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जीवन के लिये बोधकथायें - भाग 1
'कर्मशीलता से ही शान्ति सम्भव है!'एक राजा राजकाज से मुक्ति चाहते थे। एक दिन उन्होंने राजसिंहासन अपने उत्तराधिकारी को सौंपा और राजमहल छोड़ कर चल पड़े। उन्होंने विद्वानों के साथ सत्संग किया, तपस्या की, पर उनके मन में अतृप्ति बनी रही। मन में खिन्नता का भाव लिये वे तीर्थयात्रा पर निकल पड़े।एक दिन चलते-चलते वे काफी थक गये और भूख के कारण निढाल होने लगे। राजा पगडण्डी से उतरकर एक खेत में रुके और एक पेड़ के नीचे बैठकर सुस्ताने लगे। खेत में आये पथिक को देखकर एक किसान उनके पास जा पहुँचा। वह उनका चेहरा देखकर समझ गया कि यह व्यक्ति थका होने के साथ ही भूखा भी है।किसान में हाँडी में उबालने के लिये चावल डाले फिर राजा से कहा - 'उठो, चावल पकाओ। जब चावल पक जाय, तब मुझे आवाज दे देना। हम दोनों इससे पेट भर लेंगे।'राजा मंत्रमुग्ध होकर किसान की बात सुनते रहे। किसान के जाने के बाद उन्होंने चावल पकाने शुरू कर दिये। जब चावल पक गये, तो उन्होंने किसान को बुलाया और दोनों ने भरपेट चावल खाये। फिर किसान काम में लग गया और राजा को ठण्डी छाँव में गहरी नींद आ गई। सपने में उन्होंने देखा कि एक दिव्य पुरुष खड़ा होकर कह रहा है - 'मैं कर्म हूँ और मेरा आश्रय पाये बगैर किसी को शान्ति नहीं मिल सकती। तुम्हें सब कुछ बिना कर्म किये प्राप्त हो गया है। तुम एक बनी-बनाई प्रणाली का संचालन कर रहे हो। इसलिये तुम्हें जीवन से विरक्ति हो रही है। तुम कर्म करो। कर्म करने का एक अलग ही सुख है। इससे तुम्हारे भीतर जीवन के प्रति लगाव पैदा होगा।'राजा की आँखें खुल गईं। उन्हें लगा कि उन्हें रास्ता मिल गया।०० साभार : 'कल्याण' बोधकथा विशेषांक(प्रस्तुति : अतुल कुमार 'श्रीधर') -
दैनिक जीवन में बहुत सी प्रचलित बाते होती हैं जिनके आधार पर कुछ कार्यों और घटनाओं को शगुन या अपशगुन माना जाता है। इसी तरह से प्रतिदिन रोजमर्रा के कार्य करते समय कई चीजें अक्सर हाथ से छूटकर गिर या बिखर जाती हैं। हम इन्हें उठाकर रखे देते हैं या समेट देते हैं, लेकिन इनपर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं। कई बार कुछ चीजें बार-बार हाथ से छूटकर गिरने लगती हैं। इन चीजों का गिरना शुभ संकेत नहीं माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार यदि कुछ चीजें अक्सर हाथ से छूटकर गिरने लगे तो यह आने वाले जीवन में परेशानी का संकेत देती हैं। तो चलिए जानते हैं कि वे कौन सी चीजें हैं जिनका गिरना शुभ नहीं माना जाता है।
दूध का गिरना या उबलते हुए बार-बार निकल जानामाना जाता है कि यदि दूध का बर्तन हाथ से छूटकर गिर जाए या फिर पूरा ध्यान देने के बाद भी अक्सर दूध उबलकर बर्तन से बाहर गिरने लगे तो इसे शुभ संकेत नहीं माना जाता है। दूध का संबंध चंद्रमा से माना जाता है। ऐसे में अगर गैस पर रखा दूध उबलकर गिरने लगे या हाथ से दूध का बर्तन छूटकर गिर जाए तो ये मानसिक और आर्थिक परेशानियों का आने सा सूचक माना जाता है।अन्न, भोजन का गिरनायदि आप खाना परोसते हुए गिर जाए तो माना जाता है कि घर में अतिथि का आगमन होने वाला है, लेकिन खाना परोसते वक्त अक्सर भोजन प्लेट से बाहर गिरने लगे तो इसे शुभ नहीं माना जाता है। मान्यता है कि इससे घर में दरिद्रता आने लगती है, या फिर ऐसा रसोई में किसी वास्तु दोष कारण भी हो सकता है।तेल का गिरनाहर घर में तेल का प्रयोग रसोई घर में खाना बनाने से लेकर भगवान के समक्ष दीपक प्रज्ज्वलित करने तक में किया जाता है। इसके साथ ही तेल को शनि का कारक भी माना गया है। यदि आपके घर में बार-बार तेल गिरने लगे तो यह शुभ संकेत नहीं माना जाता है। इससे कार्यों में बाधाएं आने के साथ धन की हानि होने की आशंका भी बनी रहती है। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 220
(आप सभी को 'महाशिवरात्रि' की बहुत सारी शुभकामनायें. आइये इस पावन अवसर पर जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से निःसृत प्रवचन का भावपूर्वक पठन करें. आचार्यश्री की वाणी यहाँ से है....)
.....'कृष्ण प्रेम दो भोलेनाथ,लहु रास रस तेरे साथ...'
वेद में बताया गया है,
एको हि रुद्रो न द्वितीयाय तस्थुर्य ईमॉल्लोकानीशत इशनीभिः । (श्वेताश्वतरोपनिषद 3-2)
सुप्रीम पॉवर हैं भगवान् शिव, उनकी अनंत शक्तियाँ हैं. विश्व का प्राकट्य, विश्व की रक्षा, विश्व का प्रलय उन सब शक्तियों से वे करते हैं. एक अवतार काल में ऐसा भी हुआ है कि शंकर जी श्री राधा बने हैं और पार्वती जी श्रीकृष्ण बनी हैं. कभी वो श्रीकृष्ण की भक्ति करते हैं, कभी श्रीराम, श्रीकृष्ण उनकी भक्ति करते हैं. तो ये तो लीलाक्षेत्र के नाटक हैं. स्वयं दो बन जाते हैं.
स इममेवात्मानं द्वेधापातयत् । ततः पतिश्च पत्नी चाभवताम् ।
अपने आपको दो बना देते हैं शंकर पार्वती. और फिर विवाह की एक्टिंग करते हैं. शंकर पार्वती का ब्याह होता है. तो अपने आपसे ब्याह करते हैं. महाशिवरात्रि शंकर पार्वती के विवाह का ही दिन है.
तो वे भगवान् शंकर जो सबसे बड़ा भगवान् जा रस है, महारास में भी गए. और लीला की दृष्टि से पार्वती तो पहले ही पहुँच गईं थी रास में क्योंकि वो तो स्त्री शरीर है. महारास में तो सब स्त्री शरीर वाले गए थे. जो पुरुष थे पूर्व जन्म के अग्नि के पुत्र, दण्डकारण्य के परमहंस वगैरह वो सब स्त्री बन कर गए थे.
शंकर जी पुरुष बनकर गए तो गोपी ने रोक दिया. कौन हो तुम? मैं शंकर हूँ. कौन शंकर? कहाँ का शंकर? शंकर जी चौंक गए. ये गोपी डाँट रही है हमको. बता दिया कि उन्होंने कि मैं चतुर्मुखी ब्रम्हा के ब्रम्हांड का मैं गवर्नर हूँ शंकर. उन्होंने कहा अंदर कोई पुरुष नहीं जा सकता. एक पुरुष रहेगा श्रीकृष्ण. उन्होंने कहा ठीक है स्त्री बन जाता हूँ. स्त्री बनकर गए. गोपी बन करके. तो पार्वती जी को हँसी आ गई. बड़े पुरुष बनते थे, आज तक दाल नहीं गली. स्त्री बनना पड़ा. भागवत् में तीन चार बातों में एक श्लोक कहा गया है -
निम्नगानां यथा गङ्गा देवानामच्युतो यथा ।वैष्णवानां यथा शंभुः पुराणानामिदं तथा ।।(भागवत् 12-13-16)
जैसे समस्त भक्तों में श्रीकृष्ण के भक्तों में शंकर जी टॉप करते हैं. 'पुराणानामिदं तथा' ऐसे सब पुराणों में भागवत टॉप करती है. तो सब वैष्णवों में टॉप करने वाले भगवान शंकर हैं. महारास में गोपी बने थे. तो शंकर जी गोपी प्रेम पाये हुये हैं महारास में. उनसे यही प्रार्थना करना है कि हमको भी श्रीकृष्ण प्रेम दिला दो तो तुम्हारे साथ हम भी रास रस लें. श्रीकृष्ण के रास में जैसे तुम गोपी बनते हो ऐसे ही तुम्हारे बगल में हम भी खड़े हो जायें. ऐसी कृपा कर दो, भोलेनाथ !!!
ॐ नमः शिवाय.. ॐ नमः शिवाय । ॐ नमः शिवाय.. ॐ नमः शिवाय ।।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - सनातन धर्म में तुलसी को बहुत ही पूजनीय पौधा माना गया है। शायद ही कोई ऐसा घर हो जहां पर तुलसी का पौधा न लगा हो। तुलसी के पौधे को धार्मिक, ज्योतिष, वास्तु यहां तक की चिकित्सा में भी तुलसी महत्व माना गया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार जिस घर में तुलसी लगी होती है औऱ रोज तुलसी में दीपक जलाया जाता है वहां मां लक्ष्मी का वास होता है। ऐसे घर में हमेशा समृद्धि बनी रहती है।वहीं वास्तु के हिसाब से घर में तुलसी लगाने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। तुलसी भगवान श्री हरि की प्रिय हैं। जहां तुलसी लगी होती है, वहां भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है, लेकिन यह पौधा लगाने से पहले महत्वपूर्ण बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है। यदि इसे सही स्थान और सही दिशा में न लगाया जाए तो घर में आर्थिक समस्याएं हो सकती हैं।आज के समय में घरों के आकार और बनावट में बहुत ज्यादा अंतर आ गया है। इसलिए ज्यादातर लोग छोटा घर होने के कारण बालकनी ना होने पर या फिर अच्छी धूप के लिए तुलसी का पौधा अपनी छतों पर रखते हैं, लेकिन वास्तु के अनुसार, तुलसी का पौधा छत पर रखने से दोष लगता है। यदि घर की छत पर तुलसी का पौधा लगाया जाए तो आमतौर पर उनकी कुंडली में प्राकृत दोष लगता है। इसका संबंध बुध ग्रह से माना जाता है। इससे आपकी आर्थिक स्थिति कमजोर होने लगती है। इसलिए जितना हो सके तुलसी को छत पर लगाने से बचना चाहिए।वास्तु के अनुसार जहां सही दिशा में लगाई गई तुलसी से आपके घर में सुख समृद्धि, शांति और सकारात्मकता आती है तो वहीं गलत दिशा में लगी हुई तुलसी के कारण आपको आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ता है। घर में तुलसी कभी भी दक्षिण दिशा में नहीं लगानी चाहिए। दक्षिण में तुलसी लगाने से आपको अशुभ फल की प्राप्ति होती है।वास्तु शास्त्र के अनुसार तुलसी लगाने के लिए सबसे उत्तम दिशा उत्तर-पूर्व मानी गई है। यह दिशा धन के देवता कुबेर की मानी गई है। इस दिशा में तुलसी लगाने से घर में धन वृद्धि होती है। इसके अलावा पश्चिम दिशा में भी तुलसी लगाई जा सकती है।
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महाशिवरात्रि 2021 वह पावन दिन है जिस दिन शिव भक्त अपने भोलेनाथ और देवी पार्वती की प्रसन्नता और उनका आशीर्वाद पाने के लिए व्रत रखकर इनकी पूजा करेंगे। पुराणों में ऐसी कथा मिलती है कि पूर्वजन्म में कुबेर ने अनजाने में ही महाशिवरात्रि के दिन भोलेनाथ की उपासना कर ली थी जिससे उन्हें अगले जन्म में शिव भक्ति की प्राप्ति हुई और वह देवताओं के कोषाध्यक्ष बने।
महाशिवरात्रि क्यों होगी विशेष?
पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन से हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरंभ अग्निलिंग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय हुआ। इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था।
फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को क्यों कहते हैं?
पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी ने बताया कि महाशिवरात्रि महाशिवरात्रि के पावन दिन के बारे में कहा जाता है कि यूं तो साल में हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि आती है जिसे मास शिवरात्रि कहते हैं। लेकिन उत्तर भारतीय पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी और गुजरात, महाराष्ट्र के पंचांग के अनुसार माघ मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी सबसे श्रेष्ठ है इसलिए इसे शिवरात्रि नहीं महाशिवरात्रि कहते हैं। इसकी वजह यह है कि इसी दिन प्रकृति को धारण करने वाली देवी पार्वती और पुरुष रूपी महादेव का गठबंधन यानी विवाह हुआ था।
महाशिवरात्रि पर रात का महत्व क्यों?
पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी ने बताया कि हिंदू धर्म में रात्रि कालीन विवाह मुहूर्त को उत्तम माना गया है इसी कारण भगवान शिव का विवाह भी देवी पार्वती से रात्रि के समय ही हुआ था। इसलिए उत्तर भारती पंचांग के अनुसार जिस दिन फाल्गुन मास की चतुर्दशी तिथि मध्य रात्रि यानी निशीथ काल में होती है उसी दिन को महाशिवरात्रि का दिन माना जाता है।
12 तारीख को उदय कालीन चतुर्थी होने पर भी 11 मार्च को ही महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाएगी?
इस वर्ष 11 मार्च को दिन में 2 बजकर 40 मिनट से चतुर्दशी तिथि लगेगी जो मध्यरात्रि में भी रहेगी और 12 तारीख को दिन में 3 बजकर 3 मिनट पर समाप्त हो जाएगी। इसलिए 12 तारीख को उदय कालीन चतुर्थी होने पर भी 11 मार्च को ही महाशिवरात्रि मनाई जाएगी।चूँकि रात्रिकाल में 11 मार्च को ही चतुर्दशी है इस लिए निशीथ व्यापनी चतुर्दशी होने से 11 को ही शिवरात्रि मनाई जाएगी
महाशिवरात्रि पर शिवयोग कब तक ?
11 मार्च महाशिवरात्रि के दिन का पंचांग देखने से मालूम होता है कि इस दिन का आरंभ शिवयोग में होता है जिसे शिव आराधना के लिए शुभ माना गया है। शिवयोग में गुरुमंत्र और पूजन का संकल्प लेना भी शुभ कहा गया है। लेकिन शिवयोग 11 मार्च को अधिक समय तक नहीं रहेगा सुबह 9 बजकर 24 मिनट पर ही यह समाप्त हो जाएगा और सिद्ध योग आरंभ हो जाएगा।
महाशिवरात्रि पर सिद्ध योग का क्या लाभ ?
सिद्ध योग को मंत्र साधना, जप, ध्यान के लिए शुभ फलदायी माना जाता है। इस योग में किसी नई चीज को सीखने या काम को आरंभ करने के लिए श्रेष्ठ कहा गया है। ऐसे में सिद्ध योग में मध्य रात्रि में शिवजी के मंत्रों का जप उत्तम फलदायी होगा।
महाशिवरात्रि मुहूर्त की जानकारी
चतुर्दशी आरंभ 11 मार्च- 2 बजकर 40 मिनट
चतुर्दशी समाप्त 12 मार्च -3 बजकर 3 मिनट
निशीथ काल 11 मार्च मध्य रात्रि के बाद 12 बजकर 25 मिनट से 1 बजकर 12 मिनट तक।
शिवयोग 11 मार्च सुबह 9 बजकर 24 मिनट तक
सिद्ध योग 9 बजकर 25 मिनट से अगले दिन 8 बजकर 25 मिनट तक
धनिष्ठा नक्षत्र रात 9 बजकर 45 मिनट तक उपरांत शतभिषा नक्षत्र
पंचक आरंभ 11 मार्च सुबह 9 बजकर 21 मिनट से
पर महाशिवरात्रि में पंचक का कोई प्रभाव नहीं
महाशिवरात्रि पर पूजा का समय गृहस्थ और साधकों के लिए
महाशिवरात्रि के अवसर पर तंत्र, मंत्र साधना, तांत्रिक पूजा, रुद्राभिषेक करने के लिए 12 बजकर 25 मिनट से 1 बजकर 12 मिनट तक का समय श्रेष्ठ रहेगा।
सामान्य गृहस्थ को शुभ और मनोकामना पूर्ति के लिए सुबह और संध्या काल में शिव की आराधना करनी चाहिए। 2 बजककर 40 मिनट से चतुर्दशी लग जाने से दोपहर बाद शिवजी की पूजा का विशेष महत्व रहेगा।
महाशिवरात्रि पर पूजा का समय गृहस्थ और साधकों के लिए महाशिवरात्रि के अवसर पर तंत्र, मंत्र साधना, तांत्रिक पूजा, रुद्राभिषेक करने के लिए 12 बजकर 25 मिनट से 1 बजकर 12 मिनट तक का समय श्रेष्ठ रहेगा। सामान्य गृहस्थ को शुभ और मनोकामना पूर्ति के लिए सुबह और संध्या काल में शिव की आराधना करनी चाहिए। 2 बजककर 40 मिनट से चतुर्दशी लग जाने से दोपहर बाद शिवजी की पूजा का विशेष महत्व रहेगा।
पूजा में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए-
अगर आपने महाशिवरात्रि का व्रत रखा है तो इस बात का ध्यान रखें कि शिवजी की पूजा काले वस्?त्र पहनकर न करें। ऐसी मान्?यता है कि शिवरात्रि के नीले या फिर सफेद वस्?त्र पहनकर शिवजी की पूजा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।
अक्षत बिल्कुल भी टूटे हुए नहीं होने चाहिए। मान्यता के अनुसार टूटा हुआ चावल अशुद्ध माना जाता है और इसे पूजा में अर्पित करना अशुभ होता है। अगर आपके घर में ऐसा चावल नहीं है तो बाजार से दूसरा चावल लाकर अर्पित करें और ऐसा न हो पाए तो टूटा हुआ चावल शिवजी को अर्पित न करें।
भगवान शिव की पूजा में एक बात का ध्यान रखें कि भूलकर भी नारियल के पानी के अभिषेक न करें। मान्यता है कि नारियल को मां लक्ष्?मी की प्रिय वस्तु माना गया है, इसलिए शिवजी की पूजा में नारियल का प्रयोग नहीं किया जाता है।
भगवान शिव की पूजा में भूलकर भी शंख का प्रयोग न करें। इसके पीछे एक पौराणिक मान्यता है कि भगवान शिव ने शंखचूड़ नामक असुर का वध किया था, जो भगवान विष्णु का भक्त था। इसलिए विष्णु जी की पूजा में शंख का इस्तेमाल किया जाता है जबकि शिवपूजन में शंख प्रयोग नहीं किया जाता है।
भगवान शिव की पूजा में चंदन का प्रयोग जरूर करना चाहिए। पूजा के वक्त मुख्य रूप ये शिवलिंग पर तीन उंगलियों से चंदन लगाया जाता है। उसके बाद शिवजी की पूजा करके अपने माथ पर भी त्रिपुंड बनाना चाहिए। ऐसा करने से माना जाता है कि शिवजी का आशीर्वाद प्राप्?त होता है। शिव पूजन में कुमकुम या सिन्दूर नहीं लगाना चाहिए। माता पार्वती को आप यह अर्पित कर सकते हैं।
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महाशिवरात्रि पर शिव अराधना से प्रत्येक क्षेत्र में विजय, रोग मुक्ति, अकाल मृत्यु से मुक्ति, गृहस्थ जीवन सुखमय, धन की प्राप्ति, विवाह बाधा निवारण, संतान सुख, शत्रु नाश, मोक्ष प्राप्ति और सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। महाशिवरात्रि कालसर्प दोष, पितृदोष शांति का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त है। जिन व्यक्तियों को कालसर्प दोष है, उन्हें इस दोष की शांति इस दिन करनी चाहिए। यह जानकारी पंडित एवं ज्योतिष प्रियाशरण त्रिपाठी ने दी।
4 प्रहर के 4 मंत्र-
पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी के अनुसार महाशिवरात्रि के प्रथम प्रहर में संकल्प करके शिवलिंग को दूध से स्नान करवाकर- हीं ईशानाय नम: का जाप करना चाहिए।
द्वितीय प्रहर में शिवलिंग को दधि (दही) से स्नान करवाकर- हीं अधोराय नम: का जाप करें।
तृतीय प्रहर में शिवलिंग को घृत से स्नान करवाकर- हीं वामदेवाय नम: का जाप करें।
चतुर्थ प्रहर में शिवलिंग को मधु (शहद) से स्नान करवाकर- हीं सद्योजाताय नम: मंत्र का जाप करना करें।
किस तरह से करें पूजा एवं मंत्र जाप-
पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी ने बताया कि मंत्र जाप में शुद्ध शब्दों के बोलने का विशेष ध्यान रखें कि जिन अक्षरों से शब्द बनते हैं, उनके उच्चारण स्थान 5 हैं, जो पंच तत्व से संबंधित हैं। 1- होंठ पृथ्वी तत्व 2- जीभ जल तत्व 3- दांत अग्नि तत्व 4- तालू वायु तत्व 5- कंठ आकाश तत्व मंत्र जाप से पंच तत्वों से बना यह शरीर प्रभावित होता है।
शरीर का प्रधान अंग सिर है। वैज्ञानिक शोध के अनुसार सिर में 2 शक्तियां कार्य करती हैं- पहली विचार शक्ति व दूसरी कार्य शक्ति। इन दोनों का मूल स्थान मस्तिष्क है। इसे मस्तुलिंग भी कहते हैं। मस्तुलिंग का स्थान चोटी के नीचे गोखुर के बराबर होता है। यह गोखुर वाला मस्तिष्क का भाग जितना गर्म रहेगा, उतनी ही कर्मेन्द्रियों की शक्ति बढ़ती है।
मस्तिष्क के तालू के ऊपर का भाग ठंडक चाहता है। यह भाग जितना ठंडा होगा उतनी ही ज्ञानेन्द्रिय सामथ्र्यवान होगी।
1- मानसिक जाप अधिक श्रेष्ठ होता है।
2- जाप, होम, दान, स्वाध्याय व पितृ कार्य के लिए स्वर्ण व कुशा की अंगूठी हाथ में धारण करें।
3- दूसरे के आसन पर बैठकर जाप न करें।
4- बिना आसन के जाप न करें।
5- भूमि पर बैठकर जाप करने से दुख, बांस के आसन पर जाप करने से दरिद्रता, पत्तों पर जाप करने से धन व यश का नाश व कपड़े के आसन पर बैठ जाप करने से रोग होता है। कुशा या लाल कंबल पर जाप करने से शीघ्र मनोकामना पूर्ण होती है।
6- जाप काल में आलस्य, जंभाई, निद्रा, थूकना, छींकना, भय, वार्तालाप करना, क्रोध करना आदि सब मना है।
7- लोभयुक्त आसन पर बैठते ही सारा अनुष्ठान नष्ट हो जाता है।
8- जाप के बाद आसन के नीचे जल छिड़ककर जल को मस्तक पर लगाएं, वरना जप फल को इंद्र स्वयं ले लेते हैं।
9- स्नान कर माथे पर तिलक लगाकर जाप करें।
10- पितृऋण, देवऋण की मुक्ति के लिए 5 यज्ञों को किया जाता है।
11- घंटे और शंखनाद का प्रयोग अवश्य किया जाना चाहिए। वैज्ञानिक अनुसंधानों से सिद्ध हो गया है कि शंखनाद व घंटानाद से तपेदिक के रोगी, कान का बहना व बहरेपन का इलाज होता है। मास्को सैनिटोरियम में केवल घंटा बजाकर टीबी रोगी ठीक किए गए थे।
12- 1928 में जर्मनी की राजधानी बर्लिन में शंख ध्वनि से बैक्टीरिया नामक हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट किया गया था। शंखनाद से मिर्गी, मूर्छा, गर्दनतोड़ बुखार, हैजा, प्लेग व हकलापन दूर होता है।
13- पूर्व व उत्तर दिशा में ही देखकर जाप करें। -
करियर में सफलता और असफलता के लिए कुंडली में बुध ग्रह को जिम्मेदार माना गया है। नौकरी, बिजनेस और पढ़ाई में आने वाली बाधा को दूर करने के लिए इस महाशिवरात्रि पर शिवलिंग पर दूर्वा घास चढ़ाएं। इस उपाय से करियर संबंधी बाधा दूर हो जाती है। यह जानकारी देते हुए पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी ने बताया कि कुंडली में ग्रह दोष होने से व्यक्ति की मानसिक परेशानी बढ़ जाती है। ज्योतिष में मानसिक परेशानी का संबंध चंद्रमा से संबंधित ग्रह दोष के कारण होता है। इस परेशानी को दूर करने के लिए महाशिवरात्रि पर शिवलिंग पर दूध अर्पित करना चाहिए।
मान-सम्मान में आई गिरावट को दूर करने के उपाय
पंडित त्रिपाठी ने बताया कि अगर किसी की कुंडली में सूर्य ग्रह से संबंधित कोई दोष हो तो व्यक्ति के मान-सम्मान में गिरावट होने लगती है और अपयश का सामना करना पड़ता है। मान-सम्मान को बढ़ाने के लिए महाशिवरात्रि पर शिवलिंग पर चंदन का लेप लगाएं और शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।
सेहत संबंधी परेशानियों से छुटकारा पाने के उपाय
पंडित त्रिपाठी ने बताया कि कुंडली में राहु-केतु के अशुभ घर में बैठने पर स्वस्थ्य संबंधी परेशानियां आने लगती है। सेहत को ठीक करने के लिए महाशिवरात्रि पर भगवान शिव को धतूरा चढ़ाएं
विवाह संबंधी दोष को दूर करने के उपाय
पंडित प्रियाशरण त्रिपाठी के अनुसार कुंडली में बृहस्पति ग्रह के कमजोर और दोष होने से विवाह होने में तमाम तरह की परेशानियां आने लगती है। साथ ही पति-पत्नी में मनमुटाव भी बढऩे लगता है। कुंडली में इस दोष को दूर करने के लिए इस पवित्र महाशिवरात्रि पर शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाएं।
- आजकल घरों में लव बर्ड, लॉफिंग बुद्धा, क्रिस्टल, कछुआ, कैंडल, विंड चाइम आदि अनेक चीजों नजर आती हैं। कुछ लोग इन्हें सजावट के लिए ले आते हैं, लेकिन इसके पीछे किसी तरह का विश्वास या मान्यता भी होती हैं, इस बारे में शायद नहीं जानते। दरअसल ये सभी चीजें चीनी वास्तु शास्त्र फेंग शुई के अनुसार शुभ व सकारात्मक ऊर्जा का सृजन करने वाली मानी जाती हैं। फेंगशुई के वास्तु उपाय आजकल लोकप्रिय होते जा रहे हैं। यहां हम कुछ ऐसे ही फेंगशुई के लव टिप्स बताने जा रहे हैं, जिससे प्रेम संबंधों में प्रगाढ़ता आएगी व घर में सकारात्मक ऊर्जा संचरित होगी।फेंगशुई के लव टिप्स-फेंगशुई के अनुसार यदि आप विवाहित हैं तो ध्यान रखिए, टी.वी या कंप्यूटर आपसी संवाद की प्रक्रिया में बाधक हो सकते हैं जो कि रिश्तों को संभालने के लिए बहुत जरुरी है। इसलिए बेहतर होगा आप टी.वी, कंप्यूटर आदि को अपने शयनकक्ष से बाहर रखें।-शयनकक्ष में किसी भी तरह का विभाजन चाहे वह छत को दो हिस्सों में दिखाती बीम हो या फिर आपके बिस्तर को दो हिस्सों में करते गद्दे। फेंगशुई आपको डबल बेड पर भी सिंगल गद्दे के इस्तेमाल की सलाह देता है। इससे आपसी प्यार और बढ़ेगा व नकारात्मकता की जो रेखा आपके बीच थी, मिट जाएगी। नदी, तालाब, झरना और जल संग्रह आदि की तस्वीरें भी शयनकक्ष में नहीं लगानी चाहिए।-बिस्तर के सामने टॉयलेट का दरवाजा न हो, यदि हो तो हमेशा बंद रखें। शयनकक्ष में लगे दर्पण में भी आपका बिस्तर नजर नहीं आना चाहिए, फेंगशुई के अनुसार इससे संबंधों में तकरार होने की संभावना बनी रहती है। यदि उसे हटाना संभव न हो तो इस पर पर्दा डालकर रखें। आपके बिस्तर का सिरा खिड़की या दीवार से सटा नहीं होना चाहिए। इससे भी नकारात्मक ऊर्जा आती है जो आपसी संबंधों में तनाव पैदा कर सकती है। अपने शयनकक्ष में फूलदान या लव-बर्ड रख सकते हैं।-अविवाहितों को सलाह दी जाती है, अपने घर की सजावट पर थोड़ा समय लगाएं, इससे सकारात्मक ऊर्जा मिलेगी। इसके साथ ही सिंगल कुर्सी, पक्षी या जानवरों की मूर्तियां जो अकेलेपन को दर्शाती हों, घर में न रखें। जोड़े वाले पक्षियों की तस्वीर या मूर्ति लगाएं।-घर के दक्षिण-पश्चिम हिस्से को फेंगशुई में प्यार के लिए बहुत ही उपयुक्त स्थान माना जाता है। इसलिए इस हिस्से को जितना हो सके सजा कर रखें। दिवारों पर गुलाबी, हल्का नीला आदि रोमांटिक रंगों का इस्तेमाल करने से भी सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।कुल मिलाकर फेंगशुई आपको व्यवस्थित रुप से रहने की और इशारा करता है। आप जितने व्यवस्थित व साफ-सुथरे तरीके से रहते हैं, उसी आधार पर सकारात्मक व नकारात्मक ऊर्जा आप पर प्रभाव डालती है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 219
साधक का प्रश्न ::: साधना करते-करते ही मन दिव्य होने लगता है या थोड़ा शुद्ध होने के बाद गुरु से जब प्रेम मिलता है उसके बाद जा के दिव्य होता है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: नहीं, शुद्ध होने लगता है उसी को दिव्य कहते है। शुद्ध होने लगता है कि गंदगी साफ होती गई , तो हमारे विचार अच्छे होने लगे नैचुरल, हमारा अटैचमेन्ट संसार से कम होने लगा नैचुरल। ये सब उसकी पहचान है। जैसे हमारा किसी ने अपमान किया तो कितना चिंतन हुआ था, आज अपमान किया तो थोड़ी देर में खतम कर दिया। हाँ, अब आगे बढ़ गये। कल हमारा सौ रुपया खो गया तो हम आधा घंटा परेशान रहे, आज सौ रुपया खो गया तो पाँच मिनट परेशान रहे, उसके बाद हमने कहा - ये हमारे लिए नहीं रहा होगा। हटाओ। ज्यों-ज्यों हम आगे बढ़ेंगे ईश्वर की ओर त्यों-त्यों ये कष्ट की फीलिंग कम होती जाएगी । ये माइलस्टोन असली है।
तो साधना में मन धीरे-धीरे, धीरे-धीरे शुद्ध होता है । लेकिन जब पूर्ण शुद्ध होगा तो अलौकिक शक्ति गुरु देगा, वह असली दिव्य है जिससे माया निवृत्ति होगी, भगवद्दर्शन होगा, सब समस्यायें हल होंगी। वह दिव्यता एक पॉवर है । और इधर की जो शुद्धता है इसको दिव्य बोलते हैं कि ये माया से रहित होने लगा। मायिक अटैचमेन्ट कम होने लगा, ईश्वरीय अटैचमेन्ट बढ़ने लगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - महाशिवरात्रि के पर्व का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। शिवरात्रि का पर्व भगवान शिव को समर्पित है। मान्यतानुसार शिवरात्रि के दिन ही भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था । इस दिन भगवान शिव की पूरे विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है और साथ ही व्रत उपवास करने का विधान है। इस साल महाशिवरात्रि का त्योहार 11 मार्च 2021 (गुरुवार) को मनाया जाएगा। इस दिन किए गए अनुष्ठानों, पूजा व व्रत का विशेष लाभ मिलता है।कई शुभ संयोगों के साथ है महाशिवरात्रिइस बार महाशिवरात्रि कई शुभ संयोगों में आ रही है। इस दिन एक ही मकर राशि में 4 बड़े ग्रह शनि, गुरु, बुध तथा चंद्र, धनिष्ठा नक्षत्र में होंगे तथा आंशि काल सर्प योग भी रहेगा। ऐसे मौके पर जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प योग है, वे इसकी शांति करवा सकते हैं। इस योग में भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व होगा और जातक यदि अपनी अपनी राशि अनुसार भगवान की आराधना करेंगे तो इससे उनकी कई मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं।महाशिवरात्रि शुभ मुहूर्तचतुर्दशी तिथि प्रारम्भ- 11 मार्च को दोपहर 02 बजकर 39 मिनट।चतुर्दशी तिथि समाप्त- 12 माच को दोपहर 03 बजकर 02 मिनट ।महाशिवरात्रि पर निशिता काल- 11 मार्च को प्रात: 12 बजकर 06 मिनट से प्रात: 12 बजकर 55 मिनट तक।महाशिवरात्रि पारणा मुहूर्त- 12 मार्च को प्रात: 06 बजकर 36 मिनट से दोपहर 3 बजकर 04 मिनट तक।रुद्राभिषेक करना शुभदायकइस दिन रुद्राभिषेक करना शुभदायक होगा। इस दुर्लभ योग में भगवान शिव की आराधना करने पर दोष भी दूर हो सकेंगे और कष्टों से मुक्ति मिलेगी। इस दिन कई प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान जैसे रूद्राभिषेक और महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया जाता है। इस मंत्र के जाप से कई कष्टों का निवारण होता है।महाशिवरात्रि की पूजा विधिशिव रात्रि को भगवान शंकर को पंचामृत से स्नान करा कराएं। केसर के 8 लोटे जल चढ़ाएं। पूरी रात को दीपक जलाकर रखें। चंदन का तिलक लगाएं, बेलपत्र, भांग,गन्ने का रस, धतूरा, तुलसी, जायफल, कमल गट्टे, फल, मिठाई, मीठा पान इत्र और दक्षिणा चढ़ाए। इसके बाद खीर का भोग लगाकर प्रसाद बांटें. ओम नमो भगवते रूद्राय, ओम नम: शिवाय रूद्राय् शम्भवाय् भवानीपतये नमो नम: मंत्र का जाप करें। इस दिन शिव पुराण का पाठ जरूर करें। अगर इस दिन जागरण हो तो अति उत्तम है।महाशिवरात्रि पूजा का महत्वइस दिन काले तिलों सहित स्नान करके व व्रत रखकर रात्रि में भगवान शिव की विधिवत आराधना करना कल्याणकारी माना जाता है। दूसरे दिन अर्थात अमावस के दिन मिष्ठान्नादि सहित बाह्मणों तथा शारीरिक रुप से असमर्थ लोगों को भोजन देने के बाद ही स्वयं भोजन करना चाहिए। यह व्रत महा कल्याणकारी होता है और अश्वमेध यज्ञ तुल्य फल प्राप्त होता है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 218
साधक का प्रश्न ::: महापुरुष संसार में रहते हैं, आते हैं। ये कष्ट का संसार है, गन्दा संसार। सब मायाबद्ध गड़बड़ लोग यहाँ रहते हैं, उसमें महापुरुष आते क्यों हैं?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: महापुरुषों में बहुत प्रकार के महापुरुष होते हैं। कुछ अवतारी महापुरुष होते हैं, कुछ साधन सिद्ध महापुरुष होते हैं लेकिन कष्ट किसी महापुरुष को नहीं होता। बाहर का जो भी स्वरूप हो शारीरिक रोग का या बाप मरे, बेटा मरे, कुछ हो उनको भीतर से कष्ट नहीं होता। एक फार्मूला याद कर लो।
तुलसीदास को संग्रहणी हुई मर गये, रामकृष्ण परमहंस को कैंसर हुआ मर गये और वैसे भी हमेशा बुखार-बुखार सब ये होता रहता है शरीर जब तक है, लेकिन भीतर से कष्ट नहीं होता उनको। 'ज्ञानी भुगतै ज्ञान ते मूरख भुगते रोय' सबका बाप, बेटा, स्त्री, पति मरेंगे अपने समय पर लेकिन महापुरुष को फीलिंग नहीं होगी और मायाबद्ध को फीलिंग होगी इतना सा अन्तर है। और तुमको महापुरुषों की फिकर क्यों है? अपनी फ़िकर करो। कितने ही महापुरुषों को संसार वालों ने जेल भेज दिया, पिटाई किया। कितने- कितने नाटक हुए हैं - प्रह्लाद वगैरह को, मीरा वगैरह को, सब इतिहास भरा पड़ा है। लेकिन वो भीतर से दुःखी नहीं हुये, बाहर से सब दिखाई पड़ रहा है और बहुत से महापुरुषों ने अपने भक्तों का कष्ट ले लिया है। बहुत सी बातें हैं उसमें बारीक। महापुरुष और भगवान् की बातें न पूछो, न सोचो, न अकल लगाओ। वो बुद्धि से परे हैं।
भागवत में लिखा है कि श्रीकृष्ण ने 16108 ब्याह किया और एक- एक स्त्री के दस-दस बच्चे हुए और सौ वर्ष के बाद उनको वैराग्य हो गया। रामायण पढ़ते हो? लक्ष्मण के वियोग में राम रो रहे हैं-बाकायदा रो रहे हैं और सीता के वियोग में तो बहुत ही बुरा हाल। सब एक्टिंग है। भगवान् और महापुरुष जो हैं नम्बरी चार सौ बीस होते हैं समझे रहो। 'भगवत् रसिक रसिक की बातें रसिक बिना कोउ समुझि सकै ना'। कोई नहीं समझ सकता।
राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न ये चारों एक हैं, भगवान् हैं इसमें कोई महापुरुष नहीं है। सदा से अनादिकाल से हैं। चतुर्व्यूह कहलाते हैं ये। लेकिन जगह-जगह कैसी एक्टिंग हो रही है ? श्रीकृष्ण बलराम दोनों एक हैं और श्रीकृष्ण ने ब्रह्मा को जब मोह हुआ और सब गाय, बछड़े, ग्वाल बाल सब हर ले गया, चुरा ले गया योगमाया से और भगवान् ने नया बना दिया। साल भर चलता रहा वो और बलराम को नहीं पता चला। तो बलराम ने देखा कि ये बड़ी-बड़ी अजीब-अजीब बातें हो रही है ! ये ग्वाल बाल ये आजकल ऐसा-ऐसा प्यार अपनी माँ से, भाई से, बहन से सब से कर रहे हैं। ये तो ऐसा कभी नहीं हुआ ये बात क्या है? मेरा तो दिमाग खराब है। क्या हो रहा है? कहीं कोई राक्षस की लीला तो नहीं हो रही है हमारे ऊपर। तब भगवान् से पूछा। तब भगवान् ने कहा- हाँ हाँ, वह मैं ही बना हूँ सब गाय, ग्वाल बाल, बछड़े सब मैं ही बन गया हूँ। एक्टिंग करते हैं सब इसी प्रकार की।
हनुमान जी राम को नहीं पहचान रहे हैं। जो हृदय फाड़कर के सीताराम को दिखा सकते हैं और जिनके रोम-रोम से सदा राम-राम निकलता रहता है, वह अपने इष्टदेव ही को नहीं पहचाने। की तुम तीन देव मँह कोई।" कि तुम, कि तुम, कि तुम....! ये कि तुम, कि तुम क्या लगा रखा है? और राम भी वैसी ही एक्टिंग करते हैं - अरे! तुम कौन हो भाई! हाँ, अपना परिचय तो बताओ। तो हनुमान जी कहते हैं - मोर न्याउ मैं पूछा साई।' मैं मायाबद्ध हूँ। अच्छा ! ये भगवान् के पार्षद हैं सदा से और अपने को बता रहे हैं मायाबद्ध हैं;
मोर न्याउ मैं पूछा साई।तुम कस पूछिय नर की नाई।
तुम बन्दर की तरह हो वह नर की तरह है दोनों एक्टिंग कर रहे हैं। राम लक्ष्मण के लिए रो रहे हैं बैठ के, पहाड़ उठा के ला रहे हैं हनुमान जी। सब नाटक है। नाटक में सब तरह की बातें होती हैं। वहाँ बुद्धि का काम नहीं। बस लीला सुनकर के विभोर हो जाओ। सोचने विचारने की, अकल लगाने का काम नहीं है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
हिंदू पंचांग का आखिरी महीना फाल्गुन जारी है और इस महीने की कृष्ण पक्ष की आखिरी तिथि यानी अमावस्या तिथि को फाल्गुन अमावस्या कहा जाता है। इस बार यह तिथि 13 मार्च, शनिवार को है। पंचांग के साथ ही धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भी फाल्गुन अमावस्या के दिन का विशेष महत्व है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान कर, जरूरतमंदों को दान करते हैं। साथ ही इस दिन पितरों की शांति और पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए तर्पण और श्राद्ध भी किया जाता है।
फाल्गुन अमावस्या का महत्वफाल्गुन अमावस्या के मौके पर देशभर में कई जगहों पर फाल्गुन मेला भी लगता है। फाल्गुन अमावस्या के महत्व की बात करें तो ऐसी मान्यता है कि इस दिन पवित्र नदियों में सभी देवी-देवता साक्षात प्रकट होते हैं, इसलिए इस दिन नदियों में स्नान करके दान-पुण्य अवश्य करना चाहिए। इस दिन व्रत और पूजन करने से पितरों को मोक्ष मिलता है। इस दिन पितरों की शांति और अपने पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए दान, तर्पण और श्राद्ध आदि किया जाता है। ऐसा करने से परिवार के सदस्यों को किसी भी तरह की बाधाओं से बचाया जा सकता है।- वैसे तो फाल्गुन अमावस्या के दिन चंद्र दर्शन नहीं होते, बावजूद इसके चंद्र देव और यम के साथ ही सूर्यदेव का भी आशीर्वाद पाने के लिए यह दिन विशेष माना जाता है।- फाल्गुन अमावस्या के अनुष्ठान का अत्यधिक महत्व है क्योंकि इसे समृद्धि, कल्याण और आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए किया जाता है।- फाल्गुन अमावस्या के दिन शाम को पीपल के पेड़ के नीचे सरसो के तेल का दीपक लगाने सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है।फाल्गुन अमावस्या का शुभ मुहूर्तफाल्गुन मास कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि- 13 मार्च 2021 शनिवारअमावस्या तिथि प्रारंभ- 12 मार्च 2021, शुक्रवार दोपहर 03.04 बजे सेअमावस्या तिथि समाप्त- 13 मार्च 2021, शनिवार दोपहर 03.52 मिनट तकचूंकि उदया तिथि से दिन को माना जाता है इसलिए फाल्गुन अमावस्या 13 मार्च शनिवार को है। - सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु- ये नौ ग्रह हैं और हमारा जीवन इन ग्रहों की चाल और शुभ-अशुभ स्थिति पर बहुत हद तक निर्भर करता है। अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में मौजूद ग्रह मजबूत हों तो उस ग्रह से संबंधित अच्छे फल की प्राप्ति होती है, लेकिन अगर ग्रह कमजोर हों तो व्यक्ति को बुरे या नकारात्मक परिणाम भी मिल सकते हैं। इन्हीं में से एक समस्या बीमारियों की भी है। ज्योतिष शास्त्रों की मानें तो छोटी हो या बड़ी, हर बीमारी इन नौ ग्रहों से संबंध रखती है।1. सूर्य से संबंधित बीमारियांज्योतिष शास्त्र में सूर्य को ग्रहों का राजा माना गया है और इसलिए ग्रह च्रक में इसे सबसे अहम स्थान हासिल है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सूर्य अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में कमजोर या खराब हो तो उस व्यक्ति को आंख, सिर और हड्डी से संबंधित बीमारियां हो सकती हैं। इसके अलावा हृदय रोग और पाचन तंत्र की बीमारियों के लिए भी सूर्य ही जिम्मेदार होता है.2. चंद्रमा से संबंधित रोगचंद्रमा एक शीतल ग्रह है और उसका संबंध व्यक्ति के मन और सोच से है। इसलिए अगर कुंडली में चंद्रमा कमजोर हो तो व्यक्ति को खांसी-जुकाम के साथ ही घबराहट, बेचैनी और मानसिक बीमारियां हो सकती हैं।3. मंगल से संबंधित बीमारियांदेवताओं का सेनापति ग्रह मंगल, रक्त का स्वामी है। ऐसे में अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल कमजोर या खराब हो तो इस वजह से उस व्यक्ति को हाई ब्लड प्रेशर की बीमारी हो सकती है। इसके अलावा बुखार, दुर्घटना और बार-बार चोट लगने जैसी दिक्कतें भी हो सकती है।4. बुध ग्रह से जुड़े रोगबुध ग्रह का संबंध शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यूनिटी से है और अगर कुंडली में बुध ग्रह कमजोर या खराब स्थिति में हो तो इसकी वजह से व्यक्ति को इंफेक्शन वाली बीमारियां ज्यादा होती है। साथ ही त्वचा से जुड़ी बीमारियां भी हो सकती हैं।5. बृहस्पति ग्रह के कारण होने वाली बीमारियांअगर किसी व्यक्ति की कुंडली में बृहस्पति ग्रह कमजोर हो या खराब स्थिति में हो तो इसकी वजह से व्यक्ति को कई गंभीर बीमारियां होने का खतरा रहता है। इसमें पेट से जुड़ी गंभीर बीमारियों के अलावा हेपेटाइटिस और कैंसर जैसी बीमारियां भी शामिल हैं।6. शुक्र ग्रह से जुड़े रोगशुक्र ग्रह को संपन्नता, सुख-समृद्धि और वैभव का कारक ग्रह माना गया है और अगर किसी की कुंडली में शुक्र ग्रह कमजोर या खराब स्थिति में हो तो व्यक्ति को हार्मोन्स से संबंधी बीमारियां, यौन रोग और डायबिटीज होने की आशंका रहती है।7. शनि ग्रह से जुड़े रोगशनि ग्रह अगर कुंडली में अच्छी स्थिति में हो तो वह शुभ फल भी देता है, लेकिन शनि की खराब स्थिति के कारण व्यक्ति को लंबे समय तक रहने वाली क्रॉनिक बीमारिया हो सकती हैं, किसी तरह के दर्द या हड्डी से जुड़ी दिक्कत भी शनि के कारण ही होती है।8. राहु-केतु से संबंधित बीमारियांराहु-केतु की वजह से व्यक्ति को कई बार ऐसी रहस्यमयी बीमारियां होती हैं जिसकी कई बार पहचान नहीं हो पातीं। राहु की वजह से जातक को कई बार याददाश्त से संबंधी बीमारियां हो जाती है। केतु की वजह से त्वचा और रक्त संबंधी बीमारियां हो सकती हैं।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 217
साधक का प्रश्न ::: हम महापुरुष को देखकर या उनके फोटोग्राफ वीडियो देखकर क्यों आकर्षित हो जाते हैं?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: ये ऐसा है कि जैसे चुम्बक होता है, चुम्बक पत्थर होता है न, तो वो लोहे को खींचता है। तो जितनी लिमिट में लोहा शुद्ध होगा तो उतनी जल्दी खिंचेगा।
तो भगवान् व महापुरुष ये दोनों चुम्बक हैं, जो कोई भी इनके सम्पर्क में आता है तो जिसका हृदय जितना शुद्ध है उतनी जल्दी वो खिंच जायेगा और जिसका हृदय जितना पाप का, गंदा है, मायिक है, उतनी देर में खिंचेगा। और इसका कारण जो है, वो दो है- एक तो तमाम जन्मों की हमारी साधना अगर है पूर्वजन्म की, तो अन्त:करण उससे शुद्ध हुआ है काफी, तो वो जल्दी खिंच जायेगा; या इस जन्म में उसने बहुत साधना की है तो अन्तःकरण शुद्ध हुआ है, उसका फिफ्टी (50) परसेन्ट, सिकस्टी (60) परसेन्ट, सैविन्टी (70) परसेन्ट तो वो उतना खिंच जायेगा। बहरहाल वो मन की शुद्धि की लिमिट के अनुसार ही खिंचता है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 216
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी जादूगर लोग जो जादू दिखाते हैं, इनके पास सिद्धियाँ होती हैं जो दिखाते हैं या और कुछ?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: नहीं-नहीं सिद्धियाँ नहीं होती। कलायें हैं। वो तो सिखाते हैं, उनके यहाँ बाकायदा क्लास होती है। और सिद्धियाँ जो होती हैं; तामसी भी होती हैं, राजसी भी होती हैं, सात्त्विक भी होती हैं, निर्गुणा भी होती हैं - ये चार प्रकार की सिद्धियाँ होती हैं। लेकिन ये जो दिखाते हैं, आमतौर से जादूगर लोग ये सिद्धि से नहीं होता। ये तो ऐसे-इनकी अपनी कला है और जो तामसी सिद्धि करते हैं वह अधिकांश कुछ लोग हैं, वह सिद्धि से काम करते हैं लेकिन उनको मरने के बाद नरक मिलता है। तामसी सिद्धि है - किसी को तंग करना, किसी के द्वारा स्वार्थ सिद्ध करना। वह भी इने गिने कहीं होंगे और रजोगुणी सिद्धि वाले और कम। सात्विक सिद्धि वाले तो कहीं ढूँढने से नहीं मिलेगा। उसमें अणिमा, लघिमा, गरिमा वगैरह सिद्धियाँ हैं। वो तो आमतौर से भगवान् के पास महापुरुषों के पास रहती हैं। निर्गुण और सात्विक।
जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा।तासु दून कपि रूप दिखावा।।अति लघु रूप कीन्ह हनुमाना।
ये सब सिद्धियों के काम हैं। महापुरुष सिद्धि से काम नहीं लेता कभी इमरजेंसी में जरूरत पड़ जाती है तो। अब राम का काम था इसलिए ले लिया हनुमान जी ने, वरना वो न लेते। वह तो हाथ जोड़ते रहते हैं, उसकी तो पिटाई करते रहो तो भी हाथ जोड़ते रहते हैं। न भगवान् को बुलावे न सिद्धि को।
रामकृष्ण परमहंस से लोगों ने कहा कि आप तो सिद्ध हैं ये कैंसर आपको है ये सिद्धि से ठीक कर लीजिए। तो उन्होंने कहा गन्दे शरीर के लिए हम भगवान् को बुलावें। माँ को बुलावें? दुर्गा को? अरे ये तो जाना ही है, वर्तमान में भी गन्दा है, जायेगा तो भी। हम ऐसा नहीं करते। किसी राजा से दोस्ती करो तो उससे पाखाना उठवाओ। अरे जिससे दोस्ती करो उसी क्लास के उससे काम लेना चाहिए। अब भगवान् की इच्छा हो कि हाँ इसको कैंसर से ठीक कर दिया जाय, अभी दस साल इनसे और सेवा ली जाय संसार की। वह कर दें उनकी इच्छा हो। हम नही कह सकते।
तुलसीदास ने नहीं कहा हमारी रामायण की रक्षा करो, पहरेदारी करो। लेकिन राम ने किया। उनको काम लेना है तुलसीदास से। तो उन्होंने कहा ठीक है हम करेंगे। इच्छा में इच्छा रखना ही तो प्रेम है, शरणागति है। अगर उनको ऐसे अच्छा लगता है कि हम बीमार बने रहें हमेशा। तो ठीक है उनको सुख मिलना चाहिए। जैसे भी मिले। कोई महापुरुष सोलह वर्ष की उमर में मर गया। कोई तीस साल में मरा, कोई पचास साल में मरा। अब क्यों मरा। महापुरुष जब चाहे तब मरे। स्वेच्छा से शरीर छोड़ता है। जैसी भगवान् की इच्छा। उन्होंने कहा- अब तुम्हारा काम हो गया आ जाओ। हाँ ठीक है, हमको क्या करना है। हम तो सर्वेन्ट हैं। ठीक है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - इलायची का प्रयोग विभिन्न तरह के मीठे और मसालेदार व्यंजनों में स्वाद और खुशबू बढ़ाने के लिए किया जाता है। पूजा-पाठ के कामों में प्रसाद आदि बनाने के लिए और देवताओं को अर्पित करने के लिए भी इलायची का उपयोग किया जाता है। क्या आप जानते हैं कि इस छोटी सी इलायची का प्रयोग करके आप अपने जीवन की समस्याओं से भी मुक्ति पा सकते हैं। इलायची के कई उपाय बताए गए हैं जिन्हें करने से आपके जीवन की समस्याएं समाप्त होती हैं और आपको सुख-समृद्धि एवं सफलता की प्राप्ति होती है। इन उपायों को बहुत कारगर माना गया है। तो चलिए जानते हैं इलायची के कुछ खास उपाय।आर्थिक तंगी के लिएयदि घर में आर्थिक तंगी है तो घर की दरिद्रता को दूर करने के लिए किसी गरीब, असहाय व्यक्ति को सिक्के के साथ हरी इलायची दान करें। इसके अलावा यदि आपको कोई किन्नर मिल जाए तो इलायची और सिक्के उसे दान कर दें। अपने बटुए में हमेशा पांच इलायची रखें। पैसों सी जुड़ी समस्याओं के लिए यह उपाय कारगर माना जाता है।परीक्षा में सफलता के लिएपरीक्षा में सफलता पाने के लिए सबसे आवश्यक है कि मन लगाकर अध्ययन किया जाए। परिश्रम के बिना किसी भी कार्य में सफलता पाना संभव नहीं होता है। इसलिए परीक्षा में सफलता प्राप्ति के लिए मन लगाकर अध्ययन करें इसके साथ आप ये उपाय कर सकते हैं। शाम को सूर्यास्त से ठीक आधा घंटा पहले बड़ के पांच पत्ते लेकर उनके ऊपर पांच अलग-अलग प्रकार की मिठाइयां और दो छोटी इलायची रखें। अब पीपल के वृक्ष के नीचे श्रद्धा भाव से ये पत्ते रख दें और ईश्वर से सफलता की प्रार्थना करके अपने घर वापस लौट आएं। अपने घर वापस आते समय पीछे पलटकर न देखें। इस उपाय को लगातार तीन गुरूवार तक करें।विवाह के लिएयदि विवाह में देरी हो रही है या शादी करने के लिए कोई योग्य लड़की/लड़का नहीं मिल रहा हो तो गुरूवार की शाम को दो हरी इलाइची और पांच प्रकार की मिठाई, जल लेकर मंदिर में अर्पित करें। इसके साथ ही शुद्ध घी का दीपक भी प्रज्ज्वलित करें। लड़कियों को यह उपाय गुरूवार के दिन और लड़कों को यह उपाय शुक्रवार के दिन करना चाहिए। मान्यता है कि इससे जल्दी ही योग्य जीवनसाथी की तलाश पूरी होती है।सभी रोगों और शोका का निवारणजब आप किसी खास काम से घर से बाहर निकल रहे हों तो तीन हरी इलायची अपने दाएं हाथ में रखें और श्री श्री के उच्चारण के बाद इसे खा लें। इलायची खाने के बाद घर से बाहर कदम रखें, लेकिन ध्यान रहे कि घर से निकलने के दौरान घर की ओर पलट कर न देंके। इस उपाय से आपके सभी रोगों और शोको का निवारण होगा।
- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 215
०० जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचनों से 5-सार बातें (भाग - 13) ::::::
(1) राधा तत्त्व वो है जिसकी उपासना स्वयं श्री कृष्ण करते हैं, जिन श्रीकृष्ण की उपासना महाविष्णु आदि करते हैं, जिनके अंडर में अनंत कोटि ब्रह्माण्ड हैं। तो उस राधा तत्त्व के विषय में कोई शब्दों की गति नहीं, जिसके बारे में वेद (राधोपनिषद ने कहा) भी ठीक से नहीं जानते, वहाँ है वह राधा तत्त्व।
(2) मुक्ति भक्ति करने पर अपने आप आ जाती है, मिल जाती है, उसको माँगना नहीं पड़ता। कोई साधना नहीं करना है, उसके लिये। अरे! मोटी अकल की बात आप लोग याद कर लें । भक्ति के अंडर में भगवान्, भगवान् के अंडर में मुक्ति, मुक्ति के अंडर में ज्ञान, ज्ञान के अंडर में कर्म। कर्म का एण्ड होता है ज्ञान पर, ज्ञान का एण्ड होता है मोक्ष पर, मोक्ष के स्वामी भगवान् और भगवान् को दास बना लेती है, भक्ति। इतना बड़ा अन्तर है।
(3) ये हमारे मन का बनाया हुआ संसार ही मिथ्या है और यही गड़बड़ किये है। इसी मन को जो दस-बीस में हम आसक्त हैं, उनमें हम जो ममता किये हैं। क्यों? इसलिये कि हम समझते हैं कि उनमें हमारा सुख मिल जायेगा? बस इतनी सी बात है।
(4) हमें निरन्तर हरि गुरु का स्मरण करने का अभ्यास करना है। निरन्तर मन को मनमोहन में ही रखना है। यदि कभी मन संसार में चला भी जाय तो यह नहीं सोचना है कि हमसे साधना नहीं होगी। हमारे वश का यह साधना नहीं है आदि। अरे सोचो तो जब और कोई चारा ही नहीं है। और दुःख निवृत्ति एवं आनन्दप्राप्ति का स्वभाव बदल ही नहीं सकता तो निराशा महान् भूल है।
(5) शरीर की शरणागति मात्र से काम नहीं बनेगा कि उठाया खोपड़ी को और पैर पर रख दिया। ये सिर को पैर पर रखने का अभिप्राय तो ये है कि मैं अपना सब कुछ आपको अर्पित करता हूँ। अब अर्पित न करे, केवल सिर धर दे पैर के ऊपर, सुन ले सत्संग, गुरु के वाक्यों को और समझ में भी आ जाये, सिर भी हिला दे और प्रैक्टिकल अमल न करे, तो फिर वो सत्संग नहीं है। सत्संग का मतलब असली सत्, असली संग।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म संदेश एवं साधन साध्य पत्रिकाएँ०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - ब्रह्मांड में विचरण करती ऊर्जा अर्थात कॉस्मिक एनर्जी वास्तुशास्त्र में विशेष महत्व रखती है। इसलिए भवन निर्माण आदि के लिए भूमि का सही चुनाव, निर्माण कार्य, इंटीरियर डेकोरेशन आदि कामों में दिशाओं, पांच महाभूत तत्वों, पृथ्वी, जल, वायु अग्नि तथा आकाश विद्युत चुम्बकीय तरंगों, गुरुत्वाकर्षण, कॉस्मिक एनर्जी तथा दिशाओं के अंशों का सुनियोजित ढंग से उपयोग वास्तुकला द्वारा किया जाता है।वास्तु शास्त्र के अनुसार भगवान शिव आकाश के स्वामी हैं। इसके अतंर्गत भवन के आसपास स्थित वस्तु जैसे वृक्ष, भवन, खंभा, मंदिर आदि की छाया का प्रभाव भवन में रहने वाले लोगों पर पड़ता है। मनुष्य स्वास्थ्य, खुशहाली, सुख-चैन के साथ सफल जीवन जीने की प्राथमिकता के अलावा पर्यावरण संतुलन बनाए रखने की संस्कृति का सदियों से पालन करता चला आ रहा है। इंसान ने जमीन पर मकान, मंदिर, मूर्तियां, किले, महल आदि का निर्माण किया, जिसने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के दायित्व का पूरा ध्यान रखा गया। किन्तु इन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण सूत्र है अंतरिक्ष में हमेशा बने रहने वाले ग्रह नक्षत्र और इस ज्ञान की गंगा को ज्योतिष के नाम से जाना है।ब्रह्माण्ड में हमेशा उपस्थित रहने वाली कॉस्मिक ऊर्जा तथा पाँच महाभूत तत्वों का समायोजन वास्तुकला में जिस विद्या द्वारा होता है, वह वास्तुशास्त्र कहलाती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार भवन के नीचे दबी हुई वस्तुओं का सकारात्मक व नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव भवन और उसमें रहने वाले लोगों पर होता है। यह प्रभाव सामान्यत: दो से तीन मंजिल तक रहता है। भवन निर्माण से पहले भूमि की जांच करवाना इसी के चलते जरूरी होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार इस दोष की स्थिति में भवन में रहने वाले के मान- सम्मान, प्रतिष्ठा में कमी आती है साथ ही सुख का नाश और दुर्भाग्य का निर्माण होता है। हमेशा मन अशांत और भवन में भय का माहौल बना रहता है। परिवार में अकारण ही अशांति रहती है और आपसी संबंध बिगडऩे लगते हैं। पाताल दोष यदि बेडरूम में है तो सोने वाले को बुरे सपने आते हैं तथा वैवाहिक जीवन में असफलता भी देखने को मिलती है। स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस दोष के ऑफिस में होने पर आर्थिक तौर पर कठनाईयों का सामना करना पड़ता है। व्यापार में हानि होती है। अधिकतर वास्तुकला के जानकार दिशाओं का अंदाजा सूर्योदय और सूर्यास्त के आधार पर, मैगनेटिक कम्पास के बिना करते हैं, जबकि इस यंत्र के बिना वास्तु कार्य नहीं करना चाहिए। दिशाओं के सूक्ष्म अंशों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अत: जरूरी रेनोवेशन या निर्माण कार्य, अच्छे जानकार वास्तु शास्त्री की देखरेख में ही करवाना ठीक होता है।
- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 214
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित 1008-ब्रजभावयुक्त दोहों के विलक्षण ग्रन्थ 'श्यामा श्याम गीत' के दोहे, ग्रन्थ की प्रस्तावना सबसे नीचे पढ़ें :::::::
(भाग - 12 के दोहा संख्या 60 से आगे)
याते मायाबद्ध ते न प्यार करो बामा।हरि गुरु ते ही प्यार करो आठु यामा।।61।।
अर्थ ::: मायाधीन जीव से प्रेम करने का परिणाम यही निकलेगा कि मृत्यु के बाद उसी की प्राप्ति होगी। इसलिये जीव को एकमात्र हरि एवं गुरु से ही निरन्तर प्रेम-सम्बन्ध जोड़ना है।
भोरे बनि जाओ क्योंकि भोरीभारी श्यामा।भोरीभारी को प्रिय भोरा उरधामा।।62।।
अर्थ ::: भोली भाली श्रीराधा को यदि रिझाना चाहते हो तो तुम्हें भी अत्यन्त भोला भाला बनना पड़ेगा। भोली भाली राधा भोले भाले हृदय में ही निवास करती हैं।
जल बिनु मीन ज्यों विकल कह बामा।वैसे मन व्याकुल हो जाय बिनु श्यामा।।63।।
अर्थ ::: जिस प्रकार जल के बिना मछली जीवित नहीं रह सकती, उसी प्रकार यदि श्रीराधा के वियोग में मन छटपटाने लगे तब ही उनकी कृपा प्राप्त हो सकती है।
रहा नाहिं जाये जब मिले बिनु श्यामा।तब जानो प्रेमबीज, जामा उरधामा।।64।।
अर्थ ::: जब श्रीराधा के मिलन के बिना प्राण व्याकुल हो उठें तब समझो कि प्रेम बीज का वपन हृदय में हो चुका।
ऐसी चाह पैदा करो निज उरधामा।जैसे करे दीप ते पतंग कह बामा।।65।।
अर्थ ::: अपने हृदय-भवन में श्री किशोरी जी के प्रति इतना प्रेम उत्पन्न करो जितना कि दीपक से पतंग करता है। पतंग दीप के रूप का पुजारी है। रूप दर्शन की ऐसी चाह पतंग में है कि वह दीपक की लौ पर अपने प्राण ही भेंट कर देता है।
०० 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का परिचय :::::
ब्रजरस से आप्लावित 'श्यामा श्याम गीत' जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की एक ऐसी रचना है, जिसके प्रत्येक दोहे में रस का समुद्र ओतप्रोत है। इस भयानक भवसागर में दैहिक, दैविक, भौतिक दुःख रूपी लहरों के थपेड़ों से जर्जर हुआ, चारों ओर से स्वार्थी जनों रूपी मगरमच्छों द्वारा निगले जाने के भय से आक्रान्त, अनादिकाल से विशुध्द प्रेम व आनंद रूपी तट पर आने के लिये व्याकुल, असहाय जीव के लिये श्रीराधाकृष्ण की निष्काम भक्ति ही सरलतम एवं श्रेष्ठतम मार्ग है। उसी पथ पर जीव को सहज ही आरुढ़ कर देने की शक्ति जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की इस अनुपमेय रसवर्षिणी रचना में है, जिसे आद्योपान्त भावपूर्ण हृदय से पढ़ने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे रस की वृष्टि प्रत्येक दोहे के साथ तीव्रतर होती हुई अंत में मूसलाधार वृष्टि में परिवर्तित हो गई हो। श्रीराधाकृष्ण की अनेक मधुर लीलाओं का सुललित वर्णन हृदय को सहज ही श्यामा श्याम के प्रेम में सराबोर कर देता है। इस ग्रन्थ में रसिकवर श्री कृपालु जी महाराज ने कुल 1008-दोहों की रचना की है।
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - हिंदी पंचांग के आखिरी महीने फाल्गुन की शुरुआत हो चुकी है और फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का त्योहार देशभर में धूमधाम से मनाया जाएगा। इस दौरान हर एक श्रद्धालु की यही कोशिश रहती है कि वे भोलेनाथ भगवान शिव को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकें। वैसे तो देशभर में शिव जी के कई प्रसिद्ध मंदिर और शिवालय हैं, लेकिन भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का अपना अलग ही महत्व है। पुराणों और धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इन 12 स्थानों पर जो शिवलिंग मौजूद हैं उनमें ज्योति के रूप में स्वयं भगवान शिव विराजमान हैं। यही कारण है कि इन्हें ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन मात्र से ही श्रद्धालुओं के सभी पाप दूर हो जाते हैं। आइये जानते हैं इन 12 ज्योतिर्लिंग की महिमा.....1. सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, गुजरातगुजरात के सौराष्ट्र में अरब सागर के तट पर स्थित है देश का पहला ज्योतिर्लिंग जिसे सोमनाथ के नाम से जाना जाता है। शिव पुराण के अनुसार जब चंद्रमा को प्रजापति दक्ष ने क्षय रोग का श्राप दिया था तब इसी स्थान पर शिव जी की पूजा और तप करके चंद्रमा ने श्राप से मुक्ति पाई थी। ऐसी मान्यता है कि स्वयं चंद्र देव ने इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी।2. मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, आंध्र प्रदेशआंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के किनारे श्रीशैल पर्वत पर स्थित है मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग। इसे दक्षिण का कैलाश भी कहते हैं और माना जाता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।3. महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, मध्य प्रदेशमध्य प्रदेश के उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग। ये एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है जहां रोजाना प्रात: होने वाली भस्म आरती विश्व भर में प्रसिद्ध है।4. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, मध्य प्रदेशओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश के मालवा क्षेत्र में स्थित है और नर्मदा नदी के किनारे पर्वत पर स्थित है। मान्यता है कि तीर्थ यात्री सभी तीर्थों का जल लाकर ओंकारेश्वर में अर्पित करते हैं तभी उनके सारे तीर्थ पूरे माने जाते हैं।5. केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, उत्तराखंडकेदारनाथ ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड में अलखनंदा और मंदाकिनी नदियों के तट पर केदार नाम की चोटी पर स्थित है। यहां से पूर्वी दिशा में श्री बद्री विशाल का बद्रीनाथधाम मंदिर है। मान्यता है कि भगवान केदारनाथ के दर्शन किए बिना बद्रीनाथ की यात्रा अधूरी और निष्फ्ल है।6. भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्रभीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र में पुणे से करीब 100 किलोमीटर दूर डाकिनी में स्थित है। यहां स्थित शिवलिंग काफी मोटाई लिए हुए है, इसलिए इसे मोटेश्वर महादेव भी कहा जाता है।7. विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, उत्तर प्रदेशउत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर जिसे धर्म नगरी काशी के नाम से जाना जाता है। यहीं पर गंगा नदी के तट पर स्थित है बाबा विश्व नाथ का मंदिर जिसे विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि कैलाश छोड़कर भगवान शिव ने यहीं अपना स्थाई निवास बनाया था।8. त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्रत्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्रा के नासिक से 30 किलोमीटर दूर पश्चिम में स्थित है। गोदावरी नदी के किनारे स्थित यह मंदिर काले पत्थरों से बना है। शिवपुराण में वर्णन है कि गौतम ऋषि और गोदावरी की प्रार्थना पर भगवान शिव ने इस स्थान पर निवास करने निश्चय किया और त्र्यंबकेश्वर नाम से विख्यात हुए।9. वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, झारखंडवैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग झारखंड के देवघर में स्थित है। यहां के मंदिर को वैद्यनाथधाम के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि एक बार रावण ने तप के बल से शिव को लंका ले जाने की कोशिश की, लेकिन रास्ते में व्यवधान आ जाने से शर्त के अनुसार शिव जी यहीं स्थापित हो गए। इसलिए इस क्षेत्र की अलग ही महिमा है।10. नागेश्वल ज्योतिर्लिंग, गुजरातनागेश्वथर मंदिर गुजरात में बड़ौदा क्षेत्र में गोमती नदी. द्वारका के करीब स्थित है। धार्मिक पुराणों में भगवान शिव को नागों का देवता बताया गया है और नागेश्वर का अर्थ होता है नागों का ईश्वर। कहते हैं कि भगवान शिव की इच्छा अनुसार ही इस ज्योतिर्लिंग का नामकरण किया गया है। यहां पर भक्त भगवान शिव में चांदी के नाग समर्पित करते हैं। .11. रामेश्वर ज्योतिर्लिंग, तमिलनाडुभगवान शिव का 11वां ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु के रामनाथम नामक स्थान में हैं। ऐसी मान्यता है कि रावण की लंका पर चढ़ाई करने से पहले भगवान राम ने जिस शिवलिंग की स्थापना की थी, वही रामेश्वर के नाम से विश्व विख्यात हुआ।12. घृष्णेवश्वृर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्रघृष्णेवश्वृर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के संभाजीनगर के समीप दौलताबाद के पास स्थित है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से यह अंतिम ज्योतिर्लिंग है। इस ज्योतिर्लिंग को घुश्मेश्वर के नाम से भी जाना जाता है।
- हिंदू पंचांग के आखिरी महीने फाल्गुन की शुरुआत हो चुकी है और इंग्लिश कैलेंडर के तीसरे महीने मार्च की शुरुआत फाल्गुन माह की द्वितीया तिथि के साथ हो रही है। सनातन धर्म में व्रत और त्योहारों का विशेष महत्व है। त्योहारों के लिहाज से मार्च का यह महीना काफी खास है क्योंकि मार्च के महीने में जानकी जयंती, विजया एकादशी से लेकर महाशिवरात्रि और होली जैसे प्रमुख व्रत और त्योहार आते हैं।आइए आपको मार्च महीने में पडऩे वाले व्रत और त्योहारों की तिथि और उनके महत्व के बारे में बताते हैं---6 मार्च, शनिवार- जानकी जयंती -फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जानकी जयंती मनायी जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन मां सीता प्रकट हुई थीं।9 मार्च, मंगलवार- विजया एकादशी- फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को विजया एकादशी कहा जाता है। एकादशी का दिन भगवान विष्णु को समर्पित है और ऐसी मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से सारे कार्य सफल हो जाते हैं इसलिए इसे विजया एकादशी कहा जाता है।10 मार्च, बुधवार- प्रदोष व्रत -हर महीने कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत होता है. यह व्रत भगवान शिव को समर्पित है और इस दिन उपवास रखकर प्रदोष काल में शिव जी की पूजा करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।11 मार्च, गुरुवार- महाशिवरात्रि - हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर साल फाल्गुन महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ था। इस दिन शिव-पार्वती की पूजा करने के साथ ही व्रत रखने का भी बहुत महत्व है।13 मार्च, शनिवार- फाल्गुन अमावस्या - पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि फाल्गुन अमावस्या कहलाती है जिसका सनातन धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन पितरों की शांति के लिए नदियों में स्नान और फिर दान किया जाता है। शनिवार को पडऩे की वजह से इसे शनि अमावस्या भी कहा जाता है।14 मार्च, रविवार- मीन संक्रांति- इस दिन सूर्य कुंभ राशि से निकलकर मीन राशि में प्रवेश करेंगे और अगले एक महीने तक यहीं रहेंगे। इस समय को खरमास कहा जाता है और इस दौरान मांगलिक कार्यों पर रोक रहती है।15 मार्च, सोमवार- फुलेरा दूज -फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को फुलेरा दूज के नाम से जाना जाता है। यह दिन इतना शुभ होता है कि इसे अबूझ मुहूर्त के रूप में देखा जाता है और इस दिन बिना मुहूर्त देखे कोई भी शुभ काम किया जा सकता है।17 मार्च, बुधवार- विनायक चतुर्थी -फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी मनायी जाती है। माना जाता है कि इस दिन भगवान गणेश की पूजा और व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।21 मार्च, रविवार- होलाष्टक आरंभ- फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से लेकर होलिका दहन तक की अवधि को होलाष्टक कहा जाता है और इसकी शुरुआत 21 मार्च से हो रही है जो 28 मार्च तक जारी रहेगा। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस दौरान शुभ कार्यों की मनाही होती है।25 मार्च, गुरुवार- आमलकी एकादशी-फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आमलकी एकादशी या रंगभरी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत रखने का विधान है।26 मार्च, शुक्रवार- प्रदोष व्रत- फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष का व्रत होता है जो भगवान शिव को समर्पित है।28 मार्च, रविवार- होलिका दहन- फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 28 मार्च रविवार को है और इस दिन होलिका दहन का पर्व मनाया जाएगा।29 मार्च, सोमवार- होली - रंगों का त्योहार होली, होलिका दहन के अगले दिन 29 मार्च सोमवार को मनाया जाएग।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - 213
साधक का प्रश्न - पाँच कामनायें भगवान् व संत भी करते हैं और संसारी भी। तो दोनों के परिणामों में क्या अन्तर है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: देखो, भगवान् कहते हैं;
सब कर ममता ताग बटोरी,मम पद कमल बाँधु बट डोरी॥
तुम सब ममता को हटा कर मुझ में ममता कर लो। अरे! ममता तो हुई। वही बीमारी तो है। माँ से, बाप से, बेटे से, बीबी से, पति से ममता करते थे, अब आप कहते हैं मुझसे ममता करो। तो ममता की बीमारी तो अब भी बनी हुई है।
कामना - पाँच प्रकार की कामनाएँ हम लोग करते हैं। माँ-बाप, बेटा, स्त्री-पति, धन-प्रतिष्ठा, संसार को देखना, देखकर सुख मिलता है। सुनना, सूंघना, रस लेना, स्पर्श करना ये पाँच विषय कहलाते हैं। इन पाँच विषयों से बचने की हिदायत की गई है- शास्त्रों में और ये पाँचों की कामना करते हैं संत लोग, भगवान् भी।
जो जो कामना हम संसार में करते हैं, माँ से, बाप से, बेटे से, पति से, वही कामना गोपियाँ और भक्त लोग कर रहे हैं भगवान् से। चार भाव हैं न- दास्य भाव, सख्य भाव, वाल्सल्य भाव और माधुर्य भाव। तो माधुर्य भाव में पाँचों भाव हैं, सब भाव हैं। जब चाहो प्रियतम मान लो, जब चाहो बेटा मान लो, जब चाहो सखा मान लो, जब चाहो स्वामी मान लो। तो सब भाव आ गये इसी में। तो जैसे संसार में कोई विवाहिता स्त्री चोरी-चोरी दूसरे पुरुष से प्यार करती है या कोई कन्या अविवाहित किसी दूसरे लड़के से प्यार करती है, ऐसे ही तो गोपियों ने किया।
कुछ कन्याएँ गोपियाँ थीं, जिन्होंने कात्यायिनी व्रत किया था और जिनका चीर हरण किया था श्रीकृष्ण ने और कुछ विवाहिता स्त्रियाँ थीं जो चोरी-चोरी श्रीकृष्ण से प्यार करती थीं। तो बड़ा आश्चर्य हुआ परीक्षित को। ये तो व्यभिचार है। संसार में इसको बुरा कहते हैं लोग। और इससे गोपियाँ इतनी ऊँची कक्षा में चली गईं कि ब्रह्मा शंकर उनकी चरण-धूलि चाहते हैं।
क्वेमाः स्त्रियो वनचरीर्व्यभिचारदुष्टा: कृष्णे क्व चैष परमात्मनि रूढभावः।नन्वीश्वरोऽनुभजतोऽविदुषोऽपि साक्षाच्छ्यस्तनोत्यगदराज इवोपयुक्तः।।(भागवत 10-47-59)
यानी दुराचारिणी गोपियाँ जो पति से छुप करके अथवा बिना विवाह के ही श्यामसुन्दर से चोरी-चोरी प्रियतम के भाव से प्यार करती थीं, उनको इतना ऊँचा स्थान मिल गया, जो महालक्ष्मी को नहीं मिला, भगवान् की अर्धांगिनी को? तो उत्तर दिया कि देखो, अमृत को कोई जानकर पिये चाहे अनजाने में पिये अमर होगा। पारस लोहे से छू जाय। चाहे अनजाने में छू जाय, चाहे कोई छुआ दे, सोना बनेगा। तो ऐसे ही चाहे काम भाव से, चाहे क्रोध से, चाहे ईर्ष्या से, चाहे लोभ से, सही पर्सनैलिटी में मन का अटैचमेन्ट कर दें, बस, उस पर्सनैलिटी का फायदा मिल जायेगा उसको।
लौहशलाकानिवहै: स्पर्शाश्मनि भिद्यमानेऽपि।स्वर्णत्वमेति लौहं द्वेषादपि विद्विषां तथा प्राप्तिः॥(प्रबोध सुधाकर, शंकराचार्य)
लोहे की कुल्हाड़ी से पारस पत्थर पर मारो, वो कुल्हाड़ी सोने की हो जायेगी। तो राक्षस जो दुश्मनी करके भगवान् से प्यार कर लिये (कंस, शिशुपाल) वे भी गोलोक गये; क्योंकि मन का अटैचमेन्टहो गया, चाहे दुश्मनी से हो चाहे प्यार से हो। चाहे माँ मान कर हो, चाहे बाप मानकर हो, चाहे प्रियतम मानकर हो, चाहे सखा मानकर हो। मन का अटैचमेन्ट हो जाना, बस, इतना सा काम है उपासना का और कोई मनुष्य कमाल नहीं कर सकता। क्या करेगा? उसकी इन्द्रियाँ भी मायिक, मन भी मायिक, बुद्धि भी मायिक और भगवान् दिव्य हैं और दिव्य इन्द्रिय, दिव्य मन, दिव्य बुद्धि कहाँ से लायेगा मनुष्य? लेकिन जिससे प्यार करोगे, बस उसी की प्राप्ति हो जायेगी। भाव चाहे जो हो। चाहे प्यार से आग में बैठ जाओ सती होने के लिए, तो भी जला देगी आग और चाहे कोई हाथ-पैर बाँध कर फेंक दे, तो भी आग जला देगी। आग अपना काम करेगी।
तो शुद्ध पर्सनैलिटी में अशुद्ध पर्सनैलिटी मिल जायेगी तो शुद्ध हो जायेगी और शुद्ध तो शुद्ध रहेगी। गंगा जी में कितने नाले मिलते हैं, कितनी नदियाँ मिलती हैं, गंगोत्री से लेकर बंगाल की खाड़ी तक, लेकिन जो भी पानी मिलेगा वो गंगाजी बन जायेगा।
रवि पावक सुरसरि की नाईं।
ऐसे ही परीक्षित! गोपियाँ किसी भाव से भी गईं शरण में मन का प्यार किया, लेकिन भगवान् तो शुद्ध थे ना तो शुद्ध का फल मिल गया, गोपियाँ शुद्ध हो गयीं। तो चाहे जिस भाव से भगवान् से प्यार करो,
येन केन प्रकारेण मनः कृष्णः निवेशयेत्।(भक्तिरसामृतसिंधु)
जिस किसी प्रकार से भी करो;
कामं क्रोधं भयं स्नेहमैक्यं सौहृदमेव च।नित्यं हरौ विदधतो यान्ति तन्मयतां हि ते॥(भाग. 10-29-15)
बार-बार शुकदेव परमहंस उत्तर दे रहे हैं कि जब शिशुपाल वगैरह गोलोक चले गये, दुश्मनी करके प्यार करने वाले, तो गोपियाँ गोलोक गयीं इसमें क्या आश्चर्य है? और फिर भगवान् नहीं हैं हमारे पास, तब तो हमें भगवान् के माहात्म्य का ज्ञान आवश्यक है। भगवान् कौन हैं? हमारे क्या सम्बन्ध हैं उनसे? हमारे कौन लगते हैं? हम उनसे प्यार क्यों करें? ये तमाम नॉलेज चाहिये। लेकिन जब भगवान् अवतारकाल में होते हैं तो वहाँ माहात्म्य ज्ञान नहीं रहता। वहाँ प्यार करना होगा बस और सबसे ऊँचा प्यार माधुर्य भाव का, प्रियतम मान करके। अब तुम ये कहो कि हम पहले ही निष्काम हो जायेंगे, ये नहीं हो सकता। शुद्धि तो बार-बार धोने से होगी, साबुन से बार- बार धोने से। कोई कहे कि हम शुद्ध हो के तब भक्ति करेंगे, तो शुद्ध कैसे होओगे तुम। भक्ति ही तो शुद्ध करेगी तुमको। शुद्ध पर्सनेलिटी से जब प्यार करोगे तो उसका विरह पैदा होगा, तो उसी के ताप से तो अन्त:करण शुद्ध होगा, पिघलेगा।
तो शुद्ध से प्यार करना है, भाव कोई हो। देखो! एक बाप के चार लड़कियाँ हैं। वो चार लड़कों से ब्याह कर देता है। एक लड़की का पति अच्छी सर्विस नहीं पाया, तो चपरासी बन गया। एक क्लर्क बन गया, एक इंस्पेक्टर बन गया, एक कलेक्टर बन गया, आई. ए. एस. में आ गया। अब चार लड़कियाँ जिन-जिन से उनका ब्याह किया उन्हीं का स्वरूप उनको मिल गया। एक कलेक्टर की बीबी कहलाने लगी मेमसाहब, एक बबुआइन कहलाने लगी, एक चौकीदारिन कहलाने लगी।
तो उसी प्रकार ये मन है। तमोगुणी से प्यार किया, तमोगुणी का फल मिला। रजोगुणी से प्यार किया, रजोगुण का फल मिला। सत्त्वगुणी से प्यार किया सत्त्वगुण का फल मिला और तीन गुणों से परे शुद्ध भगवान् और महापुरुष से प्यार किया तो शुद्ध मायातीत दिव्यानन्द मिल गया। प्यार करने के तरीके में कोई अन्तर नहीं है। वही इन्द्रियाँ हैं, वही मन है, वही बुद्धि है जिससे आप लोग संसार में प्यार करते हैं। वैसा ही प्यार करना है उधर भी। लेकिन वो चूँकि शुद्ध है, इसलिये तुम शुद्ध हो जाओगे और अशुद्ध से प्यार करोगे, अशुद्ध हो जाओगे। गन्दे पानी से गन्दा कपड़ा धोओगे और गन्दा हो जायेगा। शुद्ध जल से गन्दा कपड़ा धोओगे, कपड़े का मैल छूटेगा, वह शुद्ध बनेगा। बड़ी सीधी-सी बात है। इसी बात को भगवान् अर्जुन से कहते हैं;
यान्ति देवव्रता देवान् पितॄन्यान्ति पितृव्रताः।भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्।।(गीता 9-25)
जो सत्त्वगुणी से प्यार करेगा (देवताओं से) वो स्वर्ग जायेगा। चार दिन बाद फिर आयेगा मृत्युलोक में; कुत्ते, बिल्ली, गधे की योनियों में। जो रजोगुणी से प्यार करेगा, वो संसार में मनुष्य वगैरह बनेगा, यहाँ दुःख भोगेगा। वो तमोगुणी, रजोगुणी, सत्त्वगुणी चाहे बाप हो, चाहे माँ हो, चाहे पति हो, चाहे बेटा हो, कोई हो; हमारे मन का अटैचमेन्ट जिससे होगा बस उसी का फल हमको मिल जायेगा, सीधा-सा गणित है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 212
साधक का प्रश्न : आप कहते हैं कि अंतःकरण शुद्धि के लिए आँसू आना आवश्यक है। वह तो कभी आते नहीं?जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: आँसू बहाने के लिए दीनता का भाव लाओ। अपने को पतित, निराश्रित महसूस करो, आँसू अवश्य आयेंगे। आँसू का न आना ही सिद्ध करता है कि हमारे अन्दर अभिमान छिपा है जो हमें पतित अनुभव नहीं करने देता।
बार-बार प्रयास करो, भगवान् के दिव्य दर्शन की परम व्याकुलता पैदा करो। जब भगवान् की याद में अंतःकरण पिघलेगा, आँसू बहाये जायेंगे, मन की कलुषता निकलेगी तो भगवान् उसमें सदा के लिए विराजमान हो जायेंगे।
आँसू आने पर भी अभिमान न आने पाये, नहीं तो वे भी छिन जायेंगे। जब तक श्यामा-श्याम न मिल जायँ तब तक सब आँसू बेकार ही हैं। जब असली आँसू आवेंगे तो भगवान् को उन्हें पोंछने के लिए स्वयं आना पड़ेगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - चाणक्य नीति या चाणक्य नीति शास्त्र, आचार्य चाणक्य द्वारा रचित एक नीति ग्रंथ है। नीतिपरक ग्रंथों की सूची में चाणक्य नीति का महत्वपूर्ण स्थान है। चाणक्य नीति में अपने जीवन को सुखमय और सफल बनाने के लिए कई उपयोगी सुझाव दिए गए हैं। चाणक्य द्वारा बताए गए ये सिद्धांत और नीतियां आज के जीवन में भी प्रासंगिक हैं और अगर इन्हें अपने जीवन में सही तरीके से उतारा जाए तो न सिर्फ जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं बल्कि आर्थिक समस्याओं का भी सामना नहीं करना पड़ता।पैसे खर्च करने को लेकर क्या कहते हैं चाणक्यचाणक्य नीति में एक श्लोक है-उपार्जितानां वित्तानां त्याग एव हि रक्षणाम।तडागोदरसंस्थानां परीस्त्राव इवाम्भसाम।।अर्थात कमाए हुए धन को खर्च करना, दान देना या भोग करना ही उसकी रक्षा है, क्योंकि तालाब के भीतर भरे हुए जल को निकालते रहने से ही उसकी पवित्रता और शुद्धता बनी रहती है। अगर पानी का उपयोग ना हो तो वो सड़ जाता है। पैसों के साथ भी ठीक वही बात है। इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य कहते हैं कि कमाए गए धन को बुरे वक्त के लिए थोड़ा बचाकर रखना अच्छी बात है, लेकिन उसका उपयोग करते रहना, जरूरतमंदों को दान करने से ही धन की रक्षा होती है।धन के उचित इस्तेमाल से ही होगी उसकी रक्षाजरुरत से ज्यादा बचत करना या कंजूस बने रहना उचित नहीं है। सही काम में और सही तरीके से धन को खर्च करके ही उसकी रक्षा की जा सकती है। तालाब या बर्तन में रखे पानी से धन की तुलना करते हुए चाणक्य कहते हैं कि अगर पानी को खराब होने से बचाना है तो उसका उपयोग करना होगा वरना एक ही जगह पर जमा पानी सड़ जाएगा खराब हो जाएगा। यही बात पैसों के साथ भी लागू होती है।
- आपने इस बात पर जरूर गौर किया होगा कि जब भी हम मंदिर जाते हैं तो ईश्वर का दर्शन करने के बाद मंदिर के चारों ओर प्रदक्षिणा करते हैं। प्रदक्षिणा का अर्थ है परिक्रमा करना। सिर्फ मंदिर के ही नहीं बल्कि कई लोग पवित्र वृक्ष के चारों ओर भी परिक्रमा करते हैं, कई लोग यज्ञशाला की परिक्रमा करते हैं और मंदिरों के साथ ही गुरुद्वारे में भी कई लोग पवित्र ग्रंथ के चारों ओर चक्कर लगाते हैं और परिक्रमा करते हैं। इसके अलावा सूर्य देव को जल अर्पित करने के बाद भी कई लोग परिक्रमा करते हैं। जानिए परिक्रमा करने के फायदे...परिक्रमा से प्राप्त होती है सकारात्मक ऊर्जाधर्म शास्त्रों और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब कोई व्यक्ति किसी मंदिर, भगवान की मूर्ति या शक्ति स्थान के चारों ओर चक्कर लगाकर परिक्रमा करता है तो इससे सकारात्मक ऊर्जा व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करती है। इससे न सिर्फ उस व्यक्ति के जीवन में शुभता आती है बल्कि वह सकारात्मक ऊर्जा उसके साथ ही उस व्यक्ति के घर में भी प्रवेश करती है जिससे घर में सुख-शांति भी आती है। इसके अलावा पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब गणेश जी और कार्तिकेय के बीच संसार का चक्कर लगाने की प्रतिस्पर्धा हुई तब गणेश जी ने शिवजी और माता पार्वती की 3 बार परिक्रमा की थी। इसी वजह से आम श्रद्धालु भी मंदिर में पूजा के बाद सृष्टि के निर्माता की परिक्रमा करते हैं। साथ ही मंदिर या किसी शक्ति स्थान की परिक्रमा करने से मन शांत होता है और जीवन में खुशियां आती हैं।इस दिशा में परिक्रमा लगानी चाहिएअगर आप मंदिर या किसी शक्ति स्थान की सकारात्मक ऊर्जा को बेहतर तरीके से ग्रहण करना चाहते हैं तो आपको घड़ी की सुई की दिशा में नंगे पांव परिक्रमा लगानी चाहिए। अगर परिक्रमा करते वक्त आपके कपड़े गीले हों तो इससे आपको और अधिक लाभ हो सकता है। कई मंदिरों में आपने लोगों को जलकुंड में स्नान करने के बाद गीले कपड़ों में ही मंदिर की परिक्रमा करते देखा होगा। इसका कारण ये है कि ऐसा करने से उस पवित्र स्थान की ऊर्जा को अच्छे तरीके से ग्रहण किया जा सकता है।कितनी बार करनी चाहिए परिक्रमा- देवी मां के मंदिर की एक परिक्रमा करनी चाहिए।- भगवान विष्णु और उनके सभी अवतारों की 4 परिक्रमा करनी चाहिए।- गणेश जी और हनुमान जी की 3 परिक्रमा करनी चाहिए।- शिवजी की आधी परिक्रमा करनी चाहिए क्योंकि शिवजी पर किए गए अभिषेक की धारा को लांघना शुभ नहीं होता- पीपल के पेड़ की 11 या 21 परिक्रमा करनी चाहिए।