरोपीय और चाइना नाशपाती के संकर। आजकल इसकी एक प्रजातिं पियर नाम से छत्तीसगढ़ के बाजार में भी बिकने लगी हैं। यह स्वाद में रसीली और मीठी होती है, जो काफी पसंद की जा रही है।---
- मखाना या फॉक्स नट एक सुपरफूड माना जाता है, यह कई पोषक तत्वों से भरपूर होने के साथ-साथ शरीर के ब्लड शुगर लेवल को कम करने में मदद कर सकता है। मखाना में कैलोरी, बैड फैट्स और सोडियम बहुत कम होता है। क्योंकि मखाने में अच्छे काब्र्स, प्रोटीन, विटामिन बी 1, बी 2 और बी 3, फोलेट, कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम, फॉस्फोरस और जिंक होता है, जो आपके समग्र स्वास्थ्य के लिए बेहतर है।ब्लड शुगर को कम करता है मखानाडायबिटीज रोगियों को अक्सर लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले खाद्य पदार्थों के सेवन की सलाह दी जाती है और मखाना में भी लो जीआई होता है। मखाना में चावल और रोटी या ब्रेड की तुलना में काफी कम जीआई होता है। इसके अलावा, मैग्नीशियम और कम सोडियम, इसे डायबिटीज रोगियों के लिए एक स्वस्थ स्नैक का विकल्प बनाती है।हाई ब्लड प्रेशर के रोगियों के लिए भी अच्छा विकल्प है। माना जाता है, कि मखाने के नियमित इस्तेमाल से इस गंभीर समस्या से काफी हद तक राहत पाई जा सकती है। कारण यह है, कि इसमें पाया जाने वाला एक विशेष एल्केलाइड हाइपरटेंशन की समस्या को नियंत्रित करने का काम करता है। हाइपरटेंशन के कारण ही हाई ब्लड प्रेशर की समस्या जन्म लेती है।यह एंटी-ऑक्सीडेंट से भी भरपूर होता है, जो शरीर को फ्री रेडिकल्स से लडऩे में मदद करता है। इसका सेवन मसूढ़ों को मजबूत करता है और किडनी को भी स्वस्थ रखता है।कब्ज में मखाना खाने के फायदेमखाने का उपयोग कब्ज की शिकायत को दूर करने में भी सहायक माना जाता है। मखाने में कई उपयोगी पौष्टिक तत्वों के साथ प्रचुर मात्रा में फाइबर पाया जाता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, फाइबर कब्ज की शिकायत को दूर करने में सहायक साबित होता है।पालक मखाना या ग्लूटेन फ्री रोटी बनाकरयदि आप डायबिटीज रोगी हैं, तो आप मखाने को भूनकर, सूप या सलाद में मिलाकर खा सकते हैं। इसके अलावा, आप पीसकर सोयाबीन, बाजरा और ज्वार के आटे में मिलाकर ग्लूटेन फ्री रोटियां बनाकर खा सकते हैं। कुछ लोग पालक पनीर के बजाय पालक मखाना, मखाना रायता और मखाना चाट या टिक्की बनाकर हेल्दी डिशेज के रूप में भी खाते हैं।घी में भुना हुआ मखाना है बेस्टआप मखाने को अपनी डाइट में शामिल करने के लिए उसे घी में भूनकर भी खा सकते हैं। मखाने को डाइट में शामिल करने का यह सबसे आसान तरीका है। आप इसे घी में भूनकर इसमें स्वाद के लिए हल्का नमक या चाट मसाला डाल सकते हैं।---
- इन दिनों चिया सीड का नाम बहुत सुनने में आ रहा है। स्वास्थ्य जगत में चिया सीड पोषक तत्वों के शानदार स्रोत के रूप में उभर रहा है। कुछ लोग चिया सीड के पोषक तत्वों को देखते हुए इसे एक पौष्टिक आहार के रूप में अपना रहे हैं । इसे सुपर फूड नाम दिया गया है। इसमें कोई शक नहीं की यह एक अच्छा आहार साबित हो सकता है। इसमें ताकतवर एंटीऑक्सीडेंट्स , खनिज तथा कई विटामिन आदि पाए गए है। यह मिंट फैमिली की एक फूल वाली प्रजाति है जिसकी उत्पत्ति मेक्सिको और ग्वाटेमाला से हुई है। विदेशों में इसका उपयोग लंबे समय से होता आ रहा है।चिया सीड में प्रोटीन , फाइबर , कैल्शियम , मैग्नेशियम , फास्फोरस , प्रचुर मात्रा में होते है। इसके अलावा इसमें मैगनीज , जि़ंक , पोटेशियम , विटामिन बी1 , विटामिन बी 2 , विटामिन बी 3 भी पर्याप्त मात्रा में होते है । यह पचने में हल्का होता है तथा किसी भी प्रकार की डिश में इसका उपयोग किया जा सकता है। ओमेगा -3 फैटी एसिड ह्रदय रोग के लिए , अर्थराइटिस तथा कोलेस्ट्रॉल के लिए बहुत लाभदायक होता है। ओमेगा -3 फैटी एसिड होते है। अत: चिया सीड ह्रदय रोग से बचाव के लिए उपयोगी हो सकते है ।चिया सीड में भरपूर कैल्शियम होता है। हड्डियों तथा दांतों की मजबूती कैल्शियम पर ही टिकी होती है। इसके अतिरिक्त इसमें बोरोन नामक तत्व भी होता है जो हड्डियों के लिए आवश्यक होता है। बोरोन के कारण ही कैल्शियम , मैग्नेशियम , फास्फोरस आदि खनिज अवशोषित होकर मांसपेशियों तथा हड्डियों के उपयोग में आते है। इस प्रकार चिया सीड से हड्डियां , दांत और मांसपेशियों को ताकत मिलती है। चिया सीड अपने वजन का लगभग 10 गुना पानी सोख सकता है। पानी सोखने के बाद यह फूल जाता है। इसे खाने के बाद पेट भरा हुआ महसूस होता है। जल्दी भूख नहीं लगती। आप अधिक खाने से बच जाते है। इस तरह यह मोटापा और वजन कम करने में सहायक होता है। चिया सीड में बहुत से एंटीऑक्सीडेंट होते है जो हानिकारक फ्री रेडिकल्स से बचाते है। फ्री रेडिकल्स के कारण कैंसर जैसी बीमारी होने की संभावना होती है तथा इनका त्वचा पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके उपयोग से इन परेशानियों से बचाव हो सकता है।कुछ लोगों के शरीर में गर्मी के कारण या किसी और कारण से पानी की कमी जल्दी हो जाती है। खिलाडिय़ों को को तथा बच्चों को यह ज्यादा होता है। इस वजह से कब्ज आदि हो जाती है। चिया सीड से इस समस्या का समाधान हो सकता है। चिया सीड के पानी सोखने की अद्भुत शक्ति के कारण हाइड्रेशन बनाये रखने में इसका उपयोग किया जा सकता है। चिया सीड को अच्छे से पानी भिगोकर खाने से हाइड्रेशन बना रहता है। चिया सीड से रक्त में इन्सुलिन की मात्रा नियमित होती है। यह कार्बोहाइड्रेट को शक्कर में बदलने की गति कम कर देता है। इससे रक्त में अत्यधिक इन्सुलिन की मात्रा को कम कर देता है। इस प्रकार डायबिटीज में यह लाभदायक होता है।---
- गर्मियों के दौरान ताडग़ोला या आइस एप्पल को स्वास्थ्य के लिए लाभकारी फलों में से एक माना जाता है। ताड़ के पेड़ का मांसल और रसदार फल गर्मियों की तेज धूप और लू से बचने में मदद करता।यह कब्ज और एसिडिटी सहित पाचन मुद्दों से पीडि़त रोगियों के लिए एक प्रभावी प्राकृतिक उपचार है। वहीं पेट को साफ करके ये मोटापे को घटाने में मदद करता है। वहीं इसके कुछ गुण उन लोगों के लिए भी फायदेमंद हैं, जो अपने बढ़ते हुए वजन को लेकर हमेशा चिंतित रहते हैं।फैट कम करेसूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर ताडग़ोला में सोडियम और पोटेशियम जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों का अच्छा संतुलन होता है, जो शरीर में तरल पदार्थ और इलेक्ट्रोलाइट संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। जिन लोगों के शरीर में एक्सट्रा फैट होता है उनके लिए ये फैट को करने में ये काफी मददगार साबित हो जाता है। जो लोग सुबह-सुबह इसका सेवन कर लेते हैं उन्हें अच्छी मात्रा में दिन भर के लिए कैलोरी मिल जाती है, जो उनके बड़े भूख को रोकने में भी प्रभावी ढग़ से काम करता है। इस तरह ये डाइट बैलेंस करने में भी मदद करता है।ये गोला पानी से भरा हुआ होता है और रंग में सफेद है और बनावट में एक लीची जैसा दिखता है। इस फल को मराठी और हिंदी में ताडगोला कहा जाता है, तमिल और तेलुगु में ताती मुंजली और नुंगु को कहा जाता है। दोपहर या शाम को एकत्र किए गए गाड़ गोला में फर्मेंटेशन हो जाता है, जिससे ये स्वाद में खट्टा या कसैला होता है और फिर इसे कच्ची शराब के रूप में बेचा जाता है।उम्र बढऩे की गति को धीमा करता हैआइस एप्पल में कई मजबूत फाइटोकेमिकल्स पाए जाते हैं जिनमें एंटीऑक्सिडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो उम्र बढऩे को धीमा करने में मदद करते हैं और कई प्रकार के बैक्टीरियल इंफेक्शन को रोकने में भी मदद करते हैं।कैसे बनाएं जूससबसे पहले ताड़ के फलों को अच्छी तरह से साफ करके पीस लें। फिर इसे मिलाते हुए फेंटें और गाढ़ा दूध डालें। इसके ऊपर कुछ साबुजा के बीज और कटे हुए बादाम डालें। ब्लेंडेड शेक में स्वाद के लिए आप इसमें ऊपर से चीनी या शुगर फ्री मिला कर भी ब्लेंड कर सकते हैं। अब इसे ठंडा कर सर्व करें।---
- मजीठ (RUNIA CARDIFOLIA) (मंजिष्ठा) भारत के पर्वतीय प्रदेशों में पाई जाती है।मजीठ के फूलों का रंग सफेद और फल का रंग काला होता है। मजीठ का रस मधुर (मीठा), तीखा और कषैला होता है। मजीठ बेल के पत्ते झाड़ीनुमा होते हैं, जिसकी जड़ें जमीन में दूर-दूर तक फैली होती हैं। इसकी टहनियां कई फुट लंबी, नर्म, खुरदरी और जड़ की तरफ कठोर होती हैं। टहनियों का आंतरिक रंग तोडऩे पर जड़ की तरह ही लाल ही लाल निकलता है। इसकी बेलें अक्सर दूसरे पेड़ों पर सहारा लेकर चढ़ जाती हैं। मजीठ की पत्तियां चारों तरफ लगती हैं, जिसकी 2 छोटी और 2 बड़ी पत्तियां होती हैं। इसके फूल गुच्छों में छोटे-छोटे होते हैं। इसके फल चने के आकार के होते हैं। मजीठ की जड़ लंबी होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार मजीठ की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि मजीठ की जड़ में राल, शर्करा, गोन्द, चूने के योग, और रंजक पदार्थ पाए जाते हैं। रंजक पदार्थों में मुख्य रूप से गेरेनसिन, पर्पुरिन, मंजिष्ठिन, अलाजरिन और जेन्थीन मिलते हैं।मजीठ की तासीर गर्म होती है। मजीठ भारी, कडुवी, विष, कफ और सूजननाशक होती है। यह पीलिया (कामला), प्रमेह, खून की खराबी (रक्तविकार), आंख और कान के रोग, कुष्ठ (कोढ़), खूनी दस्त (रक्तातिसार), पेशाब की रुकावट, वात रोग, सफेद दाग, मासिक-धर्म के दोष, चेहरे की झांई, त्वचा के रोग, पथरी, आग से जले घाव में अत्यन्त गुणकारी है।विभिन्न भाषाओं में नाम - हिन्दी, मजीठ, संस्कृत, मंजिष्ठा, मराठी, मंजिष्ठा, गुजराती, मजीठ, बंगाली, मंजिष्ठा, अंग्रेजी-मेडर रूट, लैटिन-रूबिआ कोर्डिफोलिया---
- स्वास्थ्य गुणों से भरपूर हल्दी का सेवन लोग कई समस्याओं में करते हैं। हल्दी का पानी के साथ सेवन काफी लाभदायक होता है। आइये जाने इसके 7 फायदे-1. एंटी-कैंसर गुणों से भरपूर- हल्दी में करक्यूमिन नामक केमिकल की मौजूदगी इसे एक ताकतवर एंटीऑक्सीडेंट बनाता है। जो कैंसर पैदा करने वाली कोशिकाओं से लड़ती है।2. पाचन दुरुस्त रखें- कई शोधों से यह बात साबित हुई है कि नियमित रूप से हल्दी का सेवन करने से पित्त ज्यादा बनता है, जिससे आपका आहार आसानी से हजम हो जाता है और आहार के अच्छे से हजम होने से आप पेट संबंधी बीमारियों से बचे रहते हैं।3. शरीर की सूजन कम करें- हल्दी में करक्यूमिन नामक केमिकल की मौजूदगी के कारण यह दवा के रूप में काम करता है और यह शरीर की सूजन कम करने में सहायक होता है। इसके अलावा करक्यूमिन के कारण यह जोड़ों के दर्द और सूजन को दूर करने में दवाइयों से भी ज्यादा अच्छी तरह से काम करता है4. दिमाग तेज करें- हल्दी दिमाग के लिए बहुत अच्छी होती है, अगर आप सुबह के समय गर्म पानी में हल्दी मिलाकर पीते हैं यह आपके दिमाग के लिए बहुत अच्छा रहता है। भूलने की बीमारी जैसे डिमेंशिया और अल्जाइमर को भी इसके नियमित सेवन से कम किया जा सकता है।5. दिल को दुरुस्त रखें- हल्दी वाला पानी दिल को दुरूस्त रखता है।6. लिवर की रक्षा करें- हल्दी का पानी टॉक्सिक चीजों से आपके लिवर की रक्षा करता है और खराब लिवर सेल्स को दोबारा ठीक करने में मदद करता है। इसके अलावा यह पित्ताशय के काम को ठीक करने में मदद करता है, जिससे आपके लिवर की रक्षा होती है।7. उम्र के असर को करें बेअसर- गर्म पानी में नींबू, हल्दी पाउडर और शहद मिलाकर पीने से यह शरीर के विषैले पदार्थ बाहर निकालने में बहुत मददगार होता है। इसके अलावा इसे नियमित रूप से पीने से फ्री रैडिकल्स से लडऩे में मदद मिलती है जिससे शरीर पर उम्र का असर कम और धीरे-धीरे पड़ता है।हल्दी वाला पानी बनाने का तरीका- 1/2 - नींबू, 1/4 - टी स्पून हल्दी, 1 गिलास - गर्म पानी, थोड़ी सी शहद।एक गिलास में आधा नींबू निचोड़ कर उसमें हल्दी और गर्म पानी मिलाकर अच्छे से मिला दें। फिर उसमें स्वादानुसार शहद मिलाकर पीएं।---
- बसंत के आगमन के साथ ही सेमल के पेड़ों पर लाल- लाल दहकते अंगारों की तरह बड़े-बड़े फूल आते हैं। ये न केवल देखने में खूबसूरत होते हैं, बल्कि इसका कई बीमारियों के उपचार में भी उपयोग किया जाता है।सेमल या कॉटन ट्री एक औषधीय पेड़ है, जिसकी छाल, जड़ और फूल कई बीमारियों को दूर करने में सहायक है। सेमल को सिल्क कॉटन ट्री और शाल्मली भी कहा जाता है। इसके अलावा इससे रूई भी प्राप्त होती है, जिसका इस्तेमाल तकिया या गद्दे बनाने में किया जाता है।सेमल के स्वास्थ्य के लिए कई फायदे हैं-1.दस्त - सेमल के पत्तों और डंठल का काढ़ा बनाकर पीने से राहत मिलती हैं। .2. मुंह के घालों और घाव भरने में सेमल के तने से निकलने वाला गोंद या जिसे मोचरत कहते हैं, के चूर्ण का सेवन फायदेमंद होता है।3. खूनी बवासीर में सेमल के फूल, मिश्री, खसखस को बराबर मात्रा में दूध में मिलाकर और उसे गर्म किया जाता है। फिर इसे ठंडा कर पीने से राहत मिलती है।4. ल्यूकोरिया या व्हाइट डिसचार्ज में भी सेमल फायेदमंद है।5. सेमल एक ऐसा औषधीय पेड़ है, जो खांसी से लेकर पित्त की पथरी में भी फायदेमंद है।----
- अरबी को लेटिन भाषा में कोलोकेसिया एस्क्यूलेंटा नाम से जाना जाता है। अरबी से बनने वाली स्वादिष्ट सब्जी, भर्ता और अन्य रेसिपी लोगों को खूब भाती है। गैस के रोगियों को अरबी खाने से परहेज करना चाहिए। गठिया और खांसी में भी अरबी हानिकारक होती है।अरबी के कुछ लाभ भी हैं। ठंडी और तर प्रकृति की अरबी उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए बेहद फायदेमंद होती है। वहीं गुर्दे के रोगियों के लिए यह बेहद फायदेमंद होती है। अरबी खाने से गुर्दे की कमजोरी समाप्त होती है। हृदय रोग के मरीजों को नियमित रूप से अपने भोजन में अरबी की सब्जी को शामिल करना चाहिए इससे हृदय रोग में लाभ होता है। शिशुवती माताओं को अरबी का सेवन करना चाहिए इससे बच्चे को पिलाने के लिए दूध बढ़ता है।त्वचा का सूखापन और झुर्रियां समाप्त करने में भी अरबी बेहद सहायक होती है। फिर चाहे सूखापन सांस नली में हो या आतों में। अरबी की सब्जी में गरम मसाला, दालचीनी और लौंग डालकर खाना फायदेमंद होता है।
- हमारे शरीर की त्वचा हमारे खानपान पर काफी निर्भर करती है। हेल्दी डाइट शरीर की स्किन को चमकदार बना सकती है। स्किन को नैचरली ग्लोइंग और रेडिऐंट बनाने के लिए कुछ चीजों को खान-पान में अवश्य शामिल करें। दरअसल हम जो कुछ भी खाते हैं, उसे से हमारे शरीर को सेहत और सुंदरता मिलती है। अपनी प्राकृतिक सुंदरता को निखारने के लिए सबसे जरूरी बात है कि हम प्रकृति के अधिक से अधिक करीब रहें।हरी सब्जियों को डाइट में शामिल करेंखूबसूरत त्वचा पाने के लिए अपनी डायट में हरी पत्तेदार सब्जियां शामिल करें। हमारी स्किन केवल बढ़ती उम्र और धूप के कारण ही खराब नहीं होती है, बल्कि प्रदूषण और जंक फूड्स भी इस पुर बुरा असर डालते हैं।डार्क चॉकलेट्सअधिक चॉकलेट खाने से शरीर का वजन बढ़ जाता है। लेकिन यदि सही मात्रा में डार्क चॉकलेट खाया जाए, तो यह हमारी बॉडी में ब्लड शुगर लेवल को रेग्युलेट करने और स्किन को खूबसूरत बनाने का काम भी करती है। डार्क चॉकलेट ऐंटिऑक्सीडेंट्स से भरपूर होती है। इससे उम्र का असर भी त्वचा पर कम पड़ता है। इसीलिए ब्यूटीशियन आजकल चेहरे पर चॉकलेट पैक लगाने पर जोर देती हैं।खट्टे फलमौसमी, संतरा, नींबू, चकोतरा, कीवी, आलू बुखारा, आंवला और बेरीज जैसे खट्टे फलों का सेवन त्वचा को बेदाग बनाता है। इसलिए दिन में कम से कम एक फल अवश्य खाएं।ओमेगा-3 और विटामिन-डीओमेगा-3 फैटी एसिड, विटामिन-डी और प्रोटीन ये तीन बेहद जरूरी चीजें हैं, जो स्किन को खूबसूरत बनाए रखने के लिए जरूरी हैं। जो लोग नॉनवेज नहीं खाते, वे ओमेगा-3 फैटी एसिड्स के लिए कैपसूल्स ले सकते हैं। धूप में बैठने का वक्त नहीं है तो विटामिन-डी के लिए टैबलेट्स ले सकते हैं। प्रोटीन की जरूरत डायट में दाल शामिल करने से पूरी हो जाती है।ड्राई फ्रूट्सड्राई फ्रूट्स में खासतौर से अखरोट और बादाम स्किन को खूबसूरत बनाने का काम करते हैं। अखरोट ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैटी एसिट से भरपूर होता है। वहीं, बादाम विटामिन-ई का अच्छा सोर्स है।---
- हल्दी वाला दूध शरीर के लिए फायदेमंद माना जाता है। लेकिन गीली खांसी होने पर यह फायदा नहीं, बल्कि नुकसान पहुंचाता है। क्योंकि दूध से कफ बढऩे की समस्या हो सकती है। अगर आपको गीली खांसी है तो आपको मुलेठी चूर्ण और काली मिर्च का चूर्ण शहद में मिलाकर पेस्ट बना लेना चाहिए। इस पेस्ट को उंगली या चम्मच से धीरे-धीरे चाटते हुए खाना चाहिए।सूखी खांसी में मुलेठी का सेवन न करेंवहीं सूखी खांसी हो और इसमें गले में अधिक दिक्कत हो रही हो लेकिन खांसी में कफ ना आ रहा हो तो आपको मुलेठी का सेवन नहीं करना चाहिए। इससे आपको अधिक लाभ नहीं होगा। बल्कि कुछ केसेज में धसका उठने की समस्या बढ़ सकती है। अगर आपको सूखी खांसी है तो आपको इससे मुक्ति पाने के लिए हल्दी मिला दूध पीना चाहिए। यह आपकी खांसी को शीघ्र ठीक करने का काम करेगा। साथ ही खांसी के कारण होने वाली वीकनेस और मसल्स पेन में राहत देता है।----
- रंगों का त्योहार, होली में ठंडाई पीने का अपना ही मजा है। एक प्रकार से ठंडाई होली मनाने का एक अनिवार्य हिस्सा है। बादाम, खसखस और गुलाब की पत्तियों से बनी ठंडाई होली पर शरीर को तरोताजा बने रहने में मदद करेगी। उत्तर प्रदेश समेत कई जगह ये स्पेशल होली ड्रिंक के बिना, तो त्योहार का मजा ही नहीं आता है। ठंडाई के अपने फायदे हैं। ठंडाई एसिडिटी, पेट में जलन, अपच जैसी समस्याओं में बहुत फायदेमंद है।खसखस वाली ठंडाई एक एनर्जी बूस्टर है, जो तात्कालिक राहत और एनर्जी दे सकता है। खसखस का उपयोग हर्बल दवाओं में भी किया जाता है और इसमें कुछ अद्भुत एंटीबायोटिक गुण होते हैं। इसके साथ ये शरीर की थकी हुए मांसपेशियों को आराम करके शांत कर सकता है। वहीं आप इसे गर्मी में भी एक पेय पदार्थ की तरह इस्तेमाल कर सकते हैं। दूसरी ओर, बादाम एक प्रोटीन से भरपूर नट है, जो कई तरह के स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है। यह फाइबर, विटामिन ई, मैग्नीशियम, कैल्शियम और पोटेशियम से समृद्ध है। कुल मिलाकर ये ठंडाई स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है।ऐसे बनाए ठंडाई-खसखस (1 बड़ा चम्मच), खरबूजे के बीज (1 चम्मच), सूरजमुखी के बीज (1 चम्मच), सौंफ (2 चम्मच), ,काली मिर्च (2-3 दाने), जायफल पाउडर (1 चम्मच) -इलाइची या इलायची पाउडर (1/4 चम्मच), पिस्ता पाउडर (2-3 बड़ा चम्मच), मेपल सिरप या शहद, केसर।विधि- सबसे पहले इन सबको पीस लें। अब, एक पैन में बादाम का दूध (800 मिली) डालें और पीसा हुआ मिश्रण डालें। साथ ही केसर डालकर अच्छी तरह हिलाएं। सुनिश्चित करें कि गांठ नहीं बनें। दूध को तब तक पकाएं जब तक वो गाढ़ी न हो जाए। गैस बंद करें और इसे ठंडा होने दें। मीठा करने के लिए मेपल सिरप मिलाएं । आप शहद के साथ पेय को मीठा भी कर सकते हैं। ठंडाई को गिलास में डालें और ठंडा करें। ऊपर से कटे हुए ड्राई-फूड्रस डाल के सजा लें।खसखस का पोषण तत्वखसखस के साथ उच्च पोषण मूल्य जुड़ा हुआ है। यह जड़ी बूटी ओमेगा -6 फैटी एसिड का एक समृद्ध स्रोत है, जो चयापचय और विकास के लिए अच्छा माना जाता है। खसखस में प्रोटीन, विटामिन, खनिज और आहार फाइबर भी मौजूद होते हैं, जो इसे व्यंजनों में एक महत्वपूर्ण घटक बनाते हैं। पोषण मूल्य के संदर्भ में, इसके 100 ग्राम बीज में 18 ग्राम प्रोटीन, 28 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 20 ग्राम आहार फाइबर और 3 ग्राम चीनी होती है। ये जब एक स्वस्थ अनुपात में दैनिक उपभोग किया जाता है और शरीर के संपूर्ण स्वास्थ्य को नियंत्रित करने में मदद करता है।खसखस सूजन को जल्दी ठीक करता है। अच्छी नींद में मदद करता है। दर्द निवारक है। इम्यूनिटी को बेहतर बनाने में मदद करता है और पाचन में सुधार करता है।---
- रंगों का त्यौहार होली पूर देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस बार भी बाजार में तरह-तरह के रंग आ गए हैं। इन कैमिकल रंगों का त्वचा पर बुरा असर पड़ता है। इससे बचाव के लिए लोग होली खेलने से पहले त्वचा पर तेल लगा लिया करते हैं या फिर सन स्क्रीन लोशन या बॉडी लोशन। पर हमारी त्वचा के लिए क्या है, सही?अच्छा होगा कि आप होली से पहले ही इसकी तैयारी कर लें। पहले ही दिन रात में आप शरीर पर बॉडी लोशन अच्छी तरह से लगा लें, ताकि आपकी त्वचा अच्छी तरह से माइक्शराइज्ड हो सके। आप कोहनी , घुटनों पैरों पर वैसलीन भी लगा सकते हैं। शरीर के इन अंगों की त्वचा सबसे पहले हार्ड होती है।होली से एक रात पहले आपको बॉडी लोशन की एक सामान्य मात्रा लगानी चाहिए। होली खेलने के लिए कोई नया बॉडी लोशन ट्राइ करने की बजाय अपने नियमित बॉडी लोशन का ही इस्तेमाल करें, लेकिन होली खेलने के कुछ घंटों पहले ही इसका इस्तेमाल करना बेहतर होगा।होली के दिन अच्छी तरह शरीर पर तेल की मालिश कर लें। मालिश के लिए नारियल तेल सबसे अच्छा है। या फिर बादाम और जैतून का तेल भी प्रभावी होता है। बालों में भी तेल लगाना न भूलें। कैमिकल रंगों से बाल भी बेजान हो जाते हैं। ज्यादा अच्छा होगा कि आप बालों को खुले रखने की बजाय उसे बांध लें और उसे अच्छी तरह से हेयर कैप से ढंक लें। इससे रंग उनमें नहीं लगेेंगे। त्वचा पर तेल लगाने से एक तो कैमिकल रंगों के हानिकारक प्रभाव से बचा जा सकता है, दूसरे रंग छुड़ाना भी आसान होता है। नहाने के बाद आप शरीर पर एक अच्छा टोनर भी लगा सकते हैं।हालांकि कोशिश करेंगे कि होली खेलते समय सिंथेटिक कैमिकल्स का इस्तेमाल न करें। जिससे आप अपनी त्वचा के साथ बिना किसी समझौता किए इस त्योहार का आनंद ले सकते हैं।
- किसी भी बीमारी से सुरक्षित रहने के लिए शरीर की इम्यूनिटी स्ट्रॉन्ग होना बहुत ही ज्यादा जरूरी है। भारत में घरेलू नुस्खे का सदियों से प्रयोग होता चला रहा है। कुछ ऐसे ही नुस्खें हैं जिसका प्रयोग भारतीय सदियों से करते आए हैं -1. आंवला- पोषण का पावरहाउस आंवला शरीर की इम्यूनिटी को बढ़ाने का काम करता है और इसकी शक्ति की आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। रोज सुबह खाली पेट लहसुन की एक कली पीसकर आधा चम्मच ताजा आंवला के साथ खाने से इम्यूनिटी स्ट्रॉन्ग होती है।2. नीम के पत्ते- भारत में मूल रूप से नीम के पत्तों का सेवन लोग खाली पेट किया करते हैं। नीम के पत्तों को शक्तिशाली रक्त शोधक के रूप में माना जाता है। इसमें एंटीवायरल और जीवाणुरोधी गुण होते हैं और ऐसा माना जाता है कि यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का काम करते है।3. तुलसी का काढ़ा- तुलसी के कुछ पत्तों, अदरक के एक टुकड़े और काली मिर्च को पानी में मिलाकर उसको चायनुमा बना लें। दरअसल ये एक प्रकार का काढ़ा है, जिसमें मौजूद तत्व सभी बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया से लडऩे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं।4. काली मिर्च और संतरे का रस-रोजाना एक गिलास ताजा संतरे के रस में एक चुटकी काली मिर्च मिलाकर पीएं। संतरा एंटीऑक्सिडेंट से भरा हुआ होता है और इसे विटामिन सी का भी एक समृद्ध स्रोत माना जाता है। यह स्वाभाविक रूप से आपकी प्रतिरक्षा को बढ़ाने में मदद करेगा।5. अदरक-तुलसी- इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए आपको बस इतना करना है कि ताजा अदरक का रस लें, उसमें तुलसी के कुछ पत्ते पीस दें। इसमें एक चम्मच शहद मिलाएं। खांसी से राहत पाने और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए इसका रोजाना सेवन करें।6. तुलसी-काली मिर्च के दाने- इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए आप सुबह-सुबह तुलसी के पत्तों के साथ ऑर्गेनिक शहद और ताजे पीसे पुदीने के पत्तों को साथ में मिलाकर खाएं। रोजाना सुबह उठकर खाली पेट तुलसी की 5 से 7 पत्तियां, एक चम्मच शहद के साथ कालीमिर्च के दो दाने पीसकर खा लें। इस बात का ध्यान रखें कि इसके बाद पानी न पीएं।7. इम्यूनिटी बॉल- एक चम्मच पिसी हुई हल्दी, 1 चम्मच गुड़, 1 चम्मच गाय का घी और 1 चम्मच सूखी अदरक का पाउडर लें। अच्छी तरह से मिलाएं और छोटी गोल गेंदें बना लें। रोजाना 2 से 3 बॉल का सेवन करें। ऐसा करने से आपकी इम्यूनिटी मजबूत हो जाएगी।8. हल्दी वाला दूध- हम सभी जानते हैं कि दूध और हल्दी का मिश्रण हमेशा प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाने के लिए अच्छा होता है। इस वायरल सीजऩ के दौरान, सुनिश्चित करें कि आप एक कप उबले हुए दूध में आधा चम्मच हल्दी मिलाएं। अच्छी तरह से मिलाएं और गर्म पीएं। सोने से 20-30 मिनट पहले रात में दूध का सेवन करें।---
- बादाम खाना सेहत के लिए काफी फायदेमंद है। बादाम में प्रोटीन, फाइबर, गुड फैट, विटामिन ए, विटामिन ई और मैग्नीशियम जैसी चीजें भरपूर मात्रा में होती हैं। पर यह जानना भी जरूरी है कि रोजाना कितनी मात्रा में बादाम खाना चाहिए।एफडीए यानी फूड ऐंड ड्रग ऐडमिनिस्ट्रेशन की मानें तो हर दिन एक तिहाई कप यानी करीब 40 ग्राम (10 से 15) से ज्यादा बादाम का सेवन नहीं करना चाहिए। साथ ही अगर बादाम को भिगोकर खाया जाए तो इसमें मौजूद फाइबर को पचाना भी आसान हो जाता है और यह सेहत के लिए ज्यादा फायदेमंद साबित होता है। आइये जाने अधिक बादाम खाने से क्या - क्या नुकसान होता है-कब्ज- बादाम को सबसे हेल्दी नट्स में से एक माना जाता है और शायद ही कोई ये सोचेगा कि बादाम खाने के कोई नुकसान भी हो सकते हैं। लेकिन अगर आप लिमिट से ज्यादा बादाम खा लें तो इस हेल्दी स्नैक का भी शरीर पर साइड इफेक्ट दिखने लगता है। वैसे तो बादाम फाइबर से भरपूर होता है जो कब्ज की समस्या दूर करने में मदद करता है लेकिन अगर बहुत ज्यादा बादाम खा लिया जाए तो कब्ज, पेट फूलना या लूज मोशन की दिक्कत हो सकती है। हमारा शरीर बहुत ज्यादा फाइबर को पचा भी नहीं पाता है।कमजोरी- 100 ग्राम (आधा कप) बादाम में 25 ग्राम तक विटामिन ई होता है और हमारी हर दिन की विटामिन ई की जरूरत सिर्फ 15 ग्राम है। ऐसे में आप अंदाजा लगाइए कि अगर आप 1 कप बादाम का सेवन कर लें तो शरीर में डेली विटामिन ई की जरूरत का 3 गुना विटामिन ई पहुंच जाएगा। इस वजह से आपको कमजोरी महसूस हो सकती है, डायरिया हो सकता है या फिर देखने में परेशानी हो सकती है और धुंधला दिखने की समस्या हो सकती है।दवाइयों का असर कम होना-100 ग्राम बादाम में 2.4 मिलीग्राम मैग्नीज होता है । अगर शरीर में मैग्नीज की मात्रा ज्यादा हो जाए तो ब्लड प्रेशर की दवाई, ऐंटिबायॉटिक्स और लैक्सेटिव्स जैसी दवाइयों का असर कम होने लगता है।वजन बढऩा- बादाम में फैट और कैलरी की मात्रा भी अधिक होती है। 100 ग्राम बादाम में करीब 50 ग्राम मोनोसैच्युरेटेड फैट होता है जो दिल के लिए फायदेमंद होता है। लेकिन अगर फिजिकल ऐक्टिविटी नहीं होती है तो ज्यादा बादाम खाने से शरीर में फैट जमा होने लग जाता है।---
- ओट्स करीब 3 हजार साल पहले पूर्व योरोप का एक मुख्य अनाज था। ओट्स की कई सारी किस्में होती हैं जैसे कि- ओट ग्रोट, ओट ब्रान, आयरिश ओट्स, रोल्ड ओट्स, क्विक ओट्स, इंस्टेंट ओट्स और ओट फ्लोर आदि। ओट्स को हिन्दी में जई का दलिया कहा जाता है।सामान्यत: ओट्स में फाइबर, कैल्शियम, फास्फोरस और पौटेशियम बहुत अधिक मात्रा में होता है, जिसके शरीर में बहुत अधिक फायदे हैं। ओट्स में जिंक, आयरन और ओमेगा-6 फैटी एसिड भी पाया जाता है। ये पोषक तत्व बालों की जड़ों को मजबूत बनाते हैं और इन्हें गिरने से भी बचाते हैं।ओट्स का सेवन आपके बालों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। आज लोग इसे नाश्ते के रूप में भी बहुत इस्तेमाल करते हैं। जिन लोगों को बालों के झडऩे की समस्या हो वो लोग भी इसका सेवन कर सकते हैं। ओट्स कोलेस्ट्राल को भी कंट्रोल करता है। दिल की बीमारियों को भी दूर करता है। इसमें फाइबर होता है, जो कब्ज रोकता है। वजन कम करने में भी यह फायदेमंद है। ओट्स के सेवन से स्मरणशक्ति बढ़ती है। इससे स्कीन को भी फायदा होता है। यह स्कीन से बैक्टीरिया और आइल को हटाता है और उसमें निखार लाता है। ओट्स का रोजाना सेवन कैंसर जैसी बीमारी को रोकता है।---
- शरीर में पोषक तत्वों की कमी हमें कई बीमारियों का शिकार बना देती है और कभी-कभार ये बीमारियां इतना घातक रूप ले लेती हैं, जिसके बारे में आप सोच भी नहीं सकते हैं। इसके पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं, जिसमें खान-पान की खराब आदतें, तनाव और व्यस्त जीवनशैली प्रमुख कारण हैं। इन्हीं में से एक समस्या है सोते वक्त नस चढ़ जाना। शरीर में सोते वक्त नस चढ़ जाना आम समस्या है लेकिन ऐसा कई बार शरीर में कुछ पोषक तत्वों की कमी के कारण भी ऐसा होता है।शरीर में इन 3 चीजों की कमी से चढ़ती है नसविटामिन सी की कमीशरीर में विटामिन सी की कमी कई समस्याओं का कारण बनती है। विटामिन सी की कमी सर्दी और जुकाम जैसी समस्याओं के साथ-साथ हमारी आंखों के नीचे काले घेरे का भी प्रमुख कारण है। विटामिन सी हमारी त्वचा के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है क्योंकि ये शरीर में लचीलेपन को बनाए रखने में मदद करता है। विटामिन सी हमारी रक्त कोशिकाओं को भी मजबूत बनाने में मदद करता है, जिसके कारण हमारी स्किन हेल्दी होती है। यही कारण है कि जब हमारी रक्त कोशिकाएं मजबूत नहीं होती है तो हमें हमारी नसें कमजोर हो जाती है और आसानी से एक के ऊपर एक चढ़ जाती है, जिसके कारण आपको तेज दर्द का सामना करना पड़ सकता है। इस समस्या से बचने के लिए आप मेडिकल या फिर डॉक्टर की सलाह लें सकते हैं। इसके अलावा आप विटामिन सी युक्त आहार का सेवन भी कर सकते हैं ताकि शरीर में विटामिन सी की कमी पूरे हो सके। शरीर में विटामिन सी की आपूर्ति के लिए सिट्रस फल- नींबू, टमाटर, पालक, फूलगोभी, ब्रोकली जैसे हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन कर सकते हैं।हीमोग्लोबिन की कमीसोते वक्त नस हाथ-पैर या कंधे की नस चढ़ जाना शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी भी दर्शाता है। दरअसल हीमोग्लोबिन की कमी से ब्लड सर्कुलेशन सही तरीके से नहीं हो पाता,जिसके कारण अंगों की नस चढ़ जाती है। शरीर के किसी भी अंग की नस चढ़ जाने से व्यक्ति खुद को अस्वस्थ महसूस करने लगता है। हमारी रक्त कोशिकाओं में मौजूद हीमोग्लोबिन शरीर के अलग-अलग अंगों तक ऑक्सीजन पहुंचाता है, जो कि शरीर के संचालन के लिए एक जरूरी प्रक्रिया है। ये प्रक्रिया जब सुचारू रूप से नहीं चल पाती तो नस चढऩे लगती है। हीमोग्लोबिन को बढ़ाने के लिए आप चाहे तो इन खाद्य पदार्थों का भी सेवन कर सकते हैं।हीमोग्लोबिन को बढ़ाने वाले फूड-चुकंदर, आम, अंगूर, सेब, अमरूद, हरी सब्जियां, नारियल, तुलसी, तिल, पालक, गुड़, अंड।आयरन की कमीशरीर में आयरन की कमी के कारण भी सोते वक्त नस चढ़ जाती है। अगर आपके साथ भी ऐसा बार-बार होता है तो आपके शरीर में आयरन की कमी है। आयरन की कमी को पूरा करने के लिए आप आयरन युक्त सप्लीमेंट और फूड का सेवन कर सकते हैं। दरअसल आयरन की कमी से शरीर की कोशिकाओं को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाता, जिसके कारण नस चढ़ जाने की दिक्कत सामने आती है। आयरन की कमी को पूरा करने के लिए आप ये फूड खा सकते हैं।हरी पत्तेदार सब्जियां, पालक, बीन्स, दाल, नट्स, ब्राउन राइस, गेहूं, ड्राई फूट्स।---
- हम अक्सर इस बात को लेकर बहुत ज्यादा चिंतित रहते हैं कि किस चीज के साथ कौन सी चीज खाएं ताकि कभी बीमार न पड़े। फिर चाहे वह मछली के साथ चाय पीने की बात हो या फिर दही के साथ नींबू। सही खान-पान अच्छे स्वास्थ्य का राज है और इसी के कारण सही फूड के साथ सही चीज का सेवन बहुत जरूरी है क्योंकि गलत फूड पेयरिंग से बीमार होने का खतरा बढ़ जाता है।अब बात करते हैं दूध की। बच्चों से लेकर बड़ों को दूध पीना पसंद होता है और अक्सर घर में हम लोग दूध के साथ कूकीज, फल या कुछ अन्य फूड खाना पसंद करते हैं। कभी-कभार हमारी ये आदत हमारे लिए नुकसान भी पैदा कर सकती है। आयुर्वेद के मुताबिक अगर हम गलत फूड के साथ दूध का सेवन करते हैं तो ये हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक हो सकता है। इसलिए अगली बार दूध पीते वक्त इन चीजों का सेवन बिल्कुल भी न करें।कौन से फूड है दूध के साथ जहरआयुर्वेद विशेषज्ञों के मुताबिक, बहुत से लोग दूध और केला साथ में खाना पसंद करते हैं और बॉडी बिल्डिंग में लगे युवा अक्सर इस शेक का सेवन वर्कआउट करने के बाद करते हैं। फिटनेस कोच भी इस ड्रिंक को वर्कआउट के बाद काफी अच्छा मानते हैं। लेकिन आयुर्वेद इस ड्रिंक को पीने से मना करता है। विशेषज्ञों की मानें तो असंगत फूड स्वास्थ्य के लिए हमेशा से हानिकारक होते हैं। अग्नि या फिर इंसानों की आंत में मौजूद पाचन आग खाने को पचाने के लिए जिम्मेदार होती है, जो भी हम खाते हैं।दूध एक पोषणभरा फूड है, जो काफी पोषक तत्वों से भरा होता है लेकिन तब तक, जब तक आप इसमें असंगत फूड को नहीं मिलाते हैं। आइये जाने ऐसी कौन- कौन सी 9 चीजें हैं, जिन्हें दूध के साथ लेने से बचना चाहिए।1. केले, 2. चेरी, 3. कोई भी खट्टा फल (नारंगी, नींबू, चूना, अंगूर, इमली, आंवला, हरे सेब, आलूबुखारा, स्टार फल, अनानास, आदि), 4. खमीर युक्त वस्तुएं , 5. मांसाहार (अंडा, मांस और मछली), 6. खिचड़ी , 7. दही, 8. फलिया और 9. मूली।दूध पीने का सबसे आसान और अच्छा तरीका उसे बिना किसी फूड या उसमें बिना कुछ मिलाएं पीना है, खासकर अगर गाय का दूध हो तो। शहद, गुड़ या फिर चीनी को स्वाद बढ़ाने के लिए मिला सकते हैं और इससे उसके पोषक तत्व भी बढ़ते हैं। आप इसमें ये चीजें कम मिलाएं और दूसरी चीजों के साथ दूध पीने से बचें।--
- सेप्सिस, रक्त में हुए संक्रमण को कहा जाता है। चिकित्सकों के अनुसार सेप्सिस आम तौर पर बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण होता है और यह जानलेवा हो सकता है। इसके शुरूआती लक्षण दिल की धड़कन बढ़ जाना, बुखार आना, तेजी से सांस चलना और रक्त में श्वेत रक्त कणिकाओं का अत्यधिक हो जाना आदि हैं। शुरूआत में इसके इलाज के लिए एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं और कोशिश की जाती है कि जिस अंग में भी संक्रमण हुआ है, वह संक्रमणमुक्त हो सके।सेप्सिस और इससे होने वाली समस्याओं को रोकने का बेहतर तरीका शुरूआती अवस्था में इसका पता लगाना और संक्रमण को रोकना है। रक्त के संक्रमण से नवजात शिशु भी नहीं बच पाते। जीवन के शुरूआती 28 दिनों में यदि नवजात को रक्त का संक्रमण हो जाए तो उसे नियोनैटल सेप्सिस या सेप्सिस नियोनैटोरम कहा जाता है। यह संक्रमण फेफड़ों में हो तो न्यूमोनिया हो सकता है। शिशु में जन्म के पहले से होने वाले रक्त संक्रमण को इन्ट्रायूटेराइन सेप्सिस और जन्म के बाद होने वाले रक्त संक्रमण को एक्स्ट्रायूटेराइन सेप्सिस कहते हैं। रक्त संक्रमणका कारण हारपीज वायरस, रूबेला (जर्मन मीजल्स) बैक्टीरिया या कैंडिडा फफूंद हो सकते हैं। गर्भावस्था के दौरान स्त्रीरोग विशेषज्ञ गर्भवती महिला और भ्रूण की लगातार जांच कर पता करती हैं कि कहीं सेप्सिस के लक्षण तो नहीं उभर रहे हैं। महिलाओं की एचआईवी, गोनोरिया, सिफिलिस, हारपीज, क्लैमाइडिया, हेपेटाइटिस बी, रूबेला आदि की जांच कर पता लगाया जाता है कि कहीं उन्हें कोई संक्रमण तो नहीं है।यदि सेप्सिस अधिक फैल गया हो तो इलाज में बहुत मुश्किल होती है और मरीज की मौत भी हो सकती है। रक्त में किसी भी टॉक्सिक एजेंट की मौजूदगी प्रतिकूल प्रभाव डालती है और सेप्सिस का कारण बन सकती है। रक्त में टॉक्सिक एजेंट तब पहुंचते हैं जब उनका मूल स्रोत या बैक्टीरिया रक्त में पहुंच जाएं। बैक्टीरिया के अलावा अन्य कारणों से भी सेप्सिस हो सकता है। दांतों की अच्छी तरह सफाई और अच्छी तरह पका हुआ भोजन सेप्सिस से बचाव के लिए जरूरी है। बैक्टीरिया का संक्रमण दांतों से भी हो सकता है। इसके साथ ही सब्जियों के जरिए बैक्टीरिया आंतों में पहुंच सकते हैं। सब्जियों को अच्छी तरह पकाने से ये बैक्टीरिया खत्म हो जाते हैं।
- रायपुर। हमारी रसोई में रोजाना इस्तेमाल होने वाला करी पत्ता गुणों की खान है। इसमें ढेर सारे स्वास्थ्य लाभ हैं। अपने स्वाद और औषधीय गुणों के कारण भारत में करी पत्ता का इस्तेमाल अधिक मात्रा में किया जाता है।अधिकांश रूप में दक्षिण भारतीय व्यंजनों में करी पत्ता एक आवश्यक घटक है, जिसका इस्तेमाल सांभर, दाल, सब्जियों और पुलाउ में किया जाता है। खिचड़ी के तड़के तैयार करने के लिए भी उपयोग किए जाते हैं। करी पत्ता ऐसे औषधीय गुणों से भरपूर होता है, कि जिसकी वजह से इसका इस्तेमाल त्वचा की समस्याओं से लेकर ब्लड शुगर कंट्रोल करने तक किया जा सकता है। जी हां, हाई ब्लड शुगर आजकल लोगों के बीच एक आम समस्या बनी हुई है। जिसका सीधा अर्थ है कि करी पत्ता मधुमेह प्रबंधन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन सकता है। इसके अलावा, करी पत्ते के कुछ और भी स्वास्थ्य लाभ हैं, जिसमें बेहतर पाचन, अच्छा हृदय स्वास्थ्य और स्वस्थ त्वचा और बाल शामिल हैं।डायबिटीज के लिए करी पत्ताकरी पत्ता एंटीऑक्सिडेंट, फ्लेवोनॉयड्स का एक अच्छा स्रोत है और यह ब्लड शुगर के लेवल को कंट्रोल करने में मदद कर सकता है। इतना ही नहीं, करी पत्ते में फाइबर होता है, जो आपके पाचन को धीमा करता है और कार्बोहाइड्रेट के अवशोषण को भी रोकता है, जिसके बदले में, आपके खून में शुगर का लेवल कम होता है। करी पत्ता न केवल डायबिटीज प्रबंधन, बल्कि कोलेस्ट्रॉल के स्तर को भी कम कर सकता है।कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त होने से रोकता हैएक अध्ययन में यह भी पाया गया है कि करी पत्ते कोशिकाओं के क्षतिग्रस्त होने को कम कर सकते हैं, जो कि अग्नाशय कोशिकाओं में इंसुलिन उत्पादन के लिए जिम्मेदार है। यह शरीर में इंसुलिन की गतिविधि में सुधार करता है। करी पत्तियों में एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीमाइक्रोबियल भी भरपूर मात्रा में होते हैं। यही वजह है कि करी पत्तों को स्वाभाविक रूप से इंसुलिन गतिविधि को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है, जो हाई ब्लड शुगर को कंट्रोल करने के लिए जरूरी है।करी पत्ता इंसुलिन का उपयोग करने में मदद करते हैं, जिससे रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित किया जाता है। इसमें एंटी-हाइपरग्लाइकेमिक गुण भी होते हैं, जो ब्लड शुगर को कम करने के लिए जाने जाते हैं। वहीं करी पत्ता आपके कोलेस्ट्रॉल को भी कंट्रोल करता है, जो डायबिटीज के लिए जिम्मेदार कारको और दुष्परिणामों में से एक है। इसके अलावा क्योंकि यह फाइबर से भरपूर है, तो यह डायबिटीज के लिए अच्छा है। फाइबर युक्त खाद्य पदार्थ शरीर में शुगर के अवशोषण को धीमा करने में मदद कर सकते हैं, जिससे ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित किया जा सकता है।कैसे करें करी पत्ते का इस्तेमालकरी पत्ता एक तरह की औषधीय जड़ी बूटी है, जिसे कि अन्य दवाओं के साथ भी लिया जा सकता है। हालांकि आपको डायबिटीज या ब्लड शुगर कंट्रोल करने के लिए पूरी तरह से करी पत्ते पर निर्भर होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इसके साथ आपका स्व?थ खानपान और व्यायाम भी जरूरी है।रोजाना सुबह 5-10 करी पत्ते चबाएं। करी पत्ते का जूस या काड़ा बनाकर सेवन करें। भोजन में करी पत्ते को शामिल करें।
- रायपुर। दही एक दुग्ध-उत्पाद है। खाने में दही का प्रयोग पिछले लगभग 4500 साल से किया जा रहा है। आज इसका सेवन दुनिया भर में किया जाता है। यह एक स्वास्थ्यप्रद पोषक आहार है। यह प्रोटीन, कैल्शियम, राइबोफ्लेविन, विटामिन बी 6 और विटामिन बी 12 जैसे पोषक तत्वों से भरा होता है। यह आपके पेट के लिए काफी फायदेमंद होता है। इसमें मौजूद लाभदायक बैक्टीरिया आपको स्वस्थ रखते हैं। यह पेट के लिए कई तरह से फायदेमंद हैं।एसिडिटी से दूर रखेकई लोगों को खाना खाने के तुरंत बाद ही एसिडिटी होने लगती है। अगर आपको भी ऐसी ही समस्या है तो खाने के तुरंत बाद, या उसके साथ ही एक कटोरी सादी दही खाएं। ये दही आपके शरीर का पीएच बैलेंस बनाए रखेगी। साथ ही आपके पेट में खाने से पैदा हुई गर्मी को कम करेगी। जिससे आपको एसिडिटी नहीं होगी। अगर आप खाने के बाद छाछ या दही लेते हैं तो आप को इस समस्या से मुक्ति मिल जाएगी। साथ ही आपका खाना आसानी से पच जाएगा। आप एक ग्लास छाछ में थोड़ा सा भुना ज़ीरा पाउडर डालकर भी पी सकते हैं।हाज़मा दुरूस्त करेप्रोबायोटिक होने के कारण दही में विटामिन बी12 और माइक्रोऑर्गैनिज्म होते हैं जो पेट में बैक्टीरिया बढ़ाते हैं, जो बदहजमी की स्थिति संभालते हैं। दही खाने के हाजमे में मदद करता है और कब्ज से बचाव करता है।दूध से ज्यादा फायदेमंद है दही!कुछ लोगों को दूध में मौजूद लैक्टोज के कारण पाचन नही हो पाता है। ऐसे में वो दूध जैसे फायदे दही से ले सकते हैं। इससे आपको कैल्शियम और दूसरे विटामिन मिल जाएंगे, वो भी बिना लैक्टोज के। खाने के साथ दही कई तरीकों से खाया जा सकता है। आप दही में सब्ज़ी मिलाकर रायता बना सकते हैं। नमक या चीनी मिलाकर दही खा सकते हैं। सादा दही भी खाया जा सकता है।दही में छुपा है खूबसूरती का खज़ानादही एक ऐसा खाद्य पदार्थ है जो खाने में स्वास्थ्यवर्धक तो है ही साथ ही ये सौंदर्य निखारने के लिए भी अच्छा स्रोत माना जाता है। गर्मियों में अक्सर तेज धूप शरीर पर पडऩे से त्वचा झुलस या टैन हो जाती है, ऐसे में दही टैनिग कम करने के लिए बेहतर विकल्प माना जाता है। इतना ही नही दही में बेसन मिलाकर लगाने से भी चेहरे पर चमक आती है।---
- बला एक बहुत ही लाभकारी औषधि है जो बहुत सारे रोगों में काम आती है। ऋषियों के अनुसार यह एक उत्तम कोटि का रसायन है और वात, पित्त, कफ तीनों दोषों का शमन करती है। शीतल प्रकृति के होते हुए भी यह वात रोग के उपचार के लिए प्रयुक्त की जाती है। ऋषि चरक इसको बल्य मानते हंै अर्थात यह बल बर्धक भी है।विभिन्न भाषाओं में नाम -संस्कृत- बला। हिन्दी- खिरैटी, वरियारा, वरियारा, खरैटी। मराठी- चिकणा। गुजराती- खरेटी, बलदाना। बंगला- बेडेला। तेलुगू- चिरिबेण्डा, मुत्तबु, अन्तिस। कन्नड़- किसंगी, हेटुतिगिडा। तमिल- पनियार तुट्टी। मलयालम- वेल्लुरुम। इंग्लिश- कण्ट्री मेलो। लैटिन- सिडा कार्डिफोलिया।आयुर्वेद के अनुसार बला मांस-पेशियों की मजबूती के लिए विशेष रूप से उत्तम मानी गयी है। अर्थात मांस धातु का पोषण करती है। संक्रमण में भी इसके प्रयोग लाभकारी होता है विशेषकर श्वसन तन्त्र से सम्बन्धित रोगों में यह अच्छा प्रभाव दिखाती है। एक मत के अनुसार यह स्नायु तन्त्र पर भी अच्छा प्रभाव करती है। शरीर को बल प्रदान करने के कारण इसका नाम बला रखा गया है।बला जिसे खिरैटी भी कहते हैं, यह जड़ी-बूटी वाजीकारक एवं पौष्टिक गुण के साथ ही अन्य गुण एवं प्रभाव भी रखती है अत: यौन दौर्बल्य, धातु क्षीणता, नपुंसकता तथा शारीरिक दुर्बलता दूर करने के अलावा अन्य व्याधियों को भी दूर करने की अच्छी क्षमता रखती है।बला चार प्रकार की होती है, इसलिए इसे 'बलाचतुष्ट्य' कहते हैं। यूं इसकी और भी कई जातियां हैं पर बला, अतिबला, नागबला, महाबला- ये चार जातियां ही ज्यादा प्रसिद्ध और प्रचलित हैं। चारों प्रकार की बला शीतवीर्य, मधुर रसयुक्त, बलकारक, कान्तिवद्र्धक, स्निग्ध एवं ग्राही तथा वात रक्त पित्त, रक्त विकार और व्रण (घाव) को दूर करने वाली होती है।मुख्यत: इसकी जड़ और बीज को उपयोग में लिया जाता है। यह झाड़ीनुमा 2 से 4 फीट ऊंचा क्षुप होता है, जिसका मूल और काण्ड (तना) सुदृढ़ होता है। पत्ते हृदय के आकार के 7-9 शिराओं से युक्त, 1 से 2 इंच लंबे और आधे से डेढ़ इंच चौड़े होते हैं। फूल छोटे पीले या सफेद तथा 7 से 10 स्त्रीकेसर युक्त होते हैं। बीज छोटे-छोटे, दानेदार, गहरे भूरे रंग के या काले होते हैं। यह देश के सभी प्रांतों में वर्षभर पाया जाता है।