- Home
- धर्म-अध्यात्म
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 204
साधक का प्रश्न ::: हम श्री राम की उपासना करते हैं। श्री कृष्ण की उपासना से इष्ट तो नहीं बदल जाएंगे?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: कुछ लोग कहते हैं कि हम राम के उपासक हैं। श्रीकृष्ण की उपासना तो करना चाहते हैं, इष्ट बदल जाने का भय है। बड़े ही खेद की बात है कि वे लोग इतना भी नहीं समझते कि एक ही पति को कई पोशाक में देखना, स्त्री के लिये पाप या व्यभिचार तो नहीं सिद्ध होता।
देखो, भगवान शंकर से बड़ा कौन राम-भक्त होगा, जो कृष्णावतार में अवतार होते ही नन्द जी के द्वार पर श्रीकृष्ण के दर्शनार्थ आ धमके, तथा महारास में भी पहुँच गये। इतना ही नहीं, रामावतार के समस्त परिकर कृष्णावतार में आये थे। उदाहरणार्थ; लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, क्रमशः बलराम, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध बनकर तथा सीताजी राधा बन कर, हनुमान जी युद्ध के समय पताका में ही रहकर, जाम्बवंत ने श्रीकृष्ण से घोर युद्ध कर, जनकपुर की स्त्रियाँ गोपी बनकर एवं शूर्पणखा कुब्जा बन कर, रावण भी शिशुपाल बनकर, इत्यादि समस्त रामावतार के परिकर कृष्णावतार में अवतरित हुये थे।
किन्तु यह बात अवश्य है कि कृष्णावतार की प्रेम-लीलायें विशेष मधुर हैं, जिसे रामावतार में राम से ही लोगों ने मांगी थी, अतएव, वह कृष्ण प्रेम-लीला सिद्धांततः राम-लीला ही है।
फिर भी साधक की स्वेच्छा पर निर्भर है। राम की त्रेतावतार की, अथवा राम की ही द्वापरावतार की, जिस अवतार की भी लीला, साधक को प्रिय हो, उसी का अवलंबन कर ले। उसके मस्तिष्क का कीड़ा (इष्ट बदलने वाल कीड़ा) आगे चल कर अपने आप झड़ जायगा। जिसको गहरी प्रेम-मदिरा छाननी हो, उसे कृष्णावतार की ही रामलीला का अवलंबन ग्रहण करना होगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - सोते वक्त सपने तो हम सभी देखते हैं लेकिन कई बार हमें सुबह उठने के बाद भी अपने सपने याद रहते हैं तो कई बार हम उन्हें भूल चुके होते हैं. कुछ सपने बेहद अजीब होते हैं जिनका हमें लगता है कि हमारे जीवन से कोई लेना देना नहीं है. कुछ सपने अच्छे होते हैं तो वहीं कुछ सपने बुरे जो हमें नींद में भी डरा देते हैं. स्वप्न शास्त्र की मानें तो हर सपने का एक मतलब होता है और वे आने वाले समय में शुभ और अशुभ घटनाओं का संकेत भी देते हैं. आज हम आपको ऐसे सपनों के बारे में बता रहे हैं जिनसे आपको धन लाभ हो सकता है. जी हां, सपने में कुछ विशेष चीजों के दिखने का मतलब है कि माता लक्ष्मी आप पर मेहरबान होने वाली हैं और आपका भाग्य खुलने वाला है.सपने में पैसा दिखनास्वप्न शास्त्र के साथ ही ज्योतिष शास्त्र में भी सपने में पैसा दिखना बेहद शुभ माना जाता है. अगर कोई व्यक्ति सपने में पैसा देखता है, दूसरों से पैसा लेते हुए दिखता है, सपने में कागज के नोट देखता है या फिर सिक्के देखता है तो इसका मतलब है कि आने वाले समय में उसे निश्चित तौर पर धन लाभ होने वाला है और बिना ज्यादा मेहनत किए ही उसे बहुत सारा पैसा मिलने वाला है.सपने में फूल का दिखनास्वप्न शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र की मानें तो अगर किसी व्यक्ति को सपने में सफेद या लाल रंग के कमल का फूल दिखता है तो इसका मतलब है कि उसे आने वाले दिनों में धन लाभ होने वाला है. इसके अलावा चमेली, गुलमोहर, केतकी या केसर का फूल भी अगर सपने में दिखाई तो यह इस बात का संकेत है कि भविष्य में व्यक्ति को धन-संपत्ति की प्राप्ति होने वाली है.सपने में पशुओं का दिखनाअगर किसी व्यक्ति को सपने में सफेद गाय, सफेद सांप, सफेद घोड़ा, हाथी, कस्तूरी मृग, बैल या बिच्छू आदि दिखे तो इसे भी धन आगमन का संकेत माना जाता है. सपने में इन पशुओं के दिखने का मतलब है कि भाग्य आपका पूरा साथ देने वाला है और आपको अचानक से किसी माध्यम से खूब सारा पैसा मिलने वाला है.सपने में मिट्टी के बर्तन दिखनासपनों का अर्थ समझाने वाले स्वप्न शास्त्रियों की मानें तो अगर किसी व्यक्ति को मिट्टी का बर्तन, कलश, पानी से भरा घड़ा या कोई और खाली बर्तन नजर आए तो इसे बेहद शुभ और सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. ऐसा सपना ये संकेत देता है कि उस व्यक्ति को शीघ्र ही अपार धन संपत्ति मिलने वाली है और भूमि का लाभ होने वाला है.सपने में फलों को दिखनाअगर किसी व्यक्ति को सपने में फलों से लदा हुआ कोई पेड़ दिखे, आम का बगीचा दिखे, आंवला, अनार, सेब, नारियल आदि फल दिखें या फिर हाथों से फल टपकता हुआ दिखे तो यह भी धन प्राप्ति का संकेत हो सकता है. सपने में फलों को देखने का मतलब है कि आप जल्द ही अमीर बनने वाले हैं और अचानक कहीं से धन लाभ हो सकता है.
- आपने इस बात पर जरूर गौर किया होगा कि जब भी हम मंदिर जाते हैं तो ईश्वर का दर्शन करने के बाद मंदिर के चारों ओर प्रदक्षिणा करते हैं. प्रदक्षिणा का अर्थ है परिक्रमा करना. सिर्फ मंदिर के ही नहीं बल्कि कई लोग पवित्र वृक्ष के चारों ओर भी परिक्रमा करते हैं, कई लोग यज्ञशाला की परिक्रमा करते हैं और मंदिरों के साथ ही गुरुद्वारे में भी कई लोग पवित्र ग्रंथ के चारों ओर चक्कर लगाते हैं और परिक्रमा करते हैं. इसके अलावा सूर्य देव को जल अर्पित करने के बाद भी कई लोग परिक्रमा करते हैं. आपने भी मंदिर में कभी न कभी ऐसा जरूर किया होगा लेकिन शायद ऐसा करने के पीछे वजह क्या है, इस पर गौर नहीं किया होगा.परिक्रमा से प्राप्त होती है सकारात्मक ऊर्जा-------धर्म शास्त्रों और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब कोई व्यक्ति किसी मंदिर, भगवान की मूर्ति या शक्ति स्थान के चारों ओर चक्कर लगाकर परिक्रमा करता है तो इससे सकारात्मक ऊर्जा व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करती है. इससे न सिर्फ उस व्यक्ति के जीवन में शुभता आती है बल्कि वह सकारात्मक ऊर्जा उसके साथ ही उस व्यक्ति के घर में भी प्रवेश करती है जिससे घर में सुख-शांति आती है. इसके अलावा पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब गणेश जी और कार्तिकेय के बीच संसार का चक्कर लगाने की प्रतिस्पर्धा हुई तब गणेश जी ने शिवजी और माता पार्वती की 3 बार परिक्रमा की थी. इसी वजह से आम श्रद्धालु भी मंदिर में पूजा के बाद सृष्टि के निर्माता की परिक्रमा करते हैं. साथ ही मंदिर या किसी शक्ति स्थान की परिक्रमा करने से मन शांत होता है और जीवन में खुशियां आती हैं.इस दिशा में परिक्रमा लगानी चाहिए------अगर आप मंदिर या किसी शक्ति स्थान की सकारात्मक ऊर्जा को बेहतर तरीके से ग्रहण करना चाहते हैं तो आपको घड़ी की सुई की दिशा में (Clockwise) नंगे पांव परिक्रमा लगानी चाहिए. अगर परिक्रमा करते वक्त आपके कपड़े गीले हों तो इससे आपको और अधिक लाभ हो सकता है. कई मंदिरों में आपने लोगों को जलकुंड में स्नान करने के बाद गीले कपड़ों में ही मंदिर की परिक्रमा करते देखा होगा. इसका कारण ये है कि ऐसा करने से उस पवित्र स्थान की ऊर्जा को अच्छे तरीके से ग्रहण किया जा सकता है.कितनी बार करनी चाहिए परिक्रमा------ देवी मां के मंदिर की 1 परिक्रमा करनी चाहिए- भगवान विष्णु और उनके सभी अवतारों की 4 परिक्रमा करनी चाहिए- गणेश जी और हनुमान जी की 3 परिक्रमा करनी चाहिए- शिवजी की आधी परिक्रमा करनी चाहिए क्योंकि शिवजी पर किए गए अभिषेक की धारा को लाघंना शुभ नहीं होता- पीपल के पेड़ की 11 या 21 परिक्रमा करनी चाहिए
- वास्तु शास्त्र में बहुत सारी ऐसी चीजों के बारें में बताया गया है जिनका अगर सही प्रकार से प्रयोग किया जाए तो आप कई समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं। दर्पण और घंटी ये तीन ऐसी चीजें हैं जिनका प्रयोग वास्तु के अनुसार करके आप न केवल वास्तु दोष बल्कि कई समस्याओं से छुटकारा पाकर अपने जीवन को खुशहाल और संपन्न बना सकते हैं। तो चलिए जानते हैं दर्पण और घंटी के अनोखे प्रयोग जो बदल सकते हैं आपकी किस्मत...वास्तु दोष दूर करने के लिए दर्पण का प्रयोगदर्पण केवल चेहरा देखने के काम ही नहीं आता है, वास्तु के हिसाब से इसका प्रयोग करके आप सुख-समृद्धि पा सकते हैं। यदि आपके घर का उत्तर-पूर्व कोना कटा हुआ है जिसके कारण वास्तु दोष उत्पन्न हो रहा है तो उस दिशा में दर्पण को इस प्रकार से लगाएं कि उसमें उस कोने का प्रतिबिंब इस तरह से बने की दिशा बढ़ती हुई नजर आए। इससे उस दिशा का वास्तु दोष दूर हो जाता है।वहीं मुख्य द्वार के सामने यदि कोई खंभा, पेड़, किसी मकान का कोना, कूड़, खंडहर हो तो आपको धन संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसा होने से घर में तरक्की और धन के आगमन में बाधा आती हैं इस समस्या को दूर करने के लिए मुख्य द्वार की चौखट के ऊपर एक गोल दर्पण लगा दें। इससे घर के अंदर प्रवेश करने वाली नकारात्मक ऊर्जा दर्पण से टकराकर वापस चली जाती है। ऐसा करने से घर में धन की समस्याएं दूर होती हैं।घंटी का ऐसे करें प्रयोगघर में पूजा करते समय और मंदिर में घंटी अवश्य बजाई जाती है। जिससे वातावरण में चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होने लगता है। प्रतिदिन प्रात:काल उठकर स्नान करने के पश्चात पूजा स्थान के साथ पूरे घर और मुख्य द्वार पर घंटी बजानी चाहिए। इससे आपके घर से सभी नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं।यदि आपके घर में तीन दरवाजे एक ही सीध में बने हो तो वास्तु दोष उत्पन्न होता है। इसे दूर करने के लिए दरवाजे में एक छोटी सी घंटी लटका दें। इसी तरह से यदि आपका बच्चा पढ़ाई में कमजोर है तो जब भी आपका बच्चा पढ़ाई करने के लिए बैठे तो उसकी टेबल के पास कुछ देर तक घंटी से ध्वनि करें। इससे उस स्थान की नकारात्मक ऊर्जा दूर होगी और आपके बच्चे का मन पढ़ाई के प्रति एकाग्र होगा।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 203
साधक का प्रश्न ::: क्या अजामिल को अपने बेटे का नाम नारायण कहकर मरने से भगवत्प्राप्ति हुई ?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: कोई जीव भगवान का ध्यान करते हुये या नाम लेते हुये मरता है तो उसे भगवत्प्राप्ति होती है। उसमें ध्यान मुख्य है।
(1) उपरोक्त सिद्धान्त के अनुसार अजामिल को भगवत्प्राप्तिनहीं हो सकती क्योंकि उसने अपने बेटे का नाम लिया व बेटे का ही स्मरण किया।
(2) कोई भी जीव जिसने भगवत्प्राप्ति नहीं की है वो मरने के अंतिम समय में भगवान का नाम नहीं ले सकता है क्योंकि मरने में इतना अधिक कष्ट होता है कि वह नाम आदि ले ही नहीं सकता है। उदाहरणार्थ जब एक व्यक्ति को लाठी मारी जाती है, तब वह पहली लाठी बर्दाश्त कर लेता है। दूसरी लाठी लगने पर उसे चक्कर आने लगता है तथा तीसरी लाठी लगने पर वह बेहोश हो जाता है। मतलब जैसे-जैसे उसका कष्ट बढ़ता जाता है वह कष्ट सहने की सीमा समाप्त होकर बेहोश हो जाता है, यानी बेहोश होने से पूर्व तक जीव कष्ट सहन करने की शक्ति रखता है। अब जब कष्ट नहीं सह सका तब वह बेहोश हो जाता है, मरता नहीं। लेकिन जब पाँच-छः लाठी पड़ी तब वह सातवीं लाठी में मर गया। अर्थात यह सिद्ध हुआ कि मृत्यु के समय बेहोशी में ही नहीं बोल सकता तो मृत्यु समय किस प्रकार से भगवान या संसार का नाम उच्चारण कर सकता है। इसलिए गोस्वामी तुलसीदास ने बालि के प्रकरण में बालि के मुख से कहलाया है;
कोटि कोटि मुनि जतन कराहीं।अंत राम कहि आवत नाहीं॥यहाँ तुलसीदास जी ने मुनि के लिए लिखा है जो अपनी मन-बुद्धि पर पूर्ण कंट्रोल कर चुके होते हैं। सभी प्रकार की सिद्धियों का अधिकार होता है और माया उन पर हावी नहीं हो पाती, परन्तु भगवत्प्राप्ति नहीं हुई होती है। ऐसे लोग भी करोड़ों प्रयत्न करके भी अंत समय में भगवान का नाम नहीं ले पाते, तब कोई साधारण जीव किस प्रकार से अंत समय में भगवन का नाम ले सकता है?
हाँ केवल मृत्यु से पहले जिसको भगवत्प्राप्ति हो जाती है, वह जीव कष्ट का अनुभव नहीं करता एवं वह अपने शरीर को इच्छानुसार छोड़ता है। इसलिए वह भगवान का नाम अंत समय में ले सकता है। अजामिल को पूर्व में भगवत्प्राप्ति नहीं हुई थी। अतः वह अंत समय में भगवान का नाम तो क्या अपने बेटे का नाम भी नहीं ले सका होगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
वास्तु शास्त्र के अनुसार हर चीज का एक निर्धारित स्थान तय है। यदि इस बात का ध्यान न रखा जाए तो घर का वातावरण प्रभावित होता है. जानकारी के अभाव में हम समझ ही नहीं पाते हैं कि आखिर समस्या कहां से आ रही है. इसलिए इन बातों को ध्यान में रखना बहुत ही जरूरी है.
घर में शू रैक कभी भी मुख्य दरवाजे के पास नहीं होनी चाहिए. इससे नकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है. इतना ही नहीं इससे धन की हानि भी होती है. धन संबंधी परेशनी घर में बनी ही रहती है. धन का व्यय होता है. यानि चाहकर भी धन की बचत नहीं होती है. वास्तु शास्त्र के अनुसार शू रैक घर में ऐसे स्थान पर होनी चाहिए जहां पर आने जाने वालों की नजर न पड़े.
शू रैक की दिशा के बारे में वास्तुशास्त्र में बताया गया है. इसके अनुसार आप भी घर में शू रैक का उचित स्थान निर्धारित कर सकते हैं. वास्तु शास्त्र के मुताबिक दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम, उत्तर-पश्चिम या फिर पश्चिम दिशा जूता-चप्पलों के लिए अच्छी मानी गई है. शू रैक को हमेशा कवर से ढक कर रखें. शू रैक खुली होने से भी गलत परिणाम सामने आते हैं. इसलिए इसे ढक कर रखने की सलाह दी जाती है.
जॉब या इंटरव्यू के लिए बाहर जा रहे हैं तो कोशिश करें कि जूता नया हो. फटा जूता पहन कर जाने से गलत प्रभाव पड़ता है. इसके साथ ही ऑफिस में काले रंग के जूते पहने की भी जानकार सलाह देते हैं. ऐसा माना जाता है कि भूरे रंग के जूते पहनने से कार्यों को पूर्ण करने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है. इसके साथ ही स्वयं के जूतों और चप्पलों को इधर-उधर नहीं फेंकना चाहिए, ऐसा करने छिपे हुए शत्रु हावी होने की कोशिश करते हैं। - श्वेत हाथियों के द्वारा स्वर्ण कलश से स्नान करती हूई कमलासन पर विराजमान देवी महालक्ष्मी के पूजन से वैभव और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। यदि घर में हमेशा दरिद्रता बनी रहती है और किस्मत साथ नहीं दे रही है तो अपने घर या ऑफिस में श्री महालक्ष्मी यंत्र की स्थापना करनी चाहिए। इस यंत्र को सर्व सिद्धिदाता, धनदाता या श्रीदाता कहा जाता है। मान्यता है कि इस यंत्र को स्थापित करने से देवी कमला की प्राप्ति होती है और जीवनभर के सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती हैं।वहीं इस यंत्र से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी है, जिसके अनुसार एक बार लक्ष्मी जी पृथ्वी से बैकुंठ धाम चली गईं, इससे पृथ्वी पर संकट आ गया। तब महर्षि वशिष्ठ ने महालक्ष्मी को धरती पर वापस लाने के लिए और प्राणियों के कल्याण के लिए श्री महालक्ष्मी यंत्र को स्थापित किया और उसकी साधना की। इस यंत्र की साधना से लक्ष्मी जी पृथ्वी पर प्रकट हो गईं।महालक्ष्मी यंत्र के लाभ-धन संबंधी सारी समस्याओं से निजात पाने के लिए आपको श्री महालक्ष्मी यंत्र को स्थापित करना चाहिए।-यदि आप पर कर्ज है और आप उसे चुका नहीं पा रहे हैं तो आपको अपने कार्यस्थल पर इस यंत्र को प्रतिष्ठित करना चाहिए।-धन के साथ -साथ स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से निजात पाने के लिए भी आप इस यंत्र को रोगी के कमरे में स्थापित कर सकते है। इससे मरीज के स्वास्थ्य में जल्द ही सुधार होने लगता हैं।-इस यंत्र को स्थापित करने से यदि आपके व्यापार में घाटा हो रहा है तो खत्म होने के आसार हैं।-श्री महालक्ष्मी यंत्र को प्रतिष्ठित करने से लक्ष्मी मां का आशीर्वाद प्राप्त होता है और वह स्थाईरूप से निवास करने लगती हैं।ध्यान रखने योग्य बातेंश्री महालक्ष्मी यंत्र को दीपावली, धनतेरस, रविपुष्य, अभिजीत मुहूर्त या किसी शुभ मुहूर्त में स्थापित करना चाहिए। इस यंत्र की आकृति विचित्र होती हैं और इस यंत्र में जो भी अंक या आकृतियां बनी होती हैं उनका संबंध किसी न किसी देवी-देवता से जरूर होता है। इस यंत्र को श्रीयंत्र के पास रखने से सभी कार्य सफलतापूर्वक पूर्ण हो जाते हैं। इस यंत्र को खरीदते वक्त ध्यान रखना चाहिए कि यह विधिवत बनाया गया हो और प्राण प्रतिष्ठित हो। प्राण प्रतिष्ठा करवाए बिना इस यंत्र का विशेष लाभ प्राप्त नहीं होता है। श्री महालक्ष्मी यंत्र को खरीदने के पश्चात किसी अनुभवी ज्योतिषी द्वारा अभिमंत्रित करके उसे घर की सही दिशा में स्थापित करना चाहिए। अभ्यस्त और सक्रिय महालक्ष्मी यंत्र को शुक्रवार के दिन स्थापित करना चाहिए।स्थापना विधिश्री महालक्ष्मी यंत्र को स्थापित करने के लिए कार्तिक अमावस्य़ा का दिन शुभ माना जाता है। यंत्र स्थापना से पूर्व सबसे पहले प्रातकाल उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर इस यंत्र को पूजन स्थल पर रखकर इस यंत्र के आगे दीपक जलाएं और इस पर फूल अर्पित करें। तत्पश्चात इस यंत्र को गौमूत्र, गंगाजल और कच्चे दूध से शुद्ध करें और 11 या 21 बार "ऊं ह्रीं ह्रीं श्रीं ह्रीं ह्रीं फट्।।" बीज मंत्र का जाप करें। उसके बाद इस यंत्र को स्थापित करने के बाद इसे नियमित रूप से धोकर दीप-धूप जलाकर ऊं महालक्ष्मयै नम: मंत्र का 11 बार जाप करें और लक्ष्मी माता से प्रार्थना करे वह आप पर कृपा बरसाती रहें। इस यंत्र को स्थापित करने के पश्चात इसे नियमित रूप से धोकर इसकी पूजा करें ताकि इसका प्रभाव कम ना हो। यदि आप इस यंत्र को बटुए या गले में धारण करते हैं तो स्नानादि के बाद अपने हाथ में यंत्र को लेकर उपरोक्त विधिपूर्वक इसका पूजन करें। यदि आप इस यंत्र से अत्यधिक फल प्राप्त करना चाहते हैं तो महालक्ष्मी यंत्र की रचना चांदी, सोने और तांबे के पत्र पर करवा सकते हैं।श्री महालत्र्मी यंत्र का बीज मंत्र - ओम श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ओम श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 202
साधक का प्रश्न ::: आप कहते हैं, भगवद्चिंतन करो। जब तक आपकी कृपा न हो तो चिंतन कैसे हो ? हम तो बड़ी कोशिश करते हैं लेकिन होता नहीं।
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: अगर भगवान या महापुरुष कृपा कर दें कि सबका भगवद्चिंतन होने लगे, तो ये संसार ही क्यों रहता!! किसी को कुछ करने के लिए वेद-पुराण आदेश क्यों देते कि तुम ऐसा करो, ऐसा करो, ऐसा न करो। भगवान ही सोच लेते, कृपा कर देते तो सब जीवों का कल्याणा हो जाता। और संत भी अनंत हुये हैं - तुलसी, सूर, मीरा, कबीर, नानक, तुकाराम; ये लोग कृपा क्यों नहीं कर दिये कि हम सब लोगों का कल्याण हो जाता!!
उनकी कृपा यही है कि हमको सही मार्ग बता दें। उसके बाद उस पर चलना, ये कृपा हम लोगों को करनी पड़ेगी। ये कृपा भगवान और महापुरुष नहीं करेंगे। उनके पास और है क्या, कृपा के सिवा। वो तो कृपा ही करते है, उनकी कृपा को रियलाइज़ करना ये हमारा काम है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
वास्तु के अनुसार घर में चीजों का सही प्रकार से व्यवस्थित रूप से रखा होना बहुत आवश्यक माना जाता है। घर को व्यवस्थित रखने से देखने में तो अच्छा लगता ही है, इसके अलावा घर में सकारात्मकता भी बनी रहती है। वास्तु के अनुसार आवश्यकता से अधिक फालतू और खराब सामान घर में नकारात्मकता को बढ़ाता है। वास्तु में ऐसी ही कुछ चीजों के बारे में बताया गया है, जिन्हें घर में रखना बहुत ही अशुभ माना जाता है। इन चीजों के आपके घर में होने से परिवार के सदस्यों की तरक्की और समृद्धि में बाधा आती है। तो चलिए जानते हैं कि वास्तु के अनुसार किन चीजों को घर में नहीं रखना चाहिए।
बंद पड़ी हुई घडिय़ां-
घड़ी हमें समय बताती है और निरंतर चलती रहती है। चूंकि घड़ी समय की सूचक है इसलिए वास्तु में घड़ी को तरक्की और उन्नति का सूचक माना गया है। जहां सही घड़ी आपको जीवन में आगे ले जाती हैं। तो वहीं घर में बंद घडिय़ां आपकी तरक्की में बाधा बनती हैं। यही कारण है कि वास्तु में बंद पड़ी घडिय़ों को घर में रखने को मना किया जाता है। माना जाता है कि घर में बंद पड़ी हुई घडिय़ों के कारण आपका भाग्य भी खराब होने लगता है।बंद पड़े ताले-ज्यादातर लोग घर में ताले को बंद करके लटका देते हैं या फिर खराब हो जाने के बाद भी घर में ही रखे रहने देते हैं, लेकिन यह सही नहीं होता है। घर में बदं, खराब या जंग लगे हुआ ताले कभी नहीं रखने चाहिए। ये आपकी तरक्की में तो रूकावट लाते ही हैं साथ ही विवाह होने में भी दिक्कते आती हैं।आवश्यकता से अधिक जूते-चप्पल-जूते-चप्पल केवल आपके पैरों को धूप गर्मी और सर्दी से सुरक्षा नहीं करते हैं ये आपके जीवन में संघर्ष में भी साथ होते हैं। वास्तु के अनुसार घर में आवश्यकता से अधिक जूते-चप्पल या खराब पड़े हुए जूते-चप्पल आपके घर में नकारात्मकता को बढ़ाते हैं। खराब या फटे हुए जूते-चप्पलों के कारण आपके जीवन में संघर्ष बढ़ता है। यदि आपके घर में आवश्यकता से अधिक जूते हैं तो खराब जूतों को फेंक दें और उपयोग लायक जूतों को जरूरतमंदों को बांट दें। इस कार्य को करने के लिए शनिवार का दिन उत्तम रहता है।फटे-पुराने कपड़ेकपड़े किसी भी व्यक्ति की तरक्की में अहम भूमिका रखते हैं। कपड़ों का संबंध भाग्य से माना जाता है। घर में खराब फटे-पुराने कपड़े रखना सही नहीं रहता है। ये आपके दुर्भाग्य को बढ़ाते हैं। यदि घर में पुराने कपड़े हैं तो उन्हें बांट दें और खराब कपड़ों को किसी कार्य में उपयोग में ले लें तो ही बेहतर रहता है।देवी-देवताओं की पुरानी खंडित तस्वीरें और प्रतिमाएंघर या घर के मंदिर में ज्यादा पुरानी खंडित या कटी-फटी तस्वीरें नहीं रखनी चाहिए। इससे पूजा करते समय आपका ध्यान भटकता है, जिससे आप एकाग्र होकर भगवान की पूजा नहीं कर पाते हैं। खंडित मूर्तियां भी आपके घर में नकारात्मकता को बढ़ाती हैं। इससे आपकी समृद्धि में रूकावट आती है। समय-समय पर घर में रखी प्रतिमाओं को बदलते रहना चाहिए। पुरानी प्रतिमाओं को मिट्टी में दबा देनी चाहिए या फिर बहते जल में प्रवाहित कर देना चाहिए। यदि मूर्ति या तस्वीरों को बनाने में किसी प्रकार के रसायन का प्रयोग किया गया हो तो उसे नदी में न बहाएं। - हरिद्वार (उत्तराखंड) । हरिद्वार में कुंभ मेला अब 28 दिन का होगा। साधु संतों से बातचीत के बाद प्रदेश सरकार ने यह निर्णय लिया है। जल्द ही कुंभ मेले की अधिसूचना जारी हो जाएगी। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने यह जानकारी मीडिया को दी है।गुरुवार को मीडिया से बातचीत में मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने कुंभ मेले के संबंध में स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर (एसओपी) यानी मानक प्रचालन प्रक्रिया जारी की थी। उच्च न्यायालय ने भी राज्य सरकार को कोविड-19 महामारी के संबंध में आदेश दिए थे। राज्य सरकार को कुंभ की अवधि सीमित करने के लिए कहा गया था। इस संबंध में साधु संतों से बातचीत करने के बाद यह निर्णय लिया गया है कि कुंभ एक अप्रैल से 28 अप्रैल तक होगा। इसकी अधिसूचना जारी हो जाएगी।इस साल 12 नहीं 11 साल में ही मनाया जा रहा कुंभहरिद्वार में इस बार कुंभ वैसे भी 11 साल के बाद हो रहा है। वैसे कुंभ 12 साल बाद होता है। अब से पहले हरिद्वार में आयोजित कुंभ चार माह से अधिक समय का होता रहा है।कुंभ 2021 के मुख्य स्नान11 मार्च पहला शाही स्नान12 अप्रैल सोमवती अमावस्या14 अप्रैल मेष संक्रांति27 अप्रैल वैशाख पूर्णिमा- तीनों बैरागी अणियों दिगंबर, निर्मोही और निर्वाणी के हजारों बाबाओं, खालसों का आगमन 25 मार्च से शुरू हो जाएगा।बच्चों और महिलाओं के लिए खुलेगा सहायता केंद्रहरिद्वार में महाकुंभ के दौरान बच्चों और महिलाओं की सहायता के लिए सहायता केंद्र बनाए जाएंगे। महिला कल्याण विभाग के जिला प्रोबेशन अधिकारी ने बृहस्पतिवार को सीसीआर भवन में मेलाधिकारी दीपक रावत से मुलाकात की। सहायता केंद्र के लिए स्थान उपलब्ध कराने की मांग की।अधिकारियों ने बताया कि सहायता केंद्र की प्रमुख अवधारणा चाइल्ड फ्रेंडली, जीरो चाइल्ड मिसिंग, जीरो चाइल्ड लेबर, महिला फ्रेंडली है। केंद्र में छह वर्ष तक के बच्चों और महिलाओं के लिए विशेष व्यवस्था रहेगी। यदि कोई महिला गंगा में स्नान करना चाहती है तो अपने छह साल तक के बच्चे को केंद्र में रख सकती है। उसके बच्चे की पूरी देखरेख एवं पौष्टिक भोजन की व्यवस्था केंद्र की होगी। केंद्र में कन्नड़, मलयालम, गुजराती समेत कई भाषाओं को जानने वाले स्वयंसेवक होंगे।यह लोग बच्चों और महिलाओं से उनकी ही भाषा में बातचीत कर उनकी समस्याओं का समाधान भी करेंगे। मेलाधिकारी ने केंद्र स्थापित करने के लिए स्थान और फर्नीचर समेत अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया। इस दौरान अपर मेलाधिकारी रामजी शरण शर्मा, महिला कल्याण विभाग के जिला प्रोबेशन अधिकारी अविनाश सिंह भदौरिया, महिला सशक्तिकरण एवं बाल विकास विभाग की जिला कार्यक्रम समन्वयक दुर्गा चमोली आदि मौजूद रहे।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 201
(साधक अपनी साधना की उन्नति के लिये जो प्रयत्न करता है, उसे कुसंग की अग्नि भस्म कर देती है. समस्त कुसंगों में परदोष-दर्शन भयानक है, क्यों और साधक क्या करे, जानिये जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीवचनों से...)
परदोष-दर्शन भी घोर कुसंग है, क्योंकि परदोष-दर्शन से दो हानि है। एक तो यह कि परदोष-दर्शनकाल ही में स्वाभाविक-रूप से स्वाभिमान-वृद्धि होती है, जो कि साधक के लिये तत्क्षण ही पतन का कारण बन जाती है। दूसरे यह कि परदोष-चिन्तन करते हुये शनैःशनैः बुद्धि भी दोषमय हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप उन्हीं सदोष विषयों में ही प्रवृत्ति होने लगती है, अतएव सदोष कार्य होने लगता है।
फिर जब संसारमात्र ही सदोष है, तो हम कहाँ तक दोषचिन्तन करेंगे? आश्चर्य तो यह है कि मूर्ख, मूर्ख को, मूर्ख क्यों कहता है? वह भी तो स्वयं मूर्ख है। यदि यह कहो कि क्या करें, दोष-दर्शन का स्वभाव सा बन गया है, तो हमें कोई आपत्ति नहीं, तुम दोष देख सकते हो, किन्तु दूसरों के नहीं, अपने ही दोष क्या कम हैं? अपने दोषों को देखने में तुम्हारा स्वभाव भी न नष्ट होगा, तथा साथ लाभ भी होगा, वह महान् लाभ तुलसी के शब्दों में;
जाने ते छीजहिं कछु पापी..
अर्थात् अपने दोष जान लेने पर कुछ न कुछ बचाव हो जाता है, क्योंकि फिर वह जीव उससे बचने का कुछ न कुछ अवश्य प्रयत्न करता है। मेरी राय में तो परदोष-चिन्तन करना ही स्वयं के सदोष होने का पक्का प्रमाण है, अन्यथा भला उसको इन बातों से क्या अभिप्राय है?
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - गुप्त नवरात्रि हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होता है। गुप्त नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा की सात्विक और तांत्रिक विधि से पूजा-अर्चना की जाती है। माघ गुप्त नवरात्रि 12 फरवरी (शुक्रवार) से शुरू हो चुके हैं जो 21 फरवरी समाप्त होगी। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, गुप्त नवरात्र साल में दो बार आते हैं। पहले गुप्त नवरात्र अषाढ़ के महीने में और दूसरे माघ के महीने में। गुप्त नवरात्रि के दौरान गुप्त रूप से मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। गुप्त नवरात्रि के पीछे यह विचार प्रचलित है कि इस दौरान मां दुर्गा की गुप्त रूप से पूजा की जाती है। ऐसा करने से पूजा का फल कई गुना ज्यादा मिलता है।गुप्त नवरात्रि के दौरान करें ये उपाय-1. गुप्त नवरात्रि में मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए पूजा के दौरान कमल का फूल चढ़ाएं। अगर आपके पास कमल का फूल नहीं है तो गुप्त नवरात्रि में अपने घर कमल के फूल वाली कोई तस्वीर भी लगा सकते हैं। कहते हैं कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।2. गुप्त नवरात्रि में धन और समृद्धि की प्राप्ति के लिए चांदी या सोने का सिक्का घर पर लाने से बरकत आती है। मान्यता है कि मां लक्ष्मी प्रसन्?न होकर सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।3. अगर आपके घर में कोई व्यक्ति काफी समय से बीमार है तो गुप्त नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा को लाल रंग के पुष्प अर्पित करें। इसके साथ ही ऊं क्रीं कालिकायै नम:, मंत्र का जप करें। कहते हैं कि ऐसा करने मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।4. गुप्त नवरात्रि के दौरान कर्ज से भी मुक्ति पा सकते हैं। गुप्त नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के समक्ष गुग्गल की सुगंध वाली धूप जलाएं। कहते हैं कि ऐसा करने से कर्ज से मुक्ति मिलती है।5. नवरात्र में मोरपंख को घर में लाना भी बहुत शुभ माना जाता है। मां लक्ष्मी की सवारी में से एक मोर भी होता है। मोर पंख को घर पर लाने से आपके घर में मां लक्ष्मी की कृपा भी आती है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 200
(प्रेम के अर्थ और स्वरूप की व्याख्या आचार्य श्री की वाणी में यहाँ से पढ़ें....)
प्रेम... प्रेम शब्द का अर्थ होता है;
सर्वथा ध्वंसरहितम् सत्यपि ध्वंस कारणे।यद्भवावबन्धनं यूनोः सः प्रेमा परिकीर्तितः॥(भक्तिरसामृतसिन्धु)
ये परिभाषा भक्तिरसामृतसिन्धु में महारासिकों ने की है कि प्रेम के नष्ट होने का कारण हो फिर भी प्रेम नष्ट न हो, उसको प्रेम कहते हैं। हमारे संसार में जितना प्रेम है ये स्वार्थ पर डिपेंड करता है। हमारे स्वार्थ की सिद्धि जितनी लिमिट में, जहाँ होने की आशा होती है उतनी लिमिट में वहाँ मन का प्यार हो जाता है। नैचुरल।
अगर हमें आशा है सेंट परसेंट स्वार्थ सिद्ध होगा तो सेंट परसेंट प्रेम ले लो और अगर दूसरे दिन फिफ्टी परसेंट आशा रह गई, तो प्रेम घट के फिफ्टी परसेंट हो गया। तीसरे दिन अगर ऐसा आभास हुआ कि यहाँ कुछ स्वार्थ सिद्ध नहीं होगा तो प्रेम जीरो पर आ गया। ये माँ, बाप, बेटा, स्त्री, पति सबका प्यार इसी प्रकार अप-डाउन, अप-डाउन दिन भर होता रहता है।
तो संसार में प्रेम नहीं हो सकता। क्योंकि वो स्वार्थ पर आधारित है और स्वार्थ तो परिवर्तनशील होता है। तो प्रेम की परिभाषा है कि प्रेम नष्ट होने का कारण हो और फिर भी प्रेम नष्ट न हो।
गौरांग महाप्रभु ने प्रेम की परिभाषा बताई, प्रैक्टिकल। उन्होंने कहा, हे श्रीकृष्ण!
आश्लिष्य वा पादरतां पिनष्टु मामदर्शनान्मर्महतां करोतु वा।यथा तथा व विदधातु लम्पटो मत्प्राणनाथस्तु स एव नापरः॥
हे श्रीकृष्ण! तुम तीन काम कर सकते हो; या तो मेरा आलिंगन कर के प्यार कर लो, या तो चक्र चला के मार दो और या न्यूट्रल हो जाओ, उदासीन हो जाओ। तुम कौन हो, हम पहचानते नहीं - ऐसे बन जाओ। हम तीनों में चैलेंज कर रहे हैं तुमको। इन तीनों में जिस अवस्था में सुख मिले वो करो। हमारे प्रेम में इन तीनों अवस्थाओं में कोई परिवर्तन नहीं होगा। वो बढ़ता जाएगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। -
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 199
(भाग्य सम्बन्धी शंकाओं पर जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा तत्वचर्चा..)
भगवान हमारे अनंत पुण्य व अनंत पापों में से थोड़ा-थोड़ा लेकर हमारे किसी एक जन्म का प्रारब्ध तैयार करते हैं और मानव जीवन के रूप में हमें एक अवसर देते हैं ताकि हम अपने आनंद प्राप्ति के परम चरम लक्ष्य को पा लें।
प्रारब्ध सबको भोगना पड़ता है। भगवद् प्राप्ति के बाद जब कोई जीव महापुरुष बन जाता है, तब भगवान उसके तमाम पिछले जन्मों के एवं उस जन्म के भी समस्त पाप-पुण्यों को तो भस्म कर देते हैं, लेकिन वे उसके उस जीवन के शेष बचे हुए प्रारब्ध में कोई छेड़छाड़ नहीं करते।
इसका अभिप्राय यह है कि भगवान को पा चुके मुक्त आत्मा संतों/भक्तों को भी अपना उस जन्म का पूरा प्रारब्ध भोगना ही पड़ता है।उसमें इतना अंतर अवश्य आ जाता है कि अब वह नित्य आनंद में लीन रहने से किसी सुख-दुःख की फ़ीलिंग नहीं करता। लेकिन फिर भी एक्टिंग में उसे सब भोगना पड़ता है। किसी के प्रारब्ध को मिटाना भगवान के कानून में नहीं है।
वे लोग बहुत भोले हैं, जो यह समझते हैं कि अमुक देवी जी, अमुक बाबा जी अपनी कृपा से मेरे कष्ट को दूर कर देंगे। या मुझे धन, वैभव, पुत्र आदि दे देंगे। जो प्रारब्ध में लिखा होगा, वह नित्य भगवान को गालियाँ देने से भी अवश्य मिलेगा। जो प्रारब्ध में नहीं लिखा होगा, वह दिन-रात पूजा पाठ करने से भी न मिलेगा।
भगवान की भक्ति करने से संसारी सामान नहीं मिला करता, जीव के प्रारब्धजन्य दुःख दूर नहीं होते, बल्कि भक्ति से तो स्वयं भगवान की ही प्राप्ति हुआ करती है। यह बात अलग है कि कोई मूर्ख अपनी भक्ति से भगवान को पा लेने पर भी वरदान के रूप में उनसे उन्हीं को न माँगकर संसार ही माँग बैठे। यहाँ यह बात भी विचारणीय है कि जिसको भगवान की प्राप्ति हो चुकी, उसके लिए प्रारब्ध के सुख-दुःख खिलवाड़ मात्र रह जाते हैं।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - सिर्फ खुशगवार मौसम, खेतों में लहराती फसलें व पेड़-पौधों में फूटती नई कोपलें ही वसंत या बसंत ऋतु की विशेषता नहीं हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति के उल्लास का, प्रेम के चरमोत्कर्ष का, ज्ञान के पदार्पण का, विद्या व संगीत की देवी के प्रति समर्पण का त्यौहार भी वसंत ऋतु में मनाया जाता है। माना जाता है कि इसी दिन जगत की नीरसता को खत्म करने व समस्त प्राणियों में विद्या व संगीत का संचार करने के लिए देवी सरस्वती पैदा हुई। इसलिए इस दिन शैक्षणिक व सांस्कृतिक संस्थानों में मां सरस्वती की विशेष रुप से पूजा की जाती है।हिंदू पंचांग में माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को वसंत पंचमी कहा जाता है। माना जाता है कि विद्या, बुद्धि व ज्ञान की देवी सरस्वती का आविर्भाव इसी दिन हुआ था। इसलिए यह तिथि वागीश्वरी जयंती व श्री पंचमी के नाम से भी प्रसिद्ध है। ऋग्वेद के 10/125 सूक्त में सरस्वती देवी के असीम प्रभाव व महिमा का वर्णन किया गया है। हिंदूओं के पौराणिक ग्रंथों में भी इस दिन को बहुत ही शुभ माना गया है व हर नए काम की शुरुआत के लिए यह बहुत ही मंगलकारी माना जाता है।बसंत पंचमी पौराणिक कथामाना जाता है कि ब्रह्मा जी ने श्रृष्टि की रचना तो कर दी, लेकिन वे इसकी नीरसता को देखकर असंतुष्ट थे फिर उन्होंने अपने कमंडल से जल छिटका जिससे धरा हरी-भरी हो गई व साथ ही विद्या, बुद्धि, ज्ञान व संगीत की देवी प्रकट हुई। ब्रह्मा जी ने आदेश दिया कि इस श्रृष्टि में ज्ञान व संगीत का संचार कर जगत का उद्धार करो। तभी देवी ने वीणा के तार झंकृत किए जिससे सभी प्राणी बोलने लगे, नदियां कलकल कर बहने लगी हवा ने भी सन्नाटे को चीरता हुआ संगीत पैदा किया। तभी से बुद्धि व संगीत की देवी के रुप में सरस्वती पूजी जाने लगी।मान्यता है कि जब मां सरस्वती प्रकट हुई तो भगवान श्री कृष्ण को देखकर उन पर मोहित हो गई व भगवान श्री कृष्ण से पत्नी रुप में स्वीकारने का अनुरोध किया, लेकिन श्री कृष्ण ने राधा के प्रति समर्पण जताते हुए मां सरस्वती को वरदान दिया कि आज से माघ के शुक्ल पक्ष की पंचमी को समस्त विश्व तुम्हारी विद्या व ज्ञान की देवी के रुप में पूजा करेगा। उसी समय भगवान श्री कृष्ण ने सबसे पहले देवी सरस्वती की पूजा की तब से लेकर निरंतर बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा लोग करते आ रहे हैं।बसंत पंचमी के दिन को माता पिता अपने बच्चों की शिक्षा-दीक्षा की शुरुआत के लिए शुभ मानते हैं। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार तो इस दिन बच्चे की जिह्वा पर शहद से ए बनाना चाहिए इससे बच्चा ज्ञानवान होता है व शिक्षा जल्दी ग्रहण करने लगता है। बच्चों को उच्चारण सिखाने के लिहाज से भी यह दिन बहुत शुभ माना जाता है। 6 माह पूरे कर चुके बच्चों को अन्न का पहला निवाला भी इसी दिन खिलाया जाता है।चूंकि बसंत ऋतु प्रेम की रुत मानी जाती है और कामदेव अपने बाण इस ऋतु में चलाते हैं इस लिहाज से अपने परिवार के विस्तार के लिए भी यह ऋतु बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इसलिए बसंत पंचमी को परिणय सूत्र में बंधने के लिए भी बहुत सौभाग्यशाली माना जाता है व बहुत से युगल इस दिन अपने दांपत्य जीवन की शुरुआत करते हैं।गृह प्रवेश से लेकर नए कार्यों की शुरुआत के लिए भी इस दिन को शुभ माना जाता है।इस दिन कई लोग पीले वस्त्र धारण कर पतंगबाजी भी करते हैं।
- आज वसंत पंचमी बनाई जा रही है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन मां सरस्वती का प्राकट्य हुआ था। इसलिए इस दिन मां सरस्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार, वसंत पंचमी के दिन कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए...-धार्मिक दृष्टि से वसंत पंचमी का पर्व बेहद ही महत्व है। यह पर्व ज्ञान और सुरों की देवी मां सरस्वती को समर्पित है। इसलिए वसंत पंचमी के दिन बिना स्नान किए भोजन नहीं करना चाहिए, संभव हो तो इस दिन मां सरस्वती के लिए व्रत रखें।-वसंत पंचमी के दिन पीले रंग का विशेष महत्व है। यह रंग मां सरस्वती को प्रिय है। इसलिए इस दिन विद्या की देवी को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें। वसंत पंचमी के दिन रंग-बिरंगे कपड़े नहीं पहनने चाहिए, बल्कि पीले रंग के वस्त्र पहनने चाहिए।-शास्त्रों के अनुसार, वसंत पंचमी को सभी शुभ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है। इस पावन दिन के अवसर पर प्रकृति में बसंत ऋतु का सुंदर और नवीन वातावरण छा जाता है। इसलिए आज के दिन पेड़ पौधों को भूलकर भी नहीं काटना चाहिए।-मां सरस्वती ज्ञान और विद्या की देवी हैं। इस कारण शास्त्रों में वसंत पंचमी को विद्यारंभ एवं अन्य प्रकार के मांगलिक कार्यों के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है। माना जाता है कि वसंत पंचमी के दिन किसी को अपशब्द नहीं बोलना चाहिए।-वसंत पंचमी के पावन दिन अपने मन में किसी व्यक्ति के लिए बुरे विचार न लाएं। बल्कि अपने मन में मां सरस्वती का ध्यान लगाएं। मां सरस्वती के ध्यान से आपको वीणा वादिनी का आशीर्वाद प्राप्त होगा।-ज्ञान के बिना व्यक्ति का जीवन अंधकारमय होता है और मां सरस्वती ज्ञान की देवी हैं। इस दिन मां सरस्वती की विधि-विधान से पूजा होती है। इसलिए इस दिन जातकों को सात्विक जीवन व्यतीत करना चाहिए और मांस-मदिरा के सेवन से दूर रहना चाहिए।-वसंत पंचमी के पावन दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
-
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 198
(जैसे प्राण के बिना शरीर का महत्व नहीं, साधना में रूपध्यान की ऐसी ही महत्त्वता पर जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा संक्षिप्त प्रकाश...)
अन्तरंग नियमों में सबसे प्रमुख है 'रूपध्यान'। ये तो आप लोगों को पता ही है कि साधना, 'ईश्वरीय साधना' केवल मन को करनी है। केवल मन को। इन्द्रियाँ इसलिये साथ लगा दी जाती हैं, वेद कहता है, इन्द्रियाँ बाहर की ओर ले जाने वाली है। ये स्वयं भू ब्रह्मा ने, इन्द्रियों को ऐसा बनाया है, जो बाहर की ओर जाती हैं, भागती हैं, नेचुरल। तमाम जन्मों का अभ्यास भी है। और फिर इन्द्रियाँ भी प्राकृत हैं, संसार भी प्राकृत है; इसलिये सजातीय होने के कारण स्वाभाविक आकर्षण संसार की ओर होता है। हम संसार देखते हैं, सुनते है, सूँघते है, रस लेते हैं, स्पर्श करते हैं, तो हमारा मन संसार की ओर तत्काल आकृष्ट हो जाता है। इसलिये हमको सबसे पहले ये सोचना है कि हम उपासक हैं, साधक हैं, श्रीकृष्ण के दास हैं। इसके बाद फिर सोचना है श्रीकृष्ण हमारे स्वामी हैं। राधाकृष्ण को हम पहले अपने सामने खड़ा करें। चाहे अपने अन्तःकरण में खड़ा करें। चाहे अपने सामने खड़ा करें, चाहे स्वयं को भाव देह बना करके, अपना सूक्ष्म शरीर बना करके, इस शरीर से निकल करके, और भगवान के लोक में चले जायें। जिसको जिस प्रकार की रुचि हो, अच्छा लगे, जैसा आपका हिसाब बैठ जाय, इस प्रकार से रूपध्यान करें; किन्तु बिना रूपध्यान के कोई भी साधना न करें।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: साधना नियम पुस्तक०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - आजकल लोग वास्तु शास्त्र को बहुत महत्व देने लगे हैं। घर बनवाते समय या ऑफिस बनवाते समय लोग वास्तु पर ध्यान जरूर है। इसके लिए कई बार लोग विशेषज्ञों की सलाह भी ले लेते हैं। यदि भवन का निर्माण वास्तु नियमों के अनुसार किसी कारण वश नहीं हो पाता या किसी तरह की कोई कमी रह जाती है तो यह मकान में रहने वालों गंभीर प्रभाव डालता है। इन समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए कुछ उपाय सुझाएं गए हैं। इन उपायों को करने से वास्तु दोष से बचा जा सकता है।हम आज कुछ ऐसे उपाय बता रहे हैं, जिसे अपनाकर आप अपने घर का वास्तु दोष दूर कर सकते हैं।1. चाहें आपके घर में कैसा भी दोष क्यों न हो उससे मुक्ति पाने के लिए आपको घर के मुख्य द्वार पर रोली से स्वास्तिक बना देना चाहिए। यह चिन्ह सौभाग्य लाता है। वहीं, शाम के समय घर की दहलीज पर नियम से दीपक जलाना चाहिए।2. घर के मुख्य द्वार पर सूरजमुखी के फूलों की फोटो लगानी चाहिए। इससे व्यक्ति के जीवन में मौजूद नेगिटिविटी खत्म हो जाती है। साथ ही सुख-समृद्धि का वास भी होता है। घर का जो कोण नैऋत्य हो उसे कभी भी अंधकार में नहीं रखना चाहिए।3. शाम के समय घर के वायव्य दिशा में रोशनी कर देनी चाहिए। यह उत्तर और पश्चिम के बीच की दिशा होती है। इस दिशा का तत्व वायु होता है। यहां पर शाम के समय रोशनी रखनी चाहिए। इससे घर का नकारात्मकता दूर होती है।4. अगर घर के किसी कोने में वास्तु दोष है जहां बिना तोड़-फोड़ किए ही दोष दूर किया जा सकता है तो घर की दक्षिण-पूर्व दिशा में जलभरा कोई भी मिट्टी का पात्र रख दें। इससे घर के सभी दोष खत्म हो जाते हैं। घर का सभी फालतू सामान भी बाहर कर दें।5. उत्तर दिशा में हो वास्तु दोष हो तो भवन के उत्तर दिशा की दीवारों पर सदैव हल्के हरे रंग का पैंट करवाएं। इससे आपके घर में धन एवं अवसर प्रचुर मात्र में उपलब्ध होंगे। भवन का उत्तरी भाग वास्तु दोष से पीडि़त है लक्ष्मी यंत्र व कुबेर यंत्र की स्थापना करवाना शुभफलदायी है।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 197
साधक का प्रश्न ::: सर्वान्तर्यामी और अन्तर्यामी दोनों के बीच में क्या अंतर होता है ?
जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: अन्तर्यामी जो होता है वो हर एक महापुरुष होता है। जिसने भगवत्प्राप्ति की हो वो सब अन्तर्यामी हो जाते हैं और सर्वान्तर्यामी केवल भगवान हैं। वो इसलिये कि सभी जीवों के अंतःकरण में वह एक-एक रूप से रहता है। ऐसा नहीं कि अलग गोलोक में बैठकर सर्वान्तर्यामी है, ऐसा नहीं। हर एक जीव के अंतः करण में एक भगवान का रूप सदा रहता है। स्वर्ग जाय, नरक जाय, मृत्यु लोक में जाय चाहे जहाँ रहे वो साथ रहता है हमेशा और वो सबके आइडियाज, पुराने जन्मों के कार्य का हिसाब सब करता है। धन्धा उसका यही है। वो सर्वान्तर्यामी है और सर्वव्यापक है और महापुरुष अन्तर्यामी है जिसके मन की बात जब जानना चाहे जान सकता है। लेकिन सदा नहीं जानता रहता। यह काम भगवान का है क्योंकि वो कर्मफल देना है उनको, तो उनको हमेशा जानना पड़ेगा । भगवान सर्वव्यापक हैं और आत्मा शरीर व्यापक। ये जीवात्मा खाली एक शरीर में है और भगवान जड़ चेतन सर्वत्र व्यापक है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: प्रश्नोत्तरी पुस्तक, भाग - 2०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 196
साधक का प्रश्न: महाराज जी, भक्ति मार्ग का अधिकारी कैसा होता है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर :::
..नातिसक्तो न वैराग्यभागस्यामधिकार्यसौ।(भक्तिरसामृतसिन्धु)
अर्थात जो न तो अत्यन्त आसक्त हो, न अत्यन्त विरक्त हो वह भक्तिमार्ग का अधिकारी होता है। अधिकारी तीन प्रकार के होते हैं।
उत्तमो मध्यमश्चैव कनिष्ठश्चेति तलिधा।
(1) उत्तम (2) मध्यम (3) कनिष्ठ।
(1) उत्तम अधिकारी,
शास्त्रे युक्तौ च निपुणः सर्वथा दृढनिश्चयः।प्रौढ़श्रद्धोऽधिकारी यः स भक्तावुत्तमो मतः।।(भक्तिरसामृतसिन्धु)
अर्थात जो शास्त्र एवं युक्ति दोनों ही में निपुण होता है, तथा जो सब प्रकार से दृढ़ निश्चय वाला होता है, एवं जिसकी श्रद्धा प्रगाढ़ होती है, वही भक्ति मार्ग का उत्तम अधिकारी है। ऐसे अधिकारी पर कुसंग अथवा तार्किकों के वाग्जाल का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता, अतएव वह साधना में प्रतिक्षण अग्रसर होता जाता है।
(2) मध्यमाधिकारी,
यः शास्त्रादिष्वनिपुणः श्रद्धावान्स तु मध्यमः।
अर्थात जो शास्त्र एवं युक्ति में निपुण नहीं होता, किन्तु श्रद्धावान होता है, वह भक्ति मार्ग का मध्यम अधिकारी है। शास्त्र एवं युक्ति के द्वारा तत्वज्ञान दृढ़ न होने के कारण तर्कवादियों के वाग्जाल द्वारा उसका पतन हो सकता है, वह श्रद्धा के बल पर ही टिका रहता है। यदि कुसंग न मिला तब तो वह श्रद्धा से ही लक्ष्य पर पहुँच जाता है, किन्तु कुसंग के मिलने पर वह स्वयं संशयात्मा बन कर निराश तथा भ्रष्ट हो जाता है।
(3) कनिष्ठ अधिकारी,
यो भवेत्कोमलश्रद्धः स कनिष्ठो निगद्यते।(भक्तिरसामृतसिन्धु)
अर्थात जो साधारण-श्रद्धा से युक्त होता है, एवं शास्त्र तथा युक्ति से सर्वथा ही अपरिचित होता है, वह भक्ति मार्ग का कनिष्ठ अधिकारी है, उसके पास शास्त्र एवं युक्ति के बल का तो सर्वथा ही अभाव है, साथ ही श्रद्धा भी अल्प है, अतएव ऐसे अधिकारी के पतन की प्रतिक्षण विशेष आशंका है। ऐसे साधक किंचित भी कुसंग-प्राप्ति से तथा किंचित भी तार्किकों के वाग्जाल से पथ भ्रष्ट हो जाते हैं। अतएव साधक को शास्त्र एवं युक्ति से युक्त तथा दृढ़ निश्चय वाला होकर प्रगाढ़ श्रद्धावान होना चाहिये, तभी वह निर्भयता पूर्वक निस्संदेह शीघ्र ही लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - - प्रेम विशुद्ध और दिव्य तत्व होता है, जो निर्मल मन वाली महान आत्मा को कृपा से मिलता हैआज कल सभी जगह प्रेम की ही चर्चा होती है। प्रेम वास्तव में क्या तत्व है, ये कोई बिरला ही जानता है। सच्चे प्रेम में मिलावट नहीं होती, किसी भी प्रकार की कोई भी इच्छा लेकर सच्चा प्रेम नहीं हो सकता। प्रेम विशुद्ध और दिव्य तत्व होता है, जो निर्मल मन वाली महान आत्मा को कृपा से मिलता है। संसार को यह बात जगद्गुरु कृपालु जी महाराज ने बहुत ही सरल भाषा में बताई है।नारद भक्ति दर्शन का प्रमाण देते हुए कृपालु जी महाराज ने कहा है कि सबसे विलक्षण तत्व प्रेम है। उन्होंने इस प्रेम की प्राप्ति कैसे होती है, इस बात को संसार को बताने के लिए प्रेम रस सिद्धांत की रचना की है। ब्रज गोपिका सेवा मिशन के प्रयास से श्री कृपालु जी महाराज का विलक्षण साहित्य प्रेम रस सिद्धांत ,दर्जेलिंग भारत के हिल स्टेशन में रेल्वे प्लेटफॉर्म पर यात्रियों के लिए सर्वसुलभ किया गया।यह ग्रंथ समस्त शास्त्रों वेदों का सार है। कृपालु जी महाराज के पूर्व जितने भी जगद्गुरु हुए है (शंकराचार्य ,रामानुजाचार्य निम्बार्काचार्य एवं माधवाचार्य )उन्होंने संस्कृत भाषा में वेदों का सार लिखा है और लम्बी लम्बी टिकाएं लिखी हैं। जो आज के जन साधारण के लिए बहुत दुरूह है। महाराज श्री ने अत्यंत ही सरल भाषा में सारगर्भित, क्रमिक पाठ्यक्रम के अनुसार और सारे शास्त्रों का सार प्रेम रस सिद्धांत में रखा है। और ये एक ऐसा ग्रंथ है जिसको कोई जिज्ञासु पढ़ता है तो उसकी समस्त आध्यात्मिक शंकाओ का समाधान हो जाता है। और उसका भगवत अनुराग बढ़ जाता है। जो पीड़ा नास्तिकताजन्य है ( मन में निरंतर तमोगुणी, रजोगुणी विचारों का आना) यह ग्रंथ उसी पीड़ा का नाश करता है और व्यक्ति को नास्तिकता से आस्तिक बनाता है।समस्त मानव समाज को ये ग्रन्थ कम से कम एक बार अवश्य पढऩा चाहिए और ये समझना चाहिए की मानव जीवन का लक्ष्य क्या है?ब्रज गोपिका सेवा मिशन
- हर परिवार के एक कुलदेवता या फिर कुलदेवी होती हैं। इनकी पूजा खास मौकों पर की जाती है- जैसे घर में विवाह होने पर दुल्हन को कुलदेवता के दर्शन करवाएं जाते हैं। घर में संतान होने पर बच्चे को कुलदेवता के दर्शन करवाएं जाते हैं, लेकिन कुछ लोग रोजाना कुलदेवता की पूजा करते हैं।दक्षिण और महाराष्ट्र में आज भी कुछ परंपराएं हैं जिनमें घर में कुलदेवी के रूप में सुपारी अथवा प्रतिमा का पूजन करना, घर से बाहर लंबी यात्रा हो तो कुलदेवी को पहले पुकारना, साल में दो बार कुलदेवी पर लघुरूद्र अथवा नवचंडी करना आदि किआ जाता है। हर घर की एक कुलदेवी होती हैं। आज भारत में 70 प्रतिशत परिवार अपनी कुलदेवी को नहीं जानते। कुछ परिवार बहुत पीढिय़ों से कुलदेवी का नाम तक नहीं जानते । इसके कारण, एक निगेटिव दबाव उस घर के कुल के ऊपर बन जाता है और अनुवांशिक तकलीफें पैदा होती हैं।1. कुलदेवी की कृपा के बिना अनुवांशिक बीमारी पीढ़ी में आती है। एक ही बीमारी के लक्षण सभी लोगों में दिखते हैं।2. मानसिक विकृतियोंं का परिवार में आना।3. कुछ परिवार एय्याशी की ओर इतने मुखर हो जाते हंै कि सब कुछ गवां देते हैं।4. बच्चे गलत मार्ग की ओर भटक जाते हैं5. शिक्षा में अड़चनें आती है।6. परिवार में सभी बच्चे अच्छे पढ़ते हैं फिर भी नौकरी ठीक नहीं मिलती।7. कभी कभी किसी के पास पैसा बहुत होता है पर मनासिक तकलीफों समाधान नहीं होता है।8. यात्राओं में अपघात होते हैं अथवा यात्रा अधूरी रह जाती है।9. बिजनेस में ग्राहक पर प्रभाव नहीं बनता अथवा आवश्यक स्थिरता नहीं आती।10. विदेशों में बहुत भारतीय बसे हैं। पैसा होकर भी उनके जीवन में कोई न कोई अड़चन आती रहती है।कुलदेवी के रोष से कई संस्थान, राजवाड़े, महाराजे खत्म हो जाते हैं। कई परिवारों के वंश नष्ट हो जाते हैं। इसलिए कुलदेवी का पूजन पहले करें।कैसे करें कुलदेवी की पूजा-कुलदेवता की पूजा करते समय शुद्ध देसी घी का दीया, धूप, अगरबत्ती, चंदन और कपूर तो जलाना ही चाहिए साथ ही कुलदेवता को रोजाना स्नान भी करवाना चाहिए और प्रसाद स्वरूप भोग भी लगाना चाहिए।-कुलदेवता को चंदन और चावल का टीका अर्पण करते समय ध्यान रखें की टूटे हुए या खंडित चावल ना हो। कुलदेवता को हल्दी में लिपटे पीले चावल पानी में भिगोकर अर्पण करना शुभ माना जाता है।-पूजा के समय पान के पत्ते का बहुत महत्व है। यदि आप पान का पत्ता अर्पित कर रहे हैं तो साथ में सुपारी, लौंग, इलायची और गुलकंद भी अर्पण करना चाहिए। इससे कुलदेवता प्रसन्न होते हैं।-कुलदेवता और देवी को पुष्प भी चढ़ाना चाहिए, लेकिन पुष्प चढ़ाते हुए आपको इन्हें पानी में अच्छी तरह से धोना चाहिए।-सभी देवी-देवताओं की पूजा जिस तरह सुबह-शाम की जाती है, उसी तरह कुलदेवी और देवता की पूजा भी दीपक जलाकर सुबह-शाम करनी चाहिए। रोजाना घर में दीपक जलाने से आप घर के वास्तुदोष को भी दूर कर सकते हैं।-आप आसन लगाकर शांत मन से कुलदेवता का ध्यान करें। ध्यान रहें, आप जिस आसन पर बैठे हैं उसका सम्मान करें और पैर से आसन को ना खिसकाएं बल्कि हाथ से ही आसन उठाकर रखें।-यदि आपके घर में कुलदेवी या देवता की तस्वीर नहीं है तो सुपारी को पान के पत्ते में बांधकर उसके ऊपर मौली बांधकर कुलदेवता का स्मरण करते हुए लौंग लगानी चाहिए और इस पर स्वस्तिक बनाना चाहिए।- पूजा घर में रोजाना कलश में जल रखें और कलश पर स्वस्तिक बनाएं। जल को रोजाना सूर्य देवता को अर्पण करें।इस तरह आप कुलदेवता या देवी की पूजा करेंगे तो आपकी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।
- जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 195
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! जो नित्यसिद्ध महापुरुष होते हैं, उनका तो कोई कर्म नहीं है फिर उनका कैसा, क्या प्रारब्ध होगा?
जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: हाँ, वो काहे को भोगेंगे, वो तो केवल लोक शिक्षा के लिये कार्य करते हैं। जितने कार्य भगवान के हैं, सबसे पहले भगवान ही को लो। नित्य सिद्ध के बाप तो वही हैं। तो वो भी सब प्रकार का कार्य करते हैं, दिखाने के लिये। देखो! मैं बीमार होने जा रहा हूँ, प्रारब्ध भोगने जा रहा हूँ। वो तो लीला क्षेत्र में आदर्श स्थापन के लिये करते हैं। भगवान जब मृत्युलोक से गोलोक गये, श्रीकृष्ण तो;
योगधारणयाऽऽग्नेय्यादग्ध्वा धामाविशत् स्वकम् । (भागवत)
भागवत में कहा गया है कि योग धारण किया और महापुंज को बुलाया और फिर 'अदग्ध्वा', जलाया नहीं शरीर को और 'धामाविशत् स्वकम्' और अपने धाम चले गये। सोलह हजार एक सौ आठ ब्याह किया। एक-एक स्त्री के दस-दस बच्चे हुये हैं और इतना वैराग्य भी दिखा दिया कि सबको आपस में लड़ाकर मरवा दिया। ये केवल संसार को बताने के लिये, देखो! मेरी इतनी बड़ी फैमिली है और मैं सदा मुस्कराता रहता हूँ। तुम लोगों के एक-दो-चार बच्चे, माँ-पिता होंगे फैमिली में, चार-छ: आदमी और उसी में चौबीस घंटे टेन्शन है। हमारी इतनी बड़ी फैमिली है और देखो, मुझे कोई फीलिंग नहीं होती। ऐसे ही तुम लोग भी अभ्यास करो। योगियों को दिया उपदेश कि देखो तुम लोग योग की अग्नि प्रकट करते हो, कोई कोई योगी तो शरीर जला देते हो और फिर जाते हो ब्रह्म में मिलने और मैंने योग अग्नि प्रकट किया लेकिन जलाया नहीं। उनको भी इशारा कर दिया। तो इस प्रकार संसार को शिक्षा देने के लिये नित्य सिद्ध महापुरुष भी अनेक प्रकार के कार्य करते हैं। गौरांग महाप्रभु ने विवाह किया फिर स्त्री को त्याग करके संन्यासी हो गये और नित्यानंद से कहा कि तुम दो ब्याह कर लो। बड़ी-बड़ी खोपड़ी वाले भी रहे होंगे उस समय भी, उन्होंने यही कहा होगा, ये कुछ ढीला है इस बाबा का दिमाग। अपने आप तो बीवी को छोड़ देता है और अपने शिष्य नित्यानन्द से कहता है कि दो ब्याह कर लो। और एक इनका दास अस्सी वर्ष की बुढिय़ा से चावल माँगने गया, खाने के लिये भीख और वो भी अपने गुरु के लिये, गौरांग महाप्रभु लिये और उसको निकाल दिया कि तुम क्यों गये स्त्री से भिक्षा माँगने? तुम संन्यासी हो, सिर मुड़ाया है, दण्ड कमण्डल लिये हो, तुमको आज्ञा दी थी मैंने कि किसी स्त्री से भीख नहीं माँगना। और वो इतनी भक्त गौरांग महाप्रभु की थी वो अस्सी वर्ष की बुढिय़ा कि पूरे तौर पर वो भगवान मानती थी, संत नहीं मानती थी गौरांग महाप्रभु को, उससे भीख माँगा और निकाल दिया। उस समय भी हम लोग रहे होंगे और क्या कहा होगा? कुछ ढीला है और लोग कहते हैं कि ये भगवान का अवतार हैं। कोई नहीं समझ सकता नित्यसिद्ध के कार्य को, चाहे इसी जन्म में भगवत्प्राप्ति कर लिया हो।
जार चित्ते कृष्ण प्रेमा करये उदय।तार वाक्य क्रिया मुद्रा विज्ञे न बुझय।।
जिसने भगवत्प्राप्ति कर लिया उसके वाक्य, उसकी क्रिया, उसकी मुद्रा, बड़े-बड़े ज्ञानी, वो भी नहीं जान सकते। साधारण बुद्धि वाला क्या जानेगा?
00 प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज00 सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य00 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन। - यदि भवन का निर्माण वास्तु नियमों के अनुसार किसी कारण वश नहीं हो पाता या किसी तरह की कोई कमी रह जाती है तो यह मकान में रहने वालों गंभीर प्रभाव डालता है। जिसके परिणाम स्वरूप मान हानि, पारिवारीक संबंधों में तनाव, आर्थिक रूप से असंतुष्टि, कानूनी विवाद और वैवाहिक जीवन में उतार- चढ़ाव समेत कई अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए कुछ उपाय सुझाएं गए हैं। इन उपायों को करने से वास्तु दोष से बचा जा सकता है।- पूर्व दिशा वास्तु दोष उपायभवन में पूर्व दिशा का शुद्ध होना घर, परिवारिक तनाव, विवाद निवारण हेतु एवं परिवार व सदस्यों की वृद्धि हेतु बहुत ही अनिवार्य है। यदि यह बाधित हो जाये तो मान सम्मान में कमी, मानसिक तनाव, गंभीर रोग व बच्चो का विकास बाधित होता है। ऐसे में दोष निवारण के लिए किसी ब्राह्मण को तांबे के पात्र में गेहूं व गुड़ के साथ लाल वस्त्र का दान करें। साथ ही पूर्व में सूर्य यंत्र की स्थापना प्राण प्रतिष्ठित विधि पूर्वक कराये अथवा सूर्योदय के समय तांबे के पात्र से सूर्य देव को सात बार गायत्री मंत्र का जापकर जल में लाल चन्दन या रोली व गुड, लाल पुष्प मिलाकर अध्र्य दें। वास्तुदोष से शांति मिलेगी।--
- जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 194
०० जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचनों से 5-सार बातें (भाग - 11) ::::::
(1) भगवान का दर्शन भगवान का ज्ञान प्राप्त कर लेने के बाद, जीव भगवान के बराबर धर्म वाला हो जाता है, भगवान नहीं हो जाता।
(2) भगवान योगमाया के पर्दे में रहते हैं और जीव माया के पर्दे में, अतः भगवान के साकार रूप में सामने खड़े होने पर भी हम उन्हें अपनी भावना के अनुसार ही देख पाते हैं।
(3) भगवान को अर्पित करके कर्म करने में, वह बंधनकारक भी नहीं होता और भगवान का स्मरण भी होता रहता है।
(4) जो ईश्वरीय कर्म आपसे बन जाते हैं, समझिये कि वे गुरुकृपा से ही बन पड़े हैं। उनमें अपने कर्तव्य के अहंकार को न आने दें।
(5) जब हमें यह बोध हो जायेगा कि संसार मायिक है किन्तु हम स्प्रिचुअल हैं, भगवान के अंश हैं अतः भगवान ही हमारा है, शरीर संसार का है, तभी हम भगवान की ओर उन्मुख हो पायेंगे।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म संदेश एवं साधन साध्य पत्रिकाएँ०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।