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- स्किनकेयर और हेयरकेयर के लिए ज्यादातर लोग अब प्राकृतिक अवयवों के उपयोग की तरफ मुड़ रहे हैं। बात चाहे छोटे-मोटे घरेलू नुस्खों की हो या स्किनकेयर और बालों की देखभाल की, लोग हर दिन अपने आस-पास मौजूद प्राकृतिक उपायों का इस्तेमाल कर रहे हैं। हाल ही में अभिनेता शाहिद कपूर की पत्नी मीरा कपूर ने हिबिस्कस यानी कि गुड़हल के फूल से हेयर ऑयल और हेयर पैक की रेसिपी साझा की।इस रेसिपी को साझा करते हुए मीरा ने हिबिस्कस यानी गुड़हल के फूलों के कुछ खास फायदे भी बताए। दरअसल बालों के लिए गुड़हल के फूल का अर्क कई मायनों में फायदेमंद है। ये बालों के रोम में जाकर इसके विकास को एक गति देता है, जो गंजे पैच को कवर करने में मदद करता है और सूखापन और रुसी को भी कम करने में मददगार है।कैसे बनाएं गुड़़हल के फूल का तेलमीरा ने अपने पोस्ट में गुड़़हल के फूल से तेल बनाने और हेयर मास्क बनाना बताया है। जैसे कि-दो हिबिस्कस फूल यानी कि गुड़हल के फूल और कम से कम 7-8 इसी के ताजा हरे पत्ते भी ले लें।- अब नारियल तेल का एक चम्मच लें और इसमें मिलाकर एक पीस कर पेस्ट बना लें।- सुनिश्चित करें कि आप इसके पराग को छोड़कर पूरे फूल का उपयोग करें।-अब, मध्यम आंच पर एक पैन रखें और उसमें तीन चम्मच नारियल का तेल डालें। इसमें वो पेस्ट मिला लें।- अब आप इसमें कुछ मेथी के बीज, आंवला पाउडर और करी पत्ते भी मिला लें। साथ ही आप नीम की पत्तियों को भी इसमें मिला सकते हैं।-अब इसे अच्छे से गर्म कर लें। अब एक मलमल के कपड़े का उपयोग करके सामग्री पक तनाव डालते हुए इसे एक एयर-टाइट कंटेनर में छान कर स्टोर करें। अब इस तेल का इस्तेमाल अपने बालों के लिए करेंमीरा कपूर ने अपनी इंस्टाग्राम पोस्ट में उल्लेख किया है,यह वास्तव में उपलब्ध और सीजन पर निर्भर करता है। मीरा बताती हैं कि इस तेल को आप अपने बालों की जड़ों में लगाएं और आपको इसका फायदा नजर आएगा।बालों के लिए गुड़़हल के फूलों का लाभ-हिबिस्कस फूलों में प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले अमीनो एसिड बालों को पोषण प्रदान करने के साथ बालों के विकास को बढ़ावा देने में मदद करते हैं।- ये अमीनो एसिड केराटिन नामक एक विशेष प्रकार के संरचनात्मक प्रोटीन का उत्पादन करते हैं, जो बालों के लिए फायदेमंद है।-केराटिन बालों को बांधता है जिससे उनके टूटने की संभावना कम हो जाती है।-हिबिस्कस के फूलों और पत्तियों में अधिक मात्रा में पानी होता है, जो प्राकृतिक कंडीशनर के रूप में काम करता है।- ये डैंड्रफ और स्कैलप को हेल्दी बनाने में मदद करता है।-बालों के लिए हिबिस्कस की पत्तियों का उपयोग स्केल्प को ठंडा करता है और बालों के पीएच संतुलन को बनाए रखता है।-परंपरागत रूप से, हिबिस्कस का उपयोग ग्रे बालों काला करने के लिए एक प्राकृतिक डाई के रूप में किया जाता था।-इसमें मौजूद एंटीऑक्सिडेंट और विटामिन मेलेनिन का उत्पादन करने में मदद करते हैं, जो स्वाभाविक रूप से बालों को प्राकृतिक रंग देता है।
- गर्मियों के मौसम में तरबूज बड़े चाव से खाया जाता है। इसके फायदों के बारे में हम बता ही चुके हैं। आज हम इसके छिलकों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे हम बेकार समझकर फेंक देते हैं।तरबूज का छिलका आपके दिल को स्वस्थ रखने में मदद कर सकता है। यह रक्त परिसंचरण को प्रोत्साहित करता है, जो हृदय के लिए फायदेमंद है। इसके अलावा, इसमें मौजूद सिट्रुललाइन रक्त प्रवाह को बेहतर बनाने और हार्ट फेल्योर, कोरोनरी आर्टरी डिजीज की बीमारियों में फायदेमंद है।स्वस्थ किडनी के लिएतरबूज के छिलके में पोटेशियम होता है, जो स्वस्थ किडनी के फायदेमंद है। तरबूज के छिलके में मूत्रवर्धक और हाइड्रेटिंग गुण हैं, जो यूटीआई में भी फायदेमंद है। यूटीआई की समस्या होने पर आप नियमित रूप से एक गिलास ताजा तरबूज का रस पियें।इंफ्लमेशन को कम करेतरबूज के छिलके में लाइकोपीन होता है, जो कि इंफ्लमेशन को कम करने में सहायक है। तरबूज का छिलका खाने से स्किन इंफ्लमेशन से लेकर गठिया के दर्द के लिए को कम करने में मदद मिलती है। यह आपके सूजन को कम करने मुंहासे के इलाज में भी प्रभावी है।ब्लड प्रेशर कंट्रोल करने और वजन घटाने में मददतरबूज से लेकर तरबूज का छिलका आपके हाई बीपी को कम करने में मदद कर सकता है। तरबूज व इसके छिलके में सिट्रुललाइन होता है, जो रक्त वाहिकाओं को पतला करने में मदद करता है और बदले में ब्लड प्रेशर को कम करके नॉर्मल करने में मदद करता है। तरबूज के छिलके की सिट्रुललाइन सामग्री वजन घटाने में भी मदद करती है। वहीं इसके छिलके में फाइबर होता है, जो आपको अधिक समय तक भरा रहने में मदद करता है। इतना ही नहीं, तरबूज और उसका छिलका आपको बेहतर वर्कआउट परफॉर्मेंस में भी मददगार है।नींद में सुधारतरबूज के छिलके में मैग्नीशियम होता है। यह एक ऐसा खनिज है, जो आपको बेहतर नीं पाने में मदद कर सकता है। तरबूज आपके मेटाबॉलिज्म को विनियमित करने में भी मदद करता है, जो नींद की गड़बड़ी और अनिद्रा की समस्या को दूर करने में मदद करता है।कैसे करें इस्तेमाल?1. तरबूज के छिलके का जैम- तरबूज के हरे भाग को छीलें और छिलके के सफेद हिस्से का उपयोग जैम बनाने के लिए करें।2. तरबूज के छिलके का अचार-तरबूज के छिलके के सफेद भाग का अचार भी बनाया जा सकता है। यह सामान्य किसी भी अचार की तरह बनाया जा सकता है।3. तरबूज के छिलके की कढ़ी या सब्जी - तरबूज के छिलके में हरी स्किन को निकालकर आप इसकी तरबूज के छिलके की सब्जी या कढ़ी भी बना सकते है, जो काफी स्वादिष्ट होती है। इसके छिलके से बनी सब्जी आपको कई पोषक तत्व प्रदान करती है। यह सब्जी पाचन को बढ़ावा देने और हेल्थ को बूस्ट करने में मदद करती है।4. तरबूज की सब्जी आप लौकी की सब्जी की तरह सादे तरीके से भी बना सकते हैं या फिर इसमें प्याज और टमाटर की प्यूरी डालकर मसाले के साथ बना सकते हैं।
- नाशपाती के समान दिखनेवाले रूचिरा या एवोकाडो के बारे में लोगों को भ्रम है कि यह सब्जी की प्रजाति का है। लेकिन सच्चाई यह नहीं है। एवोकाडो फल की श्रेणी में ही आता है और स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी फायदेमंद है। इस फल में प्रोटीन, रेशे, नियासिन, थाइमिन, राइबोफ्लेविन, फोलिक एसिड और जिंक जैसे तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।एवोकाडो में काफी मात्रा में कैलोरी पाई जाती है, जो हृदय के रोगों से हमें बचाती है। इसमें कोलेस्ट्रोल की मात्रा बिल्कुल नहीं पाई जाती। आजकल युवाओं में अपने वजन को लेकर बहुत चिन्ता रहती है। इसके लिए एन एप्पलस ए डे...वाली कहावत को बदल देना चाहिए। इसकी बजाय एवोकाडो ए डे...कर दें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इसमें पाई जाने वाली कैलोरी की अत्यधिक मात्रा बढ़ते बच्चों के लिए बहुत फायदेमंद है। लेकिन कैलोरी की मात्रा इसके अलग-अलग किस्मों में अलग-अलग मात्रा में होती है। जैसे कि फ्लोरिडा में पाए जाने वाले एवोकाडो में उसके गूदे का आधे से अधिक भाग कैलोरीयुक्त होता है, वहीं कैलीफोर्निया में पाए जाने वाले एवोकाडो में यह दो-तिहाई ही पाया जाता है।पाचन के लिए बेहतरऐसा कहा जाता है कि एवोकाडो पेट की आंतों के लिए बहुत अच्छे होते हैं। इसलिए ये पाचन को बेहतर बनाए रखने में सहायक होते हैं। इसमें घुलनशील और अघुलनशील फाइबर होते हैं, जो पाचन तंत्र की मदद करते हैं। इसके अलावा गैस्ट्रिक और पाचन के रस को उत्तेजित करते हैं। ताकि पोषक तत्वों को सबसे कुशल और तेज तरीके से अवशोषित किया जा सके। कब्ज और दस्त जैसी समस्याओं के लक्षण भी ये कम करते हैं।लिवर के लिएएवोकाडो को लिवर क्षति को कम करने में बहुत अच्छा पाया गया है। इशमें कुछ आर्गेनिक यौगिक होते हैं, जो लिवर के स्वास्थ्य को सुधारने में मदद करते हैं।दृष्टि बढ़ाने में सहायकएवोकाडो आंखों को स्वस्थ रखने में मदद करता है। इसमें लुटेइन और जैकैक्टीन जैसे कैरोटीनॉइड होते हैं, जो मोतियाबिंद, उम्र से संबंधित आंखों के रोगों को दूर करने में सहायक होते हैं।इसके अलावा एवोकाडो गठिया रोगों में भी फायदेमंद हैं। एवोकाडो का इस्तेमाल गठिया के लक्षणों को कम करने में मदद करता है।जैसे ही एवोकाडो को तोड़ते हैं वह पकने लगता है। जब वह पकने के क्रम में होता है तो उसका बाहरी हिस्सा कुछ सख्त जरूर होता है, लेकिन वह पूरी तरह से कड़ा नहीं होता। अगर आप कुछ कच्चे एवोकाडो खरीदें तो उसे कमरे में ही तीन-चार दिनों के लिए छोड़ दें जब तक उसका ऊपरी हिस्सा मुलायम न हो जाए। अगर उसे जल्दी खाना है तो उसे पेपर में लपेटकर दो-तीन दिनों के लिए कमरे में ही रखें। वह पक जाता है।
- स्टेविया या स्टीविया माने मीठी तुलसी , सूरजमुखी परिवार (एस्टरेसिया) के झाड़ी और जड़ी बूटी के लगभग 240 प्रजातियों में पाया जाने वाला एक जीनस है, जो पश्चमी उत्तर अमेरिका से लेकर दक्षिण अमेरिका के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है। स्टेविया रेबउडियाना प्रजातियां, जिन्हें आमतौर पर स्वीटलीफ, स्वीट लीफ, सुगरलीफ या सिर्फ स्टेविया के नाम से जाना जाता है, मीठी पत्तियों के लिए वृहत मात्रा में उगाया जाता है।स्टीविया की पत्तियों में चीनी से तीन सौ गुना अधिक मीठा होता है। इसी मिठास के कारण इसे हनी प्लांट भी कहा जाता है। स्टीविया जिसे मधुरगुणा के नाम से भी जाना जाता है। इसमें डायबिटीज को दूर करने के गुण होते हंै। स्टेविया नाम की जड़ी बूटी चीनी का स्थान ले सकती है और खास बात ये कि इसे घर की बगिया में भी उगाया जा सकता है। यह शून्य कैलोरी स्वीटनर है और इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं है। इसे हर जगह चीनी के बदले इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे तैयार उत्पाद न केवल स्वादिष्ट हैं, बल्कि दिल के रोग और मोटापे से पीडि़त लोगों के लिए भी फायदेमंद हैं। स्टीविया न केवल शुगर बल्कि ब्लड प्रेशर, हाईपरटेंशन, दांतों, वजन कम करने, गैस, पेट की जलन, त्वचा रोग और सुंदरता बढ़ाने के लिए भी उपयोगी होती है। यही नहीं इसके पौधे में कई औषधीय व जीवाणुरोधी गुण भी होते हैं।वैसे स्टीविया मूल रूप से जापान का पौधा है किंतु जैसे-जैसे इसकी खूबियों के बारे में पता चलता गया। वैसे ही वैसे इसकी व्यवसायिक खेती को बढ़ावा मिला। वहीं भारतवर्ष में भी कई राज्यों में इसकी खेती प्रारंभ हो चुकी है। स्टीविया शाकीय पौधा है। इसको खेत में उगाया जाता है और इसकी पत्तियों का उपयोग होता है। यह चीनी से तीन सौ गुना अधिक मीठा होता है, इसे पचाने से शरीर में एंजाइम नहीं होता और न ही ग्लूकोस की मात्रा बढ़ती है। आज के समय में स्टीविया का कई शुगर फ्री पदार्थो को बनाने के लिए भी प्रयोग किया जाने लगा है।स्टीविया एक छरहरा सदाबहार शाकीय पौधा है। इसकी मिठास के कारण इसे हनी प्लांट भी कहा जाता है। इसका उपयोग हर्बल औषधि में डायबिटीज रोगियों के लिए टॉनिक के रूप में भी किया जाता है। स्टीविया पैंक्रियाज से इंसुलिन को रिलीज करने में अहम भूमिका निभाता है। यह इंसुलिन प्रतिरोध में वृद्धि, ग्लूकोज के अवशोषण को रोककर और अग्न्याश के स्वास्थ्य को बढ़ावा देकर ब्लड शुगर को स्थिर करता है।आयुर्वेद चिकित्सकों के अनुसार स्टीविया से शुगर के अलावा मोटापे से भी निजात पाई जा सकती है। मोटापे के शिकार व्यक्तियों के लिए भी यह पौधा किसी वरदान से कम नहीं है। ब्राजील में जर्नल एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, स्टीविया से हाइपरटेंशन से पीडि़त लोगों में रक्तचाप के स्तर को कम किया जा सकता है। एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-फंगल और एंटी इंफ्लेमेंटरी गुणों से भरपूर होने के कारण, स्टीविया मुंहासों और रूसी की समस्या से छुटकारा पाने में मदद करता है। इसके अलावा यह ड्राई और डैमेज बालों को ठीक करने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है। स्टीविया में विशिष्ट संयंत्र ग्लाइकोसाइड की उपस्थिति, पेट के अस्तर में होने वाली जलन को दूर करने में मदद करता है। इस तरह से अपच और हार्टबर्न के उपचार में मदद करता है।------
- दूध और केला , दोनों ही सेहत के लिए फायदेमंद है। कई लोगों को सुबह नाश्ते में दूध-केला साथ लेना पसंद है । कुछ लोगों को बनाना-मिल्क शेक पीना पसंद है। एक्सपट्र्स कहते हैं कि दूध और केले को अलग-अलग लेना ज्यादा फायदेमंद है, लेकिन इसे एक साथ लेना सही नहीं है।आयुर्वेद की नजर से देखें, तो ऐसे बहुत सारे फूड्स कॉम्बिनेशन बताए गए हैं, जिन्हें एक साथ नहीं खाना चाहिए। गलत आहार समूह के चुनाव से आप बीमार पड़ सकते हैं और आपको पेट दर्द, कब्ज, अपच, गैस, फूड पॉइजनिंग आदि की समस्या हो सकती है।जैसे कि तरबूज के साथ दूध- दूध लैक्सेटिव स्वभाव का होता है, जबकि तरबूज ड्यूरेटिक होता है। दूध को पचने में ज्यादा समय लगता है और तरबूज को पचने में कम समय लगता है। इसी तरह तरबूज को पचाने के लिए आपकी आंतें जो एसिड बनाती हैं, वो दूध को पचने से रोकता है। इसलिए आयुर्वेद में दूध और तरबूज को भी गलत फूड कॉम्बिनेशन बताया गया है।उसी तरह से दूध के साथ केला है। दूध के साथ केला खाने से हो सकती है अपच और बदहजमी की समस्या। इससे आंतों के बैक्टीरिया पर बुरा असर पड़ता है और वो टॉक्सिन्स बनाने लगते हैं, जिससे साइनस, जुकाम, खांसी और एलर्जी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। केले और दूध का स्वभाव अलग है। एक्सपर्ट के अनुसार इस तरह के कॉम्बिनेशन से बचना चाहिए। दूध प्रोटीन, विटामिन्स, राइबोफ्लेविन और विटामिन बी 12 जैसे मिनरल्स का खजाना है। सौ ग्राम दूध में करीब 42 कैलोरी होती है, वहीं सौ ग्राम केले में 89 कैलोरी। इसी वजह से केला खाने से पेट भरा-भरा लगता है और दिन भर स्फूर्ति बनी रहती है।दूध और केला एक साथ खाने से हो सकते हैं ये नुकसान-पाचन क्रिया प्रभावित हो सकती है।-दस्त, उल्टी की शिकायत हो सकती है। हो सकता है कि यह परेशानी लंबे समय तक बनी रहे।- यह कॉम्बिनेशन से साइनस, सर्दी, कफ और एलर्जी की शिकायत हो सकती है।-आयुर्वेद के अनुसार फलों और लिक्विड के कॉम्बिनेशन से दूर रहने में ही भलाई है। इससे शरीर में भारीपन आ सकता है।
- अनानास यानी पाइन एप्पल, अपने खट- मधुर स्वाद के कारण काफी पसंद किया जाता है। इसके छिलकों को लोग बेकार समझकर फेंक देते हैं लेकिन ये शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं।अनानास खाना सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होता है क्योंकि यह एंटी ऑक्सीडेंट्स से भरपूर होता है। अनानास में प्रोटीन, काब्र्स, फाइबर, विटामिन सी, मैंगनीज, विटामिन बी6, कॉपर, थाइमिन,फॉलेट, पौटेशियम, मैग्नीशियम, आयरन आदि पोषक तत्व भी पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं जो शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं। अनानास का गूदा पीले रंग का और बेहद स्वादिष्ट होता है लेकिन इसके छिलके सख्त और थोड़े कड़वे होते हैं, ऐसे में लोग अक्सर अनानास के छिलकों को बेकार समझकर फेंक देते हैं।अनानास का छिलका सख्त और थोड़ा कड़वा होता है इसलिए आप उसे थोड़ा-थोड़ा करके खा सकते हैं या फिर इसके मीठे पल्प के साथ भी खा सकते हैं ताकि आपको कड़वाहट महसूस ना हो। आज हम आपको पाइनएप्पल के छिलकों के फायदे बताने जा रहे हैं।आइए जाने अनानास के छिलके के फायदे...एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से होते हैं भरपूरपाइनएप्पल के तने और छिलके में ब्रोमालाइन नामक एक एंजाइम पाया जाता है जो रक्त का थक्का बनाने में काफी मददगार होता है। पाइनएप्पल का छिलका शरीर में सूजन को कम करने में मददगार होता है। किसी भी चोट या सर्जरी के बाद की सूजन को कम करने में ये मदद करता है।पाचन के लिए फायदेमंद होता हैअनानास का छिलका भले ही सख्त होता है लेकिन ये फाइबर का एक बहुत अच्छा स्रोत होता है। हालांकि अनानास एक ऐसा फल है जिसमें कैलोरी ज्यादा होती है लेकिन इसके छिलके में कैलोरी की बजाय फाइबर ज्यादा होता है। फाइबर से भरपूर होने के कारण ये डाइजेस्टिव सिस्टम यानि की पाचन तंत्र के लिए बेहद फायदेमंद होता है। पेट के लिए इसे उपयोगी माना जाता है।विटामिन सी से होता है भरपूरपाइनएप्पल में भरपूर मात्रा में विटामिन सी होता है, इसके छिलके में भी ये ही ऑक्सीडेंट यानि की विटामिन सी पाया जाता है। विटामिन ष्ट शरीर को इंफेक्शन से बचाता है। विटामिन सी और ब्रोमालाइन की मौजूदगी के कारण पाइनएप्पल के ये छिलके बैक्टीरिया से लडऩे में शरीर की मदद करते हैं, कफ और खांसी को ठीक करते हैं साथ ही घावों को भी ठीक करने में मदद करते हैं। कुल-मिलाकर इम्यून सिस्टम बूस्ट करने के लिए ये काफी कारगर होते हैं।दांतों और हड्डियों को मजबूत करता हैमसूड़ों और टिशू की सूजन को कम करने के साथ-साथ ही पाइनएप्पल के छिलके दांतों और हड्डियों को भी मजबूत बनाने में काफी सहायक होते हैं। अनानास के छिलकों में मैग्नीशियम भरपूर मात्रा में होता है जो हड्डियों और दांतों को मजबूती प्रदान करता है। ये ही कारण है कि दांतों और हड्डियों के लिए भी इसे फायदेमंद माना जाता है।आंखों के लिए भी होता है फायदेमंदपाइनएप्पल में भरपूर मात्रा में बीटा कैरोटीन और विटामिन सी मौजूद होता है। अनानास के पूरे पौधे में ही ये पाए जाते हैं इस वजह से अनानास का छिलका आंखों के लिए भी फायदेमंद होता है। ये ग्लूकोमा जैसी बीमारियों से शरीर की रक्षा करता है।----
- अमरूद, बीही या छत्तीसगढ़ी में जाम, एक बहुत ही लोकप्रिय फल है। इसका फल जितना फायदेमंद है, उतना ही इसके पत्ते शरीर को फायदा पहुंचाते हैं।अमरूद की चाय प्राचीन समय से काफी प्रचलित है। यह चाय अपने औषधीय गुणों के लिए जानी जाती है। यही वजह है कि इसे हर्बल चाय की श्रेणी में गिना जाता है। अमरूद की चाय को अमरूद की पत्तियों द्वारा तैयार किया जाता है, जो एंटीऑक्सिडेंट के साथ-साथ फ्लेवोनोइड और क्वेरसेटिन जैसे पोषक तत्वों से भरी होती हैं। यह चाय उष्णकटिबंधीय देशों में बहुत लोकप्रिय है और अब दुनिया के अन्य हिस्सों में भी लोकप्रिय हो रही है।यदि आपके पास अमरूद की पत्तियां हैं, तो आप इस चाय को जरूर आजमाएं। सबसे पहले एक बर्तन में एक कप पानी डालें और इसे उबाल लें। अब इसमें कुछ ताज़े अमरूद के पत्ते डालें। इन्हें पानी में 10-15 मिनट तक रखें। अब आप इस मिश्रण को थोड़ा देर छोड़ दें और उसके बाद एक कप में चाय सर्व करें। आप इसमें स्वाद के लिए नींबू, दालचीनी या शहद जोड़ सकते हैं।बल्ड शुगर कंट्रोल करेअमरूद चाय के एक नहीं अनेक स्वास्थ्य लाभ है। यह चाय डायबिटीज को कंट्रोल करने से लेकर पाचन को बढ़ाने तक और वजन घटाने में भी सहायक है। हेल्थ एक्सपर्ट और कुछ कुछ वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि अमरूद की पत्तियों में शरीर में ब्लड शुगर कंट्रोल करने वाले गुण होते हैं। अमरूद और उसकी पत्तियां पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं, इसमें पोटेशियम, विटामिन्स और एंटीऑक्सीडेंट्स की अच्छी मात्रा है, जिस कारण यह आपके ब्लड शुगर को कंट्रोल करने में मददगार है। आप रोजाना एक कप चाय से अपने ग्लूकोज लेवल को कंट्रोल में रख सकते हैं। ॉदस्त से राहत देसंवेदनशील पेट वाले लोगों को नियमित रूप से अमरूद की पत्ती वाली चाय पीनी चाहिए। यह आपके पेट को स्वस्थ और साथ ही, यह दस्त से पीडि़त लोगों को राहत दे सकती है। यह चाय दस्त के लक्षणों को कम करने में मदद करेगी क्योंकि यह एंटी बैक्टीरियल है और इस प्रकार पेट से विषाक्त तत्वों को खत्म करने में मददगार है।दिल और दिमाग दोनों को ताजा रखेअमरूद के पत्ते शरीर में ट्राइग्लिसराइड और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने के लिए पाए जाते हैं। इसके अलावा, ये ब्लड प्रेशर को भी कंट्रोल करते हैं जो स्ट्रोक, दिल के दौरे, एथेरोस्क्लेरोसिस और कोरोनरी हार्ट डिजीज से बचा सकते हंै। रोजाना एक कप अमरूद की चाय दिल के स्वास्थ रखने में मदद करेगी। इतना ही नहीं इस चाय को पीने से दिमाग भी शांत रहेगा।वजन घटाने के लिए है बेस्टअमरूद की पत्तियों से बनी ये गुणकारी चाय वजन कम करने में भी मदद कर सकती है। यह शरीर के मेटाबॉलिल्म को बढ़ाती है और जिससे शरीर की अधिक कैलोरी बर्न करने के साथ पूरे दिन एक्टिव रहने में मदद मिलती है।हेल्दी स्किन के लिएअमरूद की पत्तियों में एंटीऑक्सिडेंट फ़ेनोलिक यौगिक होते हैं, जो प्रभावी रूप से ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करते हैं और फ्री रेडिकल्स से मुकाबला करते हैं। जिससे कि आपकी त्वचा हेल्दी और ग्लोइंग बनी रहती है। यह झुर्रियों और फाइन लाइन्स के साथ अन्य उम्र बढऩे के संकेतों को भी कम करता है, जिससे आप समय से पहले बूढ़ा नहीं दिखते।
- तरबूज यानी कलिंदर एक ऐसा फल है जो गर्मियों के दिनों में आम के साथ मिलता है। इस फल में पानी की मात्रा अधिक होती है जो शरीर को हाइड्रेटेड रहने में मदद करता है। इसमें पोटेशियम प्रचुर मात्रा में होता है। तरबूज उन लोगों के लिए भी फायदेमंद है जो वजन कम करना चाहते हैं और स्वाद से समझौता नहीं करने के मूड में नहीं होते हैं। तरबूज में 97 प्रतिशत पानी होता है। यह शरीर में ग्लूकोज की मात्रा को पूरा करता है कुछ स्रोतों के अनुसार तरबूज़ रक्तचाप को संतुलित रखता है और कई बीमारियां दूर करता है। हिन्दी की उपभाषाओं में इसे मतीरा (राजस्थान के कुछ भागों में) और हदवाना (हरियाणा के कुछ भागों में) भी कहा जाता है।तरबूज फायदेमंद होता है ये हम सभी जानते हैं। मगर तरबूज को खाने का सही तरीका क्या है और तरबूत खाने का सही समय क्या है? यह हमें जानने की आवश्यकता है। अन्यथा यह शरीर को नुकसान भी पहुंचा सकता है।- रात में तरबूज खाने से बचें। रात में तरबूज को पचाना मुश्किल है और इससे आंतों में जलन पैदा हो सकती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि रात में हमारी पाचन क्रिया दिन की तुलना में धीमी हो जाती है। रात में तरबूज खाने से पेट की समस्याएं जैसे गैस्ट्रिक की समस्या हो सकती है।-तरबूज में पानी की मात्रा अधिक होती है जो आपको रात में लगातार बाथरूम जाने के लिए मजबूर कर सकता है। और सबसे खराब स्थिति, यह ओवर डिहाइड्रेशन का कारण बन सकता है! यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर में पानी की मात्रा बढ़ जाती है और यह पानी बाहर नहीं निकलता है। अधिक पानी की स्थिति से पैरों में सूजन, कमजोर गुर्दे और सोडियम की हानि हो सकती है।- मगर रात में तरबूज का सेवन करना उचित नहीं है। यह आपको नुकसान पहुंचाए, इसलिए सुनिश्चित करें कि आप अपने ग्रीष्मकालीन आहार जैसे तरबूज आदि फल और सब्जियों को दिन में खाएं। और खुद को हाइड्रेट रखें।तरबूज खाने के अनूठे फायदे1. तरबूज में लाइकोपिन पाया जाता है जो त्वचा की चमक को बरकरार रखता है.2. हृदय संबंधी बीमारियों को रोकने में भी तरबूज एक रामबाण उपाय है। ये दिल संबंधी बीमारियों को दूर रखता है. दरअसल ये कोलस्ट्रॉल के लेवल को नियंत्रित करता है जिससे इन बीमारियों का खतरा कम हो जाता है।3. विटामिन और की प्रचुर मात्रा होने के कारण ये शरीर के इम्यून सिस्टम को भी अच्छा रखता है। वहीं विटामिन ए आंखों के लिए अच्छा है।4. तरबूज खाने से दिमाग शांत रहता है और गुस्सा कम आता है। असल में तरबूज की तासीर ठंडी होती है इसलिए ये दिमाग को शांत रखता है।5. तरबूज के बीज भी कम उपयोगी नहीं होती हैं। बीजों को पीसकर चेहरे पर लगाने से निखार आता है। साथ ही इसका लेप सिर दर्द में भी आराम पहुंचाता है।6. तरबूज के नियमित सेवन से कब्ज की समस्या दूर हो जाती है। साथ ही खून की कमी होने पर इसका जूस फायदेमंद साबित होता है।7. तरबूज को चेहरे पर रगडऩे से निखार तो आता है ही साथ ही ब्लैकहेड्स भी हट जाते हैं।8. दिन में खाना खाने के उपरांत तरबूज़ का रस पीने से भोजन शीघ्र पचना। लू लगने का अंदेशा कम होता है।9. तपती गर्मी में सिरदर्द होने पर आधा-गिलास रस सेवन से लाभ।10. पेशाब में जलन पर ओस या बर्फ़ में रखे हुए तरबूज़ के रस का सुबह शक्कर मिलाकर पीने से लाभ।11. तरबूज़ की फाँकों पर काली मिर्च पाउडर, सेंधा व काला नमक बुरककर खाने से खट्टी डकारें आनी बंद हो जाती है।12. तरबूज़ में विटामिन ए, बी, सी तथा लौहा भी प्रचुर मात्रा में मिलता है, जिससे रक्त सुर्ख़ व शुद्ध होता है।----
- नई दिल्ली। सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमेटिक प्लांट्स (सीमैप), लखनऊ के शोधकर्ताओं ने वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित दो नये हर्बल उत्पाद विकसित किए हैं। ये हर्बल उत्पाद रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देने के साथ-साथ सूखी खांसी के लक्षणों को कम करने में भी मददगार हो सकते हैं, जिसका संबंध आमतौर पर कोविड-19 संक्रमण में देखा गया है।सीमैप, जो वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की एक घटक प्रयोगशाला है, ने अपने हर्बल उत्पादों सिम-पोषक और हर्बल कफ सिरप की तकनीक को उद्यमियों और स्टार्ट-अप कंपनियों को हस्तांतरित करने का निर्णय लिया है। ये दोनों उत्पाद प्रतिरक्षा को बढ़ाने में प्रभावी पाए गए हैं। इन उत्पादों में पुनर्नवा, अश्वगंधा, मुलेठी, हरड़, बहेडा और सतावर सहित 12 मूल्यवान जड़ी बूटियों का उपयोग किया गया है।सीमैप के निदेशक डॉ प्रबोध के. त्रिवेदी ने कहा, इन हर्बल उत्पादों के निर्माण के लिए संस्थान स्टार्ट-अप कंपनियों एवं उद्यमियों से करार के बाद उन्हें पायलट सुविधा प्रदान करेगा। सीमैप में स्थित यह पायलट प्लांट अत्याधुनिक सुविधाओं और गुणवत्ता नियंत्रण सेल से लैस है।सीमैप के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. डीएन मणि ने कहा है कि वैज्ञानिक अध्ययनों में सिम-पोषक को बाजार में उपलब्ध दूसरे प्रतिरक्षा बढ़ाने वाले उत्पादों की तुलना में बेहतर पाया गया है। यह अन्य उत्पादों के मुकाबले सस्ता भी है तथा इसे जैविक परीक्षणों में सुरक्षित और प्रभावी पाया गया है। इसी तरह, हर्बल कफ सिरप को आयुष मंत्रालय के नवीनतम दिशा-निर्देशों के आधार पर विकसित किया गया है, और इसे आयुर्वेद के त्रिदोष सिद्धांत के आधार पर तैयार किया गया है।स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, कोरोना वायरस संक्रमित व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को सीमित कर देता है। यह भी देखा गया है कि इस महामारी ने ज्यादातर कम प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों को प्रभावित किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि प्रतिरक्षा प्रणाली में सुधार संक्रमण के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकता है और कोविड-19 से लडऩे में कारगर साबित हो सकता है।---
- आर्युवेद के अनुसरा आम के पंचांग (पांच अंग) काम आते हैं। इस वृक्ष की अंतर्छाल का क्वाथ प्रदर, खूनी बवासीर तथा फेफड़ों या आंत से रक्तस्राव होने पर दिया जाता है। छाल, जड़ तथा पत्ते कसैले, मलरोधक, वात, पित्त तथा कफ का नाश करनेवाले होते हैं। पत्ते बिच्छू के काटने में तथा इनका धुआं गले की कुछ व्याधियों तथा हिचकी में लाभदायक है। फूलों का चूर्ण या क्वाथ अतिसार तथा संग्रहणी में उपयोगी कहा गया है।आम का बौर शीतल, वातकारक, मलरोधक, अग्निदीपक, रुचिवर्धक तथा कफ, पित्त, प्रमेह, प्रदर और अतिसार को नष्ट करने वाला है। कच्चा फल कसैला, खट्टा, वात पित्त को उत्पन्न करने वाला, आंतों को सिकोडऩे वाला, गले की व्याधियों को दूर करने वाला तथा अतिसार, मूत्रव्याधि और योनिरोग में लाभदायक बताया गया है। पका फल मधुर, स्निग्ध, वीर्यवर्धक, वातनाशक, शीतल, प्रमेहनाशक तथा व्रण श्लेष्म और रुधिर के रोगों को दूर करने वाला होता है। यह श्वास, अम्लपित्त, यकृतवृद्धि तथा क्षय में भी लाभदायक है।आधुनिक अनुसंधानों के अनुसार आम के फल में विटामिन ए और सी पाए जाते हैं। अनेक वैद्यों ने केवल आम के रस और दूध पर रोगी को रखकर क्षय, संग्रहणी, श्वास, रक्तविकार, दुर्बलता इत्यादि रोगों में सफलता प्राप्त की है। फल का छिलका गर्भाशय के रक्तस्राव, रक्तमय काले दस्तों में तथा मुंह से बलगम के साथ रक्त जाने में उपयोगी है। गुठली की गरी का चूर्ण (मात्रा 2 माश) श्वास, अतिसार तथा प्रदर में लाभदायक होने के सिवाय कृमिनाशक भी है।पका आम बहुत स्वास्थ्यवर्धक, पोषक, शक्तिवर्धक और चरबी बढ़ाने वाला होता है। आम का मुख्य घटक शर्करा है, जो विभिन्न फलों में 11 से 20 प्रतिशत तक विद्यमान रहती है। शर्करा में मुख्यतया इक्षु शर्करा होती है, जो कि आम के खाने योग्य हिस्से का 6.78 से 16.99 प्रतिशत है। ग्लूकोज़ और अन्य शर्करा 1.53 से 6.14 प्रतिशत तक रहती है। अम्लों में टार्टरिक अम्ल और मेलिक अम्ल पाया जाता है, इसके साथ ही साथ साइट्रिक अम्ल भी अल्प मात्रा में पाया जाता है। इन अम्लों का शरीर द्वारा उपयोग किया जाता है और ये शरीर में क्षारीय संचय बनाए रखने में सहायक होते हैं।आम के अन्य घटक इस प्रकार हैं- प्रोटीन 9.6, वसा 0.1, खनिज पदार्थ 0.3 रेशा, 1.1 फॉसफोरस 0.02 और लौह पदार्थ 0.3 प्रतिशत। नमी की मात्रा 86 प्रतिशत है। आम का औसत ऊर्जा मूल्य प्रति 100 ग्राम में लगभग 50 कैलोरी है। मुंबई की एक किस्म का औसत ऊर्जा मूल्य प्रति 100 ग्राम 90 कैलोरी है। यह विटामिन 'सीÓ के महत्वपूर्ण स्रोतों में से एक है और इसमें विटामिन 'एÓ भी प्रचुर मात्रा में है।इसलिए आम को केवल एक आम पेड़ नहीं कहा जा सकता। इसके पांचों अंग- जड़, छाल, पत्ते, बौर और फल सभी बड़े खास हैं।----
- राजमा चावल उत्तर भारतीयों के सबसे प्रमुख भोजन में से एक है। बीन्स और चावल का यह मिश्रण हाई प्रोटीन के लिए जाना जाता है। दरअसल जब ये दोनों खाद्य पदार्थ एक साथ खाए जाते हैं तो प्रोटीन में मौजूद सभी तत्व हमें प्राप्त हो जाते हैं। राजमा को मसालों के साथ गाढ़ी ग्रेवी के रूप में बनाया जाता है। इस तरह ये सारे भारतीय मसाले इसमें और पोषक तत्व जोड़ देते हैं और इस तरह ये एक इम्यूनिटी बूस्टर डाइट बन जाता है। वहीं इसके कई और फायदे भी हैं। राजमा विटामिन बी 1 से समृद्ध है।-राजमा प्लांट-आधारित प्रोटीन है, जिसमें अच्छी मात्रा में खनिज, कैल्शियम, विटामिन बी 1, फाइबर और एंटीऑक्सिडेंट पाए जाते है। यह प्रोटीन और एंथोसायनिन में बहुत स्वस्थ और उच्च है।-राजमा- चावल दैनिक आहार में फाइबर की जरूरतों का 40-50 प्रतिशत हिस्सा पूरी कर देता है, जो आपके आंत्र को सुचारू रखने में मददगार है। इसके अलावा ये कब्ज को कम करने और रक्त कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद करता है।-प्रोटीन और फाइबर के अलावा राजमा में खनिज, कैल्शियम और आयरन होते हैं। यह पोटेशियम, मैग्नीशियम, घुलनशील फाइबर और प्रोटीन का अच्छा स्रोत है, जो उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद करता है।- चूंकि राजमा में ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है, इसलिए यह मधुमेह रोगियों के लिए भी ये फायदेमंद है।- राजमा में मौजूद एंटीऑक्सिडेंट कोशिकाओं की उम्र बढऩे की प्रक्रिया को धीमा करते हैं। यह झुर्रियों को कम करने, मुंहासों को ठीक करने, बालों और नाखूनों के स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है।-उच्च फाइबर सामग्री इंटेस्टाइन को भी फिट रखती है। वहीं राजमा में मौजूद जिंक तत्व आंखों और बालों और त्वचा के लिए अच्छा होता है।-ये लो-ग्लाइसेमिक-इंडेक्स फूड हैं। इसमें बड़ी मात्रा में फाइबर होता है, जिसे खाने से लंबे समय तक भूख नहीं लगती। इसमें पाए जाने वाले कम वसा वाले तत्व इसे एक कम कैलोरी वाला भोजन बनाते हैं। इसलिए वजन कम करने वालों के लिए राजमा का सेवन लाभकारी हो सकता है।- इसके अलावा यह गठिया के दर्द, अस्थमा , किडनी संबंधी रोगों में भी फायदेमंद है।-शास्त्रों में लिखा है कि किसी भी चीज की अति घातक होती है। यह राजमा के साथ भी होता है। अधिक मात्रा में इसे खाने से पाचन तंत्र में परेशानी हो सकती है, क्योंकि अधिक मात्रा में इसके सेवन से शरीर में ंज्यादा मात्रा में फाइबर पहुंच जाता है जिससे पाचन तंत्र को परेशानी होती है। वहीं कच्चे राजमा का सेवन पेट दर्द का कारण भी बन सकता है। इसलिए अच्छी तरह से पकाकर ही इसे खाएं।-
- उत्तर भारत में एक कहावत है-सत्तू मनमत्तू , जब घोले तब खा। प्राचीन काल से यह गर्मियों का सबसे अच्छा खाद्य पदार्थ माना जाता रहा है। उत्तर भारत मुख्य रूप से बिहार और उत्तर प्रदेश में यह काफ़ी लोकप्रिय है और कई रूपों में प्रयुक्त होता है। सत्तू अपने आप में पूरा भोजन है, यह एक सुपाच्य, हलका, पौष्टिक और तृप्तिदायक शीतल आहार है, इसीलिए इसका सेवन ग्रीष्म काल में किया जाता है। चने वाले सत्तू में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है और मकई वाले सत्तू में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक होती है।सत्तू बना है संस्कृत के सक्तु या सक्तुक: से जिसका अर्थ है अनाज को भूनने के बाद उसे पीस कर बनाया गया आटा।1. जौ का सत्तू- जौ का सत्तू शीतल, अग्नि प्रदीपक, हल्का, दस्तावर (कब्जनाशक), कफ़ तथा पित्त का शमन करने वाला, रूखा होता है। इसे जल में घोलकर पीने से यह बलवर्द्धक, पोषक, पुष्टिकारक, मल भेदक, तृप्तिकारक, मधुर, रुचिकारक और पचने के बाद तुरन्त शक्ति दायक होता है। यह कफ़, पित्त, थकावट, भूख, प्यास और नेत्र विकार नाशक होता है।2. जौ-चने का सत्तू- चने को भूनकर, छिलका हटाकर पिसवा लेते हैं और चौथाई भाग जौ का सत्तू मिला लेते हैं। यह जौ-चने का सत्तू है।3. चावल का सत्तू- चावल का सत्तू अग्निवर्द्धक, हलका, शीतल, मधुर ग्राही, रुचिकारी, बलवीर्यवर्द्धक, ग्रीष्म काल में सेवन योग्य उत्तम पथ्य आहार है।4. जौ-गेहूं-चने का सत्तू- चने की दाल एक किलो, गेहूं आधा किलो और जौ 200 ग्राम। तीनों को 7-8 घंटे पानी में गलाकर सुखा लेते हैं और जौ को साफ करके तीनों को अलग- अलग घर में या भड़भूंजे के यहां भुनवा कर, तीनों को मिला लेते हैं और पिसवा लेते हैं। यह गेहूँ, जौ, चने का सत्तू है।उपरोक्त दिये गये किसी भी सत्तू को पतला पेय बनाकर पी सकते हैं या लप्सी की तरह गाढ़ा रखकर चम्मच से खा सकते हैं। इसे मीठा करना हो तो उचित मात्रा में शक्कर या गुड़ पानी में घोलकर सत्तू इसी पानी से घोलें। नमकीन करना हो तो उचित मात्रा में पिसा जीरा व नमक पानी में डालकर इसी पानी में सत्तू घोलें।फायदे- 1. चने और जौ का सत्तू शरीर को न केवल ठंडक देता है बल्कि ये डायबिटीज और मोटापे का भी दुश्मन होता है।2. सत्तू की तासीर ठंडा होती है। इसलिए गर्मी में इसे खाने से शरीर ठंडा भी रहता है और पानी अधिक पीने से ये डिहाइड्रेशन से भी बचाता है। इससे लू नहीं लगती है। सत्तू शरीर का तापमान नियंत्रित रखने में कारगर होता है।3. सत्तू कैल्शियम, आयरन से भी भरा होता है। ऐसे में जिन्हें एनिमिया है वह इसे जरूर खाएं।4. सत्तू में मौजूद बीटा-ग्लूकेन शरीर में बढ़ते ग्लूकोस के अवशोषण को कम करता है। इससे ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल में रहता है। सत्तू लो ग्लाइमेक्स इंडेक्स वाला होता है। ये डायबिटीज के लिए फायदेमंद होता है।5. गैस्ट्रोइंट्रोटाइटिस से पीडि़त लोगों को सत्तू जरूर खाना चाहिए। चने और जौ के सत्तू को बराबर मात्रा में मिला कर आप इसका सेवन करें।6. जौ और चने से बना सत्तू कफ, पित्त, थकावट, भूख,प्यास और आंखों के अलावा पेट से जुड़ी बीमारी में बेहद लाभदायक होता है।-----
- मौजूदा वक्त में तेजी से बढ़ते मोबाइल और कंप्यूटर के प्रयोग ने न केवल लोगों के शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डाला है बल्कि लोगों की आंखों को भी गंभीर रूप से प्रभावित किया है। आज हम आपको ऐसे घरेलू नुस्खों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनके जरिए आप अपनी नजर को दुरुस्त बना सकते हैं। ये है बादाम, सौंफ और मिश्री का मिश्रण। लेकिन यदि आप शुगर के रोगी हैं तो आप इस नुस्खे को न ही करें।नजर तेज करने का सबसे अच्छा घरेलू उपाय है कि आप 7 बादाम और 5 ग्राम सौंफ और 5 ग्राम मिश्री लें और फिर इन तीनों चीजों को आपस में मिलाएं और कूट लें। जब ये मिश्रण चूर्ण बन जाए तो रात को सोने से पहले दूध के साथ इसका सेवन करें । रोजाना 7 दिनों तक इसका सेवन करने के बाद आपको खुद फर्क महसूस होगा। ज्यादा बेहतर है कि इसे 40 दिनों तक इस्तेमाल किया जाए। सभी जानते हैं कि बादाम शरीर के लिए कितना फायदेमंद है। आंखों की रोशनी बढ़ाने में विटामिन-ए और विटामिन-सी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सौंंफ में विटामिन-ए पाया जाता है। इस प्रकार सौंफ के सेवन से बढ़ती उम्र में भी आपकी आंखों की रोशनी प्रभावित होने से बच सकती है । वहीं मिश्री के औषधीय गुणों में से एक यह भी है कि इसे खाने के बाद आंखों के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद मिल सकती है। बताया जाता है कि इसका नियमित सेवन न केवल आंखों की रोशनी में सुधार करता है, बल्कि मोतियाबिंद जैसी समस्या में भी सकारात्मक परिणाम प्रदर्शित कर सकता है। इसप्रकार बादाम, सौंफ और मिश्री का सेवन आंखों की सेहत के लिए फायदेमंद होता है।----
- छत्तीसगढ़ में कुम्हड़ा बहुतायक मात्रा में होता है। इसे स्थानीय भाषा में मखना भी कहा जाता है। कद्दू से सब्जी के अलावा बहुत सी स्वादिष्ट चीजें बनती हैं, मालपुआ, हलुआ, खीर आदि। जितना कद्दू फायदेमंद है, उससे ज्यादा उसके बीज शरीर को फायदा पहुंचाते हैं। कद्दू के बीज यानी पमकिन सीड में बहुत से औषधीय गुण मौजूद होते हैं। प्रतिदिन मु_ी भर कच्चे, अंकुरित या भुने हुए कद्दू के बीजों का सेवन कई औधषीय फायदा दे सकता है।- कद्दू के बीज फाइबर से समृद्ध होते हैं, जो पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने के साथ-साथ, कब्ज जैसी समस्या और मोटापे को कम करने का काम करते हैं।- इसमें विटामिन-सी और ई भी पाया जाता है, जो त्वचा के लिए सबसे कारगर विटामिन माने जाते हैं। विटामिन-सी कारगर एंटीऑक्सीडेंट है। इसके अलावा ये बीज प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, आयरन, सोडियम, जिंक व फोलेट आदि से भी समृद्ध होते हैं।- एक अध्ययन के अनुसार, अलसी और कद्दू के बीजों से बना सप्लीमेंट मधुमेह का इलाज कर सकता है, लेकिन इस पर अभी और शोध की आवश्यकता है। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, डायबिटीज के लिए इटिंग प्लान में अनसैचुरेटेड नट्स के साथ अनसैचुरेटेड बीजों को भी शामिल किया जा सकता है और कद्दू के बीज में अनसैचुरेटेड फैट मौजूद होता है।- एक रिपोर्ट के अनुसार कद्दू के बीज का तेल रक्तचाप को नियंत्रित कर सकता है। कद्दू के बीज में मौजूद पोटैशियम रक्तचाप को नियंत्रित कर हृदय जोखिम को कम कर सकता है।- कद्दू के बीज खाने के फायदे में अनिद्रा से छुटकारा भी है। कद्दू के बीज मैग्नीशियम का अच्छा स्रोत हैं और मैग्नीशियम मांसपेशियों को आराम देने का काम करता है, जिससे अच्छी नींद आ सकती है।- गठिया जैसे हड्डी रोगों के लिए भी कद्दू के बीज के फायदे देखे जा सकते हैं। पमकिन सीड कैल्शियम से समृद्ध होते हैं, जो ऑस्टियोपोरोसिस होने की आशंका को कम कर सकते हैं।-एक अध्ययन के अनुसार, कद्दू के बीज में फास्फोरस की मात्रा पर्याप्त होती है। इससे ब्लैडर स्टोन के जोखिम को कम किया जा सकता है।-भोजन को पचाने में भी कद्दू के बीज के फायदे देखे जा सकते हैं। पमकिम सीड में फाइबर भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जो पाचन क्रिया को मजबूत करने के साथ-साथ कब्ज जैसी पेट संबंधी समस्या से भी छुटकारा दिलाने का काम करता है।- यह विटामिन-ए से समृद्ध होता है। ।- एनीमिया की रोकथाम के लिए भी कद्दू के बीजों के फायदे देखे जा सकते हैं। एनीमिया यानी शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन में रुकावट। इसका मुख्य कारण शरीर में आयरन और फोलेट की कमी होना है । यहां कद्दू के बीज आपकी मदद कर सकते हैं, क्योंकि इसमें आयरन और फोलेट दोनों पोषक तत्व पाए जाते हैं।इसलिए जब भी कद्दू खाएं, तो उसके बीज को फेंके नहीं, बल्कि उसे सूखाकर रख लें और उसका सेवन करें। बाजार में ये काफी महंगे बिकते हैं।----
- आयुष मंत्रालय के अनुसार इम्युनिटी बढ़ाने के लिए आपको रोजाना सुबह 1 चम्मच च्यवनप्राश खाना चाहिए। इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।भारत सरकार के आयुष मंत्रालय के अनुसार इम्युनिटी बढ़ाने के लिए रोजाना सुबह 10 ग्राम यानी 1 चम्मच च्यवनप्राश खाना चाहिए। डायबिटीज के मरीजों को शुगर-फ्री च्यवनप्राश खाने की हिदायत दी गई है। आप घर पर भी इसे बना सकते हैं वो भी बहुत कम समय में ।सामग्री- आंवला- आधा किलोकिशमिश- एक मु_ीखजूर (बिना बीज वाला)- 10 पीस (अगर उपलब्ध हो)देसी घी- 100 ग्रामगुड़- 400 ग्रामतेजपत्ता- 2 पत्तियांदालचीनी- 1 छोटा टुकड़ासूखी अदरक (सौंठ)- 10 ग्रामजायफल- 5 ग्रामहरी इलायची (छोटी)- 7-8 पीसलौंग- 5 ग्रामकाली मिर्च- 5 ग्रामकेसर- एक चुटकीजीरा- 1 चम्मचपिप्पली- 10 ग्राम (अगर आसानी से मिल जाए)चक्रफूल- 1 पीसविधि-सबसे पहले सभी सूखे मसालों (तेजपत्ता, दालचीनी, सौंठ, जायफल, हरी इलायची, लौंग, कालीमिर्य जीरा, पिप्पली, चक्रफूल आदि) को पीसकर इसका पाउडर बना लें। अब आंवलों को धोकर अच्छी तरह साफ कर लीजिए और इन्हें कुकर (2 सीटी) या पैन में उबाल लीजिए। उसके बाद आंवला को उबले हुए पानी से निकालकर अलग रख लीजिए और इसी बचे हुए गर्म पानी में किशमिश और खजूर को डाल दीजिए और 10 मिनट के लिए ढंक दीजिए ताकि ये मुलायम हो जाएं।अब जब आंवले ठंडे हो जाएं, तो इन्हें काटकर इसके बीज निकालकर लीजिए। अब ब्लेंडर या मिक्सर जार में आंवला, किशमिश और खजूर को डालिए और थोड़ा सा वही पानी डाल दीजिए, जिसमें आपने खजूर और किशमिश को भिगोया था। इन्हें पीसकर पेस्ट बना लीजिए। (ध्यान दें ज्यादा पानी न मिलाएं। अब एक पैन में देसी घी को डालें और मीडियम आंच पर इसे 10 मिनट तक पकाएं। इसके बाद इसी घी में गुड़ डाल दीजिए और गुड़ को पिघलाकर चाशनी जैसा बनने तक पकाएं। (लगभग 5-6 मिनट)इस गुड़ में आंवला और खजूर का पेस्ट डालें और चलाएं। धीमी आंच पर इस पेस्ट को चलाते रहें और पकाते रहें। 3-4 मिनट बाद तैयार किए गए मसालों का पाउडर डालें और अच्छी तरह धीमी आंच पर ही चलाते हुए मिलाएं। जब पकते-पकते ये पेस्ट इतना गाढ़ा हो जाए कि चम्मच से चिपकने लगे और पैन या कड़ाही की सतह छोडऩे लगे, तो आप गैस बंद कर दें। इसे ठंडा होने दें और आपका च्यवनप्राश बनकर तैयार है। इसे किसी एयर टाइट जार में भरकर रख दीजिए और रोजाना सेवन कीजिए। च्यवनप्राश को आप रोजाना सुबह 1 चम्मच 1 ग्लास दूध के साथ या सादा ही ले सकते हैं।--
- पत्ता गोभी या बंद गोभी एक सब्जी है, जिसे अधिकांश लोग खाना पसंद करते हैं। कुछ लोग इसे सलाद के रूप में और चाउमीन और बर्गर के साथ भी खाया जाता है। इस मुद्दे पर अक्सर बहस भी होती रही है कि क्या बंद गोभी वाकई हानिकारक हो सकता है? दरअसल, बंद गोभी में कई परत होती है, जिसे कीड़े छिपे हो सकते हैं, जो आंखों से दिखाई नहीं देते हैं। ये काफी सूक्ष्म होते हैं। ये एक प्रकार के परजीवी होते हैं जो दूसरों के शरीर के अंदर जीवित रह सकते हैं, जिन्हें टेपवर्म या फीताकृमि के नाम से जाता है।पकाने से पहले पत्ता गोभी को 15-20 मिनट के लिए नमक पानी या सिरके के पानी में भिगोएं। इसकी विटामिन सी सामग्री को संरक्षित करने के लिए, गोभी को पकाने या खाने से ठीक पहले धो लें। चूंकि गोभी में फाइटोन्यूट्रिएंट्स कार्बन स्टील के साथ प्रतिक्रिया करते हैं और पत्तियों को काला करते हैं, काटने के लिए स्टेनलेस स्टील के चाकू का उपयोग करें।देखा गया है कि अगर पत्ता गोभी में टेपवर्म मौजूद होते हैं और उन्हें बिना अच्छी तरह से धोए या अधपका खाने से शरीर में परजीवी के प्रवेश करने की संभावना बढ़ जाती है। जब टेपवर्म शरीर में पहुंचता है तो यहां तेजी से इनकी संख्या में वृद्धि होने लगती है, और ये आंतों को भेदते हुए ब्लड वेसेल्स में प्रवेश कर जाते हैं। इसके बाद ये खून के जरिए शरीर के अन्य अंगों तक इनका पहुंचना आसान हो जाता है। कई बार ये मस्तिष्क और लिवर तक पहुंच जाते हैं, जिसके कारण शरीर में कई लक्षण दिखाई देने लगते हैं, जिनमें उल्टी, दस्त, चक्कर आना, सिर दर्द, पेट दर्द और सांस फूलना प्रमुख है। टेपवर्म बारिश के मौसम में ज्यादा सक्रिय रहते हैं। दिमाग में पहुंचकर ये टेपवर्म अंडे देना शुरू कर देता है। जो दिमाग में छोटे-छोटे थक्के के रूप में नजर आते हैं। जब दिमाग में अंडों का प्रेशर बढ़ जाता है, तो दिमाग काम करना बंद कर देता है। टेपवर्म एक प्रकार का पैरासाइट है, जो अपने पोषण के लिए दूसरे पर निर्भर रहता है। इसमें रीढ की हड्डी नहीं होती है। टेपवर्म की 5 हजार से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती हैं। कई बार यह आंखों में भी पहुंच जाता है, जिससे आंखों की रौशनी पर असर पड़ता है।.इसलिए पत्ता गोभी को खाने-पकाने से पहले ऐहतियात बरतें। उसकी एक-एक परत को अलग करें और फिर नमक पानी या सिरके के पानी में भिगोएं। साथ ही अच्छी तरह से पकाकर ही खाएं।----
- गर्मियों का मौसम आ चुका है। ऐसे मौसम में शरीर को अंदर से कूल और स्वस्थ रखना बहुत जरूरी होता है।-सत्तू भुने हुए चने , जौ और गेहूं पीस कर बनाया जाता है। सत्तू का शर्बत पेट की गर्मी शांत करता है।-टमाटर में कैरोटेनॉएड होता है जो हमारे शरीर को प्राकृतिक रूप से गर्मी और सनबर्न से बचाता है।-तरबूज कई विटामिन और पोषक तत्वों से युक्त होता है। यह आपकी बॉडी को कूल रखता है।-दही और छाछ गर्मी में पाचन क्रिया को दुरूस्त कर आपको तरोताजा रखते हैं।- डाइट में तरबूज और खरबूजा, खीरा, ककड़ी, पुदीना को शामिल करें। इसमें 90 प्रतिशत पानी होता है साथ ही ये विटामिन-्र, एंटी-ऑक्सीडेंट और कैल्शियम से भी भरपूर होता है।- प्याज में क्वेरिस्टिंग होता है जो गर्मी में आपकी स्कीन पर पडऩे वाले रैशेज में आराम पहुंचाती है।- अंगूर में लायकोपीन होता है, जो त्वचा को अल्ट्रावॉयलेट किरणों के हानिकारक असर से बचाता है।- गुलकंद खाने से शरीर को ठंडक मिलती है। गुलकंद में विटामिन सी, ई और बी अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं। इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स की भरपूर मात्रा होती है, जो शरीर की प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाते हैं और थकान दूर करते हैं। ये पाचन संबंधी समस्याओं को भी दूर करता है।-गर्मियों में नारियल पानी पीते रहने से शरीर में पानी की कमी नहीं होती है।-नींबू पानी गर्मी में राहत दिलाता है। गरमी और उमस के चलते शरीर में कम हुए लवणों की मात्रा को भी नियंत्रित करता है।-पेट के लिए बेल रामबाण है। यह गैस, कब्ज और अपच की समस्या में आराम दिलाता है।- कच्चे आम का शर्बत यानी पना लू से बचाता है. गर्मियों में रोज़ाना दो गिलास आम का पना पीने से पाचन सही रहता है।-लौकी में पानी की अत्यधिक मात्रा होने के कारण यह गर्मियों में बेहद लाभदायक होती है। इसमें कैल्शियम, मैग्नीशियम, विटामिन ए, सी पाए जाते हैं।
- छत्तीसगढ़ में खासकर बस्तर में तीखुर बहुतायक में मिलता है। इसका उपयोग आदिवासी बरसों से करते आए हैं। यह एक सुपर फूड है। अब हमें इसका परिष्कृत रूप मिलता है। अपने अनेक औषधीय गुणों के कारण तीखुर की मांग देश -विदेश में बढ़ती जा रही है।आमतौर पर इसे फलाहार के रूप में हम इस्तेमाल करते हैं। इसकी खीर, हलुआ, बर्फी, सेव, जलेबी जैसी अन्य मिठाइयां बनाई जाती हैं। अब तो तीखुर की बनी आइस्क्रीम भी लोगों की खास पसंद बनती जा रही है। बच्चों के लिए यह अच्छा पोषक आहार है। तीखुर की खासियत यह है कि इससे पाचन क्रिया तो ठीक रहती ही है, टीबी, खांसी, दमा, डायरिया, डिसेंटरी, जलन, घाव या जख्म, पथरी, प्रसव पीड़ा, कमर दर्द आदि के लिए भी यह रामबाण है। तीखुर की जड़ों से स्टार्च, आरारोट व लिक्विड ग्लूकोज का भी निर्माण होता है। चिकित्सकों की मानें तो गर्मियों में तीखूर से बनी शरबत पीने से लू नहीं लगती। अल्सर व पेट के विकार दूर होते हंै। इसके प्रकंद को पीसकर सिर में एक घंटे तक लेप लगाने सिर दर्द दूर होता है। औषधीय गुणों से परिपूर्ण व सुपाच्य होने के कारण इसे कमजोर व कुपोषित बच्चों को खिलाया जाता है। तीखुर कैल्शियम और कार्बोहायड्रेट का एक प्रमुख स्रोत है।तीखुर कुरकुमा अंगेस्टीफोलिया हल्दी की जाति का एक पौधा है। इसकी जड़ का सार सफेद चूर्ण के रुप में होता है। तीखुर को आरारोट व तवखीरा भी कहते हैं। तिखुर का नाम एरोरूट इसलिए पड़ा, क्योंकि यह विष बुझे तीरों के जख्म के उपचार में बेहद कारगर होता है। प्राचीन माया सभ्यता के लोग और मध्य अमेरिकी जनजातियां, जमैका की लोक परंपराओं सहित दुनियाभर में विभिन्न जनजातियों के लोग इसका इस्तेमाल तीरों के जहर के उपचार के लिए करते थे। इसके अलावा वेस्टइंडीज के आदिवासी तीखुर के जड़ का इस्तेमाल सर्पदंश सहित अन्य जहरीले कीटों के काटने पर जहर के प्रभाव को नष्ट करने और घावों के उपचार के लिए करते रहे हैं।--
- कलौंजी, (अंग्रेजी-निजेला) एक वार्षिक पादप है जिसके बीज औषधि एवं मसाले के रूप में प्रयुक्त होते हैं। कलौंजी रनुनकुलेसी कुल का झाड़ीय पौधा है, जिसका वानस्पतिक नाम निजेला सेटाइवा है, जो लैटिन शब्द नीजर (यानी काला) से बना है, यह भारत सहित दक्षिण पश्चिमी एशियाई, भूमध्य सागर के पूर्वी तटीय देशों और उत्तरी अफ्रीकाई देशों में उगने वाला वार्षिक पौधा है, जो 20-30 सेमी लंबा होता है।इसका प्रयोग औषधि, सौंदर्य प्रसाधन, मसाले तथा खुशबू के लिए पकवानों में किया जाता है। निजेला सेटाइवा को अंग्रेजी में फेनेल फ्लावर, नटमेग फ्लावर, लव-इन-मिस्ट (क्योंकि इसका फूल लव-इन-मिस्ट के फूल जैसा होता है), रोमन कारिएंडर, काला बीज, काला केरावे और काले प्याज का बीज भी कहते हैं। अधिकतर लोग इसे प्याज का बीज ही समझते हैं क्योंकि इसके बीज प्याज जैसे ही दिखते हैं। लेकिन प्याज और काला तिल बिल्कुल अलग पौधे हैं।इसे संस्कृत में कृष्णजीरा, उर्दू में- कलौंजी, बांग्ला में कालाजीरो, मलयालम में करीम जीराकम, रूसी में चेरनुक्षा, तुर्की में कोरेक ओतु, फारसी में शोनीज, अरबी में हब्बत-उल-सौदा, हब्बा-अल-बराका, तमिल में करून जीरागम और तेलुगु में नल्ला जीरा कारा कहते हैं।कलौंजी में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और हेल्थी फैट जैसे पोषक तत्व होते है। साथ ही इसमें आवश्यक वसीय अम्ल ओमेगा-6 (लिनोलिक अम्ल), ओमेगा-3 (एल्फा- लिनोलेनिक अम्ल) और ओमेगा-9 (मूफा) भी होते हैं। कलौंजी में एंटी-आक्सीडेंट भी मौजूद होता है जो कैंसर जैसी बीमारी से बचाता है। एक शोध के अनुसार, कलौंजी में मौजूद आवश्यक घटक, थाइमोक्विनोन में अस्थमा के लक्षणों पर काबू पाने की शक्ति होती है।कलौंजी के तेल में दो बेहद ही प्रभावकारी थाइमोक्विनोन और थाइमोहाइड्रोक्विनोन नामक तत्व पाये जाते हैं जो अपने हीलिंग गुणों के कारण जाने जाते हैं। यह दोनों तत्व साथ में मिलकर सभी बीमारियों से लडऩे में मदद करते हैं। इसके औषधीय गुणों के कारण कलौंजी को हर मर्ज की दवा माना जाता है। कलौंजी का तेल शरीर में कैंसर की कोशिकाओं को विकसित होने से रोकता है और उन्हें नष्ट करता है। यह कैंसर रोगियों में स्वस्थ कोशिकाओं की रक्षा करता है। इसमें मौजूद थाइमोक्विनोन एक बायो-एक्टिव तत्व, एंटीऑक्सीडेंट, एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटी कैंसर कारक है। कैंसर से पीडि़त व्यक्ति को कलौंजी के तेल की आधी बड़ी चम्मच को एक गिलास अंगूर के रस में मिलाकर दिन में तीन बार लेने की सलाह दी जाती है।डायबिटीज, अस्थमा और सिरदर्द के उपचार में भी इसके तेल का उपयोग किया जाता है। यहीं नहीं वजन कम करने के लिए आधा चम्मच कलौंजी के तेल और 2 चम्मच शहद को मिक्स करके गुनगुने पानी के साथ दिन में तीन बार लें। कुछ ही दिनों में आपको फर्क महसूस होने लगेगा। अगर आप भी हमेशा स्वस्थ और तंदरुस्त रहना चाहते हैं तो रोजाना कलौंजी का तेल इस्तेमाल कीजिए।
- ड्रैगन फ्रूट छत्तीसगढ़ में अब एक लोकप्रिय फल बन चुका है। यहां के किसान इसकी खेती करने में रुचि ले रहे हैं। इसके सुपर गुण के कारण बाजार में इसकी मांग भी बढ़ गई है। यह सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इस फल को सलाद, जेली या फिर मुरब्बे के रूप में खाया जाता है।यह कैक्टस फैमिली से संबंधित गुलाबी रंग का एक रसीला फल है। इसका वैज्ञानिक नाम हिलोकेरेस अंडटस है। ड्रैगन फ्रूट में कई तरह के पोषक तत्व पाए जाते हैं जो हमें विभिन्न बीमारियों से बचाते हैं और शरीर को पोषण प्रदान करते हैं। आइये जाने इसके बेहतरीन गुण..पोषक तत्व- ड्रैगन फ्रूट में आमतौर पर विटामिन ए, विटामिन सी, आयरन, कैल्शियम, फाइबर और मैग्नीशियम जैसे पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। एक ड्रैगन फ्रूट में 60 कैलोरी, 2.9 ग्राम फाइबर और किसी भी तरह का हानिकारक फैट नहीं पाया जाता है। इसलिए यह वजन कम करने में सहायक है।इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाए- इसमें पर्याप्त मात्रा में विटामिन सी होता है, जो इम्यून सिस्टम को बेहतर बनाता है और वजन घटाने में मदद करता है। यह विटामिन सी से भरपूर होता है और एजिंग की समस्या को कम करने के साथ ही स्किन को हेल्दी और जवान बनाने में मदद करता है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट और एंटी टॉक्सिक गुण पाया जाता है जो शरीर को बीमारियों से लडऩे मे मदद करता है।हृदय को स्वस्थ रखे- ड्रैगन फ्रूट एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होता है जो कोलेस्ट्रॉल के ऑक्सीकरण को रोकने में मदद करता है और रक्त वाहिकाओं को डैमेज होने से बचाता है। इसके साथ ही हार्ट स्ट्रोक और उच्च कोलेस्ट्रॉल की समस्या से बचाता है।एजिंग के लक्षण घटाए- ड्रैगन फ्रूट फैटी एसिड और कोशिका झिल्ली को मुक्त कणों से बचाता है। इसके अलावा यह त्वचा के लचीलेपन को बनाए रखता है और झुर्रियों से बचाता है। ड्रैगन फ्रूट में पाया जाने वाले विटामिन्स डैमेज कोशिकाओं को रिपेयर करते हैं और त्वचा को बढ़ती उम्र के असर से बचाते हैं।डायबिटीज में लाभदायक- एक शोध के अनुसार लाल ड्रैगन फ्रूट में बीटा सायनिन मौजूद होता है जो पेट में अच्छे बैक्टीरिया को बढ़ाता है और मोटापे को घटाता है। सिर्फ इतना ही नहीं डायबिटीज को नियंत्रित करने में भी ड्रैगन फ्रूट बेहद फायदेमंद है। ड्रैगन फ्रूट में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट शरीर में कैंसर कोशिकाओं से लड़ता है और इसमें पाये जाने वाला विटामिन सी और लाइकोपिन ब्रेस्ट कैंसर से बचाने में सहायक होता है।---
- बाजार में बिकने वाले कई साबुन कीटाणुओं को मारने का दावा करते हैं तो कुछ हाथों को नरम बनाने का। दावा किया जाता है कि एंटीबैक्टीरियल साबुन आम साबुनों की तुलना में ज्यादा फायदेमंद होते हैं।आपने इन साबुनों के विज्ञापनों में सुना होगा कि आपका ये एंटी-बैक्टीरियल साबुन कीटाणुओं से छुटकारा दिलाने और आपको व आपके परिवार को सुरक्षित रखने के लिए अधिक प्रभावी है। दरअसल इन साबुनों में सबसे आम एंटीबैक्टीरियल घटक ट्राइक्लोसन इस्तेमाल किया जाता है, जबकि कुछ में अल्कोहल, बेंजालोनियम क्लोराइड और अन्य एंटीबैक्टीरियल एजेंट भी हो सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है, जो कीटाणुओं और जीवाणुओं से दूर रहने के लिए एंटी-बैक्टीरियल साबुन और हैंडवाश को ढूंढते हैं और प्रयोग करते हैं।जब भी बात बीमार होने के खतरे, कीटाणुओं को फैलाने और संक्रमित होने के जोखिम को कम करने की आती है तो एंटी-बैक्टीरियल साबुन और हैंडवाश आपके लिए अच्छे विकल्प साबित हो सकते हैं। हालांकि ये सिर्फ एक धारणा हो सकती है। अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) के अनुसार, ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है कि ये एंटी-बैक्टीरियल साबुन नियमित या आम साबुन की तुलना में अधिक प्रभावी होते हैं। हां, आज तक या यूं कहें कि अभी तक कोई गहन अध्ययन या शोध नहीं हुआ है, जो इन एंटी-बैक्टीरियल साबुन के लाभ को साबित कर सकता हो और जो ये बताता हो कि यह साबुन कीटाणुओं और रोगाणुओं को दूर रखने में बेहतर काम करते हैं।एंटी-माइक्रोबायल साबुन की प्रभावशीलता के अलावा एफडीए इस बात को लेकर भी चिंतित है कि क्या इन साबुन में मौजूद रसायन और तत्व लंबे समय तक रोजाना उपयोग के लिए सही है या नहीं। इसके साथ ही जब तब साबुन बनाने वाले निर्माता ये साबित नहीं कर पाते हैं तब तक एफडीए इस पर कोई अंतिम नियम जारी नहीं करेगा कि एंटी-बैक्टीरियल साबुन पूर्ण रूप से सुरक्षित है।एंटी-बैक्टीरियल साबुन का उपयोग आपके मन को शांति प्रदान करता है लेकिन इसके प्रयोग का नियम अभी भी वही है यानी कि आपको गंदगी और कीटाणुओं से छुटकारा पाने के लिए कम से कम 30 सेकंड के लिए अपने हाथों को अच्छी तरह से धोना होगा। अगर साबुन और पानी आसानी से उपलब्ध नहीं हैं, तो आप अल्कोहल-बेस्ड हैंड सैनिटाइजऱ का उपयोग कर सकते हैं, जिसमें कम से कम 60 प्रतिशत तक अल्कोहल होता है।---
- नमकीन व्यंजन खाने के बाद अक्सर लोगों को सुबह ब्लोटिंग जैसे परेशानियां हो जाती है। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि नमक शरीर के पानी को मार देता है, जिसके कारण अक्सर लोगों को ब्लोटिंग हो जाती है। इसलिए भी लोगों को बहुत अधिक नमक खाने की सलाह नहीं दी जाती है। वहीं यह आपके रक्तचाप पर भी बुरा प्रभाव डालता है। साथ ही हालिया अध्ययन की मानें, तो यह शरीर की प्रतिरक्षा यानी कि इम्यूनिटी के लिए भी बुरा है। दरअसल जर्मनी में एक अध्ययन में पाया गया है कि उच्च नमक वाला आहार न केवल एक व्यक्ति के रक्तचाप के लिए खराब हो सकता है, बल्कि प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए भी खराब है। आइए जानते हैं ज्यादा नमक खाने का इम्यून सिस्टम यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर क्या प्रभाव पड़ता है-नमक कैसे इम्यूनिटी घटाता है?जर्मनी में यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल बॉन के शोधकर्ताओं ने पाया कि एक उच्च नमक वाला आहार बहुत अधिक गंभीर जीवाणु संक्रमण से पीडि़त होता है। यहां तक कि एक दिन में 6 ग्राम नमक भी आपकी प्रतिरक्षा को नष्ट कर सकता है। साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, जो लोग एक दिन में 6 ग्राम से ज्यादा नमक का सेवन करते हैं उनकी इम्यूनिटी लगातार कमजोर होने लगती है। वहीं पांच ग्राम नमक का सेवन करना ही एक दिन में नमक की अधिकतम मात्रा है, जिसे वयस्कों को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की सिफारिशों के अनुसार सेवन करना चाहिए।शोधकर्ताओं ने कहा कि यह लगभग एक स्तर के चम्मच से मेल खाता है। सोडियम क्लोराइड, जो नमक का रासायनिक नाम है, रक्तचाप बढ़ाता है और जिससे दिल का दौरा या स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है। बॉन विश्वविद्यालय के शोधकर्ता क्रिश्चियन कुर्ते की मानें, तो हम अब पहली बार साबित करने में सक्षम हुए हैं कि अत्यधिक नमक का सेवन भी प्रतिरक्षा प्रणाली की एक महत्वपूर्ण शाखा को कमजोर करता है। शोधकर्ता कहते हैं कि आपके आहार में कम नमक भी आपको तेजी से ठीक करेगा, क्योंकि ये आपकी इम्यूनिटी को क्षति नहीं पहुंचाएगा।शरीर पर ज्यादा नमक खाने का असरखून में जब नमक की एकाग्रता बढ़ जाती है तो शरीर की कई जैविक प्रक्रिया काम नहीं करती हैं। भले ही सोडियम क्लोराइड का अतिरिक्त सेवन कुछ त्वचा रोगों के लिए काम करता है, लेकिन आमतौर पर शरीर के लिए ये सही नहीं है।उच्च नमक का सेवन पेट के कैंसर से जुड़ा हुआ हैपेट का कैंसर, जिसे गैस्ट्रिक कैंसर के रूप में भी जाना जाता है, कुछ आम कैंसरों में से भी एक है। यह दुनिया भर में कैंसर से होने वाली मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण है, और प्रत्येक वर्ष 7 लाख से अधिक मौतों के लिए जिम्मेदार है। कम नमक खाने वाले लोगों की तुलना में अधिक नमक के सेवन से पेट के कैंसर का खतरा 68 प्रतिशत अधिक होता है।बैक्टीरिया का विकासनमक का ज्यादा सेवन करना हेलिकोबैक्टर पाइलोरी के विकास को बढ़ा सकता है। वहीं शरीर में बैक्टीरिया से जुड़े सूजन और गैस्ट्रिक अल्सर को जन्म दे सकता है। इससे पेट के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। वहीं इससे गट हेल्थ को खासा नुकसान पहुंचता है।पेट की परत को नुकसाननमक में उच्च आहार, पेट की परत को नुकसान पहुंचा सकता है और इसमें सूजन कर सकता है। इस प्रकार भी ये कार्सिनोजेन्स को उजागर कर सकता है। वहीं कई लोगों के शरीर में ज्यादा नमक खाने से सूजन हो जाता है क्योंकि ये टिशू को फैला कर मोटा कर देते हैं।
- मुल्लेन चाय एक प्रकार की हर्बल चाय है, जो कि मुल्लेन नाम के पौधे की पत्तियों से बनाई जाती है, जो विशेषकर यूरोप में पाई जाती है। इस पौधे को स्वर्णधान्य का पौधा भी कहा जाता है। वर्षों से, इस चाय का उपयोग पारंपरिक चिकित्सा में स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज के लिए किया जाता आ रहा है और इसके कई स्वास्थ्य लाभ भी हैं।इस हर्बल चाय का उपयोग पेट के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए भी किया जा सकता है। यह पाचन तंत्र को दुरुस्त करने में मदद करती है और पाचन संबंधी समस्याओं जैसे कब्ज, अपच, दस्त और आंत्र संबंधी समस्याओं से निजात पाने में आपकी मदद करती है।मुल्लेन में एंटी-बैक्टीरियल और एंटीवायरल गुण पाए जाते हैं और इतना ही नहीं ये अपने-आप में एंटीऑक्सिडेंट से समृद्ध भी होता है। स्वाद से भरी मुल्लेन हर्बल चाय का उपयोग कई बीमारियों का इलाज करने के लिए किया जाता है और इसमें बहुत अच्छी सुगंध के साथ -साथ स्वाद भी होता है।मुल्लेन चाय एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों के लिए जाना जाती है और ये आपके श्वसन पथ की मांसपेशियों को आराम देने में मदद करती है। इसके अलावा ये चाय अस्थमा के मरीजों को भी राहत प्रदान कर सकती है। इसका उपयोग अन्य श्वसन समस्याओं जैसे ब्रोंकाइटिस, टॉन्सिलिस, निमोनिया और अन्य समस्याओं के इलाज के लिए भी किया जाता है।माना जाता है कि मुल्लेन चाय में एंटीवायरल गुण भी होते हैं और शोधकर्ताओं के अनुसार, इसका उपयोग हल्के वायरल संक्रमण और इन्फ्लूएंजा वायरस से लडऩे के लिए किया जा सकता है।इस चाय में एंटी-बैक्टीरियल गुण भी होते हैं और ये बैक्टीरिया के विकास को कम कर सकते हैं। यही कारण है कि बैक्टीरियल संक्रमण के इलाज के लिए भी मुल्लेन चाय को एक बेहतरीन उपाय माना जाता है।इस चाय में ऐसे पदार्थ पाए जाते हैं, जो प्राकृतिक शामक की तरह काम करते हैं और आपके दिमाग और शरीर को आराम देने में मदद करते हैं। यह नींद से जुड़ी समस्याओं के इलाज में मदद कर सकते हैं और इससे राहत दिला सकते हैं।---
- यदि आप वजन कम करने के बारे में सोच रहे हैं, तो एक बार खीरे और पोदीने के सूप को ट्राइ कर सकते हैं। यह सूप, पोषक तत्वों का खजाना है। इसमें ज्यादातर पानी होता है और यह शरीर की कैलोरी भार को कम किए बिना शरीर को पोषण देता है।जूस पीने के एक नुकसान ये है कि आपको उसमें फाइबर नहीं मिलता लेकिन सूप पीने से आपको पोषक तत्वों के साथ फाइबर भी मिलता है। यह जब आपके शरीर में जाता है तो प्राकृतिक तरीके से आपके मेटाबॉलिज्म में सुधार होता है, जिससे आपका वजन आसानी से कम होता है। इसमें आप काली मिर्च और रेड चीली मिलाकर भी सेवन कर सकते हैं।ऐसे बनाए सूप- खीरे का ये सूप बनाना बहुत ही आसान है। सबसे पहले एक छोटा खीरा ले लीजिए, फिर एक छोटी कटोरी में दही, चार कली लहसुन की, और एक नीबू के साथ 8 से 10 पुदीने के पत्ते लें।इसे बनाने के लिए आप सबसे पहले जरूरत के अनुसार सभी सामग्री इक_ा कर लीजिए। इसके बाद बाद उन्हें मिक्सर में एक साथ मिक्स कर लीजिए और आखिर में नींबू का रस मिलाकर सेवन करें।खीरा को गर्मियों की औषधि कहा जाता है, जो आपकी कमर के लिए चमत्कार कर सकता है। खीरे में लगभग 98 प्रतिशत सिर्फ पानी होता है। यह एंटीऑक्सिडेंट, महत्वपूर्ण विटामिन और खनिजों से भरा हुआ है। खीरे सुपर फिलिंग होते हैं और फाइबर से भरपूर होते हैं जो तृत्पि करते हैं। यदि आपका पेट भरा रहेगा तो आपका मन बाकी की अस्वस्थ्य चीजों की तरफ नहीं जाएगा।वहीं दही प्रोटीन और कैल्शियम से युक्त होते हैं, दोनों ही वजन घटाने और वसा संश्लेषण के लिए आवश्यक हैं। दही में गुड बैक्टीरिया होते हैं, जिसके कारण आपकी आंते स्वस्थ रहती हैं।लहसुन एक तरह की तीखी जड़ी बूटी है जो शरीर के मेटाबॉलिज्म यानी चयापचय के लिए चमत्कार से कम नहीं है। शरीब का अच्छा मेटाबॉलिज्म कैलोरी के तेजी से बर्न करने में सक्षम बनाता है।नीबू का रस और पुदीने के पत्ते, दोनों ही गर्मी में शरीर के लिए अच्छे पोषक तत्व का काम करते हैं, यह आपके शरीर में अतिरिक्त ज़िंग को जोड़ते हैं, बल्कि चयापचय को भी बढ़ावा देते हैं। वे पाचन की सुविधा के लिए भी बहुत प्रभावी हैं।---
- प्राय: हर घर में मिलने वाली तुलसी कई बीमारियों के खतरे से दूर करने का काम करती है साथ ही इंसान को स्वस्थ भी रखती है। इसलिए प्राचीन काल से इसके पूजन की परंपरा है।आज जानें इसके बीजों के औषधीय गुण-तुलसी में ऐसे गुण पाए जाते हैं जो हमारे शरीर से सूजन को कम करते हैं और शरीर में मौजूद संक्रमण को खत्म करने का काम करते हैं। तुलसी के अलावा इसके बीज भी बहुत फायदेमंद है। तुलसी के बीज जिसे हम मंजरी कहते हैं, को आयुर्वेदिक उपचार में भी इस्तेमाल किया जाता है। इसमें प्रोटीन, फाइबर और लौह की उच्च मात्रा होती है। आमतौर पर तुलसी के बीज पाचन, वजन घटाने, खांसी और ठंड का इलाज, प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने के अलावा और कई स्वास्थ्य फायदे देता हैं।पाचन तंत्र को सुधारता हैकई लोग अक्सर पेट संबंधित समस्याओं से परेशान रहते हैं। तुलसी के बीज पाचन तंत्र को सुधारता है। इसे पानी में डालने पर फूल जाता है और ऊपर एक जिलेटिन की परत बना लेता है। इसे पानी में डालकर पीने से पेट सही रहता है। इसमें मौजूद फाइबर आंतों की अच्छी तरह से सफाई करता है। यह कब्ज, एसिडिटी और अपच की समस्या को दूर करता है।वजन होता है कमतुलसी के बीज में कैलोरी कम मात्रा में होती है और यह भूख को कम करता है। इस प्रकार यह वजन घटाने में मदद कर सकता है। तुलसी के बीज में उच्च फाइबर सामग्री आपको लंबे समय तक भूख नहीं लगने देती। वजन कम करने के लिए आप इन्हें आहार में शामिल कर सकते हैं।सूजन को करता है कमतुलसी के बीज में एंटी इंफ्लामेट्री गुण पाए जाते हैं जो शरीर की सूजन को कम करते हैं। यह शरीर में सूजन पथों पर उनके अवरोधक प्रभाव के कारण दस्त से निपटने में भी मदद कर सकता है।इम्यूनिटी सिस्टम भी होती है मजबूततुलसी के बीज में मौजूद फ्लैवोनोइड्स और फेनोलिक शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को सुधारता है। तुलसी के बीज एंटी-ऑक्सीडेंट्स से समृद्ध होते हैं जो शरीर में मुक्त कणों के कारण होने वाली क्षति से सुरक्षा प्रदान करते हैं। फ्री रेडिकल्स यानी मुक्त कणों के डैमेज की वजह से उम्र से पहले बुढ़ापे आने लगता है। इसके साथ ही अगर आपको सर्दी-जुकाम है तो आप तुलसी के बीज का काढ़ा बना सकते हैं। आप चाय में भी तुलसी के बीजों को डालकर उनका सेवन कर सकते हैं।---